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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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आत्मनिर्भर - नए अनुभव - Update 1


इस घटना के बाद माँ ने स्वयं भी रचना की मम्मी से हमारी शादी की संभावना के बारे में बात की। मुझे यह तो नहीं पता कि उन्होंने क्या चर्चा की, लेकिन रचना की मम्मी ने माँ से साफ़ साफ़ कह दिया कि हमारा सम्बन्ध संभव नहीं था। रचना का परिवार ब्राह्मण था और वो हमसे जाति में उच्च थे। और तो और वे अपनी इकलौती बेटी से अपनी ही जाति में करना चाहते थे। रचना की मम्मी ने माँ को आश्वासन दिया कि उन्हें मेरे, और हमारे परिवार के बारे में सब कुछ पसंद है - उन्होंने स्वीकारा कि हमारा रचना के व्यवहार और आचरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा था। वह अब अच्छी तरह से पढ़ाई कर रही थी, घर का काम काज भी सीख रही थी, और हमारे संपर्क में आने के बाद से उसका व्यवहार बेहतर हो गया था। उन्होंने माँ से यह भी कहा कि मैं एक अच्छा लड़का हूँ, और वो मुझे रचना के संभावित पति के रूप में पसंद करती हैं, वो अपने समाज से अलग हो कर कोई निर्णय नहीं ले सकेंगी। और वैसे भी यह सब सोचने में अभी समय था - पहले मुझे अपने पैरों पर खड़ा हो जाना चाहिए; कुछ बन जाना चाहिए।

कहने की जरूरत नहीं है कि इसके बाद अचानक ही रचना का हमारे घर आना जाना काफ़ी कम हो गया। अब हम एक दूसरे से ज्यादातर कॉलेज में ही मिलते थे। एक बार कारण पूछने पर उसने मुझे बताया कि उसकी मम्मी ने उसको कहा था कि अब हम उसको ‘उलझाने’ के लिए उससे मीठी-मीठी बातें करेंगे, विभिन्न प्रलोभन देंगे, और उसको बरग़लायेंगे! और भी बातें कही गईं, लेकिन वो छुपा गई। रचना नहीं चाहती थी कि हम में से किसी पर भी, और ख़ास तौर पर माँ पर, ऐसा कोई भी इलज़ाम लगे। इसलिए अब वो बस कभी कभी ही घर आ सकेगी, और वो भी बस कुछ देर के लिए। यह सब मुझे सुन कर ख़राब तो बहुत लगा लेकिन कुछ कर नहीं सकते थे। मित्रता का ढोंग करने वाली उसकी मम्मी में इतना कपट भरा होगा, मैं सोच भी नहीं सकता था। सत्य है - मुँह में राम, बगल में छूरा वाली कहावत चरितार्थ हो गई थी यहाँ। माँ को भी थोड़ा दुःख तो हुआ, लेकिन उनकी प्रवृत्ति ही ऐसी थी कि वो सबको क्षमा कर देती थीं, और सबकी बुरी बातें भूल जाती थीं।

जल्द ही हमने अपनी अपनी स्नातक की शिक्षा शुरू कर दी। रचना का दाख़िला उसी राज्य के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में हो गया [क्योंकि उसके पेरेंट्स उसको घर से बाहर जाने नहीं देना चाहते थे - क्या पता अगर उनकी लड़की हाथ से निकल गई, तो?], जबकि मैं अपनी स्नातक की शिक्षा के लिए भारत के सबसे अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेजों में से एक में गया। पढ़ाई लिखाई में की गई मेरी मेहनत रंग लाई। और इसी के साथ रचना और मेरा नवोदित रिश्ता खत्म हो गया। चार साल की दूरी बहुत होती है। वैसे भी इंजीनियरिंग कॉलेजों में छात्रों का व्यक्तित्व बदल जाता है। हम दोनों भी बहुत बदल जाएँगे।

लेकिन रचना और मेरी कहानी का अंत यह नहीं था। रचना बाद में मेरे जीवन में लौटने वाली थी।

**

इंजीनियरिंग कॉलेज का मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा - और उसका कारण था वहाँ का मुझ पर, और मेरे व्यक्तित्व पर काफी परिवर्तनकारी प्रभाव! अपने कस्बे की दुनिया से दूर, एक अलग ही दुनिया देखने को मिली वहाँ। पूरे देश भर से छात्र-छात्राएँ वहां पर आये थे, और सभी के जीवन के अनुभव अलग अलग थे। कुछ ही समय में मैं कुएँ के मेंढक से कुछ अलग बन गया। सोचने समझने की क्षमता भी काफी आई। सभी सहपाठियों से बहुत कुछ जानने और सीखने को मिला। मेरे बोलने और रहने सहने का ढंग भी काफ़ी बदला। दो साल के बाद मैं अच्छी अंग्रेजी भी बोलने लगा, जो की आगे चल कर मेरे लिए एक वरदान साबित हुआ। नए स्पोर्ट्स, जैसे कि लॉन टेनिस और तैराकी भी सीखी। अपना इंजीनियरिंग का विषय तो सीख ही रहा था। मेरी सोच भी काफ़ी विकसित हुई। समसामयिक विषयों की जानकारी और उनका विश्लेषण करने की क्षमता आई। संगीत भी सीखा - गिटार जैसे वाद्य-यंत्र मैं अब बजा लेता था। सबसे अच्छी बात यह थी कि यह सब करने में मुझे कैसा भी अतिरिक्त खर्च नहीं करना पड़ा। मेरा इंजीनियरिंग कॉलेज साधन संपन्न था, और छात्रों को अपने व्यक्तिगत विकास की सारी सुविधाएँ निःशुल्क उपलब्ध थीं। लेकिन एक कमी भी थी।

ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे कामदेव ने मेरी स्नातक शिक्षा के दौरान मेरा साथ छोड़ दिया था। विपरीत लिंग, अर्थात लड़कियों से निकट जाने का कोई अवसर नहीं मिल रहा था। हालाँकि, मेरे आसपास बहुत सारी लड़कियाँ थीं, मुझे उनमें से कोई भी आकर्षक नहीं लगी। या शायद, उन्होंने मुझे आकर्षक नहीं पाया। मेरी सहपाठिनियों के मुकाबले रचना तो अप्सरा कहलाएगी। रचना से जैसी सन्निकटता हुई थी, यहाँ तो सोचना मुश्किल हो गया था। आप देखते हैं, जब कॉलेज और छात्रावास की नई नई आजादी मिलती है, तो लड़कियां उसका भरपूर इस्तेमाल करती हैं - लड़कियां ही क्या, लड़के भी। लेकिन लड़कियाँ आमतौर पर उन ‘तथाकथित’ ‘स्टड लड़कों’ की ओर झुकाव दिखाती हैं, जो प्रायः अमीर परिवार से होते हैं, और जिनके पास मोटरसाइकिल होती हैं! हो सकता है कि यह सब पिछले कुछ दशकों के दौरान बदल गया हो सकता है, लेकिन मेरे इंजीनियरिंग कॉलेज के दिनों में ऐसा ही था। मुझे यह कहते हुए कोई शर्म नहीं आती कि मेरे पास न तो फालतू पैसे थे, और न ही मोटरसाइकिल! और तो और मेरे पास साइकिल भी नहीं थी। मुझे अपने माता-पिता से बहुत थोड़ा सा पॉकेट मनी मिलता था। यह हॉस्टल की कैंटीन में कभी-कभार परांठे और चाय के लिए पर्याप्त था, लेकिन किसी भी तरह के भोग विलास की अनुमति देने के लिए पर्याप्त नहीं था।

इसलिए, जब कॉलेज के समय के रोमांस के लिए मेरे पास कोई अवसर नहीं था। लोग, जिन्होंने इंजीनियरिंग कॉलेजों में भाग लिया है या भाग ले रहे हैं, इस तथ्य की पुष्टि करेंगे कि वास्तव में अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेजों में सुन्दर लड़कियाँ बिरले ही आ पाती हैं। ब्यूटी एंड ब्रेन एक मुश्किल कॉम्बिनेशन है। फेमिनिस्ट लोग - यह सब केवल मेरा सीमित अवलोकन हो सकता है ... यह मैं जो भी बता रहा हूँ वो मेरे कई दशकों पहले के, एक अच्छे इंजीनियरिंग कॉलेज में बिताए गए चार सालों के अवलोकन [कुल मिला कर सात (7) देखे गए बैच] पर आधारित है। मुझे स्त्रियों और लड़कियों के लिए बहुत आदर है - लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मैं अँधा हूँ।

ठीक है, इससे पहले कि मैं मूल विषय से बहुत अधिक दूर हट जाऊँ, मैं वापस कहानी पर आता हूँ।

एक और काम जो मैंने अपने कॉलेज के दिनों में ‘सही’ किया था, वह था अपनी शरीर निर्माण का कार्य। मैं अर्नोल्ड श्वार्ज़नेगर के व्यक्तित्व से बेहद प्रेरित था, उनकी कई फिल्में [खास तौर पर टर्मिनेटर, प्रिडेटर, टोटल रिकॉल] देख कर, और यह जानते हुए भी कि मैं उनके जैसा कभी नहीं बना सकता, मैं एक अच्छी गढ़न वाले, मजबूत शरीर बनाने के लिए प्रेरित था। मेरी शकल भी ठीक-ठाक ही थी। तो एक बढ़िया मस्कुलर शरीर के साथ मैं काफी प्रेसेंटेबल और हैंडसम दिखता था। उस समय बैगी और पैरेलल [सामानांतर] पैन्ट्स का फैशन चल रहा था। लेकिन वो कपड़े मुझे कभी पसंद नहीं आते थे। मैं हमेशा चुस्त पैन्ट्स सिलवाता था। वैसी ही चुस्त शर्ट्स भी। तो कपड़ों से सीने और बाहों की माँसपेशियों की बनावट दिखती थी। कपड़े सिलवाना सस्ता पड़ता था। जब तक मैंने अपनी पहली नौकरी शुरू नहीं की, तब तक मैंने अपनी पहली जोड़ी जींस नहीं खरीदी। लेकिन सस्ते कपड़ों में कमाल का गेटअप आपको नहीं मिल सकता। आज कल लोग कॉटन की शर्ट पहनना पसंद करते हैं, तब लोग ज्यादातर सिंथेटिक कपड़े पहनते थे। क्योंकि उसका ‘फॉल’ या ‘गेट अप’ अच्छा आता था। लेकिन मैंने पाया था कि अगर कॉटन के कपड़े ढीले वाले न सिलवाए जाएँ, तो उनका गेट अप भी अच्छा आता है।

वर्कआउट करने के अलावा, मैंने कॉलेज के दिनों में अपने सामाजिक कौशल पर भी ध्यान केंद्रित किया, जिससे मुझे एक बेहतर इंसान बनने में बहुत मदद मिली। मैंने अंग्रेजी में वाद-विवाद [डिबेट] प्रतियोगिताओं और सार्वजनिक भाषण [पब्लिक स्पीकिंग] में भाग लिया, और मैं दो साल तक छात्र प्रतिनिधि के रूप में काम करने के लिए चुनाव भी जीता। इन सभी चीजों ने मुझे एक परिपक्व व्यक्ति के रूप में विकसित किया।

मैं बहुत भाग्यशाली था कि मैं ऐसे इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ा, जो पहाड़ों के करीब स्थित था [कृपया मुझसे उस कॉलेज का नाम न पूछें - इस कहानी में पात्रों की गोपनीयता की रक्षा करना अनिवार्य है]! पहाड़ों की तलहटी में ऐसे कई रास्ते थे जिनसे आप पहाड़ो के ऊपर जा सकते थे और आसपास के क्षेत्र को ऊपर से देख सकते थे। कॉलेज में साहसिक खेलों [एडवेंचर स्पोर्ट्स], जैसे साइकिल चलाना, नौकायन, ट्रेकिंग इत्यादि की एक पुरानी संस्कृति थी। व्यायाम के एक अभिन्न अंग के रूप में, मैंने साइकिल बहुत चलाई [सहपाठियों से मांग मांग कर], खासकर पहाड़ी की तरफ! साइकिलिंग शरीर को शक्ति और सहनशक्ति दोनों देता है, और साथ-साथ में शरीर की चर्बी कम करने में मदद करता है।

मैं घर भी बहुत कम ही जाता था - कॉलेज में कुछ न कुछ करने को रहता ही था हमेशा। पहले दो साल एक एक महीने के लिए गर्मी की छुट्टियों में घर गया, उसके बाद नहीं। पूरे चार साल में, कुल मिला कर मैं बस तीन या साढ़े तीन महीने ही छुट्टियां बिताने घर गया। इंटर्नशिप, या किसी प्रोफेसर के साथ काम - या किसी और बहाने, मैं वहीं रहता था। यह सब करने के कुछ अतिरिक्त पैसे भी मिल जाते थे, और खर्चा भी कम होता था। और सच कहूँ, तो अब वापस कस्बे में जाने का मन नहीं होता था। यहाँ की दुनिया में बहुत कुछ सीखने को था, और मैं यह मौका दोनों हाथों से समेट लेना चाहता था।
 
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आत्मनिर्भर - नए अनुभव - Update 2


ऐसी ही एक सर्दी की सुबह मैंने देखा कि सुन्दर खुशनुमा मौसम है। उस दिन इतवार था, तो मैंने सोचा कि साइकिलिंग और ट्रैकिंग एक साथ करी जाए। इस काम के लिए पूरा दिन पड़ा था, क्योंकि मेरे पास उस दिन करने के लिए और कुछ नहीं था। इसलिए, मैं उस दिन को अन्य लड़कों की तरह सोने में बर्बाद होने के बजाय बस इस खुशनुमा ठंडे मौसम का आनंद लेना चाहता था। मैंने अपना नाश्ता बहुत जल्दी कर लिया; मेस से कुछ फल, सैंडविच, पानी उठाया और अपनी दूरबीन को अपने बैग में पैक कर के बाहर चला गया।

आज एक अच्छी हल्की सर्दी वाला दिन था, और मैंने साइकिल चलाने का भरपूर आनंद लिया। कोई दो घण्टा साइकिल चलाने के बाद मैं पहाड़ियों के एक सुनसान हिस्से पर ट्रैकिंग करते करते ऊपर तक चढ़ गया। वहाँ से मुझे नीचे शहर का शानदार दृश्य दिया। मैंने दृश्य देखने के लिए अपनी दूरबीन निकाली। सूर्य की सुनहरी धूप, हरियाली और धुंध, तीनों मिल कर एक अद्भुत दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। मैंने देखा कि जिस जगह मैं था, वहाँ पर मेरे अलावा कुछ और भी ट्रेकर्स थे, लेकिन वे किसी और तरफ जा रहे थे। मैं थोड़ा और आगे की तरफ़ चला, तो पंद्रह मिनट में ही एक सूनसान सा क्षेत्र आ गया। वहां मैंने दूरबीन इधर उधर घुमा कर देखा तो एक आश्चर्यजनक दृश्य दिखा। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं ऐसा कुछ देखूंगा!

मैंने अपनी दूरबीन से देखा कि एक घने पेड़ के नीचे, एक युवा माँ थी जो अपने बच्चे को सुखपूर्वक दूध पिला रही थी। जहां मैं खड़ा था, वो वहाँ से बहुत दूर नहीं थी, इसलिए, यहाँ से वो साफ़ साफ़ दिख रही थी। वह एक स्थानीय निवासी थी - मैंने अनुमान लगाया कि शायद वो ‘राजी’ या ऐसी ही किसी जनजाति की थी; वह संभवतः तेईस से पच्चीस साल की होगी। राजी लोगों को वनवासी के रूप में जाना जाता है और इसलिए यह समझना मुश्किल नहीं कि वो वहां क्यों और कैसे थी। लेकिन, ऐसे खुले में स्तनपान कराना एक अलग बात थी। उसने एक कुर्ता-नुमा चोली पहनी हुई थी, जिसके बटन पूरी तरह से खुले हुए थे। इस कारण उसके गोरे/सुनहरे रंग के स्तन पूरी तरह से उजागर हो गए थे। उसके स्तन बेहद खूबसूरत थे! न जाने किस प्रेरणावश मेरा मन हुआ कि उसको पास से देखा जाए। मैंने किसी तरह थोड़ी हिम्मत की और सोचा कि मैं ऐसे एक्टिंग करूंगा कि जैसे मैं पगडंडी पर ट्रैकिंग कर रहा हूँ, और फिर उसके करीब रुक कर उसके खूबसूरत स्तनों को देखने का आनंद उठाऊँगा। अगर वो औरत तब भी अपने बच्चे को स्तनपान कराना जारी रखती है, तो समझो किस्मत अच्छी! लेकिन अगर वो चली जाती है, तो कोई बात नहीं! इसी बहाने थोड़ी और ट्रैकिंग हो गई समझो! कुल मिलाकर मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं था और पाने के लिए सब कुछ था।

मैंने अपनी दूरबीन को वापस अपने बैग में रखा, और तेजी से उसकी ओर बढ़ा, ताकि देर न हो जाए। जैसे जैसे मैं उसके करीब आ रहा था, मैंने यह सुनिश्चित किया कि वो मुझे अपनी तरफ आते हुए सुन ले, ताकि चौंक न जाए। पहाड़ पर तेजी से चलते चलते साँस फूलने लगी। खैर, जब मैं उसके पास आ गया, तो मैंने एक गहरी सांस ली और मुस्कुराते हुए ‘नमस्ते’ कहा। मुझे लगा कि मुझे अपने इतना पास देख कर वो कम से कम अपने स्तन जल्दी से ढँक लेगी, या फिर अगर वो मेरी उपस्थिति से नाराज़ हुई तो दो चार गालियाँ भी दे देगी। लेकिन उसने ये दोनों ही काम नहीं किए और मेरी उम्मीद के विपरीत उसने बड़ी शालीनता से मेरे अभिवादन का उत्तर दिया। मुझे बड़ा ही सुखद आश्चर्य हुआ।

“मैं यहाँ बैठ जाऊँ? आपके साथ?”

“हाँ, बैठो।” उसने कहा।

मैंने साइकिल वहीँ लिटा दी, और अपना बैग उतार दिया, फिर उसके सामने बैठ गया। मैंने खाने के लिए एक सैंडविच निकाल दिया। इस बीच वो औरत न तो घबराई और न ही शरमाई, और उसने अपने खुले हुए स्तनों को ढँकने का भी कोई प्रयास किया। उसने बच्चे को पहले के ही जैसे स्तनपान कराना जारी रखा। जैसे कि मेरे रहने से उसको कोई फ़र्क़ ही न पड़ा हो। हम बीच बीच में बातें भी कर रहे थे, लेकिन मेरा ध्यान उसके स्तनों की तरफ था। उसके स्तन बहुत गोरे थे : उनमें नीली नीली नसों का जाल साफ़ दिख रहा था। उसके चूचकों का घेरा [अरीओला] उसके स्तनों के आकर के मुकाबले काफी बड़ा था - करीब ढाई इंच व्यास का; उसके बच्चे का मुँह उस घेरे को पूरी तरह से ढक नहीं सकता था। अरीओला का रंग नारंगी भूरे रंग का कोई शेड था। और उसी रंग के उसके चूचक थे। लेकिन पिए जाने के कारण उनका रंग थोड़ा लाल हो गया था। पिए जाने के कारण वो उसके स्तनों से करीब एक इंच बाहर निकले हुए थे। वह अपने बच्चे को ऐसे ही दूध पिलाती रही। तब तक मेरा सैंडविच खाना ख़तम हो गया। जब एक स्तन खाली हो गया, तो उसने बच्चे को दूसरा स्तन पीने के लिए दे दिया। अभी भी उसने अपने स्तनों को नहीं ढँका। इसने मुझे ब्लाउज से बाहर झांकते हुए स्तन बड़े सुन्दर लग रहे थे। उसके स्तन सख्त थे - ढीले ढाले नहीं। मैं जिस तरह से उसके स्तनों को काफी देर से घूर रहा था, उससे उसको समझ आ गया कि मैं उसके स्तनों को देख कर हतप्रभ हो गया था।

“तुम यहाँ अक्सर आते हो क्या?” उसने मुझसे पूछा।

“जी? अक्सर तो नहीं, लेकिन कभी कभी आता हूँ। इस तरफ पहली बार आया हूँ। साइकिल चला कर शहर तक तो आता रहता हूँ, लेकिन पहाड़ की चढ़ाई आज पहली बार की है!”

“हम्म्म! काफी मेहनत हो गई! मुझे यहाँ अच्छा लगता है। कोई शोर नहीं, कोई लोग नहीं। जब घर के काम ख़तम हो जाते हैं, तो मैं इधर आ जाती हूँ।”

“आपका बेटा है या बेटी?”

“बेटा!”

“कितना बड़ा है अभी?”

“एक साल का होने वाला है!”

“बढ़िया! जन्मदिन की बहुत बहुत बधाइयाँ बच्चे को! आप सैंडविच लेंगीं?”

“नहीं?”

“ओह! अच्छा, मेरे पास ये कुछ केले हैं?” मैंने बैग से निकाले।

वो मुस्कुराई और उसने केले स्वीकार कर लिए। मुझे लगता है कि ज़मीन से जुड़े लोग साफ़ सुथरा खाना ही पसंद करते हैं। जंक खाना नहीं। हमने कुछ देर खाया। फिर, अचानक ही उसने मुझसे पूछा,

“तुमको दूध पीते हुए बच्चे देखने पसंद हैं?”

मैं उस सवाल पर चौंक गया, लेकिन चूँकि झूठ बोलने वाली आदत नहीं थी, इसलिए मैंने ईमानदारी से जवाब दिया,

“जी... पसंद तो है। आपको दूर से दूध पिलाते हुए देखा, तो मन किया कि पास से देखूँ। इसलिए चला आया।”

“हा हा हा हा! मुझे लगा तुम इस बात से इंकार कर दोगे।”

“नहीं। मैं झूठ बहुत कम बोलता हूँ। लेकिन सच में आपके स्तन बहुत सुंदर हैं।”

वो सर हिलाते हुए मुस्कुराई, “क्या तुमने कभी माँ का दूध पिया है?”

उसके सवाल पर कई सारी पुरानी यादें दौड़ती हुई वापस आ गईं।

“सारे ही बच्चे माँ का दूध पीते हैं!” मैंने बोला।

“बचपन में नहीं, अभी?”

मैंने ‘न’ में सर हिलाया। मेरी उम्मीद से बेहतर जा रहा था यह तो!

वह मुस्कुराई, और अपने स्तन पर से ब्लाउज के फ्लैप को हटाते हुए बोली, “पियोगे?”

मैं अवाक रह गया। उसने अभी अभी जो कहा, मुझे उस बात पर विश्वास ही नहीं हो रहा था।

“आप सच में मुझे पिलाएँगीं?”

“हाँ! इसीलिए तो पूछा।” उसने सामान्य तरीके से कहा, “मुझे काफ़ी दूध आता है। इसलिए अभी भी बचा हुआ है ... तुम सभ्य लगे, इसलिए वह मुझको तुमसे डर नहीं लग रहा है।”

सच में, मुझे उस दिन लगा कि मैं धरती से सबसे भाग्यशाली लोगों में एक होऊँगा! जैसे-जैसे मैं उसकी तरफ सरक कर जा रहा था, वैसे वैसे मेरा दिल जोर से धड़क रहा था। उस महिला ने मुझे वो स्तन को लेने का इशारा किया, जिसमे अधिक दूध था। इतने सालों के बाद पुनः दूध भरे चूचक को मुँह में लेना एक स्वर्गीय एहसास था। मैंने स्तनपान शुरू किया और लगभग तुरंत ही ताज़ा, गर्म, और लगभग मीठा दूध मेरे पूरे मुँह में भर गया। मुझे दूध पिलाते हुए, उसने मेरे सर को प्यार से पकड़ लिया और धीरे से बोली,

“आराम से पियो! बहुत दूध है!”

दूध पीते हुए मैं एक अलग ही दुनिया में चला गया - माँ का दूध पिए कितने ही साल हो गए थे! जैसे जैसे दूध की धारा खुलकर मेरे मुँह में बहने लगी, वैसे वैसे मैं दीन दुनिया से बेखबर होता चला गया! मैंने करीब पाँच मिनट तक उस स्तन का दूध पिया होगा - लेकिन मुझे लगा जैसे मैंने पंद्रह मिनट तक पिया हो! जब वो स्तन खाली हो गया, तो मैंने उसकी ओर देखा। उसने मुझे दूसरा स्तन पीने को बोला, जो मैंने ख़ुशी ख़ुशी से पी लिया। सच में - स्तनपान करने से मैं कभी अघा नहीं सकता। लेकिन फिर कोई उधर आ न जाए, इस डर से मैंने अंत में उसका दूध पीना बंद कर दिया। वैसे भी उसके दोनों स्तन अब पूरी तरह से खाली हो गए थे। उसने मुझसे पूछा,

“पेट भर गया?”

“न तो पेट भरा, और न ही मन!”

“तो फिर पीते रहो।”

“नहीं नहीं! मैं आपको अधिक देर तक नहीं रोक सकता। लेकिन, सच में - आपको बहुत बहुत धन्यवाद! उम्मीद है, कि आपसे फिर कभी मुलाकात हो!”

वो मुस्कुराई और फिर उसने बड़ी कुशलता से अपनी चोली के बटन लगा दिए। मैंने उससे पूछा कि वह कहाँ रहती है लेकिन उसने मुझे बताने से इनकार कर दिया। उसने बच्चे को गोद में लिया और जंगल में कहाँ चली गई, समझ नहीं आया। मैंने एक बार उसका पीछा करने के बारे में सोचा, लेकिन सोचा कि ऐसा नहीं करना चाहिए।

तो वह था - इंजीनियरिंग कॉलेज से स्नातक होने से पहले मैं लगभग सबसे अच्छा, या कहिये कि एकलौता लगभग ‘यौन’ अनुभव था। लेकिन यह इतना कीमती अनुभव था कि मैं इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करके इसकी सुंदरता, इसकी ममता बर्बाद नहीं करना चाहता था। मैं उसके बाद भी कई बार पहाड़ की तरफ गया, लेकिन वह महिला नहीं मिली। मुझे कभी कभी तो लगता है कि वो कोई वनदेवी रही होगी!
 

sunoanuj

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Bahut hee badhiya update.. khani ko jabardast gati dene wala update laga umeed ab aisa hee ek jabardast bhola bhala next update jaldi aaye …
 
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Mink

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superb update har update ki tarah ye update bhi bahut hi khubsurat tarike se aapne paish kash kiya hai, samajik shreni yan ke chalte rachna ka dur ho jaana kast dayi thaa (fir se rachna ki lautne ka vada kiya hai lekhak ji aapne aur wapsi kaise rangat leke aayegi woh dekhna majedaar hoga)
 
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dumbledoreyy

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प्रिय avsji, आपकी लेखन शैली का हमेशा से चाहक रहा हूं। ये कहानी भी हर कहानी कि तरह अद्भुत और संवेदना सभर हैं।
 
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avsji

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Hun padh bhi rahe hain and like bhi kar rahe hain. Eagerly waiting for the next update.
धन्यवाद मित्र। अपडेट दिया है 😊
 

avsji

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Bahut hee badhiya update.. khani ko jabardast gati dene wala update laga umeed ab aisa hee ek jabardast bhola bhala next update jaldi aaye …
बहुत बहुत धन्यवाद 😊
 

avsji

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superb update har update ki tarah ye update bhi bahut hi khubsurat tarike se aapne paish kash kiya hai, samajik shreni yan ke chalte rachna ka dur ho jaana kast dayi thaa (fir se rachna ki lautne ka vada kiya hai lekhak ji aapne aur wapsi kaise rangat leke aayegi woh dekhna majedaar hoga)
बिल्कुल होने वाला है। फिलहाल तो अमर के जीवन की कहानी तो बस शुरू ही हो रही है।
 

avsji

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प्रिय avsji, आपकी लेखन शैली का हमेशा से चाहक रहा हूं। ये कहानी भी हर कहानी कि तरह अद्भुत और संवेदना सभर हैं।
बहुत बहुत धन्यवाद मित्र 😊
साथ बने रहें
 
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