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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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avsji

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नींव - पहली लड़की - Update 18


रचना का हमारे घर आना जाना बरकरार रहा। मैं उसके घर जाता, तो उसकी मम्मी ऐसा व्यवहार करतीं कि जैसे उनके घर में अगर मैं एक घंटे से अधिक बैठ जाऊँगा, तो जैसे किसी की मौत हो जाएगी। लेकिन, मुझे मजबूरन वहाँ जाना पड़ता - क्योंकि अगर मैं न जाता, तो उनको एक और बहाना मिल जाता रचना को रोकने का। रचना माँ से अक्सर यह शिकायत करती थी कि कैसे उसके माता-पिता, ख़ास तौर पर उसकी मम्मी उसको यहाँ आने से हतोत्साहित करती हैं। मैंने देखा कि रचना का स्कर्ट / ब्लाउज पहनना काफी कम हो गया था, और वो अब ज्यादातर शलवार-कुरता-दुपट्टा ही पहनती। उसकी माँ रोज़ उसको कहती कि अब वो ‘बड़ी’ हो गई है, इसलिए उसको ऐसे ही शालीन कपड़े पहनने चाहिए। मैं समझ नहीं पाया कि इसका क्या मतलब है, लेकिन माँ समझ गई। माँ ने एक नई तरक़ीब तैयार करी, जिससे रचना के माँ बाप को उसको हमारे घर आने पर ज्यादा आपत्ति न हो। माँ ने उसे कुछ खास व्यंजन पकाना सिखाना शुरू कर दिया। रचना ने यह सब सीखा, और अपने घर पर पका कर खिलाया। और तो और, वो घर के कामों में भी अपनी मम्मी की मदद करने लगी। यह सब होने से उसके मम्मी डैडी काफ़ी खुश हुए, और उनकी अनिच्छा काफ़ी दर्ज़े तक कम हो गई। उन्होंने सोचा कि क्योंकि मेरी माँ का उनकी बेटी पर सकारात्मक प्रभाव पड़ रहा था, इसलिए उसका हमारे घर आना जाना ठीक है!

मैंने कुछ बार देखा कि या तो उसकी मम्मी, या फिर उसके मम्मी डैडी दोनों ही, अचानक ही, जैसे इंस्पेक्शन करने, हमारे घर आ धमके थे। मुझे तो उसकी अम्मा बिलकुल भी ठीक नहीं लगती थीं। इसलिए मैं उनसे अपनी दूरी बना कर रखता था। ख़ैर, वो दोनों रचना को अपेक्षित ‘पारंपरिक’ और ‘संस्कारी’ तरीके से व्यवहार करते देखकर वे खुश थे। लेकिन उनको मालूम नहीं था कि जब वो दोनों अपनी बेटी पर विभिन्न प्रकार के प्रतिबंध लगा रहे थे, तो मेरी माँ उसको अपनी मर्ज़ी के अनुसार बड़ा होने में मदद करने की कोशिश कर रही थी। अपने खुद के घर पर रचना को शलवार कुर्ता के अलावा कुछ और पहनने की इजाजत नहीं थी। लेकिन मेरे घर में उसका जैसा मन था, वो वैसे रह सकती है। वो सब कुछ कर सकती थी जो उसे पसंद है। हमारे घर में मिलने वाली आज़ादी उसको बहुत पसंद थी। वो यहाँ डान्स कर सकती थी, हाफ पैंट पहन सकती थी, या फिर बिना कपड़ों के भी रह सकती थी। जब उसे पीरियड्स होते थे तो वह कपड़े पहनती थी, लेकिन कभी-कभी वह कम से कम या बिना कपड़े पहनती थी। डैड के सामने उसको थोड़ी सी झिझक महसूस होती थी, लेकिन उनका व्यवहार उस दिन जैसा ही रहा हमेशा। रचना भी उनको अब ‘डैड’ ही कह कर बुलाती थी। बस उसके अपने माँ बाप के सामने, मेरे माँ डैड अंकल जी, आंटी जी बन जाते।

**

एक दिन, हम तीनों बिस्तर पर आराम से लेटे हुए थे और बातें कर रही थे। ऐसे ही बातों ही बातों में रचना ने माँ की ब्लाउज के बटन खोलना शुरू कर दिया। माँ ने सोचा कि रचना यह सब संभवतः सामान्य स्तनपान की इच्छा के लिए कर रही है, लेकिन उसने ब्लाउज के बाद माँ की साड़ी को उतारना शुरू। यह कुछ अलग था।

“क्या बिटिया, अपनी माँ को नंगा कर देगी आज?”

रचना ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“हा हा हा!” माँ थोड़ा नर्वस हो कर हँसीं, “अरे मैं तेरे जैसी ही तो दिखती हूँ!”

माँ ने कहा लेकिन उन्होंने रचना को नहीं रोका। जल्द ही माँ पूरी तरह से नग्न हो गईं। आज माँ को पहली बार इस तरह नग्न देखकर रचना बहुत खुश थी। उसके मन में कुछ और ही बात थी, जो तब तक न मैं समझ पाया, और न ही माँ! लेकिन फिर आगे जो उसने किया, हमको सब बात समझ आ गई। वह घुटनों के बल माँ के सामने बैठ गई, और फिर हाथ जोड़कर उनको सम्मान से प्रणाम किया। उसको ऐसा करते देख कर माँ बहुत भावुक हो गईं, और उनकी आँखों में आँसू आ गए। रचना भी बहुत भावुक हो गई। मैं मूर्खों के समान बैठा हुआ सोच रहा था कि क्या करूँ! मैं सोच रहा था कि अगर रचना माँ के प्रति अपना आदर और प्रेम दिखा रही है, तो इसमें रोने वाली क्या बात है?

“माँ, मैं कितनी लकी होती अगर मैंने आप से जन्म लिया होता!” रचना ने भाव विभोर होते हुए कहा।

“ओह बेटा! मेरी बच्ची! यहाँ आओ बेटा, यहाँ आओ! मेरे पास!” माँ ने रोते हुए कहा, और रचना को इतने प्यार से गले लगा लिया कि शब्द उसका वर्णन नहीं कर सकते। मुझे अभी तक याद है कि उस दिन कैसे माँ ने खुद ही रचना के होठों में अपना चूचक दिया था जिससे वो अपनी माँ से स्तनपान कर सके। यह एक सम्मोहक दृश्य था। माँ और रचना को ऐसी ममत्व भरे संयोजन में देखना अद्भुत था। मैं उस दृश्य को बस देखता रह गया, और सराहता रह गया।

**

कुछ महीनों बाद, ऐसी ही एक और दोपहर में रचना मेरे लिंग के साथ खिलवाड़ कर रही थी। वो उसे अपनी उंगलियों से सहला रही थी, और धीरे-धीरे, हल्के हल्के से निचोड़ रही थी। यह इतना अलग अनुभव था कि मैं देखने लग गया कि वो क्या कर रही है! वो जो भी कुछ कर रही थी, मुझे उसमे बड़ा आनंद आ रहा था।

“अच्छा लग रहा है?” उसने मेरे चेहरे के आते जाते भावों को देख कर पूछा। उसकी आवाज़ में जिज्ञासा और प्रसन्नता वाले भाव सुनाई दे रहे थे।

“हाँ” मैं फुसफुसाते हुए हामी भरी।

रचना के इस इंटिमेट और सेक्सी स्पर्श ने मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया था। अब वो मेरे लिंग के सिरे को एक अलग तरीके से गुदगुदा रही थी।

“और ये?”

“बहुत अच्छा रचना!”

“और जब मैं इस तरह से दबाती हूँ, तब?”

“ऊहहह ... बहुत ... आह! ऐसे ही!”

रचना लगातार मेरी प्रतिक्रियाओं को देखते हुए, मुझे अपने हाथों से प्यार करती रही। वह बहुत चुपके चुपके मुझसे बात कर रही थी, जैसे कि कोई हमें सुन न ले। मैंने एक नई बात देखी - मेरे लिंग का आकार पहले से बड़ा हो गया था। हाँ, स्तम्भन में भी! यह मेरे लिए एक नई बात थी। मैं चाहता था कि हम अपने कमरे में जा कर करें। यह कुछ बहुत ही निजी सा लग रहा था। कहीं माँ ने हमें यह करते देख लिया, तो वो क्या सोचेंगी! मेरे लिंग का स्तम्भन आप पूर्ण हो चुका था। रचना का हाथ मेरे लिंग पर लिपटा हुआ था, और कम से कम एक इंच बाहर भी निकला हुआ था। कुछ महीने पहले जब वो ऐसे पकड़ती थी तो कुछ भी बाहर नहीं निकला होता था! अचानक ही रचना मेरे लिंग को कोमलता से पंप करने लगी।

उसके चेहरे को देख कर लग रहा था कि वो मेरे इरेक्शन के आकार से खुश थी! उसने एक दो बार प्रशंसात्मक टिप्पणियाँ भी करीं, जैसे कि मेरी छुन्नी अब वाकई लण्ड बन रही थी। उसने पंप करना जारी रखा और उसके कुछ मिनटों की पंपिंग के बाद, मैंने अपने पहले स्खलन का अनुभव किया! यह कोई जबरदस्त स्खलन नहीं था। इसमें मेरा वीर्य विस्फोट के जैसे नहीं निकला, बस बह गया। वीर्य की मात्रा भी कम ही थी। लेकिन मेरे गले से ऐसी ऐसी आवाज़ें निकलीं कि उसको बताना मुश्किल है! ज़िन्दगी का पहला स्खलन - वो भी मेरी सबसे अच्छी दोस्त के कारण! यह अनुभव जीवन पर्यन्त याद रहेगा मुझे! मेरे लिंग से निकल कर मेरा वीर्य उसके हाथ पर फ़ैल गया। उसने अपना हाथ देखा और मुस्कुराई,

“बन्दर कहीं के! अब तुमसे बच कर रहना पड़ेगा!”

“क्यों?”

“बुद्धूराम, अब तुम एक आदमी बन गए हो! तुमसे बच कर न रही तो तुम मुझ में एक बच्चा डाल दोगे!”

“ऐसा क्या?”

“हाँ। इसे देखो [उसने मुझे मेरा वीर्य दिखाया] - यह तुम्हारा बीज है। यह मुझे प्रेग्नेंट कर सकता है।”

“क्या सच में, रचना?” उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “तो फिर, तो फिर, तुम मुझे अपने चीरे में अपनी छुन्नी डालने दो न?”

“यही तो मैं तुमसे कह रही हूँ... अगर तुम अपनी छुन्नी मेरे अंदर डालोगे, तो चाहो न चाहो, तुम अपना बीज मेरे डाल दोगे। और फिर मैं प्रेग्नेंट जाऊँगी!”

“तो फिर हमको एक बच्चा होगा?”

“हाँ! समझे बुद्धू जी?”

“मैं समझ गया... लेकिन तुम क्या कभी मुझे यह करने दोगी?”

“अरे मेरा बन्दर! मेरे साथ ये सब छी छी काम करेगा? तुझसे बड़ी हूँ। दीदी हूँ तेरी!”

“दीदी नहीं, बीवी! माँ तुमको अपनी बहू मान कर प्यार करती हैं!” मैंने चिढ़ कर कहा। जवानी आ गई थी, लेकिन बचपना थोड़े ही गया!

“ओली ओली! ये लाल पुट्ठों वाला बन्दर, मुझसे शादी करेगा! हा हा हा हा!” मुझको चिढ़ता देख कर रचना मुझे और चिढ़ाने लगी।

मैं कुछ और प्रतिक्रिया देता, कि तभी मुझे माँ की बातें याद आ गईं। मैं थोड़ा सा रुका और फिर सोच कर इस बात की दिशा ही बदल दी।

“रचना, मैं तुमको खुश रखूँगा! बहुत खुश! इस घर में तुम बहुत खुश रहोगी। सब तुमको बहुत प्यार करेंगे - अभी भी करते हैं - लेकिन तब और भी ज़्यादा करेंगे!”

इस बदली हुई बात का रचना के पास कोई काट नहीं था। मैं उसकी कही हुई बात पर चिढ़ा नहीं, वो उसी से ही निःशस्त्र हो गई थी, लेकिन ये वाला तो एक ब्रम्हास्त्र था! वो चुप हो गई - वो मुस्कुरा रही थी, लेकिन उसकी चुप्पी एक गंभीर चुप्पी थी।

“अब बोलो! मैं क्या इतना ख़राब हूँ?”

उसने मुस्कुराते हुए ही ‘न’ में सर हिलाया।

“तो फिर?”

“हा हा! ठीक है बाबा! अगर तुम ऐसे ही अच्छे बच्चे के जैसे बिहैव करोगे, तो सोचूँगी... लेकिन यार यह सब खतरनाक हो सकता है! अगर मैं पकड़ी गई, तो बहुत बुरा होगा मेरे साथ!”

मैंने उससे और कुछ नहीं कहा, क्योंकि रचना ने आगे जो किया वह और भी आश्चर्यजनक था। उसने अपने हाथ पर लगा हुआ मेरा वीर्य थोड़ा सा चाट लिया। फिर मुझसे बोली,

“चखोगे?”

मैंने कोई हील हुज्जत नहीं दिखाई - अगर वो मेरा ही अंश चख सकती है, तो मैं खुद क्यों नहीं? मैंने भी थोड़ा सा चाट लिया।

“नॉट बैड, राइट?” उसने पूछा।

“हाँ। नॉट बैड!”

मैंने उसकी तरफ देखा - आज रचना बहुत खूबसूरत लग रही थी। उसने रोज़ के जैसे ही शलवार और कुर्ता पहन रखा था, लेकिन उसकी कशिश, उसकी सुंदरता आज बाकी दिनों से अलग लग रही थी। मुझे ऐसे देखते हुए देख कर वो शरमा गई और बोली,

“मैं हाथ धो कर आती हूँ!”

“मैं भी आता हूँ!”

हम दोनों ही बाथरूम गए, जहाँ रचना ने अपना हाथ धोया और मैंने अपना लिंग साफ किया। जब हम बाथरूम से बाहर निकल रहे थे तो माँ ने हमको देखा। लेकिन उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया - यह तो अक्सर ही होता था।

“बच्चों, कुछ चाहिए खाने को, या पीने को?” माँ ने पूछा।

“नहीं माँ!” हम दोनों ने एक साथ ही जवाब दिया।
 

avsji

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नींव - पहली लड़की - Update 19


हमको ऐसे बोलते देख कर माँ मुस्कुरा दीं, और अपने कमरे में चली गईं आराम करने। बाथरूम से हम सीधा मेरे कमरे में चले गए। जब हम अपने कमरे के अंदर गए, तो मैंने कमरे के किवाड़ लगा लिए। आज यह मैंने पहली बार किया था। न जाने क्यों मुझे ऐसा लग रहा था कि रचना और मुझे थोड़ी प्राइवेसी चाहिए। रचना ने भी यह नोटिस किया, लेकिन वो कुछ बोली नहीं। हम जब बिस्तर पर लेट गए, तब मैंने रचना से पूछा,

“रचना, तुमको कैसा लड़का चाहिए?”

“किसलिए?” वो जानती थी, लेकिन जान बूझ कर नादान बन रही थी।

“अरे शादी करने के लिए! कैसे लड़के की बीवी बनना चाहोगी?”

“तुम में क्या खराबी है?”

“मतलब मैं तुम्हारे लिए अच्छा हूँ?”

“हाँ! तुम अच्छे हो। हैंडसम दिखते हो। तुम्हारे माँ और डैड भी कूल हैं!” वो आगे कुछ कहना चाहती थी, लेकिन कहते कहते रुक गई।

मैंने कुछ पल इंतज़ार किया कि शायद वो और कुछ बोले, लेकिन जब उसने कुछ नहीं कहा, तो मैंने ही कहा,

“मैं तुमको प्यार कर लूँ?”

“मतलब?”

“मतलब, एस अ हस्बैंड?”

“अच्छा जी? मतलब आपका छुन्नू अभी अभी खड़ा होना शुरू हुआ है, और आपको अभी अभी मेरा हस्बैंड भी बनना है?”

“करने दो न?”

“हा हा हा! मैंने रोका ही कब है?”

रचना का यह कहना ही था कि मैंने लपक कर उसके कुर्ते का बटन खोलना शुरू कर दिया। मेरी अधीरता देख कर वो खिलखिला कर हँसने लगी। मैंने उसकी टी-शर्ट / ब्लाउज / शर्ट तो उतारी थी, लेकिन कुरता कभी नहीं। खैर, निर्वस्त्र करने की प्रक्रिया तो एक जैसी ही होती है। कुरता उतरा तो मैंने देखा कि उसने ब्रा पहनी हुई है।

“इसको क्यों पहना?” मुझे उत्सुकता हुई।

“बिना ब्रा पहने कैसे घर से बाहर निकलूँगी? मम्मी जान खा लेंगी!”

“वो क्यों?”

“अरे - इसको नहीं पहनती हूँ तो कपड़े के नीचे से मेरे निप्पल दिखने लगते हैं। और ब्रेस्ट्स को भी सपोर्ट मिलता है।”

“ओह तो इसलिए माँ भी बाहर जाते समय इनको पहनती हैं?”

“और क्या! नहीं तो आदमियों की आँखें खा लें हमको!”

मैंने उसके स्तनों की त्वचा को छुआ,

“कितने सॉफ्ट हैं तुम्हारे ब्रेस्ट्स!” फिर मैंने उनका आकार देखा, “थोड़े बड़े लग रहे हैं, पहले से!”

“हा हा! हाँ, माँ के हाथ का खाना मेरे शरीर को लग रहा है!”

“इतना कसा हुआ है! दर्द नहीं होता?”

“अरे बहुत दर्द होता है! मुझे इसे पहनने से नफरत है!”

कह कर वो मुड़ गई; उसकी पीठ मेरी तरफ हो गई। मेरी ट्यूबलाइट जलने में कुछ समय लगा, फिर समझा कि वो मुझे ब्रा हटाने या उतारने के लिए कह रही है। मैंने देखा कि पीठ पर ब्रा के पट्टे पर दो छोटे छोटे हुक लगे हुए थे। मैंने उनको खोला, और उसकी ब्रा उतार दी। उसके स्तनों और पीठ पर जहाँ जहाँ ब्रा का किनारा था, वहाँ वहाँ लाल निशान पड़ गए थे।

“अरे यार! इस पर कुछ लगा दूँ? कोई क्रीम?”

“ओह, ये? नहीं, अभी ठीक हो जायेगा।” लेकिन अपने लिए मेरी चिंता देख कर रचना प्रभावित ज़रूर हुई।

मैंने उन निशानों पर सहलाते हुए उंगली चलाई, तो रचना की आह निकल गई। जल्दी ही मैं उसके चूचकों को छूने लगा। मैंने एक स्तन को हाथ में पकड़ कर थोड़ा सा दबाया - फलस्वरूप उसका चूचक सामने की तरफ और उभर आया - मानों मुझे आमंत्रित कर रहा हो, या फिर मानों वो मेरे मुँह में आने को लालायित हो रहा हो। मैंने उस कोमल अंग को निराश नहीं होने दिया, और मुँह में भर कर उसको चूसने लगा। उसके कोमल चूचक की अनुभूति मेरे मुँह में हमेशा की ही तरह अद्भुत थी। रचना मीठे दर्द से कराह उठी, और मुस्कुरा दी। मैं उसकी सांसों को गहरी होते हुए सुन रहा था, जैसा कि उसके साथ हमेशा ही होता था। एक स्तन को पीते पीते ही मेरा लिंग पुनः स्तंभित हो गया। जब रचना ने यह देखा तो वो बहुत खुश हुई और हैरान भी!

“अरे वाह! तुम्हारे छुन्नू जी तो फिर से सल्यूट मारने लगे!”

मैं पीते पीते ही मुस्कुराया।

“डैडी का तो इतनी जल्दी कभी खड़ा नहीं होता!”

“आर यू इम्प्रेस्सड?” मैंने पूछ ही लिया।

उसने हाँ में सर हिलाया, “बहुत!”

“तो फिर ईनाम?”

“हा हा ... होने वाले पतिदेव जी, आपने अपना ईनाम अपने हाथ में पकड़ा हुआ है!” उसने मुझे प्रसन्नतापूर्वक याद दिलाया।

“बीवी जी, अपना दूध तो आप मुझे हमेशा ही पिलाती हैं। इस बार मुझे अपने अंदर जाने दीजिये न?”

रचना शरमा कर हँसी। वह समझ गई कि मैं क्या चाहता हूं। मुझे लगता है कि वो भी मन ही मन हमारे समागम की संभावना के बारे में सोच रही होगी। उसने संकोच नहीं किया। उसने अपनी शलवार का नाड़ा खोलना शुरू किया, और एक ही बार में उसने अपनी शलवार और चड्ढी दोनों ही नीचे की तरफ़ खिसका दिया। आज महीनों बाद वो इतने करीब वो बाद मेरे सामने नंगी बैठी हुई थी। वह बिस्तर पर लेट गई और मुझे ठीक से देखने के लिए उसने अपनी जाँघें फैला दी। साथ ही साथ उसने मेरे उत्तेजित लिंग पर अपना हाथ फेर दिया।

“तुम एक शरारती लड़के हो,” वह हंसी, “मैं तुमसे बड़ी हूँ, लेकिन मुझको नंगा करने में तुमको शर्म नहीं आती?”

मैं मुस्कराया, “तुम मेरी बीवी हो!”

उसने मेरा हाथ थाम लिया और मुझे अपनी ओर खींच लिया। जब मैं उसके ऊपर आ गया तो उसने मेरे माथे को चूमा और फुसफुसाते हुए कहा, “तुम एक बहुत हैंडसम और एक बहुत शरारती लड़के हो!”

मैं मुस्कुराया।

“लेकिन जब हमारी शादी होगी, तब मैं तुम्हारे पैर नहीं छूवूँगी! तुम मुझसे छोटे हो। तुम मेरे पैर छूना!”

मैं उठा, और उठ कर उसके पैरों की तरफ गया। मैंने बारी बारी से उसके दोनों पैरों की अपने सर से लगाया और चूमा। वो मेरी इस हरकत से दंग रह गई। मैंने अपने सामने नंगी लेटी रचना को प्यार से देखा। कितनी सुन्दर लड़की! माँ का सपना था कि वो हमारे घर में आए! शायद अब ये होने वाला था। मेरा लिंग रक्त प्रवाह के कारण झटके खा रहा था। रचना बहुत कमसिन, छरहरी, लेकिन मज़बूत लड़की थी! उसके पैर लंबे और कमर क्षीण लग रही थी; उसके नितम्ब गोल नहीं, बल्कि अंडाकार, और ठोस थे! उसकी योनि बाल वसीम के जैसे ही घुँघराले और थोड़े कड़े हो गए थे। योनि के दोनों होंठ अभी भी पतले ही थे; उनमें कोई परिवर्तन नहीं आया था।

“पसंद आई अपनी बीवी?” उसने बड़ी कोमलता, बड़े स्नेह से पूछा।

मैंने ‘हाँ’ सर हिलाया, और वो भी बड़े उत्साह से।

“और मैं?”

“तुम तो मुझे हमेशा से पसंद हो! मैं किसी बन्दर के पास थोड़े ही जाऊँगी हमेशा! आओ, अब अपना ईनाम ले लो। धीरे धीरे से अंदर आना! ठीक है?”

माँ और डैड ने सिखाया तो था, लेकिन न जाने क्यों मुझे लग रहा था कि कुछ कमी है मेरे ज्ञान में। ये वैसा ही है जैसे टीवी पर देख कर तैराकी सीखना! ख़ैर, मैंने अपने लिंग का सर उसकी योनि के द्वार पर टिका दिया।

“बहुत धीरे धीरे! ठीक है?” उसने मुझे फिर से चेताया।

“तुमने पहले कभी किया है यह?” मैंने पूछ लिया।

“तुम्हें क्या लगता है कि मैं क्या हूँ? वेश्या?” रचना का सारा ढंग एक झटके में बदल गया।

“आई ऍम सॉरी यार! मेरा मतलब उस तरह से नहीं था। मैं बस ये कहना चाहता हूँ मुझे नहीं पता कि कैसे करना है। यदि तुमको मालूम हो, तो तुम मुझे गाइड कर देना! प्लीज!”

मेरी बात का उस पर सही प्रभाव पड़ा। वो फिर से शांत हो गई,

“ओह। अच्छा! मुझे लगता है कि हम खुद ही जान जाएँगे कि कैसे करना है। बस इसे मेरे अंदर धीरे-धीरे स्लाइड करने की कोशिश करो। धीरे धीरे! मुझे अंदर कोई चोट नहीं चाहिए!”

मतलब मुझे डैड ने जो कुछ सिखाया था, उसी पर पूरा भरोसा करना था। अपने लिंग को पकड़कर, मैंने उसकी योनि की फाँकों के बीच फँसाया और धीरे से दबाव बनाया। रचना प्रतिक्रिया में अपनी योनि का मुँह बंद कर ले रही थी, लेकिन धीरे धीरे करने से लिंग का कुछ हिस्सा उसके अंदर चला गया। मुझे यह देखकर खुशी हुई। रचना सांस रोके अपने अंदर होने वाली इस घुसपैठ को महसूस कर रही थी। जब मैं रुका, तो उसने साँस वापस भरी। मैं उसी स्थिति में रुका रहा, और अनजाने में ही उसकी योनि को इस अपरिचित घुसपैठ के अनुकूल होने दिया।

“तुम ठीक हो?” मैं उसके माथे से बालों की लटें हटाते हुए पूछा।

उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“मैं तुम्हारे अंदर आ गया हूँ, देखो?”

रचना ने नीचे की ओर देखा, जहाँ हम जुड़े हुए थे,

“तुम थोड़ा और अंदर आ सकते हो!”

हम दोनों को ही नहीं पता था कि हमारे पहले समागम के दौरान हम किस तरह के अनुभव की उम्मीद करें! लेकिन जैसे जैसे मैं उसके अंदर घुसता गया, रचना के चेहरे पर आश्चर्य, प्रसन्नता, और दर्द का मिला जुला भाव दिखता गया। अंत में उसने आँखें खोल कर मुझे आश्चर्य भरी निगाहों से देखा,

“हे भगवान! अमर... यह बहुत बड़ा है!”

“क्या? मेरा छुन्नू?”

“हाँ!”

“छुन्नू तो उतना बड़ा नहीं है अभी! लेकिन तुम्हारी चूत छोटी सी ज़रूर है।”

रचना ने उत्तर में मेरे गाल पर प्यार भरी चपत लगाईं, “बदमाश लड़का!”

उसकी बातों से मुझे लगा कि जैसे मेरा लिंग उसके अंदर जा कर थोड़ा मोटा हो गया है। मैं उस समय बिलकुल भी हिल-डुल नहीं रहा था, और रचना के अंदर उसी स्थिति में था। योनि के भीतर रहने वाली भावना का वर्णन कैसे किया जाए? यह वैसा सुखद एहसास नहीं था, जैसा कि मेरे माँ और डैड दावा कर रहे थे। लेकिन उसके अंदर जा कर अच्छा लग रहा था - उसकी योनि की माँस-पेशियाँ मेरे लिंग की लंबाई को पकड़े हुए थीं। अंदर गर्मी भी थी, और चिकनाई भी।

“रुके क्यों हो? करो न?”

“क्या?”

“मुझसे प्यार!”

मुझे लगता है कि आप अधिक समय तक प्राकृतिक, सहज-ज्ञान को रोक कर नहीं रख सकते हैं। मैंने लिंग को थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर वापस अंदर डाल दिया। धीरे से।

“फिर से करो?” उसने कहा।

मैंने फिर से किया। उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया। हमारी सहज-वृत्ति हमारे मैथुन को दिशा दे रही थी। चार पांच बार धीरे धीरे करने के बाद मैंने इस बार थोड़ा तेज़ से धक्का लगाया। रचना ने एक दम घुटने वाली आह निकाली। मैंने न जाने क्यों, उसकी आह की परवाह नहीं की, और फिर से उसी गति में धक्का लगाया। रचना भी समझ गई होगी कि जिस पोजीशन में वो थी, उसमे रह कर मुझ पर नियंत्रण कर पाना मुश्किल था। उसने खुद को मेरे रहमोकरम पर छोड़ दिया, और मैंने उसके साथ धीमे और स्थिर लय में सम्भोग करना शुरू कर दिया। शायद उत्तेजना के कारण रचना का मुँह खुल गया। उसकी योनि की आंतरिक माँस-पेशियां मुझे सिकुड़ती हुई महसूस हुईं।

“ओह अमर। आखिरकार तुमने मुझे अपनी बीवी बना ही लिया! ओह्ह्ह! बहुत अच्छा लग रहा है।” रचना बुदबुदाई, “जो तुम कर रहे हो वही करते रहो।”

तो मैंने वही करना जारी रखा। लगभग दो मिनट बाद मैंने महसूस किया कि रचना का शरीर अकड़ने लगा; उसकी आँखें संकुचित हो गई थी, और उसकी उँगलियाँ मेरी बाँहों में जैसे घुसने को बेताब हो रही थी। और मुझे यह भी लगा कि वो धीरे धीरे रो भी रही है। मुझे नहीं मालूम था, लेकिन रचना का सारा शरीर सुख-सागर में गोते लगा रहा था। चूँकि यह मेरा भी पहला अनुभव था, इसलिए मुझे नहीं पता था कि हमारे मैथुन से क्या उम्मीद की जाए! लगभग उसी समय, मेरे लिंग से भी वीर्य की बूँदें छूटीं! एक बार, दूसरी बार, और फिर तीसरी बार! मेरा शरीर भी थरथरा रहा था। रचना ने मेरे शरीर में यह परिवर्तन महसूस किया, तो उसकी आँखें खुशी से चमक उठीं। एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया में, मैंने इस आनंद को थोड़ा और बढ़ाने की उम्मीद में, धक्के लगाने की गति धीमी कर दी। फिर मैंने चौथी बार भी वही आनंद महसूस किया, जो अभी तीन बार किया था। इस बार मैं आनंद से कराह उठा।

जैसे ही मेरा स्खलन समाप्त हुआ, रचना भी अपने चरमोत्कर्ष से बाहर आ गई, लेकिन थकावट के कारण लेटी रही। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं, मुझे अपनी ओर खींच लिया और फिर से सामान्य रूप से साँस लेने लगी। न जाने क्यों उसको चूमने का मन हुआ। मैंने उसके कान को चूमा, फिर गले को, और फिर उसके स्तनों के बीच में अपना चेहरा छुपा दिया। रचना मुझे अपने सीने में भींचे लेटी रही।

वो कोमलता से बोली, “क्या तुमको अपना ईनाम पसंद आया?”

“हाँ। बहुत!”

मेरी बात पर हम दोनों ही मुस्कुराने लगे।

“तुझे तो आया मज़ा.... तुझे तो सूझी हँसी.... मेरी तो जान फँसी रे....” उसने एक बहुत ही प्रसिद्द गाने की पंक्तियाँ गुनगुनाई।

“अरे! तुम्हारी जान कैसे फंसी?”

“वाह जी! पहले तो मार मार के मेरी छोटी सी चूत का भरता बना दिया, और अब पूछते हैं कि मेरी जान कैसे फंसी! अगर मुझे बच्चा ठहर गया, तो मेरे साथ साथ तेरी जान भी फंस जाएगी!”

“सच में ऐसा हो सकता है क्या?”

“उम्म्म नहीं.... शायद। चांस तो कम है। लेकिन हमको सावधान रहना चाहिए।”

रचना ने कहा और बिस्तर से उठ बैठी। इसके तुरंत बाद हमने कपड़े पहने। मै बिस्तर पर बैठा उसको अपने बाल सँवारते हुए देख रहा था। उसने मुझे आईने में मेरे प्रतिबिंब को देखा,

“क्या?” वह मुस्कुराई और धीरे से पूछा।

“रचना?”

“हाँ?”

“क्या हम इसे फिर से करेंगे कभी?”

उसका बाल सँवारना रुक गया, “ओह, अमर।”

“अरे! मैं तो बस पूछ रहा था।” मैंने कहा।

“हा हा! करेंगे! करेंगे!” उसने कहा, “लेकिन किसी को बताना मत!” फिर थोड़ा सोच कर, “उम्म्म माँ और डैड के अलावा किसी और को नहीं! ठीक है? क्योंकि... क्योंकि…” वो बोलते बोलते रुक गई, जैसे उपयुक्त शब्दों की तलाश कर रही हो, “क्योंकि... बाकी लोग कहेंगे कि यह सब नहीं करना चाहिए। या यह कि प्यार करना गन्दा काम है। और फिर हम दोनों मुश्किल में पड़ जाएंगे। हमारे साथ साथ शायद हमारे पेरेंट्स भी।”

मैंने पूछा, “लेकिन किसी और को हम क्या करते हैं वो देख कर बुरा क्यों लगना चाहिए?”

“लोग ऐसे ही होते हैं अमर,” रचना बड़े सयानेपन से बोली, “दूसरों के काम में टाँग लगाने वाले!”

“हम्म्म!” मैंने कुछ देर सोचा और कहा, “रचना, हम ये दोबारा करें या नहीं, लेकिन तुम हमेशा मेरी दोस्त रहना। मेरी बेस्ट फ्रेंड! तुम मुझे सबसे अच्छी लगती हो!”

“वाक़ई?” उसकी आँखों में एक चमक सी उठी।

“हाँ। मुझे तुम्हारा साथ बहुत अच्छा लगता है!”

वह मुस्कुराई, “जानकर खुशी हुई।”

**

जीवन का पहला सेक्स अनुभव हमेशा याद रहता है। कोई तीस बत्तीस साल पहले हुई यह घटना मुझे आज भी याद है। सब कुछ मेरे ज़ेहन में ताज़ा तरीन है!

इस प्रकार के अनोखे अनुभव और लोगों से शेयर करने का मन तो होता है, लेकिन मैंने किसी को नहीं बताया - न तो माँ को और न ही डैड को। लेकिन रचना से रहा नहीं गया। उसने माँ से सारी बातें कह दीं। उसी दिन। कमरे से निकल कर जब मैं कोई और काम कर रहा था तब रचना ने हमारे यौन सम्बन्ध का पूरा ब्यौरा माँ को दे दिया। माँ ने उसकी बात को पूरे ध्यान से सुना और उसके बाद उन्होंने जो किया वह अद्भुत था। माँ ने रचना को गले से लगाया और उसको चूम लिया।

“मेरी बिटिया!” माँ ने स्नेह से कहा, “तुम जुग जुग जियो! अगर तू आगे चल कर मेरे अमर को अपनाना चाहेगी, तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।”

“हा हा हा! माँ, मैं तो बस आपके लिए ही इस बन्दर से शादी करूँगी।” रचना के कहने के अंदाज़ पर माँ खिलखिला कर हँसने लगीं, “मुझे तो आप माँ के रूप में मिल जाएँ तो आनंद आ जाए! मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ, आपको अपनी माँ मानती हूँ, और मुझे मालूम है कि आपके साथ मैं बहुत खुश रहूंगी!” उसने कहा।

**


कहानी जारी रहेगी
 
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sunoanuj

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Bahut he behatarin kahani… gramin parivesh or romance bhole bhale romance ka varnan karna itna aasan nahin hota lekin aap is me khare utare… bahut he umda …
 
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Bahut he behatarin kahani… gramin parivesh or romance bhole bhale romance ka varnan karna itna aasan nahin hota lekin aap is me khare utare… bahut he umda …

रोमांस में भोलापन तो चाहिए ही! :)
ख़ास तौर पर तब जब जवानी पूरी तरह से न चढ़ी हो!

ग्रामीण परिवेश के description को पसंद करने के लिए धन्यवाद! :)
 

Mink

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Bahut hi khubsurat update the updates ko lekar jitni bhi compliment di jay utni kam hai aur is baar ke updates erotica ko yatharth darsate hein jyada khullepan nahi dikhate huye bhi uttezak drishya ko sathik aur bakhubi darshaya gaya hai
 
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बहुत बहुत धन्यवाद! :)
साथ में बने रहिए! कहानी अभी ठीक से शुरू भी नहीं हुई है! :)
 

avsji

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कोई पढ़ भी रहा है?
 

rajeev13

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बहुत अद्भुत और उत्तेजक कहानी है, वैसे मैंने अंग्रेजी में पढ़ी थी मगर हिंदी में पढ़ने का अनुभव ही कुछ और है।
पुनः आपको देखकर प्रसन्नता हुई।
 
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बहुत अद्भुत और उत्तेजक कहानी है, वैसे मैंने अंग्रेजी में पढ़ी थी मगर हिंदी में पढ़ने का अनुभव ही कुछ और है।
पुनः आपको देखकर प्रसन्नता हुई।

बहुत बहुत धन्यवाद! ये कहानी हिंदी में थोड़ी अलग रहेगी (आप अभी से divergence देख सकते हैं).
साथ बने रहें! कुछ न कुछ कमेंट करते रहें। मन लगा रहता है, लिखने का उत्साह बना रहता है!
 

rajeev13

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बहुत बहुत धन्यवाद! ये कहानी हिंदी में थोड़ी अलग रहेगी (आप अभी से divergence देख सकते हैं).
साथ बने रहें! कुछ न कुछ कमेंट करते रहें। मन लगा रहता है, लिखने का उत्साह बना रहता है!
आज बहुत दिनों बाद मंच पर आया हूँ, कार्य के कारण प्रतिदिन आना संभव न हो फिर भी प्रयास करूँगा।
 
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