• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

Status
Not open for further replies.

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,392
24,539
159
b6ed43d2-5e8a-4e85-9747-f27d0e966b2c

प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
Last edited:

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,392
24,539
159
दीपवाली के ख़ुशियों भरे पर्व पर xforum के समस्त साथियों और उनके परिवारजनों को हार्दिक और निस्सीम शुभकामनाएँ!

ईश्वर आप सभी का मङ्गल करें; आपको स्वस्थ, प्रसन्न, और संपन्न रखें!

Deepawali

और मेरे प्रिय पाठकों - तनिक देर धैर्य बनाए रखें!
कोई बीस हज़ार शब्दों के अपडेट आ रहें हैं आपके पास - इस दीपावली के नज़राने के तौर पर! :)
आज ही! कुछ ही देर में। इसलिए साथ बने रहें।


Kala Nag Lib am KinkyGeneral SANJU ( V. R. ) Chetan11 Nagaraj Choduraghu
 
Last edited:

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,392
24,539
159
अंतराल - विपर्यय - Update #1

शाम को जब मैं घर आया, तब घर का माहौल बड़ा चहल पहल वाला था। पिछले कुछ समय से हमेशा ही रहता था, लेकिन आज कुछ अधिक ही लग रहा था। माँ बात बात पर हँस रही थीं, और लगातार मुस्कुरा रही थीं। उनके चेहरे पर ख़ुशी की एक अनोखी सी चमक थी - जिसको देख कर बड़ा अच्छा लग रहा था। हाँ - एक और बात मैंने नोटिस करी - माँ ने रंगीन साड़ी पहनी हुई थी आज। क्या बात है! बहुत बहुत बढ़िया! मन में बस इतना ही आया कि ‘काश, वो इसी तरह रहें हमेशा’! उनकी ख़ुशी मेरे लिए बहुत आवश्यक थी। हाथ मुँह धो कर जब मैं बच्चों के साथ खेलने में व्यस्त हो गया, तब माँ और काजल साथ में रसोई का काम देखने लगीं। यह भी नई बात ही थी - काजल माँ को अधिकतर समय रसोई के काम में उलझाती नहीं थी; सब कुछ खुद ही कर लेती थी। लेकिन आज दोनों हँसते बोलते साथ में काम कर रही थीं। मैं यहाँ फिर से ‘काजल पुराण’ शुरू नहीं करना चाहता - आप पाठक लोग भी वो सारी कथा सुन सुन कर पक गए होंगे - लेकिन, सच में, काजल के सम्मान में, उसकी बढ़ाई में जितना कहूँ, उतना ही कम है!

उधर सुनील भी हमारे साथ खेल में शामिल हो गया - उसको देखते ही आभा उसके ऊपर चढ़ गई। अपने ‘दादा’ की सवारी करना, उससे ठुनकना, जायज़ - नाजायज़ कैसी भी बातें मनवाना, उससे शिकायत करना, अपनी मनुहार करवाना, और ऐसे व्यवहार करना कि जैसे मैं नहीं, वो उसका बाप हो - ऐसा था सुनील और आभा में रिश्ता! अपनी एकलौती बेटी को सुनील के इतने करीब देख कर मुझे थोड़ी जलन सी तो महसूस होती थी, लेकिन बुरा नहीं लगता था। मेरी अनुपस्थिति में जिस तरह से सुनील ने दोनों बच्चों को प्यार दिया था, ख़ास तौर पर आभा को, और उन दोनों को इतना कुछ सिखाया था, मुझे आश्चर्य तब होता जब वो दोनों उसके इतने करीब न होतीं। सुनील एक अच्छा रोल मॉडल था दोनों के लिए। हाँ मुझे एक बात से बहुत संतोष होता था कि अवश्य ही आभा सुनील के अधिक नज़दीक थी, लेकिन लतिका मेरे अधिक करीब थी!

खैर, देर तक बच्चों के संग खेल कर जब छुट्टी मिली, तब तक हमारा खाना डाइनिंग टेबल पर सजा दिया गया था। खाना खा कर मैं अपने कमरे में चला गया। कल एक और कस्टमर मीटिंग थी। अपना बिज़नेस चलाने में यही कष्ट है, और यही आनंद भी है। सोचा था कि आज जल्दी सो कर देर तक सोऊँगा। लेकिन मेरे कमरे में आने के पाँच मिनट बाद ही काजल भी कमरे में चली आई। उसको देख कर मैं मुस्कुराया।

“कैसा था दिन?”

“बहुत ही अच्छा!” मैंने कहा - काजल और मैं बिज़नेस की बातें नहीं करते थे। वो कहती थी कि उसको वो बातें समझ में नहीं आती थीं। मैं भी उसकी बात का मान रख कर बस बहुत थोड़ा ही बताता था, “कल एक और कस्टमर मीटिंग है। उसके बाद कुछ दिन थोड़ा फ्री रहूँगा।” मैंने कुछ देर चुप रह कर आगे जोड़ा, “शायद!”

छोटी कंपनी होने का मतलब यह है कि अधिकतर बड़ी डील्स में मुझे लगना ही पड़ता था। टेक्नीकल सेल्स के लोग टीम में शामिल हो रहे थे, लेकिन धीरे धीरे। और ऐसे ही किसी को भी तो लाया नहीं जा सकता न कंपनी में? काम कम अवश्य रहे, लेकिन जो काम करें, वो बढ़िया क्वालिटी का होना चाहिए। उसी से रेपुटेशन बनती है।

मेरी बात पर काजल मुस्कुराई, “अच्छी बात है। इतनी गर्मी में तुमको कुछ दिन की राहत मिल जाए तो बुराई नहीं!”

“बच्चे कहाँ सो रहे हैं?”

“बच्चे कहाँ सोते हैं अभी!” वो बोली, “अपने दादा और दीदी के साथ धमाचौकड़ी मचा रहे हैं इस समय!”

“हा हा हा! छुट्टियाँ होने वाली हैं दोनों की! अब तो आफत है तुम सभी की!”

“हा हा हा हा! हाँ आफत तो है!” काजल बड़े विनोदपूर्वक बोली, “लेकिन यही आफत तो हम माओं को अच्छी लगती है। बच्चे न हों, तो यही घर, यही सब सुख सुविधाएँ काट खाने को दौड़ेंगी!”

मैं चुप रहा। फिर छुट्टियों की प्लानिंग का याद आया।

“वेकेशन का सोचा कुछ?”

“फुर्सत कहाँ मिली?”

“हम्म्म... मैंने सोचा है लेकिन... बहुत नहीं... बस थोड़ा ही... उत्तराँचल जा सकते हैं। एक तो बहुत दूर नहीं है, और बहुत सुन्दर भी है। मैं भी साथ में आ सकता हूँ। अगर काम पड़ा, तो वापस दिल्ली आने में बहुत समय नहीं लगेगा!” मैंने उत्साह से कहा, “एक ट्रेवल कंपनी का काम किया था कुछ महीने पहले - उसका सीईओ मेरा अच्छा दोस्त बन गया है। उसी ने कहा कि वो सारा इंतजाम करवा देगा। गाड़ी होटल वगैरह सब!”

मेरी बात सुन कर काजल बड़ी खुश हुई, “अर्रे वाअअअह! बढ़िया है ये तो!” फिर उसने सोचने का अभिनय करते हुए कहा, “लेकिन एक गुप्त बात है!”

“गुप्त बात?”

“हाँ! हमारे वेकेशन और सुनील के हनीमून का अलग अलग इंतजाम करवाना पड़ेगा!”

“क्या? हा हा हा! हनीमून? सुनील का हनीमून?”

“अरे, उसकी शादी होगी, तो हनीमून भी तो होगा!”

“बिलकुल होगा! लेकिन कब हो रही है उसकी शादी?”

“जल्दी ही!” काजल ने रहस्यमई तरीके से कहा, “पता है, उसने अपनी वाली को प्रोपोज़ कर दिया है, और वो मान भी गई है!”

“क्या! क्या! क्या!” मैंने टीवी सीरियल्स के तर्ज़ पर नाटकीय तरीके से प्रतिक्रिया दी, “कोई बताता ही नहीं मुझे कुछ भी इस घर में! इतना खराब हूँ क्या मैं?”

“अरे नहीं! खराब नहीं, बस शर्माते हैं तुमसे!”

“अरे! इतनी अच्छी खबर बांटने में कैसी शर्म? ये तो बड़ी अच्छी बात है!” मैंने उत्साहित होते हुए कहा, “अरे, लड़की के बारे में बताओ। क्या नाम है? क्या करती है? कैसी है? कहाँ की है? सब बताओ!”

“हा हा हा हा हा! तुम भी न... बिलकुल बच्चों जैसे एक्साइट हो रहे हो! अच्छा है।” काजल कुछ सोचती हुई - भूमिका बनती हुई बोली, “बड़ी सुन्दर है बहू - बिलकुल अपने नाम जैसी! फूल समान! और गुणों की खान है वो!”

“अरे वाह! मिली तुम उससे?”

“हाँ न! आज ही!” काजल ने फेंका, “भा गई मुझको तो!”

“अरे तो बताना था न! मैं भी आ जाता! तुम भी न काजल!” मैंने नाटक किया, “तुम्हारी बहू है, तो मेरी भी तो कुछ है न! ऐसे सौतेला व्यवहार किया तुमने मेरे साथ!!”

“अरे बस बस! पूरा सुन तो लो पहले - बाद में शिकायत कर लेना,” काजल हँसते हुए बोली, “बहू यहीं की है... यहीं की मतलब, दिल्ली की। आर्ट्स ग्रेजुएट है - फर्स्ट डिवीज़न, विद डिस्टिंक्शन! शुद्ध हिंदी, और शुद्ध इंग्लिश बोलती है। और तो और, थोड़ी बहुत बंगाली भी बोल लेती है!”

“अरे वाह!” मैंने हँसते हुए कहा, “बढ़िया है फिर तो!”

“हाँ न! और क्या बढ़िया बोलती है - मीठा मीठा! सुन कर बहुत सुख मिलता है कानों को!”

“वाह जी!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “लड़की अच्छी है, लड़के को पसंद है, लड़के की माँ को पसंद है - और क्या चाहिए?”

“हाँ - और क्या चाहिए!”

“माँ मिलीं हैं उससे?”

“हाँ!”

“उनको पसंद आई?”

“क्यों नहीं आएगी पसंद? उसके जैसी ही तो है!” काजल कुछ सोचते हुए बोली, “और सच कहूँ? हमको भी शायद इसीलिए पसंद आई कि बहू, बिलकुल दीदी जैसी ही है!”

“हा हा! बहुत अच्छा! बहुत अच्छा! सभी को पसंद है!!” मैंने खुश होते हुए कहा, “लेकिन ये गलत बात है! मेरे पीछे पीछे तुम लोग गुपचुप कुछ कुछ करते रहते हो। कुछ बताते भी नहीं!”

“अरे बता तो रही हूँ! ये सुनील भी न - थोड़ा शर्माता है तुमसे। इसलिए छुपा लेता है कुछ बातें। वो तो मैं ही हूँ कि उसको खोद खोद कर यह सब जान लिया, नहीं तो कहाँ बता रहा था वो मुझे भी!”

“अरे, बीवी लाने में क्या शर्माना!”

“वही तो!” काजल रहस्यमय तरीके से बोली, “मैंने तो इन दोनों की कुण्डली भी मिलवा ली है!”

“क्या! हा हा हा!”

“अरे और क्या! बहुत अच्छा मैच है सच में। पंडिज्जी ने बताया।”

“अच्छा! क्या बताया?”

“छत्तीस में अट्ठाईस गुण मिलते हैं दोनों के!”

“अच्छा है ये तो?”

“बहुत अच्छा है! बोले कि बहुत प्रेम से रहेंगे दोनों, और बहुत स्वस्थ रहेंगे!” काजल अपने में ही खुश होते हुए बोली, “पच्चीस के ऊपर गुण मिलने पर बहुत अच्छा मानते हैं। और भी बहुत से योग हैं जो दोनों के लिए बहुत अच्छे हैं!”

“और क्या चाहिए!” मैं काजल के भोलेपन पर मुस्कुराते हुए बोला।

“हाँ - और क्या चाहिए!” काजल ने कहा, “बस, जल्दी से शादी कर देते हैं उन दोनों की!”

“जल्दी से?”
“और नहीं तो क्या? सुनील के जाने से पहले!”

“अरे! इतनी जल्दी!!”

“और नहीं तो क्या! जाए अपनी बीवी के साथ! संसार बसाए, ज़िम्मेदारियाँ उठाए। एक माँ और क्या चाहती है!”

“हा हा हा हा! जब तुम ऐसे बातें करती हो न काजल, तो लगता है कि हम बूढ़े हो गए!”

“अरे, मेरे बेटे की शादी होनी है, तो हम क्यों बूढ़े होने लगे?” काजल ने बनावटी गुस्से से कहा, और फिर बात पलटते हुए आगे बोली, “लेकिन अमर, इन दोनों की शादी का कुछ करते हैं न!”

“हाँ - करते हैं कुछ। कब तक का प्लान है?”

“समय नहीं है। जितना जल्दी हो सके उतना! या तो इसी हफ़्ते या अगले दस दिनों में?”

“अरे, लेकिन बहू के घर वाले? वो मानेंगे?”

“नहीं मानेंगे तो मना लेंगे!”

“हा हा हा हा हा! मुझे तो लगता है कि सुनील से अधिक तुम उतावली हो रही हो!”

“वो भी है उतावला!”

“ज़रूर होगा। जैसी लड़की तुमने बताई है, कोई भी उतावला हो जाएगा!”

“तुमको भी मिलवाते हैं उससे।”

“हाँ! इतना तो करो ही।”

“जल्दी ही - इसी वीकेंड!”

“हाँ बेहतर!”

इस अनोखी सी बात पर मैं हैरान हो गया। काजल की भाँति मैं भी चाहता था कि सुनील की शादी जब हो, तो बड़ी धूमधाम से हो। लेकिन काजल की इस बात पर भी मैं सहमत था कि धन का व्यर्थ व्यय करने की अपेक्षा, अगर हम नवदम्पति को आर्थिक सहायता करने में उसका उपयोग करें, तो बेहतर होगा। जैसे कि मुंबई में उसके लिए घर खरीदने में मदद दे कर! ऐसा करने से कम से कम उनके पास अपना एक घर हो जाएगा। मुंबई में घर, मतलब एक इन्वेस्टमेंट, जो आगे उनको फ़ायदा दे सकती है। मतलब एक साधारण सा विवाह - जैसे कि कोर्ट मैरिज और फिर एक पार्टी! बस!

मैंने काजल को दिलासा दिया कि कल ही मैं इस बारे में अपने वकील और अपने नेटवर्क में बात करूँगा। और यथासंभव, अति-शीघ्र तरीके से सुनील की शादी उसकी गर्लफ्रेंड से करवा दूँगा।


**


आज की रात, घर के कई सदस्यों के मन में अलग अलग तरह के भाव थे।

मैं कल की कस्टमर मीटिंग और फिर अपने पूरे परिवार के साथ एक सुन्दर सी छुट्टी बिताने के बारे में सोच रहा था। एक समय था जब गाँव में अपने पैतृक घर जाना - मतलब छुट्टी मनाना होता था। अब परिस्थितियाँ बदल गई थीं। गाँव गए हुए समय हो गया था। पड़ोस के चाचा जी, चाची जी, और उनका परिवार बहुत याद आता था। उनसे हमको बहुत ही अधिक प्रेम मिला था। हाँ, इस बार तो उत्तराँचल जाएँगे। देवयानी से पहली (या यह कह लीजिए कि पहली नॉन प्रोफेशनल) मुलाकात वहीं हुई थी, इसलिए वो स्थान एक तरह से मेरे लिए बहुत अधिक महत्ता रखता था। आभा को मसूरी दिखाऊँगा और बताऊँगा उसकी मम्मी से मेरी मुलाकात की बातें, और हमारे प्यार के परवान चढ़ने की बातें! अच्छा रहेगा! हाँ, हफ्ता दस दिन केवल मज़े करेंगे! खूब मज़े करेंगे! इस बार तो और भी अच्छा है - अगर काजल की बातें सभी सही हैं, तो सुनील और उसकी बीवी भी साथ चल सकते हैं - अगर उनका मन किया, तो। हाँ, बहुत दिन हो गए इस घर में ख़ुशी का माहौल बने! बहू आने से वो सब बदल जाएगा। बड़ा अच्छा रहेगा।

काजल - उसकी मनः स्थिति मुझसे थोड़ी अलग थी। मुझको सारी बातें ठीक से न बताने का मलाल उसको साल रहा था। ऐन मौके पर उसकी हिम्मत ने उसको धोखा दे दिया। ‘कैसे बताऊँ अमर को ये सब!’ ‘कहीं वो नाराज़ न हो जाए!’ बस यही विचार उसके मन में बार बार आ रहा था। ‘लेकिन वो नाराज़ क्यों होगा? अगर मेरा और उसका सम्बन्ध बन सकता है, वो मेरे बेटे का और सुमन का क्यों नहीं?’ काजल मन ही मन इस बात को जस्टिफाई करने पर लगी हुई थी। जिस राह पर सुनील और सुमन चल पड़े हैं, उस राह की परिणति सभी जानते हैं। प्रेम कोमल अवश्य होता है, लेकिन वो ऐसा बलवान होता है कि उसमें सूर्य से भी अधिक गुरुत्वाकर्षण होता है। मतलब सुनील और सुमन को एक बंधन में बंध जाना है। इसलिए अमर का इस बारे में जानना आवश्यक है। और उसका इस सम्बन्ध को स्वीकार करना भी आवश्यक है। एक संतान अपने माता-पिता को ले कर बहुत पसेसिव होती है। माता या पिता दूसरा विवाह कर ले, तो इस बात को आसानी से स्वीकार नहीं करती। काजल ने देखा था जब आरम्भ में अमर और देवयानी की शादी की बात उठी थी। उसको बिलकुल अच्छा नहीं लगा था यह सब सुन कर। उसको लगता था और यकीन भी था कि अब उसकी अम्मा और उसके भैया एक हो जाएँगे। काजल ने बड़े जतन से, और बड़े गाम्भीर्य से उसको समझाया था कि अमर अवश्य ही उससे शादी करना चाहता था, लेकिन वो उससे शादी नहीं करना चाहती थी। और उसके कारण भी बताए थे, जो आज तक नहीं बदले! काजल ने सुनील को समझाया था कि वो स्वयं भी चाहती है कि अमर और देवयानी एक हो जाएँ! अच्छी बात थी कि उसको यह बात समझ में आ गई थी। अब यही बात अमर को समझानी थी।

सुनील में मन में तो जैसे तितलियाँ उड़ रही थीं। जहाँ एक तरफ उसको अपना वर्षों पुराना सपना साकार होते हुए दिख रहा था, वहीं शादी और परिवार जैसी गंभीर ज़िम्मेदारी का दबाव भी बनता दिख रहा था। उसके अकेले के बूते यह संभव नहीं था - वो इस बात को अच्छी तरह समझता था। लेकिन सुमन जैसी साथी अगर हो, तो फिर चिंता कैसी? अम्मा को सुमन के बारे में बताना और समझाना आसान रहेगा। बस, डर है तो भैया का। वो क्या सोचेंगे? क्या करेंगे? उनको कैसे बताया जाए? यही एक यक्ष प्रश्न है इस समय! ‘कोशिश कर के कल ही बता देता हूँ!’ वो सोच रहा था, ‘उनकी गालियाँ बर्दाश्त कर लूँगा, माफ़ी माँग लूँगा - लेकिन मना लूँगा। अब चूँकि मेरा और सुमन का भविष्य जुड़ गया है, तो भैया का आशीर्वाद पाना मेरे लिए सबसे ज़रूरी है।’ और अगर सब कुछ सही रहा और उनकी और अम्मा की रज़ामंदी हो गई, तो जल्दी ही शादी कर लेंगे! सही में - अगर सुमन साथ ही चले मुंबई, तो क्या ही अच्छा हो!

माँ! वो तो इस समय किसी छोटी बच्ची के जैसे महसूस कर रही थीं। पिछले दो चार दिनों में उनके साथ जो कुछ हो गया था, और उन्होंने जो कुछ महसूस कर लिया था, वो सब एक परीकथा जैसा लग रहा था! ऐलिस इन वंडरलैंड! एक एक कर के उनके साथ बस अनोखा अनोखा होता जा रहा था। कितना सारा संशय था उनको। लेकिन अब वो सब बेबुनियाद लग रहा है। बिना वजह ही उन्होंने सुनील की मंशा पर संदेह किया! एक नया परिवार पाना उनके लिए एक अनदेखा सपना था। वो साकार होते हुए दिख रहा था। उस परिवार में उनकी सबसे प्यारी सहेली उनकी माँ के रूप में थी। एक सुदर्शन सा पुरुष उनका पति होने वाला था। और एक गुड़िया सी लड़की उनकी ननद! आज अपनी नई माँ के स्तनों से दुग्धपान कर के उन्होंने उस सुख का अनुभव कर लिया था, जिसकी स्मृतियाँ अब लुप्त हो चुकी थीं। उम्मीद है कि देवी माता अपनी अनुकम्पा ऐसे ही उन पर बनाए रखें! मिष्टी और अमर को पीछे छोड़ने का सोच कर उनको दुःख भी हो रहा था, लेकिन एक स्त्री की नियति भी तो यही होती है न कि अपना घर छोड़ कर किसी और के घर जाए और उसका संसार बसाए। हाँ - एक नया संसार बनाना! ईश्वर ने यह शक्ति तो केवल स्त्री को ही दी हुई है। कैसी अद्भुत सी भावना उत्पन्न होती है यह सोच कर! किसी नई नवेली दुल्हन जैसी ही भावनाएँ, उसके जैसी ही चेष्टाएँ और उसके ही जैसी आशाएँ उनके माँ में जन्म लेने लगीं। सुनील की ही भाँति उनके भी मन में तितलियाँ उड़ने लगीं।

**
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,392
24,539
159
अंतराल - विपर्यय - Update #2


अगले दिन :

आज सुनील और माँ दोनों ही अपनी दिनचर्य के अनुसार ही सुबह सुबह दौड़ने निकल लिए। माँ को सुनील के साथ संकोच भी हो रहा था और रोमांच भी। और उधर सुनील को महसूस हो रहा था कि वो दौड़ नहीं रहा, बल्कि उड़ रहा है। प्रेम में होने की भावना किसी भी व्यक्ति का कायाकल्प कर देती है। जब दोनों दौड़ कर वापस आए, तब मैंने सुनील से कस्टमर मीटिंग के लिए अपने साथ आने को कहा। मीटिंग में उसका आना आवश्यक नहीं था, लेकिन मैं चाहता था कि पुराने समय के जैसे ही मैं उससे बात कर सकूँ। घर में तो हम दोनों ही अल्पमत में थे - मतलब चार लड़कियों के बीच में हम दो लड़के! तो कभी कभी मन होता था कि हमारा भी ‘बॉयज टाइम’ हो! मेरी बात पर सुनील मेरे साथ ऑफिस चलने पर तुरंत ही तैयार हो गया।

उधर, आज लतिका और आभा के स्कूल में, गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू होने से पहले का आखिरी दिन था। लिहाज़ा आज रिजल्ट के साथ साथ समर वेकेशन का पैकेट मिलने वाला था, जिसमें एनुअल मैगज़ीन के साथ साथ समर एक्टिविटीज़ और होम वर्क इत्यादि होते थे। काजल उस बावत उन दोनों के साथ स्कूल जाने वाली थी। लिहाज़ा, दौड़ कर घर वापस आने के बाद माँ ही नाश्ता इत्यादि बनाने का काम देख रही थीं। बहुत दिनों से रसोई का काम न करने के कारण माँ की स्पीड धीमी ही थी। तो पहले बच्चों और काजल को नाश्ता करा कर, और उनके लंचबॉक्स तैयार कर के माँ ने मुझे और सुनील को नाश्ता कराया। हमको विदा करने के बाद उन्होंने अपना नाश्ता किया। एक बेहद लंबे समय के बाद यह सब हुआ था; और यह भी कि माँ ने सबसे आखिरी में खाया हो! एक गृहणी के रूप में यह सब बहुत पहले वो कर चुकी थीं। अपने पुराने दिनों को याद कर के उनके होंठों पर बरबस ही एक स्निग्ध मुस्कान आ गई।

वैसे वो आज अपनी दिनचर्या में इस बदलाव को देख कर खुश थीं। अक्सर डिप्रेशन की मार झेल रहे लोगों को उनकी दिनचर्या में ऐसे अचानक बदलाव देख कर उलझन होने लगती है, लेकिन माँ अब बहुत ठीक थीं। अब यह कहना कठिन था कि वो अवसाद का शिकार थीं। हाँ - माँ ठीक तो बिलकुल ही थीं, लेकिन उनके मन में परस्पर विरोधी भावनाएँ उत्पन्न हो रही थीं। जहाँ एक तरफ वो इस बात पर राहत महसूस कर रही थीं कि सुनील घर में नहीं था, वहीं दूसरी तरफ वो उसके लिए तरस भी रही थीं। प्रेम में होना बड़ा मुश्किल समय होता है प्रेमियों के लिए! जब उन्होंने सुनील को अपना पति मान ही लिया था, तो अब उससे दूर होना या रहना थोड़ा कठिन विचार था। और क्यों न हो? सुनील के साथ बिताया हर पल, जैसे आश्चर्यों से भरे बक्से को खोलने जैसा था। कोई क्षण ऐसे नहीं जाता था जब हँसे - मुस्कुराए बिना रहा जाए!

‘‘इनकी’ पत्नी बनना कैसा होगा?’ माँ पिछले दो दिनों से यही कल्पना करने लगी थीं।

वाकई, सुनील की पत्नी होना माँ के लिए एक अद्भुत अनुभव होगा। सुनील जीवन की नवीन ऊर्जा से लबरेज़ था, और अपने और अपनी होने वाली पत्नी के साथ अपने भविष्य के लिए उसकी आँखों में बहुत सारे सुनहरे सपने थे। उससे बात करने में कितना मज़ा आता है! वो हमेशा चुटकुले सुनाता रहता है। घर में हर किसी को आश्चर्य होता है कि उसको इतने सारे चुटकुले आखिर आते कैसे हैं! हाँ, वो बहुत खुशमिजाज था। उसके अंदर किसी भी तरह का कपट नहीं था। वो प्रेम और स्नेह से पूर्ण, सम्मानजनक, और ज़िम्मेदार आदमी था। बचपन से ही वो समझ गया था कि उसे जीवन में कुछ हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करने की ज़रूरत है, जिससे वो अपनी अम्मा और छोटी बहन की देखभाल कर सके। और अब उसने अपने उस उद्देश्य को प्राप्त कर लिया था। उसने वो जीवन कौशल हासिल कर लिया था जिसके बूते वो संसार में अपनी एक पहचान बना सकता था। वो बहुत बुद्धिमान था, और अपने विषय में बहुत जानकार भी था। अपनी कक्षा में टॉपर्स में से एक था। साथ ही, वो मेरे बिज़नेस में मेरी मदद कर रहा था, जो एक बड़ी अच्छी बात थी! उसको कैंपस में ही एक उच्च वेतन वाली नौकरी मिल गई थी, जो उसके करियर के लिए एक बहुत अच्छा संकेत था।

वो एक सरल व्यक्ति था - वो बस कई छोटी-छोटी खुशियों को इकठ्ठा करने में विश्वास रखता था, और इसलिए वो हमेशा खुश रहता था। किसी फूल पर मँडराती नन्ही सी तितली को भी देखकर वो खुश हो सकता था! इतना सरल था सुनील! जो वो महसूस करता, जो वो सोचता, जो वो करता, और जो वो कहता - सब एक ही बातें होती थीं! अन्य लोगों की तरह सोचने, बोलने और करने में वो अंतर नहीं करता था! उसके व्यवहार में कोई छल नहीं था, कोई कपट नहीं था। किसी तरह, उसने एक सरल जीवन जीने का तरीका खोज निकाला था। वो सहज, साहसी और बेहद मजेदार व्यक्ति था! माँ को वो कभी भी अपनी बातों, अपनी हरकतों से आश्चर्यचकित कर सकता था। माँ भी बहुत खुशमिजाज और मौज-मस्ती करने वाली स्त्री थीं... बस उनका व्यवहार डैड की मृत्यु के बाद बदल गया था। लेकिन अगर वो फिर से पहले ही जैसी हो जाएँ वो कितना अच्छा हो!? इस लिहाज से देखा जाए, तो उस समय हमारे पास, माँ के लिए सुनील से अच्छा वर और कोई नहीं हो सकता था।

सुनील हैंडसम भी था - अपनी अम्मा की ही तरह वो भी साँवला था... और उसकी आँखें सुंदर और अभिव्यंजक थीं। अभिव्यंजक इसलिए क्योंकि उसके मन की बातें उसकी आँखों और चेहरे पर साफ़ दिखाई देती थीं। फैशन के नाम पर थोड़ा कच्चा था - अपने बालों को वो बहुत छोटा रखता था - लगभग मिलिट्री स्टाइल का! लेकिन कुछ बात थी कि वो हेयर स्टाइल उसके चेहरे और उसके व्यक्तित्व पर अच्छी लगती थी। फैशन सेन्स में जो कमी थी, वो शारीरिक फिटनेस, और व्यायाम से दृढ़ हुए शरीर से पूरी हो जाती थी।

ओह, और उसका लिंग... कितना बड़ा था! डैड के लिंग के मुकाबले बहुत बड़ा! जिस तरह से डैड माँ से सम्भोग करते थे, उससे ही माँ खुश और संतुष्ट थीं। लेकिन उनके सम्भोग के सत्र छोटे होते थे - करीब पाँच से दस मिनट तक! लेकिन माँ को मालूम था कि मैं गैबी, देवयानी, और काजल के साथ बड़े लम्बे समय तक सम्भोग करता था, और कई कई बार करता था। इसलिए माँ जानती थी कि कुछ युगलों के सम्भोग सत्र बहुत लम्बी अवधि वाले, और भावनात्मक रूप से अंतर्निहित, और अधिक घनिष्ट हो सकते हैं। उनके मन में यह ख्याल था कि संभव है कि लिंग के आकार का सम्भोग के सत्र की गुणवत्ता पर कोई प्रभाव पड़ता हो!

‘तो, क्या इसका मतलब यह है कि ‘वो’ मेरे साथ लंबे समय तक ‘यह सब’ करेंगे!’ माँ उसी तर्क से सोच रही थी।

डैड के साथ प्रेम-प्रसंग की अवधि से माँ संतुष्ट थीं और खुश थीं। अपने साथ देर तक, और कई बार सम्भोग होने की सम्भावना सोच कर ही वो सिहर उठी। उनके लिए यह कल्पना कर पाना भी काफी अलग था और मुश्किल था। पुनः प्रेम पाने की कोमल कल्पनाओं का मन ही मन आस्वादन करते करते कोई दो घण्टे हो गए। तब जा कर माँ को याद आया कि अभी तक उन्होंने नहाया भी नहीं! अपनी अन्यमनस्कता को देख कर माँ भी अपने ऊपर हँसे बिना न रह सकीं!

शावर के नीचे खड़े हुए भी उनको यही सब विचार आ रहे थे।

‘‘इनके’ साथ घर बसाना कैसा होगा?’

एक बार किसी का घर बसने के बाद, फिर से किसी और का घर बसाना - यह उनको एक भारी भरकम काम महसूस हो रहा था। डैड के साथ उनका वैवाहिक जीवन संघर्ष से भरा हुआ था। बेहद कम उम्र में शादी, और शादी के नौ महीने में ही माँ बन जाना, एक छोटे बच्चे के लालन-पालन के साथ साथ ग्रेजुएट तक अपनी पढ़ाई पूरी करना, तिनका तिनका जमा कर के अपना आशियाना बनाना, कम में संतुष्ट रहना, जो बचे उसको दूसरों के साथ साझा करना - यह सब करने में हर पग माँ ने अपनी इच्छाओं की तिलांजलि दी। इतनी, कि अब सपने देखने में भी उनको घबराहट होने लगी थी।

लेकिन सुनील ने उनकी हर इच्छा-पूर्ति होने का वायदा किया था। मज़ेदार बात है न? इस समय न तो उसके पास ही कुछ था, और न ही माँ के पास! ऐसे में अपना संसार बसाने का सपना देखना और भी रोमाँचक महसूस हो रहा था!

नहा कर बाहर आने के बाद माँ ने अपने कमरे के आईने के सामने खड़े होकर अपने नग्न शरीर का मूल्यांकन किया। काजल सही तो कहती है - वो अपनी उम्र की महिलाओं के मुकाबले कोई पंद्रह साल कम की लगती हैं। उनका शरीर कसा हुआ था - पेट सपाट था। शरीर के कटाव सौम्य थे, और वसा की फ़िज़ूल मात्रा नहीं के बराबर थी। उनके स्तन अभी भी ठोस थे; गोल गोल थे; और अपनी उम्र की अधिकतर महिलाओं के मुकाबले छोटे थे - छोटे क्या, समझिए आकार में आधे थे! न तो उम्र का, और न ही गुरुत्व का ही कोई भी हानिकारक प्रभाव उन पर पड़ा था। ऐसे में वाकई वो किसी पच्चीस छब्बीस साल की लड़की जैसी लगतीं!

‘नारंगियाँ!’ माँ को सुनील की अपने स्तनों के लिए दी गई उपमा याद आ गई। उसकी इस बात पर माँ को हँसी आ गई।

आज कल की लड़कियाँ तो बीस पच्चीस की होते होते ही अपने यौवन की दृढ़ता खो देती हैं... खराब जीवनशैली, जंक-फूड खाने की आदतों, और बेहद अनुशासनहीन और आलसी जीवनशैली के कारण उनका यह बुरा हाल होता है। इसीलिए ज्यादातर लड़कियाँ मोटी हो जाती हैं, और उनके शरीर का आकार गोल हो जाता है। उनके पेट के चारों ओर, और पुट्ठों और जाँघों पर वसा के विशाल झोले लटकने लगते हैं, जो लगभग टायर की तरह दिखते हैं! स्तनों का आकार विकराल हो जाता है। अधिकतर लड़कियों और महिलाओं का शरीर गुँथे हुए आटे जैसा हो जाता है - न कोई कसावट और न ही कोई लोच! उनके विपरीत, माँ का पेट काफी सपाट था। उनके पैर और हाथ काफ़ी मजबूत थे, क्योंकि वो बहुत काम करती थी और अन्य महिलाओं की तरह आराम नहीं करती थी। वो एक से डेढ़ घंटे ब्रिस्क वॉक करती थीं, और योग और स्ट्रेच भी करती थीं। वो पूरी तरह से फिट थीं और मज़बूत थीं!

‘इतना चिकना... इतना मजबूत।’ सुनील के शब्द उसके दिमाग में कौंध गए।

माँ को अचानक ही याद आया कि कैसे उन्होंने मेरी सुहागरात के लिए गैबी की योनि को मेंहदी से सजाने की योजना बनाई थी। और गैबी का फीडबैक बहुत दिलचस्प था।

‘मैं भी कुछ ऐसा ही करूंगी।’

जाने-अनजाने माँ भी सुनील के साथ अपने वैवाहिक भविष्य की योजना बना रही थी, ‘मेरी पूची पर ‘उनका’ नाम - यह उनके लिए एक अच्छा सरप्राइज होगा।’ माँ ने सोचा।

‘स्वस्थ और मजबूत बच्चे।’

माँ ने अपने पेट को छुआ। सुनील की बातें उसके दिमाग में कौंधती रहीं।

‘हमारे दो बच्चे होंगे... कम से कम... तुम कितनी सुंदर लगोगी!’

माँ ने खुद को गर्भवती स्त्री के रूप में देखने के लिए जान-बूझकर अपना पेट फुलाया, कि क्या वो वाक़ई एक बड़े, गर्भवती पेट के साथ सुंदर दिखेगी। दर्पण में उन्होंने अपना जो आकार, जो रूप देखा, उनको वो बहुत अच्छा लगा। अपने प्रथम गर्भाधान की कोई याद ही नहीं बची थी माँ को! कितनी पुरानी बात हो गई थी! कितने ही वर्षों से दबी हुई इच्छाएँ वापस उभर आईं।

‘मेरे भविष्य के बच्चों का पालना…’

माँ ने सोचा कि सुनील कितनी बेसब्री से उनको प्रेग्नेंट करना चाहते हैं! इस बात पर उनको एक दबी हुई हँसी आ गई। सोच कर उनको शर्म भी आई और अच्छा भी लगा। जो सपना देखना उन्होंने सालों पहले बंद कर दिया था, उसके साकार होने की सम्भावना बड़ी रोमांचक लग रही थी।

‘मुझे प्रेग्नेंट करना...,’ माँ ने सोचा और अपने योनि के होठों को छुआ, ‘...निश्चित रूप से ये अभी ढीली तो नहीं हुई है!’

माँ ने याद करते हुए सोचा कि वो तो डैड के लिंग से भी भरा हुआ महसूस करती थीं। लेकिन सुनील का लिंग तो काफी बड़ा है! माँ ने अपनी तर्जनी को अपनी योनि के अंदर डालने की कोशिश की! इस हरकत पर उनको दर्द हुआ, तो उन्होंने उंगली को तुरंत बाहर निकाल लिया। नहाने के बाद, योनि का प्राकृतिक चिकनापन धुल गया था, लिहाज़ा सूखी हुई योनि में, सूखी हुई उंगली डालना आसान या आनंददायक काम नहीं था।

‘बिल्कुल भी ढीली नहीं है,’ माँ ने सोचा, ‘अच्छा है!’

काजल ने उनको फ़ीका फ़ीका न पहनने के लिए कहा था। सुनील की भी यही इच्छा थी! इसलिए आज वो कुछ मनभावन रंग के कपड़े पहनना चाहती थीं। उन्होंने एक खुबानी-नारंगी रंग की जॉर्जेट साड़ी और उससे ही मिलती ब्लाउज का चयन किया। साड़ी पर गहरे नीले रंग के बूटे बने हुए थे, और उसी रंग का बॉर्डर था। उतने से ही उनका सौंदर्य निखर कर सामने आ गया। ऐसे मनभावन कपड़े पहन कर माँ ने बहुत हल्का सा मेकअप किया - बस हल्के नारंगी रंग का लिप ग्लॉस और एक छोटी सी, नारंगी रंग की ही बिंदी लगाई। साथ ही साथ आँखों में पतली सी काजल की रेखा। फिर उन्होंने अपने आप को आईने में देखा, और यह देखकर बहुत प्रसन्न हुई कि वो बहुत सुंदर लग रही थीं।

माँ ने डैड की मौत के बाद इतने लंबे समय में इतनी तन्मयता से वो कभी तैयार नहीं हुई थीं। और इतनी खुशी भी महसूस नहीं की थीं। सच में, अच्छे अच्छे, सुन्दर सुन्दर कपड़े पहन कर सभी को अच्छा तो महसूस होता ही है!

खैर, इधर उनका तैयार होना समाप्त हुआ, और उधर घर की कॉल-बेल बजी।

माँ ने घड़ी की तरफ़ देखा - कोई साढ़े ग्यारह बज रहे थे! माँ ने सोचा कि शायद काजल होगी।

दरवाज़ा खुलते ही माँ ने सुनील को देखा!

उसको देखते ही माँ का दिल धड़क उठा!

कुछ बोलने के लिए उनके होंठ हिले, लेकिन उनकी कोई आवाज़ ही नहीं निकली!

दूसरी ओर, माँ को देखते ही सुनील की तो दिल की धड़कनें ही रुक गईं!

माँ आश्चर्यजनक रूप से सुंदर लग रही थी! बिलकुल अप्सरा!

एक तो माँ ने बेहद हल्का सा मेकअप किया हुआ था, दूसरा, उन्होंने फ़ीकी साड़ी पहनने के बजाय एक खुशनुमा रंग की साड़ी पहनी थी, और तीसरा, वो अंदर से भी प्रसन्न लग रही थीं। उसने माँ की ओर बड़े आश्चर्य से देखा। काफ़ी पहले एक प्रचार में देखा था बोलते हुए कि, यू आर नेवर फुली ड्रेस्ड विदआउट अ स्माइल! माँ के होंठों पर एक स्निग्ध मुस्कान तो दिखाई दे रही थी। साथ ही उनकी आँखें भी मुस्कुरा रही थीं, और उनका चेहरा किसी गुप्त बात पर ख़ुशी से दमक रहा था!

‘आह! कैसी अप्रतिम सुंदरी! कैसा बढ़िया भाग्य!’

सुनील माँ को कई क्षणों तक मूर्खों की तरह घूरता रहा। वो उनकी ऊषाकाल जैसी सुंदरता देख कर अवाक रह गया था। उधर माँ भी सुनील की आँखों में विभिन्न बदलते भावों, और उनमें अपने लिए उसकी इच्छा को देख रही थी! आखिर कब तक वो उसकी चाह भरी नज़रों का सामना करतीं? कुछ पलों के बाद वो उससे नज़रें नहीं मिला सकीं, और उन्होंने शर्म से मुस्कुरा कर अपनी आँखें नीची कर लीं।

माँ ने खुद को सुनील के साथ घर में अकेले होने की उम्मीद नहीं की थी। इतनी जल्दी तो बिलकुल भी नहीं! माँ ने एक बहुत लंबे समय में इतना शर्मीला कभी महसूस नहीं किया था। उनको इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि अपनी पोशाक में इतने साधारण से बदलाव का सुनील पर इस तरह का प्रभाव पड़ेगा! अपने मन ही मन माँ बहुत प्रसन्न हुईं। यह उनके लिए कई मायनों में बहुत अच्छा था। अब वो अपने बारे में बेहतर महसूस कर रही थी, और सुनील के साथ अपने भावी, आशामय जीवन की प्रतीक्षा कर रही थी।

“सुमन, मेरी प्यारी,” जब उसे होश आया, तब वो फुसफुसाते हुए बोला, “तुम्हें पता भी है कि तुम कितनी सुंदर हो!?”

सुनील ने घर में प्रवेश करते हुए अपने पीछे दरवाजा बंद कर लिया।

माँ को ऐसे देख कर उसके अंदर की इच्छाएँ बलवती हो गईं। उसने उनकी ओर दो या तीन बड़े कदम उठाए, माँ ने भी झिझकते हुए एक दो छोटे कदम पीछे की तरफ लिए। माँ सुनील से दूर नहीं रहना चाहती थीं - वो चाहती थीं कि वो सुनील के करीब रहें। जब उन्होंने सुनील को मन ही मन अपना पति मान लिया था, तो और क्या सोचतीं? लेकिन मर्यादा की माँग थी कि वो कुछ दूरी बनाए रखें। लेकिन सुनील को किसी भी मर्यादा की कोई परवाह नहीं थी। वो माँ के बेहद करीब आ कर खड़ा हो गया, और उसने उनकी कमर थाम ली। और फिर मुस्कुराते हुए, और माँ की आँखों में देखते हुए वो गुनगुनाने लगा,

खुदा भी, आसमां से, जब ज़मीं पर देखता होगा…
मेरे महबूब को किसने बनाया, सोचता होगा…


हाँलाकि माँ अपनी मुस्कान को दबाना चाहती थीं, लेकिन फिर भी उनके होंठों पर सुनील के तारीफ करने के अंदाज़ पर एक शर्मीली और खूबसूरत सी मुस्कान आ ही गई। उन्होंने फिर से शर्म से अपनी आँखें नीची कर लीं।

सुनील स्वयं पर अब और नियंत्रण नहीं कर सकता था। सुन्दर अप्सराओं के सामने तो बड़े बड़े तपस्वी भी पानी भरते हैं, तो उस बेचारे नाचीज़ की क्या बिसात थी? वो बहुत लंबे समय से माँ के सान्निध्य के लिए तरस रहा था, और अब वो अपने जुनून को नहीं रोक सकता था। वर्षों से चलती उसकी तपस्या का पुरस्कार उसके सामने था - उसकी सुमन के रूप में! उसने अपने दोनों हाथों से माँ के दोनों गालों को थामा, और धीरे से उन्हें दबाया। ऐसा करने से माँ के होंठ एक सुंदर और चूमने योग्य थूथन के रूप में बाहर निकल आये। माँ ऐसी प्यारी सी लग रही थी कि अब उनको चूमे बिना नहीं रहा जा सकता था। तो सुनील ने उनको उनके मुँह पर चूमा और बहुत देर तक चूमा।

माँ को माउथ-टू-माउथ चुम्बन के बारे में पता था, और उन्होंने डैड के साथ इसका आनंद हमेशा ही उठाया था; लेकिन उनको सुनील के चुंबन करने का तरीका डैड के चूमने से बहुत अलग लगा। उसके चुम्बन में एक कामुक आवेश था, लेकिन एक विचित्र सी कोमलता भी थी। उसके चुंबन में आग्रह था; उसके चुम्बन में माँग थी कि माँ भी उसी की ही तरह चुम्बन का आवेशपूर्वक उत्तर दें। सुनील माँ के साथ जो कुछ भी करता था उसमें बहुत ऊर्जा डालता था। और वो ऊर्जा साफ़ दिखाई भी देती थी।

माँ पिघल गईं। अपने युवा प्रेमी से मिल रहे प्रेम से माँ पहले ही बहुत खुश थीं। सुनील, डैड के मुकाबले कहीं अधिक रोमांचक प्रेमी के रूप में सामने आ रहा था। वैसे तो माँ ने उन दोनों के बीच कोई तुलना न करने के सोची हुई थी, लेकिन लगभग अट्ठाईस वर्षों के वैवाहिक अनुभव को अपने मन से यूँ ही, तुरंत निकाल पाना संभव नहीं है।

जब उन्होंने अपना पहला चुंबन तोड़ा, तो सुनील ने गाने को थोड़ा और गुनगुनाया,

मुसव्विर खुद परेशां है की ये तस्वीर किसकी है...
बनोगी जिसकी तुम ऐसी हसीं तकदीर किसकी है
...”

उस चुम्बन ने साफ कर दिया था कि यह तो सुनील का सौभाग्य है कि माँ अब उसकी हैं... हमेशा के लिए... उसकी पत्नी के रूप में! माँ मुस्कुराई... इस बार थोड़ा अधिक खुलकर, लेकिन फिर भी शर्मीली सी!

कभी वो जल रहा होगा, कभी खुश हो रहा होगा
खुदा भी, आसमां से, जब ज़मीं पर देखता होगा
…”

माँ सुनील द्वारा अपनी बढ़ाई किए जाने पर शर्माती जा रही थीं, और सुनील अपने रोमांटिक अंदाज़ में माँ की बढ़ाई करता जा रहा था,

ज़माने भर की मस्ती को निगाहों में समेटा है…
कली से जिस्म को कितने बहारों ने लपेटा है…
नहीं तुम सा कोई पहले, न कोई दूसरा होगा…
खुदा भी, आसमां से, जब ज़मीं पर देखता होगा
…”

सुनील ने बड़ी अदा से गाया, और फिर एक गहरा निःश्वास भरा। माँ ने मुस्कुराते हुए अपने ‘होने वाले’ पति को देखा।

“सुमन... मेरी सुमन... मेरी प्यारी सुमन! मुझसे अब और बर्दाश्त नहीं हो पाएगा!” सुनील बोला, उसकी आँखों में कामुक वासना साफ़ दिखाई दे रही थी, “मुझे तुम्हारा कली जैसा जिस्म देखना है!”

सुनील मुस्कुराया - हाँलाकि उसके चेहरे पर उत्तेजना की तमतमाहट, और एक अलग ही तरीके की विकलता और घबराहट दिख रही थी - और फिर आगे बोला, “आज... मैं जो कुछ भी करूँ, वो मुझे कर लेने देना!”

माँ के दिल में एक धमक सी उठी - ‘तो अब समय आ ही गया’!

हाँलाकि माँ सुनील को मन ही मन अपना पति स्वीकार कर चुकी थीं, लेकिन फिर भी वो उसके साथ यौन सम्बन्ध बनाने के लिए अभी भी मानसिक और भावनात्मक रूप से तैयार नहीं हुई थीं - और शायद अपने आप से कभी हो भी न पातीं। आशंका, लज्जा, और अज्ञात की परिकल्पना - ऐसे अनेक कारण थे, जो उनको रोक रहे थे। और ऊपर से उन दोनों के बीच उम्र का एक लम्बा चौड़ा फ़ासला! लेकिन सुनील को तो जैसे इन सब बातों की कोई परवाह ही नहीं थी। वो जानता था कि सुमन अब उसकी है - उसकी पत्नी! कल ही उसने उनके शरीर के हर हिस्से को अपने चुम्बनों से अंकित किया था। और तो और, उसने उनसे अपने प्रेम का इज़हार भी किया था, और अपनी पत्नी बन जाने का आग्रह भी! माँ ने उसकी किसी बात पर मना नहीं किया, और न ही कोई विरोध दर्शाया। तो मतलब उसके साथ उनके सम्बन्ध के लिए उनकी भी सहमति थी! और अभी भी सुनील जो कुछ कर रहा था, उसमे माँ का सहयोग होता दिख रहा था।

सुनील ने माँ का हाथ पकड़ा, और उनको उनके ही कमरे की ओर ले जाने लगा। माँ भी स्वतः उसके पीछे पीछे चल दीं। माँ के कमरे में जाना एक बढ़िया विकल्प था! जब माँ अपने कमरे में होतीं थीं, उस समय उनको कोई परेशान नहीं करता था। बाकी सभी के कमरे के दरवाज़े पर कभी भी किसी की भी दस्तखत होती ही रहती थी, और कोई भी किसी न किसी बहाने से अंदर घुस जाता था। वो माँ के साथ जो कुछ करना चाहता था, उसे करने के लिए सुनील को कोई बाधा नहीं चाहिए थी, जो माँ के कमरे में ही उपलब्ध थी। कमरे के अंदर दाखिल होते हुए, उसने अपने पीछे कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया।
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,392
24,539
159
अंतराल - विपर्यय - Update #3

उसने माँ को बिस्तर पर बिठाने से पहले एक बार फिर से चूमा और कहा,

“मेरी सुमन... मेरी प्यारी दुल्हनिया, मैंने तुम्हें पहले ही अपने दिल से, अपने मन से अपना स्वीकार कर लिया है... अब मैं तन से तुमको अपना बना लूँ?”

सुनील साफ़ बता रहा था कि वो क्या करना चाहता था। माँ को भी, उसके कहने से पहले ही मालूम था कि उसकी क्या इच्छा है। लेकिन माँ कुछ कह न सकीं, क्योंकि वो लज्जा से व्याकुल थीं।

“और जैसे ही पहली सैलरी मिलेगी, तुमको धन से भी अपना बना लूँगा!” उसने ऐसे गंभीर माहौल में भी मज़ाकिया अंदाज़ में कहा - फिर उसको लगा कि उसके अर्थ का अनर्थ निकल गया, “ओह, मेरा मतलब है, अपनी सैलरी भी तुमको सौंप दूँगा! तुमको जैसा मन करे, अपना घर अपने तरीके से चलाना!”

सुनील की यही स्वाभाविकता, यही सहजता, उसका सबसे बड़ा हथियार थी! उसमे किसी भी तरह की बनावट नहीं थी। उसके मन की बातें हमेशा उसकी जुबान पर होती थीं! उसकी बात सुन कर, माँ की मुस्कान चौड़ी हो गई। वो चाह कर भी अपनी मुस्कान दबा न सकीं और उनके मुस्कराते होंठों के बीच से उनके दाँत दिखाई देने लगे। बस, वो किसी तरह से अपनी हँसी पर काबू पाने में सफल रही।

‘ओह... सब कुछ अच्छा होगा! घबराओ मत!’ माँ ने मन ही मन सोचा, और खुद को भविष्य के लिए दिलासा दी, ‘अगर भगवान् जी ने ‘इनको’ तुम्हारे लिए चुना है, तो उनके निर्णय पर संदेह न करो अब!’

अब वो सुनील के साथ अपने भविष्य को लेकर काफ़ी खुश और उत्साहित थी। सुनील ने माँ को मुस्कुराते हुए देखा, तो उसने समझा कि उसको हरी झंडी मिल गई है।

“दुल्हनिया मेरी,” उसने कहा, “अब मैं तुझको नंगी करूँगा! पूरी की पूरी नंगी!”

माँ शर्म से गड़ गईं, लेकिन कुछ कह न सकीं।

“शरमाओगी क्या आज भी?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तो शरमा लो! लेकिन आज तो एक एक कर के तेरे सारे कपड़े उतरेंगे दुल्हनिया!” उसने कहना जारी रखा - उसकी आवाज़ में एक कम्पन था - सुनील भी रोमांचित हो रहा था अपने सन्निकट भविष्य को ले कर, “अब मैं ज़रा अपनी दुल्हनिया के सुंदर सुंदर दुद्धू तो देखूँ…”

इतना कहकर सुनील माँ की ब्लाउज के बटन खोलने लगा।

माँ ने उसके दोनों हाथों को अपने हाथों से पकड़ कर ‘न’ में सर हिलाया, और एक कमज़ोर सी आवाज़ में बोलीं, “कल ही तो देखा था आपने!”
यह कोई विरोध नहीं था।

“जानेमन, कल वाला तो कुछ भी काउंट होगा ही नहीं! मुझे तो तू पूरी नंगी चाहिए अब से! कपड़े का एक धागा भी नहीं चाहिए मुझे तुम्हारे जिस्म पर! आज हम सब कुछ करेंगे मेरी जान! तुझे बहुत प्यार करना चाहता हूँ आज! पूरा प्यार! समझ रही है न तू? एक होने वाले हैं हम आज, दुल्हनिया!”

सुनील ने बड़ी निर्लज्जता से अपनी मन की मुराद उनके सामने रख दी थी। माँ को आश्चर्य हुआ कि वो कल से भी अधिक शर्मीली महसूस कर रही थी! जबकि कल तो काजल भी सामने थी। सच कहें तो माँ उस दिन से भी ज्यादा शर्मीली महसूस कर थीं, जब डैड और वो पहली बार एक साथ हुए थे।

“एक होने वाले हैं हम आज, दुल्हनिया!”

जैसा कि मैंने पहले भी बताया है कि माँ ने खुबानी-नारंगी रंग का ब्लाउज पहना हुआ था, जो उसी रंग की साड़ी का मैचिंग पीस था। ब्लाउज के नीचे उन्होंने सफ़ेद रंग की ब्रा पहनी हुई थी। माँ अधोवस्त्र बहुत कम अवसरों पर ही पहनती थीं - ज्यादातर तो केवल व्यायाम करते समय, नहीं तो घर से बाहर निकलते समय! वैसे दिन भर नहीं। जब दिन भर घर में ही रहना है तो क्या अंडरगारमेंट पहनना! लेकिन किसी प्रेरणावश उन्होंने आज सब पहना हुआ था। सुनील मुस्कुराया जब उसने देखा कि माँ ने ब्रा पहनी हुई है। उसने बड़े फुर्सत से माँ का ब्लाउज उतारा। ब्लाउज को हटाने के बाद, उसने ब्रा को भी खोल दिया और माँ के सुन्दर स्तनों को मुक्त कर दिया। कमरे में बाहर से आती नरम नरम धूप माँ के शरीर पर पड़ रही थी। सूर्य की नरम धूप में नहा कर माँ की नग्न सुंदरता कमरे में चमकने लगी।

यह सही है कि उसने कल माँ के स्तन देखे थे और उनके आस्वादन का आनंद भी लिया था, लेकिन जो आनंद आज उसको मिल रहा था, वो बयान से बाहर था। आज वो उसकी सुमन थीं! आज वो उन पर अपना अधिकार सिद्ध करने को उद्धत था। आज और आज के बाद, हमेशा के लिए! माँ के तन और मन पर अब से केवल सुनील का अधिकार होगा! उनके मन मंदिर में केवल उसकी मूरत की पूजा होगी! यह एक बहुत बड़ी बात थी। माँ अब उसकी थीं - उन दोनों का जीवन अब जुड़ गया था। ऐसे में माँ का मनभावन रूप, उसको और भी अधिक मनभावन लग रहा था।

माँ के स्तन गोल थे और लगभग ठोस थे। उन पर गुरुत्व का प्रभाव न के बराबर ही था! स्तनों की कितनी प्यारी और सुडौल जोड़ी! सुनील उनकी सुंदरता को ऐसे हैरानी से निहार रहा था! इतनी खूबसूरत जोड़ी! और उन स्तनों पर कल उसके द्वारा दिए गए लव-बाइट्स के चिन्ह गर्व से गहरे हो चले थे।

“सच में दुल्हनिया,” उसने कोमलता से अपनी उंगलियों और अंगूठे के बीच उनके दोनों चूचकों को घुमाते हुए कहा, “तूने इतने दिनो से इन्हें छुपा कर रखा है मुझसे!”

“कल ही तो देखा था आपने!” माँ ने कांपती आवाज़ में कहा। बड़ी मुश्किल से उन्होंने अपने चूचकों से उठने वाली कामुक तरंगों की गुदगुदी को बर्दाश्त किया।

“हाँ, बोल तो ऐसे रही हो कि जैसे मैं वो शातिर प्लान न बनाता, तो जैसे मुझे तुम दिखा देती!” सुनील ने उलाहना दी।

माँ अपनी सफ़ाई में कुछ कहतीं, उसके पहले ही उसने एक-एक कर के, माँ के दोनों चूचकों को चूमा और कहा,

“इस घर में सब कितने किस्मत वाले हैं! सभी ने तुम्हारे इन सुन्दर सुन्दर दूधुओं को पिया है! अब से इनको केवल मैं पियूँगा!”

“और हमारे बच्चे?” माँ के मुँह से बेसाख़्ता निकल गया!

वो फिर से सुनील के शरारती, चंचल चाल से धोखा खा गईं। जैसे ही उसने उन शब्दों को कहा, वो तुरंत पछताने लगी कि उन्होंने वो क्यों बोला।
और जैसे सुनील को मालूम हो कि माँ ऐसी ही कोई प्रतिक्रिया देंगीं, सुनील ने उनको पकड़ लिया, “मुझसे बच्चे करेगी न तू?”

माँ को अपनी बात बोलते ही अपनी गलती का एहसास हो गया था, और वो समझ चुकी थीं कि सुनील ने उनको फिर से अपनी चाल में फँसा लिया है। इसलिए उन्होंने शर्माते हुए और मुस्कुराते हुए अपना सर नीचे कर लिया। लेकिन सुनील आज उनको आसानी से जाने देने वाला नहीं था,

“बोल ना... अरे बोल ना दुल्हनिया! मेरी सुमन मेरे बच्चों की माँ बनेगी न?”

माँ ने अपना सर नीचे ही रखा और फिर मुस्कुराई… और फिर उसने जवाब में ‘हाँ’ में अपना सर हिलाया।

“ऐसे नहीं! बोल कर कहो!”

“हूँ!” माँ ने शरमाते हुए, लेकिन बड़ी अदा से कहा।

“क्या हूँ?”

“बनूँगी!”

“क्या?”

“आपके बच्चों की माँ!” माँ ने शरमाते हुए बोल ही दिया।

“देख लो दुल्हनिया, अब तुमने मुझे हाँ बोल दिया है! अब पीछे मत हटना!”

सुनील ने अभी जो कहा, उसको सुन कर माँ को उसके साथ अपने सम्बन्ध के लिए अपनी खुद की सहमति का एहसास हुआ! यह एक बहुत बड़ी बात थी। दोनों के मिलन की आखिरी बाधा भी अब ख़तम हो गई थी। माँ ने यह सब आत्मसात करने की कोशिश की। वो एक ही समय में अपने शरीर में डर की झुनझुनी और साथ ही साथ सुनील से मिलन करने की इच्छा महसूस कर रही थी। उन्होंने अभी तक केवल डैड के साथ ही सम्भोग किया था। वो हुए भी अब एक लम्बा अर्सा हो गया था। उनका केवल एक ही बेटा था - मैं, जो डैड से उनको मिला था। लेकिन अब उन्हें सुनील का घर बसाना था! अब उनको सुनील के साथ सम्भोग करना था! अब उन्हें सुनील के साथ अपने बच्चे पैदा करने थे! घटनाओं के इस नए मोड़ ने उनको आश्चर्यचकित कर दिया था। वो सोचने लगीं कि सुनील से प्यार करना कैसा होगा। उनकी जिज्ञासा, उनकी इच्छा, उनके अंदर गहरी हलचल कर रही थी।

“नहीं हटूँगी,” माँ ने बड़े सम्भ्रान्त तरीके से और कोमलता से जवाब दिया, “आप मेरी माँग में सिंदूर भर दीजिए! मुझे अपनी पत्नी बना लीजिए। उसके बाद आप मुझे हमेशा अपने साथ पाएँगे! मैं कभी पीछे नहीं हटूँगी! हमेशा आपका साथ दूँगी!”

यह बहुत बड़ी बात थी! माँ ने अब सुनील से सम्बन्ध के लिए खुली स्वीकृति दे दी थी। अब तो माँ मनसा और वाचा सुनील की हो गईं थीं। बस, कर्मणा उनको सुनील की होना बाकी था। और सुनील उसी के लिए उनको उनके कमरे में लाया था।

सुनील मुस्कुराया, “ओह मेरी सयानी दुल्हनिया,” और उसने फिर से माँ का मुख चूम लिया, और बोला, “मैं तो कब से इसी बात की राह देख रहा हूँ! टू बी योर हस्बैंड हैस बीन माय ड्रीम फ़ॉर मैनी इयर्स!”

फिर थोड़ा रुक कर वो आगे बोला, “दुल्हनिया, मुझे तो लगता है कि मैं पैदा ही इसीलिए हुआ हूँ कि मैं तुम्हारा बन सकूँ, और तुमको अपनी बना सकूँ! तेरी माँग तो मैं ज़रूर भरूँगा! आज ही! अभी! और माँग भरने के साथ ही मैं आज से तुम्हारी हर ज़िम्मेदारी लेने का वचन भी देता हूँ!” उसने बड़े दुलार और ईमानदारी के साथ कहा, “जीवन का सब सुख दूंगा तुझे... लेकिन सबसे पहले तेरा वस्त्र-हरण तो पूरा कर लूँ! मैं तो तुझे पूरी नंगी देखने के लिए कब से तरस रहा हूँ!”

कह कर उसने माँ को बिस्तर से उठा कर ज़मीन पर खड़ा कर दिया, और उनकी साड़ी की प्लीट्स को उनके पेटीकोट से बाहर निकालने लगा, और बोला, “आज तो मैं तुझे पूरी नंगी देखूंगा! बहुत सताया है तूने मुझे!”

“कल ही तो देखा था आपने!”

माँ ने यह नहीं पूछा कि उन्होंने उसको कब और कैसे सताया। किसी के द्वारा निर्वस्त्र किया जाना वैसे ही भावनात्मक रूप से बहुत भारी होता है!
पेटीकोट का नाड़ा खोलते हुए, सुनील फुसफुसाया, “अंदर पैंटी पहनी है क्या?”

“आप खुद ही देख लीजिए!” माँ ने जैसे तैसे कहा - वो इस समय शर्म से दोहरी भी नहीं हो पा रही थीं। सुनील जो कुछ कर रहा था, उसकी प्रतिक्रिया में उनकी शर्म भी कम पड़ रही थी।

इस समय उनका शरीर, उनकी आवाज़ और उनका अस्तित्व - सब कुछ काँप रहा था। कुछ दिन पहले तक वो यह बात कह भी नहीं सकती थी - कहना तो दूर, सोच भी नहीं सकती थीं - लेकिन अब स्थिति बदल चुकी थी।

कुछ ही क्षणों में माँ की साड़ी और पेटीकोट उनके शरीर से अलग हो गए। आज उन्होंने पैंटी पहनी हुई थी... और वो उनके योनि-रस से भीग रही थी! माँ को मालूम था कि उनकी पैंटी गीली हो गई है। इसलिए उनको सुनील के सामने ऐसे खड़े होने में बहुत शर्म आ रही थी। और सुनील उनको सताने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा था। कल के विपरीत, आज उसने यह सुनिश्चित किया कि माँ जान जाएँ कि उसको मालूम है कि उनकी चड्ढी गीली हो गई है,

“अरे मेरी दुल्हनिया…” सुनील ने प्रफ़ुल्लतापूर्वक उनको देखते हुए कहा, “... तेरी बुर से तो अभी से शहद टपकने लगा!” और उनको अपने आलिंगन में भर लिया।

उनको एक दो चुम्बन दे कर, वो उनके कान में फुसफुसाते हुए बोला, “चुदू होने का इतना मन हो रहा है?”

यहाँ यह कहना ज़रूरी है कि हाँलाकि सुनील उनसे ऐसी, बेशर्मी भरी बातें कर तो रहा था, लेकिन कभी भी उसके स्वर में प्रेम और दुलार की कोई कमी नहीं हुई। वैसे भी दो प्रेमियों के बीच में लज्जा का क्या स्थान? लेकिन फिर भी माँ उसकी बात का उत्तर न दे सकीं। उनका मन कामनाओं की एक मीठी अँगड़ाई ले रहा था - लेकिन ये बातें ऐसे खुले रूप से कैसे स्वीकार करी जाएँ?

उसने माँ की पैंटी को उनकी जाँघों से नीचे खिसकाना शुरू कर दिया, और कहा, “बस मेरी रानी... बस... बस थोड़ी सी और देर यह दूरी बरदाश्त कर ले! फिर हम दोनो एक हो जाएंगे… और फिर मैं तेरी इतनी मस्त चुदाई करूँगा, जैसी की तेरी आज तक नहीं हुई होगी!”

माँ सुनील की बेशर्म सी बात पर बहुत शर्मिंदा हुई। लेकिन जैसा मैंने पहले भी कहा, दो प्रेमियों के बीच शर्म का काम भी क्या है? माँ का युवा प्रेमी - उनका होने वाला पति - उनके साथ संभोग करने के लिए उत्सुक था, और उनसे एक अच्छे, संतुष्टिप्रद सम्भोग का वायदा कर रहा था। अब अगर उनको अपने प्रेमी, अपने होने वाले पति से यौन सुख नहीं मिलेगा, तो किससे मिलेगा? वो उनको यौन आनंद देना चाहता है, तो वो क्यों न ले?

अब माँ पूरी तरह से नग्न हो गईं।

“दुल्हनिया... अब मुझे तुम्हारा सुन्दर सा जिस्म देखने दो!”

माँ ने सुनील के आग्रह का अनुपालन किया और उसके सामने कुछ इस तरह खड़ी हो गईं, जिससे वो उनको पूरी नग्न देख सके। सुनील ने मन भर कर अपनी प्रेमिका, अपनी होने वाली पत्नी के नग्न शरीर का निरीक्षण किया। वो माँ के जघन क्षेत्र के काले चमकदार पशम को देखकर हतप्रभ रह गया। माँ के पशम घने थे, और उनकी योनि को एक चमकदार और सेक्सी, अंग्रेज़ी ‘V’ के आकार में ढँके हुए थे - जैसे प्रकृति ने ही उनकी योनि को एक घूँघट दे दिया हो - अपना स्त्रीत्व छुपाने के लिए! उधर माँ सोच रही थीं, कि काश उन्होंने समय पर इसकी देखभाल कर ली होती और अपने पशम काट लिए होते!

‘न जाने ये क्या सोच रहे होंगे इसको ऐसे देख कर!’

लेकिन माँ के विचार के विपरीत, सुनील उनकी प्राकृतिक सुंदरता पर पूरी तरह मोहित हो चुका था। माँ उसके सामने खड़ी रही, और सुनील को अपने पूरी तरह से नग्न शरीर का अवलोकन करने दिया। सुनील उनकी सुंदरता को देख कर निश्चित रूप से आश्चर्यचकित था!

‘कैसा सुडौल, कसा हुआ शरीर है! पच्चीस छब्बीस से अधिक की तो लगती ही नहीं! कौन कहेगा कि इसका एक लगभग उन्तीस साल का बेटा भी है!’
जब वो अपनी तन्द्रा से बाहर आया, तो वो माँ के सौंदर्य की तारीफ करने लगा,

“आह... क्या मस्त फिगर है मेरी दुल्हनिया का! कौन कह सकता है कि तुमने भैया को जना है? अपने मन से कोई भी ऐसा वैसा ख़याल निकाल दो! तुम बहुत जवान हो यार! ओह! मेरी किस्मत तो देखो!”

वो समझ नहीं रहा था कि वो उनकी तारीफ में क्या क्या कह दे - जब ऐसी अलौकिक सुंदरी सामने खड़ी हो, तो उसकी प्रशंसा में शब्द कम पड़ ही जाते हैं, “और इस प्यारी सी बुर को तो देखो…” उसने बड़े प्यार से माँ भगोष्ठ को सहलाते हुए कहा।

“सुमन... मेरी जान, तुम बहुत सेक्सी हो…” वह थोड़ा रुका, और फिर उनके जघनस्थल के बालों को महसूस करते हुए बोला, “कैसे काले काले, घने, घुँघराले और मुलायम मुलायम बाल हैं!”

फिर उसको शरारत सूझी, “क्या क्या करती हो मेरी जान? शैम्पू लगाती हो यहाँ?”

“धत्त!” माँ शरमा गईं।

फिर उसने माँ को पीठ की तरफ घुमा दिया। माँ के शरीर पर कहीं भी सेल्युलाईट (ढीली ढाली वसा की परत) का एक क़तरा भी नहीं था। माँ की पीठ की त्वचा चिकनी और माँस-पेशियाँ दृढ़ थी। और वैसी की हालत उनके नितम्बों की थी - वो पुष्ट, दृढ़ और सुडौल थे! उसने उनके नितंबों को अपनी हथेली में भर लिया और उनकी दृढ़ता पर आश्चर्य किया। चालीस वर्ष से ऊपर की ज्यादातर महिलाओं के नितंब ढीले और वसायुक्त हो जाते हैं - नितम्ब ऐसे हो जाते हैं कि उनका कोई आकार ही नहीं रह जाता। ऐसा लगता है जैसे गीली मिट्टी की लुगदी हो! न कोई आकार, न ही यौवन की लचक! लेकिन माँ अपेक्षाकृत मजबूत काठी की थीं, और वो एक अनुशासित और सुखी दिनचर्या का पालन करती थीं।

“और क्या मस्त सुराही जैसी है!”

कह कर उसने माँ के दोनों नितम्बों को बारी बारी से चूमा, और अचानक ही भावावेश में आ कर उनको काट भी लिया। माँ इस अचानक हमले पर चिहुँक गईं। उनके गले से एक शिकायत भरी चीख निकल गई। लेकिन सुनील को इस बात की फ़िक्र नहीं थी। फिर उसने माँ को फिर से सामने की तरफ घुमाया,

“और सबसे प्यारा है तुम्हारा चेहरा - एक मासूम भोलापन - जैसा तुम्हारा मन, जैसा तुम्हारा व्यवहार, ठीक वैसा ही तुम्हारा चेहरा - बिलकुल भोला, सुन्दर और सरल! और ये ऐसी कतिल सी मुस्कान... मुझ पर ऐसा असर करती है कि मैं क्या कहूँ! मेरी तो किस्मत ही खुल गई है सुमन! तुम मेरा सौभाग्य हो!”

वो मुस्कुराते हुए बोला; फिर अचानक ही कुछ याद करते हुए, “ऐसे ही खड़ी रहना मेरी दुल्हनिया... मैं वापस आता हूँ, बस दो मिनट में!”

सुनील ने कहा और जल्दी से कमरे से बाहर चला गया। उसने माँ से प्रोपोज़ करने के बाद, उनसे चुपके से शादी करने की योजना भी बना ली थी - यह सोच कर कि अगर मैं या काजल में से कोई नहीं माना तो! उसने सोचा था कि अगर माँ उसके प्रस्ताव पर राजी हो गई, तो वो उनसे एक मंदिर में चुपके से शादी कर लेगा। यह उन दोनों के बीच का रहस्य रहेगा, और किसी और को इस बारे में नहीं पता चलेगा! यह सब कितना रोमांचक होगा? है न? इस घर में अब कोई सिंदूर नहीं लगाता : माँ विधवा थी, काजल तलाकशुदा थी, और मेरी कोई पत्नी नहीं थी। इसलिए, सुनील वो नारंगी रंग का सिंदूर खरीद लाया था, जिसे नवविवाहित दुल्हनें शादी के समय लगाती हैं।

जब वो सिन्दूर के साथ कमरे में वापस आया, तो उसने माँ को, वैसे ही, नितांत नग्न, उसके लौटने की प्रतीक्षा में खड़ी हुई पाया। वो एक हाथ से अपनी योनि, और दूसरे से अपने दोनों स्तनों को ढँकने की असफ़ल कोशिश कर रही थी! अगले कुछ ही पलों में, माँ के भावी जीवन की दिशा बदलने वाली थी! हमेशा हमेशा के लिए! कितना अधिक अंतर था दोनों में - उम्र में माँ उसकी दोगुनी थीं, सामाजिक तौर पर भी दोनों के बीच में लम्बी चौड़ी खाईं थी, और मुँहबोले और निर्मित रिश्तों की दीवार भी थी दोनों के मध्य! लेकिन विधि का विधान देखो - अब वो उनका ‘स्वामी’ बनने वाला था। होनी को भला कौन टाल सकता है?

अब सुनील का नाम उनके नाम के साथ लग जाएगा - हमेशा हमेशा के लिए! कुछ ही पलों में वो ‘सुमन प्रताप सिंह’ से ‘सुमन सुनील हल्दर’ बनने वाली थीं! यह एक बहुत ही बड़ा बदलाव था!

एक पारंपरिक भारतीय पत्नी के रूप में, माँ सुनील, मतलब उनके पति, के प्रति अब पूरी तरह से समर्पित होंगी... अब वो केवल सुनील से प्यार करेंगी, उसका सम्मान करेंगी, उसकी बात मानेंगी, और खुद को पूरी तरह से उसके सामने समर्पित कर देंगी। यही माँ के संस्कार थे। माँ के मस्तक में सिंदूर लगाने की क्रिया से, सुनील उनके जीवन में अपना स्थान पक्का करने ही वाला था। वो उनका ‘परमेश्वर’ बनने ही वाला था।

“दुल्हनिया,” सुनील ने कहा, और फिर माँ के दोनों पैरों को छू कर बोला, “मुझे सबसे पहले तुम्हारा आशीर्वाद चाहिए - कि मेरी शादी इस संसार की सबसे सुन्दर, और सबसे गुणी लड़की से हो! मतलब कि तुमसे! कि हम दोनों हमेशा सुख से और ख़ुशी ख़ुशी रहें। कि हमारे कम से कम दो हट्टे कट्टे बच्चे हों!”

ये कैसी बात थी? माँ को एक पल को लगा कि सुनील उनसे ठिठोली कर रहे हैं। लेकिन उनका धीर, गंभीर चेहरा देख कर वो समझ गईं कि ऐसी बात नहीं थी। सुनील को आशीर्वाद देने के लिए उनके हाथ आज आखिरी बार उठने वाले थे।

“अ... आ... ईश्वर आपकी हर मनोकामना पूरी करें!” माँ ने पहले तो झिझकते हुए कहा, और फिर समर्पण से आगे बोलीं, “मैं आपकी हर इच्छा पूरी करूँगी!”

सुनील मुस्कुराया, “थैंक यू, दुल्हनिया!”

फिर वो उठ कर, सिन्दूर का पैकेट खोलते, हुए प्रेम से और आत्मविश्वास से मुस्कुराया, और फिर उसने अपनी चुटकी में ढेर सारा सिंदूर लेकर उसने माँ की माँग में भर दिया। उसने फिर से एक और चुटकी सिन्दूर उठा कर फिर से माँ की माँग भरी। फिर उसने फिर से सिन्दूर की बड़ी मात्रा ले कर माँ की माँग में तीसरी बार सिन्दूर भरा!

और बस, इस साधारण सी हरकत से माँ का रूप और उनका ओहदा सदा के लिए बदल गया! अब माँ एक विधवा महिला से एक सौभाग्यवती महिला में बदल गईं थीं! वो अब सुनील की पत्नी थीं। सुनील ने उनको चिन्हित कर लिया था, और माँ ने हमेशा उसकी पत्नी बन कर रहने के लिए हामी भर दी थी! उनके लिए अब सुनील केवल सुनील नहीं था - वो अब उनका पति था। पति परमेश्वर! अब से वो सुनील को कभी उसके नाम से संबोधित नहीं करेंगी। अपने परमेश्वर का नाम वो कैसे ले सकती हैं भला?

माँ अपने घुटनों के बल सुनील के सामने गिर गई और अपने हाथों से उसके पैर छूने लगी। भले ही उम्र में सुनील उनके बच्चे की तरह था... लेकिन माँ के संस्कार में उनको अपने पति को सम्मान देना सिखाया गया था। पति का स्थान परमेश्वर वाला है - उसकी उम्र का कोई स्थान नहीं!

“अरे अरे, ये क्या कर रही हो मेरी जान? तुम्हारी जगह वहाँ मेरे पैरों में नहीं, बल्कि यहाँ, मेरे दिल में है।” सुनील ने कहा, और माँ को उसके कंधे से पकड़ कर खड़ा किया, और कई बार चूमते हुए उसको गले से लगा लिया।

“आप मेरे पति हैं... आपका आदर करना मेरा धर्म है।”

“ओह? तो ठीक है... छू लो मेरे पैर!” उसने शरारत से कह दिया।

उसने सोचा कि माँ कोई मजेदार प्रतिक्रिया देंगीं।

लेकिन माँ ने फिर से वही किया जो उसने पहले किया था। वो फिर से अपने घुटनों पर बैठ कर, उसके पैरों को अपने हाथों से छूती है और उसके पैरों पर जो भी धूल मिलती है उसे अपने माथे पर लगा लेती है।

‘ऐसा समर्पण!’

हाँलाकि यह एक सम्मानजनक कार्य था, लेकिन सुनील पर उसका प्रभाव अत्यंत कामुक था! उसका लिंग पहले से ही उत्तेजित हुआ बैठा था, लेकिन माँ के पैर छूने से वो और सख़्त हो गया।

सिंदूर लगाने के दौरान, और माँ के पैर छूने के कारण, उनकी माँग से सिंदूर का एक बड़ा हिस्सा माँ की नाक पर गिर गया। सुनील बहुत सम्हाल कर और कुशलता से उसे माँ की नाक से मिटाने की कोशिश करने ही वाला था कि माँ ने उसे रोक दिया, और बड़ी भोली और मधुर अदा से बोलीं,

“अगर पति के सिंदूर लगाते समय सिन्दूर दुल्हन की नाक पर गिर जाता है, तो इसका मतलब है कि दुल्हन का पति उसको बहुत प्यार करता है!”
कैसी भोली सी बात थी! कैसी प्रेममय बात थी!

सुनील उनकी बात पर मुस्कुराया, और प्यार के आवेश में आ कर उसने माँ का मुख फिर से चूम लिया, “मेरी प्यारी, तुझको अभी भी मेरे प्यार पर शक है?”

माँ ने धीरे से सर हिलाते हुए कहा, “नहीं!”

वो मुस्कुराया, “तू बहुत क्यूट है मेरी दुल्हनिया! आई ऍम सो लकी!”

फिर उसने साथ में लाया कलावा निकाला, और माँ के गले में बाँधते हुए कहा, “यह सब मैंने प्लान नहीं किया था। इसलिए मंगलसूत्र की जगह इसको बाँध रहा हूँ!”

“नहीं नहीं - और कुछ न कहिए! पति अपनी पत्नी के गले में जो सूत्र बाँधे, वही मंगलसूत्र होता है!”

वो मुस्कराया, और फिर जी भर कर माँ के नग्न शरीर को देख कर आगे बोला, “दुल्हनिया मेरी, वैसे तो मेरा मन है कि मैं तुझे खूब, और खूब देर तक ‘प्यार’ करूँ, लेकिन ये वाली - मेरा मतलब है ये पहली चुदाई मैं बस कर लेना चाहता हूँ! इसलिये हो सकता है कि पहली बार में मैं जल्दी निबट जाऊँ... लेकिन, उसके बाद हम फुर्सत से करेंगे! ठीक है?”

किसी ने भी माँ को इस तरह से सेक्स करने का तरीका नहीं समझाया था। जाहिर सी बात है, कि सुनील की बात पर वो शर्मिंदा हो गई थी। उनकी मर्यादा उनको सब कुछ खुलकर बोलने नहीं देती थी।

“अब मैं आपकी हूँ! आपको जैसा मन करे, आप वैसा कर लीजिए।” माँ ने सकुचाते और घबराते हुए कहा।
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,392
24,539
159
अंतराल - विपर्यय - Update #4

सुनील ने माँ को वापस बिस्तर पर लिटाया, और फौरन अपने कपड़े उतारने लगा। उसे पक्का मालूम नहीं था कि काजल को लतिका के स्कूल से वापस लौटने में कितना समय और लगेगा, इसलिए वो बिना किसी हस्तक्षेप के माँ के साथ अपना पहला सम्भोग समाप्त कर लेना चाहता था। अपने प्रथम मिलन के लिए वो भी पूरी तरह तैयार था, और माँ भी पूरी तरह तैयार थी! और स्थिति ऐसी थी कि उन दोनों को जल्दी से सम्भोग कर लेना चाहिए था।

जैसे ही सुनील नग्न हुआ, माँ को पहली बार अपने नए पति के नग्न शरीर और उसके लिंग के आकार को देखने का अवसर मिला। डैड के लिंग का सुनील के लिंग के आकार से कोई मुकाबला ही नहीं था। हाँ, अगर घर में कोई सुनील के लिंग के सामने ठहरता था तो वो मेरा लिंग था! लिंग की लम्बाई तो खैर मेरी ही अधिक थी, लेकिन मोटाई सुनील के लिंग की अधिक थी। इसलिए संभव है कि आयतन में सुनील का लिंग मेरे लिंग से अधिक बड़ा हो! पूरी तरह से सीधा खड़ा हुआ, मोटी मोटी नसों से भरा हुआ उसका लिंग माँ को डरावना सा लग रहा था। सुनील ने माँ का हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर रख दिया। माँ ने उसकी गर्म कठोरता को महसूस किया और धक से रह गई।

“क्या हुआ?” सुनील को महसूस हुआ कि माँ को घबराहट हो रही है।

“बहुत बड़ा है!” माँ ने डर कर शिकायत और शरमाते हुए उसकी तारीफ - दोनों ही एक साथ, एक साधारण से वाक्य में, कर दी।

“बड़ा नहीं, मेरी जान... बस थोड़ा मोटा है! आओ। पकड़ो इसे! डरो मत!”

सुनील ने माँ का हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर चलाया, और साथ ही साथ माँ की योनि के अंदर उँगली डाल कर माँ की योनि को चेक किया। माँ की योनि उनके प्रेम-रस से सराबोर थी, और पूरी तरह से चिकनी हो गई थी। माँ को उसकी उँगली की घुसपैठ अपने अंदर महसूस हुई -

‘पहला अंतर्वेधन!’ माँ ने घबराते हुए सोचा, ‘जब इनकी उंगली इतनी बड़ी लग रही है, तो इनका ‘वो’ कैसा लगेगा! हे भगवान्, बहुत तकलीफ़ न होने देना!’

“मेरी दुल्हनिया, तुम तैयार हो?”

माँ ने घबराकर ‘हाँ’ में सर हिलाया और फुसफुसाई, “हाँ!”

उस समय माँ की भावनात्मक स्थिति को पूरी तरह से समझना बहुत मुश्किल है। माँ के पहले विवाह के लगभग अट्ठाईस वर्षों के बाद, उनकी पुनः, इस अद्भुत व्यक्ति से शादी हुई है (कम से कम सैद्धांतिक रूप में)। उसका नया पति एक अतिउत्साही युवक है, जिसे अपनी इच्छाओं को उनके सामने उजागर करने में कोई भी संकोच नहीं होता।

अपने (पहले) पति के निधन के बाद, माँ का दिल टूट गया था। यह उनकी जीवन भर अकेले, एक विधवा के जैसे रहने की उम्र नहीं थी। माँ ने अपने अतीत में कई सारी बातों, कई सारी चीजों से समझौता किया था और अपना मन मार कर अपनी प्रत्येक इच्छा - चाहे वो छोटी हो या बड़ी - पर नियंत्रण रखा। फिर उनके पति की भी मृत्यु हो गई। अब तो अकेली हो गई थीं। पहाड़ जैसी ज़िन्दगी ऐसे अकेले कैसे चलेगी? ऐसे जीवन का क्या लाभ?

और फिर अचानक ही सुनील हवा के एक ताज़े झोंके जैसा उनके जीवन में आया, और जब सुनील ने उनको प्रोपोज़ किया, तो उन्हें ‘हाँ’ कहना ही पड़ा। कैसे मना करती? सुनील जैसा वर और कहाँ मिलता? और अगर उनको शादी करनी ही थी, तो उनको सुनील से बेहतर और कोई नहीं मिलने वाला था। वैसे भी, बुद्धिमान लोग कहते हैं कि उससे शादी करनी चाहिए जो तुमसे प्यार करता हो! प्यार की शुरुआत करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन उसको हासिल करना आसान होता है। सुनील वास्तव में उससे प्यार करता है, और अब वो उसके प्यार का बदला देने के लिए तैयार थीं।

लेकिन सामाजिक धारणाओं और यहाँ तक कि उनकी अपनी खुद की सोच, परवरिश और संस्कारों के कारण माँ के मन में सुनील के किसी प्रकार का अंतरंग सम्बन्ध बनाना एक अवास्तविक सा प्रस्ताव बन गया था। उन्होंने सुनील को पहली बार तब देखा था जब वो छोटा था, और उसने किशोरावस्था में बस कदम ही रखा था। तब से ले कर बस कुछ ही दिनों पहले तक, माँ का उसके लिए सारा भाव ममता से भरा हुआ ही था। वो अपनी उम्र भर - यहाँ तक कि कुछ दिनों पहले तक - उनके पैर छू कर उनका आशीर्वाद लेता रहा था, और माँ उसको ‘दीर्घायु भव’, ‘चिरंजीवी भव’, ‘यशस्वी भव’, ‘सुखी भव’, और ‘विजयी भव’ जैसे आशीर्वाद देती रही थीं! उसको एक ‘सुन्दर - सुशील - और - गुणी’ पत्नी पाने का आशीर्वाद देती आई थीं। एक माँ की ही तरह उन्होंने सुनील के पालन पोषण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। न जाने कितनी बार उन्होंने सुनील को अपने ही हाथों से नहलाया, उसको खाना खिलाया! उसको बारहवीं तक हिंदी और अंग्रेजी पढ़ाया, और परीक्षा के लिए तैयार करवाया! उसकी उच्च शिक्षा को पूरी करने में भी माँ की महत्वपूर्ण भूमिका रही।

आज वही लड़का बड़ा हो गया था, युवा हो गया था, और आत्मविश्वास और अपने भविष्य के लिए सुनहरे सपनों से लबरेज़ था। भविष्य के सुनहरे सपने, जिनके केंद्र में वो खुद थीं - सुनील की पत्नी के रूप में! कितनी जल्दी उनके भाग्य ने अपनी दिशा ही बदल दी थी! अब वो उसी लड़के की पत्नी थीं - उसकी ‘सुन्दर - सुशील - और - गुणी’ पत्नी! अब वो उसी लड़के के नाम का सिन्दूर अपनी माँग में सजाए हुए थीं। अब वो खुद उसी लड़के के पैर छू रही थीं! अब वो उसी लड़के का छोटा सा संसार बसाने जा रही थीं! अब वो उसी लड़के का वंश आगे बढ़ाने जा रही थीं। वही लड़का आज उनका ‘स्वामी’ बन गया था! अब उसी लड़के के साथ उनका भविष्य हमेशा के लिए जुड़ गया था!

जैसे ही सुनील ने उंगलियों से माँ की लेबिया को फैलाया, माँ के पूरे वज़ूद में एक अनजान डर की लहर दौड़ गई। यदि माँ की माँग को सिंदूर से सजाना उनके भविष्य को बदलने जैसा कार्य नहीं था, तो सुनील अब जो करने जा रहा था, वो निश्चित रूप से उसका भविष्य हमेशा के लिए बदल देगा! उन दोनों के इस प्रथम मिलन से माँ का जीवन हमेशा के लिए बदल जाएगा!

डैड के लिंग ने माँ की योनि के कोरे कागज़ पर जो प्रेम प्रसंग लिखा था, उसकी स्याही अब धुंधली पड़ चुकी थी। सुनील अपने लिंग से माँ की योनि के कागज़ पर एक नई प्रेम कहानी बस लिखने ही वाला था!

जैसे ही सुनील ने अपने लिंग के सर को माँ की योनि के होंठों के बीच सरकाया, माँ ने एक गहरी सी साँस भरी! उनको अपनी योनि के होंठों पर जो खिंचाव महसूस हो रहा था, वो अभूतपूर्व और चुनौतीपूर्ण था। माँ को यौन संबंध का आनंद लेने का लगभग तीन दशकों का अनुभव था, लेकिन वो उसके लिए अभी तक जिस उपकरण का उपयोग करती आई थीं, वो सुनील के उपकरण की तुलना में छोटा भी था, और पतला भी! और तो और, कोई दो साल से उन्होंने यौन सम्बन्ध नहीं बनाया था! इसलिए एक तरीके से माँ की योनि इस समय कोरी थी!

सुनील ने धीरे से ज़ोर लगाया,

“उम्मपफ्फ़....” माँ की दर्द भरी सिसकारी निकल पड़ी।

जैसी कि उनको उम्मीद भी थी और आशंका भी, दर्द तो बहुत हुआ! ऐसा ही अनुभव उनको आज से तीस साल पहले हुआ था, जब डैड के साथ उन्होंने पहली बार सम्भोग किया था। उस समय वो एक नवविवाहिता लड़की थीं, और आज वो एक नवविवाहिता स्त्री हैं। दो प्रथम सम्भोग - दोनों ही कितने एक जैसे, और दोनों ही कितने अलग! सुनील को भी कोई ग़लतफ़हमी नहीं थी - वो जानता था कि उसका पुरुषांग बड़ा तो है। लिहाज़ा उसकी पत्नी को दर्द तो होगा ही। लेकिन वो भी क्या करे? सम्भोग की कला तो सीखते सीखते ही सीखी जाती है! कोई माँ के पेट से तो जान कर नहीं निकलता। नैसर्गिक ज्ञान है सम्भोग क्रिया। लेकिन उसको आनंदमय बनाना एक कला है।

सुनील लगभग एक इंच अंदर तक गया, और फिर थोड़ा बाहर निकल गया। माँ ने राहत की साँस ली।

“दुल्हनिया मेरी, तू ठीक है न?” सुनील ने चिंतित होते हुए कहा।

माँ ने जल्दी से ‘हाँ’ में सर हिलाया, “आ... आप मेरे दर्द की बहुत परवाह न कीजिए... पहली बार में ऐसा दर्द होता ही है!”

कैसी अद्भुत सी बात है न, माँ ‘पहली बार’ शब्द का प्रयोग कर रही थी, जबकि उनको सम्भोग का लगभग तीस साल का अनुभव था। और करे भी क्यों न! सुनील के लिंग के सामने, उनकी योनि कोरी ही तो थी! उनकी बात सुन कर सुनील ने फिर से धक्का लगाया। माँ ने सुनील के धक्के के पूर्वाभास में कराह निकाली - सुनील ने धक्का तो लगाया, लेकिन ज़ोर से नहीं। बस इतना ही जिससे वो कोई एक इंच और अंदर जा सके। माँ की आँखों से आँसू ढलक गए।

सुनील को भी समझ थी कि माँ को दर्द हो रहा है - इसलिए वो अपने जोश पर कुछ नियंत्रण रखे हुए था। शुरुआत में तो उसने छोटे छोटे कई धक्के लगाए, लेकिन बाद में, जब माँ की योनि उसके लिंग के लिए थोड़ी अनुकूल हो गई तो, उसने लम्बे और अधिक शक्तिशाली आघात करने शुरू कर दिए। जब उसका लगभग तीन चौथाई लिंग उनकी योनि में प्रविष्ट हो गया, तब माँ को अपने अंदर एक अद्भुत पूर्णता का अनुभव हुआ। ऐसा नहीं है कि उनको दर्द नहीं रह गया - दर्द तो अभी भी था। लेकिन दोनों के मिलन की अद्भुत पूर्णता का अनुभव उससे कहीं अधिक शक्तिशाली था। ऐसे में दर्द की अनुभूति कम और विस्मयकारी आनंद की अनुभूति अधिक होने लगी।

सुनील के लिंग ने उनकी योनि को भली भाँति भर दिया था। माँ ने अपना दाहिना पैर उठा कर सुनील के शरीर के बाएँ साइड में, उसके नितम्ब के ऊपर रख दिया। इससे सुनील को उनके अंदर जाने के लिए और जगह मिली। जब माँ ने उसका लिंग अपने और अंदर प्रविष्ट होते हुए महसूस किया, तो उन्होंने अपना बायाँ पैर भी सुनील की कमर के ऊपर रख लिया। अब माँ की दोनों टाँगें सुनील की कमर पर लिपटी हुई थीं, और उनकी योनि का मुख सुनील के लिंग के और अधिक स्वागत करने के लिए और अधिक खुल गया था। अगले धक्के में सुनील के लिंग की पूरी लम्बाई, माँ की योनि की गहराई में पेवस्त हो गई। जब उन दोनों के श्रोणि-कुंतल (pubic hair) आपस में उलझ गए, तो माँ की साँसें जैसे थम सी गईं; मैथुन की सहज प्रवृत्ति के कारण, माँ के कूल्हे, सुनील के धक्कों के ताल में ताल मिला रहे थे। लेकिन इस तरह का सम्भोग उन्होंने अपने पूरे वैवाहिक जीवन में पहले कभी नहीं किया था - सुनील का वायदा पक्का था! मैथुन की पूरी प्रक्रिया के दौरान वो सुनील से चिपकी रहीं; और जैसे जैसे वो गति बढ़ाता रहा, उन्होंने आलिंगन को बरकरार रखा।

सुनील ने माँ को भोगने की गति तेज़ तो कर दी थी, लेकिन केवल थोड़ी ही। वो जानता था कि अगर उसने अधिक बलपूर्वक माँ को भोगा, तो वो उनको चोट पहुँचा सकता है। वो तो माँ के साथ शानदार, कामुक, आवेश-युक्त, और लंबे समय तक सम्भोग करना चाहता था! लेकिन, चूँकि उसको मालूम नहीं था कि काजल और लतिका स्कूल से कब तक वापस आएँगे, इसलिए उनके आने से पहले वो यह सम्भोग पूरा कर लेना चाहता था। लेकिन जब कोई पाँच मिनट हो गए, तो उसका अपनी रति-क्रिया में किसी प्रकार के बाहरी विक्षोभ का डर जाता रहा - कोई आए तो आता रहे! जो हो रहा है उसको रोका नहीं जा सकता।

अब वो उन्मुक्त हो कर माँ के साथ यौन आनंद ले रहा था। जैसा कि पहले भी बताया जा चुका है कि सुनील को स्त्रियों की रति-निष्पत्ति के चिन्हों के बारे में मालूम नहीं था, लेकिन माँ इस सम्भोग के आरम्भ में, कोई दो तीन मिनटों में ही अपना पहला चरम सुख प्राप्त कर चुकी थी। और इस बढ़ी हुई अवधि में उसके प्रेमाचार के कारण उनको दोबारा वही मीठा मीठा आंदोलित करने वाला एहसास बनता और बढ़ता हुआ महसूस हो रहा था। पहली बार होने के बावजूद, उनका मैथुन लंबे समय तक चला। डैड की तुलना में तो काफी लंबे समय तक सुनील उनके साथ सम्भोग कर रहा था। सुनील को अपने लिंग पर माँ की सँकरी योनि और भगोष्ठ की कसावट बहुत आनंद दे रही थी। हर धक्के के साथ वो एक संतोषजनक कराह निकाल रहा था। माँ की योनि कितनी गर्म, मुलायम, गीली और चिकनी थी! उसको ऐसा लग रहा था जैसे उसके लिंग को माँ की योनि ने एक गर्म, कोमल, किन्तु दृढ़ आलिंगन में बाँध रखा था। जैसी उसने कल्पना करी थी, उससे कहीं अधिक आनंददायक था माँ के साथ सम्भोग करना! उसको मालूम था कि अब वो बहुत अधिक देर तक टिकने वाला नहीं था।

माँ को भोगते हुए, सुनील ने उनकी ओर देखा। माँ की आँखें बंद थीं, उसके होंठ अलग हो कर थोड़े खुले हुए थे, और वो मुँह के ही रास्ते साँसें ले रही थी... हर धक्के पर उनके स्तन जोर से हिल रहे थे। मनोहर दृश्य! उसने अपने हाथ बढ़ाए, और धीरे से माँ के प्रत्येक स्तन पर इस तरह से रखा, कि उनके सख्त, उभरे हुए चूचक उसकी उँगलियों के बीच में फँस जाएँ! उसने मस्ती से अपनी उँगलियों के बीच में चूचकों को बंद कर के निचोड़ा और साथ ही साथ प्रत्येक स्तन को दबाया। उसकी इस हरकत पर सुनील को देखने के लिए माँ ने आँखें खोल लीं। वो माँ को ही देख रहा था - उसको ऐसे देखते हुए देख कर माँ ने एक शर्मीली मुस्कान दी। शर्म का हल्का गुलाबी रंग उनके चेहरे, उनकी छाती और उनके स्तनों पर फैल गया। बिना शब्दों के इस वार्तालाप का आनंद दोनों को मिल रहा था।

माँ आज फिर से पूर्ण हो गईं थीं - उनको अपना अधीश मिल गया था, जिसके साथ वो जुड़ गई थीं। सुनील भी पूर्ण हो गया था - उसको अपनी अर्द्धांगिनी मिल गई थी, जिसके साथ आज वो जुड़ गया था। उसकी वर्षों की साध आज पूरी हो गई।

सुनील लंबे, धीमे और गहरे धक्के लगाता रहा। शीघ्र ही सुनील के साथ सम्भोग की मीठी पीड़ा के बीच में मिल रहे दूसरे चरम आनंद को प्राप्त कर के माँ के मुख से एक दबी हुई चीख निकल गई। उनकी दोनों टाँगें सुनील की कमर के गिर्द कस गईं। उनका ये कामोन्माद पहले वाले से भी अधिक तीव्र था! उनका शरीर बुरी तरह से काँपने लगा। यह उसके जीवनकाल में अब तक का सबसे देर चलने वाला सम्भोग था, और सबसे प्रचंड भी! इस बारे में सुनील ने सही शेखी बघारी थी! उधर सुनील खुद भी अपने कामोन्माद के शिखर पर पहुँच रहा था। स्खलित होने से पहले सुनील की सिसकियाँ निकलने लगीं, और तब तक निकलती रहीं जब तक उसने सारा अपना वीर्य, माँ की कोख के अंदर जमा नहीं कर दिया! सुनील ने माँ के संभोग तृप्त शरीर को आलिंगन में भर लिया, और संतुष्टि की उस अविश्वसनीय भावना के साथ उसके साथ आराम करने लगा। सुनील और माँ करवट में एक दूसरे के सामने लेटे हुए थे, लेकिन उसका लिंग अभी भी माँ के अंदर ही था।

अपनी आँखें बंद किये हुए, माँ इस नए अनुभव का आनंद लेती रहीं। एक बेहद लम्बे अंतराल में बाद माँ को अपनी कोख में जननक्षम वीर्य की एक उदार ख़ुराक़ मिली थी। सुनील - उनके नए पति ने अब ‘तन’ से भी उनको अपना बना लिया था। उनके पहले सम्भोग का अनुभव बेहद अद्भुत रहा! वे दोनों अभी भी जुड़े हुए थे, और उनकी योनि अभी भी उत्तेजना से कांप रही थी, और बड़े शानदार ढंग से सुनील के नरम पड़ गए लिंग को निचोड़ रही थी।

कि माँ अपने प्रथम सम्भोग से बहुत संतुष्ट थीं, यह एक न्यूनोक्ति है... ऐसा यौन-सुख माँ को अपने जीवन में आज से पहले कभी नहीं मिला! उनको ऐसा लगा कि जैसे उन्होंने अपने जीवन में आज पहली बार सम्भोग किया हो! पहले सम्भोग की पीड़ा, पहले सम्भोग की लरज, और पहले ही सम्भोग जैसी तृप्ति और संतुष्टि! सुनील के प्रेम करने का अंदाज़ ऐसा था कि माँ का पूरा शरीर मानों कोई मधुर गीत गा रहा हो, ऐसा लग रहा था... बिस्तर पर पड़े पड़े माँ सोच रही थी कि अगर ‘इन्होने’ ‘अर्जेंसी’ में मेरी ऐसी हालत करी है, तो तब क्या होगा, जब ‘इनको’ कोई जल्दी नहीं होगी! अपने उस विचार पर माँ खुद ही शर्मा गई।

कुछ देर बाद माँ ने अपनी आँखें खोलीं, सुनील को चूमा, और कहा,

“ये सब बदमाशियाँ करना आपने कहाँ से सीखा? सच में, इतना… ऐसा… मैंने कभी महसूस नहीं किया!” माँ ने झिझकते हुए कहा।

उनकी बात में ईमानदारी थी। सुनील को खुश करने के लिए इतना ही काफी था।

“मज़ा आया?” उसने कहा।

माँ अदा से हँसने लगी।

एक ही सम्भोग में दो दो बार वो कभी नहीं आईं थीं। यह संभव भी था क्या? ऐसा अभूतपूर्व अनुभव! कभी कभी तो डैड के साथ दो दो सम्भोग हो जाते, और वो उसमें भी बस एक ही बार आ पाती थीं! और ये पूछ रहे हैं कि मज़ा आया!

सुनील को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया था।

उसने मुस्कराते हुए कहा, “इंटरनेट से बहुत कुछ सीख सकते हैं आज कल!”

माँ को इंटरनेट के बारे में पता था! मैंने उनको और डैड को थोड़ा बहुत सिखाया था - और उन्होंने खुद भी इंटरनेट की कुछ सेवाओं का हाल ही में इस्तेमाल किया था। लेकिन उनको इस बात की जानकारी नहीं थी कि वहाँ ‘ऐसी’ जानकारियाँ भी उपलब्ध हैं! फिर उन्होंने सुनील के लिंग को महसूस किया, जो अभी भी उसके अंदर समाया हुआ था। वो अब पहले जितना मजबूत नहीं था, लेकिन स्खलित होने के बाद लिंग जैसा व्यवहार करता है, वो वैसा नहीं कर रहा था। उसको तो पूरी तरह से मुलायम हो जाना चाहिए था! लेकिन अभी भी सुनील के लिंग में दृढ़ता थी।

“आप सच में मुझसे शादी करेंगे?” माँ ने अपने सोचने की दिशा बदली।

“सुमन!?” सुनील ने अविश्वासपूर्ण ढंग से कहा, “क्या हमने अभी शादी नहीं की? मैं तो तुम्हें अपने मन से अपना मान चुका हूँ! आज से नहीं - बहुत पहले से! और.. और, मैंने तुम्हारी माँग में सिन्दूर भरा है... तुमको... मंगलसूत्र पहनाया है! और अब तो हम तन से भी एक हो गए हैं। तुम तो मेरी बन चुकी हो! और तो और, तुम तो मेरी तब से बन चुकी हो, जब से तुमको मालूम भी नहीं है। अब तो बस सबके सामने रस्में होनी बाकी हैं, वो भी निभा लेंगे… जल्दी ही! जितनी जल्दी हो!”

माँ उसके उत्तर से संतुष्ट हो गई।

“आज ही मैं अम्मा से बात करता हूँ!”

माँ मुस्कुराईं और उन्होंने सुनील को गले लगाया, और प्यार से अपना चेहरा उसकी छाती में छुपा लिया, और अंत में अपना सर उसकी बाँह पर टिका दिया। पत्नी को सुख तो पति के आलिंगन में ही आता है। सुनील ने प्यार से माँ को देखा।

उनकी सूनी सूनी माँग कितनी अजीब सी लगती थी... लेकिन अभी, उनकी माँग में वो नारंगी रंग का सिन्दूर कैसा सुशोभित हो रहा था! माँ ने गहने का एक भी टुकड़ा नहीं पहना था - ओह, बस कान में सोने के पिन की छोटी सी जोड़ी, और इसी तरह की छोटी सी सोने की नाक की पिन! और गले में वो लाल रंग का कलावा। बस! उन्होंने न तो चूड़ियाँ पहनी थी, न ही अंगूठियाँ, न पायल, और न ही कोई अन्य आभूषण! माँ को ऐसे आभूषण रहित देख कर सुनील को बड़ी निराशा महसूस हुई।

‘मुझे सुमन के लिए उपहार के रूप में कुछ तो लाना चाहिए था!’ उसने सोचा।

माँ ने यह महसूस किया कि सुनील सामान्य से अधिक शांत लग रहा था।

“आप क्या सोच रहे हैं?”

“सुमन, मुझे तुम्हारे लिए कुछ लाना चाहिए था... कोई उपहार... कुछ गहने या कुछ और! तुमने मुझे इतना बड़ा तोहफा दिया है, और उसके बदले में मैंने तुम्हें कुछ भी नहीं दिया... प्लीज मुझे माफ कर दो।”

“अरे! आप ऐसी बातें क्यों कह रहे हैं? हाँ?” माँ ने बुरा मानते हुए कहा, “मेरा गहना तो आप हैं… आपने मुझे सब उपहारों से बड़ा उपहार दिया है… अपने प्यार का उपहार।”

माँ ने कहा, और अपना हाथ नीचे वहाँ पहुँचाया जहाँ सुनील का अर्ध-स्तंभित लिंग अभी भी उनके अंदर घुसा हुआ था। माँ ने कोमलता से उसके लिंग को छुआ!

“आपका बीज मेरे अंदर है अब!” उसकी आवाज़ धीमी हो गई थी, “आप कभी भी ऐसा सोचिएगा भी मत... ऐसा उल्टा पुल्टा ख्याल भी ना लाइएगा कभी अपने मन में!”

“पहले तो आपने मुझे विधवा से फिर से सुहागिन होने का सौभाग्य दिया… फिर मुझे… [वो हिचकिचाई] यौन सुख दिया… अब आपका बीज... [माँ फिर से झिझक रही थी]... भगवान ने चाहा तो जल्दी ही मुझे फिर से माँ बनने का सुख मिलेगा! अब इन सभी सुखों के सामने किसी उपहार, किसी गहने की क्या बिसात है? बोलिए?”

माँ ने केवल दो ही वाक्यों में उन सभी गुणों को प्रदर्शित कर दिया, जिनके कारण सुनील उनकी ओर आकर्षित हुआ था। भावनाओं से अभिभूत होते हुए सुनील ने उनके मुखड़े को अपनी हथेलियों में पकड़ कर कई बार उनके होंठों को चूमा,

“सुमन... ओह सुमन… मेरी प्यारी सुमन… मेरी दुल्हनिया!” और फिर उसने उन्हें प्यार से देख कर कहा, “और तुम्हें अब भी डाउट है कि मैं तुमसे शादी करूंगा या नहीं? अरे कोई बेहद मूर्ख आदमी ही होगा, जो तुमको अपनी ज़िन्दगी में नहीं चाहेगा। और मैं चाहे कुछ भी हूँ, लेकिन मूर्ख तो मैं नहीं हूँ!”

“मूर्ख नहीं! लेकिन आप शरारती बहुत हैं!”

उसने प्यार से माँ के एक स्तन के एरोला पर अपनी तर्जनी चलाई। गुदगुदी होने के कारण माँ खिलखिला कर हँसने लगी। उनके चूचक भी जैसे जाग गए, और सुनील की छुवन के उत्तर में खड़े हो गए।

“क्या करूँ मेरी दुल्हनिया, तू बहुत सेक्सी है यार!”

“हा हा हा!” माँ भी अपने लिए सुनील के पागलपन से प्रभावित हुए बिना न रह पाई।

“अच्छा, एक बात तो बता दुल्हनिया, कभी तेरी दिन में चुदाई हुई है?”

“धत्त! आप भी न!”

“अरे बोल न!”

माँ ने सुनील को बड़े गौर से देखा, और फिर मुस्कुराते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“दिन में? कब?”

“आज! अभी!”

“मेरा मतलब आज से पहले?”

“हाँ! चार पाँच बार! लेकिन बहुत पहले!”

“हम्म्म! अच्छा एक बात तो बता! तूने आज कच्छी क्यों पहनी हुई थी?”

“आप मुझे रोज़ रोज़ सताते हैं! मैं क्या करती?”

“सताता हूँ? मैं?”

“और क्या?”

“अरे मैं तो तुझे इतना प्यार करता हूँ!”

“हा हा हा हा!”

“प्यार नहीं करता?”

“करते तो हैं!” माँ ने शरमाते हुए कहा, “मैंने कब मना किया?”

“दुल्हनिया, तूने क्या सोचा था कि वो मामूली सी कच्छी तुझको मुझसे बचाएगी?”

“मैं आपको रोक भी कहाँ पाती हूँ!”

“हम्म्म्म! तूने सोचा नहीं होगा न, कि आज तेरी चुदाई होगी?”

“हा हा! मालूम था कि जल्दी ही होगी, लेकिन आज ही हो जायेगी, यह नहीं मालूम था!”

“जल्दी ही चुदाई होगी, यह मालूम था?”

“और क्या! आप मेरी ब्लाउज खोल देते हैं, साड़ी उठा देते हैं, नंगा कर देते हैं! यहाँ, वहाँ, जहाँ मन करता है मेरे बदन को छूते हैं, और मैं आपको मना ही नहीं कर पाती! ऐसे में कितने दिन बचूँगी मैं?”

“तुझको मज़ा आया?”

माँ ने शरमाते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“दुल्हनिया?”

“जी?”

“तुझको.... बाबूजी की याद आती है?”

माँ इस बात पर दो पलों के लिए चुप हो गई, फिर धीरे से बोली, “जी, आती तो है।”

“दुल्हनिया, मुझे मालूम है कि तेरे मन में उनके लिए एक खास जगह है... मैं उनकी जगह लेने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ। तू ये बात जानती है न?”

माँ ने बिना कुछ कहे ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“मैं बस अपनी जगह बनाना चाहता हूँ, तेरे मन में! तुझको खुश रखना चाहता हूँ। निश्चित करना चाहता हूँ कि तुझे अब कभी भी दुःख न हो!”

माँ मुस्कुराई, “मुझे मालूम है! आप उस बात की चिंता मत कीजिए! अब आप मेरे पति हैं - अब आप मेरे सब कुछ हैं!”

कुछ क्षण दोनों चुप रहे, फिर सुनील ने कहा, “दुल्हनिया?”

“जी?”

“मैं तुझसे ‘तुम’ ‘तू’ करके बात करता हूँ! तुझे बुरा तो नहीं लगता?”

“आप इसे देख रहे हैं?” माँ ने सुनील के लिंग की तरफ इशारा किया, जो अभी भी उनके अंदर था।

“किसे? मेरे लण्ड को, या तेरी बुर को!”

“धत्त!”

“अरे धत्त क्या? बोल न!”

“आपके ‘उसको’!”

“हाँ, तो?”

“वो मेरे अंदर पिछले आधे घंटे से है। मेरे पति... मेरे पतिदेव के अलावा किसी और को मेरे अंदर जाने की इज़ाज़त नहीं है। समझे आप?”

सुनील मुस्कुराया, “ये मेरी बात का जवाब नहीं है दुल्हनिया! जब से मुझे याद है तब से तू मेरी माँ जैसी रही है! और अब मैं तुझे ‘तुम’ ‘तू’ करके बुला रहा हूँ!”

“लेकिन मैं आपकी माँ नहीं हूँ! आपने ही तो कहा था।” माँ बड़ी अदा से बोली, “मैं आपकी बीवी हूँ! आप मुझे प्यार से किसी भी नाम से बुला सकते हैं; कैसे भी बुला सकते हैं!”

“अगर तू मेरी माँ भी होती न, दुल्हनिया, तो भी मैं तुझसे ही शादी करता!” सुनील ने माँ को चिढ़ाया।

माँ ने सुनील की बात पर चौंकते हुए सदमे की अभिव्यक्ति करते हुए अपना मुँह ‘O’ के आकार का खोला, और और चंचलता से उसके हाथ पर चपत लगाई! सुनील ने मज़ाक में दर्द होने की एक्टिंग की और “आऊ” कह कर चिल्लाया और फिर दोनों ही ठहाके मारकर हँसने लगे।
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,392
24,539
159
अंतराल - विपर्यय - Update #5

फिर जैसे कुछ याद करते हुए सुनील बोला, “दुल्हनिया, तुझे याद है? कई साल पहले तू मुझे नहला रही थी और मुझे बोली कि मेरा छुन्नू खूब सुन्दर सा है?”

“हा हा हा!”

“अरे बोल न?”

“जी, याद है!”

“और तूने कहा था कि मैं खूब अच्छा खाया पिया करूँ, एक्सरसाइज करूँ, कोई बुरी आदतें न पालूँ?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तो मैंने वो सब किया!” सुनील मुस्कुराते हुए बोला, “और मुझे मेरी सुन्दर सी बीवी भी मिल गई!”

माँ ने बड़े शर्माते हुए सुनील को देखा और मुस्कुराईं।

“सुनिए जी?” माँ ने मधुरता से कहा।

“हाँ, बोलो न!”

“मैं... मैं…” माँ झिझकते हुए बोली, “मैं... का... मेरा मतलब है, मैं अम्मा को क्या कहूँ? कैसे बुलाऊँ?”

‘यह कितना प्यारा सा सवाल है!’ सुनील ने सोचा। अभी कुछ दिन पहले तक सुमन उसकी अम्मा को ‘काजल बेटा’ या केवल ‘काजल’ कह कर पुकारा करती थी। सब चीजें कैसे बदल गई हैं!

“मैं तो अम्मा को ‘अम्मा’ ही कहता हूँ, और कहूँगा! तुम देख लो अपना!”

“तो ठीक है... मैं भी उनको ‘अम्मा’ ही कह कर बुलाऊंगी! ठीक है...?”

“हाँ... ठीक है। अब तो तुम उनकी बहू हो!” और इस बात पर सुनील को लतिका की याद आ गई, “और लतिका की भाभी... उसकी बोऊ-दी!”

माँ शरमाकर हँस पड़ी, “हाय राम! मेरा तो डिमोशन हो गया! मम्मा से सीधा बोऊ-दी!”

सुनील ने प्यार से माँ की ओर देखा और कहा, “दुल्हनिया, तेरा अब वो मच्योर वाला, जगत-माँ वाला रोल निभाने वाले दिन अब खत्म हो गए हैं... अब तेरे मज़े करने के दिन हैं... खेलने के दिन हैं! अब तू एक नॉन-मेच्योर, स्पंकी रोल में कास्ट कर ली गई है…”

सुनील के कहने का अंदाज़ कुछ ऐसा था कि माँ खिलखिला कर हँस पड़ीं।

“तुम बस ऐसे ही हँसती रहा करो दुल्हनिया! तुम ऐसे बहुत सुन्दर लगती हो! मेरा वायदा है तुमसे, कि मैं तुमको ऐसे ही हँसता खेलता रखूंगा हमेशा! जैसे पुचुकी और मिष्टी रहते हैं न, वैसे ही तू भी रहा कर! हमेशा खेलती कूदती, हँसती मुस्कुराती!”

माँ ने बहुत प्यारी मुस्कान दी। अपने बारे में सुनील का प्लान सुन कर उनको बहुत अच्छा लगा। जैसे उम्र भर के संचित पुण्यों का फल मिल गया हो उनको।

“और नंगू नंगू!” सुनील ने शरारत से आगे जोड़ा।

लतिका और आभा - दोनों बच्चे उसी ‘प्राकृतिक’ तरीके से पाले जा रहे थे, जैसे कभी मुझे पाला गया था, या माँ की देखा देखी काजल ने सुनील को पाला था। किसी पर कोई रोक टोक नहीं थी। यह दोनों बच्चों की मर्ज़ी पर था कि वो कपड़े पहनना चाहते हैं या नहीं! प्राकृतिक तरीके से पालने का ही प्रभाव था कि इस घर के सब बच्चे बढ़िया बन कर निकले थे, और बढ़िया निकल रहे थे। हम सभी को दोनों बच्चों पर बहुत अभिमान था!

“हा हा हा! हटिए जी! मैं कोई छोटी बच्ची हूँ क्या?”

“अरे बच्ची ही तो बनने को कह रहा हूँ! वैसे भी मुझसे शादी कर के तुम्हारा पद छोटा हो गया है - पुचुकी के जैसा! जैसे वो बच्ची है, वैसे ही तुम भी!”
माँ की बहुत छोटी-छोटी इच्छाएँ थीं। अगर वो इच्छाएँ पूरी हो जाएँ, तो वो उतने से ही संतुष्ट थी, प्रसन्न थी। लेकिन न जाने किसकी नज़र लग गई थी उनकी खुशियों पर। लेकिन अब अचानक ही सब ठीक होता दिख रहा था।

“हाँ, ठीक है! लेकिन मैं नंगू नंगू रहने वाली बच्ची थोड़े ही हूँ!”

“भूल गई? कल ही तो अम्मा कह रही थीं कि वो चाहती हैं कि उनके सारे बच्चे उनके आस पास नंगे नंगे ही रहें - उनके सारे बच्चे मतलब मिष्टी, पुचुकी, सुनील, और उसकी बहू!”

“आप चाहते हैं कि मैं वैसे रहूँ? नंगू नंगू?”

“हाँ! बिना कपड़ों के तो तुम और भी छोटी सी लगती हो!” सुनील हँसते हुए बोला।

“जी ठीक है फिर!” माँ ने अदा से कहा।

“अच्छा,” सुनील ने कुछ सोचते हुए कहा, “तुम अम्मा के पैर छुवोगी क्या?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया और कहा, “अम्मा के भी, और आपके भी।”

“अरे! मेरे क्यों? मैं तो तुम्हारी आधी उम्र का हूँ!”

“उससे क्या? आप मेरे पति हैं न! पति का स्थान तो पत्नी के जीवन में सबसे ऊँचा होता है!”

“हम्म्म! लेकिन यार सुमन, एक बात तो है! जब तू मेरे पैर छूती है न, तो मेरा लण्ड खड़ा हो जाता है!”

“सच में?” माँ ने आश्चर्यचकित होते हुए कहा, “अच्छी बात है फिर! तो वही आपका आशीर्वाद है मेरे लिए! मुझसे आप वायदा कीजिए, जब भी आपका ‘वो’ खड़ा हो, आप सीधा मेरे पास आ जाएँगे!”

“हा हा हा! लेकिन ये हमेशा तो नहीं हो पाएगा न! जब ऑफिस में रहूँगा, तब तो नहीं हो पाएगा!”

“हाँ, तब की बात अलग है। जब मैं आस पास न रहूँ, तब के लिए थोड़ा संयम रखना सीख लीजिए!”

“बिलकुल! मेरी जान, तुझसे अलग मेरी कोई दुनिया नहीं होगी! ये वायदा है!” सुनील ने कहा, फिर जोड़ा, “लेकिन यार - एक बात है! अम्मा भी तो तुझसे छोटी है न!”

“हाँ, लेकिन आपकी माँ, मेरी भी तो माँ ही होंगी!”

“हा हा... जो कभी तेरी बेटी थी, अब तेरी अम्मा बन गई।”

“हाँ न! सोचिए ना... एक समय था जब मैं अम्मा को भी दूध पिला चुकी हूँ!” माँ बोली, “अभी दो दिन पहले भी पिलाया है!”

“हा हा! हाँ... मालूम है कि तू उनको दुद्धू पिलाती है! अब अम्मा का दूध तुम पी लेना!”

माँ हँसने लगी! इस बार दिल खोल कर!

“अरे मैं सीरियस हूँ! आज जब अम्मा आए, तो लपक कर उनका ब्लाउज खोल कर मस्त उनका दुद्धू पी लेना!” सुनील ने जोर देकर कहा, “वो अपनी बहू को मना कर ही नहीं पाएँगी!”

“हा हा! आप भी न!” माँ ने सोचा और फिर बोलीं, “अच्छा एक बात बताइए? अम्मा को मालूम है क्या हमारे बारे में?”

“मैंने तो नहीं बताया! लेकिन आज बता दूंगा!”

“ओह! ठीक है फिर! आप बता दीजिएगा। मैं आपके साथ ही खड़ी रहूँगी!”

“तुम मेरे साथ ऐसे नंगू नंगू खड़ी रहोगी, तो मेरा लण्ड खड़ा हो जाएगा मेरी जान!” सुनील ठिठोली करता हुआ बोला, “फिर बिना तुझे चोदे मुझे शांति नहीं मिलेगी!”

“हा हा हा! कल जब अम्मा मुझे कपड़े पहना रही थीं, तब आप इसी बारे में सोच रहे थे?”

“कल तो मैं बहुत कुछ सोच रहा था मेरी दुल्हनिया! लेकिन हाँ, तुझे चोदने का तो मैं हमेशा ही सोचता हूँ!”

“हा हा हा हा! आप बहुत बेशर्म हैं!” माँ ने मीठी सी शिकायत करी।

“सच में दुल्हनिया, मैं तुमको ऐसे ही हँसता हुआ रखूंगा हमेशा! अब तू बस दिल खोल कर मज़े ले! तू मुझसे शादी कर के हमारे घर में छोटी तो हो ही गई है! उम्र में भी तो तू छोटी सी ही लगती है! तो बस - अब वैसी ही, छोटी सी रहना! हमेशा हँसते खेलते! हमेशा!”

“मैं उम्र में छोटी सी लगती हूँ?”

“और क्या! तुझे देख कर कोई भी तुझको पच्चीस से अधिक का नहीं बोलेगा!”

“आप भी न! आप और आपकी बातें!” माँ ने कहा तो ज़रूर, लेकिन मन ही मन वो बहुत प्रसन्न हुई।

फिर वो बोली, “आप अमर को क्या कह कर बुलाएँगे?”

“क्या कह के बुलाऊंगा? अरे, बेटा है मेरा... बेटा कहूंगा! और क्या?” सुनील ने गर्व से जवाब दिया।

“हाय राम! तो क्या लतिका उसकी बुआ लगेगी, और अम्मा उसकी दादी?”

“हा हा! अरे मजाक कर रहा हूँ। मैं उनको भैया ही कहूंगा! मैं तुम्हारा पति हूं, लेकिन उनका पिता नहीं हूँ! अभी मेरा क़द उतना नहीं बढ़ा है! उनकी जगह मेरे मन में मेरे पिता समान है, और वैसी ही रहेगी।”

सुनील ने आदरपूर्वक उत्तर दिया। फिर उसके मन में कुछ शरारत सी उठी और उसने कहा, “लेकिन मैंने उनकी जन्मभूमि देखी है... बड़ी प्यारी सी है!”

“उनकी जन्मभूमि?” माँ को समझ नहीं आया।

“हाँ! जन्मभूमि... ये है ना…” कह कर उसने माँ की योनि की ओर इशारा किया, “ये तेरी प्यारी प्यारी बुर!”

“धत्त!”

“सच में दुल्हनिया! मस्त जवान बुर है तेरी! कोमल कोमल है, लेकिन एकदम कसी हुई! देखो न, कैसे पकड़े हुए है मेरे लण्ड को!”

माँ से ऐसी बात करते हुए सुनील का लिंग फिर से आकार में बढ़ने लगा था। माँ ने उसको अपने अंदर बढ़ता हुआ महसूस किया। सहज बोध से, उसकी योनि ने सुनील के लिंग को निचोड़ा, जिससे उसका लिंग और भी तेज़ी से स्तंभित होने लगा।

“सुमन, आज जब तुम अपना श्रृंगार कर के निकली, तो मैं तो बस तुमको देखता ही रह गया! इतने दिनों से रोक कर रखा था... लेकिन आज खुद को रोक सकने का कोई चांस ही नहीं था मेरे पास! आज तो तुमको अपना बनाना ही था!” सुनील ने बड़ी शिद्दत से कहा, “और ये देखो... मेरा लण्ड... फिर से खड़ा होने लगा!”

माँ को उसके लिंग का स्तम्भन अपने अंदर महसूस हो रहा था।

उन्होंने शर्माते हुए पूछा, “आपको दोबारा करने का मन है?”

यह विलक्षण सी बात थी कि सुनील को अपने पति के रूप में स्वीकार करने और उससे सम्भोग करने के बावजूद वो अभी भी कैसी शर्मीली सी महसूस करती थी।

सुनील मुस्कुराया, और उसने इस बार एक नया काम किया - वो माँ को पकड़े हुए ही अपनी पीठ के बल लुढ़क गया, और माँ को अपने ऊपर, अपनी सवारी के रूप में बैठा लिया। अचानक ही माँ उसके सख्त लिंग की सवारी करने लगीं।

सुनील ने बोला, “हाँ... बिलकुल मन है! लेकिन इस बार तुम करो!”

माँ को सुनील की बात पर बहुत आश्चर्य हुआ। ‘वुमन ऑन टॉप’ - इस पोजीशन का माँ को कोई भी अनुभव नहीं था। सेक्स के दौरान, औरत आदमी के ऊपर भी हो सकती है, यह एक नई बात थी। माँ को लग रहा था कि तीस साल में उनको कितना कुछ मालूम है - लेकिन सुनील के साथ बिताए एक घण्टे में ही उनको समझ आ गया कि अभी तो उनके सीखने और जानने के लिए बहुत कुछ है! सुनील के थोड़े से मार्गदर्शन में माँ ने खुद का बैलेंस बनाने, और सही लय में सम्भोग करने का अंदाज़ा लगा लिया। सुनील ने लेटे हुए ही नीचे से माँ को देखा - माँ अद्भुत सुंदरी थीं।

‘ये तो हर एंगल से सुन्दर लगती है यार!’ सुनील ने मन ही मन सोचा, और अपनी किस्मत पर रश्क़ करने लगा।

जब माँ सुनील पर उछल कूद कर रही थी, तब सुनील उनके थिरकते स्तनों को चूमता, चूससा और सहलाता रहा। वो भी नीचे से बलशाली धक्के लगा रहा था, जिससे दोनों के सम्भोग का आनंद और भी बढ़ गया। कोई पंद्रह मिनट के बाद जब उसने अपने आसन्न मैथुनोत्कर्ष को महसूस किया, तो वो माँ के अंदर की स्खलित होने लगा, और उसके अंदर वीर्य का एक और बड़ा भार जमा कर दिया। इतनी देर में माँ को दो और बार रति-निष्पत्ति का आनंद मिल गया।

डेढ़ घण्टे से भी कम समय में माँ के साथ दो-दो बार सम्भोग हो गया था - और दोनों बार उनको अभूतपूर्व आनंद प्राप्त हुआ था। यह सुखद कामुक अनुभव, माँ को अपने जीवन में पहली बार मिला था! माँ को इस बात का अंदाजा ही नहीं था कि इतने कम समय में उसको इतने सारे ओर्गास्म (रति-निष्पत्ति) का आनंद मिल सकता है! माँ को इस बात का भी अंदाजा नहीं था कि इतने कम समय में उसकी कोख में इतना सारा वीर्य जमा हो सकता है। सच में! यह सब कितना विचित्र था! दोनों पीठ के बल बिस्तर पर लुढ़क गए। उन दोनों के यौनांग, अपने पहले मिलन के आरम्भ होने के बाद, अब पहली बार अलग हुए।

“दुल्हनिया,” सुनील ने माँ के सुंदर थके हुए चेहरे को प्यार से सहलाया; उसके सुंदर चेहरे पर गिरे हुए बालों को अपने स्थान पर व्यवस्थित किया, और कहा, “सच सच बताना... मज़ा आया न?”

“बहोत!” माँ ने उत्तर दिया - पहली बार बिना किसी शर्म के, एक मीठी फुसफुसाहट के साथ, “तृप्त हो गई!”

सुनील मुस्कुराया, और फिर छत की ओर देखते हुए उसने कहा, “दुल्हनिया, तीन हफ्ते में मेरी ज्वाइनिंग है! और मैं चाहता हूँ, कि तुम मेरे साथ ही मुंबई चलो... इसलिए हम दोनों को इन्ही तीन हफ़्तों के अंदर अंदर शादी कर लेनी चाहिए।”

सुनील के इरादों के बारे में माँ के मन में जो भी थोड़ा सा भी संदेह था, वो सब का सब अब दूर हो गया था।

वो वास्तव में उनसे शादी करना चाहता था, और उन्हें अपने साथ ले जाना चाहता था। एक साथ में एक नए जीवन शुरूआत करने के लिए, एक नई जगह पर। माँ समझ रही थी कि अपने इतने उत्साही व्यवहार और अंदाज़ के पीछे, सुनील एक सरल सा व्यक्ति है; उसको अपने जीवन से बहुत ही सरल अपेक्षाएं हैं। वो माँ को अपने जीवन में चाहता था - अपनी पत्नी के रूप में - उनके साथ दो तीन बच्चे पैदा करना चाहता था, और हमेशा के लिए खुशी से रहना चाहता था! यह सारे बहुत ही पारम्परिक सपने हैं, बहुत ही पारम्परिक आशाएँ हैं... और बहुत ही खूबसूरत आशाएँ हैं!

“इन फैक्ट, तीन नहीं, अगले ही हफ्ते या फिर अगले दस दिनों में हमको शादी कर लेनी चाहिए... उसके बाद हफ़्ता - दस दिन के लिए हनीमून पर चलेंगे, और फिर मैं अपनी जॉब ज्वाइन कर लूंगा।”

शादी! हनीमून! हनीमून तो माँ ने कभी किया ही नहीं था! सुनील के साथ विवाह की सन्निकटता के बारे में सोच कर माँ का दिल तेज़ी से धड़कने लगा। चीजें सही दिशा में आगे बढ़ तो रही थीं, लेकिन बहुत ही तेजी से! अचानक ही उनको नर्वस सा महसूस होने लगा।

‘बाप रे!’

सुनील माँ की ओर मुड़ा, और उनके एक स्तन के एरोला के चारों ओर एक घेरा बनाते हुए बोला,

“हम अपना घर बनाएँगे! हम्म? अपना घर... उसको तुम अपने तरीके से सजाना... अपने तरीके से रहना!”

किसी का घर बसाए हुए माँ को एक अर्सा हो गया था। उस बात की यादें भी धुँधली पड़ने लगी थीं! वैसे भी काजल के कारण माँ अब घर के कई सारे काम नहीं करती थीं! लेकिन अब - लेकिन अब उनको फिर से सब कुछ शुरू करना था! एक नई गृहस्थी जमानी थी। सुनील के साथ अपनी नई दुनिया का मानसिक चित्रण करते हुए माँ मुस्कुरा दीं। उनकी आदर्श दुनिया में एक घर था - जो गाँव में हमारे पैतृक घर के समान दिखता था - और उस घर के परिदृश्य में पहाड़, एक नदी, बहुत सारे पेड़ और फूलदार पौधे और तरह-तरह के रंग बिरंगे पक्षी और तितलियाँ थीं। यह बचपन में बनाये गए चित्रों की एक उत्कृष्ट कल्पना थी। और उस घर में वो खुद होंगी, सुनील होगा, और उन दोनों के बच्चे होंगे।

‘बच्चे!’

“सुनिए?”

“हूँ?”

“आपको... कितने बच्चे चाहिए?” माँ ने सुनील से धीरे से पूछा।

“बच्चे? उम्म…” सुनील ने कुछ देर सोचा और फिर कहा, “... कम से कम दो!”

फिर वो रुका, कुछ देर सोचा, और फिर मुस्कुराते हुए बोला, “हाँ... दो तो चाहिए ही यार!”

“दो बच्चे? ठीक है! जल्दी जल्दी कर लेंगे…” माँ ने शर्म से धीमी और दबी आवाज़ में कहा, “मैं अब तैंतालीस की हो गई हूँ। बहुत अधिक वेट नहीं कर सकते न!”

“दुल्हनिया मेरी, इन सब बातों की तो तू चिंता ही मत कर! अपना फिगर देखा है कभी? बिलकुल जवान है तू!”

“हा हा हा! आप भी न! आप और आपकी बातें!” माँ ने हँसते हुए कहा, लेकिन सुनील के मुँह से अपनी बढ़ाई सुन कर उनको बहुत अच्छा लगा, “आप बिलकुल बुद्धू हैं! फिगर से कुछ थोड़े ही होता है! फिगर से बच्चे थोड़े ही होते हैं!”

“अरे तू फिट भी तो है, और हैल्थी भी!” सुनील बोला, और फिर फुसफुसाते हुए ऐसे बोला कि जैसे कोई राज़ की बात बताने वाला हो, “वो ‘केयरफ्री’ की नैपकिन्स क्या देखने दिखाने के लिए लगाती हो?”

“हाआआ!” माँ ने अपने खुले हुए मुँह को हाथ से ढँकते हुए बोला, और फिर शर्माते हुए कहा, “अच्छा जी, तो आपको मेरी ‘औरतों वाली चीज़ों’ में बड़ा इंटरेस्ट आता है!”

सुनील ने प्यार से माँ की पीठ को सहलाया, और फिर अपनी उँगलियों को उनकी योनि की फाँक पर टिका दिया, और बोला, “दुल्हनिया, तेरी औरतों वाली चीज़ों में ही तो इंटरेस्ट आएगा! तू औरत है, और तेरी हर चीज़ में मुझे इंटरेस्ट है! तू आदमी होती, तो तुझसे ऐसे प्यार करता भला?”

“हा हा हा!”

“देख दुल्हनिया, तू बिलकुल हेल्थी और फिट है, और मैं भी हेल्थी और फिट हूँ! अब तू मन में भी छोटी होने का सोचा कर... और चुदाई तो मैं तेरी दिन में कई कई बार करुंगा... भगवान की कृपा से तू जल्दी ही प्रेग्नेंट हो जाएगी। उसके लिए सोचना मत बिलकुल भी! बस, खुश रहा कर! बच्चों के जैसे खेला कूदा कर, बस!”

माँ मुस्कुराईं और फिर शरमाते हुए उन्होंने अपना चेहरा सुनील की छाती में छुपा लिया।

“लड़की जब हेल्दी, खुश और केयरफ्री रहती है, तब वो आसानी से प्रेग्नेंट हो जाती है!”

“हा हा हा हा हा!”

“और क्या दुल्हनिया! तुझको वो हमारे गाँव वाले घर की पड़ोस वाली चाची जी याद हैं?”

“हाँ! उनको कैसे भूल सकती हूँ?”

“हाँ तो यह भी तो याद होगा न कि उनको भी पैंतालीस की उम्र में बेटी हुई थी?”

माँ को याद था, “उनको तो बेटी के बाद भी एक और बेटा हुआ है!”

“ऐसा क्या? तो फिर! तुम ऐसा वैसा मत सोचा कर! बस खुश खुश रहा कर! ये सब भगवान् की कृपा होती है, जो तुझ पर भी है। हम जल्दी ही मम्मी पापा बनेंगे... दो तीन प्यारे प्यारे बच्चों के!”

माँ इस बात से शर्म से लाल हो गईं।

“सच में सुमन! तू नंगी नंगी रहा कर! नंगी नंगी कितनी सुन्दर लगती है तू, कोई आईडिया है तुझको?”

“अगर आप चाहेंगे, तो मैं रहूँगी नंगी!”

“ठीक है - एक बार अम्मा और भैया से बता कर लूँ! फिर रहना वैसे! तीनों बच्चे खेलना मिल कर!”

“हा हा हा हा! जी मेरे स्वामी! आप जो कहेंगे, मैं करूँगी!” माँ ने बड़े प्रेम और समर्पण से कहा।

“तेरी यही सब बातें तो दिल मोह लेती हैं, दुल्हनिया!” सुनील ने अपनी तर्जनी को उनकी योनि की फाँक के बीच सरकाते हुए कहा, “लेकिन सच कहूँ, क्या बढ़िया बुर है तेरी! एकदम टाइट... एकदम रसीली! जल्दी जल्दी में ही सही, लेकिन स्वर्ग की सैर हो गई।”

माँ आखिरकार उसकी बेशर्म तारीफों पर खिलखिला कर हँस पड़ी।

“हा हा हा! आप भी ना! बहुत गंदे हैं!”

“एक बात बताऊँ दुल्हनिया?”

“क्या? बताइए?”

“उम्म्म नहीं! रहने दे! तू कहीं नाराज़ न हो जाए!”

“अच्छा, तो अब आप मेरे साथ ऐसा करेंगे? मुझसे अपने मन की बातें छुपाएँगे? मुझसे? अपनी पत्नी से?” माँ ने बड़े प्यार और अधिकार से कहा।

सुनील मुस्कुराया, “अरे यार! अब तुम ऐसे कहोगी तो क्या करूँगा? ठीक है! लेकिन नाराज़ मत होना सुन कर!”

“कभी नहीं! अगर आप अपने मन की बातें मुझसे नहीं कर सकते, तो मेरे होने या न होने का कोई मतलब नहीं!”

“हम्म! अच्छी बात है दुल्हनिया! तो सुनो - लेकिन अगर तू नाराज़ हुई न, तो मैं चुप हो जाऊँगा!” सुनील ने कहा और थोड़ा रुक कर बोला, “दुल्हनिया, जब से मैं जवान हुआ हूँ न, तब से बस तू ही तू बसी हुई है मेरे मन में! केवल तू! मैं रोज़ भगवान् से प्रार्थना कर के केवल तुमको माँगता रहा हूँ! आँखें खुली हों, चाहे बंद हों - अपनी बीवी के बारे में सोचता हूँ, तो बस तुम्हारा ही चेहरा दिखता रहा है मुझे! न तो मुझे कभी किसी और लड़की का ख़याल भी हुआ, और न ही किसी लड़की की ज़रुरत ही पड़ी!”

उसकी बात सुन कर माँ का दिल खिल गया।

सुनील ने माँ को चूम कर कहा, “पिछले सात साल से आज ही का इंतज़ार कर रहा हूँ! पिछले सात साल से मैं तुझे अपनी पत्नी बनाने का सपना देख रहा हूँ! आज जा कर वो सपना पूरा हुआ है!”

सुनील की बातों पर माँ हँसने लगीं। सुनील की बातें बड़ी अनोखी थीं। लेकिन उनको बुरा नहीं लगा कि उनके पति के जीवित रहते हुए भी सुनील के मन में उनके लिए ऐसे विचार थे। किसी और समय यह बात सुनने पर लगता है न कि जैसे सुनील, डैड की मृत्यु की प्रार्थना कर रहा था भगवान् से! बिना डैड के गए, माँ सुनील की बीवी तो नहीं बन सकती थीं न? सात साल पहले - मतलब तब से जब से माँ काजल से पहली बार मिली होंगी, या फिर तब से जब से काजल, सुनील और लतिका - माँ और डैड के साथ रहने आए होंगे! तब से? इतने छुटपन से?

‘इतनी कम उम्र से ये मुझको अपनी पत्नी के रूप में देखते हैं?’

‘इतनी कम उम्र में इनको शादी ब्याह की बातें समझ में आने लगी थीं?’

अगर डैड जीवित रहते, तो माँ को यह सब बातें सुन कर, और सोच कर बहुत बुरा लगता। नाराज़ तो खैर वो हो ही नहीं पाती थीं किसी से भी, लेकिन उनका दिल ज़रूर टूट जाता। लेकिन अब नहीं! अब वो सब बातें बेमानी थीं। डैड जा चुके थे, और अब माँ सुनील की पत्नी थीं। केवल उसकी पत्नी ही नहीं, बल्कि उसकी ‘अभीष्ट’ पत्नी! और जब उन्होंने मन से और तन से सुनील को अपना पति स्वीकार ही कर लिया है, तो फिर किसी संशय का क्या स्थान?

“अच्छा जी? आप सात साल पहले ही जवान हो गए थे?”

“हाँ न!”

“बड़ी जल्दी जवानी आ गई थी आप में तो?” माँ भी सुनील के इस खेल में शामिल हो गईं।

सच में! कैसी हास्यास्पद बात है!
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
4,392
24,539
159
अंतराल - विपर्यय - Update #6

माँ ने कभी सुनील को उस दृष्टि से नहीं देखा। देखने का कोई कारण भी नहीं था। उन्होंने जब भी सुनील को देखा, अपने बेटे के रूप में ही देखा। उनको याद आया कि कैसे वो सुनील को दसवीं, ग्यारहवीं, और यहाँ तक कि बारहवीं कक्षा में भी, कई बार अपने हाथों से नहलाती थीं! सुनील को भी मेरी ही तर्ज़ पर पाला था माँ ने! इंजीनियरिंग के पहले साल में, जब वो पूजा के दौरान घर आया था, वो माँ एक दिन सुनील को आँगन में नहला रही थीं। वो शर्म के कारण चड्ढी पहने हुए था - लेकिन माँ ने पहले के ही जैसे नहलाने के लिए उसकी चड्ढी नीचे खिसका दी। नहलाने के बाद माँ ने उसके पूरे शरीर पर बादाम तेल लगाया था। सुनील उस दिन बहुत लज्जित हुआ था। होता भी कैसे न - सभी तो थे उस दिन घर में - डैड, काजल, पुचुकी - और सभी के सामने माँ यह सब कर रही थीं! न चाहते हुए भी उसका लिंग स्तंभित हो गया था। उस समय भी वो डैड के लिंग से थोड़ा ही छोटा था।

डैड ने माँ को यह करते देख कर उनसे कहा था, “अरे भाग्यवान, बेटा बड़ा हो गया है!”

“हाँ तो?” माँ ने जैसे न समझते हुए कहा।

“तुमको तो समझाना ही मुश्किल है!” कह कर डैड ने तुरंत ही हथियार डाल दिए।

न तो वो ही, और न ही काजल उनके काम में कैसी भी दखल देते। माँ दोनों बच्चों का भला जानती थीं, और उनके पालन पोषण, और पढ़ाई लिखाई का पूरा ध्यान रखतीं। कैसे वो अक्सर रात में सुनील के कमरे में आती थीं, उसको दूध-बादाम देतीं, और उसकी पढ़ाई लिखाई के बारे में पूछतीं! उसको पढ़ते हुए रात में अगर बहुत देर हो जाती, तो वो उसको जबरदस्ती कर के बिस्तर पर लिटा देती थीं, और सुला कर ही वापस जाती थीं। वो अक्सर उससे पूछतीं कि क्या वो उसको दूध पिला दें, लेकिन वो साफ़ मन कर देता। उसके खान-पान में और शारीरिक व्यायाम में जो अनुशासन और दिनचर्या पड़ी थी, वो माँ के ही कारण थी। सुनील ने माँ के साथ ही पहले ब्रिस्क वाकिंग, और फिर जॉगिंग करनी शुरू करी - और उस आदत को उसने इंजीनियरिंग कॉलेज में भी जारी रखा, जहाँ पर वो व्यायाम इत्यादि भी करने लगा। माँ के ही कहने पर काजल ने सुनील और लतिका को पुनः स्तनपान कराना शुरू किया था, और यह सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक सुनील हॉस्टल का ही हो कर न रह गया! लेकिन हॉस्टल में भी रहते हुए सुनील ने सेहत से कभी कोई खिलवाड़ नहीं करी। न ही उसने कोई ऐब पाले, और न ही कोई खराब आदतें - क्योंकि उसने अपनी अम्मा से, और माँ से वायदा किया था! उन सभी अच्छी बातों और आदतों का संचित फल मिल गया था उसको!

“मज़ाक में मत लो इस बात को, मेरी जान! सच में, जब से होश सम्हाला है, तब से तुम्हारी ही छवि बसी है मेरे मन में! तुम्ही को अपनी पत्नी माना!” सुनील ने माँ की योनि को सहलाते हुए कहा, “मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेरा ये हसीन सपना कभी साकार भी हो सकता है! सपने कहाँ सच होते हैं - उनको तो बस देखा जाता है, और उम्मीद करी जाती है कि उन सपनों के जैसा कुछ कुछ हो जाए! लेकिन मेरा तो हर सपना पूरा हो रहा है!”

कह कर सुनील कुछ देर के लिए चुप हो गया। तो इस बार माँ ने बातचीत का सूत्र पकड़ा,

“एक बात बताइए मुझे,”

“क्या? बोलो?”

“आप कह रहे हैं कि आप मुझे सात साल से चाहते हैं।”

“हाँ!”

“तो जब...” माँ हिचकिचाईं, “तो जब ‘वो’... मेरे साथ... ये... ये सब करते थे, तो आपको बुरा नहीं लगता था?”

“क्या? बाबूजी?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“तुम्हारा मतलब है कि जब बाबूजी तुमसे प्यार करते थे, और तुमसे सेक्स करते थे, तो मुझे बुरा लगता था?”

माँ ने फिर से ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“नहीं मेरी जान!” सुनील ने कहा, “बुरा मुझे केवल तब ही लग सकता है जब तुम दुःखी रहो!”

सुनील थोड़ा रुका, और फिर थोड़ा गंभीर होते हुए बोला, “जब अम्मा ने फ़ोन पर सब कुछ बताया, तो लगा कि भगवान् जी ने कैसा अत्याचार कर दिया! उस दिन मुझे बहुत बुरा लगा। बहुत दुःख हुआ। यही क्वेश्चन आता है मन में कि भगवान् ने ऐसा क्यों किया! लेकिन फिर मुझे लगा कि जैसे खुद उन्होंने ही यह मौका मुझे उपहार में दिया है! मुझे लगा कि ये समय है - ज़िम्मेदारी लेने का! आदमी बनने का! तुमको प्यार करने का...!”

उसने माँ के मुँह को फिर से चूमा, “तुम्हारे साथ तो एक पल बिताने के बदले, अगर ऊपर वाला मेरी ज़िन्दगी भी माँग ले न, तो मैं ख़ुशी ख़ुशी दे दूँ!”

“ऐसा अशुभ अशुभ मत बोलिए!” माँ ने तुरंत ही सुनील के होंठों पर अपनी उँगली रखते हुए कहा, “प्रॉमिस कीजिए मुझसे, कि आप ऐसी अशुभ बातें नहीं करेंगे कभी?”

“मेरी दुल्हनिया...”

“नहीं!” माँ ने ज़िद करते हुए अपना विरोध दर्ज़ कराया, “कोई दुल्हनिया वुल्हनिया नहीं! मैं कुछ नहीं सुनूँगी! आप पहले प्रॉमिस कीजिए!”

माँ की आँखों से आँसू निकलने लगे, और उनकी आवाज़ भरने लगी। वो दूसरी बार अपना सुहाग छूटने की बात सोच कर ही दहल गईं। एक बार तो अपना सुहाग उजड़ने पर वो जैसे तैसे सम्हल गईं थीं; पर दूसरी बार वही अवसाद, वही दुःख वो नहीं झेल सकती थीं। लेना तो दूर, उसके बारे में सोच भी नहीं सकती थीं!

सुनील मुस्कुराया, “आई ऍम सॉरी माय लव! अब नहीं बोलूँगा ऐसी बातें, मेरी जान! नहीं बोलूँगा! कभी नहीं! आई प्रॉमिस! ऐसे कैसे चला जाऊँगा? अभी तो हमको साथ में कितने सारे काम करने हैं! हमें शादी करनी है; तुमको खूब प्यार करना है! तुमको पूरे जहान की खुशियाँ देनी हैं! दो तीन बच्चे पैदा करने हैं; उनको पाल पोस कर बड़ा करना है! उनकी शादी करनी हैं! उनके बच्चे खिलाने हैं! ये सब किये बिना मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ - और न ही तुम! मुझसे इतनी आसानी से पीछा नहीं छूटेगा तुम्हारा दुल्हनिया!” वो अपने जाने पहचाने मज़ाकिया अंदाज़ में बोलता चला गया।

उसकी बातों से माँ की अश्रुपूरित आँखों में मुस्कान दिखाई देने लगी।

“हाँ!” माँ ने भरी हुई आवाज़ में ही कहा, “ये सब किए बिना आप गए न, तो मैं आपको बहुत मारूँगी!”

“हा हा हा हा हा हा!”

“और अगर मुझसे पहले आप मुझे छोड़ कर गए न, तो और भी मारूँगी!”

“हा हा हा हा हा हा! नहीं जाऊँगा मेरी सोनी! कभी नहीं!”

माँ ने संतोष भरी एक गहरी साँस ली, और वापस अपने गाल को सुनील की छाती पर रख कर लेट गईं। सुनील ने माँ को अपने में समेट लिया - कुछ इस तरह कि माँ अपनी एक जांघ और टांग सुनील के ऊपर रख कर लेटी हुई थीं। और वो प्यार से माँ के दोनों नितम्बों के बीच उनको योनि और गुदा को बारी बारी सहला रहा था।

“सुनिए जी?”

“बोलो मेरी जान?”

“जब आपको मेरी याद आती थी तो क्या होता था?”

“क्या होता था?” सुनील ने माँ को छेड़ते हुए कहा, “तू इतनी सेक्सी है दुल्हनिया कि तेरा नाम दिमाग में आते ही लण्ड खड़ा हो जाता!”

“धत्त! गंदे!” माँ ने उसकी छाती पर मज़ाक वाला मुक्का मारते हुए शिकायत करी, फिर हँसते हुए कहा, “अच्छा, तो फिर क्या करते थे?”

“और क्या करता दुल्हनिया? जब लण्ड खड़ा होता, तो हाथ चला कर उसको जैसे तैसे समझा बुझा लेता, कि बेटा सब्र कर ले! किस्मत होगी, तो तुझे अपनी सुमन की बुर को चूमने, उसको प्यार करने का सौभाग्य मिलेगा!”

“धत्त! बहुत गंदे हो आप!”

“अरे, इसमें गंदे होने वाली क्या बात है? मेरी बीवी इतनी सेक्सी है, और मेरा लण्ड भी नहीं खड़ा होगा? वाह भई!”

“मैं सच में सुन्दर लगती हूँ?”

“सुन्दर एक चीज़ होती है दुल्हनिया! लेकिन तेरे रूप में जो नमक है न, वो कहीं नहीं है! तू सच में पच्चीस छब्बीस से अधिक की नहीं लगती!” सुनील ने माँ के स्तनों को दबाते हुए कहा, “ये देख - कैसे छोटे छोटे, फर्म फर्म हैं!”

माँ मुस्कुराईं।

“यार दुल्हनिया मेरी, एक बात तो बता?”

“जी?”

“इतने छोटे छोटे दुद्धूओं में कितना ही दूध बनता होगा?”

“हटिए जी, ऐसे छोटे दूधू नहीं हैं मेरे!” माँ ने अदा में इठलाते हुए कहा, “ये देखिए - आपकी हथेली भर जाती है पूरी!” कह कर माँ ने सुनील की हथेली अपने स्तनों पर दबाई, “इनको छोटा थोड़े ही कहते हैं!”

“मेरी जान, हैं तो ये छोटे ही, चाहे तुम कुछ भी कहो! अम्मा के ही देख लो, तुमसे तो बड़े हैं!”

“जब इनमें दूध बनता है, तो इतने छोटे नहीं रहते!” माँ ने इठलाते हुए कहा।

“अच्छा? तो फिर ठीक है! लेकिन तेरे में कितना बनता रहा होगा?”

“क्या? दूध?”

सुनील ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“दिन में डेढ़ दो लीटर तो बनता रहा होगा - अमर खूब पीता था!”

“इतने नन्हे से दुद्धूओं में डेढ़ दो लीटर दूध?”

“नन्हे!? हा हा हा! आप भी न! अरे एक बार में इतना दूध नहीं बनता मेरे भोलू बाबा! पूरे दिन भर में बनता है इतना! वो भी तब, जब बच्चा ढंग से पीता रहे!”

“और भैया पीते थे खूब?”

“हाँ! खूब! चार पाँच साल तक तो वो दिन में पंद्रह बीस बार पीता था। उसके बाद उसका पीना कुछ कम हुआ, लेकिन जब वो दस साल का था, तब भी बहुत बार पीता था - चार पाँच बार।”

“सही है!”

“हाँ! तब भी तो उतना दूध तो पी ही लेता था!”

“कब तक पिलाया?”

“टेंथ तक! तब तो कम दूध आता था। लेकिन वैसे तो बहुत बार! आपके यहाँ आने से पहले भी कभी कभी पिलाया है। उसकी बीवियों को भी, और उसकी बच्ची को भी!”

“लेकिन अभी तो नहीं आता?”

“नहीं!” माँ ने शर्माते हुए कहा।

“कोई बात नहीं मेरी जान! जल्दी ही ये दोनों दूध से लबालब भरे रहेंगे!”

“हा हा हा!”

“अम्मा को भी अभी तीन चार साल तक दूध आ सकता है?”

“हाँ! हो सकता है! अगर पुचुकी और मिष्टी उनका दूध पीती रहें!”

“तुम भी पिया करो मेरी जान!”

“हाय रे!”

“अरे, इसमें हाय रे वाली क्या बात है?” सुनील ने कहा, “देखना तुम! जब अम्मा को पता चलेगा न कि तू उनकी होने वाली बहू है, तो वो खुद ही तुमको अपने सीने से लगा लेंगी!” सुनील बड़े विश्वास से बोला, “वो तुमको बहुत प्यार करती हैं!”

“हा हा!” माँ ने शर्मा कर हँसते हुए कहा, “कैसा लगेगा भगवान्!”

“मेरे साथ कैसा लग रहा है?”

“बहुत अच्छा!” माँ ने संतुष्टि वाले भाव से कहा, “आई ऍम वेरी लकी!”

“तो बस! वैसा ही अम्मा के साथ लगेगा!” सुनील ने माँ को चूमा।

माँ मुस्कुराईं, फिर शर्माते हुए उन्होंने कहा, “मैंने आपकी अम्मा को भी पिलाया है, और मिष्टी को भी!”

“अरे तो अभी भी पिलाया करो न, मेरी जान!” सुनील ने माँ की योनि में उंगली डालते हुए कहा, “अम्मा को नहीं - मिष्टी को! मैं क्यों मना करूँगा?”

सुनील मुस्कुराते हुए बोला, “मिष्टी इतनी स्वीट है कि मैं क्या कहूँ, दुल्हनिया! जब से उसको देखा है, मेरा मन बस यही करता है कि काश वो मेरी बेटी होती!” वो रुका, फिर आगे बोला, “अरे वो है मेरी बेटी! पुचुकी भी! इस लिहाज़ से तुम दोनों की माँ भी हो! इसलिए पिलाया करो!”

“आप इनमें दूध भरने का इंतजाम कर दीजिए, मैं पिला दूँगी!” माँ ने बड़ी शोख़ अदा से कहा।

“आए हाए मेरी दुल्हनिया! बिलकुल! बड़ी ख़ुशी से!” सुनील ने शेखी बघारते हुए कहा, और फिर आगे जोड़ा, “अच्छा, तुझे एक राज़ की बात बताऊँ दुल्हनिया?”

“हाँ, बताइए?” माँ को भी अब सुनील के साथ ऐसे सेक्स के बाद ऐसी छोटी छोटी बातें करने में आनंद आने लगा था।

“तेरी गाँड़ पे न, एक बहुत क्यूट सा लाल भूरे रंग का तिल है!”

“धत्त!” माँ ने शर्माते हुए कहा, “आप भी न जाने कहाँ कहाँ, क्या क्या ढूंढते रहते हैं!”

“तुझे मालूम है कि वो वहाँ है?”

“नहीं!”

“थोड़ा पलट, तो बताऊँ?”

“जी नहीं! कोई ज़रुरत नहीं है! आपको मालूम चल गया, वही बहुत है!” माँ शर्माते हुए बात टालने की कोशिश करने लगीं।

“अरे पलट न!”

सुनील की बात से इंकार नहीं कर सकती थीं माँ! वो पलट गईं - सुनील की शरारतें बहुत ही सरल और हास्यास्पद थीं।

सुनील ने उँगली से उनके गुदाद्वार के निकट दाहिने नितम्ब को छुआ, “यहाँ पर है वो!”

उसने कहा और झुक कर वहाँ पर चूम लिया।

माँ के गले से एक आह निकल गई।

“दुल्हनिया?”

“जी?”

“कभी यहाँ डलवाया है?” कह कर उसने माँ की गुदा को छुआ।

“धत्त! वो भी कोई जगह है इसके लिए?” स्वतः प्रेरणा से उनकी गुदा संकुचित हो गई।

“अरे क्यों! क्यों नहीं है?” उसने उंगली थोड़ा अंदर सरकाते हुए कहा।

माँ को एक अलग सा अनुभव हुआ लेकिन उन्होंने हँसते हुए पूछा, “वहाँ डालने से आप दो तीन बच्चों के बाप बनेंगे?”

“अरे मैंने बस इतना ही पूछा कि कभी वहाँ डलवाया है?”

“नहीं!”

“हम्म्म, तो मैं डालूँगा कभी!”

“बाप रे! नहीं नहीं! मैं मर जाऊँगी! फिर करते रहिएगा मुझसे बच्चे!”

“हा हा हा!” सुनील दिल खोल कर हंसा, फिर बोला, “एक बात तो बता दुल्हनिया, तुझे मेरा लण्ड तो अच्छा लगा न?”

“धत्त!”

“अरे क्या धत्त! बोल ना कैसा लगा?”

“बहुत बदमाश है!” कुछ पल झिझकने के बाद माँ ने शरमाते हुए जवाब दिया।

“अरे मैं अपनी नहीं, मेरे लण्ड की बात कर रहा हूँ!”

“हाँ... वो ही! आपका ‘वो’ बहुत बदमाश है!”

“हम्म... तो तुझे इसकी बदमाशी पसंद आई?”

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, और मुस्कुराई।

सुनील ने माँ को कई बार होंठों पर चुम्बन दिया और फिर उससे अलग होने से पहले उसने कहा, “रात में दरवाजा खोल कर रखना। आऊँगा! थोड़ी और बदमाशी करेंगे।”

“आप जा रहे हैं?” माँ ने निराशा से कहा।

“हाँ! मन तो नहीं है, लेकिन क्या करें! अम्मा और बच्चे आने ही वाले होंगे!” सुनील मुस्कुराया, “इसीलिए तो रात का वायदा किया है!”

माँ निराश तो थीं, लेकिन फिर भी मुस्कुराईं। प्रेम वाकई बलवान वस्तु होता है - कल तक माँ जिस से दूरियाँ बनाए रखने की चेष्टा कर रही थीं, आज उसी से दूरी होने की सम्भावना से भी उनको दिक्कत हो रही थी।

“लेकिन,” सुनील ने कहना जारी रखा, “अम्मा से बात करना है मुझको! भैया से भी! आज ही! अब और देरी नहीं!”

सुनील की बात पर माँ को बहुत संतोष हुआ - और वो प्रसन्नता से मुस्कुरा दीं।

उनके वैधव्य की काली घटा छँट गई थी, और उनके जीवन में इंद्रधनुषी रंग वापस शामिल हो गए थे।

***
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,343
17,121
144
दीपवाली के ख़ुशियों भरे पर्व पर xforum के समस्त साथियों और उनके परिवारजनों को हार्दिक और निस्सीम शुभकामनाएँ!

ईश्वर आप सभी का मङ्गल करें; आपको स्वस्थ, प्रसन्न, और संपन्न रखें!

Deepawali

और मेरे प्रिय पाठकों - तनिक देर धैर्य बनाए रखें!
कोई बीस हज़ार शब्दों के अपडेट आ रहें हैं आपके पास - इस दीपावली के नज़राने के तौर पर! :)
आज ही! कुछ ही देर में। इसलिए साथ बने रहें।


Kala Nag Lib am KinkyGeneral SANJU ( V. R. ) Chetan11 Nagaraj Choduraghu
भाई पहले तो क्षमा चाहूँगा
इस बार की दिवाली कुछ अलग है
धन तेरस से लेकर माँ काली की पुजा फिर दिवाली इन सब के लिए खरीदारी
भाई कमर तोड़ तैयारी
खैर अभी आ पाया हूँ
उम्मीद है शुभ मंगल ही प्रस्तुति हुआ होगा
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,343
17,121
144
अंतराल - विपर्यय - Update #1

शाम को जब मैं घर आया, तब घर का माहौल बड़ा चहल पहल वाला था। पिछले कुछ समय से हमेशा ही रहता था, लेकिन आज कुछ अधिक ही लग रहा था। माँ बात बात पर हँस रही थीं, और लगातार मुस्कुरा रही थीं। उनके चेहरे पर ख़ुशी की एक अनोखी सी चमक थी - जिसको देख कर बड़ा अच्छा लग रहा था। हाँ - एक और बात मैंने नोटिस करी - माँ ने रंगीन साड़ी पहनी हुई थी आज। क्या बात है! बहुत बहुत बढ़िया! मन में बस इतना ही आया कि ‘काश, वो इसी तरह रहें हमेशा’! उनकी ख़ुशी मेरे लिए बहुत आवश्यक थी। हाथ मुँह धो कर जब मैं बच्चों के साथ खेलने में व्यस्त हो गया, तब माँ और काजल साथ में रसोई का काम देखने लगीं। यह भी नई बात ही थी - काजल माँ को अधिकतर समय रसोई के काम में उलझाती नहीं थी; सब कुछ खुद ही कर लेती थी। लेकिन आज दोनों हँसते बोलते साथ में काम कर रही थीं। मैं यहाँ फिर से ‘काजल पुराण’ शुरू नहीं करना चाहता - आप पाठक लोग भी वो सारी कथा सुन सुन कर पक गए होंगे - लेकिन, सच में, काजल के सम्मान में, उसकी बढ़ाई में जितना कहूँ, उतना ही कम है!

उधर सुनील भी हमारे साथ खेल में शामिल हो गया - उसको देखते ही आभा उसके ऊपर चढ़ गई। अपने ‘दादा’ की सवारी करना, उससे ठुनकना, जायज़ - नाजायज़ कैसी भी बातें मनवाना, उससे शिकायत करना, अपनी मनुहार करवाना, और ऐसे व्यवहार करना कि जैसे मैं नहीं, वो उसका बाप हो - ऐसा था सुनील और आभा में रिश्ता! अपनी एकलौती बेटी को सुनील के इतने करीब देख कर मुझे थोड़ी जलन सी तो महसूस होती थी, लेकिन बुरा नहीं लगता था। मेरी अनुपस्थिति में जिस तरह से सुनील ने दोनों बच्चों को प्यार दिया था, ख़ास तौर पर आभा को, और उन दोनों को इतना कुछ सिखाया था, मुझे आश्चर्य तब होता जब वो दोनों उसके इतने करीब न होतीं। सुनील एक अच्छा रोल मॉडल था दोनों के लिए। हाँ मुझे एक बात से बहुत संतोष होता था कि अवश्य ही आभा सुनील के अधिक नज़दीक थी, लेकिन लतिका मेरे अधिक करीब थी!

खैर, देर तक बच्चों के संग खेल कर जब छुट्टी मिली, तब तक हमारा खाना डाइनिंग टेबल पर सजा दिया गया था। खाना खा कर मैं अपने कमरे में चला गया। कल एक और कस्टमर मीटिंग थी। अपना बिज़नेस चलाने में यही कष्ट है, और यही आनंद भी है। सोचा था कि आज जल्दी सो कर देर तक सोऊँगा। लेकिन मेरे कमरे में आने के पाँच मिनट बाद ही काजल भी कमरे में चली आई। उसको देख कर मैं मुस्कुराया।

“कैसा था दिन?”

“बहुत ही अच्छा!” मैंने कहा - काजल और मैं बिज़नेस की बातें नहीं करते थे। वो कहती थी कि उसको वो बातें समझ में नहीं आती थीं। मैं भी उसकी बात का मान रख कर बस बहुत थोड़ा ही बताता था, “कल एक और कस्टमर मीटिंग है। उसके बाद कुछ दिन थोड़ा फ्री रहूँगा।” मैंने कुछ देर चुप रह कर आगे जोड़ा, “शायद!”

छोटी कंपनी होने का मतलब यह है कि अधिकतर बड़ी डील्स में मुझे लगना ही पड़ता था। टेक्नीकल सेल्स के लोग टीम में शामिल हो रहे थे, लेकिन धीरे धीरे। और ऐसे ही किसी को भी तो लाया नहीं जा सकता न कंपनी में? काम कम अवश्य रहे, लेकिन जो काम करें, वो बढ़िया क्वालिटी का होना चाहिए। उसी से रेपुटेशन बनती है।

मेरी बात पर काजल मुस्कुराई, “अच्छी बात है। इतनी गर्मी में तुमको कुछ दिन की राहत मिल जाए तो बुराई नहीं!”

“बच्चे कहाँ सो रहे हैं?”

“बच्चे कहाँ सोते हैं अभी!” वो बोली, “अपने दादा और दीदी के साथ धमाचौकड़ी मचा रहे हैं इस समय!”

“हा हा हा! छुट्टियाँ होने वाली हैं दोनों की! अब तो आफत है तुम सभी की!”

“हा हा हा हा! हाँ आफत तो है!” काजल बड़े विनोदपूर्वक बोली, “लेकिन यही आफत तो हम माओं को अच्छी लगती है। बच्चे न हों, तो यही घर, यही सब सुख सुविधाएँ काट खाने को दौड़ेंगी!”

मैं चुप रहा। फिर छुट्टियों की प्लानिंग का याद आया।

“वेकेशन का सोचा कुछ?”

“फुर्सत कहाँ मिली?”

“हम्म्म... मैंने सोचा है लेकिन... बहुत नहीं... बस थोड़ा ही... उत्तराँचल जा सकते हैं। एक तो बहुत दूर नहीं है, और बहुत सुन्दर भी है। मैं भी साथ में आ सकता हूँ। अगर काम पड़ा, तो वापस दिल्ली आने में बहुत समय नहीं लगेगा!” मैंने उत्साह से कहा, “एक ट्रेवल कंपनी का काम किया था कुछ महीने पहले - उसका सीईओ मेरा अच्छा दोस्त बन गया है। उसी ने कहा कि वो सारा इंतजाम करवा देगा। गाड़ी होटल वगैरह सब!”

मेरी बात सुन कर काजल बड़ी खुश हुई, “अर्रे वाअअअह! बढ़िया है ये तो!” फिर उसने सोचने का अभिनय करते हुए कहा, “लेकिन एक गुप्त बात है!”

“गुप्त बात?”

“हाँ! हमारे वेकेशन और सुनील के हनीमून का अलग अलग इंतजाम करवाना पड़ेगा!”

“क्या? हा हा हा! हनीमून? सुनील का हनीमून?”

“अरे, उसकी शादी होगी, तो हनीमून भी तो होगा!”

“बिलकुल होगा! लेकिन कब हो रही है उसकी शादी?”

“जल्दी ही!” काजल ने रहस्यमई तरीके से कहा, “पता है, उसने अपनी वाली को प्रोपोज़ कर दिया है, और वो मान भी गई है!”

“क्या! क्या! क्या!” मैंने टीवी सीरियल्स के तर्ज़ पर नाटकीय तरीके से प्रतिक्रिया दी, “कोई बताता ही नहीं मुझे कुछ भी इस घर में! इतना खराब हूँ क्या मैं?”

“अरे नहीं! खराब नहीं, बस शर्माते हैं तुमसे!”

“अरे! इतनी अच्छी खबर बांटने में कैसी शर्म? ये तो बड़ी अच्छी बात है!” मैंने उत्साहित होते हुए कहा, “अरे, लड़की के बारे में बताओ। क्या नाम है? क्या करती है? कैसी है? कहाँ की है? सब बताओ!”

“हा हा हा हा हा! तुम भी न... बिलकुल बच्चों जैसे एक्साइट हो रहे हो! अच्छा है।” काजल कुछ सोचती हुई - भूमिका बनती हुई बोली, “बड़ी सुन्दर है बहू - बिलकुल अपने नाम जैसी! फूल समान! और गुणों की खान है वो!”

“अरे वाह! मिली तुम उससे?”

“हाँ न! आज ही!” काजल ने फेंका, “भा गई मुझको तो!”

“अरे तो बताना था न! मैं भी आ जाता! तुम भी न काजल!” मैंने नाटक किया, “तुम्हारी बहू है, तो मेरी भी तो कुछ है न! ऐसे सौतेला व्यवहार किया तुमने मेरे साथ!!”

“अरे बस बस! पूरा सुन तो लो पहले - बाद में शिकायत कर लेना,” काजल हँसते हुए बोली, “बहू यहीं की है... यहीं की मतलब, दिल्ली की। आर्ट्स ग्रेजुएट है - फर्स्ट डिवीज़न, विद डिस्टिंक्शन! शुद्ध हिंदी, और शुद्ध इंग्लिश बोलती है। और तो और, थोड़ी बहुत बंगाली भी बोल लेती है!”

“अरे वाह!” मैंने हँसते हुए कहा, “बढ़िया है फिर तो!”

“हाँ न! और क्या बढ़िया बोलती है - मीठा मीठा! सुन कर बहुत सुख मिलता है कानों को!”

“वाह जी!” मैंने मुस्कुराते हुए कहा, “लड़की अच्छी है, लड़के को पसंद है, लड़के की माँ को पसंद है - और क्या चाहिए?”

“हाँ - और क्या चाहिए!”

“माँ मिलीं हैं उससे?”

“हाँ!”

“उनको पसंद आई?”

“क्यों नहीं आएगी पसंद? उसके जैसी ही तो है!” काजल कुछ सोचते हुए बोली, “और सच कहूँ? हमको भी शायद इसीलिए पसंद आई कि बहू, बिलकुल दीदी जैसी ही है!”

“हा हा! बहुत अच्छा! बहुत अच्छा! सभी को पसंद है!!” मैंने खुश होते हुए कहा, “लेकिन ये गलत बात है! मेरे पीछे पीछे तुम लोग गुपचुप कुछ कुछ करते रहते हो। कुछ बताते भी नहीं!”

“अरे बता तो रही हूँ! ये सुनील भी न - थोड़ा शर्माता है तुमसे। इसलिए छुपा लेता है कुछ बातें। वो तो मैं ही हूँ कि उसको खोद खोद कर यह सब जान लिया, नहीं तो कहाँ बता रहा था वो मुझे भी!”

“अरे, बीवी लाने में क्या शर्माना!”

“वही तो!” काजल रहस्यमय तरीके से बोली, “मैंने तो इन दोनों की कुण्डली भी मिलवा ली है!”

“क्या! हा हा हा!”

“अरे और क्या! बहुत अच्छा मैच है सच में। पंडिज्जी ने बताया।”

“अच्छा! क्या बताया?”

“छत्तीस में अट्ठाईस गुण मिलते हैं दोनों के!”

“अच्छा है ये तो?”

“बहुत अच्छा है! बोले कि बहुत प्रेम से रहेंगे दोनों, और बहुत स्वस्थ रहेंगे!” काजल अपने में ही खुश होते हुए बोली, “पच्चीस के ऊपर गुण मिलने पर बहुत अच्छा मानते हैं। और भी बहुत से योग हैं जो दोनों के लिए बहुत अच्छे हैं!”

“और क्या चाहिए!” मैं काजल के भोलेपन पर मुस्कुराते हुए बोला।

“हाँ - और क्या चाहिए!” काजल ने कहा, “बस, जल्दी से शादी कर देते हैं उन दोनों की!”

“जल्दी से?”
“और नहीं तो क्या? सुनील के जाने से पहले!”

“अरे! इतनी जल्दी!!”

“और नहीं तो क्या! जाए अपनी बीवी के साथ! संसार बसाए, ज़िम्मेदारियाँ उठाए। एक माँ और क्या चाहती है!”

“हा हा हा हा! जब तुम ऐसे बातें करती हो न काजल, तो लगता है कि हम बूढ़े हो गए!”

“अरे, मेरे बेटे की शादी होनी है, तो हम क्यों बूढ़े होने लगे?” काजल ने बनावटी गुस्से से कहा, और फिर बात पलटते हुए आगे बोली, “लेकिन अमर, इन दोनों की शादी का कुछ करते हैं न!”

“हाँ - करते हैं कुछ। कब तक का प्लान है?”

“समय नहीं है। जितना जल्दी हो सके उतना! या तो इसी हफ़्ते या अगले दस दिनों में?”

“अरे, लेकिन बहू के घर वाले? वो मानेंगे?”

“नहीं मानेंगे तो मना लेंगे!”

“हा हा हा हा हा! मुझे तो लगता है कि सुनील से अधिक तुम उतावली हो रही हो!”

“वो भी है उतावला!”

“ज़रूर होगा। जैसी लड़की तुमने बताई है, कोई भी उतावला हो जाएगा!”

“तुमको भी मिलवाते हैं उससे।”

“हाँ! इतना तो करो ही।”

“जल्दी ही - इसी वीकेंड!”

“हाँ बेहतर!”

इस अनोखी सी बात पर मैं हैरान हो गया। काजल की भाँति मैं भी चाहता था कि सुनील की शादी जब हो, तो बड़ी धूमधाम से हो। लेकिन काजल की इस बात पर भी मैं सहमत था कि धन का व्यर्थ व्यय करने की अपेक्षा, अगर हम नवदम्पति को आर्थिक सहायता करने में उसका उपयोग करें, तो बेहतर होगा। जैसे कि मुंबई में उसके लिए घर खरीदने में मदद दे कर! ऐसा करने से कम से कम उनके पास अपना एक घर हो जाएगा। मुंबई में घर, मतलब एक इन्वेस्टमेंट, जो आगे उनको फ़ायदा दे सकती है। मतलब एक साधारण सा विवाह - जैसे कि कोर्ट मैरिज और फिर एक पार्टी! बस!

मैंने काजल को दिलासा दिया कि कल ही मैं इस बारे में अपने वकील और अपने नेटवर्क में बात करूँगा। और यथासंभव, अति-शीघ्र तरीके से सुनील की शादी उसकी गर्लफ्रेंड से करवा दूँगा।


**


आज की रात, घर के कई सदस्यों के मन में अलग अलग तरह के भाव थे।

मैं कल की कस्टमर मीटिंग और फिर अपने पूरे परिवार के साथ एक सुन्दर सी छुट्टी बिताने के बारे में सोच रहा था। एक समय था जब गाँव में अपने पैतृक घर जाना - मतलब छुट्टी मनाना होता था। अब परिस्थितियाँ बदल गई थीं। गाँव गए हुए समय हो गया था। पड़ोस के चाचा जी, चाची जी, और उनका परिवार बहुत याद आता था। उनसे हमको बहुत ही अधिक प्रेम मिला था। हाँ, इस बार तो उत्तराँचल जाएँगे। देवयानी से पहली (या यह कह लीजिए कि पहली नॉन प्रोफेशनल) मुलाकात वहीं हुई थी, इसलिए वो स्थान एक तरह से मेरे लिए बहुत अधिक महत्ता रखता था। आभा को मसूरी दिखाऊँगा और बताऊँगा उसकी मम्मी से मेरी मुलाकात की बातें, और हमारे प्यार के परवान चढ़ने की बातें! अच्छा रहेगा! हाँ, हफ्ता दस दिन केवल मज़े करेंगे! खूब मज़े करेंगे! इस बार तो और भी अच्छा है - अगर काजल की बातें सभी सही हैं, तो सुनील और उसकी बीवी भी साथ चल सकते हैं - अगर उनका मन किया, तो। हाँ, बहुत दिन हो गए इस घर में ख़ुशी का माहौल बने! बहू आने से वो सब बदल जाएगा। बड़ा अच्छा रहेगा।

काजल - उसकी मनः स्थिति मुझसे थोड़ी अलग थी। मुझको सारी बातें ठीक से न बताने का मलाल उसको साल रहा था। ऐन मौके पर उसकी हिम्मत ने उसको धोखा दे दिया। ‘कैसे बताऊँ अमर को ये सब!’ ‘कहीं वो नाराज़ न हो जाए!’ बस यही विचार उसके मन में बार बार आ रहा था। ‘लेकिन वो नाराज़ क्यों होगा? अगर मेरा और उसका सम्बन्ध बन सकता है, वो मेरे बेटे का और सुमन का क्यों नहीं?’ काजल मन ही मन इस बात को जस्टिफाई करने पर लगी हुई थी। जिस राह पर सुनील और सुमन चल पड़े हैं, उस राह की परिणति सभी जानते हैं। प्रेम कोमल अवश्य होता है, लेकिन वो ऐसा बलवान होता है कि उसमें सूर्य से भी अधिक गुरुत्वाकर्षण होता है। मतलब सुनील और सुमन को एक बंधन में बंध जाना है। इसलिए अमर का इस बारे में जानना आवश्यक है। और उसका इस सम्बन्ध को स्वीकार करना भी आवश्यक है। एक संतान अपने माता-पिता को ले कर बहुत पसेसिव होती है। माता या पिता दूसरा विवाह कर ले, तो इस बात को आसानी से स्वीकार नहीं करती। काजल ने देखा था जब आरम्भ में अमर और देवयानी की शादी की बात उठी थी। उसको बिलकुल अच्छा नहीं लगा था यह सब सुन कर। उसको लगता था और यकीन भी था कि अब उसकी अम्मा और उसके भैया एक हो जाएँगे। काजल ने बड़े जतन से, और बड़े गाम्भीर्य से उसको समझाया था कि अमर अवश्य ही उससे शादी करना चाहता था, लेकिन वो उससे शादी नहीं करना चाहती थी। और उसके कारण भी बताए थे, जो आज तक नहीं बदले! काजल ने सुनील को समझाया था कि वो स्वयं भी चाहती है कि अमर और देवयानी एक हो जाएँ! अच्छी बात थी कि उसको यह बात समझ में आ गई थी। अब यही बात अमर को समझानी थी।

सुनील में मन में तो जैसे तितलियाँ उड़ रही थीं। जहाँ एक तरफ उसको अपना वर्षों पुराना सपना साकार होते हुए दिख रहा था, वहीं शादी और परिवार जैसी गंभीर ज़िम्मेदारी का दबाव भी बनता दिख रहा था। उसके अकेले के बूते यह संभव नहीं था - वो इस बात को अच्छी तरह समझता था। लेकिन सुमन जैसी साथी अगर हो, तो फिर चिंता कैसी? अम्मा को सुमन के बारे में बताना और समझाना आसान रहेगा। बस, डर है तो भैया का। वो क्या सोचेंगे? क्या करेंगे? उनको कैसे बताया जाए? यही एक यक्ष प्रश्न है इस समय! ‘कोशिश कर के कल ही बता देता हूँ!’ वो सोच रहा था, ‘उनकी गालियाँ बर्दाश्त कर लूँगा, माफ़ी माँग लूँगा - लेकिन मना लूँगा। अब चूँकि मेरा और सुमन का भविष्य जुड़ गया है, तो भैया का आशीर्वाद पाना मेरे लिए सबसे ज़रूरी है।’ और अगर सब कुछ सही रहा और उनकी और अम्मा की रज़ामंदी हो गई, तो जल्दी ही शादी कर लेंगे! सही में - अगर सुमन साथ ही चले मुंबई, तो क्या ही अच्छा हो!

माँ! वो तो इस समय किसी छोटी बच्ची के जैसे महसूस कर रही थीं। पिछले दो चार दिनों में उनके साथ जो कुछ हो गया था, और उन्होंने जो कुछ महसूस कर लिया था, वो सब एक परीकथा जैसा लग रहा था! ऐलिस इन वंडरलैंड! एक एक कर के उनके साथ बस अनोखा अनोखा होता जा रहा था। कितना सारा संशय था उनको। लेकिन अब वो सब बेबुनियाद लग रहा है। बिना वजह ही उन्होंने सुनील की मंशा पर संदेह किया! एक नया परिवार पाना उनके लिए एक अनदेखा सपना था। वो साकार होते हुए दिख रहा था। उस परिवार में उनकी सबसे प्यारी सहेली उनकी माँ के रूप में थी। एक सुदर्शन सा पुरुष उनका पति होने वाला था। और एक गुड़िया सी लड़की उनकी ननद! आज अपनी नई माँ के स्तनों से दुग्धपान कर के उन्होंने उस सुख का अनुभव कर लिया था, जिसकी स्मृतियाँ अब लुप्त हो चुकी थीं। उम्मीद है कि देवी माता अपनी अनुकम्पा ऐसे ही उन पर बनाए रखें! मिष्टी और अमर को पीछे छोड़ने का सोच कर उनको दुःख भी हो रहा था, लेकिन एक स्त्री की नियति भी तो यही होती है न कि अपना घर छोड़ कर किसी और के घर जाए और उसका संसार बसाए। हाँ - एक नया संसार बनाना! ईश्वर ने यह शक्ति तो केवल स्त्री को ही दी हुई है। कैसी अद्भुत सी भावना उत्पन्न होती है यह सोच कर! किसी नई नवेली दुल्हन जैसी ही भावनाएँ, उसके जैसी ही चेष्टाएँ और उसके ही जैसी आशाएँ उनके माँ में जन्म लेने लगीं। सुनील की ही भाँति उनके भी मन में तितलियाँ उड़ने लगीं।

**
ह्म्म्म्म
काजल ने सस्पेंस बना दिया
ह्म्म्म्म
चलो देखते हैं आगे क्या होता है
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
4,343
17,121
144
अंतराल - विपर्यय - Update #2


अगले दिन :

आज सुनील और माँ दोनों ही अपनी दिनचर्य के अनुसार ही सुबह सुबह दौड़ने निकल लिए। माँ को सुनील के साथ संकोच भी हो रहा था और रोमांच भी। और उधर सुनील को महसूस हो रहा था कि वो दौड़ नहीं रहा, बल्कि उड़ रहा है। प्रेम में होने की भावना किसी भी व्यक्ति का कायाकल्प कर देती है। जब दोनों दौड़ कर वापस आए, तब मैंने सुनील से कस्टमर मीटिंग के लिए अपने साथ आने को कहा। मीटिंग में उसका आना आवश्यक नहीं था, लेकिन मैं चाहता था कि पुराने समय के जैसे ही मैं उससे बात कर सकूँ। घर में तो हम दोनों ही अल्पमत में थे - मतलब चार लड़कियों के बीच में हम दो लड़के! तो कभी कभी मन होता था कि हमारा भी ‘बॉयज टाइम’ हो! मेरी बात पर सुनील मेरे साथ ऑफिस चलने पर तुरंत ही तैयार हो गया।

उधर, आज लतिका और आभा के स्कूल में, गर्मियों की छुट्टियाँ शुरू होने से पहले का आखिरी दिन था। लिहाज़ा आज रिजल्ट के साथ साथ समर वेकेशन का पैकेट मिलने वाला था, जिसमें एनुअल मैगज़ीन के साथ साथ समर एक्टिविटीज़ और होम वर्क इत्यादि होते थे। काजल उस बावत उन दोनों के साथ स्कूल जाने वाली थी। लिहाज़ा, दौड़ कर घर वापस आने के बाद माँ ही नाश्ता इत्यादि बनाने का काम देख रही थीं। बहुत दिनों से रसोई का काम न करने के कारण माँ की स्पीड धीमी ही थी। तो पहले बच्चों और काजल को नाश्ता करा कर, और उनके लंचबॉक्स तैयार कर के माँ ने मुझे और सुनील को नाश्ता कराया। हमको विदा करने के बाद उन्होंने अपना नाश्ता किया। एक बेहद लंबे समय के बाद यह सब हुआ था; और यह भी कि माँ ने सबसे आखिरी में खाया हो! एक गृहणी के रूप में यह सब बहुत पहले वो कर चुकी थीं। अपने पुराने दिनों को याद कर के उनके होंठों पर बरबस ही एक स्निग्ध मुस्कान आ गई।

वैसे वो आज अपनी दिनचर्या में इस बदलाव को देख कर खुश थीं। अक्सर डिप्रेशन की मार झेल रहे लोगों को उनकी दिनचर्या में ऐसे अचानक बदलाव देख कर उलझन होने लगती है, लेकिन माँ अब बहुत ठीक थीं। अब यह कहना कठिन था कि वो अवसाद का शिकार थीं। हाँ - माँ ठीक तो बिलकुल ही थीं, लेकिन उनके मन में परस्पर विरोधी भावनाएँ उत्पन्न हो रही थीं। जहाँ एक तरफ वो इस बात पर राहत महसूस कर रही थीं कि सुनील घर में नहीं था, वहीं दूसरी तरफ वो उसके लिए तरस भी रही थीं। प्रेम में होना बड़ा मुश्किल समय होता है प्रेमियों के लिए! जब उन्होंने सुनील को अपना पति मान ही लिया था, तो अब उससे दूर होना या रहना थोड़ा कठिन विचार था। और क्यों न हो? सुनील के साथ बिताया हर पल, जैसे आश्चर्यों से भरे बक्से को खोलने जैसा था। कोई क्षण ऐसे नहीं जाता था जब हँसे - मुस्कुराए बिना रहा जाए!
विवाह के पूर्व विचारों का भंवर
‘‘इनकी’ पत्नी बनना कैसा होगा?’ माँ पिछले दो दिनों से यही कल्पना करने लगी थीं।

वाकई, सुनील की पत्नी होना माँ के लिए एक अद्भुत अनुभव होगा। सुनील जीवन की नवीन ऊर्जा से लबरेज़ था, और अपने और अपनी होने वाली पत्नी के साथ अपने भविष्य के लिए उसकी आँखों में बहुत सारे सुनहरे सपने थे। उससे बात करने में कितना मज़ा आता है! वो हमेशा चुटकुले सुनाता रहता है। घर में हर किसी को आश्चर्य होता है कि उसको इतने सारे चुटकुले आखिर आते कैसे हैं! हाँ, वो बहुत खुशमिजाज था। उसके अंदर किसी भी तरह का कपट नहीं था। वो प्रेम और स्नेह से पूर्ण, सम्मानजनक, और ज़िम्मेदार आदमी था। बचपन से ही वो समझ गया था कि उसे जीवन में कुछ हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करने की ज़रूरत है, जिससे वो अपनी अम्मा और छोटी बहन की देखभाल कर सके। और अब उसने अपने उस उद्देश्य को प्राप्त कर लिया था। उसने वो जीवन कौशल हासिल कर लिया था जिसके बूते वो संसार में अपनी एक पहचान बना सकता था। वो बहुत बुद्धिमान था, और अपने विषय में बहुत जानकार भी था। अपनी कक्षा में टॉपर्स में से एक था। साथ ही, वो मेरे बिज़नेस में मेरी मदद कर रहा था, जो एक बड़ी अच्छी बात थी! उसको कैंपस में ही एक उच्च वेतन वाली नौकरी मिल गई थी, जो उसके करियर के लिए एक बहुत अच्छा संकेत था।

वो एक सरल व्यक्ति था - वो बस कई छोटी-छोटी खुशियों को इकठ्ठा करने में विश्वास रखता था, और इसलिए वो हमेशा खुश रहता था। किसी फूल पर मँडराती नन्ही सी तितली को भी देखकर वो खुश हो सकता था! इतना सरल था सुनील! जो वो महसूस करता, जो वो सोचता, जो वो करता, और जो वो कहता - सब एक ही बातें होती थीं! अन्य लोगों की तरह सोचने, बोलने और करने में वो अंतर नहीं करता था! उसके व्यवहार में कोई छल नहीं था, कोई कपट नहीं था। किसी तरह, उसने एक सरल जीवन जीने का तरीका खोज निकाला था। वो सहज, साहसी और बेहद मजेदार व्यक्ति था! माँ को वो कभी भी अपनी बातों, अपनी हरकतों से आश्चर्यचकित कर सकता था। माँ भी बहुत खुशमिजाज और मौज-मस्ती करने वाली स्त्री थीं... बस उनका व्यवहार डैड की मृत्यु के बाद बदल गया था। लेकिन अगर वो फिर से पहले ही जैसी हो जाएँ वो कितना अच्छा हो!? इस लिहाज से देखा जाए, तो उस समय हमारे पास, माँ के लिए सुनील से अच्छा वर और कोई नहीं हो सकता था।

सुनील हैंडसम भी था - अपनी अम्मा की ही तरह वो भी साँवला था... और उसकी आँखें सुंदर और अभिव्यंजक थीं। अभिव्यंजक इसलिए क्योंकि उसके मन की बातें उसकी आँखों और चेहरे पर साफ़ दिखाई देती थीं। फैशन के नाम पर थोड़ा कच्चा था - अपने बालों को वो बहुत छोटा रखता था - लगभग मिलिट्री स्टाइल का! लेकिन कुछ बात थी कि वो हेयर स्टाइल उसके चेहरे और उसके व्यक्तित्व पर अच्छी लगती थी। फैशन सेन्स में जो कमी थी, वो शारीरिक फिटनेस, और व्यायाम से दृढ़ हुए शरीर से पूरी हो जाती थी।

ओह, और उसका लिंग... कितना बड़ा था! डैड के लिंग के मुकाबले बहुत बड़ा!
ऊँ हूँ अच्छा ह्म्म्म्म
जिस तरह से डैड माँ से सम्भोग करते थे, उससे ही माँ खुश और संतुष्ट थीं। लेकिन उनके सम्भोग के सत्र छोटे होते थे - करीब पाँच से दस मिनट तक! लेकिन माँ को मालूम था कि मैं गैबी, देवयानी, और काजल के साथ बड़े लम्बे समय तक सम्भोग करता था, और कई कई बार करता था। इसलिए माँ जानती थी कि कुछ युगलों के सम्भोग सत्र बहुत लम्बी अवधि वाले, और भावनात्मक रूप से अंतर्निहित, और अधिक घनिष्ट हो सकते हैं। उनके मन में यह ख्याल था कि संभव है कि लिंग के आकार का सम्भोग के सत्र की गुणवत्ता पर कोई प्रभाव पड़ता हो!

‘तो, क्या इसका मतलब यह है कि ‘वो’ मेरे साथ लंबे समय तक ‘यह सब’ करेंगे!’ माँ उसी तर्क से सोच रही थी।
उरी बाबा दारुन दादा भीषोण दारुन
डैड के साथ प्रेम-प्रसंग की अवधि से माँ संतुष्ट थीं और खुश थीं। अपने साथ देर तक, और कई बार सम्भोग होने की सम्भावना सोच कर ही वो सिहर उठी। उनके लिए यह कल्पना कर पाना भी काफी अलग था और मुश्किल था। पुनः प्रेम पाने की कोमल कल्पनाओं का मन ही मन आस्वादन करते करते कोई दो घण्टे हो गए। तब जा कर माँ को याद आया कि अभी तक उन्होंने नहाया भी नहीं! अपनी अन्यमनस्कता को देख कर माँ भी अपने ऊपर हँसे बिना न रह सकीं!

शावर के नीचे खड़े हुए भी उनको यही सब विचार आ रहे थे।

‘‘इनके’ साथ घर बसाना कैसा होगा?’

एक बार किसी का घर बसने के बाद, फिर से किसी और का घर बसाना - यह उनको एक भारी भरकम काम महसूस हो रहा था। डैड के साथ उनका वैवाहिक जीवन संघर्ष से भरा हुआ था। बेहद कम उम्र में शादी, और शादी के नौ महीने में ही माँ बन जाना, एक छोटे बच्चे के लालन-पालन के साथ साथ ग्रेजुएट तक अपनी पढ़ाई पूरी करना, तिनका तिनका जमा कर के अपना आशियाना बनाना, कम में संतुष्ट रहना, जो बचे उसको दूसरों के साथ साझा करना - यह सब करने में हर पग माँ ने अपनी इच्छाओं की तिलांजलि दी। इतनी, कि अब सपने देखने में भी उनको घबराहट होने लगी थी।

लेकिन सुनील ने उनकी हर इच्छा-पूर्ति होने का वायदा किया था। मज़ेदार बात है न? इस समय न तो उसके पास ही कुछ था, और न ही माँ के पास! ऐसे में अपना संसार बसाने का सपना देखना और भी रोमाँचक महसूस हो रहा था!

नहा कर बाहर आने के बाद माँ ने अपने कमरे के आईने के सामने खड़े होकर अपने नग्न शरीर का मूल्यांकन किया। काजल सही तो कहती है - वो अपनी उम्र की महिलाओं के मुकाबले कोई पंद्रह साल कम की लगती हैं। उनका शरीर कसा हुआ था - पेट सपाट था। शरीर के कटाव सौम्य थे, और वसा की फ़िज़ूल मात्रा नहीं के बराबर थी। उनके स्तन अभी भी ठोस थे; गोल गोल थे; और अपनी उम्र की अधिकतर महिलाओं के मुकाबले छोटे थे - छोटे क्या, समझिए आकार में आधे थे! न तो उम्र का, और न ही गुरुत्व का ही कोई भी हानिकारक प्रभाव उन पर पड़ा था। ऐसे में वाकई वो किसी पच्चीस छब्बीस साल की लड़की जैसी लगतीं!

‘नारंगियाँ!’ माँ को सुनील की अपने स्तनों के लिए दी गई उपमा याद आ गई। उसकी इस बात पर माँ को हँसी आ गई।
वाव ह्म्म्म्म
आज कल की लड़कियाँ तो बीस पच्चीस की होते होते ही अपने यौवन की दृढ़ता खो देती हैं... खराब जीवनशैली, जंक-फूड खाने की आदतों, और बेहद अनुशासनहीन और आलसी जीवनशैली के कारण उनका यह बुरा हाल होता है। इसीलिए ज्यादातर लड़कियाँ मोटी हो जाती हैं, और उनके शरीर का आकार गोल हो जाता है। उनके पेट के चारों ओर, और पुट्ठों और जाँघों पर वसा के विशाल झोले लटकने लगते हैं, जो लगभग टायर की तरह दिखते हैं! स्तनों का आकार विकराल हो जाता है। अधिकतर लड़कियों और महिलाओं का शरीर गुँथे हुए आटे जैसा हो जाता है - न कोई कसावट और न ही कोई लोच! उनके विपरीत, माँ का पेट काफी सपाट था। उनके पैर और हाथ काफ़ी मजबूत थे, क्योंकि वो बहुत काम करती थी और अन्य महिलाओं की तरह आराम नहीं करती थी। वो एक से डेढ़ घंटे ब्रिस्क वॉक करती थीं, और योग और स्ट्रेच भी करती थीं। वो पूरी तरह से फिट थीं और मज़बूत थीं!

‘इतना चिकना... इतना मजबूत।’ सुनील के शब्द उसके दिमाग में कौंध गए।
भयंकर अति भयंकर
माँ को अचानक ही याद आया कि कैसे उन्होंने मेरी सुहागरात के लिए गैबी की योनि को मेंहदी से सजाने की योजना बनाई थी। और गैबी का फीडबैक बहुत दिलचस्प था।

‘मैं भी कुछ ऐसा ही करूंगी।’

जाने-अनजाने माँ भी सुनील के साथ अपने वैवाहिक भविष्य की योजना बना रही थी, ‘मेरी पूची पर ‘उनका’ नाम - यह उनके लिए एक अच्छा सरप्राइज होगा।’ माँ ने सोचा।
अरे अरे अरे
यह तो फंतासी हो गई
‘स्वस्थ और मजबूत बच्चे।’

माँ ने अपने पेट को छुआ। सुनील की बातें उसके दिमाग में कौंधती रहीं।

‘हमारे दो बच्चे होंगे... कम से कम... तुम कितनी सुंदर लगोगी!’

माँ ने खुद को गर्भवती स्त्री के रूप में देखने के लिए जान-बूझकर अपना पेट फुलाया, कि क्या वो वाक़ई एक बड़े, गर्भवती पेट के साथ सुंदर दिखेगी। दर्पण में उन्होंने अपना जो आकार, जो रूप देखा, उनको वो बहुत अच्छा लगा। अपने प्रथम गर्भाधान की कोई याद ही नहीं बची थी माँ को! कितनी पुरानी बात हो गई थी! कितने ही वर्षों से दबी हुई इच्छाएँ वापस उभर आईं।

‘मेरे भविष्य के बच्चों का पालना…’

माँ ने सोचा कि सुनील कितनी बेसब्री से उनको प्रेग्नेंट करना चाहते हैं! इस बात पर उनको एक दबी हुई हँसी आ गई। सोच कर उनको शर्म भी आई और अच्छा भी लगा। जो सपना देखना उन्होंने सालों पहले बंद कर दिया था, उसके साकार होने की सम्भावना बड़ी रोमांचक लग रही थी।

‘मुझे प्रेग्नेंट करना...,’ माँ ने सोचा और अपने योनि के होठों को छुआ, ‘...निश्चित रूप से ये अभी ढीली तो नहीं हुई है!’

माँ ने याद करते हुए सोचा कि वो तो डैड के लिंग से भी भरा हुआ महसूस करती थीं। लेकिन सुनील का लिंग तो काफी बड़ा है! माँ ने अपनी तर्जनी को अपनी योनि के अंदर डालने की कोशिश की! इस हरकत पर उनको दर्द हुआ, तो उन्होंने उंगली को तुरंत बाहर निकाल लिया। नहाने के बाद, योनि का प्राकृतिक चिकनापन धुल गया था, लिहाज़ा सूखी हुई योनि में, सूखी हुई उंगली डालना आसान या आनंददायक काम नहीं था।

‘बिल्कुल भी ढीली नहीं है,’ माँ ने सोचा, ‘अच्छा है!’

काजल ने उनको फ़ीका फ़ीका न पहनने के लिए कहा था। सुनील की भी यही इच्छा थी! इसलिए आज वो कुछ मनभावन रंग के कपड़े पहनना चाहती थीं। उन्होंने एक खुबानी-नारंगी रंग की जॉर्जेट साड़ी और उससे ही मिलती ब्लाउज का चयन किया। साड़ी पर गहरे नीले रंग के बूटे बने हुए थे, और उसी रंग का बॉर्डर था। उतने से ही उनका सौंदर्य निखर कर सामने आ गया। ऐसे मनभावन कपड़े पहन कर माँ ने बहुत हल्का सा मेकअप किया - बस हल्के नारंगी रंग का लिप ग्लॉस और एक छोटी सी, नारंगी रंग की ही बिंदी लगाई। साथ ही साथ आँखों में पतली सी काजल की रेखा। फिर उन्होंने अपने आप को आईने में देखा, और यह देखकर बहुत प्रसन्न हुई कि वो बहुत सुंदर लग रही थीं।
सजना है मुझे सजना के लिए
माँ ने डैड की मौत के बाद इतने लंबे समय में इतनी तन्मयता से वो कभी तैयार नहीं हुई थीं। और इतनी खुशी भी महसूस नहीं की थीं। सच में, अच्छे अच्छे, सुन्दर सुन्दर कपड़े पहन कर सभी को अच्छा तो महसूस होता ही है!

खैर, इधर उनका तैयार होना समाप्त हुआ, और उधर घर की कॉल-बेल बजी।

माँ ने घड़ी की तरफ़ देखा - कोई साढ़े ग्यारह बज रहे थे! माँ ने सोचा कि शायद काजल होगी।

दरवाज़ा खुलते ही माँ ने सुनील को देखा!

उसको देखते ही माँ का दिल धड़क उठा!

कुछ बोलने के लिए उनके होंठ हिले, लेकिन उनकी कोई आवाज़ ही नहीं निकली!

दूसरी ओर, माँ को देखते ही सुनील की तो दिल की धड़कनें ही रुक गईं!

माँ आश्चर्यजनक रूप से सुंदर लग रही थी! बिलकुल अप्सरा!

एक तो माँ ने बेहद हल्का सा मेकअप किया हुआ था, दूसरा, उन्होंने फ़ीकी साड़ी पहनने के बजाय एक खुशनुमा रंग की साड़ी पहनी थी, और तीसरा, वो अंदर से भी प्रसन्न लग रही थीं। उसने माँ की ओर बड़े आश्चर्य से देखा। काफ़ी पहले एक प्रचार में देखा था बोलते हुए कि, यू आर नेवर फुली ड्रेस्ड विदआउट अ स्माइल! माँ के होंठों पर एक स्निग्ध मुस्कान तो दिखाई दे रही थी। साथ ही उनकी आँखें भी मुस्कुरा रही थीं, और उनका चेहरा किसी गुप्त बात पर ख़ुशी से दमक रहा था!

‘आह! कैसी अप्रतिम सुंदरी! कैसा बढ़िया भाग्य!’

सुनील माँ को कई क्षणों तक मूर्खों की तरह घूरता रहा। वो उनकी ऊषाकाल जैसी सुंदरता देख कर अवाक रह गया था। उधर माँ भी सुनील की आँखों में विभिन्न बदलते भावों, और उनमें अपने लिए उसकी इच्छा को देख रही थी! आखिर कब तक वो उसकी चाह भरी नज़रों का सामना करतीं? कुछ पलों के बाद वो उससे नज़रें नहीं मिला सकीं, और उन्होंने शर्म से मुस्कुरा कर अपनी आँखें नीची कर लीं।

माँ ने खुद को सुनील के साथ घर में अकेले होने की उम्मीद नहीं की थी। इतनी जल्दी तो बिलकुल भी नहीं! माँ ने एक बहुत लंबे समय में इतना शर्मीला कभी महसूस नहीं किया था। उनको इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि अपनी पोशाक में इतने साधारण से बदलाव का सुनील पर इस तरह का प्रभाव पड़ेगा! अपने मन ही मन माँ बहुत प्रसन्न हुईं। यह उनके लिए कई मायनों में बहुत अच्छा था। अब वो अपने बारे में बेहतर महसूस कर रही थी, और सुनील के साथ अपने भावी, आशामय जीवन की प्रतीक्षा कर रही थी।

“सुमन, मेरी प्यारी,” जब उसे होश आया, तब वो फुसफुसाते हुए बोला, “तुम्हें पता भी है कि तुम कितनी सुंदर हो!?”

सुनील ने घर में प्रवेश करते हुए अपने पीछे दरवाजा बंद कर लिया।

माँ को ऐसे देख कर उसके अंदर की इच्छाएँ बलवती हो गईं। उसने उनकी ओर दो या तीन बड़े कदम उठाए, माँ ने भी झिझकते हुए एक दो छोटे कदम पीछे की तरफ लिए। माँ सुनील से दूर नहीं रहना चाहती थीं - वो चाहती थीं कि वो सुनील के करीब रहें। जब उन्होंने सुनील को मन ही मन अपना पति मान लिया था, तो और क्या सोचतीं? लेकिन मर्यादा की माँग थी कि वो कुछ दूरी बनाए रखें। लेकिन सुनील को किसी भी मर्यादा की कोई परवाह नहीं थी। वो माँ के बेहद करीब आ कर खड़ा हो गया, और उसने उनकी कमर थाम ली। और फिर मुस्कुराते हुए, और माँ की आँखों में देखते हुए वो गुनगुनाने लगा,

खुदा भी, आसमां से, जब ज़मीं पर देखता होगा…
मेरे महबूब को किसने बनाया, सोचता होगा…
हाय
हाँलाकि माँ अपनी मुस्कान को दबाना चाहती थीं, लेकिन फिर भी उनके होंठों पर सुनील के तारीफ करने के अंदाज़ पर एक शर्मीली और खूबसूरत सी मुस्कान आ ही गई। उन्होंने फिर से शर्म से अपनी आँखें नीची कर लीं।

सुनील स्वयं पर अब और नियंत्रण नहीं कर सकता था। सुन्दर अप्सराओं के सामने तो बड़े बड़े तपस्वी भी पानी भरते हैं, तो उस बेचारे नाचीज़ की क्या बिसात थी? वो बहुत लंबे समय से माँ के सान्निध्य के लिए तरस रहा था, और अब वो अपने जुनून को नहीं रोक सकता था। वर्षों से चलती उसकी तपस्या का पुरस्कार उसके सामने था - उसकी सुमन के रूप में! उसने अपने दोनों हाथों से माँ के दोनों गालों को थामा, और धीरे से उन्हें दबाया। ऐसा करने से माँ के होंठ एक सुंदर और चूमने योग्य थूथन के रूप में बाहर निकल आये। माँ ऐसी प्यारी सी लग रही थी कि अब उनको चूमे बिना नहीं रहा जा सकता था। तो सुनील ने उनको उनके मुँह पर चूमा और बहुत देर तक चूमा।

माँ को माउथ-टू-माउथ चुम्बन के बारे में पता था, और उन्होंने डैड के साथ इसका आनंद हमेशा ही उठाया था; लेकिन उनको सुनील के चुंबन करने का तरीका डैड के चूमने से बहुत अलग लगा। उसके चुम्बन में एक कामुक आवेश था, लेकिन एक विचित्र सी कोमलता भी थी। उसके चुंबन में आग्रह था; उसके चुम्बन में माँग थी कि माँ भी उसी की ही तरह चुम्बन का आवेशपूर्वक उत्तर दें। सुनील माँ के साथ जो कुछ भी करता था उसमें बहुत ऊर्जा डालता था। और वो ऊर्जा साफ़ दिखाई भी देती थी।

माँ पिघल गईं। अपने युवा प्रेमी से मिल रहे प्रेम से माँ पहले ही बहुत खुश थीं। सुनील, डैड के मुकाबले कहीं अधिक रोमांचक प्रेमी के रूप में सामने आ रहा था। वैसे तो माँ ने उन दोनों के बीच कोई तुलना न करने के सोची हुई थी, लेकिन लगभग अट्ठाईस वर्षों के वैवाहिक अनुभव को अपने मन से यूँ ही, तुरंत निकाल पाना संभव नहीं है।

जब उन्होंने अपना पहला चुंबन तोड़ा, तो सुनील ने गाने को थोड़ा और गुनगुनाया,

मुसव्विर खुद परेशां है की ये तस्वीर किसकी है...
बनोगी जिसकी तुम ऐसी हसीं तकदीर किसकी है
...”
ऑए होए हाय
उस चुम्बन ने साफ कर दिया था कि यह तो सुनील का सौभाग्य है कि माँ अब उसकी हैं... हमेशा के लिए... उसकी पत्नी के रूप में! माँ मुस्कुराई... इस बार थोड़ा अधिक खुलकर, लेकिन फिर भी शर्मीली सी!

कभी वो जल रहा होगा, कभी खुश हो रहा होगा
खुदा भी, आसमां से, जब ज़मीं पर देखता होगा
…”

माँ सुनील द्वारा अपनी बढ़ाई किए जाने पर शर्माती जा रही थीं, और सुनील अपने रोमांटिक अंदाज़ में माँ की बढ़ाई करता जा रहा था,

ज़माने भर की मस्ती को निगाहों में समेटा है…
कली से जिस्म को कितने बहारों ने लपेटा है…
नहीं तुम सा कोई पहले, न कोई दूसरा होगा…
खुदा भी, आसमां से, जब ज़मीं पर देखता होगा
…”

सुनील ने बड़ी अदा से गाया, और फिर एक गहरा निःश्वास भरा। माँ ने मुस्कुराते हुए अपने ‘होने वाले’ पति को देखा।

“सुमन... मेरी सुमन... मेरी प्यारी सुमन! मुझसे अब और बर्दाश्त नहीं हो पाएगा!” सुनील बोला, उसकी आँखों में कामुक वासना साफ़ दिखाई दे रही थी, “मुझे तुम्हारा कली जैसा जिस्म देखना है!”

सुनील मुस्कुराया - हाँलाकि उसके चेहरे पर उत्तेजना की तमतमाहट, और एक अलग ही तरीके की विकलता और घबराहट दिख रही थी - और फिर आगे बोला, “आज... मैं जो कुछ भी करूँ, वो मुझे कर लेने देना!”

माँ के दिल में एक धमक सी उठी - ‘तो अब समय आ ही गया’!

हाँलाकि माँ सुनील को मन ही मन अपना पति स्वीकार कर चुकी थीं, लेकिन फिर भी वो उसके साथ यौन सम्बन्ध बनाने के लिए अभी भी मानसिक और भावनात्मक रूप से तैयार नहीं हुई थीं - और शायद अपने आप से कभी हो भी न पातीं। आशंका, लज्जा, और अज्ञात की परिकल्पना - ऐसे अनेक कारण थे, जो उनको रोक रहे थे। और ऊपर से उन दोनों के बीच उम्र का एक लम्बा चौड़ा फ़ासला! लेकिन सुनील को तो जैसे इन सब बातों की कोई परवाह ही नहीं थी। वो जानता था कि सुमन अब उसकी है - उसकी पत्नी! कल ही उसने उनके शरीर के हर हिस्से को अपने चुम्बनों से अंकित किया था। और तो और, उसने उनसे अपने प्रेम का इज़हार भी किया था, और अपनी पत्नी बन जाने का आग्रह भी! माँ ने उसकी किसी बात पर मना नहीं किया, और न ही कोई विरोध दर्शाया। तो मतलब उसके साथ उनके सम्बन्ध के लिए उनकी भी सहमति थी! और अभी भी सुनील जो कुछ कर रहा था, उसमे माँ का सहयोग होता दिख रहा था।

सुनील ने माँ का हाथ पकड़ा, और उनको उनके ही कमरे की ओर ले जाने लगा। माँ भी स्वतः उसके पीछे पीछे चल दीं। माँ के कमरे में जाना एक बढ़िया विकल्प था! जब माँ अपने कमरे में होतीं थीं, उस समय उनको कोई परेशान नहीं करता था। बाकी सभी के कमरे के दरवाज़े पर कभी भी किसी की भी दस्तखत होती ही रहती थी, और कोई भी किसी न किसी बहाने से अंदर घुस जाता था। वो माँ के साथ जो कुछ करना चाहता था, उसे करने के लिए सुनील को कोई बाधा नहीं चाहिए थी, जो माँ के कमरे में ही उपलब्ध थी। कमरे के अंदर दाखिल होते हुए, उसने अपने पीछे कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया।
सुहाग दिन के लिए, दिल बेकरार हो गया
रात तक इंतजार बेकार है
 
Status
Not open for further replies.
Top