Riky007
उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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बाप
कल सुबह मुझे फांसी मिल जायेगी और इस दुनिया से मेरा अस्तित्व पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। मैं, अमित कुमार, दुनिया की नजरों में एक कातिल, जिसने अपनी ही पूर्व पत्नी को जान से मार दिया क्योंकि वो मुझ जैसे फेल्ड इंसान के साथ नही रहना चाहती थी और मुझसे तलाक लेने के बाद दूसरी शादी कर रही थी।
मगर किसी ने इसकी असली वजह नही मालूम की आखिर क्यों मैने उसे मारा।
हां, मैने हत्या की, मगर वो हत्या मेरे बेटे की हत्यारन की थी, ना की मेरी पूर्व पत्नी की...
कुसुम मेरी पूर्व पत्नी, जो अपने नाम की तरह ही फूलों के जैसी खूबसूरत और ताजगी से भरी थी, हम दोनो एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। पहली नजर का प्यार था हमारा। मेरे पिता का मंझोले स्तर का कारोबार था और घर में पैसों की अधिकता तो नही पर कोई कमी भी कभी नही रही, शहर के नामचीन लोगों के शुमार थे मेरे पापा, और मैं उनका इकलौता लड़का। कुसुम के पिता एक सरकारी नौकरी में थे, जिनकी सैलरी तो बहुत नही थी, पर अहोदा ऐसा था जिसमे ऊपरी कमाई की कोई कमी न थी।
मेरे पिता कारोबारी जरूर थे पर उनको कारोबार साफ सुथरे तरीके से ही करना था और ऐसे ही संस्कार मुझे भी दिए गए थे, वही कुसुम के घर में बस पैसे से मतलब होता था, सही या गलत से नही। फिर भी चूंकि मेरे घर में पैसे की कोई कमी न थी तो उसके घर वालों को भी कोई ऐसी दिक्कत नही आई हम दोनो के रिश्ते से।
हम दोनो ही पढ़ाई में अच्छे और कैरियर ओरिएंटेड थे, एक ओर जहां मुझे कारोबार में ही दिलचस्पी थी, कुसुम को सरकारी नौकरी ही करनी थी, मैने भी उसके सपनो को पूरा करने में कोई आनाकानी नही की और घर में बोल दिया की शादी दोनो के सैटल होने के बाद ही होगी, जिसपर दोनो परिवार मान गए।
इधर मैंने अपना पिता से अलग अपना कारोबार अपने एक दोस्त के साझे में खोला, जिसे पिताजी ने मना किया था की साझे का काम बाद में चलता नही है, पर हम जवानी के जोश में थे, उस समय सब सही ही लगता है, कुणाल मेरा दोस्त जिसके साथ कारोबार शुरू किया था, वो भी मेरे और कुसुम के साथ ही कॉलेज में पढ़ता था। खैर धीरे धीरे हमारे कारोबार ने पांव जमाने शुरू कर दिए और उधर कुसुम का सिलेक्शन राज्य की नौकरी में अपर डिविजन क्लर्क का हो गया, उसके पिता ने अपने संबंधों का फायदा उठा कर कुसुम की पोस्टिंग हमारे ही शहर में करा दी। अब हमारी शादी की बातें होने लगी और 2 महीने बाद की डेट निकल आई। ये 2 महीने हम दोनो को काटने मुश्किल होते जा रहे थे, पर चूंकि मेरा कारोबार नया ही था और मुझे उसे जमाने के लिए बाहर के चक्कर लगाने पड़ते थे, तो हमारा मिलना कम ही जो पाता था। खैर आखिर शादी का दिन भी आ ही गया और हमारे मिलन की रात भी।
बेड को फूलों से सजाया गया था जिसके बीचों बीच कुसुम सी कुसुम लाज की गठरी बनी बैठी थी, हालांकि इसके पहले भी हम कई बार एकांत में मिल चुके थे, पर दोनो का ही फैसला था की अपनी शारीरिक भूख हम शादी के बाद ही शांत करेंगे। मैने उसके घूंघट को हटाया, अंदर चांद का दीदार हुआ, कितनी ही बार देखा उसे मैंने मगर आज वो मांग में मेरे नाम का सिंदूर लगाए मेरे पहलू में बैठी थी, मैने आगे पढ़ कर उसका चेहरा अपने हाथ में लिया और उसके मस्तक पर एक चुम्बन अंकित कर दिया, उसने अपनी आंखे बंद कर रखी थी, जिसे देख मैने बारी बारी दोनो पलकों को भी चूम लिया। उसने आंखे खोली और मुझे देख एक बार फिर से शर्मा गई।
अब मैने पहल करते हुए उसके मांगटीका को उतार दिया और अब मेरे हाथ उसकी नाथ को खोल रहे थे, आहिस्ता से नाथ उत्तर कर साइड में रख कर मेरे होंठ उसके लराजते लबों पर कस गए और हम एक दूसरे के मुंह का स्वाद लेने लगे। तभी मैंने अपनी जीभ को उसके मुंह में धकेल दिया और वो मजे से उसको चूसने लगी। कुछ मिनटों के बाद हम दोनो हांफते हुए अलग हुए, अब मैंने उसकी साड़ी का पल्लू पकड़ कर साड़ी उतरनी चाही जिसमे उसने खुद उठ कर मेरी मदद की, अब कुसुम मेरे सामने पहली बार ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी थी, उसका वो सपाट पेट और उसकी गहरी नाभी मुझे ललचा रही थी, मैने उसे कमर से पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और अपनी जीभ उसके पेट के कुएं में डाल दी, मेरे ऐसा करते ही वो चिहुंक उठी, और अपने कांपते हाथों से मेरे बालों को सहलाने लगी। मैने अपना एक हाथ ऊपर ले जा कर उसके स्तनों को बारी बारी से मसलने लगा और दूसरे हाथ उसके नितंबों का मर्दन कर रहे थे। उसके शरीर में एक जबरदस्त जुंबिश होने लगी और उसका अपने पैरों पर खड़ा होना मुश्किल हो रहा था, वो मेरे कंधों पर झूल सी गई, और मैने आहिस्ता से उसे वापस पलंग पर बैठा दिया, अब मेरे सामने उसका ब्लाउज था जिसके हुकों को में खोलने लगा, और थोड़ी देर के बाद उसके उन्नत स्तन एक मरून रंग को ब्रा में कैद मेरी आंखों के सामने थे, मैने दोनो स्तनों की घाटी में अपनी जीभ फेर दी जिससे कुसुम एक बार फिर से कांप गई, फिर मैंने उठ कर अपने कपड़े निकालने वाला ही था की कुसुम ने मेरा हाथ पकड़ कर नीचे कर दिया और खुद से मेरे कुर्ते के बटन को खोलने लगी, और कुर्ते को उठा कर मेरे शरीर से अलग कर दिया नीचे मेरा कसरती बदन उसके सामने था, सिक्स पैक तो नही बनाए थे, पर नियमित व्यायाम से पेट के हिस्से में चर्बी नही थी, अब कुसुम ने मेरे पैजामे का नाड़ा खोल दिया और वो पलंग पर धराशाई हो गया, मैने पैर से उसे किनारे करते हुए कुसुम के पेटीकोट को खोल दिया, अब हम दोनो ही एक दूसरे के सामने पहली बार आधे नंगे खड़े थे। दोनो हैरत में थे और दोनो के ही बदन कांप रहे थे, एकदम से हम दोनो एक दूसरे की बाहों में समा कर पलंग पर लेट गए। थोड़ी दी बाद जब दोनो कुछ संयत हुए तो फिर से हमारे होंठ और जीभ एक दूसरे के से खेलने लगे और मैने उसकी ब्रा के हुक खुल दिए, और पहली बार उसके स्तनों को मैने महसूस किया, क्या मुलायम और चिकने थे वो, और निप्पल के आस पास हल्का दानेदार जैसे एक बड़ी पहाड़ी के चारों ओर छोटे छोटे टीले होते हैं। फिर हम एक दूसरे से थोड़ी दूर हुए और मेरी नजर उसके स्तनों पर गई, गुलाबी रंग के माध्यम आकार के 2 उन के गोले जैसे जिनके ऊपर भूरे रंग के निप्पल, मैने फिर से उनको हाथ में लिया और हल्के से दबा दिया, उसके मुंह से सिसकारी निकली, मैने एक स्तन को मुंह में भरा और कुसुम ने का कर मेरे बालों को पकड़ लिया, मेरी जीभ से उसके निप्पल को चाटा जिससे कुसुम जोर से चिहुंकी और मेरे सर को का कर अपने स्तनों पर दबाने लगी, मेरा एक हाथ अब उसकी पैंटी के ऊपर से उसकी योनि के टटोल रहा था और उसका भी एक हाथ मेरे लिंग को छूने लगा, दोनो की उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी, और मैने अपने हाथ और पैर की मदद से उसकी पैंटी खोल दी, वो भी मेरे अंडरवियर को खींच रही थी तो मैंने उसे भी निकल फेका। अब हम दोनो पूर्ण नग्न रूप से एक दूसरे से चिपक कर लेट थे और शरीर में झुरझुरी एक बार फिर से चालू हो गई, थोड़ा सामान्य होने पर कुसुम अपने हाथ से मेरे लिंग को पकड़ कर अपने योनि पर लगाने लगी, फिर मैंने उसे पीठ के बल लेटा कर उसकी टांगे खोल दी, और उसकी बालों रहित सुंदर गुलाबी योनि को देखने लगा, कुसुम ने कहा, बाद में देखना पहले अंदर डालो। मैं मुस्कुराते हुए आगे को झुक कर अपने लिंग को उसको योनि से लगाया, मगर खुद से अंदर नही कर पाया, तब कुसुम ने ही हाथ बढ़ा कर उसे से किया और मुझे इशारा अंदर धकेलने का इशारा किया, मैने अपनी कमर से जोर लगाया और थोड़ा सा लिंग अंदर गया और दोनो ही कराह उठे, फिर थोड़ी देर बाद कुछ राहत मिलने पर हम दोनो ने जोर लगा कर लिंग को पूरा योनि के अंदर कर दिया, दोनो में ही कुछ उत्तेजना आने लगी और कमर को हिला कर अंदर बाहर करने लगे दोनो को मजा आने लगा और करहाते हुए हम दोनो एक दूसरे फिर से चूमने चाटने और काटने लगे 10 मिनिट के बाद मुझे लगा की मेरा निकलने वाला है, और मेरे धक्के खुद ब खुद तेज होने लगे, उधर कुसुम भी चरम पर पहुंचने लगी और कुछ ही देर में दोनो ने एक दूसरे को भिगो दिया।
आज हमने एक दूसरे को पा लिया था, आज हम दोनो ही पूर्ण हो चुके थे। आगे हमारी जिंदगी हंसी खुशी चलने लगी, धीरे धीरे दोनो ही संभोग के नए आयामों को सीखने और अजमाने लगे। काम भी अच्छा चलने लगा और जिंदगी खुशियों से भर गई, 6 महीने बाद कुसुम ने खुशखबरी दी हम सबको की वो मां बनने वाली है, अब मेरे पैर ही जमीन पर नहीं पड़ते थे। लगता था की दुनिया में मैं ही सबसे ज्यादा खुशकिस्मत हूं। खुशियां लगातार बढ़ती ही जा रही थी जिंदगी में। धीरे धीरे 9 महीने बीत गए और एक रात कुसुम को लेबर स्टार्ट हो गया, हम सब आनन फानन में उसको ले कर हॉस्पिटल गए और 2 घंटे के इंतजार के बाद नर्स ने आ कर मुझे अब तक की सबसे बड़ी खुशी की खबर सुनाई की में बाप बन गया हूं।
नर्स मुझे कमरे में ले गई जहां कुसुम अपने गोद मे लेता कर हमारे बच्चे को स्तनपान करवा रही थी, मैं भरी हुई आंखों से दोनो को देख कर मुस्कुरा रहा था, कुसुम भी मुझे देख कर लगभग रो ही पड़ी और मुझे पास बुला कर हमारे बच्चे को मेरी ओर बढ़ाया, मैने उसे गोद में लिया, वो बच्चा मेरा अंश, कुसुम की तरह कोमल.. और क्या चाहिए होता है किसी को भी जिंदगी से.. खुशियां ही खुशियां..
जिंदगी में सब सही चल रहा था,बच्चा 1 साल के करीब का हो गया था, कुसुम ने ऑफिस जाना शुरू कर दिया था, और उसकी देखभाल मेरी मां ने करनी शुरू कर दी थी, उनको बच्चे की ग्रोथ में कुछ समस्या दिखने लगी। और वो उसे डॉक्टर को दिखाने ले गई, डॉक्टर ने कुछ टेस्ट्स करवाए और उसको सेलेब्रल पाल्सी से ग्रसित बताया। मतलब उसका शारीरिक विकास बहुत कम होगा, उसके आगे उसके अंगों में दर्द होगा और धीरे धीरे वो शिथिल होने लगेंगे और एक दिन बिस्तर ही उसका सब कुछ होगा, पूरी उम्र के लिए, साथ ही साथ पूरी जिंदगी दवाई और फिजियोथैरेपी भी चाहिए होगी। सब कुछ लूट चुका था हम दोनों का, दोनो ही अपने बच्चे के भविष्य को लेकर चिंतित थे, भाग दौड़ करके कई डॉक्टरों का पता किया जो इसका इलाज करते थे, बच्चे को ले कर कहां कहां नही गए, पर हर जगह से एक ही जवाब मिला, "अब कुछ नही कर सकते, अब देर हो चुकी है।"
ये जवाब हम दोनो के सीने को छलनी करता था, कुसुम अब शायद स्तिथि से समझौता करने लगी थी, उसका उतावलापन काम होता जा रहा था, पर मैंने हार नही मानी थी, मैं अब भी अपने बच्चे के लिए हर दरवाजा खटखटाने को तैयार था, हर चौखट लांघने के लिए तत्पर था। मेरा पूरा ध्यान अपने बच्चे पर ही था, कारोबार मैने पूरी तरह से कुणाल को एक तरह से सौंप दिया, और उसने भी मेरे हालतों को समझा। कुसुम अपनी नौकरी पर ज्यादा ध्यान देने लगी थी, और हम मां बेटे बच्चे की सेवा में लगे थे।
धीरे धीरे हालत ऐसे ही चलते रहे, पर कुसुम अब बच्चे के प्रति कुछ उदासीन होती जा रही थी, कई बार दबी जुबान में मुझे भी इस पर ज्यादा ध्यान न देने को बोला, वो अब अगला बच्चा चाहती थी, मगर मैं इसके लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं था, मेरा पूरा ध्यान हमारे बच्चे पर ही लगा रहता था हर समय। कुछ दिन बाद कुसुम ने भी इस बारे में बात करना कम कर दिया, उसका काम भी काफी बढ़ गया था और अब उसके कुछ कार्य बाहर के भी करने होते थे जिसके कारण उसको दौरों पर भी जान होता था। हम दोनो की शारीरिक के साथ साथ मानसिक दूरी भी बढ़ने लगी।
इसी बीच मुझे एक और झटका लगा जब मुझे पता चला की कारोबार में बहुत बड़ा नुकसान हुआ है और अब कुणाल ने हाथ खड़े कर दिए, उसका कुछ अलग काम भी था वो अब उसमे ही पूरा ध्यान लगना चाहता था, मजबूरी वश हम वो कारोबार समेटना पड़ा, वो भी अच्छा खासे नुकसान के साथ। पापा ने मुझे तब उनके कारोबार को देखने कहा, और मैं कुछ समय उधर भी देने लगा।
कुछ दिन के बाद कुसुम का एक और दौरा आया और वो बाहर चली गई, मुझे शाम को किसी का फोन आया और उसने पास के शहर में एक नए आए डॉक्टर के बारे में बताया जो इस बीमारी का।इलाज कर सकता था। मैने अगली सुबह ही वहां के लिए निकल गया, और डॉक्टर की क्लिनिक में उनसे मिला, मगर नतीजा वही निकला जो सब जगह होता था। वहां से निकल।कर में एक रेस्टुरेंट में बैठा खा रहा था। मेरी टेबल एक खंभे के पीछे थी, और सामने लगे शीशे से मुझे रेस्टुरेंट का दरवाजा दिख रहा था। कुछ समय बाद मुझे कुसुम अंदर आते दिखी, उसे देख मैं उसके पास जाने वाला ही था की उसके ठीक पीछे कुणाल था, और दोनो ने हाथ पकड़ रखा था, मुझे कुछ अजीब सा लगा इसीलिए मैंने उनसे छिप कर रहना ही सही समझा। किस्मत से दोनो खंबे के आगे वाली टेबल पर बैठ गए, अब हम एक दूसरे को देख तो नहीं सकते थे, पर मैं उनकी आवाज जरूर सुन सकता था।
कुणाल: कुसुम तुम कब उससे तलाक ले रही हो, हम कब तक ऐसे छुप छुप कर मिलते रहेंगे?
कुसुम: मैने एक वकील से बात की है, 10-12 दिन में वो केस फाइल कर देगा।
कुणाल: जल्दी करो यार, मैने तुम्हारे कहां पर कारोबार में उससे धोखा दिया, पर अब तुम देर कर रही हो।
कुसुम: वो तलाक के लिए जरूरी था, वरना किस बिना पर तलाक लूं उससे?
ये सुनते ही मेरे पैरों से जमीन खिसक गई, मेरे आंखों के सामने अंधेरा छा गया। दिमाग सुन्न हो गया। उनके जान के बाद मैं चुपचाप से अपने शहर में आ गया, देर रात तक कुसुम भी वापस आ गई। अभी भी हमारे बीच खामोशी पसरी थी। रात को सोने के पहले मैंने ही उससे बात करनी शुरू की, और सीधे पूछा क्या तुम मुझसे अलग होना चाहती हो?
कुसुम, आश्चर्य से: तुम्हे किसने कहा?
"सुना मैने कहीं से"
"तो क्या करू? तुम तो एक ऐसी आशा का दामन पकड़ कर बैठे हो जो कभी पूरी नहीं होने वाली, क्यों नही बच्चे की चिंता करना छोड़ रहे हो तुम?"
"कैसे? हमारा बच्चा है, और तुमने उसे 9 महीने अपने पेट में रखा तुमको कोई अहसास ही नही रह गया उसके लिए? मां ही तुम आखिर?"
"हां मां हूं, पर एक औरत भी हूं, और जिंदा हूं, वो आज नही तो कल मर जायेगा तो क्या मैं जीना छोड़ दूं, जैसे तुमने छोड़ा? तुमको तो अब उसके सिवा कुछ दिखता ही नही, ना अपनी पत्नी, ना अपने मां बाप, अरे उनकी भी उम्र हो गई है, पर उनसे भी उसकी सेवा करवा रहे हो, जबकि हमे उनकी सेवा करनी चाहिए। मेरा तो कुछ ध्यान ही नही तुमको? आखिरी बार कब हम दोनो गले भी लगे थे ये याद है क्या तुमको?"
मैं उसकी बातें सुन कर हैरत में था कि एक मां कैसे ऐसा सोच सकती है। मैने फिर से एक कोशिश की उसकी ममता को जगाने की, मगर कोई फायदा नही हुआ। फिर मैने उसे सारी बातें बताई जो मैने खुद सुनी थी। बहुत मनाया उसे कि साथ ही रहे और तलाक न ले, मगर वो पत्थर बन चुकी थी उसी रात वो अपने मायके चली गई। मां पापा ने भी बहुत कोशिश की मगर कोई नतीजा नहीं निकला। मैं रात को उसके मायके भी गया, मगर उसके घर वालों ने मुझे बहार से ही टरका दिया, शायद वो भी उसी के साथ थे।
खैर 5 दिन बाद मुझे तलाक का नोटिस मिल गया, अब मेरा मन भी उसके प्रति उखड़ चुका था, और मैने भी अलग ही होने का फैसला किया। मगर नोटिस में बच्चे की कस्टडी भी मांगी गई थी, जो मैं नही देना चाहता था। जिसके लिए मैं फिर एक बार उससे मिला कर इसके बारे में मानने की कोशिश की, तो उसके वकील ने जवाब दिया की बिना कस्टडी डिमांड किए उनका केस नही बनेगा। मैने म्यूचुअल कॉन्सेंट की भी बात की, मगर उसमे उनको मेरी जायदाद में से कुछ नही मिलता।
2 महीनों में हम अलग हो गए, कोर्ट में भी मैं उसके लगाए हर इल्जाम को मंजूर किया, बस अपने बच्चे की कस्टडी के लिए मिन्नतें करता रहा, उसकी, उसके वकील की, और जज के तो पैरों में लोट गया। मगर हाय ये हमारा अंधा कानून जिसको ये लागत ही नही की कोई बाप भी अपने बच्चे का ध्यान रख सकता है, उसके लिए अपना सब कुछ लुटा सकता है। खैर इतनी मिन्नते करने के कारण महीने में 1 दिन मिलने की इजाजत ही मिली। और वो मेरे बच्चे को ले कर चली गई। आज मेरी आंखे नही मेरा दिल रो रहा था। बार बार बच्चे का चेहरा, और जाते हुए उसकी आंखों की नमी मुझे रुला रही थी।
1 महीने बाद, कल मैं अपने बच्चे को देख सकता हूं, कोर्ट द्वारा निर्धारित दिन कल ही था। आज मेरी आंखो में नींद नही थी, उसके लिए मैंने नए कपड़े और उसके फेवरेट कार्टून का सॉफ्ट टॉय लिया था। सुबह 7 बजे ही मैं तैयार हो कर कुसुम के मायके पहुंचा, पर वहां मेरे बच्चे की लाश मेरे आगे कर दी गई। उसके बेजान शरीर को देख कर ही लागत था की उसकी देख भाल तो छोड़ो, किसी को उसकी सुध भी नही थी इस घर में। मैने मुंह से जोर की चीत्कार निकली, जिसे सुन कर कुसुम आई और मुझसे कहने लगी, "चुपचाप से इसकी लाश ले कर चले जाओ और कोई तमाशा मत करो, आज मेरी कुणाल से सगाई है और घर में मेहमान है।
इतना सुनते ही मैंने एक जोर का थप्पड़ उसे लगाया, "कुतिया जब अपने बच्चे का ध्यान नही रख सकती थी तो क्यों इसकी कस्टडी ली, मैंने इतनी मिन्नते की थी, मेरे पास रहता तो देखभाल तो होती। तुम लोगों ने तो शायद खाना भी नही दिया लगता है।
कुसुम: तो दे कर भी क्या करती? अच्छा हुआ कल का मरता आज ही मर गया। अब कुणाल को भी कोई प्रोब्लम नही होगी।
बस इतना सुनते ही मेरे हाथ उसकी गर्दन पर गए और कसते ही चले गए, कुछ ही पलों में उसका शरीर मेरे हाथो में झूल रहा था.....
तो आप क्या समझते हैं, मैं क्या हूं? अपनी पूर्व पत्नी का हत्यारा?
हां जनता हूं आप में से ज्यादातर लोग मुझे ही गलत ठहराएंगे, क्योंकि बाप था न मैं, जिससे लोग बस इतनी ही आशा रखते हैं की वो अपने बच्चों को इस दुनिया में लाने का कारण बने और बस बात खत्म, वो बच्चे को 9 महीने अपने पेट में नही रखता तो उसका कोई हक नही की अपने बच्चे की देखभाल करने का, उससे प्यार करने का, आखिर अपने बच्चा का बाप ही हूं ना मैं.....
मगर किसी ने इसकी असली वजह नही मालूम की आखिर क्यों मैने उसे मारा।
हां, मैने हत्या की, मगर वो हत्या मेरे बेटे की हत्यारन की थी, ना की मेरी पूर्व पत्नी की...
कुसुम मेरी पूर्व पत्नी, जो अपने नाम की तरह ही फूलों के जैसी खूबसूरत और ताजगी से भरी थी, हम दोनो एक ही कॉलेज में पढ़ते थे। पहली नजर का प्यार था हमारा। मेरे पिता का मंझोले स्तर का कारोबार था और घर में पैसों की अधिकता तो नही पर कोई कमी भी कभी नही रही, शहर के नामचीन लोगों के शुमार थे मेरे पापा, और मैं उनका इकलौता लड़का। कुसुम के पिता एक सरकारी नौकरी में थे, जिनकी सैलरी तो बहुत नही थी, पर अहोदा ऐसा था जिसमे ऊपरी कमाई की कोई कमी न थी।
मेरे पिता कारोबारी जरूर थे पर उनको कारोबार साफ सुथरे तरीके से ही करना था और ऐसे ही संस्कार मुझे भी दिए गए थे, वही कुसुम के घर में बस पैसे से मतलब होता था, सही या गलत से नही। फिर भी चूंकि मेरे घर में पैसे की कोई कमी न थी तो उसके घर वालों को भी कोई ऐसी दिक्कत नही आई हम दोनो के रिश्ते से।
हम दोनो ही पढ़ाई में अच्छे और कैरियर ओरिएंटेड थे, एक ओर जहां मुझे कारोबार में ही दिलचस्पी थी, कुसुम को सरकारी नौकरी ही करनी थी, मैने भी उसके सपनो को पूरा करने में कोई आनाकानी नही की और घर में बोल दिया की शादी दोनो के सैटल होने के बाद ही होगी, जिसपर दोनो परिवार मान गए।
इधर मैंने अपना पिता से अलग अपना कारोबार अपने एक दोस्त के साझे में खोला, जिसे पिताजी ने मना किया था की साझे का काम बाद में चलता नही है, पर हम जवानी के जोश में थे, उस समय सब सही ही लगता है, कुणाल मेरा दोस्त जिसके साथ कारोबार शुरू किया था, वो भी मेरे और कुसुम के साथ ही कॉलेज में पढ़ता था। खैर धीरे धीरे हमारे कारोबार ने पांव जमाने शुरू कर दिए और उधर कुसुम का सिलेक्शन राज्य की नौकरी में अपर डिविजन क्लर्क का हो गया, उसके पिता ने अपने संबंधों का फायदा उठा कर कुसुम की पोस्टिंग हमारे ही शहर में करा दी। अब हमारी शादी की बातें होने लगी और 2 महीने बाद की डेट निकल आई। ये 2 महीने हम दोनो को काटने मुश्किल होते जा रहे थे, पर चूंकि मेरा कारोबार नया ही था और मुझे उसे जमाने के लिए बाहर के चक्कर लगाने पड़ते थे, तो हमारा मिलना कम ही जो पाता था। खैर आखिर शादी का दिन भी आ ही गया और हमारे मिलन की रात भी।
बेड को फूलों से सजाया गया था जिसके बीचों बीच कुसुम सी कुसुम लाज की गठरी बनी बैठी थी, हालांकि इसके पहले भी हम कई बार एकांत में मिल चुके थे, पर दोनो का ही फैसला था की अपनी शारीरिक भूख हम शादी के बाद ही शांत करेंगे। मैने उसके घूंघट को हटाया, अंदर चांद का दीदार हुआ, कितनी ही बार देखा उसे मैंने मगर आज वो मांग में मेरे नाम का सिंदूर लगाए मेरे पहलू में बैठी थी, मैने आगे पढ़ कर उसका चेहरा अपने हाथ में लिया और उसके मस्तक पर एक चुम्बन अंकित कर दिया, उसने अपनी आंखे बंद कर रखी थी, जिसे देख मैने बारी बारी दोनो पलकों को भी चूम लिया। उसने आंखे खोली और मुझे देख एक बार फिर से शर्मा गई।
अब मैने पहल करते हुए उसके मांगटीका को उतार दिया और अब मेरे हाथ उसकी नाथ को खोल रहे थे, आहिस्ता से नाथ उत्तर कर साइड में रख कर मेरे होंठ उसके लराजते लबों पर कस गए और हम एक दूसरे के मुंह का स्वाद लेने लगे। तभी मैंने अपनी जीभ को उसके मुंह में धकेल दिया और वो मजे से उसको चूसने लगी। कुछ मिनटों के बाद हम दोनो हांफते हुए अलग हुए, अब मैंने उसकी साड़ी का पल्लू पकड़ कर साड़ी उतरनी चाही जिसमे उसने खुद उठ कर मेरी मदद की, अब कुसुम मेरे सामने पहली बार ब्लाउज और पेटीकोट में खड़ी थी, उसका वो सपाट पेट और उसकी गहरी नाभी मुझे ललचा रही थी, मैने उसे कमर से पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और अपनी जीभ उसके पेट के कुएं में डाल दी, मेरे ऐसा करते ही वो चिहुंक उठी, और अपने कांपते हाथों से मेरे बालों को सहलाने लगी। मैने अपना एक हाथ ऊपर ले जा कर उसके स्तनों को बारी बारी से मसलने लगा और दूसरे हाथ उसके नितंबों का मर्दन कर रहे थे। उसके शरीर में एक जबरदस्त जुंबिश होने लगी और उसका अपने पैरों पर खड़ा होना मुश्किल हो रहा था, वो मेरे कंधों पर झूल सी गई, और मैने आहिस्ता से उसे वापस पलंग पर बैठा दिया, अब मेरे सामने उसका ब्लाउज था जिसके हुकों को में खोलने लगा, और थोड़ी देर के बाद उसके उन्नत स्तन एक मरून रंग को ब्रा में कैद मेरी आंखों के सामने थे, मैने दोनो स्तनों की घाटी में अपनी जीभ फेर दी जिससे कुसुम एक बार फिर से कांप गई, फिर मैंने उठ कर अपने कपड़े निकालने वाला ही था की कुसुम ने मेरा हाथ पकड़ कर नीचे कर दिया और खुद से मेरे कुर्ते के बटन को खोलने लगी, और कुर्ते को उठा कर मेरे शरीर से अलग कर दिया नीचे मेरा कसरती बदन उसके सामने था, सिक्स पैक तो नही बनाए थे, पर नियमित व्यायाम से पेट के हिस्से में चर्बी नही थी, अब कुसुम ने मेरे पैजामे का नाड़ा खोल दिया और वो पलंग पर धराशाई हो गया, मैने पैर से उसे किनारे करते हुए कुसुम के पेटीकोट को खोल दिया, अब हम दोनो ही एक दूसरे के सामने पहली बार आधे नंगे खड़े थे। दोनो हैरत में थे और दोनो के ही बदन कांप रहे थे, एकदम से हम दोनो एक दूसरे की बाहों में समा कर पलंग पर लेट गए। थोड़ी दी बाद जब दोनो कुछ संयत हुए तो फिर से हमारे होंठ और जीभ एक दूसरे के से खेलने लगे और मैने उसकी ब्रा के हुक खुल दिए, और पहली बार उसके स्तनों को मैने महसूस किया, क्या मुलायम और चिकने थे वो, और निप्पल के आस पास हल्का दानेदार जैसे एक बड़ी पहाड़ी के चारों ओर छोटे छोटे टीले होते हैं। फिर हम एक दूसरे से थोड़ी दूर हुए और मेरी नजर उसके स्तनों पर गई, गुलाबी रंग के माध्यम आकार के 2 उन के गोले जैसे जिनके ऊपर भूरे रंग के निप्पल, मैने फिर से उनको हाथ में लिया और हल्के से दबा दिया, उसके मुंह से सिसकारी निकली, मैने एक स्तन को मुंह में भरा और कुसुम ने का कर मेरे बालों को पकड़ लिया, मेरी जीभ से उसके निप्पल को चाटा जिससे कुसुम जोर से चिहुंकी और मेरे सर को का कर अपने स्तनों पर दबाने लगी, मेरा एक हाथ अब उसकी पैंटी के ऊपर से उसकी योनि के टटोल रहा था और उसका भी एक हाथ मेरे लिंग को छूने लगा, दोनो की उत्तेजना बढ़ती ही जा रही थी, और मैने अपने हाथ और पैर की मदद से उसकी पैंटी खोल दी, वो भी मेरे अंडरवियर को खींच रही थी तो मैंने उसे भी निकल फेका। अब हम दोनो पूर्ण नग्न रूप से एक दूसरे से चिपक कर लेट थे और शरीर में झुरझुरी एक बार फिर से चालू हो गई, थोड़ा सामान्य होने पर कुसुम अपने हाथ से मेरे लिंग को पकड़ कर अपने योनि पर लगाने लगी, फिर मैंने उसे पीठ के बल लेटा कर उसकी टांगे खोल दी, और उसकी बालों रहित सुंदर गुलाबी योनि को देखने लगा, कुसुम ने कहा, बाद में देखना पहले अंदर डालो। मैं मुस्कुराते हुए आगे को झुक कर अपने लिंग को उसको योनि से लगाया, मगर खुद से अंदर नही कर पाया, तब कुसुम ने ही हाथ बढ़ा कर उसे से किया और मुझे इशारा अंदर धकेलने का इशारा किया, मैने अपनी कमर से जोर लगाया और थोड़ा सा लिंग अंदर गया और दोनो ही कराह उठे, फिर थोड़ी देर बाद कुछ राहत मिलने पर हम दोनो ने जोर लगा कर लिंग को पूरा योनि के अंदर कर दिया, दोनो में ही कुछ उत्तेजना आने लगी और कमर को हिला कर अंदर बाहर करने लगे दोनो को मजा आने लगा और करहाते हुए हम दोनो एक दूसरे फिर से चूमने चाटने और काटने लगे 10 मिनिट के बाद मुझे लगा की मेरा निकलने वाला है, और मेरे धक्के खुद ब खुद तेज होने लगे, उधर कुसुम भी चरम पर पहुंचने लगी और कुछ ही देर में दोनो ने एक दूसरे को भिगो दिया।
आज हमने एक दूसरे को पा लिया था, आज हम दोनो ही पूर्ण हो चुके थे। आगे हमारी जिंदगी हंसी खुशी चलने लगी, धीरे धीरे दोनो ही संभोग के नए आयामों को सीखने और अजमाने लगे। काम भी अच्छा चलने लगा और जिंदगी खुशियों से भर गई, 6 महीने बाद कुसुम ने खुशखबरी दी हम सबको की वो मां बनने वाली है, अब मेरे पैर ही जमीन पर नहीं पड़ते थे। लगता था की दुनिया में मैं ही सबसे ज्यादा खुशकिस्मत हूं। खुशियां लगातार बढ़ती ही जा रही थी जिंदगी में। धीरे धीरे 9 महीने बीत गए और एक रात कुसुम को लेबर स्टार्ट हो गया, हम सब आनन फानन में उसको ले कर हॉस्पिटल गए और 2 घंटे के इंतजार के बाद नर्स ने आ कर मुझे अब तक की सबसे बड़ी खुशी की खबर सुनाई की में बाप बन गया हूं।
नर्स मुझे कमरे में ले गई जहां कुसुम अपने गोद मे लेता कर हमारे बच्चे को स्तनपान करवा रही थी, मैं भरी हुई आंखों से दोनो को देख कर मुस्कुरा रहा था, कुसुम भी मुझे देख कर लगभग रो ही पड़ी और मुझे पास बुला कर हमारे बच्चे को मेरी ओर बढ़ाया, मैने उसे गोद में लिया, वो बच्चा मेरा अंश, कुसुम की तरह कोमल.. और क्या चाहिए होता है किसी को भी जिंदगी से.. खुशियां ही खुशियां..
जिंदगी में सब सही चल रहा था,बच्चा 1 साल के करीब का हो गया था, कुसुम ने ऑफिस जाना शुरू कर दिया था, और उसकी देखभाल मेरी मां ने करनी शुरू कर दी थी, उनको बच्चे की ग्रोथ में कुछ समस्या दिखने लगी। और वो उसे डॉक्टर को दिखाने ले गई, डॉक्टर ने कुछ टेस्ट्स करवाए और उसको सेलेब्रल पाल्सी से ग्रसित बताया। मतलब उसका शारीरिक विकास बहुत कम होगा, उसके आगे उसके अंगों में दर्द होगा और धीरे धीरे वो शिथिल होने लगेंगे और एक दिन बिस्तर ही उसका सब कुछ होगा, पूरी उम्र के लिए, साथ ही साथ पूरी जिंदगी दवाई और फिजियोथैरेपी भी चाहिए होगी। सब कुछ लूट चुका था हम दोनों का, दोनो ही अपने बच्चे के भविष्य को लेकर चिंतित थे, भाग दौड़ करके कई डॉक्टरों का पता किया जो इसका इलाज करते थे, बच्चे को ले कर कहां कहां नही गए, पर हर जगह से एक ही जवाब मिला, "अब कुछ नही कर सकते, अब देर हो चुकी है।"
ये जवाब हम दोनो के सीने को छलनी करता था, कुसुम अब शायद स्तिथि से समझौता करने लगी थी, उसका उतावलापन काम होता जा रहा था, पर मैंने हार नही मानी थी, मैं अब भी अपने बच्चे के लिए हर दरवाजा खटखटाने को तैयार था, हर चौखट लांघने के लिए तत्पर था। मेरा पूरा ध्यान अपने बच्चे पर ही था, कारोबार मैने पूरी तरह से कुणाल को एक तरह से सौंप दिया, और उसने भी मेरे हालतों को समझा। कुसुम अपनी नौकरी पर ज्यादा ध्यान देने लगी थी, और हम मां बेटे बच्चे की सेवा में लगे थे।
धीरे धीरे हालत ऐसे ही चलते रहे, पर कुसुम अब बच्चे के प्रति कुछ उदासीन होती जा रही थी, कई बार दबी जुबान में मुझे भी इस पर ज्यादा ध्यान न देने को बोला, वो अब अगला बच्चा चाहती थी, मगर मैं इसके लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं था, मेरा पूरा ध्यान हमारे बच्चे पर ही लगा रहता था हर समय। कुछ दिन बाद कुसुम ने भी इस बारे में बात करना कम कर दिया, उसका काम भी काफी बढ़ गया था और अब उसके कुछ कार्य बाहर के भी करने होते थे जिसके कारण उसको दौरों पर भी जान होता था। हम दोनो की शारीरिक के साथ साथ मानसिक दूरी भी बढ़ने लगी।
इसी बीच मुझे एक और झटका लगा जब मुझे पता चला की कारोबार में बहुत बड़ा नुकसान हुआ है और अब कुणाल ने हाथ खड़े कर दिए, उसका कुछ अलग काम भी था वो अब उसमे ही पूरा ध्यान लगना चाहता था, मजबूरी वश हम वो कारोबार समेटना पड़ा, वो भी अच्छा खासे नुकसान के साथ। पापा ने मुझे तब उनके कारोबार को देखने कहा, और मैं कुछ समय उधर भी देने लगा।
कुछ दिन के बाद कुसुम का एक और दौरा आया और वो बाहर चली गई, मुझे शाम को किसी का फोन आया और उसने पास के शहर में एक नए आए डॉक्टर के बारे में बताया जो इस बीमारी का।इलाज कर सकता था। मैने अगली सुबह ही वहां के लिए निकल गया, और डॉक्टर की क्लिनिक में उनसे मिला, मगर नतीजा वही निकला जो सब जगह होता था। वहां से निकल।कर में एक रेस्टुरेंट में बैठा खा रहा था। मेरी टेबल एक खंभे के पीछे थी, और सामने लगे शीशे से मुझे रेस्टुरेंट का दरवाजा दिख रहा था। कुछ समय बाद मुझे कुसुम अंदर आते दिखी, उसे देख मैं उसके पास जाने वाला ही था की उसके ठीक पीछे कुणाल था, और दोनो ने हाथ पकड़ रखा था, मुझे कुछ अजीब सा लगा इसीलिए मैंने उनसे छिप कर रहना ही सही समझा। किस्मत से दोनो खंबे के आगे वाली टेबल पर बैठ गए, अब हम एक दूसरे को देख तो नहीं सकते थे, पर मैं उनकी आवाज जरूर सुन सकता था।
कुणाल: कुसुम तुम कब उससे तलाक ले रही हो, हम कब तक ऐसे छुप छुप कर मिलते रहेंगे?
कुसुम: मैने एक वकील से बात की है, 10-12 दिन में वो केस फाइल कर देगा।
कुणाल: जल्दी करो यार, मैने तुम्हारे कहां पर कारोबार में उससे धोखा दिया, पर अब तुम देर कर रही हो।
कुसुम: वो तलाक के लिए जरूरी था, वरना किस बिना पर तलाक लूं उससे?
ये सुनते ही मेरे पैरों से जमीन खिसक गई, मेरे आंखों के सामने अंधेरा छा गया। दिमाग सुन्न हो गया। उनके जान के बाद मैं चुपचाप से अपने शहर में आ गया, देर रात तक कुसुम भी वापस आ गई। अभी भी हमारे बीच खामोशी पसरी थी। रात को सोने के पहले मैंने ही उससे बात करनी शुरू की, और सीधे पूछा क्या तुम मुझसे अलग होना चाहती हो?
कुसुम, आश्चर्य से: तुम्हे किसने कहा?
"सुना मैने कहीं से"
"तो क्या करू? तुम तो एक ऐसी आशा का दामन पकड़ कर बैठे हो जो कभी पूरी नहीं होने वाली, क्यों नही बच्चे की चिंता करना छोड़ रहे हो तुम?"
"कैसे? हमारा बच्चा है, और तुमने उसे 9 महीने अपने पेट में रखा तुमको कोई अहसास ही नही रह गया उसके लिए? मां ही तुम आखिर?"
"हां मां हूं, पर एक औरत भी हूं, और जिंदा हूं, वो आज नही तो कल मर जायेगा तो क्या मैं जीना छोड़ दूं, जैसे तुमने छोड़ा? तुमको तो अब उसके सिवा कुछ दिखता ही नही, ना अपनी पत्नी, ना अपने मां बाप, अरे उनकी भी उम्र हो गई है, पर उनसे भी उसकी सेवा करवा रहे हो, जबकि हमे उनकी सेवा करनी चाहिए। मेरा तो कुछ ध्यान ही नही तुमको? आखिरी बार कब हम दोनो गले भी लगे थे ये याद है क्या तुमको?"
मैं उसकी बातें सुन कर हैरत में था कि एक मां कैसे ऐसा सोच सकती है। मैने फिर से एक कोशिश की उसकी ममता को जगाने की, मगर कोई फायदा नही हुआ। फिर मैने उसे सारी बातें बताई जो मैने खुद सुनी थी। बहुत मनाया उसे कि साथ ही रहे और तलाक न ले, मगर वो पत्थर बन चुकी थी उसी रात वो अपने मायके चली गई। मां पापा ने भी बहुत कोशिश की मगर कोई नतीजा नहीं निकला। मैं रात को उसके मायके भी गया, मगर उसके घर वालों ने मुझे बहार से ही टरका दिया, शायद वो भी उसी के साथ थे।
खैर 5 दिन बाद मुझे तलाक का नोटिस मिल गया, अब मेरा मन भी उसके प्रति उखड़ चुका था, और मैने भी अलग ही होने का फैसला किया। मगर नोटिस में बच्चे की कस्टडी भी मांगी गई थी, जो मैं नही देना चाहता था। जिसके लिए मैं फिर एक बार उससे मिला कर इसके बारे में मानने की कोशिश की, तो उसके वकील ने जवाब दिया की बिना कस्टडी डिमांड किए उनका केस नही बनेगा। मैने म्यूचुअल कॉन्सेंट की भी बात की, मगर उसमे उनको मेरी जायदाद में से कुछ नही मिलता।
2 महीनों में हम अलग हो गए, कोर्ट में भी मैं उसके लगाए हर इल्जाम को मंजूर किया, बस अपने बच्चे की कस्टडी के लिए मिन्नतें करता रहा, उसकी, उसके वकील की, और जज के तो पैरों में लोट गया। मगर हाय ये हमारा अंधा कानून जिसको ये लागत ही नही की कोई बाप भी अपने बच्चे का ध्यान रख सकता है, उसके लिए अपना सब कुछ लुटा सकता है। खैर इतनी मिन्नते करने के कारण महीने में 1 दिन मिलने की इजाजत ही मिली। और वो मेरे बच्चे को ले कर चली गई। आज मेरी आंखे नही मेरा दिल रो रहा था। बार बार बच्चे का चेहरा, और जाते हुए उसकी आंखों की नमी मुझे रुला रही थी।
1 महीने बाद, कल मैं अपने बच्चे को देख सकता हूं, कोर्ट द्वारा निर्धारित दिन कल ही था। आज मेरी आंखो में नींद नही थी, उसके लिए मैंने नए कपड़े और उसके फेवरेट कार्टून का सॉफ्ट टॉय लिया था। सुबह 7 बजे ही मैं तैयार हो कर कुसुम के मायके पहुंचा, पर वहां मेरे बच्चे की लाश मेरे आगे कर दी गई। उसके बेजान शरीर को देख कर ही लागत था की उसकी देख भाल तो छोड़ो, किसी को उसकी सुध भी नही थी इस घर में। मैने मुंह से जोर की चीत्कार निकली, जिसे सुन कर कुसुम आई और मुझसे कहने लगी, "चुपचाप से इसकी लाश ले कर चले जाओ और कोई तमाशा मत करो, आज मेरी कुणाल से सगाई है और घर में मेहमान है।
इतना सुनते ही मैंने एक जोर का थप्पड़ उसे लगाया, "कुतिया जब अपने बच्चे का ध्यान नही रख सकती थी तो क्यों इसकी कस्टडी ली, मैंने इतनी मिन्नते की थी, मेरे पास रहता तो देखभाल तो होती। तुम लोगों ने तो शायद खाना भी नही दिया लगता है।
कुसुम: तो दे कर भी क्या करती? अच्छा हुआ कल का मरता आज ही मर गया। अब कुणाल को भी कोई प्रोब्लम नही होगी।
बस इतना सुनते ही मेरे हाथ उसकी गर्दन पर गए और कसते ही चले गए, कुछ ही पलों में उसका शरीर मेरे हाथो में झूल रहा था.....
तो आप क्या समझते हैं, मैं क्या हूं? अपनी पूर्व पत्नी का हत्यारा?
हां जनता हूं आप में से ज्यादातर लोग मुझे ही गलत ठहराएंगे, क्योंकि बाप था न मैं, जिससे लोग बस इतनी ही आशा रखते हैं की वो अपने बच्चों को इस दुनिया में लाने का कारण बने और बस बात खत्म, वो बच्चे को 9 महीने अपने पेट में नही रखता तो उसका कोई हक नही की अपने बच्चे की देखभाल करने का, उससे प्यार करने का, आखिर अपने बच्चा का बाप ही हूं ना मैं.....