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मन्नू भंडारी की कहानी की बात तो नही कर रहे आप?जहां तक मेरा ख्याल है , औरत अपने सौतेले संतान को सहर्ष स्वीकार कर लेती है लेकिन मर्द को अपनी पत्नि से उत्पन्न सौतेले पुत्र को स्वीकार करने मे छक्के छुट जाते है।
बहुत साल पहले एक उपन्यास पढ़ा था। एक विधुर की शादी एक विधवा से होती है। दोनो को ही अपने अपने पुर्व हसबैंड / वाइफ से एक एक संतान था। विधुर एक लड़की का पिता था और विधवा एक लड़के का।
पति पत्नि मे प्रेम बहुत अधिक था लेकिन प्रॉब्लम यह था कि औरत अपने हसबैंड के लड़की को तो स्वीकार कर ली और उसे मां की ममता प्रेम सबकुछ तहेदिल से दी पर मर्द अपनी पत्नि के पुत्र को दिल से स्वीकार न कर पाया।
छोटी छोटी बात पर लड़के को फटकार देता। जलील कर देता और उसकी पत्नि सबकुछ देखकर भी कुछ न कर पाती। क्योकि हमारे धर्म मे पति का स्थान पुत्र से कहीं बहुत ऊपर है। पति परमेश्वर होता है , भले ही वो लाख गलत हो।
कहानी के अंत मे लड़के की मौत हो जाती है और तब मर्द को एहसास होता है कि उसने क्या कर दिया !
बहुत ही दर्दनाक और इमोशनल कहानी थी।
( इस विषय पर एक कहानी लिखने का विचार आया था मुझे लेकिन चूंकि कहानी मे छोटे लड़के का रोल अधिक था और फोरम पर यह मान्य नही है इसलिए कैंसल कर दिया)
लेकिन यह सब एक कहानी था। रियलिटी नही। लेकिन इस बात से हम इंकार नही कर सकते कि औरत का दिल मर्द के तुलना मे ज्यादा संवेदनशील होता है। और यह भी कि मर्द को अपना संतान सबसे अधिक प्यारा होता है।
यह सब इसलिए कहा कि अमर और रचना को भी अपने अपने पुर्व हसबैंड/ वाइफ से एक एक संतान है।
रचना की भाव भंगिमा और बात व्यवहार से लगता नही कि वो अमर के लिए किसी भी एंगल से खराब पत्नि साबित होगी।
उसकी उम्र भी कोई अधिक नही है। सिर्फ सुमन , काजल और रचना ही नही , रियल लाइफ मे कई महिलाए मिल जायेंगी जिन्हने उम्र के तीसरे या चौथे पड़ाव मे भी शादी के बंधन मे बंधी है।
फिलहाल सिर्फ एक एग्जाम्पल दे रहा हूं , प्रीति सप्रू का। बालीवुड और पंजाबी फिल्म की प्रख्यात अभिनेत्री। ये तेज सप्रू की बहन है जो बालीवुड एवं टेलीविजन मे विलेन के किरदार मे नजर आते है। इन्होने 46 साल की उम्र मे शादी की थी और इनका वैवाहिक जीवन काफी खुशहाल भी है।
खुबसूरत और बेहतरीन अपडेट अमर भाई।
और जगमग जगमग भी।
नही। ये उपन्यास तीस पैंतीस साल पहले पढ़ा था। मनोज पाकेट बुक्स मे पब्लिश हुआ था और शायद राइटर इसके मनोज थे।मन्नू भंडारी की कहानी की बात तो नही कर रहे आप?
अभी पढ़ना शुरू करने वाला हूं उसे
जहां तक मेरा ख्याल है , औरत अपने सौतेले संतान को सहर्ष स्वीकार कर लेती है लेकिन मर्द को अपनी पत्नि से उत्पन्न सौतेले पुत्र को स्वीकार करने मे छक्के छुट जाते है।
बहुत साल पहले एक उपन्यास पढ़ा था। एक विधुर की शादी एक विधवा से होती है। दोनो को ही अपने अपने पुर्व हसबैंड / वाइफ से एक एक संतान था। विधुर एक लड़की का पिता था और विधवा एक लड़के का।
पति पत्नि मे प्रेम बहुत अधिक था लेकिन प्रॉब्लम यह था कि औरत अपने हसबैंड के लड़की को तो स्वीकार कर ली और उसे मां की ममता प्रेम सबकुछ तहेदिल से दी पर मर्द अपनी पत्नि के पुत्र को दिल से स्वीकार न कर पाया।
छोटी छोटी बात पर लड़के को फटकार देता। जलील कर देता और उसकी पत्नि सबकुछ देखकर भी कुछ न कर पाती। क्योकि हमारे धर्म मे पति का स्थान पुत्र से कहीं बहुत ऊपर है। पति परमेश्वर होता है , भले ही वो लाख गलत हो।
कहानी के अंत मे लड़के की मौत हो जाती है और तब मर्द को एहसास होता है कि उसने क्या कर दिया !
बहुत ही दर्दनाक और इमोशनल कहानी थी।
( इस विषय पर एक कहानी लिखने का विचार आया था मुझे लेकिन चूंकि कहानी मे छोटे लड़के का रोल अधिक था और फोरम पर यह मान्य नही है इसलिए कैंसल कर दिया)
लेकिन यह सब एक कहानी था। रियलिटी नही। लेकिन इस बात से हम इंकार नही कर सकते कि औरत का दिल मर्द के तुलना मे ज्यादा संवेदनशील होता है। और यह भी कि मर्द को अपना संतान सबसे अधिक प्यारा होता है।
यह सब इसलिए कहा कि अमर और रचना को भी अपने अपने पुर्व हसबैंड/ वाइफ से एक एक संतान है।
रचना की भाव भंगिमा और बात व्यवहार से लगता नही कि वो अमर के लिए किसी भी एंगल से खराब पत्नि साबित होगी।
उसकी उम्र भी कोई अधिक नही है। सिर्फ सुमन , काजल और रचना ही नही , रियल लाइफ मे कई महिलाए मिल जायेंगी जिन्हने उम्र के तीसरे या चौथे पड़ाव मे भी शादी के बंधन मे बंधी है।
फिलहाल सिर्फ एक एग्जाम्पल दे रहा हूं , प्रीति सप्रू का। बालीवुड और पंजाबी फिल्म की प्रख्यात अभिनेत्री। ये तेज सप्रू की बहन है जो बालीवुड एवं टेलीविजन मे विलेन के किरदार मे नजर आते है। इन्होने 46 साल की उम्र मे शादी की थी और इनका वैवाहिक जीवन काफी खुशहाल भी है।
खुबसूरत और बेहतरीन अपडेट अमर भाई।
और जगमग जगमग भी।
इस विषय पर मेरा भी यही मत है।संजू भाई - आपके मत पढ़ कर बड़ा अच्छा लगता है। इसलिए लिखते अवश्य रहा करिए!
मुझे सौतेले पुत्रों और पुत्रियों को ले कर होने वाले व्यवहारों के बारे में थोड़ा कम ही पता है, लेकिन जो भी मैंने अभी तक देखा है (कोई पाँच परिवार ही हैं जानकारी में), उससे आपकी बात का समर्थन कर पाना थोड़ा मुश्किल लगता है। मेरे ख़याल से स्त्रियों में ‘अपने’ और ‘पराये’ का भेद पुरुषों के अपेक्षा अधिक होता है। अपनी संतान की सलामती को ले कर स्त्री बहुत उग्र होती है। उसके सामने वो किसी से भी झगड़ा मोल ले सकती है। ये बहुत कुछ उसके परिदृश्य पर भी निर्भर करता है - अगर वो संपन्न परिवार से आई होती है, तो उसको अपने सौतेले बच्चों से कोई दुराग्रह नहीं होता, या कम होता है। लेकिन अगर वो अभाव से आई है, तब वो अपने सौतेले बच्चों के प्रति बेहद क्रूर हो सकती है। और यही शिक्षा वो अपने बच्चों को भी देती है।
मेरे एक अनन्य मित्र हैं, उन्होंने अपने सौतेले पुत्र को अपने पुत्र के जैसे ही पाला है। और वो भी पूरे गर्व से उन्ही को अपना पिता कहता है, जबकि उस बच्चे ने कोई दस वर्ष की आयु में अपने पिता को खोया था! ऐसे ही, एक अंकल जी हैं, जब उन्होंने दूसरी शादी करी, तब अपनी दूसरी पत्नी के दोनों बच्चों (लड़का और लड़की) को अपने ही बच्चों जैसे ट्रीट किया। इतना कि उनकी बड़ी लड़की (जो कि सौतेली है) उनको ही अपना पिता कहती है (जबकि उसने करीब सोलह या सत्रह साल में अपने पिता को खोया)!
इसके विपरीत एक मित्र की दूसरी पत्नी ने उनके बच्चों की ज़िन्दगी खराब कर के रखी हुई है और वो दोनों अब तलाक की अर्ज़ी लगा चुके हैं। एक और अंकल हैं, उनकी दूसरी पत्नी ने उनकी पहली बेटी को अपनी बेटी जैसा मान दिया है - शायद इसलिए क्योंकि उनकी खुद की कोई संतान न हो सकी। लेकिन, जैसा कि मैंने कहा, मेरा सैंपल साइज बहुत छोटा है। संसार में अद्भुत उदाहरण मौजूद हैं, और जो हम सोच नहीं सकते, वो सब हो चुका है और हो रहा है!
जहाँ तक कहानी की बात है - मैं सहमत हूँ! रचना एक अच्छी लड़की है। सुन्दर है, और गुणी है (वो शीघ्र ही मालूम पड़ेंगे)। जानी पहचानी है, और अमर को पत्नी के सभी सुख दे सकती है और देने के लिए तत्पर भी है। पति पत्नी का सम्बन्ध अक्सर इस बात से खराब नहीं होता कि दोनों में से किसी में कोई बुराई है - अक्सर इसलिए खराब होता है कि दोनों एक साथ कम्पैटिबल हैं या नहीं। बेहद छोटी छोटी बातें शादी को बना भी सकती हैं, और बिगाड़ भी सकती हैं। कभी फॅमिली कोर्ट में जा कर देखें, तो तलाक़ के अनेकों कारणों को सुन कर हँसी छूट जाए कि स्साला इस बात पर तलाक़ हो गया!
प्रीती सप्रू जी के बारे में पढ़ा - अच्छा लगा कि उनको न केवल विवाहित होने का, बल्कि मातृत्व का भी सुख मिला। मेरी कहानी पढ़ने वालों को थोड़ा अतरंगी लगता होगा, लेकिन है नहीं। पैंतालीस से अधिक उम्र की महिलाओं को भी बच्चे होते हैं यदि उनका और उनके पति का स्वास्थ्य अच्छा हो तो! कई सारे अविश्वसनीय दृश्य हैं, लेकिन असंभव नहीं!
साथ में बने रहें! रचना और अमर का एपिसोड तेजी से आगे बढ़ेगा। एक और अपडेट लिख लिया है, लेकिन सोच रहा हूँ कि दो अपटेड लिख कर फिर पोस्ट करूँ। मिलते हैं शीघ्र ही!
मानव मन को स्त्री पुरुष में नही बाटा जा सकता है। कई बार पुरुष स्त्रीयोचित व्यवहार करते हैं और कई बार कुछ ऐसा जिसे आप जानवरों जैसा भी कह सकते हैं।संजू भाई - आपके मत पढ़ कर बड़ा अच्छा लगता है। इसलिए लिखते अवश्य रहा करिए!
मुझे सौतेले पुत्रों और पुत्रियों को ले कर होने वाले व्यवहारों के बारे में थोड़ा कम ही पता है, लेकिन जो भी मैंने अभी तक देखा है (कोई पाँच परिवार ही हैं जानकारी में), उससे आपकी बात का समर्थन कर पाना थोड़ा मुश्किल लगता है। मेरे ख़याल से स्त्रियों में ‘अपने’ और ‘पराये’ का भेद पुरुषों के अपेक्षा अधिक होता है। अपनी संतान की सलामती को ले कर स्त्री बहुत उग्र होती है। उसके सामने वो किसी से भी झगड़ा मोल ले सकती है। ये बहुत कुछ उसके परिदृश्य पर भी निर्भर करता है - अगर वो संपन्न परिवार से आई होती है, तो उसको अपने सौतेले बच्चों से कोई दुराग्रह नहीं होता, या कम होता है। लेकिन अगर वो अभाव से आई है, तब वो अपने सौतेले बच्चों के प्रति बेहद क्रूर हो सकती है। और यही शिक्षा वो अपने बच्चों को भी देती है।
मेरे एक अनन्य मित्र हैं, उन्होंने अपने सौतेले पुत्र को अपने पुत्र के जैसे ही पाला है। और वो भी पूरे गर्व से उन्ही को अपना पिता कहता है, जबकि उस बच्चे ने कोई दस वर्ष की आयु में अपने पिता को खोया था! ऐसे ही, एक अंकल जी हैं, जब उन्होंने दूसरी शादी करी, तब अपनी दूसरी पत्नी के दोनों बच्चों (लड़का और लड़की) को अपने ही बच्चों जैसे ट्रीट किया। इतना कि उनकी बड़ी लड़की (जो कि सौतेली है) उनको ही अपना पिता कहती है (जबकि उसने करीब सोलह या सत्रह साल में अपने पिता को खोया)!
इसके विपरीत एक मित्र की दूसरी पत्नी ने उनके बच्चों की ज़िन्दगी खराब कर के रखी हुई है और वो दोनों अब तलाक की अर्ज़ी लगा चुके हैं। एक और अंकल हैं, उनकी दूसरी पत्नी ने उनकी पहली बेटी को अपनी बेटी जैसा मान दिया है - शायद इसलिए क्योंकि उनकी खुद की कोई संतान न हो सकी। लेकिन, जैसा कि मैंने कहा, मेरा सैंपल साइज बहुत छोटा है। संसार में अद्भुत उदाहरण मौजूद हैं, और जो हम सोच नहीं सकते, वो सब हो चुका है और हो रहा है!
जहाँ तक कहानी की बात है - मैं सहमत हूँ! रचना एक अच्छी लड़की है। सुन्दर है, और गुणी है (वो शीघ्र ही मालूम पड़ेंगे)। जानी पहचानी है, और अमर को पत्नी के सभी सुख दे सकती है और देने के लिए तत्पर भी है। पति पत्नी का सम्बन्ध अक्सर इस बात से खराब नहीं होता कि दोनों में से किसी में कोई बुराई है - अक्सर इसलिए खराब होता है कि दोनों एक साथ कम्पैटिबल हैं या नहीं। बेहद छोटी छोटी बातें शादी को बना भी सकती हैं, और बिगाड़ भी सकती हैं। कभी फॅमिली कोर्ट में जा कर देखें, तो तलाक़ के अनेकों कारणों को सुन कर हँसी छूट जाए कि स्साला इस बात पर तलाक़ हो गया!
प्रीती सप्रू जी के बारे में पढ़ा - अच्छा लगा कि उनको न केवल विवाहित होने का, बल्कि मातृत्व का भी सुख मिला। मेरी कहानी पढ़ने वालों को थोड़ा अतरंगी लगता होगा, लेकिन है नहीं। पैंतालीस से अधिक उम्र की महिलाओं को भी बच्चे होते हैं यदि उनका और उनके पति का स्वास्थ्य अच्छा हो तो! कई सारे अविश्वसनीय दृश्य हैं, लेकिन असंभव नहीं!
साथ में बने रहें! रचना और अमर का एपिसोड तेजी से आगे बढ़ेगा। एक और अपडेट लिख लिया है, लेकिन सोच रहा हूँ कि दो अपटेड लिख कर फिर पोस्ट करूँ। मिलते हैं शीघ्र ही!
मानव मन को स्त्री पुरुष में नही बाटा जा सकता है। कई बार पुरुष स्त्रीयोचित व्यवहार करते हैं और कई बार कुछ ऐसा जिसे आप जानवरों जैसा भी कह सकते हैं।
So all we can say, there is no set pattern on this issue
वैसे के बात जो प्रमाण के साथ कही जा सकती है कि स्त्री एक साथ प्रेममई और निर्दई दोनो ही सकती है, जबकि पुरुष इस भाव को नही अपना सकता।यह बात भी सही है।
लेकिन मेरा मत मेरे खुद के ऑब्जरवेशन पर आधारित है - generalized नहीं है।
मैंने अपने कमेंट में लिखा है कि, "संसार में अद्भुत उदाहरण मौजूद हैं, और जो हम सोच नहीं सकते, वो सब हो चुका है और हो रहा है!"
बस, इसी अवधारणा पर ही मैं अपनी कहानियाँ लिखता हूँ।