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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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Battu

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पहला प्यार - पल दो पल का साथ - Update #6


उसका पति थोड़ा झंझट करना चाहता था, लेकिन मैंने उसको अपने जानकार लोगों की मदद से समझाया कि तलाक देने में ही उसकी भलाई है, क्योंकि काजल उससे खुद के लिए, और अपने बच्चों के लिए किसी तरह की अलीमनी नहीं मांग रही थी। लेकिन अगर वो तलाक देने में आनाकानी करता है, तब हमको अलीमनी माँगने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। इसके तुरंत बाद दोनों पार्टियाँ तलाक के लिए रज़ामंद हो गईं। अच्छा हुआ - उस बेवड़े और लम्पट आदमी से छुटकारा मिला। वो शराबी था और काजल और बच्चों को मारता पीटता था। कोर्ट में शुरू में उसने काजल के खिलाफ बेवफाई का केस किया था, लेकिन उसके खिलाफ पत्नी प्रताड़ना और डोमेस्टिक वायलेंस के इतने काफी सबूत थे कि उसने अपना केस वापस ले लिया। कोर्ट ने उसे कभी भी काजल या उसके बच्चों के पास भी न फ़टकने की हिदायद भी दी। ऐसा करने से उसको कम से कम एक साल की जेल हो जानी थी। काजल को उससे कोई गुजारा भत्ता नहीं मिला। यह कोई परेशानी वाली बात नहीं थी - वैसे भी वो जल्दी ही माँ और डैड के साथ रहने जा रही थी।

डैड की आय अब इतनी बढ़ चुकी थी कि वो माँ समेत, काजल और उसके बच्चों की सभी जरूरतों को आराम से पूरा कर सकें! वैसे काजल भी मितव्ययी थी - माँ के जैसी ही! जोड़ जोड़ कर घर बनाने में उसको भी उतना ही विश्वास था, जितना माँ को था। खैर, माँ डैड के साथ रहने में सबसे बड़ी अच्छी बात यह थी कि काजल और बच्चे स्वतंत्र रूप से और बड़ी खुशी से अपना जीवन जी सकते थे! बिना किसी ऋण या बाध्यता के! माँ और डैड के स्नेहमय संरक्षण में!

काजल उनके साथ रहने तो लगी, लेकिन इस शर्त पर कि वो घर का सारा काम करेगी। माँ ने उसका दिल रखने के लिए हाँ कह दी, क्योंकि बिना इसके वो ज़िद पकड़े हुए थी। बिना यह सोचे कि उसको आराम की आवश्यकता थी, और बच्चा होने के बाद उसकी देखभाल में उसका समय जाएगा। वैसे भी, गर्भावस्था में अधिकांश स्त्रियाँ थोड़ी सनकी हो ही जाती हैं! काजल भी कोई अपवाद नहीं थी!

मैं जिस स्कूल में पढ़ता था, उसमें ही सुनील का दाखिला हो गया। जुलाई का महीना था और उसकी दसवीं की क्लास शुरू ही होने वाली थी। ऐसे तो किसी बच्चे को दसवीं में सत्र के बीच में ही दाखिला नहीं मिलता, लेकिन सुनील के अब तक के प्रदर्शन और उसके लिए मेरी खुद की अनुशंसा पर उसको दाखिला मिल गया। इस समय तक, हमारा घर थोड़ा और बड़ा हो गया था! डैड ने घर में एक और कमरा जोड़ दिया था। यह नया कमरा सुनील को दे दिया गया था, जिससे वो अपनी पढ़ाई लिखाई पर बेहतर तरीके से ध्यान दे सके। मेरा कमरा काजल और लतिका को दे दिया गया था, क्योंकि लतिका अभी बहुत छोटी थी! उसको अपने खुद के कमरे की आवश्यकता नहीं थी।

उधर काजल के लिए यह समय उसके जीवन में एक अद्भुत मोड़ के जैसे आया! उसने कभी नहीं सोचा था कि उसके जीवनकाल में ऐसा कुछ संभव भी था। वो अधिकांश समय सुनील और लतिका को कुछ सुविधाएं मुहैया कराने का ही सपना देखती रहती थी कि वो दोनों ढंग से शिक्षित हो सकें, और अपने जीवन में कुछ मुकाम, कुछ सफलता हासिल कर सकें। अपने पति के साथ रहते हुए यह कुछ भी संभव नहीं हो पा रहा था, लेकिन अब, उससे अलग हो कर, और माँ और डैड के आशीर्वाद से, यह सब कुछ संभव होता जा रहा था! काजल माँ और डैड के साथ रहकर और उनकी देखभाल करके बहुत खुश थी। माँ और डैड अद्भुत प्राणी थे! वो दोनों ऐसे लोग थे, जो स्नेही लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते थे। काजल बहुत स्नेही थी, और वो उनका सान्निध्य पा कर बहुत खुश हो गई थी।

जीवन बहुत अद्भुत तरीके से चलता है। हम कहाँ से आये हैं, और किधर को जाएँगे - यह सब कुछ ऊपर बैठा हुआ सृष्टि-निर्माता बहुत ही आश्चर्यजनक रूप से निर्धारित करता रहता है। हम मनुष्यों को उसकी चाल कुछ समझ में नहीं आती है! साल भर पहले मैं काजल को जानता भी नहीं था। और आज वो मेरे परिवार का अभिन्न हिस्सा बन गई थी! गैबी जिस गति में मेरे जीवन में आई, उसी गति से चली भी गई! माँ बा बनना था मुझे और गैबी को, और बन रहे थे मैं और काजल! और दुर्भाग्य ऐसा कि उस बच्चे को मेरा नाम नहीं मिलने वाला था! काजल मुझसे बंधी तो हुई थी, लेकिन स्वतंत्र भी थी! वैसे भविष्य में काजल और मेरे परिवार की बेल किस क़दर आपस में लिपट जाएगी, मैंने कभी उसकी कल्पना भी नहीं की थी! खैर, वो सब तो भविष्य के गर्भ में है! उसको अभी से जान कर क्या मिलने वाला है? फिलहाल तो हम वर्तमान में रहते हैं!

सुनील की हाई स्कूल की शिक्षा माँ और डैड के साथ रहते हुए ही शुरू हुई। वो तेजी से बड़ा हो रहा था... और वह बड़ा होते हुए, एक बहुत ही संवेदनशील, ईमानदार, और ज़िम्मेदार युवक बन रहा था। वो उन समस्त चुनौतियों को अच्छी तरह से समझता था जिनका सामना उसकी अम्मा ने अब तक अकेले ही किया था! मन ही मन वो डैड और माँ के उन सभी समर्थन के लिए आभार रखता था! आज के समय में कोई किसी के लिए यह सब नहीं करता! कोई अपना घर किसी अनजान के लिए यूँ नहीं खोल देता! वो अब एक सम्मानजनक जीवन जी रहा था, और अच्छी शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम था - यह सब माँ और डैड के पुण्य प्रताप से ही संभव हो रहा था! और वो इस अवसर का पूरा सदुपयोग करना चाहता था। इसलिए वो पूरी लगन और कड़ी मेहनत के साथ पढ़ाई कर रहा था। वो चाहता था कि मेरे ही समान, वो उच्च शिक्षा के एक विशिष्ट संस्थान में प्रवेश कर सके! और आने वाले जीवन के लिए खुद को अच्छी तरह से तैयार कर सके... ताकि वो अपनी अम्मा और छोटी बहन की ढंग से देखभाल कर सके।

सुनील को अपनी अम्मा की बढ़ती गर्भावस्था के बारे में पता था। काजल ने उसको बताया था कि यह बच्चा उसके और मेरे प्यार का फल था, जो उसके अंदर पल रहा था। सुनील को सेक्स की प्रक्रिया के बारे ज्ञान था। वो इस मामले में मेरे जैसा बुद्धू नहीं था। मेरे शरीर ने जवानी की अंगड़ाई देर से ली थी, लेकिन सुनील में नहीं। पिछले छः सात महीनों में वो किशोरावस्था से जवानी की दहलीज़ में कदम रख चुका था। लेकिन काजल ने उसको पाशविक सेक्स के बजाय उसके प्रेमपूर्ण, मानवीय पक्ष के बारे में जागरूक किया - वो पक्ष, जो केवल संभोग के कार्य पर केंद्रित नहीं है। सेक्स तो कोई भी कर सकता है - जानवर भी करते हैं। लेकिन मनुष्य में इसे सही कारणों से किया जाना चाहिए... प्रेम जैसे कारणों से! सेक्स और प्रेम साथ में चलना चाहिए - एक के बिना दूसरे का कोई औचित्य नहीं है। यह बात उसे समझ में आई। सुनील ने मेरे और गैबी के, और मेरे और काजल के प्रेम को देखा था, और उसको हमारे सक्रिय प्रेम जीवन के बारे में भी संज्ञान था। हमारे साथ ही उसको माँ और डैड के भी अंतरंग जीवन के बारे में मालूम हुआ! हम सभी से उसको यह मालूम हुआ कि हम अपने अपने साथियों से बेहद प्रेम करते थे। लिहाज़ा, सुनील को पक्का यकीन हो गया कि एक संतुष्टिदायक यौन संबंध होने के लिए सच्चा प्यार होना चाहिए…! उसको मालूम था कि उसके जीवन में भी यह पड़ाव आएगा - लेकिन फिलहाल नहीं! अभी उसे अपने काम पर ध्यान देना था - काम, मतलब लगन के साथ अपनी पढ़ाई पूरी करना!


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काजल की संगत और देख रेख में, माँ और डैड के जीवन में भी कई सारे सुधार हुए! उनको एक दूसरे के लिए थोड़ा और अधिक समय मिलने लगा। माँ को घर के काम से थोड़ी फुर्सत मिलने लगी। और सबसे बड़ी बात यह कि एक लम्बे अर्से के बाद, माँ को अपनी हमउम्र एक सहेली मिल गई। काजल बहुत ही जल्दी उनकी विश्वासपात्र बन गई, और माँ की बेहद करीबी दोस्त। दोनों उम्र में लगभग एक समान थीं, और हालाँकि, काजल माँ को ‘माँ जी’ कह कर संबोधित करती थी, उनका रिश्ता बहनों वाला अधिक था! दोनों के आपसी व्यवहार में चंचलता और स्नेह भरा हुआ था - सगी बहनों के जैसे! साथ में रहते हुए एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि किसी को भी एक दूसरे से कभी भी कोई शिकायत हुई हो! अपनी गर्भावस्था में भी काजल माँ और डैड की देखभाल करने की पूरी कोशिश करती। लेकिन माँ अपने तरीके से काजल, और उसके बच्चों की! कुल मिलाकर काजल का उनके साथ रहना बहुत ही अच्छी बात रही, और यह अनुभव उन पाँचों के लिए काफी मजेदार रहा। मेरे परिवार का कम से कम एक पक्ष इस समय खुशी से रह रहा था!


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गैबी की मृत्यु के कुछ दिनों के बाद मैंने गैबी के परिवार से संपर्क किया! उनका हमारी शादी को ले कर जो भी विचार था, वो गैबी के बारे में जानने के उनके अधिकार को वंचित नहीं कर सकता था। गैबी उनका परिवार थी, और उनको उसकी मृत्यु के बारे में जानना आवश्यक था। मैंने उनके फोन किया - फ़ोन गैबी की माँ ने ही उठाया। जब मैंने उनको अपना परिचय दिया, तो मैंने महसूस किया देखा कि वो पहले जैसे ‘गंध’ तरीके से बर्ताव नहीं कर रही थीं। अपितु बड़े सौहार्द से बातचीत कर रही थीं। वह अपने तौर-तरीकों में थोड़ी शांत लग रही थीं। शायद उनको यह भान हुआ हो कि अपने दामाद से इज़्ज़त और स्नेह से पेश आना चाहिए! हमने कुछ देर एक दूसरे के कुशल-क्षेम के बारे में जाने का प्रयास किया। लेकिन जब मैंने उनको गैबी के निधन के बारे में बताया, तो वो बिलकुल ही टूट गईं और बिलख बिलख कर रोने लगीं। उनको रोता हुआ देख कर गैबी के डैड और भाई मुझसे बात करने लगे। मैंने उन्हें गैबी की दुर्घटना के बारे में, उसकी मृत्यु के बारे में, उसकी गर्भावस्था के बारे में, और कैसे मैंने अपना सब कुछ खो दिया, उसके बारे में बताया। गैबी उनकी बेटी थी, इसलिए उसकी मृत्यु उनके लिए भी बहुत बड़ा सदमा बन कर आई। लेकिन उनको यह भी मालूम था कि हमारा प्रेम बहुत प्रगाढ़ था, इसलिए वो स्वयं रोने के साथ ही मुझको स्वांत्वना भी देते जा रहे थे। कुछ देर की मान मनौव्वल के बाद मैंने उन्हें बताया कि मुझे गैबी की जीवन बीमा राशि मिलने वाली है, और मैं वो धनराशि उनको भेजना चाहता हूँ। बीमा राशि करीब करीब पचास हजार ब्राज़ीलियाई रियल [उन दिनों पंद्रह लाख भारतीय रुपये] के करीब था। यह एक अच्छी धनराशि थी, और उनके काम आ सकती थी।

लेकिन मुझे घोर आश्चर्य तब हुआ जब गैबी की माँ ने बड़े सम्मानपूर्वक, पैसे लेने से मना कर दिया। उन्होंने अपने पहले के अशिष्ट व्यवहार के लिए मुझसे क्षमा भी माँगी। फिर उन्होंने मुझे गैबी की देखभाल करने और उससे शादी करने के लिए धन्यवाद भी किया। मुझे बहुत दुःख हुआ कि गैबी अपने जीवित रहते हुए हमारे इस सौहार्दपूर्ण वार्तालाप को नहीं सुन सकी! क्या वर्षा, जब कृषि सुखानी का इससे दुःखद उदाहरण नहीं मिल सकता। गैबी की माँ और उसके डैड ने मुझसे कहा कि मैं हमेशा ही उनके परिवार का एक हिस्सा रहूँगा और अगर कभी भगवान अनुमति होगी, तो वो दोनों किसी दिन मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिलना पसंद करेंगे। चलते चलते उन्होंने मुझे समझाया कि मैं गैबी के ग़म में ही डूबा न रहूँ। अगर हो सके, तो दूसरी शादी करूँ। गैबी मेरी इस हरकत पर खुश ही होगी! मैंने उनका धन्यवाद किया, और उनको भारत आने का निमंत्रण दिया। अवश्य ही गैबी के मेरा संपर्क हमेशा के लिए टूट गया था, लेकिन हमारी आत्माएँ हमेशा आस पास ही थीं। उस कारण से गैबी का परिवार एक तरीके से मेरा परिवार भी था। और उनसे सम्मानजनक रूप से बात कर के मुझे उनसे भविष्य में भी संपर्क रखने का सम्बल मिला।


**


जब भी संभव होता मैं काजल से मिलने घर अवश्य जाता! हर महीने में दो बार जाना होता ही था। जब काजल की डिलीवरी का समय नजदीक आया, तो काजल पश्चिम बंगाल में अपने गृहनगर के लिए रवाना हो गई। उसको अपने मायके की याद आ रही थी, और वो गर्भावस्था के इस महत्वपूर्ण चरण में उनके साथ रहना चाहती थी। लतिका उसके साथ चली गई, क्योंकि वो बहुत छोटी थी, लेकिन सुनील माँ और डैड के साथ ही रहा, क्योंकि काजल के साथ जाने पर उसकी पढ़ाई में बहुत हर्ज़ा होता। लगभग उसी समय, मैंने नई नौकरी देखना भी शुरू कर दिया। मुझे उम्मीद थी कि नई नौकरी किसी नए शहर में मिलेगी। कम से कम पुरानी यादों से थोड़ा छुटकारा तो मिलेगा।

चूँकि इस समय मैं बिलकुल अकेला था, इसलिए माँ मेरे साथ आकर रहना चाहती थीं। लेकिन मैंने उनको मना कर दिया। डैड का अभी भी रिटायरमेंट होने में पंद्रह साल का समय बचा हुआ था। उनको इस बीच कई प्रमोशन मिलते। साथ ही साथ माँ पर सुनील के देखभाल की भी जिम्मेदारी आ गई थी। इसलिए उनको वहाँ से हटाना उचित नहीं था। माँ और डैड मेरी बात समझ गए और मेरी कुछ महीने अकेले रहने की इच्छा पर सहमत हो गए। मैंने उनको अपनी नई नौकरी ढूंढ़ने के बारे में बताया और यह भी बताया कि नई नौकरी से मेरी ऊर्जा का सही इस्तेमाल होगा। व्यस्त रहूँगा तो मस्त भी रहूँगा।

अब चूँकि मैं अकेला ही था - मेरी देखभाल करने वाला कोई न होने के कारण, मैं अपने ऑफिस में बहुत समय बिताने लगा। मैं अपने घर का उपयोग केवल सोने के लिए करने लगा। गैबी के जाने का शॉक बहुत गहरा था। उसका सही सही आंकलन मैं अभी तक नहीं कर पाया था। इस नाज़ुक से समय में, मेरे एक बहुत करीबी दोस्त ने मुझे एक पेशेवर मदद लेने के लिए कहा। उसने मुझे समझाया कि मुझे किसी ढंग के मनोचिकित्सक से सलाह लेना चाहिए, और यदि आवश्यक हो तो दवाई का भी बंदोबस्त करना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि गैबी के जाने के भावनात्मक सदमे से मुझे कहीं अंदरूनी घाव न हो जाए! मैंने उसकी बात मान ली, और मैंने एक अच्छे मनोचिकित्सक को देखना शुरू हुआ! उसकी देखरेख में मुझे लाभ अवश्य मिला। जल्दी ही मैंने अपने तौर तरीके में सुधार लाना शुरू कर दिया।

उधर काजल के साथ हर सप्ताह कम से कम एक बार फ़ोन पर बात करना एक आवश्यक काम था। अगर उससे बात न होती, तो वो बहुत नाराज़ होती। जब उसकी डिलीवरी के दिन निकट आ रहे थे, तो मैंने उसके घर फोन किया। वहाँ किसी ने फोन उठाया नहीं। मैंने प्रतिदिन कॉल करना शुरू कर दिया, क्योंकि मुझे लग रहा था कि बच्चे की कोई खबर आने ही वाली है। कोई एक सप्ताह बाद मुझे किसी से मालूम हुआ कि मैं तीन दिन पहले एक प्यारी सी बच्ची का बाप बना था! क्या बात है! मैं इस खबर को सुन कर बेहद खुश हुआ, और थोड़ा उदास भी! उदास इसलिए क्योंकि मैं काजल के पास जाना चाहता था। लेकिन यह संभव नहीं था। काजल का पति नहीं था - अगर वो वहाँ नहीं था, तो मैं वहाँ किस हक़ से था? इस सवाल का उत्तर नहीं था मेरे पास! मेरी उपस्थिति से उसको भी कई मुश्किल प्रश्नो के उत्तर देने पड़ते! काजल ने मुझसे यह बात साफ़ साफ़ बोल दी थी, कि बिना उसकी अनुमति के मैं हमारे बच्चे के जीवन में कोई निर्णय नहीं ले सकता था। लिहाज़ा, हमने कुछ महीनों बाद मिलने का वायदा किया। मैं इस बीच इंतज़ार करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता था। बीच बीच में वो मुझसे पूछती, कि कोई लड़की मिली या नहीं। और मैं उसको बस डाँट कर चुप करा देता।

मेरी बच्ची से मेरी मुलाकात होती, उसके ही पहले मुझे एक और बुरी खबर मिली - जन्म से लगभग एक महीने बाद, डैड ने मुझे फोन कर के बताया कि मेरी बच्ची की मृत्यु इंसेफेलाइटिस से हो गई है। यह रोग उस समय काजल के गाँव में काफी प्रचिलित था। वहाँ पर पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं, लिहाज़ा, डॉक्टर उस बच्चे को बचा नहीं पाए! कैसी निराशाजनक सी बात थी यह! किसी अन्य जगह पर अगर काजल होती, तो इस तरह की दिक्कत होती ही न!

मैं परेशान हो गया था।

मैं निराश हो गया था।

मैं मायूस हो गया था।

किसको दोष दूँ अपने दुर्भाग्य के अतिरिक्त? मुझे ऐसा लगने लग गया था कि दुःख के अतिरिक्त मेरे जीवन में कुछ और नहीं बचा था! डैड ने मुझे खुद को सम्हालने को कहा और मुझे दिलासा दी। उन्होंने मुझे एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण दिया : उन्होंने मुझे समझाया कि जहाँ मैंने अपनी संतान खोई है, वहाँ काजल ने भी अपनी नवजात बेटी को खो दिया था! वो बच्ची काजल और मेरे प्यार का प्रतीक थी! उसने नौ महीने तक उस बच्चे को अपने अंदर पाला पोसा था। एक माँ के लिए अपनी संतान खोना कितने दुःख की बात होती है, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल था मेरे लिए! बात तो सही थी। मुझे डैड का दृष्टिकोण समझ में आ गया। फिर डैड ने मुझसे कहा कि वो काजल को घर लिवाने उसके गाँव जा रहे हैं। मुझे लगा कि यह अच्छी बात है।


**


मेरी नई नौकरी गैबी के जाने के लगभग दस महीने बाद लगी। नया काम बहुत अच्छा था, और चुनौतीपूर्ण था! मेरे वेतन में भारी वृद्धि मिली थी, और काम में मुझे एक बेहतर रोल भी मिला था। मैंने अपना सारा ध्यान अपने नए काम में लगा दिया। गैबी, मेरी अजन्मी संतान, और मेरी काजल के साथ हुई बेटी - इन तीनों की मृत्यु के दुःख को कम करने का मेरा यही तरीका था! मैंने बहुत मेहनत से, और जी लगा कर काम किया और कुछ ही महीनों में मैं टीम का एक मूल्यवान सदस्य बन गया। किसी नए मेंबर ने मेरे जितनी जल्दी तरक्की नहीं करी। मैं अपने काम में लीन था, और जल्दी ही ऑफिस के महत्वपूर्ण सर्किलों में प्रसिद्ध हो गया।

जल्दी ही मैं अपने नए काम में सहज और सिद्धहस्त हो गया। और आगे जो हुआ, वो कभी पहले उस कंपनी में नहीं हुआ। मुझे छः महीने में उस कंपनी में प्रमोशन भी मिल गया। परिवीक्षा अवधि (प्रोविशनल पीरियड) स्वयं ही छः महीने लंबी थी, और उतनी अवधि में पदोन्नति प्राप्त करना एक अद्भुत उपलब्धि थी! कंपनी की लीडरशिप ने मुझे एक ‘फास्ट-ट्रैक लीडरशिप कैंडिडेट’ के रूप चिन्हित किया, जो कि मेरे करियर के लिए बेहद अच्छा संकेत था। कभी-कभी अपने खाली समय में मैं सोचता था कि मुझे इस तरह से अपने करियर में आगे बढ़ते हुए देखकर गैबी कितनी खुश होती! लेकिन फिर लगता कि अगर वो न होती, तो मैं खुद को इस तरह थोड़े ही जलाता! क्योंकि मैं अपना समय ऑफिस के काम पर खर्च करने के बजाय गैबी के साथ बिताता। गैबी नहीं थी, तो न तो मेरा कोई घर था और न ही संसार! मैं एक खानाबदोश था! सही बात है न?

इसी समय ही सुनील ने अपनी हाई स्कूल की परीक्षा भी उत्तीर्ण करी - वो देश और प्रदेश के टॉपर्स में से एक था! प्रदेश सरकार की तरफ से उसको आगे की पढ़ाई के लिए वजीफ़ा भी मिला! मुझे अब यकीन हो चला था, कि सुनील हम सबका नाम रोशन करेगा!
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति थी। भाई आपकी लेखनी का क्या कहना पर अपडेट 2 से 3 दिन में दो क्योकि इंतज़ार करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। अमर गेबी के दुख से उभर रहा था पर बच्ची की मौत ने फिर उसे गम में डाल दिया। समय सभी दुखो को अंत कर सुखद यादो में परिवर्तित कर देता है। एक साल का अंतराल आपने इन अपडेट्स में दिखया जिससे कहानी को नई दिशा और गति मिली। अगले सुंदर अपडेट्स के इंतजार में .....
 
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पहला प्यार - पल दो पल का साथ - Update #6


उसका पति थोड़ा झंझट करना चाहता था, लेकिन मैंने उसको अपने जानकार लोगों की मदद से समझाया कि तलाक देने में ही उसकी भलाई है, क्योंकि काजल उससे खुद के लिए, और अपने बच्चों के लिए किसी तरह की अलीमनी नहीं मांग रही थी। लेकिन अगर वो तलाक देने में आनाकानी करता है, तब हमको अलीमनी माँगने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। इसके तुरंत बाद दोनों पार्टियाँ तलाक के लिए रज़ामंद हो गईं। अच्छा हुआ - उस बेवड़े और लम्पट आदमी से छुटकारा मिला। वो शराबी था और काजल और बच्चों को मारता पीटता था। कोर्ट में शुरू में उसने काजल के खिलाफ बेवफाई का केस किया था, लेकिन उसके खिलाफ पत्नी प्रताड़ना और डोमेस्टिक वायलेंस के इतने काफी सबूत थे कि उसने अपना केस वापस ले लिया। कोर्ट ने उसे कभी भी काजल या उसके बच्चों के पास भी न फ़टकने की हिदायद भी दी। ऐसा करने से उसको कम से कम एक साल की जेल हो जानी थी। काजल को उससे कोई गुजारा भत्ता नहीं मिला। यह कोई परेशानी वाली बात नहीं थी - वैसे भी वो जल्दी ही माँ और डैड के साथ रहने जा रही थी।

डैड की आय अब इतनी बढ़ चुकी थी कि वो माँ समेत, काजल और उसके बच्चों की सभी जरूरतों को आराम से पूरा कर सकें! वैसे काजल भी मितव्ययी थी - माँ के जैसी ही! जोड़ जोड़ कर घर बनाने में उसको भी उतना ही विश्वास था, जितना माँ को था। खैर, माँ डैड के साथ रहने में सबसे बड़ी अच्छी बात यह थी कि काजल और बच्चे स्वतंत्र रूप से और बड़ी खुशी से अपना जीवन जी सकते थे! बिना किसी ऋण या बाध्यता के! माँ और डैड के स्नेहमय संरक्षण में!

काजल उनके साथ रहने तो लगी, लेकिन इस शर्त पर कि वो घर का सारा काम करेगी। माँ ने उसका दिल रखने के लिए हाँ कह दी, क्योंकि बिना इसके वो ज़िद पकड़े हुए थी। बिना यह सोचे कि उसको आराम की आवश्यकता थी, और बच्चा होने के बाद उसकी देखभाल में उसका समय जाएगा। वैसे भी, गर्भावस्था में अधिकांश स्त्रियाँ थोड़ी सनकी हो ही जाती हैं! काजल भी कोई अपवाद नहीं थी!

मैं जिस स्कूल में पढ़ता था, उसमें ही सुनील का दाखिला हो गया। जुलाई का महीना था और उसकी दसवीं की क्लास शुरू ही होने वाली थी। ऐसे तो किसी बच्चे को दसवीं में सत्र के बीच में ही दाखिला नहीं मिलता, लेकिन सुनील के अब तक के प्रदर्शन और उसके लिए मेरी खुद की अनुशंसा पर उसको दाखिला मिल गया। इस समय तक, हमारा घर थोड़ा और बड़ा हो गया था! डैड ने घर में एक और कमरा जोड़ दिया था। यह नया कमरा सुनील को दे दिया गया था, जिससे वो अपनी पढ़ाई लिखाई पर बेहतर तरीके से ध्यान दे सके। मेरा कमरा काजल और लतिका को दे दिया गया था, क्योंकि लतिका अभी बहुत छोटी थी! उसको अपने खुद के कमरे की आवश्यकता नहीं थी।

उधर काजल के लिए यह समय उसके जीवन में एक अद्भुत मोड़ के जैसे आया! उसने कभी नहीं सोचा था कि उसके जीवनकाल में ऐसा कुछ संभव भी था। वो अधिकांश समय सुनील और लतिका को कुछ सुविधाएं मुहैया कराने का ही सपना देखती रहती थी कि वो दोनों ढंग से शिक्षित हो सकें, और अपने जीवन में कुछ मुकाम, कुछ सफलता हासिल कर सकें। अपने पति के साथ रहते हुए यह कुछ भी संभव नहीं हो पा रहा था, लेकिन अब, उससे अलग हो कर, और माँ और डैड के आशीर्वाद से, यह सब कुछ संभव होता जा रहा था! काजल माँ और डैड के साथ रहकर और उनकी देखभाल करके बहुत खुश थी। माँ और डैड अद्भुत प्राणी थे! वो दोनों ऐसे लोग थे, जो स्नेही लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते थे। काजल बहुत स्नेही थी, और वो उनका सान्निध्य पा कर बहुत खुश हो गई थी।

जीवन बहुत अद्भुत तरीके से चलता है। हम कहाँ से आये हैं, और किधर को जाएँगे - यह सब कुछ ऊपर बैठा हुआ सृष्टि-निर्माता बहुत ही आश्चर्यजनक रूप से निर्धारित करता रहता है। हम मनुष्यों को उसकी चाल कुछ समझ में नहीं आती है! साल भर पहले मैं काजल को जानता भी नहीं था। और आज वो मेरे परिवार का अभिन्न हिस्सा बन गई थी! गैबी जिस गति में मेरे जीवन में आई, उसी गति से चली भी गई! माँ बा बनना था मुझे और गैबी को, और बन रहे थे मैं और काजल! और दुर्भाग्य ऐसा कि उस बच्चे को मेरा नाम नहीं मिलने वाला था! काजल मुझसे बंधी तो हुई थी, लेकिन स्वतंत्र भी थी! वैसे भविष्य में काजल और मेरे परिवार की बेल किस क़दर आपस में लिपट जाएगी, मैंने कभी उसकी कल्पना भी नहीं की थी! खैर, वो सब तो भविष्य के गर्भ में है! उसको अभी से जान कर क्या मिलने वाला है? फिलहाल तो हम वर्तमान में रहते हैं!

सुनील की हाई स्कूल की शिक्षा माँ और डैड के साथ रहते हुए ही शुरू हुई। वो तेजी से बड़ा हो रहा था... और वह बड़ा होते हुए, एक बहुत ही संवेदनशील, ईमानदार, और ज़िम्मेदार युवक बन रहा था। वो उन समस्त चुनौतियों को अच्छी तरह से समझता था जिनका सामना उसकी अम्मा ने अब तक अकेले ही किया था! मन ही मन वो डैड और माँ के उन सभी समर्थन के लिए आभार रखता था! आज के समय में कोई किसी के लिए यह सब नहीं करता! कोई अपना घर किसी अनजान के लिए यूँ नहीं खोल देता! वो अब एक सम्मानजनक जीवन जी रहा था, और अच्छी शिक्षा प्राप्त करने में सक्षम था - यह सब माँ और डैड के पुण्य प्रताप से ही संभव हो रहा था! और वो इस अवसर का पूरा सदुपयोग करना चाहता था। इसलिए वो पूरी लगन और कड़ी मेहनत के साथ पढ़ाई कर रहा था। वो चाहता था कि मेरे ही समान, वो उच्च शिक्षा के एक विशिष्ट संस्थान में प्रवेश कर सके! और आने वाले जीवन के लिए खुद को अच्छी तरह से तैयार कर सके... ताकि वो अपनी अम्मा और छोटी बहन की ढंग से देखभाल कर सके।

सुनील को अपनी अम्मा की बढ़ती गर्भावस्था के बारे में पता था। काजल ने उसको बताया था कि यह बच्चा उसके और मेरे प्यार का फल था, जो उसके अंदर पल रहा था। सुनील को सेक्स की प्रक्रिया के बारे ज्ञान था। वो इस मामले में मेरे जैसा बुद्धू नहीं था। मेरे शरीर ने जवानी की अंगड़ाई देर से ली थी, लेकिन सुनील में नहीं। पिछले छः सात महीनों में वो किशोरावस्था से जवानी की दहलीज़ में कदम रख चुका था। लेकिन काजल ने उसको पाशविक सेक्स के बजाय उसके प्रेमपूर्ण, मानवीय पक्ष के बारे में जागरूक किया - वो पक्ष, जो केवल संभोग के कार्य पर केंद्रित नहीं है। सेक्स तो कोई भी कर सकता है - जानवर भी करते हैं। लेकिन मनुष्य में इसे सही कारणों से किया जाना चाहिए... प्रेम जैसे कारणों से! सेक्स और प्रेम साथ में चलना चाहिए - एक के बिना दूसरे का कोई औचित्य नहीं है। यह बात उसे समझ में आई। सुनील ने मेरे और गैबी के, और मेरे और काजल के प्रेम को देखा था, और उसको हमारे सक्रिय प्रेम जीवन के बारे में भी संज्ञान था। हमारे साथ ही उसको माँ और डैड के भी अंतरंग जीवन के बारे में मालूम हुआ! हम सभी से उसको यह मालूम हुआ कि हम अपने अपने साथियों से बेहद प्रेम करते थे। लिहाज़ा, सुनील को पक्का यकीन हो गया कि एक संतुष्टिदायक यौन संबंध होने के लिए सच्चा प्यार होना चाहिए…! उसको मालूम था कि उसके जीवन में भी यह पड़ाव आएगा - लेकिन फिलहाल नहीं! अभी उसे अपने काम पर ध्यान देना था - काम, मतलब लगन के साथ अपनी पढ़ाई पूरी करना!


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काजल की संगत और देख रेख में, माँ और डैड के जीवन में भी कई सारे सुधार हुए! उनको एक दूसरे के लिए थोड़ा और अधिक समय मिलने लगा। माँ को घर के काम से थोड़ी फुर्सत मिलने लगी। और सबसे बड़ी बात यह कि एक लम्बे अर्से के बाद, माँ को अपनी हमउम्र एक सहेली मिल गई। काजल बहुत ही जल्दी उनकी विश्वासपात्र बन गई, और माँ की बेहद करीबी दोस्त। दोनों उम्र में लगभग एक समान थीं, और हालाँकि, काजल माँ को ‘माँ जी’ कह कर संबोधित करती थी, उनका रिश्ता बहनों वाला अधिक था! दोनों के आपसी व्यवहार में चंचलता और स्नेह भरा हुआ था - सगी बहनों के जैसे! साथ में रहते हुए एक बार भी ऐसा नहीं हुआ कि किसी को भी एक दूसरे से कभी भी कोई शिकायत हुई हो! अपनी गर्भावस्था में भी काजल माँ और डैड की देखभाल करने की पूरी कोशिश करती। लेकिन माँ अपने तरीके से काजल, और उसके बच्चों की! कुल मिलाकर काजल का उनके साथ रहना बहुत ही अच्छी बात रही, और यह अनुभव उन पाँचों के लिए काफी मजेदार रहा। मेरे परिवार का कम से कम एक पक्ष इस समय खुशी से रह रहा था!


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गैबी की मृत्यु के कुछ दिनों के बाद मैंने गैबी के परिवार से संपर्क किया! उनका हमारी शादी को ले कर जो भी विचार था, वो गैबी के बारे में जानने के उनके अधिकार को वंचित नहीं कर सकता था। गैबी उनका परिवार थी, और उनको उसकी मृत्यु के बारे में जानना आवश्यक था। मैंने उनके फोन किया - फ़ोन गैबी की माँ ने ही उठाया। जब मैंने उनको अपना परिचय दिया, तो मैंने महसूस किया देखा कि वो पहले जैसे ‘गंध’ तरीके से बर्ताव नहीं कर रही थीं। अपितु बड़े सौहार्द से बातचीत कर रही थीं। वह अपने तौर-तरीकों में थोड़ी शांत लग रही थीं। शायद उनको यह भान हुआ हो कि अपने दामाद से इज़्ज़त और स्नेह से पेश आना चाहिए! हमने कुछ देर एक दूसरे के कुशल-क्षेम के बारे में जाने का प्रयास किया। लेकिन जब मैंने उनको गैबी के निधन के बारे में बताया, तो वो बिलकुल ही टूट गईं और बिलख बिलख कर रोने लगीं। उनको रोता हुआ देख कर गैबी के डैड और भाई मुझसे बात करने लगे। मैंने उन्हें गैबी की दुर्घटना के बारे में, उसकी मृत्यु के बारे में, उसकी गर्भावस्था के बारे में, और कैसे मैंने अपना सब कुछ खो दिया, उसके बारे में बताया। गैबी उनकी बेटी थी, इसलिए उसकी मृत्यु उनके लिए भी बहुत बड़ा सदमा बन कर आई। लेकिन उनको यह भी मालूम था कि हमारा प्रेम बहुत प्रगाढ़ था, इसलिए वो स्वयं रोने के साथ ही मुझको स्वांत्वना भी देते जा रहे थे। कुछ देर की मान मनौव्वल के बाद मैंने उन्हें बताया कि मुझे गैबी की जीवन बीमा राशि मिलने वाली है, और मैं वो धनराशि उनको भेजना चाहता हूँ। बीमा राशि करीब करीब पचास हजार ब्राज़ीलियाई रियल [उन दिनों पंद्रह लाख भारतीय रुपये] के करीब था। यह एक अच्छी धनराशि थी, और उनके काम आ सकती थी।

लेकिन मुझे घोर आश्चर्य तब हुआ जब गैबी की माँ ने बड़े सम्मानपूर्वक, पैसे लेने से मना कर दिया। उन्होंने अपने पहले के अशिष्ट व्यवहार के लिए मुझसे क्षमा भी माँगी। फिर उन्होंने मुझे गैबी की देखभाल करने और उससे शादी करने के लिए धन्यवाद भी किया। मुझे बहुत दुःख हुआ कि गैबी अपने जीवित रहते हुए हमारे इस सौहार्दपूर्ण वार्तालाप को नहीं सुन सकी! क्या वर्षा, जब कृषि सुखानी का इससे दुःखद उदाहरण नहीं मिल सकता। गैबी की माँ और उसके डैड ने मुझसे कहा कि मैं हमेशा ही उनके परिवार का एक हिस्सा रहूँगा और अगर कभी भगवान अनुमति होगी, तो वो दोनों किसी दिन मुझसे व्यक्तिगत रूप से मिलना पसंद करेंगे। चलते चलते उन्होंने मुझे समझाया कि मैं गैबी के ग़म में ही डूबा न रहूँ। अगर हो सके, तो दूसरी शादी करूँ। गैबी मेरी इस हरकत पर खुश ही होगी! मैंने उनका धन्यवाद किया, और उनको भारत आने का निमंत्रण दिया। अवश्य ही गैबी के मेरा संपर्क हमेशा के लिए टूट गया था, लेकिन हमारी आत्माएँ हमेशा आस पास ही थीं। उस कारण से गैबी का परिवार एक तरीके से मेरा परिवार भी था। और उनसे सम्मानजनक रूप से बात कर के मुझे उनसे भविष्य में भी संपर्क रखने का सम्बल मिला।


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जब भी संभव होता मैं काजल से मिलने घर अवश्य जाता! हर महीने में दो बार जाना होता ही था। जब काजल की डिलीवरी का समय नजदीक आया, तो काजल पश्चिम बंगाल में अपने गृहनगर के लिए रवाना हो गई। उसको अपने मायके की याद आ रही थी, और वो गर्भावस्था के इस महत्वपूर्ण चरण में उनके साथ रहना चाहती थी। लतिका उसके साथ चली गई, क्योंकि वो बहुत छोटी थी, लेकिन सुनील माँ और डैड के साथ ही रहा, क्योंकि काजल के साथ जाने पर उसकी पढ़ाई में बहुत हर्ज़ा होता। लगभग उसी समय, मैंने नई नौकरी देखना भी शुरू कर दिया। मुझे उम्मीद थी कि नई नौकरी किसी नए शहर में मिलेगी। कम से कम पुरानी यादों से थोड़ा छुटकारा तो मिलेगा।

चूँकि इस समय मैं बिलकुल अकेला था, इसलिए माँ मेरे साथ आकर रहना चाहती थीं। लेकिन मैंने उनको मना कर दिया। डैड का अभी भी रिटायरमेंट होने में पंद्रह साल का समय बचा हुआ था। उनको इस बीच कई प्रमोशन मिलते। साथ ही साथ माँ पर सुनील के देखभाल की भी जिम्मेदारी आ गई थी। इसलिए उनको वहाँ से हटाना उचित नहीं था। माँ और डैड मेरी बात समझ गए और मेरी कुछ महीने अकेले रहने की इच्छा पर सहमत हो गए। मैंने उनको अपनी नई नौकरी ढूंढ़ने के बारे में बताया और यह भी बताया कि नई नौकरी से मेरी ऊर्जा का सही इस्तेमाल होगा। व्यस्त रहूँगा तो मस्त भी रहूँगा।

अब चूँकि मैं अकेला ही था - मेरी देखभाल करने वाला कोई न होने के कारण, मैं अपने ऑफिस में बहुत समय बिताने लगा। मैं अपने घर का उपयोग केवल सोने के लिए करने लगा। गैबी के जाने का शॉक बहुत गहरा था। उसका सही सही आंकलन मैं अभी तक नहीं कर पाया था। इस नाज़ुक से समय में, मेरे एक बहुत करीबी दोस्त ने मुझे एक पेशेवर मदद लेने के लिए कहा। उसने मुझे समझाया कि मुझे किसी ढंग के मनोचिकित्सक से सलाह लेना चाहिए, और यदि आवश्यक हो तो दवाई का भी बंदोबस्त करना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि गैबी के जाने के भावनात्मक सदमे से मुझे कहीं अंदरूनी घाव न हो जाए! मैंने उसकी बात मान ली, और मैंने एक अच्छे मनोचिकित्सक को देखना शुरू हुआ! उसकी देखरेख में मुझे लाभ अवश्य मिला। जल्दी ही मैंने अपने तौर तरीके में सुधार लाना शुरू कर दिया।

उधर काजल के साथ हर सप्ताह कम से कम एक बार फ़ोन पर बात करना एक आवश्यक काम था। अगर उससे बात न होती, तो वो बहुत नाराज़ होती। जब उसकी डिलीवरी के दिन निकट आ रहे थे, तो मैंने उसके घर फोन किया। वहाँ किसी ने फोन उठाया नहीं। मैंने प्रतिदिन कॉल करना शुरू कर दिया, क्योंकि मुझे लग रहा था कि बच्चे की कोई खबर आने ही वाली है। कोई एक सप्ताह बाद मुझे किसी से मालूम हुआ कि मैं तीन दिन पहले एक प्यारी सी बच्ची का बाप बना था! क्या बात है! मैं इस खबर को सुन कर बेहद खुश हुआ, और थोड़ा उदास भी! उदास इसलिए क्योंकि मैं काजल के पास जाना चाहता था। लेकिन यह संभव नहीं था। काजल का पति नहीं था - अगर वो वहाँ नहीं था, तो मैं वहाँ किस हक़ से था? इस सवाल का उत्तर नहीं था मेरे पास! मेरी उपस्थिति से उसको भी कई मुश्किल प्रश्नो के उत्तर देने पड़ते! काजल ने मुझसे यह बात साफ़ साफ़ बोल दी थी, कि बिना उसकी अनुमति के मैं हमारे बच्चे के जीवन में कोई निर्णय नहीं ले सकता था। लिहाज़ा, हमने कुछ महीनों बाद मिलने का वायदा किया। मैं इस बीच इंतज़ार करने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता था। बीच बीच में वो मुझसे पूछती, कि कोई लड़की मिली या नहीं। और मैं उसको बस डाँट कर चुप करा देता।

मेरी बच्ची से मेरी मुलाकात होती, उसके ही पहले मुझे एक और बुरी खबर मिली - जन्म से लगभग एक महीने बाद, डैड ने मुझे फोन कर के बताया कि मेरी बच्ची की मृत्यु इंसेफेलाइटिस से हो गई है। यह रोग उस समय काजल के गाँव में काफी प्रचिलित था। वहाँ पर पर्याप्त चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं, लिहाज़ा, डॉक्टर उस बच्चे को बचा नहीं पाए! कैसी निराशाजनक सी बात थी यह! किसी अन्य जगह पर अगर काजल होती, तो इस तरह की दिक्कत होती ही न!

मैं परेशान हो गया था।

मैं निराश हो गया था।

मैं मायूस हो गया था।

किसको दोष दूँ अपने दुर्भाग्य के अतिरिक्त? मुझे ऐसा लगने लग गया था कि दुःख के अतिरिक्त मेरे जीवन में कुछ और नहीं बचा था! डैड ने मुझे खुद को सम्हालने को कहा और मुझे दिलासा दी। उन्होंने मुझे एक महत्वपूर्ण दृष्टिकोण दिया : उन्होंने मुझे समझाया कि जहाँ मैंने अपनी संतान खोई है, वहाँ काजल ने भी अपनी नवजात बेटी को खो दिया था! वो बच्ची काजल और मेरे प्यार का प्रतीक थी! उसने नौ महीने तक उस बच्चे को अपने अंदर पाला पोसा था। एक माँ के लिए अपनी संतान खोना कितने दुःख की बात होती है, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल था मेरे लिए! बात तो सही थी। मुझे डैड का दृष्टिकोण समझ में आ गया। फिर डैड ने मुझसे कहा कि वो काजल को घर लिवाने उसके गाँव जा रहे हैं। मुझे लगा कि यह अच्छी बात है।


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मेरी नई नौकरी गैबी के जाने के लगभग दस महीने बाद लगी। नया काम बहुत अच्छा था, और चुनौतीपूर्ण था! मेरे वेतन में भारी वृद्धि मिली थी, और काम में मुझे एक बेहतर रोल भी मिला था। मैंने अपना सारा ध्यान अपने नए काम में लगा दिया। गैबी, मेरी अजन्मी संतान, और मेरी काजल के साथ हुई बेटी - इन तीनों की मृत्यु के दुःख को कम करने का मेरा यही तरीका था! मैंने बहुत मेहनत से, और जी लगा कर काम किया और कुछ ही महीनों में मैं टीम का एक मूल्यवान सदस्य बन गया। किसी नए मेंबर ने मेरे जितनी जल्दी तरक्की नहीं करी। मैं अपने काम में लीन था, और जल्दी ही ऑफिस के महत्वपूर्ण सर्किलों में प्रसिद्ध हो गया।

जल्दी ही मैं अपने नए काम में सहज और सिद्धहस्त हो गया। और आगे जो हुआ, वो कभी पहले उस कंपनी में नहीं हुआ। मुझे छः महीने में उस कंपनी में प्रमोशन भी मिल गया। परिवीक्षा अवधि (प्रोविशनल पीरियड) स्वयं ही छः महीने लंबी थी, और उतनी अवधि में पदोन्नति प्राप्त करना एक अद्भुत उपलब्धि थी! कंपनी की लीडरशिप ने मुझे एक ‘फास्ट-ट्रैक लीडरशिप कैंडिडेट’ के रूप चिन्हित किया, जो कि मेरे करियर के लिए बेहद अच्छा संकेत था। कभी-कभी अपने खाली समय में मैं सोचता था कि मुझे इस तरह से अपने करियर में आगे बढ़ते हुए देखकर गैबी कितनी खुश होती! लेकिन फिर लगता कि अगर वो न होती, तो मैं खुद को इस तरह थोड़े ही जलाता! क्योंकि मैं अपना समय ऑफिस के काम पर खर्च करने के बजाय गैबी के साथ बिताता। गैबी नहीं थी, तो न तो मेरा कोई घर था और न ही संसार! मैं एक खानाबदोश था! सही बात है न?

इसी समय ही सुनील ने अपनी हाई स्कूल की परीक्षा भी उत्तीर्ण करी - वो देश और प्रदेश के टॉपर्स में से एक था! प्रदेश सरकार की तरफ से उसको आगे की पढ़ाई के लिए वजीफ़ा भी मिला! मुझे अब यकीन हो चला था, कि सुनील हम सबका नाम रोशन करेगा!
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति थी। भाई आपकी लेखनी का क्या कहना पर अपडेट 2 से 3 दिन में दो क्योकि इंतज़ार करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। अमर गेबी के दुख से उभर रहा था पर बच्ची की मौत ने फिर उसे गम में डाल दिया। समय सभी दुखो को अंत कर सुखद यादो में परिवर्तित कर देता है। एक साल का अंतराल आपने इन अपडेट्स में दिखया जिससे कहानी को नई दिशा और गति मिली। अगले सुंदर अपडेट्स के इंतजार में .....
 
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बहुत ही बेहतरीन और भावुक अपडेट।

बहुत ही बेहतरीन अपडेट

nice update..!!

marvelous update

दोस्तों, बहुत बहुत धन्यवाद!
मुझे मालूम है कि पिछले कुछ अपडेट्स, ख़ास कर 'पल दो पल का साथ' सेक्शन में, आप लोगों को बहुत अच्छा नहीं लगा।
लेकिन यह कहानी है ही ऐसी! हमेशा कुछ न कुछ अप्रत्याशित सा होना है। बस साथ बने रहें! अपने विचार मेरे साथ में बाँटते रहें :)
 

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बहुत ही सुंदर प्रस्तुति थी। भाई आपकी लेखनी का क्या कहना पर अपडेट 2 से 3 दिन में दो क्योकि इंतज़ार करना बहुत ही मुश्किल हो जाता है। अमर गेबी के दुख से उभर रहा था पर बच्ची की मौत ने फिर उसे गम में डाल दिया। समय सभी दुखो को अंत कर सुखद यादो में परिवर्तित कर देता है। एक साल का अंतराल आपने इन अपडेट्स में दिखया जिससे कहानी को नई दिशा और गति मिली। अगले सुंदर अपडेट्स के इंतजार में .....

बहुत बहुत धन्यवाद मित्र! :)
कोशिश तो मेरी भी होती है कि जल्दी जल्दी लिखूँ।
लेकिन देवनागरी में लिखना मुश्किल काम है! ऊपर से काम भी बहुत है।
जब फुर्सत मिलती है, तभी लिखना संभव है!
 
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nice update..!!
amar aur gabby ka pyaar bahot achha tha lekin jo hogaya usko toh badal nahi sakte..lekin kajol aur amar ka bachha bhi nahi bach paya..unki pyaar ki nishani bhi nahi rahi..lekin kajol fir se pregnant toh ho sakti hai..!! muze lagta hai ab rachana ki entry hogi fir se apne hero ki zindagi me..!!

बहुत बहुत धन्यवाद मित्र! काजल अब इस घर का एक अभिन्न हिस्सा है।
यह बात तो आप सभी पाठकगण समझ ही चुके होंगे! प्रेम के कई रूप होते हैं - और इस कहानी में उन रूपों में से कुछ आपको देखने को मिलेंगे।
फिलहाल तो साथ में बने रहें! रचना भी आएगी, काजल भी है, और कुछ नया भी! :)
अगला अपडेट जल्दी ही आएगा। लिख रहा हूँ, लेकिन देवनागरी में लिखना बहुत धीमा काम है।
 

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नया सफ़र - लकी इन लव – Update #1


“यह जगह कितनी सुंदर और शांत है... है न?”

जब मैं पार्टी में डीजे के शोर और भड़कीले संगीत पर थिरकती भीड़ से दूर, अलग थलग, पहाड़ी के किनारे खड़ा था, तो मुझे अपने पीछे एक लड़की की आवाज सुनाई दी।

हम लोग कंपनी के खर्चे पर हमारी वार्षिक दो दिवसीय पिकनिक पर मसूरी आए हुए थे। पिछली बार की पिकनिक में भाग लेने से मैं चूक गया था, क्योंकि मैं अपनी नई कंपनी को पिकनिक के सिर्फ एक हफ्ते बाद ज्वाइन किया था। वैसे भी, गैबी की मृत्यु के बाद से मुझे मौज-मस्ती में कोई दिलचस्पी नहीं रह गई थी। फिर उसके बाद, दुर्भाग्य से, मेरी बेटी की भी मृत्यु हो गई, तो अब मुझे मौज-मस्ती, और उत्साह से सम्बंधित कोई भी वस्तु आकर्षित नहीं करती थी। मैं इस पिकनिक पर भी नहीं आना चाहता था! मेरे बॉस को विगत एक वर्ष में मेरे साथ हुई दुर्घटनाओं के बारे में मालूम था, और उनको मेरे साथ बड़ी सहानुभूति भी थी। लेकिन उन्होंने मुझे समझाया कि कंपनी प्रतिवर्ष पिकनिक का आयोजन इसलिए करती है जिससे कि वहाँ काम करने वाले सभी लोग एक दूसरे को व्यक्तिगत रूप से जान सकें, और जिससे कि प्रत्येक टीम के लोग एक दूसरे से जुड़ सकें। उन्होंने मुझे समझाया कि मुझे पिकनिक में आना चाहिए - मेरी टीम के लिए मैं नया मैनेजर हूँ, और यह एक अच्छा अवसर है सभी को मेरे बारे में जानने का! क्या पता, थोड़ा हल्का फुल्का माहौल मिलने से मुझे भी अपना दुःख कुछ कम करने का मौका मिले? इसलिए अगर मैं इस साल की पिकनिक में शामिल हो सकता हूँ, तो कंपनी के अन्य लोग बहुत सराहना करेंगे। बॉस की बात ठीक थी - इसलिए मैं इस साल पिकनिक पर आया।

पिछले साल की पिकनिक गोवा में हुई थी, लेकिन इस बार हम उत्तरांचल आए थे - मसूरी! हवा में थोड़ी ठंडक थी, और यह जगह आमतौर पर बड़ी शांत भी थी। वहाँ जा कर मुझे वाकई अच्छा लगा! कंपनी के ज्यादातर लोग रिसोर्ट में बजने वाले संगीत पर नाचने-गाने और थिरकने में व्यस्त थे। कोई और समय होता तो मुझे बड़ा मजा आता। लेकिन मेरा दिल आज कल दुःखी था, इसलिए मैं वहाँ से खिसक लिया, और रिसॉर्ट के एक बहुत ही शांत किनारे पर चला गया। वहाँ से संगीत की बेहद धीमी आवाज़ ही सुनाई दे रही थी, और घाटी का अच्छा नज़ारा भी दिख रहा था। रात की झिलमिल और टिमटिमाती रोशनियों में जगमगाती मसूरी घाटी बड़ी सुन्दर सी लग रही थी। मैं उस सुंदरता में खोया हुआ अपने अतीत के बारे में सोच रहा था कि अपने पीछे किसी लड़की की आवाज़ सुन कर मैं पीछे मुड़ा।

“यह जगह कितनी सुंदर और शांत है... है न?”

मैंने देखा कि देवयानी अपने दोनों हाथों में कोल्ड ड्रिंक्स की बोतलें लिए खड़ी थी, और मेरी ही तरफ़ देख रही थी।

देवयानी उम्र में मुझसे करीब नौ साल बड़ी थी, और काम में (मतलब प्रोफ़ेशनल लेवल पर) वो मुझसे सात साल बड़ी थी। वो कंपनी के मानव संसाधन विभाग (ह्यूमन रिसोर्सेज डिपार्टमेंट) में काम करती थी। मैं तो खैर कामर्शियल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट में काम करता था! मेरा ऑफिस एक अलग इमारत में था, और देवयानी का एक दूसरी इमारत में! मेरे एप्लीकेशन से ले कर इंटरव्यू, और फिर नियुक्ति तक का सारा काम देवयानी की ही देखरेख में हुआ था। इसलिए उसको मेरे बारे में लगभग सब कुछ मालूम था। मुझे उसके बारे में बहुत कम ही मालूम था - मालूम करने की कोई वजह भी नहीं थी। उससे जो जान पहचान थी, वो सब ऑफिस के काम के सिलसिले में ही थी। देवयानी कभी-कभी अपने काम के सिलसिले में मेरे ऑफिस आ जाती थी, और इसी तरह से मैं भी कभी कभी उसके ऑफिस चला जाता था। लेकिन हमारे ऑफिस के कॉमन फ्रेंड्स के चलते, प्रोफेशनल जान पहचान से इतर भी मुलाकातें होने लगीं। इस समय तक, अपने लिए एक नई गर्लफ्रेंड ढूढ़ना न तो मेरे दिमाग में कहीं भी था, और न ही यह मेरे लिए किसी प्रकार की प्राथमिकता ही थी! मैं बस अपने काम में व्यस्त रहता था, और मुझे वही पसंद भी था!

लेकिन जब आप किसी व्यक्ति से अधिक बातचीत करने लगते हैं, तब जान पहचान बढ़ जाती है, और यारी दोस्ती में परिवर्तित हो जाती है। उधर घर से माँ डैड और काजल मुझ पर ज़ोर देते रहते थे कि मैं अपने लिए कोई लड़की देखना शुरू कर दूँ! मैं भी सतही तौर पर चाहे जितना भी इनकार करूं, मुझे मालूम था कि मुझे अपने जीवन में भावनात्मक स्थिरता की बहुत आवश्यकता थी। उसके लिए मुझे किसी न किसी के सामने खुलना ही पड़ता न?

“देवयानी?” मेरी तन्द्रा जब भंग हुई तो मैंने देवयानी को वहाँ खड़ा हुआ पाया, “हाय!” मैं उसकी तरफ मुस्कुराते हुए बोला।

“हाय! रिसॉर्ट में बहुत ज्यादा शोर है। है ना?” उसने कहा।

मैंने उत्तर में कुछ भी नहीं कहा। बात तो सच ही थी।

“यदि तुमको एकांत चाहिए, तो बोलो! मैं चली जाती हूँ!” उसने कहा, और मेरे उत्तर का इंतजार किया।

मैं कुछ सेकंड के लिए नहीं बोला। मेरी ख़ामोशी पर देवयानी को लगा कि शायद मैं एकांत चाहता हूँ, इसलिए वो वापस लौटने लगी।

“देवयानी! प्लीज! रुको! आई ऍम सॉरी! मैं… मेरा दिमाग कहीं और था। प्लीज! स्टे!”

वो हंसी। देवयानी को मेरी व्यक्तिगत परिस्थितियों के बारे में जानकारी थी! वो जानती थी कि मैंने अपनी नौकरी अपनी पत्नी की मृत्यु के कारण छोड़ी थी। लेकिन देवयानी इतनी संवेदनशील थी, कि गैबी की मृत्यु की बात मेरे सामने उसने कभी नहीं करी।

“मसूरी मेरे फेवरेट हिल-स्टेशनों में से एक है।” उसने कहा।

“इस इट? आई ऍम श्योर! बहुत खूबसूरत जगह है।”

“अभी तुमने देखा ही क्या है?” उसने कहा, और अचानक कुछ सोचते हुए आगे बोली, “अमर, क्या तुम मेरे साथ वाक पर चलोगे? मैं थोड़ा वाकिंग करना चाहती हूँ, लेकिन रात बहुत हो चुकी है और ठंड भी। सड़क खाली खाली है और बाकी सब नाच रहे हैं और शराब पी रहे हैं।”

“हाँ! ज़रूर।” मैं मान गया और हम चलने लगे, “लेकिन खाने का क्या करेंगे?”

“हम रास्ते में कुछ खा सकते हैं! नहीं तो मैं फोन कर देती हूँ। दो लोगों के लिए खाना रखने के लिए रिसोर्ट में बोल देती हूँ?”

देवयानी इस पिकनिक के आयोजकों में से एक थी! इसलिए रिसोर्ट के लोग उसको जानते थे। उसने रिसेप्शन पर कह दिया कि दो लोगों के लिए खाना बचा कर उसके कमरे में रखवा दें। उसके बाद हम दोनों कुछ देर के लिए मॉल रोड पर चलने लगे। मॉल रोड बढ़िया है - सड़क के किनारे जगह जगह पर आरामदायक बेंच लगी हुई हैं, जहाँ से खासतौर पर दिन में, मसूरी घाटी का नज़ारा देखा जा सकता है। इस समय मॉल रोड ज्यादातर खाली था! इसलिए यह पक्का हो गया कि खाना तो वापस ही जा कर संभव है! रास्ते में एक ढाबा खुला हुआ मिला, जहाँ चाय मिल रही थी। वो भी अपनी दूकान बंद करने का उपक्रम कर रहा था, लेकिन हमको आता हुआ देख कर रुक गया। हमने दो कप स्पेशल चाय मंगवाई और उसका आनंद लेने बैठ गए। थोड़ी ही देर में अदरक और गंधतृण (लेमनग्रास) युक्त गरमागरम चाय हमको पेश की गई। मैंने ढाबे वाले को पैसे दिए, और वो दूकान बंद कर के चला गया। चाय पीते पीते मैंने देवयानी को रात की हल्की रोशनी में देखा।

देवयानी बहुत ही आकर्षक और आत्मविश्वासी लड़की थी! वो एक बहुत ही खूबसूरत, पंजाबी लड़की थी। लड़की इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि वो अभी भी कुँवारी थी - लेकिन उसको महिला भी कहा जा सकता है क्योंकि उसकी उम्र करीब करीब बत्तीस साल थी। वो अपने जीवन की उस अवस्था में थी, जहाँ उसने यौवन की तरुणाई छोड़ दी थी, और इस समय अपने यौवन की परिपक्वता के उन्नत शिखर पर थी। देवयानी का शरीर कसा हुआ था - मैंने अंदाज़ा लगाया कि बिना नियमित व्यायाम और अच्छे खान पान के यह संभव नहीं था। उसका चेहरा सुन्दर था - तीखे नैन नक्श - जैसे खालिस पंजाबी लड़कियों के होते हैं! उसके सीने पर स्वस्थ, गोल और भरे हुए स्तनों की एक सुंदर जोड़ी थी! उनका आकार उसके कपड़ों से भी अच्छी तरह दिखाई देता था - जब शरीर छरहरा हो, और स्तन थोड़े बड़े, तो ऐसा होना स्वाभाविक ही है! दरअसल, उसके शरीर में उसके स्तन वो अंग थे, जिन पर सभी का सबसे पहले ध्यान जाता था। वे बड़े नहीं थे... लेकिन बड़े दिखते अवश्य थे! या शायद बड़े नहीं, लेकिन उसके शरीर पर ज्यादा प्रमुखता से दिखाई देते थे। उनका आकार एकदम गोल था! एक तरीके से यह व्यवस्था न्यायसंगत लगती है - जब ऐसी सुन्दर लड़की हो, तो उसके स्तन भी इसी प्रकार के होने चाहिए!

मैं पहला आदमी नहीं था जो उसके स्तनों को अपलक निहार रहा था। देवयानी ने देखा कि मैं क्या देख रहा था, लेकिन उसने मेरी हरकतों को नजरअंदाज कर दिया। मन ही मन मैं जानता हूँ कि किसी लड़की को ऐसे देखना सभ्यता वाली बात नहीं है - और यह बोध होते ही मैंने अपनी नज़रें वहाँ से हटा लीं।

“हैप्पी टू सी द गर्ल्स?” उसने लगभग झल्लाते हुए कहा।

“हम्म? गर्ल्स?” मुझे समझ में नहीं आया कि देवयानी ने क्या कहा, या उसका मतलब क्या था!

उसने इस बात को कोई तूल न देने का निर्णय लिया और मेरी बात को नज़रअंदाज़ कर दिया, “कुछ नहीं। तो बताओ - तुम कैसे हो?”

“मैं ठीक हूँ... काम का मज़ा ले रहा हूँ। और क्या?”

“अरे यार, कम से कम पार्टी में तो काम को न डिसकस करो!”

“हा हा हा! ठीक है! तो फिर आप ही बताइए कि क्या डिसकस करें?”

“तुमको! तुम मुझे अपने बारे में क्यों नहीं बताते।”

“अपने बारे में बताने जैसा कुछ नहीं है, देवयानी।”

“हाँ हाँ! चलो भी! हमारे स्टार परफ़ॉर्मर के पास खुद के कहने को कुछ नहीं है, मैं यह बात नहीं मानती!”

“स्टार परफ़ॉर्मर! आह! वो तो इसलिए है क्योंकि मैं चौदह चौदह घण्टे काम करता हूँ! अब ऐसे आदमी की लाइफ में और क्या होगा? खाली लाइफ है!”

“मतलब?”

पता नहीं क्यों, लेकिन उस पल मुझे लगा कि अगर मैं अपना दुःख देवयानी के साथ साझा करूँ, तो मुझे अच्छा लगेगा। इसलिए, मैंने देवयानी को गैबी के साथ मेरे जीवन, और फिर उसकी मृत्यु के बारे में बताया! और मैं यह बात भी स्वीकारी कि खुद को अपने काम में डुबाने के कारण मुझे उस दुःख को कम करने में मदद मिली। देवयानी मेरी बात को ध्यान से और ईमानदारी से सुनती रही। थोड़ी देर बाद, मुझे उसके साथ यह सब साझा करते हुए बहुत हल्का महसूस होने लगा। देवयानी ने मेरी बातों पर कोई सांत्वना या कोई दार्शनिक दृष्टिकोण नहीं दिया; उसने मुझसे बस इतना कहा कि सब ठीक हो जाएगा। मैं अपना ख्याल रखूँ, और इतना काम न करूँ! मैंने देवयानी को मेरी बातें सुनने के लिए धन्यवाद दिया और फिर हम खाना खाने के लिए वापस रिसोर्ट लौट आए।

रिसोर्ट में देखा कि तब तक काफी शांति हो चुकी थी। लोग नाच गा कर, और खा पी कर अपने अपने कमरों में चले गए थे। देवयानी ने मुझे अपने कमरे में आने को कहा, क्योंकि खाना वहीं लगा था। खाते खाते उसने मुझे अपने बारे में भी बताया - यह कि उसके घर में तीन लोग हैं - उसके डैडी, वो, और उसकी बड़ी बहन, जिसकी शादी हो चुकी है और जिसके दो बेटे हैं। मैंने भी उसको बताया कि मेरे घर में माँ हैं और डैड हैं। मैंने उसको काजल के बारे में भी बताया और कैसे वो आज कल मेरे माता-पिता के साथ रह रही है। मेरी बात सुन कर उसको बड़ा आश्चर्य हुआ कि आज कल के ज़माने में मेरे माँ और डैड जैसे लोग हैं जो इस तरह से अनजाने लोगों की मदद करते हैं! मैंने फिर उसको अपने गृहनगर के बारे में बताया, और देवयानी ने अपने! उसके डैडी भारत पाकिस्तान विभाजन के बाद भारत आए थे। उसके दादा जी पंजाब (अब के पाकिस्तानी पंजाब) के एक बड़े व्यवसाई थे, लेकिन विभाजन में उनका सब कुछ जाता रहा। किस्मत से उनका कुछ व्यापार दिल्ली से भी होता था, और वहाँ उनकी जान पहचान थी। इसलिए जब जान बचा कर भागने की नौबत आई तो भारत में उनके करने के लिए कुछ काम था। उसके डैडी उस समय कोई चौदह पंद्रह साल के ही थे। दिल्ली आ कर उन्होंने अपनी पढ़ाई लिखाई जारी रखी, और फिर बाद में आई ए एस बने। अब वो रिटायर हो गए थे। उसकी बड़ी बहन जयंती उससे तीन साल बड़ी थीं, और अपना एक बहुत ही सफल बुटीक का बिज़नेस चलाती थीं। उसकी माँ की मृत्यु कोई पच्चीस साल पहले हो गई थी। उसके डैडी ने दोबारा शादी नहीं की, और अपने ऐसे काम के होते हुए भी दोनों बच्चियों की अच्छी सी देखभाल करी। देवयानी के मुकाबले मेरा बेहद साधारण था। लेकिन फिर, मुझे अपने माँ और डैड पर बहुत गर्व था। मैंने उसको उनके बारे में बताया और थोड़ा बहुत अपने बचपन के बारे में बताया। बातें करते करते रात के कोई ढाई बज गए, तो मैं उठ गया। देवयानी ने मुझे वहीं सो जाने के लिए कहा, लेकिन मैंने कहा कि मुझे अकेले में अच्छी नींद आती है।

अगली सुबह नाश्ते पर देवयानी ने मुझे बताया कि वो और उसके कुछ दोस्त सप्ताहांत पर मसूरी में ही रुकने की योजना बना रहे हैं! और अगर मैं चाहूँ, तो मैं भी उसके साथ रुक कर मसूरी और उसके आस पास की जगहें घूम सकता हूँ। रविवार की रात को हम वापस दिल्ली पहुँच सकते हैं। उस सप्ताहांत में मेरे करने के लिए इससे बेहतर कुछ नहीं था, इसलिए मैंने देवयानी के साथ ही मसूरी घूमने का फैसला किया। ये तीन और दिन साथ में बिताने पर हमें एक-दूसरे के बारे में और जानने का मौका मिला।

एक दूसरे के बारे में (व्यक्तिगत स्तर पर) हमारे शुरुआती इम्प्रेशंस बहुत अच्छे नहीं थे। देवयानी को लगा कि मैं थोड़ा ढीठ हूँ; और मुझे लगा कि वो थोड़ी गुस्सैल है। हम दोनों ही अपने अपने आँकलन में गलत थे। बेशक, अपने जीवन के उस दौर में मुझे हर चीज को लेकर कड़वाहट थी। उसके कारण मैं हर बुरी बात के लिए या तो अपनी खराब किस्मत... या फिर कभी-कभी दूसरे लोगों को जिम्मेदार मान लेता था। ऐसा रवैया कभी अच्छा नहीं होता। दूसरी ओर, मुझे महसूस हुआ कि देवयानी को लगता था कि हर बात में उसको अपना विचार रखना आवश्यक था। मैंने महसूस किया कि देवयानी की कोशिश रहती थी कि अन्य लोग उसको सीरियसली लें! लेकिन फिर भी, एक दूसरे के लिए इस तरह के नकारात्मक आँकलन होने के बावजूद, हम एक दूसरे को नापसंद नहीं कर सके। हम दोनों सारा समय साथ ही रहे। और हम दोनों एक दूसरे के दोस्त भी बन गए।
 

avsji

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नया सफ़र - लकी इन लव – Update #2


पिकनिक के कोई एक महीना बाद, एक शुक्रवार को, मैंने, देवयानी और हमारे कुछ कॉमन दोस्तों ने, ऑफिस के बाद, साथ में डिनर करने का फैसला किया। रेस्तरां में, देवयानी ने, जैसा कि उसका स्टाइल था, वेटर को अपना ऑर्डर अंग्रेजी में पढ़ कर सुनाया। वो शायद इस तथ्य से बेखबर थी कि वेटर को उसका कहा हुआ एक भी शब्द ठीक से समझ में नहीं आया। लेकिन मैंने यह बात भाँप ली। वो वेटर चुपचाप सुनता रहा और फिर अंत में, वो बेचारा चला गया।

मैंने देवयानी से कहा, “देखना अभी, वो वेटर किसी और के साथ वापस आएगा, फिर से आर्डर लेने!”

“क्यों?” देवयानी ने पूछा।

“क्योंकि उस बेचारे को अंग्रेजी नहीं समझ आती, और वो आपका आर्डर ठीक से नहीं समझ पाया है। आप हर जगह अंग्रेजी का इस्तेमाल नहीं कर सकते। हमारे देश में बहुत कम लोग ही इसको समझते हैं। इसलिए अक्सर हिंदी या लोकल लैंग्वेज में ही बोलना ठीक होता है…” मैंने मजाक किया।

“कुछ भी!”

देवयानी, अपने सामान्य अंदाज़ में, यह शर्त लगाने को तैयार थी कि मैं गलत था। लेकिन जैसा कि मैंने भविष्यवाणी की थी, वो वेटर जल्दी ही एक दूसरे वेटर के साथ हमारा ऑर्डर ‘फिर से’ लेने वापस आया। मैं और हमारे दोस्त, यह देख कर खूब हँसे! देवयानी को थोड़ा अटपटा अवश्य लगा, लेकिन उस एक घटना ने मेरे बारे में उसकी राय बदल दी। वो समझ गई कि मैं जिन बातों को ऑब्ज़र्व कर सकता हूँ, वो उनको नहीं कर सकती। पहली बार उसने अपने जीवन में नर्म रुख दिखाया, और पूरी शिष्टता से उसने अपनी हार स्वीकार कर ली। मैंने उसको समझाया कि इसमें हार जीत वाली कोई बात नहीं है। चूँकि मैं खुद भी एक छोटे से कस्बे से आया हुआ था, इसलिए मुझे मालूम है कि हमको किस तरह से संघर्ष करना पड़ता है।

मेरी बात से वो और भी प्रभावित हुई। उसको समझ आया कि मैं वैसा ढीठ नहीं हूँ, जैसा वो सोचती है। अचानक ही उसको मेरे अंदर के गुण दिखाई देने लगे। मैंने भी महसूस किया कि उसका थोड़ा गुस्सैल और अड़ियल रवैया इसलिए था, क्योंकि वो सुन्दर थी, और इसलिए लोग उसको सीरियसली नहीं लेते थे। लोग अक्सर यह धारणा बना लेते हैं कि लड़की अगर सुन्दर है, तो उसको अपने करियर में तरक़्क़ी अपने लुक्स के कारण मिलती है - अपने गुणों के कारण नहीं! इसलिए वो हर जगह ऐसा अड़ियल रवैया दिखाती थी। जिससे लोग उसकी क्षमताओं को कम कर के न आंके! एक बार उसने मुझसे कहा था कि वो बढ़िया क्वालिफाइड है, करीब नौ साल का एक्सपीरियंस है, लेकिन फिर भी लोगों को बस उसके बूब्स दिखते हैं! और कुछ नहीं! मैंने उसकी बात मानी और मैंने उसको विश्वास दिलाया, कि एक प्रोफेशनल के रूप में मैं उसका बहुत सम्मान करता हूँ, और एक लड़की के रूप में भी! ऐसा नहीं है कि मैं अँधा हूँ - उसका फिगर एकदम बढ़िया है, इसलिए उसको देखने का मन करता है। सहज और प्राकृतिक आकर्षण पर तो मेरा ज़ोर नहीं चल सकता है न; लेकिन मैं उसको सम्मान की ही दृष्टि से देखता हूँ!

देवयानी ने मेरी बात मान ली।

“अमर, मेरे ख़ास दोस्त मुझको ‘डेवी’ कह कर बुलाते हैं!”

“‘डेवी’? ये तो बड़ा अंग्रेज़ी नाम है यार!”

“हा हा! हाँ! है तो!”

“आपको अपने नाम का मतलब मालूम है क्या? देवयानी नाम का?”

“हाँ - देवयानी, शुक्राचार्य और जयंती की बेटी है।”

“हाँ! मालूम है आपको मतलब!”

“मैं जितनी विदेशी लगती हूँ, उतनी हूँ नहीं!” देवयानी ने अदा से कहा।

“नहीं - आप तो बिलकुल, देसी हैं! खालिस! शुद्ध! आई लाइक यू द वे यू आर!” मैंने बड़ी संजीदगी और शिष्टता से कहा, “आप कभी खुद को बदलना मत!”

“हाँ! लेकिन तुम सबसे पहले मुझे ‘आप’ कह कर एड्रेस करना बंद करो! और मुझे ‘तुम’ और ‘डेवी’ कह कर बुलाया करो! मुझे अच्छा लगेगा! प्लीज?”

“श्योर! डेवी!” मैं मुस्कुराया, “मतलब, मैं ‘तुम्हारा’ एक ‘ख़ास दोस्त’ हूँ?”

“थैंक यू! हाँ - तुम तो मेरे ख़ास दोस्त हो! वो भी बहुत पहले से!” वो भी मुस्कुराई, “और हाँ - आई प्रॉमिस यू! आई वोन्ट चेंज!

उस दिन से मैं और देवयानी - सॉरी, डेवी - करीबी दोस्त बन गए। दोस्ती कुछ ऐसी हुई कि देवयानी दिन में अक्सर मुझे कॉल करती - खास तौर पर लंच के समय, और मुझसे पूछती कि मैंने लंच किया या नहीं! हम जब भी एक दूसरे के ऑफिस में होते, तो साथ में बैठ कर चाय या कॉफ़ी ज़रूर पीते। एक दूसरे के साथ में हमको अब आनंद आने लगा था। डेवी का अंदाज़ कुछ ऐसा था कि गुमसुम नहीं बैठा जा सकता था - वो मज़ाकिया भी थी, और संवेदनशील भी! कुछ ही दिनों में मैं अपने अवसाद के खोल से बाहर आने लगा। मैं भी हंसमुख स्वभाव का आदमी था - और अब लोगों को मेरा वो पहलू दिखाई देने लगा। टीम के लोग अब मुझसे अधिक खुल कर बातें करते थे। कोई एक महीना बाद, मैंने ऑफिस में रहना भी काफी कम कर दिया - इस बात से मेरे बॉस लोग नाराज़ नहीं हुए, बल्कि उनको थोड़ी राहत ही मिली। क्योंकि इसके बावजूद, मेरी प्रोडक्टिविटी बढ़ गई थी। खुश रहने से आदमी अधिक कारगर होता है। अवसादग्रस्त आदमी कारगर नहीं होता! और तो और, मेरी टीम के लोग डेवी को ले कर मेरी खिंचाई भी करने लगे थे। जब भी डेवी ऑफिस में दिखाई देती, लोग बोलते कि ‘वाह! एक घंटे की छुट्टी!’ या फिर, ‘अमर, भाभी जी आई हैं!’ मैं शुरू शुरू में थोड़ा बुरा मान जाता था - क्योंकि गैबी की यादें तब भी बड़ी ताज़ा थीं, लेकिन अब वो दर्द कुछ कम हो चला था। धीरे धीरे मुझे अपने जीवन को लेकर सम्भावनाएँ फिर से दिखाई देने लगीं थीं।

उधर डेवी पर भी मेरा सकारात्मक प्रभाव था। उसने अब खुद को सीरियसली लेने को लेकर जबरदस्ती के काम करना बंद कर दिया था। वो अब अधिक मुस्कुराने लग गई थी और मर्दों जैसे कपड़े पहनने भी कम कर दिए थे - मतलब, पैंट शर्ट वो अभी भी पहनती थी - लेकिन उनके रंग अब काले/नीले/सफ़ेद नहीं होते थे। उसके कपड़े अब अधिक रंग बिरंगे होते थे। डेवी का बॉस बेहद खड़ूस आदमी था। अगर मानव संसाधन विभाग का कोई कर्मचारी इतना खड़ूस हो, तो मन करता है कि उसको दो लप्पड़ लगाए जाएँ! एक बार मैं उसके ऑफिस में गया, तो उसका बॉस भी वहीं मौजूद था। वो मुझको अपनी ख़डूसियत दिखाने लगा। लेकिन मैंने हँसते मुस्कुराते हुए उस आदमी को थोड़ी ही देर में निरुत्तर कर दिया, और सबके सामने उसकी बेइज़्ज़ती भी कर दी; और सबसे मज़े की बात यह कि उसको बुरा भी नहीं लगा। उसके विभाग के लोग ये देख कर आश्चर्यचकित थे कि उनका खड़ूस बॉस, अपनी सरेआम बेइज़्ज़ती होने पर भी, हँसता हुआ चला गया! उस दिन के बाद डेवी के विभाग के लोगों की नज़र में मेरी इज़्ज़त बहुत बढ़ गई। उसके बाद से वो मेरी डेवी के साथ उपस्थिति को नोटिस करने लगे! उसके ऑफिस की कुछ महिलाएँ आपस में बातें करने लगीं कि शायद डेवी और मैं - गर्लफ्रेंड और बॉयफ्रेंड हैं! मुझे इस बात से कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता था, लेकिन डेवी को लगा कि उसके प्रोफ़ेशनल इमेज के लिए यह अफवाह अच्छी नहीं होगी। सबसे पहला कारण तो यह था कि देवयानी और मेरे बीच में उम्र का नौ साल का अंतर था, और दूसरा हमारे करियर में भी सात साल का अंतर था! डेवी मुझसे अधिक वरिष्ठ पद पर थी - मैं अभी भी केवल एक छोटी सी टीम का लीडर था, और डेवी अभी असिस्टेंट जनरल मैनेजर थी। बहुत मेहनत करूँ, तो भी मुझे उस लेवल तक पहुँचने में कम से कम पाँच और साल लगने थे। और तो और, इस बार उसको जनरल मैनेजर वाला प्रमोशन भी मिलना था! डेवी को इस बात की चिंता थी कि कहीं मेरे साथ उसके सम्बन्ध की कोई अफवाह उड़ गई, तो कहीं उसके प्रमोशन और करियर ग्रोथ पर कोई बुरा असर न पड़े।

यहाँ आवश्यक है कि हम दोनों इस समय प्रेमी-प्रेमिका नहीं थे। होते तो अलग बात होती। खैर, मैं इस सब के बारे में चिंतित नहीं था, क्योंकि डेवी उस समय मेरी सिर्फ एक अच्छी दोस्त थी। दोस्ती होने के कोई दो महीने बाद हम दोनों एक दूसरे के असली रूप को जान और समझ गए। हम दोनों कोई ही एक दूसरे के संग में मज़ा आने लगा। वो मेरे घर भी आने लगी - ख़ास तौर पर शनिवार और रविवार को। जब आप एक दूसरे से इस तरह फुर्सत से मिलते हैं, तो एक-दूसरे के साथ अपनी निजी चीजों के बारे में बातें भी करने लगते हैं। तो हमने भी यह सब करना शुरू कर दिया।

डेवी मुझसे अपनी कई छोटी छोटी व्यक्तिगत और प्रोफेशनल दिक्कतों और चुनौतियों को डिसकस करती। और मैं उसको या तो अपने चंचल आश्वासनों या फिर गंभीर सुझावों से मदद करने की कोशिश करता। मेरे लिए दिल्ली थोड़ा नया शहर था, तो डेवी मुझे वहाँ के बारे में बताती, और कहाँ से क्या खरीदना है, मुझे समझाती। धीरे धीरे, यूँ ही, अनायास ही, हम दोनों एक दूसरे को पसंद करने लगे। मुझे तो ऐसा लगता है कि जैसे ये होना अपरिहार्य (अनिवार्य) था! मैं दिवाली पर घर जाना चाहता था, और माँ, डैड, काजल और बच्चों के लिए कुछ उपहार ले जाना चाहता था। पिछले दो बार से हमने न तो होली मनाई, न ही नवरात्रि, और न ही दिवाली - लेकिन इस साल मैंने ही ज़ोर दे कर अपना त्यौहार मनाने को कहा! काजल ने भी इस बार नवरात्रि में सब कुछ किया - पूजा पाठ, और विजयदशमी पर यज्ञ इत्यादि! इसके लिए मैंने डेवी से जानना चाहा कि सबके लिए कहाँ से क्या क्या लूँ। तो वो मुझे अपने साथ दिल्ली के प्रसिद्द बाज़ारों में ले कर गई। वहाँ उसने मोल भाव कर के बढ़िया सामान बड़े सस्ते में दिलवाया - माँ और काजल के लिए मैंने रेशमी साड़ियाँ खरीदीं, डैड के लिए सूट, सुनील के लिए बंगाली कुरता और धोती, और लतिका के लिए सोने के कंगन! सब कुछ डेवी ने ही पसंद किया था। मैंने एक चिकन का काम किया हुआ, फ़ीके सफ़ेद रंग का बेहद सुन्दर सा कुर्ता और चूड़ीदार ख़रीदा - डेवी के लिए! उसने न नुकुर तो खूब करी लेकिन जब दुकानदार ने कहा, “भाभी जी, ले लीजिये न - भाई साहब इतना ज़ोर दे रहे हैं तो! अभी शादी नहीं हुई है, तो क्या हुआ - हो जाएगी!” तो उसने झेंप कर ले लिया।

इस बार दिवाली बड़ी अच्छी लगी - गैबी के साथ रहते हुए जैसा आनंद आया था, वैसा ही, या कहिए, उससे भी अधिक आनंद इस बार आया। माँ और काजल ने बड़े उत्साह से अपनी अपनी साड़ियाँ लीं और दिवाली पर दोनों ने वही साड़ियाँ पहनीं। सुनील भी अपना बंगाली स्टाइल का कुरता और धोती पहन कर बहुत खुश हुआ। डैड बेचारे थोड़े दुखी थे कि वो अपना सूट त्यौहार के दौरान नहीं पहन सके। बाद में माँ और काजल दोनों ने मुझसे कहा कि मेरी कपड़ों की पसंद बढ़िया हो गई है। लगता है किसी लड़की का असर है! उत्तर में मैंने उनसे कहा कि थोड़ा समय और दें, फिर पक्का बताता हूँ! माँ और काजल, दोनों ही यह बात सुन कर बड़े खुश हुए और भगवान् से प्रार्थना करने लगे कि जो भी है, उससे मेरा शादी का हिसाब किताब बन जाए! वापस दिल्ली आते समय माँ ने मुझे एक शलवार कमीज़ का सेट दिया, अपनी ‘दोस्त’ को देने के लिए! जब वापस आ कर मैं डेवी से मिला, तो मैंने उसको यह शलवार कमीज़ दिखाया। उसने पहले पहले तो उसको लेने से मना कर दिया - उसको लगा कि शायद मैं ही अपने गृहनगर से उसके लिए यह एक और उपहार लेता आया हूँ। लेकिन जब मैंने उसको बताया कि यह मेरी माँ की तरफ़ से उसके लिए त्यौहार का उपहार है, तो उसने बिना किसी झिझक के ले लिया।

यह सब बहुत ही सकारात्मक उन्नति थी हमारे नवोदित सम्बन्ध में! दिवाली के बाद हम अब रात में भी फ़ोन पर बातें करते। अब हमारी बातें मित्रवत और अनौपचारिक होती जा रही थीं। हमको अपने जीवन से क्या चाहिए, हमारी हसरतें, हमारी इच्छाएँ इत्यादि! अब हमारी बातचीत अधिक व्यक्तिगत और अधिक अंतरंग होने लगीं। हम छोटी छोटी बातें भी फ़ोन पर डिस्कस करते। छोटी छोटी बातें, जैसे आज जॉगिंग में कितना दूर दौड़े, नाश्ते में क्या खाया, डिनर में क्या खाया इत्यादि! लंच मैं ऑफिस में ही करता था - और उसका इंतजाम ऑफिस में ही रहता था। डेवी को हमेशा मालूम रहता था कि ऑफिस के मेनू में क्या है!

इतना सब होने पर भी अभी तक हम साथ में कॉफ़ी पीने भी नहीं गए थे। इसलिए मैंने डेवी को एक शाम को कॉफ़ी पर आमंत्रित किया। एक प्रसिद्ध कॉफी हाउस की श्रृंखला में, नया नया स्टोर खुला था। यहाँ अभी भी बस एक्का दुक्का लोग ही आते थे। शायद इसलिए भी डेवी ने मेरा निमंत्रण स्वीकार कर लिया। कॉफ़ी हाउस में मद्धिम संगीत बज रहा था, और बढ़िया आराम दायक कुर्सियाँ थीं। अच्छा लगा। हम बड़े आराम से कॉफ़ी की चुस्कियाँ लेते हुए अपने जीवन, और अन्य व्यक्तिगत पहलुओं के बारे में देर तक बातें करते रहे। उस शाम डेवी और मैंने अपने जीवन के बारे में बड़े विस्तार से चर्चा की। अन्य बातों के अलावा, मैंने उसे गैबी के साथ अपने विवाहित जीवन और हमारे प्यार के बारे में बताया! मैंने उसको इशारों इशारों में ही काजल के बारे में भी बताया। काजल के मसले पर डेवी ने कोई ऊटपटाँग सी प्रतिक्रिया नहीं दी - यह देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा। फिर डेवी ने भी मुझे अपने पिछले अंतरंग संबंधों के बारे में बताया, और अपने विवाह से सम्बंधित चुनौतियों के बारे में बताया। उसने मुझे बताया कि क्योंकि अब वो बत्तीस साल की हो गई है, तो अब उसको बिरादरी में और उसके बाहर भी शादी के लिए ‘उपयुक्त’ नहीं माना जाता! बहुत से इच्छुक वरों को लगता है कि उसको माँ बनने में परेशानी होगी। यह तो बड़ी वाहियात सी बात थी! बत्तीस कोई ऐसी उम्र तो नहीं होती कि स्त्री माँ न बन सके! बात उम्र तक ही रहती तो भी ठीक थी। डेवी प्रोफेशनली काफी ऊँची अर्हता प्राप्त (क्वालिफाइड) थी, और उसी हिसाब से एक ऊँचे पद पर कार्यरत भी थी! काफ़ी कमाई थी उसकी, और वो बहुत ही आत्मविश्वासी लड़की थी! ऐसी लड़कियों से ज्यादातर पुरुषों को ‘डर’ लगता है। मनोवैज्ञानिक डर! ऐसी लड़कियाँ अपने पति के सामने दब कर नहीं रहतीं। इससे पुरुषों के दम्भ पर चोट लगती है! मुझे इस दकियानूसी सोच पर बहुत दुःख हुआ। मेरी ऐसी सोच नहीं थी। और मैंने यह बात डेवी को बताई। मैंने यह भी कहा कि कोई भी आदमी, उससे शादी कर के बहुत गौरवान्वित महसूस करेगा! काश कि मेरी डेवी जैसी पत्नी हो! मेरी इस बात पर वो एक अलग ही अंदाज़ में मुस्कुराई। उसने मुझे अपने एक असफल अंतरंग सम्बन्ध के बारे में बताया। शायद इसलिए कि मुझको मालूम हो जाए कि वो ‘कुँवारी’ नहीं थी! लड़की का कुँवारापन (वर्जिनिटी) मेरे लिए बिलकुल भी महत्वपूर्ण बात नहीं थी - नहीं तो गैबी से मैं शादी न करता, और न ही काजल से मेरा सम्बन्ध बनता! किसी लड़की से विवाह उसके गुणों के लिए करना चाहिए; प्रेम के लिए करना चाहिए! उसकी योनि में उपस्थित वो छोटी सी झिल्ली विवाह में मायने नहीं रखती!

जब मैंने उससे यह सब बातें करीं, तो डेवी ने मुझसे पूछा कि क्या मैं इस समय दूसरे रिश्ते के लिए तैयार हूँ? मैंने उससे कहा कि यह एक कठिन सवाल है। गैबी का प्रेम, और उसकी यादें अभी भी ताज़ा हैं! इस पर डेवी ने मुझे समझाया कि मुझे एक नए रिश्ते के लिए खुद को खुला रखना चाहिए, क्योंकि मैं उम्र में अभी भी बहुत छोटा था! मेरे जितना होते होते तो बहुत से लड़कों की शादी भी नहीं होती है! इसलिए, मुझे प्यार को एक और मौका देना चाहिए। जब मैंने उससे प्यार के सम्बन्ध में, और विवाह के सम्बन्ध में उसकी इच्छा के बारे में पूछा, तो उसने मुझे बताया कि वो उस संभावना को ले कर बहुत उत्साहित नहीं थी। उसकी उम्र हो चली थी, और संभव था कि वो बिना शादी के ही रह जाएगी! लेकिन अगर कोई रोमांचक साथी मिलता है, तो वो उसका अपने जीवन में बड़े उत्साह से और खुली बाहों के साथ स्वागत करेगी! यह जान कर मुझे अच्छा लगा। डेवी एक निहायत ही शरीफ़, खानदानी, सुन्दर, सुघड़, पढ़ी लिखी, और कई गुणों में संपन्न लड़की थी। और कैसी लड़की चाहिए शादी करने के लिए!
 
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नया सफ़र - लकी इन लव – Update #3


हमारी नजदीकियां बड़ी तेजी से बढ़ीं। और शायद यही कारण था कि डेवी मुझको ले कर बड़ी दुविधा में थी! मैं उसको पसंद तो बहुत था, लेकिन हमारे बीच उम्र के और प्रोफेशनल फासले के कारण उसके मन में डर सा बना रहता! उसको डर रहता कि यदि हमारी शादी हो गई, तो उसके बाद कहीं हमारे बीच तकरार न होने लगे! कहीं हमारा प्यार न कम होने लगे! अपनी शादी को लेकर डेवी को थोड़ी निराशा थी और मायूसी थी - वो इन कारणों की मजबूरी से मुझसे शादी नहीं करना चाहती थी। वो चाहती थी कि अगर उसकी शादी मुझसे हो, तो सही कारणों से हो। इसलिए हो, कि हम दोनों एक दूसरे के लिए सही हैं! इसलिए हो कि हम दोनों को एक दूसरे से प्रेम है! जब प्यार इतनी जल्दी परवान चढ़ता है, तो उसका खुमार बड़ी जल्दी उतर भी जाता है!

हमारी कॉफी वाली शाम के अगले कदम के रूप में, मैंने उसे रात के खाने (डिनर) पर आमंत्रित किया। घर पर तो कोई ख़ास इंतज़ाम नहीं था। काजल के बाद मैंने कभी किसी और को काम पर नहीं रखा। एक स्त्री आती थी - सप्ताह में एक बार, वो साफ़ सफाई कर के चली जाती थी। मैं ही रात में अक्सर सलाद, स्प्राउट इत्यादि कर के खा लेता था। हेल्थी भी था, और कोई झंझट भी नहीं था। इसलिए डिनर तो बाहर ही होना था। डेवी मेरे निमंत्रण को मान ली, तो हमने एक तारीख और समय तय कर लिया। लेकिन दुर्भाग्य से, वो उस दिन ऑफिस में काफी देर तक काम कर रही थी। इसलिए वो प्रोग्राम कैंसल हो गया। न जाने मन में ऐसा लगा कि डेवी कोई बहाना बना रही है, और वो मुझसे इस तरह से डिनर इत्यादि पर मिलने से बचना चाहती है! मैंने उससे अगले दिन अपने संदेह को दूर करने के लिए यह पूछा, तो उसने मेरे संदेह की पुष्टि की! उसने मुझसे कहा कि यद्यपि उसको मेरे साथ बहुत आनंद आता है, और वो मेरे साथ अपने सबसे स्वाभाविक रूप में होती है, लेकिन कभी कभी जब मैं उसको देखता हूँ, तो मेरी नज़र इतनी जलती हुई होती है कि वो खुद को मेरे सामने नग्न महसूस करती है। नग्न ऐसा कि जैसे उसका कोई राज़ ही न छुप सके! उसने यह भी बताया कि मेरे साथ आगे बढ़ने में उसको झिझक थी - और उसका मुख्य कारण था हमारे बीच उम्र का लम्बा चौड़ा फ़ासला! मुझे डेवी की बात समझ में आ रही थी! मैंने उसे बताया कि वो मुझे पसंद है, और मैंने उसको आश्वासन दिया कि मैं केवल उसे और बेहतर तरीके से जानना चाहता हूँ! यह साथ में खाने पीना सब उसको जानने का एक बहाना है! अगर हमको एक दूसरे की अच्छी समझ होती है, तो मैं उसको उसी नज़र से देखना पसंद करूँगा, जैसे कि दो प्रेमी करते हैं! वैसे भी अगर वो मेरी पत्नी बनती है, तो उसे मेरे सामने नग्न तो होना ही है! जब मैंने उससे यह सब कहा तो डेवी हैरान रह गई; लेकिन मेरी ईमानदारी से प्रभावित हुए बिना न रह सकी! सच में, प्रेम की परिणति विवाह में होती है, और विवाह की परिणति सम्भोग में! जीवन की सृष्टि तो ऐसे ही होती है न! लेकिन किसी लड़की से ये सब कहना और उसके लिए यह सब सुनना, कोई आसान बात नहीं है। डेवी भी यह सुन कर शरमा गई और घबरा भी गई। उसने मुझसे कहा कि इस बारे में फिर से बात करते हैं।

कुछ दिनों के बाद, मैंने उसे फिर से उसको डिनर के लिए आमंत्रित किया। इस बार उसने यह बहाना बनाया कि वो तभी मेरे साथ आएगी जब मैं उसे डिनर का खर्च शेयर करने दूंगा। मैंने कहा कि मुझे इस बात पर कोई आपत्ति नही है! बस मेरे साथ डिनर करने चलो तो सही! मुझे इस बात से कोई परेशानी नहीं अगर मेरी महिला गेस्ट अपना खर्च स्वयं वहन करे! डेवी मुझसे नौ साल बड़ी थी, इसलिए, मुझे यकीन है कि उसकी कमाई भी मुझसे कहीं अधिक थी, और संपत्ति भी! तो हमने फिर से तारीख निर्धारित किया। लेकिन एक बार फिर से वो उसी रोज़ देर तक काम में फंस गई।

क्या डेवी दिखावा कर रही थी? क्या वो फिर से कोई बहाना बना रही थी?

मुझे यह ठीक ठीक मालूम नहीं था, लेकिन मैं ठान लिया कि इस बार लड़की छूटने वाली नहीं! इसलिए मैंने उसके ऑफिस में रिसेप्शन पर उसका इंतजार करने का फैसला किया। आज का डिनर तो तय था! चाहे वो लाख बहाना मार ले! मैंने उस रात ऑफिस में साढ़े आठ बजे तक उसका इंतज़ार किया। जब वो ऑफिस से निकल कर रिसेप्शन तक आई, तो उसने देखा कि मैं वहां पहले से ही मौजूद था! मतलब, आज उसको कोई बचा नहीं पाएगा! डेवी अपने इस बचकाने व्यवहार के लिए मुझसे माफी मांगने लगी।

“आई ऍम सॉरी अमर!” उसने बहुत ही संजीदगी से माफ़ी मांगी, “मुझे नहीं मालूम कि मैंने ऐसा क्यों किया!”

“डेवी! नो नीड टू से सॉरी! आई कैन अंडरस्टैंड, सो प्लीज डोंट वरी! लेट अस ईट सम डिलीशियस फ़ूड!”

मैंने उसे समझाया कि यह केवल एक डिनर था - शादी नहीं! अगर वो मुझे पसंद नहीं करती है, तो बेशक मुझे छोड़ दे! लेकिन दो दोस्त साथ में खाना तो खा ही सकते हैं, न? डेवी ने सुझाव (जिद) दिया कि उसके घर के पास, एक ढाबे में डिनर करते हैं! उसने मुझे यकीन दिलाया कि वहाँ सबसे बढ़िया खाना मिलता है!

थोड़े ज़िद के बाद मैं उसे ढाबे पर खाना खिलने ले जाने के लिए तैयार हो गया; हाँलाकि किसी लड़की को पहली ‘डेट’ पर ले जाने के लिए कोई ढाबा मेरी पसंदीदा जगह नहीं थी! वहाँ पहुँचा तो कोई ख़ास व्यवस्था नहीं थी। कुछ टेबल और कुर्सियाँ थीं, और कुछ चारपाईयाँ! लेकिन मैंने एक बात नोटिस करी - वहाँ का भोजन ताजा था! बैठने की कोई अन्य जगह नहीं थी, इसलिए हम एक चारपाई पर ही बैठ गए - पालथी मार कर! हम दोनों के बीच सामान्य से बड़ी थालियाँ सजाई गईं। यह एक अनौपचारिक सेटअप था! और अब मुझे लग रहा था कि शायद डेवी देखना चाहती थी कि मेरे अंदर इन सब बातों को ले कर कोई दिखावा या ढोंग तो नहीं था! अक्सर छोटी छोटी बातें ही लोगों के असली चरित्र का प्रदर्शन करती हैं! लेकिन सच में, मुझे यह बंदोबस्त बढ़िया लगा! डेवी को भी मुझे आनंदित होते देख कर आनंद आने लगा। हम दोनों ही सरल लोग थे। खाना भी बिलकुल सरल और सादा था - चुपड़ी रोटियां, माँ की दाल, पनीर, आलू, रायता, और सलाद! साथ में लस्सी! और क्या चाहिए? खाना खाते खाते मैं कभी-कभी उसके हाथों और उसके घुटनों को छू लेता! एक बार मैंने उसकी उंगलियों को अपनी उँगलियों में एक मिनट से अधिक समय तक उलझा कर थामे रखा - डेवी ने कोई घबराहट नहीं दिखाई, जो कि एक उपलब्धि की तरह लग रहा था। शुरू-शुरू में वो थोड़ा घबराई हुई सी लग रही थी, लेकिन जैसे-जैसे डिनर संपन्न होता गया, वो काफी रिलैक्स्ड लग रही थी!

जब हमने खाना खा लिया, तो सोचा कि यूँ ही कुछ देर टहल लेते हैं।

न जाने क्यों मन में आ रहा था कि डेवी मेरे लिए सही लड़की है। उसके गुण गैबी से काफी अलग थे, लेकिन कई मामलों में वो उसके जैसी ही थी। मैंने मन में सोचा कि अगर प्यार पाना है, तो जोखिम तो लेना ही पड़ेगा!

“डेवी, क्या मैं तुमसे कुछ पूछ सकता हूँ?” मैंने कहा।

उसने मेरी तरफ देखा - बड़ी उम्मीद से। शायद उसको मालूम था कि मैं क्या कहने वाला हूँ।

“डेवी,” जब उसने कुछ देर तक कुछ नहीं कहा, तो मैंने कहा, “मैं तुम्हें पसंद करता हूं! नहीं केवल पसंद नहीं - मुझे लगता है कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ!”

“क़... क्या?”

“हाँ... और मुझे यकीन है कि हम दोनों की जोड़ी बढ़िया रहेगी!” मैंने कहा, “प्लीज, विल यू बी माय गर्लफ्रेंड ऑर फिऑन्सी! जो भी बनाना हो बना लो! और अगर मैं तुमको पसंद हूँ, तो मुझको अपना हस्बैंड बना लो!”

डेवी मेरी बात पर हँसने लगी।

“क्या हुआ?”

“कुछ नहीं!” उसने कहा फिर कुछ सोच कर बोली, “ओह अमर! तुम बहुत छोटे हो!”

“तो क्या? प्यार करता हूँ तुमको! प्यार से रखूँगा! बहुत खुश रखूँगा! इज़्ज़त से रखूँगा! कभी कोई ग़म तुमको छूने भी नहीं दूँगा!”

“सच में?”

“हाँ! तुम मेरे इरादे पर शक मत करो! तुम मुझे पसंद इसलिए नहीं हो कि तुम बहुत सुन्दर हो! बहुत सुन्दर तो तुम हो ही! लेकिन मैं तुमको इसलिए पसंद करता हूँ, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ अपना भविष्य देख सकता हूँ!”

“लेकिन अमर! अगर कुछ हो गया तो?”

“क्या हो जाएगा?”

“यार - आई ऍम थर्टी टू आलरेडी! कहीं बेबी होने में कोई दिक्कत...?”

“तो क्या हो जाएगा? अडॉप्ट कर लेंगे! तुम्हारे अंदर प्यार का सागर है - तुम किसी को भी अपना प्यार दे सकती हो!”

“पर... आई हैव हैड अनसक्सेसफुल रिलेशनशिप इन द पास्ट!”

“अरे, ताली दोनों हाथों से बजती है न? कोई भी रिलेशनशिप दोनों पार्टनर्स के कारण सक्सेसफुल या अनसक्सेसफुल होती है!”

“सोच लो! बाद में मुझे दोष मत देना!”

“डेवी - मैं एक विश्वास के साथ तुम्हारे संग होना चाहता हूँ! किसी संदेह के साथ नहीं। मेरी बस एक रिक्वेस्ट है - कि तुम भी एक विश्वास के साथ मेरे संग आओ! किसी संदेह के साथ नहीं!” मैंने उसका हाथ थाम कर कहा, “संहेद से तो केवल सम्बन्ध खराब होते हैं! बनते नहीं!”

डेवी मेरी बात पर कुछ देर विचार करती रही और फिर बोली, “तुम बहुत अच्छे हो अमर!”

मैं मुस्कुराया।

“नहीं, सच में! मैंने तुमको डराने की, तुमको खुद से दूर भगाने की कितनी ही कोशिश करी, लेकिन तुम टस से मस नहीं हुए! कोई और होता, तो मुझे धक्का दे कर भगा देता।” उसकी आँखों से आँसू ढलक गए, “आई लव यू!”

“आई लव यू टू!”

मैंने कहा, और उसके दोनों गालों को अपनी हथेलियों में दबा कर उसके होंठों को चूमने को हुआ!

“अभी नहीं!” उसने फुसफुसाते हुए मुझे मना किया, “मैं तुमको सारी खुशियाँ दूँगी, लेकिन मुझे कुछ समय दे दो!”

मैंने ‘हाँ’ में अपना सर हिलाया।

“अमर?”

“हाँ?”

“तुम समझ रहे हो न?”

“हाँ डेवी! तुम ऐसे क्यों पूछ रही हो! मेरी बस इतनी इच्छा है कि मेरे साथ तुम वैसे रहो, जैसे तुम चाहती हो!” मैंने उसका सर चूमा, “इंतज़ार करने के लिए मैं तैयार हूँ!”

“थैंक यू! मुझे बस थोड़ा ही समय चाहिए!” वो अपनी आँसुओं में मुस्कुराई, “तुम मेरे छोटे भाई जैसे हो! तुमको अपना बॉयफ्रेंड और हस्बैंड जैसा सोचने के लिए थोड़ा सा समय दे दो! बस!”

“हा हा हा हा!” मैं बड़े दिनों के बाद इस तरह से दिल खोल कर हँसा!

मुझे यह जानकर बहुत अच्छा लगा कि वो मेरे साथ एक गंभीर रिश्ते पर विचार कर रही है! यह बड़ा ही सुखद और गर्माहट देने वाला विचार होता है! लकी इन लव - बहुत कम लोगों को एक बार ही सच्ची मोहब्बत का चांस मिलता है! मुझको दुबारा मिल रहा था! आई वास् लकी इन लव!

मुझे मालूम था कि माँ और डैड को हमारे रिश्ते पर कोई आपत्ति नहीं होगी। इतना तो मुझे निश्चिंतता थी! देवयानी और मेरे विवाह पर उनका समर्थन और आशीर्वाद मिलना पूरी तरह से तय था! वे दोनों, और काजल भी, चाहते थे कि मुझे फिर से प्यार मिले। फिर से मेरा संसार बसे! वे सभी गैबी के निधन से बहुत दुःखी थे और चाहते थे, कि मैं जल्द ही अवसाद के गहरे गड्ढे से बाहर आ जाऊँ! इसलिए मेरे घर में तो कोई परेशानी नहीं होने वाली! लेकिन, मुझे यह नहीं पता था कि देवयानी के घर में क्या मामला होगा! जहाँ तक मुझे मालूम था, उसका परिवार बहुत पारंपरिक और रूढ़िवादी था! मुझे उसी ने बताई थीं। इसलिए संभव है कि मेरे और देवयानी के प्रेम को हतोत्साहित किया जा सकता है! ऊपर से मेरी पहले ही एक बार शादी हो चुकी थी और मैं विधुर था! तीसरी बड़ी बात यह थी कि मैं देवयानी से नौ साल छोटा था। यह सभी बातें मेरे खिलाफ लग रही थीं। फिर भी वह सब मुझे बहुत दुष्कर नहीं लग रहा था। प्यार बहुत मज़बूत वस्तु होता है। मुझे मालूम था - या कहिए कि यकीन था, कि अगर डेवी मेरे साथ खड़ी हो, तो ये सब बातें बिलकुल भी मायने नहीं रखतीं।
 

avsji

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Supreme
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तो दोस्तों, अमर की ज़िन्दगी के सफ़र में एक नया चैप्टर शुरू हो गया है! पढ़ कर बताएँ कि उपदेट्स कैसे लगे?
अब तक इस कहानी में 2.11 लाख शब्द लिखे जा चुके हैं (लिखे थे खैर इससे अधिक गए हैं - लेकिन बहुत से काट दिए हैं इस कहानी में)!
काफ़ी मेहनत लग गई है। इसलिए पढ़ने वाले पाठकों से निवेदन है कि कमेंट करने या अपने रिएक्शन दर्ज़ करने में कंजूसी बिलकुल भी न करें!
इससे लिखने में मन बना रहता है :)
कोई सुझाव हो तो वो भी लिखें! इससे कई बार कहानी का थोड़ा अलग ही, और रोचक रूप निकल आता है!
लेकिन साथ बने रहें, engaged रहें! मज़ा तो तभी है इस सफ़र का! नहीं तो मेरे लिए suffer ही होगा! 😅
 
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