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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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avsji

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Ek shaandar soch ke saath ek shaandar vyaktitva darshaaya hai aapne apni is rachana me. Aapke sabhi sanskaran ati sunder the.

Saath hi saath aapne jeevan ki ek disha nirdhaaran karne ki jo soch saamne rakhi hai wo atulniya hai.

Uttejana ke saath saath aap chhote chhote pehluo pe bhi Gaur karte hai jis se aapki rachana ati rochak ban jaati hai.

Aage aane waale sanskarno ki adhirta se pratiksha kar raha hu..shighrata ki jiyega.
अरे भाई!! बहुत बहुत धन्यवाद!!
साथ बने रहें। जल्दी ही अगला अपडेट आ रहा है 😊
 

avsji

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avsji

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इंतजार हे अगले अपडेट का ब्रदर।
लिख लिया है, लेकिन एक हिस्से पर दोबारा विचार कर रहा हूँ। फिर से लिखने की पॉसिबिलिटी हो सकती है।
लेकिन अपडेट आज आएगा ज़रूर।
 

avsji

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पहला प्यार - विवाह - Update #15


गाँव के कच्चे और खड़ंजे वाले रास्तों पर देर तक और दूर तक चल कर बड़ा मजा आया। मैं कई वर्षों के बाद वहाँ आया था, इसलिए सभी पुराने परिचितों, दोस्तों और शुभचिंतकों से मिल कर बहुत अच्छा लगा। फिर भी मैं वहाँ अधिकतर लोगों को नहीं जानता था। लेकिन जाहिर तौर पर, गाँव के सभी लोग मुझे जानते थे। यह बहुत आश्चर्य की बात नहीं थी - एक तो मेरे माँ और डैड को सभी जानते थे, और दूसरा इसलिए क्योंकि मैंने एक ‘गोरी’ लड़की से शादी की थी। मैं अपने बचपन के कुछ दोस्तों से मिला, जो मुझसे चार से छह साल पहले ही शादी कर चुके थे, और अब कम से कम दो बच्चों के माता-पिता थे। वे अपने जीवन से खुश लग रहे थे - वो ज्यादातर कृषि कार्यों में संलग्न थे, और उनकी पत्नियाँ उनकी यथासंभव मदद करतीं।

(उस समय) ग्रामीण परिवेश में जीवन अपेक्षाकृत सरल है, और आश्चर्यजनक रूप से शहरी तड़क भड़क से अप्रभावित भी है। हम शहरवासी, अपनी हेकड़ी और इच्छाओं के बोझ तले दबे हुए हैं। ग्रामीण लोग, पारंपरिक हैं, और अनावश्यक मर्यादाओं का उतना भार नहीं उठाते हैं, जितना कि हम। मैं चाय पर कुछ ‘भाभियों’ से मिला, और उन्होंने उत्सुकता से मेरे जीवन और यहाँ तक कि मेरे एक दिन पुराने विवाहित जीवन के बारे में पूछ लिया। मुझसे पहली बार मिलने के बावजूद, वे बहुत खुले और हंसमुख स्वभाव की प्रतीत हुईं। जिस तरह से भाभी और देवर एक-दूसरे को चिढ़ाते हैं, उन्होंने मुझे चिढ़ाया - लेकिन फिर भी मर्यादा के अंदर रहते हुए। साथ ही उन्होंने मेरे सामने अपने बच्चों को स्तनपान कराने में कोई गुरेज नहीं दिखाया। इसके लिए अपने ब्लाउज को खोलना, और बच्चों को दोनों स्तनों से बारी-बारी दूध पिलाना आवश्यक था, जिससे उनके स्तन मेरे सामने बार बार उजागर हो जाते। कभी-कभी मुझे लगता था कि उन्होंने जान-बूझकर, केवल मुझे छेड़ने या चिढ़ाने के लिए खुद को मेरे सामने उजागर कर दिया होगा। लेकिन फिर वो पुरानी बातें याद आ जाती हैं, तो लगता है कि संभव है, कि बच्चे होने के बाद महिलाओं में अपने स्तनों को लेकर शर्म और झिझक कम हो जाती हो!

गाँवों में बच्चों के पालन-पोषण के प्रति रवैया भी काफी लापरवाह होता है। शहरों में, हम ऐसा व्यवहार करते हैं कि जैसे बच्चे हमारे ब्रह्मांड का केंद्र हैं! शहर में रहने वाले माता-पिता ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे उनके बच्चों ने पैदा हो कर उन पर कोई एहसान किया हो। माता-पिता किसी चाकर के समान अपने बच्चों की देखभाल करते हैं; उनके सारे नखरे ढोते हैं; और उनकी हर जायज़ और नाजायज़ मांगों को पूरा करते हैं! गाँव में यह रवैया नहीं है - वहाँ यह मानना है कि प्रकृति सभी लोगों का ख्याल रखती है। इसलिए बच्चे भी प्रकृति से अलग नहीं हैं। गाँव में सभी बच्चे, अपनी उम्र के अन्य बच्चों के साथ मिलकर बड़े होते हैं, और एक सामुदायिक तौर पर उनकी देखभाल भी हो जाती है। कहते हैं न कि, बच्चे को पालने के लिए एक पूरे गाँव की आवश्यकता होती है - इस बात को होते हुए स्वाभाविक रूप से ग्रामीण परिवेश में देखा जाता है। कुल मिलाकर, गाँव में टहलना मज़ेदार था! अगली बार गैबी को भी अपने साथ लाऊँगा!

जब मैं टहल कर वापस लौटा तो देखा कि डैड, माँ, काजल, और गैबी एक साथ बैठकर चाय का आनंद ले रहे थे। चाय की चुस्कियाँ लेते हुए, काजल लतिका को अपनी गोद में लिए दूध भी पिला रही थी। दोपहर के भोजन से पहले चाय पीना, हमारे लिए एक नई बात थी। लेकिन यहाँ की ज़िंदगी इतनी सुकून भरी थी कि कभी-कभी ऐसे नियमों को तोड़ देना ठीक लगता था। डैड और माँ उन्हें अपने जीवन की कहानियाँ सुना रहे थे - इस गाँव में उनके जीवन की कहानियाँ, और मेरे बचपन की कहानियाँ - जिनमे कुछ सबसे शर्मनाक कहानियाँ भी शामिल थीं - ऐसी कहानियाँ जो केवल आपके माता-पिता ही बता सकते थे।

शर्मिंदा करने वाली बातें जैसे कि, कैसे मैं खाने पीने को ले कर रोज़ नौटंकी करता था; कैसे मैं “आई ऍम अ डिस्को डांसर” पर ठुमके लगाता था; कैसे एक बार मेरे कच्छे को धूप में सुखाते समय उसमे एक पीला ततैया छुप गया और जब मैंने कच्छा पहना, तो उसने मेरे छुन्नू पर डंक मार दिया और उसके बाद मुझे दो दिनों तक नंगा रहना पड़ा! माँ ने यह भी बताया कि कैसे जब मैं उनका स्तनपान करता था तो मेरा छुन्नू खड़ा हो जाता था, और कैसे वो उसके साथ खेलती थीं! कैसे मैं बड़ा होने पर भी घर में नग्न घूमता था; कैसे मैं बरसात के दिनों अपने पुट्ठों पर साबुन लगा कर गीली छत पर फिसलता था, इत्यादि! माँ और डैड इन बातों को याद करते हुए हँसने लगे, और उनके साथ हम सारे भी!

चाय का दौर समाप्त होते ही कुछ लोग मुझसे और डैड से मिलने आ गए, और हम उनसे मिलने में व्यस्त हो गए। उनसे मिल कर जब तक फुर्सत मिली, तब तक काजल और माँ ने सामान्य सा भोजन (दाल और चावल) तैयार कर दिया। माँ ने ही ज़िद कर के हल्का खाना पकाने पर ज़ोर दिया, क्योंकि गरिष्ठ भोजन की अधिकता होती ही जा रही थी। काजल की एक बात मुझे बहुत अच्छी लगती थी - वो हमेशा ही घर के कामों का बीड़ा खुद पर उठा लेती थी। उसको देख कर लगता ही नहीं था कि वो मेरे परिवार से किसी भी तरह से अलग है। अद्भुत व्यक्तित्व था उसका! सच कहूँ तो मैं बहुत ही भाग्यशाली हूँ। मेरे जीवन में जो भी महिलाएँ अभी तक आई हैं, तो एक से बढ़कर एक रही हैं! माँ जहाँ स्नेह, सौम्यता, और दयालुता की प्रतिमूर्ति थीं, वहीं काजल संरक्षण, श्रम, और निःस्वार्थ कर्म की! दूसरी ओर गैबी ज्ञानार्जन और विपरीत परिस्थिति में निरंतर आगे बढ़ने की प्रेरणा देने वाली थी। एक से बढ़कर एक महिलाएँ! जहाँ मुझे उन तीनों से प्रेम था, वहीं उनके लिए खूब आदर भी था। दोपहर का भोजन हम सातों जनों ने एक बड़े, और सुखी परिवार के जैसे ही साथ में बैठ कर किया। यह छोटी छोटी रोज़मर्रा वाली बातें मन को जो सुकून देती हैं, उनका शब्दों में बयान करना मुश्किल है।

**

भोजन के बाद डैड ने सुझाया कि क्यों न हम सभी गाँव के पास वाले एक तालाब पर चलें? यह सामान्य से एक बड़ा तालाब था, जिसमें आषाढ़ और श्रावण माह की बारिश के बाद पानी भर जाता था, और फिर बैसाख (मार्च-अप्रैल) तक पानी रहता था। उसके इर्द गिर्द बढ़िया हरियाली थी - फलों के बगीचे उसको घेरे हुए थे। तालाब के बगल में ही माताजी एक बड़ा और प्राचीन मंदिर भी था, जो काफी प्रसिद्ध था। हमारे गाँव से वहां तक कार से कोई एक घण्टे का रास्ता था। डैड ने मुझसे कहा कि वो और माँ अपनी शादी के बाद, वहाँ माताजी के दर्शन और उनका आशीर्वाद लेने गए थे। इसलिए उनकी इच्छा थी कि मैं और गैबी भी चलें, और माताजी के दर्शन करें। हम तुरंत ही तैयार हो गए - डैड अपने मन की बातें बहुत कम ही बताते थे; इसलिए यदि वो अपनी कोई इच्छा खुले रूप से हमसे कहते थे, तो हम तुरंत मान जाते थे। दूसरा, एक पिकनिक जैसा भी हो जाता!

काजल ने हम सभी को जाने को कहा, और बोली कि शादी के बाद अभी भी घर को ठीक से व्यवस्थित करना बाकी है। वो हमारे पीछे वो सारे काम निबटा लेना चाहती है। माँ समझ गईं कि वो इसलिए आनाकानी कर रही थी कि कार में जगह कम थी। इसलिए उन्होंने काजल को समझाया कि वो गाँव में किसी को कह कर एक और गाड़ी का इंतजाम करने वाले हैं। और सबसे बड़ी बात यह कि काजल को हिचकिचाना नहीं चाहिए, क्योंकि वो भी हमारे घर का ही हिस्सा है, और हमसे अलग नहीं है! घर के काम तो होते ही रहेंगे; यदि कुछ बाकी रह गया तो उसको निबटाने के लिए गाँव के अन्य लोग भी मदद कर सकते हैं। लेकिन हमको ऐसे अवसर कम ही मिलते हैं। माँ के समझाने पर काजल भी साथ चलने को तैयार हो गई।

शीघ्र ही एक जीप घर के सामने आ कर खड़ी हो गई। जीप में मैं, गैबी और सुनील बैठे, और कार में डैड, माँ, काजल और लतिका। कार को डैड चला रहे थे, और जीप को ड्राइवर। सर्दी के मौसम में, सूर्य की कच्ची धूप में खुली जीप में एक घण्टे का सफर बड़ा सुखदायक था। उससे भी अधिक सुखदायक था तालाब पर पहुँचना। मंदिर में बहुत चहल पहल थी, लेकिन फिर भी एक अलग ही तरह की शांति थी वहाँ। रह रह कर घण्टे की ध्वनि और पार्श्व में भजन की मधुर और धीमी आवाज़ - बहुत सुकून देने वाला अनुभव था। हमने माताजी के दर्शन किए और उनका आशीर्वाद लिया। डैड ने मंदिर के मुख्य पुजारी जी से, पुराने वाले पुजारी जी से मिलने की अभिलाषा व्यक्त की। पुराने पुजारी जी करीब पचासी साल के वृद्ध हो चुके थे, और उन्होंने ही डैड और माँ का विवाह संपन्न कराया था। आज कल उनकी तबियत ठीक नहीं रहती थी, इसलिए उनका कार्यभार पिछले कुछ वर्षों से एक नए पुजारी के कन्धों पर था। लेकिन वो अभी भी वहीं मंदिर के पीछे बने एक कमरे के आवास में रहते थे! शुरू शुरू में उनकी कमज़ोर स्वास्थ्य को ले कर उनसे मिलने में आनाकानी हुई, लेकिन थोड़ा ज़ोर देने पर हमको उनसे मिलने की अनुमति मिल गई।

पुराने पुजारी जी, हमारे गाँव के मंदिर के जीर्णोद्धार के बाद, भगवान की पुनर्स्थापना और पूजा के लिए आये थे। उस समय भी वो डैड से बड़े स्नेह से मिले थे और उनको अपना आशीर्वाद दिया था, और उस पावन कार्य के लिए अपना आभार भी दिया था। उसके बाद से अभी मिलना हो रहा था, तो पुजारी जी भी बहुत प्रसन्न थे। इतने वृद्ध पुरुष का आशीर्वाद लेना वैसे भी बड़े सौभाग्य का काम है, इसलिए हम सभी उनसे मिले। सबसे पहले डैड ने उनके चरण स्पर्श किए,

“आओ पुत्र! बड़े समय से तुम्हारे आने की प्रतीक्षा थी! आज तुम्हारे पूरे कुटुंब को देख कर आनंद आ गया! चक्रवर्ती भव, पुत्र! चक्रवर्ती भव! तुम्हारे कुटुंब की उन्नति होवे!” उन्होंने तुरंत कहा।

यह ‘चक्रवर्ती भव’ वाला आशीर्वाद आज के समय में बड़ा अनोखा लगता है, क्योंकि प्राचीन समय में यह आशीर्वाद तो राजाओं को दिया जाता था। लेकिन इसमें निहित भाव यह है कि आशीर्वाद प्राप्त करने वाले की कीर्ति चारों दिशाओं में पहुँचे - अगर वो राजा है तो उसका साम्राज्य और उसका प्रभुत्व चारों दिशाओं में हो। डैड मुस्कुराए और एक तरफ़ हट गए। फिर माँ ने उनके चरण स्पर्श किए,

“मेरी पुत्रवधू!” उन्होंने बड़े स्नेह से माँ को देखा और कहा, “सौभाग्यवती भव! सुखी भव!” फिर कुछ समय उनकी तरफ़ देख कर, मुस्कुरा कर बोले, “पुत्रवती भव, वत्सा! पुत्रवती भव! सानंद भव!”

पुजारी जी की बात सुन कर माँ थोड़ा अचंभित तो हुईं, लेकिन वो कुछ कहतीं कि पुजारी जी ने हँसते हुए कहा,

“तुम्हारे हाथ के आम के आचार खाए हुए बड़े वर्ष बीत गए, पुत्री! इस वृद्धावस्था में बस उसी सुख की कामना है!”

बात तो उनकी सही थी - माँ के बनाए आम के आचारों में ऐसा स्वाद था कि क्या कहें! लेकिन कैसे सरल पुरुष थे वो कि ऐसी छोटी सी चीज़ की इच्छा थी उनको!

“बाबूजी, इस बार तो इसके विवाह के कारण लाना संभव नहीं हुआ, लेकिन अगली बार अवश्य लाएँगे!” माँ ने कहा।

“बहुत बढ़िया! इसी बहाने वैकुण्ठ जाने से पहले पुनः तुम दोनों से मिलने का अवसर मिलेगा!” पुजारी जी ने मुस्कुराते हुए कहा।

“ऐसा न कहिए बाबूजी! भगवान् करें कि आप शतायु हों!”

“अरे बिटिया,” इस बार वो बड़े अनौपचारिक तरीके से बोले, “बच्चे सुखी हैं, तो शतायु होने का क्या मोल! हमारा तो सारा सुख बस उसी में है! हाँ, लेकिन जाने से पहले बस उन आचारों का स्वाद मिल जाए, और कुछ नहीं चाहिए!” उन्होंने हँसते हुए कहा।

माँ कुछ कह पातीं कि वो मेरी और गैबी की तरफ़ देखने लगे। बात आई गई हो गई, वो माँ एक तरफ़ हट गईं, जिससे हम लोग भी पुजारी जी से आशीर्वाद ले सकें। मैंने और गैबी ने एक साथ ही उनके चरण स्पर्श किए! मुझे आशीर्वाद देने से पहले पुजारी जी ने गैबी को आशीर्वाद दिया,

“अहो! कैसा तेज! कैसा तेज! सानंद रहो पुत्री! सदैव सानंद रहो! जीवन के सभी सुख तुमको मिलें। तुम्हारा परिवार तुम्हारी ही तरह विद्या पोषण करता रहे!”

गैबी ने बड़े आश्चर्य से उनकी तरफ देखा, लेकिन कुछ बोली नहीं! फिर पुजारी जी ने मुझसे कहा,

“दीर्घायु भव पुत्र! दीर्घायु भव! चक्रवर्ती भव!” उन्होंने मुझे एक दो पल और देखा और कहा, “पुत्र, तुम विषम परिस्थितियों से कभी अधीर मत होना। अपने हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम रखना और सच्ची आस्था और लगन से अपने जीवन में आगे बढ़ते रहना। भगवान् की कृपा से तुम्हारा यश सर्वत्र व्याप्त हो! और हाँ, एक और बात - याद रहे, धनोपार्जन जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन समाज को भी उसका लाभ मिलना चाहिए!” उन्होंने मुस्कुरा कर मेरे सर पर हाथ फेरा।

पुजारी जी की बातें और उनके आशीर्वाद वाकई पेचीदा थे। हम चारों को ही बड़े अलग अलग आशीर्वाद मिले थे! पुजारी जी ने क्या देखा? वो क्या सोच रहे थे? मेरे दिमाग में यह बात आई तो, लेकिन मैंने बहुत सोचा नहीं - एक वृद्ध व्यक्ति के भावनात्मक वक्तव्य के बारे में इतना क्या सोचना? मैं भी एक तरफ़ हट गया।

फिर काजल ने उनके चरण स्पर्श किए! पुजारी जी एक क्षण को ठिठके,

“पुत्री, अपना परिचय दो?”

“महाराज, मैं काजल हूँ। इनकी… इनकी…” काजल बोलते बोलते रुक गई। उसको समझा नहीं कि वो क्या कह कर अपना परिचय दे - कहीं पुजारी जी छूत-अछूत न मानते हों!

“पुत्री, तुम किसी प्रकार का संशय मत करो।” पुजारी जी ने बड़ी दयालुता से कहा, “तुम इसी कुटुंब का हिस्सा हो, और सदैव रहोगी। तुम्हारा कल्याण हो! सदा सुखी रहो। तुम्हारे जीवन में ईश्वर की अनुकम्पा, और उनका प्रदत्त प्रेम, सदैव तुम्हारे हृदय में बना रहे! सदा सुखी रहो!”

काजल चकराई हुई सी माँ के पास जा कर खड़ी हो गई, और माँ ने बड़े प्यार से काजल को अपने में समेट लिया। पुजारी जी ने ये देखा और मुस्कुरा कर बोले,

“हाँ! बस ऐसा ही स्नेह सदैव बनाए रखना, पुत्रियों! जीवन में यह स्नेह अति-आवश्यक है!” उन्होंने फिर से एक पहेलीदार भाषा का प्रयोग किया।

जब सुनील ने उनके चरण छुए, तो पुजारी जी ने कहा,

“अहा! अब समझ में आया! अब समझ में आया! सुखी रहो वत्स! हे पुत्र, तुम्हारी आयु, विद्या, यश, और बल में सदैव वृद्धि हो! अपनी माता का यश तुम दूर दूर तक फैलाओ!”

कमाल है! पुजारी जी ने सुनील की माता का नाम तो लिया, लेकिन उसके पिता का नहीं! अंत में लतिका आई; वो टुकुर टुकुर उनको निहार रही थी। छोटे बच्चे को इस तरह के सामाजिक सरोकार से क्या लेना देना? काजल इशारे से उसको पुजारी जी के चरण स्पर्श करने को कह रही थी, लेकिन छोटी सी बच्ची को क्या समझ में आएगा?

वो हंसने लगे और लतिका को अपनी गोदी में उठा कर पुचकारने लगे,

“नहीं पुत्री, कन्या अपने पिता के चरण स्पर्श नहीं करती।” उन्होंने उसके सर पर हाथ फेरते हुए, बड़े स्नेह से कहा, “कन्या तो भगवती का रूप होती है! पुत्री, तुम तो स्वयं श्री का रूप हो! सौभाग्यवती भव! सौभाग्यवती भव! अपने भ्राता के ही समान तुम भी अपनी माता का यश चहुँओर फैलाओ! सदा सुखी भव!” फिर वो हम सभी की तरफ़ मुखातिब हो कर बोले,

“ऐसा स्नेही परिवार! अब समझ में आया। अब समझ में आया!”

उनको क्या समझ में आया, ये न पूछें! क्योंकि हमको भी कुछ समझ में नहीं आया।

“पुत्र,” उन्होंने डैड को देख कर कहा, “ईश्वर की अनुकम्पा है तुम सभी पर! इसलिए ध्यान रहे, परिस्थितियाँ विषम हों, लेकिन अपने हृदय से प्रेम और स्नेह कम न होने देना।” वो थोड़ा रुके फिर बोले, “आनंद आ गया तुम सभी से मिल कर!”

पुजारी जी की बातें शायद ही किसी को समझ में आई हों! वैसे भी वो इतने बूढ़े पुरुष थे, कि संभव है वो सभी को जी भर के आशीर्वाद देना चाहते हों। आशीर्वाद तो देने वाले के प्रेम पर निर्भर करता है।

कुछ देर हमने उनके साथ बैठ कर वार्तालाप किया। पुजारी जी को आज भी बाइस साल पहले की बातें याद थीं। उन्होंने हमको डैड और माँ के विवाहोपरांत की कुछ बातें बताईं, और मुझसे कहा कि उनके बाद, उन्होंने किसी अन्य जोड़े का विवाह नहीं करवाया। उन्होंने हम सभी से हमारे बारे में बातें करीं। गैबी से उन्होंने ब्राज़ील देश के बारे में कई सारे प्रश्न किए। मुझे यह देख कर बहुत ख़ुशी मिली कि उनको इस उम्र में भी नया जानने समझने की इतनी ललक थी। वो बड़ी उत्सुकता से बड़ी देर तक हम सभी से बातें करते रहे।

हमारा प्लान पिकनिक मनाने का था, लेकिन पुजारी जी की बातें इतनी मधुर थीं, कि उनके पास से हटने का मन ही नहीं हो रहा था। लेकिन, वो अपनी ढलती उम्र के कारण अपेक्षाकृत जल्दी ही थक गए तो हमने उनसे विदा ली। जाते जाते उन्होंने हमको पुनः आने का निमंत्रण भी दिया। डैड ने वायदा किया कि वो और माँ आचार ले कर शीघ्र ही उनकी सेवा में प्रस्तुत होंगे। मैंने फिर देखा कि डैड वहाँ की दान-पेटी में कुछ चढ़ावा देने वाले थे, तो मैंने उनको रोक कर एक चेक (एक दो चेक मैं अपने पर्स में ही रखे हुए था कि क्या पता, शादी के किसी प्रयोजन में काम आ जाए) काट कर पुजारी जी को सौंप दिया, कि समाज कल्याण के लिए एक छोटी सी भेंट है! वो मुस्कुराए और मेरे सर पर हाथ फिराते हुए बोले,

“अपने हृदय में यह सहजता बनाए रखना, वत्स!”

“आपकी इच्छा मेरा कर्तव्य है बाबूजी!” मैंने हाथ जोड़ कर कहा, “अच्छा, अभी चलते हैं!”

“कल्याण हो!” उन्होंने दोनों हाथ उठा कर मुझे आशीर्वाद दिया।

“शीघ्र ही मुलाकात होगी!” मैंने कहा।

उन्होंने उत्तर में केवल एक हल्की सी मुस्कान दी।

मंदिर से निकल कर हम तालाब के किनारे बैठ कर कुछ देर तक वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाने लगे। मंदिर के समीप ही एक भोजनालय था, जहाँ पर हमने थोड़ा नाश्ता और चाय मंगाई। बड़े लोगों का काम केवल चाय से चल जाता है, लेकिन बच्चों को कुछ न कुछ खाने को चाहिए ही होता है! और यदि पिकनिक जैसा कुछ हो तो और भी आवश्यक है कि मिठाई जैसी चीज़ों का आनंद मिले। लिहाज़ा, सुनील, लतिका और गैबी के लिए मिठाई, और बाकी के लोगों के लिए कचौरियों का इंतजाम हुआ। छोटी छोटी बातें, लेकिन बड़ी सुकून देने वाली, बड़ी आनंद देने वाली!

वहाँ से वापस आते आते शाम का धुँधलका हो गया। आज शाम को हमारे भोजन का बंदोबस्त बगल चाची जी के यहाँ था। उनकी शिकायत थी कि जब से भैया (डैड) और बहू (माँ) आये हैं, तब से साथ में एक बार भी बैठ कर भोजन नहीं हो सका। माँ, काजल और गैबी, चाची जी और भाभियों की मदद करना चाहते थे, लेकिन उन्होंने उन तीनों को कंधे से पकड़ कर बैठा दिया। बोले, कि नई बहू के हाथ का खाना तो अवश्य खाएँगे, लेकिन आज नहीं, अगली या उसके अगली रोज़!

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avsji

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पहला प्यार - विवाह - Update #16


जीप में सफर करना, वो भी ख़ास कर गाँव के खड़ंजे वाले रास्ते पर, बहुत सुख वाला अनुभव नहीं होता। उस समय तो नहीं पता चला, लेकिन जब घर पर आ कर हम बिस्तर पर लेटे तो हम दोनों की ही हड्डियाँ कीर्तन कर रही थीं, और हम दोनों ही सम्भोग करने की स्थिति में नहीं थे। इसलिए हम दोनों एक दूसरे को बाहों में भरे, मीठी मीठी बातें करते हुए सो गए। सुबह जल्दी उठ कर मैंने और गैबी ने दो बार सम्भोग का आनंद उठाया और फिर बाहर आ गए। बाहर आ कर देखा तो माँ और डैड दोनों ही अपने मॉर्निंग वाक/जॉग पर गए हुए थे, और वापस नहीं आए थे। काजल जाग गई थी, लेकिन काम में व्यस्त थी। गैबी ने जबरदस्ती कर के काजल का हाथ बँटाने में मदद करी - काजल के तमाम न-नुकुर करने के बावजूद।

जब तक माँ और डैड वापस आए, तब तक नाश्ता तैयार था। माँ आश्चर्य से बोली,

“अरे, तुम दोनों ने मेरा इंतज़ार भी नहीं किया?”

“माँ जी, हमारे रहते आपको काम करना पड़े तो शर्म है हम पर!” काजल ने बड़े गर्व से कहा।

“अरे मेरी बिटिया,” कह कर माँ ने उसको अपने गले से लगा लिया!

“मैंने भी दीदी की हेल्प की माँ!” गैबी ने कहा।

“तू तो है ही मेरी प्यारी बिटिया!” कह कर माँ ने गैबी को भी काजल के साथ ही अपने आलिंगन में भर लिया।

“अरे भाग्यवान, आप लोगों का भारत मिलाप हो गया हो तो कुछ भोजन खिला दें। पेट में चूहे दौड़ रहे हैं!” डैड ने मज़ाकिया अंदाज़ में गुहार लगाई।

माँ ने हँसते हुए कहा, “ठाकुर साहब, आप चूहों से डरते हैं?”

“नहीं भाग्यवान, चूहों से नहीं - उनके दौड़ने से और वो भी मेरे पेट में!”

“हा हा हा! बैठिए बैठिए!”

“ऐसे नहीं - साथ में खाते हैं, सपरिवार!” डैड ने सुझाया।

उनकी बात सुन कर काजल मुस्कुरा दी। शायद वो खुद को इस परिवार का हिस्सा कहलाने पर खुश थी।

“हाँ हाँ! वही प्लान था।” माँ ने कहा, “दोनों बिटियों ने साथ में नाश्ता बना दिया था, तो अब हम सभी साथ में खा सकते हैं!”

“बच्चों को उठा लें?” गैबी ने कहा।

“अभी सो रहे रहे हैं दोनों?”

“जी माँ!”

“सो लेने दो! एक बार स्कूल खुल जाएगा, तो इतना आराम नहीं मिलेगा!” माँ ने बड़ी ममता से कहा।

“जी ठीक है। तो हम पाँच जने ही!”

हम सभी ने फिर साथ में बैठ कर नाश्ता किया और फिर चाय पी। जब दोनों बच्चे उठ गए तो उनको भी खाना खिला दिया गया। खा पी कर सुनील खेलने के लिए बाहर निकल गया।

**

थोड़ा दिन चढ़ा, तो हम सभी साथ में बैठ कर बातें करने लगे। करने के लिए फिलहाल कोई ख़ास काम नहीं था। इसलिए क्यों न थोड़ी गपशप ही करी जाए! जब बेटे बेटियों की शादी हो जाती है, तब उनको मित्र समझा जाने लगता है। कम से कम मेरे माँ और डैड तो हमारे साथ वैसे ही व्यवहार कर रहे थे। माँ अपनी शादी के समय के किस्से सुना रहीं थीं, जो किसी कारणवश आवश्यकता से कुछ अधिक ही अंतरंग जानकारी लिए हुए थे।

“मैं जब इस घर में आई थी, तो बस एक लड़की जैसी ही तो थी! खेलते कूदते कब मेरी शादी हो गई, मुझको पता ही नहीं चला। नई नवेली दुल्हन के जैसे जब मैं इस घर में आई, तो मुझे मालूम भी नहीं था कि घर की बहू व्यवहार कैसे करती है। न घर के काम काज की अकल, और न ही कोई दूसरा शऊर! मैं तो बस एक नटखट, बेफिक्र सी, चंचल लड़की थी! लेकिन मेरी माता जी - मेरा मतलब मेरी सासू माँ - बहुत अच्छी थीं। उन्होंने हमेशा मुझे अपनी बेटी के जैसा माना, और मुझे अपने तरीके से मैच्योर होने दिया। मुझे तो लगता है, कि आज हमारे पास यह सब कुछ है, तो ज्यादातर उनकी वजह से ही है!”

अपनी माँ (मेरी दादी जी) के बारे में ऐसे अच्छे शब्द सुनकर डैड बहुत प्रसन्न थे और गौरान्वित महसूस कर रहे थे। लेकिन उन्होंने इस बात को बहुत तूल नहीं दिया।

“हाँ, हाँ... वो घर भर में केवल तुमसे ही प्यार करती थीं - केवल तुमसे। और मुझ से तो वो विशेष रूप से नाराज़ रहती थीं। जब देखो तब मुझे यह कहकर धमकाती थी कि ‘अगर तुमने मेरी बहू को चोट पहुंचाई, तो मैं तुम्हें पीट दूँगी!’”

“ओ हो हो हो!” माँ ने डैड को चिढ़ाते हुए कहा, “और इसमें गलत क्या था? जब से मैं इस घर में आई हूँ, तब से ही तुमने मुझे सताना शुरू कर दिया था।”

मैं इस बात पर चौंक गया! गैबी भी! हम सोच भी नहीं सकते कि मेरे डैड किसी को भी सता सकते हैं - ख़ास तौर पर माँ को! उनसे तो कभी उन्होंने ऊँचे स्वर में बात भी नहीं की! डैड एक बहुत ही सज्जन व्यक्ति थे, जिन्होंने जब भी संभव हुआ, केवल दूसरों की मदद ही करने की कोशिश की। मैंने उनको कभी भी किसी से ऊँची आवाज़ में बात करते हुए नहीं देखा। और सबसे बड़ी बात, वो माँ से बहुत प्यार करते थे। इसलिए, यह कहना कि वो माँ को सताते थे, असंभव सी बात थी।

“मैंने तुम्हें सताया? मैंने? अरे भाग्यवान, मैंने ऐसा कब किया?” डैड भी हमारी की तरह आश्चर्यचकित थे।

“अच्छा जी। बहुत भोले बन रहे हो अभी। गैबी बेटा, काजल बेटा, मेरी विदाई सुबह सवेरे हुई थी और हम दोपहर होते होते यहाँ पहुँचे… और जैसे ही हम को कुछ एकांत मिला, आपके डैडी, ये मेरे भोले राम ने, मेरी चोली उतार दी… वो भी दिन में ही।”

“ओह वो!” डैड को यह सुनकर बहुत राहत मिली कि, “अब तुम ही मुझे बताओ गैबी बेटा, काजल बेटा, अपनी नई नवेली दुल्हन के कपड़े उतारना, उसको सताने जैसा कैसे हो सकता है? अपनी बीवी को कोई प्यार भी न करे?”

“बाबू जी, आपकी बात बिलकुल ठीक है। माँ जी, मुझे इसमें तो कुछ भी गलत नहीं दिख रहा है।” काजल भी माँ और डैड के बीच हो रहे हँसी मजाक को देखकर मुस्कुराई।

“नहीं दिख रहा है? लेकिन काजल, मैं कितनी छोटी थी!” माँ ने जवाब दिया, “एक बड़ा आदमी, एक लड़की के साथ ऐसा कैसे कर सकता है?” माँ ने डैड को चिढ़ाया।

“मैं तो माँ की तरफ़ हूँ!” गैबी माँ का पक्ष लेते हुए इस हँसी मज़ाक में शामिल हो गई, “डैड, आपने माँ के कपड़े क्यों उतारे! बिना उसके ही उनको प्यार करते!” उसने मुस्कुराते हुए कहा।

“गैबी बेटा, तुम इस बात पर अपनी माँ का साइड नहीं ले सकती... अब तुम्ही बताओ, अमर तुम्हारे कपड़े और चोली क्यों उतारता है?” डैड ने समान रूप से उत्तर दिया, “बेशक अपनी पत्नी के अंगों को प्यार करने के लिए! मुझे भी अपनी पत्नी के अंगों से, उसके स्तनों को प्यार करना था… अब तुम्ही बताओ, बिना अपनी बीवी के कपड़े उतारे, कोई कैसे उसको प्यार कर सकता है?”

डैड की बात पर गैबी के गाल शर्म से लाल हो गए। उसे यह भी याद आया कि डैड ने हाल ही में उसे पूरी तरह नग्न देखा था। वो शर्मा कर चुप हो गई।

“माँ, इसमें शिकायत करने जैसा क्या है! मुझे समझ में नहीं आ रहा है!” मैंने भी अपने विचार प्रस्तुत किए, “यह तो नेचुरल ही है कि एक हस्बैंड, अपनी वाइफ के ब्रेस्ट्स को चूमना और चूसना चाहेगा।”

“हाँ हाँ! क्यों नहीं! मर्द लोग, और उनका ब्रेस्ट्स के लिए प्रेम!” माँ ने कहा।

“माँ... सिर्फ मर्द लोग ही नहीं... सिर्फ मर्द लोग ही नहीं।” मैंने माँ को याद दिलाया - यह इशारा करते हुए कि गैबी भी माँ के स्तन पीना पसंद करती है।

“अरे, गैबी तो मेरी बिटिया है!” माँ ने बड़े प्रेम से उसको अपने गले से लगाते हुए कहा।

“और मैं आपका बेटा हूँ।”

“और मैं तुम्हारा पति हूँ, जानेमन!” डैड आज अपने अंतरंग जीवन के बारे में कुछ अधिक खुल कर सामने आए हुए थे।

डैड थोड़ा शर्मीले स्वभाव के तो थे ही! आज से पहले तो उन्होंने केवल मेरे ही सामने ही सेक्स के बारे में अपना ज्ञान दिखाया था - वो भी केवल मुझे सिखाने के लिए! इसलिए यह सब कुछ एक सुखद आश्चर्य के जैसा था।

“तुम्हारे डैडी ने सोलह साल की उम्र तक अपनी माँ को दूध पिया है!” माँ ने डैड को थोड़ा चिढ़ाते हुए कहा।

“उनको इतने समय तक दूध आता था?” काजल में जिज्ञासापूर्वक पूछा।

“हाँ भई, मैंने माँ का दूध तो खूब पिया है...” डैड के चेहरे पर ऐसे भाव थे कि जैसे बहुत सुखद यादों को वो पुनः जी रहे हों - मुझे आश्चर्य नहीं हुआ - माँ का दूध पीना तो वाकई सबसे सुखद अनुभव होता है! उन्होंने कहना जारी रखा, “और उनके बाद, जल्दी ही तुम मिल गई जान-ए-मन!” डैड ने स्वीकार किया और हमारे पचाने के लिए एक नई जानकारी जोड़ी।

“मुझे नहीं पता... मुझे नहीं पता कि माँ जी को उतने समय तक भी दूध बनता था या नहीं।” माँ ने काजल के सवाल का जवाब देते हुए कहा।

“बनता था... बनता था!” डैड ने पुष्टि करी।

माँ ने सर हिला कर हामी भरी, “आज कल तो औरतें पिलाती ही नहीं! बच्चों के तीन चार महीने का होते होते ही दूध छुड़ा देती हैं! अगर पिलाती रहें, तो एक माँ को दूध तो हमेशा ही बन सकता है। अब मुझे ही देखो, मैंने अमर को कितने सालों तक दूध पिलाया है! दस का होने तक तो ठीक से बनता ही था! उसके बाद कम हो गया, लेकिन फिर भी आता रहा। अपने डैड के समान ही वो भी तो चौदह पंद्रह का होते होते पीता रहा…”

माँ ने जो कहा, मैंने उसकी पुष्टि करते हुए अपना सर ‘हाँ’ में हिलाया!

“तो,” माँ ने कहना जारी रखा, “मुझे लगता है कि उसकी दूध पीने वाली प्रवृत्ति उसके डैड से आई है।”

“दूध तो तुम्हारे मैं अभी भी पीता हूँ, जान-ए-मन!” डैड ने धीरे से माँ की छाती को छूते हुए, और फुसफुसाते हुए कहा।

माँ ने उनका हाथ हटाते हुए कहा, “धत्त! बच्चों के सामने नहीं, बेशर्म कहीं के!”

“कोई बात नहीं माँ जी!” काजल और गैबी ने एक स्वर में कहा, “हमें कोई ऑब्जेक्शन नहीं है। डैड को आप अपने सुन्दर से ब्रेस्ट्स का आनंद लेने दीजिए!”

सच में, डैड और माँ की बेफिक्री और उनके प्यार भरे हंसी-मज़ाक को देख कर हमें बड़ा आनंद आ रहा था। हम लोगों में ज्यादातर लोग हमेशा यही सोचते हैं कि हमारे माँ बाप सीरियस बन के रहें, और हम उनके सामने खेलते कूदते रहें। हम अपने माँ बाप को रोमांटिक होने जैसा सोच भी नहीं पाते। अपने माँ बाप को अगर कई लोग सेक्स करते देख लें, तो उनको एक घिनौनी सी अनुभूति होती है। जबकि सच तो यही है कि उनके प्रेम भरे मिलान से ही तो बच्चों का जन्म होता है। लेकिन, हमारे माँ और डैड के साथ हमारा सम्बन्ध अनोखा ही था - लिहाज़ा, हम तीनों ही उनके प्रेम भरे संवादों और चेष्टाओं का आनंद ले रहे थे।

“तुम दोनों इनकी चिंता मत करो। इनको हर दिन यह आनंद मिलता है!” माँ ने उत्साह से कहा।

डैड आज एक अलग ही मूड में थे। वो इस तरह से, खुल्लम खुल्ला, माँ के प्रति अपना प्रेम प्रदर्शन नहीं करते थे। हमको माँ और डैड की अंतरंगता के बारे में अच्छे से मालूम था, लेकिन हमने उसको देखा बस कभी कभी ही था। डैड, गैबी और काजल के समर्थन को पाकर खुश थे। माँ ने इस समय एक कार्डिगन स्वेटर पहना हुआ था। डैड ने कार्डिगन के बटन को खोलना शुरू कर दिया। मजे की बात यह है कि इस बार माँ ने उनको नहीं रोका।

“जब हमने शादी की थी, तो तुम्हारी माँ के स्तन छोटे छोटे थे... लेकिन वे बहुत सुंदर थे।” डैड जिस तरह से बोल रहे थे, हमको ऐसा लग रहा था कि जैसे वो किसी अवचेतन अवस्था में चले गए हों, जैसे कि उनके विवाह का वो पुराना दृश्य उनके सामने चल रहा हो - उस समय तक माँ के कार्डिगन के सभी बटन खुल चुके थे,

“शादी की सभी रस्मों के दौरान, मैं तो बस यही सोचता रहा कि तुम्हारी माँ के स्तन कैसे दिखेंगे… तुम्हारी माँ कैसी दिखेगी…” वो उनके कार्डिगन को उतारते हुए बोले, “… मेरा मतलब है कि शादी की रस्में तो सब ठीक हैं... लेकिन जब किसी आदमी को अपनी दुल्हन मिल रही हो... और वो भी तुम्हारी माँ जितनी सुंदर, तो रस्मों के बारे में कौन गधा सोचेगा?”

माँ अब तक एक प्यारी सी मुस्कान देने लगी थी; वो जानती थीं, कि फिलहाल जो हो रहा है, वो उसे रोक नहीं पाएँगीं। माँ डैड से बहुत अधिक प्यार करती थीं, और वो उनको अपना प्यार किसी भी रूप में, और किसी भी समय पर देने के लिए तैयार थी। बचपन से ही उनका इन्ही मूल्यों के साथ पालन-पोषण किया गया था - उनका पति उनके लिए परमेश्वर था। माँ को सिखाया गया था कि उनको अपने पति के प्रति पूर्ण-रूपेण समर्पित रहना है। इसके अलावा, माँ ने हमेशा डैड के प्यार, और उनके प्रेमालाप का हमेशा ही स्वागत किया था।

“लेकिन मुझे इस तरह का व्यवहार करने के लिए कौन दोषी ठहरा सकता है? और क्यों दोषी ठहराए?” डैड ने माँ का ब्लाउज खोलते हुए कहना जारी रखा, “मैं तो नया नया जवान हुआ था, और मेरे हार्मोन उमड़ रहे थे।” तीन बटन खुल गए, और केवल दो और बचे, “क्या तुम लोग जानते हो... मैंने तुम्हारी माँ को शादी वाले दिन से पहले कभी नहीं देखा था। उन दिनों दूल्हा-दुल्हन शादी के मंडप में ही पहली बार मिलते थे!”

अब तक डैड ने माँ की ब्लाउज के सभी बटन खोल दिए थे, और माँ के सुंदर स्तनों उजागर कर दिए थे।

काजल इस अविश्वसनीय रूप से कामुक दृश्य को देख रही थी, जो उसकी आँखों के सामने प्रकट हो रहा था! यह उसके लिए अविश्वसनीय हो सकता था, लेकिन शायद इतना नहीं। उसने पहले भी हमें एक-दूसरे के साथ अंतरंग और कामुक व्यवहार करते हुए देखा था! यह सब ‘सामान्य’ परिवारों में नहीं होता; यह सब सामान्य परिवारों से बहुत अलग है। पाठकों को यह सोचने के लिए क्षमा किया जा सकता है कि मेरा परिवार विचित्र था... सच तो यह है कि हम एक बहुत ही खुले विचारों वाले, और बहुत प्यार करने वाले परिवार थे!

“तो अब तुम्ही लोग सोचो, जब मैं पहली बार इनके साथ अकेला हुआ, तो मैं और क्या कर सकता था? मुझे इनकी चोली उतारनी ही थी, और इन सुंदर और स्वादिष्ट स्तनों को पीना ही था।”

डैड ने कहा, और फिर आगे झुक कर माँ का एक चूचक अपने मुँह में ले लिया। माँ ने प्यार से उनका सर पकड़ लिया - उनकी उँगलियाँ डैड के घने बालों में बस उलझ कर रह गईं। यह, हाँलाकि थोड़ा अपरिचित सा था, लेकिन यह एक बहुत सुंदर दृश्य था। यह पहली बार हुआ कि मुझे यह एहसास हुआ कि मेरे डैड कितने सुंदर थे, और मेरी माँ कितनी सुंदर थीं! उस दिन - जिस दिन उन्होंने मुझे ‘यौन शिक्षा’ दी थी - के बाद से, कई वर्षों के बाद मैंने उनके बीच ऐसी अंतरंगता देखी थी।

माँ ने कामुक आनंद में आ कर अपनी आँखें बंद कर लीं। माँ के दूसरे स्तन का चूचक डैड के स्पर्श के उत्तर में सीधा खड़ा हो गया था! डैड ने व्यग्रता और नम्रता से माँ के ब्लाउज को उनके शरीर से उतार दिया, और वो अब कमर के ऊपर नग्न हो गईं थीं। अपने प्रचंड आनंद के सागर में गोते लगाते हुए, माँ ने किसी तरह अपनी आँखें खोलीं और अपने उत्सुक दर्शकों की ओर देखा। अपनी आँखों से उन्होंने हमें वहाँ से ‘निकल लेने’ का इशारा किया। हम तीनों ने ही ‘नहीं’ में सर हिला दिया। माँ ने आह भरी और फिर से अपनी आँखें बंद कर लीं। उनके इश्क के भावावेश की गर्माहट देखते ही बन रही थी!

“और मैंने केवल तुम्हारी चोली ही नहीं उतारी थी। तुम तो वो पहली लड़की थी, जिसे मैंने पूरी तरह से नंगी देखा था।” डैड ने माँ के पेटीकोट के अंदर से उनकी साड़ी की प्लीट्स (फेंटे) खींचते हुए कहा।

‘अरे स्साला! यह सब चीजें इतनी जल्दी, इतनी गर्मा-गर्म कैसे हो गईं?’ मैंने सोचा। मुझे यकीन था कि बाकी सभी ने भी इसके बारे में ज़रूर सोचा होगा।

माँ और डैड के आसन्न सम्भोग का दृश्य हमें अचंभित कर गया था। डैड का जुनून उनके खुद के नियंत्रण से बाहर निकल चुका था, और वो अब बेफिक्र होकर माँ को नंगा कर रहे थे। वो बड़े जोश के साथ माँ के स्तनों को चूस रहे थे, और बीच बीच में उनके स्तनों और सीने को चूम भी रहे थे। माँ भी कामोत्तेजना में गरम हो गईं थीं। उनके यौन जीवन की कुछ चीजें - जिनकी मैंने केवल कल्पना ही करी थी - अब वास्तविक रूप से मेरे सामने आ रही थीं। बच्चे, विशेष रूप से, भारतीय बच्चे, अपने माता-पिता को ‘यौन प्राणी’ नहीं समझते हैं! और जब उनको इस तथ्य का सुझाव भी दिया जाता है तो वे उससे असहज महसूस करने लगते हैं। लेकिन हमारे देश की आबादी इतनी अधिक गाने बजाने से नहीं हुई है। हमारी आबादी इसलिए बढ़ी है क्योंकि मारे माता-पिता ने खूब सेक्स किया है!

मुझे मेरे माँ और डैड के यौन आकर्षण के बारे में कोई पूर्वाग्रह नहीं था। मैंने उनको सम्भोग करते हुए देखा था, और मुझे मालूम था कि वे दोनों अपने सक्रिय यौन जीवन का भरपूर आनंद लेते हैं। लेकिन फिर भी, यह सब इतनी निकटता से होते देखना, और वो भी तब, जब मुझे वैवाहिक सम्भोग की बारीकियों के बारे में मालूम था, कुछ अलग ही बात थी। मुझे नहीं समझ आ रहा था कि मैं कैसी प्रतिक्रिया दूँ, या क्या सोचूँ, या क्या करूँ! दिमाग के समझदार हिस्से ने सुझाव दिया कि हम उन्हें सेक्स करने के लिए छोड़ दें, जबकि दूसरे हिस्से ने सुझाव दिया कि हम वहीं रह जाएँ और यह सब होते हुए देखें! शायद, डैड भी यही चाहते थे कि हम उनको यह सब करते देखें। तो मैं रुका रहा। काजल और गैबी भी मेरे ही जैसे हाव भाव लिए उनको देख रहे थे।
 

avsji

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पहला प्यार - विवाह - Update #17


जब डैड माँ का पेटीकोट उनकी कमर से नीचे खींच रहे थे, तो माँ ने लड़खड़ाते हुए, अस्थिर से स्वर में कहा, “कु... कुछ तो शर्म करो... बच्चे हमें देख रहे हैं…”

माँ उस समय तक बहुत उत्तेजित थीं, और आसन्न सम्भोग को रोकने में असमर्थ और शक्तिहीन थीं।

“अरे बच्चों के सामने शर्म कैसी? ये हमारे बच्चे भी तो दिन रात यही एक काम कर रहे हैं!”

डैड ने कहा और उन्होंने माँ का पेटीकोट उनके नितंबों से सरकाते हुए उतार दिया। अगले कुछ ही सेकंड में, माँ, अपने जन्म के समय जैसी ही, पूरी तरह से नग्न थीं। यह अद्भुत था! बेशक, मैंने अपने जीवन में पहली बार माँ को इस तरह नग्न देखा था। बेशक, डैड, गैबी और काजल ने पहले भी उन्हें ऐसे नग्न देखा था। लेकिन मेरे लिए यह बिल्कुल नया अनुभव था। माँ लगभग काजल जैसी ही दिखती थीं - बस उनकी योनि का रंग काजल की योनि के मुकाबले अधिक गोरा था, और उनके होंठ इस समय थोड़े मोटे और उभरे हुए थे। यह बात छिपी हुई नहीं थी कि माँ बुरी तरह से कामोत्तेजित थीं। हम सभी उनकी योनि के होठों पर उनकी योनि के रस की हल्की सी चमक देख सकते थे।

‘वाह!’ मैंने सोचा।

इसके बाद, डैड अपना पजामा उतारने लगे। मैंने कभी नहीं सोचा था कि डैड, काजल और गैबी के सामने नग्न होने के लिए इतने उत्सुक हो सकते हैं। यह भी हो सकता है कि शायद वो दो अन्य महिलाओं के सामने होने के कारण इस तरह से उत्सुक और उत्तेजित थे! जल्द ही, वो हमारे सामने अपने अंडरवियर में खड़े थे, और जबकि कमर के ऊपर उन्होंने सारे कपड़े पहने हुए थे। हम देख सकते थे कि उनके लिंग का स्तम्भन उनके अंडरवियर पर अपना दबाव बना रहा था।

“पूरा,” माँ ने हाँफते हुए, फुसफुसा कर कहा, “पूरा उतारो…”

तो, डैड अपने सारे कपड़े उतारने में व्यस्त हो गए, और जब वो ऐसा करने में व्यस्त थे, तो गैबी ने हाथ बढ़ा कर, धीरे से माँ के भगशेफ को अपनी ऊँगली से गुदगुदाया। मुझे नहीं पता कि गैबी क्या सोच रही थी। संभव है कि उसने सोचा हो कि अगर माँ उसकी योनि को छू सकती है, तो वो भी उनकी योनि को छू सकती है। माँ का भगशेफ कामोत्तेजना के उत्साह से भर गया, और अपने फन से बाहर उभर आया। गैबी ने उनकी उभरी हुए भगशेफ की चुटकी ली। उसकी इस हरकत पर माँ का पूरा शरीर ऐसे काँप गया, जैसे उनको बिजली का झटका लगा हो!

“श... श... शैतान बच्ची,” माँ ने कराहते हुए कहा, “तुम... तुम अपनी माँ को इस तरह से नहीं छेड़ सकती…”

उस समय तक, डैड अपनी चड्ढी को छोड़ कर अपने बाकी सभी कपड़े उतार चुके थे। उसका लिंग, चड्ढी के ढीले ढाले कपड़े के खिलाफ जबरदस्ती जोर दे रहा था। कोई भी देख सकता था कि वो भी सम्भोग के लिए पूरी तरह से तैयार थे। उन्होंने अपने जंघिया की डोरी की गाँठ खोल दी, और अपने उत्तेजित लिंग को मुक्त कर दिया। जब मैंने उनका लिंग देखा तो मैं मन ही मन मुस्कुराया। निःसंदेह, मेरा लिंग डैड के मुकाबले से कम से कम डेढ़ इंच अधिक लंबा, और कम से कम एक इंच अधिक मोटा था। अभी बस कुछ ही साल पहले उनके लिंग को देख कर मुझे डर लगता था। लेकिन अब, अगर वो मेरा लिंग देख लें, वो संभव है कि वो, मेरे लिंग के आकार से ईर्ष्या करने लगें! मुझे लगता है, कि अब काजल और गैबी को भी इस तथ्य का एहसास हो गया होगा। लेकिन यह सब मेरे बारे में नहीं था। यह मेरे माता-पिता के बारे में था।

डैड ने माँ की जाँघों को चौड़ा किया, और खुद को उनके बीच में व्यवस्थित किया। मुझे लगता है कि थोड़े रूढ़िवादी, या यह कह लीजिए कि थोड़े बूढ़े लोगों में निश्चित रूप से सम्भोग को मसालेदार बनाने की चालाकी की कुछ कमी होती है। अश्लील सामग्री के संपर्क में आने के कारण, हम युवा लोग फोरप्ले और संभोग, दोनों को अधिक देर तक चलाने के लिए अधिक इच्छुक रहते हैं। एक तरफ़ मैं हूँ, जो सेक्स करने से पहले गैबी को उत्तेजित करने में काफी समय लेता हूँ, और दूसरी तरफ़ डैड हैं, जो नंगा होते ही माँ के अंदर अपना लिंग डालने को तत्पर थे। शायद उन्होंने ऐसा इसलिए किया हो क्योंकि यह सब उनके लिए भी नया हो! शायद उन्होंने अपना लिंग अंदर डालने में जल्दी दिखा दी - माँ की योनि की सुरक्षा प्रणाली अप्रत्याशित रूप से सामने आ गई, और माँ लगभग चीख पड़ीं,

“धीरे ... धीरे …” माँ ने अनुरोध किया।

लेकिन डैड आराम से सम्भोग करने के मूड में नहीं थे। वो पहले ही धक्के में माँ के अंदर तक उतर गए। माँ ने डैड के गर्म शरीर को अपने शरीर पर; उनकी सांसों को अपने कान पर; और उनके दृढ़ लिंग को अपनी योनि के अंदर महसूस किया।

“मर गई बाबा…”

मैं सहमत हूँ, कि जो दोनों हमारे सामने सम्भोग कर रहे थे वो मेरे माँ और डैड थे; लेकिन मैं यह भी मानता हूँ, कि इसका प्रभाव मेरे ऊपर बहुत अधिक हो रहा था। मैं उनको ऐसे सेक्स करते देख बहुत उत्साहित हो गया था। यह झूठ होगा, अगर मैं यह कहूँ, कि इस पूरे कामुक दृश्य ने मुझको यौन रूप से प्रभावित नहीं किया! हाल ही में मैं इक्कीस का हुआ था, और किसी भी कामुक बात पर उत्तेजित होना, मेरे लिए बहुत ही आसान था! तो, मैं भी सम्भोग के लिए तैयार था। लेकिन मैं खुद को गैबी के साथ सेक्स करने के लिए नहीं ला सका। उसका एक कारण यह भी था कि काजल भी वहाँ उपस्थित थी! और अगर मैं और गैबी भी सेक्स करने लगे तो, वो खुद को अकेला और दुखी महसूस करेगी। और दूसरा कारण यह था कि जब से हमने अपना वैवाहिक जीवन शुरू किया था, तब से प्राप्त होने वाले सम्भोग से गैबी की योनि चोटिल हो चुकी थी। तो, मैंने सोचा, मैं फिलहाल अभी के लिए सेक्स नहीं करूँगा।

इसी बीच माँ ने डैड को अपनी ओर खींच लिया और फुसफुसाते हुए कहा, “आई लव यू।”

डैड अति उत्साह और प्रसन्नता से भर गए! उनके पास इस कामुक कल्पना को जीने के लिए दर्शकदीर्घा और एक इच्छुक साथी था। उन्होंने एक लय का निर्माण करते हुए खुद को माँ की योनि की गहराई के अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। उन्होंने माँ की ओर देखा, और मन ही मन उनकी नग्न सुंदरता की भूरि भूरि प्रशंसा करी! माँ वाकई बहुत प्यारी लग रही थीं! माँ के स्तन, सम्भोग की लय के साथ ही हिल रहे थे। जैसे-जैसे वे सम्भोग के चरम पर पहुँचते गए, उनकी दोनों साँसें भारी होती गईं। माँ ने उनको और अंदर आने देने के लिए अपने घुटनों को ऊपर उठाया, और अपने पैरों को डैड की कमर के चारों ओर लपेट लिया! और डैड को अपने में भींच लिया।

“मैं भी तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ।” डैड ने बड़े प्रेम से जवाब दिया!

माँ ने एक संतोषजनक आह भरी! उन्होंने अपने हाथों से डैड के अंडकोष को पकड़ा और बड़े कोमलता से निचोड़ा! उधर डैड माँ को भोगना जारी रखे थे। आज के इस सार्वजनिक प्रेम-प्रसंग में, माँ डैड की समान रूप से इच्छुक साथी थीं। दोनों अपने स्खलन पर पहुँचने से पहले कुछ और देर तक सम्भोग करते रहे। वर्षों के अभ्यास के कारण दोनों ही एक साथ अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच सकते थे। माँ भी डैड के धक्को से मेल खाते हुए, अपने कूल्हों को चला रही थीं। हम सब देख सकते थे कि वो कितनी गीली थीं! अपने माता-पिता को सम्भोग के निषिद्ध फल का आनंद लेते हुए देखना अद्भुत है! इसी क्रिया से आपकी सृष्टि होती है!

लेकिन ईमानदारी वाली बात कहूँगा - डैड ने माँ से जिस तरह सम्भोग किया, उससे मुझे थोड़ी निराशा हुई। यह तीन मिनट भी नहीं चला, और इसमें कोई फोरप्ले भी नहीं था। हाँ, यह पूरी क्रिया भावातिरेक से भरी हुई ज़रूर थी। और हाँ, यह प्रचंड प्रेम से भी भरी हुई थी। लेकिन फिर, मैं कोई फैसला सुनाने वाला कौन था? अगर माँ को मज़ा आया, तो मुझे लगता है, डैड की तकनीक ठीक थी। हर कोई स्त्री घंटों तक सम्भोग नहीं करना चाहती! वास्तविक जीवन पोर्नोग्राफी की तरह नहीं होता है।

डैड की संतुष्ट घुरघुराने की आवाज़ से मेरे अपने विचारों की ट्रेन टूट गई - उन्होंने माँ के अंदर स्खलन किया था। प्रत्येक स्खलन के साथ, वो अपने बीज को अधिक से अधिक उनके अंदर जमा करने की कोशिश कर रहे थे। छः से आठ बार ज़ोर लगाने के बाद अंततः उनके पास जमा करने के लिए और कुछ नहीं बचा था। अंत में, वो माँ के बगल गिर पड़े, और उनको अपने गले से लगा कर उनको प्यार से चूमने लगे।

“थैंक यू, माय लव!” उन्होंने चुम्बनों के बीच कहा, “आनंद आ गया!”

“ओह गॉड! यू आर हॉट!” माँ ने डैड की बढ़ाई करते हुए कहा।

‘हॉट!’ मैंने सोचा, ‘आप लोगों को देखना चाहिए कि गैबी और मैं क्या करते हैं। काजल और मैंने क्या किया। वो ‘हॉट’ है।’

माँ अभी केवल पैंतीस-छत्तीस साल की थीं, और वो अभी एक जननक्षम युवा महिला थीं! अगर वो डैड के उस प्रदर्शन से संतुष्ट थी, तो जाहिर सी बात है कि उनके वैवाहिक आनंद के लिए, सिर्फ सेक्स के अलावा और भी बहुत कुछ होना चाहिए। निःसंदेह, डैड और माँ में बहुत गहरा प्रेम था। दोनों ने एक दूसरे के लिए बहुत त्याग किया था, और मेरे पैदा होने के बाद उन दोनों ने ही मेरे लिए बहुत त्याग किया था। उन्होंने मुझे सफल बनाने के लिए सब कुछ किया। अब मैं जो कुछ भी था, उन्हीं की वजह से था।

‘जब डैड माँ के अंदर स्खलित हो रहे है, तो वो गर्भवती क्यों नहीं होती हैं?’ लेकिन तभी अचानक मेरे दिमाग में एक विचार कौंधा।

डैड ने माँ के एक चूचक को चूमा।

“मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं ऐसा करूँगा …”

“क्या, ठाकुर साहब?” माँ ने बड़ी कोमलता से कहा।

“तुमको प्यार करना, वो भी हमारे बच्चों के सामने …”

माँ मुस्कुराई, “अरे ठीक है। ये हमारे ही बच्चे हैं... कोई बात नहीं।”

मैं चकित था कि कैसे माँ और डैड हम सभी को अपना बच्चा मानते थे। उनके लिए काजल भी उनकी ही संतान थी - जबकि काजल माँ से महज दो साल छोटी थी! मेरे कई पाठकों को यह बेहद अजीब लगेगा। लेकिन मेरे माता-पिता ऐसे ही हैं। दोनों ही प्यार करने वाले! दोनों ही स्नेही! दोनों ही नरम दिल! दोनों ही कोमल आत्माएं!

“क्या तुम लोग समझे,” माँ ने अंत में हम सभी को सीधे संबोधित करते हुए कहा, “इस तरह हमने तुमको बनाया है... हमारे प्यार ने तुमको बनाया है... तुम सभी को... हाँ काजल - तुमको भी! तुम भी मेरी बेटी हो। एक पल के लिए भी आपको यह नहीं सोचना चाहिए कि तुम मेरे परिवार का हिस्सा नहीं हो! तुम मेरा परिवार हो! मैंने तुमसे वादा किया था कि मैं तुमको सुरक्षित रखूँगी! तुम मेरे परिवार का हिस्सा हो - मेरी बेटी हो। तुमको, तुम्हारे बच्चों को सुरक्षित रखने का यही मेरा तरीका है!”

काजल, जो खुद भी हमारी ही तरह एक भावुक मनुष्य थी, माँ की बातें सुन कर भावनाओं से भर गई, और भावातिरेक में आ कर रोने लगी।

“ओह माँ जी ... माँ जी …” उसने बार-बार कहा और माँ के गले लग गई।

माँ ने उसे अपने गले से लगाते हुए चूमा, “एक पल के लिए भी खुद को इस घर से अलग मत समझना, ठीक है?”

“कभी नहीं माँ!” काजल ने कहा और हम में से किसी की परवाह न करते हुए अपना चेहरा माँ के सीने में छुपा लिया।

डैड माँ से अलग हो कर हट गए, क्योंकि वहाँ उन तीनों के लिए पर्याप्त जगह नहीं थी। उन्होंने हमारी ओर देखा,

“और तुम दोनों भी काजल को अपना समझो - अपने परिवार कर हिस्सा समझो!”

“हम मानते हैं, डैडी!”

“ये दोनों ही मानते हैं बाबू जी! दोनों ही मानते हैं!” काजल ने हमारे साथ ही कहा, “मैं इनके साथ अपने रिश्ते के नाम को नहीं जानती, लेकिन मुझे पता है कि ये दोनों ही मेरे हैं।”

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भावनाओं था ज्वार थमा, तो हम सभी सम्हल गए। दोपहर होने वाली थी, तो नहाने धोने का समय हो ही गया था। माँ ने अपने कपड़े वापस पहन लिए और सब कुछ पहले जैसा ही हो गया। सबसे अच्छा मुझे यह लगा कि अब काजल को हमारे परिवार में पूर्ण स्वीकृति मिल गई थी। उसको अपनी बेटी कहना, माँ और डैड के प्रेम की पराकाष्ठा थी। काजल अभी भी भावनाओं के ज्वार भाटे में फंसी हुई थी। उसके मन में कई सारे विचार आ रहे थे -

‘पंडित जी ने कल कहा था उसको कि वो इसी कुटुंब का हिस्सा है! और आज ही माँ और डैड दोनों ने उसको अपनी बेटी घोषित कर दिया! है न कमाल की बात? और तो और, अमर और गैबी दीदी दोनों ही, बहुत समय से ही उसको अपना मानते हैं!’

माँ को अपने पास देख कर वो वापस उनसे लिपट गई। माँ उससे बमुश्किल दो या ढाई साल ही बड़ी रही होंगी, लेकिन उनके अंक में काजल को वही सुख, वही सुकून मिल रहा था, जैसा अपनी माँ के अंक में! सच में, जहाँ प्रेम होता है, वहीं स्वर्ग होता है!

इतने में सुनील दिन भर के खेल और मस्ती के बाद घर वापस लौटा।

“आ गए नवाब साहब?” काजल ने उसको देख कर कहा, “और ये क्या जंगली जैसी हालत बना ली है तूने?”

“अरे ठीक है! मत कहो उसको कुछ! अपने घर आया है। थोड़ा मस्ती मज़ा तो होनी चाहिए, कि नहीं?” माँ ने कहा, और फिर सुनील की तरफ़ मुखातिब होते हुए बोली, “क्या क्या किया सुनील बेटा दिन भर?”

न जाने क्यों सुनील माँ को देखते ही शरमाने लगता।

“और क्या कर रहा होगा माँ जी, शकल देखिए इसकी - भूत जैसी शकल बना रखी है! कहीं मुँह काला कर के आया होगा!” काजल ने हँसते हुए सुनील को छेड़ा।

“धत्त! तू भी न! सुनील बेटे, तुम अपनी अम्मा की बात पर बुरा मत मानना - वो मज़ाक कर रही है! ठीक है, बेटा? मुझे बताओ - नए दोस्तों के साथ मस्ती चल रही है सुनील बेटा?” माँ ने प्यार से पूछा।

“जी! आज आलू और गंजी भून के खाई....” सुनील ने उत्साह से कहना शुरू किया, “और खेत से मीठी मीठी छीमी भी!”

“अरे घर में खाना नहीं मिलता क्या तुझे!” काजल ने हँसते हुए कहा, “पूरा दिन भर बस खाता ही रहा, और वो भी बाहर!”

“अरे, फिर से? बोला न, मत छेड़ो उसको! अपने घर आया है, छुट्टियाँ हैं, नए दोस्त और नया माहौल है! इतना तो बनता ही नहीं!” माँ ने मुस्कुराते हुए, बड़े प्यार से कहा, “चल सुनील बेटा, मैं तुमको नहला देती हूँ?”

“आप? नहीं नहीं, मैं अपने आप से नहा लूँगा!” सुनील ने हिचकते और शर्माते हुए कहा।

“क्या बात है नवाब साहब,” काजल ने उसको चिढ़ाते हुए कहा, “परसों तक तो आप बिना मेरे नहलाए, नहा ही नहीं पाते थे, और आज आप खुद से नहा लेंगे? क्या बात है! दारूण!”

“काजल!” माँ ने काजल को सुनील को न छेड़ने की चेतावनी दी, और कहा, “अरे कोई बात नहीं। मेरे सामने शरमा रहा है, और कुछ नहीं!” माँ ने स्नेह से कहा, “सुनील, मैं भी तुम्हारी अम्मा जैसी ही हूँ! सुनील बेटा, तुम्हारी अम्मा थकी हुई है न! खूब काम करा है उसने! मैं नहला देती हूँ न?”

यह कह कर माँ ने उसके कपड़े उतारने शुरू कर दिए। सुनील को निश्चित रूप से सबके सामने नग्न होने में शर्म तो आ रही थी, लेकिन, सबसे अधिक शर्म उसको आ रही थी माँ के सामने नग्न होने में! माँ भी इस बात को समझ रही थीं, इसलिए उन्होंने उसकी कुछ इज़्ज़त रखते हुए फिलहाल उसकी चड्ढी उसके शरीर पर ही छोड़ दी, और उसको नहलाने का इंतज़ाम करने लगीं। लेकिन जब वो उसको नहलाने को हुईं, तो माँ ने उसकी चड्ढी भी नीचे सरका दी। सुनील शर्म के मारे अपने छुन्नू को माँ से छुपाने लगा। गैबी और काजल उसकी इस हरकत पर मुस्कुराए बिना न रह सके!

“अरे,” माँ भी सुनील की हरकत पर हँसने लगीं, “इसमें शर्माने वाली क्या बात है? हाथ हटाओ न!”

सुनील ने कुछ देर तो न-नुकुर किया, लेकिन जब उसने अपना हाथ हटाया, तो उसका अपरिपक्व लिंग, अपने पूर्ण स्तम्भन पर खड़ा हुआ था।

“क्या रे,” काजल ने उसको चिढ़ाते हुए कहा, “तोमार नुनु दारिये आछे केनो?”

“गाँव की किसी सुन्दर सी लड़की की याद आ रही होगी!” गैबी ने भी सुनील को छेड़ा, “क्यों सुनील?”

“तुम दोनों मेरे लड़के को मत छेड़ो!” माँ ने सुनील के शरीर पर गुनगुना पानी डालते हुए कहा, “सुनील बेटा, खूब सुन्दर सा छुन्नू है तुम्हारा! और ये (उसके अण्डकोष को अपनी हथेली में लेते हुए) भी खूब हेल्दी हैं! खूब अच्छा खाया पिया करो - खराब खाना मत खाना कभी भी; एक्सरसाइज किया करो; कभी कोई बुरी आदतें मत पालना; और इनका (उसके अण्डकोष को सहलाते हुए) खूब ख्याल रखना - कोई चोट मत लगने देना। ठीक है?”

सुनील ने ‘हाँ’ में सर हिलाया। माँ ने उसके साथ ही ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहना जारी रखा,

“हाँ, एक सुन्दर सी बहू लाएँगे फिर तुम्हारे लिए!”

सुनील ने बड़े शर्माते हुए माँ को देखा और मुस्कुराया।

हैं,” काजल ने माँ की बात पर हामी भरते हुए कहा, “किना तोमार नुनु शोक्तो ओ शुन्दर होले, तुमि एकटा शुन्दर बोऊ धोरा!”

सुनील ने शर्माते हुए फिर से माँ को देखा।

हैं, ठीक तार मातो!” काजल ने हँसते हुए कहा।

काजल की बात पर सुनील और ज़ोर से शर्मा गया।

“क्या गिटिर पिटिर हो रही है बंगाली में, माँ बेटे के बीच?” माँ ने उनकी बातें न समझते हुए कहा।

“हा हा हा! कुछ नहीं माँ जी! मैं तो बस ये कह रही थी कि इसके लिए खूब सुन्दर सी बहू लाएँगे हम!”

“हाँ, वो तो है,” माँ ने उसको रगड़ते हुए कहा, “अमर के बाद तो तुम्हारा ही नंबर है! हा हा!”

फिर माँ ने सुनील को अच्छे से नहलाया। पानी गरम नहीं, लेकिन गुनगुना अवश्य था। वैसे भी अब वातावरण में थोड़ी गर्मी हो गई थी, इसलिए पानी शरीर को वैसा खराब नहीं लग रहा था, जैसा दो घंटे पहले लगता। खैर, स्नान के बाद सुनील को साफ़ कपड़े पहना दिए गए। और वो वहाँ से अपना बाकी की मौज मस्ती करने के लिए निकल गया।

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avsji

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Supreme
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कल शाम तो दोनों बच्चों के साथ खेलने कूदने में बीत गई।
इसलिए आज 9 हज़ार से भी अधिक शब्दों का अपडेट दिया है :)
पढ़ कर बताएँ कैसा लगा?


christ
 
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