पहला प्यार - Update #9
एक दूसरे के आलिंगन में बंधे, हम पता नहीं कब गहरी नींद में सो गए। मैं तब उठा जब मुझे लगा कि कोई मेरे बालों को सहला रहा है। आँखें बंद किए हुए मुझे ऐसा लगा कि यह गैबी है। मैंने मुस्कुरा कर अपनी आँखें खोलीं, और देखा कि ये तो मेरी माँ हैं! हमारा कमरा, रात के बल्ब की मंद, लाल रोशनी में जगमगा रहा था!
‘माँ यहाँ क्या कर रही हैं!’
“माँ! आप यहाँ क्या कर रही हो?” मैंने अपनी उनींदी, कर्कश वाली आवाज में कहा।
“बस तुम दोनों को देखने आ गई! दरवाजा खुला हुआ था - तुम्हें पता है न?” माँ ने बड़ी सरलता से कहा, “अच्छा ये बताओ, क्या आज रात तुमने और गैबी ने 'बढ़िया वाला' एक्सपीरियंस लिया?”माँ फुसफुसाते हुए बोलीं।
अचानक से ही सोने से पहले की सारी बातें मुझे याद आ गईं।
‘अरे यार! हम सोने से पहले दरवाजा बंद करना भूल गए थे, और हम दोनों के ही शरीर पर कपड़े का एक टुकड़ा भी नहीं था। और तो और, अब तो माँ भी हमारे साथ कमरे में थीं। यह और कितना लज्जाजनक हो सकता है?’
मैंने विरोध किया, “माँ! हम दोनों पूरी तरह से नंगे हैं!”
“हाँ, वो तो मैं देख ही रही हूँ!”
“फिर आप क्यों आईं?”
माँ मुस्कुराई, “अपने बेटे को कोई पहली बार तो नंगा नहीं देख रही हूँ। हाँ, बहू को ज़रूर ऐसे पहली बार देखा है ... मैंने दरवाजा खुला हुआ देखा, तो अपने बच्चों को देखने की इच्छा को रोक नहीं सकी!”
तब मुझे यह एहसास भी हुआ कि सोते सोते मेरा लिंग फिर से स्तंभित हो गया था। माँ ने भी मेरे लिंग की ओर देखा, मुस्कुराई और बोली, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि तुम्हारी छुन्नू इतना बड़ा हो जाएगा! बहुत सुन्दर, बहुत मज़बूत अंग है! मुझे तुम पर गर्व है।”
मैं मुस्कराया। माँ मेरे चेहरे पर कभी भी मुस्कान ला सकती हैं। वे हमेशा से ही मेरी सबसे अच्छी दोस्त रही हैं।
“तो क्या तुम दोनों ने...?”
“नहीं माँ... हमने शादी होने तक इंतजार करने का फैसला किया है!”
“क्या सच में! कैसी दिलचस्प सी बात है! बहुत बढ़िया! मुझे आश्चर्य है कि तुम दोनों खुद पर कैसे कण्ट्रोल कर पाते हो! बहू कितनी सुन्दर सी है। तुम कितने सुंदर से हो! सच में - तुम दोनों को और तुम्हारे कमिटमेंट को सलाम है!”
“मैं नहीं जानता माँ कि हमने यह सब कैसे किया। हम दोनों सेक्स करने के बहुत करीब आ गए थे, लेकिन जैसे तैसे, किसी तरह से हमने कण्ट्रोल किया।”
“हम्म ... तो क्या ... तो क्या उसने ... अपने हाथ से ....?”
“नहीं माँ, मुँह से।”
“ओह? मुँह से? इंटरेस्टिंग!”
“क्यों, माँ?”
“और फिर जब .... तुम .... यू नो.... जब तुम .... तब उसने क्या किया?” माँ ने उत्सुकतावश मुझसे पूछा।
“गैबी ने सब पी लिया।”
“सच में? वाह! अमेजिंग! यह लड़की सच में तुमसे बहुत प्यार करती है।” माँ ने कहा।
“थैंक यू माँ। लेकिन आप ऐसा क्यों कह रही हैं?”
“बेटा, मैं भी तुम्हारे डैड का पीनस अपने मुँह में लेती हूँ... लेकिन उन्होंने कभी मेरे मुँह में नहीं किया... मैंने उन्हें कभी भी ऐसा करने भी नहीं दिया। और तुमको मालूम ही है कि मैं उनसे बहुत प्यार करती हूँ, लेकिन अब मुझे लगता है कि मैं उनके साथ और भी बहुत कुछ कर सकती हूँ। इसलिए यह नई बात मुझे बताने के लिए थैंक यू!”
“आई लव हिम, माँ।” गैबी बोली; वो कुछ पलों से हमारी बातें सुन रही थी, लेकिन अभी भी अर्द्ध-निद्रा वाली अवस्था में थी।
“मुझे पता है, बेटे, मुझे पता है।” माँ ने मुस्कुराते हुए, प्यार से गैबी के पैर को सहलाया, “एंड आई थैंक यू फॉर दैट!”
फिर एक गहरी सी साँस ले कर, माँ बिस्तर से उठीं और कमरे से बाहर निकलने लगीं। माँ को जाते देख कर, उस समय तक गैबी का हाथ मेरे मेरे कठोर होते हुए लिंग पर आ चुका था, और वो उसको मुट्ठी में ले कर ऊपर नीचे करने लग गई थी।
लेकिन हमको नहीं मालूम था कि दरवाजे से बाहर निकल कर, माँ कुछ पलों के लिए रुकीं, और फिर वापस हमारे कमरे की तरफ़ मुड़ीं। अंदर आते ही माँ ने मेरे लिंग को गैबी के हाथ में देखा और मुस्कुरा दीं।
“मैं कुछ देर और तुम दोनों के साथ बैठ जाऊं?” उन्होंने कहा।
माँ को कमरे में आते, और हमसे बात करते देख करते देख कर, गैबी ने मेरा लिंग छोड़ दिया।
“हाँ माँ, आइए न!” गैबी ने कहा।
"गैबी बेटा, इसे पकड़े रहो .... मत छोड़ो। यह तुम्हारा है, और इस पर तुम्हारा अधिकार है। जब मैं या डैड तुम्हारे आस-पास भी हों, तब भी तुम इसको पकड़ सकती हो। शरमाने की ज़रुरत नहीं। तुम दोनों को एक-दूसरे से प्यार करना बंद नहीं करना है! समझ गए?”
गैबी हिचकिचाई, तो माँ ने फिर से उसे प्रोत्साहित किया, “चलो। इसे फिर से पकड़ो।”
इस बार गैबी मुस्कुराई और मेरे लिंग को अपनी चपेट में ले लिया।
“गुड!”
“गैबी बेटा, क्या तुमको मालूम है कि मैंने अमर को पंद्रह या सोलह साल की उम्र तक स्तनपान कराया है?”
“हाँ माँ... मुझे मालूम है। और मुझे लगता है कि यही कारण है कि अमर का पाउ [पुर्तगाली में, लिंग] इतना मजबूत है ... इसलिए थैंक यू, माँ।”
“हनी,” माँ थोड़ा हिचकिचा रही थीं।
“क्या बात है, माँ?” मैंने पूछ लिया, “आपके मन में क्या है?”
“बेटे, आज रात दीवाली है... और तुम दोनों बच्चों को इस तरह देखकर मेरी ममता की ललक जग गई है…”
माँ को इस तरह व्यवहार करते देख कर मेरे दिमाग में यह विचार कौंधा, कि ‘माँ हमें स्तनपान कराना चाहती है! वाह वाह!’
मेरे चेहरे पर एक क्षीण सी मुस्कान आ गई, जिसे उस मद्धिम रोशनी में न तो गैबी देख सकती थी और न ही माँ।
“क्या बात है, माँ? आप हमें बताइये न!” गैबी ने पूछा।
“बेटा, मैं तुम दोनों को... यहाँ से [माँ ने अपने स्तनों की तरफ इशारा किया] दूध पिलाना चाहती हूँ…” माँ ने सकुचाते हुए अपनी इच्छा जाहिर करी।
“माँ! क्या सच में?” गैबी ने बड़े उत्साह से कहा! अब तक उसकी नींद जा चुकी थी, और इस नए प्रस्ताव से वो उत्साहित थी! माँ ने उससे इस तरह की सकारात्मक प्रतिक्रिया उम्मीद नहीं की थी, इसलिए वो भी हैरान रह गईं। गैबी लगभग भाग कर, माँ के गले से लिपट गई। एक छोटे बच्चे की ही तरह उत्साह में आ कर गैबी ने कई बार माँ को चूम लिया, और बाल-हठ में उसके हाथ मेरी माँ के स्तनों पर चूमने लगे। प्रतिक्रिया में माँ के चूचक खड़े हो गए। इस समय गैबी बिलकुल छोटे बच्चों जैसा व्यवहार कर रही थी - उसको इस बात की कोई परवाह नहीं थी कि हम दोनों ही मेरी माँ के सामने नंगे बैठे हैं!
उसने माँ के स्तनों को, उनके चूचकों के निकट दबाते हुए, जैसे कि इस उम्मीद में कि उनमे से दूध निकल आएगा, माँ से चहकते हुए पूछा, “माँ, क्या आपके स्तनों में दूध है?”
“नहीं बेटा, मुझे अब और दूध नहीं आता... कुछ साल हो गए हैं जब से इनमे दूध आना बंद हो गया है।”
“कोई बात नहीं, माँ!”
कह कर गैबी माँ का ब्लाउज खोलने लगी। वो ऐसे व्यवहार कर रही थी जैसे उसके पास माँ के स्तनों को छूने का लाइसेंस हो। गैबी के बच्चों जैसे व्यवहार पर माँ खुद को हंसने से नहीं रोक पाईं। उनको गैबी और उसकी माँ के बीच के प्रेम-विहीन संबंधों के बारे में पता था। मुझे अब भी संदेह होता है कि, शायद हमारे परिवार में गैबी का स्वागत करने और उसे स्वीकार किए जाने का एहसास कराने का, यह माँ का अपने ही तरह का तरीका था।
मुझे नहीं पता कि गैबी ने कपड़े बदलते समय, माँ को नग्न देखा था या नहीं, लेकिन वो फिलहाल माँ को उनके इस अद्भुत प्रस्ताव से पीछे हटने का कोई मौका नहीं देना चाहती थी। जल्द ही, माँ की ब्लाउज के बटन खुल गए, और उनका ब्लाउज उतर भी गया। माँ ने ब्रा नहीं पहनी हुई थी... शायद डैड ने उतार दी होगी।
“माँ, आप हमारे बीच में जाइए - अमर आपके दाहिने ब्रेस्ट को पी सकता है, और मैं आपने बाएँ ब्रेस्ट को!” गैबी ने सुझाया।
मेरे सामने ही, मेरी ही माँ के प्रेम का बँटवारा हो गया!
मेरी माँ हमेशा से बहुत खूबसूरत रही हैं। उस समय उनकी उम्र केवल पैंतीस या छत्तीस साल की रही होगी! वह अभी भी बहुत जवान थीं, और उसके शरीर पर यह दिखता भी था। देखने में वो गैबी जैसी लगती थीं - अपनी उम्र से कम से कम दस साल छोटी - और, मेरी माँ जैसी कम! पिछली बार मैंने माँ के स्तन तब देखे थे, जब मैं अपनी इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा लिख रहा था - कोई पाँच साल पहले। तब से अब तक, उनके स्तनों में कम से कम मुझे तो कोई बदलाव दिखाई नहीं दे रहा था। माँ तब भी देवी थीं, और आज भी देवी ही हैं। हम तीनों बिस्तर पर लेट गए। गैबी ने लेटते ही माँ से स्तनपान करना शुरू कर दिया। माँ ने गैबी के माथे पर एक छोटा सा, स्नेह भरा चुंबन दे दिया, और फिर मेरी तरफ उम्मीद में देखा। मैं उनकी तरफ देख रहा था... माँ के स्तनों की तरफ। माँ ने मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे मुझसे जानना चाहती हों, कि कुछ गड़बड़ है क्या?
मैंने ‘न’ में सर हिलाया और भावुक होते हुए, बहुत धीरे से कहा, “माँ, आप मेरे लिए माँ अन्नपूर्णा हैं! आप मेरी जीवन शक्ति हैं!”
मैं माँ का चूचक अपने मुँह में लेकर थोड़ा भावुक हो गया... भावुक इसलिए क्योंकि मुझे अपनी माँ का अपने लिए सबसे शुद्ध रूप में प्यार मिले हुए लगभग पाँच साल हो गए थे। यह आश्चर्यजनक सी बात है कि एक ही क्रिया के लिए मेरी दो अलग-अलग और विपरीत प्रतिक्रियाएँ कैसे हुईं : जब मैंने गैबी के स्तनों, या काजल के स्तनों को चूसा, तो मुझे एक खम्भे जैसा कठोर स्तम्भन मिला, लेकिन अब जब मैं माँ के स्तन को चूस रहा था, तो स्तम्भन नदारद था…! माँ का प्रेम उनके स्तनों से सीधे मेरे शरीर में बह रहा था। मन में एक तीव्र इच्छा हुई कि काश, माँ का दूध, एक बार फिर से पीने को मिल जाता!
लेकिन दूध को तो नहीं आना था, इसलिए दूध नहीं आया। लेकिन मैं और गैबी महसूस कर सकते थे कि मेरी माँ के दिल से निकला प्यार, उनके स्तनों के माध्यम से हम में बह रहा है। गैबी और मैं भाग्यशाली थे कि हमको माँ का आशीर्वाद और स्नेह उसके शुद्धतम रूप में मिला। मैं कोमलता से चूस रहा था, लेकिन गैबी पूरे उत्साह से! वह कभी माँ के चूचक को चूसती, तो कभी चूमती, तो कभी मुँह में ही रखे रखे खींच लेती, तो कभी कभी काट भी लेती! लेकिन माँ ने उसकी किसी भी हरकत पर आपत्ति नहीं दिखाई, गैबी जो कुछ भी चाहती थी, उन्होंने उसको करने दिया। साथ ही साथ वो उसकी पीठ और सर को स्नेह से सहला भी रही थीं, और बीच बीच में उसके सर और माथे पर प्रेम और आश्वासन भरा चुंबन भी दे रही थीं। लगभग पाँच मिनट के बाद माँ ने कहा,
“बच्चों, मन भर गया? हम्म? अब मैं तुम दोनों को सोने के लिए छोड़ दूँ? जयपुर जाने के लिए हमें सवेरे जल्दी ही निकलना पड़ेगा!”
गैबी ने जैसे उनकी बात सुनी ही न हो - वो दूध पीना छोड़ कर झटके से उठी,
“माँ, आप मेरे लिए साक्षात् अन्नपूर्णा माता हैं! आपकी दया और आशीर्वाद के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद…”
माँ मुस्कुराई और बिस्तर से उठने लगी। गैबी ने कहा,
“माँ, मुझे नहीं पता कि आप मेरे बारे में क्या सोचेंगी... लेकिन मुझे यह करना ही है…”
“क्या करना है, बेटा?”
गैबी ने माँ के पेटीकोट की डोरी को पकड़ा, [जब माँ हमारे कमरे में आईं थीं, तो उन्होंने केवल पेटीकोट और ब्लाउज पहना हुआ था] और उसे खोल दिया।
“क्या तुम मुझे नंगा देखना चाहती हो, बेटा?”
गैबी ने ‘न’ में सर हिलाया, “नहीं माँ, मैं आपकी पूजा करना चाहती हूँ।”
माँ बहुत ही कोमल स्वाभाव की हैं। मुझे तो लगता है कि उनको लगता है कि हर कोई उनके जितना ही शुद्ध और कोमल स्वभाव है। जल्द ही माँ भी हमारी ही तरह पूरी तरह से नग्न हो गई। मैं इस अविश्वसनीय घटना का दर्शक था, जो मेरे सामने घट रही थी। मा पालथी मार कर बैठी थीं, और गैबी उसके सामने अपने घुटनों के बल बैठी थी, हाथ जोड़कर! माँ ने बड़े प्यार से गैबी के हाथों को अपने हाथों में ले कर चूमा। फिर उन्होंने उसके चेहरे को अपने हाथों से पकड़ा, और प्रेम से उसको अपने सीने में भींच लिया। माँ भी गैबी के इस तरह के प्रेम प्रदर्शन से भावुक हो गईं थीं। प्यार से अभिभूत हो कर माँ गैबी को छोटे बच्चों समान हर जगह चूमने लगीं। किसी और घर में देवी आई हों न नहीं, आज मेरे घर में तो देवी का वास था!
माँ ने जब गैबी को छोड़ा, तो वो फिर से माँ के सामने बैठ कर उनकी पूजा करने लगी। अपनी आँखें बंद कर और हाथ जोड़कर वो माँ के सामने झुक गई, कुछ इस तरह कि गैबी का सर माँ के पैरों पर नत था। उसने ऐसा तीन बार किया! चौथी बार गैबी थोड़ा आगे की तरफ झुक कर माँ के योनि को चूम ली।
“माँ, मेरी कैसी किस्मत होती, अगर मैंने यहीं से जन्म लिया होता!” उसने कहा।
मैं हैरान था। रचना ने भी कुछ साल पहले यही कहा था! आज गैबी जो कह रही थी, यह लगभग उसी बात की प्रतिध्वनि थी! माँ का खुद का भावनात्मक बांध टूट गया, और अब उनकी आँखों से आँसू बह रहे थे।
“ओह बेटा! ओह बेटा! लेकिन मैं तुम्हारी माँ हूँ। मैं हूँ तुम्हारी माँ!”
माँ ने यह बार-बार दोहराया, और गैबी को अपने मातृत्व भरे आलिंगन में वापस भींच लिया। चंद मिनटों के इस भावनात्मक ज्वार के बाद, आखिरकार हम सभी शांत हो गए। मुझे माँ के साथ इस तरह फिर से जुड़ना बहुत अच्छा लगा, और हमें उम्मीद थी कि हम जल्द ही एक परिवार बन जाएंगे। खुद को शांत करते हुए माँ ने कहा,
“ठीक है बच्चों! अब मैं जा रही हूँ। तुम दोनों आराम करो... लेकिन सवेरे जल्दी उठ जाना। चलो, अब सो जाओ।” माँ ने कहा, फिर उन्होंने मेरा और गैबी का माथा चूमा, और कमरे से निकलते हुए, अपने पीछे कमरे का दरवाजा बंद कर दिया।
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हमारी परिवार की छुट्टी [वेकेशन] काफी समय से लंबित थी। या तो मेरे इंजीनियरिंग की पढ़ाई के कारण हम कहीं घूमने नहीं जा पाए, या फिर घर के निर्माण और / या जीर्णोद्धार के कारण। आज इतने लम्बे अर्से के बाद मौका मिला था कहीं घूमने जाने का! इसलिए यह बहुत अच्छा था कि इस बार गैबी भी हम तीनों के साथ थी। इस बार हमा एक सप्ताह लम्बी सड़क यात्रा के लिए राजस्थान जा रहे थे। राजस्थान भारत देश के सबसे रंगीन और रोमांचक स्थानों में से एक है। अभी तक हमारे घर में गाड़ी नहीं आ पाई थी, लेकिन मैंने नौकरी मिलते ही सबसे पहले एक कार खरीदी - तो इस बार की यात्रा हम मेरी कार में करने वाले थे। कार में मेरे बगल या तो डैड बैठते, या गैबी। माँ पूरा समय पीछे ही बैठीं। उनको न जाने क्यों सामने बैठने डर लगता है। सबसे पहले हम घर से सीधा जयपुर गए, और वहाँ कुछ खरीदारी की, वहाँ से हम रणथंभौर नेशनल पार्क गए, और दो सफारी ली। यह पहली बार था जब गैबी ने - और हमने भी - बाघों और तेंदुओं को जंगल में देखा था! हम सभी इस अनोखे अनुभव से बहुत खुश थे! जंगल में बाघों को देखना बहुत रोमांचकारी अनुभव होता है। उसके बाद, हम दिवाली के बाद का मेला मनाने के लिए पुष्कर गए, और अंत में जोधपुर गए, और वहाँ भी जमकर खरीदारी हुई। और अंत में, हम वापस लौट आए। परिवार के साथ रहना और साथ में इतना क्वालिटी टाइम बिताना बहुत मजेदार था।
जैसा कि अपेक्षित था, हमारी यात्रा के दौरान, हमारी चर्चा का मुख्य विषय गैबी और मेरी शादी का था। होने वाले विवाह के उत्साह में, माँ और डैड ने गैबी के लिए राजस्थान से दुल्हन वाले कपड़े खरीद लिए। मुझे यह देखकर बहुत खुशी हुई कि गैबी और मेरे माता-पिता इतने कम समय में इतने करीब आ गए थे। एक पल के लिए भी नहीं लगा कि वह किसी विदेशी देश की रहने वाली है, या वो उनसे केवल दो बार मिली है। वो हम सबके ही बहुत करीब आ गई थी। ख़ैर, जब हम इस लंबी यात्रा लौटे तो हम बेहद थके हुए थे। अगले दिन हमारी छुट्टी का अंत था - मुझे अपने ऑफिस को वापस ज्वाइन करना था, गैबी को उसका विश्वविद्यालय, और माँ और डैड को अपने घर!
गैबी और मैं, हम दोनों ही माँ और डैड को छोड़ने के लिए रेलवे स्टेशन गए। माँ और डैड दोनों ने गैबी को बड़े प्यार से चूमा, और जल्दी ही मिलने का वायदा लिया। उनके लिए गैबी अब से हमारे परिवार की सदस्य थी, और वो भी माँ और डैड द्वारा परिवार में स्वीकार किए जाने पर बेहद खुश थी। इस तरह से स्वीकार किया जाना, और वह भी बिना किसी ढोंग या दिखावे के, गैबी को बहुत अच्छा लगा। इतने दिनों के बाद उसको वो पारिवारिक आत्मीयता मिली थी, जिसकी वो वर्षों से खोज कर रही थी। अब तो हम ही उसका परिवार थे, और वो यह बात जानती भी थी, और मानती भी थी।
जब हम माँ और डैड को छोड़ कर घर लौटे तो देखा कि काजल दरवाज़े पर हमारा इंतजार कर रही थी। उसने माँ और डैड से मिलने का मौका गंवाने का अफसोस किया [काजल भी दिवाली के लिए छुट्टी पर गई हुई थी]। मैंने उसको माँ द्वारा उसके लिए लाया गया उपहार थमाया - काजल के लिए एक बनारसी रेशम की साड़ी, और सुनील और लतिका के लिए नए कपड़े और खिलौने! उसने थोड़ा दिखावा किया कि इन सब चीज़ों की क्या ज़रुरत थी; लेकिन अपने और अपने परिवार लिए वो तमाम उपहार देख कर वो भी खुश दिख रही थी। वैसे भी, माँ और डैड ने उसके लिए वो सब त्यौहार के आशीर्वाद के रूप में लाया था। ख़ैर, उसने अपना काम करना शुरू कर दिया… और हम भी अपने अपने काम में व्यस्त हो गए। कुछ ही दिनों में हम सभी अपने पुराने ढर्रे पर लौट आए - और अपने अपने काम में व्यस्त हो गए। लेकिन गैबी से शादी करने की सारी बातें मेरे दिमाग में घूम रही थीं। मुझे विश्वास है, कि गैबी भी इन सब से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी।
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