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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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पहला प्यार - विवाह - Update #1


शाम को, माँ ने कॉल किया। उन्होंने मुझे और गैबी को बताया कि हमारी शादी की तारीख उस दिन से दो सप्ताह बाद के लिए तय हो गई है। बस दो सप्ताह! समय बहुत कम था, लेकिन यह अच्छी बात भी थी। अब हमको मिलने में - एक होने में - बस दो सप्ताह का ही समय था! मेरा पूरा वृहद् परिवार - मतलब रिश्तेदार - मेरे पैतृक स्थान के निकट ही रहते थे, इसलिए उनके लिए वहाँ आना बहुत आसान था। माँ की योजना यही थी - सभी को पैतृक स्थान पर ही बुला कर हमारी शादी कराने की। उम्मीद है कि उन्होंने हमारी मंदिर में शादी करने की इच्छा को भी सुनिश्चित करने के लिए कोई इंतज़ाम किया होगा।

रात में, गैबी और मैं एक साथ सोए - पूरे नग्न। मैं उस दिन काजल के साथ कई बार सम्भोग करके बेहद संतुष्ट था, और बेहद थक गया था। गैबी तो उस तरह से संतुष्ट नहीं हुई थी, लेकिन वो इस बारे में कोई शिकायत भी नहीं कर सकती थी। यह उसी का प्रण और प्रतिबन्ध था कि शादी से पहले सेक्स नहीं करना है। नहीं तो अब तक मैं उसको यौन सुख का आनंद कितनी ही बार दिला सकता था! फिर भी, वो इस बात पर खुश थी कि मैंने और काजल ने एक साथ मस्ती की। उसने मुझे यह भी बताया कि उसने सुनील के साथ जो अनुभव किया वह खास था! गैबी ने मुझे बताया कि उस दिन सुनील को स्तनपान कराने से उसके भी अंदर माँ बनने की इच्छा बलवती हो गई है - यह एक ऐसा विचार था जिससे वो पहले डरती रही है। लेकिन अब उसको लग रहा था कि वो मेरी पत्नी और मेरे बच्चों की माँ बन कर अपार हर्ष का अनुभव करेगी।

इसके साथ ही एक बेहद रोमांचक दिन का अंत हो गया था!

**

हमारी शादी तक के दिन बड़ी तेजी से बीत गए! एक तो वैसे ही बहुत कम समय था, और ऊपर से खरीददारी वाले इतने सारे काम! ऐसा लगा कि पलक झपकाई, और दस दिन गायब!

समझदार और जानकार लोगों ने मुझे बताया था कि शादी होने तक का समय भावनात्मक रूप से बहुत अधिक देने वाला हो सकता है! उनकी बात पूरी तरह से ठीक थी। मैंने गैबी को सुझाव दिया कि चूंकि हमारे पास बहुत ज्यादा समय नहीं था, इसलिए हमको शादी के लिए सारी खरीदारी जल्दी से जल्दी कर लेनी चाहिए। गैबी ने कहा कि माँ पहले से ही सारा इंतज़ाम संभाल रही हैं। जब मैंने माँ से बात की, तो उन्होंने इस बात की पुष्टि करते हुए कहा, कि वो और डैड दोनों फिलहाल इसी काम में व्यस्त हैं। हाँलाकि गाँव में शादी होने के कारण, हमारी शादी में खर्च बेहद कम होने वाला था, लेकिन फिर भी पैसे तो चाहिए ही थे। उस समय देश में एटीएम जैसी व्यवस्था नहीं थी - बैंक में ही, लाइन लगा कर पैसे निकलवाने पड़ते थे। यात्रा के समय ट्रेवलर्स चेक, बैंक ड्राफ्ट इत्यादि का इस्तेमाल होता था, लेकिन गाँव में उनको भुनाना भी लगभग असंभव था। इसलिए मैंने उनसे कहा कि मैं अपने साथ पैसे लेता आऊँगा। कुछ आवश्यक वस्तुओं, जैसे गैबी, माँ और काजल के लिए ज़ेवर इत्यादि को खरीदने का काम मैंने ही कर लिया। माँ और डैड के कारण मुझे बहुत राहत मिली। उनका साथ होना बहुत अच्छा था। गैबी और मैं अकेले अधिकांश काम नहीं कर सकते थे। मैंने काजल से भी साथ ही चलने को कहा - मैंने उसको अपने अन्य जगहों के काम से बीस दिनों की छुट्टी लेने को कहा।

पहले तो उसने थोड़ी न नुकुर करी! इस पर मैंने कहा कि मैं उसको बाकी घरों पर काम करने के पैसे भी दूँगा। मेरी इस बात पर काजल बहुत नाराज़ हुई। पूरे दो दिनों तक उसने मुझसे बात नहीं करी। बाद में उसने बताया कि बाकी घरों के लिए उसने अपनी सहेली को काम पर लगा दिया है, और वो हमारे साथ चलेगी। यह एक तरीके का ‘श्रम विनिमय’ था - जब सहेली छुट्टी मारे, तो काजल उसके घरों में काम कर देती थी, और जब काजल छुट्टी मारे, तो सहेली। वो अलग बात थी कि काजल मेरे यहाँ हमेशा आती रही। फिर भी, उसको मैंने अतिरिक्त रुपए लेने का आग्रह किया। बहुत अनुनय विनय करने पर उसने मुझसे वो रुपए गुल्लक में ही जमा कर देने को कहा। अब तक उसके गुल्लक में कम से कम दो महीने की तनख्वाह के बराबर रुपए जमा हो गए थे। लेकिन, वो कभी उनको छूती ही नहीं थी। काजल के भी हमारे साथ ही आने की बात सुन कर माँ और डैड को भी बहुत अच्छा लगा। वैसे तो गाँव में सहायता उपलब्ध थी, लेकिन फिर भी काजल से एक अलग ही प्रकार का अपनापन हम सभी को ही था। कुछ नहीं तो काजल के होने से कम से कम गैबी को तो एक भावनात्मक सहारा तो मिल ही सकता था!

उधर, माँ की इच्छा थी कि वो गैबी को जल्दी से जल्दी अपनी बहू बना लें, इसलिए इतनी जल्दी की तारीख निकलवाई। डैड और माँ ने हमारी शादी को ले कर हमारी इच्छाओं को पूरा करने के लिए सब कुछ किया। वे हमारी शादी के लिए एक भव्य उत्सव चाहते थे, लेकिन वो इस बात का भी सम्मान करते थे कि गैबी और मैं एक शांत, सुन्दर, केवल स्नेही और करीबी लोगों के लिए, और भारतीय संस्कृति के क़रीब वाली शादी चाहते थे! हमारे विवाह में केवल कुछ सबसे करीबी लोग और मित्र मौजूद हों, इतना ही हमारे लिए काफ़ी था। गैबी क्रिस्तान थी, लेकिन फिर भी उसका मन था कि सनातन धर्म के हिसाब से ही हमारा विवाह हो! साथ ही साथ उसको रंग बिरंगे कपड़ों में सज धज कर, एक राजकुमारी के जैसे ही, अपनी शादी के लिए तैयार होने का बहुत मन था! हम दोनों का ही बड़ा मन था कि किसी प्राचीन मंदिर में हमारा विवाह हो। लेकिन गाँव में हमारी शादी की बात सुन कर लगा कि शायद वो इच्छा पूरी होनी संभव न हो! लेकिन उस संदेह के विपरीत, हमारे विवाह के लिए माँ और डैड को एक बहुत बढ़िया स्थान मिल गया!

हमारे पुश्तैनी गाँव में सदियों पुराना एक शिव-पार्वती मंदिर था। लोगों का मानना था कि इस मंदिर का निर्माण करीब साढ़े तीन शताब्दी पहले हुआ था। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण [ए.एस.आई.] ने इस आकलन की पुष्टि भी की है। जैसा कि लगभग सभी प्राचीन मंदिरों के साथ होता है, हमारे स्थानीय लोगों का मानना था कि इस मंदिर में पूजा करने से मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। बहुत पहले कभी यहाँ बड़ी चहल पहल होती थी, और सुदूर इलाकों से लोग भगवान् के दर्शनों के लिए यहाँ आते थे। लेकिन पिछले कई दशकों से इस मंदिर की हालत खस्ता थी। मंदिर के बेहद पास ही में पीपल के दो पेड़ उग आने के कारण, मंदिर की नींव और मुख्य ढाँचे को काफी नुकसान हुआ था। इसलिए अब इस सुन्दर से मंदिर को स्थानीय लोगों के अतिरिक्त कोई जानता भी नहीं था। और तो और, अब वहाँ पूजा अर्चना भी नहीं होती थी। लेकिन गाँव के प्रबुद्ध लोगों के नेतृत्व में इस मंदिर को अभी हाल ही में, धर्मार्थ दान से प्राप्त धन से, स्थानीय लोगों द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था। जीर्णोद्धार के लिए, उन्होंने लगभग उसी निर्माण सामग्री का उपयोग किया था, जो पहले मंदिर के निर्माण में उपयोग की गई थी। चूंकि मंदिर लंबे समय से जीर्ण-शीर्ण अवस्था में था, इसलिए यह मान लेना सुरक्षित था कि गैबी और मेरा विवाह, उस मंदिर के शानदार और लम्बे इतिहास में, एक लंबे समय में पहली शादी होगी! यह भी लगभग सौ प्रतिशत संभव था कि दो देशों, दो परंपराओं, दो भाषाओं और दो संस्कृतियों वाले किसी युगल (जोड़े) का पहली बार इस मंदिर में विवाह होगा!

हालाँकि गैबी और मैं एक साधारण सी शादी करना चाहते थे, लेकिन माँ और डैड की इच्छा पर हमने गाँव में ही एक भव्य रिसेप्शन देने का सोचा। हम चारों को ही यह आईडिया बहुत अच्छा लगा क्योंकि इस तरह से पूरा गाँव हमारी शादी में शरीक़ हो सकता था! इस हिसाब से भव्य शादी तो यह होने वाली थी ही! सबसे अच्छी बात यह थी कि हम बड़ी आसानी से इस विवाह में होने वाले खर्च का वहन कर सकते थे। शादी तो वही अच्छी, जिसमें विवाह करने वालों पर बिना वजह का धन का भार न आए। नहीं तो आज कल तो दिखावे की शादियों का चलन है - लोग लोन (ऋण) ले कर फ़िज़ूल का खर्च करते हैं।

जैसा कि मैंने काफ़ी पहले बताया है, मेरा हमारे गाँव से मज़बूत जुड़ाव है। इस गाँव में हमारी पुश्तैनी जायदाद है - एक घर, मूल रूप से आज-कल की भाषा में एक फार्महाउस, जिसे मेरे परदादा जी ने बनवाया था। मेरे दादाजी के कुछ साल पहले गुजर जाने के बाद, वहाँ अब कोई नहीं रहता था। यह एक पुराना फार्महाउस था। गाँव के कई घरों के विपरीत, यह घर मुख्य रूप से पत्थरों और ईंटों का उपयोग करके बनाया गया था। इसकी छत खपरैल से बनाई गई थी, और अंदर फूस की एक परत थी। भवन निर्माण में इस्तेमाल की गई लकड़ी अभी भी स्वस्थ अवस्था में थी और संभव था कि अगले पचास वर्षों तक भी ऐसे ही रहेगी। इस घर में चार समान आकार के कमरे थे : उनमें से तीन भूतल पर थे, और एक ऊपर, पहली मंज़िल पर! इस कारण से ऊपर वाले कमरे से घर की काफी बड़ी छत का आनंद उठाया जा सकता था। जब सब्ज़ियों का मौसम होता, तो लौकी या कद्दू की लता पूरे छत पर फैली दिखाई देती - उनके फलों के साथ। अनाज और अन्य सामान रखने के लिए एक भंडार कक्ष था, एक रसोईघर था, केंद्र में एक खुला आंगन था, जहाँ से पूरे घर में हवा और प्रकाश का आवागमन होता। कुल मिलाकर यह एक बहुत अच्छा सा घर था। इसकी उम्र और नाममात्र के क्षय को देखते कह सकते हैं कि यह एक मजबूत निर्माण था। जैसा कि अधिकांश पुरानी इमारतों में होता है, यह घर गर्मियों में ठंडा और सर्दियों में गर्म रहता था।

लेकिन इस घर की भी अपनी कई सीमाएँ थीं - घर के अंदर शौचालय का कोई प्रावधान नहीं था। दादा जी के समय तो सभी खेत में निवृत्त हो जाते थे, या फिर नहाने के लिए कुएँ पर चले जाते। लेकिन अब ज्यादातर लोगों को ऐसे खुले में शौच या स्नान करना ठीक नहीं लगता; सभी को इन कामों के लिए एकांत चाहिए। इसलिए डैड ने कुछ साल पहले घर के ठीक सामने, आँगन में एक बढ़िया सा बाथरूम बनवाया था - आपको वो बात शायद याद हो। दिक्कत केवल यह थी कि ये घर के बाहर था। रसोई छोटी थी, लेकिन दिन में उसमे रोशनी अच्छी आ जाती थी। रसोई के साथ समस्या यह थी कि उसमें अभी तक कोई गैस कनेक्शन नहीं था। खाना पकाने के लिए वही परंपरागत लकड़ी के चूल्हे का इंतज़ाम था। इन चूल्हों में सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि इनसे बहुत धुंआ निकलता है। इसलिए, उन पर खाना पकाने वाले व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा होता है। तो हाल ही में एक मिट्टी के तेल का चूल्हा भी लगाया गया था... हालांकि उसका बहुत ज्यादा इस्तेमाल नहीं हुआ (क्योंकि गाँव के घर पर कोई होता ही नहीं खाना पकाने को)। पहले घर के अंदर ही पानी की व्यवस्था न होने के कारण दिक्कत होती थी, लेकिन डैड ने कुछ समय पहले ही वर्षा जल संचयन [रेन वाटर हार्वेस्टिंग] सिस्टम बनवाया और घर के अंदर ही एक हैंडपंप लगवाया। अब कुएं पर जाकर पानी खींचने की जरूरत नहीं होती थी। कुल मिला कर पूरा घर अच्छी तरह से रोशनी और हवादार था। इसे तब बनाया गया था जब देश में बिजली की कोई अवधारणा नहीं थी। यद्यपि हमारे गांव और घर वर्तमान में बिजली से जुड़े हुए थे, लेकिन उसकी आपूर्ति पूरी तरह अनियमित थी। आप उस पर भरोसा नहीं कर सकते थे। लेकिन अगर आप इतनी खूबसूरत जगह में हैं, तो बिजली की जरूरत क्यों! गाँव की हवा साफ थी, पानी शुद्ध था, भोजन ताजा, स्वादिष्ट और पौष्टिक था! वहाँ का जीवन सादा और आरामदेह था, और वहां के लोग अभी भी आधुनिक चीजों के बारे में ज्यादा चिंता नहीं करते थे। मतलब, अभी भी वहाँ सब कुछ बढ़िया था!

शीघ्र ही, हमने अपना सामान पैक किया और हम पाँचों - गैबी, काजल, सुनील, लतिका और मैं, मेरी कार से अपने पैतृक गांव के लिए निकल पड़े। कार छोटी तो अवश्य थी, लेकिन लतिका के गोद में होने के कारण कार के अंदर मुश्किल नहीं हुई। सामान के नाम पर एक बड़ा सूटकेस था, जिसमें गैबी और मेरे शादी के कपड़े-लत्ते थे, और चार एयर-बैग्स थे, जिसमें हम सभी के रोज़मर्रा के कपड़े थे! हमको सवेरे शीघ्र ही निकलना था, इसलिए काजल ने रात ही में आलू-टमाटर की सूखी सब्ज़ी और पूरियाँ छान ली थीं - कल रास्ते के लिए। ठण्डक के मौसम में इसी प्रकार की खाद्य सामग्रियाँ ही लम्बी यात्रा के लिए उपयुक्त हैं। वैसे भी, उस समय रास्ते में भोजन इत्यादि का हमको ठीक से आईडिया नहीं था। चाय पानी बाथरूम के लिए तो सब ठीक है, लेकिन खाना पीना तो अपना वाला ही ठीक रहता है। रात में हम पाँचों हमारे घर पर ही रुके, जिससे सवेरे जल्दी निकल सकें। मेरा गाँव बहुत दूर नहीं था - कार से बस लगभग 12 घंटे का सफर था, अगर गाड़ी थोड़ी तेज़ चलाएँ - नहीं तो कोई साढ़े तेरह घण्टे! अब हम सारों में मैं ही अकेला ड्राइवर था, इसलिए इतनी लम्बी यात्रा थका देने वाली हो जाती है। लेकिन काजल और गैबी ने सुनिश्चित किया कि गाड़ी चलाते समय मेरे आराम का अच्छी तरह से ध्यान रखा जाए। हम केवल खाना खाने और रस्ते में बाथरूम इत्यादि के लिए ही रुके। इसलिए मेरा थकना लाज़मी है। जब मैं शाम तक गाड़ी चलाते हुए बहुत थक गया, तो मैंने कार को मुख्य सड़क पर, घने जंगल वाले इलाके में, थोड़ा साइड में ले कर रोक दिया, और कुछ देर सो गया। करीब एक घंटे के उस ब्रेक के दौरान, किसी ने भी मुझे परेशान नहीं किया। फिर मुझे चाय [जो हमने रास्ते में होटल से खरीद कर थर्मस में भर लिया था] पीने के लिए जगाया गया ताकि तारो-ताज़ा हो कर फिर से ड्राइविंग शुरू की जा सके। चौड़े राजमार्गों, संकरी कस्बों की गलियों, और धुंध भरे खेतों से गुजरते हुए वास्तव में बहुत अच्छा समय और अंततः देर शाम तक हम अपने गाँव पहुँचे। सवेरे पाँच बजे निकल कर, शाम को सात बजे गाँव पहुंचे।
 
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पहला प्यार - विवाह - Update #2


मेरा इस बार गाँव आना कई वर्षों बाद ही संभव हो पाया था। ग्रामीण सीमा में प्रवेश करते ही अनेक मीठी यादें मेरे मस्तिष्क में दौड़ गईं - वो मालिश का आनंद, नग्न अवस्था में ही गाँव में विचरण करना, गायत्री और उसके साथ बिताया गया समय, वो स्वादिष्ट भोजन! सब सुहानी यादें ताज़ा हो गईं। मन में एक बार को विचार आया कि गायत्री कैसी होगी अब? खैर, पहुँच रहे हैं, तो सब कुछ मालूम पड़ ही जाएगा। गाँव में माँ और डैड पहले से ही हमारी अगवानी के लिए उपस्थित थे। आज तो कुछ हो नहीं सकता था, लेकिन शादी की रस्में सब कल से शुरू हो जानी थीं। हमारी शादी आज से दो दिन बाद, तीसरे दिन, सुबह-सुबह होने वाली थी। तो आज, फिलहाल केवल खा पी कर सोने का ही काम था। कुछ करीबी मेहमान भी वहाँ पहुँचे हुए थे। मजे की बात यह है कि गाँव पहुँचते ही मुझे गैबी से अलग कर दिया गया, और अगले दो दिनों तक मुझे अपने सामान समेत अलग, पड़ोसी चाचा जी - चाची जी के यहाँ रहने को कहा गया। और मुझे गैबी से न मिलने की हिदायद दी गई। यह कितना हास्यास्पद हो सकता है? गाँव में मान्यता है कि विवाह के दिन से पहले वर, अपनी होने वाली वधू को नहीं देखता है, अन्यथा अपशकुन होता है। अब ऐसी मान्यताओं में मेरा या मेरे परिवार में किसी का भी रत्ती भर भी भरोसा नहीं है, लेकिन फिर भी, कभी कभी समाज की धारा के साथ बहना अच्छा होता है - खासतौर पर तब, जब आप जानते हों कि उस समाज में रहने वाले सभी लोग आपके शुभचिंतक हैं!

और फिर, यह एक छोटा सा गाँव था, और लोग पहले से ही एक गोरी बहू के आने से बहुत उत्सुक थे! वे और अधिक सदमे नहीं ले पाएंगे, अगर उन्होंने हमें शादी से पहले ही एक साथ देखा होता! दूसरी बात यह थी कि दूल्हे को सजने सँवरने के लिए कोई ख़ास काम या मेहनत नहीं करनी पड़ती है, लेकिन दुल्हन को ले कर बहुत सारे काम करने होते हैं - अनगिनत रस्में होती हैं, और उनके दौरान कई सारे कपड़े भी बदलने होते हैं। वैसे भी गैबी फिलहाल माँ के संरक्षण में थी, और वो उसको कोई तकलीफ़ होने ही नहीं देंगीं - यह तो मुझे मालूम था। इतना तो मुझे मालूम था कि माँ ने फालतू की कई सारी रस्में, रस्मों की फेहरिस्त से कटा दीं, जिससे गैबी भाव-विह्वल न हो जाये! वैसे ही बेचारी के लिए सब कुछ नया नया था। अब उस पर ऊपर से रस्मों का भार डाल देने से वो तो घबरा ही जाती। उन्होंने यह निश्चित किया कि गैबी को पूरा आराम मिले, और वो सभी रस्मों का, और विवाह तक की सभी कार्यविधि का आनंद उठा सके।

आखिरी बाद जब मैं यहाँ आया था, तो कोई पाँच वर्ष पहले था! तब से अब तक गाँव में अनेक परिवर्तन हो गए थे - गाँव में नहीं - वो तो वैसा ही था - बल्कि वहाँ के समाज में! चाचा जी और चाची जी के बड़े बेटे, बड़कऊ भैया की शादी हो गई थी (उनके लिए वधू की तलाश तो उसी समय की जा रही थी जब मैं पिछली बार गाँव आया था), और अब उनका एक कोई चार साल का बेटा भी था, और उनकी पत्नी अपनी अगली संतान से गर्भवती भी थीं। ननकऊ भैया की भी शादी हो गई थी, और उनका भी एक लगभग दो साल का बेटा था। और तो और, चाचा जी और चाची जी भी संतानोत्पत्ति के मामले में पीछे नहीं थे - जब मैंने उनको आखिरी बार देखा था, तो उनको हाल ही में एक मृत संतान हुई थी। आज उनसे मिला, तो पता चला कि उनको उसके बाद दो और भी संतानें हुईं - एक लड़का, जो अपने बड़े भतीजे से बस कुछ महीने ही पहले हुआ था, और एक नवजात लड़की, जो कोई साल भर की थी। सोचने वाली बात है न - चाचा, बुआ और भतीजे - सब लगभग एक ही उम्र के! लेकिन गाँव देहात में यह सब होता था, और इसको कोई आश्चर्य से नहीं देखता था। और तो और, इसको बड़े गौरव से देखा जाता था, कि बढ़ती उम्र में भी कोई युगल संतानोत्पत्ति में सक्षम है। चाची जी उस समय लगभग पैंतालीस साल की महिला थीं, लेकिन अभी भी जननक्षम थीं! अब इसको तो ईश्वर प्रदत्त प्रसाद ही माना जाएगा! बाद में मुझे पता चला कि चाचा जी और चाची जी अपने अब तक के विवाहित जीवन में नौ बच्चों के माता-पिता बन चुके थे - जिनमें से अब पाँच जीवित थे। ख़ैर, क्षमता एक चीज़ होती है, और इच्छा दूसरी। अपनी बहुओं के साथ ही सास का भी गर्भवती होना ईश्वरीय प्रसाद माना जाता था। चाचा और चाची जी में स्नेह उनके विवाह के इतने सालों बाद भी बरकरार था, यह और भी बड़े गौरव की बात थी। अब अवश्य ही गाँवों के समाज में भी बड़े परिवर्तन आ गए हैं।

मैंने उन सभी को कई वर्षों बाद देखा था - भाभियों और उनकी संतानों को पहली बार - तो उन सभी के पैर छू कर मैंने आशीर्वाद लिया। सभी के इसलिए, क्योंकि रिश्ते में मैं सभी से छोटा था। वो सभी हमारे परिवार समान ही थे। माँ ने मुझे उन सबको देने के लिए उपहारों से भरा एक बैग पहले ही दे दिया था, तो मैंने उन सबको एक एक कर के उनके उपहार सौंप दिए। तीनों स्त्रियाँ अपने लिए महँगी रेशमी साड़ियाँ पा कर अत्यधिक प्रसन्न हुईं। चाचा जी और भाइयों को धोती कुर्ते में ही संतोष करना पड़ा। सभी छोटे बच्चों के लिए नए कपड़े, खिलौने, मिठाइयां और टॉफियाँ - बच्चे तो खैर कुछ भी नया पा कर प्रसन्न हो जाते हैं!

मेरे आने से पहले से ही वो लोग भोजन के लिए मेरी ही राह देख रहे थे, इसलिए मैं उपहार इत्यादि दे कर जल्दी से खाने बैठ गया। गैबी और काजल, माँ और डैड के साथ हमारे घर पर ही थे। चाचा जी ने हँसते हुए मज़ाक में कहा,

“लल्ला, ई तोहरै घर बाय। अउर बियाहे के दिना तक हम सबहि लड़का वाले होई! बियाह के ताईं तोहार बाप महतारी हमहीं हन! तोहार अम्मा बप्पा दूनौ जने लड़की वाले हैं!”

“हम तौ कहिबै किहे हन बहू का और भैया का, कि तू दूनौ जने लड़की वाले रहौ, अउर हम लड़का वाले। कन्यादान तोहरे अम्मा बप्पा करिहैं!” चाची ने हँसते हुए कहा, “लड़की कै बियाह करब तौ पुन्य काम होवत है। यही मारे तोहरै अम्मा बप्पा दूनौ जने बहूरानी कै बाप महतारी रहियैं बियाहे मा!”

गाँव में कभी कभी ऐसा होता है - अगर कोई किसी को अपना अग्रज मानता है, तो विवाह में जो रीतियाँ होती हैं, उनसे ही करने का आग्रह करता है। उदाहरण के लिए, कन्यादान की रस्में लड़की के माता-पिता न कर के, उसके ताऊ और ताई अदा कर देते हैं। वैसे भी चाचा जी और चाची जी को मेरे माँ और डैड अपना अग्रज ही मानते थे। तो यह संभव भी है। खैर, रस्मों का क्या है! मज़िल (अर्थात विवाह) तक पहुँचना आवश्यक है! खाते खाते मैंने उनको अपने काम के बारे में बताया, और शहर में अपने रहन सहन के बाते में बताया। उनको यह जान कर बहुत प्रसन्नता हुई कि दो कमरों के मकान में मैं अकेला ही रहता हूँ। गैबी के बारे में उनको माँ और डैड से थोड़ा मालूम तो था, लेकिन फिर भी उन्होंने उत्सुकता से उसके बारे में कई सारी बातें पूछीं। माँ ने मुझे पहले ही आगाह कर दिया था कि गैबी को ले कर मैं किसी को अनावश्यक ब्यौरा न दूँ - और उससे सम्बंधित सभी बातों को सामाजिक सरोकार की सीमा में ही रखूँ। लिहाज़ा, जब उन्होंने गैबी के माता पिता के बारे में पूछा, तो मैंने केवल इतना ही कहा कि उसके माँ बाप नहीं हैं। माँ ने भी मुझसे यही कहने को कहा था। एक तरीके से ये बात सही भी थी - जिनको अपनी एकलौती लड़की की शादी से न कोई प्रसन्नता हुई और न ही कोई सरोकार रहा, उनके होने या न होने का क्या महत्त्व? खैर, चाचा जी और चाची जी को यह बात पहले से मालूम थी, लेकिन वो केवल बातें करने के लिए मुझसे ये सब पूछ रहे थे।

विश्व मानचित्र में ब्राज़ील कहाँ है, यह तो दोनों भाभियों को मालूम था (क्योंकि दोनों पढ़ी लिखी थीं), लेकिन बड़कऊ और ननकऊ भैया को केवल ब्राज़ील देश का नाम ही पता था। बड़ी मुश्किल से उनको बता पाया कि ब्राज़ील, और खासतौर पर गैबी का शहर, हमारे देश और मेरे शहर से कितना दूर है। मेरी बातों से उनको इतना तो समझ में आया कि गैबी पढ़ने के लिए भारत आई हुई थी, और फिर मुझसे मुलाकात हो गई और हमको एक दूसरे से प्रेम हो गया। एक जटिल कहानी की यह सरलतम व्याख्या थी! ननकऊ भैया वाली भाभी ने मेरी पूरी कहानी सुनने के बाद हँसते हुए कहा,

“भैया, यह तो कोई फ़िल्म की कहानी लगती है।”

सच कहूँ, तो कभी कभी मुझे भी गैबी और मेरी दास्तान किसी फ़िल्म की कहानी ही लगती है! एक और बात मैंने महसूस करी, और वो यह कि छोटी भाभी की बोली, गाँव के अन्य लोगों से अलग है। जहाँ बाकी लोग देहाती में बोलते, वहीं भाभी एकदम साफ़ हिन्दी बोलती। बड़ी भाभी भी साफ़ हिंदी ही बोलतीं - लेकिन वो मितभाषी थीं! लेकिन छोटी भाभी का अंदाज़ बहुत परिष्कृत था। वो जल्दबाज़ी में नहीं बोलती थीं। सुन कर ही लग रहा था कि उन्होंने एक अच्छी, और उच्च शिक्षा प्राप्त कर रखी है। छोटी भाभी अधिक पढ़ी लिखी थीं, लेकिन फिर भी उनको पीएचडी के बारे में नहीं मालूम था (उसके लिए उनको ‘डॉक्टरेट’ शब्द मालूम था, जो मैंने इस्तेमाल ही नहीं किया)। ननकऊ भैया की तो निकल पड़ी!

काजल के बारे में जब उन्होंने पूछा, तो मैंने बताया कि वो मेरी अभिवावक हैं - और मेरी देखभाल करती हैं। यूँ समझ लीजिए कि वो मेरी बड़ी दीदी हैं, और सुनील और लतिका उनके बच्चे हैं। मैंने उनको जानबूझ कर यह भी बताया कि सुनील एक अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ता है - इस बात का उन पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ा। गाँवों में जात-पात, ऊँच-नीच, और दुराव-बचाव बहुत होता है - आज भी इसमें कोई कमी नहीं आई है - इसलिए उस चर्चा से जितना दूर रहा जा सके, उतना ही अच्छा! मैं नहीं चाहता था कि काजल की जाति के बारे में कोई भी जानकारी बाहर निकले। मैं नहीं चाहता था कि काजल की जाति के कारण या उसके काम के कारण, उसके या सुनील और लतिका के साथ कोई दुराव या भेदभाव हो। इसीलिए मैंने बहुत सोच समझ कर सुनील के अंग्रेजी स्कूल में पढ़ने वाली बात कही - क्योंकि अंग्रेज़ी स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा कोई मामूली परिवार से तो नहीं होगा न!

खैर, ऐसे ही बात चीत करते हुए भोजन समाप्त हो गया, और सोने के इंतजाम की बारी आई। उनका घर कोई बहुत बड़ा नहीं था, लेकिन उनका परिवार बड़ी तेजी से बढ़ा था। घर की दो कोठरियों में दोनों भाई लोग अपने परिवार समेत सोते थे, और चाचा चाची तीसरे कमरे में। उस कमरे की साफ़ सफ़ाई कर के वहाँ शादी की सुबह तक मेरे रहने की व्यवस्था कर दी गई थी। शादी के बाद गैबी और मेरे साथ ही ठहरने का इंतज़ाम घर पर रहेगा - ऐसा मुझे बताया गया। वो सब ठीक था, लेकिन मेरे कारण उनको कष्ट होता, इसलिए मैंने उनसे बहुत अनुनय विनय करी कि मेरे कारण वो परेशान न हों, और मैं बाहर अहाते में ही सो जाऊँगा, लेकिन मेरी एक नहीं सुनी गई। चाचा जी वैसे भी खेत पर जा कर सोने वाले थे - गेहूँ, सरसों, और मटर की फसल लदी हुई थी, इसलिए उसको नीलगाय के प्रकोप से बचाना आवश्यक था। इसलिए रात में उठ कर खेतों के दो तीन बार चक्कर लगाने आवश्यक थे। चाचा जी के साथ बड़कऊ भैया भी जाने वाले थे - उनकी पत्नी गर्भवती थीं, तो फ़िलहाल उनके साथ लेट कर उनको क्या ही मिलने वाला था, सिवाय उनकी सेवा करने के? हाँ, लेकिन ननकऊ भैया अवश्य ही अपनी पत्नी के साथ सोने वाले थे। अपने परिवार की वंशबेल बढ़ाने का काम उनको भी करते ही रहना था! लिहाज़ा यह तय हुआ कि मैं चाची के साथ सोने वाला था।

एक बार जब आपके ऊपर घर में ‘सबसे छोटे’ होने का तमगा लग जाता है, तो वो उम्र भर आपके साथ ही रहता है - छूटता ही नहीं। उसके कारण आपके साथ कई अच्छी बातें भी हो सकती हैं, और कई बुरी भी! अच्छी बातें ये कि आपको उम्र भर सभी ‘बड़ों’ का स्नेह और दुलार मिल सकता है। और बुरी ये कि आपको उम्र भर कभी सीरियसली न लिया जाए! लड़कियों को उनके जीवन में शायद एक और चांस मिल जाए - उनकी शादी के समय, लेकिन लड़कों को नहीं! लेकिन फिलहाल, मेरे साथ अब तक अच्छा ही अच्छा हुआ है - गाँव में मैं अपने सामाजिक भाइयों और बहनों में सबसे छोटा अवश्य था, लेकिन अपने घर की तो एकलौती संतान हूँ! बेस्ट ऑफ़ बोथ वर्ल्डस!

“लल्ला,” चाची ने मुस्कुराते हुए सबके सामने कहा, “आज हम तुम्हका आपन दूध पियाय कै सोवौबै!”

उनकी शरारत भरी बात पर दोनों भाभियाँ हँसने लगीं।

“अउर का! बिटवा है तोहार! तोहरै दुधवा पी कै तो बेदी पै चढ़िहैं!” चाचा जी ने चाची की बात का अनुमोदन किया, “ओकै महतारी का दूध औतै नाही न अब! तुंही पियावौ!”

हमारे बिरादरी में शादी के समय एक छोटी सी रस्म होती है, जिसमे दूल्हा अपनी माँ के स्तनों को पी कर (अधिकतर समय स्तनों पर केवल मुँह लगा कर) लड़की (वधू) के घर जाता है। इसका सांकेतिक महत्त्व यह है कि वर की माँ अपने पुत्र को याद दिलाती है कि उसने अपनी माँ का दूध पिया है, तो उसकी लज्जा रक्षण के लिए जब वो वधू के घर से वापस आए तो उसकी बहू को साथ में लाए। प्राचीन काल में बारात में महिलाएँ वर के साथ नहीं जाती थीं, अपितु घर पर ही बारात के लौटने का इंतज़ार करती थीं, और बहू के स्वागत की तैयारियाँ करती थीं! उत्तर में वर ये वचन देता है कि वो अपनी माँ के दूध का मान रखेगा और खाली हाथ नहीं आएगा! इस तरह से माँ के दूध, और पुरुष की मर्दानगी का बेहद करीबी रिश्ता है।

मुझे उस समय यह नहीं मालूम था। इसलिए, जब चाचा जी ने ऐसा कहा, तो मुझे लगा कि यह सब कोई मज़ाक चल रहा है, लेकिन जब बिस्तर पर लेट कर चाची अपनी ब्लाउज खोलने लगीं, तब समझ में आया कि इसमें कोई मज़ाक नहीं था। उनके दोनों बच्चे, उनकी बड़ी बहू के साथ सो रहे थे, और उनके दूध का आस्वादन कर रहे थे। एक तरह से पाँचों (आने वाले को मिला कर) बच्चे बहुत भाग्यशाली थे - उनकी तीन तीन स्नेही माएँ थीं! बढ़ते बच्चों के लिए इससे बड़ा आशीर्वाद नहीं हो सकता! मुझे इस उम्र में भी उनका अमृत पीने का आशीर्वाद मिल रहा था - अब इससे बड़ी सौभाग्य की क्या बात हो सकती थी?
 

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पहला प्यार - विवाह - Update #3


“आओ लल्ला,” उन्होंने अपना एक स्तन बाहर निकाल कर कहा, “तोहरे बियाहे तक रोज पियौबै!”

इस बात की मुझे उम्मीद ही नहीं थी कि मुझे फिर से उनका दूध पीने का सौभाग्य मिलेगा। अहोभाग्य मेरा! मैं उनका स्तन पीने लगा। लगभग तुरंत ही उनके स्तन से मेरे मुँह में मीठा सा दूध आने लगा! माँ का दूध पीने जैसा परम आनंद शायद ही कहीं हो! ऐसा लग रहा था कि उनके स्तन दूध से पूरे भरे हुए थे। एक दो मिनट पीने के बाद,

“लल्ला, तोहार तेल उबटन कै जिम्मेवारी हमरै है! पिछली बार आये रह्यौ, तबहुँ हमहि किहे रहैं सब कुछ! यह बारी भी हमहि करबै!”

“जी! ठीक है!” मैंने कहा और पुनः पीने लगा।

“ई तौ कौनो महतारी कै सौभाग्य होवत है कि ऊ अपने लल्ला का ओकरे बियाहे तक दूध पियाय सकै!” उन्होंने बड़े गर्व से कहा, “हम तौ अपने दूनौ लरिकन का पियाये हन, अउर अबहुँ पियाइत है। आपन लरिका बच्चन और दूनौं पोतों का!”

“बड़कऊ और ननकऊ भैया आपका दूध पीते हैं?”

“कभ्भो कभ्भो! सरमात हीं अब! मेहरारू के आवै के बाद महतारी कै दूध नीक नाही लागत!” उन्होंने हँसते हुए कहा।

ऐसा कैसे हो सकता है? माँ का अपना स्थान है और पत्नी का अपना। अगर किसी व्यक्ति को ऐसा सौभाग्य मिले कि उसको अपनी माँ और अपनी पत्नी दोनों के स्तनों का दूध मिल सके, तो ऐसा अवसर गँवाना नहीं चाहिए उसको।

“आपकी बहुएँ कैसी हैं? आपका आदर और मान तो करती हैं?”

“अरे, दूनौ बिटियन बहुत अच्छी हँय। पढ़ी लिखी हँय। गुनी हँय। घर कै सब काम करा जानत हीं।” चाची जी ने बड़े गर्व से कहा!

“ये तो बहुत अच्छी बात है न चाची जी!”

“अच्छी बात तौ बाय! लेकिन जादा पढ़ लिख लियै से बहुरियैं सब कम संतान करा चाहत हीं! अब बड़कऊ के मेहरारू का लै लियौ - हाही सकूल पास हैं! उनके बियाहे के लगे छोटकऊ (चाचा चाची का सबसे छोटा बेटा) हमरे पेटे मा रहे। त हम उनका समझावा की बहू जल्दीहैं एक ठो बच्चा कै लियौ। दूनौं साथै बड़े हो जहियैं! हुआँ लै तौ ठीक रहा, लेकिन दुसरका बच्चा करै मा खूब आनाकानी किहिन! केतरा ठेले ठेले दूसर बच्चा आवा उनके पेटे मा!”

मैं हँसने लगा, “क्या चाची जी, आपके ठेलने से थोड़े न हुआ है!”

लेकिन शायद चाची को मेरा मज़ाक समझ नहीं आया, और उन्होंने कहना जारी रखा, “अउर ननकऊ के मेहरारू बीए तिसरका पास किहे रहीं, ओकरे बादे उनकै बियाह भवा। अउर पहिला बच्चा बियाहे के दुई साल बाद भवा। लेकिन हम उनका कह दिहन की बहू कम से कम दुई लाल होवै का चाही।”

ठीक है - हम दो, हमारे दो! लेकिन ‘लाल’ का मतलब केवल पुत्र ही नहीं होना चाहिए। लाल तो कोई भी संतान होती है - क्या पुत्र, क्या पुत्री!

“अच्छा है न चाची जी, पढ़ी लिखी बहुएँ हैं दोनों - बच्चों की पढ़ाई लिखाई देख लेंगी दोनों!”

“हाँ, ऊ तौ हइयै है!”

मैं फिर से दूध पीने लगा।

“तोहार मेहरारू तो गुड़िया यस बाय! बहुत सुन्दर! अच्छा बाय - बहुरिया छोट होवै का चाही। अब देखौ न, ननकऊ कै मेहरारू उमर मा हमरे बड़कऊ से भी बड़ी हँय - मतलब घरे मा, हमार बिटिया के बाद उनहीं सबसे बड़ी हँय!”

हाँ, दीदी करीब तीस की थीं। उनके पहले भी चाचा जी और चाची जी को दो संताने हुई थीं, लेकिन अब वो नहीं रहे। मैंने मन ही मन हिसाब लगाया - ननकऊ भैया वाली भाभी (छोटी भाभी) लगभग पच्चीस साल की तो होंगी - मतलब उनसे कोई चार साल बड़ी! मैं चाची जी को नहीं बताया कि गैबी भी मुझसे दो साल बड़ी है।

“अच्छा?”

“हाँ! उनके बियाहे मा दिक्कत हुवै लाग रही, तौ उनके बप्पा से तोहार चाचा जी कहिन की हमरै लल्ला से कै दियौ बियाह!”

यह तो नई बात पता चली। उतनी शिक्षा प्राप्त करने के बाद ऐसा क्या हो गया कि उनको शादी करने में दिक्कत आने लगी? मैंने चाची जी से पूछा नहीं कि छोटी भाभी की शादी में दिक्कत क्यों होने लग गई थी, लेकिन कई कारण दिमाग में आ रहे थे। हो सकता हो कि बिरादरी वाला कोई झंझट हो। उन दिनों, हमारी बिरादरी में अगर कोई लड़की बाइस-तेईस साल से ऊपर बिन-ब्याही रह जाए तो वो बड़ी तेजी से शादी के लिए अयोग्य हो जाती थी! शायद यही बात यहाँ भी रही हो। या यह भी हो सकता है कि उनकी उच्च शिक्षा के कारण उनके विवाह में दिक्कत आ रही हो - हमारी बिरादरी में पढ़े लिखे वर नहीं मिलते थे तब! लेकिन फिर, ननकऊ भैया भी तो केवल दसवीं ही पास हैं! बीए पास भाभी के लिए, दसवीं पास भैया! कैसा बेमेल विवाह! लेकिन इनका परिवार अच्छा है - स्नेही है - और सभी को आपस में बड़ा प्रेम है। और अगर पति पत्नी में स्नेह है, प्रेम है, और आदर है, तो इन बातों का बहुत मायने नहीं रहता।

“उनकी उम्र भैया से अधिक है, इस बात से आपको कोई निराशा है क्या?”

“अरे नाही! कउनौ निरासा नाही लल्ला! कभ्भो कभ्भो हमका बड़ी हंसी आवत है - बड़ी वाली उमर मा छोट होवै पै भी गंभीर बाय, अउर छोट वाली उमर मा बड़ी होवै पै भी खूब चंचल बाय!”

“तो क्या हुआ चाची जी? वो दोनों आपका आदर करती हैं; दोनों ने ही आपको पोता दिया! दादी बनने का सुख दिया! दोनों आपकी खूब सेवा करती हैं। यह बड़ा सुख नहीं है?”

“अरे बहुत बड़ा सुख बाय लल्ला! कौनौ बहुत नीक करम किये होबै हम की ई दूनौ बहुरियैं मिली हँय हमका!” चाची ने आनंदित होते हुए कहा।

चाची के स्तन गोल और बड़े से थे, और चूचक छोटे, इसलिए बिना उनके स्तन को पकड़े, उनका चूचक बार बार मेरे मुँह से बाहर निकल जा रहा था। इसलिए मैंने दोनों हाथों में उनका स्तन थाम लिए और पीने लगा। मेरी इस हरकत पर वो मुस्कुराईं,

“हमरी सब बहुरियन कै दूध छोट छोट बाय!”

“उम्?”

“दूबर दूबर बाटीं सबहिं!”

“हा हा हा! लेकिन अपने अपने पतियों को पसंद तो हैं न, चाची जी?”

“पसंद काहे न अइहैं? सुन्दर सुन्दर बहुरियैं हैं हमार! अउर तोहार महतारी कउनो कम हँय? कितनी सुन्दर हँय उनहूँ! उनहूँ कै दूध छोट छोट हँय!” उन्होंने बड़े स्नेह से मेरे बालों को सहलाते हुए कहा, “उनका हम केतना समझावा की एक और बच्चा कै लियौ। लेकिन हमार बात सुनबै नाही करतीं!”

“बहुत खर्चा होता है अम्मा,” मैं झोंक में बोल गया, “मेरा मतलब है चाची जी!”

लेकिन उनको मेरे मुँह से अपने लिए ‘अम्मा’ शब्द सुनना अच्छा लगा, “अरे, तू हमका अम्मा ही बोला करौ! हमका नीक लागत है। तोहार अम्मा अउर बप्पा दूनौ जने हमका अपनी अम्मा यस मान दियत हीं!”

मैं मुस्कुराया, “खर्चा होता है अम्मा! मेरी पढ़ाई लिखाई पर बहुत खर्चा हुआ।”

“हाँ, लेकिन अब तौ तू पढ़ लिख लिहे हौ न! कमाऊ पूत हौ! अब कै लिहैं! तोहार अम्मा हमरे बड़कऊ से दसै साल बड़ी होइहैं! अउर का? लेकिन लागत हीं बड़कऊ के मेहरारू यस। लड़की के नाईं! अबहीं तौ उनका खूब बच्चे होय सकत हीं। हम तौ उनसे बहुत बड़ी हन। हमका तौ अबहूँ बच्चे होवत हँय!”

“हा हा! वो तो इसलिए कि चाचा जी आपको बहुत प्यार करते हैं!”

“तोहार बप्पा का कम प्यार करत हीं का तोहरी अम्मा का?” चाची ने शर्माते हुए कहा, “दूनौ जने रोज खेलत हीं! का हम नाही जानित?”

“और आप और चाचा जी?” मैंने शरारत से पूछा।

“मार खाबो तू अब हमसे!” उन्होंने शर्मा कर, लेकिन हँसते हुए कहा।

मतलब अभी भी चाचा जी और चाची जी की सेक्स लाइफ बड़ी सक्रीय थी! क्या बात है! बातें करते हुए दूध पीना मुश्किल काम है। इतनी देर में उनका एक स्तन एक चौथाई भी खाली नहीं हुआ था। तो मैं पुनः पीने लगा।

“महतारी कै दूध पियै मा नीक लागत है?” उन्होंने बड़े प्रेम से पूछा।

“जी अम्मा!”

“पी लियौ! हम तीनौ जनी कै दूध बहुत बाढ़ा बाय!”

‘अच्छी बात है!’ मैं पीता रहा।

“लल्ला, दुई मिनट रुकौ। एक ठो कमरिया (कम्बल) लै आई। ए मा ओघड़े जाइत हन!”

मैंने उनका स्तन छोड़ दिया; वो उठीं, अपनी ब्लाउज के बटन लगाईं, और कमरे से बाहर निकल गईं। शायद यह कम्बल ननकऊ भैया के कमरे में था। गाँवों में गोपीयता और निजता का कोई वैसे भी ख़ास तवज्जो नहीं देता - मुझे उधर से छोटी भाभी के खिलखिला कर हँसने, ननकऊ भैया की बौखलाई और झुंझलाई हुई भुनभुनाहट, और फिर चाची की स्नेह भरी झिड़क सुनाई दी। कोई तीन चार मिनट बाद वो एक मोटा, और बड़ा सा कम्बल ले कर वापस आ गईं।

“हम दूनौ जने के ताईं ई ठीक रहे।”

उन्होंने कहा, और बिस्तर में वापस आने से पहले उन्होंने वो छोटी रजाई मुझ पर से हटा दी। थोड़ी ठंडक तो लगी, लेकिन उसको बर्दाश्त किया जा सकता था। उसके तुरंत बाद उन्होंने वो कम्बल मुझ पर ओढ़ा दिया।

“क्या हुआ चाची जी?”

“अरे कुछु नाही लल्ला!” उनके गालों पर शर्म की लालिमा आ गई।

“क्या हुआ? ननकऊ भैया नाराज़ हो रहे थे?”

“अरे ऊ अउर बहुरिया दूनौ खेलत रहे! अब हियाँ से हम का जानी की दूनौ परानी का करत हीं!” उन्होंने लज्जित होते हुए कहा।

“हा हा! अरे चाची जी, ऐसे ही तो आपको जल्दी से एक और पोता या पोती का मुँह देखने को मिलेगा!”

“हाँ हाँ,” उनको इस बात पर थोड़ी और शर्म आ गई, “जादा सयान बनै कै कोसिस न करौ! चलौ अब सोइ जाव!”

सोचिए - बस दो ही दिनों बाद मेरी शादी होने वाली थी, और मेरी चाची मुझसे चाह रही थीं कि मैं सेक्स के बारे में न जानूँ! सब छोटे होने का तमगा! सबसे छोटे ही बन के रहो!

कम्बल थोड़ा चुभन वाला था, लेकिन उसको ओढ़ते ही गर्मी का एहसास होने लगा। चाची वापस मेरे साथ लेट गईं। ऐसे कैसे सो जाता - इतने वर्षों बाद उनके स्तन पीने का सौभाग्य मिला था, उसको ऐसे हाथ से कैसे निकल जाने देता? चाची जी बिस्तर पर आईं, और जब उन्होंने खुद अपनी ब्लाउज नहीं खोली, तो मैं खुद ही वापस उनके ब्लाउज के बटन खोलने लगा। उन्होंने मुझे रोका नहीं। मैंने उनका ब्लाउज उतारा, और उसी स्तन का चूचक वापस अपने मुँह में भर लिया, जिसको मैं पहले पी रहा था।

उस स्तन के पूरी तरह खाली होने तक हमने कुछ नहीं कहा। जब मैं दूसरे स्तन को पीने को हुआ, तो चाची ने कहा,

“ई पैंटवा काहे पहिरे हो, लल्ला?”

“व्वो मैं अपने कपड़े बदल नहीं पाया न, अम्मा!”

“अरे तो उतार दियौ अब! सोवै जूनी ढील ढील पहिरै का चाही।”

फिर वो मेरी पैंट उतारने को हुईं।

“अम्मा?”

“अरे, हमसे का सरमात हो! तोहार महतारी हमका आपन अम्मा कहत हीं। अउर हमहूँ तुंहका आपन लरिका मानित हन। काल तोहार हल्दी तेल होए, अउर ऊ सब हमहीं करबै। सब मेहरारूयैं रहियैं हुआँ! तबहुँ सरमऊबो?”

“उनके सबके सामने नंगा थोड़े न रहूँगा अम्मा! अब मैं बड़ा हो गया हूँ?”

“तू चाहे जितनै बड़े होइ जाओ, हमरे लिए हमार लल्ला ही रहबो!” कह कर वो मेरी पैंट उतारने लगीं, “अउर तू अउर तोहार सहबाला, दूनौ जने का हमही हल्दी उबटन लगउबै!”

जब मेरी पैंट उतर गई तो कम्बल कुछ अधिक ही चुभने लगा। उसके कारण मुझे खुजली होने लगी।

“का भवा?”

“कम्बल चुभ रहा है अम्मा!”

“अच्छा! चदरा ओढ़ाय देई?”

“बहुत गर्मी लगने लगेगी अम्मा।”

“अरे तो कच्छी उतार दियौ!”

“क्या अम्मा?”

“का अम्मा काव?” वो मेरी चड्ढी भी उतारने लगीं, “अपनी अम्मा के सामने लजऊबो?”

फिर उन्होंने मेरे लिंग को टटोल कर कहा, “लल्ला?”

“जी अम्मा?”

“हियाँ से जाये के बाद तोहार अम्मा तोहार छुन्नी कै मालिस करत रहीं?”

“नहीं अम्मा!”

“ओह! ऊ छोकरिया हमार कहा कछु करतै नाही!”

“क्या हुआ, अम्मा?”

“का भवा? अरे, अनर्थ होई गवा! ई रत्ती भर कै छुन्निया लै कै अपनी मेहरारू के साथै का करबौ?”

“अरे अम्मा, आपके सामने ये छोटा सा है। नहीं तो बड़ा हो जाता है!” मैंने झेंपते हुए कहा।

“सही मा?”

“हाँ अम्मा!”

“काल हमार बेइज्जती तौ न करवौबो?”

“नहीं अम्मा!”

“अच्छा, हमरे सामने नाही बाढ़त है, तौ आँख बंद कर कै अपनी मेहरारू के बारे मा सोचौ! देखी तौ कितना बाढ़त है!”

‘अरे यार! क्या मुसीबत है!’ मैंने सोचा।

लेकिन क्या करता! चाची मेरा पीछा ऐसे तो नहीं छोड़ने वाली थीं। वैसे उनकी चिंता जायज़ भी थी। अगर, जवान बेटे का लिंग न खड़ा हो, तो बड़ी बेइज़्ज़ती वाली बात तो थी। मेरे गाँव में नपुंसकता को ले कर कितनी ही सारी शादियाँ टूट गईं थीं। विवाह विच्छेद का ये सबसे बड़ा कारण था, और शायद एकमात्र कारण था - कम से कम मेरे गाँव में! औरतें पुरुषों के बाकी सारे जुल्म-ओ-सितम बर्दाश्त कर लेती थीं, लेकिन नपुंसकता नहीं। हमारे समाज में पुरुष की नपुंसकता स्वीकार्य नहीं थी, और किसी नपुंसक पुरुष की पत्नी को पूरा अधिकार था कि वो उसको छोड़ कर किसी दूसरे पुरुष से विवाह कर ले। यह व्यवस्था हमारे समाज में पूरी तरह मान्य थी!

खैर, मैंने उनका स्तन छोड़ा और आँखें बंद कर के गैबी के साथ होने वाली सुहागरात के बारे में सोचने लगा। उधर चाची मेरा लिंग सहला रही थीं। कुछ ही पलों में मेरा लिंग अपने पूरे आकार में बड़ा होकर स्तंभित हो गया।

“दैया रे,” चाची ने हँसते हुए कहा, “ई छुन्नी बाय की लोढ़ा (सिल-बट्टे वाला बट्टा; एक लगभग बेलनाकार पत्थर, जिससे सिल पर मसाले, चटनी इत्यादि पीसी जाती हैं)!”

“मैं आपको कह तो रहा हूँ कि आप नाहक ही परेशान हो रही हैं!”

“हाँ लल्ला! सही कहै रह्यो! बहुत नीक बाय ई! बहुरिया के साथे नरमी किह्यो, नाही तो बहुत कस्ट होये बेचारी का!” उन्होंने हँसते हुए कहा।

मैं वापस उनके स्तनों से जा लगा। और पीने लगा। ऐसे बात करते हुए उनके दोनों स्तनों को खाली करने में कोई आधा घंटा और लग गया।

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शानदार अपडेट ❤️ हमेशा की तरह
बहुत बहुत धन्यवाद भाई! नए updates दिए हैं :)
 

avsji

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Romantic, NAked and Fantastic
बहुत बहुत धन्यवाद! :)
आज के updates भी पढ़िए और बताइए!
 

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Masti bhara update thaa gaaon mein ab shaadi ka mahol hai aur usse majedar yahan saas aur bahu lage pade hein "Santan utpatti" ke kaam mein 😁😁😁😁 ab chachi hai toh usko amar ke chunnu ke baarr mein chinta toh hogi hi magar jab amar ke uttejak ling ko dekha tab tasalli hua ki amar apni mehraaru ko acche se khush kar sakta hai...ab vivah aur suhagrat ka intezar hai.... superb update 👏👏👏
 
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