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बहुत बहुत धन्यवाद भाई!Avsji, अपडेट के लिए धन्यवाद। बहुत सुंदर अपडेट था। मजा आ गया। आगे के लिए इंतजारी बढ़ गई
Kahani ek akalpniy mode par aa Gai hai , aage dekhte hai ki kya hogaपहला प्यार - पल दो पल का साथ - Update #3
एक शाम, जब मैं ऑफिस से वापस लौटा, तो मैंने पाया कि गैबी अभी तक विश्वविद्यालय से नहीं लौटी थी। ऐसा नहीं है कि वो कभी भी देर से नहीं आती थी - जब से उसने विश्वविद्यालय ज्वाइन किया था, तब से वो तीन चार बार देर से आई थी। लेकिन इतनी देर कभी नहीं लगी।
‘हो सकता है,’ मैंने सोचा, ‘कि किसी ज़रूरी काम से उसको रोकना पड़ा हो!’ इसलिए मैंने थोड़ा इंतज़ार करने का सोचा।
लेकिन जब वो मेरे घर आने के तीन घंटे बाद भी जब वापस नहीं लौटी तो मुझे चिंता होने लगी। बहुत चिंता! मेरी छठी इंद्रिय को लगने लगा कि हो न हो, गैबी के साथ कुछ न कुछ अनिष्ट हो गया है। मैंने उसके गाइड प्रोफेसर को उनके ऑफिस में कॉल लगाया; लेकिन वहाँ कोई नहीं था। इसलिए मैंने उनके घर पर फोन किया! तो उन्होंने मुझे बताया कि गैबी वो लगभग पांच घंटे पहले ही यूनिवर्सिटी से निकल गई थी, घर के लिए!
‘पांच घंटे पहले?’ कुछ तो गड़बड़ था! उसने पांच घंटे पहले ऑफिस छोड़ा था, और अभी तक घर नहीं आई थी! गैबी के लिए ऐसा कुछ करना बहुत ही अनियमित था, इसलिए मैं बहुत अधिक चिंतित हो गया।
मैं बिना देर किए, लापता व्यक्ति की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए पास के पुलिस स्टेशन गया। जैसा हमेशा होता है, पुलिस गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करने में आनाकानी कर रही थी! उनका कहना था कि छः सात घंटे की देरी क्या देरी है? ज़रूर वो किसी दोस्त से मिलने गई होगी। लेकिन फिर मैंने उन्हें समझाया कि गैबी एक विदेशी है, और यहाँ के विश्वविद्यालय में रिसर्च कर रही है। इसलिए उसको इस शहर में अपने विश्वविद्यालय के कुछ लोगों को छोड़कर, और किसी का अता पता नहीं है, और न जान पहचान!
बड़ी आनाकानी और मेरी विनती करने के बाद आखिरकार पुलिस रिपोर्ट दर्ज करने को तैयार हुई। उन्होंने मुझसे गैबी के बारे में सारी जानकारी ली। भारतीय पुलिस का अंदाज़ और रवैया दोस्ताना नहीं होता। आपको पुलिस स्टेशन में बैठने को पूछ लें, वही बहुत बड़ी बात हो जाती है। इसलिए, मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ जब पुलिस के कुछ लोग मुझसे बड़ी सहानुभूति से बात कर रहे थे। निश्चित रूप से कुछ तो गड़बड़ था। उन्होंने मुझसे पूछा कि मेरी पत्नी यूनिवर्सिटी से घर कैसे आती जाती है, तो मैंने बताया कि वह आमतौर पर सिटी बस का इस्तेमाल करती है।
इतना सुन कर वो सभी कुछ देर के लिए चुप हो गए। जब मैंने ज़ोर दे कर पूछा कि आखिर बात क्या है, वो उन्होंने जो कहा, उससे मुझे लगा कि जैसे मेरे सर पर कोई बम गिर गया हो! उन्होंने बताया कि कुछ घंटों पहले एक बस की दुर्घटना हो गई थी, जिसमें दो महिलाओं सहित पाँच लोगों की मौत हो गई थी, कई अन्य लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे।
मरने वाली महिलाओं में एक विदेशी भी थी!
वो जितना मुझे बताते जाते, उतना ही मेरा दिल भारी होता जाता। वो मुझे कुछ पूछ रहे थे, और मैं उनको यंत्रवत सब बता रहा था। लेकिन मस्तिष्क में मानों एक झंझावात चल रहा था -
‘गैबी मुझे ऐसे कैसे छोड़ कर जा सकती है…’ अभी तो हमने साथ में जीना शुरू भी नहीं किया, और अभी ही ये!
मुझसे जानकारी लेने के कोई एक घंटे बाद एक इंस्पेक्टर ने अंततः पुष्टि करी कि मेरी गैबी वास्तव में उन दो महिलाओं में से एक थी, जिनकी उस बस दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी!
मैं आपको कोई रक्तरंजित विवरण नहीं देना चाहता! लेकिन मेरी सुंदर सी गैबी का बेजान, विकृत, और कुचला हुआ शरीर देखना, मेरी आत्मा को झकझोर देने वाला दृश्य था! मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरी ही जिंदगी ने मेरा शरीर छोड़ दिया है... जैसे गैबी के साथ मेरी खुद की संजीवनी चली गई हो। मैं अपने घुटनों के बल गिर गया और रोने लगा। पुलिस और मुर्दाघर के लोग मुझे सांत्वना देते रहे, और पूछने लगे कि क्या कोई है जिससे वे संपर्क कर सकते हैं, या मुझे सहारा देने के लिए बुला सकते हैं। जब मैं जवाब नहीं दे सका, तो उन्होंने खुद मेरी जेब की तलाशी ली, और डैड का फ़ोन विवरण ले कर उनको कॉल किया। यह खबर सुन कर डैड और माँ का क्या हाल हुआ होगा, मुझे नहीं मालूम! एक झटके से मेरी जीवन की ज्योति जाती रही - गैबी और हमारा होने वाला बच्चा! होनी कितनी क्रूर हो सकती है और जीवन कितना क्षणभंगुर!
उसके बाद और क्या क्या हुआ, मुझे ठीक से याद नहीं।
Nice update..!!पहला प्यार - पल दो पल का साथ - Update #1
नए नए विवाहित होने के बड़े सारे लाभ हैं। एक तो आपको बड़ा लाड़ प्यार मिलता है, और आपके सौ खून माफ़ होते हैं। हमने भी इन दिनों में जो कुछ भी किया उस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया, चाहे वह कितना ही हास्यास्पद क्यों न रहा हो! और तो और, सभी हमको एक दूसरे से और अधिक अंतरंग होने के लिए प्रोत्साहित करते रहते। सर्दियों में जब गुनगुनी धूप खिली हुई हो, तो खेतों में - खासतौर पर सरसों के खेतों में घूमने का आनंद ही कुछ और है! पीली पीली सरसों के ऊपर, गुनगुनी धूप ऐसी लगती है जैसे सोना! वैसे जब भी हम गाँव में घूमने निकलते, हमको एकांत नहीं मिलता। हमको देखते ही लोग हमको घेर लेते - खासकर बच्चे। वे सभी गैबी को देखना और छूना चाहते, क्योंकि वो उनके लिए उत्सुकता वाली वस्तु थी। उसकी त्वचा और बालों के अलग रंग के कारण वो गुड़िया जैसी लगती। और, गैबी थी भी इतनी दयालु, कि वो उनको कभी भी अपने पास आने, उससे बात करने, और खुद को छूने से मना न करती। वह उस छोटी सी जगह में सभी की जिज्ञासा और प्रशंसा का पात्र थी! गैबी के पास बहुत सारी साड़ियाँ नहीं थीं, इसलिए, जब तक हम गाँव में रहे, वो ज्यादातर समय शलवार-कुर्ता ही पहनती। खैर, हमने गाँव में किन किन गतिविधियों में भाग लिया, उन सभी के बारे में लिखने की जरूरत नहीं है।
शादी के करीब दस और दिन तक हम हमारे पुश्तैनी गाँव में ही रहे। जब आप खुश होते हैं, तो दिन यूँ ही फ़ुर्र से उड़ जाते हैं, और आपको पता भी नहीं चलता। बस, ठीक वैसा ही हमारे साथ हुआ। गाँव ही हमारा हनीमून था! गैबी के हिसाब से हम दोनों साथ में हैं, जीवन का आनंद उठा रहे हैं, खूब सेक्स कर रहे हैं, बढ़िया बढ़िया भोजन के स्वाद ले रहे हैं - हनीमून में और क्या होता है? इसलिए और कहीं नहीं जाना है, और न तो पैसे बर्बाद करने हैं। तो हम वहीं, गाँव में ही रह गए। माँ डैड को भी हनीमून का कांसेप्ट ठीक से नहीं मालूम था - लेकिन उनको ये मालूम था कि नवविवाहित जोड़े शादी के बाद कहीं सुन्दर सी जगह घूमने जाते हैं। उन्होंने भी हमसे एक दो बार कहीं घूम आने को कहा, लेकिन जब गैबी उस विचार से बहुत उत्साहित नहीं दिखी तो उन्होंने भी कोई ख़ास ज़ोर नहीं दिया।
खैर, शीघ्र ही हमारे वापस जाने का समय आ गया था। गाँव छोड़ने की बात पर मेरा दिल बिलकुल बुझ गया! और जब जाने का समय आया तो मैंने देखा कि पूरा गाँव हमें अलविदा कहने आया था। सच में - उस दिन मैं बहुत अधिक भावुक हो गया था। उनमें से कुछ लोगों ने हमें उपहार भी दिए - उनमें से अधिकांश सामग्री खाद्यान्न, सब्जियां, फल और हाथ से बने सामान थे! गैबी को पश्मीना शॉल और साड़ी भी भेंट में दी गई। वापस लौटते समय हमने ज्यादा बातें नहीं की - इतनी खूबसूरत जगह को पीछे छोड़ कर हमें बहुत दुख हुआ। और तो और, काजल भी अपने पैतृक गाँव में अपने माता-पिता को देखने के लिए तरसने लगी थी। मैंने उससे कहा कि मैं उसके लिए टिकट बुक कर दूंगा! मैंने उससे मज़ाक में कहा कि मैं उसको पंद्रह दिनों की छुट्टी दे दूंगा, जब भी वो घर जाना चाहे।
वापस आ कर भी हमने किसी हनीमून पर जाने के खिलाफ फैसला किया। कारण बहुत सीधा सा था। गैबी ने जोर देकर कहा कि मेरे पैतृक गांव में हमारा रहना ही शानदार अनुभव था, और वहाँ रह कर एक आदर्श हनीमून से उसकी हर उम्मीद पूरी हो गई। उसने यह भी कहा कि वह इतनी खूबसूरत और प्राचीन जगह पर रहकर बेहद खुश थी, और हनीमून जैसे अनावश्यक काम पर कोई पैसा बर्बाद नहीं करना चाहती थी। यह सर्दी का मौसम था, इसलिए सब कुछ और भी अधिक सुखद हो गया था। हम रोजाना स्वादिष्ट भोजन का आनंद ले रहे थे। हम अधिकतर समय घर के अंदर, या फिर अपने कमरे के अंदर ही होते थे। इन सभी कारणों से किसी प्रकार के औपचारिक हनीमून की कोई आवश्यकता नहीं थी।
लिहाज़ा, अपने गाँव में रहने के बाद जब हम शहर लौट आए तब मैंने वापस अपना ऑफिस ज्वाइन कर लिया, और गैबी ने अपना रिसर्च कार्य फिर से शुरू कर लिया। शादी के बाद के शुरुवाती दिन, जिनको अक्सर ‘हनीमून पीरियड’ कहा जाता है, बड़े शानदार होते हैं। मित्रों से मिलना, घर को साथ में सजाना, सारे काम साथ में करना! यह सब बड़ा सुखदायक अनुभव होता है। बड़े आश्चर्यजनक रूप से, गैबी ने एक गृहिणी की भूमिका भी निपुणता से निभानी शुरू करी। गाँव में रहते हुए, गैबी और मैंने कुछ पारम्परिक, लेकिन हमारे लिए नई रेसिपी सीखी थीं, जिन्हें हमने अपने घर पर आज़माने की कोशिश की। मुझे कुछ कुछ खाना पकाना आता है, लेकिन बस एक सीमा तक! रोज़ रोज़ पकाने को कहा जाय, तो वो नहीं हो पाएगा। लेकिन, गैबी तो जैसे पाक-शास्त्र की एक विशेषज्ञा ही बन गई थी। उसने कुछ ही दिनों में कई सारे नए व्यंजन पकाना सीख लिया। साथ ही साथ उसने ब्राजील के कुछ व्यंजनों को नया रूप देने की भी कोशिश की, जो अक्सर आश्चर्यजनक रूप से अत्यंत स्वादिष्ट निकले। उसने कई प्रसिद्ध ब्राज़ीलियन व्यंजनों, जैसे फीजोडा, एरोज़ ब्रासीलीरो, कैल्डो वर्डे सूप, अरोज़ डोस को सफलता पूर्वक शाकाहारी रूप दिया। इनके साथ साथ वो अपनी देसी रोटी, पराठे, पूरियाँ भी पका लेती थी। उसने माँ की कुछ रेसिपीज़ भी सीखीं और उनमें महारत हासिल की। कुछ ही दिनों में मैं बस उसका सहायक जैसा रह गया!
काजल हमेशा की ही तरह मेरे परिवार का स्तंभ थी, और सबसे अच्छी बात यह थी, कि उसकी उपस्थिति हमारे परिवार में हमेशा ही स्वागत-योग्य रही थी। वो गैबी और मुझको पति-पत्नी के रूप में साथ और खुश देखकर बहुत खुश थी। और भी ख़ुशी इस बात की थी कि वो भी मेरे साथ अंतरंग सम्बन्ध में थी - और गैबी और काजल के बीच कोई भी सौतिया डाह नहीं था। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि उसकी अपने पति के साथ अनबन दिन प्रति दिन बढ़ती ही जा रही थी, और अब वो उससे तलाक़ लेने की सोच रही थी। गैबी ने काजल से बड़े स्पष्ट तरीके से कह दिया था कि यह (हमारा) घर, उसका ही घर है, और वो यहाँ पूरे हक़ से रह सकती है। कम से कम इस बात के लिए उसको चिंता नहीं करनी चाहिए। लेकिन फिर भी, जितना हम चाहते थे कि काजल हमारे साथ स्थाई रूप से रह सके, वो ऐसा कर नहीं पाती थी। अभी भी समाज का डर उसको साल रहा था। लोग क्या कहेंगे, घर वाले क्या कहेंगे, इत्यादि! लिहाज़ा, हर महीने वो केवल पाँच छः बार ही हमारे साथ रह पाती थी। इस कारण से काजल के साथ मेरी अंतरंगता उतनी अधिक नहीं हो पा रही थी, लेकिन मुझे उस बात का कोई मलाल नहीं था। वैसे भी काजल के साथ मेरा सम्बन्ध केवल सेक्स वाला नहीं था। हम दोनों बहुत करीब थे, और हमारे रिश्ते में एक अलग ही तरीके ही मिठास और गरिमा थी।
खैर, हमारे जीवन में अन्य अच्छी बातें जारी रहीं और आगे भी बढ़ीं।
घर का बहुत सारा काम, खास तौर पर खाना पकाना, गैबी और मैं ही कर लेते थे, इसलिए काजल को हमारे घर पर थोड़ा ‘रेस्टिंग पीरियड’ मिल जाता था। इस समय का इस्तेमाल बहुत ही उम्दा तरीके से किया जाता था। चूँकि काजल इस घर में सबसे बड़ी थी, इसलिए वो अपने ‘घर में बड़े होने के अधिकारों’ का पूरा इस्तेमाल करती थी, और हमारे साथ अपने बच्चों की तरह व्यवहार करती थी। वो सवेरे सवेरे आती, दरवाज़ा खोलती, और सीधा हमारे कमरे में आ जाती। फिर हमारे दिन की शुरुवात उसका स्तनपान करने से होती। लतिका इस समय स्तनपान कम करने लगी थी, इसलिए, ज्यादातर समय मैं और गैबी ही काजल के दूध के प्राथमिक उपभोक्ता थे! काजल अक्सर दूसरों के सामने मज़ाक मज़ाक में शेखी बघारती, कि दरअसल उसके चार बच्चे हैं - दो लड़के और दो लड़कियाँ! मुझे यकीन है कि अन्य लोग इस बात को गंभीरता से नहीं लेते थे, क्योंकि उनको इस बात के पीछे की सच्चाई नहीं मालूम थी। लेकिन फिर भी, हम सभी इस बात पर बहुत हँसते थे। लतिका फिलहाल हमारे सम्बन्ध को समझने के लिए अभी छोटी थी, लेकिन सुनील अवश्य ही हमें अपने भाई-बहन की ही तरह मानता था। गैबी के पास मुझसे अधिक समय होता था - इसलिए सुनील को पढ़ाने की जिम्मेदारी उस पर थी। लेकिन सुनील स्वयं में अपनी पढ़ाई लिखाई को ले कर इतना सजग था कि उसको किसी सुपरवाइजर की आवश्यकता नहीं थी।
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खुशियों से भरा, पर अंत मे बहुत ही मार्मिक घटना से अपडेट का अंत.....पहला प्यार - पल दो पल का साथ - Update #3
एक शाम, जब मैं ऑफिस से वापस लौटा, तो मैंने पाया कि गैबी अभी तक विश्वविद्यालय से नहीं लौटी थी। ऐसा नहीं है कि वो कभी भी देर से नहीं आती थी - जब से उसने विश्वविद्यालय ज्वाइन किया था, तब से वो तीन चार बार देर से आई थी। लेकिन इतनी देर कभी नहीं लगी।
‘हो सकता है,’ मैंने सोचा, ‘कि किसी ज़रूरी काम से उसको रोकना पड़ा हो!’ इसलिए मैंने थोड़ा इंतज़ार करने का सोचा।
लेकिन जब वो मेरे घर आने के तीन घंटे बाद भी जब वापस नहीं लौटी तो मुझे चिंता होने लगी। बहुत चिंता! मेरी छठी इंद्रिय को लगने लगा कि हो न हो, गैबी के साथ कुछ न कुछ अनिष्ट हो गया है। मैंने उसके गाइड प्रोफेसर को उनके ऑफिस में कॉल लगाया; लेकिन वहाँ कोई नहीं था। इसलिए मैंने उनके घर पर फोन किया! तो उन्होंने मुझे बताया कि गैबी वो लगभग पांच घंटे पहले ही यूनिवर्सिटी से निकल गई थी, घर के लिए!
‘पांच घंटे पहले?’ कुछ तो गड़बड़ था! उसने पांच घंटे पहले ऑफिस छोड़ा था, और अभी तक घर नहीं आई थी! गैबी के लिए ऐसा कुछ करना बहुत ही अनियमित था, इसलिए मैं बहुत अधिक चिंतित हो गया।
मैं बिना देर किए, लापता व्यक्ति की रिपोर्ट दर्ज करने के लिए पास के पुलिस स्टेशन गया। जैसा हमेशा होता है, पुलिस गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करने में आनाकानी कर रही थी! उनका कहना था कि छः सात घंटे की देरी क्या देरी है? ज़रूर वो किसी दोस्त से मिलने गई होगी। लेकिन फिर मैंने उन्हें समझाया कि गैबी एक विदेशी है, और यहाँ के विश्वविद्यालय में रिसर्च कर रही है। इसलिए उसको इस शहर में अपने विश्वविद्यालय के कुछ लोगों को छोड़कर, और किसी का अता पता नहीं है, और न जान पहचान!
बड़ी आनाकानी और मेरी विनती करने के बाद आखिरकार पुलिस रिपोर्ट दर्ज करने को तैयार हुई। उन्होंने मुझसे गैबी के बारे में सारी जानकारी ली। भारतीय पुलिस का अंदाज़ और रवैया दोस्ताना नहीं होता। आपको पुलिस स्टेशन में बैठने को पूछ लें, वही बहुत बड़ी बात हो जाती है। इसलिए, मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ जब पुलिस के कुछ लोग मुझसे बड़ी सहानुभूति से बात कर रहे थे। निश्चित रूप से कुछ तो गड़बड़ था। उन्होंने मुझसे पूछा कि मेरी पत्नी यूनिवर्सिटी से घर कैसे आती जाती है, तो मैंने बताया कि वह आमतौर पर सिटी बस का इस्तेमाल करती है।
इतना सुन कर वो सभी कुछ देर के लिए चुप हो गए। जब मैंने ज़ोर दे कर पूछा कि आखिर बात क्या है, वो उन्होंने जो कहा, उससे मुझे लगा कि जैसे मेरे सर पर कोई बम गिर गया हो! उन्होंने बताया कि कुछ घंटों पहले एक बस की दुर्घटना हो गई थी, जिसमें दो महिलाओं सहित पाँच लोगों की मौत हो गई थी, कई अन्य लोग गंभीर रूप से घायल हो गए थे।
मरने वाली महिलाओं में एक विदेशी भी थी!
वो जितना मुझे बताते जाते, उतना ही मेरा दिल भारी होता जाता। वो मुझे कुछ पूछ रहे थे, और मैं उनको यंत्रवत सब बता रहा था। लेकिन मस्तिष्क में मानों एक झंझावात चल रहा था -
‘गैबी मुझे ऐसे कैसे छोड़ कर जा सकती है…’ अभी तो हमने साथ में जीना शुरू भी नहीं किया, और अभी ही ये!
मुझसे जानकारी लेने के कोई एक घंटे बाद एक इंस्पेक्टर ने अंततः पुष्टि करी कि मेरी गैबी वास्तव में उन दो महिलाओं में से एक थी, जिनकी उस बस दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी!
मैं आपको कोई रक्तरंजित विवरण नहीं देना चाहता! लेकिन मेरी सुंदर सी गैबी का बेजान, विकृत, और कुचला हुआ शरीर देखना, मेरी आत्मा को झकझोर देने वाला दृश्य था! मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरी ही जिंदगी ने मेरा शरीर छोड़ दिया है... जैसे गैबी के साथ मेरी खुद की संजीवनी चली गई हो। मैं अपने घुटनों के बल गिर गया और रोने लगा। पुलिस और मुर्दाघर के लोग मुझे सांत्वना देते रहे, और पूछने लगे कि क्या कोई है जिससे वे संपर्क कर सकते हैं, या मुझे सहारा देने के लिए बुला सकते हैं। जब मैं जवाब नहीं दे सका, तो उन्होंने खुद मेरी जेब की तलाशी ली, और डैड का फ़ोन विवरण ले कर उनको कॉल किया। यह खबर सुन कर डैड और माँ का क्या हाल हुआ होगा, मुझे नहीं मालूम! एक झटके से मेरी जीवन की ज्योति जाती रही - गैबी और हमारा होने वाला बच्चा! होनी कितनी क्रूर हो सकती है और जीवन कितना क्षणभंगुर!
उसके बाद और क्या क्या हुआ, मुझे ठीक से याद नहीं।