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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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avsji

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ये कहानी जितना दिल को सुकून देती है उससे ज्यादा दर्द, कहानी के हीरो की लाइफ एक सर्किल में चलती नजर आती है, कुछ सालो की खुशियां और फिर इन खुशियों का छीन जाना कई बार बहुत ही दयनीय लगता है। लेखन बहुत ही सुंदर है मगर बार ये घटनाएं दिल को विचलित करती है। अगर ये अच्छी घटनाएं है तो बहुत दुखद है और कल्पनाएं है तो थोड़ा और स्कारात्मक और खुशहाल ट्विस्ट की जरूरत है.

जी -- अमर (असली नाम नहीं) भाई साहब मेरे अनन्य मित्रों में से एक हैं। उन्हीं की कहानी है। कोई एक तिहाई रचनात्मक स्वतंत्रता मैंने ली है इस कहानी को लिखने में। लेकिन अधिकांश बातें सत्य हैं। इसीलिए उनकी कहानी लिखने की प्रेरणा मिली।
बेहद बढ़िया व्यक्ति हैं वो, और भाभी जी भी। उनको दुःख भी खूब मिले और सुख भी। जीवन में सब कुछ सकारात्मक नहीं होता। बस यही सब इस गाथा में बताया है।
साथ बने रहें 🙏
 
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avsji

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sahi...................

भाई कम से कम तीन लाख शब्द लिख चुका हूँ अब तक इस कहानी में।
उनके उत्तर में यह बहुमूल्य एक शब्द जो आपने लिखा है, वो भी बचा लेते 😂😂😂
 
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Lib am

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जी -- अमर (असली नाम नहीं) भाई साहब मेरे अनन्य मित्रों में से एक हैं। उन्हीं की कहानी है। कोई एक तिहाई रचनात्मक स्वतंत्रता मैंने ली है इस कहानी को लिखने में। लेकिन अधिकांश बातें सत्य हैं। इसीलिए उनकी कहानी लिखने की प्रेरणा मिली।
बेहद बढ़िया व्यक्ति हैं वो, और भाभी जी भी। उनको दुःख भी खूब मिले और सुख भी। जीवन में सब कुछ सकारात्मक नहीं होता। बस यही सब इस गाथा में बताया है।
साथ बने रहें 🙏
हम तो हमेशा से साथ ही है मित्र, कहानी के प्रारंभ में आपने रचना के संबंध में ये बोला था ही रचना वापसी भी होगी कहानी में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर तो क्या वो मोड़ अब आने वाला है?
 

avsji

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हम तो हमेशा से साथ ही है मित्र, कहानी के प्रारंभ में आपने रचना के संबंध में ये बोला था ही रचना वापसी भी होगी कहानी में एक महत्वपूर्ण मोड़ पर तो क्या वो मोड़ अब आने वाला है?
थोड़ा सब्र रखिए दोस्त 😊
इतने लंबे लंबे अपडेट क्यों देता हूँ? सब पता चल जायेगा।
 
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avsji

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भारत देश के स्वतंत्रता दिवस की मेरे सभी पाठकों को हार्दिक बधाई।

एक समय था, जब हमारा समाज, हमारा देश, अनेकानेक खण्डों में बंटा हुआ था।
खण्डित समाज दासत्व के लिए परिपक्व होता है। उस पर कोई भी अपना अधिकार साध सकता है।
कोई आश्चर्य नहीं कि कोई बाहरी शक्ति आ कर ऐसे समाज को अपना ग़ुलाम बना ले।

स्वाधीनता सहेज कर रखने वाली वस्तु है। अपना पारस्परिक स्नेह बनाएँ रखें।
व्यर्थ के प्रलापों, व्यर्थ के प्रपंचों, व्यर्थ के कुचक्रों में फंस कर अपने मित्रों से, अपने परिवार से बैर न गाँठें।
इससे समाज को बल मिलता है। वो संगठित रहता है। उसके पुनः दास बनने की सम्भावना क्षीण होती है।

मेरे दोनों बच्चे एक घण्टे पहले ही जाग कर पूरे घर को गुलज़ार किए हुए हैं।
उनके साथ इस दिन का महत्त्व, इस दिन की प्रसन्नता और भी अधिक बढ़ गई है।
 
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Kala Nag

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भारत देश के पचहत्तरवें (75) स्वतंत्रता दिवस की मेरे सभी पाठकों को हार्दिक बधाई।

एक समय था, जब हमारा समाज, हमारा देश, अनेकानेक खण्डों में बंटा हुआ था।
खण्डित समाज दासत्व के लिए परिपक्व होता है। उस पर कोई भी अपना अधिकार साध सकता है।
कोई आश्चर्य नहीं कि कोई बाहरी शक्ति आ कर ऐसे समाज को अपना ग़ुलाम बना ले।

स्वाधीनता सहेज कर रखने वाली वस्तु है। अपना पारस्परिक स्नेह बनाएँ रखें।
व्यर्थ के प्रलापों, व्यर्थ के प्रपंचों, व्यर्थ के कुचक्रों में फंस कर अपने मित्रों से, अपने परिवार से बैर न गाँठें।
इससे समाज को बल मिलता है। वो संगठित रहता है। उसके पुनः दास बनने की सम्भावना क्षीण होती है।

मेरे दोनों बच्चे एक घण्टे पहले ही जाग कर पूरे घर को गुलज़ार किए हुए हैं।
उनके साथ इस दिन का महत्त्व, इस दिन की प्रसन्नता और भी अधिक बढ़ गई है।
Independence Day India GIF by Glance Roposo
 
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अंतराल - स्नेहलेप - Update #1


कोई डेढ़ साल पहले, अपनी अकेली पड़ी अम्मा की सेवा करने हेतु काजल अपने गाँव चली गई थी। और फिर उसके बाद मेरे जीवन में ऐसी अप्रत्याशित उथल पुथल मची कि मेरी तरफ से उससे संपर्क ही नहीं हो पाया। हालाँकि उसके अपने गाँव जाने के आरंभिक दिनों में हम एक-दूसरे से चिट्ठी और फोन से संपर्क में बने रहे थे, लेकिन पिछले कुछ महीनों में वो भी नहीं हुआ था। उसकी आखिरी खबर मुझे यह मालूम हुई थी कि उसकी अम्मा नहीं रही थीं। उसके अपने गाँव जाने के कोई दस महीने बाद ही उनका देहांत हो गया। लगभग उसी समय देवयानी को कैंसर डिटेक्ट हुआ था। उसकी अम्मा की मृत्यु के उपरान्त उनकी जो थोड़ी बहुत संपत्ति थी, उसको ले कर उसका उसका उसके भाइयों के साथ झगड़ा चल रहा था। काजल अपने माँ बाप का घर बिकने नहीं देना चाहती थी, इसलिए उसने वहीं पर अपना डेरा डाल लिया था। इसी कारणवश, वो माँ और डैड के पास वापस नहीं जा पा रही थी। फिर अचानक ही हमारा सब कुछ बदल गया। खैर...

इस समय सुनील इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था, और अभी अभी अपने फाइनल ईयर में गया था। सुनील ने मेहनत करनी बंद नहीं की थी - वो एक बुद्धिमान स्टूडेंट था, और हर सेमेस्टर अपनी क्लास के टॉपरों में से रहता था। तो मतलब, हमारी मेहनत रंग लाई। वो हमेशा से ही एक होशियार और ज़िम्मेदार लड़का रहा है; इसलिए, मुझे उसकी उपलब्धियों पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ। उससे मुझे यही उम्मीदें थीं! मैं उसकी उपलब्धियों से बहुत खुश था, और बहुत गौरान्वित भी! सुनील मेरे लिए एक बेटे की तरह था, और उसने भी मुझे अगर अपना पिता नहीं, तो अपने पिता से कम भी नहीं माना। मुझे उम्मीद थी कि भविष्य में हम दोनों के बीच संबंध और भी घनिष्ठ और सौहार्दपूर्ण हो सकते हैं।

दूसरी ओर, काजल की बेटी लतिका, एक सुन्दर सी, प्यारी सी, गुणी लड़की के रूप में उभर रही थी। बुद्धिमान होने के बावजूद पढ़ाई लिखाई में वो बहुत तेज़ नहीं लग रही थी - संभव है कि गाँव में ट्रांसफर होने के कारण उसकी पढ़ाई लिखाई में व्यवधान आ गए हों! ऐसे में मन उचटना बहुत आसान होता है। लेकिन उसने फिजिकल एजुकेशन में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था। स्कूली स्तर पर होने वाले खेलों में - ख़ासतौर पर दौड़ में - वो हमेशा अव्वल नंबर आती थी - न जाने कितने मैडल, ट्रॉफियां और शील्ड्स उसने जीते थे - और वो भी इतनी कम उम्र में। वैसे भी, उसके व्यक्तित्व को विकसित होने, और निखरने में वैसे भी अभी बहुत समय था, क्योंकि वो अभी भी बहुत छोटी थी।

मैंने बहुत हिचकते हुए काजल को फोन किया। हिचक इस बात की थी कि जब मुझे अपनी ज़रुरत पड़ी, तब ही उसकी याद आई। काजल ने कभी भी अपने स्वार्थ के लिए मुझसे संपर्क नहीं किया। हमेशा मेरा भला चाहने देखने की आस में ही वो मुझसे बातें करती। लेकिन मैं... कैसा हो गया था मैं?

इतने दिनों के बाद बातचीत करते हुए हम दोनों ही बहुत भावुक हो गए। बिना कोई जलेबी बनाए मैंने उसको अपनी दयनीय स्थिति के बारे में बताया। काजल और देवयानी पिछले कोई डेढ़ सालों में नहीं मिले थे। लेकिन इस तरह की दूरियों से मन नहीं बँटता - प्रेम के सम्बन्ध नहीं बँटते। उसकी मौत की खबर ने काजल को भी तोड़ दिया। उसके जेहन में सबसे पहला ख़याल आभा का ही आया। ‘बिना माँ की बच्ची’ - यह सोच कर ही उसका दिल टूट गया। लेकिन उसको और भी गहरा भावनात्मक आघात तब लगा जब मैंने उसको डैड की मौत के बारे में बताया। वो खबर सुन कर वो पूरी तरह से टूट गई। कितनी देर तक वो रोई, मैं कह नहीं सकता। डैड ने काजल को इतना प्यार और इतना सम्मान दिया था, और उसको अपनी बेटी की तरह माना था। इसलिए उनका जाना, काजल के लिए भी बहुत बड़ा और व्यक्तिगत नुकसान था।

उसने बड़ी शिकायतें करीं, बहुत नाराज़गी दिखाई। मैंने भी अपराधी बने अपने ऊपर लगे हर आरोप को स्वीकार किया - हाँ अपराध तो किया था। काजल को इन सब के बारे में न बता कर मैंने उसको अपने से पराया कर ही दिया था। लेकिन जो दंड मुझे मिल गया था, और जो मिल रहा था, वो भी कोई कम नहीं था। उधर, काजल ऐसी स्त्री नहीं थी जो अपने मन में किसी के लिए द्वेष पाले। उसके विचार तुरंत ही माँ पर केंद्रित हो गए, और वो उनके बारे में पूछने लगी।

मैंने धैर्यपूर्वक उसे सब कुछ बताया। माँ के डिप्रेशन के बारे में, और अपने दैनिक संघर्षों के बारे में समझाया। अचानक ही उसको अपना पैतृक घर और संपत्ति बचाने या सम्हालने का ख्याल बचकाना और छोटा लगने लगा। उसकी ज़रुरत हमको थी। उसको भी यह बात समझ में आ रही थी। और यह कहने की कोई आवश्यकता नहीं, कि उसके अंदर हमारी देखभाल करने की इच्छा बलवती होने लगी।

बड़ा सम्बल मिला। भगवान् मुझसे ले रहे थे, लेकिन मेरे पास उन्होंने एक अचूक औषधि - मेरी संजीवनी - छोड़ रखी थी। मुझे हमेशा ही न जाने क्यों लगता कि अगर काजल है, तो सब साध्य है। वो सम्हाल लेगी मुझे। ऐसा यकीन आता। सात साल से अधिक के साथ ने यह विश्वास मेरे हृदय में पुख़्ता कर दिया था।

लेकिन उसके भी अपने खुद के कई काम तो थे ही। उनकी महत्ता मेरी समस्याओं के सामने कम तो नहीं थी।

“काजल, ऐसी कोई जल्दी नहीं है... अगर तुम जल्दी नहीं आ सकती, तो हम समझते हैं!”

“कैसी बकवास बात कर रहे हो तुम, अमर! तुम ये सब कह भी कैसे सकते हो? क्या तुम सभी मेरा परिवार नहीं? तुमको मेरी ज़रुरत है! उस नन्ही सी जान को मेरी ज़रुरत है! दीदी को मेरी ज़रुरत है! और ऐसे में मैं न आऊँ, तो लानत है मुझ पर!” काजल ने बड़े भावनात्मक जोश, और थोड़ा नाराज़गी से कहा!

“दीदी डिप्रेशन में हैं, और उस नन्ही सी, बिन माँ की बच्ची को देखभाल की ज़रूरत है! और तुम इन सब मुसीबतों के साथ बिलकुल अकेले हो! मैं कैसे देर कर सकती हूँ? पुचुकी की चिंता न करो। बस अभी अभी वो अगली क्लास में दाखिल हुई है। उसका नाम तो वहाँ, दिल्ली में भी लिख जाएगा। इसलिए मैं जैसे भी, जितनी जल्दी हो सकता है, वहाँ आ रही हूँ!”

हाँ, लतिका के लिए स्कूल देखना है। वो कोई समस्या नहीं थी। मेरा खुद का नेटवर्क इतना बड़ा हो गया था कि उस छोटी सी बच्ची के एक बढ़िया से स्कूल में दाखिले में कोई प्रॉब्लम न आती।

तो, यह तय रहा! मैंने कलकत्ता की फ्लाइट ली, और वहाँ से एक गाड़ी बुक कर के सीधे उसके गाँव पहुँच गया। हम आज कोई डेढ़ साल बाद मिले थे। मैं भावनाओं से ओतप्रोत था और काजल भी। कितनी ही सारी पुरानी यादें दौड़ कर चली आईं। मैं उसके गले मिल कर कितनी देर रोया! शायद उसने अपने मन में सैकड़ों शिकायतें भरी हुई हों - लेकिन मेरी हालत देख कर उसने कुछ कहा नहीं। कह नहीं सकता कि उसने मुझे माफ़ किया था या नहीं, लेकिन जब मेरे पैरों ने जवाब दे दिया, और जब मैं उसके पैरों में गिर पड़ा, तब उसकी आँखों से भी अनवरत आँसू फूट पड़े। उसके गिले शिकवे दूर हो गए।

लतिका अब नौ साल की हो गई थी, और बहुत प्यारी सी बच्ची लगती थी। अपनी माँ से भी प्यारी! बहुत सुखद आश्चर्य हुआ जब वो मुझे पहचान गई, और भाग कर मेरी गोदी में चढ़ गई। उसको देख कर मुझे आभा की याद हो आई। छोटे छोटे बच्चे! बिना पूरे परिवार के सुख के कैसे बड़े होंगे? अब बहुत हो गया - काजल को साथ में आना ही पड़ेगा। सच में, मैंने अपने परिवार को ही अपने से दूर हो जाने दिया था, और इस बात का ग़म मुझे हमेशा रहेगा। लेकिन अब और नहीं - मेरा जो भी परिवार बचा हुआ था, उसको मैं सहेज कर रखूँगा। मैंने उस समय यही प्रण लिया।

खैर, हमने जो कुछ भी बातचीत की, वो सब कुछ यहाँ लिखने की आवश्यकता नहीं है। बस यह बता देना पर्याप्त है कि काजल वापस मेरे - या यूँ कह लीजिए कि अपने - घर आने के लिए तैयार हो गई। वो जानती थी कि वो खुद भी इसी परिवार का हिस्सा है, इसलिए उसके लिए हमारे साथ फिर से जुड़ना मुश्किल नहीं होगा।


**


जब इतने लम्बे अर्से के बाद जब माँ ने काजल और लतिका को देखा तो वह बेहद भावुक हो गईं।

कोई छः साल पहले काजल उनके पास रहने को आई थी। और साथ रहते रहते उन दोनों में स्नेह और निकटता बहुत अधिक बढ़ गई थी। माँ ने काजल को हमेशा अपनी बहन और बेटी समान ही माना, और काजल ने माँ को! दोनों का पारस्परिक प्रेम रक्त के रंग से भी गाढ़ा था। दोनों का सम्बन्ध प्रेम, विश्वास, और आदर सम्मान पर आधारित था। एक समय था जब माँ इस उम्मीद में थीं कि शायद काजल और मैं शादी कर लेंगे - इस तरह से काजल में वो अपनी होने वाली बहू की छवि भी देखती थीं!

दोनों ने एक दूसरे को गले लगाया और बहुत देर तक रोती रहीं! वैसे मैं माँ को रोता देख कर उनको चुप कराने लगता था, लेकिन आज नहीं। अपनी सखी-सहेली की संगत में उनका रोना अच्छी बात थी। क्योंकि हो सकता है कि माँ खुद को अपने डिप्रेशन से कुछ हद तक उबार सकती हैं! काजल हमारा परिवार थी, इसलिए उसका सहारा हमारे लिए बहुत बड़ी बात थी।

काजल की उपस्थिति से मुझे कुछ तसल्ली हुई! माँ को, मुझे, और आभा को अंततः सहारा मिल गया। माँ को इतनी तेजी से घुलता ढलता देखना हृदय-विदारक था। विधवा होने की ये भी कोई उम्र है? उन्होंने अभी अपने जीवन में देखा भी क्या ही था? पूरी उम्र उन्होंने केवल त्याग ही किया था! क्या ही सुख मिला था उनको अभी तक? वो इतनी हंसमुख, मजाकिया, और चंचल महिला हुआ करती थीं... लेकिन अब, अब तो वो अपने उस रूप की परछाईं मात्र थीं! अब तो हमेशा उदास उदास रहती थी। न होंठों पर कोई मुस्कान, न आँखों में कोई चमक! जीवन की रंगत उनके चेहरे पर फ़ीकी पड़ती जा रही थी।

लेकिन काजल के आने से मुझे यह उम्मीद हो गई कि संभवतः वो फिर से अपने पुराने रूप में लौट आएँगी!

आभा उस समय लगभग चार साल की थी। उसको देखते ही काजल अपने घुटनों पर आ गई। उसे देख कर काजल को ‘हमारी’ बेटी की याद हो आई। उसके हृदय में ममता की टीस उठ गई। ‘बिन माँ की बच्ची’ को देख कर उसके दिल में ममता की नदी, अपना बाँध तोड़ कर उसकी आँखों के रास्ते से बहने लगी। आभा को काजल की याद नहीं थी - वो कोई ढाई साल की ही रही होगी, जब उसने आखिरी बार काजल को देखा था। इसलिए उसने अपने सामने बैठी, रोती हुई महिला को आश्चर्य से देखा।

“आजा मेरी पूता! अपनी अम्मा के सीने से लग जा मेरी बच्ची!” काजल सुबक सुबक कर बोल रही थी।

उसकी आवाज़ में कुछ ऐसी बात थी कि आभा के पैर स्वतः ही उसकी तरफ़ चल दिए। वो अलग बात है कि हमने उसको समझाया हुआ था कि वो अजनबियों से दूर रहा करे, उनसे बात चीत न करे इत्यादि। लेकिन शायद ममता की बोली में एक अलग प्रकार की शक्ति होती है! जिन्हे ममता की दरकार होती है, वो उस भाषा को सुन ही लेते हैं। नन्ही सी आभा को अपने सीने से चिपकाए, काजल न जाने कितनी देर तक रोती रही।

उधर माँ की हालत भी काजल के समान ही थी। लतिका ने उनके जीवन में एक पुत्री की कमी पूरी कर दी थी। वो उसकी ‘मम्मा’ थीं। अपनी बेटी से इतने समय बाद मिलने के कारण वो बेहद भावुक हो गईं थीं। लतिका ने जब प्रसन्नता और उत्साह से “मम्मा” कहा और उनसे चिपक गई, तो भावातिरेक में माँ के गले से आवाज़ आनी ही बंद हो गई कुछ देर तक!

घर का माहौल बेहद भावुक हो गया था - एक तरफ़ काजल रो रही थी; और दूसरी तरफ़ माँ और लतिका, दोनों के आँसू गिर रहे थे। बस मैं ही था, जिसने खुद को जैसे तैसे सम्हाले हुए था। आभा यह सब समझने के लिए अभी बहुत छोटी थी।

माहौल भावनात्मक रूप से भारी था, लेकिन न जाने क्यों अब मुझे लग रहा था कि अब सब ठीक हो जाएगा। काजल हमेशा से ही मेरा सम्बल रही है। उसके आ जाने मात्र से मेरा मन मज़बूत हो गया था।

“आप कौन हैं?” बहुत देर के बाद आभा ने काजल से पूछा।

“तेरी माँ हूँ मैं, मेरी बच्ची! तेरी माँ!” काजल की आँखों से आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

“माँ?” आभा ने कहा।

आभा ने प्रश्न किया था, लेकिन काजल को लगा कि उसने उसको ही ‘माँ’ कह कर पुकारा है। उसके लिए संचित सारी ममता उसके स्तनों में उतर आई। काजल को अपने स्तनों में एक टीस सी महसूस हुई।

कोबे थेके अमार मेये बुकेर दूध पायानी?

अब आभा को कैसे याद रहे कि उसने कब से माँ का दूध नहीं पिया। देवयानी अपने काम में बिजी रहने के बावजूद उसको नियमित स्तनपान कराती थी। लेकिन कैंसर होने से उसके मन में यह बात बैठ गई कि दूध से कैंसर की कोशिकाएँ आभा के अंदर चली जाएँगी। और तब से आभा का स्तनपान बंद हो गया। कीमो-थेरेपी शुरू होने के बाद वैसे भी स्तनपान पर पूर्ण विराम लग गया था।

उसने अपने ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा, “चिंता न कर मेरी पूता! तेरी माँ पिलाएगी न! तुझे मैं वो सारा प्यार दूँगी, जो तुझे चाहिए! वो सब प्यार! आजा बेटा!”

मुझे आश्चर्य हुआ कि ये क्या हो रहा है! फिर सोचा कि काजल ममतावश आभा को माँ वाला प्यार देना चाहती हो! लेकिन जब मैंने उसके एक चूचक के सिरे पर दूध की बूँद देखी, तब मुझे समझ में आया कि काजल को अभी भी दूध आता है। एक तरह से मुझे सही भी लगा कि आभा - मेरी बेटी - काजल का दूध पिए! दूध, जो मेरी - हमारी - बेटी के कारण उत्पन्न हुआ था। एक तरह से आभा का भी उस दूध पर अधिकार है!

आभा ने मेरी तरफ़ देखा - उसको मालूम नहीं था कि उसको क्या करना है। स्तनपान किये उसको एक साल से ऊपर हो गया था। बच्चे इतने अंतराल में बहुत कुछ भूल जाते हैं। उसको मेरी तरफ देखते देख कर काजल ने आभा को अपनी गोदी में उठा लिया।

“पापा को नहीं, अपनी माँ को देख मेरी बच्ची!” उसने आभा को अपनी गोदी में व्यवस्थित करते हुए कहा, “और मेरा दूध भी पहचान ले!”

आभा ने काजल के स्तनों की ओर देखा।

“इसको पी कर मुझे अपनी माँ होने का एहसास करा दे मेरी गुड़िया!”

काजल ने कहा, और आभा के मुँह में अपना एक चूचक दे दिया। बच्चों में एक सिक्स्थ सेन्स होता है शायद। पैदा होते भी जान लेते हैं कि स्तनों का क्या उपयोग है। और आभा को इसका ज्ञान तो था ही। उसने उस चूचक को चूसना शुरू कर दिया, और अगले ही पल उसको अपना पुरस्कार भी मिल गया। माँ का दूध! मीठा दूध!!

आभा को स्तनपान करते देख कर लतिका कहाँ पीछे रहने वाली थी? अपने गाँव वापस जाने से पहले, अपनी मम्मा की गोदी में बैठ कर उनका स्तनपान करना उसका सबसे पसंदीदा काम था। लिहाज़ा, लतिका ने भी माँ के ब्लाउज के बटन खोलने शुरू कर दिए। उसने बस एक बार माँ की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि डाली। माँ ने उसका मंतव्य समझ कर ‘हाँ’ में सर हिलाया। इतना इशारा बहुत था उसके लिए। कुछ ही समय में लतिका ने भी माँ के स्तनों को अनावृत कर के उनके चूचक पीना शुरू कर दिया। एक बच्चे का पुरस्कार माँ का दूध था, तो दूसरे का पुरस्कार माँ का स्नेह!

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अंतराल - स्नेहलेप - Update #2


लतिका बहुत प्यारी लड़की थी! और बहुत चंचल भी! कम से कम मुझे तो वैसा ही याद है उसके बारे में। वो ऐसे रहती थी कि जैसे उसे दुनिया की कोई परवाह ही न हो! बच्चों को तो ख़ैर वैसे ही रहना भी चाहिए। वो हमेशा हंसते खेलती रहती, हमेशा कोई न कोई प्यारी सी शरारत करती रहती। और ऐसी होने के बावजूद, दिल से वो बहुत ज़िम्मेदार लड़की भी थी। काजल इस बात को जानती थी, इसलिए उसने बड़ी चालाकी से लतिका को आभा की कस्टडी दे दी।

“लतिका, अब से इस नन्ही गुड़िया को सम्हालने की जिम्मेदारी तुम्हारी!” काजल ने कहा, और आभा की ज़िम्मेदारी उसको सौंप दी।

काजल ने लतिका को समझाया कि वो अपनी ‘छोटी बहन’ के लिए एक बढ़िया ‘रोल मॉडल’ बने। छोटी अपनी बड़ी बहन के हर काम का अनुसरण करेगी न - तो वो कैसे बोलती है, कैसा व्यवहार करती है, क्या करती है, कैसे पढ़ाई लिखाई करती है - इन सब बातों का असर आभा पर पड़ेगा। इसलिए लतिका को चाहिए कि वो उस बच्चे के लिए एक ‘अच्छा रोल-मॉडल’ बने।

दरअसल, इसी बहाने काजल चाहती थी कि उनकी बेटी थोड़ा ज्यादा जिम्मेदार तरीके से व्यवहार करने लगे। लतिका की पढ़ाई में व्यवधान तो आ ही गया था, इसलिए काजल को उसे ले कर थोड़ी चिंता सी रहती थी। बेशक, उसने यह सब बातें बड़े हल्के-फुल्के अंदाज में कहीं। और अगर उम्मीद के अनुसार लतिका ने वैसा ही व्यवहार करना शुरू कर दिया, तो बहुत अच्छा था! है न?

मुझे लगता है कि प्रत्येक बच्चा अपने तरीके से, बिना किसी पूर्वाग्रह के बड़ा होवे! माँ और डैड ने मुझे वैसे ही पाला था। लेकिन यह भी है कि अगर जिम्मेदारी की भावना, बच्चों में अच्छी आदतें और शिष्टाचार पैदा कर सकती है, तो क्यों न थोड़ी ज़िम्मेदारी बच्चों पर डाली जाएँ!


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कैसे छोटी छोटी सी बातें, आगे चल कर आपके जीवन को बड़ा लाभ देने लगती हैं - या दे सकती हैं! कोई सात साल पहले मैंने अपनी समझ में एक छोटा सा काम किया था - मैंने सिफारिश कर के सुनील का एडमिशन पास ही के एक बढ़िया से स्कूल में करवा दिया था। कितना छोटा सा काम था! लेकिन देखिए - उस एक काम... एक भलाई के बदले, काजल ने कितना कुछ दिया था मुझको और मेरे परिवार को! और अभी भी दे रही थी। सात साल पहले जो मेरे घर कामवाली बाई बन कर आई थी, आज वो इस घर का अभिन्न हिस्सा थी... समझिए कि इस घर की मालकिन थी। काजल पर मेरा भरोसा पृथ्वी के गुरुत्व के जैसा ही अडिग है! कमाल की स्त्री है काजल - नौकरानी, प्रेमिका, मेरी संतान की माँ, और बहन - किस भूमिका में वो मेरे साथ पूरी ईमानदारी से नहीं खड़ी हुई थी?

अपने आने के कुछ ही दिनों में काजल ने घर की सारी ज़िम्मेदारी अपने सर ले ली - घर का रख-रखाव, साफ़ सफाई, खाना-पीना, घर का सञ्चालन, माँ के देख-रेख, उनकी दवाईयाँ, इत्यादि! अचानक ही हमारे रहन सहन की गुणवत्ता बढ़ गई। हमारी दिनचर्या निश्चित और आरामदायक हो गई। इतने महीनों में इतना सुकून पहले नहीं महसूस किया। अगर प्रेम का कोई मानवीय रूप है, तो मेरे ख़याल से उसका नाम काजल ही होगा। आभा की मुस्कान और चहक, जो अचानक ही गायब होने लगी थी, वो वापस आने लगी। वो स्वस्थ भी दिखाई देने लगी। उसका खाना पीना, खेलना कूदना, यह सब काजल देख रही थी और साथ ही साथ वो उसको नियमित रूप से, दिन में तीन बार स्तनपान कराती।

माँ भी थोड़ा सम्हल गईं - उनकी सबसे पक्की सहेली अब उनके साथ थी। उनको बात चीत करने, और अपने दुःख बाँटने के लिए एक साथी मिल गई थी। वो डिप्रेशन में अवश्य थीं, लेकिन मुझे दिल में लग रहा था कि उनकी हालत शोचनीय नहीं रहेगी। साथ ही उनकी प्यारी ‘बेटी’ भी तो थी। लतिका ने उनके अंदर की माँ को वापस जीवित कर दिया था। दोनों बच्चों की हँसी और खेल कूद से मेरा घर वापस गुलज़ार होने लग गया था।

माँ को लतिका के रूप में अपनी ममता लुटाने का एक और उद्गम मिल गया था। माँ की बड़ी इच्छा थी कि उनकी मेरे अलावा एक और संतान हो, और अगर संभव हो, तो वो लड़की हो। जब काजल उनके साथ रहने को आई थी, तब लतिका में उनको अपनी वही बेटी दिखी। आभा तो खैर घर भर की बच्ची थी ही, और उनकी पोती थी - उससे एक अलग ही तरह का लगाव और दुलार था उनको। लेकिन लतिका को देख कर उनको ऐसा लगता था जैसे वो उनकी अपनी ही बेटी हो। उनका अधिकतर मातृत्व लतिका पर न्योछावर होने लगा। पहले भी यही होता था : जब काजल, लतिका और सुनील के साथ डैड-माँ के घर रहते थे, तब माँ ने लतिका और सुनील को पढ़ाने-लिखाने और उनकी देख-रेख की सारी ज़िम्मेदारी अपने सर ले ली थी। इसलिए यहाँ भी वही हुआ। सुनील तो नहीं था - लेकिन लतिका और आभा तो थे! तो उनको पढ़ाने-लिखाने और उनकी देख-रेख की ज़िम्मेदारी माँ पर थी। वैसे माँ दोनों बच्चों को उसी प्रकार से पाल रही थीं, जैसे उन्होंने मुझको पाला था। घर में अब वही, नेचुरल और आर्गेनिक जीवन पद्धति फिर से लागू थी। कुछ ही दिनों में दोनों बच्चों ने उस पद्धति को आत्मसात भी कर लिया।

लतिका और आभा का सम्बन्ध भी अनोखा सा था - थी तो वो खुद एक नौ साल की बच्ची, लेकिन अपने से छोटी आभा की देखभाल ऐसे करती जैसे वो खुद उसकी अम्मा हो! वो उसको पढ़ाती, उसके खेल में हिस्सा लेती। उसकी देखभाल करती।

काजल को भी माँ के साथ अपना पुराना रिश्ता कभी कभी याद आ जाता, तो वो भी माँ की छातियों से चिपक जाती। माँ तो ख़ैर थीं भी इतनी ममतामई कि उनका दिल सभी को प्रेम स्नेह देता रहता, फिर भी उनका स्नेह का भण्डार कभी खाली नहीं होता था।

मैं काजल को कोई वेतन नहीं देता था। उसने हमारे साथ रहने की बात मान कर, हम पर एहसान किया था। उसका बदला सैलरी दे कर नहीं चुकाया जा सकता था। मैंने उससे साफ़ कह दिया था कि वो इस घर की ‘स्वामिनी’ है। उसका जैसा मन करे, वो कर सकती है। हममें से कोई भी उससे उस बाबत कोई प्रश्न नहीं करेगा। उसको आदर सम्मान देने के लिए मैंने उसको अपने अकाउंट का जॉइंट होल्डर नियुक्त कर दिया। जब भी और जैसी भी उसको आवश्यकता हो, वो धनराशि बैंक से निकाल सकती थी। वो अलग बात है कि उसने अपने लिए एक पाई भी नहीं ली।

काजल के तरीके में भी कई अंतर आ गए थे - अब वो घर के खर्चे का पूरा लेखा-जोखा वो बराबर से रखती थी। अगर संभव होता, वो हर चीज़ का बिल अपने पास रखती, और एक रजिस्टर भी बना कर रखती। एक बार मैंने देखा था, कि वो लतिका को समझा रही थी कि यह काम कैसे किया जाता है। अद्भुत था यह सब! सच में, बच्चों को यह सब जितना जल्दी हो सीखना चाहिए। इससे ज़िम्मेदारी आती है। रुपए पैसे की समझ आती है।

जयंती दी भी बराबर हमारा हाल चाल लेती रहतीं। वो भी हमारा ही परिवार थीं। ससुर जी अक्सर आ जाते, और अपनी दोनों ‘पोतियों’ के संग खेलते। हमारे ज़ख्म गहरे थे, लेकिन भर रहे थे। वो मेरा दर्द समझते थे - उनको भी वही दर्द था। उनकी पत्नी भी बहुत पहले ही चल बसी थीं। इसलिए उनको समझ आता था कि मैं क्या झेल रहा था।

यह अब तक के मेरे जीवन का सबसे दुर्गम समय था - और मुझे ख़ुशी थी कि इस समय काजल मेरे साथ थी। अब इस समय की कठिनाई कम हो चली थी। यह सब क्यों? बस इसलिए क्योंकि कभी मैंने काजल के लिए ‘कुछ’ किया था। जीवन बहुत लम्बा होता है - इसलिए हमको चाहिए कि औरों के लिए अगर हम कुछ निःस्वार्थ भाव से कुछ कर सकते हैं, तो अवश्य कर दें। न जाने आगे जा कर उसका फल हमको किस रूप में मिल जाए! अगर न भी मिले, तो कम से कम मनःशांति तो मिलेगी ही न?


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अब करते हैं मेरी बात!

देवयानी की मृत्यु के उपरान्त उसकी जीवन बीमा राशि मुझे मिली। उसने जो भी प्रॉपर्टी बनाई थी, वो सब मेरे नाम लिख दी थी। ऑफिस से भी सेटलमेंट की धनराशि मुझे ही मिली। मैंने अधिकतर धनराशि या तो बिज़नेस में डाला, या फिर आभा और लतिका के नाम से इन्वेस्टमेंट कर दिया। जो धनराशि मैंने बिज़नेस में डाला, वो सब काजल, लतिका, और आभा के नाम से डाला। ससुर जी को इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी। वो समझ रहे थे कि काजल और लतिका की मेरे जीवन में क्या अहमियत है, और वो खुद भी इस बात से प्रसन्न हुए कि उनका दामाद इस तरह से सोचता है। माँ को भी डैड की मृत्यु पर बीमा राशि और अन्य धनराशि मिली। उनको डैड के स्थान पर कम्पैशनेट ग्राउंड पर उनके महकमें में नौकरी भी मिल रही थी, लेकिन उन्होंने वो लेने से इंकार कर दिया। क्योंकि नौकरी करने के लिए उनको अपने घर में, अकेले रहना पड़ता, जो कि अब उनके लिए असंभव हो गया था। माँ ने जो भी पैसा मिला, सब मुझे दे दिया। वैसे भी डैड और माँ के नाम जो भी कुछ संपत्ति थी, वो सब उन्होंने मेरे नाम लिख दी थी। तो मैंने वो सब धन अपने बिज़नेस में लगा दिया - माँ के नाम से। अब कंपनी के शेयरहोल्डर्स में मेरा पूरा परिवार शामिल था।

जयंती दी के कहने पर डेवी का जो घर था, उसको किराए पर चढ़ा दिया। मैं यह करना तो नहीं चाहता था, लेकिन दी की बात सही थी - अगर घर इस्तेमाल नहीं होता, तो जल्दी खराब हो जाता है। इसी तर्ज़ पर डैड और माँ के घर को भी साफ़ सफाई करवा कर किराए पर चढ़ा दिया। माँ ने भी जयंती दी जैसा ही तर्क दिया था। मेरा मन तो नहीं था - उस घर से कई सारी यादें जुड़ी हुई थीं। लेकिन माँ ने मुझे ‘बिना वजह’ भावुक न होने की सलाह दी। तो, घर की पहली मंज़िल के दोनों कमरों में हमारे (डैड और माँ के) आवश्यक सामान रखवा कर, ताला लगा दिया, और नीचे का हिस्सा किराए पर दे दिया। किराया कोई ऐसा बड़ा नहीं आता था, लेकिन हमारे घर के खर्च के लिए पर्याप्त धन आ जाता था।

छोटी छोटी बातें थीं, लेकिन इन सबका बड़ा लाभ हुआ। अब मैं अपने बिज़नेस पर पूरा ध्यान दे पा रहा था। काजल घर सम्हाल रही थी। तो वहाँ से भी चिंता समाप्त हो गई। और मुझे इस बात की आवश्यकता भी थी। देवयानी की - डैड की - और गैबी की याद को भुलाने - या यह कह लें कि डुबाने के लिए मुझे काम करने की, व्यस्त रहने की आवश्यकता थी। और यह सब तभी संभव हुआ, जब काजल ने घर सञ्चालन का कार्य-भार सम्हाल लिया। सच में - साक्षात् देवी का अवतार है वो! कोई बहुत ही अच्छे कर्म किये होंगे हम सभी ने, जो हमको काजल के प्रेम का, उसके स्नेह का अंश मिला।

काजल के साथ मेरा साथ अब कोई सात साल पुराना हो चला था। और इस दौरान काजल ने मेरे लिए - मेरे परिवार के लिए इतना कुछ कर डाला था कि मुझे तो लगता है कि उसका शुक्रिया अदा नहीं किया जा सकता। वैसे भी उसके इतने सारे एहसान थे हम पर, कि उसको शुक्रिया कहना मतलब उसका अपमान करने जैसा था।

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Lib am

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अंतराल - स्नेहलेप - Update #1


कोई डेढ़ साल पहले, अपनी अकेली पड़ी अम्मा की सेवा करने हेतु काजल अपने गाँव चली गई थी। और फिर उसके बाद मेरे जीवन में ऐसी अप्रत्याशित उथल पुथल मची कि मेरी तरफ से उससे संपर्क ही नहीं हो पाया। हालाँकि उसके अपने गाँव जाने के आरंभिक दिनों में हम एक-दूसरे से चिट्ठी और फोन से संपर्क में बने रहे थे, लेकिन पिछले कुछ महीनों में वो भी नहीं हुआ था। उसकी आखिरी खबर मुझे यह मालूम हुई थी कि उसकी अम्मा नहीं रही थीं। उसके अपने गाँव जाने के कोई दस महीने बाद ही उनका देहांत हो गया। लगभग उसी समय देवयानी को कैंसर डिटेक्ट हुआ था। उसकी अम्मा की मृत्यु के उपरान्त उनकी जो थोड़ी बहुत संपत्ति थी, उसको ले कर उसका उसका उसके भाइयों के साथ झगड़ा चल रहा था। काजल अपने माँ बाप का घर बिकने नहीं देना चाहती थी, इसलिए उसने वहीं पर अपना डेरा डाल लिया था। इसी कारणवश, वो माँ और डैड के पास वापस नहीं जा पा रही थी। फिर अचानक ही हमारा सब कुछ बदल गया। खैर...

इस समय सुनील इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था, और अभी अभी अपने फाइनल ईयर में गया था। सुनील ने मेहनत करनी बंद नहीं की थी - वो एक बुद्धिमान स्टूडेंट था, और हर सेमेस्टर अपनी क्लास के टॉपरों में से रहता था। तो मतलब, हमारी मेहनत रंग लाई। वो हमेशा से ही एक होशियार और ज़िम्मेदार लड़का रहा है; इसलिए, मुझे उसकी उपलब्धियों पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ। उससे मुझे यही उम्मीदें थीं! मैं उसकी उपलब्धियों से बहुत खुश था, और बहुत गौरान्वित भी! सुनील मेरे लिए एक बेटे की तरह था, और उसने भी मुझे अगर अपना पिता नहीं, तो अपने पिता से कम भी नहीं माना। मुझे उम्मीद थी कि भविष्य में हम दोनों के बीच संबंध और भी घनिष्ठ और सौहार्दपूर्ण हो सकते हैं।

दूसरी ओर, काजल की बेटी लतिका, एक सुन्दर सी, प्यारी सी, गुणी लड़की के रूप में उभर रही थी। बुद्धिमान होने के बावजूद पढ़ाई लिखाई में वो बहुत तेज़ नहीं लग रही थी - संभव है कि गाँव में ट्रांसफर होने के कारण उसकी पढ़ाई लिखाई में व्यवधान आ गए हों! ऐसे में मन उचटना बहुत आसान होता है। लेकिन उसने फिजिकल एजुकेशन में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था। स्कूली स्तर पर होने वाले खेलों में - ख़ासतौर पर दौड़ में - वो हमेशा अव्वल नंबर आती थी - न जाने कितने मैडल, ट्रॉफियां और शील्ड्स उसने जीते थे - और वो भी इतनी कम उम्र में। वैसे भी, उसके व्यक्तित्व को विकसित होने, और निखरने में वैसे भी अभी बहुत समय था, क्योंकि वो अभी भी बहुत छोटी थी।

मैंने बहुत हिचकते हुए काजल को फोन किया। हिचक इस बात की थी कि जब मुझे अपनी ज़रुरत पड़ी, तब ही उसकी याद आई। काजल ने कभी भी अपने स्वार्थ के लिए मुझसे संपर्क नहीं किया। हमेशा मेरा भला चाहने देखने की आस में ही वो मुझसे बातें करती। लेकिन मैं... कैसा हो गया था मैं?

इतने दिनों के बाद बातचीत करते हुए हम दोनों ही बहुत भावुक हो गए। बिना कोई जलेबी बनाए मैंने उसको अपनी दयनीय स्थिति के बारे में बताया। काजल और देवयानी पिछले कोई डेढ़ सालों में नहीं मिले थे। लेकिन इस तरह की दूरियों से मन नहीं बँटता - प्रेम के सम्बन्ध नहीं बँटते। उसकी मौत की खबर ने काजल को भी तोड़ दिया। उसके जेहन में सबसे पहला ख़याल आभा का ही आया। ‘बिना माँ की बच्ची’ - यह सोच कर ही उसका दिल टूट गया। लेकिन उसको और भी गहरा भावनात्मक आघात तब लगा जब मैंने उसको डैड की मौत के बारे में बताया। वो खबर सुन कर वो पूरी तरह से टूट गई। कितनी देर तक वो रोई, मैं कह नहीं सकता। डैड ने काजल को इतना प्यार और इतना सम्मान दिया था, और उसको अपनी बेटी की तरह माना था। इसलिए उनका जाना, काजल के लिए भी बहुत बड़ा और व्यक्तिगत नुकसान था।

उसने बड़ी शिकायतें करीं, बहुत नाराज़गी दिखाई। मैंने भी अपराधी बने अपने ऊपर लगे हर आरोप को स्वीकार किया - हाँ अपराध तो किया था। काजल को इन सब के बारे में न बता कर मैंने उसको अपने से पराया कर ही दिया था। लेकिन जो दंड मुझे मिल गया था, और जो मिल रहा था, वो भी कोई कम नहीं था। उधर, काजल ऐसी स्त्री नहीं थी जो अपने मन में किसी के लिए द्वेष पाले। उसके विचार तुरंत ही माँ पर केंद्रित हो गए, और वो उनके बारे में पूछने लगी।

मैंने धैर्यपूर्वक उसे सब कुछ बताया। माँ के डिप्रेशन के बारे में, और अपने दैनिक संघर्षों के बारे में समझाया। अचानक ही उसको अपना पैतृक घर और संपत्ति बचाने या सम्हालने का ख्याल बचकाना और छोटा लगने लगा। उसकी ज़रुरत हमको थी। उसको भी यह बात समझ में आ रही थी। और यह कहने की कोई आवश्यकता नहीं, कि उसके अंदर हमारी देखभाल करने की इच्छा बलवती होने लगी।

बड़ा सम्बल मिला। भगवान् मुझसे ले रहे थे, लेकिन मेरे पास उन्होंने एक अचूक औषधि - मेरी संजीवनी - छोड़ रखी थी। मुझे हमेशा ही न जाने क्यों लगता कि अगर काजल है, तो सब साध्य है। वो सम्हाल लेगी मुझे। ऐसा यकीन आता। सात साल से अधिक के साथ ने यह विश्वास मेरे हृदय में पुख़्ता कर दिया था।

लेकिन उसके भी अपने खुद के कई काम तो थे ही। उनकी महत्ता मेरी समस्याओं के सामने कम तो नहीं थी।

“काजल, ऐसी कोई जल्दी नहीं है... अगर तुम जल्दी नहीं आ सकती, तो हम समझते हैं!”

“कैसी बकवास बात कर रहे हो तुम, अमर! तुम ये सब कह भी कैसे सकते हो? क्या तुम सभी मेरा परिवार नहीं? तुमको मेरी ज़रुरत है! उस नन्ही सी जान को मेरी ज़रुरत है! दीदी को मेरी ज़रुरत है! और ऐसे में मैं न आऊँ, तो लानत है मुझ पर!” काजल ने बड़े भावनात्मक जोश, और थोड़ा नाराज़गी से कहा!

“दीदी डिप्रेशन में हैं, और उस नन्ही सी, बिन माँ की बच्ची को देखभाल की ज़रूरत है! और तुम इन सब मुसीबतों के साथ बिलकुल अकेले हो! मैं कैसे देर कर सकती हूँ? पुचुकी की चिंता न करो। बस अभी अभी वो अगली क्लास में दाखिल हुई है। उसका नाम तो वहाँ, दिल्ली में भी लिख जाएगा। इसलिए मैं जैसे भी, जितनी जल्दी हो सकता है, वहाँ आ रही हूँ!”

हाँ, लतिका के लिए स्कूल देखना है। वो कोई समस्या नहीं थी। मेरा खुद का नेटवर्क इतना बड़ा हो गया था कि उस छोटी सी बच्ची के एक बढ़िया से स्कूल में दाखिले में कोई प्रॉब्लम न आती।

तो, यह तय रहा! मैंने कलकत्ता की फ्लाइट ली, और वहाँ से एक गाड़ी बुक कर के सीधे उसके गाँव पहुँच गया। हम आज कोई डेढ़ साल बाद मिले थे। मैं भावनाओं से ओतप्रोत था और काजल भी। कितनी ही सारी पुरानी यादें दौड़ कर चली आईं। मैं उसके गले मिल कर कितनी देर रोया! शायद उसने अपने मन में सैकड़ों शिकायतें भरी हुई हों - लेकिन मेरी हालत देख कर उसने कुछ कहा नहीं। कह नहीं सकता कि उसने मुझे माफ़ किया था या नहीं, लेकिन जब मेरे पैरों ने जवाब दे दिया, और जब मैं उसके पैरों में गिर पड़ा, तब उसकी आँखों से भी अनवरत आँसू फूट पड़े। उसके गिले शिकवे दूर हो गए।

लतिका अब नौ साल की हो गई थी, और बहुत प्यारी सी बच्ची लगती थी। अपनी माँ से भी प्यारी! बहुत सुखद आश्चर्य हुआ जब वो मुझे पहचान गई, और भाग कर मेरी गोदी में चढ़ गई। उसको देख कर मुझे आभा की याद हो आई। छोटे छोटे बच्चे! बिना पूरे परिवार के सुख के कैसे बड़े होंगे? अब बहुत हो गया - काजल को साथ में आना ही पड़ेगा। सच में, मैंने अपने परिवार को ही अपने से दूर हो जाने दिया था, और इस बात का ग़म मुझे हमेशा रहेगा। लेकिन अब और नहीं - मेरा जो भी परिवार बचा हुआ था, उसको मैं सहेज कर रखूँगा। मैंने उस समय यही प्रण लिया।

खैर, हमने जो कुछ भी बातचीत की, वो सब कुछ यहाँ लिखने की आवश्यकता नहीं है। बस यह बता देना पर्याप्त है कि काजल वापस मेरे - या यूँ कह लीजिए कि अपने - घर आने के लिए तैयार हो गई। वो जानती थी कि वो खुद भी इसी परिवार का हिस्सा है, इसलिए उसके लिए हमारे साथ फिर से जुड़ना मुश्किल नहीं होगा।


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जब इतने लम्बे अर्से के बाद जब माँ ने काजल और लतिका को देखा तो वह बेहद भावुक हो गईं।

कोई छः साल पहले काजल उनके पास रहने को आई थी। और साथ रहते रहते उन दोनों में स्नेह और निकटता बहुत अधिक बढ़ गई थी। माँ ने काजल को हमेशा अपनी बहन और बेटी समान ही माना, और काजल ने माँ को! दोनों का पारस्परिक प्रेम रक्त के रंग से भी गाढ़ा था। दोनों का सम्बन्ध प्रेम, विश्वास, और आदर सम्मान पर आधारित था। एक समय था जब माँ इस उम्मीद में थीं कि शायद काजल और मैं शादी कर लेंगे - इस तरह से काजल में वो अपनी होने वाली बहू की छवि भी देखती थीं!

दोनों ने एक दूसरे को गले लगाया और बहुत देर तक रोती रहीं! वैसे मैं माँ को रोता देख कर उनको चुप कराने लगता था, लेकिन आज नहीं। अपनी सखी-सहेली की संगत में उनका रोना अच्छी बात थी। क्योंकि हो सकता है कि माँ खुद को अपने डिप्रेशन से कुछ हद तक उबार सकती हैं! काजल हमारा परिवार थी, इसलिए उसका सहारा हमारे लिए बहुत बड़ी बात थी।

काजल की उपस्थिति से मुझे कुछ तसल्ली हुई! माँ को, मुझे, और आभा को अंततः सहारा मिल गया। माँ को इतनी तेजी से घुलता ढलता देखना हृदय-विदारक था। विधवा होने की ये भी कोई उम्र है? उन्होंने अभी अपने जीवन में देखा भी क्या ही था? पूरी उम्र उन्होंने केवल त्याग ही किया था! क्या ही सुख मिला था उनको अभी तक? वो इतनी हंसमुख, मजाकिया, और चंचल महिला हुआ करती थीं... लेकिन अब, अब तो वो अपने उस रूप की परछाईं मात्र थीं! अब तो हमेशा उदास उदास रहती थी। न होंठों पर कोई मुस्कान, न आँखों में कोई चमक! जीवन की रंगत उनके चेहरे पर फ़ीकी पड़ती जा रही थी।

लेकिन काजल के आने से मुझे यह उम्मीद हो गई कि संभवतः वो फिर से अपने पुराने रूप में लौट आएँगी!

आभा उस समय लगभग चार साल की थी। उसको देखते ही काजल अपने घुटनों पर आ गई। उसे देख कर काजल को ‘हमारी’ बेटी की याद हो आई। उसके हृदय में ममता की टीस उठ गई। ‘बिन माँ की बच्ची’ को देख कर उसके दिल में ममता की नदी, अपना बाँध तोड़ कर उसकी आँखों के रास्ते से बहने लगी। आभा को काजल की याद नहीं थी - वो कोई ढाई साल की ही रही होगी, जब उसने आखिरी बार काजल को देखा था। इसलिए उसने अपने सामने बैठी, रोती हुई महिला को आश्चर्य से देखा।

“आजा मेरी पूता! अपनी अम्मा के सीने से लग जा मेरी बच्ची!” काजल सुबक सुबक कर बोल रही थी।

उसकी आवाज़ में कुछ ऐसी बात थी कि आभा के पैर स्वतः ही उसकी तरफ़ चल दिए। वो अलग बात है कि हमने उसको समझाया हुआ था कि वो अजनबियों से दूर रहा करे, उनसे बात चीत न करे इत्यादि। लेकिन शायद ममता की बोली में एक अलग प्रकार की शक्ति होती है! जिन्हे ममता की दरकार होती है, वो उस भाषा को सुन ही लेते हैं। नन्ही सी आभा को अपने सीने से चिपकाए, काजल न जाने कितनी देर तक रोती रही।

उधर माँ की हालत भी काजल के समान ही थी। लतिका ने उनके जीवन में एक पुत्री की कमी पूरी कर दी थी। वो उसकी ‘मम्मा’ थीं। अपनी बेटी से इतने समय बाद मिलने के कारण वो बेहद भावुक हो गईं थीं। लतिका ने जब प्रसन्नता और उत्साह से “मम्मा” कहा और उनसे चिपक गई, तो भावातिरेक में माँ के गले से आवाज़ आनी ही बंद हो गई कुछ देर तक!

घर का माहौल बेहद भावुक हो गया था - एक तरफ़ काजल रो रही थी; और दूसरी तरफ़ माँ और लतिका, दोनों के आँसू गिर रहे थे। बस मैं ही था, जिसने खुद को जैसे तैसे सम्हाले हुए था। आभा यह सब समझने के लिए अभी बहुत छोटी थी।

माहौल भावनात्मक रूप से भारी था, लेकिन न जाने क्यों अब मुझे लग रहा था कि अब सब ठीक हो जाएगा। काजल हमेशा से ही मेरा सम्बल रही है। उसके आ जाने मात्र से मेरा मन मज़बूत हो गया था।

“आप कौन हैं?” बहुत देर के बाद आभा ने काजल से पूछा।

“तेरी माँ हूँ मैं, मेरी बच्ची! तेरी माँ!” काजल की आँखों से आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

“माँ?” आभा ने कहा।

आभा ने प्रश्न किया था, लेकिन काजल को लगा कि उसने उसको ही ‘माँ’ कह कर पुकारा है। उसके लिए संचित सारी ममता उसके स्तनों में उतर आई। काजल को अपने स्तनों में एक टीस सी महसूस हुई।

कोबे थेके अमार मेये बुकेर दूध पायानी?

अब आभा को कैसे याद रहे कि उसने कब से माँ का दूध नहीं पिया। देवयानी अपने काम में बिजी रहने के बावजूद उसको नियमित स्तनपान कराती थी। लेकिन कैंसर होने से उसके मन में यह बात बैठ गई कि दूध से कैंसर की कोशिकाएँ आभा के अंदर चली जाएँगी। और तब से आभा का स्तनपान बंद हो गया। कीमो-थेरेपी शुरू होने के बाद वैसे भी स्तनपान पर पूर्ण विराम लग गया था।

उसने अपने ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा, “चिंता न कर मेरी पूता! तेरी माँ पिलाएगी न! तुझे मैं वो सारा प्यार दूँगी, जो तुझे चाहिए! वो सब प्यार! आजा बेटा!”

मुझे आश्चर्य हुआ कि ये क्या हो रहा है! फिर सोचा कि काजल ममतावश आभा को माँ वाला प्यार देना चाहती हो! लेकिन जब मैंने उसके एक चूचक के सिरे पर दूध की बूँद देखी, तब मुझे समझ में आया कि काजल को अभी भी दूध आता है। एक तरह से मुझे सही भी लगा कि आभा - मेरी बेटी - काजल का दूध पिए! दूध, जो मेरी - हमारी - बेटी के कारण उत्पन्न हुआ था। एक तरह से आभा का भी उस दूध पर अधिकार है!

आभा ने मेरी तरफ़ देखा - उसको मालूम नहीं था कि उसको क्या करना है। स्तनपान किये उसको एक साल से ऊपर हो गया था। बच्चे इतने अंतराल में बहुत कुछ भूल जाते हैं। उसको मेरी तरफ देखते देख कर काजल ने आभा को अपनी गोदी में उठा लिया।

“पापा को नहीं, अपनी माँ को देख मेरी बच्ची!” उसने आभा को अपनी गोदी में व्यवस्थित करते हुए कहा, “और मेरा दूध भी पहचान ले!”

आभा ने काजल के स्तनों की ओर देखा।

“इसको पी कर मुझे अपनी माँ होने का एहसास करा दे मेरी गुड़िया!”

काजल ने कहा, और आभा के मुँह में अपना एक चूचक दे दिया। बच्चों में एक सिक्स्थ सेन्स होता है शायद। पैदा होते भी जान लेते हैं कि स्तनों का क्या उपयोग है। और आभा को इसका ज्ञान तो था ही। उसने उस चूचक को चूसना शुरू कर दिया, और अगले ही पल उसको अपना पुरस्कार भी मिल गया। माँ का दूध! मीठा दूध!!

आभा को स्तनपान करते देख कर लतिका कहाँ पीछे रहने वाली थी? अपने गाँव वापस जाने से पहले, अपनी मम्मा की गोदी में बैठ कर उनका स्तनपान करना उसका सबसे पसंदीदा काम था। लिहाज़ा, लतिका ने भी माँ के ब्लाउज के बटन खोलने शुरू कर दिए। उसने बस एक बार माँ की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि डाली। माँ ने उसका मंतव्य समझ कर ‘हाँ’ में सर हिलाया। इतना इशारा बहुत था उसके लिए। कुछ ही समय में लतिका ने भी माँ के स्तनों को अनावृत कर के उनके चूचक पीना शुरू कर दिया। एक बच्चे का पुरस्कार माँ का दूध था, तो दूसरे का पुरस्कार माँ का स्नेह!

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अंतराल - स्नेहलेप - Update #2


लतिका बहुत प्यारी लड़की थी! और बहुत चंचल भी! कम से कम मुझे तो वैसा ही याद है उसके बारे में। वो ऐसे रहती थी कि जैसे उसे दुनिया की कोई परवाह ही न हो! बच्चों को तो ख़ैर वैसे ही रहना भी चाहिए। वो हमेशा हंसते खेलती रहती, हमेशा कोई न कोई प्यारी सी शरारत करती रहती। और ऐसी होने के बावजूद, दिल से वो बहुत ज़िम्मेदार लड़की भी थी। काजल इस बात को जानती थी, इसलिए उसने बड़ी चालाकी से लतिका को आभा की कस्टडी दे दी।

“लतिका, अब से इस नन्ही गुड़िया को सम्हालने की जिम्मेदारी तुम्हारी!” काजल ने कहा, और आभा की ज़िम्मेदारी उसको सौंप दी।

काजल ने लतिका को समझाया कि वो अपनी ‘छोटी बहन’ के लिए एक बढ़िया ‘रोल मॉडल’ बने। छोटी अपनी बड़ी बहन के हर काम का अनुसरण करेगी न - तो वो कैसे बोलती है, कैसा व्यवहार करती है, क्या करती है, कैसे पढ़ाई लिखाई करती है - इन सब बातों का असर आभा पर पड़ेगा। इसलिए लतिका को चाहिए कि वो उस बच्चे के लिए एक ‘अच्छा रोल-मॉडल’ बने।

दरअसल, इसी बहाने काजल चाहती थी कि उनकी बेटी थोड़ा ज्यादा जिम्मेदार तरीके से व्यवहार करने लगे। लतिका की पढ़ाई में व्यवधान तो आ ही गया था, इसलिए काजल को उसे ले कर थोड़ी चिंता सी रहती थी। बेशक, उसने यह सब बातें बड़े हल्के-फुल्के अंदाज में कहीं। और अगर उम्मीद के अनुसार लतिका ने वैसा ही व्यवहार करना शुरू कर दिया, तो बहुत अच्छा था! है न?

मुझे लगता है कि प्रत्येक बच्चा अपने तरीके से, बिना किसी पूर्वाग्रह के बड़ा होवे! माँ और डैड ने मुझे वैसे ही पाला था। लेकिन यह भी है कि अगर जिम्मेदारी की भावना, बच्चों में अच्छी आदतें और शिष्टाचार पैदा कर सकती है, तो क्यों न थोड़ी ज़िम्मेदारी बच्चों पर डाली जाएँ!


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कैसे छोटी छोटी सी बातें, आगे चल कर आपके जीवन को बड़ा लाभ देने लगती हैं - या दे सकती हैं! कोई सात साल पहले मैंने अपनी समझ में एक छोटा सा काम किया था - मैंने सिफारिश कर के सुनील का एडमिशन पास ही के एक बढ़िया से स्कूल में करवा दिया था। कितना छोटा सा काम था! लेकिन देखिए - उस एक काम... एक भलाई के बदले, काजल ने कितना कुछ दिया था मुझको और मेरे परिवार को! और अभी भी दे रही थी। सात साल पहले जो मेरे घर कामवाली बाई बन कर आई थी, आज वो इस घर का अभिन्न हिस्सा थी... समझिए कि इस घर की मालकिन थी। काजल पर मेरा भरोसा पृथ्वी के गुरुत्व के जैसा ही अडिग है! कमाल की स्त्री है काजल - नौकरानी, प्रेमिका, मेरी संतान की माँ, और बहन - किस भूमिका में वो मेरे साथ पूरी ईमानदारी से नहीं खड़ी हुई थी?

अपने आने के कुछ ही दिनों में काजल ने घर की सारी ज़िम्मेदारी अपने सर ले ली - घर का रख-रखाव, साफ़ सफाई, खाना-पीना, घर का सञ्चालन, माँ के देख-रेख, उनकी दवाईयाँ, इत्यादि! अचानक ही हमारे रहन सहन की गुणवत्ता बढ़ गई। हमारी दिनचर्या निश्चित और आरामदायक हो गई। इतने महीनों में इतना सुकून पहले नहीं महसूस किया। अगर प्रेम का कोई मानवीय रूप है, तो मेरे ख़याल से उसका नाम काजल ही होगा। आभा की मुस्कान और चहक, जो अचानक ही गायब होने लगी थी, वो वापस आने लगी। वो स्वस्थ भी दिखाई देने लगी। उसका खाना पीना, खेलना कूदना, यह सब काजल देख रही थी और साथ ही साथ वो उसको नियमित रूप से, दिन में तीन बार स्तनपान कराती।

माँ भी थोड़ा सम्हल गईं - उनकी सबसे पक्की सहेली अब उनके साथ थी। उनको बात चीत करने, और अपने दुःख बाँटने के लिए एक साथी मिल गई थी। वो डिप्रेशन में अवश्य थीं, लेकिन मुझे दिल में लग रहा था कि उनकी हालत शोचनीय नहीं रहेगी। साथ ही उनकी प्यारी ‘बेटी’ भी तो थी। लतिका ने उनके अंदर की माँ को वापस जीवित कर दिया था। दोनों बच्चों की हँसी और खेल कूद से मेरा घर वापस गुलज़ार होने लग गया था।

माँ को लतिका के रूप में अपनी ममता लुटाने का एक और उद्गम मिल गया था। माँ की बड़ी इच्छा थी कि उनकी मेरे अलावा एक और संतान हो, और अगर संभव हो, तो वो लड़की हो। जब काजल उनके साथ रहने को आई थी, तब लतिका में उनको अपनी वही बेटी दिखी। आभा तो खैर घर भर की बच्ची थी ही, और उनकी पोती थी - उससे एक अलग ही तरह का लगाव और दुलार था उनको। लेकिन लतिका को देख कर उनको ऐसा लगता था जैसे वो उनकी अपनी ही बेटी हो। उनका अधिकतर मातृत्व लतिका पर न्योछावर होने लगा। पहले भी यही होता था : जब काजल, लतिका और सुनील के साथ डैड-माँ के घर रहते थे, तब माँ ने लतिका और सुनील को पढ़ाने-लिखाने और उनकी देख-रेख की सारी ज़िम्मेदारी अपने सर ले ली थी। इसलिए यहाँ भी वही हुआ। सुनील तो नहीं था - लेकिन लतिका और आभा तो थे! तो उनको पढ़ाने-लिखाने और उनकी देख-रेख की ज़िम्मेदारी माँ पर थी। वैसे माँ दोनों बच्चों को उसी प्रकार से पाल रही थीं, जैसे उन्होंने मुझको पाला था। घर में अब वही, नेचुरल और आर्गेनिक जीवन पद्धति फिर से लागू थी। कुछ ही दिनों में दोनों बच्चों ने उस पद्धति को आत्मसात भी कर लिया।

लतिका और आभा का सम्बन्ध भी अनोखा सा था - थी तो वो खुद एक नौ साल की बच्ची, लेकिन अपने से छोटी आभा की देखभाल ऐसे करती जैसे वो खुद उसकी अम्मा हो! वो उसको पढ़ाती, उसके खेल में हिस्सा लेती। उसकी देखभाल करती।

काजल को भी माँ के साथ अपना पुराना रिश्ता कभी कभी याद आ जाता, तो वो भी माँ की छातियों से चिपक जाती। माँ तो ख़ैर थीं भी इतनी ममतामई कि उनका दिल सभी को प्रेम स्नेह देता रहता, फिर भी उनका स्नेह का भण्डार कभी खाली नहीं होता था।

मैं काजल को कोई वेतन नहीं देता था। उसने हमारे साथ रहने की बात मान कर, हम पर एहसान किया था। उसका बदला सैलरी दे कर नहीं चुकाया जा सकता था। मैंने उससे साफ़ कह दिया था कि वो इस घर की ‘स्वामिनी’ है। उसका जैसा मन करे, वो कर सकती है। हममें से कोई भी उससे उस बाबत कोई प्रश्न नहीं करेगा। उसको आदर सम्मान देने के लिए मैंने उसको अपने अकाउंट का जॉइंट होल्डर नियुक्त कर दिया। जब भी और जैसी भी उसको आवश्यकता हो, वो धनराशि बैंक से निकाल सकती थी। वो अलग बात है कि उसने अपने लिए एक पाई भी नहीं ली।

काजल के तरीके में भी कई अंतर आ गए थे - अब वो घर के खर्चे का पूरा लेखा-जोखा वो बराबर से रखती थी। अगर संभव होता, वो हर चीज़ का बिल अपने पास रखती, और एक रजिस्टर भी बना कर रखती। एक बार मैंने देखा था, कि वो लतिका को समझा रही थी कि यह काम कैसे किया जाता है। अद्भुत था यह सब! सच में, बच्चों को यह सब जितना जल्दी हो सीखना चाहिए। इससे ज़िम्मेदारी आती है। रुपए पैसे की समझ आती है।

जयंती दी भी बराबर हमारा हाल चाल लेती रहतीं। वो भी हमारा ही परिवार थीं। ससुर जी अक्सर आ जाते, और अपनी दोनों ‘पोतियों’ के संग खेलते। हमारे ज़ख्म गहरे थे, लेकिन भर रहे थे। वो मेरा दर्द समझते थे - उनको भी वही दर्द था। उनकी पत्नी भी बहुत पहले ही चल बसी थीं। इसलिए उनको समझ आता था कि मैं क्या झेल रहा था।

यह अब तक के मेरे जीवन का सबसे दुर्गम समय था - और मुझे ख़ुशी थी कि इस समय काजल मेरे साथ थी। अब इस समय की कठिनाई कम हो चली थी। यह सब क्यों? बस इसलिए क्योंकि कभी मैंने काजल के लिए ‘कुछ’ किया था। जीवन बहुत लम्बा होता है - इसलिए हमको चाहिए कि औरों के लिए अगर हम कुछ निःस्वार्थ भाव से कुछ कर सकते हैं, तो अवश्य कर दें। न जाने आगे जा कर उसका फल हमको किस रूप में मिल जाए! अगर न भी मिले, तो कम से कम मनःशांति तो मिलेगी ही न?


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अब करते हैं मेरी बात!

देवयानी की मृत्यु के उपरान्त उसकी जीवन बीमा राशि मुझे मिली। उसने जो भी प्रॉपर्टी बनाई थी, वो सब मेरे नाम लिख दी थी। ऑफिस से भी सेटलमेंट की धनराशि मुझे ही मिली। मैंने अधिकतर धनराशि या तो बिज़नेस में डाला, या फिर आभा और लतिका के नाम से इन्वेस्टमेंट कर दिया। जो धनराशि मैंने बिज़नेस में डाला, वो सब काजल, लतिका, और आभा के नाम से डाला। ससुर जी को इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी। वो समझ रहे थे कि काजल और लतिका की मेरे जीवन में क्या अहमियत है, और वो खुद भी इस बात से प्रसन्न हुए कि उनका दामाद इस तरह से सोचता है। माँ को भी डैड की मृत्यु पर बीमा राशि और अन्य धनराशि मिली। उनको डैड के स्थान पर कम्पैशनेट ग्राउंड पर उनके महकमें में नौकरी भी मिल रही थी, लेकिन उन्होंने वो लेने से इंकार कर दिया। क्योंकि नौकरी करने के लिए उनको अपने घर में, अकेले रहना पड़ता, जो कि अब उनके लिए असंभव हो गया था। माँ ने जो भी पैसा मिला, सब मुझे दे दिया। वैसे भी डैड और माँ के नाम जो भी कुछ संपत्ति थी, वो सब उन्होंने मेरे नाम लिख दी थी। तो मैंने वो सब धन अपने बिज़नेस में लगा दिया - माँ के नाम से। अब कंपनी के शेयरहोल्डर्स में मेरा पूरा परिवार शामिल था।

जयंती दी के कहने पर डेवी का जो घर था, उसको किराए पर चढ़ा दिया। मैं यह करना तो नहीं चाहता था, लेकिन दी की बात सही थी - अगर घर इस्तेमाल नहीं होता, तो जल्दी खराब हो जाता है। इसी तर्ज़ पर डैड और माँ के घर को भी साफ़ सफाई करवा कर किराए पर चढ़ा दिया। माँ ने भी जयंती दी जैसा ही तर्क दिया था। मेरा मन तो नहीं था - उस घर से कई सारी यादें जुड़ी हुई थीं। लेकिन माँ ने मुझे ‘बिना वजह’ भावुक न होने की सलाह दी। तो, घर की पहली मंज़िल के दोनों कमरों में हमारे (डैड और माँ के) आवश्यक सामान रखवा कर, ताला लगा दिया, और नीचे का हिस्सा किराए पर दे दिया। किराया कोई ऐसा बड़ा नहीं आता था, लेकिन हमारे घर के खर्च के लिए पर्याप्त धन आ जाता था।

छोटी छोटी बातें थीं, लेकिन इन सबका बड़ा लाभ हुआ। अब मैं अपने बिज़नेस पर पूरा ध्यान दे पा रहा था। काजल घर सम्हाल रही थी। तो वहाँ से भी चिंता समाप्त हो गई। और मुझे इस बात की आवश्यकता भी थी। देवयानी की - डैड की - और गैबी की याद को भुलाने - या यह कह लें कि डुबाने के लिए मुझे काम करने की, व्यस्त रहने की आवश्यकता थी। और यह सब तभी संभव हुआ, जब काजल ने घर सञ्चालन का कार्य-भार सम्हाल लिया। सच में - साक्षात् देवी का अवतार है वो! कोई बहुत ही अच्छे कर्म किये होंगे हम सभी ने, जो हमको काजल के प्रेम का, उसके स्नेह का अंश मिला।

काजल के साथ मेरा साथ अब कोई सात साल पुराना हो चला था। और इस दौरान काजल ने मेरे लिए - मेरे परिवार के लिए इतना कुछ कर डाला था कि मुझे तो लगता है कि उसका शुक्रिया अदा नहीं किया जा सकता। वैसे भी उसके इतने सारे एहसान थे हम पर, कि उसको शुक्रिया कहना मतलब उसका अपमान करने जैसा था।

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शायद ये ही जीवन की खासियत है कि देर सबेर वो पुनः अपनी गति और रास्ता प्राप्त कर ही लेता है भले ही कितने तूफान बवंडर आ जाए। मगर इस सबके लिए जरूरत होती है कुछ निस्वार्थ रिश्तों की जो मुश्किल समय में आपका साथ और मार्गदर्शन दोनो भूमिकाएं निभाएं। काजल ने उसी साथी, मार्गदर्शक की भूमिका निभाई अमर के जीवन में। मगर एक जीवन साथी की जरूरत तो सभी को पड़ती है और यहां ऐसे तीन लोग है परिवार में, मां काजल और अमर। क्या तीनों अपने लिए अलग जीवन साथी चुनेंगे या अमर और काजल फिर से एक दूसरे के जीवन का सहारा बनेंगे। बहुत ही सुंदर अपडेट
 
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