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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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SKYESH

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ये बहाना नही चलेगा 🙏
कुछ तो कह कर जाना पड़ेगा

aajkal time nahi ki sortage hai......

agle 10 din thode muskil hai .....time nikal pana ....

after 30th October ...sabhi update padh ke reply karunga...

thanks for considering me ...dear :love:
 
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avsji

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Great updates avsji. Please continue. See the list of followers is a growing one.

Coming to the updates, it is great to see how open our society used to be some time ago and how prude we are becoming now. Waiting for next adventure in village.

लगता तो नहीं कि इस कहानी को पढ़ने कई सारे लोग आएँगे। जैसा कि पहले से भी सभी को मालूम है, यहाँ सभी माँ-बेटा, पिता-पुत्री वाले सम्भोग को ही पढ़ने आते हैं।
खैर, जिसको जो पढ़ना हो, पढ़े। किसी का ज़ोर थोड़े ही हैं।

गाँवों का समाज अधिक खुला हुआ तो था। लेकिन अब उसमे भी अंतर आ गया है। वहाँ की सरलता में स्वार्थ का विष अच्छी तरह घुल गया है।
 

avsji

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avsji

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कहानी बहुत अच्छी है, ग्रामीण भाषा का प्रयोग थोड़ा कम करें। दिक्कत होती है समझने में।
धन्यवाद! इस कहानी में पाँच से छः भाषाओं का प्रयोग होगा।
कुछ भाषाएँ तो समझ में नहीं ही आएँगी। लेकिन पढ़ने में अच्छा लगेगा।
जहाँ आवश्यक होगा, मैं उसका हिंदी अनुवाद अवश्य दे दूंगा।
 

avsji

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अरे सर कोई नही मैंने आपकी बात का बुरा नही माना 🙏
🙏
 

avsji

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नींव - पहली लड़की - Update 15


मंदिर से लौट कर हमने खाना खाया, और फिर कुछ देर की बात-चीत के बाद, सोने के कल वाले ही इंतजाम में अपने अपने बिस्तर में लेट गए। आज मैंने माँ के कहने से पहले से ही अपने सारे कपड़े उतार दिए थे। आज उमस और गर्मी काफी बढ़ गई थी - संभव था कि रात में बारिश हो। इस उमस और गर्मी के कारण माँ भी केवल ब्लाउज और पेटीकोट में थीं। मैं उनके बगल लेट कर उनकी ब्लाउज खोलने लग गया।

“आज मालिश करा के अच्छा लगा?” माँ ने पूछा।

मैंने उत्साह से ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“अरे नीक काहे न लागै! लल्ला, हम तोहार रोज करबै!”

“दीदी, आप इसकी आदत बिगाड़ दोगी! वापस जा कर मैं यह सब कैसे करुँगी?”

“अरे ऊ बाद कै बात बाय! अबहीं एक हफ्ता तौ मजा लै लियौ!” चाची ने कहा, फिर बोली, “लल्ला, अपनी महतारी कै दुधवा तो रोजै पियत हो। हमहूँ पियाय देई?”

मुझे गाँव की भाषा बहुत समझ में नहीं आती थी। थोड़ा बहुत अंदाजे से समझ पाता था। माँ ने कहा,

“चाची जी का दूध पियोगे?”

मुझे समझ में नहीं आया कि क्या उत्तर दूँ! माँ के अतिरिक्त और किसी का स्तन नहीं पिया था मैंने। कम से कम मुझे तो याद नहीं पड़ता। अच्छा, एक और बात है - इसको शहर के लोग भले ही बहुत अनहोनी बात मान लें, लेकिन गाँवों में महिलाएँ एक दूसरे के बच्चों को स्तनपान कराने में कोई बुराई नहीं समझतीं। दूध का मुख्य स्त्रोत माता ही होती है, लेकिन अन्य महिलाएँ भी समय पड़ने पर बच्चे को अपना दूध पिला सकतीं हैं। इसी सामुदायिक लालन पालन के कारण गाँवों के बच्चे अपने समाज से अच्छी तरह जुड़े रहते हैं! मातृत्व और वात्सल्य एक ऐसा सुख है जो समुद्र जितना विस्तृत और गहरा है। उनको बाँटने में शायद ही कोई माँ कँजूसी करे! माँ को इस व्यवस्था का पता था, और उनको इसमें कोई बुराई नहीं दिखाई देती थी। इसलिए उन्होंने मुझे प्रोत्साहित करते हुए कहा,

“पी लो! जाओ!”

“आवो लल्ला, अइसी चले आवो!

मैं उठ कर चाची के पास चला गया। उन्होंने अपना ब्लाउज खोला और अपना एक स्तन मुझे पीने के लिए दे दिया। और मैं उनके स्तन पीने लगा। मुझे कोई उम्मीद नहीं थी, लेकिन आश्चर्य की बात यह हुई कि कुछ देर ऐसे ही चूसने के बाद उनके स्तन से मेरे मुँह में दूध आने लगा! मैंने चौंक कर उनकी तरफ़ देखा; उन्होंने मुझे मुस्कुरा कर ऐसे देखा जैसे वो इस रहस्य से परिचित हों! क्या आनंद! माँ का दूध! और ऐसा लग रहा था कि उनके स्तन पूरे भरे हुए थे। एक दो मिनट पीने के बाद,

“लल्ला, महतारी कै दूध पियै नीक लागत है?”

“दूध पीना अच्छा लग रहा है?” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा।

“हाँ चाची जी!” मैंने प्रसन्न हो कर कहा!

“बहूरानी?”

“हाँ, दीदी?”

“तुहुँ आय जाव!”

“हा हा! क्या दीदी! ऐसे? अपने बेटे के सामने!” माँ ने लजाते हुए कहा।

“या देखौ! अब चली हैं सरमाय। जानत हौ लल्ला, तोहार महतारी जब हियाँ आई रहिन बियाह कै, तौ यैं जभ्भों रोवत कलपत रहीं, हमही आवत रहीं इनका दुलराय। अउर बहुत बड़ी होई गईं हैं अब!”

“हा हा हा! दीदी! आप तो माँ हो मेरी! मैं आपसे कभी बड़ी होऊँगी? आपसे भला क्या शरमाऊँगी!” माँ हँसते हुए अपने बिस्तर से उठीं, और आ कर चाची के बगल लेट गईं।

मुझे उनकी बातों से समझ नहीं आ रहा था कि किस बारे में बात हो रही थी। मैं तो दूध पीने में मगन था। दूध का स्वाद भूल गया था - और अब मुझे एक नया, गाँव की मिट्टी से पोषित शुद्ध दूध का स्वाद मिल रहा था। चाची करवट से हट कर पीठ के बल लेट गईं। माँ शर्माते हुए उनके बगल ही अपने हाथ का टेक लगा कर लेटी रहीं।

“अरे, अइसे दीठ लगाए का बइठी हौ? पीतियु काहे नाही?”

तब समझ आया कि चाची माँ को भी दूध पीने को कह रही हैं। यह तो बड़ी हैरानी वाली और अनोखी बात थी। मेरे लिए तो अभी तक केवल माँ ही थीं जो दूध पिला सकती थीं। लेकिन कोई उनको भी दूध पिला सकता है, यह अनोखी या अनहोनी सी बात थी। माँ की भी माँ! माँ शरमाते और संकोच से हँसते हुए चाची के दूसरे स्तन पर झुकीं, और उनका दूध पीने लगीं। सोचिए, उस समय हम दोनों माँ बेटा एक ही माता से स्तनपान कर रहे थे! मुझे अब कुछ कुछ समझ में आ रहा था कि माँ को इतना लाड़ दुलार क्यों मिलता था सभी से!

उस समय मुझे नहीं मालूम था, लेकिन चाची को लगभग एक साल पहले एक संतान हुई थी, जिसकी असमय मृत्यु हो गई थी। पीने वाला बच्चा नहीं रहा, लेकिन दूध बनता रहा। इसीलिए ननकऊ अभी भी उनका दूध पी सक रहा था। चाची करीब चालीस के उम्र की महिला रही होंगी। आज कल इस उम्र में स्त्रियों का गर्भधारण सामान्य बात नहीं लगती है। किन्तु उस समय गाँव देहात में यह सब कोई अनहोनी बात नहीं थी। अपने बच्चों के बच्चे होने लगते थे, लेकिन इधर माता पिता की संताने होना रूकती ही नहीं थीं। कितनी ही बार तो देखा है - सास और बहू दोनों एक ही समय पर गर्भवती रहती थीं। अच्छा खान पान हो, बढ़िया दिनचर्या हो, स्वस्थ शरीर हो, प्रसन्न मन हो, शुद्ध वातावरण हो - तो ये बेहद सामान्य सी बात है।

“खाली घुण्डिया काहे पियति हौ? लल्ला के जस पियौ।” माँ ने चाची की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा, फिर मेरी तरफ देखा कि मैं कैसे पी रहा था। चाची निर्देश दे रहीं थीं,

“जब तक चुचिया ना दबाये, दुधवा ना निकरे।” माँ ने मेरी ही तरह उनके एरोला को पूरा मुँह में ले कर होंठों से दबाया और चूसा,

“हाँ, यस।” चाची ने पूछा, “निकरा न?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया। हम दोनों ने शांति पूर्वक चाची के दोनों स्तन खाली कर दिए।

“नीक लाग?” उन्होंने पूछा।

“हाँ!” मैंने उत्साह में उत्तर दिया। गाँव की छुट्टी तो बढ़िया होती जा रही है!

“अमर, बेटा” माँ ने कहा, “चाची जी ने तुमको अमृत पिलाया है। तुम उनके चरण छू कर उनका आशीर्वाद लो!”

मैंने झट से उनके पैर छुए।

“अरे जुग जुग जियो हमार लल्ला! हमार पूत!” कह कर उन्होंने मुझे कई बार चूमा।

चाची ने फिर अपने स्तन नहीं ढँके। मुझे तो लगता है कि गाँवों देहातों में, जब स्त्रियों को बच्चा हो जाता है, तो उसके बाद उनको अपनी छातियों को ले कर कोई ख़ास लाज शरम नहीं रह जाती है। उनका सारा आकर्षण बच्चा होने से पूर्व का ही है। दोनों महिलाएँ कुछ देर तक बतियाती रहीं, और मैं वहीं, चाची के बगल ही सो गया।


**


सवेरे मैं बहुत देर से उठा। उस समय चाची के घर पर कोई भी नहीं था। मैंने अगल बगल देखा - कोई नहीं था! मैंने कपड़े पहने और घर से बाहर आ गया। घर से निकल कर चार कदम चला ही था कि सामने डैड और चाचा जी दिख गए!

“बेटा,” मुझे देख कर डैड ने कहा, “कितना सोए आज! माँ कितनी देर से तुम्हारा इंतज़ार कर रही हैं खाने के लिए! चलो, जल्दी से तैयार हो जाओ, और नाश्ता कर लो!”

“डैड, आज से काम शुरू हो जाएगा?” मैंने पूछा।

“हाँ, बस शुरू ही हो गया! तुम नाश्ता कर लो, फिर देखने आ जाना।”

“जी ठीक है!”

घर से थोड़ी दूर पहले ही मैंने गायत्री को मुझे देखते, और मुस्कुराते हुए देखा। मैंने भी उसको मुस्कुरा कर देखा। वो मेरे पास आ कर मेरे कान में बोली, “सँझा को हमारे घर आ जाओगे?”

“क्यों?”

“हमसे बात करने?”

“ठीक है!”


**


आज का दिन थोड़ा शांति से निकला। चूँकि निर्माण कार्य शुरू हो गया था, इसलिए डैड घर के सामने ही व्यस्त थे। उनसे मिलने वाले वहीं आ कर उनसे मिल रहे थे। आज अधिकतर मिलने वाले लोग वृद्ध थे - इसका एक लाभ हुआ मुझे। सभी ने आशीर्वाद देने के लिए मुझे रुपए दिए। दोपहर के खाने का समय होते होते मैं धनाढ्य हो गया - पूरे एक सौ तीस रुपये मिले थे मुझे आशीर्वाद में! धनाढ्य - लेकिन कुछ देर के लिए। मैंने वो सारे रुपए माँ को दे दिए। मुझे कल अच्छा नहीं लगा था कि उन्होंने अपनी चाँदी की पायलें गायत्री को दे दी थीं, और उनका पैर अब सूना सूना था। मुझे वैसे भी रुपयों का कोई काम नहीं था। माँ ने मुस्कुराते हुए वो पैसे मुझसे ले लिए। डैड को खाना घर के बाहर परोसा गया। उनके साथ तीन चार और भी खाने वाले थे। घर के अंदर स्त्रियाँ थीं, जो माँ के साथ खाना पकाने का काम देख रही थीं, और ऐसे में पुरुषों का घर के अंदर आना वर्जित था। मैंने देर से नाश्ता किया था इसलिए भूख भी नहीं लगी हुई थी। करीब एक बजते बजते सभी ने खाना खा लिया। आज बेहद उमस और धूप थी। कारीगर और मजदूरों की हालत खराब हो गई। लेकिन बहुत अधिक काम नहीं था, इसलिए उन्होंने काम जारी रखा। दो शौचालय और उसके सामने एक आधी चाहरदीवारी का स्नानघर! बस, इतना ही। लेकिन उसके लिए सोकपिट भी चाहिए होती है, जो गहरी बनती है। शाम होते होते नींव की खुदाई, और कुटाई हो गई, और सोकपिट का गड्ढा खुद गया।

इस दौरान डैड ने मुझे इस गाँव के, और आस पास के गाँवों के संभ्रांत, प्रभावशाली, और गणमान्य लोगों से - जो उनसे मिलने चले आए थे - उनसे मिलवाया। डैड बड़े मृदुभाषी, सज्जन और कर्मठ पुरुष थे। क्रोध तो उनको छू भर नहीं गया था। यह गुण जैसे पुश्तैनी था - दादा जी भी वैसे ही थे। संभव है इसी कारण से उन्होंने डैड के लिए माँ जैसी लड़की को पसंद किया। अपनी सज्जनता के कारण ही डैड से मिलने उनसे कहीं वृद्ध पुरुष, जमींदार, और ठाकुर लोग अपनी हेकड़ी छोड़ कर चले आये थे। स्वयं संघर्ष करते हुए डैड ने बहुत पहले ही समझ लिया था कि एक दूसरे की मदद करने से ही समाज कल्याण होता है। यदि संभव है, तो डैड अपनी तरफ से दूसरों की मदद करने में कभी संकोच नहीं किए। दूसरे उनकी सज्जनता का क्या मोल देते हैं, उस बात की उन्होंने कभी फ़िक्र नहीं की। उस दिन जाना कि डैड की हमारे समाज में कैसी प्रतिष्ठा थी। संभव है कि वैसी ही प्रतिष्ठा नाना जी की भी थी। इसीलिए डैड और माँ का विवाह हो पाया।

सभी के खाना इत्यादि होने के बाद चाची ने मुझे मालिश के लिए बुलाया। वैसे भी डैड और उनके मित्र न जाने क्या बातें कर रहे थे, मुझे समझ नहीं आ रहा था कुछ। इससे बेहतर तो मालिश करवाना ही है। घर में आज केवल माँ, चाची, और कल पहले वाली अभिलाषी महिला, उनकी छोटी बहू और बेटी उपस्थित थे। साथ में उनकी छोटी बहू - जिसके बारे में वो कल बता रही थीं - का दूध पीता बच्चा भी था। मुझे तो ऐसा लगने लगा था कि शायद वो महिला उसी समय पर इसलिए आ जा रही थीं कि मुझे नंगा देख सकें, और अपनी बेट और बहू को भी दिखा सकें। दोनों लड़कियों को देख कर मैं ठिठका। सबसे पहली बात तो यह थी कि दोनों ही उम्र में मुझसे छोटी लग रही थीं। और मुझे आश्चर्य हुआ कि इसकी शादी भी हो गई, और बच्चा भी! कमाल है!

“आओ भइया, इनसे मिलो - ई तोहार भौजी हुवैं,”

“नमस्ते भाभी!” मैंने हाथ जोड़ कर ‘भाभी’ को नमस्ते किया।

“अमर?” माँ ने जैसे मुझे कुछ याद दिलाया।

मैंने बढ़ कर ‘भाभी’ के पैर छू लिए। माँ मुझसे अक्सर कहतीं कि गाँव में मैं अपने समकक्ष लगभग सभी बच्चों में सबसे छोटा था। सबसे छोटा, मतलब सबका आदर सम्मान! लेकिन उसके बदले में सबका प्रेम, और स्नेह भी तो मिलता था। उसको एक पल कुछ कहते नहीं बना।

“बहू, अपने देवर का आसीस ना देबौ?” उसकी सास ने कहा।

“खूब बड़े हो जाओ भइया!” उन्होंने संकोच करते हुए आशीर्वाद दिया।

“अउर ई हमार छोटकई लरिकी, निसा (निशा)”

“नमस्ते, दीदी!”

मैंने कहा, और उसके भी पैर छू लिए। निशा बहुत ज़ोर से शरमा गई।

“हा हा हा!” चाची मेरी बात पर हँसने लगीं, “पाँव जिन छुओ ओकै... हा हा हा! अरे दीदी न है तोहार!” और कुछ और बोलने से पहले ज़ोर ज़ोर से हँसने लगीं।

उन महिला को बुरा लगा होगा, लेकिन चाची को उनकी परवाह नहीं थी।

“जा निसा, जाय कै घरे कुछु काम देखौ!” उन्होंने अपनी बेटी को घुड़का।

“अरे रहय दियौ, सुरसतिया।” चाची ने कहा, “आई हैं दूनौ जनी! कुछु खाय का दै दियौ इनका, बहू!”

“हाँ, आओ बच्चों!” माँ ने बड़े स्नेह से कहा, और दोनों को भोजन देने के लिए अपने साथ ले कर रसोई में चली गईं।

दोनों लड़कियों के आँगन से जाने पर मुझे थोड़ी राहत हुई - कोई ऐसे नग्न देख ले, वो ठीक है। लेकिन ऐसे किसी के भी सामने - ख़ास तौर पर अपने से कम उम्र की लगने वाली लड़कियों के सामने - नग्न होने में मुझे शर्म आ रही थी। अपने बारे में मुझे यह एक नई बात मालूम चली। मेरी मालिश होने लगी, तो वो अपनी बेटी का गुणगान करने लगीं। चाची को उनकी चेष्टाएँ समझ में आ रही थीं। बाद में मालूम हुआ कि इस गाँव के किया, आस पास के पाँच छः गाँवों में जिन भी परिवारों में मेरी हमउम्र लड़कियाँ थीं, सभी हमारे ही परिवार में अपनी बेटी भेजना चाहते थे। दरअसल गाँवों में लड़का लड़की नहीं बल्कि उनके परिवारों का विवाह होता है। जैसे मेरे माँ और डैड थे, कोई भी अपनी बेटी को उनकी बहू बना कर धन्य हो जाता। मुझे आश्चर्य था - इतनी कम उम्र की लड़कियाँ अब ब्याहता ‘स्त्रियाँ’ थीं, उनकी गोदों में बच्चे थे! उनके अल्प-विकसित स्तनों से दूध चूसते हुए बच्चे! गोदी में बैठकर किलकारी मारते बच्चे! खुश होने से अधिक रोने बिलबिलाने वाले बच्चे!

मैंने एक बार पूछ भी लिया,

“आप लोग इतनी कम उम्र में लड़कियों की शादी क्यों देते हो?”

“अरे कम कहाँ, लल्ला? तोहार महतारी अइसे ही तौ रहिन, जब आई रहिन हियाँ, अउर तुँहका जनीं रहीं।”

“अउर का! हमार पतोहुआ अउर हमार निसवा दूनौ एक्कै उमरिया कै तौ हैं!”

जब तक उनका खाना चला, तब तक मेरी आधी मालिश हो भी गई। इस दौरान वो महिला मुझसे मेरी पढ़ाई लिखाई इत्यादि से सम्बंधित प्रश्न पूछती रहीं। आज फुर्सत थी, इसलिए वो अपना ‘एयर टाइम’ लेना चाहती थीं। माँ से भी उन्होंने काफी देर तक बात की। मुझे सरसों के तेल से सना हुआ देख कर निशा ऐसे शरमा रही थी जैसे मैं नहीं, वो ही नंगी हो! वैसा ही हाल भाभी का भी था। खैर, उनको बचाने उनका बच्चा आ गया - वो रोने लगा, तो वो उसको दूध पिलाने में व्यस्त हो गई। बड़ी अजीब सी स्थिति थी - भाभी एक कम उम्र लड़की थीं। और उस पर उनका बच्चा भी जल्दी हो गया लगता था। उन्होंने एक हल्की, पीले रंग साड़ी पहनी हुई थी, और लाल रंग का ब्लाउज। जब ब्लाउज खुला तो देखा कि उनके स्तन तो सावित्री से छोटे थे। जैसा मैंने पहले भी कहा है, कि संभव है कि गाँवों देहातों में, जब स्त्रियों को बच्चा हो जाता है, तो उसके बाद उनको अपनी छातियों को ले कर कोई ख़ास लाज शरम नहीं रह जाती है। तो इस बात की किसी को परवाह नहीं हुई कि भाभी के ‘स्तन’ खुले हुए थे।

खैर, मेरी मालिश के बाद, चाची माँ की भी मालिश करना चाहती थीं, लेकिन माँ ने बहाना कर दिया। जब मेहमान जाने लगे, तब माँ ने मुझे भेंट में जो भी रुपए मिले थे वो, और अपनी तरफ से भी मिला कर, दोनों लड़कियों को दो सौ इक्यावन - दो सौ इक्यावन रुपए आशीर्वाद स्वरुप दिए। भाभी तो गाँव के रिश्ते में माँ की बहू हुई, और निशा लड़की - इसलिए दोनों को आशीर्वाद में कुछ देना आवश्यक था। देखने में यह एक छोटी सी रक़म लगती है, लेकिन आज के समय में उसका मूल्य करीब करीब ढाई - ढाई हज़ार रुपए दोनों को मिले। यह रकम आज के समय में भी गाँव वालों के लिए एक बड़ी रकम होती है।
 
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नींव - पहली लड़की - Update 16


शाम को मैं नहा कर, शर्ट और नेकर पहन कर गायत्री के घर पहुँच गया। माँ को मैंने कह दिया था कि मैं गायत्री के यहाँ जा रहा हूँ। मुझे देखते ही उसकी माँ अति प्रसन्न होते हुए बोलीं,

“अरे पाहुन! आवौ लल्ला! आवौ!”

मैं अंदर आ गया और उनके पैर छुए। देखा तो घर क्या था, बस एक कम रौशनी वाली झोपड़ी कह लीजिए। गाँव में अधिकांश घर उसी प्रकार के बने हुए थे। कुछ ही लोगों के पास ‘पक्के’ घर थे। कच्चा घर होना - यह ग़रीबी नहीं है - ग़रीबी तो इस कारण है कि जब अपने घर में लड़की हो। खैर, यहाँ पर समाज की बुराइयों की क्या बात करना। वो तो आप सभी को अच्छी तरह मालूम ही है। गायत्री की भाभी भी कोई दो मिनट बाद बाहर आ गईं तो मैंने उसके भी पैर छुए। वो मेरे उम्र की हो होगी। कम उम्र विवाह तब भी धड़ल्ले से हो रहा था, और अब भी। गरीब व्यक्ति क्या करे? असली दिक्कत धन की होती है। हमने कुछ देर बात चीत करी। उसी दौरान गायत्री मेरे लिए खाना ले कर आ गई।

थाली में घी से अच्छी तरह चुपड़ी दो रोटियाँ, कटोरी में घी वाली दाल, तथा साग! साथ में लाल मिर्च का भरवाँ आचार भी! ये बिस्कुट चाय का रिवाज़ शहरों का है। गाँवों में तब या तो चना, बताशा, चबैना देते थे, या फिर खाना।

“गायत्री बनाइस है!” उसकी माँ ने अनावश्यक टिप्पणी दी।

मैंने खाना खाया - स्वादिष्ट भोजन तो था - लेकिन फिर भी बहुत अधिक नहीं खाया। अन्यथा रात का भोजन न कर पाता। कुछ देर सभी से बात कर के मैंने वहाँ विदा ली। मेरे पीछे पीछे गायत्री मुझसे कहती है,

“मंदिर चलोगे?”

मुझे कोई काम नहीं था इसलिए मैंने ‘हाँ’ कह दिया। हम दोनों साथ ही चल दिए। कुछ देर मंदिर में बैठे, तब तक आरती का समय हो गया था। हमने बहुत अधिक बातें नहीं करीं। बस छोटी छोटी, इधर उधर की बातें।

“आरती देखोगे?”

“नहीं! कल ही देखी है।”

“घर जाओगे?”

“नहीं!” उसके साथ अच्छा लग रहा था। फिर क्यों जाएँ घर?

वो मुस्कुराई, “तो फिर?”

“कोई ऐसी जगह है, जहाँ तुम और मैं अकेले बैठ सकें?”

उसने दो पल सोचा, और फिर बोली, “चलो!”

मंदिर से कोई डेढ़ किलोमीटर दूर एक पुराना, सूखा कुआँ था। वहाँ देखा तो कोई नहीं था। वैसे भी गाँव के अधिकतर लोग या तो मंदिर में होंगे, या फिर घरों में। खेत कटनईं के दिन थे - दिन भर सभी खेतों में होंते, और शाम को मंदिर में, नहीं तो अपने अपने घरों में!

“ये जगह ठीक है?”

“हाँ!”

“बोलो फिर?”

“क्या?”

“जो हमसे अकेले में बोलना चाहते थे!”

“कुछ नहीं! बस तुम्हारे साथ अकेले बैठने का मन था!”

“ओह!” उसने कहा, फिर मुझसे पूछा, “तुमने ये नेकर क्यों पहना है?

“क्यों क्या हो गया?”

“नेकर तो छोटे लड़के पहनते हैं न?”

“हाँ, लेकिन गर्मी है न! मैं तो रात में बिना कपड़ों के ही सो जाता हूँ!”

“हाँ हम भी! गर्मी में हम कुरता नहीं पहनते सोते वक़्त!”

“मैं तो सब उतार देता हूँ!”

“मतलब नंगे ही?”

“हाँ! माँ के पास! वो दूध पिलाती हैं न मुझे!”

“हाँ, अम्मा बताई है! लेकिन तुम अब बड़े हो गए हो।”

“क्यों, माँ का दूध पीने में क्या बुराई है?”

“कुछ भी नहीं!” फिर वो हँसने लगी।

“क्या हुआ?”

“कुछ नहीं! भैया की याद आ गई।”

“क्या?”

“जब से भौजी आई है, तब से वो भौजी का दूध पीता है!”

“मैं तुम्हारा पी लूँ?”

“हमारा दूध?”

“हाँ!”

“धत्त!” उसने शर्माते हुए कहा। हम दोनों थोड़ी देर चुप रहे। अंत में उसी ने चुप्पी तोड़ी, “माँ जी बहुत सुन्दर हैं।”

“तुम भी!”

“हम तुमको सुन्दर लगते हैं?” उसने मुस्कुराते हुए कहा।

“हाँ। इसीलिए तो कहा। मैं झूठ नहीं बोलता।”

वो शरम से बोली, “तुम भी हमको बहुत अच्छे लगते हो!” फिर थोड़ा उदास होते हुए बोली, “लेकिन तुम्हारी दुनिया हमसे कुछ अलग हो गई है। यहाँ लोग जानते हैं, लेकिन मानना नहीं चाहते।”

“मतलब?”

मैं बुद्धिमान बहुत था, लेकिन सांसारिकता और परिवेश ज्ञान बिलकुल भी नहीं था मुझमे। गायत्री लेकिन सायानी हो चली थी,

“अम्मा चाहती हैं कि हमारा लगन तुमसे हो जाय!”

“क्या?”

“हाँ!” वो हँसते हुए बोली, “इसीलिए तो वो माँ जी के आस पास मँडराती रहती हैं। और वो ही क्या, कई सारी औरतें यही कर रही हैं।”

“लेकिन मैं अभी शादी नहीं कर सकता!”

“मालूम है। हम भी पढ़ना चाहती थीं। लेकिन सबने हमारा पढ़ना लिखना छुड़वा दिया। अम्मा ख़ुद तो अपनी शादी को कोसती रहती हैं, और फिर भी हमारी शादी के पीछे पड़ी हैं! वैसे अब तो हम भी अपने बियाह की राह देख रही हैं कि कब हमारा बियाह हो जाय और कब हम इस जंजाल से मुक्त हो जायँ!”

मुझे यह जान कर दुःख हुआ।

“लेकिन तुम तो छोटी हो!” मैंने सोचते हुए कहा।

“हम इतनी छोटी भी नहीं हैं! भौजी और हम एकउम्र ही हैं।” वो मुस्कुराई और फिर थोड़ा गर्व से बोली, “तुमसे बड़ी हैं हम!”

“ओह!”

“लेकिन तुम हमको अच्छे लगे। हमारी अम्मा को भी।” उसने कुछ सोचा, “तुम तो वैसे सभी को अच्छे लगे। तुम ऐसे ही रहना हमेशा!”

उसकी बात मुझे दिल में कहीं छू गई। मैंने उसको अपने गले से लगाने के लिए हाथ बढ़ाया। वो पहले तो थोड़ा पीछे हो गई, फिर मेरी मंशा भाँप कर मेरे आलिंगन में आ गई। अच्छी लड़की है गायत्री! कोई अन्य समय होता, कोई अन्य स्थान होता, तो संभव है कि वो मेरी बड़ी अच्छी दोस्त होती - रचना के जैसे ही। लेकिन साल दो साल में एक बार, एक सप्ताह के लिए गाँव जाने पर क्या दोस्ती, क्या बैर?

“हा हा हा!” वो हँसने लगी।

“क्या हुआ?”

“कुछ नहीं! कुछ नहीं!”

“अरे, हँसने का कोई कारण तो होगा?”

“हमने तुम्हारे साथ इतना कुछ कर लिया, जो किसी पराए मरद के साथ करने का हम सोच भी नहीं सकतीं!”

“ऐसा क्या कर लिया?” मैंने अचरज से पूछा।

“देखो, अभी हम तुम्हारे गले से लगी हुई हैं, और…” उसने शरमाते हुए कहा, “कल तुमने हमारा तो सब कुछ देख लिया है! लड़की का वो सब तो बियाह बाद उसके पति ही देखते हैं।”

“हम्म्म! अच्छा!”

“हाँ! अब चलें वापिस?”

“हाँ!” मैंने बेमन से कहा।

“वापिस जाने का मन नहीं है?”

मैंने ‘न’ में सर हिलाया।

“यहीं बैठने का मन है?”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“दूध पीने का मन है?”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“हा हा हा हा हा!” वो दिल खोल कर हँसने लगी।

फिर गायत्री ने आस पास देखा - जब कुछ देर तक कोई आहट नहीं सुनाई दी, तो उसने अपना कुरता उतार दिया।

“जल्दी से पी लो, इसके पहले की हम अपना मन बदल दें!”

मुझे उम्मीद नहीं थी कि गायत्री ऐसा कुछ कर सकती है। उसके सुन्दर स्तन मेरे सामने पुनः अनावृत थे, और मेरे द्वारा प्रेम किए जाने के लिए तत्पर थे। मैंने बिना कोई समय गँवाए उसका एक चूचक अपने मुँह में ले लिया और उसको चूसने लगा। माँ अथवा चाची अथवा रचना के विपरीत, गायत्री का चूचक उसके सीने के बहुत समीप था। उसके स्तन छोटे ही थे। स्वाद के नाम पर नमकीन स्वाद आया - दिन भर मेहनत करने वाली लड़की के शरीर से और कैसा स्वाद आएगा? मैंने उसके दोनों स्तनों को कोई पाँच मिनट तक बारी बारी से चूसा और जीभ से दुलराया। गायत्री की दशा बिलकुल निराली थी - उसकी आँखें बंद थीं, मुँह खुला, नथुने फड़क रहे थे, और साँसें धौंकनी जैसी चल रही थी। मैं आखिर कितना देर पीता! जब छोड़ा, तो जैसे वो वापस धरती पर उतरी! उसने अपनी आंखें खोलीं और पूछा,

“मन भरा?”

उत्तर में मैंने गायत्री को अपनी बाहों में लिया, उसके मुख को चूमा और पूछा,

“तुमको अच्छा लगा?”

“इतना प्यार न जताओ लल्ला, कि हम किसी और से बियाह ही न कर पाएँ!” उसने उदास होते हुए कहा।

उसकी इस बात से मेरा मन भी डूब गया।


***


उस रात हम अपने घर में सोए, लेकिन मुझे नींद ही नहीं आई। माँ आज डैड के साथ सोईं थीं और चूँकि उन्होंने शायद तीन चार रात से एक दूसरे से ‘प्यार’ नहीं किया था, इसलिए वो दोनों एक दूसरे से गुत्थम गुत्थ थे। मैं उस समय भी जग रहा था जब दोनों रात में दूसरी बार सम्भोग कर रहे थे। अंततः जब शांति हो गई, उसके कोई आधे घण्टे बाद मैं उठ कर छत पर चला गया। आज वाकई, बेहद गर्मी और उमस थी, और सभी यही प्रार्थना कर रहे थे कि बारिश अब हो ही जाए। बारिश के अंदेशे में खुदाई किए हुए स्थान को तिरपाल से ढँक दिया गया था। खैर, मैं छत पर निर्वस्त्र ही टहल रहा था। बगल वाले चाचा चाची की छत हमारी छत से इतना ही दूर है कि बस थोड़े से ही प्रयत्न से यहाँ से वहाँ जाया जा सकता है। लेकिन मैं कोई तत्परता नहीं दिखाना चाहता था। कोई भी ऐसा काम जिससे मेरे माँ और डैड का सर थोड़ा भी नीचे हो, मैं नहीं कर सकता था। खैर, थोड़ी देर में वही हुआ जिसकी हम बहुत देर से राह देख रहे थे। बारिश होने लगी। पहले धीमे, फिर बहुत तेज़। मुझे वापस नीचे आना पड़ा। बारिश की आवाज़ सुनते सुनते मैं कब सो गया, याद नहीं है।


***


आज माँ और डैड बहुत खुश लग रहे थे। खुश भी क्यों न हों? कितने दिनों के बाद दोनों को एक होने का अवसर मिला था, नहीं तो वही दूर दूर सोना! ऊपर से मौसम भी अच्छा हो गया था। कल रात की बारिश से उमस और गर्मी में थोड़ी कमी आई थी। डैड आज अन्य लोगों के खेतों पर सवेरे ही निकल लिए। कुछ लोगों को बैंक से लोन इत्यादि की आवश्यकता थी, और वो सलाह लेना चाहते थे कि क्या करें और कैसे करें। आज मुझसे पहले माँ की मालिश हुई। चाची ने कहा कि उनके लिए मेरी माँ उनकी पतोहू (पुत्रवधू) जैसी हैं, इसलिए उनको स्नेह देना उनका अधिकार है। माँ के पैरों में पायल नहीं थी, इसलिए मालिश के बाद उनके पाँवों को लाल आलता (महावर) से रंग कर सजा दिया गया। माँ के गोरे गोर पाँव लाल आलता के रंग में बड़े सुन्दर लग रहे थे। छुट्टियों के ये दिन बस ऐसे ही निकल गए। तब तक शौचालय का लगभग सब काम हो गया था।

उस दिन के बाद गायत्री से मेरी अगली मुलाकात वापस जाने के पहले वाले दिन ही हो पाई।

“कल जा रहे हो?”

“हाँ!”

“फिर कब आओगे?”

“पता नहीं!”

“हो सकता है तुम्हारे यहाँ आने से पहले हमारा बियाह हो जाए!”

“हाँ! हो सकता है।”

“तुमको बुरा नहीं लगेगा?”

“बुरा क्यों लगेगा?” मैंने कहा, “तुम्ही ने तो कहा था, कि इतना प्यार न जताओ कि तुम किसी और से बियाह ही न कर पाओ!”

“हमारी बात का बुरा मान गए?”

“नहीं! लेकिन अब थोड़ी थोड़ी समझ आ गई है। मैं निरा बुध्धू नहीं रह गया।”

मेरी बात से उसका चेहरा थोड़ा उदास सा हो गया।

“गायत्री - मैं तुमको उदास नहीं करना चाहता। लेकिन तुम्हारी बात सही थी। मैं चार पाँच साल तक शादी नहीं कर सकता। तब भी कोई निश्चित नहीं कि तुमसे कर पाऊँगा। इसलिए मैंने बोला कि मैं अब निरा बुध्धू नहीं रह गया। थोड़ी सांसारिकता और समझ मुझमे भी आ गई है।”

उसने एक फीकी सी मुस्कान दी।

“बियाह में आना!”

“बुलाओगी, तो आऊँगा!”

न जाने क्या सोच कर उसने मुझे अपने गले से लगा लिया।

“तुम बदलना मत! बहुत अच्छे हो। ऐसे ही रहना। माँ जी और बाबू जी के जैसे!”


अगले दिन पूरा गाँव हमको विदा करने उपस्थित था। वहाँ के लोगों का स्नेह देख कर दिल भर आया। सरल सीधे लोग - नातेदारी ही उनकी जमा पूँजी थी। मेरा अगली बार गाँव आना कई सालों के बाद होना था। अच्छी बात यह थी कि मैं मीठी यादों के साथ वापस जा रहा था।

***
 

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नींव - पहली लड़की - Update 17


एक दिन मेरा दोस्त वसीम पढ़ाई की कुछ बात डिसकस करने घर आया। उसने मुझसे पहले ही बता दिया था कि वह आएगा, लेकिन मैं किसी कारण से यह बात भूल गया था। माँ ने सोचा होगा कि क्योंकि मैंने ही वसीम को घर आने के लिए आमंत्रित किया था, तो मैं ठीक से कपड़े पहने रहा हूँगा, इसलिए उन्होंने बिना कुछ सोचे उसे मेरे कमरे में जाने दिया। अब मैं अपने कमरे में बैठा पढ़ रहा था, केवल शर्ट पहने हुए! मुझे इस तरह से देखकर वसीम हैरान रह गया।

“अरे यार! तू तो नंगा है!” उसने चौंकते हुए कहा।

मैं भी उसे वहां देखकर हैरान रह गया।

“वसीम! तू?”

“हाँ मैं! हमें डिसकस करना था न आज! याद नहीं था? लेकिन यार, तू क्या घर में ऐसे नंगा ही रहता है?”

वसीम मेरा बहुत करीबी दोस्त था। हमने हमेशा पढ़ाई में और यहां तक कि... परीक्षाओं में भी एक-दूसरे का साथ दिया (जैसे कि एक-दूसरे से नकल करने में)। हम दोनों एक दूसरे के त्यौहार में एक दूसरे के घर आते जाते थे। होली, दिवाली में उसका और उसकी बहन का हमारे घर खाना निश्चित था, और मेरा उसके यहाँ हर ईद पर! मुझे तो ईदी भी मिलती थी हर बार! कहने का मतलब हम दोनों के बीच बहुत प्रगाढ़ता थी। लेकिन यह पहली बार था जब उसने मुझे इस तरह देखा था। उसकी बात पर मैं सोच में पड़ गया कि उसको कितना बताऊँ! फिर मैंने सोचा कि उसे सच सच बताना ठीक है। इतना करीबी दोस्त है कि कुछ भी छुपाने से वो बुरा मान जायेगा।

“हाँ।” मैंने कहा, “कभी कभी! हमेशा नहीं!”

“अंकल जी और आंटी जी को इस पर कोई ऑब्जेक्शन नहीं होता है?”

“नहीं यार! बचपन से अभी तक उन्होंने मुझे कभी रोका नहीं। कुछ साल पहले तक तो मैं हमेशा नंगा ही रहता था घर में! अब तो बस कभी कभी!”

“सही है यार! यह बहुत अच्छा है! तुम्हारे पेरेंट्स तो सुपर कूल हैं यार!”

वसीम ने कहा। वो कुछ देर चुप रहा - शायद यह सोच कर कि मैं कुछ और बताऊँगा। मैंने कुछ भी नहीं कहा। फिर वो खुद ही बोला,

“क्या तेरा ये खड़ा होता है?” उसने पूछा।

“हाँ! अभी हाल ही में शुरू हुआ है …”

“अच्छी बात है ... क्योंकि अभी भी यह छोटे लड़कों के नुनु जैसा दिखता है!”

“मतलब?”

“मेरा मतलब है, अभी इस पर बाल नहीं हैं ... लेकिन कोई बात नहीं! तुम उम्र में मुझसे छोटे भी तो हो। डेढ़ साल पहले तक तो मेरे पर भी बाल नहीं थे! तो, तुम चिंता न करना। अभी वक़्त है।”

“तुम्हारा कैसा है?”

“तू देखेगा?”

मेंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

वसीम ने अपनी पैंट की ज़िप खोली और अंडरगारमेंट के साथ उसको नीचे की ओर सरका दिया। उसका लिंग खड़ा तो हुआ था, और बिलकुल, उसका साइज़ मेरे से तो बड़ा था, लेकिन डैड के साइज से छोटा था। यानि डैड, वसीम, और रचना की बात सही है - उम्र का लिंग के आकार पर प्रभाव तो पड़ता है। वसीम का खतना किया गया था, जो उसके धर्म में एक आवश्यक संस्कार था। और, जैसा उसने कहा था, उसके लिंग की जड़ पर बाल थे... रचना के बाल मुलायम, रोएँदार थे, लेकिन वसीम के थोड़े कड़े दिख रहे थे। सच में, उसके लिंग के आकर प्रकार में कोई सुंदरता नहीं थी। वसीम ने मेरे विचार की पुष्टि करी,

“अमर, तेरा नुन्नू सुंदर दिखता है ... मेरा तो बदसूरत है। लेकिन असली काम का तो मेरा ही है!” उसने हँसते हुए कहा।

मैं समझ रहा था कि ‘काम का’ होने से उसका क्या मतलब है। लेकिन मैंने उसकी बात पर कोई टिप्पणी नहीं की। उसका लिंग वास्तव में बदसूरत लग रहा था, खासकर खतना होने के बाद खुला खुला होने के कारण! वसीम को मिला कर अब चार लोग थे जिन्होंने कहा था कि मेरा लिंग सुंदर था। तो, मेरे ख़याल से मेरा लिंग वाकई सुंदर था!

“तूने इसे कहीं इस्तेमाल किया है?” वसीम ने मुझसे पूछा।

मैं समझ गया कि वह मुझसे पूछ रहा है कि क्या मुझे सेक्स का कोई अनुभव है। स्कूल में मेरी एक बेदाग छवि थी, और मुझे लग रहा था अगर मैं उसको अपनी रचना के साथ वाली कहानी बताऊँगा तो मेरे साथ साथ रचना की छवि भी खराब हो सकती है। वसीम अच्छा दोस्त था, लेकिन बिना वजह पंगा क्यों लेना?

“मतलब?”

“अरे यार, क्या तूने इसे किसी लड़की के अंदर डाला है?”

“नहीं! किस लड़की में डालूँगा?”

“अरे क्यों? रचना तो हमेशा तेरे से ही चिपकी रहती है!”

उसकी बात सच थी, लेकिन मैं रचना के साथ अपनी घनिष्ठता के बारे में उसको नहीं बता सकता। इशारे में ही सही, वसीम भी मुझसे कह रहा था कि रचना और मेरे बीच यह हो सकता है। बड़ी दिलचस्प सी बात है! है न? मुझे कभी नहीं पता था कि रचना और मेरी दोस्ती पर स्कूल में इस तरह का संदेह है! यह एक बड़ी नई बात थी मेरे लिए। लेकिन मैंने अगले ही पल उसकी बात को पलट दिया,

“अच्छा, तो मैं लुबना के साथ यह क्यों नहीं कर सकता?”

लुबना वसीम की बहन थी और मेरी हमउम्र थी, और एक क्लास पीछे थी। मेरी बात पर वसीम एक पल के लिए अचकचा गया, लेकिन कुछ सोच कर बोला,

“जरूर कर सकते हो,” उसका लहज़ा सामान्य था; अक्सर लड़के अपनी बहनों को लेकर बहुत ही लड़ाकू हो जाते हैं, लेकिन वसीम वैसा नहीं लग रहा था, “लुबना सुन्दर है, तेरी उम्र की है! लेकिन मुझे नहीं पता था कि तुमको उसमें इंटरेस्ट है!”

मुझे लगा था कि वह नाराज हो जाएगा, लेकिन उसकी बेपरवाही ने मुझे चौंका दिया। बात वापस मुझ पर ही आ गई।

“तेरे मम्मी पापा भी बहुत बढ़िया लोग हैं! बोल दे, कब निक़ाह पढ़वाना है तुम दोनों का!” वसीम हँसते हुए बोला, “लेकिन भाई, पहले कुछ कमाना धमाना शुरू कर दे।”

“हा हा हा! तू भी न! अच्छा, ये बता, कि तूने कभी किया है?” मैंने उससे पूछा।

“हाँ! मैंने दो बार किया है।”

“क्या! कौन? किसके साथ?" मैं उसके खुलासे पर चौंक गया। मेरे जैसे जवानी की तरफ बढ़ने वाले एक लड़के के लिए यह एक बहुत बड़ी खबर थी, कि उसका दोस्त किसी लड़की के साथ सम्भोग किया हो।

“कौन से तुम्हारा क्या मतलब है? अरे यार, तुम्हारी भाभी, और किस से करूँगा यह सब ?”

मुझे पता था कि वसीम की उसके चचेरी बहन से शादी होने वाली है। भाभी उससे कोई पाँच साल बड़ी थीं, लेकिन दोनों परिवारों ने बहुत पहले से ही यह रिश्ता जोड़ लिया था, इसलिए इन दोनों के लिए भी कुछ अटपटा नहीं था। अभी हाल ही में इन दोनों की सगाई हुई थी; और साल - डेढ़ साल में दोनों का निक़ाह होना सुनिश्चित था। मैं उसकी सगाई में गया था - भाभी सुन्दर सी तो थीं। उनकी बनावट काफी कुछ माँ जैसी ही थी। हालाँकि वसीम अभी भी पढ़ रहा था, लेकिन वो पढाई में बहुत तेज़ नहीं था। वसीम का खानदान पीतल के बर्तनों, और कपड़ों की ख़रीद फ़रोख़्त के पारंपरिक व्यवसाय में लगे हुए थे। वसीम स्कूल के समय से ही समय दुकानों पर ही बिता रहा था और उससे उम्मीद की जा रही थी कि वह अपनी नई दुकान की जिम्मेदारी अकेले ही सम्हाल लेगा। मुझे लगता है, कि जब आदमी अपनी आजीविका कमाने लगता है तब वो शादी करने के योग्य हो जाता है।

मेरे कहने पर वसीम ने अपनी मंगेतर के साथ सेक्स का चटाकेदार और विस्तृत विवरण दिया। मुझे लगता है कि उसको भी अपने अनुभव को सुनने के लिए एक मुकम्मल श्रोता चाहिए था, जो उसको मुझमे मिला। उसी से मुझको लड़कियों के गुप्तांग का एक और नया शब्द मालूम हुआ - ‘बुर’! स्तनों के लिए भी उसने एक शब्द बताया - ‘चूचियाँ’! यह दूसरा वाला शब्द मैंने गाँव में भी सुना था। दोनों ही शब्द मुझे बड़े अटपटे से लगे। खैर, उसकी कहानी का मुझ पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा, जो अब दिख रहा था। मेरा लिंग स्तंभित हो रहा था। वसीम ने मेरे लिंग को अपने हाथ में पकड़ लिया और उसकी कठोरता और लंबाई का अपने तरीके से मूल्यांकन किया। उसने मुझसे कहा कि इसका साइज़ तो अच्छा है और उम्मीद है कि बहुत जल्द ही वह एक अच्छे आकार का बढ़िया लण्ड हो जाएगा। उसने मुझे समझाया कि मैं हस्तमैथुन (मास्चरबेट) करने में अपनी ऊर्जा नष्ट न करूँ, और वीर्य को मेरे अंदर पुष्ट होने दूँ। उसने कहा कि हस्तमैथुन कोई स्वस्थ चीज नहीं है, और इसे बस कभी-कभार ही किया जाना चाहिए। मुझे यह सारी बारीकियाँ नहीं मालूम थीं। मैंने सोचा कि चूँकि वसीम मुझसे बड़ा है, और मेरा भला चाहने वाला है, तो उसकी सलाह उचित ही होगी।


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