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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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avsji

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अंतराल - समृद्धि - Update #5


आज का इतना अद्भुत, इतना नाटकीय होगा, यह मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। जिस लड़के को मैंने एक समय स्वयं पिता समान प्रेम दिया था, आज मैंने उसको ही अपना बाप बना लिया था। इस उम्र में भी शायद मुझे अपने भरे पूरे परिवार की तलाश थी। वो आज पूरी हो गई थी। मैंने एक बात नोटिस करी - जहाँ एक तरफ मेरे हाथ से कुछ जा रहा था, वहीं दूसरी तरफ मेरे हाथ में कुछ बहुमूल्य आ भी रहा था। लेन-देन के लहज़े में देखेंगे, तो मैं लगातार फायदे में ही था - वो अलग बात है कि हर व्यक्तिगत नुकसान पर मेरा रोना धोना होता था।

लेकिन अब नहीं! अब मेरे साथ मेरा पूरा परिवार खड़ा है। अब तो बस, आगे की ही सुध लेनी है।

रात्रि भोजन बड़ा आनंदमय रहा। मेरे नए पापा ने मुझे बड़े मान से, और प्रेम से खिलाया। सच में, उनको ऐसे व्यवहार करते देख कर कभी भी ऐसा नहीं लगा कि वो मुझसे उम्र में छोटे हैं। इतनी मैच्योरिटी है उनके अंदर! डिनर बड़ा शानदार था। माँ के हाथों का खाना वैसे भी प्रसाद जैसा स्वादिष्ट होता है। खाने की टेबल पर पापा तरह तरह के चुटकुले सुना रहे थे, जो ‘डैड जोक’ वाली केटेगरी के थे। न जाने क्यों वो मुझे बड़े पसंद भी आ रहे थे।

खाना समाप्त कर के मैं और पापा थोड़ी बातचीत करने बालकनी में बैठ गए, और माँ बच्चों को सुलाने में व्यस्त हो गईं। मैंने फिर से एक बड़ा मकान लेने की पेशकश करी। इस बार पापा मेरे विचार को ले कर अधिक ग्रहणशील थे। उन्होंने एक दो स्थानों के नाम भी लिए कि यहाँ बड़े, नए, और सस्ते मकान मिल सकते हैं। हम यही बातें कर रहे थे कि माँ भी हमारी बातों में शामिल हो गईं। उन्होने भी इस विचार कर अनुमोदन किया। लेकिन वो चाहती थीं कि वो अपनी सासू माँ के पास रहें, जितना संभव हो।

पापा ने कारण पूछा तो माँ ने कहा, “जब अम्मा को अगला बच्चा होगा, तो उनको मदद करने में आसानी रहेगी।”

“थॉट तो अच्छा है जान,” पापा ने कहा, “लेकिन उनकी आलरेडी एक बहू है! वो नहीं कर लेगी उनकी देखभाल?”

“हाँ, जैसे नई बहू, इस पुरानी बहू से ज्यादा देखभाल कर लेगी उनकी!”

“नहीं नहीं...” पापा ने डिफेंसिव होते हुए कहा, “ऐसा मैंने कब बोला?”

“तो क्या कहना चाहते थे आप?”

“अरे... कुछ नहीं,” पापा ने बात बदल दी - उन दोनों को ऐसे मिठास से मज़ाकिया झगड़ा करते देखना भी कितना सुखद था - पापा ने कहा, “लेकिन उनकी देखभाल तो तुम ही सबसे अच्छी कर सकती हो। लेकिन मुझे लगता है कि इस मंशा के पीछे तुम्हारा अम्मा के दूध का लालच अधिक है!”

“हाँ! वो भी है!” माँ ने बड़ी नटखट अदा से स्वीकारा।

“लेकिन माँ,” मैंने शंका जताई, “काजल के हस्बैंड - मतलब सत्यजीत - इस बात के लिए राज़ी हो जाएँगे?”

“उसकी चिंता मत करो बेटे,” पापा ने कहा, “अम्मा ने सत्यजीत को हमारे परिवार के हर सच को बता रखा है।”

“मतलब...” मैं चौंका।

“हाँ,” पापा ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “सही समझे! इसी ईमानदारी, इसी सच्चाई पर ही तो सत्यजीत इम्प्रेस हो गए हैं अम्मा से! प्यार के साथ साथ जब सच्चाई भी मिलती है न, तो यह सारी बातें छोटी हो जाती हैं। कम से कम सत्यजीत के लिए तो यही सत्य है!”

“कमाल है!” मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था।

“होता रहे कमाल! झूठ की बुनियाद पर अम्मा को अपना घर नहीं बसाना था।”

पापा ने बड़े ही आश्वास तरीके से कहा - जैसे सब कुछ तय हो गया हो। शायद हो भी गया हो। मैं शायद केवल खानापूरी करने जा रहा था कल। लेकिन अच्छा है - सभी से मुलाकात तो हो जाएगी।

पापा ने अचानक ही घड़ी पर नज़र डाली।

“अरे, बड़ी रात हो गई है!” उन्होंने कहा, “अमर बेटे, आज रात “तुम अपनी माँ के साथ ही सो जाना... तीनों बच्चे साथ में!”
“और आप...?”

“हमारी चिंता न करो बेटे!” उन्होंने कहा, “एक लम्बे अर्से के बाद मौका मिला है... एक बार हम दोनों को भी तुमको दुलार करने का मौका दे दो!”
पापा की इस बात पर न जाने क्यों मैं शर्मा गया।

“सुनिए जी,” माँ ने कहा, “जब तक मेरा बड़ा बेटा यहाँ है, मैं उसको अपना दूध पिलाती रहूँगी!”

“क्या माँ!” मैं इस बात से और भी अधिक शर्मा गया।

“अरे बेटे, इसमें क्या शर्माना? ये दोनों बच्चे भी तो पीते हैं न!” पापा ने कहा, “अभी कल रात को ही तुम्हारी माँ कह रही थीं कि बेटू को अपने पास सुलाए, और अपना दूध पिलाए बहुत लम्बा समय हो गया है!”

“आपका क्या होगा?” मैंने उनको छेड़ा।

“मेरा? क्यों मुझे क्या हो गया?”

“आपको अच्छी नींद आ जाएगी?” मैंने उनको छेड़ना जारी रखा।

“दो एक रोज़ नहीं पियूँगा, तो क्या हो जायेगा?” उन्होंने कहा, “मैं तो इसी लिए पी रहा था कि जब मेरा बड़ा बेटा आए, तब उसके लिए कमी न हो!”

“अरे वाह वाह!” माँ ने उनकी खिंचाई करी, “कितना बड़ा काम कर रहे थे आप!” फिर मेरी तरफ मुखातिब हो कर, “आजा मेरा बेटू,” माँ तो जैसे तैयार ही खड़ी थीं, “दोनों बदमाश सो गए हैं... आ कर सो जा!”

“हाँ बेटा,” पापा ने भी उठते हुए कहा, “अच्छी नींद ले लो। सवेरे जाना है वहाँ। शनिवार को ट्रैफिक अधिक रहता है उस तरफ, इसलिए थोड़ा जल्दी निकल लेंगे!”

“ठीक है पापा,” मैंने कहा, “गुड नाईट!”

मुझे उस पल कुछ अलग सा लगा। मेरे पिता के रूप में सुनील का होना एक सुकून भरा एहसास था, और मुझे लग रहा था कि यह एहसास भविष्य में बहुत सुखदायक होने वाला था। अंततः मेरे सर पर अपनी माँ और अपने पिता दोनों का प्यार था, जो कि आनंददायक अहसास है! हमारे परिवार में रिश्तों के एक अनूठा फेरबदल हो गया था, और यह जो नया रूप निकल आया था, वो मुझे बहुत पसंद आ रहा था।

**

उनके कमरे में कोई अन्य बिस्तर तो लगा नहीं हुआ था, इसलिए मुझे माँ के ही साथ लेटना था।

“माँ... आर यू श्योर?”

“क्या हो गया?”

“यही कि आप और पापा... अलग अलग...?”

“अरे, वो सब मत सोचो!” माँ ने बिस्तर पर बैठते हुए कहा, “जब तुम अपने माँ पापा के पास रहो, तो नन्हे बच्चे बन कर रहो। तुमको प्यार करने के लिए हम तरस गए हैं।”

मैं अचानक ही तीस बरस पहले चला गया। जब मैं छोटा सा था, और डैड और माँ के साथ सो जाता था। पहले पापा, और अब माँ की बात पर वैसी ही फीलिंग आई! मैंने माँ को देखा।

“आओ बेटू...” उन्होंने अपने बगल बिस्तर पर थपथपाते हुए कहा, “यहाँ मेरे बगल लेटो! बहुत जगह है। दोनों बच्चे सो रहे हैं, और पाँच छः घंटे के बाद ही उठेंगे! इसलिए आराम से सो जाओ!”

मैं बिस्तर पर आने लगा, तो माँ ने टोका, “कुछ भूल नहीं रहे?”

“क्या माँ?” मैं चकराया, ‘क्या भूल गया’?

“क्लोथ्स ऑफ,” माँ ने मेरे कपड़ों की तरफ इशारा किया, “मेरा बेटा मुझे नंगू नंगू चाहिए... बाकी बच्चों के ही जैसे...”

“क्या माँ!”

“अरे! अब हमसे क्या शर्माना? मैं तुम्हारी माँ हूँ, और ये तुम्हारे पापा!”

“हाँ, तो मैंने भी कब इस बात से इंकार किया?”

“थैंक यू!” माँ ने उत्तर में कहा। उनके चेहरे पर प्रसन्नता साफ़ झलक रही थी। उनके पति को मैंने इतना ऊँचा दर्जा दे दिया था, और उसके लिए माँ बहुत ही खुश थीं, “तो फिर हिचक क्यों?”

“कोई हिचक नहीं है माँ... कोई नहीं है!” कह कर मैं अपने कपड़े उतारने लगा, और कुछ ही पलों में पूर्ण नग्न हो कर उनके सामने खड़ा हो गया।

“मेरा सुन्दर बेटा...” कह कर माँ ने मेरा माथा चूम लिया।

माँ मुझे नज़र भर के ऐसे देख रही थीं कि जैसे वो अपनी ही कृति का अवलोकन कर के मुग्ध हो रही हों। उनका तो ठीक था, लेकिन माँ के सामने यूँ नग्न खड़े होने से मेरे लिंग में स्तम्भन आने लगा।

“ये क्या हो रहा है,” माँ ने मुझे मज़ाकिया अंदाज़ में डाँटा, “बदमाश कहीं का!”

“सॉरी माँ! बहुत दिनों के बाद ऐसे हुआ हूँ न...”

“कोई बात नहीं बेटे! आई अंडरस्टैंड!” उन्होंने मेरे लिंग को पकड़ कर उस पर हल्का सा चुम्बन ले लिया, “मैं और तुम्हारे पापा ‘इसका’ ख्याल वाली भी ढूंढ रहे हैं तुम्हारे लिए!”

“ओह माँ!”

“अरे माँ हूँ! मेरा मन नहीं करता कि मेरे बेटे का संसार भी भरा पूरा रहे?” माँ ने कहा, और बोलीं, “मेरा राजा बेटा... आ जा!” और उन्होंने अपना कुर्ता उतार दिया। इस समय उन्होंने ब्रा नहीं पहनी हुई थी।

माँ के चूचकों के सिरों पर दूध रिस रहा था। अमृत की बूंदें उनके चूचकों के सिरे पर चमक रही थीं!

“क्या देख रहे हो, बेटू?” माँ ने कहा, “चिंता न करो! इनमें अभी भी दूध है… बहुत दूध बनता है मुझको! सोचो मत… आओ…”

मैं मुस्कुराया, और आगे बढ़ कर उनके चूचक को अपने मुँह में भर लिया। तुरंत ही अमृत रस मेरे मुँह गले और पेट को भरने लगा।

“ओह, बढ़िया!” माँ ने आह भर दी।

थोड़ी देर में माँ का वो चूचक कोमल हो कर मेरे मुँह में जैसे घुल गया। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और माँ का दूध पीता रहा... धीरे-धीरे... लगभग बूंद-बूंद करके! इतने ठहर के स्तनपान करने में अद्भुत आनन्द आ रहा था। थोड़ी देर में वो स्तन खाली हो गया। फिर उन्होंने दूसरा चूचक मेरे मुँह में भर दिया।

उस क्षण में कितनी सारी पुरानी यादें वापस लौट आईं! बचपन से जवानी तक माँ और डैड ने ऐसे ही प्यार से पाल पोस कर मुझको बड़ा किया था। और अब फिर से... मन में आया कि कुछ ऐसा हो जाए कि मैं यहीं अपने माँ और ‘पापा’ के साथ ही रह जाऊँ! जब स्नेह की वर्षा होने लगती है न, तब उसमें हमेशा भीगते रहने का मन होता है। बहुत सोच नहीं पा रहा था, क्योंकि मन में सुकून की ऐसी फीलिंग आ रही थी कि उसका वर्णन करना कठिन हो रहा है मेरे लिए।

मैं स्तनपान करता रहा, और माँ मुझे उसके लिए प्रोत्साहित करती रहीं, “आई लव यू, मेरे बच्चे। आज तुमने मुझे वो सुख, वो मान दिया है, कि मैं कह नहीं सकती! पियो... मेरी जान... मेरे लाल!”

मैं पीता रहा - धीरे धीरे! बूँद बूँद कर के! देर हो रही थी। माँ का दूध पीते हुए कब आँख लग गई, कुछ याद नहीं।

**

रात में जब मैंने बिस्तर पर जानी पहचानी हलचल महसूस करी, तो मैं जाग गया। बस जाग गया - लेकिन न तो आँखें खोलीं, और न ही उठ कर बैठा। मैंने महसूस किया कि पापा और माँ अपनी प्रणय-क्रिया में तल्लीन थे। कमरे में वही जीरो वाट का बल्ब जल रहा था, इसलिए उन्हें पता नहीं चल रहा होगा, कि मैं जाग गया हूँ। पापा बड़े उत्साह से माँ की योनि में अपना लिंग पंप कर रहे थे। दोनों को ही बड़ा आनंद आ रहा था, इसलिए उन दोनों का कराहना और गुर्राना बहुत स्पष्ट तरीके से सुनाई दे रहा था।

“आ…आह…आह… धीरे धीरे करिए ना! … बेटा जग जाएगा!” माँ कह रही थीं।

“अरे दुल्हनिया… कैसे धीरे-धीरे करूँ?” पापा उखड़ती हुई साँसों के साथ बोले, “तुम होती हो तो खुद पर काबू रखना मुश्किल हो जाता है।”

मैं उनकी बात पर हँसना चाहता था, लेकिन मैं केवल मुस्कुराया, और वो भी बिना कोई आवाज किए। ये तो मुझे मालूम ही था कि पापा हमेशा से ही माँ के दीवाने थे। अभी भी हैं! मैं इस बात से खुश था कि उनको अभी भी माँ इतनी आकर्षक और सेक्सी लगती थीं! उन दोनों के बीच प्रगाढ़ प्रेम के साथ साथ वासना की गर्माहट भी बनी हुई थी, और यह बहुत अच्छी बात थी।

“हा हा... आह... आह... इतने साल हो... आह... गए हैं हमारी शादी को,” माँ ने प्रेम क्रीड़ा का आनंद लेते हुए कहा, “अब तो अपने पर काबू रखना... आह्ह्ह... सीख लीजिए!”

“सीख लेंगे मेरी दुल्हनिया!” पापा ने कहा और पंप करना जारी रखा, “जब लण्ड खड़ा होना बंद हो जाएगा, तब वो भी सीख लेंगे! लेकिन तब तक तो झेलना पड़ेगा तुमको!”

‘हा हा! अगर ये बात है तो माँ को अगले कम से कम तीस पैंतीस साल तक ‘झेलना’ पड़ेगा पापा के साथ प्रणय!’

सम्भोग होता रहा, और सम्भोग के हर धक्के पर माँ विलाप करती रहीं, और विनती करती रहीं। लेकिन सम्भोग होता रहा। यह एक अच्छा, पुराने स्टाइल वाला सम्भोग था, जो एक पति, अपनी पत्नी को खुश करने, संतुष्ट करने की इच्छा से करता है...

“तीन तीन बच्चों के बाप हैं अब आप,” माँ ने पापा को चिढ़ाते हुए कहा, “इतनी बेकरारी अच्छी नहीं लगती है इस उम्र में!”

“इस उम्र में? हैं? अरे दुल्हनिया, अभी हमारी उम्र ही क्या हुई है? एक दो बच्चे और पैदा कर सकते हैं हम अभी तो!”

“हा हा हा!” माँ इस सुझाव पर खिलखिला कर हँसने लगीं।

“क्यों? कुछ कम कहा? चलो - एक दो नहीं, दो तीन कर लेंगे?” पापा ने और ज़ोर से धक्के लगाते हुए कहा।

“आह... आह... क्या बात है? ... आह... आज बड़े जोश में हैं आप?”

“क्यों न रहूँ दुल्हनिया? आज मेरे बेटे ने मुझे जो मान दिया है... मन में आ रहा है हम एक बार और मम्मी पापा बन जाएँ!”

माँ इस बात पर और हँसने लगीं, “हा हा… आप भी न! ये दोनों बच्चे, मेरी पोती से भी कम उम्र के हैं! और आपको अभी भी और बच्चे चाहिए? तीन बच्चे काफ़ी नहीं हैं!”

“जितने बच्चे हों, मुझे तो उतना ही अच्छा है! बाप का प्यार लुटाने पर कम थोड़े होता है!”

उनकी बात पर माँ ज़रूर मुस्कुराई होंगीं - उनकी आवाज़ कुछ क्षणों तक नहीं आई। फिर माँ बोलीं, “मेरी एक बड़ी इच्छा यही है कि मेरे अमर की फिर से शादी हो जाए! उसके और बच्चे हों!”

“हाँ न! मैं भी तो कब से यही सोच रहा हूँ! ऑफिस में मुझे एक दो लड़कियाँ पसंद तो आई हैं बेटे के लिए! लेकिन पता नहीं - उनको हमारा परिवार कैसा लगेगा!”

“आपको पसंद आई हैं, तो कुछ बात तो होगी न?”

“हम्म...” पापा ने धक्के लगाना जारी रखा, “अम्मा की शादी का काम पूरा हो जाय, तो उधर फोकस करता हूँ!”

“भरा पूरा परिवार सोच कर कितना अच्छा लगता है न?” माँ ने कहा।

“हाँ! है न? सोचो न दुल्हनिया, क्या पता, अम्मा की भी गोद फिर से भर जाए?”

“क्या पता क्या? बिलकुल भरेगी! मुझे पूरा यकीन है!”

कुछ और धक्कों की आवाज़ें आईं।

“मेरे बेटू की ज़िन्दगी में भी फिर से बहार आ जाए बस!”

“हाँ दुल्हनिया! कितना अच्छा होगा!”

“हाँ न! एक प्यारी सी बहू आ जाए जो इसको फिर से इतना प्यार दे, कि ये अपने सब दुःख भूल जाए!” माँ ने प्यार से कहा, “आपकी तरह ही अमर को भी बच्चे पसंद हैं! लेकिन... खैर, जब ईश्वर चाहेंगे...!”

मैंने अपने माथे और सर पर माँ की हथेली का प्रेम और ममता भरा स्पर्श महसूस किया।

“कितना भोला लगता है सोते समय...” माँ ने कहा, और मुझे प्यार से स्पर्श करना जारी रखा।

“सोते समय ही? मेरा बेटा हमेशा ही बहुत भोला है।” पापा ने कहा, “ऐसा बेटा भगवान सबको दें!”

“सच में जी!” फिर थोड़ा हँसते हुए बोलीं, “ये देखिए... किसी हसीन सपने में डूबा हुआ है आपका भोला बेटा...”

दोनों ने क्या देखा, कह नहीं सकता। लेकिन मुझे अगले ही पल पापा के भी हँसने की आवाज़ सुनाई दी। तब जा कर मैंने महसूस किया कि मेरा लिंग इस समय पूर्ण स्तंभित हो कर तन गया था। या तो उन दोनों की काम-क्रीड़ा की आवाज़ सुन कर, या फिर रात में सोते समय जो स्तम्भन होता है उसके कारण!

‘अरे यार! माँ तो ठीक हैं, लेकिन पापा के सामने भी यूँ नंगू!’ मन में विचार आया।

“भोला भी है, और तंदरुस्त भी!” पापा ने बड़े गर्व से कहा।

“बचपन में कितनी ही बार इसका छुन्नू ऐसे ही खड़ा हो जाता था... लेकिन इस भोलेबाबा को बहुत देर में जा कर समझ में आया कि ऐसा क्यों होता है। आज बहुत दिनों बाद फिर से देखी ऐसा होते हुए... ओह इसके बचपन की बातें!”

“मेरा बेटा है...” पापा ने बड़े गर्व से कहा।

“वो तो है!”

“नहीं दुल्हनिया! तुम बुरा मान जाओगी, और मेरा बेटा भी! लेकिन आपको सच सच कहूँ मेरी जान? हम दोनों जब भी प्यार करते हैं न... हर बार मेरा मन यही करता है कि काश, अमर मेरे बीज से पैदा हुआ होता।”

माँ ने कुछ कहा तो नहीं, लेकिन मुझे लगा कि पापा ने जो कुछ कहा था, वो उसको सुन कर मुस्कुराई अवश्य होंगी! पापा की यह लंबे समय से पल रही ‘गुप्त’ इच्छा थी!

“काश मैं तेरी प्यारी सी कोख में अपना बीज भरता, और उसके कारण अमर तेरे पेट में आता! और फिर... जैसे आज किया है न तूने दुल्हनिया... तू उसको मेरे सामने अपना दूध पिलाती…”

“पिलाया तो आपके सामने!”

“हा हा! हाँ दुल्हनिया! पिलाया तो! मेरी कही अनकही - हर इच्छा पूरी की है तूने! देवी हो तुम! माता जी का आशीर्वाद हो तुम... सच में दुल्हनिया, तू मुझे पहले मिली होती, तो हमारे ढेर सारे बच्चे होते!”

“हा हा हा... आई नो! वैसे, अभी भी कोई कम बच्चे नहीं हैं हमारे।”

माँ ने कहा। शायद इस बात पर पापा ने चुम्बनों की बौछार लगा दी।

“दुल्हनिया, मैं अपने अमर को सब कुछ सिखाता… पढ़ाता, लिखाता, उसके साथ खेलता… उसको खूब प्यार करता! खूब ज्यादा…”

“आह्ह्ह्ह…” माँ के गले से ज़ोर की कराह निकल गई।

शायद पापा ने कुछ ज्यादा ही शक्तिशाली धक्का लगा दिया!

“तुमको मेरी बातें बेवकूफी भरी लगती हैं न दुल्हनिया?”

“नहीं नहीं! आपको ऐसा क्यों लगा?” माँ ने उनको चूम लिया, “मुझको तो ये बहुत स्वीट बातें लगती हैं!” माँ ने प्रसन्नतापूर्वक कहा।

कुछ देर तक उन दोनों ने शांत रह कर मैथुन किया। फिर माँ ने ही चुप्पी तोड़ी, “आप कब आओगे? मेरा तो दो बार हो चुका...”

पापा ने उत्तर में उनको चूमा, “उंगली से जो किया था, वो काउंट नहीं होगा।”

“नहीं, उसके बाद दो बार हो गया!” माँ ने हाँफते हुए कहा।

“अच्छा! बस बस, आ ही गया।”

पापा ने पाँच या छः और धक्के लगाए, तब जा कर उनका भी स्खलन हुआ।

‘सही है यार!’ मैंने सोचा, ‘इस उम्र में भी माँ को सम्भोग का ऐसा आनंद, ऐसी संतुष्टि मिल रही थी!’

पूरी तरह स्खलित होने तक पापा माँ को चूमते रहे, और फिर बोले, “मज़ा आया दुल्हनिया?”

“बहुत!” माँ ने उनको चूमा, और बहुत संतुष्ट स्वर में कहा, “आप ये बात हमेशा पूछते हैं...” उन्होंने पापा को फिर से चूमा, “आपको पूछने की ज़रूरत नहीं... अभी तक एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि मजा ना आया हो...”

“दुल्हनिया, ये तो पति का धर्म होता है कि अपनी पत्नी को हमेशा संतुष्ट करे! मैं तो केवल सर्टेन करने के लिए पूछता हूँ!”

बिस्तर के हिलने से मैंने महसूस किया कि दोनों बिस्तर से उठ गए थे - शायद बच्चों को देखने के लिए, या पानी पीने! जब दोनों वापस लौटे, तो आदर्श माँ की गोद में था। उसको कुछ देर दूध पिला कर वापस उसके पालने में सुला दिया गया। इस समय पापा माँ के बगल ही लेते हुए थे, लेकिन कुछ इस तरह कि मेरे लिए जगह की कोई कमी नहीं थी। शायद दोनों एक दूसरे से गुत्थम गुत्थ हो कर लेटे हुए थे।

लगभग पाँच मिनट के बाद, मुझे फिर से चूमने की आवाज़ें सुनाई देने लगीं। जाहिर तौर पर, पिताजी ने उसके स्तनों को निचोड़ा जिसके परिणामस्वरूप दूध के फव्वारे निकले, क्योंकि माँ ने कहा,

“अरे! फिर से भर गए।”

“कोई बात नहीं... आदित्य को पिला दो?”

“अरे कहाँ... जब वो सोता है, तब उसको कुछ होश नहीं रहता।”

“क्या? कैसा बच्चा है!” पापा ने विनोदपूर्वक कहा, “अपने भैया से कुछ सीखता नहीं! बेकार लड़का!”

“आपका भी यही हाल था। और आपने तो कितना जल्दी छोड़ दिया था अम्मा का दूध!” माँ ने भी विनोदपूर्वक कहा, “वो तो मेरे कहने पर उन्होंने आपको जबरदस्ती पिलाना शुरू किया था!”

“समझाना पड़ेगा आदित्य को! अगर अपने पापा और भैया जैसा नुनु चाहिए, तो मम्मा का दुद्दू पीते रहना चाहिए!”

“आप लड़के लोग और आपने नुनु!” माँ हँसने लगीं, “हम औरतों पर जो आफत आती है वो?”

“मज़ा भी तो आता है न मेरी जान? आता है कि नहीं?”

“आता है, लेकिन रात भर जागना भी तो पड़ता है न!”

“मैं भी तो जाग रहा हूँ!” पापा ने कहा, फिर बोले, “बेटे को पिला कर देखो?”

“वो भी सो रहा है!” माँ ने कहा और प्यार से मेरे बालों को सहलाया।

“दुल्हनिया, बच्चों के होंठों पर जब निपल्स छूते हैं, तो वो उनको अपने आप ही पहचान लेते हैं! इंस्टिंक्टस हैं ये सब!”

“हा हा! अच्छा जी? बड़ा नॉलेज है आपको? शैतानों के बाप!” माँ ने हँसते हुए कहा, “अच्छा ठीक है… ज़रा लाइट तो जला दीजिए न?”

मैं सतर्क हो कर सोने का नाटक करने लगा। पापा फिर उठे और कमरे की बत्ती ऑन कर आए। ये भी कम वाटेज वाला बल्ब था, लेकिन मंद प्रकाश भी कमरे को रोशन करने के लिए पर्याप्त था। माँ ने अपने स्तंभित हुए एक चूचक को मेरे मुँह पर छुआया। इस क्रिया में मुझे आनंद तो आया, लेकिन मैंने अपने होंठ नहीं खोले।

“थोडा ठीक से डालो। उसे पता भी तो चलना चाहिए न।” पापा ने सुझाया।

तो, माँ ने अपने चूचक से मेरे गाल को सहलाया और मेरे होठों के बीच उसको सटा कर दबा दिया। दूध की कुछ बूँदें मेरे मुँह में जा गिरीं। मैंने अब इस प्यारे खेल में भाग लेने और माँ की स्तनपान कराने की इच्छा पूरी करने का फैसला किया। मैंने अपना मुँह खोला और माँ का चूचक गृहण कर लिया। और स्तनपान करने लगा।

“देखा!” पापा बोले, “मैंने कहा था न? बच्चों को दूध की पहचान होती है!”

“हा हा!”

“बहुत सुन्दर है मेरा बेटा...” पापा बोले, “आई ऍम वैरी प्राउड!”

“आज आप बहुत खुश हैं!” माँ बोलीं।

“बहुत बहुत खुश दुल्हनिया!”

“मैं भी... अमर ने आपको जो आदर दिया है, वो अनमोल है।” माँ ने कहा, “इतने सालों की तमन्ना पूरी हो गई आज।”

**
 

Kala Nag

Mr. X
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अंतराल - समृद्धि - Update #5


आज का इतना अद्भुत, इतना नाटकीय होगा, यह मैंने सपने में भी नहीं सोचा था। जिस लड़के को मैंने एक समय स्वयं पिता समान प्रेम दिया था, आज मैंने उसको ही अपना बाप बना लिया था। इस उम्र में भी शायद मुझे अपने भरे पूरे परिवार की तलाश थी। वो आज पूरी हो गई थी। मैंने एक बात नोटिस करी - जहाँ एक तरफ मेरे हाथ से कुछ जा रहा था, वहीं दूसरी तरफ मेरे हाथ में कुछ बहुमूल्य आ भी रहा था। लेन-देन के लहज़े में देखेंगे, तो मैं लगातार फायदे में ही था - वो अलग बात है कि हर व्यक्तिगत नुकसान पर मेरा रोना धोना होता था।

लेकिन अब नहीं! अब मेरे साथ मेरा पूरा परिवार खड़ा है। अब तो बस, आगे की ही सुध लेनी है।

रात्रि भोजन बड़ा आनंदमय रहा। मेरे नए पापा ने मुझे बड़े मान से, और प्रेम से खिलाया। सच में, उनको ऐसे व्यवहार करते देख कर कभी भी ऐसा नहीं लगा कि वो मुझसे उम्र में छोटे हैं। इतनी मैच्योरिटी है उनके अंदर! डिनर बड़ा शानदार था। माँ के हाथों का खाना वैसे भी प्रसाद जैसा स्वादिष्ट होता है। खाने की टेबल पर पापा तरह तरह के चुटकुले सुना रहे थे, जो ‘डैड जोक’ वाली केटेगरी के थे। न जाने क्यों वो मुझे बड़े पसंद भी आ रहे थे।

खाना समाप्त कर के मैं और पापा थोड़ी बातचीत करने बालकनी में बैठ गए, और माँ बच्चों को सुलाने में व्यस्त हो गईं। मैंने फिर से एक बड़ा मकान लेने की पेशकश करी। इस बार पापा मेरे विचार को ले कर अधिक ग्रहणशील थे। उन्होंने एक दो स्थानों के नाम भी लिए कि यहाँ बड़े, नए, और सस्ते मकान मिल सकते हैं। हम यही बातें कर रहे थे कि माँ भी हमारी बातों में शामिल हो गईं। उन्होने भी इस विचार कर अनुमोदन किया। लेकिन वो चाहती थीं कि वो अपनी सासू माँ के पास रहें, जितना संभव हो।

पापा ने कारण पूछा तो माँ ने कहा, “जब अम्मा को अगला बच्चा होगा, तो उनको मदद करने में आसानी रहेगी।”

“थॉट तो अच्छा है जान,” पापा ने कहा, “लेकिन उनकी आलरेडी एक बहू है! वो नहीं कर लेगी उनकी देखभाल?”

“हाँ, जैसे नई बहू, इस पुरानी बहू से ज्यादा देखभाल कर लेगी उनकी!”

“नहीं नहीं...” पापा ने डिफेंसिव होते हुए कहा, “ऐसा मैंने कब बोला?”

“तो क्या कहना चाहते थे आप?”

“अरे... कुछ नहीं,” पापा ने बात बदल दी - उन दोनों को ऐसे मिठास से मज़ाकिया झगड़ा करते देखना भी कितना सुखद था - पापा ने कहा, “लेकिन उनकी देखभाल तो तुम ही सबसे अच्छी कर सकती हो। लेकिन मुझे लगता है कि इस मंशा के पीछे तुम्हारा अम्मा के दूध का लालच अधिक है!”

“हाँ! वो भी है!” माँ ने बड़ी नटखट अदा से स्वीकारा।

“लेकिन माँ,” मैंने शंका जताई, “काजल के हस्बैंड - मतलब सत्यजीत - इस बात के लिए राज़ी हो जाएँगे?”

“उसकी चिंता मत करो बेटे,” पापा ने कहा, “अम्मा ने सत्यजीत को हमारे परिवार के हर सच को बता रखा है।”

“मतलब...” मैं चौंका।

“हाँ,” पापा ने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहा, “सही समझे! इसी ईमानदारी, इसी सच्चाई पर ही तो सत्यजीत इम्प्रेस हो गए हैं अम्मा से! प्यार के साथ साथ जब सच्चाई भी मिलती है न, तो यह सारी बातें छोटी हो जाती हैं। कम से कम सत्यजीत के लिए तो यही सत्य है!”

“कमाल है!” मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था।

“होता रहे कमाल! झूठ की बुनियाद पर अम्मा को अपना घर नहीं बसाना था।”

पापा ने बड़े ही आश्वास तरीके से कहा - जैसे सब कुछ तय हो गया हो। शायद हो भी गया हो। मैं शायद केवल खानापूरी करने जा रहा था कल। लेकिन अच्छा है - सभी से मुलाकात तो हो जाएगी।

पापा ने अचानक ही घड़ी पर नज़र डाली।

“अरे, बड़ी रात हो गई है!” उन्होंने कहा, “अमर बेटे, आज रात “तुम अपनी माँ के साथ ही सो जाना... तीनों बच्चे साथ में!”
“और आप...?”

“हमारी चिंता न करो बेटे!” उन्होंने कहा, “एक लम्बे अर्से के बाद मौका मिला है... एक बार हम दोनों को भी तुमको दुलार करने का मौका दे दो!”
पापा की इस बात पर न जाने क्यों मैं शर्मा गया।

“सुनिए जी,” माँ ने कहा, “जब तक मेरा बड़ा बेटा यहाँ है, मैं उसको अपना दूध पिलाती रहूँगी!”

“क्या माँ!” मैं इस बात से और भी अधिक शर्मा गया।

“अरे बेटे, इसमें क्या शर्माना? ये दोनों बच्चे भी तो पीते हैं न!” पापा ने कहा, “अभी कल रात को ही तुम्हारी माँ कह रही थीं कि बेटू को अपने पास सुलाए, और अपना दूध पिलाए बहुत लम्बा समय हो गया है!”

“आपका क्या होगा?” मैंने उनको छेड़ा।

“मेरा? क्यों मुझे क्या हो गया?”

“आपको अच्छी नींद आ जाएगी?” मैंने उनको छेड़ना जारी रखा।

“दो एक रोज़ नहीं पियूँगा, तो क्या हो जायेगा?” उन्होंने कहा, “मैं तो इसी लिए पी रहा था कि जब मेरा बड़ा बेटा आए, तब उसके लिए कमी न हो!”

“अरे वाह वाह!” माँ ने उनकी खिंचाई करी, “कितना बड़ा काम कर रहे थे आप!” फिर मेरी तरफ मुखातिब हो कर, “आजा मेरा बेटू,” माँ तो जैसे तैयार ही खड़ी थीं, “दोनों बदमाश सो गए हैं... आ कर सो जा!”

“हाँ बेटा,” पापा ने भी उठते हुए कहा, “अच्छी नींद ले लो। सवेरे जाना है वहाँ। शनिवार को ट्रैफिक अधिक रहता है उस तरफ, इसलिए थोड़ा जल्दी निकल लेंगे!”

“ठीक है पापा,” मैंने कहा, “गुड नाईट!”

मुझे उस पल कुछ अलग सा लगा। मेरे पिता के रूप में सुनील का होना एक सुकून भरा एहसास था, और मुझे लग रहा था कि यह एहसास भविष्य में बहुत सुखदायक होने वाला था। अंततः मेरे सर पर अपनी माँ और अपने पिता दोनों का प्यार था, जो कि आनंददायक अहसास है! हमारे परिवार में रिश्तों के एक अनूठा फेरबदल हो गया था, और यह जो नया रूप निकल आया था, वो मुझे बहुत पसंद आ रहा था।

**

उनके कमरे में कोई अन्य बिस्तर तो लगा नहीं हुआ था, इसलिए मुझे माँ के ही साथ लेटना था।

“माँ... आर यू श्योर?”

“क्या हो गया?”

“यही कि आप और पापा... अलग अलग...?”

“अरे, वो सब मत सोचो!” माँ ने बिस्तर पर बैठते हुए कहा, “जब तुम अपने माँ पापा के पास रहो, तो नन्हे बच्चे बन कर रहो। तुमको प्यार करने के लिए हम तरस गए हैं।”

मैं अचानक ही तीस बरस पहले चला गया। जब मैं छोटा सा था, और डैड और माँ के साथ सो जाता था। पहले पापा, और अब माँ की बात पर वैसी ही फीलिंग आई! मैंने माँ को देखा।

“आओ बेटू...” उन्होंने अपने बगल बिस्तर पर थपथपाते हुए कहा, “यहाँ मेरे बगल लेटो! बहुत जगह है। दोनों बच्चे सो रहे हैं, और पाँच छः घंटे के बाद ही उठेंगे! इसलिए आराम से सो जाओ!”

मैं बिस्तर पर आने लगा, तो माँ ने टोका, “कुछ भूल नहीं रहे?”

“क्या माँ?” मैं चकराया, ‘क्या भूल गया’?

“क्लोथ्स ऑफ,” माँ ने मेरे कपड़ों की तरफ इशारा किया, “मेरा बेटा मुझे नंगू नंगू चाहिए... बाकी बच्चों के ही जैसे...”

“क्या माँ!”

“अरे! अब हमसे क्या शर्माना? मैं तुम्हारी माँ हूँ, और ये तुम्हारे पापा!”

“हाँ, तो मैंने भी कब इस बात से इंकार किया?”

“थैंक यू!” माँ ने उत्तर में कहा। उनके चेहरे पर प्रसन्नता साफ़ झलक रही थी। उनके पति को मैंने इतना ऊँचा दर्जा दे दिया था, और उसके लिए माँ बहुत ही खुश थीं, “तो फिर हिचक क्यों?”

“कोई हिचक नहीं है माँ... कोई नहीं है!” कह कर मैं अपने कपड़े उतारने लगा, और कुछ ही पलों में पूर्ण नग्न हो कर उनके सामने खड़ा हो गया।

“मेरा सुन्दर बेटा...” कह कर माँ ने मेरा माथा चूम लिया।

माँ मुझे नज़र भर के ऐसे देख रही थीं कि जैसे वो अपनी ही कृति का अवलोकन कर के मुग्ध हो रही हों। उनका तो ठीक था, लेकिन माँ के सामने यूँ नग्न खड़े होने से मेरे लिंग में स्तम्भन आने लगा।

“ये क्या हो रहा है,” माँ ने मुझे मज़ाकिया अंदाज़ में डाँटा, “बदमाश कहीं का!”

“सॉरी माँ! बहुत दिनों के बाद ऐसे हुआ हूँ न...”

“कोई बात नहीं बेटे! आई अंडरस्टैंड!” उन्होंने मेरे लिंग को पकड़ कर उस पर हल्का सा चुम्बन ले लिया, “मैं और तुम्हारे पापा ‘इसका’ ख्याल वाली भी ढूंढ रहे हैं तुम्हारे लिए!”

“ओह माँ!”

“अरे माँ हूँ! मेरा मन नहीं करता कि मेरे बेटे का संसार भी भरा पूरा रहे?” माँ ने कहा, और बोलीं, “मेरा राजा बेटा... आ जा!” और उन्होंने अपना कुर्ता उतार दिया। इस समय उन्होंने ब्रा नहीं पहनी हुई थी।

माँ के चूचकों के सिरों पर दूध रिस रहा था। अमृत की बूंदें उनके चूचकों के सिरे पर चमक रही थीं!

“क्या देख रहे हो, बेटू?” माँ ने कहा, “चिंता न करो! इनमें अभी भी दूध है… बहुत दूध बनता है मुझको! सोचो मत… आओ…”

मैं मुस्कुराया, और आगे बढ़ कर उनके चूचक को अपने मुँह में भर लिया। तुरंत ही अमृत रस मेरे मुँह गले और पेट को भरने लगा।

“ओह, बढ़िया!” माँ ने आह भर दी।

थोड़ी देर में माँ का वो चूचक कोमल हो कर मेरे मुँह में जैसे घुल गया। मैंने अपनी आँखें बंद कर लीं और माँ का दूध पीता रहा... धीरे-धीरे... लगभग बूंद-बूंद करके! इतने ठहर के स्तनपान करने में अद्भुत आनन्द आ रहा था। थोड़ी देर में वो स्तन खाली हो गया। फिर उन्होंने दूसरा चूचक मेरे मुँह में भर दिया।

उस क्षण में कितनी सारी पुरानी यादें वापस लौट आईं! बचपन से जवानी तक माँ और डैड ने ऐसे ही प्यार से पाल पोस कर मुझको बड़ा किया था। और अब फिर से... मन में आया कि कुछ ऐसा हो जाए कि मैं यहीं अपने माँ और ‘पापा’ के साथ ही रह जाऊँ! जब स्नेह की वर्षा होने लगती है न, तब उसमें हमेशा भीगते रहने का मन होता है। बहुत सोच नहीं पा रहा था, क्योंकि मन में सुकून की ऐसी फीलिंग आ रही थी कि उसका वर्णन करना कठिन हो रहा है मेरे लिए।

मैं स्तनपान करता रहा, और माँ मुझे उसके लिए प्रोत्साहित करती रहीं, “आई लव यू, मेरे बच्चे। आज तुमने मुझे वो सुख, वो मान दिया है, कि मैं कह नहीं सकती! पियो... मेरी जान... मेरे लाल!”

मैं पीता रहा - धीरे धीरे! बूँद बूँद कर के! देर हो रही थी। माँ का दूध पीते हुए कब आँख लग गई, कुछ याद नहीं।

**

रात में जब मैंने बिस्तर पर जानी पहचानी हलचल महसूस करी, तो मैं जाग गया। बस जाग गया - लेकिन न तो आँखें खोलीं, और न ही उठ कर बैठा। मैंने महसूस किया कि पापा और माँ अपनी प्रणय-क्रिया में तल्लीन थे। कमरे में वही जीरो वाट का बल्ब जल रहा था, इसलिए उन्हें पता नहीं चल रहा होगा, कि मैं जाग गया हूँ। पापा बड़े उत्साह से माँ की योनि में अपना लिंग पंप कर रहे थे। दोनों को ही बड़ा आनंद आ रहा था, इसलिए उन दोनों का कराहना और गुर्राना बहुत स्पष्ट तरीके से सुनाई दे रहा था।

“आ…आह…आह… धीरे धीरे करिए ना! … बेटा जग जाएगा!” माँ कह रही थीं।

“अरे दुल्हनिया… कैसे धीरे-धीरे करूँ?” पापा उखड़ती हुई साँसों के साथ बोले, “तुम होती हो तो खुद पर काबू रखना मुश्किल हो जाता है।”

मैं उनकी बात पर हँसना चाहता था, लेकिन मैं केवल मुस्कुराया, और वो भी बिना कोई आवाज किए। ये तो मुझे मालूम ही था कि पापा हमेशा से ही माँ के दीवाने थे। अभी भी हैं! मैं इस बात से खुश था कि उनको अभी भी माँ इतनी आकर्षक और सेक्सी लगती थीं! उन दोनों के बीच प्रगाढ़ प्रेम के साथ साथ वासना की गर्माहट भी बनी हुई थी, और यह बहुत अच्छी बात थी।

“हा हा... आह... आह... इतने साल हो... आह... गए हैं हमारी शादी को,” माँ ने प्रेम क्रीड़ा का आनंद लेते हुए कहा, “अब तो अपने पर काबू रखना... आह्ह्ह... सीख लीजिए!”

“सीख लेंगे मेरी दुल्हनिया!” पापा ने कहा और पंप करना जारी रखा, “जब लण्ड खड़ा होना बंद हो जाएगा, तब वो भी सीख लेंगे! लेकिन तब तक तो झेलना पड़ेगा तुमको!”

‘हा हा! अगर ये बात है तो माँ को अगले कम से कम तीस पैंतीस साल तक ‘झेलना’ पड़ेगा पापा के साथ प्रणय!’

सम्भोग होता रहा, और सम्भोग के हर धक्के पर माँ विलाप करती रहीं, और विनती करती रहीं। लेकिन सम्भोग होता रहा। यह एक अच्छा, पुराने स्टाइल वाला सम्भोग था, जो एक पति, अपनी पत्नी को खुश करने, संतुष्ट करने की इच्छा से करता है...

“तीन तीन बच्चों के बाप हैं अब आप,” माँ ने पापा को चिढ़ाते हुए कहा, “इतनी बेकरारी अच्छी नहीं लगती है इस उम्र में!”

“इस उम्र में? हैं? अरे दुल्हनिया, अभी हमारी उम्र ही क्या हुई है? एक दो बच्चे और पैदा कर सकते हैं हम अभी तो!”

“हा हा हा!” माँ इस सुझाव पर खिलखिला कर हँसने लगीं।

“क्यों? कुछ कम कहा? चलो - एक दो नहीं, दो तीन कर लेंगे?” पापा ने और ज़ोर से धक्के लगाते हुए कहा।

“आह... आह... क्या बात है? ... आह... आज बड़े जोश में हैं आप?”

“क्यों न रहूँ दुल्हनिया? आज मेरे बेटे ने मुझे जो मान दिया है... मन में आ रहा है हम एक बार और मम्मी पापा बन जाएँ!”

माँ इस बात पर और हँसने लगीं, “हा हा… आप भी न! ये दोनों बच्चे, मेरी पोती से भी कम उम्र के हैं! और आपको अभी भी और बच्चे चाहिए? तीन बच्चे काफ़ी नहीं हैं!”

“जितने बच्चे हों, मुझे तो उतना ही अच्छा है! बाप का प्यार लुटाने पर कम थोड़े होता है!”

उनकी बात पर माँ ज़रूर मुस्कुराई होंगीं - उनकी आवाज़ कुछ क्षणों तक नहीं आई। फिर माँ बोलीं, “मेरी एक बड़ी इच्छा यही है कि मेरे अमर की फिर से शादी हो जाए! उसके और बच्चे हों!”

“हाँ न! मैं भी तो कब से यही सोच रहा हूँ! ऑफिस में मुझे एक दो लड़कियाँ पसंद तो आई हैं बेटे के लिए! लेकिन पता नहीं - उनको हमारा परिवार कैसा लगेगा!”

“आपको पसंद आई हैं, तो कुछ बात तो होगी न?”

“हम्म...” पापा ने धक्के लगाना जारी रखा, “अम्मा की शादी का काम पूरा हो जाय, तो उधर फोकस करता हूँ!”

“भरा पूरा परिवार सोच कर कितना अच्छा लगता है न?” माँ ने कहा।

“हाँ! है न? सोचो न दुल्हनिया, क्या पता, अम्मा की भी गोद फिर से भर जाए?”

“क्या पता क्या? बिलकुल भरेगी! मुझे पूरा यकीन है!”

कुछ और धक्कों की आवाज़ें आईं।

“मेरे बेटू की ज़िन्दगी में भी फिर से बहार आ जाए बस!”

“हाँ दुल्हनिया! कितना अच्छा होगा!”

“हाँ न! एक प्यारी सी बहू आ जाए जो इसको फिर से इतना प्यार दे, कि ये अपने सब दुःख भूल जाए!” माँ ने प्यार से कहा, “आपकी तरह ही अमर को भी बच्चे पसंद हैं! लेकिन... खैर, जब ईश्वर चाहेंगे...!”

मैंने अपने माथे और सर पर माँ की हथेली का प्रेम और ममता भरा स्पर्श महसूस किया।

“कितना भोला लगता है सोते समय...” माँ ने कहा, और मुझे प्यार से स्पर्श करना जारी रखा।

“सोते समय ही? मेरा बेटा हमेशा ही बहुत भोला है।” पापा ने कहा, “ऐसा बेटा भगवान सबको दें!”

“सच में जी!” फिर थोड़ा हँसते हुए बोलीं, “ये देखिए... किसी हसीन सपने में डूबा हुआ है आपका भोला बेटा...”

दोनों ने क्या देखा, कह नहीं सकता। लेकिन मुझे अगले ही पल पापा के भी हँसने की आवाज़ सुनाई दी। तब जा कर मैंने महसूस किया कि मेरा लिंग इस समय पूर्ण स्तंभित हो कर तन गया था। या तो उन दोनों की काम-क्रीड़ा की आवाज़ सुन कर, या फिर रात में सोते समय जो स्तम्भन होता है उसके कारण!

‘अरे यार! माँ तो ठीक हैं, लेकिन पापा के सामने भी यूँ नंगू!’ मन में विचार आया।

“भोला भी है, और तंदरुस्त भी!” पापा ने बड़े गर्व से कहा।

“बचपन में कितनी ही बार इसका छुन्नू ऐसे ही खड़ा हो जाता था... लेकिन इस भोलेबाबा को बहुत देर में जा कर समझ में आया कि ऐसा क्यों होता है। आज बहुत दिनों बाद फिर से देखी ऐसा होते हुए... ओह इसके बचपन की बातें!”

“मेरा बेटा है...” पापा ने बड़े गर्व से कहा।

“वो तो है!”

“नहीं दुल्हनिया! तुम बुरा मान जाओगी, और मेरा बेटा भी! लेकिन आपको सच सच कहूँ मेरी जान? हम दोनों जब भी प्यार करते हैं न... हर बार मेरा मन यही करता है कि काश, अमर मेरे बीज से पैदा हुआ होता।”

माँ ने कुछ कहा तो नहीं, लेकिन मुझे लगा कि पापा ने जो कुछ कहा था, वो उसको सुन कर मुस्कुराई अवश्य होंगी! पापा की यह लंबे समय से पल रही ‘गुप्त’ इच्छा थी!

“काश मैं तेरी प्यारी सी कोख में अपना बीज भरता, और उसके कारण अमर तेरे पेट में आता! और फिर... जैसे आज किया है न तूने दुल्हनिया... तू उसको मेरे सामने अपना दूध पिलाती…”

“पिलाया तो आपके सामने!”

“हा हा! हाँ दुल्हनिया! पिलाया तो! मेरी कही अनकही - हर इच्छा पूरी की है तूने! देवी हो तुम! माता जी का आशीर्वाद हो तुम... सच में दुल्हनिया, तू मुझे पहले मिली होती, तो हमारे ढेर सारे बच्चे होते!”

“हा हा हा... आई नो! वैसे, अभी भी कोई कम बच्चे नहीं हैं हमारे।”

माँ ने कहा। शायद इस बात पर पापा ने चुम्बनों की बौछार लगा दी।

“दुल्हनिया, मैं अपने अमर को सब कुछ सिखाता… पढ़ाता, लिखाता, उसके साथ खेलता… उसको खूब प्यार करता! खूब ज्यादा…”

“आह्ह्ह्ह…” माँ के गले से ज़ोर की कराह निकल गई।

शायद पापा ने कुछ ज्यादा ही शक्तिशाली धक्का लगा दिया!

“तुमको मेरी बातें बेवकूफी भरी लगती हैं न दुल्हनिया?”

“नहीं नहीं! आपको ऐसा क्यों लगा?” माँ ने उनको चूम लिया, “मुझको तो ये बहुत स्वीट बातें लगती हैं!” माँ ने प्रसन्नतापूर्वक कहा।

कुछ देर तक उन दोनों ने शांत रह कर मैथुन किया। फिर माँ ने ही चुप्पी तोड़ी, “आप कब आओगे? मेरा तो दो बार हो चुका...”

पापा ने उत्तर में उनको चूमा, “उंगली से जो किया था, वो काउंट नहीं होगा।”

“नहीं, उसके बाद दो बार हो गया!” माँ ने हाँफते हुए कहा।

“अच्छा! बस बस, आ ही गया।”

पापा ने पाँच या छः और धक्के लगाए, तब जा कर उनका भी स्खलन हुआ।

‘सही है यार!’ मैंने सोचा, ‘इस उम्र में भी माँ को सम्भोग का ऐसा आनंद, ऐसी संतुष्टि मिल रही थी!’

पूरी तरह स्खलित होने तक पापा माँ को चूमते रहे, और फिर बोले, “मज़ा आया दुल्हनिया?”

“बहुत!” माँ ने उनको चूमा, और बहुत संतुष्ट स्वर में कहा, “आप ये बात हमेशा पूछते हैं...” उन्होंने पापा को फिर से चूमा, “आपको पूछने की ज़रूरत नहीं... अभी तक एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि मजा ना आया हो...”

“दुल्हनिया, ये तो पति का धर्म होता है कि अपनी पत्नी को हमेशा संतुष्ट करे! मैं तो केवल सर्टेन करने के लिए पूछता हूँ!”

बिस्तर के हिलने से मैंने महसूस किया कि दोनों बिस्तर से उठ गए थे - शायद बच्चों को देखने के लिए, या पानी पीने! जब दोनों वापस लौटे, तो आदर्श माँ की गोद में था। उसको कुछ देर दूध पिला कर वापस उसके पालने में सुला दिया गया। इस समय पापा माँ के बगल ही लेते हुए थे, लेकिन कुछ इस तरह कि मेरे लिए जगह की कोई कमी नहीं थी। शायद दोनों एक दूसरे से गुत्थम गुत्थ हो कर लेटे हुए थे।

लगभग पाँच मिनट के बाद, मुझे फिर से चूमने की आवाज़ें सुनाई देने लगीं। जाहिर तौर पर, पिताजी ने उसके स्तनों को निचोड़ा जिसके परिणामस्वरूप दूध के फव्वारे निकले, क्योंकि माँ ने कहा,

“अरे! फिर से भर गए।”

“कोई बात नहीं... आदित्य को पिला दो?”

“अरे कहाँ... जब वो सोता है, तब उसको कुछ होश नहीं रहता।”

“क्या? कैसा बच्चा है!” पापा ने विनोदपूर्वक कहा, “अपने भैया से कुछ सीखता नहीं! बेकार लड़का!”

“आपका भी यही हाल था। और आपने तो कितना जल्दी छोड़ दिया था अम्मा का दूध!” माँ ने भी विनोदपूर्वक कहा, “वो तो मेरे कहने पर उन्होंने आपको जबरदस्ती पिलाना शुरू किया था!”

“समझाना पड़ेगा आदित्य को! अगर अपने पापा और भैया जैसा नुनु चाहिए, तो मम्मा का दुद्दू पीते रहना चाहिए!”

“आप लड़के लोग और आपने नुनु!” माँ हँसने लगीं, “हम औरतों पर जो आफत आती है वो?”

“मज़ा भी तो आता है न मेरी जान? आता है कि नहीं?”

“आता है, लेकिन रात भर जागना भी तो पड़ता है न!”

“मैं भी तो जाग रहा हूँ!” पापा ने कहा, फिर बोले, “बेटे को पिला कर देखो?”

“वो भी सो रहा है!” माँ ने कहा और प्यार से मेरे बालों को सहलाया।

“दुल्हनिया, बच्चों के होंठों पर जब निपल्स छूते हैं, तो वो उनको अपने आप ही पहचान लेते हैं! इंस्टिंक्टस हैं ये सब!”

“हा हा! अच्छा जी? बड़ा नॉलेज है आपको? शैतानों के बाप!” माँ ने हँसते हुए कहा, “अच्छा ठीक है… ज़रा लाइट तो जला दीजिए न?”

मैं सतर्क हो कर सोने का नाटक करने लगा। पापा फिर उठे और कमरे की बत्ती ऑन कर आए। ये भी कम वाटेज वाला बल्ब था, लेकिन मंद प्रकाश भी कमरे को रोशन करने के लिए पर्याप्त था। माँ ने अपने स्तंभित हुए एक चूचक को मेरे मुँह पर छुआया। इस क्रिया में मुझे आनंद तो आया, लेकिन मैंने अपने होंठ नहीं खोले।

“थोडा ठीक से डालो। उसे पता भी तो चलना चाहिए न।” पापा ने सुझाया।

तो, माँ ने अपने चूचक से मेरे गाल को सहलाया और मेरे होठों के बीच उसको सटा कर दबा दिया। दूध की कुछ बूँदें मेरे मुँह में जा गिरीं। मैंने अब इस प्यारे खेल में भाग लेने और माँ की स्तनपान कराने की इच्छा पूरी करने का फैसला किया। मैंने अपना मुँह खोला और माँ का चूचक गृहण कर लिया। और स्तनपान करने लगा।

“देखा!” पापा बोले, “मैंने कहा था न? बच्चों को दूध की पहचान होती है!”

“हा हा!”

“बहुत सुन्दर है मेरा बेटा...” पापा बोले, “आई ऍम वैरी प्राउड!”

“आज आप बहुत खुश हैं!” माँ बोलीं।

“बहुत बहुत खुश दुल्हनिया!”

“मैं भी... अमर ने आपको जो आदर दिया है, वो अनमोल है।” माँ ने कहा, “इतने सालों की तमन्ना पूरी हो गई आज।”

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भाई क्या ग़ज़ब कर दिए आपने
क्या कहूँ
यह एक भंवर रचा है आपने
रिश्तों का जज्बातों का
एक ऐसा दरिया जिस पर तैर के जाना मुश्किल है
सिर्फ डूब कर ही जाया जा सकता है l
बेटा तुल्य अब पिता है
परिपक्वता का स्तर अमर से अधिक है
एक और ढलती यौवना
दुसरी तरफ यौवन के मद्ध्याह्न
फिर भी प्रेम असीमित है
आकर्षण तिल मात्र कम नहीं हुआ है
बेटा अपनी उम्र से तीस वर्ष पीछे चला गया है माँ के प्रेम के लिए पर पिता माता के प्रेम संसर्ग का मूक साक्ष भी बना उनके अनजाने में
क्या कहूँ और क्या लिखूं
यह रिश्तों का आपसी ताना बाना से गुज़रते हुए भंवर की ओर ले जा रही है
ऐसी कल्पना अपने आप में अद्भुत है और रचना में शालीनता उसके अनुरूप
साधुवाद
आशा है आपकी लैपटॉप अभी ठीक हो गया होगा
इतने दिनों के विराम के बाद सिर्फ एक ही अपडेट
खैर अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी
 

avsji

..........
Supreme
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21,012
159
भाई क्या ग़ज़ब कर दिए आपने
क्या कहूँ
यह एक भंवर रचा है आपने
रिश्तों का जज्बातों का
एक ऐसा दरिया जिस पर तैर के जाना मुश्किल है
सिर्फ डूब कर ही जाया जा सकता है l
बेटा तुल्य अब पिता है
परिपक्वता का स्तर अमर से अधिक है
एक और ढलती यौवना
दुसरी तरफ यौवन के मद्ध्याह्न
फिर भी प्रेम असीमित है
आकर्षण तिल मात्र कम नहीं हुआ है
बेटा अपनी उम्र से तीस वर्ष पीछे चला गया है माँ के प्रेम के लिए पर पिता माता के प्रेम संसर्ग का मूक साक्ष भी बना उनके अनजाने में
क्या कहूँ और क्या लिखूं
यह रिश्तों का आपसी ताना बाना से गुज़रते हुए भंवर की ओर ले जा रही है
ऐसी कल्पना अपने आप में अद्भुत है और रचना में शालीनता उसके अनुरूप
साधुवाद
आशा है आपकी लैपटॉप अभी ठीक हो गया होगा
इतने दिनों के विराम के बाद सिर्फ एक ही अपडेट
खैर अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी
बहुत बहुत धन्यवाद भाई मेरे।
अभी लैपटॉप ठीक नहीं हुआ है। टूट गया है, तो ठीक होने का स्कोप कम ही है। नया लेना पड़ेगा।
आपने केवल अपडेट #5 पढ़ा है। उसके पहले के दो और अपडेट नहीं ☺️☺️
 

KinkyGeneral

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अंतराल - समृद्धि - Update #4

मैं चौंक गया।

‘क्या?’ मैं सुनील को पापा कह कर बुलाऊँ?

माँ कह रही थीं, “प्लीज मुझे पूरी बात बोल लेने दो... उस दिन... उस दिन, ये मुझसे बोल रहे थे कि ‘दुल्हनिया... अब मैं अमर को हक़ से अपना बेटा कह सकता हूँ’!” वो थोड़ा ठहर गईं, फिर बोलीं, “... जानते हो बेटू... जब से हमारी शादी हुई है न, ये तब से तुमको अपना बेटा कहना चाहते हैं। लेकिन तुम्हारा और अम्मा का कुछ रिलेशन ऐसा था कि चाह कर भी... ... लेकिन, अब जब अम्मा की शादी सत्यजीत से होने वाली है, तब तो ये पॉसिबल है न?”

“लेकिन माँ...”

“आई नो बेटू! ये तुमसे उम्र में इतने छोटे हैं - यही कहना चाहते हो न?” माँ ने समझते हुए कहा, “हाँ - ये हैं तुमसे छोटे! लेकिन प्यार के रिश्ते उम्र के मोहताज नहीं होते - उसमें तो केवल फ़ीलिंग्स देखी जाती हैं! है कि नहीं?”

“माँ, वो तो ठीक है... लेकिन डैड...?”

माँ मुस्कुराईं, “एक बात कहूँ बेटू? मुझे भी इसी बात की आशंका थी बहुत पहले... कि कहीं ये ‘उनकी’ जगह तो नहीं लेना चाहते! लेकिन फिर मुझे इनके प्यार की संजीदगी का भी एहसास होने लगा। ... और इन चार सालों में इन्होने मेरे दिल में वो जगह बना ली है, जो इनकी अपनी है।”

माँ ऐसे बोल रही थीं कि जैसे वो कहीं बहुत दूर हों, “ये मेरे लवर तो हैं ही, मेरे साथी भी हैं। कभी कभी तो कंफ्यूज हो जाती हूँ, कि मैं इनकी क्या हूँ! माँ वाला आदर भी मिलता है मुझे इनसे! जानते हो? रोज़ ऑफिस जाने से पहले मेरे पैर छूते हैं, और मैं इनको आशीर्वाद भी देती हूँ! ... लेकिन हूँ तो मैं इनकी बीवी ही न! ऑफिस से आते हैं, तो छा जाते हैं ये मुझ पर! इनकी छुवन इतनी शिद्दत भरी होती है कि समझ नहीं आता कि मुझसे दो बच्चे होने के बाद भी इनको कितना आनंद मिलता है मुझसे...”

माँ अपने वैवाहिक जीवन की ऐसी अंतरंग बातें मुझको बता रही थीं, कि मुझे भी थोड़ा असहज सा महसूस होने लगा। लेकिन मुझे उन बातों में निहित भावनाएँ भी सुनाई दे रही थीं।

“करवाचौथ में मैं भी तो इनके पाँव छूती हूँ! उनके पाँव छू कर मैं छोटी नहीं हो जाती... वो मेरा प्यार है उनके लिए। उनके पाँव भी छूती हूँ और उनको आशीर्वाद भी देती हूँ। ... और अम्मा के साथ मेरा रिश्ता देखो... उनके लिए तो मैं बेटी ही हूँ! उनसे छोटी हूँ, लेकिन हूँ उनकी बेटी! और कोई रिश्ता नहीं हो सकता उनके साथ। वो तो मुझे सारे बच्चों जैसे ही ट्रीट करती हैं! ... मानती हूँ कि ये तुम्हारे पिता नहीं हैं। और सच तो ये है कि ये ‘उनकी’ जगह लेना भी नहीं चाहते! लेकिन वो तुम्हारी माँ के पति तो हैं ही! इसलिए उनका मन तो करता ही है न!”

मैं समझ रहा था कि माँ क्या चाहती हैं।

तुरंत न तो इंकार कर सकता था, और न ही इकरार। वैसे उनकी बात समझ में आ रही थी। एडजस्टमेंट तो था थोड़ा, लेकिन ऐसा नहीं कि मुझसे मेरी किडनी माँग ली गई हो।

“कोशिश करूँगा माँ!”

“सच में बेटू?”
“हाँ माँ!”

माँ संतुष्टि से मुस्कुराईं, “थैंक यू मेरी जान! आई लव यू! अब आ जाओ। तुम्हारे लिए ही सवेरे से ये वाला स्तन बचा कर रखा हुआ है इन दोनों शैतानों से!”

“अभी नहीं माँ,” मैंने कहा - मन में कई विचार आ जा रहे थे, “कुछ देर बाद?”

माँ मुस्कुराईं और ‘हाँ’ में सर हिला कर आदित्य को दूध पिलाने लगीं।



**



शाम को जब सुनील घर आए, तो मैंने महसूस किया कि मेरे पैर छूने से पहले वो थोड़ा हिचकिचाए अवश्य! लेकिन फिर भी उन्होंने मेरे पैर छुए। मैं भी हिचकिचाया - मुझे मालूम था कि सुनील मुझे किस दृष्टि से देखते हैं, और मुझसे क्या चाहते हैं। लेकिन फिर भी मैंने उनको आशीर्वाद दिया।

‘बाप रे! सुनील मेरा पिता!’ यह विचार बेहद झकझोरने वाला था।

सामान्य परिस्थिति होती, तो शायद मैं यह सब न सोचता। लेकिन मेरे और सुनील के रिश्ते में एक अजीब सा उलझाव था। वो मेरी माँ के पति हैं, और मैं उनकी माँ का प्रेमी - अब नहीं, लेकिन कभी तो था ही! एक समय उसकी माँ मेरी संतान भी पैदा कर चुकी थी, और मेरी माँ उसकी दो दो संतानों को पैदा कर चुकी है। माँ के लिए आसान रहा होगा - एक बार उन्होंने सुनील को अपना पति मान लिया, तो फिर दोनों के बीच कोई दीवार रह ही नहीं जाती। डैड का स्थान मेरे जीवन में कुछ ऐसा था कि किसी और को उनकी जगह रखना तो दूर, रखने का सोचना भी गुनाह था! उन्होंने क्या कुछ नहीं किया था मेरे लिए। लेकिन फिर माँ की बात भी याद आ गई - सुनील किसी की जगह नहीं लेना चाहते थे ... वो मेरे जीवन में बस अपनी जगह बनाना चाहते थे। थोड़ा अटपटा सा लगा, लेकिन बात आई गई हो गई।

हमने एक दूसरे का कुशल क्षेम पूछा। फिर ‘अभी आया’ बोल कर वो अपने कमरे के अंदर जाने लगे।

“मेरी जान, एक एक कप चाय हो जाए?” जाते जाते सुनील ने शर्ट का बटन खोलते हुए माँ से गुज़ारिश करी।

“आप हाथ मुँह धो लीजिये... लाती हूँ।” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा।

उन दोनों के वार्तालाप से मुझे माँ की बातें याद आने लगीं - कोई और समय होता, तो सुनील इस समय माँ के साथ प्रणय कर रहे होते!

जब तक सुनील वापस लौटे, तब तक चाय तैयार थी। माँ जब वापस लौटीं, तो उनके हाथों में केवल एक ही कप था, जो उन्होंने सुनील को थमा दिया।

“माँ, मेरी चाय?”

“तुम्हारी चाय? बताया तो! मेरे बच्चों को केवल मेरा दूध ही मिलेगा!” माँ ने हँसते हुए कहा।

उनकी बात पर सुनील भी हँसने लगे, “भई, इस बात पर तो मैं भी बहस नहीं कर सकता! घर की माँ लोगों का बनाया हुआ रूल है ये तो!” उन्होंने कहा, और अपना पल्ला झाड़ लिया।

“क्या माँ?” पहले मुझे लगा कि मज़ाक चल रहा है! सुनील के सामने माँ क्या वो सब कर पाएँगी?

“मतलब न चाय, न कॉफ़ी, न व्हिस्की?”

“मेरे दूध से अधिक स्वाद मिलता है इनमें?” माँ ने तपाक से कहा।

अब इस बात का क्या उत्तर दें? सही बात है - न तो स्वाद में, और न ही गुणवत्ता में माँ के दूध का कोई सानी है।

“अरे इसमें इतना क्या सोच रहे हैं? पी लो न?” सुनील ने कहा।

“आ जाओ,” माँ ने मेरे बगल बैठते हुए कहा, और अपना कुर्ता उतारने लगीं।

अब समझ में आया कि यह कोई मज़ाक नहीं है, बल्कि सीरियस है मामला। जब तक मैं माँ की गोद में खुद को समेटने और व्यवस्थित करने में समय लिया, तब तक माँ के दोनों स्तन स्वतंत्र हो गए।

लेकिन मुझे अभी भी झिझक सी हो रही थी। मैंने सुनील की तरफ़ देखा।

“अरे, उनको क्यों देख रहा है?” माँ ने मुझे छेड़ा, “दूध इधर है!”

और फिर सुनील को भी छेड़ते हुए माँ ने कहा, “आप चाय का मज़ा लीजिए! पापा लोगों को नो दूधू!”

सुनील ने खींसे निपोरते हुए कहा, “ठीक है... लेकिन बस सोने से पहले...”

“अरे बस... बेटे के सामने ऐसी बातें करते हैं!” माँ ने कहा, और अपना वही स्तन मेरे मुँह में दे दिया, जो उन्होंने मेरे लिए सवेरे से बचा रखा था।

चाय पीते हुए सुनील मुझसे सत्यजीत और काजल के बारे में बातें कर रहे थे, ऐसे कि जैसे इस तरह से हमारा बातचीत करना बड़ी सामान्य सी बात हो। माँ से स्तनपान करते करते सुनील से बात करना मुझे अटपटा तो लग रहा था, लेकिन उसमें कुछ परिचित सा भी था। मुझे बीते दिनों की बातें याद आ गईं, जब मैं डैड के सामने इसी तरह से माँ का स्तनपान करता था। न जाने क्यों, मुझे उस पल अपने स्वयं के टूटे हुए परिवार की पूर्णता होने का एहसास हुआ! मुझे ऐसा लगा कि जैसे सच में मेरे सर पर मेरे पिता का हाथ आ गया हो! आश्चर्य है!

जब सौतेली माँ घर आती है, तो उससे यही उम्मीद करी जाती है कि घर के बच्चों के लिए वो माँ का रूप ही धारण करेगी। कभी उससे ये होता है, तो कभी नहीं। सुनील मेरे जीवन में मेरे पिता के रूप में आना चाहता था, यह अनोखी सी बात थी। लेकिन ऐसी कोई असामान्य सी बात भी नहीं थी। सौतेली माँ के समान ही, सौतेला पिता से भी तो घर के बच्चों का पिता बनने की आशा की जाती है। सुनील भी तो यही चाहते थे!

‘सच में, सुनील को अपने जीवन में ऊँचा स्थान देना, कोई ऐसी गलत बात नहीं है!’ मैंने सोचा।

खैर, कल के बारे में हमने क्या कुछ करना था, उन सब बातों पर हमने सोच विचार कर लिया। और अगर बात आगे बढ़ती है, तो क्या करना है, उस पर भी।

मुझको स्तनपान करा कर माँ रात के खाने पीने का इंतजाम करने चली गईं।



**



कमरे में कुछ समय का एकांत हो गया...

न जाने क्यों आज हम सामान्य तरीके से बात नहीं कर पा रहे थे। हिचकिचाहट थी हम दोनों के ही बीच में। बारह साल का एक लम्बा समय हो गया हमको एक दूसरे को जाने और समझे हुए। लेकिन फिर भी कितना कुछ बाकी था! और अगर आज मैंने माँ की बात स्वीकार कर ली, तो और भी कितना कुछ बदल जाएगा हमारे बीच!

“भैया,” उन्होंने कहा, “आप यहाँ मुंबई में अपना ऑफ़िस क्यों नहीं खोल लेते?”

“यहाँ? क्यों? आपको ऐसा क्यों लगा?”

“अब अम्मा भी यहीं आ जाएँगी। एक बड़ा सा घर ले कर हम सभी साथ में रहेंगे न? मतलब अम्मा अपने घर, और हम सभी यहाँ - एक परिवार!”

“मैं भी यही सोच रहा था!”

“सच में?”

“ओह नहीं, मेरा मतलब, एक बड़ा घर लेने की। ... आप सभी के लिए ये घर छोटा पड़ेगा... इसलिए एक नया घर ले लेते हैं न?”

“अरे नहीं! बड़ा घर तब ठीक है, जब बड़ा परिवार हो!” सुनील ने अर्थपूर्वक कहा, “हम तो फिलहाल हम दो, हमारे दो ही हैं! ... हाँ, आप और मिष्टी भी यहाँ आ जाते हैं, तो ज़रूर एक बड़ा सा घर लेंगे! सुख से साथ में रहेंगे... हमारा पूरा परिवार!”

“हा हा... मैं क्या कह रहा हूँ, और आप क्या कह रहे हैं!”

“हम दोनों एक ही बात कर रहे हैं!” सुनील ने कहा, लेकिन थोड़ा गंभीरता से।

इतना सुन कर मैं चुप हो गया। सुनील के मन की बात मेरे सामने थी - बस उन्होने इशारे इशारे में अपने मन में जो कुछ था, सब कह दिया था। मन में एक कल्पना चमक गई - माँ और सुनील - उनके हम तीन बच्चे, और आभा उनकी पोती! हम छः लोग, यहाँ मुंबई में, एक साथ, एक सुन्दर से, खुशनुमा घर में! सच में, आनंद हो आया उस कल्पना को जी कर! मन में विचार आया कि काश मैं बड़ा न होता - आदित्य और आदर्श के जैसे ही छोटा सा होता, तो क्या मज़ा आता!

अब उस कल्पना को मूर्त रूप में कहने का समय आ गया था।

“सु... नील...” मैंने हिचकते हुए कहा।

“हाँ?” इस बार उसने ‘भैया’ शब्द नहीं जोड़ा। शायद उसने मेरी आवाज़ में बदली हुई भावना को सुन लिया था।

मैं हिचकिचाया, “माँ... माँ कह रही थीं कि... कि... आ... आप मुझे... मुझे अपने बेटे...”

मेरी बात पूरी भी नहीं हुई कि सुनील के होंठों पर संतोषजनक मुस्कान आ गई।

“... अपने बेटे जैसा... मानते हैं?”

“बेटे जैसा नहीं... बेटा मानता हूँ!” सुनील ने बिना हिचकिचाए, बिना अटके, बिलकुल स्पष्ट शब्दों में यह बात कह कर जैसे मेरे दिल का बोझ कम कर दिया।

“सच में...?” मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था।

“सच में!”

“तो... तो... मैं... आ... आपको ‘पापा’ कहूँ?”

“हाँ मेरे बेटे, हाँ!” कह कर सुनील अपनी बाहें फैला कर मेरे सामने खड़ा हो गया, “प्लीज कहो...”

एक अद्भुत सा भावनात्मक क्षण था वो मेरे लिए। बस एक पल का असमंजस और मैं लपक कर सुनील के आलिंगन में समां गया। मैंने कुछ कहा नहीं। लेकिन कभी कभी बिना कुछ कहे भी आप बहुत कुछ कह सकते हैं।

“ओह बेटे! मेरे बेटे!” कह कर सुनील ने मेरा माथा चूम लिया, “नथिंग विल मेक मी प्राउडर एंड हैप्पीयर दैन बींग योर पापा!”

जब हमारा आलिंगन छूटा तो सुनील ने मेरी भुजाओं को सहलाते हुए बड़े गर्व से मुझे देखा। उसकी आँखों में आँसू आ गए थे। अब तक माँ भी वहीं आ कर खड़ी हो गई थीं, और हमारे इस अद्भुत मिलन को देख रही थीं।

अभी तक मैंने सुनील को ‘पापा’ कह कर सम्बोधित नहीं किया था - लेकिन मेरे मन में इस बात की स्वीकृति मात्र ही बहुत बड़ी बात थी। सुनील और मेरे बीच के सम्बन्ध का एक तरह का फाइनल फ्रंटियर - अंतिम मुकाम था यह!

“अब जा कर मेरा परिवार पूरा हो गया!” उन्होंने बड़े गर्व से कहा, “देखा सुमन! मैं न कहता था?”

उनकी बात पर माँ केवल मुस्कुराईं। उनकी भी आँखों से आँसू ढलक रहे थे। उन दोनों के बीच में क्या बात हुई थी, जिसका हवाला सुनील दे रहे थे, मुझे नहीं मालूम। लेकिन मुझे उस समय बस इतना ही लग रहा था कि अगर मैं सुनील को ‘पापा’ कह कर पुकारूँगा, तो उनको बहुत अच्छा लगेगा।

मुझे कैसा लगेगा? यह ठीक ठीक कह पाना कठिन था।

सुनील को ‘पापा’ कह कर पुकारना ही कठिन काम था।

किसी और को डैड की जगह देना मेरे लिए बहुत कठिन था। बाप तो बाप होता है, और फिर डैड जैसा बाप... शायद दुनिया में बहुत कम ही हों! लेकिन तुलना करें, तो सुनील भी उन्ही के जैसे थे! अनेक पहलुओं में! पढ़ने सुनने वालों को अजीब लगेगा, लेकिन सच में, वो ‘डैडी मैटेरियल’ तो थे!

ऐसा नहीं था कि मैंने पहले भी इस सम्भावना पर विचार नहीं किया था। अवश्य ही किया था। जिस दिन मुझे माँ और सुनील के बारे में पता चला, तभी से किया था। लेकिन अभी तक किसी ने इस बात को इस तरह सामने नहीं रखा था। आज माँ ने यह बात कही थी - माँ बहुत ही कम बार अपनी इच्छाएँ मुझसे कहती थीं। इसलिए मुझे लगता था कि उनकी बात का मान रखना चाहिए। वैसे भी, ऐसी अनहोनी बात भी नहीं कह दी उन्होंने!

लेकिन बहुत मुश्किल होता है अपने पिता के अतिरिक्त किसी और के लिए वो दो अक्षर कह पाना। लगा कि जैसे किसी शक्ति ने मेरे गले को जकड़ लिया हो।

“पा... पा...” बड़ी मुश्किल से मेरे गले से आवाज़ निकली।

“ओह... बेटा मेरा...” सुनील की प्रतिक्रिया ऐसी थी कि जैसे उनको अमृत मिल गया हो, “एक बार फिर से बोल दो बेटे...”

“पापा...” इस बार मैंने थोड़े अधिक नियंत्रण से कहा।

भावनाओं के मारे मेरा गला भी भर आया था। सुनील... ओह, मेरा मतलब, पापा का चेहरा देखने लायक था। गर्व, सुकून, ख़ुशी - ऐसे न जाने कितने भाव उनके चेहरे पर आ गए।

“मेरे बेटे... मेरे बेटे...” कह कर उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में फिर से समेट लिया।

इतना मज़बूत आलिंगन - जैसे कि उनको मुझे खो देने का डर हो। इतने वर्षों बाद उनके मन की मुराद पूरी हो गई थी, तो अब वो अपनी नेमत को समेट लेना चाहते थे।

“आज के दिन के लिए कितना इंतज़ार किया…” वो कह रहे थे, “आज सब मुरादें पूरी हो गईं मेरी! सब मुरादें...”

सच कहूँ? अपने सर पर पिता का साया वापस आ जाना एक आइए सुखद एहसास है कि उसका वर्णन करना असंभव है। पिता और माता - दोनों समझिए आकाश और धरती समान होते हैं। उनके प्रेम की वर्षा अपने बच्चों पर सदैव होती रहती है। सुनील को अपने पिता के रूप में देखना बेहद सुखद था।

आई लव यू बेटू...” माँ ने कहा!

उनको भी बहुत ख़ुशी थी कि मैंने उनकी बात का मान रख लिया।

व्ही लव यू...” पापा ने माँ को के कहे में संशोधन किया, “एंड व्ही आर सो प्राउड ऑफ़ यू...”, गर्व और प्रसन्नता से उनका चेहरा दमक रहा था।

माँ को भी देख कर ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई बेहद भारी बोझ उनके ऊपर से हट गया हो!

और उन दोनों को देख कर मुझे पहली बार एहसास हुआ कि अचानक से मुझे भी कितना हल्का महसूस होने लगा था! शायद यही एहसास माँ को भी हुआ होगा - जब उन्होंने अपना परिवार में ‘कनिष्ठ’ वाली भूमिका स्वीकारी होगी। पापा को अपना पिता मानते ही मैं भी आदित्य और आदर्श के समकक्ष हो गया - उनका बड़ा भाई। और मेरी मिष्टी, उनकी भतीजी! पुचुकी अब मेरी बुआ हो गई, और काजल - जो कुछ समय पहले तक मेरी प्रेमिका थी, अब मेरी दादी हो गई!

“भई सुमन,” पापा ने माहौल को हल्का करने की गरज से कहा, “आज सच में मेरा परिवार पूरा हो गया! कितना भाग्य वाला हूँ… मेरे तीन बेटे हैं... एक प्यारी सी, गुड़िया जैसी पोती है... इतना प्यार करने वाली पत्नी है... नटखट सी बहन है, ... और प्यारी सी माँ और... अब तो... अब तो, एक होने वाला बाप भी है, भई!” सुनील ने हँसते हुए कहा, “बहुत बहुत खुश हूँ मैं आज!”

मैं मुस्कुराया।

माँ ने कहा, “मैं भी बहुत खुश हूँ!”

पापा ने अपनी बाँह माँ की तरफ़ फैला दी; माँ भी हमारे साथ ही उनके आलिंगन में समां गईं।

कैसा आनंद मिला मुझे उस समय, मैं बयान नहीं कर सकता। कहीं कहीं शब्द आपकी असली भावनाओं को धोखा दे देते हैं; उनके गुरुत्व को कम कर देते हैं।

एक तरफ़ मैं अपनी खुद की ही भावनाओं को समझने, और आत्मसात करने में व्यस्त था, तो दूसरी तरफ माँ मुझे रह रह कर चूम रही थीं, और पापा भी! उस क्षण में मेरा कायाकल्प हो गया - मनसा कायाकल्प! उस समय मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं वाकई एक छोटा सा बालक हूँ, जिसके मम्मी पापा उसको प्यार कर रहे हैं, दुलार कर रहे हैं! कैसी सुखद सी अनुभूति थी!

“मुझको हमेशा से ही एक बड़ा सा परिवार चाहिए था... और आज मुझको वो मिल गया!” पापा कह रहे थे।

“मुझे भी...” माँ ने उनकी हाँ में हाँ मिलाई।

यह एक ऐसी सच्चाई थी, जिसके बारे में मुझे अच्छी तरह से पता था। उन दोनों की शादी होने में इस चाह का भी बड़ा योगदान था। यह चाह न होती, तो बहुत संभव था कि माँ दूसरी शादी के लिए इंकार कर देतीं।

हम तीनों एक दूसरे के आलिंगन में कुछ देर तक बंधे खड़े रहे। यह आलिंगन माँ ने तोड़ा। उन्होंने मुस्कुराते हुए, बड़े गर्व से मुझको देखा। मैंने भी उनकी तरफ देखा कि वो क्या कहने वाली हैं। लेकिन माँ ने कुछ कहा नहीं, बस मुस्कुराईं और मेरे सर में अपना हाथ प्यार से फिरा कर बोलीं,

आई लव यू माय सन!”


**
Idk how I feel about this one, makin our boi (Amar) fold like this. I dunno wat kind of a mindset I have right now but I'm not very obliged by the turn of events n it's alright, not your duty to please everyone. But dang, these episodes were one helluva rollercoaster.
 
Last edited:

Kala Nag

Mr. X
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अंतराल - समृद्धि - Update #3


सत्यजीत से मिलने के लिए और उसकी और काजल की शादी की तैयारियों की फॉर्मेलिटीज पूरी करने के लिए मैं उसी सप्ताहांत मुंबई चला गया।
ठीक कहा मित्र मैंने यह अंक मिस कर दिया था
असल मे मेरे दिमाग में यह रह गया कि आपकी लैपटॉप खराब हो गई है
इसलिये लंबी लंबी पोस्ट कर नहीं पाए होंगे पर देख कर अच्छा लगा
पोस्ट वाकई लंबी और दिलचस्प हैं
मुंबई... अधिकतर लोगों के लिए मुंबई एक रुपहला शहर है... सपनों का शहर!

लेकिन मेरे लिए मुंबई या दिल्ली में कोई ख़ास अंतर नहीं है। मौसम ज़रूर अच्छा है मुंबई का क्योंकि बहुत अधिक ठंडक या गर्मी नहीं होती है यहाँ और बरसात अच्छी होती है। बस... और क्या अंतर है? दोनों ही महानगरियाँ हैं! वैसे मुंबई का एक अलग महत्त्व है मेरे लिए! मुंबई समझिए कि घर है मेरा! मैं एयरपोर्ट से सीधा माँ और सुनील के घर पहुँचा! माँ का घर! हा हा हा! सुन कर, सोच कर भी कैसा लगता है न? खैर, मेरी माँ का घर है, तो मेरा भी है न!
करेक्ट नायक के सन्दर्भ में देखा जाए तो यह फिलिंग जरूर आनी चाहिए
माँ मुझको देख कर बहुत खुश हुईं। भले ही मुंबई और दिल्ली में रहने के कारण हमारे बीच भौगोलिक दूरी हो गई थी, लेकिन हमारा मिलना रुका नहीं था। मेरा और सुनील का दोनों शहरों के बीच आना जाना लगा रहता था। हाँ - माँ को इस बात की शिकायत ज़रूर रहती थी कि वो अपनी दोनों चहेतियों - मिष्टी और पुचुकी - को रोज़ नहीं देख पातीं थीं! अभी भी जब भी वो एक दूसरे को देख लें, तो ऐसी चिपकतीं हैं कि उनको अलग करना लगभग असंभव है।

माँ मुझे देख कर खुश थीं, और मैं माँ को देख कर! सुर्ख़ लाल रंग का सिन्दूर उनकी माँग में चमक रहा था, और गले में उनका मंगलसूत्र सुशोभित हो रहा था। सोने की छोटी छोटी, लेकिन हीरा जड़ी हुई बालियाँ, और उनसे ही मिलती हुई नाक की कील पहनी हुई थी उन्होंने! बेहद हल्की सी लिपस्टिक भी लगा रखी थी उन्होंने। इतने मामूली मेकअप में भी कितनी सुन्दर लग रही थीं माँ! उनके अंदर कितने सारे सुखद परिवर्तन हो गए थे! वो अब शलवार कुर्ता पहनने लग गई थीं। बस कुछ ही समय से उन्होंने इस परिधान में होने वाली सुविधा को समझा, और अपनाया। लेकिन मैंने पहली बार उनको इस परिधान में देखा था। कितनी सुन्दर लग रही थीं माँ! और कितनी जवान! देख कर ऐसा लगता कि जैसे वो मेरी एक दो साल बड़ी बहन हों! दो नए बच्चों की माँ, और मेरी भी माँ, मेरी बड़ी बहन जैसी लग रही थीं! और ये तब था, जब माँ ने बस कुछ महीनों पहले ही एक बच्चे को जन्म दिया था, और यह तुलना तब थी जब मैं खुद अपनी सेहत का खूब ख़याल रखता था।

मैंने उनके पाँव छू कर उनका आशीर्वाद लिया; उन्होंने मुझे अनेकों आशीर्वाद दिए और मुझे कस के अपने गले से लगा लिया। हर्षातिरेक और उत्साह में आ कर माँ ने मुझको अनगिनत बार चूम लिया। एक माँ का अपनी संतान से जो सम्बन्ध होता है, उसको बयान कर पाना कठिन है! अपनी संतान को बनाने में जो भी सामग्री लगती है, वो सब माँ से ही आती है। फिर संतान का लालन, पालन और पोषण - लगभग सब कुछ माँ से ही आता है। सच में - दिखने दिखाने में चाहे कुछ भी लगे, मेरी माँ तो बस मेरी माँ ही हैं! माँ का स्नेह और दुलार तो किसी को भी अच्छा लगता है, तो मैं भी कोई अपवाद नहीं! माँ से दुलार पा कर मैं भी बहुत खुश हो गया।

माँ ने मुझसे सबका कुशल क्षेम पूछा। ख़ास कर आभा और लतिका का। क्यों न हो? दोनों उनकी आँखों के सितारे थे। अपने नन्हे मुन्नों से अधिक शायद उनको इन दोनों से लगाव था। दोपहर के तीन बज रहे थे, इसलिए सुनील फिलहाल ऑफिस में ही था। हाँलाकि आज शुक्रवार होने और मेरे आगमन के कारण वो भी जल्दी ही घर आने वाला था। उन दोनों का बड़ा बेटा, आदित्य, डगमग डगमग करते कमरे में आया। पहले तो वो मुझे पहचान नहीं पाया, लेकिन फिर जब उसने मुझे पहचाना, तो मेरी गोद में तुरंत चढ़ गया।

“बईया...” गोद में बैठ कर उसने मुझे बड़े प्यार से, अपनी तोतली जुबान से पुकारा।

रिश्ते में तो ये दोनों बच्चे मेरे छोटे भाई अवश्य थे - लेकिन उनको देख कर मुझको बड़े भाई वाली फीलिंग नहीं आती थी। कैसे आएगी? मेरी खुद की ही बच्ची उन दोनों से पाँच... साढ़े पाँच साल बड़ी थी! हाँ, उन दोनों को देख कर बाप वाली फीलिंग ज़रूर आती थी। इन दोनों बच्चों का क्या कहें, मुझे तो इन बच्चों के बाप के लिए भी बाप वाली फीलिंग ही आती थी। हा हा! समय और किस्मत की ताकत से हमारे रिश्ते बदल गए थे, तो उसका क्या ही किया जा सकता है? वो तो जो है, सो है!
वाक़ई बंधु
कुछ रिश्ते होते बड़े विचित्र हैं
एक माँ से यह रिश्ते आए हैं इसलिये ऐसा प्रतीत हो रहा है
पर ऐसे कंफुजन वाला रिश्ता आम तौर पर मैंने सामना किया है
मतलब मेरे मामा के यहाँ जॉइंट् फॅमिली है
बाकी आप समझ सकते हैं
“बेटा,” मैंने भी उसके पुकारने पर उत्तर दिया।

“दीदी कहाँ है?” वो आभा के बारे में पूछ रहा था।

आभा उसकी दीदी, और मैं उसका भैया! क्या मज़ाक है! लेकिन बच्चों को क्या कहें? खैर, मैंने कुछ देर आदित्य को खिलाया, दुलराया। छोटा बेटा, आदर्श फिलहाल सो रहा था। छोटे बच्चे दिन भर सोते हैं, और रात में अपने माँ बाप की नींद खराब करते हैं। तो ये बच्चे भी कोई अपवाद नहीं थे। आदित्य से जब थोड़ी फुर्सत मिली, तो माँ के साथ आराम से बात करने का अवसर मिला।

“कैसा है मेरा सबसे प्यारा बेटा?” माँ ने मुझे दुलारते हुए कम से कम पाँचवीं बार पूछा, “अपना ख़याल तो रखते हो न बेटू?”

माँ और उनका प्यार! मैं मुस्कुराया - बत्तीस के ऊपर का हो गया हूँ, और मेरी माँ अभी भी ऐसे ही सोचती हैं जैसे कि मैं कोई छोटा बच्चा हूँ। वैसे सच कहूँ? उनका यही ममतामय रूप मुझे सामान्य लगता है - बीच में जब वो डिप्रेशन का शिकार हो गई थीं, तब हमारे बीच कितनी दूरियाँ आ गई थीं!

“मुझे क्या हो गया है माँ? मैं बिलकुल बढ़िया हूँ!” मैंने बात को पलटते हुए कहा, “मैं तो बस आपका सोचता रहता हूँ... आपके बारे में सोचता रहता हूँ! आप बताइए... आप कैसी हैं?”

“बात को मत बदलो! मैं वहाँ नहीं हूँ तो क्या हुआ? तुम्हारी चिंता तो लगी रहती है... और तुम्हारी खबर भी मिलती रहती है सभी से! कितना सारा काम करते हो! कभी आराम भी करते हो या नहीं?”

“अरे माँ! आप भी क्या बात पकड़ कर बैठ गईं। आराम तो मिलता ही है। बहुत आराम है। और जहाँ तक काम की बात है... काम करने में मुझे मज़ा आता है। इसलिए मेरी चिंता मत करिए! बहुत खुश हूँ मैं। अब बताईये - आप कैसी हैं? सब कुछ ठीक है न?”

“सब कुछ ठीक है... ठीक नहीं, बहुत बढ़िया है... और मैं बहुत खुश हूँ बेटू!”

उनकी आवाज़ की चहक ही यह बताने के लिए काफ़ी थी! माँ कुछ देर चुप रहीं। वो सोच रही थीं और मैं उसमे व्यवधान नहीं डालना चाहता था।

कुछ देर बाद वो बोलीं, “भगवान ने इतनी जल्दी और इतना कुछ दे दिया है मुझे कि कभी कभी सह सब सम्हलता ही नहीं मुझसे!” उन्होंने हँसते हुए कहा।

माँ वाकई खुश लग रही थीं - आँखों और होंठों के किनारों पर वो हँसने मुस्कुराने वाली सिलवटें पड़ी हुई थीं। उससे माँ की सुंदरता में और भी निखार आ गया था। मतलब साफ़ था! माँ सुनील की सोहबत में वाकई खुश थीं। उनका स्वास्थ्य पहले से बेहतर हो गया था, और उनके सपने भी पूरे हो रहे थे। और उन दोनों के जीवन की ख़ुशी उनके घर की दीवारों पर साफ़ दिखाई दे रही थी।

उनके घर की सजावट से मुझे अपने पुराने घर (माँ और डैड के घर) की सजावट याद हो आई। कोई उनके घर के अंदर का दृश्य देखेगा तो पाएगा कि घर की दीवारों पर इस परिवार के बनने के आरम्भ से लेकर अभी तक की तस्वीरें बड़े ही सुरुचिपूर्वक लगी हुई हैं। एक दीवार पर उनकी शादी और हनीमून की तस्वीरें थीं, तो दूसरी पर इस घर के गृह-प्रवेश समारोह और ऑफिस में सुनील के पुरस्कृत किए जाने की! किसी अन्य दीवारों पर उन चारों की विभिन्न परिस्थितियों में खुशनुमा तस्वीरें लगीं थीं। थोड़ा इधर उधर नज़र डाल लें, तो मेरी भी - बचपन से ले कर अभी तक की - जिनमें मेरे ग्रेजुएशन, गैबी और डेवी के साथ शादियों, मेरे बाप बनने की, अपना बिज़नेस शुरू करने की - विभिन्न तस्वीरें सजी हुई थीं। काजल, आभा और लतिका की भी अपनी अपनी दीवारें थीं। मतलब, कुल जमा, इस घर की हर दीवार, इस पूरे परिवार की कोई न कोई कहानी कह रही थी - लेकिन हर कहानी से बस एक ही बात निकल रही थी कि यह एक हँसता खेलता परिवार है। माँ ने अपने नए संसार को बहुत सुरुचिपूर्ण तरीके से सजाया था। सुन्दर सा घर! प्यारा सा संसार!

वैसे तो यहाँ सब कुछ बढ़िया था, लेकिन वो घर - मेरा मतलब, वो मकान - उनके परिवार के हिसाब से छोटा था। ये मेरा अपना ऑब्ज़र्वेशन था। दो कमरे में चार लोग... थोड़ा कम पड़ता है। अभी बच्चे छोटे छोटे हैं, तो ठीक है। लेकिन जल्दी ही उनको अपने लिए और अधिक जगह की ज़रुरत होने वाली थी। कम से कम तीन कमरों का घर चाहिए था उनको - और ऐसा घर जिसमें बच्चों के दौड़ने भागने के लिए जगह रहे। मैंने सोचा कि सुनील के आने के बाद इस बारे में मैं दोनों से बात करूँगा। मेरे पास अब पैसे ठहरने लगे थे; मेरी कंपनी में माँ की शेयरहोल्डिंग होने के कारण उनके पास भी बहुत पैसे थे - वो अलग बात है वो उसको अपना नहीं मानती थीं। वैसे अगर वो ये मकान बेचने का सोचें, तो अगले दिन ही नया तीन या चार कमरे का एक बड़ा सा मकान हम अफोर्ड कर सकते थे! मैंने सोचा कि इसके बारे में दोनों से बात करूँगा।

आई ऍम सो हैप्पी टू हीयर दैट, माँ!” मैंने माँ की बात सुन कर कहा, “आप ठीक हैं? रिकवर हो गई हैं?”

“बिलकुल हो गई रिकवर! हंड्रेड परसेंट! डॉक्टर ने भी क्लीन चिट दे दी है अब! प्रेग्नेंसी फैट भी लगभग ख़तम हो गया है!” उन्होंने आनंदपूर्वक बताया, “और ये दोनों बच्चे इतना बिजी रखते हैं मुझे कि चर्बी चढ़ नहीं पाती!”

सुखी और प्रसन्न परिवार का सुख कैसे लोगों को संतुष्ट कर देता है। जहाँ सुनील अपने काम में तरक्की कर रहा है, वहीं माँ अपनी गृहस्थी में! क्या बढ़िया बात है! सुनील के लिए मेरे मन में आदर और भी बढ़ गया। सच में - उम्र में वो अगर मुझसे थोड़ा बड़ा होता, तो उसको ‘सुनील जी’ कहने में मुझे संकोच न होता! वैसे भी अब सुनील और मैं एक दूसरे को ‘आप’ कह कर सम्बोधित करते थे - देखा होगा आपने कि कैसे ससुर लोग अपने दामाद को ‘आप’ कह कर बुलाते हैं। इसमें उम्र नहीं, पद की प्रतिष्ठा होती है! और पद में तो सुनील मेरा...

खैर छोड़िए यह बात!

“और सुनील?” मैंने पूछा।

सुनील का नाम सुन कर माँ के चेहरे पर एक अलग ही लालिमा दौड़ गई! लज्जा, आनंद, गर्व - और न जाने कैसे कैसे भाव!

वो पहले तो थोड़ा हिचकीं, फिर आनंद से बोलीं, “वो भी बढ़िया हैं! मुझको कुछ करने ही नहीं देते। लेकिन उनका काम भी तो बहुत है न! तो मुझे अधिक काम न करना पड़े, इसलिए कामवाली आती है - साफ़ सफ़ाई करने और खाना पकाने में मेरी मदद करने!”

मैं मुस्कुराया, और थोड़ा हिचकिचाते हुए बोला, “और आप दोनों?”

“हा हा हा!” माँ फिर से आनंदपूर्वक हँसने लगीं, “क्या जानना चाहते हो?”

“आपको मालूम है...”

“हम दोनों भी बहुत अच्छे हैं बेटू!” माँ ने समझते हुए कहा, “... बहुत प्यार करते हैं ये मुझे... बहुत! नहीं तो ये दोनों... हमारे नन्हे मुन्ने कैसे होते?” उन्होंने विनोदपूर्वक कहा। उनकी बात पर मैं हँसने लगा।

उनका मज़ाक उड़ाने की गरज़ से नहीं, बल्कि उनके आनंद में शामिल होने की गरज़ से। माँ भी पहले तो मेरी हँसी में शामिल हो गईं, और फिर थोड़ा ठहर कर आगे बोलीं, “सच में बेटे! पहली बार अपनी लाइफ में मैंने बिना किसी पूर्वाग्रह के कोई डिसिशन लिया - न बहुत सोचा, न बहुत दिमाग लगाया! एक तरह से अपनी किस्मत के सामने खुद को सरेंडर कर दिया! और सच कहूँ? मेरी लाइफ का सबसे बेस्ट डिसिशन साबित हुआ वो! जितनी ख़ुशी मुझे मिली है, पता नहीं मैं उसकी हक़दार भी हूँ, या नहीं, लेकिन सच में, इनके साथ रहते हुए जीने का मज़ा आ गया है!”

मैं यह सुन कर इतना खुश हुआ कि बता नहीं सकता।

“सच में - कितना डर लग रहा था! पहले तो इनसे अपना रिश्ता जोड़ना... फिर... मन से मैंने इनको अपना पति मान लिया था, फिर भी दिल में एक डर सा समाया हुआ था। सोचती थी कि हमारे बीच उम्र का कितना अधिक फासला है! आज नहीं तो कल, वो अंतर तो दिखने ही लगेगा न! तब? इनके भी अपनी ज़िन्दगी से, अपनी शादी से, अपनी बीवी से क्या क्या अरमान होंगे! क्या मैं उन अरमानों को पूरा कर पाऊँगी? लेकिन इन्होने मुझे समझाया कि हमारी आज की ख़ुशी पर आने वाले कल का साया न पड़ने दूँ! भविष्य का जो होगा वो हम दोनों साथ में देख लेंगे! ... इन्होने यह भी समझाया कि हमारा रिश्ता मज़बूत है; प्यार पर आधारित है; रेस्पेक्ट पर आधारित है! हमारे रिश्ते की नींव गहरी है। इसलिए हमारे परिवार की इमारत मज़बूत है!”

न जाने कितने विचार माँ के चेहरे पर बनते बिगड़ते नज़र आ रहे थे। वो कुछ देर चुप रहीं, फिर बोलीं,

“ये हैं भी तो ऐसे! जब मन करता है बच्चे बन जाते हैं, और जब मन करता है, बड़े! हाँ - सीरियस नहीं रह पाते कभी! शायद इसीलिए इनकी सोहबत में रहते रहते मैं भी छोटी होती जा रही हूँ!”

बात सही थी - माँ वाक़ई छोटी होती जा रही थीं। बहुत पहले उनकी बातों में जो अल्हड़पन, और शैतानी, और बिंदासगी सुनाई देती थी, अब वो फिर से सुनाई देने लगी है! सच में - माँ को ऐसे सुखी देख कर आनंद आ गया।

हम बात कर ही रहे थे कि आदित्य अपनी तरफ हम दोनों का कोई अटेंशन न पा कर बोर होने लगा, और मेरी गोदी से उतरने के लिए कुनमुनाने लगा, और अपनी माँ से कहने लगा, “मम्मा... दूदू... मम्मा... दूदू...!”

“और ये दोनों और हैं - दो और बच्चे!” माँ हँसते हुए बोलीं, “पेट ही नहीं भरता इन दोनों का! इन दोनों के कारण जो भी खाती पीती हूँ, सब इनके लिए दूध बनाने में ही निकल जाता है!”

कहने को तो माँ शिकायत कह रही थीं, लेकिन उनका मंतव्य विनोदपूर्ण ही था। उनको ख़ुशी थी कि उनके दोनों बच्चे स्तनपान करने में वैसी ही रूचि रखते थे, जैसी कि वो चाहती थीं।

“पूरी तरह से तुझ पर गए हैं दोनों! अपनी मम्मा के दूदू के दीवाने!” आखिरी वाक्य उन्होंने दुलारते हुए, तोतली आवाज़ में आदित्य से कहा, “है न बब्बू?”

अंततः अपनी माँ का दुलार और अटेंशन पा कर आदित्य खुश हो गया और अपनी माँ के स्तन को कुर्ते के ऊपर से ही पीने की कोशिश करने लगा। उसको यूँ करता देखा कर मुझे हँसी आ गई। सच में, मुझ पर ही गया है ये बच्चा! दूध पीने के लिए मेरे जैसा ही उतावलापन! कुर्ते में आसानी से स्तनपान तो नहीं कराया जा सकता, लिहाज़ा, माँ अपना कुर्ता और ब्रा उतारने का उपक्रम करने लगीं।

“केवल ये दोनों ही हैं आपके दूध के दीवाने? इनके पापा नहीं?” मैंने माँ से चुटकी ली।

माँ से ऐसी शरारतपूर्वक बात मैंने एक लम्बे अर्से के बाद करी थी।

“हा हा हा हा! इनके पापा का भी पेट नहीं भरता!” माँ ने मेरी बात का बिलकुल भी बुरा नहीं माना, और बड़े ही विनोदपूर्वक तरीके से उत्तर दिया... मुझसे तो वो बहुत ही मज़ाक करती आई थीं हमेशा से ही, “हमेशा कहते हैं ‘दुल्हनिया, दूध पी कर सोने से बड़ी अच्छी नींद आती है’!”

अब तक माँ के कमर के ऊपर का हिस्सा नग्न हो गया था। मैंने देखा - सच में - माँ का प्रेग्नेंसी फैट लगभग ख़तम हो गया था। पेट पर थोड़ी सी वसा चढ़ी हुई थी, जिसके कारण थोड़ा उभार था वहाँ... बस! वो भी ख़तम हो जाएगा जल्दी ही। कमाल हैं माँ, और उनका मेटाबोलिज्म! और उनका सौंदर्य तो... उसके लिए तो शब्द कम पड़ जाते हैं! पहले से थोड़ा अधिक गोल, लेकिन उतने ही सुडौल स्तन, और उन पर सुशोभित थोड़े गहरे रंग के चूचक! प्रकृति की कैसी अनुकम्पा थी उन पर! अनगिनत गुणों और सुंदरता की खान! सुनील क्यों न रहे उनका दीवाना?

“माँ,” मैंने उनको देख कर कहा, “अब तो आप और भी सुन्दर हो गई हैं!”

“हाँ हाँ!” माँ ने हँसते हुए कहा, “ज़रूर बहुत सुन्दर हो गई हूँ!”

“सच में माँ! न जाने आपको क्यों लगता है कि मैं झूठ बोल रहा हूँ! यू आर द बेस्ट मदर! और वैसे भी बच्चों को अपनी माँएँ सुन्दर लगती ही हैं... लेकिन सच बात तो यही है कि आप बहुत बहुत सुन्दर हैं! पहले से भी अधिक! यू लुक सो यंग!”

माँ मस्कुराईं और फिर बोलीं, “अच्छा अच्छा, बहुत मस्का मत लगाओ मुझे। इस बदमाश के साथ तुम भी लग जाओ मेरे दूध से! मेरे घर आए हो तो चाय वाय नहीं मिलेगी तुमको!” माँ ने हँसते हुए कहा, “मेरे बच्चों को केवल मेरा दूध ही मिलेगा!”

हाँ - माँ के यहाँ चाय तो नहीं मिलने वाली थी मुझको। ख़ास कर अब! माँ ने एक लम्बे अर्से तक स्तनपान करा कर ही मेरा पेट भरा था। जंकफूड से मुझको दूर रखा था। उसी के चलते सुनील, लतिका, और आभा - और अब आदित्य और आदर्श भी खाने पीने की बुरी आदतों से बहुत दूर थे, और अछूते थे!

“क्या माँ,” मैंने झेंपते हुए कहा, “इतना बड़ा हो गया हूँ! अब क्या ब्रेस्टफीड करूँगा!”

“कितने बड़े हो गए हो? अपनी माँ से भी बड़े?” माँ ने कहा, “अपनी माँ से बड़ा कौन हो सकता है रे? ... अब मुझे ही देखो... मैं तो अभी भी अम्मा (काजल) का दूध पीती हूँ! उनको जब तक दूध बनेगा, तब तक मेरा पहला हिस्सा है - ये उन्होंने मुझसे प्रॉमिस किया है! और मेरी किस्मत देखो... उनको अभी भी दूध आता है!” वो फिर से हँसने लगीं, “मिष्टी और पुचुकी को मेरे बाद प्रिओरिटी मिलती है!”

बात तो सौ प्रतिशत सही थी।

माँ ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने पास बैठा लिया, “और मेरे दूध पर तो सबसे पहला हक़ तुम्हारा है!”

“और जब काजल की शादी हो जाएगी, तब?” मैंने माँ की बात को अनसुना करते हुए पूछा।

“तब? तब क्या? शादी के बाद अम्मा को भी तो बच्चा होगा... उनको और भी दूध आएगा... फिर तो मुझे और दूध पीने को मिलेगा!”

ये तो मैंने सोचा ही नहीं था। हाँ, यह सम्भावना तो थी ही न! हम सम्भावना ही सही, लेकिन काजल फिर से माँ बन ही सकती थी! ये दोनों स्त्रियाँ कैसी अमेजिंग हैं!
“हमारा रिश्ता थोड़े ही बदल जाएगा!” माँ कह रही थीं।

“सुनील क्या सोचेंगे?”

मेरी बात पर माँ केवल मुस्कुराईं, फिर थोड़ा सा संजीदा हो कर बोलीं, “अमर, बेटू! मैं तुमसे एक बात कहूँ? बुरा तो नहीं मानोगे?”

“नहीं माँ! आपके मन में जो है, वो मुझसे छुपाइए नहीं! कह दीजिये! मैं क्यों बुरा मानूंगा?”

“बेटा - इतना कुछ बदल गया है मेरी लाइफ में कि क्या कहूँ! किस्मत की ऐसी बलवान लहर चली कि मुझे उसमें बहा ले गई। और मैंने भी कोई विरोध नहीं किया। अगर ईश्वर को यही सब मंज़ूर है, तो यही सही!” माँ थोड़ा संजीदा हो गई थीं - जैसे अतीत के पन्ने पलट पलट कर कुछ ढूंढ रही हों, “और देखो! सब कुछ अच्छा हो गया। हाँ, मुझे थोड़ा सा एडजस्ट करना पड़ा, लेकिन सब कुछ अच्छा हो गया।”

मैंने समझते हुए सर हिलाया।

“क्या मैं... क्या मैं तुमको भी थोड़ा सा एडजस्ट करने को कहूँ? ... कह सकती हूँ?”

“बोलिए न माँ!” मैंने कहा, “क्या हो गया?”

“कुछ नहीं बेटा... बस, अगर हो सके तो... तुम... इनको कभी... आई मीन, इनको कभी पापा या डैडी कह कर बुला लिया करो! इनको बहुत अच्छा लगेगा!”
ओह यह जबरदस्त है
अमर सुनील को डैड या पापा कहेगा
बहुत भयंकर सिचुएशन है
वाव
 

Kala Nag

Mr. X
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अंतराल - समृद्धि - Update #4

मैं चौंक गया।

‘क्या?’ मैं सुनील को पापा कह कर बुलाऊँ?

माँ कह रही थीं, “प्लीज मुझे पूरी बात बोल लेने दो... उस दिन... उस दिन, ये मुझसे बोल रहे थे कि ‘दुल्हनिया... अब मैं अमर को हक़ से अपना बेटा कह सकता हूँ’!” वो थोड़ा ठहर गईं, फिर बोलीं, “... जानते हो बेटू... जब से हमारी शादी हुई है न, ये तब से तुमको अपना बेटा कहना चाहते हैं। लेकिन तुम्हारा और अम्मा का कुछ रिलेशन ऐसा था कि चाह कर भी... ... लेकिन, अब जब अम्मा की शादी सत्यजीत से होने वाली है, तब तो ये पॉसिबल है न?”
करेक्ट
कुछ भी कहो बंधु
है तो यह एक धर्म संकट
“लेकिन माँ...”

“आई नो बेटू! ये तुमसे उम्र में इतने छोटे हैं - यही कहना चाहते हो न?” माँ ने समझते हुए कहा, “हाँ - ये हैं तुमसे छोटे! लेकिन प्यार के रिश्ते उम्र के मोहताज नहीं होते - उसमें तो केवल फ़ीलिंग्स देखी जाती हैं! है कि नहीं?”

“माँ, वो तो ठीक है... लेकिन डैड...?”

माँ मुस्कुराईं, “एक बात कहूँ बेटू? मुझे भी इसी बात की आशंका थी बहुत पहले... कि कहीं ये ‘उनकी’ जगह तो नहीं लेना चाहते! लेकिन फिर मुझे इनके प्यार की संजीदगी का भी एहसास होने लगा। ... और इन चार सालों में इन्होने मेरे दिल में वो जगह बना ली है, जो इनकी अपनी है।”

माँ ऐसे बोल रही थीं कि जैसे वो कहीं बहुत दूर हों, “ये मेरे लवर तो हैं ही, मेरे साथी भी हैं। कभी कभी तो कंफ्यूज हो जाती हूँ, कि मैं इनकी क्या हूँ! माँ वाला आदर भी मिलता है मुझे इनसे! जानते हो? रोज़ ऑफिस जाने से पहले मेरे पैर छूते हैं, और मैं इनको आशीर्वाद भी देती हूँ! ... लेकिन हूँ तो मैं इनकी बीवी ही न! ऑफिस से आते हैं, तो छा जाते हैं ये मुझ पर! इनकी छुवन इतनी शिद्दत भरी होती है कि समझ नहीं आता कि मुझसे दो बच्चे होने के बाद भी इनको कितना आनंद मिलता है मुझसे...”
ओह गॉड
भाई यह एक ऐसा एहसास है
जो एक औरत शायद दूसरी औरत से कह सके
पर अपने बेटे से
ग़ज़ब
माँ अपने वैवाहिक जीवन की ऐसी अंतरंग बातें मुझको बता रही थीं, कि मुझे भी थोड़ा असहज सा महसूस होने लगा। लेकिन मुझे उन बातों में निहित भावनाएँ भी सुनाई दे रही थीं।

“करवाचौथ में मैं भी तो इनके पाँव छूती हूँ! उनके पाँव छू कर मैं छोटी नहीं हो जाती... वो मेरा प्यार है उनके लिए। उनके पाँव भी छूती हूँ और उनको आशीर्वाद भी देती हूँ। ... और अम्मा के साथ मेरा रिश्ता देखो... उनके लिए तो मैं बेटी ही हूँ! उनसे छोटी हूँ, लेकिन हूँ उनकी बेटी! और कोई रिश्ता नहीं हो सकता उनके साथ। वो तो मुझे सारे बच्चों जैसे ही ट्रीट करती हैं! ... मानती हूँ कि ये तुम्हारे पिता नहीं हैं। और सच तो ये है कि ये ‘उनकी’ जगह लेना भी नहीं चाहते! लेकिन वो तुम्हारी माँ के पति तो हैं ही! इसलिए उनका मन तो करता ही है न!”

मैं समझ रहा था कि माँ क्या चाहती हैं।

तुरंत न तो इंकार कर सकता था, और न ही इकरार। वैसे उनकी बात समझ में आ रही थी। एडजस्टमेंट तो था थोड़ा, लेकिन ऐसा नहीं कि मुझसे मेरी किडनी माँग ली गई हो।

“कोशिश करूँगा माँ!”

“सच में बेटू?”
“हाँ माँ!”

माँ संतुष्टि से मुस्कुराईं, “थैंक यू मेरी जान! आई लव यू! अब आ जाओ। तुम्हारे लिए ही सवेरे से ये वाला स्तन बचा कर रखा हुआ है इन दोनों शैतानों से!”

“अभी नहीं माँ,” मैंने कहा - मन में कई विचार आ जा रहे थे, “कुछ देर बाद?”

माँ मुस्कुराईं और ‘हाँ’ में सर हिला कर आदित्य को दूध पिलाने लगीं।



**
मैंने पहले भी कहा था
धर्म संकट
खुद को फंसा हुआ समझ रहा है अमर
भंवर
कहा था ना मैं भंवर
शाम को जब सुनील घर आए, तो मैंने महसूस किया कि मेरे पैर छूने से पहले वो थोड़ा हिचकिचाए अवश्य! लेकिन फिर भी उन्होंने मेरे पैर छुए। मैं भी हिचकिचाया - मुझे मालूम था कि सुनील मुझे किस दृष्टि से देखते हैं, और मुझसे क्या चाहते हैं। लेकिन फिर भी मैंने उनको आशीर्वाद दिया।

‘बाप रे! सुनील मेरा पिता!’ यह विचार बेहद झकझोरने वाला था।

सामान्य परिस्थिति होती, तो शायद मैं यह सब न सोचता। लेकिन मेरे और सुनील के रिश्ते में एक अजीब सा उलझाव था। वो मेरी माँ के पति हैं, और मैं उनकी माँ का प्रेमी - अब नहीं, लेकिन कभी तो था ही! एक समय उसकी माँ मेरी संतान भी पैदा कर चुकी थी, और मेरी माँ उसकी दो दो संतानों को पैदा कर चुकी है। माँ के लिए आसान रहा होगा - एक बार उन्होंने सुनील को अपना पति मान लिया, तो फिर दोनों के बीच कोई दीवार रह ही नहीं जाती। डैड का स्थान मेरे जीवन में कुछ ऐसा था कि किसी और को उनकी जगह रखना तो दूर, रखने का सोचना भी गुनाह था! उन्होंने क्या कुछ नहीं किया था मेरे लिए। लेकिन फिर माँ की बात भी याद आ गई - सुनील किसी की जगह नहीं लेना चाहते थे ... वो मेरे जीवन में बस अपनी जगह बनाना चाहते थे। थोड़ा अटपटा सा लगा, लेकिन बात आई गई हो गई।

हमने एक दूसरे का कुशल क्षेम पूछा। फिर ‘अभी आया’ बोल कर वो अपने कमरे के अंदर जाने लगे।

“मेरी जान, एक एक कप चाय हो जाए?” जाते जाते सुनील ने शर्ट का बटन खोलते हुए माँ से गुज़ारिश करी।

“आप हाथ मुँह धो लीजिये... लाती हूँ।” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा।

उन दोनों के वार्तालाप से मुझे माँ की बातें याद आने लगीं - कोई और समय होता, तो सुनील इस समय माँ के साथ प्रणय कर रहे होते!

जब तक सुनील वापस लौटे, तब तक चाय तैयार थी। माँ जब वापस लौटीं, तो उनके हाथों में केवल एक ही कप था, जो उन्होंने सुनील को थमा दिया।

“माँ, मेरी चाय?”

“तुम्हारी चाय? बताया तो! मेरे बच्चों को केवल मेरा दूध ही मिलेगा!” माँ ने हँसते हुए कहा।

उनकी बात पर सुनील भी हँसने लगे, “भई, इस बात पर तो मैं भी बहस नहीं कर सकता! घर की माँ लोगों का बनाया हुआ रूल है ये तो!” उन्होंने कहा, और अपना पल्ला झाड़ लिया।

“क्या माँ?” पहले मुझे लगा कि मज़ाक चल रहा है! सुनील के सामने माँ क्या वो सब कर पाएँगी?

“मतलब न चाय, न कॉफ़ी, न व्हिस्की?”

“मेरे दूध से अधिक स्वाद मिलता है इनमें?” माँ ने तपाक से कहा।

अब इस बात का क्या उत्तर दें? सही बात है - न तो स्वाद में, और न ही गुणवत्ता में माँ के दूध का कोई सानी है।

“अरे इसमें इतना क्या सोच रहे हैं? पी लो न?” सुनील ने कहा।

“आ जाओ,” माँ ने मेरे बगल बैठते हुए कहा, और अपना कुर्ता उतारने लगीं।

अब समझ में आया कि यह कोई मज़ाक नहीं है, बल्कि सीरियस है मामला। जब तक मैं माँ की गोद में खुद को समेटने और व्यवस्थित करने में समय लिया, तब तक माँ के दोनों स्तन स्वतंत्र हो गए।

लेकिन मुझे अभी भी झिझक सी हो रही थी। मैंने सुनील की तरफ़ देखा।

“अरे, उनको क्यों देख रहा है?” माँ ने मुझे छेड़ा, “दूध इधर है!”

और फिर सुनील को भी छेड़ते हुए माँ ने कहा, “आप चाय का मज़ा लीजिए! पापा लोगों को नो दूधू!”

सुनील ने खींसे निपोरते हुए कहा, “ठीक है... लेकिन बस सोने से पहले...”

“अरे बस... बेटे के सामने ऐसी बातें करते हैं!” माँ ने कहा, और अपना वही स्तन मेरे मुँह में दे दिया, जो उन्होंने मेरे लिए सवेरे से बचा रखा था।
अरे भयंकर
बहुत भयंकर
चाय पीते हुए सुनील मुझसे सत्यजीत और काजल के बारे में बातें कर रहे थे, ऐसे कि जैसे इस तरह से हमारा बातचीत करना बड़ी सामान्य सी बात हो। माँ से स्तनपान करते करते सुनील से बात करना मुझे अटपटा तो लग रहा था, लेकिन उसमें कुछ परिचित सा भी था। मुझे बीते दिनों की बातें याद आ गईं, जब मैं डैड के सामने इसी तरह से माँ का स्तनपान करता था। न जाने क्यों, मुझे उस पल अपने स्वयं के टूटे हुए परिवार की पूर्णता होने का एहसास हुआ! मुझे ऐसा लगा कि जैसे सच में मेरे सर पर मेरे पिता का हाथ आ गया हो! आश्चर्य है!

जब सौतेली माँ घर आती है, तो उससे यही उम्मीद करी जाती है कि घर के बच्चों के लिए वो माँ का रूप ही धारण करेगी। कभी उससे ये होता है, तो कभी नहीं। सुनील मेरे जीवन में मेरे पिता के रूप में आना चाहता था, यह अनोखी सी बात थी। लेकिन ऐसी कोई असामान्य सी बात भी नहीं थी। सौतेली माँ के समान ही, सौतेला पिता से भी तो घर के बच्चों का पिता बनने की आशा की जाती है। सुनील भी तो यही चाहते थे!

‘सच में, सुनील को अपने जीवन में ऊँचा स्थान देना, कोई ऐसी गलत बात नहीं है!’ मैंने सोचा।

खैर, कल के बारे में हमने क्या कुछ करना था, उन सब बातों पर हमने सोच विचार कर लिया। और अगर बात आगे बढ़ती है, तो क्या करना है, उस पर भी।

मुझको स्तनपान करा कर माँ रात के खाने पीने का इंतजाम करने चली गईं।



**



कमरे में कुछ समय का एकांत हो गया...

न जाने क्यों आज हम सामान्य तरीके से बात नहीं कर पा रहे थे। हिचकिचाहट थी हम दोनों के ही बीच में। बारह साल का एक लम्बा समय हो गया हमको एक दूसरे को जाने और समझे हुए। लेकिन फिर भी कितना कुछ बाकी था! और अगर आज मैंने माँ की बात स्वीकार कर ली, तो और भी कितना कुछ बदल जाएगा हमारे बीच!

“भैया,” उन्होंने कहा, “आप यहाँ मुंबई में अपना ऑफ़िस क्यों नहीं खोल लेते?”

“यहाँ? क्यों? आपको ऐसा क्यों लगा?”

“अब अम्मा भी यहीं आ जाएँगी। एक बड़ा सा घर ले कर हम सभी साथ में रहेंगे न? मतलब अम्मा अपने घर, और हम सभी यहाँ - एक परिवार!”

“मैं भी यही सोच रहा था!”

“सच में?”

“ओह नहीं, मेरा मतलब, एक बड़ा घर लेने की। ... आप सभी के लिए ये घर छोटा पड़ेगा... इसलिए एक नया घर ले लेते हैं न?”

“अरे नहीं! बड़ा घर तब ठीक है, जब बड़ा परिवार हो!” सुनील ने अर्थपूर्वक कहा, “हम तो फिलहाल हम दो, हमारे दो ही हैं! ... हाँ, आप और मिष्टी भी यहाँ आ जाते हैं, तो ज़रूर एक बड़ा सा घर लेंगे! सुख से साथ में रहेंगे... हमारा पूरा परिवार!”

“हा हा... मैं क्या कह रहा हूँ, और आप क्या कह रहे हैं!”

“हम दोनों एक ही बात कर रहे हैं!” सुनील ने कहा, लेकिन थोड़ा गंभीरता से।

इतना सुन कर मैं चुप हो गया। सुनील के मन की बात मेरे सामने थी - बस उन्होने इशारे इशारे में अपने मन में जो कुछ था, सब कह दिया था। मन में एक कल्पना चमक गई - माँ और सुनील - उनके हम तीन बच्चे, और आभा उनकी पोती! हम छः लोग, यहाँ मुंबई में, एक साथ, एक सुन्दर से, खुशनुमा घर में! सच में, आनंद हो आया उस कल्पना को जी कर! मन में विचार आया कि काश मैं बड़ा न होता - आदित्य और आदर्श के जैसे ही छोटा सा होता, तो क्या मज़ा आता!

अब उस कल्पना को मूर्त रूप में कहने का समय आ गया था।

“सु... नील...” मैंने हिचकते हुए कहा।

“हाँ?” इस बार उसने ‘भैया’ शब्द नहीं जोड़ा। शायद उसने मेरी आवाज़ में बदली हुई भावना को सुन लिया था।

मैं हिचकिचाया, “माँ... माँ कह रही थीं कि... कि... आ... आप मुझे... मुझे अपने बेटे...”

मेरी बात पूरी भी नहीं हुई कि सुनील के होंठों पर संतोषजनक मुस्कान आ गई।

“... अपने बेटे जैसा... मानते हैं?”

“बेटे जैसा नहीं... बेटा मानता हूँ!” सुनील ने बिना हिचकिचाए, बिना अटके, बिलकुल स्पष्ट शब्दों में यह बात कह कर जैसे मेरे दिल का बोझ कम कर दिया।

“सच में...?” मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था।

“सच में!”

“तो... तो... मैं... आ... आपको ‘पापा’ कहूँ?”

“हाँ मेरे बेटे, हाँ!” कह कर सुनील अपनी बाहें फैला कर मेरे सामने खड़ा हो गया, “प्लीज कहो...”

एक अद्भुत सा भावनात्मक क्षण था वो मेरे लिए। बस एक पल का असमंजस और मैं लपक कर सुनील के आलिंगन में समां गया। मैंने कुछ कहा नहीं। लेकिन कभी कभी बिना कुछ कहे भी आप बहुत कुछ कह सकते हैं
ओ भाई ग़ज़ब मतलब क्या लिखूँ
बहुत ही गज़ब
“ओह बेटे! मेरे बेटे!” कह कर सुनील ने मेरा माथा चूम लिया, “नथिंग विल मेक मी प्राउडर एंड हैप्पीयर दैन बींग योर पापा!”

जब हमारा आलिंगन छूटा तो सुनील ने मेरी भुजाओं को सहलाते हुए बड़े गर्व से मुझे देखा। उसकी आँखों में आँसू आ गए थे। अब तक माँ भी वहीं आ कर खड़ी हो गई थीं, और हमारे इस अद्भुत मिलन को देख रही थीं।

अभी तक मैंने सुनील को ‘पापा’ कह कर सम्बोधित नहीं किया था - लेकिन मेरे मन में इस बात की स्वीकृति मात्र ही बहुत बड़ी बात थी। सुनील और मेरे बीच के सम्बन्ध का एक तरह का फाइनल फ्रंटियर - अंतिम मुकाम था यह!

“अब जा कर मेरा परिवार पूरा हो गया!” उन्होंने बड़े गर्व से कहा, “देखा सुमन! मैं न कहता था?”

उनकी बात पर माँ केवल मुस्कुराईं। उनकी भी आँखों से आँसू ढलक रहे थे। उन दोनों के बीच में क्या बात हुई थी, जिसका हवाला सुनील दे रहे थे, मुझे नहीं मालूम। लेकिन मुझे उस समय बस इतना ही लग रहा था कि अगर मैं सुनील को ‘पापा’ कह कर पुकारूँगा, तो उनको बहुत अच्छा लगेगा।

मुझे कैसा लगेगा? यह ठीक ठीक कह पाना कठिन था।

सुनील को ‘पापा’ कह कर पुकारना ही कठिन काम था।

किसी और को डैड की जगह देना मेरे लिए बहुत कठिन था। बाप तो बाप होता है, और फिर डैड जैसा बाप... शायद दुनिया में बहुत कम ही हों! लेकिन तुलना करें, तो सुनील भी उन्ही के जैसे थे! अनेक पहलुओं में! पढ़ने सुनने वालों को अजीब लगेगा, लेकिन सच में, वो ‘डैडी मैटेरियल’ तो थे!

ऐसा नहीं था कि मैंने पहले भी इस सम्भावना पर विचार नहीं किया था। अवश्य ही किया था। जिस दिन मुझे माँ और सुनील के बारे में पता चला, तभी से किया था। लेकिन अभी तक किसी ने इस बात को इस तरह सामने नहीं रखा था। आज माँ ने यह बात कही थी - माँ बहुत ही कम बार अपनी इच्छाएँ मुझसे कहती थीं। इसलिए मुझे लगता था कि उनकी बात का मान रखना चाहिए। वैसे भी, ऐसी अनहोनी बात भी नहीं कह दी उन्होंने!

लेकिन बहुत मुश्किल होता है अपने पिता के अतिरिक्त किसी और के लिए वो दो अक्षर कह पाना। लगा कि जैसे किसी शक्ति ने मेरे गले को जकड़ लिया हो।

“पा... पा...” बड़ी मुश्किल से मेरे गले से आवाज़ निकली।

“ओह... बेटा मेरा...” सुनील की प्रतिक्रिया ऐसी थी कि जैसे उनको अमृत मिल गया हो, “एक बार फिर से बोल दो बेटे...”

“पापा...” इस बार मैंने थोड़े अधिक नियंत्रण से कहा।

भावनाओं के मारे मेरा गला भी भर आया था। सुनील... ओह, मेरा मतलब, पापा का चेहरा देखने लायक था। गर्व, सुकून, ख़ुशी - ऐसे न जाने कितने भाव उनके चेहरे पर आ गए।

“मेरे बेटे... मेरे बेटे...” कह कर उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में फिर से समेट लिया।

इतना मज़बूत आलिंगन - जैसे कि उनको मुझे खो देने का डर हो। इतने वर्षों बाद उनके मन की मुराद पूरी हो गई थी, तो अब वो अपनी नेमत को समेट लेना चाहते थे।

“आज के दिन के लिए कितना इंतज़ार किया…” वो कह रहे थे, “आज सब मुरादें पूरी हो गईं मेरी! सब मुरादें...”

सच कहूँ? अपने सर पर पिता का साया वापस आ जाना एक आइए सुखद एहसास है कि उसका वर्णन करना असंभव है। पिता और माता - दोनों समझिए आकाश और धरती समान होते हैं। उनके प्रेम की वर्षा अपने बच्चों पर सदैव होती रहती है। सुनील को अपने पिता के रूप में देखना बेहद सुखद था।

आई लव यू बेटू...” माँ ने कहा!

उनको भी बहुत ख़ुशी थी कि मैंने उनकी बात का मान रख लिया।

व्ही लव यू...” पापा ने माँ को के कहे में संशोधन किया, “एंड व्ही आर सो प्राउड ऑफ़ यू...”, गर्व और प्रसन्नता से उनका चेहरा दमक रहा था।

माँ को भी देख कर ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई बेहद भारी बोझ उनके ऊपर से हट गया हो!

और उन दोनों को देख कर मुझे पहली बार एहसास हुआ कि अचानक से मुझे भी कितना हल्का महसूस होने लगा था! शायद यही एहसास माँ को भी हुआ होगा - जब उन्होंने अपना परिवार में ‘कनिष्ठ’ वाली भूमिका स्वीकारी होगी। पापा को अपना पिता मानते ही मैं भी आदित्य और आदर्श के समकक्ष हो गया - उनका बड़ा भाई। और मेरी मिष्टी, उनकी भतीजी! पुचुकी अब मेरी बुआ हो गई, और काजल - जो कुछ समय पहले तक मेरी प्रेमिका थी, अब मेरी दादी हो गई!

“भई सुमन,” पापा ने माहौल को हल्का करने की गरज से कहा, “आज सच में मेरा परिवार पूरा हो गया! कितना भाग्य वाला हूँ… मेरे तीन बेटे हैं... एक प्यारी सी, गुड़िया जैसी पोती है... इतना प्यार करने वाली पत्नी है... नटखट सी बहन है, ... और प्यारी सी माँ और... अब तो... अब तो, एक होने वाला बाप भी है, भई!” सुनील ने हँसते हुए कहा, “बहुत बहुत खुश हूँ मैं आज!”

मैं मुस्कुराया।

माँ ने कहा, “मैं भी बहुत खुश हूँ!”

पापा ने अपनी बाँह माँ की तरफ़ फैला दी; माँ भी हमारे साथ ही उनके आलिंगन में समां गईं।

कैसा आनंद मिला मुझे उस समय, मैं बयान नहीं कर सकता। कहीं कहीं शब्द आपकी असली भावनाओं को धोखा दे देते हैं; उनके गुरुत्व को कम कर देते हैं।

एक तरफ़ मैं अपनी खुद की ही भावनाओं को समझने, और आत्मसात करने में व्यस्त था, तो दूसरी तरफ माँ मुझे रह रह कर चूम रही थीं, और पापा भी! उस क्षण में मेरा कायाकल्प हो गया - मनसा कायाकल्प! उस समय मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं वाकई एक छोटा सा बालक हूँ, जिसके मम्मी पापा उसको प्यार कर रहे हैं, दुलार कर रहे हैं! कैसी सुखद सी अनुभूति थी!

“मुझको हमेशा से ही एक बड़ा सा परिवार चाहिए था... और आज मुझको वो मिल गया!” पापा कह रहे थे।

“मुझे भी...” माँ ने उनकी हाँ में हाँ मिलाई।

यह एक ऐसी सच्चाई थी, जिसके बारे में मुझे अच्छी तरह से पता था। उन दोनों की शादी होने में इस चाह का भी बड़ा योगदान था। यह चाह न होती, तो बहुत संभव था कि माँ दूसरी शादी के लिए इंकार कर देतीं।

हम तीनों एक दूसरे के आलिंगन में कुछ देर तक बंधे खड़े रहे। यह आलिंगन माँ ने तोड़ा। उन्होंने मुस्कुराते हुए, बड़े गर्व से मुझको देखा। मैंने भी उनकी तरफ देखा कि वो क्या कहने वाली हैं। लेकिन माँ ने कुछ कहा नहीं, बस मुस्कुराईं और मेरे सर में अपना हाथ प्यार से फिरा कर बोलीं,

आई लव यू माय सन!”


**
भाई आप मानों या मानों
यह कहानी ही अद्भुत है
काम वासना रहित
प्रेम ही प्रेम है
पता नहीं इस कहानी के कितने आयाम हैं या हो सकते हैं
पर यह है ही अद्भुत
देर से सही मैं आया आपके इस पेज पर
बेझिझक कह सकता हूँ
अद्भुत
 

KinkyGeneral

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“नहीं दुल्हनिया! तुम बुरा मान जाओगी, और मेरा बेटा भी! लेकिन आपको सच सच कहूँ मेरी जान? हम दोनों जब भी प्यार करते हैं न... हर बार मेरा मन यही करता है कि काश, अमर मेरे बीज से पैदा हुआ होता।”

“काश मैं तेरी प्यारी सी कोख में अपना बीज भरता, और उसके कारण अमर तेरे पेट में आता! और फिर... जैसे आज किया है न तूने दुल्हनिया... तू उसको मेरे सामने अपना दूध पिलाती…”
ओ भाईसाहब, आज तो मुझे सुनील में बस एक षडयंत्रकारी नज़र आ रा, किस चतुराई से अपनी किंक्स/फेटीशिस् पूरी कर रा। और कहानी जैसी शुरुआत में प्रतीत होती थी, वही इन्सेस्टुयस अंडरटोन लौट आई है। बहरहाल, अब तो अमर के चरित्र की पहचान है और इस बात की भी कि ऐसा इस कहानी में कुछ नहीं होगा।
 

avsji

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Idk how I feel about this one, makin our boi (Amar) fold like this. I dunno wat kind of a mindset I have right now but I'm not very obliged by the turn of events n it's alright, not your duty to please everyone. But dang, these episodes were one helluva rollercoaster.

ओ भाईसाहब, आज तो मुझे सुनील में बस एक षडयंत्रकारी नज़र आ रा, किस चतुराई से अपनी किंक्स/फेटीशिस् पूरी कर रा। और कहानी जैसी शुरुआत में प्रतीत होती थी, वही इन्सेस्टुयस अंडरटोन लौट आई है। बहरहाल, अब तो अमर के चरित्र की पहचान है और इस बात की भी कि ऐसा इस कहानी में कुछ नहीं होगा।

Brother - thanks for returning to this story, even though I posted after a long time.
There was a bit of hesitation, before posting this - because of all these changes. Also, my laptop broke - really broke (not crash).
Anyway... a few clarifications: Sunil doesn't have any fetishes or fantasies. These are pure desires originating from love. Will not and can not write much to clarify on this point, because I am writing using my phone.
Other clarification on Amar: he is not 'folding' as you said... he is no cuckhold. It is more like evolving and moving forward in his life. He may also need loving - and not just from another woman. Letting go of Kajal was the first step. This makes space for possibility of love in his life. Rachna episode is coming up.
Please continue supporting... this is not a "normal" story. :)
 

avsji

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मेरे दो तीन पाठक मित्रों :)
आप शायद सोच रहे होंगे कि कहानी आगे क्यों नहीं बढ़ रही है।
उसका कारण यह है कि मेरा लैपटॉप 'टूट' गया है। मतलब नया लेना पड़ेगा।
क्या मुसीबत है। :(
 
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प्रेम भी है ! वासना भी है ! लेकिन हवस नही है इस पुरी कहानी मे।
रिश्तों और उम्र के भंवर से उलझी यह कहानी शायद ही किसी को सहज से हजम हो लेकिन है तो सत्य ही।

अमर का सुनील को पापा कहकर सम्बोधित करना उसके लिए काफी असहज पूर्ण स्थिति रही होगी। जिस लड़के को वो बचपन से पाल रहा , जो लड़का उसके सामने बचपन मे सदैव नंग धड़ंग घर मे विचरण करता रहा , जिस लड़के को उसने स्कूल मे दाखिला करवाया और जिस लड़के की मां वर्षों तक उसके रात्री की अंकशायिनी रही , उसे पापा कहकर सम्बोधित करना किसी भी इंसान के लिए सहज नही है।
सुनील को भी शर्तिया वैसा ही फीलिंग्स हुआ होगा जैसा अमर ने महसूस किया होगा। लेकिन सुमन के साथ शादी एवं दो बच्चों के पिता बनने के बाद उसके आत्मविश्वास मे काफी परिवर्तन हुआ होगा। सुमन की मैच्योरिटी और अगाध प्रेम ने उसे भी समय से पूर्व मैच्योर कर दिया। जरूर इसी वजह से वो बिना संकोच के अमर के समक्ष अपनी भावना दर्शा गया।

इस अपडेट मे एक बार फिर से कहानी इरोटिका की तरफ बढ़ते बढ़ते रूक गई। अमर के चेतना अवस्था मे रहते हुए भी सुमन और सुनील का हमबिस्तर होना एडल्ट कहानी के लिहाज से काफी कामुक था लेकिन आप की लेखनी ने उस अंतरंग दृश्य को भी स्वच्छ और पाक प्रेम के रूप मे परिवर्तित कर दिया।

बहुत खुबसूरत अपडेट अमर भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड एमेजिंग।
 
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