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और आपकी यह कहानी निःशब्द, जैसा शीर्षक वैसी ही पढ़ने के बाद मेरी प्रतिक्रिया।
बिल्कुल दिल बैठ सा गया था, मंगल के साथ हुई अमंगल घटना को पढ़के।
जबकि उसको पता है की दोनो मतलब उसकी होने वाली सास और दादी सास की घर गृहस्थी अलग है।ख़ैर, अब रचना के दृष्टिकोण से सोचिए - एक नई आती लड़की को यही लगेगा न कि उसके प्रभाव से कहीं अधिक प्रभाव एक कामवाली का है - उसके पति पर!
और यह बात अच्छी तो नहीं ही लगने वाली है। प्रतिद्वंद्विता वाली भावना आनी स्वाभाविक ही है।
और शादी के बाद क्या होता, वो अभी से ही सोच रही थी, जबकि घर में वो मालकिन ही होतीतो रुपए पैसे वाला चक्कर नहीं था - मालिकान हक़ वाली बात थी। ऐश्वर्य वाली बात थी! संपन्न होना एक बात है, ऐश्वर्यपूर्ण धनाढ्य होना अलग बात है!
वैसे, कुछ लोग होते हैं जिनको लगता है कि उनको सब कुछ मिलना चाहिए ही। अपने आस पास नज़र उठा कर देख लें, एक नहीं दर्जनों उदाहरण मिल जाएँगे आपको।
एक तरह से रचना भी उन्ही लोगों में थीं।
कई कारण है, और सबसे बड़ी ये कि अमर के परिवार में कई ऐसे कारण है जिनको कोई भी इतनी आसानी से स्वीकार नहीं कर सकता, जितनी आसानी से रचना स्वीकार ही नही अंगीकार भी कर रही थी।भाई - हा हा हा! हाँ, आपको और अन्य कई पाठकों को रचना पर शक तो था।
Sir main bharosa karne ka mana nahi kar rha, lekin itna adhik bharosa ki karna ki bad main apke pariwar ko dukh ho kya kye sahi hai ?
जबकि उसको पता है की दोनो मतलब उसकी होने वाली सास और दादी सास की घर गृहस्थी अलग है।
और शादी के बाद क्या होता, वो अभी से ही सोच रही थी, जबकि घर में वो मालकिन ही होती
कई कारण है, और सबसे बड़ी ये कि अमर के परिवार में कई ऐसे कारण है जिनको कोई भी इतनी आसानी से स्वीकार नहीं कर सकता, जितनी आसानी से रचना स्वीकार ही नही अंगीकार भी कर रही थी।
समझ सकता हूं रचना का दृष्टिकोण, इनसेक्योरिटी बड़ी कुत्ति चीज़ है, अच्छे अच्छों का दिमाग खराब कर देती।इनसेक्योर लड़की है वो। जब सम्भावना दिखती है, तो इस बात की इन्सेक्योरिटी आ गई कि कहीं सब हाथ से निकल न जाए!
उस कारण से उसने ऐसी ऐसी हरकतें कर दीं, जो उसको नहीं करनी चाहिए थी।
हाँ - अमर का परिवार कुछ ऐसा है कि कोई इतनी आसानी से उसको स्वीकार नहीं सकता।
रचना के सहर्ष स्वीकृति का कारण संदेहास्पद तो था।
समझ सकता हूं रचना का दृष्टिकोण, इनसेक्योरिटी बड़ी कुत्ति चीज़ है, अच्छे अच्छों का दिमाग खराब कर देती।
अमर का परिवार एक अलग ही दुनिया में बसता है, इसमें शामिल होना कोई साधारण व्यक्ति का काम नहीं।
वैसे अब मुझे अमर का भला 3 साल बाद ही दिख रहा है।इनसेक्योर लड़की है वो। जब सम्भावना दिखती है, तो इस बात की इन्सेक्योरिटी आ गई कि कहीं सब हाथ से निकल न जाए!
उस कारण से उसने ऐसी ऐसी हरकतें कर दीं, जो उसको नहीं करनी चाहिए थी।
हाँ - अमर का परिवार कुछ ऐसा है कि कोई इतनी आसानी से उसको स्वीकार नहीं सकता।
रचना के सहर्ष स्वीकृति का कारण संदेहास्पद तो था।
Avsji, काफी दिनों बाद आया तो पता चला कहानी काफी अलग मोड़ ले चुकी है। जैसा मेरी आशंका थी रचना को लेकर वही हुआ। अब ये जानना इंटरस्टिंग होगा की आगे क्या मोड़ आता हैं।
और एक खुश खबरी हैं जैसा कि मेने आपको बताया था पिछली बार की नौकरी की समस्या थी तो अब मुझे एक बड़ी MNC में अच्छी नौकरी मिल गई है और सैलरी पैकेज भी बढ़िया हैं। सौतेली बहनें पैसों को लेकर झगड़ा कर रही है वो भी काफी हद तक सॉर्ट आउट कर दिया हैं।
पर कहते हैं ना की खुशी ज्यादा कहा टिकती हैं। नौकरी मिली उसके दूसरे दिन ही माताजी की तबीयत बहुत बिगड़ गई और ब्रेन ट्यूमर निकला। शुक्र है अभी खतरे से बाहर है पर आईसीयू में हैं। आगे किसी बच्चे की तरह उनकी देखभाल की आवश्यकता रहेगी।