नया सफ़र - विवाह - Update #4
पुनश्च, डेवी के डैडी के ही अनुरोध पर यह तय हुआ था कि विवाह की रात मैं देवयानी के साथ, उसके मायके में ही रहूँ, और अगली सुबह वो मेरे साथ अपने नए घर में जाए। न तो मुझे ही, और न ही मेरे माँ और डैड को इस बात पर कोई आपत्ति थी। खासकर इसलिए भी क्योंकि इस कारण से हमें शादी के रिसेप्शन के लिए आवश्यक व्यवस्था को पूरा करने के लिए थोड़ा और समय मिल गया। कल रिसेप्शन के बाद, हमें अगले ही दिन हनीमून पर जाना था! हनीमून के लिए माँ डैड ने ही हम पर दबाव बनाया था। गैबी की ही तरह, शादी के बाद डेवी भी मेरे पुश्तैनी गाँव में ही दो हफ़्ते बिताना चाहती थी। इस बात पर डैड ने उसको और मुझे समझाया कि गाँव वो हम किसी भी समय जा सकते हैं, लेकिन हनीमून एक ही बार होता है - और उसके लिए हमको किसी ढंग की, रोमांटिक जगह पर जाना चाहिए। तो, यह तय रहा कि हमारी सुहागरात देवयानी के घर होगी - हमारी वैवाहिक यात्रा और बहुत संभव है कि देवयानी की मातृत्व यात्रा भी वहीं से शुरू होगी! मेरा पूरा प्लान था कि देवयानी को हमारी पहली रात को ही गर्भवती कर दूँ! वो खुद भी यही चाहती थी! रात्रि-भोज के बाद माँ, डैड, काजल, सुनील और लतिका घर चले गए, और बाकी लोग देवयानी के यहाँ! घर पहुँच कर जयंती दीदी के पति ने हमें शुभ-रात्रि कहा और अपने घर के लिए निकल गए, जबकि जयंती दीदी और उनके दोनों बच्चे यहीं रह गए। जब मायका और ससुराल एक शहर में हो, तो बहुत आसानी हो जाती है।
बहुत बाद में मुझे बताया गया कि देवयानी के डैडी इस बात को लेकर भी परेशान थे कि वो अपनी सुहागरात में क्या पहने! उनका मत था कि डेवी को बढ़िया दुल्हन वाली साड़ी और आभूषण पहनने चाहिए, जबकि जयंती और काफी हद तक डेवी का भी यही मानना था कि कपड़े जितने आरामदायक हों, उतने ही अच्छे! आखिर, उनको वैसे भी उतरना ही है न! मैं भी दोनों महिलाओं से सहमत था (ऐसा नहीं है कि किसी ने मुझसे मेरी सलाह माँगी थी) - वैसे डेवी को तो मैं कैसे भी, किसी भी हालत में अपना बनाने को तैयार था! खैर, जब मैं घर पर आया तो जयंती दीदी ने डेवी को कुछ ‘तैयारी’ करने के लिए ड्राइंग रूम से हटा लिया। रात करीब साढ़े ग्यारह बजे मुझे उन्होंने बताया कि मैं कमरे में जाऊँ - डेवी मेरा इंतजार कर रही है!
‘चल भाई, बुलावा आ गया!’ मैंने सोचा!
सुहागरात!
पति-पत्नी की पहली रात!
कई पुरानी बॉलीवुड फिल्मों ने इस क्षण को बड़े कलाकारी, लेकिन फार्मूला वाले अंदाज़ में चित्रित किया है! सुहागरात में गहनों से सजी - लदी दुल्हन, फूलों की सेज पर अकेली बैठी रहती है! थोड़ा घूंघट रहता है; उसकी साँसे फूल रही होती हैं, और होंठ सन्निकट भविष्य की प्रत्याशा के कारण काँप रहे होते हैं। कुछ देर में कमरे के दरवाज़े पर उसका दूल्हा प्रकट होता है - या तो वो खुद ही आता है, या फिर अपनी बहनों या भाभियों द्वारा लाया जाता है - और फिर अपनी दुल्हन को गहरी नज़र भर देखता है! उसको मालूम है कि उसकी बीवी दिखती कैसी है - उसको अपनी किस्मत पर पहले से ही रश्क़ हो रहा होता है। लेकिन अभी भी उसकी बीवी का बहुत कुछ है जो उसने अभी तक नहीं देखा है! नहीं महसूस किया है। अब वही होने की सम्भावना बन रह होती है। लिहाज़ा वो अपनी दुल्हन को बड़ी लालसा से देखता है! उधर दुल्हन भी अपने उतावले होते हुए दूल्हे की हर इच्छा पूरा करना चाहती है। दूल्हा अपनी दुल्हन का घूंघट उठाता है - कभी कभी वो उसको अपने आलिंगन में भी बाँध लेता है। और बस ऐसे ही संक्षिप्त से, और हानि-रहित प्रेमालाप के बाद, कमरे की रोशनी बुझ जाती है! बाकी सब आप खुद ही समझ लें!
यह तो हुआ फार्मूला वाला चित्रण! मुझे यह पसंद है, लेकिन मुझे सबसे अधिक पसंद है फिल्म ‘कभी कभी’ वाला सुहागरात का सीन! जब यह फिल्म रिलीज़ हुई, तब डेवी कोई बारह साल की रही होगी - मतलब उसको इन बातों की थोड़ी ही सही, लेकिन समझ रही होगी। और मैं उस समय - खैर जाने दीजिए! मैं उस समय जितना बड़ा था, उस समय मुझे यकीन है कि मुझे खाने पीने और माँ का दूध पीने के अतिरिक्त और किसी भी बात की कोई अवधारणा नहीं थी! लिहाज़ा, मैंने वो सीन काफी बाद में देखा। शायद कभी चित्रहार में! डेवी ने कभी बाद में मुझे बताया कि यह उसका भी पसंदीदा ‘सुहागरात सीन’ था। जब उसने पहली बार वो सीन देखा, तो उस गाने के प्रतीकवाद को समझने के लिए वो बहुत छोटी थी।
मेरी इस कहानी के पाठकों को वो गाना अवश्य देखना चाहिए - दुल्हन (राखी) के लंबे, रेशमी बाल - जो बिखरे हुए थे, उसके नग्न होने की प्रक्रिया की ओर इशारा करते हैं। यह दृश्य दूल्हे (शशि कपूर) द्वारा दुल्हन के गहने एक एक कर के उतारने - उसके माथे का टीका, हार, झुमके, और अंत में नथ - के माध्यम से नवविवाहित जोड़े की बढ़ती अंतरंगता को खूबसूरती से दर्शाता है। गीत दूल्हे द्वारा दुल्हन की नथ उतारने पर समाप्त हो जाता है, जो संभव है यह दर्शाता है कि दुल्हन का कौमार्य-भंजन हो गया! हिंदी में ‘नथ उतारना’ वाक्यांश का अर्थ, पारंपरिक रूप से, किसी कुँवारी लड़की का कौमार्य-भंजन ही होता है!
ओह, इसके पहले मैं कहानी से भटक जाऊँ, मैं वापस आता हूँ!
हमारा शयनकक्ष घर की पहली मंजिल पर था। यह कमरा, घर के बाकी कमरों की अपेक्षाकृत बड़ा था। ये बाकी के घर से कोई अलग थलग नहीं था, लेकिन वहाँ काफ़ी गोपनीयता थी। वैसे दिल्ली के घरों में कैसी गोपनीयता? कोई भी बगल की खिड़की से आराम से ताक झाँक कर सकता है। लेकिन जितनी गोपनीयता मिल रही थी, वही बहुत थी। वैसे भी, यह शहर शायद ही पूरी तरह सोता हो। हाँ, लेकिन इतनी देर रात गए, वाहनों की टीं टीं पों पों की आवाज़ नहीं आ रही थी, जो कि बहुत अच्छी बात थी। मैंने कमरे में प्रवेश किया, और अपने पीछे का दरवाजा बंद कर लिया।
बिस्तर पर देवयानी मुस्कुराती हुई बैठी थी। इस बात का शुक्र है कि वो फिल्मों की तरह घूंघट नहीं काढ़े हुए थी। वो तो हद्द ज्यादा ड्रामा हो जाता! लेकिन फिर उसने जो किया, उसने मुझे वाक़ई चौंका दिया। मुझे देखते ही डेवी बिस्तर से उठी, और मुस्कुराते हुए और शर्माते हुए मेरे पास आई, और फिर अचानक मेरे पैरों को अपने माथे से छूने के लिए मेरे सामने घुटनों पर बैठ गई। मैं कुछ कर पाता या कह पाता, उसके पहले डेवी का माथा मेरे पैरों पर था!
‘हे भगवान्! ये क्या है!’
डेवी की इस हरकत से मुझे बहुत शर्म आई! पुराने समय में पति के पैर छूने वाली यह प्रथा प्रचलित थी, और कुछ विवाहित महिलाएं शायद आज भी ऐसा करती हैं। लेकिन मुझे आश्चर्य दरअसल इस बात पर हुआ कि डेवी जैसी लड़की ऐसा कुछ कर सकती है! मेरा मतलब है कि डेवी एक आधुनिक लड़की है - पूरी तरह से स्वतंत्र, और अपने पाँवों पर खड़ी! और सबसे बड़ी बात यह है कि वो उम्र में मुझसे बहुत बड़ी थी। तो फिर उसको मेरे पैर क्यों छूने थे? मन में उत्सुकता बहुत हुई, लेकिन मैंने पूछा नहीं। मैंने डेवी को उसके कंधों को थाम कर उठाया और फिर अपने गले से लगा लिया। थोड़ी देर के बाद जब हमारा आलिंगन टूटा, तो हमने एक दूसरे की आँखों में देखा। और फिर अचानक ही मैंने भी ठीक वही किया जो कुछ क्षणों पहले डेवी ने किया था - यानि मैंने भी घुटनों पर बैठ कर अपने माथे से उसके पैर छुए, और फिर उनको चूम भी लिया।
जब मैं उठा तो डेवी के चेहरे पर आश्चर्य, सदमा और प्यार के मिले जुले भाव साफ़ दिखाई दे रहे थे। उसकी सारी आंखें भर आई थीं।
मैंने कहा, “माय लव, आई आल्सो रेस्पेक्ट यू वैरी मच! इसलिए, मेरी जान, अगर आप मेरे पैर छुएंगी, तो फिर मैं भी आपके पैर छुऊँगा! मैं तो वैसे भी उम्र में छोटा हूँ! याद है न?”
डेवी मुस्कुराई, “आई नो! एंड, आई ऍम सो लकी! बट यू सी, अगर पति अपनी पत्नी के पैर छूता है, तो वो अपशकुन होता है।”
“हैं? वो क्यों?”
“वो मुझे नहीं मालूम! बस, होता है! एंड बिसाइड्स, मैं हमेशा से चाहती थी कि मैं अपने पति के पैर छुवूँ! इसलिए प्लीज, मुझे मत रोको, और मेरे पैर भी मत छुओ। प्लीज लेट दिस बी ओनली माय प्रीरोगेटिव?”
उसने कहा और इससे पहले कि मैं कुछ कह पाता, वो फिर से अपने घुटनों के बल बैठ गई और इस बार उसने अपने हाथों से मेरे पैर छुए, और फिर उन्हें अपने माथे से लगा लिया। देवयानी का प्यार करने का तरीका अनोखा था! मैं बस इतना कर सकता था कि मैं आगे झुकूँ और उसे उसके कंधों से थाम कर अपने आलिंगन में भर लूँ!
मैंने उसे अपने सीने में भींचते हुए कहा, “आई लव यू सो मच। यू नो दैट, डोंट यू?”
“इसमें कोई शक नहीं, मेरी जान!” उसने बड़ी अदा से कहा।
अदा से कहा, लेकिन उसकी बात में जो सत्यता थी, वो मुझे साफ़ सुनाई दी।
इतना प्यार!
और देवयानी इतनी प्यारी लग रही थी कि अब मेरे लिए रुकना मुश्किल था!
मेरे होंठ अपने आप ही देवयानी के होंठों से जुड़ गए।
‘अधर-रस-पान’!
सच में! देवयानी के मुँह का स्वाद वाकई रसीला था - हल्की सी मिठास लिए हुए। ताज़गी भरी महक लिए हुए! यह बताना मुश्किल है कि चुम्बन का अनुभव कितना आनंददायक था! यह एक स्नेहमय चुम्बन था, और कामुक चुम्बन भी! एक लम्बा चुम्बन - जिसके उन्माद में अब हम दोनों ही बह रहे थे। मेरे हाथ उसके चेहरे से सरकते हुए धीरे धीरे उसकी कमर पर चले गए, और वहाँ सरकते हुए उसके नितम्बों पर। मन में हो रहा था कि डेवी जितना संभव हो मेरे करीब ही रहे, लिहाज़ा, मैंने उसको अपनी ओर भींच लिया। यदि अत्यधिक बल होता, तो ‘आणविक संलयन’ वाली पद्धति लगा कर हम दोनों एक हो जाते! संभव है कि प्रकृति ने सम्भोग की प्रक्रिया इसीलिए बनाई हो कि दो प्रेमी एक दूसरे से ‘जुड़’ सकें - थोड़ी ही देर के लिए सही! अभी जितना संभव था, हम दोनों जुड़े हुए थे - मुझे अपने सीने पर डेवी के स्तनों के दबाव का एहसास हो रहा था। और इस एहसास के साथ डेवी को चूमना और भी सुखद अनुभव हो रहा था। मुझे समय का कोई ध्यान नहीं है कि पति पत्नी के रूप में हमारा यह पहला चुम्बन आखिर कितनी देर तक चला, लेकिन अंततः यह चुम्बन टूटा।
चुम्बन टूटते ही देवयानी मेरे आलिंगन से छूट कर मुझसे दूर जाने लगी।
‘ऐसे कैसे?’
मैंने तेज गति से उसकी साड़ी का पल्लू पकड़ा, और उसे ही पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया। इस प्रक्रिया से साड़ी के फेंटे, पेटीकोट में से बाहर निकल आए। डेवी मेरी ओर मुड़ी, और परिहास और आश्चर्य से चिल्लाई। मैंने उसे फिर से कमर से पकड़ लिया, और उसे अपनी ओर खींच कर फिर से उसके होठों पर चुम्बन किया। पिछले चुम्बन ने ही हमारे अंदर एक प्रकार का जोश भर दिया था - तो इस बार हमारे चुम्बन में स्नेह कम, और वासना अधिक थी। हमारे होंठ एक दूसरे के होंठों में खिलाफ कुचल गए - मुझे मालूम था कि अगर पहले नहीं हुआ तो अब डेवी के होंठों की लाली, मेरे होंठों पर अच्छी तरह से चुपड़ गई होगी। यह कोई कोमल चुंबन नहीं था, बल्कि जोश से भरा हुआ था - जो वास्तव में हमारे मन की स्थिति को दर्शा रहा था। हम दोनों ही अपनी सुहागरात के पूर्वाभास की अग्नि में जल रहे थे! अब तो समागम के जलाशय में स्नान करने के बाद ही वो अग्नि शांत होने वाली थी। हम दोनों ही कामुक फ्रेंच-किस का आनंद ले रहे थे, लेकिन हमारी साँसें उखड़ने लगीं थी। जब कुछ देर बाद सांस लेने के लिए हमने चुंबन तोड़ा, तो मैं स्वयं ही अपने जुनून की तीव्रता से हैरान हो गया। ऐसा नहीं है कि मैंने डेवी से पहले कभी सेक्स नहीं किया - लेकिन आज क्या हो गया था मुझे? ऐसा क्या अलग हो गया? क्यों मैं ऐसे, अपने ऊपर से नियंत्रण खो रहा था?
“तुम बहुत सुंदर लग रही हो, मेरी जान!”
मैंने कहा, और डेवी की गर्दन को चूमा, और फिर उसके कानों और उसकी गर्दन के पिछले हिस्से को अपने दाँतों से हल्के से कुतर दिया। देवयानी के गले से एक कामुक गुनगुनाहट निकलने लगी। वो मेरी हरकतों का आनंद लेते हुए खड़ी रही। उधर मैं उसकी गर्दन को चूमते और चाटते, उसके साथ मीठी-मीठी बातें करने लगा। मैंने डेवी को बताया कि मैं उससे कितना प्यार करता हूँ; मुझे उसका शरीर कितना पसंद है; वो दुल्हन के लिबास में कितनी शानदार लग रही है; और ऐसे ही और भी बहुत कुछ! जवाब में वो हर बार कराही! मैंने उसे चूमते हुए उसके स्तनों को सहलाया और दबाया। अब तक उसकी साड़ी का पल्लू उसके कंधे से फिसल कर फर्श पर गिर गया था - मतलब, उसके ऊपरी शरीर पर उसकी ब्लाउज़ के अतिरिक्त और कोई कपड़ा नहीं था...