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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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avsji

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Supreme
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ना जाने क्यों झ्स अपडेट को पढकर आखें भीग गई।
बून्द बनकर कुछ भावनाए बह गई।
अप्रतिम

बहुत बहुत धन्यवाद मित्र!
अपनी संतान को देखने का सुख ऐसा ही होता है लगभग!
:)
 
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सुमन और सुनील के प्रेम अंतरंग लम्हों को मधुर संगीतमय की तरह प्रस्तुत किया हुआ अपडेट था यह।
हमारे संगीत मे यह खुबी तो है ही कि वो पल भर मे हमारी भावनाओं को बदल कर रख दे। लम्हा दर लम्हा संगीत की धुन बदलती रही और दो प्रेमी उस धुन के साथ सरगम पर थिरकते रहे।
जिस खुबसूरती से वात्स्यायन ने कामसूत्र की रचना की वैसा ही खूबसूरत यह अनुभाग लिखा आपने। लेकिन शायद आप जानते होंगे कि वात्स्यायन बहुत बड़े महात्मा थे जिन्हने पुरी जीवन ब्रह्मचर्य धर्म का पालन किया।


वैसे एक बात है , राइटर साहब सुमन और सुनील पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हैं । इतनी प्रथमिकता तो अमर और उनके नायिकाओं को भी नही मिला था जितना इन प्रेमी बर्ड्स को मिला है। :D

बहुत खुबसूरत अपडेट अमर भाई।
और जगमग जगमग भी।
 

avsji

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Supreme
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सुमन और सुनील के प्रेम अंतरंग लम्हों को मधुर संगीतमय की तरह प्रस्तुत किया हुआ अपडेट था यह।
हमारे संगीत मे यह खुबी तो है ही कि वो पल भर मे हमारी भावनाओं को बदल कर रख दे। लम्हा दर लम्हा संगीत की धुन बदलती रही और दो प्रेमी उस धुन के साथ सरगम पर थिरकते रहे।

बहुत बहुत धन्यवाद मेरे भाई! :)

जिस खुबसूरती से वात्स्यायन ने कामसूत्र की रचना की वैसा ही खूबसूरत यह अनुभाग लिखा आपने। लेकिन शायद आप जानते होंगे कि वात्स्यायन बहुत बड़े महात्मा थे जिन्हने पुरी जीवन ब्रह्मचर्य धर्म का पालन किया।

वो तो शास्त्री थे भाई! वैज्ञानिक! उनका सैंपल साइज़ बहुत व्यापक था! बहुत सारे पर्यवेक्षण करने के बाद वैसा महाग्रंथ लिखा जा सकता है।
उनसे क्या मुकाबला? और मुझको तो बस एक ही लड़की/स्त्री से प्रेम करने का या प्रेम-सम्बन्ध देखने का अनुभव है।

वैसे एक बात है , राइटर साहब सुमन और सुनील पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान हैं । इतनी प्रथमिकता तो अमर और उनके नायिकाओं को भी नही मिला था जितना इन प्रेमी बर्ड्स को मिला है। :D

ये गलत लांछन है मुझ पर!
आपको रेसेंसी बायस हो गया है। इस चैप्टर का नाम अंतराल इसीलिए रखा। अमर के जीवन में यह मोहब्बत का अंतराल है। कुछ नहीं हो रहा है।
सुमन-सुनील का चैप्टर बस बंद ही समझिये। अब क्या बचा है?
अगले अनुभाग का नाम है 'समृद्धि', जिसमे यह दर्शाया जाएगा कि इस परिवार में समृद्धि कैसे आई/आएगी।

बहुत खुबसूरत अपडेट अमर भाई।
और जगमग जगमग भी।

बहुत बहुत धन्यवाद भाई जी! बहुत बहुत धन्यवाद!
 

Lutgaya

Well-Known Member
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नया सफ़र - अनमोल तोहफ़ा - Update #4


इस बार दीपावली बड़ी धूम धाम से मनाने का मन था। लेकिन दिल्ली से बाहर जाना असंभव था। आभा के जन्म के तीन ही हफ़्तों में दीपावली थी, और इतने कम समय में वो किसी सफ़र के योग्य नहीं थे। इसलिए माँ और डैड इस बार स्वयं आ गए। साथ में काजल, सुनील और लतिका। मेरा पूरा परिवार मेरे साथ! त्यौहार के दो दिन पहले मुझे एक कामवाली मिल गई, तो माँ और काजल ने उसको सब काम समझा दिया, और त्यौहार के बाद आने को कह दिया। उसको रवाना करने से पहले मैंने उसको कुछ रुपए दे दिए त्यौहार के लिए। वो बेचारी भी खुश हो कर चली गई।

वैसे देवयानी की हालत भी अब तक काफी ठीक हो गई थी - और समय के हिसाब से उसका गर्भावस्था वाला वज़न भी काफी कम हो चला था। माँ इस पूरे समय तक हमारे साथ रहीं, और उनके रहने से हमको बहुत सम्बल मिला। लेकिन अब उनको भी डैड से अलग रहते हुए एक लम्बा अर्सा हो गया था। दीपावली के बाद सुनील के बोर्ड की परीक्षा, और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं वाला दौर बस शुरू ही होने वाला था। इसलिए उनका वापस घर जाना आवश्यक था। अकेले काजल के ऊपर ही सब डाल कर निश्चिन्त तो नहीं रहा जा सकता था न? देवयानी और खुद मैंने भी उनसे कहा कि सब कुछ पटरी पर आ गया है, इसलिए वो त्यौहार के बाद निश्चिन्त हो कर वापस जा सकती हैं। माँ ने भी संतुष्ट हो कर वापस जाने के लिए हाँ कह दी। डैड इतने दिनों तक माँ के बग़ैर शायद पहली बार रहे थे। बीच बीच में वो यहाँ आते रहे, लेकिन हर बार, केवल एक दो ही दिनों के लिए!

दीपावली की जगमग देखने योग्य थी। हमारा पूरा घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था। हमारा - मतलब मेरा और देवयानी का, देवयानी के डैडी का, और डैड और माँ का! ख़ुशी थी, तो उसका इज़हार करना बहुत आवश्यक होता है। इस बार उपहार देने की बारी हमारी थी - देवयानी और मैंने ने लतिका के लिए सोने के कंगन और सोने की ज़ंजीर बनवाई थी... काजल के लिए सोने और हीरे के कर्णफूल... और सुनील के लिए नया सूट! उसको हमने वायदा किया कि अगर वो आई-आई-टी गया, तो उसको हम एक डेस्कटॉप देंगे! वो मारे ख़ुशी के फूला नहीं समाया। उधर डैड भी अपने समधी और अन्य छोटे बच्चों के लिए उपहार लाए हुए थे, और ससुर जी भी सभी के लिए उपहार लाए हुए थे। मैंने ससुर जी के लिए एक इम्पोर्टेड स्कॉच खरीदी थी। जयंती दी को मैंने एक साड़ी दी, और माँ और डैड ने सोने का हार! परिवार में सभी कुछ न कुछ उपहार पा कर प्रसन्न थे। स्वादिष्ट भोजन, संगीत, पटाखों, और हंसी मज़ाक करते करते दीपवाली के दो दिन कैसे बीत गए, पता ही न चला! फिर आई सबके वापस जाने की बेला।

अपनी पोती को छोड़ कर जाने का सोच कर ही माँ और डैड हलकान हुए जा रहे थे। काजल भी रो रही थी। जैसे तैसे उन सभी को समझा बुझा कर विदा किया गया। मैंने डेवी को एक बार बताया था कि माँ और डैड दीपावली पर सम्भोग अवश्य करते हैं। तो ये शायद पहली बार था कि इस परंपरा में अवधान हुआ था। वो भी यह सोच कर दुखी हुई। एक तो इतने दिनों का बिछोह, और ऊपर से अपनी प्यारी पोती को छोड़ कर जाना। लेकिन, यह ऐसा कोई कष्ट नहीं था जिसका कोई निवारण न हो। हमने सभी से वायदा किया कि जैसे ही हम तीनों यात्रा योग्य होंगे, भागे भागे चले आएंगे घर्म उन सभी से मिलने।


**


डैड अव्वल दर्ज़े के सज्जन पुरुष थे। अपनी प्यारी सी, सुन्दर सी पत्नी के इतने लम्बे वियोग में उनको तड़प तो हुई होगी - लेकिन उन्होंने इस जैसे कैसे कर के भी अपने ऊपर नियंत्रण रखा हुआ था। यह समझना आवश्यक है कि उनकी सज्जनता इसलिए भी गुणगान करने योग्य है क्योंकि घर में काजल जैसी सुन्दर सी स्त्री भी रह रही थी - जिससे उनका कोई सम्बन्ध नहीं था। कोई भी पुरुष उसकी सुंदरता पर बड़ी आसानी से फिसल सकता था। लेकिन डैड ने उसको अपनी बेटी का दर्जा दिया था, लिहाज़ा, वो पूरी मर्यादा से उस रिश्ते का पालन कर रहे थे। काजल भी उनका बहुत आदर सम्मान करती थी, और पूरे मनोयोग से उनकी देखभाल कर रही थी। अगर उसका फिसलने का मन भी किया होगा, तो उसने उस इच्छा पर नियंत्रण रखा था।

और सबसे बड़ी बात है माँ का व्यवहार! किसी परस्त्री को इतने प्रेम से, इतने विश्वास से अपने घर में, अपने संसार में जगह देना किसी छोटे मन वाली स्त्री के बस की बात नहीं। माँ ने अपने संसार का सब कुछ काजल और उसके बच्चों से बाँट लिया था। भोले बच्चों के व्यवहार से समझ में आता है कि उनको कितने प्रेम से पाला जाता है - लतिका अपनी माँ से अधिक, मेरी माँ से लिपटी रहती। उसको घर के सभी लोग ‘मम्मा की पूँछ’ कह कर छेड़ते। लेकिन वो इस बात से बुरा नहीं मानती थी। पूँछ तो वो थी ही अपनी मम्मा की!

घर आ कर डैड और माँ इन महीनों में पहली बार सम्भोग कर रहे थे।

“अरे यार, एक गड़बड़ हो गई!”

“क्या?”

“प्लीज तुम नाराज़ मत होना मुझसे?”

“बोलिए भी न! ऐसा क्या हो गया? और मैं आपसे कभी नाराज़ हुई हूँ, जो आज हो जाऊँगी?

“मुझे काजल का दूध पीना पड़ गया!”

“क्या? सच में? हा हा! कैसे?” माँ ने हँसते हुए पूछा।



फ्लैशबैक -

अचानक देर रात दरवाज़े पर दस्तख़त हुई, तो डैड की झपकी टूटी।

‘इस समय कौन?’

“ह... हाँ?” उन्होंने चौंक कर जागते हुए कहा।

“बाबू जी?” दरवाज़े से काजल की हिचक भरी आवाज़ सुनाई दी।

“हाँ बेटा?”

“जी मैं अंदर आ जाऊँ?” काजल बड़े संकोच से बोली।

“अरे, इसमें पूछने वाली क्या बात है? आओ!”

कमरे में अँधेरा था, लेकिन डैड को लग रहा था कि काजल उनके बिस्तर के बगल आ कर खड़ी हो गई है।

“क्या हुआ बेटा?”

डैड ने चिंतिति स्वर में कहा। काजल ने आज से पहले ये काम (मतलब उनके कमरे में बिना माँ की उपस्थिति के प्रवेश) नहीं किया था - इसलिए डैड की चिंता लाज़मी थी।

“बाबू जी, कैसे कहूँ! कुछ समझ ने नहीं आ रहा है!”

“क्या हुआ काजल?” अब उनकी चिंता और भी अधिक बढ़ गई थी, “कोई समस्या है?”

“बाबू जी, व... वो वो मैं!”

“क्या हुआ बेटा?” डैड ने काजल का हाथ पकड़ कर बिस्तर पर बैठा कर कहा, “संकोच न करो! बताओ न! क्या हुआ? सब ठीक है न? कोई तकलीफ है?”

“जी! व... वो मेरे सीने में दर्द हो रहा है!”

“सीने में दर्द?”

काजल ने अँधेरे में ही ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“गले और बाँह में तो नहीं?”

जब भी आप कुछ नया सुनते हैं, या देखते हैं, तो अक्सर उसके ‘चरम सीमा’ पर जा कर सोचने लगते हैं। अल्प-ज्ञान इसीलिए दुःखदायक होता है, और हानिकारक भी। डैड को लगा कि शायद काजल को दिल से सम्बंधित कोई समस्या हो गई है - हार्ट अटैक जैसी! काजल का मन हुआ कि वो अपना सर पीट ले - लेकिन गलती उसी की थी। ठीक से बताना चाहिए न अपनी समस्या।

“जी, वो वाला दर्द नहीं है ये...”

“क्या हुआ काजल? ठीक ठीक बताओ?”

“बाबू जी, बात दरअसल ये है कि पुचुकी तबियत खराब होने की वजह से चार दिन से मेरा दूध नहीं पी रही है। और सुनील भी पिछले दो दिनों न जाने क्यों दूध पीने से इंकार कर रहा है।”

“अच्छा?” फिर अचानक ही पूरी बात समझते हुए, “ओह, ओह! मतलब स्तनों में दर्द है?”

काजल - झिझकते हुए, “जी!”

“ओह!” डैड को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें इस मामले में।

“डॉक्टर को दिखा दें?”

“डॉक्टर?” काजल ने ही उनकी गुत्थी सुलझा दी, “आप पी लेंगे?”

“क्या?”

“बाबू जी, बहुत दर्द है! प्लीज आ पी लीजिए?”

“लेकिन बेटा, मैं तो तुमको अपनी बेटी मानता हूँ! मैं कैसे?” डैड उसकी बातों से एकदम भौचक्के रह गए!

“बाबू जी, आपके उसी विश्वास, उसी भरोसे के कारण ही तो मैं ये सब बोलने की हिम्मत कर पा रही हूँ।” काजल ने कहा।

उसकी आँखों में आँसू आ गए थे अब तक। कुछ दर्द के कारण, कुछ शर्म, और कुछ झिझक के कारण!

“वो सब तो ठीक है, लेकिन...”

“मैं मर जाऊँगी बाबू जी! बहुत दर्द हो रहा है। अगर बर्दाश्त कर पाती, तो मैं न कहती कुछ!”

बात तो सही थी।

ढाई साल से वो हमारे साथ रह रही थी, और एक बार भी उसने अपनी शीलता को अनावृत नहीं होने दिया। बस एक बार ‘वैसा’ कुछ हुआ था - वो नहाने के बाद जब बाथरूम से बाहर निकली थी, तो डैड ने उसको केवल पेटीकोट पहने बाहर आते देखा था। डैड को देखते ही उसने झट से अपने स्तन अपने हाथों से छुपा लिए थे, और वहाँ से भाग खड़ी हुई थी। डैड ने भी अपनी ‘बेटी’ को ऐसी हालत में देख कर तुरंत अपनी नज़रें हटा ली थीं। इसलिए दोनों में बाप बेटी वाला ही स्नेह, आदर, और विश्वास था।

“हे प्रभु! क्या करूँ मैं! अजीब धर्म-संकट है!” डैड ने बुदबुदाते हुए कहा।

“ठीक है! मत पीजिए। लेकिन ज़ोर से दबा दीजिए इनको। कुछ दूध निकल जायेगा, तो थोड़ा आराम मिल जाएगा! मुझ से तो वो भी नहीं हो पा रहा है। खुद से करने की हिम्मत नहीं हो पा रही है! छूने से ही इतना दर्द हो रहा है। दर्द से फ़ट जाएँगे दोनों, ऐसा लग रहा है!” काजल ने मिन्नत करी।

“मैं सुनील को बुला देता हूँ।” डैड ने कुछ देर सोच कर बीच का, और सुरक्षित रास्ता निकाला।

“सो रहा है वो... आहहह!”

“हे भगवान्!”

“आप ही… ओह्ह्ह बाबू जी! बहोत दर्द है!”

डैड घबरा गए। उनके पास काजल की सहायता करने का साधन था, इसलिए उनको ग्लानि भी हो रही थी कि वो उसकी सहायता नहीं कर रहे हैं। लेकिन उसकी उस कातर, दर्द भरी कराह ने डैड की हिचक तोड़ दी।

“अच्छा ठीक है! मैं ही...”

“ओह थैंक यू बाबू जी! थैंक यू!” काजल ने राहत की साँस ली।

“बेटा, मैं सिरहाने पर तकिए लगा देता हूँ; तुम पीठ से टेक लगा आराम से बैठ जाओ।”

“और... आप?”

“मैं तुम्हारे सामने रहूँगा!”

“नहीं! मेरा मतलब है - आप पिएंगे या कि दबाएँगे?” काजल अभी भी झिझक रही थी।

दोनों के बीच में एक अलग ही तरीके की दीवार थी, जो अब गिरने वाली थी।

“तुम क्या चाहती हो?”

“पी लीजिए न?” काजल ने झिझकते हुए कहा, भली भाँति जानते हुए कि स्तनपान करने में क्या करना होता है, “वेस्ट क्यों करना?”

“ठ ठीक है!”

डैड ने सिरहाने पर तीन तकिए लगा कर ऐसी व्यवस्था कर दी, कि काजल को आराम मिल सके। उसके दोनों स्तनों में प्रचुर मात्रा में दूध भरा हुआ था, और और भी बनता जा रहा था। वो तनाव तो कम नहीं हो रहा था। ऊपर से गुरुत्व के प्रभाव से और भी भीषण तनाव और दबाव बन रहा था। बात ठीक थी - एक कोण पर लेटने से वो तनाव कुछ कम हो जाता। काजल को लगभग तुरंत ही थोड़ा सा आराम तो मिला।

“आह्ह्ह!”

“क्या हुआ?”

“कुछ नहीं! थोड़ा आराम मिला।”

“हम्म! मैं बत्ती जला दूँ, या ऐसे ही?”

“जला दीजिए...”

डैड बिस्तर से उठे, और जा कर कमरे की बत्ती जला आए। रौशनी में उनको काजल का कातर, पीड़ित, और अश्रुपूरित चेहरा दिखाई दिया। उसके सीने पर उसका ब्लाउज़ और साड़ी का आँचल दूध के रिसने से भीग गए थे।

“मत रो काजल! अभी सब ठीक हो जाएगा।”

डैड की बात पर काजल बड़े जतन से मुस्कुराई।

डैड काजल से सामने आ बैठे। माहौल को थोड़ा हल्का बनाने की गरज से डैड ने कहा,

“अम्मा के बाद तुम्हारा ही दूध पी रहा हूँ!”

“दीदी ने नहीं पिलाया कभी?” काजल ने तुरंत कहा।

“दीदी?”

“मेरा मतलब माँ जी! मैं उनको दीदी कहती हूँ अब!”

“हा हा! सुमन को दीदी, और मुझे बाबू जी? अरे भई, अब इतना बूढ़ा भी नहीं हूँ मैं!”

“नहीं! आप बूढ़े नहीं है! आप मेरे दादा हैं - मेरे बड़े भैया! लेकिन ऐसा होने से आपका स्थान मेरे पिता से कम तो नहीं हो जाएगा!” काजल ने बड़ी शिष्टता से कहा, “आप मेरे लिए हमेशा मेरे बड़े, मेरे आदरणीय रहेंगे!”

“कौन बाप या भाई, अपनी बेटी या बहन के साथ ऐसे करता है?”

“आप ऐसे क्यों सोच रहे हैं? मैं तकलीफ़ में हूँ, और आप मेरी मदद कर रहे हैं! बस!” काजल ने कहा, और फिर उसने अपना आँचल अपने सीने से हटा दिया।

उसकी ब्लाउज पर दोनों स्तनों के सामने दूध रिसने के कारण बड़े बड़े गीले धब्बे बन गए थे। डैड ने काँपते हाथों से काजल की ब्लाउज सारे बटन धीरे धीरे, एक एक कर के खोल दिए। काजल की भी साँसें चढ़ गई थीं। यह सामान्य सी घटना नहीं थी। न तो काजल स्वेच्छा से डैड के सामने नग्न हुई थी, और न ही डैड के उसको नग्न देखने की कोई इच्छा पाली थी।

काजल ने ब्रा नहीं पहनी हुई थी - वरना अब तक तो वो पक्का दर्द से मर जाती। दोनों स्तन आकार में काफ़ी बड़े लग रहे थे - तनावग्रस्त! दोनों चूचक तन गए थे। और एरोला भी बाहर उभर आए थे। डैड ने ऊँगली से उसके चूचक के गिर्द छुआ। काजल की सिसकी निकल गई।

“बहुत सख्त हो गई है!” उन्होंने कहा।

“खेलिएगा बाद में! अभी जल्दी से पी कर इन्हे खाली कर दीजिए?”

“अरे, खेल नहीं रहा हूँ!”

“जो भी है!”

डैड ने कुछ नहीं कहा, और आगे बढ़ कर उन्होंने काजल के एक चूचक को अपने मुँह में भर लिया। साथ ही दोनों हाथों से उन्होंने उसके स्तन को पकड़ भी लिया। दरअसल उनका प्लान था कि उसके स्तनों को दोनों हाथों से दबा कर वो उसके चूचक को चूस लेंगे। और किया भी वही। दूध तुरंत ही फौव्वारे के रूप में निकला, लेकिन काजल को अपने स्तन में विस्फ़ोट की अनुभूति हुई।

“आआआहहहहह!” दर्द से उसकी चीख निकल गई।

डैड रुकने की हालत में नहीं थे। उनका मुँह दूध से भर गया था। जब तक उन्होंने दूध को थोड़ा थोड़ा कर के गटका, तब तक फिर से उनका मुँह भर गया। काजल सही कह रही थी - इतना दूध भरा रहेगा, तो दर्द तो अवश्यम्भावी ही है।

“आअह्ह्ह! मर गई! लेकिन कितना आराम मिला!”

डैड कुछ बोलते, कि काजल ने अपनी प्रतिक्रिया दिखा दी।

“आह! दूसरा वाला भी...”

डैड ने पहला चूचक छोड़ दिया - लेकिन उसमे से बूँद बूँद कर के दूध गिर रहा था। उन्होंने दूसरे वाले पर भी वही प्रक्रिया करी, जो पहले वाले पर करी थी। इस बार काजल केवल कराही - चीखी नहीं। उसके स्तनों में दो दिनों से बन रहा दबाव और भीषण दर्द अब समाप्त हो चुका था। लेकिन अभी भी उसके स्तन भरे हुए थे - कम से कम अस्सी प्रतिशत!

“दर्द कम हुआ बेटा?”

“हाँ भैया!” काजल ने राहत की साँस लेते हुए कहा, “बहुत आराम है!”

“मैं कल सुनील से कहूँगा कि वो दूध पीना बंद न करे!”

“जी! प्लीज समझा दीजिए उसको। बहुत दूध बनता है - अगर कोई पिएगा नहीं, तो मेरी तो हालत ही खराब हो जाएगी।”

“ठीक है! कल मैं उसको और पुचुकी - दोनों को समझा दूँगा!” डैड ने कहा, और काजल से अलग होने लगे।

“लेकिन आप कहाँ जा रहे हैं?”

“तुमने ही तो कहा कि दर्द कम हो गया!” डैड ने न समझते हुए कहा।

“जी, दर्द कम हुआ है, लेकिन आधे घंटे में फिर से होने लगेगा! मेरी दोनों छातियाँ अभी भी भरी हुई हैं!”

“ओह!”

“आप ही को पीना है सारा!”

“अच्छी बात है!” डैड ने कहा, “लेकिन अब थोड़ा आराम से हो जाओ?”

डैड ने कहा और उसकी ब्लाउज उतारने लगे, “तुम बहुत अच्छी हो काजल बेटा! मैं तुमको बहू के रूप में तो न पा सका, लेकिन मुझे ख़ुशी है कि तुम मेरी बेटी ज़रूर बन गई!”

“मैं भी तो बहुत भाग्यशाली हूँ बाबू जी,” काजल स्नेह से मुस्कुराई, “कि मुझे आप लोग मिले! आप दोनों मेरे लिए मेरे खुद के माँ बाप से कहीं अधिक बढ़ कर हैं!”

काजल के नग्न स्तनों को देख कर अचानक से ही डैड के चेहरे पर उदासी वाले भाव आ गए, “काश कि मेरी पोती रह जाती!”

“ओह बा...बू...जी…” काजल ने कहा और डैड को उसने अपने आलिंगन में भर लिया, “आ तो गई है न एक प्यारी सी गुड़िया!”

“हाँ बेटा,” डैड ने भरे हुए गले से, बहुत भावुक होते हुए कहा, “आ तो गई है!” फिर वो मुस्कुराए, “मेरा परिवार कितना सुन्दर सा है अब - मेरी एक बेटी है और एक बेटा है!”

काजल भी भावुक हुए बिना न रह सकी, लेकिन डैड की बात पर वो मुस्कुराई। उधर डैड बोलते जा रहे थे,

“और अब इतनी सुन्दर सी, गुणी बहू मिल गई! मेरा घर नाती, नातिन और पोती से भर गया है! मुझसे अधिक धनी कौन है भला?”

“हाँ बाबू जी! देवयानी दीदी बहुत प्यारी हैं! और बिटिया भी बिलकुल गुड़िया सी है!” फिर वो कुछ सोच कर मुस्कुराई, “हम तीनों सगी बहनों जैसी हो गई हैं!”

“हा हा हा!” उस भावुक अवस्था में भी डैड हँस पड़े, “विचित्र है मेरा परिवार!”

“आइए, अब आपको दूध पिला दूँ!” कह कर काजल ने एक स्तन डैड के मुँह में दे दिया।

कोई आधे घंटे के स्तनपान के बाद काजल के दोनों स्तन पूरी तरह से खाली हो गए, और वो पूरी तरह से संतोष हो कर मुस्कुराने लगी।

“थैंक यू, बाबू जी!”

“अपने बाप को थैंक यू बोलेगी अब?”

काजल उनकी बात पर मुस्कुराई; लेकिन उसकी आँखों में आँसुओं की झिलमिलाहट भी दिखाई दे रही थी।

“आपकी शरण में आ कर मैं आपकी बेटी भी बन गई, और आज आपको अपना दूध पिला कर आपकी माँ भी!”

डैड दबी आवाज़ में हँसने लगे, “सच में, बहुत विचित्र है मेरा परिवार! रिश्तों में कैसा उलटफेर!”

“विचित्र नहीं, स्नेही! आपके परिवार जैसा स्नेही परिवार मैंने कभी नहीं देखा! भगवान् सभी को ऐसे ही परिवार में पलने बढ़ने दें!” काजल ने आँसू पोंछते हुए कहा, “मैं सच में आपकी छाया में आ कर धन्य हो गई हूँ!”

“नहीं बेटा, धन्य हम हुए हैं, तुम सभी को पा कर!” डैड ने काजल का माथा चूमते हुए कहा, “भगवान् की बड़ी दया है मुझ पर! बेटी की तमन्ना थी - तुम मिल गई! तुम्हारे आने के बाद तो बस, खुशियाँ ही खुशियाँ आई हैं! मैं बहुत सुखी आदमी हूँ!”

“बाबू जी, एक बात बोलूँ?”

“बोलो बेटा?”

“मैं सोचती हूँ कि अब अमर को एक बेटा जाए, तो अपनी लतिका ब्याह दूँगी उसके साथ!”

“तुम भी न काजल! हा हा हा हा!” डैड ठठा कर हँसने लगे, “कितनी छोटी सी तो है पुचुकी और तुम उसकी शादी की सोच रही हो!”

“क्यों? क्यों न सोचूँ? माँ हूँ! और, क्या बुराई है मेरी बेटी में?”

“कोई भी बुराई नहीं है!” डैड बड़ी प्रसन्नता से बोले, “बहुत प्यारी बिटिया है पुचुकी! जहाँ भी जाएगी, उस घर को सुखी कर देगी! तो अगर पुचुकी इस घर की बहू बन कर आएगी, तो सबसे खुश मैं होऊँगा!”

“आप बहुत अच्छे हैं बाबू जी!”

“हाँ! पता है मुझे!” डैड मुस्कुराए, “चल, अब सो जा!”

“गुड नाईट बाबू जी!” कह कर काजल ने डैड के पाँव छू लिए!

“गुड नाईट बेटा!” डैड ने मुस्कुरा कर कहा, “और याद रखो - इस घर में बिटियाएँ अपने माँ बाप के पैर नहीं छूतीं! वो घर की लक्ष्मी होती हैं!”


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प्रिय पाठकों - ये ‘फ्लैशबैक’ लिखने वाली उंगली मुझे अपने प्रिय Kala Nag भाई के कारण हुई है। उन्होंने अपनी कहानी ‘विश्वरूप’ में फ्लैशबैक पर फ्लैशबैक दे कर इतना पकाया है कि मैंने सोचा कि मैं भी अपने पाठकों को थोड़ा पकाऊँ! 😂😂😂
कितना रूलाया भ्राता आपने
बताना मुश्किल है।
नायाब
 

avsji

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Supreme
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कितना रूलाया भ्राता आपने
बताना मुश्किल है।
नायाब

ऐसा क्या कर दिया मैंने मित्र?
सब तो मनोरंजन की ही दृष्टि से लिखा था!
 

avsji

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अंतराल - समृद्धि - Update #1


परिवार की बड़ी सारी बातें हो गईं - कुछ संसार की बातें कर लें?

संसार को आपकी ख़ुशी से सुख नहीं मिलता - हाँ, आपके दुःख से अपार सुख अवश्य मिलता है। आप दुःखी रहें, तब आपके ‘मित्र’ सुखी रहते हैं - आपको सहारा / स्वांत्वना देने का स्वाँग रचते हैं। माँ के पुनर्विवाह का ज़िक्र जब मैंने उनके और अपने खानदान के लोगों से किया, और उनको विवाह समारोह में आ कर वर-वधु को आशीर्वाद देने के लिए निमंत्रण दिया, तो उन लोगों की प्रतिक्रिया ऐसी थी कि जैसे मैंने उनकी किडनी माँग ली हो! ये लोग वो ही थे, जिनके लिए मेरी माँ और मेरे डैड ने अपने जीवन का संचित धन स्वाहा कर दिया था। अपने संसाधनों से बढ़ चढ़ कर उनकी सहायता करने का प्रयास किया था।

माँ नाना-नानी की एकमात्र जीवित संतान थीं, लेकिन उनके चचेरे ममेरे भाई-बहन अभी जीवित थे। उन्होंने माँ के लिए ऐसे ऐसे निकृष्ट शब्दों का प्रयोग किया जिनको यहाँ लिखा भी नहीं जा सकता। अपनी ही संतान, अपनी ही बहन के लिए ऐसे विचार! ओफ़्फ़्फ़! अच्छा हुआ कि यह निमंत्रण देने के लिए मैं गया था - माँ को बिना बताए। नहीं तो बेचारी का दिल ही टूट जाता!

वो लोग करीब नहीं थे मेरे - इसलिए धक्का लगा, लेकिन दिली अफ़सोस नहीं हुआ। अफ़सोस तब हुआ जब गाँव में हमारे पड़ोस के चाचा-चाची ने भी मुझसे वैसा ही बर्ताव किया। ये वो लोग थे, जिनको हमने कभी भी अपने परिवार से अलग नहीं माना, न ही उनसे अलग व्यवहार किया। कोई रिश्ता न होते हुए भी, उनको अपने परिवार का हिस्सा माना, और साथ ही परिवार का अग्रज माना। चाचा जी द्वारा माँ को गालियाँ पड़ी हीं, मुझे भी दुत्कार के कई अपशब्द सुनने को मिले। मन खट्टा हो गया! क्या चाहते हैं ये लोग? क्या माँ आजीवन विधवा ही बनी रहें? खुश रहने का क्या उनको कोई अधिकार नहीं? छोटी छोटी ख्वाईशें हैं उनकी! क्या वो अपना जीवन न जियें? क्या इसी बात में इन लोगों को आनंद मिलेगा अगर माँ हमेशा दुःखी और अवसादग्रस्त रहें?

क्रोध बहुत आया - लेकिन मैंने वो क्रोध पी लिया। क्रोध दिखाने का कोई लाभ नहीं था। जो लोग आपके जीवन में मायने नहीं रखते, उनकी प्रतिक्रिया का क्या मूल्य? जब आपके साथ कुछ गलत होता है, तो आप भी अगले के जैसी ही प्रतिक्रिया दे कर हिसाब बराबर कर लेना चाहते हैं। लेकिन मैंने अपनी इस इच्छा पर लगाम लगाया। गाँव में किसी अन्य से मिलने का अब कोई औचित्य नहीं रह गया था। गुस्सा बहुत था, लेकिन उसको जैसे तैसे सम्हाल रखा था मैंने।

मैं गुस्से से गाँव से निकल रहा था कि मुख्य सड़क पर उनकी छोटी बहू (वो छोटी वाली भाभी) मुझसे मिलने आ गईं। आ गईं क्या - वो खड़ी ही थीं, मेरी राह में। मन तो न हुआ उनसे बात करने का, लेकिन स्त्री का अनादर करना कठिन काम है मेरे लिए। मैं ठहर गया। उनकी बातों से थोड़ी स्वांतवना मिली। उनके अनुसार चाची जी और वो दोनों बहुएँ इस बात से बहुत खुश थीं कि माँ दोबारा अपना जीवन शुरू करने वाली थीं, और उसके लिए उन सभी की शुभकामनाएँ हमारे साथ थीं। और तो और, चाची जी ने भाभी के हाथों एक छोटा सा उपहार या कह लीजिए आशीर्वाद भी माँ के लिए भिजवाया था - एक चुनरी, लाल चूड़ियाँ, बिछिया, सिंधौरा, लाल बिंदी, चाँदी की पायलें, और शगन के इक्यावन रुपए! चाची जी अपने पति के सामने मुझे वो सब न दे सकीं, और न ही माँ के लिए अपनी ख़ुशी ही व्यक्त कर सकीं! अपने पति से परे तो नहीं जा सकती थी न वो। इसलिए अपनी बहू के हाथों वो उपहार भिजवाया। भाभी ने यह भी कहा कि भविष्य में किसी अन्य समय उनको उम्मीद है कि हम सभी हँसी ख़ुशी मिलेंगे, और हमारी खुशियों में शरीक होंगे।

मैंने वापस आ कर काजल को ये सारी बातें बताईं। उसको भी यह सब सुन कर बहुत दुःख हुआ। काजल का मानना था कि क्योंकि सुमन एक नया जीवन शुरू कर रही थी, इसलिए उसको किसी भी तरह के नकारात्मक विचारों के साथ अपने नए जीवन की शुरुवात नहीं करनी चाहिए। मैं खुद भी इस बात से सहमत था। इसलिए हमने तय किया कि माँ और सुनील की शादी के फंक्शन में ससुर जी एंड फैमिली, सुनील के कुछ दोस्त, और काजल की एक दो सहेलियाँ, और मेरे सबसे ख़ास दोस्त ही शामिल रहेंगे। माँ की सबसे करीबी दोस्त काजल ही थी; जयंती दीदी भी एक तरह से उनकी दोस्त ही थीं - उनके साथ वो खुल कर बातें तो कर ही पाती थीं।


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उन दोनों की सगाई करने के दस दिनों के भीतर ही, हमने सुनील और माँ की अपने ही वाले मंदिर में (जहाँ मेरी और देवयानी की शादी हुई थी), एक बहुत ही साधारण और संछिप्त से समारोह में शादी करवा दी। मंदिर में शादी करना हमारे परिवार के लिए ऐसी आम बात हो गई थी कि क्या कहें! अब तो बोर भी लगने लगा था। लेकिन क्या करते? सुनील की जॉइनिंग भी निकट थी, और काजल चाहती थी कि जितनी जल्दी हो, दोनों की शादी हो जाए! तो ठीक है - मंदिर में शादी करना ठीक है। वैसे अगर कोई मेरी बात माने, तो मंदिर में शादी करने से ज्यादा शांत, सुखद, और पूर्ण अनुभव और कोई नहीं हो सकता है। सबसे पहली बात, मंदिर में आप बनावटीपन नहीं महसूस करते। आप आंतरिक रूप से बहुत प्रसन्न महसूस करते हैं। भगवान के सम्मुख शादी करने से आप अपनी शादी में अधिक इनवेस्टेड महसूस करते हैं! अगर मेरे कुछ पाठक इसमें रुचि रखते हैं, तो उन्हें आजमाना अवश्य चाहिए! पैसे बचेंगे, आनंद मिलेगा, और एक अनोखी सी तृप्ति भी मिलेगी! मंदिर में शादी कर के आपको कभी पछतावा नहीं होगा - यह वायदा है।

सगाई के बाद से शादी तक का हर दिन हमारे लिए बेहद व्यस्त रहा। काजल अपनी बहू के लिए उपहार की खरीदारी करने के लिए बढ़-चढ़ कर खर्च करना चाहती थी! वो सुनील की शादी के लिए बहुत उत्साहित भी थी। जैसा कि मैंने पहले भी बताया है - काजल और मेरा एक जॉइंट अकाउंट था, जिसे उसने शायद ही कभी छुआ भी हो। लेकिन वो अब माँ और सुनील के लिए नई नई चीजें खरीदने के लिए उसमें से पैसे निकालना चाहती थी। मैंने उससे कहा कि मैं शादी में होने वाले हर खर्चों का ध्यान रखूंगा, लेकिन वो मेरी बात सुनना ही नहीं चाहती थी। मैंने भी नहीं रोका उसको - पहली बार कर रही थी, तो थोड़ा फ़िज़ूलख़र्ची भी ठीक थी। कम से कम वो अपनी सारी हसरतें तो पूरी कर रही थी!

मैं ही क्या - माँ ने भी काजल को बहुत मना किया। उन्होंने अपने सारे ज़ेवर इत्यादि काजल को दिखाए कि उनको नए आभूषणों की आवश्यकता नहीं थी। मैंने भी जो देवयानी और गैबी के गहने मेरे पास थे, माँ को देने की पेशकश करी - लेकिन माँ ने कुछ भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया, और काजल ने भी! मैं तो चुप हो गया, लेकिन काजल के आगे माँ की एक न चली! काजल एक ममतामई माँ के रूप में अपनी बेटी के लिए सब कुछ करना चाहती थी। मुझे लगता है, अगर मैं भी काजल के स्थान पर होता, तो मैं भी ऐसा ही व्यवहार करता! माँ होने के अलग ही अरमान होते हैं!

उसको सुनील को ले कर कम चिंता थी। लिहाज़ा, मैंने ही सुनील के साथ उसकी शॉपिंग कराई। काजल को लगता था कि सुनील की जरूरतें कम हैं। लेकिन ऐसा था नहीं - सुनील भी नया जॉब ज्वाइन करने वाला था, इसलिए उसको भी नए कपड़े, जूते इत्यादि चाहिए थे। तो उसकी ज़िम्मेदारी मैंने ले ली। काजल माँ को तरह तरह के लुभावने सामान खरीदने की पेशकश करती, लेकिन माँ को बहुत झिझक थी, और वो नए सामान लेने को अनिच्छुक थी। अंततः, काजल ने माँ को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया, और लतिका के साथ जा कर उनके लिए सोने का हार, कंगन, दुल्हन की नथ, बालियाँ आदि खरीद लाई! फिर उसने माँ और अपने लिए साड़ियों की खरीदारी करी। काजल चाहती थी कि माँ शादी के लिए लहंगा पहने, लेकिन माँ ने कहा कि वो लहंगा फिर से इस्तेमाल नहीं कर पाएँगी, इसलिए काजल ने खुद को ज़ब्त कर लिया।


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कम लोग थे, इसलिए सुनील और माँ की शादी के लिए कोई बड़ा या ख़र्चीला जश्न नहीं होने वाला था। मंदिर की शादियाँ सामान्यतः साधारण ही होती हैं। शादी समारोह लगभग तीन घण्टे में खत्म हो गया था, और तीनों घण्टे बस पूजा पाठ और अनुष्ठानों में निकल गया। मैंने मंदिर के पुजारी को पहले ही कह दिया था कि बिना वजह देर तक दोनों को न बैठाए रखें, और प्रोग्राम को थोड़ा छोटा ही रखें। चूँकि पुजारी को इस काम के लिए पर्याप्त धन मिला था, इसलिए उनको मेरी बात मानने में कोई भी दिक्कत नहीं थी। उस रोज़ मंदिर में आए हुए दर्शालु भगवान की पूजा करने के मुकाबले दुल्हन को देखने में अधिक उत्सुक लग रहे थे। लेकिन माँ ने अपना चेहरा आंशिक रूप से घूंघट में ढँक लिया था - तो केवल उनकी नाक के नीचे वाला हिस्सा ही दिखाई दे रहा था। कहना पड़ेगा, कि उनका वो रूप भी बड़ा सुन्दर था।

माँ स्पष्ट रूप से बहुत खुश थीं : जीवन के इस पड़ाव पर आ कर उनको फिर से अपना जीवन नए सिरे से जीने का, और जीवन के आनंद का आस्वादन करने का अवसर मिला था। मैं इस बात से बहुत खुश था कि उनको अंततः अपने हिस्से की खुशी मिल गई थी! सुनील को इतना खुश मैंने पहले कभी नहीं देखा था। वो खुश भी था, और गर्व से फूला नहीं समां रहा था। मुझे लगता है कि ज्यादातर लोगों को अपनी उम्र से कहीं बड़ी उम्र की महिला से शादी करने में बहुत अजीब लगेगा! लेकिन सुनील को जैसे इस बात से कोई सरोकार ही न हो! दोनों को मंदिर में वेदी पर साथ बैठे देखकर मुझे यकीन हो गया था कि वो दोनों एक साथ बड़े आनंद से रहेंगे!

शादी के बाद घर के पास ही एक छोटे से रिसेप्शन का आयोजन किया। छोटा रिसेप्शन, लेकिन आनंद और मौज-मस्ती से भरपूर! सुनील और सुमन ने साथ में डांस किया; मैंने और काजल ने साथ में डांस किया; और और तो और, ससुर जी ने भी डांस किया! मौज मस्ती के बाद जब हम घर वापस आए, तब तक रात के दो बज गए थे। दोनों को हनीमून के लिए देर सवेरे निकलना था। इसलिए रिसेप्शन के पहले ही काजल ने दोनों का सामान पैक कर दिया था। हनीमून के बाद दोनों सीधे ही मुंबई के लिए रवाना हो जाते - सुनील की जॉइनिंग के लिए!

एक तरीके से माँ की विदाई ही हो रही थी। सुनील की कंपनी सुनील और परिवार के रिलोकेशन के लिए पूरा खर्च वहन करने वाली थी, इसलिए कोई समस्या नहीं थी। कंपनी ने एक सप्ताह के लिए दोनों के रहने की व्यवस्था भी करी हुई थी। मुझे बड़ा अच्छा लगा कि ऐसी प्रोफेशनल कम्पनियाँ भी हैं देश में! दोनों की फ्लाइट बुक करी गई, कि आराम से जा सकें। नव-विवाहित जोड़ा - चार सूटकेस के साथ अपनी नई दुनिया बसाने निकल गया।

मुंबई में मेरे कई सारे जान-पहचान वाले थे। उनको कहला कर मैंने चार अच्छे घरों को देखने की व्यवस्था कर दी थी कि जैसे ही हनीमून से दोनों मुंबई पहुँचें, घर को देख कर फाइनल कर दें। मैंने सोचा था कि जो घर वो दोनों पसंद करेंगे, उसको मैं खरीद कर सुनील और माँ को भेंट कर दूँगा। एक तो उनको स्टेबिलिटी मिलेगी, और ऊपर से मुंबई में घर एक बहुत ही बढ़िया इन्वेस्टमेंट भी है! हमेशा से ही है और अभी भी! मन करेगा, तो वो इस घर को बेच सकते हैं, या फिर किराए पर चढ़ा सकते हैं। जैसा भी मन हो!


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माँ को ले कर सुनील के अरमान बड़े सारे थे, लेकिन संसाधन लगभग न के बराबर थे। लेकिन कोई बात नहीं - वो हमारा परिवार ही था - आज से नहीं, हमेशा से ही! इसलिए मैंने उसको समझा बुझा कर मेरी मदद लेने के लिए मना लिया। लेकिन उसकी ग़ैरत बहुत बड़ी थी। उसने मुझसे वायदा किया कि वो मेरा पैसा वापस कर देगा। मन तो हुआ कि मैं उसका कान ऐंठ दूँ, लेकिन किया नहीं - माँ का पति बाप जैसा ही तो होता है न?

खैर, दोनों का हनीमून कहाँ हो - इस बात कर न तो कोई सहमति बन रही थी, और न ही सुनील या माँ की तरफ से कोई विचार ही आ रहा था। चूँकि हनीमून के तुरंत बाद ही दोनों को मुंबई जाना था, इसलिए मैंने ही सुझाया कि क्यों न दोनों को गोवा भेज दिया जाए! यह मेरे और काजल की तरफ़ से - एक तरह से उनकी शादी का तोहफ़ा था। माँ ऐसी ‘फॉरवर्ड’ जगह जाने की सोच कर भी बहुत झिझक रही थीं। डैड के साथ अगर वो कहीं जाती भी थीं, तो वो ज्यादातर हमारा गाँव ही होता था। कभी कभार धार्मिक स्थानों पर भी जाती थीं। मैं एक दो बार सभी को ले कर जंगल या फिर पहाड़ों की सैर पर भी गया था। लेकिन गोवा बहुत ही अलग जगह थी। उसके बारे में उन्होंने टीवी पर सुना था और देखा भी था! गोवा के अधिकतर चित्रों में बिकिनी पहनी हुई छरहरी लड़कियाँ ही दिखाई देती हैं। इसलिए उनको झिझक हो रही थी। लेकिन सुनील को गोवा जाने का आईडिया बहुत पसंद आया। बीच, समुद्र, धूप, और मज़ा! और क्या चाहिए हनीमून पर?

मैंने सुनील को भेंट में एक और भी चीज़ दी! उन दिनों सोनी कंपनी ने छोटे कैसेट वाला एक हैंडीकैम निकाला था। मैंने वो हैंडीकैम और पाँच कैसेट सुनील को दी - हनीमून की हर घटना को यादगार बनाने के लिए! साथ ही मैंने अपना डिजिटल कैमरा भी उसको दिया - लोन पर! वो मुझे वापस चाहिए था। हा हा हा!

साउथ गोवा में मेरे एक मित्र का बीच पर ही एक बँगला था - वो उन्होंने मुझे सुनील और माँ के उपभोग के लिए दे दिया। बँगले के आस पास ही खाने पीने की जगहें थीं। मन करे तो वो खाना भी पका सकते थे। साउथ गोवा बहुत सुन्दर, शांत, और आनंददायक स्थान है। उत्तर गोवा से कहीं सुन्दर! जुलाई में गोवा में मानसून पूरी तरह छा जाता है - हर तरफ़ हरियाली, रूई के जैसे लटके हुए बादल, सूर्य का धीमा और विसरित प्रकाश - और उसको और भी सुन्दर और रोमांटिक बना देता है। उम्मीद थी कि दोनों का हनीमून यादगार रहेगा!


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माँ की शादी के बाद कभी कभी ऐसा लगता कि जैसे दिन पंख लगा कर उड़ते जा रहे हों! दिन से हफ़्ते और हफ़्तों से महीने ऐसे बीत रहे थे जैसे कि उनको कहीं जाने की जल्दी पड़ी हो। और ऐसा महसूस भी क्यों न हो? जब आप खुश होते हैं, तब ऐसे ही तो होता है। सच में - माँ और सुनील के साथ हो जाने से जैसे हमारे घर में सौभाग्य आ गया हो।

समृद्धि! हाँ, सौभाग्य और समृद्धि!

शादी के अगले तीन सालों तक मेरे बिजनेस ने बड़ी बढ़िया तरक्की करी - ईश्वर की दया से धन सम्पदा में गुणोत्तर वृद्धि हुई! ऑर्डर्स में तेजी से बढ़त हुई, उसके साथ प्रॉफ़िट्स में भी। अब मैं ऐसी कंपनी का मालिक था जिसकी वैल्यूएशन करोड़ों में थी। वैसे मैं कंपनी का छोटा मालिक था - उसके बारे में आपको बाद में बताऊँगा। फिलहाल यही जानना काफी है कि अंततः समृद्धि हमारे घर में आने लगी!

जब से सुनील ने अपनी कंपनी ज्वाइन करी, तब से वो केवल तरक्की ही कर रहा है। माँ उसके लिए एक अमेज़िंग लाइफ पार्टनर सिद्ध हुईं। सुनील अपनी पत्नी में जो गुण चाहता था, और सोचता था, माँ में वो सारे गुण थे! माँ उससे बहुत प्रेम करती थीं - बहुत प्रेम! हाँ - उनकी तरफ से प्रेम धीरे धीरे परवान चढ़ा, लेकिन ऐसा चढ़ा कि चढ़ता ही जा रहा है। माँ उसको प्रेमिका और पानी का प्रेम देती ही थीं, साथ ही वो उसको सपोर्ट भी बहुत करती थीं। उन्होंने सुनील को भावनात्मक रूप से भी बहुत दृढ बनाया। जब पुरुष का घर संतुष्टिदायक होता है तब वो बहुत तरक्की करता है।

माँ सुनील के लिए अपने प्रेम में पूरी तरह से समर्पित हैं - सुनील उनका पति है, इसलिए उनके जीवन में सुनील का सबसे ऊँचा दर्जा है। प्रेम तो सुनील को वो बहुत देती थीं, साथ ही साथ आदर भी बहुत देती थीं। करवा चौथ में जब वो सुनील के पैर छू कर अपना व्रत तोड़ती थीं, तो उसको ऐसा लगता था कि वो पूरे संसार का राजा हो! माँ ने उसके लिए माँसाहार भी पकाना सीख लिया - ख़ास कर हिल्सा मछली! वो अलग बात है कि वो स्वयं शाकाहार ही खाती थीं। एक बंगाली बिना मछली खाए नहीं रह सकता, और एक समर्पित पत्नी के तौर पर माँ अपने पति को उस सुख से वंचित नहीं रख सकती थीं!

सुनील भी माँ के प्रति पूरी तरह से समर्पित था। उसको माँ से सदा से प्रेम था। आसक्ति नहीं - प्रेम! शुद्ध प्रेम! गज़ब का सम्बन्ध था दोनों का! बिस्तर में वो अत्यंत कामुक प्रेमी था, और उसके बाहर एक ज़िम्मेदार पति, एक मज़ाकिया दोस्त, और कभी कभी एक नटखट बेटा! ऑफिस जाने से पहले वो रोज़ माँ के पैर छू कर आशीर्वाद लेता था, और ऑफिस से आने के बाद उनसे कामुक तरीके से लिपट जाता! रोज़ का काम था - फिर भी, जब भी सुनील उनके कपड़े उतारता, माँ उत्तेजना और शर्म से काँपने लगतीं! वो उनको तृप्त कर देता था। हमेशा! उनके कामुक सम्बन्ध की अग्नि हमेशा भड़कती रहती। माँ भी उसकी कामुक हरकतों का समुचित प्रतिदान देतीं। एक युवा पति के संग का रंग उन पर पूरी तरह चढ़ गया था। वो भी अब जवान दिखतीं। जवान महसूस करतीं। और खुश रहतीं!

संसार की दृष्टि में उनका रिश्ता अवश्य ही मसालेदार फंतासी था, लेकिन वो दोनों बस एक प्रेमी युगल थे, जिनके बीच उम्र का बड़ा अंतर था। और कुछ भी नहीं! सुनील पर इस बात का कोई प्रभाव भी नहीं था। वो माँ को अपने ऑफिस की पार्टियों में ले जाता, और अपने सभी मित्रों से पूरे गर्व के साथ मिलवाता। लोग शुरू शुरू में उनके पीछे बातें बनाते, उनका मज़ाक बनाते; लेकिन फिर धीरे धीरे उनको दोनों के प्यार की समझ और उसके लिए आदर होने लगा। सुनील के दोस्त माँ को ‘भाभी’ कह कर बुलाते, और पूरे सम्मान के साथ उनसे बातें करते! इन तीन सालों में दो बार सुनील को परफॉरमेंस अवार्ड मिला था - और हर बार वो अपनी पत्नी को ही अपनी परफॉरमेंस का श्रेय देता था। माँ वाकई वैसी ही पत्नी साबित हुईं जिसकी वो कल्पना ही करता आया था।

काजल अक्सर कहती कि उसका बेटा वाकई बहुत लकी है कि सुमन जैसी बीवी उसको मिली! जब से दोनों की शादी हुई थी, तब से काजल भी बहुत खुश रहने लगी थी। शुरू शुरू में सुनील ने काजल से कहा था कि क्यों न वो भी उन दोनों के साथ आ कर रहे। लेकिन मैं भी यही चाहता था कि काजल मेरे साथ रहे - इस तरह से लतिका और आभा भी मेरे ही साथ रहते। काजल ने मुझसे वायदा भी किया था। मेरा काम भी बहुत तेजी से बढ़ रहा था इसलिए मुझे जो भी सहारा मिलता, मैं लेना चाहता था। काजल ऐसी महान स्त्री थी कि उसके लिए मेरी ज़रूरतें सर्वोपरि थीं। लिहाज़ा वो मेरे ही साथ दिल्ली में थी।

काजल मुझे अक्सर यह कह कर चिढ़ाती कि मैं उसका ‘पोता’ हूँ!

एक तरह से ये सही भी था - रिश्ते में मैं सुनील का बेटा ही तो हूँ! और लतिका मेरी बुआ!

हा हा हा हा!

इस हिसाब से आभा काजल की परपोती थी! एक भरा पूरा परिवार!


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समृद्धि केवल धन की ही नहीं होती। हमारी वंशबेल में भी वृद्धि होने लगी। सुनील और माँ की पहली संतान - एक पुत्र - उनकी शादी होने के दसवें महीने बाद हुई। माँ चाहती थीं कि उनका पहला बच्चा जल्दी से जल्दी हो जाए! शरीर का क्या पता? वो नहीं चाहती थीं कि सुनील को पिता बनने का सुख न मिले!

माँ अपनी गर्भावस्था के लगभग पूरे समय मुंबई में ही रहीं। बीच में काजल कुछ समय के लिए उनकी देखभाल के लिए वहाँ गई हुई थी। लेकिन आखिरी का एक महीना उन्होंने हमारे साथ बिताया। काजल चाहती थी कि पूरा परिवार उसकी बहू के आस पास ही रहे, जिससे उसकी अच्छी तरह से देखभाल हो सके। बच्चा होने के बाद, जब तक माँ अकेले उसकी देखभाल करने लायक न हो जाएँ, तब तक उनको हमारे साथ ही रहना चाहिए! सुनील भी यही चाहता था। उसने माँ से वायदा किया कि वो हर सप्ताहाँत आ कर उनसे मिलेगा।

गर्भवती हो कर माँ बहुत सुन्दर लगतीं! उनको देख कर वाकई ऐसा लगता था कि कोई छब्बीस सत्ताईस साल की लड़की पहली बार गर्भवती हुई हो! जब वो घर आईं तो उन्होंने मुझे अपने कमरे में बुला कर स्तनपान कराया। वो चाहती थीं कि उनका बड़ा बेटा सब पहले उनका दूध पिए! गर्भ की उन्नत अवस्था में होने के कारण अब माँ के स्तनों में दूध उतरने लगा था। उस कारण से माँ के स्तन भी बड़े हो गए थे - लेकिन काजल या देवयानी के जैसे नहीं। उनकी सुंदरता अभी भी बरकरार थी। काजल उनकी खूब देखभाल करती - उनके खाने पीने और सोने का पूरा ध्यान रखती, उनके पूरे शरीर की मालिश करती, उनको व्यायाम करवाती, और उनको हमेशा हँसाती रहती! और तो और, वो माँ को स्तनपान भी कराती! उसके दूध पर सबसे पहली दावेदारी अब माँ की हो गई थी और उसके बाद आभा की, फिर अंत में लतिका की! बेचारी बच्ची! माँ भी जब उनका मन करता, बिना हिचक, काजल का स्तनपान करतीं!

माँ की डॉक्टर (गाइनोकोलॉजिस्ट) भी उनसे बहुत खुश थीं - उन्होंने माँ को कह रखा था कि उनकी हेल्थ बढ़िया है, और अपनी उम्र के हिसाब से उनकी जनन क्षमता कहीं बढ़िया है। बस, वो जो कर रही हैं, करती रहें! कहने की कोई आवश्यकता नहीं कि प्रसूव प्राकृतिक तरीके से और आसानी से हो गया। उस दिन हम सभी अस्पताल ही में थे।

अपने पहले बेटे का नाम उन्होंने आदित्य रखा। सुनील चाहता था कि उसके हर बच्चे का नाम ‘अ’ से शुरू हो, क्योंकि मेरा नाम भी ‘अ’ से ही शुरू होता था, और मेरी बेटी का नाम भी! आदित्य एकदम स्वस्थ, हृष्टपुष्ट, और सुन्दर बच्चा था! उसका रंग दोनों का मिलाजुला था, लेकिन बड़ा ही सुन्दर बच्चा था वो! शांत रहता, लेकिन बहुत ही एक्टिव! और उसकी भूख ही बड़ी जबरदस्त थी। माँ को पर्याप्त दूध बन रहा था, लेकिन आदित्य की भूख उससे अधिक थी। इसलिए काजल भी उसको अपना दूध पिलाती। कुछ समय में डिमांड के हिसाब से माँ का शरीर पर्याप्त दूध बनाना शुरू कर देता, लेकिन तब तक काजल के होने का लाभ तो था!

आदित्य के जन्म के कोई तीन महीने बाद माँ वापस मुंबई लौट गईं। सुनील उनको लेने आया था। काजल भी दो तीन दिनों के लिए उन्ही के साथ चली गई कि घर में बच्चे के रहने की ठीक से व्यवस्था कर के वापस आ जाएगी। बच्चा होने के पूर्वानुमान में दोनों ने वैसे भी आवश्यकता के सामान जुटा लिए थे, और जो कसर रह गई थी, वो काजल ने आ कर व्यवस्थित कर दिया। काजल वापस नहीं आना चाहती थी, लेकिन माँ ने उसको विश्वास दिलाया कि वो सम्हाल लेंगी सब कुछ! सही भी था - माँ ने मुझे सीमित संसाधनों से तब पाल लिया था, जब वो नादान ही थीं! अब तो वैसी कोई समस्या नहीं थी।

आदित्य का पहला जन्मदिन मुंबई में मनाया गया - हम सभी वहाँ उपस्थित थे! हम सभी मतलब, पूरा परिवार, ससुर जी, और जयंती दीदी का परिवार! बड़ा आनंद आया! जश्न का माहौल! अब तक माँ आश्चर्यजनक रूप से अपने पुराने वाले शेप में वापस आ गई थीं। हाँ - उनके स्तन थोड़े से बड़े हो गए थे। उस कारण से वो और भी सुन्दर लगतीं! मॉडल जैसी! एक अलग ही तरह की आभा, एक अलग ही तरह की रौनक उनके चेहरे पर रहती।

जयंती दीदी भी माँ को छेड़ कर कहतीं कि, ‘दीदी, तुम कभी हमसे बड़ी लगोगी?’

दीदी की बात सच थी - माँ की उम्र का उनके शरीर पर मानों कोई असर ही नहीं हो रहा था। खैर, अच्छी बात थी यह तो! अब दोनों जने और भी स्वच्छंद रूप से यौन सम्बन्ध का आनंद उठाते थे। पहले तो बच्चा करने का तनाव था, लेकिन अब तो केवल आनंद ही आनंद था!

इसलिए माँ को बड़ा ही सुखद आश्चर्य हुआ जब उनको दुबारा गर्भ ठहर गया! माँ को आश्चर्य हुआ होगा, लेकिन न तो सुनील को ही आश्चर्य हुआ, और न ही काजल को! दोनों को विश्वास था कि माँ को और भी संतानें होंगी! काजल इस बार बच्चों की गर्मियों की छुट्टियों में दोनों को ले कर माँ के पास चली गई। मैं रह गया पीछे अकेला। लेकिन मुझे इस बार बुरा नहीं लगा। काम के सिलसिले में मैं वैसे भी ज्यादातर घर से बाहर ही रहता। मैं सुनील और माँ से मिलने चला जाता - जब भी मेरी मुंबई में कोई क्लाइंट मीटिंग लगती।


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इस बीच में एक दो लड़कियों से मेरी मुलाकात हुई - जयंती दीदी ने मुझे अपनी एक क्लाइंट से मिलवाया। वो लड़की एक समय टॉप मॉडल रह चुकी थी। एक दो बार उसके साथ डेट्स पर भी गया, लेकिन बात कुछ जमी नहीं। मेरे ऑफिस में भी एक लड़की दिखाई दी - लेकिन मैंने कोई भी रोमांटिक सम्बन्ध पनपने से पहले ही खुद पर लगाम लगाया, क्योंकि बॉस-सबऑर्डिनेट के बीच में रोमांस सही बात नहीं है - न तो ऑफिस के लिए, और न ही टीम के मोरॉल के लिए!

सुनील और माँ की दूसरी संतान - एक और पुत्र - उनकी शादी के तीन साल बाद हुआ। मतलब उनकी शादी की सालगिरह के कुछ ही दिन बाद! ये भी नैसर्गिक प्रसव था। हाँलाकि माँ अब छियालीस के ऊपर हो चली थीं। डॉक्टरों को उनकी प्रेग्नेंसी हिस्ट्री के बारे में मालूम था, इसलिए वो भी चाहती थीं कि प्राकृतिक तरीके से ही बच्चे का जन्म हो। ये भी बढ़िया स्वस्थ और सुन्दर बालक था। उसका नाम उन्होंने आदर्श रखा। अचानक से ही हमारा खानदान भरा पूरा हो गया।

इस बार माँ क्रिसमस शुरू होने तक हमारे साथ रहीं। बच्चों के सर्दियों की छुट्टी में काजल सभी को ले कर मुंबई चली गई। कभी कभी काजल पर बहुत दया आती। हाँलाकि अब हमारे घर पर भी रेगुलर काम करने वाली बाई थी, लेकिन फिर भी सारे बच्चों की देखरेख में काजल की व्यस्तता बढ़ गई थी। अगले साल लतिका की हाई स्कूल की परीक्षा थी, तो हम - या यूँ कह लें कि मैं - चाहते थे कि वो वापस आ कर बस पढ़ाई और परीक्षा पर ही ध्यान दे।


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लतिका बड़ी हो रही थी - और बेहद सुन्दर भी! साँवला रंग उसकी सुंदरता पर जैसे चार चाँद लगा देता! जयंती दीदी अक्सर कहतीं कि जब पुचुकी जवान होगी, तब कहर ढा देगी अपनी खूबसूरती से! बात सौ प्रतिशत सही थी। जैसा कि पहले भी बताया है, लतिका खेल कूद में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती थी। आज कल उसका फोकस दौड़ (रनिंग) पर अधिक था। अपने आयु-वर्ग में वो देश की सबसे अग्रणी धाविकाओं में से एक थी। कई सारी ट्रॉफियां, कई सारे मेडल्स, कई सारे पुरस्कार जीत चुकी थी लतिका अब तक! मैं भी उसके साथ ही दौड़ता था सवेरे सवेरे। हर ट्रेनिंग के बाद उसकी माँस पेशियों की मालिश, स्ट्रेचिंग, टोनिंग, इत्यादि मैं ही करवाता। उसकी परफॉरमेंस देख कर समझ आ रहा था कि जल्दी ही लतिका हमारा नाम रोशन करेगी।

लतिका जवान हो रही थी, लेकिन उसका बचपना गया नहीं था। वो अभी भी वैसा ही व्यवहार करती जैसे कि छोटी बच्ची हो! मुझे कभी कभी लगता था कि काजल शायद उसको घर में ऐसे नग्न रहने से मना करेगी, लेकिन काजल ने कभी नहीं किया। अगर घर के लड़के स्वच्छंद बड़े हो सकते हैं, तो लड़कियाँ क्यों नहीं? और तो और, वो तो अपनी बहू को भी वैसी ही रहने के लिए प्रोत्साहित करती रहती। खैर, लतिका के सीने पर बढ़ रहे शंक्वाकार उभार बड़े क्यूट से लगते। किसी सुन्दर सी गुड़िया जैसी लगती थी लतिका! सच में - अपने बच्चों को जवान होते हुए देखना बड़ा सुखद होता है! मैं कभी कभी मज़ाक में उसको ‘बुआ जी’ कह कर छेड़ता। शुरू शुरू में वो शर्मा जाती, या बुरा मान जाती थी, लेकिन फिर बाद में वो भी मेरे खेल में शामिल होते हुए, और मुझे छेड़ने की गरज़ से ‘अमर बेटे’ कह कर बुलाती! हमारी छेड़खानी पर काजल बहुत हंसती।

लतिका का हाई स्कूल का परफॉरमेंस आश्चर्यजनक कर देने वाला था! उम्मीद नहीं थी कि उसका नाम अपने स्कूल के टॉप दस क्षात्रों में होगा! सच में - गर्व से सीना चौड़ा हो गया।

उधर सुनील मुझसे अक्सर पूछता कि क्या उसके और भाई - बहन होने की सम्भावना है? इस बात का क्या उत्तर देता मैं? काजल तो मुझसे शादी की बात करनी तो छोड़ो, सोचती भी नहीं थी। और तो और, माँ की दूसरी प्रेग्नेंसी के बाद से हमारे बीच में अंतरंगता समाप्त ही हो गई थी। काजल मेरी कोई जागीर तो थी नहीं, जो उस पर कोई दबाव बनाता, या कुछ और करता! वो मालकिन थी। उसके इतने सारे एहसान थे मुझ पर कि उस विषय पर भी क्या कहूँ? मैंने यही बात सुनील से पूछी, तो उसने कहा कि वो चारों बहुत खुश हैं! दोनों बच्चे अच्छे से पल रहे हैं। खुश परिवार! और क्या चाहिए?

सच में - मैं बहुत खुश था!

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avsji

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Supreme
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भैयाजी, इंतज़ार की घड़ियाँ कब खत्म कीजिएगा? 💕

काम बहुत है भाई!
लेकिन एक छोटा सा अपडेट दिया है :)
 

Kala Nag

Mr. X
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अंतराल - समृद्धि - Update #1


परिवार की बड़ी सारी बातें हो गईं - कुछ संसार की बातें कर लें?

संसार को आपकी ख़ुशी से सुख नहीं मिलता - हाँ, आपके दुःख से अपार सुख अवश्य मिलता है। आप दुःखी रहें, तब आपके ‘मित्र’ सुखी रहते हैं - आपको सहारा / स्वांत्वना देने का स्वाँग रचते हैं। माँ के पुनर्विवाह का ज़िक्र जब मैंने उनके और अपने खानदान के लोगों से किया, और उनको विवाह समारोह में आ कर वर-वधु को आशीर्वाद देने के लिए निमंत्रण दिया, तो उन लोगों की प्रतिक्रिया ऐसी थी कि जैसे मैंने उनकी किडनी माँग ली हो! ये लोग वो ही थे, जिनके लिए मेरी माँ और मेरे डैड ने अपने जीवन का संचित धन स्वाहा कर दिया था। अपने संसाधनों से बढ़ चढ़ कर उनकी सहायता करने का प्रयास किया था।

माँ नाना-नानी की एकमात्र जीवित संतान थीं, लेकिन उनके चचेरे ममेरे भाई-बहन अभी जीवित थे। उन्होंने माँ के लिए ऐसे ऐसे निकृष्ट शब्दों का प्रयोग किया जिनको यहाँ लिखा भी नहीं जा सकता। अपनी ही संतान, अपनी ही बहन के लिए ऐसे विचार! ओफ़्फ़्फ़! अच्छा हुआ कि यह निमंत्रण देने के लिए मैं गया था - माँ को बिना बताए। नहीं तो बेचारी का दिल ही टूट जाता!

वो लोग करीब नहीं थे मेरे - इसलिए धक्का लगा, लेकिन दिली अफ़सोस नहीं हुआ। अफ़सोस तब हुआ जब गाँव में हमारे पड़ोस के चाचा-चाची ने भी मुझसे वैसा ही बर्ताव किया। ये वो लोग थे, जिनको हमने कभी भी अपने परिवार से अलग नहीं माना, न ही उनसे अलग व्यवहार किया। कोई रिश्ता न होते हुए भी, उनको अपने परिवार का हिस्सा माना, और साथ ही परिवार का अग्रज माना। चाचा जी द्वारा माँ को गालियाँ पड़ी हीं, मुझे भी दुत्कार के कई अपशब्द सुनने को मिले। मन खट्टा हो गया! क्या चाहते हैं ये लोग? क्या माँ आजीवन विधवा ही बनी रहें? खुश रहने का क्या उनको कोई अधिकार नहीं? छोटी छोटी ख्वाईशें हैं उनकी! क्या वो अपना जीवन न जियें? क्या इसी बात में इन लोगों को आनंद मिलेगा अगर माँ हमेशा दुःखी और अवसादग्रस्त रहें?

क्रोध बहुत आया - लेकिन मैंने वो क्रोध पी लिया। क्रोध दिखाने का कोई लाभ नहीं था। जो लोग आपके जीवन में मायने नहीं रखते, उनकी प्रतिक्रिया का क्या मूल्य? जब आपके साथ कुछ गलत होता है, तो आप भी अगले के जैसी ही प्रतिक्रिया दे कर हिसाब बराबर कर लेना चाहते हैं। लेकिन मैंने अपनी इस इच्छा पर लगाम लगाया। गाँव में किसी अन्य से मिलने का अब कोई औचित्य नहीं रह गया था। गुस्सा बहुत था, लेकिन उसको जैसे तैसे सम्हाल रखा था मैंने।
यह स्वभाविक था
कुछ बातेँ समाज में सहज स्वीकार नहीं होता
चाहे सम्बंध हृदय या अनुराग की क्यूँ ना हो
मैं गुस्से से गाँव से निकल रहा था कि मुख्य सड़क पर उनकी छोटी बहू (वो छोटी वाली भाभी) मुझसे मिलने आ गईं। आ गईं क्या - वो खड़ी ही थीं, मेरी राह में। मन तो न हुआ उनसे बात करने का, लेकिन स्त्री का अनादर करना कठिन काम है मेरे लिए। मैं ठहर गया। उनकी बातों से थोड़ी स्वांतवना मिली। उनके अनुसार चाची जी और वो दोनों बहुएँ इस बात से बहुत खुश थीं कि माँ दोबारा अपना जीवन शुरू करने वाली थीं, और उसके लिए उन सभी की शुभकामनाएँ हमारे साथ थीं। और तो और, चाची जी ने भाभी के हाथों एक छोटा सा उपहार या कह लीजिए आशीर्वाद भी माँ के लिए भिजवाया था - एक चुनरी, लाल चूड़ियाँ, बिछिया, सिंधौरा, लाल बिंदी, चाँदी की पायलें, और शगन के इक्यावन रुपए! चाची जी अपने पति के सामने मुझे वो सब न दे सकीं, और न ही माँ के लिए अपनी ख़ुशी ही व्यक्त कर सकीं! अपने पति से परे तो नहीं जा सकती थी न वो। इसलिए अपनी बहू के हाथों वो उपहार भिजवाया। भाभी ने यह भी कहा कि भविष्य में किसी अन्य समय उनको उम्मीद है कि हम सभी हँसी ख़ुशी मिलेंगे, और हमारी खुशियों में शरीक होंगे।
हाँ यह कुछ हद तक सांत्वना की बात है
मैंने वापस आ कर काजल को ये सारी बातें बताईं। उसको भी यह सब सुन कर बहुत दुःख हुआ। काजल का मानना था कि क्योंकि सुमन एक नया जीवन शुरू कर रही थी, इसलिए उसको किसी भी तरह के नकारात्मक विचारों के साथ अपने नए जीवन की शुरुवात नहीं करनी चाहिए। मैं खुद भी इस बात से सहमत था।
हाँ अति उत्तम विचार
इसलिए हमने तय किया कि माँ और सुनील की शादी के फंक्शन में ससुर जी एंड फैमिली, सुनील के कुछ दोस्त, और काजल की एक दो सहेलियाँ, और मेरे सबसे ख़ास दोस्त ही शामिल रहेंगे। माँ की सबसे करीबी दोस्त काजल ही थी; जयंती दीदी भी एक तरह से उनकी दोस्त ही थीं - उनके साथ वो खुल कर बातें तो कर ही पाती थीं।


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अच्छा निर्णय
उन दोनों की सगाई करने के दस दिनों के भीतर ही, हमने सुनील और माँ की अपने ही वाले मंदिर में (जहाँ मेरी और देवयानी की शादी हुई थी), एक बहुत ही साधारण और संछिप्त से समारोह में शादी करवा दी। मंदिर में शादी करना हमारे परिवार के लिए ऐसी आम बात हो गई थी कि क्या कहें! अब तो बोर भी लगने लगा था। लेकिन क्या करते? सुनील की जॉइनिंग भी निकट थी, और काजल चाहती थी कि जितनी जल्दी हो, दोनों की शादी हो जाए! तो ठीक है - मंदिर में शादी करना ठीक है। वैसे अगर कोई मेरी बात माने, तो मंदिर में शादी करने से ज्यादा शांत, सुखद, और पूर्ण अनुभव और कोई नहीं हो सकता है। सबसे पहली बात, मंदिर में आप बनावटीपन नहीं महसूस करते। आप आंतरिक रूप से बहुत प्रसन्न महसूस करते हैं। भगवान के सम्मुख शादी करने से आप अपनी शादी में अधिक इनवेस्टेड महसूस करते हैं! अगर मेरे कुछ पाठक इसमें रुचि रखते हैं, तो उन्हें आजमाना अवश्य चाहिए! पैसे बचेंगे, आनंद मिलेगा, और एक अनोखी सी तृप्ति भी मिलेगी! मंदिर में शादी कर के आपको कभी पछतावा नहीं होगा - यह वायदा है।
हा हा हा
बात तो सच है पर हमारी तो हो चुकी है और आने वाले समय में बच्चे क्या करेंगे क्या पता
सगाई के बाद से शादी तक का हर दिन हमारे लिए बेहद व्यस्त रहा। काजल अपनी बहू के लिए उपहार की खरीदारी करने के लिए बढ़-चढ़ कर खर्च करना चाहती थी! वो सुनील की शादी के लिए बहुत उत्साहित भी थी। जैसा कि मैंने पहले भी बताया है - काजल और मेरा एक जॉइंट अकाउंट था, जिसे उसने शायद ही कभी छुआ भी हो। लेकिन वो अब माँ और सुनील के लिए नई नई चीजें खरीदने के लिए उसमें से पैसे निकालना चाहती थी। मैंने उससे कहा कि मैं शादी में होने वाले हर खर्चों का ध्यान रखूंगा, लेकिन वो मेरी बात सुनना ही नहीं चाहती थी। मैंने भी नहीं रोका उसको - पहली बार कर रही थी, तो थोड़ा फ़िज़ूलख़र्ची भी ठीक थी। कम से कम वो अपनी सारी हसरतें तो पूरी कर रही थी!

मैं ही क्या - माँ ने भी काजल को बहुत मना किया। उन्होंने अपने सारे ज़ेवर इत्यादि काजल को दिखाए कि उनको नए आभूषणों की आवश्यकता नहीं थी। मैंने भी जो देवयानी और गैबी के गहने मेरे पास थे, माँ को देने की पेशकश करी - लेकिन माँ ने कुछ भी स्वीकार करने से इनकार कर दिया, और काजल ने भी! मैं तो चुप हो गया, लेकिन काजल के आगे माँ की एक न चली! काजल एक ममतामई माँ के रूप में अपनी बेटी के लिए सब कुछ करना चाहती थी। मुझे लगता है, अगर मैं भी काजल के स्थान पर होता, तो मैं भी ऐसा ही व्यवहार करता! माँ होने के अलग ही अरमान होते हैं!

उसको सुनील को ले कर कम चिंता थी। लिहाज़ा, मैंने ही सुनील के साथ उसकी शॉपिंग कराई। काजल को लगता था कि सुनील की जरूरतें कम हैं। लेकिन ऐसा था नहीं - सुनील भी नया जॉब ज्वाइन करने वाला था, इसलिए उसको भी नए कपड़े, जूते इत्यादि चाहिए थे। तो उसकी ज़िम्मेदारी मैंने ले ली। काजल माँ को तरह तरह के लुभावने सामान खरीदने की पेशकश करती, लेकिन माँ को बहुत झिझक थी, और वो नए सामान लेने को अनिच्छुक थी। अंततः, काजल ने माँ को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दिया, और लतिका के साथ जा कर उनके लिए सोने का हार, कंगन, दुल्हन की नथ, बालियाँ आदि खरीद लाई! फिर उसने माँ और अपने लिए साड़ियों की खरीदारी करी। काजल चाहती थी कि माँ शादी के लिए लहंगा पहने, लेकिन माँ ने कहा कि वो लहंगा फिर से इस्तेमाल नहीं कर पाएँगी, इसलिए काजल ने खुद को ज़ब्त कर लिया।


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भावनाओं का एक अलग परिभाषा होती है
अब तक सभी का सटीक चित्रण व परिवेषण किया है आपने
कम लोग थे, इसलिए सुनील और माँ की शादी के लिए कोई बड़ा या ख़र्चीला जश्न नहीं होने वाला था। मंदिर की शादियाँ सामान्यतः साधारण ही होती हैं। शादी समारोह लगभग तीन घण्टे में खत्म हो गया था, और तीनों घण्टे बस पूजा पाठ और अनुष्ठानों में निकल गया। मैंने मंदिर के पुजारी को पहले ही कह दिया था कि बिना वजह देर तक दोनों को न बैठाए रखें, और प्रोग्राम को थोड़ा छोटा ही रखें। चूँकि पुजारी को इस काम के लिए पर्याप्त धन मिला था, इसलिए उनको मेरी बात मानने में कोई भी दिक्कत नहीं थी। उस रोज़ मंदिर में आए हुए दर्शालु भगवान की पूजा करने के मुकाबले दुल्हन को देखने में अधिक उत्सुक लग रहे थे। लेकिन माँ ने अपना चेहरा आंशिक रूप से घूंघट में ढँक लिया था - तो केवल उनकी नाक के नीचे वाला हिस्सा ही दिखाई दे रहा था। कहना पड़ेगा, कि उनका वो रूप भी बड़ा सुन्दर था।

माँ स्पष्ट रूप से बहुत खुश थीं : जीवन के इस पड़ाव पर आ कर उनको फिर से अपना जीवन नए सिरे से जीने का, और जीवन के आनंद का आस्वादन करने का अवसर मिला था। मैं इस बात से बहुत खुश था कि उनको अंततः अपने हिस्से की खुशी मिल गई थी! सुनील को इतना खुश मैंने पहले कभी नहीं देखा था। वो खुश भी था, और गर्व से फूला नहीं समां रहा था। मुझे लगता है कि ज्यादातर लोगों को अपनी उम्र से कहीं बड़ी उम्र की महिला से शादी करने में बहुत अजीब लगेगा! लेकिन सुनील को जैसे इस बात से कोई सरोकार ही न हो! दोनों को मंदिर में वेदी पर साथ बैठे देखकर मुझे यकीन हो गया था कि वो दोनों एक साथ बड़े आनंद से रहेंगे!

शादी के बाद घर के पास ही एक छोटे से रिसेप्शन का आयोजन किया। छोटा रिसेप्शन, लेकिन आनंद और मौज-मस्ती से भरपूर! सुनील और सुमन ने साथ में डांस किया; मैंने और काजल ने साथ में डांस किया; और और तो और, ससुर जी ने भी डांस किया! मौज मस्ती के बाद जब हम घर वापस आए, तब तक रात के दो बज गए थे। दोनों को हनीमून के लिए देर सवेरे निकलना था। इसलिए रिसेप्शन के पहले ही काजल ने दोनों का सामान पैक कर दिया था। हनीमून के बाद दोनों सीधे ही मुंबई के लिए रवाना हो जाते - सुनील की जॉइनिंग के लिए!

एक तरीके से माँ की विदाई ही हो रही थी। सुनील की कंपनी सुनील और परिवार के रिलोकेशन के लिए पूरा खर्च वहन करने वाली थी, इसलिए कोई समस्या नहीं थी। कंपनी ने एक सप्ताह के लिए दोनों के रहने की व्यवस्था भी करी हुई थी। मुझे बड़ा अच्छा लगा कि ऐसी प्रोफेशनल कम्पनियाँ भी हैं देश में! दोनों की फ्लाइट बुक करी गई, कि आराम से जा सकें। नव-विवाहित जोड़ा - चार सूटकेस के साथ अपनी नई दुनिया बसाने निकल गया।

मुंबई में मेरे कई सारे जान-पहचान वाले थे। उनको कहला कर मैंने चार अच्छे घरों को देखने की व्यवस्था कर दी थी कि जैसे ही हनीमून से दोनों मुंबई पहुँचें, घर को देख कर फाइनल कर दें। मैंने सोचा था कि जो घर वो दोनों पसंद करेंगे, उसको मैं खरीद कर सुनील और माँ को भेंट कर दूँगा। एक तो उनको स्टेबिलिटी मिलेगी, और ऊपर से मुंबई में घर एक बहुत ही बढ़िया इन्वेस्टमेंट भी है! हमेशा से ही है और अभी भी! मन करेगा, तो वो इस घर को बेच सकते हैं, या फिर किराए पर चढ़ा सकते हैं। जैसा भी मन हो!


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माँ को ले कर सुनील के अरमान बड़े सारे थे, लेकिन संसाधन लगभग न के बराबर थे। लेकिन कोई बात नहीं - वो हमारा परिवार ही था - आज से नहीं, हमेशा से ही! इसलिए मैंने उसको समझा बुझा कर मेरी मदद लेने के लिए मना लिया। लेकिन उसकी ग़ैरत बहुत बड़ी थी। उसने मुझसे वायदा किया कि वो मेरा पैसा वापस कर देगा। मन तो हुआ कि मैं उसका कान ऐंठ दूँ, लेकिन किया नहीं - माँ का पति बाप जैसा ही तो होता है न?

खैर, दोनों का हनीमून कहाँ हो - इस बात कर न तो कोई सहमति बन रही थी, और न ही सुनील या माँ की तरफ से कोई विचार ही आ रहा था। चूँकि हनीमून के तुरंत बाद ही दोनों को मुंबई जाना था, इसलिए मैंने ही सुझाया कि क्यों न दोनों को गोवा भेज दिया जाए! यह मेरे और काजल की तरफ़ से - एक तरह से उनकी शादी का तोहफ़ा था। माँ ऐसी ‘फॉरवर्ड’ जगह जाने की सोच कर भी बहुत झिझक रही थीं। डैड के साथ अगर वो कहीं जाती भी थीं, तो वो ज्यादातर हमारा गाँव ही होता था। कभी कभार धार्मिक स्थानों पर भी जाती थीं। मैं एक दो बार सभी को ले कर जंगल या फिर पहाड़ों की सैर पर भी गया था। लेकिन गोवा बहुत ही अलग जगह थी। उसके बारे में उन्होंने टीवी पर सुना था और देखा भी था! गोवा के अधिकतर चित्रों में बिकिनी पहनी हुई छरहरी लड़कियाँ ही दिखाई देती हैं। इसलिए उनको झिझक हो रही थी। लेकिन सुनील को गोवा जाने का आईडिया बहुत पसंद आया। बीच, समुद्र, धूप, और मज़ा! और क्या चाहिए हनीमून पर?

मैंने सुनील को भेंट में एक और भी चीज़ दी! उन दिनों सोनी कंपनी ने छोटे कैसेट वाला एक हैंडीकैम निकाला था। मैंने वो हैंडीकैम और पाँच कैसेट सुनील को दी - हनीमून की हर घटना को यादगार बनाने के लिए! साथ ही मैंने अपना डिजिटल कैमरा भी उसको दिया - लोन पर! वो मुझे वापस चाहिए था। हा हा हा!

साउथ गोवा में मेरे एक मित्र का बीच पर ही एक बँगला था - वो उन्होंने मुझे सुनील और माँ के उपभोग के लिए दे दिया। बँगले के आस पास ही खाने पीने की जगहें थीं। मन करे तो वो खाना भी पका सकते थे। साउथ गोवा बहुत सुन्दर, शांत, और आनंददायक स्थान है। उत्तर गोवा से कहीं सुन्दर! जुलाई में गोवा में मानसून पूरी तरह छा जाता है - हर तरफ़ हरियाली, रूई के जैसे लटके हुए बादल, सूर्य का धीमा और विसरित प्रकाश - और उसको और भी सुन्दर और रोमांटिक बना देता है। उम्मीद थी कि दोनों का हनीमून यादगार रहेगा!


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भाई एक लाइन
रुई के जैसे लटके बादल बहुत ही सुंदर उपमा दी आपने
माँ की शादी के बाद कभी कभी ऐसा लगता कि जैसे दिन पंख लगा कर उड़ते जा रहे हों! दिन से हफ़्ते और हफ़्तों से महीने ऐसे बीत रहे थे जैसे कि उनको कहीं जाने की जल्दी पड़ी हो। और ऐसा महसूस भी क्यों न हो? जब आप खुश होते हैं, तब ऐसे ही तो होता है। सच में - माँ और सुनील के साथ हो जाने से जैसे हमारे घर में सौभाग्य आ गया हो।

समृद्धि! हाँ, सौभाग्य और समृद्धि!

शादी के अगले तीन सालों तक मेरे बिजनेस ने बड़ी बढ़िया तरक्की करी - ईश्वर की दया से धन सम्पदा में गुणोत्तर वृद्धि हुई! ऑर्डर्स में तेजी से बढ़त हुई, उसके साथ प्रॉफ़िट्स में भी। अब मैं ऐसी कंपनी का मालिक था जिसकी वैल्यूएशन करोड़ों में थी। वैसे मैं कंपनी का छोटा मालिक था - उसके बारे में आपको बाद में बताऊँगा। फिलहाल यही जानना काफी है कि अंततः समृद्धि हमारे घर में आने लगी!

जब से सुनील ने अपनी कंपनी ज्वाइन करी, तब से वो केवल तरक्की ही कर रहा है। माँ उसके लिए एक अमेज़िंग लाइफ पार्टनर सिद्ध हुईं। सुनील अपनी पत्नी में जो गुण चाहता था, और सोचता था, माँ में वो सारे गुण थे! माँ उससे बहुत प्रेम करती थीं - बहुत प्रेम! हाँ - उनकी तरफ से प्रेम धीरे धीरे परवान चढ़ा, लेकिन ऐसा चढ़ा कि चढ़ता ही जा रहा है। माँ उसको प्रेमिका और पानी का प्रेम देती ही थीं, साथ ही वो उसको सपोर्ट भी बहुत करती थीं। उन्होंने सुनील को भावनात्मक रूप से भी बहुत दृढ बनाया। जब पुरुष का घर संतुष्टिदायक होता है तब वो बहुत तरक्की करता है।

माँ सुनील के लिए अपने प्रेम में पूरी तरह से समर्पित हैं - सुनील उनका पति है, इसलिए उनके जीवन में सुनील का सबसे ऊँचा दर्जा है। प्रेम तो सुनील को वो बहुत देती थीं, साथ ही साथ आदर भी बहुत देती थीं। करवा चौथ में जब वो सुनील के पैर छू कर अपना व्रत तोड़ती थीं, तो उसको ऐसा लगता था कि वो पूरे संसार का राजा हो! माँ ने उसके लिए माँसाहार भी पकाना सीख लिया - ख़ास कर हिल्सा मछली! वो अलग बात है कि वो स्वयं शाकाहार ही खाती थीं। एक बंगाली बिना मछली खाए नहीं रह सकता, और एक समर्पित पत्नी के तौर पर माँ अपने पति को उस सुख से वंचित नहीं रख सकती थीं!

सुनील भी माँ के प्रति पूरी तरह से समर्पित था। उसको माँ से सदा से प्रेम था। आसक्ति नहीं - प्रेम! शुद्ध प्रेम! गज़ब का सम्बन्ध था दोनों का! बिस्तर में वो अत्यंत कामुक प्रेमी था, और उसके बाहर एक ज़िम्मेदार पति, एक मज़ाकिया दोस्त, और कभी कभी एक नटखट बेटा! ऑफिस जाने से पहले वो रोज़ माँ के पैर छू कर आशीर्वाद लेता था, और ऑफिस से आने के बाद उनसे कामुक तरीके से लिपट जाता!
इसीलिए तो पत्नी के लिए धर्म शास्त्र में कहा गया है
कार्येषु दासी, करणेषु मंत्री, भोज्येषु माता, शयनेषु रम्भा । धर्मानुकूला क्षमया धरित्री, भार्या च षाड्गुण्यवतीह दुर्लभा ॥
रोज़ का काम था - फिर भी, जब भी सुनील उनके कपड़े उतारता, माँ उत्तेजना और शर्म से काँपने लगतीं! वो उनको तृप्त कर देता था। हमेशा! उनके कामुक सम्बन्ध की अग्नि हमेशा भड़कती रहती। माँ भी उसकी कामुक हरकतों का समुचित प्रतिदान देतीं। एक युवा पति के संग का रंग उन पर पूरी तरह चढ़ गया था। वो भी अब जवान दिखतीं। जवान महसूस करतीं। और खुश रहतीं!

संसार की दृष्टि में उनका रिश्ता अवश्य ही मसालेदार फंतासी था, लेकिन वो दोनों बस एक प्रेमी युगल थे, जिनके बीच उम्र का बड़ा अंतर था। और कुछ भी नहीं! सुनील पर इस बात का कोई प्रभाव भी नहीं था। वो माँ को अपने ऑफिस की पार्टियों में ले जाता, और अपने सभी मित्रों से पूरे गर्व के साथ मिलवाता। लोग शुरू शुरू में उनके पीछे बातें बनाते, उनका मज़ाक बनाते; लेकिन फिर धीरे धीरे उनको दोनों के प्यार की समझ और उसके लिए आदर होने लगा। सुनील के दोस्त माँ को ‘भाभी’ कह कर बुलाते, और पूरे सम्मान के साथ उनसे बातें करते! इन तीन सालों में दो बार सुनील को परफॉरमेंस अवार्ड मिला था - और हर बार वो अपनी पत्नी को ही अपनी परफॉरमेंस का श्रेय देता था। माँ वाकई वैसी ही पत्नी साबित हुईं जिसकी वो कल्पना ही करता आया था।

काजल अक्सर कहती कि उसका बेटा वाकई बहुत लकी है कि सुमन जैसी बीवी उसको मिली! जब से दोनों की शादी हुई थी, तब से काजल भी बहुत खुश रहने लगी थी। शुरू शुरू में सुनील ने काजल से कहा था कि क्यों न वो भी उन दोनों के साथ आ कर रहे। लेकिन मैं भी यही चाहता था कि काजल मेरे साथ रहे - इस तरह से लतिका और आभा भी मेरे ही साथ रहते। काजल ने मुझसे वायदा भी किया था। मेरा काम भी बहुत तेजी से बढ़ रहा था इसलिए मुझे जो भी सहारा मिलता, मैं लेना चाहता था। काजल ऐसी महान स्त्री थी कि उसके लिए मेरी ज़रूरतें सर्वोपरि थीं। लिहाज़ा वो मेरे ही साथ दिल्ली में थी।

काजल मुझे अक्सर यह कह कर चिढ़ाती कि मैं उसका ‘पोता’ हूँ!

एक तरह से ये सही भी था - रिश्ते में मैं सुनील का बेटा ही तो हूँ! और लतिका मेरी बुआ!

हा हा हा हा!
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इस हिसाब से आभा काजल की परपोती थी! एक भरा पूरा परिवार!


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समृद्धि केवल धन की ही नहीं होती। हमारी वंशबेल में भी वृद्धि होने लगी। सुनील और माँ की पहली संतान - एक पुत्र - उनकी शादी होने के दसवें महीने बाद हुई। माँ चाहती थीं कि उनका पहला बच्चा जल्दी से जल्दी हो जाए! शरीर का क्या पता? वो नहीं चाहती थीं कि सुनील को पिता बनने का सुख न मिले!

माँ अपनी गर्भावस्था के लगभग पूरे समय मुंबई में ही रहीं। बीच में काजल कुछ समय के लिए उनकी देखभाल के लिए वहाँ गई हुई थी। लेकिन आखिरी का एक महीना उन्होंने हमारे साथ बिताया। काजल चाहती थी कि पूरा परिवार उसकी बहू के आस पास ही रहे, जिससे उसकी अच्छी तरह से देखभाल हो सके। बच्चा होने के बाद, जब तक माँ अकेले उसकी देखभाल करने लायक न हो जाएँ, तब तक उनको हमारे साथ ही रहना चाहिए! सुनील भी यही चाहता था। उसने माँ से वायदा किया कि वो हर सप्ताहाँत आ कर उनसे मिलेगा।

गर्भवती हो कर माँ बहुत सुन्दर लगतीं! उनको देख कर वाकई ऐसा लगता था कि कोई छब्बीस सत्ताईस साल की लड़की पहली बार गर्भवती हुई हो! जब वो घर आईं तो उन्होंने मुझे अपने कमरे में बुला कर स्तनपान कराया। वो चाहती थीं कि उनका बड़ा बेटा सब पहले उनका दूध पिए! गर्भ की उन्नत अवस्था में होने के कारण अब माँ के स्तनों में दूध उतरने लगा था। उस कारण से माँ के स्तन भी बड़े हो गए थे - लेकिन काजल या देवयानी के जैसे नहीं। उनकी सुंदरता अभी भी बरकरार थी। काजल उनकी खूब देखभाल करती - उनके खाने पीने और सोने का पूरा ध्यान रखती, उनके पूरे शरीर की मालिश करती, उनको व्यायाम करवाती, और उनको हमेशा हँसाती रहती! और तो और, वो माँ को स्तनपान भी कराती! उसके दूध पर सबसे पहली दावेदारी अब माँ की हो गई थी और उसके बाद आभा की, फिर अंत में लतिका की! बेचारी बच्ची! माँ भी जब उनका मन करता, बिना हिचक, काजल का स्तनपान करतीं!

माँ की डॉक्टर (गाइनोकोलॉजिस्ट) भी उनसे बहुत खुश थीं - उन्होंने माँ को कह रखा था कि उनकी हेल्थ बढ़िया है, और अपनी उम्र के हिसाब से उनकी जनन क्षमता कहीं बढ़िया है। बस, वो जो कर रही हैं, करती रहें! कहने की कोई आवश्यकता नहीं कि प्रसूव प्राकृतिक तरीके से और आसानी से हो गया। उस दिन हम सभी अस्पताल ही में थे।

अपने पहले बेटे का नाम उन्होंने आदित्य रखा। सुनील चाहता था कि उसके हर बच्चे का नाम ‘अ’ से शुरू हो, क्योंकि मेरा नाम भी ‘अ’ से ही शुरू होता था, और मेरी बेटी का नाम भी! आदित्य एकदम स्वस्थ, हृष्टपुष्ट, और सुन्दर बच्चा था! उसका रंग दोनों का मिलाजुला था, लेकिन बड़ा ही सुन्दर बच्चा था वो! शांत रहता, लेकिन बहुत ही एक्टिव! और उसकी भूख ही बड़ी जबरदस्त थी। माँ को पर्याप्त दूध बन रहा था, लेकिन आदित्य की भूख उससे अधिक थी। इसलिए काजल भी उसको अपना दूध पिलाती। कुछ समय में डिमांड के हिसाब से माँ का शरीर पर्याप्त दूध बनाना शुरू कर देता, लेकिन तब तक काजल के होने का लाभ तो था!

आदित्य के जन्म के कोई तीन महीने बाद माँ वापस मुंबई लौट गईं। सुनील उनको लेने आया था। काजल भी दो तीन दिनों के लिए उन्ही के साथ चली गई कि घर में बच्चे के रहने की ठीक से व्यवस्था कर के वापस आ जाएगी। बच्चा होने के पूर्वानुमान में दोनों ने वैसे भी आवश्यकता के सामान जुटा लिए थे, और जो कसर रह गई थी, वो काजल ने आ कर व्यवस्थित कर दिया। काजल वापस नहीं आना चाहती थी, लेकिन माँ ने उसको विश्वास दिलाया कि वो सम्हाल लेंगी सब कुछ! सही भी था - माँ ने मुझे सीमित संसाधनों से तब पाल लिया था, जब वो नादान ही थीं! अब तो वैसी कोई समस्या नहीं थी।

आदित्य का पहला जन्मदिन मुंबई में मनाया गया - हम सभी वहाँ उपस्थित थे! हम सभी मतलब, पूरा परिवार, ससुर जी, और जयंती दीदी का परिवार! बड़ा आनंद आया! जश्न का माहौल! अब तक माँ आश्चर्यजनक रूप से अपने पुराने वाले शेप में वापस आ गई थीं। हाँ - उनके स्तन थोड़े से बड़े हो गए थे। उस कारण से वो और भी सुन्दर लगतीं! मॉडल जैसी! एक अलग ही तरह की आभा, एक अलग ही तरह की रौनक उनके चेहरे पर रहती।

जयंती दीदी भी माँ को छेड़ कर कहतीं कि, ‘दीदी, तुम कभी हमसे बड़ी लगोगी?’

दीदी की बात सच थी - माँ की उम्र का उनके शरीर पर मानों कोई असर ही नहीं हो रहा था। खैर, अच्छी बात थी यह तो! अब दोनों जने और भी स्वच्छंद रूप से यौन सम्बन्ध का आनंद उठाते थे। पहले तो बच्चा करने का तनाव था, लेकिन अब तो केवल आनंद ही आनंद था!

इसलिए माँ को बड़ा ही सुखद आश्चर्य हुआ जब उनको दुबारा गर्भ ठहर गया! माँ को आश्चर्य हुआ होगा, लेकिन न तो सुनील को ही आश्चर्य हुआ, और न ही काजल को! दोनों को विश्वास था कि माँ को और भी संतानें होंगी! काजल इस बार बच्चों की गर्मियों की छुट्टियों में दोनों को ले कर माँ के पास चली गई। मैं रह गया पीछे अकेला। लेकिन मुझे इस बार बुरा नहीं लगा। काम के सिलसिले में मैं वैसे भी ज्यादातर घर से बाहर ही रहता। मैं सुनील और माँ से मिलने चला जाता - जब भी मेरी मुंबई में कोई क्लाइंट मीटिंग लगती।


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इस बीच में एक दो लड़कियों से मेरी मुलाकात हुई - जयंती दीदी ने मुझे अपनी एक क्लाइंट से मिलवाया। वो लड़की एक समय टॉप मॉडल रह चुकी थी। एक दो बार उसके साथ डेट्स पर भी गया, लेकिन बात कुछ जमी नहीं। मेरे ऑफिस में भी एक लड़की दिखाई दी - लेकिन मैंने कोई भी रोमांटिक सम्बन्ध पनपने से पहले ही खुद पर लगाम लगाया, क्योंकि बॉस-सबऑर्डिनेट के बीच में रोमांस सही बात नहीं है - न तो ऑफिस के लिए, और न ही टीम के मोरॉल के लिए!

सुनील और माँ की दूसरी संतान - एक और पुत्र - उनकी शादी के तीन साल बाद हुआ। मतलब उनकी शादी की सालगिरह के कुछ ही दिन बाद! ये भी नैसर्गिक प्रसव था। हाँलाकि माँ अब छियालीस के ऊपर हो चली थीं। डॉक्टरों को उनकी प्रेग्नेंसी हिस्ट्री के बारे में मालूम था, इसलिए वो भी चाहती थीं कि प्राकृतिक तरीके से ही बच्चे का जन्म हो। ये भी बढ़िया स्वस्थ और सुन्दर बालक था। उसका नाम उन्होंने आदर्श रखा। अचानक से ही हमारा खानदान भरा पूरा हो गया।

इस बार माँ क्रिसमस शुरू होने तक हमारे साथ रहीं। बच्चों के सर्दियों की छुट्टी में काजल सभी को ले कर मुंबई चली गई। कभी कभी काजल पर बहुत दया आती। हाँलाकि अब हमारे घर पर भी रेगुलर काम करने वाली बाई थी, लेकिन फिर भी सारे बच्चों की देखरेख में काजल की व्यस्तता बढ़ गई थी। अगले साल लतिका की हाई स्कूल की परीक्षा थी, तो हम - या यूँ कह लें कि मैं - चाहते थे कि वो वापस आ कर बस पढ़ाई और परीक्षा पर ही ध्यान दे।


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लतिका बड़ी हो रही थी - और बेहद सुन्दर भी! साँवला रंग उसकी सुंदरता पर जैसे चार चाँद लगा देता! जयंती दीदी अक्सर कहतीं कि जब पुचुकी जवान होगी, तब कहर ढा देगी अपनी खूबसूरती से! बात सौ प्रतिशत सही थी। जैसा कि पहले भी बताया है, लतिका खेल कूद में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती थी। आज कल उसका फोकस दौड़ (रनिंग) पर अधिक था। अपने आयु-वर्ग में वो देश की सबसे अग्रणी धाविकाओं में से एक थी। कई सारी ट्रॉफियां, कई सारे मेडल्स, कई सारे पुरस्कार जीत चुकी थी लतिका अब तक! मैं भी उसके साथ ही दौड़ता था सवेरे सवेरे। हर ट्रेनिंग के बाद उसकी माँस पेशियों की मालिश, स्ट्रेचिंग, टोनिंग, इत्यादि मैं ही करवाता। उसकी परफॉरमेंस देख कर समझ आ रहा था कि जल्दी ही लतिका हमारा नाम रोशन करेगी।

लतिका जवान हो रही थी, लेकिन उसका बचपना गया नहीं था। वो अभी भी वैसा ही व्यवहार करती जैसे कि छोटी बच्ची हो! मुझे कभी कभी लगता था कि काजल शायद उसको घर में ऐसे नग्न रहने से मना करेगी, लेकिन काजल ने कभी नहीं किया। अगर घर के लड़के स्वच्छंद बड़े हो सकते हैं, तो लड़कियाँ क्यों नहीं? और तो और, वो तो अपनी बहू को भी वैसी ही रहने के लिए प्रोत्साहित करती रहती। खैर, लतिका के सीने पर बढ़ रहे शंक्वाकार उभार बड़े क्यूट से लगते। किसी सुन्दर सी गुड़िया जैसी लगती थी लतिका! सच में - अपने बच्चों को जवान होते हुए देखना बड़ा सुखद होता है! मैं कभी कभी मज़ाक में उसको ‘बुआ जी’ कह कर छेड़ता। शुरू शुरू में वो शर्मा जाती, या बुरा मान जाती थी, लेकिन फिर बाद में वो भी मेरे खेल में शामिल होते हुए, और मुझे छेड़ने की गरज़ से ‘अमर बेटे’ कह कर बुलाती! हमारी छेड़खानी पर काजल बहुत हंसती।

लतिका का हाई स्कूल का परफॉरमेंस आश्चर्यजनक कर देने वाला था! उम्मीद नहीं थी कि उसका नाम अपने स्कूल के टॉप दस क्षात्रों में होगा! सच में - गर्व से सीना चौड़ा हो गया।

उधर सुनील मुझसे अक्सर पूछता कि क्या उसके और भाई - बहन होने की सम्भावना है? इस बात का क्या उत्तर देता मैं? काजल तो मुझसे शादी की बात करनी तो छोड़ो, सोचती भी नहीं थी। और तो और, माँ की दूसरी प्रेग्नेंसी के बाद से हमारे बीच में अंतरंगता समाप्त ही हो गई थी। काजल मेरी कोई जागीर तो थी नहीं, जो उस पर कोई दबाव बनाता, या कुछ और करता! वो मालकिन थी। उसके इतने सारे एहसान थे मुझ पर कि उस विषय पर भी क्या कहूँ? मैंने यही बात सुनील से पूछी, तो उसने कहा कि वो चारों बहुत खुश हैं! दोनों बच्चे अच्छे से पल रहे हैं। खुश परिवार! और क्या चाहिए?

सच में - मैं बहुत खुश था!

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बहुत ही बढ़िया था
समृद्धि का यह पर्व
पर सफर तो जारी ही है ना अबतक
अब देखना है अमर के जीवन में कोई और पन्ना जुड़ता है या नहीं
 
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