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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

कुछ लिख लेता हूँ
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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Battu

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Avsji update bahut hi sundar hai , lekin ek lambe samay ke baad bade update ki apeksha thi.
Post bahut hi shandaar hai.
Agle update ki Pratiksha rahegi
 
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लिख रहा हूँ भाई! शादी वाला एपिसोड ही लिखा जा रहा है आज।
अगर संभव हुआ वो आज ही अपडेट आ जाएगा
 
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avsji

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Avsji update bahut hi sundar hai , lekin ek lambe samay ke baad bade update ki apeksha thi.
Post bahut hi shandaar hai.
Agle update ki Pratiksha rahegi

बहुत बहुत धन्यवाद भाई! छोटे अपडेट का कारण मैंने बताया हुआ है।
Next एपिसोड लिखा जा रहा है। संभव है आज ही next अपडेट आ जाएगा!
 
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लिख रहा हूँ भाई! शादी वाला एपिसोड ही लिखा जा रहा है आज।
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नया सफ़र - विवाह - Update #3


शादी का दिन :

कोई दो हफ़्तों के भटकाव के बाद अंततः, देवयानी और मेरी शादी का दिन आ ही गया! जैसा कि तय किया गया था - सवेरे ही हमारी कोर्ट में शादी थी, और फिर शाम को मंदिर में! बीच में खाने पीने का प्रबंध था। दोनों ही शादियों के लिए प्रक्रिया और व्यवस्था बहुत सरल सी रखी गई थीं। कोर्ट वेडिंग के लिए, डेवी और मैं टी-शर्ट और जींस पहन कर तैयार हुए थे। सवेरे हल्की सी ठंडक थी, लेकिन फिर दिन में बड़ा आरामदायक मौसम था। शादी ब्याह के लिए बिलकुल मुफीद! दोनों ही मौकों पर हमारे परिवार के सभी सदस्य, और कुछ बहुत ही करीबी दोस्त मौजूद थे। न तो गाँव से, और न ही मेरे पैतृक कसबे से ही - कोई भी आ सका।

फॅमिली कोर्ट में जो मजिस्ट्रेट थे, वो बहुत खुशमिजाज टाइप के व्यक्ति थे! पूरा समय वो हँसी मज़ाक कर रहे थे, और हमको चुटकुले सुना रहे थे। साथ ही साथ वो हमको जीने के कई सारे नुस्खे भी देते जा रहे थे - कि किस बात पर जोड़ों की शादी टूट जाती है इत्यादि। उन्होंने हमको अधिक से अधिक तस्वीरें लेने की अनुमति भी दी। वैसे भी कोर्ट वेडिंग्स में कुछ ख़ास करने को होता नहीं - बस कागज़ों पर दस्तखत करने होते हैं। अब उसकी क्या तस्वीरें लेना! खैर, हमने एक दूसरे को मालाएँ पहनाईं और जहाँ जहाँ हमको कहा गया, वहाँ वहाँ हमने दस्तखत कर दिए। उसके बाद हमको पंजीकरण की रसीद काट के दे दी गई, और बोला गया कि हमारा मैरिज सर्टिफिकेट एक हफ़्ते में तैयार हो जाएगा। अच्छी बात थी!

कोर्ट वेडिंग के बाद, हम सीधा एक पाँच सितारा होटल में गए और शाम को मंदिर में शादी के लिए तैयार होने से पहले दोपहर का भोजन किया। माँ डैड और ससुर जी के चेहरों पर निराशा वाले भाव तो दिख रहे थे, लेकिन वो सभी कोशिश भी कर रहे थे कि ज्यादा निराश न लगें! धूमधाम वाली शादी की तमन्ना लिखने वाले लोग, ऐसी फीकी फीकी शादी से निराश तो होंगे ही न! अच्छी बात यह थी कि सभी हमारी शाम वाली, मंदिर वाली शादी को ले कर बहुत उत्साहित थे।

डेवी ने मेरी और गैबी की शादी की तस्वीरें देखी थीं, और वो मंदिर वाले सेटअप से बहुत प्रभावित हुई थी। लेकिन आज फ़र्क़ यह था कि इस बार हम अपने गांव वाले मंदिर में नहीं, बल्कि दिल्ली की सीमा पर स्थित एक मंदिर में शादी करने वाले थे। शाम वाली शादी के लिए ऑफिस के भी कई मित्र आने वाले थे, और अगली रात के प्रीती-भोज पर एक बड़ा हुजूम आने वाला था। यह व्यवस्था अच्छी थी - शादी अपने लिए होती है, और शादी की पार्टी सभी के लिए! दोनों को मिक्स नहीं करना चाहिए! और, देवयानी भी चाहती थी कि शादी वाली रात को न तो उसको, और न मुझे कोई थकावट हो! शादी की रात - सुहागरात - को तरोताजा और ऊर्जावान रहना उसके लिए बहुत आवश्यक था। खैर!

हम सभी देवयानी के ही घर पर तैयार होने के लिए वापस आए। अलग अलग जाने का कोई मतलब नहीं था। मेरे पास अपनी गाड़ी थी, देवयानी के पास अपनी, जयंती दीदी के पास अपनी, और डैडी (ससुर जी) के पास अपनी। मैं, देवयानी, काजल और लतिका एक गाड़ी में बैठे; माँ, डैड, ससुर जी और सुनील दूसरी में; जयंती दीदी अपने पति और बच्चों के साथ तीसरी में; और चौथी गाड़ी हमारे एक पडोसी मित्र चला रहे थे - उसमें विवाह से सम्बंधित सामान इत्यादि थे। माँ, जयंती दी, और काजल ने साठ-गाँठ कर के एक ही रंग की और एक ही प्रकार की क्रीम रंग की और लाल बॉर्डर वाली बनारसी रेशमी साड़ियाँ पहनी हुई थीं। मुझे यह जान कर बहुत अच्छा लगा कि तीनों में इतनी जल्दी, इतनी मित्रता हो गई थी। वैसे बहुत आश्चर्य वाली बात भी नहीं थी - तीनों ही हमउम्र थीं, तीनों का स्वभाव बहुत मधुर था, इसलिए मित्रता होना स्वाभाविक ही था!

उधर, देवयानी वही दुल्हनों वाला, पारम्परिक, लाल ज़रीदार बनारसी रेशम की साड़ी और अपने सभी आभूषण पहने हुए थी। उसको यूँ हीरे और सोने के आभूषणों से लदा-फदा देख कर मैंने मज़ाक किया कि कहीं कोई सड़क पर उसको लूट न ले! उसके उत्तर में देवयानी ने तो कुछ नहीं कहा, लेकिन काजल ने मुझे बहुत डाँट लगाई। मुझे आश्चर्य हुआ कि दोनों लड़कियाँ कितनी करीब हैं एक दूसरे के! अच्छा लगा - ख़ास तौर पर तब, जब डेवी को मेरे और काजल के इतिहास के बारे में पता था! और काजल भी तो डेवी को ऐसे दुलार पुचकार रही थी जैसे डेवी उसकी छोटी बहन या बेटी हो! कभी कभी समझ नहीं पाता मैं अपने जीवन में उपस्थित महिलाओं को! हाँ, सबका दिल बहुत बड़ा है, और कूट कूट कर उनमे स्नेह भरा हुआ है, लेकिन फिर भी! कुछ न कुछ अनुत्तरित से प्रश्न रह ही जाते हैं। एक बात तो है - दुल्हन के लिबास में डेवी बिलकुल रानी लग रही थी। गौरव, उल्लास, शर्म, उपलब्धि - ऐसे न जाने कितने भाव उसके मुखमण्डल पर उपस्थित थे! मुझे स्वयं ही उसको देख कर आनंद आया और गर्व भी हुआ। ऐसी बला की खूबसूरत लड़की मेरी पत्नी बनने वाली थी - यह बहुत ही रोमांचक ख़याल था।

चलिए, कुछ अपनी भी बात कर लेते हैं! मैंने एक बढ़िया कढ़ाई कसीदा किया हुआ गहरे लाल रंग का रेशमी कुर्ता, और मुलायम कॉटन का क्रीम रंग चूड़ीदार पायजामा पहना हुआ था। ससुर जी के सुझाव और आग्रह पर मैंने क्रीम रंग का ही रेशमी साफा भी बाँधा हुआ था। चाहते वो थे मुझको तलवार भी पकड़वाना, लेकिन मैंने वो सुझाव नहीं माना - यार नौटंकी क्यों करनी? सीधी सादी शादी करनी है - बस! एक और मज़ेदार बात हुई - डैड, डैडी, और मेरे साढ़ू भाई - तीनों ने ही, महिलाओं की ही तर्ज़ पर एक ही तरह का पजामा कुर्ता पहना हुआ था! मतलब कि साफ़ लग रहा था कि बढ़िया कोऑर्डिनेटेड व्यवस्था है! चारों बच्चे अपने अपने हिसाब से रंग-बिरंगे कपड़े पहने हुए थे। उन पर क्या रोक टोक!

चूँकि मंदिर दिल्ली से थोड़ी दूर, उसकी सीमा पर था, इसलिए वहाँ वैसी भीड़ नहीं होती थी। मंदिर ये भी पुराना ही था। बगल में ही हाईवे होने के कारण, सामने से ट्रक लारी बस इत्यादि आते जाते थे। इसलिए बहुत सुरक्षित तो नहीं कहा जा सकता इसको। अच्छी बात यह थी कि हमारे कुछ मित्रों के आ जाने से हमारे दल की संख्या अधिक थी, इसलिए सुरक्षा का अनुभव हो रहा था। वैसे मैं यह सब आपको आज कह सकता हूँ, लेकिन उस समय सुरक्षा / असुरक्षा जैसी भावनाएँ मेरे मन में नहीं थीं। हमने शादी के लिए मंदिर में बुकिंग करी हुई थी, इसलिए मंदिर में अन्य भक्तों के लिए एक अलग से कतार की व्यवस्था कर दी गई थी! हमारे वैवाहिक अनुष्ठानों के लिए मंदिर के एक बड़े हिस्से की घेराबंदी की गई थी - जो कि अच्छी बात थी। बिना किसी ताक झाँक के हमारी शादी हो जानी थी।

हमारी शादी के अनुष्ठान कोई ढाई घण्टे तक चले। यह पूरी तरह से धार्मिक शैली का विवाह प्रयोजन रहा, जिसमे संछेप में ही सही, लेकिन लगभग सभी रस्में पूरी की गई थीं। मैंने देखा कि हमारे माँ बाप यह देख कर संतुष्ट लग रहे थे। चलो, सभी को आनंद आना चाहिए। शाम के समय मंदिर में कुछ नियमित कलाकार भी आते थे - गाने बजाने! तो उन्होंने मौके को देख कर कुछ पारंपरिक विवाह गीत, और अन्य धार्मिक गीत और भजन बजाए। इस तरह से ये शादी भी अनोखी ही रही। मुझे अच्छा लगा। शोर नहीं था - बस, कर्णप्रिय संगीत, और मन्त्रों से वातावरण गुंजायमान था। एक तरह से गाँव वाले मंदिर में शादी करने के मुकाबले यहाँ शादी करना मुझे ज्यादा अच्छा लगा। यहाँ मैं और देवयानी सैकड़ों की भीड़ के बीच में किसी अजूबे की भाँति नहीं बैठे हुए थे। हम वास्तव में शादी की रस्मों का आनंद लेते हुए अपने आसन्न मिलन के बारे में सोच रहे थे।

हालाँकि देवयानी की दुल्हन वाली पोशाक सामान्य ही थी, लेकिन मुझे वो न जाने किस कारण बहुत कामुक लगी! शादी का सबसे बड़ा अनुष्ठान नवविवाहितों के मिलन का ही तो होता है। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि मैं अधिकतर समय विवाह की रस्मों के बाद होने वाले हमारे सम्भोग के बारे में सोच रहा था! मुझे रह रह कर गैबी के साथ अपनी शादी वाला दिन और रात याद आ रहे थे! मैंने बाद में यह बात देवयानी को बताई, और इसके लिए मैंने उससे माफ़ी भी माँगी। उसने मुझे यह कहते हुए क्षमा कर दिया कि वो यह बात समझती थी, और उसने मुझे भरोसा दिलाया कि वो मेरे मन से गैबी को हटाने नहीं, बल्कि मेरे मन ने और मेरे जीवन में अपनी जगह बनाने के लिए आ रही थी - यह कि और उसको पूरा यकीन था कि हम साथ में एक सुंदर जीवन व्यतीत करेंगे।

विवाह के दौरान देवयानी का चेहरा - आँखों के नीचे तक घूंघट से ढँका हुआ था। मुझे या मेरे घर वालों को यह सब पसंद नहीं है, लेकिन ससुर जी के आग्रह के आगे हमने हार मान ली। आखिर वो उम्र में हम सभी से बड़े थे इसलिए उनकी कुछ इच्छाओं का पालन करना एक तरह से हमारे लिए दायित्व हो गया था। उनकी हर बात को तो दरकिनार नहीं किया जा सकता था न! देवयानी के मेहंदी से रचे हाथ, चूड़ियों और कंगनों से सजी कलाईयाँ, और अँगूठियों से सुशोभित उँगलियाँ वैसे ही लग रहे थे जैसे कि वो किसी रानी के हाथ हों! आँखों को देखना मुश्किल था, लेकिन नाक पर बड़ी सी सोने की नथ सुशोभित हो रही थी, और लालिमा लिए, मुस्कुराते हुए होंठ!

'हे प्रभु!'

ठीक है कि देवयानी पहले से ही अति-सुन्दर है! लेकिन शादी के दिन क्या हो जाता है लड़कियों को? अप्सरा से कम नहीं लगतीं! दूल्हों की बिसात ही क्या ऐसी सुंदरियों के सामने? ब्लाउज के नीचे उसका खुला हुआ सपाट पेट, और उस पर त्रिवली और एक गहरी नाभि! यह दृश्य बहुत मनोहारी था!

मंदिर का पुजारी अनुष्ठान कर रहा था और मंत्रों का पाठ कर रहा था, और मेरे मन में एक विवाहित जोड़े के रूप में देवयानी के साथ अपनी पहली रात को होने वाले धमाल के बारे में रोमांचक ख़याल आ जा रहे थे। पुजारी ने हमें दो बड़ी बड़ी फूलों वाली मालाएँ (जयमाल) दीं, और हमें एक दूसरे के गले में डालने को कहा। तो हमने वो किया। एक दूसरे को मन से स्वीकार करने के बाद इन सभी रस्मों का कोई अर्थ नहीं रहता, लेकिन फिर भी, समाज के लिए ये सब करना पड़ता है। खैर, अच्छी बात यह थी कि ये वाली शादी में कोई बहुत देर नहीं लगी - जल्दी ही, मुझे डेवी के गले में मंगलसूत्र बांधने के लिए कहा गया। सामाजिक दृष्टि से यही वो पल है जब लड़का लड़की, विवाहित हो जाते हैं - पति पत्नी हो जाते हैं! मतलब, अब डेवी कानूनन, सामाजिक और धार्मिक तीनों ही रूप से मेरी पत्नी बन गई थी! सबसे आखिर में हम दोनों ने भगवान के सामने वेदी पर नमन किया और अपने सभी प्रियजनों के पैर छू कर, उनका आशीर्वाद मांगा।

पंडित को दक्षिणा इत्यादि देते देते और वहाँ से सब सामान पैक कर के वापस दिल्ली पहुँचते पहुँचते कोई साढ़े नौ बज गया। तो हम सीधे एक फाइव-स्टार होटल पहुँच गए - जश्न वाला डिनर करने! ससुर जी ने अपने समधी (डैड), अपने दोनों दामादों, अपने खुद के और वहाँ उपस्थित सभी पुरुष मित्रों के लिए डबल स्कॉच मँगाया, और स्त्रियों से पूछ पूछ कर बढ़िया वाइन मँगाई। डेवी ने वाइन लिया, लेकिन माँ, काजल, और जयंती दीदी ने अपने लिए शरबत मंगाया - जयंती दीदी पीती थीं, लेकिन वो अपने बच्चों को स्तनपान करा रही थीं, इसलिए उनका मदिरा पीना बंद था। मज़ाक मज़ाक में ससुर जी ने मुझसे कहा कि शादी की रात को दूल्हे को इससे अधिक नहीं पीना चाहिए - ऐसा न हो कि ‘परफॉरमेंस में कोई इशू’ हो जाए! उनसे मिलते समय मैंने सोचा भी नहीं था कि वो मेरे साथ इतना खुल जाएँगे, और मुझसे इस तरह से हँसी मज़ाक करेंगे!
 
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नया सफ़र - विवाह - Update #4


पुनश्च, डेवी के डैडी के ही अनुरोध पर यह तय हुआ था कि विवाह की रात मैं देवयानी के साथ, उसके मायके में ही रहूँ, और अगली सुबह वो मेरे साथ अपने नए घर में जाए। न तो मुझे ही, और न ही मेरे माँ और डैड को इस बात पर कोई आपत्ति थी। खासकर इसलिए भी क्योंकि इस कारण से हमें शादी के रिसेप्शन के लिए आवश्यक व्यवस्था को पूरा करने के लिए थोड़ा और समय मिल गया। कल रिसेप्शन के बाद, हमें अगले ही दिन हनीमून पर जाना था! हनीमून के लिए माँ डैड ने ही हम पर दबाव बनाया था। गैबी की ही तरह, शादी के बाद डेवी भी मेरे पुश्तैनी गाँव में ही दो हफ़्ते बिताना चाहती थी। इस बात पर डैड ने उसको और मुझे समझाया कि गाँव वो हम किसी भी समय जा सकते हैं, लेकिन हनीमून एक ही बार होता है - और उसके लिए हमको किसी ढंग की, रोमांटिक जगह पर जाना चाहिए। तो, यह तय रहा कि हमारी सुहागरात देवयानी के घर होगी - हमारी वैवाहिक यात्रा और बहुत संभव है कि देवयानी की मातृत्व यात्रा भी वहीं से शुरू होगी! मेरा पूरा प्लान था कि देवयानी को हमारी पहली रात को ही गर्भवती कर दूँ! वो खुद भी यही चाहती थी! रात्रि-भोज के बाद माँ, डैड, काजल, सुनील और लतिका घर चले गए, और बाकी लोग देवयानी के यहाँ! घर पहुँच कर जयंती दीदी के पति ने हमें शुभ-रात्रि कहा और अपने घर के लिए निकल गए, जबकि जयंती दीदी और उनके दोनों बच्चे यहीं रह गए। जब मायका और ससुराल एक शहर में हो, तो बहुत आसानी हो जाती है।

बहुत बाद में मुझे बताया गया कि देवयानी के डैडी इस बात को लेकर भी परेशान थे कि वो अपनी सुहागरात में क्या पहने! उनका मत था कि डेवी को बढ़िया दुल्हन वाली साड़ी और आभूषण पहनने चाहिए, जबकि जयंती और काफी हद तक डेवी का भी यही मानना था कि कपड़े जितने आरामदायक हों, उतने ही अच्छे! आखिर, उनको वैसे भी उतरना ही है न! मैं भी दोनों महिलाओं से सहमत था (ऐसा नहीं है कि किसी ने मुझसे मेरी सलाह माँगी थी) - वैसे डेवी को तो मैं कैसे भी, किसी भी हालत में अपना बनाने को तैयार था! खैर, जब मैं घर पर आया तो जयंती दीदी ने डेवी को कुछ ‘तैयारी’ करने के लिए ड्राइंग रूम से हटा लिया। रात करीब साढ़े ग्यारह बजे मुझे उन्होंने बताया कि मैं कमरे में जाऊँ - डेवी मेरा इंतजार कर रही है!

‘चल भाई, बुलावा आ गया!’ मैंने सोचा!

सुहागरात!

पति-पत्नी की पहली रात!

कई पुरानी बॉलीवुड फिल्मों ने इस क्षण को बड़े कलाकारी, लेकिन फार्मूला वाले अंदाज़ में चित्रित किया है! सुहागरात में गहनों से सजी - लदी दुल्हन, फूलों की सेज पर अकेली बैठी रहती है! थोड़ा घूंघट रहता है; उसकी साँसे फूल रही होती हैं, और होंठ सन्निकट भविष्य की प्रत्याशा के कारण काँप रहे होते हैं। कुछ देर में कमरे के दरवाज़े पर उसका दूल्हा प्रकट होता है - या तो वो खुद ही आता है, या फिर अपनी बहनों या भाभियों द्वारा लाया जाता है - और फिर अपनी दुल्हन को गहरी नज़र भर देखता है! उसको मालूम है कि उसकी बीवी दिखती कैसी है - उसको अपनी किस्मत पर पहले से ही रश्क़ हो रहा होता है। लेकिन अभी भी उसकी बीवी का बहुत कुछ है जो उसने अभी तक नहीं देखा है! नहीं महसूस किया है। अब वही होने की सम्भावना बन रह होती है। लिहाज़ा वो अपनी दुल्हन को बड़ी लालसा से देखता है! उधर दुल्हन भी अपने उतावले होते हुए दूल्हे की हर इच्छा पूरा करना चाहती है। दूल्हा अपनी दुल्हन का घूंघट उठाता है - कभी कभी वो उसको अपने आलिंगन में भी बाँध लेता है। और बस ऐसे ही संक्षिप्त से, और हानि-रहित प्रेमालाप के बाद, कमरे की रोशनी बुझ जाती है! बाकी सब आप खुद ही समझ लें!

यह तो हुआ फार्मूला वाला चित्रण! मुझे यह पसंद है, लेकिन मुझे सबसे अधिक पसंद है फिल्म ‘कभी कभी’ वाला सुहागरात का सीन! जब यह फिल्म रिलीज़ हुई, तब डेवी कोई बारह साल की रही होगी - मतलब उसको इन बातों की थोड़ी ही सही, लेकिन समझ रही होगी। और मैं उस समय - खैर जाने दीजिए! मैं उस समय जितना बड़ा था, उस समय मुझे यकीन है कि मुझे खाने पीने और माँ का दूध पीने के अतिरिक्त और किसी भी बात की कोई अवधारणा नहीं थी! लिहाज़ा, मैंने वो सीन काफी बाद में देखा। शायद कभी चित्रहार में! डेवी ने कभी बाद में मुझे बताया कि यह उसका भी पसंदीदा ‘सुहागरात सीन’ था। जब उसने पहली बार वो सीन देखा, तो उस गाने के प्रतीकवाद को समझने के लिए वो बहुत छोटी थी।

मेरी इस कहानी के पाठकों को वो गाना अवश्य देखना चाहिए - दुल्हन (राखी) के लंबे, रेशमी बाल - जो बिखरे हुए थे, उसके नग्न होने की प्रक्रिया की ओर इशारा करते हैं। यह दृश्य दूल्हे (शशि कपूर) द्वारा दुल्हन के गहने एक एक कर के उतारने - उसके माथे का टीका, हार, झुमके, और अंत में नथ - के माध्यम से नवविवाहित जोड़े की बढ़ती अंतरंगता को खूबसूरती से दर्शाता है। गीत दूल्हे द्वारा दुल्हन की नथ उतारने पर समाप्त हो जाता है, जो संभव है यह दर्शाता है कि दुल्हन का कौमार्य-भंजन हो गया! हिंदी में ‘नथ उतारना’ वाक्यांश का अर्थ, पारंपरिक रूप से, किसी कुँवारी लड़की का कौमार्य-भंजन ही होता है!

ओह, इसके पहले मैं कहानी से भटक जाऊँ, मैं वापस आता हूँ!

हमारा शयनकक्ष घर की पहली मंजिल पर था। यह कमरा, घर के बाकी कमरों की अपेक्षाकृत बड़ा था। ये बाकी के घर से कोई अलग थलग नहीं था, लेकिन वहाँ काफ़ी गोपनीयता थी। वैसे दिल्ली के घरों में कैसी गोपनीयता? कोई भी बगल की खिड़की से आराम से ताक झाँक कर सकता है। लेकिन जितनी गोपनीयता मिल रही थी, वही बहुत थी। वैसे भी, यह शहर शायद ही पूरी तरह सोता हो। हाँ, लेकिन इतनी देर रात गए, वाहनों की टीं टीं पों पों की आवाज़ नहीं आ रही थी, जो कि बहुत अच्छी बात थी। मैंने कमरे में प्रवेश किया, और अपने पीछे का दरवाजा बंद कर लिया।

बिस्तर पर देवयानी मुस्कुराती हुई बैठी थी। इस बात का शुक्र है कि वो फिल्मों की तरह घूंघट नहीं काढ़े हुए थी। वो तो हद्द ज्यादा ड्रामा हो जाता! लेकिन फिर उसने जो किया, उसने मुझे वाक़ई चौंका दिया। मुझे देखते ही डेवी बिस्तर से उठी, और मुस्कुराते हुए और शर्माते हुए मेरे पास आई, और फिर अचानक मेरे पैरों को अपने माथे से छूने के लिए मेरे सामने घुटनों पर बैठ गई। मैं कुछ कर पाता या कह पाता, उसके पहले डेवी का माथा मेरे पैरों पर था!

‘हे भगवान्! ये क्या है!’

डेवी की इस हरकत से मुझे बहुत शर्म आई! पुराने समय में पति के पैर छूने वाली यह प्रथा प्रचलित थी, और कुछ विवाहित महिलाएं शायद आज भी ऐसा करती हैं। लेकिन मुझे आश्चर्य दरअसल इस बात पर हुआ कि डेवी जैसी लड़की ऐसा कुछ कर सकती है! मेरा मतलब है कि डेवी एक आधुनिक लड़की है - पूरी तरह से स्वतंत्र, और अपने पाँवों पर खड़ी! और सबसे बड़ी बात यह है कि वो उम्र में मुझसे बहुत बड़ी थी। तो फिर उसको मेरे पैर क्यों छूने थे? मन में उत्सुकता बहुत हुई, लेकिन मैंने पूछा नहीं। मैंने डेवी को उसके कंधों को थाम कर उठाया और फिर अपने गले से लगा लिया। थोड़ी देर के बाद जब हमारा आलिंगन टूटा, तो हमने एक दूसरे की आँखों में देखा। और फिर अचानक ही मैंने भी ठीक वही किया जो कुछ क्षणों पहले डेवी ने किया था - यानि मैंने भी घुटनों पर बैठ कर अपने माथे से उसके पैर छुए, और फिर उनको चूम भी लिया।

जब मैं उठा तो डेवी के चेहरे पर आश्चर्य, सदमा और प्यार के मिले जुले भाव साफ़ दिखाई दे रहे थे। उसकी सारी आंखें भर आई थीं।

मैंने कहा, “माय लव, आई आल्सो रेस्पेक्ट यू वैरी मच! इसलिए, मेरी जान, अगर आप मेरे पैर छुएंगी, तो फिर मैं भी आपके पैर छुऊँगा! मैं तो वैसे भी उम्र में छोटा हूँ! याद है न?”

डेवी मुस्कुराई, “आई नो! एंड, आई ऍम सो लकी! बट यू सी, अगर पति अपनी पत्नी के पैर छूता है, तो वो अपशकुन होता है।”

“हैं? वो क्यों?”

“वो मुझे नहीं मालूम! बस, होता है! एंड बिसाइड्स, मैं हमेशा से चाहती थी कि मैं अपने पति के पैर छुवूँ! इसलिए प्लीज, मुझे मत रोको, और मेरे पैर भी मत छुओ। प्लीज लेट दिस बी ओनली माय प्रीरोगेटिव?”

उसने कहा और इससे पहले कि मैं कुछ कह पाता, वो फिर से अपने घुटनों के बल बैठ गई और इस बार उसने अपने हाथों से मेरे पैर छुए, और फिर उन्हें अपने माथे से लगा लिया। देवयानी का प्यार करने का तरीका अनोखा था! मैं बस इतना कर सकता था कि मैं आगे झुकूँ और उसे उसके कंधों से थाम कर अपने आलिंगन में भर लूँ!

मैंने उसे अपने सीने में भींचते हुए कहा, “आई लव यू सो मचयू नो दैट, डोंट यू?”

“इसमें कोई शक नहीं, मेरी जान!” उसने बड़ी अदा से कहा।

अदा से कहा, लेकिन उसकी बात में जो सत्यता थी, वो मुझे साफ़ सुनाई दी।

इतना प्यार!

और देवयानी इतनी प्यारी लग रही थी कि अब मेरे लिए रुकना मुश्किल था!

मेरे होंठ अपने आप ही देवयानी के होंठों से जुड़ गए।

‘अधर-रस-पान’!

सच में! देवयानी के मुँह का स्वाद वाकई रसीला था - हल्की सी मिठास लिए हुए। ताज़गी भरी महक लिए हुए! यह बताना मुश्किल है कि चुम्बन का अनुभव कितना आनंददायक था! यह एक स्नेहमय चुम्बन था, और कामुक चुम्बन भी! एक लम्बा चुम्बन - जिसके उन्माद में अब हम दोनों ही बह रहे थे। मेरे हाथ उसके चेहरे से सरकते हुए धीरे धीरे उसकी कमर पर चले गए, और वहाँ सरकते हुए उसके नितम्बों पर। मन में हो रहा था कि डेवी जितना संभव हो मेरे करीब ही रहे, लिहाज़ा, मैंने उसको अपनी ओर भींच लिया। यदि अत्यधिक बल होता, तो ‘आणविक संलयन’ वाली पद्धति लगा कर हम दोनों एक हो जाते! संभव है कि प्रकृति ने सम्भोग की प्रक्रिया इसीलिए बनाई हो कि दो प्रेमी एक दूसरे से ‘जुड़’ सकें - थोड़ी ही देर के लिए सही! अभी जितना संभव था, हम दोनों जुड़े हुए थे - मुझे अपने सीने पर डेवी के स्तनों के दबाव का एहसास हो रहा था। और इस एहसास के साथ डेवी को चूमना और भी सुखद अनुभव हो रहा था। मुझे समय का कोई ध्यान नहीं है कि पति पत्नी के रूप में हमारा यह पहला चुम्बन आखिर कितनी देर तक चला, लेकिन अंततः यह चुम्बन टूटा।

चुम्बन टूटते ही देवयानी मेरे आलिंगन से छूट कर मुझसे दूर जाने लगी।

‘ऐसे कैसे?’

मैंने तेज गति से उसकी साड़ी का पल्लू पकड़ा, और उसे ही पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया। इस प्रक्रिया से साड़ी के फेंटे, पेटीकोट में से बाहर निकल आए। डेवी मेरी ओर मुड़ी, और परिहास और आश्चर्य से चिल्लाई। मैंने उसे फिर से कमर से पकड़ लिया, और उसे अपनी ओर खींच कर फिर से उसके होठों पर चुम्बन किया। पिछले चुम्बन ने ही हमारे अंदर एक प्रकार का जोश भर दिया था - तो इस बार हमारे चुम्बन में स्नेह कम, और वासना अधिक थी। हमारे होंठ एक दूसरे के होंठों में खिलाफ कुचल गए - मुझे मालूम था कि अगर पहले नहीं हुआ तो अब डेवी के होंठों की लाली, मेरे होंठों पर अच्छी तरह से चुपड़ गई होगी। यह कोई कोमल चुंबन नहीं था, बल्कि जोश से भरा हुआ था - जो वास्तव में हमारे मन की स्थिति को दर्शा रहा था। हम दोनों ही अपनी सुहागरात के पूर्वाभास की अग्नि में जल रहे थे! अब तो समागम के जलाशय में स्नान करने के बाद ही वो अग्नि शांत होने वाली थी। हम दोनों ही कामुक फ्रेंच-किस का आनंद ले रहे थे, लेकिन हमारी साँसें उखड़ने लगीं थी। जब कुछ देर बाद सांस लेने के लिए हमने चुंबन तोड़ा, तो मैं स्वयं ही अपने जुनून की तीव्रता से हैरान हो गया। ऐसा नहीं है कि मैंने डेवी से पहले कभी सेक्स नहीं किया - लेकिन आज क्या हो गया था मुझे? ऐसा क्या अलग हो गया? क्यों मैं ऐसे, अपने ऊपर से नियंत्रण खो रहा था?

“तुम बहुत सुंदर लग रही हो, मेरी जान!”

मैंने कहा, और डेवी की गर्दन को चूमा, और फिर उसके कानों और उसकी गर्दन के पिछले हिस्से को अपने दाँतों से हल्के से कुतर दिया। देवयानी के गले से एक कामुक गुनगुनाहट निकलने लगी। वो मेरी हरकतों का आनंद लेते हुए खड़ी रही। उधर मैं उसकी गर्दन को चूमते और चाटते, उसके साथ मीठी-मीठी बातें करने लगा। मैंने डेवी को बताया कि मैं उससे कितना प्यार करता हूँ; मुझे उसका शरीर कितना पसंद है; वो दुल्हन के लिबास में कितनी शानदार लग रही है; और ऐसे ही और भी बहुत कुछ! जवाब में वो हर बार कराही! मैंने उसे चूमते हुए उसके स्तनों को सहलाया और दबाया। अब तक उसकी साड़ी का पल्लू उसके कंधे से फिसल कर फर्श पर गिर गया था - मतलब, उसके ऊपरी शरीर पर उसकी ब्लाउज़ के अतिरिक्त और कोई कपड़ा नहीं था...
 
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