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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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दूसरा अध्याय - आत्मनिर्भर ।

यह अध्याय अमर के नोकरी लगने के पश्चात एक बंगालन युवती काजल के उसके जीवन में आने पर आधारित था ।
काजल शादीशुदा एवं दो छोटे छोटे बच्चों की मां थी जो घरों में नौकरानी की काम करके अपना और अपने परिवार का पालन पोषण किया करती थी ।
बहुत साल पहले की बात है जब मेरे मौसेरे भाई जो अपने गांव की सबसे बड़ी हस्ती थे , ने मुझसे कहा था कि एक जवान लड़का और जवान लड़की को कभी भी एक कमरे में लम्बे अरसे के लिए नहीं छोड़ना चाहिए , भले ही वो फेमिली मेम्बर ही क्यों न हो ।
काजल तो फिर भी फेमिली मेम्बर नहीं थी । शादीशुदा भी थी तो अपने पति से सुखी नहीं थी । वो उमर के उस पड़ाव पर थी जहां महिलाओ की सेक्सुअल नीड ज्यादा होती है ।
और अमर, ताजा ताजा जवानी की दहलीज पर खड़ा लड़का था ही । ऐसे में दोनों के बीच अंतरंग सम्बन्ध स्थापित होना स्वाभाविक ही था ।

एक और व्यापक विश्लेषण के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद! :)
कुछ बातें सही हैं, और कुछ बातें नहीं। आकर्षण संभव है, लेकिन उस आकर्षण पर अंतरंग सम्बन्ध स्थापित हो जाएँ, यह बात स्वाभाविक नहीं है।

दोनों एक दूसरे के प्रति आकर्षित हुए । इसका एक कारण यह भी था कि अमर ने काजल की जब तब न फाइनेंशियल मदद ही की बल्कि उसके बच्चे को एक अच्छे स्कूल में दाखिला भी करा दिया ।
इसके अलावा अमर का बुखार होना और सिचुएशन के हिसाब से काजल का उसे देखभाल करना , नजदीकी का दूसरा कारण रहा ।

मेरे ख्याल से यही मुख्य कारण था। बुखार होना एक कैटेलिस्ट जैसा काम किया।

दोनों ने प्रेम किया । ओरल सेक्स भी किया लेकिन आखिरी सीमाएं नहीं लांघी । ऐसा काम कोई सुलझा हुआ व्यक्ति ही कर सकता है । वो जिसे हवस से ज्यादा प्रेम भाता है । वो, जो जोर जबरदस्ती पर विश्वास नहीं करता ।

विशुद्ध प्रेम है भाई! आपको आगे चल कर बहुत कुछ मालूम होगा।

लेकिन जो भी हो ऐसे रिश्ते पर्दे के पीछे ही रहते हैं । पर अमर और काजल दोनों ने अमर के माता पिता के सामने इस Forbidden relationship को जाहिर कर दिया । और अचरज की बात यह है कि उन्हें इस सम्बन्ध से आपत्ति भी नहीं हुई ।
ऐसा रेयर ही होता है । काजल शादीशुदा महिला थी । दो बच्चे भी थे । यह बात खुलने से उसकी लाइफ परेशानियों से घिर सकती थी ।
काजल का बेटा भी इन चीजों को अपने पिता से कह सकता था । यह सब जानते हुए भी अमर और काजल ने उसी के सामने कुछ इंटिमेट लम्हा बिताए ।

जी बिलकुल सही बात है। लेकिन पर्दे के पीछे, दबी ढँकी बातों में पाप वाला बोध होता है।
अमर का अपने माता पिता से जैसा सम्बन्ध है, उसमें उनसे कुछ छुपाने जैसा काम वो कर नहीं सकता।
उसके घर का माहौल ही ऐसा है।

काजल के घर में परेशानियाँ होने की बड़ी सम्भावनाएँ थीं - यह बात आगे पेश की गई है!
काजल का बेटा जानता समझता था सब कुछ - लेकिन उसके भी अपने कारण थे, सब कुछ दबा देने के।

हम समझ सकते हैं अमर और काजल दोनों की नीयत सही थी लेकिन जानते तो वो दोनों ही थे कि वो जो कर रहे हैं उसे समाज की नजरों में सही नहीं कहा जाता ।
ऐसे सम्बन्ध चोरी चोरी , पर्दे के आड़ में ही बनाए जाते हैं ।

काजल का किरदार बेहद महत्वपूर्ण है। उस किरदार में जो जो परिवर्तन आते हैं, वो आश्चर्यचकित कर देने वाले हैं।
आप सिलसिलेवार पढ़ रहे हैं, इसलिए कोई भी खुलासा नहीं करूँगा।
लेकिन आपकी अधिकतर बातों के उत्तर आपको आगे चल कर मिल जाएँगे - यह वायदा है! :)

ये अध्याय भी बहुत खुबसूरत था । देखते हैं आगे अमर की सेक्सुअल जर्नी किस तरफ ले जाती है ।

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड ब्रिलिएंट अपडेट भाई ।

धन्यवाद! :)
आपके अगले विश्लेषण की प्रतीक्षा में!
 
  • Love
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अंतराल - स्नेहलेप - Update #7

इतवार :

प्राकृतिक दुःखों की बात छोड़ दें, तो मुझे अक्सर अन्य लोगों ने बताया है कि आपकी फैमिली तो सूरज बाड़जात्या की पिक्चरों जैसी है - हँसती, खेलती, मुस्कुराती। उसका कारण है। परिवार स्नेही हो, उसके सभी सदस्य सरल और सच्चे हों, और मिथ्याभिमानी न हों, तो ऐसे परिवार में बड़ा आनंद आता है। अहोभाग्य मेरे, कि मेरा परिवार ऐसा ही है। और जो भी अभी तक हमसे आत्मीय सम्बन्ध बना सका, सभी ऐसे ही हैं। इस बात से मुझे अक्सर ही आश्चर्य भी होता है!

खैर, शनिवार से ही दोनों बच्चे कह रहे थे कि इतवार के लिए कोई स्पेशल प्लान करें - जैसे कहीं बाहर घूम आएँ या नहीं तो कहीं मूवी देखने चलें। तो घूमने के लिए मैंने कहा कि चूँकि दोनों के स्कूल गर्मियों के लिए बस बंद होने ही वाले हैं, तो थोड़ा इंतज़ार कर लें। हाँ, मूवी के लिए ज़रूर जाया जा सकता है। बात शुरू हुई कि बच्चों के लिए क्या फ़िल्में लगी हैं, लेकिन सच में, घर और बाहर हर जगह केवल बच्चों की ही फ़िल्में, और उनके ही प्रोग्राम देख कर दिमाग थोड़ा तो पकने ही लगता है। इसलिए निर्णय हुआ कि एक नई रिलीज़्ड फ़िल्म देखने चलेंगे।

फिल्म कुछ इस प्रकार थी कि फिल्म में दो नायक हैं - एक को फिल्म की नायिका से बड़ा प्रेम है, लेकिन वो उसको बता नहीं पाता। लिहाज़ा, नायिका दूसरे नायक से शादी करने को होती है। शादी से एक दो दिन पहले ही नायिका समझती है कि वो पहले नायक से ही पूरे जीवन भर प्यार करती आई थी, लेकिन उसने कभी इस बात को नहीं समझा, और पहले नायक बस अपने सबसे अच्छे दोस्त के रूप में ही माना। दूसरे नायक का इस बात पर दिल टूट जाता है। खैर, अंत में दोनों में दोनों एक दूसरे के लिए अपने प्रेम की भावना व्यक्त कर ही देते हैं। फिल्म की पटकथा, नायक, और फ़िल्म तीनों ही चौपट थे, लेकिन चूँकि परिवार साथ था, इसलिए फिल्म खराब नहीं लगी। हाँ, वो अलग बात है कि पुचुकी और मिष्टी, दोनों ही फिल्म शुरू होने के आधे घण्टे बाद ही गहरी नींद सो गए। अच्छी बात थी - कम से कम दो घण्टे दोनों आराम से तो रहे। घर जा कर धमाचौकड़ी मचाने की एनर्जी दोनों की बनी रही।

काजल की ही ज़ोर जबरदस्ती पर वापस आ कर हमने घर में ही तहरी और रायता खाया। यह सामान्य सा भोजन भी बहुत अच्छा लगा। ऐसे ही छोटी छोटी बातों का आनंद लेते हुए सप्ताहांत समाप्त हो गया!


**


अगला दिन - सोमवार :

सुनील लतिका और आभा को उनके स्कूल से ले कर घर आता है। आभा रोज़ की ही तरह सुनील के गोदी में चढ़ी हुई थी, और लतिका अपने नाम के ही अनुसार सुनील से लिपटी हुई थी।

रोज़ की बात थी यह - दोनों बच्चे अपने दादा की संगत में खुश रहने लगे थे। और मुझे इस बात का मलाल बना रहता कि पाँच सप्ताह में वो मुंबई चला जाएगा अपनी जॉब पर, तब काजल का, इन दोनों बच्चों का, और माँ का क्या होगा। इतने कम समय में अपने लिए मोह को पाल पोस कर बड़ा कर के, यूँ चले जाना - कैसी निष्ठुरता है! मेरा भी मन होता कि उसको रोक लूँ! लेकिन उसके मतलब की नौकरी यहाँ दिल्ली में अभी तक नहीं थी। हाँ - एक बात संभव थी कि अगर मैं ही सपरिवार मुंबई शिफ़्ट हो जाता, तो सुनील भी पास ही रहता। लेकिन ऐसे जल्दबाज़ी में, इतना बड़ा निर्णय नहीं लिया जा सकता। मेरा काम जम तो गया था, लेकिन इतना पक्का नहीं था कि बिना किसी सक्रीय नेतृत्व के चलता रहता। खैर!

माँ और काजल, दोनों ही देखती हैं कि अन्य दिनों के अपेक्षा आज लतिका खूब मुस्कुरा रही होती है, चहक रही होती है। स्कूल की क़ैद से घर की आज़ादी में आने पर बच्चों को तो स्वाभाविक रूप से ख़ुशी होती ही है, लेकिन आज कुछ ख़ास बात लग रही थी।

“बताओ न दादा, प्लीईईज़!” लतिका बार बार सुनील से कुछ बताने को कह रही थी।

“हा हा हा! अरे बाबा! बताता हूँ... बताता हूँ! पहले हाथ मुँह तो धो लो!” सुनील मुस्कुराते हुए कहता है।

सुनील की बात पर लतिका भाग कर बाथरूम में जाती है। सुनील रोज़ की ही भाँति दोनों बच्चों के घर के कपड़े ले आता है। पिछले कुछ दिनों से दोनों बच्चों की कई सारी ज़िम्मेदारियाँ उसने अपने कंधे पर उठा ली थीं। अद्भुत था सुनील का धैर्य! दो दो बच्चों को सम्हालना, और वो भी उसकी उम्र में, कठिन काम है! आभा अभी भी अपनी देखभाल करने में आत्मनिर्भर नहीं हुई थी, इसलिए सुनील एक मग में पानी ला कर उसके हाथ मुँह धो देता है और उसके कपड़े उतार कर उसके शरीर को भी गीले कपड़े से पोंछ देता है। उनको घमौरी न हो जाए, इसलिए वो बच्चों को घमौरी से बचाने का पाउडर भी लगा देता है। गर्मी और धूप में बाहर खेलने, और पानी पीना भूल जाने से बच्चों को अक्सर घमौरी हो जाती है। सुनील को इस बात का ध्यान था, इसलिए वो वैसी नौबत ही नहीं आने देना चाहता था।

जब तक लतिका वापस आती, तब तक सुनील ने आभा के शरीर पर पाउडर लगा दिया। पाउडर की सफेदी उसके पूरे शरीर पर लिपटी हुई थी, और सुनील उसको ‘नागा बाबा’ ‘नागा बाबा’ कह कर छेड़ रहा था, और आभा इस छेड़खानी पर खिलखिला कर हँस रही थी। उसको यूँ देख कर काजल भी हँस दी, लेकिन उसने सुनील को कहा कि पाउडर से नहलाना नहीं है। बस, लगा देना है कि स्किन को राहत रहे। वहाँ से छुट्टी पा कर आभा काजल की गोदी में बैठ कर स्तनपान करने लगती है।

उधर लतिका न जाने किस उत्साह से जल्दी से हाथ मुँह धो कर सुनील के पास वापस आती है और उसकी गोदी में कूद कर बैठ जाती है।

“अब बताओ, जल्दी जल्दी!” वो चहकते हुए बोली।

सुनील लतिका की इस हरकत पर बहुत हँसता है, और उसको अपनी गोदी में बैठा कर, उसके स्कूल के कपड़े उतारते उतारते, उसके कान में दबी आवाज़ में कुछ बातें करता है। दोनों भाई बहन के चेहरों के भाव अनोखे रूप से चढ़ और उतर रहे थे। सुनील के चेहरे पर ऐसे भाव थे कि जैसे उसको अपना कोई राज़दार मिल गया हो, और लतिका के चेहरे पर आश्चर्य, ख़ुशी, और अविश्वास के भाव थे।

“क्या सच में दादा?” किसी बात पर अचानक ही लतिका तेजी से बोल पड़ी।

“शह्ह्ह्ह!” सुनील ने उसको चुप रहने को कहा, “अरे धीरे धीरे!”

ओ माय गॉड! हा हा हा!” लेकिन लतिका की ख़ुशी देखते ही बन रही थी, “वाओ वाओ!”

“अरे शांत शांत! तू सब गुड़ गोबर कर देगी!” सुनील ने लतिका की चड्ढी उतारते हुए शिकायत करी।

“नहीं दादा! बट, आई ऍम सो सो मच हैप्पी!” लतिका नंगू पंगू हो कर, सुनील के कन्धों को पकड़ कर उसके सामने उछलते कूदते हुए बोली।

सच में - बच्ची बड़ी हो रही थी, लेकिन उसका बचपना नहीं जा रहा था। और हम में से किसी का मन नहीं था कि पुचुकी या मिष्टी, दोनों का ही बचपना चला जाए! कम से कम मैं तो यही चाहता था कि जब तक संभव है, दोनों ऐसे ही स्वच्छंद बन कर हमारे स्नेह का सुख भोगें!

“थैंक यू बेटा!” सुनील ने बड़े स्नेह से, बड़े सौम्य तरीके से कहा।

आई ऍम सच में वैरी हैप्पी, दादा!” कह कर लतिका सुनील से लिपट गई, “ऐसा हो जाए तो कितना अच्छा हो!”

उधर माँ और काजल, भाई बहन के इस वार्तालाप को दूर से देख कर मुस्कुराए बिना न रह सकीं।

“सुनील कितना जेंटल तरीके से बिहैव करता है न बच्चों के साथ?” उन्होंने काजल से कहा।

“हाँ न दीदी! बहुत जेंटल! बहुत अफ़ेक्शनेट! और कितना पेशेंस भी है उसको! बिलकुल डैडी मैटीरियल है वो!” काजल ने गर्व से कहा।

गर्व वाली बात तो थी ही। न केवल उसके बेटे में अनेकों गुण थे, वो अच्छा पढ़ा लिखा, और अपने पैरों पर खड़ा हुआ था, बल्कि एक बेहद बढ़िया इंसान भी था।

“हा हा हा हा!” माँ इस बात पर दिल खोल कर हँसने लगीं, “हाँ काजल! बात तो सही है! डैडी मैटेरियल तो है वो! बच्चों से बहुत प्यार है सुनील को! इसके बच्चे बहुत लकी होंगे - ऐसे प्यार करने वाले पापा को पा कर!”

“है न? ये लड़का जल्दी से शादी कर ले बस!” काजल ने खुश होते हुए कहा, “इसका घर बस जाए और मैं जल्दी से अपने पोते पोतियों के मुँह देख लूँ! बस, समझो गंगा नहाऊँ!”

“तुम भी न काजल - क्या जल्दी जल्दी लगाए बैठी हो!”

“अरे दीदी, देर करने से क्या फायदा? हम सभी ने शादी की ऐज होते ही शादी कर ली थी! अब ये भी तो इक्कीस का हो ही गया है न! और फिर इसको कोई लड़की भी तो पसंद है न! इसको भी कर लेनी चाहिए।” काजल उत्साह से बोली, “बहू आ जाए, फिर हमको भी सुख मिले थोड़ा! लाइफ में थोड़ा अपग्रेड तो मुझे भी चाहिए!”

“हा हा! हाँ! वो बात तो है! अगर उसको अपनी पसंद की लड़की मिल जाय, तो शादी कर ही लेनी चाहिए! ख़ुशी लम्बी रहे, तो क्या ही आनंद! देर से शादी करने से क्या फायदा?”

माँ ने देखा कि सुनील लतिका को पाउडर लगा रहा है। उसे दोनों बच्चों की इस तरह से देखभाल करते देख कर माँ को बहुत अच्छा लगा। सुनील का आचरण उनको हमेशा से ही अच्छा लगता था। सवेरे बाहर जाने में और एक्सरसाइज करने में अब उनको कितना अच्छा लगता है! सुरक्षित भी! वरना दिल्ली का हाल तो... और वो सभी को कितना हँसाता भी है।

‘कितना जेंटल है सुनील, और कितना अफ़ेक्शनेट भी! सुनील और लतिका दोनों कितने अच्छे बच्चे हैं!’

“हाँ न! शुभ कामों में देर नहीं करनी चाहिए।”

“सही बात है!” माँ मुस्कुराते हुए बोलीं, “लेकिन एक बात तो है काजल, बच्चे तो बच्चे - जो लड़की सुनील को मिलेगी न, वो भी बहुत लकी होगी! कितना जेंटल है, कितना अफ़ेक्शनेट!” माँ के मन की बात उनकी ज़ुबाँ पर आ ही गई।

“हाँ! और हो भी क्यों न? मेरा बेटा है ही ऐसा - लाखों में एक!”

“हाँ, सच में!” माँ मुस्कुराईं, “लाखों में एक तो है!”

कुछ देर के बाद लतिका सुनील की गोद से उठ कर माँ के पास आ गई, और उनके पीछे से उनके गले में बाहें डाल कर झूल गई।

“क्या बातें हो रही थीं दादा से?” माँ ने उससे मज़ाकिया अंदाज़ में पूछा, “बड़ा हँसी आ रही थी आपको!”

“ओह मम्मा! आई ऍम सो हैप्पी!”

“हाँ वो तो दिख ही रहा है! लेकिन किस बात पर?”

लतिका ने माँ के गालों को कई बार चूमते हुए कहा, “नो मम्मा, मैं आपको अभी बता नहीं सकती!” लतिका ने बड़े लाड़ से, बच्चों जैसी चंचलता से इठलाते हुए कहा, “मैंने दादा को प्रॉमिस किया है न! अभी ये बात सीक्रेट है। लेकिन मैं सच में बहोत, बहोत, बहोत खुश हूँ!” लतिका ने बड़े नाटकीय, लेकिन भोले अंदाज़ में अपनी बात कह दी, “एंड मम्मा, आई लव यू सो मच! मच मच मोर!”

“अरे भई - अपनी मम्मा पर इतना प्यार, लेकिन उनको उस प्यार का रीज़न भी नहीं बताओगी?”

“प्यार तो आपको मैं हमेशा से ही खूब करती हूँ, लेकिन आज से और भी अधिक करूँगी! खूब अधिक!”

“अच्छा?” माँ ने मुस्कुराते हुए बड़े दुलार से कहा, “अरे हमको भी बताओ! ऐसा क्या हो गया?”

आल इन गुड टाइम, मम्मा! आल इन गुड टाइम!” लतिका ने बड़ों के, सयानों के अंदाज़ में कहा।

“हाँ, ठीक है ठीक है! रखे रहो अपने सीक्रेट्स!”

“कभी कभी सरप्राइज भी अच्छा होता है मम्मा!” लतिका ने कहा और फिर से माँ के दोनों गालों को चूम कर, वो उनकी गोदी में आ गई।

“हम्म! अच्छा दादी अम्मा!” माँ ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “देखेंगे आप दोनों का सीक्रेट! अच्छा चलो, अपनी डायरी तो दिखाओ। आज का होमवर्क देख लें?”

“क्या मम्मा! आप भी न स्पॉइल स्पोर्ट हो रही हैं! मैं इतनी खुश हूँ, और आपको डायरी देखनी है! टू वीक्स में मेरी समर हॉलीडेज शुरू हो रही हैं! अब क्या होमवर्क!”

“ओ दादी माँ! पढ़ाई लिखाई में नो मस्ती!” माँ ने प्यार से उसके गालों को खींचते हुए कहा, “अंडरस्टुड?”

यस मम्मा! बट आई नीड माय डेली दूधू फर्स्ट!” पुचुकी ने कहा, और माँ के ब्लाउज के बटन खोलने लगी।

“हा हा हा हा!”

माँ की ब्लाउज के दोनों पट जब अलग हुए, तो वो उनके आँचल के अंदर छुप कर उनके स्तन से जा लगी!

“मम्मा?” माँ के स्तन पीते हुए उसने पूछा।

“हाँ बेटा?”

“जब आपको दूधू आएगा, तो आप मुझे पिलाओगी?”

अले मेला बच्चा,” माँ ने लतिका को लाड़ करते हुए कहा, “तुझे नहीं तो और किसको पिलाऊँगी मेरी बेटू?” माँ ने लतिका पर लाड़ बरसाते हुए कहा, “तू ही तो मेरी बिटिया रानी है!”

थैंक यू सो मच मम्मा! लेकिन मैं ज्यादा नहीं पियूँगी। सो दैट आपके बच्चे भूखे न रह जाएँ!”

“मेरे बच्चे?” माँ ने चौंकते हुए कहा।

“हाँ! बिना आपके बच्चे हुए आपके ब्रेस्ट्स में दूधू कैसे आएगा?”

“क्या?” माँ को विश्वास ही नहीं हुआ कि उनकी पुचुकी इतना कुछ जानती है, “हा हा हा हा! दादी माँ! आपकी नॉलेज तो बहुत बढ़ती जा रही है!” माँ ने लतिका का एक गाल प्यार से खींचते हुए कहा।

काजल माँ की बात पर हँसने लगी। उसका दूध पीती आभा को समझ नहीं आया कि जोक क्या था।

“क्या मैंने कुछ रांग बोला, मम्मा?”

“नहीं बेटू, कुछ भी रांग नहीं बोला! यू आर राइट, टू बी ऑनेस्ट! लेकिन मुझको बच्चे क्यों होंगे मेरी बेटू?”

“अरे, आपकी शादी होगी, तो आपके बच्चे भी तो होंगे!”

“मेरी शादी?”

“हाँ बेटा,” उधर काजल अपनी बेटी की बात सुन कर, बड़े विनोदपूर्वक बोली, “बात तो तुम्हारी बिलकुल सही है! तुम्हारी मम्मा की शादी का इंतजाम करना चाहिए जल्दी ही!”

माँ ने इस बात पर कुछ कहा नहीं।

कोई दस मिनट बाद जब उसका पेट (?) भर गया, तब वो माँ की गोदी से उठी, और काजल के स्तनों में जो दूध बचा हुआ था, उसको पी कर, अपनी पुस्तकें लेती आई। फिर माँ लतिका को पढ़ाने में व्यस्त हो गईं और काजल घर के बाकी के कामों में। सुनील तो कब का अपने कमरे में जा चुका था।


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Kala Nag

Mr. X
3,801
14,984
144
अंतराल - स्नेहलेप - Update #7

इतवार :

प्राकृतिक दुःखों की बात छोड़ दें, तो मुझे अक्सर अन्य लोगों ने बताया है कि आपकी फैमिली तो सूरज बाड़जात्या की पिक्चरों जैसी है - हँसती, खेलती, मुस्कुराती। उसका कारण है। परिवार स्नेही हो, उसके सभी सदस्य सरल और सच्चे हों, और मिथ्याभिमानी न हों, तो ऐसे परिवार में बड़ा आनंद आता है। अहोभाग्य मेरे, कि मेरा परिवार ऐसा ही है। और जो भी अभी तक हमसे आत्मीय सम्बन्ध बना सका, सभी ऐसे ही हैं। इस बात से मुझे अक्सर ही आश्चर्य भी होता है!
फिलहाल तो हम साथ छह हैं
खैर, शनिवार से ही दोनों बच्चे कह रहे थे कि इतवार के लिए कोई स्पेशल प्लान करें - जैसे कहीं बाहर घूम आएँ या नहीं तो कहीं मूवी देखने चलें। तो घूमने के लिए मैंने कहा कि चूँकि दोनों के स्कूल गर्मियों के लिए बस बंद होने ही वाले हैं, तो थोड़ा इंतज़ार कर लें। हाँ, मूवी के लिए ज़रूर जाया जा सकता है। बात शुरू हुई कि बच्चों के लिए क्या फ़िल्में लगी हैं, लेकिन सच में, घर और बाहर हर जगह केवल बच्चों की ही फ़िल्में, और उनके ही प्रोग्राम देख कर दिमाग थोड़ा तो पकने ही लगता है। इसलिए निर्णय हुआ कि एक नई रिलीज़्ड फ़िल्म देखने चलेंगे।
अच्छा निर्णय लिया
फिल्म कुछ इस प्रकार थी कि फिल्म में दो नायक हैं - एक को फिल्म की नायिका से बड़ा प्रेम है, लेकिन वो उसको बता नहीं पाता। लिहाज़ा, नायिका दूसरे नायक से शादी करने को होती है। शादी से एक दो दिन पहले ही नायिका समझती है कि वो पहले नायक से ही पूरे जीवन भर प्यार करती आई थी, लेकिन उसने कभी इस बात को नहीं समझा, और पहले नायक बस अपने सबसे अच्छे दोस्त के रूप में ही माना। दूसरे नायक का इस बात पर दिल टूट जाता है। खैर, अंत में दोनों में दोनों एक दूसरे के लिए अपने प्रेम की भावना व्यक्त कर ही देते हैं। फिल्म की पटकथा, नायक, और फ़िल्म तीनों ही चौपट थे, लेकिन चूँकि परिवार साथ था, इसलिए फिल्म खराब नहीं लगी। हाँ, वो अलग बात है कि पुचुकी और मिष्टी, दोनों ही फिल्म शुरू होने के आधे घण्टे बाद ही गहरी नींद सो गए। अच्छी बात थी - कम से कम दो घण्टे दोनों आराम से तो रहे। घर जा कर धमाचौकड़ी मचाने की एनर्जी दोनों की बनी रही।
हा हा हा
यार ऐसा मेरे साथ भी हो चुका है
मेरे बच्चे भी सो जाते थे
काजल की ही ज़ोर जबरदस्ती पर वापस आ कर हमने घर में ही तहरी और रायता खाया। यह सामान्य सा भोजन भी बहुत अच्छा लगा। ऐसे ही छोटी छोटी बातों का आनंद लेते हुए सप्ताहांत समाप्त हो गया!


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😍
अगला दिन - सोमवार :

सुनील लतिका और आभा को उनके स्कूल से ले कर घर आता है। आभा रोज़ की ही तरह सुनील के गोदी में चढ़ी हुई थी, और लतिका अपने नाम के ही अनुसार सुनील से लिपटी हुई थी।

रोज़ की बात थी यह - दोनों बच्चे अपने दादा की संगत में खुश रहने लगे थे। और मुझे इस बात का मलाल बना रहता कि पाँच सप्ताह में वो मुंबई चला जाएगा अपनी जॉब पर, तब काजल का, इन दोनों बच्चों का, और माँ का क्या होगा। इतने कम समय में अपने लिए मोह को पाल पोस कर बड़ा कर के, यूँ चले जाना - कैसी निष्ठुरता है! मेरा भी मन होता कि उसको रोक लूँ! लेकिन उसके मतलब की नौकरी यहाँ दिल्ली में अभी तक नहीं थी। हाँ - एक बात संभव थी कि अगर मैं ही सपरिवार मुंबई शिफ़्ट हो जाता, तो सुनील भी पास ही रहता। लेकिन ऐसे जल्दबाज़ी में, इतना बड़ा निर्णय नहीं लिया जा सकता। मेरा काम जम तो गया था, लेकिन इतना पक्का नहीं था कि बिना किसी सक्रीय नेतृत्व के चलता रहता। खैर!
ह्म्म्म्म यह बहुत बड़ी चिंता का विषय है
माँ और काजल, दोनों ही देखती हैं कि अन्य दिनों के अपेक्षा आज लतिका खूब मुस्कुरा रही होती है, चहक रही होती है। स्कूल की क़ैद से घर की आज़ादी में आने पर बच्चों को तो स्वाभाविक रूप से ख़ुशी होती ही है, लेकिन आज कुछ ख़ास बात लग रही थी।
🤔
“बताओ न दादा, प्लीईईज़!” लतिका बार बार सुनील से कुछ बताने को कह रही थी।

“हा हा हा! अरे बाबा! बताता हूँ... बताता हूँ! पहले हाथ मुँह तो धो लो!” सुनील मुस्कुराते हुए कहता है।

सुनील की बात पर लतिका भाग कर बाथरूम में जाती है। सुनील रोज़ की ही भाँति दोनों बच्चों के घर के कपड़े ले आता है। पिछले कुछ दिनों से दोनों बच्चों की कई सारी ज़िम्मेदारियाँ उसने अपने कंधे पर उठा ली थीं। अद्भुत था सुनील का धैर्य! दो दो बच्चों को सम्हालना, और वो भी उसकी उम्र में, कठिन काम है! आभा अभी भी अपनी देखभाल करने में आत्मनिर्भर नहीं हुई थी, इसलिए सुनील एक मग में पानी ला कर उसके हाथ मुँह धो देता है और उसके कपड़े उतार कर उसके शरीर को भी गीले कपड़े से पोंछ देता है। उनको घमौरी न हो जाए, इसलिए वो बच्चों को घमौरी से बचाने का पाउडर भी लगा देता है। गर्मी और धूप में बाहर खेलने, और पानी पीना भूल जाने से बच्चों को अक्सर घमौरी हो जाती है। सुनील को इस बात का ध्यान था, इसलिए वो वैसी नौबत ही नहीं आने देना चाहता था।

जब तक लतिका वापस आती, तब तक सुनील ने आभा के शरीर पर पाउडर लगा दिया। पाउडर की सफेदी उसके पूरे शरीर पर लिपटी हुई थी, और सुनील उसको ‘नागा बाबा’ ‘नागा बाबा’ कह कर छेड़ रहा था, और आभा इस छेड़खानी पर खिलखिला कर हँस रही थी। उसको यूँ देख कर काजल भी हँस दी, लेकिन उसने सुनील को कहा कि पाउडर से नहलाना नहीं है। बस, लगा देना है कि स्किन को राहत रहे। वहाँ से छुट्टी पा कर आभा काजल की गोदी में बैठ कर स्तनपान करने लगती है।

उधर लतिका न जाने किस उत्साह से जल्दी से हाथ मुँह धो कर सुनील के पास वापस आती है और उसकी गोदी में कूद कर बैठ जाती है।

“अब बताओ, जल्दी जल्दी!” वो चहकते हुए बोली।

सुनील लतिका की इस हरकत पर बहुत हँसता है, और उसको अपनी गोदी में बैठा कर, उसके स्कूल के कपड़े उतारते उतारते, उसके कान में दबी आवाज़ में कुछ बातें करता है। दोनों भाई बहन के चेहरों के भाव अनोखे रूप से चढ़ और उतर रहे थे। सुनील के चेहरे पर ऐसे भाव थे कि जैसे उसको अपना कोई राज़दार मिल गया हो, और लतिका के चेहरे पर आश्चर्य, ख़ुशी, और अविश्वास के भाव थे।

“क्या सच में दादा?” किसी बात पर अचानक ही लतिका तेजी से बोल पड़ी।

“शह्ह्ह्ह!” सुनील ने उसको चुप रहने को कहा, “अरे धीरे धीरे!”

ओ माय गॉड! हा हा हा!” लेकिन लतिका की ख़ुशी देखते ही बन रही थी, “वाओ वाओ!”

“अरे शांत शांत! तू सब गुड़ गोबर कर देगी!” सुनील ने लतिका की चड्ढी उतारते हुए शिकायत करी।

“नहीं दादा! बट, आई ऍम सो सो मच हैप्पी!” लतिका नंगू पंगू हो कर, सुनील के कन्धों को पकड़ कर उसके सामने उछलते कूदते हुए बोली।

सच में - बच्ची बड़ी हो रही थी, लेकिन उसका बचपना नहीं जा रहा था। और हम में से किसी का मन नहीं था कि पुचुकी या मिष्टी, दोनों का ही बचपना चला जाए! कम से कम मैं तो यही चाहता था कि जब तक संभव है, दोनों ऐसे ही स्वच्छंद बन कर हमारे स्नेह का सुख भोगें!

“थैंक यू बेटा!” सुनील ने बड़े स्नेह से, बड़े सौम्य तरीके से कहा।

आई ऍम सच में वैरी हैप्पी, दादा!” कह कर लतिका सुनील से लिपट गई, “ऐसा हो जाए तो कितना अच्छा हो!”

उधर माँ और काजल, भाई बहन के इस वार्तालाप को दूर से देख कर मुस्कुराए बिना न रह सकीं।

“सुनील कितना जेंटल तरीके से बिहैव करता है न बच्चों के साथ?” उन्होंने काजल से कहा।

“हाँ न दीदी! बहुत जेंटल! बहुत अफ़ेक्शनेट! और कितना पेशेंस भी है उसको! बिलकुल डैडी मैटीरियल है वो!” काजल ने गर्व से कहा।

गर्व वाली बात तो थी ही। न केवल उसके बेटे में अनेकों गुण थे, वो अच्छा पढ़ा लिखा, और अपने पैरों पर खड़ा हुआ था, बल्कि एक बेहद बढ़िया इंसान भी था।

“हा हा हा हा!” माँ इस बात पर दिल खोल कर हँसने लगीं, “हाँ काजल! बात तो सही है! डैडी मैटेरियल तो है वो! बच्चों से बहुत प्यार है सुनील को! इसके बच्चे बहुत लकी होंगे - ऐसे प्यार करने वाले पापा को पा कर!”

“है न? ये लड़का जल्दी से शादी कर ले बस!” काजल ने खुश होते हुए कहा, “इसका घर बस जाए और मैं जल्दी से अपने पोते पोतियों के मुँह देख लूँ! बस, समझो गंगा नहाऊँ!”

“तुम भी न काजल - क्या जल्दी जल्दी लगाए बैठी हो!”

“अरे दीदी, देर करने से क्या फायदा? हम सभी ने शादी की ऐज होते ही शादी कर ली थी! अब ये भी तो इक्कीस का हो ही गया है न! और फिर इसको कोई लड़की भी तो पसंद है न! इसको भी कर लेनी चाहिए।” काजल उत्साह से बोली, “बहू आ जाए, फिर हमको भी सुख मिले थोड़ा! लाइफ में थोड़ा अपग्रेड तो मुझे भी चाहिए!”

“हा हा! हाँ! वो बात तो है! अगर उसको अपनी पसंद की लड़की मिल जाय, तो शादी कर ही लेनी चाहिए! ख़ुशी लम्बी रहे, तो क्या ही आनंद! देर से शादी करने से क्या फायदा?”

माँ ने देखा कि सुनील लतिका को पाउडर लगा रहा है। उसे दोनों बच्चों की इस तरह से देखभाल करते देख कर माँ को बहुत अच्छा लगा। सुनील का आचरण उनको हमेशा से ही अच्छा लगता था। सवेरे बाहर जाने में और एक्सरसाइज करने में अब उनको कितना अच्छा लगता है! सुरक्षित भी! वरना दिल्ली का हाल तो... और वो सभी को कितना हँसाता भी है।

‘कितना जेंटल है सुनील, और कितना अफ़ेक्शनेट भी! सुनील और लतिका दोनों कितने अच्छे बच्चे हैं!’

“हाँ न! शुभ कामों में देर नहीं करनी चाहिए।”

“सही बात है!” माँ मुस्कुराते हुए बोलीं, “लेकिन एक बात तो है काजल, बच्चे तो बच्चे - जो लड़की सुनील को मिलेगी न, वो भी बहुत लकी होगी! कितना जेंटल है, कितना अफ़ेक्शनेट!” माँ के मन की बात उनकी ज़ुबाँ पर आ ही गई।

“हाँ! और हो भी क्यों न? मेरा बेटा है ही ऐसा - लाखों में एक!”

“हाँ, सच में!” माँ मुस्कुराईं, “लाखों में एक तो है!”

कुछ देर के बाद लतिका सुनील की गोद से उठ कर माँ के पास आ गई, और उनके पीछे से उनके गले में बाहें डाल कर झूल गई।

“क्या बातें हो रही थीं दादा से?” माँ ने उससे मज़ाकिया अंदाज़ में पूछा, “बड़ा हँसी आ रही थी आपको!”

“ओह मम्मा! आई ऍम सो हैप्पी!”

“हाँ वो तो दिख ही रहा है! लेकिन किस बात पर?”

लतिका ने माँ के गालों को कई बार चूमते हुए कहा, “नो मम्मा, मैं आपको अभी बता नहीं सकती!” लतिका ने बड़े लाड़ से, बच्चों जैसी चंचलता से इठलाते हुए कहा, “मैंने दादा को प्रॉमिस किया है न! अभी ये बात सीक्रेट है। लेकिन मैं सच में बहोत, बहोत, बहोत खुश हूँ!” लतिका ने बड़े नाटकीय, लेकिन भोले अंदाज़ में अपनी बात कह दी, “एंड मम्मा, आई लव यू सो मच! मच मच मोर!”

“अरे भई - अपनी मम्मा पर इतना प्यार, लेकिन उनको उस प्यार का रीज़न भी नहीं बताओगी?”

“प्यार तो आपको मैं हमेशा से ही खूब करती हूँ, लेकिन आज से और भी अधिक करूँगी! खूब अधिक!”

“अच्छा?” माँ ने मुस्कुराते हुए बड़े दुलार से कहा, “अरे हमको भी बताओ! ऐसा क्या हो गया?”

आल इन गुड टाइम, मम्मा! आल इन गुड टाइम!” लतिका ने बड़ों के, सयानों के अंदाज़ में कहा।

“हाँ, ठीक है ठीक है! रखे रहो अपने सीक्रेट्स!”

“कभी कभी सरप्राइज भी अच्छा होता है मम्मा!” लतिका ने कहा और फिर से माँ के दोनों गालों को चूम कर, वो उनकी गोदी में आ गई।

“हम्म! अच्छा दादी अम्मा!” माँ ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “देखेंगे आप दोनों का सीक्रेट! अच्छा चलो, अपनी डायरी तो दिखाओ। आज का होमवर्क देख लें?”

“क्या मम्मा! आप भी न स्पॉइल स्पोर्ट हो रही हैं! मैं इतनी खुश हूँ, और आपको डायरी देखनी है! टू वीक्स में मेरी समर हॉलीडेज शुरू हो रही हैं! अब क्या होमवर्क!”

“ओ दादी माँ! पढ़ाई लिखाई में नो मस्ती!” माँ ने प्यार से उसके गालों को खींचते हुए कहा, “अंडरस्टुड?”

यस मम्मा! बट आई नीड माय डेली दूधू फर्स्ट!” पुचुकी ने कहा, और माँ के ब्लाउज के बटन खोलने लगी।

“हा हा हा हा!”

माँ की ब्लाउज के दोनों पट जब अलग हुए, तो वो उनके आँचल के अंदर छुप कर उनके स्तन से जा लगी!

“मम्मा?” माँ के स्तन पीते हुए उसने पूछा।

“हाँ बेटा?”

“जब आपको दूधू आएगा, तो आप मुझे पिलाओगी?”

अले मेला बच्चा,” माँ ने लतिका को लाड़ करते हुए कहा, “तुझे नहीं तो और किसको पिलाऊँगी मेरी बेटू?” माँ ने लतिका पर लाड़ बरसाते हुए कहा, “तू ही तो मेरी बिटिया रानी है!”

थैंक यू सो मच मम्मा! लेकिन मैं ज्यादा नहीं पियूँगी। सो दैट आपके बच्चे भूखे न रह जाएँ!”

“मेरे बच्चे?” माँ ने चौंकते हुए कहा।

“हाँ! बिना आपके बच्चे हुए आपके ब्रेस्ट्स में दूधू कैसे आएगा?”

“क्या?” माँ को विश्वास ही नहीं हुआ कि उनकी पुचुकी इतना कुछ जानती है, “हा हा हा हा! दादी माँ! आपकी नॉलेज तो बहुत बढ़ती जा रही है!” माँ ने लतिका का एक गाल प्यार से खींचते हुए कहा।

काजल माँ की बात पर हँसने लगी। उसका दूध पीती आभा को समझ नहीं आया कि जोक क्या था।

“क्या मैंने कुछ रांग बोला, मम्मा?”

“नहीं बेटू, कुछ भी रांग नहीं बोला! यू आर राइट, टू बी ऑनेस्ट! लेकिन मुझको बच्चे क्यों होंगे मेरी बेटू?”

“अरे, आपकी शादी होगी, तो आपके बच्चे भी तो होंगे!”

“मेरी शादी?”

“हाँ बेटा,” उधर काजल अपनी बेटी की बात सुन कर, बड़े विनोदपूर्वक बोली, “बात तो तुम्हारी बिलकुल सही है! तुम्हारी मम्मा की शादी का इंतजाम करना चाहिए जल्दी ही!”

माँ ने इस बात पर कुछ कहा नहीं।

कोई दस मिनट बाद जब उसका पेट (?) भर गया, तब वो माँ की गोदी से उठी, और काजल के स्तनों में जो दूध बचा हुआ था, उसको पी कर, अपनी पुस्तकें लेती आई। फिर माँ लतिका को पढ़ाने में व्यस्त हो गईं और काजल घर के बाकी के कामों में। सुनील तो कब का अपने कमरे में जा चुका था।



**
लगता है मुझे एक जबरदस्त शॉक लगने वाला है
 
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अंतराल - स्नेहलेप - Update #7

इतवार :

प्राकृतिक दुःखों की बात छोड़ दें, तो मुझे अक्सर अन्य लोगों ने बताया है कि आपकी फैमिली तो सूरज बाड़जात्या की पिक्चरों जैसी है - हँसती, खेलती, मुस्कुराती। उसका कारण है। परिवार स्नेही हो, उसके सभी सदस्य सरल और सच्चे हों, और मिथ्याभिमानी न हों, तो ऐसे परिवार में बड़ा आनंद आता है। अहोभाग्य मेरे, कि मेरा परिवार ऐसा ही है। और जो भी अभी तक हमसे आत्मीय सम्बन्ध बना सका, सभी ऐसे ही हैं। इस बात से मुझे अक्सर ही आश्चर्य भी होता है!

खैर, शनिवार से ही दोनों बच्चे कह रहे थे कि इतवार के लिए कोई स्पेशल प्लान करें - जैसे कहीं बाहर घूम आएँ या नहीं तो कहीं मूवी देखने चलें। तो घूमने के लिए मैंने कहा कि चूँकि दोनों के स्कूल गर्मियों के लिए बस बंद होने ही वाले हैं, तो थोड़ा इंतज़ार कर लें। हाँ, मूवी के लिए ज़रूर जाया जा सकता है। बात शुरू हुई कि बच्चों के लिए क्या फ़िल्में लगी हैं, लेकिन सच में, घर और बाहर हर जगह केवल बच्चों की ही फ़िल्में, और उनके ही प्रोग्राम देख कर दिमाग थोड़ा तो पकने ही लगता है। इसलिए निर्णय हुआ कि एक नई रिलीज़्ड फ़िल्म देखने चलेंगे।

फिल्म कुछ इस प्रकार थी कि फिल्म में दो नायक हैं - एक को फिल्म की नायिका से बड़ा प्रेम है, लेकिन वो उसको बता नहीं पाता। लिहाज़ा, नायिका दूसरे नायक से शादी करने को होती है। शादी से एक दो दिन पहले ही नायिका समझती है कि वो पहले नायक से ही पूरे जीवन भर प्यार करती आई थी, लेकिन उसने कभी इस बात को नहीं समझा, और पहले नायक बस अपने सबसे अच्छे दोस्त के रूप में ही माना। दूसरे नायक का इस बात पर दिल टूट जाता है। खैर, अंत में दोनों में दोनों एक दूसरे के लिए अपने प्रेम की भावना व्यक्त कर ही देते हैं। फिल्म की पटकथा, नायक, और फ़िल्म तीनों ही चौपट थे, लेकिन चूँकि परिवार साथ था, इसलिए फिल्म खराब नहीं लगी। हाँ, वो अलग बात है कि पुचुकी और मिष्टी, दोनों ही फिल्म शुरू होने के आधे घण्टे बाद ही गहरी नींद सो गए। अच्छी बात थी - कम से कम दो घण्टे दोनों आराम से तो रहे। घर जा कर धमाचौकड़ी मचाने की एनर्जी दोनों की बनी रही।

काजल की ही ज़ोर जबरदस्ती पर वापस आ कर हमने घर में ही तहरी और रायता खाया। यह सामान्य सा भोजन भी बहुत अच्छा लगा। ऐसे ही छोटी छोटी बातों का आनंद लेते हुए सप्ताहांत समाप्त हो गया!


**


अगला दिन - सोमवार :

सुनील लतिका और आभा को उनके स्कूल से ले कर घर आता है। आभा रोज़ की ही तरह सुनील के गोदी में चढ़ी हुई थी, और लतिका अपने नाम के ही अनुसार सुनील से लिपटी हुई थी।

रोज़ की बात थी यह - दोनों बच्चे अपने दादा की संगत में खुश रहने लगे थे। और मुझे इस बात का मलाल बना रहता कि पाँच सप्ताह में वो मुंबई चला जाएगा अपनी जॉब पर, तब काजल का, इन दोनों बच्चों का, और माँ का क्या होगा। इतने कम समय में अपने लिए मोह को पाल पोस कर बड़ा कर के, यूँ चले जाना - कैसी निष्ठुरता है! मेरा भी मन होता कि उसको रोक लूँ! लेकिन उसके मतलब की नौकरी यहाँ दिल्ली में अभी तक नहीं थी। हाँ - एक बात संभव थी कि अगर मैं ही सपरिवार मुंबई शिफ़्ट हो जाता, तो सुनील भी पास ही रहता। लेकिन ऐसे जल्दबाज़ी में, इतना बड़ा निर्णय नहीं लिया जा सकता। मेरा काम जम तो गया था, लेकिन इतना पक्का नहीं था कि बिना किसी सक्रीय नेतृत्व के चलता रहता। खैर!

माँ और काजल, दोनों ही देखती हैं कि अन्य दिनों के अपेक्षा आज लतिका खूब मुस्कुरा रही होती है, चहक रही होती है। स्कूल की क़ैद से घर की आज़ादी में आने पर बच्चों को तो स्वाभाविक रूप से ख़ुशी होती ही है, लेकिन आज कुछ ख़ास बात लग रही थी।

“बताओ न दादा, प्लीईईज़!” लतिका बार बार सुनील से कुछ बताने को कह रही थी।

“हा हा हा! अरे बाबा! बताता हूँ... बताता हूँ! पहले हाथ मुँह तो धो लो!” सुनील मुस्कुराते हुए कहता है।

सुनील की बात पर लतिका भाग कर बाथरूम में जाती है। सुनील रोज़ की ही भाँति दोनों बच्चों के घर के कपड़े ले आता है। पिछले कुछ दिनों से दोनों बच्चों की कई सारी ज़िम्मेदारियाँ उसने अपने कंधे पर उठा ली थीं। अद्भुत था सुनील का धैर्य! दो दो बच्चों को सम्हालना, और वो भी उसकी उम्र में, कठिन काम है! आभा अभी भी अपनी देखभाल करने में आत्मनिर्भर नहीं हुई थी, इसलिए सुनील एक मग में पानी ला कर उसके हाथ मुँह धो देता है और उसके कपड़े उतार कर उसके शरीर को भी गीले कपड़े से पोंछ देता है। उनको घमौरी न हो जाए, इसलिए वो बच्चों को घमौरी से बचाने का पाउडर भी लगा देता है। गर्मी और धूप में बाहर खेलने, और पानी पीना भूल जाने से बच्चों को अक्सर घमौरी हो जाती है। सुनील को इस बात का ध्यान था, इसलिए वो वैसी नौबत ही नहीं आने देना चाहता था।

जब तक लतिका वापस आती, तब तक सुनील ने आभा के शरीर पर पाउडर लगा दिया। पाउडर की सफेदी उसके पूरे शरीर पर लिपटी हुई थी, और सुनील उसको ‘नागा बाबा’ ‘नागा बाबा’ कह कर छेड़ रहा था, और आभा इस छेड़खानी पर खिलखिला कर हँस रही थी। उसको यूँ देख कर काजल भी हँस दी, लेकिन उसने सुनील को कहा कि पाउडर से नहलाना नहीं है। बस, लगा देना है कि स्किन को राहत रहे। वहाँ से छुट्टी पा कर आभा काजल की गोदी में बैठ कर स्तनपान करने लगती है।

उधर लतिका न जाने किस उत्साह से जल्दी से हाथ मुँह धो कर सुनील के पास वापस आती है और उसकी गोदी में कूद कर बैठ जाती है।

“अब बताओ, जल्दी जल्दी!” वो चहकते हुए बोली।

सुनील लतिका की इस हरकत पर बहुत हँसता है, और उसको अपनी गोदी में बैठा कर, उसके स्कूल के कपड़े उतारते उतारते, उसके कान में दबी आवाज़ में कुछ बातें करता है। दोनों भाई बहन के चेहरों के भाव अनोखे रूप से चढ़ और उतर रहे थे। सुनील के चेहरे पर ऐसे भाव थे कि जैसे उसको अपना कोई राज़दार मिल गया हो, और लतिका के चेहरे पर आश्चर्य, ख़ुशी, और अविश्वास के भाव थे।

“क्या सच में दादा?” किसी बात पर अचानक ही लतिका तेजी से बोल पड़ी।

“शह्ह्ह्ह!” सुनील ने उसको चुप रहने को कहा, “अरे धीरे धीरे!”

ओ माय गॉड! हा हा हा!” लेकिन लतिका की ख़ुशी देखते ही बन रही थी, “वाओ वाओ!”

“अरे शांत शांत! तू सब गुड़ गोबर कर देगी!” सुनील ने लतिका की चड्ढी उतारते हुए शिकायत करी।

“नहीं दादा! बट, आई ऍम सो सो मच हैप्पी!” लतिका नंगू पंगू हो कर, सुनील के कन्धों को पकड़ कर उसके सामने उछलते कूदते हुए बोली।

सच में - बच्ची बड़ी हो रही थी, लेकिन उसका बचपना नहीं जा रहा था। और हम में से किसी का मन नहीं था कि पुचुकी या मिष्टी, दोनों का ही बचपना चला जाए! कम से कम मैं तो यही चाहता था कि जब तक संभव है, दोनों ऐसे ही स्वच्छंद बन कर हमारे स्नेह का सुख भोगें!

“थैंक यू बेटा!” सुनील ने बड़े स्नेह से, बड़े सौम्य तरीके से कहा।

आई ऍम सच में वैरी हैप्पी, दादा!” कह कर लतिका सुनील से लिपट गई, “ऐसा हो जाए तो कितना अच्छा हो!”

उधर माँ और काजल, भाई बहन के इस वार्तालाप को दूर से देख कर मुस्कुराए बिना न रह सकीं।

“सुनील कितना जेंटल तरीके से बिहैव करता है न बच्चों के साथ?” उन्होंने काजल से कहा।

“हाँ न दीदी! बहुत जेंटल! बहुत अफ़ेक्शनेट! और कितना पेशेंस भी है उसको! बिलकुल डैडी मैटीरियल है वो!” काजल ने गर्व से कहा।

गर्व वाली बात तो थी ही। न केवल उसके बेटे में अनेकों गुण थे, वो अच्छा पढ़ा लिखा, और अपने पैरों पर खड़ा हुआ था, बल्कि एक बेहद बढ़िया इंसान भी था।

“हा हा हा हा!” माँ इस बात पर दिल खोल कर हँसने लगीं, “हाँ काजल! बात तो सही है! डैडी मैटेरियल तो है वो! बच्चों से बहुत प्यार है सुनील को! इसके बच्चे बहुत लकी होंगे - ऐसे प्यार करने वाले पापा को पा कर!”

“है न? ये लड़का जल्दी से शादी कर ले बस!” काजल ने खुश होते हुए कहा, “इसका घर बस जाए और मैं जल्दी से अपने पोते पोतियों के मुँह देख लूँ! बस, समझो गंगा नहाऊँ!”

“तुम भी न काजल - क्या जल्दी जल्दी लगाए बैठी हो!”

“अरे दीदी, देर करने से क्या फायदा? हम सभी ने शादी की ऐज होते ही शादी कर ली थी! अब ये भी तो इक्कीस का हो ही गया है न! और फिर इसको कोई लड़की भी तो पसंद है न! इसको भी कर लेनी चाहिए।” काजल उत्साह से बोली, “बहू आ जाए, फिर हमको भी सुख मिले थोड़ा! लाइफ में थोड़ा अपग्रेड तो मुझे भी चाहिए!”

“हा हा! हाँ! वो बात तो है! अगर उसको अपनी पसंद की लड़की मिल जाय, तो शादी कर ही लेनी चाहिए! ख़ुशी लम्बी रहे, तो क्या ही आनंद! देर से शादी करने से क्या फायदा?”

माँ ने देखा कि सुनील लतिका को पाउडर लगा रहा है। उसे दोनों बच्चों की इस तरह से देखभाल करते देख कर माँ को बहुत अच्छा लगा। सुनील का आचरण उनको हमेशा से ही अच्छा लगता था। सवेरे बाहर जाने में और एक्सरसाइज करने में अब उनको कितना अच्छा लगता है! सुरक्षित भी! वरना दिल्ली का हाल तो... और वो सभी को कितना हँसाता भी है।

‘कितना जेंटल है सुनील, और कितना अफ़ेक्शनेट भी! सुनील और लतिका दोनों कितने अच्छे बच्चे हैं!’

“हाँ न! शुभ कामों में देर नहीं करनी चाहिए।”

“सही बात है!” माँ मुस्कुराते हुए बोलीं, “लेकिन एक बात तो है काजल, बच्चे तो बच्चे - जो लड़की सुनील को मिलेगी न, वो भी बहुत लकी होगी! कितना जेंटल है, कितना अफ़ेक्शनेट!” माँ के मन की बात उनकी ज़ुबाँ पर आ ही गई।

“हाँ! और हो भी क्यों न? मेरा बेटा है ही ऐसा - लाखों में एक!”

“हाँ, सच में!” माँ मुस्कुराईं, “लाखों में एक तो है!”

कुछ देर के बाद लतिका सुनील की गोद से उठ कर माँ के पास आ गई, और उनके पीछे से उनके गले में बाहें डाल कर झूल गई।

“क्या बातें हो रही थीं दादा से?” माँ ने उससे मज़ाकिया अंदाज़ में पूछा, “बड़ा हँसी आ रही थी आपको!”

“ओह मम्मा! आई ऍम सो हैप्पी!”

“हाँ वो तो दिख ही रहा है! लेकिन किस बात पर?”

लतिका ने माँ के गालों को कई बार चूमते हुए कहा, “नो मम्मा, मैं आपको अभी बता नहीं सकती!” लतिका ने बड़े लाड़ से, बच्चों जैसी चंचलता से इठलाते हुए कहा, “मैंने दादा को प्रॉमिस किया है न! अभी ये बात सीक्रेट है। लेकिन मैं सच में बहोत, बहोत, बहोत खुश हूँ!” लतिका ने बड़े नाटकीय, लेकिन भोले अंदाज़ में अपनी बात कह दी, “एंड मम्मा, आई लव यू सो मच! मच मच मोर!”

“अरे भई - अपनी मम्मा पर इतना प्यार, लेकिन उनको उस प्यार का रीज़न भी नहीं बताओगी?”

“प्यार तो आपको मैं हमेशा से ही खूब करती हूँ, लेकिन आज से और भी अधिक करूँगी! खूब अधिक!”

“अच्छा?” माँ ने मुस्कुराते हुए बड़े दुलार से कहा, “अरे हमको भी बताओ! ऐसा क्या हो गया?”

आल इन गुड टाइम, मम्मा! आल इन गुड टाइम!” लतिका ने बड़ों के, सयानों के अंदाज़ में कहा।

“हाँ, ठीक है ठीक है! रखे रहो अपने सीक्रेट्स!”

“कभी कभी सरप्राइज भी अच्छा होता है मम्मा!” लतिका ने कहा और फिर से माँ के दोनों गालों को चूम कर, वो उनकी गोदी में आ गई।

“हम्म! अच्छा दादी अम्मा!” माँ ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “देखेंगे आप दोनों का सीक्रेट! अच्छा चलो, अपनी डायरी तो दिखाओ। आज का होमवर्क देख लें?”

“क्या मम्मा! आप भी न स्पॉइल स्पोर्ट हो रही हैं! मैं इतनी खुश हूँ, और आपको डायरी देखनी है! टू वीक्स में मेरी समर हॉलीडेज शुरू हो रही हैं! अब क्या होमवर्क!”

“ओ दादी माँ! पढ़ाई लिखाई में नो मस्ती!” माँ ने प्यार से उसके गालों को खींचते हुए कहा, “अंडरस्टुड?”

यस मम्मा! बट आई नीड माय डेली दूधू फर्स्ट!” पुचुकी ने कहा, और माँ के ब्लाउज के बटन खोलने लगी।

“हा हा हा हा!”

माँ की ब्लाउज के दोनों पट जब अलग हुए, तो वो उनके आँचल के अंदर छुप कर उनके स्तन से जा लगी!

“मम्मा?” माँ के स्तन पीते हुए उसने पूछा।

“हाँ बेटा?”

“जब आपको दूधू आएगा, तो आप मुझे पिलाओगी?”

अले मेला बच्चा,” माँ ने लतिका को लाड़ करते हुए कहा, “तुझे नहीं तो और किसको पिलाऊँगी मेरी बेटू?” माँ ने लतिका पर लाड़ बरसाते हुए कहा, “तू ही तो मेरी बिटिया रानी है!”

थैंक यू सो मच मम्मा! लेकिन मैं ज्यादा नहीं पियूँगी। सो दैट आपके बच्चे भूखे न रह जाएँ!”

“मेरे बच्चे?” माँ ने चौंकते हुए कहा।

“हाँ! बिना आपके बच्चे हुए आपके ब्रेस्ट्स में दूधू कैसे आएगा?”

“क्या?” माँ को विश्वास ही नहीं हुआ कि उनकी पुचुकी इतना कुछ जानती है, “हा हा हा हा! दादी माँ! आपकी नॉलेज तो बहुत बढ़ती जा रही है!” माँ ने लतिका का एक गाल प्यार से खींचते हुए कहा।

काजल माँ की बात पर हँसने लगी। उसका दूध पीती आभा को समझ नहीं आया कि जोक क्या था।

“क्या मैंने कुछ रांग बोला, मम्मा?”

“नहीं बेटू, कुछ भी रांग नहीं बोला! यू आर राइट, टू बी ऑनेस्ट! लेकिन मुझको बच्चे क्यों होंगे मेरी बेटू?”

“अरे, आपकी शादी होगी, तो आपके बच्चे भी तो होंगे!”

“मेरी शादी?”

“हाँ बेटा,” उधर काजल अपनी बेटी की बात सुन कर, बड़े विनोदपूर्वक बोली, “बात तो तुम्हारी बिलकुल सही है! तुम्हारी मम्मा की शादी का इंतजाम करना चाहिए जल्दी ही!”

माँ ने इस बात पर कुछ कहा नहीं।

कोई दस मिनट बाद जब उसका पेट (?) भर गया, तब वो माँ की गोदी से उठी, और काजल के स्तनों में जो दूध बचा हुआ था, उसको पी कर, अपनी पुस्तकें लेती आई। फिर माँ लतिका को पढ़ाने में व्यस्त हो गईं और काजल घर के बाकी के कामों में। सुनील तो कब का अपने कमरे में जा चुका था।



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मतलब अंदाजा सही ही था हमारा, सुनील बाबू अब मां से शादी की प्लान बनाए बैठे है। पर क्या मां सुनील को एक्सेप्ट कर पाएगी क्योंकि उन्होंने तो सुनील को बेटे की तरह पाला है? लतिका इस राज की राजदार हो गई है पर कब तक? मतलब दोनो ही शादियां घर में होने वाली है। सही ट्विस्ट है स्टोरी में।
 
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मतलब अंदाजा सही ही था हमारा, सुनील बाबू अब मां से शादी की प्लान बनाए बैठे है। पर क्या मां सुनील को एक्सेप्ट कर पाएगी क्योंकि उन्होंने तो सुनील को बेटे की तरह पाला है? लतिका इस राज की राजदार हो गई है पर कब तक? मतलब दोनो ही शादियां घर में होने वाली है। सही ट्विस्ट है स्टोरी में।

ये तो हालत है मेरी! घंटा थ्रिलर / सस्पेंस कहानी लिखूँगा!
भाई, आपको अंदेशा हो जाता है तो थोड़ा सम्हाल कर रहिए! 😂😂
जो अन्य दो चार पाठक आते हैं, वो भी अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाएँ न!!
हा हा हा!!
 
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फिलहाल तो हम साथ छह हैं

अच्छा निर्णय लिया

हा हा हा
यार ऐसा मेरे साथ भी हो चुका है
मेरे बच्चे भी सो जाते थे

😍

ह्म्म्म्म यह बहुत बड़ी चिंता का विषय है

🤔

लगता है मुझे एक जबरदस्त शॉक लगने वाला है

हा हा हा हा! भाई, शॉक वॉक का पता नहीं, लेकिन आनंद देने का भरपूर प्रयास करूँगा।
उम्मीद है कि सब कुशल मंगल है!
 
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अंतराल - स्नेहलेप - Update #8

अगले दिन :

सप्ताहांत में जैसा मज़ा किया था सभी ने, उसके बाद माँ, काजल, और सुनील का मैटिनी गपशप वाला सेशन थोड़ा सा फीका हो गया। आज वैसे भी थोड़ी अधिक गर्मी थी, इसलिए सभी को आलस्य भी बहुत आ रहा था। माँ न्यूज़पेपर में ख़बरें पढ़ पढ़ कर दोनों को सुना रही थीं, और सभी उन ख़बरों पर ही चर्चा कर रहे थे।

“दीदी,” काजल ने अचानक ही कहा, “आज क्या पका दूँ?”

“अरे यार, इतनी गर्मी है!” माँ बोलीं, “तुम भी थोड़ी राहत पाओ! आज लंच मैं तैयार करती हूँ!”

“अरे, मेरे रहते हुए तुम क्यों करोगी?”

“क्यों? मैं कोई रानी हूँ क्या?”

“रानी नहीं, तो मालकिन तो हो!”

“थप्पड़ मारूँगी तुझे, अगर ऐसा फिर कभी बोली तो!” माँ ने काजल को धमकाया - वो अलग बात थी कि काजल पर कोई असर नहीं पड़ा, “इस घर का दिल हो तुम! तुम ही मालकिन भी। हम सभी तुम्हारे सहारे ज़िंदा हैं। समझी?”

सुनील माँ की बात पर मुस्कुराया। यह बात कितनी सही भी तो थी।

“अरे दीदी, तुम ऐसे इमोशनल मत हो जाओ! मज़ाक करती रहती हूँ न मैं तो!” काजल माँ को अपने आलिंगन में भरते हुए बोली, “अच्छा चलो! हम दोनों कर देते हैं।”

“हाँ, ठीक है! लेकिन क्या करें?”

“इतनी गर्मी में गरम गरम नहीं खाएँगे।” फिर कुछ सोच कर, “सलाद बना लेते हैं। तरबूज़ है, और वो चीज़ भी - तो उसका सलाद बन जाएगा। और, बेल का शरबत? और वेजिटेबल सैंडविच?”

“हम्म्म इंटरेस्टिंग!” माँ ने मज़ाक करते हुए कहा, “आज तो ठाठ हैं सभी के! कॉन्टिनेंटल लंच! हा हा हा!”

“हाँ न, अब क्या रोज़ रोज़ वही खाना पकाना?”

“ठीक है!”

कह कर काजल और माँ दोनों उठीं, और रसोई की तरफ़ चल दीं। काम कम था, और दो जने थे पकाने वाले, इसलिए अन्य दिनों की अपेक्षा आज लंच पकाने से जल्दी ही छुट्टी मिल गई। काजल नहाने चली गई, और माँ अपने कमरे में। सुनील अभी भी वहीं था, और कोई मैगज़ीन पढ़ रहा था।

माँ आ कर अपने बिस्तर पर लेट गईं - करवट में, और अपने सर को अपने हाथ पर टिकाए हुए। कुछ देर दोनों ने कुछ नहीं कहा। यह चुप्पी सुनील ने ही तोड़ी,

“आपसे एक बात पूछूँ? आप बुरा तो नहीं मानेंगी?”

“हाँ? बोलो न? बुरा नहीं मानूँगी!”

“आप... आप शादी क्यों नहीं कर लेतीं?”

“ओह्हो! अब तुम भी शुरू हो गए? क्या हो गया है? सभी आज कल यही बात बोल रहे हैं!”

“मैंने क्या कर दिया?!”

“काजल, अमर दोनों मेरे पीछे ही पड़ गए हैं। हर हफ़्ते उन दोनों के मुँह से यह सवाल सुन लेती हूँ। और अब तुम भी!”

“उन दोनों के बारे में नहीं पता। मैं तो बस क्यूरिऑसिटी के कारण पूछ रहा था।” सुनील रक्षात्मक होते हुए बोला, “आई ऍम रियली वैरी सॉरी, अगर मेरे कारण आपको दुःख पहुँचा! मेरा वो इंटेंशन नहीं था।”

आई नो! एंड डोंट से सॉरी!”

“लेकिन सच में - आप शादी क्यों नहीं करना चाहतीं?”

इट इस टू कॉम्प्लिकेटेड!”

आई हैव अ लॉट ऑफ़ टाइम इन माय हैंड्स ऐट प्रेजेंट!” वो मुस्कुराते हुए बोला, “सो इफ यू वांट, यू कैन लेट मी नो!”

“सुनील, तुम अभी बहुत छोटे हो। हमारा समाज बहुत काम्प्लेक्स है, और उसमें औरतों की हालत दयनीय है। मर्दों का चल जाता है। लेकिन औरतों को छूट नहीं है ऐसी बातों की। हम - हमारी फ़ैमिली जिस तरह रहती है, वो नॉर्म नहीं है - बल्कि एक ऐबरेशन (अपवाद) है। इतना तो तुम भी समझते होंगे। और जहाँ तक मेरी बात है, अब मैं दादी माँ हूँ। मुझको यह सब करना शोभा नहीं देता। कौन सी दादी तुमने देखी है, जो शादी करती है - या जिसने शादी करी है?”

“आप दादी हैं - यह बात सही है। लेकिन आप दादी माँ की उम्र की नहीं है। यह बात भी सही है। और आज कल तो आपकी उम्र में आ कर लड़कियाँ अपनी पहली शादी करती हैं! तो अगर आपका सवाल यह है कि ‘कौन सी चालीस साल की लड़की तुमने देखी है, जो शादी करती है - या जिसने शादी करी है’ तो मेरा जवाब होगा - कई सारी!”

“तैंतालीस, चालीस नहीं!” माँ ने सुनील की बात में सुधार किया।

“चालीस तैंतालीस - क्या फ़र्क़ है?”

“फ़र्क़ है बेटा... बिलीव मी, फ़र्क़ है! कुछ बातें जवान लोगों पर ही शोभा देती हैं।” माँ किसी गहरी सोच में चली गईं, “इसीलिए तो मैं अमर और काजल से कहती हूँ कि शादी कर लो!”

“लेकिन अम्मा भी कोई जवान नहीं बैठी हैं - वो भी तो आपकी ही उम्र की हैं!”

“लेकिन अमर तो अभी कम उम्र ही है। और उसकी दो शादियाँ हो चुकीं। अब तो शायद ही उसको कोई मिले!”

“तो इसलिए आपको लगता है कि दोनों को शादी कर लेनी चाहिए?”

“नहीं नहीं! मुझे ऐसे गलत न समझो। दोनों बहुत पहले से ही एक दूसरे से प्रेम करते हैं। यह बात तो किसी से नहीं छुपी है!”

“हाँ - प्रेम बड़ी बात है! है न? और अगर वो दोनों शादी कर लेते हैं, तो मुझसे अधिक खुश शायद ही कोई और होगा!” सुनील तपाक से बोला, “तो अगर आपको भी कोई प्रेम करने वाला मिले तो?”

“अरे, अब इस उम्र में मैं प्रेम व्रेम के चक्कर में नहीं पड़ने वाली!” माँ ने विनोदपूर्वक कहा।

“आप तो ऐसे कह रही हैं कि जैसे न जाने क्या उम्र हो गई हो! और एक बात बताइए, प्रेम करने की कोई उम्र तय है क्या?”

“नहीं! लेकिन...” माँ से कुछ और कहते नहीं बना, “हमारे समाज का यह नियम नहीं है! एक समय के बाद हमको संयम से काम लेना चाहिए!”

“समाज हमको नहीं खिलाता; उससे हमको सुख दुःख में साथ नहीं मिलता - हाँ, हमारे सुख में वो हिस्सा लेने आता तो है, लेकिन दुःख में तो अपने ही आते हैं! ऐसे समाज का भला क्या मोल?”

“ठीक बात है! लेकिन मैं अब कोई लड़की थोड़े न हूँ!”

“प्रेम करना लड़कियों की बपौती है?” सुनील थोड़े पैशन से बोला, “वैसे भी आपसे लड़कियों जैसे बिहैव करने को कौन कह रहा है? आप अपने नेचुरल तरीके से बिहैव कीजिए न!”

“हाँ, ठीक है! तो मेरे उम्र की औरतें शादियाँ करती नहीं फिरतीं!” माँ ने थोड़ी उदासी से कहा, “कुछ तमन्नाएँ होती हैं, जो अधूरी रह जाती हैं! इस बात को स्वीकार लेना चाहिए!”

“क्यों अधूरी रह जाए आपकी तमन्नाएँ? ऐसी क्या बात हो गई? ऐसी क्या उम्र हो गई? आपको तो अभी भी बच्चे हो ही सकते हैं!”

“बच्चे? हा हा हा हा!”

“हाँ! क्यों?”

“सुनील - अब मैं क्या बोलूँ? तुम अभी नादान हो! एक मर्यादा वाली रेखा होती है - उसको पार नहीं करनी चाहिए। मैं वैसी कोशिश नहीं करने वाली!” माँ ने कहा, “वैसे भी जहाँ तक तमन्नाएँ पूरी करने की बात है, मैं समय का पहिया पीछे की तरफ़ घुमा नहीं सकती!”

“मुझे लगता है कि आप आवश्यकता से अधिक सोच रही हैं। आपका परिवार देखिए - कितना सपोर्टिव है; कितना प्यार है सभी में! ऐसा परिवार हो किसी का, तो सब संभव है। और आपको समय का पहिया पीछे घुमाने को कह ही कौन रहा है? जैसा कि मैंने कहा, कितनी ही सारी औरतें अपने चालीसवें में आ कर शादी कर ही रही हैं आज कल!” सुनील ने फिर से पैशन से कहा, “मैं आपको देखता हूँ, तो बस गुण ही गुण दिखाई देते हैं। आपको लगता है कि अगर लड़की कम उम्र हो, तभी उसको शादी करनी चाहिए। मैं इस बात से इत्तेफ़ाक़ नहीं रखता। मैं यह ज़रूर कहूँगा कि अगर कोई हो, जो आप जैसी हैं, आपको वैसी मान कर, वैसी होने का आदर दे कर, आपसे प्यार करे, तो उसको अपनाने में क्यों संकोच हो? आई ऍम श्योर कि ऐसे लोग होंगे... हैं!”

“अच्छा जी? तो किधर हैं ऐसे लोग?” माँ ने तपाक से कहा। शायद वो भी इस तर्क वितर्क से परेशान हो गई थीं।

सुनील थोड़ा सा हिचकिचाया, “ज़रूर हैं! समय बताएगा! लेकिन कम से कम आप ऐसी सम्भावना के लिए अपना मन तो खोलिए! अगर इस सम्भावना पर आपका विश्वास ही नहीं है, तो फिर कोई हिम्मत भी कैसे करेगा?”

“ओह सुनील... तुम कुछ समझ ही नहीं रहे हो!”

“समझने को कुछ है ही नहीं! अब जैसे आप मैडोना को ही ले लीजिए - उन्होंने जब शादी करी, तब वो कितने की थीं? शायद बयालीस की? और वो, जूलिआना मूर, उनको जब अपना बेबी हुआ तब वो शायद इकतालीस की थीं? सुसान सारंडोंन को पैंतालीस में बेबी हुआ! मेरिल स्ट्रीप को बयालीस में!”

“हाँ हाँ और वो सभी एक्ट्रेसेस हैं - सेलेब्रिटीज़!”

“और आप मेरे लिए सेलेब्रिटी हैं,” सुनील ने कहा, और फिर बात को सम्हालते हुए बोला, “वो एक्ट्रेस हैं तो क्या? हेल्थ, फिटनेस, यह सब कोई चीज़ होती है।”

लेकिन माँ अचानक ही कही गई बात पर अटक गईं, ‘क्या कहा इसने?’

उधर सुनील जारी रहा, “और हमारे गाँव वाले घर की बगल वाली चाची जी - उनको भी तो पैंतालीस में भी बेटी हुई थी! है कि नहीं?”

हाँ बात तो सही थी।

“यह समाज केवल लेन देन के लिए ही अच्छा है। उसी में खुश है। आप अपने तरीके से जियें अपनी ज़िन्दगी। समाज यह सब नहीं निर्धारित कर सकता! अगर आप फिर से शादी करना चाहती हैं, तो समाज आपको रोक नहीं सकता। अगर आप अपने और बच्चे चाहती हैं, तो समाज आपको रोक नहीं सकता। अगर आप खुश रहना चाहती हैं, तो समाज आपको रोक नहीं सकता। यह छोटी छोटी ख़्वाहिशें हैं - कोई पाप नहीं, कोई अपराध नहीं! वैसे भी आपकी उम्र नहीं है कि आप, ऐसे, विधवा के जैसे रहें! मैं सोचता हूँ कि यह अपराध है। यह अन्याय है। आपको प्रेम पाने का अधिकार है! कम से कम खुद के मन में इस सम्भावना से इंकार न कीजिए!”

सुनील जिस तरह से अपनी बातें कह रहा था, उसमे भावनात्मक जोश साफ़ सुनाई दे रहा था, “और इसका यह मतलब बिलकुल भी नहीं कि आप बाबू जी की यादें अपने मन से निकाल फेंकें। उनकी यादें तो हमारे दिल में, हमारे मन में सुरक्षित हैं। आप खुद ही सोचिए, क्या वो नहीं चाहते थे कि आप खुश रहें? मुझे उनकी जो भी यादें हैं, उनमें मैंने कभी यह नहीं देखा कि वो हमारी ख़ुशियाँ न चाहते हों! उन्होंने हमेशा बस यही सुनिश्चित किया। वो खुद भी तो कितने खुश रहते थे। उनके साथ जो भी आता, उसके भी दुःख दूर हो जाते थे। उनकी यादें अमिट हैं। उनके लिए मेरे मन में जो आदर सम्मान है, वो कभी नहीं जाने वाला।”

दोनों को यह ध्यान भी नहीं रहा कि पिछले कुछ मिनटों से काजल भी कमरे में आ कर उनकी बातें सुन रही थी। अवश्य ही उसने सारी बातें नहीं सुनी, लेकिन उसको मोटा मोटा समझ में आ रहा था कि चर्चा का विषय दीदी की शादी का था।

लिहाज़ा, उसने भी सुनील की बात की अनुशंसा करी, “हाँ बेटा, बात तो तुम्हारी पूरी तरह से सही है। मैं भी तो दीदी से कहती रहती हूँ कि शादी कर लो! इतनी लम्बी ज़िन्दगी है! और इसकी उम्र भी क्या हुई है? ऐसे अकेले थोड़े न बिताई जा सकती है पूरी लाइफ!”

“अरे तो मैं अकेली ही कहाँ हूँ,” माँ ने चर्चा की दिशा बदल दी, “अमर है, तुम हो, मेरी पोती है, मेरी बिटिया है!”

माँ ने बोल तो दिया, लेकिन उनकी आवाज़ में वो दृढ़ विश्वास नहीं था। अपने दिल में वो जानती थीं कि हम अगर उनको दोबारा शादी करने को कह रहे थे, वो उसमें कुछ गलत नहीं था। हम उनके शुभचिंतक थे, इसीलिए यह सब कहते थे। फिर भी, हठ भी कोई चीज़ होती है,

“तुम क्यों नहीं कर लेती अमर से शादी?”

“ओह दीदी, मैंने तुमको और अमर को कितनी बार कहा तो है यह सब! मैं उनके लायक नहीं हूँ!”

“तुमको उससे प्रेम नहीं है?”

“बहुत है! यह बात तुम सभी जानते हो। लेकिन शादी नहीं हो पाएगी। मानती हूँ कि प्रेम से बहुत कुछ साध्य है, लेकिन केवल प्रेम से सब कुछ नहीं हो सकता न! मैं अनपढ़ हूँ - जैसे तैसे कुछ कुछ बोलने की तमीज आई है। और अमर अपने बिज़नेस में जिस मुकाम पर हैं, और जहाँ जा रहे हैं, वहाँ ले जाने के लिए मैं सही साथी नहीं हूँ। अमर की वाइफ ऐसी होनी चाहिए, जो उनके पाँव की बेड़ी न बने। जो उनको सपोर्ट कर सके। जो उनके काम में हाथ बँटा सके। उनको घर सम्हालने वाली वाइफ नहीं चाहिए - उनको एक डायनामिक, पढ़ी लिखी, और तेज़ बीवी चाहिए, जो उनसे प्यार भी करती हो!”

काजल की बातें पूरी तरह सही थीं।

लेकिन ऐसी बातों पर बहस नहीं हो सकती।

उस दिन और शादी ब्याह की बातें नहीं की गईं। लेकिन ऐसा नहीं था कि किसी को किसी से मन-मुटौव्वल हो गया हो। सभी इस तरह की चर्चा कर भी पा रहे थे, यह बात इस बात का संकेत थी, कि माँ का डिप्रेशन अब तक बहुत कम हो गया था। हाँ, वो डैड के जाने से उदास अवश्य थीं, लेकिन अवसाद के बादल उनके लगभग छँट गए थे।

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अंतराल - स्नेहलेप - Update #9

अगले दिन, रात को :


काजल रात में सुनील के कमरे में गई। वैसे तो अपने बेटे से उसकी हमेशा ही बातें होती रहती थीं, लेकिन न जाने क्यों, उसको लगता था कि पिछले कुछ दिनों में उससे उस तरह, खुल कर बातें नहीं हो पा रही थीं।

कितना लम्बा अरसा हो गया था उसको सुनील के कमरे में गए हुए। आज से पहले वो तब गई थी जब सुनील इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा देने वाला था। फिर उसके बाद, इंजीनियरिंग के समय तो वो जैसे कोई सन्यासी हो गया हो। चार सालों में वो कुल जमा केवल एक महीने के लिए ही घर आया होगा - वो भी केवल पूजा के समय। उन चार सालों में उसने कड़ी मेहनत करी थी - हर छुट्टी में वो या तो किसी कंपनी में, या फिर किसी प्रोफेसर के साथ कोई न कोई प्रोजेक्ट में लगा रहता। इसी कड़े परिश्रम का फल था, कि इंजिनीरिंग में वो अपने ब्रांच में टॉप पर था और उसको इतनी बढ़िया नौकरी मिली थी!

कमरे में आई, तो उसने देखा कि सुनील कंप्यूटर पर मेरी कंपनी से ही संबंधित एक प्रोजेक्ट पर तल्लीन हो कर काम कर रहा था। अपनी अम्मा को देख कर वो मुस्कुराया,

“अम्मा, तुम अभी तक सोई नहीं हो?” उसने काजल को देख कर वैसे ही मुस्कुराते हुए कहा।

काजल मुस्कुराई, “नहीं रे! नींद नहीं आ रही थी, सोचा तेरे पास आ कर बैठ जाती हूँ!”

“अच्छा किया,” उसने मुस्कुराते हुए, लेकिन स्क्रीन से ध्यान न हटाते हुए कहा, “बैठो न!”

काजल बैठ गई। कुछ देर तक दोनों ने कुछ नहीं कहा, फिर,

“भैया सो गए?” सुनील ने बड़ी सहजता से पूछा।

उसके प्रश्न पर काजल शर्मा गई लेकिन फिर भी उसने सहजता से उत्तर दिया, “हाँ!”, फिर सम्हलते हुए बोली, “क्या कर रहे हो, बेटा?”

“भैया के लिए कुछ काम कर रहा हूँ, अम्मा। अगर कोई एजेंसी यह काम करती, तो बहुत पैसे भी लेती और टाइम भी! लेकिन मैं इसे बस तीन चार दिनों में ही कर सकता हूँ और वो भी फ्री में!” वो फिर से मुस्कुराया।

‘कितना सुन्दर लगता है सुनील, जब वो ऐसे मुस्कुराता है!’ काजल ने सोचा और उसका दिल गर्व से भर गया, ‘सपने देखे थे कि वो अच्छा पढ़ लिख ले, और खूब तरक्की करे! वो सपने पूरे हो गए!’

“बहुत अच्छी बात है बेटा। अमर के लिए जितना हो सके, जो भी कुछ हो सके, वो सब कर दिया करो!”

सुनील मुस्कुराया, और बोला, “अम्मा, ये सब कोई कहने की बात है! यह तो मेरा सौभाग्य है कि मैं उनके लिए कुछ भी कर सकूँ!”
वो कुछ और देर तक काम करता रहा। काजल ने जब उसे अपने काम में इतना तल्लीन देखा, तो वह वहाँ से जाने लगी। लेकिन सुनील ने उसे रोक दिया,

“बैठो ना अम्मा। कहाँ जा रही हो? बैठो न! साथ में बात करो! मुझे अच्छा लगता है तुम्हारे साथ बतियाना।”

तो काजल उसके साथ बैठ गई। वो उससे बात करना तो चाहती थी।

जैसा कि सभी भारतीय माताएँ चाहती हैं, काजल भी उसके भावी जीवन के बारे में बहुत उत्सुक थी। वो चाहती थी कि उसका बेटा जल्दी ही सेटल हो जाए, और अपनी गृहस्थी जमाए। काजल की तपस्या का एक भाग पूर्ण हो गया था - उसका बेटा खूब अच्छा पढ़-लिख लिया था, और उसके पास एक बढ़िया नौकरी थी। अब बस एक भाग और बचा हुआ था। इसलिए वो अपनी होने वाली बहू के आने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी।

“बेटा, एक बात पूछूँ?”

“अम्मा, बोलो ना। इतनी भूमिका क्यों बनाती हो? तुम्हारी बात को कभी मना किया है मैंने?”

काजल मुस्कुरा दी। हाँ - ऐसा आज्ञाकारी, संस्कारी, बुद्धिमान, सुन्दर और सुशील बेटा - न जाने किस तपस्या का फल था सुनील! अपने जवान बेटे को देख कर उसका दिल गर्म हो गया। ऐसा अद्भुत युवक! ऐसा लगता है कि जैसे अभी कल तक ही तो वो तोतली बोली बोलता था! अभी कल तक ही तो वो घर में नंगा नंगा घूमा करता था... लेकिन अब देखो, कितना जवान... कितना सुंदर... कितना आकर्षक हो गया है!

उसने ममतामई मधुरता से कहा, “बेटा, तू हमको बताया था न... कि... कि तुझे कोई लड़की पसंद है?”

“हाँ अम्मा…” वो मुस्कुराते हुए बोला, “पसंद तो बहुत है।”

“क्या तू उसे पसंद है?” काजल आनंद से बोली!

“पता नहीं!”

“अरे? ऐसे कैसे?”

“अभी तक उसे मालूम नहीं है अम्मा, कि मैं उसे पसंद करता हूँ।”

“हे भगवान! मतलब एक तरफ़ा प्यार! अरे बेटा, ऐसे कैसे चलेगा?”

“तो क्या करूँ अम्मा? उसको कहना तो चाहता हूँ!”

“तो हिचकना किस बात का? बता दे ना उसको! उसे जब तक तेरे मन की बात नहीं पता चलेगी, वो भी क्या करेगी?”

“और अगर कहीं बुरा मान गई, तो?”

“बुरा मानना है तो माने - वो उसका निर्णय है! वो निर्णय लेने का हक़ है उसको। और उस निर्णय का सम्मान भी करना चाहिए हमें! हम उस पर कोई जबरदस्ती तो नहीं कर सकते। अब ये तो नहीं है कि जिसको हम चाहें, जिसको हम प्यार करें, वो भी हमसे प्यार करे! है न?” काजल उसको समझाते हुए बोली, “लेकिन मेरा बेटा ऐसा है ही नहीं कि कोई उससे बुरा मान जाए। हाँ ठीक है, शादी करना, न करना उस लड़की का अपना निर्णय है, लेकिन बुरा तो नहीं मानेगी! इस बात का मुझे यकीन है!”

“हा हा हा! हर माँ को अपना बेटा अच्छा ही लगता है।”

“क्यों नहीं अच्छा लगेगा? नौ महीने तक पेट में पाला, फिर उसके बाद इतने सालों तक सेवा कर के इतना बड़ा किया! अच्छे संस्कार दिए! इतना अच्छा पढ़ा लिखा है मेरा बेटा। क्यों अच्छा नहीं लगेगा?”

“हा हा हा! अम्मा, तुम बहुत स्वीट हो।”

“वो सब मैं नहीं जानती... लेकिन जल्दी से उसको अपने मन की बात बता दो। अगर वो सीधा मना कर देती है, तो उसकी बात का मान रखना, इज़्ज़त करना, और ज़िद ना करना। लेकिन अगर उसको कोई संशय है, तो उसको दूर करने की कोशिश करना। खुद से न बात बने, तो मुझसे कहना... मैं उससे बात करूँगी... अपनी झोली फ़ैला कर तेरे लिए उसका हाथ माँग लूंगी!”

“क्या अम्मा... तुम हिंदी फिल्में देखना थोड़ा कम कर दो! कैसे कैसे डायलॉग मारती हो! हा हा हा हा!”

“हा हा हा! पिटेगा तू अब।” काजल ने हँसते हुए कहा, फिर बड़ी उम्मीद से बोली, “अच्छा एक बात तो बता, कैसी है तेरी वाली?”

“कैसी है? मतलब देखने में, या कि उसका नेचर?” सुनील ने काजल को छेड़ा।

“अरे दोनों रे!”

“बहुत अच्छी है अम्मा। बहुत ही अच्छी!” सुनील ने मुस्कुराते हुए और सोचते हुए कहा, “बहुत सुन्दर है - देखने में तो जैसे अप्सरा है... लेकिन रहती वो ऐसे है कि उसको जैसे यह बात मालूम ही नहीं है! अपने रूप का उसको न कोई घमंड है, और न ही कोई ज्ञान! नेचर में बहुत ही स्वीट है, बहुत ही केयरिंग! बेहद सुशील है! गोल्डन हार्ट! किसी से ऊँची आवाज़ में बात करते नहीं देखा मैंने उसको! और गुण तो इतने सारे हैं, कि क्या कहूँ! देवी है वो पूरी, अम्मा, देवी!”

“हाय भगवान! ऐसी बढ़िया लड़की! अरे तू क्यों पहेलियाँ बुझा रहा है। बता दे न मुझे, कौन है तेरी वाली? नाम क्या है उसका?”

“बताऊँगा न अम्मा… तुमको नहीं बताऊँगा, तो और किसको बताऊँगा? लेकिन मुझे दो-तीन दिन का समय और दे दो, उससे बात करने के लिए। एक बार उससे अपने मन की बात कह दूँ, फिर देखते हैं।”

“हाँ! ठीक है फिर। भगवान् करें कि तेरा घर जल्दी से बस जाए! मैं तो समझो गंगा नहाऊँ!”

“हा हा हा हा!”

“अरे, ये कोई हँसी ठठ्ठा वाली बात थोड़े ही है!”

“नहीं,” सुनील मुस्कुराया, “अच्छा अम्मा, एक बात बताओ ना... तुम भैया से शादी क्यों नहीं कर लेती हो?”

“नहीं रे। तू नहीं समझेगा। मैं तो अनपढ़, गँवार हूँ! उनके गले नहीं पड़ना चाहती... उन्होनें सब कुछ दिया है मुझे - मुझे तो यही सब सुख है! तुम पढ़ लिख लिए... किसके कारण? पुचुकी पढ़ लिख रही है... किसके कारण? यह सब कुछ उन्ही का तो दिया हुआ है। है न? हमको ना तो रहने की चिंता है, ना खाने पीने की... और समाज में हमारी इतनी इज़्ज़त है! वो एक कोठरी की झोपड़ी में रहते, तो कोई हमको देखता भी? कौन करता है इतना सब? वो भी आज कल के ज़माने में!”

“अम्मा… बात तो तुम्हारी पूरी सही है। लेकिन प्यार तो सबसे बड़ी चीज है न! कहीं तुम इस कारण से तो उनसे शादी नहीं कर रही हो कि तुम उनसे उम्र में उनसे बहुत बड़ी हो?”

“अरे नहीं रे… शादी ब्याह में उम्र का महत्त्व होता है, लेकिन उम्र ही कोई बड़ी बात नहीं होती। अब देखो ना... गैबी दीदी उनसे दो तीन साल बड़ी थी... और... देवयानी दीदी शायद नौ या दस साल! उम्र का क्या है? उम्र कम होना तब ज़रूरी है, जब पति-पत्नी को बच्चे चाहिए होते हैं। और वो भी कई सारे! चालीस पैंतालीस की औरत को बच्चे हो ही जाते हैं! अगर केवल पति पत्नी का साथ चाहिए, तो उम्र का कोई मतलब नहीं। लेकिन प्यार होना चाहिए। तू सही कह रहा है। प्यार सबसे बड़ी चीज़ है। मैं भी बहुत प्यार करती हूँ अमर से... और मानती भी हूँ कि प्यार संसार की सबसे बड़ी चीज है! लेकिन उसके अलावा बाकी और कोई गुण नहीं है मुझमें! वो क्या काम करते हैं, वो मुझे समझ ही नहीं आता। मैं कैसे उनकी मदद करूँगी? जीवनसाथी तो ऐसा होना चाहिए जो जीवन के हर पहलू पर अपने पति के साथ खड़ी हो! मेरे अंदर कोई और गुण नहीं है। बस। यही कारण है! इसीलिए मैं उनसे शादी नहीं कर सकती।”

“हम्म... लेकिन अगर उन्हें कोई लड़की ना मिली तो?”

“तो मैं हूँ ही ना। उनका साथ कैसे छोड़ दूँगी?”

काजल मस्कुरा रही थी, और उसकी आँखों में आँसू भी झिलमिला रहे थे। सुनील अपनी माँ की हालत देख रहा था... सच में, हम दोनो का प्यार देख कर वो दंग था। काजल ने देखा कि सुनील उसे देख रहा है। उसे झटपट से अपने आँसू पोंछे, और बोली,

“बस, मुझे फिलहाल सबसे बड़ी चिंता किसी की है, तो वो बस दीदी की ही है। वो पहले कितनी बिंदास रहती थीं! कितना हँसती बोलती थीं। कितने भी कष्ट हों, उनको उफ़ करते नहीं देखा - सब कुछ मुस्कुराते मुस्कुराते झेल लिया। सोचा था कि अमर के साथ जो हो रहा है, कोई बात नहीं - मैं उनको सम्हाल लूँगी। लेकिन देखो! किस्मत ने दीदी को भी नहीं छोड़ा! पहले देवयानी दीदी, फिर बाबू जी और अब…” काजल ने गहरा निःश्वास छोड़ते हुए कहा, “अब... जैसे उनका पूरा जीवन बिलकुल वीरान हो गया हो! हँसना बोलना कितना कम हो गया है उनका!”

सुनील बस फीकी मुस्कान दे सका।

“लेकिन एक बात कहूँ? तेरे आने के बाद से उसके चेहरे पर रौनक आई है बेटा!”

“सच में?”

“हाँ रे! तू हमारे साथ बैठता है, हमसे बातें करता है, बच्चों के संग खेलता है, गाने गाते बजाते रहता है, दीदी को सवेरे बाहर ले जाता है - मेरे ख़याल से यह सब पॉसिटिव हो रहा है।”

“अरे, ये सब तो कुछ भी नहीं है अम्मा!”

“अरे क्यों नहीं है कुछ भी? अब देख न! उस दिन वो तेरे कहने से ही तो इतने महीनों में बाहर निकली कहीं! कितना मज़ा आया था उस दिन!”

“हाँ अम्मा!”

“और ले जाया कर बाहर उसको!” काजल ने सुझाया, “कभी शॉपिंग कराने, कभी मंदिर में, नहीं तो ऐसे ही!”

“जी अम्मा!”

“उसको एक साथी मिल जाए, तो फिर यह सब कितना आसान हो जाए!”

“हाँ अम्मा... मेरे खयाल से उनको शादी कर लेनी चाहिए।”

“हाँ न? लेकिन वो मेरी बात ही नहीं सुनती।”

“कैसे सुनेंगी? केवल ‘शादी कर लो’ ‘शादी कर लो’ कहने से ही तो वो शादी नहीं कर लेंगी न! कोई लड़का लाए आप लोग अभी तक उनके लिए?”

“हाँ रे! बात तो तेरी सही है! लेकिन उनके लायक लड़का लाएँ कहाँ से? इतनी सुन्दर सी दीदी है! इतनी गुणी!”

“तुम कहो तो मैं उनके लिए एक अच्छा सा लड़का ढूंढ़ देता हूँ!”

“सुनील बेटा, ये सब बातें मज़ाक में मत बोला करो।” काजल ने गंभीर होते हुए कहा।

“नहीं अम्मा.. कोई मज़ाक नहीं है। मैं सच में उनके लिए एक अच्छा लड़का ढूंढ़ने की बात कह रहा था!”

“कोई है नज़र में क्या तेरे?” काजल ने खुश होते हुए कहा।

“हाँ अम्मा! है तो एक… लड़का अच्छा तो है, लेकिन ख़ैर, उनके गुणों के सामने कोई क्या खड़ा हो सकेगा? लेकिन मुझे मालूम है कि वो लड़का उनको बहुत प्यार करेगा! उनको बहुत सुख से रखेगा।” सुनील कुछ सोचते हुए बोला - उसकी आवाज़ बहुत धीमी हो गई थी, जैसे कहीं बहुत दूर से आ रही हो, “एक बार अपनी वाली को प्रपोज कर दूँ, फिर उनके लिए भी लड़का सामने ला कर खड़ा कर दूंगा।”

“सच में बेटा?” काजल ने उत्साह से कहा, “अगर ऐसा हो जाए तो क्या आनंद आए! तू ख़ूब दीर्घायु हो बेटा!” काजल ने कहा।

सुनील मुस्कुराया - जैसे न जाने कितने गहरे जा कर सोच रहा हो।

काजल भी थोड़ी देर के लिए चुप हो गई; जैसे कुछ सोच रही हो। फिर सोचते सोचते अचानक ही उसके होंठों पर एक ममता भरी मुस्कान आ जाती है। वो मुस्कुराते हुए बोली,

“सुनील बेटा - अगर तेरी वाली लड़की वैसी गुणी हो, जैसा तूने बताया, तो बिलकुल भी संकोच मत करना। एक पल के लिए भी नहीं। तुम्ही ने बोला था न - वो लड़की शालीन है, संस्कारी है, गंभीर है, जिम्मेदार है, सुशील है, घरेलू है, स्निग्ध है, अपने पति का साथ न छोड़ने वाली है... ऐसे गुणों वाली लड़की बहुत बड़े भाग्य से किसी को मिलती है, कसम से! और अगर सच में ऐसी लड़की हमारे घर आ जाए तो कैसी बढ़िया किस्मत होगी हमारी!”
फ़िर वो बड़ी ममता के साथ उसके बालों को सहलाते हुए बोली, “लाखों में एक होगी ऐसी लड़की तो! है न? और हो भी क्यों ना? मेरा बेटा भी तो लाखों में एक है…”

उसने बड़े प्यार से सुनील का माथा चूमा, और कहना जारी रखा, “वैसे इतने गुणों वाली एक लड़की मैं जानती हूँ! और सोचती हूँ न, तो उस तरह की, उसके गुणों वाली, केवल एक ही लड़की को जानती हूँ! ऐसी दूसरी लड़की न देखी है मैंने! इसलिए तेरी वाली से मिलने का इंतजार करूंगी…”

सुनील ने चौंक कर अपनी माँ की तरफ देखा। लेकिन काजल ने ऐसा कोई भाव नहीं दिखाया जिससे उसके मन की बात बाहर दिखती; वो बोलती रही,

“मैं तो उसे अपने सीने से लगा कर अपने घर में उसका स्वागत करूंगी। अपनी बेटी की तरह उसे प्यार करूंगी। नहीं… नहीं, बेटी नहीं, अपनी बेटी से भी बढ़ कर! तुम किसी भी तरह की चिंता मत करना। न उसकी उम्र की, और न ही किसी और बात की! मेरी तरफ से कोई अड़चन नहीं आएगी तेरे और उसके ब्याह में! तू जिसे प्यार करेगा, मैं भी उसे बहुत प्यार करूंगी। समझ गया न?”

काजल ने कहा, और सुनील का माथा चूम कर कमरे से बाहर निकल गई।

सुनील सकपका गया। न जाने उसे क्यों ऐसा लगा कि जैसे उसकी अम्मा ने उसकी आत्मा को देखा लिया हो। उसने जैसे उसके मन की बात पढ़ ली हो!

माँ तो बच्चों की बातें तब समझ लेती है, जब उनको बोलना भी नहीं आता। यहाँ तो जवान बेटे के मन की बात थी… काजल कैसे न जान ले उसके मन की बात?

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avsji

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अंतराल - स्नेहलेप - Update #10

अगली दोपहर :

रोज़ ही की तरह, माँ, काजल और सुनील की तिकड़ी के कमरे में बैठे हुए, घर में एक बड़ी पार्टी का आयोजन करने पर चर्चा कर रही थी, और सामान्य गप-शप में मशगूल थी। घर में कोई पार्टी किए हमको कुछ समय हो गया था। काजल का मानना था कि कुछ रागरंग हो, नृत्य संगीत हो, बढ़िया खाना पीना हो - तो मज़ा आए। माँ भी इस विचार की उत्साहपूर्वक सराहना कर रही थीं - वो भी चाहती थीं कि सुनील के ग्रेजुएशन, उसकी हालिया नौकरी, और व्यापार में मेरी सफलता का जश्न जाए।

जब यह सब चर्चा चल रही थी, काजल ने टीवी चालू कर दिया... किसी चैनल पर हेमा मालिनी की एक फिल्म दिखा रहे थे। माँ और काजल दोनों ही हेमा की बड़ी फैन थीं - इसलिए उन्होंने फिल्म को चालू रखा। यह उसकी अन्य फिल्मों से थोड़ी अलग थी। फिल्म की कहानी एक युवक (कमल हासन) के बारे में थी जो हेमा मालिनी वाले किरदार को लुभाने की कोशिश कर रहा था, जो कि उम्र में उससे बहुत बड़ी थी। जहाँ हेमा, कमल हासन को हर संभव तरीके से मना करने की कोशिश कर रही थी, वहीं कमल के काफी प्रयत्नों के बाद वो भी बदले में उससे प्यार करने लगती है।

यह एक जटिल कहानी थी, लेकिन जो बात सभी के दिल को छू गई वह यह थी कि यह एक बड़ी उम्र की महिला की कहानी थी, और उसके फिर से प्यार पाने की संभावना की कहानी थी। माँ और काजल दोनों एक ही नाव में सवार थीं - और यह फिल्म उन दोनों को बहुत अलग तरीके से छू गई। जहाँ काजल के पास मेरे रूप में एक वास्तविक विकल्प था, वहीं माँ के पास कोई विकल्प नहीं था। दोनों महिलायें एक दूसरे को शादी करने के लिए प्रोत्साहित करती रहतीं, लेकिन दोनों ही कोई भी संकल्प न लेतीं।

हेमा और कमल के बीच कुछ संवादों के दौरान, माँ और सुनील आँखों ही आँखों में अपनी बातों का आदान-प्रदान कर रहे थे - सुनील मानों जैसे कमल के संवादों के साथ अपनी बात बोल रहा था, वहीं माँ हेमा के संवादों के जरिए अपनी बात रख रही थी। लेकिन अंत में, जब हेमा के विरोध का किला ढह जाता है, और जब वो महमूद के सामने स्वीकार करती है - संवाद के साथ नहीं बल्कि आंखों में आंसू के साथ - कि वो कमल के साथ प्यार में थी, तब माँ ने सुनील की ओर नहीं देखा। कहानी का ऐसा मोड़ आ जाएगा, वो उसने सोचा भी नहीं था। वो दृश्य देख कर माँ के अंदर एक उथल-पुथल मच गई।

काजल ने तभी कहा, “वो एक्स-मेन वाला हीरो है ना... उसकी बीवी भी तो उससे उम्र में बहुत बड़ी है।”

“कौन? ह्यूग जैकमैन?” सुनील ने कहा।

“हाँ! वो ही। उसी के हाथ से चाकू निकलता है न?” काजल ने हँसते हुए कहा।

“क्या बात है अम्मा! तुमको तो याद है!”

“और नहीं तो क्या।” काजल ने कहा, “वैसे ठीक भी है। शादी में हमेशा पत्नी ही कम उम्र की क्यों होनी चाहिए? ये कोई जरूरी तो नहीं है। क्यों दीदी?”

“समाज भी तो कुछ होता है, काजल!”

“अरे दीदी, लेकिन यह कोई नियम भी तो नहीं है न, दीदी! शादी ब्याह में उम्र का क्या मतलब है? उससे पहले तो प्रेम का स्थान है। पति पत्नी के बीच प्रेम है, आदर है, तभी तो सुखी परिवार की नींव पड़ती है। बच्चे वच्चे तो बाद में होते हैं।”

शायद काजल कुछ और कहती - मेरे और देवयानी के बारे में, लेकिन चुप हो गई। मेरी शादी का ज़िक्र घर में थोड़ा वर्जित माना जाता है। माँ ने भी काजल की बात पर कुछ नहीं कहा।

उस दिन और कुछ खास नहीं हुआ।



अगली रात :

रात की ख़ामोशी में सुनील किन्ही कामुक विचारों में खोया हुआ, बिस्तर पर नग्न पड़ा हुआ था, और अपने लिंग को हाथ में थामे, उसको धीरे धीरे सहलाते हुए हस्तमैथुन कर रहा था! रह रह कर उसके मन में कई सारे विचार आ-जा रहे थे। अपनी सम्भाविक प्रेमिका और पत्नी को अपने ख्यालों में ही निर्वस्त्र करते हुए वो उसके साथ प्रेम सम्बन्ध बना रहा था, और दूसरे हाथ हस्तमैथुन करते हुए, वो उन विचारों की उमंगों का अनुभव भी कर रहा था। एक अकेले, जवान आदमी के पास अपनी काम-पिपासा संतुष्ट करने का इससे अच्छा और सुरक्षित अन्य कोई तरीका नहीं हो सकता। न जाने कितने ख़्वाब, न जाने कितनी ही तमन्नाएँ, न जाने कितनी ही फंतासी - सब रह रह कर उसके दिमाग में आ जा रहे थे और उन्ही की ताल पर उसका हाथ अपने लिंग पर फिसल रहा था!

अपने विचारों में वो इतना खोया हुआ था कि उसको ध्यान ही नहीं रहा कि दरवाज़े पर उसकी अम्मा खड़ी हो कर, उसे विस्मय से घूर रही थी। वैसे, ध्यान भी कैसे आता? कमरे में एक तो केवल जीरो वाट का बल्ब जल रहा था, दूसरा वो हस्तमैथुन से उत्पन्न होने वाली कामुक गुदगुदी का आनंद, अपनी आँखें बंद कर के ले रहा था। वैसे भी, इतनी रात में वो किसी को अपने कमरे में आने की उम्मीद नहीं कर रहा था। अचानक ही सुनील की नज़र काजल पर पड़ी - वो भी अपनी अम्मा को वहाँ खड़ी देख कर हैरान रह गया।

“क्या कर रहा है, सुनील?” काजल फुसफुसाती हुई बोली!

बहुत से लोग हस्तमैथुन को स्वस्थ क्रिया नहीं मानते। काजल भी उनमें से ही थी। उसका मानना था कि सम्भोग से सम्बंधित सभी क्रियाएँ, किसी अंतरंग साथी के साथ ही करनी चाहिए। वही तरीका एक स्वस्थ तरीका है। हस्तमैथुन काम संतुष्टि का एक अस्वस्थ तरीका है - ऐसा काजल का मानना था।

“अम्मा?!” सुनील हड़बड़ा कर बस इतना ही बोल पाया।

काजल कुछ देर ऐसे खड़ी रही कि जैसे सोच रही हो कि वो क्या करे क्या नहीं, और फिर कुछ सोच कर वो कमरे से बाहर चली गई, और जाते जाते धीरे से अपने पीछे दरवाज़ा बंद कर गई। मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जो नुकसान होना था, वो हो चुका था - सुनील की अम्मा ने उसको हस्तमैथुन करने हुए पकड़ लिया था! सुनने में कितना हास्यास्पद लगता है न - उसकी अम्मा ने उसको हस्तमैथुन करने हुए पकड़ लिया था! जीवन के पूरे इक्कीस साल ऐसे ही बीत गए, और उन इक्कीस सालों में ने अनगिनत बार उसकी अम्मा ने उसको नंगा देखा था। लेकिन हस्तमैथुन करते हुए पहली बार पकड़ा था... पकड़ा था! सच में, हस्तमैथुन जैसी क्रिया करते हुए ‘पकड़े जाने’ पर शर्म की जैसी अनुभूति होती है, वो बहुत ही कम अवसरों पर होती है।

वो चिंतित हो गया, ‘न जाने अम्मा क्या सोचेंगीं!’

उसका उत्तेजित लिंग शीघ्रता से शांत हो गया। कोई दो मिनट बीता होगा कि उसने दरवाज़े पर दस्तक सुनी। सुनील ने अभी भी कपड़े नहीं पहने हुए थे। लेकिन उसको कुछ करना नहीं पड़ा। दस्तक के तुरंत बाद, बिना किसी उत्तर की प्रतीक्षा किये, काजल ने दरवाज़े से कमरे के भीतर झाँक कर कहा,

“मैं अंदर आ जाऊँ?”

“अम्मा, मैं बस एक सेकंड में कपड़े पहन लेता हूँ! क्या तुम रुक सकती हो?”

“सुनील, तुम मेरे बेटे हो। तुमको मुझसे शर्माने की ज़रुरत नहीं है!” काजल ने कहा और वो अंदर आ गई।

अंदर आ कर उसने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया और अपने बेटे की ओर मुड़ी, जो अभी भी बिस्तर पर नग्न तो लेटा हुआ था, लेकिन संकोच में - जिससे उसका शरीर थोड़ा छुपा रहे।

“क्या बात है, अम्मा?”

“तू हैंडल क्यों मार रहा था रे?” काजल ने यथासंभव कोमल आवाज़ में पूछा। वो नहीं चाहती थी कि सुनील को बुरा लगे।

“क्या अम्मा!” सुनील ने झेंपते हुए कहा।

क्या अम्मा क्या? तुझे मैंने समझाया था न, कि गन्दी आदतें मत पालना! लेकिन मेरी सुननी कहाँ है नवाब को? अरे सोच, कहीं तेरी बिची पर चोट लग गई तो? फिर तेरे बच्चे कैसे होंगे रे? सोचा है क्या कभी?”

“अरे, ऐसे नहीं चोट लगती अम्मा! और यह मैं आज पहली बार नहीं कर रहा हूँ!” सुनील को अपनी अम्मा के सामने ऐसे नग्न बैठे हुए थोड़ा शर्मनाक लग रहा था। एक वो कारण, और दूसरा अपनी अम्मा की बेवकूफी भरी बात से वो थोड़ा झुंझला भी गया था।

“अरे लेकिन तू ये करता ही क्यों है?”

“अम्मा, मैं भी तो आदमी ही हूँ! मेरा भी मन होता है सेक्स करने का। और मेरे पास कोई लड़की थोड़े ही है!”

“तो तूने पहले कभी किसी लड़की को...?”

“नहीं अम्मा!” सुनील ने झेंपते हुए कहा।

“अपनी वाली को भी नहीं?”

“अम्मा, आपने उसको और मुझको क्या समझा है?” उसने तैश में आ कर कहा, “और बिना उसको अपने दिल की बात कहे, और बिना उसकी रज़ामंदी के मैं ये सब कैसे कर लूँगा? और आपको लगता है कि वो ये सब कर लेगी - किसी के साथ भी?”

“हाँ! वो बात भी ठीक है! माँ हूँ न, इसलिए बेवकूफ़ी भरी बातें सोचने लगती हूँ! सॉरी!” फिर कुछ सोच कर, “ठीक है... तू जो कर रहा था, वो कर ले। मैं जाती हूँ!”

“लेकिन तुम आई क्यों थी, अम्मा?”

“कुछ नहीं! नींद नहीं आ रही थी, इसलिए चली आई। तू अक्सर देर तक काम करता है न, तो मुझे लगा कि तू जाग रहा होगा! सोचा, हम दोनों कुछ देर बातें करेंगे!”

“भैया सो गए?”

काजल ने शर्मा कर ‘हाँ’ में सर हिलाया।

सुनील मुस्कुराया, “अम्मा, तुमको और भैया को साथ में देख कर, सोच कर बहुत अच्छा लगता है!”

काजल मुस्कुराई, लेकिन उसने बात बदल दी, “चल, तू कर ले अपना। मैं जाती हूँ! लेकिन सम्हाल कर करना!”

कह कर काजल कमरे से बाहर जाने लगी।

“अम्मा, मत जाओ। आज यहीं सो जाओ? मेरे पास?”

“सच में? तुम्हारे साथ यहाँ?”

“हाँ! वैसे भी अब मुझे कुछ करने का मन नहीं होगा!”

काजल ने कुछ सोचा, और फिर आ कर सुनील के बगल ही, उसके बिस्तर पर लेट गई। वो बिस्तर सिंगल बेड था, इसलिए दोनों बहुत अगल बगल ही लेट सकते थे।

“अच्छा एक बात बता, किसकी याद आ रही थी तुझको? अपनी वाली की?”

सुनील मुस्कुराया, “अम्मा, और किसकी याद आएगी?”

“जब उसके लिए तू इतना तरसता रहता है, तो उसको बोल क्यों नहीं देता?”

“डर लगता है अम्मा! कि कहीं इंकार न कर दे!”

“अरे, ये क्या बात हुई! चाहे वो इंकार करे, या चाहे इक़रार - बोलना तो पड़ेगा ही न! कम से कम तुझको मालूम तो हो जाएगा कि वो भी तुझे चाहती है या नहीं!”

“हम्म!”

“उसको बोल दे। जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी!”

“ठीक है अम्मा! बोल दूँगा! बहुत जल्दी! थैंक यू!”

“डरना मत!”

“नहीं डरूँगा!”

“मेरे दूध का मान रखना! डरना मत, सच में!”

“प्रॉमिस, अम्मा!”

सुनील ने आत्मविश्वास से कहा और करवट हो कर अपनी अम्मा को अपने आलिंगन में बाँध कर किसी सोच में डूब गया।

“क्या सोच रहा है?”

“कुछ नहीं अम्मा!”

फिर कुछ देर चुप्पी।

“अच्छा एक बात तो बता! तुझे सेक्स करना आता है?” काजल ने अचानक ही पूछ लिया।

“क्या अम्मा! अब तुमसे ये सब बातें कैसे डिसकस करूँ! तुम भी न!”

“अरे! सीधा सादा सवाल तो पूछा। उसके लिए इतना नाटक!”

“हाँ, आता है अम्मा!” सुनील ने हथियार डालते हुए कहा।

“अभी बोल रहा था कि कभी किया नहीं, तो कैसे आता है?”

“अम्मा - सब कुछ करने से ही नहीं आता! सीखने के और भी कई तरीके हैं!”

“हम्म! बात तेरी ठीक है। वैसे अगर नहीं आता है, तो शरमाना मत! पूछ लेना!” काजल ने आत्मविश्वास से कहा, “माँ हूँ तेरी! सब कुछ सिखाया है तुझको... ये भी सिखा दूँगी!”

“आता है अम्मा! किया नहीं है, लेकिन आता है कि कैसे करना है।” सुनील ने झेंपते हुए कहा।

“अच्छी बात है!”

सुनील अपनी माँ की बातों से बुरी तरह झेंप गया था। लेकिन उसको अच्छा भी लगा कि ऐसे नाज़ुक समय में उसकी माँ उसके साथ है। अपनी अम्मा के वात्सल्य भरे आलिंगन में बंध कर, उसके सारे कामुक विचार जाते रहे। कुछ देर दोनों खामोश लेटे रहे, फिर सुनील ही बोला,

“अम्मा?”

“हाँ बेटा?”

“....”

“क्या? बोल न?”

“दूधू पी लूँ?” सुनील ने हिचकिचाते हुए कहा।

“क्या? ओमोर माईये?”

सुनील ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“अरे तो ऐसे बोल न कि ‘अम्मा, अपना दूध पिला दो’! ऐसे शर्मा क्यों रहा है? तुझे दूध पिला कर इतना बड़ा किया है! तेरे फर्स्ट ईयर तक अपना दूध पिलाया है। ऐसे ही इतना बड़ा हो गया क्या तू?”

सुनील कुछ नहीं बोला। सच बात पर कैसी चर्चा?

“अरे बोल न! ये लड़का भी न! अरे अगर तू मुझसे ऐसे शरमाएगा, तो अपनी बीवी के सामने क्या करेगा?”

“हा हा हा! क्या अम्मा - माँ और बीवी में कुछ अंतर होता है!”

“हाँ - अंतर तो होता है! एक अपने बेटे को अपने अंदर से निकालती है, और दूसरी उसी बेटे को अपने अंदर लेती है!” काजल ने सुनील की टाँग खिंचाई करते हुए कहा, “अंतर तो होता है भई!”

“हा हा हा हा! अम्मा तुम बहुत शरारती हो!”

“और अंदर लेने वाली ज्यादा लुभाती है!”

“अम्मा! दूध पिलाने को पूछा, और तुमने पूरी गाथा कह दी!”

“जब तक तू ठीक से पूछेगा नहीं, तब तक तुझे दूधू नहीं मिलेगा!”

“मेरी प्यारी अम्मा, मुझे अपना दूध पिला दो!” सुनील ने मनुहार करते हुए कहा।

“हाँ, ये ठीक है! आ जा मेला बेटू, अपनी अम्मा का मीठा मीठा दूधू पी ले!” काजल ने उसको दुलारते हुए कहा तो सही, लेकिन कुछ किया नहीं। सुनील ने कुछ क्षणों तक इंतज़ार किया, फिर बोला,

“अम्मा, अब तो बोल भी दिया। पिलाओगी नहीं?”

“ब्लाउज खोलना आता है?”

सुनील ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तो खोल न!”

“क्या?” आश्चर्य की बात थी।

“हाँ, इस घर में कोई भी बच्चा अपनी माँ का इंतज़ार थोड़े ही करता है। सभी खुद ही ब्लाउज खोल कर पी लेते हैं!”

“ओह,” सुनील ने कहा, और काजल की ब्लाउज के बटन खोलने लगा। वो आराम से लेटी रही। कुछ देर में ब्लाउज के दोनों पट अलग हो गए, और उसके दोनों स्तन अनावृत हो गए।

उसने काजल का एक चूचक अपने मुँह में लिया और उसको चूसने लगा। थोड़ी देर में मीठे दूध की पतली धारा सुनील के मुँह को भरने लगी। काजल का मातृत्व आह्लादित हो गया। एक माँ के स्तनों में जब दूध बनता है, तब उसकी यही इच्छा होती है कि उसकी संतान उसका दूध पिए। सुनील द्वारा स्तनपान का आग्रह किए जाने से काजल आनंदित भी हुई, और गौरान्वित भी! अपने जवान बेटे को स्तनपान कराना आनंद का विषय तो है ही, साथ ही साथ गौरव का विषय भी है।

कोई एक मिनट के बाद काजल बोली,

“एक सेकंड, सुनील!”

जैसे ही सुनील ने उसका चूचक छोड़ा, काजल बिस्तर से उठ खड़ी हुई। फिर उसने अपनी ब्लाउज उतार दी, और अपनी साड़ी भी। वो केवल अपनी पेटीकोट पहने हुए ही, वापस, बिस्तर पर आ गई।

“आ जा!” सुनील की तरफ करवट कर के काजल ने उसको आमंत्रित किया।

सुनील वापस उसके चूचक से जा लगा। उधर काजल उसके लिंग को धीरे धीरे सहलाने लगी।

“आखिरी बार जब तुझको नंगा तब देखा था जब तू फर्स्ट ईयर में था... है न?”

सुनील ने हाँ में सर हिलाया।

“और दीदी तुझे तब भी नहलाती थीं! हा हा!”

“क्या अम्मा!” वो झेंपते हुए बोला।

“कल नहला दूँ तुझे - पहले के ही जैसे?”

“नहला दो न अम्मा!” सुनील सम्मान के साथ बोला, “तुम मेरी माँ हो! तुम्हारा पूरा अधिकार है कि तुम जैसा चाहो, करो!”

“दीदी को बोल दूँगी!”

“अरे वो क्यों? वो मेरी माँ नहीं हैं!”

“हाँ, वो तेरी माँ नहीं है!” काजल सोचती हुई बोली, “वैसे, सुन्दर लगती है न, दीदी?”

“हाँ अम्मा! बहुत!” सुनील जैसे कहीं दूर जा कर बोला।

“फिगर भी अच्छा सा है! जवान लड़की जैसी ही तो लगती है!”

“हाँ!” सुनील स्वतः बोल पड़ा।

“तुझको लगती कैसी है वो?”

“बहुत अच्छी!”

“हमेशा सोचती हूँ कि वो जिस घर जाएगी न, वो बहुत भाग्यशाली घर होगा!”

“वो शादी करेंगी न?”

“अरे क्यों नहीं करेगी शादी! मैं करवाऊँगी उसकी शादी, हाँ नहीं तो! लेकिन कोई अच्छा सा वर भी तो मिले!”

“उनके लिए एक अच्छा वर कैसा होगा अम्मा?”

“अरे, ये कोई पूछने वाली बात है? इतनी अच्छी सी तो है दीदी! तो बढ़िया पढ़ा लिखा हो, अच्छा कमाऊ हो, उसको खूब प्यार दे सके! अच्छा संस्कारी लड़का हो। शान्त स्वभाव का हो। अच्छे शरीर वाला हो - स्वस्थ, सुन्दर! इतना सब तो होना ही चाहिए!”

काजल ने आकार में बढ़ते हुए उसके लिंग को दबाते सहलाते हुए कहा।

“हाँ अम्मा, यह सब तो चाहिए ही!”

काजल कुछ सोच कर फिर आगे बोली, “तूने अच्छा किया - अच्छी आदतें पालीं। अच्छा खाया पिया! एक्सरसाइज करता है। अच्छा लगता है तू भी!”

“हा हा! थैंक यू अम्मा!”

“हाँ! बुरी आदतें पालने से आदमियों का नुनु और बिची कमज़ोर हो जाता है! इतने सालों तक जो मैंने तुझे दूध पिलाया है, उसका लाभ न मिलता!”

“क्या अम्मा! आज कैसी कैसी बातें कर रही हो तुम?”

“देख सुनील, मैं तेरी माँ हूँ! तेरे भले के लिए ही सोचती हूँ! अब देख - अभी तक समझ हम सभी की तपस्या हो गई तुझे पाल पोस कर बड़ा करने में। तेरी अच्छी सी पढ़ाई, तेरा उत्तम कैरियर, तेरी बढ़िया सी जॉब - यह सब हम सभी की तपस्या का फल है! अब एक ही काम रह गया है बस - और वो है तेरी शादी का!”

काजल ने कहा, और फिर कुछ सोच कर आगे बोली, “शादी ब्याह कोई मज़ाक बात नहीं है। शादी में अगर औरत को बहुत सैक्रिफाइस करना पड़ता है, तो आदमी को भी करना पड़ता है। शादी जिम्मेदारी लेने का नाम है। उसमे जहाँ अपने परिवार होने का आनंद मिलता है, वहीं अनगिनत जिम्मेदारियाँ भी लेनी पड़ती है! और, अपनी बीवी को खुश रखना, उसको हर प्रकार का सुख देना, एक आदमी की सबसे पहली जिम्मेदारी होती है।”

“हाँ, मैं ये सब बातें मानता हूँ अम्मा। लेकिन तुम्हारा पॉइंट क्या है?”

“पॉइंट ये है कि अपनी बीवी को शारीरिक सुख देने के लिए आदमी के पास मज़बूत नुनु होना चाहिए। है कि नहीं?” काजल ने उसके लिंग की लम्बाई पर हाथ फिराते हुए कहा।

सुनील ने झुँझलाते हुए बोला, “तुम्हारे सामने ये थोड़े ही खड़ा होगा अम्मा।”

“क्यों?”

“तुम तो मेरी अम्मा हो न।”

“हाँ! वो बात भी ठीक है। मुझे गर्व है कि मेरा बेटा मेरा इतना सम्मान करता है! लेकिन लास्ट टाइम जब तुझे देखा था, तब तो दीदी के सामने तेरा नुनु खड़ा था!”

“क्या अम्मा!!”

“हाँ ठीक है, ठीक है! वो तेरी माँ थोड़े ही है! वैसे अभी जितना है, वो भी बढ़िया लग रहा है!”

“अम्मा, तुम्हारे दूध का कमाल फिर कभी दिखाऊँगा। बस अभी इतना जान लो कि अभी जितना है, उससे भी बड़ा हो जाता है।”

“सच में?”

“हाँ अम्मा! आई प्रॉमिस!”

“बढ़िया है फिर तो! मेरी बहू की रक्षा करना भगवान!”

“हा हा हा!”

“अच्छा सुन, मेरे मन में एक बात है। मैं सोच रही थी, कि अगर तुम अपनी जॉइनिंग के पहले ही शादी कर लो, तो बहू को अपने साथ ही लिए जाओ! बढ़िया एक साथ ही, नए शहर में, नया नया जीवन शुरू करो!”

“इतनी जल्दी अम्मा?”

“अरे, इसमें क्या जल्दी है रे? हम सभी ने तो लीगल ऐज का होते ही शादी कर ली थी - मैंने भी, दीदी ने भी, और अमर ने भी! तू भी लीगल ऐज का हो गया है। कर ले। अच्छा साथी मिल जाता है तो जीवन में बस आनंद ही आनंद आ जाता है! अगर तेरी वाली ‘हाँ’ कर दे, तो तुरंत शादी कर लो। हम हैं न - बिना किसी देरी के तुम दोनों की शादी करवा देंगे। और, बिना कारण इंतज़ार करने की कोई ज़रुरत नहीं, और न ही कोई लाभ। एक लम्बा वैवाहिक जीवन बिताओ साथ में!”

“हम्म!”

“जितनी जल्दी हो, उसको प्रोपोज़ कर दे! और, अगर वो मान जाए तो तुरंत शादी कर ले! बिना वजह इंतज़ार मत कर। हमारे पास ज़रुरत के हिसाब से पैसे हैं! इतने दिनों तक पैसे जोड़े हैं मैंने। इसलिए तुम चिंता न करना। अमर और मैं, तुम्हारा घर जमाने में पूरी मदद करेंगे। और फिर तू कुछ ही दिनों में अपनी जॉब भी शुरू कर लेगा। सब बढ़िया बढ़िया हो जाएगा!” काजल आनंदित होते हुए बोली।

“हम्म... सच में अम्मा, प्रोपोज़ कर दूँ?”

“हाँ! अब और देर न कर! बिना हिचके, बिना झिझके, और बिना डरे प्रोपोज़ कर दे बहू को!” काजल मुस्कुराते हुए बोली, “लेकिन पूरे मान सम्मान के साथ! वो अगर मना कर दे, तो ज़िद न करना। लेकिन सच कहूँ - मेरा दिल कहता है कि सब अच्छा अच्छा होगा!”

“ठीक है अम्मा!” सुनील मुस्कुराया, “थैंक यू अम्मा!”

काजल ने उसके ‘थैंक यू’ पर आँखें तरेरीं, और आगे बोली, “और वो मान जाए, तो तुरंत शादी कर लेना!”

“ठीक है अम्मा!”

“चल, अब जाती हूँ मैं! मेरी छातियाँ भी खाली हो गईं अब! तू सो जा! यहाँ जगह कम है। न तो तू ठीक से सो पाएगा और न ही मैं! और सवेरे मेरी लाडो रानियाँ मुझे अपने साथ नहीं देखेंगी, तो परेशान होने लगेंगी। गुड नाईट बेटा!”

“गुड नाईट अम्मा!”

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Lib am

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जब यह सब चर्चा चल रही थी, काजल ने टीवी चालू कर दिया... किसी चैनल पर हेमा मालिनी की एक फिल्म दिखा रहे थे। माँ और काजल दोनों ही हेमा की बड़ी फैन थीं - इसलिए उन्होंने फिल्म को चालू रखा। यह उसकी अन्य फिल्मों से थोड़ी अलग थी। फिल्म की कहानी एक युवक (कमल हासन) के बारे में थी जो हेमा मालिनी वाले किरदार को लुभाने की कोशिश कर रहा था, जो कि उम्र में उससे बहुत बड़ी थी। जहाँ हेमा, कमल हासन को हर संभव तरीके से मना करने की कोशिश कर रही थी, वहीं कमल के काफी प्रयत्नों के बाद वो भी बदले में उससे प्यार करने लगती है।

यह एक जटिल कहानी थी, लेकिन जो बात सभी के दिल को छू गई वह यह थी कि यह एक बड़ी उम्र की महिला की कहानी थी, और उसके फिर से प्यार पाने की संभावना की कहानी थी। माँ और काजल दोनों एक ही नाव में सवार थीं - और यह फिल्म उन दोनों को बहुत अलग तरीके से छू गई। जहाँ काजल के पास मेरे रूप में एक वास्तविक विकल्प था, वहीं माँ के पास कोई विकल्प नहीं था। दोनों महिलायें एक दूसरे को शादी करने के लिए प्रोत्साहित करती रहतीं, लेकिन दोनों ही कोई भी संकल्प न लेतीं।

हेमा और कमल के बीच कुछ संवादों के दौरान, माँ और सुनील आँखों ही आँखों में अपनी बातों का आदान-प्रदान कर रहे थे - सुनील मानों जैसे कमल के संवादों के साथ अपनी बात बोल रहा था, वहीं माँ हेमा के संवादों के जरिए अपनी बात रख रही थी। लेकिन अंत में, जब हेमा के विरोध का किला ढह जाता है, और जब वो महमूद के सामने स्वीकार करती है - संवाद के साथ नहीं बल्कि आंखों में आंसू के साथ - कि वो कमल के साथ प्यार में थी, तब माँ ने सुनील की ओर नहीं देखा। कहानी का ऐसा मोड़ आ जाएगा, वो उसने सोचा भी नहीं था। वो दृश्य देख कर माँ के अंदर एक उथल-पुथल मच गई।

काजल ने तभी कहा, “वो एक्स-मेन वाला हीरो है ना... उसकी बीवी भी तो उससे उम्र में बहुत बड़ी है।”

“कौन? ह्यूग जैकमैन?” सुनील ने कहा।

“हाँ! वो ही। उसी के हाथ से चाकू निकलता है न?” काजल ने हँसते हुए कहा।

“क्या बात है अम्मा! तुमको तो याद है!”

“और नहीं तो क्या।” काजल ने कहा, “वैसे ठीक भी है। शादी में हमेशा पत्नी ही कम उम्र की क्यों होनी चाहिए? ये कोई जरूरी तो नहीं है। क्यों दीदी?”

“समाज भी तो कुछ होता है, काजल!”

“अरे दीदी, लेकिन यह कोई नियम भी तो नहीं है न, दीदी! शादी ब्याह में उम्र का क्या मतलब है? उससे पहले तो प्रेम का स्थान है। पति पत्नी के बीच प्रेम है, आदर है, तभी तो सुखी परिवार की नींव पड़ती है। बच्चे वच्चे तो बाद में होते हैं।”

शायद काजल कुछ और कहती - मेरे और देवयानी के बारे में, लेकिन चुप हो गई। मेरी शादी का ज़िक्र घर में थोड़ा वर्जित माना जाता है। माँ ने भी काजल की बात पर कुछ नहीं कहा।

उस दिन और कुछ खास नहीं हुआ।



अगली रात :

रात की ख़ामोशी में सुनील किन्ही कामुक विचारों में खोया हुआ, बिस्तर पर नग्न पड़ा हुआ था, और अपने लिंग को हाथ में थामे, उसको धीरे धीरे सहलाते हुए हस्तमैथुन कर रहा था! रह रह कर उसके मन में कई सारे विचार आ-जा रहे थे। अपनी सम्भाविक प्रेमिका और पत्नी को अपने ख्यालों में ही निर्वस्त्र करते हुए वो उसके साथ प्रेम सम्बन्ध बना रहा था, और दूसरे हाथ हस्तमैथुन करते हुए, वो उन विचारों की उमंगों का अनुभव भी कर रहा था। एक अकेले, जवान आदमी के पास अपनी काम-पिपासा संतुष्ट करने का इससे अच्छा और सुरक्षित अन्य कोई तरीका नहीं हो सकता। न जाने कितने ख़्वाब, न जाने कितनी ही तमन्नाएँ, न जाने कितनी ही फंतासी - सब रह रह कर उसके दिमाग में आ जा रहे थे और उन्ही की ताल पर उसका हाथ अपने लिंग पर फिसल रहा था!

अपने विचारों में वो इतना खोया हुआ था कि उसको ध्यान ही नहीं रहा कि दरवाज़े पर उसकी अम्मा खड़ी हो कर, उसे विस्मय से घूर रही थी। वैसे, ध्यान भी कैसे आता? कमरे में एक तो केवल जीरो वाट का बल्ब जल रहा था, दूसरा वो हस्तमैथुन से उत्पन्न होने वाली कामुक गुदगुदी का आनंद, अपनी आँखें बंद कर के ले रहा था। वैसे भी, इतनी रात में वो किसी को अपने कमरे में आने की उम्मीद नहीं कर रहा था। अचानक ही सुनील की नज़र काजल पर पड़ी - वो भी अपनी अम्मा को वहाँ खड़ी देख कर हैरान रह गया।

“क्या कर रहा है, सुनील?” काजल फुसफुसाती हुई बोली!

बहुत से लोग हस्तमैथुन को स्वस्थ क्रिया नहीं मानते। काजल भी उनमें से ही थी। उसका मानना था कि सम्भोग से सम्बंधित सभी क्रियाएँ, किसी अंतरंग साथी के साथ ही करनी चाहिए। वही तरीका एक स्वस्थ तरीका है। हस्तमैथुन काम संतुष्टि का एक अस्वस्थ तरीका है - ऐसा काजल का मानना था।

“अम्मा?!” सुनील हड़बड़ा कर बस इतना ही बोल पाया।

काजल कुछ देर ऐसे खड़ी रही कि जैसे सोच रही हो कि वो क्या करे क्या नहीं, और फिर कुछ सोच कर वो कमरे से बाहर चली गई, और जाते जाते धीरे से अपने पीछे दरवाज़ा बंद कर गई। मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जो नुकसान होना था, वो हो चुका था - सुनील की अम्मा ने उसको हस्तमैथुन करने हुए पकड़ लिया था! सुनने में कितना हास्यास्पद लगता है न - उसकी अम्मा ने उसको हस्तमैथुन करने हुए पकड़ लिया था! जीवन के पूरे इक्कीस साल ऐसे ही बीत गए, और उन इक्कीस सालों में ने अनगिनत बार उसकी अम्मा ने उसको नंगा देखा था। लेकिन हस्तमैथुन करते हुए पहली बार पकड़ा था... पकड़ा था! सच में, हस्तमैथुन जैसी क्रिया करते हुए ‘पकड़े जाने’ पर शर्म की जैसी अनुभूति होती है, वो बहुत ही कम अवसरों पर होती है।

वो चिंतित हो गया, ‘न जाने अम्मा क्या सोचेंगीं!’

उसका उत्तेजित लिंग शीघ्रता से शांत हो गया। कोई दो मिनट बीता होगा कि उसने दरवाज़े पर दस्तक सुनी। सुनील ने अभी भी कपड़े नहीं पहने हुए थे। लेकिन उसको कुछ करना नहीं पड़ा। दस्तक के तुरंत बाद, बिना किसी उत्तर की प्रतीक्षा किये, काजल ने दरवाज़े से कमरे के भीतर झाँक कर कहा,

“मैं अंदर आ जाऊँ?”

“अम्मा, मैं बस एक सेकंड में कपड़े पहन लेता हूँ! क्या तुम रुक सकती हो?”

“सुनील, तुम मेरे बेटे हो। तुमको मुझसे शर्माने की ज़रुरत नहीं है!” काजल ने कहा और वो अंदर आ गई।

अंदर आ कर उसने धीरे से दरवाजा बंद कर दिया और अपने बेटे की ओर मुड़ी, जो अभी भी बिस्तर पर नग्न तो लेटा हुआ था, लेकिन संकोच में - जिससे उसका शरीर थोड़ा छुपा रहे।

“क्या बात है, अम्मा?”

“तू हैंडल क्यों मार रहा था रे?” काजल ने यथासंभव कोमल आवाज़ में पूछा। वो नहीं चाहती थी कि सुनील को बुरा लगे।

“क्या अम्मा!” सुनील ने झेंपते हुए कहा।

क्या अम्मा क्या? तुझे मैंने समझाया था न, कि गन्दी आदतें मत पालना! लेकिन मेरी सुननी कहाँ है नवाब को? अरे सोच, कहीं तेरी बिची पर चोट लग गई तो? फिर तेरे बच्चे कैसे होंगे रे? सोचा है क्या कभी?”

“अरे, ऐसे नहीं चोट लगती अम्मा! और यह मैं आज पहली बार नहीं कर रहा हूँ!” सुनील को अपनी अम्मा के सामने ऐसे नग्न बैठे हुए थोड़ा शर्मनाक लग रहा था। एक वो कारण, और दूसरा अपनी अम्मा की बेवकूफी भरी बात से वो थोड़ा झुंझला भी गया था।

“अरे लेकिन तू ये करता ही क्यों है?”

“अम्मा, मैं भी तो आदमी ही हूँ! मेरा भी मन होता है सेक्स करने का। और मेरे पास कोई लड़की थोड़े ही है!”

“तो तूने पहले कभी किसी लड़की को...?”

“नहीं अम्मा!” सुनील ने झेंपते हुए कहा।

“अपनी वाली को भी नहीं?”

“अम्मा, आपने उसको और मुझको क्या समझा है?” उसने तैश में आ कर कहा, “और बिना उसको अपने दिल की बात कहे, और बिना उसकी रज़ामंदी के मैं ये सब कैसे कर लूँगा? और आपको लगता है कि वो ये सब कर लेगी - किसी के साथ भी?”

“हाँ! वो बात भी ठीक है! माँ हूँ न, इसलिए बेवकूफ़ी भरी बातें सोचने लगती हूँ! सॉरी!” फिर कुछ सोच कर, “ठीक है... तू जो कर रहा था, वो कर ले। मैं जाती हूँ!”

“लेकिन तुम आई क्यों थी, अम्मा?”

“कुछ नहीं! नींद नहीं आ रही थी, इसलिए चली आई। तू अक्सर देर तक काम करता है न, तो मुझे लगा कि तू जाग रहा होगा! सोचा, हम दोनों कुछ देर बातें करेंगे!”

“भैया सो गए?”

काजल ने शर्मा कर ‘हाँ’ में सर हिलाया।

सुनील मुस्कुराया, “अम्मा, तुमको और भैया को साथ में देख कर, सोच कर बहुत अच्छा लगता है!”

काजल मुस्कुराई, लेकिन उसने बात बदल दी, “चल, तू कर ले अपना। मैं जाती हूँ! लेकिन सम्हाल कर करना!”

कह कर काजल कमरे से बाहर जाने लगी।

“अम्मा, मत जाओ। आज यहीं सो जाओ? मेरे पास?”

“सच में? तुम्हारे साथ यहाँ?”

“हाँ! वैसे भी अब मुझे कुछ करने का मन नहीं होगा!”

काजल ने कुछ सोचा, और फिर आ कर सुनील के बगल ही, उसके बिस्तर पर लेट गई। वो बिस्तर सिंगल बेड था, इसलिए दोनों बहुत अगल बगल ही लेट सकते थे।

“अच्छा एक बात बता, किसकी याद आ रही थी तुझको? अपनी वाली की?”

सुनील मुस्कुराया, “अम्मा, और किसकी याद आएगी?”

“जब उसके लिए तू इतना तरसता रहता है, तो उसको बोल क्यों नहीं देता?”

“डर लगता है अम्मा! कि कहीं इंकार न कर दे!”

“अरे, ये क्या बात हुई! चाहे वो इंकार करे, या चाहे इक़रार - बोलना तो पड़ेगा ही न! कम से कम तुझको मालूम तो हो जाएगा कि वो भी तुझे चाहती है या नहीं!”

“हम्म!”

“उसको बोल दे। जितनी जल्दी हो सके उतनी जल्दी!”

“ठीक है अम्मा! बोल दूँगा! बहुत जल्दी! थैंक यू!”

“डरना मत!”

“नहीं डरूँगा!”

“मेरे दूध का मान रखना! डरना मत, सच में!”

“प्रॉमिस, अम्मा!”

सुनील ने आत्मविश्वास से कहा और करवट हो कर अपनी अम्मा को अपने आलिंगन में बाँध कर किसी सोच में डूब गया।

“क्या सोच रहा है?”

“कुछ नहीं अम्मा!”

फिर कुछ देर चुप्पी।

“अच्छा एक बात तो बता! तुझे सेक्स करना आता है?” काजल ने अचानक ही पूछ लिया।

“क्या अम्मा! अब तुमसे ये सब बातें कैसे डिसकस करूँ! तुम भी न!”

“अरे! सीधा सादा सवाल तो पूछा। उसके लिए इतना नाटक!”

“हाँ, आता है अम्मा!” सुनील ने हथियार डालते हुए कहा।

“अभी बोल रहा था कि कभी किया नहीं, तो कैसे आता है?”

“अम्मा - सब कुछ करने से ही नहीं आता! सीखने के और भी कई तरीके हैं!”

“हम्म! बात तेरी ठीक है। वैसे अगर नहीं आता है, तो शरमाना मत! पूछ लेना!” काजल ने आत्मविश्वास से कहा, “माँ हूँ तेरी! सब कुछ सिखाया है तुझको... ये भी सिखा दूँगी!”

“आता है अम्मा! किया नहीं है, लेकिन आता है कि कैसे करना है।” सुनील ने झेंपते हुए कहा।

“अच्छी बात है!”

सुनील अपनी माँ की बातों से बुरी तरह झेंप गया था। लेकिन उसको अच्छा भी लगा कि ऐसे नाज़ुक समय में उसकी माँ उसके साथ है। अपनी अम्मा के वात्सल्य भरे आलिंगन में बंध कर, उसके सारे कामुक विचार जाते रहे। कुछ देर दोनों खामोश लेटे रहे, फिर सुनील ही बोला,

“अम्मा?”

“हाँ बेटा?”

“....”

“क्या? बोल न?”

“दूधू पी लूँ?” सुनील ने हिचकिचाते हुए कहा।

“क्या? ओमोर माईये?”

सुनील ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“अरे तो ऐसे बोल न कि ‘अम्मा, अपना दूध पिला दो’! ऐसे शर्मा क्यों रहा है? तुझे दूध पिला कर इतना बड़ा किया है! तेरे फर्स्ट ईयर तक अपना दूध पिलाया है। ऐसे ही इतना बड़ा हो गया क्या तू?”

सुनील कुछ नहीं बोला। सच बात पर कैसी चर्चा?

“अरे बोल न! ये लड़का भी न! अरे अगर तू मुझसे ऐसे शरमाएगा, तो अपनी बीवी के सामने क्या करेगा?”

“हा हा हा! क्या अम्मा - माँ और बीवी में कुछ अंतर होता है!”

“हाँ - अंतर तो होता है! एक अपने बेटे को अपने अंदर से निकालती है, और दूसरी उसी बेटे को अपने अंदर लेती है!” काजल ने सुनील की टाँग खिंचाई करते हुए कहा, “अंतर तो होता है भई!”

“हा हा हा हा! अम्मा तुम बहुत शरारती हो!”

“और अंदर लेने वाली ज्यादा लुभाती है!”

“अम्मा! दूध पिलाने को पूछा, और तुमने पूरी गाथा कह दी!”

“जब तक तू ठीक से पूछेगा नहीं, तब तक तुझे दूधू नहीं मिलेगा!”

“मेरी प्यारी अम्मा, मुझे अपना दूध पिला दो!” सुनील ने मनुहार करते हुए कहा।

“हाँ, ये ठीक है! आ जा मेला बेटू, अपनी अम्मा का मीठा मीठा दूधू पी ले!” काजल ने उसको दुलारते हुए कहा तो सही, लेकिन कुछ किया नहीं। सुनील ने कुछ क्षणों तक इंतज़ार किया, फिर बोला,

“अम्मा, अब तो बोल भी दिया। पिलाओगी नहीं?”

“ब्लाउज खोलना आता है?”

सुनील ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तो खोल न!”

“क्या?” आश्चर्य की बात थी।

“हाँ, इस घर में कोई भी बच्चा अपनी माँ का इंतज़ार थोड़े ही करता है। सभी खुद ही ब्लाउज खोल कर पी लेते हैं!”

“ओह,” सुनील ने कहा, और काजल की ब्लाउज के बटन खोलने लगा। वो आराम से लेटी रही। कुछ देर में ब्लाउज के दोनों पट अलग हो गए, और उसके दोनों स्तन अनावृत हो गए।

उसने काजल का एक चूचक अपने मुँह में लिया और उसको चूसने लगा। थोड़ी देर में मीठे दूध की पतली धारा सुनील के मुँह को भरने लगी। काजल का मातृत्व आह्लादित हो गया। एक माँ के स्तनों में जब दूध बनता है, तब उसकी यही इच्छा होती है कि उसकी संतान उसका दूध पिए। सुनील द्वारा स्तनपान का आग्रह किए जाने से काजल आनंदित भी हुई, और गौरान्वित भी! अपने जवान बेटे को स्तनपान कराना आनंद का विषय तो है ही, साथ ही साथ गौरव का विषय भी है।

कोई एक मिनट के बाद काजल बोली,

“एक सेकंड, सुनील!”

जैसे ही सुनील ने उसका चूचक छोड़ा, काजल बिस्तर से उठ खड़ी हुई। फिर उसने अपनी ब्लाउज उतार दी, और अपनी साड़ी भी। वो केवल अपनी पेटीकोट पहने हुए ही, वापस, बिस्तर पर आ गई।

“आ जा!” सुनील की तरफ करवट कर के काजल ने उसको आमंत्रित किया।

सुनील वापस उसके चूचक से जा लगा। उधर काजल उसके लिंग को धीरे धीरे सहलाने लगी।

“आखिरी बार जब तुझको नंगा तब देखा था जब तू फर्स्ट ईयर में था... है न?”

सुनील ने हाँ में सर हिलाया।

“और दीदी तुझे तब भी नहलाती थीं! हा हा!”

“क्या अम्मा!” वो झेंपते हुए बोला।

“कल नहला दूँ तुझे - पहले के ही जैसे?”

“नहला दो न अम्मा!” सुनील सम्मान के साथ बोला, “तुम मेरी माँ हो! तुम्हारा पूरा अधिकार है कि तुम जैसा चाहो, करो!”

“दीदी को बोल दूँगी!”

“अरे वो क्यों? वो मेरी माँ नहीं हैं!”

“हाँ, वो तेरी माँ नहीं है!” काजल सोचती हुई बोली, “वैसे, सुन्दर लगती है न, दीदी?”

“हाँ अम्मा! बहुत!” सुनील जैसे कहीं दूर जा कर बोला।

“फिगर भी अच्छा सा है! जवान लड़की जैसी ही तो लगती है!”

“हाँ!” सुनील स्वतः बोल पड़ा।

“तुझको लगती कैसी है वो?”

“बहुत अच्छी!”

“हमेशा सोचती हूँ कि वो जिस घर जाएगी न, वो बहुत भाग्यशाली घर होगा!”

“वो शादी करेंगी न?”

“अरे क्यों नहीं करेगी शादी! मैं करवाऊँगी उसकी शादी, हाँ नहीं तो! लेकिन कोई अच्छा सा वर भी तो मिले!”

“उनके लिए एक अच्छा वर कैसा होगा अम्मा?”

“अरे, ये कोई पूछने वाली बात है? इतनी अच्छी सी तो है दीदी! तो बढ़िया पढ़ा लिखा हो, अच्छा कमाऊ हो, उसको खूब प्यार दे सके! अच्छा संस्कारी लड़का हो। शान्त स्वभाव का हो। अच्छे शरीर वाला हो - स्वस्थ, सुन्दर! इतना सब तो होना ही चाहिए!”

काजल ने आकार में बढ़ते हुए उसके लिंग को दबाते सहलाते हुए कहा।

“हाँ अम्मा, यह सब तो चाहिए ही!”

काजल कुछ सोच कर फिर आगे बोली, “तूने अच्छा किया - अच्छी आदतें पालीं। अच्छा खाया पिया! एक्सरसाइज करता है। अच्छा लगता है तू भी!”

“हा हा! थैंक यू अम्मा!”

“हाँ! बुरी आदतें पालने से आदमियों का नुनु और बिची कमज़ोर हो जाता है! इतने सालों तक जो मैंने तुझे दूध पिलाया है, उसका लाभ न मिलता!”

“क्या अम्मा! आज कैसी कैसी बातें कर रही हो तुम?”

“देख सुनील, मैं तेरी माँ हूँ! तेरे भले के लिए ही सोचती हूँ! अब देख - अभी तक समझ हम सभी की तपस्या हो गई तुझे पाल पोस कर बड़ा करने में। तेरी अच्छी सी पढ़ाई, तेरा उत्तम कैरियर, तेरी बढ़िया सी जॉब - यह सब हम सभी की तपस्या का फल है! अब एक ही काम रह गया है बस - और वो है तेरी शादी का!”

काजल ने कहा, और फिर कुछ सोच कर आगे बोली, “शादी ब्याह कोई मज़ाक बात नहीं है। शादी में अगर औरत को बहुत सैक्रिफाइस करना पड़ता है, तो आदमी को भी करना पड़ता है। शादी जिम्मेदारी लेने का नाम है। उसमे जहाँ अपने परिवार होने का आनंद मिलता है, वहीं अनगिनत जिम्मेदारियाँ भी लेनी पड़ती है! और, अपनी बीवी को खुश रखना, उसको हर प्रकार का सुख देना, एक आदमी की सबसे पहली जिम्मेदारी होती है।”

“हाँ, मैं ये सब बातें मानता हूँ अम्मा। लेकिन तुम्हारा पॉइंट क्या है?”

“पॉइंट ये है कि अपनी बीवी को शारीरिक सुख देने के लिए आदमी के पास मज़बूत नुनु होना चाहिए। है कि नहीं?” काजल ने उसके लिंग की लम्बाई पर हाथ फिराते हुए कहा।

सुनील ने झुँझलाते हुए बोला, “तुम्हारे सामने ये थोड़े ही खड़ा होगा अम्मा।”

“क्यों?”

“तुम तो मेरी अम्मा हो न।”

“हाँ! वो बात भी ठीक है। मुझे गर्व है कि मेरा बेटा मेरा इतना सम्मान करता है! लेकिन लास्ट टाइम जब तुझे देखा था, तब तो दीदी के सामने तेरा नुनु खड़ा था!”

“क्या अम्मा!!”

“हाँ ठीक है, ठीक है! वो तेरी माँ थोड़े ही है! वैसे अभी जितना है, वो भी बढ़िया लग रहा है!”

“अम्मा, तुम्हारे दूध का कमाल फिर कभी दिखाऊँगा। बस अभी इतना जान लो कि अभी जितना है, उससे भी बड़ा हो जाता है।”

“सच में?”

“हाँ अम्मा! आई प्रॉमिस!”

“बढ़िया है फिर तो! मेरी बहू की रक्षा करना भगवान!”

“हा हा हा!”

“अच्छा सुन, मेरे मन में एक बात है। मैं सोच रही थी, कि अगर तुम अपनी जॉइनिंग के पहले ही शादी कर लो, तो बहू को अपने साथ ही लिए जाओ! बढ़िया एक साथ ही, नए शहर में, नया नया जीवन शुरू करो!”

“इतनी जल्दी अम्मा?”

“अरे, इसमें क्या जल्दी है रे? हम सभी ने तो लीगल ऐज का होते ही शादी कर ली थी - मैंने भी, दीदी ने भी, और अमर ने भी! तू भी लीगल ऐज का हो गया है। कर ले। अच्छा साथी मिल जाता है तो जीवन में बस आनंद ही आनंद आ जाता है! अगर तेरी वाली ‘हाँ’ कर दे, तो तुरंत शादी कर लो। हम हैं न - बिना किसी देरी के तुम दोनों की शादी करवा देंगे। और, बिना कारण इंतज़ार करने की कोई ज़रुरत नहीं, और न ही कोई लाभ। एक लम्बा वैवाहिक जीवन बिताओ साथ में!”

“हम्म!”

“जितनी जल्दी हो, उसको प्रोपोज़ कर दे! और, अगर वो मान जाए तो तुरंत शादी कर ले! बिना वजह इंतज़ार मत कर। हमारे पास ज़रुरत के हिसाब से पैसे हैं! इतने दिनों तक पैसे जोड़े हैं मैंने। इसलिए तुम चिंता न करना। अमर और मैं, तुम्हारा घर जमाने में पूरी मदद करेंगे। और फिर तू कुछ ही दिनों में अपनी जॉब भी शुरू कर लेगा। सब बढ़िया बढ़िया हो जाएगा!” काजल आनंदित होते हुए बोली।

“हम्म... सच में अम्मा, प्रोपोज़ कर दूँ?”

“हाँ! अब और देर न कर! बिना हिचके, बिना झिझके, और बिना डरे प्रोपोज़ कर दे बहू को!” काजल मुस्कुराते हुए बोली, “लेकिन पूरे मान सम्मान के साथ! वो अगर मना कर दे, तो ज़िद न करना। लेकिन सच कहूँ - मेरा दिल कहता है कि सब अच्छा अच्छा होगा!”

“ठीक है अम्मा!” सुनील मुस्कुराया, “थैंक यू अम्मा!”

काजल ने उसके ‘थैंक यू’ पर आँखें तरेरीं, और आगे बोली, “और वो मान जाए, तो तुरंत शादी कर लेना!”

“ठीक है अम्मा!”

“चल, अब जाती हूँ मैं! मेरी छातियाँ भी खाली हो गईं अब! तू सो जा! यहाँ जगह कम है। न तो तू ठीक से सो पाएगा और न ही मैं! और सवेरे मेरी लाडो रानियाँ मुझे अपने साथ नहीं देखेंगी, तो परेशान होने लगेंगी। गुड नाईट बेटा!”

“गुड नाईट अम्मा!”

**
लो भैया कहानी चालू हो गई है प्रेम की मगर दोनो नायिकाएं अपने अपने तर्क ले कर बैठी है एक अपने काम पढ़े लिखे होने का और दूसरी अपनी उम्र का। अब देखना है की कब तक ये तर्क वितर्क काम करते है। बहुत ही सुंदर वार्तालाप के दृश्य और संवाद।
 
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