• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

Status
Not open for further replies.

avsji

..........
Supreme
3,526
15,952
159
b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c

प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
Last edited:

avsji

..........
Supreme
3,526
15,952
159
इंसानी फितरत है स्वार्थी होना। अगर कोई स्वार्थी नही है तो इसका मतलब वो इंसान नही बल्कि देवता है। कोई संत महात्मा है।

यह बात तो बहुत सही है। इस हिसाब से काजल ही संत वाले लेवल तक पहुंची है। लेकिन अब उसके लिए भी बहुत हो गया है।

काजल को लेकर अमर के मन मे जो भावनाएं पैदा हो रही है वो मानव स्वभाव ही है। बहुत कुछ काजल ने अमर और उसके परिवार के लिए किया। अब जरूरत है कि अमर भी उसके लिए कुछ करे।

जी। अमर को अब वापस देने का काम शुरू करना है।

सबसे बेहतर यही था कि वो बहुत पहले ही शादी के बंधन मे बंध जाते जो काजल की सोच की वजह से नही हुआ।

काजल की सोच सही थी कतई। अमर ही ठीक नहीं सोच पा रहा था। लेकिन अब झटका लगा है। अब उसको अपनी स्थिति का जायजा लेना पड़ेगा।

अब हालात बदल गए है। रिश्ते बदल गए है। और शायद जज्बात भी बदल गए है। जज्बात नही बदला होता तो काजल नये रिश्ते पर खुश नही होती।

जी भाई। बिल्कुल सही बात है।

अमर को भी आगे के लिए सोचना चाहिए। अपनी नन्ही बच्ची के लिए एक अच्छी मां मिले, इसपर विचार करना चाहिए।

हां। शर्मा जी की लड़की है न - - रचना 😊

बहुत ही खूबसूरत और बेहतरीन अपडेट भाई।
Outstanding & Amazing & brilliant.

बहुत बहुत धन्यवाद भाई मेरे
 

avsji

..........
Supreme
3,526
15,952
159
avsji update kab tak aayega
लिख रहा हूं भाई जी। लेकिन वो बात नहीं आ रही है जो चाहिए।
इसलिए समय लग रहा है।
 

Kala Nag

Mr. X
3,856
15,162
144
अंतराल - समृद्धि - Update #2


ख़ुशी और मेरा - जैसे बैर वाला रिश्ता बना लगता है।
अरे मैं इतना लेट हो गया
जब जब मैं खुश होता हूँ, तब तब मैं बर्बाद होता हूँ! जी हाँ - अंदाज़ अपना अपना फिल्म के एक संवाद पर ही मैंने ये बात लिख तो दी है, लेकिन मेरे केस में ये बात है पूरे सोलह आने सच! नहीं नहीं - फिलहाल ऐसी बर्बादी वाली कोई बात नहीं हुई है - कम से कम कहानी के इस पड़ाव पर! लेकिन क्या है न कि पिछले कुछ सालों से मैं बेहद स्वार्थी हो गया हूँ (हो गया हूँ, या फिर शायद हमेशा से ही था)। अधिकतर अपने ही बारे में सोचता हूँ; अपनी खुशियों के बारे में! अपने सामने दूसरों का ख़याल ही नहीं आता! इसीलिए जैसे ही कोई मुश्किल सामने आती है - मैं रोने लगता हूँ! बात कुछ यूँ है -

लतिका के हाई स्कूल परीक्षाओं के तीन सप्ताह पहले की बात है। सब कुछ सामान्य था। शाम को काजल मेरे कमरे में आई। कोई अनहोनी बात नहीं है ये। लेकिन आज कुछ अलग सा था।

“अमर?”

“हाँ, काजल?”

“बहू और बच्चों को देखे हुए बहुत दिन हो गए!”

“हाँ! बात तो ठीक है! बस कुछ दिनों की बात है - पुचुकी के एक्साम्स हो जाएँ! फिर चली जाना मुंबई? और इन दोनों शैतानों को भी लेती जाना! माँ भी देख लेंगीं दोनों को?”

मेरी बात सुन कर काजल कुछ देर चुप हो गई।

सच में - एक माँ के दिल का हाल हम आदमी लोग कैसे जान सकते हैं? कितनी भी कोशिश कर लें - लेकिन ममता पर तो स्त्रियों का ही एकाधिकार है। काजल की तो जान ही अपने बच्चों में बसती थी! लेकिन उसकी मुश्किल देखिए - उसके दो बच्चे यहाँ दिल्ली में, और चार वहाँ मुंबई में! जैसे उसके दिल के कई टुकड़े कर के देश के अलग अलग हिस्सों में रख दिए हों विधाता ने! माँ से रोज़ फ़ोन पर बात करती थी वो, लेकिन उससे कहाँ पेट भरता है? तब तक वीडियो कॉल का सिस्टम भी आम नहीं था, और न तो काजल को ही, और न ही माँ को कंप्यूटर और इंटरनेट का समुचित उपयोग करना आया था।

काजल के चुप होने का अंदाज़ सामान्य से थोड़ा अलग था।

मैंने पूछा, “क्या हुआ काजल? कोई प्रॉब्लम है क्या?”

काजल ने कुछ देर कुछ नहीं कहा, और उसके बाद धीमी आवाज़ में कहा, “अमर, वो क्या है न, जब मैं पहली बार सुनील के वहाँ गई थी, तब मुंबई में मैं किसी से मिली।”

“ओके?” मैंने कहा, “किससे?”

“एक आदमी से!” काजल ने थोड़ा हिचकते हुए कहा, “... और मुझे लगता है कि मैं उसे पसंद करती हूँ!”
ओ तेरी
ह्म्म्म्म यह सफर केवल अमर की ही नहीं काजल की भी है

“क्या! सचमुच?” मैं उसकी बात पर हैरान हो गया!

‘ये क्या हो गया? काजल? किसी और से?’ अब मेरा दिमाग चकराया।

“उससे बातें भी होती हैं - लगभग रोज़ ही! सुनील भी मिला है!”

‘अरे स्साला! बात तो काफी एडवांस्ड स्टेज में है!’ दिमाग में बात कौंधी - लेकिन अभी भी मुझे बात की वास्तविक हद का अंदाज़ा नहीं था।

“क्या वो तुमको पसंद करता है?” मैंने पूछा।

“मुझे ऐसा लगता तो है...” काजल ने थोड़ा अनिश्चित तरीके से कहना शुरू तो किया, लेकिन लगभग तुरंत ही संयत हो कर बोली, “हाँ, वो भी मुझे पसंद करता है। एक्चुअली, उसी ने प्रोपोज़ किया था मुझको!”

“फिर तुमने मुझे बताया क्यों नहीं?”

“सही टाइम का वेट कर रही थी!”

“ओह!”

मैं कभी सोच भी नहीं सकता था - सपने में भी नहीं - कि कभी ऐसा भी एक दिन आएगा, जब काजल मुझसे नहीं, बल्कि किसी और से प्यार करने लगेगी!
हाँ यह एक झटके वाली बात तो है
पर सच यह भी है कि काजल और अमर दोनों की घर नहीं बसा है
तो इसका मतलब, क्या वो मुझे छोड़ कर चली जाएगी?

‘हे भगवान!’

“अमर... अब ऐसे तो बीहेव मत करो,” काजल ने मेरे तेजी से मुरझाते हुए मूड को देखते हुए कहा, “तुम मेरा सबसे पहला प्यार हो, और ये बात कभी नहीं बदलेगी नहीं! ... क्या कुछ नहीं दिया है तुमने मुझे? इतनी इज़्ज़त - इतना मान! ... तुम्हारे कारण मुझे समाज में इतनी इज़्ज़त मिली। तुम्हारे कारण आज मेरा एक भरा पूरा परिवार है, और उसका सुख भी! मेरे बच्चे...”

काजल अतीत के पन्नों में खोते हुए बोली, “मैं और मेरे मेरे बच्चे समाज में आज इतनी इज़्ज़त के साथ खड़े हैं, वो बस तुम्हारे ही कारण है! मेरा सब कुछ तुम्हारे कारण है!”

“तो तुमने मुझे बताने के लिए इतनी देर इंतज़ार क्यों किया...” मेरी शिकायत भी जायज़ थी।

एक झटके में काजल ने मुझको अनजान बना दिया... अपने से अलग कर दिया!

काजल इस प्रश्न पर कुछ कह न सकी। फिर मैंने इस विचार को तुरंत झटका, और उसे अपने बहुत बगल में बैठाते हुए कहा, “अच्छा! अभी शिकायत नहीं करूँगा... मुझे उसके बारे में बताओ... सब कुछ!”

वो मुस्कुराई, “ओके... उसका नाम सत्यजीत है।”

“मराठी?”
मुंबई में काजल दिल हारी है
तो जाहिर है कि वह मराठी हो सकता है
खैर वैसे भी मुंबई को सिटी ऑफ ड्रीम कहा जाता है

उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “... सत्यजीत मुळे! उम्र में मुझसे कम है... चालीस इकतालीस का होगा।”
यार यह अद्भुत है
उम्र में कम
“वो तो ठीक है न?” काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया; मैंने पूछा, “सिंगल?”

“हाँ! विडोड... बहुत कम उम्र में शादी हो गई थी उसकी... गाँव से है न! उसकी बीवी को मरे बहुत साल हो गए - शायद कोई चौदह पंद्रह साल हो गए! ... सुनील से दो ढाई साल छोटा एक बेटा भी है उसका... लेकिन... उसकी भी शादी हो गई है... और उसका भी एक बच्चा है... डेढ़ दो साल का!”

“हम्म… अच्छा! बढ़िया है... कम से कम पूरा परिवार तो है!” मैं कुछ और कहना चाहता था, लेकिन शायद काजल के दिल में चुभ जाता, इसलिए वो बात कहने के बजाय मैंने पूछा, “क्या करता है?”

“उसका बेकरी का बिज़नेस है।”

“हम्म… हा हा हा हा! तो मतलब, तुम केक लेने मिस्टर सत्यजीत के पास गई, और बदले में अपना दिल दे बैठी?”

काजल मेरी बात पर हँसने लगी, “नहीं! केवल केक ही नहीं... ब्रेड, बिस्किट, स्कोन, पेस्ट्री, कुकीज... भी!”

“हाँ... हाँ... समझ रहा हूँ।” मैंने काजल की टाँग खींची, “दिल्ली वाला नहीं, बल्कि मुंबई वाला बिजनेस-मैन पसंद आ गया है आपको!”

“अमर! ऐसे मत बोलो!” काजल की आँख भर आई, “तुम मेरे लिए क्या हो, वो तुम भी जानते हो! लेकिन, मुझे ये भी मालूम है कि जब तक मैं तुम्हारी ज़िन्दगी से बाहर नहीं जाऊँगी न, तब तक तुम अपनी ज़िन्दगी में आगे नहीं बढ़ोगे!”
हाँ यह बात काजल ने बिल्कुल सही कहा
मूव ऑन अमर मूव ऑन
मैंने इस बात पर कुछ नहीं कहा, लेकिन काजल की बात मेरे दिल को कचोट गई। शायद वो सही कह रही हो। मेरी आदत है किसी अन्य का सहारा पकड़ कर आगे बढ़ने की - अमरबेल की तरह... पैरासाइट! एक तरह से मैंने सालों साल काजल का शोषण किया है। और आज जब काजल को मौका मिला है कि वो अपना घर बसा सके, तो मैं उसको गिल्ट-ट्रिप पर ले जाने वाला था। कैसा मतलबी था मैं! धिक्कार है!

सच कहते हैं - किसी भी व्यक्ति का बुराई को ले कर नज़रिया ख़र्राटों समान होता है - दूसरों की कमियाँ और बुराईयाँ बखूबी सुनाई देती हैं, अपनी नहीं!

मैंने बात पलट दी, “तो, किसने किसको प्रोपोज़ किया?”

“बताया तो! सत्या ने... मुझे!” वो गर्व से मुस्कुराई।

“और तुमने मान लिया?”

“मानना चाहती हूँ,” काजल बोली, और हिचकिचाई।

“क्यों? क्या हो गया? किसने रोका?”

इस प्रश्न के उत्तर में काजल कुछ नहीं बोली। मुझे उत्तर अपने आप मालूम हो गया।

“सुनील को मालूम है?”

काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “और बहू को भी! दोनों मिले हैं... सत्या से भी, और उसके बेटे और बहू से भी!”

“दोनों ओके हैं?”

काजल ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तो इंतज़ार किस बात का है?”

“मैं उसके पहले तुमसे बात करना चाहती थी... और... तुम्हारी परमिशन लेना चाहती थी!”

“काजल… मेरी काजल… मैं तुम्हारा मालिक नहीं हूँ कि तुम मुझसे परमिशन लो! तुम इस घर की बड़ी हो... पूरे परिवार की बड़ी हो! मालकिन हो तुम! अपने डिसिशन खुद ले सकती हो! मैंने कभी रोका है तुमको? मैं तो तुमसे कितना प्यार करता हूँ!”

“आई नो! और इसीलिए तो मैं सत्या को हाँ कहने से पहले तुमको बताना चाहती थी!”

“हाँ कहना चाहती हो?”

काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

हम दोनों कुछ देर के लिए चुप हो गए।
बड़ी आत्ममंथन वाली परिस्थिति है
काजल के जाने का मतलब है कि लतिका भी उसके साथ ही चली जाएगी! फिर से आभा और मैं अकेले! सबकी ज़िन्दगी संवर रही थी, सबका संसार बस रहा था - बस, मैं ही पीछे छूटा जा रहा था। लेकिन मुझे अपना स्वार्थ छोड़ कर आगे बढ़ना था। अमरबेल जैसा परजीवी बन कर मैं और जीना नहीं चाहता था। अब समय आ गया था कि मैं अपने पाँवों पर खड़ा हो जाऊँ... पैसा कमाना ही अपने पाँव पर खड़ा होना नहीं होता। एक ज़िम्मेदार पुरुष के जैसे ही अपने परिवार की सारी ज़िम्मेदारी लेने का समय आ गया था। हम बचे ही कितने अब? मैं और आभा! बस... दो जने!

इस विचार से मेरा दिल बैठ गया।

प्रत्यक्षतः मैंने कहा, “काजल, अगर तुमको लगता है कि तुम सत्यजीत के साथ खुश रहोगी, तो प्लीज, इतना सब मत सोचो! उसको हाँ कह दो! उसके साथ रहो! उसका घर बसाओ! मुझे केवल तुम खुश चाहिए। और कुछ नहीं!”

काजल मुस्कुराई, लेकिन उसकी आँखों से आँसू ढलक गए, “आई नो!”

वो बहुत इमोशनल हो गई थी, लेकिन उसने खुद को सम्हाला, “मैं चाहती हूँ, कि तुम सत्या से मिल लो! देखो तो, वो मेरे लायक है भी कि नहीं?”

जिस तरह से काजल ने मुझसे ये बात कही, मेरा दिल बाग़ बाग़ हो गया!

मुझे लग गया कि शादी हो जाने के बाद भी काजल का सम्बन्ध मेरे साथ प्रगाढ़ ही रहेगा - वैसे ही जैसे बड़ी बहन जब विदा हो जाती है, तब भी उसका सम्बन्ध अपने भाई से नहीं छूटता। बात सही थी - काजल हमेशा यहाँ नहीं रह सकती थी। अगर यह बात माँ के लिए सच थी, तो काजल के लिए भी उतनी ही सच थी। और अब जा कर मुझे काजल के खिंचाव का कारण समझ में आया। जब दूसरे के साथ प्रीति होने लगे, तो फिर मेरे साथ वो क्यों अंतरंग होगी? अच्छा भी लगा कि काजल सत्यजीत के लिए समर्पित थी; वफादार थी।

“मैं उससे मिलूंगा।”

“हाँ?”

“हाँ! मैं... मैं तुमको बस खुश देखना चाहता हूँ, काजल! कुछ भी नहीं और...”

“थैंक यू, अमर!”

मैंने बड़ी मुश्किल से काजल को देखा।

क्या कुछ नहीं किया... सहा... देखा... हम दोनों ने! बारह साल का साथ! इतने समय में न केवल हमारे परिवारों के दिल भी मिल गए, बल्कि खून भी! हम एक परिवार थे। और काजल इस परिवार का दिल। उसके जाने का सोच कर मुझे ऐसा लगा कि जैसे किसी ट्रक ने मुझे टक्कर मार दी हो! ऐसे अज़ीज़ दोस्त को - मनमीत को - अलविदा कहना बड़ा मुश्किल है! काजल मेरे जीवन की सच्चाई है - वो इतनी करीब, इतनी आत्मीय है! दिल के विचार चेहरे पर आ ही गए - माँ से ये गुण मिला है मुझको। जो मन में चल रहा होता है, वही चेहरे पर भी।

“अमर... ओह अमर! प्लीज ऐसे मत रहो! ऐसे उदास न होवो।”

“मैं उदास नहीं हूँ काजल!” मैंने झूठ कहा, “लेकिन तुम्हारे बिना ये घर बिलकुल खाली हो जायेगा!” ये मैंने सच कहा।

“अरे...” उसने कहा, और मुझे उसने अपनी छाती से लगा कर, और मेरे सर को चूमते हुए कहा, “तुमको चाहने वाली कोई नई आ जाएगी! मुझे मालूम है ये बात!”

“हह!” मैंने टूटे हुए दिल से बोला, “दो बार लकी हो चुका हूँ! बार बार नहीं होता कोई!”

“होगा... मेरा दिल कहता है!”

“हम्म!”

“ऐसे मत बनो, अमर! तुमको भी मालूम है कि तुम्हारे लिए मेरे प्यार के कई सारे रूप हैं... बस तुम्हारे लिए मैं एक रूप में नहीं आ सकती - और वो है पत्नी का रूप! तुम मुझसे बेहतर डिज़र्व करते हो! ... बेहतर लड़की डिज़र्व करते हो। मैं उस पॉसिबिलिटी में रोड़ा नहीं बन सकती!”

उसने कहा और मुझे ज़ोर से अपने गले से लगा लिया।


**
एक अच्छी मोड़ पर कहानी को ले जा रहे हो शायद
अमर के जीवन में एक बाहर आने की संभावना है
 

amit jain

New Member
7
11
3
अंतराल - समृद्धि - Update #2


ख़ुशी और मेरा - जैसे बैर वाला रिश्ता बना लगता है।

जब जब मैं खुश होता हूँ, तब तब मैं बर्बाद होता हूँ! जी हाँ - अंदाज़ अपना अपना फिल्म के एक संवाद पर ही मैंने ये बात लिख तो दी है, लेकिन मेरे केस में ये बात है पूरे सोलह आने सच! नहीं नहीं - फिलहाल ऐसी बर्बादी वाली कोई बात नहीं हुई है - कम से कम कहानी के इस पड़ाव पर! लेकिन क्या है न कि पिछले कुछ सालों से मैं बेहद स्वार्थी हो गया हूँ (हो गया हूँ, या फिर शायद हमेशा से ही था)। अधिकतर अपने ही बारे में सोचता हूँ; अपनी खुशियों के बारे में! अपने सामने दूसरों का ख़याल ही नहीं आता! इसीलिए जैसे ही कोई मुश्किल सामने आती है - मैं रोने लगता हूँ! बात कुछ यूँ है -

लतिका के हाई स्कूल परीक्षाओं के तीन सप्ताह पहले की बात है। सब कुछ सामान्य था। शाम को काजल मेरे कमरे में आई। कोई अनहोनी बात नहीं है ये। लेकिन आज कुछ अलग सा था।

“अमर?”

“हाँ, काजल?”

“बहू और बच्चों को देखे हुए बहुत दिन हो गए!”

“हाँ! बात तो ठीक है! बस कुछ दिनों की बात है - पुचुकी के एक्साम्स हो जाएँ! फिर चली जाना मुंबई? और इन दोनों शैतानों को भी लेती जाना! माँ भी देख लेंगीं दोनों को?”

मेरी बात सुन कर काजल कुछ देर चुप हो गई।

सच में - एक माँ के दिल का हाल हम आदमी लोग कैसे जान सकते हैं? कितनी भी कोशिश कर लें - लेकिन ममता पर तो स्त्रियों का ही एकाधिकार है। काजल की तो जान ही अपने बच्चों में बसती थी! लेकिन उसकी मुश्किल देखिए - उसके दो बच्चे यहाँ दिल्ली में, और चार वहाँ मुंबई में! जैसे उसके दिल के कई टुकड़े कर के देश के अलग अलग हिस्सों में रख दिए हों विधाता ने! माँ से रोज़ फ़ोन पर बात करती थी वो, लेकिन उससे कहाँ पेट भरता है? तब तक वीडियो कॉल का सिस्टम भी आम नहीं था, और न तो काजल को ही, और न ही माँ को कंप्यूटर और इंटरनेट का समुचित उपयोग करना आया था।

काजल के चुप होने का अंदाज़ सामान्य से थोड़ा अलग था।

मैंने पूछा, “क्या हुआ काजल? कोई प्रॉब्लम है क्या?”

काजल ने कुछ देर कुछ नहीं कहा, और उसके बाद धीमी आवाज़ में कहा, “अमर, वो क्या है न, जब मैं पहली बार सुनील के वहाँ गई थी, तब मुंबई में मैं किसी से मिली।”

“ओके?” मैंने कहा, “किससे?”

“एक आदमी से!” काजल ने थोड़ा हिचकते हुए कहा, “... और मुझे लगता है कि मैं उसे पसंद करती हूँ!”

“क्या! सचमुच?” मैं उसकी बात पर हैरान हो गया!

‘ये क्या हो गया? काजल? किसी और से?’ अब मेरा दिमाग चकराया।

“उससे बातें भी होती हैं - लगभग रोज़ ही! सुनील भी मिला है!”

‘अरे स्साला! बात तो काफी एडवांस्ड स्टेज में है!’ दिमाग में बात कौंधी - लेकिन अभी भी मुझे बात की वास्तविक हद का अंदाज़ा नहीं था।

“क्या वो तुमको पसंद करता है?” मैंने पूछा।

“मुझे ऐसा लगता तो है...” काजल ने थोड़ा अनिश्चित तरीके से कहना शुरू तो किया, लेकिन लगभग तुरंत ही संयत हो कर बोली, “हाँ, वो भी मुझे पसंद करता है। एक्चुअली, उसी ने प्रोपोज़ किया था मुझको!”

“फिर तुमने मुझे बताया क्यों नहीं?”

“सही टाइम का वेट कर रही थी!”

“ओह!”

मैं कभी सोच भी नहीं सकता था - सपने में भी नहीं - कि कभी ऐसा भी एक दिन आएगा, जब काजल मुझसे नहीं, बल्कि किसी और से प्यार करने लगेगी!

तो इसका मतलब, क्या वो मुझे छोड़ कर चली जाएगी?

‘हे भगवान!’

“अमर... अब ऐसे तो बीहेव मत करो,” काजल ने मेरे तेजी से मुरझाते हुए मूड को देखते हुए कहा, “तुम मेरा सबसे पहला प्यार हो, और ये बात कभी नहीं बदलेगी नहीं! ... क्या कुछ नहीं दिया है तुमने मुझे? इतनी इज़्ज़त - इतना मान! ... तुम्हारे कारण मुझे समाज में इतनी इज़्ज़त मिली। तुम्हारे कारण आज मेरा एक भरा पूरा परिवार है, और उसका सुख भी! मेरे बच्चे...”

काजल अतीत के पन्नों में खोते हुए बोली, “मैं और मेरे मेरे बच्चे समाज में आज इतनी इज़्ज़त के साथ खड़े हैं, वो बस तुम्हारे ही कारण है! मेरा सब कुछ तुम्हारे कारण है!”

“तो तुमने मुझे बताने के लिए इतनी देर इंतज़ार क्यों किया...” मेरी शिकायत भी जायज़ थी।

एक झटके में काजल ने मुझको अनजान बना दिया... अपने से अलग कर दिया!

काजल इस प्रश्न पर कुछ कह न सकी। फिर मैंने इस विचार को तुरंत झटका, और उसे अपने बहुत बगल में बैठाते हुए कहा, “अच्छा! अभी शिकायत नहीं करूँगा... मुझे उसके बारे में बताओ... सब कुछ!”

वो मुस्कुराई, “ओके... उसका नाम सत्यजीत है।”

“मराठी?”

उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “... सत्यजीत मुळे! उम्र में मुझसे कम है... चालीस इकतालीस का होगा।”

“वो तो ठीक है न?” काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया; मैंने पूछा, “सिंगल?”

“हाँ! विडोड... बहुत कम उम्र में शादी हो गई थी उसकी... गाँव से है न! उसकी बीवी को मरे बहुत साल हो गए - शायद कोई चौदह पंद्रह साल हो गए! ... सुनील से दो ढाई साल छोटा एक बेटा भी है उसका... लेकिन... उसकी भी शादी हो गई है... और उसका भी एक बच्चा है... डेढ़ दो साल का!”

“हम्म… अच्छा! बढ़िया है... कम से कम पूरा परिवार तो है!” मैं कुछ और कहना चाहता था, लेकिन शायद काजल के दिल में चुभ जाता, इसलिए वो बात कहने के बजाय मैंने पूछा, “क्या करता है?”

“उसका बेकरी का बिज़नेस है।”

“हम्म… हा हा हा हा! तो मतलब, तुम केक लेने मिस्टर सत्यजीत के पास गई, और बदले में अपना दिल दे बैठी?”

काजल मेरी बात पर हँसने लगी, “नहीं! केवल केक ही नहीं... ब्रेड, बिस्किट, स्कोन, पेस्ट्री, कुकीज... भी!”

“हाँ... हाँ... समझ रहा हूँ।” मैंने काजल की टाँग खींची, “दिल्ली वाला नहीं, बल्कि मुंबई वाला बिजनेस-मैन पसंद आ गया है आपको!”

“अमर! ऐसे मत बोलो!” काजल की आँख भर आई, “तुम मेरे लिए क्या हो, वो तुम भी जानते हो! लेकिन, मुझे ये भी मालूम है कि जब तक मैं तुम्हारी ज़िन्दगी से बाहर नहीं जाऊँगी न, तब तक तुम अपनी ज़िन्दगी में आगे नहीं बढ़ोगे!”

मैंने इस बात पर कुछ नहीं कहा, लेकिन काजल की बात मेरे दिल को कचोट गई। शायद वो सही कह रही हो। मेरी आदत है किसी अन्य का सहारा पकड़ कर आगे बढ़ने की - अमरबेल की तरह... पैरासाइट! एक तरह से मैंने सालों साल काजल का शोषण किया है। और आज जब काजल को मौका मिला है कि वो अपना घर बसा सके, तो मैं उसको गिल्ट-ट्रिप पर ले जाने वाला था। कैसा मतलबी था मैं! धिक्कार है!

सच कहते हैं - किसी भी व्यक्ति का बुराई को ले कर नज़रिया ख़र्राटों समान होता है - दूसरों की कमियाँ और बुराईयाँ बखूबी सुनाई देती हैं, अपनी नहीं!

मैंने बात पलट दी, “तो, किसने किसको प्रोपोज़ किया?”

“बताया तो! सत्या ने... मुझे!” वो गर्व से मुस्कुराई।

“और तुमने मान लिया?”

“मानना चाहती हूँ,” काजल बोली, और हिचकिचाई।

“क्यों? क्या हो गया? किसने रोका?”

इस प्रश्न के उत्तर में काजल कुछ नहीं बोली। मुझे उत्तर अपने आप मालूम हो गया।

“सुनील को मालूम है?”

काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “और बहू को भी! दोनों मिले हैं... सत्या से भी, और उसके बेटे और बहू से भी!”

“दोनों ओके हैं?”

काजल ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तो इंतज़ार किस बात का है?”

“मैं उसके पहले तुमसे बात करना चाहती थी... और... तुम्हारी परमिशन लेना चाहती थी!”

“काजल… मेरी काजल… मैं तुम्हारा मालिक नहीं हूँ कि तुम मुझसे परमिशन लो! तुम इस घर की बड़ी हो... पूरे परिवार की बड़ी हो! मालकिन हो तुम! अपने डिसिशन खुद ले सकती हो! मैंने कभी रोका है तुमको? मैं तो तुमसे कितना प्यार करता हूँ!”

“आई नो! और इसीलिए तो मैं सत्या को हाँ कहने से पहले तुमको बताना चाहती थी!”

“हाँ कहना चाहती हो?”

काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

हम दोनों कुछ देर के लिए चुप हो गए।

काजल के जाने का मतलब है कि लतिका भी उसके साथ ही चली जाएगी! फिर से आभा और मैं अकेले! सबकी ज़िन्दगी संवर रही थी, सबका संसार बस रहा था - बस, मैं ही पीछे छूटा जा रहा था। लेकिन मुझे अपना स्वार्थ छोड़ कर आगे बढ़ना था। अमरबेल जैसा परजीवी बन कर मैं और जीना नहीं चाहता था। अब समय आ गया था कि मैं अपने पाँवों पर खड़ा हो जाऊँ... पैसा कमाना ही अपने पाँव पर खड़ा होना नहीं होता। एक ज़िम्मेदार पुरुष के जैसे ही अपने परिवार की सारी ज़िम्मेदारी लेने का समय आ गया था। हम बचे ही कितने अब? मैं और आभा! बस... दो जने!

इस विचार से मेरा दिल बैठ गया।

प्रत्यक्षतः मैंने कहा, “काजल, अगर तुमको लगता है कि तुम सत्यजीत के साथ खुश रहोगी, तो प्लीज, इतना सब मत सोचो! उसको हाँ कह दो! उसके साथ रहो! उसका घर बसाओ! मुझे केवल तुम खुश चाहिए। और कुछ नहीं!”

काजल मुस्कुराई, लेकिन उसकी आँखों से आँसू ढलक गए, “आई नो!”

वो बहुत इमोशनल हो गई थी, लेकिन उसने खुद को सम्हाला, “मैं चाहती हूँ, कि तुम सत्या से मिल लो! देखो तो, वो मेरे लायक है भी कि नहीं?”

जिस तरह से काजल ने मुझसे ये बात कही, मेरा दिल बाग़ बाग़ हो गया!

मुझे लग गया कि शादी हो जाने के बाद भी काजल का सम्बन्ध मेरे साथ प्रगाढ़ ही रहेगा - वैसे ही जैसे बड़ी बहन जब विदा हो जाती है, तब भी उसका सम्बन्ध अपने भाई से नहीं छूटता। बात सही थी - काजल हमेशा यहाँ नहीं रह सकती थी। अगर यह बात माँ के लिए सच थी, तो काजल के लिए भी उतनी ही सच थी। और अब जा कर मुझे काजल के खिंचाव का कारण समझ में आया। जब दूसरे के साथ प्रीति होने लगे, तो फिर मेरे साथ वो क्यों अंतरंग होगी? अच्छा भी लगा कि काजल सत्यजीत के लिए समर्पित थी; वफादार थी।

“मैं उससे मिलूंगा।”

“हाँ?”

“हाँ! मैं... मैं तुमको बस खुश देखना चाहता हूँ, काजल! कुछ भी नहीं और...”

“थैंक यू, अमर!”

मैंने बड़ी मुश्किल से काजल को देखा।

क्या कुछ नहीं किया... सहा... देखा... हम दोनों ने! बारह साल का साथ! इतने समय में न केवल हमारे परिवारों के दिल भी मिल गए, बल्कि खून भी! हम एक परिवार थे। और काजल इस परिवार का दिल। उसके जाने का सोच कर मुझे ऐसा लगा कि जैसे किसी ट्रक ने मुझे टक्कर मार दी हो! ऐसे अज़ीज़ दोस्त को - मनमीत को - अलविदा कहना बड़ा मुश्किल है! काजल मेरे जीवन की सच्चाई है - वो इतनी करीब, इतनी आत्मीय है! दिल के विचार चेहरे पर आ ही गए - माँ से ये गुण मिला है मुझको। जो मन में चल रहा होता है, वही चेहरे पर भी।

“अमर... ओह अमर! प्लीज ऐसे मत रहो! ऐसे उदास न होवो।”

“मैं उदास नहीं हूँ काजल!” मैंने झूठ कहा, “लेकिन तुम्हारे बिना ये घर बिलकुल खाली हो जायेगा!” ये मैंने सच कहा।

“अरे...” उसने कहा, और मुझे उसने अपनी छाती से लगा कर, और मेरे सर को चूमते हुए कहा, “तुमको चाहने वाली कोई नई आ जाएगी! मुझे मालूम है ये बात!”

“हह!” मैंने टूटे हुए दिल से बोला, “दो बार लकी हो चुका हूँ! बार बार नहीं होता कोई!”

“होगा... मेरा दिल कहता है!”

“हम्म!”

“ऐसे मत बनो, अमर! तुमको भी मालूम है कि तुम्हारे लिए मेरे प्यार के कई सारे रूप हैं... बस तुम्हारे लिए मैं एक रूप में नहीं आ सकती - और वो है पत्नी का रूप! तुम मुझसे बेहतर डिज़र्व करते हो! ... बेहतर लड़की डिज़र्व करते हो। मैं उस पॉसिबिलिटी में रोड़ा नहीं बन सकती!”

उसने कहा और मुझे ज़ोर से अपने गले से लगा लिया।


**
Very mature update. Please add some erotic details about Suman and Sunils honeymoon. Maybe how she offers her anal virginity.
 

avsji

..........
Supreme
3,526
15,952
159
अंतराल - समृद्धि - Update #3


सत्यजीत से मिलने के लिए और उसकी और काजल की शादी की तैयारियों की फॉर्मेलिटीज पूरी करने के लिए मैं उसी सप्ताहांत मुंबई चला गया।

मुंबई... अधिकतर लोगों के लिए मुंबई एक रुपहला शहर है... सपनों का शहर!

लेकिन मेरे लिए मुंबई या दिल्ली में कोई ख़ास अंतर नहीं है। मौसम ज़रूर अच्छा है मुंबई का क्योंकि बहुत अधिक ठंडक या गर्मी नहीं होती है यहाँ और बरसात अच्छी होती है। बस... और क्या अंतर है? दोनों ही महानगरियाँ हैं! वैसे मुंबई का एक अलग महत्त्व है मेरे लिए! मुंबई समझिए कि घर है मेरा! मैं एयरपोर्ट से सीधा माँ और सुनील के घर पहुँचा! माँ का घर! हा हा हा! सुन कर, सोच कर भी कैसा लगता है न? खैर, मेरी माँ का घर है, तो मेरा भी है न!

माँ मुझको देख कर बहुत खुश हुईं। भले ही मुंबई और दिल्ली में रहने के कारण हमारे बीच भौगोलिक दूरी हो गई थी, लेकिन हमारा मिलना रुका नहीं था। मेरा और सुनील का दोनों शहरों के बीच आना जाना लगा रहता था। हाँ - माँ को इस बात की शिकायत ज़रूर रहती थी कि वो अपनी दोनों चहेतियों - मिष्टी और पुचुकी - को रोज़ नहीं देख पातीं थीं! अभी भी जब भी वो एक दूसरे को देख लें, तो ऐसी चिपकतीं हैं कि उनको अलग करना लगभग असंभव है।

माँ मुझे देख कर खुश थीं, और मैं माँ को देख कर! सुर्ख़ लाल रंग का सिन्दूर उनकी माँग में चमक रहा था, और गले में उनका मंगलसूत्र सुशोभित हो रहा था। सोने की छोटी छोटी, लेकिन हीरा जड़ी हुई बालियाँ, और उनसे ही मिलती हुई नाक की कील पहनी हुई थी उन्होंने! बेहद हल्की सी लिपस्टिक भी लगा रखी थी उन्होंने। इतने मामूली मेकअप में भी कितनी सुन्दर लग रही थीं माँ! उनके अंदर कितने सारे सुखद परिवर्तन हो गए थे! वो अब शलवार कुर्ता पहनने लग गई थीं। बस कुछ ही समय से उन्होंने इस परिधान में होने वाली सुविधा को समझा, और अपनाया। लेकिन मैंने पहली बार उनको इस परिधान में देखा था। कितनी सुन्दर लग रही थीं माँ! और कितनी जवान! देख कर ऐसा लगता कि जैसे वो मेरी एक दो साल बड़ी बहन हों! दो नए बच्चों की माँ, और मेरी भी माँ, मेरी बड़ी बहन जैसी लग रही थीं! और ये तब था, जब माँ ने बस कुछ महीनों पहले ही एक बच्चे को जन्म दिया था, और यह तुलना तब थी जब मैं खुद अपनी सेहत का खूब ख़याल रखता था।

मैंने उनके पाँव छू कर उनका आशीर्वाद लिया; उन्होंने मुझे अनेकों आशीर्वाद दिए और मुझे कस के अपने गले से लगा लिया। हर्षातिरेक और उत्साह में आ कर माँ ने मुझको अनगिनत बार चूम लिया। एक माँ का अपनी संतान से जो सम्बन्ध होता है, उसको बयान कर पाना कठिन है! अपनी संतान को बनाने में जो भी सामग्री लगती है, वो सब माँ से ही आती है। फिर संतान का लालन, पालन और पोषण - लगभग सब कुछ माँ से ही आता है। सच में - दिखने दिखाने में चाहे कुछ भी लगे, मेरी माँ तो बस मेरी माँ ही हैं! माँ का स्नेह और दुलार तो किसी को भी अच्छा लगता है, तो मैं भी कोई अपवाद नहीं! माँ से दुलार पा कर मैं भी बहुत खुश हो गया।

माँ ने मुझसे सबका कुशल क्षेम पूछा। ख़ास कर आभा और लतिका का। क्यों न हो? दोनों उनकी आँखों के सितारे थे। अपने नन्हे मुन्नों से अधिक शायद उनको इन दोनों से लगाव था। दोपहर के तीन बज रहे थे, इसलिए सुनील फिलहाल ऑफिस में ही था। हाँलाकि आज शुक्रवार होने और मेरे आगमन के कारण वो भी जल्दी ही घर आने वाला था। उन दोनों का बड़ा बेटा, आदित्य, डगमग डगमग करते कमरे में आया। पहले तो वो मुझे पहचान नहीं पाया, लेकिन फिर जब उसने मुझे पहचाना, तो मेरी गोद में तुरंत चढ़ गया।

“बईया...” गोद में बैठ कर उसने मुझे बड़े प्यार से, अपनी तोतली जुबान से पुकारा।

रिश्ते में तो ये दोनों बच्चे मेरे छोटे भाई अवश्य थे - लेकिन उनको देख कर मुझको बड़े भाई वाली फीलिंग नहीं आती थी। कैसे आएगी? मेरी खुद की ही बच्ची उन दोनों से पाँच... साढ़े पाँच साल बड़ी थी! हाँ, उन दोनों को देख कर बाप वाली फीलिंग ज़रूर आती थी। इन दोनों बच्चों का क्या कहें, मुझे तो इन बच्चों के बाप के लिए भी बाप वाली फीलिंग ही आती थी। हा हा! समय और किस्मत की ताकत से हमारे रिश्ते बदल गए थे, तो उसका क्या ही किया जा सकता है? वो तो जो है, सो है!

“बेटा,” मैंने भी उसके पुकारने पर उत्तर दिया।

“दीदी कहाँ है?” वो आभा के बारे में पूछ रहा था।

आभा उसकी दीदी, और मैं उसका भैया! क्या मज़ाक है! लेकिन बच्चों को क्या कहें? खैर, मैंने कुछ देर आदित्य को खिलाया, दुलराया। छोटा बेटा, आदर्श फिलहाल सो रहा था। छोटे बच्चे दिन भर सोते हैं, और रात में अपने माँ बाप की नींद खराब करते हैं। तो ये बच्चे भी कोई अपवाद नहीं थे। आदित्य से जब थोड़ी फुर्सत मिली, तो माँ के साथ आराम से बात करने का अवसर मिला।

“कैसा है मेरा सबसे प्यारा बेटा?” माँ ने मुझे दुलारते हुए कम से कम पाँचवीं बार पूछा, “अपना ख़याल तो रखते हो न बेटू?”

माँ और उनका प्यार! मैं मुस्कुराया - बत्तीस के ऊपर का हो गया हूँ, और मेरी माँ अभी भी ऐसे ही सोचती हैं जैसे कि मैं कोई छोटा बच्चा हूँ। वैसे सच कहूँ? उनका यही ममतामय रूप मुझे सामान्य लगता है - बीच में जब वो डिप्रेशन का शिकार हो गई थीं, तब हमारे बीच कितनी दूरियाँ आ गई थीं!

“मुझे क्या हो गया है माँ? मैं बिलकुल बढ़िया हूँ!” मैंने बात को पलटते हुए कहा, “मैं तो बस आपका सोचता रहता हूँ... आपके बारे में सोचता रहता हूँ! आप बताइए... आप कैसी हैं?”

“बात को मत बदलो! मैं वहाँ नहीं हूँ तो क्या हुआ? तुम्हारी चिंता तो लगी रहती है... और तुम्हारी खबर भी मिलती रहती है सभी से! कितना सारा काम करते हो! कभी आराम भी करते हो या नहीं?”

“अरे माँ! आप भी क्या बात पकड़ कर बैठ गईं। आराम तो मिलता ही है। बहुत आराम है। और जहाँ तक काम की बात है... काम करने में मुझे मज़ा आता है। इसलिए मेरी चिंता मत करिए! बहुत खुश हूँ मैं। अब बताईये - आप कैसी हैं? सब कुछ ठीक है न?”

“सब कुछ ठीक है... ठीक नहीं, बहुत बढ़िया है... और मैं बहुत खुश हूँ बेटू!”

उनकी आवाज़ की चहक ही यह बताने के लिए काफ़ी थी! माँ कुछ देर चुप रहीं। वो सोच रही थीं और मैं उसमे व्यवधान नहीं डालना चाहता था।

कुछ देर बाद वो बोलीं, “भगवान ने इतनी जल्दी और इतना कुछ दे दिया है मुझे कि कभी कभी सह सब सम्हलता ही नहीं मुझसे!” उन्होंने हँसते हुए कहा।

माँ वाकई खुश लग रही थीं - आँखों और होंठों के किनारों पर वो हँसने मुस्कुराने वाली सिलवटें पड़ी हुई थीं। उससे माँ की सुंदरता में और भी निखार आ गया था। मतलब साफ़ था! माँ सुनील की सोहबत में वाकई खुश थीं। उनका स्वास्थ्य पहले से बेहतर हो गया था, और उनके सपने भी पूरे हो रहे थे। और उन दोनों के जीवन की ख़ुशी उनके घर की दीवारों पर साफ़ दिखाई दे रही थी।

उनके घर की सजावट से मुझे अपने पुराने घर (माँ और डैड के घर) की सजावट याद हो आई। कोई उनके घर के अंदर का दृश्य देखेगा तो पाएगा कि घर की दीवारों पर इस परिवार के बनने के आरम्भ से लेकर अभी तक की तस्वीरें बड़े ही सुरुचिपूर्वक लगी हुई हैं। एक दीवार पर उनकी शादी और हनीमून की तस्वीरें थीं, तो दूसरी पर इस घर के गृह-प्रवेश समारोह और ऑफिस में सुनील के पुरस्कृत किए जाने की! किसी अन्य दीवारों पर उन चारों की विभिन्न परिस्थितियों में खुशनुमा तस्वीरें लगीं थीं। थोड़ा इधर उधर नज़र डाल लें, तो मेरी भी - बचपन से ले कर अभी तक की - जिनमें मेरे ग्रेजुएशन, गैबी और डेवी के साथ शादियों, मेरे बाप बनने की, अपना बिज़नेस शुरू करने की - विभिन्न तस्वीरें सजी हुई थीं। काजल, आभा और लतिका की भी अपनी अपनी दीवारें थीं। मतलब, कुल जमा, इस घर की हर दीवार, इस पूरे परिवार की कोई न कोई कहानी कह रही थी - लेकिन हर कहानी से बस एक ही बात निकल रही थी कि यह एक हँसता खेलता परिवार है। माँ ने अपने नए संसार को बहुत सुरुचिपूर्ण तरीके से सजाया था। सुन्दर सा घर! प्यारा सा संसार!

वैसे तो यहाँ सब कुछ बढ़िया था, लेकिन वो घर - मेरा मतलब, वो मकान - उनके परिवार के हिसाब से छोटा था। ये मेरा अपना ऑब्ज़र्वेशन था। दो कमरे में चार लोग... थोड़ा कम पड़ता है। अभी बच्चे छोटे छोटे हैं, तो ठीक है। लेकिन जल्दी ही उनको अपने लिए और अधिक जगह की ज़रुरत होने वाली थी। कम से कम तीन कमरों का घर चाहिए था उनको - और ऐसा घर जिसमें बच्चों के दौड़ने भागने के लिए जगह रहे। मैंने सोचा कि सुनील के आने के बाद इस बारे में मैं दोनों से बात करूँगा। मेरे पास अब पैसे ठहरने लगे थे; मेरी कंपनी में माँ की शेयरहोल्डिंग होने के कारण उनके पास भी बहुत पैसे थे - वो अलग बात है वो उसको अपना नहीं मानती थीं। वैसे अगर वो ये मकान बेचने का सोचें, तो अगले दिन ही नया तीन या चार कमरे का एक बड़ा सा मकान हम अफोर्ड कर सकते थे! मैंने सोचा कि इसके बारे में दोनों से बात करूँगा।

आई ऍम सो हैप्पी टू हीयर दैट, माँ!” मैंने माँ की बात सुन कर कहा, “आप ठीक हैं? रिकवर हो गई हैं?”

“बिलकुल हो गई रिकवर! हंड्रेड परसेंट! डॉक्टर ने भी क्लीन चिट दे दी है अब! प्रेग्नेंसी फैट भी लगभग ख़तम हो गया है!” उन्होंने आनंदपूर्वक बताया, “और ये दोनों बच्चे इतना बिजी रखते हैं मुझे कि चर्बी चढ़ नहीं पाती!”

सुखी और प्रसन्न परिवार का सुख कैसे लोगों को संतुष्ट कर देता है। जहाँ सुनील अपने काम में तरक्की कर रहा है, वहीं माँ अपनी गृहस्थी में! क्या बढ़िया बात है! सुनील के लिए मेरे मन में आदर और भी बढ़ गया। सच में - उम्र में वो अगर मुझसे थोड़ा बड़ा होता, तो उसको ‘सुनील जी’ कहने में मुझे संकोच न होता! वैसे भी अब सुनील और मैं एक दूसरे को ‘आप’ कह कर सम्बोधित करते थे - देखा होगा आपने कि कैसे ससुर लोग अपने दामाद को ‘आप’ कह कर बुलाते हैं। इसमें उम्र नहीं, पद की प्रतिष्ठा होती है! और पद में तो सुनील मेरा...

खैर छोड़िए यह बात!

“और सुनील?” मैंने पूछा।

सुनील का नाम सुन कर माँ के चेहरे पर एक अलग ही लालिमा दौड़ गई! लज्जा, आनंद, गर्व - और न जाने कैसे कैसे भाव!

वो पहले तो थोड़ा हिचकीं, फिर आनंद से बोलीं, “वो भी बढ़िया हैं! मुझको कुछ करने ही नहीं देते। लेकिन उनका काम भी तो बहुत है न! तो मुझे अधिक काम न करना पड़े, इसलिए कामवाली आती है - साफ़ सफ़ाई करने और खाना पकाने में मेरी मदद करने!”

मैं मुस्कुराया, और थोड़ा हिचकिचाते हुए बोला, “और आप दोनों?”

“हा हा हा!” माँ फिर से आनंदपूर्वक हँसने लगीं, “क्या जानना चाहते हो?”

“आपको मालूम है...”

“हम दोनों भी बहुत अच्छे हैं बेटू!” माँ ने समझते हुए कहा, “... बहुत प्यार करते हैं ये मुझे... बहुत! नहीं तो ये दोनों... हमारे नन्हे मुन्ने कैसे होते?” उन्होंने विनोदपूर्वक कहा। उनकी बात पर मैं हँसने लगा।

उनका मज़ाक उड़ाने की गरज़ से नहीं, बल्कि उनके आनंद में शामिल होने की गरज़ से। माँ भी पहले तो मेरी हँसी में शामिल हो गईं, और फिर थोड़ा ठहर कर आगे बोलीं, “सच में बेटे! पहली बार अपनी लाइफ में मैंने बिना किसी पूर्वाग्रह के कोई डिसिशन लिया - न बहुत सोचा, न बहुत दिमाग लगाया! एक तरह से अपनी किस्मत के सामने खुद को सरेंडर कर दिया! और सच कहूँ? मेरी लाइफ का सबसे बेस्ट डिसिशन साबित हुआ वो! जितनी ख़ुशी मुझे मिली है, पता नहीं मैं उसकी हक़दार भी हूँ, या नहीं, लेकिन सच में, इनके साथ रहते हुए जीने का मज़ा आ गया है!”

मैं यह सुन कर इतना खुश हुआ कि बता नहीं सकता।

“सच में - कितना डर लग रहा था! पहले तो इनसे अपना रिश्ता जोड़ना... फिर... मन से मैंने इनको अपना पति मान लिया था, फिर भी दिल में एक डर सा समाया हुआ था। सोचती थी कि हमारे बीच उम्र का कितना अधिक फासला है! आज नहीं तो कल, वो अंतर तो दिखने ही लगेगा न! तब? इनके भी अपनी ज़िन्दगी से, अपनी शादी से, अपनी बीवी से क्या क्या अरमान होंगे! क्या मैं उन अरमानों को पूरा कर पाऊँगी? लेकिन इन्होने मुझे समझाया कि हमारी आज की ख़ुशी पर आने वाले कल का साया न पड़ने दूँ! भविष्य का जो होगा वो हम दोनों साथ में देख लेंगे! ... इन्होने यह भी समझाया कि हमारा रिश्ता मज़बूत है; प्यार पर आधारित है; रेस्पेक्ट पर आधारित है! हमारे रिश्ते की नींव गहरी है। इसलिए हमारे परिवार की इमारत मज़बूत है!”

न जाने कितने विचार माँ के चेहरे पर बनते बिगड़ते नज़र आ रहे थे। वो कुछ देर चुप रहीं, फिर बोलीं,

“ये हैं भी तो ऐसे! जब मन करता है बच्चे बन जाते हैं, और जब मन करता है, बड़े! हाँ - सीरियस नहीं रह पाते कभी! शायद इसीलिए इनकी सोहबत में रहते रहते मैं भी छोटी होती जा रही हूँ!”

बात सही थी - माँ वाक़ई छोटी होती जा रही थीं। बहुत पहले उनकी बातों में जो अल्हड़पन, और शैतानी, और बिंदासगी सुनाई देती थी, अब वो फिर से सुनाई देने लगी है! सच में - माँ को ऐसे सुखी देख कर आनंद आ गया।

हम बात कर ही रहे थे कि आदित्य अपनी तरफ हम दोनों का कोई अटेंशन न पा कर बोर होने लगा, और मेरी गोदी से उतरने के लिए कुनमुनाने लगा, और अपनी माँ से कहने लगा, “मम्मा... दूदू... मम्मा... दूदू...!”

“और ये दोनों और हैं - दो और बच्चे!” माँ हँसते हुए बोलीं, “पेट ही नहीं भरता इन दोनों का! इन दोनों के कारण जो भी खाती पीती हूँ, सब इनके लिए दूध बनाने में ही निकल जाता है!”

कहने को तो माँ शिकायत कह रही थीं, लेकिन उनका मंतव्य विनोदपूर्ण ही था। उनको ख़ुशी थी कि उनके दोनों बच्चे स्तनपान करने में वैसी ही रूचि रखते थे, जैसी कि वो चाहती थीं।

“पूरी तरह से तुझ पर गए हैं दोनों! अपनी मम्मा के दूदू के दीवाने!” आखिरी वाक्य उन्होंने दुलारते हुए, तोतली आवाज़ में आदित्य से कहा, “है न बब्बू?”

अंततः अपनी माँ का दुलार और अटेंशन पा कर आदित्य खुश हो गया और अपनी माँ के स्तन को कुर्ते के ऊपर से ही पीने की कोशिश करने लगा। उसको यूँ करता देखा कर मुझे हँसी आ गई। सच में, मुझ पर ही गया है ये बच्चा! दूध पीने के लिए मेरे जैसा ही उतावलापन! कुर्ते में आसानी से स्तनपान तो नहीं कराया जा सकता, लिहाज़ा, माँ अपना कुर्ता और ब्रा उतारने का उपक्रम करने लगीं।

“केवल ये दोनों ही हैं आपके दूध के दीवाने? इनके पापा नहीं?” मैंने माँ से चुटकी ली।

माँ से ऐसी शरारतपूर्वक बात मैंने एक लम्बे अर्से के बाद करी थी।

“हा हा हा हा! इनके पापा का भी पेट नहीं भरता!” माँ ने मेरी बात का बिलकुल भी बुरा नहीं माना, और बड़े ही विनोदपूर्वक तरीके से उत्तर दिया... मुझसे तो वो बहुत ही मज़ाक करती आई थीं हमेशा से ही, “हमेशा कहते हैं ‘दुल्हनिया, दूध पी कर सोने से बड़ी अच्छी नींद आती है’!”

अब तक माँ के कमर के ऊपर का हिस्सा नग्न हो गया था। मैंने देखा - सच में - माँ का प्रेग्नेंसी फैट लगभग ख़तम हो गया था। पेट पर थोड़ी सी वसा चढ़ी हुई थी, जिसके कारण थोड़ा उभार था वहाँ... बस! वो भी ख़तम हो जाएगा जल्दी ही। कमाल हैं माँ, और उनका मेटाबोलिज्म! और उनका सौंदर्य तो... उसके लिए तो शब्द कम पड़ जाते हैं! पहले से थोड़ा अधिक गोल, लेकिन उतने ही सुडौल स्तन, और उन पर सुशोभित थोड़े गहरे रंग के चूचक! प्रकृति की कैसी अनुकम्पा थी उन पर! अनगिनत गुणों और सुंदरता की खान! सुनील क्यों न रहे उनका दीवाना?

“माँ,” मैंने उनको देख कर कहा, “अब तो आप और भी सुन्दर हो गई हैं!”

“हाँ हाँ!” माँ ने हँसते हुए कहा, “ज़रूर बहुत सुन्दर हो गई हूँ!”

“सच में माँ! न जाने आपको क्यों लगता है कि मैं झूठ बोल रहा हूँ! यू आर द बेस्ट मदर! और वैसे भी बच्चों को अपनी माँएँ सुन्दर लगती ही हैं... लेकिन सच बात तो यही है कि आप बहुत बहुत सुन्दर हैं! पहले से भी अधिक! यू लुक सो यंग!”

माँ मस्कुराईं और फिर बोलीं, “अच्छा अच्छा, बहुत मस्का मत लगाओ मुझे। इस बदमाश के साथ तुम भी लग जाओ मेरे दूध से! मेरे घर आए हो तो चाय वाय नहीं मिलेगी तुमको!” माँ ने हँसते हुए कहा, “मेरे बच्चों को केवल मेरा दूध ही मिलेगा!”

हाँ - माँ के यहाँ चाय तो नहीं मिलने वाली थी मुझको। ख़ास कर अब! माँ ने एक लम्बे अर्से तक स्तनपान करा कर ही मेरा पेट भरा था। जंकफूड से मुझको दूर रखा था। उसी के चलते सुनील, लतिका, और आभा - और अब आदित्य और आदर्श भी खाने पीने की बुरी आदतों से बहुत दूर थे, और अछूते थे!

“क्या माँ,” मैंने झेंपते हुए कहा, “इतना बड़ा हो गया हूँ! अब क्या ब्रेस्टफीड करूँगा!”

“कितने बड़े हो गए हो? अपनी माँ से भी बड़े?” माँ ने कहा, “अपनी माँ से बड़ा कौन हो सकता है रे? ... अब मुझे ही देखो... मैं तो अभी भी अम्मा (काजल) का दूध पीती हूँ! उनको जब तक दूध बनेगा, तब तक मेरा पहला हिस्सा है - ये उन्होंने मुझसे प्रॉमिस किया है! और मेरी किस्मत देखो... उनको अभी भी दूध आता है!” वो फिर से हँसने लगीं, “मिष्टी और पुचुकी को मेरे बाद प्रिओरिटी मिलती है!”

बात तो सौ प्रतिशत सही थी।

माँ ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने पास बैठा लिया, “और मेरे दूध पर तो सबसे पहला हक़ तुम्हारा है!”

“और जब काजल की शादी हो जाएगी, तब?” मैंने माँ की बात को अनसुना करते हुए पूछा।

“तब? तब क्या? शादी के बाद अम्मा को भी तो बच्चा होगा... उनको और भी दूध आएगा... फिर तो मुझे और दूध पीने को मिलेगा!”

ये तो मैंने सोचा ही नहीं था। हाँ, यह सम्भावना तो थी ही न! हम सम्भावना ही सही, लेकिन काजल फिर से माँ बन ही सकती थी! ये दोनों स्त्रियाँ कैसी अमेजिंग हैं!
“हमारा रिश्ता थोड़े ही बदल जाएगा!” माँ कह रही थीं।

“सुनील क्या सोचेंगे?”

मेरी बात पर माँ केवल मुस्कुराईं, फिर थोड़ा सा संजीदा हो कर बोलीं, “अमर, बेटू! मैं तुमसे एक बात कहूँ? बुरा तो नहीं मानोगे?”

“नहीं माँ! आपके मन में जो है, वो मुझसे छुपाइए नहीं! कह दीजिये! मैं क्यों बुरा मानूंगा?”

“बेटा - इतना कुछ बदल गया है मेरी लाइफ में कि क्या कहूँ! किस्मत की ऐसी बलवान लहर चली कि मुझे उसमें बहा ले गई। और मैंने भी कोई विरोध नहीं किया। अगर ईश्वर को यही सब मंज़ूर है, तो यही सही!” माँ थोड़ा संजीदा हो गई थीं - जैसे अतीत के पन्ने पलट पलट कर कुछ ढूंढ रही हों, “और देखो! सब कुछ अच्छा हो गया। हाँ, मुझे थोड़ा सा एडजस्ट करना पड़ा, लेकिन सब कुछ अच्छा हो गया।”

मैंने समझते हुए सर हिलाया।

“क्या मैं... क्या मैं तुमको भी थोड़ा सा एडजस्ट करने को कहूँ? ... कह सकती हूँ?”

“बोलिए न माँ!” मैंने कहा, “क्या हो गया?”

“कुछ नहीं बेटा... बस, अगर हो सके तो... तुम... इनको कभी... आई मीन, इनको कभी पापा या डैडी कह कर बुला लिया करो! इनको बहुत अच्छा लगेगा!”
 

avsji

..........
Supreme
3,526
15,952
159
अंतराल - समृद्धि - Update #4

मैं चौंक गया।

‘क्या?’ मैं सुनील को पापा कह कर बुलाऊँ?

माँ कह रही थीं, “प्लीज मुझे पूरी बात बोल लेने दो... उस दिन... उस दिन, ये मुझसे बोल रहे थे कि ‘दुल्हनिया... अब मैं अमर को हक़ से अपना बेटा कह सकता हूँ’!” वो थोड़ा ठहर गईं, फिर बोलीं, “... जानते हो बेटू... जब से हमारी शादी हुई है न, ये तब से तुमको अपना बेटा कहना चाहते हैं। लेकिन तुम्हारा और अम्मा का कुछ रिलेशन ऐसा था कि चाह कर भी... ... लेकिन, अब जब अम्मा की शादी सत्यजीत से होने वाली है, तब तो ये पॉसिबल है न?”

“लेकिन माँ...”

“आई नो बेटू! ये तुमसे उम्र में इतने छोटे हैं - यही कहना चाहते हो न?” माँ ने समझते हुए कहा, “हाँ - ये हैं तुमसे छोटे! लेकिन प्यार के रिश्ते उम्र के मोहताज नहीं होते - उसमें तो केवल फ़ीलिंग्स देखी जाती हैं! है कि नहीं?”

“माँ, वो तो ठीक है... लेकिन डैड...?”

माँ मुस्कुराईं, “एक बात कहूँ बेटू? मुझे भी इसी बात की आशंका थी बहुत पहले... कि कहीं ये ‘उनकी’ जगह तो नहीं लेना चाहते! लेकिन फिर मुझे इनके प्यार की संजीदगी का भी एहसास होने लगा। ... और इन चार सालों में इन्होने मेरे दिल में वो जगह बना ली है, जो इनकी अपनी है।”

माँ ऐसे बोल रही थीं कि जैसे वो कहीं बहुत दूर हों, “ये मेरे लवर तो हैं ही, मेरे साथी भी हैं। कभी कभी तो कंफ्यूज हो जाती हूँ, कि मैं इनकी क्या हूँ! माँ वाला आदर भी मिलता है मुझे इनसे! जानते हो? रोज़ ऑफिस जाने से पहले मेरे पैर छूते हैं, और मैं इनको आशीर्वाद भी देती हूँ! ... लेकिन हूँ तो मैं इनकी बीवी ही न! ऑफिस से आते हैं, तो छा जाते हैं ये मुझ पर! इनकी छुवन इतनी शिद्दत भरी होती है कि समझ नहीं आता कि मुझसे दो बच्चे होने के बाद भी इनको कितना आनंद मिलता है मुझसे...”

माँ अपने वैवाहिक जीवन की ऐसी अंतरंग बातें मुझको बता रही थीं, कि मुझे भी थोड़ा असहज सा महसूस होने लगा। लेकिन मुझे उन बातों में निहित भावनाएँ भी सुनाई दे रही थीं।

“करवाचौथ में मैं भी तो इनके पाँव छूती हूँ! उनके पाँव छू कर मैं छोटी नहीं हो जाती... वो मेरा प्यार है उनके लिए। उनके पाँव भी छूती हूँ और उनको आशीर्वाद भी देती हूँ। ... और अम्मा के साथ मेरा रिश्ता देखो... उनके लिए तो मैं बेटी ही हूँ! उनसे छोटी हूँ, लेकिन हूँ उनकी बेटी! और कोई रिश्ता नहीं हो सकता उनके साथ। वो तो मुझे सारे बच्चों जैसे ही ट्रीट करती हैं! ... मानती हूँ कि ये तुम्हारे पिता नहीं हैं। और सच तो ये है कि ये ‘उनकी’ जगह लेना भी नहीं चाहते! लेकिन वो तुम्हारी माँ के पति तो हैं ही! इसलिए उनका मन तो करता ही है न!”

मैं समझ रहा था कि माँ क्या चाहती हैं।

तुरंत न तो इंकार कर सकता था, और न ही इकरार। वैसे उनकी बात समझ में आ रही थी। एडजस्टमेंट तो था थोड़ा, लेकिन ऐसा नहीं कि मुझसे मेरी किडनी माँग ली गई हो।

“कोशिश करूँगा माँ!”

“सच में बेटू?”
“हाँ माँ!”

माँ संतुष्टि से मुस्कुराईं, “थैंक यू मेरी जान! आई लव यू! अब आ जाओ। तुम्हारे लिए ही सवेरे से ये वाला स्तन बचा कर रखा हुआ है इन दोनों शैतानों से!”

“अभी नहीं माँ,” मैंने कहा - मन में कई विचार आ जा रहे थे, “कुछ देर बाद?”

माँ मुस्कुराईं और ‘हाँ’ में सर हिला कर आदित्य को दूध पिलाने लगीं।



**



शाम को जब सुनील घर आए, तो मैंने महसूस किया कि मेरे पैर छूने से पहले वो थोड़ा हिचकिचाए अवश्य! लेकिन फिर भी उन्होंने मेरे पैर छुए। मैं भी हिचकिचाया - मुझे मालूम था कि सुनील मुझे किस दृष्टि से देखते हैं, और मुझसे क्या चाहते हैं। लेकिन फिर भी मैंने उनको आशीर्वाद दिया।

‘बाप रे! सुनील मेरा पिता!’ यह विचार बेहद झकझोरने वाला था।

सामान्य परिस्थिति होती, तो शायद मैं यह सब न सोचता। लेकिन मेरे और सुनील के रिश्ते में एक अजीब सा उलझाव था। वो मेरी माँ के पति हैं, और मैं उनकी माँ का प्रेमी - अब नहीं, लेकिन कभी तो था ही! एक समय उसकी माँ मेरी संतान भी पैदा कर चुकी थी, और मेरी माँ उसकी दो दो संतानों को पैदा कर चुकी है। माँ के लिए आसान रहा होगा - एक बार उन्होंने सुनील को अपना पति मान लिया, तो फिर दोनों के बीच कोई दीवार रह ही नहीं जाती। डैड का स्थान मेरे जीवन में कुछ ऐसा था कि किसी और को उनकी जगह रखना तो दूर, रखने का सोचना भी गुनाह था! उन्होंने क्या कुछ नहीं किया था मेरे लिए। लेकिन फिर माँ की बात भी याद आ गई - सुनील किसी की जगह नहीं लेना चाहते थे ... वो मेरे जीवन में बस अपनी जगह बनाना चाहते थे। थोड़ा अटपटा सा लगा, लेकिन बात आई गई हो गई।

हमने एक दूसरे का कुशल क्षेम पूछा। फिर ‘अभी आया’ बोल कर वो अपने कमरे के अंदर जाने लगे।

“मेरी जान, एक एक कप चाय हो जाए?” जाते जाते सुनील ने शर्ट का बटन खोलते हुए माँ से गुज़ारिश करी।

“आप हाथ मुँह धो लीजिये... लाती हूँ।” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा।

उन दोनों के वार्तालाप से मुझे माँ की बातें याद आने लगीं - कोई और समय होता, तो सुनील इस समय माँ के साथ प्रणय कर रहे होते!

जब तक सुनील वापस लौटे, तब तक चाय तैयार थी। माँ जब वापस लौटीं, तो उनके हाथों में केवल एक ही कप था, जो उन्होंने सुनील को थमा दिया।

“माँ, मेरी चाय?”

“तुम्हारी चाय? बताया तो! मेरे बच्चों को केवल मेरा दूध ही मिलेगा!” माँ ने हँसते हुए कहा।

उनकी बात पर सुनील भी हँसने लगे, “भई, इस बात पर तो मैं भी बहस नहीं कर सकता! घर की माँ लोगों का बनाया हुआ रूल है ये तो!” उन्होंने कहा, और अपना पल्ला झाड़ लिया।

“क्या माँ?” पहले मुझे लगा कि मज़ाक चल रहा है! सुनील के सामने माँ क्या वो सब कर पाएँगी?

“मतलब न चाय, न कॉफ़ी, न व्हिस्की?”

“मेरे दूध से अधिक स्वाद मिलता है इनमें?” माँ ने तपाक से कहा।

अब इस बात का क्या उत्तर दें? सही बात है - न तो स्वाद में, और न ही गुणवत्ता में माँ के दूध का कोई सानी है।

“अरे इसमें इतना क्या सोच रहे हैं? पी लो न?” सुनील ने कहा।

“आ जाओ,” माँ ने मेरे बगल बैठते हुए कहा, और अपना कुर्ता उतारने लगीं।

अब समझ में आया कि यह कोई मज़ाक नहीं है, बल्कि सीरियस है मामला। जब तक मैं माँ की गोद में खुद को समेटने और व्यवस्थित करने में समय लिया, तब तक माँ के दोनों स्तन स्वतंत्र हो गए।

लेकिन मुझे अभी भी झिझक सी हो रही थी। मैंने सुनील की तरफ़ देखा।

“अरे, उनको क्यों देख रहा है?” माँ ने मुझे छेड़ा, “दूध इधर है!”

और फिर सुनील को भी छेड़ते हुए माँ ने कहा, “आप चाय का मज़ा लीजिए! पापा लोगों को नो दूधू!”

सुनील ने खींसे निपोरते हुए कहा, “ठीक है... लेकिन बस सोने से पहले...”

“अरे बस... बेटे के सामने ऐसी बातें करते हैं!” माँ ने कहा, और अपना वही स्तन मेरे मुँह में दे दिया, जो उन्होंने मेरे लिए सवेरे से बचा रखा था।

चाय पीते हुए सुनील मुझसे सत्यजीत और काजल के बारे में बातें कर रहे थे, ऐसे कि जैसे इस तरह से हमारा बातचीत करना बड़ी सामान्य सी बात हो। माँ से स्तनपान करते करते सुनील से बात करना मुझे अटपटा तो लग रहा था, लेकिन उसमें कुछ परिचित सा भी था। मुझे बीते दिनों की बातें याद आ गईं, जब मैं डैड के सामने इसी तरह से माँ का स्तनपान करता था। न जाने क्यों, मुझे उस पल अपने स्वयं के टूटे हुए परिवार की पूर्णता होने का एहसास हुआ! मुझे ऐसा लगा कि जैसे सच में मेरे सर पर मेरे पिता का हाथ आ गया हो! आश्चर्य है!

जब सौतेली माँ घर आती है, तो उससे यही उम्मीद करी जाती है कि घर के बच्चों के लिए वो माँ का रूप ही धारण करेगी। कभी उससे ये होता है, तो कभी नहीं। सुनील मेरे जीवन में मेरे पिता के रूप में आना चाहता था, यह अनोखी सी बात थी। लेकिन ऐसी कोई असामान्य सी बात भी नहीं थी। सौतेली माँ के समान ही, सौतेला पिता से भी तो घर के बच्चों का पिता बनने की आशा की जाती है। सुनील भी तो यही चाहते थे!

‘सच में, सुनील को अपने जीवन में ऊँचा स्थान देना, कोई ऐसी गलत बात नहीं है!’ मैंने सोचा।

खैर, कल के बारे में हमने क्या कुछ करना था, उन सब बातों पर हमने सोच विचार कर लिया। और अगर बात आगे बढ़ती है, तो क्या करना है, उस पर भी।

मुझको स्तनपान करा कर माँ रात के खाने पीने का इंतजाम करने चली गईं।



**



कमरे में कुछ समय का एकांत हो गया...

न जाने क्यों आज हम सामान्य तरीके से बात नहीं कर पा रहे थे। हिचकिचाहट थी हम दोनों के ही बीच में। बारह साल का एक लम्बा समय हो गया हमको एक दूसरे को जाने और समझे हुए। लेकिन फिर भी कितना कुछ बाकी था! और अगर आज मैंने माँ की बात स्वीकार कर ली, तो और भी कितना कुछ बदल जाएगा हमारे बीच!

“भैया,” उन्होंने कहा, “आप यहाँ मुंबई में अपना ऑफ़िस क्यों नहीं खोल लेते?”

“यहाँ? क्यों? आपको ऐसा क्यों लगा?”

“अब अम्मा भी यहीं आ जाएँगी। एक बड़ा सा घर ले कर हम सभी साथ में रहेंगे न? मतलब अम्मा अपने घर, और हम सभी यहाँ - एक परिवार!”

“मैं भी यही सोच रहा था!”

“सच में?”

“ओह नहीं, मेरा मतलब, एक बड़ा घर लेने की। ... आप सभी के लिए ये घर छोटा पड़ेगा... इसलिए एक नया घर ले लेते हैं न?”

“अरे नहीं! बड़ा घर तब ठीक है, जब बड़ा परिवार हो!” सुनील ने अर्थपूर्वक कहा, “हम तो फिलहाल हम दो, हमारे दो ही हैं! ... हाँ, आप और मिष्टी भी यहाँ आ जाते हैं, तो ज़रूर एक बड़ा सा घर लेंगे! सुख से साथ में रहेंगे... हमारा पूरा परिवार!”

“हा हा... मैं क्या कह रहा हूँ, और आप क्या कह रहे हैं!”

“हम दोनों एक ही बात कर रहे हैं!” सुनील ने कहा, लेकिन थोड़ा गंभीरता से।

इतना सुन कर मैं चुप हो गया। सुनील के मन की बात मेरे सामने थी - बस उन्होने इशारे इशारे में अपने मन में जो कुछ था, सब कह दिया था। मन में एक कल्पना चमक गई - माँ और सुनील - उनके हम तीन बच्चे, और आभा उनकी पोती! हम छः लोग, यहाँ मुंबई में, एक साथ, एक सुन्दर से, खुशनुमा घर में! सच में, आनंद हो आया उस कल्पना को जी कर! मन में विचार आया कि काश मैं बड़ा न होता - आदित्य और आदर्श के जैसे ही छोटा सा होता, तो क्या मज़ा आता!

अब उस कल्पना को मूर्त रूप में कहने का समय आ गया था।

“सु... नील...” मैंने हिचकते हुए कहा।

“हाँ?” इस बार उसने ‘भैया’ शब्द नहीं जोड़ा। शायद उसने मेरी आवाज़ में बदली हुई भावना को सुन लिया था।

मैं हिचकिचाया, “माँ... माँ कह रही थीं कि... कि... आ... आप मुझे... मुझे अपने बेटे...”

मेरी बात पूरी भी नहीं हुई कि सुनील के होंठों पर संतोषजनक मुस्कान आ गई।

“... अपने बेटे जैसा... मानते हैं?”

“बेटे जैसा नहीं... बेटा मानता हूँ!” सुनील ने बिना हिचकिचाए, बिना अटके, बिलकुल स्पष्ट शब्दों में यह बात कह कर जैसे मेरे दिल का बोझ कम कर दिया।

“सच में...?” मुझे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था।

“सच में!”

“तो... तो... मैं... आ... आपको ‘पापा’ कहूँ?”

“हाँ मेरे बेटे, हाँ!” कह कर सुनील अपनी बाहें फैला कर मेरे सामने खड़ा हो गया, “प्लीज कहो...”

एक अद्भुत सा भावनात्मक क्षण था वो मेरे लिए। बस एक पल का असमंजस और मैं लपक कर सुनील के आलिंगन में समां गया। मैंने कुछ कहा नहीं। लेकिन कभी कभी बिना कुछ कहे भी आप बहुत कुछ कह सकते हैं।

“ओह बेटे! मेरे बेटे!” कह कर सुनील ने मेरा माथा चूम लिया, “नथिंग विल मेक मी प्राउडर एंड हैप्पीयर दैन बींग योर पापा!”

जब हमारा आलिंगन छूटा तो सुनील ने मेरी भुजाओं को सहलाते हुए बड़े गर्व से मुझे देखा। उसकी आँखों में आँसू आ गए थे। अब तक माँ भी वहीं आ कर खड़ी हो गई थीं, और हमारे इस अद्भुत मिलन को देख रही थीं।

अभी तक मैंने सुनील को ‘पापा’ कह कर सम्बोधित नहीं किया था - लेकिन मेरे मन में इस बात की स्वीकृति मात्र ही बहुत बड़ी बात थी। सुनील और मेरे बीच के सम्बन्ध का एक तरह का फाइनल फ्रंटियर - अंतिम मुकाम था यह!

“अब जा कर मेरा परिवार पूरा हो गया!” उन्होंने बड़े गर्व से कहा, “देखा सुमन! मैं न कहता था?”

उनकी बात पर माँ केवल मुस्कुराईं। उनकी भी आँखों से आँसू ढलक रहे थे। उन दोनों के बीच में क्या बात हुई थी, जिसका हवाला सुनील दे रहे थे, मुझे नहीं मालूम। लेकिन मुझे उस समय बस इतना ही लग रहा था कि अगर मैं सुनील को ‘पापा’ कह कर पुकारूँगा, तो उनको बहुत अच्छा लगेगा।

मुझे कैसा लगेगा? यह ठीक ठीक कह पाना कठिन था।

सुनील को ‘पापा’ कह कर पुकारना ही कठिन काम था।

किसी और को डैड की जगह देना मेरे लिए बहुत कठिन था। बाप तो बाप होता है, और फिर डैड जैसा बाप... शायद दुनिया में बहुत कम ही हों! लेकिन तुलना करें, तो सुनील भी उन्ही के जैसे थे! अनेक पहलुओं में! पढ़ने सुनने वालों को अजीब लगेगा, लेकिन सच में, वो ‘डैडी मैटेरियल’ तो थे!

ऐसा नहीं था कि मैंने पहले भी इस सम्भावना पर विचार नहीं किया था। अवश्य ही किया था। जिस दिन मुझे माँ और सुनील के बारे में पता चला, तभी से किया था। लेकिन अभी तक किसी ने इस बात को इस तरह सामने नहीं रखा था। आज माँ ने यह बात कही थी - माँ बहुत ही कम बार अपनी इच्छाएँ मुझसे कहती थीं। इसलिए मुझे लगता था कि उनकी बात का मान रखना चाहिए। वैसे भी, ऐसी अनहोनी बात भी नहीं कह दी उन्होंने!

लेकिन बहुत मुश्किल होता है अपने पिता के अतिरिक्त किसी और के लिए वो दो अक्षर कह पाना। लगा कि जैसे किसी शक्ति ने मेरे गले को जकड़ लिया हो।

“पा... पा...” बड़ी मुश्किल से मेरे गले से आवाज़ निकली।

“ओह... बेटा मेरा...” सुनील की प्रतिक्रिया ऐसी थी कि जैसे उनको अमृत मिल गया हो, “एक बार फिर से बोल दो बेटे...”

“पापा...” इस बार मैंने थोड़े अधिक नियंत्रण से कहा।

भावनाओं के मारे मेरा गला भी भर आया था। सुनील... ओह, मेरा मतलब, पापा का चेहरा देखने लायक था। गर्व, सुकून, ख़ुशी - ऐसे न जाने कितने भाव उनके चेहरे पर आ गए।

“मेरे बेटे... मेरे बेटे...” कह कर उन्होंने मुझे अपने आलिंगन में फिर से समेट लिया।

इतना मज़बूत आलिंगन - जैसे कि उनको मुझे खो देने का डर हो। इतने वर्षों बाद उनके मन की मुराद पूरी हो गई थी, तो अब वो अपनी नेमत को समेट लेना चाहते थे।

“आज के दिन के लिए कितना इंतज़ार किया…” वो कह रहे थे, “आज सब मुरादें पूरी हो गईं मेरी! सब मुरादें...”

सच कहूँ? अपने सर पर पिता का साया वापस आ जाना एक आइए सुखद एहसास है कि उसका वर्णन करना असंभव है। पिता और माता - दोनों समझिए आकाश और धरती समान होते हैं। उनके प्रेम की वर्षा अपने बच्चों पर सदैव होती रहती है। सुनील को अपने पिता के रूप में देखना बेहद सुखद था।

आई लव यू बेटू...” माँ ने कहा!

उनको भी बहुत ख़ुशी थी कि मैंने उनकी बात का मान रख लिया।

व्ही लव यू...” पापा ने माँ को के कहे में संशोधन किया, “एंड व्ही आर सो प्राउड ऑफ़ यू...”, गर्व और प्रसन्नता से उनका चेहरा दमक रहा था।

माँ को भी देख कर ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई बेहद भारी बोझ उनके ऊपर से हट गया हो!

और उन दोनों को देख कर मुझे पहली बार एहसास हुआ कि अचानक से मुझे भी कितना हल्का महसूस होने लगा था! शायद यही एहसास माँ को भी हुआ होगा - जब उन्होंने अपना परिवार में ‘कनिष्ठ’ वाली भूमिका स्वीकारी होगी। पापा को अपना पिता मानते ही मैं भी आदित्य और आदर्श के समकक्ष हो गया - उनका बड़ा भाई। और मेरी मिष्टी, उनकी भतीजी! पुचुकी अब मेरी बुआ हो गई, और काजल - जो कुछ समय पहले तक मेरी प्रेमिका थी, अब मेरी दादी हो गई!

“भई सुमन,” पापा ने माहौल को हल्का करने की गरज से कहा, “आज सच में मेरा परिवार पूरा हो गया! कितना भाग्य वाला हूँ… मेरे तीन बेटे हैं... एक प्यारी सी, गुड़िया जैसी पोती है... इतना प्यार करने वाली पत्नी है... नटखट सी बहन है, ... और प्यारी सी माँ और... अब तो... अब तो, एक होने वाला बाप भी है, भई!” सुनील ने हँसते हुए कहा, “बहुत बहुत खुश हूँ मैं आज!”

मैं मुस्कुराया।

माँ ने कहा, “मैं भी बहुत खुश हूँ!”

पापा ने अपनी बाँह माँ की तरफ़ फैला दी; माँ भी हमारे साथ ही उनके आलिंगन में समां गईं।

कैसा आनंद मिला मुझे उस समय, मैं बयान नहीं कर सकता। कहीं कहीं शब्द आपकी असली भावनाओं को धोखा दे देते हैं; उनके गुरुत्व को कम कर देते हैं।

एक तरफ़ मैं अपनी खुद की ही भावनाओं को समझने, और आत्मसात करने में व्यस्त था, तो दूसरी तरफ माँ मुझे रह रह कर चूम रही थीं, और पापा भी! उस क्षण में मेरा कायाकल्प हो गया - मनसा कायाकल्प! उस समय मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मैं वाकई एक छोटा सा बालक हूँ, जिसके मम्मी पापा उसको प्यार कर रहे हैं, दुलार कर रहे हैं! कैसी सुखद सी अनुभूति थी!

“मुझको हमेशा से ही एक बड़ा सा परिवार चाहिए था... और आज मुझको वो मिल गया!” पापा कह रहे थे।

“मुझे भी...” माँ ने उनकी हाँ में हाँ मिलाई।

यह एक ऐसी सच्चाई थी, जिसके बारे में मुझे अच्छी तरह से पता था। उन दोनों की शादी होने में इस चाह का भी बड़ा योगदान था। यह चाह न होती, तो बहुत संभव था कि माँ दूसरी शादी के लिए इंकार कर देतीं।

हम तीनों एक दूसरे के आलिंगन में कुछ देर तक बंधे खड़े रहे। यह आलिंगन माँ ने तोड़ा। उन्होंने मुस्कुराते हुए, बड़े गर्व से मुझको देखा। मैंने भी उनकी तरफ देखा कि वो क्या कहने वाली हैं। लेकिन माँ ने कुछ कहा नहीं, बस मुस्कुराईं और मेरे सर में अपना हाथ प्यार से फिरा कर बोलीं,

आई लव यू माय सन!”


**
 
Status
Not open for further replies.
Top