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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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अमर और रचना बचपन के फ्रैंड थे। बचपन मे ही दोनो ने एक बार सेक्सुअल सम्बन्ध भी स्थापित कर लिया था। रचना की बोंडिंग अमर के मां से भी बहुत बहुत अच्छी थी।

फिर वो दोनो करीब अठारह बीस साल के बाद मिले तब तक दोनो के लाइफ मे बहुत कुछ घट चुका था। दोनो का वैवाहिक जीवन अंततः शुखद नही रहा था।

करीब बीस साल बाद जब वो मिले तो आनन फानन फिर से :sex: हो गए। जहां रचना उसकी पत्नि होने के सपने संजोने लगी वहीं अमर कोई डिसिजन न ले पाया । उसे कुछ समय चाहिए था जिससे कि वो परख सके कि रचना उसकी अच्छी बीवी बन सकती है या नही !

यदि यह सब सेक्सुअल सम्बन्ध बनाने से पहले सोचा होता तो अच्छा होता।
एक कहानी फिर से कहता हूं-

एक व्यक्ति पैदल सड़क के रास्ते गुजर रहा था। रास्ते मे उसे महसूस हुआ कि उसके चप्पल के तलवे मे कुछ चिपक गया है। व्यक्ति खुब होशियार था। खुद को शरलाक होम्स समझता था। वो जानना चाहा कि मेरे चप्पल मे क्या लग गया है।
आमतौर पर इंसान चप्पल को रोड पर या कही घांस पर रगड़ कर निकल जाते है।
लेकिन हमारे भाई साहब बहुत होशियार थे तो उन्होने सोचा कि देखूं आखिर क्या उनके चप्पल मे सट गया है।
उन्होने चप्पल निकाला और उस पदार्थ को देखा। समझ नही आया तो छूकर देखा। यह तो वो समझ गए कि यह किसी का मल है लेकिन किसका मल है यह समझ नही पाए।

कभी लगता यह किसी कुते का मल है तो कभी लगता किसी बिल्ली का। कभी इंसान का लगता तो कभी मगरमच्छ का। फिर वो सोचते मगरमच्छ रोड पर कैसे पैखाना कर सकता है।
खैर , जब समझ नही आया तो उन्होने सोचा कि शायद सूंघने से पता चले। उन्होने मल को अपने एक उंगली मे लपेटा और फिर उसे नाक के पास ले जाकर सूंघा।
मगर फिर भी समझ नही आया। जब कुछ भी समझ न आया तो उन्होने एक बार फिर से अपना शरलाक होम्स वाला दिमाग लगाया। इस बार उन्होने उस मल को अपने जीभ से चखा। अब उन्हे समझ आ गया कि यह और किसी का नही , किसी इंसान का ही मल है।
इसीलिए कहता हूं , अंत होशियार लोग एक ही चीज पर तीन तीन बार मुर्ख बन जाते है। अतः अमर भैया को ज्यादा न सोचकर चुपचाप रचना से ब्याह कर ही लेना चाहिए। 🤣

एक बार फिर से जगमग जगमग अपडेट भाई।
 
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avsji

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अमर और रचना बचपन के फ्रैंड थे। बचपन मे ही दोनो ने एक बार सेक्सुअल सम्बन्ध भी स्थापित कर लिया था। रचना की बोंडिंग अमर के मां से भी बहुत बहुत अच्छी थी।

फिर वो दोनो करीब अठारह बीस साल के बाद मिले तब तक दोनो के लाइफ मे बहुत कुछ घट चुका था। दोनो का वैवाहिक जीवन अंततः शुखद नही रहा था।

करीब बीस साल बाद जब वो मिले तो आनन फानन फिर से :sex: हो गए। जहां रचना उसकी पत्नि होने के सपने संजोने लगी वहीं अमर कोई डिसिजन न ले पाया । उसे कुछ समय चाहिए था जिससे कि वो परख सके कि रचना उसकी अच्छी बीवी बन सकती है या नही !

यदि यह सब सेक्सुअल सम्बन्ध बनाने से पहले सोचा होता तो अच्छा होता।
एक कहानी फिर से कहता हूं-

एक व्यक्ति पैदल सड़क के रास्ते गुजर रहा था। रास्ते मे उसे महसूस हुआ कि उसके चप्पल के तलवे मे कुछ चिपक गया है। व्यक्ति खुब होशियार था। खुद को शरलाक होम्स समझता था। वो जानना चाहा कि मेरे चप्पल मे क्या लग गया है।
आमतौर पर इंसान चप्पल को रोड पर या कही घांस पर रगड़ कर निकल जाते है।
लेकिन हमारे भाई साहब बहुत होशियार थे तो उन्होने सोचा कि देखूं आखिर क्या उनके चप्पल मे सट गया है।
उन्होने चप्पल निकाला और उस पदार्थ को देखा। समझ नही आया तो छूकर देखा। यह तो वो समझ गए कि यह किसी का मल है लेकिन किसका मल है यह समझ नही पाए।

कभी लगता यह किसी कुते का मल है तो कभी लगता किसी बिल्ली का। कभी इंसान का लगता तो कभी मगरमच्छ का। फिर वो सोचते मगरमच्छ रोड पर कैसे पैखाना कर सकता है।
खैर , जब समझ नही आया तो उन्होने सोचा कि शायद सूंघने से पता चले। उन्होने मल को अपने एक उंगली मे लपेटा और फिर उसे नाक के पास ले जाकर सूंघा।
मगर फिर भी समझ नही आया। जब कुछ भी समझ न आया तो उन्होने एक बार फिर से अपना शरलाक होम्स वाला दिमाग लगाया। इस बार उन्होने उस मल को अपने जीभ से चखा। अब उन्हे समझ आ गया कि यह और किसी का नही , किसी इंसान का ही मल है।
इसीलिए कहता हूं , अंत होशियार लोग एक ही चीज पर तीन तीन बार मुर्ख बन जाते है। अतः अमर भैया को ज्यादा न सोचकर चुपचाप रचना से ब्याह कर ही लेना चाहिए। 🤣

एक बार फिर से जगमग जगमग अपडेट भाई।

बिलकुल सही बात कही है आपने संजू भाई! जब कोई अधिक चतुर बनने की कोशिश करता है, तो वो "चूतर" बने बिना नहीं रह सकता।

अमर का यही हाल है - लेकिन उसकी भी अपनी मजबूरी है। दो छोटी लड़कियाँ हैं घर में। अगर कोई कंटाली औरत घर आ गई, तो दोनों का जीना हराम कर सकती है।
सौतेली माओं पर न जाने कितनी कहानियाँ, कितनी ही फ़िल्में बनी हुई हैं! कोई न चाहे फिर भी उस शंका को दूर नहीं कर सकता।
शुरू शुरू में रचना के साथ कामुक आकर्षण तो था ही - वो है ही इतनी सुन्दर और सेक्सी! लेकिन एक बार वो ज्वार थमा, तो अमर अपने लिंग से नहीं, बल्कि दिमाग से सोचने लगा।

लेकिन सोचना चाहिए थोड़ा भावनात्मक रूप से। अपनी तरफ़ की पूरी सच्चाई रचना से नहीं कही है उसने और चाहता है कि रचना उसको और उसके परिवार को बिना किसी पूर्वाग्रह के पूरा पूरा प्यार दे! ऐसे थोड़े ही होता है।

मेरे हिसाब से रचना अमर की उम्मीद और उसकी पात्रता से कहीं बेहतर स्त्री है।
वो उसके परिवार को अपनाने और स्वयं को उसके परिवार में विलय कर देने के लिए तत्पर है। खैर....

साथ बने रहें! सफर जारी है :)
 

avsji

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Supreme
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मीठा एवं स्वादिष्ठ घटनाक्रम, बिल्कुल रचना के स्तनों जैसा। 🤤

हा हा! बहुत बढ़िया कमेंट है मेरे भाई! :)
 

Lutgaya

Well-Known Member
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अंतराल - समृद्धि - Update #12


आवर फर्स्ट टाइम?” मैंने कहा!

“हम्म म्मम...”

“हा हा... अरे! उस बारे में क्या सोच रही हो?” मैंने कहा, और फिर से रचना के एक चूचक को चूमने दुलारने लगा।

“यू नो… जब... हमने... पहली बार... पहली बार किया था न… तब... मैंने माँ से सब कुछ कह दिया था...” वो हिचकते हुए बोली, जैसे कि उसको डर हो कि मैं क्या कहूँगा।

मैं मुस्कुराया, और रचना को छेड़ते हुए बोला, “माँ का नंबर दूँ? बात करोगी?”

“इस टाइम?”

“हाँ! क्या प्रॉब्लम है?”

“और इस टाइम बात क्या करूँ उनसे?”

“यही,” मैंने तपाक से कहा, “कि मैंने आपके बेटे के साथ फिर से...” मैंने वाक्य पूरा नहीं किया।

“धत्त...”

“अरे माँ से शरमाओगी अभी भी...?”

उसने ‘न’ में सर हिलाया और बोली, “माँ तो इतनी प्यारी हैं कि उनसे क्या शर्म, और क्या छुपाना? ... पता है? जब मैंने उनको सब बात बताई थी, तो उन्होंने मुझे ब्लेस किया... और... मुझसे कहा कि अगर मैं कभी तुमसे शादी करना चाहूँ, तो वो मुझे अपनी बहू के रूप में पाकर बहुत खुश होंगी और मुझे बहुत प्यार करेंगी!”

‘माँ तो किसी को भी अपनी बेटी बना कर प्यार लुटाना शुरू कर देती हैं,’ मैंने मन ही मन सोचा, ‘वो तो उनकी बहुत पुरानी आदत है!’

प्रत्यक्षतः मैंने कहा, “हाँ, वो तुम्हें... सच में अपनी बेटी की ही तरह प्यार करती थीं!”

“हाँ न? हमेशा करती थीं...” रचना पुरानी बातें याद करती हुई बोली, “माँ ने मेरे लिए वो सब किया, जो मेरी खुद की माँ ने नहीं किया... सच में... मेरे कारण बहुत दुःख मिला न उनको?”

“नहीं ऐसा नहीं है!” ऐसा था तो सही, लेकिन रचना को वो सब कहा तो नहीं जा सकता न, “माँ तो सब भूल जाती हैं... सबको माफ़ कर देती हैं!” ये भी सच है!

“मैं उनसे माफ़ी मांग लूँगी जब उनसे मिलूँगी!” रचना ने बहुत संजीदगी से कहा - उसकी आवाज़ में सच्चाई, दुःख सब सुनाई दे रहा था, “पाँव पकड़ लूँगी उनके... सच कहूँ अमर? उस बात से मेरी अपनी ही माँ से बात चीत बहुत कम हो गई! अपने परिवार से तो अलग नहीं हुआ जा सकता न... इसलिए क्या करती?”

“वो सब मत सोचो रचना,” मैंने रचना की बातों में गंभीरता, प्रायश्चित और ईमानदारी जैसे भाव साफ़ सुने, “पुरानी बातें हैं सब!”

कुछ पल हम दोनों चुप रहे - मैं फिर से उसके चूचक पीने लगा।

फिर रचना मुस्कुराते हुए बोली, “याद है, माँ मुझे अपने सीने से लगा लेती थीं!”

“सीने से नहीं, वो तुमको ब्रेस्टफीड कराती थीं!” मैंने रचना की बात का सही सही आँकलन कर के उसके सामने रख दिया, “उनको दूध आता होता न, तो तुमको दूध पिलाने से वो न हिचकिचातीं...” मैंने उसकी बात का अनुमोदन किया।

रचना मुस्कुराई, “आई नो... मुझे तो आज भी हैरानी होती है कि मैं माँ के सामने न्यूड होने में कभी हेसिटेट नहीं करी... लेकिन अपनी खुद की माँ के सामने मेरी आज तक हिम्मत भी नहीं हुई वैसा कुछ करने की...”

“हम्म…” अब इस बारे में मैं क्या कहूँ?

फिर कुछ देर ख़ामोशी।

“अमर... मुझे तुमसे ही शादी करनी चाहिए थी!” रचना बोली, “मुझे... मुझे... फाइट करना चाहिए था...”

यह बड़ी ही बोल्ड बात कह दी रचना ने! जिस बैकग्राउंड से आई थी वो, यह बात कहना उसके लिए बहुत बड़ी बात थी! उसके दिल में कई गुबार थे, निकल जाने चाहिए थे। इसलिए मैंने उसको कुछ कहा नहीं, बस एक अच्छे दोस्त की तरह उसको प्यार से थामे उसकी बातें सुनता रहा।

“मम्मी पापा की हर बात आँख मूँद कर मान ली! क्या मिला? ... उस शादी ने मुझे बिगाड़ दिया यार...” वो बड़ी निराशा से बोली, “पूरी तरह से... मेरी इनोसेंस... मेरे अंदर की मिठास... सब चली गई!”

बोलते बोलते उसकी आँखों से आँसू आ गए। रचना को यूँ दुःखी होता देख बड़ा खराब लगा, लेकिन क्या करता? मैं उसको थामे, स्वन्त्वना देता रहा। रोमांटिक मूड का कबाड़ा हो गया पूरा!

“क्या थी मैं और क्या बन गई! इतनी बिटर हो गई हूँ अब...” वो अन्यमनस्क सी हो कर बोल रही थी, “फ़क दिस कास्ट स्टफ...” उसने बड़े फ़्रस्ट्रेट हो कर कहा, “उसके चलते कितनी ज़िन्दगियों का सत्यानाश हो जाता है!”

मैंने उसको गले से लगा कर कहा, “रचना... हे... पुरानी बातें भूल जाओ! बीत गईं! मत याद करो उन्हें... क्या मिलेगा उससे? प्रेजेंट में जियो न... उसका मज़ा लो!”

मैंने अभी तक उससे उसकी पहली शादी के बारे में कुछ नहीं पूछा था। आवश्यकता नहीं थी - जो उसके जीवन का हिस्सा नहीं, उसके बारे में पूछ कर क्या हासिल? अगर हमको साथ में आगे बढ़ना था, तो हमारे वर्तमान के साथ बढ़ना था।

“मैं हूँ न तुम्हारे साथ,” मैंने कहा और मैंने फिर से उसके चूचकों को चूसना और उन पर गुदगुदी करना शुरू कर दिया, जिससे रचना को खराब न लगे।

वो जबरदस्ती मुस्कुराई, लेकिन उसकी आँखों में आँसू भर गए थे। वो किसी तरह से अपनी पुरानी बातें भुला देना चाहती थी।

रचना कुछ देर चुप रही, और फिर कुछ सोच कर बोली, “अमर... तुमको बुरा तो नहीं लगेगा कि मेरी शादी किसी और से हुई थी, और मेरी उससे एक बेटी भी है?”

अब ये क्या बात हुई?

“मुझे बुरा क्यों लगेगा?” मैंने सच्चाई से कहा, “मेरी भी तो शादियाँ हुई हैं - दो दो! मेरी भी तो बेटी है एक!”

“वो ठीक है... लेकिन मर्दों को कुंवारी लड़कियाँ पसंद आती हैं!”

“तुम भी तो मुझे तब पसंद आई थी, जब तुम कुंवारी थी! है न? नादानी के खेल भी तो हमने तभी खेले थे!”

“हाँ! ... नादानी के खेल! हा हा!” तभी उसे अचानक कुछ याद आया, “... सच में यार! नादान ही रहते हम... क्यों बड़े होने लग गए?”

“छोड़ न यार रचना!”

वो मुस्कुराई, फिर कुछ सोच कर बोली, “तुम्हें याद है अमर... माँ ने कहा था कि मुझे बहुत दूध आएगा!”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“वैसा ही हुआ! मैंने अपनी बेटी को तीन साल तक दूध पिलाया!”

“दैट्स गुड रचना! आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू!”

यह सच बात थी! मुझे हर उस स्त्री पर गर्व है, जो अपने बच्चों को एक लंबे समय तक स्तनपान कराती है।

“लेकिन केवल तीन साल ही क्यों? और पिलाती?”

“अरे मेरी सास उसको भी कण्ट्रोल करना चाहती थी... साल डेढ़ साल में ही उसको दूध पिलाने को ले कर चीं चुपड़ करने लगी... लेकिन मैंने भी सोच लिया कि अपनी बेटी को डेप्राइव कर के नहीं रखूँगी... एक तरह से हम दोनों एक दूसरे का सहारा थीं!”

“रचना... बुरी बातों को भूल जाना चाहिए!” मैंने उसको समझाया, “तुम यहाँ हो... तो प्रेजेंट में जियो न!”

“हम्म!” उसने सर हिलाया, “तुम सही कहते हो!” फिर तो शर्माती हुई बोली, “तुम्हारे साथ रहते रहते सब ठीक हो जायेगा! तुम बहुत अच्छे हो! अच्छे लोग अच्छे लोगों को या तो अट्रैक्ट करते हैं, या उनकी अच्छाईयाँ बाहर उकेर देते हैं!”

“आई ऍम श्योर!” मैं भी मुस्कराया।

अपनी तारीफ़ में खुद ही क्या कहूँ?

‘ओह गॉड! रचना तो मान कर चल रही है कि हमारी शादी हो ही जाएगी!’ लेकिन मेरे मन में विचार आया।

क्या यह बहुत जल्दी नहीं हो रहा है? क्या मुझे उसको चेताना चाहिए कि पहले हम एक दूसरे को जान लें, फिर शादी ब्याह की बातें करें?

मैं नहीं जानता। लेकिन मन में थोड़ा खटका सा लगा। हर बार, शादी से पहले मुझे मेरी प्रेमिकाओं के बारे में लगभग सब कुछ पता था, और उनको मेरे बारे में! मैं इस नई रचना के बारे में कुछ नहीं जानता था! बस दूसरी ही मुलाकात थी ये हमारी! लेकिन वो ऐसा व्यवहार कर रही थी कि जैसे वो मेरी पत्नी हो! या फिर, जैसे हमारी शादी होना कोई गारंटी है!

और मुझे यकीन है कि वो भी मेरे बारे में कुछ नहीं जानती थी। बचपन में हम जो जानते थे, उसके बूते पर आगे थोड़े ही बढ़ा जा सकता है! वो ज्ञान अब लागू नहीं होता। हम दोनों ही बदल गए थे, और इसलिए हम जिस रफ़्तार से आगे बढ़ रहे थे, वो थोड़ा खतरनाक था। मेरा मतलब है, मैं उससे इतने सालों बाद मिला था, और हमारी दूसरी ही मुलाकात में हमने सेक्स कर लिया था। क्या ये मेरी ही सेक्सुअल फ़्रस्ट्रेशन का संकेत नहीं था? मैं निश्चित नहीं था। बहुत संभव है कि वैसा ही हो!

मैं आंतरिक रूप से थोड़ा चिंतित हो गया, लेकिन यह सब रचना से कहने के लिए मेरी हिम्मत नहीं हुई। हो सकता है... मेरे मन में यह विचार आया, कि जैसे जैसे हमारी मुलाकातें बढ़ेंगी, हम एक-दूसरे के बारे में अधिक जान पाएंगे। तब तो ठीक रहेगा न?

‘हाँ, यह ठीक रहेगा!’

यह विचार आया, तो मन हल्का हो गया। मैं बिस्तर से उठा।

“कहाँ जा रहे हो?” उसने लगभग कूजते हुए पूछा।

“पानी पीने...”

“इस हालत में?” रचना ने मेरी नग्नता की ओर इशारा किया।

“हाँ। क्यों?”

“कोई देख ले तो?”

“देखा है... सभी ने!”

“ओह... तो किसी को अभी भी नंगू पंगू रहना पसंद है?”

मैं मुस्कराया।

हाँ, कम से कम घर में तो मुझे नग्न हो कर विचरण करना बहुत पसंद है! हमेशा से ही!

“आते समय मेरे लिए भी एक गिलास पानी लेते आना?” रचना ने कहा।

नो! आओ और खुद पियो!” मैंने कहा और आगे जोड़ा, “एंड नो! ... नो क्लोद्स ऑन यू एस वेल!”

“अच्छा जी?”

मैं मुस्कराया, “हाँ जी!”

“मेरी न्यूड परेड लगने वाली है घर में?”

मैंने कुछ कहा नहीं, बस उसके बिस्तर से उठने का इंतजार करने लगा।

रचना कुछ पलों के लिए झिझकी, और फिर शायद मेरी खुशी के लिए, बिस्तर से उठकर मेरे पास आई।

नंगी!

“चलो!” वो बोली।

हिम्मत कर के रचना उठ तो गई, लेकिन पूरा काम करने का साहस नहीं था उसमें! कम से कम मैंने तो यही सोचा।

हम अपने कमरे से किचन को चल दिए। मेरा कमरा, और अन्य कमरे पहली मंजिल पर थे... गेस्ट हॉल, रिसेप्शन, डाइनिंग एरिया, किचन, स्टडी इत्यादि ग्राउंड फ्लोर पर थे। कमरे से निकल कर रसोई तक जाने के लिए हमें लगभग सभी कमरों के सामने, गैलरी में से हो कर जाना होता, और फिर सीढ़ियाँ उतरते हुए किचन में! लतिका और आभा, अपने-अपने कमरे होने के बावजूद साथ में ही सोती थीं, या फिर मेरे साथ में! मैंने देखा कि उनके कमरे में नाइट लैंप जल रहा था। सो ही रही हैं दोनों, यह तय था। आगे काजल के कमरे की बत्तियाँ अभी भी जल रही थीं - मतलब वो अभी भी जाग रही थी!

रचना ने उस कमरे से रौशनी छन कर आते देखी, तो अपने पंजों के बल, बिना कोई आहट किए चलने लगी। उसको ऐसे करते देखना बड़ा हास्यास्पद था! हम दो, वयस्क, बिलकुल बच्चों के जैसे व्यवहार कर रहे थे!

खैर, कोई भी बाहर नहीं आया।

जब हम किचन में पहुंचे तो मैंने उससे पूछा, “एनीथिंग आफ्टर वाटर? एनी ड्रिंक्स और समथिंग एल्स?”

“आइसक्रीम?” रचना चहकती हुई बोली।

उसने ऐसे अंदाज़ में कहा कि मुझे वो पुरानी वाली, नन्ही (?) सी रचना की याद आ गई!

‘रचना के साथ शायद उतना भी बुरा नहीं रहेगा!’ मैंने सोचा।

मैंने फ्रिज में देखा। जिस घर में दो दो लड़कियां हों, उस घर में आइसक्रीम तो मिल ही जाएगी!

मैंने रचना को आइसक्रीम की एक बाल्टी - जिसमें करीब एक चौथाई आइसक्रीम बची हुई थी, और एक चम्मच थमाया। रचना यह देखकर बहुत प्रसन्न हुई कि मैं उसे सीधे बाल्टी से ही खाने के लिए कह रहा था... मतलब मैं उसको एक तरह से अपने परिवार की ही तरह ट्रीट कर रहा था... ! मेरा मतलब है कि अगर मैं उसका जूठा खाना फ्रिज में रख सकता हूँ, तो उसका मतलब है कि मैं उसको इस परिवार का हिस्सा ही मान रहा था! मैंने पानी के दो गिलास उठाए और अपने लिए एक लार्ज स्कॉच बनाया।

“ये कब शुरू किया?”

“कुछ साल हो गए!” मैंने रुक कर कहा, “तुमको कोई प्रॉब्लम है?”

“नहीं,” वो मुस्कुराई, “आई आल्सो समटाइम्स ड्रिंक! बट नॉट टू मच! ... तुम भी कम ही पिया करो न! वन ऑर टू ड्रिंक्स पर वीक?”

“हम्म्म श्योर!”

मुझे रचना की बात का बुरा नहीं लगा - वो मेरी फ़िक्रमंद थी और मेरी भलाई के लिए ही कह रही थी। कोई भी शुभचिंतक हो, तो उसकी बात का बुरा नहीं मानना चाहिए!

हम दोनों बड़ी बेफ़िक्री से, किचन काउंटर पर लगी ऊँची कुर्सियों पर बैठ कर, किसी विवाहित जोड़े की भाँति ही बातें करने लगे। रचना के साथ सच में बहुत सुकून की अनुभूति हुई - पुरानी बातें साथ में याद करना, छोटी छोटी बातों पर खुल कर हँसना, भविष्य के लिए योजनाएँ करना! यह सब बहुत ही हसीन था! सुकून भी हुआ, और आनंद भी आया।

सोचता हूँ, तो लगता है कि एक तरह से बहुत अच्छा हुआ कि हम दोनों ने दोबारा मिलने के लगभग तुरंत ही सेक्स कर लिया! सेक्स को ले कर हम दोनों के बीच में कोई तनाव ही नहीं रह गया। इस समय हम दोनों, पुराने दोस्तों के मानिंद बातचीत कर रहे थे - यह संभव न होता अगर हम दोनों के बीच सेक्स का तनाव रहता।

कुछ देर की बातों के बाद मैंने उससे नीलिमा के बारे में पूछा। अगर मैं उसका भावी ‘पिता’ बनने वाला हूँ, तो मुझे उसके बारे में कुछ तो पता होना चाहिए न! तो रचना ने मुझे नीलिमा के बारे में बताया, और मुझ से लतिका और आभा दोनों के बारे में पूछा। फिर उसने मुझे अपनी पसंद, नापसंद, शौक, पसंदीदा चीजें आदि के बारे में बताया, और मुझसे मेरी पसंद नापसंद के बारे में में पूछा।

लग रहा था कि आज हमारी बातें रुकने वाली नहीं थीं! मुझे भी लग रहा था कि आज की रात लम्बी खिंच जाए! उसने मुझसे देवयानी के बारे में पूछा और उसके साथ मेरे रिश्ते की अंतरंगता के बारे में जानकर बहुत खुश हुई! डेवी, मैंने, और हमारी नन्ही सी आभा ने उसके देहावसान के बाद जो कुछ सहा होगा, उसके बारे में सोचकर वो बहुत दुःखी हुई। उसकी बातों की ईमानदारी सुन कर मैं बहुत खुश था। रचना के बारे में मुझे जो थोड़े बहुत संदेह थे, वो जाते रहे। वो एक बढ़िया जीवनसाथी बन सकती थी। उसके अंदर एक बढ़िया जीवनसाथी वाल वो सारी खूबियाँ थीं! उसने फिर मुझसे गैबी और उसके साथ मेरे अनुभवों के बारे में पूछा। पूरी बातें सुन कर, अंत में, उसने मुझसे कहा कि वो यह जानकर बहुत खुश हुई कि मुझे जीवन में दो बार प्यार मिला!

यह बहुत बड़ी बात थी, क्योंकि उसे एक बार भी प्यार नहीं मिला था। ग्रेजुएशन होते होते उसकी शादी हो गई थी, और कुछ ही समय में नीलू आ गई थी। रचना ने बताया कि उसका हस्बैंड उसे शारीरिक रूप से बहुत संतुष्ट कर देता था! वो मज़बूत जिस्म का मालिक था, और उसका लिंग भी उसके शरीर के हिसाब से ही था - संभवतः मुझसे बड़ा! वो रचना के साथ लंबे समय तक सेक्स करता था! लेकिन उन दोनों के बीच सम्बन्ध के नाम पर केवल सेक्स होता था! प्यार नहीं! वो एक व्यभिचारी व्यक्ति भी था। और उसके कई अन्य औरतों के साथ संबंध थे। जब रचना को इस बारे में पता चला, तो उसने सिर्फ एक बच्ची तक ही अपने को सीमित रखा, और उससे कोई और बच्चा पैदा न करने की कसम खाई! लेकिन समय जैसे जैसे आगे बढ़ा, उसकी और उसकी बच्ची की स्थिति खराब होती गई! कैसे, वो उसने नहीं बताया। अंततः, जब कोई रास्ता नहीं बचा, तब रचना ने उससे तलाक ले लिया। यह सब बताते हुए रचना के मुखड़े पर पीड़ा वाले भाव आ रहे थे, इसलिए मैंने बात को कुरेदा नहीं।

“तो तुमने दोबारा शादी करने का नहीं सोचा?” मैंने सब सुन कर रचना से पूछा।

“शुरू शुरू में नहीं, लेकिन पिछले एक साल से मैं दोबारा शादी करने के लिए ज़रूर सोच रही हूँ!” उसने खोए हुए अंदाज़ में कहा, “लेकिन मेरे सोचने से क्या होता है? पैंतीस की हूँ! मुझे नहीं लगता कि किसी मर्द को किसी ऐसी औरत में दिलचस्पी होगी जो इतनी बड़ी हो, और जिसकी अपनी एक बेटी भी हो!”

यह बात सही नहीं थी - मैं, पापा और सत्यजीत इस बात का उदाहरण थे! लेकिन फिलहाल मैंने कुछ कहा नहीं।

रचना बोल रही थी, “किसी और के बच्चे की जिम्मेदारी कोई नहीं लेता! है न?”

मैंने एक फ़ीकी मुस्कान दी - एक तरह से सहमति भी थी और असहमति भी!

“कम लोग लेते हैं! मानता हूँ!”

“तुम उनमें से नहीं हो! मानती हूँ!”

“ले आती उसको भी यहाँ?”

“आई नो! आभा और लतिका कितनी अच्छी लड़कियाँ हैं! नीलू को भी अच्छा लगता उनसे मिल कर!” रचना ने लगभग पछतावा करते हुए कहा, “लेकिन,” फिर उसने शैतानी का पुट डालते हुए कहा, “फिर हम ऐसे... यह सब कुछ कैसे करते?”

“हा हा...”

फिर रचना ने अपनी टीचिंग जॉब के बारे में बताया : दिल्ली के एक बड़े स्कूल में साइंस की टीचर थी वो। अच्छी सैलरी मिल रही थी। रह रही थी वो अपने मम्मी पापा के पास, इसलिए पैसे बच रहे थे... और वो खुद का और नीलिमा का अच्छे से भरण पोषण कर पा रही थी। अलीमनी कुछ मिली नहीं, लेकिन कम से कम उसके एक्स-हस्बैंड को नीलिमा पर कोई अधिकार भी नहीं मिला। इसलिए, अब कहीं जा कर रचना अपनी ज़िन्दगी में थोड़ा सा आनंद लेने लायक हुई। इसलिए जब उसके पिता जी ने उसको मेरे बारे में बताया, वो बेहिचक मुझसे मिलने को तैयार हो गई। शायद उसको यह भी लग रहा था (उसके पिता ने न जाने क्या कहा हो उसको) कि मेरी तरफ़ से उसके लिए प्रस्ताव आया है।

मैंने उसे अपने व्यवसाय के बारे में बताया। रचना को मालूम था कि मेरा बड़ा व्यवसाय है, और घर में सम्पन्नता है। मेरा घर देख कर कोई भी यह बात समझ सकता था। उसके पिता ने भी उसको मेरे बारे में (कम से कम, मेरी संपत्ति के बारे में) बहुत कुछ जानकारी दे दी होगी। उसके पिता की इनकम टैक्स विभाग में अच्छी जान पहचान थी, इसलिए कोई आश्चर्य नहीं, कि वो अब अपनी बेटी के लिए मुझमें दिलचस्पी ले रहे थे। जब किसी के पार दौलत आती है, तब उससे जुड़े हुए लोगों के मन में रहने वाले जाति, धर्म, और ऐसे अनेकों पाखंड और पूर्वाग्रह हवा में छू-मंतर हो जाते हैं। बस यही तमन्ना रहती है कि फलां की कृपादृष्टि उन पर पड़ जाए कैसे भी!

मन में फिर से कसैलापन आने लगा था, लेकिन मैंने उसको अपने दिमाग से बाहर झटक दिया।

फिर मुझे अचानक कुछ याद आया और मैं मुस्कराने लगा।

“क्या?” उसने पूछा।

डिड यू... यू नो, अप्लाई हनी? ... ऑन योर निप्पल्स?”

“हनी? ओह… हा हा… नो! स्टुपिड यू... दैट इस नॉट हनी... दैट इस माय बॉडी लोशन! मेरा एक दोस्त है, वो हैंड मेड बॉडी लोशन बनाता है, जिसमें केवल नेचुरल इंग्रेडिएंट होते हैं। क्यों पूछा? मीठा लगा था क्या?”

“हाँ। इसीलिए तो मैंने पूछा।”

“हा हा! अमर! तुम एक बहुत शरारती लड़के हो!”

“हा हा!” मैं भी साथ में हँसने लगा।

“अच्छा रचना,” कुछ देर हँसने के बाद मैंने बात बदलने की गरज़ से कहा, “क्या तुमने सच में तीन साल तक नीलू को अपना दूध पिलाया था?”

“हाँ न! उस नरक में हम दोनों ही एक दूसरे का सहारा थे! देखो न - उसकी वजह से ही तो ये इतने बड़े बड़े हो गए!” उसने अपने एक स्तन को एक हाथ से उठाते हुए कहा, जबकि दूसरे हाथ से उसका आइसक्रीम खाना जारी रहा।

डिड यू स्टॉप, ऑर शी?”

“दोनों ने ही! उसका इंटरेस्ट ख़तम होने लगा धीरे धीरे, और इनमें दूध बनना भी!” वो बोली, “सास तो पहले साल के बाद से ही कहती थी उसे ज्यादा ब्रेस्टफीड न कराऊँ! नहीं तो दोबारा प्रेग्नेंसी के चांस कम हो जाएंगे... जैसे मैं उस कमीने के और बच्चे करना चाहती थी। हुँह!” उसने कहा!

“मेरी आभा को दो ढाई साल ही पीने को मिला!” बात सही थी - आंशिक ही रूप में, लेकिन सही थी। अपनी माँ का दूध तो वो कम ही पी सकी।

“हम्म...” रचना ने स्वीकार किया। जब मैं बहुत देर तक कुछ नहीं बोली, तो उसने सोचा कि उसे कुछ और कहना चाहिए, “किसी भी बच्चे के लिए माँ के प्यार और देखभाल की बहुत ज़रुरत होती है। उसके बिना बच्चे के लिए बड़ा मुश्किल हो जाता है!”

काजल आभा का जिस तरह से ख़याल रखती आई थी, उससे आभा को शायद ही देवयानी की कमी महसूस होती हो! अब लतिका भी उसकी ऐसी देखभाल करती थी कि क्या कहें!

लेकिन बात वो नहीं थी। मैं रचना का टेस्ट लेना चाहता था।

“तुम उसको माँ का प्यार दोगी?”

“क्या?” रचना मेरी इस अचानक सी बात पर अचकचा गई, लेकिन उसने खुद को जल्दी ही सम्हाल लिया, “बेशक! अमर ये भी क्या बात हुई? बच्चों को बढ़ने में प्यार की बहुत जरूरत होती है। मैं आभा की देखभाल वैसे ही करूँगी जैसे मैं नीलू की करती आई हूँ!”

“सौतेली माँ बनना आसान नहीं है।”

“हाँ! आसान नहीं है।” उसने स्वीकार किया, “लेकिन मैं कोशिश ज़रूर कर सकती हूँ!”

विल यू ब्रेस्टफीड हर?” मैंने एक अप्रत्याशित प्रहार किया।

मेरी बात पर रचना की आँखें फैल गईं। एक पल के लिए वह कुछ नहीं कह सकी।

फिर कुछ सम्हल कर, “आई मीन... आई कैन ट्राई... अगर तुम यही चाहते हो, तो! बट आई डोंट नो! न तो अब दूध आता है, और न ही मैं अब नीलू को पिलाती हूँ!”

“काजल तो पिलाती हैं!”

रचना कुछ नहीं बोली।

मैंने आगे जोड़ा, “आभा को भी और लतिका को भी!”

“व्हाट? लतिका को भी?”

“हाँ! है तो वो उनकी बेटी ही न?”

“हाँ! राइट!”

“इस घर में मम्मियाँ अपने बच्चों को दूध पीने से कभी नहीं रोकतीं!”

इस इट? तो क्या... क्या... तुम अभी भी...?”

“हाँ,” मैंने ऐसी अंदाज़ में कहा कि यह भी कोई पूछने वाली बात है, “न तो माँ ने, और न ही पापा ने कभी रोका मुझे!”

यह बात तो सोलह आने सच थी।

“वाओ!”

फ़ीड हर नाउ?”

व्हाट! नो! आई ऍम नेकेड!”

वेल, हाउ डस इट मैटर?” मैंने कहा, “याद है न? माँ ने तुमको पिलाया है... तुमने उनको भी नेकेड देखा है। अब अगर मेरी बेटी तुमको नेकेड देख ले, तो क्या हर्ज है?”

रचना ने कुछ देर सोचा। हाँ - यह उसका टेस्ट तो था - और वो यह बात अच्छी तरह समझ रही थी।

उसने कुछ देर सोचा और फिर बोली, “ठीक है...! आई विल फीड हर! ... नाउ।”

“कम,” मैंने कहा, और हम दोनों वापस ऊपर की तरफ़ चलने लगे और काजल के कमरे के सामने से होते हुए लतिका के कमरे में दाखिल हुए। मुझे मालूम था, कि आभा वहीं होगी। मैं और रचना खुद भी लगभग लतिका की ही उम्र के थे, जब हमने अपनी अपनी सेक्सुअलिटी की पहचान हो रही थी।

खैर, रचना को उम्मीद नहीं थी कि लतिका भी वहीं होगी। वो फिर से थोड़ा घबरा गई।

“अमर... लतिका भी है यहाँ!”

“तो क्या हो गया? वो भी तो बच्ची है। कम!” मैंने उसे इशारा कर के बच्चों के पास जाने को कहा।

रचना हिचकिचाई।

एक पल को लगा कि जैसे मैं उसका शोषण कर रहा हूँ। लेकिन मेरे लिए यह जानना बेहद ज़रूरी था कि आगे आ कर रचना मेरे बच्चों की देखभाल कर सकेगी; उनको माँ का प्यार दे सकेगी! रचना को कुछ भी करने के लिए मैं दबाव नहीं दे रहा था। बस देखना चाहता था कि क्या वो आवश्यकता आने पर अपने मानसिक अवरोधों को तोड़ कर मेरे बच्चों को प्यार दे पाएगी?

रचना आभा के पास जा कर लेटने लगी। आभा अपने बगल हलचल को महसूस कर के नींद से बाहर आने लगी।

“शह्ह्ह...” आभा के सीने पर हल्की सी थपकी देते हुए उसको शांत करने की कोशिश करी, और फिर बोली, “मम्मी का दूध पियोगी बच्चे?”

“मम्म?”

“मम्मी का दूध पियोगी?” रचना ने दोहराया।

“मम्मी का दूध?” आभा नींद में बड़बड़ाई।

“यस हनी! मीठा मीठा दुद्धू! आई प्रॉमिस!” रचना ने मेरी ओर देखते हुए शरारत से कहा।

मैं मुस्कुराया।

“हम्म।” आभा धीरे-धीरे जाग रही थी।

जब बच्चे होते हैं, तो नींद बड़ी गहरी आती है। लेकिन जैसे-जैसे आप बड़े होते जाते हैं, नींद उथली होती जाती है।

“हाँ बच्चे,” रचना ने दबी आवाज़ में कहा, जिससे लतिका न सुन ले।

“उम्म्म बोतल में?” आभा अभी भी नींद में ही थी।

“नहीं हनी… तुम्हारे जैसी प्यारी सी बच्ची को बोतल से नहीं, सीधा ब्रेस्ट्स से पिलाया जाना चाहिए!” रचना ने उसको दुलारते हुए कहा, “मेरे ब्रेस्ट्स से... तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा… कम हनी… ओपन योर माउथ...” रचना ने आभा के कान में फुसफुसाते हुए कहा और उसके होंठों पर अपना स्तन छुवाया।

उनींदी अवस्था में आभा ने अपना मुँह खोला और रचना के उस चूचक को अपने मुँह ले लिया। इस काम की प्रत्याशा में रचना के चूचक पहले ही स्तंभित हो गए थे, इसलिए आभा को उसे पकड़ने में मुश्किल नहीं हुई।

यस... सकल नाउ... यस... जस्ट लाइक दैट...”

आभा धीरे-धीरे जागते हुए स्तनपान कर रही थी, और दूसरी ओर लतिका भी अब जाग गई थी। उसने कौतूहलवश रचना द्वारा आभा को स्तनपान कराते देखा। उत्सुकता होनी लाज़मी थी! रचना भी समझ रही थी कि लतिका भी जाग गई थी। लेकिन फिर भी उसने निस्पृह सा भाव रखते हुए आभा को स्तनपान कराना जारी रखा।

“रचना,” लतिका कहने लगी, “आप आभा को दूधू पिला रही हैं?”

“हाँ लतिका! आपको भी पीना है क्या?”

लतिका ने आँखें मलते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

एंड व्हाई नॉट! कम हनी... टेक दी अदर वन...”

मेरे लिए यह एक खूबसूरत और अद्भुत दृश्य था! रचना हालाँकि शुरुवात में बहुत झिझक रही थी, लेकिन अब वो पूरी तरह से मातृत्व की मुद्रा में थी! वो कभी कभी आभा और लतिका को चूम लेती, तो कभी उनके गालों को सहलाती! और मैं तो जैसे वहाँ था ही नहीं। दोनों लड़कियाँ ‘दूध पीने’ में तल्लीन थीं। यह सिलसिला करीब पंद्रह मिनट तक चला। चूँकि दूध तो आ नहीं रहा था, इसलिए आभा बहुत जल्दी ही रुचि खो बैठी और वापस सो गई, लेकिन लतिका का काम जारी रहा!

अंत में, रचना को ही कहना पड़ा, “हनी, हो गया क्या? आर यू सैटिस्फाईड?”

“रचना, आपके ब्रेस्ट्स कितने सॉफ्ट हैं!” लतिका ने लगभग हैरानी से कहा, “और आपके निप्पल भी कितने कोमल हैं! मुँह में जैसे पिघल गए हों... बटर के जैसे! आई डोंट वांट टू स्टॉप!”

“ओह हनी! यू आर सो लवली टू से दीस लवली थिंग्स... बट आई नीड टू स्लीप ऐस वेल!”

“आप यहीं सो जाइए न?” लतिका ने रचना की कमर पर हाथ रख कर उससे अनुरोध किया।

रचना ने बेबसी से मेरी तरफ देखा।

“अमर अंकल भी यहाँ सो सकते हैं।" मेरे लिए जगह बनाते हुए और रचना से लगभग चिपकते हुए लतिका ने कहा।

“हा हा! नहीं बेटा! आप तीनों सो जाओ। आई विल सी यू आल इन मॉर्निंग!” मैंने प्रसन्नतापूर्वक कहा और वहाँ से निकल लिया।

सोचा कि अच्छा है कि तीनों में बढ़िया बॉन्डिंग हो जाए। रचना मुझे बहुत पसंद आने लगी थी, और मुझे लग रहा था कि वो आभा और लतिका के लिए अच्छी माँ और गार्जियन साबित होगी। लेकिन कुछ कदम आगे बढ़ा कर रुक गया और दबे पाँव वापस दरवाज़े पर खड़ा हो कर उनकी बातें सुनने लगा।

लतिका रचना से लिपट कर बड़े आनंद पूर्वक रचना से स्तनपान का आनंद लेती रही। काजल के विपरीत, रचना का शरीर बहुत कोमल और उत्तम गुणवत्ता वाला था। लिहाज़ा लतिका को भी अच्छा लग रहा था। एक नयापन भी था इस अनुभव में! खैर, जब उसने आखिरकार दूध पीना समाप्त किया, तो लतिका स्पष्ट रूप से प्रसन्न थी।

“थैंक यू सो सो मच, रचना!”

यू आर वैरी वेलकम, हनी!” रचना ने विनोदपूर्वक कहा, “यू योरसेल्फ आर सच अ ब्यूटीफुल गर्ल! आई लव्ड फीडिंग यू, एंड आई ऍम श्योर आई कैन बी अ गुड मदर टू यू एंड आभा!” फिर कुछ अचकचा कर, “आई मीन, आई मेन्ट नो डिसरेस्पेक्ट टू काजल! शी मस्ट बी अमेजिंग टू रेज़ सच ऐन अमेजिंग गर्ल लाइक यू!”

आई ऍम श्योर टू रचना! एंड डोंट वरि!” लतिका ने बड़े उत्साह से कहा, “आप बहुत सुन्दर हैं, और बहुत अच्छी भी! अंकल विल बी लकी टू हैव यू!”

“हा हा!”

मुझे दोनों की बातें सुन कर बहुत अच्छा लगा।

“रचना,” लतिका ने झिझकते हुए कहा, “आप न्यूड क्यूँ हैं? क्या आपने और अंकल ने...”

“यस हनी! व्ही हैड सेक्स!”

“डू यू लव हिम?”

“यस!” रचना ने बेहिचक कहा, “व्ही वर लवर्स अ लॉन्ग टाइम एगो! उनकी माँ भी मुझे बहुत पसंद करती थीं!”

“ओह? सच में?”

“हाँ! यू नो,” रचना ने बड़े गर्व से कहा, “जैसे मैंने तुमको पिलाया है न अपना दूध, वैसे ही वो मुझको पिलाती थीं!”

“वाओ!” लतिका सच में इस रहस्योद्घाटन से बहुत प्रभावित हुई, “बो... आई मीन मम्मा... ओह, आई मीन अंकल की मम, यूस्ड टू फीड मी!”

“अभी नहीं करतीं?”

“अभी भी करती हैं! लेकिन उनसे मिले हुए काफी दिन हो जाते हैं!”

आई विल फीड यू! प्रॉमिस!”

“सच में रचना?”

“सच में!”

“तो, क्या आप अंकल के बच्चों की माँ बनेंगी?”

आई होप सो!” रचना बड़े सुखद ढंग से मुस्कुराई।

“वाओ! रचना यू आर सो गुड!”

लतिका ने रचना को गले लगा लिया।

“रचना?” लतिका ने कुछ देर बार झिझकते हुए कहा।

“हाँ, लव?”

“क्या मैं एक बार और आपके ब्रेस्ट पी सकती हूँ?”

“ओह हनी! व्हाई नॉट!” यह कहकर उसने लतिका को अपनी गोद में लिटा दिया और अपना एक चूचक उसके मुँह में ठूंस दिया, “यू कैन व्हेनएवर यू वांट!”

लगभग दस मिनट तक दूध पिलाने के बाद रचना ने बोली, “हनी, मुझे लगता है कि अभी के लिए इतना काफी है। मुझे पता है कि तुम्हारे अंकल भी इनको प्यार करना चाहते हैं... इनको भी, और मुझसे भी! इसलिए अभी सो जाओ, सवेरे मिलेंगे? ओके लव? अब सो जाओ।” उसने कहा और लतिका के माथे को चूम लिया।

रचना और लतिका की बातचीत ऐसी सुन्दर थी कि आनंद आ गया मुझको! अचानक से ही रचना के बारे में मेरे मन में जो नकारात्मक विचार थे वो सभी जाते रहे! उसका और उसके व्यवहार का मूल्यांकन मेरे मन में सकारात्मक हो गया! जैसे मेरे जीवन में अन्य महिलाएँ थीं, रचना उन्ही के सामान एक अच्छी महिला थी।

मैं दबे पाँव अपने कमरे की तरफ़ भाग लिया।
अच्छे दिन आ चुके हैं कृप्या अब कोई ऐसा अपडेट न दें जिससे पाठको के मन में दुखद अहसास हो।
बस ऐसे मस्ती भरे अपडेट देते रहिए। भ्राता श्री।
 

Lutgaya

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अंतराल - समृद्धि - Update #14

कमरे से रचना निकली तो बड़ी हिम्मत कर के, लेकिन काजल के कमरे का दरवाज़ा खुला देख कर उसकी हिम्मत जवाब दे गई। बच्चों के सामने नग्न होना एक बात है, लेकिन घर की मुखिया के सामने नग्न होना बिलकुल अलग बात है। बहुत हिम्मत चाहिए उस काम के लिए! काजल के कमरे के सामने से वो दबे पाँव दो कदम ही चली होगी कि कमरे के अंदर से उसको काजल के उठने की आवाज़ आई। हिम्मत का आख़िरी क़तरा टूट गया। रचना लपक कर तेजी से भागते हुए सीढ़ियों से नीचे उतर आई कि काजल उसको उस हालत में देख न ले। वो कुछ देर के लिए ‘सुरक्षित’ अवश्य हो गई, लेकिन इस हरकत से एक गड़बड़ हो गई - अगर वो वापस मेरे कमरे में भाग आती, तो बेहतर रहता। उसके सारे कपड़े वहीं थे, और कुछ नहीं तो कम से कम मेरे कमरे में कोई बिना खटखटाए आता नहीं था।

पानी पीने को मिल जाता नीचे रसोई में, लेकिन वापस मेरे कमरे में आने के लिए या फिर छत पर जाने के लिए उसको सीढ़ियाँ लेनी ही पड़तीं। रसोई में जा कर उसको अपनी ‘गलती’ समझ आ गई। लेकिन अब क्या कर सकते हैं? दोबारा हिम्मत तो करनी ही पड़ेगी। लेकिन कुछ भी कर के उसकी हिम्मत नहीं आ रही थी। ये तो वैसा हो गया कि आसमान से गिरे, और खजूर पे अटके! वो सोच ही रही थी कि क्या करे कि इतने में उसको काजल सीढ़ियों से उतरती हुई दिखी। उसने इधर उधर देखा - कहीं छुपने की समुचित जगह नहीं थी।

रचना की चोरी पकड़ी जाने ही वाली थी... और अब कुछ हो नहीं सकता था। वो एक हाथ से अपने स्तनों और दूसरे से अपनी योनि को छुपाने की असफल कोशिश करते हुए काजल के आने का इंतज़ार करने लगी।

“अरे रचना?” उसको देख कर काजल बोली, “क्या हो गया बेटा? भूख लगी है?”

“न... नहीं दीदी... पानी पीने आई थी!”

“ओह!” काजल ऐसे व्यवहार कर रही थी कि जैसे रचना का नग्न होना उसके लिए कोई आश्चर्य करने वाली बात न हो, जो कि सच भी था - लेकिन रचना को नहीं मालूम होगा अभी, “रात भर सोए नहीं तुम दोनों...”

काजल की अर्थपूर्ण बात सुन कर रचना के गोरे गोरे गए सेब जैसे लाल हो गए, “सॉरी दीदी...”

“अरे! सॉरी किस बात का?”

“आपकी नींद डिस्टर्ब हुई हमारे कारण...”

“पागल है तू! मेरे बच्चों के खेलने से मेरी नींद में क्यों खलल पड़ने लगा?”

रचना ने चुप रहना ही ठीक समझा।

काजल मुस्कुराई, “ठीक लग रहा है बेटू? दर्द तो नहीं है? थोड़ा आराम कर लो!”

रचना शर्म से दोहरी हुई जा रही थी, “जी दीदी! ठीक लग रहा है!”

“अरे तुम इतना फॉर्मल क्यों हो मुझसे?”

“जी... जी वो मैं...”

“रचना, इट इस ओके! इतना शर्माओ मत, और न ही झिझको!... तुम इतनी सुन्दर हो कि तुमको शर्माने की कोई ज़रुरत नहीं!”

“जी...”

एक तो रचना काजल के सामने नग्न खड़ी थी, और उसका शरीर पूरी तरह से प्रदर्शित था, और ऊपर से काजल को अच्छी तरह मालूम था कि रात को उसके और मेरे बीच में क्या खेल खेला गया था। ऊपर से झेंप इस बात की कि इस समय रचना अपने एक हाथ से अपने स्तनों और दूसरे से अपनी योनि को छुपाने की असफल कोशिश कर रही थी।

उसको यूँ हरकतें करते देख कर काजल मुस्कुराई और बोली, “भूख लगी होगी तुमको... आओ, यहाँ बैठो! कुछ खिलाती हूँ!”

“दीदी... रहने दीजिए न!”

“अरे ऐसे कैसे?” काजल मुस्कुराई, “तुम्हारे बहाने मुझको भी मिल जाएगा खाने को!”

काजल ने इतने मित्रवत और मीठे तरीके से रचना से यह कहा, कि रचना शर्म से गड़ गई। जो स्वयं इस घर की मालकिन है, उसको किसी बात की क्या कमी? शायद रचना को लगा हो कि काजल को उसके कारण तकलीफ हो रही हो।

“दीदी... आप... आप रहने दीजिए! मैं बना दूँगी...”

“अरे बेटा, तुम ऐसे मत सोचो! तुम अपनी हो। अपनों के लिए खाना बनाने में मुझे कोई तकलीफ़ नहीं!”

“सच में दीदी? आप ऐसा सोचती हैं?” रचना की आँखें अचानक ही भर आईं, “आपने ये बहुत बड़ी बात कह दी! यह कह कर बहुत बड़ा मान दिया है मुझको!”

“ओह्हो! तुम बहुत स्वीट हो! देखो,” काजल ने उसको समझाते हुए कहा, “मेरे बच्चे मुझे बहुत प्यारे हैं! इस लिहाज से वो जिसको पसंद करते हैं, वो बच्चे भी मुझे बहुत प्यारे हैं! तो, उन बच्चों का भी घर हुआ न ये! जैसे मेरे बच्चे, वैसे ही वो बच्चे भी! तो तुम कैसे अलग हो गई? तुम भी तो हमारी हुई न... और मान तो तुमने हमको दिया, है कि इतने हक़ से इस घर में रह रही हो! हमको अपना मान कर ही तो ऐसे रह रही हो न? है कि नहीं?”

रचना कुछ न बोली, लेकिन खुद का इतना स्वागत होते हुए देख कर उसको आनंद आ गया।

काजल ने मुस्कुराते हुए रचना के शरीर पर ऊपर से नीचे नज़र फिराई, “बैठो न!”

“ओह... दीदी... आई ऍम सॉरी!” रचना बैठी नहीं।

“अरे, किस बात के लिए?”

“वो... वो मैं... यूँ... ऐसे घूम रही हूँ घर में... इसलिए!”

“अरे तो क्या हो गया? तुम्हारा घर नहीं है ये? अभी अभी तो समझाया तुमको!”

रचना मुस्कुराई, लेकिन उसकी झिझक कम नहीं हुई।

“क्या हुआ?” काजल ने पूछा।

“जी... कुछ नहीं!”

“तो ऐसे क्यों खड़ी हो? यहाँ आओ, पास मेरे!”

रचना दो कदम चल कर काजल के सामने आ गई। समझ नहीं रही थी कि वो कैसी प्रतिक्रिया दे।

“पता है? मेरी बड़ी बहू भी मेरे सामने नंगू नंगू होने से नहीं झिझकती... और वो तो तुमसे बड़ी है उम्र में!” काजल ने लगभग हँसते हुए कहा, और अर्थपूर्वक मुस्कुराई!

“क्या दीदी!” रचना को विश्वास नहीं हुआ, “सच में?”

“अरे, मैं क्यों झूठ बोलूँगी?” काजल ने रसोई से कुछ सामान निकालते हुए कहा।

“बाप रे!”

“मैंने तो उसको शादी से पहले ही समझा दिया था कि तू मेरी बहू है, तो मेरी बच्ची है! मेरी बच्ची जैसी ही रह! मेरी बहू और बेटी में कोई अंतर नहीं है! और तब से आज तक न मैंने कोई अंतर माना, और न ही कोई अंतर किया!”

“तो... क्या...? तो क्या...”

“और नहीं तो क्या! मेरी दोनों बहुएँ अपने तरीके से अपना बचपन जीती हैं मेरे साथ!”

“वाओ! दो बहुएँ हैं आपकी?” रचना अचरज में पड़ गई, “सही में दीदी?”

“हाँ न! देखो - मेरी पहली शादी से मुझको एक लड़का है, और एक लड़की, लतिका, जिससे तुम मिल चुकी हो। मेरे बड़े बेटे की बीवी मेरी बड़ी बहू है! उन दोनों के दो बच्चे हैं।” काजल ने अपने परिवार के बारे में रचना को बताते हुए कहा, “मेरी दूसरी शादी से मेरा एक बेटा है - मेरा छोटा बेटा, जो मुझे शादी से मिला है - उसकी भी शादी हो चुकी है, और उसके भी दो बच्चे हैं! और मेरी दूसरी शादी से ये नन्ही परी मिली है मुझको, जो हाल ही में हुई है!”

“वाओ! भरा पूरा परिवार है आपका तो!”

“हा हा हा! हाँ न! दादी माँ अम्मा हूँ मैं! दादी माँ अम्मा...”

“लेकिन... लेकिन दीदी, आपने कहा... कि... आप... आपकी बड़ी बहू,” रचना ने हिचकते हुए पूछा, “... आपकी बड़ी बहू मुझसे भी बड़ी है! ... मैं पैंतीस की हूँ दीदी! ... आपका बेटा तो मुझसे बहुत छोटा होगा न? फिर... वो... आई मीन, आपकी बहू मुझसे बड़ी... कैसे हो सकती है?”

“हा हा... हाँ, मेरा बेटा तुमसे बहुत नहीं, बस थोड़ा ही छोटा है, और मेरी बहू तुमसे बहुत नहीं, थोड़ी बड़ी है!” काजल काम भी कर रही थी, और रचना से बातें भी; वो मुस्कुराई, “दोनों की लव मैरिज है न! छुटपन से ही चाहता था वो उसको। बहू इतनी प्यारी है कि मैं उन दोनों की शादी के लिए मना न कर सकी! मैंने उसको बोला था कि अगर वो बहू को मना लेगा, तो मैं उसको पूरे प्यार से स्वीकार करूंगी! किसी और लड़की को लाता, तो शायद मना कर देती!”

रचना भी काजल को अपनी बहू के लिए इतना स्नेह दिखाने पर ख़ुशी से मुस्कुरा दी, “वाओ दीदी! आपका परिवार बहुत सुन्दर है! आप बहुत प्यार करती हैं न अपनी बहू को?”

“बहुत! और केवल उसको ही नहीं, बल्कि अपने सभी बच्चों को! लेकिन हाँ - उससे मेरा ख़ास लगाव है!”

“वो क्यों दीदी?”

“बहुत लम्बी कहानी है बेटे! किसी दिन बड़ी फुर्सत से सुनाऊँगी! लेकिन हाँ, एक बात तो ज़रूर कहूँगी, मेरी बड़ी बहू व्यवहार में बिलकुल बच्ची जैसी है! देखो न... दो बच्चों की माँ बन गई है, और तीसरा पेट में है, फिर भी उसका बचपना नहीं गया। जब भी मिलती है, मेरा दूध पिए बिना नहीं रहती।”

“ओह हा हा... क्या सच में दीदी?”

काजल भी हँसते हुए बोली, “हाँ न! और मैं चाहती भी नहीं कि उसका बचपना जाए! बहू भी तो बेटी होती है न? वो खुशहाल है, तो समझो मैं खुशहाल हूँ! और छोटी बहू... वो पहले पहले मुझसे थोड़ा संकोच करती थी! मैं भी तो नई नई आई थी न उसके घर! लेकिन अब तो वो भी बड़ी बहू के जैसी ही हो गई है। वैसे भी, बच्ची ही है पूरी वो अभी! लतिका छः सात साल ही तो बड़ी है! दोनों
बहुएँ साथ हो जाती हैं जब भी, तो सारे बच्चे पीछे छूट जाते हैं।”

“हा हा हा हा हा!”

“हाँ! मेरा दूध पूरा पी जाती हैं दोनों! और सच सच कहूँ? मुझे भी अच्छा लगता है उन दोनों की माँ बनना! बड़ा सुख मिलता है! वो दोनों ऐसा मान, ऐसा प्यार, ऐसा आदर देती हैं मुझे, कि क्या कहूँ? बस, दिल गार्डन गार्डन हो जाता है! ... इसलिए तुम भी संकोच न किया करो!”

“जी दीदी!” रचना समझते हुए बोली, “आप जैसी प्यार करने वाली माँ हो, तो कोई भी बहू सुखी ही रहेगी!”

“हा हा हा... हाँ हाँ... मस्का मत लगाओ बहुत! चलो, अपना हाथ हटाओ, और अपनी सुंदरता देखने दो मुझे!”

रचना दो पल को झिझकी, फिर उसने हाथ हटा लिया। काजल ने रचना का जैसे मुआयना किया हो - चेहरा, स्तन, पेट, योनि, जाँघें, और पैर, फिर,

“मुड़ो तो ज़रा?” उसने कहा।

रचना को लगा कि जैसे जब लोग लड़की देखने जाते हैं, वैसा ही उसके साथ हो रहा है। उसको भी देखा जा रहा था! वो मुड़ गई!

बोरारोहा... खूब शुंदोर! हृष्ट पुष्ट! दूधोजुक्तो श्तोन!” काजल बांग्ला में रचना के सौंदर्य की बढ़ाई करने लगी, “तुम खूब सुन्दर हो रचना! खूब सुन्दर! रम्भा... उर्वशी जैसी अप्सरा! मेरे अमर की किस्मत अच्छी है, कि तुम मिलीं उसको!”

रचना झिझकते हुए शर्माई।

“अरे शर्माती क्यों है? माँ हूँ मैं तेरी! आनंद से रहो... ईश्वर से मेरी यही प्रार्थना है!”

रचना से रहा नहीं गया - कुछ तो शर्म, तो कुछ झिझक, तो कुछ भावातिरेक से आह्लादित हो कर वो काजल के गले से जा लगी। काजल ने भी उसको बड़े प्रेम से अपने आलिंगन में बांधे रखा और उसके माथे को चूमते हुए कई सारे आशीर्वाद दिए, जो अक्सर सौभाग्यवती स्त्रियों को दिए जाते हैं।

आधे घंटे तक दोनों आपस में बातें करती रहीं, और उस बीच काजल ने रचना को चाय और अजवाइन का एक (रचना की ज़िद पर - नहीं तो काजल उसको कई सारे देने वाली थी) पराठा खिलाया।

“दीदी? बच्चे उठ गए होंगे?”

“हाँ! दोनों सवेरे साढ़े चार पाँच तक उठ जाते हैं। आज संडे है न, तो शायद थोड़ा देर से उठे होंगे।” फिर घड़ी की तरफ़ देख कर, “हाँ - उठ गए होंगे! क्यों? क्या हुआ?”

“कुछ नहीं! सोचा कि उनके साथ ही थोड़ा योगा कर लूंगी!”

“ओह! बढ़िया है! ठीक है, दोनों ऊपर, स्टूडियो में होंगे। थोड़ा सिखा दो उनको!”

“अरे दीदी! दोनों इतने संस्कारी बच्चे हैं! उनको क्या सिखाना?” रचना ने चहकते हुए कहा, “उनको तो बस प्यार देना है... खूब!”

“वाह! सुखी रहो बेटा, खूब सुखी रहो!” काजल रचना की बात पर अत्यंत प्रभावित हुए बिना न रह सकी।


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हमारे बंगले की छत पर एक स्टूडियो था, जो दरअसल जालियों से बना हुआ था, और उन जालियों पर बाँस की चिक से आँड़ किया जाता था। सर्दी, गर्मी, या बारिश में अगर चिक गिरा दी जाए, तो एक तो अच्छा एकांत मिलता है, और आराम से बैठ कर वहाँ चाय या कॉफ़ी का आनंद लिया जा सकता है। एक झूले का भी इंतजाम किया गया था, जो जब मन करे लगाया और उतारा जा सकता था। कभी अपने एकांत के लिए मैंने वो जगह इस्तेमाल करने की सोची थी, लेकिन धीरे धीरे बच्चे ही उसका उपयोग करते थे। मैं या घर का कोई अन्य बड़ा यदा-कदा ही वहाँ जाता था। लतिका ने कुछ समय पहले योगा क्लासेज करीं थीं; उससे उसको खेलकूद में बड़ी मदद हुई - चोट कम लगती थी, क्योंकि शरीर में लचीलापन आ गया था, और चोट लगने पर रिकवरी तेज़ी से होती थी। इसलिए उसने योगाभ्यास करना जारी रखा। उसकी ही देखा देखी आभा भी योगाभ्यास करती।

लतिका और आभा वहाँ रचना को आता हुआ देखकर हैरान रह गईं। ऐसा नहीं है कि उन्होंने उसको पहले नग्न नहीं देखा था, लेकिन सुबह सुबह, ऐसे खुलेआम उसको इस अवस्था में देख कर उनको अचरज तो हुआ! लेकिन एक तरह से आनंद भी आया कि रचना कितनी ‘कूल’ है, और यह कि उसके साथ मज़ा आएगा! आभा को पिछली रात के बारे में ज्यादा कुछ याद नहीं था क्योंकि वो अधिकतर समय नींद में ही थी। लेकिन अगर उसके मन में कल रात को ले कर कोई शंका थी, तो वो अब शांत हो सकती थीं। दूसरी ओर लतिका को थोड़ी शर्म सी महसूस हुई। वो अब बच्ची नहीं रह गई थी, इसलिए कल उसके और रचना के बीच जो हुआ, वो थोड़ा जोखिम भरा अवश्य था। लेकिन आभा को रचना का स्तनपान करता देख उसका मन नहीं माना, अच्छी बात यह थी कि रचना ने भी उसकी इच्छा पूरी की। लेकिन इस समय उसको रचना से शर्म आ रही थी, तीनों में रचना ही नग्न थी।

दोनों लड़कियाँ सूर्य नमस्कार से अपने योगाभ्यास की शुरुवात करती थीं, तो रचना भी उनके साथ हो ली। सबसे पहली बात - मुझे लगता था कि रचना आराम-तलब स्त्री थी, लेकिन ये बात पूरी तरह से गलत थी। दरअसल रचना एक योगिनी थी! उसका शरीर लचीला था। हाँ, शरीर पर चर्बी की एक अनावश्यक परत थी, लेकिन वो स्वस्थ थी। मोटापा नहीं था! शायद वो अच्छा खाना खाने से खुद को रोक नहीं पाती थी! इस बात में कोई बुराई नहीं थी। ऐसी ‘हैप्पी’ स्त्रियाँ ही बढ़िया होती हैं!

रचना ने दोनों लड़कियों को वो बारह योगासन लगा कर दिखाए जो सूर्य नमस्कार को पूरा करने के लिए आवश्यक हैं। दोनों लड़कियों ने पूरे उत्साह से रचना का अनुपालन किया। फिर वो उन्हें नौकासन का सबसे सिद्ध रूप सिखाने लगी। लतिका वो योगासन नहीं लगाती थी। लिहाज़ा, रचना ने लतिका को समझाया कि नौकासन लगाने से शरीर का कोर दृढ़ होता है, और स्टेबिलिटी आती है। इससे बेहतर एथलेटिक प्रदर्शन करने में मदद मिलेगी। कहने की आवश्यकता नहीं, कि रचना के योग-ज्ञान से दोनों लड़कियाँ प्रभावित हो चली थीं।

“रचना...” लतिका ने थोड़ा झिझकते हुए पूछा, “क्या... क्या आप हमें कुछ नया सिखा देंगीं?”

“हाँ, क्यों नहीं! क्या सीखना चाहती हो?”

“कुछ भी सिखा दीजिए... आपसे सीखना तो बहुत अच्छा होगा!”

यह कहना कि लतिका, रचना पर फिदा हो गई थी, न्यूनोक्ति ही होगी! अचानक से ही रचना उसके जीवन में आई, और जिस तरह से उसने लतिका के साथ मित्रवत व्यवहार किया, उससे वो प्रभावित हुए बिना न सकी। जैसे वो आभा के लिए एक प्रेरणास्त्रोत थी, वैसे ही रचना भी लग रही थी। ऐसा नहीं है कि लतिका के पास प्रेरणा की कोई कमी थी - माँ हमेशा से ही उसकी पहली पसंद रही थीं, और काजल भी! लेकिन रचना एक तरह से ‘सहेली’ थी। वो बहुत खूबसूरत भी थी, और उसका शरीर भी खजुराहो की प्रतिमाओं के समान था। वो बहुत स्नेहमई भी थी : पिछली रात दोनों को स्तनपान कराना इस बात का पर्याप्त प्रमाण था! और तो और, वो एक योगिनी भी थी, जिसका मतलब यह है कि रचना उसको शारीरिक फिटनेस से जुड़ी कई चीजें सिखा सकती थी। कुल मिलाकर, रचना एक ‘अल्ट्रा कूल’ महिला थी... कैसे प्रभावित न हो लतिका!

‘कितना अच्छा होगा अगर रचना हमारे साथ रहे!’ लतिका ने मन ही मन प्रार्थना करी।

उधर, रचना ने एक पल के लिए सोचा, और फिर बोली, “अच्छा… अमर ने मुझे बताया था कि तुम्हें स्प्रिंट करना पसंद है… तो मैं तुमको चक्रासन करने का तरीका बताती हूँ! चक्रासन से तुम्हारी थाइस, ग्लूट्स, कोर, और इवन शोल्डर्स सब एक ही बार में स्ट्रेच हो जाएँगे! आई थिंक, एक स्प्रिंटर का पूरा शरीर मज़बूत और फ्लेक्सिबल होना चाहिए। तो इसको करने से तुम्हारे हाथ भी स्ट्रांग बनेंगे!”

“जी… ठीक है!” लतिका ने पूरी शिष्टता से अपना आभार जताया।

फिर रचना ने चक्रासन करने के दो तरीके समझाए और दिखाए। करने में चक्रासन एक कठिन आसन है, लेकिन रचना की मदद से दोनों की लड़कियाँ कुछ प्रयासों में ही इसे कर सकीं। हल्का और लचीला शरीर हमेशा ही मददगार होता है। लड़कियों को यह नया योगासन लगा कर मजा भी आया। जब कुछ कोशिशों के बाद दोनों को अकेले करने में कॉन्फिडेंस आ गया, तो तीनों ने मिल कर वो आसन लगाया। नया नया सीखा होने के कारण लतिका और आभा दोनों ने लगभग दस सेकंड के बाद ही अपनी मुद्रा तोड़ दी, लेकिन रचना ने इसे लगभग दो मिनट तक लगाए रखा।

अगर आप चक्रासन के बारे में देखेंगे, तो पाएँगे कि इस आसन में शरीर धनुष का आकार धारण कर लेता है। इस आसन में कोई व्यक्ति अपनी पीठ को पीछे की तरफ़ इस प्रकार झुकाता है, कि पूरा शरीर केवल हाथों और पैरों पर ही ज़मीन पर टिका रहता है। उस पोज़ में रचना के स्तन उसकी गले की ओर ढलक गए। वो देख कर लतिका शरारत से मुस्कुराई, और उसने रचना का एक चूचक अपने मुँह में ले लिया। रचना को उसकी यह हरकत बड़ी क्यूट सी लगी : उसका हँसने का मन होने लगा, लेकिन उसने कुछ देर तक अपनी मुद्रा बनाए रखी कि लतिका वो कर सके, जो वो करना चाहती थी।

दूसरी ओर आभा को, अपने होश सम्हालने के बाद, शायद पहली बार एक परिपक्व योनि को देखने को मिली थी। इसलिए उसको बड़ी उत्सुकता हो रही थी। रचना की बनावट उसकी खुद की बनावट के समान होते हुए भी अत्यंत भिन्न थी। अपने चुलबुले स्वभाव के कारण वो चुप न रह सकी, और बोली,

आंटी, योर शेम शेम लुक्स लाइक ऑरेंज कार्पेल्स (संतरे की फाँकें)!”

उसकी बात सुन कर रचना हँसते हँसते पीठ के बल ज़मीन पर गिर गई!

“इधर आ आंटी की बच्ची,” कह कर रचना ने आभा को उसके हाथ से पकड़ा और अपने सीने में भींचते हुए उसको दनादन कई सारे चुम्बन दे डाले।

आभा भी अपने लिए इतना प्यार पा कर खुश हो गई, और खिलखिला कर हँसने लगी।

“सबसे पहले, ट्राई टू कॉल मी मम्मा! आंटी साउंड्स लाइक समवन एल्स!”

“आप मेरी मम्मा बनेंगी?” आभा ने उत्सुकता से पूछा।

वुड यू लाइक मी टू बिकम योर मम्मा?”

यू आर ऑलराइट!” उसने अपने बाल-सुलभ चंचलता से कहा।

उधर लतिका इस संवाद को सुन कर खूब खुश हुई - मतलब रचना और अमर ‘अंकल’ की शादी हो जाएगी, और रचना यहीं, साथ में रहेंगी। गुड!

“आआ... सो नाइस ऑफ़ यू टू से दिस!” रचना ने बड़े लाड़ से कहा, “एंड हनी, देयर इस नथिंग टू बी अशेम्ड ऑफ़ योर ‘गर्ल थिंग’! इसको शेम शेम नहीं कहते हैं... इसे कहते हैं ‘वल्वा’! ओके? ये मेरे पास है, तुम्हारे पास है, लतिका दीदी के पास है... हर लड़की के पास है! अंडरस्टुड?”

“ओह?”

“यस! दैट इस व्हाय, व्ही आर वीमेन! बॉयज एंड मेन हैव पीनसेस, एंड गर्ल्स एंड वीमेन हैव वल्वा! ये हमारे बीच का मेन डिफरेंस है।”

बट व्हाई?” आभा को यह अंतर बड़ा अनुचित लगा।

बिकॉज़, दे आर नेचर्स गिफ्ट्स टू अस, हनी! और नेचर ने हम लड़कियों को तो और भी पावर्स दी हैं! सुपर पावर्स!”

“सुपर पावर्स?”

“हाँ! देखो न - ओनली वीमेन कैन गिव बर्थ! व्हेन अ पीनस गोज़ इनसाइड इट, व्ही बिकम प्रेग्नेंट! एंड आफ्टर नाइन मंथ्स, व्ही गिव बर्थ टू स्वीट किड्स लाइक यू!”

“ओह?”

“हाँ!” रचना मुस्कुराते हुए बोली, “दैट्स व्हाई यू मस्ट थिंक वैरी केयरफुली अबाउट हूस पीनस यू वांट इनसाइड यू! यू डोंट वांट टू हैव किड्स ऑफ़ समवन हू डस नॉट लव यू, ऑर हू इस नॉट वर्दी ऑफ़ योर लव...”

आभा ने एक पल के लिए सोचा और कहा, “सो... दैट मीन्स आई वोन्ट हैव दीपक्स पीनस?”

आभा ने जब ये कहा तो लतिका ने आँखें तरेर कर उसको चुप रहने को कहा।

अब्सोल्युटली नॉट!” दीपक कौन था, ये रचना को कैसे पता हो सकता है?

लेकिन आपने बच्चों का विश्वास जीत लिया है, यह इसी बात से मालूम पड़ता है जब वो आपको अपने ‘राज़’ बताने लगें।

बट कैन आई हैव समीरर्स पीनस?”

डू यू लव हिम, एंड डस ही लव यू?”

आभा शर्म से लाल हो गई, “आई डिड नॉट से दिस!”

“ओके! आई से दैट यू मस्ट थिंक मोर... बट नॉट नाउ! यू हैव अ लॉट ऑफ़ टाइम! अभी तो तुम बहुत छोटू सी हो!” रचना ने प्यार से आभा की छोटी सी नाक के सिरे को हल्के से पकड़ कर हिलाया, “गुड़िया हो अभी! प्ले अ लॉट... हैव अ लॉट ऑफ़ फन! लर्न...! एंड आफ्टर सम इयर्स, व्हेन यू आर अ वेल राउंडेड, ब्यूटीफुल लेडी, देन यू कैन हैव योर पिक ऑफ़ मेन!”

आभा समझते हुए मुस्कुराई। उसे भी रचना पसंद आ गई!

“समझी मेरी गुड़िया?”

“आंटी, आई लाइक यू... नो, आई लव यू!” आभा ने कहा।

“आंटी?”

“मम्मा...” ऐसे मीठेपन से कहते हुए आभा रचना के सीने में घुस गई।

आई लव यू टू, माय हनी!” रचना बोली, और आभा को चूम ली।

“तुम भी इधर आओ लतिका! यू आर अ लेडी, बट स्टिल माय बेबी!” कह कर रचना ने लतिका को अपनी तरफ़ बुलाया, और बारी बारी से आभा और लतिका दोनों के गालों को चूम लिया।

“हनी,” अंततः उसने उन दोनों से कहा, “अब मुझे घर जाना चाहिए... और तुम्हें भी तैयार होना होगा? हम फिर मिलेंगे! ओके?”

रचना ने दोनों बच्चों पर मोहिनी डाल दी थी। कुछ ही क्षणों में रचना एक अजनबी से उनकी सहेली बन गई थी!

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कहानी लिखते हुए योगा के बारे रोचक जानकारी देने के लिए साधुवाद। अब नीलू और अमर की बाप बेटी वाली मुलाकात का इन्तजार है।
 

avsji

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अच्छे दिन आ चुके हैं कृप्या अब कोई ऐसा अपडेट न दें जिससे पाठको के मन में दुखद अहसास हो।
बस ऐसे मस्ती भरे अपडेट देते रहिए। भ्राता श्री।

कहानी लिखते हुए योगा के बारे रोचक जानकारी देने के लिए साधुवाद। अब नीलू और अमर की बाप बेटी वाली मुलाकात का इन्तजार है।

बहुत बहुत धन्यवाद भाई साहब!
हाँ - अब अच्छे दिन तो आ गए हैं। यूँ ही चलते रहेंगे :)

कोशिश तो यही रहती है कि कहानी में आनंद के साथ साथ कुछ नई नई जानकारी मिलती रहे।
बाकी पाठकों पर निर्भर करता है कि वो इन सब जानकारियों का लाभ कैसे उठाते हैं।

साथ बने रहिए! नए अपडेट पोस्ट कर रहा हूँ, बस दो ही पलों में! :)
 

avsji

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अंतराल - समृद्धि - Update #15


रचना वापस कमरे में लौट आई, और फिर से हाथ मुँह धो कर और कपड़े पहन कर, अपने घर लौटने के लिए पूरी तरह से तैयार हो गई। मैं भी जाग गया, और मैंने भी हाथ मुँह धो कर रचना को उसके घर छोड़ने की तैयारी कर ली। लेकिन मैं जब दरवाज़े की तरफ जा रहा था, तब काजल ने डांट लगाईं मुझको कि ऐसे कैसे मैं रचना को जाने को बोल रहा हूँ! मैं कुछ कहता या करता, काजल रचना को हाथ से पकड़ कर वापस अंदर बुला ली। फिर उसने जबरदस्ती कर के हम दोनों को बैठाया और ‘समुचित’ नाश्ता कराया। रचना ने बड़ी न-नुकुर करी कि उसने सवेरे ही तो खाया था, लेकिन काजल ने एक न सुनी। ‘वो कोई खाना था?’ कह कर उसने रचना को बढ़िया नाश्ता कराया और चाय पिलाई। दोनों बच्चे भी हमारे साथ बैठ गए और हम सभी नाश्ता करते हुए, काफी देर तक, कई सारी बातें करते रहे।

और फिर अंततः जाने का समय आ ही गया। काजल ने रचना का माथा चूम कर, उसके हाथों में जबरदस्ती कर के रेशम की बनारसी साड़ी और एक लिफ़ाफ़ा, जिसमें एक हज़ार एक रुपए थे, थमा दिया। रचना थोड़ा चीं-चुपड़ कर रही थी, लेकिन काजल की दुलार भरी डाँट से झट से चुप कर बैठ गई और काजल के पैर छूने लगी। ढेरों आशीष दे कर काजल ने उसको अगली बार नीलू को भी साथ में लाने को कहा, और अलविदा किया!

जाने से पहले रचना ने नन्ही गार्गी के पैरों को चूम कर उसको दुलार किया - वो सो रही थी, तो उसको उठाना ठीक नहीं था। मुझे सबसे बड़ा सुखद आश्चर्य लतिका और आभा के व्यवहार पर हुआ : दोनों देर तक रचना के गले लगी रहीं। मैं यह देखकर चकित था कि तीनों इतने कम समय में, इतने करीब आ गई थीं! यह सब बड़े अच्छे शगुन थे। रचना मुझे ही क्या, घर में सभी को पसंद आने लगी थी। अच्छा है न? कुछ हम उसके रंग में रंग जाएँ और कुछ वो हमारे रंग में रंग जाए!

मेरा मन होने लगा था कि बस एक दो दिन में ही मैं उसको माँ और पापा के बारे में भी सब कुछ बता दूँगा। वो इतना प्रयास कर रही थी, तो मैं अपनी तरफ से कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहता था। वैसे, जैसा अभी तक दिख रहा था, रचना को उस खुलासे से कोई ख़ास दिक्कत नहीं होनी चाहिए। वैसे भी मेरी माँ का अपने व्यक्तिगत जीवन में क्या चल रहा है, उससे रचना को क्या फ़र्क़ पड़ना था? वो कोई गैर कानूनी या असामाजिक काम थोड़े ही कर रही थीं!

फिर मैं रचना को कार में बैठा कर उसके घर छोड़ आया। कार से निकलते समय मैंने उसके होंठों पर चुम्बन किया, और फिर वापस आ गया। वो मुझे अंदर आने को कह रही थी, लेकिन मैंने कहा कि अगली बार फुर्सत से आऊँगा। न तो नहाया हूँ, न धोया! ऐसे नहीं आऊँगा उसके घर! मेरी बात पर वो हँसते हुए अपने घर चली गई, और मुझसे बहुत जल्दी ही मिलने का वायदा ले कर घर के अंदर चली गई।

वापस घर आया, तो बड़ा सुकून सा महसूस हो रहा था। कल रात के लम्बे लम्बे सम्भोगों का सुखद अनुभव लेने के बाद थकान भी हो रही थी। इसलिए मैं सो गया, और सुबह ग्यारह बजे ही उठा। मुझे बढ़िया, तरो- ताज़ा महसूस हुआ। आज छुट्टी थी। तो कोई झंझट भी नहीं था। जाग कर मैंने अपना फ़ोन चेक किया, तो देखा रचना के कई सारे एस.ऍम.एस. आये हुए थे। उनमें उसने मुझे कल रात की अद्भुत और सुखद अनुभवों के लिए धन्यवाद लिखा था, और काजल, लतिका, और आभा से अपनी मुलाकात के बारे में भी लिखा था। उसने यह भी कहा कि आभा ने उसको ‘मम्मा’ कह कर पुकारा, और इसलिए वो आज बहुत खुश है! अचानक ही उसकी तीन तीन ‘बेटियाँ’ हो गई हैं! ... और ऐसी ही कई सारी मीठी मीठी बातें!

सब पढ़ कर बहुत अच्छा लगा। मन में मेरे बहुत कुछ लिखने को हुआ; सोचा कि हर मैसेज का उत्तर लिखूँ! लेकिन मुझे बहुत कुछ कहना नहीं आता। मैंने केवल एक एस.ऍम.एस. लिखा,

‘आई लव यू!’

यह मैसेज लिख कर, मैं बिस्तर से उठा और चलते हुए काजल के कमरे में आ गया। दोनों बच्चे नीचे हाल में टीवी के सामने बैठ कर बोर्ड-गेम खेल रहे थे, तो सोचा काजल के साथ ही बैठ लेता हूँ।

“कैसी है वो?” काजल ने जैसे ही मुझे कमरे के अंदर आते देखा, वो अपनी उत्सुकता छुपा न सकी।

काजल की उत्सुकता लाजमी थी। वो मेरी शुभचिंतक थी और उसको मुझसे अगाध प्रेम और स्नेह था।

“अच्छी है!”

अच्छी है?” उसने मुझे कुरेदा, “बस?”

“हा हा... अरे अम्मा, बहुत अच्छी है! अब खुश?”

हाँ - मुझे मालूम है कि आप पाठक लोग मेरे मुँह से काजल के लिए यह अभिवादन सुन कर चौंक गए होंगे। लेकिन जब से काजल की शादी हुई है, तब से मेरे मन से उसके लिए आसक्ति वाला भाव पूरी तरह से समाप्त हो गया है, और आदर वाला प्रेम बलवान हो गया है। जब मेरी माँ ही काजल को अपनी अम्मा कहती हैं, तो फिर मैं क्या चीज़ हूँ? और फिर पापा को पापा के रूप में स्वीकारने के बाद संशय का कोई स्थान ही नहीं रहा। काजल के प्रति मेरे मन में अगाध प्रेम है और उससे भी अधिक आदर है। समय आ गया था कि काजल मेरे जीवन में एक नया रोल लें। इसलिए मैं उनको अपने जीवन में मेरी ‘दादी माँ’ का स्थान दे दिया!

“हाँ, मुझे भी यही लगता है! रचना एक अच्छी लड़की है! और, हे प्रभु! कितनी सुंदर है! … हर अंग सोना है उसका! तुम बुरा मत मानना... लेकिन यह विचार मन में आए बिना नहीं रहता कि अगर रचना से ही तुम्हारी शादी हुई रहती, तो कैसा रहता!”

मैंने इस बात पर कुछ नहीं कहा। ये होता तो कैसा होता... इस तरह की बातें सोच कर अपना खून क्यों जलाना?

फिर थोड़ा झिझकते हुए, लेकिन आनंदित होते हुए वो ही आगे बोलीं, “ऐसे किसी को कम्पेयर नहीं करना चाहिए... लेकिन सच सच कहूँ? बहू से भी सुन्दर है ये लड़की तो!”

सच बात थी ये!

“हा हा! हाँ! पहले से भी बहुत सुन्दर हो गई है अब तो! स्मैशिंग हॉट! मॉडल बन सकती है अभी भी!”

“हा हा... सच में! बच्चे भी बड़े खुश थे उससे मिल कर...”

“हाँ अम्मा!” मुझे रचना के लतिका और आभा को ले कर टेक्स्ट्स याद आ गए।

“अमर... बेटे... मैं तो कहूँगी कि उसके साथ रेगुलरली मिला करो। समय न वेस्ट करो... अच्छे से जान लो एक दूसरे को...”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“और जल्दी से शादी कर लो... तुमको गृहस्थी का सुख मिलना चाहिए!” अम्मा को अचानक कुछ याद आया, “बहू के बारे में कुछ नहीं बताया उसको?”

“नहीं अम्मा!” मैंने निराशा से कहा।

“हम्म्म... समझ सकती हूँ! लेकिन... मैंने थोड़ा थोड़ा हिंट दिया है उसको। यह तो नहीं बताया कि मेरी बहू कौन है, लेकिन यह ज़रूर बताया है कि मेरा, मेरी बहुओं के साथ कैसा व्यवहार है! और यह भी कि मेरा मेरे बच्चों के साथ कैसा व्यवहार है!”

“तो... क्या बोलती है वो?” मैंने मुस्कुराते हुए पूछा।

“कुछ नहीं। उसको अचम्भा हुआ सब सुन कर! लेकिन ऐसा वैसा कुछ नहीं बोली।”

“हम्म्म!” अच्छी बात थी।

फिर काजल अपने चेहरे पर कृतज्ञता वाले भाव लाते हुए बोली, “जब तुमने मुझे इस परिवार की ‘मुखिया’ के रूप में उससे मिलवाया, तो बहुत अच्छा लगा मुझे! खूब गर्व हुआ!”

“अरे! लेकिन उसमें क्या गलत कहा मैंने, अम्मा? आप तो हैं ही इस परिवार की मुखिया!”

काजल मुस्कुराई, “तुम बहुत स्वीट हो बेटा…” कहने से पहले उसने कुछ सोचा, लेकिन फिर उसने कहा, “हम दोनों एक दूसरे को किस किस रूप में नहीं जाने हैं! लेकिन... लेकिन मुझे बहुत ख़ुशी है कि अब तुम मेरे बेटे के रूप में मेरे साथ हो! ... इससे बड़ा सुख नहीं है मेरे लिए!”

मैं मुस्कुराया, “मुझे भी बहुत ख़ुशी है अम्मा... आपके कारण मुझे सुख तो हमेशा से ही मिला है! लेकिन आपको अपनी दादी माँ मान कर मुझे जो सुख मिला है न, वो मुझे कभी नहीं मिला! आपके ही कारण मेरा परिवार पूरा हो गया है अब! मेरे सर पर बड़ों का साया है, और यह सब कुछ आपके कारण हुआ!”

दादी माँ ने अपनी दोनों बाहें आगे बढ़ाते हुए मुझे अपने आलिंगन में सिमट जाने का आमंत्रण देती हुई बोली, “अमर... मेरे बेटे... तुम मुझे अपनी माँ मानते हो, यह बहुत बड़ा सम्मान है मेरे लिए! सच में... मन में यह इच्छा बहुत होती है कि काश, मैंने तुमको जना होता!”

“हा हा!”

“क्या हो गया?” उन्होंने मेरी हंसी का कारण न समझते हुए कहा।

“कुछ नहीं अम्मा! हा हा... उस दिन पापा भी माँ से यही कह रहे थे! बोल रहे थे कि ‘काश, अमर मेरे बीज से पैदा हुआ होता’!”

“तुम्हारे सामने यह सब बातें करते हैं दोनों?”

“नहीं अम्मा... वो मैं... माँ का दूध पीते पीते उनके बगल ही सो गया था न! रात में जब पापा आए तो... मेरी नींद कच्ची हो गई! तब मैंने दोनों को बातें करते सुना!”

दादी माँ ने मुस्कुराते हुए कहा, “हाँ तो क्या गलत इच्छा है ये? कौन नहीं चाहेगा तुम्हारे जैसा कुलदीपक? और कुल ही क्या? तुम तो समाज के भी दीपक हो! तुम्हारे जैसी संतान पा कर किसी भी माँ की कोख पवित्र हो जाए! ... कोई भी बाप धन्य हो जाए!” कह कर दादी माँ ने मुझे अपने सीने में ऐसे समेट लिया कि वो जाने न देना चाहती हो! कुछ देर हम दोनों कुछ नहीं बोले। फिर दादी माँ ने ही कहा,

“बस, अब तुम्हारा घर बस जाए, तो मैं सुखी हो जाऊँ! और कोई इच्छा शेष नहीं है मेरी!”

“क्या अम्मा!”

“ऐसे मत करो बेटू! माँ हूँ मैं... हर माँ के मन में तो हमेशा यही रहता है कि कब उसके बच्चे अपनी गृहस्थी में सुखी हो जाएँ! और मैं ही क्या, तुम्हारी माँ, और तुम्हारे पापा भी - हम सभी बस यही चाहते हैं अब तो! कब से ढूंढ रहे हैं... लेकिन तुम्हारे लायक कोई मिली ही नहीं! दैव संयोग से रचना आई है! और सबसे अच्छी बात यह है ये है भी बड़ी अच्छी लड़की!”

“हम्म!”

“अमर,” दादी माँ ने हिचकते हुए पूछा, “बेटा, एक बात तो बता… क्या तुम्हें सुमन और सुनील के रिश्ते से शर्म आती है… या हिचक होती है?”

“क्या! अम्मा, ये क्या कह रही हैं आप? शर्मिंदा? और मैं? बिल्कुल भी नहीं। मुझे तो माँ और पापा पर बहुत गर्व है! और इस बात पर भी पापा और आप मुझे अपना बेटा मानते हैं… मैं हर तरह से आप तीनों का बेटा हूँ! ... नहीं… शायद आप यह सोच रही होंगी कि मैंने रचना को माँ और पापा के बारे में कुछ क्यों नहीं बताया! ... वो इसलिए क्योंकि मैं नहीं जानता था कि वो कैसे रियेक्ट करेगी! हमारी नई नई मुलाकात है... मुझे अभी भी उसके पूरे पास्ट के बारे में नहीं मालूम। ... और... और अगर उसने माँ, पापा, या आपके लिए कुछ ऐसा वैसा बोल दिया न, तो मैं न जाने क्या कर बैठूँगा! ... मुझे गुस्सा कम आता है... इसलिए मुझे नहीं मालूम कि आप लोगों के बारे में अगर कोई कुछ गन्दा बोलेगा तो मैं क्या कर बैठूँगा! ... लेकिन अब… अब चूंकि हम दोनों एक सीरियस रिलेशनशिप के बारे में सोच रहे हैं, तो मैं उसे सब कुछ बता दूँगा! सब कुछ!”

दादी माँ संतुष्टि से मुस्कुराई, “तो वो तुम्हारे मन की है? उसके साथ तुम्हारी संगत बढ़िया बैठेगी?”

“लगता तो है अम्मा… मैंने उसका टेस्ट भी लिया। मैंने उसे आभा और लतिका को दूध पिलाने को कहा।”

“क्या? सच में! बदमाश हो तुम!”

“अरे! मैंने ऐसा क्या कर दिया, अम्मा! … लेकिन मुझे अच्छा लगा कि रचना ने बच्चों को दूध पिलाया। पुचुकी तो उसको बहुत पसंद करने लगी है… और मिष्टी, वो तो उसको मम्मा कह कर बुलाने लगी है! … हा हा!”

“आह भगवान! वाह! आपका बड़ा बड़ा शुक्र है!” दादी माँ ने प्रसन्न होते हुए कहा, “लेकिन ऐसा क्यों किया बेटू? अच्छी लड़की है वो!”

“हाँ अम्मा... अच्छी तो है! लेकिन अपनी पुचुकी और मिष्टी के लिए मैं गन्दी सौतेली माँ नहीं लाना चाहता! जैसा चल रहा है, वैसा ठीक है!”

“रिश्ते संशय की बुनियाद पर नहीं बनाए जाते बेटे! उनको विश्वास की बुनियाद पर बनाया जाता है!”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया। उनकी बात पूरी तरह सही थी। मैंने दादी माँ की बात का अनुमोदन करते हुए कहा,

“अब संशय नहीं है अम्मा... आपको रचना को देखना चाहिए था… जब वो दोनों बच्चों को अपना दूध पिला रही थी, तब उसके चेहरे पर माँ वाले ही भाव थे! ... मुझे कोई बनावटीपन नहीं दिखाई दिया!”

“क्या बात है!” दादी माँ आनंदित होते हुए बोली, “मुझे बहुत अच्छा लग रहा है अमर कि आखिरकार तुम फिर से शादी करने के लिए रेडी हो गए हो... तुम्हारा घर बस जाए, तो चैन हो जाए मुझको! समझो मैं गंगा नहाई!”

“क्या अम्मा! जब कहो तब तुमको गंगा जी नहला लाऊँ!”

“वैसे नहीं बेटू! माँ हूँ! हर माँ की कोई इच्छा होती है, कोई मान्यता होती है! तेरे पापा और माँ की शादी के लिए इसीलिए तो मैं मरी जा रही थी! उसके बाद से हम सबके जीवन में बस सुख ही सुख है... तू भी जल्दी से कर ले शादी!”

“हा हा!” फिर कुछ सोच कर, “अम्मा, आपको पता है? ... रचना प्रेग्नेंट होना चाहती है।”

“ये तो अच्छी बात है न! इससे पता चलता है कि वो तुम्हारी बीवी बनने की बात पर गंभीर है।”

“हम्म…”

“ऐ बेटा, तुमको किसी स्त्री की माँ बनने की इच्छा पर संदेह नहीं करना चाहिए। हम औरतें हैं तो सृष्टि का पात्र (बर्तन) ही!”

“आएं! ये क्या बात हुई?”

“हाँ... इसमें गलत क्या कहा मैंने? हम पात्र ही तो हैं। मुझे देखो - मेरे पहले आदमी से मुझे पुचुकी और सुनील हैं, और सत्या से परी! बाबू जी से बहू को तुम मिले, और सुनील से उसको मेरे आदित्य और आदर्श मिले। तुम यह मत सोचो कि मैं महिलाओं को किसी तरह से नीचा दिखा रही हूँ! मैं खुद एक औरत हूँ, और मैं यह बात पूरे गर्व से कहती हूँ! ... हम औरतें सृष्टि के पात्र ही तो हैं! पुरुष के सहवास से हम संसार बनाती हैं! रचना भी तो वही चाहती है। सच में... यह एक अच्छी बात है! तुम उसको बहुत पसंद आए हो, इसीलिए वो तुम्हारा बच्चा चाहती है! जवान है, जननक्षम है... तो उसके और बच्चे क्यों नहीं होने चाहिए?”

“नहीं अम्मा... मैंने ऐसा तो नहीं कहा कि उसके और बच्चे नहीं होने चाहिए...”

“तो इस बात में संदेह न करो! समझे न बेटा? ... अच्छा मुझे बताओ, वो कैसी लगती है तुमको?”

“अच्छी है अम्मा... सुन्दर तो है ही, सेक्सी भी बहुत है! सॉफ्ट लगती है... लेकिन मोटी नहीं है... सुडौल है।”

“हाँ! सुडौल है, और बहुत सुन्दर भी!”

“ब्रेस्ट उसके बड़े बड़े हैं!”

“हाँ हाँ! देखा है सब मैंने! मेरे सामने बिना कपड़ों के थी इतना देर! लेकिन ये मत सोचना कि बड़े दुद्धू हैं, तो ज्यादा दूध आएगा! अधिक दूध आता है अधिक पीने से! उनको जितना अधिक पिया जाता है, वो उतना ही अधिक दूध बनाते हैं। इसीलिए मेरी दोनों बहुओं के छोटे छोटे दुद्धूओं में भी बहुत दूध आता है!”

“हा हा! जी अम्मा जी, समझा!”

“और?”

“और क्या?”

“उसके साथ सेक्स कर के कैसा लगा?”

“अच्छा लगा अम्मा।”

“अच्छा, अब मुझसे झिझकोगे? पूरा बताओ?”

“हा हा! रचना... देवयानी जैसी... तंग नहीं है, लेकिन उसकी अंदरूनी पकड़... अधिक मज़बूत है! उसको मालूम है कि क्या करना है, और कैसे करना है!”

“हम्म बढ़िया... तुमको मज़ा आया? और उसको? दोनों को संतुष्टि मिली?”

“हाँ... अम्मा! बहुत मज़ा आया!” मैंने रात की बातें सोचते हुए कहा, “मैं उसके साथ देर तक सेक्स कर पाया!”

“गुड! पति पत्नी को सेक्स का खूब मज़ा मिलना चाहिए एक दूसरे से!”

मैं मुस्कुराया।

“अच्छा, बहू को कुछ बताया इस बारे में?”

“नहीं!”

“मैं बता दूँ?”

“अगर आपका मन है तो!”

“हम्म... उसको सुन कर बड़ा अच्छा लगेगा।”

“माँ तो रचना को न जाने कब से अपनी बहू के रूप में ही देख रही हैं! उम्म... शायद बीस साल से! हा हा!”

“हाँ तो अच्छा है न! है भी वो वैसी! बहू बनने लायक!”

मैं सोचने लग गया कि कैसा होता अगर मैं और रचना बहुत पहले ही शादी कर लिए होते!

“मेरे बारे में बताओगे उसको?” दादी माँ ने कहा।

“बता तो दिया!”

“नहीं... मेरा मतलब... मैं तो नौकरानी बन कर आई थी न यहाँ... और फिर...”

मैं रुक गया... खुश बिलकुल भी नहीं था दादी माँ की बात पर!

मैंने उनकी बात को बीच में ही काटते हुए कहा, “अम्मा, आज के बाद कभी अपने आप को नौकरानी मत कहना! ... भूले से भी नहीं! आप मेरी सब कुछ हो... और आज से नहीं! हमेशा से! आप माँ की ही तरह मेरी सब कुछ हो! आपने मेरे जीवन में कौन सी भूमिका नहीं निभाई? ... मेरी सबसे अच्छी दोस्त, मेरी बड़ी बहन, मेरी गार्जियन... और अब मेरी दादी माँ! क्या नहीं किया आपने? कैसे कैसे त्याग नहीं किए! मेरी माँ को अपनाया... उनको जिस सुख की तमन्ना थी, आपने पूरे आदर सम्मान के साथ उनको वो सुख दिया! आप मेरे परिवार से बढ़कर हैं! मैंने अपने स्वार्थ के कारण आपको पापा के साथ रहने नहीं दिया… लेकिन आपने उस पर भी एक बार भी उफ़ तक नहीं करी! ... बहुत पहले हमारे बीच में जो कुछ था, वो बहुत मूल्यवान था! बहुत सुन्दर था! ... लेकिन अभी जो कुछ है, वो मेरा सब कुछ है! समझिए कि मेरा संसार है! अब से ऐसी गन्दी बात मत करिएगा मेरे साथ!”

दादी माँ ने सब कुछ धैर्यपूर्वक सुना और चुपचाप रो पड़ी।

मैं दादी माँ को रोते देख रहा था, लेकिन मुझे अपनी बात कहनी थी, “अगर मुझे संसार की किसी भी वस्तु, किसी भी व्यक्ति और आपके बीच चुनने को कहा जाए, तो मैं आपको ही चुनूँगा! हमेशा! मेरे पास जो कुछ भी है वो सब आपकी वजह से है! कोई भी बात हमारे रिश्ते को बिगाड़ नहीं सकती!”

दादी माँ बहुत भावुक हो गई, “अरे मेरे लाल! अरे मेरे बेटे! मुझको गलत मत समझो!” उसने मुझे गले से लगाते हुए कहा, “लोग शायद नहीं समझेंगे!”

“तो न समझें! मुझे फ़र्क़ नहीं पड़ता! एक धेले भर का भी नहीं! लेकिन आप मेरी माँ की माँ हैं, बस! मैं आपके बेटे का बेटा हूँ, बस! यही मेरी पहचान है!”

“ओह बच्चे! तुम भी तो मेरे सब कुछ हो!” कह कर वो सिसक सिसक कर विलाप करने लगी, “मुझे माफ़ कर दो!”

“माफ़ी जैसा कुछ नहीं है अम्मा... माफ़ी जैसा कुछ भी नहीं! बस, अपनी छत्रछाया बनाए रखना हम सभी पर!” मेरी आँखों से भी आँसू निकलने लगे।
“कहीं नहीं जा रही हूँ बेटा, कहीं भी नहीं! मेरे बच्चों में ही मेरा संसार है! वो संसार छोड़ कर मैं कहीं नहीं जा रही हूँ! हाँ!”

“प्रॉमिस न?”

“पक्का प्रॉमिस बेटे, पक्का प्रॉमिस!”

कह कर दादी माँ ने अपनी ब्लाउज के बटन खोल दिए, जिससे मैं उनका स्तनपान कर सकूँ। मैं ऐसा भाग्यशाली व्यक्ति हूँ कि क्या कहूँ! मुझे अपनी दादी माँ का और अपनी माँ, दोनों का स्तनपान करने का अवसर मिलता है। किस्मत अच्छी रही, तो जल्दी ही रचना के स्तनों का दूध भी मिलेगा! मतलब, दादी माँ, माँ, और पत्नी - तीन तीन सौभाग्यशालिनी स्त्रियों का अमृत! आह! मैंने आभारपूर्वक दादी माँ के एक चूचक को अपने मुँह में लिया, और स्तनपान का आनंद उठाने लगा।

कुछ देर बाद दादी माँ ने एक बात कही, “बेटा, एक बात कहूँ?”

“हाँ अम्मा?”

“सोच रही थी कि... इस बार... बहू की गोद भराई... हमारे गाँव में हो...”

मैंने स्तनपान को बीच में रोक दिया।

“अम्मा... आपको याद है न... माँ शादी के समय गाँव वालों के व्यवहार से कितना हर्ट हुई थीं!”

“याद है बच्चे! लेकिन क्या करूँ?” फिर मुझे समझाते हुए, “देखो... मेरा तो मेरे गाँव से सब नाता ही टूट गया है। अब कोई जड़ नहीं बची है मेरी... सोच रही थी कि तुम्हारा गाँव ही मेरी पहचान बन जाए! एक जगह हो, जिसको हम सब अपना कह सकें! बिना जड़ का आदमी तो कटी पतंग समान इधर उधर होता रहता है!”

“क्या अम्मा, ये इतना बड़ा घर है न यहाँ!”

“हाँ बेटे, लेकिन यहाँ अपनी मिट्टी नहीं है न! दिल्ली तो खानाबदोशों का शहर है! यहाँ अपनी जड़ नहीं है न! लेकिन गाँव तो अपना है। बहू तो वहाँ से जुड़ी है... वहाँ की बहू है! बाबू जी का पुश्तैनी घर है वो! तुम्हारा घर है वो! मैं... मैं बस यह चाहती हूँ कि वहाँ से हमारा सम्बन्ध खराब न हो!”

“तो आपने उनको उनकी बद्तमीज़ियों के लिए माफ़ कर दिया?”

“मन में बैर और दुराग्रह ले कर जिया भी तो नहीं जा सकता न?” दादी माँ ने कहा, “और मैं शायद माफ़ न कर पाती, लेकिन बहू के मन में कोई क्रोध नहीं है... इसलिए मैंने भी उन लोगों को उनके बुरे व्यवहार के लिए माफ़ कर दिया है!”

मैंने कुछ देर कुछ नहीं कहा। फिर अंततः,

“अगर आप यही चाहती हैं...”

“हाँ बेटू, बहुत छोटी सी बात है! देखो, अगर बात बन जाए तो बहुत अच्छा!”

“कोशिश करूँगा अम्मा!”

“थैंक यू बेटे, थैंक यू!”

मुश्किल काम था, लेकिन दादी माँ की इच्छा है, तो मैं पूरी कोशिश करूँगा कि वो इच्छा पूरी हो सके।

“लेकिन,” दादी माँ ने कहा, “सबसे पहले... रचना को हमारे परिवार के बारे में सब कुछ बता दो! सच्चाई छुपाना ठीक नहीं! प्यार के रिश्ते की नींव सच्चाई पर पड़नी चाहिए!”

“ठीक है अम्मा! बता दूँगा!”

दादी माँ बड़े संतोष और गर्व से मुस्कुराईं! उनको मालूम था, कि मैं उनका कहा नहीं टालूँगा कभी!

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avsji

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अंतराल - समृद्धि - Update #16


सवेरे मैंने रचना को एक मैसेज भेजा कि अगर वो उठी हुई हो तो मुझे कॉल कर ले।

लगभग तुरंत ही उसका कॉल आ गया।

गुड मॉर्निंग, हैंडसम!” मैंने जैसे ही उसके कॉल का उत्तर दिया वो बोली, “इतने सवेरे सवेरे इस कनीज़ को याद किया?”

उसके कहने का अंदाज़ ऐसा ख़नकदार था कि मन से ले कर शरीर में एक मीठी सी तरंग दौड़ गई, ‘प्रभु! क्या सच में रचना के साथ मेरा भविष्य लिखा हुआ है?’ मेरे मन में यह विचार आए बिना न रह सका।

“ऐसे मत बोलो रचना! तुम तो सचमुच की शाहज़ादी हो!”

“अरे अरे! सिंह साहब, आज तो बड़े रोमांटिक मूड में उठे हैं आप?”

“हा हा! अच्छा यार सुनो - एस मच एस आई वुड लाइक टू डू रोमांटिक टॉक्स राइट नाउ, एक बहुत ज़रूरी बात करनी है तुमसे!”

“हाँ तो करो न?”

“ऐसे नहीं! फ़ोन पर नहीं। ... कहीं मिल कर?”

“आज कल स्कूल में बहुत काम नहीं है... दो बजे आ जाओ मेरे स्कूल?”

“तुमको पिक कर लूँ?”

“हाँ! इतना क्या सोचना?”

“बहुत ज़रूरी बात है रचना! तुम्हारा मेरे बारे में सब कुछ जानना ज़रूरी है! बेहद ज़रूरी! मैं नहीं चाहता कि हम कुछ छुपा कर रखें!”

“क्या हो गया अमर? सब ठीक है न?”

“हाँ सब ठीक है! लेकिन वो सब मिल कर बताऊँगा! दो बजे?”

“दो बजे!” रचना की आवाज़ में अनिश्चय साफ़ सुनाई दे रहा था।

**

ऑफिस में मन नहीं लगा। पूरे समय मैं यही सोचता रहा कि मेरे परिवार के खुलासे पर रचना न जाने क्या सोचे! कुछ भी कह लो - मन तो मेरा लग गया था रचना से। आज से नहीं लगा हुआ था - एक तरह से वो मेरी ओल्ड फ्लेम थी! इसलिए सोच रहा था कि काश वो समझ सके मेरी और मेरे परिवार की परिस्थितियाँ! समझ सके, और स्वीकार सके, और हो सके, तो उसका आदर कर सके।

मेरे ऑफिस से उसके स्कूल जाने में एक घंटा लगता था। तो मैं समय पर निकल लिया। लंच नहीं किया - सोचा कि अगर सब ठीक रहा तो रचना के साथ ही खाना पीना हो जाएगा। उसके स्कूल के गेट पर पहुँचा तो देखा कि वो गेट पर ही खड़ी थी, और मेरी राह देख रही थी। संतरी पीले रंग की साड़ी में उसका हुस्न ऐसा गज़ब का लग रहा था कि उसको बयान नहीं किया जा सकता। उसके बगल ही नीलू भी खड़ी थी, और मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी। आज उसका व्यवहार पहले वाले दिन की अपेक्षा बेहतर था। हाँ, वो भी तो उसी स्कूल में पढ़ती थी। शिक्षिका की बेटी होने के कारण उसकी फीस में डिस्काउंट भी मिलता था। लेकिन जो बात मुझे कहनी थी वो नीलू के सामने नहीं हो सकती थी। मुझको देखते ही रचना के चेहरे पर हज़ार वाट की मुस्कान दौड़ गई।

“हाय!” वो बोली।

“हेलो!” मैंने भी उतनी ही गर्मजोशी से मुस्कुराते हुए उसका अभिवादन किया।

“हाय अंकल!”

“हेलो बेटा! हाउ आर यू? गुड डे एट स्कूल?”

इट वास ऑलराइट!”

“रचना, आई वास होपिंग दैट ओन्ली यू एंड आई टॉक टुडे!” फिर मैंने नीलू को देखते हुए कहा, “आई होप यू डोंट माइंड बेटा!”

नॉट ऐट आल अंकल!”

“हाँ! आई नो। नीलू घर चली जाएगी अपने से! शी स्टेड बैक टू से हेलो टू यू!”

“बाय अंकल!” नीलू समझ गई कि उसके जाने का समय हो गया।

हे, आई कैन ड्राप यू एट होम, बेटा !”

“नो अंकल! थैंक यू। आई विल गो विद माय फ्रेंड! शी इस आवर नेबर!”

आर यू श्योर?”

“यस अंकल! बाय!”

“बाय बेटा!”

रचना मुस्कुराते हुए गाड़ी में मेरे बगल आ कर बैठ गई। मुस्कुरा रही थी, लेकिन अंदर से वो भी चिंतित ही लग रही थी।

“कॉफ़ी?”

“ओके!”

मैं उसके साथ अपने पहचान की एक कॉफ़ी शॉप में गया। बढ़िया फ़िल्टर कॉफ़ी बनाता था। मुझे देखते ही उसने जल्दी से हमारे बैठने की व्यवस्था कर दी, और बिना कुछ कहे कॉफ़ी बनाने में लग गया।

“हाँ, अब कहो! क्या हो गया? ... क्या कहना था, जो तुमको इतना साल रहा है?” रचना ने बड़े चिंतित सुर में पूछा।

“रचना... आई नीड टू टेल यू अबाउट अस... आई मीन... माय फॅमिली...”

“ओके?”

उसको लगा होगा कि ऐसा क्या बताना है मुझे अपने परिवार के बारे में जो मैं इतनी भूमिका बाँध रहा हूँ।

“प्लीज़ थोड़ा आराम से सुनना... और सब सुन लेना... फिर जो कहोगी, मैं सब मान लूँगा!”

“अमर... यार... हम दोनों बचपन के दोस्त हैं! बिलीव मी... तुम जो कहोगे, मैं सब सुनूँगी! हम कुछ बने या न बने, लेकिन हम दोस्त तो हैं! ओके! बोलो अब! डोंट वरी!”

“ओके,” मैंने नर्वस हो कर मुस्कुराया, “तुमको डैड के बारे में तो मालूम ही होगा?”

“हाँ! आई ऍम सो सॉरी! मैंने कुछ कहा नहीं कि पुरानी बात कुरेदने से शायद तुमको दुःख हो।”

“थैंक्स! ... एंड डोंट वरी! ... डैड... की... डेथ... के बाद... माँ बहुत अकेली हो गई थीं।”

रचना ने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“उनको डिप्रेशन हो गया था। सीवियर नहीं, लेकिन उसी तरफ़ जा रही थीं। ... ऐसे में... उनको सहारा मिला... तो... तो उन्होंने दूसरी शादी कर ली!”

“ओह वाओ! दैट्स वैरी गुड!” वो चहकते हुए बोली, फिर अचानक ही शिकायत भरे स्वर में, “... तुम कैसे बन्दर हो! तुमको लगा कि मैं इस बात से तुमसे बुरा मान जाऊँगी? माँ इतनी कम उम्र हैं! ... शायद काजल दीदी की ही उम्र की होंगी! उनको शादी करनी ही चाहिए थी! आई ऍम सो हैप्पी! ... इस शी गुड! वो अच्छी हैं? हैप्पी हैं?”

“हाँ,” मैं रचना की प्रतिक्रिया पर मुस्कुराया, “शी इस वैरी हैप्पी!”

“कब हुई उनकी शादी?”

“करीब पाँच साल हो गए!”

“वाओ! गुड!” वो मुस्कुराई, और फिर थोड़ा शरारती अंदाज़ में बोली, “उनको बेबीज़ हुए?”

“हा हा! हाँ! अरे यार तुम ऐसे बीच बीच में टोंकती रहोगी तो मैं सब बातें कैसे बताऊँगा?”

“बच्चे हुए हैं?” रचना मेरी आपत्ति को नज़रअंदाज़ करते हुए बोली, “वाओ वाओ! कॉन्ग्रैचुलेशन्स! सब बताओ जल्दी से!”
“माँ को दो लड़के हुए हैं - पहला वाला चार साल का है, और दूसरा वाला दो का! ... एंड शी इस एक्सपेक्टिंग अगेन!”

“सच में? ग्रेट! आई ऍम सो हैप्पी अमर! पता है? माँ को और बच्चे चाहिए थे। एक बार उन्होंने मुझको कहा था कि उनकी और बच्चों की इच्छा थी! आई ऍम सो हैप्पी कि उनकी इच्छा पूरी हो गई! उनका नंबर देना! आई विल कॉल हर एंड कोन्ग्रेचुलेट हर!”

फिर थोड़ा ठहर कर, “उनकी ये वाली प्रेग्नेंसी ठीक है? थोड़ा एडवांस ऐज है न उनकी, इसलिए पूछ रही हूँ!”

“हाँ! वो ठीक हैं। एक्चुअली काफी अच्छी हैं! उनकी डॉक्टर कहती है कि वो ऐज के हिसाब से बहुत ही हेल्दी हैं। ... सच तो यह है कि कभी कभी तो मैं ही उनसे बड़ा लगता हूँ।”

“हाँ, तुम चिंता बहुत करते हो न! देखो, इतनी ब्यूटीफुल न्यूज़ सुनाने के लिए तुम मेरे रिएक्शन को ले कर वरी कर रहे थे! स्टुपिड हो पूरे!” रचना खिलखिला कर हँसने लगी, “आई ऍम सो हैप्पी! ... लेकिन इन सब बच्चों के कारण मेरा पत्ता कट गया!”

“अरे वो क्यों?”

“माँ की बेटी का रोल मिल रहा था... वो गया!”

“हा हा! नहीं गया! माँ विल लव टू सी यू!” मैं फिर से थोड़ा गंभीर हो गया, “लेकिन मेरी बात ख़तम नहीं हुई!”

“हाँ हाँ! बोलो बोलो!”

“ये काजल हैं न...”

“हाँ, व्हाट अबाउट हर?”

“ये सबसे पहले मुझसे मिलीं थीं कोई तेरह साल पहले! ... मेरा घर सम्हालती थीं [अब दादी माँ के लिए कामवाली या नौकरानी जैसे शब्द मेरे मुँह से निकल ही नहीं सकते थे] ... मेरा खाना पीना, रहना सहना... घर की सारी व्यवस्था वो ही देखती थीं!”

शायद रचना को मेरी दुविधा समझ आ गई और मेरी बात भी। लिहाज़ा, उसने केवल ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“सम्हाला उन्होंने मुझे एक गार्जियन की तरह! ज़िन्दगी में ठहराव दिया! माँ डैड की एब्सेंस में प्यार दिया... फिर... फिर बहुत से चेंजेस आए लाइफ में... गैबी आई... फिर... देवयानी आई... इस बीच काजल अपने दोनों बच्चों के साथ माँ और डैड के साथ रहने लगीं! वहीं - हमारा घर! ... तो हमारे परिवार का हिस्सा वो इस तरह से बनीं! ... माँ डैड ने उनको और उनके दोनों बच्चों को, अपने बच्चों जैसा ही मान दे कर अपने पास रखा। फिर सुनील... काजल का बड़ा लड़का... उनका आई आई टी में सिलेक्शन हो गया। उसके बाद कुछ समय के लिए काजल को भी अपने पुश्तैनी गाँव जाना पड़ा।”

मेरी आँखों और चेहरे पर पीड़ा वाले भाव आ गए, “आभा हुई हमको... फिर डेवी को कैंसर हो गया... उसके कुछ ही समय बाद डैड भी चल बसे! लाइफ एकदम से पटरी से उतर कर खड्डे में गिरने लगी! बिज़नेस को सम्हालना... माँ को सम्हालना... आभा को सम्हालना... यह सब कुछ इतना मुश्किल हो गया था मेरे लिए, कि मैंने काजल को फिर से याद किया! ... और किसी तारणहार की तरह वो दौड़ी चली आईं... फिर से हम सब को सहारा देने! आभा को माँ का प्यार दिया उन्होंने... आभा देवयानी नहीं, काजल का दूध पी कर बड़ी हुई है! उन्होंने माँ को सहेली का भरोसा और दिलासा भी दिया!”

रचना का चेहरा भी उदास हो गया, लेकिन उसने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया। इस बार उसने टोका नहीं। वो जानती थी कि यह स्मृतियाँ पीड़ादायक हैं, इसलिए उनका बाहर आ जाना ठीक है।

“तब तक सुनील का फोर्थ ईयर पूरा हो गया था, तो वो यहाँ आ गए कि हम सबके साथ रहेंगे, अपनी जॉब ज्वाइन करने से पहले। उनके आने से हम सबको एक नया उल्लास सा मिला। ख़ास तौर पर माँ को...”

मैंने एक लम्बी साँस ली और छोड़ी, “यू नो... माँ को... उनके डिप्रेशन में... सहारा देने वाले... सुनील ही हैं!”

मेरी इस बात का खुलासा होते ही रचना की आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गईं!

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहना जारी रखा, “बचपन से ही उनको माँ से प्यार हो गया था... सुन कर लगता है कि कोई फ़ॅन्टसी बता रहा हूँ! बट ही ऑलवेज लव्ड हर! ... तो उन्होंने माँ को प्रोपोज़ किया... और थोड़ा हिचकिचाने के बाद माँ ने मान भी लिया। सबसे बड़ी बात रही काजल की दरियादिली की! शी मेड श्योर कि माँ इस रिश्ते को ले कर जितना हो सके, उतना कम्फर्टेबल हो सकें! उनको खुले दिल से, बिना किसी पूर्वाग्रह के... अपनी बहू के रूप में अपनाया! माँ के मन में बहुत से डॉउट्स थे, बहुत से असमंजस भी... शर्म भी खूब थी, और झिझक भी... लेकिन काजल ने उनको समझाया और सही दिशा दिखाई... पहले दिन से काजल ने माँ को अपनी बहू नहीं, बेटी जैसा दुलार किया!”

मेरी बात पर रचना को काजल की बात याद हो आई। उसके होंठों से कोई आवाज़ तो नहीं आई, लेकिन ‘वाओ’ जैसा शब्द बनता हुआ अवश्य दिखा। मैं एक क्षण को रुका।

रचना बोली, “तो... तो मतलब... माँ के हस्बैंड... उनसे कोई...”

“हाँ... बाइस साल छोटे हैं!”

“बाप रे!” मुझे लगा कि रचना कोई ऐसी वैसी बात बोलेगी, लेकिन उसने कहा, “कितना मुश्किल हुआ होगा न माँ को?”

“किस बात के लिए?”

“किस बात के लिए? अरे बुद्धू हो पूरे तुम! किसी लेडी के लिए अपने बेटे जैसे लड़के से शादी करना... और... और... वो सब करना जो... हस्बैंड एंड वाइफ करते हैं... यह सब आसान थोड़े ही होता है!”

“हाँ... आसान तो नहीं होता! लेकिन काजल ने सब आसान कर दिया!”

“कैसे?”

“जब उनको मालूम हुआ कि सुनील को माँ पसंद हैं, तो पहले तो उन्होंने अपने बेटे को समझाया कि माँ उनके लिए बिलकुल सही चॉइस हैं, और उनको इनकरेज किया कि वो जितना जल्दी हो सके, माँ को प्रोपोज़ कर दें। देर करने से कोई बेनिफिट नहीं! और जब सुनील ने माँ को प्रोपोज़ कर दिया, तो उसके बाद, उन्होंने माँ को इस तरह से प्यार से समझाया और अपनाया कि माँ ने बिना अधिक हील हुज्जत के शादी के लिए हाँ कर दी!”

शी इस अमेजिंग!” रचना ने कहा, “ग्रेट वुमन काजल इस... तो क्या वो सच में माँ को ब्रेस्टफीड...?”

“हाँ न! इसीलिए वो इस घर की मुखिया हैं! सबसे बड़ी! मेरा मतलब... पद में सबसे बड़ी! माँ उनको अम्मा कहती हैं। ... मैं भी! लेकिन जहाँ वो माँ की सास हैं, वहाँ मैं उनको दादी माँ का सम्मान देता हूँ!”

शी डिज़र्व्स इट अमर!” रचना ने इतनी सादगी से यह बात कही कि मुझे विश्वास ही नहीं हुआ, “... और... तुम और माँ के हस्बैंड? तुम दोनों के बीच कैसा है सब?”

“बाप बेटे वाला!”

“सही में?”

“हाँ! मैं उनको पापा कहता हूँ, और मानता भी हूँ!”

“ओह गॉड! आई होप यू आर ओके डूइंग इट!” रचना सोचते हुए बोली, “वो तुमसे छोटे भी तो हैं न?”

“हाँ! साढ़े सात साल... लेकिन... वो मुझे बेटे जैसा ही प्यार करते हैं! मुझको अपना बड़ा बेटा कहते हैं! ही हैस बीन अ ग्रेट हस्बैंड फॉर माँ! इसलिए मैं भी उनको पापा कहता हूँ और मानता भी हूँ!”

“लेकिन... अंकल? आई मीन योर फादर?”

“रचना... आई ऍम प्राउड ऑफ़ बींग डैड्स सन! ... लेकिन मैं उनका बेटा होने के साथ साथ पापा का भी बेटा हूँ! मुझे उस सच्चाई से कोई शर्म नहीं! इन फैक्ट, आई ऍम प्राउड ऑफ़ बींग पापाज़ सन ऐस वेल! दोनों ही केस में माँ तो एक ही है न!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा!

“वाओ! अमर... आई ऍम वैरी हैप्पी एंड प्राउड ऑफ़ यू दैट यू थिंक लाइक दैट!”

“थैंक यू रचना!”

फिर जैसे उसको अचानक ही कोई ज्ञानबोध हुआ हो, “तो... ओह गॉड! काजल दीदी इस नॉट दीदी!”

मैंने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया।

शी इस दादी जी? एंड... लतिका इस योर बुआ?”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया!

“हा हा! ओह गॉड! मैं उसको कल अपनी बेटी बना ली!”

“इट्स ओके! बेटी ही है वो!”

“हा हा! ओके। सो, काजल आई मीन दादी जी... एंड माँ एंड पापा? शुड आई कॉल हिम पापा?”

“मैं तो उनको पापा ही कहता हूँ!”

ओके! सो पापा! वाओ! माय ससुर जी इस नाइन इयर्स यंगर टू मी! हा हा हा!! मेरा तो बड़ा सा ससुराल होने वाला है अमर! हा हा! सोच रही थी कि नुक्लिअर फैमिली में जा रही हूँ! लेकिन ये तो कुछ अधिक ही काम्प्लेक्स जॉइंट फैमिली है!”

मैंने कुछ कहा नहीं; बस मुस्कुराया। रचना ने इस पूरी बात को मेरी उम्मीद से कहीं अच्छी तरह से सुना और माना।

सो यू हैव टू यंगर ब्रदर्स, एंड वन मोर इस ऑन द वे!”

“हाँ!”

वेट अ मिनट... कल जब तुम कह रहे थे कि... न तो माँ ने, और न ही पापा ने कभी तुमको माँ का दूध पीने से रोका - तो वो ये वाले पापा हैं?”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “उनके ही एनकरेजमेंट से ही तो मैंने फिर से शुरू किया है माँ का दूध पीना!”

“व्होओओ! तो तुम उनके सामने न्यूड न्यूड जाते हो?”

“कोई कम्पल्शन नहीं है! लेकिन हाँ, अगर मन हो, तो इस घर के बच्चे कपड़े नहीं पहनते! नेकेड ही रहते हैं!” फिर थोड़ा ठहर कर, “लेकिन हाँ, जब भी हम बच्चे अपनी माँओं का दूध पीते हैं, तो हम अक्सर न्यूड ही रहते हैं! पहने रहो, तो माँ लोग उतार देती हैं!”

“हा हा! यार! दिस आल इस सो अनबिलिवेबल! बट आई नो यू एंड योर फॅमिली! ... एक बात बताओ... तुमको प्रॉब्लम नहीं होती कोई? आई मीन... इरेक्शन?”

“नहीं! अपनी माँ के सामने कैसे होगा?” मैंने झेंपते हुए कहा।

“हाँ वो भी है!” फिर कुछ सोचते हुए, “ओह... अब समझी! तो इसीलिए कल काजल... ओह आई मीन, दादी माँ मुझे फ्री हो कर रहने को कह रही थीं!” फिर कुछ सोच कर, और मुस्कुराते हुए, “उनका भी दूध पीते हो?”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“वाओ! वीमेन इन योर होम आर गॉडेसेस!” वो सोच में पड़ गई, फिर कुछ क्षणों के बाद बोली, “और कुछ बताना है?”

“नहीं! ऐसा तो कुछ और ख़ास नहीं! दादी माँ के हस्बैंड मुंबई में रहते हैं। उनका बेकरी का बिज़नेस है।”

“उनको दादा जी नहीं बुलाते?”

“नहीं! ... बहुत अधिक बार मिलना नहीं होता। मिलते भी हैं, तो मैं उनको नाम से ही बुलाता हूँ!” फिर मैंने ठहर कर और सोच कर कहा, “रचना... प्लीज़ अंडरस्टैंड! हमारे घर में रिश्ते... प्यार के रिश्ते हैं! काजल... मेरी माँ की ‘अम्मा’ और मेरी ‘दादी माँ’ इसलिए बन सकीं, क्योंकि उन्होंने हमको बहुत प्यार दिया है! जेनुईन लव! यह सब... ये रिश्ते... उनके नाम... यह सब इसलिए हैं क्योंकि मैं... हम... उस प्यार को कोई नाम दे कर बुलाना चाहते हैं! बहुत सिंपल है यह! बस यही कारण है कि मेरी माँ की उम्र की लेडी, उनकी अम्मा बन सकती है, और मेरी दादी माँ! इसी कारण से मुझसे कम उम्र का आदमी मेरा पिता बन सकता है! मुझे यह कहने में कोई शर्म नहीं है! बल्कि गर्व है!”

“अमर... मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा और न ही सोचा! ... तुमको गर्व होना भी चाहिए!” फिर उसके गालों पर हलकी सी शर्म की लालिमा आ जाती है, “अगर मैं तुम्हारे घर आऊँगी तो बहुत लकी होऊँगी! मैं भी तुम्हारे ही जैसे माँ और दादी माँ का दूदू पियूँगी! उनका आशीर्वाद लूँगी! अपने से बड़ों की छत्रछाया में अपना संसार बसाने का सुख अलग ही है!”

“सच में रचना?”

“सच में अमर! आई लव यू इवन मोर... नाऊ दैट यू हैव टोल्ड मी अबाउट आल दिस!”

“थैंक यू सो मच रचना! बस... यही सब बताना था तुमको!”

“नहीं अमर! थैंक यू मुझ पर इतना भरोसा करने के लिए और यह सब बताने के लिए! इतना तो पता था कि यह प्यार का घर है, लेकिन अब समझ में आया कि क्यों! सच में! अगर मैं तुम्हारी बीवी बन सकी, तो आई विल बी वैरी लकी!”

दिल का बोझ उतर सा गया। बस मन में उम्मीद थी कि रचना भी अपने अतीत के बारे में मुझको बता देगी। कुछ देर इंतज़ार किया, तो रचना भी शुरू हो गई,

“अमर, तुमने मुझको सब बताया है, तो मैं भी कुछ नहीं छुपाऊँगी!” रचना ने एक लम्बा निःश्वास छोड़ते हुए कहा, “डैडी ने तुमको न जाने क्या क्या बताया होगा, लेकिन मेरे डिवोर्स में केवल वो ही गिल्टी पार्टी नहीं था... मेरा भी उतना ही दोष था, जितना उसका!”

मैं कुछ कहना चाहता लेकिन रचना ने टोक दिया, “प्लीज वेट अमर! यह सब तुमको किसी और से सुनने को मिले, उससे अच्छा है मुझसे सुन लो।”

“मुझको सेक्स करना अच्छा लगता है... मतलब बहुत पसंद है! ही वास अ वैरी बैड हस्बैंड... इवन वर्स फादर... समझ आ गया था बहुत पहले ही! लेकिन न जाने कैसे मैं उससे कई सालों तक अपना पीछा न छुड़ा सकी। ... अभी समझ में आता है... ही कंट्रोल्ड मी विद सेक्स! वो इस तरह से सेक्स करता था कि मैं सब भूल जाती थी... एक नशा जैसा था वो सब महसूस करना! कोकेन जैसा शायद! उसके साथ सेक्स की लत लग गई थी। ... वो चाहे कितना भी खराब आदमी क्यों न हो, उसके साथ सेक्स करना गज़ब का लगता था!”

वो कहीं और चली गई थी इस समय! अतीत में! कष्टमय अतीत में!

“मुझे उसके साथ कोई अच्छा नहीं लगता था। उसकी हर चीज़ से नफरत होने लगी थी। तो हमारा सेक्स भी एक तरह से रेप की तरह शुरू होता था। ... कभी कभी तो सास के सामने ही मुझे नोंचने लग जाता था वो! ... तुम्हारे जैसी लविंग फॅमिली हो, तो मुझे उनके सामने नंगी होने में शर्म न हो! ... कल दादी के सामने नंगी थी... लेकिन मुझे ऐसी वैसी फीलिंग नहीं आई! उनकी नज़र में मेरे लिए माँ वाला प्यार था... आई फ़ेल्ट... आई फ़ेल्ट प्रोटेक्टेड... सेफ़... अप्रीशिएटेड इवन! ... माँ के सामने भी वैसा था।”

फिर वो अचानक से अतीत से बाहर आई,

“लेकिन मेरी सास न जाने कैसी औरत थी... अपने जानवर जैसे लड़के से मुझे कभी नहीं बचाती थी। एक रात वो किसी और औरत से सेक्स कर के घर आया था। मैं बहुत गुस्से में थी। बच्ची बड़ी हो रही थी... उस पर कैसा खराब इफ़ेक्ट आएगा? सबसे बुरी बात यह थी कि उसकी माँ को मालूम था कि वो रंडीबाज़ी कर के आया है, लेकिन उसके मुँह से अपने बेटे के खिलाफ एक शब्द नहीं निकला। वहाँ तक भी ठीक है... लेकिन हद तब हो गई जब वो सास के सामने ही मुझे नोंचने लगा। मैं न न करती रह गई, लेकिन वो मुझे पूरी नंगी कर के मेरा रेप करने लगा... सास के सामने ही! मैं आँखों ही आँखों में उससे अपने बेटे को रोकने और समझाने की रिक्वेस्ट करती रही... लेकिन वो चुपचाप उठ कर चली गई।”

यह सब कहते कहते रचना की आँखों से आँसू आ गए,

“और मैं ऐसी कमज़ोर औरत हूँ कि मैं उसको रोक ही न सकी! न जाने क्या तरीका था उसके सेक्स करने का कि मैं फिर रुक ही न पाती! एक तरह से भीख माँगने लगती थी! पूरी रात वो मुझे... मेरे साथ सेक्स करता!”

अपने आँसू पोंछते हुए रचना बोली, “अगले दिन जब मैंने सास से शिकायत करी, तो वो बोली, ‘बहू, मज़ा तो तुमको खूब आता है... तभी तो पूरी रात करवाती हो! और अब मुझसे शिकायत कर रही हो कि मेरा बेटा खराब है! क्या खराबी है मेरे बेटे में? हैंडसम है... ताकत है उसमें... पूरी रात तुमको चोदता है... एक बच्ची दी है... तू ही गोलियाँ खा खा कर अगला बच्चा रोके हुए है!’ ... मतलब सब दोष मेरा था!”

उसकी नाक जम गई थी रोने के कारण, “फिर एक दिन मैंने कहा एनफ इस एनफ! इट इस नॉट वर्थ बाइंग ऐन एंटायर पिग फॉर अ लिटिल सॉसेज! मैंने नीलू को साथ लिया, और उस जगह से मम्मी डैडी के साथ रहने आ गई!”

हम दोनों बहुत देर तक कुछ नहीं बोले। फिर रचना ने ही कहा,

“मुझे नहीं लगता था कि वो दोनों मेरा साथ देंगे! लेकिन उन्होंने सब समझा और मुझे और नीलू को सपोर्ट किया। फिर मुझे जब तलाक़ मिला, तब जा कर मुझे फ्रीडम का एहसास हुआ!”

मैंने कुछ देर रचना का हाथ पकड़ कर उसको स्वांत्वना दी, और फिर कहा, “तुमको मेरे साथ कैसा लगता है रचना?”

“घर जैसा अमर! ... काश मैं घर में झगड़ा कर लेती कि मुझे तुम्हारे साथ ही शादी करनी है!” फिर एक गहरी साँस भर के, “... घर जैसा लगता है अमर! ... माँ ने तो मुझे हमेशा ही प्यार किया! दैट्स व्हाट इस मिसिंग फ्रॉम माय लाइफ! प्यार ही नहीं मिला कभी। ... इतनी उम्र हो गई, प्यार ही नहीं मिला। मिला तो शायद बस माँ से मिला। ... उससे याद आया, तुमने अभी तक माँ का नंबर नहीं दिया! उनको तो कई बातों के लिए बधाई देनी है अब तो!”

उसने कहा और फिर अचानक ही रोने लगी, “अमर... तुम बहुत लकी हो!”

मैं उसको बहुत देर तक समझाता और सम्हालता रहा। जब वो शांत हो गई तो मैंने कहा,

“हे रचना! मत दुखी होवो! दादी माँ को तुम पसंद हो! मुझे भी! हम कुछ दिन डेट कर लेते हैं, फिर शादी कर लेंगे? ओके?”

वो मुस्कुराते हुए हँसने लगी, “चार दिन में मेरा बर्थडे है!”

“ओह वाओ! घर आ जाओ? वहीं मनाते हैं तुम्हारा बर्थडे? पूरे दिन बर्थ-सूट में रहना!”

“अपनी बेटी के सामने?”

“हाँ! अपनी दो बेटियों के सामने रह तो ली हो, अब नीलू के सामने भी रह लेना!”

“पक्का अमर? आई विल कम!”

“पक्का रचना! लेट्स सेलिब्रेट योर बर्थडे!”

“ओह थैंक यू अमर, थैंक यू सो मच!” कह कर रचना मुझसे लिपट कर मुझे कई बार चूमने लगी।

फिर जब हम कैफ़े से बाहर निकलने वाले थे, मैंने रचना से कहा,

“रचना... मुझे नीलू से मिलना है! फादर डॉटर डेट!”

“हा हा! शी हैस अ क्रश ऑन यू!” वो हँसते हुए बोली, “जब से तुम पहली बार हमारे घर आये हो न, तब से!”

“व्हाट!”

“हाँ! तुम हो ही ऐसे, अमर!” वो मुस्कुराती हुई बोली, “मदर एंड डॉटर फॉलिंग फॉर द सेम मैन!”

“बेटी है वो मेरी काजल!”

“वो तुम्हारा बड़प्पन है अमर! नीलू बहुत लकी है कि उसको तुम जैसा डैड और रोल मॉडल मिलेगा!”

मैं मुस्कुराया।

“कल शाम को आ जाना! नहीं तो यहीं, स्कूल से लेते जाना उसको।” वो बहुत खुश थी।

“यू विल बी ओके?”

“अरे अगर न ओके होती, तो यह सब कहती? ले जाओ उसको... और मुझको भी! हम दोनों को अपनी शरण में ले लो!”

रचना!”

“आई लव यू!” वो स्निग्ध मुस्कान के साथ बोली।

“आई लव यू टू!”

**
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अंतराल - समृद्धि - Update #16


सवेरे मैंने रचना को एक मैसेज भेजा कि अगर वो उठी हुई हो तो मुझे कॉल कर ले।

लगभग तुरंत ही उसका कॉल आ गया।

गुड मॉर्निंग, हैंडसम!” मैंने जैसे ही उसके कॉल का उत्तर दिया वो बोली, “इतने सवेरे सवेरे इस कनीज़ को याद किया?”

उसके कहने का अंदाज़ ऐसा ख़नकदार था कि मन से ले कर शरीर में एक मीठी सी तरंग दौड़ गई, ‘प्रभु! क्या सच में रचना के साथ मेरा भविष्य लिखा हुआ है?’ मेरे मन में यह विचार आए बिना न रह सका।

“ऐसे मत बोलो रचना! तुम तो सचमुच की शाहज़ादी हो!”

“अरे अरे! सिंह साहब, आज तो बड़े रोमांटिक मूड में उठे हैं आप?”

“हा हा! अच्छा यार सुनो - एस मच एस आई वुड लाइक टू डू रोमांटिक टॉक्स राइट नाउ, एक बहुत ज़रूरी बात करनी है तुमसे!”

“हाँ तो करो न?”

“ऐसे नहीं! फ़ोन पर नहीं। ... कहीं मिल कर?”

“आज कल स्कूल में बहुत काम नहीं है... दो बजे आ जाओ मेरे स्कूल?”

“तुमको पिक कर लूँ?”

“हाँ! इतना क्या सोचना?”

“बहुत ज़रूरी बात है रचना! तुम्हारा मेरे बारे में सब कुछ जानना ज़रूरी है! बेहद ज़रूरी! मैं नहीं चाहता कि हम कुछ छुपा कर रखें!”

“क्या हो गया अमर? सब ठीक है न?”

“हाँ सब ठीक है! लेकिन वो सब मिल कर बताऊँगा! दो बजे?”

“दो बजे!” रचना की आवाज़ में अनिश्चय साफ़ सुनाई दे रहा था।

**

ऑफिस में मन नहीं लगा। पूरे समय मैं यही सोचता रहा कि मेरे परिवार के खुलासे पर रचना न जाने क्या सोचे! कुछ भी कह लो - मन तो मेरा लग गया था रचना से। आज से नहीं लगा हुआ था - एक तरह से वो मेरी ओल्ड फ्लेम थी! इसलिए सोच रहा था कि काश वो समझ सके मेरी और मेरे परिवार की परिस्थितियाँ! समझ सके, और स्वीकार सके, और हो सके, तो उसका आदर कर सके।

मेरे ऑफिस से उसके स्कूल जाने में एक घंटा लगता था। तो मैं समय पर निकल लिया। लंच नहीं किया - सोचा कि अगर सब ठीक रहा तो रचना के साथ ही खाना पीना हो जाएगा। उसके स्कूल के गेट पर पहुँचा तो देखा कि वो गेट पर ही खड़ी थी, और मेरी राह देख रही थी। संतरी पीले रंग की साड़ी में उसका हुस्न ऐसा गज़ब का लग रहा था कि उसको बयान नहीं किया जा सकता। उसके बगल ही नीलू भी खड़ी थी, और मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी। आज उसका व्यवहार पहले वाले दिन की अपेक्षा बेहतर था। हाँ, वो भी तो उसी स्कूल में पढ़ती थी। शिक्षिका की बेटी होने के कारण उसकी फीस में डिस्काउंट भी मिलता था। लेकिन जो बात मुझे कहनी थी वो नीलू के सामने नहीं हो सकती थी। मुझको देखते ही रचना के चेहरे पर हज़ार वाट की मुस्कान दौड़ गई।

“हाय!” वो बोली।

“हेलो!” मैंने भी उतनी ही गर्मजोशी से मुस्कुराते हुए उसका अभिवादन किया।

“हाय अंकल!”

“हेलो बेटा! हाउ आर यू? गुड डे एट स्कूल?”

इट वास ऑलराइट!”

“रचना, आई वास होपिंग दैट ओन्ली यू एंड आई टॉक टुडे!” फिर मैंने नीलू को देखते हुए कहा, “आई होप यू डोंट माइंड बेटा!”

नॉट ऐट आल अंकल!”

“हाँ! आई नो। नीलू घर चली जाएगी अपने से! शी स्टेड बैक टू से हेलो टू यू!”

“बाय अंकल!” नीलू समझ गई कि उसके जाने का समय हो गया।

हे, आई कैन ड्राप यू एट होम, बेटा !”

“नो अंकल! थैंक यू। आई विल गो विद माय फ्रेंड! शी इस आवर नेबर!”

आर यू श्योर?”

“यस अंकल! बाय!”

“बाय बेटा!”

रचना मुस्कुराते हुए गाड़ी में मेरे बगल आ कर बैठ गई। मुस्कुरा रही थी, लेकिन अंदर से वो भी चिंतित ही लग रही थी।

“कॉफ़ी?”

“ओके!”

मैं उसके साथ अपने पहचान की एक कॉफ़ी शॉप में गया। बढ़िया फ़िल्टर कॉफ़ी बनाता था। मुझे देखते ही उसने जल्दी से हमारे बैठने की व्यवस्था कर दी, और बिना कुछ कहे कॉफ़ी बनाने में लग गया।

“हाँ, अब कहो! क्या हो गया? ... क्या कहना था, जो तुमको इतना साल रहा है?” रचना ने बड़े चिंतित सुर में पूछा।

“रचना... आई नीड टू टेल यू अबाउट अस... आई मीन... माय फॅमिली...”

“ओके?”

उसको लगा होगा कि ऐसा क्या बताना है मुझे अपने परिवार के बारे में जो मैं इतनी भूमिका बाँध रहा हूँ।

“प्लीज़ थोड़ा आराम से सुनना... और सब सुन लेना... फिर जो कहोगी, मैं सब मान लूँगा!”

“अमर... यार... हम दोनों बचपन के दोस्त हैं! बिलीव मी... तुम जो कहोगे, मैं सब सुनूँगी! हम कुछ बने या न बने, लेकिन हम दोस्त तो हैं! ओके! बोलो अब! डोंट वरी!”

“ओके,” मैंने नर्वस हो कर मुस्कुराया, “तुमको डैड के बारे में तो मालूम ही होगा?”

“हाँ! आई ऍम सो सॉरी! मैंने कुछ कहा नहीं कि पुरानी बात कुरेदने से शायद तुमको दुःख हो।”

“थैंक्स! ... एंड डोंट वरी! ... डैड... की... डेथ... के बाद... माँ बहुत अकेली हो गई थीं।”

रचना ने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“उनको डिप्रेशन हो गया था। सीवियर नहीं, लेकिन उसी तरफ़ जा रही थीं। ... ऐसे में... उनको सहारा मिला... तो... तो उन्होंने दूसरी शादी कर ली!”

“ओह वाओ! दैट्स वैरी गुड!” वो चहकते हुए बोली, फिर अचानक ही शिकायत भरे स्वर में, “... तुम कैसे बन्दर हो! तुमको लगा कि मैं इस बात से तुमसे बुरा मान जाऊँगी? माँ इतनी कम उम्र हैं! ... शायद काजल दीदी की ही उम्र की होंगी! उनको शादी करनी ही चाहिए थी! आई ऍम सो हैप्पी! ... इस शी गुड! वो अच्छी हैं? हैप्पी हैं?”

“हाँ,” मैं रचना की प्रतिक्रिया पर मुस्कुराया, “शी इस वैरी हैप्पी!”

“कब हुई उनकी शादी?”

“करीब पाँच साल हो गए!”

“वाओ! गुड!” वो मुस्कुराई, और फिर थोड़ा शरारती अंदाज़ में बोली, “उनको बेबीज़ हुए?”

“हा हा! हाँ! अरे यार तुम ऐसे बीच बीच में टोंकती रहोगी तो मैं सब बातें कैसे बताऊँगा?”

“बच्चे हुए हैं?” रचना मेरी आपत्ति को नज़रअंदाज़ करते हुए बोली, “वाओ वाओ! कॉन्ग्रैचुलेशन्स! सब बताओ जल्दी से!”
“माँ को दो लड़के हुए हैं - पहला वाला चार साल का है, और दूसरा वाला दो का! ... एंड शी इस एक्सपेक्टिंग अगेन!”

“सच में? ग्रेट! आई ऍम सो हैप्पी अमर! पता है? माँ को और बच्चे चाहिए थे। एक बार उन्होंने मुझको कहा था कि उनकी और बच्चों की इच्छा थी! आई ऍम सो हैप्पी कि उनकी इच्छा पूरी हो गई! उनका नंबर देना! आई विल कॉल हर एंड कोन्ग्रेचुलेट हर!”

फिर थोड़ा ठहर कर, “उनकी ये वाली प्रेग्नेंसी ठीक है? थोड़ा एडवांस ऐज है न उनकी, इसलिए पूछ रही हूँ!”

“हाँ! वो ठीक हैं। एक्चुअली काफी अच्छी हैं! उनकी डॉक्टर कहती है कि वो ऐज के हिसाब से बहुत ही हेल्दी हैं। ... सच तो यह है कि कभी कभी तो मैं ही उनसे बड़ा लगता हूँ।”

“हाँ, तुम चिंता बहुत करते हो न! देखो, इतनी ब्यूटीफुल न्यूज़ सुनाने के लिए तुम मेरे रिएक्शन को ले कर वरी कर रहे थे! स्टुपिड हो पूरे!” रचना खिलखिला कर हँसने लगी, “आई ऍम सो हैप्पी! ... लेकिन इन सब बच्चों के कारण मेरा पत्ता कट गया!”

“अरे वो क्यों?”

“माँ की बेटी का रोल मिल रहा था... वो गया!”

“हा हा! नहीं गया! माँ विल लव टू सी यू!” मैं फिर से थोड़ा गंभीर हो गया, “लेकिन मेरी बात ख़तम नहीं हुई!”

“हाँ हाँ! बोलो बोलो!”

“ये काजल हैं न...”

“हाँ, व्हाट अबाउट हर?”

“ये सबसे पहले मुझसे मिलीं थीं कोई तेरह साल पहले! ... मेरा घर सम्हालती थीं [अब दादी माँ के लिए कामवाली या नौकरानी जैसे शब्द मेरे मुँह से निकल ही नहीं सकते थे] ... मेरा खाना पीना, रहना सहना... घर की सारी व्यवस्था वो ही देखती थीं!”

शायद रचना को मेरी दुविधा समझ आ गई और मेरी बात भी। लिहाज़ा, उसने केवल ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“सम्हाला उन्होंने मुझे एक गार्जियन की तरह! ज़िन्दगी में ठहराव दिया! माँ डैड की एब्सेंस में प्यार दिया... फिर... फिर बहुत से चेंजेस आए लाइफ में... गैबी आई... फिर... देवयानी आई... इस बीच काजल अपने दोनों बच्चों के साथ माँ और डैड के साथ रहने लगीं! वहीं - हमारा घर! ... तो हमारे परिवार का हिस्सा वो इस तरह से बनीं! ... माँ डैड ने उनको और उनके दोनों बच्चों को, अपने बच्चों जैसा ही मान दे कर अपने पास रखा। फिर सुनील... काजल का बड़ा लड़का... उनका आई आई टी में सिलेक्शन हो गया। उसके बाद कुछ समय के लिए काजल को भी अपने पुश्तैनी गाँव जाना पड़ा।”

मेरी आँखों और चेहरे पर पीड़ा वाले भाव आ गए, “आभा हुई हमको... फिर डेवी को कैंसर हो गया... उसके कुछ ही समय बाद डैड भी चल बसे! लाइफ एकदम से पटरी से उतर कर खड्डे में गिरने लगी! बिज़नेस को सम्हालना... माँ को सम्हालना... आभा को सम्हालना... यह सब कुछ इतना मुश्किल हो गया था मेरे लिए, कि मैंने काजल को फिर से याद किया! ... और किसी तारणहार की तरह वो दौड़ी चली आईं... फिर से हम सब को सहारा देने! आभा को माँ का प्यार दिया उन्होंने... आभा देवयानी नहीं, काजल का दूध पी कर बड़ी हुई है! उन्होंने माँ को सहेली का भरोसा और दिलासा भी दिया!”

रचना का चेहरा भी उदास हो गया, लेकिन उसने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया। इस बार उसने टोका नहीं। वो जानती थी कि यह स्मृतियाँ पीड़ादायक हैं, इसलिए उनका बाहर आ जाना ठीक है।

“तब तक सुनील का फोर्थ ईयर पूरा हो गया था, तो वो यहाँ आ गए कि हम सबके साथ रहेंगे, अपनी जॉब ज्वाइन करने से पहले। उनके आने से हम सबको एक नया उल्लास सा मिला। ख़ास तौर पर माँ को...”

मैंने एक लम्बी साँस ली और छोड़ी, “यू नो... माँ को... उनके डिप्रेशन में... सहारा देने वाले... सुनील ही हैं!”

मेरी इस बात का खुलासा होते ही रचना की आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गईं!

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाते हुए कहना जारी रखा, “बचपन से ही उनको माँ से प्यार हो गया था... सुन कर लगता है कि कोई फ़ॅन्टसी बता रहा हूँ! बट ही ऑलवेज लव्ड हर! ... तो उन्होंने माँ को प्रोपोज़ किया... और थोड़ा हिचकिचाने के बाद माँ ने मान भी लिया। सबसे बड़ी बात रही काजल की दरियादिली की! शी मेड श्योर कि माँ इस रिश्ते को ले कर जितना हो सके, उतना कम्फर्टेबल हो सकें! उनको खुले दिल से, बिना किसी पूर्वाग्रह के... अपनी बहू के रूप में अपनाया! माँ के मन में बहुत से डॉउट्स थे, बहुत से असमंजस भी... शर्म भी खूब थी, और झिझक भी... लेकिन काजल ने उनको समझाया और सही दिशा दिखाई... पहले दिन से काजल ने माँ को अपनी बहू नहीं, बेटी जैसा दुलार किया!”

मेरी बात पर रचना को काजल की बात याद हो आई। उसके होंठों से कोई आवाज़ तो नहीं आई, लेकिन ‘वाओ’ जैसा शब्द बनता हुआ अवश्य दिखा। मैं एक क्षण को रुका।

रचना बोली, “तो... तो मतलब... माँ के हस्बैंड... उनसे कोई...”

“हाँ... बाइस साल छोटे हैं!”

“बाप रे!” मुझे लगा कि रचना कोई ऐसी वैसी बात बोलेगी, लेकिन उसने कहा, “कितना मुश्किल हुआ होगा न माँ को?”

“किस बात के लिए?”

“किस बात के लिए? अरे बुद्धू हो पूरे तुम! किसी लेडी के लिए अपने बेटे जैसे लड़के से शादी करना... और... और... वो सब करना जो... हस्बैंड एंड वाइफ करते हैं... यह सब आसान थोड़े ही होता है!”

“हाँ... आसान तो नहीं होता! लेकिन काजल ने सब आसान कर दिया!”

“कैसे?”

“जब उनको मालूम हुआ कि सुनील को माँ पसंद हैं, तो पहले तो उन्होंने अपने बेटे को समझाया कि माँ उनके लिए बिलकुल सही चॉइस हैं, और उनको इनकरेज किया कि वो जितना जल्दी हो सके, माँ को प्रोपोज़ कर दें। देर करने से कोई बेनिफिट नहीं! और जब सुनील ने माँ को प्रोपोज़ कर दिया, तो उसके बाद, उन्होंने माँ को इस तरह से प्यार से समझाया और अपनाया कि माँ ने बिना अधिक हील हुज्जत के शादी के लिए हाँ कर दी!”

शी इस अमेजिंग!” रचना ने कहा, “ग्रेट वुमन काजल इस... तो क्या वो सच में माँ को ब्रेस्टफीड...?”

“हाँ न! इसीलिए वो इस घर की मुखिया हैं! सबसे बड़ी! मेरा मतलब... पद में सबसे बड़ी! माँ उनको अम्मा कहती हैं। ... मैं भी! लेकिन जहाँ वो माँ की सास हैं, वहाँ मैं उनको दादी माँ का सम्मान देता हूँ!”

शी डिज़र्व्स इट अमर!” रचना ने इतनी सादगी से यह बात कही कि मुझे विश्वास ही नहीं हुआ, “... और... तुम और माँ के हस्बैंड? तुम दोनों के बीच कैसा है सब?”

“बाप बेटे वाला!”

“सही में?”

“हाँ! मैं उनको पापा कहता हूँ, और मानता भी हूँ!”

“ओह गॉड! आई होप यू आर ओके डूइंग इट!” रचना सोचते हुए बोली, “वो तुमसे छोटे भी तो हैं न?”

“हाँ! साढ़े सात साल... लेकिन... वो मुझे बेटे जैसा ही प्यार करते हैं! मुझको अपना बड़ा बेटा कहते हैं! ही हैस बीन अ ग्रेट हस्बैंड फॉर माँ! इसलिए मैं भी उनको पापा कहता हूँ और मानता भी हूँ!”

“लेकिन... अंकल? आई मीन योर फादर?”

“रचना... आई ऍम प्राउड ऑफ़ बींग डैड्स सन! ... लेकिन मैं उनका बेटा होने के साथ साथ पापा का भी बेटा हूँ! मुझे उस सच्चाई से कोई शर्म नहीं! इन फैक्ट, आई ऍम प्राउड ऑफ़ बींग पापाज़ सन ऐस वेल! दोनों ही केस में माँ तो एक ही है न!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा!

“वाओ! अमर... आई ऍम वैरी हैप्पी एंड प्राउड ऑफ़ यू दैट यू थिंक लाइक दैट!”

“थैंक यू रचना!”

फिर जैसे उसको अचानक ही कोई ज्ञानबोध हुआ हो, “तो... ओह गॉड! काजल दीदी इस नॉट दीदी!”

मैंने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया।

शी इस दादी जी? एंड... लतिका इस योर बुआ?”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया!

“हा हा! ओह गॉड! मैं उसको कल अपनी बेटी बना ली!”

“इट्स ओके! बेटी ही है वो!”

“हा हा! ओके। सो, काजल आई मीन दादी जी... एंड माँ एंड पापा? शुड आई कॉल हिम पापा?”

“मैं तो उनको पापा ही कहता हूँ!”

ओके! सो पापा! वाओ! माय ससुर जी इस नाइन इयर्स यंगर टू मी! हा हा हा!! मेरा तो बड़ा सा ससुराल होने वाला है अमर! हा हा! सोच रही थी कि नुक्लिअर फैमिली में जा रही हूँ! लेकिन ये तो कुछ अधिक ही काम्प्लेक्स जॉइंट फैमिली है!”

मैंने कुछ कहा नहीं; बस मुस्कुराया। रचना ने इस पूरी बात को मेरी उम्मीद से कहीं अच्छी तरह से सुना और माना।

सो यू हैव टू यंगर ब्रदर्स, एंड वन मोर इस ऑन द वे!”

“हाँ!”

वेट अ मिनट... कल जब तुम कह रहे थे कि... न तो माँ ने, और न ही पापा ने कभी तुमको माँ का दूध पीने से रोका - तो वो ये वाले पापा हैं?”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “उनके ही एनकरेजमेंट से ही तो मैंने फिर से शुरू किया है माँ का दूध पीना!”

“व्होओओ! तो तुम उनके सामने न्यूड न्यूड जाते हो?”

“कोई कम्पल्शन नहीं है! लेकिन हाँ, अगर मन हो, तो इस घर के बच्चे कपड़े नहीं पहनते! नेकेड ही रहते हैं!” फिर थोड़ा ठहर कर, “लेकिन हाँ, जब भी हम बच्चे अपनी माँओं का दूध पीते हैं, तो हम अक्सर न्यूड ही रहते हैं! पहने रहो, तो माँ लोग उतार देती हैं!”

“हा हा! यार! दिस आल इस सो अनबिलिवेबल! बट आई नो यू एंड योर फॅमिली! ... एक बात बताओ... तुमको प्रॉब्लम नहीं होती कोई? आई मीन... इरेक्शन?”

“नहीं! अपनी माँ के सामने कैसे होगा?” मैंने झेंपते हुए कहा।

“हाँ वो भी है!” फिर कुछ सोचते हुए, “ओह... अब समझी! तो इसीलिए कल काजल... ओह आई मीन, दादी माँ मुझे फ्री हो कर रहने को कह रही थीं!” फिर कुछ सोच कर, और मुस्कुराते हुए, “उनका भी दूध पीते हो?”

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“वाओ! वीमेन इन योर होम आर गॉडेसेस!” वो सोच में पड़ गई, फिर कुछ क्षणों के बाद बोली, “और कुछ बताना है?”

“नहीं! ऐसा तो कुछ और ख़ास नहीं! दादी माँ के हस्बैंड मुंबई में रहते हैं। उनका बेकरी का बिज़नेस है।”

“उनको दादा जी नहीं बुलाते?”

“नहीं! ... बहुत अधिक बार मिलना नहीं होता। मिलते भी हैं, तो मैं उनको नाम से ही बुलाता हूँ!” फिर मैंने ठहर कर और सोच कर कहा, “रचना... प्लीज़ अंडरस्टैंड! हमारे घर में रिश्ते... प्यार के रिश्ते हैं! काजल... मेरी माँ की ‘अम्मा’ और मेरी ‘दादी माँ’ इसलिए बन सकीं, क्योंकि उन्होंने हमको बहुत प्यार दिया है! जेनुईन लव! यह सब... ये रिश्ते... उनके नाम... यह सब इसलिए हैं क्योंकि मैं... हम... उस प्यार को कोई नाम दे कर बुलाना चाहते हैं! बहुत सिंपल है यह! बस यही कारण है कि मेरी माँ की उम्र की लेडी, उनकी अम्मा बन सकती है, और मेरी दादी माँ! इसी कारण से मुझसे कम उम्र का आदमी मेरा पिता बन सकता है! मुझे यह कहने में कोई शर्म नहीं है! बल्कि गर्व है!”

“अमर... मैंने ऐसा कुछ नहीं कहा और न ही सोचा! ... तुमको गर्व होना भी चाहिए!” फिर उसके गालों पर हलकी सी शर्म की लालिमा आ जाती है, “अगर मैं तुम्हारे घर आऊँगी तो बहुत लकी होऊँगी! मैं भी तुम्हारे ही जैसे माँ और दादी माँ का दूदू पियूँगी! उनका आशीर्वाद लूँगी! अपने से बड़ों की छत्रछाया में अपना संसार बसाने का सुख अलग ही है!”

“सच में रचना?”

“सच में अमर! आई लव यू इवन मोर... नाऊ दैट यू हैव टोल्ड मी अबाउट आल दिस!”

“थैंक यू सो मच रचना! बस... यही सब बताना था तुमको!”

“नहीं अमर! थैंक यू मुझ पर इतना भरोसा करने के लिए और यह सब बताने के लिए! इतना तो पता था कि यह प्यार का घर है, लेकिन अब समझ में आया कि क्यों! सच में! अगर मैं तुम्हारी बीवी बन सकी, तो आई विल बी वैरी लकी!”

दिल का बोझ उतर सा गया। बस मन में उम्मीद थी कि रचना भी अपने अतीत के बारे में मुझको बता देगी। कुछ देर इंतज़ार किया, तो रचना भी शुरू हो गई,

“अमर, तुमने मुझको सब बताया है, तो मैं भी कुछ नहीं छुपाऊँगी!” रचना ने एक लम्बा निःश्वास छोड़ते हुए कहा, “डैडी ने तुमको न जाने क्या क्या बताया होगा, लेकिन मेरे डिवोर्स में केवल वो ही गिल्टी पार्टी नहीं था... मेरा भी उतना ही दोष था, जितना उसका!”

मैं कुछ कहना चाहता लेकिन रचना ने टोक दिया, “प्लीज वेट अमर! यह सब तुमको किसी और से सुनने को मिले, उससे अच्छा है मुझसे सुन लो।”

“मुझको सेक्स करना अच्छा लगता है... मतलब बहुत पसंद है! ही वास अ वैरी बैड हस्बैंड... इवन वर्स फादर... समझ आ गया था बहुत पहले ही! लेकिन न जाने कैसे मैं उससे कई सालों तक अपना पीछा न छुड़ा सकी। ... अभी समझ में आता है... ही कंट्रोल्ड मी विद सेक्स! वो इस तरह से सेक्स करता था कि मैं सब भूल जाती थी... एक नशा जैसा था वो सब महसूस करना! कोकेन जैसा शायद! उसके साथ सेक्स की लत लग गई थी। ... वो चाहे कितना भी खराब आदमी क्यों न हो, उसके साथ सेक्स करना गज़ब का लगता था!”

वो कहीं और चली गई थी इस समय! अतीत में! कष्टमय अतीत में!

“मुझे उसके साथ कोई अच्छा नहीं लगता था। उसकी हर चीज़ से नफरत होने लगी थी। तो हमारा सेक्स भी एक तरह से रेप की तरह शुरू होता था। ... कभी कभी तो सास के सामने ही मुझे नोंचने लग जाता था वो! ... तुम्हारे जैसी लविंग फॅमिली हो, तो मुझे उनके सामने नंगी होने में शर्म न हो! ... कल दादी के सामने नंगी थी... लेकिन मुझे ऐसी वैसी फीलिंग नहीं आई! उनकी नज़र में मेरे लिए माँ वाला प्यार था... आई फ़ेल्ट... आई फ़ेल्ट प्रोटेक्टेड... सेफ़... अप्रीशिएटेड इवन! ... माँ के सामने भी वैसा था।”

फिर वो अचानक से अतीत से बाहर आई,

“लेकिन मेरी सास न जाने कैसी औरत थी... अपने जानवर जैसे लड़के से मुझे कभी नहीं बचाती थी। एक रात वो किसी और औरत से सेक्स कर के घर आया था। मैं बहुत गुस्से में थी। बच्ची बड़ी हो रही थी... उस पर कैसा खराब इफ़ेक्ट आएगा? सबसे बुरी बात यह थी कि उसकी माँ को मालूम था कि वो रंडीबाज़ी कर के आया है, लेकिन उसके मुँह से अपने बेटे के खिलाफ एक शब्द नहीं निकला। वहाँ तक भी ठीक है... लेकिन हद तब हो गई जब वो सास के सामने ही मुझे नोंचने लगा। मैं न न करती रह गई, लेकिन वो मुझे पूरी नंगी कर के मेरा रेप करने लगा... सास के सामने ही! मैं आँखों ही आँखों में उससे अपने बेटे को रोकने और समझाने की रिक्वेस्ट करती रही... लेकिन वो चुपचाप उठ कर चली गई।”

यह सब कहते कहते रचना की आँखों से आँसू आ गए,

“और मैं ऐसी कमज़ोर औरत हूँ कि मैं उसको रोक ही न सकी! न जाने क्या तरीका था उसके सेक्स करने का कि मैं फिर रुक ही न पाती! एक तरह से भीख माँगने लगती थी! पूरी रात वो मुझे... मेरे साथ सेक्स करता!”

अपने आँसू पोंछते हुए रचना बोली, “अगले दिन जब मैंने सास से शिकायत करी, तो वो बोली, ‘बहू, मज़ा तो तुमको खूब आता है... तभी तो पूरी रात करवाती हो! और अब मुझसे शिकायत कर रही हो कि मेरा बेटा खराब है! क्या खराबी है मेरे बेटे में? हैंडसम है... ताकत है उसमें... पूरी रात तुमको चोदता है... एक बच्ची दी है... तू ही गोलियाँ खा खा कर अगला बच्चा रोके हुए है!’ ... मतलब सब दोष मेरा था!”

उसकी नाक जम गई थी रोने के कारण, “फिर एक दिन मैंने कहा एनफ इस एनफ! इट इस नॉट वर्थ बाइंग ऐन एंटायर पिग फॉर अ लिटिल सॉसेज! मैंने नीलू को साथ लिया, और उस जगह से मम्मी डैडी के साथ रहने आ गई!”

हम दोनों बहुत देर तक कुछ नहीं बोले। फिर रचना ने ही कहा,

“मुझे नहीं लगता था कि वो दोनों मेरा साथ देंगे! लेकिन उन्होंने सब समझा और मुझे और नीलू को सपोर्ट किया। फिर मुझे जब तलाक़ मिला, तब जा कर मुझे फ्रीडम का एहसास हुआ!”

मैंने कुछ देर रचना का हाथ पकड़ कर उसको स्वांत्वना दी, और फिर कहा, “तुमको मेरे साथ कैसा लगता है रचना?”

“घर जैसा अमर! ... काश मैं घर में झगड़ा कर लेती कि मुझे तुम्हारे साथ ही शादी करनी है!” फिर एक गहरी साँस भर के, “... घर जैसा लगता है अमर! ... माँ ने तो मुझे हमेशा ही प्यार किया! दैट्स व्हाट इस मिसिंग फ्रॉम माय लाइफ! प्यार ही नहीं मिला कभी। ... इतनी उम्र हो गई, प्यार ही नहीं मिला। मिला तो शायद बस माँ से मिला। ... उससे याद आया, तुमने अभी तक माँ का नंबर नहीं दिया! उनको तो कई बातों के लिए बधाई देनी है अब तो!”

उसने कहा और फिर अचानक ही रोने लगी, “अमर... तुम बहुत लकी हो!”

मैं उसको बहुत देर तक समझाता और सम्हालता रहा। जब वो शांत हो गई तो मैंने कहा,

“हे रचना! मत दुखी होवो! दादी माँ को तुम पसंद हो! मुझे भी! हम कुछ दिन डेट कर लेते हैं, फिर शादी कर लेंगे? ओके?”

वो मुस्कुराते हुए हँसने लगी, “चार दिन में मेरा बर्थडे है!”

“ओह वाओ! घर आ जाओ? वहीं मनाते हैं तुम्हारा बर्थडे? पूरे दिन बर्थ-सूट में रहना!”

“अपनी बेटी के सामने?”

“हाँ! अपनी दो बेटियों के सामने रह तो ली हो, अब नीलू के सामने भी रह लेना!”

“पक्का अमर? आई विल कम!”

“पक्का रचना! लेट्स सेलिब्रेट योर बर्थडे!”

“ओह थैंक यू अमर, थैंक यू सो मच!” कह कर रचना मुझसे लिपट कर मुझे कई बार चूमने लगी।

फिर जब हम कैफ़े से बाहर निकलने वाले थे, मैंने रचना से कहा,

“रचना... मुझे नीलू से मिलना है! फादर डॉटर डेट!”

“हा हा! शी हैस अ क्रश ऑन यू!” वो हँसते हुए बोली, “जब से तुम पहली बार हमारे घर आये हो न, तब से!”

“व्हाट!”

“हाँ! तुम हो ही ऐसे, अमर!” वो मुस्कुराती हुई बोली, “मदर एंड डॉटर फॉलिंग फॉर द सेम मैन!”

“बेटी है वो मेरी काजल!”

“वो तुम्हारा बड़प्पन है अमर! नीलू बहुत लकी है कि उसको तुम जैसा डैड और रोल मॉडल मिलेगा!”

मैं मुस्कुराया।

“कल शाम को आ जाना! नहीं तो यहीं, स्कूल से लेते जाना उसको।” वो बहुत खुश थी।

“यू विल बी ओके?”

“अरे अगर न ओके होती, तो यह सब कहती? ले जाओ उसको... और मुझको भी! हम दोनों को अपनी शरण में ले लो!”

रचना!”

“आई लव यू!” वो स्निग्ध मुस्कान के साथ बोली।

“आई लव यू टू!”

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चलिए जो सबसे बड़ा डर था सबके मन में वो तो दूर हुआ। आशा है आगे अब सब सही ही रहेगा अमर की जिंदगी में।
 
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