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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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avsji

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Supreme
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Suman ko Sunil ka tu tdaak krke bolna achha bhi laga aur thoda ajeeb bhi. :wooow:
Aur Sunil ne lovebites kab diye ya to main miss kr gya ya fir pata hi ni chala. :think:
तू तड़ाक से किसी को कोई भी फर्क नहीं पड़ा भाई।
अच्छा और अजीब लगा सिचुएशन से।

लव बाइट्स जोर से दिए चुंबनों के कारण बनते हैं। बेचारा पूरा समय चूम ही तो रहा था 😂😂
 

Kala Nag

Mr. X
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अंतराल - पहला प्यार - Update #20


उधर कमरे के बाहर काजल दबे पाँव चलते हुए माँ के कमरे के पास आई, और चुपके से दरवाज़े को थोड़ा सा खोल कर, बिना कोई आवाज़ किए, परदे की आड़ से अंदर झाँकी।

‘तो लड़के ने हिम्मत कर ही ली!’ काजल मुस्कुराते हुए सोचने लगी।

अंदर का नज़ारा वैसा ही था, जैसी कि उसको उम्मीद थी। या फिर ये कह लें, कि उम्मीद से थोड़ा बेहतर ही! सुमन पूरी तरह निर्वस्त्र हो कर उसके बेटे के सामने खड़ी थी, और उसका बेटा उसके पुट्ठों को थामे, उसकी जाँघों को जगह जगह चूम रहा था! अपने एकलौते बेटे की शादी को ले कर काजल के मन में भी कई सारे अरमान थे - कि उसकी सुन्दर सी, सर्वगुण संपन्न, सुशील, सुगढ़, और संस्कारी बहू हो। हम सभी जानते हैं कि अपने होने वाले जीवनसाथी के गुणों की पूरी एक फ़ेहरिस्त होती है हमारे पास। उस फ़ेहरिस्त के सभी बिन्दु पूरे हो जाएँ, वो संभव नहीं होता। लेकिन सुमन के रूप में उसकी सारी इच्छाएँ पूरी होती नज़र आ रही थीं।

क्या सच में प्रार्थनाएँ इतनी जल्दी सच होती हैं? काजल का दिल स्नेह और ममता से भर आया। अपनी चहेती दीदी - नहीं, दीदी नहीं, बहू - को फिर से सुख पाते देख कर उसको बहुत भला लगा। काजल ने सुमन को नग्न पहले कई बार देखा था, लेकिन आज एक अलग बात थी। आज वो उसके बेटे की हो गई थी! और वो उसकी बहू हो गई थी। आज सब कुछ बदल गया था। आज से सुमन अपनी है... अपने घर की। आज से उसकी एक और बेटी है - प्यार करने के लिए! यह एक अद्भुत सी अनुभूति थी।

उसने एक आखिरी नज़र और डाली, और चुपके से दरवाज़ा बंद कर के वहाँ से चली गई।


**


सुनील माँ के शरीर के हर अंग पर तसल्ली से अपने चुम्बनों की मोहर लगा रहा था। माँ ने अभी भी अपनी योनि ढंकी हुई थी, और सुनील कोशिश भी नहीं कर रहा था उनका हाथ वहाँ से हटाने की। उसने माँ की जाँघों के अंदरूनी हिस्से को सहलाया। जैसे-जैसे वो माँ के शरीर को और देखता और महसूस करता जा रहा था, माँ के लिए उसकी प्रशंसा और भी अधिक बढ़ती जा रही थी।

“अब एक ही चाह बाकी है मेरी जान... कि हम दोनों हमेशा के लिए एक हो जाएँ, और हमारा एक छोटा सा संसार बनाएँ!” वो कह रहा था, और साथ ही साथ माँ की जाँघों को सहला भी रहा था, “सच अ स्ट्रांग वेसल फॉर आवर फ्यूचर चिल्ड्रन!” उसने माँ के कानों में फुसफुसाते हुए कहा, “मेरी सुमन, हमारे बच्चे बहुत सुंदर, हेल्दी और स्ट्रांग होंगे!”

उसने माँ के कूल्हे के किनारे को छुआ, “यू आर सच अ परफेक्ट ब्यूटी…”

माँ की हालत बड़ी अनोखी थी। उन्होंने बड़े लंबे समय के बाद अपने शरीर पर किसी पुरुष का स्पर्श महसूस किया था - एक ऐसे पुरुष का, जो आत्मविश्वासी है, जो उनसे प्रेम करता है, और जो एक दैवीय प्रसाद के रूप में उनका पति बनने जा रहा है। इसलिए माँ समझ नहीं पा रही थी कि वो उसकी हरकतों पर कैसी प्रतिक्रिया दें। उनके मन में आया कि वो सुनील के स्पर्श को अस्वीकार कर दें, लेकिन उनको बहुत अच्छा लग रहा था। उनके मन में आया कि वो सुनील के स्पर्श का खुल कर स्वागत करें, लेकिन उनको बहुत झिझक भी हो रही थी।

“दुल्हनिया,” सुनील ने अपने हाथों से माँ के एक नितम्ब को साइड से दबा कर बोला, “ज़रा पलटना तो... एक बार?”

सुनील बोला, और न जाने किस प्रेरणावश वो पलट भी गईं। कैसे न करतीं? न जाने कैसा अद्भुत प्रभाव था सुनील का उन पर! उसके बोलने में वही, पति वाला अधिकार भाव था। वो पूरी तरह से अशक्त हो गईं थीं उसकी किसी भी बात को मना कर पाने में!

माँ मुड़ गईं। उनकी आँखें बंद थीं, और देख कर ऐसा लग रहा था कि वो अब गिरी कि तब गिरी। शायद सुनील को भी उसके थरथराते हुए शरीर से इस बात का आदेश हो गया था, इसलिए उसने माँ को एक हाथ से थाम रखा था। उसने बारी बारी से माँ के दोनों नितम्बों को सहलाया। एक लम्बे अर्से के बाद माँ की नग्न सुंदरता देखने की सुनील की तमन्ना आज पूरी हो गई थी।

कई वर्षों पहले सुनील के मन के अंदर माँ के लिए आकर्षण का जो पौधा उत्पन्न हुआ, जो उनके गुणों से सिंचित होते होते कब अगाध प्रेम में बदल गया, वो उसको भी नहीं मालूम चला। और उसी प्रेम की ताकत थी कि वो जाने अनजाने, इतने वर्षों तक, खुद को माँ के लायक बनाने का भरपूर प्रयास करता रहा। उसने पूरी मेहनत और लगन से अपनी पढ़ाई करी और एक अच्छी नौकरी हासिल करी। माँ के लिए उसके प्रेम ने उसके व्यक्तित्व का न केवल निर्माण ही किया, बल्कि उसका पोषण भी किया और उसको निखारा भी! बस ये समझ लीजिए कि इतने वर्षों की तपस्या का उसको अब फल मिल रहा था!

सुनील ने बारी बारी से माँ की दोनों नितम्बों को भी चूम लिया। अब माँ के लगभग हर अंग पर सुनील के चुम्बनों की मोहर लग गई थी! अब कहीं जा कर वो संतुष्ट हुआ! अपनी सुमन के हर अंग को चूम कर उसने अपने प्रेम की उपस्थिति तो दर्ज़ कर दी! संतुष्ट हो कर उसने माँ को वापस अपनी ओर पलटा। माँ के दोनों हाथ अब तक उनकी योनि से हट गए थे। सुनील ने देखा अवश्य, लेकिन फिलहाल उसने झुक कर माँ की अक्षकास्थि (कॉलर बोन) को चूम लिया। उस चुंबन में कुछ भी कामुक नहीं था... बल्कि, वो एक बहुत ही स्नेही चुंबन था। उसके चुम्बन में उसके प्रेम के जुनून की गर्मी के साथ-साथ सुनील के मन ने माँ के प्रति उनका सम्मान भी निहित था। लेकिन माँ को लगा कि जहाँ पर सुनील ने चुम्बन दिया, वहां पर उनकी त्वचा जैसे झुलस गई हो। उनको ऐसा लगा जैसे सुनील का चुंबन उसकी त्वचा में समां गया हो। सदा के लिए!

“मेरी जान,” उसने कहा, “आँखें खोलो न!”

माँ ने बड़ी झिझक से आँखें खोलीं।

“आई लव यू!”

कितनी ही बार ये तीन साधारण से शब्द प्रेमी-प्रेमिकाओं ने कहे होंगे। लेकिन उनमें निहित कोमल, किन्तु बलवान भावनाएँ, हर बार नई होती हैं और हर एक के लिए अलग अलग होती हैं। सुनील के कहने के अंदाज़ में जो सच्चाई थी, वो माँ से अनसुनी नहीं रह सकी।

माँ शर्माते हुए मुस्कुराईं, “मी टू!” उन्होंने भी सुनील के ही जैसी सच्चाई से कहा।

ऐसी सहज स्वीकृति किसके दिल में गुदगुदी न कर दे? सुनील मुस्कुराया और तब उसने नीचे देखा। माँ की योनि अंततः सुनील के सामने उजागर थी। माँ ने हड़बड़ा कर सुनील की तरफ़ देखा - उनको शर्म आ रही थी कि उन्होंने अपनी योनि के सौंदर्यीकरण की एक लम्बे समय से उपेक्षा कर रखी थी। घने, घुंघराले, काले बालों का अव्यवस्थित जंगल उनकी योनि को पूरी तरह से ढँके हुए था। उनके मन में आया कि कहीं ‘उसको’ ऐसे अनावृत हुए, अपने मूर्त रूप में देख कर सुनील को ‘उससे’ और उनसे घृणा न महसूस होने लगे। लेकिन माँ की योनि के दर्शन होते ही सुनील जैसे हतप्रभ हो गया!

माँ अपना हाथ बढ़ा कर अपनी नग्नता सुनील से छुपाना चाहती थीं, लेकिन सुनील को ‘उस तरफ’ ऐसे आस भरे, आश्चर्य, और प्रशंसा वाले भाव से देखते हुए देख कर, वो कुछ कर न सकीं। सुनील ने बड़ी सावधानी से - जिससे माँ को कोई चोट न लगे - अपनी उँगलियों से उनके पशम हटा कर ‘वहाँ’ देखा - माँ की योनि-पुष्प की पंखुड़ियाँ आपस में चिपकी हुई थीं, और बहुत कोमल लग रही थीं। उनकी योनि के होंठों की रंगत उनके शरीर के समान ही गोरी थी - बस थोड़ी सी ही गहरी रंगत लिए हुए थी। लेकिन घने बालों के कारण उसकी सुंदरता देख पाना संभव नहीं था।

लेकिन शायद था - कम से कम सुनील के लिए तो था!

“दुल्हनिया?”

“जी?” माँ के मुँह से अनायास ही निकल गया।

“कितनी सुन्दर है ये!”

सुनील की बात पर माँ के शरीर में शर्म की लहर दौड़ गई।

‘ये,’ माँ ने सोचा, ‘सुन्दर है?’ सुनील के मुँह से अपने गुप्ताँग के लिए यह शब्द सुन कर उनको बड़ा अनोखा, बड़ा अजीब सा लगा।

“गुलाब के फूल की पँखुड़ियों जैसी!”

‘गुलाब का फूल!’

लेकिन असली आघात तो अभी आना बाकी था - सुनील ने अपनी उंगली को माँ की बिकिनी लाइन पर चलाया और उनकी योनि के V पर आ कर रुक गया।

“कितनी कोमल है!”

‘कोमल?’

क्योंकि माँ नीचे नग्न थीं, इसलिए सुनील की उंगलियाँ अपनी खोज-बीन करने के लिए स्वतंत्र थीं... और उसने तसल्ली से वहाँ पर खोजबीन करी।

“ओह गॉड! दुल्हनिया, कितनी सुन्दर सी बुर है तेरी!” वो अपने में ही बड़बड़ाया, “ओह! और कैसी बुलंद किस्मत है मेरी!” बिलकुल मंत्रमुग्ध सा!

बोला तो उसने बहुत धीमे से, लेकिन कमरे में इतनी ख़ामोशी थी कि माँ ने सुन लिया। उनको शर्म तो आ रही थी, लेकिन मन के किसी कोने में गर्व की अनुभूति भी हुई, जब सुनील ने उनके गुप्तांग की ऐसी बढ़ाई करी।

“दुल्हनिया...” सुनील कुछ कहना चाहता था, लेकिन कह नहीं सका।

अब तक घबराहट और उत्तेजना से माँ की साँसें चढ़ गईं थीं। कमोवेश वैसी ही हालत सुनील की भी थी, लेकिन न जाने कैसे वो खुद पर नियंत्रण बनाए हुए था। लेकिन माँ के लिए यह सब बड़ा अनोखा सा था। उनको ऐसा लग रहा था जब कोई बच्चा पहली बार स्कूल में दाखिले के लिए जा रहा होता है। उसके लिए सब कुछ अपरिचित सा होता है। उस स्थिति में घबराहट भी होती है, और रोमांच भी! वही हालत माँ की भी हो रही थी। लाचारी में सुनील के सामने खड़े खड़े, माँ के पैर काँपने लगे।

सुनील फिर से माँ की जाँघों को चूमने लगा। चूमते चूमते, अंततः उसने अपना मुँह उनकी पदसन्धि में सटा कर उनकी योनि को चूम लिया। चूमा ही नहीं, बल्कि उनकी योनि के होंठों के बीच चाट भी लिया। माँ उसे रोक ही नहीं पाई। रोकना तो छोड़ो, माँ को करंट का ऐसा झटका लगा कि उनका पूरा वज़ूद हिल गया।

फिर सुनील मुस्कुराते हुए बोला, “दुल्हनिया, तेरी बुर भी मेरी हुई अब!”

उनके लिए सुनील को रोक पाना अब संभव ही नहीं था। वो जो चाहे करने के लिए स्वतंत्र था। माँ के अंदर विरोध करने की न तो क्षमता थी और न ही साधन! वो भी मन से सुनील को पति मान चुकी थीं। अब क्या विरोध शेष रहा? उसने फिर से जीभ निकाल कर धीरे से उनकी योनि को चाटा।

“शहद है भई यहाँ तो, शहद!”

“ब्ब्ब... बस कीजिए अअब!” माँ ने जैसे तैसे, लड़खड़ाते शब्दों में कहा।

लेकिन वो जैसे कुछ सुना ही न हो, “इसकी तो महक भी गुलाब के फूल वाली ही है!” वो आनंद से बोला।

हाँ ये बात तो पूरी तरह सही थी, और इसका पूरा श्रेय माँ के गुलाब की महक वाले साबुन को जाना चाहिए!

ऐसी मजबूरी, ऐसी लाचारी वो सुनील के साथ महसूस करने से पहले केवल अपने पति के ही सामने महसूस करती थीं। तो इस चुम्बन के साथ सुनील ने उनके जीवन में पति वाला स्थान तो हासिल ही कर लिया! बस पति वाला एक काम बचा रहा था! उन दोनों को बस अब ‘एक होना’ बाकी था। और उसने ‘उस काम’ को भी शीघ्र ही करने का वायदा कर दिया था! माँ ने सुनील के प्रेम अभिव्यक्ति पर अपनी आँखें बंद कर लीं। सुनील ने उनके समूचे गढ़ को ध्वस्त कर दिया था, और अब वो सुनील के प्यार की प्रगति को रोकने में शक्तिहीन थीं। और सच कहें, तो वो अपने लिए सुनील के प्यार की प्रगति को रोकना भी नहीं चाहती थीं!

“मैं तुम्हें बहुत खुश रखूँगा, दुल्हनिया!” उसने वादा किया, और फिर पूछा, “प्लीज पूरी तरह से मेरी बन जाओ न! मेरी वाइफ! मेरी सब कुछ!”

सुनील ने ऐसे भोलेपन से माँ से यह बात कही कि वो उस बेख़याली और घबराहट वाली हालत में भी मुस्कुराए बिना न रह सकीं।

“सब कुछ तो देख लिया मेरा आपने... सब कुछ तो ले लिया! आपकी नहीं, तो और किसकी हूँ अब?”

सुनील मुस्कुराया, “मेरा मतलब है शादी!” फिर माँ की हालत - उनकी टाँगों के कम्पन को देख कर कहा, “दुल्हनिया, तू कैसी काँप रही है!” उसकी आवाज़ भी कामातुर हो कर कर्कश हो चली थी, “आ जा, मेरी गोदी में लेट जा!”

सुनील ने कहा, और उनको अपनी गोद में कुछ इस तरह लिटा लिया कि माँ के नितम्ब सुनील की गोदी में, और उसके ऊपर का शरीर उसके बाएँ तरफ़ और टाँगें उसके दाहिने तरफ। इस पर भी कोई ख़ास आराम नहीं मिला उनको - सुनील का उत्तेजित कठोर लिंग उनके नितम्ब की दरार में बुरी तरह चुभ रहा था। लेकिन उससे भी बड़ा आघात था सुनील की उँगलियों का, जो इस समय उनकी योनि की खोजबीन में व्यस्त थीं - उसने माँ की योनि के होंठों की रूपरेखा का पता लगाया, उनके योनि-पुष्प (योनि की पंखुड़ियों) को सहलाया, और उनके पशम से खेला।

‘कैसा कोमल अंग!’ उसने सोचा, ‘इसकी कोमलता और सुंदरता का व्याख्यान करना मुश्किल है!’

दोनों इस बात को लगभग भूल ही गए थे कि बाहर सुनील की माँ भी है और वो किसी भी समय कमरे में आ सकती है। अगर काजल इसी समय कमरे में आ जाती, तो उन दोनों को इस हाल में देख कर क्या कहती? लेकिन यह ख़याल उन दोनों के विचार में आया ही नहीं।

माँ की योनि से खेलते खेलते उसकी उँगलियाँ माँ के काम-रस से भीग गई। वो मन ही मन मुस्कुराया। लेकिन उसने यह बात माँ पर जाहिर नहीं होने दी - ऐसा न हो कि वो लज्जित हो जाएँ! पत्नी को पति के सान्निध्य में आनंद आना चाहिए - लज्जा नहीं। पति पत्नी के बीच लज्जा जैसी वस्तु का कोई काम नहीं। लेकिन खुद पर नियंत्रण रख पाना भी तो मुश्किल था। उसने माँ के नितम्बों को नीचे से सहारा दे कर थोड़ा उठाया, और थोड़ा खुद झुका - अगले ही पल उसके होंठ माँ की योनि के रस का आस्वादन कर रहे थे। मुख मैथुन का सुख डैड ने माँ को बस कभी कभार ही दिया था। अधिकतर माँ ही डैड को मुख-सुख देती आई थीं। यहाँ तो सुनील की शुरुवात ही ओरल सेक्स से हो रही थी।

उधर माँ को लग रहा था कि कल से जो आरम्भ हुआ, तो उनकी योनि से जैसे रस निकलना बंद ही नहीं हो रहा था। मुख मैथुन शुरू होने के कुछ ही पलों में माँ को रति-निष्पत्ति का छोटा सा अनुभव हो गया। इतना ही उनके लिए पर्याप्त था। लज्जा के मारे वो उसका आनंद स्वीकार करने में भी झिझक रही थीं। लेकिन सुनील की आश्वस्त गोदी में बैठ कर उनको अनोखा सुख तो मिल रहा था।

सुनील को स्त्रियों के ओर्गास्म के बारे में बहुत ही कम और सीमित ज्ञान था। इसलिए वो समझ नहीं सका कि माँ को कैसा अनुभव हुआ होगा। माँ उसकी गोदी में पड़ी तड़प रही थीं - उनकी टाँगे कुछ इस तरह छटपटा रही थीं कि सुनील के लिंग की लम्बाई, पुनर्व्यवस्थित हो कर, उनकी योनि के चीरे से समान्तर जा लगी। सुनील भी बहुत देर से कामोत्तेजित था। अब उसके भी बर्दाश्त के बाहर हो चला था। लिहाज़ा, एक छोटा मोटा स्खलन उसको भी हो आया। उसके लिंग से वीर्य की कुछ बूँदे निकल गईं, जिससे उसके वृषणों में उत्तेजना का भीषण दबाव कुछ कम हो जाए। अपने अपने यौन आनंद के लघु पर्वतों के शिखर पर पहुँच कर दोनों को थोड़ी राहत तो मिली।

दोनों ने ‘वहाँ’ देखा - वीर्य की बूँदें माँ की योनि के बालों पर उलझी हुई कुछ इस तरह लग रही थीं, कि जैसे छोटे छोटे मोती वहाँ टाँक दिए गए हों। कई साल पहले भी यही हुआ था - माँ के हाथ का स्पर्श पाते ही सुनील को स्खलन हो गया था, और आज भी! लेकिन आज का कारण जाहिर सा था - दो तीन दिनों से उसको लगातार उत्तेजन और उद्दीपन हो रहा था। चाहे कितना भी कण्ट्रोल क्यों न हो आदमी का अपनी कामोत्तेजना पर, इतने लम्बे समय तक उत्तेजन और उद्दीपन होने पर उसका टिके रहना संभव नहीं।

“आई ऍम सॉरी दुल्हनिया,” सुनील ने खेद जताते हुए और अपनी सफाई में कहा, “दो दिनों से भरा पड़ा हूँ, इसलिए कण्ट्रोल नहीं हो पाया!”

“कोई बात नहीं,” माँ ने उस अवस्था में भी बड़ी कोमलता से कहा, “आप बुरा मत फ़ील करिए!”

सुनील मुस्कुराया, “आई लव यू मेरी दुल्हनिया! आई लव यू सो सो सो वेरी मच!”

उसकी बात पर माँ भी किसी तरह मुस्कुराईं, “आई नो! एंड आई लव यू टू!” और बोली, “अब जाने दीजिए मुझे!” कह कर वो सुनील की गोद से उठने लगीं।

सुनील ने उनको खड़े हो कर अपनी साँसें संयत करते हुए देखा, फिर कुछ सोच कर उसने कहा, “दुल्हनिया, ज़रा पीछे मुड़ना तो?”

सुनील किसी कुशल वादक की तरह माँ के तन और मन के सारे तार झनझना रहा था, और माँ उसकी हरकतों को रोक पाने में पूरी तरह से असमर्थ सिद्ध हो रही थीं। वो निर्देशानुसार फिर से पलट गईं। माँ के दोनों नग्न नितम्ब उसके सम्मुख हो गए! उसने हाथ से दबा कर उनके नितम्बों का निरीक्षण किया। एक नितम्ब की गहराई में एक छोटा सा लाल-भूरे रंग का तिल देख कर वो मुस्कुराया। उसकी उत्सुकता और भी अधिक बढ़ गई। उसने उनके दोनों नितम्बों को अपने हाथों से दबा कर थोड़ा फैलाया। तत्क्षण उनकी योनि के ही रंग का, सँकरा, और किरणों के जैसी सिलवटें लिए हुए गुदाद्वार उजागर हो गया। घबराहट में माँ ने उसको कस कर सिकोड़ लिया।

‘आह! कैसा कमाल का अंग है मेरी सुमन का! हर अंग!’

वर्षों से सुनील माँ के जिस रूप, जिस सौंदर्य की कल्पना करता रहा था आज उसके सामने वही रूप, वही सौंदर्य उजागर था! और माँ का हर अंग उसकी कल्पना से कई गुणा अधिक सुन्दर था! माँ उसकी कल्पना से कई गुणा अधिक सुन्दर थीं!

‘कैसी किस्मत भगवान्!’ उसने मन ही मन अपने ईष्ट को धन्यवाद किए, ‘बस आप हम पर ऐसे ही अपनी कृपादृष्टि बनाए रखना!’

उसने माँ के दोनों नितम्बों को बारी बारी चूमा और कहा, “दुल्हनिया मेरी, मैं तेरे साथ और भी बहुत कुछ करना चाहता हूँ... पर आज वो दिन नहीं है! लेकिन वायदा है कि जल्दी ही...”

सुनील ने कहा, और फिर माँ को वापस अपनी तरफ पलट कर उनके हर अंग को फिर से चूमने लगा। कुछ क्षणों बाद जब वो उनके पूरे शरीर को चूम चूम कर फिलहाल के लिए तृप्त हो गया तो बोला,

“आओ तुमको कपड़े पहना दूँ! नहीं तो अम्मा सोचेगी कि कमरे में क्या कर रहे हैं हम दोनों!” फिर कुछ सोच कर, “और कहीं अंदर आ गई, तो मैं मारा जाऊँगा! बोलेगी कि मेरी प्यारी दीदी को नंगी करता है! ये ले...!”

कह कर उसने घूँसा बनाया, और हवा में ही दो तीन मज़ाकिया पंच मारे।

उसकी बातों पर माँ को हंसी आ गई। आज सुख मिला उनको। उनका दिल इतना भर गया कि हल्का हो गया। भविष्य के कोमल सपनों में इंद्रधनुषी रंग भर गए। आज से उनका जीवन एक अलग ही मार्ग पर चल निकला था।

उधर सुनील अपनी निक्कर की जेब से रूमाल निकाल कर उनकी योनि पोंछने के बाद, वो माँ को कपड़े फिर से पहनने में मदद करने लगा।

उसने उनकी ब्रा तो कहीं फेंक दी थी, इसलिए फिलहाल उनको केवल ब्लाउज ही पहनाया। जब वो उनके ब्लाउज के बटन बंद कर रहा था तब वो माँ के स्तनों और छाती पर बने लव-बाइट्स को देख कर मुस्कुरा रहा था। माँ के सीने पर कम से कम चार-पाँच लव-बाइट्स थे, जो चीख चीख कर यह बता रहे थे कि अब वो सुनील की हैं। उधर सुनील द्वारा पेटीकोट और ब्लाउज पहनाया जाना माँ को उचित लगा। सुनील ही ने उनको निर्वस्त्र किया था, इसलिए सुनील को ही उनको वस्त्र पहनाना चाहिए। एक और विचार आया - जब वो अपनी माँ के सामने उनके साथ इतना सब कुछ कर सकता था, तो वो अकेले में क्या क्या करेगा! सुनील के साथ फिर से अकेले रहने का ख्याल आते ही माँ का दिल ज़ोर से धड़कने लगा।

साड़ी भी उतरी हुई थी। उसको पहनाना कोई आसान काम तो नहीं था। सुनील ने ज़मीन पर पड़ी साड़ी समेटने लगा, तो माँ को वहाँ से भाग लेने का मौका मिल गया। देर बहुत हो गई थी और काजल किसी भी वक़्त अंदर आ सकती थी। केवल पेटीकोट पहने बाहर जाना एक खतरनाक सी बात थी - काजल को अवश्य ही उन दोनों को ले कर शक़ हो जाएगा। लेकिन वो क्या करें! तीर अपने तरकश से कब का निकल चुका था।

आज के पूरे एपिसोड में माँ को पहली बार अपने कमरे से बाहर आने का मौका मिला था। यह मौका मिलते ही वो अपनी अस्त-व्यस्त अवस्था में ही, सुनील को कमरे में छोड़कर वहाँ से बाहर भाग गईं। बाहर जाने की जल्दबाज़ी और हड़बड़ी में उनको यह भी ध्यान नहीं रहा कि ब्लाउज पहनाते समय सुनील ने उसका एक बटन ऊपर नीचे कर दिया था, इसलिए ब्लाउज को देख कर बहुत अटपटा सा लग रहा था। कोई भी देखता तो समझ जाता कि माँ थोड़ी देर पहले निर्वस्त्र थीं, और उन्होंने बेहद हड़बड़ी में कपड़े पहने हैं।


**
बंधु
आप जब अपडेट लाते हैं एक टैग कर दीजिएगा व्यस्तता के कारण किसी के पेज पर जाना नहीं हो पा रहा है और मैं आपके द्वारा प्रस्तुत किए गए किसी भी अपडेट को मिस नहीं करना चाहता हूँ

खैर अपडेट प्रेम प्रणय था निवेदन था स्वीकार था
बेशक सुमन की जवानी ढली नहीं है पर आज सुनील ने उसके अंदर चंचलता भर दी है जैसे नई नवेली
काजल एक सहेली होने के साथ साथ एक माँ भी है
दोनों के भाव से अवगत होने के बाद ही उसने अपनी लीला रच दी
अब परिणय शेष है
देखते हैं आप कैसे किस तरह के रंगों में सजा कर उपस्थित करते हैं
 

avsji

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Supreme
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अंतराल - पहला प्यार - Update #21


काजल ने माँ की यह हालत बखूबी देखी, तो अर्थपूर्वक मुस्कुराई।

काजल पिछले कुछ मिनटों से सुनील और सुमन की शादी के बारे में ही सोच रही थी। उन दोनों की शादी की सबसे बड़ी अड़चन थी कि अमर को कैसे मनाया जाए और फिर आगे का सारा बंदोबस्त कैसे किया जाए! काजल का बड़ा मन था कि उन दोनों की शादी, सुनील के अपनी जॉब ज्वाइन करने से पहले ही हो जाए। आर वो करना था, तो तीन हफ्ते से बस कुछ ही अधिक समय बचा हुआ था। बहुत कम समय था! वैसे देखा जाए, तो और भी कम समय था - शादी के बाद छोटा सा हनीमून भी तो होना चाहिए न? तो अगर हनीमून का एक हफ्ता निकाल दो, तो बस दो हफ्ते का ही समय बचता है कुछ भी करने को!

ऐसी हड़बड़ी में दोनों का विवाह करवाना काजल को कुछ जम नहीं रहा था। एक ही बेटा है उसका - माँ होने के कई सारे अरमान होते हैं! उसकी शादी में कम से कम कुछ धूम तो हो! लेकिन फिर उसको विचार आता है कि फ़िज़ूलख़र्च से क्या लाभ? धूम धाम करने से केवल अपने अरमान ही निकलते हैं, उसका कोई लाभ अपनों को तो मिलता नहीं! अगर वो सारा रुपया सुनील और सुमन को दिया जाए, तो वो दोनों अपना संसार बसाने में उसका बेहतर इस्तेमाल कर सकें। लेकिन फिर भी, एक अच्छी सी पार्टी तो देनी ही चाहिए! और यह सब बिना अमर की सलाह के यह संभव ही नहीं है। और फिर, पार्टी में सम्बन्धियों को, और मित्रों को बुलाना ही होगा न... न्योता देना पड़ेगा! कितना कम समय बचा है उस कमा के लिए! होने वाली बहू के लिए कुछ गहने तो बनवाए हुए हैं, तो उस बात की चिंता नहीं। लेकिन कपड़े लत्ते सब लेने होंगे! कैटरिंग का काम, अचानक से ही काजल की हिम्मत जवाब दे गई। कुछ देर पहले उसको लग रहा था कि सब कुछ बड़ी आसानी से हो जाएगा! लेकिन अब लग रहा था कि ये सब इतने कम समय में कैसे होगा!

काजल इसी उधेड़बुन में पड़ी हुई थी कि उसकी नज़र माँ पर पड़ी।

उनकी हालत देखी तो वो अर्थपूर्वक मुस्कुराई।

‘कितनी प्यारी सी लग रही है सुमन!’ माँ को देख कर काजल की चिंता वाष्प बन गई। कुछ बड़ी अनोखी बात तो थी सुमन में - जब माँ या बड़ी बहन के रूप में थी, तब भी दिल को चैन रहता था, और अब जब बहू के रूप में उसके घर आने वाली है, तब भी दिल को उतना ही चैन मिल रहा है। सुमन जैसी प्यारी, गुणी, और सरल सी बहू की तमन्ना कब से मन में थी - और अब वो तमन्ना साकार हो रही थी। कुछ मिनटों पहले ही काजल ने उनको अपने बेटे के सामने नग्न खड़े देखा तो काजल मन ही मन बहुत खुश हुई। उसका प्लान पूरी तरह सफल रहा! दोनों को एकांत देने का परिणाम मन मुताबिक़ निकला।

वैसे तो अपनी बहू के साथ काजल सहेली जैसा बर्ताव रखना चाहती थी - जैसे कि दीदी (सुमन) रखती थी, लेकिन अब जब खुद वो ही उसकी बहू बन कर आ रही है, तो एक अनोखा सा अनुभव हो रहा था उसको। सुमन उसकी दीदी भी है और बहू भी। और तो और वो उसकी सहेली भी तो है! और अपनी सहेली को थोड़ा छेड़ना, थोड़ा परेशान करना कोई गलत बात तो नहीं है।

माँ को ऐसे बाहर आने में हिचक हो रही थी, लेकिन अब क्या करे? काजल न जाने क्या सोचे! अगर वो कुछ पूछेगी, तो वो झूठ नहीं कह पाएँगी। यह बात काजल भी अच्छी तरह जानती थी। बड़ी समस्या थी। माँ का सच्चा होना एक ऐसा गुण था, जिसका अनुकरण न केवल काजल करती आई थी, बल्कि अपने बच्चों को भी सिखाई थी। इसलिए वो उनसे कोई ऐसा प्रश्न नहीं करना चाहती थी जिसके कारण माँ को लज्जा का अनुभव हो। लेकिन छेड़खानी तो बनती है!

जब काजल के पास पहुँचीं तो उनको देख कर काजल ने कहा,

“अरे ब... दीदी,” काजल माँ को बस ‘बहू’ बोलते बोलते रह गई, “ये क्या हाल हो रखा है तुम्हारा! साड़ी किधर गई तुम्हारी? और ये कपड़े कैसे पहने हुए हैं?” काजल ने खिलवाड़ के अंदाज़ में कहा, “इधर आओ, मैं ठीक कर देती हूँ!”

“अ... क... काजल...!” माँ ने असहज होते हुए कहा।

उनको समझ नहीं आ रहा था कि वो काजल को कैसे पुकारें - उसके नाम से पुकारें, या अम्मा कहें? उसको ‘काजल बेटा’ या महज़ ‘बेटा’ कह कर तो अब बिलकुल भी नहीं पुकार सकतीं! यही गलती बस दो क्षण पहले काजल भी करने वाली थी।

“अरे कोई बात नहीं!” काजल ने माँ को अपने आलिंगन में भरते हुए बड़े प्यार से कहा, “देखो तो - पूरा बदमाश हो गया है सुनील!” और माँ के ब्लाउज के बटन ठीक से लगाने के लिए उनको खोलते हुए आगे कहा, “दुद्धू पीते पीते तुम्हारी साड़ी भी उतार दी, और वापस पहनने भी नहीं दी! और तो और, तुमको ब्रा भी नहीं पहनने दिया उस बदमाश ने!”

तब जा कर माँ को समझ आया कि उन्होंने ब्रा तो पहनी ही नहीं है - उनको याद भी नहीं रहा, “व... व्वो, उन्होंने... म्ममतलब... मैं पहनना भूल गई!”

यह बात सही नहीं थीं - माँ को सब पहनाया तो सुनील ने ही था, लेकिन वो ये बात काजल से कैसे कह दें! न जाने काजल क्या सोचे, या क्या पूछ बैठे! झूठ वो कह नहीं पाती थीं। इसीलिए उन्होंने बात छुपा कर इस बात का सारा ठीकरा अपने ऊपर डाल दिया। बड़ी परेशानी थी।

“साड़ी भी?”

“व... व्वो... मैं... उनको...” माँ कोई बहाना सोच रही थीं, लेकिन अब उनसे और बहाना बनाया नहीं जा रहा था। काजल भी यह बात अच्छे से समझती और जानती थी।

तब तक माँ की ब्लाउज के सारे बटन खुल गए। माँ के स्तन एक बार फिर से उजागर थे।

“अरे कोई बात नहीं, मेरी शोन चिरैया!” काजल उनका ब्लाउज उतारते हुए, बड़े दुलार से बोली, “तुम तो हमारी ही हो! तुम कुछ न भी पहना करो, तो भी कोई बात नहीं! ऐसे ही रहा करो घर में! बिलकुल लड़की जैसी ही तो हो, तो लड़की जैसे रहने में क्या परेशानी? मेरी पुचुकी और मिष्टी के जैसी ही नंगू नंगू रहा करो, उनके जैसी ही बच्ची बन कर उनके संग खेला कूदा करो!”

माँ के सीने पर और स्तनों पर जगह जगह पर ज़ोर से चूसे जाने के कारण लाल निशान पड़ गए थे, जो कुछ देर के बाद और गहरे हो जाने थे। उनके चूचक भी थोड़े गहरे रंग के हो चले थे। यह देख कर काजल को बड़ी ख़ुशी मिली! बढ़िया!

“तुम भी न!” माँ ने झेंपते और शर्माते हुए कहा, “ऐसे कैसे?”

“अरे, और नहीं तो क्या? मुझसे नहीं शर्माती, पुचुकी और मिष्टी से नहीं शर्माती, तो सुनील से क्या शर्माना?” काजल ने निशानों को सहलाते हुए कहा, “वैसे भी, अब तुम दोनों में कुछ छुपा हुआ थोड़े न रहना चाहिए!” काजल ने फिर से एक लच्छेदार बात बोली।

माँ उत्तर में कुछ कह पातीं, कि उसके पहले ही काजल बोली, “एक बात कहूँ दीदी... सच्ची सच्ची?”

“हाँ?”

“मेरा मन कहता है न, कि तुम्हारा और मेरा रिश्ता हमेशा के लिए रहेगा!” वो अंदर ही अंदर आह्लादित हो कर बोली, “हमेशा के लिए - अटूट!”

“हाँ काजल, मैं भी इस बात को मानती हूँ!” माँ को काजल की बात पर थोड़ी राहत आई।

“नहीं, सुन तो लो पहले पूरी बात! मुझे ऐसा लगता है न कि जैसे खून का बंधन हो हमारा तुम्हारा रिश्ता! लगता है कि जैसे, अगर... तुम मेरी दीदी होने के बजाय, अगर मेरी बेटी होती न, तो तुमको खूब लाड़ दुलार करती मैं!”

माँ ने उसकी बात पर प्रसन्नचित्त मुस्कान दी। काजल सच में कभी कभी माँ को वैसा ही लाड़ करती थी कि जैसे वो कोई छोटी सी लड़की हों। वो दुलार से माँ से तोतली बोली में भी बात करने लगती थी कभी कभी - जैसे माएँ अपने बच्चों से करती हैं। ख़ास तौर पर पिछले कुछ दिनों में।

“हा हा हा! तुम्हारी बेटी?”

“हाँ! मेरी बेटी - मेरी छोटी बेटी!” काजल बोली, वो अभी भी माँ के स्तनों पर पड़े निशानों को सहला कर मिटाने का प्रयास कर रही थी।

“हैं?” माँ बोल बैठीं, “पुचुकी से भी छोटी?”

“हाँ! और नहीं तो क्या!”

माँ मुस्कुरा दीं। पुराने समय में हमारे समाज में परिवार में बहू का ओहदा, बेटी से छोटा होता था। कई घरों में आज भी यह चलन है कि भाभी अपनी ननद (पति की बहन) के पैर छूती है - भले ही ननद अपनी भाभी से कितनी ही कम उम्र क्यों न हो! हाँ, बंगाली समाज में यह चलन नहीं है।

काजल आनंदित होते हुए कह रही थी, “और एक बात बोलूँ? मैं तो आज कल सोते हुए, जागते हुए, हर समय भगवान जी से बस एक ही प्रार्थना करती रहती हूँ... और वो यह कि जल्दी ही तुम्हारी माँग में सिंदूर सज जाए! ये तो तुम्हारा सलोना सा चेहरा है न, उस पर रौनक आ जाए!”

“हा हा हा!” माँ को शर्म भी आ गई, और हँसी भी, “का...जल!”

“क्या का...जल?” काजल ने माँ की नक़ल उतारी, “ये जो लड़की बनी घूमती हो न, बहुत हो गया! अब जल्दी से तुम माँ बन जाओ!”

“हा हा - अरे मैं कहाँ लड़की बनी घूमती रहती हूँ? और, माँ तो मैं बन चुकी कब की!” माँ हँसते हुए बोली, “अब तो मैं दादी भी बन चुकी हूँ!”

“वो वाला काउंट नहीं होगा!” काजल ने माँ के एक स्तन को दबाया, “इनको देखो! इतनी ठोस ठोस हैं कि लगता है जैसे कच्चे मालदा आम हैं दोनों! इनमें रस भरेगा, तब तो आएगा न स्वाद! भगवान करें, इनमें जल्दी से दूध उतर आए, तो थोड़ा मुलायम हो जाएँ! मुलायम और रसीले! और थोड़े बड़े भी!” वो मुस्कुरा रही थी, “और, ये तुम्हारी चूचियाँ,” उसने माँ के स्तनों पर शोभन उनके चूचकों को सहलाते हुए कहा, “अंगूर जैसी हो जाएँगी फिर! मीठी मीठी!” काजल मुस्कुरा रही थी, “भरी भरी... रसीली!”

“हे भगवान!” माँ ने थके हुए भाव से कहा।

“हा हा हा! अच्छा दीदी, ऐसा लग रहा है जैसे अपनी जान छुड़ा कर भागी हो उस बदमाश से! इतना परेशान किया क्या उसने? साड़ी तो उसने उतार दी - वो तो जाहिर है, लेकिन क्या तुमको पूरी ही नंगी कर दिया वो बदमाश?” काजल ने शरारत से कहा।

काजल को मालूम तो था ही कि सुनील ने मौका मिलते ही चौका मार दिया है। सुमन ऐसी तो नहीं है कि किसी के सामने भी नंगी हो जाएगी। और काजल ने यह बात भी नोटिस करी कि सुमन सुनील को ‘उनको’ ‘उन्होंने’ जैसे शब्दों से सम्बोधित कर रही थी। मतलब दोनों के बीच बहुत कुछ बदल चुका था।

वैसे काजल ने यह बात मज़ाक मज़ाक में कही थी, लेकिन अचानक ही माँ की आँखें भर आईं और वो सुबक सुबक कर रोने लगीं।

माँ के मन में यह विचार आया कि उनकी ऐसी अस्त-व्यस्त हालत देख कर न जाने काजल उनके बारे में क्या सोचेगी! काजल मूर्ख तो बिलकुल भी नहीं है - बल्कि उनसे कहीं अधिक होशियार है। उनकी हालत देख कर समझ तो वो गई ही होगी कि कमरे के अंदर वो सुनील के सामने नग्न थीं। कहीं काजल ऐसा न सोचने लगे कि अपनी इतनी उम्र हो जाने पर भी वो उसके जवान बेटे पर डोरे डाल रही है! उसको फँसाने की कोशिश कर रही है। यह खयाल बहुत पीड़ादायक होता है! खास तौर पर माँ जैसी स्त्री के लिए, जो पूरी तरह से निष्कपट हो!

अभी पिछले साल ही एक फिल्म आई थी, जिसमे अक्षय खन्ना का किरदार, डिम्पल कपाड़िया के किरदार से प्रेम करता था। उस प्रेम को न तो अक्षय के दोस्त ही समझ पाते हैं, और न ही उसकी माँ! और तो और, अक्षय के दोस्त, डिम्पल के लिए उसके प्यार को समझने के स्थान पर उसका मज़ाक उड़ाते हैं! कि अकेली औरत है, खेली खाई है, इसलिए अक्षय का काम निकल जायेगा। उधर अक्षय की माँ भी उसको डाँटती है, यह कह कर कि ज़रूर डिम्पल ने अपनी ‘दुःख भरी दास्तान’ सुना कर उसको फाँस लिया होगा। कहीं काजल भी ऐसा ही न सोचे!

इस कठोर विचार ने माँ के कोमल से दिल को कचोट लिया। इस बात का तो केवल ईश्वर ही साक्षी है कि माँ ने अपने जीवन पर्यन्त दूसरों को केवल दिया ही था - किसी से शायद ही कभी कुछ लिया हो। उनका पूरा जीवन अवश्य ही अभाव में बीत गया हो, लेकिन उनसे जब भी बन पड़ा, जितना भी बन पड़ा, उन्होंने दूसरों के लिए किया। उसके एवज़ में उनको कभी कुछ ख़ास मिला भी नहीं - न ही कोई उल्लेखनीय सुख और न ही कोई लाभ। लेकिन फिर भी उन्होंने अपने निजी लाभ, और निजी सुख की परवाह न करते हुए, दूसरों के लिए जो भी हो सका, करती रहीं। तो अब, उम्र के इस पड़ाव पर आ कर, वो स्वार्थी होने का, दुश्चरित्र होने का, कुल्टा होने का इल्ज़ाम अपने सर नहीं ले सकती थीं... और वो भी अपने सबसे प्यारी, सबसे करीबी सहेली से।

इस ख़याल से ही उनका दिल टूट गया, और वो रोने लगीं!

लेकिन, काजल सब कुछ जानती थी। जानती भी थी, और इसी पल का इंतज़ार भी कर रही थी!

जब से काजल को यह समझ में आया था कि सुनील को सुमन से प्रेम है - तो वो भगवान से उसको ही अपनी बहू बनाने की प्रार्थना कर रही थी। माँ जैसी लड़की उसने अपनी पूरी ज़िन्दगी में कहीं देखी ही नहीं। काजल अच्छी तरह समझती थी कि आज कल सुमन जैसी लड़कियाँ बस बिरले ही होती हैं। न उसके जैसे संस्कार, और न ही उसके जैसे गुण। कैसी बढ़िया लड़की है वो! कितना बड़ा दिल है सुमन का! काजल को आज भी वो दिन याद है जब बड़े प्रेम से सुमन ने उसको और उसके दोनों बच्चों को अपने घर में लाया था। भला कौन ब्याहता औरत, किसी अन्य औरत का - खास कर ऐसी औरत का, जो अपने पति से अलग हो कर आई हो - अपने प्रेम भरे संसार में इस तरह से स्वागत करती है? कितना डरने वाली बात होती है न? क्या पता, ये नई स्त्री उसके ही पति पर डोरे डालने लगे, और उसको ही ले उड़े? गैर स्त्री और पुरूष के बीच कैसी भी ऊँच-नीच हो सकती है! कितना आसान है ये! आदमी का क्या है - थोड़ा दुखड़ा सुनाओ, थोड़ा सेक्स दिखाओ, नाचते हुए चला आएगा नई औरत के पास! फिर कहाँ जाएगी पहली औरत?

और तो और, काजल जाति में भी तो निम्न है! उसके खुद के गाँव में उसके और उसके परिवार के साथ कैसा भेदभाव होता रहा है! यहाँ पर भी लोग कितनी बातें बनाते... और लोगों ने कितनी सारी बातें बनाई भी! लेकिन सुमन और बाबूजी ने उन बातों की ढेले भर भी परवाह नहीं की! उन दोनों से, और खासकर सुमन से तो उसको और उसके परिवार को केवल शुद्ध स्नेह, शुद्ध प्रेम ही मिला। हमेशा! उनके घर जो भी था, उन्होंने काजल, और उसके बच्चों के साथ ख़ुशी ख़ुशी बाँटा! उन तीनों को अपनी ही संतान के समान स्नेह दिया! और तो और, सुनील और लतिका की पढ़ाई लिखाई, रहने सहने, खान पान का सारा ख़र्च, सुमन और बाबूजी ने ही वहन किया था। यह सब उन्ही दोनों का पुण्य-प्रताप था कि सुनील आज कामयाबी के इस मुकाम पर खड़ा हुआ था, और लतिका इतनी गुणी संस्कारी लड़की के रूप में हमारे सामने थी!

सच कहें, तो काजल भी अपनी होने वाली बहू में माँ के ही गुण ढूंढती रहती थी। लेकिन, उसको लगने लगा था कि जैसे संसार में माँ जैसी कोई दूसरी स्त्री हुई ही न हो - उन जैसी कोई दूसरी दिखती ही नहीं! अब ऐसी गुणी, ऐसी सुन्दर, और ऐसी भाग्यशाली औरत को अगर उसका बेटा पसंद करे, तो क्या गलत है? गलत क्या - उल्टा सुनील को तो अपनी इस पसंद के लिए बधाइयाँ मिलनी चाहिए! उसको इतनी कम उम्र में भी सच्चे सोने की परख है - यह बात अद्भुत है! वरना जवानी तो अंधी होती है - ख़ास तौर पर नौजवान लड़कों की। जीवन में कुछ काम ऐसे होते हैं, जो बेहद सोच समझ कर करने चाहिए - शादी उनमें से एक है। सच्चा साथी मिलना किस्मत वाली बात है। सुनील की किस्मत बहुत अच्छी है। सुमन की भी - क्योंकि कई सारे लोगों को पूरे जीवन भर एक बार भी प्यार नहीं मिलता, कुछ को बस एक बार मिलता है, लेकिन सुमन को दूसरी बार भी मिल रहा था। और सुनील एक सक्षम पुरुष था। इसमें कोई कॉम्प्रोमाइज़ करने जैसी बात ही नहीं थी। दोनों में प्रेम का बंधन था - तो विवाह का बंधन बाँधने में कैसी झिझक?

“अरे अरे! इसमें रोने वाली क्या बात है? मैं अभी बुलाती हूँ उस बदमाश को, और ज़ोर की डाँट लगाती हूँ!”

कहते हुए काजल ने माँ को अपने सीने से लगा लिया।

माँ बेहद डर गई थीं। न जाने कितनी ही अद्भुत और अनजानी घटनाएँ इन दो तीन दिनों में उनके साथ घट गई थीं। सुनील का उनके लिए रोमांटिक प्यार की उद्घोषणा, उसका उनके साथ अधिकार भरा अंतरंग व्यवहार, माँ के खुद के भीतर का अन्तर्द्वन्द्व, काजल के साथ उनके भविष्य के रिश्ते में बदलाव - यह सभी अनेक परिवर्तन थे, और भारी परिवर्तन थे! और ऊपर से स्वयं पर स्वार्थी और दुश्चरित्र होने का संभावित इलज़ाम! वो पहले ही भावनात्मक बोझ के तले दबी हुई थीं, ऊपर से अपने चरित्र पर होने वाले हमले की सम्भावना से और भी अधिक डर गईं। और उनकी मजबूरी भी देखिए - वो उसके ही सीने से लगी हुई थीं, जिससे उनको डाँट खाने का, जिसकी नज़र में गिरने का उनको सबसे अधिक डर था! लेकिन वो बेचारी करती भी तो क्या! काजल ही तो उनका सहारा थी। मैं तो ज्यादातर समय बाहर ही रहता। काजल माँ का ही क्या, मेरा भी तो सहारा थी!

“सुनील!” काजल ने आवाज़ लगाई।

“हाँ अम्मा!”

“इधर आ!”


**


माँ के भाग जाने के बाद सुनील ने अपना निक्कर पहना और बिस्तर पर ही पड़ा हुआ, अपने और सुमन के भविष्य के बारे में सोचने लगा। वो अभी तक सुमन के साथ बिताई हुई सभी घटनाओं का विश्लेषण कर रहा था, और सोच रहा था कि कहीं उससे जाने अनजाने कोई गलती तो नहीं हो गई!

पिछले सात सालों से सुमन के लिए उसके प्रेम का पौधा पोषित होता हुआ अब एक फलदार वृक्ष बन गया था। सुमन के गुण, उसका भोलापन, उसकी सादगी, उसकी सुंदरता, सब कुछ ऐसी थी कि वो खुद को रोक ही नहीं सका - उसके मन में बस यही बात बार बार आ रही थी कि काश सुमन उसकी हरकतों में निहित उसके प्रेम को देख सके, समझ सके! उसको ऐसा न लगे कि उसके मन में केवल वासना है, लालसा है! काश कि वो समझ सके कि वो वाकई उसके साथ अपना संसार बसाना चाहता है। काश कि वो यह बात समझ सके कि वो सच में गृहस्थ बनना चाहता है, और सुमन उसकी गृहस्थी - उसके संसार - उसके जीवन के केंद्र में है!

उसने अपने हिसाब से अपने आप को एक ‘लायक वर’ के रूप में पेश किया था। वो समझता था कि अगर सुमन चाहे, तो उसको और कई अच्छे वर मिल जाएँगे - वो है ही ऐसी! लेकिन काश, वो उसका प्यार देख सके, समझ सके!

आज उन दोनों के बीच इतना कुछ घट गया था कि उसको अब संदेह की कोई गुंजाईश नहीं लग रही थी। अवश्य ही सुमन ने भी उसको अपना मान लिया है, नहीं तो वो ऐसी तो नहीं कि किसी को भी खुद को हाथ लगाने दे। लेकिन हो सकता है कि वो उसकी हरकतों को केवल बर्दाश्त कर रही हो - इस कारण से कि वो काजल का बेटा है। लेकिन काजल का बेटा होना कोई ऐसी क्वालिफिकेशन तो नहीं है कि वो सुमन को ऐसे अंतरंग तरीके से देख सके। और तो और, उसने सुमन का योनि-रस पान भी तो कर लिया! यह काम तो केवल कोई प्रेमी, कोई पति ही कर सकता है न! और... और उसने भी तो ‘आई लव यू’ कहा ही है न!

वो इसी उधेड़बुन में उलझा हुआ था कि उसको अपनी अम्मा की पुकार सुनाई दी,

“सुनील!”

“हाँ अम्मा!” उसने तत्काल कहा।

“इधर आ!”

वो बिस्तर से उठ खड़ा हुआ।

‘क्या हो गया? कहीं सुमन बुरा तो नहीं मान गई? कहीं सुमन ने कुछ कह तो नहीं दिया अम्मा को! कहीं अम्मा गुस्सा तो नहीं हो गई!’

वो कुछ सोच ही रहा था कि काजल की दूसरी पुकार सुनते ही उसने अविलम्ब बाहर जाने लगा।


**


Kala Nag
 
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अंतराल - पहला प्यार - Update #22


काजल के सीने में मुँह छुपाए, माँ ने सुबकते हुए ही ‘न’ में सर हिलाया, कि सुनील को यहाँ न बुलाओ। लेकिन बोल कर कुछ कह नहीं सकी। मेरी बेचारी माँ ऐसे रोते हुए एक छोटी सी बच्ची के जैसी ही प्यारी सी, भोली सी लग रही थी! कोई कैसे न प्यार करे उनको? काजल का दिल माँ के लिए ममता भरे प्यार से भर आया - माँ बहुत कोमल हृदय वाली महिला थीं, यह बात काजल अच्छी तरह जानती थी। वो उनके हर एक गुण से वाकिफ़ थी। उसको यह जान कर बहुत ख़ुशी हो रही थी कि उसके बेटे ने सुमन को अपनी पत्नी के रूप में चुना। काजल यह बात भी समझ रही थी कि अब बहुत अधिक संभावना है कि सुमन उसकी बहू बनना स्वीकार कर ले! यह सारा बदलाव भावनात्मक रूप से काफी भार डालने वाला था, और डरावना भी! तो ऐसे में सुमन को प्रेम भरे सहारे की आवश्यकता थी, एक सहेली की आवश्यकता थी। तो काजल थी न - अपनी बहू को उसकी माँ का प्यार, उसकी माँ का सहारा देने के लिए!

“सुनील?” काजल ने एक बार फिर से पुकारा।

“हाँ अम्मा? आया!” सुनील की आवाज़ आई।

जैसे ही वो दोनों के समीप आया, उसने कहा, “हाँ अम्मा?”

माँ को काजल के सीने से लगे हुए और सुबकते हुए देख कर सुनील भी थोड़ा सकपका गया।

“क्या बदतमीज़ी कर रहे थे तुम इसके साथ?” काजल ने उसको डंपटते हुए कहा, “इतनी प्यारी सी लड़की को ऐसे सताते हैं क्या?”

काजल ने बिना किसी सन्दर्भ के सुनील को ‘बनावटी’ डाँट लगानी शुरू कर दी। वो जान बूझ कर सुनील के सामने माँ को न तो ‘दीदी’ कह रही थी, न ‘सुमन’, और न ही ‘बहू’!

“मैंने क्या किया अम्मा?”

“क्या किया? एक तो इस बेचारी बच्ची को पूरी नंगी कर दिया! और फिर उसके दूधू खाने लगा! देख - बेचारी को कैसी कैसी चोटें लगाईं हैं,” कह कर उसने माँ के एक स्तन पर गहरे पड़ रहे निशान को सहलाया।

“लेकिन अम्मा! मैंने जानबूझ कर नहीं किया। न जाने कैसे...” सुनील अपनी सफ़ाई में कुछ कह पाता कि काजल ने उसको बीच में ही डंपट कर टोक दिया,

“चुप कर! जानबूझ कर नहीं किया! नालायक कहीं का! और ये... ये जो चूस चूस कर इसकी चूचियों को लाल कर दिया है, उसका क्या?”

“लेकिन अम्मा!”

“लेकिन? इसकी साड़ी उतार दी!” काजल अनवरत ‘बनावटी’ गुस्से में सुनील को डाँट रही थी, “ये नंगी बैठेगी क्या दिन भर? जा - और जा कर नए साफ़ सुथरे कपड़े ले कर आ इसके लिए!”

सुनील चुप हो गया, और उठ कर जाने को हुआ तो काजल ने टोकते हुए कहा, “लेकिन वो सब करने से पहले माफ़ी मांगो इससे!”

“माफ़ी?” सुनील ने हैरान होते हुए कहा, “मेरी क्या गलती है अम्मा! क्या किया है मैंने?”

“इतना सब बता दिया फिर भी पूछ रहा है कि क्या गलती है? अरे सबसे बड़ी गलती तो ये है कि अब से अगर ये कभी भी रोई - कभी भी - तो बस तेरी ही गलती है! समझा? चल माफ़ी माँग ब... इससे ! इतनी इतनी प्यारी सी लड़की के साथ बदतमीज़ी करते हो, और फिर गलती पूछते हो!”

सुनील ने हैरानी से अपनी अम्मा को, और फिर माँ को देखा; वो अभी भी सुबक रहीं थी और उनके गालों पर आँसू ढुलक रहे थे। उसको लगा कि शायद माँ उसकी हरकतों से दुःखी हो कर रो रही थीं! उसको भी यह देख कर बहुत दुःख हुआ। अपनी रूठी प्रेमिका को मनाना तो उसका ही काम था न?

लिहाज़ा, सुनील माँ के पास आया और फिर उनके सामने एक घुटने पर बैठ कर अपने कान पकड़ कर बोला,

“सुनिए, मुझे माफ़ कर दीजिए! जाने या अनजाने अगर मैंने कोई गलती की हो!”

माँ काजल के सीने में चेहरा छुपाए अभी भी सुबक रही थी, लेकिन सुनील को देख भी रही थीं। उधर काजल ने भी ध्यान दिया कि सुनील के सम्बोधन का तरीका बदल गया था। कोई ‘माँ जी’ ‘वा जी’ नहीं! बढ़िया! बढ़िया!

“कोई गलती हुई है क्या मुझसे?”

माँ ने काजल के सीने में ही सर छुपाए और सुनील की तरफ देखते, और सुबकते हुए ‘न’ में सर हिलाया।

“अम्मा, देखो न! मैं ‘इनको’ जान बूझ कर नहीं सता सकता!”

“ठीक है! लेकिन चल, पैर छू कर माफ़ी माँग!” काजल ने कहा।

सुनील तुरंत माँ के पैरों पर झुकने लगा। सुमन उससे बड़ी थीं - तो उनके पैर छूने में कैसा संकोच? लेकिन माँ ने ही उसको रोक दिया। एक कदम पीछे हटते हुए बोलीं, “नहीं नहीं आप...” और रुक गईं।

काजल को जो आधा प्रतिशत संदेह बाकी था, वो भी ख़तम हो गया।

उधर सुनील माँ को देख कर मुस्कुराया, “मैं आपको कभी नहीं सताऊँगा - और आज के बाद कभी भी आपको रोने का मौका नहीं दूँगा। मेरे कारण तो कत्तई नहीं!” और फिर चेहरे पर दृढ़ भाव लाते हुए बोला, “और अगर किसी ने आपको रुलाया न, तो सौगंध है माँ कि - मैं उसको रुलाए बिना छोड़ूँगा नहीं!”

जिस तरह से सुनील ने यह बात कही थी, काजल का दिल गर्व से भर आया। हाँ, ऐसे ही अपनी पत्नी की रक्षा करनी चाहिए एक पति को। अब वो पूरी तरह से आश्वस्त थी सुनील और सुमन को ले कर।

सुनील मुस्कुराया और फिर अचानक ही एक गीत गुनगुनाने लगा,

हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे...

हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे, मरने वाला कोई
मरने वाला कोई ज़िन्दगी चाहता हो जैसे

हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे…

माँ का दिल धक् से रह गया! सुनील अपनी अम्मा के सामने ही उनसे अपने प्रेम का इज़हार कर रहा था!

माँ जिस हालत में खड़ी थीं, उनको उस बात से शर्म नहीं आ रही थीं। वो बात जैसे उनके लिए बेमानी थी। शर्म उनको इस बात से आ रही थी कि सुनील ऐसे खुल्लम-खुल्ला, अपनी अम्मा के सामने उनसे अपने प्रेम का इज़हार कर रहा था। उधर अपनी ड्रीम-गर्ल को ऐसे अपनी अम्मा के आलिंगन में बँधा देख कर सुनील अपनी किस्मत पर रश्क़ करने लगा!

सुनील ने बड़ी संजीदगी से माँ का एक हाथ पकड़ लिया। उसको मालूम था कि उसकी सुमन के बिना अब उसके जीवन का कोई वजूद नहीं है। अब उसकी ज़िन्दगी, उसकी सुमन से ही है! और वो यह बात माँ को बताना भी चाहता था।

ज़िंदगी बिन तुम्हारे अधूरी

ज़िंदगी बिन तुम्हारे अधूरी, तुमको पा लूँ अगर
तुमको पा लूँ अगर, हर कमी मेरी हो जाये पूरी

ज़िंदगी बिन तुम्हारे अधूरी…

माँ का हाथ पकड़े पकड़े ही वो उठ कर खड़ा हो गया और माँ को अपनी तरफ़ बुलाया। काजल ने उनको अपने आलिंगन से मुक्त कर दिया, और सुनील ने उनको अपने आलिंगन में भर लिया।

काजल इतने समय से सुनील को ‘प्रोपोज़ कर ले’ ‘प्रोपोज़ कर ले’ वाला राग सुना रही थी, और आज, उसके सामने ही उसका बेटा उसकी होने वाली बहू को एक रोमांटिक गाना गा कर प्रपोज़ कर रहा था। उसको इतनी प्रसन्नता बहुत समय में नहीं मिली थी। सुनील का गाना जारी रहा,

ले चलेंगे तुम्हें हम वहाँ पर

ले चलेंगे तुम्हें हम वहाँ पर, तन्हाई सनम
तन्हाई सनम, शहनाई बन जाये जहाँ पर

हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे…

गाना ख़तम कर सुनील ने फिर से माँ के माथे को चूम लिया।

काजल बड़ी मुश्किल से खुद पर नियंत्रण रख पा रही थी। उसका मन हो रहा था कि वो कूद कूद कर, चिल्ला चिल्ला कर अपनी ख़ुशी का इज़हार करे। लेकिन बहुत ही मुश्किल से उसने अपने आपको ज़ब्त किया, अपनी भावनाओं पर लगाम कसा। वो अभी उन दोनों को ये नहीं बताना चाहती थी, कि वो उन दोनों की प्रेम कहानी के बारे में जानती भी है, और समझती भी है, और उन दोनों के प्रेम को उसका आशीर्वाद भी प्राप्त है।

‘दोनों साथ में कितने सुन्दर लगते हैं!’
‘कितनी सुन्दर जोड़ी है!’
‘मेरा बेटा और मेरी बहू!’
‘मेरा बेटा और मेरी बहू!’

बस यही सब सोच सोच कर उसका दिल बल्लियों उछल रहा था, और वो निहाल हुई जा रही थी। लेकिन बनावटी गुस्सा तो दिखाना ही था। और अगर बहू अपनी सास की प्रीतिपात्र हो, तो सास का बनावटी गुस्सा उसके अपने बेटे को ही झेलना पड़ेगा।

“मैंने माफ़ी माँगने के लिए कहा और साहब को गाने गाने हैं!” काजल ने बनावटी झिड़की लगाई, लेकिन उसका स्वर बड़ा आनंदित था, “बस, नाटक करने को बोल दो इनको! दिन भर चलता रहेगा वो नाटक! चल भग यहाँ से! जा कर इसके लिए कपड़े ला - और कितनी देर इसको ऐसे नंगी नंगी रखूँ? और हाँ, वापस आते आते बादाम तेल भी लेते आना।”

सुनील जाने लगा, तो काजल ने पीछे से चिल्ला कर आखिरी हिदायद दी, “और हाँ - एक ब्रा और पैंटी भी लेते आना साथ में!”

स्त्रियों के लिए यह सब इतनी अंतरंग वस्तुएँ होती हैं, कि पति या प्रेमी के अलावा किसी अन्य पुरुष को उनके बारे में ज्ञान नहीं होने देतीं। यहाँ काजल अपने बेटे को ही कह रही थी कि माँ के लिए उनके अधोवस्त्र लेता आए - मतलब साफ़ था! सुनील को माँ के इन वस्त्रों के बारे में भी आज मालूम होने वाला था।

सुनील के जाने के बाद, काजल ने बड़े प्रेम से माँ के दोनों गालों को चूम लिया, माँ के आँसू पोंछे और बहुत प्रेम से दुलारते हुए कहा, “ओ मेरी शोन चिरैया, बस बस! अब बस! अब और नहीं रोना! मैं हूँ न तुम्हारे साथ!” काजल ने माँ को ठीक किसी बच्चे की तरह दुलार करते हुए कहा, “अब तुम मेरी अच्छी सी, प्यारी सी, नन्ही सी बच्ची बन जाओ! ठीक है?”

काजल ने पहली बार माँ को ‘अपनी बच्ची’ बनने को कहा था। और उस बात पर माँ ने बड़ी सहजता से, बड़े भोलेपन से ‘हाँ’ में सर हिलाया। माँ को ऐसा करते हुए देख कर काजल का दिल पसीज गया और उसने माँ के गालों को अपने हाथों में बड़े प्रेम से ले कर, उनके माथे पर, गालों पर, और नाक के अग्र-भाग पर स्नेही चुम्बन दे दिया... और उनको अपने आलिंगन में भर लिया। ऐसे स्नेह भरे आश्वासन से माँ का दिल भी हल्का होने लगा। उनको थोड़ा धैर्य बँधा।

कुछ देर बाद सुनील हाथों में बादाम तेल, और माँ की साड़ी ब्लाउज, और उनके अधोवस्त्र ले कर वापस आ गया। काजल बड़े बेपरवाह तरीके से व्यवहार कर रही थी - जैसे सुनील के सामने माँ के साथ यह सब करना कोई ऐसी वैसी बात ही न हो! उसने सबसे पहले तो माँ के स्तनों पर बादाम तेल लगाया, जिससे सुनील के दिए लव-बाइट्स के निशान बहुत गहरे न हो जाएँ, और साथ में सुनील को जैसे समझा भी रही हो,

“देखो बेटा! कितनी कोमल सी स्किन है इसकी, और तुमने इतनी ज़ोर से चूसा है! ऐसे करने से तो चोट लगनी ही है, और दाग भी पड़ जाने हैं!” काजल ने लव-बाइट्स के निशानों पर बादाम तेल सहलाते हुए कहा, “आराम से चूसो... आराम से चूमो! कहीं भागी थोड़े न जा रही है ये! और इसकी चूचियाँ भी न... अभी सूखी सूखी हैं। ज़ोर से चूसोगे तो डैमेज हो जाएगा इनको। जब इनमें दूध आने लगेगा, तब तसल्ली से खूब पीना। तब तक आराम से! ठीक है?”

काजल की इस द्विअर्थी बात का मर्म न तो सुनील ही समझ पाया और न ही माँ!

“जी अम्मा!”

“और इसकी बूनियों पर बादाम तेल लगा दिया करो! स्किन बढ़िया हेल्दी रहेगी, और ग्लो करेगी!”

“जी अम्मा!”

काजल ने माँ की पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया, तो वो सरक कर गिरने लगा। माँ को लाज आ गई, और वो उसको सम्हालने लगीं।

“ये देखो - अभी दस मिनट पहले तुमको नंगी किए हुए था, तब शर्म नहीं आ रही थी! और मेरे सामने शर्म आ रही है!” काजल ने इस बार माँ की टांग खींची, “पहली बार देख रही हूँ क्या तुमको नंगी नंगी?”

माँ बेचारी क्या करतीं - उन्होंने खुद को काजल के रहमोकरम पर छोड़ दिया।

“इत्ती शुन्दर शुन्दर है मेरी शोन चिरैया,” काजल फिर से तुतलाते हुए, दुलार से बोली, “तुझको तो प्यार कर कर के बिगाड़ दूँगी मैं!”

अपनी अम्मा को ऐसे दुलार से बात करते देख सुनील मुस्कुराया, ‘लगता है कि अम्मा को पटाना आसान रहेगा! बस, भैया का ही देखना है!’

“अरे, तू क्या देख रहा है? मन नहीं भरा?” काजल ने सुनील को प्यार से झिड़का, “माना कि तूने इसको नंगी देखा है, लेकिन अभी तू पलट जा! इसको पैंटी पहना दूँ!”

सुनील अपनी अम्मा की आज्ञा मान कर पलट गया। काजल ने माँ को चड्ढी पहनाई। फिर नई पेटीकोट और साड़ी पहनाई। पता नहीं माँ ने ध्यान दिया भी या नहीं, लेकिन काजल ने सबसे अंत में उनको उनकी ब्रा और ब्लाउज। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान सुनील वहीं पर मौजूद रहा - वो अलग बात है कि शुरू के कुछ पल पलटे रहने के बाद, वो वापस माँ को निहारने उनकी ओर सम्मुख हो गया। उसको शक भी नहीं हुआ कि उसकी अम्मा, उसकी होने वाली बीवी को अपनी बेटी जैसा ही लाड़ दे रही थीं। सुनील जान बूझ कर एक रंग बिरंगी, जॉर्जेट की हल्की वज़न वाली साड़ी लाया था। उस साड़ी को पहनने के बाद माँ कितनी सुन्दर लग रही थीं, उनको यह देखना चाहिए था।

“एक बात कहूँ, दीदी?” काजल ने फिर से औपचारिक होते हुए कहा, “अब से न... फ़ीकी फ़ीकी साड़ियाँ मत पहना करो। ऐसी ही रंग बिरंगी, सुन्दर सुन्दर साड़ियाँ पहना करो! देखो न, कितनी सुन्दर सी लग रही हो! बिलकुल गुड़िया जैसी! प्यारी प्यारी!” काजल ने नज़र भर कर माँ को देखा, फिर सुनील की तरफ़ देख कर, “खूब सुन्दर लग रही है न, सुनील!”

“हाँ अम्मा! बहुत सुन्दर!” सुनील ने कहा।

उसकी आँखों से माँ के लिए जो प्रेम बरस रहा था, वो काजल से छुप नहीं सकता था। वो आज कितनी खुश थी, उसको शब्दों में बयान कर पाना संभव नहीं है! माँ ने धीरे से पलकें उठा कर सुनील की तरफ़ देखा। सुनील ने काजल की आँखों से चुरा कर, होंठों से ही बना कर, हवा में माँ को एक चुम्मा भेजा। माँ ने शरमा कर वापस अपनी नज़रें नीची कर लीं।

“हाय! कहीं मेरी ही नज़र न लग जाए,” काजल ने कहा, और अपनी आँखों से थोड़ा काजल पोंछ कर उसने माँ के माथे के कोने पर लगा दिया, “खूब सुन्दर! तुम ऐसी ही रंग बिरंगी साड़ियाँ पहना करो! है न सुनील?”

“हाँ हाँ, अम्मा! बिलकुल! लेकिन अम्मा, केवल साड़ी ही क्यों पहनें... शलवार कुरता भी पहना करें!” सुनील ने सुझाया।

“अरे हाँ हाँ! क्यों नहीं! बिलकुल पहने!” काजल ने छूटते ही कहा, “और तू केवल बातें ही बनाया कर! क्यों नहीं कुछ सुन्दर सुन्दर कपड़े ले आता इसके लिए?” काजल ने सुनील को उलाहना दी, “कुछ लाओगे, तभी तो पहनेगी! साड़ी, शलवार कुरता, जीन्स टी-शर्ट, स्कर्ट ब्लाउज, जो पहनाओगे, वो पहनेगी! क्यों नहीं पहनेगी? है न दीदी?”

माँ तो इस समय ऐसी थी कि कुछ कहने की अवस्था में नहीं थी। डैड के पहले हार्ट-अटैक के बाद से पहली बार उन्होंने ऐसी रंगीन साड़ी पहनी थी। उनके मन में जो एहसास इस समय था, उसको शब्दों में बयान करना बहुत ही अधिक मुश्किल है। बस, समझ जाइए।

“अम्मा,” सुनील ने शरारत से कहा, “वो दूसरी अलमारी में कुछ निक्कर और टी-शर्ट्स रखे हुए हैं!”

“ओह, हाँ - देवयानी दीदी की होंगे!” काजल ने तथ्यात्मक तरीके से कहा, और फिर अचानक ही बोली, “ओह, तेरा मतलब इसको नेकर और टी-शर्ट पहना दूँ, यह बोल रहा है?”

सुनील ने दाँत निपोरते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“अरे तो ले आ! इसमें इतना की सोच रहा है?”

अपनी अम्मा की सहमति सुन कर सुनील की बाँछे खिल गईं - वो लपक कर वापस कमरे की तरफ़ भागा।

काजल और सुनील ऐसे बर्ताव कर रहे थे कि जैसे माँ को क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं - उस निर्णय में माँ की रज़ामंदी का कोई मोल ही नहीं है। काजल माँ के साथ वैसे ही बर्ताव कर रही थी कि जैसे वो सच में उसकी बच्ची हों। माताएँ अपने बच्चों को अपने हिसाब से ही तो कपड़े लत्ते पहनाती हैं। उसमें बच्चों की रज़ामंदी थोड़े न पूछी जाती है। देखना बस यह होता है कि बच्चे उन कपड़ों में आराम से हैं, और सुन्दर लग रहे हैं या नहीं!

माँ मुँह से तो कुछ न बोल सकीं लेकिन ‘न’ में सर हिलाने लगीं।

“अरे क्या हो गया? अभी तो मैं समझा रही थी कि तुम थोड़ा स्वच्छंद तरीके से रहा करो अब!”

“लेकिन काजल...”

“कोई लेकिन वेकिन नहीं! अब से तुम मेरी बात सुना करो!” काजल ने बड़े अधिकार से कहा, “मेरा बस चले, तो तुमको नंगी रखा करूँ! लेकिन फिलहाल यहाँ से शुरू करते हैं!”

माँ चुप हो गईं - सुनील को मन ही मन अपना पति स्वीकारने के साथ साथ ही अब काजल भी उनकी माँ वाले स्थान पर आ गई थी। कोई संस्कारी बहू अपनी सासू माँ से बहस नहीं करती, और उसकी बातें मानती है। वैसे भी काजल की बातें नाजायज़ नहीं थीं। वो बस इतना ही चाहती थी कि माँ सुन्दर सी दिखें! इस बात का क्या विरोध किया जाए और क्यों विरोध किया जाए?

माँ ने नोटिस तो किया कि काजल अचानक ही उनसे बड़े अधिकार वाले अंदाज़ में बातें करने लग गई थी, लेकिन क्यों, वो उनको समझ नहीं आया। वैसे भी उनको काजल का यह बदला हुआ व्यवहार बुरा नहीं लग रहा था, बल्कि अच्छा लग रहा था। क्योंकि काजल की बातों में उनके लिए स्नेह और लाड़ साफ़ साफ़ झलक रहा था।

“मेरे सब बच्चे हल्के फ़ुल्के कपड़े पहनते हैं! तुम भी वैसे ही रहो!”

“लेकिन मैं बच्ची थोड़े ही न हूँ!” माँ ने सकुचाते शरमाते कहा।

“हो बच्ची! मेरे लिए तो हो!” काजल बोली, और माँ की साड़ी फिर से उतारने लगी, “और हमेशा रहोगी!”

नई साड़ी थी, इसलिए उतारने के बाद वो उसको तह कर के रखने लगी। इतने में सुनील एक चमकदार नारंगी रंग की टीशर्ट और ग्रे रंग की निक्कर लेता आया। अपनी पसंद से उसको जो समझ आया वो उठा लाया था। बस, वो माँ के शरीर पर सफ़ेद, या कोई भी फ़ीका रंग नहीं देखना चाहता था।

“अरे वाह! ये तो बड़े सुन्दर कपड़े हैं!” काजल ने उनको ले कर कहा, और फिर कपड़ों को सूँघा।

जब कपड़े एक लम्बे अर्से तक इस्तेमाल नहीं होते, तो उनमें से एक अलग महक आने लगती है। अक्सर वो महक खराब लगती है। लेकिन ढंग से रखने के कारण, इन कपड़ों से गंध नहीं आ रही थी। यह वो कपड़े थे, जो देवयानी ने ऑस्ट्रेलिया की यात्रा के लिए खरीदे थे। गर्मी के अनुकूल, बीच पर पहनने के लिए। पतले कॉटन की टी-शर्ट, और लिनन के शॉर्ट्स। आरामदायक, हल्के और सुन्दर दिखने वाले।

काजल ने इन कपड़ों को वापस सुनील के हाथों में दे दिया, और माँ की ब्लाउज के बटन फिर से खोलने लग गई। जब वो उनकी ब्रा का हुक खोल रही थी तो माँ सकुचाईं,

“इसको... तो रहने दो?” उन्होंने फुसफुसाते हुए कहा।

“अरे, इतनी गर्मी है! ऐसे ही ठीक है!” काजल भी फुसफुसाते हुए बोली।

माँ उसकी बात का विरोध नहीं कर सकीं, और कुछ ही पलों में वो फिर से केवल अपने पेटीकोट में खड़ी थीं।

इस बार काजल माँ के पेटीकोट का नाड़ा खोलते हुए सुनील से बोली, “तू उस तरफ़ देख!”

“लेकिन अम्मा?”

“हाँ, पता है - तूने इसको नंगी देखा है। लेकिन, अभी जो कह रही हूँ, वो कर!”

काजल की बात पर माँ शर्म से लाल हो गईं! आज का पूरा दिन उनके लिए असंभव जैसा था। उधर अपनी अम्मा का आदेश पाते ही सुनील पलट गया। हाँ वो उनको नग्न देखना चाहता था, लेकिन वो माँ का हर अंग वैसे भी देख ही चुका था। बस अपनी अम्मा के सामने अच्छा बच्चा बना रहना आवश्यक था उसके लिए। कुछ ही पलों में माँ पूरी तरह से नग्न हो कर काजल के सामने खड़ी थीं।

“ऐसे नोग्नो नोग्नो तुमी खूब शुन्दोर देखाचे!” काजल ने माँ से कहा।

सुनील ने मज़ाक करते हुए कहा, “अम्मा - पलट जाऊँ?”

“अभी नहीं!” काजल बोली, और माँ को कपड़े पहनाने लगी।

कुछ देर के बाद काजल बोली, “कैसी लग रही है, बता तो ज़रा?”

सुनील ने पलट कर माँ को देखा।

उसके होश फ़ाख़्ता हो गए। उनकी केवल एक चौथाई जाँघें ही ढँकी हुई थीं निक्कर से, इसलिए उनके दोनों सुकुमार, सुन्दर सी टाँगें अब शोभायमान थीं, और पूरी तरह से प्रदर्शित थीं। और उन पर वो नारंगी टी-शर्ट ऐसी शोभन हो रही थी कि क्या कहें! टी-शर्ट लम्बी नहीं थी - बस ऐसी थी कि माँ की नाभि से बस थोड़ा ही ऊपर तक ढँक रही थी। तो नाभि से थोड़ा ऊपर और काफी नीचे का हिस्सा उजागर था। कहने को सामान्य सी, लेकिन बेहद सेक्सी ड्रेस! आज उनके साथ इतना सब हो गया था, कि उनके दोनों चूचक भी आंशिक उत्तेजना से स्तंभित थे, और टी-शर्ट के ऊपर से उनका उभार साफ़ दिख रहा था। बिना ब्रा के भी उनके स्तन उन्नत थे - गुरुत्व का प्रभाव उन पर लगभग नगण्य था। साँसों के साथ ही ताल बैठा कर दोनों ऊपर नीचे हो रहे थे। कुल मिला कर उस ड्रेस में माँ का भोला सौंदर्य ऐसा लग रहा था जैसे वो उर्वशी या मेनका के जैसी ही कोई अप्सरा हों!

सुनील से कुछ कहते नहीं बना।

काजल ने सुनील की प्रतिक्रिया देखी तो मन ही मन, और ऊपर भी मुस्कुरा उठी।

‘हाँ, ऐसी ही सुंदरता, और ऐसा ही आकर्षण होना चाहिए बहू में! इसको देखो तो ज़रा - बोलती ही बंद हो गई है!’ मन ही मन उसको अपनी होने वाली बहू पर गर्व हो आया।

“आह!” काजल ने माँ को अपने आलिंगन में भर कर उनके माथे को चूम लिया, “नज़र न लग जाए कहीं!”

माँ नर्वस हो कर मुस्कुराईं और धीमे से बोलीं, “नहीं लगेगी! जो प्यार करते हैं उनकी नज़र नहीं लगती!”

“सुना?” काजल सुनील से बोली, “अपना मुँह बंद कर ले अब - नहीं तो मक्खी घुस जाएगी अंदर!”

कोई और समय होता तो माँ खिलखिला कर हँसने लगतीं, लेकिन उन्होंने जैसे तैसे अपनी हँसी पर नियंत्रण किया और केवल मुस्कुरा दीं। ऐसी ही हलकी फुल्की बातें करते हुए माँ थोड़ी संयत हुईं। माँ के मन में यह विचार तो अवश्य आ रहे थे कि काजल की बातें सामान्य नहीं थीं - लेकिन वो बातें अलग कैसे थीं, वो उनको ठीक से समझ नहीं आ रहा था। उन पर सुनील का पूर्ण प्रभाव आ चुका था, इसलिए काजल की बातें अप्रासंगिक नहीं लग रही थीं। और इसी कारण से उनमें असामान्यता देखना माँ के लिए मुश्किल हो रहा था। उधर सुनील को अपनी अम्मा से उलहनाएँ सुनने की आदत थी - वो उसकी ज्यादातर बातें एक कान से सुनता और दूसरे से निकाल देता। लेकिन अगर वो थोड़ा ठहर कर काजल की बातें सुनता और ध्यान से सोचता, तो समझ जाता कि काजल को उसके और माँ के बीच पक रही खिचड़ी सब समझ में आ रही है! कुछ देर बाद सुनील वहाँ से चला गया - आभा और लतिका को वापस लाने।
 

avsji

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Supreme
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अंतराल - पहला प्यार - Update #23


उसके बाद माँ पूरा समय काजल के ही निकट रहीं, लेकिन फिर भी वो उससे कुछ कह न सकीं। काजल समझ सकती थी, कि माँ उसको इन सारे घटनाक्रम के बारे में बताना चाहती हैं, लेकिन हिचक और शर्म के कारण कुछ कह नहीं पा रही हैं। कहे भी तो कैसे - वो बेचारी इसी उधेड़बुन में होगी कि कैसे वो अपनी सहेली से यह कह दे कि वो उसके बेटे से शादी करना चाहती है! यह बात कहना मुश्किल तो है ही बहुत! खैर, जब सुविधा हो, जब ठीक लगे, तब बताए। अपनी सबसे करीबी सहेली से ये राज़ वो कब तक छुपाएगी? वैसे भी, काजल तो मन ही मन पहले से ही माँ को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर चुकी थी, और वो इस बात से बहुत खुश भी थी। अब तो सब कुछ केवल औपचारिकता मात्र थी!

मन ही मन वो अब इस घर में होने वाले विवाह महोत्सव के बारे में सोचने लगी और उसकी रूपरेखा बनाने लगी!


**


लतिका स्कूल से आते ही माँ की गोद में बैठ गई - अपनी अम्मा से अधिक वो अपनी ‘मम्मा’ की दीवानी थी। दस साल की बच्ची आकार में छोटी नहीं रहती - लेकिन माँ उसको जब देखो तब अपनी गोद में ही लिए रहतीं! वैसा ही हाल आभा का था - वो या तो सुनील की गोद में सवारी करती, या फिर काजल की। अपनी दादी के पास वो तब आती, जब उसको कोई ख़ास वस्तु की आवश्यकता होती - जो अन्य लोग न दे रहे हों। काजल हँस कर अक्सर कहती कि इस घर में दो बच्चे हैं, और उनके अपने अपने पसंद के घोड़े हैं! वैसे सुनील अक्सर ही दोनों बच्चों को अपनी एक एक बाँह में उठा कर उनको दुलार करता था। वो आभा और लतिका पर अपनी जान छिड़कता था - हम सभी को ऐसा लगता था कि जैसे वो दोनों बच्चों पर अपना सब कुछ न्यौछावर कर सकता था!

वाओ मम्मा! आप कितनी क्यूट लग रही हो टी-शर्ट और निक्कर में!” लतिका बोली, “है न मिष्टी?”

“हाँ दीदी! दादी इस लुकिंग वैरी क्यूट!” आभा अपनी मीठी मीठी, तोतली आवाज़ में बोली। लतिका की पूँछ को लतिका की हर बार में हाँ में हाँ मिलाना ही होता था।

खाने की टेबल पर रोज़ के जैसा ही खुशनुमा माहौल था!

लतिका माँ की गोद में बैठी थी, और आभा सुनील की! माँ बड़े स्नेह से लतिका को अपने हाथों से खाना खिला रही थीं, और लतिका के साथ खिलखिला कर हँस रही थीं, और उसके साथ खेल भी रही थीं। और सुनील उनको अपनी छोटी बहन पर ऐसे ममता बरसाते हुए देख कर मुस्कुरा रहा था। उसका दिल इस दृश्य को देख कर गदगद हो गया।

माँ अपनी ‘ननद’ को अपनी गोदी में बैठाए हुए खाना खिलाती हुई कभी कभी, चोरी छुपे, अपने ‘होने वाले पति’ की तरफ़ देख लेतीं, तो ‘उनको’ अपनी ही तरफ़ देखता हुआ पातीं। ‘उनकी’ आँखों में अपने लिए प्रेम देख कर उनका दिल गर्म हो गया। सच में - भगवान की असीम अनुकम्पा है उन पर! ऐसे कितने ही लोगों को सेकंड चांस मिलता है अपनी पूरी ज़िन्दगी में? लेकिन उनको मिला है, और वो इसी बात से धन्य हो गईं थीं! कुछ तो अच्छे काम किए होंगे उन्होंने!

लतिका अपने दादा और अपनी बोऊ दी को चोरी छुपे एक दूसरे को देखता हुए देख कर और भी खुश होती। उन दोनों को पास लाने में, मिलाने में, उसकी भी अहम भूमिका थी। और इस बात कर उसको भान था। सच में - मम्मा जैसी बोऊ दी मिलना कितना अच्छा होगा न! वो और मिष्टी खूब मज़े करेंगे इनकी शादी में। और जब इनको बेबी होगा, तब दूध पिलाने के लिए दो दो मम्मियाँ हो जाएँगी! वाओ! यह सोचते सोचते उसकी आँखें बोऊ दी के सीने पर पड़ीं - उनके दोनों चूचकों के उभार उनकी टी-शर्ट से दिख रहे थे। उसने मन ही मन प्रार्थना करी कि बड़ी हो कर वो अपनी मम्मा - ओह, मतलब अपनी बोऊ दी - जैसी ही बने! हू-ब-हू उनकी कॉपी - उनकी सभी क्वालिटीज़ मिल जाएँ! उनकी जैसी ही ब्यूटीफुल हो जाए! इस ख़याल पर वो खुद ही खुश हो कर अपनी बोऊ दी को आलिंगन में भर कर चूमने लगी।

उधर काजल अपने सभी ‘बच्चों’ को ऐसे स्नेह के बंधन में बंधा हुए देख कर बहुत खुश थी! उसका परिवार अभी से ही खुशहाल था, भरा-पूरा था! लेकिन जब हमारे जीवन में खुशियाँ रहती हैं, तो हम चाहते हैं कि वो खुशियाँ और भी अधिक बढ़ें! काजल का भी बस यही हाल था - अब वो अविलम्ब सुमन को अपनी बहू के रूप में देखना चाहती थी। वो जल्दी से जल्दी अपने नन्हे-मुन्ने पोते-पोतियों का मुँह देखना चाहती थी - उन पर अपना प्रेम बरसाना चाहती थी - सास और दादी बनने के सुख का आस्वादन करना चाहती थी।

खाना खाते खाते उसने अचानक ही माँ की सूनी कलाईयों, सूने टखनों, और सूने गले को देखा। यह सब देख कर उसके दिल में एक टीस सी उठी! ऐसी स्त्री जो अपने शरीर से ज़ेवर उतार कर दूसरों को दे दे, उसका खुद का शरीर अनलंकृत रहे - वो दृश्य देख कर बेहद दुःख होता ही है। पिछले वर्ष जब काजल हमारे साथ रहने आई थी, तो माँ ने उसको अपने सारे गहने ज़ेवर दे दिए थे - यह कह कर कि अब वो सभी ज़ेवर गहने उनके लिए बेकार हैं। काजल ने बहुत मना किया, बड़ी विनती करी - उसको दुःख हो रहा था कि माँ जैसी प्यारी सी, सुन्दर सी स्त्री की ऐसी दशा हो गई थी - लेकिन माँ की ज़िद के आगे उसकी एक न चली।

लेकिन तब की बात और थी, और अब की बात कुछ और! अब तो काजल खुद ही माँ की अम्मा/सास के रोल में आने वाली थी। उसने मन ही मन कुछ सोचा, और मुस्कुराने लगी! जब भोजन समाप्त हो गया, तब काजल ने माँ को उसके कमरे में आने को कहा।

“दीदी,” कमरे में आते हुए काजल माँ से बोली, “मैं कुछ कहूँगी तो प्लीज मुझे मना मत करना!”

“क्या हो गया काजल?” माँ ने उसी सहज और कोमल भाव से कहा। इस समय वो शांत लग रही थीं, भले ही उनके मन में अनेक विचार आ-जा रहे थे।

“नहीं, ऐसे नहीं! पहले बैठो!” कह कर काजल ने माँ को अपने बिस्तर पर बैठा दिया, और अपनी अलमारी की तरफ़ चल पड़ी।

जब वो वापस आई, तब उसके हाथ में एक छोटा बक्सा था, जिसमें सारे ज़ेवर रखे हुए थे।

“दीदी,” उसने बक्सा खोल कर माँ की ही दी हुई एक जोड़ी पायल निकालते हुए कहा, “ये, तुम रखो!”

“अरे काजल, लेकिन...”

“लेकिन वेकिन कुछ नहीं दीदी!” काजल ने बड़े अधिकार से कहा, “मैं कहे देती हूँ, कि अब से तुम मेरी सारी बातें मानोगी - आज से तुम बढ़िया बढ़िया, सुन्दर और रंग-बिरंगे कपड़े पहनोगी, और खूब सज-धज के रहोगी!”

काजल के कहने का अंदाज़ कुछ ऐसा था, और माँ के मन में काजल की छवि भी बदल रही थी, इसलिए माँ तुरंत इंकार नहीं कर सकीं।

“काजल...”

“न! अब कोई बहाना नहीं चलेगा! कोई बहस नहीं होगी इस बात पर! बस! अब बहुत हो गया!” काजल की आवाज़ कोमल, लेकिन दृढ़ थी। उसमें ‘सास’ वाला अधिकार भी था।

माँ का किंचित सा विरोध क्षणिक साबित हुआ।

फिर काजल ने एक सोने की पायल निकाली - पायल क्या, वो बस सोने की एक पतली सी ज़ंज़ीर थी, जिसके अंत में छोटे छोटे घुँघरू लगे हुए थे। पिछले कुछ समय से काजल अपनी होने वाली बहू के लिए ज़ेवर बनवाने लगी थी - उसकी जो भी बचत हो रही थी, और गाँव की संपत्ति बेच कर उसको जो भी मिला था, वो सब इसी में लग गया था। वैसे मेरी कंपनी में शेयरहोल्डिंग के कारण काजल के पास अपना धन था, लेकिन वो अलग बात है कि वो न तो उस धन को छूती ही थी, और न ही वो कोई ‘वेतन’ ही लेती थी। वो जब से माँ-डैड के साथ रहने गई थी, तब से परिवार के एक सदस्य के जैसे रहती थी। ऐसे में वेतन इत्यादि लेने देने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था! हमारा धन, हम सभी का था।

उसने पायल निकाल कर मुस्कुराते हुए माँ के टखने पर बाँधने लगी।

“काजल!” माँ हतप्रभ होते हुए बोलीं, “ये तो ‘बहू’ के लिए है!”

“मालूम है,” काजल हँसने लगी!

अब वो माँ को कैसे समझाए कि उसको मालूम है कि ‘तू ही मेरी बहू है’!

वो बोली, “फिलहाल तुम इसको पहनो! जब बहू आ जाएगी, तो मैं तुमसे माँग लूँगी!”

माँ विरोध करने की स्थिति में नहीं थीं, लेकिन फिर भी बोलीं, “काजल! ऐसे मत करो! प्लीज!”

“अरे क्यों? क्यों न करूँ? मेरी चीज़ है - मेरा मन जिसको देने का होगा, मैं उसको दूँगी!”

“पर काजल...”

“पर वर कुछ नहीं!” काजल ने कहा, और मनुहार करते हुए बोली, “अच्छा, कुछ ही देर के लिए पहन लो न? मेरा मन रखने के लिए?” काजल ने थोड़ा नाटकीय अंदाज़ में कहा, “अब इतना भी हक़ नहीं है मेरा तुम पर?”

इस बात पर माँ कुछ बोल न सकीं! हक़ की तो बात ही न करे वो! उसका तो पूरा हक़ है।

“हाँ,” काजल माँ को चुप देख कर खुश होते हुए बोली, “ऐसे ही अच्छी बच्ची की तरह बात मान लिया करो!”

“जबरदस्ती ही मुझको बच्ची बनाए हुए हो! घर में सबसे बड़ी हूँ मैं!” माँ ने कहा तो - लेकिन अपनी ही कही हुई बात पर से उनका भरोसा डगमगा गया। इसलिए आखिरी के चार शब्द बोलते बोलते उनकी जीभ लड़खड़ा गई।

“बच्ची तो तुम हो... और बहुत अच्छी भी हो,” काजल ने कहा, और बड़े स्नेह से माँ के गाल को छुआ! ऐसा करते हुए उसने अपनी अंगूठे से माँ की भौंह को सहलाया, “सबसे अच्छी भी, और सबसे प्यारी भी!”

फिर काजल ने सोने के दो जोड़ी कंगन निकाले और माँ की कलाइयों में पहनाते हुए बोली, “अब इनको सूना सूना मत रहने देना! मेरी कसम है तुमको!”

“पर...”

फिर उसने सोने के ही एक जोड़ी कर्णफूल निकाले, और माँ के कानों से उनकी छोटी छोटी बालियाँ निकाल कर, वो कर्णफूल पहनाने लगी, “अभी के लिए इनको पहनो, बाद में दूसरे पहनाऊँगी!”

“लेकिन...”

“अरे यार, कभी कभी मेरी मर्ज़ी का भी होने दिया करो!” काजल ने माँ को प्यार से झिड़कते हुए कहा।

माँ से कहते नहीं बना कि सब कुछ काजल की ही मर्ज़ी से तो होता है इस घर में!

कुछ देर तक दोनों कुछ न बोल सके। काजल को डर लग रहा था कि उसके मुँह से कहीं ऐसा वैसा न निकल जाए, कि सुमन को समझ आ जाए कि उसको उन दोनों के बारे में पता है। और माँ इसलिए नहीं बोल रही थीं क्योंकि उनके मन में भावनाओं का ज्वार भाटा आ जा रहा था।

“आज रात कुछ स्पेशल बनाऊँगी!” काजल ने यूँ ही कुछ कहने की गरज़ से कहा।

“क्यों?” माँ बोलीं, फिर बात को सम्हालते हुए बोलीं, “मेरा मतलब, क्या बनेगा?”

“सोचते हैं!” काजल बोली, “चलो अब! जा कर सो जाओ! रात का शाम को सोचेंगे!”

“यहीं सो जाऊँ?” माँ ने बड़े भोलेपन से कहा।

उनको अभी भी अपनी सहेली की ज़रुरत थी - अपनी मन की बातें कहने के लिए।

“अरे, तो पूछती क्यों है?” काजल ने फिर से उसी, ‘सास’ वाले अधिकार से कहा, “सो जा न यहीं! मैं सुला दूँगी!”

माँ को भी काजल के बोलने के अंदाज़ में थोड़ा अंतर सा महसूस हुआ - लेकिन वो समझ नहीं पाईं कि वो अंतर क्या है, और क्यों है। लेकिन जो भी था, काजल के बदले हुए अंदाज़ से, माँ को राहत अवश्य मिली।

माँ राहत से मुस्कुराई, “थैंक यू काजल!”

“वाह रे! थैंक यू की बच्ची!” काजल हँसते हुए बोली, “अब हम थैंक यू थैंक यू बोलेंगे एक दूसरे को?”

उसको हँसता देख कर माँ भी हँसने लगीं।

“आओ,” काजल ने कहा और कह कर माँ को अपने कोमल और ममतामय आलिंगन में भर कर अपने ही बगल लिटा दिया।


**


“माँ की याद आ गई,” माँ ने बहुत देर चुप रहने के बाद अचानक ही - लगभग बुदबुदाते हुए - कहा, “इतने साल हो गए, लेकिन न जाने कैसे उनकी याद ही नहीं आती थी। लेकिन आज, न जाने कैसे, अचानक ही, उनकी याद आ गई!”

“कैसी थीं वो?”

“मेरे टाइम की बाकी माओं जैसी!” बहुत माँ पुरानी बातें याद करती हुई बोलीं, “थकी हुई सी, झुंझलाई सी हमेशा! ... उनको चार बच्चे हुए थे - लेकिन सारों में केवल मैं ही बची रही। और कोई होती, तो बचे हुए बच्चे को प्यार से रखती, सम्हाल कर रखती। लेकिन उनको इस बात का कोई फ़र्क़ नहीं था। ... बहुत मारती थीं। पिटने के बाद मुझे समझ ही नहीं आता था कि क्यों मेरी पिटाई हुई! ... इसीलिए मैंने सोचा कि जब मेरे बच्चे होंगे, तो उनको केवल प्यार ही करूँगी - कभी नहीं मारूँगी।” माँ मुस्कुराईं।

काजल ने कुछ नहीं कहा - वो जानती थी कि माँ कुछ न कुछ अवश्य कहेंगी।

“कितनी ही तरह की पाबंदियाँ थीं - ये न करो, वो न करो! ... उनका मन इस बात से खट्टा था कि भैया मर गया, और मैं बची रही। लड़की - मतलब सर का बोझ! ... जी का जंजाल! बाबा के पास बहुत रुपए पैसे नहीं थे। बस, थोड़ी सी खेती थी। ... हाँ, लेकिन बाबा का रसूख़ था ... उनकी इज़्ज़त थी - गरीब होने के बावज़ूद। हमारे में शादी में लेन देन नहीं होता था ... लेकिन फिर भी, धूमधाम की शादी तो करनी ही होती थी न! इसलिए बाबा ने ज़मीन बेच दी। शादी के बाद जो पैसे बचे, वो हमारा घर बनाने में दे दिए। जब उनकी तबियत खराब हुई, तब उनकी मदद के लिए कोई न था। जब तक हमको मालूम हुआ, तब तक बहुत अधिक देर हो गई।” माँ की आँखों से आँसू निकल आए, “और उन्ही के दुःख में माँ भी चल बसीं।”

सच में - माँ के अतीत का यह अध्याय मुझे भी ठीक से नहीं पता था। मैं दादा-दादी के अधिक करीब था और उसकी वजह शायद यही रही हो कि होश सम्हालते सम्हालते नाना नानी नहीं रहे। मैंने न तो माँ से उनके बारे में बहुत पूछा ही, और न ही उन्होंने बताया ही। लेकिन न जाने क्यों आज माँ अपने जीवन के उन धुंधले पड़ गए पृष्ठों को उलट रही थीं।

“पढ़ने लिखने को ले कर कितना रोई थी मैं, कितना गिड़गिड़ाई थी। लेकिन कितनी कम उम्र में शादी कर दी। प्राइवेट ही सही, लेकिन ‘इनके’ कारण आगे की पढ़ाई हो पाई।” माँ बोलती जा रही थीं, “कभी कभी सोचती हूँ कि वो तो अच्छा हुआ कि अमर हो गया - अगर लड़की हो जाती, तो शायद मेरी सास से अधिक दुःख मेरी माँ को होता।”

माँ की आँखों के आँसू और भी अधिक बढ़ गए।

“शादी के लिए कितनी सारी पाबंदियाँ, कितनी सारी नसीहतें दी थीं कुछ ही दिनों में। कोई उम्र थी मेरी वो सब समझने की? यह करना, वो मत करना, अपने सास ससुर का ऐसे आदर करना, ये ऐसे पकाना, इस तरह रहना, उस तरह मत रहना...! ऐसे पाबंदियों के साथ कैसे जिए कोई?” काजल माँ की आवाज़ का खालीपन सुन पा रही थी, “शायद इसीलिए उनकी याद नहीं आई इतने दिन!”

“तुम तो बहुत अच्छी माँ हो लेकिन!” काजल ने कहा।

“हा हा! तुम भी तो! सबसे अच्छी माँ!” माँ ने कोमलता से कहा।

काजल का दिल पसीज गया। नानी की कहानी उसको नहीं मालूम थी। वो पूछती भी नहीं थी। अब उसको समझ में आया कि माँ उसको नानी के बारे में कभी क्यों नहीं बताती थीं। काजल ने माँ की आँखों के आँसू पोंछे और उनके माथे को चूमा।

“तो फिर मेरी बेटी बनने में तुमको क्या दिक्कत है?”

“कोई दिक्कत नहीं है!” माँ ने झिझकते हुए मुस्कुरा कर कहा, “... मुझसे कम उम्र की मेरी माँ! हा हा हा!”

“माँ की ममता उम्र की मोहताज नहीं होती है!” काजल ने माँ को समझाते हुए कहा।

“हाँ, वो भी है!” माँ ने इस बात को स्वीकारा, “जब भावना स्वच्छ होती है, तब ये सब बातें मायने नहीं रखतीं!”

माँ के आँखों के कोने से निकलते आँसुओं को काजल ने एक बार फिर से पोंछ दिया, “क्या हो गया? क्या सोच रही हो?”

“पता नहीं काजल,” माँ भी समझ नहीं रही थीं कि वो क्यों यह सब सोच रही थीं, “बस यूँ ही याद आ गया सब!” फिर अचानक ही मुस्कुरा कर बोलीं, “शायद इसलिए कि तुम मुझे इतना लाड़ देती हो, कि जितना मुझे मेरी माँ ने नहीं दिया कभी।”

काजल ने भावातिरेक के मारे माँ को अपने आलिंगन में कस कर बाँध लिया, “रही होऊँगी तुम्हारी माँ किसी जनम में!”

माँ कुछ कहना चाहती थीं, लेकिन चुप रह गईं। आज का दिन इतना अच्छा जा रहा था कि वो उसके सुख का पूरी तरह से आस्वादन कर लेना चाहती थीं। ऐसा न हो कि वो कुछ कह दें, और अचानक ही बात बिगड़ जाए।

“चलो,” काजल बोली, “अब सो जाओ!”
 

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अंतराल - पहला प्यार - Update #24


माँ कुछ देर सोने की कोशिश करती रहीं, लेकिन मौसम की गर्मी, उमस, और काजल के बगल लेटने के कारण उनको और भी अधिक गर्मी लग रही थी। घर में एयर कंडीशनर थे, लेकिन केवल मेरे और माँ के कमरों में! पर हम भी उनका इस्तेमाल केवल रात में करते थे, और वो भी कभी कभी। माँ का मानना था कि उसकी आदत नहीं डालनी चाहिए। आज हवा में उमस थी, लिहाज़ा कूलर चलाने पर और भी गर्मी लगती। इसलिए केवल पंखे का ही भरोसा था। काजल को भी गर्मी महसूस हो रही थी। उसने तो माँ के मुकाबले अधिक कपड़े पहने हुए थे।

“अरे भगवान! कितनी गर्मी है!” वो अपने माथे से पसीना पोंछते हुए बोली, “सूरज देवता आग बरसा रहे हैं आज तो!”

वो उठी, और उठ कर अपनी साड़ी उतारने लगी। कम से कम कपड़ों की एक सतह तो कम हो! माँ ने कुछ कहा तो नहीं - न जाने क्यों उनको आज काजल से शर्म आ रही थी। काजल ने खुद ही पहल करते हुए माँ की टी-शर्ट को ऊपर सरकाते हुए उनके शरीर के ऊपरी हिस्से को लगभग नग्न कर दिया। पसीने से भीगी त्वचा पर हवा का स्पर्श - माँ को बहुत राहत महसूस हुई।

“गर्मी लग रही है तो बोल दो न! मुझसे क्या शर्म है?” कहते हुए काजल ने माँ की टी-शर्ट पूरी तरह से उतार दी, और पूछा - नहीं, पूछा नहीं, सुझाया, “निक्कर भी उतार दूँ?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“वैसे एक बात कहूँ?” काजल ने उनका निक्कर नीचे खींचते हुए कहा, “तुम यही सब पहना करो घर में - शलवार कुर्ता या नेकर! मुझे तो कोई ऐतराज़ नहीं है!” काजल कुछ इस तरह बोली कि सुमन को ऐसा न लगे कि उसकी सास को उसके किसी पहनावे पर कोई ऐतराज़ होगा, “जो मन करे वो पहनो! न पहनो, वो भी ठीक है! मुझे तो तुम नंगू नंगू बहुत प्यारी लगती हो! और मैं तो यही चाहती ही हूँ कि तुम मेरी बिटिया बन कर मेरे सामने नंगू नंगू रहो!” कह कर काजल ने माँ का माथा चूम लिया।

माँ बस मुस्कुरा दीं। बहुत सामान्य सी बात लगी उनको। उनके मन में यह विचार आया ही नहीं कि काजल उनसे ऐसा क्यों कह रही है।

“इतनी गर्मी है! ऐसे ही रहा करो! बिलकुल क्यूट सी लगती हो! बिलकुल मेरी पुचुकी और मिष्टी के जैसी! नन्ही सी, प्यारी सी!” काजल मुस्कुरा कर, उनकी पैंटी भी उतारते हुए बोली।

हाँलाकि माँ इस समय पूर्ण नग्न हो कर काजल के सामने लेटी हुई थीं, लेकिन इस समय वो कहीं और ही थीं। उनके मन में न जाने कितने विचार आते जा रहे थे। जब उनके लिए डैड के परिवार से विवाह प्रस्ताव आया था तब वो बहुत छोटी थीं। सांसारिक मामलों में नादान। उस समय उनको अपने विवाह को ले कर कैसी अद्भुत अनुभूति हुई थी। लेकिन आज, उस घटना से कोई तीस साल बाद, जब उनके सामने पुनः विवाह का प्रस्ताव था, तो उनको फिर से, वैसी ही भावनाओं की फिर से अनुभूति होने लगी थी। आश्चर्य है न!

‘नया घर! नया ससुराल! नए तरीके! ओह!’

“सो जाओ,” कह कर वो माँ के सीने पर थपकी दे कर, सहला कर सुलाने लगी।

“काजल?” माँ कुछ देर चुप रहने के बाद बोलीं।

“हाँ?”

“मैं कुछ कहूँ, तो तुम नाराज़ तो नहीं होगी?”

“तुमसे और मैं नाराज़? हो ही नहीं सकता!”

“फिर भी!”

“कैसे भी नहीं। तुम बोलो तो सही अपने मन की बात!”

“सच में?”

“हाँ! और नहीं तो क्या!”

“तुम न... जब... तुम जब...”

“अरे, पूरा भी बोलो!” काजल मुस्कुराते हुए बोली।

“तुम... जब... तुम मुझे जब अपनी बच्ची कहती हो न,”

“हूँऊँ?”

“तो मुझे अच्छा लगता है!”

“सच्ची?”

“हाँ! ऐसा लगता है कि किसी बड़े का साया आ गया हो मेरे सर पर!”

“अरे, तो फिर मुझे अपनी माँ ही मान लो!”

माँ दो पल को चुप हो गईं, फिर धीरे से बोलीं, “किस अधिकार से?”

“वो बाद में देख लेंगे!” काजल ने प्यार से कहा, “आ जा - मेरे सीने से लग कर सो जा!”

माँ मुस्कुरा दीं, और काजल के सीने से लग गईं। गर्मी थी, लेकिन जो सुकून उनको उस समय हुआ, उसको बयान कर पाना मुश्किल है। कुछ देर के बाद माँ गहरी नींद में सो गईं।

जब काजल को लगा कि माँ सो गई हैं, तो उसने अपनी ब्लाउज के बटन खोल कर अपना एक स्तन बाहर निकाल लिया। पिछले दो दिनों से उसके मन में सुमन को - अपनी बहू को - अपना दूध पिलाने की उसकी इच्छा बड़ी बलवती हो गई थी! चुपके से ही सही, लेकिन अब उस इच्छा का निकास होना आवश्यक था। जब उसके चूचक का माँ के होंठों से मिलन हुआ तो माँ का मुँह खुद ही खुल गया। माँ को ऐसे अनभिज्ञ भोलेपन से व्यवहार करते देख कर काजल ममता से मुस्कुरा दी, और उनके और भी करीब आ गई, जिससे माँ को चूसने में आसानी हो, लेकिन माँ ने चूसना नहीं शुरू किया। वो बस गहरी नींद में सो रही थीं।

लेकिन एक माँ का मन, अपने बच्चों पर अपनी ममता लुटाने से कहाँ बाज़ आता है? जब से सुमन ने उसके मन में उसकी ‘दीदी’ से उसकी ‘बहू’ का रूप लिया था, तभी से काजल अपनी ममता उस पर लुटाना चाहती थी। काजल ने एरोला के निकट अपने चूचक को दबाया - दूध का एक पतला सा फौव्वारा माँ के खुले हुए मुँह में जा गिरा। लेकिन उनका मुँह खुला होने के कारण अधिकतर दूध बाहर ही बह गया। कुछ दूध माँ ने स्वप्रेरणा से लील लिया। काजल इतने से ही संतुष्ट हो गई। उसकी नई ‘बेटी’ को उसके स्तनों का अमृत पीने को मिल गया - अब उसको और क्या चाहिए! उसने अपना चूचक माँ के मुँह से निकाला नहीं। कुछ देर में उनका मुँह खुला होने के कारण, उनके होंठों के एक किनारे से लार बहने लगी, जो काजल के स्तन को गीला करने लगी।

काजल बस मुस्कुरा दी!

दरवाज़े पर खड़ी लतिका भी यह दृश्य देख कर न केवल आश्चर्यचकित ही हुई, बल्कि बहुत प्रसन्न भी हुई!

वो पहले से ही अपनी मम्मा को अपनी बोऊ-दी मानने लग गई थी। और अब उसकी अम्मा ने उनको अपना दूध पिला कर अपनी बेटी का दर्जा दे दिया था। काजल ने जब अचानक ही लतिका को यह सब करते देखा तो एक पल के लिए वो अचकचा सी गई, लेकिन अगले ही पल उसने पहले अपने होंठों पर उंगली रख कर उसको चुप रहने का इशारा किया, और फिर उंगली के ही इशारे से अपने पास आने को कहा।

“अम्मा,” लतिका ने भी समझ कर दबी आवाज़ में कहा, “आप बोऊ-दी को दूधू पिला रही हो?”

“बोऊ-दी? तो तुझे सब मालूम है क्या?” काजल ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा।

लतिका ने उत्साह से ‘हाँ’ में सर हिलाया, और बोली, “दादा ने बताया था कि वो मम्मा को प्रोपोज़ करने वाले हैं! आपको भी मम्मा बहुत पसंद हैं न? इसीलिए तो आप उनको दूधू पिला रही हैं! हैं न?”

“मेरी पुचुकी,” काजल ने बड़े लाड़ से कहा, “मुझे तुम्हारी होने वाली बोऊ-दी बहुत पसंद है! सबसे ज्यादा! अब तुम हमारा रिश्ता समझो -- तुम्हारी बोऊ-दी - मतलब मेरी बहू - मतलब मेरी बेटी! इसलिए उसकी माँ होने के नाते मैं उसको दूध पिला रही थी!”

“लेकिन वो तो आप उनके जागने पर भी कर सकती हैं?”

“हाँ, लेकिन अभी तक न तो तेरे दादा ने, और न ही तेरी बोऊ-दी ने मुझे इस बारे में कुछ भी बताया नहीं है न! इसलिए मैं भी न जानने की एक्टिंग कर रही हूँ! और तू भी इस बारे में इनको मत बोलना कि तुझे मालूम है!”

“ठीक है अम्मा!” लतिका ने उत्साह से कहा।

“मिष्टी कहाँ है?”

“दादा ने हम दोनों को नहला दिया था। और वो उन्ही के साथ सो रही है!”

“तू भी सोएगी बेटू मेरी?”

“हाँ!”

“आ जा मेरे पास!”

काजल ने लतिका को भी थपकी दे कर कुछ ही देर में सुला दिया।


**


माँ को स्तनपान कराने की ‘असफल’ कोशिश के बाद और लतिका को सुलाने के बाद काजल घर के अन्य बचे हुए कार्यों में व्यस्त हो गई। वहाँ से निवृत्त हो कर वो सुनील के कमरे में गई। वहाँ उसने देखा कि आभा भी नंगू नंगू हो कर, सुनील के ऊपर फ़ैल कर मज़े में सो रही थी। उसको अपने ‘दादा’ से अलग कर पाना मुश्किल था।

‘दादा’!

काजल मुस्कुराई - सच में उसकी दादी से शादी कर के सुनील उसका दादा ही तो होने वाला था!

घर में इस समय पूर्ण नीरवता थी - लेकिन काजल जानती थी कि ये सुख वाली शांति है - खुशियों वाली शांति है। एक लम्बे अंतराल के बाद इस घर में फिर से शादी ब्याह वाला माहौल बनेगा! गाजे बाजे बजेंगे! यहाँ फिर से ढेर सारा आनंद आएगा! जल्दी ही फिर से यह घर बच्चों की किलकारियों से गूँजेगा। सब कुछ बड़ा ही आनंददायक था।

काजल वापस अपने कमरे में आ कर, अपनी ब्लाउज उतार कर, केवल पेटीकोट पहने ही माँ और लतिका के बीच में लेट गई, और कुछ देर बाद उसको भी नींद आ गई।


**


कोई दो घंटे की नींद ले कर जब माँ उठीं, तो वो बहुत शांत महसूस कर रही थीं। इतनी देर तो वो कभी नहीं सोती थीं - दोपहर में उनको कभी कभी पावर नैप लेने का मन होता था। लेकिन दो घण्टे की नींद! बाप रे! वो हठात ही बिस्तर से उठ गईं।

अपने बगल काजल को अर्धनग्न लेटा हुए देख कर माँ को न जाने क्यों शर्म आ गई। उनको और भी शर्म तब आई जब उन्होंने महसूस किया कि उठने से ठीक पहले उनके होंठ काजल के एक स्तन पर थे। काजल के दोनों चूचकों पर दूध की छोटी छोटी सी बूँदें भी दिखाई दे रही थीं।

‘क्या मैं का... अ... अम्मा का दूध पी रही थी?’ माँ के मन में सबसे पहला विचार यही आया।

अब तो अपने मन में माँ काजल को ‘अम्मा’ कह कर सम्बोधित कर रही थीं। बस थोड़ी ही औपचारिकता शेष रही थी।

काजल का दूसरा चूचक लतिका के होंठों के पास था, और लतिका के होंठों की रंगत देख कर लग रहा था कि वो या तो सोने से पहले, या फिर सोते सोते अपनी अम्मा का स्तनपान कर रही थी। माँ ने अपना थूथन निकाल कर अपने होंठों को सूँघा - हाँ - एक मीठी सी, दूधिया महक तो थी!

‘हाय भगवान्! तो क्या मैंने सच में अम्मा का दूध पी लिया! क्या सोचा होगा उन्होंने?’

माँ इस ख़याल से थोड़ी घबरा तो गईं, लेकिन उनको अच्छा भी लगा। सब कुछ कितनी तेजी से बदल रहा है उनके जीवन में! सोने से ठीक पहले अपनी वार्तालाप उनको याद आ गई। सच में, काजल का स्वरुप उनके जीवन में बदलने से उनको अपने ऊपर किसी बड़े का हाथ महसूस होने लगा था। यह एहसास कितने ही महीनों से गायब था - एक अनाथ जैसी विवशता महसूस होने लगी थी माँ को।

काजल... अम्मा...!

उन्होंने चुपके से काजल के चूचक को चूम लिया। चूमने से वो बूँद गायब हो गई, लेकिन दो सेकंड के बाद एक और नन्ही सी बूँद वहाँ बनने लगी।

‘मेरी माँ का दूध!’

भविष्य की संभावनाओं का सोच कर माँ प्रसन्न हो गईं। जल्दी ही उनको एक भरा पूरा परिवार मिलने वाला था, जिसमे उनकी सहेली के समान सास होगी, चाहने वाले पति होंगे, और एक प्यारी सी बेटी समान ननद होगी! कैसे कुछ ही दिनों में काजल का स्थान उनके जीवन में बदल गया था! कैसा घोर आश्चर्य! समय क्या नहीं कर सकता? काजल... उनकी सास! उनकी माँ!

कोई आठ साल पहले माँ और डैड की मुलाकात काजल से हुई थी। उस दिन जब काजल ने माँ और डैड के पैर छुए थे, माँ को न जाने क्यों काजल के साथ एक अबूझ सा, किन्तु मज़बूत संयोजन बनता हुआ महसूस हुआ था। एक कामवाली होते हुए भी काजल कितनी सभ्य, कितनी सच्ची, और कितनी संभ्रांत थी... और ओह, कितनी सुन्दर भी! कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि माँ और काजल लगभग तुरंत ही एक दूसरे से घुल मिल गए थे। माँ तो वैसे भी दूसरों पर तुरंत ही विश्वास कर लेती थीं, लेकिन काजल पर तो उनको चुटकी बजाते ही विश्वास हो गया था। इसलिए तो उन्होंने और बाबू जी ने एक पल के लिए भी कुछ भी सोचा नहीं, और उसको और उसके बच्चों को अपने घर में हमेशा के लिए रहने को बुला लिया।

यहाँ तक भी ठीक था। इतना सब होने के बाद भी मेरी माँ सपने में भी नहीं सोच सकती थीं कि वही काजल एक दिन उनकी सासू-माँ बनेगी! बनेगी? बन तो सकती है! सम्भावनाएँ प्रबल हैं! कितना प्यार है काजल को उनसे, और उनको काजल से! सगी बहनों - नहीं नहीं - सगी बहनों में खूब मन मुटाव होता है। ऐसा लगता था कि जैसे माँ और काजल एक ही वस्तु के दो बराबर अंश हों। हाँ - यही वर्णन ठीक बैठता है। अन्यथा इतना प्रेम... ऐसे कोई कैसे कर सकता है!!

काजल के चूचक पर दूध की बूंदों को देख कर माँ उसको ‘फिर से’ पीने का लोभ संवरण न कर सकीं। उनके होंठ स्वतः ही काजल के स्तन पर जा लगे। अभी कुछ ही घण्टों पहले उनके पति ने यहाँ से दूध पिया था - अब उनकी बारी है! माँ ने बड़ी सावधानी से, धीरे धीरे काजल से स्तन का अमृत पिया। आनंद आ गया! चुपके चुपके पीने के कारण बहुत ही कम दूध उनके मुँह में आया। कहीं काजल जाग न जाए, यह सोच कर उन्होंने पीना छोड़ दिया।

काजल की बातें भी कितनी अनोखी सी थीं! बेटी बना कर जिसको घर लाई थीं, अब उसकी ही बेटी बनने की बेहद प्रबल संभावना हो गई थी! क्या वो सचमुच में इतनी भाग्यशाली थीं कि उनको फिर से ऐसे प्यार करने वाले परिवार की बहू बनने का मौका मिल रहा था? कुछ तो बड़े अच्छे कर्म किये होंगे!

माँ यह सब सोच कर मुस्कुराईं और दबे पाँव बिस्तर से उठीं - जिससे काजल और पुचुकी की नींद न टूटे। उन्होंने अपने कपड़े उठाए, और नग्न अवस्था में ही दबे पाँव काजल के कमरे से बाहर निकल गईं।

जब माँ काजल के कमरे से बाहर चली गईं, तो काजल के होंठों पर एक स्निग्ध मुस्कान आ गई!

उधर, माँ चुपके से बगल के कमरे में झाँकने चली गईं, कि वहाँ क्या हो रहा है। सुनील एक पतली सी टी-शर्ट और नेकर पहने सुखपूर्वक सो रहा था। आभा पूरी नंगू पंगू हो कर सुनील के ऊपर पैर रखे और भी आराम से सो रही थी। उन दोनों को ऐसे सुखपूर्वक सोते हुए देख कर, संतुष्ट हो कर माँ अपने कमरे में चली आईं। वो पूर्ण नग्न थीं, इसलिए उन्होंने दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया।

जब माँ को थोड़ा एकांत मिला, तो उन्होंने अपने कमरे के दर्पण में अपने सीने और स्तनों को देखा! अपने शरीर पर सुनील के प्यार के विभिन्न निशानों को देखकर उन्हें बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। यह उनके लिए बिल्कुल नया अनुभव था, और वो चकित थी कि सुनील ने अपनी माँ के सामने उसके साथ यह सब कुछ कर डाला। जब वे दोनों बिलकुल अकेले होंगे तो वो उनके साथ क्या क्या करेगा! इस प्रश्न का उत्तर भी उनको मालूम था - अपनी योनि पर सुनील का चुम्बन उनको अभी भी महसूस हो रहा था। दोनों का मिलन अत्यंत सन्निकट था! उनको भी मालूम था कि ये बस ‘अब हुआ, कि तब हुआ’ वाली बात है।

सुनील और उनका बंधन अब तय है।

सबसे बड़ी बात तो यह थी कि माँ भी अब सुनील को अपने पति के रूप में देखने लग लग गई थीं। सुनील अब उनके लिए काजल का लड़का नहीं रह गया था। यह एक बहुत ही बड़ा परिवर्तन था, और मन ही मन, माँ भी चाहने लगी थीं, कि वो सुनील का संसार बसाएँ। हाँ - सब कुछ जल्दी तो अवश्य हो रहा था, लेकिन बिना वजह देरी करने का कोई ठोस कारण भी तो नहीं था, और न ही उसका कोई लाभ! सुनील माँ का देखा, जाना, और समझा हुआ लड़का है, और माँ सुनील की देखी जानी लड़की! ऐसे में सोचना क्या और क्यों?

शुभष्य शीघ्रम!

बस, काजल को सब बताना आवश्यक था!

जितना जल्दी हो सके!

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Lib am

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अंतराल - पहला प्यार - Update #24


माँ कुछ देर सोने की कोशिश करती रहीं, लेकिन मौसम की गर्मी, उमस, और काजल के बगल लेटने के कारण उनको और भी अधिक गर्मी लग रही थी। घर में एयर कंडीशनर थे, लेकिन केवल मेरे और माँ के कमरों में! पर हम भी उनका इस्तेमाल केवल रात में करते थे, और वो भी कभी कभी। माँ का मानना था कि उसकी आदत नहीं डालनी चाहिए। आज हवा में उमस थी, लिहाज़ा कूलर चलाने पर और भी गर्मी लगती। इसलिए केवल पंखे का ही भरोसा था। काजल को भी गर्मी महसूस हो रही थी। उसने तो माँ के मुकाबले अधिक कपड़े पहने हुए थे।

“अरे भगवान! कितनी गर्मी है!” वो अपने माथे से पसीना पोंछते हुए बोली, “सूरज देवता आग बरसा रहे हैं आज तो!”

वो उठी, और उठ कर अपनी साड़ी उतारने लगी। कम से कम कपड़ों की एक सतह तो कम हो! माँ ने कुछ कहा तो नहीं - न जाने क्यों उनको आज काजल से शर्म आ रही थी। काजल ने खुद ही पहल करते हुए माँ की टी-शर्ट को ऊपर सरकाते हुए उनके शरीर के ऊपरी हिस्से को लगभग नग्न कर दिया। पसीने से भीगी त्वचा पर हवा का स्पर्श - माँ को बहुत राहत महसूस हुई।

“गर्मी लग रही है तो बोल दो न! मुझसे क्या शर्म है?” कहते हुए काजल ने माँ की टी-शर्ट पूरी तरह से उतार दी, और पूछा - नहीं, पूछा नहीं, सुझाया, “निक्कर भी उतार दूँ?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“वैसे एक बात कहूँ?” काजल ने उनका निक्कर नीचे खींचते हुए कहा, “तुम यही सब पहना करो घर में - शलवार कुर्ता या नेकर! मुझे तो कोई ऐतराज़ नहीं है!” काजल कुछ इस तरह बोली कि सुमन को ऐसा न लगे कि उसकी सास को उसके किसी पहनावे पर कोई ऐतराज़ होगा, “जो मन करे वो पहनो! न पहनो, वो भी ठीक है! मुझे तो तुम नंगू नंगू बहुत प्यारी लगती हो! और मैं तो यही चाहती ही हूँ कि तुम मेरी बिटिया बन कर मेरे सामने नंगू नंगू रहो!” कह कर काजल ने माँ का माथा चूम लिया।

माँ बस मुस्कुरा दीं। बहुत सामान्य सी बात लगी उनको। उनके मन में यह विचार आया ही नहीं कि काजल उनसे ऐसा क्यों कह रही है।

“इतनी गर्मी है! ऐसे ही रहा करो! बिलकुल क्यूट सी लगती हो! बिलकुल मेरी पुचुकी और मिष्टी के जैसी! नन्ही सी, प्यारी सी!” काजल मुस्कुरा कर, उनकी पैंटी भी उतारते हुए बोली।

हाँलाकि माँ इस समय पूर्ण नग्न हो कर काजल के सामने लेटी हुई थीं, लेकिन इस समय वो कहीं और ही थीं। उनके मन में न जाने कितने विचार आते जा रहे थे। जब उनके लिए डैड के परिवार से विवाह प्रस्ताव आया था तब वो बहुत छोटी थीं। सांसारिक मामलों में नादान। उस समय उनको अपने विवाह को ले कर कैसी अद्भुत अनुभूति हुई थी। लेकिन आज, उस घटना से कोई तीस साल बाद, जब उनके सामने पुनः विवाह का प्रस्ताव था, तो उनको फिर से, वैसी ही भावनाओं की फिर से अनुभूति होने लगी थी। आश्चर्य है न!

‘नया घर! नया ससुराल! नए तरीके! ओह!’

“सो जाओ,” कह कर वो माँ के सीने पर थपकी दे कर, सहला कर सुलाने लगी।

“काजल?” माँ कुछ देर चुप रहने के बाद बोलीं।

“हाँ?”

“मैं कुछ कहूँ, तो तुम नाराज़ तो नहीं होगी?”

“तुमसे और मैं नाराज़? हो ही नहीं सकता!”

“फिर भी!”

“कैसे भी नहीं। तुम बोलो तो सही अपने मन की बात!”

“सच में?”

“हाँ! और नहीं तो क्या!”

“तुम न... जब... तुम जब...”

“अरे, पूरा भी बोलो!” काजल मुस्कुराते हुए बोली।

“तुम... जब... तुम मुझे जब अपनी बच्ची कहती हो न,”

“हूँऊँ?”

“तो मुझे अच्छा लगता है!”

“सच्ची?”

“हाँ! ऐसा लगता है कि किसी बड़े का साया आ गया हो मेरे सर पर!”

“अरे, तो फिर मुझे अपनी माँ ही मान लो!”

माँ दो पल को चुप हो गईं, फिर धीरे से बोलीं, “किस अधिकार से?”

“वो बाद में देख लेंगे!” काजल ने प्यार से कहा, “आ जा - मेरे सीने से लग कर सो जा!”

माँ मुस्कुरा दीं, और काजल के सीने से लग गईं। गर्मी थी, लेकिन जो सुकून उनको उस समय हुआ, उसको बयान कर पाना मुश्किल है। कुछ देर के बाद माँ गहरी नींद में सो गईं।

जब काजल को लगा कि माँ सो गई हैं, तो उसने अपनी ब्लाउज के बटन खोल कर अपना एक स्तन बाहर निकाल लिया। पिछले दो दिनों से उसके मन में सुमन को - अपनी बहू को - अपना दूध पिलाने की उसकी इच्छा बड़ी बलवती हो गई थी! चुपके से ही सही, लेकिन अब उस इच्छा का निकास होना आवश्यक था। जब उसके चूचक का माँ के होंठों से मिलन हुआ तो माँ का मुँह खुद ही खुल गया। माँ को ऐसे अनभिज्ञ भोलेपन से व्यवहार करते देख कर काजल ममता से मुस्कुरा दी, और उनके और भी करीब आ गई, जिससे माँ को चूसने में आसानी हो, लेकिन माँ ने चूसना नहीं शुरू किया। वो बस गहरी नींद में सो रही थीं।

लेकिन एक माँ का मन, अपने बच्चों पर अपनी ममता लुटाने से कहाँ बाज़ आता है? जब से सुमन ने उसके मन में उसकी ‘दीदी’ से उसकी ‘बहू’ का रूप लिया था, तभी से काजल अपनी ममता उस पर लुटाना चाहती थी। काजल ने एरोला के निकट अपने चूचक को दबाया - दूध का एक पतला सा फौव्वारा माँ के खुले हुए मुँह में जा गिरा। लेकिन उनका मुँह खुला होने के कारण अधिकतर दूध बाहर ही बह गया। कुछ दूध माँ ने स्वप्रेरणा से लील लिया। काजल इतने से ही संतुष्ट हो गई। उसकी नई ‘बेटी’ को उसके स्तनों का अमृत पीने को मिल गया - अब उसको और क्या चाहिए! उसने अपना चूचक माँ के मुँह से निकाला नहीं। कुछ देर में उनका मुँह खुला होने के कारण, उनके होंठों के एक किनारे से लार बहने लगी, जो काजल के स्तन को गीला करने लगी।

काजल बस मुस्कुरा दी!

दरवाज़े पर खड़ी लतिका भी यह दृश्य देख कर न केवल आश्चर्यचकित ही हुई, बल्कि बहुत प्रसन्न भी हुई!

वो पहले से ही अपनी मम्मा को अपनी बोऊ-दी मानने लग गई थी। और अब उसकी अम्मा ने उनको अपना दूध पिला कर अपनी बेटी का दर्जा दे दिया था। काजल ने जब अचानक ही लतिका को यह सब करते देखा तो एक पल के लिए वो अचकचा सी गई, लेकिन अगले ही पल उसने पहले अपने होंठों पर उंगली रख कर उसको चुप रहने का इशारा किया, और फिर उंगली के ही इशारे से अपने पास आने को कहा।

“अम्मा,” लतिका ने भी समझ कर दबी आवाज़ में कहा, “आप बोऊ-दी को दूधू पिला रही हो?”

“बोऊ-दी? तो तुझे सब मालूम है क्या?” काजल ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा।

लतिका ने उत्साह से ‘हाँ’ में सर हिलाया, और बोली, “दादा ने बताया था कि वो मम्मा को प्रोपोज़ करने वाले हैं! आपको भी मम्मा बहुत पसंद हैं न? इसीलिए तो आप उनको दूधू पिला रही हैं! हैं न?”

“मेरी पुचुकी,” काजल ने बड़े लाड़ से कहा, “मुझे तुम्हारी होने वाली बोऊ-दी बहुत पसंद है! सबसे ज्यादा! अब तुम हमारा रिश्ता समझो -- तुम्हारी बोऊ-दी - मतलब मेरी बहू - मतलब मेरी बेटी! इसलिए उसकी माँ होने के नाते मैं उसको दूध पिला रही थी!”

“लेकिन वो तो आप उनके जागने पर भी कर सकती हैं?”

“हाँ, लेकिन अभी तक न तो तेरे दादा ने, और न ही तेरी बोऊ-दी ने मुझे इस बारे में कुछ भी बताया नहीं है न! इसलिए मैं भी न जानने की एक्टिंग कर रही हूँ! और तू भी इस बारे में इनको मत बोलना कि तुझे मालूम है!”

“ठीक है अम्मा!” लतिका ने उत्साह से कहा।

“मिष्टी कहाँ है?”

“दादा ने हम दोनों को नहला दिया था। और वो उन्ही के साथ सो रही है!”

“तू भी सोएगी बेटू मेरी?”

“हाँ!”

“आ जा मेरे पास!”

काजल ने लतिका को भी थपकी दे कर कुछ ही देर में सुला दिया।


**


माँ को स्तनपान कराने की ‘असफल’ कोशिश के बाद और लतिका को सुलाने के बाद काजल घर के अन्य बचे हुए कार्यों में व्यस्त हो गई। वहाँ से निवृत्त हो कर वो सुनील के कमरे में गई। वहाँ उसने देखा कि आभा भी नंगू नंगू हो कर, सुनील के ऊपर फ़ैल कर मज़े में सो रही थी। उसको अपने ‘दादा’ से अलग कर पाना मुश्किल था।

‘दादा’!

काजल मुस्कुराई - सच में उसकी दादी से शादी कर के सुनील उसका दादा ही तो होने वाला था!

घर में इस समय पूर्ण नीरवता थी - लेकिन काजल जानती थी कि ये सुख वाली शांति है - खुशियों वाली शांति है। एक लम्बे अंतराल के बाद इस घर में फिर से शादी ब्याह वाला माहौल बनेगा! गाजे बाजे बजेंगे! यहाँ फिर से ढेर सारा आनंद आएगा! जल्दी ही फिर से यह घर बच्चों की किलकारियों से गूँजेगा। सब कुछ बड़ा ही आनंददायक था।

काजल वापस अपने कमरे में आ कर, अपनी ब्लाउज उतार कर, केवल पेटीकोट पहने ही माँ और लतिका के बीच में लेट गई, और कुछ देर बाद उसको भी नींद आ गई।


**


कोई दो घंटे की नींद ले कर जब माँ उठीं, तो वो बहुत शांत महसूस कर रही थीं। इतनी देर तो वो कभी नहीं सोती थीं - दोपहर में उनको कभी कभी पावर नैप लेने का मन होता था। लेकिन दो घण्टे की नींद! बाप रे! वो हठात ही बिस्तर से उठ गईं।

अपने बगल काजल को अर्धनग्न लेटा हुए देख कर माँ को न जाने क्यों शर्म आ गई। उनको और भी शर्म तब आई जब उन्होंने महसूस किया कि उठने से ठीक पहले उनके होंठ काजल के एक स्तन पर थे। काजल के दोनों चूचकों पर दूध की छोटी छोटी सी बूँदें भी दिखाई दे रही थीं।

‘क्या मैं का... अ... अम्मा का दूध पी रही थी?’ माँ के मन में सबसे पहला विचार यही आया।

अब तो अपने मन में माँ काजल को ‘अम्मा’ कह कर सम्बोधित कर रही थीं। बस थोड़ी ही औपचारिकता शेष रही थी।

काजल का दूसरा चूचक लतिका के होंठों के पास था, और लतिका के होंठों की रंगत देख कर लग रहा था कि वो या तो सोने से पहले, या फिर सोते सोते अपनी अम्मा का स्तनपान कर रही थी। माँ ने अपना थूथन निकाल कर अपने होंठों को सूँघा - हाँ - एक मीठी सी, दूधिया महक तो थी!

‘हाय भगवान्! तो क्या मैंने सच में अम्मा का दूध पी लिया! क्या सोचा होगा उन्होंने?’

माँ इस ख़याल से थोड़ी घबरा तो गईं, लेकिन उनको अच्छा भी लगा। सब कुछ कितनी तेजी से बदल रहा है उनके जीवन में! सोने से ठीक पहले अपनी वार्तालाप उनको याद आ गई। सच में, काजल का स्वरुप उनके जीवन में बदलने से उनको अपने ऊपर किसी बड़े का हाथ महसूस होने लगा था। यह एहसास कितने ही महीनों से गायब था - एक अनाथ जैसी विवशता महसूस होने लगी थी माँ को।

काजल... अम्मा...!

उन्होंने चुपके से काजल के चूचक को चूम लिया। चूमने से वो बूँद गायब हो गई, लेकिन दो सेकंड के बाद एक और नन्ही सी बूँद वहाँ बनने लगी।

‘मेरी माँ का दूध!’

भविष्य की संभावनाओं का सोच कर माँ प्रसन्न हो गईं। जल्दी ही उनको एक भरा पूरा परिवार मिलने वाला था, जिसमे उनकी सहेली के समान सास होगी, चाहने वाले पति होंगे, और एक प्यारी सी बेटी समान ननद होगी! कैसे कुछ ही दिनों में काजल का स्थान उनके जीवन में बदल गया था! कैसा घोर आश्चर्य! समय क्या नहीं कर सकता? काजल... उनकी सास! उनकी माँ!

कोई आठ साल पहले माँ और डैड की मुलाकात काजल से हुई थी। उस दिन जब काजल ने माँ और डैड के पैर छुए थे, माँ को न जाने क्यों काजल के साथ एक अबूझ सा, किन्तु मज़बूत संयोजन बनता हुआ महसूस हुआ था। एक कामवाली होते हुए भी काजल कितनी सभ्य, कितनी सच्ची, और कितनी संभ्रांत थी... और ओह, कितनी सुन्दर भी! कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि माँ और काजल लगभग तुरंत ही एक दूसरे से घुल मिल गए थे। माँ तो वैसे भी दूसरों पर तुरंत ही विश्वास कर लेती थीं, लेकिन काजल पर तो उनको चुटकी बजाते ही विश्वास हो गया था। इसलिए तो उन्होंने और बाबू जी ने एक पल के लिए भी कुछ भी सोचा नहीं, और उसको और उसके बच्चों को अपने घर में हमेशा के लिए रहने को बुला लिया।

यहाँ तक भी ठीक था। इतना सब होने के बाद भी मेरी माँ सपने में भी नहीं सोच सकती थीं कि वही काजल एक दिन उनकी सासू-माँ बनेगी! बनेगी? बन तो सकती है! सम्भावनाएँ प्रबल हैं! कितना प्यार है काजल को उनसे, और उनको काजल से! सगी बहनों - नहीं नहीं - सगी बहनों में खूब मन मुटाव होता है। ऐसा लगता था कि जैसे माँ और काजल एक ही वस्तु के दो बराबर अंश हों। हाँ - यही वर्णन ठीक बैठता है। अन्यथा इतना प्रेम... ऐसे कोई कैसे कर सकता है!!

काजल के चूचक पर दूध की बूंदों को देख कर माँ उसको ‘फिर से’ पीने का लोभ संवरण न कर सकीं। उनके होंठ स्वतः ही काजल के स्तन पर जा लगे। अभी कुछ ही घण्टों पहले उनके पति ने यहाँ से दूध पिया था - अब उनकी बारी है! माँ ने बड़ी सावधानी से, धीरे धीरे काजल से स्तन का अमृत पिया। आनंद आ गया! चुपके चुपके पीने के कारण बहुत ही कम दूध उनके मुँह में आया। कहीं काजल जाग न जाए, यह सोच कर उन्होंने पीना छोड़ दिया।

काजल की बातें भी कितनी अनोखी सी थीं! बेटी बना कर जिसको घर लाई थीं, अब उसकी ही बेटी बनने की बेहद प्रबल संभावना हो गई थी! क्या वो सचमुच में इतनी भाग्यशाली थीं कि उनको फिर से ऐसे प्यार करने वाले परिवार की बहू बनने का मौका मिल रहा था? कुछ तो बड़े अच्छे कर्म किये होंगे!

माँ यह सब सोच कर मुस्कुराईं और दबे पाँव बिस्तर से उठीं - जिससे काजल और पुचुकी की नींद न टूटे। उन्होंने अपने कपड़े उठाए, और नग्न अवस्था में ही दबे पाँव काजल के कमरे से बाहर निकल गईं।

जब माँ काजल के कमरे से बाहर चली गईं, तो काजल के होंठों पर एक स्निग्ध मुस्कान आ गई!

उधर, माँ चुपके से बगल के कमरे में झाँकने चली गईं, कि वहाँ क्या हो रहा है। सुनील एक पतली सी टी-शर्ट और नेकर पहने सुखपूर्वक सो रहा था। आभा पूरी नंगू पंगू हो कर सुनील के ऊपर पैर रखे और भी आराम से सो रही थी। उन दोनों को ऐसे सुखपूर्वक सोते हुए देख कर, संतुष्ट हो कर माँ अपने कमरे में चली आईं। वो पूर्ण नग्न थीं, इसलिए उन्होंने दरवाज़ा अंदर से बंद कर लिया।

जब माँ को थोड़ा एकांत मिला, तो उन्होंने अपने कमरे के दर्पण में अपने सीने और स्तनों को देखा! अपने शरीर पर सुनील के प्यार के विभिन्न निशानों को देखकर उन्हें बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई। यह उनके लिए बिल्कुल नया अनुभव था, और वो चकित थी कि सुनील ने अपनी माँ के सामने उसके साथ यह सब कुछ कर डाला। जब वे दोनों बिलकुल अकेले होंगे तो वो उनके साथ क्या क्या करेगा! इस प्रश्न का उत्तर भी उनको मालूम था - अपनी योनि पर सुनील का चुम्बन उनको अभी भी महसूस हो रहा था। दोनों का मिलन अत्यंत सन्निकट था! उनको भी मालूम था कि ये बस ‘अब हुआ, कि तब हुआ’ वाली बात है।

सुनील और उनका बंधन अब तय है।

सबसे बड़ी बात तो यह थी कि माँ भी अब सुनील को अपने पति के रूप में देखने लग लग गई थीं। सुनील अब उनके लिए काजल का लड़का नहीं रह गया था। यह एक बहुत ही बड़ा परिवर्तन था, और मन ही मन, माँ भी चाहने लगी थीं, कि वो सुनील का संसार बसाएँ। हाँ - सब कुछ जल्दी तो अवश्य हो रहा था, लेकिन बिना वजह देरी करने का कोई ठोस कारण भी तो नहीं था, और न ही उसका कोई लाभ! सुनील माँ का देखा, जाना, और समझा हुआ लड़का है, और माँ सुनील की देखी जानी लड़की! ऐसे में सोचना क्या और क्यों?

शुभष्य शीघ्रम!

बस, काजल को सब बताना आवश्यक था!

जितना जल्दी हो सके!

**
वाह बड़ा ही प्यारा खेल चल रहा है घर में, चोरों को लग रहा है की कोई उनकी चोरी पकड़ रहा है और थानेदार खुद घर की चाबियां चोरों को दे रहा है। एक दम मस्त खेल।

काजल ने अब अंजान बन कर सुनील और सुमन को छेड़ने का प्लान कर लिया है और दोनो के साथ खूब मस्ती भी कर रही है। अब काजल को कोई संसय नही रह गया है कि सुनील और सुमन एक दूसरे के प्यार में डूब चुके है। बस देखना है कि दोनो ये राज काजल को कब बताते है और सबसे बड़ी बात अमर को कब और कैसे बताते है?

आज सुमन ने अपने दिल की उस टीस को बाहर निकाला जो कब से उसके अंदर एक नासूर की तरह चुभ रही थी और अपनी सखी, अपनी अर्ध-बहु और घर की सर्वेसर्वा को अपना दिल खोल कर दिखाया शायद यही वजह थी कि वो आज दिन में इतनी देर तक शांति से सो पाई। अब बस ये देखना है कि सुमन सुनील के रिश्ते का रहस्योद्घाटन कब और कैसे होता है सबके सामने। शानदार अपडेट्स avsji भाई।
 

Kala Nag

Mr. X
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अंतराल - पहला प्यार - Update #21


काजल ने माँ की यह हालत बखूबी देखी, तो अर्थपूर्वक मुस्कुराई।

काजल पिछले कुछ मिनटों से सुनील और सुमन की शादी के बारे में ही सोच रही थी। उन दोनों की शादी की सबसे बड़ी अड़चन थी कि अमर को कैसे मनाया जाए और फिर आगे का सारा बंदोबस्त कैसे किया जाए! काजल का बड़ा मन था कि उन दोनों की शादी, सुनील के अपनी जॉब ज्वाइन करने से पहले ही हो जाए। आर वो करना था, तो तीन हफ्ते से बस कुछ ही अधिक समय बचा हुआ था। बहुत कम समय था! वैसे देखा जाए, तो और भी कम समय था - शादी के बाद छोटा सा हनीमून भी तो होना चाहिए न? तो अगर हनीमून का एक हफ्ता निकाल दो, तो बस दो हफ्ते का ही समय बचता है कुछ भी करने को!

ऐसी हड़बड़ी में दोनों का विवाह करवाना काजल को कुछ जम नहीं रहा था। एक ही बेटा है उसका - माँ होने के कई सारे अरमान होते हैं! उसकी शादी में कम से कम कुछ धूम तो हो! लेकिन फिर उसको विचार आता है कि फ़िज़ूलख़र्च से क्या लाभ? धूम धाम करने से केवल अपने अरमान ही निकलते हैं, उसका कोई लाभ अपनों को तो मिलता नहीं! अगर वो सारा रुपया सुनील और सुमन को दिया जाए, तो वो दोनों अपना संसार बसाने में उसका बेहतर इस्तेमाल कर सकें। लेकिन फिर भी, एक अच्छी सी पार्टी तो देनी ही चाहिए! और यह सब बिना अमर की सलाह के यह संभव ही नहीं है। और फिर, पार्टी में सम्बन्धियों को, और मित्रों को बुलाना ही होगा न... न्योता देना पड़ेगा! कितना कम समय बचा है उस कमा के लिए! होने वाली बहू के लिए कुछ गहने तो बनवाए हुए हैं, तो उस बात की चिंता नहीं। लेकिन कपड़े लत्ते सब लेने होंगे! कैटरिंग का काम, अचानक से ही काजल की हिम्मत जवाब दे गई। कुछ देर पहले उसको लग रहा था कि सब कुछ बड़ी आसानी से हो जाएगा! लेकिन अब लग रहा था कि ये सब इतने कम समय में कैसे होगा!

काजल इसी उधेड़बुन में पड़ी हुई थी कि उसकी नज़र माँ पर पड़ी।

उनकी हालत देखी तो वो अर्थपूर्वक मुस्कुराई।

‘कितनी प्यारी सी लग रही है सुमन!’ माँ को देख कर काजल की चिंता वाष्प बन गई। कुछ बड़ी अनोखी बात तो थी सुमन में - जब माँ या बड़ी बहन के रूप में थी, तब भी दिल को चैन रहता था, और अब जब बहू के रूप में उसके घर आने वाली है, तब भी दिल को उतना ही चैन मिल रहा है। सुमन जैसी प्यारी, गुणी, और सरल सी बहू की तमन्ना कब से मन में थी - और अब वो तमन्ना साकार हो रही थी। कुछ मिनटों पहले ही काजल ने उनको अपने बेटे के सामने नग्न खड़े देखा तो काजल मन ही मन बहुत खुश हुई। उसका प्लान पूरी तरह सफल रहा! दोनों को एकांत देने का परिणाम मन मुताबिक़ निकला।

वैसे तो अपनी बहू के साथ काजल सहेली जैसा बर्ताव रखना चाहती थी - जैसे कि दीदी (सुमन) रखती थी, लेकिन अब जब खुद वो ही उसकी बहू बन कर आ रही है, तो एक अनोखा सा अनुभव हो रहा था उसको। सुमन उसकी दीदी भी है और बहू भी। और तो और वो उसकी सहेली भी तो है! और अपनी सहेली को थोड़ा छेड़ना, थोड़ा परेशान करना कोई गलत बात तो नहीं है।

माँ को ऐसे बाहर आने में हिचक हो रही थी, लेकिन अब क्या करे? काजल न जाने क्या सोचे! अगर वो कुछ पूछेगी, तो वो झूठ नहीं कह पाएँगी। यह बात काजल भी अच्छी तरह जानती थी। बड़ी समस्या थी। माँ का सच्चा होना एक ऐसा गुण था, जिसका अनुकरण न केवल काजल करती आई थी, बल्कि अपने बच्चों को भी सिखाई थी। इसलिए वो उनसे कोई ऐसा प्रश्न नहीं करना चाहती थी जिसके कारण माँ को लज्जा का अनुभव हो। लेकिन छेड़खानी तो बनती है!

जब काजल के पास पहुँचीं तो उनको देख कर काजल ने कहा,

“अरे ब... दीदी,” काजल माँ को बस ‘बहू’ बोलते बोलते रह गई, “ये क्या हाल हो रखा है तुम्हारा! साड़ी किधर गई तुम्हारी? और ये कपड़े कैसे पहने हुए हैं?” काजल ने खिलवाड़ के अंदाज़ में कहा, “इधर आओ, मैं ठीक कर देती हूँ!”

“अ... क... काजल...!” माँ ने असहज होते हुए कहा।

उनको समझ नहीं आ रहा था कि वो काजल को कैसे पुकारें - उसके नाम से पुकारें, या अम्मा कहें? उसको ‘काजल बेटा’ या महज़ ‘बेटा’ कह कर तो अब बिलकुल भी नहीं पुकार सकतीं! यही गलती बस दो क्षण पहले काजल भी करने वाली थी।

“अरे कोई बात नहीं!” काजल ने माँ को अपने आलिंगन में भरते हुए बड़े प्यार से कहा, “देखो तो - पूरा बदमाश हो गया है सुनील!” और माँ के ब्लाउज के बटन ठीक से लगाने के लिए उनको खोलते हुए आगे कहा, “दुद्धू पीते पीते तुम्हारी साड़ी भी उतार दी, और वापस पहनने भी नहीं दी! और तो और, तुमको ब्रा भी नहीं पहनने दिया उस बदमाश ने!”

तब जा कर माँ को समझ आया कि उन्होंने ब्रा तो पहनी ही नहीं है - उनको याद भी नहीं रहा, “व... व्वो, उन्होंने... म्ममतलब... मैं पहनना भूल गई!”

यह बात सही नहीं थीं - माँ को सब पहनाया तो सुनील ने ही था, लेकिन वो ये बात काजल से कैसे कह दें! न जाने काजल क्या सोचे, या क्या पूछ बैठे! झूठ वो कह नहीं पाती थीं। इसीलिए उन्होंने बात छुपा कर इस बात का सारा ठीकरा अपने ऊपर डाल दिया। बड़ी परेशानी थी।

“साड़ी भी?”

“व... व्वो... मैं... उनको...” माँ कोई बहाना सोच रही थीं, लेकिन अब उनसे और बहाना बनाया नहीं जा रहा था। काजल भी यह बात अच्छे से समझती और जानती थी।

तब तक माँ की ब्लाउज के सारे बटन खुल गए। माँ के स्तन एक बार फिर से उजागर थे।

“अरे कोई बात नहीं, मेरी शोन चिरैया!” काजल उनका ब्लाउज उतारते हुए, बड़े दुलार से बोली, “तुम तो हमारी ही हो! तुम कुछ न भी पहना करो, तो भी कोई बात नहीं! ऐसे ही रहा करो घर में! बिलकुल लड़की जैसी ही तो हो, तो लड़की जैसे रहने में क्या परेशानी? मेरी पुचुकी और मिष्टी के जैसी ही नंगू नंगू रहा करो, उनके जैसी ही बच्ची बन कर उनके संग खेला कूदा करो!”

माँ के सीने पर और स्तनों पर जगह जगह पर ज़ोर से चूसे जाने के कारण लाल निशान पड़ गए थे, जो कुछ देर के बाद और गहरे हो जाने थे। उनके चूचक भी थोड़े गहरे रंग के हो चले थे। यह देख कर काजल को बड़ी ख़ुशी मिली! बढ़िया!

“तुम भी न!” माँ ने झेंपते और शर्माते हुए कहा, “ऐसे कैसे?”

“अरे, और नहीं तो क्या? मुझसे नहीं शर्माती, पुचुकी और मिष्टी से नहीं शर्माती, तो सुनील से क्या शर्माना?” काजल ने निशानों को सहलाते हुए कहा, “वैसे भी, अब तुम दोनों में कुछ छुपा हुआ थोड़े न रहना चाहिए!” काजल ने फिर से एक लच्छेदार बात बोली।

माँ उत्तर में कुछ कह पातीं, कि उसके पहले ही काजल बोली, “एक बात कहूँ दीदी... सच्ची सच्ची?”

“हाँ?”

“मेरा मन कहता है न, कि तुम्हारा और मेरा रिश्ता हमेशा के लिए रहेगा!” वो अंदर ही अंदर आह्लादित हो कर बोली, “हमेशा के लिए - अटूट!”

“हाँ काजल, मैं भी इस बात को मानती हूँ!” माँ को काजल की बात पर थोड़ी राहत आई।

“नहीं, सुन तो लो पहले पूरी बात! मुझे ऐसा लगता है न कि जैसे खून का बंधन हो हमारा तुम्हारा रिश्ता! लगता है कि जैसे, अगर... तुम मेरी दीदी होने के बजाय, अगर मेरी बेटी होती न, तो तुमको खूब लाड़ दुलार करती मैं!”

माँ ने उसकी बात पर प्रसन्नचित्त मुस्कान दी। काजल सच में कभी कभी माँ को वैसा ही लाड़ करती थी कि जैसे वो कोई छोटी सी लड़की हों। वो दुलार से माँ से तोतली बोली में भी बात करने लगती थी कभी कभी - जैसे माएँ अपने बच्चों से करती हैं। ख़ास तौर पर पिछले कुछ दिनों में।

“हा हा हा! तुम्हारी बेटी?”

“हाँ! मेरी बेटी - मेरी छोटी बेटी!” काजल बोली, वो अभी भी माँ के स्तनों पर पड़े निशानों को सहला कर मिटाने का प्रयास कर रही थी।

“हैं?” माँ बोल बैठीं, “पुचुकी से भी छोटी?”

“हाँ! और नहीं तो क्या!”

माँ मुस्कुरा दीं। पुराने समय में हमारे समाज में परिवार में बहू का ओहदा, बेटी से छोटा होता था। कई घरों में आज भी यह चलन है कि भाभी अपनी ननद (पति की बहन) के पैर छूती है - भले ही ननद अपनी भाभी से कितनी ही कम उम्र क्यों न हो! हाँ, बंगाली समाज में यह चलन नहीं है।

काजल आनंदित होते हुए कह रही थी, “और एक बात बोलूँ? मैं तो आज कल सोते हुए, जागते हुए, हर समय भगवान जी से बस एक ही प्रार्थना करती रहती हूँ... और वो यह कि जल्दी ही तुम्हारी माँग में सिंदूर सज जाए! ये तो तुम्हारा सलोना सा चेहरा है न, उस पर रौनक आ जाए!”

“हा हा हा!” माँ को शर्म भी आ गई, और हँसी भी, “का...जल!”

“क्या का...जल?” काजल ने माँ की नक़ल उतारी, “ये जो लड़की बनी घूमती हो न, बहुत हो गया! अब जल्दी से तुम माँ बन जाओ!”

“हा हा - अरे मैं कहाँ लड़की बनी घूमती रहती हूँ? और, माँ तो मैं बन चुकी कब की!” माँ हँसते हुए बोली, “अब तो मैं दादी भी बन चुकी हूँ!”

“वो वाला काउंट नहीं होगा!” काजल ने माँ के एक स्तन को दबाया, “इनको देखो! इतनी ठोस ठोस हैं कि लगता है जैसे कच्चे मालदा आम हैं दोनों! इनमें रस भरेगा, तब तो आएगा न स्वाद! भगवान करें, इनमें जल्दी से दूध उतर आए, तो थोड़ा मुलायम हो जाएँ! मुलायम और रसीले! और थोड़े बड़े भी!” वो मुस्कुरा रही थी, “और, ये तुम्हारी चूचियाँ,” उसने माँ के स्तनों पर शोभन उनके चूचकों को सहलाते हुए कहा, “अंगूर जैसी हो जाएँगी फिर! मीठी मीठी!” काजल मुस्कुरा रही थी, “भरी भरी... रसीली!”

“हे भगवान!” माँ ने थके हुए भाव से कहा।

“हा हा हा! अच्छा दीदी, ऐसा लग रहा है जैसे अपनी जान छुड़ा कर भागी हो उस बदमाश से! इतना परेशान किया क्या उसने? साड़ी तो उसने उतार दी - वो तो जाहिर है, लेकिन क्या तुमको पूरी ही नंगी कर दिया वो बदमाश?” काजल ने शरारत से कहा।

काजल को मालूम तो था ही कि सुनील ने मौका मिलते ही चौका मार दिया है। सुमन ऐसी तो नहीं है कि किसी के सामने भी नंगी हो जाएगी। और काजल ने यह बात भी नोटिस करी कि सुमन सुनील को ‘उनको’ ‘उन्होंने’ जैसे शब्दों से सम्बोधित कर रही थी। मतलब दोनों के बीच बहुत कुछ बदल चुका था।

वैसे काजल ने यह बात मज़ाक मज़ाक में कही थी, लेकिन अचानक ही माँ की आँखें भर आईं और वो सुबक सुबक कर रोने लगीं।

माँ के मन में यह विचार आया कि उनकी ऐसी अस्त-व्यस्त हालत देख कर न जाने काजल उनके बारे में क्या सोचेगी! काजल मूर्ख तो बिलकुल भी नहीं है - बल्कि उनसे कहीं अधिक होशियार है। उनकी हालत देख कर समझ तो वो गई ही होगी कि कमरे के अंदर वो सुनील के सामने नग्न थीं। कहीं काजल ऐसा न सोचने लगे कि अपनी इतनी उम्र हो जाने पर भी वो उसके जवान बेटे पर डोरे डाल रही है! उसको फँसाने की कोशिश कर रही है। यह खयाल बहुत पीड़ादायक होता है! खास तौर पर माँ जैसी स्त्री के लिए, जो पूरी तरह से निष्कपट हो!

अभी पिछले साल ही एक फिल्म आई थी, जिसमे अक्षय खन्ना का किरदार, डिम्पल कपाड़िया के किरदार से प्रेम करता था। उस प्रेम को न तो अक्षय के दोस्त ही समझ पाते हैं, और न ही उसकी माँ! और तो और, अक्षय के दोस्त, डिम्पल के लिए उसके प्यार को समझने के स्थान पर उसका मज़ाक उड़ाते हैं! कि अकेली औरत है, खेली खाई है, इसलिए अक्षय का काम निकल जायेगा। उधर अक्षय की माँ भी उसको डाँटती है, यह कह कर कि ज़रूर डिम्पल ने अपनी ‘दुःख भरी दास्तान’ सुना कर उसको फाँस लिया होगा। कहीं काजल भी ऐसा ही न सोचे!

इस कठोर विचार ने माँ के कोमल से दिल को कचोट लिया। इस बात का तो केवल ईश्वर ही साक्षी है कि माँ ने अपने जीवन पर्यन्त दूसरों को केवल दिया ही था - किसी से शायद ही कभी कुछ लिया हो। उनका पूरा जीवन अवश्य ही अभाव में बीत गया हो, लेकिन उनसे जब भी बन पड़ा, जितना भी बन पड़ा, उन्होंने दूसरों के लिए किया। उसके एवज़ में उनको कभी कुछ ख़ास मिला भी नहीं - न ही कोई उल्लेखनीय सुख और न ही कोई लाभ। लेकिन फिर भी उन्होंने अपने निजी लाभ, और निजी सुख की परवाह न करते हुए, दूसरों के लिए जो भी हो सका, करती रहीं। तो अब, उम्र के इस पड़ाव पर आ कर, वो स्वार्थी होने का, दुश्चरित्र होने का, कुल्टा होने का इल्ज़ाम अपने सर नहीं ले सकती थीं... और वो भी अपने सबसे प्यारी, सबसे करीबी सहेली से।

इस ख़याल से ही उनका दिल टूट गया, और वो रोने लगीं!

लेकिन, काजल सब कुछ जानती थी। जानती भी थी, और इसी पल का इंतज़ार भी कर रही थी!

जब से काजल को यह समझ में आया था कि सुनील को सुमन से प्रेम है - तो वो भगवान से उसको ही अपनी बहू बनाने की प्रार्थना कर रही थी। माँ जैसी लड़की उसने अपनी पूरी ज़िन्दगी में कहीं देखी ही नहीं। काजल अच्छी तरह समझती थी कि आज कल सुमन जैसी लड़कियाँ बस बिरले ही होती हैं। न उसके जैसे संस्कार, और न ही उसके जैसे गुण। कैसी बढ़िया लड़की है वो! कितना बड़ा दिल है सुमन का! काजल को आज भी वो दिन याद है जब बड़े प्रेम से सुमन ने उसको और उसके दोनों बच्चों को अपने घर में लाया था। भला कौन ब्याहता औरत, किसी अन्य औरत का - खास कर ऐसी औरत का, जो अपने पति से अलग हो कर आई हो - अपने प्रेम भरे संसार में इस तरह से स्वागत करती है? कितना डरने वाली बात होती है न? क्या पता, ये नई स्त्री उसके ही पति पर डोरे डालने लगे, और उसको ही ले उड़े? गैर स्त्री और पुरूष के बीच कैसी भी ऊँच-नीच हो सकती है! कितना आसान है ये! आदमी का क्या है - थोड़ा दुखड़ा सुनाओ, थोड़ा सेक्स दिखाओ, नाचते हुए चला आएगा नई औरत के पास! फिर कहाँ जाएगी पहली औरत?

और तो और, काजल जाति में भी तो निम्न है! उसके खुद के गाँव में उसके और उसके परिवार के साथ कैसा भेदभाव होता रहा है! यहाँ पर भी लोग कितनी बातें बनाते... और लोगों ने कितनी सारी बातें बनाई भी! लेकिन सुमन और बाबूजी ने उन बातों की ढेले भर भी परवाह नहीं की! उन दोनों से, और खासकर सुमन से तो उसको और उसके परिवार को केवल शुद्ध स्नेह, शुद्ध प्रेम ही मिला। हमेशा! उनके घर जो भी था, उन्होंने काजल, और उसके बच्चों के साथ ख़ुशी ख़ुशी बाँटा! उन तीनों को अपनी ही संतान के समान स्नेह दिया! और तो और, सुनील और लतिका की पढ़ाई लिखाई, रहने सहने, खान पान का सारा ख़र्च, सुमन और बाबूजी ने ही वहन किया था। यह सब उन्ही दोनों का पुण्य-प्रताप था कि सुनील आज कामयाबी के इस मुकाम पर खड़ा हुआ था, और लतिका इतनी गुणी संस्कारी लड़की के रूप में हमारे सामने थी!

सच कहें, तो काजल भी अपनी होने वाली बहू में माँ के ही गुण ढूंढती रहती थी। लेकिन, उसको लगने लगा था कि जैसे संसार में माँ जैसी कोई दूसरी स्त्री हुई ही न हो - उन जैसी कोई दूसरी दिखती ही नहीं! अब ऐसी गुणी, ऐसी सुन्दर, और ऐसी भाग्यशाली औरत को अगर उसका बेटा पसंद करे, तो क्या गलत है? गलत क्या - उल्टा सुनील को तो अपनी इस पसंद के लिए बधाइयाँ मिलनी चाहिए! उसको इतनी कम उम्र में भी सच्चे सोने की परख है - यह बात अद्भुत है! वरना जवानी तो अंधी होती है - ख़ास तौर पर नौजवान लड़कों की। जीवन में कुछ काम ऐसे होते हैं, जो बेहद सोच समझ कर करने चाहिए - शादी उनमें से एक है। सच्चा साथी मिलना किस्मत वाली बात है। सुनील की किस्मत बहुत अच्छी है। सुमन की भी - क्योंकि कई सारे लोगों को पूरे जीवन भर एक बार भी प्यार नहीं मिलता, कुछ को बस एक बार मिलता है, लेकिन सुमन को दूसरी बार भी मिल रहा था। और सुनील एक सक्षम पुरुष था। इसमें कोई कॉम्प्रोमाइज़ करने जैसी बात ही नहीं थी। दोनों में प्रेम का बंधन था - तो विवाह का बंधन बाँधने में कैसी झिझक?

“अरे अरे! इसमें रोने वाली क्या बात है? मैं अभी बुलाती हूँ उस बदमाश को, और ज़ोर की डाँट लगाती हूँ!”

कहते हुए काजल ने माँ को अपने सीने से लगा लिया।

माँ बेहद डर गई थीं। न जाने कितनी ही अद्भुत और अनजानी घटनाएँ इन दो तीन दिनों में उनके साथ घट गई थीं। सुनील का उनके लिए रोमांटिक प्यार की उद्घोषणा, उसका उनके साथ अधिकार भरा अंतरंग व्यवहार, माँ के खुद के भीतर का अन्तर्द्वन्द्व, काजल के साथ उनके भविष्य के रिश्ते में बदलाव - यह सभी अनेक परिवर्तन थे, और भारी परिवर्तन थे! और ऊपर से स्वयं पर स्वार्थी और दुश्चरित्र होने का संभावित इलज़ाम! वो पहले ही भावनात्मक बोझ के तले दबी हुई थीं, ऊपर से अपने चरित्र पर होने वाले हमले की सम्भावना से और भी अधिक डर गईं। और उनकी मजबूरी भी देखिए - वो उसके ही सीने से लगी हुई थीं, जिससे उनको डाँट खाने का, जिसकी नज़र में गिरने का उनको सबसे अधिक डर था! लेकिन वो बेचारी करती भी तो क्या! काजल ही तो उनका सहारा थी। मैं तो ज्यादातर समय बाहर ही रहता। काजल माँ का ही क्या, मेरा भी तो सहारा थी!

“सुनील!” काजल ने आवाज़ लगाई।

“हाँ अम्मा!”

“इधर आ!”


**


माँ के भाग जाने के बाद सुनील ने अपना निक्कर पहना और बिस्तर पर ही पड़ा हुआ, अपने और सुमन के भविष्य के बारे में सोचने लगा। वो अभी तक सुमन के साथ बिताई हुई सभी घटनाओं का विश्लेषण कर रहा था, और सोच रहा था कि कहीं उससे जाने अनजाने कोई गलती तो नहीं हो गई!

पिछले सात सालों से सुमन के लिए उसके प्रेम का पौधा पोषित होता हुआ अब एक फलदार वृक्ष बन गया था। सुमन के गुण, उसका भोलापन, उसकी सादगी, उसकी सुंदरता, सब कुछ ऐसी थी कि वो खुद को रोक ही नहीं सका - उसके मन में बस यही बात बार बार आ रही थी कि काश सुमन उसकी हरकतों में निहित उसके प्रेम को देख सके, समझ सके! उसको ऐसा न लगे कि उसके मन में केवल वासना है, लालसा है! काश कि वो समझ सके कि वो वाकई उसके साथ अपना संसार बसाना चाहता है। काश कि वो यह बात समझ सके कि वो सच में गृहस्थ बनना चाहता है, और सुमन उसकी गृहस्थी - उसके संसार - उसके जीवन के केंद्र में है!

उसने अपने हिसाब से अपने आप को एक ‘लायक वर’ के रूप में पेश किया था। वो समझता था कि अगर सुमन चाहे, तो उसको और कई अच्छे वर मिल जाएँगे - वो है ही ऐसी! लेकिन काश, वो उसका प्यार देख सके, समझ सके!

आज उन दोनों के बीच इतना कुछ घट गया था कि उसको अब संदेह की कोई गुंजाईश नहीं लग रही थी। अवश्य ही सुमन ने भी उसको अपना मान लिया है, नहीं तो वो ऐसी तो नहीं कि किसी को भी खुद को हाथ लगाने दे। लेकिन हो सकता है कि वो उसकी हरकतों को केवल बर्दाश्त कर रही हो - इस कारण से कि वो काजल का बेटा है। लेकिन काजल का बेटा होना कोई ऐसी क्वालिफिकेशन तो नहीं है कि वो सुमन को ऐसे अंतरंग तरीके से देख सके। और तो और, उसने सुमन का योनि-रस पान भी तो कर लिया! यह काम तो केवल कोई प्रेमी, कोई पति ही कर सकता है न! और... और उसने भी तो ‘आई लव यू’ कहा ही है न!

वो इसी उधेड़बुन में उलझा हुआ था कि उसको अपनी अम्मा की पुकार सुनाई दी,

“सुनील!”

“हाँ अम्मा!” उसने तत्काल कहा।

“इधर आ!”

वो बिस्तर से उठ खड़ा हुआ।

‘क्या हो गया? कहीं सुमन बुरा तो नहीं मान गई? कहीं सुमन ने कुछ कह तो नहीं दिया अम्मा को! कहीं अम्मा गुस्सा तो नहीं हो गई!’

वो कुछ सोच ही रहा था कि काजल की दूसरी पुकार सुनते ही उसने अविलम्ब बाहर जाने लगा।


**


Kala Nag
क्या कहें
क्या ना कहें
काजल और सुमन दोनों में उम्र में बड़ी सुमन है पर परिपक्वता में सुमन से बहुत आगे है
उसे बहु चाहिए बिल्कुल सुमन सी गुणवान
संयोग ऐसा है आज वह सुमन को अपने बहु बनाने वाली है
 

Kala Nag

Mr. X
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अंतराल - पहला प्यार - Update #22


काजल के सीने में मुँह छुपाए, माँ ने सुबकते हुए ही ‘न’ में सर हिलाया, कि सुनील को यहाँ न बुलाओ। लेकिन बोल कर कुछ कह नहीं सकी। मेरी बेचारी माँ ऐसे रोते हुए एक छोटी सी बच्ची के जैसी ही प्यारी सी, भोली सी लग रही थी! कोई कैसे न प्यार करे उनको? काजल का दिल माँ के लिए ममता भरे प्यार से भर आया - माँ बहुत कोमल हृदय वाली महिला थीं, यह बात काजल अच्छी तरह जानती थी। वो उनके हर एक गुण से वाकिफ़ थी। उसको यह जान कर बहुत ख़ुशी हो रही थी कि उसके बेटे ने सुमन को अपनी पत्नी के रूप में चुना। काजल यह बात भी समझ रही थी कि अब बहुत अधिक संभावना है कि सुमन उसकी बहू बनना स्वीकार कर ले! यह सारा बदलाव भावनात्मक रूप से काफी भार डालने वाला था, और डरावना भी! तो ऐसे में सुमन को प्रेम भरे सहारे की आवश्यकता थी, एक सहेली की आवश्यकता थी। तो काजल थी न - अपनी बहू को उसकी माँ का प्यार, उसकी माँ का सहारा देने के लिए!

“सुनील?” काजल ने एक बार फिर से पुकारा।

“हाँ अम्मा? आया!” सुनील की आवाज़ आई।

जैसे ही वो दोनों के समीप आया, उसने कहा, “हाँ अम्मा?”

माँ को काजल के सीने से लगे हुए और सुबकते हुए देख कर सुनील भी थोड़ा सकपका गया।

“क्या बदतमीज़ी कर रहे थे तुम इसके साथ?” काजल ने उसको डंपटते हुए कहा, “इतनी प्यारी सी लड़की को ऐसे सताते हैं क्या?”

काजल ने बिना किसी सन्दर्भ के सुनील को ‘बनावटी’ डाँट लगानी शुरू कर दी। वो जान बूझ कर सुनील के सामने माँ को न तो ‘दीदी’ कह रही थी, न ‘सुमन’, और न ही ‘बहू’!

“मैंने क्या किया अम्मा?”

“क्या किया? एक तो इस बेचारी बच्ची को पूरी नंगी कर दिया! और फिर उसके दूधू खाने लगा! देख - बेचारी को कैसी कैसी चोटें लगाईं हैं,” कह कर उसने माँ के एक स्तन पर गहरे पड़ रहे निशान को सहलाया।

“लेकिन अम्मा! मैंने जानबूझ कर नहीं किया। न जाने कैसे...” सुनील अपनी सफ़ाई में कुछ कह पाता कि काजल ने उसको बीच में ही डंपट कर टोक दिया,

“चुप कर! जानबूझ कर नहीं किया! नालायक कहीं का! और ये... ये जो चूस चूस कर इसकी चूचियों को लाल कर दिया है, उसका क्या?”

“लेकिन अम्मा!”

“लेकिन? इसकी साड़ी उतार दी!” काजल अनवरत ‘बनावटी’ गुस्से में सुनील को डाँट रही थी, “ये नंगी बैठेगी क्या दिन भर? जा - और जा कर नए साफ़ सुथरे कपड़े ले कर आ इसके लिए!”

सुनील चुप हो गया, और उठ कर जाने को हुआ तो काजल ने टोकते हुए कहा, “लेकिन वो सब करने से पहले माफ़ी मांगो इससे!”

“माफ़ी?” सुनील ने हैरान होते हुए कहा, “मेरी क्या गलती है अम्मा! क्या किया है मैंने?”

“इतना सब बता दिया फिर भी पूछ रहा है कि क्या गलती है? अरे सबसे बड़ी गलती तो ये है कि अब से अगर ये कभी भी रोई - कभी भी - तो बस तेरी ही गलती है! समझा? चल माफ़ी माँग ब... इससे ! इतनी इतनी प्यारी सी लड़की के साथ बदतमीज़ी करते हो, और फिर गलती पूछते हो!”

सुनील ने हैरानी से अपनी अम्मा को, और फिर माँ को देखा; वो अभी भी सुबक रहीं थी और उनके गालों पर आँसू ढुलक रहे थे। उसको लगा कि शायद माँ उसकी हरकतों से दुःखी हो कर रो रही थीं! उसको भी यह देख कर बहुत दुःख हुआ। अपनी रूठी प्रेमिका को मनाना तो उसका ही काम था न?

लिहाज़ा, सुनील माँ के पास आया और फिर उनके सामने एक घुटने पर बैठ कर अपने कान पकड़ कर बोला,

“सुनिए, मुझे माफ़ कर दीजिए! जाने या अनजाने अगर मैंने कोई गलती की हो!”

माँ काजल के सीने में चेहरा छुपाए अभी भी सुबक रही थी, लेकिन सुनील को देख भी रही थीं। उधर काजल ने भी ध्यान दिया कि सुनील के सम्बोधन का तरीका बदल गया था। कोई ‘माँ जी’ ‘वा जी’ नहीं! बढ़िया! बढ़िया!

“कोई गलती हुई है क्या मुझसे?”

माँ ने काजल के सीने में ही सर छुपाए और सुनील की तरफ देखते, और सुबकते हुए ‘न’ में सर हिलाया।

“अम्मा, देखो न! मैं ‘इनको’ जान बूझ कर नहीं सता सकता!”

“ठीक है! लेकिन चल, पैर छू कर माफ़ी माँग!” काजल ने कहा।

सुनील तुरंत माँ के पैरों पर झुकने लगा। सुमन उससे बड़ी थीं - तो उनके पैर छूने में कैसा संकोच? लेकिन माँ ने ही उसको रोक दिया। एक कदम पीछे हटते हुए बोलीं, “नहीं नहीं आप...” और रुक गईं।

काजल को जो आधा प्रतिशत संदेह बाकी था, वो भी ख़तम हो गया।

उधर सुनील माँ को देख कर मुस्कुराया, “मैं आपको कभी नहीं सताऊँगा - और आज के बाद कभी भी आपको रोने का मौका नहीं दूँगा। मेरे कारण तो कत्तई नहीं!” और फिर चेहरे पर दृढ़ भाव लाते हुए बोला, “और अगर किसी ने आपको रुलाया न, तो सौगंध है माँ कि - मैं उसको रुलाए बिना छोड़ूँगा नहीं!”

जिस तरह से सुनील ने यह बात कही थी, काजल का दिल गर्व से भर आया। हाँ, ऐसे ही अपनी पत्नी की रक्षा करनी चाहिए एक पति को। अब वो पूरी तरह से आश्वस्त थी सुनील और सुमन को ले कर।

सुनील मुस्कुराया और फिर अचानक ही एक गीत गुनगुनाने लगा,

हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे...

हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे, मरने वाला कोई
मरने वाला कोई ज़िन्दगी चाहता हो जैसे

हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे…

माँ का दिल धक् से रह गया! सुनील अपनी अम्मा के सामने ही उनसे अपने प्रेम का इज़हार कर रहा था!

माँ जिस हालत में खड़ी थीं, उनको उस बात से शर्म नहीं आ रही थीं। वो बात जैसे उनके लिए बेमानी थी। शर्म उनको इस बात से आ रही थी कि सुनील ऐसे खुल्लम-खुल्ला, अपनी अम्मा के सामने उनसे अपने प्रेम का इज़हार कर रहा था। उधर अपनी ड्रीम-गर्ल को ऐसे अपनी अम्मा के आलिंगन में बँधा देख कर सुनील अपनी किस्मत पर रश्क़ करने लगा!

सुनील ने बड़ी संजीदगी से माँ का एक हाथ पकड़ लिया। उसको मालूम था कि उसकी सुमन के बिना अब उसके जीवन का कोई वजूद नहीं है। अब उसकी ज़िन्दगी, उसकी सुमन से ही है! और वो यह बात माँ को बताना भी चाहता था।

ज़िंदगी बिन तुम्हारे अधूरी

ज़िंदगी बिन तुम्हारे अधूरी, तुमको पा लूँ अगर
तुमको पा लूँ अगर, हर कमी मेरी हो जाये पूरी

ज़िंदगी बिन तुम्हारे अधूरी…

माँ का हाथ पकड़े पकड़े ही वो उठ कर खड़ा हो गया और माँ को अपनी तरफ़ बुलाया। काजल ने उनको अपने आलिंगन से मुक्त कर दिया, और सुनील ने उनको अपने आलिंगन में भर लिया।

काजल इतने समय से सुनील को ‘प्रोपोज़ कर ले’ ‘प्रोपोज़ कर ले’ वाला राग सुना रही थी, और आज, उसके सामने ही उसका बेटा उसकी होने वाली बहू को एक रोमांटिक गाना गा कर प्रपोज़ कर रहा था। उसको इतनी प्रसन्नता बहुत समय में नहीं मिली थी। सुनील का गाना जारी रहा,

ले चलेंगे तुम्हें हम वहाँ पर

ले चलेंगे तुम्हें हम वहाँ पर, तन्हाई सनम
तन्हाई सनम, शहनाई बन जाये जहाँ पर

हम तुम्हें चाहते हैं ऐसे…

गाना ख़तम कर सुनील ने फिर से माँ के माथे को चूम लिया।

काजल बड़ी मुश्किल से खुद पर नियंत्रण रख पा रही थी। उसका मन हो रहा था कि वो कूद कूद कर, चिल्ला चिल्ला कर अपनी ख़ुशी का इज़हार करे। लेकिन बहुत ही मुश्किल से उसने अपने आपको ज़ब्त किया, अपनी भावनाओं पर लगाम कसा। वो अभी उन दोनों को ये नहीं बताना चाहती थी, कि वो उन दोनों की प्रेम कहानी के बारे में जानती भी है, और समझती भी है, और उन दोनों के प्रेम को उसका आशीर्वाद भी प्राप्त है।

‘दोनों साथ में कितने सुन्दर लगते हैं!’
‘कितनी सुन्दर जोड़ी है!’
‘मेरा बेटा और मेरी बहू!’
‘मेरा बेटा और मेरी बहू!’

बस यही सब सोच सोच कर उसका दिल बल्लियों उछल रहा था, और वो निहाल हुई जा रही थी। लेकिन बनावटी गुस्सा तो दिखाना ही था। और अगर बहू अपनी सास की प्रीतिपात्र हो, तो सास का बनावटी गुस्सा उसके अपने बेटे को ही झेलना पड़ेगा।

“मैंने माफ़ी माँगने के लिए कहा और साहब को गाने गाने हैं!” काजल ने बनावटी झिड़की लगाई, लेकिन उसका स्वर बड़ा आनंदित था, “बस, नाटक करने को बोल दो इनको! दिन भर चलता रहेगा वो नाटक! चल भग यहाँ से! जा कर इसके लिए कपड़े ला - और कितनी देर इसको ऐसे नंगी नंगी रखूँ? और हाँ, वापस आते आते बादाम तेल भी लेते आना।”

सुनील जाने लगा, तो काजल ने पीछे से चिल्ला कर आखिरी हिदायद दी, “और हाँ - एक ब्रा और पैंटी भी लेते आना साथ में!”

स्त्रियों के लिए यह सब इतनी अंतरंग वस्तुएँ होती हैं, कि पति या प्रेमी के अलावा किसी अन्य पुरुष को उनके बारे में ज्ञान नहीं होने देतीं। यहाँ काजल अपने बेटे को ही कह रही थी कि माँ के लिए उनके अधोवस्त्र लेता आए - मतलब साफ़ था! सुनील को माँ के इन वस्त्रों के बारे में भी आज मालूम होने वाला था।

सुनील के जाने के बाद, काजल ने बड़े प्रेम से माँ के दोनों गालों को चूम लिया, माँ के आँसू पोंछे और बहुत प्रेम से दुलारते हुए कहा, “ओ मेरी शोन चिरैया, बस बस! अब बस! अब और नहीं रोना! मैं हूँ न तुम्हारे साथ!” काजल ने माँ को ठीक किसी बच्चे की तरह दुलार करते हुए कहा, “अब तुम मेरी अच्छी सी, प्यारी सी, नन्ही सी बच्ची बन जाओ! ठीक है?”

काजल ने पहली बार माँ को ‘अपनी बच्ची’ बनने को कहा था। और उस बात पर माँ ने बड़ी सहजता से, बड़े भोलेपन से ‘हाँ’ में सर हिलाया। माँ को ऐसा करते हुए देख कर काजल का दिल पसीज गया और उसने माँ के गालों को अपने हाथों में बड़े प्रेम से ले कर, उनके माथे पर, गालों पर, और नाक के अग्र-भाग पर स्नेही चुम्बन दे दिया... और उनको अपने आलिंगन में भर लिया। ऐसे स्नेह भरे आश्वासन से माँ का दिल भी हल्का होने लगा। उनको थोड़ा धैर्य बँधा।

कुछ देर बाद सुनील हाथों में बादाम तेल, और माँ की साड़ी ब्लाउज, और उनके अधोवस्त्र ले कर वापस आ गया। काजल बड़े बेपरवाह तरीके से व्यवहार कर रही थी - जैसे सुनील के सामने माँ के साथ यह सब करना कोई ऐसी वैसी बात ही न हो! उसने सबसे पहले तो माँ के स्तनों पर बादाम तेल लगाया, जिससे सुनील के दिए लव-बाइट्स के निशान बहुत गहरे न हो जाएँ, और साथ में सुनील को जैसे समझा भी रही हो,

“देखो बेटा! कितनी कोमल सी स्किन है इसकी, और तुमने इतनी ज़ोर से चूसा है! ऐसे करने से तो चोट लगनी ही है, और दाग भी पड़ जाने हैं!” काजल ने लव-बाइट्स के निशानों पर बादाम तेल सहलाते हुए कहा, “आराम से चूसो... आराम से चूमो! कहीं भागी थोड़े न जा रही है ये! और इसकी चूचियाँ भी न... अभी सूखी सूखी हैं। ज़ोर से चूसोगे तो डैमेज हो जाएगा इनको। जब इनमें दूध आने लगेगा, तब तसल्ली से खूब पीना। तब तक आराम से! ठीक है?”

काजल की इस द्विअर्थी बात का मर्म न तो सुनील ही समझ पाया और न ही माँ!

“जी अम्मा!”

“और इसकी बूनियों पर बादाम तेल लगा दिया करो! स्किन बढ़िया हेल्दी रहेगी, और ग्लो करेगी!”

“जी अम्मा!”

काजल ने माँ की पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया, तो वो सरक कर गिरने लगा। माँ को लाज आ गई, और वो उसको सम्हालने लगीं।

“ये देखो - अभी दस मिनट पहले तुमको नंगी किए हुए था, तब शर्म नहीं आ रही थी! और मेरे सामने शर्म आ रही है!” काजल ने इस बार माँ की टांग खींची, “पहली बार देख रही हूँ क्या तुमको नंगी नंगी?”

माँ बेचारी क्या करतीं - उन्होंने खुद को काजल के रहमोकरम पर छोड़ दिया।

“इत्ती शुन्दर शुन्दर है मेरी शोन चिरैया,” काजल फिर से तुतलाते हुए, दुलार से बोली, “तुझको तो प्यार कर कर के बिगाड़ दूँगी मैं!”

अपनी अम्मा को ऐसे दुलार से बात करते देख सुनील मुस्कुराया, ‘लगता है कि अम्मा को पटाना आसान रहेगा! बस, भैया का ही देखना है!’

“अरे, तू क्या देख रहा है? मन नहीं भरा?” काजल ने सुनील को प्यार से झिड़का, “माना कि तूने इसको नंगी देखा है, लेकिन अभी तू पलट जा! इसको पैंटी पहना दूँ!”

सुनील अपनी अम्मा की आज्ञा मान कर पलट गया। काजल ने माँ को चड्ढी पहनाई। फिर नई पेटीकोट और साड़ी पहनाई। पता नहीं माँ ने ध्यान दिया भी या नहीं, लेकिन काजल ने सबसे अंत में उनको उनकी ब्रा और ब्लाउज। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान सुनील वहीं पर मौजूद रहा - वो अलग बात है कि शुरू के कुछ पल पलटे रहने के बाद, वो वापस माँ को निहारने उनकी ओर सम्मुख हो गया। उसको शक भी नहीं हुआ कि उसकी अम्मा, उसकी होने वाली बीवी को अपनी बेटी जैसा ही लाड़ दे रही थीं। सुनील जान बूझ कर एक रंग बिरंगी, जॉर्जेट की हल्की वज़न वाली साड़ी लाया था। उस साड़ी को पहनने के बाद माँ कितनी सुन्दर लग रही थीं, उनको यह देखना चाहिए था।

“एक बात कहूँ, दीदी?” काजल ने फिर से औपचारिक होते हुए कहा, “अब से न... फ़ीकी फ़ीकी साड़ियाँ मत पहना करो। ऐसी ही रंग बिरंगी, सुन्दर सुन्दर साड़ियाँ पहना करो! देखो न, कितनी सुन्दर सी लग रही हो! बिलकुल गुड़िया जैसी! प्यारी प्यारी!” काजल ने नज़र भर कर माँ को देखा, फिर सुनील की तरफ़ देख कर, “खूब सुन्दर लग रही है न, सुनील!”

“हाँ अम्मा! बहुत सुन्दर!” सुनील ने कहा।

उसकी आँखों से माँ के लिए जो प्रेम बरस रहा था, वो काजल से छुप नहीं सकता था। वो आज कितनी खुश थी, उसको शब्दों में बयान कर पाना संभव नहीं है! माँ ने धीरे से पलकें उठा कर सुनील की तरफ़ देखा। सुनील ने काजल की आँखों से चुरा कर, होंठों से ही बना कर, हवा में माँ को एक चुम्मा भेजा। माँ ने शरमा कर वापस अपनी नज़रें नीची कर लीं।

“हाय! कहीं मेरी ही नज़र न लग जाए,” काजल ने कहा, और अपनी आँखों से थोड़ा काजल पोंछ कर उसने माँ के माथे के कोने पर लगा दिया, “खूब सुन्दर! तुम ऐसी ही रंग बिरंगी साड़ियाँ पहना करो! है न सुनील?”

“हाँ हाँ, अम्मा! बिलकुल! लेकिन अम्मा, केवल साड़ी ही क्यों पहनें... शलवार कुरता भी पहना करें!” सुनील ने सुझाया।

“अरे हाँ हाँ! क्यों नहीं! बिलकुल पहने!” काजल ने छूटते ही कहा, “और तू केवल बातें ही बनाया कर! क्यों नहीं कुछ सुन्दर सुन्दर कपड़े ले आता इसके लिए?” काजल ने सुनील को उलाहना दी, “कुछ लाओगे, तभी तो पहनेगी! साड़ी, शलवार कुरता, जीन्स टी-शर्ट, स्कर्ट ब्लाउज, जो पहनाओगे, वो पहनेगी! क्यों नहीं पहनेगी? है न दीदी?”

माँ तो इस समय ऐसी थी कि कुछ कहने की अवस्था में नहीं थी। डैड के पहले हार्ट-अटैक के बाद से पहली बार उन्होंने ऐसी रंगीन साड़ी पहनी थी। उनके मन में जो एहसास इस समय था, उसको शब्दों में बयान करना बहुत ही अधिक मुश्किल है। बस, समझ जाइए।

“अम्मा,” सुनील ने शरारत से कहा, “वो दूसरी अलमारी में कुछ निक्कर और टी-शर्ट्स रखे हुए हैं!”

“ओह, हाँ - देवयानी दीदी की होंगे!” काजल ने तथ्यात्मक तरीके से कहा, और फिर अचानक ही बोली, “ओह, तेरा मतलब इसको नेकर और टी-शर्ट पहना दूँ, यह बोल रहा है?”

सुनील ने दाँत निपोरते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“अरे तो ले आ! इसमें इतना की सोच रहा है?”

अपनी अम्मा की सहमति सुन कर सुनील की बाँछे खिल गईं - वो लपक कर वापस कमरे की तरफ़ भागा।

काजल और सुनील ऐसे बर्ताव कर रहे थे कि जैसे माँ को क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं - उस निर्णय में माँ की रज़ामंदी का कोई मोल ही नहीं है। काजल माँ के साथ वैसे ही बर्ताव कर रही थी कि जैसे वो सच में उसकी बच्ची हों। माताएँ अपने बच्चों को अपने हिसाब से ही तो कपड़े लत्ते पहनाती हैं। उसमें बच्चों की रज़ामंदी थोड़े न पूछी जाती है। देखना बस यह होता है कि बच्चे उन कपड़ों में आराम से हैं, और सुन्दर लग रहे हैं या नहीं!

माँ मुँह से तो कुछ न बोल सकीं लेकिन ‘न’ में सर हिलाने लगीं।

“अरे क्या हो गया? अभी तो मैं समझा रही थी कि तुम थोड़ा स्वच्छंद तरीके से रहा करो अब!”

“लेकिन काजल...”

“कोई लेकिन वेकिन नहीं! अब से तुम मेरी बात सुना करो!” काजल ने बड़े अधिकार से कहा, “मेरा बस चले, तो तुमको नंगी रखा करूँ! लेकिन फिलहाल यहाँ से शुरू करते हैं!”

माँ चुप हो गईं - सुनील को मन ही मन अपना पति स्वीकारने के साथ साथ ही अब काजल भी उनकी माँ वाले स्थान पर आ गई थी। कोई संस्कारी बहू अपनी सासू माँ से बहस नहीं करती, और उसकी बातें मानती है। वैसे भी काजल की बातें नाजायज़ नहीं थीं। वो बस इतना ही चाहती थी कि माँ सुन्दर सी दिखें! इस बात का क्या विरोध किया जाए और क्यों विरोध किया जाए?

माँ ने नोटिस तो किया कि काजल अचानक ही उनसे बड़े अधिकार वाले अंदाज़ में बातें करने लग गई थी, लेकिन क्यों, वो उनको समझ नहीं आया। वैसे भी उनको काजल का यह बदला हुआ व्यवहार बुरा नहीं लग रहा था, बल्कि अच्छा लग रहा था। क्योंकि काजल की बातों में उनके लिए स्नेह और लाड़ साफ़ साफ़ झलक रहा था।

“मेरे सब बच्चे हल्के फ़ुल्के कपड़े पहनते हैं! तुम भी वैसे ही रहो!”

“लेकिन मैं बच्ची थोड़े ही न हूँ!” माँ ने सकुचाते शरमाते कहा।

“हो बच्ची! मेरे लिए तो हो!” काजल बोली, और माँ की साड़ी फिर से उतारने लगी, “और हमेशा रहोगी!”

नई साड़ी थी, इसलिए उतारने के बाद वो उसको तह कर के रखने लगी। इतने में सुनील एक चमकदार नारंगी रंग की टीशर्ट और ग्रे रंग की निक्कर लेता आया। अपनी पसंद से उसको जो समझ आया वो उठा लाया था। बस, वो माँ के शरीर पर सफ़ेद, या कोई भी फ़ीका रंग नहीं देखना चाहता था।

“अरे वाह! ये तो बड़े सुन्दर कपड़े हैं!” काजल ने उनको ले कर कहा, और फिर कपड़ों को सूँघा।

जब कपड़े एक लम्बे अर्से तक इस्तेमाल नहीं होते, तो उनमें से एक अलग महक आने लगती है। अक्सर वो महक खराब लगती है। लेकिन ढंग से रखने के कारण, इन कपड़ों से गंध नहीं आ रही थी। यह वो कपड़े थे, जो देवयानी ने ऑस्ट्रेलिया की यात्रा के लिए खरीदे थे। गर्मी के अनुकूल, बीच पर पहनने के लिए। पतले कॉटन की टी-शर्ट, और लिनन के शॉर्ट्स। आरामदायक, हल्के और सुन्दर दिखने वाले।

काजल ने इन कपड़ों को वापस सुनील के हाथों में दे दिया, और माँ की ब्लाउज के बटन फिर से खोलने लग गई। जब वो उनकी ब्रा का हुक खोल रही थी तो माँ सकुचाईं,

“इसको... तो रहने दो?” उन्होंने फुसफुसाते हुए कहा।

“अरे, इतनी गर्मी है! ऐसे ही ठीक है!” काजल भी फुसफुसाते हुए बोली।

माँ उसकी बात का विरोध नहीं कर सकीं, और कुछ ही पलों में वो फिर से केवल अपने पेटीकोट में खड़ी थीं।

इस बार काजल माँ के पेटीकोट का नाड़ा खोलते हुए सुनील से बोली, “तू उस तरफ़ देख!”

“लेकिन अम्मा?”

“हाँ, पता है - तूने इसको नंगी देखा है। लेकिन, अभी जो कह रही हूँ, वो कर!”

काजल की बात पर माँ शर्म से लाल हो गईं! आज का पूरा दिन उनके लिए असंभव जैसा था। उधर अपनी अम्मा का आदेश पाते ही सुनील पलट गया। हाँ वो उनको नग्न देखना चाहता था, लेकिन वो माँ का हर अंग वैसे भी देख ही चुका था। बस अपनी अम्मा के सामने अच्छा बच्चा बना रहना आवश्यक था उसके लिए। कुछ ही पलों में माँ पूरी तरह से नग्न हो कर काजल के सामने खड़ी थीं।

“ऐसे नोग्नो नोग्नो तुमी खूब शुन्दोर देखाचे!” काजल ने माँ से कहा।

सुनील ने मज़ाक करते हुए कहा, “अम्मा - पलट जाऊँ?”

“अभी नहीं!” काजल बोली, और माँ को कपड़े पहनाने लगी।

कुछ देर के बाद काजल बोली, “कैसी लग रही है, बता तो ज़रा?”

सुनील ने पलट कर माँ को देखा।

उसके होश फ़ाख़्ता हो गए। उनकी केवल एक चौथाई जाँघें ही ढँकी हुई थीं निक्कर से, इसलिए उनके दोनों सुकुमार, सुन्दर सी टाँगें अब शोभायमान थीं, और पूरी तरह से प्रदर्शित थीं। और उन पर वो नारंगी टी-शर्ट ऐसी शोभन हो रही थी कि क्या कहें! टी-शर्ट लम्बी नहीं थी - बस ऐसी थी कि माँ की नाभि से बस थोड़ा ही ऊपर तक ढँक रही थी। तो नाभि से थोड़ा ऊपर और काफी नीचे का हिस्सा उजागर था। कहने को सामान्य सी, लेकिन बेहद सेक्सी ड्रेस! आज उनके साथ इतना सब हो गया था, कि उनके दोनों चूचक भी आंशिक उत्तेजना से स्तंभित थे, और टी-शर्ट के ऊपर से उनका उभार साफ़ दिख रहा था। बिना ब्रा के भी उनके स्तन उन्नत थे - गुरुत्व का प्रभाव उन पर लगभग नगण्य था। साँसों के साथ ही ताल बैठा कर दोनों ऊपर नीचे हो रहे थे। कुल मिला कर उस ड्रेस में माँ का भोला सौंदर्य ऐसा लग रहा था जैसे वो उर्वशी या मेनका के जैसी ही कोई अप्सरा हों!

सुनील से कुछ कहते नहीं बना।

काजल ने सुनील की प्रतिक्रिया देखी तो मन ही मन, और ऊपर भी मुस्कुरा उठी।

‘हाँ, ऐसी ही सुंदरता, और ऐसा ही आकर्षण होना चाहिए बहू में! इसको देखो तो ज़रा - बोलती ही बंद हो गई है!’ मन ही मन उसको अपनी होने वाली बहू पर गर्व हो आया।

“आह!” काजल ने माँ को अपने आलिंगन में भर कर उनके माथे को चूम लिया, “नज़र न लग जाए कहीं!”

माँ नर्वस हो कर मुस्कुराईं और धीमे से बोलीं, “नहीं लगेगी! जो प्यार करते हैं उनकी नज़र नहीं लगती!”

“सुना?” काजल सुनील से बोली, “अपना मुँह बंद कर ले अब - नहीं तो मक्खी घुस जाएगी अंदर!”

कोई और समय होता तो माँ खिलखिला कर हँसने लगतीं, लेकिन उन्होंने जैसे तैसे अपनी हँसी पर नियंत्रण किया और केवल मुस्कुरा दीं। ऐसी ही हलकी फुल्की बातें करते हुए माँ थोड़ी संयत हुईं। माँ के मन में यह विचार तो अवश्य आ रहे थे कि काजल की बातें सामान्य नहीं थीं - लेकिन वो बातें अलग कैसे थीं, वो उनको ठीक से समझ नहीं आ रहा था। उन पर सुनील का पूर्ण प्रभाव आ चुका था, इसलिए काजल की बातें अप्रासंगिक नहीं लग रही थीं। और इसी कारण से उनमें असामान्यता देखना माँ के लिए मुश्किल हो रहा था। उधर सुनील को अपनी अम्मा से उलहनाएँ सुनने की आदत थी - वो उसकी ज्यादातर बातें एक कान से सुनता और दूसरे से निकाल देता। लेकिन अगर वो थोड़ा ठहर कर काजल की बातें सुनता और ध्यान से सोचता, तो समझ जाता कि काजल को उसके और माँ के बीच पक रही खिचड़ी सब समझ में आ रही है! कुछ देर बाद सुनील वहाँ से चला गया - आभा और लतिका को वापस लाने।
क्या कहें
क्या ना कहें
यह कैसी मुस्किल हाय
ऋत मिलन की अब सजने लगी है
काजल अपनी उम्र से जहां आगे निकल रही है
वहीं सुमन अपनी भाव और आवेग से उम्र से पीछे जा रही है
 

Kala Nag

Mr. X
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अंतराल - पहला प्यार - Update #23


उसके बाद माँ पूरा समय काजल के ही निकट रहीं, लेकिन फिर भी वो उससे कुछ कह न सकीं। काजल समझ सकती थी, कि माँ उसको इन सारे घटनाक्रम के बारे में बताना चाहती हैं, लेकिन हिचक और शर्म के कारण कुछ कह नहीं पा रही हैं। कहे भी तो कैसे - वो बेचारी इसी उधेड़बुन में होगी कि कैसे वो अपनी सहेली से यह कह दे कि वो उसके बेटे से शादी करना चाहती है! यह बात कहना मुश्किल तो है ही बहुत! खैर, जब सुविधा हो, जब ठीक लगे, तब बताए। अपनी सबसे करीबी सहेली से ये राज़ वो कब तक छुपाएगी? वैसे भी, काजल तो मन ही मन पहले से ही माँ को अपनी बहू के रूप में स्वीकार कर चुकी थी, और वो इस बात से बहुत खुश भी थी। अब तो सब कुछ केवल औपचारिकता मात्र थी!

मन ही मन वो अब इस घर में होने वाले विवाह महोत्सव के बारे में सोचने लगी और उसकी रूपरेखा बनाने लगी!


**


लतिका स्कूल से आते ही माँ की गोद में बैठ गई - अपनी अम्मा से अधिक वो अपनी ‘मम्मा’ की दीवानी थी। दस साल की बच्ची आकार में छोटी नहीं रहती - लेकिन माँ उसको जब देखो तब अपनी गोद में ही लिए रहतीं! वैसा ही हाल आभा का था - वो या तो सुनील की गोद में सवारी करती, या फिर काजल की। अपनी दादी के पास वो तब आती, जब उसको कोई ख़ास वस्तु की आवश्यकता होती - जो अन्य लोग न दे रहे हों। काजल हँस कर अक्सर कहती कि इस घर में दो बच्चे हैं, और उनके अपने अपने पसंद के घोड़े हैं! वैसे सुनील अक्सर ही दोनों बच्चों को अपनी एक एक बाँह में उठा कर उनको दुलार करता था। वो आभा और लतिका पर अपनी जान छिड़कता था - हम सभी को ऐसा लगता था कि जैसे वो दोनों बच्चों पर अपना सब कुछ न्यौछावर कर सकता था!

वाओ मम्मा! आप कितनी क्यूट लग रही हो टी-शर्ट और निक्कर में!” लतिका बोली, “है न मिष्टी?”

“हाँ दीदी! दादी इस लुकिंग वैरी क्यूट!” आभा अपनी मीठी मीठी, तोतली आवाज़ में बोली। लतिका की पूँछ को लतिका की हर बार में हाँ में हाँ मिलाना ही होता था।

खाने की टेबल पर रोज़ के जैसा ही खुशनुमा माहौल था!

लतिका माँ की गोद में बैठी थी, और आभा सुनील की! माँ बड़े स्नेह से लतिका को अपने हाथों से खाना खिला रही थीं, और लतिका के साथ खिलखिला कर हँस रही थीं, और उसके साथ खेल भी रही थीं। और सुनील उनको अपनी छोटी बहन पर ऐसे ममता बरसाते हुए देख कर मुस्कुरा रहा था। उसका दिल इस दृश्य को देख कर गदगद हो गया।

माँ अपनी ‘ननद’ को अपनी गोदी में बैठाए हुए खाना खिलाती हुई कभी कभी, चोरी छुपे, अपने ‘होने वाले पति’ की तरफ़ देख लेतीं, तो ‘उनको’ अपनी ही तरफ़ देखता हुआ पातीं। ‘उनकी’ आँखों में अपने लिए प्रेम देख कर उनका दिल गर्म हो गया। सच में - भगवान की असीम अनुकम्पा है उन पर! ऐसे कितने ही लोगों को सेकंड चांस मिलता है अपनी पूरी ज़िन्दगी में? लेकिन उनको मिला है, और वो इसी बात से धन्य हो गईं थीं! कुछ तो अच्छे काम किए होंगे उन्होंने!

लतिका अपने दादा और अपनी बोऊ दी को चोरी छुपे एक दूसरे को देखता हुए देख कर और भी खुश होती। उन दोनों को पास लाने में, मिलाने में, उसकी भी अहम भूमिका थी। और इस बात कर उसको भान था। सच में - मम्मा जैसी बोऊ दी मिलना कितना अच्छा होगा न! वो और मिष्टी खूब मज़े करेंगे इनकी शादी में। और जब इनको बेबी होगा, तब दूध पिलाने के लिए दो दो मम्मियाँ हो जाएँगी! वाओ! यह सोचते सोचते उसकी आँखें बोऊ दी के सीने पर पड़ीं - उनके दोनों चूचकों के उभार उनकी टी-शर्ट से दिख रहे थे। उसने मन ही मन प्रार्थना करी कि बड़ी हो कर वो अपनी मम्मा - ओह, मतलब अपनी बोऊ दी - जैसी ही बने! हू-ब-हू उनकी कॉपी - उनकी सभी क्वालिटीज़ मिल जाएँ! उनकी जैसी ही ब्यूटीफुल हो जाए! इस ख़याल पर वो खुद ही खुश हो कर अपनी बोऊ दी को आलिंगन में भर कर चूमने लगी।

उधर काजल अपने सभी ‘बच्चों’ को ऐसे स्नेह के बंधन में बंधा हुए देख कर बहुत खुश थी! उसका परिवार अभी से ही खुशहाल था, भरा-पूरा था! लेकिन जब हमारे जीवन में खुशियाँ रहती हैं, तो हम चाहते हैं कि वो खुशियाँ और भी अधिक बढ़ें! काजल का भी बस यही हाल था - अब वो अविलम्ब सुमन को अपनी बहू के रूप में देखना चाहती थी। वो जल्दी से जल्दी अपने नन्हे-मुन्ने पोते-पोतियों का मुँह देखना चाहती थी - उन पर अपना प्रेम बरसाना चाहती थी - सास और दादी बनने के सुख का आस्वादन करना चाहती थी।

खाना खाते खाते उसने अचानक ही माँ की सूनी कलाईयों, सूने टखनों, और सूने गले को देखा। यह सब देख कर उसके दिल में एक टीस सी उठी! ऐसी स्त्री जो अपने शरीर से ज़ेवर उतार कर दूसरों को दे दे, उसका खुद का शरीर अनलंकृत रहे - वो दृश्य देख कर बेहद दुःख होता ही है। पिछले वर्ष जब काजल हमारे साथ रहने आई थी, तो माँ ने उसको अपने सारे गहने ज़ेवर दे दिए थे - यह कह कर कि अब वो सभी ज़ेवर गहने उनके लिए बेकार हैं। काजल ने बहुत मना किया, बड़ी विनती करी - उसको दुःख हो रहा था कि माँ जैसी प्यारी सी, सुन्दर सी स्त्री की ऐसी दशा हो गई थी - लेकिन माँ की ज़िद के आगे उसकी एक न चली।

लेकिन तब की बात और थी, और अब की बात कुछ और! अब तो काजल खुद ही माँ की अम्मा/सास के रोल में आने वाली थी। उसने मन ही मन कुछ सोचा, और मुस्कुराने लगी! जब भोजन समाप्त हो गया, तब काजल ने माँ को उसके कमरे में आने को कहा।

“दीदी,” कमरे में आते हुए काजल माँ से बोली, “मैं कुछ कहूँगी तो प्लीज मुझे मना मत करना!”

“क्या हो गया काजल?” माँ ने उसी सहज और कोमल भाव से कहा। इस समय वो शांत लग रही थीं, भले ही उनके मन में अनेक विचार आ-जा रहे थे।

“नहीं, ऐसे नहीं! पहले बैठो!” कह कर काजल ने माँ को अपने बिस्तर पर बैठा दिया, और अपनी अलमारी की तरफ़ चल पड़ी।

जब वो वापस आई, तब उसके हाथ में एक छोटा बक्सा था, जिसमें सारे ज़ेवर रखे हुए थे।

“दीदी,” उसने बक्सा खोल कर माँ की ही दी हुई एक जोड़ी पायल निकालते हुए कहा, “ये, तुम रखो!”

“अरे काजल, लेकिन...”

“लेकिन वेकिन कुछ नहीं दीदी!” काजल ने बड़े अधिकार से कहा, “मैं कहे देती हूँ, कि अब से तुम मेरी सारी बातें मानोगी - आज से तुम बढ़िया बढ़िया, सुन्दर और रंग-बिरंगे कपड़े पहनोगी, और खूब सज-धज के रहोगी!”

काजल के कहने का अंदाज़ कुछ ऐसा था, और माँ के मन में काजल की छवि भी बदल रही थी, इसलिए माँ तुरंत इंकार नहीं कर सकीं।

“काजल...”

“न! अब कोई बहाना नहीं चलेगा! कोई बहस नहीं होगी इस बात पर! बस! अब बहुत हो गया!” काजल की आवाज़ कोमल, लेकिन दृढ़ थी। उसमें ‘सास’ वाला अधिकार भी था।

माँ का किंचित सा विरोध क्षणिक साबित हुआ।

फिर काजल ने एक सोने की पायल निकाली - पायल क्या, वो बस सोने की एक पतली सी ज़ंज़ीर थी, जिसके अंत में छोटे छोटे घुँघरू लगे हुए थे। पिछले कुछ समय से काजल अपनी होने वाली बहू के लिए ज़ेवर बनवाने लगी थी - उसकी जो भी बचत हो रही थी, और गाँव की संपत्ति बेच कर उसको जो भी मिला था, वो सब इसी में लग गया था। वैसे मेरी कंपनी में शेयरहोल्डिंग के कारण काजल के पास अपना धन था, लेकिन वो अलग बात है कि वो न तो उस धन को छूती ही थी, और न ही वो कोई ‘वेतन’ ही लेती थी। वो जब से माँ-डैड के साथ रहने गई थी, तब से परिवार के एक सदस्य के जैसे रहती थी। ऐसे में वेतन इत्यादि लेने देने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था! हमारा धन, हम सभी का था।

उसने पायल निकाल कर मुस्कुराते हुए माँ के टखने पर बाँधने लगी।

“काजल!” माँ हतप्रभ होते हुए बोलीं, “ये तो ‘बहू’ के लिए है!”

“मालूम है,” काजल हँसने लगी!

अब वो माँ को कैसे समझाए कि उसको मालूम है कि ‘तू ही मेरी बहू है’!

वो बोली, “फिलहाल तुम इसको पहनो! जब बहू आ जाएगी, तो मैं तुमसे माँग लूँगी!”

माँ विरोध करने की स्थिति में नहीं थीं, लेकिन फिर भी बोलीं, “काजल! ऐसे मत करो! प्लीज!”

“अरे क्यों? क्यों न करूँ? मेरी चीज़ है - मेरा मन जिसको देने का होगा, मैं उसको दूँगी!”

“पर काजल...”

“पर वर कुछ नहीं!” काजल ने कहा, और मनुहार करते हुए बोली, “अच्छा, कुछ ही देर के लिए पहन लो न? मेरा मन रखने के लिए?” काजल ने थोड़ा नाटकीय अंदाज़ में कहा, “अब इतना भी हक़ नहीं है मेरा तुम पर?”

इस बात पर माँ कुछ बोल न सकीं! हक़ की तो बात ही न करे वो! उसका तो पूरा हक़ है।

“हाँ,” काजल माँ को चुप देख कर खुश होते हुए बोली, “ऐसे ही अच्छी बच्ची की तरह बात मान लिया करो!”

“जबरदस्ती ही मुझको बच्ची बनाए हुए हो! घर में सबसे बड़ी हूँ मैं!” माँ ने कहा तो - लेकिन अपनी ही कही हुई बात पर से उनका भरोसा डगमगा गया। इसलिए आखिरी के चार शब्द बोलते बोलते उनकी जीभ लड़खड़ा गई।

“बच्ची तो तुम हो... और बहुत अच्छी भी हो,” काजल ने कहा, और बड़े स्नेह से माँ के गाल को छुआ! ऐसा करते हुए उसने अपनी अंगूठे से माँ की भौंह को सहलाया, “सबसे अच्छी भी, और सबसे प्यारी भी!”

फिर काजल ने सोने के दो जोड़ी कंगन निकाले और माँ की कलाइयों में पहनाते हुए बोली, “अब इनको सूना सूना मत रहने देना! मेरी कसम है तुमको!”

“पर...”

फिर उसने सोने के ही एक जोड़ी कर्णफूल निकाले, और माँ के कानों से उनकी छोटी छोटी बालियाँ निकाल कर, वो कर्णफूल पहनाने लगी, “अभी के लिए इनको पहनो, बाद में दूसरे पहनाऊँगी!”

“लेकिन...”

“अरे यार, कभी कभी मेरी मर्ज़ी का भी होने दिया करो!” काजल ने माँ को प्यार से झिड़कते हुए कहा।

माँ से कहते नहीं बना कि सब कुछ काजल की ही मर्ज़ी से तो होता है इस घर में!

कुछ देर तक दोनों कुछ न बोल सके। काजल को डर लग रहा था कि उसके मुँह से कहीं ऐसा वैसा न निकल जाए, कि सुमन को समझ आ जाए कि उसको उन दोनों के बारे में पता है। और माँ इसलिए नहीं बोल रही थीं क्योंकि उनके मन में भावनाओं का ज्वार भाटा आ जा रहा था।

“आज रात कुछ स्पेशल बनाऊँगी!” काजल ने यूँ ही कुछ कहने की गरज़ से कहा।

“क्यों?” माँ बोलीं, फिर बात को सम्हालते हुए बोलीं, “मेरा मतलब, क्या बनेगा?”

“सोचते हैं!” काजल बोली, “चलो अब! जा कर सो जाओ! रात का शाम को सोचेंगे!”

“यहीं सो जाऊँ?” माँ ने बड़े भोलेपन से कहा।

उनको अभी भी अपनी सहेली की ज़रुरत थी - अपनी मन की बातें कहने के लिए।

“अरे, तो पूछती क्यों है?” काजल ने फिर से उसी, ‘सास’ वाले अधिकार से कहा, “सो जा न यहीं! मैं सुला दूँगी!”

माँ को भी काजल के बोलने के अंदाज़ में थोड़ा अंतर सा महसूस हुआ - लेकिन वो समझ नहीं पाईं कि वो अंतर क्या है, और क्यों है। लेकिन जो भी था, काजल के बदले हुए अंदाज़ से, माँ को राहत अवश्य मिली।

माँ राहत से मुस्कुराई, “थैंक यू काजल!”

“वाह रे! थैंक यू की बच्ची!” काजल हँसते हुए बोली, “अब हम थैंक यू थैंक यू बोलेंगे एक दूसरे को?”

उसको हँसता देख कर माँ भी हँसने लगीं।

“आओ,” काजल ने कहा और कह कर माँ को अपने कोमल और ममतामय आलिंगन में भर कर अपने ही बगल लिटा दिया।


**


“माँ की याद आ गई,” माँ ने बहुत देर चुप रहने के बाद अचानक ही - लगभग बुदबुदाते हुए - कहा, “इतने साल हो गए, लेकिन न जाने कैसे उनकी याद ही नहीं आती थी। लेकिन आज, न जाने कैसे, अचानक ही, उनकी याद आ गई!”

“कैसी थीं वो?”

“मेरे टाइम की बाकी माओं जैसी!” बहुत माँ पुरानी बातें याद करती हुई बोलीं, “थकी हुई सी, झुंझलाई सी हमेशा! ... उनको चार बच्चे हुए थे - लेकिन सारों में केवल मैं ही बची रही। और कोई होती, तो बचे हुए बच्चे को प्यार से रखती, सम्हाल कर रखती। लेकिन उनको इस बात का कोई फ़र्क़ नहीं था। ... बहुत मारती थीं। पिटने के बाद मुझे समझ ही नहीं आता था कि क्यों मेरी पिटाई हुई! ... इसीलिए मैंने सोचा कि जब मेरे बच्चे होंगे, तो उनको केवल प्यार ही करूँगी - कभी नहीं मारूँगी।” माँ मुस्कुराईं।

काजल ने कुछ नहीं कहा - वो जानती थी कि माँ कुछ न कुछ अवश्य कहेंगी।

“कितनी ही तरह की पाबंदियाँ थीं - ये न करो, वो न करो! ... उनका मन इस बात से खट्टा था कि भैया मर गया, और मैं बची रही। लड़की - मतलब सर का बोझ! ... जी का जंजाल! बाबा के पास बहुत रुपए पैसे नहीं थे। बस, थोड़ी सी खेती थी। ... हाँ, लेकिन बाबा का रसूख़ था ... उनकी इज़्ज़त थी - गरीब होने के बावज़ूद। हमारे में शादी में लेन देन नहीं होता था ... लेकिन फिर भी, धूमधाम की शादी तो करनी ही होती थी न! इसलिए बाबा ने ज़मीन बेच दी। शादी के बाद जो पैसे बचे, वो हमारा घर बनाने में दे दिए। जब उनकी तबियत खराब हुई, तब उनकी मदद के लिए कोई न था। जब तक हमको मालूम हुआ, तब तक बहुत अधिक देर हो गई।” माँ की आँखों से आँसू निकल आए, “और उन्ही के दुःख में माँ भी चल बसीं।”

सच में - माँ के अतीत का यह अध्याय मुझे भी ठीक से नहीं पता था। मैं दादा-दादी के अधिक करीब था और उसकी वजह शायद यही रही हो कि होश सम्हालते सम्हालते नाना नानी नहीं रहे। मैंने न तो माँ से उनके बारे में बहुत पूछा ही, और न ही उन्होंने बताया ही। लेकिन न जाने क्यों आज माँ अपने जीवन के उन धुंधले पड़ गए पृष्ठों को उलट रही थीं।

“पढ़ने लिखने को ले कर कितना रोई थी मैं, कितना गिड़गिड़ाई थी। लेकिन कितनी कम उम्र में शादी कर दी। प्राइवेट ही सही, लेकिन ‘इनके’ कारण आगे की पढ़ाई हो पाई।” माँ बोलती जा रही थीं, “कभी कभी सोचती हूँ कि वो तो अच्छा हुआ कि अमर हो गया - अगर लड़की हो जाती, तो शायद मेरी सास से अधिक दुःख मेरी माँ को होता।”

माँ की आँखों के आँसू और भी अधिक बढ़ गए।

“शादी के लिए कितनी सारी पाबंदियाँ, कितनी सारी नसीहतें दी थीं कुछ ही दिनों में। कोई उम्र थी मेरी वो सब समझने की? यह करना, वो मत करना, अपने सास ससुर का ऐसे आदर करना, ये ऐसे पकाना, इस तरह रहना, उस तरह मत रहना...! ऐसे पाबंदियों के साथ कैसे जिए कोई?” काजल माँ की आवाज़ का खालीपन सुन पा रही थी, “शायद इसीलिए उनकी याद नहीं आई इतने दिन!”

“तुम तो बहुत अच्छी माँ हो लेकिन!” काजल ने कहा।

“हा हा! तुम भी तो! सबसे अच्छी माँ!” माँ ने कोमलता से कहा।

काजल का दिल पसीज गया। नानी की कहानी उसको नहीं मालूम थी। वो पूछती भी नहीं थी। अब उसको समझ में आया कि माँ उसको नानी के बारे में कभी क्यों नहीं बताती थीं। काजल ने माँ की आँखों के आँसू पोंछे और उनके माथे को चूमा।

“तो फिर मेरी बेटी बनने में तुमको क्या दिक्कत है?”

“कोई दिक्कत नहीं है!” माँ ने झिझकते हुए मुस्कुरा कर कहा, “... मुझसे कम उम्र की मेरी माँ! हा हा हा!”

“माँ की ममता उम्र की मोहताज नहीं होती है!” काजल ने माँ को समझाते हुए कहा।

“हाँ, वो भी है!” माँ ने इस बात को स्वीकारा, “जब भावना स्वच्छ होती है, तब ये सब बातें मायने नहीं रखतीं!”

माँ के आँखों के कोने से निकलते आँसुओं को काजल ने एक बार फिर से पोंछ दिया, “क्या हो गया? क्या सोच रही हो?”

“पता नहीं काजल,” माँ भी समझ नहीं रही थीं कि वो क्यों यह सब सोच रही थीं, “बस यूँ ही याद आ गया सब!” फिर अचानक ही मुस्कुरा कर बोलीं, “शायद इसलिए कि तुम मुझे इतना लाड़ देती हो, कि जितना मुझे मेरी माँ ने नहीं दिया कभी।”

काजल ने भावातिरेक के मारे माँ को अपने आलिंगन में कस कर बाँध लिया, “रही होऊँगी तुम्हारी माँ किसी जनम में!”

माँ कुछ कहना चाहती थीं, लेकिन चुप रह गईं। आज का दिन इतना अच्छा जा रहा था कि वो उसके सुख का पूरी तरह से आस्वादन कर लेना चाहती थीं। ऐसा न हो कि वो कुछ कह दें, और अचानक ही बात बिगड़ जाए।

“चलो,” काजल बोली, “अब सो जाओ!”
बात तो सही है
दीदी से बहु
काजल शादी की बात करेगी तो कैसे
बार बार राजकुमार और कमल हासन की वह फिल्म याद आ रहा है
जहां राज कुमार एक प्रश्न हेमा मालिनी, पद्मिनी कोल्हापुरे और कमल हासन से करता है

कौन हमरे पैर पड़ेगा या हम किसके पैर पड़ेंगे किस रिश्ते से
 
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