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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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Kala Nag

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अंतराल - विपर्यय - Update #8


माँ जब रसोई से निकल गई, तो काजल ने कुछ भी कहने या कुछ भी करने से पहले कुछ क्षणों तक इंतज़ार किया। वो सुनील और सुमन की चोरी छुपी नज़रों को देख कर सारा माज़रा समझ ही गई थी। वैसे भी, कल उन दोनों के बीच जो कुछ हुआ था, उसके बाद यही होना अवश्यम्भावी था और अपेक्षित भी! माँ को रसोई से भेज कर काजल ने एक अर्थपूर्ण दृष्टि सुनील पर डाली। अपनी अम्मा को अपनी तरफ ऐसे देखते हुए देख कर सुनील थोड़ा सकपका गया। सुनील को भी लगा कि उससे कुछ तो गड़बड़ - मतलब कोई चूक - हो गई है। न जाने क्यों वो अपनी अम्मा से नज़रें नहीं मिला सका और अपनी अम्मा से नज़रें चुरा कर, हाथ में पकड़ी हुई मैगज़ीन में आँखें छुपाए बैठा रहा।

काजल के लिए यह सारा नाटक अब बर्दाश्त के बाहर हो गया था।

‘प्यार किया है, कोई गुनाह नहीं! तो अपनी बात अपनी ही अम्मा को बताने में कैसी झिझक? हाँ, उसके मन में अगर कोई चोर है, तो झिझकना जायज़ है। लेकिन अगर सुनील, सुमन के साथ केवल खिलवाड़ कर रहा है तो मुझसे बुरा और कोई नहीं होगा! न तो मैंने इसको ऐसे संस्कार दिए हैं, और न ही मेरी सुमन ये डिज़र्व करती है। बस, बहुत हुआ!’

“क्या रे, ये तू गृहशोभा कब से पढ़ने लगा?” काजल ने सुनील को लगभग चुनौती देते हुए कहा - उसकी आवाज़ में खीझ साफ़ सुनाई दे रही थी। अपने लड़के को ऐसे संकोच करते हुए देख कर उसको गुस्सा सा आने लगा था।

“व...व्वो अम्मा! पढ़ नहीं रहा हूँ!” सुनील हड़बड़ा गया।

“तो क्या पढ़ने की एक्टिंग कर रहा है?”

“नहीं नहीं! क्या अम्मा! मैं तो जूलरी डिज़ाइन देख रहा हूँ!” सुनील ने बातें बनाते हुए कहा, “सोच रहा था कि जब पहली सैलरी मिलेगी न, तब उससे मैं तुम्हारे लिए कुछ गहने बनवाऊँगा। तो... वही देख रहा हूँ!”

“मेरे लिए गहने बनवाएगा, या फिर बहू के लिए!” काजल अब और भी झुँझला गई थी।

“बहू? किधर है बहू?”

काजल तब तक चल कर सुनील के बगल बैठ गई थी। काजल ने सुनील की आँखों में देखा - हाँ वो झिझक रहा था, लेकिन इस कारण से नहीं कि उसके मन में कोई चोर था। बल्कि इस कारण से कि उसके मन में अपनी अम्मा के लिए सम्मान था। तब कहीं जा कर काजल को थोड़ा संतोष हुआ। उसको यह देख कर अच्छा लगा कि सुनील के मन में अभी भी अपनी माँ के लिए इतना सम्मान है कि अपनी प्रेमिका के साथ इतना आगे बढ़ जाने के बाद भी, वो पूरी तरह से खुल कर अपने विवाह के लिए बातें नहीं कर रहा था। सम्मान और दब्बूपन में अंतर है। लेकिन फिर भी, काजल अब सब कुछ साफ़ कर लेना चाहती थी। सुनील को बस थोड़े से प्रोत्साहन की आवश्यकता थी।

लिहाज़ा, काजल ने उसके कान उमेठते हुए कहा, “चल बहुत हुआ नाटक - सच सच बोल!”

सामने खड़ी हुई पुचुकी और मिष्टी अपने दादा की हालत देख कर हँसने लगीं।

“आऊऊऊ अम्मा! अरे बोल तो दूँ, लेकिन पहले ये तो बताओ कि क्या सच बोलना है?”

“यही कि तेरी चहेती, तेरी प्रेमिका, दीदी ही है न? मेरा मतलब… सुमन ही है न!”

सुनील को तो जैसे शब्द ही नहीं सूझे!

“तू उसको ही प्यार करता है न? उसी से शादी करना चाहता है न? बोल?”

“अम्मा!” सुनील इसके अतिरिक्त कुछ कह न सका।
लो पकड़े गए
लतिका अपने दादा की घिघ्घी बँधी देख कर और हँसने लगी।

“दादा, टेल अम्मा न, दैट यू लव मम्मा!” लतिका ने भी सुनील को प्रोत्साहित किया।
हा हा हा अम्मा मम्मा
वो तो बेचारी कब से यह खबर ऑफिसियल होने की राह देख रही थी अपनी अम्मा के ही समान!

सुनील शर्मा कर मुस्कुराया, “हाँ अम्मा! मुझे सुमन से बहुत प्यार है!”

काजल मुस्कुराई, ‘हे प्रभु - आपका बहुत बहुत धन्यवाद!’

“और तूने उसको बोल दिया?”

“हाँ अम्मा!”

“बेटू,” काजल ने लतिका से कहा, “तुम और मिष्टी कुछ देर के लिए अपने कमरे में जाओ तो, मैं ज़रा तुम्हारे दादा से बात कर लूँ?”

“जी अम्मा!” लतिका ने कहा, और मिष्टी का हाथ पकड़ कर बोली, “आल द बेस्ट, दादा!”

सुनील बस नर्वस हो कर मुस्कुराया।

बच्चों के जाने के बाद काजल बोली, “कब से चल रहा है ये सब?”

सुनील ने गहरी साँस ले कर कहा, “नहीं मालूम अम्मा! समझ लो... जब से होश सम्हाला है, तब से!” सुनील ने पूरी ईमानदारी से कहा, “सालों से!”

“सालों से?”

“हाँ अम्मा! जब हम सभी बाबूजी के साथ रहने लगे थे, लगभग तभी से!”

“तब से? हम्म्म! मतलब बचपन का प्यार है?” काजल ने उसकी टाँग खींची।

सुनील नर्वस हो कर मुस्कुराया।

“बहुत प्यार करता है तू उससे?”

“बहुत अम्मा! बहुत!” सुनील की आवाज़ में प्रेम की शिद्दत और शिष्टता दोनों साफ़ सुनाई दे रही थी।

काजल यह सुन कर बहुत खुश हुई।

“कितना?”

“पता नहीं अम्मा! ... लेकिन इतना समझ लो कि वो मेरी ज़िन्दगी की लौ है।”
वाव बहुत बढ़िया
सुनील को ऐसे रूमानी अंदाज़ में कुछ कहते हुए काजल को गर्व सा हुआ। कब उसका बेटा इतना बड़ा हो गया, उसको समझ ही नहीं आया। माँ की ममता उसकी आँखों पर एक पट्टी सी बाँध देती है।

“अच्छा एक बात बता, वो भी तुझे पसंद करती है?”

“जी अम्मा! पसंद करती है।”

“उसने कहा ये तुझको?”

सुनील की आँखों के आगे उनके सम्भोग के दृश्य झलक उठे! और फिर उसके बाद की मीठी मीठी बातें भी सब याद आ गईं।

“हाँ अम्मा! सुमन ने भी मेरा प्यार स्वीकार लिया है!” वो बोला, “सुमन को मैं बहुत चाहता हूँ अम्मा! बहुत! बस, उसी से शादी करनी है मुझे! और मैं खुद भी यह बात तुमको बताने वाला था - आज ही! सच में!”

काजल जानती थी कि सुनील झूठ नहीं बोलता, और... न ही सुमन!

‘कैसी बढ़िया जोड़ी मिलाई है भगवान्! तेरा लाख लाख - नहीं - करोड़ करोड़ शुक्र है, प्रभु!’
भाई यह तो मैं भी मानता हूँ
जोड़ी करोड़ों में एक है
“बहुत बढ़िया बेटा! सच में! यह सब सुन कर मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं!”

“सच में अम्मा?”

“और नहीं तो क्या? मैं कब से तो तुझे हौसला दे रही हूँ कि बोल दे उसको! तू ही है कि हिम्मत ही नहीं जुटा पाता!”

सुनील हँसने लगा।

“तुझे मैंने कहा था न, कि तेरे बताए हुए गुणों वाली केवल एक लड़की जानती हूँ मैं! और मुझे बहुत ख़ुशी है कि तूने उसी को पसंद किया - और उसने तुझको!”

“थैंक यू अम्मा! थैंक यू सो मच! आई लव यू!”

“हाँ हाँ - मस्का न मार मुझे! तेरे कान न उमेठती, तो ये खुश-खबरी ही न मिलती मुझे! अब आया है बड़ा मुझको थैंक यू बोलने वाला!” काजल ने उसको प्यार से झिड़का, फिर दबी आवाज़ में बोली, “कल क्या क्या कर रहा था रे उसके साथ?”

सुनील शर्मा गया, “अम्मा, क्या करूँ - कण्ट्रोल ही नहीं हो पाया! आई ऍम सॉरी!”

“अरे, सॉरी क्यों? अपनी बीवी को नहीं, तो किसके साथ ये सब करेगा रे?” काजल ने उसको समझाते हुए कहा, “अच्छा, सेक्स किया था क्या कल उसके साथ?”

“नहीं अम्मा!”

“हम्म!” काजल खुश होते हुए बोली, “और आज? आज भी तो मौका मिला था तुम दोनों को!”

अपनी अम्मा की बात सुन कर सुनील का चेहरा कान तक लालिमायुक्त हो गया। उसके साँवले रंग पर भी वो परिवर्तन दिख गया।

“अम्मा मैं क्या करूँ? उनसे दूर भी तो नहीं रह पाता अब मैं!”

“मतलब... तुम दोनों ने...?”

“हाँ अम्मा!” सुनील ने स्वीकारा, “आज हम दोनों एक हो गए हैं!”
ह्म्म्म्म
स्वीकार हो गया
“बहुत बढ़िया! ये तो बहुत अच्छी बात है! और सबसे अच्छी बात यह है कि सुमन ने भी तुझे अपना लिया! तुम दोनों ने एक दूसरे को अपना लिया - मुझे इतनी ख़ुशी मिली कि मैं क्या कहूँ!”

सुनील मुस्कुराया।

“तुझे,” काजल ने थोड़ा झिझकते हुए पूछा, “तुझे उसके साथ अच्छा तो लगा न?”

“बहुत अच्छा लगा अम्मा!” सुनील कहने से पहले थोड़ा शरमाया अवश्य, लेकिन फिर उसने सच सच कह दिया।

“कैसी लगी वो?”

“बहुत सुन्दर है वो अम्मा! उसका हर अंग जैसे सोना है!”

“है न?” काजल अपने विचारों का पुष्टिकरण सुन कर बहुत खुश हुई, “और तूने...? तूने उसको सुख दिया?”

सुनील इस बार थोड़ा झिझका - उसको इस बात का ठीक से मालूम नहीं था, “कोशिश की मैंने अम्मा! लग तो रहा था। लेकिन... लेकिन मुझे... ठीक से नहीं मालूम!”

“देख बेटा, उसका वैल्यू सिस्टम बड़ा मज़बूत है और बड़ा ट्रेडिशनल है! अब से तू ही उसका सब कुछ है! उसको हर तरह की खुशियाँ देना तेरा ही काम है, तेरी ही ज़िम्मेदारी है! वो भोली सी है। शर्मा जाएगी; झिझक जाएगी! शिकायत नहीं करेगी कभी। उसकी शर्म उतारना तेरा काम है। उसको अपने रंग में रंग लेना, लेकिन उसको - उसके गुणों को बदलना मत! उसका भोलापन बरकरार रखना।” काजल ने उसको समझाया, “याद रखना कि तूने उससे प्यार क्यों किया है। उसके गुणों का मान रखना! उसमें भरोसा करना। सुमन का आदर करना - पद में वो तुझसे छोटी ज़रूर है - मैंने बोला छोटी है - कम नहीं - इस बात का ध्यान रहे,” काजल की बात पर सुनील ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “... लेकिन उम्र में वो तुझसे बड़ी है।”

“हाँ अम्मा - मैंने उनकी माँग में सिन्दूर रचने से पहले उनके पैर छुए थे, और उनका आशीर्वाद भी लिया था!” सुनील ने गर्व से कहा, फिर आगे जोड़ा, “लेकिन फिर उन्होंने भी मेरे पैर छुए!”

“हाँ! छुएगी ही! मैंने कहा न! अब से उसके लिए उसका पति - मतलब कि तू - उसका सब कुछ है! उसका पूरा संसार! वो पूरी तरह से तुझसे डिवोटेड रहेगी! तुझे वो अपना भगवान मानेगी। वो तुझसे इतना प्यार करेगी, तुझे इतना आदर देगी कि तू सोच नहीं सकता। लेकिन तू वो सब आदर सम्मान पा कर उड़ने मत लगना। मत भूल जाना कि उसके ही आँचल तले तेरी परवरिश हुई है। वो तेरे घर को खुशियों से, और समृद्धि से भर देगी! इसलिए उसका आदर करना। और, उससे सीखना बंद मत कर देना।”

“कभी नहीं अम्मा! उनके भी तो संस्कार मिले हैं मुझे!”

काजल मुस्कुराई, “हाँ! तू उसको खूब प्यार करना!” फिर थोड़ा ठहर कर, “पता है? कल तुझे उसके सीने से लगा देख कर मेरे मन में एक दृश्य खिंच गया था - कि तू उसको प्यार कर रहा है, और मेरे पोता पोती का इंतजाम कर रहा है!”

“हा हा हा! क्या अम्मा!”

“क्या अम्मा क्या? सेक्स केवल मज़े लेने के लिए ही नहीं किया जाता है; उसमें एक सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारी भी होती है!” काजल आज पूरे मूड में सुनील को शिक्षा देती जा रही ही, “तो तुम दोनों फ़ैमिली प्लानिंग के चक्कर में मत पड़ना! जल्दी जल्दी मुझे जितनी बार दादी बना सको, बना देना!”

अम्मा!” सुनील अब बहुत ही अधिक शर्मा गया था।

“अरे चुप! समझा कर! प्रकृति को हराना कठिन काम है। ऐसा न हो कि तुम दोनों केवल मज़े लेने के चक्कर में रहो, और टाइम निकल जाए!”

“हा हा हा! नहीं निकलेगा अम्मा! हमने भी इस बात को डिसकस किया है!”

“किया है? वाह! बढ़िया!” काजल खुश होते हुए बोली, “अब मुझको संतोष है! लेकिन बेटा, इस बात को ऑफिसियल करना बहुत ज़रूरी है। अमर को बताना बहुत ज़रूरी है!”

“हाँ अम्मा! भैया से तो बात करना है!”

“हम्म्म! खैर, वो तुम मुझ पर छोड़ दो! लेकिन सच में बेटा, आज तूने मुझे बहुत बड़ी ख़ुशी दे दी है!”

“सच में अम्मा?”

“हाँ बेटा! कब से तो तुम दोनों की मूरत मैं अपने मन में बसाए भगवान से पूजा कर रही हूँ! बहुत सुन्दर जोड़ी बनाई है भगवान जी ने तुम दोनों की! आज मैं बहुत खुश हूँ बेटा, बहुत खुश!”

“थैंक यू अम्मा! थैंक यू!”

“मेरा प्यारा बेटा! आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू!” काजल ने गर्व से कहा, “अच्छा, तो अब मैं तुम्हारी मैडम से भी मिल लूँ ज़रा!” काजल ने हँसते हुए कहा, और माँ के कमरे की ओर चल दी।

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हम्म्म मित्र कुछ व्यस्तता के कारण मैं आपके इस अपडेट तक ना पहुँच पाया
 

Kala Nag

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अंतराल - विपर्यय - Update #9


माँ शर्म से अपना सर और आँखें नीची किए काजल के सामने बैठी हुई थीं।

“पुचुकी, तुम कुछ देर के लिए बाहर जाओ बेटा!” काजल ने एक अलग ही आवाज़ में लतिका से कहा।

काजल की आवाज़ में बदलाव को महसूस कर के लतिका माँ की गोद से चुपचाप उठ गई और कमरे से बाहर निकल गई। बेचारी हर जगह से भगाई जा रही थी। लेकिन वो समझ रही थी कि गंभीर बात हो रही है, और उसमें केवल ‘बड़े’ लोग ही शामिल हो सकते हैं। उधर लतिका बाहर निकली, और इधर माँ सकुचाते हुए अपनी ब्लाउज सम्हालने में लग गईं। काजल के सामने ऐसी घबराहट - या कैसी भी घबराहट - उनको आज से पहले कभी नहीं हुई थी।

काजल का माँ को डराने, धमकाने, डांटने जैसा कोई प्लान नहीं था। वो तो खुद ही पिछले कुछ दिनों से भगवान से इसी दिन के लिए प्रार्थना कर रही थी। और तो और, सुनील से भी उसको सब कुछ साफ़ साफ़ मालूम पड़ गया। वो तो यहाँ आई थी अपनी प्यारी सहेली की खिंचाई करने और उसको बधाइयाँ और आशीर्वाद देने। लेकिन माँ ऐसे डरी हुई, शरमाई सकुचाई हुई अवस्था में एक बेहद प्यारी सी, छोटी सी बच्ची जैसी लग रही थी - ऐसी जैसे पुचुकी और उनमें कोई फ़र्क़ ही न हो!
हाँ भाई यह तो आपने सही कहा
प्यार अंदर के बच्चे को जगा देता है
वो होता नहीं है, जब आप कभी छोटे बच्चों को कोई गड़बड़ किए हुए पकड़ लेते हैं, और वो अपनी गलती की ग्लानि में अपने प्यारे प्यारे, गोल गोल गालों को फुलाए हुए देखते हैं, तो उनको छेड़ने और उनके साथ खेलने का मन होने लगता है! उसी तरह काजल ने भी सोचा कि वो कुछ देर माँ को ऐसे ही छेड़ेगी और सताएगी। आखिर वो सबसे पहले उनकी सबसे पक्की सहेली है - सास तो बाद में है।

लिहाज़ा काजल मजे से माँ को देखती रही।

माँ को समझ नहीं आ रहा था कि वो अपनी नई सास को कैसे देखें, जिसे वो एक लंबे समय से अपनी बेटी और अपनी छोटी बहन मानती आई थी। उनका बदला हुआ रिश्ता थोड़ा शर्मसार करने वाला तो था, लेकिन इस पर चर्चा करने की आवश्यकता थी। जितनी जल्दी हो सके, उतना ही जल्दी बेहतर था।

“दीदी,” काजल मुस्कुराई और फिर हँसने लगी; उसने अपने हाथों में माँ के दोनों हाथों को थाम लिया और कहना जारी रखा, “हम दोनों की किस्मत तो देखो... भगवान जी ने बहुत सोच समझ कर हम दोनों की कहानी लिखी होगी!” उसने कहा, और माँ की प्रतिक्रिया देखने के लिए रुकी। लेकिन माँ चुप रही; उनका चेहरा और उनकी आँखें अभी भी नीची ही थीं।

जब माँ ने कुछ नहीं कहा, तो काजल बोली, “एक तरफ़ तो तुम्हारा बेटा मेरी चुदाई करता है,” उसने फिर से धीमी षड़यंत्रकारी आवाज में कहा, “तो दूसरी तरफ़ मेरा बेटा तुम पर लट्टू है।” और फिर सामान्य आवाज़ आगे कहा, “है ना अनोखी किस्मत हम दोनों की?” काजल इतना कह कर फिर रुक गई और इंतजार करने लगी कि माँ कुछ कहे।
ऑए यह भयानक डायलॉग है
माँ की भावनाओं का वर्णन करना कठिन था... वो जैसे काठ की हो गईं थीं! उनसे कुछ कहते, करते नहीं बन रहा था। उनको लग रहा था कि जैसे वो कुछ गलत करते हुए रंगे हाथों पकड़ ली गई हो! और सबसे शर्म की बात तो यह थी काजल की बातों से लग रहा था कि काजल को उसके और सुनील के बीच के शारीरिक संबंधों के बारे में मालूम है। वो कुछ भी कहने का सोच नहीं पा रही थीं। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि सुनील और उसके सम्बन्ध पर काजल कैसी प्रतिक्रिया देगी।

काजल अभी भी माँ को गौर से देख रही थी, “कुछ बोलोगी नहीं?”

काजल ने पूछा। लेकिन जब दो मिनट इंतजार करने के बाद भी माँ कुछ नहीं बोलीं, तो काजल ने सीधा, दो-टूक सवाल किया, “दीदी, तुम सुनील से शादी क्यों करना चाहती हो?”

जिस तरह से काजल उनको देख रही थी, माँ को समझ आ गया कि अब सब कुछ बता देने का समय आ गया है, लेकिन फिर भी झिझक तो थी।

“अरे बोलो न!”

“अ... क... काजल, मुझे लगता है... मैं उनसे शादी करना चाहती हूँ... मेरा मतलब है... हम दोनों... हम दोनों का बहुत भला होगा।” माँ ने बड़े भोलेपन से, बड़ी सरलता से उत्तर दिया।

माँ की बात सुनकर काजल को थोड़ी हैरानी हुई, “आएं! यह तो बड़ी मजेदार कही। मुझे तो लग रहा था कि तुम कुछ प्यार व्यार की बातें कहोगी!”

सुनील से प्यार उनको होने तो लगा था, लेकिन वो उस प्यार के पनपने से पहले सुनील के गुणों के कारण उसकी तरफ़ आकर्षित हुई थीं - जैसे अक्सर अरेंज्ड मैरिज जैसी व्यवस्था में होता है। लड़का लड़की एक दूसरे के गुणों को देख कर, एक दूसरे से बातें कर निर्णय लेते हैं कि शादी करनी भी है या नहीं। उनके बीच का प्रेम उसके बाद पनपता है। प्रेम होने के पहले विवाह का वचन दिया जाता है। लगभग ऐसी ही बात यहाँ पर भी थी।

“उन्होंने मुझको पसंद किया... मुझसे प्यार किया... इसके लिए मैं हमेशा उनकी आभारी रहूँगी!” माँ ने कहना शुरू किया, “मैं भी उनको पसंद करती हूँ काजल। उनके लिए डिवोटेड हूँ! मैंने उनको शादी का वचन दे दिया है... उनके गुणों के सामने नतमस्तक हूँ! लेकिन सच में - मैंने उनको प्यार करना बस शुरू ही किया है। इसलिए मैं यह नहीं कह सकती कि प्यार के कारण मैं उनसे शादी करना चाहती हूँ!” माँ ने पूरी सच्चाई से कहा, “हाँ, लेकिन मुझे यह मालूम है कि वो मुझसे बहुत प्यार करते हैं। और मुझे ये भी मालूम है कि मैं उनको बहुत प्यार दूँगी!”

ये बात कहते कहते माँ की आवाज़ बहुत कोमल हो गई। वो जो कुछ कह रही थीं, वो सब जैसे उनके हृदय से निकल रहा था। काजल कुछ न बोली, बस माँ को देखती रही।
अब काजल पक्की सास जैसी व्यवहार कर रही है
माँ ने कुछ क्षण इंतजार किया, और फिर आगे कहा, “लेकिन मुझे लगता है… मुझे लगता है कि हमारे पास प्यार के जैसा ही कुछ और भी है... मतलब, प्यार से बेहतर तो नहीं, लेकिन लगभग उतना ही ज़रूरी... हमारे मन में एक-दूसरे के लिए बहुत रेस्पेक्ट है, बहुत आदर है।”

काजल ने अपने चेहरे का हाव-भाव ऐसा कर रखा था कि देखने वाले को लगे कि वो बहुत ही कड़क सास होगी।

“और कुछ?” उसने रुखाई से पूछा।

“सु…” माँ बोलने को हुई, फिर हिचकिचाते हुए रुक गईं - वो उस आदमी का नाम कैसे ले सकती है जिसने अभी-अभी उनके माथे को सिंदूर से सजाया है - “... वो मुझसे प्यार करते हैं!” माँ ने कहा, उनका चेहरा शर्म से थोड़ा लाल हो गया, “... और मैं भी करने लगी हूँ!”

काजल ने कुछ नहीं कहा।

“मैंने आपके बेटे को नहीं चुना।” माँ ने रक्षात्मक रूप से कहा, लेकिन बहुत धीरे से! उनका काजल को सम्बोधित करने का तरीका भी बदल गया, “लेकिन मुझे लगता है कि यह हमारा भाग्य ही है कि हम दोनों एक साथ हो जाएँ।”

“भाग्य?” काजल के चेहरे पर अविश्वास के भाव थे!

वैसे भी काजल का भावहीन चेहरा देख कर माँ की हालत पहले ही पतली हो गई थी। वो सहमी हुई सी काजल से बात कर रही थी।

और उधर काजल एक कड़क सास की एक्टिंग तो कर रही थी, लेकिन उस समय काजल को माँ इतनी भोली, इतनी सच्ची, और इतनी सुन्दर लग रही थी, कि उसको देख कर वो अंदर ही अंदर पिघल रही थी।

'सुमन के लिए भी तो यह सब नया नया होगा और उसको भी सब कुछ गड्ड-मड्ड लग रहा होगा,' काजल ने सोचा।

उसका मन हो रहा था कि झपट कर वो अपनी बहू को अपने सीने से लगा ले, उसको चूम चूम कर उसके दोनों गाल लाल कर दे, और उसको अपने स्तनों से अमृत पिला दे! लेकिन इस नाटक में उसको आनंद तो आ ही रहा था। सास बनना बड़ा मनोरंजक होने वाला अनुभव हो सकता है! इसलिए अभी भी वही भावहीन चेहरा बनाए हुए काजल ने कहा,

“हम्म्म... भाग्य, और आदर सम्मान? बस?”

“प् प् प्यार भी है!” माँ ने कोमलता से, लेकिन अचकचाते हुए कहा, “यह सब एक दूसरे को खुशी देने के लिए काफ़ी नहीं है?”

“तुम बताओ - काफ़ी है या नहीं?” सख्त सास का अभिनय अभी भी जारी था।

“मुझे लगता है कि काफ़ी है।” माँ की आवाज़ बहुत नरम हो गई थी... लेकिन फिर भी उनका स्वाभिमान और सच्चाई सुनाई दे रही थी। उनके बोलने में एक विश्वास भी था, कि सुनील और उन्होंने जो कुछ किया, वो सही था।

“तो तुम सुनील का संसार बसाओगी?” काजल ने उसे करीब से देखा।

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

अभी थोड़ी ही देर पहले सुनील के साथ जो रुपहले सपने उसने देखे थे, वो सारे उसकी आँखों के सामने तैर गए। सुनील के साथ विवाह, उसके साथ प्रेम सम्बन्ध, उसके साथ हर सुख दुःख में खड़ा रहना, उसके बच्चों से गर्भवती होना, उनको जन्म देना, उनको स्तनपान कराना, उनका पालन पोषण करना, उनको बड़ा करना, उनको इस समाज का सम्मानित सदस्य बनाना इत्यादि! माँ के होंठों पर एक स्निग्ध सी मुस्कान आ गई - मुस्कान, जिसमें लज्जा भी थी, स्वाभिमान भी था, और भविष्य को ले कर कोमल आशाएँ भी!

“हम्म्म! देख लो! ऐसा न हो कि एक दिन तुम दोनों, एक दूसरे से किये अपने वायदों को भूल जाओ!”

“नहीं भूलूँगी,” माँ ने कोमलता से और धीरे से उत्तर दिया!

“ऐसा कुछ भी बोलने से पहले ठीक से सोच लो! उसकी माँ की उम्र की हो तुम!” काजल ने वो बनावटी रूखा रवैया जारी रखा।

काजल की बात सही थी। माँ अभी भी सुनील को ‘प्यार’ जैसा प्यार नहीं करती थी। वो चरण उसके जीवन में बस अभी अभी ही आया था। सुनील के लिए उनके मन में प्यार के कोंपल बस फूटे ही थे। अवश्य ही सुनील और उनमें अब पति-पत्नी वाला सम्बन्ध बन गया था, लेकिन अभी भी उनके मन में सुनील के लिए ममता वाला प्यार थोड़ा अधिक था, और प्रेमिका वाला कम। पूरा परिवर्तन आने में कुछ समय तो लगेगा ही।

माँ को मालूम था कि यह शादी निभाना आसान नहीं होगा। उन दोनों का एक बेमेल सम्बन्ध था - ऐसे विवाहों में अगर कोई गड़बड़ हो जाती है, तो खुद ही सम्हालना पड़ता है। बाकी सभी लोग केवल उलाहना देते हैं; कोई सहारा नहीं देता। वो समझती थीं कि एक बार सुनील से शादी करने के बाद, अगर कोई गलती होती है तो उसका प्रायश्चित और उसकी भरपाई उनको अकेले ही करनी पड़ेगी। इस तरह के बेमेल विवाह में जो साथी अधिक कमजोर होता है, उसे ही अधिक खामियाजा भुगतना पड़ता है। ऐसा ही नियम है समाज का! सुनील और उनके सम्बन्ध में माँ ही कमज़ोर पक्ष थीं - इसलिए अगर बाद में कुछ गड़बड़ होता है, तो उनको ही सब झेलना पड़ेगा। लेकिन पुनः सौभाग्यवती होने और पुनः माँ बनने की इच्छा उनके अंदर इतनी बलवती हो गई थी, कि वो सब कुछ बर्दाश्त करने को तैयार थीं।

माँ चुप हो गईं। इस बात का तो कोई उत्तर नहीं था उनके पास।

“दीदी, तुम खुद ही सोचो - मेरा एक ही बेटा है - और मेरे क्या क्या अरमान हैं उसको ले कर! उसकी शादी ऐसे ही... किसी से भी थोड़े न कर दूँगी!” काजल का रूखा, भावशून्य रवैया जारी था, “शरीर से बड़ा हो गया है, बातें वो बड़ी बड़ी करता है, लेकिन फिर भी बच्चा ही तो है! वो नादानी तो कर ही सकता है न? अभी उसको दुनियादारी के बारे में क्या ही मालूम? क्या ही देखा है उसने? कैसे वो इतना बड़ा डिसीजन खुद ले सकता है... अपनी माँ से बिना पूछे? उसके भले बुरे की जिम्मेदारी मेरे ही तो ऊपर है! इतनी लम्बी ज़िन्दगी है! कोई ऊँच नीच हो गई तो? कोई ऐसी वैसी लड़की मिल गई तो? कैसे निभाएगा वो उसके साथ! बोलो?”

काजल रुखाई से बोलती जा रही थी।

काजल की इस बात पर माँ का दिल बैठ गया। कुछ ही देर पहले भविष्य के जो कोमल सपने उन्होंने सजाए थे, सब अचानक ही टूट कर बिखर गए। दिल में उनके एक टीस सी उठ गई और उनके आँखों में आँसू भर आए। माँ ने खुद पर नियंत्रण रखने की बड़ी कोशिश करी, कि उनका रोना काजल को न दिखे, लेकिन इतनी कोमल हृदय वाली मेरी माँ की आँखों से आँसू गिर ही गए। उनको रोकने की लाख कोशिश करने के बावजूद! बस गनीमत यह रही कि उनके गले से रोने की आवाज़ नहीं निकली।

‘सच में - क्यों ऐसी अनहोनी के होने की सम्भावना वो तलाश करने लगीं! सही तो कह रही है काजल - ‘वो’ छोटे ही तो हैं। ‘वो’ अभी भी बच्चे ही तो हैं! ‘उनको’ दुनियादारी कहाँ आती है भला! कैसी बेवकूफी हो गई मुझसे! इस उम्र में ऐसी मूर्खता! इतनी उम्र हो जाने पर भी मुझको दुनियादारी नहीं आई! ऊपर से काजल के सामने ऐसी बेइज़्ज़ती! हे भगवान्!’

उधर उनको ऐसे रोता हुआ देख कर काजल के दिल में एक गहरी टीस सी हुई!

जो बहू काजल को चाहिए थी, वो उनके सामने बैठ कर रो रही थी, और उसके रोने का कारण वो खुद थी। जो बात मज़ाक में शुरू हुई थी, अब बहुत दूर तक चली गई है। यह नाटक जल्दी बंद करना पड़ेगा।

“मेरा बेटा ‘लाखों में एक’ है!” काजल फिर भी, बड़ी मुश्किल से ही सही, लेकिन अभी भी रूखे स्वर में ही बोल रही थी, “और उसके लिए मुझे ‘लाखों में एक’ लड़की चाहिए!”

इतना कह कर वो थोड़ा रुकी।

माँ का सर निराशा में झुक गया था, और उनके आँसू झर झर कर के गिर रहे थे।

काजल ने फिर कहना शुरू किया, “और सच कहूँ?”

माँ को लगा कि काजल इस सम्बन्ध पर अब अपना फैसला सुनाने वाली है। उनको काजल का निर्णय मालूम था। लेकिन जब यह सब किया है, तो काजल का निर्णय सुनने की हिम्मत तो रखनी ही पड़ेगी न! उन्होंने बड़े यत्न से काजल की तरफ़ देखा। काजल के चेहरे पर अभी ही रूखाई वाले ही भाव थे।

काजल बोली, “लाखों में नहीं, बल्कि ‘करोड़ों में एक’ लड़की मिल गई है मुझे मेरे सुनील के लिए!”

माँ का दिल बैठ गया। उनकी तो जैसे साँसें ही रुक गईं!

और फिर अचानक ही अपना भावशून्य, रूखा, और कड़क व्यवहार बदल कर, काजल बड़े प्यार से माँ के एक गाल को सहलाते हुए, बेहद मीठेपन और ममता से बोली,

तू! तू है वो लड़की!” काजल ने भी कुछ देर से अपने आँसुओं को रोक कर रखा हुआ था, लेकिन अब उसका भी बाँध टूट गया; उसके भी आँसू गिरने लगे, “सच में! अगर तू सुनील की दुल्हन बन कर, मेरे घर, मेरी बहू बन कर आएगी न, तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा! मेरे सुनील की तो किस्मत ही खुल जाएगी!”

माँ ने जो सुना, उस पर उनको विश्वास ही नहीं हुआ।

‘ये क्या हुआ!’ उसने काजल को अविश्वास से देखा।

“बहुत प्यार करता है वो तुमसे!”

माँ कुछ कहने ही वाली थी, कि जैसे काजल को माँ के मन के सवाल सुनाई दे गए; वो उनके पूछने से पहले ही बोली,

“बेटा है वो मेरा... तुझे क्या लगा? क्या मुझको समझ में नहीं आएगा कि उसको कौन पसंद है, और कौन नहीं?”

माँ ने फिर से अपना चेहरा नीचे कर लिया... उनकी आँखों से अभी भी आँसू गिर रहे थे, लेकिन वो अब शर्मा भी रही थीं। माँ इस समय बहुत शक्तिहीन महसूस कर रही थी। उनका मन हो रहा था कि काजल उनको अपने में समेट ले। वो काजल एक लम्बे समय से अपनी बेटी मानती आई थीं, और काजल भी माँ के प्रति माँ जैसा ही सम्मान रखती थी। फिर एक समय आया जब उसने माँ को ‘दीदी’ कह कर पुकारना शुरू किया! उसके पहले तो वो उनको ‘माँ जी’ ही कह कर बुलाती थी। सुनील की पत्नी के रूप में माँ आधिकारिक तौर पर काजल की बहू बन जाएगी!

क्या यह भाग्य का अद्भुत मोड़ नहीं है?

काजल ने आगे कहा, “भगवान जी सबको दोबारा सुखी होने का मौका नहीं देते! उन्होंने तुमको ये मौका दिया है... मुझको यकीन है कि तुम्हारे साथ ही भगवान जी का आशीर्वाद भी आ जाएगा मेरे सुनील की लाइफ में! हमारी लाइफ में! तुमको दोबारा सुखी होने का मौका मिल रहा है… ले लो... बिना झिझके, बिना किसी हिचकिचाहट के।”

काजल अपने आँसुओं के बीच मुस्कुराई; उसने सोचा कि माँ कुछ कहेगी या करेगी। लेकिन माँ तो इतनी भावुक हो गई थी, कि उससे कुछ करना या कहना हो ही नहीं पा रहा था।

“दीदी?” काजल ने बड़ी ममता से कहा, “ओह, मेरा मतलब, बहू?” काजल ने ‘बहू’ शब्द पर जोर दिया, “अपनी सास के गले से नहीं लगोगी?”

बस काजल के कहने की देर भर थी, और माँ कूद कर काजल की गोद में अपना मुँह छुपा कर रोने लगी। उनको एक दोस्त की जरूरत थी। पिछले कुछ महीने उनके लिए बड़े मुश्किल भरे रहे। आज उनको आशा की गुनगुनी धूप दिखाई देने लगी थी। उन्हें अभी भी लग रहा था कि उनकी खुशियाँ बड़ी नाज़ुक सी थीं। इसलिए उन्हें आश्वासन चाहिए था। सम्बल चाहिए था। काजल ने उनको वो सब दिया,

“सुमन,” काजल ने भी माँ को उसके नाम से बुलाया, “तुम इतनी प्यारी हो... तुम्हारे अंदर इतना प्यार है... तुम हमारे घर हमारी बहू बन कर आ रही हो - हमारी तो किस्मत ही खुल गई है... सच में!”

“तुमको कब से पता है?” माँ ने काजल के सीने में ही सुबकते हुए पूछा।

“शक तो खैर तब से है, जब से सुनील वापस आया है यहाँ! लेकिन पूरी तरह से पक्का पता कल चला... वैसे... इस बात की उम्मीद मुझे बड़े दिनों से थी... मैं तो भगवान जी से रोज़ प्रार्थना कर रही थी कि तेरा और सुनील का सम्बन्ध जम जाए! और उन्होंने मेरी प्रार्थना सुन ली।”

काजल ने माँ के माथे को प्यार से चूमते और उनके गालों को सहलाते हुए आगे कहा, “जब से आया है, बस तुम्हारी ही बातें करता है... तुमसे ही बातें करता है... तुम्हारे ही आस पास रहता है... अपनी होने वाली बीवी में केवल तुम्हारी छवि ढूंढता है। तो क्या मुझे नहीं समझ में आएगा कि उसकी पसंद कौन है?”

माँ शर्म से मुस्कुराईं।

काजल भी मुस्कुराई, “और तुझे क्या लगता है? कभी सोची नहीं क्या, कि कैसे जब तू और सुनील साथ में होते हो, तो मैं अचानक ही क्यों गायब हो जाती हूँ? वो केवल इसलिए कि अगर सुनील या तेरे के दिल में कुछ है, तो तुम दोनों एक दूसरे से अपने दिल की बात कह सको!”
उसने माँ के सलोने मुखड़े को सहलाया।

“लेकिन तुम दोनों इतना शरमाते हो, इतना सकुचाते हो, कि कल मैंने दोनों को ही नंगा कर दिया। सोचा था कि अब तो करोगे अपने मन की?”
यार यह
इस बात पर माँ भी शरमा गईं।

काजल मुस्कुराई, “ये सिंदूर उसने ही लगाया है ना?”

माँ ने शरमाते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“शरमाओ मत, मेरी बहू,” काजल ने बड़े लाड़ से, बड़े प्यार से कहा, “तेरी माँग में सिंदूर रच कर अब वो तेरा पति बन गया है, और तू उसकी पत्नी! और अब... अब मैं तुम्हारी सास... नहीं, सास नहीं... माँ हूँ... और तुम मेरी बहू नहीं, तुम मेरी बेटी हो! तुम अपना सुन्दर सा संसार बसाओ, अपनी दुनिया सजाओ, उसमें हँसो खेलो... मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है... हमेशा!” काजल ने कहा और फिर माँ के माथे पर चूम लिया।

“थैंक यू! थैंक यू!” माँ ने बार बार कहा, और काजल से लिपट कर रोने लगीं।
थैंक्यू
यह दिल से निकली शब्द
 

Kala Nag

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अंतराल - विपर्यय - Update #10


काजल भी अपना खुद का रोना न रोक सकी।

कुछ देर रोने के बाद, जब दोनों की भावनाओं का गुबार निकल गया, तो कुछ सोच कर काजल ने बड़े स्नेह से पूछा, “सुमन… बस एक बात मुझे बताओगी, बिटिया?”

माँ ने काजल की तरफ देखा।

“तू... तू सुनील के बच्चे जनेगी न?” काजल ने बड़े लाड़ से पूछा।
यह प्रश्न बड़ा जबरदस्त है
माँ शर्म से लाल हो गई। यह एक बहुत ही व्यक्तिगत प्रश्न था; लेकिन वो समझ रहीं थीं कि काजल यह क्यों जानना चाहती है! सुनील को बच्चे चाहिए थे - और वो भी कम से कम दो! और किसी भी सास की तरह, काजल भी जल्दी से दादी बनना चाहती थी।

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“सच में न?” काजल इस बात को सुनिश्चित कर लेना चाहती थी।

माँ ने फिर से सहमति में सर हिलाया।

“बहुत अच्छा! बहुत अच्छा!”
उत्तर भी अनुरूप है
काजल ने मुस्कुराते हुए कहा - मानों मन ही मन वो अपने होने वाले पोते-पोतियों के साथ अपने बेटे और बहू को चित्रित कर रही हो! हाँ, मन ही मन वो एक सुन्दर सा दृश्य खींच रही थी! बड़ा ही सुन्दर चित्र था! दादी बनने का सुख! आह! फिर वो उस कल्पना से बाहर निकली और बहुत मीठे स्वर में बोली,

“तो बिटिया मेरी... अब जितना जल्दी हो सके, उतनी जल्दी मेरे सुनील को भी अमर जैसी ही एक संतान दे दो…”

माँ काजल की बात पर शर्म से लाल हो गईं और काजल के सीने में और भी सिमट गईं।

माँ सुनील की पत्नी, काजल की बहू, और लतिका की भाभी के रूप में खुद को स्वीकारे जाने पर आनंद से आह्लादित हो गई थीं। नई भूमिका! माँ चकित थीं कि वो अपनी इस ‘कनिष्ठ भूमिका’ को ले कर बहुत उत्साहित थीं! मेरी माँ के रूप में उनकी एक ‘वरिष्ठ भूमिका’ थी। यह उनके लिए एक बड़ा बदलाव था!

“सुमन... मेरी बिटिया... तू अब मेरी बिटिया है ना... तो मैं अब तेरी भी अम्मा हूँ…”

माँ ने काजल की ओर देखा और सोचा कि काजल उनको बहू के रूप में अपनी सास को यथोचित सम्मान देने का संकेत दे रही है... इसलिए, एक आदर्श भारतीय बहू की तरह माँ उठीं, अपने पल्लू से अपना सर ढँका, और फिर काजल के सामने आ कर उन्होंने अपने माथे और हाथ से काजल के पैर छुए। काजल हैरान हो गई कि कैसे उसकी बहू ने अपनी सास के रूप में उसका सम्मान किया!

“ओह! ओह! भगवान तुमको खूब सुखी रखे! तुम दोनों को दीर्घायु करें! स्वस्थ रखें! तुम सदा सौभाग्यवती रहो! अखंड सौभाग्यवती! दूधो नहाओ, पूतो फलो!” काजल ने एक स्नेही सास के जैसे ही माँ पर अपना आशीर्वाद बरसाया, “मेरा सारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है... मेरे जीवन में जो भी संचित पुण्य है, उसका सारा फल तुमको मिले! मेरी बच्ची... मेरी पूता!”

काजल ने माँ को उठा कर अपने आलिंगन में भर लिया और जहाँ भी वो माँ को चूम सकी, वहाँ अपना प्रेममय चुम्बन जड़ दिया, फिर बड़े स्नेह से बोली, “लेकिन मैं तुमको मेरे पैर छूने के लिए नहीं कह रही थी, बहू रानी!”

माँ ने उसकी तरफ देखा, समझ में नहीं आ रहा था कि काजल फिर क्या चाहती थी।

“लेकिन... तुम तो मेरी अम्मा हो ना अब!”

“हाँ... मैं तुम्हारी अम्मा तो हूँ,” काजल ने प्यार से माँ के गालों को सहलाते हुए कहा। फिर उसने पुकारा,

“सुनील?”

“हाँ अम्मा।”

“ज़रा अंदर तो आ... बहू के कमरे में!”


**


‘दीदी के कमरे’ के बजाए ‘बहू के कमरे’ में बुलाए जाने पर, सुनील समझ गया कि अम्मा ने सुमन से बात कर ली है, और उसके साथ उसके बदल गए रिश्ते को स्वीकृति भी दे दी है।

सुनील जब कमरे में आया तो काजल ने उसे प्यार से देखा। माँ को इतनी झिझक हो रही थी कि वो अभी तक काजल से ही लिपटी हुई थीं।

“सुनील... बेटा, आज तूने अपनी पूरी ज़िंदगी का सबसे समझदारी वाला काम किया है,” उसने फिर से माँ के गालों को प्यार से सहलाते हुए कहा, “कैसी चाँद सी सुन्दर, कैसी फूल सी नाज़ुक बहू लाया है मेरे लिए! कैसी गुणवती लड़की! मेरी सुमन से बेहतर बीवी तेरे लिए कोई और हो ही नहीं सकती!”

“ओह अम्मा! तो तुमको भी मेरी पसंद, पसंद आई?” सुनील ने राहत की साँस लेते हुए कहा।

थी तो यह एक्टिंग ही, लेकिन सुमन को अच्छा लगेगा, यह सोच कर सुनील ने मौके पर चौका मारा।

“बहुत पसंद आई, रे! बहुत बहुत पसंद! सबसे ज्यादा पसंद! तूने मुझे आज वो ख़ुशी दी है कि मैं तुझे बता नहीं सकती! सच में... तेरी किस्मत खुल गई है बेटा! तुझको अभी तक नहीं मालूम कि तू कितना भाग्यशाली है... जब बहू के शुभ-चरण तेरे जीवन में पड़ेंगे, तो देखना... तेरा जीवन कितनी सारी ख़ुशियों से भर जाएगा!” काजल भावातिरेक में बड़बड़ाए जा रही थी।
चलो शहनाई बजने वाली है
हम दोनों परिवारों का सात सालों से चल रहा साथ, आज रिश्तेदारी में बदल गया था। आज हम दोनों परिवार एक हो गए थे, और एक दिशा में हमारी गति प्रवाहित होने लगी थी।

“हाँ अम्मा! कुछ कुछ तो समझ में आ रहा है! मेरा भाग्य तेज तो है!” सुनील अपनी अम्मा की बात पर ख़ुशी से मुस्कुराया।

माँ शर्मा कर खुद ही में सिमट गईं।

“तेज नहीं पुत्र, बहुत तेज है! मैंने तुझे न कहा था? जिस तरह की लड़की तुझे चाहिए थी, उस तरह की तो केवल एक ही लड़की देखी है मैंने अभी तक! और मुझे बहुत खुशी है, कि तुझको वो ही लड़की मिल गई।” काजल ने मुस्कुराते हुए पहले भी कही हुई बात दोहराई।

“थैंक यू, अम्मा।”

माँ को समझ नहीं आ रहा था कि वो दोनों आपस में क्या बातें कर रहे हैं। काजल ने उनको समझाया कि सुनील जब उनसे अपनी वांछित पत्नी के गुणों का वर्णन कर रहा था, तो उसके आधार पर उसके दिमाग में केवल एक ही लड़की का चित्र खिंचा - और वो चित्र था माँ का! काजल के अनुसार उसने अपने पूरे जीवन में केवल एक ऐसी लड़की को देखा था जिसमें वो सभी गुण थे, और उसको यह जानकर मन ही मन बहुत ख़ुशी मिली कि उसका बेटा सुमन को चाहता है। यह जानने के बाद से काजल रोज़ भगवान से प्रार्थना करती कि जल्दी ही सुनील सुमन को प्रोपोज़ कर दे, और सुमन उस प्रपोजल को मान ले! और आज वो बहुत खुश है कि सुमन अब उसकी बहू है!

काजल ने कहा, “सुमन... मेरी पूता, भगवान जी ने हम दोनो का संबंध हमेश ही माँ-बेटी वाला ही सोच के रखा था... अब देख, मैं तेरी अम्मा हूँ न, तो तुझे अपना प्रेम, अपना आशीर्वाद देना मेरा अधिकार भी है, और कर्त्तव्य भी।”

कल तो चोरी छुपे काजल ने माँ को अपना दूध पिलाने की चेष्टा करी थी, और माँ चोरी छुपे ही माँ ने भी उसका दूध पीने की चेष्टा करी थी। लेकिन आज जब दोनों का सम्बन्ध पुख़्ता हो गया था, तो चोरी छुपे तरीके से कुछ भी करने की ज़रुरत नहीं थी।

काजल अपने ब्लाउज को खोलते हुए और अपने स्तनों को बाहर निकालते हुए बोली, “इसलिए, इधर आ मेरी बच्ची, अपनी माँ का दूध पी कर उसका आशीर्वाद ले ले, और मुझे अपनी माँ होने का सुख दे दे…”

यह कितना अद्भुत रोल रिवर्सल था! अभी कुछ दिनों पहले ही काजल ने माँ का स्तनपान किया था। काजल को अंदेशा था और उम्मीद भी थी कि बस कुछ ही दिनों में उन दोनों के बीच का रिश्ता बदल जाएगा। वैसा होने से पहले वो आखिरी बार माँ को ‘अपनी माँ’ जैसा सम्मान देना चाहती थी। आज वही रोल बदल गया। अब तो वो वाकई माँ की ‘अम्मा’ हो गई थी! कैसी अद्भुत सी बात है न!

काजल के ममता भरे प्यार पर सुनील मुस्कुराया। वो पिछले कई दिनों से सोच रहा था कि सुमन अपनी पत्नी बनाने के प्रस्ताव पर उसकी अम्मा का कैसा रवैया रहेगा! वो मानेगी भी या नहीं! लेकिन यहाँ तो अम्मा ही सुमन को अपनी दोनों बाहें फैलाए अपनी बहू, अपनी बेटी बनाने के लिए तत्पर है! स्पष्ट रूप से उसको चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं थी। अब बस एक ही बात की चिंता थी - क्या भैया (मुझ) को उनके रिश्ते पर कोई आपत्ति होगी?

उधर माँ भी काजल के असीम प्रेम प्रदर्शन पर आश्चर्यचकित थीं! बस कुछ ही देर पहले तो उनको लग रहा था कि काजल ने उनको अपने बेटे की पत्नी बनाने से इंकार कर दिया। लेकिन वो सब उसका खेल था। काजल माँ को, एक माता वाला परम आशीर्वाद दे रही थी, और उसने कृतज्ञतापूर्वक उस आशीर्वाद को स्वीकार भी कर लिया। सुनील, लतिका, और आभा के बाद अब मेरी माँ को भी काजल की संतान होने का सौभाग्य मिला गया था। माँ को कल काजल के सीने से लग कर ऐसा सुख मिला था जिससे अब वो वंचित नहीं होना चाहती थीं।

माँ एक छोटी बच्ची की तरह, चहकती हुई काजल की गोदी में सर रख कर लेट गई, और उसके एक स्तन को पीने लगी। कोई दस सेकण्ड बीत गए, और काजल को समझ में आ गया कि उसके स्तनों से अभी तक एक बूँद भी दूध नहीं निकला है।

“ओह मेरी बच्ची... तू तो भूल ही गई है रे दूधू पीना!” काजल ने दुलारते हुए कहा, “बच्चों को पिलाती है, और खुद को कुछ याद नहीं!”
ह्म्म्म्म यह भी एक रस्म है
बात तो सच थी - माँ स्तनपान करना तो कब का भूल चुकी थीं। कल इसलिए वो पी सकीं क्योंकि अपने बच्चों को दूध पिलाने की इच्छा से काजल के स्तन दूध से भर गए थे। आज स्थिति सामान्य थी। पिछले कोई तीस सालों में माँ ने केवल स्तनपान कराया था, करा नहीं था! इस अंतराल में उन्होंने बस एक दो बार ही स्तनपान किया था, चाची जी का - वो भी बहुत सालों पहले! खुद उन्होंने लगभग दो वर्ष की होने के बाद कभी भी अपनी माँ का स्तनपान नहीं किया था! अब काजल उनकी नई माँ थी, और उसे अपनी बेटी की तरह प्यार करने को तत्पर थी। माँ ने जिस तरह से इस घर में सभी की माँ बनने की कोशिश करी थी, उससे यह बहुत बड़ा बदलाव था। वो अब किसी और की बेटी थी। अच्छी बात यह है, कि उन्होंने इस बदलाव का स्वागत किया और काजल के अमृत को पीने का आनंद ले रही थी। लेकिन जाहिर सी बात है, वो शायद ठीक से नहीं कर पा रही थीं।

“कोई बात नहीं मेरी पूता,” काजल ने माँ को दुलारते हुए कहा, “भूल गई तो क्या हुआ... तेरी माँ है न, तुझे सब याद दिलाने के लिए?” काजल ने अपने हाथ से पकड़ कर अपने स्तन के अग्र भाग को थोड़ा दबाया, “ये, चूची का थोड़ा सा और हिस्सा अपने मुँह में लो... हाँ... ऐसे ही! हाँ... अब चूसो... हाँ... ऐसे ही! हाँ मेरी बच्ची, ऐसे ही… हाँ… मिला दूध?”

माँ ने काजल के चूचक को मुँह में लिए हुए ही ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“बढ़िया... पी ले… पी ले मेरी पूता! जब तेरा मन हो, मैं पिलाऊंगी तुझे…” काजल ने स्वांत्वना देते हुए माँ को प्रोत्साहित करना जारी रखा, “चार बच्चे हैं अब मेरे! आज जा कर मेरा परिवार पूरा हुआ!” काजल बड़बड़ाए जा रही थी कि जैसे खुद ही से बातें कर रही थी।

माँ ने काजल के बताए तरीके से स्तनपान करना जारी रखा। उनको एक लम्बे अर्से के बाद अपनी माँ का अमृत पीने को मिल रहा था, और उस अनुभव के कारण वो कुछ ही देर में बहुत अलग महसूस करने लगीं। माँ खुद को उम्र में छोटी महसूस करने लगीं... जैसे किसी ने उनका बचपना लौटा दिया हो! उनके जीवन ने आज अचानक ही एक पूरी तरह से अलग ही मोड़ ले लिया था, और वो बहुत खुश थीं कि उनके साथ ऐसा हुआ। घर में सबकी वरिष्ठ होना एक ऐसी भूमिका थी जिसका बोझ उन्होंने बहुत लंबे समय ढोया! डैड के गुज़र जाने के बाद यह बोझ और भी भारी हो गया था। उस बोझ से मुक्ति पाकर माँ को राहत मिली थी। इस कनिष्ठ भूमिका में आना बेहद मजेदार था!

“तू भी पिएगा?” काजल ने सुनील से पूछा।

“नहीं अम्मा!” वो मुस्कुराया, “आज आप अपनी बहू को पिलाइए! बाद में हम दोनों को साथ में पिला दीजिएगा!”

“अरे वाह! देखा बहू! ‘अम्मा ये कर दो, वो कर दो’ से अब ये महाशय ‘दीजिएगा’ पर आ गए हैं!” काजल विनोदपूर्वक बोली, “मैंने कहा था न कि तेरे आने से इस नालायक में भी सुधार आ जाएगा!”

माँ क्या कहतीं? वो अपनी माँ का स्तनपान करने का लोभ-संवरण न कर सकीं। लेकिन शर्म से उनके गाल लाल हो गए। उधर सुनील खिलखिला कर हँसने लगा।

कुछ देर की शांति के बाद काजल माँ के ‘साधारण’ कपड़ों की शिकायत करते हुए बोली, “बहूरानी, ये कैसा सादा सादा कपड़ा पहना हुआ है तूने?” उसने कहा, “तू अब सुहागिन है... सुन्दर सुन्दर, और रंगीन रंगीन कपड़े पहना कर अब! साथ में ख़ूब ढेर सारे ज़ेवर!”

हाँलाकि माँ ने अपने हिसाब से रंगीन साड़ी ही पहनी थी आज, लेकिन काजल की बात भी तो सही थी। एक नई नवेली दुल्हन के हिसाब से, उनका लिबास सादा ही था।

“हाँ अम्मा!” सुनील ने कहा, “मैं भी इनसे यही कह रहा था!”

सुनील की झूठी बात सुन कर माँ को अचानक ही हँसी आ गई। ऐसे मूर्खों की भाँति हँसने के कारण उन्होंने अपना मुँह काजल के स्तनों में छुपा लिया।

“क्या हुआ बेटू?” काजल ने न समझते हुए पूछा, “इतनी हँसी?”

“कुछ नहीं अम्मा,” माँ ने बड़े भोलेपन से कहा, “कुछ ही देर पहले ‘ये’ कह रहे थे, कि मैं भी पुचुकी और मिष्टी के जैसे ही रहा करूँ। और अब आपके सामने कह रहे हैं कि मैं सुन्दर और रंगीन रंगीन कपड़े और ख़ूब ढेर सारे ज़ेवर पहन कर रहूँ!”

“हाँ ठीक ही तो कह रहा है! दोनों बातें ठीक हैं। तू मेरी बच्ची भी है, तो मेरी दोनों बच्चियों जैसे रहने में क्या दिक्कत?” काजल ने कहा और माँ की साड़ी उतारने लगी, “और मेरी बहू भी है, तो गहने ज़ेवर पहन कर रहने में क्या दिक्कत?”

माँ ने तब कुछ नहीं कहा, लेकिन साड़ी उतारने के बाद, जब उसने माँ का ब्लाउज उतारना शुरू किया, तो माँ ने उसका स्तन चूसना बंद कर के पूछा, “अम्मा?”

“अरे, तू दुद्धू पीने पर ध्यान दे न... तेरे ये फीके फीके कपड़े उतार कर मैं तुझे दुल्हन की तरह सजाऊँगी आज! तू दूध पी बिटिया रानी।”

यह कोई अनहोनी नहीं थी; अभी कल ही काजल ने माँ के कपड़े व्यवस्थित किये थे। काजल ने प्यार से माँ के कपड़े उतारना जारी रखा। सुनील बड़े मजे से सारा एक्शन देख रहा था। काजल अब वैसा ही व्यवहार कर रही थी जैसा पहले अक्सर माँ हम सबके साथ किया करती थीं। लेकिन यह बदलाव, एक अच्छा बदलाव था। काजल शायद माँ को यह एहसास दिलाना चाहती थी कि माँ अब उसके घर की बहू है - उसकी बेटी है! एक प्यारी सी, छोटी सी बच्ची के जैसे स्वच्छंद हो कर फुदकना, हँसना, खेलना, कूदना - बस अब यही उनका काम होना चाहिए था! और अपने प्रयास में वो काफ़ी सफल भी हो रही थी। माँ कुछ ही देर में बड़े उत्साह के साथ काजल के स्तनों का आस्वादन करने लगी।

“तू खड़ा खड़ा क्या कर रहा है?”

“तो क्या करूँ, अम्मा?”

“इधर आ!”

तब तक माँ केवल अपनी पेटीकोट में हो गई थीं। जब वो काजल के करीब पहुँचा, तो काजल ने माँ का हाथ सुनील के हाथ में दे दिया, और इस नए जोड़े को आशीर्वाद देते हुए कहा, “तुम दोनों हमेशा खूब खुश रहो... स्वस्थ रहो... सुखी रहो... और जल्दी से मुझे एक सुन्दर से पोते या पोती का मुँह दिखा दो!”

“बहुत जल्दी, अम्मा... बहुत जल्दी!” सुनील ने हँसते हुए वायदा किया।
थोड़ी शरारत
माँ शर्म से लाल हो गई, और उन्होंने अपना चेहरा काजल की छाती में छुपा लिया। यह अलग बात थी कि माँ अब लगभग नग्न काजल की गोद में बैठी थी। काजल भी माँ के भोलेपन और लड़कपन पर प्यार से मुस्कुराये बिना न रह सकी।
यह नजाकत
“हाँ! जल्दी जल्दी कर लेना बच्चे! फिर जितना मन करे, रोमांस कर लेना!” काजल मज़े लेते हुए बोली, “पूरी उम्र रोमांस कर लेना!”

अम्मा!” इस बार माँ से रहा नहीं गया। काजल के स्नेह और दुलार से आनंद तो उनको बहुत मिल रहा था, लेकिन फिर भी शर्म तो थी ही उनके अंदर।

“कोई अम्मा वम्मा नहीं। मेरे कितने सारे अरमान हैं... सब पूरे करूँगी।” फिर सुनील की तरफ मुखातिब होते हुए, “सुनील बेटा जाओ और सब खाना जल्दी से लंच को टेबल पर सजा दो। मैं तो आज अपनी बहू को अपने हाथ से खाना खिलाऊँगी, और फिर उसको दुल्हन की तरह सजाऊँगी!”

“क्यों अम्मा?” सुनील और माँ दोनों ही एक साथ बोल पड़े।

“अरे! आज का दिन तो बहुत स्पेशल है!” काजल ने जैसे कोई राज़ खोलते हुए कहा, “आज तुम दोनों की सगाई करेंगे हम!”

“क्या?” सुनील और माँ फिर से एक साथ बोल पड़े, “इतनी जल्दी!”

“और नहीं तो क्या! जब तुम दोनों ने एक दूसरे को पसंद कर ही लिया है, तो क्यों न तुम दोनों की झट मँगनी पट ब्याह कर दी जाए?” काजल ने मौका का आनंद लेते हुए कहा!

जब दोनों ने ही कुछ नहीं कहा तो काजल बोली, “सुनील - क्यों रे? आईडिया अच्छा नहीं लगा?”

“बहुत अच्छा लगा, अम्मा! बहुत अच्छा!”

“और बहू तुमको?” काजल ने माँ के पेटीकोट का नाड़ा खोलते हुए कहा।

माँ ने कुछ कहा नहीं - बस शरमा कर उन्होंने अपना चेहरा अपनी हथेलियों से छुपा लिया।

“बहुत बढ़िया मेरे बच्चों! बहुत बढ़िया! आज तुम दोनों ने मुझे खुश कर दिया!” काजल प्रफुल्लित होते हुए बोली, “आज से अधिक ख़ुशी मुझे पहली बार माँ बनते समय भी नहीं मिली! जुग जुग जियो मेरे बच्चों! जुग जुग जियो!”

माँ का चेहरा कोई देख न सका - लेकिन हथेलियों के पीछे तो वो भी मुस्कुरा रही थीं। सुनील की ख़ुशी का हाल बयाँ करना असंभव था - उसके चेहरे की ख़ुशी बता रही थी, कि कुछ देर अगर वो ऐसे ही मुस्कुराता रहा, तो उसका जबड़ा दर्द करने लगेगा!

‘कम से कम अम्मा की तरफ़ से कोई दिक्कत नहीं हुई! अब बस भैया का देखना है!’ सुनील ने सोचा, और कमरे से चला गया।
हाँ यह बहुत महत्वपूर्ण है
 

Kala Nag

Mr. X
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अंतराल - विपर्यय - Update #11


सुनील के जाने पर काजल ने माँ की पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसको नीचे की तरफ़ सरका दिया। माँ अब काजल के सामने पूरी तरह से नंगी हो गईं। माँ की योनि के आकार में थोड़ा अंतर तो आ गया था - इतने लम्बे समय के बाद सम्भोग करने के कारण वहाँ थोड़ी सूजन आ गई थी, और थोड़ी लालिमा भी। साथ ही साथ उनकी योनिमुख के आस पास थोड़ा गीलापन भी था। अपनी सहेली की शारीरिक बनावट को काजल ने अंतरंगता से जाना था, इसलिए उसने वो अंतर तुरंत देख लिया।

‘मतलब सेक्स हुआ है!’ काजल ने मन ही मन सोचा, ‘सुनील सच कह रहा था!’ और प्रत्यक्षतः मुस्कुरा उठी।

लेकिन उसने माँ को इस बात के लिए छेड़ा नहीं, और ऐसा दिखाया कि जैसे वो माँ और सुनील की अंतरंगता के बारे में अनभिज्ञ है। लेकिन उसके मन में ख़याल भी था कि अगर दोनों में सेक्स हो गया है, तो दोनों की शादी जल्दी से जल्दी कर देनी चाहिए। बेहतर तो यही होगा कि सुनील जब अपने नए काम पर जाए, तो बहू को साथ ही में लेता जाए।

“हाय भगवान्! मेरी बिटिया को मेरी ही नज़र न लग जाय!”

“अम्मा!” माँ शरमाते हुए शिकायत करी।

“अरे क्या अम्मा? सच ही तो कह रही हूँ! तू कितनी सुन्दर है, तुझे इस बात का कोई ज्ञान भी है?” काजल ने नज़र भर के माँ को देखा, और कहा, “तेरा हर अंग सोना है सोना!” उसने सुनील की कही हुई बात दोहराई, “दूध पी ले, फिर चल... हम सब साथ बैठ कर खाना खा लेते हैं... आज तो मैं तुझे अपने हाथों से खिलाऊँगी खाना! हाँ नहीं हो! और फिर मैं अपनी बहू को दुल्हन की तरह सजाऊंगी मँगनी के लिए!”

“लेकिन अम्मा, ऐसे?” माँ ने हैरत से कहा, “नंगी नंगी जाऊँगी वहाँ?”

“हाँ! तो? क्या हुआ? तेरा रूप अब किसी से छुपने छुपाने जैसा क्या चाहिए? तू अब मेरे घर की बहू है... मतलब मेरी बेटी है तू। तो जैसी मेरी पुचुकी है, जैसी मेरी मिष्टी है, वैसी ही मेरी तू! और अपनी इस बेटी को भी मैं अपनी दोनों बेटियों जैसे ही पालूँगी!” काजल पहले तो बड़े अधिकार और बड़े लाड़ से बोली।

“लेकिन अम्मा!”

“अरे लेकिन वेकिन क्या? तू तो मेरी पुचुकी से भी छोटी है! मेरी छोटी बिटिया है तू!” काजल ने माँ को अपनी गोदी में दूसरी तरफ़ बैठने का इशारा किया, “ये स्तन खाली हो गया है, दूसरा वाला पी ले अब!”

माँ भी उसकी बात मान कर उसकी गोदी में दूसरी तरफ पुनर्व्यवस्थित हो गईं, “अरे, उससे छोटी कैसे हुई मैं?” माँ ने छोटे बच्चों की ही तरह ठुनकते हुए कहा, “उसकी तो मैं भाभी हूँ! भाभी मतलब माँ!”

“हाँ, तू उसकी भाभी है! लेकिन भाभी अपने देवर की माँ होती है! ननद की नहीं। अपनी ननद से तो वो पद में छोटी होती है। तभी तो बड़ी होने के बावज़ूद वो उसके पैर छूती है!”

हाँ - हमारे तरफ़ तो यही चलन है। काजल को यह बात मालूम थी। माँ न जाने कैसे भूल गईं।

“ओह्हो! घाटे का सौदा हो रहा है ये तो!” माँ ने बनावटी दुःख से कहा।

“होने दे! हमारे को तो फायदे ही फायदे हैं! और तू चिंता न कर! ये सब हमारे में नहीं होता। पुचुकी को तू अपनी बेटी मानती है, तो वो वैसी ही रहेगी तेरे लिए। पर हाँ, आज तुम दोनों की मँगनी कर दूँ, फिर तो मेरा पूरा हक़ है तुम पर!”

काजल की बात पर माँ का गला भर आया, “तुम्हारा मुझ पर सबसे बड़ा अधिकार है अम्मा!” माँ ने पूरी निष्कपटता से कहा, “तुमने मुझे वो सुख दिए हैं जिनकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी! घाटे वाली बात मैंने मज़ाक में कही थी अम्मा! मुझे तो सिर्फ़ नफ़ा ही नफ़ा है! अपनी माँ का प्यार मिले, अपनी माँ का दूध पिए एक मुद्दत हो गई... अब वो भी मिल गया मुझे!”

“मेरे दूध पर तेरा हक़ है बेटू!” काजल मुस्कुराई, “मुझे भी तो तेरी माँ बनने का सुख मिला है न! तुझे हमेशा के लिए अपने परिवार में शामिल करने का सुख मिला है न! बस, अब और इमोशनल मत हो! पी ले!”

माँ दूसरे वाले स्तन को पीने लगीं। काजल बड़े प्यार से माँ को सहलाते पुचकारते अपना दूध पिलाती रही। फिर अचानक ही वो किसी बात पर मुस्कुरा दी।

“क्या सोच रही हो अम्मा?”

“सोच रही थी कि जल्दी ही तेरी भी कोख भर जाएगी। तेरी भी गोद में एक नन्हा मुन्ना आ जाएगा! तुझको भी दूध आने लगेगा!”

“तब तुम भी मेरा दूध पी लेना?”

“चल! कभी माँ भी अपनी बेटी का दूध पीती है? अब तो मैं ही पिलाऊँगी तुझे हमेशा! जब तक आएगा इनमें दूध!”

“अम्मा!”

“चल, जल्दी से पी लो। फिर खाना खा लेते हैं!”

“पी लिया अम्मा! अब कपड़े पहन लूँ?” माँ ने शरारती अंदाज़ में कहा, लेकिन फिर भी उसका चूचक नहीं छोड़ा।

माँ जिस भूमिका में आ गई थीं, अब उस भूमिका को जीने में उनको आनंद आने लग गया था। सच में - स्वच्छंद रूप से जीने में क्या आनंद आएगा! वो आनंद, जो भूतकाल की बात हो गई थी उनके लिए!

“अरे! इतना समझाया फिर भी!” काजल बोली और फिर दबी हुई, षड़यंत्रकारी आवाज़ में आगे बोली, “ज़रा अपने ‘जानू’ को भी तो अपना जलवा देखने दे! तुझे यूँ पूरी नंगी देख लेगा न, तो उसका पूरा भूगोल ही बिगड़ जायेगा!”

इस बात पर दोनों खिलखिला कर हँसने लगीं।

लेकिन माँ ने काजल को यह नहीं बताया कि सुनील का भूगोल जब बिगड़ेगा तब बिगड़ेगा, फिलहाल तो उनका ही भूगोल बिगड़ गया है। ठीक है कि पशम के कारण उनके भगोष्ठों की सूजन छुप गई थी - लेकिन चाल में अंतर तो आ ही गया था।

“अम्मा,” माँ ने शर्माते हुए कहा, “आपसे एक बात कहूँ?”

“हाँ बेटू, बोल न?”

“जी वो... वो... क्या है कि...” माँ ने झिझकते हुए कहा, “वो... हम दोनों... न... हम दोनों... एक... मेरा मतलब... हम दोनों एक हो गए हैं!”

“तुम कहना चाहती हो कि तुम दोनों ने सेक्स किया है?”

काजल की बात पर माँ के गाल लाल हो गए। उन्होंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“बहुत अच्छा! आई ऍम सो हैप्पी टू हीयर दिस!” काजल ने कहा और उनके मुँह को चूम लिया, “हस्बैंड वाइफ सेक्स नहीं करेंगे, तो और कौन करेगा?”

“आपको बुरा नहीं लगा?”

“अरे बुरा क्यों लगेगा? मैं तो चाहती ही हूँ कि तुम दोनों खूब सेक्स करो। खूब मज़े करो।” काजल ने कहा, “तुमको मैं बोल ही रही थी कि जवान शरीर की ज़रूरतें होती हैं! इसीलिए तो मैं चाहती हूँ कि तुम दोनों की शादी जल्दी से हो जाए! उसके बाद बिना डरे खूब सेक्स करो।”

माँ शर्म से कसमसाईं।

“अच्छा एक बात बता,” काजल ने पूछा, “सुनील ने तुझे सुख तो दिया न बेटा? तू सम्भोग के दौरान आई तो है न?”

अब ऐसे प्रश्नों के उत्तर कैसे दिए जाएँ! लेकिन काजल सहेली भी तो है!
हाँ कैसे दिया जाए
“ओह अम्मा, बहुत सुख मिला।” माँ ने बताया - उनको संकोच हो रहा था, लेकिन फिर भी अपनी सहेली से यह गुप्त बात साझा किये बगैर न रह सकीं, “इन्होने दो बार... किया!”

“अरे हाँ! जितनी बार भी करे! तुझे आनंद मिला या नहीं?”

“वही तो बता रही हूँ अम्मा! दोनों बार मुझे ऐसा आनंद मिला, कि कैसे बताऊँ!” वो अनुभव याद कर के माँ को लज्जा आने लगी, “चार बार!” माँ लजाते हुए दबी आवाज़ में बोलीं, “ऐसा पहली बार हुआ! ... पहले कभी नहीं हुआ! न जाने कहाँ कहाँ से बदमाशियाँ सीख सीख कर आए हैं, और मुझ पर आज़मा रहे हैं!” माँ ने विनोदपूर्वक शिकायत करी।

“क्या? मतलब दूसरी औरत?” काजल का पारा अचानक ही चढ़ने लगा। उसको लगा कि सुनील ने उससे झूठ कहा था। ऐसी बातों में काजल को झूठ बर्दाश्त नहीं था। उसको एक लम्पट पति मिल चुका था। सुमन के लिए वैसा ही लम्पट नहीं चाहिए था उसको।

“नहीं अम्मा! ऐसे मत सोचो। कह रहे थे कि इंटरनेट पर देखा और वहीं से सीखा है। और मुझे उन पर विश्वास है!”

“हम्म्म! ठीक है फिर!” काजल को यह जान कर राहत हुई, “कहीं से तो सीखना ही पड़ेगा न! और उसको जो न आता हो, वो तू उसको सिखा देना! ठीक है?”

माँ मुस्कुरा दीं।

“चलें अब?”

“अम्मा, मैं पुचुकी और ‘इनके’ सामने ऐसे नंगी जाऊँगी, तो मुझे बहुत शर्म आएगी!” माँ अभी भी काजल का स्तन नहीं छोड़ रही थीं।

“देख बहू, मैं तो तेरे ‘उनको’ भी नंगा कर दूँगी! मेरे चारों बच्चे मुझे आज बिना किसी कपड़ों के चाहिए खाने की टेबल पर!”
गजब
उतने में कमरे में लतिका ने प्रवेश किया - बहुत देर से उसने घर के ‘बड़ों’ को नहीं देखा था, इसलिए वो उत्सुकतावश माँ के कमरे में चली आई। अपनी मम्मा को अपनी अम्मा की गोद में लेटी और उनके स्तन से दूध पीती हुई देख कर उसको बहुत ख़ुशी मिली। कल अम्मा चोरी छुपे उनको दुद्धू पिला रही थीं, और आज खुलेआम! मतलब, मम्मा और दादा ने अपने रिलेशनशिप के बारे में अम्मा को बता दिया था। वाओ!

“मम्मा!” उसने उत्साह से कहा, “आप अम्मा का दुद्धू पी रही हैं?!”

मज़े की बात यह कि उसने इस बात पर आश्चर्य नहीं दिखाया कि उसकी मम्मा पूरी तरह से नग्न थीं। माँ को कल की याद हो आई। माँ उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दे सकीं - वो बस शर्मा कर रह गईं।

“पुचुकी बेटा, इधर आ जा!” काजल बोली; उधर माँ काजल के सीने में अपना मुँह छुपा कर शर्म से गड़ गईं, “देख बेटू, मैं तुमको एक बहुत ज़रूरी बात बताने जा रही हूँ!”

काजल को मालूम था कि लतिका भी सब जानती है, लेकिन आधिकारिक रूप पर सुनील और सुमन के सम्बन्ध के बारे में सभी को बताना अनिवार्य था।

“क्या अम्मा?” लतिका ने बेहद उत्सुकतावश पूछा!

“जैसे तू मेरी बेटी है न, वैसे ही तेरी मम्मा भी मेरी बेटी हैं अब!”

“आपकी बेटी? लेकिन अम्मा, आप तो मम्मा को अपनी दीदी मानती हैं न?”

“मानती थी बेटा! लेकिन आज हम दोनों के बीच कुछ बदल गया है - आज से तेरी मम्मा तेरी बोऊ-दी हो गई हैं!”

“व्हाट! व्हाट? मम्मा!” लतिका ख़ुशी से लगभग चीख पड़ी, “मम्मा मेरी बोऊ-दी हो गई हैं! ओह फाइनली!! ओह गॉड! आई ऍम सो हैप्पी!” और माँ से लिपट गई।

आई ऍम वेरी हैप्पी टू माय बेबी!” माँ ने शर्म से हँसते हुए कहा!

“मम्मा मेरे दादा की वाइफ बनेंगी! वाओ!”

“हाँ बेटू, इसलिए अब से इनको मम्मा नहीं, बोऊ-दी कह कर बुलाया करो!” काजल ने हँसते हुए लतिका को समझाया!

“ओह हाँ! बोऊ-दी! बोऊ-दी!” लतिका ने माँ को और भी ज़ोर से अपने आलिंगन में भरते हुए कहा, “आई ऍम सो हैप्पी!”

“लेकिन बेटू, तुम अभी अमर अंकल को ये सब मत बताना! उनको सरप्राइज देंगे आज! ठीक है?” काजल भी लतिका की प्रतिक्रिया पर मुस्कुराए बिना न रह सकी।

लतिका ने उत्साहपूर्वक ‘न’ और ‘हाँ’ में सर हिलाया। उसके सामने यह बहुत रोमाँचक सी बात हो रही थी!

“लेकिन अम्मा, मम्मा - ओह सॉरी - आई मीन, बोऊ-दी नंगू नंगू क्यों हैं?”

“मेरी लाडो, तू भी तो नंगू नंगू है! तू मेरी बच्ची है न, इसलिए तू हमारे सामने नंगू नंगू रह सकती है। और अब तो तेरी बोऊ-दी भी मेरी बेटी है, इसलिए वो भी मेरे सामने नंगू नंगू रह सकती हैं!” काजल ने लतिका को समझाया, “जैसे तू मेरी बच्ची, वैसे ये भी मेरी बच्ची! जैसे तू रहती है, वैसे ही ये भी रहेगी अब से! कपड़े पहनेगी तो रंग-बिरंगे, नहीं तो नंगू नंगू ही रहेगी! लेकिन हाँ, ये जेवर सारे पहनेगी - चूड़ियाँ, मंगलसूत्र, पायल, अंगूठियाँ, करधन, बिछिया, झुमका, नथ, बिंदी और सिन्दूर! सुहागिनों वाला पूरा श्रृंगार कर के रहेगी!”

“ओह?”

“हाँ! ये अब से सुहागिन है न!”

“ओके!” लतिका को न जाने क्या समझ में आया।

“लेकिन तेरे और मिष्टी के साथ खेलने पर इनको कोई रोक टोक नहीं है!”

लतिका की मुस्कान खिल गई!

“ओके!” उसने अपने दाँत निपोरते हुए कहा।

फिर कुछ सोच कर, “अम्मा, क्या मैं अभी भी बोऊ-दी का दुद्धू पी सकती हूँ?”

“बोलो बहू?” काजल ने माँ से पूछा!

“हाँ मेरी बेटू! तुम हमेशा मेरा दुद्धू पी सकती हो!” माँ ने कहा और लतिका के होंठों को चूमा, “मेरे दुद्धूओं पर मेरे बच्चों का सबसे पहला अधिकार है!” माँ ने मिठास लिए कहा।

“और तो और, अब तो जल्दी ही इनके दुद्धूओं में भी मीठा मीठा दूध आ जाएगा!” काजल ने रहयोद्घाटन किया।

माँ उस बात पर शर्म से लाल हो गईं - भविष्य के कोमल सपनों की प्रत्याशा की लालिमा उनके पूरे शरीर में फ़ैल गई।

आई नो अम्मा! जब दादा और मम्मा - ओह आई मीन, बोऊ-दी के बच्चे होंगे, तो बोऊ-दी को दूध आने लगेगा!” लतिका ने प्रसन्न हो कर अपने ज्ञान का बखान कर दिया।

माँ कुछ न बोलीं, बस लतिका को अपने में समेट कर मुस्कुरा भर दीं।

“अच्छा चलो चलो,” काजल अंदर ही अंदर प्रसन्न होते हुए बोली, “भाभी-ननद खूब प्यार करते रहना! लेकिन अभी खाना खा लेते हैं न? बहू ने इतना बढ़िया खाना पकाया है आज, और इतनी अच्छी खबर सुन कर मुझे भूख भी खूब ज़ोरों की लग गई है!”

माँ काजल की बात पर बहुत खुश होते हुए लतिका से बोलीं, “चल बेटू, खाना खाने के लिए तैयार हो जा!”

लतिका फुदकते हुए कमरे से बाहर चली गई।

“तू भी चल बहूरानी!”

माँ के कमरे से बाहर सुनील, आभा और लतिका के चहकने हँसने की आवाज़ें आ रही थीं। उनकी आवाज़ सुन कर माँ काजल के पीछे छुप गईं।

“अरे क्या हो गया?” काजल ने हँसते हुए पूछा।

“अम्मा, मैं ‘उनके’ सामने ऐसे नहीं जाऊँगी!” माँ ने किसी छोटी बच्ची के ही जैसे ठुनकते हुए कहा।

“अरे मेरी लाडो,” काजल ने - जैसे छोटे बच्चों को समझाया जाता है वैसे ही - माँ को समझाते हुए कहा, “अगर तू अपने ‘उनके’ सामने नंगी नहीं होगी, तो तेरे पेट में उसका बच्चा कैसे आएगा?”

“वो सब मुझे नहीं मालूम!” माँ अभी भी ठुनकते हुए बोलीं, “अम्मा, मुझे ऐसे न जाने दो उनके सामने!”

“लेकिन वो हस्बैंड है तेरा मेरी बच्ची!”

“नहीं अम्मा!”

“नहीं है?” काजल ने माँ की टाँग खींची।

“अरे मैं वो नहीं कह रही हूँ!” माँ अपनी ही बात पर झेंपते हुए बोलीं, “वो तो मेरे हैं!”

माँ ने इतने प्यारे तरीके से ये बात कही कि काजल का दिल भी लरज गया, “बिटिया मेरी, मैं उसको भी नंगा रहने को कह दूँगी!”

“हाआआ!” माँ ने अपने खुले हुए मुँह पर हाथ रख कर कहा।

“अब ठीक है?”

“अम्मा, कम से कम कच्छी तो पहनने दो?”

“बिलकुल भी नहीं - अब से तू वो जाँघिया जैसी कच्छियाँ कभी नहीं पहनेगी!” काजल ने हँस कर माँ को मना किया, “उसको पहन कर मेरी सुन्दर सी बिटिया किसी दादी अम्मा जैसी लगती है! उससे अच्छा है कि तू नंगी रह!”

“अम्मा!” माँ ने फिर से अनुनय विनय करी, “मुझे बहुत शर्म आएगी!”

“तो आने दे!” काजल ने फिर से अनसुना कर दिया, “मेरी पुचुकी और मिष्टी को तो नहीं आती शरम! तू क्यों शर्माएगी? तू उनसे कोई अलग है?”

“मैं उनसे बड़ी हूँ न अम्मा!”

“अभी अभी मेरा दूध पिया है कि नहीं?”
हाँ अभी अभी तो रिश्ता बना है
माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया। वो सच में छोटी बच्ची ही बन गई थीं।

“तो फिर कोई बड़ी वड़ी नहीं है तू! मैं जैसा कहूँ, वैसा ही कर!”

“मिष्टी की तो दादी हूँ न!” माँ जैसे मोल-भाव पर आ गईं।

“अभी तू किसी की कोई दादी वादी नहीं है! अभी तू केवल मेरी बेटी, मेरी बहू है! बस!”

“ओह्हो! अम्मा!”

“चल अब! देर हो रही है खाने को!”

काजल ने कहा, और माँ के साथ डाइनिंग हॉल में आ जाती है। माँ काजल के पीछे पीछे चल रही थीं - लगभग छुपी हुई! काजल ने माँ को स्तनपान कराने के बाद ब्लाउज पहनने की जहमत नहीं उठाई। लिहाज़ा वो स्वयं भी केवल साड़ी और पेटीकोट पहने हुए डाइनिंग हॉल में आई।

“आओ बहू, बैठो!”

कह कर काजल ने माँ का हाथ पकड़ कर, अपने पीछे से, अपने आगे ला खड़ा किया! कुछ स्त्रियों की नैसर्गिक सुंदरता ऐसी होती है कि उनके बारे में कविताएँ, शायरियाँ, ग़ज़लें, और नज़्में लिखी जा सकती हैं! माँ भी नैसर्गिक रूप से इतनी सुन्दर थीं कि क्या कहें! गैबी का सौंदर्य भी वैसा ही था और देवयानी का भी! काजल भी बड़ी सुन्दर थी - लेकिन वो अपनी सुंदरता सही तरह से सम्हाल नहीं रही थी। माँ के शरीर पर इस समय केवल एक ही प्रदर्शित आभूषण था - उनकी माँग में सजा हुआ नारंगी रंग का सिन्दूर!
लाल काहे नहीं
इनकी नाक और कान की कील इतनी छोटी थी, कि उनकी उपस्थिति ही दिख रही थी।

खैर, केवल वही आभूषण धारण किये हुए माँ की नग्न सुंदरता देख कर सुनील की बोलती कुछ क्षणों के लिए बंद हो गई। उनके मिलन के पहले माँ बड़ी सुन्दर लग रही थीं, लेकिन इस समय उनकी सुंदरता न जाने कैसे कई गुणा बढ़ गई थी! शायद पुरुष हॉर्मोन का प्रभाव हो! या फिर सम्भोग के उपरांत के सुख की लाली! या कुछ और! या इन सभी बातों का मिला-जुला प्रभाव!

लतिका और आभा ने तो खैर माँ को नंगा देखा ही था। उनको इस बात में कुछ अलग नहीं लगा। बच्चों में वयस्कों जैसी संवेद्यता नहीं होती है। हम वयस्क अपने ही बनाये हुए नियमों और कायदों में जकड़े रहते हैं। बच्चे तो बस इसी बात से खुश रहे हैं कि सभी लोग उनके साथ में हों, और खुश रहें।

उधर काजल सुनील पर सुमन के सौंदर्य का ऐसा प्रभाव देख कर हँसने लगी, और बोली, “सुनील बेटे, चल तू भी बाकी बच्चों जैसा ही हो जा!”

“अम्मा?”

“सुना नहीं क्या? मैंने कहा न, कि मुझे अपने सारे बच्चे एक जैसे चाहिए! तो बस!” काजल ने कहा, “और... अपने नुनु पर कण्ट्रोल रखना! बच्चे भी हैं यहाँ - मैं नहीं चाहती कि वो डर जाएँ!”

सुनील कुछ पल तो झिझका, लेकिन काजल की प्यार भरी उलहनाएँ सुन कर मान गया। कुछ ही देर में काजल के चारों बच्चे पूर्ण रूपेण नग्न थे और खाने की टेबल पर आस पास बैठे हुए थे। माँ और सुनील को अगल बगल ही बैठाया गया था। लतिका ने अपने दादा को छोटेपन में नग्न देखा था। कई बार या तो मम्मा (ओह सॉरी, बोऊ-दी) या फिर अम्मा उसको और उसके दादा को साथ में ही नहला देती थीं। लेकिन पिछले तीन सालों से वो बंद हो गया था। अब सुनील ही उसको और मिष्टी को नहलाता था - बस कभी कभार ही उनके साथ नहा लेता था। अपने दादा का पिल्लू जैसा नुनु उसको फनी लगता था। आभा को खैर अभी इन सब बातों का कोई ज्ञान नहीं था।

सभी ने एक बहुत ही खुशहाल परिवार की तरह एक साथ लंच किया। काजल बात बात पर हँस रही थी। सभी हंसी मज़ाक कर रहे थे; चुटकुले सुना रहे थे। सुनील खुश ज़रूर था, लेकिन माँ के बगल बैठे हुए और उनकी नग्न सुंदरता का आस्वादन करते हुए, वास्तव में उसका भूगोल बिगड़ गया था। वो रह रह कर अपने ‘नुनु’ को व्यवस्थित कर रहा था, कि अपनी अम्मा और दोनों बच्चों के सामने बेइज़्ज़ती न हो जाए। माँ भी हँस और मुस्करा रही थी, लेकिन उनको शर्म भी बहुत आ रही थी।

अपने वायदे के मुताबिक, माँ को खाना आज काजल ने अपने हाथों से खिलाया। लेकिन यह सब कुछ इतना रोमांचक था कि उन्होंने बस किसी तरह से अपना लंच खत्म किया। खाना स्वादिष्ट था, लेकिन माँ को थोड़ा अलग लगा। वो बहुत उत्साहित भी थीं, और थोड़ी आशंकित भी। जीवन के इस पड़ाव में पहुँच कर यह सब करना, ऐसा अभूतपूर्व बदलाव लाना, यह सब उनके लिए बहुत नया और अज्ञात था। माँ को समझ नहीं आ रहा था कि मैं - उनका बेटा - इस खबर पर कैसे रिएक्ट करूँगा। यह हमारे और काजल के परिवार के साथ हमारे संबंधों में बड़े पैमाने पर पुनर्समायोजन (re-adjustment) था!

लंच खत्म होने पर, काजल ने कहा, “मिष्टी, पुचुकी - तुम दोनों बच्चों अपने दादा के साथ खेलो और आराम करो! मैं बहू को तैयार करती हूँ! ठीक है?”

“यस दादी!” कह कर आभा फुदक कर अपने दादा की गोदी में आ गई।

काजल ने सुनील को आभा और लतिका की देखभाल करने का निर्देश दिया, और फिर माँ के साथ उनके कमरे में चली गई। वो खुद घर की विभिन्न अलमारियों से रंग-बिरंगी रेशमी साड़ियों, पेटीकोट और मैचिंग ब्लाउज़, और समस्त ज़ेवर निकाल कर वो भी माँ के कमरे में चली गई, और दरवाज़े को अंदर से बंद कर ली।

वो दोनों बहुत देर बाद बाहर आएँगे!

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ह्म्म्म्म बात तो सही है
 

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भाई भले ही बंगालीयों का मछली प्रेम जग जाहिर हो
तटवर्ती इलाक़ों में रहने वाले बड़े मछली प्रिय होते हैं
जैसे कि हम
हमारे यहाँ दो किलो वाला हिलसा का भाव ढाई हजार रुपये किलो का होता है

वो तो है ही। मछली का इतना चलन है बंगाल और ओडिशा में कि इसको शाकाहार ही मानते हैं।
हाँ, हिलसा इतनी पसंद करी जाती है, ये आज मालूम हुआ! :)

हाँ भाई यह तो आपने सही कहा
प्यार अंदर के बच्चे को जगा देता है

प्रेम तो है ही शुद्ध कार्य! जिसमें बचपना नहीं, उसमें प्रेम नहीं हो सकता।

थैंक्यू
यह दिल से निकली शब्द

बोझ उतर गया था सुमन के दिल से!
कितने सारे आत्म-संदेह रहे होंगे उनके मन में, लेकिन काजल द्वारा स्वीकृति पाने पर सब संदेह जाते रहे होंगे।
वैसे भी, काजल सहेली है - उसका सहारा बहुत ज़रूरी है।

ह्म्म्म्म यह भी एक रस्म है

इस कहानी का प्रमुख प्रसंग है ये!
स्तनपान जैसी नैसर्गिक क्रिया को पिछले कुछ वर्षों में जैसा कलुषित (stigmatized / taboo) कर दिया गया है उससे मुझे बेहद निराशा और खीझ होती है।
आज कल की माओं को देखा है मैंने - बस दो तीन, और बहुत हुआ तो छः महीना दूध पिला कर पल्ला झाड़ लेती हैं।
उससे क्या होता है? तो सोचा, कि इस बात को इसी कहानी के माध्यम से सामने लाया जाए!

लाल काहे नहीं

लाल रंग का सिन्दूर फैक्ट्री उत्पादन की देन है भाई साहब।
पहले सामान्य तौर पर कुमकुम या फिर बुझे चूने और हल्दी से सिन्दूर बनाते थे - जो प्राकृतिक पदार्थ हैं और हानिकारक नहीं।
वैसे भी हमारी तरफ (मतलब उत्तर प्रदेश में) जिस समय लड़की की शादी हो रही होती है, उस समय इसी चमकदार नारंगी रंग के सिन्दूर का प्रयोग करते हैं।
जानकारी के लिए एक चित्र डाला है नीचे।

sindoor
 

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अंतराल - विपर्यय - Update #12


मैं ऑफिस में एक मीटिंग में बैठा हुआ था, जब मुझे काजल का फ़ोन आया।

काजल या घर का कोई भी सदस्य मुझे शाम चार बजे से पहले कभी भी फोन नहीं करता था। यह समझ लीजिए कि यह हमारा एक तरीके का अनकहा नियम था। मैं घर पर शाम चार बजे के बाद कॉल करता, और अगर मैं न कर पाता, तो घर से कोई भी मुझे चार बजे के बाद कॉल कर देता। उन कॉल्स में भी सब सामान्य बातें ही होती थीं, जैसे कि काजल या माँ पूछतीं कि कब तक आ रहे हो; क्या खाओगे; शाम का क्या प्लान है; बच्चे पूछते कि हमारे लिए क्या लाओगे; या इसी तरह की सामान्य बातें, इत्यादि। इसी बात की आदत पड़ी हुई थी।

इसलिए जब दोपहर में, अपनी मोबाइल की घंटी बजी, और उसकी स्क्रीन पर ‘Home’ फ़्लैश होता हुआ देखा, तो उसको देखते ही मेरे दिमाग में कई सारे बुरे बुरे विचार कौंधने लगे... क्या हुआ होगा? सब ठीक तो था? क्या कोई इमरजेंसी थी? माँ तो ठीक है? काजल को चोट तो नहीं लग गई? आभा या लतिका को तो कुछ नहीं हो गया? सुनील ठीक है? इत्यादि!

मानव मस्तिष्क बहुत ही रोचक तरीके से काम करता है। असामान्य परिस्थिति से दो-चार होने पर हमारे दिमाग में जो सबसे पहले विचार आते हैं, वो केवल भय के ही होते हैं; आशंका के ही होते हैं! दिल बैठ गया। मैंने अनजान आशंका से डरते हुए फ़ोन उठाया।

इससे पहले कि मैं कुछ कह पाता, काजल बड़े उत्साह में चहकते हुए बोली,

“हेल्लो? अमर? हाँ, मैं काजल! सुनो, जल्दी से घर चले आओ। बहुत जरूरी काम है!”

जब मैंने काजल की उत्साहित और खुशनुमा आवाज सुनी तो मुझे बड़ी राहत मिली। मेरे चेहरे पर मुस्कान तैर गई - काजल थी ही ऐसी! मैं ‘हेलो’ भी नहीं बोल पाया, और काजल बड़े उत्साह से, और बिना किसी पृष्ठभूमिका के मुझे इतना सब बोल गई!

“बहुत जरूरी?” उसकी आवाज़ पर मेरे होंठों पर एक मुस्कान आ गई।

काजल की खुशी बेहद संक्रामक होती है। इस कारण से मैं खुद को मुस्कुराने से नहीं रोक सका।

“अरे सबसे जरूरी काम है! बस तुम आ जाओ... जितनी जल्दी हो सके आ जाओ! देर नहीं करना, और कोई बहाना नहीं करना! वैसे भी आज शनिवार है।”

“अरे काजल ... कुछ बताओ भी!”

“नहीं नहीं... बिलकुल भी नहीं! फ़ोन पर तो मैं कुछ भी नहीं कहूँगी! पूरे सरप्राइज का मजा खराब हो जाएगा!”

“अच्छा! तो मतलब कोई सरप्राइज है? बढ़िया!! अच्छा, कब आ जाऊँ?”

“अरे कहा तो! जितनी जल्दी हो सके, उतनी जल्दी।” काजल हँसते हुए बोली, “ज्यादा प्रश्न मत पूछो, नहीं तो गलती से मेरे मुँह से कुछ ऐसा निकल जाएगा कि सरप्राइज का मज़ा खराब हो जाएगा!”

“हा हा हा हा! ठीक है मेरी माँ! आता हूँ; जितना जल्दी हो सकता है, आता हूँ!”

“लव यू,” काजल ने कहा, “जल्दी आना! हम लोग राह देख रहे हैं!”


**


मुझे यथासंभव शीघ्रता से घर वापस आने को कह कर, काजल ने शाम को सुमन और सुनील की ‘चट मँगनी समारोह’ के लिए माँ को तैयार करने, और उनको सजाने पर अपना ध्यान केंद्रित किया। माँ को अपने कमरे में उसका इंतज़ार करने को बोल कर वो तैयारी का सामान एकत्र करने चली गई।

माँ अपने कमरे में बैठी हुई, अपनी ‘अम्मा’ की प्रतीक्षा कर रही थीं, कि कब वो आएँ, और उनको सजाएँ! अपने सभी पूर्वाग्रहों और आशंकाओं के विपरीत, माँ को अपनी यह नई भूमिका बड़ी आनंददायक लग रही थी। हम सभी में यह इच्छा होती है कि ‘काश, हम छोटे ही रहते!’, लेकिन फिर भी बड़े होने के लाभ का उन्माद छोड़ नहीं पाते। माँ को भी अपनी ‘बड़ी भूमिका’ छोड़ने में समय लगा, लेकिन काजल के व्यवहार ने साफ़ दिखा दिया कि उसकी बेटी बन कर वो बहुत आनंदित रहेंगी। माँ को आश्चर्यजनक रूप से बहुत अच्छा लग रहा था कि किसी और ने ‘उनके बड़े’ की भूमिका ले ली है! अब उनका पति था - जो अवश्य ही वो उनकी आधी उम्र का था, लेकिन उसका ओहदा उनके जीवन में उनसे बड़े का था। और फिर अब तो उनकी सास भी थी - ऐसी सास जो उनको हमेशा से ही बहुत प्यार करती आई थी। और अब वो ही सास उनको उनकी माँ का प्रेम दे रही थी। माँ को फिलहाल ऐसे ही व्यवहार की ज़रुरत थी; माँ को काजल की ज़रुरत थी; उनको फिर से युवा महसूस करने की ज़रुरत थी।

उड़ी बाबा रे,” काजल ने कमरे में सामान के साथ प्रवेश करते हुए कहा, “बहुत सारे काम हैं आज तो! और समय भी नहीं है!” फिर माँ को देख कर प्रसन्नता से मुस्कुराई, “लेकिन अपनी बिटिया को अच्छे से तैयार करूँगी! एकदम परी के जैसे!”

“अम्मा, यह सब करने की क्या ज़रुरत है?” माँ ने शर्म से सिमटते हुए कहा - ऐसा नहीं है कि ये सारा अवधान उनको खराब लग रहा था। बस, उनको इसकी आदत नहीं थी।

“अरे, ऐसे कैसे? मेरे बेटे और बहू की सगाई है! कुछ तो करना चाहिए ही!” उसने एक गहरा निःश्वास छोड़ा, “और हम कर ही क्या रहे हैं? मेरे अरमान तो बड़े सारे हैं! देखो, क्या क्या पूरे हो पाते हैं!”

इतना कह कर काजल ने बादाम के तेल की थोड़ी थोड़ी मात्रा अपनी हथेलियों पर ली, और माँ के पूरे शरीर पर मलने लगी। बादाम का तेल त्वचा को मॉइस्चराइज़ करता है, और मेकअप के लिए एक अच्छा बेस देता है। माँ के स्तनों पर तेल मलते हुए काजल बोली,

“कल मालिश हो गई थी तेरी बूनियों की, इसलिए दाग़ गहरे नहीं हुए!”

कल की बातें याद कर के माँ शर्मा के मुस्कुरा दीं।

“अरे शरमा मत! मेरा सुनील तो इनका दीवाना लगता है! ख़ैर, इनका ही क्या, वो तो तेरा ही दीवाना है पूरा! और हो भी क्यों न? सारी हीरोइनें पानी भरती हैं मेरी बहू की सुंदरता के सामने!”

“मैं सच में सुन्दर लगती हूँ अम्मा?”

“देख बेटा - न तो कभी तूने, और न ही कभी मैंने - एक दूसरे से झूठ नहीं बोला! बोला है क्या? तो अब क्यों बोलेंगे?” काजल किसी गौरान्वित सास के लहज़े में बोली, “मेरी सारी उम्मीदें पूरी हो गई हैं तेरे आने से! कभी कभी जी में आता है कि ईश्वर से थोड़ा और माँग लेती! वो इच्छाएँ भी पूरी हो जातीं!”

वो उम्मीद से मुस्कुराई, “सच में! मन तो होता ही ऐसा है। उसके लालच का अंत कहाँ होता है? सच में बहू - मैं तो मरी जा रही हूँ कि अब जितनी जल्दी हो सके, तेरी और सुनील की शादी हो जाए! बस! फिर उसके बाद जल्दी से मैं अपनी गोद में अपने नन्हे-मुन्ने पोते-पोतियों को खिलाऊँ, उनको दुलार दूँ, उनको पाल पोस कर बड़ा करूँ! हो सके तो उनके भी बच्चे खेलते हुए देखूँ! अब तो बस यही इच्छा शेष है!”

माँ के गाल मारे लाज के सेब जैसे लाल हो गए।

“शरमा ले जितना मन हो!” काजल अपने पूरे फॉर्म में थी, “शर्माने से तेरा माँ बनना थोड़े ही रुकेगा!” काजल ने माँ के पेट पर बादाम तेल लगाते हुए कहा, “अब तो हमारे घर में भी खुशियाँ आने की बारी आई है! कहे देती हूँ - तुझे तीन बच्चे होंगे! हाँ! देख लेना तू!”

“हा हा हा! क्या अम्मा!” माँ खिलखिला कर हँसने लगीं, “तीन बच्चे! और इस उम्र में!”

“उम्र? ऐसी क्या उम्र हो गई? जवान लड़कियाँ पानी भरें तेरे सामने तू तो ऐसी है! और उम्र वाली बातें तो तू न ही किया कर!” काजल ने माँ की बात नकारते हुए कहा, “देवी माता की असीम कृपा है तुझ पर! सच कहती हूँ! बस तुम उन पर भरोसा रखो!” वो मुस्कुराई, “और सच कहूँ, मैं भी तो कितना चाहती हूँ कि तू फिर से माँ बन जाए! तेरी और बच्चे जनने की इच्छा मुझसे कभी नहीं छुपी - ख़ास कर एक बेटी की इच्छा।”

माँ ने एक गहरी साँस भरी। यह बात तो सच ही थी।

“जब तूने पहली बार पुचुकी को अपने सीने से लगा कर अपना दूध पिलाया था न, मैं तो तब ही समझ गई थी!” काजल ने धीरे से माँ के स्तन दबाए - उनके चूचक उभर आए, “तीन साल की ही तो थी वो तब!”

“अभी भी तो वो मेरे ही सीने से लग कर सोती है अम्मा!”

“हाँ! और हो भी क्यों न? लतिका जितनी मेरी बेटी है, उससे अधिक तेरी है!” काजल ने बड़े स्नेह से कहा, “लेकिन अब अपने बच्चे करने की बारी है तेरी!” काजल ने माँ के पेट पर तेल रगड़ते हुए कहा, “और बहुत देर मत करना, बहूरानी!” काजल मुस्कुराई, “इनको दूध से भरा हुआ देखना कितना सुखदायक होगा!”

काजल भविष्य में होने वाले आनंद की कल्पना से पुलकित होने लगी। फिर अचानक ही भक्तिभाव से बोली, “भगवान की बड़ी कृपा है तुझ पर, और तेरे कारण हम सभी पर! तू हमारी बहू नहीं, हमारा सौभाग्य बन कर हमारे घर आ रही है!”

माँ शरमा कर काजल के आलिंगन में छुप गई। माँ की इस भोली सी हरकत पर काजल प्यार से मुस्कुरा दी।

“और मैं तो चाहती हूँ कि मेरी लतिका भी बिलकुल तेरी जैसी ही बने। बस तेरी ही छाया उस पर पड़े। बस तेरे ही सारे गुण उसमें आएँ! तेरी ही जैसी सौभाग्यवती वो भी बने!”

काजल की कही बात पर माँ के दिल में जैसे भावनाओं का ज्वार उठ आया।

“वो बहुत प्यारी बच्ची है अम्मा! मिष्टी को कितने प्यार से रखती है - खुद बच्ची है, लेकिन मिष्टी को इतना प्यार करती है कि क्या कहूँ!” माँ ने मुस्कुराते हुए कहा।

काजल भी मुस्कुराई, “सब तेरा ही पुण्य प्रताप है! वो इतने अच्छे, संस्कारी, और स्नेही परिवार में पल कर बड़ी हो रही है, तो ऐसे गुण तो आएँगे ही!”

“वो मेरी बेटी है अम्मा!”

“बोल तो रही हूँ - ये तो सब तेरा ही पुण्य प्रताप है बिटिया! मेरा बेटा तुझे प्यार करता है और तुझसे शादी करना चाहता है। मेरी बेटी में तेरे ही गुण, तेरे ही संस्कार आ रहे हैं। और तेरे ही कारण मेरे परिवार में इतनी खुशियाँ आने वाली हैं! तेरे कारण ही मेरा परिवार बढ़ने वाला है! मुझसे अधिक भाग्यशाली औरत और कौन होगी? सच में - मैंने जितना भगवान से माँगा, उससे कई कई गुना अधिक आशीर्वाद मिल रहा है मुझको! आज तो मैं धन्य हो गई!”

“अम्मा!” माँ अपनी बढ़ाई से खुश हो कर काजल से और भी अधिक चिपक गईं।

कुछ देर काजल ने माँ को अपने से चिपकाए रखा, फिर खुद से अलग करते हुए, और उनको चूमते हुए वो बोली,

“ऐ सुमन, मेरी बिटिया रानी, मेरे सुनील को खूब प्यार देना!”

“हाँ अम्मा! वो मेरे पति हैं!”

“न बेटा!” काजल ने तुरंत ही कहा, “पत्नी के कर्तव्य के नाते नहीं! उस तरह के प्यार में कोई सुख नहीं है। उससे न तो तू सुखी होगी, और न ही वो! तू उसको सच में प्यार करना। छोटा है वो! तू उसको सही रास्ते पर रखना। वो गलतियाँ करेगा - तू उसको समझाना। उसको भटकने मत देना। उसको अपना पति-परेश्वर मान कर उसकी हर भूल को नज़रअंदाज़ मत कर देना। पति-परमेश्वर से पहले, तू उसकी गार्जियन रही है - माँ जैसी। तेरे ही संस्कार हैं उसमें। वो गलती करे तो उसके कान उमेठ देना!”

माँ अपने होंठों को ‘O’ के आकार में खोल कर आश्चर्य या अनहोनी वाली आवाज़ निकालती हैं। लेकिन काजल उसको नज़रअंदाज़ कर देती है।

“हाँ - और क्या?” फिर नरम पड़ते हुए बोली, “वो केवल प्यार का ही भूखा है! बहुत प्यार करता है वो तुमसे! मैंने देखा है ये! जब वो तेरे आस पास रहता है न, तो उसकी आँखों में एक चमक रहती है! ज़िन्दगी की चमक! भविष्य की चमक! वो चमक तेरे लिए उसके प्यार के कारण है। जब तू भी उससे प्यार करने लगेगी न, तो तुम दोनों का भविष्य चमक उठेगा!”

“हाँ अम्मा!” माँ फिर से शरमाईं, “उनसे प्यार होने तो लगा है!”

“बहुत बढ़िया बात है!” काजल संतोष से मुस्कुराई, “बहुत बढ़िया!”

जब शरीर के ऊपरी हिस्से पर तेल लग गया, तब काजल ने माँ को बिस्तर पर लिटा दिया, और उनकी टांगें खोल दीं। उसने जो देखा, उसे पसंद आया। माँ का जघन और जनन क्षेत्र, कोमल माँस और मज़बूत माँस-पेशियों का अद्भुत संयोजन लिए हुए था! चेहरा और शरीर अगर छोड़ भी दें, तो भी माँ की योनि अपनी असली उम्र से कहीं अधिक जवान दिखाई दे रही थी! उनकी योनि को ले कर सुनील की टिप्पणी बिलकुल भी गलत नहीं थी। और अगर इसका मुकाबला काजल की योनि से करें, तो माँ की योनि काजल की योनि के मुकाबले छोटी थी! बिलकुल किसी पच्चीस छब्बीस साल की छरहरी और स्वस्थ लड़की की योनि की तरह!

“बहुत सुन्दर!” काजल ने हमेशा की ही तरह उनकी योनि की सुंदरता की प्रशंसा की, “बहुत सुन्दर! ये चूत नहीं है - गुलाब की कली है!”

माँ ने अपना चेहरा अपनी हथेलियों के पीछे छिपा लिया। उनको याद आ रहा था कि कैसे वो भी अपनी बहुओं को इसी तरह से छेड़ती थीं, उनको दुलार करती थीं, उनके सौंदर्य की बढ़ाई करती थीं। आज वही सब कुछ उनके साथ भी हो रहा था। वही स्नेह जो उन्होंने पहले सब पर बरसाया था, अब उन पर बरस रहा था। और माँ शर्माते हुए ही सही, लेकिन उस स्नेह, उन छेड़खानियों का आनंद ले रही थीं।

अब इतने अंतरंग तरीके से छुए जाने और देखे जाने पर अपना चेहरा भाव-विहीन तो नहीं रखा जा सकता न! तो माँ भी न रख सकीं - उनके चेहरे पर लज्जा, पीड़ा और संकोच के भाव आने लगे। लेकिन वो क्या कर सकती थीं! बस, उन्होंने अपनी आँखें बंद कर लीं। काजल धीरे से मुस्कुराई। उसको मालूम था कि माँ को क्या महसूस हो रहा था।

हाँ, वो अब माँ की सास थी, लेकिन उससे बहुत पहले से वो उनकी सहेली भी थी - सबसे करीबी सहेली, सबसे चहेती सहेली! इसलिए अपनी सहेली को थोड़ा सा चिढ़ाना, थोड़ा सा छेड़ना, कोई अनुचित काम तो नहीं था।

“कल इसको देखने के बाद वो इसमें कैसे नहीं गया,” काजल ने उनको छेड़ा, “मुझे तो इसी बात से आश्चर्य होता है!”

माँ को बहुत शर्म आ रही थी - उनको बस कुछ ही देर पहले, अपने नए पति के साथ हुए अपने दोनों संभोगों की याद गई। शरीर कुछ बातों पर स्वयं ही उत्तेजित हो जाता है। जब आपने बेहद संतोषजनक सम्भोग का आनंद उठाया हुआ हो, तो उसकी याद आपके शरीर में स्वयं ही उत्तेजना भर देती है। सुनील के साथ अपने संभोग को याद कर के उनकी योनि स्वयं ही गीली होने लगी।

“चूत के होंठों में सूजन आ गई है!” काजल ने जाँच करते हुए कहा।

माँ शर्म से पानी हो रही थीं। लेकिन फिर भी उन्होंने कहा, “बहुत दिनों बाद हुआ है न अम्मा! इसलिए!”

“कोई बात नहीं! अब तो रोज़ यही होगा।”

“हाआआआ!”

काजल को एक छोटा सा संशय था, “बहूरानी, उसका साइज़ तो ठीक ही है ना... छोटा तो नहीं है न?”

“नहीं अम्मा...” माँ भी कब तक लज्जा कर के चुप रहतीं, “छोटा नहीं, बहुत बड़ा है।”

“क्या सच्ची?”

“हाँ न!” माँ को कहना ही पड़ा, “और ये सब तुम्हारी ही गलती है अम्मा!”

“मेरी? वो कैसे?”

“माएँ अपने बेटों को इतने लम्बे समय तक दूध पिलाएँगी, तो बहुओं को ही तो तकलीफ होगी ही न!” माँ ने अदा से कहा।

“हा हा हा! यही बात तो मैं भी तुझसे कह सकती हूँ न!” काजल ठठा कर हँसने लगी, “वैसे, इसीलिए तो अब मैं तुझे भी अपना दूध पिला रही हूँ, कि तू भी उसके जैसी ही ताक़तवर हो जाए!”

“हा हा हा!”

माँ हँसने तो अवश्य लगीं, लेकिन अपनी सास द्वारा, अपने पति के साथ किये गए सम्भोग की याद दिलाने पर, उनका चेहरा शर्म से लाल हो गया। उनके पूरे शरीर पर एक सुन्दर सी लालिमा फ़ैल गई, और उनके चेहरे पर एक नई दुल्हन वाली चमक आ गई! माँ के चूचक उस अद्भुत सम्भोग को याद करते हुए झुनझुना गए, और ऊर्ध्व हो गए। सुनील ने माँ के उनके जीवन के दो सर्वोत्तम सम्भोग के अनुभव दिए थे! माँ डैड के साथ सम्भोग कर के संतुष्ट हो जाती थीं, लेकिन सुनील के साथ तो अद्भुत अनुभूति मिली थी उनको! यह कहना कि माँ सुनील के साथ अघा गई थीं, कोई अतिशयोक्ति नहीं है। उन सम्भोगों, उन चर्मोत्कर्षों की याद ऐसी बलवान थी कि माँ अपनी योनि से अपने प्रेम-रस के अचानक ही हो चले प्रवाह को रोक नहीं पाईं, और दो ही पलों में उनका योनि मुख, उनके प्रेम-रस से भीग कर चमकने लगा।

सुनील के नाम से ही वो गीली हो गईं थीं!

यह सब काजल से छिपा नहीं रह सका। उसने छेड़छाड़ को और आगे बढ़ाया, “आज से तू सुनील के साथ ही सोया कर! उसका बिस्तर छोटा है। चिपक के सोने के अलावा कोई और ऑप्शन नहीं रहेगा तुम दोनों के पास! हा हा हा हा हा!”

माँ अदा से, लेकिन बहुत शर्म से मुस्कुराईं। उनकी मुस्कराहट से काजल को अपार संतोष मिला। पहले जब माँ हमारी ‘बड़ी’ थीं, तो वो हमारी टाँगें ऐसे ही खींचती थी! लेकिन अब चीजें बदल गई हैं।

“इतनी खुशियाँ अचानक ही मिल गई हैं, अम्मा!” माँ बड़े कोमल स्वर में बोलीं, जैसे कहीं दूर जा कर बोल रही हों, “इसलिए थोड़ा डर लग रहा है!”

“बिलकुल भी ऐसे ख़याल मत ला अपने मन में! मैं हूँ न तेरे साथ!” काजल मुस्कुरा कर बोली, “तेरी खुशियों को नज़र लगाने वाले की आँखें निकाल लूँगी!”

माँ आभारपूर्वक मुस्कुराईं।

“ये मेरे बेटे और बेटी की खुशियों का सवाल है,” काजल मुस्कुरा रही थी, लेकिन आवाज़ दृढ़ थी, “इस पर मैं कैसी भी आँच नहीं आने दूँगी!”

“थैंक यू, माँ!” माँ ने कहा। उनकी आवाज़ में कृतज्ञता छुपी न सकी।

लेकिन बात माँ की टाँग खिंचाई की हो रही थी और काजल नहीं चाहती थी कि सहेलियों का हँसी मज़ाक गंभीर मोड़ ले ले। इसलिए उसने बात पलट दी। माँ की योनि पर उंगली चलाते हुए उसने कहा,

“बहू, तेरे फूल से मधु निकल रहा है!” उसने अपनी गीली हुई उंगली माँ को दिखाई, “बुला दूँ सुनील को?”

माँ के चेहरे पर शर्म की ऐसी लाल रंगत चढ़ आई जो उनकी हालत किसी को भी बयां कर देती। माँ ने ‘न’ में सर हिलाया - लेकिन अगर काजल सुनील को बुला लेती, तो वो सच में सम्भोग से मना न कर पातीं। अपने पति से सम्भोग का नशा कैसा गहरा चढ़ा था उनको!

“बहू?”

“जी अम्मा?”

“कल सुनील जब तेरा दूध पी रहा था न, तब मेरे मन में एक दृश्य आ गया था!”

“क्या अम्मा?”

“यही कि तुम दोनों प्यार के बंधन में बंधे हुए हो!”

“हैं? मतलब अम्मा?”

“मतलब कि तुम दोनों नंगे हो कर एक दूसरे में गुत्थमगुत्थ हो, और सुनील का लण्ड, तेरी चूत में है!”

“हाय अम्मा!” रही सही कसर भी निकल गई, “कैसी कैसी बातें सोचती रहती हो!”

“कैसी कैसी क्या? अपने बेटे और बहू के प्रेम के दृश्य सोचती रहती हूँ!” काजल ने कहा।

“हाआआआ!”

“बड़ी शर्म आ रही है अब! जब अपने सामने अमर और मेरा मेल करवा दिया था, तब कुछ नहीं!”

“मैं चाहती थी कि तुमको अपने हिस्से का प्यार मिलता रहे अम्मा!” माँ ने कोमलता से अपनी सफ़ाई दी।

“हाँ, और मैं चाहती हूँ कि तुमको अपने हिस्से का प्यार मिलता रहे!” काजल भी उसी तरीके से बोली, “तुम दोनों की शादी का जल्दी से बन्दोबस्त कर देती हूँ! फिर तुम दोनों खूब मज़े करना!”

माँ तो अब और शर्माने की हद से बहुत दूर जा चुकीं थीं।

“मेरी लाडो... मेरी पूता... मेरी बिटिया, तू ऐसे मत शरमा! मैं तो इतने दिनों से तुझे अपनी बहू बनाने के ही सपने देख रही हूँ! भगवान जी से कितनी प्रार्थना कर रही हूँ कि तू मेरी बहू बन जा... अब तो मैं तेरे साथ बिलकुल बच्ची जैसा ही बर्ताव करूँगी! अब ये तेरे खुश रहने, और हँसने-खेलने के दिन हैं, और मैं पूरी कोशिश करूँगी कि तू खुश रहे, और हँसती खेलती रहे।” काजल ने माँ को ममता भरा आश्वासन दिया!

“मैं बहुत खुश हूँ, अम्मा... बहुत खुश!” माँ ने काजल को भरोसा दिलाया, “बस, सब कुछ इतना जल्दी हो गया है कि खुद को इस बदले हुए माहौल में ढालने का मौका ही नहीं मिला!”

“तुझे कुछ भी बदलने की ज़रुरत नहीं!” काजल ने माँ को समझाया, “तू जैसी है, वैसी ही हमको चाहिए! अब बस तू एक ही काम कर - अपनी मैरिड लाइफ का पूरा मज़ा ले!”

माँ मुस्कुराईं।

“और, हाँ - जल्दी जल्दी बच्चे कर ले!”

“हा हा हा!”

फिर कुछ सोच कर काजल ने आगे कहा,

“बेटू, तुझको वो गाँव के पास वाले तालाब के किनारे वाले माताजी वाले मंदिर के पुजारी जी याद हैं?”

उनको माँ कैसे भूल सकती थीं। आखिर, उन्होंने ही डैड और माँ का विवाह संपन्न कराया था। उनकी मृत्यु आभा के होने से कोई दो या तीन महीने पहले हुई थी। बेचारे! बड़े कष्ट में बिताए थे उन्होंने अपने अंतिम कुछ महीने! डैड और माँ से जो कुछ संभव हो सका, उन्होंने वो सब किया - बड़े अस्पतालों और डॉक्टरों के चक्कर लगाए, दवाईयों का ढेर लगा दिया, और भी न जाने क्या क्या किया! मैंने भी अपनी तरफ़ से यथासंभव उनके इलाज के लिए धन का बंदोबस्त किया था, जिससे डैड पर कोई बोझ न आए। लेकिन उनके जैसे वयोवृद्ध व्यक्ति का बच पाना संभव नहीं था। वो डैड को कई बार बोल चुके थे कि वो उनको जाने दें अब, लेकिन डैड का मन नहीं मानता था। वो एक तरह से उनके पितामह समान थे न! इसलिए। जीवन में जो सुख - दुःख भोगने लिखे होते हैं, वो सब भोग कर जाना होता है। उनके अंतिम संस्कार में माँ और डैड दोनों शामिल थे।

“हाँ अम्मा! क्यों? तुमको उनकी याद कैसे आ गई?”

“मुझे तो लगता है कि उनको भविष्य दिखता था!”

“अरे, ऐसा क्या सुन लिया तुमने?”

“याद नहीं है? उन्होंने तुमको पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया था!”

अचानक ही माँ को बरसों पुरानी बातें याद आ गईं!

‘हाँ, यह आशीर्वाद उन्होंने दिया तो था!’

उस समय माँ भी आश्चर्यचकित हुई थीं, कि बिना अपने पति के सहयोग के उनको संतान कैसे होगी! लेकिन उन्होंने इस बारे में बहुत नहीं सोचा! हो सकता है पुजारी जी ने यूँ ही, आदतवश वो आशीर्वाद कह दिया हो? या फिर शायद बूढ़े हो जाने के कारण उनको भ्रम हो गया हो। उस समय तो उन्होंने सब भुला दिया, लेकिन अभी काजल के याद दिलाए जाने से उनको पुरानी बातें याद आ गईं!

“और सुनील को देख कर वो बोल रहे थे कि ‘अब समझ में आ रहा है’! तो मैं सोच रही थी कि शायद उन्होंने देख लिया हो कि वो ही आगे चल कर तुम्हारा पति बनेगा?”

“हाय भगवान!”

माँ को शर्म आ गई - अगर उन्होंने भविष्य की ऐसी बातें देख लीं, तो फिर उन्होने न जाने क्या क्या देखा होगा!

“हा हा!” काजल माँ की इस हरकत पर हँसने लगी, “और उन्होंने दो तीन बार कहा था कि पुत्रवती भव! मतलब यह कि तुमको दो तीन बच्चे तो होंगे!”

काजल भविष्य की सुंदर कल्पना करते हुए चहक रही थी। उधर माँ संकोच, आनंद, और लज्जा के मिले जुले भावों में सिमटी जा रही थीं। अगर उनको दो तीन बच्चे हो गए, तो मतलब ‘इनकी’ इच्छा सारी पूरी हो जाएँगी! यह एक रोमांचक विचार था - लेकिन उनको थोड़ी घबराहट भी हुई। चौवालीस की उम्र में नई नई माँ बनना कोई आसान काम नहीं! कैसे सम्हालेंगी वो अपनी नई गृहस्थी? कैसे सम्हालेंगी वो अपने बच्चे?

“अम्मा, इस उम्र में मैं नई नई गृहस्थी जमा पाऊँगी क्या?”

“अरे क्यों नहीं? ब्लैंक स्लेट है! जैसा चाहो, अपना संसार बनाओ! इसीलिए तो तुम दोनों को जल्दी से जल्दी शादी के बंधन में बाँध कर मुंबई रवाना कर देना चाहती हूँ!” काजल ने समझाया, “और फिर भी कोई दिक्कत होती है, तो मैं हूँ न! तुम दोनों की हेल्प करने आ जाऊँगी!”

उधर माँ के पशम को सहलाते हुए काजल ने चर्चा का विषय बदलने का फैसला किया,

“सुमन बिटिया, अभी के लिए तो ठीक है, लेकिन शादी के पहले, यहाँ के बाल साफ करवा ले! वो क्या कहते हैं न - वैक्सिंग? हाँ, वैक्सिंग करवा ले! अपनी गुलाब कली को दिखने दे!” काजल ने आँख मारते हुए कहा, “तुझको और सुनील, दोनों को बहुत अच्छा लगेगा!”

काजल की बात पर माँ ने एक चौड़ी सी, लेकिन शर्मीली मुस्कान दी और सहमति में सर हिलाया।

“अभी मैं इनको कैंची से काट कर छोटा कर देती हूँ! अगली बार जब वो इसे देखेगा न, तो वो पूरा पागल ही हो जायेगा! ठीक है?”

माँ अंततः एक छोटी सी लड़की की तरह थी, जो अब बस ज़िंदगी का मज़ा लेना चाहती थीं। वो अंततः एक परीकथा के अंदर थीं, जिसके रंग बिरंगे कथानक का वो जिस तरह से चाहती थी, उसका आनंद ले रही थीं, और उसको जी रही थीं। माँ इस समय अपने नए जीवन की स्वतंत्रता का, स्वच्छंदता का आनंद ले रही थीं।

काजल ने एक छोटी कैंची से सम्हाल कर माँ के पशम को कतर दिया, और जब यह कार्य समाप्त हुआ तो माँ ने भी खुद को बहुत साफ़ और प्रसन्न महसूस किया। ‘वो’ आज रात जब फिर से उनको नग्न देखेंगे, तो ‘उनको’ सुखद आश्चर्य होगा! माँ को यकीन था कि अब तो ‘वो’ उनके साथ रोज़ ही सम्भोग करेंगे! संयम का बाँध टूट गया था, और उसमें से बहने वाली अथाह धारा अब रुकने वाली नहीं थी! रुकनी चाहिए भी नहीं!

विवाह से पूर्व, ऐसे चुपके चुपके सुनील के साथ सम्भोग करना, एक बहुत ही रोमांचक विचार था और उनको ये सब सोच सोच कर बहुत शर्म भी आ रही थी।


**


काजल से बात कर के मुझको रहा नहीं गया।

न जाने क्यों, मुझे अब किसी भी तरह के सरप्राइज अच्छे नहीं लगते थे। सरप्राइज का नाम सुन कर ही उलझन होने लगती थी! जब ज़िन्दगी किसी को एक के बाद एक कई झटके दे देती है न, तब उस व्यक्ति को सामान्य बातें ही अच्छी लगती हैं। मेरा भी वही हाल था। मीटिंग जल्दी ख़तम कर के मैंने घर पर फ़ोन लगाया। इस बार फ़ोन लतिका ने उठाया। इस बच्ची की आवाज़ सुनते ही मेरा दिल खुश हो जाता। उसका प्यार का नाम अवश्य ही ‘पुचुकी’ था, लेकिन मैं अक्सर ही लतिका को ‘ख़ुशी’ नाम से बुलाता था।

“हेलो!”

“ख़ुशी बेटा, कैसी हो?”

इस नाम से वो तुरंत समझ गई कि मैं बोल रहा था।

“अंकल,” उसने बड़े मीठे और उत्साहित स्वर में कहा, “आप जल्दी से आ जाइए घर!”

“हाँ, आ तो जाऊँगा! लेकिन बेटे, बात क्या है?”

“अरे अंकल, आपको नहीं मालूम? आज बोऊ दी आ रही हैं!”

“बोऊ दी?” किसकी भाभी, “कौन बोऊ दी!”

“दादा की!”

“किसकी? सुनील की?”

“हाँ!”

“उसकी शादी कब हो गई?” मैंने लतिका से मज़ाक किया।

“नहीं, आप भी न अंकल! होने वाली है न... आज शाम को दादा और बोऊ दी की इंगेजमेंट है! अम्मा उसी के अरेंजमेंट में लगी हुई हैं। इसीलिए तो आपको जल्दी से आने को बोल रही हैं!”

‘सुनील की मंगेतर आ रही है?’ ये ख़याल आते ही मेरे मन में बड़ी ख़ुशी दौड़ गई!

लेकिन यह जान कर थोड़ी निराशा भी हुई कि उसने मुझे यह बात खुद नहीं बताई। आज भी साथ में था, फिर भी छुपा गया! वो तो कल काजल ने बताया नहीं तो मालूम ही न पड़ता। और अब ये अचानक से इंगेजमेंट! कभी कभी अपने ही घर में पराया सा लगता है। इस विचार के तुरंत बाद ही अगला विचार आया कि हो सकता है कि काजल ने ही दबाव दिया हो कि जल्दी से सगाई और फिर शादी कर लो। काजल जब चाहे, तो बहुत कन्विंसिंग हो सकती है। खैर, अगर सुनील नालायक होना चाहता है तो होता रहे! अच्छी बात यह है कि दोनों की सगाई - जो कि एक प्राइवेट मैटर है - सबके सामने हो रही थी।

“तुमने देखा है अपनी बोऊ दी को?”

“हाँ अंकल! देखा है न!” लतिका की आवाज़ में ख़ुशी साफ़ सुनाई दे रही थी।

“कैसी हैं वो?” मैंने उत्सुकतावश पूछा।

“ओह अंकल, बोऊ दी खूब खूब खूब सुंदर सी हैं।” लतिका ने बड़े उत्साह से बताया, “और मुझे और मिष्टी को खूब प्यार, खूब दुलार करती हैं! शी इस द बेस्ट!”

“अरे वाह!” बढ़िया है - लड़की ने आते ही सभी का मन मोह लिया - यह जान कर मुझे बहुत संतुष्टि हुई, “वो घर पर ही हैं क्या अभी?”

“हाँ अंकल हाँ! इसीलिए तो! अम्मा ने कहा कि टाइम क्यों वेस्ट किया जाए और आज ही इंगेजमेंट कर लेते हैं। आप बस जल्दी से आ जाइए।” लतिका ने चहकते हुए कहा, “हम सभी आपका ही वेट कर रहे हैं!”

‘हम्म्म मेरा शक सही निकला। काजल ने ही फ़ोर्स किया है!’

“अरे बेटा कुछ तो बताओ!”

“नहीं अंकल - अम्मा ने मना किया है! कह रही थीं कि आपको सरप्राइज देंगी। मैंने वैसे भी आपको बहुत कुछ बता दिया है। अब क्या सरप्राइज!” लतिका और उसकी भोली भाली बातें!

“अच्छा अच्छा! बेटू, अपनी मम्मा को फ़ोन दे सकती हो?”

मैंने पैंतरा बदला। ठीक है, अगर काजल नहीं बता सकती, लतिका नहीं बता सकती, तो माँ तो बता ही सकती हैं न सुनील की मंगेतर के बारे में!

“अंकल, मम्मा अभी नहीं आ सकतीं! वो तैयार हो रही हैं न, शाम के फंक्शन के लिए!”

‘क्या! माँ फंक्शन के लिए तैयार हो रही हैं? वाह! ये तो बड़ी अच्छी बात है!’ मैंने खुश होते हुए सोचा। मतलब माँ भी उत्साहित हैं। सही में बड़ी अच्छी बात थी। घर में जब लोग खुश रहते हैं तो जैसे मुझे स्वयं ही एक तरह की ख़ुशी मिलने लगती है। ऑफिस से घर आने पर सभी का हँसता मुस्कुराता चेहरा देखता हूँ, तो अपना दिन भर का संघर्ष भूल जाता हूँ। परिवार ही सबसे बड़ा खज़ाना होता है आदमी का!

“मतलब मेरे लिए सब सरप्राइज ही रहेगा?” मैंने बड़े विनोद से कहा।

“हाँ! अम्मा आपको सरप्राइज देना चाहती हैं! दादा भी!”

“हम्म, ठीक है!” मैंने हथियार डालते हुए कहा, “मत बताओ! मैं ही आ कर देखता हूँ सुनील की बहू को! जल्दी ही मिलते हैं! बाय बेटा!”

“बाय अंकल!” वो चहकती हुई बोली, “आई लव यू लोड्स!”

“मी टू बेटा!”

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avsji

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अंतराल - विपर्यय - Update #13


काजल अवश्य ही इस बात को सरप्राइज रखना चाहती थी, लेकिन अब चूँकि मुझे ये बात मालूम थी, इसलिए मैंने भी सभी को अपनी तरफ से सरप्राइज देने की सोची। सुनील के पास फिलहाल तो पैसे नहीं थे, और काजल खुद भी अपने पैसे छूती भी नहीं थी, और मुझसे पैसे लेती भी नहीं थी। इसलिए मुझे समझ नहीं आया कि इस हड़बड़ी वाली सगाई में सुनील या काजल, सुनील की मंगेतर को भला क्या नेग और उपहार देंगे! नई बहू को उसकी सगाई पर सोने का कोई तो आभूषण मिलना ही चाहिए न! उसके भी तो कैसे कैसे अरमान होंगे! ये काजल भी कुछ समझती ही नहीं।

खैर, लतिका से बात करने के फ़ौरन बाद, मैं ऑफिस से निकला और वहाँ से सीधा एक ज्वेलर्स की दुकान पर गया। वहाँ से मैंने सुनील की मंगेतर के लिए एक सोने का जड़ाऊ हार और उसका मैचिंग कंगन का सेट खरीदा। यह मेरी - या कह लीजिए - हमारी तरफ से आने वाली बहू के लिए उपहार था। सुनील को क्यों पीछे छोड़ दूँ? इसलिए मैंने उसके लिए एक ब्रांडेड घड़ी खरीदी। अंगूठियाँ लेने का विचार मैंने तुरंत ही छोड़ दिया था क्योंकि दोनों की उँगलियों की नाप मुझे मालूम नहीं थी।

इस खरीददारी के बाद एक आईडिया आया। ज्वेलर्स की दुकान के पास में ही एक पाँच सितारा होटल था। मैंने होटल के मैनेजर से बात कर के सुनील के नाम से एक कपल के लिए एक रोमांटिक, फुल कोर्स डिनर बुक किया। बुकिंग के लिए मैंने सारी रकम अग्रिम ही भर दी थी, और डिनर का बिल मैंने उनको मेरे ऑफिस में भेजने की हिदायद दे दी। मैं कुछ बार यहाँ अपने क्लाइंट्स के साथ आ चुका था, इसलिए इस मामले में कोई दिक्कत नहीं हुई। इस बुकिंग को आज से अगले सप्ताह में कभी भी इस्तेमाल किया जा सकता था। ये सब कुछ करने में, जल्दी-जल्दी करते-करते भी करीब दो घण्टे लग ही गए।

आते समय मैं एक बढ़िया मिठाई वाली दूकान से मिठाईयों के कुछ पैकेट्स पैक करवाता आया कि समधियों को ‘कुछ’ भेंट तो दी जाए! कौन कौन हैं वहाँ, मुझे तो वो भी नहीं मालूम था। लेकिन मिठाई तो सभी को जमती है, और शुभ होती है। घर में कुछ कैश पड़ा हुआ था, इसलिए कोई प्रॉब्लम नहीं थी। लिफ़ाफ़े में रख कर बहू को ‘दस हज़ार एक’ रुपए की नेग दे दूँगा। सुनील को फिलहाल कुछ और देने की ज़रुरत नहीं है। अपना लड़का है - अपना तो सब कुछ उसी का है! मैं मन ही मन सारे दृश्य सोचता जा रहा था, और काजल को कोस रहा था कि कैसी औरत है। बिना कुछ बताए, बिना कुछ सोचे, और बिना कोई प्लानिंग किए सुनील की सगाई करवा रही है!


**


काजल ने मेरे कमरे की अलमारी में से देवयानी के कपड़े खँगालने शुरू किये। देवयानी ने कई सारी नई साड़ियाँ और कपड़े लिए हुए थे। ज्यादातर कपड़े या तो केवल एक बार ही पहने गए थे, या फिर कभी पहने ही नहीं गए थे। दैवीय प्रकोप कुछ ऐसा हुआ था कि हमको भविष्य के लिए कोई प्लानिंग करने का कोई अवसर ही नहीं मिला। उसकी मृत्यु के बाद से उसका सब सामान - मतलब कपड़े लत्ते, ज़ेवर और अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज़ - उसी अलमारी में सुरक्षित बंद पड़ा था। समय समय पर काजल उनको धो कर और इस्त्री कर के वापस सम्हाल कर रख देती, जिससे वो खराब न हों। हम जिनको प्रेम करते हैं, हम उनकी यादें ही नहीं बल्कि उनकी वस्तुओं को भी सुरक्षित रखने का प्रयत्न करते हैं। यह मानवीय स्वभाव है।

माँ की सजावट आज देवयानी के कपड़ों में ही होनी थी, क्योंकि उनके पास सादे और फ़ीके रंग की साड़ियों के अलावा और कुछ भी नहीं था।

उस अलमारी में से काजल ने देवयानी के कुछ लेसी अंडरगारमेंट्स ढूंढे, और माँ के लिए उनमें से सफ़ेद रंग की लेस वाली, और लगभग पारदर्शी ब्रा और पैंटीस पसंद करी। शादी के लिए देवयानी ने कुछ चुस्त, ब्राइडल लॉन्ज़रे (ब्रा और पैंटीस) खरीदी थीं, जो माँ को फिट आतीं। शादी के समय देवयानी के स्तन वैसे तो माँ के स्तनों से थोड़े बड़े थे, और आभा के जन्म के बाद डेवी के स्तन थोड़ा और बड़े हो गए थे! इसलिए ये पुराने अधोवस्त्र ही माँ को फिट आ सकते थे - नए वाले बिलकुल भी नहीं।

काजल ने ब्रा और पैंटी को माँ के सामने झलकाया। माँ ने काजल की इस हरकत पर एक बहुत नर्वस से हँसी हँसी। अपनी बहू के अधोवस्त्र पहनने में वो बहुत हिचकिचा रही थीं। संकोच इस बात का भी था कि कहीं मैं आपत्ति न करने लगूँ।

“अम्मा, ये तो बहू के कपड़े हैं!”

“हाँ, तो? साफ़ हैं, सुन्दर सुन्दर हैं, नए हैं! और सबसे बड़ी बात - एक सुहागिन के हैं! आज के लिए ये पहन लो, कल चलेंगे - शॉपिंग करेंगे! तेरे लिए नए नए कपड़े लेंगे! अभी बाज़ार गए तो पूरी रात इसी सब में बीत जाएगी। फिर तेरी और सुनील की सगाई कब करवाएँगे?”

“लेकिन अमर...?”

“उसके कपड़े थोड़े ही हैं ये,” काजल ने वो लेसदार ब्रा माँ के सीने पर रख कर निहारते हुए कहा।

माँ शर्मा गईं, “अम्मा, इसमें से तो सब दिखता है!”

“अरे तो दिखने दे न! इस लुक्का छिप्पी में ही तो मज़ा है! सोच न,” काजल ने फुसफुसाते हुए बड़े नाटकीय अंदाज़ में कहा, “एक तरफ तेरी ब्लाउज के बटन खुलेंगे, तो दूसरी तरफ़ उसको ये तेरे गोल गोल दुद्धू ऐसे अध-ढंके से दिखाई देंगे! सुनील तो दीवाना हो जाएगा!”

अम्मा!”

“अरे क्या अम्मा!” काजल ने माँ को छेड़ते हुए कहा, “अरे तेरे ऐसी बीवी मिले, तो कौन आदमी पागल न हो जाए! और ऐसा रूप हो तो अपने हस्बैंड को अपने इशारों पर नचाना क्या गलत है? तुम दोनों अब से खूब मज़े लूटना! मैं तो चाहती हूँ कि तुम दोनों के रोमांस में कभी कोई कमी न आए!”

“हाय अम्मा! मुझे शरम आती है!”

“जितना मन करे शरमा ले! मैंने तो सुनील को समझा दिया है कि तेरी शरम उतारना उसका काम है!”

“हाआआआ!”

“मैं तो बस यही चाहती हूँ, कि सुनील तुझे जवानी के सारे सुख दे, और तेरे रूप और जवानी का खज़ाना अपने दोनों हाथों से लूटे!” काजल पुरानी बातें याद करते हुए बोली, “मुझे याद आता है - तुम और बाबूजी लगभग हर रात प्यार करते थे! कितना खुश रहते थे तुम दोनों - हमेशा हँसते खेलते रहते! चाहे कैसा भी समय हो - चाहे सुख हो या दुःख!”

फिर वो जैसे किसी तन्द्रा से बाहर निकली, “मैं चाहती हूँ कि अब से तू उस समय से भी अधिक खुश रहे! और यह ख़ुशी पूरी उम्र रहे!” वो मुस्कुराई, “इसलिए शरमाने वरमाने की ज़रुरत नहीं! अपने पति से नहीं, तो किससे प्यार करें हम? अपने बच्चों को तो अपना जलवा नहीं दिखा सकते न हम!”

काजल हँसते हुए बोली। उसकी बात पर माँ को डैड के प्यार करने का तरीका याद आ गया, और वो उसकी, सुनील के प्यार करने के तरीके से तुलना किए बिना न रह सकीं। सुनील से उनको जैसी संतुष्टि मिली थी, उसके बारे में सोच कर उनके चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई।

“अम्मा?” माँ ने हिचकिचाते हुए कहा।

“क्या मेरी बच्ची?”

“तुमको अजीब तो नहीं लग रहा है हमको ले कर?”

“अजीब? हैं? क्यों? तू तो इतनी प्यारी सी बहू है मेरी! मुझे क्यों अजीब लगेगा?”

“हाँ, लेकिन उसके पहले कभी मैं तुम्हारी माँ भी थी... और बड़ी बहन भी!”

काजल मुस्कुराई; उसकी आँखों में कृतज्ञता और आदर भरे स्नेह का भाव झलक गया। कुछ पलों के लिए उसकी आँखों के सामने माँ की ममता वाली मूर्ति प्रकट हो गई। उसने माँ के स्तनों को प्यार से सहलाते हुए बोली, “हाँ! वो बात तो है! मेरे सबसे कठिन समय में तुमने मुझे मेरी माँ की ही तरह तो सम्हाला! और मुझे ही क्या - हम तीनों को बिलकुल माँ के जैसा ही प्यार और दुलार दिया! तुम न होती तो क्या होता हमारा - मैं वो सब सोच भी नहीं सकती! डर लगता है वो सब सोच कर! हम आज जहाँ हैं, जो कुछ भी हैं, वो सब तुम्हारे कारण ही तो संभव हुआ है! ये बातें तो मैं कभी भूल ही नहीं सकती।”

अचानक ही माँ को वो ममता वाले भाव आने लगे।

“मुझे याद है कि कैसे मुझे थोड़ा भी दुःख होता, और मैं तुम्हारे सीने से लग जाती थी!” काजल बोल रही थी।

माँ ममता से मुस्कुराईं - उनकी आँखें भरने लगीं। बात तो सही थी। और तो और, अभी दो दिन पहले भी माँ ने काजल को अपना स्तन पिलाया था!

काजल मुस्कुराई, और बोलती रही, “और तुम मुझे सम्हाल लेती! ममता भरा सुख और सहारा जो तुमने मुझे दिया है, उतना तो मेरी खुद की माँ भी नहीं दे पाई!”

भावातिरेक से माँ काजल के सीने में मुँह छुपा कर रोने लगीं।

“अरे, रो क्यों रही हो?”

“अब तुमको दुःख होगा, तो तुमको कौन सहारा देगा?” माँ काजल के स्तनों के बीच ही अपना मुँह छुपाए बोलीं।

“अरे! मुझे अब काहे का दुःख?” काजल ने माँ के सर को सहलाते हुए कहा, “मेरे तो सभी दुःख आज दूर हो गए! आज जैसी ख़ुशी मुझको कभी न मिली!”

“तुम सच में खुश हो अम्मा?” माँ ने बड़े भोलेपन से पूछा।

“तुमको कोई आईडिया नहीं है!” काजल बोली, “तुम्हारी माँ बनने का सुख मुझे सुनील को माँ बनने के सुख से अधिक लगता है। ऐसे कहना नहीं चाहिए नहीं तो तुम्हारी ममता, तुम्हारे प्रेम का अपमान होगा, लेकिन सच में - तुमने जो सब कुछ हमारे लिए किया है, उसके बदले में मुझे तुमको ऐसे प्यार करने का मौका मिला है। इसलिए मेरा दिल ख़ुशी से फूला नहीं समां रहा है!”

“नहीं अम्मा,” माँ ने काजल को आलिंगन में ले कर उसके एक गाल को चूमा, “कोई अपमान नहीं होगा। मैंने समझ रही हूँ तुम्हारी फीलिंग्स!”

“समझ रही है न, मेरी बेटू?” काजल मुस्कुराई और माँ के होंठों को चूमते हुए बोली, “तुझको देखती हूँ न, तो न जाने कैसे तू नन्ही सी गुड़िया जैसी लगती है मुझको! मेरी नन्ही सी गुड़िया!”

“हा हा हा!” माँ अपने आँसुओं को सम्हालते हुए हँस दीं, “तुम्हारी आँखों पर पट्टी बंधी हुई है!”

“बड़ी सुन्दर सी पट्टी है! मैं चाहती हूँ कि हमेशा ही बंधी रहे मेरी आँखों पर!”

माँ द्रवित हो कर वापस काजल के सीने में छुप गईं। इतना कुछ इतनी जल्दी परिवर्तित हो गया था कि उनको सम्हलने का अवसर ही नहीं मिल रहा था। वो इस स्नेह की फिसलपट्टी पर तेजी से फिसल रही थीं। और इस तरह की फिसलन में उनको आनंद भी असीम आ रहा था।

“मेरी गुड़िया?” काजल ने कुछ देर माँ के सर को सहला कर स्वांतवना देने के बाद कहा।

“हाँ अम्मा?”

“दुद्धू पिएगी?”

“क्या अम्मा, सच में? इतनी जल्दी?”

“है न अचरज वाली बात?” काजल हँसने लगी, “तुझे पिलाने की चाह में जल्दी जल्दी बन रहा है अब!”

माँ झटपट से काजल के सीने से अलग हो कर उसकी ब्लाउज के बटन खोलने लगीं - किसी नन्ही सी बच्ची की ही तरह - ठीक वैसे ही जैसे लतिका करती थी। माँ की तत्परता को देख कर काजल खिलखिला कर हंस दी। उसको यह देख कर सुकून भी हुआ कि सुमन भी अब खुद को उसकी बच्ची मान कर ही व्यवहार कर रही थी। इस पूरे कार्यक्रम के दौरान माँ का मुँह उत्सुकता, पूर्वानुमान और रोमांच से खुला हुआ था - जैसे बच्चे जब अपने मनपसंद कार्य करते हैं। ब्लाउज के उसके स्तनों से हटते ही माँ ने गप से उसका चूचक अपने मुँह में भर लिया, और बड़े ही सुखपूर्वक ‘अपने’ हेतु बना दूध पीने लगीं।

काजल ने हँसते हुए ही दुलार से माँ को कहा, “हाँ - बस ऐसे ही जब भी तेरा मन हुआ करे न, तू पी लिया कर। बेहिचक! [माँ ने चूचक को मुँह में लिए हुए ही ‘हाँ’ में सर हिलाया] ... तेरी माँ हूँ मैं - कभी मत भूलना ये बात! [माँ ने इस बात पर ‘न’ में सर हिलाया]”

काजल उनकी हरकतें देख कर आनंदित हो उठी, “ऐसी प्यारी सी हरकतें करती है, और फिर सोचती है कि तू मेरी गुड़िया नहीं है?”

माँ दूध पीते हुए मुस्कुरा दीं।

“तुझे तो दुलार कर कर के बिगाड़ दूँगी मैं!” काजल ने बड़े अभिमान से कहा।

कुछ देर स्तनपान करने के बाद माँ बोलीं,

“मानो,” माँ ने शरारत भरी मुस्कान दी, “मेरा तुमसे झगड़ा हो जाए, तो?”

“अरे! हा हा हा हा! झगड़ा! हा हा हा! अगर तू मुझसे झगड़ा करेगी, तो तू ही तो सम्हालेगी मुझे!” काजल ने हँसते हुए कहा, “पड़ोसी थोड़े न सम्हालेगी मुझे! और मैं तो चाहती हूँ कि हमारा सास-बहू का झगड़ा हो कभी, तो कुछ मज़ा आए! लेकिन तू है ही इतनी अच्छी, कि इसकी सम्भावना ही नहीं दिखती! सास बनने का कोई मज़ा ही नहीं! मेरे पास अपनी बहू के खिलाफ कोई मसाला ही नहीं है! अब मैं अपनी सहेलियों से अपनी बहू की बुराई कैसे करूँगी?”

“हा हा हा हा हा हा! अम्मा तुम भी न! लेकिन, तुमको तो मैं तब सम्हालूँगी न, जब मैं तुम्हारे साथ रहूँगी!”

“हाँ, तो?”

“लेकिन ‘ये’ तो कह रहे हैं कि साथ चलो!”

“कहाँ? मुंबई?”

“हाँ! बोल रहे थे कि अगले हफ़्ते ही शादी कर लेते हैं, फिर हनीमून, और फिर मुंबई में ऑफ़िस जोइनिंग!”

“अरे ये तो बहुत अच्छी बात है! मैं भी तो यही कह रही हूँ न! अपने पति के साथ नहीं जाओगी, तो फिर? यहाँ रहोगी क्या! यहाँ क्या है करने को? सुनील के साथ जाओ और अपना संसार बसाओ! और जल्दी से मेरे पोते पोतियों के मुँह दिखाओ मुझे!”

“अम्मा!” माँ फिर से शर्मा गईं।

“अम्मा क्या? ये तेरे छोटे छोटे थन हमेशा दूध से भरे रहें, यही मेरा आशीर्वाद है!” काजल ने मुस्कुराते हुए और दुलारते हुए माँ से कहा, “तेरे जैसी सौभाग्यवती लड़की को और क्या आशीर्वाद दूँ?”

“हा हा! मैं कोई गाय हूँ क्या?” माँ बोलीं, “और अपनी माँ का कोई भी आशीर्वाद हो, बच्चों के लिए ईश्वर का आशीर्वाद होता है!”

“जीती रह बेटू मेरी! जीती रह! और गाय वाली बात पर मेरा यही कहना है कि तू गाय नहीं, देवी है! सुरभि होती है माँ अपने बच्चों के लिए!” काजल किसी बड़े की ही भांति उनको समझाते हुए बोली, “तू तो हमेशा से ही हम सभी की इच्छाएँ पूरी करती आई है। लेकिन अब समय आ गया है कि तेरी भी सभी इच्छाएँ पूरी हों!”

“अमर समझेगा क्या अम्मा?” माँ ने बड़ी उम्मीद से पूछा।

“वो भी तो तुमको खुश देखना चाहता है न!”

“हाँ! लेकिन...”

“समझ जाएगा फिर! नहीं तो मैं हूँ न समझाने के लिए!”

इन्ही बातों बातों में काजल ने माँ को ब्रा और पैंटी पहना दी। उसके बाद काजल ने अलमारी से एक लाल रंग की खूबसूरत सी रेशमी साड़ी और मैचिंग ब्लाउज निकाली! शुभ अवसरों पर लाल रंग ही तो पहनाते हैं!

काजल ने जो भी सोने के गहने अपनी बहू के लिए बनवाए थे, वो निकाले और माँ को उनसे सजाया। अंततः जब माँ पूरी तरह से और काजल की संतुष्टि के अनुसार तैयार हो गईं, तो वाकई में किसी नवविवाहित दुल्हन जैसी लग रही थी।

माँ इस तरह से सज धज कर प्रसन्न तो लग रही थीं लेकिन उनके चेहरे पर चिंता की रेखाएँ भी थीं। यह बात काजल से न छिप सकी।

“क्या हुआ? क्या सोच रही हो?” उसने पूछा।

“सोच रही हूँ कि अमर क्या कहेगा!”

“बहू, तुम चिंता न करो थोड़ी भी। तुम और सुनील कोई पाप थोड़े न कर रहे हैं! मेरा बेटा नौजवान है, लायक है, कमाऊ है, और उसको अपने लिए एक सुन्दर सी, सर्वगुणसंपन्न बीवी चाहिए, जो तुम हो। तुम दोनों शादी करना चाहते हो - यह तुम्हारा अधिकार है! अगर वो तुमको या सुनील को कुछ उल्टा पुल्टा बोलेगा न मेरे हाथों पिट जाएगा! कहे देती हूँ मैं, हाँ!”

काजल के कहने का तरीका कुछ ऐसा था कि माँ हँसे बिना न रह सकीं। फिर काजल ने बड़े दुलार से माँ का गाल छू कर कहा,

“तुमको दोबारा खुश देखना, दुबारा हँसते खेलते देखना - जितना वो चाहता है न, शायद ही कोई और चाहता हो! मुझे मालूम है! इसलिए तू इस बात की चिंता न कर! बस खुश रह! सब कुछ अच्छा हो जाएगा!”

माँ ने अनिश्चितता में ‘हाँ’ में सर हिलाया।


**


माँ को तैयार कर के काजल भी तैयार होने लगी। उसने सफ़ेद सिल्क पर लाल पार वाली बंगाली साड़ी पहनी। इससे अधिक बंगाली महिलाओं की पहचान बताने वाली पोशाक कोई नहीं है। पूजा के समय और अन्य शुभ-अवसरों पर बंगाली महिलाएँ यही साड़ी पहनती हैं : उसका सफ़ेद रंग शुद्धता और लाल रंग प्रजनन क्षमता का प्रतीक होता है। उसने साथ में लाल ब्लाउज और लाल चूड़ियाँ और लाल बिंदी लगाई हुई थी। खुद को तैयार होने में उसको मुश्किल से दस मिनट का समय लगा। जब काजल की संतुष्टि के अनुसार माँ तैयार हो गईं, तो वो उनको उनके कमरे से बाहर हॉल में ले आई।

तब तक सुनील भी अपनी समझ से तैयार हो गया था। उसने रेशम का बंगाली कुरता पहना है था, जिसको आम बोली में ‘पंजाबी’ कहते हैं। और नीचे रेशम की ही धोती पहनी हुई थी। बंगाली मानूस दिख रहा था पूरा वो इस समय। उसने दोनों बच्चों को भी उत्सव और त्योहारों वाले कपड़े पहना कर सजा दिया था, और इस समय उनका मेकअप कर रहा था। बाप बनने से पहले ही वो दो बेटियों के बाप वाली सारी जिम्मेदारियाँ निभा रहा था।

जब उसने हॉल में प्रवेश करते हुए अम्मा और अपनी पत्नी को देखा, जो अब ‘लगभग’ दुल्हन की ही तरह, रेशमी साड़ी और सुनहरे गहनों में खूबसूरती से सजी हुई थी, तो वो दंग रह गया। किसी मूर्ख व्यक्ति की तरह वो मुँह बाये माँ को ऐसे देख रहा था कि जैसे उसको उम्मीद ही न हो कि उसने किसको देख लिया! माँ सुबह दरवाज़ा खोलते समय जितनी सुन्दर दिख रही थीं, इस समय वो तब से कम से कम दस गुना अधिक सुन्दर लग रही थीं! अद्भुत सुंदरी! उसका दिल उसके मुँह में उछल पड़ा! माँ सचमुच किसी परी की तरह दिख रही थीं।

‘कैसी अनोखी किस्मत है मेरी,’ यह विचार उसके दिमाग में आया और बस गया।

ऐसा नहीं है कि केवल सुनील की ही वैसी हालत थी - लतिका और आभा भी उसी के जैसे आश्चर्यचकित थे।

“बोऊ-दी!” लतिका चहकते हुए बोली, “आप कितनी सुंदर सी लग रही हैं! अब से आप ऐसे ही कपड़े पहनना, और ऐसे ही सज धज के रहना! फ़ीके फ़ीके रंग आप पर अच्छे नहीं लगते।”

“हाँ बोऊ-दी,” आभा ने भी उछलते फुदकते हुए अपनी दीदी की हाँ में हाँ मिलाई।

“बेटू, मैं तुम्हारी बोऊ-दी नहीं हूँ,” माँ ने आभा को गोदी में उठा कर उसको चूमते हुए कहा, “मैं तुम्हारी दादी ही हूँ हमेशा!”

“ओह! ओके दादी!”

माँ मुस्कुराईं, फिर लतिका की तरफ़ मुखातिब होते हुए बोली, “थैंक यू बेटा! आई लव यू!”

“आई लव यू मोर, बोऊ-दी!”

केवल बच्चे ही हमें बिना लाग-लपेट के बता सकते हैं कि वे सही मायने में क्या महसूस करते हैं। बच्चों में ईगो नहीं होता; वो बिना किसी मिलावट के सभी से अपना व्यवहार करते हैं। उनके लिए चीजें या तो ब्लैक में होती हैं या फिर व्हाइट में।

“मी टू!” सुनील इतना अवाक रह गया था कि उसके मुँह से भी यही निकला।

सुनील की तारीफ सुनकर माँ शरमा गईं।

“चिंता मत करो बेटू,” काजल लतिका को आश्वस्त करते हुए बोली, “अब से ये ऐसे ही सज धज के रहेंगी! अच्छा, अब मैं थोड़ा सगाई की तैयारी कर लूँ! तुम सभी बैठो, और मज़े करो! सुनील बेटा, कुछ गाने वाने बजाओ! ऐसे सूना सूना अच्छा नहीं लग रहा है!”


**


बड़े उत्साह से आज मैं घर आया - सुनील शादी कर रहा है! यह तो बहुत अच्छी बात थी। एक लम्बे समय के बाद इस घर में खुशियाँ आने वाली थीं! आखिरी ख़ुशी की खबर तब आई थी जब सुनील का देश के सबसे नामी इंजीनियरिंग संस्थान में दाखिला हुआ था। तब से अब तक कोई चार साल हो गए थे। उसके बाद से हमारा जीवन उथल पुथल हो गया था। अब वो ग्रेजुएट हो गया था, और उसकी नौकरी भी लग गई थी। सच कहें, तो हाल के समय में सारी खुशी वाली ख़बरें सुनील ही दे रहा था। इसलिए मुझे बहुत अच्छा लगा कि यह ख़ुशख़बरी भी उसी की तरफ से आई है!

न जाने क्यों मेरे मन में एक विचार उठा कि काश माँ भी थोड़ा खुश हो लें। उनको भी ख़ुशी मिल जाए! एक दूर की कौड़ी ही सही, लेकिन काश माँ की भी शादी हो जाती! उनका अकेलापन और सूनापन देखा नहीं जाता। पिछले कुछ समय से वो ठीक लग तो रही हैं, लेकिन उनको एक स्थाई ठिकाना चाहिए! यहाँ मेरे साथ रहते रहते अपना पूरा जीवन स्वाहा नहीं करना चाहिए उनको! उनकी भी शादी हो जाए! तो फिर... फिर क्या! उसके बाद जो होना हो, हो जाए!

शायद मेरी कार की आवाज़ काजल ने पहचान ली हो, या शायद वो मेरी ही बाट जोह रही हो। मैं जैसे ही घर के दरवाज़े पर पहुँचा तो काजल एक बड़ी सी मुस्कराहट लिए खड़ी हुई दिखाई दी। मैंने उसको देखते ही पूछा,

“बहू है घर में?”

काजल ने हँसते हुए कह, “हाँ हाँ! बहू है घर में ही! बस तुम्हारा ही वेट कर रहे हैं सभी! तुम्हारे बिना प्रोग्राम नहीं आगे बढ़ाया जा सकता!” वो समझ गई कि लतिका ने ‘कुछ’ सीक्रेट ‘लीक’ कर ही दिया है। लेकिन सब कुछ नहीं।

“जी मालकिन! लेकिन ज़रा मुझको समझाइए - बहू के लिए और सुनील के लिए कोई अँगूठी वग़ैरह, कुछ खाने पीने का कोई इंतज़ाम किया आपने, या ऐसे ही निकल पड़ीं सगाई करने?”

“अरे बाप रे! क्या बेवकूफी हो गई!” शायद अब जा कर काजल को ध्यान आया कि सगाई समारोह के नाम पर इंतजाम तो पूरी तरह शून्य था!

उसने अपने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, “अमर, सच में! बिलकुल भी याद नहीं रहा मुझे! अब क्या करें?”

मैं हँसने लगा। काजल को रिसेप्शन में ला कर कहा,

“तुम भी न काजल! मारे एक्साइटमेंट के ज़रूरी बातें भूल गई! ऐसी चूक अगर तुमसे हो गई है, तो समझ लेना चाहिए कि तुम बहुत खुश हो!”

“अरे हाँ, लेकिन अब क्या करें!”

“कुछ नहीं! मुझे शक तो हुआ था! ऐसे हड़बड़ी में जब ये ज़रूरी काम किये जाते हैं न, तो ऐसे ही होता है!” मैंने अपनी शान बघारने के गरज़ से कहा, “देखो, मैंने कुछ इंतज़ाम तो किया है - अँगूठियाँ तो नहीं ला सका - न तो सुनील का और न ही बहू का नाप मुझे मालूम है! लेकिन लाया हूँ और कुछ,”

कह कर मैंने सुनील की मंगेतर के लिए खरीदा हुआ सोने का हार और कंगन दिखाया और सुनील के लिए लाई गई घड़ी!

“बहू को ये हार और कंगन, और दस हज़ार नेग में दे देंगे! ठीक रहेगा?”

मैंने पूछा, लेकिन काजल अभी भी हार और कंगन ही देख रही थी।

“कैसी है?” मैंने पूछा!

“बहुत बढ़िया! बहुत बढ़िया!” काजल बहुत खुश थी, “मैं ऐसी गधी हूँ! मारे उत्साह के सब भूल गई! सॉरी!”

“हा हा हा! लेकिन ऐसे आनन फानन में सब कैसे और क्यों हो गया? न पहले से बताया न कुछ! मुझसे मिलवाया भी नहीं!”

“अरे मिलवा ही तो रही हूँ!”

कह कर वो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अंदर ले जाने लगी।

अंदर से ख़ुशी और मिष्टी की हँसने की आवाज़ें आ रही थीं, और बीच बीच में सुनील और माँ की। और किसी की नहीं!

‘ऐसे चुप चुप क्यों हैं हमारे मेहमान?’

अंदर गया तो देखा कि हॉल में माँ, सुनील, पुचुकी (ख़ुशी), और मिष्टी मौजूद थे। लेकिन सुनील की होने वाली मंगेतर तो कहीं नहीं दिख रही थी! एक माँ ही थीं, जो दुल्हन की तरह सजी हुई थीं। माँ को ऐसे दुल्हन की तरह सजा-धजा देख कर आनंद आ गया! उनका रूप ऐसा था कि जैसे समय का चक्र घुमा कर पीछे कर दिया गया हो! उस समय अगर किसी से मेरा और माँ का रिश्ता पूछा जाता, तो शायद वो यही कहता कि मैं उनका ‘बड़ा भाई’ हूँ! वो इतनी कमसिन लग रही थीं। कमसिन, और बेहद खूबसूरत! और वो मुस्कुरा भी रही थीं - वही चमकती हुई मुस्कान! लेकिन, उसमें लज्जा का भी सम्मिश्रण दिखाई दे रहा था। और भी एक नई बात - उनकी माँग में नारंगी रंग का चमकीला सिन्दूर पड़ा हुआ था - जो उनकी शोभा को और भी बढ़ा रहा था। उनको इस तरह से देख कर मेरे दिल को बहुत सुकून मिला। सच में - माँ को वैधव्य नहीं जीना चाहिए! वो सुहागिन ही अच्छी लगतीं हैं।

‘सिन्दूर?’

उनको एक सुहागिन के रूप में सजा हुआ देख कर अचानक ही मुझे सब कुछ समझ में आ गया! पिछले कुछ समय से माँ के व्यवहार में बदलाव, सुनील की उपस्थिति में उनका संकोच भरा लेकिन फिर भी मित्रवत व्यवहार - समझ आ रहा था! हृदय में एक लरज सी हुई - क्या मैं वाकई सही सोच रहा था? क्या जो सोच रहा था, वही सच है?

सुनील ने बंगाली कुर्ता और धोती पहनी हुई थी, और बहुत जँच रहा था। वो बहुत खुश दिख रहा था - वैसे वो हमेशा ही खुश रहता था। दुःख या उदासी जैसे उसको छू ही नहीं पाती थी। मैं कई बार सोचता था कि उसका यह गुण किसी तरह से मेरे अंदर आ जाए तो मेरी ज़िन्दगी और भी बहुत अच्छी हो जाए! आभा लतिका - दोनों बच्चे गुड़ियों के समान सजे धजे थे, और माँ के आस पास ही फ़ुदक रहे थे।

व्हाट द...

मैंने काजल की तरफ़ देखा, और उससे पूछने ही वाला था, कि वो बोल पड़ी,

“अमर - लो मिल लो ‘बहू’ से! ये रही सुनील की मंगेतर और उसकी होने वाली बीवी!” और उसने माँ की तरफ इशारा किया।

‘माँ?’

“माँ!?” मैं वास्तव में चौंक गया।

मादरचोद! इसको मेरी ही अम्मा मिली थी चोदने को?’ सबसे पहला ख़याल मेरे दिमाग में यही आया।

दिमाग का पारा चढ़ ही रहा था कि पिछले एक महीने की घटनाएँ जैसे किसी अति-द्रुतगामी ट्रेन की तरह मेरे मानस पटल से गुज़र गईं! वो सुनील का घर पर ही रह जाना, वो उसका सभी को बाजार घुमाना, वो सबको हँसाना, मेरे पीछे मेरे परिवार की देखभाल करना! उसके आने से पहले माँ कैसी थीं, और अब वो कैसी हो गईं थीं - ज़मीन आसमान का अंतर था! उनके चेहरे से मुस्कान जैसे किसी ने चुरा ली थी, लेकिन सुनील के आने के बाद जैसे माँ की हँसी और मुस्कान वापस आ गई थी।

माँ की मुस्कान का सोच कर अचानक ही वो पारा वापस अपने धरातल पर आ गया।

लेकिन इस समय उनके चेहरे पर घबराहट वाले भाव थे - शायद वो ये सोच रही हों, कि मैं कैसे रियेक्ट करूँगा! लेकिन उनके मन में संतोष है, प्रेम है, जीने की ललक है! केवल एक महीने में सुनील ने वो कर दिखाया था जो अच्छे डॉक्टर न कर सके - और वो यह कि उसने माँ को अवसाद के गढ्ढे से न केवल बाहर ही निकाल लिया, बल्कि उनको अपना जीवन फिर से जीने की राह भी दिखा दी।

माँ क्यों न बने सुनील की पत्नी?

सुनील क्यों न बने माँ का पति?

काजल ने मेरा हाथ दबाया - माँ और सुनील मेरी तरफ बड़ी आस भरी नज़र से देख रहे थे। दोनों के ही चेहरों पर डर और आशंका देखी जा सकती थी। वो भी मेरी ही प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रहे थे। काजल ने जब मेरा हाथ दबाया, तब मैं अपनी खुद की विचार श्रंखला से बाहर आया।

“अ...हह...हाँ?”

“मैंने कहा, कैसी लगी सुनील की होने वाली बीवी?” काजल ने खुशनुमा और मज़ाक करने वाले अंदाज़ में पूछा!

आशंका उसको भी थी। डर उसको भी था। लेकिन वो ऐसे बर्ताव कर रही थी कि जैसे उसमें बड़ी हिम्मत हो।

पिछले कुछ महीनों के दृश्य मेरे सामने घूम गए। आभा की चहक और उसका उछल कूद करना; लतिका का मुस्कुराता चेहरा; माँ के चेहरे की रंगत और उनकी माँग का सिन्दूर; और काजल की निश्चिंतता और भविष्य के लिए आशा। अपने दम्भ में आ कर मैंने कोई ऐसी हरकत नहीं करना चाहता था, कोई ऐसी बात नहीं कहना चाहता था कि इन सब बातों पर कोई हानिकारक प्रभाव पड़े।

मैंने काजल की तरफ़ देखा। वो अभी भी आस लगाए मेरी तरफ देख रही थी।

“बहुत अच्छी! सबसे अच्छी!” मेरे मुँह से निकल गया, “कॉन्ग्रैचुलेशन्स माँ!” कह कर मैंने माँ को गले से लगा लिया।

फिर सुनील की तरफ़ मुड़ कर, “कॉन्ग्रैचुलेशन्स सुनील!” कह कर मैंने सुनील को गले से लगा लिया।

“थैंक यू, भैया! थैंक यू! आपकी ब्लेसिंग्स बहुत मायने रखती हैं हमारे लिए!”

“नहीं सुनील! थैंक यू!” मैंने तहे दिल से उसको धन्यवाद दिया, “एंड कॉन्ग्रैचुलेशन्स! सब कुछ इतना अचानक से मेरे सामने आया कि कैसे रियेक्ट करूँ, मुझे समझ नहीं आया! कॉन्ग्रैचुलेशन्स!”

फिर माँ की तरफ मुड़ कर, “माँ - आई ऍम सो हैप्पी फॉर यू! कॉन्ग्रैचुलेशन्स! मे यू गेट एंड एन्जॉय आल द हैप्पीनेस दैट कम योर वे!”

“थैंक यू बेटा!” उनकी आँखें आँसुओं से भर गईं, “थैंक यू सो मच!”

वो बहुत कुछ कह नहीं सकीं। कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं थी।


**


मैं ऐसा आदमी नहीं था जो अपनी माँ के पुनर्विवाह पर कोई आपत्ति दिखाए। मैं तो बहुत पहले से ही कहता आ रहा था, और माँ को समझाता आ रहा था कि वो फिर से शादी कर लें। इतना लम्बा जीवन है, बिना किसी जीवनसाथी के कैसे बीतेगा? अगर उनकी खुशियाँ किसी तरीके से वापस आ सकती हैं तो उनको वो तरीका ज़रूर आज़माना चाहिए!

मेरे ख़याल से मुझे धक्का इस बात पर लगा कि उनको सुनील से शादी करने की चाह थी। सुनील! सुनील ने ही प्रोपोज़ किया होगा माँ को! इतना तो तय था। मुझे बस एक बात की चिंता थी और वो ये कि उन दोनों ने इस रिश्ते के लिए समुचित रूप से सोचा हो। जल्दबाज़ी न करी हो। बहुत ही बेमेल सम्बन्ध था ये! लेकिन फिर अगला ख़याल यह आया कि अगर जल्दबाज़ी में भी उन्होंने साथ होने का निर्णय लिया है, तब भी उचित था। माँ अपने जीवन में खुशियाँ पाने की हक़दार थीं। अगर उनको वो खुशियाँ सुनील के साथ मिल सकती थीं, तो क्यों न करें वो उससे शादी?


**


सगाई ‘समारोह’ बेहद साधारण सा था।

अब सोचता हूँ, तो लगता है कि अच्छा किया कि मैंने मिठाईयाँ और उपहार लेता आया था। नहीं तो समारोह के नाम पर सब ठन ठन गोपाल वाली हालत थी! अगर ये मूरख काजल ने पहले बता दिया होता, तो मैं कुछ बढ़िया इंतजाम कर देता। लेकिन... खैर! सुनील ने वो ही हार माँ को पहनाया, और माँ ने वो घड़ी सुनील को।

सुनील ने सबसे पहले काजल के, और फिर आश्चर्यजनक रूप से माँ के, और फिर अंत में मेरे पैर छुए! माँ ने पहले काजल के, फिर सुनील के पैर छुए, और अंत में लतिका के पैर छुए। मुझे अजीब सा तो लगा, लेकिन समझ सका कि उन्होंने यह सब अपनी परवरिश और संस्कारों से वशीभूत हो कर किया है। सुनील उनका पति है, इसलिए उसका आदर करना उनका धर्म है; और उसी नाते काजल उनकी सासू माँ है, इसलिए उसका आदर करना भी उनका धर्म है! लतिका उनकी ननद है, और पति की बहन होने के नाते, उनके संस्कार के हिसाब से वो पद में उनसे बड़ी है। इसलिए उसका आदर करना भी उनका धर्म है!

दोनों ने एक दूसरे को मिठाईयाँ खिलाईं। माँ और सुनील दोनों ही उतने से ही बड़े खुश और संतुष्ट लग रहे थे। उनको खुश देख कर मैं और काजल भी खुश थे। मैंने अपना पूर्वाग्रह छोड़ दिया - आज का दिन खुशियों वाला था। तो उचित था, कि माहौल को शुशनुमा ही रखा जाए!

फिर मैंने महसूस किया कि माँ और सुनील - दोनों ही वास्तव में बहुत खुश थे। खुश भी थे, और एक दूसरे को पा कर गौरान्वित भी। मैंने देखा कि कैसे वो दोनों ही रह रह कर एक दूसरे को कनखियों से ताक रहे थे। ऐसे करते हुए दोनों ऐसे क्यूट लग रहे थे, कि सच में - उन दोनों के लिए भी केवल ख़ुशी का ही अनुभव हो रहा था मुझको।

शायद मेरा संदेह गलत हो।

शायद दोनों ने एक दूसरे के साथ अपने भविष्य को ले कर गहरे तक सोचा हो।
 

Lib am

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अंतराल - विपर्यय - Update #13


काजल अवश्य ही इस बात को सरप्राइज रखना चाहती थी, लेकिन अब चूँकि मुझे ये बात मालूम थी, इसलिए मैंने भी सभी को अपनी तरफ से सरप्राइज देने की सोची। सुनील के पास फिलहाल तो पैसे नहीं थे, और काजल खुद भी अपने पैसे छूती भी नहीं थी, और मुझसे पैसे लेती भी नहीं थी। इसलिए मुझे समझ नहीं आया कि इस हड़बड़ी वाली सगाई में सुनील या काजल, सुनील की मंगेतर को भला क्या नेग और उपहार देंगे! नई बहू को उसकी सगाई पर सोने का कोई तो आभूषण मिलना ही चाहिए न! उसके भी तो कैसे कैसे अरमान होंगे! ये काजल भी कुछ समझती ही नहीं।

खैर, लतिका से बात करने के फ़ौरन बाद, मैं ऑफिस से निकला और वहाँ से सीधा एक ज्वेलर्स की दुकान पर गया। वहाँ से मैंने सुनील की मंगेतर के लिए एक सोने का जड़ाऊ हार और उसका मैचिंग कंगन का सेट खरीदा। यह मेरी - या कह लीजिए - हमारी तरफ से आने वाली बहू के लिए उपहार था। सुनील को क्यों पीछे छोड़ दूँ? इसलिए मैंने उसके लिए एक ब्रांडेड घड़ी खरीदी। अंगूठियाँ लेने का विचार मैंने तुरंत ही छोड़ दिया था क्योंकि दोनों की उँगलियों की नाप मुझे मालूम नहीं थी।

इस खरीददारी के बाद एक आईडिया आया। ज्वेलर्स की दुकान के पास में ही एक पाँच सितारा होटल था। मैंने होटल के मैनेजर से बात कर के सुनील के नाम से एक कपल के लिए एक रोमांटिक, फुल कोर्स डिनर बुक किया। बुकिंग के लिए मैंने सारी रकम अग्रिम ही भर दी थी, और डिनर का बिल मैंने उनको मेरे ऑफिस में भेजने की हिदायद दे दी। मैं कुछ बार यहाँ अपने क्लाइंट्स के साथ आ चुका था, इसलिए इस मामले में कोई दिक्कत नहीं हुई। इस बुकिंग को आज से अगले सप्ताह में कभी भी इस्तेमाल किया जा सकता था। ये सब कुछ करने में, जल्दी-जल्दी करते-करते भी करीब दो घण्टे लग ही गए।

आते समय मैं एक बढ़िया मिठाई वाली दूकान से मिठाईयों के कुछ पैकेट्स पैक करवाता आया कि समधियों को ‘कुछ’ भेंट तो दी जाए! कौन कौन हैं वहाँ, मुझे तो वो भी नहीं मालूम था। लेकिन मिठाई तो सभी को जमती है, और शुभ होती है। घर में कुछ कैश पड़ा हुआ था, इसलिए कोई प्रॉब्लम नहीं थी। लिफ़ाफ़े में रख कर बहू को ‘दस हज़ार एक’ रुपए की नेग दे दूँगा। सुनील को फिलहाल कुछ और देने की ज़रुरत नहीं है। अपना लड़का है - अपना तो सब कुछ उसी का है! मैं मन ही मन सारे दृश्य सोचता जा रहा था, और काजल को कोस रहा था कि कैसी औरत है। बिना कुछ बताए, बिना कुछ सोचे, और बिना कोई प्लानिंग किए सुनील की सगाई करवा रही है!


**


काजल ने मेरे कमरे की अलमारी में से देवयानी के कपड़े खँगालने शुरू किये। देवयानी ने कई सारी नई साड़ियाँ और कपड़े लिए हुए थे। ज्यादातर कपड़े या तो केवल एक बार ही पहने गए थे, या फिर कभी पहने ही नहीं गए थे। दैवीय प्रकोप कुछ ऐसा हुआ था कि हमको भविष्य के लिए कोई प्लानिंग करने का कोई अवसर ही नहीं मिला। उसकी मृत्यु के बाद से उसका सब सामान - मतलब कपड़े लत्ते, ज़ेवर और अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेज़ - उसी अलमारी में सुरक्षित बंद पड़ा था। समय समय पर काजल उनको धो कर और इस्त्री कर के वापस सम्हाल कर रख देती, जिससे वो खराब न हों। हम जिनको प्रेम करते हैं, हम उनकी यादें ही नहीं बल्कि उनकी वस्तुओं को भी सुरक्षित रखने का प्रयत्न करते हैं। यह मानवीय स्वभाव है।

माँ की सजावट आज देवयानी के कपड़ों में ही होनी थी, क्योंकि उनके पास सादे और फ़ीके रंग की साड़ियों के अलावा और कुछ भी नहीं था।

उस अलमारी में से काजल ने देवयानी के कुछ लेसी अंडरगारमेंट्स ढूंढे, और माँ के लिए उनमें से सफ़ेद रंग की लेस वाली, और लगभग पारदर्शी ब्रा और पैंटीस पसंद करी। शादी के लिए देवयानी ने कुछ चुस्त, ब्राइडल लॉन्ज़रे (ब्रा और पैंटीस) खरीदी थीं, जो माँ को फिट आतीं। शादी के समय देवयानी के स्तन वैसे तो माँ के स्तनों से थोड़े बड़े थे, और आभा के जन्म के बाद डेवी के स्तन थोड़ा और बड़े हो गए थे! इसलिए ये पुराने अधोवस्त्र ही माँ को फिट आ सकते थे - नए वाले बिलकुल भी नहीं।

काजल ने ब्रा और पैंटी को माँ के सामने झलकाया। माँ ने काजल की इस हरकत पर एक बहुत नर्वस से हँसी हँसी। अपनी बहू के अधोवस्त्र पहनने में वो बहुत हिचकिचा रही थीं। संकोच इस बात का भी था कि कहीं मैं आपत्ति न करने लगूँ।

“अम्मा, ये तो बहू के कपड़े हैं!”

“हाँ, तो? साफ़ हैं, सुन्दर सुन्दर हैं, नए हैं! और सबसे बड़ी बात - एक सुहागिन के हैं! आज के लिए ये पहन लो, कल चलेंगे - शॉपिंग करेंगे! तेरे लिए नए नए कपड़े लेंगे! अभी बाज़ार गए तो पूरी रात इसी सब में बीत जाएगी। फिर तेरी और सुनील की सगाई कब करवाएँगे?”

“लेकिन अमर...?”

“उसके कपड़े थोड़े ही हैं ये,” काजल ने वो लेसदार ब्रा माँ के सीने पर रख कर निहारते हुए कहा।

माँ शर्मा गईं, “अम्मा, इसमें से तो सब दिखता है!”

“अरे तो दिखने दे न! इस लुक्का छिप्पी में ही तो मज़ा है! सोच न,” काजल ने फुसफुसाते हुए बड़े नाटकीय अंदाज़ में कहा, “एक तरफ तेरी ब्लाउज के बटन खुलेंगे, तो दूसरी तरफ़ उसको ये तेरे गोल गोल दुद्धू ऐसे अध-ढंके से दिखाई देंगे! सुनील तो दीवाना हो जाएगा!”

अम्मा!”

“अरे क्या अम्मा!” काजल ने माँ को छेड़ते हुए कहा, “अरे तेरे ऐसी बीवी मिले, तो कौन आदमी पागल न हो जाए! और ऐसा रूप हो तो अपने हस्बैंड को अपने इशारों पर नचाना क्या गलत है? तुम दोनों अब से खूब मज़े लूटना! मैं तो चाहती हूँ कि तुम दोनों के रोमांस में कभी कोई कमी न आए!”

“हाय अम्मा! मुझे शरम आती है!”

“जितना मन करे शरमा ले! मैंने तो सुनील को समझा दिया है कि तेरी शरम उतारना उसका काम है!”

“हाआआआ!”

“मैं तो बस यही चाहती हूँ, कि सुनील तुझे जवानी के सारे सुख दे, और तेरे रूप और जवानी का खज़ाना अपने दोनों हाथों से लूटे!” काजल पुरानी बातें याद करते हुए बोली, “मुझे याद आता है - तुम और बाबूजी लगभग हर रात प्यार करते थे! कितना खुश रहते थे तुम दोनों - हमेशा हँसते खेलते रहते! चाहे कैसा भी समय हो - चाहे सुख हो या दुःख!”

फिर वो जैसे किसी तन्द्रा से बाहर निकली, “मैं चाहती हूँ कि अब से तू उस समय से भी अधिक खुश रहे! और यह ख़ुशी पूरी उम्र रहे!” वो मुस्कुराई, “इसलिए शरमाने वरमाने की ज़रुरत नहीं! अपने पति से नहीं, तो किससे प्यार करें हम? अपने बच्चों को तो अपना जलवा नहीं दिखा सकते न हम!”

काजल हँसते हुए बोली। उसकी बात पर माँ को डैड के प्यार करने का तरीका याद आ गया, और वो उसकी, सुनील के प्यार करने के तरीके से तुलना किए बिना न रह सकीं। सुनील से उनको जैसी संतुष्टि मिली थी, उसके बारे में सोच कर उनके चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई।

“अम्मा?” माँ ने हिचकिचाते हुए कहा।

“क्या मेरी बच्ची?”

“तुमको अजीब तो नहीं लग रहा है हमको ले कर?”

“अजीब? हैं? क्यों? तू तो इतनी प्यारी सी बहू है मेरी! मुझे क्यों अजीब लगेगा?”

“हाँ, लेकिन उसके पहले कभी मैं तुम्हारी माँ भी थी... और बड़ी बहन भी!”

काजल मुस्कुराई; उसकी आँखों में कृतज्ञता और आदर भरे स्नेह का भाव झलक गया। कुछ पलों के लिए उसकी आँखों के सामने माँ की ममता वाली मूर्ति प्रकट हो गई। उसने माँ के स्तनों को प्यार से सहलाते हुए बोली, “हाँ! वो बात तो है! मेरे सबसे कठिन समय में तुमने मुझे मेरी माँ की ही तरह तो सम्हाला! और मुझे ही क्या - हम तीनों को बिलकुल माँ के जैसा ही प्यार और दुलार दिया! तुम न होती तो क्या होता हमारा - मैं वो सब सोच भी नहीं सकती! डर लगता है वो सब सोच कर! हम आज जहाँ हैं, जो कुछ भी हैं, वो सब तुम्हारे कारण ही तो संभव हुआ है! ये बातें तो मैं कभी भूल ही नहीं सकती।”

अचानक ही माँ को वो ममता वाले भाव आने लगे।

“मुझे याद है कि कैसे मुझे थोड़ा भी दुःख होता, और मैं तुम्हारे सीने से लग जाती थी!” काजल बोल रही थी।

माँ ममता से मुस्कुराईं - उनकी आँखें भरने लगीं। बात तो सही थी। और तो और, अभी दो दिन पहले भी माँ ने काजल को अपना स्तन पिलाया था!

काजल मुस्कुराई, और बोलती रही, “और तुम मुझे सम्हाल लेती! ममता भरा सुख और सहारा जो तुमने मुझे दिया है, उतना तो मेरी खुद की माँ भी नहीं दे पाई!”

भावातिरेक से माँ काजल के सीने में मुँह छुपा कर रोने लगीं।

“अरे, रो क्यों रही हो?”

“अब तुमको दुःख होगा, तो तुमको कौन सहारा देगा?” माँ काजल के स्तनों के बीच ही अपना मुँह छुपाए बोलीं।

“अरे! मुझे अब काहे का दुःख?” काजल ने माँ के सर को सहलाते हुए कहा, “मेरे तो सभी दुःख आज दूर हो गए! आज जैसी ख़ुशी मुझको कभी न मिली!”

“तुम सच में खुश हो अम्मा?” माँ ने बड़े भोलेपन से पूछा।

“तुमको कोई आईडिया नहीं है!” काजल बोली, “तुम्हारी माँ बनने का सुख मुझे सुनील को माँ बनने के सुख से अधिक लगता है। ऐसे कहना नहीं चाहिए नहीं तो तुम्हारी ममता, तुम्हारे प्रेम का अपमान होगा, लेकिन सच में - तुमने जो सब कुछ हमारे लिए किया है, उसके बदले में मुझे तुमको ऐसे प्यार करने का मौका मिला है। इसलिए मेरा दिल ख़ुशी से फूला नहीं समां रहा है!”

“नहीं अम्मा,” माँ ने काजल को आलिंगन में ले कर उसके एक गाल को चूमा, “कोई अपमान नहीं होगा। मैंने समझ रही हूँ तुम्हारी फीलिंग्स!”

“समझ रही है न, मेरी बेटू?” काजल मुस्कुराई और माँ के होंठों को चूमते हुए बोली, “तुझको देखती हूँ न, तो न जाने कैसे तू नन्ही सी गुड़िया जैसी लगती है मुझको! मेरी नन्ही सी गुड़िया!”

“हा हा हा!” माँ अपने आँसुओं को सम्हालते हुए हँस दीं, “तुम्हारी आँखों पर पट्टी बंधी हुई है!”

“बड़ी सुन्दर सी पट्टी है! मैं चाहती हूँ कि हमेशा ही बंधी रहे मेरी आँखों पर!”

माँ द्रवित हो कर वापस काजल के सीने में छुप गईं। इतना कुछ इतनी जल्दी परिवर्तित हो गया था कि उनको सम्हलने का अवसर ही नहीं मिल रहा था। वो इस स्नेह की फिसलपट्टी पर तेजी से फिसल रही थीं। और इस तरह की फिसलन में उनको आनंद भी असीम आ रहा था।

“मेरी गुड़िया?” काजल ने कुछ देर माँ के सर को सहला कर स्वांतवना देने के बाद कहा।

“हाँ अम्मा?”

“दुद्धू पिएगी?”

“क्या अम्मा, सच में? इतनी जल्दी?”

“है न अचरज वाली बात?” काजल हँसने लगी, “तुझे पिलाने की चाह में जल्दी जल्दी बन रहा है अब!”

माँ झटपट से काजल के सीने से अलग हो कर उसकी ब्लाउज के बटन खोलने लगीं - किसी नन्ही सी बच्ची की ही तरह - ठीक वैसे ही जैसे लतिका करती थी। माँ की तत्परता को देख कर काजल खिलखिला कर हंस दी। उसको यह देख कर सुकून भी हुआ कि सुमन भी अब खुद को उसकी बच्ची मान कर ही व्यवहार कर रही थी। इस पूरे कार्यक्रम के दौरान माँ का मुँह उत्सुकता, पूर्वानुमान और रोमांच से खुला हुआ था - जैसे बच्चे जब अपने मनपसंद कार्य करते हैं। ब्लाउज के उसके स्तनों से हटते ही माँ ने गप से उसका चूचक अपने मुँह में भर लिया, और बड़े ही सुखपूर्वक ‘अपने’ हेतु बना दूध पीने लगीं।

काजल ने हँसते हुए ही दुलार से माँ को कहा, “हाँ - बस ऐसे ही जब भी तेरा मन हुआ करे न, तू पी लिया कर। बेहिचक! [माँ ने चूचक को मुँह में लिए हुए ही ‘हाँ’ में सर हिलाया] ... तेरी माँ हूँ मैं - कभी मत भूलना ये बात! [माँ ने इस बात पर ‘न’ में सर हिलाया]”

काजल उनकी हरकतें देख कर आनंदित हो उठी, “ऐसी प्यारी सी हरकतें करती है, और फिर सोचती है कि तू मेरी गुड़िया नहीं है?”

माँ दूध पीते हुए मुस्कुरा दीं।

“तुझे तो दुलार कर कर के बिगाड़ दूँगी मैं!” काजल ने बड़े अभिमान से कहा।

कुछ देर स्तनपान करने के बाद माँ बोलीं,

“मानो,” माँ ने शरारत भरी मुस्कान दी, “मेरा तुमसे झगड़ा हो जाए, तो?”

“अरे! हा हा हा हा! झगड़ा! हा हा हा! अगर तू मुझसे झगड़ा करेगी, तो तू ही तो सम्हालेगी मुझे!” काजल ने हँसते हुए कहा, “पड़ोसी थोड़े न सम्हालेगी मुझे! और मैं तो चाहती हूँ कि हमारा सास-बहू का झगड़ा हो कभी, तो कुछ मज़ा आए! लेकिन तू है ही इतनी अच्छी, कि इसकी सम्भावना ही नहीं दिखती! सास बनने का कोई मज़ा ही नहीं! मेरे पास अपनी बहू के खिलाफ कोई मसाला ही नहीं है! अब मैं अपनी सहेलियों से अपनी बहू की बुराई कैसे करूँगी?”

“हा हा हा हा हा हा! अम्मा तुम भी न! लेकिन, तुमको तो मैं तब सम्हालूँगी न, जब मैं तुम्हारे साथ रहूँगी!”

“हाँ, तो?”

“लेकिन ‘ये’ तो कह रहे हैं कि साथ चलो!”

“कहाँ? मुंबई?”

“हाँ! बोल रहे थे कि अगले हफ़्ते ही शादी कर लेते हैं, फिर हनीमून, और फिर मुंबई में ऑफ़िस जोइनिंग!”

“अरे ये तो बहुत अच्छी बात है! मैं भी तो यही कह रही हूँ न! अपने पति के साथ नहीं जाओगी, तो फिर? यहाँ रहोगी क्या! यहाँ क्या है करने को? सुनील के साथ जाओ और अपना संसार बसाओ! और जल्दी से मेरे पोते पोतियों के मुँह दिखाओ मुझे!”

“अम्मा!” माँ फिर से शर्मा गईं।

“अम्मा क्या? ये तेरे छोटे छोटे थन हमेशा दूध से भरे रहें, यही मेरा आशीर्वाद है!” काजल ने मुस्कुराते हुए और दुलारते हुए माँ से कहा, “तेरे जैसी सौभाग्यवती लड़की को और क्या आशीर्वाद दूँ?”

“हा हा! मैं कोई गाय हूँ क्या?” माँ बोलीं, “और अपनी माँ का कोई भी आशीर्वाद हो, बच्चों के लिए ईश्वर का आशीर्वाद होता है!”

“जीती रह बेटू मेरी! जीती रह! और गाय वाली बात पर मेरा यही कहना है कि तू गाय नहीं, देवी है! सुरभि होती है माँ अपने बच्चों के लिए!” काजल किसी बड़े की ही भांति उनको समझाते हुए बोली, “तू तो हमेशा से ही हम सभी की इच्छाएँ पूरी करती आई है। लेकिन अब समय आ गया है कि तेरी भी सभी इच्छाएँ पूरी हों!”

“अमर समझेगा क्या अम्मा?” माँ ने बड़ी उम्मीद से पूछा।

“वो भी तो तुमको खुश देखना चाहता है न!”

“हाँ! लेकिन...”

“समझ जाएगा फिर! नहीं तो मैं हूँ न समझाने के लिए!”

इन्ही बातों बातों में काजल ने माँ को ब्रा और पैंटी पहना दी। उसके बाद काजल ने अलमारी से एक लाल रंग की खूबसूरत सी रेशमी साड़ी और मैचिंग ब्लाउज निकाली! शुभ अवसरों पर लाल रंग ही तो पहनाते हैं!

काजल ने जो भी सोने के गहने अपनी बहू के लिए बनवाए थे, वो निकाले और माँ को उनसे सजाया। अंततः जब माँ पूरी तरह से और काजल की संतुष्टि के अनुसार तैयार हो गईं, तो वाकई में किसी नवविवाहित दुल्हन जैसी लग रही थी।

माँ इस तरह से सज धज कर प्रसन्न तो लग रही थीं लेकिन उनके चेहरे पर चिंता की रेखाएँ भी थीं। यह बात काजल से न छिप सकी।

“क्या हुआ? क्या सोच रही हो?” उसने पूछा।

“सोच रही हूँ कि अमर क्या कहेगा!”

“बहू, तुम चिंता न करो थोड़ी भी। तुम और सुनील कोई पाप थोड़े न कर रहे हैं! मेरा बेटा नौजवान है, लायक है, कमाऊ है, और उसको अपने लिए एक सुन्दर सी, सर्वगुणसंपन्न बीवी चाहिए, जो तुम हो। तुम दोनों शादी करना चाहते हो - यह तुम्हारा अधिकार है! अगर वो तुमको या सुनील को कुछ उल्टा पुल्टा बोलेगा न मेरे हाथों पिट जाएगा! कहे देती हूँ मैं, हाँ!”

काजल के कहने का तरीका कुछ ऐसा था कि माँ हँसे बिना न रह सकीं। फिर काजल ने बड़े दुलार से माँ का गाल छू कर कहा,

“तुमको दोबारा खुश देखना, दुबारा हँसते खेलते देखना - जितना वो चाहता है न, शायद ही कोई और चाहता हो! मुझे मालूम है! इसलिए तू इस बात की चिंता न कर! बस खुश रह! सब कुछ अच्छा हो जाएगा!”

माँ ने अनिश्चितता में ‘हाँ’ में सर हिलाया।


**


माँ को तैयार कर के काजल भी तैयार होने लगी। उसने सफ़ेद सिल्क पर लाल पार वाली बंगाली साड़ी पहनी। इससे अधिक बंगाली महिलाओं की पहचान बताने वाली पोशाक कोई नहीं है। पूजा के समय और अन्य शुभ-अवसरों पर बंगाली महिलाएँ यही साड़ी पहनती हैं : उसका सफ़ेद रंग शुद्धता और लाल रंग प्रजनन क्षमता का प्रतीक होता है। उसने साथ में लाल ब्लाउज और लाल चूड़ियाँ और लाल बिंदी लगाई हुई थी। खुद को तैयार होने में उसको मुश्किल से दस मिनट का समय लगा। जब काजल की संतुष्टि के अनुसार माँ तैयार हो गईं, तो वो उनको उनके कमरे से बाहर हॉल में ले आई।

तब तक सुनील भी अपनी समझ से तैयार हो गया था। उसने रेशम का बंगाली कुरता पहना है था, जिसको आम बोली में ‘पंजाबी’ कहते हैं। और नीचे रेशम की ही धोती पहनी हुई थी। बंगाली मानूस दिख रहा था पूरा वो इस समय। उसने दोनों बच्चों को भी उत्सव और त्योहारों वाले कपड़े पहना कर सजा दिया था, और इस समय उनका मेकअप कर रहा था। बाप बनने से पहले ही वो दो बेटियों के बाप वाली सारी जिम्मेदारियाँ निभा रहा था।

जब उसने हॉल में प्रवेश करते हुए अम्मा और अपनी पत्नी को देखा, जो अब ‘लगभग’ दुल्हन की ही तरह, रेशमी साड़ी और सुनहरे गहनों में खूबसूरती से सजी हुई थी, तो वो दंग रह गया। किसी मूर्ख व्यक्ति की तरह वो मुँह बाये माँ को ऐसे देख रहा था कि जैसे उसको उम्मीद ही न हो कि उसने किसको देख लिया! माँ सुबह दरवाज़ा खोलते समय जितनी सुन्दर दिख रही थीं, इस समय वो तब से कम से कम दस गुना अधिक सुन्दर लग रही थीं! अद्भुत सुंदरी! उसका दिल उसके मुँह में उछल पड़ा! माँ सचमुच किसी परी की तरह दिख रही थीं।

‘कैसी अनोखी किस्मत है मेरी,’ यह विचार उसके दिमाग में आया और बस गया।

ऐसा नहीं है कि केवल सुनील की ही वैसी हालत थी - लतिका और आभा भी उसी के जैसे आश्चर्यचकित थे।

“बोऊ-दी!” लतिका चहकते हुए बोली, “आप कितनी सुंदर सी लग रही हैं! अब से आप ऐसे ही कपड़े पहनना, और ऐसे ही सज धज के रहना! फ़ीके फ़ीके रंग आप पर अच्छे नहीं लगते।”

“हाँ बोऊ-दी,” आभा ने भी उछलते फुदकते हुए अपनी दीदी की हाँ में हाँ मिलाई।

“बेटू, मैं तुम्हारी बोऊ-दी नहीं हूँ,” माँ ने आभा को गोदी में उठा कर उसको चूमते हुए कहा, “मैं तुम्हारी दादी ही हूँ हमेशा!”

“ओह! ओके दादी!”

माँ मुस्कुराईं, फिर लतिका की तरफ़ मुखातिब होते हुए बोली, “थैंक यू बेटा! आई लव यू!”

“आई लव यू मोर, बोऊ-दी!”

केवल बच्चे ही हमें बिना लाग-लपेट के बता सकते हैं कि वे सही मायने में क्या महसूस करते हैं। बच्चों में ईगो नहीं होता; वो बिना किसी मिलावट के सभी से अपना व्यवहार करते हैं। उनके लिए चीजें या तो ब्लैक में होती हैं या फिर व्हाइट में।

“मी टू!” सुनील इतना अवाक रह गया था कि उसके मुँह से भी यही निकला।

सुनील की तारीफ सुनकर माँ शरमा गईं।

“चिंता मत करो बेटू,” काजल लतिका को आश्वस्त करते हुए बोली, “अब से ये ऐसे ही सज धज के रहेंगी! अच्छा, अब मैं थोड़ा सगाई की तैयारी कर लूँ! तुम सभी बैठो, और मज़े करो! सुनील बेटा, कुछ गाने वाने बजाओ! ऐसे सूना सूना अच्छा नहीं लग रहा है!”


**


बड़े उत्साह से आज मैं घर आया - सुनील शादी कर रहा है! यह तो बहुत अच्छी बात थी। एक लम्बे समय के बाद इस घर में खुशियाँ आने वाली थीं! आखिरी ख़ुशी की खबर तब आई थी जब सुनील का देश के सबसे नामी इंजीनियरिंग संस्थान में दाखिला हुआ था। तब से अब तक कोई चार साल हो गए थे। उसके बाद से हमारा जीवन उथल पुथल हो गया था। अब वो ग्रेजुएट हो गया था, और उसकी नौकरी भी लग गई थी। सच कहें, तो हाल के समय में सारी खुशी वाली ख़बरें सुनील ही दे रहा था। इसलिए मुझे बहुत अच्छा लगा कि यह ख़ुशख़बरी भी उसी की तरफ से आई है!

न जाने क्यों मेरे मन में एक विचार उठा कि काश माँ भी थोड़ा खुश हो लें। उनको भी ख़ुशी मिल जाए! एक दूर की कौड़ी ही सही, लेकिन काश माँ की भी शादी हो जाती! उनका अकेलापन और सूनापन देखा नहीं जाता। पिछले कुछ समय से वो ठीक लग तो रही हैं, लेकिन उनको एक स्थाई ठिकाना चाहिए! यहाँ मेरे साथ रहते रहते अपना पूरा जीवन स्वाहा नहीं करना चाहिए उनको! उनकी भी शादी हो जाए! तो फिर... फिर क्या! उसके बाद जो होना हो, हो जाए!

शायद मेरी कार की आवाज़ काजल ने पहचान ली हो, या शायद वो मेरी ही बाट जोह रही हो। मैं जैसे ही घर के दरवाज़े पर पहुँचा तो काजल एक बड़ी सी मुस्कराहट लिए खड़ी हुई दिखाई दी। मैंने उसको देखते ही पूछा,

“बहू है घर में?”

काजल ने हँसते हुए कह, “हाँ हाँ! बहू है घर में ही! बस तुम्हारा ही वेट कर रहे हैं सभी! तुम्हारे बिना प्रोग्राम नहीं आगे बढ़ाया जा सकता!” वो समझ गई कि लतिका ने ‘कुछ’ सीक्रेट ‘लीक’ कर ही दिया है। लेकिन सब कुछ नहीं।

“जी मालकिन! लेकिन ज़रा मुझको समझाइए - बहू के लिए और सुनील के लिए कोई अँगूठी वग़ैरह, कुछ खाने पीने का कोई इंतज़ाम किया आपने, या ऐसे ही निकल पड़ीं सगाई करने?”

“अरे बाप रे! क्या बेवकूफी हो गई!” शायद अब जा कर काजल को ध्यान आया कि सगाई समारोह के नाम पर इंतजाम तो पूरी तरह शून्य था!

उसने अपने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, “अमर, सच में! बिलकुल भी याद नहीं रहा मुझे! अब क्या करें?”

मैं हँसने लगा। काजल को रिसेप्शन में ला कर कहा,

“तुम भी न काजल! मारे एक्साइटमेंट के ज़रूरी बातें भूल गई! ऐसी चूक अगर तुमसे हो गई है, तो समझ लेना चाहिए कि तुम बहुत खुश हो!”

“अरे हाँ, लेकिन अब क्या करें!”

“कुछ नहीं! मुझे शक तो हुआ था! ऐसे हड़बड़ी में जब ये ज़रूरी काम किये जाते हैं न, तो ऐसे ही होता है!” मैंने अपनी शान बघारने के गरज़ से कहा, “देखो, मैंने कुछ इंतज़ाम तो किया है - अँगूठियाँ तो नहीं ला सका - न तो सुनील का और न ही बहू का नाप मुझे मालूम है! लेकिन लाया हूँ और कुछ,”

कह कर मैंने सुनील की मंगेतर के लिए खरीदा हुआ सोने का हार और कंगन दिखाया और सुनील के लिए लाई गई घड़ी!

“बहू को ये हार और कंगन, और दस हज़ार नेग में दे देंगे! ठीक रहेगा?”

मैंने पूछा, लेकिन काजल अभी भी हार और कंगन ही देख रही थी।

“कैसी है?” मैंने पूछा!

“बहुत बढ़िया! बहुत बढ़िया!” काजल बहुत खुश थी, “मैं ऐसी गधी हूँ! मारे उत्साह के सब भूल गई! सॉरी!”

“हा हा हा! लेकिन ऐसे आनन फानन में सब कैसे और क्यों हो गया? न पहले से बताया न कुछ! मुझसे मिलवाया भी नहीं!”

“अरे मिलवा ही तो रही हूँ!”

कह कर वो मेरा हाथ पकड़ कर मुझे अंदर ले जाने लगी।

अंदर से ख़ुशी और मिष्टी की हँसने की आवाज़ें आ रही थीं, और बीच बीच में सुनील और माँ की। और किसी की नहीं!

‘ऐसे चुप चुप क्यों हैं हमारे मेहमान?’

अंदर गया तो देखा कि हॉल में माँ, सुनील, पुचुकी (ख़ुशी), और मिष्टी मौजूद थे। लेकिन सुनील की होने वाली मंगेतर तो कहीं नहीं दिख रही थी! एक माँ ही थीं, जो दुल्हन की तरह सजी हुई थीं। माँ को ऐसे दुल्हन की तरह सजा-धजा देख कर आनंद आ गया! उनका रूप ऐसा था कि जैसे समय का चक्र घुमा कर पीछे कर दिया गया हो! उस समय अगर किसी से मेरा और माँ का रिश्ता पूछा जाता, तो शायद वो यही कहता कि मैं उनका ‘बड़ा भाई’ हूँ! वो इतनी कमसिन लग रही थीं। कमसिन, और बेहद खूबसूरत! और वो मुस्कुरा भी रही थीं - वही चमकती हुई मुस्कान! लेकिन, उसमें लज्जा का भी सम्मिश्रण दिखाई दे रहा था। और भी एक नई बात - उनकी माँग में नारंगी रंग का चमकीला सिन्दूर पड़ा हुआ था - जो उनकी शोभा को और भी बढ़ा रहा था। उनको इस तरह से देख कर मेरे दिल को बहुत सुकून मिला। सच में - माँ को वैधव्य नहीं जीना चाहिए! वो सुहागिन ही अच्छी लगतीं हैं।

‘सिन्दूर?’

उनको एक सुहागिन के रूप में सजा हुआ देख कर अचानक ही मुझे सब कुछ समझ में आ गया! पिछले कुछ समय से माँ के व्यवहार में बदलाव, सुनील की उपस्थिति में उनका संकोच भरा लेकिन फिर भी मित्रवत व्यवहार - समझ आ रहा था! हृदय में एक लरज सी हुई - क्या मैं वाकई सही सोच रहा था? क्या जो सोच रहा था, वही सच है?

सुनील ने बंगाली कुर्ता और धोती पहनी हुई थी, और बहुत जँच रहा था। वो बहुत खुश दिख रहा था - वैसे वो हमेशा ही खुश रहता था। दुःख या उदासी जैसे उसको छू ही नहीं पाती थी। मैं कई बार सोचता था कि उसका यह गुण किसी तरह से मेरे अंदर आ जाए तो मेरी ज़िन्दगी और भी बहुत अच्छी हो जाए! आभा लतिका - दोनों बच्चे गुड़ियों के समान सजे धजे थे, और माँ के आस पास ही फ़ुदक रहे थे।

व्हाट द...

मैंने काजल की तरफ़ देखा, और उससे पूछने ही वाला था, कि वो बोल पड़ी,

“अमर - लो मिल लो ‘बहू’ से! ये रही सुनील की मंगेतर और उसकी होने वाली बीवी!” और उसने माँ की तरफ इशारा किया।

‘माँ?’

“माँ!?” मैं वास्तव में चौंक गया।

मादरचोद! इसको मेरी ही अम्मा मिली थी चोदने को?’ सबसे पहला ख़याल मेरे दिमाग में यही आया।

दिमाग का पारा चढ़ ही रहा था कि पिछले एक महीने की घटनाएँ जैसे किसी अति-द्रुतगामी ट्रेन की तरह मेरे मानस पटल से गुज़र गईं! वो सुनील का घर पर ही रह जाना, वो उसका सभी को बाजार घुमाना, वो सबको हँसाना, मेरे पीछे मेरे परिवार की देखभाल करना! उसके आने से पहले माँ कैसी थीं, और अब वो कैसी हो गईं थीं - ज़मीन आसमान का अंतर था! उनके चेहरे से मुस्कान जैसे किसी ने चुरा ली थी, लेकिन सुनील के आने के बाद जैसे माँ की हँसी और मुस्कान वापस आ गई थी।

माँ की मुस्कान का सोच कर अचानक ही वो पारा वापस अपने धरातल पर आ गया।

लेकिन इस समय उनके चेहरे पर घबराहट वाले भाव थे - शायद वो ये सोच रही हों, कि मैं कैसे रियेक्ट करूँगा! लेकिन उनके मन में संतोष है, प्रेम है, जीने की ललक है! केवल एक महीने में सुनील ने वो कर दिखाया था जो अच्छे डॉक्टर न कर सके - और वो यह कि उसने माँ को अवसाद के गढ्ढे से न केवल बाहर ही निकाल लिया, बल्कि उनको अपना जीवन फिर से जीने की राह भी दिखा दी।

माँ क्यों न बने सुनील की पत्नी?

सुनील क्यों न बने माँ का पति?

काजल ने मेरा हाथ दबाया - माँ और सुनील मेरी तरफ बड़ी आस भरी नज़र से देख रहे थे। दोनों के ही चेहरों पर डर और आशंका देखी जा सकती थी। वो भी मेरी ही प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रहे थे। काजल ने जब मेरा हाथ दबाया, तब मैं अपनी खुद की विचार श्रंखला से बाहर आया।

“अ...हह...हाँ?”

“मैंने कहा, कैसी लगी सुनील की होने वाली बीवी?” काजल ने खुशनुमा और मज़ाक करने वाले अंदाज़ में पूछा!

आशंका उसको भी थी। डर उसको भी था। लेकिन वो ऐसे बर्ताव कर रही थी कि जैसे उसमें बड़ी हिम्मत हो।

पिछले कुछ महीनों के दृश्य मेरे सामने घूम गए। आभा की चहक और उसका उछल कूद करना; लतिका का मुस्कुराता चेहरा; माँ के चेहरे की रंगत और उनकी माँग का सिन्दूर; और काजल की निश्चिंतता और भविष्य के लिए आशा। अपने दम्भ में आ कर मैंने कोई ऐसी हरकत नहीं करना चाहता था, कोई ऐसी बात नहीं कहना चाहता था कि इन सब बातों पर कोई हानिकारक प्रभाव पड़े।

मैंने काजल की तरफ़ देखा। वो अभी भी आस लगाए मेरी तरफ देख रही थी।

“बहुत अच्छी! सबसे अच्छी!” मेरे मुँह से निकल गया, “कॉन्ग्रैचुलेशन्स माँ!” कह कर मैंने माँ को गले से लगा लिया।

फिर सुनील की तरफ़ मुड़ कर, “कॉन्ग्रैचुलेशन्स सुनील!” कह कर मैंने सुनील को गले से लगा लिया।

“थैंक यू, भैया! थैंक यू! आपकी ब्लेसिंग्स बहुत मायने रखती हैं हमारे लिए!”

“नहीं सुनील! थैंक यू!” मैंने तहे दिल से उसको धन्यवाद दिया, “एंड कॉन्ग्रैचुलेशन्स! सब कुछ इतना अचानक से मेरे सामने आया कि कैसे रियेक्ट करूँ, मुझे समझ नहीं आया! कॉन्ग्रैचुलेशन्स!”

फिर माँ की तरफ मुड़ कर, “माँ - आई ऍम सो हैप्पी फॉर यू! कॉन्ग्रैचुलेशन्स! मे यू गेट एंड एन्जॉय आल द हैप्पीनेस दैट कम योर वे!”

“थैंक यू बेटा!” उनकी आँखें आँसुओं से भर गईं, “थैंक यू सो मच!”

वो बहुत कुछ कह नहीं सकीं। कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं थी।


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मैं ऐसा आदमी नहीं था जो अपनी माँ के पुनर्विवाह पर कोई आपत्ति दिखाए। मैं तो बहुत पहले से ही कहता आ रहा था, और माँ को समझाता आ रहा था कि वो फिर से शादी कर लें। इतना लम्बा जीवन है, बिना किसी जीवनसाथी के कैसे बीतेगा? अगर उनकी खुशियाँ किसी तरीके से वापस आ सकती हैं तो उनको वो तरीका ज़रूर आज़माना चाहिए!

मेरे ख़याल से मुझे धक्का इस बात पर लगा कि उनको सुनील से शादी करने की चाह थी। सुनील! सुनील ने ही प्रोपोज़ किया होगा माँ को! इतना तो तय था। मुझे बस एक बात की चिंता थी और वो ये कि उन दोनों ने इस रिश्ते के लिए समुचित रूप से सोचा हो। जल्दबाज़ी न करी हो। बहुत ही बेमेल सम्बन्ध था ये! लेकिन फिर अगला ख़याल यह आया कि अगर जल्दबाज़ी में भी उन्होंने साथ होने का निर्णय लिया है, तब भी उचित था। माँ अपने जीवन में खुशियाँ पाने की हक़दार थीं। अगर उनको वो खुशियाँ सुनील के साथ मिल सकती थीं, तो क्यों न करें वो उससे शादी?


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सगाई ‘समारोह’ बेहद साधारण सा था।

अब सोचता हूँ, तो लगता है कि अच्छा किया कि मैंने मिठाईयाँ और उपहार लेता आया था। नहीं तो समारोह के नाम पर सब ठन ठन गोपाल वाली हालत थी! अगर ये मूरख काजल ने पहले बता दिया होता, तो मैं कुछ बढ़िया इंतजाम कर देता। लेकिन... खैर! सुनील ने वो ही हार माँ को पहनाया, और माँ ने वो घड़ी सुनील को।

सुनील ने सबसे पहले काजल के, और फिर आश्चर्यजनक रूप से माँ के, और फिर अंत में मेरे पैर छुए! माँ ने पहले काजल के, फिर सुनील के पैर छुए, और अंत में लतिका के पैर छुए। मुझे अजीब सा तो लगा, लेकिन समझ सका कि उन्होंने यह सब अपनी परवरिश और संस्कारों से वशीभूत हो कर किया है। सुनील उनका पति है, इसलिए उसका आदर करना उनका धर्म है; और उसी नाते काजल उनकी सासू माँ है, इसलिए उसका आदर करना भी उनका धर्म है! लतिका उनकी ननद है, और पति की बहन होने के नाते, उनके संस्कार के हिसाब से वो पद में उनसे बड़ी है। इसलिए उसका आदर करना भी उनका धर्म है!

दोनों ने एक दूसरे को मिठाईयाँ खिलाईं। माँ और सुनील दोनों ही उतने से ही बड़े खुश और संतुष्ट लग रहे थे। उनको खुश देख कर मैं और काजल भी खुश थे। मैंने अपना पूर्वाग्रह छोड़ दिया - आज का दिन खुशियों वाला था। तो उचित था, कि माहौल को शुशनुमा ही रखा जाए!

फिर मैंने महसूस किया कि माँ और सुनील - दोनों ही वास्तव में बहुत खुश थे। खुश भी थे, और एक दूसरे को पा कर गौरान्वित भी। मैंने देखा कि कैसे वो दोनों ही रह रह कर एक दूसरे को कनखियों से ताक रहे थे। ऐसे करते हुए दोनों ऐसे क्यूट लग रहे थे, कि सच में - उन दोनों के लिए भी केवल ख़ुशी का ही अनुभव हो रहा था मुझको।

शायद मेरा संदेह गलत हो।

शायद दोनों ने एक दूसरे के साथ अपने भविष्य को ले कर गहरे तक सोचा हो।
सगाई भी हो गई खुशियां भी आ गई मगर सबसे अच्छी बात ये रहीं इस रिश्ते में कि काजल और सुनील दोनो ने ही सुमन के अनुभव और समझ को ना सिर्फ मान्यता दी बल्कि उसको इस रिश्ते में अनुभवी पात्र निभाने के लिए कहा ताकि सुनील की अनुभवहीनता आगे चल कर इस रिश्ते के आड़े ना आए।

अमर की पहली प्रतिक्रिया वैसे ही थी जैसी किसी बेटे की इस अनोखे रिश्ते को देख कर होती मगर उसने जल्द ही खुद को संभाला और दिल से इस रिश्ते को स्वीकारा। बहुत ही खूबसूरत अपडेट।
 

avsji

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Supreme
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अंतराल - विपर्यय - Update #14


मुझे लग रहा था कि शायद मैं उन दोनों से अधिक सोच रहा हूँ। जब एक परिस्थिति यूँ अचानक से सामने आ जाती है, तब शायद मनुष्य ऐसे ही करता है। मैंने दोनों की तरफ़ देखा - हाँलाकि दोनों अगल बगल बैठे हुए थे, फिर भी उन दोनों को साथ में ‘सोचना’ मुश्किल सा हो रहा था मेरे लिए। क्यों? समझ नहीं आ रहा था - शायद अपनी माँ को किसी ‘दूसरे’ पुरुष की पत्नी बने देखना मुझसे हजम नहीं हो रहा था; या फिर शायद यह बात कि सुनील को मैं तब से जानता था जब वो महज़ एक छोटा लड़का ही था! कारण चाहे जो कुछ हो, मैं न जाने कैसे और क्यों माँ को लेकर अचानक ही बहुत पज़ेसिव महसूस कर रहा था उस समय। जैसे अपनी कोई चीज़ पराई हो गई हो!

दिमाग में कितने ही विचार गुत्थमगुत्था हो रहे थे। एक समय मैं खुद ही माँ की दूसरी शादी की पैरवी कर रहा था, और अब ये! ऐसा उलट-पलट व्यवहार क्यों कर रहा था मैं? क्या इसलिए कि वो सुनील से शादी करना चाहती हैं, या फिर इसलिए कि वो अपनी इच्छा से शादी करना चाहती हैं, या फिर इसलिए कि मैं उनको अपने से दूर नहीं जाने देना चाहता? अभी अभी ही तो माँ और मेरे सम्बन्ध भी सुधरे हैं! शादी के बाद तो वो सुनील के साथ मुंबई चली जाएँगी! ऐसे कैसे चले जाने दूँ उनको? लेकिन, माँ के साथ सम्बन्ध में सुधार की वजह भी तो सुनील ही है! उसके कारण माँ सामान्य हो कर व्यवहार कर रही थीं। और उसी सुधार के कारण ही तो मैं वापस उनसे पुराने जैसे ही जुड़ पाया!

ओफ़्फ़्फ़!

और फिर सुनील चला गया तो काजल और लतिका भी चले जाएँगे साथ ही! फिर मैं केवल मिष्टी के साथ यूँ अकेला... नहीं नहीं! ऐसे कैसे हो पाएगा सब? अचानक ही मेरी ज़िन्दगी में उथल पुथल मच जाएगी यार! इस विचार से दिल बैठ गया।

काजल मुझको बहुत देर से ‘शून्य’ को निहारते देख रही थी। मैंने अचानक ही अपने कंधे पर उसका हाथ महसूस किया। वो मेरी पीठ को सहला रही थी,

“क्या सोच रहे हो?”

“कुछ नहीं!” मैंने झूठ कहा।

“अमर!” काजल मेरे चेहरे को देख कर मेरे विचार पढ़ सकती थी। कम से कम मुझे उससे तो झूठ नहीं कहना चाहिए।

मैंने कातरता से काजल की तरफ़ देखा। वो सब समझ गई।

“मैं कहीं नहीं जा रही हूँ!” उसने दबी आवाज़ में कहा, “सुनील की गृहस्थी में मैं अपनी टाँग अड़ाने थोड़े ही जाऊँगी! और मैं चली जाऊँगी तो मेरी गृहस्थी कौन देखेगा? मेरी प्यारी सी मिष्टी को कौन देखेगा?”

राहत आई! आँसू निकलने को होने वाले थे, लेकिन मैंने बड़ी मुश्किल से उनको पी लिया। जज़्बाती नहीं होना है इस समय। खुशियों का मौका है। मैं स्पॉइल स्पोर्ट क्यों बनूँ, जबकि सभी लोग खुश दिख रहे हैं?


**


कुछ देर बाद मुझे सुनील से अकेले में कुछ बातें करने का अवसर मिला। उससे बात करना आज कुछ अपरिचित सा, अनजाना सा लग रहा था। मैं मुस्कुराया। जबरदस्ती वाली मुस्कान! सच में, मैं खुद ही अपने व्यवहार से निराश होने लगा था। क्यों नहीं खुश हो पा रहा था मैं इन दोनों के लिए? ये दोनों - जो मेरे सबसे अजीज़ लोग हैं!

“भैया,” वो बोला, “आप सच में नाराज़ तो नहीं हैं?”

उसके प्रश्न से मेरा दिल ग्लानि से भर गया। इस लड़के ने अपने जीवन में हमेशा मुझे अपने पिता का स्थान दिया था। लेकिन मेरा दिल इतना छोटा है कि आज मैं उसकी ख़ुशी से खुश नहीं हो पा रहा था। ऐसा भी नहीं है कि उसने मुझसे कुछ माँग लिया हो - माँ मेरी व्यक्तिगत संपत्ति नहीं हैं। वो अपने निर्णय लेने के लिए, अपना जीवन अपने शर्तों पर जीने के लिए स्वतंत्र हैं। फिर मुझे मिर्च क्यों लग रही है?

“नहीं सुनील,” मैं कुछ पलों के लिए उसकी बात से अचकचा गया, “गुस्सा नहीं हूँ... बस, निराश हूँ।”

मेरी बात सुन कर सुनील सकते में आ गया। उसको लगा कि शायद मैं उस पर कोई इल्ज़ाम लगा रहा हूँ। मैंने बात सम्हाली,

“अपने आप से! अपने व्यवहार से! आई नो आई हैव बीन बिहेविंग लाइक अ बम! लेकिन ओनेस्टली, तुम दोनों को खुश देख कर अच्छा लग रहा है!”

“पक्की बात?” वो मुस्कुराया।

‘कितना मैच्योर है सुनील!’

“पक्की बात!” मैंने शांत स्वर में कहा, “सब कुछ ऐसे अचानक से मुझे पता चला न, इसलिए थोड़ा शॉक सा लग गया है। और कुछ नहीं। मैं ठीक हो जाऊँगा! आई ऍम हैप्पी फॉर यू गाइस!”

“उसके लिए अम्मा ज़िम्मेदार हैं भैया! उनको अचानक ही सनक सवार हो जाती है कुछ करने की न, इसलिए!” सुनील ठहर के बोला, “मैं आज शाम आप दोनों को सब बातें बताने वाला था। लेकिन अम्मा को पहले समझ आ गया, और उन्होंने हम दोनों को अकेले में ले जा कर पूछ-ताछ कर डाली। हम कुछ कहते या करते, उसके पहले ही उन्होंने ये सगाई वाला प्रोग्राम बना लिया। और आपको बताया भी नहीं।”

“अच्छा किया काजल ने! शायद मैं तब भी ऐसे ही बम के जैसे ही व्यवहार करता। वो समझती है मुझको!” मैं मुस्कुराया।

सुनील भी मुस्कुराया।

“भैया, आप और अम्मा मेरी... हमारी जड़ें हैं! आपसे दूर हो पाना पॉसिबल नहीं है हमारे लिए। इसलिए आप कभी मत सोचिएगा कि मुंबई जा कर हम आपसे दूर हो गए हैं।” सुनील वाकई बहुत मैच्योर था, “वैसे भी मुंबई - दिल्ली की फ्लाइट रोज़ ही कई सारी चलती हैं! जब मन करेगा हम मिल लेंगे!”

वो कैसे मुझे छोटे बच्चों के जैसे मान कर समझा रहा था। मैं समझ रहा था कि सुनील क्या कर रहा है, लेकिन फिर भी मुझे अच्छा लगा।

“सुनील,” मैंने कुछ देर चुप रहने के बाद कहा, “सुनील, तुम दोनों ने ठीक से सोच तो लिया है न?”

“जी भैया,” उसने बड़ी ख़ुशी ख़ुशी कहा, “आज से नहीं, बहुत दिनों से... सालों से... मैं सुमन को चाहता हूँ (उसने आज पहली बार मेरे सामने माँ को उनके नाम से बुलाया था... और वो भी बिना किसी झिझक के)! उनसे बेहतर, उनसे अच्छी कोई और लड़की नहीं है मेरे लिए!” वो बड़े गर्व से बोला, “एंड आई होप कि मैं भी उनके लिए सूटेबल मैन होऊँ!”

“वेल... माँ ने भी तो तुमको पसंद किया है न! तो... मेरे ख़याल से... तुम आलरेडी उनके लिए सूटेबल मैन हो!” मैंने उसको समझाया, “लेकिन मैं इस बारे में नहीं कह रहा था। शादी एक बड़ा निर्णय है। तुमने सारे कॉनसीक्वेंसेस के बारे में सोचा तो है न? तुम्हारी उम्र क्या है अभी? इक्कीस - बाईस? माँ तुमसे इतनी ही बड़ी हैं। जब तुम चालीस के होंगे, तो माँ साठ के ऊपर हो जाएँगी। समझ रहे हो न?”

पता नहीं सुनील को क्या समझ में आया।

“समझ रहा हूँ, भैया!” वो बड़े गंभीरता से बोला, “लेकिन... शादी में सेक्स ही तो सब कुछ नहीं होता। आई लव सुमन... एंड शी लव्स मी! मेरे ख़याल से प्यार सबसे बड़ी चीज़ है शादी में!”

“हाँ... वो तो है ही!”

मैंने कह तो दिया, लेकिन पूरी शाम में पहली बार मुझे चमका कि इन दोनों की शादी होगी, तो सेक्स भी तो होगा! सुनील के मेरी माँ के साथ होने वाले अंतरंग सम्बन्ध की अवश्यम्भावी स्थिति को सोच कर मुझे बहुत अजीब सा लगा! बहुत ही अजीब! और ऊपर से यह संज्ञान कि एक तरफ तो मैं खुद भी उसकी अम्मा के साथ सम्भोग करता रहता हूँ! मैं उसकी अम्मा के साथ, और अब वो मेरी अम्मा के साथ! हे भगवान!

जीवन में कैसे कैसे नाटकीय परिवर्तन आते हैं। लगता है जैसे कल की ही तो बात हो - जब मैं उसको क-ख-ग-घ सिखाता था! और आज!

“उनका ख़याल अच्छे से रखना सुनील। वो तुमको अपने दिलोजान से प्यार करेंगी!”

“ये भी कोई कहने वाली बात है भैया? आप कभी भी सुमन की चिंता न करिएगा अब!”

गुड टू नो!” मैंने कहा, “आज मैं बहुत खुश हूँ! बहुत! थोड़ा मर्दों वाला सेलिब्रेशन करें? स्कॉच?”

यह पहली बार था जब मैंने सुनील को किसी भी प्रकार की मदिरा मेरे साथ पीने की पेशकश करी थी।

वो हिचकिचाया, फिर उसने माँ की तरफ़ देखा। माँ मुस्कुराईं और उन्होंने हल्के से ‘हाँ’ में सर हिलाया। मैंने ऐसा अभिनय किया कि दोनों को न लगे कि मैंने उनको ऐसा करते देखा है।

सुनील मेरी तरफ़ देख कर बोला, “थैंक यू भैया... यस प्लीज!”

स्कॉच पीते पीते मैंने सुझाव दिया कि आज बाहर चल कर किसी बढ़िया होटल में खाएँगे और वहाँ केक काट कर सेलिब्रेट करेंगे फिर से! सभी को ये सुझाव जँच गया। तो मैं, हम सभी को कार में लेकर उसी पाँच सितारा होटल ले कर गया, जहाँ सुनील और माँ के लिए रोमांटिक डिनर की बुकिंग करी थी। वहाँ आनन फानन में हमारी टेबल को उत्सव के अनुरूप ही सजा दिया गया! बढ़िया खाना, संगीत, हंसी मज़ाक करते हुए, चुटकुले सुनते सुनाते आज की शाम अच्छी बीत गई। माँ बहुत खुश लग रही थीं... ऐसा नहीं है कि उनको ऐसे दिखावटी प्रोग्राम की आवश्यकता थी। लेकिन फिर भी, उनको सबसे ख़ुशी इस बात की मिल रही थी कि हम सभी उनकी ख़ुशी में शामिल थे। उनके होंठों पर वही पुरानी वाली मुस्कान देख कर दिल आनंद से भर आया।

जब मेरा खुद का दिल भी विचारों से खाली हो गया, तब बस एक ही ख़याल आया - काश माँ हमेशा ऐसी ही रहें : हँसती मुस्कुराती और खूबसूरत! जब ये ख़याल आया, तब सुनील और उनका संग बिलकुल भी नहीं खला। सुनील ही उनका साथी है!


**


जब हम सभी वापस घर लौटे, तब तक साढ़े नौ के आस पास हुआ रहेगा। कोई देर नहीं थी। वैसे भी घर में सभी बड़े उत्साह में थे। दोनों बच्चों की गर्मी की छुट्टियाँ शुरू हो गई थीं, और आज वो सोने के मूड में लग भी नहीं रही थीं।

“बोऊ दी,” लतिका ने चहकते हुए कहा, “इतना ख़ुशी का ओकेशन है - आपकी और दादा की इंगेजमेंट हुई है! आप कोई मीठा मीठा सा गाना सुनाइए न हमको!”

“अरे, इंगेजमेंट तो दोनों की हुई है, और गाना केवल अपनी बोऊ दी का सुनना है?” काजल ने कहा।

“हाँ!” लतिका इठलाते हुए मेरी गोदी में बैठती हुई बोली, “वो इसलिए कि बोऊ दी की आवाज़ मीठी मीठी है न, अम्मा। दादा की आवाज़ भी ठीक ठाक है... लेकिन... दादा... आपको गाना गाना भी आता है क्या?” लतिका ने अपने बड़े भाई को छेड़ा।

“इतनी बेइज़्ज़ती!” सुनील ने ड्रामा करते हुए कहा, “इतनी बेइज़्ज़ती! गाँव वालों मैं जा रहा हूँ। बम्बई, मैं आ रहा हूँ!”

“हा हा हा हा हा!” उसके नाटक पर हम सभी ठठा कर हँसने लगे।

“हाँ, जाओ जाओ! बम्बई जाओ! लेकिन बहू को साथ ले कर जाना!” काजल ने कहा।

“हाँ ख़ुशी बेटा,” उधर मैंने लतिका की बात पर हामी भरते हुए कहा, “बात तो तुम्हारी बिलकुल ठीक है - दोनों की इंगेजमेंट हुई है, तो गाना भी दोनों को साथ ही में गाना पड़ेगा!”

“क्या कहती हो जानेमन?” सुनील बोला (माँ को ऐसे अंतरंग तरीके से बुलाने पर मुझे फिर से थोड़ा अजीब लगा - लेकिन मैंने फिर से अपनी भावनाओं को काबू में किया), “गाएँ क्या? इतनी बढ़िया ऑडिएंस कहाँ मिलेगी?”

माँ ने सबके सामने खुद को ‘जान-ए-मन’ कहे जाने से शरमाते हुए कहा, “आप शुरू कीजिए, मैं आपके पीछे गाऊँगी!”

माँ को ऐसे बोलते देख कर मुझे अच्छा लगा। माँ का गाना गाना - मतलब माँ काफ़ी नार्मल हो गई हैं। एक बेहद लम्बा अरसा हो गया। पहले रोज़ कोई न कोई गीत गुनगुनाती रहती थीं। पिछले डेढ़ साल से कुछ नहीं! कम से कम मेरे सामने तो कुछ नहीं!

सुनील ने गुनगुनाना शुरू किया,

ओ... रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे

“क्या बात है दादा! रोमांटिक सांग!” लतिका पहली लाइन पर ही चहकते हुए बोली।

“शहहह!” काजल ने उसको चुप रहने को कहा - काजल उनका गाना रिकॉर्ड भी कर रही थी।

सुनील ने बिना डिस्टर्ब हुए गाना जारी रखा,

रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे, मोहे कहीं ले चल बाँहों के सहारे
बाग़ों में खेतों में नदिया किनारे, रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे


माँ उस मधुर रोमांटिक गाने पर मुस्कुरा रही थीं! ऐसे सबके सामने सुनील उनके लिए ऐसा प्रेम गीत गा रहा था, इसलिए माँ के गाल शर्म से लाल हुए जा रहे थे। अपनी पंक्तियाँ ख़तम कर के सुनील ने माँ की तरफ़ इशारा किया - अब माँ की बारी थी।

कितने दिनों से उनकी गाने वाली आवाज़ सुनने को तरस गया था मैं!

ओ... ओ ए सजनवा आजा तेरे बिना, ठंडी हवा... सही ना जाए
आ जा
... हो... आ जा...
रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे, मोहे कहीं ले चल बाँहों के सहारे
हाँ... बाग़ों में खेतों में नदिया किनारे, रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे


सुनील ने माँ के हाथ अपने हाथों में लिया, और उनको चूम लिया। अपने बेटे और बहू के इस प्रेम प्रदर्शन को देख कर काजल निहाल हुई जा रही थी। शाम से पहली बार मैं भी उन दोनों के लिए वाकई ‘बहुत खुश’ हुआ।

ओ जैसे रुत पे छाए हरियाली, गहरी होए मुख पे... रंगत नेहा की
खेतों के संग झूमे पवन में, फुलवा सपनों के
... डाली अरमां की
तेरे सिवा कछु सूझे नाहीं अब तो सांवरे


सच में - माँ को सुनील के अलावा और कुछ सूझ ही नहीं रहा था! क्या जादू कर दिया था उस लड़के ने! उनके सूने जीवन में उसने प्रेम की मिठास घोल दी थी; प्रेम के रंग से उसने माँ को सराबोर कर दिया था!

रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे, मोहे कहीं ले चल बाँहों के सहारे
हाँ बाग़ों में खेतों में नदिया किनारे, रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे

ओ ओय सजनिया जान ले ले कोई मोसे, अब तो लागे नैना तोसे
आ जा, ओ आ जा


सुनील की चंचलता और विनोदप्रियता किसी से छुपी नहीं थी - उसको इस बात की कोई परवाह नहीं कि कौन उसके साथ बैठा है। उसकी प्रेयसी, उसकी पत्नी उसके सामने थी, और वो उससे अपने प्रेम का इज़हार कर रहा था। उसको बस इसी बात से सरोकार था। मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि उसको माँ से सच में बहुत प्रेम है।

हो... मन कहता है दुनिया तज के, जानी बस जाऊँ, तेरी आँखों में
और मैं गोरी महकी-महकी घुल के रह जाऊं तेरी साँसों में
एक दूजे में यूँ खो जाएँ, जग देखा करे

रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे
मोहे कहीं ले चल बाँहों के सहारे
बाग़ों में खेतों में नदिया किनारे

रुत है मिलन की साथी मेरे आ रे


गाना खतम होते ही हम सभी उत्साह में तालियाँ बजाने लगे। लतिका मेरी गोदी से उछल कर उतरी, और अपनी ‘बोऊ दी’ के दोनों गालों का पिचका कर उनके होंठों को चूम ली। आभा ने भी अपनी दीदी की पूँछ होने के नाते वही किया। काजल भी माँ के सर को अपने सीने से लगा कर उनके माथे को चूम ली। बेचारे सुनील को किसी ने पूछा तक नहीं।

“बहुत बढ़िया सुनील!” मैंने ही उसके गाने की बढ़ाई करी।

“थैंक यू भैया!” उसने खींस निपोरते हुए कहा, “मुझे लगा कि मेरा गाना किसी को पसंद ही नहीं आया!”

“बहुत पसंद आया दादा,” आभा ने कहा, और अपने फ़ेवरिट ‘दादा’ की बढ़ाई करते हुए उनको भी चूमा।

“आह मेरी मिष्टी, मेरी बच्चू!” सुनील ने आभा को पकड़ कर कई बार चूमा।

“बोऊ दी, अब एक गाना आप गाइए!”

“हा हा हा! कौन सा मेरी बच्ची?”

“आपका जो मन हो! हमको तो बस आपकी मीठी सी आवाज़ में कुछ भी सुनने को मिल जाए!”

लतिका इतनी प्यारी बच्ची थी, और कैसी प्यारी प्यारी, लेकिन सयानी बातें करने लगी थी!

माँ ने एक क्षण सुनील को देखा, मुस्कुराईं और गाने लगीं,

यशोमती मैया से बोले नंदलाला
राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला
राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला


माँ गोरी गोरी थीं, और सुनील साँवला। दोनों की जोड़ी सुन्दर सी थी! यह गाना इस सिचुएशन पर बेहद सटीक फिट हो रहा था। लेकिन इस गाने के साथ एक बहुत पुरानी याद दौड़ती हुई चली आई - गैबी की याद! उसने भी यही गाना गाया था, जब गाँव में उसको गाने को कहा गया था!

बोली मुस्काती मैया सुन मेरे प्यारे
बोली मुस्काती मैया सुन मेरे प्यारे
गोरी गोरी राधिका के नैन कजरारे
काले नैनों वाली ने, हो
काले नैनों वाली ने ऐसा जादू डाला
इसीलिए काला


“बहू जादूगर नहीं, देवी है! अप्सरा है!” काजल अपने में ही बड़बड़ा रही थी, “अच्छा हुआ मेरे इस लायक बेटे ने अपने लिए सच्चा सोना पहचान लिया! आज मैं इतनी खुश हूँ कि क्या कहूँ!”

इतने में राधा प्यारी आई इठलाती
इतने में राधा प्यारी आई इठलाती
मैं ने न जादू डाला बोली बलखाती
मैया कन्हैया तेरा, हो
मैया कन्हैया तेरा जग से निराला
इसीलिए काला

यशोमती मैया से बोले नंदलाला
राधा क्यों गोरी मैं क्यों काला


गाना ख़तम क्या हुआ कि काजल ने भावातिरेक में आ कर माँ को अपने सीने से लगा लिया।

“अरे वाह वाह!” वो ख़ुशी से बोल पड़ी, “क्या मिठास! क्या सुन्दर गीत बहू!”

काजल को इस तरह से माँ पर अपना प्रेम बरसाते देख कर अलग सा लगा - अलग सा, और बहुत ही अच्छा! दोनों में हमेशा से ही प्रगाढ़ प्रेम था। लेकिन अब वो निर्बाध रूप से माँ को अपनी बेटी के रूप में दुलार कर रही थी। बहुत बढ़िया!

हम सभी ने भी तालियाँ बजाईं। सुनील के चेहरे पर गर्व की दमक साफ़ दिखाई दे रही थी। आनंद ही आनंद!

सभी का और जागने का मूड था। लेकिन मैं आज थक गया था। इसलिए मैंने सभी से माफ़ी मांगी, और वहाँ से निकल लिया, और अपने बिस्तर पर आ कर लेट कर सारी परस्थिति का जायज़ा लेने लगा।
 
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