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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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avsji

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आपकी लेखनी को सलाम
अफसोस हो रहा है कि इतना समय तक इस शानदार कहानी से दूर रहा। लेकिन खुशी इस बात कि है कि अपदेट का इन्तजार नही करना पडेगा। बहुत ही जबरदस्त लिखा है आपने ।
आपकी सभी कहानिया गजब है। और मैने बाकी सभी पढी भी है। पुनः साधुवाद।

सबसे पहले भाई आपका स्वागत है। आपको कुछ अपडेट like करते देखता हूँ, तो लगता है कि कब आप कुछ लिखेंगे!
अब तक की कहानी आपको पसंद आई - सुन / जान कर अच्छा लगा। कहाँ तक पहुँचे हैं आप?
 

avsji

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अमर के वश का ही नही है जो वो इस रिश्ते को नकार दे। अमर की भावनाएं वही है जैसा लगभग हर मर्द मे पाया जाता है। काजल शुरुआत से ही सबकुछ जानती समझती थी लेकिन अमर को यह सब अचानक से सरप्राइज किया गया। कोई भी व्यक्ति भौचक्का हो सकता है।
अमर को भी आखिरकार संस्कार उसके माता पिता से मिला है। वो किसी के खुशी मे रूकावट बन ही नही सकता।

संजू भाई सही कह रहे हैं! अमर के वश में है ही नहीं कि वो इस सम्बन्ध को नकार दे।
वो किसी का बुरा नहीं चाहता - बस, अपना बुरा होते नहीं देख पाता। उसको लगा कि माँ के साथ साथ काजल और लतिका भी चले जायेंगे, तो उसको घबराहट हुई।
इतने समय के बाद तो उसके जीवन में स्थिरता आई, वो कैसे चला जाने दे?
सुनील के साथ उसका सम्बन्ध बदल रहा है, उसके कारण भी confusion है। वैसे वो उन दोनों के लिए खुश है।

काजल ने सही किया - हो सकता है कि पहले बताने पर वो नौटंकी करता। लेकिन काजल की हरकत ने सुनील-सुमन के सम्बन्ध को एक निश्चितता दे दी।
 

avsji

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जूही जी, आप का बचपन कैसा गुजरा होगा, मै अच्छी तरह से समझ सकता हूं। पिता का साया कम उम्र मे ही उठ जाना और मां को वैधव्य रूप मे तिल तिल आंसू बहाते हुए देखना...फाइनेंशियल एंड फ्यूचर की असुरक्षित भावना, सब कुछ बहुत बहुत ज्यादा कठीन हुआ होगा।
मै आपके चाचा को सलाम करता हूं। उन्होंने परिवार के विरूद्ध डिसिजन लिया और आप को एंव आपकी मम्मी को जीने की राह दिखाई। ऐसे इंसान को सत सत नमन।

इंसान की जीवनी ऐसे ही चलती है। दुख ही हमारे साथी हुआ करते हैं और सुख सिर्फ मेहमान।
जब हम जानते हैं कि कौन साथी है और कौन मेहमान तो क्यों न साथी को ही अपने जीवन का अंश मान लें! आप देखना, तब हर दुख मे भी आपके चेहरे पर मुस्कान होगी।

बहुत अच्छा लगा आपके विचार पढ़कर। हमेशा खुश रहिए और स्वस्थ रहिए।

जब मेरे पाठक अपने जीवन की बातें मुझसे शेयर करते हैं तो मुझे बड़ा अच्छा लगता है, और गर्व भी होता है।
गर्व इस बात का कि उनको मुझ पर इतना विश्वास है कि मुझसे ऐसी अंतरंग बातें कर सकें।
जूही ने जो बताया वो सुन कर मुझे तमाम भावनाएँ और संवेदनाएँ महसूस हुईं। सच में - बचपन में बाप का साया उठ जाए तो उस दुःख का अनुमान लगाना कठिन है। जूही और उनकी माता जी पर क्या बीती होगी, मैं ठीक से सोच भी नहीं सकता। बड़ी हिम्मत चाहिए भाई! इसलिए मैं जूही, उनकी माता जी और उनके डैड (चाचा जी) तीनों को दिल से सलाम करता हूँ! आप लोग सामाजिक और मानवीय चेतना के दीपक हैं। ऐसे लोग और होने चाहिए! जान कर अच्छा भी लगा कि ये तीनों बड़े सुख से हैं।
 

Lutgaya

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सबसे पहले भाई आपका स्वागत है। आपको कुछ अपडेट like करते देखता हूँ, तो लगता है कि कब आप कुछ लिखेंगे!
अब तक की कहानी आपको पसंद आई - सुन / जान कर अच्छा लगा। कहाँ तक पहुँचे हैं आप?
अभी तक सिर्फ काजल के साथ अमर के सभोग तक पहुंच पाया हूँ।
आप जैसे लेखक बिरले ही हैं झ्स साईट पर।
धन्यवाद ऐसी रचना देने के लिए।
 

ashik awara

Member
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ये ठीक हे की सम्भोग का चेप्टर पढने में अच्चा लगता हे पर अगर प्यार और भावनाएं न हों तो ये भी टूल या मशीन बनकर रह जाता हे बाकि आप बढ़ा चढ़ा कर जो मर्जी कहा जाये पर जो मजा रोमांस से भरपूर कहानी में आता हे वो सिर्फ सम्भोग में नही आयेगा और जीवन में रोमांस और प्यार न हो तो सुखा सम्भोग केसा लगेगा सोच सकते हो आपकी कहानी अभी तो ठीक लग रही हे आगे देखते हें जारी रखिये और हिंदी पढना और लिखना आज के समय में मुश्किल नही हे हाँ कहानी कहना हर किसी की अलग२ शेली होती ही हे
 

Lutgaya

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पहला प्यार - विवाह - Update #14


लगभग एक मिनट के बाद, उन्होंने डैड को पुकारते हुए सुना। माँ ने उनकी पुकार के उत्तर में कहा कि वे मेरे कमरे में हैं। इस डर से कि डैड उसको ऐसे नंगा नंगा देख लेंगे, गैबी माँ के स्तनों को छोड़कर खुद को ढँकने लगी। पर माँ ने उसे रोक दिया,

इट इस ओके, हनी! जस्ट रिलैक्स! रिलैक्स!… ओके…?”

लेकिन गैबी रिलैक्स नहीं कर पा रही थी - उसको बहुत अधिक शरम आ रही थी। इससे पहले वो खुद को ढँकने के बारे में कुछ सोच पाती, या कर पाती, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। डैड हमारे कमरे के अंदर आ चुके थे। उसने देखा कि माँ और गैबी क्या कर रहे थे, और वो एक पल के लिए झिझके; लेकिन फिर वो कमरे के अंदर आ गए, और उन दोनों के पास बिस्तर पर बैठ गए। अगर वो अंदर आए बिना चले जाते, तो स्थिति सामान्य न होती, और गैबी और भी अधिक लज्जा महसूस करती। गैबी के स्तन तो शॉल में ढके हुए थे, लेकिन उसकी कमर के नीचे उसका सारा नग्न शरीर प्रदर्शित था। कुछ देर तक किसी ने कुछ नहीं कहा।

“सुनिये जी, ज़रा रसोई से नारियल तेल लेते आइएगा!” अंत में माँ ने ही डैड से कहा।

“क्या हो गया?”

“अरे, बिटिया की मालिश कर दूँगी थोड़ा!”

तो डैड कमरे से बाहर चले गए।

“माँ, डैड ने मुझे नंगी देख लिया।” गैबी ने लजाते हुए माँ से शिकायत करी।

“हाँ! तो? तुम तो हम दोनों की ही बेटी हो न! अगर मुझसे नहीं शरमा रही हो, फिर अपने डैड से क्यों?” माँ ने उसे शांत किया, “और फिर हमारी बेटी कितनी खूबसूरत भी तो है। उनको भी पता चले! है न?”

गैबी कुछ कह न सकी। डैड कुछ देर बाद नारियल तेल की बोतल लेकर वापस लौटे।

“बिटिया भी दूध पीती है?” डैड ने कहा; प्रत्यक्ष्य को प्रमाण क्या?

“हाँ! क्यों जी? क्यों ना पिए? मेरी बेटी है।”

“अरे भाग्यवान! मैंने कुछ कहा? बिलकुल पिए! तुम्हारी बेटी है, तो मेरी क्या मेरी बेटी नहीं है?”

“बिलकुल है... लेकिन दूध तो मैं ही पिला सकती हूँ ना!” माँ ने कहा!

“हा हा हा, हाँ, वो बात तो अटल सत्य है!”

माँ ने अपनी हथेली पर थोड़ा सा नारियल तेल डाला और गेबी की योनि पर उदारतापूर्वक लगाया। माँ के हाथ को समुचित जगह देने के लिए गैबी को अपने पैर खोलने पड़े। डैड को अब गैबी की योनि के होंठ दिखाई दे रहे थे। उन्होंने भी गैबी के सूजे हुए होंठों को देखा।

“क्या हुआ? दर्द हो रहा है क्या?” उन्होंने पूछा - उनकी आवाज़ में चिंता साफ़ साफ़ सुनाई दे रही थी।

गैबी को याद आया कि कैसे जब तो छोटी थी, तब उसके पिता उसे ‘शील’ में बने रहने के लिए कम से कम अपनी पैंटी पहनने के लिए कहते थे। नग्न रहना तो उसके लिए असंभव था। लेकिन यहाँ तो डैड को गैबी की हालत पर ज़रा भी विरोध नहीं था। बेशक, उनको देख कर वो यह नहीं कह सकती थी, कि उनको उसकी नग्नता के बारे में सोच कर कैसा लग रहा था! कम से कम उन्होंने अपनी भावना किसी स्पष्ट तरीके से दिखाई नहीं। इस बीच माँ ने धीरे धीरे गैबी की योनि की मालिश करनी शुरू कर दी।

“हाँ न! गैबी बिटिया की म्यानी छोटी सी है ना! और आपके बेटे का छुन्नू बड़ा सा है।”

माँ ने अपनी बड़ी मधुरता के साथ कहा। डैड केवल मुस्कुराए। शायद वो अंदर ही अंदर खुश थे कि उनके बेटे का लिंग अपनी पत्नी के लिए समुचित आकार का था।

“अरे, तो सेंकाई कर देती ना!” उन्होंने सुझाया।

“कर तो देती, लेकिन आपकी लाडली को मेरा दूध पीना था…”

“ओह! अच्छी बात है!” पिताजी ने समझते हुए कहा, “फिर दूध पिला के सेंकाई कर दो!”

“जी, ठीक है।”

“गैबी बेटा,” डैड ने गैबी से मुखातिब होते हुए कहा, “अभी तुम छोटी हो, और तुम्हारे पैर की मसल्स भी स्ट्रांग हैं। इसलिए तुम कुछ स्ट्रेच और पेल्विक फ्लोर एक्सरसाइजेज किया करो। उससे फ्लेक्सिबिलिटी भी आती है, और इंटरकोर्स की परेशानियों में हेल्प भी होती है।” उन्होंने बिलकुल प्रोफेशनल तरीके से कहा, और फिर कुछ सोच कर आगे जोड़ा,

“इसके अलावा, अमर से कहो - मैं भी कहूँगा - कि पेनिट्रेशन से पहले फोरप्ले पर अधिक समय बिताए... यू नो, जब पार्टनर अच्छी तरह से उत्तेजित होती है, तो उसको दर्द कम होता है।” उन्होंने गैबी को कुछ इस तरह समझाया जैसे कि उसको सेक्स के बारे में कुछ मालूम ही न हो!

गैबी ने उत्तर में कुछ नहीं कहा, लेकिन वह शर्म से लाल हो गई।

“शरमाओ मत बेटा। जब तुम्हारी माँ और मेरी नई-नई शादी हुई थी, तो मैं तुम्हारी माँ के साथ भी ऐसा ही करता था। बाद में इन्होने लेग स्ट्रेच करना शुरू कर दिया, जिससे इनको काफ़ी आराम मिला। और, बाद में इनको मेरी आदत भी हो गई।”

“हाँ, मैंने भी बिटिया को ये सब बताया है।” माँ ने कहा, और मालिश करना जारी रखा।

गैबी ने अब तक माँ का दूध पीना छोड़ दिया था, और किसी तरह से अपने चेहरे पर धीर गंभीर भाव बनाए रखे हुई थी, जो कि बहुत मुश्किल था - खासकर तब, जब डैड सामने बैठे हुए थे। माँ ने भी अपने स्तन छिपाने की कोई कोशिश नहीं की। गैबी को देखते हुए, डैड के चेहरे पर गंभीर, लेकिन स्नेह के भाव आ गए। उन्होंने कुछ कहने से पहले थोड़ा इंतज़ार किया, और फिर कहा,

“गैबी बेटा, हम - मतलब तुम्हारी माँ और मैं - तुमको अपनी बेटी के रूप में पाकर बहुत खुश हैं... बहुत खुश! अमर के बाद, हमने बड़े लंबे समय तक अपना एक और बच्चा करने के बारे में बहुत सोचा और विचारा... लेकिन फिर हमने उस इच्छा को दबा दिया, ताकि हम अमर का पालन-पोषण कर अच्छी तरह से कर सकें। ताकि हम उसको उसके जीवन के लिए यथासंभव, सबसे अच्छी शुरुवात दे सकें। हम कभी भी उसकी शिक्षा और पालन पोषण में कोई समझौता नहीं करना चाहते थे... और दूसरा बच्चा होने से हमें फाइनेंशियल तनाव तो होता…”

डैड बोलते बोलते काफ़ी सीरियस हो गए थे; उन्होंने अचानक ही यह महसूस किया, और मुस्कुराते हुए बोले, “आई मीन, मैं जो कहने की कोशिश कर रहा हूँ, वो यह है कि हम दोनों को ही हमेशा महसूस होता रहा कि हमारा परिवार अभी पूरी तरह से पूरा नहीं हुआ था... लेकिन अब, तुम्हारे साथ, तुम्हारे आने के बाद, मेरा परिवार पूरा हो गया है। हमको हमारी बेटी मिल गई!”

डैड ने गैबी को इतने प्यार से ‘बेटी’ कहा, कि उसकी आँखों में आँसू आ गए।

“ओह डैडी! डैडी! आई लव यू सो वैरी मच!” गैबी ने कहा और माँ की गोदी से कूद कर, डैड को जितना संभव था, उसने उतने मजबूत आलिंगन में उनके गले से लग गई। यह तथ्य कि वो अब डैड के सामने भी पूरी तरह से नग्न थी, अब उसके लिए कोई मायने नहीं रखता था। अब हम उसका परिवार थे; अब माँ और डैड उसके माँ और डैड थे!

“मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं इतनी लकी हूँगी कि आपके इस सुंदर से परिवार का हिस्सा बनूँगी! मैं बहुत लकी हूँ, डैडी... मैं बहुत लकी हूँ! आई फील सो प्राउड एंड ऑनर्ड कि आपने मुझे अपने परिवार में स्वीकार किया।”

डैड ने उसके माथे को चूमा और कहा, “न बेटा, तुम नहीं, हम हैं लकी! तुम्हारे कारण मेरा परिवार पूरा हुआ है! तुम हमारी बेटी की तरह रहोगी… हमारी बहू की तरह नहीं। हम हमेशा तुम दोनों के साथ साथ खड़े मिलेंगे। मुझे पता है कि तुम्हारा जीवन यहाँ आ कर बहुत बदल गया है... और मैं तुमसे वायदा करता हूँ कि हम दोनों तुम्हारे लिए इस बदलाव को थोड़ा आसान करने की कोशिश करेंगे। और, तुमको अपना सारा प्यार देंगे!”

“थैंक यू सो मच, डैडी... थैंक यू सो मच, मम्मी!”

डैड उसे कुछ देर तक अपने आलिंगन में पकड़े रहे, और कई बार गैबी के माथे को चूमते रहे। डैड बहुत ही स्नेही व्यक्ति हैं - लगभग माँ के समान ही, या फिर शायद उनसे भी अधिक। लेकिन जहाँ माँ बहुत खुल कर अपनी भावनाओं का प्रदर्शन कर देती हैं, डैड उतना खुलकर अपना स्नेह नहीं दिखा पाते। लेकिन फिर आखिरकार उन्होंने गैबी को अपने से अलग किया और कहा,

नाउ गो... कंटिन्यू ब्रेस्टफीडिंग!”

गैबी फिर से शरमा गई, “डैडी, क्या आपको वाकई इस बात पर कोई आपत्ति नहीं है?”

“हा हा हा! नहीं बेटा, मुझे कोई आपत्ति नहीं है। तुम हमारी बेटी हो... और इस घर में हमारे बच्चों का दूध पीना कभी नहीं रुक सकता।” डैड ने बड़े मजे से कहा।

“तुमने कभी बंद किया दूध पीना मिस्टर?” माँ ने डैड को चिढ़ाया।

माँ की इस बात पर गैबी ज़ोर से हँस पड़ी। उसके मानस पटल पर एक मज़ेदार दृश्य खिंच गया - डैड, माँ की गोद में लेटे हुए, उनके स्तनों को पी रहे हैं! उसने कुछ कहा नहीं, और फिर से माँ के स्तन पीने माँ की गोद में लेट गई। डैड ने उसके नग्न शरीर को शॉल से वापस ढँक दिया। लेकिन उनको अपना ‘सीक्रेट’ लीक हो जाने के कारण शर्मिंदगी महसूस हो रही थी, इसलिए उन्होंने वहाँ से खिसक लेने में ही अपनी भलाई समझी।

“काजल बिटिया कहां है?” उन्होंने वहाँ से निकल लेने के लिए बहाना बनाया, “सवेरे से उसको देखा नहीं। उसकी तबियत तो ठीक है?”

इतना कहकर पापा उठ गए और काजल को देखने के लिए कमरे से बाहर चले गए। जब गैबी का मन भर गया, तो उसने माँ को देखा और मुस्कुराई।

“तुमको यह पसंद आया, बेटा?” माँ ने पूछा।

“माँ! आई लव यू…” गैबी ने बड़ी खुशी से कहा, और माँ के गले से लग गई और उनके होठों को चूमते हुए बोली, “आई लव यू... आई लव यू... आई लव यू! ... आप पूरी दुनिया की सबसे अच्छी माँ हैं! थैंक यू... थैंक यू... थैंक यू... सो सो मच!”

“मेरी बिटिया रानी, अपने बच्चों को प्यार दे पाना, प्यार से पालना पोसना - यह मेरे लिए बड़े सम्मान और खुशी की बात है।” माँ उसकी ओर देखकर मुस्कुराईं और अपने ब्लाउज के बटन लगाने लगीं, “और याद रखना, तुम जब चाहो तब मेरा दूध पी सकती हो!”

“थैंक यू, माँ।”

“हम्म्म! हनी, अब मुझे बताओ... अमर तुम्हें खुश कर पाता है न!”

गैबी फिर से शरमा गई और बोली, “हाँ माँ, बहुत खुश करता है! सच मेर, बहुत खुश! मैं उस भावना की व्याख्या नहीं कर सकती जब वो... हे भगवान! मुझे तो कहते हुए भी बहुत शर्म आ रही है…”

माँ ने कुछ नहीं कहा लेकिन उसकी बात का इंतज़ार करती रहीं। एक संक्षिप्त से विराम के बाद गैबी ने कहना जारी रखा,

“... लेकिन माँ, जब उसका पीनस... जब वो मेरे अंदर - बाहर स्लाइड करता है न! हे भगवान... वो एक बहुत अच्छा एहसास होता है! वो सब याद कर के ही मेरे तन में सिहरन होने लगी!” गैबी मुस्कुराई, “माँ, उसका पीनस बहुत मजबूत है... और इसके लिए मुझे आपको धन्यवाद देना चाहिए!”

“मुझे धन्यवाद? वो क्यों?”

“क्योंकि आपने ही तो उसे इतने सालों तक स्तनपान कराया है।”

“हाँ, तो…?”

“.... मैंने सुना है कि लंबे समय तक स्तनपान कराने से लड़कों का छुन्नू मजबूत हो सकता है…”

“क्या सच में? मुझे नहीं मालूम था ये! अच्छा है! मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई कि तुमको अमर का छुन्नू पसंद है... लेकिन क्या अमर उसका ढंग से इस्तेमाल करना जानता है? उसको ठीक से आता नहीं होगा न… जबकि… तुमको…” माँ थोड़ा सा हिचकिचाईं, “तुमको.... कुछ अनुभव तो है?”

गैबी का चेहरा फ़क्क से सफ़ेद हो गया!

‘माँ को कैसे मालूम कि वो शादी से पहले कुंवारी नहीं थी?’

“आपको कैसे…?”

“... मुझको कैसे पता है कि तुम कुंवारी नहीं हो? इजी! अमर ने ही मुझे बताया।” माँ ने सीधा शीशा उसको बता दिया।

गैबी का दिल और भी डूब गया, “क्या आपको यह जान कर बुरा लगा, माँ?”

“क्यों, मेरे बिटिया!? हमको क्यों बुरा लगता? और बुरा लगता तो हम तुम दोनों को इतनी आसानी से मिलने देते?” माँ मुस्कुराईं, और फिर बोलीं, “सबसे पहली बात तो यह है कि न तो अमर को, और न ही हमको इस बात से कोई फर्क पड़ता है। तुम्हारे देश की संस्कृति, हमारे देश की संस्कृति से बहुत अलग है। मुझे पता है कि ब्राजील में, भारतीयों की तुलना में सेक्स के प्रति लोगों का बड़ा खुला हुआ रवैया है। इसलिए, मुझे आश्चर्य नहीं है कि अमर से मिलने से पहले तुमने सेक्स का अनुभव किया है... और वैसे भी, अमर से मिलने से पहले तुमने जो किया, उससे हमारा सरोकार नहीं। हमारे लिए वास्तव में केवल यह मायने रखता है, कि क्या तुम उससे प्यार करती हो, या नहीं! और क्या तुम उसको आगे भी प्यार करती रहोगी, या नहीं?”

“मैं उसको दिलोजान से प्यार करती हूँ, माँ। मैं खुद से ज्यादा अमर से प्यार करती हूँ… और मैं दूसरे नंबर पर आपसे और डैडी से प्यार करती हूँ।”

“फ़िर? फ़िर हमें किसी बात पर ऐतराज करने का क्या कारण है, मेरे बच्चे?”

“माँ…” गैबी थोड़ा झिझकी और फिर बोली, “... माना कि आप मेरी माँ हैं...लेकिन आप मुझसे ‘उतनी’ बड़ी नहीं हैं!”

“हाँ! मैं जानती हूँ।”

“तो, क्या मैं कभी-कभी आपको अपना दोस्त भी मान सकती हूँ?”

“बिलकुल, बेटा! ज़रूर!” माँ ने कहा, और जोड़ा, “जब बेटी बड़ी हो जाती है, और उसकी शादी हो जाती है, तो वह ख़ुद ही अपनी माँ की दोस्त बन जाती है।”

“थैंक यू, माँ।” गैबी ने माँ को फिर से गले लगाया और चूमा।

माँ ने गैबी के माथे को चूमा और बिस्तर से उठ गईं। कमरे से बाहर जाने से पहले उन्होंने कहा, “मैं तुम्हारे दर्द को कम करने के लिए कुछ गरम पानी ले आती हूँ।”

“माँ, प्लीज़! आप नाहक चिंता न करिए। पानी वानी की ज़रुरत नहीं है। आपकी मालिश से यहाँ का दर्द काफी कम हो गया है... और... और मैं ‘वेट’ भी हो गई हूँ!”

“ओ ओह! ‘वेट’ एंड ‘रेडी’... तो अमर को ढूँढ़ कर लाऊँ? हा हा हा!”

“हा हा हा! माँ, आप बिलकुल नटखट हैं!”

“क्या नटखट? हमारे पवित्र पुस्तकों में भी कहा गया है कि अगर कोई स्त्री यौन संबंध बनाने के लिए उत्सुक है, तो उसकी इच्छा पूरी करनी ही चाहिए।”

“क्या! हा हा हा! न बाबा! अब मैं और नहीं कर पाऊँगी! ... और वैसे भी, आपकी मालिश के कारण मैं पूरी तरह से ‘वेट’ हो गई हूँ!” गैबी थोड़ा सा हिचकिचाई, “माँ, थोड़ी देर और कर दीजिए न?”

“हम्म्म! बिटिया मेरी, ये सब काम अपने हस्बैंड से करवाओ - माँ से नहीं!”

“वो मालिश तो कर देगा, लेकिन फिर उसके बाद जो कुछ करेगा, उसके बाद मुझे फिर से मालिश ही ज़रुरत पड़ जाएगी!”

“हा हा हा! वो भी है!” माँ ने कहा, अपनी हथेली में थोड़ा और तेल डाला और अपने योनि होंठों की मालिश करने लगी, इस बार थोड़ा और अच्छी तरह से, “वैसे अगर तुम चाहो तो मैं रोज़ तुम्हारी म्यानी की मालिश कर सकती हूँ…”

“मैं आपके प्यार भरे स्पर्श का बुरा थोड़े ही मानूँगी…” गैबी ने कहा!

“ठीक है,” माँ ने कहा, और फिर मुस्कुराते हुए बोलीं, “बहुत सुंदर है, बेटा ये!” माँ ने बड़ी कोमलता से गैबी की योनि की पंखुड़ियों को इस तरह से छेड़ा कि वे कुछ देर बाहर दिखने लगीं, “गुलाब की पंखुड़ियों की तरह... नाज़ुक... अमर बहुत भाग्यशाली है।”

माँ ने कहा और धीरे से अपनी तर्जनी उसके अंदर डाल दी। गैबी ने अपने होंठ काट लिए; एक स्वतः प्रेरणा से उसकी योनि की सुरंग ने माँ की पतली सी उंगली को भी मज़बूती से पकड़ लिया। माँ हैरान हो गईं।

“तेरी म्यानी तो वकाई बहुत छोटी है, बेटा! इसकी झिर्री तो लंबी है, लेकिन छेद छोटा सा है! कैसे ले पाती है तू उसे अंदर?” माँ ने गैबी की योनि के होंठों की अंदर बाहर मालिश करते हुए कहा। मालिश से उसको आराम तो मिला - कुछ समय बाद दर्द लगभग न के बराबर था। इसी बीच गैबी को एक छोटा सा, अस्वैच्छिक ओर्गास्म भी मिल गया। माँ को यह बात दिख गई, और वो मुस्कुराई। जब गैबी थोड़ा संयत हुई तो बोली,

“थैंक यू, माँ।”

“कोई बात नहीं, बेटा! मैं जानती हूँ कि तुमको अभी तकलीफ़ है, लेकिन जब भी पॉसिबल हो तुम सेक्स कर लेना। कम से कम आगे चल कर तकलीफ कम होगी, या नहीं होगी। और वैसे भी बहुत टाइट है - थोड़ा ढीली हो जाएगी, तो कोई परेशानी नहीं है! हा हा हा!"

“हा हा हा - बदमाश मम्मी!” गैबी भी इस हँसी मज़ाक में शामिल हो गई, “माँ?”

“हाँ बेटा?”

“आप कैसी हो... उम्म्म... मेरा मतलब... नीचे?”

“तू तो इसे पहले ही देख चुकी है न।”

“हाँ, लेकिन उस तरह नहीं जिस तरह आपने मुझे देखा है।”

“ठीक है! देख ले!”

माँ ने गैबी को अपनी साड़ी और पेटीकोट उठा कर एक बार फिर से मेरी जन्मभूमि देखने की अनुमति दी। साड़ी पहनते समय माँ ने कभी पैंटी नहीं पहनती थीं। गैबी को योनि के बालों को हटाने की ‘ग्रामीण प्रक्रिया’ पर थोड़ा संदेह था, इसलिए माँ ने उसके पहले खुद ही उस प्रक्रिया का उपयोग किया। नतीजतन, माँ और गैबी, दोनों की ही योनि पूरी तरह से बाल रहित थी। गैबी ने उसे छुआ।

“माँ, आपके होंठ कितने कोमल हैं।”

“सभी स्त्रियों के होंठ कोमल होते हैं!”

गैबी मुस्कुराई, “आप मुझको बोलती हैं, लेकिन आपकी योनि भी तो छोटी सी ही है!”

“हा हा! हो सकती है! लेकिन मेरे हस्बैंड के हिसाब से इसका साइज ठीक है!”

“मतलब... अमर का साइज... डैड से....?”

“हाँ, बड़ा है!”

“बाप रे!”

“हाँ, बाप रे! लेकिन वो तुम्हारी चिंता का विषय है, मेरी नहीं! हा हा हा हा!”

“हा हा हा! बदमाश मम्मी!” गैबी ने हँसते हुए कहा, “लेकिन माँ, सच में - मुझे आपकी योनि बहुत पसंद है! ये मेरे हस्बैंड का जन्मस्थान है... इसलिए मेरे लिए ये दुनिया का सबसे सुंदर और पवित्र स्थान है!” उसने कहा और माँ की योनि को चूम लिया।

माँ केवल मुस्कुराई।

“माँ,” गैबी ने कहा, “क्यों न हम सभी - सिर्फ आज के लिए - हम सभी नंगे नंगे रहें?”

“इस ठंडक में?”

“हम्म! वो भी ठीक है। चलो, कम से कम रात में तो हम सब एक साथ नंगे नंगे सो सकते हैं...?”

“हा हा हा! देखेंगे... देखेंगे!”


**
इस कहानी में ये सब मिलने की कतई उम्मीद नही थी। मजा आ रहा है कहानी पढने में। एकदम नयी चीजें पढने को मिल रही हैं आपकी कृपा से।
ग्रामीण परिवेश और यहां की भाषा शैली गजब है।
लेकिन क्या ये सत्य कथा है?
 

avsji

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Supreme
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इस कहानी में ये सब मिलने की कतई उम्मीद नही थी। मजा आ रहा है कहानी पढने में। एकदम नयी चीजें पढने को मिल रही हैं आपकी कृपा से।
ग्रामीण परिवेश और यहां की भाषा शैली गजब है।
लेकिन क्या ये सत्य कथा है?

बहुत बहुत धन्याद मित्र! कहानी कही ही जाती है मनोरंजन के लिए। आपको पसंद आ रही है, तो हम भी खुश!
कहानी में अधिकतर बातें (कह लीजिए कोई अस्सी प्रतिशत) सत्य हैं!
सत्य घटनाओं का नाटकीय प्रस्तुतिकरण करना लेखक का अधिकार है! :)
 

Lutgaya

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बहुत बहुत धन्याद मित्र! कहानी कही ही जाती है मनोरंजन के लिए। आपको पसंद आ रही है, तो हम भी खुश!
कहानी में अधिकतर बातें (कह लीजिए कोई अस्सी प्रतिशत) सत्य हैं!
सत्य घटनाओं का नाटकीय प्रस्तुतिकरण करना लेखक का अधिकार है! :)
आपने खूब मेहनत की है इस कहानी में।
नई कहानी कब तक शुरू क़र रहे हैं।
 

avsji

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अंतराल - विपर्यय - Update #16


माँ ने रात करीब साढ़े ग्यारह बजे तक सुनील के आने का इंतज़ार किया। काजल और माँ दोनों लगभग साथ ही ड्राइंग हॉल से निकले थे। आज दोनों बच्चों को सम्हालने की ज़िम्मेदारी सुनील की ही थी। और दोनों बच्चे थे पूरी मस्ती के मूड में! उछलकूद कर रहे थे, और सो नहीं रहे थे। वैसे तो माँ दस, सवा दस बजे तक सो जाती थीं, लेकिन आज वो सुनील का इंतज़ार कर रही थीं। दोपहर में सुनील ने उनसे कहा था कि वो उसके आने का इंतज़ार करें। अपने ही घर में यूँ लुका-छिपी का खेल खेलते हुए माँ को ऐसा मज़ा आ रहा था कि शब्दों में उसका बयान नहीं किया जा सकता। उनको किसी नटखट, नव-विवाहिता नारी जैसा ही लग रहा था, जो अपने विवाहित जीवन को ले कर उत्साह से लबरेज़ हो! अपने आने वाले जीवन को लेकर वो बहुत आशान्वित, आनंदित, उत्साहित, और घबराई हुई भी थीं। घबराहट इस बात की कि अब उनसे अपेक्षित था कि वो वो सब कुछ करें, जो किसी नव-विवाहिता नारी करती है। वो सब कुछ, जो वो कोई उन्तीस साल पहले कर चुकी थीं, और अब भूल गई थीं! सुनील जल्दी से जल्दी बाप बनना चाहता था और माँ भी उसकी इच्छा पूरी करना चाहती थीं।

दोपहर की घटनाएँ उनकी आँखों के सामने नाच गईं।

‘अब ‘ये’ क्या करेंगे?’ इस सोच से वो शर्म से दोहरी हो गईं।

सुनील के साथ दोनों बार के सम्भोग में ऐसा आनंद आया था जो उन्होंने पहले कभी महसूस नहीं किया था। अद्भुत आनंद! और तो और, ‘वुमन ऑन टॉप’ पोजीशन उन्होने पहली बार आज़माई थी। मेहनत लग गई, लेकिन आनंद भी बहुत आया। सुनील के सम्भोग करने का तरीका ज़ोरदार था, और अंतर्निहित था। संतुष्टि और ओर्गास्म का अनुभव अद्भुत था ही, साथ ही साथ माँ को दोनों ही बार सम्भोग की ‘पूर्णता’ का अनुभव हुआ... सुनील के सम्भोग का तरीका कुछ ऐसा था जिसमें उनको खुद को चाहे जाने का एहसास हुआ। उसी से उनको समझ में आ गया कि सुनील के साथ उनका सेक्स जीवन बहुत ही आनंदित करने वाला होने वाला है। और अभी तक उन्होंने सुनील को जितना जाना समझा था, उससे यह भी समझ में आ गया था कि उनका विवाहित जीवन आनंदमय और समृद्ध रहेगा। यही सब सोचते सोचते उनकी आँख लग गई। उन्होंने कपड़े गहने भी नहीं बदले थे।

सुनील जब दबे पाँव माँ के कमरे में प्रविष्ट हुआ, तब आधी रात हो चुकी थी। बच्चों को सुलाने के बाद शायद वो मेरे और काजल के सोने का इंतज़ार कर रहा था। शायद वो मुझ पर जाहिर नहीं होने देना चाहता था कि वो मेरी माँ के साथ सम्भोग कर रहा था। जो भी हो, उसने देर तक इंतज़ार किया। उसको भी लग रहा था कि शायद सुमन सो गई होगी। वो बस देख लेना चाहता था - अगर सो गई होगी, तो वापस हो लेगा। घर भर में सन्नाटा छाया हुआ था। माँ के कमरे में रखा नाईट लैंप ऑन था। बहुत हल्की सी रौशनी, लेकिन रात के अँधेरे के लिया पर्याप्त!

उसकी सुमन पीठ के बल लेटी सो रही थी। उनका दाहिना हाथ अपने माथे के बगल था - शायद सोने से पहले माथे के ऊपर रहा होगा, जो बाद में सरक गया। उस अवस्था में माँ का दाहिना स्तन थोड़ा उठ गया था, और उसके कारण उनकी ब्लाउज में एक सुन्दर सा वक्ष-विदरण बन गया था। माँ की साँसे गहरी गहरी चल रही थीं - ठीक वैसी ही जैसी गहरी निद्रा में रहने पर होता है।

वो मुस्कुराया, ‘थैंक गॉड, शी डस नॉट स्नोर!’ उसके मन में ये शैतानी भरा ख़याल आया।

बिस्तर के बगल खड़े हो कर उसने अपनी सुमन के अलौकिक सौंदर्य का आलोकन किया।

‘क्या किस्मत है भाई!’ मन ही मन उसने सोचा।

जब वो छोटा था, तब माँ के सामने आते हुए भी शर्माता था। उसका सबसे बड़ा कारण यह था कि माँ पर उसको हमेशा से ही एक ‘रोमांटिक क्रश’ था। काजल के मुँह से उसने सुमन के लिए केवल अच्छी बातें ही सुनी थीं। वो हमेशा सुमन का गुणगान करती रहती। हाँलाकि गुणगान करने के असंख्य कारण भी थे। खैर, इस गुणगान के कारण सुनील के किशोरवय मन पर बड़ा ही सकात्मक प्रभाव हुआ। उन पर क्रश तो था ही; लेकिन काजल के कारण वो उनको ‘आइडियल वुमन’ के रूप में भी देखने लगा। और क्यों न देखे? वो खूबसूरत है, गुणी हैं, पढ़ी-लिखी हैं, निपुण हैं, संस्कारी हैं, सभी से प्रेम और स्नेह से लबरेज़ हैं, और अपने परिवार के लिए तो जैसे देवी हैं! खूबसूरत इतनी कि लोग उनको सेक्सी कह सकते हैं। सुनील के लिए तो वो बहुत ही सेक्सी हैं। शारीरिक गुण तो खैर अनुवांशिकी की देन है - उस पर अपना क्या ज़ोर? सुमन ने जो प्रकृतिक नेमत मिली है, उसको सम्हाल कर रखा है - शारीरिक फिटनेस उनके लिए उतनी ही ज़रूरी है, जितना कि बाकी सारी दिनचर्या! सुमन ने गुण सुनील को भी सिखाया है। उसने देखा है कि कैसे अपने पति के हर मुश्किल भरे समय में सुमन ने कैसे उनका साथ निभाया है, और वो भी बिना किसी शिकायत के! यह एक स्त्री में अद्भुत गुण है!

कितनी सारी अड़चनें आईं!

बाबूजी को पैसे की किल्लत एक लम्बे समय तक बनी रही। लेकिन सुमन ने ऐसी निपुणता से पूरे घर को सम्हाला कि उस कमी में भी इतना बच जाता, जो और लोगों की सहायतार्थ लग जाता! भले ही वो लोग कभी समृद्ध नहीं हो पाए लेकिन उनको कमी भी किसी बात की नहीं हुई। फ़िज़ूलख़र्ची कभी नहीं हुई उस घर में। एक पैसे की भी नहीं। सभी बच्चों में यह गुण आया है। त्याग की भावना तो ऐसी कि क्या कहें? धन की किल्लत के कारण ही तो भैया के आलावा कोई और संतान नहीं की। भैया की दोनों शादियों में सुमन ने कैसे बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और कोशिश किया कि उनका जीवन सुखी रहे। कितने सारे गुण! संगीत में भी रूचि है! नृत्य का नहीं मालूम - लेकिन क्या इतना सब कुछ कोई कम है? आइडियल वुमन और किसको कहते हैं?

शुरू शुरू में जब वो सभी वहाँ रहने गए थे, तब अम्मा सुमन को ‘माँ जी’ कह कर बुलाती थीं। ऐसा होने पर भी दोनों स्त्रियों में बातें और व्यवहार बहनों के समान होता था। सुमन ने ही अम्मा का व्यवहार प्रशस्त किया कि वो सभी उस घर को अपना घर मानें! अपने तरीके से जियें! बिना रोक-टोक। सुमन केवल अम्मा ही नहीं, बल्कि उसके और पुचुकी से भी बड़े स्नेह से व्यवहार करती थीं। पुचुकी उसकी तरह शर्माती नहीं थी - वो सुमन से ही लिपटी रहती थी। अम्मा बार बार सुमन से शिकायत करती थीं कि वो पुचुकी को अपने सर पर चढ़ा कर रखती है, और इतने दुलार से वो ‘बिगड़’ जायेगी! और हर बार सुमन कहती कि मेरी बेटी इतनी प्यारी है कि प्यार पा कर वो बिगड़ेगी नहीं, बल्कि और भी प्यारी हो जाएगी। कितनी सही बात कहती थी सुमन!

बाद में पुचुकी सुमन को ‘मम्मा’ कह कर पुकारने लगी।

मम्मा - माँ की माँ! प्यारा सा नाम! लेकिन जिस सहजता से पुचुकी ने सुमन को स्वीकारा था, सुनील कभी नहीं कर सका। जिसके स्त्री के प्रति रोमांटिक भावनाएँ हों, उसको ‘माँ’ कह कर कोई कैसे पुकारे? लेकिन सुमन ने ममता के अतिरिक्त कभी भी कोई अन्य व्यवहार किया ही नहीं उसके साथ! यह और भी दिक्कत वाली बात थी। तो जहाँ वो डैड को ‘बाबूजी’ कह कर बुलाता था, वो माँ को ‘आप’ कह कर ही बुलाता था। सम्बन्ध वाले कोई भी उद्बोधन शब्द वो इस्तेमाल करने से बचता था। लेकिन एक ही घर में रह कर ऐसा करना बड़ा मुश्किल था। इसलिए वो सुमन से बच कर, उनसे दूरी बना कर रहता था। फिर भगवान की दया से बारहवीं करते करते उसका इंजीनियरिंग में दाखिला हो गया।

‘कैसा अद्भुत भाग्य कि सुमन जैसी देवी उसकी झोली में आ गिरी!’

बाबूजी की मौत की खबर सुन कर एक गहरा धक्का लगा था उसको। सुमन की तकलीफ न तो देखी जाती थी और न ही सोची जाती थी उससे। कितना डर लग रहा उसको था जब वो एयरपोर्ट पर आया था। सुमन का विधवा वाला रूप! ओह! उस दिन उसको एक और ख़याल आया कि कहीं यह दैवीय संयोग तो नहीं, कि उसको उसकी सुमन मिल जाए? इससे अच्छा मौका और कब मिलेगा उसको सुमन को ये दिखाने के लिए कि वो एक लायक मर्द है; कि वो उससे प्यार करता है! किस्मत से ऐसा सुअवसर मिला था। और... उसने उस अवसर का लाभ भी पूरा उठाया। वो हर तरह की बेइज़्ज़ती और दुत्कार सहने को तत्पर था। लेकिन संयोगवश, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। सच में - अद्भुत सौभाग्य! उसने तरह तरह से सोचा कि सुमन को कैसे प्रोपोज़ करे। लेकिन फिर पूरी बेबाकी से उसने अपनी बात कह दी। सुमन है ही ऐसी - सरल, सीधी और भोली! अगर वो लाग-लपेट कर के उसको प्रोपोज़ करता, तो ज़रूर सब चौपट हो जाता।

बारह घंटे हुए हैं सुमन से गन्धर्व विवाह किए और ये उसके अब तक के जीवन के सबसे सुंदर बारह घंटे हैं! काश भगवान हमारी बाकी की ज़िन्दगी भी ऐसी ही सुन्दर सी कर दें - सुमन जैसी!

आई ऍम अ ब्लेस्ड मैन!’ सुनील माँ को देखे हुए सोच रहा था।

पिछले कुछ दिनों के दृश्य उसके मानस पटल पर रह रह कर उभर रहे थे। वो घटनाएँ जिन्होंने आज की रात संभव करी! अद्भुत! अपनी प्रेमिका या पत्नी की मन की सुंदरता का चाहे कोई भी कितना भी बखान कर ले, उसकी तन की सुंदरता को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। सुमन वाकई सुनील की सोच से कहीं अधिक सुन्दर थी। देहयष्टि स्वस्थ और पुष्ट तो थी ही, निर्वस्त्र होने पर तो वो और भी सुन्दर लगती! सुमन पर मेकअप अगर अधिक हो, तो ऐसा लगे कि जैसे उसकी सुंदरता पर बोझ है। केवल हल्का सा टचअप - बस! उतना ही चाहिए सुमन के सौंदर्य को निखारने के लिए। और उनके कपड़े! कैसे साधारण से कपड़े पहनती है सुमन! लेकिन कल शॉर्ट्स और टी-शर्ट में क्या गज़ब की लग रही थी!

उसने मन ही मन सोचा कि सुमन को टी-शर्ट, शॉर्ट्स, जीन्स, और स्कर्ट जैसे कपड़े पहनने के लिए रज़ामंद करेगा वो!

कम रौशनी में आँखें जब देखने को अभ्यस्त हो गईं तब सुनील ने ध्यान दिया कि ब्लाउज से माँ के स्तंभित चूचक दिखाई दे रहे हैं। वो मुस्कुराया।

‘अब मैं सुमन को सारे सुख दूँगा। उसकी सारी इच्छाओं को पूरा करूँगा।’

उसने अपना एक हाथ बढ़ाया, और बड़े धीरे से माँ के एक स्तन पर रख दिया। अपनी हथेली पर उनके चूचक की चुभन बड़ी ही कामुक थी। बस कुछ ही दिनों पहले तक वो सोच भी नहीं सकता था कि उसको इन्हे छूने का कभी अवसर भी मिल सकता है। बस एक ही स्थान पर वो सब संभव था - उसके सपनों में! लेकिन कभी कभी सपने भी सच हो जाते हैं! उसने माँ के दोनों चूचकों पर अपनी उंगली वृत्ताकार चलाई। उसकी इस हरकत का माँ पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा - उन्होने एक बहुत गहरी साँस भरी, और उनके दोनों चूचक ऊर्ध्व होने लगे।

‘अब मेरे बच्चे इनसे दूध पिएंगे!’ उसने बड़े गर्व और अधिकार से सोचा।

फिर उसने माँ को देखा - ‘कितनी भोली और कितनी पवित्र लग रही है!’

ठीक वैसे ही, जैसे वो है। यही कारण था कि घर का हर प्राणी उनके डिप्रेशन में जाने से दुःखी था। कुछ लोगों के साथ वैसा कुछ भी नहीं होना चाहिए! कभी भी! थोड़ा सा भी नहीं!

सुनील ने वापस जा कर कमरे का दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया, और फिर माँ के कमरे में रखे रेडियो को ऑन किया... लेकिन उसकी आवाज़ धीमी रखी। माँ अक्सर ही सोने से पहले रेडियो पर गाने सुनती थीं। अगर घर का कोई सदस्य गाने की आवाज़ को सुन भी ले, तो यही सोचेगा कि माँ गाने सुन रही हैं।

सुनील बहुत ही चालू था।

दो लफ़्ज़ों की है, दिल की कहानी
या है मोहब्बत, या है जवानी


रेडियो पर यह गाना बज रहा था। एक बेहद ही रोमांटिक गाना! रात की खामोशी में, आशा भोंसले जी की खनकती आवाज़! मूड अगर न भी बना हो, तो बन जाए!

गाने की आवाज़ सुन कर माँ की नींद टूट गई। उन्होंने धीरे से अपनी अलसाई आँखें खोलीं। अपने सामने उन्होंने सुनील को बैठा हुआ पाया। वो उन्ही को देख रहा था। उसको यूँ देखते हुए माँ लजा गईं। उनको ऐसे लजाते देख कर सुनील भी मुस्कुराने लगा। माँ बहुत प्यारी सी लगती थीं उसको! इस समय, अपनी अलसाई आँखों, और होंठों पर बेहद स्निग्ध मुस्कान के साथ वो और भी प्यारी लग रही थीं। सुनील आत्मविश्वास से सारी हरकतें करता था, लेकिन फिर भी अभी भी उसकी हरकतों में थोड़ी हिचक तो थी ही। उसका भी दिल धमकता था माँ को देख कर।

“कितनी देर से बैठे हैं आप?”

माँ की मिश्री घुली आवाज़ सुन कर सुनील के दिल में ठंडक आ गई।

“पता नहीं!” वो बड़े शायराना अंदाज़ में बोला, “आपको देख कर मैं सब भूल जाता हूँ!”

जो कसर बाकी थी, वो इस वाक्य ने पूरी कर दी। माँ शर्म से लाल हो गईं। वो उठ कर बैठने लगीं।

“मेरे साथ डांस करोगी दुल्हनिया?” सुनील ने उठ कर अपना हाथ आगे बढ़ाया।

माँ शर्म से मुस्कुराईं। लेकिन वो भी अपने पति की सारी ख़्वाइशें पूरी करना चाहती थीं। वो बिस्तर से उठीं और सुनील की बाहों में समां गईं। उन्होंने अपना सर सुनील के कंधे पर टिका दिया। सुनील उनकी कमर को थामे, संगीत के साथ धीरे धीरे थिरकने लगा, और माँ भी उसी की ताल में थिरकने लगीं। यह कोई नृत्य नहीं था - बस, दोनों गाने की ताल पर आनंद से, धीरे धीरे थिरक रहे थे। कोई डांस मूव्स नहीं। लेकिन यह बहुत ही आनंद देने वाली हरकत थी। दोनों के लिए ही। सुनील से सटे हुए, माँ के स्तन उसके सीने पर दब रहे थे।

शुरू शुरू में सुनील के दोनों हाथ माँ की कमर पर ही थे, लेकिन जैसे जैसे गाना आगे बढ़ता गया, और गाने के साथ दोनों की थिरकन भी आगे बढ़ती गई, सुनील के हाथ उनकी कमर से नीचे सरकते हुए उनके नितम्बों पर जा कर रुक गए। उसने उनके नितम्बों की दृढ़ता को महसूस करने की कोशिश करी।

लेकिन,

“दुल्हनिया?”

“हम्म?”

“साड़ी के ऊपर से ठीक से कुछ फील नहीं आता...”

“उतार दीजिए...”

माँ जानती थीं, कि यही सब होने वाला है। लेकिन फिर भी उनकी आवाज़ में लाज साफ़ साफ़ सुनाई दे रही थी।

सुनील ने आहिस्ता आहिस्ता उनकी साड़ी को उनके पेटीकोट से सरका कर निकाला, और उसको ज़मीन पर गिरा दिया। दोनों गाने पर थिरकते रहे। माँ के परफ्यूम की खुशबू बड़ी आनंदित करने वाली थी। हो भी क्यों न? देवयानी ऑफिसियल ट्रिप पर सिंगापुर से लाई थी। पेटीकोट लिज़्ज़ीबिज़्ज़ी कपड़े का बना हुआ था - यह कपड़ा पतला होता है और शरीर पर बहुत सरकता है। माँ के नितम्बों पर उनका पेटीकोट ऐसे सटा हुआ था कि उनके नितम्बों के आकार को बड़ी ही स्वादिष्ट तरीके से दिखा रहा था। अफ़सोस, माँ सुनील की बाहों में थीं, और वो ऐसे में कुछ देख नहीं सकता था। देख नहीं सकता था, लेकिन महसूस तो कर सकता था न!

इस बार छूने पर बड़ी अनोखी सी अनुभूति हुई उसको। फिसलन भरे पतले से कपड़े से माँ के नितम्बों की दृढ़ता! गज़ब की अनुभूति! बेहद इरोटिक अनुभूति! उनकी पैंटीज़ के किनारे भी महसूस हो रहे थे, और छू कर लग रहा था कि पैंटीज़ कॉटन की तो नहीं हैं!

‘मतलब आज दुल्हनिया का नया रूप देखने को मिलेगा!’ उसका दिल अभी से बल्लियों उछलने लगा।

और शिश्न भी!

बाहों में चले आओ
हाँ, हमसे सनम क्या परदा...


रेडियो में अगला गाना बजने लगा था।

सुनील आज बड़ी ही फुर्सत में आनंद लेने के मूड में था। जब अपनी प्रेमिका, आपकी ब्याहता बन जाती है, तब उसके साथ फुर्सत में प्रेम करने में जो आनंद आता है, उसका आख्यान करना कठिन है।

उधर सुनील यह प्रणय-क्रीड़ा करने में मग्न था, और उधर माँ ने सुनील के सीने में कुछ कहा। न तो सुनील ने कुछ सुना, और न ही माँ को समझ आया कि उन्होंने क्या कहा। दोनों ही बहुत ही थमे हुए तरीके से थिरक रहे थे। सुनील उँगलियों की मदद से माँ के पेटीकोट को इंच दर इंच ऊपर उठाने लगा। माँ को ऐसा लगा कि पेटीकोट का हेम (निचला सिरा) ऊपर तक आने में घंटों लग गए हों। लेकिन जब सुनील के हाथ उनकी लेसी पैंटीज़ पर आ कर रुके, तब उनका श्रोणि क्षेत्र खुद-ब-खुद ही सुनील के श्रोणि क्षेत्र से सट गया।

सुनील का शिश्नोत्थान अब कष्टदायक होने लगा था।

‘ये तो बहुत जल्दी हो रहा है!’ उसके दिमाग में ये ख़याल आया।

आज की रात तो वो बहुत देर तक ‘खेलने’ के मूड में था। ऐसे तो सब गड़बड़ हो जाएगी!

सुनील पीछे हट गया।

उसकी इस हरकत पर माँ ने उसको देखा - उनकी आँखों में कुछ ऐसा भाव था, जो सुनील को समझ नहीं आया। शायद वो उसकी इस हरकत से निराश हो गई हों? सुनील झुका और उसने उनके होंठों पर बड़ा कोमल सा चुम्बन लिया - माँ के होंठ वैसे भी बड़े कोमल से थे। उनको छू कर उसको रसीली लीची के सफ़ेद, मीठे, रास-भरे गूदे की याद हो आई। आनंददायक चुम्बन! उसने चुम्बन में थोड़ा सा और ज़ोर लगाया - माँ ने अपने होंठ खोल दिए जिससे उसको अपनी मन मर्ज़ी करने का अवसर मिले। सुनील की जीभ माँ की जीभ से कोमलता से खेलने लगी। माँ के गले में एक कोमल सी आह निकली, और उधर वो सुनील से सिमटने लगीं - उनकी बाहें सुनील के गिर्द कसने लगीं। बहुत ही रोमांचक चुम्बन था ये - कामुक भी! ऐसे ही गाने की लय पर धीरे धीरे थिरकते हुए, और एक दूसरे को यूँ गहनता से चूमते हुए कुछ समय निकल गया। यह काम अंतहीन साय तक नहीं किया जा सकता, इसलिए अंततः उनका चुम्बन टूटा!

‘अभी भी बहुत जल्दी है!’
 

avsji

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अंतराल - विपर्यय - Update #17


रेडियो पर एक नया गाना बजना शुरू हो गया था,

जब जब तेरी, सूरत देखूँ
प्यार सा दिल में जागे…


माँ को अपनी बाहों में थामे, सुनील गाने की लय पर मस्ती में अपना सर हिलाने लगा। उसको ऐसे मस्ती करते हुए देख कर माँ भी मुस्कुराने लगीं। दोनों गाने की ताल पर थिरकते रहे। सुनील के हाथ उनके लेसी पैंटीज़ से आधे ढँके / आधे खुले नितम्बों पर आ कर थम गए। संगीत की लय पर उनके लहराते, थिरकते नितम्बों को थामना और सहलाना बहुत ही सुखद अनुभूति थी। सुनील को एक बदमाशी सूझी - उसने उनकी पैंटीज़ के किनारे में अपनी उँगलियाँ अंदर सरका कर उनके नितम्बों को दबाया। थोड़े समय पहले की ही भाँति माँ का श्रोणि क्षेत्र, सुनील के श्रोणि क्षेत्र से जा सटा। उनके गले से एक व्याकुल सी कुनमुनाहट निकल गई। उसका स्तम्भन इतना कड़ा हो चुका था कि बिना अपना काम किए व शांत नहीं होने वाला था। माँ की श्रोणि की रगड़ से वो और भी स्तंभित हो गया।

“दुल्हनिया?” सुनील ने माँ को छेड़ते हुए कहा, “चुदु का मन हो रहा है?”

सुनील के सीने में छुपे हुए ही माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया - बहुत ही धीरे से। सुनील ने थिरकना बंद किया, और माँ को अपने हाथों में इस तरह उठा लिया कि एक हाथ उनकी पीठ को और दूसरा हाथ उनके घुटनों के नीचे उनको थामे हुए था। उनको ऐसे ही उठाए वो धीरे धीरे चलता हुआ उनके बिस्तर तक पहुँचा। माँ इस पूरे घटनाक्रम के दौरान उसको प्यार से और शर्म से देखती रहीं। रेडियो पर गाना बजता जा रहा था,

दिल क्या करे जब किसी को
किसी से प्यार हो जाय...


माँ को बिस्तर पर लिटा कर उसने एक एक कर के उनकी ब्लाउज के सभी बटन खोल दिए, और उसको उतार दिया।

“ये ब्रा तो बड़ी मस्त है दुल्हनिया!” सुनील ने बढ़ाई करते हुए कहा, “तुम न ऐसी ही ब्रा पहना करो! खूब सेक्सी लगती हो!”

माँ ऐसी बढ़ाई पर शर्म से दोहरी हो गईं, “अम्मा ने पहनाई!”

अपनी पत्नी द्वारा अपनी अम्मा के लिए ‘अम्मा’ शब्द का सम्बोधन सुन कर सुनील बहुत ही खुश हुआ। सुमन अपनी इस नई भूमिका में पूरी तरह से रम गई है। यह एक बहुत ही बढ़िया शुरुवात थी!

“और ये सेक्सी चड्ढी भी उन्होंने ही पहनाई है?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए दबी हुई आवाज़ में कहा, “आज सारे कपड़े अम्मा ने ही पहनाए हैं!”

सुनील ने उनकी ब्रा उतारते हुए कहा, “फिर तो अम्मा को ही साथ ले जाना - ब्राइडल लॉन्ज़रे की ख़रीददारी करने,”!

माँ के स्वादिष्ट रूप से तने हुए चूचकों को देख कर वो बोला, “उनका टेस्ट बढ़िया लगता है!”

“हा हा हा हा!”

“दुल्हनिया?”

“जी?”

“मन में आता है कि तुम ऐसे ही सेक्सी सेक्सी बन कर रहो घर में!”

“आप जैसा कहेंगे मैं वैसी ही रहूँगी!” में अदा से मुस्कुराईं, “मैं आपकी हूँ! बस... आप मेरे साथ होने चाहिए!”

“अब तो कभी न छूटेगा हमारा साथ!” सुनील ने माँ को लेटी हुई पोजीशन से उठाते हुए कहा, “कोशिश कर लो, फिर भी नहीं!”

“मैं क्यों कोशिश करने लगी?”

माँ उठ कर सुनील के सामने ही, उसकी गोद में बैठते हुए बोलीं। उन्होंने बड़े प्यार से अपनी बाहें सुनील की गर्दन के इर्द-गिर्द डाल दीं।

“क्या पता?” उसने माँ के चूचकों को अपनी तर्जनी और अंगूठों के बीच दबाते हुए कहा, “कभी नाराज़ हो जाओ, या कोई और पसंद आ जाए!”

ऐसे दबाए जाने से माँ ने तेजी से आह भरी। सुनील की गोदी में बैठी हुई उनको उसके स्तंभित, कड़े लिंग का आभास अपनी योनि पर हुआ। दोहरा आघात! सुनील उनकी हालत पर मुस्कुराया।

उसने उनकी पेटीकोट का नाड़ा ढीला किया और धीरे से उसको उतार दिया। सुनील की गोदी में बैठी हुई अवस्था में पेटीकोट उतारना कठिन काम था, लेकिन जैसे तैसे हो गया। हाँ, वो करने में उसके कपड़े का भरता अवश्य बन गया। माँ की आँखें उत्तेजना के कारण बंद हो गईं। सुनील ने माँ के दोनों पुट्ठों को अपनी हथेलियों में थाम लिया और उनका मर्दन करने लगा। माँ की गहरी उठती बैठती साँसें, रेडियो में बजने वाले गानों के साथ ही ताल मिला रही थीं।

सुनील भी बड़ा आश्चर्यचकित था कि नितम्ब-मर्दन करना इतना कामुक होता है! माँ के शरीर के भाँति ही उनके नितम्बों में भी अद्भुत सा कसाव था। उस लेस वाली चड्ढी में उसका रूप और भी कामुक हो गया था। माँ का सर निढाल हो कर सुनील के कंधे पर टिका हुआ था, और साँसें भी तेज तेज चल रही थीं। सुनील के होंठ उनकी खुली हुई गर्दन को चूमने में व्यस्त थे, और हाथ माँ के पुट्ठों पर! उसने अपना हाथ सामने की तरफ उनकी योनि पर फिराया।

माँ की कामुक कराह निकल गई।

‘जैसा सोचा था, वैसा ही हुआ!’ सुनील सोच कर मुस्कुराया।

लेकिन उसको एक नया एहसास भी मिला : माँ के पशम छोटे छोटे थे - यह वो निश्चित रूप से कह सकता था। मन में एक बात कौंधी कि माँ की योनि कैसी दिखेगी अब! इस पूर्वानुमान ने उसका उत्साह और उत्तेजना और भी बढ़ा दिया। लेकिन उसने फिलहाल अपने ऊपर काबू रखा और दूसरा हाथ बढ़ा कर उनके एक चूचक को हलके से दबाया।

माँ अब कांपने लगीं। माँ का मन हो रहा था कि या तो सुनील उनके स्तन को अपनी हथेली से दबाएँ या फिर अपने मुँह में ले कर उनका आनंद लें। लेकिन वो ऐसा कुछ भी नहीं कर रहे थे। कैसी कामुक बेबसी! उनके शरीर में कम्पन प्रतिक्षण बढ़ता जा रहा था।

मदन क्रीड़ा असहनीय हो चली ही। माँ ने इशारों में ही सुनील को अपनी इच्छा बताने के लिए अपनी पीठ को कमानी की तरह पीछे किया।

रेडियो पर एक नया गाना शुरू हो गया,

रूप तेरा मस्ताना
प्यार मेरा दीवाना...


सुनील समझ गया कि वो जो कर रहा है, वो सुमन से सम्हल नहीं रहा है। यह एक अच्छी बात थी। मतलब सुमन को आनंद आ रहा है। उसका प्लान भी यही था! वो चाहता था कि उनके हर सम्भोग में सुमन को अभूतपूर्व आनंद आए! माँ को हर सुख देने की प्रतिज्ञा उठाई थी उसने - यौवन का सुख भी उसमें शामिल था।

उसका केवल एक ही चूचक को छेड़ना और योनि के होंठों को सहलाना जारी रहा। और माँ का कांपना भी! जैसा कि पहले भी बताया गया है, सुनील को स्त्री के ओर्गास्म के बारे में कुछ ख़ास नहीं मालूम था। इसलिए माँ की प्रतिक्रिया से उसको बस इतना ही समझ आया कि उनको आनंद मिल रहा है। लेकिन माँ अपनी ‘सुहागरात’ के प्रथम ओर्गास्म के तट पर खड़ी थीं, और आनंद के सागर में प्रवेश करने के लिए अपने कदम बढ़ा चुकी थीं। सुनील की उँगलियाँ माँ को छेड़ रही थीं, और उधर माँ हांफने लगीं। उनका शरीर थरथराने लगा। अपनी कामोत्तेजना के शिखर पर पहुँच कर, एक आश्चर्यजनक कामोत्तेजक कृत्य में, माँ ने सुनील का हाथ पकड़ लिया और उसे अपनी जाँघों के बीच, अपनी योनि में दबा दिया!

सुनील भी माँ की उत्तेजना को महसूस कर सकता था : भगोष्ठों पर कामुक नमी साफ़ महसूस हो रही थी। प्रोत्साहित हो कर सुनील ने माँ की योनि को उँगलियों से ही मसल दिया और उनकी योनि के चीरे को अपनी मध्यमा से सहलाया। दूसरा हाथ अभी भी उनके चूचक के साथ खेल रहा था। माँ अभी भी अपने ओर्गास्म के आनंद-सागर में गोते लगा रही थीं। उसकी मध्यमा माँ के भगशेफ़ को सहला और छेड़ रही थी, और उधर उसके दूसरे हाथ की तर्जनी और अँगूठा उनके उत्तेजित चूचक को!

माँ कराह उठीं, काँप उठीं!

“ओह भगवान!”

अब जा कर सुनील को समझ आया कि माँ अपने ओर्गास्म पर पहुँच कर कैसा व्यवहार करती हैं!

‘कैसा अद्भुत रूप बनता है मेरी दुल्हनिया का!’ वो मन ही मन माँ को कामुक आनंद का रसपान करते देख कर गर्व से फूला नहीं समाया। एक अनन्य सुंदरी यौन क्रीड़ा का आनंद ले रही थी, और उस आनंद को देने वाला वो स्वयं था! क्या बात है!

आखें बंद किए और सुनील के हाथ हो अपनी योनि में दबाए हुए, वो अपने नितम्बों को आगे पीछे चला रही थीं। आश्चर्य उनको तब हुआ जब उन्होंने महसूस किया कि अपने ओर्गास्म के शिखर पर वो अब पहुँची हैं! और यह सब हो रहा है केवल सुनील के छूने से - अंतर्वेधन होना तो बाकी ही है! उनका पूरा शरीर थर-थर काँप रहा था, और पसीने की एक महीन सी परत से ढँक गया था। सुनील ने महसूस किया कि माँ अभी गिरीं कि तभी गिरीं! उसने उनकी योनि और चूचक छोड़ा और कमर और पीठ के पीछे हाथ लगा कर उनको आलिंगनबद्ध कर के सहारा दिया। और तब तक उनको थामे रखा जब तक उनकी साँसे संयत नहीं हो गईं।

कोई दो मिनट के बाद माँ को अपने होश वापस आते हुए महसूस हुआ।

सुनील ने उनको प्यार से छेड़ते हुए कहा, “दुल्हनिया, तेरा तो बिना कुछ किए ही काम हो गया!” और उनकी कान की लोलकी को अपने होठों में ले कर चूसा।

“और अभी तो पूरी रात पड़ी है!”

माँ लाज से मुस्कुराईं, “पूरी रात आप अपनी दुल्हनिया को ऐसे छेड़ेंगे तो वो तो आनंद से मर ही जाएगी!”

उनकी बात पर सुनील हंसने लगा - बिना किसी की परवाह किए! किसी को सुनना हो, तो सुन ले! माँ पहले मुस्कुराईं फिर वो भी उसके साथ ही हँसने लगीं। अब जा कर खुल कर दोनों अपने दाम्पत्य का आनंद उठा रहे थे। और वाकई, दोनों को ही बहुत अच्छा लग रहा था।

“बाप रे! डेढ़ बजने वाले है!” माँ ने घड़ी में देखा, “अभी सो जाएँ?”

चूम कर रात सुलाएगी, तो नींद आएगी

ख़्वाब बन कर कोई आएगा, तो नींद आएगी
अब वही आ के सुलाएगा, तो नींद आएगी

ख़्वाब बन कर...

एक और रोमांटिक गाना! आज तो रेडियो ने भी हद कर दी थी। जैसे उसको भी मालूम हो कि आज सुनील और उनकी सुहागरात है! सुनील वाकई किसी ख्वाब की तरह उनके जीवन में आया था - ऐसा ख्वाब, जो उन्होंने देखने की हिम्मत भी नहीं करी कभी।

‘कितना प्यार करते हैं ‘ये’ मुझे!’

फिर अचानक ही उनको अपनी कही हुई बात याद आ गई - सुनील को अभी तक ‘सुख’ मिला भी नहीं, और वो सोने की बात कर रही थीं! माँ को अपनी बात पर शर्मिंदगी महसूस हुई। अपने पति को बिना सुख दिए कैसे सो सकती हैं वो?

“या...” उन्होंने झिझकते हुए पूछा, “आपका कुछ करने का मूड है?”

ये कहते हुए उनकी नज़र नीची थी, लेकिन जब उन्होंने पलकें उठा कर सुनील की तरफ देखा, तो उसको अपनी तरफ देखते हुए पाया। सरल सी चितवन - लेकिन सुनील का तो जैसे दिल ही चाक हो गया। माँ मुस्कुराईं - उनके दाँत उस हल्की सी रौशनी में चमक उठे! सुनील को लगा जैसे कि सौ वाट का कोई बल्ब जल गया हो उसके दिल में!

“मेरी प्यारी दुल्हनिया... तुमको देख कर तो क्या क्या करने का मूड होता है, क्या बताऊँ तुमको!”

माँ ने सुनील को निरे अविश्वास से देखा! उनको अभी भी नहीं समझ आ रहा था कि सुनील के जैसा हैंडसम नौजवान, अपने से दोगुनी स्त्री के साथ ऐसा नेह कैसे लगा सकता है! उसको उनसे इतना प्यार कैसे हो सकता है?

अभी तक हर बार सुनील ने ही माँ के साथ प्रेमालाप की शुरुवात करी थी। लेकिन माँ ने सुनील के साथ अंतरंगता में इनिशिएटिव लेने का एक दुर्लभ मुजाहिरा करते हुए उसके दोनों गालों पर अपनी हथेलियाँ रखीं, और उसके होंठों को चूम लिया।

सुनील मुस्कुराया।

माँ मुस्कुराईं।

“मैं आपको अपना सब कुछ सौंप चुकी हूँ… आपको जैसा मन करे, जो मूड करे… जो कुछ भी करने का मूड करे… वो आप मेरे साथ सब कुछ कर सकते हैं। अब आप मैरिड मैन हैं - आपको मैरिड लाइफ का सारा सुख दूँगी! आपको कभी निराश नहीं करूँगी!”

“मेरी दुल्हनिया,” सुनील माँ को बड़े दुलारते हुए बोला, “अब बोलो! मैं तुमको कैसे न चाहूँ?”

“पत्नी तो पति के लिए ही होती है।”

“वो सब मुझे नहीं मालूम... लेकिन मुझे ये ज़रूर मालूम है कि तू बस मेरे लिए ही बनी है!”

“कोई शक़?” माँ ने भी बड़ी अदा से कहा।

“अच्छा मेरी दुल्हनिया, एक बात तो बता! तुझे मेरा... यू नो... मेरा लण्ड कैसा लगा?”

उसकी इस डर्टी टॉक से माँ फिर से शर्म से लाल हो गईं।

“अरे, शर्माती क्यों है? अंदर लेते हुए शर्म नहीं आई... लेकिन बताने में शर्माती है!” सुनील ने उनको छेड़ा, “बता न!”

“अंदर लेते हुए भी शर्म आई थी...” माँ कुछ भी कर लें, सुनील के प्रपंच में फँस ही जाती हैं।

अनजाने में ही वो सुनील की डर्टी टॉक का हिस्सा बन ही गईं। लेकिन पति-पत्नी में अगर ये सब न हो, तो किसके बीच हो?

“अरे! वो क्यों भला?”

“इतना बड़ा...” माँ ने अपनी झोंक में कहना शुरू किया... लेकिन जब उनको समझा कि वो क्या कह रही हैं, तो फिर से शर्मसार हो गईं और चुप हो गईं।

“तुझको पसंद है?”

“बहोत!” माँ ने कहा - खेल में शामिल हो ही गईं वो - लेकिन अभी भी शर्म का आवरण था उन पर।

“तो अपनी पसंदीदा चीज़ देखोगी नहीं?”

सुनील ने कहा, और माँ को अपनी गोद से उतार कर एक-एक करके अपने सारे कपड़े उतारने लगा। शीघ्र ही वो पूरी तरह से नग्न हो गया। उसका मोटा सा स्तम्भन हवा में तना हुआ दिखाई देने लगा। आज रात अपनी सुमन को ‘लूटने’ की इच्छा से वो पहले से ही बहुत उत्तेजित हो बैठा था। लेकिन जब उसने सुमन को अपने चकित और खुले हुए मुँह पर हाथ रखते हुए देखा, तो इस प्रतिक्रिया पर उसके मन में और भी जोश भर गया! अपनी ‘मर्दानगी’ पर जब आदमी को कॉम्पलिमेंट मिलता है, तो उसका प्रभाव वियाग्रा जैसा ही होता है! सुनील का स्तम्भन भूमि से लगभग सत्तर डिग्री अंश पर खड़ा हुआ था और... बहुत कठोर हो गया था। शिश्न की त्वचा गहरी साँवली थी और शिश्न-मुण्ड पर पीछे की तरफ सरकी हुई थी। उसका बल्बनुमा मुण्ड गहरे लाल-भूरे रंग का था और उत्तेजना में सूजा हुआ था।

लिंग या तो क्यूट लग सकता है या फिर वल्गर! क्यूट तब, जब वो छोटे लड़कों का हो, और वल्गर तब जब वो उत्तेजित हो कर खड़ा हो। इन दोनों शब्दों के बीच में उसकी प्रशंसा के लिए और कोई शब्द नहीं है। लेकिन स्त्रियों के लिए लिंग का आनंद देखने में नहीं, महसूस करने में निहित है। माँ को भी उसका लिंग वल्गर ही लग रहा था, लेकिन उनको याद था कि कैसे इसी अंग ने उनको सम्भोग के दौरान आनंद ही आनंद अनुभूति कराई थी।

“कैसा लगा?”

सुनील की आवाज़ पर माँ जैसे किसी सम्मोहन से बाहर निकलीं। वो अपने मधुर स्वर में फुसफुसाते हुए बोलीं,

“कुछ साल पहले की ही तो बात है - ये कैसा टिन्नी सा था! लेकिन अब...”

“लेकिन अब?”

“लेकिन अब... कैसा मज़बूत! ऐसे लिंग की तो पूजा करनी चाहिए!”

“तो करो न... करो न पूजा इसकी, मेरी जान!”

जिस्म हाथों की हरारत से पिघल जाएगा

आग रग-रग में लगाएगा, तो नींद आएगी
ख़्वाब बन कर...
कोई तड़पाएगा, हर आन तो चैन आएगा
कोई हर रात सताएगा, तो नींद आएगी

ख़्वाब बन कर...

माँ ने एक गहरी सी साँस ली और फिर सुनील के सामने अपने घुटनों के बल बैठ गईं। एक अनिश्चित अंदाज़ में उन्होंने सुनील के उग्र स्तम्भन को सहलाया - इतना कठोर की हल्की सी छुवन पर टस से मस नहीं हुआ वो अपने स्थान से! माँ के हाथ की छुवन से सुनील बहक गया। पूर्वानुमान में उसने दो पल के लिए अपनी साँस रोक ली थी। लेकिन उनका हाथ लगते ही उसकी साँस काँपती हुई छूट गई। उसके लिंग की दृढ़ता महसूस कर के माँ ने थोड़ा ज़ोर से दबाया - गर्म और कठोर स्तम्भन! सुनील के दिल की हर धड़कन उसके लिंग की लम्बाई पर पता चल रही थी! माँ ने एक बार नज़र उठा कर सुनील को देखा, और फिर सुनील के लिंग पर झुक गईं।

‘ओह गॉड!’ सुनील के दिल ने एक पल को मानों धड़कना ही बंद कर दिया हो।

जैसे ही माँ के मुँह की गर्माहट ने सुनील के लिंगमुण्ड को ढँका, उसके गर्म और नम संवेदनाओं ने सुनील के वज़ूद को हिला दिया। सबसे पहली बार को माँ ने केवल एक संछिप्त सा चुम्बन दिया है सुनील के लिंग पर - लेकिन इस बार ये एक आत्मीय मुख-मैथुन था। मुँह की पकड़, योनि की पकड़ से कैसी भिन्न थी, लेकिन फिर भी बड़ी आनंददायक! चूषण और घर्षण के साथ साथ माँ उसके अंडकोषों को सहला रही थीं। और उनके हाथ की पकड़ - ओह! कोमल लेकिन दृढ! जीभ की नोक भी एक अजीब से ताल में उसके मुण्ड के साथ खिलवाड़ कर रही थी। ये सारे संवेदन जैसे किसी ऑर्केस्ट्रा में बजने वाले अलग अलग वाद्य यंत्र हों, लेकिन साथ में मिल कर गज़ब की झनझनाहट पैदा कर रहे थे।

कुछ ही देर में सुनील को लगने लगा कि मुखमैथुन जैसी क्रिया का आनंद शब्दों में नहीं लिखा जा सकता। निश्चित रूप से माँ इस कला में निपुण थीं, इसलिए उसको जो आनंद आ रहा था वो और भी अधिक बढ़ गया था। आनंद की चिंगारियाँ उसके मष्तिष्क के हर कोने में बिखर रही थीं। उसको लगा कि उसको चक्कर आ जाएगा।

अचानक ही एक और संवेदना जागी - सुनील ने महसूस किया कि उसका लिंग सुमन के मुँह के बहुत भीआर तक चला गया है! उसने जैसे तैसे आँखें खोलीं तो देखा कि सुमन की आँखें बंद हैं, और उनके कोनों से आँसू निकल रहे हैं। माँ तकलीफ में थीं, लेकिन सुनील को आनंद देने के लिए तत्पर थीं। एक क्षणिक सा ख़याल आया कि वो सुमन को रोक दे, जिससे उसकी तकलीफ मिटे। लेकिन वो ये कर न सका। वो अपनी इसी दुविधा में पड़ा हुआ था कि माँ ने उसके लिंग की और भी अधिक लम्बाई अपने मुँह में भर ली। घोर आश्चर्य! ऐसा लग रहा था कि उसके लिंग का हर हिस्सा चूसा जा रहा है।

और फिर वो हुआ जो वो सोच भी नहीं सकता था - उसका स्खलन बिना किसी पूर्व चेतावनी के फट पड़ा। सुनील को बहुत आश्चर्य हुआ - ऐसे कैसे हो गया? हमेशा मालूम पड़ता है कि निकलने वाला है। उसने स्वतःप्रवर्तित दहन (spontaneous combustion) के बारे में पढ़ा था - जब बिना किसी चेतावनी के कोई वस्तु अचानक ही एक साथ, स्वयमेव जल उठती है। कुछ कुछ वैसा ही उसके साथ हुआ था अभी। एक के बाद एक स्खलन होता जा रहा था, और माँ बिना रुके उसका स्खलन पीती जा रही थीं। सुनील को लग रहा था कि जैसे उसकी आँखों में तारे नाच रहे हों। आनंद - प्रमत्त - संतुष्टि और अविश्वास - इन सभी भावनाओं का मेल वो महसूस कर रहा था। जब उसको लगा कि उसका स्खलन पूर्ण हो गया है, तब माँ ने एक बार फिर से आखिरी बार चूसा - एक और बार उसको स्खलन का आभास हुआ! उसको लगा कि वो ही माँ को ओर्गास्म का आनंद देने में निपुण है, लेकिन अब समझ आ रहा था उसको कि उसकी पत्नी भी उसको अलौकिक आनंद देने में उतनी ही समर्थ और सिद्धहस्त है।

अपने ओर्गास्म के चरम पर पहुँच कर वो लड़खड़ा गया, लेकिन बिस्तर के हेड-रेस्ट को पकड़ कर उसने जैसे तैसे अपने को सम्हाला। अभी भी चूषण जारी था। इस उत्कृष्ट ओर्गास्म के आनंद ने सुनील के होश उड़ा दिए थे। अंततः उसके पास और देने के लिए कुछ नहीं बचा। बस यही इच्छा शेष रही कि यह अनुभव एक बार फिर से जिया जाए!

सुनील का चरमोत्कर्ष शांत हो गया और बहुत जल्द ही फ़ीका पड़ गया। उसे पसीना आ रहा था, और उसका शरीर अभी भी कामोन्माद से काँप रहा था।

माँ उठीं; उनके चेहरे पर विजई मुस्कान थी - वो जानती थीं कि सुनील को अभूतपूर्व आनंद मिला है।
 
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