• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

Status
Not open for further replies.

avsji

..........
Supreme
3,530
15,958
159
b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c

प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
Last edited:

avsji

..........
Supreme
3,530
15,958
159
नया सफ़र - लकी इन लव - Update #14


“दीदी?” मैं और देवयानी दोनों ही उनकी आवाज़ सुन कर चौंक गए।

लेकिन अच्छी बात यह थी कि वो अपने मज़ाकिया वाले अंदाज़ में ही थीं। वैसे भी, उन्ही के उकसाने पर मैं और देवयानी इस समय सम्भोग कर रहे थे, वरना खुद पर कण्ट्रोल तो करते ही।

‘कितने समय से दीदी हमारी बातें सुन रही हैं!’ मैंने सोचा, ‘और सुनना एक बात है, वो कब से हमको देख रही हैं!?’

“मेरी प्यारी बहन कब तक तुम्हारे आने और हमारे डैड से बात करने का इंतज़ार करती रहेगी? हम्म?”

“दीदी! तुम यहाँ क्या कर रही हो?” देवयानी ने अपने सीने को हाथों से छुपाते हुए कहा।

“अब ऐसे छुपाने का क्या फ़ायदा? तुम दोनों को अपनी शरारत शुरू करने से पहले दरवाजा बंद नहीं करना चाहिए?” जयंती दी हंसने लगीं।

“हाय भगवान्!” डेवी अपने में ही सिमट गई।

“हा हा! दीदी, आपकी बातों से मुझे मेरी माँ की याद आ जाती है! वो भी ऐसे ही मुझे छेड़ती और समझाती थीं।”

आई ऍम श्योर! ऐसे करोगे, तो कोई भी मेरे जैसे ही रियेक्ट करेगा! लेकिन यार, तुम दोनों अपने आस पास की भी सुध ले लिया करो! तुम दोनों को ऐसे, खुल्लम खुल्ला, इरोटिक हरकतें करते देख कर... मेरे दिल में भी कुछ कुछ होने लग गया!”

“हा हा हा हा! दीदी, आओ... मैं आपके साथ भी...” मेरे मुँह से निकल गया, लेकिन मुझे ऐसा कहते ही तुरंत पछतावा भी होने लगा। डेवी ने मेरी पसलियों में जोर से कोहनी मारी।

“आऊ!”

“हा हा! नो! थैंक यू! अपनी सारी एनर्जी पिंकी के लिए बचा कर रखो! वैसे भी, तुम्हारा छुन्नू अभी कुछ और देर तक कुछ भी करने लायक नहीं है, और इसके पहले की वो तैयार हो, और तुमको कोई और आइडियाज आएं, मैं यहाँ से निकल जाना चाहती हूँ!”

“क्या दीदी! इतनी जल्दी? कुछ मज़ा ही नहीं आया!” मैंने मनुहार करते हुए कहा।

“मज़ा नहीं आया तो वो तुम दोनों जानो! मुझे जाना होगा - मेरे दोनों बेटे इंतज़ार में होंगे!”

“हाँ, मुझे भी उनके साथ खेलना है!” देवयानी ने तत्परता से कहा।

“हाँ, तो चलो - जल्दी से कपड़े पहन लो। मेरे छोटू को मेरे बिना अजीब सा लग रहा होगा!”

जयंती दी का इतना कहना ही था कि देवयानी झटपट अपने कपड़े पहनने लगी। उधर वो तैयार हो रही थी, और इधर जयंती दी मुझे मेरे होने वाले ससुर जी के बारे में ‘अंदरूनी’ जानकारियाँ देती जा रही थीं। उनको क्या पसंद है, क्या नहीं इत्यादि! मुझे तो वो सब कोरी बकवास ही लग रही थी। मैं मन ही मन सोच रहा था कि ‘यार - ऐसे हौव्वा खड़ा करने का क्या मतलब है? आखिर किसी न किसी से तो अपनी लड़की का ब्याह तो करेंगे ही न वो? या फिर ऐसे ही कुँवारी रखेंगे उसको अपने घर में? अगर उनको अकड़ दिखानी है, तो फिर तो केवल उनका ही नुकसान है - देवयानी और मैं शादी तो ज़रूर करेंगे। वो उस समारोह में आमंत्रित होंगे, यह उन पर ही निर्भर करेगा।’ इत्यादि!

खैर, कोई दस मिनट के बाद देवयानी और जयंती दीदी ने अलविदा कही और मुझे यथाशीघ्र घर आ कर सभी से मिलने को आमंत्रित किया। मैंने कहा कि मैं अगले शुक्रवार शाम को आ सकता हूँ, अगर यह उनको ठीक लगता है। उन्होंने मुझे समझाया कि उसके पहले भी आने में कोई बुराई नहीं है - उनके पिता रिटायर्ड हैं, और उनको मुझसे मिलने में कोई मुश्किल नहीं होगी। अगर सब ठीक गया, तो सप्ताहांत में मैं अपने पूरे परिवार के साथ आमंत्रित हैं!

हम्म, मतलब बात सब सही तरीके से आगे बढ़ रही थी। मुझे तो डेवी के पिताजी से मिलना महज़ एक खानापूर्ति लग रही थी। वैसे ये आवश्यक बात है। एक बार घर के सभी सदस्यों से मिलना अच्छा रहता है।

लिहाज़ा, मैं अगले बुद्धवार की शाम को देवयानी के घर उसके परिवार के अन्य लोगों से मिलने गया।



जैसी कि मुझे उम्मीद थी, उनके घर पर उनका समस्त परिवार मौजूद था, जो कि एक अच्छा संकेत था। मतलब सभी को मुझसे मिलने में दिलचस्पी थी। दरवाज़ा जयंती दीदी ने ही खोला। उनके पीछे, ड्राइंग रूम में उनके पति मिले - उनको देख कर ऐसा नहीं लगा कि उनको मुझसे मिलने में कोई बहुत रूचि है - शायद वो वहाँ आए थे केवल अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाने। साढ़ू भाइयों में ऐसा ही ‘याराना’ देखने को मिलता है! लेकिन हाँ, रूखेपन से तो वो मुझसे नहीं मिले। उन्होंने बहुत ही पारंपरिक तरीके से, हाथ मिला कर मेरा अभिवादन किया।



मैं अभी सोफे पर बैठ कर सेटल हो ही रहा था कि देवयानी के पिताजी ने ड्राइंग रूम में प्रवेश किया। मैंने ठीक ही समझा था - डेवी और जयंती दी ने फ़िज़ूल ही उनके नाम का हौव्वा खड़ा किया था मेरे सामने! वो मुझसे बेहद गर्मजोशी से मिले।



“हाय, आई ऍम आलोक!” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।

हेलो सर, वेरी नाइस टू मीट यू!”

ओह कमऑन! कॉल में बाय माय नेम!”

दैट आई कांट डू सर!” मैंने शिष्टतापूर्वक कहा, “इवन इफ आई वांट टू! आई कांट कॉल समवन बाय दीयर नेम, हू इस लाइक माय ओन पेरेंट्स!”

“हा हा! यंग मैन, आई ऍम आलरेडी इम्प्रेस्सड विद यू!” उन्होंने हँसते हुए कहा और बोले, “सिट! प्लीज!”

मैं वापस सोफे बैठ गया।

“कुछ अपने बारे में बताओ अमर!” उन्होंने विनोदपूर्वक कहा।

“जी, कुछ ख़ास नहीं! मेरी पैदाइश एक छोटे से कसबे, अ-ब-स-द में हुई है! मेरे डैड उसके पास ही एक गाँव अ-ब-स-द से हैं, और माँ वहाँ के पड़ोसी गाँव, अ-ब-स-द से हैं। डैड अभी अ-ब-स-द में मैनेजर हैं और माँ एक हाउसवाइफ! मैंने अ-ब-स-द से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करी है, और पिछले साल ही देवयानी की कम्पनी में काम करना शुरू किया है!”

मैंने देखा कि वो बिना कुछ कहे मेरी तरफ देख रहे थे। तो सोचा कि उनको सबसे ज़रूरी बात भी बता दूँ। मैं थोड़ा रुक रुक कर बोला,

आई वास मैरिड - ब्रीफली - टू गैब्रिएला सूसा - अ ब्राज़ीलियन गर्लअनफॉर्चुनेटली फॉर मी, शी पास्ड अवे इन अ रोड एक्सीडेंट अबाउट टू इयर्स एगो!” पुरानी, दर्द भरी यादें ताज़ा हो आईं! मैंने गहरी साँस भरी, “इन दैट एक्सीडेंट, आई लॉस्ट गैबी, ऐस वेल ऐस माय अनबॉर्न बेबी!”

“आई ऍम वैरी सॉरी अमर! मेरा तुम्हारा दिल दुखाने का कोई इरादा नहीं था!” उन्होंने कहा।

नो सर, इट इस ओके! एंड थैंक यू!” मेरी आँखें भर आई थीं।

मैंने उनसे नज़र बचा कर अपने आँसू पोंछे - लेकिन मेरी यह हरकत उनसे छुप न सकी। फिर भी उन्होंने कुछ नहीं कहा। शायद वो मेरे इस संजीदा पक्ष को देख कर खुश भी थे, प्रभावित भी, और संतुष्ट भी!

मैं कुछ और बता पाता कि देवयानी और जयंती दीदी दोनों ने कमरे में प्रवेश किया। दोनों ने चूड़ीदार शलवार, और रेशमी कुर्ता पहना हुआ था। उनके साथ ही जयंती दीदी के दोनों बच्चे भी थे। मैं दोनों के लिए कुछ न कुछ उपहार ले कर आया था। बच्चे तो अपने लिए कुछ भी पा कर खुश हो जाते हैं।

जयंती दीदी ने चहकते हुए मुझसे बातें करना शुरू कर दिया, और डेवी अपने डैडी की बाँहों में बाँहें डाल कर उनके ही बगल बैठ गई। उनके चेहरे को देख कर लग रहा था कि वो मुझसे इम्प्रेस्सड तो हैं! बढ़िया बात है। कोई पंद्रह मिनट के बाद घर की कामवाली ने देवयानी को आवाज़ लगाई। उसको सुनते ही डेवी ने कहा,

“चलिए, बाकी की बातें टेबल पर करेंगे?” उसने अपने डैडी को हाथ पकड़ कर उठाया, और अपने जीजाजी को कहा, “चलिए जीजू, बहुत देर से भूखे बैठे हैं आप!”

“अरे! हा हा! नहीं ऐसी कोई बात नहीं!” उन्होंने औपचारिकतावश कहा।

लेकिन उनका चेहरा देख कर लग रहा था कि बिलकुल वही बात है।

खाने की टेबल पर विविध प्रकार के व्यंजन सजाए गए थे - और इस तरह के स्वागत को देख कर लगता है कि वो सभी वास्तव में हमारे रिश्ते को और आगे बढ़ाने में रुचि रखते थे। इसलिए, खाना ऐसा पकाया गया था, जो मेरी पसंद का हो, और स्वादिष्ट भी! वो सभी चाहते थे कि मुझे ऐसा लगे कि मेरी उपस्थिति स्वागतयोग्य है, और मुझे वहाँ पर घर जैसा महसूस हो। खाना बहुत अच्छा था, और प्रचुर मात्रा में था - मैं शाकाहारी था - इस बात का ख़ास ख़याल रखा गया था। मुझे मालूम था कि देवयानी और उसका परिवार माँसाहारी है! डेवी तो ख़ासतौर पर चिकन की बेहद शौक़ीन है! खैर, मेरे लिए पनीर पकोड़ा था, स्वादिष्ट नूडल्स की एक ख़ास रेसिपी, जिसे मैं अक्सर डेवी के साथ बाहर जाने पर खाना पसंद करता था, उसकी ग्रेवी, और फिर एक बेहद स्वादिष्ट भूमध्यसागरीय सलाद था, जो मुझे बहुत पसंद आया।

खाते समय डेवी के पिताजी ने मुझे सुझाया, “अमर, पकोड़े पर ये इमली की चटनी और ये लाल मिर्च की चटनी की एक बूंद डालें...”

मैंने उनके बताये अनुसार किया और वाकई, बड़ा यमी स्वाद आया!

“ओह! दिस इस वेरी टेस्टी! थैंक यू!” मैंने अपना आभार व्यक्त किया।

उसके डैडी ने ‘समझते हुए’ अपना सर हिलाया। उन्हें यह बात अच्छी लगी कि मैं उनके सुझाव पर तुरंत सहमत हो गया। मुझे लगता है, बाप लोग ऐसे ही होते हैं... खासकर पारंपरिक बाप! उनसे बहस न करो, उनकी बात सुन लो, भले ही अपनी करो! वो उतने में संतुष्ट हो जाते हैं! खाने की टेबल पर हमने छोटी मोटी बातें करीं - अपने परिवारों के बारे में, जयंती दी के बच्चों के बारे में, हमारे काम-काज के बारे में, इत्यादि! वैसे ये सारी बातें ‘आइस-ब्रेकर’ होती हैं, जो असली मुद्दे - असली बातचीत की ओर ले जाती हैं। और अंततः असली मुद्दा आ ही गया!

“तो आप दोनों लव-बर्ड्स का कैसा चल रहा है?” देवयानी के डैडी ने पूछा, “आप दोनों कितने समय से साथ हैं?”

“जी, यही कोई छः महीने हुए होंगे, सर।” मैंने डेवी की ओर देखते हुए कहा।

वो हंसी।

“ठीक है फिर तो! मतलब आप दोनों ने एक दूसरे के साथ कुछ ढंग का समय बिता लिया है। मतलब अब इस रिलेशन को आगे बढ़ाने का टाइम आ गया लगता है! नहीं?” उन्होंने कहा, या यों कहें, कि टिप्पणी करी।

मैंने कुछ नहीं कहा।

ओह डोंट वरी, यंग मैन! मैं इसीलिए तो हूँ! मेरी पिंकी को तुम पसंद हो - और मुझे समझ में आ रहा है कि क्यों! तो चलो, अब तुम्हारी शादी का बंदोबस्त करते हैं!”

“ओह डैडी!” देवयानी खुशी से झूम उठी और उनको गले लगाते हुए लगभग उनकी गोदी में जा गिरी!

आमतौर पर भारत में ऐसा नहीं होता है! लेकिन जब किसी लड़की के माता-पिता, उसके लिए जीवनसाथी की तलाश करते करते हार मान लेते हैं, तो वो भी चाहते हैं कि उनकी लड़की के पसंद के लड़के से उसकी शादी कर दें! उसी में सबकी भलाई है!

वैसे भी, मेरे बारे में उनको बहुत कुछ मालूम ही था। न तो मैं कोई लूज़र था, और न कोई सकर! अच्छा कमा लेता था, कंपनी में मेरी अच्छी रेपुटेशन थी! स्वस्थ था! और क्या चाहिए? सही जीवन-साथी मिलना जरूरी है, न कि ऐसे समय में किसी जड़ता/या मूढ़ता का प्रदर्शन!

“सर,” मैंने कहना शुरू किया, “मुझे उम्मीद है कि...”

“अरे यार! अब तो ये सर वर कहना बंद करो!” उसके डैडी बोले, “टेक इट इजी! अब समय आ गया है कि तुम दोनों,” उन्होंने ऊँगली से पहले मेरी ओर, और फिर देवयानी की ओर इशारा किया, “... साथ में रहो... जीवन भर के लिए!”

मैं ख़ुशी से मुस्कुराया, “थैंक यू सो मच! सर!”

“सर नहीं भाई! डैडी बोल सकते हो मुझे!”

“थैंक यू, डैडी!”

“और बाप को थैंक यू नहीं बोला जाता!” वो मुस्कुराए, “सच में!” उन्होंने आगे कहा, “तुम मुझे पसंद आए! पिंकी की पसंद मेरी पसंद - लेकिन तुम वाकई मुझे पसंद आए!”

इस बात पर हम सभी मुस्कुराए!

उन्होंने कहना जारी रखा, “तुम दोनों अभी बहुत यंग हो! तुम दोनों को युथ का आनंद लेना चाहिए। आई ऍम अन ओल्ड मैन! आई नो व्हाट आई ऍम टॉकिंग अबाउट!”

“जी...” अब मैं और क्या कहता! मैं कुछ भी सोच नहीं पा रहा था!

“तो, यंग मैन, जल्दी से अपने डैड और माँ को आने को कहो! उनका नंबर दो, मैं उनको अभी कॉल कर लेता हूँ, और यहाँ इनवाइट कर लेता हूँ! फिर हम सभी डिसकस कर लेंगे कि शादी कैसे करनी है!”

“ओह सर!”

“फिर से सर! बेटा, अब से मुझे डैडी कहना शुरू कर दो!” वो बहुत प्रसन्न लग रहे थे।

सच में - डेवी के डैडी से मिलने और बात करने के बाद ऐसा बिलकुल भी नहीं लग रहा था कि वो बहुत सख्त आदमी हैं! और यह वास्तव में बहुत अच्छी बात थी।

जयंती और देवयानी दोनों ने ही बातों ही बातों में इशारा किया था कि उनके डैडी को एक पुत्र की चाहत थी! तो संभव है कि बेटियों के पतियों को वो अपने पुत्र जैसा ही मानें! वैसे भी, उनकी दोनों ही बेटियों ने मुझे पसंद किया था - तो संभव है कि इस बात ने उनके मन में मेरे इम्प्रैशन को मजबूत किया हो। उनका बड़ा दामाद अच्छे काम में संलग्न था, उसकी अच्छी प्रतिष्ठा थी, वो अच्छा व्यवहार करता था, और जयंती दीदी की बढ़िया देखभाल करता था, उनसे प्यार करता था और उनके काम में उनको प्रोत्साहन भी देता था। उसके मुकाबले मैं सुशिक्षित था, और अपनी उम्र के हिसाब से बढ़िया तरक्की कर रहा था। मैं भी उनकी बेटी से बहुत प्यार करता था। तो, कुल मिलाकर, मेरा पलड़ा कमज़ोर नहीं था! उम्र का भी कुछ लाभ हो सकता है - मैं वहाँ सबसे छोटा था (दोनों बच्चों को छोड़ कर)! खैर!

“यू नो व्हाट...”, उन्होंने कुछ सोच कर कहा, “मेरे एक दोस्त हैं - यहीं पास ही में उनका एक सुंदर सा फार्महाउस है - कोई दो ढाई घंटे की ड्राइव पर! वो हमेशा मेरे पीछे पड़ा रहता है कि वीकेंड वहाँ बिताओ! फोटो देख कर लगता है कि बढ़िया जगह है! शांत है! एकांत का आनंद लेने के लिए... शोरगुल से दूर... मुझे यकीन है कि तुम दोनों को वहाँ बहुत अच्छा लगेगा! आई विल टॉक टू हिम! गो देयर! जब भी जाने का मन हो, चले जाना तुम दोनों! ओके?”

यह विचार बड़ा दिलचस्प था - इसलिए भी क्योंकि यह डेवी के डैडी की तरफ से आ रहा था। अभी हम दोनों की शादी नहीं हुई थी। तो उनका इशारा किस तरफ था? क्या वो यह सुझाव दे रहे थे कि मैं उनकी बेटी शादी से पहले ही कहीं ले जा सकता हूँ, और उसके साथ कुछ रातें बिता सकता हूँ? क्या बात है!

“डैडी!!” जयन्ती दीदी ने घोर अविश्वास के साथ कहा।

यस यस! आई नो! डोंट थिंक फॉर वन्स दैट योर फादर हैस गॉन सेनाइल!” वो मुस्कुराते हुए बोले, “अरे, इसमें बुराई ही क्या है? अब तो मैं भी चाहता हूँ कि इन दोनों की जल्दी से जल्दी शादी हो जाए। अब अगर इनकी शादी होनी ही है, तो मैं ये सारे ढोंग क्यों करूँ?” उन्होंने बड़ी सहजता से कहा, “ऐसा नहीं है कि मैं चाहता हूँ कि तुम दोनों बिना शादी के सेक्स करो! मैं बस इतना चाहता हूँ कि तुम दोनों की शादी जल्दी से जल्दी हो जाए।”

“ओह्ह डैडी डैडी!” डेवी ने लगभग चीखते हुए अपने डैडी को कसकर अपने गले से लगा लिया, “आई लव यू सो मच डैडी!”

आर यू हैप्पी, पिंकी?”

वैरी हैप्पी डैडी! वैरी वैरी हैप्पी... दिस इस द हैप्पीएस्ट डे ऑफ़ माय लाइफ!”

“मैं चाहता हूँ कि तुमको आज से अधिक खुशी मिले! हमेशा!” फिर वो मेरी तरफ़ मुखातिब होते हुए बोले, “तो यंग मैन, लेट उस मीट योर पेरेंट्स! ... जितनी जल्दी हो सके! वो नहीं आ सकते, तो बताओ - मैं जाकर उनसे मिल आता हूँ! लेकिन मेरा मन है कि वो आएँ यहाँ - जिससे उनका स्वागत, मान सम्मान किया जा सके! एंड वन लास्ट थिंग - अगले हफ़्ते तुम्हारे ऑफिस में तीन दिनों का वीकेंड है, तो क्यों नहीं पिंकी को मेरे फ्रेंड के फार्महाउस ले जाने का प्लान कर लेते हो?”

“सर?” मैं आश्चर्यचकित होते हुए बोला।

“सर?”

“ओह, आई ऍम सॉरी! मेरा मतलब है, डैडी!”

“दैट्स माय सन! ... और हाँ, आज रात यहीं रुक जाओ!”

“नहीं डैडी... कोई दिक्कत नहीं है! मैं बहुत दूर नहीं रहता।”

“हाँ फिर भी... देखो, रात के ग्यारह बज रहे हैं। इसलिए रह जाओ! घर जा कर कोई ज़रूरी काम करना है क्या?” वो मुस्कुराते हुए बोले। मैं इस बात का कोई उत्तर न दे सका।

“इसीलिए कह रहा हूँ कि रुक जाओ! सवेरे नाश्ते के बाद पिंकी तुमको ड्राप कर देगी! ठीक है? चलो फिर! गुड नाइट!”

उन्होंने कहा, और उठ कर अपने कमरे में जाने लगे। और मैं सोचने लग गया कि आखिर ये हुआ क्या!!

“अमर,” डैडी के जाने के बाद जयंती दीदी ने हँसते हुए कहा, “आज तुम पिंकी के कमरे में सो जाना!”

और अपने पति का हाथ पकड़ कर अपने कमरे ओर चल दीं।

मैंने देवयानी की तरफ देखा - उसके चेहरे पर भी मुस्कान थी। दो ही पलों में हम दोनों अकेले रह गए।
 

avsji

..........
Supreme
3,530
15,958
159
नया सफ़र - लकी इन लव - Update #15


“यार ये हुआ क्या?” मैंने उलझन भरी नज़रों से कहा।

“ज़रूर ही दीदी ने कोई जादू चलाया होगा डैडी पर!” डेवी मुस्कुराई और अपने कुर्ते के बटन खोलने लगी।

“और तुम ये क्या कर रही हो?” मैं फुसफुसाते हुए बोला, “अगर अभी कोई यहाँ आ जाए तो?”

डेवी ने मेरी हैरानी पर ध्यान नहीं दिया, “हनी, क्या तुम्हें सच में नहीं समझ आ रहा है कि मैं क्या करना चाहती हूँ?”

बेशक, मुझे पता था!

न केवल मेरी, बल्कि डेवी की भी कामेच्छा अति-सक्रिय थी! और मुझे यह भी मालूम था कि उसको उत्तेजित करने के लिए कोई बहुत प्रयास नहीं करना पड़ता। इस समय डेवी उत्तेजित थी, और मेरे साथ संसर्ग करना चाहती थी। उसने मेरी तरफ़ एक शैतानी मुस्कान के साथ देखा।

मुझे कुछ कहने देने से पहले ही उसने बोल दिया, “आई वांट टू फ़क!”

“हा हा! लेकिन...”

मुझे पता था कि इस समय घर में हर कोई जाग रहा था।

हनी, प्लीज डोंट स्टॉप मी!” उसने अपना कुरता उतारते हुए कहा, “आई ऍम फीलिंग सो हॉट! टेक मी टू माय रूम एंड मेक अ हॉट, इमोशनल लव विद मी!” और अपनी ब्रा का हुक खोल कर कराहते हुए बोली।

“अरे कम से कम कमरे के अंदर तो चलो!”

तब तक उसकी ब्रा भी उतर गई थी और उसके शानदार स्तनों की जोड़ी मेरे सामने प्रदर्शित हो गई! डेवी के स्तन अद्वितीय थे - मेरे जीवन में जितनी भी स्त्रियाँ आईं, उन सब के स्तन अद्वितीय थे! सभी के स्तन अद्भुत रूप से सुंदर थे! लेकिन डेवी उन सभी में सबसे सुंदर और आकर्षक लड़की थी! जैसे ही उसके स्तन कामुकता से हिले, मेरे लिंग में हलचल होने लगी! उसके दोनों कपड़े वहीं ड्राइंग रूम में ही छोड़ कर, हम देवयानी के कमरे में आ गए। आज यह पहला मौका था जब किसी लड़की के साथ मैं ‘अपने’ घर से बाहर सम्भोग करने वाला था। एक अलग ही किस्म का रोमाँच महसूस हो रहा था मुझको।

डेवी मुझसे आगे चल रही थी। इसलिए उसके पीछे चलते चलते मुझे उसकी सुडौल पीठ और उसके सर के लहराते घने बाल दिख रहे थे। मैं मन ही मन उसकी चाल की प्रशंसा किए बिना न रह सका। कमरे में आते ही वो मुड़ी और मुझे आलिंगन में भर के उसने मेरे होंठों पर एक बड़ा, भावुक चुंबन दिया! पूर्ण उत्तेजित होने में जो कसर रह गई थी, वो इस चुम्बन ने समाप्त कर दी। जब हमारा चुम्बन समाप्त हुआ, वो उसने अपने होंठों को बड़ी कामुकता से चाटते हुए मुझ देखा; और फिर उसने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर, और दूसरे हाथ से अपने एक स्तन को उठाया।

वांट टू रेलिश देम?”

‘क्या समा गया है आज डेवी में?’ मैं सोचे बिना न रह सका।

उसके प्रश्न के उत्तर में मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया - उसके अलावा मेरे पास कोई विकल्प ही नहीं था! ऐसे शानदार स्तन तो मेरे मुँह में ही होने चाहिए! उससे अधिक सुखद अनुभव और कुछ भी नहीं!

इधर मेरा ‘हाँ’ का इशारा करना था, और उधर डेवी ने अपना एक चूचक मेरे मुँह से लगाना था! स्वतः ही मैंने अपना मुँह खोला, और उसके रक्तसंकुल, उत्तेजित चूचक को पीने लगा! बस क्षण मात्र में मैं स्वर्ग में था; उसके स्तन इतने गर्म, कोमल, और ममतामयी थे कि क्या कहूँ! मेरे चूषण से उसके चूचक और भी अधिक कड़े हो गए! उसका शरीर थरथराने लगा। मैंने भी खिलवाड़ करते हुए उसके दोनों चूचकों को चूसा, चुभलाया और काटा! कुछ ही देर में डेवी की साँसें उखड़ने लगीं, और वो कसमसाने लगी!

ओह गॉड!” उसने कँपकँपाती आवाज़ में कहा, “आई ऍम सो हॉर्नी! आई वांट यू इनसाइड मी सो बैडली!”

उसने अपना स्तन मेरे मुँह से निकाला और बिस्तर पर लुढ़क कर अपनी शलवार को उतारने लगी। जल्दबाज़ी में वो नाड़ा ढीला करना भूल गई तो मैंने ही उसकी डोरी खींचकर, शलवार उतारने में उसकी मदद की! उसने गुलाबी रंग की पैंटी पहनी हुई थी। चड्ढी का वो हिस्सा जो डेवी की पदसन्धि से सटा हुआ था, वहाँ पर उसकी योनि रस का बड़ा सा गीला धब्बा साफ़ दिखाई दे रहा था। कुछ ही समय में डेवी पूरी तरह से नंगी हो गई।

“हनी, कम! ज़ोर से मेरे साथ सेक्स करो! रात भर! और कल भी।” उसकी आवाज़ कामुकता से ख़ुश्क हो गई थी।

सब ठीक था - लेकिन मुझे इस बात की चिंता थी कि जिस तेज़ी से डेवी की कामुकता का पारा चढ़ रहा था, वो ज्यादा देर इस खेल में टिकने वाली नहीं थी। मैं अवश्य ही कोशिश कर लूँ - वो तीन चार मिनट में ही ढेर हो जाने वाली थी! एक तरह से ठीक भी था - उसको एक बार उसके चरमोत्कर्ष पर पहुँचा कर, बाद में इत्मीनान से उसके साथ खेला जा सकता था! मैंने जल्दी जल्दी अपने कपड़े उतारे।

जैसे ही मैंने अपने लिंग को उसकी योनि में उतारा, मैंने वहाँ अभूतपूर्व चिकनापन महसूस किया - सच में! डेवी न जाने कब से कामाग्नि के ढेर पर चढ़ कर दाहक रही थी! उसकी योनि पूरी तरह से लुब्रिकेटेड थी, और केवल एक धक्के से मेरा लिंग पूरे का पूरा उसके अंदर पेवस्त हो सकता था।

मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था - मैं जानता था कि कमरे का दरवाजा खुला हुआ था, क्योंकि जल्दबाज़ी में उसको बंद करने का अवसर ही नहीं मिला। वैसे भी अपनी आदत ही नहीं थी दरवाज़ा बंद करने वाली। खैर! रोमाँच का एक और कारण यह भी था कि इस घर में अभी तक कोई भी सोया नहीं था। कोई भी अपने कमरे से बाहर आ जाए तो देख ले कि हमारे बीच में क्या नटखटपना चल रही थी! लेकिन ये सोचने से क्या होना था? तो मैंने अपने काम पर ध्यान देना जारी रखा... ओह मेरा मतलब, अपने लिंग को उसके गंतव्य तक पहुँचाने के काम पर! एक ही धक्के में मेरा पूरा देवयानी की योनि की आरामदायक गर्मी और गीलेपन से घिरा गया! बिना रुके मैंने वही चिरंतनकालीन प्रक्रिया करनी शुरू कर दी।

हर धक्के के साथ वो छोटी छोटी आवाज़ में ‘ओह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह’ कर रही थी!

हम दोनों ही एक साथ धक्के लगा रहे थे - मैं ऊपर से और देवयानी नीचे से!

ओह गॉड!” वो मेरे कानों में फुसफुसाई, “आई लव यू! एंड... आई लव द लिटिल यू इनसाइड मी!”

कितनी प्यारी लड़की है देवयानी!

मैंने उसके होंठों पर अपने होंठों को ज़ोर से सटाया और उसको चूमते हुए अपनी जीभ को उसके मुँह के अंदर धकेल कर उसको और बलपूर्वक चूमते हुए, और भी अधिक जोश के साथ धक्के लगाना शुरू कर दिया। देवयानी पहले से ही रति-निष्पत्ति के बारूदी ढेर पर बैठी हुई थी - लिहाज़ा, वो कुछ ही देर में सम्भोग का परम सुख प्राप्त कर के आहें भरने लगी। मुझे अभी समय था। मैं निरंतर धक्के लगा रहा था और नीचे डेवी मेरे लगभग पाशविक सम्भोग के कारण पस्त होती जा रही थी। उसके मुख से निर्लज्ज और निःसंकोच कामुक आहें निकल रही थीं। न तो उसको ही किसी की परवाह थी, और न ही मुझे ही! मेरी ही बीवी है - मैं नहीं तो और कौन भोगेगा उसको? मैं नहीं, तो और कौन उसको यौन-सुख देगा? लगभग पंद्रह मिनट तक उसे भोगने के बाद मैंने खुद का कामोन्माद बनता हुआ महसूस किया।

उधर डेवी की योनि आज की रात तीसरी बार कामतिरेक से विलाप कर रही थी। हमारे नीचे चादर पर एक बड़ा सा गीला धब्बा बन गया था, जो हमारे सम्भोग की कहानी चीख चीख कर बता रहा था।

शायद डेवी को भी अंदाज़ा हो गया कि मैं स्खलन के निकट हूँ! उसने मेरे कान में फुसफुसा कर पूछा,

हनी, आर यू देयर येट?”

मैंने हाँफते हुए कहा, “हाँ!”

“मेरे अंदर करना!” डेवी कामुकता से बोली!

डेवी को सेक्स के लिए इतना मोहताज़ मैंने पहले कभी नहीं देखा था। गज़ब की बात है! क्या हो गया था उसको?

यह बाद में सोचेंगे, पहले धक्के! कुछ देर के बाद मैंने वीर्य को अपने लिंग की लम्बाई में तेज़ी से दौड़ता महसूस किया।

“आह्ह्ह्ह!” जैसे ही मेरा स्खलन हुआ, मैं लगभग चिल्लाया!

धक्के लगाना अभी भी जारी था - क्योंकि मैं सुनिश्चित कर लेना चाहता था कि मेरा बीज, डेवी की उर्वर कोख में सुरक्षित स्थापित हो जाए! मैंने छोटे लेकिन गहरे धक्के लगाने जारी रखे।

“ओह यस!” डेवी भी हर धक्के के साथ चिल्लाई! वो मेरे वीर्य को अपने अंदर भरता हुआ महसूस कर रही थी।

मैं थक गया था, लेकिन मैं तब तक धक्के मारता रहा जब तक कि मैं पूरी तरह से खाली नहीं हो गया, और फिर रुक गया।

डेवी ने हाँफते और मुस्कुराते हुए मुझे देखा, और फिर मुझे एक बड़ा सा चुंबन दिया! और फिर अपनी सुंदर सी आँखों से मुझे देखते हुए बोली,

“हनी, थैंक यू सो मच! आई नीडेड इट!”

मैं उसके ऊपर से उतर गया और उसके बगल बिस्तर पर लेट गया।

हम दोनों ही कुछ देर तक चुप रहे। ऐसा थका देने वाला, पाशविक सम्भोग मैंने कभी कभार ही किया था। लेकिन सच में, ऐसे सम्भोग में आनंद तो ऐसा आता है कि उसका वर्णन करना असंभव होता है। अगर मेरे पाठकों / पाठिकाओं में कोई HIIT (हाई इंटेंसिटी इंटरवल ट्रेनिंग) करता है, तो वो समझ सकता है कि मैं क्या कह रहा हूँ! शरीर थक तो जाता है, लेकिन जो मज़ा मिलता है, वो बयान नहीं किया जा सकता। प्रेमी और प्रेमिका ऐसे सम्भोग से लस्त और पस्त हो जाते हैं, और फिर उनके पास केवल प्रेम भरी बातें करने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं बचता!

बातों की शुरुआत देवयानी ने ही करी,

“हनी, इस सैटरडे या संडे को माँ और डैड को बुला लो?”

“अरे, इतना जल्दी?”

डेवी ने मेरी पसलियों में कोहनी मारी, “क्यों जी, आपको मुझसे शादी करने की जल्दी नहीं है?”

“बहुत जल्दी है! कहो तो आज ही कर लूँ!”

“हाँ, बातें बनानी आपको खूब आती है! बिना माँ - डैड के हमारी शादी कैसे होगी?”

“वो भी ठीक है!” मैंने सोच कर कहा, “देखो, साढ़े ग्यारह बज रहे हैं। मैं डैड को कॉल कर लेता हूँ!”

“अरे, इतनी रात गए! वो सो रहे होंगे!”

“हा हा! सो नहीं रहे होंगे - वो भी वही कर रहे होंगे, जो अभी अभी हम कर रहे थे!”

मेरी बात पर डेवी खिलखिला कर हँस पड़ी।

“तुम्हारा फ़ोन कहाँ है?”

“बाहर, ड्राइंग रूम में!”

“ओके, आई विल बी बैक!” मैंने अर्नोल्ड श्वार्ज़नेगर वाले अंदाज़ में कहा और अपनी पैंट पहन कर कमरे से बाहर निकल गया। हाँ, इस बार जाते जाते मैंने कमरे का दरवाज़ा बाहर से भेड़ लिया।

मेरा अंदाज़ा सही था - माँ डैड भी कुछ देर पहले तक सम्भोग कर रहे थे, और मेरा फ़ोन आते समय सुखपूर्वक बातें ही कर रहे थे। मुझे कैसे पता चला? अरे भई, माँ और डैड दोनों से ही मेरी बातें हुईं इसलिए! इतनी देर रात दोनों जाग रहे हैं - मतलब एक ही कारण है! वैसे भी अब घर में तीन और प्राणियों के रहने से उनको केवल अपने कमरे में ही एकांत मिल पा रहा था। और तो और, दो नए बच्चों के कारण, माँ और डैड दोनों पर ही एक अतिरिक्त बोझ आ गया था - उनकी पढ़ाई को ले कर।

पिछले साल तक डैड सुनील को गणित और विज्ञान पढ़ा लेते थे, लेकिन अब उसका हाई स्कूल पूरा हो गया था, और इस स्तर की शिक्षा देने में वो असमर्थ थे। लिहाज़ा, उन्होंने अपने हाथ खड़े कर लिए, और अपने एक अन्य मित्र, जिन्होंने मेरी तैयारी के समय मुझे गाइडेंस दिया था, को सुनील की गणित और विज्ञान की तैयारी की जिम्मेदारी सौंप दी। हाँ, लतिका को अभी भी वो ही गणित और विज्ञान पढ़ाते थे। माँ को डैड के जैसी छूट न मिल सकी - माँ सुनील और लतिका दोनों को ही हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी पढ़ाती थीं। इसलिए भी माँ थोड़ी देर रात तक ही डैड के पास आ पाती थीं। खैर, ये सारे डिटेल्स फिर कभी!

मैंने दोनों को अपनी आज की मुलाकात के बारे में बताया और उनसे यहाँ आने को कहा। हो सके तो शनिवार या रविवार को! मैंने उनको बताया कि देवयानी के डैडी कॉल करेंगे, लेकिन उनकी कॉल का वेट न करें। दोनों ही जने इस बात पर बहुत खुश हुए कि मेरे जीवन में खुशियाँ एक बार फिर से आने वाली हैं। दोनों ने ही मुझे आशीर्वाद दिया और डैड ने वायदा किया कि वो कल सवेरे ही ट्रेन टिकट बुक कर लेंगे। मैंने ही उनको सुझाया कि हो सके तो सभी लोग आएँ - मेरा पूरा परिवार देवयानी के पूरे परिवार से मिले! अच्छा लगेगा सभी को ही! डैड को ये आईडिया अच्छा लगा।

उनसे बात कर के मैं वापस डेवी के कमरे में आया, और अपने कपड़े उतार कर बिस्तर में उसके बगल जा लेटा।

“हो गई बात?”

“हाँ - कल टिकट बुक कर लेंगे! फिर बताता हूँ कि किस दिन आ पाएँगे।”

“ओह हनी! आई ऍम वैरी एक्साइटेड!”

“हा हा हा! एक्साइटमेंट से याद आया - क्या हो गया था तुमको मेरी जान?”

“क्या हो गया था मतलब?”

“मतलब, इस तरह से तो तुमने कभी बीहेव नहीं किया!”

वो मुस्कुराई, “आई ऍम ओव्युलेटिंग!”

“ओहह!”

“जी हाँ!”

“मतलब मैंने जो बीज बोया है, वो जल्दी ही फल दे सकता है!”

“हा हा हा हा हा हा हा! हाँ! इसीलिए तो जल्दी जल्दी है सब!” वो खिलखिला कर बोली, “बिना शादी के मैं तुम्हारे बच्चों की माँ नहीं बनना चाहती!”

“जान?”

“हाँ हनी?”

“हम फ़रवरी में शादी करें? दूसरे हफ़्ते में? माँ का बर्थडे है उस दिन!”

“व्हाट! सच में?” देवयानी ने बच्चों जैसे खुश होते हुए कहा।

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

दिस इस एन अमेज़िंग थॉट! बट हनी, दैट लीव्स अस विद ओन्ली थ्री वीक्स!”

“हाँ! करना ही क्या है? शादी ही तो करनी है। वो हम कोर्ट या मंदिर में कर सकते हैं! फिर अपने सबसे करीबी लोगों को बुला कर उनको बढ़िया खाना खिला देते हैं! फिर चलते हैं, हनीमून पर!” मैं मुस्कुराया, “क्या कहती हो?”

“माँ के बर्थडे पर शादी करना बढ़िया थॉट है जानू!”

“है न?”

“हाँ! लेकिन डैडी पता नहीं मानेंगे या नहीं!”

“अरे, उनको हम प्रोपोज़ल देंगे। मानना या नहीं मानना, वो उनकी प्रॉब्लम है!”

“हा हा!”

“और मैंने डैड से कहा है कि वीकेंड पर सभी के साथ यहाँ आएँ। वो, माँ, काजल, उसके बच्चे - सभी!”

“काजल भी आएगी?” डेवी उत्सुकतापूर्वक मुस्कुराई।

“हाँ क्यों नहीं? मैंने कहा न - वो अब मेरी बड़ी बहन जैसी है। जब से माँ और डैड ने उसको गोद ले लिया है तब से!”

“हा हा हा! हनी, मैं कुछ कह नहीं रही हूँ। मुझे सच में अच्छा लगेगा अगर तुम्हारे सभी अज़ीज़ लोग यहाँ आते हैं और हम उनसे मिलते हैं!”

आर यू श्योर?”

हंड्रेड परसेंट!”

“हनी?” मैंने कहा।

“हम्म?”

“मैं तुमसे अपनी कोई बात छुपा कर नहीं रखना चाहता... मैं नहीं चाहता कि हमारी मैरिड लाइफ में उसके कारण कोई टेंशन आए।”

वो मुस्कुराई, “ओके!”

सो, आई टोल्ड यू अबाउट काजल, राइट?”

“यस!”

वेल, शी हैड माय बेबी!”

“व्हाट!” मुझे लगा कि देवयानी इस बात से नाराज़ हो गई।

बट द बेबी डाइड!”

“व्हाट! कैसे?” अचानक ही इस बात से उसकी नाराज़गी गायब हो गई, और वो इस बात से दुखी हो गई कि मेरे बच्चे की मृत्यु से मुझे कितना दुःख हुआ होगा।

मैंने उसको पूरा वृत्तांत सुनाया। वो बेचारी बीच बीच में ‘ओह हनी’, ‘ओह हनी’ कह कह कर मुझे स्वांत्वना देती रही। जब सब कुछ उसने सुन लिए तो बोली,

“कितना दुःख हुआ होगा न काजल को!”

“और मुझे जो दुःख हुआ वो?”

आई नो हनी! आई ऍम वैरी सॉरी फॉर योर लॉस!”

“लेकिन तब से हमारे रिलेशन में बदलाव आ गया - माँ डैड ने उसको अपनी बेटी बना लिया, और वो वहाँ रहने लगी।”

“डैड और माँ अमेज़िंग हैं न?”

“बहुत!”

बट थैंक यू फॉर टेलिंग मी एवरीथिंग!”

“तुम नाराज़ तो नहीं हो?”

“पागल हो क्या? बिलकुल भी नहीं! तुम्हारे जैसे सच्चे आदमी को ऐसे थोड़े न जाने दूँगी हाथ से!” देवयानी हँसते हुए बोली, “बट हनी, अब जब हम अपने सीक्रेट्स शेयर कर ही रहे हैं, तो मैं आपको अपने भी कुछ सीक्रेट्स बता दूँ?”

“हाँ! आई ऍम आल इयर्स!”

मेरे कुछ कहने की प्रतीक्षा न करते हुए, डेवी ने मुझे अपने अतीत के बारे में बताना शुरू कर दिया। उसने अपने एक पुराने अफेयर के बारे में बताया जो कोई छः साल पहले हुआ था! मेरे ही कहने पर उसने उस बॉयफ्रेंड के साथ अपने यौन अनुभव के बारे में बताया। लेकिन सबसे ज़रूरी बात उसने जो बताई वो यह थी कि वो आदमी बेहद चालाक और धूर्त किस्म का था, जो केवल उसकी और उसके डैडी की दौलत चाहता था। इसलिए डेवी ने उससे कन्नी काट ली। साथ ही साथ इस तरह के रिश्तों नातों से डेवी का भरोसा ही उठ गया। उसने यह भी बताया कि उस अफेयर के समाप्त होने के बाद कैसे जयंती दी ने उसे अपने कुछ दोस्तों के साथ उसकी जोड़ी जमाने की ‘असफल’ कोशिश की।

फिर उसने अपनी फंतासियों के बारे में बताया। जब मैंने उन सबके बारे में सुना, तो सच में मुझे डेवी का यह पहलू जान कर बहुत आश्चर्य हुआ! मुझे नहीं पता था कि डेवी इतनी साहसी और बोल्ड हो सकती है! मन ही मन मैंने सोचा, कि अगर डेवी चाहती है, तो मैं उसकी फंतासी ज़रूर पूरी करूँगा। कुछ नहीं, तो कोशिश तो करूँगा! देखते हैं!

**
 

avsji

..........
Supreme
3,530
15,958
159
नया सफ़र - विवाह - Update #1


जहाँ देवयानी के घर में हमारे रिश्ते को लेकर बड़ी तेजी से प्रगति हुई थी, वहीं मेरे घर पर भी उसको लेकर उत्साह में कोई कमी नहीं थी। डैड, माँ और काजल तीनों ने आज रात ही में इस बारे में सारी मंत्रणा कर डाली। सभी यह जानकर खुश थे कि मुझे फिर से अपना प्यार मिल गया है। मेरा काजल के साथ अनोखा सम्बन्ध था - वो भी मेरी बड़ी के जैसे या कहिए कि गार्जियन के जैसे ही बर्ताव कर रही थी। वो भी बहुत खुश थी कि मैं जो ‘डिज़र्व’ करता हूँ, वो मुझे मिल रही है! सच में, इन तीनों का हृदय कितना बड़ा है! उन तीनों के लिए ही बस यह मायने रखता है कि क्या मैं खुश हूँ! डैड ने कहा कि वो कोशिश करेंगे कि शुक्रवार रात की टिकट मिल जाय - नहीं तो शनिवार को या तो दिन या फिर रात के लिए कोशिश करनी पड़ेगी।

भारतीय रेलवे ने अभी हाल ही में ‘तत्काल’ टिकट आरक्षण की योजना शुरू की थी... यही लगभग एक महीने पहले। चूँकि इसके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते थे, इसलिए तत्काल ट्रेन की बुकिंग कराना उस समय आसान था। डैड सरकारी मुलाज़िम थे, लिहाज़ा उनकी जान पहचान भी थी बुकिंग केंद्र में। इसलिए उन्होंने सवेरे सवेरे ही किसी को फ़ोन कर के बता दिया कि उनको दिल्ली जाने के लिए पाँच तत्काल टिकट चाहिए थे, और वापस आने के लिए जब भी उपलब्ध हो।

मैं सवेरे लगभग साढ़े छः बजे उठा। मैंने डेवी को भी उठाया, जो अभी भी बिस्तर पर लस्त पड़ी हुई थी, और मीठी नींद का आनंद ले रही थी। मतलब सवेरे वाला राउंड करने का मौका नहीं था। जब डेवी उठी, तो मैंने उसको कहा कि अपने ऑफिस के कपड़े ले कर मेरे घर आ जाए - और वहीं से नहा कर हम दोनों साथ में ऑफिस चले जाएँगे। उसको यह आईडिया अच्छा लगा। उसने अपनी अलमारी से टी-शर्ट और शॉर्ट्स निकाल कर पहन ली, और अपने डैडी से बात करने कमरे से बाहर चली गई। इस बीच मैंने भी अपने कपड़े पहन लिए।

जब मैं उनसे बात करने निकला, तो उनको मेरे डैड से फ़ोन पर बातें करते हुए पाया। वो बड़े शिष्टाचार से डैड को दिल्ली में अपने घर आमंत्रित कर रहे थे। वो डैड से कोई सोलह सत्रह साल बड़े रहे होंगे और आई ए एस भी रह चुके थे, लेकिन फिर भी उनके बात करने के अंदाज़ में कैसा भी ग़ुरूर नहीं सुनाई दे रहा था। सच में - अगर परिवार के स्तर पर देखा जाए, तो हमारी कोई हैसियत ही नहीं थी उनके सामने! फिर भी उनको इस रिश्ते पर कोई आपत्ति नहीं थी। बड़ी बात थी - और मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे ऐसे गुणी लोगों का आशीर्वाद मिला!

खैर, जब फ़ोन कॉल ख़तम हुआ, तो मैंने डेवी को अपने साथ ले जाने की मंशा दर्शायी। वो चाहते थे कि हम नाश्ता कर के घर से निकलें। लेकिन जब प्लान अलग हो तो मज़ा नहीं आता। कुछ देर की मान मनुहार के बाद वो मान गए।

उधर डेवी के डैडी से बात करने के बाद डैड को शुक्रवार की रात का टिकट मिल गया - लेकिन केवल चार टिकट ही मिले। सुनील ने कहा कि वो घर पर ही रह जाएगा। कोई बात नहीं! वैसे भी ‘लड़की देखने’ के लिए वो क्यों जाए! वो तो भैया ने देख ही ली हैं! अब तो जब वो ‘भाभी’ बनेंगी, तब ही वो उनसे मिलेगा! सच भी है - किशोरवय लड़कों को इन सब बातों में मज़ा नहीं आता। वो केवल बोर ही होता, और उसकी पढ़ाई में व्यवधान भी आता। दो महीने बाद उसका ग्यारहवीं का एग्जाम था, इसलिए किसी ने कोई आपत्ति नहीं जताई, और न ही निराशा! सुनील का लक्ष्य बड़ा था और महत्वपूर्ण था। उसमें कोई भी कैसा भी विघ्न नहीं डालना चाहता था।

मैंने डैड का यह सन्देश डेवी को दे दिया। वो भी उससे मिलने की मेरे माता-पिता की तत्परता को देख कर बहुत खुश तो हुई, लेकिन थोड़ी घबरा भी गई। जब मैंने उससे कारण पूछा कि उसे ऐसा क्यों लगा, तो उसने जवाब दिया कि पता नहीं मेरे माता पिता उसको पसंद करेंगे या नहीं! उसकी सबसे बड़ी चिंता हमारे बीच का उम्र का बड़ा अंतर था। मैंने उसे समझाया कि यह न तो मेरे लिए, और न ही मेरे पेरेंट्स के लिए कोई समस्या वाली बात थी! वे केवल एक चीज चाहते थे - हमारी खुशी! बस!

शनिवार सुबह सुबह मैं सभी को लिवाने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँच गया। सबको इतने महीनों बाद देख कर बड़ा आनंद मिला। लतिका फुदकती हुई गुड़िया जैसी आई और मेरी गोद में चढ़ गई। सच में! बड़ा सुकून मिला। अब जा कर लगा कि मेरे जीवन में भी सब सामान्य हो गया है! आज दोपहर ही में डेवी के घर जाने का प्लान था, लिहाज़ा हम सभी नाश्ता कर के जल्दी जल्दी तैयार होने लगे।

माँ अपनी होने वाली बहू से पहली बार मिलने जा रही थीं - इसलिए वो खाली हाथ तो नहीं आ सकती थीं। इसलिए वो देवयानी और जयंती दीदी के लिए काटन (कपास नहीं) सिल्क की साड़ियाँ लाई थीं। साथ ही साथ सोने की एक चेन भी। डैड देवयानी के डैडी के लिए रेशमी कुरता और धोती लाए थे - अपने से बड़ों को देने के लिए वो हमेशा यही उपहार लाते थे। हाँ, बस इसकी गुणवत्ता बहुत अधिक थी क्योंकि सभी कपड़े सीधा कारीगरों से खरीदे गए थे। यहाँ दिल्ली में यही सामान पाँच गुना क़ीमत पर मिलता! जयंती दीदी के पति और दोनों बच्चों के लिए लखनवी चिकन के कुर्ते और पाजामे भी थे और साथ में मिठाईयाँ।

जब हम देवयानी के घर पहुंचे, तो उसके डैडी ने हमारा यथोचित स्वागत किया - लेकिन माँ और डैड दोनों ने ही और उनकी देखा देखी काजल ने भी उनके पैर छू कर उनका आशीर्वाद लिया। ऐसे संस्कारी परिवार को देख कर डैडी ऐसे ही लहालोट हो गए। कहने की आवश्यकता नहीं कि किसी भी तरह की बात करने से पहले ही डैडी को मेरा पूरा परिवार बहुत पसंद आया। सबसे अंत में मैंने उनके पैर छुए तो उन्होंने मुझे ‘जीते रहो बेटा’ टाइप का आशीर्वाद दिया। लतिका भी उनके पैर छूने वाली थी, तो उन्होंने उसको बीच में ही रोक कर अपनी गोदी में उठा लिया और उसके गालों को चूमते हुए कहा,

“अरे मेरी प्यारी बिटिया! बेटियाँ पैर नहीं छूतीं! तुम मेरी गोदी में रहो!”

मुझे उनका लतिका को इस तरह लाड़ करना बहुत अच्छा लगा।

उधर जयंती दीदी के हस्बैंड और उनका बड़ा बेटा भी हमारे स्वागत के लिए उपस्थित थे। लेकिन पैर छूने वाला काम केवल बेटे ने किया। हम सभी अंदर आए और बहुत देर तक सामान्य बातें - जैसे कि कैसे हैं, कोई तकलीफ तो नहीं हुई, स्वास्थ्य कैसा है, क्या करते हैं, आपके शहर / गाँव में क्या चल रहा है इत्यादि इत्यादि! बातचीत में ये सब बातें केवल फिलर होती हैं। अच्छी बात यह है कि डैडी जितना आदर से माँ और डैड से बात कर रहे थे, उतने ही आदर से काजल से भी कर रहे थे। बाद में देवयानी ने मुझे बताया कि उसने डैडी से काजल और उसके मेरे और मेरे परिवार से रिश्ते के बारे में उनको बताया था। सच में - देवयानी के पिता एक बेहद गुणी, अच्छे, और सरल - सुलझे हुए आदमी थे!

कोई पैंतालीस मिनट के बाद देवयानी और जयंती दीदी कमरे में आये। देवयानी मुस्कुराती हुई, उसी पारम्परिक अंदाज़ में आई - हाथों में चाय की ट्रे लिए! खाने की ट्रे जयंती दीदी के हाथों में थी। देवयानी ने लाल रंग की रेशमी, ज़री वाली साड़ी पहनी हुई थी, और जयंती दीदी ने बसंती रंग की, हरे बॉर्डर वाली साड़ी पहनी थी। दोनों ही ने बारी बारी से माँ और डैड के पैर छुए। और काजल से गले मिलीं। और मैं तो बस देवयानी को देखता रह गया - केवल अपने पहनावे में छोटा सा परिवर्तन करने से ही वो अप्सरा जैसी दिख रही थी! जयंती दी भी कोई कम नहीं लग रही थीं! कुछ देर तक मेरी बोलती ही बंद हो गई। मिलने के कोई आधे घंटे के भीतर ही सभी एक दूसरे से इतना सहज महसूस कर रहे थे जैसे बरसों की जान पहचान हो!

लतिका उम्र में जयंती दीदी के बड़े बेटे के ही बराबर थी। वो उसको अपनी गोदी में ले कर दुलार कर रही थीं।

“आपको क्या अच्छा लगता है?”

“मुझको खेलना अच्छा लगता है!” लतिका ने अपनी कोमल आवाज़ में कहा।

“हा हा! और क्या अच्छा लगता है?”

“गाना!”

“अरे वाह! कुछ हमको भी सुनाइए फिर?”

“क्या सुनाऊँ? गाना, या गीत?”

अब इसका अंतर तो हमको भी नहीं मालूम था - लिहाज़ा जयंती दी ने कहा, “गीत?”

“जी ठीक है!” कह कर लतिका उनकी गोदी से उतर गई, और ‘सावधान’ की मुद्रा में आ कर सभा के बीच में खड़ी हो गई। उसको ऐसे करता देख कर सभी लोग चुप हो गए और सोचने लगे कि बच्ची क्या गाने वाली है! उसका आत्मविश्वास देख कर मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया - ‘इतनी छोटी बच्ची और इतना कॉन्फिडेंस! कमाल है!’

फिर उसने अपनी मीठी, बच्चों वाली आवाज़ में कहा, “मैं आपके सामने श्री द्विजेंद्रलाल राय की रचना प्रस्तुत करने वाली हूँ। यह हमारी भारत माता की वंदना है।”

धन-धान्ये-पुष्पे भरा आमादेर ए वसुंधरा, ताहार माझे आछे देश ऐक सकल देशेर शेरा।


शे जे स्वप्नो दिये तोरीम शे देश स्मृति दिये घेरा, ऐमोन देशटि कोथाओ खूंजे पाबे नाको तुमि।

सकल देशेर रानी शे जे आमार जन्मोभूमि।


शे जे आमार जन्मोभूमि, शे जे आमार जन्मोभूमि!


देवयानी और जयंती दीदी ने अपनी जीभ अपने दाँतो तले दबा ली! उनको यकीन ही नहीं हुआ कि ऐसी नन्ही सी बच्ची ऐसा कुछ करिश्मा कर सकती है!


चंद्र सूर्य ग्रह तारा कोथाय उजोल ऐमोन धारा, कोथाय ऐमोन खेले तोरीर ऐमोन कालो मेघे।


तार पाखीर डाके घूमिये पोडी पाखीर डाके जेगे, ऐमोन देशटि कोथाओ खूंजे पाबे नाको तुमि।

सकल देशेर रानी शे जे आमार जन्मोभूमि।


शे जे आमार जन्मोभूमि, शे जे आमार जन्मोभूमि!


“वाह वाह वाह!” सभी लोग लतिका के गाने पर आह्लादित हो कर तालियाँ पीटने लगे!

सच में - कैसा मीठा गान!

लतिका भी तेजी से बड़ी हो रही थी। कितना कुछ मिस कर रहा था मैं अपने जीवन में! समझ नहीं आ रहा था कि समय के इस अथाह प्रवाह को मैं कैसे सम्हालूँ!!

खूब शुंदोर!” देवयानी के डैडी बोल पड़े, “हृदय गदगद होए गेलो! खूब तरक्की करो बेटा! सबका नाम रोशन करो!”

“कितना मीठा ‘गीत’ गाया आपने!” देवयानी ने लतिका के सामने ज़मीन पर बैठते हुए कहा और उसको अपने सीने में भींचते हुए, उसको दुलारते हुए बोली, “किसने सिखाया आपको?”

“मम्मा ने!”

“अरे वाह!”

“हा हा! मैंने नहीं,” काजल बीच में बोल पड़ी, “मैं अम्मा हूँ, मम्मा माँ जी हैं!”

“क्या!”

अब ये बात तो मेरे लिए भी नई है! माँ ने कब बंगाली भाषा सीख ली?

“जी दीदी, मैं अम्मा हूँ - और अम्मा की अम्मा, मम्मा हैं!” काजल ने हँसते हुए खुलासा किया।

अगर देवयानी के मन में हमारे परिवार को ले कर थोड़ा भी संशय रहा होगा, तो बस इस एक छोटे से वाक्य से जाता रहा होगा। ऐसा सरल, प्रेम करने वाला परिवार उसको बहुत मुश्किल से मिलता।

अब आगे का समय यूँ ही हँसते बोलते बीत गया।

बीच में जब चारों स्त्रियों को मौका मिला तो माँ ने देवयानी और जयंती दीदी से कहा,

“... पिंकी बेटा, यह ठीक है कि तुम हमारी बहू हो - लेकिन तुमको मेरे पैर छूने की कोई जरूरत नहीं है। जयंती - तुमको तो बिलकुल भी नहीं! हम चारों समझो कि बहनों जैसी हैं - हमारी उम्र में कोई अंतर नहीं है। इसलिए, सच में, अगर तुम कम्फ़र्टेबल महसूस करती हो, तो मुझे अपनी बड़ी बहन मानो! न कि अपनी सास!”

माँ की ऐसी बातें सुन कर देवयानी मुस्कुराई - उसको अन्तः यह जानकर राहत मिली कि हमारे बीच उम्र का अंतर माँ के लिए कोई मुद्दा ही नहीं था - और बोली, “माँ, आपको अपनी बड़ी बहन और अपनी माँ - दोनों के रूप में देखना पसंद करूंगी! जब जैसा मन करेगा वैसा!”

उसकी बात पर सभी हँसने लगीं।

जयंती दी बहुत खुश थीं कि उनकी छोटी बहन की होने वाली सास ऐसी खुली हुई, और सहेली जैसा व्यवहार कर रही हैं। वो हमेशा से चाहती थीं कि डेवी को बहुत प्यार करने वाला परिवार मिले - माँ के अभाव में पली हुई बच्ची सूखी मिट्टी समान होती है, जो प्रेम और स्नेह के जल को सोख लेती है।

“हा हा हा! यार ये तो बहुत गड़बड़ है! लेकिन ठीक है। जब हम दोनों प्राइवेट में मिलें, तो मुझे तुम ‘दीदी’ कह कर बुलाना, लेकिन अमर के सामने नहीं… वो बेचारा कंफ्यूज हो जाएगा… हा हा हा!”

“दीदी... आप बहुत नटखट लड़की हो!” जयंती दी ने माँ को छेड़ा।

“अरे, इसमें मैं क्या करूँ! उसने जो डिसिज़न लिए हैं, उसके परिणाम भी भुगतने होंगे न। हा हा!” माँ सचमुच में मजे ले रही थीं, “अब बताओ... तुम दोनों कैसे मिले?”

देवयानी ने माँ को बताया कि हम कैसे मिले, और हमारा सम्बन्ध आगे कैसे बढ़ा। उसने अपने काम इत्यादि के बारे में भी माँ को बताया। माँ को यह जान कर अच्छा लगा कि जब मुझे भावनात्मक समर्थन और प्यार की आवश्यकता थी, तब देवयानी मेरे साथ खड़ी हुई थी! गाढ़े का साथी ही सच्चा साथी होता है। माँ ने यह बात देवयानी को बोली। उसके पूछने पर माँ ने संक्षेप में गैबी के साथ अपने संबंधों के बारे में भी बताया, और उससे वायदा भी किया कि वो उससे वैसा ही प्यार करेंगी... या शायद उससे भी ज्यादा! ऐसे ही बातें करते करते अंत में, जिज्ञासावश, माँ ने देवयानी से एक व्यक्तिगत प्रश्न पूछ लिया।

“देवयानी बेटा, क्या तुम दोनों ने सेक्स किया, या वैसे ही हो?”

“हाय भगवान्! दीदी! तुम मुझसे ऐसा कैसे पूछ सकती हो?”

“अरे, अगर तुम एम्बारास मत महसूस करो! ओके, कुछ मत कहो। मैं तो बस ये सोच रही थी कि तुम इतनी सुन्दर सी हो, तो वो बिना तुम्हे प्यार किए कैसे रह सकता है!”

“दीदी, क्या तुमको सच में लगता है कि मैं मैं सुंदर हूँ?”

“अरे! बेशक! तुमको इस बात में कोई संदेह है? तुम बहुत खूबसूरत हो - देखने में भी, और अंदर से भी!”

“ओह दीदी! मैं कभी-कभी... मतलब अब भी... मुझे लगता है कि अमर को कोई उसकी अपनी उम्र की लड़की मिलनी चाहिए... मुझे ऐसा लगता है कि मैं अपने फ़ायदे के लिए उसको एक्सप्लॉइट कर रही हूँ!”

“खबरदार कि तुमने ऐसा सोचा भी कभी!” माँ ने ज़ोर दे कर कहा, “... अच्छा, मुझे एक बात बताओ, क्या तुम अमर से प्यार करती हो?”

“ओह दीदी! मैं उसे बहुत प्यार करती हूँ!”

“और क्या वो भी तुमसे उतना ही प्यार करता है?”

“बेशक दीदी... नहीं तो ये नौबत ही न आती!”

“तो मुझे ये समझाओ कि तुम्हारा साथ, उसका एक्सप्लोइटेशन कैसे है?”

“मतलब उसे कोई अपनी उम्र की...”

“उम्र का क्या है बेटा? मेरी तुम्हारी उम्र में क्या अंतर है? लेकिन मुझसे तुमको माँ वाला ही प्यार मिलेगा!”

डेवी मुस्कुरा दी।

“मेरी बच्ची, हर किसी को प्यार करने का और प्यार पाने का अधिकार है। तुम और अमर बहुत भाग्यशाली हो, कि तुमको एक दूसरे का साथ, एक दूसरे का प्यार मिला है! और मैं तुम दोनों के लिए बहुत खुश हूँ! प्यार में उम्र मायने नहीं रखती। इसलिए ये सब विचार मन से बाहर निकाल दो! भगवान् करें, कि तुम दोनों हमेशा खुशहाल रहो!” माँ ने मुस्कुराते हुए देवयानी का माथा चूमा, “मेरा यही आशीर्वाद है!”

डेवी ने भावनाओं और स्नेह से अभिभूत होकर माँ को अपने गले से लगा लिया।

“माँ, मैं सच में सेल्फ़िश तो नहीं हूँ न?” डेवी ने एक बार और पूछा।

“यदि तुम अमर को ढेर सारा प्यार दे रही हो, और बदले में ढेर सारा प्यार पा रही हो, तो... मैं कहूँगी कि ऐसा स्वार्थी होना बहुत अच्छा है!”


तब तक मैं माँ के पास आया उनको सभी को बाहर बुलाने। हमारी शादी की तारिख निश्चित करनी थी।

हम कुछ भी कहते, उसके पहले ही देवयानी ने कहा, “डैडी,” फिर हमारी तरफ़ देख कर, “माँ डैड - मेरी एक रिक्वेस्ट है!”

“हाँ बेटा, बोलो न” डैड ने बड़े दरियादिली से कहा।

“जी, मैं सोच रही थी कि हमारी शादी XX फरवरी को हो - माँ का बर्थडे भी है उसी दिन!”

“क्या!” माँ का चेहरा देखने वाला था, “जुग जुग जियो बिटिया रानी! सदा मंगल हो तुम्हारा!”

उनको यकीन ही नहीं हुआ कि देवयानी ऐसी बात कह सकती है! इतना बड़ा सम्मान!

“लेकिन बेटा,” देवयानी के डैडी बोले, “इतनी जल्दी...”

“भाई साहब, जल्दी तो है - लेकिन...” डैड देवयानी के डैडी को समझाने लगे।

उधर एक तरफ तो माँ अपनी आँखों से गिर रहे आँसूं पोंछने लगीं, तो दूसरी तरफ़ काजल देवयानी को अपने गले से लगा कर चूमने लगी, “आप बहुत अच्छी हो दीदी! हम सभी बहुत लकी हैं! बस अब आप घर आ जाओ - जितना जल्दी हो सके, उतना!”

देवयानी मुस्कुराई, “हाँ दीदी, अब मैं भी बस यही चाहती हूँ!”


**
 
Last edited:

avsji

..........
Supreme
3,530
15,958
159
Holi

मैं तुम्हारे, और तुम मेरे रंग में रंग जाओ - इसी में हमारी होली है!
रंगों के इस महापर्व की मेरे समस्त पाठकों और पाठिकाओं को हार्दिक शुभकामनाएँ!

शुभमस्तु!!!
 

Kala Nag

Mr. X
3,874
15,189
144
नया सफ़र - लकी इन लव - Update #14


“दीदी?” मैं और देवयानी दोनों ही उनकी आवाज़ सुन कर चौंक गए।

लेकिन अच्छी बात यह थी कि वो अपने मज़ाकिया वाले अंदाज़ में ही थीं। वैसे भी, उन्ही के उकसाने पर मैं और देवयानी इस समय सम्भोग कर रहे थे, वरना खुद पर कण्ट्रोल तो करते ही।

‘कितने समय से दीदी हमारी बातें सुन रही हैं!’ मैंने सोचा, ‘और सुनना एक बात है, वो कब से हमको देख रही हैं!?’

“मेरी प्यारी बहन कब तक तुम्हारे आने और हमारे डैड से बात करने का इंतज़ार करती रहेगी? हम्म?”

“दीदी! तुम यहाँ क्या कर रही हो?” देवयानी ने अपने सीने को हाथों से छुपाते हुए कहा।

“अब ऐसे छुपाने का क्या फ़ायदा? तुम दोनों को अपनी शरारत शुरू करने से पहले दरवाजा बंद नहीं करना चाहिए?” जयंती दी हंसने लगीं।

“हाय भगवान्!” डेवी अपने में ही सिमट गई।

“हा हा! दीदी, आपकी बातों से मुझे मेरी माँ की याद आ जाती है! वो भी ऐसे ही मुझे छेड़ती और समझाती थीं।”

आई ऍम श्योर! ऐसे करोगे, तो कोई भी मेरे जैसे ही रियेक्ट करेगा! लेकिन यार, तुम दोनों अपने आस पास की भी सुध ले लिया करो! तुम दोनों को ऐसे, खुल्लम खुल्ला, इरोटिक हरकतें करते देख कर... मेरे दिल में भी कुछ कुछ होने लग गया!”

“हा हा हा हा! दीदी, आओ... मैं आपके साथ भी...” मेरे मुँह से निकल गया, लेकिन मुझे ऐसा कहते ही तुरंत पछतावा भी होने लगा। डेवी ने मेरी पसलियों में जोर से कोहनी मारी।

“आऊ!”

“हा हा! नो! थैंक यू! अपनी सारी एनर्जी पिंकी के लिए बचा कर रखो! वैसे भी, तुम्हारा छुन्नू अभी कुछ और देर तक कुछ भी करने लायक नहीं है, और इसके पहले की वो तैयार हो, और तुमको कोई और आइडियाज आएं, मैं यहाँ से निकल जाना चाहती हूँ!”

“क्या दीदी! इतनी जल्दी? कुछ मज़ा ही नहीं आया!” मैंने मनुहार करते हुए कहा।

“मज़ा नहीं आया तो वो तुम दोनों जानो! मुझे जाना होगा - मेरे दोनों बेटे इंतज़ार में होंगे!”

“हाँ, मुझे भी उनके साथ खेलना है!” देवयानी ने तत्परता से कहा।

“हाँ, तो चलो - जल्दी से कपड़े पहन लो। मेरे छोटू को मेरे बिना अजीब सा लग रहा होगा!”

जयंती दी का इतना कहना ही था कि देवयानी झटपट अपने कपड़े पहनने लगी। उधर वो तैयार हो रही थी, और इधर जयंती दी मुझे मेरे होने वाले ससुर जी के बारे में ‘अंदरूनी’ जानकारियाँ देती जा रही थीं। उनको क्या पसंद है, क्या नहीं इत्यादि! मुझे तो वो सब कोरी बकवास ही लग रही थी। मैं मन ही मन सोच रहा था कि ‘यार - ऐसे हौव्वा खड़ा करने का क्या मतलब है? आखिर किसी न किसी से तो अपनी लड़की का ब्याह तो करेंगे ही न वो? या फिर ऐसे ही कुँवारी रखेंगे उसको अपने घर में? अगर उनको अकड़ दिखानी है, तो फिर तो केवल उनका ही नुकसान है - देवयानी और मैं शादी तो ज़रूर करेंगे। वो उस समारोह में आमंत्रित होंगे, यह उन पर ही निर्भर करेगा।’ इत्यादि!

खैर, कोई दस मिनट के बाद देवयानी और जयंती दीदी ने अलविदा कही और मुझे यथाशीघ्र घर आ कर सभी से मिलने को आमंत्रित किया। मैंने कहा कि मैं अगले शुक्रवार शाम को आ सकता हूँ, अगर यह उनको ठीक लगता है। उन्होंने मुझे समझाया कि उसके पहले भी आने में कोई बुराई नहीं है - उनके पिता रिटायर्ड हैं, और उनको मुझसे मिलने में कोई मुश्किल नहीं होगी। अगर सब ठीक गया, तो सप्ताहांत में मैं अपने पूरे परिवार के साथ आमंत्रित हैं!

हम्म, मतलब बात सब सही तरीके से आगे बढ़ रही थी। मुझे तो डेवी के पिताजी से मिलना महज़ एक खानापूर्ति लग रही थी। वैसे ये आवश्यक बात है। एक बार घर के सभी सदस्यों से मिलना अच्छा रहता है।

लिहाज़ा, मैं अगले बुद्धवार की शाम को देवयानी के घर उसके परिवार के अन्य लोगों से मिलने गया।



जैसी कि मुझे उम्मीद थी, उनके घर पर उनका समस्त परिवार मौजूद था, जो कि एक अच्छा संकेत था। मतलब सभी को मुझसे मिलने में दिलचस्पी थी। दरवाज़ा जयंती दीदी ने ही खोला। उनके पीछे, ड्राइंग रूम में उनके पति मिले - उनको देख कर ऐसा नहीं लगा कि उनको मुझसे मिलने में कोई बहुत रूचि है - शायद वो वहाँ आए थे केवल अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाने। साढ़ू भाइयों में ऐसा ही ‘याराना’ देखने को मिलता है! लेकिन हाँ, रूखेपन से तो वो मुझसे नहीं मिले। उन्होंने बहुत ही पारंपरिक तरीके से, हाथ मिला कर मेरा अभिवादन किया।



मैं अभी सोफे पर बैठ कर सेटल हो ही रहा था कि देवयानी के पिताजी ने ड्राइंग रूम में प्रवेश किया। मैंने ठीक ही समझा था - डेवी और जयंती दी ने फ़िज़ूल ही उनके नाम का हौव्वा खड़ा किया था मेरे सामने! वो मुझसे बेहद गर्मजोशी से मिले।



“हाय, आई ऍम आलोक!” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।

हेलो सर, वेरी नाइस टू मीट यू!”

ओह कमऑन! कॉल में बाय माय नेम!”

दैट आई कांट डू सर!” मैंने शिष्टतापूर्वक कहा, “इवन इफ आई वांट टू! आई कांट कॉल समवन बाय दीयर नेम, हू इस लाइक माय ओन पेरेंट्स!”

“हा हा! यंग मैन, आई ऍम आलरेडी इम्प्रेस्सड विद यू!” उन्होंने हँसते हुए कहा और बोले, “सिट! प्लीज!”

मैं वापस सोफे बैठ गया।

“कुछ अपने बारे में बताओ अमर!” उन्होंने विनोदपूर्वक कहा।

“जी, कुछ ख़ास नहीं! मेरी पैदाइश एक छोटे से कसबे, अ-ब-स-द में हुई है! मेरे डैड उसके पास ही एक गाँव अ-ब-स-द से हैं, और माँ वहाँ के पड़ोसी गाँव, अ-ब-स-द से हैं। डैड अभी अ-ब-स-द में मैनेजर हैं और माँ एक हाउसवाइफ! मैंने अ-ब-स-द से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करी है, और पिछले साल ही देवयानी की कम्पनी में काम करना शुरू किया है!”

मैंने देखा कि वो बिना कुछ कहे मेरी तरफ देख रहे थे। तो सोचा कि उनको सबसे ज़रूरी बात भी बता दूँ। मैं थोड़ा रुक रुक कर बोला,

आई वास मैरिड - ब्रीफली - टू गैब्रिएला सूसा - अ ब्राज़ीलियन गर्लअनफॉर्चुनेटली फॉर मी, शी पास्ड अवे इन अ रोड एक्सीडेंट अबाउट टू इयर्स एगो!” पुरानी, दर्द भरी यादें ताज़ा हो आईं! मैंने गहरी साँस भरी, “इन दैट एक्सीडेंट, आई लॉस्ट गैबी, ऐस वेल ऐस माय अनबॉर्न बेबी!”

“आई ऍम वैरी सॉरी अमर! मेरा तुम्हारा दिल दुखाने का कोई इरादा नहीं था!” उन्होंने कहा।

नो सर, इट इस ओके! एंड थैंक यू!” मेरी आँखें भर आई थीं।

मैंने उनसे नज़र बचा कर अपने आँसू पोंछे - लेकिन मेरी यह हरकत उनसे छुप न सकी। फिर भी उन्होंने कुछ नहीं कहा। शायद वो मेरे इस संजीदा पक्ष को देख कर खुश भी थे, प्रभावित भी, और संतुष्ट भी!

मैं कुछ और बता पाता कि देवयानी और जयंती दीदी दोनों ने कमरे में प्रवेश किया। दोनों ने चूड़ीदार शलवार, और रेशमी कुर्ता पहना हुआ था। उनके साथ ही जयंती दीदी के दोनों बच्चे भी थे। मैं दोनों के लिए कुछ न कुछ उपहार ले कर आया था। बच्चे तो अपने लिए कुछ भी पा कर खुश हो जाते हैं।

जयंती दीदी ने चहकते हुए मुझसे बातें करना शुरू कर दिया, और डेवी अपने डैडी की बाँहों में बाँहें डाल कर उनके ही बगल बैठ गई। उनके चेहरे को देख कर लग रहा था कि वो मुझसे इम्प्रेस्सड तो हैं! बढ़िया बात है। कोई पंद्रह मिनट के बाद घर की कामवाली ने देवयानी को आवाज़ लगाई। उसको सुनते ही डेवी ने कहा,

“चलिए, बाकी की बातें टेबल पर करेंगे?” उसने अपने डैडी को हाथ पकड़ कर उठाया, और अपने जीजाजी को कहा, “चलिए जीजू, बहुत देर से भूखे बैठे हैं आप!”

“अरे! हा हा! नहीं ऐसी कोई बात नहीं!” उन्होंने औपचारिकतावश कहा।

लेकिन उनका चेहरा देख कर लग रहा था कि बिलकुल वही बात है।

खाने की टेबल पर विविध प्रकार के व्यंजन सजाए गए थे - और इस तरह के स्वागत को देख कर लगता है कि वो सभी वास्तव में हमारे रिश्ते को और आगे बढ़ाने में रुचि रखते थे। इसलिए, खाना ऐसा पकाया गया था, जो मेरी पसंद का हो, और स्वादिष्ट भी! वो सभी चाहते थे कि मुझे ऐसा लगे कि मेरी उपस्थिति स्वागतयोग्य है, और मुझे वहाँ पर घर जैसा महसूस हो। खाना बहुत अच्छा था, और प्रचुर मात्रा में था - मैं शाकाहारी था - इस बात का ख़ास ख़याल रखा गया था। मुझे मालूम था कि देवयानी और उसका परिवार माँसाहारी है! डेवी तो ख़ासतौर पर चिकन की बेहद शौक़ीन है! खैर, मेरे लिए पनीर पकोड़ा था, स्वादिष्ट नूडल्स की एक ख़ास रेसिपी, जिसे मैं अक्सर डेवी के साथ बाहर जाने पर खाना पसंद करता था, उसकी ग्रेवी, और फिर एक बेहद स्वादिष्ट भूमध्यसागरीय सलाद था, जो मुझे बहुत पसंद आया।

खाते समय डेवी के पिताजी ने मुझे सुझाया, “अमर, पकोड़े पर ये इमली की चटनी और ये लाल मिर्च की चटनी की एक बूंद डालें...”

मैंने उनके बताये अनुसार किया और वाकई, बड़ा यमी स्वाद आया!

“ओह! दिस इस वेरी टेस्टी! थैंक यू!” मैंने अपना आभार व्यक्त किया।

उसके डैडी ने ‘समझते हुए’ अपना सर हिलाया। उन्हें यह बात अच्छी लगी कि मैं उनके सुझाव पर तुरंत सहमत हो गया। मुझे लगता है, बाप लोग ऐसे ही होते हैं... खासकर पारंपरिक बाप! उनसे बहस न करो, उनकी बात सुन लो, भले ही अपनी करो! वो उतने में संतुष्ट हो जाते हैं! खाने की टेबल पर हमने छोटी मोटी बातें करीं - अपने परिवारों के बारे में, जयंती दी के बच्चों के बारे में, हमारे काम-काज के बारे में, इत्यादि! वैसे ये सारी बातें ‘आइस-ब्रेकर’ होती हैं, जो असली मुद्दे - असली बातचीत की ओर ले जाती हैं। और अंततः असली मुद्दा आ ही गया!

“तो आप दोनों लव-बर्ड्स का कैसा चल रहा है?” देवयानी के डैडी ने पूछा, “आप दोनों कितने समय से साथ हैं?”

“जी, यही कोई छः महीने हुए होंगे, सर।” मैंने डेवी की ओर देखते हुए कहा।

वो हंसी।

“ठीक है फिर तो! मतलब आप दोनों ने एक दूसरे के साथ कुछ ढंग का समय बिता लिया है। मतलब अब इस रिलेशन को आगे बढ़ाने का टाइम आ गया लगता है! नहीं?” उन्होंने कहा, या यों कहें, कि टिप्पणी करी।

मैंने कुछ नहीं कहा।

ओह डोंट वरी, यंग मैन! मैं इसीलिए तो हूँ! मेरी पिंकी को तुम पसंद हो - और मुझे समझ में आ रहा है कि क्यों! तो चलो, अब तुम्हारी शादी का बंदोबस्त करते हैं!”

“ओह डैडी!” देवयानी खुशी से झूम उठी और उनको गले लगाते हुए लगभग उनकी गोदी में जा गिरी!

आमतौर पर भारत में ऐसा नहीं होता है! लेकिन जब किसी लड़की के माता-पिता, उसके लिए जीवनसाथी की तलाश करते करते हार मान लेते हैं, तो वो भी चाहते हैं कि उनकी लड़की के पसंद के लड़के से उसकी शादी कर दें! उसी में सबकी भलाई है!

वैसे भी, मेरे बारे में उनको बहुत कुछ मालूम ही था। न तो मैं कोई लूज़र था, और न कोई सकर! अच्छा कमा लेता था, कंपनी में मेरी अच्छी रेपुटेशन थी! स्वस्थ था! और क्या चाहिए? सही जीवन-साथी मिलना जरूरी है, न कि ऐसे समय में किसी जड़ता/या मूढ़ता का प्रदर्शन!

“सर,” मैंने कहना शुरू किया, “मुझे उम्मीद है कि...”

“अरे यार! अब तो ये सर वर कहना बंद करो!” उसके डैडी बोले, “टेक इट इजी! अब समय आ गया है कि तुम दोनों,” उन्होंने ऊँगली से पहले मेरी ओर, और फिर देवयानी की ओर इशारा किया, “... साथ में रहो... जीवन भर के लिए!”

मैं ख़ुशी से मुस्कुराया, “थैंक यू सो मच! सर!”

“सर नहीं भाई! डैडी बोल सकते हो मुझे!”

“थैंक यू, डैडी!”

“और बाप को थैंक यू नहीं बोला जाता!” वो मुस्कुराए, “सच में!” उन्होंने आगे कहा, “तुम मुझे पसंद आए! पिंकी की पसंद मेरी पसंद - लेकिन तुम वाकई मुझे पसंद आए!”

इस बात पर हम सभी मुस्कुराए!

उन्होंने कहना जारी रखा, “तुम दोनों अभी बहुत यंग हो! तुम दोनों को युथ का आनंद लेना चाहिए। आई ऍम अन ओल्ड मैन! आई नो व्हाट आई ऍम टॉकिंग अबाउट!”

“जी...” अब मैं और क्या कहता! मैं कुछ भी सोच नहीं पा रहा था!

“तो, यंग मैन, जल्दी से अपने डैड और माँ को आने को कहो! उनका नंबर दो, मैं उनको अभी कॉल कर लेता हूँ, और यहाँ इनवाइट कर लेता हूँ! फिर हम सभी डिसकस कर लेंगे कि शादी कैसे करनी है!”

“ओह सर!”

“फिर से सर! बेटा, अब से मुझे डैडी कहना शुरू कर दो!” वो बहुत प्रसन्न लग रहे थे।

सच में - डेवी के डैडी से मिलने और बात करने के बाद ऐसा बिलकुल भी नहीं लग रहा था कि वो बहुत सख्त आदमी हैं! और यह वास्तव में बहुत अच्छी बात थी।

जयंती और देवयानी दोनों ने ही बातों ही बातों में इशारा किया था कि उनके डैडी को एक पुत्र की चाहत थी! तो संभव है कि बेटियों के पतियों को वो अपने पुत्र जैसा ही मानें! वैसे भी, उनकी दोनों ही बेटियों ने मुझे पसंद किया था - तो संभव है कि इस बात ने उनके मन में मेरे इम्प्रैशन को मजबूत किया हो। उनका बड़ा दामाद अच्छे काम में संलग्न था, उसकी अच्छी प्रतिष्ठा थी, वो अच्छा व्यवहार करता था, और जयंती दीदी की बढ़िया देखभाल करता था, उनसे प्यार करता था और उनके काम में उनको प्रोत्साहन भी देता था। उसके मुकाबले मैं सुशिक्षित था, और अपनी उम्र के हिसाब से बढ़िया तरक्की कर रहा था। मैं भी उनकी बेटी से बहुत प्यार करता था। तो, कुल मिलाकर, मेरा पलड़ा कमज़ोर नहीं था! उम्र का भी कुछ लाभ हो सकता है - मैं वहाँ सबसे छोटा था (दोनों बच्चों को छोड़ कर)! खैर!

“यू नो व्हाट...”, उन्होंने कुछ सोच कर कहा, “मेरे एक दोस्त हैं - यहीं पास ही में उनका एक सुंदर सा फार्महाउस है - कोई दो ढाई घंटे की ड्राइव पर! वो हमेशा मेरे पीछे पड़ा रहता है कि वीकेंड वहाँ बिताओ! फोटो देख कर लगता है कि बढ़िया जगह है! शांत है! एकांत का आनंद लेने के लिए... शोरगुल से दूर... मुझे यकीन है कि तुम दोनों को वहाँ बहुत अच्छा लगेगा! आई विल टॉक टू हिम! गो देयर! जब भी जाने का मन हो, चले जाना तुम दोनों! ओके?”

यह विचार बड़ा दिलचस्प था - इसलिए भी क्योंकि यह डेवी के डैडी की तरफ से आ रहा था। अभी हम दोनों की शादी नहीं हुई थी। तो उनका इशारा किस तरफ था? क्या वो यह सुझाव दे रहे थे कि मैं उनकी बेटी शादी से पहले ही कहीं ले जा सकता हूँ, और उसके साथ कुछ रातें बिता सकता हूँ? क्या बात है!

“डैडी!!” जयन्ती दीदी ने घोर अविश्वास के साथ कहा।

यस यस! आई नो! डोंट थिंक फॉर वन्स दैट योर फादर हैस गॉन सेनाइल!” वो मुस्कुराते हुए बोले, “अरे, इसमें बुराई ही क्या है? अब तो मैं भी चाहता हूँ कि इन दोनों की जल्दी से जल्दी शादी हो जाए। अब अगर इनकी शादी होनी ही है, तो मैं ये सारे ढोंग क्यों करूँ?” उन्होंने बड़ी सहजता से कहा, “ऐसा नहीं है कि मैं चाहता हूँ कि तुम दोनों बिना शादी के सेक्स करो! मैं बस इतना चाहता हूँ कि तुम दोनों की शादी जल्दी से जल्दी हो जाए।”

“ओह्ह डैडी डैडी!” डेवी ने लगभग चीखते हुए अपने डैडी को कसकर अपने गले से लगा लिया, “आई लव यू सो मच डैडी!”

आर यू हैप्पी, पिंकी?”

वैरी हैप्पी डैडी! वैरी वैरी हैप्पी... दिस इस द हैप्पीएस्ट डे ऑफ़ माय लाइफ!”

“मैं चाहता हूँ कि तुमको आज से अधिक खुशी मिले! हमेशा!” फिर वो मेरी तरफ़ मुखातिब होते हुए बोले, “तो यंग मैन, लेट उस मीट योर पेरेंट्स! ... जितनी जल्दी हो सके! वो नहीं आ सकते, तो बताओ - मैं जाकर उनसे मिल आता हूँ! लेकिन मेरा मन है कि वो आएँ यहाँ - जिससे उनका स्वागत, मान सम्मान किया जा सके! एंड वन लास्ट थिंग - अगले हफ़्ते तुम्हारे ऑफिस में तीन दिनों का वीकेंड है, तो क्यों नहीं पिंकी को मेरे फ्रेंड के फार्महाउस ले जाने का प्लान कर लेते हो?”

“सर?” मैं आश्चर्यचकित होते हुए बोला।

“सर?”

“ओह, आई ऍम सॉरी! मेरा मतलब है, डैडी!”

“दैट्स माय सन! ... और हाँ, आज रात यहीं रुक जाओ!”

“नहीं डैडी... कोई दिक्कत नहीं है! मैं बहुत दूर नहीं रहता।”

“हाँ फिर भी... देखो, रात के ग्यारह बज रहे हैं। इसलिए रह जाओ! घर जा कर कोई ज़रूरी काम करना है क्या?” वो मुस्कुराते हुए बोले। मैं इस बात का कोई उत्तर न दे सका।

“इसीलिए कह रहा हूँ कि रुक जाओ! सवेरे नाश्ते के बाद पिंकी तुमको ड्राप कर देगी! ठीक है? चलो फिर! गुड नाइट!”

उन्होंने कहा, और उठ कर अपने कमरे में जाने लगे। और मैं सोचने लग गया कि आखिर ये हुआ क्या!!

“अमर,” डैडी के जाने के बाद जयंती दीदी ने हँसते हुए कहा, “आज तुम पिंकी के कमरे में सो जाना!”

और अपने पति का हाथ पकड़ कर अपने कमरे ओर चल दीं।

मैंने देवयानी की तरफ देखा - उसके चेहरे पर भी मुस्कान थी। दो ही पलों में हम दोनों अकेले रह गए।
भाई कुछ भी कमेंट नहीं कर सकता
दरवाजा खुला था
पहेले से एक दुसरे के साथ अच्छा वक्त बिता चुके हैं
ह्म्म्म्म सच में कमेंट करना बहुत मुश्किल लगा
 
  • Haha
  • Like
Reactions: ss268 and avsji

avsji

..........
Supreme
3,530
15,958
159
भाई कुछ भी कमेंट नहीं कर सकता
दरवाजा खुला था
पहेले से एक दुसरे के साथ अच्छा वक्त बिता चुके हैं
ह्म्म्म्म सच में कमेंट करना बहुत मुश्किल लगा

ये अमर और उसकी मेहरारू - चाहे गैबी हो या देवयानी या काजल - हमेशा दरवाजा बंद करना भूल जाते हैं। वो तो कहो मेन डोर बंद कर देते हैं नही तो लुट ही जाएँ 😂
 
  • Love
  • Like
Reactions: ss268 and Kala Nag

Kala Nag

Mr. X
3,874
15,189
144
नया सफ़र - लकी इन लव - Update #16


जहाँ देवयानी के घर में हमारे रिश्ते को लेकर बड़ी तेजी से प्रगति हुई थी, वहीं मेरे घर पर भी उसको लेकर उत्साह में कोई कमी नहीं थी। डैड, माँ और काजल तीनों ने आज रात ही में इस बारे में सारी मंत्रणा कर डाली। सभी यह जानकर खुश थे कि मुझे फिर से अपना प्यार मिल गया है। मेरा काजल के साथ अनोखा सम्बन्ध था - वो भी मेरी बड़ी के जैसे या कहिए कि गार्जियन के जैसे ही बर्ताव कर रही थी। वो भी बहुत खुश थी कि मैं जो ‘डिज़र्व’ करता हूँ, वो मुझे मिल रही है! सच में, इन तीनों का हृदय कितना बड़ा है! उन तीनों के लिए ही बस यह मायने रखता है कि क्या मैं खुश हूँ! डैड ने कहा कि वो कोशिश करेंगे कि शुक्रवार रात की टिकट मिल जाय - नहीं तो शनिवार को या तो दिन या फिर रात के लिए कोशिश करनी पड़ेगी।

भारतीय रेलवे ने अभी हाल ही में ‘तत्काल’ टिकट आरक्षण की योजना शुरू की थी... यही लगभग एक महीने पहले। चूँकि इसके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते थे, इसलिए तत्काल ट्रेन की बुकिंग कराना उस समय आसान था। डैड सरकारी मुलाज़िम थे, लिहाज़ा उनकी जान पहचान भी थी बुकिंग केंद्र में। इसलिए उन्होंने सवेरे सवेरे ही किसी को फ़ोन कर के बता दिया कि उनको दिल्ली जाने के लिए पाँच तत्काल टिकट चाहिए थे, और वापस आने के लिए जब भी उपलब्ध हो।

मैं सवेरे लगभग साढ़े छः बजे उठा। मैंने डेवी को भी उठाया, जो अभी भी बिस्तर पर लस्त पड़ी हुई थी, और मीठी नींद का आनंद ले रही थी। मतलब सवेरे वाला राउंड करने का मौका नहीं था। जब डेवी उठी, तो मैंने उसको कहा कि अपने ऑफिस के कपड़े ले कर मेरे घर आ जाए - और वहीं से नहा कर हम दोनों साथ में ऑफिस चले जाएँगे। उसको यह आईडिया अच्छा लगा। उसने अपनी अलमारी से टी-शर्ट और शॉर्ट्स निकाल कर पहन ली, और अपने डैडी से बात करने कमरे से बाहर चली गई। इस बीच मैंने भी अपने कपड़े पहन लिए।

जब मैं उनसे बात करने निकला, तो उनको मेरे डैड से फ़ोन पर बातें करते हुए पाया। वो बड़े शिष्टाचार से डैड को दिल्ली में अपने घर आमंत्रित कर रहे थे। वो डैड से कोई सोलह सत्रह साल बड़े रहे होंगे और आई ए एस भी रह चुके थे, लेकिन फिर भी उनके बात करने के अंदाज़ में कैसा भी ग़ुरूर नहीं सुनाई दे रहा था। सच में - अगर परिवार के स्तर पर देखा जाए, तो हमारी कोई हैसियत ही नहीं थी उनके सामने! फिर भी उनको इस रिश्ते पर कोई आपत्ति नहीं थी। बड़ी बात थी - और मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे ऐसे गुणी लोगों का आशीर्वाद मिला!

खैर, जब फ़ोन कॉल ख़तम हुआ, तो मैंने डेवी को अपने साथ ले जाने की मंशा दर्शायी। वो चाहते थे कि हम नाश्ता कर के घर से निकलें। लेकिन जब प्लान अलग हो तो मज़ा नहीं आता। कुछ देर की मान मनुहार के बाद वो मान गए।

उधर डेवी के डैडी से बात करने के बाद डैड को शुक्रवार की रात का टिकट मिल गया - लेकिन केवल चार टिकट ही मिले। सुनील ने कहा कि वो घर पर ही रह जाएगा। कोई बात नहीं! वैसे भी ‘लड़की देखने’ के लिए वो क्यों जाए! वो तो भैया ने देख ही ली हैं! अब तो जब वो ‘भाभी’ बनेंगी, तब ही वो उनसे मिलेगा! सच भी है - किशोरवय लड़कों को इन सब बातों में मज़ा नहीं आता। वो केवल बोर ही होता, और उसकी पढ़ाई में व्यवधान भी आता। दो महीने बाद उसका ग्यारहवीं का एग्जाम था, इसलिए किसी ने कोई आपत्ति नहीं जताई, और न ही निराशा! सुनील का लक्ष्य बड़ा था और महत्वपूर्ण था। उसमें कोई भी कैसा भी विघ्न नहीं डालना चाहता था।

मैंने डैड का यह सन्देश डेवी को दे दिया। वो भी उससे मिलने की मेरे माता-पिता की तत्परता को देख कर बहुत खुश तो हुई, लेकिन थोड़ी घबरा भी गई। जब मैंने उससे कारण पूछा कि उसे ऐसा क्यों लगा, तो उसने जवाब दिया कि पता नहीं मेरे माता पिता उसको पसंद करेंगे या नहीं! उसकी सबसे बड़ी चिंता हमारे बीच का उम्र का बड़ा अंतर था। मैंने उसे समझाया कि यह न तो मेरे लिए, और न ही मेरे पेरेंट्स के लिए कोई समस्या वाली बात थी! वे केवल एक चीज चाहते थे - हमारी खुशी! बस!

शनिवार सुबह सुबह मैं सभी को लिवाने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँच गया। सबको इतने महीनों बाद देख कर बड़ा आनंद मिला। लतिका फुदकती हुई गुड़िया जैसी आई और मेरी गोद में चढ़ गई। सच में! बड़ा सुकून मिला। अब जा कर लगा कि मेरे जीवन में भी सब सामान्य हो गया है! आज दोपहर ही में डेवी के घर जाने का प्लान था, लिहाज़ा हम सभी नाश्ता कर के जल्दी जल्दी तैयार होने लगे।

माँ अपनी होने वाली बहू से पहली बार मिलने जा रही थीं - इसलिए वो खाली हाथ तो नहीं आ सकती थीं। इसलिए वो देवयानी और जयंती दीदी के लिए काटन (कपास नहीं) सिल्क की साड़ियाँ लाई थीं। साथ ही साथ सोने की एक चेन भी। डैड देवयानी के डैडी के लिए रेशमी कुरता और धोती लाए थे - अपने से बड़ों को देने के लिए वो हमेशा यही उपहार लाते थे। हाँ, बस इसकी गुणवत्ता बहुत अधिक थी क्योंकि सभी कपड़े सीधा कारीगरों से खरीदे गए थे। यहाँ दिल्ली में यही सामान पाँच गुना क़ीमत पर मिलता! जयंती दीदी के पति और दोनों बच्चों के लिए लखनवी चिकन के कुर्ते और पाजामे भी थे और साथ में मिठाईयाँ।

जब हम देवयानी के घर पहुंचे, तो उसके डैडी ने हमारा यथोचित स्वागत किया - लेकिन माँ और डैड दोनों ने ही और उनकी देखा देखी काजल ने भी उनके पैर छू कर उनका आशीर्वाद लिया। ऐसे संस्कारी परिवार को देख कर डैडी ऐसे ही लहालोट हो गए। कहने की आवश्यकता नहीं कि किसी भी तरह की बात करने से पहले ही डैडी को मेरा पूरा परिवार बहुत पसंद आया। सबसे अंत में मैंने उनके पैर छुए तो उन्होंने मुझे ‘जीते रहो बेटा’ टाइप का आशीर्वाद दिया। लतिका भी उनके पैर छूने वाली थी, तो उन्होंने उसको बीच में ही रोक कर अपनी गोदी में उठा लिया और उसके गालों को चूमते हुए कहा,

“अरे मेरी प्यारी बिटिया! बेटियाँ पैर नहीं छूतीं! तुम मेरी गोदी में रहो!”

मुझे उनका लतिका को इस तरह लाड़ करना बहुत अच्छा लगा।

उधर जयंती दीदी के हस्बैंड और उनका बड़ा बेटा भी हमारे स्वागत के लिए उपस्थित थे। लेकिन पैर छूने वाला काम केवल बेटे ने किया। हम सभी अंदर आए और बहुत देर तक सामान्य बातें - जैसे कि कैसे हैं, कोई तकलीफ तो नहीं हुई, स्वास्थ्य कैसा है, क्या करते हैं, आपके शहर / गाँव में क्या चल रहा है इत्यादि इत्यादि! बातचीत में ये सब बातें केवल फिलर होती हैं। अच्छी बात यह है कि डैडी जितना आदर से माँ और डैड से बात कर रहे थे, उतने ही आदर से काजल से भी कर रहे थे। बाद में देवयानी ने मुझे बताया कि उसने डैडी से काजल और उसके मेरे और मेरे परिवार से रिश्ते के बारे में उनको बताया था। सच में - देवयानी के पिता एक बेहद गुणी, अच्छे, और सरल - सुलझे हुए आदमी थे!

कोई पैंतालीस मिनट के बाद देवयानी और जयंती दीदी कमरे में आये। देवयानी मुस्कुराती हुई, उसी पारम्परिक अंदाज़ में आई - हाथों में चाय की ट्रे लिए! खाने की ट्रे जयंती दीदी के हाथों में थी। देवयानी ने लाल रंग की रेशमी, ज़री वाली साड़ी पहनी हुई थी, और जयंती दीदी ने बसंती रंग की, हरे बॉर्डर वाली साड़ी पहनी थी। दोनों ही ने बारी बारी से माँ और डैड के पैर छुए। और काजल से गले मिलीं। और मैं तो बस देवयानी को देखता रह गया - केवल अपने पहनावे में छोटा सा परिवर्तन करने से ही वो अप्सरा जैसी दिख रही थी! जयंती दी भी कोई कम नहीं लग रही थीं! कुछ देर तक मेरी बोलती ही बंद हो गई। मिलने के कोई आधे घंटे के भीतर ही सभी एक दूसरे से इतना सहज महसूस कर रहे थे जैसे बरसों की जान पहचान हो!

लतिका उम्र में जयंती दीदी के बड़े बेटे के ही बराबर थी। वो उसको अपनी गोदी में ले कर दुलार कर रही थीं।

“आपको क्या अच्छा लगता है?”

“मुझको खेलना अच्छा लगता है!” लतिका ने अपनी कोमल आवाज़ में कहा।

“हा हा! और क्या अच्छा लगता है?”

“गाना!”

“अरे वाह! कुछ हमको भी सुनाइए फिर?”

“क्या सुनाऊँ? गाना, या गीत?”

अब इसका अंतर तो हमको भी नहीं मालूम था - लिहाज़ा जयंती दी ने कहा, “गीत?”

“जी ठीक है!” कह कर लतिका उनकी गोदी से उतर गई, और ‘सावधान’ की मुद्रा में आ कर सभा के बीच में खड़ी हो गई। उसको ऐसे करता देख कर सभी लोग चुप हो गए और सोचने लगे कि बच्ची क्या गाने वाली है! उसका आत्मविश्वास देख कर मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया - ‘इतनी छोटी बच्ची और इतना कॉन्फिडेंस! कमाल है!’

फिर उसने अपनी मीठी, बच्चों वाली आवाज़ में कहा, “मैं आपके सामने श्री द्विजेंद्रलाल राय की रचना प्रस्तुत करने वाली हूँ। यह हमारी भारत माता की वंदना है।”

धन-धान्ये-पुष्पे भरा आमादेर ए वसुंधरा, ताहार माझे आछे देश ऐक सकल देशेर शेरा।


शे जे स्वप्नो दिये तोरीम शे देश स्मृति दिये घेरा, ऐमोन देशटि कोथाओ खूंजे पाबे नाको तुमि।

सकल देशेर रानी शे जे आमार जन्मोभूमि।


शे जे आमार जन्मोभूमि, शे जे आमार जन्मोभूमि!


देवयानी और जयंती दीदी ने अपनी जीभ अपने दाँतो तले दबा ली! उनको यकीन ही नहीं हुआ कि ऐसी नन्ही सी बच्ची ऐसा कुछ करिश्मा कर सकती है!


चंद्र सूर्य ग्रह तारा कोथाय उजोल ऐमोन धारा, कोथाय ऐमोन खेले तोरीर ऐमोन कालो मेघे।


तार पाखीर डाके घूमिये पोडी पाखीर डाके जेगे, ऐमोन देशटि कोथाओ खूंजे पाबे नाको तुमि।

सकल देशेर रानी शे जे आमार जन्मोभूमि।


शे जे आमार जन्मोभूमि, शे जे आमार जन्मोभूमि!


“वाह वाह वाह!” सभी लोग लतिका के गाने पर आह्लादित हो कर तालियाँ पीटने लगे!

सच में - कैसा मीठा गान!

लतिका भी तेजी से बड़ी हो रही थी। कितना कुछ मिस कर रहा था मैं अपने जीवन में! समझ नहीं आ रहा था कि समय के इस अथाह प्रवाह को मैं कैसे सम्हालूँ!!

खूब शुंदोर!” देवयानी के डैडी बोल पड़े, “हृदय गदगद होए गेलो! खूब तरक्की करो बेटा! सबका नाम रोशन करो!”

“कितना मीठा ‘गीत’ गाया आपने!” देवयानी ने लतिका के सामने ज़मीन पर बैठते हुए कहा और उसको अपने सीने में भींचते हुए, उसको दुलारते हुए बोली, “किसने सिखाया आपको?”

“मम्मा ने!”

“अरे वाह!”

“हा हा! मैंने नहीं,” काजल बीच में बोल पड़ी, “मैं अम्मा हूँ, मम्मा माँ जी हैं!”

“क्या!”

अब ये बात तो मेरे लिए भी नई है! माँ ने कब बंगाली भाषा सीख ली?

“जी दीदी, मैं अम्मा हूँ - और अम्मा की अम्मा, मम्मा हैं!” काजल ने हँसते हुए खुलासा किया।

अगर देवयानी के मन में हमारे परिवार को ले कर थोड़ा भी संशय रहा होगा, तो बस इस एक छोटे से वाक्य से जाता रहा होगा। ऐसा सरल, प्रेम करने वाला परिवार उसको बहुत मुश्किल से मिलता।

अब आगे का समय यूँ ही हँसते बोलते बीत गया।

बीच में जब चारों स्त्रियों को मौका मिला तो माँ ने देवयानी और जयंती दीदी से कहा,

“... पिंकी बेटा, यह ठीक है कि तुम हमारी बहू हो - लेकिन तुमको मेरे पैर छूने की कोई जरूरत नहीं है। जयंती - तुमको तो बिलकुल भी नहीं! हम चारों समझो कि बहनों जैसी हैं - हमारी उम्र में कोई अंतर नहीं है। इसलिए, सच में, अगर तुम कम्फ़र्टेबल महसूस करती हो, तो मुझे अपनी बड़ी बहन मानो! न कि अपनी सास!”

माँ की ऐसी बातें सुन कर देवयानी मुस्कुराई - उसको अन्तः यह जानकर राहत मिली कि हमारे बीच उम्र का अंतर माँ के लिए कोई मुद्दा ही नहीं था - और बोली, “माँ, आपको अपनी बड़ी बहन और अपनी माँ - दोनों के रूप में देखना पसंद करूंगी! जब जैसा मन करेगा वैसा!”

उसकी बात पर सभी हँसने लगीं।

जयंती दी बहुत खुश थीं कि उनकी छोटी बहन की होने वाली सास ऐसी खुली हुई, और सहेली जैसा व्यवहार कर रही हैं। वो हमेशा से चाहती थीं कि डेवी को बहुत प्यार करने वाला परिवार मिले - माँ के अभाव में पली हुई बच्ची सूखी मिट्टी समान होती है, जो प्रेम और स्नेह के जल को सोख लेती है।

“हा हा हा! यार ये तो बहुत गड़बड़ है! लेकिन ठीक है। जब हम दोनों प्राइवेट में मिलें, तो मुझे तुम ‘दीदी’ कह कर बुलाना, लेकिन अमर के सामने नहीं… वो बेचारा कंफ्यूज हो जाएगा… हा हा हा!”

“दीदी... आप बहुत नटखट लड़की हो!” जयंती दी ने माँ को छेड़ा।

“अरे, इसमें मैं क्या करूँ! उसने जो डिसिज़न लिए हैं, उसके परिणाम भी भुगतने होंगे न। हा हा!” माँ सचमुच में मजे ले रही थीं, “अब बताओ... तुम दोनों कैसे मिले?”

देवयानी ने माँ को बताया कि हम कैसे मिले, और हमारा सम्बन्ध आगे कैसे बढ़ा। उसने अपने काम इत्यादि के बारे में भी माँ को बताया। माँ को यह जान कर अच्छा लगा कि जब मुझे भावनात्मक समर्थन और प्यार की आवश्यकता थी, तब देवयानी मेरे साथ खड़ी हुई थी! गाढ़े का साथी ही सच्चा साथी होता है। माँ ने यह बात देवयानी को बोली। उसके पूछने पर माँ ने संक्षेप में गैबी के साथ अपने संबंधों के बारे में भी बताया, और उससे वायदा भी किया कि वो उससे वैसा ही प्यार करेंगी... या शायद उससे भी ज्यादा! ऐसे ही बातें करते करते अंत में, जिज्ञासावश, माँ ने देवयानी से एक व्यक्तिगत प्रश्न पूछ लिया।

“देवयानी बेटा, क्या तुम दोनों ने सेक्स किया, या वैसे ही हो?”

“हाय भगवान्! दीदी! तुम मुझसे ऐसा कैसे पूछ सकती हो?”

“अरे, अगर तुम एम्बारास मत महसूस करो! ओके, कुछ मत कहो। मैं तो बस ये सोच रही थी कि तुम इतनी सुन्दर सी हो, तो वो बिना तुम्हे प्यार किए कैसे रह सकता है!”

“दीदी, क्या तुमको सच में लगता है कि मैं मैं सुंदर हूँ?”

“अरे! बेशक! तुमको इस बात में कोई संदेह है? तुम बहुत खूबसूरत हो - देखने में भी, और अंदर से भी!”

“ओह दीदी! मैं कभी-कभी... मतलब अब भी... मुझे लगता है कि अमर को कोई उसकी अपनी उम्र की लड़की मिलनी चाहिए... मुझे ऐसा लगता है कि मैं अपने फ़ायदे के लिए उसको एक्सप्लॉइट कर रही हूँ!”

“हाबरदार कि तुमने ऐसा सोचा भी कभी!” माँ ने ज़ोर दे कर कहा, “... अच्छा, मुझे एक बात बताओ, क्या तुम अमर से प्यार करती हो?”

“ओह दीदी! मैं उसे बहुत प्यार करती हूँ!”

“और क्या वो भी तुमसे उतना ही प्यार करता है?”

“बेशक दीदी... नहीं तो ये नौबत ही न आती!”

“तो मुझे ये समझाओ कि तुम्हारा साथ, उसका एक्सप्लोइटेशन कैसे है?”

“मतलब उसे कोई अपनी उम्र की...”

“उम्र का क्या है बेटा? मेरी तुम्हारी उम्र में क्या अंतर है? लेकिन मुझसे तुमको माँ वाला ही प्यार मिलेगा!”

डेवी मुस्कुरा दी।

“मेरी बच्ची, हर किसी को प्यार करने का और प्यार पाने का अधिकार है। तुम और अमर बहुत भाग्यशाली हो, कि तुमको एक दूसरे का साथ, एक दूसरे का प्यार मिला है! और मैं तुम दोनों के लिए बहुत खुश हूँ! प्यार में उम्र मायने नहीं रखती। इसलिए ये सब विचार मन से बाहर निकाल दो! भगवान् करें, कि तुम दोनों हमेशा खुशहाल रहो!” माँ ने मुस्कुराते हुए देवयानी का माथा चूमा, “मेरा यही आशीर्वाद है!”

डेवी ने भावनाओं और स्नेह से अभिभूत होकर माँ को अपने गले से लगा लिया।

“माँ, मैं सच में सेल्फ़िश तो नहीं हूँ न?” डेवी ने एक बार और पूछा।

“यदि तुम अमर को ढेर सारा प्यार दे रही हो, और बदले में ढेर सारा प्यार पा रही हो, तो... मैं कहूँगी कि ऐसा स्वार्थी होना बहुत अच्छा है!”


तब तक मैं माँ के पास आया उनको सभी को बाहर बुलाने। हमारी शादी की तारिख निश्चित करनी थी।

हम कुछ भी कहते, उसके पहले ही देवयानी ने कहा, “डैडी,” फिर हमारी तरफ़ देख कर, “माँ डैड - मेरी एक रिक्वेस्ट है!”

“हाँ बेटा, बोलो न” डैड ने बड़े दरियादिली से कहा।

“जी, मैं सोच रही थी कि हमारी शादी XX फरवरी को हो - माँ का बर्थडे भी है उसी दिन!”

“क्या!” माँ का चेहरा देखने वाला था, “जुग जुग जियो बिटिया रानी! सदा मंगल हो तुम्हारा!”

उनको यकीन ही नहीं हुआ कि देवयानी ऐसी बात कह सकती है! इतना बड़ा सम्मान!

“लेकिन बेटा,” देवयानी के डैडी बोले, “इतनी जल्दी...”

“भाई साहब, जल्दी तो है - लेकिन...” डैड देवयानी के डैडी को समझाने लगे।

उधर एक तरफ तो माँ अपनी आँखों से गिर रहे आँसूं पोंछने लगीं, तो दूसरी तरफ़ काजल देवयानी को अपने गले से लगा कर चूमने लगी, “आप बहुत अच्छी हो दीदी! हम सभी बहुत लकी हैं! बस अब आप घर आ जाओ - जितना जल्दी हो सके, उतना!”

देवयानी मुस्कुराई, “हाँ दीदी, अब मैं भी बस यही चाहती हूँ!”


**
चलो सफर शादी तक पहुँच ही गया
भाई कामुकता और उत्तेजनाओं के बीच भावनाओं के सहजता को बहुत ही बढ़िया तरीके से प्रस्तुत किया है आपने
साधुबाद आपको
 
  • Love
  • Like
Reactions: ss268 and avsji

avsji

..........
Supreme
3,530
15,958
159
चलो सफर शादी तक पहुँच ही गया
भाई कामुकता और उत्तेजनाओं के बीच भावनाओं के सहजता को बहुत ही बढ़िया तरीके से प्रस्तुत किया है आपने
साधुबाद आपको

धन्यवाद मित्र 🙏🙏
 
  • Like
Reactions: ss268

Lib am

Well-Known Member
3,257
11,242
143
Holi

मैं तुम्हारे, और तुम मेरे रंग में रंग जाओ - इसी में हमारी होली है!
रंगों के इस महापर्व की मेरे समस्त पाठकों और पाठिकाओं को हार्दिक शुभकामनाएँ!

शुभमस्तु!!!
बहुत ही सुंदर अपडेट्स। आखिर अमर को फिर से एक सच्चा दोस्त, हमदर्द और जीवनसाथी मिल गया और डेबी को उसका प्यार। डेबी के डैड भी बहुत ही सरल इंसान निकले और व्यवहारिक भी।
 
  • Like
  • Love
Reactions: ss268 and avsji
Status
Not open for further replies.
Top