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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
Last edited:

Kala Nag

Mr. X
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क्या बात है!!! सुभान अल्लाह!
हा हा हा
समय आ गया है :)
हाँ समय आ गया है
रिश्तों को नाम हम अपनी सहूलियत के लिए देते हैं.
सबसे बड़ी बात है प्यार - सच्ची मोहब्बत!
वो है, तो रिश्तों और उनके नामों का क्या महत्त्व :)
हाँ सहूलियत
यह शब्द तर्कसंगत लग रहा है
हा हा हा! हम लोग बहुत चिढ़े हुए लोग हैं भाई!
हर बात से असंतुष्ट!
हाँ सहमत
यह इंसानी फितरत है
संतुष्टि मोक्ष या निर्वाण का अन्य अर्थ है

बहुत बहुत धन्यवाद मित्र!



आपको अच्छा लगा, वही बहुत है मेरे लिए :)





आपकी बात का उत्तर अगले ही अपडेट में मिल गया!

अपना ख़याल रखें भाई!
हाँ सारे शंकाओं का उत्तर मिल गया
प्रतीक्षा रहेगी अगले अपडेट के लिए
 
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कहानी मे इरोटिका भी है और कामुकता भी लेकिन आप की लेखन शैली की वजह से यह शुद्ध पाक प्रेम कहानी बन गया और सेक्स भी एक श्रृंगार बन गया।

कल्पना कीजिए , जवान गबरू लड़का अमर अपनी प्रौढ़ मां के ठोस स्तनों को निर्वस्त्र कर दुध पी रहा है और मां उसके मजबूत लिंग को अपने हथेलियों से मर्दन कर रही है और वो भी कुसुम के सामने।
कल्पना कीजिए अमर अपनी मां के सामने ही एक मैच्योर और खुबसूरत नारी के स्तनों को निर्वस्त्र कर उसके ठोस परिपक्व स्तनों को अपने हाथो से दबा भी रहा है और मुंह लगाए दुध भी पी रहा है और नारी उसके मर्दाना लिंग को उस की मां के नजरो से छिपाकर दबा रही है मसल रही है।

इससे बढ़कर और क्या कामुक हो सकता है। लेकिन इतनी सफाई और सभ्य तरीके से लिखा गया है कि यह सब कहीं से भी अश्लील लगता ही नही।

काजल बहुत पहले ही समझ गई थी कि उसके बेटे के दिल की रानी कौन है और उसे अपनी रानी से मिलाने के लिए यथा संभव अप्रत्यक्ष रूप से मदद करती रही।

एक कहानी याद आ रहा है मुझे।
यूरोप के एक देश मे एक आदमी को ब्रैड चुराने के आरोप मे भूखे मरने की सजा सुनाई गई। उसे एक जेल मे बंद कर दिया गया। सजा ऐसी थी कि जब तक उसकी मौत न हो जाती तब तक उसे भूखा रखा जाए।
उसकी बेटी ने अपने पिता से मिलने के लिए सरकार से अनुरोध किया कि वह हर रोज अपने पिता से मिलेगी। उसे मिलने की इजाजत दे दी गई। मिलने से पहले उसकी तलाशी ले जाती कि वह खाने का कोई सामान नही ले जा सके। उसे अपने पिता की हालत देखी नही गई। वह अपने पिता को जिंदा रखने के लिए अपना दुख पिलाने लगी। जब कई दिन बीत जाने पर भी वो आदमी नही मरा तो पहरेदारो को शक हो गया और उन्होने उस लड़की को अपने पिता को अपना दुख पिलाते हुए पकड़ लिया। उस पर मुकदमा चला।
और सरकार ने कानून से हटकर भावनात्मक फैसला सुनाया। उन दोनो को रिहा कर दिया गया।

नारी कोई भी रूप मे हो , चाहे मां हो चाहे पत्नि, चाहे बहन हो चाहे बेटी ....हर रूप मे वात्सल्य त्याग और ममता की मूरत है।

एक और बेहतरीन प्रस्तुतीकरण भाई।
Outstanding & Amazing & brilliant.
 

avsji

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कहानी मे इरोटिका भी है और कामुकता भी लेकिन आप की लेखन शैली की वजह से यह शुद्ध पाक प्रेम कहानी बन गया और सेक्स भी एक श्रृंगार बन गया।

संजू भाई - बहुत बहुत धन्यवाद! :) 🙏

कल्पना कीजिए , जवान गबरू लड़का अमर अपनी प्रौढ़ मां के ठोस स्तनों को निर्वस्त्र कर दुध पी रहा है और मां उसके मजबूत लिंग को अपने हथेलियों से मर्दन कर रही है और वो भी कुसुम के सामने।
कल्पना कीजिए अमर अपनी मां के सामने ही एक मैच्योर और खुबसूरत नारी के स्तनों को निर्वस्त्र कर उसके ठोस परिपक्व स्तनों को अपने हाथो से दबा भी रहा है और मुंह लगाए दुध भी पी रहा है और नारी उसके मर्दाना लिंग को उस की मां के नजरो से छिपाकर दबा रही है मसल रही है।

इससे बढ़कर और क्या कामुक हो सकता है। लेकिन इतनी सफाई और सभ्य तरीके से लिखा गया है कि यह सब कहीं से भी अश्लील लगता ही नही।

जी भाई! अश्लीलता मुझे अच्छी नहीं लगती।
प्रेमालाप / प्रेमाचार बिना अश्लीलता के संभव है, मैंने यही दिखाया है अपनी हर कहानी में।
आपकी नज़र में यह बात आई, मतलब मेरी कोशिश सफल रही! :)

काजल बहुत पहले ही समझ गई थी कि उसके बेटे के दिल की रानी कौन है और उसे अपनी रानी से मिलाने के लिए यथा संभव अप्रत्यक्ष रूप से मदद करती रही।

जी भाई! काजल समझ भी गई, और मान भी गई।
वो अलग बात है कि सुनील और सुमन इस बात को अपने तक ही सीमित रखे हुए हैं।
लज्जा, बड़ों का लिहाज़, मित्र को खो देने का डर - ऐसे कारणों से!
देखते हैं लेकिन - बात निकल ही गई है, तो बहुत दूर तक जाएगी।

एक कहानी याद आ रहा है मुझे।
यूरोप के एक देश मे एक आदमी को ब्रैड चुराने के आरोप मे भूखे मरने की सजा सुनाई गई। उसे एक जेल मे बंद कर दिया गया। सजा ऐसी थी कि जब तक उसकी मौत न हो जाती तब तक उसे भूखा रखा जाए।
उसकी बेटी ने अपने पिता से मिलने के लिए सरकार से अनुरोध किया कि वह हर रोज अपने पिता से मिलेगी। उसे मिलने की इजाजत दे दी गई। मिलने से पहले उसकी तलाशी ले जाती कि वह खाने का कोई सामान नही ले जा सके। उसे अपने पिता की हालत देखी नही गई। वह अपने पिता को जिंदा रखने के लिए अपना दुख पिलाने लगी। जब कई दिन बीत जाने पर भी वो आदमी नही मरा तो पहरेदारो को शक हो गया और उन्होने उस लड़की को अपने पिता को अपना दुख पिलाते हुए पकड़ लिया। उस पर मुकदमा चला।
और सरकार ने कानून से हटकर भावनात्मक फैसला सुनाया। उन दोनो को रिहा कर दिया गया।

यह कहानी मैंने भी सुनी है।
लेकिन एक कहानी पढ़ी है - The Grapes of Wrath. पढियेगा अगर कभी समय मिले।
संघर्ष, दुःख, कष्ट पर आधारित है, शायद पसंद न आए। उसमें भी ऐसा ज़िक्र आया है।

नारी कोई भी रूप मे हो , चाहे मां हो चाहे पत्नि, चाहे बहन हो चाहे बेटी ....हर रूप मे वात्सल्य त्याग और ममता की मूरत है।

इस तथ्य से मुझसे अधिक शायद ही कोई इत्तेफ़ाक़ रखता हो।
यह शायद सोलह आने से भी अधिक सत्य है!

एक और बेहतरीन प्रस्तुतीकरण भाई।
Outstanding & Amazing & brilliant.

बहुत बहुत धन्यवाद मित्रवर!
आपके विचार पढ़ना हमेशा ही अच्छा लगता है! और अपडेट देने के बाद इंतज़ार भी रहता है।

आपके और, Lib am भाई, Kala Nag भाई, KinkyGeneral भाई, A.A.G. भाई, के प्रोत्साहन से ही कहानी यहाँ तक आई, नहीं तो कब का छोड़ देता।
सच में - गिन कर पाँच छः पाठक हैं, लेकिन क्या ही आनंद आता है उनके साथ बातें कर के!
आपकी बात पूरी तरह सही थी। 🙏

साथ में बने रहें! :)
 

avsji

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अंतराल - पहला प्यार - Update #19


सुनील भी तो माँ के साथ अंतरंग खेल खेलना चाहता था। काजल के कमरे से बाहर निकलने के कुछ क्षण बाद, सुनील ने माँ के स्तनों को पीना छोड़ दिया।

“दुल्हनिया,” वो बोला, “क्या हुआ?”

माँ से कुछ बोला नहीं गया - वो आँखें बंद किए, गहरी गहरी साँसे ले रही थीं।

“बोलो न!”

“जी? कुछ नहीं!”

“अरे, तो फिर अपनी आँखें तो खोलो!” उसने कहा।

माँ ने अपनी आँखें खोलीं - धीरे से। शर्माते हुए।

“आह्ह्ह दुल्हनिया,” सुनील ने अपने सीने को हाथ से सहलाते हुए एक बिना तैयारी की शायरी पढ़ डाली,

तेरी निगाहें भी कमाल करती हैं... किसी तेज़ ख़ंजर का काम करती हैं...
होना था मयस्सर तुम्हे मेरी बाहों में, लेकिन यूँ उठ कर मेरा क़त्लेआम करती हैं
!”


[साथियों - आपके इस नाचीज़ ने ही यह शेर लिखा है। ज़रा ग़ौर फरमाइएगा]

चाहे कितना भी कोई कण्ट्रोल करे, लेकिन ऐसी बातों पर बिना मुस्कुराए कोई कैसे न रहे? माँ भी मुस्कुरा उठीं। सुनील के गुण धीरे धीरे से सामने आ रहे थे। और उसका यह रोमांटिक पहलू बड़ा लुभावना था।

“हाय,” सुनील इतने में ही रुकने वाला नहीं था, उसका शायराना अंदाज़ जारी रहा,

दिल में इक तूफ़ान हो गया बरपा, के तुमने जब मुस्कुरा के देख लिया!”

माँ की मुस्कान और चौड़ी हो गई, “हो गई आपकी मनमानी पूरी?”

“मनमानी मेरी जान?” सुनील ने न समझते हुए कहा, “कैसी मनमानी?”

“अपनी अम्मा के सामने मेरे साथ ऐसे छेड़खानी करने की,” माँ ने इस बार काजल को उसके नाम से नहीं बुलाया, “यह सब अकेले में भी कर सकते थे न?” माँ कह रही थीं, और समझ भी रही थीं कि इस बात का मतलब बिलकुल साफ़ था। अब शक़ की कोई गुंजाईश नहीं थी।

“अभी अकेले में हैं दुल्हनिया!” सुनील शरारत से बोला, “अब कर लें?”

“कुछ नहीं मिलेगा,” माँ ने भी उसी शरारत वाले अंदाज़ में कहा - उनको भी आश्चर्य हुआ कि वो इतनी जल्दी सुनील से इस तरह से खुल गई थीं, “आज का कोटा पूरा!”

उन्होंने कहा और अपने स्तनों को ढँकने लगीं। लेकिन खेल तो अभी शुरू हुआ था।

“अरे दुल्हनिया, अम्मा अभी अभी तो बाहर गई हैं! थोड़ा ठहरो तो!”

उसने कहा और माँ के सामने घुटनों के बल खड़ा हो गया। जो कल्पना में था, अब उनके सामने प्रदर्शित था। बिना किसी आवरण के। माँ ने देखा - सुनील की उग्र मर्दानगी उनके सामने थी। यह एक बहुत ही मजबूत और बड़ा अंग था, और इस समय अपनी पूरी क्षमता से स्तंभित था। सुनील का रंग साँवला था, इसलिए उसके लिंग का रंग और भी गहरा था। उसके गहरे रंग ने उसको थोड़ा और डरावना बना दिया! माँ की आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गईं, और उनके दिल की धड़कन और तेज हो गई।

‘हाय भगवान्!’ उन्होंने सोचा, ‘ये तो असंभव है!’

उसके अंडकोष भी बड़े लग रहे थे। डैड के मुकाबले सुनील का लिंग कहीं बड़ा था - लम्बाई में भी, और मोटाई में भी! सुनील के जननांगों का स्वास्थ्य देख कर, उसकी यौन क्षमता और जनन क्षमता - दोनों का ही अंदाज़ा लगाना बहुत आसान था। मज़बूत कद-काठी का नवयुवक - मतलब उसके अंदर यौवन की ऊर्जा भरी हुई होगी! इन विचारों के आते ही माँ के शरीर में झुरझुरी होने लगी!

‘हे भगवान्!’

“कैसा लगा ये, मेरी जान?” सुनील ने शरारत से पूछा।

माँ क्या ही कह सकती थी? यह सारी बातें उनके लिए तो कितनी नई थीं! विधवा होने के बाद, उन्होंने अपने जीवन में फिर से, कभी भी ऐसा शरारती अनुभव पाने के बारे में कभी सोचा भी नहीं था... लेकिन सुनील उनको एक और अवसर दे रहा था - न केवल यह सब सोच पाने का, बल्कि पुनः प्यार पाने का... पुनः वैवाहिक जीवन का आनंद पाने का... पुनः चंचल, शोख़ तरीके से जीने का!

‘क्या ‘ये’ सचमुच मुझमें दिलचस्पी रखते हैं?’

‘मैं इतनी भाग्यशाली हो सकती हूँ क्या?’

‘सब कोई क्या कहेगा?’

‘ये कोई उम्र है मेरी!’

ये और इस तरह के कई सारे विचार उसके मानसिक कैनवस पर प्रकट हुए और गायब हो गए। यह सब बहुत भ्रमित करने वाला था। यह सब बेहद अद्भुत भी था, और डरावना भी! कुछ देर तक जब माँ कुछ नहीं बोलीं तो सुनील ने फुसफुसाते हुए कहा,

“मेरी प्यारी सुमन... मेरी दुल्हनिया... ये बस तुम्हारे लिए है...!”

और कह कर उसने अपने नितंबों को थोड़ा आगे की ओर धकेला, कुछ इस तरह कि अब उसका लिंग माँ के चेहरे के इतने करीब आ गया, जिससे वो उसका अच्छी तरह निरीक्षण कर सके।

माँ अच्छी तरह समझ रही थीं कि सुनील का लिंग इतने निर्लज्ज तरीके से क्यों स्तंभित है, लेकिन फिर भी उनके मुँह से निकल गया, “क... क्यों?”

सवाल मूर्खतापूर्ण था, लेकिन सुनील का उत्तर नहीं, “क्योंकि तुम मेरा प्यार हो दुल्हनिया... क्योंकि मैं तुम्हारे साथ अपना संसार बसाना चाहता हूँ!”

हालाँकि माँ अभी भी किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा सार्वजनिक रूप से प्यार किए जाने के झटके से जूझ रही थीं, जो उनका पति नहीं था, लेकिन फिर भी उन्होंने एक अजीब तरह का कायाकल्प महसूस किया। उनके मन में सुनील अब तक एक ऐसे व्यक्ति का रूप ले चुका था, जिसके साथ वो विवाह कर सकती थीं; जिसके साथ वो अपना परिवार बना सकती थीं; जिसके साथ वो अपना जीवन बिताना पसंद कर सकती थीं। सुनील आश्वस्त था, सहज था, सक्षम था, और सुदर्शन था! जहाँ वो माँ से बड़े सम्मान से बात करता और व्यवहार करता, वहीं वो उनसे चंचलता और शरारत करने से भी बाज़ नहीं आता था! वो जोखिम लेने से डरता नहीं था, और सबसे बड़ी बात - वो उनसे प्यार करता था। और अब वो अपने पैरों पर खड़ा होने ही वाला था!

उसको अब केवल अपना परिवार बनाने की इच्छा थी, और इस इच्छा के केंद्र में स्वयं माँ थीं। अब यह माँ पर ही निर्भर था कि वो सुनील की प्रेमिका और पत्नी का रूप लेती हैं, या नहीं! अगर उनको यह स्वीकार्य था, तो सुनील को अपने प्रेममय आलिंगन में आश्रय देने का काम माँ का ही होना था। उस नई भूमिका में माँ को ही सुनील का घर बसाना था, और उसके बच्चों की माँ बनना था! माँ ने सुनील की तरफ देखा, और फिर उसके लिंग की तरफ। वैवाहिक जीवन का आनंद... यही वो अंग है जो उनको उनके नए विवाहित जीवन का आनंद देने वाला था - और उनको फिर से माँ बनने का सुख देने वाला था।

“ये पसंद आया तुमको?” उसने बड़ी उम्मीद से पूछा।

सुनील बस इतना जानना चाहता था कि उसका लिंग, बाबूजी के लिंग के मुकाबले कहाँ ठहरता है। भैया का लिंग भी बड़ा है, लेकिन उसका थोड़ा मोटा है। उसको यह बात मालूम थी कि उसके और मेरे लिंग में कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं है - बस कोई उन्नीस बीस का! लेकिन भैया का लिंग थोड़े न जाएगा उसकी सुमन के अंदर! अगर सुमन को यह पसंद है, तो बल्ले ही बल्ले!

‘इतना स्वस्थ और सुन्दर पुरुषांग, लेकिन फिर भी ‘इनको’ संदेह है!’ माँ ने सोचा।

यह बड़ी हास्यास्पद सी बात है कि कैसे पुरुष अपने लिंग के आकार को लेकर असुरक्षित महसूस कर सकते हैं। माँ इस बात को सोच कर एक फीकी मुस्कान देने के अलावा कुछ नहीं कर सकीं। माँ को मुस्कुराता हुआ देख कर सुनील बहुत खुश हो गया!

“बोलो न!”

“मुझे आप पसंद हैं।”

कितनी छोटी सी बात है! लेकिन कितनी बड़ी!

जीवन की सबसे महत्वपूर्ण, सबसे असरदार बातें ऐसी ही, सरल सी, छोटी सी ही होती हैं। उन पर दिखावों का कोई मुलम्मा नहीं चढ़ाना पड़ता। उनकी सरलता का प्रभाव बड़ा भव्य होता है। अपनी सुमन के मुँह से अपनी स्वीकृति सुन कर सुनील धन्य हो गया। ख़ुशी का परावार न रहा।

“ओह दुल्हनिया! थैंक यू! थैंक यू!” सुनील ख़ुशी से लगभग नाच उठा, “मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ, सुमन... बहुत प्यार! थैंक यू फॉर अक्सेप्टिंग मी! ओह! इतनी ख़ुशी मिली है कि कह नहीं सकता!”

उसने अपने दोनों हाथों की मुट्ठियाँ बंधी, और हवा में दोनों हाथों को खड़ा कर के, ‘येएएएएएएएएए’ कह कर नाद किया।

जब खुश होवो, तो उसका इज़हार तो करना चाहिए ही। माँ जानती थीं कि उनके ‘हाँ’ कहने पर सुनील की प्रतिक्रिया ऐसी ही होगी। प्यार के लिए अपने दावेदारी मंज़ूर किए जाने पर यह स्वाभाविक था। लेकिन फिर भी वो उसको इतना खुश देख कर खुश हुईं। साथ ही साथ उनको डर था कि कहीं बाहर से काजल सुनील का चीखना चिल्लाना न सुन ले। सब ठीक था, लेकिन फिर भी वो इतनी जल्दी काजल को सब बताने से डर रही थीं। प्यार के अंकुर बस फूटे ही थे, कहीं काजल की निराशा या गुस्सा उस अंकुर को कुचल न दे!

“अरे बस बस!” माँ ने दबी आवाज़ में कहा, “सम्हालिए अपने आप को!”

“ओह दुल्हनिया,” सुनील ने कहा और वैसे ही, घुटनों के बल खड़े खड़े माँ से लिपट गया। ऐसा करने से उसका लिंग माँ के बाएँ गाल से सट गया। उस गर्म, उत्तेजित अंग का स्पर्श पा कर माँ सिहर गईं। दो साल हो गए सन्यासी बने! अब जल्दी ही उसका अंत होने वाला था। ‘हे प्रभु!’

उधर सुनील ‘आई लव यू, आई लव यू’ का लगातार जाप कर रहा था। कुछ देर बाद उसको समझा कि वो दोनों किस अवस्था में आलिंगनबद्ध हैं। वो उनसे अलग हुआ, और बड़े प्यार और अनुरोध से उसने माँ का हाथ अपने हाथ में लिया, और उसको अपने लिंग पर रख दिया, ताकि उनका हाथ उसके लिंग पर लिपट जाए। फिर माँ के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए, उसने धीरे-धीरे अपनी चमड़ी को पीछे की ओर खिसकाया। उसके शिश्नाग्रच्छद को पीछे सरकाने में थोड़ी दिक्कत तो हुई, लेकिन जैसे ही उसकी चमड़ी आगे की तरफ से हट गई, वैसे ही उसके लिंग का मोटा सा मुण्ड कमरे की रौशनी में चमक उठा। प्री-कम का एक पतला सा तार उसके मुण्ड के निकास से हो कर, उसकी चमड़ी पर लगा हुआ था। थोड़ा डरावना और अश्लील सा दृश्य था!

आश्चर्य की बात नहीं, कि माँ उस दृश्य को देख कर घबरा गईं। वो सोच में पड़ गई कि इतने लम्बे और मोटे से अंग को वो अपने अंदर कैसे लेंगी, और इसको अपने अंदर महसूस कर के उनको कैसा लगेगा! कैसे वो सुनील के जोश का सामना करेंगी! कैसे वो सम्भोग में उसका साथ देंगी! उम्र के इस पड़ाव में यह नया अनुभव! यह अनुभव करना भी चाहिए, या नहीं? सुनील से सम्भोग के बारे में सोचकर माँ का पूरा शरीर काँप उठा!

न चाहते हुए भी वो सुनील के लिंग की तुलना डैड के लिंग से करने लगीं! डैड के लिंग से कोई चार सेंटीमीटर और लम्बा, और कम से कम डेढ़ सेंटीमीटर और मोटा! गहरा रंग, और युवावस्था की ऊर्जा से भरपूर! कठोर! पहली बार जब डैड का लिंग उनके सामने आया था, तब भी माँ को वैसा ही डर लगा था, जैसा कि अब लग रहा था।

कुछ समय बाद, यह सोच कर कि माँ ने अपना मूल्यांकन पूरा कर लिया है, सुनील ने बड़ी उम्मीद से पूछा,

“इसको चूमोगी, दुल्हनिया?”

माँ को लगा जैसे वो कोई जादू की छड़ी पकड़े हुए हैं। वो सुनील के दिल की धड़कनें उसके लिंग पर महसूस कर सकती थीं। प्रकृति का कैसा अनूठा खेल! माँ के कई अंगों पर अपने चुम्बनों की मोहर लगा कर सुनील ने उन पर अपनी दावेदारी प्रस्तुत करी थी। आज वो माँ से भी इसी उम्मीद में था। माँ समझ रही थीं, कि यदि उन्होंने सुनील के लिंग को चूम लिया, तो यह उनकी सुनील के लिए स्वीकृति की वृद्धि और मज़बूतीकरण ही होगी। सुनील ज़ोर नहीं दे रहा था, वो बस उनसे पूछ रहा था। उसको उम्मीद थी कि उसकी सुमन उसकी इच्छा मानेगी! दो क्षण मानों दो घंटे समान बीते।

माँ झिझक रही थीं, लेकिन कालचक्र ने उनके जीवन को जिस दिशा में मोड़ दिया था, अंततः उन्होंने उसी दिशा में चलने का निर्णय ले लिया।

‘अगर ईश्वर की यही इच्छा है कि मैं ‘इनकी’ पत्नी बन जाऊँ, तो यही सही!’

इसी भावना के वशीभूत हो कर माँ थोड़ी सी आगे की ओर झुकीं और उन्होंने सुनील के लिंग के सिरे पर एक छोटा सा चुम्बन दे दिया - बस इतना ही कि जिससे उनके होंठ, उसके शिश्नमुण्ड को बस छू भर लें।

लेकिन सुनील के लिए बस इतना ही काफी था! और यह कोई छोटी बात भी नहीं थी। उसके लिंग पर माँ का चुम्बन उसके लिए एक स्वीकृति थी। इतना तो सुनील भी जानता था कि सुमन जैसी स्त्री, अपने पति के अलावा, किसी और पुरुष के लिंग को नहीं चूम सकती! इतना पक्का चरित्र तो था उसका। अम्मा (काजल) भी भैया (मेरा) का लिंग चूमती थी, और उसके मन में भी भैया (मुझ) को ले कर अपने प्रेमी या पति वाले ही भाव थे। इसका मतलब यह कि सुमन के मन में उसको पति वाला स्थान मिल गया है! क्या बात है!

उसने माँ के गालों को सहलाया और उनके मुँह को चूम लिया। उस चुम्बन ने माँ की किस्मत पर सुनील के नाम की मोहर लगा दी, और उनकी किस्मत को सुनील की किस्मत के साथ बाँध दिया। अब यह तय था कि माँ सुनील की है और सुनील माँ का - हमेशा हमेशा के लिए।

“थैंक यू मेरी जान! थैंक यू! आई लव यू!” सुनील ने कहा, “मेरी सुमन... मेरी जान... मेरा प्यार! मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ! उम्र भर करता रहूँगा! अब मैं तुमको कभी भी, कोई भी दुःख नहीं होने दूँगा! ये मेरा तुमसे वायदा है!”

सुनील की बात सुन कर, माँ का दिल ज़ोरों से धड़क उठा।

खुद को ऐसी शिद्दत से चाहे जाने का एहसास बहुत घातक होता है! आपको लगने लगता है कि संसार का केंद्र केवल आप ही हैं - एक तरीके से यह सही भी है! किसी महबूब के लिए उसकी महबूबा, उसका संसार ही होती है! वो ही उसका घर बसाती है, उसको सम्हालती, सँवारती है! एक दूसरे के प्रेम पर ही उनका सारा संसार टिका रहता है। माँ बेहद सरल सी महिला थीं - उनको अपने लिए प्यार का इस तरह का जूनून पहली बार देखने को मिला था। उनसे सुनील का यह अवधान (अटेंशन) सम्हल नहीं पा रहा था। ऐसा क्या कर दिया उन्होंने कि उनको यह सब सुख फिर से जीने को मिले - वो बार बार यही बात सोच रही थीं।

सुनील के लिए स्वीकृति देने के बावज़ूद उनको एक तरह की ग्लानि हो रही थी! ग्लानि इस बात की कि विधवा होने के बावजूद वो अपने साथ यह सब होने दे रही थीं। उनको संयम दिखाना चाहिए था। क्या उनकी नई इच्छाएँ गलत नहीं थी? क्या उनकी हरक़तें गलत नहीं थीं? अपने से इतने छोटे लड़के के साथ यह सब! सब कुछ बहुत अलग सा था! उनको सुनील के साथ होना अच्छा भी लग रहा था, और बेहद खतरनाक भी! घबराहट में उनके पेट में हलकी सी मरोड़ उठने लगी! उसके साथ और अधिक देर अकेला न रहना पड़े, इसलिए मौका मिलते ही माँ ने वहाँ से भाग लेने का फैसला किया।

वो बिस्तर से उठीं और बड़ी विनम्रता से बोलीं,

“मैं जा कर का...आजल [काजल नाम लेते हुए वो थोड़ा हिचकिचाईं] की मदद करती हूँ…”

वो केवल डेढ़ कदम ही चल पाई होंगीं, कि सुनील ने पीछे से उनका हाथ पकड़ कर उनको रोक दिया।

“अरे रुको न मेरी जान!” वो शरारत से मुस्कुराया, “जब अम्मा की बहू बन जाना, तो जितना मन हो, उनकी मदद कर लेना! ... पहले हम थोड़ा रोमांस तो कर लें!”

उसने कहा और पलंग के किनारे पर बैठा गया। उसने माँ को अपनी ओर खींच लिया और उनकी कमर में अपनी बाहें डाल कर बड़े प्यार से उनको देखा। खड़े होने से उनके स्तन थोड़े से छोटे, और थोड़े अधिक पुष्ट लग रहे थे! सच में - गुरुत्व का कोई प्रभाव ही नहीं था जैसे! उनको उस अवस्था में देख कर सुनील को वो ‘वीनस ऑफ़ अरलेस’ नामक ग्रीक प्रतिमा याद आ गई। वैसी ही लग रही थीं माँ।

‘कैसी अद्भुत सुंदरी है मेरी सुमन!’

“ओह सुमन... मेरी सुन्दर दुल्हनिया... मेरी प्यारी दुल्हनिया, कितनी सुन्दर हो तुम! कुछ आईडिया भी है तुमको?” सुनील उनकी आँखों में देखते हुए मुस्कुराया, “कितना लकी हूँ मैं कि तुम मुझे मिली! कोई बहुत अच्छे काम किए होंगे मैंने!” सुनील का भावुक संवाद जारी था, “मैं तुमको बहुत प्यार करता हूँ... बहुत! एक पल के लिए समाज या और लोगों के बारे में सोचना बंद कर दो, और बस अपने... और... हमारे बारे में सोचो!”

बात तो सच ही थी - माँ को ‘अपने’ और ‘उन दोनों’ के बारे में सोचने में डर लग रहा था। एक विधवा के लिए हमारे समाज में वैसे ही कई सारी दिक्कतें होती हैं। और अगर विधवा उनके जैसी हो, फिर तो और भी! उम्र का अंतर, रिश्तों का असमंजस! न जाने कितनी अड़चनें थीं। लेकिन अड़चनों के पार प्रेम भरा संसार था - जिसकी कोमल कल्पना मात्र से उनके हृदय में गुदगुदी हो रही थी। सुनील ने बड़ी तेजी से उनके मन मंदिर में अपना स्थान बना लिया था, लेकिन माँ समाज का डर अपने मन से नहीं निकाल पा रही थीं। घर में अन्य किसी को नहीं मालूम था उन दोनों के बारे में - न मुझे, न काजल को (ऐसा माँ को लग रहा था), न दोनों बच्चों को (ऐसा माँ को लग रहा था), न ही उनके मित्रों और दूर के रिश्तेदारों को! कैसे बतायेंगीं वो सबको इस बारे में! और वो लोग क्या कहेंगे!! पूरी उम्र इज़्ज़त कमाने में निकल गई - सब यूँ ही चली जाएगी!

न जाने कैसे सुनील ने उनकी मन की बातों को पढ़ लिया और बोला,

“मेरी जान, तुम किसी बात की चिंता न करो! अब जबकि मुझे तुम्हारा साथ मिल गया है, तो मैं कुछ भी कर सकता हूँ! अम्मा और भैया को मैं मना लूँगा! वो दोनों हमसे नाराज़ नहीं रह सकते। और मुझे यकीन है कि हमारे बच्चे - मिष्टी और पुचुकी, हमारे दोस्त - सब लोग हमारे लिए बहुत खुश होंगे, और हमारी ख़ुशी में शामिल होंगे!”

कह कर उसने माँ के दोनों स्तनों के बीच में चूमा। सुनील के दिलासे पर माँ का मन कुछ हल्का हुआ - वो मुस्कुरा दीं। वैसे भी सुनील के साथ बिना मुस्कुराए रहा नहीं जा सकता। स्वतः ही उनके दोनों हाथ उठ कर सुनील के सर के बालों में उलझ गए।

“सच में?” माँ ने बड़े कोमल भोलेपन, और बड़ी उम्मीद से पूछा, “आपको ऐसा लगता है?”

“तुम्हारा हाथ थामा है मैंने! किसी भी मुश्किल में उसको छोड़ूँगा नहीं!” सुनील उनके स्तनों को चूमता हुआ बोला, “अब हम जल्दी ही एक होने वाले हैं! हमेशा हमेशा के लिए!”

“मैंने,” माँ ने हिचकते हुए कहा, “मैंने कभी सोचा भी नहीं था!”

“क्या दुल्हनिया?”

“कि... आप... आप मेरे...” माँ बोलती बोलती रुक गईं।

“कि मैं तुम्हारा?” सुनील ने उनको छोड़ा, “तुम्हारा क्या?”

“कि आप... आप मेरे सब कुछ... मेरे सब कुछ बन जाएँगे!” माँ ने बड़ी झिझक, बड़ी शिष्टता, और बड़ी कोमलता से कहा।

ऐसी बात पर किसको प्यार न आ जाए? सुनील तो हमेशा से ही माँ का मुरीद रहा है, लेकिन माँ की स्वीकृति पा कर वो खुद को दुनिया का सबसे भाग्यशाली आदमी मानने लगा था। सच भी तो है - माँ जैसी लड़कियाँ बड़े भाग्य से मिलती हैं! उत्तर में सुनील ने माँ को अपने आलिंगन में समेट लिया - ऐसे कि उसके दोनों हाथ माँ के गिर्द लिपट गए और चेहरा उनके सीने में! ऐसे आलिंगन के सोने में सुहागा थी माँ के शरीर की ख़ुशबू और उनका कोमल स्पर्श। ऐसा अनोखा आनंद था माँ लो आलिंगनबद्ध करना कि वो उनको छोड़ना ही नहीं चाहता था।

कुछ देर ऐसे ही रहने के बाद माँ ने बड़े स्नेह से पूछा, “अब जाऊँ?”

अभी न जाओ छोड़ कर, के दिल अभी भरा नहीं!” सुनील का शायराना अंदाज़ अभी भी जीवित था।

“क्या करना है आपको?”

“करने दोगी? मना तो नहीं करोगी?”

माँ ने पहले ‘हाँ’ में, और फिर ‘न’ में सर हिलाया। ऐसी भोली लड़की कौन नहीं चाहता?

सुनील मुस्कुराया, और साथ ही माँ की साड़ी को उनके पेटीकोट से बाहर निकालने लगा! माँ को शायद अंदेशा भी नहीं था, कि उस वक़्त सुनील उनके साथ ऐसा भी कुछ कर सकता था। माँ उसके सामने खड़ी हुई शर्म से थरथराने लगीं। जिस बात को ले कर उनको घबराहट हो रही थी, अब वही बात उनके साथ हो रही थी! उनके मन के किसी कोने में लग रहा था कि सुनील जो कुछ कर रहा है, वो सही है, उचित है! अगर उनका पति ही उनको नग्न नहीं देख सकता तो और कौन देख सकता है? लेकिन एक दूसरी आवाज़ उनको बोल रही थी कि ऐसा न हो कि वो दोनों बहुत आगे निकल जाएँ! वैसा होने से पहले ही उनको सुनील को यह सब करने से रोक देना चाहिए! लेकिन रोकना तो दूर, उलटे उनके गले से एक घबराहट भरी सिसकी निकल पड़ी।

सुनील की हरकत में किसी प्रकार की कोई भी झिझक नहीं थी; वो जो कर रहा था, वो बड़े आत्मविश्वास से कर रहा था। कुछ ही पलों में माँ की साड़ी ज़मीन पर पड़ी हुई थी, और सुनील की उँगलियाँ उनके पेटीकोट का नाड़ा ढीला कर रही थीं।

“ये...” माँ ने घबराते हुए कहा, “ये सब... बाद में...”

सुनील ने माँ को देखे हुए ‘न’ में सर हिलाया।

माँ चुप हो गईं। न जाने कैसे सुनील की हरकतों को वो रोक ही नहीं पा रही थीं। उसके हर काम में ऐसी शिद्दत थी कि उसको रोकने की हिम्मत ही नहीं कर पाती थीं माँ! उनको अपने निचले शरीर पर से पेटीकोट का कपड़ा फिसलता महसूस हुआ और बस ऐसे ही, अचानक ही वो उसके सामने पूर्ण नग्न खड़ी थीं। माँ सकपका गईं। लेकिन अभी तक सुनील ने नीचे नहीं देखा था - उसकी नज़रें माँ के चेहरे पर ही टिकी हुई थीं। उनके दोनों हाथ स्वतः ही अपनी योनि पर आ कर ठहर गए - एक आवरण के रूप में।

‘पति अपनी पत्नी को नग्न कर सकता है!’ माँ झिझक तो रही थीं, लेकिन यही एक ख़याल उनके मन में आ रहा था!

सुनील के हाथ अब माँ के नग्न नितंबों को सहला रहे थे, “दुल्हनिया, तुम जवान हो। तुमको पूरा हक़ है कि तुम एक सुखी जीवन बिताओ! तुम अपनी हर इच्छा पूरी करो। और यह बड़ी किस्मत है मेरी, कि तुम मेरी वाइफ हो!”

“मुझे भी आपसे प्यार है,” माँ ने भावनात्मक रूप से ऐसे भारी माहौल होने के बावजूद कहा, “मैं भी तो लकी हूँ!”

“मुझसे अधिक नहीं, दुल्हनिया! मुझसे अधिक नहीं!”

उसने कहा, और माँ की नाभि पर एक ज़ोर का चुम्बन जड़ दिया। माँ सहम गईं। जब इच्छाएँ मूर्त रूप लेने लगती हैं, तो अचानक ही घबराहट होने लगती है। सुनील और वो - एक साथ - अब यह बात एक सच्चाई थी।

सुनील ने अपनी हथेली से माँ की जाँघों के बाहरी हिस्से को सहलाया, “इतनी चिकनी... इतनी मजबूत!” और अपनी हथेली पर माँ के जाँघ मज़बूत मांसपेशियों को महसूस किया, और उनकी बढ़ाई करी।

व्यायाम, संतुलित और पौष्टिक आहार, और अनुशासित जीवन जीने के कारण माँ के शरीर का आकार सुडौल था, शरीर में स्वाभाविक लचक थी, और उनकी त्वचा में ताज़गी थी। अपने साधारण से पहनावे में, और बिना किसी मेकअप के भी वो अपनी उम्र से दस बारह साल कम की एक खूबसूसरत महिला की तरह दिखती थीं। और ये तब था जब वो डिप्रेशन की मार झेल रही थीं। माँ सचमुच में एक सुंदर, स्वस्थ, और मजबूत महिला थीं। सुनील अपने आँकलन में बिल्कुल सही था। बस उसको यह नहीं मालूम था, कि माँ की प्रजनन क्षमता अभी भी बरक़रार थी, और अपने शिखर से बस थोड़ा ही ढलान पर पहुँची थी। इसमें सुनील का कोई दोष नहीं। शायद माँ को भी यह बात ठीक ठीक मालूम नहीं थी!

आज कल तो शहर की बहुत सी महिलाओं को चालीस की होते होते ही रजोनिवृत्ति हो जाती है! यदि रजोनिवृत्ति नहीं भी होती है, तो भी उनकी प्रजनन क्षमता क्षीण हो जाती है। और यौन क्षमता तो उसके भी पहले क्षीण हो जाती है। आज कल समय बदल गया है, खान पान ठीक नहीं है, बेहद तनावग्रस्त जीवन है, प्रसन्न कोई रहता नहीं, और तंदरुस्ती की तरफ किसी का कोई ध्यान नहीं है। लोगों का पूरा दिन बैठे बैठे, या लेटे लेटे बीत जाता है। टीवी, फ़ोन, और लैपटॉप के सामने बैठे बैठे दिन के पूरे पंद्रह सोलह घंटे स्वाहा हो जाते हैं। प्रोसेस्ड फ़ूड, फ़ास्ट फ़ूड, तला भुना और रोग-कारक खाना, तनाव, पैसों के पीछे अंधी घुड़दौड़, धन के सामर्थ्य से अधिक वस्तुओं को एकत्र करने की चाह, ऐसे अनेकानेक कारण हैं जिससे क्या स्त्री, क्या पुरुष, दोनों की ही प्रजनन क्षमता बड़ी जल्दी ही क्षीण हो जाती है। अंधाधुंध ‘विकास’ का एक असर यह हुआ है कि वातावरण बुरी तरह से प्रदूषित हो गया है - उसके कारण क्या स्त्री और क्या पुरुष - दोनों की ही प्रजनन क्षमता क्षीण हो रही है! दोनों का ही स्वास्थ्य क्षीण हो रहा है! लेकिन सामान्य लोगों के विपरीत, माँ का जीवन हमेशा से ही संयमित और स्वस्थ था। उनकी आदतें स्वस्थ थीं। उन्ही की आदतें हम सभी में आई थीं, और हम सभी उन्ही का अनुसरण कर रहे थे। साथ ही साथ अनुवांशिक गुणों का भी सकारात्मक प्रभाव हो सकता है। इसलिए चालीस के पार हो जाने के बाद भी, उनके शरीर की हर प्रणाली अपने शिखर पर काम कर रही थी। वैसे भी मुझे नहीं लगता कि सुनील ने कभी भी माँ की प्रजनन क्षमता पर कभी कोई संदेह भी किया होगा... अन्यथा वो माँ के साथ बच्चे पैदा करने के सपने नहीं देखता!

उसने बड़ी तसल्ली से उनकी जाँघों को कई स्थानों पर चूम चूम कर अपने प्रेम की मोहर लगाई। माँ का पूरा शरीर इस समय एक अजीब सी सनसनी महसूस कर रहा था। घबराहट के कारण, या फिर कामुक उत्तेजना के कारण, या फिर उन दोनों के मिले-जुले प्रभावों के कारण, उनका शरीर काँप रहा था। समान प्रकार का कम्पन सुनील के शरीर में भी हो रहा था, लेकिन वो एक ऐसे व्यक्ति के समान व्यवहार कर रहा था, जिसको जीवन की आखिरी लौ मिली हुई हो! हाँलाकि यह सब करना उसके प्लान में शामिल नहीं था। प्लान करना तो दूर, उसने यह सब करने की सोची भी नहीं थी। लेकिन एक बार अपने प्यार के सामने खुल जाने के बाद, जब उसने उनको विपरीत तरीके से रियेक्ट न करते देखा, तो उसकी हिम्मत बढ़ गई, और वो अपनी भावनाओं के अनुकूल हरकतें करने लगा।

“अब जाने दीजिए?” माँ ने कहा - कहा या अनुनय किया।

“ऐसे नहीं दुल्हनिया,” सुनील बोला, “आज तो तुम्हारे हर अंग पर मेरे प्यार की मोहर लगेगी! तभी जाने दूँगा तुमको।”

“लेकिन... आह्ह्ह!” माँ ने एक बेहद क्षीण विरोध किया ही था कि सुनील के एक और चुम्बन से उनकी आह निकल गई।

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अंतराल - पहला प्यार - Update #20


उधर कमरे के बाहर काजल दबे पाँव चलते हुए माँ के कमरे के पास आई, और चुपके से दरवाज़े को थोड़ा सा खोल कर, बिना कोई आवाज़ किए, परदे की आड़ से अंदर झाँकी।

‘तो लड़के ने हिम्मत कर ही ली!’ काजल मुस्कुराते हुए सोचने लगी।

अंदर का नज़ारा वैसा ही था, जैसी कि उसको उम्मीद थी। या फिर ये कह लें, कि उम्मीद से थोड़ा बेहतर ही! सुमन पूरी तरह निर्वस्त्र हो कर उसके बेटे के सामने खड़ी थी, और उसका बेटा उसके पुट्ठों को थामे, उसकी जाँघों को जगह जगह चूम रहा था! अपने एकलौते बेटे की शादी को ले कर काजल के मन में भी कई सारे अरमान थे - कि उसकी सुन्दर सी, सर्वगुण संपन्न, सुशील, सुगढ़, और संस्कारी बहू हो। हम सभी जानते हैं कि अपने होने वाले जीवनसाथी के गुणों की पूरी एक फ़ेहरिस्त होती है हमारे पास। उस फ़ेहरिस्त के सभी बिन्दु पूरे हो जाएँ, वो संभव नहीं होता। लेकिन सुमन के रूप में उसकी सारी इच्छाएँ पूरी होती नज़र आ रही थीं।

क्या सच में प्रार्थनाएँ इतनी जल्दी सच होती हैं? काजल का दिल स्नेह और ममता से भर आया। अपनी चहेती दीदी - नहीं, दीदी नहीं, बहू - को फिर से सुख पाते देख कर उसको बहुत भला लगा। काजल ने सुमन को नग्न पहले कई बार देखा था, लेकिन आज एक अलग बात थी। आज वो उसके बेटे की हो गई थी! और वो उसकी बहू हो गई थी। आज सब कुछ बदल गया था। आज से सुमन अपनी है... अपने घर की। आज से उसकी एक और बेटी है - प्यार करने के लिए! यह एक अद्भुत सी अनुभूति थी।

उसने एक आखिरी नज़र और डाली, और चुपके से दरवाज़ा बंद कर के वहाँ से चली गई।


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सुनील माँ के शरीर के हर अंग पर तसल्ली से अपने चुम्बनों की मोहर लगा रहा था। माँ ने अभी भी अपनी योनि ढंकी हुई थी, और सुनील कोशिश भी नहीं कर रहा था उनका हाथ वहाँ से हटाने की। उसने माँ की जाँघों के अंदरूनी हिस्से को सहलाया। जैसे-जैसे वो माँ के शरीर को और देखता और महसूस करता जा रहा था, माँ के लिए उसकी प्रशंसा और भी अधिक बढ़ती जा रही थी।

“अब एक ही चाह बाकी है मेरी जान... कि हम दोनों हमेशा के लिए एक हो जाएँ, और हमारा एक छोटा सा संसार बनाएँ!” वो कह रहा था, और साथ ही साथ माँ की जाँघों को सहला भी रहा था, “सच अ स्ट्रांग वेसल फॉर आवर फ्यूचर चिल्ड्रन!” उसने माँ के कानों में फुसफुसाते हुए कहा, “मेरी सुमन, हमारे बच्चे बहुत सुंदर, हेल्दी और स्ट्रांग होंगे!”

उसने माँ के कूल्हे के किनारे को छुआ, “यू आर सच अ परफेक्ट ब्यूटी…”

माँ की हालत बड़ी अनोखी थी। उन्होंने बड़े लंबे समय के बाद अपने शरीर पर किसी पुरुष का स्पर्श महसूस किया था - एक ऐसे पुरुष का, जो आत्मविश्वासी है, जो उनसे प्रेम करता है, और जो एक दैवीय प्रसाद के रूप में उनका पति बनने जा रहा है। इसलिए माँ समझ नहीं पा रही थी कि वो उसकी हरकतों पर कैसी प्रतिक्रिया दें। उनके मन में आया कि वो सुनील के स्पर्श को अस्वीकार कर दें, लेकिन उनको बहुत अच्छा लग रहा था। उनके मन में आया कि वो सुनील के स्पर्श का खुल कर स्वागत करें, लेकिन उनको बहुत झिझक भी हो रही थी।

“दुल्हनिया,” सुनील ने अपने हाथों से माँ के एक नितम्ब को साइड से दबा कर बोला, “ज़रा पलटना तो... एक बार?”

सुनील बोला, और न जाने किस प्रेरणावश वो पलट भी गईं। कैसे न करतीं? न जाने कैसा अद्भुत प्रभाव था सुनील का उन पर! उसके बोलने में वही, पति वाला अधिकार भाव था। वो पूरी तरह से अशक्त हो गईं थीं उसकी किसी भी बात को मना कर पाने में!

माँ मुड़ गईं। उनकी आँखें बंद थीं, और देख कर ऐसा लग रहा था कि वो अब गिरी कि तब गिरी। शायद सुनील को भी उसके थरथराते हुए शरीर से इस बात का आदेश हो गया था, इसलिए उसने माँ को एक हाथ से थाम रखा था। उसने बारी बारी से माँ के दोनों नितम्बों को सहलाया। एक लम्बे अर्से के बाद माँ की नग्न सुंदरता देखने की सुनील की तमन्ना आज पूरी हो गई थी।

कई वर्षों पहले सुनील के मन के अंदर माँ के लिए आकर्षण का जो पौधा उत्पन्न हुआ, जो उनके गुणों से सिंचित होते होते कब अगाध प्रेम में बदल गया, वो उसको भी नहीं मालूम चला। और उसी प्रेम की ताकत थी कि वो जाने अनजाने, इतने वर्षों तक, खुद को माँ के लायक बनाने का भरपूर प्रयास करता रहा। उसने पूरी मेहनत और लगन से अपनी पढ़ाई करी और एक अच्छी नौकरी हासिल करी। माँ के लिए उसके प्रेम ने उसके व्यक्तित्व का न केवल निर्माण ही किया, बल्कि उसका पोषण भी किया और उसको निखारा भी! बस ये समझ लीजिए कि इतने वर्षों की तपस्या का उसको अब फल मिल रहा था!

सुनील ने बारी बारी से माँ की दोनों नितम्बों को भी चूम लिया। अब माँ के लगभग हर अंग पर सुनील के चुम्बनों की मोहर लग गई थी! अब कहीं जा कर वो संतुष्ट हुआ! अपनी सुमन के हर अंग को चूम कर उसने अपने प्रेम की उपस्थिति तो दर्ज़ कर दी! संतुष्ट हो कर उसने माँ को वापस अपनी ओर पलटा। माँ के दोनों हाथ अब तक उनकी योनि से हट गए थे। सुनील ने देखा अवश्य, लेकिन फिलहाल उसने झुक कर माँ की अक्षकास्थि (कॉलर बोन) को चूम लिया। उस चुंबन में कुछ भी कामुक नहीं था... बल्कि, वो एक बहुत ही स्नेही चुंबन था। उसके चुम्बन में उसके प्रेम के जुनून की गर्मी के साथ-साथ सुनील के मन ने माँ के प्रति उनका सम्मान भी निहित था। लेकिन माँ को लगा कि जहाँ पर सुनील ने चुम्बन दिया, वहां पर उनकी त्वचा जैसे झुलस गई हो। उनको ऐसा लगा जैसे सुनील का चुंबन उसकी त्वचा में समां गया हो। सदा के लिए!

“मेरी जान,” उसने कहा, “आँखें खोलो न!”

माँ ने बड़ी झिझक से आँखें खोलीं।

“आई लव यू!”

कितनी ही बार ये तीन साधारण से शब्द प्रेमी-प्रेमिकाओं ने कहे होंगे। लेकिन उनमें निहित कोमल, किन्तु बलवान भावनाएँ, हर बार नई होती हैं और हर एक के लिए अलग अलग होती हैं। सुनील के कहने के अंदाज़ में जो सच्चाई थी, वो माँ से अनसुनी नहीं रह सकी।

माँ शर्माते हुए मुस्कुराईं, “मी टू!” उन्होंने भी सुनील के ही जैसी सच्चाई से कहा।

ऐसी सहज स्वीकृति किसके दिल में गुदगुदी न कर दे? सुनील मुस्कुराया और तब उसने नीचे देखा। माँ की योनि अंततः सुनील के सामने उजागर थी। माँ ने हड़बड़ा कर सुनील की तरफ़ देखा - उनको शर्म आ रही थी कि उन्होंने अपनी योनि के सौंदर्यीकरण की एक लम्बे समय से उपेक्षा कर रखी थी। घने, घुंघराले, काले बालों का अव्यवस्थित जंगल उनकी योनि को पूरी तरह से ढँके हुए था। उनके मन में आया कि कहीं ‘उसको’ ऐसे अनावृत हुए, अपने मूर्त रूप में देख कर सुनील को ‘उससे’ और उनसे घृणा न महसूस होने लगे। लेकिन माँ की योनि के दर्शन होते ही सुनील जैसे हतप्रभ हो गया!

माँ अपना हाथ बढ़ा कर अपनी नग्नता सुनील से छुपाना चाहती थीं, लेकिन सुनील को ‘उस तरफ’ ऐसे आस भरे, आश्चर्य, और प्रशंसा वाले भाव से देखते हुए देख कर, वो कुछ कर न सकीं। सुनील ने बड़ी सावधानी से - जिससे माँ को कोई चोट न लगे - अपनी उँगलियों से उनके पशम हटा कर ‘वहाँ’ देखा - माँ की योनि-पुष्प की पंखुड़ियाँ आपस में चिपकी हुई थीं, और बहुत कोमल लग रही थीं। उनकी योनि के होंठों की रंगत उनके शरीर के समान ही गोरी थी - बस थोड़ी सी ही गहरी रंगत लिए हुए थी। लेकिन घने बालों के कारण उसकी सुंदरता देख पाना संभव नहीं था।

लेकिन शायद था - कम से कम सुनील के लिए तो था!

“दुल्हनिया?”

“जी?” माँ के मुँह से अनायास ही निकल गया।

“कितनी सुन्दर है ये!”

सुनील की बात पर माँ के शरीर में शर्म की लहर दौड़ गई।

‘ये,’ माँ ने सोचा, ‘सुन्दर है?’ सुनील के मुँह से अपने गुप्ताँग के लिए यह शब्द सुन कर उनको बड़ा अनोखा, बड़ा अजीब सा लगा।

“गुलाब के फूल की पँखुड़ियों जैसी!”

‘गुलाब का फूल!’

लेकिन असली आघात तो अभी आना बाकी था - सुनील ने अपनी उंगली को माँ की बिकिनी लाइन पर चलाया और उनकी योनि के V पर आ कर रुक गया।

“कितनी कोमल है!”

‘कोमल?’

क्योंकि माँ नीचे नग्न थीं, इसलिए सुनील की उंगलियाँ अपनी खोज-बीन करने के लिए स्वतंत्र थीं... और उसने तसल्ली से वहाँ पर खोजबीन करी।

“ओह गॉड! दुल्हनिया, कितनी सुन्दर सी बुर है तेरी!” वो अपने में ही बड़बड़ाया, “ओह! और कैसी बुलंद किस्मत है मेरी!” बिलकुल मंत्रमुग्ध सा!

बोला तो उसने बहुत धीमे से, लेकिन कमरे में इतनी ख़ामोशी थी कि माँ ने सुन लिया। उनको शर्म तो आ रही थी, लेकिन मन के किसी कोने में गर्व की अनुभूति भी हुई, जब सुनील ने उनके गुप्तांग की ऐसी बढ़ाई करी।

“दुल्हनिया...” सुनील कुछ कहना चाहता था, लेकिन कह नहीं सका।

अब तक घबराहट और उत्तेजना से माँ की साँसें चढ़ गईं थीं। कमोवेश वैसी ही हालत सुनील की भी थी, लेकिन न जाने कैसे वो खुद पर नियंत्रण बनाए हुए था। लेकिन माँ के लिए यह सब बड़ा अनोखा सा था। उनको ऐसा लग रहा था जब कोई बच्चा पहली बार स्कूल में दाखिले के लिए जा रहा होता है। उसके लिए सब कुछ अपरिचित सा होता है। उस स्थिति में घबराहट भी होती है, और रोमांच भी! वही हालत माँ की भी हो रही थी। लाचारी में सुनील के सामने खड़े खड़े, माँ के पैर काँपने लगे।

सुनील फिर से माँ की जाँघों को चूमने लगा। चूमते चूमते, अंततः उसने अपना मुँह उनकी पदसन्धि में सटा कर उनकी योनि को चूम लिया। चूमा ही नहीं, बल्कि उनकी योनि के होंठों के बीच चाट भी लिया। माँ उसे रोक ही नहीं पाई। रोकना तो छोड़ो, माँ को करंट का ऐसा झटका लगा कि उनका पूरा वज़ूद हिल गया।

फिर सुनील मुस्कुराते हुए बोला, “दुल्हनिया, तेरी बुर भी मेरी हुई अब!”

उनके लिए सुनील को रोक पाना अब संभव ही नहीं था। वो जो चाहे करने के लिए स्वतंत्र था। माँ के अंदर विरोध करने की न तो क्षमता थी और न ही साधन! वो भी मन से सुनील को पति मान चुकी थीं। अब क्या विरोध शेष रहा? उसने फिर से जीभ निकाल कर धीरे से उनकी योनि को चाटा।

“शहद है भई यहाँ तो, शहद!”

“ब्ब्ब... बस कीजिए अअब!” माँ ने जैसे तैसे, लड़खड़ाते शब्दों में कहा।

लेकिन वो जैसे कुछ सुना ही न हो, “इसकी तो महक भी गुलाब के फूल वाली ही है!” वो आनंद से बोला।

हाँ ये बात तो पूरी तरह सही थी, और इसका पूरा श्रेय माँ के गुलाब की महक वाले साबुन को जाना चाहिए!

ऐसी मजबूरी, ऐसी लाचारी वो सुनील के साथ महसूस करने से पहले केवल अपने पति के ही सामने महसूस करती थीं। तो इस चुम्बन के साथ सुनील ने उनके जीवन में पति वाला स्थान तो हासिल ही कर लिया! बस पति वाला एक काम बचा रहा था! उन दोनों को बस अब ‘एक होना’ बाकी था। और उसने ‘उस काम’ को भी शीघ्र ही करने का वायदा कर दिया था! माँ ने सुनील के प्रेम अभिव्यक्ति पर अपनी आँखें बंद कर लीं। सुनील ने उनके समूचे गढ़ को ध्वस्त कर दिया था, और अब वो सुनील के प्यार की प्रगति को रोकने में शक्तिहीन थीं। और सच कहें, तो वो अपने लिए सुनील के प्यार की प्रगति को रोकना भी नहीं चाहती थीं!

“मैं तुम्हें बहुत खुश रखूँगा, दुल्हनिया!” उसने वादा किया, और फिर पूछा, “प्लीज पूरी तरह से मेरी बन जाओ न! मेरी वाइफ! मेरी सब कुछ!”

सुनील ने ऐसे भोलेपन से माँ से यह बात कही कि वो उस बेख़याली और घबराहट वाली हालत में भी मुस्कुराए बिना न रह सकीं।

“सब कुछ तो देख लिया मेरा आपने... सब कुछ तो ले लिया! आपकी नहीं, तो और किसकी हूँ अब?”

सुनील मुस्कुराया, “मेरा मतलब है शादी!” फिर माँ की हालत - उनकी टाँगों के कम्पन को देख कर कहा, “दुल्हनिया, तू कैसी काँप रही है!” उसकी आवाज़ भी कामातुर हो कर कर्कश हो चली थी, “आ जा, मेरी गोदी में लेट जा!”

सुनील ने कहा, और उनको अपनी गोद में कुछ इस तरह लिटा लिया कि माँ के नितम्ब सुनील की गोदी में, और उसके ऊपर का शरीर उसके बाएँ तरफ़ और टाँगें उसके दाहिने तरफ। इस पर भी कोई ख़ास आराम नहीं मिला उनको - सुनील का उत्तेजित कठोर लिंग उनके नितम्ब की दरार में बुरी तरह चुभ रहा था। लेकिन उससे भी बड़ा आघात था सुनील की उँगलियों का, जो इस समय उनकी योनि की खोजबीन में व्यस्त थीं - उसने माँ की योनि के होंठों की रूपरेखा का पता लगाया, उनके योनि-पुष्प (योनि की पंखुड़ियों) को सहलाया, और उनके पशम से खेला।

‘कैसा कोमल अंग!’ उसने सोचा, ‘इसकी कोमलता और सुंदरता का व्याख्यान करना मुश्किल है!’

दोनों इस बात को लगभग भूल ही गए थे कि बाहर सुनील की माँ भी है और वो किसी भी समय कमरे में आ सकती है। अगर काजल इसी समय कमरे में आ जाती, तो उन दोनों को इस हाल में देख कर क्या कहती? लेकिन यह ख़याल उन दोनों के विचार में आया ही नहीं।

माँ की योनि से खेलते खेलते उसकी उँगलियाँ माँ के काम-रस से भीग गई। वो मन ही मन मुस्कुराया। लेकिन उसने यह बात माँ पर जाहिर नहीं होने दी - ऐसा न हो कि वो लज्जित हो जाएँ! पत्नी को पति के सान्निध्य में आनंद आना चाहिए - लज्जा नहीं। पति पत्नी के बीच लज्जा जैसी वस्तु का कोई काम नहीं। लेकिन खुद पर नियंत्रण रख पाना भी तो मुश्किल था। उसने माँ के नितम्बों को नीचे से सहारा दे कर थोड़ा उठाया, और थोड़ा खुद झुका - अगले ही पल उसके होंठ माँ की योनि के रस का आस्वादन कर रहे थे। मुख मैथुन का सुख डैड ने माँ को बस कभी कभार ही दिया था। अधिकतर माँ ही डैड को मुख-सुख देती आई थीं। यहाँ तो सुनील की शुरुवात ही ओरल सेक्स से हो रही थी।

उधर माँ को लग रहा था कि कल से जो आरम्भ हुआ, तो उनकी योनि से जैसे रस निकलना बंद ही नहीं हो रहा था। मुख मैथुन शुरू होने के कुछ ही पलों में माँ को रति-निष्पत्ति का छोटा सा अनुभव हो गया। इतना ही उनके लिए पर्याप्त था। लज्जा के मारे वो उसका आनंद स्वीकार करने में भी झिझक रही थीं। लेकिन सुनील की आश्वस्त गोदी में बैठ कर उनको अनोखा सुख तो मिल रहा था।

सुनील को स्त्रियों के ओर्गास्म के बारे में बहुत ही कम और सीमित ज्ञान था। इसलिए वो समझ नहीं सका कि माँ को कैसा अनुभव हुआ होगा। माँ उसकी गोदी में पड़ी तड़प रही थीं - उनकी टाँगे कुछ इस तरह छटपटा रही थीं कि सुनील के लिंग की लम्बाई, पुनर्व्यवस्थित हो कर, उनकी योनि के चीरे से समान्तर जा लगी। सुनील भी बहुत देर से कामोत्तेजित था। अब उसके भी बर्दाश्त के बाहर हो चला था। लिहाज़ा, एक छोटा मोटा स्खलन उसको भी हो आया। उसके लिंग से वीर्य की कुछ बूँदे निकल गईं, जिससे उसके वृषणों में उत्तेजना का भीषण दबाव कुछ कम हो जाए। अपने अपने यौन आनंद के लघु पर्वतों के शिखर पर पहुँच कर दोनों को थोड़ी राहत तो मिली।

दोनों ने ‘वहाँ’ देखा - वीर्य की बूँदें माँ की योनि के बालों पर उलझी हुई कुछ इस तरह लग रही थीं, कि जैसे छोटे छोटे मोती वहाँ टाँक दिए गए हों। कई साल पहले भी यही हुआ था - माँ के हाथ का स्पर्श पाते ही सुनील को स्खलन हो गया था, और आज भी! लेकिन आज का कारण जाहिर सा था - दो तीन दिनों से उसको लगातार उत्तेजन और उद्दीपन हो रहा था। चाहे कितना भी कण्ट्रोल क्यों न हो आदमी का अपनी कामोत्तेजना पर, इतने लम्बे समय तक उत्तेजन और उद्दीपन होने पर उसका टिके रहना संभव नहीं।

“आई ऍम सॉरी दुल्हनिया,” सुनील ने खेद जताते हुए और अपनी सफाई में कहा, “दो दिनों से भरा पड़ा हूँ, इसलिए कण्ट्रोल नहीं हो पाया!”

“कोई बात नहीं,” माँ ने उस अवस्था में भी बड़ी कोमलता से कहा, “आप बुरा मत फ़ील करिए!”

सुनील मुस्कुराया, “आई लव यू मेरी दुल्हनिया! आई लव यू सो सो सो वेरी मच!”

उसकी बात पर माँ भी किसी तरह मुस्कुराईं, “आई नो! एंड आई लव यू टू!” और बोली, “अब जाने दीजिए मुझे!” कह कर वो सुनील की गोद से उठने लगीं।

सुनील ने उनको खड़े हो कर अपनी साँसें संयत करते हुए देखा, फिर कुछ सोच कर उसने कहा, “दुल्हनिया, ज़रा पीछे मुड़ना तो?”

सुनील किसी कुशल वादक की तरह माँ के तन और मन के सारे तार झनझना रहा था, और माँ उसकी हरकतों को रोक पाने में पूरी तरह से असमर्थ सिद्ध हो रही थीं। वो निर्देशानुसार फिर से पलट गईं। माँ के दोनों नग्न नितम्ब उसके सम्मुख हो गए! उसने हाथ से दबा कर उनके नितम्बों का निरीक्षण किया। एक नितम्ब की गहराई में एक छोटा सा लाल-भूरे रंग का तिल देख कर वो मुस्कुराया। उसकी उत्सुकता और भी अधिक बढ़ गई। उसने उनके दोनों नितम्बों को अपने हाथों से दबा कर थोड़ा फैलाया। तत्क्षण उनकी योनि के ही रंग का, सँकरा, और किरणों के जैसी सिलवटें लिए हुए गुदाद्वार उजागर हो गया। घबराहट में माँ ने उसको कस कर सिकोड़ लिया।

‘आह! कैसा कमाल का अंग है मेरी सुमन का! हर अंग!’

वर्षों से सुनील माँ के जिस रूप, जिस सौंदर्य की कल्पना करता रहा था आज उसके सामने वही रूप, वही सौंदर्य उजागर था! और माँ का हर अंग उसकी कल्पना से कई गुणा अधिक सुन्दर था! माँ उसकी कल्पना से कई गुणा अधिक सुन्दर थीं!

‘कैसी किस्मत भगवान्!’ उसने मन ही मन अपने ईष्ट को धन्यवाद किए, ‘बस आप हम पर ऐसे ही अपनी कृपादृष्टि बनाए रखना!’

उसने माँ के दोनों नितम्बों को बारी बारी चूमा और कहा, “दुल्हनिया मेरी, मैं तेरे साथ और भी बहुत कुछ करना चाहता हूँ... पर आज वो दिन नहीं है! लेकिन वायदा है कि जल्दी ही...”

सुनील ने कहा, और फिर माँ को वापस अपनी तरफ पलट कर उनके हर अंग को फिर से चूमने लगा। कुछ क्षणों बाद जब वो उनके पूरे शरीर को चूम चूम कर फिलहाल के लिए तृप्त हो गया तो बोला,

“आओ तुमको कपड़े पहना दूँ! नहीं तो अम्मा सोचेगी कि कमरे में क्या कर रहे हैं हम दोनों!” फिर कुछ सोच कर, “और कहीं अंदर आ गई, तो मैं मारा जाऊँगा! बोलेगी कि मेरी प्यारी दीदी को नंगी करता है! ये ले...!”

कह कर उसने घूँसा बनाया, और हवा में ही दो तीन मज़ाकिया पंच मारे।

उसकी बातों पर माँ को हंसी आ गई। आज सुख मिला उनको। उनका दिल इतना भर गया कि हल्का हो गया। भविष्य के कोमल सपनों में इंद्रधनुषी रंग भर गए। आज से उनका जीवन एक अलग ही मार्ग पर चल निकला था।

उधर सुनील अपनी निक्कर की जेब से रूमाल निकाल कर उनकी योनि पोंछने के बाद, वो माँ को कपड़े फिर से पहनने में मदद करने लगा।

उसने उनकी ब्रा तो कहीं फेंक दी थी, इसलिए फिलहाल उनको केवल ब्लाउज ही पहनाया। जब वो उनके ब्लाउज के बटन बंद कर रहा था तब वो माँ के स्तनों और छाती पर बने लव-बाइट्स को देख कर मुस्कुरा रहा था। माँ के सीने पर कम से कम चार-पाँच लव-बाइट्स थे, जो चीख चीख कर यह बता रहे थे कि अब वो सुनील की हैं। उधर सुनील द्वारा पेटीकोट और ब्लाउज पहनाया जाना माँ को उचित लगा। सुनील ही ने उनको निर्वस्त्र किया था, इसलिए सुनील को ही उनको वस्त्र पहनाना चाहिए। एक और विचार आया - जब वो अपनी माँ के सामने उनके साथ इतना सब कुछ कर सकता था, तो वो अकेले में क्या क्या करेगा! सुनील के साथ फिर से अकेले रहने का ख्याल आते ही माँ का दिल ज़ोर से धड़कने लगा।

साड़ी भी उतरी हुई थी। उसको पहनाना कोई आसान काम तो नहीं था। सुनील ने ज़मीन पर पड़ी साड़ी समेटने लगा, तो माँ को वहाँ से भाग लेने का मौका मिल गया। देर बहुत हो गई थी और काजल किसी भी वक़्त अंदर आ सकती थी। केवल पेटीकोट पहने बाहर जाना एक खतरनाक सी बात थी - काजल को अवश्य ही उन दोनों को ले कर शक़ हो जाएगा। लेकिन वो क्या करें! तीर अपने तरकश से कब का निकल चुका था।

आज के पूरे एपिसोड में माँ को पहली बार अपने कमरे से बाहर आने का मौका मिला था। यह मौका मिलते ही वो अपनी अस्त-व्यस्त अवस्था में ही, सुनील को कमरे में छोड़कर वहाँ से बाहर भाग गईं। बाहर जाने की जल्दबाज़ी और हड़बड़ी में उनको यह भी ध्यान नहीं रहा कि ब्लाउज पहनाते समय सुनील ने उसका एक बटन ऊपर नीचे कर दिया था, इसलिए ब्लाउज को देख कर बहुत अटपटा सा लग रहा था। कोई भी देखता तो समझ जाता कि माँ थोड़ी देर पहले निर्वस्त्र थीं, और उन्होंने बेहद हड़बड़ी में कपड़े पहने हैं।

**
 
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अब तो कहीं से भी किंतु परंतु की गुंजाइश ही नही रही। सुमन और सुनील ने उन दीवारों को तोड़ दिया जिसे प्रतिबंधित कहा जाता है। उन्होंने फाॅरप्ले सेक्स का आनंद प्राप्त कर लिया। वह अंतरंग पल मात्र कुछ ही लम्हों के लिए ही था पर जितना भी था उनके नए रिश्ते की बुनियाद खड़ा कर गया।
फाॅरप्ले सेक्सुअल लाइफ का अहम पार्ट माना गया है जहां प्रेमी अपने पार्टनर से यह दर्शाता है कि वो उसे दिल की गहराई से प्रेम करता है और उसे सेक्सुअली तृप्त करना चाहता है।
जहां तक मुझे लगता है अमर के तरफ से भी किसी तरह की बाधा नही आनी चाहिए। जिस माहौल मे पला बढ़ा और सेक्सुअली मैच्योर हुआ उस हिसाब से उसकी रजामंदी सहर्ष होनी चाहिए।

इस अपडेट मे जिस शायरी का प्रयोग किया आपने वह सच मे बहुत ही खूबसूरत था। शायरी लिखने के लिए उर्दू और शुद्ध हिंदी का ज्ञान होना अत्यंत ही आवश्यक है। और हमने यह कला आप के अंदर देखा ही है।

एक बार फिर से लाजवाब अपडेट भाई।
Outstanding & Amazing & brilliant.
 
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अंतराल - पहला प्यार - Update #20


उधर कमरे के बाहर काजल दबे पाँव चलते हुए माँ के कमरे के पास आई, और चुपके से दरवाज़े को थोड़ा सा खोल कर, बिना कोई आवाज़ किए, परदे की आड़ से अंदर झाँकी।

‘तो लड़के ने हिम्मत कर ही ली!’ काजल मुस्कुराते हुए सोचने लगी।

अंदर का नज़ारा वैसा ही था, जैसी कि उसको उम्मीद थी। या फिर ये कह लें, कि उम्मीद से थोड़ा बेहतर ही! सुमन पूरी तरह निर्वस्त्र हो कर उसके बेटे के सामने खड़ी थी, और उसका बेटा उसके पुट्ठों को थामे, उसकी जाँघों को जगह जगह चूम रहा था! अपने एकलौते बेटे की शादी को ले कर काजल के मन में भी कई सारे अरमान थे - कि उसकी सुन्दर सी, सर्वगुण संपन्न, सुशील, सुगढ़, और संस्कारी बहू हो। हम सभी जानते हैं कि अपने होने वाले जीवनसाथी के गुणों की पूरी एक फ़ेहरिस्त होती है हमारे पास। उस फ़ेहरिस्त के सभी बिन्दु पूरे हो जाएँ, वो संभव नहीं होता। लेकिन सुमन के रूप में उसकी सारी इच्छाएँ पूरी होती नज़र आ रही थीं।

क्या सच में प्रार्थनाएँ इतनी जल्दी सच होती हैं? काजल का दिल स्नेह और ममता से भर आया। अपनी चहेती दीदी - नहीं, दीदी नहीं, बहू - को फिर से सुख पाते देख कर उसको बहुत भला लगा। काजल ने सुमन को नग्न पहले कई बार देखा था, लेकिन आज एक अलग बात थी। आज वो उसके बेटे की हो गई थी! और वो उसकी बहू हो गई थी। आज सब कुछ बदल गया था। आज से सुमन अपनी है... अपने घर की। आज से उसकी एक और बेटी है - प्यार करने के लिए! यह एक अद्भुत सी अनुभूति थी।

उसने एक आखिरी नज़र और डाली, और चुपके से दरवाज़ा बंद कर के वहाँ से चली गई।


**


सुनील माँ के शरीर के हर अंग पर तसल्ली से अपने चुम्बनों की मोहर लगा रहा था। माँ ने अभी भी अपनी योनि ढंकी हुई थी, और सुनील कोशिश भी नहीं कर रहा था उनका हाथ वहाँ से हटाने की। उसने माँ की जाँघों के अंदरूनी हिस्से को सहलाया। जैसे-जैसे वो माँ के शरीर को और देखता और महसूस करता जा रहा था, माँ के लिए उसकी प्रशंसा और भी अधिक बढ़ती जा रही थी।

“अब एक ही चाह बाकी है मेरी जान... कि हम दोनों हमेशा के लिए एक हो जाएँ, और हमारा एक छोटा सा संसार बनाएँ!” वो कह रहा था, और साथ ही साथ माँ की जाँघों को सहला भी रहा था, “सच अ स्ट्रांग वेसल फॉर आवर फ्यूचर चिल्ड्रन!” उसने माँ के कानों में फुसफुसाते हुए कहा, “मेरी सुमन, हमारे बच्चे बहुत सुंदर, हेल्दी और स्ट्रांग होंगे!”

उसने माँ के कूल्हे के किनारे को छुआ, “यू आर सच अ परफेक्ट ब्यूटी…”

माँ की हालत बड़ी अनोखी थी। उन्होंने बड़े लंबे समय के बाद अपने शरीर पर किसी पुरुष का स्पर्श महसूस किया था - एक ऐसे पुरुष का, जो आत्मविश्वासी है, जो उनसे प्रेम करता है, और जो एक दैवीय प्रसाद के रूप में उनका पति बनने जा रहा है। इसलिए माँ समझ नहीं पा रही थी कि वो उसकी हरकतों पर कैसी प्रतिक्रिया दें। उनके मन में आया कि वो सुनील के स्पर्श को अस्वीकार कर दें, लेकिन उनको बहुत अच्छा लग रहा था। उनके मन में आया कि वो सुनील के स्पर्श का खुल कर स्वागत करें, लेकिन उनको बहुत झिझक भी हो रही थी।

“दुल्हनिया,” सुनील ने अपने हाथों से माँ के एक नितम्ब को साइड से दबा कर बोला, “ज़रा पलटना तो... एक बार?”

सुनील बोला, और न जाने किस प्रेरणावश वो पलट भी गईं। कैसे न करतीं? न जाने कैसा अद्भुत प्रभाव था सुनील का उन पर! उसके बोलने में वही, पति वाला अधिकार भाव था। वो पूरी तरह से अशक्त हो गईं थीं उसकी किसी भी बात को मना कर पाने में!

माँ मुड़ गईं। उनकी आँखें बंद थीं, और देख कर ऐसा लग रहा था कि वो अब गिरी कि तब गिरी। शायद सुनील को भी उसके थरथराते हुए शरीर से इस बात का आदेश हो गया था, इसलिए उसने माँ को एक हाथ से थाम रखा था। उसने बारी बारी से माँ के दोनों नितम्बों को सहलाया। एक लम्बे अर्से के बाद माँ की नग्न सुंदरता देखने की सुनील की तमन्ना आज पूरी हो गई थी।

कई वर्षों पहले सुनील के मन के अंदर माँ के लिए आकर्षण का जो पौधा उत्पन्न हुआ, जो उनके गुणों से सिंचित होते होते कब अगाध प्रेम में बदल गया, वो उसको भी नहीं मालूम चला। और उसी प्रेम की ताकत थी कि वो जाने अनजाने, इतने वर्षों तक, खुद को माँ के लायक बनाने का भरपूर प्रयास करता रहा। उसने पूरी मेहनत और लगन से अपनी पढ़ाई करी और एक अच्छी नौकरी हासिल करी। माँ के लिए उसके प्रेम ने उसके व्यक्तित्व का न केवल निर्माण ही किया, बल्कि उसका पोषण भी किया और उसको निखारा भी! बस ये समझ लीजिए कि इतने वर्षों की तपस्या का उसको अब फल मिल रहा था!

सुनील ने बारी बारी से माँ की दोनों नितम्बों को भी चूम लिया। अब माँ के लगभग हर अंग पर सुनील के चुम्बनों की मोहर लग गई थी! अब कहीं जा कर वो संतुष्ट हुआ! अपनी सुमन के हर अंग को चूम कर उसने अपने प्रेम की उपस्थिति तो दर्ज़ कर दी! संतुष्ट हो कर उसने माँ को वापस अपनी ओर पलटा। माँ के दोनों हाथ अब तक उनकी योनि से हट गए थे। सुनील ने देखा अवश्य, लेकिन फिलहाल उसने झुक कर माँ की अक्षकास्थि (कॉलर बोन) को चूम लिया। उस चुंबन में कुछ भी कामुक नहीं था... बल्कि, वो एक बहुत ही स्नेही चुंबन था। उसके चुम्बन में उसके प्रेम के जुनून की गर्मी के साथ-साथ सुनील के मन ने माँ के प्रति उनका सम्मान भी निहित था। लेकिन माँ को लगा कि जहाँ पर सुनील ने चुम्बन दिया, वहां पर उनकी त्वचा जैसे झुलस गई हो। उनको ऐसा लगा जैसे सुनील का चुंबन उसकी त्वचा में समां गया हो। सदा के लिए!

“मेरी जान,” उसने कहा, “आँखें खोलो न!”

माँ ने बड़ी झिझक से आँखें खोलीं।

“आई लव यू!”

कितनी ही बार ये तीन साधारण से शब्द प्रेमी-प्रेमिकाओं ने कहे होंगे। लेकिन उनमें निहित कोमल, किन्तु बलवान भावनाएँ, हर बार नई होती हैं और हर एक के लिए अलग अलग होती हैं। सुनील के कहने के अंदाज़ में जो सच्चाई थी, वो माँ से अनसुनी नहीं रह सकी।

माँ शर्माते हुए मुस्कुराईं, “मी टू!” उन्होंने भी सुनील के ही जैसी सच्चाई से कहा।

ऐसी सहज स्वीकृति किसके दिल में गुदगुदी न कर दे? सुनील मुस्कुराया और तब उसने नीचे देखा। माँ की योनि अंततः सुनील के सामने उजागर थी। माँ ने हड़बड़ा कर सुनील की तरफ़ देखा - उनको शर्म आ रही थी कि उन्होंने अपनी योनि के सौंदर्यीकरण की एक लम्बे समय से उपेक्षा कर रखी थी। घने, घुंघराले, काले बालों का अव्यवस्थित जंगल उनकी योनि को पूरी तरह से ढँके हुए था। उनके मन में आया कि कहीं ‘उसको’ ऐसे अनावृत हुए, अपने मूर्त रूप में देख कर सुनील को ‘उससे’ और उनसे घृणा न महसूस होने लगे। लेकिन माँ की योनि के दर्शन होते ही सुनील जैसे हतप्रभ हो गया!

माँ अपना हाथ बढ़ा कर अपनी नग्नता सुनील से छुपाना चाहती थीं, लेकिन सुनील को ‘उस तरफ’ ऐसे आस भरे, आश्चर्य, और प्रशंसा वाले भाव से देखते हुए देख कर, वो कुछ कर न सकीं। सुनील ने बड़ी सावधानी से - जिससे माँ को कोई चोट न लगे - अपनी उँगलियों से उनके पशम हटा कर ‘वहाँ’ देखा - माँ की योनि-पुष्प की पंखुड़ियाँ आपस में चिपकी हुई थीं, और बहुत कोमल लग रही थीं। उनकी योनि के होंठों की रंगत उनके शरीर के समान ही गोरी थी - बस थोड़ी सी ही गहरी रंगत लिए हुए थी। लेकिन घने बालों के कारण उसकी सुंदरता देख पाना संभव नहीं था।

लेकिन शायद था - कम से कम सुनील के लिए तो था!

“दुल्हनिया?”

“जी?” माँ के मुँह से अनायास ही निकल गया।

“कितनी सुन्दर है ये!”

सुनील की बात पर माँ के शरीर में शर्म की लहर दौड़ गई।

‘ये,’ माँ ने सोचा, ‘सुन्दर है?’ सुनील के मुँह से अपने गुप्ताँग के लिए यह शब्द सुन कर उनको बड़ा अनोखा, बड़ा अजीब सा लगा।

“गुलाब के फूल की पँखुड़ियों जैसी!”

‘गुलाब का फूल!’

लेकिन असली आघात तो अभी आना बाकी था - सुनील ने अपनी उंगली को माँ की बिकिनी लाइन पर चलाया और उनकी योनि के V पर आ कर रुक गया।

“कितनी कोमल है!”

‘कोमल?’

क्योंकि माँ नीचे नग्न थीं, इसलिए सुनील की उंगलियाँ अपनी खोज-बीन करने के लिए स्वतंत्र थीं... और उसने तसल्ली से वहाँ पर खोजबीन करी।

“ओह गॉड! दुल्हनिया, कितनी सुन्दर सी बुर है तेरी!” वो अपने में ही बड़बड़ाया, “ओह! और कैसी बुलंद किस्मत है मेरी!” बिलकुल मंत्रमुग्ध सा!

बोला तो उसने बहुत धीमे से, लेकिन कमरे में इतनी ख़ामोशी थी कि माँ ने सुन लिया। उनको शर्म तो आ रही थी, लेकिन मन के किसी कोने में गर्व की अनुभूति भी हुई, जब सुनील ने उनके गुप्तांग की ऐसी बढ़ाई करी।

“दुल्हनिया...” सुनील कुछ कहना चाहता था, लेकिन कह नहीं सका।

अब तक घबराहट और उत्तेजना से माँ की साँसें चढ़ गईं थीं। कमोवेश वैसी ही हालत सुनील की भी थी, लेकिन न जाने कैसे वो खुद पर नियंत्रण बनाए हुए था। लेकिन माँ के लिए यह सब बड़ा अनोखा सा था। उनको ऐसा लग रहा था जब कोई बच्चा पहली बार स्कूल में दाखिले के लिए जा रहा होता है। उसके लिए सब कुछ अपरिचित सा होता है। उस स्थिति में घबराहट भी होती है, और रोमांच भी! वही हालत माँ की भी हो रही थी। लाचारी में सुनील के सामने खड़े खड़े, माँ के पैर काँपने लगे।

सुनील फिर से माँ की जाँघों को चूमने लगा। चूमते चूमते, अंततः उसने अपना मुँह उनकी पदसन्धि में सटा कर उनकी योनि को चूम लिया। चूमा ही नहीं, बल्कि उनकी योनि के होंठों के बीच चाट भी लिया। माँ उसे रोक ही नहीं पाई। रोकना तो छोड़ो, माँ को करंट का ऐसा झटका लगा कि उनका पूरा वज़ूद हिल गया।

फिर सुनील मुस्कुराते हुए बोला, “दुल्हनिया, तेरी बुर भी मेरी हुई अब!”

उनके लिए सुनील को रोक पाना अब संभव ही नहीं था। वो जो चाहे करने के लिए स्वतंत्र था। माँ के अंदर विरोध करने की न तो क्षमता थी और न ही साधन! वो भी मन से सुनील को पति मान चुकी थीं। अब क्या विरोध शेष रहा? उसने फिर से जीभ निकाल कर धीरे से उनकी योनि को चाटा।

“शहद है भई यहाँ तो, शहद!”

“ब्ब्ब... बस कीजिए अअब!” माँ ने जैसे तैसे, लड़खड़ाते शब्दों में कहा।

लेकिन वो जैसे कुछ सुना ही न हो, “इसकी तो महक भी गुलाब के फूल वाली ही है!” वो आनंद से बोला।

हाँ ये बात तो पूरी तरह सही थी, और इसका पूरा श्रेय माँ के गुलाब की महक वाले साबुन को जाना चाहिए!

ऐसी मजबूरी, ऐसी लाचारी वो सुनील के साथ महसूस करने से पहले केवल अपने पति के ही सामने महसूस करती थीं। तो इस चुम्बन के साथ सुनील ने उनके जीवन में पति वाला स्थान तो हासिल ही कर लिया! बस पति वाला एक काम बचा रहा था! उन दोनों को बस अब ‘एक होना’ बाकी था। और उसने ‘उस काम’ को भी शीघ्र ही करने का वायदा कर दिया था! माँ ने सुनील के प्रेम अभिव्यक्ति पर अपनी आँखें बंद कर लीं। सुनील ने उनके समूचे गढ़ को ध्वस्त कर दिया था, और अब वो सुनील के प्यार की प्रगति को रोकने में शक्तिहीन थीं। और सच कहें, तो वो अपने लिए सुनील के प्यार की प्रगति को रोकना भी नहीं चाहती थीं!

“मैं तुम्हें बहुत खुश रखूँगा, दुल्हनिया!” उसने वादा किया, और फिर पूछा, “प्लीज पूरी तरह से मेरी बन जाओ न! मेरी वाइफ! मेरी सब कुछ!”

सुनील ने ऐसे भोलेपन से माँ से यह बात कही कि वो उस बेख़याली और घबराहट वाली हालत में भी मुस्कुराए बिना न रह सकीं।

“सब कुछ तो देख लिया मेरा आपने... सब कुछ तो ले लिया! आपकी नहीं, तो और किसकी हूँ अब?”

सुनील मुस्कुराया, “मेरा मतलब है शादी!” फिर माँ की हालत - उनकी टाँगों के कम्पन को देख कर कहा, “दुल्हनिया, तू कैसी काँप रही है!” उसकी आवाज़ भी कामातुर हो कर कर्कश हो चली थी, “आ जा, मेरी गोदी में लेट जा!”

सुनील ने कहा, और उनको अपनी गोद में कुछ इस तरह लिटा लिया कि माँ के नितम्ब सुनील की गोदी में, और उसके ऊपर का शरीर उसके बाएँ तरफ़ और टाँगें उसके दाहिने तरफ। इस पर भी कोई ख़ास आराम नहीं मिला उनको - सुनील का उत्तेजित कठोर लिंग उनके नितम्ब की दरार में बुरी तरह चुभ रहा था। लेकिन उससे भी बड़ा आघात था सुनील की उँगलियों का, जो इस समय उनकी योनि की खोजबीन में व्यस्त थीं - उसने माँ की योनि के होंठों की रूपरेखा का पता लगाया, उनके योनि-पुष्प (योनि की पंखुड़ियों) को सहलाया, और उनके पशम से खेला।

‘कैसा कोमल अंग!’ उसने सोचा, ‘इसकी कोमलता और सुंदरता का व्याख्यान करना मुश्किल है!’

दोनों इस बात को लगभग भूल ही गए थे कि बाहर सुनील की माँ भी है और वो किसी भी समय कमरे में आ सकती है। अगर काजल इसी समय कमरे में आ जाती, तो उन दोनों को इस हाल में देख कर क्या कहती? लेकिन यह ख़याल उन दोनों के विचार में आया ही नहीं।

माँ की योनि से खेलते खेलते उसकी उँगलियाँ माँ के काम-रस से भीग गई। वो मन ही मन मुस्कुराया। लेकिन उसने यह बात माँ पर जाहिर नहीं होने दी - ऐसा न हो कि वो लज्जित हो जाएँ! पत्नी को पति के सान्निध्य में आनंद आना चाहिए - लज्जा नहीं। पति पत्नी के बीच लज्जा जैसी वस्तु का कोई काम नहीं। लेकिन खुद पर नियंत्रण रख पाना भी तो मुश्किल था। उसने माँ के नितम्बों को नीचे से सहारा दे कर थोड़ा उठाया, और थोड़ा खुद झुका - अगले ही पल उसके होंठ माँ की योनि के रस का आस्वादन कर रहे थे। मुख मैथुन का सुख डैड ने माँ को बस कभी कभार ही दिया था। अधिकतर माँ ही डैड को मुख-सुख देती आई थीं। यहाँ तो सुनील की शुरुवात ही ओरल सेक्स से हो रही थी।

उधर माँ को लग रहा था कि कल से जो आरम्भ हुआ, तो उनकी योनि से जैसे रस निकलना बंद ही नहीं हो रहा था। मुख मैथुन शुरू होने के कुछ ही पलों में माँ को रति-निष्पत्ति का छोटा सा अनुभव हो गया। इतना ही उनके लिए पर्याप्त था। लज्जा के मारे वो उसका आनंद स्वीकार करने में भी झिझक रही थीं। लेकिन सुनील की आश्वस्त गोदी में बैठ कर उनको अनोखा सुख तो मिल रहा था।

सुनील को स्त्रियों के ओर्गास्म के बारे में बहुत ही कम और सीमित ज्ञान था। इसलिए वो समझ नहीं सका कि माँ को कैसा अनुभव हुआ होगा। माँ उसकी गोदी में पड़ी तड़प रही थीं - उनकी टाँगे कुछ इस तरह छटपटा रही थीं कि सुनील के लिंग की लम्बाई, पुनर्व्यवस्थित हो कर, उनकी योनि के चीरे से समान्तर जा लगी। सुनील भी बहुत देर से कामोत्तेजित था। अब उसके भी बर्दाश्त के बाहर हो चला था। लिहाज़ा, एक छोटा मोटा स्खलन उसको भी हो आया। उसके लिंग से वीर्य की कुछ बूँदे निकल गईं, जिससे उसके वृषणों में उत्तेजना का भीषण दबाव कुछ कम हो जाए। अपने अपने यौन आनंद के लघु पर्वतों के शिखर पर पहुँच कर दोनों को थोड़ी राहत तो मिली।

दोनों ने ‘वहाँ’ देखा - वीर्य की बूँदें माँ की योनि के बालों पर उलझी हुई कुछ इस तरह लग रही थीं, कि जैसे छोटे छोटे मोती वहाँ टाँक दिए गए हों। कई साल पहले भी यही हुआ था - माँ के हाथ का स्पर्श पाते ही सुनील को स्खलन हो गया था, और आज भी! लेकिन आज का कारण जाहिर सा था - दो तीन दिनों से उसको लगातार उत्तेजन और उद्दीपन हो रहा था। चाहे कितना भी कण्ट्रोल क्यों न हो आदमी का अपनी कामोत्तेजना पर, इतने लम्बे समय तक उत्तेजन और उद्दीपन होने पर उसका टिके रहना संभव नहीं।

“आई ऍम सॉरी दुल्हनिया,” सुनील ने खेद जताते हुए और अपनी सफाई में कहा, “दो दिनों से भरा पड़ा हूँ, इसलिए कण्ट्रोल नहीं हो पाया!”

“कोई बात नहीं,” माँ ने उस अवस्था में भी बड़ी कोमलता से कहा, “आप बुरा मत फ़ील करिए!”

सुनील मुस्कुराया, “आई लव यू मेरी दुल्हनिया! आई लव यू सो सो सो वेरी मच!”

उसकी बात पर माँ भी किसी तरह मुस्कुराईं, “आई नो! एंड आई लव यू टू!” और बोली, “अब जाने दीजिए मुझे!” कह कर वो सुनील की गोद से उठने लगीं।

सुनील ने उनको खड़े हो कर अपनी साँसें संयत करते हुए देखा, फिर कुछ सोच कर उसने कहा, “दुल्हनिया, ज़रा पीछे मुड़ना तो?”

सुनील किसी कुशल वादक की तरह माँ के तन और मन के सारे तार झनझना रहा था, और माँ उसकी हरकतों को रोक पाने में पूरी तरह से असमर्थ सिद्ध हो रही थीं। वो निर्देशानुसार फिर से पलट गईं। माँ के दोनों नग्न नितम्ब उसके सम्मुख हो गए! उसने हाथ से दबा कर उनके नितम्बों का निरीक्षण किया। एक नितम्ब की गहराई में एक छोटा सा लाल-भूरे रंग का तिल देख कर वो मुस्कुराया। उसकी उत्सुकता और भी अधिक बढ़ गई। उसने उनके दोनों नितम्बों को अपने हाथों से दबा कर थोड़ा फैलाया। तत्क्षण उनकी योनि के ही रंग का, सँकरा, और किरणों के जैसी सिलवटें लिए हुए गुदाद्वार उजागर हो गया। घबराहट में माँ ने उसको कस कर सिकोड़ लिया।

‘आह! कैसा कमाल का अंग है मेरी सुमन का! हर अंग!’

वर्षों से सुनील माँ के जिस रूप, जिस सौंदर्य की कल्पना करता रहा था आज उसके सामने वही रूप, वही सौंदर्य उजागर था! और माँ का हर अंग उसकी कल्पना से कई गुणा अधिक सुन्दर था! माँ उसकी कल्पना से कई गुणा अधिक सुन्दर थीं!

‘कैसी किस्मत भगवान्!’ उसने मन ही मन अपने ईष्ट को धन्यवाद किए, ‘बस आप हम पर ऐसे ही अपनी कृपादृष्टि बनाए रखना!’

उसने माँ के दोनों नितम्बों को बारी बारी चूमा और कहा, “दुल्हनिया मेरी, मैं तेरे साथ और भी बहुत कुछ करना चाहता हूँ... पर आज वो दिन नहीं है! लेकिन वायदा है कि जल्दी ही...”

सुनील ने कहा, और फिर माँ को वापस अपनी तरफ पलट कर उनके हर अंग को फिर से चूमने लगा। कुछ क्षणों बाद जब वो उनके पूरे शरीर को चूम चूम कर फिलहाल के लिए तृप्त हो गया तो बोला,

“आओ तुमको कपड़े पहना दूँ! नहीं तो अम्मा सोचेगी कि कमरे में क्या कर रहे हैं हम दोनों!” फिर कुछ सोच कर, “और कहीं अंदर आ गई, तो मैं मारा जाऊँगा! बोलेगी कि मेरी प्यारी दीदी को नंगी करता है! ये ले...!”

कह कर उसने घूँसा बनाया, और हवा में ही दो तीन मज़ाकिया पंच मारे।

उसकी बातों पर माँ को हंसी आ गई। आज सुख मिला उनको। उनका दिल इतना भर गया कि हल्का हो गया। भविष्य के कोमल सपनों में इंद्रधनुषी रंग भर गए। आज से उनका जीवन एक अलग ही मार्ग पर चल निकला था।

उधर सुनील अपनी निक्कर की जेब से रूमाल निकाल कर उनकी योनि पोंछने के बाद, वो माँ को कपड़े फिर से पहनने में मदद करने लगा।

उसने उनकी ब्रा तो कहीं फेंक दी थी, इसलिए फिलहाल उनको केवल ब्लाउज ही पहनाया। जब वो उनके ब्लाउज के बटन बंद कर रहा था तब वो माँ के स्तनों और छाती पर बने लव-बाइट्स को देख कर मुस्कुरा रहा था। माँ के सीने पर कम से कम चार-पाँच लव-बाइट्स थे, जो चीख चीख कर यह बता रहे थे कि अब वो सुनील की हैं। उधर सुनील द्वारा पेटीकोट और ब्लाउज पहनाया जाना माँ को उचित लगा। सुनील ही ने उनको निर्वस्त्र किया था, इसलिए सुनील को ही उनको वस्त्र पहनाना चाहिए। एक और विचार आया - जब वो अपनी माँ के सामने उनके साथ इतना सब कुछ कर सकता था, तो वो अकेले में क्या क्या करेगा! सुनील के साथ फिर से अकेले रहने का ख्याल आते ही माँ का दिल ज़ोर से धड़कने लगा।

साड़ी भी उतरी हुई थी। उसको पहनाना कोई आसान काम तो नहीं था। सुनील ने ज़मीन पर पड़ी साड़ी समेटने लगा, तो माँ को वहाँ से भाग लेने का मौका मिल गया। देर बहुत हो गई थी और काजल किसी भी वक़्त अंदर आ सकती थी। केवल पेटीकोट पहने बाहर जाना एक खतरनाक सी बात थी - काजल को अवश्य ही उन दोनों को ले कर शक़ हो जाएगा। लेकिन वो क्या करें! तीर अपने तरकश से कब का निकल चुका था।

आज के पूरे एपिसोड में माँ को पहली बार अपने कमरे से बाहर आने का मौका मिला था। यह मौका मिलते ही वो अपनी अस्त-व्यस्त अवस्था में ही, सुनील को कमरे में छोड़कर वहाँ से बाहर भाग गईं। बाहर जाने की जल्दबाज़ी और हड़बड़ी में उनको यह भी ध्यान नहीं रहा कि ब्लाउज पहनाते समय सुनील ने उसका एक बटन ऊपर नीचे कर दिया था, इसलिए ब्लाउज को देख कर बहुत अटपटा सा लग रहा था। कोई भी देखता तो समझ जाता कि माँ थोड़ी देर पहले निर्वस्त्र थीं, और उन्होंने बेहद हड़बड़ी में कपड़े पहने हैं।


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तो अब प्यार की छाप लग ही गई दोनो के तन और मन पर। आज सुमन ने सुनील को पूरे दिल से अपना लिया है और काजल भी खुश है इस सबसे, अब बस बात है अमर की, कि वो इस सब को कैसे देखता है क्या वो दकियानूसी सोच दिखायेगा या फिर अपनी मां की खुशियां स्वीकार करेगा।

सुनील ने भी आराम से पूरा समय ले कर सुमन को पूरा मौका दिया सोचने का, अपनी खूबियों से, प्रेम से, अपनी नटखट हरकतों से, अमर के साथ उसके व्यवासिक कार्यों में सूझबूझ से सुमन को अपने तरफ आकर्षित किया और आज सुमन का प्यार पा लिया। बहुत ही खूबसूरतप्रेम दृश्य और अपडेट avsji भाई।
 

avsji

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अब तो कहीं से भी किंतु परंतु की गुंजाइश ही नही रही। सुमन और सुनील ने उन दीवारों को तोड़ दिया जिसे प्रतिबंधित कहा जाता है। उन्होंने फाॅरप्ले सेक्स का आनंद प्राप्त कर लिया। वह अंतरंग पल मात्र कुछ ही लम्हों के लिए ही था पर जितना भी था उनके नए रिश्ते की बुनियाद खड़ा कर गया।
फाॅरप्ले सेक्सुअल लाइफ का अहम पार्ट माना गया है जहां प्रेमी अपने पार्टनर से यह दर्शाता है कि वो उसे दिल की गहराई से प्रेम करता है और उसे सेक्सुअली तृप्त करना चाहता है।
जहां तक मुझे लगता है अमर के तरफ से भी किसी तरह की बाधा नही आनी चाहिए। जिस माहौल मे पला बढ़ा और सेक्सुअली मैच्योर हुआ उस हिसाब से उसकी रजामंदी सहर्ष होनी चाहिए।

इस अपडेट मे जिस शायरी का प्रयोग किया आपने वह सच मे बहुत ही खूबसूरत था। शायरी लिखने के लिए उर्दू और शुद्ध हिंदी का ज्ञान होना अत्यंत ही आवश्यक है। और हमने यह कला आप के अंदर देखा ही है।

एक बार फिर से लाजवाब अपडेट भाई।

धन्यवाद संजू भाई, बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
 

avsji

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तो अब प्यार की छाप लग ही गई दोनो के तन और मन पर। आज सुमन ने सुनील को पूरे दिल से अपना लिया है और काजल भी खुश है इस सबसे, अब बस बात है अमर की, कि वो इस सब को कैसे देखता है क्या वो दकियानूसी सोच दिखायेगा या फिर अपनी मां की खुशियां स्वीकार करेगा।

सुनील ने भी आराम से पूरा समय ले कर सुमन को पूरा मौका दिया सोचने का, अपनी खूबियों से, प्रेम से, अपनी नटखट हरकतों से, अमर के साथ उसके व्यवासिक कार्यों में सूझबूझ से सुमन को अपने तरफ आकर्षित किया और आज सुमन का प्यार पा लिया। बहुत ही खूबसूरतप्रेम दृश्य और अपडेट avsji भाई।

जी भाई, प्यार कबूल हो गया।
मेरी कहानियां अधिकतर सुखांत ही होती हैं, तो सब ठीक ही होगा 🙂
 
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