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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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जब मेरी उम्र सात साल थी तब मेरे गार्डियन ने मुझे करीब डेढ़ हजार किलोमीटर भेज दिया था फैमिली मैटर की वजह से। और वो जो ट्रेवलिंग शुरू क्या हुआ कि अब तक थमा नही है।
मेरे हालात भी कुछ आप जैसे ही हैं, और ऊपर से तुर्रा ये कि मेरी जिंदगी बंजारों वाली बन गई है लगता है।
 

avsji

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इस बात से बिल्कुल सहमत हूं, आजकल इगो को लोग ज्यादा ऊपर रखते हैं, और दोनो ही रखते है।

रिकी भाई - ईगो का तो ये है कि जो जितना खोखला होता है, उसमें उतना ही अधिक ईगो होता है। और आजकल संस्कारों, गुणों, कार्यकौशल, और मानवीय मूल्यों के नाम पर लगभग सभी खोखले ही हैं। इसलिए ईगो का टकराव तो निश्चित ही है।

ये जो आपने एडजस्टमेंट लिखा, बस यही लोग नही समझते और इन एडजस्टमेंट को कॉम्प्रोमाइज का ना दे कर इगो सैटिस्फाई करने के चक्कर में घनचक्कर बन जाते हैं

सही है।
 

deeppreeti

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avsji बहुत सुंदर और वर्णन आप की लेखनी का मैं बड़ा फैन हूँ केवल एक अनुरोध है जहाँ भी आप अन्य भाषा (भोजपुरी , english ) में कुछ लिखते हैं कृपया उसका हिंदी अनुवाद- .या शब्दों का मतलब भी लिख दिया कीजिये मेरे जैसे कुछ मूढ़ जो उन शब्दों को नहीं जानते उनके थोड़ा और मजा आएगा -eg मेहरारू एक भोजपुरी शब्द है जिसका मतलब पत्नी होता है।
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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avsji बहुत सुंदर और वर्णन आप की लेखनी का मैं बड़ा फैन हूँ केवल एक अनुरोध है जहाँ भी आप अन्य भाषा (भोजपुरी , english ) में कुछ लिखते हैं कृपया उसका हिंदी अनुवाद- .या शब्दों का मतलब भी लिख दिया कीजिये मेरे जैसे कुछ मूढ़ जो उन शब्दों को नहीं जानते उनके थोड़ा और मजा आएगा -eg मेहरारू एक भोजपुरी शब्द है जिसका मतलब पत्नी होता है।
भाई जी, मेहरारू अवधी और भोजपुरी दोनो में इस्तेमाल होता है, और इस कहानी में अवधी का ही प्रयोग हुआ है, भोजपुरी नही।
 

avsji

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avsji बहुत सुंदर और वर्णन आप की लेखनी का मैं बड़ा फैन हूँ केवल एक अनुरोध है जहाँ भी आप अन्य भाषा (भोजपुरी , english ) में कुछ लिखते हैं कृपया उसका हिंदी अनुवाद- .या शब्दों का मतलब भी लिख दिया कीजिये मेरे जैसे कुछ मूढ़ जो उन शब्दों को नहीं जानते उनके थोड़ा और मजा आएगा -eg मेहरारू एक भोजपुरी शब्द है जिसका मतलब पत्नी होता है।

मित्र, सबसे पहले तो मेरी कहानी पर आपका स्वागत है। 😊
आशा है कि आपको यह और मेरी अन्य कहानियां पसंद आ रही हैं। कोशिश करूंगा कि अन्य भाषाओं में लिखे शब्दों का हिंदी अर्थ दे सकूं।
वैसे मेरी कहानियों के पाठक बड़े कम हैं, और उनको समझ आता है सब 😊 किसी भी पाठक ने यह शिकायत नहीं करी। इसलिए मैने ज़रूरत भी नहीं समझी।
 

avsji

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अचिन्त्य - Update #4


शाम से रात्रिभोज तक का समय बड़ी ख़ुशी से बीता। हम सबने देर तक बातें करीं, हँसी मज़ाक किया, और इसी तरह के अन्य क्रियाकलापों में समय बिताया। भोजन निर्माण के लिए एक कामवाली आती थी, जो माँ का हाथ बंटाती थी। आज लतिका भी माँ के साथ ही हो ली, और माँ की अगुवाई में ही तीनों ने आज के लिए, और त्यौहार के लिए भोजन सामग्री बनाई। कामवाली छोटी दिवाली की शाम और मुख्य दिवाली को पूरे दिन छुट्टी पर थी, इसलिए माँ आज काफी सारा काम निबटा लेना चाहती थीं। तीनों ने मिल कर सब कुछ जल्दी ही कर लिया। उधर पापा और मैं बाहर जा कर कुछ मिठाईयाँ ले आए - बच्चों को तो बड़ा उत्साह रहता है मिठाईयों का! वापस आ कर कॉलोनी के कुछ लोगों से - जिनसे मेरी जान पहचान थी - मुलाकात भी करी। फिर हम दोनों वापस आ गए। तब तक खाना तैयार था। आज लतिका की ज़िद पर माँ ने हल्का खाना पकाया था, क्योंकि अगले दो तीन दिन खाने का ही तो प्रोग्राम था। वो नहीं चाहती थी कि अपनी बोऊ दी के हाथों का इतना लज़ीज़ खाना देख कर उसका मन डोल जाए! इस बात पर खाने की टेबल पर माँ और पापा ने लतिका को खूब छेड़ा।

रात्रिभोजन के बाद मैं माँ के साथ उनके कमरे में आ गया, और बाकी लोग पापा के साथ हो लिए। नन्हे बच्चों को सुलाने की ज़िम्मेदारी पापा की थी। मैं माँ की गोद में सर रख कर, आँखें बंद किये लेटा हुआ था। माँ की गोद में जो सुख मिलता है, वो शायद सबसे आरामदायक बिस्तर पर भी नहीं मिल सकता। यह एक नियम जैसा था - जब भी माँ से मिलता, सोने से पहले मैं उनकी गोद में सर रख कर पुराने - बचपन वाले - समय को जी लेता। उनके सामने मुझे छोटा बच्चा बन जाने का हमेशा ही मन करता। माँ भी मुझे वैसा ही दुलार करतीं। और वो अपनी शरारतों से भी बाज़ नहीं आती थीं - जब मैं उनका स्तनपान कर रहा होता, या यूँ एकांत में उनके साथ होता तो वो पहले के ही जैसे मुझको निर्वस्त्र कर देती थीं! यह कोई बड़ी बात नहीं थी। सुयोधन के विपरीत, अपनी माता के सामने पूर्ण नग्न हो कर जाने में मुझे कोई लज्जा नहीं थी। जिनका मैं खुद एक अंश हूँ, उनसे क्या लज्जा? और तो और, मेरा मन होता कि काश मैं छोटा हो जाऊँ और पहले जैसे ही सारी शरारतें और नटखटपना करूँ! काफी हद तक मैं वो सब करता भी था। कम से कम मेरे पास ऐसे माता पिता थे, जो मुझको इस उम्र में भी स्वतंत्र रूप से अपना बचपन जीने दे रहे थे!

अपनी गोद में लिए इस समय माँ मुझको बड़ी ममता, बड़े प्यार से सहला रही थीं और मुझको ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरी सभी चिन्ताएँ, सभी नकारात्मक ऊर्जाएँ मुझसे निकल कर माँ में समां रही थीं। नवम्बर का महीना अवश्य था, लेकिन मुंबई में गर्मी तो रहती ही है। लिहाज़ा, पंखा चल रहा था, और उसकी हवा मेरे शरीर पर बड़ी सुखद लग रही थी। माँ मुझसे हल्की फुल्की बातें कर रही थीं, और मैं बस उनकी ममता का आनंद ले रहा था। उनकी गोद में हमेशा ही निर्मल आनंद और शुद्ध सुख मिलता था मुझको! माँ की वही चिर-परिचित महक! सच में, माँ की ममता के समुद्र में गोते लगाने जैसा सुख अन्यत्र नहीं हो सकता।

“अमर... बेटे...” एक समय उन्होंने कहा, “एक बात पूछूँ?”

“अरे माँ! आप ऐसे क्यों कह रही हैं?” मैंने कहा, “आप एक क्या, सौ बात पूछिए! ... पूछिए क्या, आदेश दीजिए! ... आपको मैंने कभी न कहा है? ... न कर सकता हूँ? मेरा तो वज़ूद आपके कारण है!”

“आS मेरा बच्चा... मेरा सोना बेटू...” कह कर उन्होंने मुझको दुलार किया, फिर बोलीं, “आई लव यू... तू मुझको इतना प्यार करता है... इसी कारण से तो मैं पूछना चाहती थी!”

“क्या हो गया माँ? बोलिए न!”

“बेटा... सोच रही थी कि... क्या... फिर से... मेरी कोई... बहू... आएगी?”

“ओह माँ! हा हा! इतनी से बात के लिए इतना सोच रही थीं आप?” मैंने हँसते हुए कहा।

माँ ने गहरी साँस भरते हुए कहा, “बेटे... तू इस बात को हमेशा मज़ाक में उड़ा देता है!”

फिर मेरे लिंग को प्यार से हाथ में ले कर बोलीं, “जवान हो... किसी लड़की का संग पाने का मन नहीं करता क्या? ... रचना के बाद से इस नुनु का कभी यूज़ हुआ है?”

“क्या माँ! आप भी...” मैंने झेंपते हुए कहा, “जैसा इस्तेमाल होना चाहिए इसका, वैसा हो रहा है!”

“सूसू करने में? और कैसे?” माँ से बातों में मैं जीत नहीं सकता था - शायद पापा जीत सकें, “बेटे मेरे... हमको एक बहू चाहिए, और तुमको एक बीवी... जो इसका आनंद ले सके, और हमारा परिवार बढ़ाने में मदद कर सके!”

माँ की बात मैं समझ रहा था; लेकिन मैं क्या करता? कुछ देर चुप रह कर मैं गहरी साँस ले कर बोला, “... पता नहीं माँ! ... अब मुझे नहीं मालूम! वाक़ई... ये प्यार व्यार का बिज़नेस... अब नहीं हो पाएगा मुझसे!” मैंने कहा।

“प्यार बिजनेस नहीं होता बेटू!”

“ओह माँ... मेरा वो मतलब नहीं है... और आप वो जानती हैं।” मैंने कहा, और फिर थोड़ा शरारत से मुस्कुरा कर आगे बोला, “आप ही ढूंढ दीजिए न कोई? ... अपनी पसंद की!” फिर कुछ देर चुप रह कर, थोड़ा सीरियस होते हुए बोला, “... क्योंकि अब मेरे से तो नहीं हो सकेगा! ... सच कहूँ माँ? मेरी हिम्मत भी नहीं होती अब तो। बहुत डरते डरते रचना को अपने करीब आने दिया था... और आप सभी ने देखा कि क्या हुआ! उसका रिपीट नहीं चाहिए मुझको! ... अब... और हिम्मत नहीं होती!”

“लेकिन तुम शादी करोगे न बेटे?” माँ ने थोड़ी देर की चुप्पी के बाद कहा।

“पता नहीं माँ!”

मेरी बात से माँ को शायद दुःख हुआ, “बेटे... अभी केवल सैंतीस के ही तो हुए हो तुम...! ... ये कोई उम्र है अकेले रहने की?”

मैं कुछ कहने को हुआ कि माँ ने मेरी बात काट कर कहा, “नहीं! कुछ कहना मत - बस सुनो आज मेरी! मुझको देखो - मुझको तो तुमने तैंतालीस में ब्याह दिया... यह बोल बोल कर कि इतनी बड़ी ज़िन्दगी है... अकेली कैसे काटोगी! ... और खुद ऐसी बातें करते हो! ... ऐसा कहीं थोड़े ही होता है कि माँ दोबारा शादी कर के रोज़ मैरीड लाइफ का मज़ा उठाए, बच्चे पैदा करे... और उसका चहेता बेटा यूँ, अकेला रहे! ... उस सुख को तरसे, जो उसको मिलना चाहिए!”

माँ की बात पर मैं मुस्कुराया, “आप अपनी मैरीड लाइफ का रोज़ मज़ा उठा रही हैं माँ, सुन कर बहुत अच्छा लगा!”

मेरी बात पर माँ एक क्षण के लिए अचकचा गईं, फिर सम्हल कर कोमलता से बोलीं,

“थैंक यू बेटा... सच कहूँ बेटे? सबसे सुन्दर आठ साल रहे हैं ये मेरी ज़िन्दगी के! ... ऐसा एक पल के लिए भी न सोचना कि मैं तुम्हारे डैड के साथ सुखी नहीं थी... बहुत सुखी थी। हाँ... फिर से मेरी माँ बनने की इच्छा ज़रूर थी, लेकिन बस! उसके अलावा और कुछ नहीं! मुझे उनके साथ अपनी ज़िन्दगी को ले कर कोई कम्प्लेन नहीं था... बहुत खुश रखते थे वो मुझे! इसीलिए... जब वो... मैं तो किसी और के बारे में सोच भी नहीं रही थी... लेकिन... लेकिन तुम्हारे पापा के साथ... ओह! अपने ही बारे में इतना कुछ जानने सीखने को मिला है कि क्या कहूँ! ... इन्होने न जाने क्या जादू कर दिया है मुझ पर बेटे!”

“दिखता है माँ!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “... सब दिखता है! ... पापा सच में आपको बहुत खुश रखते हैं! ... आप पर पॉजिटिव डिफरेंस साफ़ दिखाई देता है! मैं आपको जब भी देखता हूँ, आप पहले से और अधिक खुश दिखती हैं... और अधिक निखरी हुई दिखती हैं... और अधिक यंग दिखती हैं! आई ऍम सो हैप्पी दैट यू मैरीड हिम! ... इतना तो मुझको मालूम था कि कोई बहुत अच्छा आदमी ही आपको इतना खुश रख सकता था... और... मेरे पापा में सब क्वालिटीज़ हैं!” मैं एक पल को ठहरा, “सब क्वालिटीज़ एंड सम मोर! ... यह बात शायद ही कोई बेटा कह सके, बट माँ, आई ऍम प्राउड ऑफ़ बीईंग सन ऑफ़ टू रियली ग्रेट मेन!”

माँ मुस्कुराईं, “थैंक यू बेटू... एंड व्ही आर सो प्राउड दैट यू आर आवर सन! आई नो, मेरे कहने के कारण तुमने इनको अपने जीवन में पिता की जगह दी! ... लेकिन यह भी सच है कि मैं इस बात का केवल अंदाजा ही लगा सकती हूँ कि तुम्हारे लिए कितना मुश्किल रहा होगा वो करना।”

“मुश्किल था माँ! झूठ तो नहीं कहूँगा! लेकिन पापा ने सब आसान कर दिया!” मैंने सच्चाई के साथ कहा, “... पहले तो आपको इतना प्यार कर के... फिर, हम सब को! ... नहीं तो क्या मैं ऐसे ही... किसी को भी... अपना बाप बना लेता?”

“आई लव यू बेटा... बहुत! ... लेकिन मैं क्या कह रही थी, कि जब मुझको उस उम्र में एक बार और प्यार पाने का मौका मिल सकता है, तो तुम तो अभी बहुत छोटे हो!” माँ ने इस बार बड़ी ही कोमलता से समझाते हुए कहा, “... जैसे मुझे ‘वो’ मिल गए... वैसे ही... कोई एक तो होगी जो तुमको खुश रख सकेगी... जिसको तुम भी इतना ही खुश रख सकोगे जितना गैबी और डेवी को रखा था...”

“पता नहीं माँ... हाँ, इतना बड़ा संसार है, कोई तो होगी ही... लेकिन डर लगता है अब!”

“डर? किस बात का बेटू?”

मैं थोड़ा झिझका, “एक तो हमारी फैमिली, नार्मल फैमिली जैसी नहीं है... उसको एक्सेप्ट कर पाना किसी के लिए भी बहुत डिफिकल्ट है... ऊपर से मिष्टी... और पुचुकी... उनके साथ किसी ने गड़बड़ बिहैवियर किया, तो मन टूट जाएगा!”

माँ ने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“रचना ने अपने पत्ते शादी से पहले ही खोल दिए... नहीं तो उसका वो पहलू मुझको कैसे मालूम पड़ता?” मैंने कहा।

“हाँ बेटा... बात तो सही है।” माँ कुछ सोच कर बोलीं, “... लेकिन... यह भी तो पॉसिबल है न, कि कोई लड़की ऐसी हो जो गड़बड़ नहीं, बल्कि बहुत सुन्दर बिहैव करे? ... क्या पता... गैबी बिटिया और देवयानी बिटिया से भी सुन्दर?”

“हाँ माँ... पॉसिबल है! ... लेकिन सच में एक बात कहूँ? ... अब मन नहीं होता! ऐसा लगता है कि अगर मैं अब किसी और के बारे में सोचूँगा तो जैसे मैं गैबी और डेवी से किसी तरह की बेईमानी करूँगा! ... उन दोनों ने कितना प्यार दिया था हम सभी को! ऐसे में... फिर से... किसी और लड़की के पीछे भागना... बहुत अजीब लगता है माँ!”

“आई नो कि तुम क्या कह रहे हो मेरे बच्चे... लेकिन यही सब बातें तो मेरे लिए भी उतनी ही सच थीं न? और अम्मा? उनके लिए भी तो यह सब उतना ही सच था न! ... लेकिन हम दोनों ने ही फिर से घर बसाया। हमको समझ में आया कि अपनी खुशियाँ पाने के साथ साथ हम दूसरों को भी खुश रख सकते हैं! दूसरों को भी ख़ुशियाँ दे सकते हैं... अब देखो न... हम दोनों का ही कितना भरा पूरा परिवार है! है न?”

मैंने कुछ नहीं कहा, तो माँ ने कहना जारी रखा, “अगर हम दोनों भी ऐसे ही सब कुछ छोड़ कर सन्यासिनें बन जातीं, तो कैसा रहता? सोचो न! ... ऐसे सब छोड़ छाड़ कर बैठने से कुछ थोड़े ही होता है।”

“अरे भई... क्या बात हो रही है माँ बेटे में?” माँ मुझको समझा ही रही थीं कि उतने में पापा भी आ गए, “ज़रा हमको भी शामिल कर लीजिए अपनी गुफ़्तग़ू में लाडली बेग़म!” उन्होंने अपने ही मज़ाकिया अंदाज़ में माँ को खींचा।

पापा की बात पर माँ खिलखिला कर हँसने लगीं। उनको ऐसे, छोटी छोटी बातों पर यूँ उन्मुक्त रूप से हँसता हुआ देख कर ऐसा आनंद आया कि क्या कहें। बिलकुल पहले के ही जैसी... वो पचास के ऊपर की प्रौढ़ महिला नहीं लगती थीं, बल्कि कोई नटखट सी, बीस से तीस के दशक स्त्री लगती थीं। और इस कायाकल्प के पीछे थे एक अत्युत्तम पुरुष - मेरे पापा! इसीलिए तो उनका बेटा बनने में मुझको कोई शरम नहीं लगती! बल्कि मैं तो इसको अपना सौभाग्य ही मानता हूँ!

“माँ तो हैं ही आपकी लाडली बेग़म... है न पापा?” मैंने पापा को खींचा।

मेरी बात पर दोनों ने कुछ नहीं कहा, लेकिन पापा हँसने लगे... और उन दोनों की चमकदार मुस्कान ने दोनों के दिल के सब हाल बयान कर दिए! सच में, दोनों के बीच की मोहब्बत और प्रगाढ़ता को रोज़ और भी अधिक बढ़ता हुआ देख कर मेरा मन खिल जाता है! लेकिन बात को पलटते हुए उन्होंने कहा,

“अच्छा? माँ से कम लाडले हो क्या तुम सब लोग मेरे लिए? ... हमारी तो जान बसती है तुम सभी में! सीना ठोंक कर कहता हूँ मैं तो सभी से कि मैं छः बच्चों का बाप हूँ!” यह बोलते हुए उनके चेहरे पर गर्व का भाव साफ़ दिखाई देने लगा, “तुम सभी तो मेरी ज़िन्दगी की जमा पूँजी हो...”

“आई लव यू पापा!”

“आई लव यू टू बेटे... भगवान हर किसी की बुरी नज़र से बचाएँ मेरे बच्चों को! अच्छा बताओ... किस बारे में बातें हो रही थीं, कुछ मुझे भी बताओ!”

“और किस बारे में करेंगे पापा! ... माँ को फिर से मेरी शादी करवानी है! बस, और क्या!”

“अरे बेटा तो क्या गलत है इसमें?” पापा ने माँ की बात का अनुमोदन करते हुए कहा, “मैं तो खुद ही कुछ सालों से बहू ढूंढ रहा हूँ... लेकिन कोई ऐसी लड़की जो इस परिवार का केवल हिस्सा ही न बने, बल्कि इस परिवार में खुशहाली ला सके, मिलती ही नहीं! ... हाँ, एक लड़की मिली थी जो लगा था कि सही रहेगी! लेकिन उसके माँ बाप से बात करने के बाद बात नहीं बनी!”

“हा हा! अच्छा... आप मेरे पीछे पीछे मेरी शादी ढूंढ रहे हैं, और मुझे कुछ बताते ही नहीं!” मैंने पापा से मज़ाक में कहा।

“अरे... मैंने सोचा कि पहले समधियों में बात हो जाए, फिर बात आगे बढ़ाएँ! ... तुम बच्चे लोग हमारी बात थोड़े ही टालोगे!”

बहुत हद तक बात सही भी थी - माँ, पापा, और अम्मा शायद ही कभी कुछ माँगते थे मुझसे। इसलिए उनकी कोई बात टाल पाना लगभग असंभव था। लेकिन फिर भी, अभी तक आज़ाद पंछी की तरह जीवन जिया था मैंने, और उस परिपाटी से अलग हो पाना मेरे लिए कठिन तो था। अरेंज्ड मैरिज वाला कांसेप्ट मुझको समझ नहीं आता था - ख़ास तौर पर अब! दो बार मैंने प्रेम विवाह किया, और पापा-माँ और अम्मा तीनों ने ही प्रेम विवाह किया, और हर बार सुख ही मिला। ऐसे में अरेंज्ड मैरिज - सोचना लगभग असंभव था मेरे लिए!

पापा कह रहे थे, “वैसे भी, बिना तुम दोनों एक दूसरे को जाने समझे शादी थोड़े ही करोगे! हम लोग तो केवल शादी फैसिलिटेट करवा सकते हैं - करना या न करना, तुम बच्चों पर ही डिपेंडेंट है!”

“हम्म!”

“लेकिन कोई बात नहीं - मैं लगा रहूँगा और एक अच्छी सी बहू ढूंढ कर लाऊँगा... मिशन है मेरा ये! ... एक लड़की मिली है, तो दूसरी भी मिल जाएगी जल्दी ही!”

“ओह पापा! आप भी... कुछ दिनों में पुचुकी भी शादी के लायक हो जाएगी... उसके लिए ढूंढते हैं न कोई! मेरा तो हो गया, जो होना था!”

“क्या हो गया तुम्हारा तो? हम्म? चुप कर बैठो! नहीं तो कान उमेठूँगा तुम्हारे! ... हम तो चाहते हैं कि तुम फिर से शादी का सुख पा सको, फिर से कुछ और बच्चों का दादा बनूँ मैं... हाँ, पुचुकी शादी के लायक तो है... ठीक है, पुचुकी के लिए भी ढूँढेंगे! तुम्हारे लिए भी ढूँढेंगे!”

“हा हा! ठीक है!” मैं इस बहस को अवॉयड करना चाहता था अब, “आपको अपना सर दर्द करवाना है, तो मैं क्या करूँ!”

पापा ने भी इस बात को आगे नहीं बढ़ाया। और हम अब दूसरी बातों पर चर्चा करने लगे - ख़ास कर हमारे यहाँ, मुंबई आने की। मुझे बताया गया कि आभा के लिए दो तीन बढ़िया स्कूलों में बात कर ली गई है, और उसके एडमिशन में कोई भी दिक्कत नहीं होगी। लतिका अपना पोस्ट-ग्रेजुएशन मुंबई यूनिवर्सिटी से कर सकती थी। बहुत से ऑप्शंस मौजूद थे। मैं जितना सुन रहा था, मुझे उतना ही अच्छा लग रहा था। पापा ने मेरे नए ऑफिस के लिए एक नई बनती बिल्डिंग में स्थान भी देख रखा था - अगर मुझे पसंद आता, तो बुकिंग करी जा सकती थी। बढ़िया है!

“बहुत अच्छा है पापा सब कुछ! लेकिन...”

“लेकिन क्या बेटे?”

“दोनों बच्चों से एक बार पूछ लेना चाहिए न... और कुछ नहीं! उनसे डिसकस कर लेते हैं। पुचुकी और मिष्टी के सारे दोस्त हैं दिल्ली में! उनका भी अपना एक सर्किल है।”

“हाँ हाँ! बिलकुल पूछना चाहिए! कल सबसे बात कर लेंगे न! ... मैं तो बस इसी उत्साह में हूँ कि मेरे सारे बच्चे मेरे साथ होंगे जल्दी ही! हमारी ज़िन्दगी बड़ी सुन्दर होने वाली है!”

पापा का एक्साईटमेन्ट देख कर कोई भी उससे अछूता बना नहीं रह सकता। इतनी पाजिटिविटी है उनके विचारों में! मैं मुस्कुराया, और माँ की गोद से उठने लगा, “आई ऍम आल्सो लुकिंग फॉरवर्ड टू इट पापा! ... चलिए अभी आप लोग सो जाईए! देर हो रही है!”

“दुद्धू पिया इसने?” पापा ने माँ से पूछा।

माँ ने ‘न’ में सर हिलाया।

“अरे, ऐसे कैसे जा रहे हो? यहाँ आये हो! जितने दिन दो, माँ का दूध पी लिया करो... ये बेचारी तरसती रहती है तुम सभी को अपना दूध पिलाने को, और तुम लोग ऐसे करते हो!”

पापा! इतना बड़ा आदमी अपनी माँ का दूधू कैसे पिए!”

“हँय? अरे भई, जैसे पिया जाता है वैसे ही! या फिर भूल गए!” पापा ने हँसते हुए कहा, “बेग़म, ज़रा सिखाओ तो बेटे को!”

“क्या पापा...” मैं झेंप गया।

“बेटे... क्या अपने माँ बाप से बड़े हो जाओगे कभी? हमको देखो... हम दोनों को तो कभी भी शर्म नहीं आती अम्मा का दूध पीने में! उल्टा हमको तो गर्व होता है कि अभी भी उनका आशीर्वाद मिल रहा है हमको!”

“नहीं पापा, मैंने कब कहा कि मुझको शर्म आती है? ... और... गर्व तो मुझको भी होता है!”

“तो फिर हिचकते क्यों हो बेटू?” माँ ने कहा, “तुम्हारा तो अधिकार है!”

“लेकिन आप दोनों को सोने में लेट हो जाएगा न...”

“लेट होगा तो होने दो... कोई बात नहीं! कल से तो छुट्टी है बढ़िया...”

“... लेकिन आप दोनों की प्राइवेसी में भी ख़लल...”

“अब पिटेगा तू मेरे हाथों!” पापा ने कहा और मुझको हाथ से पकड़ कर वापस बिस्तर पर बैठा लिया।

माँ एक चौड़ी मुस्कान में मुस्कुराती हुई, मेरे गालों को अपनी हथेलियों में ले कर मेरे माथे को चूम लेती हैं, और फिर मुझको लिटा कर अपनी ब्लाउज के बटन खोलने लगती हैं।

“अमर... बेटे... मेरे लिए जैसे बाकी सब बच्चे हैं, वैसे ही तुम हो!” माँ बड़े प्यार से बोलीं, “बस, थोड़े बड़े हो गए हो!”

“सुना?” पापा ने मुझे कहा - मेरे कुछ भी कहने से पहले।

मैं बस मुस्कुराया।

“मुझसे कैसी शर्म? मेरे ही शरीर से तो तुम्हारा शरीर बना है... इतने सालों तक तुमको सेया है... अपना दूध पिलाया है... ऐसे ही थोड़े न इतने बड़े से हो गए तुम!” माँ ने ब्लाउज उतारते हुए कहा - उनके दोनों सुन्दर से अमृत-कलश प्रदर्शित हो गए।

“नहीं माँ... आपसे और पापा से कहाँ शर्म करता हूँ! आप दोनों से शर्म करता तो यूँ आप दोनों के सामने नंगा रहता?”

“तो दूध पीने में भी मत किया करो!” पापा ने कहा, “... माँ के दूध पर तुम्हारा सबसे पहला हक़ है!”

“इसलिए,” माँ मेरे बगल में आ कर अपनी हथेली पर अपना सर टिका कर, मेरी तरफ़ मुखातिब हो कर, अपने साइड पर लेट गईं, “जब भी मौका मिला करे, जितना हो सके, मेरा आशीर्वाद ले लिया करो!”

“जी माँ!” मैंने मन ही मन इस आशीर्वाद के लिए ईश्वर का धन्यवाद किया, “हमेशा माँ!”

“समझ गया न बेटा?” पापा ने सुनिश्चित किया।

“जी पापा!”

“मेरा बेटा...” माँ ने कहा और बड़े प्रेम से अपना एक दुग्धपूरित चूचक मेरे मुँह में डाल दिया।

कुछ देर तक मैंने शांति के साथ माँ के अमृत का पान किया। माँ कोई गीत गुनगुना रही थीं - कोई गीत था, लेकिन लोरी नहीं थी, पर उनके गाने में इतनी ममता थी कि मुझ पर वो लोरी जैसा प्रभाव डालने लगी। पाठकों को आश्चर्य होगा कि इतने बड़े हो कर ऐसी बच्चों जैसी प्रतिक्रिया! मुझे भी स्वयं पर आश्चर्य हो आया!

मैं अनगिनत बार यह बात दोहरा चुका हूँ कि माँ का दूध अमृत होता है। जब तक स्नेहपूरित तरीके से संभव हो, माँ और संतान को इस अमृत के देन-लेन करने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए। अच्छा किया माँ और पापा ने कि मुझको आज उन्होंने स्तनपान के लिए उकसाया। मैं भी बेवक़ूफ़ हूँ - खुद को उन दोनों से बड़ा समझने लगता हूँ कभी कभी, और उनसे हिचकने लगता हूँ। उनका बच्चा होने का यही तो सबसे बड़ा लाभ है - अपने माँ पापा से तो मैं सब कुछ मांग सकता हूँ! अचानक ही मन बहुत शांत होने लगा - एक तो माँ के शरीर की महक इतनी आश्वस्त करने वाली थी, ऊपर से उनका मीठा सा, गुनगुना गरम दूध, और ऊपर से उनकी मीठी सी लोरी! शायद इन बातों का कोई रासायनिक कारण हो, लेकिन मुझ पर सुकून की एक कनात छाने लगी। कुछ ही पलों में मैं फिर से छोटा बच्चा बन गया था। शायद इसीलिए हमारे माँ बाप हमेशा कहते हैं कि ‘मेरे लिए तो तुम बच्चे ही हो’!

इतनी तेज़ से मुझ पर सुकून छाने लगा कि समझ ही नहीं आया कि कब नींद गहराने लगी। मैं खुद महसूस कर रहा था कि मुझको नींद आ रही थी - दुग्धपान की क्रिया बहुत धीमी होने लगी थी मेरी... बहुत रुक रुक कर मेरा मुँह चल रहा था। जब मुँह से दूध ढलकने लगता, तब मैं चौंक कर पुनः पीने लगता, नहीं तो नींद के आगोश में समाता रहता।

“दुल्हनिया,” पापा की दबी, फुसफुसाती आवाज़ आई, “बेटा सो गया क्या?”

“लगभग... लेकिन कच्ची नींद है अभी!” माँ ने मेरा माथा सहलाया; बड़े प्यार से माथे पर बिखरे बाल हटाए।

“ठीक से पिया?”

“ऊहूँ... आधा खाली है अभी!”

“इतना बड़ा हो गया है बेटा, लेकिन फिर भी आदित्य जैसा ही बिहैव करता है!”

“उसका तो पीना कम हो रहा है, इसलिए!”

“गधा है वो...”

“हा हा... आप ही का बेटा है!”

“दुल्हनिया?”

“जी?”

“मेरा भी मन हो रहा है...”

माँ अवश्य ही इस बात पर मुस्कुराई होंगी, “आपका मन कब नहीं होता?” उन्होंने दबी आवाज़ में कहा।

“अच्छा जी... मन क्यों नहीं होगा? पहले तो तुमने मुझ बेचारे पर अपना जादू डाल दिया, और अब अपना गुलाम बना कर ऐसी बातें करती हो!”

“ग़ुलाम! हा हा! ... बढ़िया ग़ुलामी है आपकी!” माँ दबे स्वर में हँसने लगीं, “... मेरे अमर के पापा... थोड़ा सब्र रखिए! कुछ देर रुक जाईए!” उन्होंने दबी आवाज़ में कहा, “बेटा सो जाए... फिर आपको वो सुख दूँगी जिसके लिए आप पूरे दिन तरसे हैं...”

“हाय दुल्हनिया... ऐसी बातें कह कर मेरी बेसब्री और भी बढ़ा दोगी तुम तो! कैसे रुकूँ ऐसी बातें सुन कर?”

ज़ोर की नींद आ रही थी, लेकिन ऐसी बातें सुन कर मन में हलचल तो मचने ही लगती है न! मैंने मन ही मन पापा से शिकायत करी - कहाँ बढ़िया वात्सल्य और ममता भरा माहौल चल रहा था, और कहाँ अचानक ही वो यह ब्लू-फ़िल्म वाला माहौल ले आए! धत्त, ऐसे थोड़े ही होता है! हलचल अवश्य होने लगी, लेकिन नींद बहुत चढ़ गई थी। आँखें खोल पाना मुश्किल हो रहा था। और तो और, मैं भी चाहता था कि जल्दी से सो जाऊँ, जिससे दोनों अपना खेल खेल सकें।

“मैं भी तो तरस रही हूँ सुबह से...” माँ ने रहस्य खोला।

“क्या सच में दुल्हनिया?” पापा ने कहा।

“और क्या? आपको क्या लगता है? ... आपके बिना मेरा चल जाता है!” माँ ने तरसती हुई आवाज़ में कहा।

“देखूँ तो...”

कुछ क्षणों के बाद कपड़ों की सरसराहट और बिस्तर की हलकी चरमराहट की आवाज़ से समझ आ गया कि माँ के कपड़े - मतलब उनकी साड़ी और पेटीकोट उतर रहे हैं। पापा कुछ भी कर रहे हों, लेकिन माँ ने सुनिश्चित कर रखा था कि उनका स्तन मेरे मुँह से न निकले। लेकिन पापा शायद अब खुद पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे थे - हो भी कैसे? जब माँ जैसी सुंदरी, अपने पति के सामने नग्न लेटी हुई हो, तो वो व्यक्ति स्वयं पर नियंत्रण रखे भी कैसे? और क्यों?

मेरे कानों में माँ के पायल की रसीली सी आवाज़ आई - लेकिन ऐसा लगा कि मस्तिष्क में मीठा सा रस तैर कर घुल गया हो। मैं बस नींद की गोद में समाने वाला ही था।

“दुल्हनिया... तू सच में कमाल की है!” पापा की फुसफुसाती हुई आवाज़ बहुत दूर से आती हुई, लगभग तैरती हुई, लग रही थी, “इन प्यारे प्यारे दुद्धुओं से अमृत निकलता है... और इस क्यूट सी चूत से शहद!”

“ओह्ह्ह...” माँ के चिहुँकने की आवाज़ आई, और फिर पापा को उनकी एक प्यार भरी झिड़की पड़ी, “धत्त...”

आगे का मुझे कुछ नहीं सुनाई दिया। अब तक मैं पूरी तरह से नींद की आगोश में समां गया था।

*
 

avsji

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अचिन्त्य - Update #5


ठीक है, कहानी के किरदार को अवश्य ही न मालूम रहे, लेकिन कहानी के लेखक को तो सब मालूम ही रहता है। ‘देखूँ तो’ बोल कर सुनील सुमन की साड़ी को उसकी पेटीकोट से निकालने का प्रयास करने लगा। ऐसा करते हुए उसकी एक दृष्टि अमर के ऊपर ही थी, कि कहीं बेटा जाग न जाए!

उधर सुमन का भी यही प्रयास था कि कहीं बेटा जाग न जाए! सुमन ने अमर के सर को हल्का सा थाम कर अपना स्तन और दे दिया था, जिससे उसको स्तनपान करते रहने में कोई रूकावट न हो। अमर की हालत देख कर सुनील समझ गया कि वो सो ही गया है लगभग! जब पेटीकोट का नाड़ा खोल कर सुनील ने सुमन को नग्न किया, तो उसने देखा कि उसकी पत्नी की चिकनी, पशम-रहित योनि के चीरे से काम-रस निकल रहा है। कोई आठ साल पहले उसने इस अंग को पहली बार, बड़ी तसल्ली से देखा था - उस दिन वो जितना चकित और आनंदित हुआ था, आज भी वो उतना ही चकित और आनंदित हो रहा था। सुमन की उम्र बढ़ी, उन दोनों के तीन बच्चे हुए - लेकिन फिर भी सुमन की योनि का आकार लगभग पहले जैसा ही था, और उसकी ताज़गी और कोमलता ज्यों की त्यों बरकरार थी!

एक पहचानी हुई मादक सुगंध से सुनील का मन और प्रत्येक अंग कामुकता से भर गया!

“दुल्हनिया मेरी... तू सच में कमाल की है!” वो मंत्रमुग्ध सा हो कर बोला, “इन प्यारे प्यारे दुद्धुओं से अमृत निकलता है... और इस क्यूट सी चूत से शहद!”

कह कर उसने सुमन की योनि में अपनी उंगली डुबो दी।

“ओह्ह्ह...” सुमन के शरीर में झुनझुनी दौड़ गई, “धत्त...” सुमन ने जैसे तैसे खुद पर नियंत्रण रखने की कोशिश करी।

सुनील ने सुमन की योनिरस से भीगी अपनी उंगली निकाली और अपने मुँह के भीतर तक डाल कर आनंद से चूसा।

“आह,” वो बोला, “क्या स्वादिष्ट शहद है जानेमन!”

“आप न,” सुमन ने कांपती आवाज़ में कहा, “बहुत बदमाश हो गए हैं! ... जब छोटे थे तब मेरे काबू में रहते थे... लेकिन अब... आप मेरी एक भी बात नहीं सुनते!”

“मेरी जान... मैं तो तब भी तुम्हारे ही काबू में था, और अब भी! ... मैं तब भी तुम्हारा दीवाना था... और अब भी...” सुनील ने कहा और अपने होंठों को सुमन की योनि के होंठों से सटा दिया।

“आअह्ह्ह...” सुमन इस अप्रत्याशित प्रहार से सिहर गई, “रुक जाईये न कुछ देर... बेटा जाग जाएगा!”

अमर के जागने का डर तो था, लेकिन सुनील से रुका ही नहीं जा रहा था। सुनील और सुमन के मन में एक दूसरे के लिए भावनात्मक प्रेम के साथ साथ बड़ा प्रबल शारीरिक आकर्षण भी था - आज भी दोनों की कामाग्नि एक दूसरे की छुवन मात्र से भड़क जाती थी। इसलिए रुकना न तो सुनील के लिए संभव था, और न ही सुमन के लिए।

सुनील यथासंभव अपनी जीभ को सुमन की योनि में घुसा रहा था और उसको प्यार कर रहा था। सुमन के कोमल से अंग का संग फिलहाल सुनील के कोमल अंग से था! सुमन पर कामोत्तेजना हावी हो रही थी और उसकी योनि से रस अनवरत निकल रहा था, और सुनील उसको पीता जा रहा था। सुनील के इस प्रहार के कारण सुमन की टाँगें भी खुलती जा रही थीं, और उसके साथ साथ उसकी योनि भी! सुमन का भगशिश्न अब खुल कर सुनील के सामने था। सुमन को मालूम था कि उसके पति के मुख का अगला प्रहार कहाँ होने वाला है, लेकिन फिर भी जब वो प्रहार हुआ, तो उसके पूरे शरीर में जैसे बिजली की तरंग सी दौड़ गई।

“जानूऊऊ... आह्ह्ह... दाने को न्नन्नहीं... जानूऊऊ... आह्ह्ह्ह!” बुदबुदाते हुए सुमन ने अपने मुँह को अपनी हथेली से ढँक लिया।

इस हलचल से उसका स्तन अमर के मुँह से बाहर निकल गया था - उसने चौंक कर अमर की तरफ देखा कि कहीं वो जाग तो नहीं गया? देखा कि वो गहरी साँसे ले रहा था। उसको राहत की साँस आई - कम से कम वो अपने मम्मी पापा को यह नटखट खेल खेलते नहीं देख रहा है, वर्ना सुमन को बहुत शर्मिंदगी महसूस होती!

सुनील ने सुमन की योनि को चूसना, चूमना, और चाटना जारी रखा। जिस दिन से सुनील ने सुमन की माँग में सिन्दूर रचा था, तब से कम से कम दस हज़ार बार वो ये काम कर चुका होगा सुमन पर, लेकिन हर बार उसको एक अनोखा और नया सा अनुभव होता है। अपनी पत्नी की सबसे पवित्र जगह को मौखिक प्रेम करना - शायद सुमन को आदर करने का सुनील का यह अपना ही तरीका था। सुमन को भी बड़ा आश्चर्य होता कि इतने बार मुख मैथुन का आनंद उठाने के बाद भी हर बार उसको नया आनंद आता। हर बार सुनील द्वारा भोगे जाने पर उसको अद्भुत अनुभूति होती - जैसे की उसकी आत्मा ही अघा गई हो। आज रात भी यही होना है - यह उसको मालूम था। लेकिन उसी अनोखे आनंद की प्रत्याशा से वो अभी से पुलकित हुई जा रही थी।

सुमन से और बर्दाश्त नहीं हो रहा था, और वो कामुक उन्माद में लिप्त हो कर सुनील के सर को सहलाने लगती है। उसको सुनील को कुछ बताने की आवश्यकता नहीं थी। सुमन के शरीर रुपी वाद्य-यंत्र को कैसे बजाना है, सुनील को अच्छी तरह से मालूम था। उसके भगशिश्न को अपने होंठों में दबा कर सुनील उसको अपनी जीभ से छेड़ने लगता है।

“ओह गॉड... नोओओ... ब्बस्स... ब्बस्स... आह्ह्ह्ह... उफ्फ्फ्फ़...” सुमन का शरीर नियंत्रण से बाहर हो कर काँपने लगा।

आनंद ऐसा था कि बर्दाश्त नहीं हो रहा था; न रुका जा रहा था और न ही आगे और झेला जा रहा था। सुनील अच्छी तरह जानता था कि उसकी पत्नी को कैसा आनंद आ रहा था। लिहाज़ा उसने सुमन के भगशिश्न को छेड़ना बंद नहीं किया।

“आआह्ह्... पप्लीईईज़... उफ्फ्फ्फ़... म्म्ममेरा... हो...”

सुमन अपने ओर्गास्म के द्वार पर खड़ी हो कर बुरी तरह थरथराने लगी। उसके शरीर की जुम्बिश बढ़ती ही जा रही थी। इस समय उसको संसार की रत्ती भर की परवाह नहीं थी - परवाह करने योग्य ही नहीं बची थी वो! उसका मस्तिष्क इस अनवरत मिलने वाले आनंद को ही संसाधित नहीं कर पा रहा था, ऐसे में संसार में क्या हो रहा था, उसकी परवाह उसको क्यों होने लगी? सुमन के नितम्ब स्वतः ही उठ कर सुनील के होंठों में उसकी योनि की पहुँच को और बढ़ा रहे थे।

इसी समय सुनील ने एक और आघात किया - उसने अपने दोनों हाथ बढ़ा कर सुमन के दोनों स्तनों को हल्के से दबा दिया। उसके दोनों चूचक उत्तेजनावश पहले से ही खड़े थे। रत्ती भर दबाव पड़ते ही दूध के पतले से दो फ़ौव्वारे फूट पड़े! सुनील ने और नहीं दबाया - इस श्वेत स्वर्ण को यूँ बेकार में गँवाना नहीं चाहिए। इस पर उसके बच्चों का अधिकार था! लेकिन सुनील की इस एक हरकत से सुमन के ओर्गास्म की आखिरी रक्षापंक्ति ढेर हो गई। उसकी योनि अनियंत्रित सी हो कर संकुचन प्रसरण करने लगी थी। सुनील समझ रहा था कि क्या हो रहा था, लेकिन उसका अनवरत प्रहार एक पल के लिए भी नहीं रुका।

“आआआह्ह्हह्ह...” सुमन की कराह ऐसी थी कि कोई भी सुन ले - अगर वो जाग रहा हो।

सुमन की योनि से संतुष्टि का रस निकल कर सुनील के मुँह को भरने लगा, और उसका शरीर और भी तेज़ से थरथराने लगा। सुनील भी अनुगृहीत हो कर उसके ‘शहद’ को पीता रहा! कुछ देर के बाद सुमन का शरीर शांत होने लगा, साथ ही साथ उसके मुँह से निकलने वाली कराहें और सिसकियाँ भी कम पड़ने लगीं। उसके नितम्ब अब वापस बिस्तर पर लौट आए थे। ओर्गास्म के शिखर से उतरने के बाद सुमन शिथिल पड़ गई थी। उसकी साँसे गहरी होने लगी थीं, और उसकी एक जाँघ बिस्तर पर और दूसरी सुनील की गर्दन पर ढेर हो गई थी।

सुनील मुस्कुराया - इतनी देर में उसने पहली बार सुमन की ओर देखा। उसकी आँखें बंद पड़ी थीं, और मुँह खुला हुआ था। शायद मुँह से ही साँसें ले रही थी वो। सीना तेजी से ऊपर नीचे हो रहा था। उसने एक निगाह सुमन के बगल सो रहे अपने बेटे पर डाली - वो हर बात से बेखबर सो रहा था। सुनील संतुष्टि से मुस्कुराया - वो सुमन की जाँघ की तकिया लगा कर उसकी दूसरी जाँघ को चूमने लगा। सुमन ने आँखें खोलीं; उसके मुँह से हल्की हल्की सिसकियाँ अभी भी निकल रही थीं। सुनील के चुम्बन जारी रहे।

“हो गई आपकी मनमानी पूरी?” सुमन ने अंततः बोला - उसकी आवाज़ ऐसी लग रही थी जैसे कि उसने मदिरा पी ली हो। थकावट, संतुष्टि, और आनंद का मादक संयोजन!

“अभी कहाँ दुल्हनिया...” सुनील ने अपने स्वर में बदमाशी का पुट लिए हुए कहा, “अभी तो आधा मैच हुआ है। दूसरी इनिंग तो बाकी ही है!”

“ओह गॉड!” सुमन ने लाड़ भरे स्वर में कहा, “अपनी दुल्हनिया पर दया नहीं आती आपको, मेरे जानू?”

“हाय मेरी जान! अगर ऐसे कहोगी तो मुझसे काबू नहीं हो पाएगा...”

“हा हा... मैं क्या कह रही हूँ, और आपको क्या समझ में आ रहा है! ... आप भी न!”

“दुल्हनिया मेरी, क्या करूँ मैं? ... जब तक मैं अपने लण्ड को इस प्यारी सी चूत की सैर न करवा दूँ, मेरा दिन ठीक नहीं जाता! ... दिन की शुरुवात और दिन का अंत... दोनों बिना इसके गोते लगाए होता नहीं!”

“तो आपको रोका ही किसने है? ... और आप रोकने से रुकेंगे भी क्या?” सुमन ने फिर से बड़ी अदा से कहा।

सुनील तो पहले से ही तैयार था, लेकिन इस ‘सजेस्टिव टॉक’ से उसका उत्तेजन और भी बढ़ गया। लिंग उसका बहुत देर से उत्तेजना से तमतमा रहा था। उसको किसी और बात की आवश्यकता नहीं रह गई थी।

उसने सुमन के नितम्बों को नीचे से अपना हाथ लगा कर ऊपर की तरफ़ उठाया, और फिर से सुमन की योनि को चूमने चाटने लगा। अपने ओर्गास्म के आनंद पर पहुँच कर सुमन शिथिल अवश्य हो गई थी, लेकिन यह ऐसी क्रिया थी कि उसकी कामना की अग्नि फिर से जलने लगी।

“... ओह्ह...” वो फिर से किसी अन्य लोक में जाने की तैयारी करने लगी।

उसकी योनि को अच्छी तरह से चूमने के बाद, सुनील उसके नितम्बों और फिर उसका सपाट पेट चूमते हुए उसके शरीर के ऊपर की तरफ जाने लगा। कुछ देर सुमन की नाभि से खेलने के बाद वो उसके स्तनों पर पहुँचा। सुमन का एक पसंदीदा काम शुरू होने ही वाला था। अपने बच्चों को स्तनपान कराने के साथ साथ सुमन चाहती थी कि उसका पति भी उसका स्तनपान करे! हाँ - अवश्य ही सुनील उसका पति बन गया था, लेकिन सुमन के मन के किसी कोने में वो अभी भी वही तेरह चौदह साल का लड़का था, जिसका उसने कुछ वर्षों पहले तक पालन पोषण किया था! दिन के अंत में, उनके शयनकक्ष के एकांत में सुनील को स्तनपान कराना सुमन को गज़ब का सुकून देता था।

जैसे ही सुनील के होंठ उसके स्तन को स्पर्श करते हैं, सुमन की आँखें बंद हो जाती हैं - यह एक समय होता है जब वो अपने मन में अपने पति की प्रेयसी नहीं, बल्कि माँ जैसी होती है। यह एक ऐसा रहस्य था, जो उसने अभी तक सुनील पर ज़ाहिर होने नहीं दिया था। इसिलिए वो आँखें बंद कर लेती थी कि कहीं उसके प्रति सुनील के मन का भाव बदल न जाए।

सुनील पूरी तन्मयता से बारी बारी कर के उसके चूचकों को चूमने लगा। उधर सुमन ममता के मारे उसके बालों में अपनी उँगलियाँ फिराने लगी। अंततः सुनील ने एक चूचक को अपने मुँह में ले कर पीना शुरू कर दिया। अपनी पत्नी के स्तन से दूध पीते पीते सुनील की नज़र अचानक से सुमन पर पड़ी, जो उसके बालों को बड़े प्यार से सहलाते हुए, उसको बड़े स्नेह और ममता से देख रही थी। उसको अपनी तरफ ऐसे देखते हुए देख कर सुनील ने आँखों के इशारे से पूछा, ‘क्या?’ उसके उत्तर में सुमन ने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया - मतलब, ‘कुछ नहीं’!

सुनील बहुत नहीं पीता था - बस ‘अपने हिस्से’ का पीता था, कि कहीं सभी बच्चों के लिए दूध कम न पड़ जाए! लिहाज़ा स्तनपान कुछ मिनट ही चला। सुमन के सीने को चूमते हुए वो और ऊपर की तरफ बढ़ने लगता है। पास आते ही सुमन उसके गालों को अपनी हथेलियों में दबा कर अपने होंठों की ओर खींचती है, और दोनों के होंठ प्रेम का मल्लयुद्ध लड़ने लगते हैं। सुनील के मुँह से उसके दूध और योनि-रस का मिला-जुला महक और स्वाद आ रहा था, जो अजीब सा था। लेकिन जब सुनील को उसकी परवाह नहीं थी, तो उसको क्यों होने लगी? अब दोनों शरीरों का समुचित संरेखण (alignment) हो गया था। सुमन को उसके कठोर से लिंग का अपनी योनि पर स्पर्श महसूस हो रहा था।

‘इन्होने अपने कपड़े कब उतारे?’ यह विचार सुमन के मन आया अवश्य, लेकिन उस विचार का कोई मतलब नहीं था।

बस - इसी बात की देर थी। लिंग के योनि पर स्पर्श मात्र से सुमन की मातृत्व वाली भावना पीछे चली जाती है, और कामुक प्रेयसी वाली भावना आगे आ जाती है। अचानक से उसके दिल की धड़कनें बढ़ने लगती हैं।

दोनों के होंठ और जीभें चुम्बन युद्ध में पूरी तरह से रत थीं। सुनील को सुमन का मीठा सा मुँह चूमने में बड़ा आनंद आता था। कुछ स्त्रियाँ पूरी तरह से स्वादिष्ट होती हैं - सुमन उन्ही में से एक थी। सुनील को बड़ा गर्व होता था कि ऐसी सुंदरी उसकी पत्नी है! एक दूसरे को यूँ ही चूमते हुए दोनों अचानक से एक दूसरे के मुँह में ही हँसने लगते हैं। शायद इस बात का बोध कि इतनी उम्र हो जाने पर भी दोनों किशोरवय हरकतें कर रहे हैं। क्या पता! एक तरह का ‘इनसाइड जोक’ था यह दोनों का!

मुस्कुराते हुए सुमन ने अपनी कमर को थोड़ा इधर उधर हिलाया। कभी कभी ऐसे सूक्ष्म इशारे वो बात कह जाते हैं, जो बोलने में उतना आनंद नहीं देते। सुनील समझ गया कि उसकी पत्नी क्या चाहती है! उसका लिंग इतना कठोर था कि उसको किसी अन्य तैयारी की आवश्यकता नहीं थी। उसने अपनी कमर को उठा कर थोड़ा सा स्थान बनाया, और अपने एक हाथ से पकड़ कर सुमन की योनि पर टिकाया। हल्का सा दबाव, और उसका लिंग सुमन की गहराई की सैर करने निकल पड़ा। हज़ारों बार यह लिंग सुमन के अंदर प्रविष्ट हो चुका था, लेकिन हर बार एक क्षणिक पीड़ा अवश्य होती उसको। आज भी हुई। लेकिन बस, क्षणिक! उधर वो पीड़ा समाप्त हुई, और इधर सुनील की कमर का अगला झटका लगा। फिर से पीड़ा! लेकिन आनंद पाना है, तो थोड़ा बर्दाश्त तो करना ही पड़ता है। सम्भोग क्रिया शुरू हो गई। प्रारंभिक पीड़ा के कारण सुमन की आँखों के कोनों में आँसू की एक दो बूँदें बन आई थीं, लेकिन सुनील उनको नज़रअंदाज़ करना सीख गया था। उसको बहलाने के लिए वो सुमन के होंठ चूमने लगा। वैसे तो दोनों बड़े उन्मुक्त हो कर सम्भोग का आनंद लेते थे, लेकिन आज अपने बगल में अमर के होने के कारण दोनों बहुत चुप हो कर यह सब कर रहे थे। सुमन भी सुनील के ताल में अपने नितम्ब उचका कर उसका साथ दे रही थी। सुमन मुस्कुराई - उसकी यही अदाएँ सुनील का मन जीत लेती थीं हमेशा ही। सुमन के प्यार में ऐसी निश्छलता थी कि वो हमेशा ही संतुष्ट रहता था। जल्दबाज़ी करने की कोई ज़रुरत नहीं थी, लिहाज़ा वो आराम से धीरे धीरे सम्भोग करता रहा।

“दुल्हनिया?”

“हम्म?”

“अच्छा लग रहा है?”

“हा हा... आप हमेशा यह पूछते हैं!” फिर सुनील को चूम कर वो बोली, “बहुत अच्छा लग रहा है मेरे सैंयाँ... बहुत मज़ा आ रहा है... और... आपको?”

“हमेशा ही आता है बेग़म...”

कुछ देर के बाद सुमन को फिर से ओर्गास्म होने लगता है। सुमन फिर से पहले जैसी ही शिथिल हो गई, और सुनील ने उसको थोड़ी राहत देने के लिए अपने धक्के धीरे कर दिए। अब धक्के लगाना वैसे भी बहुत आसान हो गया था क्योंकि अंदर चिकनाई बहुत बढ़ गई थी। कामुक गुदगुदी, वो भी ऐसी धीमी गति से, आनंद तो बहुत आता है, लेकिन उसको बर्दाश्त करना कठिन काम होता है। इसलिए सुमन ने बड़े प्यार से सुनील के गले में गलबैयाँ डाल दीं और उसको चूमते हुए सम्भोग की गति को उकसाने लगी। सुनील को भी कोई कोई जल्दी नही थी। वो अपनी हर हरकत और उसके सुमन पर पड़ने वाले प्रभावों को महसूस करना चाहता था। सुमन को तृप्त होते देख कर उसको हमेशा से ही एक अलग ही आनंद मिलता था। तो आज भी कोई अलग बात नहीं थी। इस क्रिया में दोनों को ही असीम आनंद मिलता था - लिहाज़ा, न तो सुमन सुनील से अलग होना चाहती थी, और न ही सुनील सुमन से! फिलहाल उसका लिंग सुमन की योनि की पूरी गहराई में उतर रहा था।

सुमन को अच्छी तरह मालूम था कि उसके पति के साथ सम्भोग - मतलब कम से कम पैंतालीस मिनट का कमिटमेंट तो होना ही था। सम्भोग के बाद पस्त हो जाती थी सुमन! लेकिन सुनील इस बात की परवाह नहीं करता था। सुमन भी नहीं! यही अनुभूति तो उसके अंतरंग क्षणों की जीत थी! सुनील सम्भोग के समय बिलकुल भी जल्दीबाज़ी नहीं करता था; इतनी तसल्ली से वो यह काम करता था जैसे कोई कलाकृति बना रहा हो! इस तृप्ति के बाद जो सुखकारी नींद आती थी, उसके कारण सवेरे दोनों ही बड़े तरोताज़ा हो कर उठते थे।

लिहाज़ा, उसने गहरे गहरे और धीरे धीरे धक्के लगाना जारी रहा। कभी कभी आनंद के माने सुमन ‘आह आह’ कर के आहें भर लेती - लेकिन बस दबी घुटी आहें ही! उसको इस बात का डर था कि कहीं आवाज़ सुन कर उनका बेटा न जाग जाए... सम्भोग के पूरे आनंद में व्यवधान तो पड़ ही जाएगा, और वो शर्मसार हो जाएगी, सो अलग! कुछ ही देर में, जैसा कि अपरिहार्य था, सुमन को रात का तीसरा ओर्गास्म महसूस होने लगा।

उधर सुनील को लग रहा था कि अब वो भी स्खलन के लिए तैयार है। उसने धक्के मारने की गति थोड़ी बढ़ा दी। सुमन ने इस परिवर्तन को महसूस किया, और वो भी अपने नितम्ब पुनः हिलाने लगी। इस दोहरे प्रहार के प्रभाव के कारण अंततः सुनील का वीर्य निकल ही गया। अभी भी हर धक्का सुमन के अंदर और गहरे तक जा रहा था। चार पाँच धक्कों में सुनील का कोष खाली हो गया। वो सुमन के ऊपर ही गिर गया और थोड़ी देर तक यूँ ही लेटे हुए सुस्ताने लगा। दोनों को सामान्य होने में थोड़ा समय लगा।

“सैयां जी मेरे... कैसा लगा आपको?” सुमन ने बड़ी मीठी आवाज़ में पूछा।

“मज़ा आ गया दुल्हनिया! ... बड़ा मज़ा!” सुनील ने सुमन के स्तनों को छेड़ते हुए कहा, “तू ग़ज़ब की है यार!”

“हा हा... आपका दिल नहीं भरता?”

“पागल है क्या?”

“कौन? आपका दिल?” सुमन ने सुनील को छेड़ा।

तू... पता है? बगल नरेश की माँ मिली थीं शाम को... दिवाली पर आई हुई हैं गाँव से... पूछ रही थीं कि सुमन बिटिया कैसी है?”

नरेश सुनील का हमउम्र था, और उसकी माँ सुमन की हमउम्र! ऐसे में वो सुनील की पत्नी को ‘बिटिया’ कह कर बुला रही थीं, इसी बात से सुनील का सीना चौड़ा हो गया था। और ऐसा क्यों न हो? देखने में वो माँ जैसी लगती, और उसकी बीवी बिटिया जैसी!

“ओह! हा हा...”

“हाँ... ओह!” सुनील ने गर्व से कहा, “मैं तो किस्मत का ऐसा धनी हूँ कि तू मिली मुझको! तू मेरी ज़िन्दगी का प्यार है! और ऊपर से इतनी सुन्दर... इतनी सेक्सी! तुझसे मेरा दिल भरेगा कभी? ... आई कैन नेवर गेट एनफ ऑफ़ यू!”

“मेरे सैयां जी, मैं तो आपको बहुत प्यार देना चाहती हूँ!” सुमन ने बड़े प्यार से सुनील के होंठों को चूम लिया, “लेकिन हम एक बार भी प्रोटेक्शन नहीं यूज़ करते... कहीं हमारे इस खेल में मैं फिर से प्रेग्नेंट हो गई, तो?”

“तो? अरे तो क्या? सात बच्चे हो जाएँगे हमारे फिर! ... मुझे तो मन माँगी मुराद मिल ही गई है! ... मैं तो हमेशा ही चाहता था कि मेरा बड़ा सा परिवार हो! खूब सारे बच्चे हों! ... एक और हो जाएगा, तो क्या?”

“वो भी ठीक है!” सुमन के मुँह से निकल गया, लेकिन फिर सम्हलते हुए, “आप न...” सुमन ने शर्माते और मुस्कुराते हुए कहा, “बहुत स्वीट हैं! ... मेरी जान हैं आप!”

सुनील खुश हो कर सुमन को चूमने लगता है।

“... लेकिन,” सुमन चुम्बनों की बौछार के बाद आगे बोली, “अब आपकी और मेरी नहीं... हमारे बेटे की बारी है और बच्चे करने की! ... ए जी... कुछ करना चाहिए हमको! नहीं?”

“हम क्या करें दुल्हनिया?... क्या मेरा मन नहीं होता कि मेरे बेटे का घर फिर से बस जाए! ... कि उसको ढेर सारे बच्चे हों! लेकिन ऐसी किसी भी लड़की को तो नहीं ला सकते न हम इसकी बीवी बनाने!” सुनील ने बड़े गर्व से अपने बड़े बेटे को देखा, “इतना अच्छा, इतना लायक मेरा बेटा है... इसके टक्कर की लड़की चाहिए न?”

सुमन कुछ पल चुप रहने के बाद बोली,

“मैं आपसे एक बात कहूँ? ... आप बुरा तो नहीं मानेंगे?”

“कैसी बातें कर रही हो जान? मैं क्यों बुरा मानूँगा? आज तक तुम्हारी किसी भी बात का बुरा माना है मैंने? मैं तो वैसे ही हर बात के लिए तुम्हारी ही राय मांगता हूँ सबसे पहले!” सुनील बोला, “बोलो न?”

“... बेटे के लिए...” सुमन पहले तो मुस्कुराई, फिर झिझकते हुए बोली, “बेटे के लिए... पुचुकी कैसी रहेगी?”

“क्या?” सुनील को जैसे अपने सुने पर यकीन ही नहीं हुआ।

सुमन ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “मुझे न... मुझे लगता है कि उसके मन में कुछ है!”

“किसके मन में? बेटे के?”

“नहीं... पुचुकी के!”

“क्या सच में?” सुनील ने अविश्वास भरे उत्साह से पूछा, “... बेटे के लिए?”

“हाँ! लगता तो है मुझको कुछ कुछ इंडिकेशन... आज उसका व्यवहार बदला हुआ सा लगा मुझको... मतलब, ऐसा वैसा नहीं बदला... लेकिन... आप समझ रहे हैं न? मुझे लगा कि... जैसे वो मन ही मन बेटू को एक अलग नज़र से देखने लगी हो!”

“अरे यार दुल्हनिया! ऐसा हो जाए तो मज़ा आ जाए!”

“आपको बुरा नहीं लगेगा?”

“अरे! मुझे क्यों बुरा लगेगा! ... इतना अच्छा बेटा है मेरा! पुचुकी... मेरे ख़याल से उसके लायक तो है!”

“अरे, मेरी पुचुकी तो बहुत अच्छी है! लेकिन नहीं... आप समझे नहीं! मेरा मतलब है कि... वो अभी अभी अट्ठारह की हुई है... और... बेटे का... पहले अम्मा के साथ... यू नो!”

“ओह... अब समझा! अरे यार... वो सब तो पुरानी बातें हैं, दुल्हनिया! जो अम्मा और उसके बीच हुआ, उसमें उन दोनों की रज़ामंदी थी... उस समय अलग बात थी... हमारे रिश्ते अलग थे! अब तो सब कुछ अलग है न! देखती नहीं कि अब वो अम्मा को किस नज़र से देखता है... उनके साथ कैसा बिहैव करता है? ... उसको हमारे रिश्ते की इज़्ज़त है... सम्मान है! उसने उस सम्मान को कभी बदलने नहीं दिया! ... वो अम्मा के पैर छूता है... मेरे पैर छूता है... मुझको अपने पिता की जगह रखता है! पिता जैसा मान देता है! ... अम्मा को दादी माँ का सम्मान देता है! ... मैं तो एक सेकंड के लिए भी अपने बेटे के लिए ऐसा वैसा नहीं सोच सकता! मेरा हीरा है ये... मेरे वंश का गौरव है! ... सच में दुल्हनिया! अगर लतिका हमारी बहू बन जाए न, तो वो बहुत लकी होगी! ... और... हम भी!”

“मतलब... मतलब आपको इस रिश्ते को लेकर कोई ऑब्जेक्शन नहीं होगा?”

“ऑब्जेक्शन? ... कत्तई नहीं! उल्टा मुझे तो बड़ा अच्छा लगेगा अगर हम दोनों परिवारों के खून इस तरह से मिल जाएँ!” सुनील ख़ुशी के कारण फूला नहीं समां रहा था, “लेकिन कुछ बताओ तो... क्या हुआ? तुमको अंदेशा कैसे हुआ?”

“देखिए... एक तो यह बात है कि ये दोनों थोड़ा कटे कटे से लगे मुझको! पुचुकी सभी के साथ पहले जैसा ही बिहैव कर रही है, लेकिन अमर के साथ अलग! तो... क्या कारण हो सकता है? या तो दोनों में झगड़ा हुआ होगा - जिसकी पॉसिबिलिटी बहुत कम है - या फिर ये बात होगी... या इस जैसी ही कुछ! ... पता नहीं आपने नोटिस किया या नहीं, वो अमर को ‘इनको’ ‘उनको’ कह कर बुला रही है!”

“हम्म! ध्यान नहीं दिया!”

“और... दूसरा यह कि आज पुचुकी ने मुझको कई बार ‘मम्मा’ कह कर पुकारा। ... हमारी शादी के बाद से वो मुझको बोऊ-दी कह कर ही बुलाती है! ... और मिष्टी के लिए उसका प्यार और भी अधिक बढ़ गया है!”

“हाँ... राइट!”

“और तीसरा यह कि आज जब मैंने यह सजेस्ट किया कि उसकी शादी के लिए मैं लड़का ढूँढूँगी, तो उसने ऑब्जेक्शन नहीं किया! नहीं तो पहले वो बहुत चिढ़ती थी!”

“ओह! हा हा!”

“जयंती भी कुछ ऐसा ही कह रही थी उसके बर्थडे पार्टी के बाद...”

“दी को भी पता है?”

“नहीं... पक्का तो कोई कुछ नहीं कह सकता! लेकिन वो कह रही थी कि उसको ऐसा लगता है!”

“तो फिर... अम्मा से बात करूँ मैं?”

“क्यों नहीं? ... लेकिन, समय आने पर! अभी थोड़ा रुक जाते हैं! ... देखते हैं कि इन दोनों में किसकी नज़र बदली है? केवल एक की, या दोनों की, या फिर दोनों की ही नहीं - शायद मुझे ही धोखा हुआ हो!”

“क्या बात है दुल्हनिया! विश्वास नहीं होता! ... नहीं... तुमको धोखा तो नहीं हो सकता! तुम पुचुकी को तो अच्छी तरह जानती हो। अच्छा... पुचुकी अगर हमारी बहू बनेगी, तो तुमको अच्छा लगेगा?”

“बहुत अच्छा लगेगा! बेटी है वो मेरी...”

“बेटी तो वो मेरी भी है... लेकिन क्या वो बेटे के लायक है?”

“लायक से भी कहीं अधिक लायक है!”

सुनील यह सुन कर बहुत खुश हुआ, “आई लव यू दुल्हनिया! मन खुश कर दिया आज तुमने! ... सच में! इस बार तो सच में दिवाली बड़ी रौनक वाली रहेगी!” सुनील ने प्रसन्न होते हुए कहा, फिर कुछ सोच कर, “बेटे के मन में भी कुछ होगा? कोई फीलिंग्स पुचुकी के लिए...?”

“उम् लगता तो नहीं... मुझे तो लगता है कि वो उसको बच्ची जैसा ही सोचता होगा!”

“फिर? मतलब... कैसे होगा सब कुछ? उससे जबरदस्ती तो नहीं कर सकते न! ... उसको भी तो वो ‘उस तरह से’ पसंद आनी चाहिए न!”

“हम्म... वो तो ठीक बात है। समझाना पड़ेगा उसको... कुछ कामों में आपका बेटा बहुत बुद्धू है!”

“ऐसे मत कहो दुल्हनिया! ... बुद्धू नहीं है... भोला ज़रूर है!”

“हा हा... आपका आपके बेटे के लिए प्यार...! मैं सिर्फ यह कह रही हूँ कि हम लोगों को इन्वॉल्व होना पड़ेगा थोड़ा... सिचुएशन्स बनानी पड़ेंगी! उसके अंदर भी प्यार की लौ जलानी पड़ेगी!”

“अरे यार... ऐसे थोड़े न होता है प्यार!”

“बिना जाने तो नहीं होगा न! लेकिन हाँ, उसको समझ में आना चाहिए कि एक बहुत ही अच्छी लड़की है... पास ही में!”

“ओह दुल्हनिया! कभी सोचा भी नहीं था कि मेरी ही छोटी बहन, मेरी बहू बनेगी एक दिन!”

उसकी बात पर सुमन केवल मुस्कुराई!

*
 

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अचिन्त्य - Update #6


नींद बहुत सवेरे ही टूट गई! बिलकुल तरोताज़ा था मैं आँख खुलते ही।

आँखें खुलीं, तो देखा माँ और पापा दोनों बिलकुल नग्न, एक दूसरे से लिपट कर बड़े सुकून से सो रहे थे। माँ पापा के ऊपर, अपने दोनों पैर उनके दोनों तरफ कर के उनके आगोश में सो रही थीं। हाँ, माँ वज़न में हल्की अवश्य हैं, लेकिन फिर भी, ऐसा नहीं है कि सोते समय कोई अपने सीने पर कोई वज़न रख कर सोना चाहता है। इतना आसान नहीं होता। पापा को शायद माँ की आदत हो गई होगी! उनकी हर साँस के साथ माँ ऊपर नीचे उठ बैठ रही थीं। ऐसे सोने के लिए बहुत प्यार होना चाहिए दोनों के बीच! अद्भुत सा दृश्य था यह! किसी अन्य देखने वाले को यह दृश्य कामुक लग सकता है, लेकिन मुझे उन दोनों के प्रेम में इतनी आग, और इतनी प्रगाढ़ता देख कर इतना अच्छा लगा कि उसका व्याख्यान करना कठिन है यहाँ!

मैंने यह अवश्य देखा था, कि मैं जब भी उन दोनों के साथ लेटता था, उनकी यही कोशिश रहती थी कि मुझको सोने के लिए अधिक से अधिक जगह मिले। इस समय भी वो दोनों बिस्तर के एक तरफ हो कर लेटे थे, और मेरे लिए बिस्तर का अधिकाँश हिस्सा था। इस उम्र में भी वो दोनों मेरा इस तरह ख़याल करते थे कि जैसे मैं कोई छोटा बच्चा हूँ! हो भी सकता है! नहीं तो इस उम्र का कौन आदमी अपने मम्मी पापा के साथ वो सब करता है जो मैं करता हूँ!

मैंने हाल ही में लांच हुआ आई फ़ोन चार मंगाया था, तो उसका इस्तेमाल करने का इससे सुन्दर अवसर मुझे नहीं समझ में आया। मैंने उन दोनों की उसी अवस्था में कई तस्वीरें निकाल लीं - हमारे पर्सनल एल्बम के लिए। मेरे जीवन में आए हर जोड़े की कम से कम एक अंतरंग तस्वीर मेरे पास थी - डैड-माँ; पापा-माँ; गैबी-मेरी; डेवी-मेरी; डेवी-गेल; मरी-मेरी; काजल-मेरी; अम्मा-सत्या... यह तस्वीरें भी उसी एल्बम का हिस्सा बनेंगी!

मैं बड़ी सावधानी से बिस्तर से उठा, और उत्सुकतावश मैंने उनके श्रोणिक्षेत्र को देखा - पापा का लिंग स्तंभित था, और माँ की योनि से सटा हुआ था। मतलब जब ये दोनों जागेंगे तो एक और राउंड खेल फिर से खेला ही जाएगा! मैं उनके मज़े में रोड़ा नहीं डालना चाहता था। मैंने एक दो और तस्वीरें उतारीं, और कमरे से बाहर निकल कर अपने पीछे दरवाज़ा बंद कर दिया।

बगल के कमरे में तीनों बच्चे शांति से सो रहे थे। शांति इसीलिए रही होगी क्योंकि माँ ने उनको दूध पिलाया होगा मुझको पिलाने के बाद। नहीं तो घर अब तक तो सर पर उठा लिया होता मेरे नन्हे भाई, आदर्श ने, और मेरी नन्ही बहन अभया ने! आदित्य ने दूध पीना कम कर दिया था - उसको अब नमकीन, मीठी, और चटपटी चीज़ें अधिक अच्छी लगती थीं। लेकिन फिर भी, यह कोई बहुत उचित कारण नहीं था दूध पीना बंद करने का! शायद उसके स्कूल में उसके सहपाठी इस व्यवहार का मज़ाक उड़ाते हों! अब समय बदल गया था; स्थान बदल गया था - कहाँ सैंतीस साल पहले का एक छोटा सा क़स्बा, और कहाँ आज का मुंबई! लिहाज़ा, सामान्य बातों के लिए सभी का नजरिया भी बदल जाएगा!

अगले कमरे में देखा तो पुचुकी और मिष्टी दोनों सो रहे थे। मिष्टी नग्न हो कर अपनी दीदी से चिपक कर लेटी हुई थी। पुचुकी ने नाईट शर्ट और पैंटी पहनी हुई थी। लेकिन नाईट शर्ट के ऊपर के चार बटन खुले हुए थे, और मिष्टी का चेहरा पुचुकी के सीने में घुसा हुआ था। उसके कारण पुचुकी के सीने का कोई हिस्सा नहीं दिख रहा था। मैं उन दोनों को ऐसे देख कर मुस्कुराया। दोनों की अपनी अलग ही दुनिया थी! न जाने क्या सोच कर मैंने उन दोनों की भी कुछ तस्वीरें निकाल लीं। फिर मैं ‘अपने’ कमरे में आ गया और कपड़े पहन कर जॉगिंग के लिए निकल गया।

वापस आते आते काफी देर हो गई - कुछ जान पहचान के लोग मिल गए रास्ते में, तो उनसे बातें भी करने लगा। एक दो लोग अपने बच्चों को नौकरी पर लगाने के लिए सिफारशें भी ले कर आ गए। भूख लग रही थी, लेकिन कुछ खाने से खुद को रोक रहा था। वजह? माँ के हाथों का खाना! और क्या? वैसे तो मैं बहुत संतुलित आहार लेता हूँ, लेकिन माँ के घर आ कर वो सब भूल जाता हूँ। खैर, जैसे तैसे कर के मैं जल्दी से घर पहुँचा।

“कहाँ चले गए थे बेटा?” माँ ने मुझको देखते ही पूछा, “बड़ी देर हो गई!”

“हाँ माँ! दूर तो नहीं गया, लेकिन बहुत से लोग मिलने को आ गए। इसलिए टाइम लग गया।”

“ओह, अच्छा अच्छा! कोई बात नहीं। ... चलो जल्दी से तैयार हो जाओ। नाश्ता करेंगे सभी साथ में!” माँ ने उत्साह से कहा।

हाँ - वही तो! वही तो मुझे भी चाहिए था। मन ही मन एक तस्वीर खिंच गई - जब यहाँ हम सभी परमानेंट शिफ्ट हो जायेंगे, तो रोज़ ऐसे ही सभी साथ में बैठ कर माँ के हाथों का खाना खायेंगे। परिवार की छोटी छोटी बातें ही मुझको सबसे अधिक ख़ुशी देती रही हैं अभी तक। मैं जल्दी जल्दी से तैयार हो कर डाइनिंग हाल में आ गया। देखा, तो खाने की टेबल पर लगभग सभी पहले से ही मौजूद थे। नाश्ते में इडलियाँ, मेदु वड़ा, उपमा, सांबर, और दो तरह की चटनियाँ परोसी गईं थीं! माँ मेरी! स्वाद का ख्याल तो रखती ही थीं, साथ ही साथ सेहत का भी!

“कैसा है नाश्ता?” माँ ने यूँ ही सभा से पूछा - किसी व्यक्ति विशेष से नहीं।

“अरे आनंद आ गया,” पापा ने जैसे छूटते ही कहा, “अति उत्तम! स्वादिष्ट भोजन, दुल्हनिया!”

“बेटे?” माँ ने इस बार मुझसे कहा।

“बहुत टेस्टी है माँ! सब कुछ!” मैंने जैसे स्वाद के सागर में गोते लगाते हुए वो टमाटर-प्याज वाली लाल चटनी चाटी, “ख़ास तौर पर यह चटनी! ... ये बेस्ट है!”

“बेस्ट क्यों नहीं होगी? ... मेरी पुचुकी ने जो बनाई है!”

माँ ने लाड़ से लतिका के गालों को सहलाते हुए उसकी प्रशंसा करी। उसके गाल मारे ख़ुशी के लाल हो गए। साँवले रंग पर ऐसी लालिमा की हल्की सी परत चढ़ते ही वो और भी सुन्दर लगने लगी! बहुत सुन्दर है लतिका - यह विचार अनायास ही दिमाग में दौड़ गया!

“अरे?” मुझे विश्वास ही नहीं हुआ, “सच में? ... मुझे तो कभी नहीं खिलाई यह चटनी!” मैंने उसकी टाँग खिंचाई करी।

“आप ही तो हमेशा हेल्दी हेल्दी करते रहते हैं...” लतिका ने शिकायत करते हुए कहा, “जब देखो वही ओट्स, वही दलिया, वही स्प्राउट्स... बोऊ दी, अब आप ही बताईए, ऐसे सैड खानों के साथ क्या स्वाद आएगा!”

“लेकिन बुआ जी,” मैंने उसकी खिंचाई जारी रखी, “वो सब तो आपके लिए ही करता हूँ! ... माँ पापा, अगर मैं और मिष्टी चटपटा चटोरापन दिखाएँगे, तो इनकी सारी मेहनत तो गई न पानी में!”

“डैडी,” आभा ने इस बात पर पहली बार कुछ कहा, “नो टीसिंग माय दीदी! ओके?”

“ये लो! आ गई अपनी दीदी की पूँछ!”

“मेरी दीदी गाय थोड़े ही है!” आभा ने मुँह बनाते हुए कहा।

“हाँ... गाय नहीं! बन्दर...” इस बार पापा ने उसको छेड़ा।

“दादू... जाओ! आई विल नॉट स्पीक टू यू!”

“अले मेला बेटू! नाराज़ हो गया!” कह कर पापा ने हँसते हुए आभा को अपनी गोदी मेर बिठा लिया, “तुम्हारी दीदी, मेरी छोटी बहन भी तो है... इसलिए उसको मैं यूँ छेड़ सकता हूँ! ... वो भी तो मुझसे मज़ाक करती रहती है न!”

कह कर पापा ने उसके गालों को बारी बारी से चूम लिया। आभा खुश हो गई। वैसे भी उसकी नाराज़गी बनावटी थी।

“ओके! ... बट यू आर राइट डैडी... हम लोग तो दीदी के लिए ही सिंपल खाना खाते हैं। इनका वेट नहीं बढ़ने देना है, नहीं तो परफॉरमेंस में कोई इशू आ सकता है न, दादी!”

“डोंट वरी मिष्टी बेटू... तुम्हारी दीदी को खूब दूधू पिलाऊँगी! शी विल ओन्ली बी हेल्दियर!” फिर पुचुकी को देख कर, “ठीक है बेटू?”

“यस मम्मा!” वो माँ को यूँ कहता सुन कर पहले तो शरमाई, लेकिन फिर सहज हो गई।

“लेकिन सच में,” मैंने बात का सूत्र बनाए रखा, “बहुत अच्छी चटनी है पुचुकी! वैरी वैरी नाइस!”

लतिका केवल मुस्कुरा दी।

मैंने देखा कि माँ और पापा की नज़र आपस में मिली। पापा ने मुझे देखते हुए देखा, तो बोले,

“बेटे, मेरा मतलब है, पुचुकी और मिष्टी बेटे, आप दोनों से एक बात करनी है!”

“हाँ दादा,” जिस तरह से उन्होंने कहा, उससे दोनों ही गंभीर हो गए... लतिका बोली, “कहिए न!”

“बेटा... बहुत समय हो गया अब हम सभी को यूँ अलग अलग रहते हुए! आधा परिवार यहाँ, और आधा वहाँ... इसलिए मैं और तुम्हारी बोऊ दी - हम सोच रहे थे कि क्यों न तुम सब यहीं आ जाओ! ... इतना बड़ा घर है ये... तुम सभी बच्चों के बिना खाली खाली सा लगता है!”

पापा ने हम सभी पर एक नजर डाली। मैं चुप था - मुझको तो यह सब पता ही था। आभा और लतिका दोनों इस अप्रत्याशित सी बात पर थोड़ा चौंक से गए लग रहे थे।

“हमने बेटे से बात करी,” पापा ने मेरी तरफ देखते हुए कहा, “... इसको तो ये बहुत अच्छा ख़याल लगा।” मैं मुस्कुराया, फिर लतिका की तरफ़ देखते हुए वो बोले, “लेकिन... उसने कहा कि तुमसे और मिष्टी से भी पूछ लूँ! तुम्हारे लिए भी तो बहुत बड़ा चेंज रहेगा न! सभी दोस्त हैं वहाँ तुम दोनों के...”

लतिका ने मुझको बहुत देर तक देखा - ऐसा लगा कि वो मुझसे कुछ निराश सी हो।

“मिष्टी बेटा...” पापा ने सभी को यूँ चुप बैठा देख कर आभा से कहा, “तू रहेगी अपने दादू के पास? हमेशा के लिए?”

आभा ने पहले तो पापा के दोनों गाल बारी बारी चूमे, फिर बोली, “दादू, थैंक यू! ... आप मेरे फेवरेट दादू हैं!”

पापा उसकी बात पर मुस्कुराए।

“... लेकिन दीदी मेरी गार्जियन हैं... जो वो कहेगी, मैं भी वही करूँगी!”

“दीदी की बात सुनेगी... अपने दादू या अपने डैडी की नहीं?”

“नहीं दादू... डैडी... ऐसी बात नहीं है! यू नो दिस!”

“ठीक है बेटे...” फिर लतिका की तरफ देखते हुए पापा बोले, “पुचुकी बेटा... कुछ तो कहो!”

“दादा... आपके और बोऊ दी के साथ रहने से अच्छा तो कुछ हो ही नहीं सकता!” लतिका को ऐसा कहते सुन कर मेरी साँस में साँस आई, “आप दोनों मेरे भैया भाभी नहीं, पापा मम्मी जैसे हैं! ... और कौन अपने पापा मम्मी के साथ नहीं रहना चाहता!”

फिर मेरी तरफ देख कर, “आपका भी कितना मन करता होगा यहाँ रहने का... यह मैं समझती हूँ। ... लेकिन बस एक बात है जो मैं कहना चाहती हूँ।”

“क्या?” मेरे मुँह से बेसाख़्ता निकल गया।

“हमारे जाने के बाद बाबू जी का क्या होगा?”

लतिका ससुर जी के बारे में कह रही थी।

“वो तो बेचारे बिलकुल ही अकेले पड़ जाएँगे। ... अभी तो हम तीनों में से कोई न कोई उनसे मिलता ही रहता है... लगभग हर अगली रोज़! ... लेकिन जब हम में से कोई नहीं होगा दिल्ली में, तब?”

“वो सही बात है पुचुकी...” मैंने अपराधबोधग्रस्त होते हुए कहा।

मेरा अंदेशा सही था - लतिका मुझसे निराश तो थी!

जैसे लतिका ने मेरी बात ही न सुनी हो, “... यह सब कुछ... जो हमारे पास है, वो सब बाबू जी का आशीर्वाद है। और उनके लिए हमने किया ही क्या है? इस उम्र में उनको यूँ अकेला छोड़ना ठीक नहीं! उनको देखभाल की ज़रुरत है... उनको भी अपने परिवार की ज़रुरत है! जयंती दी कितना कर लेंगी अकेली? उनके पास अपना काम है... बच्चे हैं!”

लतिका धाराप्रवाह बोले जा रही थी, और हम सभी चुप हो कर सुनते जा रहे थे, “... दादा... हम लोग मुंबई तभी आएँगे जब बाबू जी भी हमारे साथ यहाँ आने को राज़ी हो जाएँ!” लतिका ने जैसे कोई निर्णय सुनाया हो, “और अगर वो पॉसिबल नहीं है, तो मैं उनको हमारे साथ ही दिल्ली वाले घर में रहने के लिए राज़ी करने की कोशिश करूँगी!” उसने कहा, और चुप हो गई।

मैं तो कुछ समय के लिए स्तब्ध रह गया। ये छोटी सी लड़की इतनी सयानी कब हो गई? मुझे देखो - घोड़े जैसा हो गया था, लेकिन माँ बाप के मोह में ऐसा फँसा कि अपना कर्तव्य भूल गया। और ये लड़की! इतनी कम उम्र हो कर भी उसमें कैसी अद्भुत भावना है मेरे ससुर जी के लिए! आखिर उसको क्या ज़रुरत आन पड़ी उनकी देखभाल करने की? लेकिन नहीं! ऐसी लड़कियाँ होती हैं, जो देवी-स्वरूपा मानी जाती हैं। जिनके घर आने से सम्पन्नता आती है, ख़ुशियाँ आती हैं! लतिका की बात पर, उसकी समझ पर, उसके अपनी बात कहने के ढंग पर... मुझको गर्व हो आया! समझ में आ गया कि वो जो कह रही थी, वो किसी एहसानों के बोझ के तले दब कर नहीं कह रही थी। सच तो था कि ससुर जी को हमारी ज़रुरत थी। मैं उनको प्रेम देने में पीछे रह गया था। सम्मान मैं उनका बहुत करता था, लेकिन परिवार का प्रेम उनको ये दोनों लड़कियाँ ही दे रही थीं।

मेरा गला भर आया। आज लगा कि मैं कितना गौण हूँ इन बच्चों के सामने भी! इनके गुणों के सामने मैं रत्ती भर नहीं ठहरता। कैसे अद्भुत संस्कार हैं इनके! आँखों से आँसू निकल आए मेरे। मेरी आभा कितनी भाग्यशाली है कि ऐसी गार्जियन की छाया में वो पल बढ़ रही है! ईश्वर ने सच में मुझको सब कुछ दिया था - सब कुछ! कमी मेरे ही अंदर थी कि मैं पहचान नहीं पा रहा था।

“आई ऍम सॉरी लतिका,” मेरे मुँह से निकल गया, “आई ऍम सॉरी पापा... माँ! मैं अपने कर्त्तव्य से भटक गया था।”

“सॉरी मत कहिए प्लीज़...” लतिका ने सकुचाते हुए कहा, “आपको गिल्टी फ़ील कराने के लिए मैंने यह सब नहीं कहा! ... लेकिन बाबू जी उस उम्र में हैं, जहाँ उनको भी खूब प्यार चाहिए। खूब देखभाल चाहिए। मैं... मैं बस इतना ही कहना चाहती थी कि वो भी हमारे साथ ही रहें। ... और कुछ भी नहीं!” उसकी भी आँखों से आँसू निकल गए, “सर पर बड़े बुज़ुर्गों का हाथ रहता है, तो बहुत अच्छी फ़ीलिंग रहती है... लगता है कि हम सेफ़ हैं...”

बोलते बोलते वो रुक गई।

“पुचुकी बिल्कुल सही कह रही है,” माँ बोलीं, जब पुचुकी ने कुछ देर तक कुछ भी नहीं कहा, “अमर बेटे, तुम बुरा मत सोचो! देखो न... ये तो कितनी अच्छी बात है कि हमारे साथ पुचुकी जैसी इतनी समझदार और सयानी लड़की है! ... उसकी सोहबत में तुम कभी सही रास्ते से नहीं भटकोगे!”

माँ की बात पर पापा मुस्कुराए।

“ये तो अच्छा है न कि वो भी दिवाली पर आ रहे हैं। हम सब उनको मना लेंगे मिल कर! ... क्यों ठीक है न, मिष्टी?”

“हाँ दादी माँ!” आभा ने चहकते हुए कहा, “नाना जी बहुत स्वीट हैं। ही इस द बेस्ट!”

“हाँ बेटा! ही इस द बेस्ट!” माँ बोलीं, “तुम सही कहती हो पुत्री... सच में उनसे बात कर के ही ऐसा लग जाता है कि जैसे भगवान का ही हाथ है हमारे सर पे! सच में, अगर वो भी यहाँ आ जाएँ, तो क्या आनंद रहे!”

“अरे ठीक है न फिर तो! ... हम सब ज़ोर लगा कर उनको मना लेंगे इस बार!” पापा ने बड़े जोश में कहा।

*
 

KinkyGeneral

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कमाल कमाल कमाल, धन्य कर दिये प्रभु।
शुरू में तो लगा कि फिर वही शादी वादी की बातें पर बाद में तो आनंद ही आ गया।:sip:
दुल्हनिया के बेडरूम में झांकना तो मेरा सबसे पसंदीदा कार्य है।:poggers:
 

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कमाल कमाल कमाल, धन्य कर दिये प्रभु।
शुरू में तो लगा कि फिर वही शादी वादी की बातें पर बाद में तो आनंद ही आ गया।:sip:

हा हा! अरे साधारण सी कहानी है, इसलिए कोशिश करनी पड़ती है इसको रोचक बनाने के लिए!

दुल्हनिया के बेडरूम में झांकना तो मेरा सबसे पसंदीदा कार्य है।:poggers:

हाँ, दो पाठकों ने (जो केवल मैसेज करते हैं) लिखा था कि बेडरूम सीन अचानक से गायब हो गई हैं।
इसलिए सोचा कि यहाँ कुछ लिख दूँ! वैसे भी फिलहाल तो सुनील-सुमन ही सेक्सुअली एक्टिव जोड़ा हैं इस कहानी में।
 
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