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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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avsji

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शायद ये ही जीवन की खासियत है कि देर सबेर वो पुनः अपनी गति और रास्ता प्राप्त कर ही लेता है भले ही कितने तूफान बवंडर आ जाए। मगर इस सबके लिए जरूरत होती है कुछ निस्वार्थ रिश्तों की जो मुश्किल समय में आपका साथ और मार्गदर्शन दोनो भूमिकाएं निभाएं। काजल ने उसी साथी, मार्गदर्शक की भूमिका निभाई अमर के जीवन में। मगर एक जीवन साथी की जरूरत तो सभी को पड़ती है और यहां ऐसे तीन लोग है परिवार में, मां काजल और अमर। क्या तीनों अपने लिए अलग जीवन साथी चुनेंगे या अमर और काजल फिर से एक दूसरे के जीवन का सहारा बनेंगे। बहुत ही सुंदर अपडेट

जी भाई। 😍
जीवन तो निरंतर चलने का ही दूसरा नाम है। यह किसी के लिए भी ठहरता नहीं। जाने वालों का दुःख तो, खैर, जो रह गए, उनके जीवन पर्यन्त बना ही रहेगा।
लेकिन इसकी गति हमेशा बनी रहेगी। हाँ - जीवन की दिशा अवश्य बदल जाएगी। अब देखिए न - लतिका की पढ़ाई लिखाई गाँव में चौपट होने लग गई थी। लिहाज़ा वो वापस पटरी पर आ सकती है। अमर का पूरा ध्यान अब अपने बिज़नेस को जमाने पर है - इससे कितने ही लोगों को नौकरियाँ मिलेंगी; कितनों के ही घर चलेंगे!
यह चक्र तो चलता ही रहता है - सुख - दुःख - सुख!
जहाँ तक प्रेम और शादी-ब्याह का प्रश्न है, वो तो आगे ही मालूम पड़ेगा। फिलहाल तो काजल और अमर - दोनों के ही हाथ भरे हुए हैं काम से।
साथ में बने रहें! 🙏
 

Kala Nag

Mr. X
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जी भाई। 😍
जीवन तो निरंतर चलने का ही दूसरा नाम है। यह किसी के लिए भी ठहरता नहीं। जाने वालों का दुःख तो, खैर, जो रह गए, उनके जीवन पर्यन्त बना ही रहेगा।
लेकिन इसकी गति हमेशा बनी रहेगी। हाँ - जीवन की दिशा अवश्य बदल जाएगी। अब देखिए न - लतिका की पढ़ाई लिखाई गाँव में चौपट होने लग गई थी। लिहाज़ा वो वापस पटरी पर आ सकती है। अमर का पूरा ध्यान अब अपने बिज़नेस को जमाने पर है - इससे कितने ही लोगों को नौकरियाँ मिलेंगी; कितनों के ही घर चलेंगे!
यह चक्र तो चलता ही रहता है - सुख - दुःख - सुख!
जहाँ तक प्रेम और शादी-ब्याह का प्रश्न है, वो तो आगे ही मालूम पड़ेगा। फिलहाल तो काजल और अमर - दोनों के ही हाथ भरे हुए हैं काम से।
साथ में बने रहें! 🙏
बिल्कुल जिंदगी रुकने का नाम नहीं है
काला पत्थर फिल्म का गाना है
इक रास्ता है ज़िन्दगी जो
थम गए तोह कुछ नहीं
इक रास्ता है जिंदगी जो थम
गए तोह कुछ नहीं
यह कदम किसी मुकाम पे
जो जम गए तोह कुछ नहीं
इक रास्ता है जिंदगी जो थम
गए तोह कुछ नहीं
 

avsji

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बिल्कुल जिंदगी रुकने का नाम नहीं है
काला पत्थर फिल्म का गाना है
इक रास्ता है ज़िन्दगी जो
थम गए तोह कुछ नहीं
इक रास्ता है जिंदगी जो थम
गए तोह कुछ नहीं
यह कदम किसी मुकाम पे
जो जम गए तोह कुछ नहीं
इक रास्ता है जिंदगी जो थम
गए तोह कुछ नहीं

दो नए नए अपडेट लिखे हैं ऊपर **स्नेहलेप**
उन पर Lib am भाई की टिप्पणी थी, तो उसके उत्तर में मैंने यह लिखा था।
अपडेट पढ़ कर बताईए :)
 

Kala Nag

Mr. X
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अंतराल - स्नेहलेप - Update #1


कोई डेढ़ साल पहले, अपनी अकेली पड़ी अम्मा की सेवा करने हेतु काजल अपने गाँव चली गई थी। और फिर उसके बाद मेरे जीवन में ऐसी अप्रत्याशित उथल पुथल मची कि मेरी तरफ से उससे संपर्क ही नहीं हो पाया। हालाँकि उसके अपने गाँव जाने के आरंभिक दिनों में हम एक-दूसरे से चिट्ठी और फोन से संपर्क में बने रहे थे, लेकिन पिछले कुछ महीनों में वो भी नहीं हुआ था। उसकी आखिरी खबर मुझे यह मालूम हुई थी कि उसकी अम्मा नहीं रही थीं। उसके अपने गाँव जाने के कोई दस महीने बाद ही उनका देहांत हो गया। लगभग उसी समय देवयानी को कैंसर डिटेक्ट हुआ था। उसकी अम्मा की मृत्यु के उपरान्त उनकी जो थोड़ी बहुत संपत्ति थी, उसको ले कर उसका उसका उसके भाइयों के साथ झगड़ा चल रहा था। काजल अपने माँ बाप का घर बिकने नहीं देना चाहती थी, इसलिए उसने वहीं पर अपना डेरा डाल लिया था। इसी कारणवश, वो माँ और डैड के पास वापस नहीं जा पा रही थी। फिर अचानक ही हमारा सब कुछ बदल गया। खैर...

इस समय सुनील इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था, और अभी अभी अपने फाइनल ईयर में गया था। सुनील ने मेहनत करनी बंद नहीं की थी - वो एक बुद्धिमान स्टूडेंट था, और हर सेमेस्टर अपनी क्लास के टॉपरों में से रहता था। तो मतलब, हमारी मेहनत रंग लाई। वो हमेशा से ही एक होशियार और ज़िम्मेदार लड़का रहा है; इसलिए, मुझे उसकी उपलब्धियों पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ। उससे मुझे यही उम्मीदें थीं! मैं उसकी उपलब्धियों से बहुत खुश था, और बहुत गौरान्वित भी! सुनील मेरे लिए एक बेटे की तरह था, और उसने भी मुझे अगर अपना पिता नहीं, तो अपने पिता से कम भी नहीं माना। मुझे उम्मीद थी कि भविष्य में हम दोनों के बीच संबंध और भी घनिष्ठ और सौहार्दपूर्ण हो सकते हैं।

दूसरी ओर, काजल की बेटी लतिका, एक सुन्दर सी, प्यारी सी, गुणी लड़की के रूप में उभर रही थी। बुद्धिमान होने के बावजूद पढ़ाई लिखाई में वो बहुत तेज़ नहीं लग रही थी - संभव है कि गाँव में ट्रांसफर होने के कारण उसकी पढ़ाई लिखाई में व्यवधान आ गए हों! ऐसे में मन उचटना बहुत आसान होता है। लेकिन उसने फिजिकल एजुकेशन में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था। स्कूली स्तर पर होने वाले खेलों में - ख़ासतौर पर दौड़ में - वो हमेशा अव्वल नंबर आती थी - न जाने कितने मैडल, ट्रॉफियां और शील्ड्स उसने जीते थे - और वो भी इतनी कम उम्र में। वैसे भी, उसके व्यक्तित्व को विकसित होने, और निखरने में वैसे भी अभी बहुत समय था, क्योंकि वो अभी भी बहुत छोटी थी।

मैंने बहुत हिचकते हुए काजल को फोन किया। हिचक इस बात की थी कि जब मुझे अपनी ज़रुरत पड़ी, तब ही उसकी याद आई। काजल ने कभी भी अपने स्वार्थ के लिए मुझसे संपर्क नहीं किया। हमेशा मेरा भला चाहने देखने की आस में ही वो मुझसे बातें करती। लेकिन मैं... कैसा हो गया था मैं?

इतने दिनों के बाद बातचीत करते हुए हम दोनों ही बहुत भावुक हो गए। बिना कोई जलेबी बनाए मैंने उसको अपनी दयनीय स्थिति के बारे में बताया। काजल और देवयानी पिछले कोई डेढ़ सालों में नहीं मिले थे। लेकिन इस तरह की दूरियों से मन नहीं बँटता - प्रेम के सम्बन्ध नहीं बँटते। उसकी मौत की खबर ने काजल को भी तोड़ दिया। उसके जेहन में सबसे पहला ख़याल आभा का ही आया। ‘बिना माँ की बच्ची’ - यह सोच कर ही उसका दिल टूट गया। लेकिन उसको और भी गहरा भावनात्मक आघात तब लगा जब मैंने उसको डैड की मौत के बारे में बताया। वो खबर सुन कर वो पूरी तरह से टूट गई। कितनी देर तक वो रोई, मैं कह नहीं सकता। डैड ने काजल को इतना प्यार और इतना सम्मान दिया था, और उसको अपनी बेटी की तरह माना था। इसलिए उनका जाना, काजल के लिए भी बहुत बड़ा और व्यक्तिगत नुकसान था।

उसने बड़ी शिकायतें करीं, बहुत नाराज़गी दिखाई। मैंने भी अपराधी बने अपने ऊपर लगे हर आरोप को स्वीकार किया - हाँ अपराध तो किया था। काजल को इन सब के बारे में न बता कर मैंने उसको अपने से पराया कर ही दिया था। लेकिन जो दंड मुझे मिल गया था, और जो मिल रहा था, वो भी कोई कम नहीं था। उधर, काजल ऐसी स्त्री नहीं थी जो अपने मन में किसी के लिए द्वेष पाले। उसके विचार तुरंत ही माँ पर केंद्रित हो गए, और वो उनके बारे में पूछने लगी।

मैंने धैर्यपूर्वक उसे सब कुछ बताया। माँ के डिप्रेशन के बारे में, और अपने दैनिक संघर्षों के बारे में समझाया। अचानक ही उसको अपना पैतृक घर और संपत्ति बचाने या सम्हालने का ख्याल बचकाना और छोटा लगने लगा। उसकी ज़रुरत हमको थी। उसको भी यह बात समझ में आ रही थी। और यह कहने की कोई आवश्यकता नहीं, कि उसके अंदर हमारी देखभाल करने की इच्छा बलवती होने लगी।

बड़ा सम्बल मिला। भगवान् मुझसे ले रहे थे, लेकिन मेरे पास उन्होंने एक अचूक औषधि - मेरी संजीवनी - छोड़ रखी थी। मुझे हमेशा ही न जाने क्यों लगता कि अगर काजल है, तो सब साध्य है। वो सम्हाल लेगी मुझे। ऐसा यकीन आता। सात साल से अधिक के साथ ने यह विश्वास मेरे हृदय में पुख़्ता कर दिया था।

लेकिन उसके भी अपने खुद के कई काम तो थे ही। उनकी महत्ता मेरी समस्याओं के सामने कम तो नहीं थी।

“काजल, ऐसी कोई जल्दी नहीं है... अगर तुम जल्दी नहीं आ सकती, तो हम समझते हैं!”

“कैसी बकवास बात कर रहे हो तुम, अमर! तुम ये सब कह भी कैसे सकते हो? क्या तुम सभी मेरा परिवार नहीं? तुमको मेरी ज़रुरत है! उस नन्ही सी जान को मेरी ज़रुरत है! दीदी को मेरी ज़रुरत है! और ऐसे में मैं न आऊँ, तो लानत है मुझ पर!” काजल ने बड़े भावनात्मक जोश, और थोड़ा नाराज़गी से कहा!

“दीदी डिप्रेशन में हैं, और उस नन्ही सी, बिन माँ की बच्ची को देखभाल की ज़रूरत है! और तुम इन सब मुसीबतों के साथ बिलकुल अकेले हो! मैं कैसे देर कर सकती हूँ? पुचुकी की चिंता न करो। बस अभी अभी वो अगली क्लास में दाखिल हुई है। उसका नाम तो वहाँ, दिल्ली में भी लिख जाएगा। इसलिए मैं जैसे भी, जितनी जल्दी हो सकता है, वहाँ आ रही हूँ!”

हाँ, लतिका के लिए स्कूल देखना है। वो कोई समस्या नहीं थी। मेरा खुद का नेटवर्क इतना बड़ा हो गया था कि उस छोटी सी बच्ची के एक बढ़िया से स्कूल में दाखिले में कोई प्रॉब्लम न आती।

तो, यह तय रहा! मैंने कलकत्ता की फ्लाइट ली, और वहाँ से एक गाड़ी बुक कर के सीधे उसके गाँव पहुँच गया। हम आज कोई डेढ़ साल बाद मिले थे। मैं भावनाओं से ओतप्रोत था और काजल भी। कितनी ही सारी पुरानी यादें दौड़ कर चली आईं। मैं उसके गले मिल कर कितनी देर रोया! शायद उसने अपने मन में सैकड़ों शिकायतें भरी हुई हों - लेकिन मेरी हालत देख कर उसने कुछ कहा नहीं। कह नहीं सकता कि उसने मुझे माफ़ किया था या नहीं, लेकिन जब मेरे पैरों ने जवाब दे दिया, और जब मैं उसके पैरों में गिर पड़ा, तब उसकी आँखों से भी अनवरत आँसू फूट पड़े। उसके गिले शिकवे दूर हो गए।

लतिका अब नौ साल की हो गई थी, और बहुत प्यारी सी बच्ची लगती थी। अपनी माँ से भी प्यारी! बहुत सुखद आश्चर्य हुआ जब वो मुझे पहचान गई, और भाग कर मेरी गोदी में चढ़ गई। उसको देख कर मुझे आभा की याद हो आई। छोटे छोटे बच्चे! बिना पूरे परिवार के सुख के कैसे बड़े होंगे? अब बहुत हो गया - काजल को साथ में आना ही पड़ेगा। सच में, मैंने अपने परिवार को ही अपने से दूर हो जाने दिया था, और इस बात का ग़म मुझे हमेशा रहेगा। लेकिन अब और नहीं - मेरा जो भी परिवार बचा हुआ था, उसको मैं सहेज कर रखूँगा। मैंने उस समय यही प्रण लिया।

खैर, हमने जो कुछ भी बातचीत की, वो सब कुछ यहाँ लिखने की आवश्यकता नहीं है। बस यह बता देना पर्याप्त है कि काजल वापस मेरे - या यूँ कह लीजिए कि अपने - घर आने के लिए तैयार हो गई। वो जानती थी कि वो खुद भी इसी परिवार का हिस्सा है, इसलिए उसके लिए हमारे साथ फिर से जुड़ना मुश्किल नहीं होगा।


**


जब इतने लम्बे अर्से के बाद जब माँ ने काजल और लतिका को देखा तो वह बेहद भावुक हो गईं।

कोई छः साल पहले काजल उनके पास रहने को आई थी। और साथ रहते रहते उन दोनों में स्नेह और निकटता बहुत अधिक बढ़ गई थी। माँ ने काजल को हमेशा अपनी बहन और बेटी समान ही माना, और काजल ने माँ को! दोनों का पारस्परिक प्रेम रक्त के रंग से भी गाढ़ा था। दोनों का सम्बन्ध प्रेम, विश्वास, और आदर सम्मान पर आधारित था। एक समय था जब माँ इस उम्मीद में थीं कि शायद काजल और मैं शादी कर लेंगे - इस तरह से काजल में वो अपनी होने वाली बहू की छवि भी देखती थीं!

दोनों ने एक दूसरे को गले लगाया और बहुत देर तक रोती रहीं! वैसे मैं माँ को रोता देख कर उनको चुप कराने लगता था, लेकिन आज नहीं। अपनी सखी-सहेली की संगत में उनका रोना अच्छी बात थी। क्योंकि हो सकता है कि माँ खुद को अपने डिप्रेशन से कुछ हद तक उबार सकती हैं! काजल हमारा परिवार थी, इसलिए उसका सहारा हमारे लिए बहुत बड़ी बात थी।

काजल की उपस्थिति से मुझे कुछ तसल्ली हुई! माँ को, मुझे, और आभा को अंततः सहारा मिल गया। माँ को इतनी तेजी से घुलता ढलता देखना हृदय-विदारक था। विधवा होने की ये भी कोई उम्र है? उन्होंने अभी अपने जीवन में देखा भी क्या ही था? पूरी उम्र उन्होंने केवल त्याग ही किया था! क्या ही सुख मिला था उनको अभी तक? वो इतनी हंसमुख, मजाकिया, और चंचल महिला हुआ करती थीं... लेकिन अब, अब तो वो अपने उस रूप की परछाईं मात्र थीं! अब तो हमेशा उदास उदास रहती थी। न होंठों पर कोई मुस्कान, न आँखों में कोई चमक! जीवन की रंगत उनके चेहरे पर फ़ीकी पड़ती जा रही थी।

लेकिन काजल के आने से मुझे यह उम्मीद हो गई कि संभवतः वो फिर से अपने पुराने रूप में लौट आएँगी!

आभा उस समय लगभग चार साल की थी। उसको देखते ही काजल अपने घुटनों पर आ गई। उसे देख कर काजल को ‘हमारी’ बेटी की याद हो आई। उसके हृदय में ममता की टीस उठ गई। ‘बिन माँ की बच्ची’ को देख कर उसके दिल में ममता की नदी, अपना बाँध तोड़ कर उसकी आँखों के रास्ते से बहने लगी। आभा को काजल की याद नहीं थी - वो कोई ढाई साल की ही रही होगी, जब उसने आखिरी बार काजल को देखा था। इसलिए उसने अपने सामने बैठी, रोती हुई महिला को आश्चर्य से देखा।

“आजा मेरी पूता! अपनी अम्मा के सीने से लग जा मेरी बच्ची!” काजल सुबक सुबक कर बोल रही थी।

उसकी आवाज़ में कुछ ऐसी बात थी कि आभा के पैर स्वतः ही उसकी तरफ़ चल दिए। वो अलग बात है कि हमने उसको समझाया हुआ था कि वो अजनबियों से दूर रहा करे, उनसे बात चीत न करे इत्यादि। लेकिन शायद ममता की बोली में एक अलग प्रकार की शक्ति होती है! जिन्हे ममता की दरकार होती है, वो उस भाषा को सुन ही लेते हैं। नन्ही सी आभा को अपने सीने से चिपकाए, काजल न जाने कितनी देर तक रोती रही।

उधर माँ की हालत भी काजल के समान ही थी। लतिका ने उनके जीवन में एक पुत्री की कमी पूरी कर दी थी। वो उसकी ‘मम्मा’ थीं। अपनी बेटी से इतने समय बाद मिलने के कारण वो बेहद भावुक हो गईं थीं। लतिका ने जब प्रसन्नता और उत्साह से “मम्मा” कहा और उनसे चिपक गई, तो भावातिरेक में माँ के गले से आवाज़ आनी ही बंद हो गई कुछ देर तक!

घर का माहौल बेहद भावुक हो गया था - एक तरफ़ काजल रो रही थी; और दूसरी तरफ़ माँ और लतिका, दोनों के आँसू गिर रहे थे। बस मैं ही था, जिसने खुद को जैसे तैसे सम्हाले हुए था। आभा यह सब समझने के लिए अभी बहुत छोटी थी।

माहौल भावनात्मक रूप से भारी था, लेकिन न जाने क्यों अब मुझे लग रहा था कि अब सब ठीक हो जाएगा। काजल हमेशा से ही मेरा सम्बल रही है। उसके आ जाने मात्र से मेरा मन मज़बूत हो गया था।

“आप कौन हैं?” बहुत देर के बाद आभा ने काजल से पूछा।

“तेरी माँ हूँ मैं, मेरी बच्ची! तेरी माँ!” काजल की आँखों से आँसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे।

“माँ?” आभा ने कहा।

आभा ने प्रश्न किया था, लेकिन काजल को लगा कि उसने उसको ही ‘माँ’ कह कर पुकारा है। उसके लिए संचित सारी ममता उसके स्तनों में उतर आई। काजल को अपने स्तनों में एक टीस सी महसूस हुई।

कोबे थेके अमार मेये बुकेर दूध पायानी?

अब आभा को कैसे याद रहे कि उसने कब से माँ का दूध नहीं पिया। देवयानी अपने काम में बिजी रहने के बावजूद उसको नियमित स्तनपान कराती थी। लेकिन कैंसर होने से उसके मन में यह बात बैठ गई कि दूध से कैंसर की कोशिकाएँ आभा के अंदर चली जाएँगी। और तब से आभा का स्तनपान बंद हो गया। कीमो-थेरेपी शुरू होने के बाद वैसे भी स्तनपान पर पूर्ण विराम लग गया था।

उसने अपने ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा, “चिंता न कर मेरी पूता! तेरी माँ पिलाएगी न! तुझे मैं वो सारा प्यार दूँगी, जो तुझे चाहिए! वो सब प्यार! आजा बेटा!”

मुझे आश्चर्य हुआ कि ये क्या हो रहा है! फिर सोचा कि काजल ममतावश आभा को माँ वाला प्यार देना चाहती हो! लेकिन जब मैंने उसके एक चूचक के सिरे पर दूध की बूँद देखी, तब मुझे समझ में आया कि काजल को अभी भी दूध आता है। एक तरह से मुझे सही भी लगा कि आभा - मेरी बेटी - काजल का दूध पिए! दूध, जो मेरी - हमारी - बेटी के कारण उत्पन्न हुआ था। एक तरह से आभा का भी उस दूध पर अधिकार है!

आभा ने मेरी तरफ़ देखा - उसको मालूम नहीं था कि उसको क्या करना है। स्तनपान किये उसको एक साल से ऊपर हो गया था। बच्चे इतने अंतराल में बहुत कुछ भूल जाते हैं। उसको मेरी तरफ देखते देख कर काजल ने आभा को अपनी गोदी में उठा लिया।

“पापा को नहीं, अपनी माँ को देख मेरी बच्ची!” उसने आभा को अपनी गोदी में व्यवस्थित करते हुए कहा, “और मेरा दूध भी पहचान ले!”

आभा ने काजल के स्तनों की ओर देखा।

“इसको पी कर मुझे अपनी माँ होने का एहसास करा दे मेरी गुड़िया!”

काजल ने कहा, और आभा के मुँह में अपना एक चूचक दे दिया। बच्चों में एक सिक्स्थ सेन्स होता है शायद। पैदा होते भी जान लेते हैं कि स्तनों का क्या उपयोग है। और आभा को इसका ज्ञान तो था ही। उसने उस चूचक को चूसना शुरू कर दिया, और अगले ही पल उसको अपना पुरस्कार भी मिल गया। माँ का दूध! मीठा दूध!!

आभा को स्तनपान करते देख कर लतिका कहाँ पीछे रहने वाली थी? अपने गाँव वापस जाने से पहले, अपनी मम्मा की गोदी में बैठ कर उनका स्तनपान करना उसका सबसे पसंदीदा काम था। लिहाज़ा, लतिका ने भी माँ के ब्लाउज के बटन खोलने शुरू कर दिए। उसने बस एक बार माँ की तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि डाली। माँ ने उसका मंतव्य समझ कर ‘हाँ’ में सर हिलाया। इतना इशारा बहुत था उसके लिए। कुछ ही समय में लतिका ने भी माँ के स्तनों को अनावृत कर के उनके चूचक पीना शुरू कर दिया। एक बच्चे का पुरस्कार माँ का दूध था, तो दूसरे का पुरस्कार माँ का स्नेह!

**
वैक्यूम को फिल अप करना मुश्किल होता है
पर यह अनुभव बहुत बढ़िया रहा
 
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Kala Nag

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अंतराल - स्नेहलेप - Update #2


लतिका बहुत प्यारी लड़की थी! और बहुत चंचल भी! कम से कम मुझे तो वैसा ही याद है उसके बारे में। वो ऐसे रहती थी कि जैसे उसे दुनिया की कोई परवाह ही न हो! बच्चों को तो ख़ैर वैसे ही रहना भी चाहिए। वो हमेशा हंसते खेलती रहती, हमेशा कोई न कोई प्यारी सी शरारत करती रहती। और ऐसी होने के बावजूद, दिल से वो बहुत ज़िम्मेदार लड़की भी थी। काजल इस बात को जानती थी, इसलिए उसने बड़ी चालाकी से लतिका को आभा की कस्टडी दे दी।

“लतिका, अब से इस नन्ही गुड़िया को सम्हालने की जिम्मेदारी तुम्हारी!” काजल ने कहा, और आभा की ज़िम्मेदारी उसको सौंप दी।

काजल ने लतिका को समझाया कि वो अपनी ‘छोटी बहन’ के लिए एक बढ़िया ‘रोल मॉडल’ बने। छोटी अपनी बड़ी बहन के हर काम का अनुसरण करेगी न - तो वो कैसे बोलती है, कैसा व्यवहार करती है, क्या करती है, कैसे पढ़ाई लिखाई करती है - इन सब बातों का असर आभा पर पड़ेगा। इसलिए लतिका को चाहिए कि वो उस बच्चे के लिए एक ‘अच्छा रोल-मॉडल’ बने।

दरअसल, इसी बहाने काजल चाहती थी कि उनकी बेटी थोड़ा ज्यादा जिम्मेदार तरीके से व्यवहार करने लगे। लतिका की पढ़ाई में व्यवधान तो आ ही गया था, इसलिए काजल को उसे ले कर थोड़ी चिंता सी रहती थी। बेशक, उसने यह सब बातें बड़े हल्के-फुल्के अंदाज में कहीं। और अगर उम्मीद के अनुसार लतिका ने वैसा ही व्यवहार करना शुरू कर दिया, तो बहुत अच्छा था! है न?

मुझे लगता है कि प्रत्येक बच्चा अपने तरीके से, बिना किसी पूर्वाग्रह के बड़ा होवे! माँ और डैड ने मुझे वैसे ही पाला था। लेकिन यह भी है कि अगर जिम्मेदारी की भावना, बच्चों में अच्छी आदतें और शिष्टाचार पैदा कर सकती है, तो क्यों न थोड़ी ज़िम्मेदारी बच्चों पर डाली जाएँ!


**


कैसे छोटी छोटी सी बातें, आगे चल कर आपके जीवन को बड़ा लाभ देने लगती हैं - या दे सकती हैं! कोई सात साल पहले मैंने अपनी समझ में एक छोटा सा काम किया था - मैंने सिफारिश कर के सुनील का एडमिशन पास ही के एक बढ़िया से स्कूल में करवा दिया था। कितना छोटा सा काम था! लेकिन देखिए - उस एक काम... एक भलाई के बदले, काजल ने कितना कुछ दिया था मुझको और मेरे परिवार को! और अभी भी दे रही थी। सात साल पहले जो मेरे घर कामवाली बाई बन कर आई थी, आज वो इस घर का अभिन्न हिस्सा थी... समझिए कि इस घर की मालकिन थी। काजल पर मेरा भरोसा पृथ्वी के गुरुत्व के जैसा ही अडिग है! कमाल की स्त्री है काजल - नौकरानी, प्रेमिका, मेरी संतान की माँ, और बहन - किस भूमिका में वो मेरे साथ पूरी ईमानदारी से नहीं खड़ी हुई थी?

अपने आने के कुछ ही दिनों में काजल ने घर की सारी ज़िम्मेदारी अपने सर ले ली - घर का रख-रखाव, साफ़ सफाई, खाना-पीना, घर का सञ्चालन, माँ के देख-रेख, उनकी दवाईयाँ, इत्यादि! अचानक ही हमारे रहन सहन की गुणवत्ता बढ़ गई। हमारी दिनचर्या निश्चित और आरामदायक हो गई। इतने महीनों में इतना सुकून पहले नहीं महसूस किया। अगर प्रेम का कोई मानवीय रूप है, तो मेरे ख़याल से उसका नाम काजल ही होगा। आभा की मुस्कान और चहक, जो अचानक ही गायब होने लगी थी, वो वापस आने लगी। वो स्वस्थ भी दिखाई देने लगी। उसका खाना पीना, खेलना कूदना, यह सब काजल देख रही थी और साथ ही साथ वो उसको नियमित रूप से, दिन में तीन बार स्तनपान कराती।

माँ भी थोड़ा सम्हल गईं - उनकी सबसे पक्की सहेली अब उनके साथ थी। उनको बात चीत करने, और अपने दुःख बाँटने के लिए एक साथी मिल गई थी। वो डिप्रेशन में अवश्य थीं, लेकिन मुझे दिल में लग रहा था कि उनकी हालत शोचनीय नहीं रहेगी। साथ ही उनकी प्यारी ‘बेटी’ भी तो थी। लतिका ने उनके अंदर की माँ को वापस जीवित कर दिया था। दोनों बच्चों की हँसी और खेल कूद से मेरा घर वापस गुलज़ार होने लग गया था।

माँ को लतिका के रूप में अपनी ममता लुटाने का एक और उद्गम मिल गया था। माँ की बड़ी इच्छा थी कि उनकी मेरे अलावा एक और संतान हो, और अगर संभव हो, तो वो लड़की हो। जब काजल उनके साथ रहने को आई थी, तब लतिका में उनको अपनी वही बेटी दिखी। आभा तो खैर घर भर की बच्ची थी ही, और उनकी पोती थी - उससे एक अलग ही तरह का लगाव और दुलार था उनको। लेकिन लतिका को देख कर उनको ऐसा लगता था जैसे वो उनकी अपनी ही बेटी हो। उनका अधिकतर मातृत्व लतिका पर न्योछावर होने लगा। पहले भी यही होता था : जब काजल, लतिका और सुनील के साथ डैड-माँ के घर रहते थे, तब माँ ने लतिका और सुनील को पढ़ाने-लिखाने और उनकी देख-रेख की सारी ज़िम्मेदारी अपने सर ले ली थी। इसलिए यहाँ भी वही हुआ। सुनील तो नहीं था - लेकिन लतिका और आभा तो थे! तो उनको पढ़ाने-लिखाने और उनकी देख-रेख की ज़िम्मेदारी माँ पर थी। वैसे माँ दोनों बच्चों को उसी प्रकार से पाल रही थीं, जैसे उन्होंने मुझको पाला था। घर में अब वही, नेचुरल और आर्गेनिक जीवन पद्धति फिर से लागू थी। कुछ ही दिनों में दोनों बच्चों ने उस पद्धति को आत्मसात भी कर लिया।

लतिका और आभा का सम्बन्ध भी अनोखा सा था - थी तो वो खुद एक नौ साल की बच्ची, लेकिन अपने से छोटी आभा की देखभाल ऐसे करती जैसे वो खुद उसकी अम्मा हो! वो उसको पढ़ाती, उसके खेल में हिस्सा लेती। उसकी देखभाल करती।

काजल को भी माँ के साथ अपना पुराना रिश्ता कभी कभी याद आ जाता, तो वो भी माँ की छातियों से चिपक जाती। माँ तो ख़ैर थीं भी इतनी ममतामई कि उनका दिल सभी को प्रेम स्नेह देता रहता, फिर भी उनका स्नेह का भण्डार कभी खाली नहीं होता था।

मैं काजल को कोई वेतन नहीं देता था। उसने हमारे साथ रहने की बात मान कर, हम पर एहसान किया था। उसका बदला सैलरी दे कर नहीं चुकाया जा सकता था। मैंने उससे साफ़ कह दिया था कि वो इस घर की ‘स्वामिनी’ है। उसका जैसा मन करे, वो कर सकती है। हममें से कोई भी उससे उस बाबत कोई प्रश्न नहीं करेगा। उसको आदर सम्मान देने के लिए मैंने उसको अपने अकाउंट का जॉइंट होल्डर नियुक्त कर दिया। जब भी और जैसी भी उसको आवश्यकता हो, वो धनराशि बैंक से निकाल सकती थी। वो अलग बात है कि उसने अपने लिए एक पाई भी नहीं ली।

काजल के तरीके में भी कई अंतर आ गए थे - अब वो घर के खर्चे का पूरा लेखा-जोखा वो बराबर से रखती थी। अगर संभव होता, वो हर चीज़ का बिल अपने पास रखती, और एक रजिस्टर भी बना कर रखती। एक बार मैंने देखा था, कि वो लतिका को समझा रही थी कि यह काम कैसे किया जाता है। अद्भुत था यह सब! सच में, बच्चों को यह सब जितना जल्दी हो सीखना चाहिए। इससे ज़िम्मेदारी आती है। रुपए पैसे की समझ आती है।

जयंती दी भी बराबर हमारा हाल चाल लेती रहतीं। वो भी हमारा ही परिवार थीं। ससुर जी अक्सर आ जाते, और अपनी दोनों ‘पोतियों’ के संग खेलते। हमारे ज़ख्म गहरे थे, लेकिन भर रहे थे। वो मेरा दर्द समझते थे - उनको भी वही दर्द था। उनकी पत्नी भी बहुत पहले ही चल बसी थीं। इसलिए उनको समझ आता था कि मैं क्या झेल रहा था।

यह अब तक के मेरे जीवन का सबसे दुर्गम समय था - और मुझे ख़ुशी थी कि इस समय काजल मेरे साथ थी। अब इस समय की कठिनाई कम हो चली थी। यह सब क्यों? बस इसलिए क्योंकि कभी मैंने काजल के लिए ‘कुछ’ किया था। जीवन बहुत लम्बा होता है - इसलिए हमको चाहिए कि औरों के लिए अगर हम कुछ निःस्वार्थ भाव से कुछ कर सकते हैं, तो अवश्य कर दें। न जाने आगे जा कर उसका फल हमको किस रूप में मिल जाए! अगर न भी मिले, तो कम से कम मनःशांति तो मिलेगी ही न?


**


अब करते हैं मेरी बात!

देवयानी की मृत्यु के उपरान्त उसकी जीवन बीमा राशि मुझे मिली। उसने जो भी प्रॉपर्टी बनाई थी, वो सब मेरे नाम लिख दी थी। ऑफिस से भी सेटलमेंट की धनराशि मुझे ही मिली। मैंने अधिकतर धनराशि या तो बिज़नेस में डाला, या फिर आभा और लतिका के नाम से इन्वेस्टमेंट कर दिया। जो धनराशि मैंने बिज़नेस में डाला, वो सब काजल, लतिका, और आभा के नाम से डाला। ससुर जी को इस बात से कोई आपत्ति नहीं थी। वो समझ रहे थे कि काजल और लतिका की मेरे जीवन में क्या अहमियत है, और वो खुद भी इस बात से प्रसन्न हुए कि उनका दामाद इस तरह से सोचता है। माँ को भी डैड की मृत्यु पर बीमा राशि और अन्य धनराशि मिली। उनको डैड के स्थान पर कम्पैशनेट ग्राउंड पर उनके महकमें में नौकरी भी मिल रही थी, लेकिन उन्होंने वो लेने से इंकार कर दिया। क्योंकि नौकरी करने के लिए उनको अपने घर में, अकेले रहना पड़ता, जो कि अब उनके लिए असंभव हो गया था। माँ ने जो भी पैसा मिला, सब मुझे दे दिया। वैसे भी डैड और माँ के नाम जो भी कुछ संपत्ति थी, वो सब उन्होंने मेरे नाम लिख दी थी। तो मैंने वो सब धन अपने बिज़नेस में लगा दिया - माँ के नाम से। अब कंपनी के शेयरहोल्डर्स में मेरा पूरा परिवार शामिल था।

जयंती दी के कहने पर डेवी का जो घर था, उसको किराए पर चढ़ा दिया। मैं यह करना तो नहीं चाहता था, लेकिन दी की बात सही थी - अगर घर इस्तेमाल नहीं होता, तो जल्दी खराब हो जाता है। इसी तर्ज़ पर डैड और माँ के घर को भी साफ़ सफाई करवा कर किराए पर चढ़ा दिया। माँ ने भी जयंती दी जैसा ही तर्क दिया था। मेरा मन तो नहीं था - उस घर से कई सारी यादें जुड़ी हुई थीं। लेकिन माँ ने मुझे ‘बिना वजह’ भावुक न होने की सलाह दी। तो, घर की पहली मंज़िल के दोनों कमरों में हमारे (डैड और माँ के) आवश्यक सामान रखवा कर, ताला लगा दिया, और नीचे का हिस्सा किराए पर दे दिया। किराया कोई ऐसा बड़ा नहीं आता था, लेकिन हमारे घर के खर्च के लिए पर्याप्त धन आ जाता था।

छोटी छोटी बातें थीं, लेकिन इन सबका बड़ा लाभ हुआ। अब मैं अपने बिज़नेस पर पूरा ध्यान दे पा रहा था। काजल घर सम्हाल रही थी। तो वहाँ से भी चिंता समाप्त हो गई। और मुझे इस बात की आवश्यकता भी थी। देवयानी की - डैड की - और गैबी की याद को भुलाने - या यह कह लें कि डुबाने के लिए मुझे काम करने की, व्यस्त रहने की आवश्यकता थी। और यह सब तभी संभव हुआ, जब काजल ने घर सञ्चालन का कार्य-भार सम्हाल लिया। सच में - साक्षात् देवी का अवतार है वो! कोई बहुत ही अच्छे कर्म किये होंगे हम सभी ने, जो हमको काजल के प्रेम का, उसके स्नेह का अंश मिला।

काजल के साथ मेरा साथ अब कोई सात साल पुराना हो चला था। और इस दौरान काजल ने मेरे लिए - मेरे परिवार के लिए इतना कुछ कर डाला था कि मुझे तो लगता है कि उसका शुक्रिया अदा नहीं किया जा सकता। वैसे भी उसके इतने सारे एहसान थे हम पर, कि उसको शुक्रिया कहना मतलब उसका अपमान करने जैसा था।

**
वाव
जिंदगी फिर पटरी पर आ गई
बहुत ही उम्दा
कुछ रिश्ते बहुत अनमोल होते हैं
काग़ज़ के पैसे उनके आगे रेत बराबर ढेर होते हैं
बहुत ही अच्छा निर्णय था
डेवी की इंश्योरेंस के पैसे बिजनैस में डालकर फिर लतिका, आभा और काजल के नाम कर देना
बहुत ही बढ़िया
 
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वैक्यूम को फिल अप करना मुश्किल होता है
पर यह अनुभव बहुत बढ़िया रहा

सच ही है - जिनसे मोहब्बत है, उनके जाने से हृदय में एक स्थान रिक्त हो जाता है। सदा के लिए।

वाव
जिंदगी फिर पटरी पर आ गई
बहुत ही उम्दा
कुछ रिश्ते बहुत अनमोल होते हैं
काग़ज़ के पैसे उनके आगे रेत बराबर ढेर होते हैं
बहुत ही अच्छा निर्णय था
डेवी की इंश्योरेंस के पैसे बिजनैस में डालकर फिर लतिका, आभा और काजल के नाम कर देना
बहुत ही बढ़िया

काजल का करैक्टर किसी सन्यासिन जैसा है। पूरे निष्काम भाव से सेवा करती हैं। और उसका फल भी उनको मिलता है आगे!
अब तक कोई आधी कहानी पूरी हो चली है। मतलब बहुत कुछ बाकी है। :)

साथ में बने रहें!
 
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सच ही है - जिनसे मोहब्बत है, उनके जाने से हृदय में एक स्थान रिक्त हो जाता है। सदा के लिए।



काजल का करैक्टर किसी सन्यासिन जैसा है। पूरे निष्काम भाव से सेवा करती हैं। और उसका फल भी उनको मिलता है आगे!
अब तक कोई आधी कहानी पूरी हो चली है। मतलब बहुत कुछ बाकी है। :)

साथ में बने रहें!
हम आपके साथ ही हैं
क्यूंकि कहानी जो भा गई उस कहानी का अंत जानना मेरे लिए बहुत जरूरी है
 
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अंतराल - स्नेहलेप - Update #3


काम में व्यस्त था मैं! या यह कह लीजिए कि अपने दुःखों से दो-चार होने से डर कर भाग रहा था मैं। पलायनवादी हो गया था मैं। ऊपर से अवश्य ही मज़बूत लगता और दिखता, लेकिन अंदर ही अंदर हिला हुआ था मैं। माँ का उदास और सूना सूना चेहरा देखने से कतरा रहा था मैं। कायर हो गया था मैं। देर रात घर आता, जल्दी ऑफिस के लिए निकल जाता। अकेले में ही अपनी दुनिया बना बैठा - खुद को सभी से दूर कर के!

अक्सर होता है न - दूसरों की छोटी छोटी कमियाँ हमको साफ़ दिखाई दे जाती हैं। लेकिन अपने तरबूज़ के समान कमियाँ दिखाई नहीं दिखतीं - भले ही आईना सामने रख दिया जाय। वही हो रहा था मेरे साथ। लेकिन इस चक्कर में क्या कुछ नहीं मिस कर रहा था मैं - आभा तेजी से बड़ी हो रही थी। उसका बचपना मिस कर रहा था मैं। इस बार उसका चौथा बर्थडे मैंने लगभग लगभग मिस ही कर दिया था - वो तो आखिरी समय पर काजल ने याद दिला दिया, नहीं तो मैं भूल ही जाता कि उसका जन्मदिन भी था। दूसरी छोटी बच्ची - लतिका - के बड़े होने का आश्चर्यजनक सफर मिस कर रहा था मैं। उसके बारे में कुछ मालूम ही नहीं था मुझको। और तो और, माँ से दूरी बनती जा रही थी मेरी। ऐसा मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि यह नौबत आ जाएगी - माँ से दूरी और मेरी? असंभव! लेकिन वही असंभव, अब मूर्त रूप ले रहा था, या ले चुका था। वो तो भला हो काजल का - अन्यथा, माँ मेरे लिए एक ‘मानसिक रोगी’ का रूप अख्तियार करने ही वाली थीं।

मेरे एक परम मित्र हैं - बिलकुल श्रवण कुमार जैसे। माता पिता को ईश्वर मानने वाले। लेकिन जब उनकी माता जी रोगिणी बन कर सदा के लिए बिस्तर पकड़ लीं, तब मैंने देखा कि ऐसे व्यक्ति भी अपनी श्रद्धा में कैसे बिखर जाते हैं। कई महीनों तक निर्लिप्त सेवा के बाद वो मित्र एक दिन मुझसे बोले कि उनको अपनी माता से नफरत हो गई है, और वो ईश्वर से मना रहे हैं कि उनको शीघ्र ही अपने पास बुला लें। कष्टप्रद था उनका अनुभव सुनना। लेकिन यही सच्चाई है। अगर कोई व्यक्ति चौतरफ़ा भाग्य की मार ही झेलेगा, तो वो और क्या करे? व्यक्ति ही तो है। मानुष की कमियाँ तो रहेंगी ही सदैव! इसलिए मुझे काजल का धन्यवाद करने में कोई गुरेज नहीं है। आज भी माँ और मेरे बीच जो आत्मीयता है, जो प्रेम है, वो उपस्थित है और निर्मल है तो केवल काजल के कारण! सच में देवी है काजल! कोई बहुत अच्छे कर्म किए होंगे मैंने कि उसकी दया, उसका प्रेम हम सभी पर इस तरह से बरस रहा था।

एक रात बहुत ही अधिक देर हो गई वापस आते आते। करीब करीं एक बजे होंगे रात के। थक कर चूर हो गया था और भूखा भी बहुत था। शायद इसीलिए नाराज़ भी था। उस समय यही हाल था मेरा - नाराज़ रहता - खुद पर, दूसरों पर। चिड़चिड़ाने लगा था। मैं स्वयं एक मानसिक रोगी बनता जा रहा था, या शायद बन गया था। घर में आया, तो देखा कि काजल वहीं सामने बैठी मेरा ही इंतज़ार कर रही थी। उसको देखते ही मेरा मन ग्लानि से भर गया। एक तो ठंडक थी - हल्का हल्का कोहरा छाया हुआ था, और ऊपर से थोड़ी ठंडी हवा भी चल रही थी।

“क्या हो गया काजल? इतनी रात, यहाँ बाहर?” मैंने पूछा - यद्यपि मुझे मालूम था कि वो वहाँ किसके इंतज़ार में बैठी है।

उसने कहा, “आओ, खाना लगा देती हूँ!”

यह सुन कर राहत हुई, “हाँ, भूख तो लग गई!” मैंने जबरदस्ती ही मुस्कुराने की कोशिश करी। लेकिन काजल ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

डाइनिंग टेबल पर दो प्लेटें लगी हुई थीं - एक मेरे लिए और एक काजल के लिए। देख कर इतना दुःख हुआ और ग्लानि हुई कि मैं आपसे कह नहीं सकता। बेचारी दिन भर काम करते नहीं थकती, और अब मेरा भी इंतज़ार! मेरी यह हिम्मत भी न हुई कि उससे कह सकूँ कि मेरा इंतज़ार क्यों किया। लगा, कि मैंने शिकायतें करने का अधिकार भी खो दिया।

बड़ी ख़ामोशी से खाना परोसा गया। काजल भी नाराज़ तो होगी ही।

आधा खाना खा लिया तब मुझे कुछ कहने की हिम्मत आई, “काजल, अब से मैं समय पर घर आऊँगा, समय पर जाऊँगा! आई ऍम सॉरी! प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो?”

“पक्का?”

“पक्का - तुमसे वायदा कर के उसको न फॉलो कर के, तुम्हारा अपमान नहीं करूँगा। यू डिज़र्व बेटर! मैं बदतमीज़ी कर रहा हूँ - यह मुझे भी मालूम है। आईन्दा ऐसी गलती नहीं होगी!”

“थैंक यू,” वो मुस्कुराते हुए बोली, “जब ज़रुरत है तब कर लेना लेट सिटिंग! लेकिन हर रोज़ तो ज़रुरत नहीं हो सकती न? और देखो, कितने हफ़्तों से एक्सरसाइज भी नहीं किया है तुमने! हैंडसम से बूढ़े बूढ़े लगने लगे हो!”

“आई ऍम सॉरी!”

“नहीं। सॉरी मत कहो। तुमको बात समझ आ गई, बस!”

फिर माहौल थोड़ा अच्छा हो गया। मैंने सबके बारे में पूछा। काजल ने बताया कि वो दीदी के साथ मॉर्निंग वाक पर जाती है। और तो और दीदी उसको इंग्लिश भी सिखा रही हैं। लतिका की पढ़ाई की ज़िम्मेदारी भी दीदी ने ही ले रखी है। इस बार के एक्साम्स में उसके नंबर भी अच्छे आए हैं। और अपनी आभा तो अब उछल कूद अधिक करने लगी है। दोनों बच्चे मायूस थे कि इस साल दिवाली नहीं मनाई गई (इसी साल के पहले क्वार्टर में डैड की मृत्यु हुई थी और इसलिए एक साल तक कोई तयोहार न मनाने की प्रथा का पालन कर रहे थे हम)!

हाँ दुःख तो था। लेकिन उस दुःख के ऊपर थोड़े और दुःख लाद कर भला कौन सा सुख निकल रहा था - यह सुधी जनों की बुद्धि से परे है। मूर्खता अपनी जगह होती है, लेकिन, हाँ - लोक रीति का पालन अपनी जगह है। देवयानी के गए एक साल हो गया था। उसकी याद आते ही आँखें नम हो गईं। बात बदलने के लिए मैंने सुनील के बारे में पूछा। सुनील का सातवाँ सेमेस्टर भी ख़तम होने वाला था। लेकिन वो सर्दी की छुट्टियाँ वहीं बिताने वाला था - किसी प्रोफेसर के साथ प्रोजेक्ट था उसका।

“काजल,” मैंने संजीदा होते हुए कहा, “मैं चाहता हूँ कि सब कुछ पहले जैसा हो जाए! आई मीन, सब कुछ वैसा तो नहीं हो सकता, लेकिन इस घर में थोड़ी खुशियाँ आ सकें, तो क्या हर्ज़ है!”

“मेरे मन की बात कह दी तुमने!” वो बोली, “एक आईडिया तो है!”

“वो क्या?”

“हम अपन चारों जने का कंबाइंड बर्थडे मनाते हैं, इस वीकेंड?”

“चारों जने?”

“हाँ - तुम, आभा, लतिका, और दीदी?”

“और तुम? तुम अलग हो इस घर में? मत भूलो कि तुम इस घर की मालकिन हो। सबसे पहले तुम्हारा बर्थडे मनेगा!”

“मतलब तुमको आईडिया पसंद आया?”

“बहुत पसंद आया! लेकिन बर्थडे मत मनाओ प्लीज़!”

“ठीक है फिर! किसी का नहीं मनेगा!”

“ओह्हो तुम भी न!”

“हाँ - मैं भी न! मालकिन हूँ इस घर की। मेरा हुकुम मानना पड़ेगा सभी को!”

मैं मुस्कुराया।

“दोनों बच्चे कहाँ हैं?”

“सो रहे हैं - पुचुकी (लतिका) के कमरे में!”

“उनको देख लूँ?”

“मुझसे पूछोगे? अपने बच्चों को देखने के लिए?”

न जाने मन में क्या आया कि मैं रोने लगा। काजल ने मुझे अपने आलिंगन में बाँध लिया, और रोने दिया। न जाने कब तक रोया। लेकिन रोना तभी रुका जब नाक इस कदर जम गई कि उससे साँस आनी बंद हो गई और आँखों से आँसू सूख गए। जब काजल ने मेरा रोना बंद होते हुए महसूस किया तब वो बड़ी ममता से बोली,

“बस, बस! अब हो गया! रो लिए - तो दिल का दुःख कम गया। अब बस! अब आगे की सुध लो! धैर्य रखो। भगवान् सब ठीक करेंगे!”

“ओह काजल! यार मैं बिलकुल टूट गया हूँ! अकेला हो गया हूँ!”

“टूट गए हो - हाँ। लेकिन अकेले नहीं हुए हो। मैं हूँ न। बच्चे हैं। दीदी हैं।” वो मुझको समझाते हुए बोली, “हम अपनी अपनी तरीके से टूट गए हैं। लेकिन हमारा साथ तो बना हुआ है। है न? तो अकेले नहीं हैं हम! जब तक हम में से कोई एक भी है न, तब तक तुम अकेले नहीं होने वाले!”

काजल की बात पर मैंने कांपती आवाज़ में सांस छोड़ी। सच में - काजल के रहने से सम्बल तो है ही।

“मन अच्छा करो, और आ जाओ... बच्चों से मिल लो। कल उनके साथ खेलना! बड़ा अच्छा लगेगा। दोनों बहुत नटखट हैं!”

उसकी बात इतनी अच्छी थी कि मेरी मुस्कान खुद-ब-खुद आ गई।

बच्चों के कमरे में गया। दोनों बेसुध पड़े सो रहे थे। आभा को हलके हलके खर्राटे भी आ रहे थे - शायद थोड़ी सर्दी हो गई थी उसको।

“कितना कुछ मिस कर दिया मैंने!” दोनों को देखते हुए मैंने कहा।

“वो सब मत सोचो। यह सोचो कि आगे यह सब मिस न करना पड़े!”

बात सौ प्रतिशत सही थी। जो बीत गया, उसका कुछ किया नहीं जा सकता। हाँ, आगे वही सब फिर से न हो, यह सुनिश्चित किया जा सकता है।

“दोनों कितने प्यारे लगते हैं!”

“बहुत ही प्यारे हैं। जब घर में नहीं होते, तब घर सुनसान लगता है। और जब आ जाते हैं, तो पूरा घर गुलज़ार रहता है!”

हमारी बातें सुन कर लतिका की नींद थोड़ा कच्ची हो जाती है। वो अपनी उनींदी आवाज़ में बोलती है,

“अंकल, आपको निन्नी नहीं आ रही है?”

“अब आ जाएगी बेटू!” मैंने उसको चूमते हुए कहा, “अब आ जाएगी!”

“मैं आपको सुला दूँ?”

“नहीं मेरी बच्ची! लेकिन तुम सो जाओ! मैं भी सो जाऊँगा!”

“ओके!”

“कल मेरे साथ खेलोगी?”

“हाँ!” वो नींद में भी खुश होते हुए बोली, “आई वुड लव टू!”

“ठीक है बेटा,” मैंने उसके मुँह को चूमते हुए कहा, “थैंक यू! आई लव यू!”

आई लव यू टू!”

कह कर लतिका वापस सो गई। मैंने बारी बारी से दोनों बच्चों को चूमा, और कमरे से बाहर निकल आया। मन बहुत ही हल्का हो गया; शांत भी। काजल भी मुस्कुराते हुए मेरे पीछे बाहर आ गई। इतने महीनों में इतनी मनःशांति नहीं मिली।

देखा कि काजल रसोई की तरफ जा रही थी।

“क्या हुआ?”

“नहीं, कुछ नहीं। बस, थोड़ा रख रखाव कर लूँ!”

“कल आएगी न कामवाली?”

“हाँ!”

“तो उसके लिए कुछ छोड़ दो! तुम भी आराम किया करो न?” मैंने कहा।

“कॉफ़ी पियोगे?”

“अभी नहीं! बाद की बाद में देखेंगे!” मैं बोला, “आओ। मेरे साथ बैठो न कुछ देर?”

काजल मुस्कुराई, “ठीक है!”

कमरे में आ कर मैंने मद्धिम मधुर संगीत बजाया। बहुत दिन हो गए यह काम किये। करीब करीब ढाई बज गए थे। देर रात! ठंडक। मैंने रजाई खींची, और काजल को अंदर आने के लिए आमंत्रित किया। बहुत ही लम्बा अर्सा हो गया था काजल और मुझे साथ लेटे हुए। कैसी आत्मीयता, और कैसी अंतरंगता थी हमारे बीच - लेकिन अब!

बात सुनील से शुरू हुई - काजल को उसके बारे में चिंता थी। उसको कैंपस प्लेसमेंट से एक नौकरी मिली तो थी, लेकिन अमेरिका पर आतंकवादी हमलों के कारण, उसकी कम्पनी ने वो ऑफर वापस ले लिया था। हमको यहाँ दुःख तो हुआ, लेकिन यह भी मालूम था कि सुनील जैसे कैंडिडेट के लिए नया जॉब ऑफर लेना, कोई कठिन काम नहीं होगा। और वैसे भी, उसने कभी जॉब को लेकर चिंता नहीं दिखाई थी। चारों साल उसने कठिन परिश्रम किया था, कई सारे प्रोजेक्ट्स किए थे, वो क्लास टॉपर्स में एक था, और उसका रेज़्यूमे अपने सहपाठियों में सबसे मज़बूत था। इसलिए डरने वाली बात थी ही नहीं। यही सब बातें मैंने काजल को समझाईं।

मैंने उसको यह भी समझाया कि अगर इतनी ही बुरी किस्मत हुई उसकी कि उसको कैंपस से जॉब ऑफर न मिले, तो मेरी कंपनी है ही न! वहाँ काम कर ले! काजल को यह सुन कर संतोष हुआ। फिर बात माँ पर आ गई। उनके जीवन में किसी साथी की आवश्यकता पर भी हमने बात चीत करी। अभी तक मैंने बस एक बार ही माँ से यह बात कही थी, लेकिन माँ की प्रतिक्रिया ऐसी थी कि दोबारा कहने की मेरी हिम्मत नहीं हुई। लेकिन तब से अब तक परस्थितियों में बहुत परिवर्तन हो चुका था। हो सकता है कि अब - जबकि वो पहले के अपेक्षा अधिक शांत थीं, तो इस प्रस्ताव पर वो सकारात्मक प्रतिक्रिया देतीं।

“काजल?”

“हम्म?”

“तुम मुझसे शादी करोगी?”

“ओह अमर! अगर मेरी शादी तुमसे होगी न, तो मैं बहुत ही लकी होऊँगी!” उसने कहा, “लेकिन हमने इस बारे में बात करी है न!”

“हाँ!” मैंने बुझे मन से कहा।

“हे, ऐसे मत रहो अमर! मुझे तुमसे बहुत प्यार है अमर, बहुत ही! ये तुम जानते हो और मैं भी जानती हूँ! लेकिन शादी का नहीं मालूम!”

“पर क्यों?”

“क्योंकि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूँ, अमर। इसलिए! मैं गंवार हूँ। तुम्हारा समाज में एक अलग ही मुकाम है - मेरा उस मुकाम से दूर दूर तक कोई सम्बन्ध ही नहीं है!”

मैं कुछ कहना चाहता था, कि उसने मुझे रोक कर कहना जारी रखा, “बीवी ऐसी चाहिए जो तुमको तुम्हारे मुकाम से आगे ले जाए - पीछे नहीं। मुझे न तो तुम्हारे तौर तरीके मालूम, और न ही बोलने का कोई ढंग ही मालूम! पुचुकी के स्कूल जा कर उसकी टीचर से बात करने में भी डर लगता है मुझे। ऐसे थोड़े न होना चाहिए बीवी को! समझा करो। कोई तो बराबरी हो!”

“काजल, अगर मेरा बिज़नेस हमारे बीच की दीवार है, तो मैं जॉब कर लेता हूँ!”

“हाँ, और अपने, देवयानी दीदी, डैडी जी, और दीदी के सपनों को पानी में बहा दो! ठीक है? सबको बहुत अच्छा लगेगा, और सबको संतोष मिलेगा - तुमको भी!”

“पर काजल?”

काजल कुछ पल के लिए कुछ नहीं बोली, फिर रुक कर कहती है, “अच्छा चलो! भूल जाओ कि मैंने यह सब कहा। मैं करूँगी शादी तुमसे!”

“सच में?”

“हाँ! क्यों नहीं! बीवी दिखाने के लिए थोड़े न होती है। बीवी तो जीवन साथी होती है!”

मैं मुस्कुराया। लेकिन अगले ही पल मेरे पूरे शरीर में अज्ञात भय की लहार दौड़ गई।

“तुम सीरियस नहीं हो न?”

“हूँ! क्यों?”

“काजल। मुझे लगता है कि मेरी पत्नियाँ मेरे कारन से जी नहीं पातीं।”

मैंने इतना कहा ही था कि एक झन्नाटेदार झापड़ मेरे गाल पर आ कर लगा। और अगले ही पल काजल आलिंगन में कस कर बाँध लिया।

“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ऐसा सोचने की?” उसने मुझे डाँटा, “आइंदा ऐसा कहा न तो मुझसे बुरा कोई न होगा! गैबी दीदी का एक्सीडेंट, और देवयानी दीदी का कैंसर - तुम्हारे कारण नहीं था। यह हमारा दुर्भाग्य है कि उनको वो सब झेलना पड़ा और हमको भी। लेकिन यह भी तो देखो, कि वो दोनों चली गईं और तुम रह गए। तुम्हारा दुःख अधिक है कि उनका? वो दोनों तो मुक्त हो गईं।”

उसने मेरे गाल को सहलाया - जहाँ अभी अभी मुझे झापड़ लगा था।

“आई ऍम सॉरी! लेकिन मैं तुमसे उम्र में बड़ी हूँ! इसलिए मेरा हक़ है तुम पर, कि तुमको समझाऊँ, तुमको डांटूं - अगर तुम गलत हो! है कि नहीं? अब बस! ऐसी बकवास फिर मत सोचना।”

उसने कहा, और अपनी ब्लाउज़ के बटन खोलने लगी।

“आओ, अपने को शांत करो! और मुझे भी! बहुत दिन हो गए!”

पहले तो कुछ पल समझ नहीं आया कि क्या करूँ। फिर मैंने उसके स्तनों पर अपने हाथ रखे - ऐसे कि उसके चूचक मेरे उँगलियों के बीच फँस जाएँ। वो स्तंभित हो रहे थे।

“उम्म्म्म... आह... बहुत दिन हो गए!” काजल ने फुसफुसाते हुए कहा।

अंततः मैंने उसके एक चूचक पर अपना मुँह लगाया - सच में, बहुत ही अधिक दिन हो गए थे। कोई चार - साढ़े साल! मेरे बाद काजल ने किसी के साथ सेक्स नहीं किया। उसके चूचकों पर मेरे मुँह की हर क्रिया पर उसकी योनि लरज रही थी। हाँ, उसका दूध अवश्य ही मेरे मुँह में भर रहा था, लेकिन वो एक काम-वर्धक का कार्य कर रहा था। उधर काजल का हाथ मेरे पाजामे को ढीला करने में व्यस्त था। उसकी उँगलियों की छुवन से मेरा लिंग भी तेजी से आकार में बढ़ने लगा। डेढ़ साल हो गए थे मुझे भी सेक्स किए। सेक्स की याद आते ही मुझे आखिरी बार देवयानी के साथ अपने मिलन की घड़ी याद हो आई।

देवयानी की याद आते ही जो भी मूड था, सब रफू-चक्कर हो गया। लिंग जितनी तेजी से स्तंभित हो रहा था, उससे भी दोगुनी गति से शिथिल पड़ने लगा। सब धरा का धरा रह गया। मैं वापस रोने लगा। काजल समझ रही थी कि मुझे क्या हो रहा है। वो मुझे दिलासा भी दे रही थी, और अपने और मेरे कपड़े भी उतारती जा रही थी। शीघ्र ही हम दोनों पूर्ण नग्न हो कर रजाई के भीतर आलिंगनबद्ध हो कर लेटे हुए थे।

“अमर, मत रोओ! मैं हूँ न!” उसने मुझे धीरज बंधाया।

उसका हाथ वापस मेरे लिंग पर चला गया। मेरे गले से एक आह निकल गई। उसने लिंग पर मुट्ठी बाँध कर कामुकता से अपना हाथ फिराया। कुछ ही पलों में मेरे लिंग में जीवन पुनः लौटने लगा। कुछ देर तक वो ऐसे ही मुझे हस्तमैथुन का आनंद देती रही - उसने इस बात का ख़याल रखा कि बहुत न करे। अन्यथा स्खलन की सम्भावना बड़ी तीव्र थी। इतने महीनों बिना सेक्स के...

जब मैं समुचित रूप से तैयार हो गया, तब वो बोली,

“आ जाओ! मेरे ऊपर! सब मीठी बातें याद दिला दो मुझे!”

मैंने किया वो सब।

हमारा यह संसर्ग बेहद संछिप्त था, लेकिन भावनात्मक ज्वार से भरपूर था। हम दोनों के ही मन में वर्षों से दबी हुई कामुक ऊर्जा थी। जो तेजी से निकल गई। बमुश्किल दो तीन मिनट में ही। अवश्य ही शारीरिक संतुष्टि न मिली हो, लेकिन मानसिक और भावनात्मक संतुष्टि हम दोनों को ही मिली। काजल के शरीर की गुणवत्ता भी बढ़ गई थी। अब लगता था कि हाँ, वो कोई खानदानी स्त्री है। खान-पान, रहन सहन में आमूलचूल बदलाव से यह सब होता ही है।

जब हम दोनों संतुष्ट हो कर लेटे हुए थे, तब मैंने काजल को देखा। वो करीब चालीस साल की हो गई थी। लेकिन अपनी उम्र से कहीं कम लगती थी। और सुन्दर भी वैसी ही थी, जब वो पहली बार मेरे घर आई थी। नहीं - उससे भी अधिक सुन्दर। हमारी बच्ची के जन्म के बाद, इतने सालों तक सतत स्तनपान कराने से उसके स्तन थोड़ा बड़े हो गए थे। लेकिन बाकी शरीर थोड़ा छरहरा ही था। उसमें स्थूलता नहीं थी - न तो पेट निकला था, और न ही नितम्ब। XForum में फोटो सेक्शन में देसी ‘सुंदरियों’ के जैसे स्थूल शरीर होते हैं, वैसा तो उसका बिलकुल भी नहीं था। हाँ - लेकिन उसके शरीर के कटाव बड़े लोचदार थे। माँ उसके सामने कमउम्र लगती थीं क्योंकि उनके शरीर में वैसे कटाव नहीं थे... वैसे लोच नहीं थे।

कुछ देर हम वैसे ही आलिंगनबद्ध अवस्था में ही पड़े पड़े, गहरी नींद सो गए। और बहुत देर तक सोए। माँ समझ गईं कि हम दोनों के बीच कल रात क्या हुआ था। इसलिए उन्होंने हमको परेशान नहीं किया और लतिका और आभा को तैयार करने, और नाश्ता पकने का काम खुद ही कर लिया।

जब हम दोनों उठे, तब तक कोई ग्यारह बज गए थे। कमरे से बाहर आते हुए मुझे भी और काजल को भी शर्म आ रही थी। लेकिन उनका सामना तो करना ही था। माँ ने हमको देखा, तो मुस्कुराईं - वही पुरानी जैसी मुस्कान! मन खुश हो गया। इतने समय में उनको बहुत ही कम बार मुस्कुराते देखा था। और यह मुस्कान स्पेशल थी। मैं तैयार हो कर, नाश्ता कर के ऑफिस के लिए जब रवाना हुआ, तब तक लंच का समय हो गया। ऑफिस पहुँचा तो पाया कि सभी लोग अपने अपने काम में मशगूल थे। और तन्मयता से काम कर रहे थे।

अच्छे, परिश्रमी लोगों को टीम में लेने के यही परिणाम होते हैं। काम ईमानदारी से होता रहता है। सच में - मुझे काम के पीछे अपनी जान निकालने की कोई आवश्यकता नहीं थी। काजल से किया गया वायदा निभाने का एक और कारण मिल गया। मन ही मन मैंने एक नोट बनाया कि कल या अगले दिन, पूरे ऑफिस को लंच मैं कराऊँगा - कहीं बाहर अच्छे होटल में ले जा कर।

मेरे जाने के बाद माँ ने काजल को घेर लिया।

“काजल, बेटा, तुम अमर से शादी क्यों नहीं कर लेती! तुम दोनों साथ में कितने सुन्दर, कितने सुखी लगते हो! पहले भी मना कर चुकी हो। लेकिन क्या तुम देखती नहीं, कि किस्मत ने हम दोनों के परिवारों का एक होना तय कर रखा है?”

“दीदी,” काजल ने बड़े प्रेम से कहा, “तुम्हारी बहू बनना तो बहुत सौभाग्य की बात है। अगर वो होता है, तो मैं सबसे लकी औरत होऊँगी दुनिया की। लेकिन मैं ये कर नहीं सकती। सही नहीं होगा!”

“क्या तुम अमर से प्यार नहीं करती?”

“बहुत करती हूँ! इस बारे में कभी शक न करना दीदी। लेकिन,” और फिर काजल का वही पुराना गाना शुरू हो गया, जो उसने मुझे सुनाया था रात में।

“काजल, इन सब बातों से मेरा विचार नहीं बदलता। तुम बहुत अच्छी हो, और बहुत सुन्दर भी हो! अमर भी बहुत लकी होगा अगर तुम उसकी पत्नी बनो। दोनों के दो तीन बच्चे भी हो सकते हैं।”

“दीदी!”

“क्या दीदी? अब देखो न... सुनील की पढ़ाई पूरी होने वाली है। नौकरी करने लगेगा वो जल्दी ही। वो तो रहेगा अपनी बहू के साथ अलग। रह गए तुम और लतिका। यहीं रह जाओ। इसी घर में। हमेशा। तुम्हारा घर है। इसी को गुलज़ार कर दो। नन्हे नन्हे बच्चों की किलकारियों से सजा दो!”

“दीदी, तुम बहुत अच्छी हो। इसीलिए तो आ गई यहाँ भागी भागी! तुमको छोड़ कर जाने का मेरा मन तो नहीं है। सुनील को कहीं रहना हो रहे! उसकी बीवी उसी को मुबारक। मैं और तुम काफी हैं!” काजल हँसते हुए बोली, “लेकिन यार ये शादी वाली बात न बोलो। अमर के पाँवों की चक्की नहीं बनना मुझे।”

माँ ने भी बहुत तूल नहीं दिया इस बात पर। शादी करना या न करना, एक बेहद व्यक्तिगत निर्णय होता है। इसको ज़ोर जबरदस्ती से नहीं करवाया जा सकता।

“देख लो! मैं तो केवल समझा सकती हूँ। बाकी तो सब तुम्ही दोनों पर है। लेकिन हाँ - अगर तुम दोनों शादी करना चाहोगे तो याद रखना कि मेरा आशीर्वाद है। और मुझे बहुत ख़ुशी होगी उस दिन!”

“मेरी छोड़ो दीदी, अपनी बताओ! तुम क्या सोचती हो शादी करने के बारे में?”

“पागल हो गई है क्या? मैं अब दादी माँ हूँ। इस उम्र में कोई शादी करता है क्या?”

“दीदी, दादी तो तुम हो, लेकिन तुम्हारी उम्र नहीं हुई है कुछ! आज कल तो कितनी सारी औरतें पैंतीस के बाद शादी करने लगी हैं।”

“नहीं रे! यह सब मैं नहीं जानती।”

“दीदी, मैं तुमसे बहस नहीं कर सकती। तुम्हरी बहुत इज़्ज़त करती हूँ। लेकिन, शरीर की ज़रूरतें होती हैं। उनकी संतुष्टि भी ज़रूरी है। तुम्हारी एक और बच्चे की चाहत के बारे में पता है मुझको। अगर कोई अच्छा आदमी मिल जाय, तो क्यों न उससे शादी कर लो?” काजल ने सजींदगी से कहा, “तुम्हारी माँग फिर से सिन्दूर से सज जाय, तुम्हारे चेहरे पर फिर से वही मुस्कान आ जाय, तो क्या बात बने!”

“मत देख सपने काजल। वो सब कुछ ‘उन्ही’ के साथ चला गया बेटा। सब ‘उन्ही’ के साथ चला गया!”


***
 

avsji

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Supreme
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हम आपके साथ ही हैं
क्यूंकि कहानी जो भा गई उस कहानी का अंत जानना मेरे लिए बहुत जरूरी है

ज़रूर मेरे भाई! 😍

आपको क्या लगता है कि मैं क्यों लिखता जा रहा हूँ - वो भी इतना रेगुलर?
गिन कर चार पाँच पाठक हैं - वो ही दिलासा दिए रहते हैं; कमेंट करते हैं।
बस उन्ही के लिए लिख रहा हूँ।

अभी अभी एक उपडेट दिया है! पढ़ कर बताइए 🙏
 
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YODHA

"Engage your brain before you engage your weapon.”
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XForum में फोटो सेक्शन में देसी ‘सुंदरियों’ के जैसे स्थूल शरीर होते हैं, वैसा तो उसका बिलकुल भी नहीं था।

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