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हाँ मुझे भी ऐसा लगा
यह बात आपने शत प्रतिशत सही कहा
परिवार के मामले में सुनील की भाग्य बचपन से खराब रहा है
और अमर को पारिवारिक माहौल हमेशा प्रेम मय मिला है
हाँ यौवन तब तक शरीर नहीं छोड़ता जब तक इच्छायें शेष रहती हैं
वर्ना बुढ़ापा एक शब्द मात्र ही है
हाँ सच कहा आपने लंबे समय तक अगर शारीरिक आवश्यकता पूर्ति ना हो तो ऐसे क्षण में दुर्बलता हावी हो जाती हैं
हाँ भाई हुस्न के आगे बंदर बनते देर कहाँ लगती है
भाई रचना आपकी है (मतलब यह कहानी)
चरित्र सृजन व चित्रण आपके हाथ में है
हाँ भाई इसमे तो मैं आपके साथ पूर्ण सहमत हूँ
हा हा हा हा
हाँ पर असरानी नहीं हैं
कोई भाग नहीं पाया उनके जैल से
ह्म्म्म्म
शायद रचना और उनके परिवार की मानसिकता को परखना चाहता हो जिससे यह तय हो सके रचना का उसके जीवन में दोबारा आना आवश्यक है या अनावश्यक
बिल्कुल
बेचारा अमर दिवाना जिसके लिए कुड़ी ने दाने फेंके हैं
बिल्कुल
हाँ वही मांसल पर चर्बी रहित
हाँ यह मानवीय लक्षण होते हैं
हर व्यक्ति में ऐसे दुर्बलता होती है
वह अतिमानव या महामानव होते हैं जो ऐसी दुर्बल क्षण में भी स्वयं को नियंत्रित कर रख सकते हैं
प्रतीक्षा रहेगी अगली अपडेट की
इतना समझ में आयाअंतराल - समृद्धि - Update #11
रचना से मेरी इस मुलाकात के बारे में सभी ने पूछा, और लोगों को सब कुछ (अपनी अंतरंग होने वाली बातें मैं छुपा गया सभी से) सुन कर बड़ा अच्छा भी लगा। माँ इसी बात से निहाल हो गईं कि वो उनको अभी भी याद करती है। वैसे गर्भवती महिलाएँ किसी भी बात से भावुक और निहाल हो जाती हैं, इसलिए मैंने माँ की प्रतिक्रिया को बहुत सीरियसली नहीं लिया। काजल से जब बात हुई तो उसने कहा कि वो दिल्ली ही आने वाली है, तो विस्तार से इस बारे में बात करेगी। वैसे उसकी दृष्टि में सब बढ़िया बढ़िया था। पापा ने बहुत कुरेद कुरेद कर सारे राज़ की बातें निकाल लीं - किसने क्या कहा, क्या खिलाया इत्यादि। उनके हिसाब से भी सब बढ़िया था।
सभी ने सलाह दी कि मैं रचना से और मिलूँ और जल्दी जल्दी मिलूँ। अच्छी बात थी!
रचना को मैंने एक खुला निमंत्रण दिया कि वो जब मन करे, ‘घर’ आ जाए। हम उसको घर का खाना खिलाएँगे, और पुरानी बातें याद करेंगे!
रचना हमारे पहली बार मिलने के दूसरे सप्ताहांत में मेरे घर आई। वो टैक्सी में आई थी, तो मुझे इस बात से थोड़ा अजीब लगा कि वो अकेली ही आई; अपनी बेटी को साथ नहीं लाई! यह एक बढ़िया मौका था कि हमारी बेटियाँ भी आपस में मिल लेतीं और एक दूसरे को जान लेतीं। हम कोई डेट पर थोड़े ही जा रहे थे - जब घर में मिल रहे हैं, तो पारिवारिक मुलाकात है : व्यक्तिगत नहीं!
खैर, कोई बात नहीं। मैंने सोचा कि उसके लिए भी सब नया नया होगा! तो उसको जिस बात में सहजता रहे, वही अच्छा।
पिछली बार के जैसे ही वो इस बार भी बढ़िया से तैयार हो कर आई थी। इस बार उसने जींस और टॉप पहना हुआ था। स्किन हगिंग! जींस और टॉप दोनों ही उसके शरीर से इस तरह चिपकी हुई थीं कि उसके फिगर के बारे में कल्पना करने की कोई ज़रुरत ही नहीं थी। उसका टॉप किसी शिमरिंग कपड़े का था - कुछ कुछ उसकी ब्लाउज के जैसा - जो उसके रूप लावण्य को और भी लुभावना बना रहा था! सोचता हूँ तो लगता है कि अप्सराएँ ऐसी ही रही होंगी!
मैंने काजल को रचना के आगमन के बारे में पहले से ही आगाह कर रखा था। वो भी रचना से मिलने को बड़ी उत्सुक थी, और देखना चाहती थी कि मेरे जीवन की ‘पहली पसंद’ कैसी है! उसके हिसाब से यह रिश्ता तय हो गया था, और वो मुझसे प्यार व्यार की बातें करती थी। अब मैं काजल को कैसे समझाऊँ कि रचना से प्यार नहीं हुआ था मुझको - उससे वर्षों पुरानी पहचान थी, कभी हम अच्छे दोस्त हुआ करते थे, और हमने एक बार सेक्स किया है। उसको भी एक मुद्दत हो गया! बस, इतना ही! लेकिन काजल के हिसाब से वो होने वाली बहू ही थी!
उफ़्फ़्फ़! ये औरतें!
काजल ने रचना के आगमन पर उसके स्वागत की तैयारी खुद करी - मेरे लाख मना करने के बावज़ूद! कितना समझाया उसको की अपनी नन्ही सी बच्ची की देखभाल करो, लेकिन वो एक ज़िद जब पकड़ लेती, तो उसको छोड़ती नहीं थी। उसने कहा कि यह एक स्वस्थ चीज थी, और मुझे एक बार और प्यार पाने की कोशिश करनी चाहिए। कामवाली बाई बस उसकी सहायक बन कर रह गई। आभा और लतिका भी बड़े उत्साह से तैयार हुए थे कि मेरी ‘गर्लफ्रेंड’ से मिलेंगी दोनों!
रचना जब आई, तब उसके लिए दरवाज़ा मैंने ही खोला।
अपने बारे में एक बात आपको ज़रूर बताऊँगा कि इतनी दौलत आने पर भी मैं ज़मीन पर ही रहता था। उड़ता नहीं था। धन का क्या है? आज है, कल नहीं? हम अपने और अपने परिवार के लिए धन का संचय करते हैं; दूसरों को अगर उससे कुछ नहीं मिलता, तो दूसरों के सामने उस धन का ठसका क्यों मारना? इसलिए सरल जीवन ही व्यतीत करता था मैं। Kala Nag काला नाग भाई की कहानी के खेत्रपालों के जैसे आलू टोस्ट तो नहीं, लेकिन, अँकुरित अनाज को थोड़ा स्टीम कर के, सलाद के साथ खाना - यही मेरा मुख्य भोजन था। साथ में दही और फल भी! माँ ने अच्छे खाने की जो आदत लगवाई थी, वो आज तक नहीं छूटी। हाँ, बच्चे अपना मनचाहा अवश्य खाते थे, लेकिन चूँकि लतिका खुद भी एक एथलीट थी, तो उसका भोजन भी पौष्टिक था। उसकी देखा-देखी आभा का भी! हाँ - काजल के कारण आज व्यंजन अवश्य पके थे। नहीं तो बेचारी की यही शिकायत रहती थी कि मैं कुछ खाता नहीं!
रचना अंदर आई, तो मुझसे हाय हेलो के बाद घर का मुआयना करने लगी।
‘कितना अच्छा सजाया है’ ‘कितना सुन्दर है’ इत्यादि कमेंट उसने दिए।
इतने में काजल हमारे लिए चाय और जलपान के अन्य पदार्थ ले आई। शायद रचना को लगा हो कि काजल हमारे घरेलू सहायकों में कोई है, और तो उसने उसकी तरफ़ देखा भी नहीं। मुझे सच में इस बात से बहुत बुरा लगा!
ठीक है - आप न करें घरेलू सहायकों से हाय हेलो! लेकिन जब वो आपको कुछ दें, या आपके लिए कुछ करें, तो उनको उस काम के लिए ‘थैंक यू’ तो कह ही सकते हैं न? इतने से आप छोटे तो नहीं हो जाएँगे! कुछ गलत कहा? यह तो एक साधारण सा शिष्टाचार है!
सच में बड़ी गुस्सा आई!
‘काजल के सामने दो पैसे की भी औकात है क्या?’ मन में विचार आया।
फिर यह भी विचार आया कि रचना को काजल के बारे में कुछ भी नहीं मालूम। तो वो क्यों ही उसको कोई तवज्जो देगी?
इसलिए मैंने गुस्सा जब्त करते हुए उसका परिचय रचना से कराया, “रचना, इनसे मिलो! ये हैं इस घर की मुखिया... इस खानदान की एंकर... काजल!”
काजल मेरे परिचय पर मुस्कुराई, “नमस्ते रचना! अमर ने मुझे तुम्हारे बारे में बताया है... और जितना उसने बताया उससे कहीं सुन्दर हो तुम...”
रचना थोड़ा सा सकपका गई, लेकिन संयत हो कर बोली, “नमस्ते, काजल! आई ऍम सॉरी! रियली! मुझे सच में बिलकुल ही नहीं पता था कि आप इस घर की बड़ी हैं...”
“कोई बात नहीं! ये तो ऐसे ही मेरे बारे में बढ़ा चढ़ा कर बोलता है सब...”
“और सब कुछ सच सच!” मैंने कहा।
“हा हा...” काजल ने बात सम्हाली - आज की मुलाकात रचना के बारे में थी, उसके बारे में नहीं - सच में मैं कुछ मामलों में अभी तक लल्लू था, “रचना, इसको इतने सालों से सम्हाल रही हूँ न! इसलिए! यहाँ अमर और दो और जने रहते हैं - उसकी बेटी आभा... उसको हम मिष्टी कहते हैं, और मेरी बेटी लतिका... उसको हम पुचुकी कहते हैं! दोनों आते ही होंगे तुमसे मिलने! दे विल लव यू!”
रचना काजल की बात पर मुस्कुराई।
“आप नहीं रहतीं यहाँ?”
“नहीं! मैं तो मुंबई में रहती हूँ...”
काजल कुछ और कहती कि मैंने बीच में बात काट दी, “... हाँ, इनका बेकरी का बिज़नेस है न वहाँ! इनकी एक नन्ही से बेटी है, जो अभी अभी हुई है... पुचुकी की पढ़ाई न खराब हो, इसलिए वो यहीं रहती है!”
“ओह!” न जाने क्या समझ में आया रचना को।
काजल ने मुझे थोड़ा प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा, लेकिन बात आई गई हो गई।
हम तीनों ने चाय पीते हुए थोड़ी और बात की। अधिकतर बातों की शुरुवात काजल ही कर रही थी। एक तरह से वो रचना को इस घर के बारे में बताने की कोशिश कर रही थी। उसने रचना को यह भी बताया कि उसका एक बेटा भी है, जिसकी शादी हो चुकी है, और उसके भी दो बच्चे हैं, और अगला आने वाला है! शायद उसको भी मेरे मन की बात किसी तरह से समझ में आ गई, इसलिए उसने भी कुछ महत्वपूर्ण विवरण दबा लिए!
अंततः रचना ने मुझसे माँ के बारे में पूछा।
“अमर, माँ कहाँ रहती हैं? कैसी हैं वो?”
उसके मुँह से माँ के लिए ‘माँ’ शब्द सुन कर मुझे बड़ी खुशी हुई।
‘बढ़िया!’
“माँ बहुत अच्छी हैं... वो भी मुंबई में ही रहती हैं!” कहते हुए मैंने काजल को देखा, जो मेरी बात पर ‘हाँ’ में सर हिलाई, “तुमसे मुलाकात के बारे में वो भी बड़ी एक्साइटेड हैं! किसी कारणवश वो फिलहाल ट्रेवल नहीं कर सकतीं!”
“ओह? सब ठीक तो है न?”
“बताया न! सब ठीक है! थोड़ा बिजी हैं - बस!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा।
“हम्म! लेकिन मुंबई दूर है न!” रचना ने बात का सूत्र नहीं तोड़ा, “हाँ फ्लाइट्स चलती हैं इतनी सारी, लेकिन फिर भी...”
“हाँ! वो भी कम ही आती हैं यहाँ!”
मेरी बात पर काजल हँसने लगी। रचना को कुछ समझा नहीं।
“मिष्टी को मिस करती होंगी!” उसने एक फैक्चुअल सी बात कही।
कोई भी दादी, अपनी पोती को मिस करेगी ही।
“हाँ, लेकिन वो वहाँ बहुत खुश हैं!” मैंने टालने वाले अंदाज़ में कहा।
मैं ठीक से कह नहीं सकता, कि रचना इस जानकारी पर कैसी प्रतिक्रिया देगी।
वो कुछ पल चुप रही, फिर बोली, “माँ मुझे बहुत प्यार करती थीं... मुझे सब याद है!”
उसने जिस अंदाज़ में यह बात कही - मैं यकीन से कह सकता हूँ कि वो इमोशनल हो गई थी।
“हाँ न? बहुत चाहती थीं तुमको! ... संयोग से हमारा साथ छूट गया... लेकिन मुझे पक्का यकीन है कि जब वो तुमको फिर से देखेंगी, तो बहुत खुश होंगी!”
“हाँ,” काजल भी बोल पड़ी, “आज ही ब... अ... सुमन से बात हो रही थी तुम्हारे बारे में...”
रचना यह सुन कर बहुत खुश हो गई, “मैं भी तो उनसे मिलना चाहती हूँ कितना!”
“जल्दी ही...” काजल बोली और इतने में दोनों बच्चे भी आ गए, “लेकिन फिलहाल इन दोनों से मिलो...” काजल ने बीच में अपनी बात रोकते हुए कहा, “... ये है हम सब की चहेती, हम सब की प्यारी... मिष्टी! अमर की बेटी!”
“हेल्लो!” आभा ने अपने सदा खुशमिजाज वाले अंदाज में रचना का अभिवादन किया।
“हेलो मिष्टी,” रचना ने भी उसी अंदाज़ में जवाब दिया, “आभा एक बहुत ही सुन्दर नाम है... लेकिन मिष्टी बहुत ही मीठा! आपको मैं इसी नाम से बुलाऊँगी तो चलेगा?”
आभा ने मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“हाऊ ओल्ड आर यू?”
“आई ऍम नाइन एंड हाफ!” आभा ने बड़े गर्व से कहा, “हाऊ ओल्ड आर यू?”
“हा हा! आए ऍम ऐस ओल्ड ऐस योर डैडी इस...” रचना ने हँसते हुए कहा।
“ओह गॉड! यू आर ओल्ड!”
“हा हा! यू आर सो फनी, मिष्टी!” रचना बोली।
काजल भी आभा की बात पर हँसते हुए बोली, “और ये है लतिका... मेरी बेटी।”
“हैलो लतिका।”
“हेलो, रचना।” लतिका ने बड़े सौम्य तरीके से रचना का अभिवादन किया, “इट इस सो नाईस टू मीट यू! यू इनडीड आर वैरी ब्यूटीफुल!”
रचना मुस्करा उठी - शायद इस बात से कि कम से कम इसने तो उसे ‘आंटी’ कह कर संबोधित नहीं किया। और तो और, उसने उसके सौंदर्य की बढ़ाई भी करी!
“एंड हाऊ ओल्ड आर यू, लतिका!” रचना ने पूछा, “गॉश! योर नेम इस सो लवली! आई विल नॉट कॉल यू पुचुकी! होप इट इस ओके विद यू?”
“इट्स ऑल राईट, रचना! आई ऍम क्लोज़ टू फ़िफ़्टीन!” लतिका ने सौम्य, सधी हुई, और मीठी वाणी में बात करना जारी रखा, “आई विल रॉइट माय इण्टरमीडिएट एक्साम्स नेक्स्ट ईयर!”
“वाओ! यू आर अ लेडी, लतिका!” रचना उससे प्रभावित होती हुई बोली, “आई होप दैट व्ही कैन बी फ्रेंड्स!”
लतिका मुस्कुराई, “श्योर!”
सभी से परिचय होने के बाद, हमने आपस में कुछ देर और भी बातें करीं। काजल ने अपनी नवजात से भी रचना को मिलवाया। फिर हमने रात का खाना साथ ही में खाया। फिर सभी ने हमको अकेला छोड़ दिया आपस में बात करने के लिए। तब तक देर बहुत हो चुकी थी, इसलिए मैंने रचना को उसके घर वापस ले जाने की पेशकश की। मेरी बात से उसके चेहरे पर निराशा के भाव आ गए। मैंने जब उसकी तरफ प्रश्नवाचक दृष्टि डाली, तो उसने मुस्कुराते हुए एक मोहक पेशकश करी,
“मैं सोच रही थी कि काश हम दोनों साथ में थोड़ा और टाइम स्पेंड कर सकते... आज की रात के लिए मैंने रेडी होने में बहुत टाइम लगाया है!”
मैं मुस्कुराया, “व्हाट आर यू थिंकिंग?”
“नेक इरादे तो बिलकुल भी नहीं हैं!” वो सेक्सी अदा से मुस्कुराई।
“आई ऍम ऑल ईयर्स!”
“क्या मैं यहीं रह जाऊँ? रात के लिए?”
गज़ब की पेशकश! कितनी बोल्ड है रचना!
“आई कांट सी व्हाई नॉट!” मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी लार टपकने से रोका, “लेकिन क्या तुम्हारे मॉम डैड... आई मीन, विल दे बी ओके?”
“मैंने उनसे कह रखा है कि शायद यहाँ रात भर रुकना पड़े!” उसने अर्थपूर्वक कहा, “इसीलिए नीलिमा को नहीं लाई साथ में! अगर तुम ओके हो, तो उनको फोन करके बता दूँ?”
“ओह रचना, तुमको मालूम है कि मुझे बहुत अच्छा लगेगा... अगर तुम यहाँ रुक जाओ!” मेरे दिमाग में हमारे आसन्न सम्भोग की कल्पना चमक उठी, “क्या रंग जमेगा, जब मिल बैठेंगे दो यार... और... बैगपाइपर...” मैंने एक पुराने सोडा के विज्ञापन की तर्ज में एक बकवास सा जोक कहा।
लेकिन उस पर भी रचना हँस दी!
खैर, रचना ने अपने घर फोन किया और बताया कि वो आज रात यहीं रुक रही है। कल सवेरे वो आ जाएगी। इस बीच मैंने काजल को भी इस बारे में बता दिया। वो मुस्कुराई और उसने मुझसे कहा कि रचना बड़ी अच्छी है, और उसको पसंद है! और यह भी कि वो मेरे लिए बहुत खुश है कि मेरे जीवन में फिर से ‘प्यार’ आ रहा है!
काजल यह सब कह तो रही थी, लेकिन किसी कारणवश वो आश्वस्त नहीं लग रही थी। एक हिचक सी थी उसकी बातों में! फिर भी, मैंने इसके बारे में ज्यादा नहीं सोचा, क्योंकि मैं सेक्स के बारे में सोच रहा था!
जब रचना की कॉल खत्म हुई, तो उसने मेरी तरफ देखा और बड़े सेक्सीपन से मुस्कुराते हुए बोली, “नाऊ... अ मैजिकल नाईट एट द एण्ड ऑफ़ अ लवली इवनिंग!”
“तुम तो खुद ही पूरी की पूरी मैजिकल हो रचना!”
वो मुस्कुराई और धीरे-धीरे चाल से चलती हुई मेरे पास आने लगी, और तब तक चलती रही जब तक हम दोनों एक दूसरे से स्पर्श नहीं करने लगे। मैंने न तो कुछ बोला और न ही वहाँ से हिला।
सम्भोग प्रलोभन का उसका अंदाज़ बड़ा रोचक था। एक लम्बा अर्सा हो गया था मुझे सम्भोग किए, और उससे भी लम्बा अर्सा हो गया था जब मेरी पार्टनर ने सेक्स की पहल करी हो मुझसे। इसलिए, सच में, मैंने इस अनुभव का भरपूर आनंद लिया। उसने मेरी आँखों में देखा, और अपने हाथों में मेरे हाथ पकड़ लिए!
‘क्या होने वाला है?’
उसने अपनी आँखें मेरी आँखों से मिलाए हुए ही मेरे हाथों को उठाया, और अपने पर रख दिया, और फिर मेरे हाथों के ऊपर अपने हाथों से दबाया!
मेरे हाथ स्वतः ही उसके स्तनों का मर्दन करने लगे। कोमलता से! यह नारी ऐसी है कि थोड़ी भी असावधानी हुई, तो टूट जाएगी!
नर्म, गुदाज़, पयोधर! ओह!
दिल में कुछ था जो पिघल गया और मेरे घुटनों में मुझे कमजोरी सी महसूस होने लगी! उफ़्फ़!
रचना बहुत सेक्सी थी। अगर अपनी पर उतर आए तो घातक भी! उसको इस बात की समझ थी कि अपने रूप का, अपने काम कौशल का इस्तेमाल किस तरह करना नहीं। मेरी सबसे पहली सहेली थी वो... कहने को हमने अपना अपना कौमार्य एक दूसरे के साथ खोया था, लेकिन मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं है कि काम कौशल में वो मुझसे मीलों आगे थी। और अब इतने सालों बाद हम फिर से साथ में थे। वो दोपहर की यादें दिमाग में ताज़ा हो गईं!
मैंने उसके कोमल गोलार्द्धों को निचोड़ा, और उसको एक गहरा निःश्वास लेते हुए सुना। उसको और प्रोत्साहन देने की आवश्यकता नहीं थी - जो कमी पिछली बार रह गई थी, वो सब इस बार पूरी हो गईं। अच्छी तरह नाप तौल लेने के बाद, मैंने जब उसके स्तनों के चूचकों को छेड़ा, तो मस्ती में रचना की आँखें किसी शराबी की मानिंद पीछे लुढ़क गईं। उसका सर पीछे ढलक गया, और वो मस्ती में ही आँहें भरने लगी। अपनी उँगलियों में उसके चूचकों को पकड़ कर जब मैंने अपनी ओर खींचा तो जैसे उसके अंदर कुछ प्रज्ज्वलित हो गया। उसकी आँखें अभी तक बंद थीं! मेरी इस हरकत पर उसने अचानक ही आँखें खोलीं, और मेरी आँखों में झांकती हुई वो मुझसे बोली,
“डू यू वांट मी?”
अब इससे बड़ा, और खुला निमंत्रण और कहाँ मिलेगा? एक आदिम सी गुर्राहट मेरे सीने में उत्पन्न हुई। मैं जो कर रहा था, रचना उससे आनंदित तो हो रही थी। इस एक वाक्य से उसने बता दिया कि वो मुझको सर्वस्व अर्पण करना चाहती थी।
“मोर दैन आई कैन स्टैंड!” मैं बोला। बड़ी मुश्किल से!
मेरी बात पर उसकी दबी हुई सी हंसी निकल गई। उसका फेंका हर दाँव सही पड़ रहा था। अगर हम दोनों के बीच यह कोई महायुद्ध था, तो हमारी हर लड़ाई में वो विजयी हो रही थी।
उसी ने पहल करी। उसने मेरा चेहरा अपनी हथेलियों में दबा कर मुझे होंठों पर चूमा। जोशीला चुम्बन! एक तरोताज़ा महक से मेरी साँसें भी तरोताज़ा हो गईं। आनंद आ गया। कुछ देर तक चुम्बन करने के बाद हम अलग हो गए।
“मम्म्म...” जैसे वो उस चुंबन का आनंद लेते हुए कह रही हो, “आखिरी बार हमने ऐसा तब किया था जब तुम एक लड़के थे! और अब... अब तुम एक हैंडसम से मर्द बन गए हो! अ टाल, एंड स्ट्रांग मैन!”
“देखोगी नहीं कि अब तक क्या-क्या बदल गया है?”
“बड़ी ख़ुशी से!” उसने अधीरता से कहा, “लेकिन पहले कमरे में चलें?”
तो हम तेजी से अपने कमरे में भागे, और लगभग चीरते हुए एक दूसरे के कपड़े उतारने लगे। किशोरवय अधीरता! लेकिन क्या मस्ती! वैसे भी, जब रचना खुद भी सम्भोग के लिए प्रेरित थी, तो फिर उसको इंतज़ार क्यों कराया जाए? जब हम दोनों नग्न हुए तो मैंने रचना के शरीर को मन भर कर देखा! उसने भी कोई संकोच नहीं किया - एक निराली अदा से अपने अंग प्रत्यंग का प्रदर्शन करते हुए वो मेरे सामने खड़ी हो गई।
जैसा मैंने पहले भी लिखा है, रचना अब एक गुदाज़ शरीर की मालकिन थी। लेकिन मोटापा नहीं था उसमें बिलकुल भी! जो स्थूलता थी, वो उसको और भी सुन्दर बना रही थी। आरामदायक, विलासमय जीवन जीने वाली महिला ऐसी ही लगती होगी! वो पूरे शरीर में समान रूप से गोरी थी! योनि पर ब्राज़ीलियन वैक्सिंग की गई थी, लिहाज़ा, बस हल्की सी ही गहरे रंग की थी! योनि का रंग भी समझिए उसके चूचकों के रंग का था। अद्भुत, अलौकित सौंदर्य की मल्लिका!
मैं कुछ देर उसके हुस्न में मदहोश हो गया, और उसको अपलक निहारने लगा!
“लाइक व्हाट यू सी?” उसने मुस्कुराते हुए पूछा।
वो जानती थी वो क्या थी, उसका हुस्न क्या था! और उसको इस बात का गर्व भी था!
“ओह, यू वोन्ट नो हाऊ मच आई लव्ड...”
मैंने कहा और अपने शरीर पर पड़े बचे खुचे कपड़े उतारने लगा।
‘माना हो तुम बेहद हँसी... ऐसे बुरे हम भी नहीं’ इस गाने की पंक्तियाँ याद आ गईं!
रचना सुन्दर है, लेकिन मैं कोई चूतिया थोड़े ही हूँ! मैंने भी तो अपने शरीर को साँचे में ढाला हुआ है न! जब मैं अपने कपड़े उतार रहा था, तब रचना चलती हुई आई, और मेरे बिल्कुल करीब खड़ी हो गई! जब मेरा कच्छा उतरा, तो मेरा लिंग पूरी तरह से उत्तेजना में खड़ा हुआ था।
उसने कहा, “ओह अमर… तुम कितने सुंदर हो गए हो!” उसकी आवाज़ में प्रशंसा के भाव साफ़ सुनाई दे रहे थे, “यू हैव ग्रोन टू बिकम अ बिग एंड स्ट्रांग मैन… एंड आई कैन सी दैट योर पीनस हैस आल्सो बिकम बिग एंड स्ट्रांग… आई ऍम अ लकी वुमन!”
वो लगभग हैरत से मेरे लिंग को देख रही थी।
‘समझ में आया मैडम,’ मैंने मन में सोचा, ‘मैंने कई लेडीज़ को तृप्त किया है… अब तुम्हारी बारी है!’
“अमर, तुम मुझे चाहते हो ना?” उसने पूछा… जैसे कि वो हमारे रिश्ते की पुष्टि करना चाहती हो।
“ह हाँ… कोई शक नहीं!”
“देन टेक मी…”
बस इतना ही कहना था उसको। मैंने उसको अपनी बाहों में उठा लिया, और धीरे से उसे अपने बिस्तर पर गिरा दिया। उसके ऊपर छाते हुए मैंने उसके पूरे शरीर ऊपर चुम्बनों की बौछार कर दी। ऐसी सेक्सी लड़की ही बिस्तर में आनंद देती है! सच में - वो मेरे साथ काम क्रीड़ा कर रही थी - सही मायने में! और इस क्रीड़ा में मुझे बड़ा आनंद भी आ रहा था! उधर रचना भी मेरे चुम्बनों का समुचित उत्तर दे रही थी, और मेरे लिंग के साथ खेल रही थी - वो कभी उसको चूमती, तो तभी चाटने लगती, या कभी सहलाने लगती!
बीच बीच में वो बुदबुदा रही थी, “सो स्ट्रांग… सो बिग…”
उसके स्पर्श को पा कर मेरा लिंग आकार में थोड़ा और बढ़ गया। मैं पूरी तरह से तैयार था।
सम्भोग शुरू होने के पहले मैंने उसकी आँखों में देखा, और बोला, “शुड आई यूज़ प्रोटेक्शन?”
“व्हाट फॉर?”
“यू माइट गेट प्रेग्नेंट!”
“शादी के बाद तो प्रेग्नेंट होना ही है… तो इसके बारे में चिंता क्यों कर रहे हो? कम… एंड मेक लव टू मी…”
‘आएँ! ये तो सोचने भी लगी है कि हमारी शादी तय है!’
मैंने सोचा - एक खटका सा हुआ मन में! मैं उसे बताना चाहता था कि मैं उससे शादी करने का सोच तो रहा था, लेकिन यह पूरी तरह से निश्चित नहीं था! लेकिन ऐसा कहने से अच्छा खासा बना बनाया मूड का सत्यानाश हो जाता! जब दस्तरख्वान सजा हुआ हो, तो छोड़ कर भागना नहीं चाहिए!
इसलिए, मैंने कुछ नहीं कहा और मेरे सामने जो सुन्दर और स्वादिष्ट सा व्यंजन था, मैंने उसी पर अपना ध्यान केंद्रित किया।
मैंने उसकी कमर को पकड़ लिया, और उसके होठों पर एक एक लंबा सा दिया। उधर मैंने उसकी योनि से खेलना शुरू कर दिया। हमारे होंठ आपस में खेल रहे थे, और मेरी इस हरकत से रचना तड़प गई।
“स्टॉप टीसिंग मी… एंड प्लीज मेक लव टू मी…” वो जैसे तैसे बुदबुदाई।
हाँ - मुझे भी इस समय ‘सच्चा सम्भोग’ करने का मन था। मैं थोड़ा उठा, और उसके पैरों को अपनी बाहों में लेकर मैंने उसकी जाँघों को थोड़ा फैलाया। उसकी योनि के होंठ उजागर हो गए। दोनों होंठ सम्भोग की प्रत्याशा में फूले हुए थे।
“रेडी?” मैंने पूछा।
रचना ने आतुरता से ‘हाँ’ में सर हिलाया।
मैंने अपने लिंग के सर को उसकी योनि के होठों के मध्य समायोजित किया, और फिर उसकी टांगों को पकडे हुए ही मैंने एक आस भरा धक्का लगाया। रचना कराह उठी। कराही तो, लेकिन लिंग थोड़ा आसानी से अंदर चला गया - काम रस का स्राव और शायद उसके खुद के अनुभव से!
बहरहाल, मैंने उन सभी विचारों को त्याग दिया और आगे वही आदिकालीन प्रक्रिया को करना शुरू कर दिया। रचना के चेहरे और शरीर पर उत्पन्न होने वाली प्रतिक्रिया से साफ़ था, कि वो हमारे सम्भोग का आनंद ले रही थी। उसकी आँखें बंद थीं, चेहरा खिल कर चमक रहा था, और उसके होंठों पर कभी स्निग्ध मुस्कान आ जाती तो कभी पीड़ा वाली कराह! लेकिन कुल-मिला कर वो बेहद खुश नजर आ रही थी। मेरा लिंग अब काफी आसानी से उसके अंदर और बाहर फिसल रहा था।
मैंने काफी देर तक उससे सम्भोग किया। एक तो मुझे सम्भोग करने में आसानी हो रही थी, और रचना को देख कर ऐसा लग रहा था कि उसको देर तक भोगूं! तो, हमारा पहला संभोग काफी देर तक चला! लेकिन रचना को देख कर ऐसा नहीं लगा कि उसको ओर्गास्म हुआ है। मैं अब बहुत नहीं रुक सकता था। अंततः मेरा स्खलन आया - और तीन चार बलशाली धक्के लगा कर मैंने उसके गर्भ की गहराई में स्खलन छोड़ दिया।
थोड़ी निराशा हुई - न जाने मुझे क्यों लगा कि रचना अतृप्त रह गई!
मैंने रचना की तरफ देखा। उसका मुँह आनंद से खुला हुआ था, और उसकी आँखें बंद थीं। उसकी साँसें फूल रही थीं, और उसका शरीर काँप रहा था। मैं कुछ देर चुप रहा, और उसे बस चूमता रहा! और कोई पाँच मिनट बाद वो थोड़ी शांत हुई। अब तक मेरा लिंग भी नरम हो कर उसके अंदर से बाहर आ गया था।
रचना बिस्तर पर पीठ के बल लेटी थी, उसकी जाँघें खुली हुई थीं, उसकी योनि खुली हुई थी। और मैं उसमें से अपना वीर्य रिसते हुए देख सकता था। रचना ने आख़िरकार अपनी आँखें खोलीं।
“डिड यू कम?” मैंने पूछ ही लिया।
उसने ‘हाँ’ में सर हिलाया! मुस्कुराते हुए।
“जो मुझे इतनी देर हो रहा था...” उसने जैसे मुझे कोई राज़ बताते हुए कहा, “... वो वही है! ... मेरा ओर्गास्म...”
“लवली...”
हम दोनों कुछ देर चुप रहे, फिर जब मैंने उसके होंठों पर मुस्कराहट देखी, तो मैंने पूछा, “व्हाट? व्हाट आर यू थिंकिंग अबाउट?”
“आवर फर्स्ट टाइम!”
उसने पहली बार शर्म से कुछ कहा!
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ओह, मार्मिकपहला प्यार - पल दो पल का साथ - Update #3
एक शाम, जब मैं ऑफिस से वापस लौटा, तो मैंने पाया कि गैबी अभी तक विश्वविद्यालय से नहीं लौटी थी। ऐसा नहीं है कि वो कभी भी देर से नहीं आती थी - जब से उसने विश्वविद्यालय ज्वाइन किया था, तब से वो तीन चार बार देर से आई थी। लेकिन इतनी देर कभी नहीं लगी।
‘हो सकता है,’ मैंने सोचा, ‘कि किसी ज़रूरी काम से उसको रोकना पड़ा हो!’ इसलिए मैंने थोड़ा इंतज़ार करने का सोचा।
लेकिन जब वो मेरे घर आने के तीन घंटे बाद भी जब वापस नहीं लौटी तो मुझे चिंता होने लगी। बहुत चिंता! मेरी छठी इंद्रिय को लगने लगा कि हो न हो, गैबी के साथ कुछ न कुछ अनिष्ट हो गया है। मैंने उसके गाइड प्रोफेसर को उनके ऑफिस में कॉल लगाया; लेकिन वहाँ कोई नहीं था। इसलिए मैंने उनके घर पर फोन किया! तो उन्होंने मुझे बताया कि गैबी वो लगभग पांच घंटे पहले ही यूनिवर्सिटी से निकल गई थी, घर के लिए!
‘पांच घंटे पहले?’ कुछ तो गड़बड़ था! उसने पांच घंटे पहले ऑफिस छोड़ा था, और अभी तक घर नहीं आई थी! गैबी के लिए ऐसा कुछ करना बहुत ही अनियमित था, इसलिए मैं बहुत अधिक चिंतित हो गया।
मैं बिना देर किए, लापता व्यक्ति की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए पास के पुलिस स्टेशन गया। जैसा हमेशा होता है, पुलिस गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करने में आनाकानी कर रही थी! उनका कहना था कि छः सात घंटे की देरी क्या देरी है? ज़रूर वो किसी दोस्त से मिलने गई होगी। लेकिन फिर मैंने उन्हें समझाया कि गैबी एक विदेशी है, और यहाँ के विश्वविद्यालय में रिसर्च कर रही है। इसलिए उसको इस शहर में अपने विश्वविद्यालय के कुछ लोगों को छोड़कर, और किसी का अता पता नहीं है, और न जान पहचान!
बड़ी आनाकानी और मेरी विनती करने के बाद आखिरकार पुलिस रिपोर्ट दर्ज करने को तैयार हुई। उन्होंने मुझसे गैबी के बारे में सारी जानकारी ली। भारतीय पुलिस का अंदाज़ और रवैया दोस्ताना नहीं होता। आपको पुलिस स्टेशन में बैठने को पूछ लें, वही बहुत बड़ी बात हो जाती है। इसलिए, मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ जब पुलिस के कुछ लोग मुझसे बड़ी सहानुभूति से बात कर रहे थे। निश्चित रूप से कुछ तो गड़बड़ था। उन्होंने मुझसे पूछा कि मेरी पत्नी यूनिवर्सिटी से घर कैसे आती जाती है, तो मैंने बताया कि वह आमतौर पर सिटी बस का इस्तेमाल करती है।
इतना सुन कर वो सभी कुछ देर के लिए चुप हो गए। जब मैंने ज़ोर दे कर पूछा कि आखिर बात क्या है, वो उन्होंने जो कहा, उससे मुझे लगा कि जैसे मेरे सर पर कोई बम गिर गया हो! उन्होंने बताया कि कुछ घंटों पहले एक बस की दुर्घटना हो गई थी, जिसमें दो महिलाओं सहित पाँच लोगों की मौत हो गई थी, कई अन्य लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे।
मरने वाली महिलाओं में एक विदेशी भी थी!
वो जितना मुझे बताते जाते, उतना ही मेरा दिल भारी होता जाता। वो मुझे कुछ पूछ रहे थे, और मैं उनको यंत्रवत सब बता रहा था। लेकिन मस्तिष्क में मानों एक झंझावात चल रहा था -
‘गैबी मुझे ऐसे कैसे छोड़ कर जा सकती है…’ अभी तो हमने साथ में जीना शुरू भी नहीं किया, और अभी ही ये!
मुझसे जानकारी लेने के कोई एक घंटे बाद एक इंस्पेक्टर ने अंततः पुष्टि करी कि मेरी गैबी वास्तव में उन दो महिलाओं में से एक थी, जिनकी उस बस दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी!
मैं आपको कोई रक्तरंजित विवरण नहीं देना चाहता! लेकिन मेरी सुंदर सी गैबी का बेजान, विकृत, और कुचला हुआ शरीर देखना, मेरी आत्मा को झकझोर देने वाला दृश्य था! मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरी ही जिंदगी ने मेरा शरीर छोड़ दिया है... जैसे गैबी के साथ मेरी खुद की संजीवनी चली गई हो। मैं अपने घुटनों के बल गिर गया और रोने लगा। पुलिस और मुर्दाघर के लोग मुझे सांत्वना देते रहे, और पूछने लगे कि क्या कोई है जिससे वे संपर्क कर सकते हैं, या मुझे सहारा देने के लिए बुला सकते हैं। जब मैं जवाब नहीं दे सका, तो उन्होंने खुद मेरी जेब की तलाशी ली, और डैड का फ़ोन विवरण ले कर उनको कॉल किया। यह खबर सुन कर डैड और माँ का क्या हाल हुआ होगा, मुझे नहीं मालूम! एक झटके से मेरी जीवन की ज्योति जाती रही - गैबी और हमारा होने वाला बच्चा! होनी कितनी क्रूर हो सकती है और जीवन कितना क्षणभंगुर!
उसके बाद और क्या क्या हुआ, मुझे ठीक से याद नहीं।
इसमें सोचना क्या भैय्या, यह तो सरल विज्ञान एवं तथ्य है।खैर छोड़िए, नहीं तो आप मेरे बारे में न जाने क्या सोचेंगे!
मेरे लिए तो बहुत अच्छी है क्योंकि मैं अभी 'नो फैप 'प्रैक्टिस कर रा हूँ तो बिना उत्तेजित हुए इस प्रेम प्रसंग का आनंद ले सकता हूँ।ओह्हो! अब ये अच्छी बात है या बुरी, कह नहीं सकता!
आत्मविश्वास सबको आकर्षित करता है, अब इसमें लड़कियों की क्या गलती। बाकि हम जैसे तो यही विचार करते रह जाते हैं कि किसी को बुरा न लग जाए।ये जो आपका अवलोकन है कि लड़कियां स्टड जैसे लड़कों से ज्यादा अट्रैक्ट होती है, एकदम सही है, ये हर उस लड़की की कहानी है जो थोड़ा सा भी आजादी पाती है, और अपने मां बाप की सोच से इतर जाने का सोचती है।
अक्सर! बहुत सख्त होना पड़ता है अन्यथा।
या फिर गे! हा हा हा !!!
अंग्रेज़ों के ज़माने के जेलर हैं! हा हा!
इतना समझ में आया
अमर के मन में संकोच किसी बात की है पर वह खुल नहीं पा रहा है
अपने परिपक्वता से काजल कितनी आसानी से समझ गई इसलिये अपनी बहु यानी अमर के माँ के बारे में बहुत सी बात गोल कर गई
बच्चों में आभा अपनी प्यारी सी मुस्कान के साथ अपना परिचय दे दिया और लतिका हा हा हा बिल्कुल अमर की बुआ की तरह ही बात की रचना से एक दोस्ताना भाव से
रचना मन से साफ नहीं है
अपनी बेटी को नाना नानी के पास छोड़ आई मतलब साफ है वह अपने लिए एक मशीनी पति को निर्धारण करने आई है जो आगे चल कर अपने इशारों पर चला सके
कहीं पर यह प्रतीत नहीं हुआ कि वह अपनी बेटी के लिए एक पिता को ढूंढने आई है
अंत में काम क्रीड़ा का मोह पास फेंक दिया रचना
इस मोड़ पर अमर के मन का वह दस प्रतिशत उसे रोकने और टोकने में असमर्थ रहा
अब देखना यह है कि अब रचना कौनसा जाल फेंकती है और अमर का विवेक उसे पीछे खिंच लाता है या मूक साक्षी बन अमर को जकड़े हुए देखता रहेगा
इसमें सोचना क्या भैय्या, यह तो सरल विज्ञान एवं तथ्य है।
मेरे लिए तो बहुत अच्छी है क्योंकि मैं अभी 'नो फैप 'प्रैक्टिस कर रा हूँ तो बिना उत्तेजित हुए इस प्रेम प्रसंग का आनंद ले सकता हूँ।
आत्मविश्वास सबको आकर्षित करता है, अब इसमें लड़कियों की क्या गलती। बाकि हम जैसे तो यही विचार करते रह जाते हैं कि किसी को बुरा न लग जाए।