• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

Status
Not open for further replies.

avsji

..........
Supreme
3,530
15,959
159
b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c

प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
Last edited:

dumbledoreyy

New Member
47
84
33
काफी दिनों बाद xforum पर एक्टिव हुआ। आते ही सबसे पहले आपकी कहानी पढ़ ली। Avsji में आपका प्रशंसक हूं।
 

snidgha12

Active Member
1,489
2,621
144
१००वें पृष्ठ तक पहुंचने पर कथा एवं कथाकार avsji को बहुमान एवं हार्दिक शुभकामनाएं...
 

Kala Nag

Mr. X
3,878
15,195
144
शतकीय अभिनंदन
 
  • Love
  • Like
Reactions: ss268 and avsji

avsji

..........
Supreme
3,530
15,959
159
काफी दिनों बाद xforum पर एक्टिव हुआ। आते ही सबसे पहले आपकी कहानी पढ़ ली। Avsji में आपका प्रशंसक हूं।

बहुत बहुत धन्यवाद मित्र! साथ बने रहें!
 
  • Like
Reactions: ss268

avsji

..........
Supreme
3,530
15,959
159
१००वें पृष्ठ तक पहुंचने पर कथा एवं कथाकार avsji को बहुमान एवं हार्दिक शुभकामनाएं...

बहुत बहुत धन्यवाद मित्र! साथ बने रहें!
कहानी पर पृष्ठ संख्या बढ़ना इस बात का संकेत है कि कुछ पाठक, लेखक के साथ संवाद कर रहे हैं।
यह संवाद हम लेखकों को प्रेरणा देता रहता है! :)
 
Last edited:
  • Like
Reactions: ss268 and snidgha12

avsji

..........
Supreme
3,530
15,959
159
शतकीय अभिनंदन

बहुत बहुत धन्यवाद मित्र!
आप तो लारा / जयसूर्या की केटेगरी में पहुँच रहे हैं तेजी से! :) :)
 
  • Like
Reactions: ss268

avsji

..........
Supreme
3,530
15,959
159
अंतराल - स्नेहलेप - Update #5


एक दिन सुनील ने मुझसे कहा,

“भैया, मैं आज सबको कहीं बाहर घुमा लाना चाहता हूँ!”

“अरे हाँ, तो घुमा लाओ न। ऐसी बातों के लिए मुझसे परमिशन लेने की क्या ज़रुरत है।”

“नहीं नहीं। मेरा वो मतलब नहीं है। मतलब... माँ जी को भी। उनको भी साथ में ले कर…”

माँ घर से बाहर - घूमने फिरने - जाती ही नहीं थीं। एक अलग ही तरीके की हिचक उनके मन में पैदा हो गई थी - हिचक या फिर यह कह लीजिए कि विरक्ति! लेकिन अगर वो बाहर जा सकें, तो इससे अच्छी क्या बात हो सकती? भला हो सुनील का, जो वो उनके बारे में इतना सोच रहा है!

“अरे ये तो बहुत अच्छी बात है। इस बात पर इतना हेसिटेट क्यों कर रहे हो? तुम उनको मना सको तो बहुत बढ़िया! मैं तो हार गया कह कह कर, लेकिन माँ हैं कि सुनती ही नहीं। घर से बाहर निकलती ही नहीं!” मैंने खुश होते हुए कहा, “देखो, अगर तुमसे मान जाएँ!”

“कोशिश करता हूँ, भैया!”

“बहुत अच्छी बात है, बेटा!” मैंने कहा और बटुए से कुछ पैसे निकालते हुए मैंने कहा, “ये कुछ रुपए रख लो।”

“भैया, मेरे पास पैसे हैं।” सुनील ने झिझकते हुए कहा।

“अरे सुनील! मुझसे शरमाएगा तू अब? बचपन में कितनी सारी चवन्नियाँ ली हैं तुमने मुझसे! ठीक है, ठीक है - समझ रहा हूँ, कि अब तुम बड़े हो गए हो, और जल्दी ही अपने पैसे भी कमाने लगोगे! फिलहाल, इसको तुम लोन समझ कर ले लो। जब कमाना शुरू करना, तब वापस कर देना। ओके? फिलहाल ये रखो!” मैंने कहा और जबरदस्ती उसके हाथ में सौ सौ के कुछ, और पाँच पाँच सौ के कुछ नोट्स थमा दिया, और बोला, “खूब मज़े करना सभी! ठीक है?”

“और आप? आप नहीं चलेंगे साथ?”

“नहीं बेटा, फुर्सत ही नहीं है। लेकिन मैं रात में टाइम पर घर पहुँच आऊँगा। हो सके तो मेरे लिए भी कुछ खाने को लेते आना।” मैंने हँसते हुए कहा, “नहीं तो आज मैगी के भरोसे जीना पड़ेगा!”

“जी ठीक है!” वो हँसते हुए बोला।


**


उसी दोपहर :

“अम्मा! आज कहीं घूमने चलें?” दोपहर में होने वाले गपशप सेशन के समय सुनील ने कहा, “मुझे इतने दिन हो गए दिल्ली आए, और हम कहीं बाहर घूमने भी नहीं गए!”

“अरे हाँ! बात तो सही है! चलते हैं न! कहाँ चलना है?”

“कहीं भी! उम्म्म... कनाट प्लेस?”

“ठीक है! चलो। दीदी, तुम चलोगी न?”

“तुम लोग हो आओ,” माँ ने अपने ढर्रे वाले अंदाज़ में कहा, “मैं कहाँ जाऊँगी!”

“देखिए, चलेंगे तो हम सभी लोग चलेंगे, नहीं तो कोई नहीं जाएगा!” सुनील ने भी ठुनकने की एक्टिंग करी।

यह एक नई बात थी। सुनील एक निहायत ही शरीफ़ लड़का था और वो कभी भी अपने से बड़े किसी भी व्यक्ति से बहस नहीं करता था। माँ से तो कभी भी नहीं। लेकिन आज उसके बोलने के अंदाज़ में माँ के लिए सम्मान के साथ साथ एक अलग ही बात सुनाई दे रही थी - जैसे कि यारों दोस्तों में होती है।

“हा हा हा! अरे ये तो बहुत ज्यादती है। तुम दोनों का प्लान बन गया है, तो घूम आओ न। मुझे क्यों फँसा रहे हो?”

“ना!”

“अरे सुनील, मैं कहीं बाहर नहीं जाती। मेरा मन घबराने लगता है।”

“हम लोग रहेंगे न आपके साथ!”

“ज़िद मत करो बेटा!”

“अच्छी बात है। फिर तो मुझे भी नहीं जाना! वैसे भी आप लोगों के साथ बैठना मुझे अच्छा लगता है! अम्मा, प्रोग्राम कैंसिल! आज यहीं घर पर ही रहेंगे, और गप्पें लड़ाएँगे।” सुनील बैठ गया, “अम्मा, चाय पकौड़े का प्रोग्राम करते हैं, तो!”

“अरे, अब तुम ये क्या ज़िद ले कर बैठ गए! जाओ, काजल को घुमा लाओ न। वो भी मेरे चक्कर में कहीं बाहर नहीं निकल पाती। बेचारी दिन भर घर में ही रह जाती है!”

“तो फिर चलिए न! कुछ नया करेंगे, तो मज़ा आएगा!”

“हाँ दीदी, चलो न!” काजल ने भी मनुहार करी, “एक बार बाहर चले चलेंगे, तो कोई हर्ज़ा नहीं है।”

ऐसे ही कुछ देर मनाने के बाद माँ मान गईं।

“चलो फिर, जल्दी से तैयार हो जाओ दीदी!” काजल ने कहा, “मैं तुम्हारे साथ ही कपड़े चेंज कर लूँ?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“सुनील, तू बाहर हमारा इंतज़ार कर। हम दोनों तैयार हो जाती हैं। उस बीच तू पुचुकी और मिष्टी को भी तैयार कर दे?”

“ठीक है अम्मा!”

तो जब तक काजल और माँ तैयार हुए, तब तक सुनील ने दोनों लड़कियों को भी तैयार कर दिया।

सुनील को मालूम नहीं था, लेकिन कमरे के अंदर काजल के बड़ी देर तक मनुहार के बाद, आज माँ ने थोड़ी रंगीन साड़ी पहनी थी। डैड के जाने के इतने महीनों बाद आज पहली बार उन्होंने फ़ीकी साड़ी के बजाय एक रंगीन साड़ी पहनी थी। उनको बहुत झिझक हो रही थी, और इसलिये उनको बहुत मनाना पड़ा। लेकिन जब वो तैयार हुईं, तो कितनी सुन्दर सी लग रही थीं! जब लतिका और सुनील ने उनको देखा, तो दोनों बस देखते ही रह गए।

“मम्मा,” लतिका बड़े लाड़ से बोली, “आप कितनी सुन्दर लग रही हैं!”

“हाँ!” आभा माँ के पैरों से लिपटती हुई बोली, “खूब सुन्दर!”

आभा वैसे भी लतिका की ‘पूँछ’ थी - जो उसकी दीदी कह दे, वही उसके लिए सत्य होता था। उसको पुचुकी (मतलब लतिका) की बात में हाँ में हाँ मिलाना आवश्यक था।

“आS मेरे बच्चों,” माँ ने दोनों को अपने आलिंगन में समेटते हुए कहा - उनकी जान बसती थी उन दोनों में, “तुम दोनों तो मेरी आँखों के तारे हो! एक मेरा हीरा, और एक मेरा मोती!”

“कौन हीरा है, दादी,” आभा अपने बालपन की सुलभ चंचलता और तोतली सी बोली बोलते हुए कही, “और कौन मोती?”

“मैं हूँ हीरा,” लतिका ने आभा को छेड़ते हुए कहा, “और तुम मोटी!”

लतिका की बात पर आभा के होंठ और गाल फूलने लगे - इसलिए नहीं कि हीरा लतिका है, बल्कि इसलिए कि वो “मोटी” है।

उसको ऐसे करते देख कर लतिका ने उसको अपने आलिंगन में भर लिया और उसका मुँह चूमते हुए बोली, “और मेरा हीरा हो तुम! समझी?”

लतिका की इस बात पर आभा तुरंत ही चहकने लगी।

सुनील दोनों बच्चों की बातों पर मुस्कुराया। ये तो बड़ा ही धर्म संकट में डालने वाला प्रश्न था!

वो कुछ कहता या कि माँ कुछ कहतीं, कि इतने में काजल बोली, “अरे चलो चलो! जल्दी निकलते हैं! रास्ते में बताएँगे कि कौन हीरा है और कौन मोती! अभी मौज मस्ती करते हैं कुछ!”

चूँकि घर के सभी लोग घूमने जा रहे थे, इसलिए मैंने सवेरे अपनी गाड़ी घर पर ही छोड़ दी थी, और खुद ऑटो-रिक्शा ले कर ऑफिस चला गया था। सुनील ने मुझे अपना ड्राइविंग लाइसेंस दिखाया था और बताया था कि वो गाड़ी चला लेता है। बढ़िया बात थी। चूँकि दोनों बच्चे चंचल थे, इसलिए काजल पीछे उनके साथ बैठी, कि वो माँ को बहुत परेशान न कर दें। माँ आगे वाली सीट पर थीं। रास्ते में इधर उधर की बातों में दिल्ली के ट्रैफिक का दर्द महसूस नहीं हुआ।

खैर, कनाट प्लेस में एक जगह पार्किंग कर के, चारों पैदल ही घूमने लग गए - उसी बीच में थोड़ी बहुत ख़रीददारी भी हो गई। सब ख़रीददारी के पैसे सुनील ने ही दिए। साड़ियों की एक दुकान में जा कर उसने माँ से और अपनी अम्मा से अपने अपने लिए साड़ी खरीदने का आग्रह किया। लेकिन काजल और माँ में यहाँ पर भी मान मनौव्वल शुरू हो गई,

“देख बेटा, अगर दीदी नहीं लेंगी, तो मुझे भी नहीं चाहिए!”

“अरे काजल, तू क्या ऐसे ज़िद कर रही है। अब कहाँ पहनूँगी मैं ये सब!”

“क्यों क्या हो गया? थोड़ा सा रंगीन कपड़ा पहन लोगी, तो ऐसा क्या हो जाएगा दीदी?”

“अम्मा ठीक ही तो कह रही हैं। वैसे भी मैं आप सभी के लिए कुछ न कुछ लेना चाहता था। इसीलिए तो सभी को बाहर घुमाने लाया हूँ!” सुनील ने विनोदपूर्वक आग्रह किया।

माँ ने उसको विनती वाली नज़रों से देखा।

उत्तर में सुनील ने भी उनको आग्रह करते हुए कहा, “प्लीज!”

सुनील का ये कहना ही था कि माँ ने हथियार डाल दिए, “तुम लोग मेरी सुनते ही नहीं!” उन्होंने कहा तो सही, लेकिन वो केवल एक शांत विरोध था।

काजल ने खिल कर मुस्कुराते हुए कहा, “अरे वाह! सुनील, अब से तो भई तू ही ले जाया कर दीदी को बाहर! तेरे कहने से हर बात मान जाती हैं! मैं और अमर तो बस - समझो घर की मुर्गी दाल बराबर वाली हालत है हमारी!”

सुनील अपनी अम्मा की बात सुन कर मंद मंद हँसने लगा। माँ जाहिर सी बात है, काजल की इस बात पर झेंप गईं। उन्होंने काजल की बात का कमज़ोर विरोध किया, लेकिन काजल की बात में भारी सच्चाई थी। सुनील का कुछ प्रभाव तो था उन पर!

खैर, माँ ने अपने लिए रंग-बिरंगी तो नहीं, लेकिन बेहद हलके लिनन (सन का कपड़ा) की एक हलके गुलाबी रंग की साड़ी पसंद करी। उसमें गोल्ड कलर के बूटे बने थे, और उसी रंग का बॉर्डर, आँचल और ब्लाउज पीस था! सत्य बात तो यह थी कि माँ की पसंद से अधिक, वो सुनील की पसंद थी! और सच में, वो साड़ी पहन कर माँ बहुत ही सुन्दर लगतीं। काजल ने अपने लिए गहरे नीले रंग की रेशमी साड़ी पसंद की। दोनों साड़ियों के लिए खर्च सुनील ने ही किया। उसने अपनी छात्रवृत्ति, विभिन्न इंटेर्नशिप्स, और प्रोजेक्ट्स की कमाई से पैसे बचा कर रखे हुए था - ऐसे ही किसी ख़ास मौके के लिए! यह जान कर दोनों महिलाओं को बहुत ख़ुशी भी मिली और सुनील पर गर्व भी हुआ। लतिका और आभा को फिलहाल कपड़ों का कोई ख़ास शौक नहीं था - उनको तो बस मौज मस्ती ही करने का मन था। लेकिन बच्चों के लिए भी उनकी पसंद के खिलौने लिए सुनील ने।

खरीददारी कर के बाहर निकले तो सड़क के किनारे दो मेहँदी आर्टिस्ट दिख गए।

“मेहँदी लगवाओगी, अम्मा?” सुनील ने काजल से पूछा!

काजल कुछ कहती, उसके पहले ही लतिका ‘हाँ हाँ’ करने लगी और उछलने लगी! उसकी ही देखा-देखी आभा भी ‘हाँ हाँ’ करने लगी। बच्चे बड़े अद्भुत होते हैं! उनमे खुश रहने की एक सहज वृत्ति होती है। वैसे, अच्छी बात यह भी है कि सुनील में एक नैसर्गिक कला है - कोई भी बच्चा उसके संपर्क में आता तो बस उसी का हो कर रह जाता है!

“देख सुनील, आज तो मैं जो जो करूँगी, वो सब कुछ दीदी को भी करना पड़ेगा!” काजल ने बच्चों की भोली भाली बात पर हँसते हुए कहा।

माँ इतने ही समय में बार बार काजल से बहस करने की हालत में नहीं थीं - और वैसे भी हर बार उनको ही हार माननी पड़ रही थी। लिहाज़ा, उन्होंने भी हाथों पर मेहँदी लगवाने के लिए हामी भर दी। अब ऐसे में लतिका और आभा ही क्यों पीछे रह जातीं? तो चारों ने एक साथ ही मेहँदी लगवाई। वो अलग बात है कि सभी को मेहँदी लगवाने के बाद याद आया कि सबसे ज़रूरी बात तो रह ही गई - गोलगप्पे और चाट खाने की! बिना हाथ के खाना कैसे खाएँगे! वैसे भी खाना खाने में अभी देर थी। आभा और लतिका को गोलगप्पे खाने थे। माँ को अवश्य ही इन सब का शौक नहीं था, लेकिन काजल के आग्रह के सामने उनकी एक नहीं चलने वाली थी। इसलिए जैसे ही गोलगप्पों का ज़िक्र शुरू हुआ, सुनील ने एक बढ़िया सी जगह ढूंढ कर चारों को बैठाया और पाँच प्लेट गोलगप्पे आर्डर किए। अब चूँकि चारों ही लड़कियों में से कोई भी अपना हाथ गोलगप्पे या कुछ भी खाने के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकती थीं, तो सुनील ही सभी के मुँह में बारी बारी से मीठे, चटपटे, मसालेदार मटर से भरे गोलगप्पे खिलाने लगा।

सुनील के हाथों से गोलगप्पे खाते समय माँ शुरू के दो बार तो शरमाईं, लेकिन फिर सहज हो कर वो भी इस अनुभव का आनंद उठाने लगीं। जब गोलगप्पों का एक राउंड हो जाता है, तो अंत में गोलगप्पे वाला एक सूखी वाली मसाला पापड़ी देता है - एक पतली सी पापड़ी पर प्याज, टमाटर और सूखे मसाले छिड़क कर! सुनील ने चुपके से इशारा कर के सभी के लिए खट्टी-मीठी चटनी वाली सूखी पापड़ी बनवाई। सबसे पहले उसने लतिका को पापड़ी खिलाई, फिर काजल को। तीसरे नंबर पर माँ को - लेकिन इस समय वो खट्टी-मीठी चटनी न जाने कैसे ढलक कर माँ के होंठों के कोने से निकल कर बहने लगी। सुनील ने मुस्कुराते हुए अपने अंगूठे के पिछले हिस्से से माँ के होंठ के कोने से चटनी पोंछ कर खुद चाट ली!

उसकी इस हरकत पर काजल हँसने लगी, तो माँ ने उसको कोहनी मार कर चुप रहने को कहा।

फिर आभा का नंबर आया - आभा का मुँह उन सभी में सबसे छोटा था, इसलिए सारी चटनी उसके मुँह के इर्द गिर्द लिपट गई। सुनील ने बड़े दुलार से आभा को अपनी गोदी में उठा कर उसका मुँह चूम लिया और चाट भी लिया - इससे उसके मुँह पर लगी चटनी पुँछ गई। आभा भी इस हरकत पर ज़ोर ज़ोर से खिलखिला कर हँसने लगी।

“ये तो मस्त है,” काजल बोली, “दीदी का मुँह भी ऐसे ही चाट लेता!”

“धत्त!” माँ ने संकोच करते हुए काजल की इस बात पर अपनी आपत्ति जताई, “बत्तमीज़!”

सुनील आभा के गालों को चूम चूम कर बस हँसने लगा। आभा सबकी दुलारी थी - सबकी आँखों का तारा थी। सुनील तो उस पर जैसे अपनी जान छिड़कता था। उधर सबकी नज़र बचा कर लतिका ने सुनील के हिस्से की सूखी पापड़ी खुद निबटा ली, और ऐसा भोला चेहरा बनाया कि किसी को भनक भी न लगे।

“अरे यार दीदी,” काजल ने माँ को छेड़ते हुए कहा, “मज़ाक कर रही हूँ! टेक इट इजी!”

“इसीलिए कुछ नहीं कह रही हूँ!” माँ ने मंद मंद मुस्कुराते हुए कहा।

हाथों पर मेहँदी कम से कम तीन चार घण्टे तो लगा कर रखना ही पड़ता है, नहीं तो उसका रंग नहीं चढ़ता। जल्दी हाथ धो लो, तो जो पैसे दिए, जो समय गँवाया, वो सब नष्ट! इस कारण से चारों लड़कियाँ अपने हाथ से रात का खाना भी नहीं खा सकीं। इसलिए, रात के खाने पर भी सुनील की ही जिम्मेदारी बनी कि वो सभी को अपने ही हाथों से खिलाए। और उसने बड़ी हँसी ख़ुशी से चारों को खिलाया और खुद भी खाया। हाँ, लेकिन खाना फिर से इधर उधर न गिरने टपकने लगे, इसलिए माँ ने उसको छोटे छोटे कौर ही खिलाने की हिदायद पहले से ही दे दी थी। सबको खिलाने के चक्कर में बहुत समय लगा, और उनको घर आते आते देर भी हो गई। वापस आते समय वो मेरे लिए खाना पैक करवाना नहीं भूला। काजल को आइसक्रीम खाने का मन था, लेकिन सुनील ने कहा कि वो सभी को एक एक कर के आइसक्रीम नहीं खिला पाएगा। इसमें बहुत देर लगेगी, और घर पर भैया (मैं) भूखे बैठे सभी का इंतज़ार कर रहे होंगे! उसकी इस बात पर काजल मन मसोस कर रह गई। लेकिन माँ ने सुझाया कि कहीं रास्ते में ब्रिक्स वाली आइसक्रीम तो ली ही जा सकती है। सभी लोग घर पर ही आराम से, मस्ती करते हुए खा लेंगे। ये बात सभी को जँची।

वापस आते समय पहले की ही भाँति, काजल ने माँ को कार की आगे वाली सीट पर - सुनील के बगल बैठने को कहा। सुनील ने माँ की सीट पर सीट-बेल्ट खुद ही पहनाई। सुनील को अपने इतने करीब महसूस कर के माँ को संकोच हुआ, लेकिन वो क्या करतीं? लेकिन सुनील बड़ी सज्जनता से सीट बेल्ट बाँध रहा था - कुछ इस तरह कि वो माँ को अनुचित तरीके से न छुए। ये काम पूरा होने के बाद वो पीछे भी सभी को सीट-बेल्ट पहनाने वाला था, लेकिन काजल ने कहा कि वैसे भी इतने ट्रैफिक में वो लोग तेज नहीं जा सकते। इसलिए सीट-बेल्ट की कोई आवश्यकता नहीं है।

रात में जब सभी घर वापस आ गए, तब मेरे लिए डाइनिंग टेबल पर खाना सजाया गया। तब तक सभी लड़कियों ने अपने अपने हाथ धो लिए थे। सबने बड़े उत्साह से शाम के अपने अपने अनुभव मेरे साथ शेयर किए। लतिका और आभा तो चिड़ियों की तरह चहक चहक कर शाम के बारे में बता रही थीं, और अपनी मेहंदी मुझे दिखा रही थीं। सबसे अच्छा तब लगा जब माँ भी मुस्कुरा मुस्कुरा कर बता रही थीं कि उनको आज कितना अच्छा लगा!

बढ़िया!

**
 

avsji

..........
Supreme
3,530
15,959
159
अंतराल - स्नेहलेप - Update #6


अगली दोपहर :

आज शनिवार था - मेरे ऑफिस में छुट्टी का दिन। कुछ महीने पहले तक मैं शनिवार और रविवार दोनों ही दिन काम करता रहता था, लेकिन अब नहीं। तो उन तीनों की मैटिनी गपशप सभा में मैं भी शामिल हो गया।

वैसे तो जश्न-ए-गपशप मनाने सभी माँ के कमरे में जमा होते थे, लेकिन आज चूँकि अधिक लोग थे, इसलिए हम सभी कॉमन हॉल में बैठे थे। दोनों बच्चे कुछ न कुछ खेलने में व्यस्त थे, और रह रह कर चिल्ल पों मचा रहे थे। अपने परिवार को यूँ साथ में देख कर बहुत सुकून का अनुभव हो रहा था मुझको। कुछ शुरुआती बातों के बाद, हमारी चर्चा जल्द ही रिलेशनशिप और शादी के विषय पर आ कर रुक गई। काजल और माँ मेरे सामने इसकी बातें नहीं करते थे, क्योंकि मेरे लिए यह थोड़ा दुःख साधक विषय था! हाँलाकि अब मैं पहले की भांति प्रतिक्रिया नहीं देता था, लेकिन फिर भी, इस विषय को मेरे सामने अवॉयड ही किया जाता था।

लेकिन आज इस पर खुले आम चर्चा हो रही थी। और मज़े की बात यह थी कि इस चर्चा में मैं बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहा था।

“सुनील,” मैंने उसको छेड़ते हुए कहा, “यार, अब तो तुम साढ़े पाँच लाख रुपया कमाने जा रहे हो! तो भई, उसको खर्च करने वाली भी तो चाहिए न?”

[सुधी पाठक इस बात का संज्ञान लें, कि उस समय का साढ़े पाँच लाख, आज के बीस लाख के बराबर है - केवल इन्फ्लेशन एडजस्ट कर के! आज भी ढेरों आईआईटी स्नातकों को इतनी सैलरी नहीं मिलती!]

“क्या भैया?!” सुनील थोड़ा शर्मिंदा होते हुए बोला।

“अरे, सुनो तो पूरी बात! तुम्हारा खर्चा तो लाख - दो लाख में निकल जायेगा। फिर बचे हुए पैसों का क्या करोगे?”

“क्या करेगा,” माँ ने कहा, “सेव करेगा न! अपने बच्चों के लिए। अपने लिए!”

“हाँ - लेकिन बच्चों से पहले बीवी भी तो चाहिए न माँ?” मैं विनोद के मूड में था, “हवा से थोड़े न टपकेंगे बच्चे!”

मेरी बात पर काजल ठठा कर हँसने लगी। उधर सुनील और भी अधिक शर्माने लगा।

“अभी तो इतना शर्मा रहा है... और हम दोनों को दिन भर लंबे लम्बे किस्से सुनाता रहता है!” काजल ने कहा।

“अरे, ऐसा है क्या? तो कोई है नज़र में?” मैंने उसे चिढ़ाया।

सुनील मुस्कुराया। उसने न तो इकरार किया, और न ही इनकार किया! बल्कि उसने आगे जो कहा, उसने पूरी चर्चा को एक अलग ही दिशा दे दी,

“भैया, हम सब... मेरा मतलब है कि हम चारों को शादी कर लेनी चाहिए।”

उसके कहने का अंदाज़ ऐसा था कि हम सभी एक पल के लिए खामोश हो गए, “आपको भी...” [उसने मेरी ओर इशारा किया], “आपको भी...” [उसने माँ की ओर इशारा किया], “... और अम्मा तुमको भी!”

माँ चुप रही, साथ ही मैं भी। गैबी, देवयानी, और डैड की याद बिजली की रफ़्तार से दिमाग में कौंध गई।

“अरे,” काजल ने मजाकिया अंदाज में कहा, “अब मुझे इस बात में घसीट रहे हो! हम तो तेरे बारे में बात कर रहे थे न! उसका जवाब दे पहले! बात को मत पलट!”

“और हाँ,” मैंने जैसे तैसे दुःख का कड़वा घूँट पी कर, विनोदपूर्वक कहा, “यह मत भूलो, कि हम सभी शादी-शुदा ज़िन्दगी का आनंद ले चुके हैं! अब तो तुम्हारी बारी है भई!”

“ऐसा नहीं है भैया! हाँ आपकी ठीक है! लेकिन हम सभी को खुश रहने का हक़ है!”

“अरे हमारे बच्चे खुश रहें, तो हम भी हैं!” काजल बात को सम्हालते हुए बोली!

“हाँ न! अब बताओ, तुम किस तरह की लड़की से शादी करना चाहोगे?” मैं खुश था कि काजल ने सही समय पर बात सम्हाल ली थी - डर था कि माँ को फिर से डिप्रेशन न महसूस होने लगे, “बताओगे, तो वैसी ही लड़की ढूंढनी पड़ेगी न?”

“क्या भैया!”

“अरे! तुम इसको मज़ाक में मत लो। ऑफिस में बड़ी अच्छी अच्छी, और सुन्दर सुन्दर लड़कियाँ हैं। कोई सही लगी तो बात करते हैं!”

सुनील बोला, “हाँ - अच्छी लड़कियाँ तो हैं, भैया। लेकिन उनमें से कोई नहीं!”

“अच्छा जी! मतलब कुछ सोचा तो हुआ है आपने। अरे बताओ बताओ!”

“हा हा हा! हाँ भैया, कुछ थॉट्स तो हैं!”

मैंने खुश होते हुए कहा, “हाँ, तो बताओ न!”

“अच्छा... सबसे पहली बात तो यह कि मुझे कोई बचकानी टाइप की लड़की नहीं चाहिए... चंचल होना अच्छी बात है, लेकिन थोड़ी गंभीर होनी चाहिए! गंभीर मतलब - सीरियस नहीं। चुपचाप रहने वाली नहीं, हँसती खेलती हो, चंचल हो - लेकिन उसके विचारों में गंभीरता होनी चाहिए! ठहराव होना चाहिए। इस बात की समझ होनी चाहिए कि शादी ब्याह कोई खेल नहीं है, बल्कि एक सीरियस कमिटमेंट है! तो ये है सबसे पहली बात! थोड़ी ज़िम्मेदार हो... शालीन हो... सौम्य हो! घरेलू टाइप की हो! कोई ऐसी, जो मुझे मन से प्यार करे... और दृढ़ चट्टान के जैसे मेरे हर सुख दुःख में मेरे साथ खड़ी हो!”

“हम्म्म,” उसकी बातें मुझे अच्छी लगीं, “घरेलू क्यों?”

“भैया, मुझे बच्चे बहुत पसंद हैं!” उसने जब यह बात कही, तब मैं उसकी आँखों में वात्सल्य की चमक साफ़ देख सका, “और मैं चाहता हूँ कि जब हमारे बच्चे हों, तब मेरी बीवी उनका ठीक से ध्यान रख सके! उनको अपने सारे गुण सिखाए। बाहर काम करेगी, तो फिर वो पॉसिबल नहीं है न!”

“लेकिन बच्चे पालने की तुम्हारी भी तो ज़िम्मेदारी है?” काजल बोली।

“बिलकुल है अम्मा! और मैंने कब उस ज़िम्मेदारी को निभाने से मना किया?” सुनील बोला, “मैं बिलकुल उसको सपोर्ट करूँगा। घर का काम करूँगा। खाना पकाना मैं देख लूँगा!”

“हा हा हा!” मैं हँसने लगा, “यार, तुमने तो पूरा प्लान कर रखा है!”

“हा हा हा हा! भैया - आपने इतना ज़ोर दिया, इसलिए मैंने कह दिया। मुझको तो ऐसी ही लड़की चाहिए। नौकरी करना चाहे, तो किसी स्कूल कॉलेज में करे! कम से कम बच्चे तो उसी के साथ रहेंगे!”

“हम्म्म!” मैंने कहा, “यार यह सब तो मैंने कभी सोचा ही नहीं!”

और सच में मैंने यह सब सोचा नहीं। गैबी और डेवी दोनों ही करियर वीमेन थीं। उनसे होने वाली संतान हमारे प्रेम का द्योतक थीं। हम बच्चे चाहते थे, लेकिन बच्चों के लिए हमने प्रेम / शादी नहीं करी थी। इस तरह से मेरे और सुनील के बीच में अंतर था। लेकिन यह बात भी सच है कि सुनील की कोई प्रेमिका नहीं थी - या फिर थी? मुझे नहीं मालूम। पूछना पड़ेगा।

सुनील बोल रहा था, “तो मेरे लिए आइडियल लड़की वो है, तो मेरे बच्चों के लिए एक अच्छी माँ बने - जैसे आप [उसने माँ की तरफ संकेत दिया] और आप [उसने काजल की तरफ संकेत दिया] हैं।”

मैंने हँसते हुए कहा, “अच्छा... तो सुनील, तुमने तो भई अपने बच्चों के लिए भी पूरा प्लान कर रखा है... ठीक है! अच्छी बात है! लेकिन यार, इस बात से मुझे अंदेशा हो रहा है कि तुम्हारे मन में कोई तो है! लेकिन कौन, वो समझ नहीं आ रहा! गर्ल फ्रेंड है? या फिर कोई लड़की देख रखी है?”

मेरी बात पर सुनील मुस्कुराया।

काजल ने यह देखा।

“है क्या कोई मन में?” काजल मातृ-सुलभ उत्साह से बोली।

सुनील फिर से केवल मुस्कुराया।

“है? अरे नालायक, तो इतनी पहेलियाँ क्यों बुझा रहा है? जल्दी से उसका नाम और पता बता दे न! मैं आज ही उसके पेरेंट्स से बात कर लेंगे!” काजल ने बड़े उत्साह से कहा।

“अरे अम्मा!” सुनील झिझकते हुए बोला, “रुक तो जाओ थोड़ा!”

काजल खुश होते हुए बोली, “यह सब भी छुपा कर रखेगा, तो कैसे चलेगा? अच्छा, कम से कम मेरी होने वाली बहू का नाम तो बता दे!”

“अम्मा... थोड़ा रुक तो जाओ! कम से कम पहले मुझे तो उसको बता लेने दो!”

“है राम, तो क्या तूने अभी तक उसको बताया भी नहीं?”

“नहीं... लेकिन मैं उसे जल्दी ही बता दूँगा!”

“ये लो, हमको ख्वाब दिखा कर, खुद ही उस पर पानी फेर दिया!”

सुनील मुस्कुराया।

“अच्छा, रहती कहाँ है?”

“यहीं, दिल्ली में!”

“बढ़िया है फिर - कॉलेज में साथ थी?”

“अम्मा!” सुनील ने परेशान होते हुए कहा।

“अच्छा ठीक है बाबा! माँ हूँ न, इसलिए खुद पर काबू नहीं कर पाती!” काजल ने हाथ झाड़ते हुए कहा, “अपने बेटे बेटी का घर बसते हुए देखना तो एक माँ का सबसे बड़ा सपना होता है!”

“ये बात सही कही काजल,” बहुत देर के बाद माँ कुछ बोलीं, “उसी में हमारा सबसे बड़ा सुख है!”

“हाँ न दीदी!” काजल सुनील से मांडवली करते हुए बोली, “अच्छा दिल्ली में रहती है, वो मालूम हो गया। नाम तू बता नहीं रहा। ये तो बता दे, कैसी दिखती है?”

सुनील मुस्कुराया, “बहुत सुंदर है अम्मा... मेरा उसका कोई साथ नहीं बैठता!”

“अरे, तो क्या इसलिए उसको नहीं बोला अभी तक?”

“सुनील बेटा,” माँ बोलीं, “अभी तक तुमने जितना बताया - अगर वो लड़की उतनी ही सौम्य और गंभीर है न, तो उसको तुम्हारे गुण ज़रूर पसंद आएँगे। अपने को किसी से कम न समझना! तुम हीरा हो हमारे। हमारे परिवार का गौरव हो!”

सुनील शर्म से मुस्कुराया।

“सुना तूने?” काजल बोली, “तो यह झिझक छोड़ दे। और कह दे उसको अपने दिल की बात!”

“हाँ भई!” मैंने भी अपना मंतव्य रखा, “बिना कहे तो कुछ नहीं होना। और यह कोई मुश्किल काम भी नहीं है। अगर सच्चा प्रेम करते हो, तो डरना मत। सच्चे प्रेम में आदर होता है। अगर वो न भी मानी, तो भी तुमको कम से कम एक अच्छी दोस्त तो मिल जाएगी!”

“पता नहीं भैया!”

“क्यों?”

“भैया, कह तो दूँ... पर इस बात का डर है... कि कहीं आपकी बात सच न हुई तो क्या होगा?”

“अरे, ऐसे कैसे?”

“भैया, कहीं ऐसा न हो जाए कि जो दोस्ती अभी है, वो ही न टूट जाए!”

“हम्म! ऑल ऑर नथिंग? हाँ, पॉसिबल तो है!” मैंने कहा, “लेकिन तुम्हारे दिल का बोझ तो कम हो जाएगा न!”

“अच्छा एक काम कर ले न,” काजल बोली, “क्यों न हम तीनों जा कर, उसके माँ बाप से बात कर लें?”

“नहीं काजल,” मैंने कहा, “इसने प्यार किया है, तो कहने की हिम्मत तो होनी ही चाहिए! ऐसे चोरी छुपे उस लड़की का ‘अपहरण’ नहीं करेंगे हम!”

“चोरी छिपे कहाँ? हमेशा से माँ बाप ही तो रिश्ते की बातें करते आए हैं!”

“हाँ, लेकिन इसकी बात अलग है!”

“हम्म्म! मानती हूँ तुम्हारी बात!” काजल बोली, फिर थोड़ा रुक कर, “अच्छा बेटा... तू हमको सच सच बता... तू ‘अपनी वाली’ को कितना चाहता है?”

“बहुत चाहता हूँ अम्मा... बहुत... शायद... उसके जैसी लड़की मुझे फिर कभी न मिले... वो मिल गई, तो लाइफ कम्पलीट हो जाएगी...”

“इतनी अच्छी है?”

सुनील धीर गंभीर बना, चुप बैठा रहता है!

“तो बेटा, ऐसी लड़की को पाने के लिए थोड़ी हिम्मत तो करनी पड़ेगी! तेरे भैया सही कह रहे हैं। तू कम से कम एक बार तो उससे अपने दिल का हाल कह! फिर अगर हमारी ज़रुरत पड़ी, तब हम ज़रूर सामने आएँगे!”

“थैंक्यू अम्मा...” सुनील ने बड़े आभार से कहा।

“अच्छा, तो तू इतना बड़ा हो गया कि अपनी अम्मा को थैंक्यू बोलता है...”

**
 

Lib am

Well-Known Member
3,257
11,242
143
अंतराल - स्नेहलेप - Update #6


अगली दोपहर :

आज शनिवार था - मेरे ऑफिस में छुट्टी का दिन। कुछ महीने पहले तक मैं शनिवार और रविवार दोनों ही दिन काम करता रहता था, लेकिन अब नहीं। तो उन तीनों की मैटिनी गपशप सभा में मैं भी शामिल हो गया।

वैसे तो जश्न-ए-गपशप मनाने सभी माँ के कमरे में जमा होते थे, लेकिन आज चूँकि अधिक लोग थे, इसलिए हम सभी कॉमन हॉल में बैठे थे। दोनों बच्चे कुछ न कुछ खेलने में व्यस्त थे, और रह रह कर चिल्ल पों मचा रहे थे। अपने परिवार को यूँ साथ में देख कर बहुत सुकून का अनुभव हो रहा था मुझको। कुछ शुरुआती बातों के बाद, हमारी चर्चा जल्द ही रिलेशनशिप और शादी के विषय पर आ कर रुक गई। काजल और माँ मेरे सामने इसकी बातें नहीं करते थे, क्योंकि मेरे लिए यह थोड़ा दुःख साधक विषय था! हाँलाकि अब मैं पहले की भांति प्रतिक्रिया नहीं देता था, लेकिन फिर भी, इस विषय को मेरे सामने अवॉयड ही किया जाता था।

लेकिन आज इस पर खुले आम चर्चा हो रही थी। और मज़े की बात यह थी कि इस चर्चा में मैं बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रहा था।

“सुनील,” मैंने उसको छेड़ते हुए कहा, “यार, अब तो तुम साढ़े पाँच लाख रुपया कमाने जा रहे हो! तो भई, उसको खर्च करने वाली भी तो चाहिए न?”

[सुधी पाठक इस बात का संज्ञान लें, कि उस समय का साढ़े पाँच लाख, आज के बीस लाख के बराबर है - केवल इन्फ्लेशन एडजस्ट कर के! आज भी ढेरों आईआईटी स्नातकों को इतनी सैलरी नहीं मिलती!]

“क्या भैया?!” सुनील थोड़ा शर्मिंदा होते हुए बोला।

“अरे, सुनो तो पूरी बात! तुम्हारा खर्चा तो लाख - दो लाख में निकल जायेगा। फिर बचे हुए पैसों का क्या करोगे?”

“क्या करेगा,” माँ ने कहा, “सेव करेगा न! अपने बच्चों के लिए। अपने लिए!”

“हाँ - लेकिन बच्चों से पहले बीवी भी तो चाहिए न माँ?” मैं विनोद के मूड में था, “हवा से थोड़े न टपकेंगे बच्चे!”

मेरी बात पर काजल ठठा कर हँसने लगी। उधर सुनील और भी अधिक शर्माने लगा।

“अभी तो इतना शर्मा रहा है... और हम दोनों को दिन भर लंबे लम्बे किस्से सुनाता रहता है!” काजल ने कहा।

“अरे, ऐसा है क्या? तो कोई है नज़र में?” मैंने उसे चिढ़ाया।

सुनील मुस्कुराया। उसने न तो इकरार किया, और न ही इनकार किया! बल्कि उसने आगे जो कहा, उसने पूरी चर्चा को एक अलग ही दिशा दे दी,

“भैया, हम सब... मेरा मतलब है कि हम चारों को शादी कर लेनी चाहिए।”

उसके कहने का अंदाज़ ऐसा था कि हम सभी एक पल के लिए खामोश हो गए, “आपको भी...” [उसने मेरी ओर इशारा किया], “आपको भी...” [उसने माँ की ओर इशारा किया], “... और अम्मा तुमको भी!”

माँ चुप रही, साथ ही मैं भी। गैबी, देवयानी, और डैड की याद बिजली की रफ़्तार से दिमाग में कौंध गई।

“अरे,” काजल ने मजाकिया अंदाज में कहा, “अब मुझे इस बात में घसीट रहे हो! हम तो तेरे बारे में बात कर रहे थे न! उसका जवाब दे पहले! बात को मत पलट!”

“और हाँ,” मैंने जैसे तैसे दुःख का कड़वा घूँट पी कर, विनोदपूर्वक कहा, “यह मत भूलो, कि हम सभी शादी-शुदा ज़िन्दगी का आनंद ले चुके हैं! अब तो तुम्हारी बारी है भई!”

“ऐसा नहीं है भैया! हाँ आपकी ठीक है! लेकिन हम सभी को खुश रहने का हक़ है!”

“अरे हमारे बच्चे खुश रहें, तो हम भी हैं!” काजल बात को सम्हालते हुए बोली!

“हाँ न! अब बताओ, तुम किस तरह की लड़की से शादी करना चाहोगे?” मैं खुश था कि काजल ने सही समय पर बात सम्हाल ली थी - डर था कि माँ को फिर से डिप्रेशन न महसूस होने लगे, “बताओगे, तो वैसी ही लड़की ढूंढनी पड़ेगी न?”

“क्या भैया!”

“अरे! तुम इसको मज़ाक में मत लो। ऑफिस में बड़ी अच्छी अच्छी, और सुन्दर सुन्दर लड़कियाँ हैं। कोई सही लगी तो बात करते हैं!”

सुनील बोला, “हाँ - अच्छी लड़कियाँ तो हैं, भैया। लेकिन उनमें से कोई नहीं!”

“अच्छा जी! मतलब कुछ सोचा तो हुआ है आपने। अरे बताओ बताओ!”

“हा हा हा! हाँ भैया, कुछ थॉट्स तो हैं!”

मैंने खुश होते हुए कहा, “हाँ, तो बताओ न!”

“अच्छा... सबसे पहली बात तो यह कि मुझे कोई बचकानी टाइप की लड़की नहीं चाहिए... चंचल होना अच्छी बात है, लेकिन थोड़ी गंभीर होनी चाहिए! गंभीर मतलब - सीरियस नहीं। चुपचाप रहने वाली नहीं, हँसती खेलती हो, चंचल हो - लेकिन उसके विचारों में गंभीरता होनी चाहिए! ठहराव होना चाहिए। इस बात की समझ होनी चाहिए कि शादी ब्याह कोई खेल नहीं है, बल्कि एक सीरियस कमिटमेंट है! तो ये है सबसे पहली बात! थोड़ी ज़िम्मेदार हो... शालीन हो... सौम्य हो! घरेलू टाइप की हो! कोई ऐसी, जो मुझे मन से प्यार करे... और दृढ़ चट्टान के जैसे मेरे हर सुख दुःख में मेरे साथ खड़ी हो!”

“हम्म्म,” उसकी बातें मुझे अच्छी लगीं, “घरेलू क्यों?”

“भैया, मुझे बच्चे बहुत पसंद हैं!” उसने जब यह बात कही, तब मैं उसकी आँखों में वात्सल्य की चमक साफ़ देख सका, “और मैं चाहता हूँ कि जब हमारे बच्चे हों, तब मेरी बीवी उनका ठीक से ध्यान रख सके! उनको अपने सारे गुण सिखाए। बाहर काम करेगी, तो फिर वो पॉसिबल नहीं है न!”

“लेकिन बच्चे पालने की तुम्हारी भी तो ज़िम्मेदारी है?” काजल बोली।

“बिलकुल है अम्मा! और मैंने कब उस ज़िम्मेदारी को निभाने से मना किया?” सुनील बोला, “मैं बिलकुल उसको सपोर्ट करूँगा। घर का काम करूँगा। खाना पकाना मैं देख लूँगा!”

“हा हा हा!” मैं हँसने लगा, “यार, तुमने तो पूरा प्लान कर रखा है!”

“हा हा हा हा! भैया - आपने इतना ज़ोर दिया, इसलिए मैंने कह दिया। मुझको तो ऐसी ही लड़की चाहिए। नौकरी करना चाहे, तो किसी स्कूल कॉलेज में करे! कम से कम बच्चे तो उसी के साथ रहेंगे!”

“हम्म्म!” मैंने कहा, “यार यह सब तो मैंने कभी सोचा ही नहीं!”

और सच में मैंने यह सब सोचा नहीं। गैबी और डेवी दोनों ही करियर वीमेन थीं। उनसे होने वाली संतान हमारे प्रेम का द्योतक थीं। हम बच्चे चाहते थे, लेकिन बच्चों के लिए हमने प्रेम / शादी नहीं करी थी। इस तरह से मेरे और सुनील के बीच में अंतर था। लेकिन यह बात भी सच है कि सुनील की कोई प्रेमिका नहीं थी - या फिर थी? मुझे नहीं मालूम। पूछना पड़ेगा।

सुनील बोल रहा था, “तो मेरे लिए आइडियल लड़की वो है, तो मेरे बच्चों के लिए एक अच्छी माँ बने - जैसे आप [उसने माँ की तरफ संकेत दिया] और आप [उसने काजल की तरफ संकेत दिया] हैं।”

मैंने हँसते हुए कहा, “अच्छा... तो सुनील, तुमने तो भई अपने बच्चों के लिए भी पूरा प्लान कर रखा है... ठीक है! अच्छी बात है! लेकिन यार, इस बात से मुझे अंदेशा हो रहा है कि तुम्हारे मन में कोई तो है! लेकिन कौन, वो समझ नहीं आ रहा! गर्ल फ्रेंड है? या फिर कोई लड़की देख रखी है?”

मेरी बात पर सुनील मुस्कुराया।

काजल ने यह देखा।

“है क्या कोई मन में?” काजल मातृ-सुलभ उत्साह से बोली।

सुनील फिर से केवल मुस्कुराया।

“है? अरे नालायक, तो इतनी पहेलियाँ क्यों बुझा रहा है? जल्दी से उसका नाम और पता बता दे न! मैं आज ही उसके पेरेंट्स से बात कर लेंगे!” काजल ने बड़े उत्साह से कहा।

“अरे अम्मा!” सुनील झिझकते हुए बोला, “रुक तो जाओ थोड़ा!”

काजल खुश होते हुए बोली, “यह सब भी छुपा कर रखेगा, तो कैसे चलेगा? अच्छा, कम से कम मेरी होने वाली बहू का नाम तो बता दे!”

“अम्मा... थोड़ा रुक तो जाओ! कम से कम पहले मुझे तो उसको बता लेने दो!”

“है राम, तो क्या तूने अभी तक उसको बताया भी नहीं?”

“नहीं... लेकिन मैं उसे जल्दी ही बता दूँगा!”

“ये लो, हमको ख्वाब दिखा कर, खुद ही उस पर पानी फेर दिया!”

सुनील मुस्कुराया।

“अच्छा, रहती कहाँ है?”

“यहीं, दिल्ली में!”

“बढ़िया है फिर - कॉलेज में साथ थी?”

“अम्मा!” सुनील ने परेशान होते हुए कहा।

“अच्छा ठीक है बाबा! माँ हूँ न, इसलिए खुद पर काबू नहीं कर पाती!” काजल ने हाथ झाड़ते हुए कहा, “अपने बेटे बेटी का घर बसते हुए देखना तो एक माँ का सबसे बड़ा सपना होता है!”

“ये बात सही कही काजल,” बहुत देर के बाद माँ कुछ बोलीं, “उसी में हमारा सबसे बड़ा सुख है!”

“हाँ न दीदी!” काजल सुनील से मांडवली करते हुए बोली, “अच्छा दिल्ली में रहती है, वो मालूम हो गया। नाम तू बता नहीं रहा। ये तो बता दे, कैसी दिखती है?”

सुनील मुस्कुराया, “बहुत सुंदर है अम्मा... मेरा उसका कोई साथ नहीं बैठता!”

“अरे, तो क्या इसलिए उसको नहीं बोला अभी तक?”

“सुनील बेटा,” माँ बोलीं, “अभी तक तुमने जितना बताया - अगर वो लड़की उतनी ही सौम्य और गंभीर है न, तो उसको तुम्हारे गुण ज़रूर पसंद आएँगे। अपने को किसी से कम न समझना! तुम हीरा हो हमारे। हमारे परिवार का गौरव हो!”

सुनील शर्म से मुस्कुराया।

“सुना तूने?” काजल बोली, “तो यह झिझक छोड़ दे। और कह दे उसको अपने दिल की बात!”

“हाँ भई!” मैंने भी अपना मंतव्य रखा, “बिना कहे तो कुछ नहीं होना। और यह कोई मुश्किल काम भी नहीं है। अगर सच्चा प्रेम करते हो, तो डरना मत। सच्चे प्रेम में आदर होता है। अगर वो न भी मानी, तो भी तुमको कम से कम एक अच्छी दोस्त तो मिल जाएगी!”

“पता नहीं भैया!”

“क्यों?”

“भैया, कह तो दूँ... पर इस बात का डर है... कि कहीं आपकी बात सच न हुई तो क्या होगा?”

“अरे, ऐसे कैसे?”

“भैया, कहीं ऐसा न हो जाए कि जो दोस्ती अभी है, वो ही न टूट जाए!”

“हम्म! ऑल ऑर नथिंग? हाँ, पॉसिबल तो है!” मैंने कहा, “लेकिन तुम्हारे दिल का बोझ तो कम हो जाएगा न!”

“अच्छा एक काम कर ले न,” काजल बोली, “क्यों न हम तीनों जा कर, उसके माँ बाप से बात कर लें?”

“नहीं काजल,” मैंने कहा, “इसने प्यार किया है, तो कहने की हिम्मत तो होनी ही चाहिए! ऐसे चोरी छुपे उस लड़की का ‘अपहरण’ नहीं करेंगे हम!”

“चोरी छिपे कहाँ? हमेशा से माँ बाप ही तो रिश्ते की बातें करते आए हैं!”

“हाँ, लेकिन इसकी बात अलग है!”

“हम्म्म! मानती हूँ तुम्हारी बात!” काजल बोली, फिर थोड़ा रुक कर, “अच्छा बेटा... तू हमको सच सच बता... तू ‘अपनी वाली’ को कितना चाहता है?”

“बहुत चाहता हूँ अम्मा... बहुत... शायद... उसके जैसी लड़की मुझे फिर कभी न मिले... वो मिल गई, तो लाइफ कम्पलीट हो जाएगी...”

“इतनी अच्छी है?”

सुनील धीर गंभीर बना, चुप बैठा रहता है!

“तो बेटा, ऐसी लड़की को पाने के लिए थोड़ी हिम्मत तो करनी पड़ेगी! तेरे भैया सही कह रहे हैं। तू कम से कम एक बार तो उससे अपने दिल का हाल कह! फिर अगर हमारी ज़रुरत पड़ी, तब हम ज़रूर सामने आएँगे!”

“थैंक्यू अम्मा...” सुनील ने बड़े आभार से कहा।

“अच्छा, तो तू इतना बड़ा हो गया कि अपनी अम्मा को थैंक्यू बोलता है...”

**
सुनील ने पूरे घर का कायाकल्प ही कर दिया और सबकी खुशियां भी लौटा लाया। बच्चे भी खुश, काजल और मां भी खुश और इस सबकी वजह से अमर भी खुश। मगर एक प्रोब्लम है अब सुनील को प्यार हो गया है मां से और शायद तब से जब से उसने मां और बाबूजी को एक साथ देखा था और उसके बाद मां उसके साथ सोई थी। अब देखना है की वो अपना इजहार कैसे करता है और मां कैसे रिएक्ट करती है। बहुत ही सुंदर अपडेट।
 

Sangya

Member
360
1,329
124
नींव - पहली लड़की - Update 4


“माँ…” रचना के जाते ही मैंने माँ को पुकारा। उनको मालूम था कि मुझे क्या चाहिए था।

“बेटा, अब तुम बड़े हो गए हो …” मेरी माँ ने अपनी ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा, “और अब तो मुझे दूध भी नहीं आता है!”

“मैं क्या करूँ माँ,” माँ की गोदी में एडजस्ट होते हुए मैंने कहा, “आपका दूध पीना मुझे इतना अच्छा लगता है कि छोड़ना तो दूर, कभी छोड़ने की सोच भी नहीं पाता!”

माँ हँसने लगीं।

लेकिन आज का स्तनपान रोज़ के जैसा नहीं होने वाला था। मेरे मन में एक चोर बैठा हुआ था। आज से पहले मेरी माँ के स्तन मेरे लिए अमृत कलश के समान थे और मुझे सिर्फ उनमे भरे अमृत से ही सरोकार था, लेकिन आज मैं उन कलशों के बारे में भी जानना चाहता था। मेरा दिल अग्रिम प्रत्याशा से धड़क रहा था। माँ सोफे पर बैठ गई और मुझे दूध पिलाने के लिए उन्होंने मुझे अपना एक स्तन दे दिया - मैंने उत्सुकता से उनका चूचक लिया और उसको कुछ देर तक चूसता रहा। मेरे मुँह में रहते हुए माँ के चूचकों का बड़ा मन-भावन कायाकल्प होता - शुरू शुरू में उनका स्तम्भन होता, और वो थोड़े कड़े हो जाते, लेकिन धीरे धीरे उनका कड़ापन ख़तम हो जाता और वो मुलायम हो जाते। जब उनमे से दूध निकलता था, तो यह सब और भी आश्चर्यजनक होता। ख़ैर, स्तनपान करते हुए मैंने आगे जो किया वह कुछ ऐसा था जो मैंने पहले कभी नहीं किया। माँ आमतौर पर एक समय में केवल एक ही स्तन (जिससे वह मुझे दूध पिलाती थी) खुला रखती थीं, और दूसरा हमेशा अपने ब्लाउज या अपने पल्लू से ढका हुआ रखती थीं। आज मैंने ब्लाउज के उस हिस्से को हटा दिया जिसने माँ के दूसरे स्तन को ढक कर रखा हुआ था। फिर, मैं उस स्तन को अपने हाथ में लेकर सहलाने, दबाने लगा।

थोड़ी देर तक यह कार्यक्रम चलता रहा, फिर माँ ने मुझे अपने करीब, गले लगाते हुए कहा, “तुम्हें मेरे दूध पसंद हैं?”

“हाँ माँ!” चाहे कुछ हो, मैं माँ और डैड से झूठ नहीं बोल पाता था।

माँ हँसने लगीं। मैंने उनके दोनों स्तनों को एक-एक करके प्यार से चूमा, और सहलाया। माँ के दोनों चूचक कड़े हो गए थे। उन्होंने मुझे कुछ समय तक ऐसा करने दिया और फिर अपनी ब्लाउज के बटन वापस लगा दिए। फिर उन्होंने पूछा,

“क्या बात है बेटा? क्या हो गया?”

आश्चर्यजनक बात है न? बच्चों के व्यवहार में थोड़ा भी परिवर्तन आता है, तो माँ को ज़रूर मालूम पड़ जाता है।

“माँ, आई लव यू।”

“आई लव यू टू, बेटा। लेकिन बात क्या है?”

ऐसा लगता है कि माँ को मेरे मन के आर पार देखने की अद्भुत और सहज क्षमता है। यही वजह है कि मैं उनसे और डैडी से कभी भी कुछ भी नहीं छुपाता। सबसे बड़ी बात यह है कि मुझे उन दोनों पर सौ फीसदी से भी ज्यादा भरोसा है। मैंने हमेशा ही माँ को सब कुछ बताया था, और उस दिन भी उनसे कुछ भी छिपाने का कोई कारण नहीं था। मैंने माँ को बताया कि आज रचना और मेरे बीच में क्या क्या हुआ था। माँ ने सब कुछ सुना और फिर थोड़ी देर तक शांत बैठ कर हर बात के पहलू पर विचार किया, और अंततः उन्होंने कहा,

“दिखाओ।”

यह माँ का आदेश था। मैं तुरंत उठ खड़ा हुआ। इस बार माँ ने मेरे कपड़े उतारे। पिछली बार कोई दो साल हो गए होंगे, जब मैं उनके सामने ऐसे आया था। जब मैं पूरी तरह बिना कपड़ों के उनके सामने खड़ा हुआ, तो उन्होंने मुझे मन भर कर देखा - उनके चेहरे पर प्रशंसा और गर्व के भाव थे। मेरा लिंग आंशिक रूप से खड़ा था। माँ ने उसे प्यार से सहलाया। इतने लम्बे अर्से के बाद फिर से मेरे शरीर को देखने के कारण, उन्होंने बड़ी फुरसत से मेरे पूरे उपकरण का निरीक्षण किया। जब मेरा लिंग यथासंभव खड़ा हो गया, तब माँ ने जैसे प्रोत्साहन देते हुए उसको चूम लिया।

“मेरा सुन्दर बेटा!” माँ ने पूरे लाड़ से मेरी बलैयाँ लीं, “मेरी मेहनत रंग लाई! मेरा जवान बेटा!”

“माँ,” मैंने शर्माते हुए कहा, “तुम भी न!”

“अरे! मैं तुम्हें शर्मिंदा नहीं कर रही हूँ, बेटा! तुम सचमुच बहुत हैंडसम हो। रचना भी तुम्हें पसंद करती है, और इसलिए उसने जो कुछ किया, उसने किया।” माँ ने कहा, थोड़ी देर रुकीं, और फिर कहा, “क्या तुम उससे शादी करना चाहोगे?”

“क्या!”

शादी? इन सब बातों के बारे में कहाँ सोचता है कोई? लेकिन अब बात निकल ही आई है तो मैंने कुछ समय के लिए इसके बारे में सोचा। रचना से शादी? यह एक काफ़ी दिलचस्प विचार था, क्योंकि मुझे यह तो पता था कि लोग उससे शादी करते हैं जिसे वे ‘पसंद’ करते हैं। मैंने कुछ देर सोचा, और फिर काफ़ी सोच कर कहा,

“मुझे नहीं पता, माँ! शादी करने से पहले बहुत सारे काम करने हैं। और अभी मैं तो बहुत छोटा हूँ। ये सब मैं नहीं सोचता!”

“कितनी अच्छी, कितनी बुद्धिमानी वाली बात कहीं है बेटा तुमने! आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू! सही कहा तुमने - शादी ब्याह में तो समय है... अच्छी पढ़ाई लिखाई कर लो, फिर उसके बाद कर लेना। लेकिन अगर तुम रचना से शादी करना चाहते हो तो मेरा आशीर्वाद है। वो मुझे अच्छी लगती है।” माँ ने बड़ी सरलता से कहा और कमरे से निकल गई।

वह मेरी ज़िन्दगी के सबसे यादगार दिनों में से एक था, और आज तक भी है। उस दिन मैंने बहुत कुछ सीखा। बहुत कुछ जाना। उस दिन के बाद से मैं और बुद्धिमान, और जिज्ञासु बन गया।

उस दिन के बाद से रचना और मेरे बीच की क़रीबियाँ और बढ़ गई। ऐसा बिलकुल भी नहीं था कि हम दोनों यौन रूप से करीब आ गए हों। ऐसा कुछ भी नहीं था। हम दोनों बस व्यक्तिगत और अंतरंग स्तर पर करीब आ गए। रचना कभी-कभी खेल खेल में मेरे लिंग से खेलती थी, लेकिन हमने जो कुछ उस दिन किया था, उसे हमने दोहराया नहीं। कुछ महीनों बाद मैंने नोटिस किया कि माँ भी उससे बहुत प्यार करने लगीं, और अक्सर मज़ाक मज़ाक रचना की मम्मी से उनकी बेटी को इस घर में भेजने के लिए कहती थीं। जानकार लोगों को पता होगा कि यह एक अप्रत्यक्ष तरीका है यह कहने का कि ‘मेरे बेटे की शादी अपनी बेटी से कर दो’। उन दोनों के बीच में नजदीकियाँ कुछ ऐसी थीं कि मेरे साथ पढ़ाई खत्म करने के बाद वो घर पर रुक जाती थी, और मेरी माँ से गप्पें मारती थीं।
बहुत मजेदार कहानियां लिखीं हैं
 
  • Love
Reactions: ss268 and avsji
Status
Not open for further replies.
Top