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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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avsji

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इस तरह से मैंने अपनी कहानी में गानों से भाव आदान-प्रदान करा था सुकुमार अंकल और गायत्री आंटी जी के बीच पर कहानी की लंबाई का ध्यान रखते हुए मैं वह कांट छाँट कर दी थी
पर आपका यह अंक पढ़ा
बहुत अच्छा लगा इन्हें रोकिएगा मत
दिल में छाले पड़ जाएंगे

आपके पोस्ट से पता चला कि आप काम में व्यस्त थे, इसीलिए नहीं आ पा रहे थे।
सच में, आपके स्वास्थ्य की चिंता होने लगी थी।

आपको ये गाने इत्यादि अच्छे लगे? बहुत अच्छी बात है।
मैंने 'संयोग का सुहाग' में, और उसके पहले 'कायाकल्प' में यह प्रयोग किया था :)
अगर पसंद आया तो यह प्रयोग जारी रहेगा। 🙏

द्वंद और अंतर्द्वंद
युक्ति और प्रतियुक्ती
वात्सल्य और प्रेम
सत्य और विडंबना
अब और क्या कहूँ मैं भौचक्का रह गया हूँ

विकट समस्या है भाई! बड़ी विकट!
एक सुधी पाठको को यह विचार इतना घृणास्पद लगा कि उन्होंने कहानी से ही विदा ले ली।
सोचिए, किरदारों के मन में क्या द्वंद्व चल रहा होगा? :)

मानवीय भावनाओं के और संबंधों के भंवर में फंसे मानसिक स्थिति की अद्भुत प्रस्तुति करण है
मैं आपके इसी लेखन शैली का ही तो जबरदस्त प्रशंसक हूँ
मुझे कभी कभी लाज़वाब कर देते हैं

भाई आप मेरे लेखन के प्रशंसक इसलिए हैं कि आपको मुझसे स्नेह है।
ऐसा कुछ लिखता नहीं। आपने देखा ही होगा कि हाल फिलहाल कैसी छीछालेदर हुई है मेरी :)
और तो और, कहानी से पाठक भी बड़ी तेजी से गायब होते जा रहे हैं।
आश्चर्य है न - जब से मैंने बेहद रेगुलर तरीके से अपडेट देने शुरू किए, तब से पाठक ही अपडेट होने बंद हो गए! हा हा हा!
 
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avsji

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इस तरह से मैंने अपनी कहानी में गानों से भाव आदान-प्रदान करा था सुकुमार अंकल और गायत्री आंटी जी के बीच पर कहानी की लंबाई का ध्यान रखते हुए मैं वह कांट छाँट कर दी थी
पर आपका यह अंक पढ़ा
बहुत अच्छा लगा इन्हें रोकिएगा मत
दिल में छाले पड़ जाएंगे

आपके पोस्ट से पता चला कि आप काम में व्यस्त थे, इसीलिए नहीं आ पा रहे थे।
सच में, आपके स्वास्थ्य की चिंता होने लगी थी।

आपको ये गाने इत्यादि अच्छे लगे? बहुत अच्छी बात है।
मैंने 'संयोग का सुहाग' में, और उसके पहले 'कायाकल्प' में यह प्रयोग किया था :)
अगर पसंद आया तो यह प्रयोग जारी रहेगा। 🙏

द्वंद और अंतर्द्वंद
युक्ति और प्रतियुक्ती
वात्सल्य और प्रेम
सत्य और विडंबना
अब और क्या कहूँ मैं भौचक्का रह गया हूँ

विकट समस्या है भाई! बड़ी विकट!
एक सुधी पाठको को यह विचार इतना घृणास्पद लगा कि उन्होंने कहानी से ही विदा ले ली।
सोचिए, किरदारों के मन में क्या द्वंद्व चल रहा होगा? :)

मानवीय भावनाओं के और संबंधों के भंवर में फंसे मानसिक स्थिति की अद्भुत प्रस्तुति करण है
मैं आपके इसी लेखन शैली का ही तो जबरदस्त प्रशंसक हूँ
मुझे कभी कभी लाज़वाब कर देते हैं

भाई आप मेरे लेखन के प्रशंसक इसलिए हैं कि आपको मुझसे स्नेह है।
ऐसा कुछ लिखता नहीं। आपने देखा ही होगा कि हाल फिलहाल कैसी छीछालेदर हुई है मेरी :)
और तो और, कहानी से पाठक भी बड़ी तेजी से गायब होते जा रहे हैं।
आश्चर्य है न - जब से मैंने बेहद रेगुलर तरीके से अपडेट देने शुरू किए, तब से पाठक ही अपडेट होने बंद हो गए! हा हा हा!
 
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अंतराल - पहला प्यार - Update #3

शाम को :


शाम की चाय काजल ने बनाई। माँ ‘मन अच्छा न होने’ का बहाना बना कर अपने ही कमरे में बैठी हुई थीं, लेकिन काजल ने लतिका को भेजा कि ‘मम्मा’ को बाहर लिवा लाए। वैसे तो माँ किसी से भी नाराज़ नहीं होतीं, लेकिन अगर कभी उनका मन दुःखी होता, तो लतिका ही भेजी जाती थी उनको मनाने के लिए।

लतिका उनकी इतनी अधिक चहेती थी कि उसकी कोई भी बात वो कभी टाल ही नहीं सकती थीं! न जाने क्या जादू था लतिका में! वो अगर उनको इतना कह भर दे कि ‘मम्मा, दसवीं मंज़िल से कूद जाओ’, तो माँ कूद जातीं। पूछती भी न कि लतिका ने उनसे वैसा करने को क्यों कहा। इतना प्यार और इतना विश्वास था उनको अपनी पुचुकी पर! उम्मीद के अनुसार ही, कुछ ही देर के बाद वो लतिका के साथ अपने कमरे से बाहर आ गईं और उससे स्कूल और होमवर्क इत्यादि के बारे में बातें करने लगीं।

माँ को देख कर काजल उनको छेड़ते हुए बोली, “क्या दीदी, मुझको कह रही थी कि अब से सुनील के लिए चाय तुम ही बनाओगी - लेकिन देखो, यहाँ तो मुझे ही बनानी पड़ रही है!”

माँ ने खाली आँखों से काजल को देखा, जैसे कह रही हों, ‘छोड़ दो न मुझे दो पल के लिए!’

काजल ने भी माँ के मन की बात को समझ लिया और अपनी गलती मान भी ली।

“ओह सॉरी सॉरी!” फिर कुछ देर बाद वो चाय के कपों में चाय छानती हुई बोली, “सुनील बेटा, मैं सोच रही थी कि तुम्हारे जॉब ज्वाइन करने से पहले हम सभी कहीं घूम आते हैं!”

“आईडिया तो अच्छा है अम्मा, लेकिन कहाँ?” सुनील ने सामान्य होते हुए कहा, “तुम्हारे मन में कोई जगह है बढ़िया घूमने वाली?”

“अरे, कहीं भी चल सकते हैं न आज कल तो! मसूरी, नैनीताल, कौसानी - कहीं भी! कितनी सारी तो सुन्दर सुन्दर जगहें हैं पास में! और पहाड़ों पर मौसम भी तो कितना अच्छा है आज कल!”

“हाँ अम्मा, पहाड़ों पर जाने के लिए मौसम अच्छा तो है!” सुनील ने उत्साह से कहा।

“क्या कहती हो, दीदी?”

“अ ह हाँ?” माँ अपनी सोच की गहराईयों से निकलते हुए कहा।

“मैंने कहा कि हम लोग कहीं घूमने चलते हैं! तुम सुन भी रही हो मेरी बात? क्या हुआ दीदी?” काजल ने मनुहार करते हुए कहा, “अभी भी गुस्सा हो क्या?”

“क कुछ नहीं। कुछ भी तो नहीं हुआ! नहीं गुस्सा वुस्सा नहीं हूँ!” माँ ने अचकचाते हुए कहा, “घूम आओ तुम सभी!”

“घूम आओ तुम सभी का क्या मतलब है? तुम नहीं चलोगी?”

“पता नहीं!” माँ ने बात को टालते हुए कहा।

“क्या अम्मा, पहले प्लान तो बन जाने दो! अभी तो जगह का नहीं मालूम है, डेट्स का नहीं मालूम है। वो सब प्लान कर लेते हैं, फिर हम सभी चलेंगे!” सुनील ने माँ की तरफ़ बड़े अधिकार से देखा, और उत्साह से कहा।

माँ ने अपनी नज़रें चुरा लीं।

“हाँ, कुछ ही दिनों में मिष्टी और पुचुकी का स्कूल भी बंद हो जाएगा, फिर चल सकते हैं! क्यों, ठीक है न दीदी?”

“अब मैं क्या कहूँ! तुम लोग देख लो।” माँ इस समय बहस में नहीं पड़ना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने हथियार डाल दिए।

“क्या हो गया तुमको दीदी? दोपहर से ही ऐसे उखड़ी उखड़ी हो?”

“क... कुछ नहीं। कुछ भी तो नहीं!” माँ ने अचकचाते हुए कहा, “कहाँ उखड़ी उखड़ी हूँ! ठीक तो हूँ!”

“बात तो अम्मा तुम ठीक कह रही हो। उखड़ी उखड़ी तो हैं!” सुनील ने कहा और मौके पर अपना दाँव फेंका, “आप चाय पी लीजिए, उसके बाद मैं आपके सर की मालिश कर देता हूँ!”

“न... नहीं नहीं! उसकी कोई ज़रुरत नहीं। मैं ठीक हूँ।” माँ सुनील की बात से ही घबरा गईं।

“अरे कहाँ ठीक हो! बोल रहा है न - कर देगा न तुम्हारे सर की मालिश। तो उसको कर लेने दो न! तुम भी न दीदी!” फिर काजल ने व्यंग्य का पुट देते हुए सुनील से कहा, “कभी कभी मेरे सर की भी मालिश कर दिया कर! या सारी कला दीदी के लिए ही बचा रखी है?”

अपनी अम्मा की बात पर सुनील झेंप गया, लेकिन लतिका खिलखिला कर हंसने लगी।

“हाँ मम्मा! दादा खूब बढ़िया मालिश करते हैं!” लतिका ने भी सिफारिश लगा दी, “करवा लीजिए!”

अगर लतिका नामक ब्रम्हास्त्र चल गया, तो माँ की पराजय निश्चित है! उसके बाद उनसे विरोध करते नहीं बनता था। माँ ने कुछ नहीं कहा - न तो हामी भरी और न ही विरोध!

तो, चाय के बाद सुनील माँ के सर की मालिश करने लगा - उनके कमज़ोर विरोध करने के बावज़ूद। अच्छी बात यह थी कि पास ही में पुचुकी भी मौज़ूद थी, इसलिए माँ थोड़ा अधिक सुरक्षित, थोड़ी अधिक आश्वासित महसूस कर रही थीं। अब उनको सुनील के साथ अकेले रहने में थोड़ा कम असहज महसूस हो रहा था। पुचुकी एक तरह का सुरक्षा कवच थी उनका! लेकिन माँ को अभी तक अंदाजा भी नहीं था कि सुनील उनको किस किस तरह से अचंभित कर सकता है। माँ ने अपने बालों को जूड़े में बाँध रखा था। उसने मालिश करते हुए उनका जूड़ा खोल दिया। न जाने क्यों, माँ का दिल उसकी इस हरकत से तेजी से धड़कने लगा।

“मम्मा,” पुचुकी की आवाज़ सुन कर उनको थोड़ी राहत हुई, “इस चैप्टर का मीनिंग समझा दीजिए?” कह कर उसने अपनी अंग्रेजी की किताब माँ की ओर बढ़ा दी।

पुचुकी की इस बात से माँ को बड़ी राहत मिली - कम से कम अब उनका ध्यान सुनील की हरकतों से हट सकता था। उन्होंने किताब हाथ में ली, और पुचुकी को हर लाइन का अर्थ समझाने लगीं।

सुनील बड़े प्रेम से सुमन और पुचुकी के वार्तालाप को सुन और देख रहा था। सुमन कितने अंतर्भाव और कितने प्रेम से पुचुकी को समझाती है! कुछ चीज़ें पुचुकी एक बार में नहीं समझ पाती, और कई कई बार पूछती है, लेकिन फिर भी सुमन को उसके प्रश्नों से ऊब नहीं होती। वो उतने ही धीरज से, अलग अलग तरीके से, अलग अलग उदाहरण दे कर उसको समझाती!

मालिश करते हुए सुनील पुचुकी और सुमन की आपस में तुलना किए बिना न रह सका। उन दोनों को देख कर वाकई ऐसा लगता था कि जैसे पुचुकी, सुमन का छोटा रूप ही हो - शायद सुमन की ही बेटी। सच में - पुचुकी अम्मा की बेटी कम, और सुमन की बेटी अधिक लगती थी। हाँ, पुचुकी रंग में साँवली ज़रूर थी, लेकिन उसका व्यवहार बिलकुल उसकी सुमन जैसा था - बिलकुल सुमन का ही भोलापन, निश्छलता, निष्कपटता, दयालुता, मृदुभाषा, ममता, स्नेह, और न जाने कौन कौन से गुण! और लगती थी वो खूब प्यारी - बड़ी हो कर वो बहुत सुन्दर सी लड़की होने वाली थी, यह बात कोई भी कह सकता था! सुमन उसकी देखभाल अपनी खुद की ही बेटी के जैसी ही कर रही थी, और उसकी पूरी छाया पुचुकी पर पड़ी थी। कोई भी अगर दोनों से अलग अलग बातें कर ले, तो उसको ऐसा ही लगता कि दोनों माँ बेटी हैं! सुमन के सारे गुण पुचुकी में आ गए थे! कैसा सौभाग्य है!

‘किसी बड़े ही किस्मत वाले को मिलेगी मेरी बहन!’ सोच कर वो मन ही मन आह्लादित हो गया।

सुनील लतिका के लिए बड़ा भाई कम, और उसके पिता समान अधिक था। लेकिन इस समय वो एक प्रेमी भी था - सुमन का प्रेमी। तो अगर वो पुचुकी के पिता समान था और तो सुमन उसकी माता समान थी! कितनी अच्छी बात हो अगर वो और सुमन दोनों सचमुच के विवाह बंधन में बंध जाएँ! यह सोच कर सुनील मुस्कुराने लगा।

बस कुछ दिनों पहले ही सुनील ने अपने मन के राज़ अपनी नन्ही सी बहन के सामने खोल दिए थे। जब लतिका ने सुना कि उसके दादा को उसकी मम्मा प्रेम है, और उनसे शादी करने की इच्छा है, तो वो ख़ुशी से फूली न समाई! अपनी मम्मा को अपनी बोऊ-दी (भाभी) के रूप में पाना कितना सुखद अनुभव होगा! ऐसी बोऊ दी किसको नहीं चाहिए होती, जो अपनी ननद को अपनी बेटी के जैसा प्यार और दुलार दे, उसके साथ खेले, उसको अच्छे संस्कार दे? संसार भर में भाभी-ननद, सास-बहू के बीच की कलह प्रसिद्ध है। लेकिन उसकी मम्मा तो सौम्यता की देवी हैं! मन तो लतिका का था कि सबको ये बात बता दे! लेकिन सुनील से उसने वायदा किया था कि वो किसी से ये बात नहीं कहेगी, जब तक सुनील उसको कहने को नहीं कहता। ठीक है - राज़ को राज़ बनाए रखा जा सकता है, लेकिन फिर भी, वो मम्मा और दादा को साथ में बैठा तो सकती ही है न?

उधर सुमन, पुचुकी को वो चैप्टर अनुवाद कर के ठीक से समझा रही थी।

सुनील सोचते हुए मुस्कुराने लगा, ‘अम्मा पुचुकी को ले कर कैसी आश्वस्त है! यहाँ रहते हुए उनको कभी किसी बात की चिंता ही नहीं हुई!’

काजल ने कई बार सुमन और बाबूजी के बारे में, उनके संघर्ष, उनके त्याग की कई सारी कहानियाँ सुनील को सुनाई थीं। सुनील को बस यही समझ में आता कि कैसे दोनों ने ही दूसरों के हित के लिए कभी अपनी परवाह नहीं करी। ऐसे लोगों को तो दुनिया जहान का सुख मिलना चाहिए! है न? लेकिन देखो - बाबूजी को यूँ अचानक ही ईश्वर के पास जाना पड़ा! और सुमन इतनी कम उम्र में विधवा हो गई! ये भी कोई न्याय हुआ भला?

‘हे प्रभु, कुछ करें! अपना आशीर्वाद मुझे दें! सुमन तो आपकी सबसे प्रिय पुत्री है। यदि आपको लगता है कि मैं उसके लायक हूँ, तो मुझे उसका जीवनसाथी बनने का मौका दें, सुख दें, और आशीर्वाद दें!’ उसने मन ही मन प्रार्थना की।

“मम्मा,” पुचुकी ने पूछा, “इसको कैसे प्रोनाउन्स करते हैं? पिसीचे?”

पुचुकी की बात पर सुनील हँसने लगा - अंग्रेजी होती भी तो है बड़ी भ्रामक!

सुमन पुचुकी की भोली सी बात पर बड़े प्रेम से मुस्कुराई, “नहीं बेटा, इसको साइके कहते हैं - और इसका मतलब होता है, मानसिकता!” और सुनील को चुप कराने की गरज से आगे कहती हैं, “अपने दादा के हँसने पर ध्यान मत दो!”

नो प्रॉब्लम मम्मा! आप भी तो दादा के जोक्स पर खूब हंसतीं हैं!”

माँ से इस विषय पर और कुछ कहा नहीं गया, और वो वापस उसको समझाने लगीं।

सुनील ने कुछ देर सुमन को पुचुकी को इस तरह, प्रेम से, दुलार से समझाते हुए देखा, तो उससे रहा नहीं गया। उसके भी मन में ‘अपनी’ सुमन के लिए दुलार आने लगा! वो जल्दी ही माँ की आशंकाओं के अनुरूप ही काम करने लगा,

“सुमन,” सुनील ने माँ के कान के पास फुसफुसाते हुए कहा, “आपके बाल भी बहुत सुन्दर हैं... बिलकुल आपके ही के जैसे!”

उसकी बात पर माँ ने कुछ कहा तो नहीं, लेकिन अंदर ही अंदर वो सकुचाने लगीं, और वहाँ से खिसकने की सोचने लगीं।

“इनको खुला रखा करो न!” उसने इस बार थोड़ा ऊंची आवाज़ में कहा, जिससे पुचुकी भी सुन ले।

पुचुकी तो सुनील की राज़दार थी।

“हाँ, मम्मा, आप अपने बाल खुले रखा करिए न!” पुचुकी ने चहकते हुए कहा, “दादा बिलकुल ठीक कह रहे हैं! आप खूब सुन्दर लगती हैं! खूब शुन्दोर!” उसने अपनी बाल-सुलभ चंचलता और भोलेपन से कहा।

लेकिन इस बार पुचुकी की बात उनको संयत न कर सकी।

“मैं जाती हूँ!” माँ ने सकुचाते हुए, धीमी आवाज़ में कहा, “बाकी का बाद में पढ़ा दूँगी!” और उठने लगीं।

“सुमन...” सुनील ने आहत होते हुए कहा, “रुकिए न! प्लीज्!” उसने माँ को कन्धों से पकड़ कर बैठे रहने को कहा, “अगर मैंने आप से कोई बदतमीज़ी की हो, तो उसके लिए माफ़ी माँगता हूँ। लेकिन आप ऐसे उखड़ी उखड़ी मत रहिए प्लीज!”

“नहीं रहूँगी!” माँ ने दीर्घश्वास लिया और कहा, “लेकिन, अभी मुझे जाने दो!”

सुनील के कोमल मन में कचोट सी उठी - लेकिन उसको इस दिशा में पहला कदम लेने से पहले ही मालूम था कि अपने प्यार के लिए माँ की ‘हाँ’ पाना कठिन काम रहेगा। चाहता तो लतिका का सहारा वो ले सकता था माँ वो वहीं बैठाए रखने के लिए। लेकिन वो चाहता था कि माँ उसके प्रेम की शक्ति के कारण उसके साथ रहें, किसी ज़ोर जबर्दस्ती के कारण नहीं!

उसने पीछे से ही माँ के गले में अपनी बाहें डालीं और उनके सर को चूम लिया!

आई लव यू!” वो उनके कान में फुसफुसाया।

माँ ने गहरी साँस भरी, और उठ कर चली गईं।

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अंतराल - पहला प्यार - Update #4

अगली रात को :


लोग कहते हैं न कि किसी बात पर उनकी रातों की नींद उड़ गई।

तो वही माँ के साथ भी हो रहा था। सुनील की बातों से उनकी नींद ही उड़ गई। शाम से ही उनको अजीब सा लग रहा था। पेट में एक अजीब सी अनुभूति हो रही थी, कि जैसे कोई गाँठ पड़ गई हो। कल तक जिस सुनील को देख कर उनको मुस्कराहट आ रही थी, अब उसी सुनील को देख कर उनको घबराहट होने लगती - उसकी उपस्थिति से उनकी साँसे उखड़ने लगतीं। जब भी वो सुनील को अपनी तरफ देखते देखतीं, वो झट से अपनी नज़रें या तो नीचे झुका लेतीं या फिर नज़रें फ़िरा लेतीं। कोशिश उनकी यही रहती कि सुनील के संग अकेली न रहें - कोई न कोई साथ में रहे अवश्य। लेकिन यह आँख-मिचौली का खेल बेहद थकाऊ था। ऐसे एक दूसरे को नज़रअंदाज़ करते हुए एक छत के नीचे रहा नहीं जा सकता था।

सुनील की प्रेम उद्घोषणा ने माँ के विचारों को हिला कर रख दिया। पिछले कई घंटों से सुनील को ले कर उनके विचारों में द्वन्द्व छिड़ गया था। जितनी बार भी वो उसके बारे में सोचतीं, हर बार वो एक पुरुष के रूप में ही दिखाई देता - पुत्र के रूप में नहीं। उनको खुद पर शर्म आ रही थी कि न जाने कब और कैसे सुनील उनके लिए ‘बेटा’ न रह गया। एक गहरी कश्मकश चल रही थी उनके मन में!

इसी कश्मकश के चलते, आज दिन भर माँ का दैनिक कार्यक्रम अस्त-व्यस्त रहा। जानबूझ कर वो सवेरे ब्रिस्क वाकिंग करने नहीं गईं। नाश्ता और लंच भी ऐसे वैसे ही रहा। बहाना कर के मैटिनी वाली गपशप भी नहीं होने दी। आज का डिनर भी उनसे ठीक से नहीं हो पाया।

मैंने माँ को ऐसे देखा : एक पल के लिए मुझे लगा कि शायद उनका डिप्रेशन वाला एपिसोड चल रहा है। लेकिन बहुत सारे लक्षण अलग थे। मुझे भी यही दिखाई दिया कि सुनील के अतिरिक्त सभी के साथ वो सामान्य तरीके से ही व्यवहार कर रही थीं। वैसे भी, मुझे नहीं लगा कि कुछ सीरियस है, इसलिए मैंने कुछ कहा नहीं। काजल और सुनील के कारण ही माँ का डिप्रेशन समाप्त हुआ था - इसलिए मुझे उनके मामले में दख़लअंदाज़ी का कोई औचित्य नहीं सूझा। मुझे कल जल्दी ऑफिस के लिए निकलना था, इसलिए जल्दी से खा पी कर सो गया।

उधर माँ को नींद नहीं आ रही थी। बिस्तर पर आधे लेटी हुई वो आज की ही बातों को ले कर किसी उधेड़बुन में उलझी हुई थीं।

‘कैसे हो गया ये सब?’

‘क्या कर दिया मैंने कि वो मेरे बारे में ऐसा सोचने लगा?’

‘कहीं मैंने ऐसा कुछ बोल तो नहीं दिया कि वो मुझको ऐसे देखने लगा?’

‘कहीं उसने मुझे ऐसी वैसी हालत में तो नहीं देख लिया कभी?’

‘कहीं कॉलेज में उसका ऐसे वैसे लोगों के साथ उठना बैठना तो नहीं होने लगा?’

माँ ने बहुत सोचा, बहुत ज़ोर डाला अपने दिमाग पर, लेकिन उनको कोई वाज़िब उत्तर नहीं मिल सका। डेढ़ दो घंटे के गहन विचार के बाद न तो वो अपने व्यवहार में ही कोई कमी ढूंढ सकीं और न ही सुनील के। कोई अगर किसी को पसंद करता हो, तो उस पर किसी अन्य का ज़ोर थोड़े ही चलता है! इसमें किसी में कोई कमी होने का सवाल ही नहीं उठता। जब वो इस तर्क वितर्क से थक गईं तो उनका दिमाग अब किसी और दिशा में चलने लगा।

‘कैसा हो अगर वो फिर से शादी कर लें?’

‘अमर और काजल भी तो यही चाहते हैं!’

‘एक विधवा के जैसे इतनी लम्बी लाइफ अकेले कैसे जियूँगी?’

‘इस बार अमर या काजल कहेंगे तो मैं शादी के लिए हाँ कह दूँगी!’

‘कम से कम इस शर्मिंदगी से तो छुटकारा मिलेगा!’

‘लेकिन केवल शर्मिंदगी से बचने के लिए किसी से भी तो शादी नहीं की जा सकती!’

‘शर्मिंदगी? कैसी शर्मिंदगी?’

‘सुनील के संग होने से शर्मिंदगी क्यों होने लगी?’

‘सुनील में कमी ही क्या है?’

‘मुझमें क्या कमी है?’

‘अच्छा ख़ासा लड़का तो है! देखा समझा हुआ भी है! नोन डेविल इस बेटर दैन एन अननोन डेविल!’

‘लेकिन उसको मुझमें क्यों इंटरेस्ट है? मैंने तो माँ के जैसे उसको पाला है!’

माँ यही सब सोच सोच कर हलकान हुई जा रही थीं कि दरवाज़े पर दस्तक हुई। माँ ने घड़ी देखी - रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे!

‘इस समय कौन?’ उन्होंने सोचा, और प्रत्यक्षतः कहा, “आ जाओ!”

लेकिन कहते ही उनके दिल में धमक उठी कि कहीं सुनील न हो दरवाज़े पर! अगर वो हुआ, तो वो क्या करेंगीं - माँ यही सोच रही थीं कि दरवाज़ा खुलने पर काजल को देख कर उनको राहत की साँस आई।

“दीदी, अभी तक सोई नहीं?” जाहिर सी बात थी, कि नींद तो काजल को भी नहीं आ रही थी।

“ओह काजल? नहीं! नींद ही नहीं आ रही है!”

“क्या हो गया?”

“तुम क्यों नहीं सोई?”

“पता नहीं!” काजल मुस्कुराते हुए बोली, “न जाने क्यों तुम्हारे पास आने का मन हुआ! इसलिए इधर चली आई - देखा तो लाइट ऑन थी!”

हाँ - कमरे की बत्ती जल तो रही थी। माँ को ध्यान भी न रहा।

“थैंक यू काजल!” माँ ने बड़ी सच्चाई से कहा - उनको सच में किसी दोस्त की आवश्यकता थी, और काजल से अच्छी दोस्त उनकी कोई और नहीं थी।

“अरे दीदी! तुम भी न!” कहते हुए काजल माँ के निकट, उनके बिस्तर पर आ कर लेट गई।

“अमर सो गया?” माँ ने मुस्कुराते हुए पूछा।

“हाँ, बहुत पहले!”

“जानती है, तुम दोनों को साथ में देखती हूँ तो बहुत अच्छा लगता है मुझको!”

काजल ने कुछ कहा नहीं - वो बस मुस्कुराई।

“तुम दोनों एक हो जाओ - मेरी तो बस यही तमन्ना है अब!”

“हा हा! दीदी! तुम फिर से शुरू हो गई! बताया तो है तुमको!”

“हाँ हाँ! बताया है! बताया है! लेकिन मैं अपने मन का क्या करूँ?”

“जैसा अभी है, वैसे में क्या गड़बड़ है?”

“कुछ गड़बड़ तो नहीं है! लेकिन मन में होता है न कि तू हमेशा मेरे में साथ रहे!” माँ की आँखें भरने लगीं, “तुमने हमारे लिए इतना कुछ किया है कि अब तुम्हारे बिना मैं सोच भी नहीं सकती!”

सुबकते हुए वो बोलीं, “बहुत सेल्फ़िश हूँ मैं शायद! डर लगता है कि कहीं ऐसा वैसा कुछ न हो जाए, और तुमसे मेरा साथ छूट जाए!”

“क्या दीदी! ऐसे क्यों सोचती हो? और, मैंने क्या ही किया है? और जो तुमने किया है हमारे लिए? वो? वो कम है क्या?” काजल भी भावुक हो कर बोली, “मैं कहाँ चली जा रही हूँ?”

माँ ने कुछ कहा नहीं; बस उनकी आँखों से तीन चार आँसू टपक पड़े।

“ओ मेरी दीदी! क्या हो गया तुमको?”

माँ ने कुछ देर कुछ नहीं कहा, लेकिन फिर सिसकते हुए, लगभग फ़रियाद करते हुए बोली, “काजल तुम हमेशा मेरे साथ रहना!”

“हमेशा दीदी!!” काजल ने माँ को आलिंगन में भरते हुए कहा, “क्या सोच रही हो? देखो, मेरी तरफ देखो! दीदी, चाहे कुछ भी हो जाए, मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगी!”

काजल के पास होने मात्र से माँ को बड़ी राहत मिल गई। उनके मस्तिष्क में जो झंझावात चल रहे थे, वो शांत होने लगे।

“थैंक यू काजल!”

“अरे बस बस! चलो, अभी लेट जाओ!” कह कर काजल ने माँ को बिस्तर पर लिटा दिया, “और सोने की कोशिश करो!”

माँ भी किसी आज्ञाकारी लड़की की तरह काजल की बात मान कर लेट गईं। कुछ देर तक काजल माँ को थपकी दे कर सुलाने की कोशिश करती रही, लेकिन जब माँ को अभी भी नींद नहीं आई, तो काजल ने ही कहा,

“और मुझे तो शादी करने को हमेशा बोलती रहती हो! खुद क्यों नहीं करने की कहती? जैसी तुम हो, वैसी मैं भी तो हूँ?!”

“हा हा हा हा! अभी तो बोल रही थी कि कभी मेरा साथ नहीं छोड़ोगी! और अभी कह रही हो शादी कर लो!”

“अरे हाँ न! शादी करने से क्या हुआ? तुम्हारे दहेज़ में आऊँगी न तुम्हारे साथ ही! हा हा हा हा!”

दोनों स्त्रियाँ दिल खोल कर हँसने लगीं। माँ का मन बहुत हल्का हो गया।

“सच में दीदी! कर लो न शादी! मैं रही हूँ अकेली - मुझे मालूम है! अच्छा नहीं लगता! खालीपन सा रहता है। एक मनमीत होना चाहिए साथ!”

“अच्छा! कुछ भी कहेगी अब तू! अमर ने कब अकेला छोड़ा तुमको?”

“दीदी!!” काजल ने बनावटी नाराज़गी दिखाते हुए कहा, “तुम भी न! हम दोनों के बीच में ‘वो सब’ बहुत कम होता है अब! मेरा उनको देखने का नज़रिया बहुत चेंज हो गया है।”

“अरे, ऐसा क्या हो गया?” माँ को आश्चर्य हुआ।

“हाँ न! और आज से नहीं, बहुत दिनों से! अब वो पहले वाली बात नहीं रही। ऐसा नहीं है कि हम दोनों एक दूसरे से प्यार नहीं करते! बहुत करते हैं। लेकिन उस प्यार का रंग बदल गया है, रूप बदल गया है। हमने सेक्स भी केवल तीन चार बार ही किया होगा पिछले चार पाँच महीनों में। वो भी इसलिए कि या तो वो या फिर मैं बहुत परेशान थे उस समय, इसलिए बस, एक दूसरे को शांत करना ज़रूरी था।”

माँ को इस खुलासे पर बेहद आश्चर्य हुआ, “सही में काजल?”

काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

माँ ने निराशा में सर हिलाते हुए कहा, “अरे यार! मैं तो तुम दोनों के ब्याह के सपने देख रही थी, और यहाँ ये सब...”

“अरे कर लूँगी ब्याह! थोड़ी मेहनत कर के कोई और दूल्हा लाओ मेरे लिए!” काजल हँसते हुए बोली, “अमर जैसा कहाँ मिलेगा, लेकिन उसके आस पास भी फटकने वाला कोई मिल गया, तो कर लूँगी!”

“हम्म!” माँ सोच में पड़ गईं।

काजल थोड़ा ठहरी, फिर आगे बोली, “और मैं ही क्या, तुमको भी शादी करनी चाहिए। हम दोनों की कोई उम्र है, यूँ ही, अकेले अकेले रहने की?” काजल ने फिर से अपनी बात में मज़ाक घोलते हुए कहा, “दो दो बच्चे जनने की ताकत तो अभी भी है हम दोनों में! क्या दीदी?”

“हा हा हा!”

“झूठ कह रही हूँ क्या!”

“तू भी न काजल!”

“तुम सीरियसली नहीं लेती मेरी बातों को! देखो दीदी, मैं इसीलिए कह रही हूँ, कि जवान शरीर की ज़रूरतें होती हैं!”

काजल ने अर्थपूर्ण तरीके से कहा - हाँ शरीर की ज़रूरतें तो होती ही हैं। दो साल हो गए थे माँ को सम्भोग का आनंद लिए हुए। इन दो सालों में केवल दुःख ही दुःख मिले। उनकी चहेती बहू को कैंसर हो गया और उसकी मृत्यु हो गई। उसके सदमे से उनके पति भी चल बसे! माँ ने अपने दिनों को बच्चों की देखभाल में स्वाहा कर दिया, लेकिन रात में, जब अकेलापन सालता, तो बहुत ही बुरी तरह! शरीर की आवश्यकताएँ तो होती हैं!

माँ ने मन ही मन काजल को कोसा उन आवश्यकताओं को याद दिलाने के लिए! लेकिन वो यह सब प्रत्यक्ष रूप से कह नहीं सकती थीं।

“हट्ट, बड़ी आई शरीर की ज़रूरतों वाली!”

“और बात केवल सेक्स की ही नहीं है,” काजल बोली जैसे उसने माँ की बात ही न सुनी हो, “कोई मनमीत तो मिलना चाहिए! है न? इतनी लाइफ पड़ी हुई है! उसको जीने के लिए अच्छे साथी की ज़रूरत तो होती ही है - जो तुम्हे अच्छी तरह समझे, तुमसे खूब प्यार करे! तुम्हारी लाइफ में खुशियों के नए नए रंग भर दे!”

“हाँ हाँ! और कहाँ है मेरा मनमीत? सब बातें कविताओं में अच्छी लगतीं हैं!”

“कोई एक तो होगा ही न दीदी?”

“एक जो था, उसको तो भगवान ने वापस बुला लिया!” माँ ने उदास होते हुए कहा।

“दीदी, ऐसे मत दुःखी होवो! भगवान तो सभी की सुध लेते हैं! तो उन्होंने कुछ तो सोचा ही होगा न तुम्हारे लिए?”

“न जाने क्या सोचा है, री!”

“बताऊँ?”

“हाँ, बताओ?”

“मुझे तो लगता है उन्होंने यह सोचा हुआ है कि मेरी दीदी की फिर से शादी हो; और उसकी गोद फिर से भर जाए!”

“हा हा हा हा! गधी है तू पूरी की पूरी!”

“अरे यार, शादी होगी तो बच्चे भी तो होंगे न!”

“हा हा हा! हाँ हाँ! बच्चे होंगे! हा हा हा! गाँव बसा नहीं, लुटेरे पहले ही आ गए!”

“बस जाएगा दीदी! बस जाएगा जल्दी ही! मेरा मन करता है। और लुटेरे भी आ जाएँगे, अगर भगवान की कृपा रही! और मुझे यकीन है कि मेरी दीदी पर भगवान की कृपा ज़रूर बनेगी! वो मेरी दीदी से रूठ ही नहीं सकते! इतनी अच्छी है मेरी दीदी!”

कहते हुए काजल ने माँ के दोनों गाल चूम लिए।

“हा हा हा! बड़ा मस्का लगाया जा रहा है आज? क्या बात है?” माँ ने हँसते हुए कहा, “मेरी बच्ची को दुद्धू चाहिए क्या?” माँ ने काजल को दुलारते हुए कहा।

काजल ने खींसें निपोरते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“हा हा हा हा!” माँ को काजल की नटखट अदा पर हँसी आ गई, “तो फिर उसके लिए इतनी भूमिका क्यों बाँधी! इतनी बड़ी हो गई है, लेकिन बचपना नहीं गया तेरा!”

“तुम्हारा हस्बैंड पिए, और फिर तुम्हारे बच्चे पिएँ, उसके पहले मैं तो अपना हिस्सा ले लूँ!” कह कर काजल जल्दी जल्दी माँ के ब्लाउज के बटन खोलने लगी।

“हा हा हा! हिस्सा ही चाहिए सभी को! अरे तो किसने कहा था कि मेरी बहन बन जाओ? बच्ची ही बनी रहती मेरी! हमेशा तुमको अपने सीने से लगा कर रखती!!”

माँ ने बड़े प्यार से कहा।

“सीने तो से मैं तुम्हारे अभी भी लगी ही हुई हूँ - कोई आज से थोड़े ही! सात साल से!” काजल ने माँ के ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा।

थोड़ी ही देर में माँ का ब्लाउज उनके सीने से हट गया।

काजल ने उनके स्तनों को सहलाते हुए कहा, “बहुत दिन हो गए न दीदी?”

माँ मुस्कुरा दीं।

“कामकाज में इतना फँसी रहती हूँ कि ये सब भी नहीं कर पाती!” कह कर काजल ने माँ का एक चूचक अपने मुँह में ले लिया और उसको प्रेम से चुभलाने चूसने लगी।

“तो किसने कहा कि कामकाज में ऐसे फँसी रहो!” माँ ने उसका सर सहलाते हुए कहा, “कितनी बार तो समझाया कि एक फुल-टाइम कामवाली रख लेते हैं! लेकिन तुमको तो सब कुछ खुद ही करना रहता है!”

दो महीने पहले हमारी कामवाली हमारा काम छोड़ कर चली गई थी। तब से घर का सब काम काजल ही देख रही थी।

काजल माँ के स्तनों को पीने का सुख छोड़ना नहीं चाहती थी, इसलिए उसने कुछ कहा नहीं।

“अच्छा, पुचुकी को दुद्धू पिलाया?”

काजल को मन मार कर माँ का चूचक छोड़ना ही पड़ा, “नहीं दीदी! आज कल वो बहुत कम पीती है! इसलिए अधिकतर समय केवल मेरी मिष्टी को पिलाती हूँ!”

“हम्म!” माँ ने कुछ सोचते हुए कहा, “लेकिन दोनों बच्चे पिएँगे तो दूध अधिक बनेगा न?”

“क्या करूँ! जबरदस्ती भी तो नहीं पिलाया जा सकता है न!” फिर थोड़ा रुक कर, “और अधिक दूध बन भी जाए, तो किसको पिलाऊँ?”

“अमर भी नहीं पीता क्या?”

“नहीं न! बताया तो तुमको!” काजल ने दुःखी होते हुए कहा, “और उनको मौका भी तो मिलना चाहिए न? बेचारे दिन भर तो काम में व्यस्त रहते हैं!”

“हम्म! मैं अमर से कहूँगी!” माँ ने बोला, “और पुचुकी से भी कहूँगी, कि मेरे ही सूखे सीने से न लगी रहा करे! तुम्हारा दूध पीना ज़रूरी है!”

“अरे ऐसे न करो... पीने दिया करो!” काजल बोली, “तुम दोनों में माँ-बेटी वाला रिश्ता है। मैंने देखा है कि तुम दोनों को ही सुकून मिलता है। इसलिए पिलाया करो।” फिर कुछ सोच कर, “सच में दीदी, जब बच्चे दूध छोड़ते हैं न, तो माँ को ही सबसे बुरा लगता है!”

कुछ देर दोनों ने कुछ नहीं कहा। फिर काजल ही बोली, “पता है, पिछले हफ़्ते सुनील को पिलाया!”

सुनील का नाम सुनते ही माँ का दिल धमक उठा। समझ नहीं आया कि वो क्या बोलें। चुप ही रहीं, यह सोच कर कि बताने वाली और बात होगी, तो काजल खुद ही बताएगी! उनका संदेह सही साबित हुआ।

काजल जैसे उस समय को याद करते हुए बोली, “जब उसने मेरे दूध को मुँह लगाया न, सच कहूँ, आनंद आ गया। ऐसा लगा कि जैसे मेरा बेटा वापस मिल गया हो मुझको।” फिर कुछ सोचते हुए, “सोच रही हूँ कि उसकी पसंद की लड़की से उसकी शादी करा दूँ - जिससे वो बहू को साथ ही लेता जाए मुंबई!”

माँ का गला सूख गया इस बात पर।

‘काजल को कोई संशय ही नहीं है कि कैसी समस्या आन पड़ी है मुझ पर,’ उन्होंने सोचा!

“फिर तो तुम अकेली रह जाओगी,” माँ के मुँह से बेसाख़्ता निकल गया - अनजाने ही।

माँ की बात सही थी, और प्रासंगिक भी। हास्यास्पद बात है कि अपने धुर विरोध के बाद भी उनके मुँह से ऐसी बात निकल गई थी।

“क्यों?”

“अ..म..म्मममेरा मतलब है, बहू उसके साथ रहेगी तो...” उन्होंने अपनी बात को सम्हालने की अनगढ़ कोशिश की।

“अरे तो पत्नी को अपने पति के साथ ही तो रहना चाहिए! सास के साथ थोड़े ही। बहू है, नौकरानी थोड़े ही!” काजल ने हँसते हुए कहा।

माँ को लगा कि बात बदल देनी चाहिए।

“हम्म!” माँ ने कुछ सोचा और बोलीं, “आज कल तुम खाने पीने पर ध्यान नहीं दे रही हो लगता है!”

“अरे ऐसे कैसे?”

“हमेशा घर के काम में फँसी रहती हो! क्या गलत कहा मैंने?”

कुछ देर तक दोनों कुछ नहीं बोलीं... फिर, “कम से कम एक साफ़ सफाई करने वाली रख लेते हैं न?” माँ ने जैसे मनुहारते हुए कहा।

काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया। जैसे उसने इस बात की अनुमति दे दी हो। माँ मुस्कुराईं।

कुछ देर स्तनपान करने के बाद काजल ने माँ से अलग होते हुए कहा, “सच में दीदी, आनंद आ गया!”

फिर कुछ सोच कर, “तुम कुछ उल्टा पुल्टा मत सोचा करो। अगर तुम मुझसे अपने दिल की बातें नहीं कर पाओगी, तो और कौन कर पाएगा? कभी परेशान हुआ करो, तो बेहिचक मुझसे कहो! मैं हूँ न!”

“मालूम है काजल! तुम तो मेरी सबसे अच्छी और सबसे पक्की सहेली हो!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा। उनका दिल अपने अंदर उठते बैठते भावों से भर गया।

“दीदी, जैसी मेरी तमन्ना सुनील का घर आबाद होने की है, वैसी ही तमन्ना तुम्हारे लिए भी है। चाहती हूँ कि तुम फिर से सुहागिन बन जाओ और तुम्हारी कोख फिर से आबाद हो जाए!”

“चल!” माँ के चेहरे पर शर्म की रंगत उतर आई, “इस उम्र में ये सब होता है भला?”

“फिर उम्र की बात ले कर बैठ गई! अरे, क्यों नहीं होता?” काजल ने बहस वाले अंदाज़ में कहा, “और क्या उम्र हो गई है तुम्हारी? मैं तो भगवान से यही प्रार्थना कर रही हूँ कि तुम्हारी जल्दी से जल्दी शादी हो जाए! तुमको भी थोड़ा सुख मिले!”

“हा हा हा!”

“और नहीं तो क्या!” काजल ने माँ के स्तनों को हलके से दबाते हुए कहा, “इन ठोस ठोस बूनियों पर किसी जवाँ मर्द का हाथ चाहिए। देखो न - कैसे घमंड से अकड़ी हुई हैं दोनों! कोई होना चाहिए जो इनकी सारी अकड़ निकाल दे!”

माँ काजल की बात पर शर्म से हँसने लगीं, “तो क्या चाहती है तू, दोनों लटक जाएँ?”

“बिलकुल भी नहीं! लटकें तुम्हारे दुश्मन! अरे मेरी दीदी अभी भी जवान है! उसके शरीर में जवानी की अकड़ है! उसकी तो अलग ही शान होती है! इसीलिए तो तुमको जवानी के खेल खेलने के लिए कहती हूँ न दीदी!”

“हा हा हा!”

“सच में, एक बढ़िया सा, हैंडसम सा, तगड़ा सा, अच्छा पढ़ा लिखा हस्बैंड मिल जाए तुम्हारे लिए! बस!” काजल बोली।

काजल की बात पर माँ के मानस पटल पर अनायास ही सुनील का चित्र आ गया। बहुत कोशिश करने पर भी वो चित्र हट नहीं सका।

“सोचो न! तुम्हारे सैयां जी आएँगे, तुम्हारी बूनियों को तुम्हारी ब्लाउज की क़ैद से आज़ाद करेंगे, इनको चूमेंगे, चूसेंगे, और इनको मसलेंगे, तब निकलेगी इनकी सारी अकड़! और फिर आएगा तुमको मज़ा!” काजल ने चटकारे लेते हुए कहा।

माँ के साथ इस तरह की बातें, उनके साथ ऐसा मज़ाक, केवल काजल ही कर सकती थी। भगवान का शुक्र था कि ऐसे समय में काजल उनके साथ थी। नहीं तो न जाने माँ का डिप्रेशन उनको कैसी गहराइयों में लिए चला जाता! उधर सुनील द्वारा अपने स्तनों का मर्दन किए जाने का दृश्य सोच कर माँ की हालत खराब हो गई। अकल्पनीय दृश्य था वो!

“हट्ट! बद्तमीज़!” माँ ने उसके हाथ पर हलकी सी चपत लगाते हुए प्यार भरी झिड़की दी। लेकिन उनकी आवाज़ कामुकता से भर्राने लगी थी।

“अच्छा जी, हम कर रहे हैं तो बद्तमीज़ी, आपके ‘वो’ करेंगे, तो प्यार?”

“ठीक है मेरी माँ! तू ही कर ले जो मन करे वो!”

“अरे नहीं नहीं! मैं कैसे कर दूँ यह सब? तुम्हारी बूनियों की मरम्मत तुम्हारे ‘वो’ करेंगे, और मेरी बूनियों की मरम्मत मेरे ‘वो’!” काजल ने माँ के स्तनों को सहलाते हुए कहा, “और फिर मस्त चुदाई भी तो होगी!”

‘क्या? सुनील? सुनील के साथ सम्भोग!’ महा अकल्पनीय दृश्य! माँ अंदर ही अंदर सिहर गईं।

काजल की इस बात पर माँ ने फिर से उसको चपत लगाई, “आह! हट्ट गन्दी, बेशर्म, बद्तमीज़!”

“हाँ हाँ! दे लो मुझे गालियाँ!”

माँ की बातों का काजल पर कोई असर ही नहीं होता था। दोनों ऐसी अंतरंग, ऐसी घनिष्ठ थीं कि सगी बहनें - जुड़वाँ बहनें भी नहीं हो सकतीं। उसने हाथ बढ़ा कर माँ के नितम्बों को दबाया।

“दुद्धू तो दुद्धू, ये पुट्ठे भी क्या बढ़िया ठोस ठोस हैं!”

“हा हा हा!”

उसने माँ की साड़ी और पेटीकोट को साथ ही में पकड़ कर नीचे सरकाना शुरू कर दिया।

“क्या कर रही है काजल! क्या हो गया तुझे?” माँ की हालत भी खराब हो रही थी - एक तरफ तो कामुकता का प्रहार हो रहा था, वहीं दूसरी तरफ सरकता हुआ वस्त्र उनके नितम्बों को कुचलते हुए उतर रहा था। इसलिए उनको तकलीफ भी हो रही थी।

लेकिन काजल को इस बात की कोई परवाह नहीं थी। कुछ ही देर में माँ कमर से नीचे पूरी तरह से नग्न हो गईं। शरीर के ऊपरी हिस्से पर उन्होंने ब्लाउज पहना हुआ था, जो पूरी तरह से खुला हुआ था। काजल ने उनकी जाँघों और योनि को सहलाया।

माँ सिहर गईं!

काजल पहले भी माँ की मालिश इत्यादि करती रही थी। तब उनको ऐसा अनुभव नहीं हुआ था... लेकिन आज! कहीं सुनील का ही तो असर नहीं है!

“दीदी, तुम्हारी जवानी में कोई कमी नहीं है!” उधर काजल माँ की योनि में अपनी उंगली थोड़ा सा प्रविष्ट करते हुए बोली, “देखो न, कैसे ज़ोर से मेरी उंगली को पकड़े हुए है तुम्हारी चूत!”

“हट्ट काजल! तू बदतमीज हो गई है बहुत!” माँ विरोध करने की हालत में नहीं थीं, लेकिन उन्होंने जैसे तैसे अपना विरोध दर्ज किया।

“होने दो! दीदी, समझा करो! तुम्हारी चूत को चाहिए एक मज़बूत लण्ड! तुम्हारी बूनियों को चाहिए कड़क हाथ! और तुमको चाहिए एक बहुत बहुत बहुत प्यार करने वाला हस्बैंड! ये तो तुम्हारे खेलने खाने के दिन हैं! क्या यूँ ही गुमसुम सी बनी रहती हो! तुमको तो आनंद उठाना चाहिए, उमंग में रहना चाहिए! हँसते गाते रहना चाहिए।”

“हा हा हा हा! तू पूरी गधी है काजल! विधवा हूँ मैं!”

“पाप हो गया क्या विधवा होना? वैसे, न जाने क्यों मेरे मन में आता है कि बहुत दिन नहीं रहोगी!” काजल ने अचानक ही गंभीर होते हुए कहा, “सच में दीदी! तुम्हारी शादी हो जाए न, तो समझो मैं भगीरथ नहाई!”

“भग यहाँ से!” माँ अब तक शर्म से पानी पानी हो चली थीं।

“हाँ हाँ! भगा लो मुझे! लेकिन अपने ‘उनको’ तो खुद से यूँ लपेट कर रखोगी!” काजल बोली, और हँसते हुए वहाँ से चली गई।

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Lib am

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अंतराल - पहला प्यार - Update #4

अगली रात को :


लोग कहते हैं न कि किसी बात पर उनकी रातों की नींद उड़ गई।

तो वही माँ के साथ भी हो रहा था। सुनील की बातों से उनकी नींद ही उड़ गई। शाम से ही उनको अजीब सा लग रहा था। पेट में एक अजीब सी अनुभूति हो रही थी, कि जैसे कोई गाँठ पड़ गई हो। कल तक जिस सुनील को देख कर उनको मुस्कराहट आ रही थी, अब उसी सुनील को देख कर उनको घबराहट होने लगती - उसकी उपस्थिति से उनकी साँसे उखड़ने लगतीं। जब भी वो सुनील को अपनी तरफ देखते देखतीं, वो झट से अपनी नज़रें या तो नीचे झुका लेतीं या फिर नज़रें फ़िरा लेतीं। कोशिश उनकी यही रहती कि सुनील के संग अकेली न रहें - कोई न कोई साथ में रहे अवश्य। लेकिन यह आँख-मिचौली का खेल बेहद थकाऊ था। ऐसे एक दूसरे को नज़रअंदाज़ करते हुए एक छत के नीचे रहा नहीं जा सकता था।

सुनील की प्रेम उद्घोषणा ने माँ के विचारों को हिला कर रख दिया। पिछले कई घंटों से सुनील को ले कर उनके विचारों में द्वन्द्व छिड़ गया था। जितनी बार भी वो उसके बारे में सोचतीं, हर बार वो एक पुरुष के रूप में ही दिखाई देता - पुत्र के रूप में नहीं। उनको खुद पर शर्म आ रही थी कि न जाने कब और कैसे सुनील उनके लिए ‘बेटा’ न रह गया। एक गहरी कश्मकश चल रही थी उनके मन में!

इसी कश्मकश के चलते, आज दिन भर माँ का दैनिक कार्यक्रम अस्त-व्यस्त रहा। जानबूझ कर वो सवेरे ब्रिस्क वाकिंग करने नहीं गईं। नाश्ता और लंच भी ऐसे वैसे ही रहा। बहाना कर के मैटिनी वाली गपशप भी नहीं होने दी। आज का डिनर भी उनसे ठीक से नहीं हो पाया।

मैंने माँ को ऐसे देखा : एक पल के लिए मुझे लगा कि शायद उनका डिप्रेशन वाला एपिसोड चल रहा है। लेकिन बहुत सारे लक्षण अलग थे। मुझे भी यही दिखाई दिया कि सुनील के अतिरिक्त सभी के साथ वो सामान्य तरीके से ही व्यवहार कर रही थीं। वैसे भी, मुझे नहीं लगा कि कुछ सीरियस है, इसलिए मैंने कुछ कहा नहीं। काजल और सुनील के कारण ही माँ का डिप्रेशन समाप्त हुआ था - इसलिए मुझे उनके मामले में दख़लअंदाज़ी का कोई औचित्य नहीं सूझा। मुझे कल जल्दी ऑफिस के लिए निकलना था, इसलिए जल्दी से खा पी कर सो गया।

उधर माँ को नींद नहीं आ रही थी। बिस्तर पर आधे लेटी हुई वो आज की ही बातों को ले कर किसी उधेड़बुन में उलझी हुई थीं।

‘कैसे हो गया ये सब?’

‘क्या कर दिया मैंने कि वो मेरे बारे में ऐसा सोचने लगा?’

‘कहीं मैंने ऐसा कुछ बोल तो नहीं दिया कि वो मुझको ऐसे देखने लगा?’

‘कहीं उसने मुझे ऐसी वैसी हालत में तो नहीं देख लिया कभी?’

‘कहीं कॉलेज में उसका ऐसे वैसे लोगों के साथ उठना बैठना तो नहीं होने लगा?’

माँ ने बहुत सोचा, बहुत ज़ोर डाला अपने दिमाग पर, लेकिन उनको कोई वाज़िब उत्तर नहीं मिल सका। डेढ़ दो घंटे के गहन विचार के बाद न तो वो अपने व्यवहार में ही कोई कमी ढूंढ सकीं और न ही सुनील के। कोई अगर किसी को पसंद करता हो, तो उस पर किसी अन्य का ज़ोर थोड़े ही चलता है! इसमें किसी में कोई कमी होने का सवाल ही नहीं उठता। जब वो इस तर्क वितर्क से थक गईं तो उनका दिमाग अब किसी और दिशा में चलने लगा।

‘कैसा हो अगर वो फिर से शादी कर लें?’

‘अमर और काजल भी तो यही चाहते हैं!’

‘एक विधवा के जैसे इतनी लम्बी लाइफ अकेले कैसे जियूँगी?’

‘इस बार अमर या काजल कहेंगे तो मैं शादी के लिए हाँ कह दूँगी!’

‘कम से कम इस शर्मिंदगी से तो छुटकारा मिलेगा!’

‘लेकिन केवल शर्मिंदगी से बचने के लिए किसी से भी तो शादी नहीं की जा सकती!’

‘शर्मिंदगी? कैसी शर्मिंदगी?’

‘सुनील के संग होने से शर्मिंदगी क्यों होने लगी?’

‘सुनील में कमी ही क्या है?’

‘मुझमें क्या कमी है?’

‘अच्छा ख़ासा लड़का तो है! देखा समझा हुआ भी है! नोन डेविल इस बेटर दैन एन अननोन डेविल!’

‘लेकिन उसको मुझमें क्यों इंटरेस्ट है? मैंने तो माँ के जैसे उसको पाला है!’

माँ यही सब सोच सोच कर हलकान हुई जा रही थीं कि दरवाज़े पर दस्तक हुई। माँ ने घड़ी देखी - रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे!

‘इस समय कौन?’ उन्होंने सोचा, और प्रत्यक्षतः कहा, “आ जाओ!”

लेकिन कहते ही उनके दिल में धमक उठी कि कहीं सुनील न हो दरवाज़े पर! अगर वो हुआ, तो वो क्या करेंगीं - माँ यही सोच रही थीं कि दरवाज़ा खुलने पर काजल को देख कर उनको राहत की साँस आई।

“दीदी, अभी तक सोई नहीं?” जाहिर सी बात थी, कि नींद तो काजल को भी नहीं आ रही थी।

“ओह काजल? नहीं! नींद ही नहीं आ रही है!”

“क्या हो गया?”

“तुम क्यों नहीं सोई?”

“पता नहीं!” काजल मुस्कुराते हुए बोली, “न जाने क्यों तुम्हारे पास आने का मन हुआ! इसलिए इधर चली आई - देखा तो लाइट ऑन थी!”

हाँ - कमरे की बत्ती जल तो रही थी। माँ को ध्यान भी न रहा।

“थैंक यू काजल!” माँ ने बड़ी सच्चाई से कहा - उनको सच में किसी दोस्त की आवश्यकता थी, और काजल से अच्छी दोस्त उनकी कोई और नहीं थी।

“अरे दीदी! तुम भी न!” कहते हुए काजल माँ के निकट, उनके बिस्तर पर आ कर लेट गई।

“अमर सो गया?” माँ ने मुस्कुराते हुए पूछा।

“हाँ, बहुत पहले!”

“जानती है, तुम दोनों को साथ में देखती हूँ तो बहुत अच्छा लगता है मुझको!”

काजल ने कुछ कहा नहीं - वो बस मुस्कुराई।

“तुम दोनों एक हो जाओ - मेरी तो बस यही तमन्ना है अब!”

“हा हा! दीदी! तुम फिर से शुरू हो गई! बताया तो है तुमको!”

“हाँ हाँ! बताया है! बताया है! लेकिन मैं अपने मन का क्या करूँ?”

“जैसा अभी है, वैसे में क्या गड़बड़ है?”

“कुछ गड़बड़ तो नहीं है! लेकिन मन में होता है न कि तू हमेशा मेरे में साथ रहे!” माँ की आँखें भरने लगीं, “तुमने हमारे लिए इतना कुछ किया है कि अब तुम्हारे बिना मैं सोच भी नहीं सकती!”

सुबकते हुए वो बोलीं, “बहुत सेल्फ़िश हूँ मैं शायद! डर लगता है कि कहीं ऐसा वैसा कुछ न हो जाए, और तुमसे मेरा साथ छूट जाए!”

“क्या दीदी! ऐसे क्यों सोचती हो? और, मैंने क्या ही किया है? और जो तुमने किया है हमारे लिए? वो? वो कम है क्या?” काजल भी भावुक हो कर बोली, “मैं कहाँ चली जा रही हूँ?”

माँ ने कुछ कहा नहीं; बस उनकी आँखों से तीन चार आँसू टपक पड़े।

“ओ मेरी दीदी! क्या हो गया तुमको?”

माँ ने कुछ देर कुछ नहीं कहा, लेकिन फिर सिसकते हुए, लगभग फ़रियाद करते हुए बोली, “काजल तुम हमेशा मेरे साथ रहना!”

“हमेशा दीदी!!” काजल ने माँ को आलिंगन में भरते हुए कहा, “क्या सोच रही हो? देखो, मेरी तरफ देखो! दीदी, चाहे कुछ भी हो जाए, मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगी!”

काजल के पास होने मात्र से माँ को बड़ी राहत मिल गई। उनके मस्तिष्क में जो झंझावात चल रहे थे, वो शांत होने लगे।

“थैंक यू काजल!”

“अरे बस बस! चलो, अभी लेट जाओ!” कह कर काजल ने माँ को बिस्तर पर लिटा दिया, “और सोने की कोशिश करो!”

माँ भी किसी आज्ञाकारी लड़की की तरह काजल की बात मान कर लेट गईं। कुछ देर तक काजल माँ को थपकी दे कर सुलाने की कोशिश करती रही, लेकिन जब माँ को अभी भी नींद नहीं आई, तो काजल ने ही कहा,

“और मुझे तो शादी करने को हमेशा बोलती रहती हो! खुद क्यों नहीं करने की कहती? जैसी तुम हो, वैसी मैं भी तो हूँ?!”

“हा हा हा हा! अभी तो बोल रही थी कि कभी मेरा साथ नहीं छोड़ोगी! और अभी कह रही हो शादी कर लो!”

“अरे हाँ न! शादी करने से क्या हुआ? तुम्हारे दहेज़ में आऊँगी न तुम्हारे साथ ही! हा हा हा हा!”

दोनों स्त्रियाँ दिल खोल कर हँसने लगीं। माँ का मन बहुत हल्का हो गया।

“सच में दीदी! कर लो न शादी! मैं रही हूँ अकेली - मुझे मालूम है! अच्छा नहीं लगता! खालीपन सा रहता है। एक मनमीत होना चाहिए साथ!”

“अच्छा! कुछ भी कहेगी अब तू! अमर ने कब अकेला छोड़ा तुमको?”

“दीदी!!” काजल ने बनावटी नाराज़गी दिखाते हुए कहा, “तुम भी न! हम दोनों के बीच में ‘वो सब’ बहुत कम होता है अब! मेरा उनको देखने का नज़रिया बहुत चेंज हो गया है।”

“अरे, ऐसा क्या हो गया?” माँ को आश्चर्य हुआ।

“हाँ न! और आज से नहीं, बहुत दिनों से! अब वो पहले वाली बात नहीं रही। ऐसा नहीं है कि हम दोनों एक दूसरे से प्यार नहीं करते! बहुत करते हैं। लेकिन उस प्यार का रंग बदल गया है, रूप बदल गया है। हमने सेक्स भी केवल तीन चार बार ही किया होगा पिछले चार पाँच महीनों में। वो भी इसलिए कि या तो वो या फिर मैं बहुत परेशान थे उस समय, इसलिए बस, एक दूसरे को शांत करना ज़रूरी था।”

माँ को इस खुलासे पर बेहद आश्चर्य हुआ, “सही में काजल?”

काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

माँ ने निराशा में सर हिलाते हुए कहा, “अरे यार! मैं तो तुम दोनों के ब्याह के सपने देख रही थी, और यहाँ ये सब...”

“अरे कर लूँगी ब्याह! थोड़ी मेहनत कर के कोई और दूल्हा लाओ मेरे लिए!” काजल हँसते हुए बोली, “अमर जैसा कहाँ मिलेगा, लेकिन उसके आस पास भी फटकने वाला कोई मिल गया, तो कर लूँगी!”

“हम्म!” माँ सोच में पड़ गईं।

काजल थोड़ा ठहरी, फिर आगे बोली, “और मैं ही क्या, तुमको भी शादी करनी चाहिए। हम दोनों की कोई उम्र है, यूँ ही, अकेले अकेले रहने की?” काजल ने फिर से अपनी बात में मज़ाक घोलते हुए कहा, “दो दो बच्चे जनने की ताकत तो अभी भी है हम दोनों में! क्या दीदी?”

“हा हा हा!”

“झूठ कह रही हूँ क्या!”

“तू भी न काजल!”

“तुम सीरियसली नहीं लेती मेरी बातों को! देखो दीदी, मैं इसीलिए कह रही हूँ, कि जवान शरीर की ज़रूरतें होती हैं!”

काजल ने अर्थपूर्ण तरीके से कहा - हाँ शरीर की ज़रूरतें तो होती ही हैं। दो साल हो गए थे माँ को सम्भोग का आनंद लिए हुए। इन दो सालों में केवल दुःख ही दुःख मिले। उनकी चहेती बहू को कैंसर हो गया और उसकी मृत्यु हो गई। उसके सदमे से उनके पति भी चल बसे! माँ ने अपने दिनों को बच्चों की देखभाल में स्वाहा कर दिया, लेकिन रात में, जब अकेलापन सालता, तो बहुत ही बुरी तरह! शरीर की आवश्यकताएँ तो होती हैं!

माँ ने मन ही मन काजल को कोसा उन आवश्यकताओं को याद दिलाने के लिए! लेकिन वो यह सब प्रत्यक्ष रूप से कह नहीं सकती थीं।

“हट्ट, बड़ी आई शरीर की ज़रूरतों वाली!”

“और बात केवल सेक्स की ही नहीं है,” काजल बोली जैसे उसने माँ की बात ही न सुनी हो, “कोई मनमीत तो मिलना चाहिए! है न? इतनी लाइफ पड़ी हुई है! उसको जीने के लिए अच्छे साथी की ज़रूरत तो होती ही है - जो तुम्हे अच्छी तरह समझे, तुमसे खूब प्यार करे! तुम्हारी लाइफ में खुशियों के नए नए रंग भर दे!”

“हाँ हाँ! और कहाँ है मेरा मनमीत? सब बातें कविताओं में अच्छी लगतीं हैं!”

“कोई एक तो होगा ही न दीदी?”

“एक जो था, उसको तो भगवान ने वापस बुला लिया!” माँ ने उदास होते हुए कहा।

“दीदी, ऐसे मत दुःखी होवो! भगवान तो सभी की सुध लेते हैं! तो उन्होंने कुछ तो सोचा ही होगा न तुम्हारे लिए?”

“न जाने क्या सोचा है, री!”

“बताऊँ?”

“हाँ, बताओ?”

“मुझे तो लगता है उन्होंने यह सोचा हुआ है कि मेरी दीदी की फिर से शादी हो; और उसकी गोद फिर से भर जाए!”

“हा हा हा हा! गधी है तू पूरी की पूरी!”

“अरे यार, शादी होगी तो बच्चे भी तो होंगे न!”

“हा हा हा! हाँ हाँ! बच्चे होंगे! हा हा हा! गाँव बसा नहीं, लुटेरे पहले ही आ गए!”

“बस जाएगा दीदी! बस जाएगा जल्दी ही! मेरा मन करता है। और लुटेरे भी आ जाएँगे, अगर भगवान की कृपा रही! और मुझे यकीन है कि मेरी दीदी पर भगवान की कृपा ज़रूर बनेगी! वो मेरी दीदी से रूठ ही नहीं सकते! इतनी अच्छी है मेरी दीदी!”

कहते हुए काजल ने माँ के दोनों गाल चूम लिए।

“हा हा हा! बड़ा मस्का लगाया जा रहा है आज? क्या बात है?” माँ ने हँसते हुए कहा, “मेरी बच्ची को दुद्धू चाहिए क्या?” माँ ने काजल को दुलारते हुए कहा।

काजल ने खींसें निपोरते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“हा हा हा हा!” माँ को काजल की नटखट अदा पर हँसी आ गई, “तो फिर उसके लिए इतनी भूमिका क्यों बाँधी! इतनी बड़ी हो गई है, लेकिन बचपना नहीं गया तेरा!”

“तुम्हारा हस्बैंड पिए, और फिर तुम्हारे बच्चे पिएँ, उसके पहले मैं तो अपना हिस्सा ले लूँ!” कह कर काजल जल्दी जल्दी माँ के ब्लाउज के बटन खोलने लगी।

“हा हा हा! हिस्सा ही चाहिए सभी को! अरे तो किसने कहा था कि मेरी बहन बन जाओ? बच्ची ही बनी रहती मेरी! हमेशा तुमको अपने सीने से लगा कर रखती!!”

माँ ने बड़े प्यार से कहा।

“सीने तो से मैं तुम्हारे अभी भी लगी ही हुई हूँ - कोई आज से थोड़े ही! सात साल से!” काजल ने माँ के ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा।

थोड़ी ही देर में माँ का ब्लाउज उनके सीने से हट गया।

काजल ने उनके स्तनों को सहलाते हुए कहा, “बहुत दिन हो गए न दीदी?”

माँ मुस्कुरा दीं।

“कामकाज में इतना फँसी रहती हूँ कि ये सब भी नहीं कर पाती!” कह कर काजल ने माँ का एक चूचक अपने मुँह में ले लिया और उसको प्रेम से चुभलाने चूसने लगी।

“तो किसने कहा कि कामकाज में ऐसे फँसी रहो!” माँ ने उसका सर सहलाते हुए कहा, “कितनी बार तो समझाया कि एक फुल-टाइम कामवाली रख लेते हैं! लेकिन तुमको तो सब कुछ खुद ही करना रहता है!”

दो महीने पहले हमारी कामवाली हमारा काम छोड़ कर चली गई थी। तब से घर का सब काम काजल ही देख रही थी।

काजल माँ के स्तनों को पीने का सुख छोड़ना नहीं चाहती थी, इसलिए उसने कुछ कहा नहीं।

“अच्छा, पुचुकी को दुद्धू पिलाया?”

काजल को मन मार कर माँ का चूचक छोड़ना ही पड़ा, “नहीं दीदी! आज कल वो बहुत कम पीती है! इसलिए अधिकतर समय केवल मेरी मिष्टी को पिलाती हूँ!”

“हम्म!” माँ ने कुछ सोचते हुए कहा, “लेकिन दोनों बच्चे पिएँगे तो दूध अधिक बनेगा न?”

“क्या करूँ! जबरदस्ती भी तो नहीं पिलाया जा सकता है न!” फिर थोड़ा रुक कर, “और अधिक दूध बन भी जाए, तो किसको पिलाऊँ?”

“अमर भी नहीं पीता क्या?”

“नहीं न! बताया तो तुमको!” काजल ने दुःखी होते हुए कहा, “और उनको मौका भी तो मिलना चाहिए न? बेचारे दिन भर तो काम में व्यस्त रहते हैं!”

“हम्म! मैं अमर से कहूँगी!” माँ ने बोला, “और पुचुकी से भी कहूँगी, कि मेरे ही सूखे सीने से न लगी रहा करे! तुम्हारा दूध पीना ज़रूरी है!”

“अरे ऐसे न करो... पीने दिया करो!” काजल बोली, “तुम दोनों में माँ-बेटी वाला रिश्ता है। मैंने देखा है कि तुम दोनों को ही सुकून मिलता है। इसलिए पिलाया करो।” फिर कुछ सोच कर, “सच में दीदी, जब बच्चे दूध छोड़ते हैं न, तो माँ को ही सबसे बुरा लगता है!”

कुछ देर दोनों ने कुछ नहीं कहा। फिर काजल ही बोली, “पता है, पिछले हफ़्ते सुनील को पिलाया!”

सुनील का नाम सुनते ही माँ का दिल धमक उठा। समझ नहीं आया कि वो क्या बोलें। चुप ही रहीं, यह सोच कर कि बताने वाली और बात होगी, तो काजल खुद ही बताएगी! उनका संदेह सही साबित हुआ।

काजल जैसे उस समय को याद करते हुए बोली, “जब उसने मेरे दूध को मुँह लगाया न, सच कहूँ, आनंद आ गया। ऐसा लगा कि जैसे मेरा बेटा वापस मिल गया हो मुझको।” फिर कुछ सोचते हुए, “सोच रही हूँ कि उसकी पसंद की लड़की से उसकी शादी करा दूँ - जिससे वो बहू को साथ ही लेता जाए मुंबई!”

माँ का गला सूख गया इस बात पर।

‘काजल को कोई संशय ही नहीं है कि कैसी समस्या आन पड़ी है मुझ पर,’ उन्होंने सोचा!

“फिर तो तुम अकेली रह जाओगी,” माँ के मुँह से बेसाख़्ता निकल गया - अनजाने ही।

माँ की बात सही थी, और प्रासंगिक भी। हास्यास्पद बात है कि अपने धुर विरोध के बाद भी उनके मुँह से ऐसी बात निकल गई थी।

“क्यों?”

“अ..म..म्मममेरा मतलब है, बहू उसके साथ रहेगी तो...” उन्होंने अपनी बात को सम्हालने की अनगढ़ कोशिश की।

“अरे तो पत्नी को अपने पति के साथ ही तो रहना चाहिए! सास के साथ थोड़े ही। बहू है, नौकरानी थोड़े ही!” काजल ने हँसते हुए कहा।

माँ को लगा कि बात बदल देनी चाहिए।

“हम्म!” माँ ने कुछ सोचा और बोलीं, “आज कल तुम खाने पीने पर ध्यान नहीं दे रही हो लगता है!”

“अरे ऐसे कैसे?”

“हमेशा घर के काम में फँसी रहती हो! क्या गलत कहा मैंने?”

कुछ देर तक दोनों कुछ नहीं बोलीं... फिर, “कम से कम एक साफ़ सफाई करने वाली रख लेते हैं न?” माँ ने जैसे मनुहारते हुए कहा।

काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया। जैसे उसने इस बात की अनुमति दे दी हो। माँ मुस्कुराईं।

कुछ देर स्तनपान करने के बाद काजल ने माँ से अलग होते हुए कहा, “सच में दीदी, आनंद आ गया!”

फिर कुछ सोच कर, “तुम कुछ उल्टा पुल्टा मत सोचा करो। अगर तुम मुझसे अपने दिल की बातें नहीं कर पाओगी, तो और कौन कर पाएगा? कभी परेशान हुआ करो, तो बेहिचक मुझसे कहो! मैं हूँ न!”

“मालूम है काजल! तुम तो मेरी सबसे अच्छी और सबसे पक्की सहेली हो!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा। उनका दिल अपने अंदर उठते बैठते भावों से भर गया।

“दीदी, जैसी मेरी तमन्ना सुनील का घर आबाद होने की है, वैसी ही तमन्ना तुम्हारे लिए भी है। चाहती हूँ कि तुम फिर से सुहागिन बन जाओ और तुम्हारी कोख फिर से आबाद हो जाए!”

“चल!” माँ के चेहरे पर शर्म की रंगत उतर आई, “इस उम्र में ये सब होता है भला?”

“फिर उम्र की बात ले कर बैठ गई! अरे, क्यों नहीं होता?” काजल ने बहस वाले अंदाज़ में कहा, “और क्या उम्र हो गई है तुम्हारी? मैं तो भगवान से यही प्रार्थना कर रही हूँ कि तुम्हारी जल्दी से जल्दी शादी हो जाए! तुमको भी थोड़ा सुख मिले!”

“हा हा हा!”

“और नहीं तो क्या!” काजल ने माँ के स्तनों को हलके से दबाते हुए कहा, “इन ठोस ठोस बूनियों पर किसी जवाँ मर्द का हाथ चाहिए। देखो न - कैसे घमंड से अकड़ी हुई हैं दोनों! कोई होना चाहिए जो इनकी सारी अकड़ निकाल दे!”

माँ काजल की बात पर शर्म से हँसने लगीं, “तो क्या चाहती है तू, दोनों लटक जाएँ?”

“बिलकुल भी नहीं! लटकें तुम्हारे दुश्मन! अरे मेरी दीदी अभी भी जवान है! उसके शरीर में जवानी की अकड़ है! उसकी तो अलग ही शान होती है! इसीलिए तो तुमको जवानी के खेल खेलने के लिए कहती हूँ न दीदी!”

“हा हा हा!”

“सच में, एक बढ़िया सा, हैंडसम सा, तगड़ा सा, अच्छा पढ़ा लिखा हस्बैंड मिल जाए तुम्हारे लिए! बस!” काजल बोली।

काजल की बात पर माँ के मानस पटल पर अनायास ही सुनील का चित्र आ गया। बहुत कोशिश करने पर भी वो चित्र हट नहीं सका।

“सोचो न! तुम्हारे सैयां जी आएँगे, तुम्हारी बूनियों को तुम्हारी ब्लाउज की क़ैद से आज़ाद करेंगे, इनको चूमेंगे, चूसेंगे, और इनको मसलेंगे, तब निकलेगी इनकी सारी अकड़! और फिर आएगा तुमको मज़ा!” काजल ने चटकारे लेते हुए कहा।

माँ के साथ इस तरह की बातें, उनके साथ ऐसा मज़ाक, केवल काजल ही कर सकती थी। भगवान का शुक्र था कि ऐसे समय में काजल उनके साथ थी। नहीं तो न जाने माँ का डिप्रेशन उनको कैसी गहराइयों में लिए चला जाता! उधर सुनील द्वारा अपने स्तनों का मर्दन किए जाने का दृश्य सोच कर माँ की हालत खराब हो गई। अकल्पनीय दृश्य था वो!

“हट्ट! बद्तमीज़!” माँ ने उसके हाथ पर हलकी सी चपत लगाते हुए प्यार भरी झिड़की दी। लेकिन उनकी आवाज़ कामुकता से भर्राने लगी थी।

“अच्छा जी, हम कर रहे हैं तो बद्तमीज़ी, आपके ‘वो’ करेंगे, तो प्यार?”

“ठीक है मेरी माँ! तू ही कर ले जो मन करे वो!”

“अरे नहीं नहीं! मैं कैसे कर दूँ यह सब? तुम्हारी बूनियों की मरम्मत तुम्हारे ‘वो’ करेंगे, और मेरी बूनियों की मरम्मत मेरे ‘वो’!” काजल ने माँ के स्तनों को सहलाते हुए कहा, “और फिर मस्त चुदाई भी तो होगी!”

‘क्या? सुनील? सुनील के साथ सम्भोग!’ महा अकल्पनीय दृश्य! माँ अंदर ही अंदर सिहर गईं।

काजल की इस बात पर माँ ने फिर से उसको चपत लगाई, “आह! हट्ट गन्दी, बेशर्म, बद्तमीज़!”

“हाँ हाँ! दे लो मुझे गालियाँ!”

माँ की बातों का काजल पर कोई असर ही नहीं होता था। दोनों ऐसी अंतरंग, ऐसी घनिष्ठ थीं कि सगी बहनें - जुड़वाँ बहनें भी नहीं हो सकतीं। उसने हाथ बढ़ा कर माँ के नितम्बों को दबाया।

“दुद्धू तो दुद्धू, ये पुट्ठे भी क्या बढ़िया ठोस ठोस हैं!”

“हा हा हा!”

उसने माँ की साड़ी और पेटीकोट को साथ ही में पकड़ कर नीचे सरकाना शुरू कर दिया।

“क्या कर रही है काजल! क्या हो गया तुझे?” माँ की हालत भी खराब हो रही थी - एक तरफ तो कामुकता का प्रहार हो रहा था, वहीं दूसरी तरफ सरकता हुआ वस्त्र उनके नितम्बों को कुचलते हुए उतर रहा था। इसलिए उनको तकलीफ भी हो रही थी।

लेकिन काजल को इस बात की कोई परवाह नहीं थी। कुछ ही देर में माँ कमर से नीचे पूरी तरह से नग्न हो गईं। शरीर के ऊपरी हिस्से पर उन्होंने ब्लाउज पहना हुआ था, जो पूरी तरह से खुला हुआ था। काजल ने उनकी जाँघों और योनि को सहलाया।

माँ सिहर गईं!

काजल पहले भी माँ की मालिश इत्यादि करती रही थी। तब उनको ऐसा अनुभव नहीं हुआ था... लेकिन आज! कहीं सुनील का ही तो असर नहीं है!

“दीदी, तुम्हारी जवानी में कोई कमी नहीं है!” उधर काजल माँ की योनि में अपनी उंगली थोड़ा सा प्रविष्ट करते हुए बोली, “देखो न, कैसे ज़ोर से मेरी उंगली को पकड़े हुए है तुम्हारी चूत!”

“हट्ट काजल! तू बदतमीज हो गई है बहुत!” माँ विरोध करने की हालत में नहीं थीं, लेकिन उन्होंने जैसे तैसे अपना विरोध दर्ज किया।

“होने दो! दीदी, समझा करो! तुम्हारी चूत को चाहिए एक मज़बूत लण्ड! तुम्हारी बूनियों को चाहिए कड़क हाथ! और तुमको चाहिए एक बहुत बहुत बहुत प्यार करने वाला हस्बैंड! ये तो तुम्हारे खेलने खाने के दिन हैं! क्या यूँ ही गुमसुम सी बनी रहती हो! तुमको तो आनंद उठाना चाहिए, उमंग में रहना चाहिए! हँसते गाते रहना चाहिए।”

“हा हा हा हा! तू पूरी गधी है काजल! विधवा हूँ मैं!”

“पाप हो गया क्या विधवा होना? वैसे, न जाने क्यों मेरे मन में आता है कि बहुत दिन नहीं रहोगी!” काजल ने अचानक ही गंभीर होते हुए कहा, “सच में दीदी! तुम्हारी शादी हो जाए न, तो समझो मैं भगीरथ नहाई!”

“भग यहाँ से!” माँ अब तक शर्म से पानी पानी हो चली थीं।

“हाँ हाँ! भगा लो मुझे! लेकिन अपने ‘उनको’ तो खुद से यूँ लपेट कर रखोगी!” काजल बोली, और हँसते हुए वहाँ से चली गई।

**
बेचारी सुमन अजीब दुविधा में फंस गई है, अब ना तो सुनील दिलोदिमाग में रखते बनता है और ना निकालते। एक मां के नजरिए से उसको सब गलत लग रहा है और एक औरत के नजरिए से कुछ कुछ सही भी लग रहा है।

ये अमर फिर से चूतिया हो गया लगता है जो सबकुछ सुनील के भरोसे छोड़ कर फिर से काम में घुस गया है। क्या सुनील के आने और परिवार को खुश रखने से अमर अपने उत्तरदायित्व से मुक्त हो गया है क्या? ऐसे ही लग जब बाद में परिवार बिखरने लगता है तो किस्मत और भगवान को कोसने लगते है। To be honest, ऐसे लोगो को परिवार बनाना ही नहीं चाहिए। अगर जीवन में कुछ कठिन समय आ गया तो अपने दुख का रोना रोते हुए अपनी बाकी की जिमेदारियां छोड़ देनी चाहिए क्या?

काजल ने सुमन के अंदर दबी हुई आग में ऊपर से घी डाल दिया है अपनी बातो और हरकतों से, ये दोनो मां बेटा सुमन को बहला फुसला कर ही मानेंगे।

बहुत ही जबरदस्त, जज्बातों के बवंडर से भरा अपडेट।
 
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आपके पोस्ट से पता चला कि आप काम में व्यस्त थे, इसीलिए नहीं आ पा रहे थे।
सच में, आपके स्वास्थ्य की चिंता होने लगी थी।

आपको ये गाने इत्यादि अच्छे लगे? बहुत अच्छी बात है।
मैंने 'संयोग का सुहाग' में, और उसके पहले 'कायाकल्प' में यह प्रयोग किया था :)
अगर पसंद आया तो यह प्रयोग जारी रहेगा। 🙏



विकट समस्या है भाई! बड़ी विकट!
एक सुधी पाठको को यह विचार इतना घृणास्पद लगा कि उन्होंने कहानी से ही विदा ले ली।
सोचिए, किरदारों के मन में क्या द्वंद्व चल रहा होगा? :)



भाई आप मेरे लेखन के प्रशंसक इसलिए हैं कि आपको मुझसे स्नेह है।
ऐसा कुछ लिखता नहीं। आपने देखा ही होगा कि हाल फिलहाल कैसी छीछालेदर हुई है मेरी :)
और तो और, कहानी से पाठक भी बड़ी तेजी से गायब होते जा रहे हैं।
आश्चर्य है न - जब से मैंने बेहद रेगुलर तरीके से अपडेट देने शुरू किए, तब से पाठक ही अपडेट होने बंद हो गए! हा हा हा!
आप की लेखन शैली तो मैंने कांटेस्ट की स्टोरी में ही देख लिया था । मुम्बई के लोकल ट्रेन में एक लड़की और एक लड़के का जो केमिस्ट्री दिखाया था और लोकल ट्रेन में पैसेंजर की जो मनोदशा दिखाई थी.... वैसा बिरले लोग ही लिख सकते हैं ।
आप वो कांटेस्ट डिजर्व करते थे विनर के लिए ।

भाई , सबसे पहले तो आप रीडर्स के लिए दुखी होना बंद कीजिए । आप खुद जानते हैं रीडर्स क्या पसंद करते हैं ऐसे फोरम पर । रोमांस कैटेगरी में लिखी हुई कहानी में वही लोग नजर आएंगे जो या तो साफ सुथरी कहानी पढ़ना चाहते हैं या जिस राइटर का अपना एक फैन फॉलोविंग है ।

मैंने बहुत ऐसी कहानियां देखी है जहां रीडर्स गिनती में दो चार ही है लेकिन फिर भी उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से कभी निराशा जाहिर नहीं की । आप विश्वास कीजिए , सभी कहानियां बहुत बढ़िया थी ।
एक जुनून होता है लेखक के लिए कुछ लिखना । अपनी सोच और काबिलियत कहानी पर झौंक देते हैं वो । उनके लिए यह मैटर नहीं करता कि रीडर्स उनकी कहानी को पसंद करे या न करें । उनका मात्र मकसद यही होता है कि वो अपने दिल की बातें एवं फैंटेसी लोगों के सामने कहानी के माध्यम से रख सकें ।

इस फोरम पर ज्ञानी भाई को मैं सबसे बेहतर राइटर मानता हूं और उन्होंने खुद आप की प्रशंसा की है । ये बहुत बड़ी उपलब्धि है ।

निराशा को तिलांजलि दीजिए और हमेशा खुश रहिए भाई ।
( वैसे एक ऐसा नाम बताएं जिस नाम से हम आपको सम्बोधित कर सकें )
 

Choduraghu

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अंतराल - पहला प्यार - Update #4

अगली रात को :


लोग कहते हैं न कि किसी बात पर उनकी रातों की नींद उड़ गई।

तो वही माँ के साथ भी हो रहा था। सुनील की बातों से उनकी नींद ही उड़ गई। शाम से ही उनको अजीब सा लग रहा था। पेट में एक अजीब सी अनुभूति हो रही थी, कि जैसे कोई गाँठ पड़ गई हो। कल तक जिस सुनील को देख कर उनको मुस्कराहट आ रही थी, अब उसी सुनील को देख कर उनको घबराहट होने लगती - उसकी उपस्थिति से उनकी साँसे उखड़ने लगतीं। जब भी वो सुनील को अपनी तरफ देखते देखतीं, वो झट से अपनी नज़रें या तो नीचे झुका लेतीं या फिर नज़रें फ़िरा लेतीं। कोशिश उनकी यही रहती कि सुनील के संग अकेली न रहें - कोई न कोई साथ में रहे अवश्य। लेकिन यह आँख-मिचौली का खेल बेहद थकाऊ था। ऐसे एक दूसरे को नज़रअंदाज़ करते हुए एक छत के नीचे रहा नहीं जा सकता था।

सुनील की प्रेम उद्घोषणा ने माँ के विचारों को हिला कर रख दिया। पिछले कई घंटों से सुनील को ले कर उनके विचारों में द्वन्द्व छिड़ गया था। जितनी बार भी वो उसके बारे में सोचतीं, हर बार वो एक पुरुष के रूप में ही दिखाई देता - पुत्र के रूप में नहीं। उनको खुद पर शर्म आ रही थी कि न जाने कब और कैसे सुनील उनके लिए ‘बेटा’ न रह गया। एक गहरी कश्मकश चल रही थी उनके मन में!

इसी कश्मकश के चलते, आज दिन भर माँ का दैनिक कार्यक्रम अस्त-व्यस्त रहा। जानबूझ कर वो सवेरे ब्रिस्क वाकिंग करने नहीं गईं। नाश्ता और लंच भी ऐसे वैसे ही रहा। बहाना कर के मैटिनी वाली गपशप भी नहीं होने दी। आज का डिनर भी उनसे ठीक से नहीं हो पाया।

मैंने माँ को ऐसे देखा : एक पल के लिए मुझे लगा कि शायद उनका डिप्रेशन वाला एपिसोड चल रहा है। लेकिन बहुत सारे लक्षण अलग थे। मुझे भी यही दिखाई दिया कि सुनील के अतिरिक्त सभी के साथ वो सामान्य तरीके से ही व्यवहार कर रही थीं। वैसे भी, मुझे नहीं लगा कि कुछ सीरियस है, इसलिए मैंने कुछ कहा नहीं। काजल और सुनील के कारण ही माँ का डिप्रेशन समाप्त हुआ था - इसलिए मुझे उनके मामले में दख़लअंदाज़ी का कोई औचित्य नहीं सूझा। मुझे कल जल्दी ऑफिस के लिए निकलना था, इसलिए जल्दी से खा पी कर सो गया।

उधर माँ को नींद नहीं आ रही थी। बिस्तर पर आधे लेटी हुई वो आज की ही बातों को ले कर किसी उधेड़बुन में उलझी हुई थीं।

‘कैसे हो गया ये सब?’

‘क्या कर दिया मैंने कि वो मेरे बारे में ऐसा सोचने लगा?’

‘कहीं मैंने ऐसा कुछ बोल तो नहीं दिया कि वो मुझको ऐसे देखने लगा?’

‘कहीं उसने मुझे ऐसी वैसी हालत में तो नहीं देख लिया कभी?’

‘कहीं कॉलेज में उसका ऐसे वैसे लोगों के साथ उठना बैठना तो नहीं होने लगा?’

माँ ने बहुत सोचा, बहुत ज़ोर डाला अपने दिमाग पर, लेकिन उनको कोई वाज़िब उत्तर नहीं मिल सका। डेढ़ दो घंटे के गहन विचार के बाद न तो वो अपने व्यवहार में ही कोई कमी ढूंढ सकीं और न ही सुनील के। कोई अगर किसी को पसंद करता हो, तो उस पर किसी अन्य का ज़ोर थोड़े ही चलता है! इसमें किसी में कोई कमी होने का सवाल ही नहीं उठता। जब वो इस तर्क वितर्क से थक गईं तो उनका दिमाग अब किसी और दिशा में चलने लगा।

‘कैसा हो अगर वो फिर से शादी कर लें?’

‘अमर और काजल भी तो यही चाहते हैं!’

‘एक विधवा के जैसे इतनी लम्बी लाइफ अकेले कैसे जियूँगी?’

‘इस बार अमर या काजल कहेंगे तो मैं शादी के लिए हाँ कह दूँगी!’

‘कम से कम इस शर्मिंदगी से तो छुटकारा मिलेगा!’

‘लेकिन केवल शर्मिंदगी से बचने के लिए किसी से भी तो शादी नहीं की जा सकती!’

‘शर्मिंदगी? कैसी शर्मिंदगी?’

‘सुनील के संग होने से शर्मिंदगी क्यों होने लगी?’

‘सुनील में कमी ही क्या है?’

‘मुझमें क्या कमी है?’

‘अच्छा ख़ासा लड़का तो है! देखा समझा हुआ भी है! नोन डेविल इस बेटर दैन एन अननोन डेविल!’

‘लेकिन उसको मुझमें क्यों इंटरेस्ट है? मैंने तो माँ के जैसे उसको पाला है!’

माँ यही सब सोच सोच कर हलकान हुई जा रही थीं कि दरवाज़े पर दस्तक हुई। माँ ने घड़ी देखी - रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे!

‘इस समय कौन?’ उन्होंने सोचा, और प्रत्यक्षतः कहा, “आ जाओ!”

लेकिन कहते ही उनके दिल में धमक उठी कि कहीं सुनील न हो दरवाज़े पर! अगर वो हुआ, तो वो क्या करेंगीं - माँ यही सोच रही थीं कि दरवाज़ा खुलने पर काजल को देख कर उनको राहत की साँस आई।

“दीदी, अभी तक सोई नहीं?” जाहिर सी बात थी, कि नींद तो काजल को भी नहीं आ रही थी।

“ओह काजल? नहीं! नींद ही नहीं आ रही है!”

“क्या हो गया?”

“तुम क्यों नहीं सोई?”

“पता नहीं!” काजल मुस्कुराते हुए बोली, “न जाने क्यों तुम्हारे पास आने का मन हुआ! इसलिए इधर चली आई - देखा तो लाइट ऑन थी!”

हाँ - कमरे की बत्ती जल तो रही थी। माँ को ध्यान भी न रहा।

“थैंक यू काजल!” माँ ने बड़ी सच्चाई से कहा - उनको सच में किसी दोस्त की आवश्यकता थी, और काजल से अच्छी दोस्त उनकी कोई और नहीं थी।

“अरे दीदी! तुम भी न!” कहते हुए काजल माँ के निकट, उनके बिस्तर पर आ कर लेट गई।

“अमर सो गया?” माँ ने मुस्कुराते हुए पूछा।

“हाँ, बहुत पहले!”

“जानती है, तुम दोनों को साथ में देखती हूँ तो बहुत अच्छा लगता है मुझको!”

काजल ने कुछ कहा नहीं - वो बस मुस्कुराई।

“तुम दोनों एक हो जाओ - मेरी तो बस यही तमन्ना है अब!”

“हा हा! दीदी! तुम फिर से शुरू हो गई! बताया तो है तुमको!”

“हाँ हाँ! बताया है! बताया है! लेकिन मैं अपने मन का क्या करूँ?”

“जैसा अभी है, वैसे में क्या गड़बड़ है?”

“कुछ गड़बड़ तो नहीं है! लेकिन मन में होता है न कि तू हमेशा मेरे में साथ रहे!” माँ की आँखें भरने लगीं, “तुमने हमारे लिए इतना कुछ किया है कि अब तुम्हारे बिना मैं सोच भी नहीं सकती!”

सुबकते हुए वो बोलीं, “बहुत सेल्फ़िश हूँ मैं शायद! डर लगता है कि कहीं ऐसा वैसा कुछ न हो जाए, और तुमसे मेरा साथ छूट जाए!”

“क्या दीदी! ऐसे क्यों सोचती हो? और, मैंने क्या ही किया है? और जो तुमने किया है हमारे लिए? वो? वो कम है क्या?” काजल भी भावुक हो कर बोली, “मैं कहाँ चली जा रही हूँ?”

माँ ने कुछ कहा नहीं; बस उनकी आँखों से तीन चार आँसू टपक पड़े।

“ओ मेरी दीदी! क्या हो गया तुमको?”

माँ ने कुछ देर कुछ नहीं कहा, लेकिन फिर सिसकते हुए, लगभग फ़रियाद करते हुए बोली, “काजल तुम हमेशा मेरे साथ रहना!”

“हमेशा दीदी!!” काजल ने माँ को आलिंगन में भरते हुए कहा, “क्या सोच रही हो? देखो, मेरी तरफ देखो! दीदी, चाहे कुछ भी हो जाए, मैं तुम्हारे साथ ही रहूँगी!”

काजल के पास होने मात्र से माँ को बड़ी राहत मिल गई। उनके मस्तिष्क में जो झंझावात चल रहे थे, वो शांत होने लगे।

“थैंक यू काजल!”

“अरे बस बस! चलो, अभी लेट जाओ!” कह कर काजल ने माँ को बिस्तर पर लिटा दिया, “और सोने की कोशिश करो!”

माँ भी किसी आज्ञाकारी लड़की की तरह काजल की बात मान कर लेट गईं। कुछ देर तक काजल माँ को थपकी दे कर सुलाने की कोशिश करती रही, लेकिन जब माँ को अभी भी नींद नहीं आई, तो काजल ने ही कहा,

“और मुझे तो शादी करने को हमेशा बोलती रहती हो! खुद क्यों नहीं करने की कहती? जैसी तुम हो, वैसी मैं भी तो हूँ?!”

“हा हा हा हा! अभी तो बोल रही थी कि कभी मेरा साथ नहीं छोड़ोगी! और अभी कह रही हो शादी कर लो!”

“अरे हाँ न! शादी करने से क्या हुआ? तुम्हारे दहेज़ में आऊँगी न तुम्हारे साथ ही! हा हा हा हा!”

दोनों स्त्रियाँ दिल खोल कर हँसने लगीं। माँ का मन बहुत हल्का हो गया।

“सच में दीदी! कर लो न शादी! मैं रही हूँ अकेली - मुझे मालूम है! अच्छा नहीं लगता! खालीपन सा रहता है। एक मनमीत होना चाहिए साथ!”

“अच्छा! कुछ भी कहेगी अब तू! अमर ने कब अकेला छोड़ा तुमको?”

“दीदी!!” काजल ने बनावटी नाराज़गी दिखाते हुए कहा, “तुम भी न! हम दोनों के बीच में ‘वो सब’ बहुत कम होता है अब! मेरा उनको देखने का नज़रिया बहुत चेंज हो गया है।”

“अरे, ऐसा क्या हो गया?” माँ को आश्चर्य हुआ।

“हाँ न! और आज से नहीं, बहुत दिनों से! अब वो पहले वाली बात नहीं रही। ऐसा नहीं है कि हम दोनों एक दूसरे से प्यार नहीं करते! बहुत करते हैं। लेकिन उस प्यार का रंग बदल गया है, रूप बदल गया है। हमने सेक्स भी केवल तीन चार बार ही किया होगा पिछले चार पाँच महीनों में। वो भी इसलिए कि या तो वो या फिर मैं बहुत परेशान थे उस समय, इसलिए बस, एक दूसरे को शांत करना ज़रूरी था।”

माँ को इस खुलासे पर बेहद आश्चर्य हुआ, “सही में काजल?”

काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

माँ ने निराशा में सर हिलाते हुए कहा, “अरे यार! मैं तो तुम दोनों के ब्याह के सपने देख रही थी, और यहाँ ये सब...”

“अरे कर लूँगी ब्याह! थोड़ी मेहनत कर के कोई और दूल्हा लाओ मेरे लिए!” काजल हँसते हुए बोली, “अमर जैसा कहाँ मिलेगा, लेकिन उसके आस पास भी फटकने वाला कोई मिल गया, तो कर लूँगी!”

“हम्म!” माँ सोच में पड़ गईं।

काजल थोड़ा ठहरी, फिर आगे बोली, “और मैं ही क्या, तुमको भी शादी करनी चाहिए। हम दोनों की कोई उम्र है, यूँ ही, अकेले अकेले रहने की?” काजल ने फिर से अपनी बात में मज़ाक घोलते हुए कहा, “दो दो बच्चे जनने की ताकत तो अभी भी है हम दोनों में! क्या दीदी?”

“हा हा हा!”

“झूठ कह रही हूँ क्या!”

“तू भी न काजल!”

“तुम सीरियसली नहीं लेती मेरी बातों को! देखो दीदी, मैं इसीलिए कह रही हूँ, कि जवान शरीर की ज़रूरतें होती हैं!”

काजल ने अर्थपूर्ण तरीके से कहा - हाँ शरीर की ज़रूरतें तो होती ही हैं। दो साल हो गए थे माँ को सम्भोग का आनंद लिए हुए। इन दो सालों में केवल दुःख ही दुःख मिले। उनकी चहेती बहू को कैंसर हो गया और उसकी मृत्यु हो गई। उसके सदमे से उनके पति भी चल बसे! माँ ने अपने दिनों को बच्चों की देखभाल में स्वाहा कर दिया, लेकिन रात में, जब अकेलापन सालता, तो बहुत ही बुरी तरह! शरीर की आवश्यकताएँ तो होती हैं!

माँ ने मन ही मन काजल को कोसा उन आवश्यकताओं को याद दिलाने के लिए! लेकिन वो यह सब प्रत्यक्ष रूप से कह नहीं सकती थीं।

“हट्ट, बड़ी आई शरीर की ज़रूरतों वाली!”

“और बात केवल सेक्स की ही नहीं है,” काजल बोली जैसे उसने माँ की बात ही न सुनी हो, “कोई मनमीत तो मिलना चाहिए! है न? इतनी लाइफ पड़ी हुई है! उसको जीने के लिए अच्छे साथी की ज़रूरत तो होती ही है - जो तुम्हे अच्छी तरह समझे, तुमसे खूब प्यार करे! तुम्हारी लाइफ में खुशियों के नए नए रंग भर दे!”

“हाँ हाँ! और कहाँ है मेरा मनमीत? सब बातें कविताओं में अच्छी लगतीं हैं!”

“कोई एक तो होगा ही न दीदी?”

“एक जो था, उसको तो भगवान ने वापस बुला लिया!” माँ ने उदास होते हुए कहा।

“दीदी, ऐसे मत दुःखी होवो! भगवान तो सभी की सुध लेते हैं! तो उन्होंने कुछ तो सोचा ही होगा न तुम्हारे लिए?”

“न जाने क्या सोचा है, री!”

“बताऊँ?”

“हाँ, बताओ?”

“मुझे तो लगता है उन्होंने यह सोचा हुआ है कि मेरी दीदी की फिर से शादी हो; और उसकी गोद फिर से भर जाए!”

“हा हा हा हा! गधी है तू पूरी की पूरी!”

“अरे यार, शादी होगी तो बच्चे भी तो होंगे न!”

“हा हा हा! हाँ हाँ! बच्चे होंगे! हा हा हा! गाँव बसा नहीं, लुटेरे पहले ही आ गए!”

“बस जाएगा दीदी! बस जाएगा जल्दी ही! मेरा मन करता है। और लुटेरे भी आ जाएँगे, अगर भगवान की कृपा रही! और मुझे यकीन है कि मेरी दीदी पर भगवान की कृपा ज़रूर बनेगी! वो मेरी दीदी से रूठ ही नहीं सकते! इतनी अच्छी है मेरी दीदी!”

कहते हुए काजल ने माँ के दोनों गाल चूम लिए।

“हा हा हा! बड़ा मस्का लगाया जा रहा है आज? क्या बात है?” माँ ने हँसते हुए कहा, “मेरी बच्ची को दुद्धू चाहिए क्या?” माँ ने काजल को दुलारते हुए कहा।

काजल ने खींसें निपोरते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“हा हा हा हा!” माँ को काजल की नटखट अदा पर हँसी आ गई, “तो फिर उसके लिए इतनी भूमिका क्यों बाँधी! इतनी बड़ी हो गई है, लेकिन बचपना नहीं गया तेरा!”

“तुम्हारा हस्बैंड पिए, और फिर तुम्हारे बच्चे पिएँ, उसके पहले मैं तो अपना हिस्सा ले लूँ!” कह कर काजल जल्दी जल्दी माँ के ब्लाउज के बटन खोलने लगी।

“हा हा हा! हिस्सा ही चाहिए सभी को! अरे तो किसने कहा था कि मेरी बहन बन जाओ? बच्ची ही बनी रहती मेरी! हमेशा तुमको अपने सीने से लगा कर रखती!!”

माँ ने बड़े प्यार से कहा।

“सीने तो से मैं तुम्हारे अभी भी लगी ही हुई हूँ - कोई आज से थोड़े ही! सात साल से!” काजल ने माँ के ब्लाउज के बटन खोलते हुए कहा।

थोड़ी ही देर में माँ का ब्लाउज उनके सीने से हट गया।

काजल ने उनके स्तनों को सहलाते हुए कहा, “बहुत दिन हो गए न दीदी?”

माँ मुस्कुरा दीं।

“कामकाज में इतना फँसी रहती हूँ कि ये सब भी नहीं कर पाती!” कह कर काजल ने माँ का एक चूचक अपने मुँह में ले लिया और उसको प्रेम से चुभलाने चूसने लगी।

“तो किसने कहा कि कामकाज में ऐसे फँसी रहो!” माँ ने उसका सर सहलाते हुए कहा, “कितनी बार तो समझाया कि एक फुल-टाइम कामवाली रख लेते हैं! लेकिन तुमको तो सब कुछ खुद ही करना रहता है!”

दो महीने पहले हमारी कामवाली हमारा काम छोड़ कर चली गई थी। तब से घर का सब काम काजल ही देख रही थी।

काजल माँ के स्तनों को पीने का सुख छोड़ना नहीं चाहती थी, इसलिए उसने कुछ कहा नहीं।

“अच्छा, पुचुकी को दुद्धू पिलाया?”

काजल को मन मार कर माँ का चूचक छोड़ना ही पड़ा, “नहीं दीदी! आज कल वो बहुत कम पीती है! इसलिए अधिकतर समय केवल मेरी मिष्टी को पिलाती हूँ!”

“हम्म!” माँ ने कुछ सोचते हुए कहा, “लेकिन दोनों बच्चे पिएँगे तो दूध अधिक बनेगा न?”

“क्या करूँ! जबरदस्ती भी तो नहीं पिलाया जा सकता है न!” फिर थोड़ा रुक कर, “और अधिक दूध बन भी जाए, तो किसको पिलाऊँ?”

“अमर भी नहीं पीता क्या?”

“नहीं न! बताया तो तुमको!” काजल ने दुःखी होते हुए कहा, “और उनको मौका भी तो मिलना चाहिए न? बेचारे दिन भर तो काम में व्यस्त रहते हैं!”

“हम्म! मैं अमर से कहूँगी!” माँ ने बोला, “और पुचुकी से भी कहूँगी, कि मेरे ही सूखे सीने से न लगी रहा करे! तुम्हारा दूध पीना ज़रूरी है!”

“अरे ऐसे न करो... पीने दिया करो!” काजल बोली, “तुम दोनों में माँ-बेटी वाला रिश्ता है। मैंने देखा है कि तुम दोनों को ही सुकून मिलता है। इसलिए पिलाया करो।” फिर कुछ सोच कर, “सच में दीदी, जब बच्चे दूध छोड़ते हैं न, तो माँ को ही सबसे बुरा लगता है!”

कुछ देर दोनों ने कुछ नहीं कहा। फिर काजल ही बोली, “पता है, पिछले हफ़्ते सुनील को पिलाया!”

सुनील का नाम सुनते ही माँ का दिल धमक उठा। समझ नहीं आया कि वो क्या बोलें। चुप ही रहीं, यह सोच कर कि बताने वाली और बात होगी, तो काजल खुद ही बताएगी! उनका संदेह सही साबित हुआ।

काजल जैसे उस समय को याद करते हुए बोली, “जब उसने मेरे दूध को मुँह लगाया न, सच कहूँ, आनंद आ गया। ऐसा लगा कि जैसे मेरा बेटा वापस मिल गया हो मुझको।” फिर कुछ सोचते हुए, “सोच रही हूँ कि उसकी पसंद की लड़की से उसकी शादी करा दूँ - जिससे वो बहू को साथ ही लेता जाए मुंबई!”

माँ का गला सूख गया इस बात पर।

‘काजल को कोई संशय ही नहीं है कि कैसी समस्या आन पड़ी है मुझ पर,’ उन्होंने सोचा!

“फिर तो तुम अकेली रह जाओगी,” माँ के मुँह से बेसाख़्ता निकल गया - अनजाने ही।

माँ की बात सही थी, और प्रासंगिक भी। हास्यास्पद बात है कि अपने धुर विरोध के बाद भी उनके मुँह से ऐसी बात निकल गई थी।

“क्यों?”

“अ..म..म्मममेरा मतलब है, बहू उसके साथ रहेगी तो...” उन्होंने अपनी बात को सम्हालने की अनगढ़ कोशिश की।

“अरे तो पत्नी को अपने पति के साथ ही तो रहना चाहिए! सास के साथ थोड़े ही। बहू है, नौकरानी थोड़े ही!” काजल ने हँसते हुए कहा।

माँ को लगा कि बात बदल देनी चाहिए।

“हम्म!” माँ ने कुछ सोचा और बोलीं, “आज कल तुम खाने पीने पर ध्यान नहीं दे रही हो लगता है!”

“अरे ऐसे कैसे?”

“हमेशा घर के काम में फँसी रहती हो! क्या गलत कहा मैंने?”

कुछ देर तक दोनों कुछ नहीं बोलीं... फिर, “कम से कम एक साफ़ सफाई करने वाली रख लेते हैं न?” माँ ने जैसे मनुहारते हुए कहा।

काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया। जैसे उसने इस बात की अनुमति दे दी हो। माँ मुस्कुराईं।

कुछ देर स्तनपान करने के बाद काजल ने माँ से अलग होते हुए कहा, “सच में दीदी, आनंद आ गया!”

फिर कुछ सोच कर, “तुम कुछ उल्टा पुल्टा मत सोचा करो। अगर तुम मुझसे अपने दिल की बातें नहीं कर पाओगी, तो और कौन कर पाएगा? कभी परेशान हुआ करो, तो बेहिचक मुझसे कहो! मैं हूँ न!”

“मालूम है काजल! तुम तो मेरी सबसे अच्छी और सबसे पक्की सहेली हो!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा। उनका दिल अपने अंदर उठते बैठते भावों से भर गया।

“दीदी, जैसी मेरी तमन्ना सुनील का घर आबाद होने की है, वैसी ही तमन्ना तुम्हारे लिए भी है। चाहती हूँ कि तुम फिर से सुहागिन बन जाओ और तुम्हारी कोख फिर से आबाद हो जाए!”

“चल!” माँ के चेहरे पर शर्म की रंगत उतर आई, “इस उम्र में ये सब होता है भला?”

“फिर उम्र की बात ले कर बैठ गई! अरे, क्यों नहीं होता?” काजल ने बहस वाले अंदाज़ में कहा, “और क्या उम्र हो गई है तुम्हारी? मैं तो भगवान से यही प्रार्थना कर रही हूँ कि तुम्हारी जल्दी से जल्दी शादी हो जाए! तुमको भी थोड़ा सुख मिले!”

“हा हा हा!”

“और नहीं तो क्या!” काजल ने माँ के स्तनों को हलके से दबाते हुए कहा, “इन ठोस ठोस बूनियों पर किसी जवाँ मर्द का हाथ चाहिए। देखो न - कैसे घमंड से अकड़ी हुई हैं दोनों! कोई होना चाहिए जो इनकी सारी अकड़ निकाल दे!”

माँ काजल की बात पर शर्म से हँसने लगीं, “तो क्या चाहती है तू, दोनों लटक जाएँ?”

“बिलकुल भी नहीं! लटकें तुम्हारे दुश्मन! अरे मेरी दीदी अभी भी जवान है! उसके शरीर में जवानी की अकड़ है! उसकी तो अलग ही शान होती है! इसीलिए तो तुमको जवानी के खेल खेलने के लिए कहती हूँ न दीदी!”

“हा हा हा!”

“सच में, एक बढ़िया सा, हैंडसम सा, तगड़ा सा, अच्छा पढ़ा लिखा हस्बैंड मिल जाए तुम्हारे लिए! बस!” काजल बोली।

काजल की बात पर माँ के मानस पटल पर अनायास ही सुनील का चित्र आ गया। बहुत कोशिश करने पर भी वो चित्र हट नहीं सका।

“सोचो न! तुम्हारे सैयां जी आएँगे, तुम्हारी बूनियों को तुम्हारी ब्लाउज की क़ैद से आज़ाद करेंगे, इनको चूमेंगे, चूसेंगे, और इनको मसलेंगे, तब निकलेगी इनकी सारी अकड़! और फिर आएगा तुमको मज़ा!” काजल ने चटकारे लेते हुए कहा।

माँ के साथ इस तरह की बातें, उनके साथ ऐसा मज़ाक, केवल काजल ही कर सकती थी। भगवान का शुक्र था कि ऐसे समय में काजल उनके साथ थी। नहीं तो न जाने माँ का डिप्रेशन उनको कैसी गहराइयों में लिए चला जाता! उधर सुनील द्वारा अपने स्तनों का मर्दन किए जाने का दृश्य सोच कर माँ की हालत खराब हो गई। अकल्पनीय दृश्य था वो!

“हट्ट! बद्तमीज़!” माँ ने उसके हाथ पर हलकी सी चपत लगाते हुए प्यार भरी झिड़की दी। लेकिन उनकी आवाज़ कामुकता से भर्राने लगी थी।

“अच्छा जी, हम कर रहे हैं तो बद्तमीज़ी, आपके ‘वो’ करेंगे, तो प्यार?”

“ठीक है मेरी माँ! तू ही कर ले जो मन करे वो!”

“अरे नहीं नहीं! मैं कैसे कर दूँ यह सब? तुम्हारी बूनियों की मरम्मत तुम्हारे ‘वो’ करेंगे, और मेरी बूनियों की मरम्मत मेरे ‘वो’!” काजल ने माँ के स्तनों को सहलाते हुए कहा, “और फिर मस्त चुदाई भी तो होगी!”

‘क्या? सुनील? सुनील के साथ सम्भोग!’ महा अकल्पनीय दृश्य! माँ अंदर ही अंदर सिहर गईं।

काजल की इस बात पर माँ ने फिर से उसको चपत लगाई, “आह! हट्ट गन्दी, बेशर्म, बद्तमीज़!”

“हाँ हाँ! दे लो मुझे गालियाँ!”

माँ की बातों का काजल पर कोई असर ही नहीं होता था। दोनों ऐसी अंतरंग, ऐसी घनिष्ठ थीं कि सगी बहनें - जुड़वाँ बहनें भी नहीं हो सकतीं। उसने हाथ बढ़ा कर माँ के नितम्बों को दबाया।

“दुद्धू तो दुद्धू, ये पुट्ठे भी क्या बढ़िया ठोस ठोस हैं!”

“हा हा हा!”

उसने माँ की साड़ी और पेटीकोट को साथ ही में पकड़ कर नीचे सरकाना शुरू कर दिया।

“क्या कर रही है काजल! क्या हो गया तुझे?” माँ की हालत भी खराब हो रही थी - एक तरफ तो कामुकता का प्रहार हो रहा था, वहीं दूसरी तरफ सरकता हुआ वस्त्र उनके नितम्बों को कुचलते हुए उतर रहा था। इसलिए उनको तकलीफ भी हो रही थी।

लेकिन काजल को इस बात की कोई परवाह नहीं थी। कुछ ही देर में माँ कमर से नीचे पूरी तरह से नग्न हो गईं। शरीर के ऊपरी हिस्से पर उन्होंने ब्लाउज पहना हुआ था, जो पूरी तरह से खुला हुआ था। काजल ने उनकी जाँघों और योनि को सहलाया।

माँ सिहर गईं!

काजल पहले भी माँ की मालिश इत्यादि करती रही थी। तब उनको ऐसा अनुभव नहीं हुआ था... लेकिन आज! कहीं सुनील का ही तो असर नहीं है!

“दीदी, तुम्हारी जवानी में कोई कमी नहीं है!” उधर काजल माँ की योनि में अपनी उंगली थोड़ा सा प्रविष्ट करते हुए बोली, “देखो न, कैसे ज़ोर से मेरी उंगली को पकड़े हुए है तुम्हारी चूत!”

“हट्ट काजल! तू बदतमीज हो गई है बहुत!” माँ विरोध करने की हालत में नहीं थीं, लेकिन उन्होंने जैसे तैसे अपना विरोध दर्ज किया।

“होने दो! दीदी, समझा करो! तुम्हारी चूत को चाहिए एक मज़बूत लण्ड! तुम्हारी बूनियों को चाहिए कड़क हाथ! और तुमको चाहिए एक बहुत बहुत बहुत प्यार करने वाला हस्बैंड! ये तो तुम्हारे खेलने खाने के दिन हैं! क्या यूँ ही गुमसुम सी बनी रहती हो! तुमको तो आनंद उठाना चाहिए, उमंग में रहना चाहिए! हँसते गाते रहना चाहिए।”

“हा हा हा हा! तू पूरी गधी है काजल! विधवा हूँ मैं!”

“पाप हो गया क्या विधवा होना? वैसे, न जाने क्यों मेरे मन में आता है कि बहुत दिन नहीं रहोगी!” काजल ने अचानक ही गंभीर होते हुए कहा, “सच में दीदी! तुम्हारी शादी हो जाए न, तो समझो मैं भगीरथ नहाई!”

“भग यहाँ से!” माँ अब तक शर्म से पानी पानी हो चली थीं।

“हाँ हाँ! भगा लो मुझे! लेकिन अपने ‘उनको’ तो खुद से यूँ लपेट कर रखोगी!” काजल बोली, और हँसते हुए वहाँ से चली गई।

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Bahut hi badhiya update
 
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Mishti9983

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As per some last few updates I think this story is now just turned to be a revenge story of Sunil towards Amar and his mother.

I think so because:-

01. Since childhood Sunil saw that amar is molesting Kajal (in his view) but after death of Devi Kajal is more and more taking care of Amar. Long time jealousy is turned in revenge.

02. Sunil thinks Kajal and amar can marry any time... Aa they done all adventures of married life without marriage... He is not worried but he is planning something else. He is planning to marry Amar 's mother and molest her and do all things Amar done with his mother.

03. That way he became superior and also get his revenge. And don't know why but Kajal and puchki are also helping Sunil to get marry Amar's mother and get revenge by molest her in Amar's presence.
 
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avsji

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Supreme
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बेचारी सुमन अजीब दुविधा में फंस गई है, अब ना तो सुनील दिलोदिमाग में रखते बनता है और ना निकालते। एक मां के नजरिए से उसको सब गलत लग रहा है और एक औरत के नजरिए से कुछ कुछ सही भी लग रहा है।

दुविधा तो है भाई! जैसा कि सुनील ने भी कहा, उसके इज़हार-ए-इश्क़ के बाद, उन दोनों के बीच सब कुछ पहले जैसा तो नहीं रहने वाला था।
किसी भी सम्बन्ध में भावनाओं का समुचित आदान प्रदान होना आवश्यक है। जबरदस्ती ही किसी की अम्मा या किसी का बेटा नहीं बना जा सकता (अगर रक्त सम्बन्ध न हो)।
इसी तर्ज़ पर जबरदस्ती ही किसी का प्रेमी भी नहीं बना जा सकता।

ये अमर फिर से चूतिया हो गया लगता है जो सबकुछ सुनील के भरोसे छोड़ कर फिर से काम में घुस गया है। क्या सुनील के आने और परिवार को खुश रखने से अमर अपने उत्तरदायित्व से मुक्त हो गया है क्या? ऐसे ही लग जब बाद में परिवार बिखरने लगता है तो किस्मत और भगवान को कोसने लगते है। To be honest, ऐसे लोगो को परिवार बनाना ही नहीं चाहिए। अगर जीवन में कुछ कठिन समय आ गया तो अपने दुख का रोना रोते हुए अपनी बाकी की जिमेदारियां छोड़ देनी चाहिए क्या?

भाई, ये तो एक संगीन इलज़ाम लगा दिया आपने अमर भाई साहब पर!
एक आदमी है - उन्तीस साल का! दो बार प्यार पा चुका और खो चुका। अपनी दो संतानें खो चुका। अपना पिता भी।
थोड़ी दया तो रखिए उस आदमी पर! सोचिए कि उस पर क्या बीत रही है - वो अपना आत्मनियंत्रण बनाए हुए है, क्या वही कम है?
सुमन का तो केवल पति गया - और वो डिप्रेशन में चली गई! अमर को देखिए! और ऊपर से एक नन्ही बच्ची की ज़िम्मेदारी भी।
कठिन समय का मुकाबला - मेरे ख़याल से - अमर ने बखूबी किया। वो दुःख का रोना रो रहा होते, तो पड़े होते कहीं किसी नाली में, देवदास बने!
थोड़ा empathy रखिए भाई! :)

काजल ने सुमन के अंदर दबी हुई आग में ऊपर से घी डाल दिया है अपनी बातो और हरकतों से, ये दोनो मां बेटा सुमन को बहला फुसला कर ही मानेंगे।

हाँ! काजल ने सुमन को उसके अकेलेपन का एहसास तो दिला ही दिया।
लेकिन क्या वो उसको बहला-फुसला रही है? यह बात स्पष्ट नहीं है।

बहुत ही जबरदस्त, जज्बातों के बवंडर से भरा अपडेट।

बहुत बहुत धन्यवाद! :) 🙏
 
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