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नींव - शुरुवाती दौर - Update 2
हमारे नेचुरल रहन सहन ही आदतों और मेरे माँ और डैड के स्वभाव और व्यवहार का मुझ पर कुछ दिलचस्प प्रभाव पड़ा। काफ़ी सारे अन्य निम्न मध्यमवर्गीय परिवारों के जैसे ही, जब मैं छोटा था, तो मेरे माँ और डैड मुझे नहाने के बाद, जब तक बहुत ज़रूरी न हो तब तक, कपड़े नहीं पहनाते थे। इसलिए मैं बचपन में अक्सर बिना कपड़ों के रहता था, ख़ास तौर पर गर्मियों के मौसम में। जाड़ों में भी, डैड को जब भी मौका मिलता (खास तौर पर इतवार को) तो मुझे छत पर ले जा कर मेरी पूरी मालिश कर देते थे और धूप सेंकने को कहते थे। बारिश में ऐसे रहना और मज़ेदार हो जाता है - जब बारिश की ठंडी ठंडी बूँदें शरीर पर पड़ती हैं, और बहुत आनंद आता है। अब चूँकि मुझे ऐसे रहने में आनंद आता था, इसलिए माँ और डैड ने कभी मेरी इस आदत का विरोध भी नहीं किया। मैं उसी अवस्था में घर के चारों ओर - छत और यहाँ तक कि पीछे के आँगन में भी दौड़ता फिरता, जहाँ बाहर के लोग भी मुझे देख सकते थे। लेकिन जैसा मैंने पहले भी बताया है कि अगर निम्न मध्यमवर्गीय परिवार के बच्चे ऐसे रहें तो कोई उन पर ध्यान भी नहीं देता। खैर, जैसे जैसे मैं बड़ा होने लगा, वैसे वैसे मेरी यह आदत भी कम होते होते लुप्त हो गई। वो अलग बात है कि मेरे लिए नग्न रहना आज भी बहुत ही स्वाभाविक है। इसी तरह, मेरे माँ और डैड का स्तनपान के प्रति भी अत्यंत उदार रवैया था। मेरे समकालीन सभी बच्चों की तरह मुझे भी स्तनपान कराया गया था। सार्वजनिक स्तनपान को लेकर आज कल काफी हंगामा होता रहता है। सत्तर और अस्सी के दशक में ऐसी कोई वर्जना नहीं थी। घर पर मेहमान आए हों, या जब माँ घर के बाहर हों, अगर अधिक समय लग रहा होता तो माँ मुझे स्तनपान कराने में हिचकिचाती नहीं थीं। जब मैं उम्र के उस पड़ाव पर पहुँचा जब अधिकांश बच्चे अपनी माँ का दूध पीना कम कर रहे या छोड़ रहे होते, तब भी मेरी माँ ने मुझे स्तनपान कराते रहने में कोई बुराई नहीं महसूस की। डैड भी इसके ख़िलाफ़ कभी भी कुछ नहीं कहते थे। दिन का कम से कम एक स्तनपान उनके सामने ही होता था। मुझे बस इतना कहना होता था कि ‘माँ मुझे दूधु पिला दो’ और माँ मुझे अपनी गोदी में समेट, अपना ब्लाउज़ खोल देती। यह मेरे लिए बहुत ही सामान्य प्रक्रिया थी - ठीक वैसे ही जैसे माँ और डैड के लिए चाय पीना थी! मुझे याद है कि मैं हमेशा ही माँ के साथ मंदिरों में संध्या पूजन के लिए जाता था। वहाँ भी माँ मुझे दूध पिला देती थीं। अन्य स्त्रियाँ मुझे उनका दूध पीता देख कर मुस्करा देती थीं। मेरा यह सार्वजनिक स्तनपान बड़े होने पर भी जारी रहा। माँ उस समय दुबली पतली, छरहरी सी थीं, और खूब सुन्दर लगती थीं। उनको देख कर कोई कह नहीं सकता था कि उनको इतना बड़ा लड़का भी है। अगर वो सिंदूर और मंगलसूत्र न पहने हों, तो कोई उनको विवाहिता भी नहीं कह सकता था।
एक बार जब माँ मुझे दूध पिला रही थीं, तब कुछ महिलाओं ने उससे कहा कि अब मैं काफी बड़ा हो गया हूँ इसलिए वो मुझे दूध पिलाना बंद कर दें। नहीं तो उनके दोबारा गर्भवती होने में बाधा आ सकती है। उन्होंने इस बात पर अपना आश्चर्य भी दिखाया कि उनको इतने सालों बाद भी दूध बन रहा था। माँ ने कुछ कहा नहीं, लेकिन मैं मन ही मन कुढ़ गया कि दूध तो मेरी माँ पिला रही हैं, लेकिन तकलीफ़ इन औरतों को हो रही है। उस रात जब हम घर लौट रहे थे, तो माँ ने मुझसे कहा कि अब वो सार्वजनिक रूप से मुझको दूध नहीं पिला सकतीं, नहीं तो लोग तरह तरह की बातें बनाएंगे। चूँकि स्कूल के सभी माता-पिता एक दूसरे को जानते थे, इसलिए अगर किसी ने यह बात लीक कर दी, तो स्कूल में मेरे सहपाठी मेरा मज़ाक बना सकते हैं। लेकिन उन्होंने कहा कि घर पर, जब बस हम सभी ही हों, तो वो मुझे हमेशा अपना दूध पिलाती रहेंगीं। वो गाना याद है - ‘धरती पे रूप माँ-बाप का, उस विधाता की पहचान है’? मेरा मानना है कि अगर हमारे माता-पिता भगवान् का रूप हैं, तो माँ का दूध ईश्वरीय प्रसाद, या कहिए कि अमृत ही है। माँ का दूध इतना लाभकारी होता है कि उसके महिमा-मण्डन में तो पूरा ग्रन्थ लिखा जा सकता है। मैं तो स्वयं को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे माँ का अमृत स्नेह इतने समय तक मिलता रहा। मेरा दैनिक स्तनपान तब तक जारी रहा जब तक कि मैं लगभग दस साल का नहीं हो गया। तब तक माँ को अधिक दूध बनना भी बंद हो गया था। अब अक्सर सिर्फ एक-दो चम्मच भर ही निकलता था। लेकिन फिर भी मैंने मोर्चा सम्हाले रखा और स्तनपान जारी रखा। मेरे लिए तो माँ की गोद में सर रखना और उनके कोमल चूचक अपने मुँह में लेना ही बड़ा सुकून दे देता था। उनका मीठा दूध तो समझिए की तरी थी।
मुझे आज भी बरसात के वो दिन याद हैं जब कभी कभी स्कूल में ‘रेनी-डे’ हो जाता और मैं ख़ुशी ख़ुशी भीगता हुआ घर वापस आता। मेरी ख़ुशी देख कर माँ भी बिना खुश हुए न रह पातीं। मैं ऐसे दिनों में दिन भर घर के अंदर नंगा ही रहता था, और माँ से मुझे दूध पिलाने के लिए कहता था। पूरे दिन भर रेडियो पर नए पुराने गाने बजते। उस समय रेडियो में एक गाना खूब बजता था - ‘आई ऍम ए डिस्को डांसर’। जब भी वो गाना बजता, मैं खड़ा हो कर तुरंत ठुमके मारने लगता था। रेनी-डे में जब भी यह गाना बजता, मैं खुश हो कर और ज़ोर ज़ोर से ठुमके मारने लगता था। मेरा मुलायम छुन्नू भी मेरे हर ठुमके के साथ हिलता। माँ यह देख कर खूब हँसतीं और उनको ऐसे हँसते और खुश होते देख कर मुझे खूब मज़ा आता।
माँ मुझे दूध भी पिलातीं, और मेरे स्कूल का काम भी देखती थीं। यह ठीक है कि उनकी पढ़ाई रुक गई थी, लेकिन उनका पढ़ना कभी नहीं रुका। डैड ने उनको आगे पढ़ते रहने के लिए हमेशा ही प्रोत्साहित किया, और जैसे कैसे भी कर के उन्होंने प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में ग्रेजुएट की पढ़ाई पूरी कर ली थी। कहने का मतलब यह है कि घर में बहुत ही सकारात्मक माहौल था और मेरे माँ और डैड अच्छे रोल-मॉडल थे। मुझे काफ़ी समय तक नहीं पता था कि माँ-डैड को मेरे बाद कभी दूसरा बच्चा क्यों नहीं हुआ। बहुत बाद में ही मुझे पता चला कि उन्होंने जान-बूझकर फैसला लिया था कि मेरे बाद अब वो और बच्चे नहीं करेंगे। उनका पूरा ध्यान बस मुझे ही ठीक से पाल पोस कर बड़ा करने पर था। जब संस्कारी और खूब प्रेम करने वाले माँ-बाप हों, तब बच्चे भी उनका अनुकरण करते हैं। मैं भी एक आज्ञाकारी बालक था। पढ़ने लिखने में अच्छा जा रहा था। खेल कूद में सक्रीय था। मुझमे एक भी खराब आदत नहीं थी। आज्ञाकारी था, अनुशासित था और स्वस्थ था। टीके लगवाने के अलावा मैंने डॉक्टर का दर्शन भी नहीं किया था।
हाई-स्कूल में प्रवेश करते करते मेरे स्कूल के काम (मतलब पढ़ाई लिखाई) के साथ-साथ मेरे संगी साथियों की संख्या भी बढ़ी। इस कारण माँ के सन्निकट रहने का समय भी घटने लगा। सुन कर थोड़ा अजीब तो लगेगा, लेकिन अभी भी मेरा माँ के स्तन पीने का मन होता था। वैसे मुझे अजीब इस बात पर लगता है कि आज कल के बच्चे यौन क्रिया को ले कर अधिक उत्सुक रहते हैं। मैं तो उस मामले में निरा बुध्दू ही था। और तो और शरीर में भी ऐसा कोई परिवर्तन नहीं हुआ था। एक दिन मैं माँ की गोद में सर रख कर कोई पुस्तक पढ़ रहा था कि मुझे माँ का स्तन मुँह में लेने की इच्छा होने लगी। माँ ने मुझे याद दिलाया कि मेरी उम्र के बच्चे अब न तो अपनी माँ का दूध पीते हैं, और न ही घर पर नंगे रहते हैं। ब्लाउज के बटन खोलते हुए उन्होंने मुझसे कहा कि हाँलाकि उनको मुझे दूध पिलाने में कोई आपत्ति नहीं थी, और मैं घर पर जैसा मैं चाहता वैसा रह सकता था, लेकिन वो चाहती थीं कि मैं इसके बारे में सावधान रहूँ। बहुत से लोग मेरे व्यवहार को नहीं समझेंगे। मैं यह तो नहीं समझा कि माँ ऐसा क्यों कह रही हैं, लेकिन मुझे उनकी बात ठीक लगी। कुल मिला कर हमारी दिनचर्या नहीं बदली। जब मैं स्कूल से वापस आता था तब भी मैं माँ से पोषण लेता था। वास्तव में, स्कूल से घर आने, कपड़े उतारने, और माँ द्वारा अपने ब्लाउज के बटन खोलने का इंतज़ार करना मुझे अच्छा लगता था। माँ इस बात का पूरा ख़याल रखती थीं कि मेरी सेहत और पढ़ाई लिखाई सुचारु रूप से चलती रहे। कभी कभी, वो मुझे बिस्तर पर लिटाने आती थी, और जब तक मैं सो नहीं जाता तब तक मुझे स्तनपान कराती थीं। ख़ास तौर पर जब मेरी परीक्षाएँ होती थीं। स्तनपान की क्रिया मुझे इतना सुकून देती कि मेरा दिमाग पूरी तरह से शांत रहता था। उद्विग्नता बिलकुल भी नहीं होती थी। इस कारण से परीक्षाओं में मैं हमेशा अच्छा प्रदर्शन करता था। अब तक माँ को दूध आना पूरी तरह बंद हो गया था। लेकिन मैंने फिर भी माँ से स्तनपान करना और माँ ने मुझे स्तनपान कराना जारी रखा। मुझे अब लगता है कि मुझे अपने मुँह में अपनी माँ के चूचकों की अनुभूति अपार सुख देती थी, और इस सुख की मुझे लत लग गई थी। मुझे नहीं पता कि माँ को कैसा लगता होगा, लेकिन उन्होंने भी मुझे ऐसा करने से कभी नहीं रोका। हाँ, गनीमत यह है कि उस समय तक मेरा घर में नग्न रहना लगभग बंद हो चुका था।
Congrats Avsji for starting this story which mirrors your english Story "My Experience with Love". Hope this will be as erotic and sexy as that one.
Look forward to enjoying this story as well....Thanks.
Thanks..looking forward to reading (& hopefully commenting) on your story as well..thanks.This will be even better than that.![]()