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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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नया सफ़र - अनमोल तोहफ़ा - Update #3


शाम होते होते देवयानी का पूरा परिवार भी हमारे साथ सम्मिलित हो गया। सभी ने मुझे बहुत बधाइयाँ दीं।

“अमर यार ये बहुत गलत बात है!” जयंती दी ने आते ही शिकायत करनी शुरू कर दी, “तुमको मुझे सवेरे ही बता देना चाहिए था कि पिंकी को हॉस्पिटल ले जा रहे हो!”

“अरे दीदी, आप नाराज़ मत होईए। माँ हैं न साथ में। और आपका तो काम भी है!”

“अरे, काम गया तेल लेने। काम तुम्हारे बच्चे से ज़्यादा इम्पोर्टेन्ट थोड़े न है!” उन्होंने मेरे कान पकड़ते हुए कहा, “चल अब! जल्दी से बच्ची की शकल दिखा हमको!”

तो मैं उनको देवयानी के कमरे में ले गया। डेवी ने जैसे ही अपनी बहन और अपने पिता को देखा, वो मुस्कुराने लगी।

“वेलकम टू द क्लब, पिंकी रानी!” दीदी ने कहा, “बहुत बहुत बधाईयाँ!”

“कॉन्ग्रैचुलेशन्स बेटा,” ससुर जी ने भी बधाई दी।

“कॉन्ग्रैचुलेशन्स साली साहिबा,” उसके जीजा बोले, “एन्जॉय द पेरेंटहुड, बोथ ऑफ़ यू!”

माँ ने ससुर जी के पाँव छुए।

“गॉड ब्लेस यू बेटा,” उन्होंने आशीर्वाद दिया, “तुमको बहुत तकलीफ हो गई!”

“ऐसे कैसे बाबू जी,” माँ बोलीं, “पिंकी तो अपनी ही बेटी है! फिर क्या तकलीफ?”

“फिर भी! तुम सभी सीधे घर आओ। सभी का खाना पीना वहीं होगा अब से।” उन्होंने जैसे निर्णय सुनाते हुए कहा, “कुछ सेवा हमको भी तो करने दो!”

“हा हा हा हा!” माँ हँसने लगीं, “अरे खूब सेवा कीजिए अब! ऐसे शुभ मौके पर जन्मी है बिटिया रानी। इसकी सेवा में तो सभी को पुण्य मिलेगा!”

“हाँ - सो तो है! लेकिन कहाँ है नन्ही?”

“नर्स ले गई है उसको नहलाने। बस आती ही होगी!”

“कैसी हो पिंकी?”

“आई ऍम गुड डैडी!”

“वैरी नाइस!” फिर मेरी तरफ मुखातिब होते हुए, “अमर, डैड को भी बुला लाओ!”

“जी डैडी, वो जितना जल्दी पॉसिबल है, आने वाले हैं!”

“बढ़िया!”

फिर हम ‘आभा’ के वापस आने से पहले ऐसी ही अनेकों बातें करते रहे। जब उसको उसके नाना जी ने अपनी गोद में लिया, तो उनकी आँखों में आँसू आ गए। दो नाती उनको हो चुके थे, और अब ये पहली नातिन हुई थी। ‘आभा’ सबसे छोटी थी, और छोटी बेटी की पहली संतान थी, इसलिए उनका भावुक होना स्वाभाविक था। पूरा समय वो अपने नाना जी की गोद में रही - बाकी लोगों को ऐसे ही मन बहलाना पड़ा उस शाम।

फिर डॉक्टर से बात होने लगी कि कब देवयानी हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो सकती है। उन्होंने बताया कि कल शाम ही हम बिना किसी दिक्कत के उसको ले जा सकते हैं। बढ़िया है। कल शाम घर, और परसों, मतलब विजयादशमी! बढ़िया! तय किया गया कि डिस्चार्ज होने के एक दो दिनों में ही हम अपने सभी मित्रों और परिजनों के साथ ‘आभा’ के जन्म का जश्न मनाएँगे! जो भी कुछ होगा, यहीं हमारे घर पर होगा - देवयानी ठीक थी, लेकिन फिर भी इतनी जल्दी उससे यात्रा इत्यादि नहीं करवाया जा सकता।

देर शाम मित्र और सहकर्मी लोग भी आ कर मिलने लगे। इतने सारे बूके और खिलौने इत्यादि मिले कि मुझे उनके जाने के बाद एक ट्रिप घर का लगाना पड़ा - वो सब सामान घर पर रखने के लिए। एक तो कमरे में जगह ही नहीं बची थी, और इस बात का भी डर कि कहीं ऐसा न हो कि बच्चे को फूलों से कोई परेशानी न हो जाए।


**


अगले दिन डैड, काजल, लतिका और सुनील घर आ गए। केवल दो कनफर्म्ड टिकट मिले थे डैड को तत्काल में। लेकिन न जाने क्या क्या जुगाड़ बैठा कर वो सभी को यहाँ लिवा लाए। दोनों बच्चों की दशहरा की छुट्टियाँ थीं, इसलिए कोई परेशानी नहीं हुई। उसके अगले दिन डेवी भी हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो गई, और हम सभी घर आ गए। मेरा पूरा घर पूरी तरह से भर गया और चहल पहल के कारण घर में उत्सव का माहौल हो गया। एक कमरे में देवयानी और बच्चे के चैन से रहने का इंतजाम कर के, हम सभी जहाँ संभव था, वहाँ फिट हो गए। मुश्किल तो था, लेकिन जितनी व्यवस्था हो, उतने में ही संतोष करना चाहिए।

डैड दादा बन कर बहुत खुश हुए - उनको एक छणिक ख़ुशी पहले भी मिली थी जान काजल को संतान हुई थी। लेकिन... वही सब बातें दोहराने से क्या लाभ? उनको ऐसे प्रसन्न होते हुए मैंने पहली बार देखा था - वो पूरा दिन कुछ न कुछ गुनगुनाते रहते - ज्यादातर बच्चों वाले गीत - और मुस्कुराते रहते। जब भी अवसर मिलता, आभा को गोदी में लिए रहते, उसको दुलारते रहते। एक खिलौना मिल गया था उनको। और मुझे समझ आ रहा था कि घर वापस जाने के बाद वो ही आभा को सबसे अधिक मिस करेंगे।

काजल की प्रतिक्रिया बहुत अनोखी थी। उसने तो सबसे पहले देवयानी को एक सोने की जंजीर पहनाई। उसका इंतजाम उसने कैसे किया, वो मैं अभी तक नहीं जान पाया, और न ही मैंने जानने की बहुत कोशिश भी करी।

“दीदी,” डेवी ने कहा, “मुझे क्यों?”

“दीदी, बच्चे को तो सभी कुछ न कुछ देंगे ही - बस माँ को ही कुछ नहीं मिलता। काम के अलावा। तुम माँ बनी हो - हमको तो वो सेलिब्रेट करना है।”

काजल की बात पर डेवी की आँखों में आँसू आ गए और दोनों एक दूसरे से लिपट कर आँसू बहाती रहीं।

जब उन दोनों को एकांत मिला, तब काजल ने देवयानी से कहा, “दीदी, तुमसे एक बात पूछूँ?”

“अरे दीदी, तुम मुझसे क्यों ऐसे फॉर्मल होती हो! तुम्हारा जो मन करे, मुझसे कहो। तुम हमसे अलग थोड़े ही हो!”

काजल मुस्कुराई, लेकिन झिझकती हुई बोली, “दीदी, बिटिया को मैं... मेरा मतलब... क्या मैं भी उसको...”

“दीदी!” देवयानी समझ गई, “ये जितनी मेरी है, उतनी ही तुम्हारी है। मैंने पहले भी कहा है न - तुम हमसे अलग थोड़े ही हो! तुम जो चाहो, करो! मुझे ही थोड़ा आराम मिल जाएगा!”

“मतलब मैं...”

“हाँ दीदी! तुम्हारा इसको दूध पिलाने का मन है, पिला लो! जब मन करे! तुम्हारी बेटी है!”

“ओह दीदी! थैंक यू!”

“अच्छा - तो अब तुम हमको थैंक यू कहोगी? ऐसे तो हमको न जाने किन किन बातों के लिए तुम्हारा शुक्रिया अदा करना पड़ेगा!”

“नहीं नहीं! ऐसी कोई बात नहीं! तुम मुझको इतना सम्मान देती हो, वही बहुत बड़ी बात है!”

“दीदी, सम्मान हमारा है, और इस बच्ची का सौभाग्य कि इसको ऐसे प्यार करने वाली ‘बड़ी माँ’ मिली हैं!”

डेवी की बात पर काजल इस बार रोने लग गई।

संसार में हर कोई बस प्रेम का भूखा है। बहुत ही दुर्भाग्यशाली लोग होते हैं जो प्रेम के भूखे नहीं होते। वस्तुएँ मिल जाती हैं - देर सवेर - कुछ कम, कुछ अधिक। बस शुद्ध प्रेम का मिलना ही दुर्लभ है।

कुछ संयत हो कर काजल ने आभा को अपनी गोदी में उठाया, और अपने स्तनों का प्रसाद उसके अनुगृहीत मुँह में दे दिया। देवयानी काजल और आभा दोनों के ही चेहरों पर संतोष वाले भाव देख कर मुस्कुराने लगी। अद्भुत थीं दोनों महिलाएँ और अद्भुत था दोनों का प्रेम! कहाँ सौतिया डाह का डर था, और अब कहाँ ऐसा असंभव प्रेम दोनों के बीच!


**


सुनील से अधिक लतिका उत्साहित थी आभा को ले कर। उसके लिए आभा कोई गुड्डे जैसी साइज़ की ही थी। वो कभी आभा के गालों को उत्सुकतापूर्वक छूती, तो कभी उसकी उँगलियों से खेलती। इतनी छोटी बच्ची में इतना प्रेम, इतनी उत्सुकता! कमाल है। उसको वो ‘गुड्डा’ ‘गुड्डा’ ही बोलती रही पूरा समय। हा हा हा! बच्चे कमाल के होते हैं।

सुनील ने आभा को देखा, तो बस बड़े प्यार से उसने उसके माथे को चूम लिया। जब काजल ने बच्ची को उसकी गोद में देना चाहा, तो वो बेचारा सकपका गया और उसने उसको लेने से साफ़ मना कर दिया, कि कहीं बच्ची गिर न जाए!


**


इस बार विजयदशमी बहुत ही धूम से मनाई हमने। मैंने यह त्यौहार कभी मनाया नहीं। कैसे मनाते हैं, वो भी नहीं पता। लेकिन इस बार पूरे घर को रंगबिरंगी झालरों से सजाया गया, और फूलझड़ियाँ चलाई गईं। तय कर लिया कि इस बार दिवाली यहीं मनाई जाएगी, और जब अवसर मिलेगा, और जब देवयानी पूरी तरह से रिकवर कर लेगी, तब हम तीनों ‘घर’ आ कर कुछ समय बिताएँगे।


**


आभा के होने का जश्न, चूँकि जल्दी जल्दी में आयोजित था, इसलिए बहुत धूम से नहीं कर सके, लेकिन आनंद बहुत आया। सुबह सुबह ही पूजा और हवन का आयोजन था, जिसमें हम तीनों को बैठना आवश्यक था। उसी समय आभा का नामकरण भी कर दिया गया। अपनी बच्ची के होने का जहाँ एक तरफ उन्माद भी था, वहीं दूसरी तरफ एक डर सा भी था - मेरी बच्ची सुरक्षित रहे, स्वस्थ रहे, और आगे चल कर सफलता के मुकाम हासिल करे! शायद यही सभी माता पिता अपनी संतानों के लिए ईश्वर से मांगते हैं, और मैं भी अपवाद नहीं था। पूजा पाठ के बाद खाने पीने का बढ़िया इंतजाम आयोजित था - और क्या चाहिए? एक तो त्यौहार का आनंद, और ऊपर से संतान का सुख। सबसे बड़ी बात - हम ऐसे लोगों से घिरे हुए थे, जो हमारे शुभचिंतक थे। बस, आनंद ही आनंद!


**


यह कहानी अधूरी है और बेकार है, अगर मैं अपने पेरेंटहुड की बात न करूँ। माता-पिता बनने का सुख ऐसा अलौकिक होता है कि क्या कहें? हाँ - यह डगर बहुत ही काँटों भरी है, लेकिन फिर भी अंत में पारलौकिक सुख भी मिलने की बड़ी सम्भावना होती है। सच है कि मैंने बस अभी अभी ही पेरेंटहुड के एक लम्बे सफर में बस अपना पहला कदम ही रखा था, लेकिन फिर भी, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यह सफर बहुत सुखदायक होगा!

माता पिता होना शायद सबसे बड़ा स्वार्थहीन कार्य होता है। इसमें भी अपवाद हैं - किस चीज़ में नहीं होते? अपने बच्चों से हमको बड़ी सारी उम्मीदें होती हैं। इसलिए यह कोई निःस्वार्थ काम नहीं है। लेकिन कम से कम शुरू के दिनों में माता पिता होना शायद सबसे बड़ा स्वार्थहीन कार्य होता है! हाँ - यह ठीक रहेगा। खुद माता-पिता बनने से पहले, मुझे कई सारे किस्से कहानियां और अनुभव उपलब्ध थे - मेरे माता-पिता के, गैबी के, देवयानी के माता-पिता के, काजल के, जयंती दी के अनुभव और कथाएँ! लेकिन वो सब केवल कहानियाँ ही थीं। उनको सुनना सुनाना आसान बात है। असल बात तो तब होता है जब आप उन कहानियों को जीते हैं।

छोटी छोटी बातें, जो हर माता पिता के जीवन में होती हैं, लेकिन खुद के लिए वो बहुत ही अनोखी और बहुत ही आश्चर्यजनक होती हैं। जब आपकी संतान आपको देख कर मुस्कुराती है, जब वो सोते सोते ही अचानक ही मुस्कुराती है, आपकी आवाज़ सुन कर जब उसका रोना बंद हो जाता है, आपकी गोद में आ कर जब उसका रोना बंद हो जाता है, आपकी तोतली आवाज़ सुन कर जब वो मुस्कुराने लगती है -- इन सभी बातों का औरों के लिए क्या मोल? लेकिन आपके लिए यह सभी बातें अमूल्य होती हैं! आप चाहते हैं कि वो सभी दृश्य आपके मानस पटल पर सदैव अंकित रहें। बच्चों का यही भोलापन उनको धरती पर ईश्वर का रूप बना देता है। बाद में उनके अंदर दुनियादारी की बदमाशी आ जाती है। इसलिए बच्चे भोले रहें, तो अच्छा! बहुत भावुक नहीं होऊँगा यहाँ, लेकिन अपनी दो संतानों के खोने के बाद आभा बहुत ही अमूल्य है मेरे लिए। मरी के साथ मेरा एक और बच्चा होने वाला था - लेकिन उसकी परवरिश में मेरा कोई प्रभाव नहीं होना था। वो गेल और मरी की संतान थी। इन सभी कारणों से मेरे मन में इतना स्नेह, इतना प्रेम भरा हुआ था अपनी संतान के लिए, कि मुझे डर था कि आगे चल कर कहीं मैं अपनी बच्ची को बिगाड़ न दूँ! लेकिन मुझे यह भी मालूम था कि देवयानी के होते हुए आभा का लालन पालन सही ढंग से ही होगा। बच्चे प्रेम के कारण नहीं बिगड़ते, वरन, ग़ैर ज़िम्मेदार पैरेंटिंग की वजह से बिगड़ते हैं।

आभा अपने नाम के अनुरूप ही हमारे जीवन का वैभव थी। हम सभी के जीवन का। वो बहुत कम रोती थी - जब भूखी रहती, या फिर जब उसको सू-सू पॉटी होता - तब। बाकी पूरे समय वो मुस्कुराती रहती थी, और अपने चारों तरफ ख़ुशियाँ बिखेरती रहती थी। कोई भी उसको देखता, तो मुस्कुराए बिना न रह पाता। और दिन प्रतिदिन उसका भोला सौंदर्य साफ़ होता जाता। गोल गोल, फलों जैसे मीठे गाल! रूई के फाहों जैसे कोमल, मुलायम, और स्वादिष्ट अंग - उसको देख कर उसको खा लेने का मन करता था। लगता था कि कैसे कर के उसको अपने अंदर समाहित कर लूँ। आभा में हम दोनों के ही सबसे बेस्ट फ़ीचर्स आए हुए थे - और यह देख कर मैं बहुत खुश होता! मैं चाहता था कि हमारी संतान हो तो बहुत सुन्दर सी हो, बुद्धिमान हो, और स्वस्थ हो। आभा को देख कर ऐसा ही लगता था। और मैं ईश्वर को इसके लिए तहेदिल से शुक्रिया करता था - हर रोज़!

एक बार की बात है। मैं और डेवी ड्राइंगरूम में बैठे टीवी देख रहे थे - पेरेंट्स बनने के बाद एक असंभव सा काम! अचानक ही हम दोनों को लगा कि कहीं से बहुत धीमी सी आवाज़ आ रही है। ये आभा थी, जो अपनी सुरीली सी आवाज़ में रो रही थी। माँ की ममता - देवयानी ने तुरंत कहा, ‘भूखी होगी’!

मैं भाग कर कमरे में गया, और सम्हाल कर आभा को बाहर उठा लाया।

डेवी ने उसको चेक किया - हाँ, भूख ही लगी थी। उसने अपने गाउन का बटन खोलना शुरू कर दिया। नए नवेले पेरेंट्स को क्या अनुभव होता है? लेकिन प्रकृति उनको अंतर्दृष्टि देती है, कि अपनी संतान की देखभाल वो कैसे करें! कुछ ही पलों में देवयानी के दूध से भरे स्तन बाहर प्रदर्शित थे।

उसने आभा को अपनी गोदी में लिया, और सोफे पर बैठ गई। मैं जल्दी से गया और एक तकिया लेता आया, डेवी के पीठ के नीचे लगाने के लिए, जिससे कि उसको आराम से बैठने को मिले। डेवी ने आभा के गाल पर अपना निप्पल फिराया - बच्चे को जानी पहचानी गुदगुदी महसूस हुई। वो मुस्कुराने लगी! एंजेलिक स्माइल! डेवी भी उसकी मुस्कुराने पर मुस्कुराए बिना न रह सकी। उसने ऐसे ही आभा को गुदगुदाते हुए अपना निप्पल उसके मुँह में दे दिया। उधर मैं इस अद्भुत से क्रिया कलाप को आश्चर्य और उत्सुकता से देख रहा था। पहली बार नहीं था - लेकिन फिर भी अद्भुत लगता। मैं उसके बगल में ही बैठा आभा को स्तनपान करते देखता रहा। दूध पीते हुए वो ऐसी संतोष भरी आवाज़ निकाल रही थी कि लग रहा था कि मेरा ही पेट भरा जा रहा हो। और भी एक बात पर आश्चर्य हो रहा था मुझको - देवयानी एक आधुनिक महिला थी। उसका सब कुछ बड़ा ही नया था। वो करियर वुमन थी, बहुत ही बड़ी पोस्ट पर थी, बढ़िया कमा रही थी इत्यादि! लेकिन फिर भी मातृत्व को ले कर वो कितनी ट्रेडिशनल थी! मैं सच में विश्वास नहीं करता था जब वो बोलती थी कि वो हमारे बच्चे को यथासंभव स्तनपान कराएगी।

लेकिन माँ बनना सब कुछ बदल देता है शायद? या फिर नहीं? हो सकता है कि डेवी हमेशा से ही ऐसी ही, कोमल हृदय की, सीधी सादी सोच वाली लड़की रही हो!

मैं बिना कुछ कहे, पूरा समय आभा को देखता रहा। जब उसका पेट भर गया तो वो यूँ ही, हमेशा की तरह निढाल हो कर सो गई। किसी प्रेरणावश मैंने देवयानी का हाथ अपने हाथ में लिया, और उसको चूम लिया।

“थैंक यू!” मैंने कहा।

“हे,” वो बोली, “क्या हो गया तुमको?”

“इट वास अ डिवाइन सीन!”

“हम्म! वेल, इट इस अ डिवाइन एक्सपीरियंस!”

“व्हाई डस इट फ़ैसीनेट मी सो मच?” मैंने आभा के नन्हे से हाथ को अपनी ऊँगली से सहलाते हुए कहा।

“क्योंकि तुम इसके पापा हो! आई थिंक यू विल बी फ़ैसीनेटेड बाई ऑलमोस्ट एवरीथिंग दैट शी डस! इस्पेसिअलि ड्यूरिंग द फर्स्ट थ्री ऑर फोर इयर्स!”

“हा हा! कितनी नन्ही सी है न? डर लगता है कि कहीं मैं इसको गिरा न दूँ, दबा न दूँ! कहीं इसको चोट न लग जाए!”

“मत डरो! दैट कंसर्न विल मेक यू अ ग्रेट डैड! यू आर सो जेंटल, एंड आई थिंक दैट आभा विल गेट सो मच लव फ्रॉम यू! सो, डोंट वरि!”

“आई ऍम हर फादर! आई ऍम सपोस्ड टू वरि!”

“हा हा हा हा हा! सोचो, जब ये अपने बॉयफ्रेंड को तुमसे मिलवाने लाएगी, तब तुम्हारा क्या हाल होगा?”

“बॉयफ्रेंड! हे भगवान्! अभी ये ठीक से दस दिन की भी नहीं हुई है, और हम बॉयफ्रेंड की बातें करने लग रहे हैं! अभी तो इसको सूसू पोटी से ही फुर्सत नहीं है!”

“हनी, रिलैक्स! बहुत समय है अभी। बॉयफ्रेंड तब आएगा, जब ये पंद्रह सोलह की होगी। अभी टाइम है।” डेवी हँसते हुए बोली, “और मैं भी तो हूँ न तुम्हारे साथ! अकेले थोड़े न ये सब झेलने दूँगी तुमको!”

“आई लव यू!”

“आई नो!”

“यू आर द बेस्ट!”

“आई नो!”

“आई ऍम सो ग्लैड दैट यू आर इन माय लाइफ!”

“सेम हियर!” वो मुस्कुराई, फिर कुछ रुक कर बोली, “पियोगे?”

“सच में?”

“हाँ - बहुत बन रहा है। डोंट वरि!”

मैंने देवयानी का एक चूचक अपने मुँह में लिया, और जीभ और तालू के बीच दबा कर हलके से चूसा। मीठे दूध की पहली पतली धाराएँ तुरंत उसके चूचक से बाह निकलीं और मेरे गले को तर करते हुए मेरे पेट को भरने लगीं। माँ और काजल के दूध का स्वाद भूल चुका था। यह एक नया स्वाद था। अलग ही तरह का! ऐसा लग रहा था कि जो हम खा रहे थे, उसकी महक, उसका स्वाद मिला हुआ हो डेवी के दूध में! लेकिन स्वादिष्ट, और थोड़ा क्रीमी।

दूध ख़तम होने पर मैंने महसूस किया कि डेवी के स्तन का भार थोड़ा कम हो गया। बाप रे, बेचारी को कितनी तकलीफ होती होगी न? अभी भी उसको रह रह कर शरीर में दर्द होता था। हम किसी मालिश वाली की तलाश में थे, और एक घर का काम करने वाली के भी। हाँलाकि माँ कभी कभी डेवी की मालिश कर देती थीं, लेकिन वो हमेशा यहाँ रह तो नहीं सकती थीं। जैसे ही कोई कामवाली मिल जाए, उनको डैड के पास वापस भेजा जा सकता था।

“कैसा लगा?” उसने पूछा।

“नेक्टर!”

वो मुस्कुराई। मैं उसको कुछ देर यूँ ही देखता रहा, और फिर हठात उठ कर उसके होंठों को चूम लिया। उसकी मुस्कान और भी चौड़ी हो गई।

“क्या हुआ?”

वो बोली, “कुछ नहीं। एक नर्स की बात याद हो आई - वो कह रही थी कि नए नए डैडीज़ को उनके बच्चों का नाम ले कर आराम से उल्लू बनाया जा सकता है!”

“बदमाश औरतें!” मैंने बुरा न मानते हुए कहा, “सब की सब!”

“बदमाश? हम?” वो हँसते हुए बोली, “मैं तो इनोसेंट सी थी - तुमने ही मुझे ख़राब कर दिया! और देखो, तुम्हारा बच्चा पाल रही हूँ!”

“मतलब ख़राब हो गई!”

“सेक्सी से नॉन सेक्सी हो गई!”

“वापस सेक्सी हो जाओगी! लेकिन मेरे लिए तुम दुनिया की सबसे सुन्दर लड़की हो!”

“सच में?”

“आई नेवर लाई टू यू!”

“कम हियर,” उसने मुझे चूमा, और फिर बोली, “गिव मी अ फ्यू वीक्स! देन व्ही विल हैव अमेज़िंग सेक्स!”

“आई ऍम इन नो हरी माय लव!” मैंने फिर से उसके होंठों को चूमा, “तुम जल्दी से ठीक हो जाओ, बस, मेरा इतना ही कंसर्न है!”

“कल ऑफिस जाओगे?”

“हाँ - छुट्टी ख़तम हो गई न!” मैंने उदास होते हुए कहा।

“ओह्हो! चिंता न करो!”

“कैसे न करूँ? और फिर इसकी याद भी तो बहुत आएगी न!”

देवयानी मुस्कुराई - वो समझ रही थी कि मैं क्या महसूस कर रहा था।

“यू ऑलवेज वांटेड अ बेबी, डिडन्ट यू?” उसने कहा।

“यस!” मैंने आभा को सोते हुए देखते हुए कहा।

“एक और चाहिए?”

मैं मुस्कुराया, “डेवी, माय लव... तुम्हारे कारण मुझे पहले ही इतनी सारी खुशियाँ मिल गई हैं!” फिर थोड़ा ठहर कर, “हाँ, एक और! लेकिन केवल तभी जब तुम पूरी तरह से हेल्दी हो जाओ! और ये, हमारी नन्ही सी गुड्डा थोड़ा बड़ी हो जाए!”

“हाऊ वैरी वाइज़ मिस्टर सिंह! आई ऍम हैप्पी दैट यू सेड इट! वैसे भी दो बच्चों में तीन से चार साल का गैप तो होना चाहिए! तब मैं फिर से परफेक्ट शेप और हेल्थ में रहूँगी बच्चे के लिए!”

“डेवी, मैंने पहले भी कहा है, कि ये सब तुम्हारा डिसीज़न रहेगा! तुमको इन बदमाशों को अपने पेट में नौ महीना पालना है! इसलिए मैं दूसरे बच्चे के लिए कभी ज़ोर नहीं दूँगा। तुम बढ़िया हो, तो सब अच्छा है! तुम मेरा प्यार हो! अगर तुमको कुछ हो गया, तो मेरा सब कुछ तबाह हो जायेगा!”

“अरे, ऐसे क्यों बोल रहे हो? मैं हूँ! ऐसे मत सोचो! ऐसे नहीं जाने वाली और इतनी जल्दी नहीं जाने वाली! मैं तुमको बहुत सताने के बाद ही जाऊँगी! कहे देती हूँ!”

“वायदा?”

“पक्का वायदा!” वो मुस्कुराई, “आई ऍम सो हैप्पी दैट आई ऍम योर वाइफ!”

“सो ऍम आई! मोर दैन यू नो!”

देवयानी ने मेरी आँखों में देखते हुए कहा, “आई थिंक आई नो, अमर! तुम्हारा चेहरा खुली किताब है - तुम्हारे थॉट्स सब साफ़ साफ़ दिखते हैं! तुमको क्या लगता है कि मैंने ऐसे ही तुमसे शादी कर ली? अरे तुम्हारे पास आने से मेरे दिल की धमक बढ़ जाती है! ऐसा शानदार हस्बैंड है मेरा! यू आर अ वंडरफुल हस्बैंड, एंड यू विल बी अ ग्रेट फादर!”

“एंड यू विल बी एन अमेज़िंग मदर!”

हाँ - माता पिता बन के हमारे बीच सेक्स गायब हो गया लेकिन हमको उस बात की कोई चिंता नहीं थी। सेक्स गायब हो गया हो तो होता रहे! लेकिन हमारे बीच का प्रेम प्रगाढ़ हो गया है। डेवी ने मेरी ज़िन्दगी में वो मुकाम, वो स्थान हासिल कर लिया था, जहाँ वो मेरे दिल की, मेरे संसार की रानी हो गई थी। हमारा सम्बन्ध अब अटूट हो गया था।


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नया सफ़र - अनमोल तोहफ़ा - Update #4


इस बार दीपावली बड़ी धूम धाम से मनाने का मन था। लेकिन दिल्ली से बाहर जाना असंभव था। आभा के जन्म के तीन ही हफ़्तों में दीपावली थी, और इतने कम समय में वो किसी सफ़र के योग्य नहीं थे। इसलिए माँ और डैड इस बार स्वयं आ गए। साथ में काजल, सुनील और लतिका। मेरा पूरा परिवार मेरे साथ! त्यौहार के दो दिन पहले मुझे एक कामवाली मिल गई, तो माँ और काजल ने उसको सब काम समझा दिया, और त्यौहार के बाद आने को कह दिया। उसको रवाना करने से पहले मैंने उसको कुछ रुपए दे दिए त्यौहार के लिए। वो बेचारी भी खुश हो कर चली गई।

वैसे देवयानी की हालत भी अब तक काफी ठीक हो गई थी - और समय के हिसाब से उसका गर्भावस्था वाला वज़न भी काफी कम हो चला था। माँ इस पूरे समय तक हमारे साथ रहीं, और उनके रहने से हमको बहुत सम्बल मिला। लेकिन अब उनको भी डैड से अलग रहते हुए एक लम्बा अर्सा हो गया था। दीपावली के बाद सुनील के बोर्ड की परीक्षा, और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं वाला दौर बस शुरू ही होने वाला था। इसलिए उनका वापस घर जाना आवश्यक था। अकेले काजल के ऊपर ही सब डाल कर निश्चिन्त तो नहीं रहा जा सकता था न? देवयानी और खुद मैंने भी उनसे कहा कि सब कुछ पटरी पर आ गया है, इसलिए वो त्यौहार के बाद निश्चिन्त हो कर वापस जा सकती हैं। माँ ने भी संतुष्ट हो कर वापस जाने के लिए हाँ कह दी। डैड इतने दिनों तक माँ के बग़ैर शायद पहली बार रहे थे। बीच बीच में वो यहाँ आते रहे, लेकिन हर बार, केवल एक दो ही दिनों के लिए!

दीपावली की जगमग देखने योग्य थी। हमारा पूरा घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था। हमारा - मतलब मेरा और देवयानी का, देवयानी के डैडी का, और डैड और माँ का! ख़ुशी थी, तो उसका इज़हार करना बहुत आवश्यक होता है। इस बार उपहार देने की बारी हमारी थी - देवयानी और मैंने ने लतिका के लिए सोने के कंगन और सोने की ज़ंजीर बनवाई थी... काजल के लिए सोने और हीरे के कर्णफूल... और सुनील के लिए नया सूट! उसको हमने वायदा किया कि अगर वो आई-आई-टी गया, तो उसको हम एक डेस्कटॉप देंगे! वो मारे ख़ुशी के फूला नहीं समाया। उधर डैड भी अपने समधी और अन्य छोटे बच्चों के लिए उपहार लाए हुए थे, और ससुर जी भी सभी के लिए उपहार लाए हुए थे। मैंने ससुर जी के लिए एक इम्पोर्टेड स्कॉच खरीदी थी। जयंती दी को मैंने एक साड़ी दी, और माँ और डैड ने सोने का हार! परिवार में सभी कुछ न कुछ उपहार पा कर प्रसन्न थे। स्वादिष्ट भोजन, संगीत, पटाखों, और हंसी मज़ाक करते करते दीपवाली के दो दिन कैसे बीत गए, पता ही न चला! फिर आई सबके वापस जाने की बेला।

अपनी पोती को छोड़ कर जाने का सोच कर ही माँ और डैड हलकान हुए जा रहे थे। काजल भी रो रही थी। जैसे तैसे उन सभी को समझा बुझा कर विदा किया गया। मैंने डेवी को एक बार बताया था कि माँ और डैड दीपावली पर सम्भोग अवश्य करते हैं। तो ये शायद पहली बार था कि इस परंपरा में अवधान हुआ था। वो भी यह सोच कर दुखी हुई। एक तो इतने दिनों का बिछोह, और ऊपर से अपनी प्यारी पोती को छोड़ कर जाना। लेकिन, यह ऐसा कोई कष्ट नहीं था जिसका कोई निवारण न हो। हमने सभी से वायदा किया कि जैसे ही हम तीनों यात्रा योग्य होंगे, भागे भागे चले आएंगे घर्म उन सभी से मिलने।


**


डैड अव्वल दर्ज़े के सज्जन पुरुष थे। अपनी प्यारी सी, सुन्दर सी पत्नी के इतने लम्बे वियोग में उनको तड़प तो हुई होगी - लेकिन उन्होंने इस जैसे कैसे कर के भी अपने ऊपर नियंत्रण रखा हुआ था। यह समझना आवश्यक है कि उनकी सज्जनता इसलिए भी गुणगान करने योग्य है क्योंकि घर में काजल जैसी सुन्दर सी स्त्री भी रह रही थी - जिससे उनका कोई सम्बन्ध नहीं था। कोई भी पुरुष उसकी सुंदरता पर बड़ी आसानी से फिसल सकता था। लेकिन डैड ने उसको अपनी बेटी का दर्जा दिया था, लिहाज़ा, वो पूरी मर्यादा से उस रिश्ते का पालन कर रहे थे। काजल भी उनका बहुत आदर सम्मान करती थी, और पूरे मनोयोग से उनकी देखभाल कर रही थी। अगर उसका फिसलने का मन भी किया होगा, तो उसने उस इच्छा पर नियंत्रण रखा था।

और सबसे बड़ी बात है माँ का व्यवहार! किसी परस्त्री को इतने प्रेम से, इतने विश्वास से अपने घर में, अपने संसार में जगह देना किसी छोटे मन वाली स्त्री के बस की बात नहीं। माँ ने अपने संसार का सब कुछ काजल और उसके बच्चों से बाँट लिया था। भोले बच्चों के व्यवहार से समझ में आता है कि उनको कितने प्रेम से पाला जाता है - लतिका अपनी माँ से अधिक, मेरी माँ से लिपटी रहती। उसको घर के सभी लोग ‘मम्मा की पूँछ’ कह कर छेड़ते। लेकिन वो इस बात से बुरा नहीं मानती थी। पूँछ तो वो थी ही अपनी मम्मा की!

घर आ कर डैड और माँ इन महीनों में पहली बार सम्भोग कर रहे थे।

“अरे यार, एक गड़बड़ हो गई!”

“क्या?”

“प्लीज तुम नाराज़ मत होना मुझसे?”

“बोलिए भी न! ऐसा क्या हो गया? और मैं आपसे कभी नाराज़ हुई हूँ, जो आज हो जाऊँगी?

“मुझे काजल का दूध पीना पड़ गया!”

“क्या? सच में? हा हा! कैसे?” माँ ने हँसते हुए पूछा।



फ्लैशबैक -

अचानक देर रात दरवाज़े पर दस्तख़त हुई, तो डैड की झपकी टूटी।

‘इस समय कौन?’

“ह... हाँ?” उन्होंने चौंक कर जागते हुए कहा।

“बाबू जी?” दरवाज़े से काजल की हिचक भरी आवाज़ सुनाई दी।

“हाँ बेटा?”

“जी मैं अंदर आ जाऊँ?” काजल बड़े संकोच से बोली।

“अरे, इसमें पूछने वाली क्या बात है? आओ!”

कमरे में अँधेरा था, लेकिन डैड को लग रहा था कि काजल उनके बिस्तर के बगल आ कर खड़ी हो गई है।

“क्या हुआ बेटा?”

डैड ने चिंतिति स्वर में कहा। काजल ने आज से पहले ये काम (मतलब उनके कमरे में बिना माँ की उपस्थिति के प्रवेश) नहीं किया था - इसलिए डैड की चिंता लाज़मी थी।

“बाबू जी, कैसे कहूँ! कुछ समझ ने नहीं आ रहा है!”

“क्या हुआ काजल?” अब उनकी चिंता और भी अधिक बढ़ गई थी, “कोई समस्या है?”

“बाबू जी, व... वो वो मैं!”

“क्या हुआ बेटा?” डैड ने काजल का हाथ पकड़ कर बिस्तर पर बैठा कर कहा, “संकोच न करो! बताओ न! क्या हुआ? सब ठीक है न? कोई तकलीफ है?”

“जी! व... वो मेरे सीने में दर्द हो रहा है!”

“सीने में दर्द?”

काजल ने अँधेरे में ही ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“गले और बाँह में तो नहीं?”

जब भी आप कुछ नया सुनते हैं, या देखते हैं, तो अक्सर उसके ‘चरम सीमा’ पर जा कर सोचने लगते हैं। अल्प-ज्ञान इसीलिए दुःखदायक होता है, और हानिकारक भी। डैड को लगा कि शायद काजल को दिल से सम्बंधित कोई समस्या हो गई है - हार्ट अटैक जैसी! काजल का मन हुआ कि वो अपना सर पीट ले - लेकिन गलती उसी की थी। ठीक से बताना चाहिए न अपनी समस्या।

“जी, वो वाला दर्द नहीं है ये...”

“क्या हुआ काजल? ठीक ठीक बताओ?”

“बाबू जी, बात दरअसल ये है कि पुचुकी तबियत खराब होने की वजह से चार दिन से मेरा दूध नहीं पी रही है। और सुनील भी पिछले दो दिनों न जाने क्यों दूध पीने से इंकार कर रहा है।”

“अच्छा?” फिर अचानक ही पूरी बात समझते हुए, “ओह, ओह! मतलब स्तनों में दर्द है?”

काजल - झिझकते हुए, “जी!”

“ओह!” डैड को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें इस मामले में।

“डॉक्टर को दिखा दें?”

“डॉक्टर?” काजल ने ही उनकी गुत्थी सुलझा दी, “आप पी लेंगे?”

“क्या?”

“बाबू जी, बहुत दर्द है! प्लीज आ पी लीजिए?”

“लेकिन बेटा, मैं तो तुमको अपनी बेटी मानता हूँ! मैं कैसे?” डैड उसकी बातों से एकदम भौचक्के रह गए!

“बाबू जी, आपके उसी विश्वास, उसी भरोसे के कारण ही तो मैं ये सब बोलने की हिम्मत कर पा रही हूँ।” काजल ने कहा।

उसकी आँखों में आँसू आ गए थे अब तक। कुछ दर्द के कारण, कुछ शर्म, और कुछ झिझक के कारण!

“वो सब तो ठीक है, लेकिन...”

“मैं मर जाऊँगी बाबू जी! बहुत दर्द हो रहा है। अगर बर्दाश्त कर पाती, तो मैं न कहती कुछ!”

बात तो सही थी।

ढाई साल से वो हमारे साथ रह रही थी, और एक बार भी उसने अपनी शीलता को अनावृत नहीं होने दिया। बस एक बार ‘वैसा’ कुछ हुआ था - वो नहाने के बाद जब बाथरूम से बाहर निकली थी, तो डैड ने उसको केवल पेटीकोट पहने बाहर आते देखा था। डैड को देखते ही उसने झट से अपने स्तन अपने हाथों से छुपा लिए थे, और वहाँ से भाग खड़ी हुई थी। डैड ने भी अपनी ‘बेटी’ को ऐसी हालत में देख कर तुरंत अपनी नज़रें हटा ली थीं। इसलिए दोनों में बाप बेटी वाला ही स्नेह, आदर, और विश्वास था।

“हे प्रभु! क्या करूँ मैं! अजीब धर्म-संकट है!” डैड ने बुदबुदाते हुए कहा।

“ठीक है! मत पीजिए। लेकिन ज़ोर से दबा दीजिए इनको। कुछ दूध निकल जायेगा, तो थोड़ा आराम मिल जाएगा! मुझ से तो वो भी नहीं हो पा रहा है। खुद से करने की हिम्मत नहीं हो पा रही है! छूने से ही इतना दर्द हो रहा है। दर्द से फ़ट जाएँगे दोनों, ऐसा लग रहा है!” काजल ने मिन्नत करी।

“मैं सुनील को बुला देता हूँ।” डैड ने कुछ देर सोच कर बीच का, और सुरक्षित रास्ता निकाला।

“सो रहा है वो... आहहह!”

“हे भगवान्!”

“आप ही… ओह्ह्ह बाबू जी! बहोत दर्द है!”

डैड घबरा गए। उनके पास काजल की सहायता करने का साधन था, इसलिए उनको ग्लानि भी हो रही थी कि वो उसकी सहायता नहीं कर रहे हैं। लेकिन उसकी उस कातर, दर्द भरी कराह ने डैड की हिचक तोड़ दी।

“अच्छा ठीक है! मैं ही...”

“ओह थैंक यू बाबू जी! थैंक यू!” काजल ने राहत की साँस ली।

“बेटा, मैं सिरहाने पर तकिए लगा देता हूँ; तुम पीठ से टेक लगा आराम से बैठ जाओ।”

“और... आप?”

“मैं तुम्हारे सामने रहूँगा!”

“नहीं! मेरा मतलब है - आप पिएंगे या कि दबाएँगे?” काजल अभी भी झिझक रही थी।

दोनों के बीच में एक अलग ही तरीके की दीवार थी, जो अब गिरने वाली थी।

“तुम क्या चाहती हो?”

“पी लीजिए न?” काजल ने झिझकते हुए कहा, भली भाँति जानते हुए कि स्तनपान करने में क्या करना होता है, “वेस्ट क्यों करना?”

“ठ ठीक है!”

डैड ने सिरहाने पर तीन तकिए लगा कर ऐसी व्यवस्था कर दी, कि काजल को आराम मिल सके। उसके दोनों स्तनों में प्रचुर मात्रा में दूध भरा हुआ था, और और भी बनता जा रहा था। वो तनाव तो कम नहीं हो रहा था। ऊपर से गुरुत्व के प्रभाव से और भी भीषण तनाव और दबाव बन रहा था। बात ठीक थी - एक कोण पर लेटने से वो तनाव कुछ कम हो जाता। काजल को लगभग तुरंत ही थोड़ा सा आराम तो मिला।

“आह्ह्ह!”

“क्या हुआ?”

“कुछ नहीं! थोड़ा आराम मिला।”

“हम्म! मैं बत्ती जला दूँ, या ऐसे ही?”

“जला दीजिए...”

डैड बिस्तर से उठे, और जा कर कमरे की बत्ती जला आए। रौशनी में उनको काजल का कातर, पीड़ित, और अश्रुपूरित चेहरा दिखाई दिया। उसके सीने पर उसका ब्लाउज़ और साड़ी का आँचल दूध के रिसने से भीग गए थे।

“मत रो काजल! अभी सब ठीक हो जाएगा।”

डैड की बात पर काजल बड़े जतन से मुस्कुराई।

डैड काजल से सामने आ बैठे। माहौल को थोड़ा हल्का बनाने की गरज से डैड ने कहा,

“अम्मा के बाद तुम्हारा ही दूध पी रहा हूँ!”

“दीदी ने नहीं पिलाया कभी?” काजल ने तुरंत कहा।

“दीदी?”

“मेरा मतलब माँ जी! मैं उनको दीदी कहती हूँ अब!”

“हा हा! सुमन को दीदी, और मुझे बाबू जी? अरे भई, अब इतना बूढ़ा भी नहीं हूँ मैं!”

“नहीं! आप बूढ़े नहीं है! आप मेरे दादा हैं - मेरे बड़े भैया! लेकिन ऐसा होने से आपका स्थान मेरे पिता से कम तो नहीं हो जाएगा!” काजल ने बड़ी शिष्टता से कहा, “आप मेरे लिए हमेशा मेरे बड़े, मेरे आदरणीय रहेंगे!”

“कौन बाप या भाई, अपनी बेटी या बहन के साथ ऐसे करता है?”

“आप ऐसे क्यों सोच रहे हैं? मैं तकलीफ़ में हूँ, और आप मेरी मदद कर रहे हैं! बस!” काजल ने कहा, और फिर उसने अपना आँचल अपने सीने से हटा दिया।

उसकी ब्लाउज पर दोनों स्तनों के सामने दूध रिसने के कारण बड़े बड़े गीले धब्बे बन गए थे। डैड ने काँपते हाथों से काजल की ब्लाउज सारे बटन धीरे धीरे, एक एक कर के खोल दिए। काजल की भी साँसें चढ़ गई थीं। यह सामान्य सी घटना नहीं थी। न तो काजल स्वेच्छा से डैड के सामने नग्न हुई थी, और न ही डैड के उसको नग्न देखने की कोई इच्छा पाली थी।

काजल ने ब्रा नहीं पहनी हुई थी - वरना अब तक तो वो पक्का दर्द से मर जाती। दोनों स्तन आकार में काफ़ी बड़े लग रहे थे - तनावग्रस्त! दोनों चूचक तन गए थे। और एरोला भी बाहर उभर आए थे। डैड ने ऊँगली से उसके चूचक के गिर्द छुआ। काजल की सिसकी निकल गई।

“बहुत सख्त हो गई है!” उन्होंने कहा।

“खेलिएगा बाद में! अभी जल्दी से पी कर इन्हे खाली कर दीजिए?”

“अरे, खेल नहीं रहा हूँ!”

“जो भी है!”

डैड ने कुछ नहीं कहा, और आगे बढ़ कर उन्होंने काजल के एक चूचक को अपने मुँह में भर लिया। साथ ही दोनों हाथों से उन्होंने उसके स्तन को पकड़ भी लिया। दरअसल उनका प्लान था कि उसके स्तनों को दोनों हाथों से दबा कर वो उसके चूचक को चूस लेंगे। और किया भी वही। दूध तुरंत ही फौव्वारे के रूप में निकला, लेकिन काजल को अपने स्तन में विस्फ़ोट की अनुभूति हुई।

“आआआहहहहह!” दर्द से उसकी चीख निकल गई।

डैड रुकने की हालत में नहीं थे। उनका मुँह दूध से भर गया था। जब तक उन्होंने दूध को थोड़ा थोड़ा कर के गटका, तब तक फिर से उनका मुँह भर गया। काजल सही कह रही थी - इतना दूध भरा रहेगा, तो दर्द तो अवश्यम्भावी ही है।

“आअह्ह्ह! मर गई! लेकिन कितना आराम मिला!”

डैड कुछ बोलते, कि काजल ने अपनी प्रतिक्रिया दिखा दी।

“आह! दूसरा वाला भी...”

डैड ने पहला चूचक छोड़ दिया - लेकिन उसमे से बूँद बूँद कर के दूध गिर रहा था। उन्होंने दूसरे वाले पर भी वही प्रक्रिया करी, जो पहले वाले पर करी थी। इस बार काजल केवल कराही - चीखी नहीं। उसके स्तनों में दो दिनों से बन रहा दबाव और भीषण दर्द अब समाप्त हो चुका था। लेकिन अभी भी उसके स्तन भरे हुए थे - कम से कम अस्सी प्रतिशत!

“दर्द कम हुआ बेटा?”

“हाँ भैया!” काजल ने राहत की साँस लेते हुए कहा, “बहुत आराम है!”

“मैं कल सुनील से कहूँगा कि वो दूध पीना बंद न करे!”

“जी! प्लीज समझा दीजिए उसको। बहुत दूध बनता है - अगर कोई पिएगा नहीं, तो मेरी तो हालत ही खराब हो जाएगी।”

“ठीक है! कल मैं उसको और पुचुकी - दोनों को समझा दूँगा!” डैड ने कहा, और काजल से अलग होने लगे।

“लेकिन आप कहाँ जा रहे हैं?”

“तुमने ही तो कहा कि दर्द कम हो गया!” डैड ने न समझते हुए कहा।

“जी, दर्द कम हुआ है, लेकिन आधे घंटे में फिर से होने लगेगा! मेरी दोनों छातियाँ अभी भी भरी हुई हैं!”

“ओह!”

“आप ही को पीना है सारा!”

“अच्छी बात है!” डैड ने कहा, “लेकिन अब थोड़ा आराम से हो जाओ?”

डैड ने कहा और उसकी ब्लाउज उतारने लगे, “तुम बहुत अच्छी हो काजल बेटा! मैं तुमको बहू के रूप में तो न पा सका, लेकिन मुझे ख़ुशी है कि तुम मेरी बेटी ज़रूर बन गई!”

“मैं भी तो बहुत भाग्यशाली हूँ बाबू जी,” काजल स्नेह से मुस्कुराई, “कि मुझे आप लोग मिले! आप दोनों मेरे लिए मेरे खुद के माँ बाप से कहीं अधिक बढ़ कर हैं!”

काजल के नग्न स्तनों को देख कर अचानक से ही डैड के चेहरे पर उदासी वाले भाव आ गए, “काश कि मेरी पोती रह जाती!”

“ओह बा...बू...जी…” काजल ने कहा और डैड को उसने अपने आलिंगन में भर लिया, “आ तो गई है न एक प्यारी सी गुड़िया!”

“हाँ बेटा,” डैड ने भरे हुए गले से, बहुत भावुक होते हुए कहा, “आ तो गई है!” फिर वो मुस्कुराए, “मेरा परिवार कितना सुन्दर सा है अब - मेरी एक बेटी है और एक बेटा है!”

काजल भी भावुक हुए बिना न रह सकी, लेकिन डैड की बात पर वो मुस्कुराई। उधर डैड बोलते जा रहे थे,

“और अब इतनी सुन्दर सी, गुणी बहू मिल गई! मेरा घर नाती, नातिन और पोती से भर गया है! मुझसे अधिक धनी कौन है भला?”

“हाँ बाबू जी! देवयानी दीदी बहुत प्यारी हैं! और बिटिया भी बिलकुल गुड़िया सी है!” फिर वो कुछ सोच कर मुस्कुराई, “हम तीनों सगी बहनों जैसी हो गई हैं!”

“हा हा हा!” उस भावुक अवस्था में भी डैड हँस पड़े, “विचित्र है मेरा परिवार!”

“आइए, अब आपको दूध पिला दूँ!” कह कर काजल ने एक स्तन डैड के मुँह में दे दिया।

कोई आधे घंटे के स्तनपान के बाद काजल के दोनों स्तन पूरी तरह से खाली हो गए, और वो पूरी तरह से संतोष हो कर मुस्कुराने लगी।

“थैंक यू, बाबू जी!”

“अपने बाप को थैंक यू बोलेगी अब?”

काजल उनकी बात पर मुस्कुराई; लेकिन उसकी आँखों में आँसुओं की झिलमिलाहट भी दिखाई दे रही थी।

“आपकी शरण में आ कर मैं आपकी बेटी भी बन गई, और आज आपको अपना दूध पिला कर आपकी माँ भी!”

डैड दबी आवाज़ में हँसने लगे, “सच में, बहुत विचित्र है मेरा परिवार! रिश्तों में कैसा उलटफेर!”

“विचित्र नहीं, स्नेही! आपके परिवार जैसा स्नेही परिवार मैंने कभी नहीं देखा! भगवान् सभी को ऐसे ही परिवार में पलने बढ़ने दें!” काजल ने आँसू पोंछते हुए कहा, “मैं सच में आपकी छाया में आ कर धन्य हो गई हूँ!”

“नहीं बेटा, धन्य हम हुए हैं, तुम सभी को पा कर!” डैड ने काजल का माथा चूमते हुए कहा, “भगवान् की बड़ी दया है मुझ पर! बेटी की तमन्ना थी - तुम मिल गई! तुम्हारे आने के बाद तो बस, खुशियाँ ही खुशियाँ आई हैं! मैं बहुत सुखी आदमी हूँ!”

“बाबू जी, एक बात बोलूँ?”

“बोलो बेटा?”

“मैं सोचती हूँ कि अब अमर को एक बेटा जाए, तो अपनी लतिका ब्याह दूँगी उसके साथ!”

“तुम भी न काजल! हा हा हा हा!” डैड ठठा कर हँसने लगे, “कितनी छोटी सी तो है पुचुकी और तुम उसकी शादी की सोच रही हो!”

“क्यों? क्यों न सोचूँ? माँ हूँ! और, क्या बुराई है मेरी बेटी में?”

“कोई भी बुराई नहीं है!” डैड बड़ी प्रसन्नता से बोले, “बहुत प्यारी बिटिया है पुचुकी! जहाँ भी जाएगी, उस घर को सुखी कर देगी! तो अगर पुचुकी इस घर की बहू बन कर आएगी, तो सबसे खुश मैं होऊँगा!”

“आप बहुत अच्छे हैं बाबू जी!”

“हाँ! पता है मुझे!” डैड मुस्कुराए, “चल, अब सो जा!”

“गुड नाईट बाबू जी!” कह कर काजल ने डैड के पाँव छू लिए!

“गुड नाईट बेटा!” डैड ने मुस्कुरा कर कहा, “और याद रखो - इस घर में बिटियाएँ अपने माँ बाप के पैर नहीं छूतीं! वो घर की लक्ष्मी होती हैं!”


**


प्रिय पाठकों - ये ‘फ्लैशबैक’ लिखने वाली उंगली मुझे अपने प्रिय Kala Nag भाई के कारण हुई है। उन्होंने अपनी कहानी ‘विश्वरूप’ में फ्लैशबैक पर फ्लैशबैक दे कर इतना पकाया है कि मैंने सोचा कि मैं भी अपने पाठकों को थोड़ा पकाऊँ! 😂😂😂
 
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avsji

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नया सफ़र - अनमोल तोहफ़ा - Update #5


“अच्छा जी!” माँ ने हँसते हुए कहा, “तो आपको अपनी बेटी का दूध पीने को मिल गया!”

“अरे ऐसे न कहो भाग्यवान! बेचारी को तकलीफ हो रही थी। और क्या करता मैं?”

“हा हा हा हा! अरे ठाकुर साहब, अच्छा किया आपने! मैं बस मज़ाक कर रही हूँ!” फिर माँ ने सोच कर कहा, “फिर सुनील को समझाया आपने?”

“हाँ!”


**


फ्लैशबैक -

सवेरे सवेरे सुनील नहा धो कर गुसलखाने से बाहर निकला ही था कि डैड ने उसको अपने पास बुलाया।

“जी बाबू जी?”

“बेटा सुनील, तुमसे एक बात कहनी थी!”

“जी बाबू जी! आप आदेश दीजिए!”

सुनील ने पूरी विनम्रता से कहा। सुनील इतना सभ्य, और सुशील था कि डैड का दिल बाग़ बाग़ हो गया! कैसे अच्छे संस्कार दिए थे काजल ने उसको! कैसा आज्ञाकारी, सुन्दर, और बलवान पुत्र है!

“नहीं बेटा! आदेश नहीं। बस इतना कहना था कि अपनी अम्मा का दूध पीना मत छोड़ो।”

“ओह्हो! अम्मा ने आपको भी परेशान कर दिया इतनी सी बात के लिए!” सुनील ने लड़कपन वाले अंदाज़ में कहा।

“अरे! इतनी सी बात नहीं है बेटा! और ऐसा नहीं है न कि तुम्हारे नुकसान के लिए हम ये कह रहे हैं।”

तब तक काजल भी वहाँ आ गई।

“पर बाबू जी, दूध पीना बच्चों का काम है! पुचुकी को पिलाएँ न! मैं तो अब बड़ा हो गया हूँ! इण्टर में हूँ! कौन लड़का इण्टर में अपनी माँ का दूध पीता है?”

“अमर भैया तो पीते थे?” काजल बोली, “और इतने बड़े हो गए हो, तो सब काम खुद से कर लो!”

“हाँ! पीते तो थे!” डैड ने काजल की बात का अनुमोदन किया।

सुनील चुप हो गया।

“अब बोलो?” काजल को डैड के सहारा मिला तो वो भी सम्मिलित हो गई, “इतने साल तुमको इतना सेया है, दूध पिलाया है, तभी तो ऐसे हुए हो!”

“अम्मा, इस बात से कहाँ इंकार कर रहा हूँ!”

लेकिन काजल अपनी ही झोंक में थी, “तुमको मुझसे शर्म आती है? बाबू जी से शरम आती है? माँ जी से शर्म आती है? इतने बड़े हो गए हो क्या तुम?”

“अम्मा?”

“इस घर में जितना प्यार मिलता है, वो सोच भी सकते हो?”

“अरे काजल,” डैड ने कहा, “ऐसे मत बोलो! तुम सभी हमारे बच्चे हो!”

“सुना?” काजल ने सुनील को सुनाते हुए कहा, “सुना तूने?”

“अम्मा, दूध पीने वाली बात को कहाँ से कहाँ ले जा रही हो!”

“तूने ही तो कहा न, कि बड़ा हो गया हूँ! इसलिए! और ये क्यों पहनी है? चल, हटा ये तौलिया... देखूँ तो कि कितने बड़े हो गए हो?”

कह कर उसने सुनील की कमर पर बंधी तौलिया खोल दी।

सुनील और लतिका - दोनों ही को मेरी ही तरह प्राकृतिक तरीके से रहने की शिक्षा दी जा रही थी, लेकिन सुनील थोड़ा शर्माता था। वो बहुत कम समय के लिए ही नग्न रहता था। शायद इसलिए क्योंकि उसकी एक छोटी बहन भी थी।

डैड ने उसको कोई डेढ़ साल बाद ऐसे नग्न देखा था। अब तक उसके अंडकोष भी थोड़े बढ़ गए थे, और उसका लिंग भी आंशिक रूप से स्तंभित हो गया था। उसके जघन क्षेत्र में घुंघराले बाल भी आने लग गए थे - मतलब लड़का जवान हो गया था! मेरी अपेक्षा सुनील ने दो साल पहले ही जवानी की दहलीज़ पर कदम रख दिया था। उसका शरीर वाकई उम्र के हिसाब से मज़बूत, दृढ़ और विकसित हो गया था। वैसे इस बात में उसके गुणवत्ता युक्त भोजन और नियमित व्यायाम करने का भारी योगदान था, लेकिन इससे माँ के दूध की महत्ता कम नहीं हो जाती। काजल की इस हरकत की आवश्यकता तो नहीं थी, लेकिन उसकी अपने एकलौते पुत्र को स्तनपान कराने की चाह बड़ी बलवती थी। अब वो इस काम को तब तक रोक नहीं सकती थी, जब तक उसकी छाती का दूध पूरी तरह से सूख न जाए।

उधर डैड भी अपने पुत्र की जवानी को देख कर प्रभावित और गौरान्वित हुए बिना न रह सके। उसके वृषण, खुद उनके वृषणों के मुकाबले, बस थोड़े ही छोटे थे।

“वैरी गुड, बेटा!” उन्होंने कहा, और फिर काजल की तरफ़ मुखातिब हो कर बोले, “काजल बेटा, मेरे बेटे के छुन्नू की तेल मालिश कर दिया करो! इसके पूरे शरीर के जैसा ये भी मज़बूत हो जाएगा!”

“बाबू जी!” सुनील ने शरमा कर अपना लिंग अपने हाथों से ढँक लिया!

“अरे इसमें शरमाने वाली क्या बात है? अच्छा बेटा एक बात बताओ - तुम्हारी क्लास में बाकी के लड़के तुम्हारी तरह बुद्धिमान हैं? बलशाली हैं?”

सुनील कुछ बोला नहीं।

डैड ने कहना जारी रखा,

“माँ का दूध अमृत होता है बेटा! जब तक मिले, पीते रहो। इससे शरीर मज़बूत और निरोगी होता है, और दिमाग तेज़!”

“जी,” सुनील ने शरमाते हुए कहा, “ठीक है बाबू जी!”

“आयुष्मान भव पुत्र! विजयी भव!” उन्होंने उसको आशीर्वाद दिया।


**


“अच्छा किया आपने, जो सुनील को आपने दूध पीने के लिए मना लिया।” माँ ने कहा, “बेचारी काजल! वो भी क्या करे! माँ है न! दूध जब बनता है, तो कोई क्या करे? मेरी भी तो वैसी ही हालत थी न!”

“हाँ अच्छा लगता है! आज कल बच्चे थोड़े बड़े क्या हो जाते हैं, खुद को माँ बाप से ऊपर मानने लगते हैं!”

“नहीं नहीं, सुनील वैसा नहीं है। बस थोड़ा शर्माता है!”

“काजल बता रही थी, कि तुम अभी भी सुनील को नहलाती हो?”

“हा हा! हाँ न! मैं तो उसको उसकी शादी के दिन भी नहलाऊँगी! बड़ा आया!”

“हा हा हा!” डैड ने हँसते हुए कहा, “तुम भी न!”


**


माँ डैड के कमरे के बाहर खड़े सुनील को जब अपना नाम सुनाई दिया तो वो ठिठक कर रुक गया।

आज उसको सोने में बहुत देर हो गई थी - अक्सर ही हो रही थी आज कल! बोर्ड एग्जाम की तैयारी, और फिर उसके साथ ही प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी में वो अब बहुत ही मशगूल हो गया था। उसकी हालत अर्जुन जैसी हो गई थी - अब उसको केवल अपना लक्ष्य दिख रहा था - और कुछ भी नहीं! अपनी अम्मा के सपने, बाबू जी और माँ जी की आशाएँ, अपने भैया का प्रोत्साहन और मार्गदर्शन - यह सब उसके लक्ष्य साधने में आयुध (weapons) जैसे थे! और पिछले चार सालों में उसने किसी को भी निराश नहीं किया था। वो हमेशा अपनी कक्षा में अव्वल आता रहा था, और पिछले चार सालों से लगातार उसको वजीफ़ा मिल रहा था। वो चाहता था कि यही क्रम आगे भी बरकरार रहे। अभी अव्वल आना, और प्रतियोगी परीक्षाओं में अव्वल आना - ये दोनों बड़ी अलग बातें हैं। इसलिए उसने एक तपस्या जैसी साध ली थी, और सुनिश्चित किया था कि वो अगले आधे साल तक कड़ी लगन से प्रतियोगिता को साधेगा। आज जब उसने अंततः घड़ी देखी तो पाया कि आधी रात हो गई है, और उसके जग का पानी ख़तम हो गया है। और इसीलिए वो सोने से पहले पानी पीने के लिए अपने कमरे से बाहर रसोई में आया था।

“क्या बात है ठाकुर साहब? दोबारा रेडी हैं आप तो?”

“इतने दिनों बाद मिली हो ठकुराईन! दो बार तो बनता है!”

“हा हा हा! हाँ जी! बिलकुल बनता है!”

सुनील का मन हुआ कि वो चुपचाप अपने काम से काम रखे, लेकिन कमरे के अंदर से आने वाली आहों ने उसके पैर रोक लिए। ऐसा नहीं है कि उसको सेक्स के बारे में कुछ आता नहीं था - मेरे मुकाबले तो वो बहुत ज्ञानी था। उसकी उम्र में मैं तो निरा भोंदू था। दोनों लिंगों के शरीर में जो भेद होता है, उसके कारण और उसके आकर्षण के बारे में उसको पूरा ज्ञान था। लिहाज़ा वो तुरंत समझ गया कि कमरे के अंदर क्या चल रहा था। उत्सुकतावश वो वहीं रुक गया। अगले कुछ मिनट तक कमरे के अंदर से बिस्तर के चरमराने की लयबद्ध आवाज़ें आती रहीं।

“आह्ह्ह! धीरे धीरे!” माँ की आवाज़ आई।

“आह मेरी जान! मज़ा आ गया! हमारी शादी के दिन याद आ गए!” डैड बोले!

“क्यों जी? ऐसे एक रात में मुझको कई बार सताने में आपको बहुत मज़ा आता है?”

“और नहीं तो क्या?”

“हा हा! उई माँ! धीरे धीरे! पहले ही मेरी हालत चरमरा गई है!”

“हा हा हा! हाँ, सॉरी मेरी जान! आज इतने दिनों के बाद मिली हो! इसलिए काबू नहीं रख पा रहा हूँ!”

“तो मत रखिए काबू! लेकिन थोड़ा आराम से!”

“हाँ मेरी प्यारी!”

सुनील उत्सुकतावश दरवाज़े से सट कर खड़ा हो गया। अंदर से वो डैड और माँ की बातचीत, और उनके बिस्तर की लयबद्ध तरीके से आगे पीछे खिसकने की आवाज़ आराम से सुन रहा था। कुछ मिनटों तक दोनों ऐसी ही मीठी मीठी बातें करते रहे और... साथ ही साथ कमरे से बिस्तर की लयबद्ध आवाज़ें आती रहीं।

“देखते देखते हमारा एक बेटा बड़ा हो गया, और बाप भी बन गया,” माँ बोलने लगीं, “और अब दूसरा बेटा भी बड़ी तेजी से बड़ा हो रहा है... कितना अच्छा लगता है न! अपना परिवार फलते फूलते देख कर?”

“हाँ! सच में! मुझे मालूम है, जैसे अमर ने किया है, वैसे ही सुनील भी बहुत तरक्की करेगा!”

“हा हा हा! हाँ - दोनों लगभग एक जैसे ही हैं! जैसे अमर था, वैसे ही सुनील भी!”

“हा हा हा! अच्छा है न! कम से कम हमारे बच्चे खुल के, अपने तरीके से जी रहे हैं! सोसाइटी के दबाव में नहीं जी रहे हैं! मेरे लिए तो बस इतना ही काफी है!” डैड ने कहा।

“हाँ, सच में!” माँ बोलीं।

“बस, ये अपनी काजल की भी कहीं बढ़िया सी जगह शादी हो जाए, तो समझो लाखों पुण्य पाए!”

‘अम्मा की शादी!’ सुनील के मन में ये बात बिजली की तरह कौंधी!

बच्चे अपने माँ बाप को ले कर बहुत पसेसिव होते हैं। यद्यपि सुनील को अच्छी तरह मालूम था कि उसका बाप एक नंबर का वाहियात, लम्पट और उग्र आदमी था, तथापि वो अपनी माँ को किसी और की पत्नी होते सोच नहीं पा रहा था। काजल अगर मेरी पत्नी बनती, तो अलग बात थी। मेरी शादी देवयानी से होने पर सुनील को थोड़ी निराशा तो अवश्य हुई थी। गैबी की मृत्यु के बाद उसको उम्मीद थी कि मैं और काजल शादी कर लेंगे। लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था।

“एक आदमी से बात तो हुई,” डैड ने कहा, “लेकिन उसके भी दो बच्चे हैं, और उम्र में भी वो बड़ा है बहुत! मुझे ठीक नहीं लगा! अपनी लड़की है। उसको ऐसे ही कहीं किसी खूँटे से थोड़े न बाँध देंगे!”

डैड की बात सुन कर सुनील को राहत हुई।

बिस्तर की कुछ और चरमराती हुई आवाज़ें आईं। हर धक्के के साथ माँ की आह निकल रही थी। और फिर अचानक ही डैड की एक लंबी, संतुष्टि भाई ‘आह्ह्ह्ह’ वाली आवाज़ सुनाई दी। उसके बाद सब कुछ शांत हो गया। सुनील भी दम साधे, दरवाज़े से कान सटाए सुन रहा था कि अंदर क्या हो रहा है। लेकिन आवाज़ें आनी बंद हो गईं। फिर कोई दो तीन मिनट के बाद माँ की आवाज़ आई,

“मैं पानी पीने जा रही हूँ! आपको चाहिए?”

डैड की आवाज़ नहीं सुनाई दी।

“सुनिए?” माँ ने पुकारा।

कोई आवाज़ नहीं।

“सो गए?”

फिर से कुछ नहीं।

सुनील को मालूम था कि माँ जी अब कमरे से बाहर निकलने ही वाली हैं। उसकी स्थिति कुछ ऐसी थी कि वो वहाँ से दूर, अपने कमरे में भाग नहीं सकता था - उसकी पदचाप से कोई भी समझ जाता कि वो वहीं कमरे के पास था। इसलिए वो कोशिश कर के जितनी जल्दी हो सके, रसोई की तरफ़ जाने लगा। वैसे तो सुनील के कमरे को छोड़ कर पूरे घर में अँधेरा था, लेकिन सुनील की समस्या कोई एक नहीं थी। एक तो वो पूर्णतः नग्न था; और दूसरा, माँ और डैड के इस अंतरंग ‘खेल’ को सुन कर उसका लिंग स्तंभित हो गया था। उसकी उम्र ऐसी थी कि एक बार लिंग में स्तम्भन आ जाए, तो जल्दी उतरता नहीं।

वो जब तक तेजी से रसोई में काउंटर तक ही पहुँच पाया कि माँ कमरे का दरवाज़ा खोल कर बाहर आ गईं। ठंडक का मौसम तो था, लेकिन घर के अंदर वैसी ठंडक नहीं थी। डैड ने कुछ इस तरह का घर बनवाया था कि सर्दियों में वो अपेक्षाकृत गर्म, और गर्मियों में अपेक्षाकृत ठंडा रहता था। मतलब बाहर अगर पाँच छः अंश तापमान भी हो, तो घर के अंदर कम से कम दस अंश अधिक तापमान रहता था। हाँ, बस, खिड़कियाँ बंद रखनी ज़रूरी थी। वैसे भी घर के हर कमरे में कोयले का अलाव जलता रहता था। एक बार कोयले में आँच बन जाए तो देर तक गर्मी देता है। उसकी राख में आलू डाल दी जाती थी। सवेरे तक हर अलाव में आलू अच्छी तरह से भुन कर तैयार हो जाता था - सवेरे उसका या तो आलू पराठा बन जाता, या फिर भरता, या फिर कोई सब्ज़ी! है न बढ़िया आईडिया!

सुनील की आकृति देख कर माँ ठिठक गईं।

“अरे, सुनील?”

“ज्जी!”

माँ को एक पल समझ में नहीं आया कि वो क्या करें!

माँ की भी एक दिक्कत थी - डैड के साथ सम्भोग के दौरान वो भी पूरी तरह निर्वस्त्र हो गई थीं, और कमरे से बाहर निकलते समय उन्होंने सोचा भी नहीं था कि किसी अन्य से मुलाकात हो सकती है। वैसे अँधेरे में न तो सुनील को माँ की नग्नता के बारे में, और न ही माँ को सुनील की नग्नता के बारे में संज्ञान हो सकता था। लेकिन हिचक दोनों को ही हो रही थी। सुनील की हिचक अपने लिंग के स्तम्भन को ले कर थी - माँ के सामने नग्न तो वो अक्सर ही होता रहता था। और माँ की हिचक अपनी पूर्ण नग्नता को ले कर थी। सुनील ने अक्सर लतिका को माँ के स्तनों से लगे देखा था, लेकिन वो एक अलग बात थी। इस समय माँ के शरीर पर वस्त्र का एक धागा भी नहीं था।

“कुछ चाहिए बेटा?”

“ज्जी व्वो म्मैं पानी पीने आया था!”

“ओह! मैं भी! नींद नहीं आ रही है?”

“ज्जी ब्बस सोने वाला ही था!”

तभी रसोईघर बाहर जाती हुई किसी गाड़ी की हेडलाइट के तेज प्रकाश से पूरी तरह से नहा गया। उस एक-डेढ़ सेकंड के प्रकाश में सुनील ने माँ का नग्न शरीर बखूबी देखा, और माँ ने उसका स्तंभित लिंग भी! जिस बात को ले कर दोनों घबरा रहे थे, वही बात हो गई। लेकिन अब क्या हो सकता था? दोनों ने बिना कुछ कहे पानी पिया।

फिर माँ ने ही कहा, “मैं सुला दूँ?”

माँ अक्सर ही सुनील को सुलाती थीं - ज्यादातर जबरदस्ती कर के। कि कहीं देर तक पढ़ने से आँखें न खराब हो जाएँ, या नींद ठीक न आने से कहीं सेहत न बिगड़ जाए। कभी कभी उसको पढ़ाते पढ़ाते देरी हो जाती थी, तो उसके साथ ही सो जाती थीं।

सुनील ने कुछ कहा नहीं। शायद ‘हाँ’ में सर हिलाया हो, या शायद ‘न’ में!

“बहुत देर हो गई है! मैं सुला देती हूँ!”

माँ ने उसका हाथ पकड़ा, और उसको उसके कमरे की ओर ले जाने लगीं। सुनील झिझक रहा था, लेकिन वो माँ को मना नहीं कर पा रहा था। उसका कमरा रौशनी से नहाया हुआ था। ऐसे में माँ का नग्न शरीर उससे छुप नहीं सकता था। वो उनकी अद्भुत सुंदरता को देख कर दंग रह गया - माँ कम उम्र लगती थीं, लेकिन निर्वस्त्र होने के बाद तो जैसे उनकी उम्र से पंद्रह बीस वर्ष घट गए हों! अगर वो फ़िटेड कुरता और चूड़ीदार शलवार पहन लें, तो कोई उनको बीस बाईस साल से अधिक का कह ही नहीं सकता! शायद इसीलिए वो कुछ ऐसे कपड़े पहनती थीं, कि उनकी उम्र अधिक लगे! उन कपड़ों में भी वो सत्ताईस अट्ठाईस से अधिक की नहीं लगती थीं।

ओह, कैसे गोल और ठोस स्तन! और बालों से ढंकी उनकी योनि!

‘इसी में बाबू जी अभी मेहनत कर रहे थे!’ उसके दिमाग में विचार कौंधा!

अगले ही क्षण उसको अपने विचार पर ग्लानि हुई।

वो दोनों की ही बड़ी इज़्ज़त करता था, और उनसे बहुत प्रेम भी करता था। इसलिए उसको दोनों के बारे में ऐसी सोच रखने के लिए बहुत ग्लानि हुई। उसको तो खुश होना चाहिए कि दोनों पति-पत्नी इतने प्रेम से रहते हैं। एक उसका बाप था, जो उसकी अम्मा को और उसको मारता पीटता रहता था। न उसको उसकी पढ़ाई लिखाई की चिंता थी, और न ही उसकी अम्मा की सेहत और इज़्ज़त से कोई सरोकार! उसको मोहब्बत थी तो बस शराब से और अपने आप से! एक कोठरी की कुटिया में हर रोज़ उसकी अम्मा का बलात्कार करता था वो आदमी! वो तो एक दिन उसकी अम्मा ने न जाने किस प्रेरणा से कुटिया में पड़ी लकड़ी का लट्ठा उसके बाप के सर दे मारा, नहीं तो यही सिलसिला हमेशा चलता रहता।

अचानक ही जैसे उसके भाग्य की उस बदसूरत इबारत को किसी ने मिटा कर, स्वर्णिम अक्षरों से एक नई किस्मत लिख दी हो! उसकी अम्मा की उस एक हरकत से जैसे उसके परिवार की दिशा ही बदल गई। पहले तो भैया ने, और फिर बाबू जी ने उनको संरक्षण दिया! और अब देखो - क्या ऐसा कभी लगता भी है कि वो इस घर का हिस्सा नहीं? लतिका अपनी अम्मा से अधिक, अपनी मम्मा से प्यार करती है! और वो खुद, वो सपने देख पा रहा है, जो वो देखने का सोचता भी नहीं था। उसका तो पूरा जीवन ही सपने जैसा लगता है न?

वो अपने विचारों की उधेड़बुन से बाहर तब आया जब उसने देखा कि माँ जी ने उसको बिस्तर पर लिटा दिया है, और खुद भी उसके बगल आ कर लेट गई हैं।

उसका लिंग अभी भी तना हुआ था - पहले से भी अधिक!

वो कैसे इस तथ्य को झुठला दे कि एक अनन्य सुंदरी उसके बगल नग्न लेटी हुई है? वो और उसकी अम्मा (काजल) कभी कभी ये बात करते थे, कि अगर माँ जी बम्बई या दिल्ली में रहतीं, तो अवश्य ही वो आज फिल्मों में टॉप की हेरोईन होतीं! इतनी सुन्दर हैं वो! और उनका व्यवहार तो - आह! कैसा भोलापन! कैसी निश्छलता!! और कितना प्रेम!!! साक्षात् देवी हैं देवी! और वही देवी उसके बगल लेटी हुई हैं। नग्न! उसको शर्म भी आ रही थी कि चाह कर भी उसका लिंग बैठ नहीं पा रहा था। पूरी निर्लज्जता से वो स्तंभित था, और रह रह कर झटके खा रहा था।

माँ ने उसके शरीर की नक़ाबू हरकतों को देखा और उसको शांत करने के लिए हाथ बढ़ा कर उसके वृषणों को हल्का सा दबाया। सुनील की आँखें बंद हो गईं और उसके गले से एक आह निकल पड़ी। उसको लग रहा था कि उसका लिंग फ़ट पड़ेगा। उसी समय माँ का हाथ उसके लिंग पर आ गया। उसके लिंग को अपनी हथेली में पकड़ कर उन्होंने दो बार सरकाया ही था, कि सुनील को अपने आसन्न स्खलन का अनुभव हुआ। वो कुछ कह पाता या कर पाता, कि उसके पहले ही वीर्य की एक मोटी धारा उसके लिंग से निकल पड़ी, और उसके पेट और माँ के हाथ पर आ कर गिरी।

“आह्ह्ह्ह!” सुनील कांपती हुई आवाज़ में कराहा।

“कुछ नहीं, कुछ नहीं!” माँ ने उसको स्वांत्वना देते हुए कहा, “होने दो!”

यह जो कुछ हुआ, माँ ने उसका प्लान तो नहीं किया था, इसलिए वो भी हतप्रभ रह गईं। लेकिन सुनील को शर्म न हो, ग्लानि न हो, इसलिए वो ऐसे बर्ताव कर रही थीं कि जैसे यह सामान्य क्रिया हो।

“उम्मफ्फ...”

“बस बस, हो गया!” माँ अभी भी उसके लिंग पर अपना हाथ चला रही थीं। सुनील को तीन चार और स्खलन हुए।

थोड़ी ही देर में उसका लिंग सिकुड़ कर शांत हो गया। उसको समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे! माँ की उम्मीदों के विपरीत उसको बहुत शर्म भी आ रही थी, और बहुत ग्लानि भी हो रही थी। और भी शर्मनाक बात यह हो गई कि जब वो यह सब (हस्त-मैथुन) खुद से करता था तो दो तीन मिनट तो करता ही था, लेकिन यहाँ तो इनके छूते ही सब निकल गया! माँ का हाथ उसके वीर्य से भीग गया था। लेकिन उन्होंने अभी भी उसका लिंग नहीं छोड़ा था।

“अभी ठीक लग रहा है?”

सुनील ने कुछ नहीं कहा।

“सुनील! प्लीज़ ऐसे मत रहो!” माँ ने मनुहार करते हुए कहा, “बोलो न! ठीक लग रहा है?”

सुनील ने ‘न’ में सर हिलाया। उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े।

“अरे अरे,” माँ ने सुनील को अपनी छाती में भींचते हुए कहा, “मेरा जवान लड़का हो कर ऐसे रो रहा है?”

सुनील अभी भी कुछ नहीं बोला - बस फ़फ़क कर रोने लगा। उसके आँसू माँ की छाती को भिगोने लगे। माँ कुछ देर तक उसको बहलाती रहीं।

“बस बस! अब और रोना नहीं!”

कुछ देर बाद वो शांत हो गया - अब उसको और भी शर्म आ रही थी। एक तो पहले ही बेइज़्ज़ती हो गई थी, और अब रो रो कर उसने अपनी इज़्ज़त कर और भी फालूदा बना दिया।

“मुझसे बात नहीं करोगे?”

सुनील ने ‘न’ में सर हिलाया।

“नहीं करोगे?” माँ उसकी लड़कपन भरी हरकत पर मुस्कुरा दीं।

सुनील ने फिर से ‘न’ में सर हिलाया।

“मतलब मुझसे कट्टी?”

वो इस बार कुछ नहीं बोला।

“चलो अच्छा है! कम से कम कट्टी तो नहीं है!” माँ मुस्कुराते हुए बोलीं।

सुनील अभी भी कुछ नहीं बोला।

“अच्छा चलो! अब सुला दूँ तुमको?”

सुनील ने फिर से ‘न’ में सर हिलाया।

“आज रात नहीं सोना है?”

सुनील कुछ नहीं बोला।

“ठीक है! मत सोना! लेकिन मुझे तो बहुत नींद आ रही है!” माँ ने कहा और सुनील से लिपटते हुए बोलीं, “मैं तो यहीं सो रही हूँ!”

सुनील फिर से कुछ नहीं बोला।

माँ कुछ क्षण कुछ नहीं बोली, फिर उन्होंने सुनील से पूछा,

“अभी ठीक लग रहा है?”

इस बार सुनील ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

फिर उसने अचानक ही कहा,

“ओह! देखिये न - आपका भी सब गन्दा हो गया!”

सुनील का इशारा अपने वीर्य की तरफ था, जो माँ के लिपटने के कारण उनके शरीर पर भी लग गया। कमरे की ठंडक से वो भी ठण्डा हो रहा था, और अब शरीर पर महसूस हो रहा था।

“अरे! तो आप उतना नाराज़ नहीं है मुझसे!” माँ ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा।

सुनील उनकी बात को अनसुना करते हुए बोला, “मैं साफ़ कर देता हूँ!”

और उठ कर अपना एक रूमाल ले आया और उसने सबसे पहले माँ का पेट और हाथ साफ़ किया और फिर अपना। फिर वो बिस्तर पर वापस आ कर लेट गया।

“आप सच में यहीं सोएँगी?”

“क्यों? अपने बेटे के साथ सोने में मुझे किसी से कोई परमिशन लेनी पड़ेगी क्या?”

“नहीं नहीं!” सुनील उनकी बात से अचकचा गया, “ठीक है!”

उसने कम्बल खींचा, और माँ को ओढ़ा दिया। उसका बिस्तर सिंगल बेड था - इसलिए चिपक कर सोना अपरिहार्य था। माँ को इस बात में कोई परेशानी नहीं थी।

“दूध पियोगे?”

सुनील ने ‘न’ में सर हिलाया।

माँ मुस्कुरा दीं और फिर सुनील से चिपक कर सो गईं। कुछ देर में सुनील को भी नींद आ गई।


**


“अरे काजल, कब से बैठी हो?”

सवेरे माँ की आँख खुली, तो सामने काजल को बैठे पाया।

“यही कोई दस मिनट से,” काजल मुस्कुराते हुए, दबी आवाज़ में बोली, “तुम दोनों खूब प्यारे लग रहे थे, इसलिए जगाया नहीं!”

माँ भी मुस्कुराईं, “तू भी न!” और अँगड़ाई लेने को हुईं। तब उनको महसूस हुआ कि सुनील का हाथ उनके एक स्तन पर था।

“तब से पकड़े हुए है - एक पल के लिए भी नहीं छोड़ा!” काजल ने माँ को छेड़ते हुए कहा, “और मेरा तो मुँह में लेने में शरम आती है लाट साहब को!”

“ऐसा नहीं है काजल! बस शर्माता है, और कुछ नहीं!”

“कल पिलाया था क्या इसको?”

“न रे! अपने आप से तो पीता ही नहीं! और अगर मुझको दूध आता, तो जबरदस्ती न पिला देती?”

कह कर माँ बिस्तर से चुपके से उतर खड़ी हुईं - उनको पूर्ण नग्न देख कर काजल मुस्कुराई।

“क्या दीदी, मेरा लड़का बहक जाएगा ऐसे तो!”

“हाँ! अपनी माँ को नंगी देख कर कोई बेटा बहकता है क्या?”

काजल कुछ कहने को हुई, लेकिन चुप रह गई। फिर उसकी नज़र बिस्तर पर सोते हुए सुनील पर पड़ी। माँ के हटने से उसकी चादर भी उतर गई थी। उसका लिंग तना हुआ था - मॉर्निंग वुडी कहते हैं न, वही! किसी अन्य घर में यह कोई सामान्य घटना नहीं मानी जा सकती। लेकिन हमारे यहाँ यह कोई बहुत असामान्य घटना नहीं थी। माँ ने देखा कि काजल क्या देख रही है।

“ए, नज़र मत लगा!”

“क्या दीदी, माँ की भी नज़र लगती है क्या अपने बच्चों को!”

उसकी बात पर माँ मुस्कुरा दीं, “जवान हो गया है बेटा!”

“हाँ न! इसका नुनु भी बड़ा हो गया और बिची भी!”

“अभी और होगा! इसीलिए तो तुमको कहा था कि जब तक पॉसिबल हो, तब तक पिलाओ अपना दूध!”

“हाँ, तो मैंने ही कब मना किया? ये तो ये ही लाट साहब हैं, जो मानते नहीं!”

माँ मुस्कुराईं, “सोचो - कुछ ही दिनों में इसके लिए लड़की ढूंढनी पड़ेगी!”

“हाँ न! अपनी ही जैसी कोई लड़की ढूंढनी शुरू कर दो इसके लिए!” काजल बोली।

“अरे, अपने जैसी क्यों?” माँ ने अंततः अँगड़ाई लेते हुए कहा, “थोड़ा जवान होती, तो मैं खुद ही कर लेती इससे शादी!”

“हाँ, अभी खुद को माँ बोल रही थी, और अभी खुद को बीवी!”

काजल और माँ दोनों ही इस बात पर हँसने लगीं। सुनील ने उठने की आवाज़ निकाली।

“शशशीहह!” माँ ने अपने होंठों पर उंगली रखते हुए काजल को चुप रहना का संकेत किया, “देर में सोया है! और सो लेने दो!”

काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, और कमरे से बाहर निकल आई। माँ भी पीछे पीछे बाहर आ गईं।

“बिट्टो रानी उठी?” माँ ने पूछा।

“उठी होती तो तुम्हारी छाती से न चिपकी रहती?”

“अरे तो तू क्यों जल रही है?” माँ ने काजल को छेड़ा, “तू भी तो चिपकी रहती है मौका पा कर!”

माँ ने ज़ोर की अँगड़ाई भरी। काजल की नज़र माँ की योनि पर पड़ी।

“क्या दीदी, कल रात मज़े किए तुमने और बाबूजी ने?”

“मुझको दीदी, और उनको बाबूजी बोल कर ये सब बोलती हो न तो लगता है जैसे न जाने क्या कर दिया हम दोनों ने!”

“हा हा हा! अरे, लेकिन तुमको माँ जी कहने का मन नहीं करता न अब! और बाबूजी को बाबूजी ही कहने का मन होता है।”

“ठीक है - जो मन करे कहो हमको! लेकिन प्यार बनाए रखना बस!”

“तुम तो मेरी पक्की सहेली हो दीदी! तुमसे मैं कैसे प्यार न करूँ!” काजल अचानक ही भावुक हो गई।


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Lib am

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नया सफ़र - अनमोल तोहफ़ा - Update #4


इस बार दीपावली बड़ी धूम धाम से मनाने का मन था। लेकिन दिल्ली से बाहर जाना असंभव था। आभा के जन्म के तीन ही हफ़्तों में दीपावली थी, और इतने कम समय में वो किसी सफ़र के योग्य नहीं थे। इसलिए माँ और डैड इस बार स्वयं आ गए। साथ में काजल, सुनील और लतिका। मेरा पूरा परिवार मेरे साथ! त्यौहार के दो दिन पहले मुझे एक कामवाली मिल गई, तो माँ और काजल ने उसको सब काम समझा दिया, और त्यौहार के बाद आने को कह दिया। उसको रवाना करने से पहले मैंने उसको कुछ रुपए दे दिए त्यौहार के लिए। वो बेचारी भी खुश हो कर चली गई।

वैसे देवयानी की हालत भी अब तक काफी ठीक हो गई थी - और समय के हिसाब से उसका गर्भावस्था वाला वज़न भी काफी कम हो चला था। माँ इस पूरे समय तक हमारे साथ रहीं, और उनके रहने से हमको बहुत सम्बल मिला। लेकिन अब उनको भी डैड से अलग रहते हुए एक लम्बा अर्सा हो गया था। दीपावली के बाद सुनील के बोर्ड की परीक्षा, और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं वाला दौर बस शुरू ही होने वाला था। इसलिए उनका वापस घर जाना आवश्यक था। अकेले काजल के ऊपर ही सब डाल कर निश्चिन्त तो नहीं रहा जा सकता था न? देवयानी और खुद मैंने भी उनसे कहा कि सब कुछ पटरी पर आ गया है, इसलिए वो त्यौहार के बाद निश्चिन्त हो कर वापस जा सकती हैं। माँ ने भी संतुष्ट हो कर वापस जाने के लिए हाँ कह दी। डैड इतने दिनों तक माँ के बग़ैर शायद पहली बार रहे थे। बीच बीच में वो यहाँ आते रहे, लेकिन हर बार, केवल एक दो ही दिनों के लिए!

दीपावली की जगमग देखने योग्य थी। हमारा पूरा घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था। हमारा - मतलब मेरा और देवयानी का, देवयानी के डैडी का, और डैड और माँ का! ख़ुशी थी, तो उसका इज़हार करना बहुत आवश्यक होता है। इस बार उपहार देने की बारी हमारी थी - देवयानी और मैंने ने लतिका के लिए सोने के कंगन और सोने की ज़ंजीर बनवाई थी... काजल के लिए सोने और हीरे के कर्णफूल... और सुनील के लिए नया सूट! उसको हमने वायदा किया कि अगर वो आई-आई-टी गया, तो उसको हम एक डेस्कटॉप देंगे! वो मारे ख़ुशी के फूला नहीं समाया। उधर डैड भी अपने समधी और अन्य छोटे बच्चों के लिए उपहार लाए हुए थे, और ससुर जी भी सभी के लिए उपहार लाए हुए थे। मैंने ससुर जी के लिए एक इम्पोर्टेड स्कॉच खरीदी थी। जयंती दी को मैंने एक साड़ी दी, और माँ और डैड ने सोने का हार! परिवार में सभी कुछ न कुछ उपहार पा कर प्रसन्न थे। स्वादिष्ट भोजन, संगीत, पटाखों, और हंसी मज़ाक करते करते दीपवाली के दो दिन कैसे बीत गए, पता ही न चला! फिर आई सबके वापस जाने की बेला।

अपनी पोती को छोड़ कर जाने का सोच कर ही माँ और डैड हलकान हुए जा रहे थे। काजल भी रो रही थी। जैसे तैसे उन सभी को समझा बुझा कर विदा किया गया। मैंने डेवी को एक बार बताया था कि माँ और डैड दीपावली पर सम्भोग अवश्य करते हैं। तो ये शायद पहली बार था कि इस परंपरा में अवधान हुआ था। वो भी यह सोच कर दुखी हुई। एक तो इतने दिनों का बिछोह, और ऊपर से अपनी प्यारी पोती को छोड़ कर जाना। लेकिन, यह ऐसा कोई कष्ट नहीं था जिसका कोई निवारण न हो। हमने सभी से वायदा किया कि जैसे ही हम तीनों यात्रा योग्य होंगे, भागे भागे चले आएंगे घर्म उन सभी से मिलने।


**


डैड अव्वल दर्ज़े के सज्जन पुरुष थे। अपनी प्यारी सी, सुन्दर सी पत्नी के इतने लम्बे वियोग में उनको तड़प तो हुई होगी - लेकिन उन्होंने इस जैसे कैसे कर के भी अपने ऊपर नियंत्रण रखा हुआ था। यह समझना आवश्यक है कि उनकी सज्जनता इसलिए भी गुणगान करने योग्य है क्योंकि घर में काजल जैसी सुन्दर सी स्त्री भी रह रही थी - जिससे उनका कोई सम्बन्ध नहीं था। कोई भी पुरुष उसकी सुंदरता पर बड़ी आसानी से फिसल सकता था। लेकिन डैड ने उसको अपनी बेटी का दर्जा दिया था, लिहाज़ा, वो पूरी मर्यादा से उस रिश्ते का पालन कर रहे थे। काजल भी उनका बहुत आदर सम्मान करती थी, और पूरे मनोयोग से उनकी देखभाल कर रही थी। अगर उसका फिसलने का मन भी किया होगा, तो उसने उस इच्छा पर नियंत्रण रखा था।

और सबसे बड़ी बात है माँ का व्यवहार! किसी परस्त्री को इतने प्रेम से, इतने विश्वास से अपने घर में, अपने संसार में जगह देना किसी छोटे मन वाली स्त्री के बस की बात नहीं। माँ ने अपने संसार का सब कुछ काजल और उसके बच्चों से बाँट लिया था। भोले बच्चों के व्यवहार से समझ में आता है कि उनको कितने प्रेम से पाला जाता है - लतिका अपनी माँ से अधिक, मेरी माँ से लिपटी रहती। उसको घर के सभी लोग ‘मम्मा की पूँछ’ कह कर छेड़ते। लेकिन वो इस बात से बुरा नहीं मानती थी। पूँछ तो वो थी ही अपनी मम्मा की!

घर आ कर डैड और माँ इन महीनों में पहली बार सम्भोग कर रहे थे।

“अरे यार, एक गड़बड़ हो गई!”

“क्या?”

“प्लीज तुम नाराज़ मत होना मुझसे?”

“बोलिए भी न! ऐसा क्या हो गया? और मैं आपसे कभी नाराज़ हुई हूँ, जो आज हो जाऊँगी?

“मुझे काजल का दूध पीना पड़ गया!”

“क्या? सच में? हा हा! कैसे?” माँ ने हँसते हुए पूछा।



फ्लैशबैक -

अचानक देर रात दरवाज़े पर दस्तख़त हुई, तो डैड की झपकी टूटी।

‘इस समय कौन?’

“ह... हाँ?” उन्होंने चौंक कर जागते हुए कहा।

“बाबू जी?” दरवाज़े से काजल की हिचक भरी आवाज़ सुनाई दी।

“हाँ बेटा?”

“जी मैं अंदर आ जाऊँ?” काजल बड़े संकोच से बोली।

“अरे, इसमें पूछने वाली क्या बात है? आओ!”

कमरे में अँधेरा था, लेकिन डैड को लग रहा था कि काजल उनके बिस्तर के बगल आ कर खड़ी हो गई है।

“क्या हुआ बेटा?”

डैड ने चिंतिति स्वर में कहा। काजल ने आज से पहले ये काम (मतलब उनके कमरे में बिना माँ की उपस्थिति के प्रवेश) नहीं किया था - इसलिए डैड की चिंता लाज़मी थी।

“बाबू जी, कैसे कहूँ! कुछ समझ ने नहीं आ रहा है!”

“क्या हुआ काजल?” अब उनकी चिंता और भी अधिक बढ़ गई थी, “कोई समस्या है?”

“बाबू जी, व... वो वो मैं!”

“क्या हुआ बेटा?” डैड ने काजल का हाथ पकड़ कर बिस्तर पर बैठा कर कहा, “संकोच न करो! बताओ न! क्या हुआ? सब ठीक है न? कोई तकलीफ है?”

“जी! व... वो मेरे सीने में दर्द हो रहा है!”

“सीने में दर्द?”

काजल ने अँधेरे में ही ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“गले और बाँह में तो नहीं?”

जब भी आप कुछ नया सुनते हैं, या देखते हैं, तो अक्सर उसके ‘चरम सीमा’ पर जा कर सोचने लगते हैं। अल्प-ज्ञान इसीलिए दुःखदायक होता है, और हानिकारक भी। डैड को लगा कि शायद काजल को दिल से सम्बंधित कोई समस्या हो गई है - हार्ट अटैक जैसी! काजल का मन हुआ कि वो अपना सर पीट ले - लेकिन गलती उसी की थी। ठीक से बताना चाहिए न अपनी समस्या।

“जी, वो वाला दर्द नहीं है ये...”

“क्या हुआ काजल? ठीक ठीक बताओ?”

“बाबू जी, बात दरअसल ये है कि पुचुकी तबियत खराब होने की वजह से चार दिन से मेरा दूध नहीं पी रही है। और सुनील भी पिछले दो दिनों न जाने क्यों दूध पीने से इंकार कर रहा है।”

“अच्छा?” फिर अचानक ही पूरी बात समझते हुए, “ओह, ओह! मतलब स्तनों में दर्द है?”

काजल - झिझकते हुए, “जी!”

“ओह!” डैड को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें इस मामले में।

“डॉक्टर को दिखा दें?”

“डॉक्टर?” काजल ने ही उनकी गुत्थी सुलझा दी, “आप पी लेंगे?”

“क्या?”

“बाबू जी, बहुत दर्द है! प्लीज आ पी लीजिए?”

“लेकिन बेटा, मैं तो तुमको अपनी बेटी मानता हूँ! मैं कैसे?” डैड उसकी बातों से एकदम भौचक्के रह गए!

“बाबू जी, आपके उसी विश्वास, उसी भरोसे के कारण ही तो मैं ये सब बोलने की हिम्मत कर पा रही हूँ।” काजल ने कहा।

उसकी आँखों में आँसू आ गए थे अब तक। कुछ दर्द के कारण, कुछ शर्म, और कुछ झिझक के कारण!

“वो सब तो ठीक है, लेकिन...”

“मैं मर जाऊँगी बाबू जी! बहुत दर्द हो रहा है। अगर बर्दाश्त कर पाती, तो मैं न कहती कुछ!”

बात तो सही थी।

ढाई साल से वो हमारे साथ रह रही थी, और एक बार भी उसने अपनी शीलता को अनावृत नहीं होने दिया। बस एक बार ‘वैसा’ कुछ हुआ था - वो नहाने के बाद जब बाथरूम से बाहर निकली थी, तो डैड ने उसको केवल पेटीकोट पहने बाहर आते देखा था। डैड को देखते ही उसने झट से अपने स्तन अपने हाथों से छुपा लिए थे, और वहाँ से भाग खड़ी हुई थी। डैड ने भी अपनी ‘बेटी’ को ऐसी हालत में देख कर तुरंत अपनी नज़रें हटा ली थीं। इसलिए दोनों में बाप बेटी वाला ही स्नेह, आदर, और विश्वास था।

“हे प्रभु! क्या करूँ मैं! अजीब धर्म-संकट है!” डैड ने बुदबुदाते हुए कहा।

“ठीक है! मत पीजिए। लेकिन ज़ोर से दबा दीजिए इनको। कुछ दूध निकल जायेगा, तो थोड़ा आराम मिल जाएगा! मुझ से तो वो भी नहीं हो पा रहा है। खुद से करने की हिम्मत नहीं हो पा रही है! छूने से ही इतना दर्द हो रहा है। दर्द से फ़ट जाएँगे दोनों, ऐसा लग रहा है!” काजल ने मिन्नत करी।

“मैं सुनील को बुला देता हूँ।” डैड ने कुछ देर सोच कर बीच का, और सुरक्षित रास्ता निकाला।

“सो रहा है वो... आहहह!”

“हे भगवान्!”

“आप ही… ओह्ह्ह बाबू जी! बहोत दर्द है!”

डैड घबरा गए। उनके पास काजल की सहायता करने का साधन था, इसलिए उनको ग्लानि भी हो रही थी कि वो उसकी सहायता नहीं कर रहे हैं। लेकिन उसकी उस कातर, दर्द भरी कराह ने डैड की हिचक तोड़ दी।

“अच्छा ठीक है! मैं ही...”

“ओह थैंक यू बाबू जी! थैंक यू!” काजल ने राहत की साँस ली।

“बेटा, मैं सिरहाने पर तकिए लगा देता हूँ; तुम पीठ से टेक लगा आराम से बैठ जाओ।”

“और... आप?”

“मैं तुम्हारे सामने रहूँगा!”

“नहीं! मेरा मतलब है - आप पिएंगे या कि दबाएँगे?” काजल अभी भी झिझक रही थी।

दोनों के बीच में एक अलग ही तरीके की दीवार थी, जो अब गिरने वाली थी।

“तुम क्या चाहती हो?”

“पी लीजिए न?” काजल ने झिझकते हुए कहा, भली भाँति जानते हुए कि स्तनपान करने में क्या करना होता है, “वेस्ट क्यों करना?”

“ठ ठीक है!”

डैड ने सिरहाने पर तीन तकिए लगा कर ऐसी व्यवस्था कर दी, कि काजल को आराम मिल सके। उसके दोनों स्तनों में प्रचुर मात्रा में दूध भरा हुआ था, और और भी बनता जा रहा था। वो तनाव तो कम नहीं हो रहा था। ऊपर से गुरुत्व के प्रभाव से और भी भीषण तनाव और दबाव बन रहा था। बात ठीक थी - एक कोण पर लेटने से वो तनाव कुछ कम हो जाता। काजल को लगभग तुरंत ही थोड़ा सा आराम तो मिला।

“आह्ह्ह!”

“क्या हुआ?”

“कुछ नहीं! थोड़ा आराम मिला।”

“हम्म! मैं बत्ती जला दूँ, या ऐसे ही?”

“जला दीजिए...”

डैड बिस्तर से उठे, और जा कर कमरे की बत्ती जला आए। रौशनी में उनको काजल का कातर, पीड़ित, और अश्रुपूरित चेहरा दिखाई दिया। उसके सीने पर उसका ब्लाउज़ और साड़ी का आँचल दूध के रिसने से भीग गए थे।

“मत रो काजल! अभी सब ठीक हो जाएगा।”

डैड की बात पर काजल बड़े जतन से मुस्कुराई।

डैड काजल से सामने आ बैठे। माहौल को थोड़ा हल्का बनाने की गरज से डैड ने कहा,

“अम्मा के बाद तुम्हारा ही दूध पी रहा हूँ!”

“दीदी ने नहीं पिलाया कभी?” काजल ने तुरंत कहा।

“दीदी?”

“मेरा मतलब माँ जी! मैं उनको दीदी कहती हूँ अब!”

“हा हा! सुमन को दीदी, और मुझे बाबू जी? अरे भई, अब इतना बूढ़ा भी नहीं हूँ मैं!”

“नहीं! आप बूढ़े नहीं है! आप मेरे दादा हैं - मेरे बड़े भैया! लेकिन ऐसा होने से आपका स्थान मेरे पिता से कम तो नहीं हो जाएगा!” काजल ने बड़ी शिष्टता से कहा, “आप मेरे लिए हमेशा मेरे बड़े, मेरे आदरणीय रहेंगे!”

“कौन बाप या भाई, अपनी बेटी या बहन के साथ ऐसे करता है?”

“आप ऐसे क्यों सोच रहे हैं? मैं तकलीफ़ में हूँ, और आप मेरी मदद कर रहे हैं! बस!” काजल ने कहा, और फिर उसने अपना आँचल अपने सीने से हटा दिया।

उसकी ब्लाउज पर दोनों स्तनों के सामने दूध रिसने के कारण बड़े बड़े गीले धब्बे बन गए थे। डैड ने काँपते हाथों से काजल की ब्लाउज सारे बटन धीरे धीरे, एक एक कर के खोल दिए। काजल की भी साँसें चढ़ गई थीं। यह सामान्य सी घटना नहीं थी। न तो काजल स्वेच्छा से डैड के सामने नग्न हुई थी, और न ही डैड के उसको नग्न देखने की कोई इच्छा पाली थी।

काजल ने ब्रा नहीं पहनी हुई थी - वरना अब तक तो वो पक्का दर्द से मर जाती। दोनों स्तन आकार में काफ़ी बड़े लग रहे थे - तनावग्रस्त! दोनों चूचक तन गए थे। और एरोला भी बाहर उभर आए थे। डैड ने ऊँगली से उसके चूचक के गिर्द छुआ। काजल की सिसकी निकल गई।

“बहुत सख्त हो गई है!” उन्होंने कहा।

“खेलिएगा बाद में! अभी जल्दी से पी कर इन्हे खाली कर दीजिए?”

“अरे, खेल नहीं रहा हूँ!”

“जो भी है!”

डैड ने कुछ नहीं कहा, और आगे बढ़ कर उन्होंने काजल के एक चूचक को अपने मुँह में भर लिया। साथ ही दोनों हाथों से उन्होंने उसके स्तन को पकड़ भी लिया। दरअसल उनका प्लान था कि उसके स्तनों को दोनों हाथों से दबा कर वो उसके चूचक को चूस लेंगे। और किया भी वही। दूध तुरंत ही फौव्वारे के रूप में निकला, लेकिन काजल को अपने स्तन में विस्फ़ोट की अनुभूति हुई।

“आआआहहहहह!” दर्द से उसकी चीख निकल गई।

डैड रुकने की हालत में नहीं थे। उनका मुँह दूध से भर गया था। जब तक उन्होंने दूध को थोड़ा थोड़ा कर के गटका, तब तक फिर से उनका मुँह भर गया। काजल सही कह रही थी - इतना दूध भरा रहेगा, तो दर्द तो अवश्यम्भावी ही है।

“आअह्ह्ह! मर गई! लेकिन कितना आराम मिला!”

डैड कुछ बोलते, कि काजल ने अपनी प्रतिक्रिया दिखा दी।

“आह! दूसरा वाला भी...”

डैड ने पहला चूचक छोड़ दिया - लेकिन उसमे से बूँद बूँद कर के दूध गिर रहा था। उन्होंने दूसरे वाले पर भी वही प्रक्रिया करी, जो पहले वाले पर करी थी। इस बार काजल केवल कराही - चीखी नहीं। उसके स्तनों में दो दिनों से बन रहा दबाव और भीषण दर्द अब समाप्त हो चुका था। लेकिन अभी भी उसके स्तन भरे हुए थे - कम से कम अस्सी प्रतिशत!

“दर्द कम हुआ बेटा?”

“हाँ भैया!” काजल ने राहत की साँस लेते हुए कहा, “बहुत आराम है!”

“मैं कल सुनील से कहूँगा कि वो दूध पीना बंद न करे!”

“जी! प्लीज समझा दीजिए उसको। बहुत दूध बनता है - अगर कोई पिएगा नहीं, तो मेरी तो हालत ही खराब हो जाएगी।”

“ठीक है! कल मैं उसको और पुचुकी - दोनों को समझा दूँगा!” डैड ने कहा, और काजल से अलग होने लगे।

“लेकिन आप कहाँ जा रहे हैं?”

“तुमने ही तो कहा कि दर्द कम हो गया!” डैड ने न समझते हुए कहा।

“जी, दर्द कम हुआ है, लेकिन आधे घंटे में फिर से होने लगेगा! मेरी दोनों छातियाँ अभी भी भरी हुई हैं!”

“ओह!”

“आप ही को पीना है सारा!”

“अच्छी बात है!” डैड ने कहा, “लेकिन अब थोड़ा आराम से हो जाओ?”

डैड ने कहा और उसकी ब्लाउज उतारने लगे, “तुम बहुत अच्छी हो काजल बेटा! मैं तुमको बहू के रूप में तो न पा सका, लेकिन मुझे ख़ुशी है कि तुम मेरी बेटी ज़रूर बन गई!”

“मैं भी तो बहुत भाग्यशाली हूँ बाबू जी,” काजल स्नेह से मुस्कुराई, “कि मुझे आप लोग मिले! आप दोनों मेरे लिए मेरे खुद के माँ बाप से कहीं अधिक बढ़ कर हैं!”

काजल के नग्न स्तनों को देख कर अचानक से ही डैड के चेहरे पर उदासी वाले भाव आ गए, “काश कि मेरी पोती रह जाती!”

“ओह बा...बू...जी…” काजल ने कहा और डैड को उसने अपने आलिंगन में भर लिया, “आ तो गई है न एक प्यारी सी गुड़िया!”

“हाँ बेटा,” डैड ने भरे हुए गले से, बहुत भावुक होते हुए कहा, “आ तो गई है!” फिर वो मुस्कुराए, “मेरा परिवार कितना सुन्दर सा है अब - मेरी एक बेटी है और एक बेटा है!”

काजल भी भावुक हुए बिना न रह सकी, लेकिन डैड की बात पर वो मुस्कुराई। उधर डैड बोलते जा रहे थे,

“और अब इतनी सुन्दर सी, गुणी बहू मिल गई! मेरा घर नाती, नातिन और पोती से भर गया है! मुझसे अधिक धनी कौन है भला?”

“हाँ बाबू जी! देवयानी दीदी बहुत प्यारी हैं! और बिटिया भी बिलकुल गुड़िया सी है!” फिर वो कुछ सोच कर मुस्कुराई, “हम तीनों सगी बहनों जैसी हो गई हैं!”

“हा हा हा!” उस भावुक अवस्था में भी डैड हँस पड़े, “विचित्र है मेरा परिवार!”

“आइए, अब आपको दूध पिला दूँ!” कह कर काजल ने एक स्तन डैड के मुँह में दे दिया।

कोई आधे घंटे के स्तनपान के बाद काजल के दोनों स्तन पूरी तरह से खाली हो गए, और वो पूरी तरह से संतोष हो कर मुस्कुराने लगी।

“थैंक यू, बाबू जी!”

“अपने बाप को थैंक यू बोलेगी अब?”

काजल उनकी बात पर मुस्कुराई; लेकिन उसकी आँखों में आँसुओं की झिलमिलाहट भी दिखाई दे रही थी।

“आपकी शरण में आ कर मैं आपकी बेटी भी बन गई, और आज आपको अपना दूध पिला कर आपकी माँ भी!”

डैड दबी आवाज़ में हँसने लगे, “सच में, बहुत विचित्र है मेरा परिवार! रिश्तों में कैसा उलटफेर!”

“विचित्र नहीं, स्नेही! आपके परिवार जैसा स्नेही परिवार मैंने कभी नहीं देखा! भगवान् सभी को ऐसे ही परिवार में पलने बढ़ने दें!” काजल ने आँसू पोंछते हुए कहा, “मैं सच में आपकी छाया में आ कर धन्य हो गई हूँ!”

“नहीं बेटा, धन्य हम हुए हैं, तुम सभी को पा कर!” डैड ने काजल का माथा चूमते हुए कहा, “भगवान् की बड़ी दया है मुझ पर! बेटी की तमन्ना थी - तुम मिल गई! तुम्हारे आने के बाद तो बस, खुशियाँ ही खुशियाँ आई हैं! मैं बहुत सुखी आदमी हूँ!”

“बाबू जी, एक बात बोलूँ?”

“बोलो बेटा?”

“मैं सोचती हूँ कि अब अमर को एक बेटा जाए, तो अपनी लतिका ब्याह दूँगी उसके साथ!”

“तुम भी न काजल! हा हा हा हा!” डैड ठठा कर हँसने लगे, “कितनी छोटी सी तो है पुचुकी और तुम उसकी शादी की सोच रही हो!”

“क्यों? क्यों न सोचूँ? माँ हूँ! और, क्या बुराई है मेरी बेटी में?”

“कोई भी बुराई नहीं है!” डैड बड़ी प्रसन्नता से बोले, “बहुत प्यारी बिटिया है पुचुकी! जहाँ भी जाएगी, उस घर को सुखी कर देगी! तो अगर पुचुकी इस घर की बहू बन कर आएगी, तो सबसे खुश मैं होऊँगा!”

“आप बहुत अच्छे हैं बाबू जी!”

“हाँ! पता है मुझे!” डैड मुस्कुराए, “चल, अब सो जा!”

“गुड नाईट बाबू जी!” कह कर काजल ने डैड के पाँव छू लिए!

“गुड नाईट बेटा!” डैड ने मुस्कुरा कर कहा, “और याद रखो - इस घर में बिटियाएँ अपने माँ बाप के पैर नहीं छूतीं! वो घर की लक्ष्मी होती हैं!”


**


प्रिय पाठकों - ये ‘फ्लैशबैक’ लिखने वाली उंगली मुझे अपने प्रिय Kala Nag भाई के कारण हुई है। उन्होंने अपनी कहानी ‘विश्वरूप’ में फ्लैशबैक पर फ्लैशबैक दे कर इतना पकाया है कि मैंने सोचा कि मैं भी अपने पाठकों को थोड़ा पकाऊँ! 😂😂😂
नया सफ़र - अनमोल तोहफ़ा - Update #4


इस बार दीपावली बड़ी धूम धाम से मनाने का मन था। लेकिन दिल्ली से बाहर जाना असंभव था। आभा के जन्म के तीन ही हफ़्तों में दीपावली थी, और इतने कम समय में वो किसी सफ़र के योग्य नहीं थे। इसलिए माँ और डैड इस बार स्वयं आ गए। साथ में काजल, सुनील और लतिका। मेरा पूरा परिवार मेरे साथ! त्यौहार के दो दिन पहले मुझे एक कामवाली मिल गई, तो माँ और काजल ने उसको सब काम समझा दिया, और त्यौहार के बाद आने को कह दिया। उसको रवाना करने से पहले मैंने उसको कुछ रुपए दे दिए त्यौहार के लिए। वो बेचारी भी खुश हो कर चली गई।

वैसे देवयानी की हालत भी अब तक काफी ठीक हो गई थी - और समय के हिसाब से उसका गर्भावस्था वाला वज़न भी काफी कम हो चला था। माँ इस पूरे समय तक हमारे साथ रहीं, और उनके रहने से हमको बहुत सम्बल मिला। लेकिन अब उनको भी डैड से अलग रहते हुए एक लम्बा अर्सा हो गया था। दीपावली के बाद सुनील के बोर्ड की परीक्षा, और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं वाला दौर बस शुरू ही होने वाला था। इसलिए उनका वापस घर जाना आवश्यक था। अकेले काजल के ऊपर ही सब डाल कर निश्चिन्त तो नहीं रहा जा सकता था न? देवयानी और खुद मैंने भी उनसे कहा कि सब कुछ पटरी पर आ गया है, इसलिए वो त्यौहार के बाद निश्चिन्त हो कर वापस जा सकती हैं। माँ ने भी संतुष्ट हो कर वापस जाने के लिए हाँ कह दी। डैड इतने दिनों तक माँ के बग़ैर शायद पहली बार रहे थे। बीच बीच में वो यहाँ आते रहे, लेकिन हर बार, केवल एक दो ही दिनों के लिए!

दीपावली की जगमग देखने योग्य थी। हमारा पूरा घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था। हमारा - मतलब मेरा और देवयानी का, देवयानी के डैडी का, और डैड और माँ का! ख़ुशी थी, तो उसका इज़हार करना बहुत आवश्यक होता है। इस बार उपहार देने की बारी हमारी थी - देवयानी और मैंने ने लतिका के लिए सोने के कंगन और सोने की ज़ंजीर बनवाई थी... काजल के लिए सोने और हीरे के कर्णफूल... और सुनील के लिए नया सूट! उसको हमने वायदा किया कि अगर वो आई-आई-टी गया, तो उसको हम एक डेस्कटॉप देंगे! वो मारे ख़ुशी के फूला नहीं समाया। उधर डैड भी अपने समधी और अन्य छोटे बच्चों के लिए उपहार लाए हुए थे, और ससुर जी भी सभी के लिए उपहार लाए हुए थे। मैंने ससुर जी के लिए एक इम्पोर्टेड स्कॉच खरीदी थी। जयंती दी को मैंने एक साड़ी दी, और माँ और डैड ने सोने का हार! परिवार में सभी कुछ न कुछ उपहार पा कर प्रसन्न थे। स्वादिष्ट भोजन, संगीत, पटाखों, और हंसी मज़ाक करते करते दीपवाली के दो दिन कैसे बीत गए, पता ही न चला! फिर आई सबके वापस जाने की बेला।

अपनी पोती को छोड़ कर जाने का सोच कर ही माँ और डैड हलकान हुए जा रहे थे। काजल भी रो रही थी। जैसे तैसे उन सभी को समझा बुझा कर विदा किया गया। मैंने डेवी को एक बार बताया था कि माँ और डैड दीपावली पर सम्भोग अवश्य करते हैं। तो ये शायद पहली बार था कि इस परंपरा में अवधान हुआ था। वो भी यह सोच कर दुखी हुई। एक तो इतने दिनों का बिछोह, और ऊपर से अपनी प्यारी पोती को छोड़ कर जाना। लेकिन, यह ऐसा कोई कष्ट नहीं था जिसका कोई निवारण न हो। हमने सभी से वायदा किया कि जैसे ही हम तीनों यात्रा योग्य होंगे, भागे भागे चले आएंगे घर्म उन सभी से मिलने।


**


डैड अव्वल दर्ज़े के सज्जन पुरुष थे। अपनी प्यारी सी, सुन्दर सी पत्नी के इतने लम्बे वियोग में उनको तड़प तो हुई होगी - लेकिन उन्होंने इस जैसे कैसे कर के भी अपने ऊपर नियंत्रण रखा हुआ था। यह समझना आवश्यक है कि उनकी सज्जनता इसलिए भी गुणगान करने योग्य है क्योंकि घर में काजल जैसी सुन्दर सी स्त्री भी रह रही थी - जिससे उनका कोई सम्बन्ध नहीं था। कोई भी पुरुष उसकी सुंदरता पर बड़ी आसानी से फिसल सकता था। लेकिन डैड ने उसको अपनी बेटी का दर्जा दिया था, लिहाज़ा, वो पूरी मर्यादा से उस रिश्ते का पालन कर रहे थे। काजल भी उनका बहुत आदर सम्मान करती थी, और पूरे मनोयोग से उनकी देखभाल कर रही थी। अगर उसका फिसलने का मन भी किया होगा, तो उसने उस इच्छा पर नियंत्रण रखा था।

और सबसे बड़ी बात है माँ का व्यवहार! किसी परस्त्री को इतने प्रेम से, इतने विश्वास से अपने घर में, अपने संसार में जगह देना किसी छोटे मन वाली स्त्री के बस की बात नहीं। माँ ने अपने संसार का सब कुछ काजल और उसके बच्चों से बाँट लिया था। भोले बच्चों के व्यवहार से समझ में आता है कि उनको कितने प्रेम से पाला जाता है - लतिका अपनी माँ से अधिक, मेरी माँ से लिपटी रहती। उसको घर के सभी लोग ‘मम्मा की पूँछ’ कह कर छेड़ते। लेकिन वो इस बात से बुरा नहीं मानती थी। पूँछ तो वो थी ही अपनी मम्मा की!

घर आ कर डैड और माँ इन महीनों में पहली बार सम्भोग कर रहे थे।

“अरे यार, एक गड़बड़ हो गई!”

“क्या?”

“प्लीज तुम नाराज़ मत होना मुझसे?”

“बोलिए भी न! ऐसा क्या हो गया? और मैं आपसे कभी नाराज़ हुई हूँ, जो आज हो जाऊँगी?

“मुझे काजल का दूध पीना पड़ गया!”

“क्या? सच में? हा हा! कैसे?” माँ ने हँसते हुए पूछा।



फ्लैशबैक -

अचानक देर रात दरवाज़े पर दस्तख़त हुई, तो डैड की झपकी टूटी।

‘इस समय कौन?’

“ह... हाँ?” उन्होंने चौंक कर जागते हुए कहा।

“बाबू जी?” दरवाज़े से काजल की हिचक भरी आवाज़ सुनाई दी।

“हाँ बेटा?”

“जी मैं अंदर आ जाऊँ?” काजल बड़े संकोच से बोली।

“अरे, इसमें पूछने वाली क्या बात है? आओ!”

कमरे में अँधेरा था, लेकिन डैड को लग रहा था कि काजल उनके बिस्तर के बगल आ कर खड़ी हो गई है।

“क्या हुआ बेटा?”

डैड ने चिंतिति स्वर में कहा। काजल ने आज से पहले ये काम (मतलब उनके कमरे में बिना माँ की उपस्थिति के प्रवेश) नहीं किया था - इसलिए डैड की चिंता लाज़मी थी।

“बाबू जी, कैसे कहूँ! कुछ समझ ने नहीं आ रहा है!”

“क्या हुआ काजल?” अब उनकी चिंता और भी अधिक बढ़ गई थी, “कोई समस्या है?”

“बाबू जी, व... वो वो मैं!”

“क्या हुआ बेटा?” डैड ने काजल का हाथ पकड़ कर बिस्तर पर बैठा कर कहा, “संकोच न करो! बताओ न! क्या हुआ? सब ठीक है न? कोई तकलीफ है?”

“जी! व... वो मेरे सीने में दर्द हो रहा है!”

“सीने में दर्द?”

काजल ने अँधेरे में ही ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“गले और बाँह में तो नहीं?”

जब भी आप कुछ नया सुनते हैं, या देखते हैं, तो अक्सर उसके ‘चरम सीमा’ पर जा कर सोचने लगते हैं। अल्प-ज्ञान इसीलिए दुःखदायक होता है, और हानिकारक भी। डैड को लगा कि शायद काजल को दिल से सम्बंधित कोई समस्या हो गई है - हार्ट अटैक जैसी! काजल का मन हुआ कि वो अपना सर पीट ले - लेकिन गलती उसी की थी। ठीक से बताना चाहिए न अपनी समस्या।

“जी, वो वाला दर्द नहीं है ये...”

“क्या हुआ काजल? ठीक ठीक बताओ?”

“बाबू जी, बात दरअसल ये है कि पुचुकी तबियत खराब होने की वजह से चार दिन से मेरा दूध नहीं पी रही है। और सुनील भी पिछले दो दिनों न जाने क्यों दूध पीने से इंकार कर रहा है।”

“अच्छा?” फिर अचानक ही पूरी बात समझते हुए, “ओह, ओह! मतलब स्तनों में दर्द है?”

काजल - झिझकते हुए, “जी!”

“ओह!” डैड को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें इस मामले में।

“डॉक्टर को दिखा दें?”

“डॉक्टर?” काजल ने ही उनकी गुत्थी सुलझा दी, “आप पी लेंगे?”

“क्या?”

“बाबू जी, बहुत दर्द है! प्लीज आ पी लीजिए?”

“लेकिन बेटा, मैं तो तुमको अपनी बेटी मानता हूँ! मैं कैसे?” डैड उसकी बातों से एकदम भौचक्के रह गए!

“बाबू जी, आपके उसी विश्वास, उसी भरोसे के कारण ही तो मैं ये सब बोलने की हिम्मत कर पा रही हूँ।” काजल ने कहा।

उसकी आँखों में आँसू आ गए थे अब तक। कुछ दर्द के कारण, कुछ शर्म, और कुछ झिझक के कारण!

“वो सब तो ठीक है, लेकिन...”

“मैं मर जाऊँगी बाबू जी! बहुत दर्द हो रहा है। अगर बर्दाश्त कर पाती, तो मैं न कहती कुछ!”

बात तो सही थी।

ढाई साल से वो हमारे साथ रह रही थी, और एक बार भी उसने अपनी शीलता को अनावृत नहीं होने दिया। बस एक बार ‘वैसा’ कुछ हुआ था - वो नहाने के बाद जब बाथरूम से बाहर निकली थी, तो डैड ने उसको केवल पेटीकोट पहने बाहर आते देखा था। डैड को देखते ही उसने झट से अपने स्तन अपने हाथों से छुपा लिए थे, और वहाँ से भाग खड़ी हुई थी। डैड ने भी अपनी ‘बेटी’ को ऐसी हालत में देख कर तुरंत अपनी नज़रें हटा ली थीं। इसलिए दोनों में बाप बेटी वाला ही स्नेह, आदर, और विश्वास था।

“हे प्रभु! क्या करूँ मैं! अजीब धर्म-संकट है!” डैड ने बुदबुदाते हुए कहा।

“ठीक है! मत पीजिए। लेकिन ज़ोर से दबा दीजिए इनको। कुछ दूध निकल जायेगा, तो थोड़ा आराम मिल जाएगा! मुझ से तो वो भी नहीं हो पा रहा है। खुद से करने की हिम्मत नहीं हो पा रही है! छूने से ही इतना दर्द हो रहा है। दर्द से फ़ट जाएँगे दोनों, ऐसा लग रहा है!” काजल ने मिन्नत करी।

“मैं सुनील को बुला देता हूँ।” डैड ने कुछ देर सोच कर बीच का, और सुरक्षित रास्ता निकाला।

“सो रहा है वो... आहहह!”

“हे भगवान्!”

“आप ही… ओह्ह्ह बाबू जी! बहोत दर्द है!”

डैड घबरा गए। उनके पास काजल की सहायता करने का साधन था, इसलिए उनको ग्लानि भी हो रही थी कि वो उसकी सहायता नहीं कर रहे हैं। लेकिन उसकी उस कातर, दर्द भरी कराह ने डैड की हिचक तोड़ दी।

“अच्छा ठीक है! मैं ही...”

“ओह थैंक यू बाबू जी! थैंक यू!” काजल ने राहत की साँस ली।

“बेटा, मैं सिरहाने पर तकिए लगा देता हूँ; तुम पीठ से टेक लगा आराम से बैठ जाओ।”

“और... आप?”

“मैं तुम्हारे सामने रहूँगा!”

“नहीं! मेरा मतलब है - आप पिएंगे या कि दबाएँगे?” काजल अभी भी झिझक रही थी।

दोनों के बीच में एक अलग ही तरीके की दीवार थी, जो अब गिरने वाली थी।

“तुम क्या चाहती हो?”

“पी लीजिए न?” काजल ने झिझकते हुए कहा, भली भाँति जानते हुए कि स्तनपान करने में क्या करना होता है, “वेस्ट क्यों करना?”

“ठ ठीक है!”

डैड ने सिरहाने पर तीन तकिए लगा कर ऐसी व्यवस्था कर दी, कि काजल को आराम मिल सके। उसके दोनों स्तनों में प्रचुर मात्रा में दूध भरा हुआ था, और और भी बनता जा रहा था। वो तनाव तो कम नहीं हो रहा था। ऊपर से गुरुत्व के प्रभाव से और भी भीषण तनाव और दबाव बन रहा था। बात ठीक थी - एक कोण पर लेटने से वो तनाव कुछ कम हो जाता। काजल को लगभग तुरंत ही थोड़ा सा आराम तो मिला।

“आह्ह्ह!”

“क्या हुआ?”

“कुछ नहीं! थोड़ा आराम मिला।”

“हम्म! मैं बत्ती जला दूँ, या ऐसे ही?”

“जला दीजिए...”

डैड बिस्तर से उठे, और जा कर कमरे की बत्ती जला आए। रौशनी में उनको काजल का कातर, पीड़ित, और अश्रुपूरित चेहरा दिखाई दिया। उसके सीने पर उसका ब्लाउज़ और साड़ी का आँचल दूध के रिसने से भीग गए थे।

“मत रो काजल! अभी सब ठीक हो जाएगा।”

डैड की बात पर काजल बड़े जतन से मुस्कुराई।

डैड काजल से सामने आ बैठे। माहौल को थोड़ा हल्का बनाने की गरज से डैड ने कहा,

“अम्मा के बाद तुम्हारा ही दूध पी रहा हूँ!”

“दीदी ने नहीं पिलाया कभी?” काजल ने तुरंत कहा।

“दीदी?”

“मेरा मतलब माँ जी! मैं उनको दीदी कहती हूँ अब!”

“हा हा! सुमन को दीदी, और मुझे बाबू जी? अरे भई, अब इतना बूढ़ा भी नहीं हूँ मैं!”

“नहीं! आप बूढ़े नहीं है! आप मेरे दादा हैं - मेरे बड़े भैया! लेकिन ऐसा होने से आपका स्थान मेरे पिता से कम तो नहीं हो जाएगा!” काजल ने बड़ी शिष्टता से कहा, “आप मेरे लिए हमेशा मेरे बड़े, मेरे आदरणीय रहेंगे!”

“कौन बाप या भाई, अपनी बेटी या बहन के साथ ऐसे करता है?”

“आप ऐसे क्यों सोच रहे हैं? मैं तकलीफ़ में हूँ, और आप मेरी मदद कर रहे हैं! बस!” काजल ने कहा, और फिर उसने अपना आँचल अपने सीने से हटा दिया।

उसकी ब्लाउज पर दोनों स्तनों के सामने दूध रिसने के कारण बड़े बड़े गीले धब्बे बन गए थे। डैड ने काँपते हाथों से काजल की ब्लाउज सारे बटन धीरे धीरे, एक एक कर के खोल दिए। काजल की भी साँसें चढ़ गई थीं। यह सामान्य सी घटना नहीं थी। न तो काजल स्वेच्छा से डैड के सामने नग्न हुई थी, और न ही डैड के उसको नग्न देखने की कोई इच्छा पाली थी।

काजल ने ब्रा नहीं पहनी हुई थी - वरना अब तक तो वो पक्का दर्द से मर जाती। दोनों स्तन आकार में काफ़ी बड़े लग रहे थे - तनावग्रस्त! दोनों चूचक तन गए थे। और एरोला भी बाहर उभर आए थे। डैड ने ऊँगली से उसके चूचक के गिर्द छुआ। काजल की सिसकी निकल गई।

“बहुत सख्त हो गई है!” उन्होंने कहा।

“खेलिएगा बाद में! अभी जल्दी से पी कर इन्हे खाली कर दीजिए?”

“अरे, खेल नहीं रहा हूँ!”

“जो भी है!”

डैड ने कुछ नहीं कहा, और आगे बढ़ कर उन्होंने काजल के एक चूचक को अपने मुँह में भर लिया। साथ ही दोनों हाथों से उन्होंने उसके स्तन को पकड़ भी लिया। दरअसल उनका प्लान था कि उसके स्तनों को दोनों हाथों से दबा कर वो उसके चूचक को चूस लेंगे। और किया भी वही। दूध तुरंत ही फौव्वारे के रूप में निकला, लेकिन काजल को अपने स्तन में विस्फ़ोट की अनुभूति हुई।

“आआआहहहहह!” दर्द से उसकी चीख निकल गई।

डैड रुकने की हालत में नहीं थे। उनका मुँह दूध से भर गया था। जब तक उन्होंने दूध को थोड़ा थोड़ा कर के गटका, तब तक फिर से उनका मुँह भर गया। काजल सही कह रही थी - इतना दूध भरा रहेगा, तो दर्द तो अवश्यम्भावी ही है।

“आअह्ह्ह! मर गई! लेकिन कितना आराम मिला!”

डैड कुछ बोलते, कि काजल ने अपनी प्रतिक्रिया दिखा दी।

“आह! दूसरा वाला भी...”

डैड ने पहला चूचक छोड़ दिया - लेकिन उसमे से बूँद बूँद कर के दूध गिर रहा था। उन्होंने दूसरे वाले पर भी वही प्रक्रिया करी, जो पहले वाले पर करी थी। इस बार काजल केवल कराही - चीखी नहीं। उसके स्तनों में दो दिनों से बन रहा दबाव और भीषण दर्द अब समाप्त हो चुका था। लेकिन अभी भी उसके स्तन भरे हुए थे - कम से कम अस्सी प्रतिशत!

“दर्द कम हुआ बेटा?”

“हाँ भैया!” काजल ने राहत की साँस लेते हुए कहा, “बहुत आराम है!”

“मैं कल सुनील से कहूँगा कि वो दूध पीना बंद न करे!”

“जी! प्लीज समझा दीजिए उसको। बहुत दूध बनता है - अगर कोई पिएगा नहीं, तो मेरी तो हालत ही खराब हो जाएगी।”

“ठीक है! कल मैं उसको और पुचुकी - दोनों को समझा दूँगा!” डैड ने कहा, और काजल से अलग होने लगे।

“लेकिन आप कहाँ जा रहे हैं?”

“तुमने ही तो कहा कि दर्द कम हो गया!” डैड ने न समझते हुए कहा।

“जी, दर्द कम हुआ है, लेकिन आधे घंटे में फिर से होने लगेगा! मेरी दोनों छातियाँ अभी भी भरी हुई हैं!”

“ओह!”

“आप ही को पीना है सारा!”

“अच्छी बात है!” डैड ने कहा, “लेकिन अब थोड़ा आराम से हो जाओ?”

डैड ने कहा और उसकी ब्लाउज उतारने लगे, “तुम बहुत अच्छी हो काजल बेटा! मैं तुमको बहू के रूप में तो न पा सका, लेकिन मुझे ख़ुशी है कि तुम मेरी बेटी ज़रूर बन गई!”

“मैं भी तो बहुत भाग्यशाली हूँ बाबू जी,” काजल स्नेह से मुस्कुराई, “कि मुझे आप लोग मिले! आप दोनों मेरे लिए मेरे खुद के माँ बाप से कहीं अधिक बढ़ कर हैं!”

काजल के नग्न स्तनों को देख कर अचानक से ही डैड के चेहरे पर उदासी वाले भाव आ गए, “काश कि मेरी पोती रह जाती!”

“ओह बा...बू...जी…” काजल ने कहा और डैड को उसने अपने आलिंगन में भर लिया, “आ तो गई है न एक प्यारी सी गुड़िया!”

“हाँ बेटा,” डैड ने भरे हुए गले से, बहुत भावुक होते हुए कहा, “आ तो गई है!” फिर वो मुस्कुराए, “मेरा परिवार कितना सुन्दर सा है अब - मेरी एक बेटी है और एक बेटा है!”

काजल भी भावुक हुए बिना न रह सकी, लेकिन डैड की बात पर वो मुस्कुराई। उधर डैड बोलते जा रहे थे,

“और अब इतनी सुन्दर सी, गुणी बहू मिल गई! मेरा घर नाती, नातिन और पोती से भर गया है! मुझसे अधिक धनी कौन है भला?”

“हाँ बाबू जी! देवयानी दीदी बहुत प्यारी हैं! और बिटिया भी बिलकुल गुड़िया सी है!” फिर वो कुछ सोच कर मुस्कुराई, “हम तीनों सगी बहनों जैसी हो गई हैं!”

“हा हा हा!” उस भावुक अवस्था में भी डैड हँस पड़े, “विचित्र है मेरा परिवार!”

“आइए, अब आपको दूध पिला दूँ!” कह कर काजल ने एक स्तन डैड के मुँह में दे दिया।

कोई आधे घंटे के स्तनपान के बाद काजल के दोनों स्तन पूरी तरह से खाली हो गए, और वो पूरी तरह से संतोष हो कर मुस्कुराने लगी।

“थैंक यू, बाबू जी!”

“अपने बाप को थैंक यू बोलेगी अब?”

काजल उनकी बात पर मुस्कुराई; लेकिन उसकी आँखों में आँसुओं की झिलमिलाहट भी दिखाई दे रही थी।

“आपकी शरण में आ कर मैं आपकी बेटी भी बन गई, और आज आपको अपना दूध पिला कर आपकी माँ भी!”

डैड दबी आवाज़ में हँसने लगे, “सच में, बहुत विचित्र है मेरा परिवार! रिश्तों में कैसा उलटफेर!”

“विचित्र नहीं, स्नेही! आपके परिवार जैसा स्नेही परिवार मैंने कभी नहीं देखा! भगवान् सभी को ऐसे ही परिवार में पलने बढ़ने दें!” काजल ने आँसू पोंछते हुए कहा, “मैं सच में आपकी छाया में आ कर धन्य हो गई हूँ!”

“नहीं बेटा, धन्य हम हुए हैं, तुम सभी को पा कर!” डैड ने काजल का माथा चूमते हुए कहा, “भगवान् की बड़ी दया है मुझ पर! बेटी की तमन्ना थी - तुम मिल गई! तुम्हारे आने के बाद तो बस, खुशियाँ ही खुशियाँ आई हैं! मैं बहुत सुखी आदमी हूँ!”

“बाबू जी, एक बात बोलूँ?”

“बोलो बेटा?”

“मैं सोचती हूँ कि अब अमर को एक बेटा जाए, तो अपनी लतिका ब्याह दूँगी उसके साथ!”

“तुम भी न काजल! हा हा हा हा!” डैड ठठा कर हँसने लगे, “कितनी छोटी सी तो है पुचुकी और तुम उसकी शादी की सोच रही हो!”

“क्यों? क्यों न सोचूँ? माँ हूँ! और, क्या बुराई है मेरी बेटी में?”

“कोई भी बुराई नहीं है!” डैड बड़ी प्रसन्नता से बोले, “बहुत प्यारी बिटिया है पुचुकी! जहाँ भी जाएगी, उस घर को सुखी कर देगी! तो अगर पुचुकी इस घर की बहू बन कर आएगी, तो सबसे खुश मैं होऊँगा!”

“आप बहुत अच्छे हैं बाबू जी!”

“हाँ! पता है मुझे!” डैड मुस्कुराए, “चल, अब सो जा!”

“गुड नाईट बाबू जी!” कह कर काजल ने डैड के पाँव छू लिए!

“गुड नाईट बेटा!” डैड ने मुस्कुरा कर कहा, “और याद रखो - इस घर में बिटियाएँ अपने माँ बाप के पैर नहीं छूतीं! वो घर की लक्ष्मी होती हैं!”


**


प्रिय पाठकों - ये ‘फ्लैशबैक’ लिखने वाली उंगली मुझे अपने प्रिय Kala Nag भाई के कारण हुई है। उन्होंने अपनी कहानी ‘विश्वरूप’ में फ्लैशबैक पर फ्लैशबैक दे कर इतना पकाया है कि मैंने सोचा कि मैं भी अपने पाठकों को थोड़ा पकाऊँ! 😂😂😂
नया सफ़र - अनमोल तोहफ़ा - Update #5


“अच्छा जी!” माँ ने हँसते हुए कहा, “तो आपको अपनी बेटी का दूध पीने को मिल गया!”

“अरे ऐसे न कहो भाग्यवान! बेचारी को तकलीफ हो रही थी। और क्या करता मैं?”

“हा हा हा हा! अरे ठाकुर साहब, अच्छा किया आपने! मैं बस मज़ाक कर रही हूँ!” फिर माँ ने सोच कर कहा, “फिर सुनील को समझाया आपने?”

“हाँ!”


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फ्लैशबैक -

सवेरे सवेरे सुनील नहा धो कर गुसलखाने से बाहर निकला ही था कि डैड ने उसको अपने पास बुलाया।

“जी बाबू जी?”

“बेटा सुनील, तुमसे एक बात कहनी थी!”

“जी बाबू जी! आप आदेश दीजिए!”

सुनील ने पूरी विनम्रता से कहा। सुनील इतना सभ्य, और सुशील था कि डैड का दिल बाग़ बाग़ हो गया! कैसे अच्छे संस्कार दिए थे काजल ने उसको! कैसा आज्ञाकारी, सुन्दर, और बलवान पुत्र है!

“नहीं बेटा! आदेश नहीं। बस इतना कहना था कि अपनी अम्मा का दूध पीना मत छोड़ो।”

“ओह्हो! अम्मा ने आपको भी परेशान कर दिया इतनी सी बात के लिए!” सुनील ने लड़कपन वाले अंदाज़ में कहा।

“अरे! इतनी सी बात नहीं है बेटा! और ऐसा नहीं है न कि तुम्हारे नुकसान के लिए हम ये कह रहे हैं।”

तब तक काजल भी वहाँ आ गई।

“पर बाबू जी, दूध पीना बच्चों का काम है! पुचुकी को पिलाएँ न! मैं तो अब बड़ा हो गया हूँ! इण्टर में हूँ! कौन लड़का इण्टर में अपनी माँ का दूध पीता है?”

“अमर भैया तो पीते थे?” काजल बोली, “और इतने बड़े हो गए हो, तो सब काम खुद से कर लो!”

“हाँ! पीते तो थे!” डैड ने काजल की बात का अनुमोदन किया।

सुनील चुप हो गया।

“अब बोलो?” काजल को डैड के सहारा मिला तो वो भी सम्मिलित हो गई, “इतने साल तुमको इतना सेया है, दूध पिलाया है, तभी तो ऐसे हुए हो!”

“अम्मा, इस बात से कहाँ इंकार कर रहा हूँ!”

लेकिन काजल अपनी ही झोंक में थी, “तुमको मुझसे शर्म आती है? बाबू जी से शरम आती है? माँ जी से शर्म आती है? इतने बड़े हो गए हो क्या तुम?”

“अम्मा?”

“इस घर में जितना प्यार मिलता है, वो सोच भी सकते हो?”

“अरे काजल,” डैड ने कहा, “ऐसे मत बोलो! तुम सभी हमारे बच्चे हो!”

“सुना?” काजल ने सुनील को सुनाते हुए कहा, “सुना तूने?”

“अम्मा, दूध पीने वाली बात को कहाँ से कहाँ ले जा रही हो!”

“तूने ही तो कहा न, कि बड़ा हो गया हूँ! इसलिए! और ये क्यों पहनी है? चल, हटा ये तौलिया... देखूँ तो कि कितने बड़े हो गए हो?”

कह कर उसने सुनील की कमर पर बंधी तौलिया खोल दी।

सुनील और लतिका - दोनों ही को मेरी ही तरह प्राकृतिक तरीके से रहने की शिक्षा दी जा रही थी, लेकिन सुनील थोड़ा शर्माता था। वो बहुत कम समय के लिए ही नग्न रहता था। शायद इसलिए क्योंकि उसकी एक छोटी बहन भी थी।

डैड ने उसको कोई डेढ़ साल बाद ऐसे नग्न देखा था। अब तक उसके अंडकोष भी थोड़े बढ़ गए थे, और उसका लिंग भी आंशिक रूप से स्तंभित हो गया था। उसके जघन क्षेत्र में घुंघराले बाल भी आने लग गए थे - मतलब लड़का जवान हो गया था! मेरी अपेक्षा सुनील ने दो साल पहले ही जवानी की दहलीज़ पर कदम रख दिया था। उसका शरीर वाकई उम्र के हिसाब से मज़बूत, दृढ़ और विकसित हो गया था। वैसे इस बात में उसके गुणवत्ता युक्त भोजन और नियमित व्यायाम करने का भारी योगदान था, लेकिन इससे माँ के दूध की महत्ता कम नहीं हो जाती। काजल की इस हरकत की आवश्यकता तो नहीं थी, लेकिन उसकी अपने एकलौते पुत्र को स्तनपान कराने की चाह बड़ी बलवती थी। अब वो इस काम को तब तक रोक नहीं सकती थी, जब तक उसकी छाती का दूध पूरी तरह से सूख न जाए।

उधर डैड भी अपने पुत्र की जवानी को देख कर प्रभावित और गौरान्वित हुए बिना न रह सके। उसके वृषण, खुद उनके वृषणों के मुकाबले, बस थोड़े ही छोटे थे।

“वैरी गुड, बेटा!” उन्होंने कहा, और फिर काजल की तरफ़ मुखातिब हो कर बोले, “काजल बेटा, मेरे बेटे के छुन्नू की तेल मालिश कर दिया करो! इसके पूरे शरीर के जैसा ये भी मज़बूत हो जाएगा!”

“बाबू जी!” सुनील ने शरमा कर अपना लिंग अपने हाथों से ढँक लिया!

“अरे इसमें शरमाने वाली क्या बात है? अच्छा बेटा एक बात बताओ - तुम्हारी क्लास में बाकी के लड़के तुम्हारी तरह बुद्धिमान हैं? बलशाली हैं?”

सुनील कुछ बोला नहीं।

डैड ने कहना जारी रखा,

“माँ का दूध अमृत होता है बेटा! जब तक मिले, पीते रहो। इससे शरीर मज़बूत और निरोगी होता है, और दिमाग तेज़!”

“जी,” सुनील ने शरमाते हुए कहा, “ठीक है बाबू जी!”

“आयुष्मान भव पुत्र! विजयी भव!” उन्होंने उसको आशीर्वाद दिया।


**


“अच्छा किया आपने, जो सुनील को आपने दूध पीने के लिए मना लिया।” माँ ने कहा, “बेचारी काजल! वो भी क्या करे! माँ है न! दूध जब बनता है, तो कोई क्या करे? मेरी भी तो वैसी ही हालत थी न!”

“हाँ अच्छा लगता है! आज कल बच्चे थोड़े बड़े क्या हो जाते हैं, खुद को माँ बाप से ऊपर मानने लगते हैं!”

“नहीं नहीं, सुनील वैसा नहीं है। बस थोड़ा शर्माता है!”

“काजल बता रही थी, कि तुम अभी भी सुनील को नहलाती हो?”

“हा हा! हाँ न! मैं तो उसको उसकी शादी के दिन भी नहलाऊँगी! बड़ा आया!”

“हा हा हा!” डैड ने हँसते हुए कहा, “तुम भी न!”


**


माँ डैड के कमरे के बाहर खड़े सुनील को जब अपना नाम सुनाई दिया तो वो ठिठक कर रुक गया।

आज उसको सोने में बहुत देर हो गई थी - अक्सर ही हो रही थी आज कल! बोर्ड एग्जाम की तैयारी, और फिर उसके साथ ही प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी में वो अब बहुत ही मशगूल हो गया था। उसकी हालत अर्जुन जैसी हो गई थी - अब उसको केवल अपना लक्ष्य दिख रहा था - और कुछ भी नहीं! अपनी अम्मा के सपने, बाबू जी और माँ जी की आशाएँ, अपने भैया का प्रोत्साहन और मार्गदर्शन - यह सब उसके लक्ष्य साधने में आयुध (weapons) जैसे थे! और पिछले चार सालों में उसने किसी को भी निराश नहीं किया था। वो हमेशा अपनी कक्षा में अव्वल आता रहा था, और पिछले चार सालों से लगातार उसको वजीफ़ा मिल रहा था। वो चाहता था कि यही क्रम आगे भी बरकरार रहे। अभी अव्वल आना, और प्रतियोगी परीक्षाओं में अव्वल आना - ये दोनों बड़ी अलग बातें हैं। इसलिए उसने एक तपस्या जैसी साध ली थी, और सुनिश्चित किया था कि वो अगले आधे साल तक कड़ी लगन से प्रतियोगिता को साधेगा। आज जब उसने अंततः घड़ी देखी तो पाया कि आधी रात हो गई है, और उसके जग का पानी ख़तम हो गया है। और इसीलिए वो सोने से पहले पानी पीने के लिए अपने कमरे से बाहर रसोई में आया था।

“क्या बात है ठाकुर साहब? दोबारा रेडी हैं आप तो?”

“इतने दिनों बाद मिली हो ठकुराईन! दो बार तो बनता है!”

“हा हा हा! हाँ जी! बिलकुल बनता है!”

सुनील का मन हुआ कि वो चुपचाप अपने काम से काम रखे, लेकिन कमरे के अंदर से आने वाली आहों ने उसके पैर रोक लिए। ऐसा नहीं है कि उसको सेक्स के बारे में कुछ आता नहीं था - मेरे मुकाबले तो वो बहुत ज्ञानी था। उसकी उम्र में मैं तो निरा भोंदू था। दोनों लिंगों के शरीर में जो भेद होता है, उसके कारण और उसके आकर्षण के बारे में उसको पूरा ज्ञान था। लिहाज़ा वो तुरंत समझ गया कि कमरे के अंदर क्या चल रहा था। उत्सुकतावश वो वहीं रुक गया। अगले कुछ मिनट तक कमरे के अंदर से बिस्तर के चरमराने की लयबद्ध आवाज़ें आती रहीं।

“आह्ह्ह! धीरे धीरे!” माँ की आवाज़ आई।

“आह मेरी जान! मज़ा आ गया! हमारी शादी के दिन याद आ गए!” डैड बोले!

“क्यों जी? ऐसे एक रात में मुझको कई बार सताने में आपको बहुत मज़ा आता है?”

“और नहीं तो क्या?”

“हा हा! उई माँ! धीरे धीरे! पहले ही मेरी हालत चरमरा गई है!”

“हा हा हा! हाँ, सॉरी मेरी जान! आज इतने दिनों के बाद मिली हो! इसलिए काबू नहीं रख पा रहा हूँ!”

“तो मत रखिए काबू! लेकिन थोड़ा आराम से!”

“हाँ मेरी प्यारी!”

सुनील उत्सुकतावश दरवाज़े से सट कर खड़ा हो गया। अंदर से वो डैड और माँ की बातचीत, और उनके बिस्तर की लयबद्ध तरीके से आगे पीछे खिसकने की आवाज़ आराम से सुन रहा था। कुछ मिनटों तक दोनों ऐसी ही मीठी मीठी बातें करते रहे और... साथ ही साथ कमरे से बिस्तर की लयबद्ध आवाज़ें आती रहीं।

“देखते देखते हमारा एक बेटा बड़ा हो गया, और बाप भी बन गया,” माँ बोलने लगीं, “और अब दूसरा बेटा भी बड़ी तेजी से बड़ा हो रहा है... कितना अच्छा लगता है न! अपना परिवार फलते फूलते देख कर?”

“हाँ! सच में! मुझे मालूम है, जैसे अमर ने किया है, वैसे ही सुनील भी बहुत तरक्की करेगा!”

“हा हा हा! हाँ - दोनों लगभग एक जैसे ही हैं! जैसे अमर था, वैसे ही सुनील भी!”

“हा हा हा! अच्छा है न! कम से कम हमारे बच्चे खुल के, अपने तरीके से जी रहे हैं! सोसाइटी के दबाव में नहीं जी रहे हैं! मेरे लिए तो बस इतना ही काफी है!” डैड ने कहा।

“हाँ, सच में!” माँ बोलीं।

“बस, ये अपनी काजल की भी कहीं बढ़िया सी जगह शादी हो जाए, तो समझो लाखों पुण्य पाए!”

‘अम्मा की शादी!’ सुनील के मन में ये बात बिजली की तरह कौंधी!

बच्चे अपने माँ बाप को ले कर बहुत पसेसिव होते हैं। यद्यपि सुनील को अच्छी तरह मालूम था कि उसका बाप एक नंबर का वाहियात, लम्पट और उग्र आदमी था, तथापि वो अपनी माँ को किसी और की पत्नी होते सोच नहीं पा रहा था। काजल अगर मेरी पत्नी बनती, तो अलग बात थी। मेरी शादी देवयानी से होने पर सुनील को थोड़ी निराशा तो अवश्य हुई थी। गैबी की मृत्यु के बाद उसको उम्मीद थी कि मैं और काजल शादी कर लेंगे। लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था।

“एक आदमी से बात तो हुई,” डैड ने कहा, “लेकिन उसके भी दो बच्चे हैं, और उम्र में भी वो बड़ा है बहुत! मुझे ठीक नहीं लगा! अपनी लड़की है। उसको ऐसे ही कहीं किसी खूँटे से थोड़े न बाँध देंगे!”

डैड की बात सुन कर सुनील को राहत हुई।

बिस्तर की कुछ और चरमराती हुई आवाज़ें आईं। हर धक्के के साथ माँ की आह निकल रही थी। और फिर अचानक ही डैड की एक लंबी, संतुष्टि भाई ‘आह्ह्ह्ह’ वाली आवाज़ सुनाई दी। उसके बाद सब कुछ शांत हो गया। सुनील भी दम साधे, दरवाज़े से कान सटाए सुन रहा था कि अंदर क्या हो रहा है। लेकिन आवाज़ें आनी बंद हो गईं। फिर कोई दो तीन मिनट के बाद माँ की आवाज़ आई,

“मैं पानी पीने जा रही हूँ! आपको चाहिए?”

डैड की आवाज़ नहीं सुनाई दी।

“सुनिए?” माँ ने पुकारा।

कोई आवाज़ नहीं।

“सो गए?”

फिर से कुछ नहीं।

सुनील को मालूम था कि माँ जी अब कमरे से बाहर निकलने ही वाली हैं। उसकी स्थिति कुछ ऐसी थी कि वो वहाँ से दूर, अपने कमरे में भाग नहीं सकता था - उसकी पदचाप से कोई भी समझ जाता कि वो वहीं कमरे के पास था। इसलिए वो कोशिश कर के जितनी जल्दी हो सके, रसोई की तरफ़ जाने लगा। वैसे तो सुनील के कमरे को छोड़ कर पूरे घर में अँधेरा था, लेकिन सुनील की समस्या कोई एक नहीं थी। एक तो वो पूर्णतः नग्न था; और दूसरा, माँ और डैड के इस अंतरंग ‘खेल’ को सुन कर उसका लिंग स्तंभित हो गया था। उसकी उम्र ऐसी थी कि एक बार लिंग में स्तम्भन आ जाए, तो जल्दी उतरता नहीं।

वो जब तक तेजी से रसोई में काउंटर तक ही पहुँच पाया कि माँ कमरे का दरवाज़ा खोल कर बाहर आ गईं। ठंडक का मौसम तो था, लेकिन घर के अंदर वैसी ठंडक नहीं थी। डैड ने कुछ इस तरह का घर बनवाया था कि सर्दियों में वो अपेक्षाकृत गर्म, और गर्मियों में अपेक्षाकृत ठंडा रहता था। मतलब बाहर अगर पाँच छः अंश तापमान भी हो, तो घर के अंदर कम से कम दस अंश अधिक तापमान रहता था। हाँ, बस, खिड़कियाँ बंद रखनी ज़रूरी थी। वैसे भी घर के हर कमरे में कोयले का अलाव जलता रहता था। एक बार कोयले में आँच बन जाए तो देर तक गर्मी देता है। उसकी राख में आलू डाल दी जाती थी। सवेरे तक हर अलाव में आलू अच्छी तरह से भुन कर तैयार हो जाता था - सवेरे उसका या तो आलू पराठा बन जाता, या फिर भरता, या फिर कोई सब्ज़ी! है न बढ़िया आईडिया!

सुनील की आकृति देख कर माँ ठिठक गईं।

“अरे, सुनील?”

“ज्जी!”

माँ को एक पल समझ में नहीं आया कि वो क्या करें!

माँ की भी एक दिक्कत थी - डैड के साथ सम्भोग के दौरान वो भी पूरी तरह निर्वस्त्र हो गई थीं, और कमरे से बाहर निकलते समय उन्होंने सोचा भी नहीं था कि किसी अन्य से मुलाकात हो सकती है। वैसे अँधेरे में न तो सुनील को माँ की नग्नता के बारे में, और न ही माँ को सुनील की नग्नता के बारे में संज्ञान हो सकता था। लेकिन हिचक दोनों को ही हो रही थी। सुनील की हिचक अपने लिंग के स्तम्भन को ले कर थी - माँ के सामने नग्न तो वो अक्सर ही होता रहता था। और माँ की हिचक अपनी पूर्ण नग्नता को ले कर थी। सुनील ने अक्सर लतिका को माँ के स्तनों से लगे देखा था, लेकिन वो एक अलग बात थी। इस समय माँ के शरीर पर वस्त्र का एक धागा भी नहीं था।

“कुछ चाहिए बेटा?”

“ज्जी व्वो म्मैं पानी पीने आया था!”

“ओह! मैं भी! नींद नहीं आ रही है?”

“ज्जी ब्बस सोने वाला ही था!”

तभी रसोईघर बाहर जाती हुई किसी गाड़ी की हेडलाइट के तेज प्रकाश से पूरी तरह से नहा गया। उस एक-डेढ़ सेकंड के प्रकाश में सुनील ने माँ का नग्न शरीर बखूबी देखा, और माँ ने उसका स्तंभित लिंग भी! जिस बात को ले कर दोनों घबरा रहे थे, वही बात हो गई। लेकिन अब क्या हो सकता था? दोनों ने बिना कुछ कहे पानी पिया।

फिर माँ ने ही कहा, “मैं सुला दूँ?”

माँ अक्सर ही सुनील को सुलाती थीं - ज्यादातर जबरदस्ती कर के। कि कहीं देर तक पढ़ने से आँखें न खराब हो जाएँ, या नींद ठीक न आने से कहीं सेहत न बिगड़ जाए। कभी कभी उसको पढ़ाते पढ़ाते देरी हो जाती थी, तो उसके साथ ही सो जाती थीं।

सुनील ने कुछ कहा नहीं। शायद ‘हाँ’ में सर हिलाया हो, या शायद ‘न’ में!

“बहुत देर हो गई है! मैं सुला देती हूँ!”

माँ ने उसका हाथ पकड़ा, और उसको उसके कमरे की ओर ले जाने लगीं। सुनील झिझक रहा था, लेकिन वो माँ को मना नहीं कर पा रहा था। उसका कमरा रौशनी से नहाया हुआ था। ऐसे में माँ का नग्न शरीर उससे छुप नहीं सकता था। वो उनकी अद्भुत सुंदरता को देख कर दंग रह गया - माँ कम उम्र लगती थीं, लेकिन निर्वस्त्र होने के बाद तो जैसे उनकी उम्र से पंद्रह बीस वर्ष घट गए हों! अगर वो फ़िटेड कुरता और चूड़ीदार शलवार पहन लें, तो कोई उनको बीस बाईस साल से अधिक का कह ही नहीं सकता! शायद इसीलिए वो कुछ ऐसे कपड़े पहनती थीं, कि उनकी उम्र अधिक लगे! उन कपड़ों में भी वो सत्ताईस अट्ठाईस से अधिक की नहीं लगती थीं।

ओह, कैसे गोल और ठोस स्तन! और बालों से ढंकी उनकी योनि!

‘इसी में बाबू जी अभी मेहनत कर रहे थे!’ उसके दिमाग में विचार कौंधा!

अगले ही क्षण उसको अपने विचार पर ग्लानि हुई।

वो दोनों की ही बड़ी इज़्ज़त करता था, और उनसे बहुत प्रेम भी करता था। इसलिए उसको दोनों के बारे में ऐसी सोच रखने के लिए बहुत ग्लानि हुई। उसको तो खुश होना चाहिए कि दोनों पति-पत्नी इतने प्रेम से रहते हैं। एक उसका बाप था, जो उसकी अम्मा को और उसको मारता पीटता रहता था। न उसको उसकी पढ़ाई लिखाई की चिंता थी, और न ही उसकी अम्मा की सेहत और इज़्ज़त से कोई सरोकार! उसको मोहब्बत थी तो बस शराब से और अपने आप से! एक कोठरी की कुटिया में हर रोज़ उसकी अम्मा का बलात्कार करता था वो आदमी! वो तो एक दिन उसकी अम्मा ने न जाने किस प्रेरणा से कुटिया में पड़ी लकड़ी का लट्ठा उसके बाप के सर दे मारा, नहीं तो यही सिलसिला हमेशा चलता रहता।

अचानक ही जैसे उसके भाग्य की उस बदसूरत इबारत को किसी ने मिटा कर, स्वर्णिम अक्षरों से एक नई किस्मत लिख दी हो! उसकी अम्मा की उस एक हरकत से जैसे उसके परिवार की दिशा ही बदल गई। पहले तो भैया ने, और फिर बाबू जी ने उनको संरक्षण दिया! और अब देखो - क्या ऐसा कभी लगता भी है कि वो इस घर का हिस्सा नहीं? लतिका अपनी अम्मा से अधिक, अपनी मम्मा से प्यार करती है! और वो खुद, वो सपने देख पा रहा है, जो वो देखने का सोचता भी नहीं था। उसका तो पूरा जीवन ही सपने जैसा लगता है न?

वो अपने विचारों की उधेड़बुन से बाहर तब आया जब उसने देखा कि माँ जी ने उसको बिस्तर पर लिटा दिया है, और खुद भी उसके बगल आ कर लेट गई हैं।

उसका लिंग अभी भी तना हुआ था - पहले से भी अधिक!

वो कैसे इस तथ्य को झुठला दे कि एक अनन्य सुंदरी उसके बगल नग्न लेटी हुई है? वो और उसकी अम्मा (काजल) कभी कभी ये बात करते थे, कि अगर माँ जी बम्बई या दिल्ली में रहतीं, तो अवश्य ही वो आज फिल्मों में टॉप की हेरोईन होतीं! इतनी सुन्दर हैं वो! और उनका व्यवहार तो - आह! कैसा भोलापन! कैसी निश्छलता!! और कितना प्रेम!!! साक्षात् देवी हैं देवी! और वही देवी उसके बगल लेटी हुई हैं। नग्न! उसको शर्म भी आ रही थी कि चाह कर भी उसका लिंग बैठ नहीं पा रहा था। पूरी निर्लज्जता से वो स्तंभित था, और रह रह कर झटके खा रहा था।

माँ ने उसके शरीर की नक़ाबू हरकतों को देखा और उसको शांत करने के लिए हाथ बढ़ा कर उसके वृषणों को हल्का सा दबाया। सुनील की आँखें बंद हो गईं और उसके गले से एक आह निकल पड़ी। उसको लग रहा था कि उसका लिंग फ़ट पड़ेगा। उसी समय माँ का हाथ उसके लिंग पर आ गया। उसके लिंग को अपनी हथेली में पकड़ कर उन्होंने दो बार सरकाया ही था, कि सुनील को अपने आसन्न स्खलन का अनुभव हुआ। वो कुछ कह पाता या कर पाता, कि उसके पहले ही वीर्य की एक मोटी धारा उसके लिंग से निकल पड़ी, और उसके पेट और माँ के हाथ पर आ कर गिरी।

“आह्ह्ह्ह!” सुनील कांपती हुई आवाज़ में कराहा।

“कुछ नहीं, कुछ नहीं!” माँ ने उसको स्वांत्वना देते हुए कहा, “होने दो!”

यह जो कुछ हुआ, माँ ने उसका प्लान तो नहीं किया था, इसलिए वो भी हतप्रभ रह गईं। लेकिन सुनील को शर्म न हो, ग्लानि न हो, इसलिए वो ऐसे बर्ताव कर रही थीं कि जैसे यह सामान्य क्रिया हो।

“उम्मफ्फ...”

“बस बस, हो गया!” माँ अभी भी उसके लिंग पर अपना हाथ चला रही थीं। सुनील को तीन चार और स्खलन हुए।

थोड़ी ही देर में उसका लिंग सिकुड़ कर शांत हो गया। उसको समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे! माँ की उम्मीदों के विपरीत उसको बहुत शर्म भी आ रही थी, और बहुत ग्लानि भी हो रही थी। और भी शर्मनाक बात यह हो गई कि जब वो यह सब (हस्त-मैथुन) खुद से करता था तो दो तीन मिनट तो करता ही था, लेकिन यहाँ तो इनके छूते ही सब निकल गया! माँ का हाथ उसके वीर्य से भीग गया था। लेकिन उन्होंने अभी भी उसका लिंग नहीं छोड़ा था।

“अभी ठीक लग रहा है?”

सुनील ने कुछ नहीं कहा।

“सुनील! प्लीज़ ऐसे मत रहो!” माँ ने मनुहार करते हुए कहा, “बोलो न! ठीक लग रहा है?”

सुनील ने ‘न’ में सर हिलाया। उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े।

“अरे अरे,” माँ ने सुनील को अपनी छाती में भींचते हुए कहा, “मेरा जवान लड़का हो कर ऐसे रो रहा है?”

सुनील अभी भी कुछ नहीं बोला - बस फ़फ़क कर रोने लगा। उसके आँसू माँ की छाती को भिगोने लगे। माँ कुछ देर तक उसको बहलाती रहीं।

“बस बस! अब और रोना नहीं!”

कुछ देर बाद वो शांत हो गया - अब उसको और भी शर्म आ रही थी। एक तो पहले ही बेइज़्ज़ती हो गई थी, और अब रो रो कर उसने अपनी इज़्ज़त कर और भी फालूदा बना दिया।

“मुझसे बात नहीं करोगे?”

सुनील ने ‘न’ में सर हिलाया।

“नहीं करोगे?” माँ उसकी लड़कपन भरी हरकत पर मुस्कुरा दीं।

सुनील ने फिर से ‘न’ में सर हिलाया।

“मतलब मुझसे कट्टी?”

वो इस बार कुछ नहीं बोला।

“चलो अच्छा है! कम से कम कट्टी तो नहीं है!” माँ मुस्कुराते हुए बोलीं।

सुनील अभी भी कुछ नहीं बोला।

“अच्छा चलो! अब सुला दूँ तुमको?”

सुनील ने फिर से ‘न’ में सर हिलाया।

“आज रात नहीं सोना है?”

सुनील कुछ नहीं बोला।

“ठीक है! मत सोना! लेकिन मुझे तो बहुत नींद आ रही है!” माँ ने कहा और सुनील से लिपटते हुए बोलीं, “मैं तो यहीं सो रही हूँ!”

सुनील फिर से कुछ नहीं बोला।

माँ कुछ क्षण कुछ नहीं बोली, फिर उन्होंने सुनील से पूछा,

“अभी ठीक लग रहा है?”

इस बार सुनील ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

फिर उसने अचानक ही कहा,

“ओह! देखिये न - आपका भी सब गन्दा हो गया!”

सुनील का इशारा अपने वीर्य की तरफ था, जो माँ के लिपटने के कारण उनके शरीर पर भी लग गया। कमरे की ठंडक से वो भी ठण्डा हो रहा था, और अब शरीर पर महसूस हो रहा था।

“अरे! तो आप उतना नाराज़ नहीं है मुझसे!” माँ ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा।

सुनील उनकी बात को अनसुना करते हुए बोला, “मैं साफ़ कर देता हूँ!”

और उठ कर अपना एक रूमाल ले आया और उसने सबसे पहले माँ का पेट और हाथ साफ़ किया और फिर अपना। फिर वो बिस्तर पर वापस आ कर लेट गया।

“आप सच में यहीं सोएँगी?”

“क्यों? अपने बेटे के साथ सोने में मुझे किसी से कोई परमिशन लेनी पड़ेगी क्या?”

“नहीं नहीं!” सुनील उनकी बात से अचकचा गया, “ठीक है!”

उसने कम्बल खींचा, और माँ को ओढ़ा दिया। उसका बिस्तर सिंगल बेड था - इसलिए चिपक कर सोना अपरिहार्य था। माँ को इस बात में कोई परेशानी नहीं थी।

“दूध पियोगे?”

सुनील ने ‘न’ में सर हिलाया।

माँ मुस्कुरा दीं और फिर सुनील से चिपक कर सो गईं। कुछ देर में सुनील को भी नींद आ गई।


**


“अरे काजल, कब से बैठी हो?”

सवेरे माँ की आँख खुली, तो सामने काजल को बैठे पाया।

“यही कोई दस मिनट से,” काजल मुस्कुराते हुए, दबी आवाज़ में बोली, “तुम दोनों खूब प्यारे लग रहे थे, इसलिए जगाया नहीं!”

माँ भी मुस्कुराईं, “तू भी न!” और अँगड़ाई लेने को हुईं। तब उनको महसूस हुआ कि सुनील का हाथ उनके एक स्तन पर था।

“तब से पकड़े हुए है - एक पल के लिए भी नहीं छोड़ा!” काजल ने माँ को छेड़ते हुए कहा, “और मेरा तो मुँह में लेने में शरम आती है लाट साहब को!”

“ऐसा नहीं है काजल! बस शर्माता है, और कुछ नहीं!”

“कल पिलाया था क्या इसको?”

“न रे! अपने आप से तो पीता ही नहीं! और अगर मुझको दूध आता, तो जबरदस्ती न पिला देती?”

कह कर माँ बिस्तर से चुपके से उतर खड़ी हुईं - उनको पूर्ण नग्न देख कर काजल मुस्कुराई।

“क्या दीदी, मेरा लड़का बहक जाएगा ऐसे तो!”

“हाँ! अपनी माँ को नंगी देख कर कोई बेटा बहकता है क्या?”

काजल कुछ कहने को हुई, लेकिन चुप रह गई। फिर उसकी नज़र बिस्तर पर सोते हुए सुनील पर पड़ी। माँ के हटने से उसकी चादर भी उतर गई थी। उसका लिंग तना हुआ था - मॉर्निंग वुडी कहते हैं न, वही! किसी अन्य घर में यह कोई सामान्य घटना नहीं मानी जा सकती। लेकिन हमारे यहाँ यह कोई बहुत असामान्य घटना नहीं थी। माँ ने देखा कि काजल क्या देख रही है।

“ए, नज़र मत लगा!”

“क्या दीदी, माँ की भी नज़र लगती है क्या अपने बच्चों को!”

उसकी बात पर माँ मुस्कुरा दीं, “जवान हो गया है बेटा!”

“हाँ न! इसका नुनु भी बड़ा हो गया और बिची भी!”

“अभी और होगा! इसीलिए तो तुमको कहा था कि जब तक पॉसिबल हो, तब तक पिलाओ अपना दूध!”

“हाँ, तो मैंने ही कब मना किया? ये तो ये ही लाट साहब हैं, जो मानते नहीं!”

माँ मुस्कुराईं, “सोचो - कुछ ही दिनों में इसके लिए लड़की ढूंढनी पड़ेगी!”

“हाँ न! अपनी ही जैसी कोई लड़की ढूंढनी शुरू कर दो इसके लिए!” काजल बोली।

“अरे, अपने जैसी क्यों?” माँ ने अंततः अँगड़ाई लेते हुए कहा, “थोड़ा जवान होती, तो मैं खुद ही कर लेती इससे शादी!”

“हाँ, अभी खुद को माँ बोल रही थी, और अभी खुद को बीवी!”

काजल और माँ दोनों ही इस बात पर हँसने लगीं। सुनील ने उठने की आवाज़ निकाली।

“शशशीहह!” माँ ने अपने होंठों पर उंगली रखते हुए काजल को चुप रहना का संकेत किया, “देर में सोया है! और सो लेने दो!”

काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, और कमरे से बाहर निकल आई। माँ भी पीछे पीछे बाहर आ गईं।

“बिट्टो रानी उठी?” माँ ने पूछा।

“उठी होती तो तुम्हारी छाती से न चिपकी रहती?”

“अरे तो तू क्यों जल रही है?” माँ ने काजल को छेड़ा, “तू भी तो चिपकी रहती है मौका पा कर!”

माँ ने ज़ोर की अँगड़ाई भरी। काजल की नज़र माँ की योनि पर पड़ी।

“क्या दीदी, कल रात मज़े किए तुमने और बाबूजी ने?”

“मुझको दीदी, और उनको बाबूजी बोल कर ये सब बोलती हो न तो लगता है जैसे न जाने क्या कर दिया हम दोनों ने!”

“हा हा हा! अरे, लेकिन तुमको माँ जी कहने का मन नहीं करता न अब! और बाबूजी को बाबूजी ही कहने का मन होता है।”

“ठीक है - जो मन करे कहो हमको! लेकिन प्यार बनाए रखना बस!”

“तुम तो मेरी पक्की सहेली हो दीदी! तुमसे मैं कैसे प्यार न करूँ!” काजल अचानक ही भावुक हो गई।


**
बहुत ही सुंदर अपडेट...3 अपडेट्स और तीनों में ही अलग भावनाएं
फिर चाहे वो
एक नए पितृत्व के प्रेम, डर, शंका या रोमांच हो
या फिर
एक पति पत्नी के विछोह की पीड़ा हो
या फिर
एक पिता का अपनी पुत्री से प्रेम, स्नेह एक साथ साथ उसको पीड़ा मुक्ति में सहायता करना हो
या फिर
एक पुत्र का अपनी माताओं, भाई और पिता के लिए स्नेह आदर और उनके त्याग को सफलता की मंजिल तक
पहुंचाना
या फिर
एक मां का अपने जवान होते पुत्र को भावनाओ को समझते हुए, स्नेह के साथ उसको संभालना

सबकुछ बहुत ही सुंदर और भावनाओ से परिपूर्ण है। धन्यवाद avsji भाई, इतने सुंदर और विस्तृत दृश्य निर्माण के लिए।
 
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avsji

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बहुत ही सुंदर अपडेट...3 अपडेट्स और तीनों में ही अलग भावनाएं
फिर चाहे वो
एक नए पितृत्व के प्रेम, डर, शंका या रोमांच हो
या फिर
एक पति पत्नी के विछोह की पीड़ा हो
या फिर
एक पिता का अपनी पुत्री से प्रेम, स्नेह एक साथ साथ उसको पीड़ा मुक्ति में सहायता करना हो
या फिर
एक पुत्र का अपनी माताओं, भाई और पिता के लिए स्नेह आदर और उनके त्याग को सफलता की मंजिल तक
पहुंचाना
या फिर
एक मां का अपने जवान होते पुत्र को भावनाओ को समझते हुए, स्नेह के साथ उसको संभालना

सबकुछ बहुत ही सुंदर और भावनाओ से परिपूर्ण है। धन्यवाद avsji भाई, इतने सुंदर और विस्तृत दृश्य निर्माण के लिए।
बहुत बहुत धन्यवाद मेरे भाई 😊🙏
 
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avsji

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अरे मैंने तीन अपडेट दिए हैं -- Lib am भाई के अलावा किसी ने देखा भी या नहीं!
 
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Kala Nag

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नया सफ़र - अनमोल तोहफ़ा - Update #3


शाम होते होते देवयानी का पूरा परिवार भी हमारे साथ सम्मिलित हो गया। सभी ने मुझे बहुत बधाइयाँ दीं।

“अमर यार ये बहुत गलत बात है!” जयंती दी ने आते ही शिकायत करनी शुरू कर दी, “तुमको मुझे सवेरे ही बता देना चाहिए था कि पिंकी को हॉस्पिटल ले जा रहे हो!”

“अरे दीदी, आप नाराज़ मत होईए। माँ हैं न साथ में। और आपका तो काम भी है!”

“अरे, काम गया तेल लेने। काम तुम्हारे बच्चे से ज़्यादा इम्पोर्टेन्ट थोड़े न है!” उन्होंने मेरे कान पकड़ते हुए कहा, “चल अब! जल्दी से बच्ची की शकल दिखा हमको!”

तो मैं उनको देवयानी के कमरे में ले गया। डेवी ने जैसे ही अपनी बहन और अपने पिता को देखा, वो मुस्कुराने लगी।

“वेलकम टू द क्लब, पिंकी रानी!” दीदी ने कहा, “बहुत बहुत बधाईयाँ!”

“कॉन्ग्रैचुलेशन्स बेटा,” ससुर जी ने भी बधाई दी।

“कॉन्ग्रैचुलेशन्स साली साहिबा,” उसके जीजा बोले, “एन्जॉय द पेरेंटहुड, बोथ ऑफ़ यू!”

माँ ने ससुर जी के पाँव छुए।

“गॉड ब्लेस यू बेटा,” उन्होंने आशीर्वाद दिया, “तुमको बहुत तकलीफ हो गई!”

“ऐसे कैसे बाबू जी,” माँ बोलीं, “पिंकी तो अपनी ही बेटी है! फिर क्या तकलीफ?”

“फिर भी! तुम सभी सीधे घर आओ। सभी का खाना पीना वहीं होगा अब से।” उन्होंने जैसे निर्णय सुनाते हुए कहा, “कुछ सेवा हमको भी तो करने दो!”

“हा हा हा हा!” माँ हँसने लगीं, “अरे खूब सेवा कीजिए अब! ऐसे शुभ मौके पर जन्मी है बिटिया रानी। इसकी सेवा में तो सभी को पुण्य मिलेगा!”

“हाँ - सो तो है! लेकिन कहाँ है नन्ही?”

“नर्स ले गई है उसको नहलाने। बस आती ही होगी!”

“कैसी हो पिंकी?”

“आई ऍम गुड डैडी!”

“वैरी नाइस!” फिर मेरी तरफ मुखातिब होते हुए, “अमर, डैड को भी बुला लाओ!”

“जी डैडी, वो जितना जल्दी पॉसिबल है, आने वाले हैं!”

“बढ़िया!”

फिर हम ‘आभा’ के वापस आने से पहले ऐसी ही अनेकों बातें करते रहे। जब उसको उसके नाना जी ने अपनी गोद में लिया, तो उनकी आँखों में आँसू आ गए। दो नाती उनको हो चुके थे, और अब ये पहली नातिन हुई थी। ‘आभा’ सबसे छोटी थी, और छोटी बेटी की पहली संतान थी, इसलिए उनका भावुक होना स्वाभाविक था। पूरा समय वो अपने नाना जी की गोद में रही - बाकी लोगों को ऐसे ही मन बहलाना पड़ा उस शाम।

फिर डॉक्टर से बात होने लगी कि कब देवयानी हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो सकती है। उन्होंने बताया कि कल शाम ही हम बिना किसी दिक्कत के उसको ले जा सकते हैं। बढ़िया है। कल शाम घर, और परसों, मतलब विजयादशमी! बढ़िया! तय किया गया कि डिस्चार्ज होने के एक दो दिनों में ही हम अपने सभी मित्रों और परिजनों के साथ ‘आभा’ के जन्म का जश्न मनाएँगे! जो भी कुछ होगा, यहीं हमारे घर पर होगा - देवयानी ठीक थी, लेकिन फिर भी इतनी जल्दी उससे यात्रा इत्यादि नहीं करवाया जा सकता।

देर शाम मित्र और सहकर्मी लोग भी आ कर मिलने लगे। इतने सारे बूके और खिलौने इत्यादि मिले कि मुझे उनके जाने के बाद एक ट्रिप घर का लगाना पड़ा - वो सब सामान घर पर रखने के लिए। एक तो कमरे में जगह ही नहीं बची थी, और इस बात का भी डर कि कहीं ऐसा न हो कि बच्चे को फूलों से कोई परेशानी न हो जाए।


**


अगले दिन डैड, काजल, लतिका और सुनील घर आ गए। केवल दो कनफर्म्ड टिकट मिले थे डैड को तत्काल में। लेकिन न जाने क्या क्या जुगाड़ बैठा कर वो सभी को यहाँ लिवा लाए। दोनों बच्चों की दशहरा की छुट्टियाँ थीं, इसलिए कोई परेशानी नहीं हुई। उसके अगले दिन डेवी भी हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो गई, और हम सभी घर आ गए। मेरा पूरा घर पूरी तरह से भर गया और चहल पहल के कारण घर में उत्सव का माहौल हो गया। एक कमरे में देवयानी और बच्चे के चैन से रहने का इंतजाम कर के, हम सभी जहाँ संभव था, वहाँ फिट हो गए। मुश्किल तो था, लेकिन जितनी व्यवस्था हो, उतने में ही संतोष करना चाहिए।

डैड दादा बन कर बहुत खुश हुए - उनको एक छणिक ख़ुशी पहले भी मिली थी जान काजल को संतान हुई थी। लेकिन... वही सब बातें दोहराने से क्या लाभ? उनको ऐसे प्रसन्न होते हुए मैंने पहली बार देखा था - वो पूरा दिन कुछ न कुछ गुनगुनाते रहते - ज्यादातर बच्चों वाले गीत - और मुस्कुराते रहते। जब भी अवसर मिलता, आभा को गोदी में लिए रहते, उसको दुलारते रहते। एक खिलौना मिल गया था उनको। और मुझे समझ आ रहा था कि घर वापस जाने के बाद वो ही आभा को सबसे अधिक मिस करेंगे।

काजल की प्रतिक्रिया बहुत अनोखी थी। उसने तो सबसे पहले देवयानी को एक सोने की जंजीर पहनाई। उसका इंतजाम उसने कैसे किया, वो मैं अभी तक नहीं जान पाया, और न ही मैंने जानने की बहुत कोशिश भी करी।

“दीदी,” डेवी ने कहा, “मुझे क्यों?”

“दीदी, बच्चे को तो सभी कुछ न कुछ देंगे ही - बस माँ को ही कुछ नहीं मिलता। काम के अलावा। तुम माँ बनी हो - हमको तो वो सेलिब्रेट करना है।”

काजल की बात पर डेवी की आँखों में आँसू आ गए और दोनों एक दूसरे से लिपट कर आँसू बहाती रहीं।

जब उन दोनों को एकांत मिला, तब काजल ने देवयानी से कहा, “दीदी, तुमसे एक बात पूछूँ?”

“अरे दीदी, तुम मुझसे क्यों ऐसे फॉर्मल होती हो! तुम्हारा जो मन करे, मुझसे कहो। तुम हमसे अलग थोड़े ही हो!”

काजल मुस्कुराई, लेकिन झिझकती हुई बोली, “दीदी, बिटिया को मैं... मेरा मतलब... क्या मैं भी उसको...”

“दीदी!” देवयानी समझ गई, “ये जितनी मेरी है, उतनी ही तुम्हारी है। मैंने पहले भी कहा है न - तुम हमसे अलग थोड़े ही हो! तुम जो चाहो, करो! मुझे ही थोड़ा आराम मिल जाएगा!”

“मतलब मैं...”

“हाँ दीदी! तुम्हारा इसको दूध पिलाने का मन है, पिला लो! जब मन करे! तुम्हारी बेटी है!”

“ओह दीदी! थैंक यू!”

“अच्छा - तो अब तुम हमको थैंक यू कहोगी? ऐसे तो हमको न जाने किन किन बातों के लिए तुम्हारा शुक्रिया अदा करना पड़ेगा!”

“नहीं नहीं! ऐसी कोई बात नहीं! तुम मुझको इतना सम्मान देती हो, वही बहुत बड़ी बात है!”

“दीदी, सम्मान हमारा है, और इस बच्ची का सौभाग्य कि इसको ऐसे प्यार करने वाली ‘बड़ी माँ’ मिली हैं!”

डेवी की बात पर काजल इस बार रोने लग गई।

संसार में हर कोई बस प्रेम का भूखा है। बहुत ही दुर्भाग्यशाली लोग होते हैं जो प्रेम के भूखे नहीं होते। वस्तुएँ मिल जाती हैं - देर सवेर - कुछ कम, कुछ अधिक। बस शुद्ध प्रेम का मिलना ही दुर्लभ है।

कुछ संयत हो कर काजल ने आभा को अपनी गोदी में उठाया, और अपने स्तनों का प्रसाद उसके अनुगृहीत मुँह में दे दिया। देवयानी काजल और आभा दोनों के ही चेहरों पर संतोष वाले भाव देख कर मुस्कुराने लगी। अद्भुत थीं दोनों महिलाएँ और अद्भुत था दोनों का प्रेम! कहाँ सौतिया डाह का डर था, और अब कहाँ ऐसा असंभव प्रेम दोनों के बीच!


**


सुनील से अधिक लतिका उत्साहित थी आभा को ले कर। उसके लिए आभा कोई गुड्डे जैसी साइज़ की ही थी। वो कभी आभा के गालों को उत्सुकतापूर्वक छूती, तो कभी उसकी उँगलियों से खेलती। इतनी छोटी बच्ची में इतना प्रेम, इतनी उत्सुकता! कमाल है। उसको वो ‘गुड्डा’ ‘गुड्डा’ ही बोलती रही पूरा समय। हा हा हा! बच्चे कमाल के होते हैं।

सुनील ने आभा को देखा, तो बस बड़े प्यार से उसने उसके माथे को चूम लिया। जब काजल ने बच्ची को उसकी गोद में देना चाहा, तो वो बेचारा सकपका गया और उसने उसको लेने से साफ़ मना कर दिया, कि कहीं बच्ची गिर न जाए!


**


इस बार विजयदशमी बहुत ही धूम से मनाई हमने। मैंने यह त्यौहार कभी मनाया नहीं। कैसे मनाते हैं, वो भी नहीं पता। लेकिन इस बार पूरे घर को रंगबिरंगी झालरों से सजाया गया, और फूलझड़ियाँ चलाई गईं। तय कर लिया कि इस बार दिवाली यहीं मनाई जाएगी, और जब अवसर मिलेगा, और जब देवयानी पूरी तरह से रिकवर कर लेगी, तब हम तीनों ‘घर’ आ कर कुछ समय बिताएँगे।


**


आभा के होने का जश्न, चूँकि जल्दी जल्दी में आयोजित था, इसलिए बहुत धूम से नहीं कर सके, लेकिन आनंद बहुत आया। सुबह सुबह ही पूजा और हवन का आयोजन था, जिसमें हम तीनों को बैठना आवश्यक था। उसी समय आभा का नामकरण भी कर दिया गया। अपनी बच्ची के होने का जहाँ एक तरफ उन्माद भी था, वहीं दूसरी तरफ एक डर सा भी था - मेरी बच्ची सुरक्षित रहे, स्वस्थ रहे, और आगे चल कर सफलता के मुकाम हासिल करे! शायद यही सभी माता पिता अपनी संतानों के लिए ईश्वर से मांगते हैं, और मैं भी अपवाद नहीं था। पूजा पाठ के बाद खाने पीने का बढ़िया इंतजाम आयोजित था - और क्या चाहिए? एक तो त्यौहार का आनंद, और ऊपर से संतान का सुख। सबसे बड़ी बात - हम ऐसे लोगों से घिरे हुए थे, जो हमारे शुभचिंतक थे। बस, आनंद ही आनंद!


**


यह कहानी अधूरी है और बेकार है, अगर मैं अपने पेरेंटहुड की बात न करूँ। माता-पिता बनने का सुख ऐसा अलौकिक होता है कि क्या कहें? हाँ - यह डगर बहुत ही काँटों भरी है, लेकिन फिर भी अंत में पारलौकिक सुख भी मिलने की बड़ी सम्भावना होती है। सच है कि मैंने बस अभी अभी ही पेरेंटहुड के एक लम्बे सफर में बस अपना पहला कदम ही रखा था, लेकिन फिर भी, ऐसा प्रतीत हो रहा था कि यह सफर बहुत सुखदायक होगा!

माता पिता होना शायद सबसे बड़ा स्वार्थहीन कार्य होता है। इसमें भी अपवाद हैं - किस चीज़ में नहीं होते? अपने बच्चों से हमको बड़ी सारी उम्मीदें होती हैं। इसलिए यह कोई निःस्वार्थ काम नहीं है। लेकिन कम से कम शुरू के दिनों में माता पिता होना शायद सबसे बड़ा स्वार्थहीन कार्य होता है! हाँ - यह ठीक रहेगा। खुद माता-पिता बनने से पहले, मुझे कई सारे किस्से कहानियां और अनुभव उपलब्ध थे - मेरे माता-पिता के, गैबी के, देवयानी के माता-पिता के, काजल के, जयंती दी के अनुभव और कथाएँ! लेकिन वो सब केवल कहानियाँ ही थीं। उनको सुनना सुनाना आसान बात है। असल बात तो तब होता है जब आप उन कहानियों को जीते हैं।

छोटी छोटी बातें, जो हर माता पिता के जीवन में होती हैं, लेकिन खुद के लिए वो बहुत ही अनोखी और बहुत ही आश्चर्यजनक होती हैं। जब आपकी संतान आपको देख कर मुस्कुराती है, जब वो सोते सोते ही अचानक ही मुस्कुराती है, आपकी आवाज़ सुन कर जब उसका रोना बंद हो जाता है, आपकी गोद में आ कर जब उसका रोना बंद हो जाता है, आपकी तोतली आवाज़ सुन कर जब वो मुस्कुराने लगती है -- इन सभी बातों का औरों के लिए क्या मोल? लेकिन आपके लिए यह सभी बातें अमूल्य होती हैं! आप चाहते हैं कि वो सभी दृश्य आपके मानस पटल पर सदैव अंकित रहें। बच्चों का यही भोलापन उनको धरती पर ईश्वर का रूप बना देता है। बाद में उनके अंदर दुनियादारी की बदमाशी आ जाती है। इसलिए बच्चे भोले रहें, तो अच्छा! बहुत भावुक नहीं होऊँगा यहाँ, लेकिन अपनी दो संतानों के खोने के बाद आभा बहुत ही अमूल्य है मेरे लिए। मरी के साथ मेरा एक और बच्चा होने वाला था - लेकिन उसकी परवरिश में मेरा कोई प्रभाव नहीं होना था। वो गेल और मरी की संतान थी। इन सभी कारणों से मेरे मन में इतना स्नेह, इतना प्रेम भरा हुआ था अपनी संतान के लिए, कि मुझे डर था कि आगे चल कर कहीं मैं अपनी बच्ची को बिगाड़ न दूँ! लेकिन मुझे यह भी मालूम था कि देवयानी के होते हुए आभा का लालन पालन सही ढंग से ही होगा। बच्चे प्रेम के कारण नहीं बिगड़ते, वरन, ग़ैर ज़िम्मेदार पैरेंटिंग की वजह से बिगड़ते हैं।

आभा अपने नाम के अनुरूप ही हमारे जीवन का वैभव थी। हम सभी के जीवन का। वो बहुत कम रोती थी - जब भूखी रहती, या फिर जब उसको सू-सू पॉटी होता - तब। बाकी पूरे समय वो मुस्कुराती रहती थी, और अपने चारों तरफ ख़ुशियाँ बिखेरती रहती थी। कोई भी उसको देखता, तो मुस्कुराए बिना न रह पाता। और दिन प्रतिदिन उसका भोला सौंदर्य साफ़ होता जाता। गोल गोल, फलों जैसे मीठे गाल! रूई के फाहों जैसे कोमल, मुलायम, और स्वादिष्ट अंग - उसको देख कर उसको खा लेने का मन करता था। लगता था कि कैसे कर के उसको अपने अंदर समाहित कर लूँ। आभा में हम दोनों के ही सबसे बेस्ट फ़ीचर्स आए हुए थे - और यह देख कर मैं बहुत खुश होता! मैं चाहता था कि हमारी संतान हो तो बहुत सुन्दर सी हो, बुद्धिमान हो, और स्वस्थ हो। आभा को देख कर ऐसा ही लगता था। और मैं ईश्वर को इसके लिए तहेदिल से शुक्रिया करता था - हर रोज़!

एक बार की बात है। मैं और डेवी ड्राइंगरूम में बैठे टीवी देख रहे थे - पेरेंट्स बनने के बाद एक असंभव सा काम! अचानक ही हम दोनों को लगा कि कहीं से बहुत धीमी सी आवाज़ आ रही है। ये आभा थी, जो अपनी सुरीली सी आवाज़ में रो रही थी। माँ की ममता - देवयानी ने तुरंत कहा, ‘भूखी होगी’!

मैं भाग कर कमरे में गया, और सम्हाल कर आभा को बाहर उठा लाया।

डेवी ने उसको चेक किया - हाँ, भूख ही लगी थी। उसने अपने गाउन का बटन खोलना शुरू कर दिया। नए नवेले पेरेंट्स को क्या अनुभव होता है? लेकिन प्रकृति उनको अंतर्दृष्टि देती है, कि अपनी संतान की देखभाल वो कैसे करें! कुछ ही पलों में देवयानी के दूध से भरे स्तन बाहर प्रदर्शित थे।

उसने आभा को अपनी गोदी में लिया, और सोफे पर बैठ गई। मैं जल्दी से गया और एक तकिया लेता आया, डेवी के पीठ के नीचे लगाने के लिए, जिससे कि उसको आराम से बैठने को मिले। डेवी ने आभा के गाल पर अपना निप्पल फिराया - बच्चे को जानी पहचानी गुदगुदी महसूस हुई। वो मुस्कुराने लगी! एंजेलिक स्माइल! डेवी भी उसकी मुस्कुराने पर मुस्कुराए बिना न रह सकी। उसने ऐसे ही आभा को गुदगुदाते हुए अपना निप्पल उसके मुँह में दे दिया। उधर मैं इस अद्भुत से क्रिया कलाप को आश्चर्य और उत्सुकता से देख रहा था। पहली बार नहीं था - लेकिन फिर भी अद्भुत लगता। मैं उसके बगल में ही बैठा आभा को स्तनपान करते देखता रहा। दूध पीते हुए वो ऐसी संतोष भरी आवाज़ निकाल रही थी कि लग रहा था कि मेरा ही पेट भरा जा रहा हो। और भी एक बात पर आश्चर्य हो रहा था मुझको - देवयानी एक आधुनिक महिला थी। उसका सब कुछ बड़ा ही नया था। वो करियर वुमन थी, बहुत ही बड़ी पोस्ट पर थी, बढ़िया कमा रही थी इत्यादि! लेकिन फिर भी मातृत्व को ले कर वो कितनी ट्रेडिशनल थी! मैं सच में विश्वास नहीं करता था जब वो बोलती थी कि वो हमारे बच्चे को यथासंभव स्तनपान कराएगी।

लेकिन माँ बनना सब कुछ बदल देता है शायद? या फिर नहीं? हो सकता है कि डेवी हमेशा से ही ऐसी ही, कोमल हृदय की, सीधी सादी सोच वाली लड़की रही हो!

मैं बिना कुछ कहे, पूरा समय आभा को देखता रहा। जब उसका पेट भर गया तो वो यूँ ही, हमेशा की तरह निढाल हो कर सो गई। किसी प्रेरणावश मैंने देवयानी का हाथ अपने हाथ में लिया, और उसको चूम लिया।

“थैंक यू!” मैंने कहा।

“हे,” वो बोली, “क्या हो गया तुमको?”

“इट वास अ डिवाइन सीन!”

“हम्म! वेल, इट इस अ डिवाइन एक्सपीरियंस!”

“व्हाई डस इट फ़ैसीनेट मी सो मच?” मैंने आभा के नन्हे से हाथ को अपनी ऊँगली से सहलाते हुए कहा।

“क्योंकि तुम इसके पापा हो! आई थिंक यू विल बी फ़ैसीनेटेड बाई ऑलमोस्ट एवरीथिंग दैट शी डस! इस्पेसिअलि ड्यूरिंग द फर्स्ट थ्री ऑर फोर इयर्स!”

“हा हा! कितनी नन्ही सी है न? डर लगता है कि कहीं मैं इसको गिरा न दूँ, दबा न दूँ! कहीं इसको चोट न लग जाए!”

“मत डरो! दैट कंसर्न विल मेक यू अ ग्रेट डैड! यू आर सो जेंटल, एंड आई थिंक दैट आभा विल गेट सो मच लव फ्रॉम यू! सो, डोंट वरि!”

“आई ऍम हर फादर! आई ऍम सपोस्ड टू वरि!”

“हा हा हा हा हा! सोचो, जब ये अपने बॉयफ्रेंड को तुमसे मिलवाने लाएगी, तब तुम्हारा क्या हाल होगा?”

“बॉयफ्रेंड! हे भगवान्! अभी ये ठीक से दस दिन की भी नहीं हुई है, और हम बॉयफ्रेंड की बातें करने लग रहे हैं! अभी तो इसको सूसू पोटी से ही फुर्सत नहीं है!”

“हनी, रिलैक्स! बहुत समय है अभी। बॉयफ्रेंड तब आएगा, जब ये पंद्रह सोलह की होगी। अभी टाइम है।” डेवी हँसते हुए बोली, “और मैं भी तो हूँ न तुम्हारे साथ! अकेले थोड़े न ये सब झेलने दूँगी तुमको!”

“आई लव यू!”

“आई नो!”

“यू आर द बेस्ट!”

“आई नो!”

“आई ऍम सो ग्लैड दैट यू आर इन माय लाइफ!”

“सेम हियर!” वो मुस्कुराई, फिर कुछ रुक कर बोली, “पियोगे?”

“सच में?”

“हाँ - बहुत बन रहा है। डोंट वरि!”

मैंने देवयानी का एक चूचक अपने मुँह में लिया, और जीभ और तालू के बीच दबा कर हलके से चूसा। मीठे दूध की पहली पतली धाराएँ तुरंत उसके चूचक से बाह निकलीं और मेरे गले को तर करते हुए मेरे पेट को भरने लगीं। माँ और काजल के दूध का स्वाद भूल चुका था। यह एक नया स्वाद था। अलग ही तरह का! ऐसा लग रहा था कि जो हम खा रहे थे, उसकी महक, उसका स्वाद मिला हुआ हो डेवी के दूध में! लेकिन स्वादिष्ट, और थोड़ा क्रीमी।

दूध ख़तम होने पर मैंने महसूस किया कि डेवी के स्तन का भार थोड़ा कम हो गया। बाप रे, बेचारी को कितनी तकलीफ होती होगी न? अभी भी उसको रह रह कर शरीर में दर्द होता था। हम किसी मालिश वाली की तलाश में थे, और एक घर का काम करने वाली के भी। हाँलाकि माँ कभी कभी डेवी की मालिश कर देती थीं, लेकिन वो हमेशा यहाँ रह तो नहीं सकती थीं। जैसे ही कोई कामवाली मिल जाए, उनको डैड के पास वापस भेजा जा सकता था।

“कैसा लगा?” उसने पूछा।

“नेक्टर!”

वो मुस्कुराई। मैं उसको कुछ देर यूँ ही देखता रहा, और फिर हठात उठ कर उसके होंठों को चूम लिया। उसकी मुस्कान और भी चौड़ी हो गई।

“क्या हुआ?”

वो बोली, “कुछ नहीं। एक नर्स की बात याद हो आई - वो कह रही थी कि नए नए डैडीज़ को उनके बच्चों का नाम ले कर आराम से उल्लू बनाया जा सकता है!”

“बदमाश औरतें!” मैंने बुरा न मानते हुए कहा, “सब की सब!”

“बदमाश? हम?” वो हँसते हुए बोली, “मैं तो इनोसेंट सी थी - तुमने ही मुझे ख़राब कर दिया! और देखो, तुम्हारा बच्चा पाल रही हूँ!”

“मतलब ख़राब हो गई!”

“सेक्सी से नॉन सेक्सी हो गई!”

“वापस सेक्सी हो जाओगी! लेकिन मेरे लिए तुम दुनिया की सबसे सुन्दर लड़की हो!”

“सच में?”

“आई नेवर लाई टू यू!”

“कम हियर,” उसने मुझे चूमा, और फिर बोली, “गिव मी अ फ्यू वीक्स! देन व्ही विल हैव अमेज़िंग सेक्स!”

“आई ऍम इन नो हरी माय लव!” मैंने फिर से उसके होंठों को चूमा, “तुम जल्दी से ठीक हो जाओ, बस, मेरा इतना ही कंसर्न है!”

“कल ऑफिस जाओगे?”

“हाँ - छुट्टी ख़तम हो गई न!” मैंने उदास होते हुए कहा।

“ओह्हो! चिंता न करो!”

“कैसे न करूँ? और फिर इसकी याद भी तो बहुत आएगी न!”

देवयानी मुस्कुराई - वो समझ रही थी कि मैं क्या महसूस कर रहा था।

“यू ऑलवेज वांटेड अ बेबी, डिडन्ट यू?” उसने कहा।

“यस!” मैंने आभा को सोते हुए देखते हुए कहा।

“एक और चाहिए?”

मैं मुस्कुराया, “डेवी, माय लव... तुम्हारे कारण मुझे पहले ही इतनी सारी खुशियाँ मिल गई हैं!” फिर थोड़ा ठहर कर, “हाँ, एक और! लेकिन केवल तभी जब तुम पूरी तरह से हेल्दी हो जाओ! और ये, हमारी नन्ही सी गुड्डा थोड़ा बड़ी हो जाए!”

“हाऊ वैरी वाइज़ मिस्टर सिंह! आई ऍम हैप्पी दैट यू सेड इट! वैसे भी दो बच्चों में तीन से चार साल का गैप तो होना चाहिए! तब मैं फिर से परफेक्ट शेप और हेल्थ में रहूँगी बच्चे के लिए!”

“डेवी, मैंने पहले भी कहा है, कि ये सब तुम्हारा डिसीज़न रहेगा! तुमको इन बदमाशों को अपने पेट में नौ महीना पालना है! इसलिए मैं दूसरे बच्चे के लिए कभी ज़ोर नहीं दूँगा। तुम बढ़िया हो, तो सब अच्छा है! तुम मेरा प्यार हो! अगर तुमको कुछ हो गया, तो मेरा सब कुछ तबाह हो जायेगा!”

“अरे, ऐसे क्यों बोल रहे हो? मैं हूँ! ऐसे मत सोचो! ऐसे नहीं जाने वाली और इतनी जल्दी नहीं जाने वाली! मैं तुमको बहुत सताने के बाद ही जाऊँगी! कहे देती हूँ!”

“वायदा?”

“पक्का वायदा!” वो मुस्कुराई, “आई ऍम सो हैप्पी दैट आई ऍम योर वाइफ!”

“सो ऍम आई! मोर दैन यू नो!”

देवयानी ने मेरी आँखों में देखते हुए कहा, “आई थिंक आई नो, अमर! तुम्हारा चेहरा खुली किताब है - तुम्हारे थॉट्स सब साफ़ साफ़ दिखते हैं! तुमको क्या लगता है कि मैंने ऐसे ही तुमसे शादी कर ली? अरे तुम्हारे पास आने से मेरे दिल की धमक बढ़ जाती है! ऐसा शानदार हस्बैंड है मेरा! यू आर अ वंडरफुल हस्बैंड, एंड यू विल बी अ ग्रेट फादर!”

“एंड यू विल बी एन अमेज़िंग मदर!”

हाँ - माता पिता बन के हमारे बीच सेक्स गायब हो गया लेकिन हमको उस बात की कोई चिंता नहीं थी। सेक्स गायब हो गया हो तो होता रहे! लेकिन हमारे बीच का प्रेम प्रगाढ़ हो गया है। डेवी ने मेरी ज़िन्दगी में वो मुकाम, वो स्थान हासिल कर लिया था, जहाँ वो मेरे दिल की, मेरे संसार की रानी हो गई थी। हमारा सम्बन्ध अब अटूट हो गया था।


**
यह जबरदस्त रहा
अपनी बेटर हाफ के स्तन से दुध पीना....
मैं नहीं कर पाया
या यूँ कहूँ कि
मुझसे नहीं हुआ
शायद शर्म
पर बाकी सब बहुत ही सटीक भाव से प्रस्तुत किया है आपने
 
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Kala Nag

Mr. X
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नया सफ़र - अनमोल तोहफ़ा - Update #4


इस बार दीपावली बड़ी धूम धाम से मनाने का मन था। लेकिन दिल्ली से बाहर जाना असंभव था। आभा के जन्म के तीन ही हफ़्तों में दीपावली थी, और इतने कम समय में वो किसी सफ़र के योग्य नहीं थे। इसलिए माँ और डैड इस बार स्वयं आ गए। साथ में काजल, सुनील और लतिका। मेरा पूरा परिवार मेरे साथ! त्यौहार के दो दिन पहले मुझे एक कामवाली मिल गई, तो माँ और काजल ने उसको सब काम समझा दिया, और त्यौहार के बाद आने को कह दिया। उसको रवाना करने से पहले मैंने उसको कुछ रुपए दे दिए त्यौहार के लिए। वो बेचारी भी खुश हो कर चली गई।

वैसे देवयानी की हालत भी अब तक काफी ठीक हो गई थी - और समय के हिसाब से उसका गर्भावस्था वाला वज़न भी काफी कम हो चला था। माँ इस पूरे समय तक हमारे साथ रहीं, और उनके रहने से हमको बहुत सम्बल मिला। लेकिन अब उनको भी डैड से अलग रहते हुए एक लम्बा अर्सा हो गया था। दीपावली के बाद सुनील के बोर्ड की परीक्षा, और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं वाला दौर बस शुरू ही होने वाला था। इसलिए उनका वापस घर जाना आवश्यक था। अकेले काजल के ऊपर ही सब डाल कर निश्चिन्त तो नहीं रहा जा सकता था न? देवयानी और खुद मैंने भी उनसे कहा कि सब कुछ पटरी पर आ गया है, इसलिए वो त्यौहार के बाद निश्चिन्त हो कर वापस जा सकती हैं। माँ ने भी संतुष्ट हो कर वापस जाने के लिए हाँ कह दी। डैड इतने दिनों तक माँ के बग़ैर शायद पहली बार रहे थे। बीच बीच में वो यहाँ आते रहे, लेकिन हर बार, केवल एक दो ही दिनों के लिए!

दीपावली की जगमग देखने योग्य थी। हमारा पूरा घर दुल्हन की तरह सजा हुआ था। हमारा - मतलब मेरा और देवयानी का, देवयानी के डैडी का, और डैड और माँ का! ख़ुशी थी, तो उसका इज़हार करना बहुत आवश्यक होता है। इस बार उपहार देने की बारी हमारी थी - देवयानी और मैंने ने लतिका के लिए सोने के कंगन और सोने की ज़ंजीर बनवाई थी... काजल के लिए सोने और हीरे के कर्णफूल... और सुनील के लिए नया सूट! उसको हमने वायदा किया कि अगर वो आई-आई-टी गया, तो उसको हम एक डेस्कटॉप देंगे! वो मारे ख़ुशी के फूला नहीं समाया। उधर डैड भी अपने समधी और अन्य छोटे बच्चों के लिए उपहार लाए हुए थे, और ससुर जी भी सभी के लिए उपहार लाए हुए थे। मैंने ससुर जी के लिए एक इम्पोर्टेड स्कॉच खरीदी थी। जयंती दी को मैंने एक साड़ी दी, और माँ और डैड ने सोने का हार! परिवार में सभी कुछ न कुछ उपहार पा कर प्रसन्न थे। स्वादिष्ट भोजन, संगीत, पटाखों, और हंसी मज़ाक करते करते दीपवाली के दो दिन कैसे बीत गए, पता ही न चला! फिर आई सबके वापस जाने की बेला।

अपनी पोती को छोड़ कर जाने का सोच कर ही माँ और डैड हलकान हुए जा रहे थे। काजल भी रो रही थी। जैसे तैसे उन सभी को समझा बुझा कर विदा किया गया। मैंने डेवी को एक बार बताया था कि माँ और डैड दीपावली पर सम्भोग अवश्य करते हैं। तो ये शायद पहली बार था कि इस परंपरा में अवधान हुआ था। वो भी यह सोच कर दुखी हुई। एक तो इतने दिनों का बिछोह, और ऊपर से अपनी प्यारी पोती को छोड़ कर जाना। लेकिन, यह ऐसा कोई कष्ट नहीं था जिसका कोई निवारण न हो। हमने सभी से वायदा किया कि जैसे ही हम तीनों यात्रा योग्य होंगे, भागे भागे चले आएंगे घर्म उन सभी से मिलने।


**


डैड अव्वल दर्ज़े के सज्जन पुरुष थे। अपनी प्यारी सी, सुन्दर सी पत्नी के इतने लम्बे वियोग में उनको तड़प तो हुई होगी - लेकिन उन्होंने इस जैसे कैसे कर के भी अपने ऊपर नियंत्रण रखा हुआ था। यह समझना आवश्यक है कि उनकी सज्जनता इसलिए भी गुणगान करने योग्य है क्योंकि घर में काजल जैसी सुन्दर सी स्त्री भी रह रही थी - जिससे उनका कोई सम्बन्ध नहीं था। कोई भी पुरुष उसकी सुंदरता पर बड़ी आसानी से फिसल सकता था। लेकिन डैड ने उसको अपनी बेटी का दर्जा दिया था, लिहाज़ा, वो पूरी मर्यादा से उस रिश्ते का पालन कर रहे थे। काजल भी उनका बहुत आदर सम्मान करती थी, और पूरे मनोयोग से उनकी देखभाल कर रही थी। अगर उसका फिसलने का मन भी किया होगा, तो उसने उस इच्छा पर नियंत्रण रखा था।

और सबसे बड़ी बात है माँ का व्यवहार! किसी परस्त्री को इतने प्रेम से, इतने विश्वास से अपने घर में, अपने संसार में जगह देना किसी छोटे मन वाली स्त्री के बस की बात नहीं। माँ ने अपने संसार का सब कुछ काजल और उसके बच्चों से बाँट लिया था। भोले बच्चों के व्यवहार से समझ में आता है कि उनको कितने प्रेम से पाला जाता है - लतिका अपनी माँ से अधिक, मेरी माँ से लिपटी रहती। उसको घर के सभी लोग ‘मम्मा की पूँछ’ कह कर छेड़ते। लेकिन वो इस बात से बुरा नहीं मानती थी। पूँछ तो वो थी ही अपनी मम्मा की!

घर आ कर डैड और माँ इन महीनों में पहली बार सम्भोग कर रहे थे।

“अरे यार, एक गड़बड़ हो गई!”

“क्या?”

“प्लीज तुम नाराज़ मत होना मुझसे?”

“बोलिए भी न! ऐसा क्या हो गया? और मैं आपसे कभी नाराज़ हुई हूँ, जो आज हो जाऊँगी?

“मुझे काजल का दूध पीना पड़ गया!”

“क्या? सच में? हा हा! कैसे?” माँ ने हँसते हुए पूछा।



फ्लैशबैक -

अचानक देर रात दरवाज़े पर दस्तख़त हुई, तो डैड की झपकी टूटी।

‘इस समय कौन?’

“ह... हाँ?” उन्होंने चौंक कर जागते हुए कहा।

“बाबू जी?” दरवाज़े से काजल की हिचक भरी आवाज़ सुनाई दी।

“हाँ बेटा?”

“जी मैं अंदर आ जाऊँ?” काजल बड़े संकोच से बोली।

“अरे, इसमें पूछने वाली क्या बात है? आओ!”

कमरे में अँधेरा था, लेकिन डैड को लग रहा था कि काजल उनके बिस्तर के बगल आ कर खड़ी हो गई है।

“क्या हुआ बेटा?”

डैड ने चिंतिति स्वर में कहा। काजल ने आज से पहले ये काम (मतलब उनके कमरे में बिना माँ की उपस्थिति के प्रवेश) नहीं किया था - इसलिए डैड की चिंता लाज़मी थी।

“बाबू जी, कैसे कहूँ! कुछ समझ ने नहीं आ रहा है!”

“क्या हुआ काजल?” अब उनकी चिंता और भी अधिक बढ़ गई थी, “कोई समस्या है?”

“बाबू जी, व... वो वो मैं!”

“क्या हुआ बेटा?” डैड ने काजल का हाथ पकड़ कर बिस्तर पर बैठा कर कहा, “संकोच न करो! बताओ न! क्या हुआ? सब ठीक है न? कोई तकलीफ है?”

“जी! व... वो मेरे सीने में दर्द हो रहा है!”

“सीने में दर्द?”

काजल ने अँधेरे में ही ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“गले और बाँह में तो नहीं?”

जब भी आप कुछ नया सुनते हैं, या देखते हैं, तो अक्सर उसके ‘चरम सीमा’ पर जा कर सोचने लगते हैं। अल्प-ज्ञान इसीलिए दुःखदायक होता है, और हानिकारक भी। डैड को लगा कि शायद काजल को दिल से सम्बंधित कोई समस्या हो गई है - हार्ट अटैक जैसी! काजल का मन हुआ कि वो अपना सर पीट ले - लेकिन गलती उसी की थी। ठीक से बताना चाहिए न अपनी समस्या।

“जी, वो वाला दर्द नहीं है ये...”

“क्या हुआ काजल? ठीक ठीक बताओ?”

“बाबू जी, बात दरअसल ये है कि पुचुकी तबियत खराब होने की वजह से चार दिन से मेरा दूध नहीं पी रही है। और सुनील भी पिछले दो दिनों न जाने क्यों दूध पीने से इंकार कर रहा है।”

“अच्छा?” फिर अचानक ही पूरी बात समझते हुए, “ओह, ओह! मतलब स्तनों में दर्द है?”

काजल - झिझकते हुए, “जी!”

“ओह!” डैड को समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें इस मामले में।

“डॉक्टर को दिखा दें?”

“डॉक्टर?” काजल ने ही उनकी गुत्थी सुलझा दी, “आप पी लेंगे?”

“क्या?”

“बाबू जी, बहुत दर्द है! प्लीज आ पी लीजिए?”

“लेकिन बेटा, मैं तो तुमको अपनी बेटी मानता हूँ! मैं कैसे?” डैड उसकी बातों से एकदम भौचक्के रह गए!

“बाबू जी, आपके उसी विश्वास, उसी भरोसे के कारण ही तो मैं ये सब बोलने की हिम्मत कर पा रही हूँ।” काजल ने कहा।

उसकी आँखों में आँसू आ गए थे अब तक। कुछ दर्द के कारण, कुछ शर्म, और कुछ झिझक के कारण!

“वो सब तो ठीक है, लेकिन...”

“मैं मर जाऊँगी बाबू जी! बहुत दर्द हो रहा है। अगर बर्दाश्त कर पाती, तो मैं न कहती कुछ!”

बात तो सही थी।

ढाई साल से वो हमारे साथ रह रही थी, और एक बार भी उसने अपनी शीलता को अनावृत नहीं होने दिया। बस एक बार ‘वैसा’ कुछ हुआ था - वो नहाने के बाद जब बाथरूम से बाहर निकली थी, तो डैड ने उसको केवल पेटीकोट पहने बाहर आते देखा था। डैड को देखते ही उसने झट से अपने स्तन अपने हाथों से छुपा लिए थे, और वहाँ से भाग खड़ी हुई थी। डैड ने भी अपनी ‘बेटी’ को ऐसी हालत में देख कर तुरंत अपनी नज़रें हटा ली थीं। इसलिए दोनों में बाप बेटी वाला ही स्नेह, आदर, और विश्वास था।

“हे प्रभु! क्या करूँ मैं! अजीब धर्म-संकट है!” डैड ने बुदबुदाते हुए कहा।

“ठीक है! मत पीजिए। लेकिन ज़ोर से दबा दीजिए इनको। कुछ दूध निकल जायेगा, तो थोड़ा आराम मिल जाएगा! मुझ से तो वो भी नहीं हो पा रहा है। खुद से करने की हिम्मत नहीं हो पा रही है! छूने से ही इतना दर्द हो रहा है। दर्द से फ़ट जाएँगे दोनों, ऐसा लग रहा है!” काजल ने मिन्नत करी।

“मैं सुनील को बुला देता हूँ।” डैड ने कुछ देर सोच कर बीच का, और सुरक्षित रास्ता निकाला।

“सो रहा है वो... आहहह!”

“हे भगवान्!”

“आप ही… ओह्ह्ह बाबू जी! बहोत दर्द है!”

डैड घबरा गए। उनके पास काजल की सहायता करने का साधन था, इसलिए उनको ग्लानि भी हो रही थी कि वो उसकी सहायता नहीं कर रहे हैं। लेकिन उसकी उस कातर, दर्द भरी कराह ने डैड की हिचक तोड़ दी।

“अच्छा ठीक है! मैं ही...”

“ओह थैंक यू बाबू जी! थैंक यू!” काजल ने राहत की साँस ली।

“बेटा, मैं सिरहाने पर तकिए लगा देता हूँ; तुम पीठ से टेक लगा आराम से बैठ जाओ।”

“और... आप?”

“मैं तुम्हारे सामने रहूँगा!”

“नहीं! मेरा मतलब है - आप पिएंगे या कि दबाएँगे?” काजल अभी भी झिझक रही थी।

दोनों के बीच में एक अलग ही तरीके की दीवार थी, जो अब गिरने वाली थी।

“तुम क्या चाहती हो?”

“पी लीजिए न?” काजल ने झिझकते हुए कहा, भली भाँति जानते हुए कि स्तनपान करने में क्या करना होता है, “वेस्ट क्यों करना?”

“ठ ठीक है!”

डैड ने सिरहाने पर तीन तकिए लगा कर ऐसी व्यवस्था कर दी, कि काजल को आराम मिल सके। उसके दोनों स्तनों में प्रचुर मात्रा में दूध भरा हुआ था, और और भी बनता जा रहा था। वो तनाव तो कम नहीं हो रहा था। ऊपर से गुरुत्व के प्रभाव से और भी भीषण तनाव और दबाव बन रहा था। बात ठीक थी - एक कोण पर लेटने से वो तनाव कुछ कम हो जाता। काजल को लगभग तुरंत ही थोड़ा सा आराम तो मिला।

“आह्ह्ह!”

“क्या हुआ?”

“कुछ नहीं! थोड़ा आराम मिला।”

“हम्म! मैं बत्ती जला दूँ, या ऐसे ही?”

“जला दीजिए...”

डैड बिस्तर से उठे, और जा कर कमरे की बत्ती जला आए। रौशनी में उनको काजल का कातर, पीड़ित, और अश्रुपूरित चेहरा दिखाई दिया। उसके सीने पर उसका ब्लाउज़ और साड़ी का आँचल दूध के रिसने से भीग गए थे।

“मत रो काजल! अभी सब ठीक हो जाएगा।”

डैड की बात पर काजल बड़े जतन से मुस्कुराई।

डैड काजल से सामने आ बैठे। माहौल को थोड़ा हल्का बनाने की गरज से डैड ने कहा,

“अम्मा के बाद तुम्हारा ही दूध पी रहा हूँ!”

“दीदी ने नहीं पिलाया कभी?” काजल ने तुरंत कहा।

“दीदी?”

“मेरा मतलब माँ जी! मैं उनको दीदी कहती हूँ अब!”

“हा हा! सुमन को दीदी, और मुझे बाबू जी? अरे भई, अब इतना बूढ़ा भी नहीं हूँ मैं!”

“नहीं! आप बूढ़े नहीं है! आप मेरे दादा हैं - मेरे बड़े भैया! लेकिन ऐसा होने से आपका स्थान मेरे पिता से कम तो नहीं हो जाएगा!” काजल ने बड़ी शिष्टता से कहा, “आप मेरे लिए हमेशा मेरे बड़े, मेरे आदरणीय रहेंगे!”

“कौन बाप या भाई, अपनी बेटी या बहन के साथ ऐसे करता है?”

“आप ऐसे क्यों सोच रहे हैं? मैं तकलीफ़ में हूँ, और आप मेरी मदद कर रहे हैं! बस!” काजल ने कहा, और फिर उसने अपना आँचल अपने सीने से हटा दिया।

उसकी ब्लाउज पर दोनों स्तनों के सामने दूध रिसने के कारण बड़े बड़े गीले धब्बे बन गए थे। डैड ने काँपते हाथों से काजल की ब्लाउज सारे बटन धीरे धीरे, एक एक कर के खोल दिए। काजल की भी साँसें चढ़ गई थीं। यह सामान्य सी घटना नहीं थी। न तो काजल स्वेच्छा से डैड के सामने नग्न हुई थी, और न ही डैड के उसको नग्न देखने की कोई इच्छा पाली थी।

काजल ने ब्रा नहीं पहनी हुई थी - वरना अब तक तो वो पक्का दर्द से मर जाती। दोनों स्तन आकार में काफ़ी बड़े लग रहे थे - तनावग्रस्त! दोनों चूचक तन गए थे। और एरोला भी बाहर उभर आए थे। डैड ने ऊँगली से उसके चूचक के गिर्द छुआ। काजल की सिसकी निकल गई।

“बहुत सख्त हो गई है!” उन्होंने कहा।

“खेलिएगा बाद में! अभी जल्दी से पी कर इन्हे खाली कर दीजिए?”

“अरे, खेल नहीं रहा हूँ!”

“जो भी है!”

डैड ने कुछ नहीं कहा, और आगे बढ़ कर उन्होंने काजल के एक चूचक को अपने मुँह में भर लिया। साथ ही दोनों हाथों से उन्होंने उसके स्तन को पकड़ भी लिया। दरअसल उनका प्लान था कि उसके स्तनों को दोनों हाथों से दबा कर वो उसके चूचक को चूस लेंगे। और किया भी वही। दूध तुरंत ही फौव्वारे के रूप में निकला, लेकिन काजल को अपने स्तन में विस्फ़ोट की अनुभूति हुई।

“आआआहहहहह!” दर्द से उसकी चीख निकल गई।

डैड रुकने की हालत में नहीं थे। उनका मुँह दूध से भर गया था। जब तक उन्होंने दूध को थोड़ा थोड़ा कर के गटका, तब तक फिर से उनका मुँह भर गया। काजल सही कह रही थी - इतना दूध भरा रहेगा, तो दर्द तो अवश्यम्भावी ही है।

“आअह्ह्ह! मर गई! लेकिन कितना आराम मिला!”

डैड कुछ बोलते, कि काजल ने अपनी प्रतिक्रिया दिखा दी।

“आह! दूसरा वाला भी...”

डैड ने पहला चूचक छोड़ दिया - लेकिन उसमे से बूँद बूँद कर के दूध गिर रहा था। उन्होंने दूसरे वाले पर भी वही प्रक्रिया करी, जो पहले वाले पर करी थी। इस बार काजल केवल कराही - चीखी नहीं। उसके स्तनों में दो दिनों से बन रहा दबाव और भीषण दर्द अब समाप्त हो चुका था। लेकिन अभी भी उसके स्तन भरे हुए थे - कम से कम अस्सी प्रतिशत!

“दर्द कम हुआ बेटा?”

“हाँ भैया!” काजल ने राहत की साँस लेते हुए कहा, “बहुत आराम है!”

“मैं कल सुनील से कहूँगा कि वो दूध पीना बंद न करे!”

“जी! प्लीज समझा दीजिए उसको। बहुत दूध बनता है - अगर कोई पिएगा नहीं, तो मेरी तो हालत ही खराब हो जाएगी।”

“ठीक है! कल मैं उसको और पुचुकी - दोनों को समझा दूँगा!” डैड ने कहा, और काजल से अलग होने लगे।

“लेकिन आप कहाँ जा रहे हैं?”

“तुमने ही तो कहा कि दर्द कम हो गया!” डैड ने न समझते हुए कहा।

“जी, दर्द कम हुआ है, लेकिन आधे घंटे में फिर से होने लगेगा! मेरी दोनों छातियाँ अभी भी भरी हुई हैं!”

“ओह!”

“आप ही को पीना है सारा!”

“अच्छी बात है!” डैड ने कहा, “लेकिन अब थोड़ा आराम से हो जाओ?”

डैड ने कहा और उसकी ब्लाउज उतारने लगे, “तुम बहुत अच्छी हो काजल बेटा! मैं तुमको बहू के रूप में तो न पा सका, लेकिन मुझे ख़ुशी है कि तुम मेरी बेटी ज़रूर बन गई!”

“मैं भी तो बहुत भाग्यशाली हूँ बाबू जी,” काजल स्नेह से मुस्कुराई, “कि मुझे आप लोग मिले! आप दोनों मेरे लिए मेरे खुद के माँ बाप से कहीं अधिक बढ़ कर हैं!”

काजल के नग्न स्तनों को देख कर अचानक से ही डैड के चेहरे पर उदासी वाले भाव आ गए, “काश कि मेरी पोती रह जाती!”

“ओह बा...बू...जी…” काजल ने कहा और डैड को उसने अपने आलिंगन में भर लिया, “आ तो गई है न एक प्यारी सी गुड़िया!”

“हाँ बेटा,” डैड ने भरे हुए गले से, बहुत भावुक होते हुए कहा, “आ तो गई है!” फिर वो मुस्कुराए, “मेरा परिवार कितना सुन्दर सा है अब - मेरी एक बेटी है और एक बेटा है!”

काजल भी भावुक हुए बिना न रह सकी, लेकिन डैड की बात पर वो मुस्कुराई। उधर डैड बोलते जा रहे थे,

“और अब इतनी सुन्दर सी, गुणी बहू मिल गई! मेरा घर नाती, नातिन और पोती से भर गया है! मुझसे अधिक धनी कौन है भला?”

“हाँ बाबू जी! देवयानी दीदी बहुत प्यारी हैं! और बिटिया भी बिलकुल गुड़िया सी है!” फिर वो कुछ सोच कर मुस्कुराई, “हम तीनों सगी बहनों जैसी हो गई हैं!”

“हा हा हा!” उस भावुक अवस्था में भी डैड हँस पड़े, “विचित्र है मेरा परिवार!”

“आइए, अब आपको दूध पिला दूँ!” कह कर काजल ने एक स्तन डैड के मुँह में दे दिया।

कोई आधे घंटे के स्तनपान के बाद काजल के दोनों स्तन पूरी तरह से खाली हो गए, और वो पूरी तरह से संतोष हो कर मुस्कुराने लगी।

“थैंक यू, बाबू जी!”

“अपने बाप को थैंक यू बोलेगी अब?”

काजल उनकी बात पर मुस्कुराई; लेकिन उसकी आँखों में आँसुओं की झिलमिलाहट भी दिखाई दे रही थी।

“आपकी शरण में आ कर मैं आपकी बेटी भी बन गई, और आज आपको अपना दूध पिला कर आपकी माँ भी!”

डैड दबी आवाज़ में हँसने लगे, “सच में, बहुत विचित्र है मेरा परिवार! रिश्तों में कैसा उलटफेर!”

“विचित्र नहीं, स्नेही! आपके परिवार जैसा स्नेही परिवार मैंने कभी नहीं देखा! भगवान् सभी को ऐसे ही परिवार में पलने बढ़ने दें!” काजल ने आँसू पोंछते हुए कहा, “मैं सच में आपकी छाया में आ कर धन्य हो गई हूँ!”

“नहीं बेटा, धन्य हम हुए हैं, तुम सभी को पा कर!” डैड ने काजल का माथा चूमते हुए कहा, “भगवान् की बड़ी दया है मुझ पर! बेटी की तमन्ना थी - तुम मिल गई! तुम्हारे आने के बाद तो बस, खुशियाँ ही खुशियाँ आई हैं! मैं बहुत सुखी आदमी हूँ!”

“बाबू जी, एक बात बोलूँ?”

“बोलो बेटा?”

“मैं सोचती हूँ कि अब अमर को एक बेटा जाए, तो अपनी लतिका ब्याह दूँगी उसके साथ!”

“तुम भी न काजल! हा हा हा हा!” डैड ठठा कर हँसने लगे, “कितनी छोटी सी तो है पुचुकी और तुम उसकी शादी की सोच रही हो!”

“क्यों? क्यों न सोचूँ? माँ हूँ! और, क्या बुराई है मेरी बेटी में?”

“कोई भी बुराई नहीं है!” डैड बड़ी प्रसन्नता से बोले, “बहुत प्यारी बिटिया है पुचुकी! जहाँ भी जाएगी, उस घर को सुखी कर देगी! तो अगर पुचुकी इस घर की बहू बन कर आएगी, तो सबसे खुश मैं होऊँगा!”

“आप बहुत अच्छे हैं बाबू जी!”

“हाँ! पता है मुझे!” डैड मुस्कुराए, “चल, अब सो जा!”

“गुड नाईट बाबू जी!” कह कर काजल ने डैड के पाँव छू लिए!

“गुड नाईट बेटा!” डैड ने मुस्कुरा कर कहा, “और याद रखो - इस घर में बिटियाएँ अपने माँ बाप के पैर नहीं छूतीं! वो घर की लक्ष्मी होती हैं!”


**


प्रिय पाठकों - ये ‘फ्लैशबैक’ लिखने वाली उंगली मुझे अपने प्रिय Kala Nag भाई के कारण हुई है। उन्होंने अपनी कहानी ‘विश्वरूप’ में फ्लैशबैक पर फ्लैशबैक दे कर इतना पकाया है कि मैंने सोचा कि मैं भी अपने पाठकों को थोड़ा पकाऊँ! 😂😂😂
अब इस फ्लैशबैक पर आपने मेरी खिंचाई कर दी है
अब मैं अगले अपडेट में पक्का पकाऊँगा
खैर काजल की समस्या का समाधान फ्लैशबैक के कारण ही मिला यह ना भूलिए
स्तनपान पर एक विशेष बात आपसे साझा करता हूँ
दक्षिण ओड़िशा के मलकानगिरी ज़िले में एक जगह है जिसका नाम बंडाघाटी है वहाँ पर बंडा आदिवासी संप्रदाय रहती है l मैं नब्बे दशक की बात कर रहा हूँ जब वे लोग कपड़ा नहीं पहनते थे l यहां तक अपने सिर पर बाल तक नहीं रखते थे l उस समय अगर उनको कोई छेड़ दे तो वे मरने मारने पर उतारु हो जाते थे l ऐसी परिस्थिति में अगर आप बंडा जाती के किसी स्त्री के स्तन पर मुहँ लगा देते हैं तो आपको प्राण दान मिल सकती थी l क्यूँकी उसे उस समय संतान का दर्जा मिल जाता था
 

Kala Nag

Mr. X
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नया सफ़र - अनमोल तोहफ़ा - Update #5


“अच्छा जी!” माँ ने हँसते हुए कहा, “तो आपको अपनी बेटी का दूध पीने को मिल गया!”

“अरे ऐसे न कहो भाग्यवान! बेचारी को तकलीफ हो रही थी। और क्या करता मैं?”

“हा हा हा हा! अरे ठाकुर साहब, अच्छा किया आपने! मैं बस मज़ाक कर रही हूँ!” फिर माँ ने सोच कर कहा, “फिर सुनील को समझाया आपने?”

“हाँ!”


**


फ्लैशबैक -

सवेरे सवेरे सुनील नहा धो कर गुसलखाने से बाहर निकला ही था कि डैड ने उसको अपने पास बुलाया।

“जी बाबू जी?”

“बेटा सुनील, तुमसे एक बात कहनी थी!”

“जी बाबू जी! आप आदेश दीजिए!”

सुनील ने पूरी विनम्रता से कहा। सुनील इतना सभ्य, और सुशील था कि डैड का दिल बाग़ बाग़ हो गया! कैसे अच्छे संस्कार दिए थे काजल ने उसको! कैसा आज्ञाकारी, सुन्दर, और बलवान पुत्र है!

“नहीं बेटा! आदेश नहीं। बस इतना कहना था कि अपनी अम्मा का दूध पीना मत छोड़ो।”

“ओह्हो! अम्मा ने आपको भी परेशान कर दिया इतनी सी बात के लिए!” सुनील ने लड़कपन वाले अंदाज़ में कहा।

“अरे! इतनी सी बात नहीं है बेटा! और ऐसा नहीं है न कि तुम्हारे नुकसान के लिए हम ये कह रहे हैं।”

तब तक काजल भी वहाँ आ गई।

“पर बाबू जी, दूध पीना बच्चों का काम है! पुचुकी को पिलाएँ न! मैं तो अब बड़ा हो गया हूँ! इण्टर में हूँ! कौन लड़का इण्टर में अपनी माँ का दूध पीता है?”

“अमर भैया तो पीते थे?” काजल बोली, “और इतने बड़े हो गए हो, तो सब काम खुद से कर लो!”

“हाँ! पीते तो थे!” डैड ने काजल की बात का अनुमोदन किया।

सुनील चुप हो गया।

“अब बोलो?” काजल को डैड के सहारा मिला तो वो भी सम्मिलित हो गई, “इतने साल तुमको इतना सेया है, दूध पिलाया है, तभी तो ऐसे हुए हो!”

“अम्मा, इस बात से कहाँ इंकार कर रहा हूँ!”

लेकिन काजल अपनी ही झोंक में थी, “तुमको मुझसे शर्म आती है? बाबू जी से शरम आती है? माँ जी से शर्म आती है? इतने बड़े हो गए हो क्या तुम?”

“अम्मा?”

“इस घर में जितना प्यार मिलता है, वो सोच भी सकते हो?”

“अरे काजल,” डैड ने कहा, “ऐसे मत बोलो! तुम सभी हमारे बच्चे हो!”

“सुना?” काजल ने सुनील को सुनाते हुए कहा, “सुना तूने?”

“अम्मा, दूध पीने वाली बात को कहाँ से कहाँ ले जा रही हो!”

“तूने ही तो कहा न, कि बड़ा हो गया हूँ! इसलिए! और ये क्यों पहनी है? चल, हटा ये तौलिया... देखूँ तो कि कितने बड़े हो गए हो?”

कह कर उसने सुनील की कमर पर बंधी तौलिया खोल दी।

सुनील और लतिका - दोनों ही को मेरी ही तरह प्राकृतिक तरीके से रहने की शिक्षा दी जा रही थी, लेकिन सुनील थोड़ा शर्माता था। वो बहुत कम समय के लिए ही नग्न रहता था। शायद इसलिए क्योंकि उसकी एक छोटी बहन भी थी।

डैड ने उसको कोई डेढ़ साल बाद ऐसे नग्न देखा था। अब तक उसके अंडकोष भी थोड़े बढ़ गए थे, और उसका लिंग भी आंशिक रूप से स्तंभित हो गया था। उसके जघन क्षेत्र में घुंघराले बाल भी आने लग गए थे - मतलब लड़का जवान हो गया था! मेरी अपेक्षा सुनील ने दो साल पहले ही जवानी की दहलीज़ पर कदम रख दिया था। उसका शरीर वाकई उम्र के हिसाब से मज़बूत, दृढ़ और विकसित हो गया था। वैसे इस बात में उसके गुणवत्ता युक्त भोजन और नियमित व्यायाम करने का भारी योगदान था, लेकिन इससे माँ के दूध की महत्ता कम नहीं हो जाती। काजल की इस हरकत की आवश्यकता तो नहीं थी, लेकिन उसकी अपने एकलौते पुत्र को स्तनपान कराने की चाह बड़ी बलवती थी। अब वो इस काम को तब तक रोक नहीं सकती थी, जब तक उसकी छाती का दूध पूरी तरह से सूख न जाए।

उधर डैड भी अपने पुत्र की जवानी को देख कर प्रभावित और गौरान्वित हुए बिना न रह सके। उसके वृषण, खुद उनके वृषणों के मुकाबले, बस थोड़े ही छोटे थे।

“वैरी गुड, बेटा!” उन्होंने कहा, और फिर काजल की तरफ़ मुखातिब हो कर बोले, “काजल बेटा, मेरे बेटे के छुन्नू की तेल मालिश कर दिया करो! इसके पूरे शरीर के जैसा ये भी मज़बूत हो जाएगा!”

“बाबू जी!” सुनील ने शरमा कर अपना लिंग अपने हाथों से ढँक लिया!

“अरे इसमें शरमाने वाली क्या बात है? अच्छा बेटा एक बात बताओ - तुम्हारी क्लास में बाकी के लड़के तुम्हारी तरह बुद्धिमान हैं? बलशाली हैं?”

सुनील कुछ बोला नहीं।

डैड ने कहना जारी रखा,

“माँ का दूध अमृत होता है बेटा! जब तक मिले, पीते रहो। इससे शरीर मज़बूत और निरोगी होता है, और दिमाग तेज़!”

“जी,” सुनील ने शरमाते हुए कहा, “ठीक है बाबू जी!”

“आयुष्मान भव पुत्र! विजयी भव!” उन्होंने उसको आशीर्वाद दिया।


**


“अच्छा किया आपने, जो सुनील को आपने दूध पीने के लिए मना लिया।” माँ ने कहा, “बेचारी काजल! वो भी क्या करे! माँ है न! दूध जब बनता है, तो कोई क्या करे? मेरी भी तो वैसी ही हालत थी न!”

“हाँ अच्छा लगता है! आज कल बच्चे थोड़े बड़े क्या हो जाते हैं, खुद को माँ बाप से ऊपर मानने लगते हैं!”

“नहीं नहीं, सुनील वैसा नहीं है। बस थोड़ा शर्माता है!”

“काजल बता रही थी, कि तुम अभी भी सुनील को नहलाती हो?”

“हा हा! हाँ न! मैं तो उसको उसकी शादी के दिन भी नहलाऊँगी! बड़ा आया!”

“हा हा हा!” डैड ने हँसते हुए कहा, “तुम भी न!”


**


माँ डैड के कमरे के बाहर खड़े सुनील को जब अपना नाम सुनाई दिया तो वो ठिठक कर रुक गया।

आज उसको सोने में बहुत देर हो गई थी - अक्सर ही हो रही थी आज कल! बोर्ड एग्जाम की तैयारी, और फिर उसके साथ ही प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी में वो अब बहुत ही मशगूल हो गया था। उसकी हालत अर्जुन जैसी हो गई थी - अब उसको केवल अपना लक्ष्य दिख रहा था - और कुछ भी नहीं! अपनी अम्मा के सपने, बाबू जी और माँ जी की आशाएँ, अपने भैया का प्रोत्साहन और मार्गदर्शन - यह सब उसके लक्ष्य साधने में आयुध (weapons) जैसे थे! और पिछले चार सालों में उसने किसी को भी निराश नहीं किया था। वो हमेशा अपनी कक्षा में अव्वल आता रहा था, और पिछले चार सालों से लगातार उसको वजीफ़ा मिल रहा था। वो चाहता था कि यही क्रम आगे भी बरकरार रहे। अभी अव्वल आना, और प्रतियोगी परीक्षाओं में अव्वल आना - ये दोनों बड़ी अलग बातें हैं। इसलिए उसने एक तपस्या जैसी साध ली थी, और सुनिश्चित किया था कि वो अगले आधे साल तक कड़ी लगन से प्रतियोगिता को साधेगा। आज जब उसने अंततः घड़ी देखी तो पाया कि आधी रात हो गई है, और उसके जग का पानी ख़तम हो गया है। और इसीलिए वो सोने से पहले पानी पीने के लिए अपने कमरे से बाहर रसोई में आया था।

“क्या बात है ठाकुर साहब? दोबारा रेडी हैं आप तो?”

“इतने दिनों बाद मिली हो ठकुराईन! दो बार तो बनता है!”

“हा हा हा! हाँ जी! बिलकुल बनता है!”

सुनील का मन हुआ कि वो चुपचाप अपने काम से काम रखे, लेकिन कमरे के अंदर से आने वाली आहों ने उसके पैर रोक लिए। ऐसा नहीं है कि उसको सेक्स के बारे में कुछ आता नहीं था - मेरे मुकाबले तो वो बहुत ज्ञानी था। उसकी उम्र में मैं तो निरा भोंदू था। दोनों लिंगों के शरीर में जो भेद होता है, उसके कारण और उसके आकर्षण के बारे में उसको पूरा ज्ञान था। लिहाज़ा वो तुरंत समझ गया कि कमरे के अंदर क्या चल रहा था। उत्सुकतावश वो वहीं रुक गया। अगले कुछ मिनट तक कमरे के अंदर से बिस्तर के चरमराने की लयबद्ध आवाज़ें आती रहीं।

“आह्ह्ह! धीरे धीरे!” माँ की आवाज़ आई।

“आह मेरी जान! मज़ा आ गया! हमारी शादी के दिन याद आ गए!” डैड बोले!

“क्यों जी? ऐसे एक रात में मुझको कई बार सताने में आपको बहुत मज़ा आता है?”

“और नहीं तो क्या?”

“हा हा! उई माँ! धीरे धीरे! पहले ही मेरी हालत चरमरा गई है!”

“हा हा हा! हाँ, सॉरी मेरी जान! आज इतने दिनों के बाद मिली हो! इसलिए काबू नहीं रख पा रहा हूँ!”

“तो मत रखिए काबू! लेकिन थोड़ा आराम से!”

“हाँ मेरी प्यारी!”

सुनील उत्सुकतावश दरवाज़े से सट कर खड़ा हो गया। अंदर से वो डैड और माँ की बातचीत, और उनके बिस्तर की लयबद्ध तरीके से आगे पीछे खिसकने की आवाज़ आराम से सुन रहा था। कुछ मिनटों तक दोनों ऐसी ही मीठी मीठी बातें करते रहे और... साथ ही साथ कमरे से बिस्तर की लयबद्ध आवाज़ें आती रहीं।

“देखते देखते हमारा एक बेटा बड़ा हो गया, और बाप भी बन गया,” माँ बोलने लगीं, “और अब दूसरा बेटा भी बड़ी तेजी से बड़ा हो रहा है... कितना अच्छा लगता है न! अपना परिवार फलते फूलते देख कर?”

“हाँ! सच में! मुझे मालूम है, जैसे अमर ने किया है, वैसे ही सुनील भी बहुत तरक्की करेगा!”

“हा हा हा! हाँ - दोनों लगभग एक जैसे ही हैं! जैसे अमर था, वैसे ही सुनील भी!”

“हा हा हा! अच्छा है न! कम से कम हमारे बच्चे खुल के, अपने तरीके से जी रहे हैं! सोसाइटी के दबाव में नहीं जी रहे हैं! मेरे लिए तो बस इतना ही काफी है!” डैड ने कहा।

“हाँ, सच में!” माँ बोलीं।

“बस, ये अपनी काजल की भी कहीं बढ़िया सी जगह शादी हो जाए, तो समझो लाखों पुण्य पाए!”

‘अम्मा की शादी!’ सुनील के मन में ये बात बिजली की तरह कौंधी!

बच्चे अपने माँ बाप को ले कर बहुत पसेसिव होते हैं। यद्यपि सुनील को अच्छी तरह मालूम था कि उसका बाप एक नंबर का वाहियात, लम्पट और उग्र आदमी था, तथापि वो अपनी माँ को किसी और की पत्नी होते सोच नहीं पा रहा था। काजल अगर मेरी पत्नी बनती, तो अलग बात थी। मेरी शादी देवयानी से होने पर सुनील को थोड़ी निराशा तो अवश्य हुई थी। गैबी की मृत्यु के बाद उसको उम्मीद थी कि मैं और काजल शादी कर लेंगे। लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था।

“एक आदमी से बात तो हुई,” डैड ने कहा, “लेकिन उसके भी दो बच्चे हैं, और उम्र में भी वो बड़ा है बहुत! मुझे ठीक नहीं लगा! अपनी लड़की है। उसको ऐसे ही कहीं किसी खूँटे से थोड़े न बाँध देंगे!”

डैड की बात सुन कर सुनील को राहत हुई।

बिस्तर की कुछ और चरमराती हुई आवाज़ें आईं। हर धक्के के साथ माँ की आह निकल रही थी। और फिर अचानक ही डैड की एक लंबी, संतुष्टि भाई ‘आह्ह्ह्ह’ वाली आवाज़ सुनाई दी। उसके बाद सब कुछ शांत हो गया। सुनील भी दम साधे, दरवाज़े से कान सटाए सुन रहा था कि अंदर क्या हो रहा है। लेकिन आवाज़ें आनी बंद हो गईं। फिर कोई दो तीन मिनट के बाद माँ की आवाज़ आई,

“मैं पानी पीने जा रही हूँ! आपको चाहिए?”

डैड की आवाज़ नहीं सुनाई दी।

“सुनिए?” माँ ने पुकारा।

कोई आवाज़ नहीं।

“सो गए?”

फिर से कुछ नहीं।

सुनील को मालूम था कि माँ जी अब कमरे से बाहर निकलने ही वाली हैं। उसकी स्थिति कुछ ऐसी थी कि वो वहाँ से दूर, अपने कमरे में भाग नहीं सकता था - उसकी पदचाप से कोई भी समझ जाता कि वो वहीं कमरे के पास था। इसलिए वो कोशिश कर के जितनी जल्दी हो सके, रसोई की तरफ़ जाने लगा। वैसे तो सुनील के कमरे को छोड़ कर पूरे घर में अँधेरा था, लेकिन सुनील की समस्या कोई एक नहीं थी। एक तो वो पूर्णतः नग्न था; और दूसरा, माँ और डैड के इस अंतरंग ‘खेल’ को सुन कर उसका लिंग स्तंभित हो गया था। उसकी उम्र ऐसी थी कि एक बार लिंग में स्तम्भन आ जाए, तो जल्दी उतरता नहीं।

वो जब तक तेजी से रसोई में काउंटर तक ही पहुँच पाया कि माँ कमरे का दरवाज़ा खोल कर बाहर आ गईं। ठंडक का मौसम तो था, लेकिन घर के अंदर वैसी ठंडक नहीं थी। डैड ने कुछ इस तरह का घर बनवाया था कि सर्दियों में वो अपेक्षाकृत गर्म, और गर्मियों में अपेक्षाकृत ठंडा रहता था। मतलब बाहर अगर पाँच छः अंश तापमान भी हो, तो घर के अंदर कम से कम दस अंश अधिक तापमान रहता था। हाँ, बस, खिड़कियाँ बंद रखनी ज़रूरी थी। वैसे भी घर के हर कमरे में कोयले का अलाव जलता रहता था। एक बार कोयले में आँच बन जाए तो देर तक गर्मी देता है। उसकी राख में आलू डाल दी जाती थी। सवेरे तक हर अलाव में आलू अच्छी तरह से भुन कर तैयार हो जाता था - सवेरे उसका या तो आलू पराठा बन जाता, या फिर भरता, या फिर कोई सब्ज़ी! है न बढ़िया आईडिया!

सुनील की आकृति देख कर माँ ठिठक गईं।

“अरे, सुनील?”

“ज्जी!”

माँ को एक पल समझ में नहीं आया कि वो क्या करें!

माँ की भी एक दिक्कत थी - डैड के साथ सम्भोग के दौरान वो भी पूरी तरह निर्वस्त्र हो गई थीं, और कमरे से बाहर निकलते समय उन्होंने सोचा भी नहीं था कि किसी अन्य से मुलाकात हो सकती है। वैसे अँधेरे में न तो सुनील को माँ की नग्नता के बारे में, और न ही माँ को सुनील की नग्नता के बारे में संज्ञान हो सकता था। लेकिन हिचक दोनों को ही हो रही थी। सुनील की हिचक अपने लिंग के स्तम्भन को ले कर थी - माँ के सामने नग्न तो वो अक्सर ही होता रहता था। और माँ की हिचक अपनी पूर्ण नग्नता को ले कर थी। सुनील ने अक्सर लतिका को माँ के स्तनों से लगे देखा था, लेकिन वो एक अलग बात थी। इस समय माँ के शरीर पर वस्त्र का एक धागा भी नहीं था।

“कुछ चाहिए बेटा?”

“ज्जी व्वो म्मैं पानी पीने आया था!”

“ओह! मैं भी! नींद नहीं आ रही है?”

“ज्जी ब्बस सोने वाला ही था!”

तभी रसोईघर बाहर जाती हुई किसी गाड़ी की हेडलाइट के तेज प्रकाश से पूरी तरह से नहा गया। उस एक-डेढ़ सेकंड के प्रकाश में सुनील ने माँ का नग्न शरीर बखूबी देखा, और माँ ने उसका स्तंभित लिंग भी! जिस बात को ले कर दोनों घबरा रहे थे, वही बात हो गई। लेकिन अब क्या हो सकता था? दोनों ने बिना कुछ कहे पानी पिया।

फिर माँ ने ही कहा, “मैं सुला दूँ?”

माँ अक्सर ही सुनील को सुलाती थीं - ज्यादातर जबरदस्ती कर के। कि कहीं देर तक पढ़ने से आँखें न खराब हो जाएँ, या नींद ठीक न आने से कहीं सेहत न बिगड़ जाए। कभी कभी उसको पढ़ाते पढ़ाते देरी हो जाती थी, तो उसके साथ ही सो जाती थीं।

सुनील ने कुछ कहा नहीं। शायद ‘हाँ’ में सर हिलाया हो, या शायद ‘न’ में!

“बहुत देर हो गई है! मैं सुला देती हूँ!”

माँ ने उसका हाथ पकड़ा, और उसको उसके कमरे की ओर ले जाने लगीं। सुनील झिझक रहा था, लेकिन वो माँ को मना नहीं कर पा रहा था। उसका कमरा रौशनी से नहाया हुआ था। ऐसे में माँ का नग्न शरीर उससे छुप नहीं सकता था। वो उनकी अद्भुत सुंदरता को देख कर दंग रह गया - माँ कम उम्र लगती थीं, लेकिन निर्वस्त्र होने के बाद तो जैसे उनकी उम्र से पंद्रह बीस वर्ष घट गए हों! अगर वो फ़िटेड कुरता और चूड़ीदार शलवार पहन लें, तो कोई उनको बीस बाईस साल से अधिक का कह ही नहीं सकता! शायद इसीलिए वो कुछ ऐसे कपड़े पहनती थीं, कि उनकी उम्र अधिक लगे! उन कपड़ों में भी वो सत्ताईस अट्ठाईस से अधिक की नहीं लगती थीं।

ओह, कैसे गोल और ठोस स्तन! और बालों से ढंकी उनकी योनि!

‘इसी में बाबू जी अभी मेहनत कर रहे थे!’ उसके दिमाग में विचार कौंधा!

अगले ही क्षण उसको अपने विचार पर ग्लानि हुई।

वो दोनों की ही बड़ी इज़्ज़त करता था, और उनसे बहुत प्रेम भी करता था। इसलिए उसको दोनों के बारे में ऐसी सोच रखने के लिए बहुत ग्लानि हुई। उसको तो खुश होना चाहिए कि दोनों पति-पत्नी इतने प्रेम से रहते हैं। एक उसका बाप था, जो उसकी अम्मा को और उसको मारता पीटता रहता था। न उसको उसकी पढ़ाई लिखाई की चिंता थी, और न ही उसकी अम्मा की सेहत और इज़्ज़त से कोई सरोकार! उसको मोहब्बत थी तो बस शराब से और अपने आप से! एक कोठरी की कुटिया में हर रोज़ उसकी अम्मा का बलात्कार करता था वो आदमी! वो तो एक दिन उसकी अम्मा ने न जाने किस प्रेरणा से कुटिया में पड़ी लकड़ी का लट्ठा उसके बाप के सर दे मारा, नहीं तो यही सिलसिला हमेशा चलता रहता।

अचानक ही जैसे उसके भाग्य की उस बदसूरत इबारत को किसी ने मिटा कर, स्वर्णिम अक्षरों से एक नई किस्मत लिख दी हो! उसकी अम्मा की उस एक हरकत से जैसे उसके परिवार की दिशा ही बदल गई। पहले तो भैया ने, और फिर बाबू जी ने उनको संरक्षण दिया! और अब देखो - क्या ऐसा कभी लगता भी है कि वो इस घर का हिस्सा नहीं? लतिका अपनी अम्मा से अधिक, अपनी मम्मा से प्यार करती है! और वो खुद, वो सपने देख पा रहा है, जो वो देखने का सोचता भी नहीं था। उसका तो पूरा जीवन ही सपने जैसा लगता है न?

वो अपने विचारों की उधेड़बुन से बाहर तब आया जब उसने देखा कि माँ जी ने उसको बिस्तर पर लिटा दिया है, और खुद भी उसके बगल आ कर लेट गई हैं।

उसका लिंग अभी भी तना हुआ था - पहले से भी अधिक!

वो कैसे इस तथ्य को झुठला दे कि एक अनन्य सुंदरी उसके बगल नग्न लेटी हुई है? वो और उसकी अम्मा (काजल) कभी कभी ये बात करते थे, कि अगर माँ जी बम्बई या दिल्ली में रहतीं, तो अवश्य ही वो आज फिल्मों में टॉप की हेरोईन होतीं! इतनी सुन्दर हैं वो! और उनका व्यवहार तो - आह! कैसा भोलापन! कैसी निश्छलता!! और कितना प्रेम!!! साक्षात् देवी हैं देवी! और वही देवी उसके बगल लेटी हुई हैं। नग्न! उसको शर्म भी आ रही थी कि चाह कर भी उसका लिंग बैठ नहीं पा रहा था। पूरी निर्लज्जता से वो स्तंभित था, और रह रह कर झटके खा रहा था।

माँ ने उसके शरीर की नक़ाबू हरकतों को देखा और उसको शांत करने के लिए हाथ बढ़ा कर उसके वृषणों को हल्का सा दबाया। सुनील की आँखें बंद हो गईं और उसके गले से एक आह निकल पड़ी। उसको लग रहा था कि उसका लिंग फ़ट पड़ेगा। उसी समय माँ का हाथ उसके लिंग पर आ गया। उसके लिंग को अपनी हथेली में पकड़ कर उन्होंने दो बार सरकाया ही था, कि सुनील को अपने आसन्न स्खलन का अनुभव हुआ। वो कुछ कह पाता या कर पाता, कि उसके पहले ही वीर्य की एक मोटी धारा उसके लिंग से निकल पड़ी, और उसके पेट और माँ के हाथ पर आ कर गिरी।

“आह्ह्ह्ह!” सुनील कांपती हुई आवाज़ में कराहा।

“कुछ नहीं, कुछ नहीं!” माँ ने उसको स्वांत्वना देते हुए कहा, “होने दो!”

यह जो कुछ हुआ, माँ ने उसका प्लान तो नहीं किया था, इसलिए वो भी हतप्रभ रह गईं। लेकिन सुनील को शर्म न हो, ग्लानि न हो, इसलिए वो ऐसे बर्ताव कर रही थीं कि जैसे यह सामान्य क्रिया हो।

“उम्मफ्फ...”

“बस बस, हो गया!” माँ अभी भी उसके लिंग पर अपना हाथ चला रही थीं। सुनील को तीन चार और स्खलन हुए।

थोड़ी ही देर में उसका लिंग सिकुड़ कर शांत हो गया। उसको समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे! माँ की उम्मीदों के विपरीत उसको बहुत शर्म भी आ रही थी, और बहुत ग्लानि भी हो रही थी। और भी शर्मनाक बात यह हो गई कि जब वो यह सब (हस्त-मैथुन) खुद से करता था तो दो तीन मिनट तो करता ही था, लेकिन यहाँ तो इनके छूते ही सब निकल गया! माँ का हाथ उसके वीर्य से भीग गया था। लेकिन उन्होंने अभी भी उसका लिंग नहीं छोड़ा था।

“अभी ठीक लग रहा है?”

सुनील ने कुछ नहीं कहा।

“सुनील! प्लीज़ ऐसे मत रहो!” माँ ने मनुहार करते हुए कहा, “बोलो न! ठीक लग रहा है?”

सुनील ने ‘न’ में सर हिलाया। उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े।

“अरे अरे,” माँ ने सुनील को अपनी छाती में भींचते हुए कहा, “मेरा जवान लड़का हो कर ऐसे रो रहा है?”

सुनील अभी भी कुछ नहीं बोला - बस फ़फ़क कर रोने लगा। उसके आँसू माँ की छाती को भिगोने लगे। माँ कुछ देर तक उसको बहलाती रहीं।

“बस बस! अब और रोना नहीं!”

कुछ देर बाद वो शांत हो गया - अब उसको और भी शर्म आ रही थी। एक तो पहले ही बेइज़्ज़ती हो गई थी, और अब रो रो कर उसने अपनी इज़्ज़त कर और भी फालूदा बना दिया।

“मुझसे बात नहीं करोगे?”

सुनील ने ‘न’ में सर हिलाया।

“नहीं करोगे?” माँ उसकी लड़कपन भरी हरकत पर मुस्कुरा दीं।

सुनील ने फिर से ‘न’ में सर हिलाया।

“मतलब मुझसे कट्टी?”

वो इस बार कुछ नहीं बोला।

“चलो अच्छा है! कम से कम कट्टी तो नहीं है!” माँ मुस्कुराते हुए बोलीं।

सुनील अभी भी कुछ नहीं बोला।

“अच्छा चलो! अब सुला दूँ तुमको?”

सुनील ने फिर से ‘न’ में सर हिलाया।

“आज रात नहीं सोना है?”

सुनील कुछ नहीं बोला।

“ठीक है! मत सोना! लेकिन मुझे तो बहुत नींद आ रही है!” माँ ने कहा और सुनील से लिपटते हुए बोलीं, “मैं तो यहीं सो रही हूँ!”

सुनील फिर से कुछ नहीं बोला।

माँ कुछ क्षण कुछ नहीं बोली, फिर उन्होंने सुनील से पूछा,

“अभी ठीक लग रहा है?”

इस बार सुनील ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

फिर उसने अचानक ही कहा,

“ओह! देखिये न - आपका भी सब गन्दा हो गया!”

सुनील का इशारा अपने वीर्य की तरफ था, जो माँ के लिपटने के कारण उनके शरीर पर भी लग गया। कमरे की ठंडक से वो भी ठण्डा हो रहा था, और अब शरीर पर महसूस हो रहा था।

“अरे! तो आप उतना नाराज़ नहीं है मुझसे!” माँ ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा।

सुनील उनकी बात को अनसुना करते हुए बोला, “मैं साफ़ कर देता हूँ!”

और उठ कर अपना एक रूमाल ले आया और उसने सबसे पहले माँ का पेट और हाथ साफ़ किया और फिर अपना। फिर वो बिस्तर पर वापस आ कर लेट गया।

“आप सच में यहीं सोएँगी?”

“क्यों? अपने बेटे के साथ सोने में मुझे किसी से कोई परमिशन लेनी पड़ेगी क्या?”

“नहीं नहीं!” सुनील उनकी बात से अचकचा गया, “ठीक है!”

उसने कम्बल खींचा, और माँ को ओढ़ा दिया। उसका बिस्तर सिंगल बेड था - इसलिए चिपक कर सोना अपरिहार्य था। माँ को इस बात में कोई परेशानी नहीं थी।

“दूध पियोगे?”

सुनील ने ‘न’ में सर हिलाया।

माँ मुस्कुरा दीं और फिर सुनील से चिपक कर सो गईं। कुछ देर में सुनील को भी नींद आ गई।


**


“अरे काजल, कब से बैठी हो?”

सवेरे माँ की आँख खुली, तो सामने काजल को बैठे पाया।

“यही कोई दस मिनट से,” काजल मुस्कुराते हुए, दबी आवाज़ में बोली, “तुम दोनों खूब प्यारे लग रहे थे, इसलिए जगाया नहीं!”

माँ भी मुस्कुराईं, “तू भी न!” और अँगड़ाई लेने को हुईं। तब उनको महसूस हुआ कि सुनील का हाथ उनके एक स्तन पर था।

“तब से पकड़े हुए है - एक पल के लिए भी नहीं छोड़ा!” काजल ने माँ को छेड़ते हुए कहा, “और मेरा तो मुँह में लेने में शरम आती है लाट साहब को!”

“ऐसा नहीं है काजल! बस शर्माता है, और कुछ नहीं!”

“कल पिलाया था क्या इसको?”

“न रे! अपने आप से तो पीता ही नहीं! और अगर मुझको दूध आता, तो जबरदस्ती न पिला देती?”

कह कर माँ बिस्तर से चुपके से उतर खड़ी हुईं - उनको पूर्ण नग्न देख कर काजल मुस्कुराई।

“क्या दीदी, मेरा लड़का बहक जाएगा ऐसे तो!”

“हाँ! अपनी माँ को नंगी देख कर कोई बेटा बहकता है क्या?”

काजल कुछ कहने को हुई, लेकिन चुप रह गई। फिर उसकी नज़र बिस्तर पर सोते हुए सुनील पर पड़ी। माँ के हटने से उसकी चादर भी उतर गई थी। उसका लिंग तना हुआ था - मॉर्निंग वुडी कहते हैं न, वही! किसी अन्य घर में यह कोई सामान्य घटना नहीं मानी जा सकती। लेकिन हमारे यहाँ यह कोई बहुत असामान्य घटना नहीं थी। माँ ने देखा कि काजल क्या देख रही है।

“ए, नज़र मत लगा!”

“क्या दीदी, माँ की भी नज़र लगती है क्या अपने बच्चों को!”

उसकी बात पर माँ मुस्कुरा दीं, “जवान हो गया है बेटा!”

“हाँ न! इसका नुनु भी बड़ा हो गया और बिची भी!”

“अभी और होगा! इसीलिए तो तुमको कहा था कि जब तक पॉसिबल हो, तब तक पिलाओ अपना दूध!”

“हाँ, तो मैंने ही कब मना किया? ये तो ये ही लाट साहब हैं, जो मानते नहीं!”

माँ मुस्कुराईं, “सोचो - कुछ ही दिनों में इसके लिए लड़की ढूंढनी पड़ेगी!”

“हाँ न! अपनी ही जैसी कोई लड़की ढूंढनी शुरू कर दो इसके लिए!” काजल बोली।

“अरे, अपने जैसी क्यों?” माँ ने अंततः अँगड़ाई लेते हुए कहा, “थोड़ा जवान होती, तो मैं खुद ही कर लेती इससे शादी!”

“हाँ, अभी खुद को माँ बोल रही थी, और अभी खुद को बीवी!”

काजल और माँ दोनों ही इस बात पर हँसने लगीं। सुनील ने उठने की आवाज़ निकाली।

“शशशीहह!” माँ ने अपने होंठों पर उंगली रखते हुए काजल को चुप रहना का संकेत किया, “देर में सोया है! और सो लेने दो!”

काजल ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, और कमरे से बाहर निकल आई। माँ भी पीछे पीछे बाहर आ गईं।

“बिट्टो रानी उठी?” माँ ने पूछा।

“उठी होती तो तुम्हारी छाती से न चिपकी रहती?”

“अरे तो तू क्यों जल रही है?” माँ ने काजल को छेड़ा, “तू भी तो चिपकी रहती है मौका पा कर!”

माँ ने ज़ोर की अँगड़ाई भरी। काजल की नज़र माँ की योनि पर पड़ी।

“क्या दीदी, कल रात मज़े किए तुमने और बाबूजी ने?”

“मुझको दीदी, और उनको बाबूजी बोल कर ये सब बोलती हो न तो लगता है जैसे न जाने क्या कर दिया हम दोनों ने!”

“हा हा हा! अरे, लेकिन तुमको माँ जी कहने का मन नहीं करता न अब! और बाबूजी को बाबूजी ही कहने का मन होता है।”

“ठीक है - जो मन करे कहो हमको! लेकिन प्यार बनाए रखना बस!”

“तुम तो मेरी पक्की सहेली हो दीदी! तुमसे मैं कैसे प्यार न करूँ!” काजल अचानक ही भावुक हो गई।


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भाई ऐसी परिस्थिति के लिए अखंड साधना की आवश्यकता होती है
सिद्ध पुरुष होने चाहिए
खैर इस अंक पर कमेंट करना मेरे साध्य में नहीं है
 
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