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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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आखिर सुमन की लाइफ प्रतिकूलता के राह पर चल ही पड़ी। कई साल बाद एक बार फिर से दुल्हन बनने का नसीब प्राप्त हुआ। वैसे तो यह शादी गंधर्व विवाह जैसा लगा मुझे पर शायद जल्द ही दोनो कानूनन पति पत्नि बन ही जायेंगे।
विवाहित रिश्तों मे सेक्स का महत्व बहुत अधिक होता है। खुशहाल और सफल दाम्पत्य जीवन के लिए स्वस्थ सेक्सुअल सम्बन्ध काफी मायने रखता है।
दोनों ने शारीरिक संबंध बनाकर अपने रिश्ते पर मुहर लगा दी और वैवाहिक जीवन मे प्रवेश कर गए। मांग मे सिन्दूर डालने का अर्थ ही दाम्पत्य जीवन मे प्रवेश करना हो गया।

अभिसार के वक्त उनकी एक्टिविटी और उस दौरान कामुक बातों को काफी खुबसूरती से दर्शाया है आप ने। कहते ही हैं कि पति पत्नि के दरम्यान हवाओं के भी गुजरने का स्थान नही होता।

सभी अपडेट इसी विषय पर ही केंद्रित थे और इनमे क्या ही बेहतरीन अलंकरण प्रस्तुत किया गया है! यमक, रूपक, अनुप्रास, श्लेश सब अलंकार डाल दिए है आप ने। बहुत ही खूबसूरत वर्णन किया है।

शानदार लेखनी भाई।
दीपावली पर्व की हार्दिक बधाई।
 
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avsji

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Kitna update chhap diye bhai 😲

आखिर सुमन की लाइफ प्रतिकूलता के राह पर चल ही पड़ी। कई साल बाद एक बार फिर से दुल्हन बनने का नसीब प्राप्त हुआ। वैसे तो यह शादी गंधर्व विवाह जैसा लगा मुझे पर शायद जल्द ही दोनो कानूनन पति पत्नि बन ही जायेंगे।
विवाहित रिश्तों मे सेक्स का महत्व बहुत अधिक होता है। खुशहाल और सफल दाम्पत्य जीवन के लिए स्वस्थ सेक्सुअल सम्बन्ध काफी मायने रखता है।
दोनों ने शारीरिक संबंध बनाकर अपने रिश्ते पर मुहर लगा दी और वैवाहिक जीवन मे प्रवेश कर गए। मांग मे सिन्दूर डालने का अर्थ ही दाम्पत्य जीवन मे प्रवेश करना हो गया।

अभिसार के वक्त उनकी एक्टिविटी और उस दौरान कामुक बातों को काफी खुबसूरती से दर्शाया है आप ने। कहते ही हैं कि पति पत्नि के दरम्यान हवाओं के भी गुजरने का स्थान नही होता।

सभी अपडेट इसी विषय पर ही केंद्रित थे और इनमे क्या ही बेहतरीन अलंकरण प्रस्तुत किया गया है! यमक, रूपक, अनुप्रास, श्लेश सब अलंकार डाल दिए है आप ने। बहुत ही खूबसूरत वर्णन किया है।

शानदार लेखनी भाई।
दीपावली पर्व की हार्दिक बधाई।

बहुत बहुत धन्यवाद संजू भाई! दीपावली की आपको भी ढ़ेरों शुभकामनाएँ! :)

मैं बर्स्ट में अपडेट लिखता हूँ, जिससे एक एपिसोड पूरा हो रहे। एक अपडेट उस स्थान पर नहीं रोका जा सकता जहाँ हीरोइन की साड़ी के फेंटे को उसकी पेटीकोट से निकाला जा रहा हो। 😂😂😂😂 KLPD नहीं करनी पाठकों की। :nope:

इसलिए इस नए अनुभाग के 7 अपडेट्स में मैंने कोई चौबीस हज़ार शब्द लिखे हैं। :yes2:
इतने में कई लोग दो तीन कहानियाँ लिख डालते हैं - bam wham, thank you ma’am वाली! 🤣

जहाँ तक इस कहानी का मामला है - है तो ये एक सफ़र ही! ऊपर से मोहब्बत वाला! इसलिए पाठकों के आनंद की विशेष व्यवस्था की हुई है! कुछ ही पाठक सही, लेकिन जुड़े हुए हैं। इसलिए लिख रहा हूँ। 👍

कल एक कहानी का टाइटल देखा - परिवार में एक रिश्ते का नाम लिखा था टाइटल में और इन्सेस्ट केटेगरी थी उसकी। कहानी के नाम पर एक लाइन भी नहीं लिखी गई थी। लेकिन फिर भी तीन पेज के कमैंट्स आ गए थे उस पर! 🤣🤣🤣 ब**चो*! कैसे गीले टाइप लोग हैं यहाँ! सच में! कोफ़्त भी होती है, और हँसी भी आती है! खैर!
 
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avsji

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सुनील और उसकी दुल्हनिया 💕

भाई साहब! चित्र तो बड़े दिलचस्प हैं! इस एपिसोड से मिलते जुलते भी हैं! इसलिए धन्यवाद आपका।
प्रेम के उन नाज़ुक क्षणों को बड़ी चतुराई से दिखाया गया है! 👍🙏
 

juhi gupta

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अमर जी
सुमन और सुनील के रिश्ते को जिस तरह आपने परिभाषित किया हे और जिस तरह आपने सुमन के मन में सुनील के लिए झिझक ख़तम की हे वो अद्भुत हे।
किसी पुराने रिश्ते की यादो को ख़तम करना और किसी नए रिश्ते में जुड़ना एक विधवा युवा महिला के लिए काफी मुश्किल होता हे ,ये मुश्किल जब और बढ़ जाती हे तब उसके किशोरावस्था का कोई बच्चा हो।
में इस दौर से गुजर चुकी हु ,मेरी माँ की 18 साल की उम्र में शादी हो गयी थी ,मेरे नानाजी को हार्ट अटैक आया तो उन्होंने अपने एक दोस्त के बेटे यानि मेरे डैड से मॉम की शादी कर दी। शादी के अगले साल में पैदा हो गयी।
मेरे मॉम डैड की सेक्सी लाइफ काफी अच्छी थी ,में इसलिए कह सकती हु की 10 -11 साल की उम्र तक में उनके पास ही सोती थी ,कभी रात को मेरी नींद खुलती तो में उनको सेक्स करते देखती लेकिन नासमझी की वजह ज्यादा समझ नहीं पाती थी।
जब में 18 की थी और मॉम 37 की डैड की एक एक्सीडेण्ट में डेथ हो गई ,मॉम डैड जगह सर्विस मिल गयी [डैड सरकारी जॉब में थे ]मेरे डैड से छोटी 2 बहने थी जिनकी शादी हो गयी थी और एक भाई था जो उनसे 11 साल छोटा था यानि चाचा की उम्र 26 के लगभग थी जिनकी शादी नहीं हुई थी। क्यू की में घर की अकेली बच्ची थी तो चाचा मुझसे बेहद प्यार करते थे
मॉम की शादी के समय चाचा 7 साल के थे मॉम ने उन्हें अपने बच्चे की तरह ही पाला था। कुछ समय बाद रिश्तेदारों की तरफ से मॉम पर दूसरी शादी का दवाब होने लगा लेकिन मॉम तैयार नहीं हुई ,बाद में जब वो तैयार हुई तो उनसे शादी के इच्छुक मुझे अपनाने को मना कर देते ,कुछ ऐसे भी थे जो उनसे शादी मेरी जवानी को देखकर करना चाहते थे।
एक दिन चाचा ने मॉम से कह दिया की वो उनसे शादी करना चाहते हे ,मॉम उनकी बात सुनकर नाराज हो गयी और उन्होंने चाचा को खूब खरी खोटी सुनाई।
मेरी दोनों बुआ भी चाचा से नाराज हो गयी ,लेकिन बाद में नाना नानी ने मॉम को समझाया किसी बाहरी आदमी पर विश्वास की जगह घर के व्यक्ति पर विश्वास किया जाये।
मॉम ने अंतत चाचा से शादी कर ली लेकिन वो काफी महीनो तक अलग अलग सोते रहे मॉम मेरे पास सोती और चाचा अलग रूम में।
काफी महीनो बाद मॉम को लगा की इसमें चाचा की क्या गलती थी तब जाकर उन्होंने चाचा को पति का दर्जा दिया और उनके साथ सोने लगी
सुनील ने जिस तरह सुमन को जिस तरह शादी के लिए राजी किया वो बेमिसाल हे। आप की लेखनी कमाल हे तो शब्दों का चयन सर्वोतम। आप मेरे आदर्श लेखक हे।
 

avsji

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अंतराल - विपर्यय - Update #8


माँ जब रसोई से निकल गई, तो काजल ने कुछ भी कहने या कुछ भी करने से पहले कुछ क्षणों तक इंतज़ार किया। वो सुनील और सुमन की चोरी छुपी नज़रों को देख कर सारा माज़रा समझ ही गई थी। वैसे भी, कल उन दोनों के बीच जो कुछ हुआ था, उसके बाद यही होना अवश्यम्भावी था और अपेक्षित भी! माँ को रसोई से भेज कर काजल ने एक अर्थपूर्ण दृष्टि सुनील पर डाली। अपनी अम्मा को अपनी तरफ ऐसे देखते हुए देख कर सुनील थोड़ा सकपका गया। सुनील को भी लगा कि उससे कुछ तो गड़बड़ - मतलब कोई चूक - हो गई है। न जाने क्यों वो अपनी अम्मा से नज़रें नहीं मिला सका और अपनी अम्मा से नज़रें चुरा कर, हाथ में पकड़ी हुई मैगज़ीन में आँखें छुपाए बैठा रहा।

काजल के लिए यह सारा नाटक अब बर्दाश्त के बाहर हो गया था।

‘प्यार किया है, कोई गुनाह नहीं! तो अपनी बात अपनी ही अम्मा को बताने में कैसी झिझक? हाँ, उसके मन में अगर कोई चोर है, तो झिझकना जायज़ है। लेकिन अगर सुनील, सुमन के साथ केवल खिलवाड़ कर रहा है तो मुझसे बुरा और कोई नहीं होगा! न तो मैंने इसको ऐसे संस्कार दिए हैं, और न ही मेरी सुमन ये डिज़र्व करती है। बस, बहुत हुआ!’

“क्या रे, ये तू गृहशोभा कब से पढ़ने लगा?” काजल ने सुनील को लगभग चुनौती देते हुए कहा - उसकी आवाज़ में खीझ साफ़ सुनाई दे रही थी। अपने लड़के को ऐसे संकोच करते हुए देख कर उसको गुस्सा सा आने लगा था।

“व...व्वो अम्मा! पढ़ नहीं रहा हूँ!” सुनील हड़बड़ा गया।

“तो क्या पढ़ने की एक्टिंग कर रहा है?”

“नहीं नहीं! क्या अम्मा! मैं तो जूलरी डिज़ाइन देख रहा हूँ!” सुनील ने बातें बनाते हुए कहा, “सोच रहा था कि जब पहली सैलरी मिलेगी न, तब उससे मैं तुम्हारे लिए कुछ गहने बनवाऊँगा। तो... वही देख रहा हूँ!”

“मेरे लिए गहने बनवाएगा, या फिर बहू के लिए!” काजल अब और भी झुँझला गई थी।

“बहू? किधर है बहू?”

काजल तब तक चल कर सुनील के बगल बैठ गई थी। काजल ने सुनील की आँखों में देखा - हाँ वो झिझक रहा था, लेकिन इस कारण से नहीं कि उसके मन में कोई चोर था। बल्कि इस कारण से कि उसके मन में अपनी अम्मा के लिए सम्मान था। तब कहीं जा कर काजल को थोड़ा संतोष हुआ। उसको यह देख कर अच्छा लगा कि सुनील के मन में अभी भी अपनी माँ के लिए इतना सम्मान है कि अपनी प्रेमिका के साथ इतना आगे बढ़ जाने के बाद भी, वो पूरी तरह से खुल कर अपने विवाह के लिए बातें नहीं कर रहा था। सम्मान और दब्बूपन में अंतर है। लेकिन फिर भी, काजल अब सब कुछ साफ़ कर लेना चाहती थी। सुनील को बस थोड़े से प्रोत्साहन की आवश्यकता थी।

लिहाज़ा, काजल ने उसके कान उमेठते हुए कहा, “चल बहुत हुआ नाटक - सच सच बोल!”

सामने खड़ी हुई पुचुकी और मिष्टी अपने दादा की हालत देख कर हँसने लगीं।

“आऊऊऊ अम्मा! अरे बोल तो दूँ, लेकिन पहले ये तो बताओ कि क्या सच बोलना है?”

“यही कि तेरी चहेती, तेरी प्रेमिका, दीदी ही है न? मेरा मतलब… सुमन ही है न!”

सुनील को तो जैसे शब्द ही नहीं सूझे!

“तू उसको ही प्यार करता है न? उसी से शादी करना चाहता है न? बोल?”

“अम्मा!” सुनील इसके अतिरिक्त कुछ कह न सका।

लतिका अपने दादा की घिघ्घी बँधी देख कर और हँसने लगी।

“दादा, टेल अम्मा न, दैट यू लव मम्मा!” लतिका ने भी सुनील को प्रोत्साहित किया।

वो तो बेचारी कब से यह खबर ऑफिसियल होने की राह देख रही थी अपनी अम्मा के ही समान!

सुनील शर्मा कर मुस्कुराया, “हाँ अम्मा! मुझे सुमन से बहुत प्यार है!”

काजल मुस्कुराई, ‘हे प्रभु - आपका बहुत बहुत धन्यवाद!’

“और तूने उसको बोल दिया?”

“हाँ अम्मा!”

“बेटू,” काजल ने लतिका से कहा, “तुम और मिष्टी कुछ देर के लिए अपने कमरे में जाओ तो, मैं ज़रा तुम्हारे दादा से बात कर लूँ?”

“जी अम्मा!” लतिका ने कहा, और मिष्टी का हाथ पकड़ कर बोली, “आल द बेस्ट, दादा!”

सुनील बस नर्वस हो कर मुस्कुराया।

बच्चों के जाने के बाद काजल बोली, “कब से चल रहा है ये सब?”

सुनील ने गहरी साँस ले कर कहा, “नहीं मालूम अम्मा! समझ लो... जब से होश सम्हाला है, तब से!” सुनील ने पूरी ईमानदारी से कहा, “सालों से!”

“सालों से?”

“हाँ अम्मा! जब हम सभी बाबूजी के साथ रहने लगे थे, लगभग तभी से!”

“तब से? हम्म्म! मतलब बचपन का प्यार है?” काजल ने उसकी टाँग खींची।

सुनील नर्वस हो कर मुस्कुराया।

“बहुत प्यार करता है तू उससे?”

“बहुत अम्मा! बहुत!” सुनील की आवाज़ में प्रेम की शिद्दत और शिष्टता दोनों साफ़ सुनाई दे रही थी।

काजल यह सुन कर बहुत खुश हुई।

“कितना?”

“पता नहीं अम्मा! ... लेकिन इतना समझ लो कि वो मेरी ज़िन्दगी की लौ है।”

सुनील को ऐसे रूमानी अंदाज़ में कुछ कहते हुए काजल को गर्व सा हुआ। कब उसका बेटा इतना बड़ा हो गया, उसको समझ ही नहीं आया। माँ की ममता उसकी आँखों पर एक पट्टी सी बाँध देती है।

“अच्छा एक बात बता, वो भी तुझे पसंद करती है?”

“जी अम्मा! पसंद करती है।”

“उसने कहा ये तुझको?”

सुनील की आँखों के आगे उनके सम्भोग के दृश्य झलक उठे! और फिर उसके बाद की मीठी मीठी बातें भी सब याद आ गईं।

“हाँ अम्मा! सुमन ने भी मेरा प्यार स्वीकार लिया है!” वो बोला, “सुमन को मैं बहुत चाहता हूँ अम्मा! बहुत! बस, उसी से शादी करनी है मुझे! और मैं खुद भी यह बात तुमको बताने वाला था - आज ही! सच में!”

काजल जानती थी कि सुनील झूठ नहीं बोलता, और... न ही सुमन!

‘कैसी बढ़िया जोड़ी मिलाई है भगवान्! तेरा लाख लाख - नहीं - करोड़ करोड़ शुक्र है, प्रभु!’

“बहुत बढ़िया बेटा! सच में! यह सब सुन कर मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं!”

“सच में अम्मा?”

“और नहीं तो क्या? मैं कब से तो तुझे हौसला दे रही हूँ कि बोल दे उसको! तू ही है कि हिम्मत ही नहीं जुटा पाता!”

सुनील हँसने लगा।

“तुझे मैंने कहा था न, कि तेरे बताए हुए गुणों वाली केवल एक लड़की जानती हूँ मैं! और मुझे बहुत ख़ुशी है कि तूने उसी को पसंद किया - और उसने तुझको!”

“थैंक यू अम्मा! थैंक यू सो मच! आई लव यू!”

“हाँ हाँ - मस्का न मार मुझे! तेरे कान न उमेठती, तो ये खुश-खबरी ही न मिलती मुझे! अब आया है बड़ा मुझको थैंक यू बोलने वाला!” काजल ने उसको प्यार से झिड़का, फिर दबी आवाज़ में बोली, “कल क्या क्या कर रहा था रे उसके साथ?”

सुनील शर्मा गया, “अम्मा, क्या करूँ - कण्ट्रोल ही नहीं हो पाया! आई ऍम सॉरी!”

“अरे, सॉरी क्यों? अपनी बीवी को नहीं, तो किसके साथ ये सब करेगा रे?” काजल ने उसको समझाते हुए कहा, “अच्छा, सेक्स किया था क्या कल उसके साथ?”

“नहीं अम्मा!”

“हम्म!” काजल खुश होते हुए बोली, “और आज? आज भी तो मौका मिला था तुम दोनों को!”

अपनी अम्मा की बात सुन कर सुनील का चेहरा कान तक लालिमायुक्त हो गया। उसके साँवले रंग पर भी वो परिवर्तन दिख गया।

“अम्मा मैं क्या करूँ? उनसे दूर भी तो नहीं रह पाता अब मैं!”

“मतलब... तुम दोनों ने...?”

“हाँ अम्मा!” सुनील ने स्वीकारा, “आज हम दोनों एक हो गए हैं!”

“बहुत बढ़िया! ये तो बहुत अच्छी बात है! और सबसे अच्छी बात यह है कि सुमन ने भी तुझे अपना लिया! तुम दोनों ने एक दूसरे को अपना लिया - मुझे इतनी ख़ुशी मिली कि मैं क्या कहूँ!”

सुनील मुस्कुराया।

“तुझे,” काजल ने थोड़ा झिझकते हुए पूछा, “तुझे उसके साथ अच्छा तो लगा न?”

“बहुत अच्छा लगा अम्मा!” सुनील कहने से पहले थोड़ा शरमाया अवश्य, लेकिन फिर उसने सच सच कह दिया।

“कैसी लगी वो?”

“बहुत सुन्दर है वो अम्मा! उसका हर अंग जैसे सोना है!”

“है न?” काजल अपने विचारों का पुष्टिकरण सुन कर बहुत खुश हुई, “और तूने...? तूने उसको सुख दिया?”

सुनील इस बार थोड़ा झिझका - उसको इस बात का ठीक से मालूम नहीं था, “कोशिश की मैंने अम्मा! लग तो रहा था। लेकिन... लेकिन मुझे... ठीक से नहीं मालूम!”

“देख बेटा, उसका वैल्यू सिस्टम बड़ा मज़बूत है और बड़ा ट्रेडिशनल है! अब से तू ही उसका सब कुछ है! उसको हर तरह की खुशियाँ देना तेरा ही काम है, तेरी ही ज़िम्मेदारी है! वो भोली सी है। शर्मा जाएगी; झिझक जाएगी! शिकायत नहीं करेगी कभी। उसकी शर्म उतारना तेरा काम है। उसको अपने रंग में रंग लेना, लेकिन उसको - उसके गुणों को बदलना मत! उसका भोलापन बरकरार रखना।” काजल ने उसको समझाया, “याद रखना कि तूने उससे प्यार क्यों किया है। उसके गुणों का मान रखना! उसमें भरोसा करना। सुमन का आदर करना - पद में वो तुझसे छोटी ज़रूर है - मैंने बोला छोटी है - कम नहीं - इस बात का ध्यान रहे,” काजल की बात पर सुनील ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “... लेकिन उम्र में वो तुझसे बड़ी है।”

“हाँ अम्मा - मैंने उनकी माँग में सिन्दूर रचने से पहले उनके पैर छुए थे, और उनका आशीर्वाद भी लिया था!” सुनील ने गर्व से कहा, फिर आगे जोड़ा, “लेकिन फिर उन्होंने भी मेरे पैर छुए!”

“हाँ! छुएगी ही! मैंने कहा न! अब से उसके लिए उसका पति - मतलब कि तू - उसका सब कुछ है! उसका पूरा संसार! वो पूरी तरह से तुझसे डिवोटेड रहेगी! तुझे वो अपना भगवान मानेगी। वो तुझसे इतना प्यार करेगी, तुझे इतना आदर देगी कि तू सोच नहीं सकता। लेकिन तू वो सब आदर सम्मान पा कर उड़ने मत लगना। मत भूल जाना कि उसके ही आँचल तले तेरी परवरिश हुई है। वो तेरे घर को खुशियों से, और समृद्धि से भर देगी! इसलिए उसका आदर करना। और, उससे सीखना बंद मत कर देना।”

“कभी नहीं अम्मा! उनके भी तो संस्कार मिले हैं मुझे!”

काजल मुस्कुराई, “हाँ! तू उसको खूब प्यार करना!” फिर थोड़ा ठहर कर, “पता है? कल तुझे उसके सीने से लगा देख कर मेरे मन में एक दृश्य खिंच गया था - कि तू उसको प्यार कर रहा है, और मेरे पोता पोती का इंतजाम कर रहा है!”

“हा हा हा! क्या अम्मा!”

“क्या अम्मा क्या? सेक्स केवल मज़े लेने के लिए ही नहीं किया जाता है; उसमें एक सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारी भी होती है!” काजल आज पूरे मूड में सुनील को शिक्षा देती जा रही ही, “तो तुम दोनों फ़ैमिली प्लानिंग के चक्कर में मत पड़ना! जल्दी जल्दी मुझे जितनी बार दादी बना सको, बना देना!”

अम्मा!” सुनील अब बहुत ही अधिक शर्मा गया था।

“अरे चुप! समझा कर! प्रकृति को हराना कठिन काम है। ऐसा न हो कि तुम दोनों केवल मज़े लेने के चक्कर में रहो, और टाइम निकल जाए!”

“हा हा हा! नहीं निकलेगा अम्मा! हमने भी इस बात को डिसकस किया है!”

“किया है? वाह! बढ़िया!” काजल खुश होते हुए बोली, “अब मुझको संतोष है! लेकिन बेटा, इस बात को ऑफिसियल करना बहुत ज़रूरी है। अमर को बताना बहुत ज़रूरी है!”

“हाँ अम्मा! भैया से तो बात करना है!”

“हम्म्म! खैर, वो तुम मुझ पर छोड़ दो! लेकिन सच में बेटा, आज तूने मुझे बहुत बड़ी ख़ुशी दे दी है!”

“सच में अम्मा?”

“हाँ बेटा! कब से तो तुम दोनों की मूरत मैं अपने मन में बसाए भगवान से पूजा कर रही हूँ! बहुत सुन्दर जोड़ी बनाई है भगवान जी ने तुम दोनों की! आज मैं बहुत खुश हूँ बेटा, बहुत खुश!”

“थैंक यू अम्मा! थैंक यू!”

“मेरा प्यारा बेटा! आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू!” काजल ने गर्व से कहा, “अच्छा, तो अब मैं तुम्हारी मैडम से भी मिल लूँ ज़रा!” काजल ने हँसते हुए कहा, और माँ के कमरे की ओर चल दी।

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अंतराल - विपर्यय - Update #9


माँ शर्म से अपना सर और आँखें नीची किए काजल के सामने बैठी हुई थीं।

“पुचुकी, तुम कुछ देर के लिए बाहर जाओ बेटा!” काजल ने एक अलग ही आवाज़ में लतिका से कहा।

काजल की आवाज़ में बदलाव को महसूस कर के लतिका माँ की गोद से चुपचाप उठ गई और कमरे से बाहर निकल गई। बेचारी हर जगह से भगाई जा रही थी। लेकिन वो समझ रही थी कि गंभीर बात हो रही है, और उसमें केवल ‘बड़े’ लोग ही शामिल हो सकते हैं। उधर लतिका बाहर निकली, और इधर माँ सकुचाते हुए अपनी ब्लाउज सम्हालने में लग गईं। काजल के सामने ऐसी घबराहट - या कैसी भी घबराहट - उनको आज से पहले कभी नहीं हुई थी।

काजल का माँ को डराने, धमकाने, डांटने जैसा कोई प्लान नहीं था। वो तो खुद ही पिछले कुछ दिनों से भगवान से इसी दिन के लिए प्रार्थना कर रही थी। और तो और, सुनील से भी उसको सब कुछ साफ़ साफ़ मालूम पड़ गया। वो तो यहाँ आई थी अपनी प्यारी सहेली की खिंचाई करने और उसको बधाइयाँ और आशीर्वाद देने। लेकिन माँ ऐसे डरी हुई, शरमाई सकुचाई हुई अवस्था में एक बेहद प्यारी सी, छोटी सी बच्ची जैसी लग रही थी - ऐसी जैसे पुचुकी और उनमें कोई फ़र्क़ ही न हो! वो होता नहीं है, जब आप कभी छोटे बच्चों को कोई गड़बड़ किए हुए पकड़ लेते हैं, और वो अपनी गलती की ग्लानि में अपने प्यारे प्यारे, गोल गोल गालों को फुलाए हुए देखते हैं, तो उनको छेड़ने और उनके साथ खेलने का मन होने लगता है! उसी तरह काजल ने भी सोचा कि वो कुछ देर माँ को ऐसे ही छेड़ेगी और सताएगी। आखिर वो सबसे पहले उनकी सबसे पक्की सहेली है - सास तो बाद में है।

लिहाज़ा काजल मजे से माँ को देखती रही।

माँ को समझ नहीं आ रहा था कि वो अपनी नई सास को कैसे देखें, जिसे वो एक लंबे समय से अपनी बेटी और अपनी छोटी बहन मानती आई थी। उनका बदला हुआ रिश्ता थोड़ा शर्मसार करने वाला तो था, लेकिन इस पर चर्चा करने की आवश्यकता थी। जितनी जल्दी हो सके, उतना ही जल्दी बेहतर था।

“दीदी,” काजल मुस्कुराई और फिर हँसने लगी; उसने अपने हाथों में माँ के दोनों हाथों को थाम लिया और कहना जारी रखा, “हम दोनों की किस्मत तो देखो... भगवान जी ने बहुत सोच समझ कर हम दोनों की कहानी लिखी होगी!” उसने कहा, और माँ की प्रतिक्रिया देखने के लिए रुकी। लेकिन माँ चुप रही; उनका चेहरा और उनकी आँखें अभी भी नीची ही थीं।

जब माँ ने कुछ नहीं कहा, तो काजल बोली, “एक तरफ़ तो तुम्हारा बेटा मेरी चुदाई करता है,” उसने फिर से धीमी षड़यंत्रकारी आवाज में कहा, “तो दूसरी तरफ़ मेरा बेटा तुम पर लट्टू है।” और फिर सामान्य आवाज़ आगे कहा, “है ना अनोखी किस्मत हम दोनों की?” काजल इतना कह कर फिर रुक गई और इंतजार करने लगी कि माँ कुछ कहे।

माँ की भावनाओं का वर्णन करना कठिन था... वो जैसे काठ की हो गईं थीं! उनसे कुछ कहते, करते नहीं बन रहा था। उनको लग रहा था कि जैसे वो कुछ गलत करते हुए रंगे हाथों पकड़ ली गई हो! और सबसे शर्म की बात तो यह थी काजल की बातों से लग रहा था कि काजल को उसके और सुनील के बीच के शारीरिक संबंधों के बारे में मालूम है। वो कुछ भी कहने का सोच नहीं पा रही थीं। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि सुनील और उसके सम्बन्ध पर काजल कैसी प्रतिक्रिया देगी।

काजल अभी भी माँ को गौर से देख रही थी, “कुछ बोलोगी नहीं?”

काजल ने पूछा। लेकिन जब दो मिनट इंतजार करने के बाद भी माँ कुछ नहीं बोलीं, तो काजल ने सीधा, दो-टूक सवाल किया, “दीदी, तुम सुनील से शादी क्यों करना चाहती हो?”

जिस तरह से काजल उनको देख रही थी, माँ को समझ आ गया कि अब सब कुछ बता देने का समय आ गया है, लेकिन फिर भी झिझक तो थी।

“अरे बोलो न!”

“अ... क... काजल, मुझे लगता है... मैं उनसे शादी करना चाहती हूँ... मेरा मतलब है... हम दोनों... हम दोनों का बहुत भला होगा।” माँ ने बड़े भोलेपन से, बड़ी सरलता से उत्तर दिया।

माँ की बात सुनकर काजल को थोड़ी हैरानी हुई, “आएं! यह तो बड़ी मजेदार कही। मुझे तो लग रहा था कि तुम कुछ प्यार व्यार की बातें कहोगी!”

सुनील से प्यार उनको होने तो लगा था, लेकिन वो उस प्यार के पनपने से पहले सुनील के गुणों के कारण उसकी तरफ़ आकर्षित हुई थीं - जैसे अक्सर अरेंज्ड मैरिज जैसी व्यवस्था में होता है। लड़का लड़की एक दूसरे के गुणों को देख कर, एक दूसरे से बातें कर निर्णय लेते हैं कि शादी करनी भी है या नहीं। उनके बीच का प्रेम उसके बाद पनपता है। प्रेम होने के पहले विवाह का वचन दिया जाता है। लगभग ऐसी ही बात यहाँ पर भी थी।

“उन्होंने मुझको पसंद किया... मुझसे प्यार किया... इसके लिए मैं हमेशा उनकी आभारी रहूँगी!” माँ ने कहना शुरू किया, “मैं भी उनको पसंद करती हूँ काजल। उनके लिए डिवोटेड हूँ! मैंने उनको शादी का वचन दे दिया है... उनके गुणों के सामने नतमस्तक हूँ! लेकिन सच में - मैंने उनको प्यार करना बस शुरू ही किया है। इसलिए मैं यह नहीं कह सकती कि प्यार के कारण मैं उनसे शादी करना चाहती हूँ!” माँ ने पूरी सच्चाई से कहा, “हाँ, लेकिन मुझे यह मालूम है कि वो मुझसे बहुत प्यार करते हैं। और मुझे ये भी मालूम है कि मैं उनको बहुत प्यार दूँगी!”

ये बात कहते कहते माँ की आवाज़ बहुत कोमल हो गई। वो जो कुछ कह रही थीं, वो सब जैसे उनके हृदय से निकल रहा था। काजल कुछ न बोली, बस माँ को देखती रही।

माँ ने कुछ क्षण इंतजार किया, और फिर आगे कहा, “लेकिन मुझे लगता है… मुझे लगता है कि हमारे पास प्यार के जैसा ही कुछ और भी है... मतलब, प्यार से बेहतर तो नहीं, लेकिन लगभग उतना ही ज़रूरी... हमारे मन में एक-दूसरे के लिए बहुत रेस्पेक्ट है, बहुत आदर है।”

काजल ने अपने चेहरे का हाव-भाव ऐसा कर रखा था कि देखने वाले को लगे कि वो बहुत ही कड़क सास होगी।

“और कुछ?” उसने रुखाई से पूछा।

“सु…” माँ बोलने को हुई, फिर हिचकिचाते हुए रुक गईं - वो उस आदमी का नाम कैसे ले सकती है जिसने अभी-अभी उनके माथे को सिंदूर से सजाया है - “... वो मुझसे प्यार करते हैं!” माँ ने कहा, उनका चेहरा शर्म से थोड़ा लाल हो गया, “... और मैं भी करने लगी हूँ!”

काजल ने कुछ नहीं कहा।

“मैंने आपके बेटे को नहीं चुना।” माँ ने रक्षात्मक रूप से कहा, लेकिन बहुत धीरे से! उनका काजल को सम्बोधित करने का तरीका भी बदल गया, “लेकिन मुझे लगता है कि यह हमारा भाग्य ही है कि हम दोनों एक साथ हो जाएँ।”

“भाग्य?” काजल के चेहरे पर अविश्वास के भाव थे!

वैसे भी काजल का भावहीन चेहरा देख कर माँ की हालत पहले ही पतली हो गई थी। वो सहमी हुई सी काजल से बात कर रही थी।

और उधर काजल एक कड़क सास की एक्टिंग तो कर रही थी, लेकिन उस समय काजल को माँ इतनी भोली, इतनी सच्ची, और इतनी सुन्दर लग रही थी, कि उसको देख कर वो अंदर ही अंदर पिघल रही थी।

'सुमन के लिए भी तो यह सब नया नया होगा और उसको भी सब कुछ गड्ड-मड्ड लग रहा होगा,' काजल ने सोचा।

उसका मन हो रहा था कि झपट कर वो अपनी बहू को अपने सीने से लगा ले, उसको चूम चूम कर उसके दोनों गाल लाल कर दे, और उसको अपने स्तनों से अमृत पिला दे! लेकिन इस नाटक में उसको आनंद तो आ ही रहा था। सास बनना बड़ा मनोरंजक होने वाला अनुभव हो सकता है! इसलिए अभी भी वही भावहीन चेहरा बनाए हुए काजल ने कहा,

“हम्म्म... भाग्य, और आदर सम्मान? बस?”

“प् प् प्यार भी है!” माँ ने कोमलता से, लेकिन अचकचाते हुए कहा, “यह सब एक दूसरे को खुशी देने के लिए काफ़ी नहीं है?”

“तुम बताओ - काफ़ी है या नहीं?” सख्त सास का अभिनय अभी भी जारी था।

“मुझे लगता है कि काफ़ी है।” माँ की आवाज़ बहुत नरम हो गई थी... लेकिन फिर भी उनका स्वाभिमान और सच्चाई सुनाई दे रही थी। उनके बोलने में एक विश्वास भी था, कि सुनील और उन्होंने जो कुछ किया, वो सही था।

“तो तुम सुनील का संसार बसाओगी?” काजल ने उसे करीब से देखा।

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

अभी थोड़ी ही देर पहले सुनील के साथ जो रुपहले सपने उसने देखे थे, वो सारे उसकी आँखों के सामने तैर गए। सुनील के साथ विवाह, उसके साथ प्रेम सम्बन्ध, उसके साथ हर सुख दुःख में खड़ा रहना, उसके बच्चों से गर्भवती होना, उनको जन्म देना, उनको स्तनपान कराना, उनका पालन पोषण करना, उनको बड़ा करना, उनको इस समाज का सम्मानित सदस्य बनाना इत्यादि! माँ के होंठों पर एक स्निग्ध सी मुस्कान आ गई - मुस्कान, जिसमें लज्जा भी थी, स्वाभिमान भी था, और भविष्य को ले कर कोमल आशाएँ भी!

“हम्म्म! देख लो! ऐसा न हो कि एक दिन तुम दोनों, एक दूसरे से किये अपने वायदों को भूल जाओ!”

“नहीं भूलूँगी,” माँ ने कोमलता से और धीरे से उत्तर दिया!

“ऐसा कुछ भी बोलने से पहले ठीक से सोच लो! उसकी माँ की उम्र की हो तुम!” काजल ने वो बनावटी रूखा रवैया जारी रखा।

काजल की बात सही थी। माँ अभी भी सुनील को ‘प्यार’ जैसा प्यार नहीं करती थी। वो चरण उसके जीवन में बस अभी अभी ही आया था। सुनील के लिए उनके मन में प्यार के कोंपल बस फूटे ही थे। अवश्य ही सुनील और उनमें अब पति-पत्नी वाला सम्बन्ध बन गया था, लेकिन अभी भी उनके मन में सुनील के लिए ममता वाला प्यार थोड़ा अधिक था, और प्रेमिका वाला कम। पूरा परिवर्तन आने में कुछ समय तो लगेगा ही।

माँ को मालूम था कि यह शादी निभाना आसान नहीं होगा। उन दोनों का एक बेमेल सम्बन्ध था - ऐसे विवाहों में अगर कोई गड़बड़ हो जाती है, तो खुद ही सम्हालना पड़ता है। बाकी सभी लोग केवल उलाहना देते हैं; कोई सहारा नहीं देता। वो समझती थीं कि एक बार सुनील से शादी करने के बाद, अगर कोई गलती होती है तो उसका प्रायश्चित और उसकी भरपाई उनको अकेले ही करनी पड़ेगी। इस तरह के बेमेल विवाह में जो साथी अधिक कमजोर होता है, उसे ही अधिक खामियाजा भुगतना पड़ता है। ऐसा ही नियम है समाज का! सुनील और उनके सम्बन्ध में माँ ही कमज़ोर पक्ष थीं - इसलिए अगर बाद में कुछ गड़बड़ होता है, तो उनको ही सब झेलना पड़ेगा। लेकिन पुनः सौभाग्यवती होने और पुनः माँ बनने की इच्छा उनके अंदर इतनी बलवती हो गई थी, कि वो सब कुछ बर्दाश्त करने को तैयार थीं।

माँ चुप हो गईं। इस बात का तो कोई उत्तर नहीं था उनके पास।

“दीदी, तुम खुद ही सोचो - मेरा एक ही बेटा है - और मेरे क्या क्या अरमान हैं उसको ले कर! उसकी शादी ऐसे ही... किसी से भी थोड़े न कर दूँगी!” काजल का रूखा, भावशून्य रवैया जारी था, “शरीर से बड़ा हो गया है, बातें वो बड़ी बड़ी करता है, लेकिन फिर भी बच्चा ही तो है! वो नादानी तो कर ही सकता है न? अभी उसको दुनियादारी के बारे में क्या ही मालूम? क्या ही देखा है उसने? कैसे वो इतना बड़ा डिसीजन खुद ले सकता है... अपनी माँ से बिना पूछे? उसके भले बुरे की जिम्मेदारी मेरे ही तो ऊपर है! इतनी लम्बी ज़िन्दगी है! कोई ऊँच नीच हो गई तो? कोई ऐसी वैसी लड़की मिल गई तो? कैसे निभाएगा वो उसके साथ! बोलो?”

काजल रुखाई से बोलती जा रही थी।

काजल की इस बात पर माँ का दिल बैठ गया। कुछ ही देर पहले भविष्य के जो कोमल सपने उन्होंने सजाए थे, सब अचानक ही टूट कर बिखर गए। दिल में उनके एक टीस सी उठ गई और उनके आँखों में आँसू भर आए। माँ ने खुद पर नियंत्रण रखने की बड़ी कोशिश करी, कि उनका रोना काजल को न दिखे, लेकिन इतनी कोमल हृदय वाली मेरी माँ की आँखों से आँसू गिर ही गए। उनको रोकने की लाख कोशिश करने के बावजूद! बस गनीमत यह रही कि उनके गले से रोने की आवाज़ नहीं निकली।

‘सच में - क्यों ऐसी अनहोनी के होने की सम्भावना वो तलाश करने लगीं! सही तो कह रही है काजल - ‘वो’ छोटे ही तो हैं। ‘वो’ अभी भी बच्चे ही तो हैं! ‘उनको’ दुनियादारी कहाँ आती है भला! कैसी बेवकूफी हो गई मुझसे! इस उम्र में ऐसी मूर्खता! इतनी उम्र हो जाने पर भी मुझको दुनियादारी नहीं आई! ऊपर से काजल के सामने ऐसी बेइज़्ज़ती! हे भगवान्!’

उधर उनको ऐसे रोता हुआ देख कर काजल के दिल में एक गहरी टीस सी हुई!

जो बहू काजल को चाहिए थी, वो उनके सामने बैठ कर रो रही थी, और उसके रोने का कारण वो खुद थी। जो बात मज़ाक में शुरू हुई थी, अब बहुत दूर तक चली गई है। यह नाटक जल्दी बंद करना पड़ेगा।

“मेरा बेटा ‘लाखों में एक’ है!” काजल फिर भी, बड़ी मुश्किल से ही सही, लेकिन अभी भी रूखे स्वर में ही बोल रही थी, “और उसके लिए मुझे ‘लाखों में एक’ लड़की चाहिए!”

इतना कह कर वो थोड़ा रुकी।

माँ का सर निराशा में झुक गया था, और उनके आँसू झर झर कर के गिर रहे थे।

काजल ने फिर कहना शुरू किया, “और सच कहूँ?”

माँ को लगा कि काजल इस सम्बन्ध पर अब अपना फैसला सुनाने वाली है। उनको काजल का निर्णय मालूम था। लेकिन जब यह सब किया है, तो काजल का निर्णय सुनने की हिम्मत तो रखनी ही पड़ेगी न! उन्होंने बड़े यत्न से काजल की तरफ़ देखा। काजल के चेहरे पर अभी ही रूखाई वाले ही भाव थे।

काजल बोली, “लाखों में नहीं, बल्कि ‘करोड़ों में एक’ लड़की मिल गई है मुझे मेरे सुनील के लिए!”

माँ का दिल बैठ गया। उनकी तो जैसे साँसें ही रुक गईं!

और फिर अचानक ही अपना भावशून्य, रूखा, और कड़क व्यवहार बदल कर, काजल बड़े प्यार से माँ के एक गाल को सहलाते हुए, बेहद मीठेपन और ममता से बोली,

तू! तू है वो लड़की!” काजल ने भी कुछ देर से अपने आँसुओं को रोक कर रखा हुआ था, लेकिन अब उसका भी बाँध टूट गया; उसके भी आँसू गिरने लगे, “सच में! अगर तू सुनील की दुल्हन बन कर, मेरे घर, मेरी बहू बन कर आएगी न, तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा! मेरे सुनील की तो किस्मत ही खुल जाएगी!”

माँ ने जो सुना, उस पर उनको विश्वास ही नहीं हुआ।

‘ये क्या हुआ!’ उसने काजल को अविश्वास से देखा।

“बहुत प्यार करता है वो तुमसे!”

माँ कुछ कहने ही वाली थी, कि जैसे काजल को माँ के मन के सवाल सुनाई दे गए; वो उनके पूछने से पहले ही बोली,

“बेटा है वो मेरा... तुझे क्या लगा? क्या मुझको समझ में नहीं आएगा कि उसको कौन पसंद है, और कौन नहीं?”

माँ ने फिर से अपना चेहरा नीचे कर लिया... उनकी आँखों से अभी भी आँसू गिर रहे थे, लेकिन वो अब शर्मा भी रही थीं। माँ इस समय बहुत शक्तिहीन महसूस कर रही थी। उनका मन हो रहा था कि काजल उनको अपने में समेट ले। वो काजल एक लम्बे समय से अपनी बेटी मानती आई थीं, और काजल भी माँ के प्रति माँ जैसा ही सम्मान रखती थी। फिर एक समय आया जब उसने माँ को ‘दीदी’ कह कर पुकारना शुरू किया! उसके पहले तो वो उनको ‘माँ जी’ ही कह कर बुलाती थी। सुनील की पत्नी के रूप में माँ आधिकारिक तौर पर काजल की बहू बन जाएगी!

क्या यह भाग्य का अद्भुत मोड़ नहीं है?

काजल ने आगे कहा, “भगवान जी सबको दोबारा सुखी होने का मौका नहीं देते! उन्होंने तुमको ये मौका दिया है... मुझको यकीन है कि तुम्हारे साथ ही भगवान जी का आशीर्वाद भी आ जाएगा मेरे सुनील की लाइफ में! हमारी लाइफ में! तुमको दोबारा सुखी होने का मौका मिल रहा है… ले लो... बिना झिझके, बिना किसी हिचकिचाहट के।”

काजल अपने आँसुओं के बीच मुस्कुराई; उसने सोचा कि माँ कुछ कहेगी या करेगी। लेकिन माँ तो इतनी भावुक हो गई थी, कि उससे कुछ करना या कहना हो ही नहीं पा रहा था।

“दीदी?” काजल ने बड़ी ममता से कहा, “ओह, मेरा मतलब, बहू?” काजल ने ‘बहू’ शब्द पर जोर दिया, “अपनी सास के गले से नहीं लगोगी?”

बस काजल के कहने की देर भर थी, और माँ कूद कर काजल की गोद में अपना मुँह छुपा कर रोने लगी। उनको एक दोस्त की जरूरत थी। पिछले कुछ महीने उनके लिए बड़े मुश्किल भरे रहे। आज उनको आशा की गुनगुनी धूप दिखाई देने लगी थी। उन्हें अभी भी लग रहा था कि उनकी खुशियाँ बड़ी नाज़ुक सी थीं। इसलिए उन्हें आश्वासन चाहिए था। सम्बल चाहिए था। काजल ने उनको वो सब दिया,

“सुमन,” काजल ने भी माँ को उसके नाम से बुलाया, “तुम इतनी प्यारी हो... तुम्हारे अंदर इतना प्यार है... तुम हमारे घर हमारी बहू बन कर आ रही हो - हमारी तो किस्मत ही खुल गई है... सच में!”

“तुमको कब से पता है?” माँ ने काजल के सीने में ही सुबकते हुए पूछा।

“शक तो खैर तब से है, जब से सुनील वापस आया है यहाँ! लेकिन पूरी तरह से पक्का पता कल चला... वैसे... इस बात की उम्मीद मुझे बड़े दिनों से थी... मैं तो भगवान जी से रोज़ प्रार्थना कर रही थी कि तेरा और सुनील का सम्बन्ध जम जाए! और उन्होंने मेरी प्रार्थना सुन ली।”

काजल ने माँ के माथे को प्यार से चूमते और उनके गालों को सहलाते हुए आगे कहा, “जब से आया है, बस तुम्हारी ही बातें करता है... तुमसे ही बातें करता है... तुम्हारे ही आस पास रहता है... अपनी होने वाली बीवी में केवल तुम्हारी छवि ढूंढता है। तो क्या मुझे नहीं समझ में आएगा कि उसकी पसंद कौन है?”

माँ शर्म से मुस्कुराईं।

काजल भी मुस्कुराई, “और तुझे क्या लगता है? कभी सोची नहीं क्या, कि कैसे जब तू और सुनील साथ में होते हो, तो मैं अचानक ही क्यों गायब हो जाती हूँ? वो केवल इसलिए कि अगर सुनील या तेरे के दिल में कुछ है, तो तुम दोनों एक दूसरे से अपने दिल की बात कह सको!”
उसने माँ के सलोने मुखड़े को सहलाया।

“लेकिन तुम दोनों इतना शरमाते हो, इतना सकुचाते हो, कि कल मैंने दोनों को ही नंगा कर दिया। सोचा था कि अब तो करोगे अपने मन की?”

इस बात पर माँ भी शरमा गईं।

काजल मुस्कुराई, “ये सिंदूर उसने ही लगाया है ना?”

माँ ने शरमाते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“शरमाओ मत, मेरी बहू,” काजल ने बड़े लाड़ से, बड़े प्यार से कहा, “तेरी माँग में सिंदूर रच कर अब वो तेरा पति बन गया है, और तू उसकी पत्नी! और अब... अब मैं तुम्हारी सास... नहीं, सास नहीं... माँ हूँ... और तुम मेरी बहू नहीं, तुम मेरी बेटी हो! तुम अपना सुन्दर सा संसार बसाओ, अपनी दुनिया सजाओ, उसमें हँसो खेलो... मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है... हमेशा!” काजल ने कहा और फिर माँ के माथे पर चूम लिया।

“थैंक यू! थैंक यू!” माँ ने बार बार कहा, और काजल से लिपट कर रोने लगीं।
 

avsji

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Supreme
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अंतराल - विपर्यय - Update #10


काजल भी अपना खुद का रोना न रोक सकी।

कुछ देर रोने के बाद, जब दोनों की भावनाओं का गुबार निकल गया, तो कुछ सोच कर काजल ने बड़े स्नेह से पूछा, “सुमन… बस एक बात मुझे बताओगी, बिटिया?”

माँ ने काजल की तरफ देखा।

“तू... तू सुनील के बच्चे जनेगी न?” काजल ने बड़े लाड़ से पूछा।

माँ शर्म से लाल हो गई। यह एक बहुत ही व्यक्तिगत प्रश्न था; लेकिन वो समझ रहीं थीं कि काजल यह क्यों जानना चाहती है! सुनील को बच्चे चाहिए थे - और वो भी कम से कम दो! और किसी भी सास की तरह, काजल भी जल्दी से दादी बनना चाहती थी।

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“सच में न?” काजल इस बात को सुनिश्चित कर लेना चाहती थी।

माँ ने फिर से सहमति में सर हिलाया।

“बहुत अच्छा! बहुत अच्छा!”

काजल ने मुस्कुराते हुए कहा - मानों मन ही मन वो अपने होने वाले पोते-पोतियों के साथ अपने बेटे और बहू को चित्रित कर रही हो! हाँ, मन ही मन वो एक सुन्दर सा दृश्य खींच रही थी! बड़ा ही सुन्दर चित्र था! दादी बनने का सुख! आह! फिर वो उस कल्पना से बाहर निकली और बहुत मीठे स्वर में बोली,

“तो बिटिया मेरी... अब जितना जल्दी हो सके, उतनी जल्दी मेरे सुनील को भी अमर जैसी ही एक संतान दे दो…”

माँ काजल की बात पर शर्म से लाल हो गईं और काजल के सीने में और भी सिमट गईं।

माँ सुनील की पत्नी, काजल की बहू, और लतिका की भाभी के रूप में खुद को स्वीकारे जाने पर आनंद से आह्लादित हो गई थीं। नई भूमिका! माँ चकित थीं कि वो अपनी इस ‘कनिष्ठ भूमिका’ को ले कर बहुत उत्साहित थीं! मेरी माँ के रूप में उनकी एक ‘वरिष्ठ भूमिका’ थी। यह उनके लिए एक बड़ा बदलाव था!

“सुमन... मेरी बिटिया... तू अब मेरी बिटिया है ना... तो मैं अब तेरी भी अम्मा हूँ…”

माँ ने काजल की ओर देखा और सोचा कि काजल उनको बहू के रूप में अपनी सास को यथोचित सम्मान देने का संकेत दे रही है... इसलिए, एक आदर्श भारतीय बहू की तरह माँ उठीं, अपने पल्लू से अपना सर ढँका, और फिर काजल के सामने आ कर उन्होंने अपने माथे और हाथ से काजल के पैर छुए। काजल हैरान हो गई कि कैसे उसकी बहू ने अपनी सास के रूप में उसका सम्मान किया!

“ओह! ओह! भगवान तुमको खूब सुखी रखे! तुम दोनों को दीर्घायु करें! स्वस्थ रखें! तुम सदा सौभाग्यवती रहो! अखंड सौभाग्यवती! दूधो नहाओ, पूतो फलो!” काजल ने एक स्नेही सास के जैसे ही माँ पर अपना आशीर्वाद बरसाया, “मेरा सारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है... मेरे जीवन में जो भी संचित पुण्य है, उसका सारा फल तुमको मिले! मेरी बच्ची... मेरी पूता!”

काजल ने माँ को उठा कर अपने आलिंगन में भर लिया और जहाँ भी वो माँ को चूम सकी, वहाँ अपना प्रेममय चुम्बन जड़ दिया, फिर बड़े स्नेह से बोली, “लेकिन मैं तुमको मेरे पैर छूने के लिए नहीं कह रही थी, बहू रानी!”

माँ ने उसकी तरफ देखा, समझ में नहीं आ रहा था कि काजल फिर क्या चाहती थी।

“लेकिन... तुम तो मेरी अम्मा हो ना अब!”

“हाँ... मैं तुम्हारी अम्मा तो हूँ,” काजल ने प्यार से माँ के गालों को सहलाते हुए कहा। फिर उसने पुकारा,

“सुनील?”

“हाँ अम्मा।”

“ज़रा अंदर तो आ... बहू के कमरे में!”


**


‘दीदी के कमरे’ के बजाए ‘बहू के कमरे’ में बुलाए जाने पर, सुनील समझ गया कि अम्मा ने सुमन से बात कर ली है, और उसके साथ उसके बदल गए रिश्ते को स्वीकृति भी दे दी है।

सुनील जब कमरे में आया तो काजल ने उसे प्यार से देखा। माँ को इतनी झिझक हो रही थी कि वो अभी तक काजल से ही लिपटी हुई थीं।

“सुनील... बेटा, आज तूने अपनी पूरी ज़िंदगी का सबसे समझदारी वाला काम किया है,” उसने फिर से माँ के गालों को प्यार से सहलाते हुए कहा, “कैसी चाँद सी सुन्दर, कैसी फूल सी नाज़ुक बहू लाया है मेरे लिए! कैसी गुणवती लड़की! मेरी सुमन से बेहतर बीवी तेरे लिए कोई और हो ही नहीं सकती!”

“ओह अम्मा! तो तुमको भी मेरी पसंद, पसंद आई?” सुनील ने राहत की साँस लेते हुए कहा।

थी तो यह एक्टिंग ही, लेकिन सुमन को अच्छा लगेगा, यह सोच कर सुनील ने मौके पर चौका मारा।

“बहुत पसंद आई, रे! बहुत बहुत पसंद! सबसे ज्यादा पसंद! तूने मुझे आज वो ख़ुशी दी है कि मैं तुझे बता नहीं सकती! सच में... तेरी किस्मत खुल गई है बेटा! तुझको अभी तक नहीं मालूम कि तू कितना भाग्यशाली है... जब बहू के शुभ-चरण तेरे जीवन में पड़ेंगे, तो देखना... तेरा जीवन कितनी सारी ख़ुशियों से भर जाएगा!” काजल भावातिरेक में बड़बड़ाए जा रही थी।

हम दोनों परिवारों का सात सालों से चल रहा साथ, आज रिश्तेदारी में बदल गया था। आज हम दोनों परिवार एक हो गए थे, और एक दिशा में हमारी गति प्रवाहित होने लगी थी।

“हाँ अम्मा! कुछ कुछ तो समझ में आ रहा है! मेरा भाग्य तेज तो है!” सुनील अपनी अम्मा की बात पर ख़ुशी से मुस्कुराया।

माँ शर्मा कर खुद ही में सिमट गईं।

“तेज नहीं पुत्र, बहुत तेज है! मैंने तुझे न कहा था? जिस तरह की लड़की तुझे चाहिए थी, उस तरह की तो केवल एक ही लड़की देखी है मैंने अभी तक! और मुझे बहुत खुशी है, कि तुझको वो ही लड़की मिल गई।” काजल ने मुस्कुराते हुए पहले भी कही हुई बात दोहराई।

“थैंक यू, अम्मा।”

माँ को समझ नहीं आ रहा था कि वो दोनों आपस में क्या बातें कर रहे हैं। काजल ने उनको समझाया कि सुनील जब उनसे अपनी वांछित पत्नी के गुणों का वर्णन कर रहा था, तो उसके आधार पर उसके दिमाग में केवल एक ही लड़की का चित्र खिंचा - और वो चित्र था माँ का! काजल के अनुसार उसने अपने पूरे जीवन में केवल एक ऐसी लड़की को देखा था जिसमें वो सभी गुण थे, और उसको यह जानकर मन ही मन बहुत ख़ुशी मिली कि उसका बेटा सुमन को चाहता है। यह जानने के बाद से काजल रोज़ भगवान से प्रार्थना करती कि जल्दी ही सुनील सुमन को प्रोपोज़ कर दे, और सुमन उस प्रपोजल को मान ले! और आज वो बहुत खुश है कि सुमन अब उसकी बहू है!

काजल ने कहा, “सुमन... मेरी पूता, भगवान जी ने हम दोनो का संबंध हमेश ही माँ-बेटी वाला ही सोच के रखा था... अब देख, मैं तेरी अम्मा हूँ न, तो तुझे अपना प्रेम, अपना आशीर्वाद देना मेरा अधिकार भी है, और कर्त्तव्य भी।”

कल तो चोरी छुपे काजल ने माँ को अपना दूध पिलाने की चेष्टा करी थी, और माँ चोरी छुपे ही माँ ने भी उसका दूध पीने की चेष्टा करी थी। लेकिन आज जब दोनों का सम्बन्ध पुख़्ता हो गया था, तो चोरी छुपे तरीके से कुछ भी करने की ज़रुरत नहीं थी।

काजल अपने ब्लाउज को खोलते हुए और अपने स्तनों को बाहर निकालते हुए बोली, “इसलिए, इधर आ मेरी बच्ची, अपनी माँ का दूध पी कर उसका आशीर्वाद ले ले, और मुझे अपनी माँ होने का सुख दे दे…”

यह कितना अद्भुत रोल रिवर्सल था! अभी कुछ दिनों पहले ही काजल ने माँ का स्तनपान किया था। काजल को अंदेशा था और उम्मीद भी थी कि बस कुछ ही दिनों में उन दोनों के बीच का रिश्ता बदल जाएगा। वैसा होने से पहले वो आखिरी बार माँ को ‘अपनी माँ’ जैसा सम्मान देना चाहती थी। आज वही रोल बदल गया। अब तो वो वाकई माँ की ‘अम्मा’ हो गई थी! कैसी अद्भुत सी बात है न!

काजल के ममता भरे प्यार पर सुनील मुस्कुराया। वो पिछले कई दिनों से सोच रहा था कि सुमन अपनी पत्नी बनाने के प्रस्ताव पर उसकी अम्मा का कैसा रवैया रहेगा! वो मानेगी भी या नहीं! लेकिन यहाँ तो अम्मा ही सुमन को अपनी दोनों बाहें फैलाए अपनी बहू, अपनी बेटी बनाने के लिए तत्पर है! स्पष्ट रूप से उसको चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। अब बस एक ही बात की चिंता थी - क्या भैया (मुझ) को उनके रिश्ते पर कोई आपत्ति होगी?

उधर माँ भी काजल के असीम प्रेम प्रदर्शन पर आश्चर्यचकित थीं! बस कुछ ही देर पहले तो उनको लग रहा था कि काजल ने उनको अपने बेटे की पत्नी बनाने से इंकार कर दिया। लेकिन वो सब उसका खेल था। काजल माँ को, एक माता वाला परम आशीर्वाद दे रही थी, और उसने कृतज्ञतापूर्वक उस आशीर्वाद को स्वीकार भी कर लिया। सुनील, लतिका, और आभा के बाद अब मेरी माँ को भी काजल की संतान होने का सौभाग्य मिला गया था। माँ को कल काजल के सीने से लग कर ऐसा सुख मिला था जिससे अब वो वंचित नहीं होना चाहती थीं।

माँ एक छोटी बच्ची की तरह, चहकती हुई काजल की गोदी में सर रख कर लेट गई, और उसके एक स्तन को पीने लगी। कोई दस सेकण्ड बीत गए, और काजल को समझ में आ गया कि उसके स्तनों से अभी तक एक बूँद भी दूध नहीं निकला है।

“ओह मेरी बच्ची... तू तो भूल ही गई है रे दूधू पीना!” काजल ने दुलारते हुए कहा, “बच्चों को पिलाती है, और खुद को कुछ याद नहीं!”

बात तो सच थी - माँ स्तनपान करना तो कब का भूल चुकी थीं। कल इसलिए वो पी सकीं क्योंकि अपने बच्चों को दूध पिलाने की इच्छा से काजल के स्तन दूध से भर गए थे। आज स्थिति सामान्य थी। पिछले कोई तीस सालों में माँ ने केवल स्तनपान कराया था, करा नहीं था! इस अंतराल में उन्होंने बस एक दो बार ही स्तनपान किया था, चाची जी का - वो भी बहुत सालों पहले! खुद उन्होंने लगभग दो वर्ष की होने के बाद कभी भी अपनी माँ का स्तनपान नहीं किया था! अब काजल उनकी नई माँ थी, और उसे अपनी बेटी की तरह प्यार करने को तत्पर थी। माँ ने जिस तरह से इस घर में सभी की माँ बनने की कोशिश करी थी, उससे यह बहुत बड़ा बदलाव था। वो अब किसी और की बेटी थी। अच्छी बात यह है, कि उन्होंने इस बदलाव का स्वागत किया और काजल के अमृत को पीने का आनंद ले रही थी। लेकिन जाहिर सी बात है, वो शायद ठीक से नहीं कर पा रही थीं।

“कोई बात नहीं मेरी पूता,” काजल ने माँ को दुलारते हुए कहा, “भूल गई तो क्या हुआ... तेरी माँ है न, तुझे सब याद दिलाने के लिए?” काजल ने अपने हाथ से पकड़ कर अपने स्तन के अग्र भाग को थोड़ा दबाया, “ये, चूची का थोड़ा सा और हिस्सा अपने मुँह में लो... हाँ... ऐसे ही! हाँ... अब चूसो... हाँ... ऐसे ही! हाँ मेरी बच्ची, ऐसे ही… हाँ… मिला दूध?”

माँ ने काजल के चूचक को मुँह में लिए हुए ही ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“बढ़िया... पी ले… पी ले मेरी पूता! जब तेरा मन हो, मैं पिलाऊंगी तुझे…” काजल ने स्वांत्वना देते हुए माँ को प्रोत्साहित करना जारी रखा, “चार बच्चे हैं अब मेरे! आज जा कर मेरा परिवार पूरा हुआ!” काजल बड़बड़ाए जा रही थी कि जैसे खुद ही से बातें कर रही थी।

माँ ने काजल के बताए तरीके से स्तनपान करना जारी रखा। उनको एक लम्बे अर्से के बाद अपनी माँ का अमृत पीने को मिल रहा था, और उस अनुभव के कारण वो कुछ ही देर में बहुत अलग महसूस करने लगीं। माँ खुद को उम्र में छोटी महसूस करने लगीं... जैसे किसी ने उनका बचपना लौटा दिया हो! उनके जीवन ने आज अचानक ही एक पूरी तरह से अलग ही मोड़ ले लिया था, और वो बहुत खुश थीं कि उनके साथ ऐसा हुआ। घर में सबकी वरिष्ठ होना एक ऐसी भूमिका थी जिसका बोझ उन्होंने बहुत लंबे समय ढोया! डैड के गुज़र जाने के बाद यह बोझ और भी भारी हो गया था। उस बोझ से मुक्ति पाकर माँ को राहत मिली थी। इस कनिष्ठ भूमिका में आना बेहद मजेदार था!

“तू भी पिएगा?” काजल ने सुनील से पूछा।

“नहीं अम्मा!” वो मुस्कुराया, “आज आप अपनी बहू को पिलाइए! बाद में हम दोनों को साथ में पिला दीजिएगा!”

“अरे वाह! देखा बहू! ‘अम्मा ये कर दो, वो कर दो’ से अब ये महाशय ‘दीजिएगा’ पर आ गए हैं!” काजल विनोदपूर्वक बोली, “मैंने कहा था न कि तेरे आने से इस नालायक में भी सुधार आ जाएगा!”

माँ क्या कहतीं? वो अपनी माँ का स्तनपान करने का लोभ-संवरण न कर सकीं। लेकिन शर्म से उनके गाल लाल हो गए। उधर सुनील खिलखिला कर हँसने लगा।

कुछ देर की शांति के बाद काजल माँ के ‘साधारण’ कपड़ों की शिकायत करते हुए बोली, “बहूरानी, ये कैसा सादा सादा कपड़ा पहना हुआ है तूने?” उसने कहा, “तू अब सुहागिन है... सुन्दर सुन्दर, और रंगीन रंगीन कपड़े पहना कर अब! साथ में ख़ूब ढेर सारे ज़ेवर!”

हाँलाकि माँ ने अपने हिसाब से रंगीन साड़ी ही पहनी थी आज, लेकिन काजल की बात भी तो सही थी। एक नई नवेली दुल्हन के हिसाब से, उनका लिबास सादा ही था।

“हाँ अम्मा!” सुनील ने कहा, “मैं भी इनसे यही कह रहा था!”

सुनील की झूठी बात सुन कर माँ को अचानक ही हँसी आ गई। ऐसे मूर्खों की भाँति हँसने के कारण उन्होंने अपना मुँह काजल के स्तनों में छुपा लिया।

“क्या हुआ बेटू?” काजल ने न समझते हुए पूछा, “इतनी हँसी?”

“कुछ नहीं अम्मा,” माँ ने बड़े भोलेपन से कहा, “कुछ ही देर पहले ‘ये’ कह रहे थे, कि मैं भी पुचुकी और मिष्टी के जैसे ही रहा करूँ। और अब आपके सामने कह रहे हैं कि मैं सुन्दर और रंगीन रंगीन कपड़े और ख़ूब ढेर सारे ज़ेवर पहन कर रहूँ!”

“हाँ ठीक ही तो कह रहा है! दोनों बातें ठीक हैं। तू मेरी बच्ची भी है, तो मेरी दोनों बच्चियों जैसे रहने में क्या दिक्कत?” काजल ने कहा और माँ की साड़ी उतारने लगी, “और मेरी बहू भी है, तो गहने ज़ेवर पहन कर रहने में क्या दिक्कत?”

माँ ने तब कुछ नहीं कहा, लेकिन साड़ी उतारने के बाद, जब उसने माँ का ब्लाउज उतारना शुरू किया, तो माँ ने उसका स्तन चूसना बंद कर के पूछा, “अम्मा?”

“अरे, तू दुद्धू पीने पर ध्यान दे न... तेरे ये फीके फीके कपड़े उतार कर मैं तुझे दुल्हन की तरह सजाऊँगी आज! तू दूध पी बिटिया रानी।”

यह कोई अनहोनी नहीं थी; अभी कल ही काजल ने माँ के कपड़े व्यवस्थित किये थे। काजल ने प्यार से माँ के कपड़े उतारना जारी रखा। सुनील बड़े मजे से सारा एक्शन देख रहा था। काजल अब वैसा ही व्यवहार कर रही थी जैसा पहले अक्सर माँ हम सबके साथ किया करती थीं। लेकिन यह बदलाव, एक अच्छा बदलाव था। काजल शायद माँ को यह एहसास दिलाना चाहती थी कि माँ अब उसके घर की बहू है - उसकी बेटी है! एक प्यारी सी, छोटी सी बच्ची के जैसे स्वच्छंद हो कर फुदकना, हँसना, खेलना, कूदना - बस अब यही उनका काम होना चाहिए था! और अपने प्रयास में वो काफ़ी सफल भी हो रही थी। माँ कुछ ही देर में बड़े उत्साह के साथ काजल के स्तनों का आस्वादन करने लगी।

“तू खड़ा खड़ा क्या कर रहा है?”

“तो क्या करूँ, अम्मा?”

“इधर आ!”

तब तक माँ केवल अपनी पेटीकोट में हो गई थीं। जब वो काजल के करीब पहुँचा, तो काजल ने माँ का हाथ सुनील के हाथ में दे दिया, और इस नए जोड़े को आशीर्वाद देते हुए कहा, “तुम दोनों हमेशा खूब खुश रहो... स्वस्थ रहो... सुखी रहो... और जल्दी से मुझे एक सुन्दर से पोते या पोती का मुँह दिखा दो!”

“बहुत जल्दी, अम्मा... बहुत जल्दी!” सुनील ने हँसते हुए वायदा किया।

माँ शर्म से लाल हो गई, और उन्होंने अपना चेहरा काजल की छाती में छुपा लिया। यह अलग बात थी कि माँ अब लगभग नग्न काजल की गोद में बैठी थी। काजल भी माँ के भोलेपन और लड़कपन पर प्यार से मुस्कुराये बिना न रह सकी।

“हाँ! जल्दी जल्दी कर लेना बच्चे! फिर जितना मन करे, रोमांस कर लेना!” काजल मज़े लेते हुए बोली, “पूरी उम्र रोमांस कर लेना!”

अम्मा!” इस बार माँ से रहा नहीं गया। काजल के स्नेह और दुलार से आनंद तो उनको बहुत मिल रहा था, लेकिन फिर भी शर्म तो थी ही उनके अंदर।

“कोई अम्मा वम्मा नहीं। मेरे कितने सारे अरमान हैं... सब पूरे करूँगी।” फिर सुनील की तरफ मुखातिब होते हुए, “सुनील बेटा जाओ और सब खाना जल्दी से लंच को टेबल पर सजा दो। मैं तो आज अपनी बहू को अपने हाथ से खाना खिलाऊँगी, और फिर उसको दुल्हन की तरह सजाऊँगी!”

“क्यों अम्मा?” सुनील और माँ दोनों ही एक साथ बोल पड़े।

“अरे! आज का दिन तो बहुत स्पेशल है!” काजल ने जैसे कोई राज़ खोलते हुए कहा, “आज तुम दोनों की सगाई करेंगे हम!”

“क्या?” सुनील और माँ फिर से एक साथ बोल पड़े, “इतनी जल्दी!”

“और नहीं तो क्या! जब तुम दोनों ने एक दूसरे को पसंद कर ही लिया है, तो क्यों न तुम दोनों की झट मँगनी पट ब्याह कर दी जाए?” काजल ने मौका का आनंद लेते हुए कहा!

जब दोनों ने ही कुछ नहीं कहा तो काजल बोली, “सुनील - क्यों रे? आईडिया अच्छा नहीं लगा?”

“बहुत अच्छा लगा, अम्मा! बहुत अच्छा!”

“और बहू तुमको?” काजल ने माँ के पेटीकोट का नाड़ा खोलते हुए कहा।

माँ ने कुछ कहा नहीं - बस शरमा कर उन्होंने अपना चेहरा अपनी हथेलियों से छुपा लिया।

“बहुत बढ़िया मेरे बच्चों! बहुत बढ़िया! आज तुम दोनों ने मुझे खुश कर दिया!” काजल प्रफुल्लित होते हुए बोली, “आज से अधिक ख़ुशी मुझे पहली बार माँ बनते समय भी नहीं मिली! जुग जुग जियो मेरे बच्चों! जुग जुग जियो!”

माँ का चेहरा कोई देख न सका - लेकिन हथेलियों के पीछे तो वो भी मुस्कुरा रही थीं। सुनील की ख़ुशी का हाल बयाँ करना असंभव था - उसके चेहरे की ख़ुशी बता रही थी, कि कुछ देर अगर वो ऐसे ही मुस्कुराता रहा, तो उसका जबड़ा दर्द करने लगेगा!

‘कम से कम अम्मा की तरफ़ से कोई दिक्कत नहीं हुई! अब बस भैया का देखना है!’ सुनील ने सोचा, और कमरे से चला गया।
 

avsji

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अंतराल - विपर्यय - Update #11


सुनील के जाने पर काजल ने माँ की पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसको नीचे की तरफ़ सरका दिया। माँ अब काजल के सामने पूरी तरह से नंगी हो गईं। माँ की योनि के आकार में थोड़ा अंतर तो आ गया था - इतने लम्बे समय के बाद सम्भोग करने के कारण वहाँ थोड़ी सूजन आ गई थी, और थोड़ी लालिमा भी। साथ ही साथ उनकी योनिमुख के आस पास थोड़ा गीलापन भी था। अपनी सहेली की शारीरिक बनावट को काजल ने अंतरंगता से जाना था, इसलिए उसने वो अंतर तुरंत देख लिया।

‘मतलब सेक्स हुआ है!’ काजल ने मन ही मन सोचा, ‘सुनील सच कह रहा था!’ और प्रत्यक्षतः मुस्कुरा उठी।

लेकिन उसने माँ को इस बात के लिए छेड़ा नहीं, और ऐसा दिखाया कि जैसे वो माँ और सुनील की अंतरंगता के बारे में अनभिज्ञ है। लेकिन उसके मन में ख़याल भी था कि अगर दोनों में सेक्स हो गया है, तो दोनों की शादी जल्दी से जल्दी कर देनी चाहिए। बेहतर तो यही होगा कि सुनील जब अपने नए काम पर जाए, तो बहू को साथ ही में लेता जाए।

“हाय भगवान्! मेरी बिटिया को मेरी ही नज़र न लग जाय!”

“अम्मा!” माँ शरमाते हुए शिकायत करी।

“अरे क्या अम्मा? सच ही तो कह रही हूँ! तू कितनी सुन्दर है, तुझे इस बात का कोई ज्ञान भी है?” काजल ने नज़र भर के माँ को देखा, और कहा, “तेरा हर अंग सोना है सोना!” उसने सुनील की कही हुई बात दोहराई, “दूध पी ले, फिर चल... हम सब साथ बैठ कर खाना खा लेते हैं... आज तो मैं तुझे अपने हाथों से खिलाऊँगी खाना! हाँ नहीं हो! और फिर मैं अपनी बहू को दुल्हन की तरह सजाऊंगी मँगनी के लिए!”

“लेकिन अम्मा, ऐसे?” माँ ने हैरत से कहा, “नंगी नंगी जाऊँगी वहाँ?”

“हाँ! तो? क्या हुआ? तेरा रूप अब किसी से छुपने छुपाने जैसा क्या चाहिए? तू अब मेरे घर की बहू है... मतलब मेरी बेटी है तू। तो जैसी मेरी पुचुकी है, जैसी मेरी मिष्टी है, वैसी ही मेरी तू! और अपनी इस बेटी को भी मैं अपनी दोनों बेटियों जैसे ही पालूँगी!” काजल पहले तो बड़े अधिकार और बड़े लाड़ से बोली।

“लेकिन अम्मा!”

“अरे लेकिन वेकिन क्या? तू तो मेरी पुचुकी से भी छोटी है! मेरी छोटी बिटिया है तू!” काजल ने माँ को अपनी गोदी में दूसरी तरफ़ बैठने का इशारा किया, “ये स्तन खाली हो गया है, दूसरा वाला पी ले अब!”

माँ भी उसकी बात मान कर उसकी गोदी में दूसरी तरफ पुनर्व्यवस्थित हो गईं, “अरे, उससे छोटी कैसे हुई मैं?” माँ ने छोटे बच्चों की ही तरह ठुनकते हुए कहा, “उसकी तो मैं भाभी हूँ! भाभी मतलब माँ!”

“हाँ, तू उसकी भाभी है! लेकिन भाभी अपने देवर की माँ होती है! ननद की नहीं। अपनी ननद से तो वो पद में छोटी होती है। तभी तो बड़ी होने के बावज़ूद वो उसके पैर छूती है!”

हाँ - हमारे तरफ़ तो यही चलन है। काजल को यह बात मालूम थी। माँ न जाने कैसे भूल गईं।

“ओह्हो! घाटे का सौदा हो रहा है ये तो!” माँ ने बनावटी दुःख से कहा।

“होने दे! हमारे को तो फायदे ही फायदे हैं! और तू चिंता न कर! ये सब हमारे में नहीं होता। पुचुकी को तू अपनी बेटी मानती है, तो वो वैसी ही रहेगी तेरे लिए। पर हाँ, आज तुम दोनों की मँगनी कर दूँ, फिर तो मेरा पूरा हक़ है तुम पर!”

काजल की बात पर माँ का गला भर आया, “तुम्हारा मुझ पर सबसे बड़ा अधिकार है अम्मा!” माँ ने पूरी निष्कपटता से कहा, “तुमने मुझे वो सुख दिए हैं जिनकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी! घाटे वाली बात मैंने मज़ाक में कही थी अम्मा! मुझे तो सिर्फ़ नफ़ा ही नफ़ा है! अपनी माँ का प्यार मिले, अपनी माँ का दूध पिए एक मुद्दत हो गई... अब वो भी मिल गया मुझे!”

“मेरे दूध पर तेरा हक़ है बेटू!” काजल मुस्कुराई, “मुझे भी तो तेरी माँ बनने का सुख मिला है न! तुझे हमेशा के लिए अपने परिवार में शामिल करने का सुख मिला है न! बस, अब और इमोशनल मत हो! पी ले!”

माँ दूसरे वाले स्तन को पीने लगीं। काजल बड़े प्यार से माँ को सहलाते पुचकारते अपना दूध पिलाती रही। फिर अचानक ही वो किसी बात पर मुस्कुरा दी।

“क्या सोच रही हो अम्मा?”

“सोच रही थी कि जल्दी ही तेरी भी कोख भर जाएगी। तेरी भी गोद में एक नन्हा मुन्ना आ जाएगा! तुझको भी दूध आने लगेगा!”

“तब तुम भी मेरा दूध पी लेना?”

“चल! कभी माँ भी अपनी बेटी का दूध पीती है? अब तो मैं ही पिलाऊँगी तुझे हमेशा! जब तक आएगा इनमें दूध!”

“अम्मा!”

“चल, जल्दी से पी लो। फिर खाना खा लेते हैं!”

“पी लिया अम्मा! अब कपड़े पहन लूँ?” माँ ने शरारती अंदाज़ में कहा, लेकिन फिर भी उसका चूचक नहीं छोड़ा।

माँ जिस भूमिका में आ गई थीं, अब उस भूमिका को जीने में उनको आनंद आने लग गया था। सच में - स्वच्छंद रूप से जीने में क्या आनंद आएगा! वो आनंद, जो भूतकाल की बात हो गई थी उनके लिए!

“अरे! इतना समझाया फिर भी!” काजल बोली और फिर दबी हुई, षड़यंत्रकारी आवाज़ में आगे बोली, “ज़रा अपने ‘जानू’ को भी तो अपना जलवा देखने दे! तुझे यूँ पूरी नंगी देख लेगा न, तो उसका पूरा भूगोल ही बिगड़ जायेगा!”

इस बात पर दोनों खिलखिला कर हँसने लगीं।

लेकिन माँ ने काजल को यह नहीं बताया कि सुनील का भूगोल जब बिगड़ेगा तब बिगड़ेगा, फिलहाल तो उनका ही भूगोल बिगड़ गया है। ठीक है कि पशम के कारण उनके भगोष्ठों की सूजन छुप गई थी - लेकिन चाल में अंतर तो आ ही गया था।

“अम्मा,” माँ ने शर्माते हुए कहा, “आपसे एक बात कहूँ?”

“हाँ बेटू, बोल न?”

“जी वो... वो... क्या है कि...” माँ ने झिझकते हुए कहा, “वो... हम दोनों... न... हम दोनों... एक... मेरा मतलब... हम दोनों एक हो गए हैं!”

“तुम कहना चाहती हो कि तुम दोनों ने सेक्स किया है?”

काजल की बात पर माँ के गाल लाल हो गए। उन्होंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“बहुत अच्छा! आई ऍम सो हैप्पी टू हीयर दिस!” काजल ने कहा और उनके मुँह को चूम लिया, “हस्बैंड वाइफ सेक्स नहीं करेंगे, तो और कौन करेगा?”

“आपको बुरा नहीं लगा?”

“अरे बुरा क्यों लगेगा? मैं तो चाहती ही हूँ कि तुम दोनों खूब सेक्स करो। खूब मज़े करो।” काजल ने कहा, “तुमको मैं बोल ही रही थी कि जवान शरीर की ज़रूरतें होती हैं! इसीलिए तो मैं चाहती हूँ कि तुम दोनों की शादी जल्दी से हो जाए! उसके बाद बिना डरे खूब सेक्स करो।”

माँ शर्म से कसमसाईं।

“अच्छा एक बात बता,” काजल ने पूछा, “सुनील ने तुझे सुख तो दिया न बेटा? तू सम्भोग के दौरान आई तो है न?”

अब ऐसे प्रश्नों के उत्तर कैसे दिए जाएँ! लेकिन काजल सहेली भी तो है!

“ओह अम्मा, बहुत सुख मिला।” माँ ने बताया - उनको संकोच हो रहा था, लेकिन फिर भी अपनी सहेली से यह गुप्त बात साझा किये बगैर न रह सकीं, “इन्होने दो बार... किया!”

“अरे हाँ! जितनी बार भी करे! तुझे आनंद मिला या नहीं?”

“वही तो बता रही हूँ अम्मा! दोनों बार मुझे ऐसा आनंद मिला, कि कैसे बताऊँ!” वो अनुभव याद कर के माँ को लज्जा आने लगी, “चार बार!” माँ लजाते हुए दबी आवाज़ में बोलीं, “ऐसा पहली बार हुआ! ... पहले कभी नहीं हुआ! न जाने कहाँ कहाँ से बदमाशियाँ सीख सीख कर आए हैं, और मुझ पर आज़मा रहे हैं!” माँ ने विनोदपूर्वक शिकायत करी।

“क्या? मतलब दूसरी औरत?” काजल का पारा अचानक ही चढ़ने लगा। उसको लगा कि सुनील ने उससे झूठ कहा था। ऐसी बातों में काजल को झूठ बर्दाश्त नहीं था। उसको एक लम्पट पति मिल चुका था। सुमन के लिए वैसा ही लम्पट नहीं चाहिए था उसको।

“नहीं अम्मा! ऐसे मत सोचो। कह रहे थे कि इंटरनेट पर देखा और वहीं से सीखा है। और मुझे उन पर विश्वास है!”

“हम्म्म! ठीक है फिर!” काजल को यह जान कर राहत हुई, “कहीं से तो सीखना ही पड़ेगा न! और उसको जो न आता हो, वो तू उसको सिखा देना! ठीक है?”

माँ मुस्कुरा दीं।

“चलें अब?”

“अम्मा, मैं पुचुकी और ‘इनके’ सामने ऐसे नंगी जाऊँगी, तो मुझे बहुत शर्म आएगी!” माँ अभी भी काजल का स्तन नहीं छोड़ रही थीं।

“देख बहू, मैं तो तेरे ‘उनको’ भी नंगा कर दूँगी! मेरे चारों बच्चे मुझे आज बिना किसी कपड़ों के चाहिए खाने की टेबल पर!”

उतने में कमरे में लतिका ने प्रवेश किया - बहुत देर से उसने घर के ‘बड़ों’ को नहीं देखा था, इसलिए वो उत्सुकतावश माँ के कमरे में चली आई। अपनी मम्मा को अपनी अम्मा की गोद में लेटी और उनके स्तन से दूध पीती हुई देख कर उसको बहुत ख़ुशी मिली। कल अम्मा चोरी छुपे उनको दुद्धू पिला रही थीं, और आज खुलेआम! मतलब, मम्मा और दादा ने अपने रिलेशनशिप के बारे में अम्मा को बता दिया था। वाओ!

“मम्मा!” उसने उत्साह से कहा, “आप अम्मा का दुद्धू पी रही हैं?!”

मज़े की बात यह कि उसने इस बात पर आश्चर्य नहीं दिखाया कि उसकी मम्मा पूरी तरह से नग्न थीं। माँ को कल की याद हो आई। माँ उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दे सकीं - वो बस शर्मा कर रह गईं।

“पुचुकी बेटा, इधर आ जा!” काजल बोली; उधर माँ काजल के सीने में अपना मुँह छुपा कर शर्म से गड़ गईं, “देख बेटू, मैं तुमको एक बहुत ज़रूरी बात बताने जा रही हूँ!”

काजल को मालूम था कि लतिका भी सब जानती है, लेकिन आधिकारिक रूप पर सुनील और सुमन के सम्बन्ध के बारे में सभी को बताना अनिवार्य था।

“क्या अम्मा?” लतिका ने बेहद उत्सुकतावश पूछा!

“जैसे तू मेरी बेटी है न, वैसे ही तेरी मम्मा भी मेरी बेटी हैं अब!”

“आपकी बेटी? लेकिन अम्मा, आप तो मम्मा को अपनी दीदी मानती हैं न?”

“मानती थी बेटा! लेकिन आज हम दोनों के बीच कुछ बदल गया है - आज से तेरी मम्मा तेरी बोऊ-दी हो गई हैं!”

“व्हाट! व्हाट? मम्मा!” लतिका ख़ुशी से लगभग चीख पड़ी, “मम्मा मेरी बोऊ-दी हो गई हैं! ओह फाइनली!! ओह गॉड! आई ऍम सो हैप्पी!” और माँ से लिपट गई।

आई ऍम वेरी हैप्पी टू माय बेबी!” माँ ने शर्म से हँसते हुए कहा!

“मम्मा मेरे दादा की वाइफ बनेंगी! वाओ!”

“हाँ बेटू, इसलिए अब से इनको मम्मा नहीं, बोऊ-दी कह कर बुलाया करो!” काजल ने हँसते हुए लतिका को समझाया!

“ओह हाँ! बोऊ-दी! बोऊ-दी!” लतिका ने माँ को और भी ज़ोर से अपने आलिंगन में भरते हुए कहा, “आई ऍम सो हैप्पी!”

“लेकिन बेटू, तुम अभी अमर अंकल को ये सब मत बताना! उनको सरप्राइज देंगे आज! ठीक है?” काजल भी लतिका की प्रतिक्रिया पर मुस्कुराए बिना न रह सकी।

लतिका ने उत्साहपूर्वक ‘न’ और ‘हाँ’ में सर हिलाया। उसके सामने यह बहुत रोमाँचक सी बात हो रही थी!

“लेकिन अम्मा, मम्मा - ओह सॉरी - आई मीन, बोऊ-दी नंगू नंगू क्यों हैं?”

“मेरी लाडो, तू भी तो नंगू नंगू है! तू मेरी बच्ची है न, इसलिए तू हमारे सामने नंगू नंगू रह सकती है। और अब तो तेरी बोऊ-दी भी मेरी बेटी है, इसलिए वो भी मेरे सामने नंगू नंगू रह सकती हैं!” काजल ने लतिका को समझाया, “जैसे तू मेरी बच्ची, वैसे ये भी मेरी बच्ची! जैसे तू रहती है, वैसे ही ये भी रहेगी अब से! कपड़े पहनेगी तो रंग-बिरंगे, नहीं तो नंगू नंगू ही रहेगी! लेकिन हाँ, ये जेवर सारे पहनेगी - चूड़ियाँ, मंगलसूत्र, पायल, अंगूठियाँ, करधन, बिछिया, झुमका, नथ, बिंदी और सिन्दूर! सुहागिनों वाला पूरा श्रृंगार कर के रहेगी!”

“ओह?”

“हाँ! ये अब से सुहागिन है न!”

“ओके!” लतिका को न जाने क्या समझ में आया।

“लेकिन तेरे और मिष्टी के साथ खेलने पर इनको कोई रोक टोक नहीं है!”

लतिका की मुस्कान खिल गई!

“ओके!” उसने अपने दाँत निपोरते हुए कहा।

फिर कुछ सोच कर, “अम्मा, क्या मैं अभी भी बोऊ-दी का दुद्धू पी सकती हूँ?”

“बोलो बहू?” काजल ने माँ से पूछा!

“हाँ मेरी बेटू! तुम हमेशा मेरा दुद्धू पी सकती हो!” माँ ने कहा और लतिका के होंठों को चूमा, “मेरे दुद्धूओं पर मेरे बच्चों का सबसे पहला अधिकार है!” माँ ने मिठास लिए कहा।

“और तो और, अब तो जल्दी ही इनके दुद्धूओं में भी मीठा मीठा दूध आ जाएगा!” काजल ने रहयोद्घाटन किया।

माँ उस बात पर शर्म से लाल हो गईं - भविष्य के कोमल सपनों की प्रत्याशा की लालिमा उनके पूरे शरीर में फ़ैल गई।

आई नो अम्मा! जब दादा और मम्मा - ओह आई मीन, बोऊ-दी के बच्चे होंगे, तो बोऊ-दी को दूध आने लगेगा!” लतिका ने प्रसन्न हो कर अपने ज्ञान का बखान कर दिया।

माँ कुछ न बोलीं, बस लतिका को अपने में समेट कर मुस्कुरा भर दीं।

“अच्छा चलो चलो,” काजल अंदर ही अंदर प्रसन्न होते हुए बोली, “भाभी-ननद खूब प्यार करते रहना! लेकिन अभी खाना खा लेते हैं न? बहू ने इतना बढ़िया खाना पकाया है आज, और इतनी अच्छी खबर सुन कर मुझे भूख भी खूब ज़ोरों की लग गई है!”

माँ काजल की बात पर बहुत खुश होते हुए लतिका से बोलीं, “चल बेटू, खाना खाने के लिए तैयार हो जा!”

लतिका फुदकते हुए कमरे से बाहर चली गई।

“तू भी चल बहूरानी!”

माँ के कमरे से बाहर सुनील, आभा और लतिका के चहकने हँसने की आवाज़ें आ रही थीं। उनकी आवाज़ सुन कर माँ काजल के पीछे छुप गईं।

“अरे क्या हो गया?” काजल ने हँसते हुए पूछा।

“अम्मा, मैं ‘उनके’ सामने ऐसे नहीं जाऊँगी!” माँ ने किसी छोटी बच्ची के ही जैसे ठुनकते हुए कहा।

“अरे मेरी लाडो,” काजल ने - जैसे छोटे बच्चों को समझाया जाता है वैसे ही - माँ को समझाते हुए कहा, “अगर तू अपने ‘उनके’ सामने नंगी नहीं होगी, तो तेरे पेट में उसका बच्चा कैसे आएगा?”

“वो सब मुझे नहीं मालूम!” माँ अभी भी ठुनकते हुए बोलीं, “अम्मा, मुझे ऐसे न जाने दो उनके सामने!”

“लेकिन वो हस्बैंड है तेरा मेरी बच्ची!”

“नहीं अम्मा!”

“नहीं है?” काजल ने माँ की टाँग खींची।

“अरे मैं वो नहीं कह रही हूँ!” माँ अपनी ही बात पर झेंपते हुए बोलीं, “वो तो मेरे हैं!”

माँ ने इतने प्यारे तरीके से ये बात कही कि काजल का दिल भी लरज गया, “बिटिया मेरी, मैं उसको भी नंगा रहने को कह दूँगी!”

“हाआआ!” माँ ने अपने खुले हुए मुँह पर हाथ रख कर कहा।

“अब ठीक है?”

“अम्मा, कम से कम कच्छी तो पहनने दो?”

“बिलकुल भी नहीं - अब से तू वो जाँघिया जैसी कच्छियाँ कभी नहीं पहनेगी!” काजल ने हँस कर माँ को मना किया, “उसको पहन कर मेरी सुन्दर सी बिटिया किसी दादी अम्मा जैसी लगती है! उससे अच्छा है कि तू नंगी रह!”

“अम्मा!” माँ ने फिर से अनुनय विनय करी, “मुझे बहुत शर्म आएगी!”

“तो आने दे!” काजल ने फिर से अनसुना कर दिया, “मेरी पुचुकी और मिष्टी को तो नहीं आती शरम! तू क्यों शर्माएगी? तू उनसे कोई अलग है?”

“मैं उनसे बड़ी हूँ न अम्मा!”

“अभी अभी मेरा दूध पिया है कि नहीं?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया। वो सच में छोटी बच्ची ही बन गई थीं।

“तो फिर कोई बड़ी वड़ी नहीं है तू! मैं जैसा कहूँ, वैसा ही कर!”

“मिष्टी की तो दादी हूँ न!” माँ जैसे मोल-भाव पर आ गईं।

“अभी तू किसी की कोई दादी वादी नहीं है! अभी तू केवल मेरी बेटी, मेरी बहू है! बस!”

“ओह्हो! अम्मा!”

“चल अब! देर हो रही है खाने को!”

काजल ने कहा, और माँ के साथ डाइनिंग हॉल में आ जाती है। माँ काजल के पीछे पीछे चल रही थीं - लगभग छुपी हुई! काजल ने माँ को स्तनपान कराने के बाद ब्लाउज पहनने की जहमत नहीं उठाई। लिहाज़ा वो स्वयं भी केवल साड़ी और पेटीकोट पहने हुए डाइनिंग हॉल में आई।

“आओ बहू, बैठो!”

कह कर काजल ने माँ का हाथ पकड़ कर, अपने पीछे से, अपने आगे ला खड़ा किया! कुछ स्त्रियों की नैसर्गिक सुंदरता ऐसी होती है कि उनके बारे में कविताएँ, शायरियाँ, ग़ज़लें, और नज़्में लिखी जा सकती हैं! माँ भी नैसर्गिक रूप से इतनी सुन्दर थीं कि क्या कहें! गैबी का सौंदर्य भी वैसा ही था और देवयानी का भी! काजल भी बड़ी सुन्दर थी - लेकिन वो अपनी सुंदरता सही तरह से सम्हाल नहीं रही थी। माँ के शरीर पर इस समय केवल एक ही प्रदर्शित आभूषण था - उनकी माँग में सजा हुआ नारंगी रंग का सिन्दूर! इनकी नाक और कान की कील इतनी छोटी थी, कि उनकी उपस्थिति ही दिख रही थी।

खैर, केवल वही आभूषण धारण किये हुए माँ की नग्न सुंदरता देख कर सुनील की बोलती कुछ क्षणों के लिए बंद हो गई। उनके मिलन के पहले माँ बड़ी सुन्दर लग रही थीं, लेकिन इस समय उनकी सुंदरता न जाने कैसे कई गुणा बढ़ गई थी! शायद पुरुष हॉर्मोन का प्रभाव हो! या फिर सम्भोग के उपरांत के सुख की लाली! या कुछ और! या इन सभी बातों का मिला-जुला प्रभाव!

लतिका और आभा ने तो खैर माँ को नंगा देखा ही था। उनको इस बात में कुछ अलग नहीं लगा। बच्चों में वयस्कों जैसी संवेद्यता नहीं होती है। हम वयस्क अपने ही बनाये हुए नियमों और कायदों में जकड़े रहते हैं। बच्चे तो बस इसी बात से खुश रहे हैं कि सभी लोग उनके साथ में हों, और खुश रहें।

उधर काजल सुनील पर सुमन के सौंदर्य का ऐसा प्रभाव देख कर हँसने लगी, और बोली, “सुनील बेटे, चल तू भी बाकी बच्चों जैसा ही हो जा!”

“अम्मा?”

“सुना नहीं क्या? मैंने कहा न, कि मुझे अपने सारे बच्चे एक जैसे चाहिए! तो बस!” काजल ने कहा, “और... अपने नुनु पर कण्ट्रोल रखना! बच्चे भी हैं यहाँ - मैं नहीं चाहती कि वो डर जाएँ!”

सुनील कुछ पल तो झिझका, लेकिन काजल की प्यार भरी उलहनाएँ सुन कर मान गया। कुछ ही देर में काजल के चारों बच्चे पूर्ण रूपेण नग्न थे और खाने की टेबल पर आस पास बैठे हुए थे। माँ और सुनील को अगल बगल ही बैठाया गया था। लतिका ने अपने दादा को छोटेपन में नग्न देखा था। कई बार या तो मम्मा (ओह सॉरी, बोऊ-दी) या फिर अम्मा उसको और उसके दादा को साथ में ही नहला देती थीं। लेकिन पिछले तीन सालों से वो बंद हो गया था। अब सुनील ही उसको और मिष्टी को नहलाता था - बस कभी कभार ही उनके साथ नहा लेता था। अपने दादा का पिल्लू जैसा नुनु उसको फनी लगता था। आभा को खैर अभी इन सब बातों का कोई ज्ञान नहीं था।

सभी ने एक बहुत ही खुशहाल परिवार की तरह एक साथ लंच किया। काजल बात बात पर हँस रही थी। सभी हंसी मज़ाक कर रहे थे; चुटकुले सुना रहे थे। सुनील खुश ज़रूर था, लेकिन माँ के बगल बैठे हुए और उनकी नग्न सुंदरता का आस्वादन करते हुए, वास्तव में उसका भूगोल बिगड़ गया था। वो रह रह कर अपने ‘नुनु’ को व्यवस्थित कर रहा था, कि अपनी अम्मा और दोनों बच्चों के सामने बेइज़्ज़ती न हो जाए। माँ भी हँस और मुस्करा रही थी, लेकिन उनको शर्म भी बहुत आ रही थी।

अपने वायदे के मुताबिक, माँ को खाना आज काजल ने अपने हाथों से खिलाया। लेकिन यह सब कुछ इतना रोमांचक था कि उन्होंने बस किसी तरह से अपना लंच खत्म किया। खाना स्वादिष्ट था, लेकिन माँ को थोड़ा अलग लगा। वो बहुत उत्साहित भी थीं, और थोड़ी आशंकित भी। जीवन के इस पड़ाव में पहुँच कर यह सब करना, ऐसा अभूतपूर्व बदलाव लाना, यह सब उनके लिए बहुत नया और अज्ञात था। माँ को समझ नहीं आ रहा था कि मैं - उनका बेटा - इस खबर पर कैसे रिएक्ट करूँगा। यह हमारे और काजल के परिवार के साथ हमारे संबंधों में बड़े पैमाने पर पुनर्समायोजन (re-adjustment) था!

लंच खत्म होने पर, काजल ने कहा, “मिष्टी, पुचुकी - तुम दोनों बच्चों अपने दादा के साथ खेलो और आराम करो! मैं बहू को तैयार करती हूँ! ठीक है?”

“यस दादी!” कह कर आभा फुदक कर अपने दादा की गोदी में आ गई।

काजल ने सुनील को आभा और लतिका की देखभाल करने का निर्देश दिया, और फिर माँ के साथ उनके कमरे में चली गई। वो खुद घर की विभिन्न अलमारियों से रंग-बिरंगी रेशमी साड़ियों, पेटीकोट और मैचिंग ब्लाउज़, और समस्त ज़ेवर निकाल कर वो भी माँ के कमरे में चली गई, और दरवाज़े को अंदर से बंद कर ली।

वो दोनों बहुत देर बाद बाहर आएँगे!

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avsji

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अमर जी
सुमन और सुनील के रिश्ते को जिस तरह आपने परिभाषित किया हे और जिस तरह आपने सुमन के मन में सुनील के लिए झिझक ख़तम की हे वो अद्भुत हे।
किसी पुराने रिश्ते की यादो को ख़तम करना और किसी नए रिश्ते में जुड़ना एक विधवा युवा महिला के लिए काफी मुश्किल होता हे ,ये मुश्किल जब और बढ़ जाती हे तब उसके किशोरावस्था का कोई बच्चा हो।
में इस दौर से गुजर चुकी हु ,मेरी माँ की 18 साल की उम्र में शादी हो गयी थी ,मेरे नानाजी को हार्ट अटैक आया तो उन्होंने अपने एक दोस्त के बेटे यानि मेरे डैड से मॉम की शादी कर दी। शादी के अगले साल में पैदा हो गयी।
मेरे मॉम डैड की सेक्सी लाइफ काफी अच्छी थी ,में इसलिए कह सकती हु की 10 -11 साल की उम्र तक में उनके पास ही सोती थी ,कभी रात को मेरी नींद खुलती तो में उनको सेक्स करते देखती लेकिन नासमझी की वजह ज्यादा समझ नहीं पाती थी।
जब में 18 की थी और मॉम 37 की डैड की एक एक्सीडेण्ट में डेथ हो गई ,मॉम डैड जगह सर्विस मिल गयी [डैड सरकारी जॉब में थे ]मेरे डैड से छोटी 2 बहने थी जिनकी शादी हो गयी थी और एक भाई था जो उनसे 11 साल छोटा था यानि चाचा की उम्र 26 के लगभग थी जिनकी शादी नहीं हुई थी। क्यू की में घर की अकेली बच्ची थी तो चाचा मुझसे बेहद प्यार करते थे
मॉम की शादी के समय चाचा 7 साल के थे मॉम ने उन्हें अपने बच्चे की तरह ही पाला था। कुछ समय बाद रिश्तेदारों की तरफ से मॉम पर दूसरी शादी का दवाब होने लगा लेकिन मॉम तैयार नहीं हुई ,बाद में जब वो तैयार हुई तो उनसे शादी के इच्छुक मुझे अपनाने को मना कर देते ,कुछ ऐसे भी थे जो उनसे शादी मेरी जवानी को देखकर करना चाहते थे।
एक दिन चाचा ने मॉम से कह दिया की वो उनसे शादी करना चाहते हे ,मॉम उनकी बात सुनकर नाराज हो गयी और उन्होंने चाचा को खूब खरी खोटी सुनाई।
मेरी दोनों बुआ भी चाचा से नाराज हो गयी ,लेकिन बाद में नाना नानी ने मॉम को समझाया किसी बाहरी आदमी पर विश्वास की जगह घर के व्यक्ति पर विश्वास किया जाये।
मॉम ने अंतत चाचा से शादी कर ली लेकिन वो काफी महीनो तक अलग अलग सोते रहे मॉम मेरे पास सोती और चाचा अलग रूम में।
काफी महीनो बाद मॉम को लगा की इसमें चाचा की क्या गलती थी तब जाकर उन्होंने चाचा को पति का दर्जा दिया और उनके साथ सोने लगी
सुनील ने जिस तरह सुमन को जिस तरह शादी के लिए राजी किया वो बेमिसाल हे। आप की लेखनी कमाल हे तो शब्दों का चयन सर्वोतम। आप मेरे आदर्श लेखक हे।

जूही! आप कहाँ हैं इतने दिनों से? कैसी हैं आप? न कोई कमेंट और न ही कोई संदेश! लेकिन आपको यहाँ फिर से देख कर सुखद आनंद हुआ। :)

आप बस 'फ़ेवरिट लेखक' कह कर बहलाती रहती हैं, कभी कुछ कहती बोलती नहीं! खैर - सभी की अपनी अपनी दिक्कतें हैं। आप भी काम और घर में व्यस्त हैं, इसलिए शिकायत करने का कोई लाभ नहीं। आशा है कि आपकी दीपावली सुन्दर और आनंदमय बीती होगी। :):)

बहुत बहुत धन्यवाद ऐसी अत्यंत व्यक्तिगत बात मुझसे शेयर करने के लिए! ये बहुत कठिन काम है। हाँ, अवश्य ही हम सभी यहाँ अपने अपने अवतार के माध्यम से उपस्थित हैं, फिर भी - मैं स्वयं भी बहुत छुपा कर ही अपने जीवन की बातें शेयर करता हूँ। इसलिए सच में - हृदय से आपका धन्यवाद! 🙏🙏

आपकी बात पूरी तरह से सही है - और सच मानिए, मैं आपकी माता जी का अंतर्द्वंद्व समझ सकता हूँ। जिसको अपने बेटे समान पाला, उसी से कैसे विवाह कर लिया जाए? समाज का ताना बाना कुछ ऐसा बुना गया है कि स्त्रियाँ ही हमेशा घाटे में होती हैं। यही बात तो थी जो सुमन को भी हमेशा से ही साल रही थी। और ये तब जब उम्र के अतिरिक्त दोनों के सम्बन्ध में और कोई भी भेद नहीं! आपके चाचा जी की हिम्मत की भी दाद देनी होगी। पहले तो भाभी/माँ की छवि मिटा कर उनको प्रेमिका के रूप में देखना ही एक कठिन कार्य है, और फिर उस छवि के अनुकूल कार्य करना और भी कठिन! 💪

आपकी माँ बुरा मान जाएँ समझ आता है! लेकिन ये आपकी बुआ लोगों को क्यों बुरा लग गया? न लेना न देना! बिना वज़ह चौधरी बनना! वैसे जिन लोगों को आपके जीवन से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, उन्ही लोगों को आपके जीवन में चौधराहट दिखाने की खुजली भी होती है। खैर, मैं ऐसी बातें नहीं कहना चाहता जिससे हमारी मित्रता में खलल पड़े! अच्छा हुआ कि आपकी माँ ने आपके चाचा जी के प्रपोजल को मान लिया। यह सही है कि अगर पुरुष हिम्मत कर जाए तो स्त्री को सम्बल मिलता है। :)

जान कर बहुत अच्छा लगा कि आप तीनों में स्नेह का सम्बन्ध बरकरार है - अन्यथा आप ये बात हमको न बतातीं! उम्मीद है कि उनका जीवन स्नेहमय और आनंदमय है! बस दो बातें हैं जिनको जानने की उत्सुकता है - आप उनको क्या कह कर बुलाती है? चाचा जी या डैड? और क्या आपने अन्य छोटे भाई/बहन हैं?

साथ बने रहें! आज भी बारह हज़ार शब्दों के अपडेट लिखे हैं! पढ़ कर बताएँ कि कैसा लगा।
कोई सुझाव देने हों, तो वो भी लिखें! धन्यवाद! :)🙏
 

juhi gupta

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जूही! आप कहाँ हैं इतने दिनों से? कैसी हैं आप? न कोई कमेंट और न ही कोई संदेश! लेकिन आपको यहाँ फिर से देख कर सुखद आनंद हुआ। :)

आप बस 'फ़ेवरिट लेखक' कह कर बहलाती रहती हैं, कभी कुछ कहती बोलती नहीं! खैर - सभी की अपनी अपनी दिक्कतें हैं। आप भी काम और घर में व्यस्त हैं, इसलिए शिकायत करने का कोई लाभ नहीं। आशा है कि आपकी दीपावली सुन्दर और आनंदमय बीती होगी। :):)

बहुत बहुत धन्यवाद ऐसी अत्यंत व्यक्तिगत बात मुझसे शेयर करने के लिए! ये बहुत कठिन काम है। हाँ, अवश्य ही हम सभी यहाँ अपने अपने अवतार के माध्यम से उपस्थित हैं, फिर भी - मैं स्वयं भी बहुत छुपा कर ही अपने जीवन की बातें शेयर करता हूँ। इसलिए सच में - हृदय से आपका धन्यवाद! 🙏🙏

आपकी बात पूरी तरह से सही है - और सच मानिए, मैं आपकी माता जी का अंतर्द्वंद्व समझ सकता हूँ। जिसको अपने बेटे समान पाला, उसी से कैसे विवाह कर लिया जाए? समाज का ताना बाना कुछ ऐसा बुना गया है कि स्त्रियाँ ही हमेशा घाटे में होती हैं। यही बात तो थी जो सुमन को भी हमेशा से ही साल रही थी। और ये तब जब उम्र के अतिरिक्त दोनों के सम्बन्ध में और कोई भी भेद नहीं! आपके चाचा जी की हिम्मत की भी दाद देनी होगी। पहले तो भाभी/माँ की छवि मिटा कर उनको प्रेमिका के रूप में देखना ही एक कठिन कार्य है, और फिर उस छवि के अनुकूल कार्य करना और भी कठिन! 💪

आपकी माँ बुरा मान जाएँ समझ आता है! लेकिन ये आपकी बुआ लोगों को क्यों बुरा लग गया? न लेना न देना! बिना वज़ह चौधरी बनना! वैसे जिन लोगों को आपके जीवन से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता, उन्ही लोगों को आपके जीवन में चौधराहट दिखाने की खुजली भी होती है। खैर, मैं ऐसी बातें नहीं कहना चाहता जिससे हमारी मित्रता में खलल पड़े! अच्छा हुआ कि आपकी माँ ने आपके चाचा जी के प्रपोजल को मान लिया। यह सही है कि अगर पुरुष हिम्मत कर जाए तो स्त्री को सम्बल मिलता है। :)

जान कर बहुत अच्छा लगा कि आप तीनों में स्नेह का सम्बन्ध बरकरार है - अन्यथा आप ये बात हमको न बतातीं! उम्मीद है कि उनका जीवन स्नेहमय और आनंदमय है! बस दो बातें हैं जिनको जानने की उत्सुकता है - आप उनको क्या कह कर बुलाती है? चाचा जी या डैड? और क्या आपने अन्य छोटे भाई/बहन हैं?

साथ बने रहें! आज भी बारह हज़ार शब्दों के अपडेट लिखे हैं! पढ़ कर बताएँ कि कैसा लगा।
कोई सुझाव देने हों, तो वो भी लिखें! धन्यवाद! :)🙏
अमर जी ,निसंदेह आप मेरे फेवरेट लेखक हे और रहेंगे ,अगर मेरी विवाहित ज़िंदगी रंगो से सरोबार हे तो उसकी वजह आप भी हे।
आप की कोई भी कहानी पढ़ लो सेक्स का मूड तो बन ही जाता हे ,असल में देवयानी की मृत्य के बाद मुझे आपकी इस कहानी में कोई दिलचस्पी नहीं रह गयी थी ,मुझे उसकी मृत्य का गहरा दुःख पंहुचा था ,एक आत्मविश्वासी और बिंदास लड़की का अंत मुझे भाया नहीं तो मेने काफी समय तक आपकी इस स्टोरी को पढ़ा नहीं।
दीपावली के दिन में थोड़ा फ्री थी तो यूही आपकी इस कहानी के आखिर के कुछ अंश पड़ना शुरू किये आप यकीं कीजिये की में २ घंटे तक पढ़ती रही। मुझे मेरा अतीत याद आ गया। मेरे अभी के डैड और मॉम का रोमांस याद आ गया। मेरी मॉम मेरी अच्छी फ्रेंड भी हे उन्होंने मुझे काफी दिनों बाद बताया की उन्हें तुम्हारे डैड के साथ सेक्स कर जवानो जैसी फीलिंग आती हे।
में अब चाचा को डैड ही कहती हु ,उन्होंने मॉम से कभी बच्चे की इच्छा जाहिर नहीं की वो यही कहते रहे हम जूही को ही अपना पूरा प्यार देंगे। में तो अब भी उनसे कहती हु मुझे कोई बहन भाई ला दो तो वो मुझ पर ही टाल देते हे अब तेरी उम्र हे ये सब करने की।
देखिये समाज की बात मेरे समझ में आती हे उन्हें इस बात से चिढ़ होती हे की किसी विधवा का फिर से जीवन कैसे संवर सकता हे और उसकी शादी कैसे हो सकती हे। आपने इस कहानी में जिक्र भी किया हे जब सुनील सुमन को कहता हे की 50 साल के व्यक्ति से शादी कर उन्हें सहारा तो मिल सकता हे लेकिन सुख नहीं ,उन्हें भी उस उम्रदराज व्यक्ति का ख्याल रखना पड़ेगा।
मेरी बुआओं का फंदा दूसरा था वोउनकी सोच थी की मॉम किसी दूसरे से शादी कर लेगी तो उन्हें प्रॉपर्टी छोड़नी पड़ेगी और उनके हिस्से में प्रॉपर्टी आ जाएगी ,लेकिन चाचा से शादी के बाद प्रॉपर्टी का कुछ नहीं होगा। मेरी बुआओँ ने मेरे मॉम और डैड को जितना बदनाम किया होगा उतना तो अन्य लोगो ने भी नहीं कहा होगा। कुछ बाते तो ऐसे भी की ,की अगर इतनी ही आग लग रही थी तो कोठे पर बैठ जाती।
भुला दिया अब हमने सब।
आपको ,अंजलि भाभी को और दोनों बच्चियों को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाये। एक शेर जो मुझे आपके लिए बेहद पसंद हे
तेरा ख़याल तेरी तलब और तेरी आरज़ू,
इक भीड़ सी लगी है मेरे दिल के शहर में।
 
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