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nice update..!!नया सफ़र - लकी इन लव - Update #12
इतना कह कर जयंती दी उठीं, और दूसरे कमरे में जाने लगीं। मैंने उनको उठते हुए देखा। मैं आश्चर्यचकित था कि जयंती दी हमको सेक्स करने के लिए कह रही थीं। यह एक अभूतपूर्व सी बात थी! वो कैसे हम दोनों के मन की बात यूँ समझ गईं! समझ गईं तो समझ गईं, लेकिन वो हमको हमारी इच्छाओं की पूर्ति करने के लिए प्रोत्साहित भी कर रही थीं! इसके पहले केवल माँ ही मुझको ऐसे करने के लिए कहती थीं। जयंती दी की इस बात ने मेरे शरीर में उत्तेजना की एक अबूझ सी झुनझुनी फैला दी! मेरा लिंग तेजी से खड़ा होने लगा। तब तक जयंती दी दूसरे वाले कमरे में चली गई थीं। देवयानी उनकी बात पर बेहद शर्मिंदा हो गई थी - यह कोई कहने वाली बात नहीं है।
“अरे दीदी, रुको तो!” देवयानी ने उनसे कहा।
“पिंकी, शरमाओ मत! ... तुम कर लो! मैं यहीं बगल वाले कमरे में हूँ!” जयंती दीदी ने मुस्कुराते हुए कहा, “आई नो कि तुम्हारा मन है! इसलिए शरमाओ मत!”
इतना कह कर जयंती दीदी कमरे से बाहर चली गईं। दीदी के जाते ही मैंने उनकी अनुमति पर क्रियान्वयन करना शुरू कर दिया।
“जानेमन...” मैंने हाथ बढ़ा कर डेवी का एक स्तन छुआ।
“धत्त! बदमाश!” डेवी ने हँसते हुए मेरे हाथ पर एक चपत लगाई!
“अरे, धत्त काहे को? अब तो दीदी ने भी हमको ‘नो ऑब्जेक्शन सर्टिफ़िकेट’ दे दिया है! आओ, करें।” मैं फुसफुसाया; साथ ही साथ उसके ब्लाउज के ऊपर से उसके स्तन को थोड़ा दबाया।
“क्या करना चाहते हैं, सिंह साहब?” डेवी ने हँसते हुए मुझे छेड़ा।
“तुम्हारे साथ एक हॉट सेक्स!” मैंने भी बेशर्मी से कहा।
“धत्त! पागल हो गए हो क्या? दीदी बगल में ही हैं। उनके रहते हुए मैं ऐसा कुछ नहीं कर सकती!” डेवी ने मुस्कुराते, शरमाते हुए कहा; लेकिन वो शरारत से मुस्कुराते हुए मेरे पीछे देख रही थी कि जयंती दी वाकई दूसरे कमरे में चली गई कि नहीं!
“अरे यार! ऐसे मत करो! चलो न! बहुत मन हो रहा है!”
“कहाँ चलना है?”
“कहीं नहीं! बस यहीं बैडरूम में! वहीं कर लेंगे! बहुत मन हो रहा है!”
“कर लेंगे? क्या कर लेंगे? किस बात का मन हो रहा है?” डेवी ने मुझे छेड़ते हुए कहा।
“तुम्हारा बाजा बजाने का मेरी जान!” मैंने भी डेवी को छेड़ा।
“हट्ट! बद्तमीज़!”
“अरे कर लो! नहीं तो ये सूज जाएगी और दर्द करेगी!”
“सूज जाएगी नहीं, सूज गई है!” डेवी ने शर्माते हुए कहा।
“इसीलिए तो! एक बार और कर दूँगा तो दर्द कम हो जायेगा, और तुमको अच्छा लगेगा। थोड़ी राहत भी मिलेगी!” मैं हँसा।
“हा हा हा!” डेवी भी जानती थी कि यह केवल एक बहाना था, “तुम्हारा तो बस एक ही, युनी-डायरेक्शनल चलता रहता है!”
“तुम कहो तो बाई-डायरेक्शनल चला दूँ?” डेवी का मंतव्य कुछ और था, लेकिन मैंने उसकी ही बात को द्विअर्थी बना दिया। उसको समझ नहीं आया, लेकिन बात आई गई हो गई।
उसने नीचे देखा और पाया कि मेरा लिंग मेरे शॉर्ट्स के सामने वाले हिस्से पर ज़ोर से दबाव डाल रहा है।
“वाह, सिंह साहब तो पूरी तरह तैयार हैं!” उसने मेरे लिंग पर गुदगुदी गुदगुदी करते हुए, एक दबी हुई हँसी निकाली।
मैं कराह उठा, “हाँ! और नहीं तो क्या!”
“अले मेले बच्चे को मेले शाथ शेक्श कलना है!”
वो मुझको छेड़ने की गरज से तुतला कर बोली। लेकिन मैंने उसको अनसुना कर दिया।
डेवी को अपनी बाँहों में खींचकर, मैंने उसे चूमा और अपने नितंबों को उसकी श्रोणि पर रगड़ा, जिससे वो मेरे लिंग के स्तम्भन को अपनी योनि पर महसूस कर सके। हम दोनों बहुत देर कर चूमते रहे; हमारी जीभें एक-दूसरे के मुँह को किसी पुरातत्ववेत्ता के समान खोजती रहीं - कोमलता से, लेकिन पूरे ढंग से! कुछ देर के बाद हम दोनों को ही साँस लेने में दिक्कत होने लगी, लिहाज़ा हमने चुम्बन तोड़ा।
“आह!” डेवी को अपने चूचक कठोर होते हुए महसूस होने लगे; उसने हाँफते हुए कहा, “एक तो आप खुद बदमाश हैं, और अब मुझे भी अपनी बदमाशियाँ सिखाते रहते हैं!”
“मेरी जान, बदमाशी करने में ही तो मज़ा है!” मैंने डेवी को छेड़ते हुए कहा, “चलिए जल्दी से बैडरूम में! थोड़ी और बदमाशियाँ करते हैं।”
मैंने डेवी का हाथ थाम लिया और उसे ‘हमारे’ शयनकक्ष में ले जाने लगा।
हमने अपने पीछे कमरे का दरवाजा बंद नहीं किया, और जल्दी जल्दी एक दूसरे के कपड़े उतारने लगे। जब मैंने अपने शॉर्ट्स को नीचे खींचा, तो मेरे लिंग को देख कर डेवी बोली,
“हाय भगवान्!!” डेवी शरमा गई, और मेरे स्तम्भन को अपनी मुट्ठी में पकड़ते हुए बोली, “तुम वाकई बहुत शरारती हो गए हो!”
“सब तुम्हारी गलती है।” मैं मुस्कुराया, उसके पास बैठ गया।
“हम्म.... सब अच्छी चीजें मेरी ही गलती हैं!” डेवी ने मुस्कुराते हुए कहा।
वो इस बात पर अचंभित थी कि मेरे लिंग की मोटाई पर उसकी मुट्ठी बंद होने के बाद भी, कम से कम एक उंगली की जगह छूट गई थी। जाहिर ही बात है, मेरा लिंग मोटा तो था! अंततः, अनायास ही सही, डेवी मेरे लिंग की नाप-तौल कर रही थी!
“ओह गॉड! ये तो मेरी कलाई से भी मोटा है।” उसने अंत में बोल ही दिया।
“अरे! अभी क्यों शर्मा रही हो? कल तो इसको पूरे का पूरा निगल लिया था तुमने! भूल गई?”
मैंने चुटकी ली, और उसकी चड्ढी को नीचे सरकाने लगा।
डेवी शर्म से लाल हो गई, और चंचलता से उसने मेरे गाल पर एक चपत लगाई, “मैंने इसे निगला नहीं था। तुमने ही इसको जबरदस्ती मेरे अंदर ठेल दिया था।”
डेवी शिकायत तो कर रही थी, लेकिन साथ ही साथ वो मुझे अपनी ब्लाउज उतरवाने में मदद भी कर रही थी।
“जबरदस्ती?”
“और नहीं तो क्या! अपनी बातों में बहका कर, अपनी मन मर्ज़ी कर ली मेरे साथ!”
“तुम्हारे मन का नहीं हुआ क्या?”
डेवी ने मुस्कुराते हुए ‘न’ में सर हिलाया!
“कोई बात नहीं,” मैं भी कहाँ मैदान छोड़ने वाला था, “आज करते हैं सब कुछ तुम्हारी मन मर्ज़ी का!”
डेवी की मुस्कान अब और चौड़ी हो गई थी - उसके सुन्दर से दाँत चमकने लगे।
“क्या तुम नहीं चाहती हो कि मैं फिर से वही सब कुछ करूँ, जो कल किया था?” मैंने पूछा - नहीं, पूछा नहीं, केवल कहा!
अब तक डेवी पूरी तरह से नग्न हो कर मेरे सामने बैठी हुई थी। सच में, उसका सुस्वादु नग्न शरीर, खुद ही एक स्वादिष्ट और शानदार व्यंजन जैसा लग रहा था, जिसको बस तुरंत ही खा लेने की इच्छा हो रही थी।
मैंने डेवी को अपनी ओर खींचा और उसके स्तनों के बीच उसकी छाती पर चूम लिया!
“नोओओओ...” डेवी बड़ी अदा से इठलाई।
“मेरी जान, मैं तो कल से ही तुमको फिर से चोदने का इंतज़ार कर रहा हूँ।” मैंने आहें भरते हुए उसे बिस्तर पर नीचे धकेल दिया।
“गंदे कहीं के!”
“अरे, गन्दा क्यों?” मैंने डेवी की जाँघें खोलते हुए कहा।
“कैसा कैसा बोलते हो?”
“देसी आदमी हूँ, इसलिए चोदूँगा... विदेशी होता, तो फ़क करता!” मैंने हँसते हुए कहा।
मैंने उसकी योनि की ओर देखा - उसके भगोष्ठ कल के सम्भोग की रगड़ के कारण, आज सूजे हुए लग रहे थे। मेरा संदेह सही था। लेकिन क्या करें, मज़ा करना है तो इतना कुछ तो बर्दाश्त करना ही पड़ेगा उसको, और मुझको भी! डेवी का दर्द, मेरा भी तो दर था! डेवी ने मुझे उसको बड़ी दिलचस्पी से देखते हुए देखा, और अपनी जाँघों को फैलाना जारी रखा। उसका योनि-मुख कामुक गीलेपन से चमक रहा था। जाँघें फैलाते समय, प्रारंभ में, डेवी के माँसल भगोष्ठ आपस में चिपके हुए थे, लेकिन जैसे-जैसे वो अपनी जाँघें और फैलाती गई, उसके होंठ एक दूसरे से अलग हो गए और उसकी मुझको ग्रहण करने को तैयार, फिसलन से भरी, सँकरी प्रेम-सुरँग दिखाई देने लगी।
“योर पुसी इस सो ब्यूटीफुल!” मैंने उसकी सुंदरता की प्रशंसा करी!
डेवी अपनी प्रशंसा पर मुस्कुराई।
“कल मेरे ब्रेस्ट्स सुन्दर थे, और आज मेरी पुसी?” उसने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “क्या चक्कर है ठाकुर साहब? आप अपने मतलब के हिसाब से मेरी बढ़ाई करते हैं?”
“मतलब तो मुझे तुमसे पूरे से ही है! और तुम पूरी कमाल की हो! आई ऍम सो लकी!”
उसने मुस्कुरा कर मेरी ओर देखा, “आई ऍम आल्सो लकी! कुछ दिनों पहले तक तो मैं सोचती भी नहीं थी की इस लाइफ में मुझे किसी से मोहब्बत भी होगी! लेकिन तुम... तुम आए और सब कुछ बदल गया!”
मैंने इस बात पर डेवी को चूम लिया - मैं भी तो यही सब सोचता था! प्यार तो एक बार ही होता है न? लेकिन शायद मैं ग़लत था - कुछ लोग ख़ुशक़िस्मत होते हैं! मैं भी उनमे से एक था।
“सच में,” डेवी अपनी सोच में डूबते हुए बोली, “जो भी कुछ मेरे साथ हुआ, वो मैं कुछ भी सोच ही नहीं सकती थी!”
फिर जैसे वो अपनी सोच से बाहर निकलती हुई और मुस्कुराती हुई बोली, “पहले तो अपने छोटे भाई जैसे लड़के से प्यार हो गया,”
मैंने उसकी इस बात पर चौंकने का अभिनय करते हुए उसके एक चूचक पर हलके से चिकोटी काट ली! डेवी मेरी इस हरकत पर हँसते हुए आगे बोली, “और अब अपनी बड़ी बहन के सामने ही सेक्स कर रही हूँ!”
“अभी कहाँ? कुछ ही देर में!” मैंने शरारत से कहा।
डेवी ने फिर मेरे लिंग की ओर देखा - अब तक ये वापस अपने पूरे आकार में आ गया था। मेरे शरीर की हरकतों पर वो किसी मत्त हाथी के समान झूल रहा था!
“मैं सोच भी नहीं सकती थी, कि ये मेरे अंदर फिट भी हो पाएगा,” डेवी फुसफुसाते और सकुचाते हुए बोली, “लेकिन हो गया! ... न जाने कैसे!”
“रिमार्केबल! है ना?” मैंने डेवी की ही तर्ज़ पर कहा, “कि तुम्हारी इस नन्ही सी चूत ने इसको पूरे का पूरा निगल लिया!”
मेरे मज़ाक पर डेवी ने मेरे लिंग पर एक चिकोटी काट ली।
“आऊ!”
मैंने अपने लिंग को अपने हाथ में पकड़ लिया, और धीरे धीरे से उसके पूरी तरह से गीले हो चले चीरे पर फिराया। एक बार लिंग का सिरा गीला हो गया, तो मैंने अपने उसको डेवी की योनि के नरम, गीले होंठों के बीच में नीचे रखा और धीरे-धीरे धड़कते हुए अंग को नीचे की ओर धकेलने लगा।
“ओह गॉड,” डेवी ने हांफते हुए महसूस किया कि मेरा लिंग उसके अंदर फिसलते हुए प्रवेश कर रहा है, “तुम सच में बहुत बड़े हो।”
“ओह!” मैं उसकी गर्म और मखमली कोमलता में अपनी लंबाई को प्रविष्ट करने के लिए सावधानी से जोर देकर कराह उठा, “बहुत अच्छा लगता है तुम्हारे अंदर मेरी जान!!”
“गॉड! हाँ! मुझे भी ये मेरे अंदर अच्छा लगता है!” डेवी ने हांफते हुए कहा - जब उसने मेरी पूरी लंबाई अपने अंदर महसूस की।
जब हम दोनों की श्रोणियाँ आपस में चुम्बन लेने लगीं, तब हम दोनों ही कामुकता से हांफने लगे!
“ओहहहह, आई लव द वे यू लव मी!”
जैसे ही मैं उसकी योनि से अंदर और बाहर खिसकने लगा, डेवी सहम गई। कल से ही हम दोनों ही काम की अगन में जल रहे थे। हमारे प्रथम सम्भोग की संतुष्टि इतनी अधिक थी कि उसने हमारी सम्भोग की भूख बढ़ा दी। अब हम जानते थे कि जब भी हम मिलेंगे, तो बिना सम्भोग किये हमारा कुछ होने वाला नहीं था। डेवी को यह समझ थी - इस कारण से वो हमारी सम्भोग की क्षुदा की तीव्रता से सहम गई।
इस बीच, दूसरे कमरे में जयंती दी बेचैन और जिज्ञासु थी। वो हमें बात करते हुए सुन सकती थी। वो जानना चाहती थी कि हम क्या कर रहे हैं। जयंती दी हमेशा से ही जिज्ञासु थी... हमेशा से ही शरारती। और उनको डेवी से बहुत प्यार भी था। दीदी ने कुछ देर तक इंतजार किया, और फिर धीरे से, दबे पाँव हमारे बेडरूम की ओर बढ़ी। कमरे के दरवाज़े पर पहुँचते ही उसने हमारी आवाज़ें सुनी और उत्सुकता से उसने अंदर की तरफ झाँका। सेक्स को स्वयं करना एक अलग बात है, और किसी अन्य को यह सब अपने सामने करते हुए देखना एक अलग बात है! खासकर तब, जब सेक्स करने वालों में से एक आपकी अपनी, छोटी बहन हो! जयंती दीदी ने जैसे ही अपने सामने का नज़ारा देखा, वो कल्पनातीत रूप से चौंक गई! उनको लगा कि जैसे एक पल के लिए उनके दिल ने धड़कना ही बंद कर दिया।
उनके सामने मैं उनकी प्यारी छोटी बहन की सवारी कर रहा था, और उसकी योनि के अंदर बाहर धक्के लगा रहा था। मेरे हर धक्के पर जिस तरह से मेरे और देवयानी के शरीरों की मांस-पेशियाँ तरंगित हो रही थीं, उसको देख कर जयंती दीदी के दिल की धड़कनें बढ़ गईं। और वो लज्जा और उत्तेजना से हाँफने लगीं! हमारा सम्भोग पूरी तरह से निर्लज्ज था - बिना किसी की परवाह किए हम दोनों ही एक दूसरे में मस्त थे - लगभग पाशविक उत्तेजना! हम दोनों के शरीर जहाँ जुड़े हुए थे, जयंती दी वहाँ से अपनी आँखें ही नहीं हटा पा रही थी! मेरा लिंग, उनकी छोटी बहन की अनुमति और सहर्ष इच्छा से उसकी योनि के अंदर - बाहर शक्तिशाली रूप से फिसल रहा था! प्रत्येक धक्के के साथ, मेरे अंडकोष देवयानी के नितंबों पर थपकी मार रहे थे। जयंती दीदी मेरे लिंग के आकार पर भी चकित थी। उनके पति का लिंग मेरे लिंग के माप से छोटा था। यह सब देख कर उनको देवयानी की किस्मत से ईर्ष्या भी हुई, और ख़ुशी भी! सबसे आश्चर्य वाली बात यह थी कि हमको यौनाचार करते देख कर वो भी उत्तेजित हो गई थी। लेकिन फिर उनको इस बात पर शर्मिंदगी महसूस हुई कि वो हमें ऐसी अंतरंग अवस्था में देख रही हैं, और प्रतिक्रिया में उत्तेजित भी हो रही हैं। फिर अचानक ही - लेकिन मन मार कर - उन्होंने हमें देखना बंद कर दिया, और बड़ी अनिच्छा से वो दूसरे कमरे में चली गईं।
दूसरी ओर, मैं अपने हर धक्के के साथ, खुद को डेवी के अंदर जितना संभव हो सके, उतना अंदर ले जाने का प्रयास कर रहा था। यह एक तरीके का शैतानी भरा खेल था - जिसको देवयानी भी समझ रही थी। कामोत्तेजना की पराकाष्ठा पर पहुँच कर भी वो इस बात को जानने के बाद अपना मुस्कुराना नहीं रोक सकी। उधर मैं हर धक्के पर हल्की सी गुर्राहट और कराह निकाल रहा था - कोई कुछ भी कहे - एक जोश भरे सम्भोग में ताक़त बहुत जाया होती है! देवयानी के अधिक से अधिक मज़ा दिलाने के लिए मैं अपने लिंग को उसके अंदर जितना हो सकता था, उतना गहरा घुसा रहा था। अंततः उसने अपने चरम पर पहुँच कर अपने पैरों को मेरी कमर के चारों ओर लपेट लिया, और मुझे अपनी योनि में और भी गहराई तक खींच लिया। आठ दस धक्कों के बाद मैंने भी अपना चरम प्राप्त कर लिया, लेकिन अभी भी धक्के लगाना बंद नहीं किया। उसकी वजह से मेरे लिंग की लम्बाई के इर्द गिर्द से मेरा वीर्य बाहर निकलने लगा। अब हर धक्के से मेरा वीर्य, और देवयानी के प्रेम-रस का मिश्रण बाहर आ रहा था। लेकिन फिर भी जब तक स्तम्भन में कठोरता थी, तब तक मैं धक्के लगाता रहा और अपना बीज उसके अंदर भरता - निकालता रहा; और फिर अंत में, उसके ऊपर ही गिर पड़ा।
इतने श्रमसाध्य सम्भोग के बाद मुझे थकावट सी महसूस होने लगी, और हम दोनों ही आलिंगनबद्ध हो कर बहुत देर तक आराम करने लगे! बिना कुछ बोले! सच में - सम्भोग के बाद अगर केवल उस अद्भुत अनुभूति का आनंद उठाया जाए, तो उसका आनंद और बढ़ जाता है! हाँलाकि मेरे लिंग का स्तम्भन कम हो गया था, लेकिन अभी भी मैं और डेवी अपने जननांगों से जुड़े हुए थे। एक हलकी सी भी हरकत से मैं उससे बाहर निकल सकता था। तो अंततः मेरा लिंग उसकी योनि से बाहर निकल ही गया। अब जब हमारा बंधन टूट गया, तो मैं बिस्तर से उठा और बाथरूम में जाकर खुद को साफ करने लगा। साफ़ सफाई के बाद, देवयानी को साफ करने के लिए मग में थोड़ा पानी और एक छोटा सा तौलिया लेकर वापस लौटा।
“इजैकुलेशन के बाद तुम्हारा छुन्नू कितना प्यारा सा लगता है, जानू!” उसने कहा और धीरे से हँसी, “उसके पहले ऐसा लगता है कि इसमें कितना गुस्सा भरा हुआ है... किसी गुण्डे जैसा! लेकिन उसके बाद! उसके बाद ये एक बहुत खुश, उछलता और कूदता हुआ बच्चे जैसा दिखता है। क्यूट!”
“तुमको कौन सा रूप पसंद है - गुण्डे वाला या बच्चे वाला?”
“दोनों!” वो प्यार से मुस्कुराई, “मुझे आप पसंद हैं, मेरी जान!”
मैं केवल मुस्कुराया। क्या कहूँ? मैंने देवयानी की योनि की साफ़ सफ़ाई करनी शुरू कर दी।
“मुझे नहीं लगता कि आपने पहले इस तरह का काम किया है?”
‘क्या कह रही थी?’ मुझे डेवी की बात समझ में नहीं आई।
“क्या मतलब है? मैं समझा नहीं!”
“मेरा मतलब है, सेक्स!” उसने शरमाते हुए कहा।
मैं हँसा - कैसी बुद्धू लड़की है - “मैं पहले एक शादीशुदा आदमी रह चुका हूँ, डेवी! याद है? आपको क्या लगता है कि एक शादीशुदा आदमी सेक्स नहीं करेगा, हम्म?”
“नहीं। मेरा मतलब... मेरा मतलब गैबी से नहीं था। मेरा मतलब है, दूसरी औरतों से था।”
“दूसरी औरतें? हा हा! किसी आदमी से उसके सेक्सुअल पास्ट के बारे में कभी मत पूछना,” मैं हँसा, “लेकिन मैं इस समय तुमको एक बात का आश्वासन ज़रूर दे सकता हूँ - मैं जब तक तुम्हारे साथ हूँ, तब तक केवल तुम्हारे साथ हूँ!”
“दिस इस क्रिप्टिक!” देवयानी ने मीठी शिकातय करी।
किसी भी सम्बन्ध में पूरी ईमानदारी आवश्यक है - मुझे यह बात समझ में पहले भी आती थी और अभी भी।
“डेवी, क्या तुमको कोई परेशानी होगी, या कोई ऑब्जेक्शन होगा, अगर मेरी गैबी के अलावा कोई और सेक्सुअल पार्टनर रही हो?”
“आई डोंट नो!” डेवी ने असमंजस से कहा, “हो सकता है! नहीं?”
“लेकिन आपने भी तो मेरे अलावा किसी और के साथ सेक्स किया है!”
“आई नो! आई थिंक... मुझे शिकायत नहीं होगी - बस एक जेलेसी (ईर्ष्या) वाली फीलिंग होगी कि मुझसे पहले, और गैबी के अलावा, किसी और ने भी आपके साथ इस अद्भुत अनुभव का मज़ा लिया है।”
“हा हा! अरे, यह बात तो मैं भी कह सकता हूँ, न।” मैं मुस्कराया।
“क्या आपको लगता है कि मेरे साथ सेक्स करना एक अद्भुत फीलिंग होती है?”
“बिल्कुल, डेवी! तुम्हारे साथ मुझे सेक्स करने में बहुत मज़ा आता है!” मैंने सहमति व्यक्त की, “और अब हम जल्दी ही एक साथ हो जाएँगे - मैं तो यही सोच सोच कर खुश होता रहता हूँ,” मैं रुका, और फिर आगे जोड़ा, “लेकिन ओनेस्टली, मुझे लगता है कि किसी वर्जिन लड़की को डिफ्लावर करने का अनुभव दिलचस्प होगा!”
मेरी बात पर डेवी ने मेरे कंधे पर चपत लगाई, “डिफ्लॉवरिंग? बद्तमीज़! क्या तुम आदमी लोग ऐसे ही बात करते हो? कितनी ओछी बात!” उसने फिर से चपत लगाने के लिए हाथ उठाया।
“अरे यार! अगर मैं अपनी बीवी से खुल कर बातें नहीं कर सकता, तो और किससे कर सकता हूँ?” मैंने डेवी के उठे हुए हाथ को चूमते है कहा, “और बाई दी वे मैडम, मैं अपनी सेक्स लाइफ के दूसरे आदमियों से बात नहीं करता।”
मेरी बात पर डेवी संतुष्ट हुए, “हम्म... डिफ्लॉवर! यह एक इंटरेस्टिंग वर्ड है। लेकिन यह वर्ड है क्यों?”
उत्तर देने से पहले मैंने देवयानी की जाँघें खोलीं, और उसकी ताज़ी ताज़ी भोगी गई योनि को अपनी उँगलियों से सहलाते हुए कहा, “देखो इसको? देखने पर यह किसी फूल की तरह लगती है! है ना? ट्यूलिप की कली जैसी? लेकिन जब इसमें पीनस घुसता है तो ऐसा लगता है न कि इस कली को जबरन खोल दिया गया हो! है न?” मैंने देवयानी के योनि-पुष्प की पंखुड़ियों को खोलते हुए आगे कहा, “जैसे ये - जैसे तुम्हारी कली की पंखुड़ियाँ खिल गई हैं!”
मेरी बात पर देवयानी शरमा गई, “ठीक है बाबा, समझ गई कि यह एक मेटाफर (रूपक) है। लेकिन... मैं... मुझे कोई जबरदस्ती जैसा नहीं लग रहा है!”
“बिलकूल भी नही! मैंने तुमसे जबरदस्ती नहीं, तुमसे प्यार किया है। और तुमने भी!” मैंने कहा; देवयानी की प्रतिक्रिया का इंतजार किया और उसके कुछ न कहने पर आगे जोड़ा, “हम तो मज़े करते हैं न!”
“क्या गैबी कुंवारी थी?” डेवी ने मासूमियत से पूछा।
मैंने पहले से ही सोच रखा था कि मैं डेवी को अपने रिश्तों के बारे में पूरी ईमानदारी से बता दूँगा। वैसे भी यह कोई छुपाने वाली बात नहीं थी।
“नहीं।”
“डिड दैट बॉदर यू?”
“नहीं यार। कैसी बात करती हो? हम दोनों एक दूसरे से प्यार करते थे। हम एक दूसरे के लिए बने थे। हाऊ कुड दैट बॉदर मी? वैसे भी, उसने मुझसे मिलने से पहले जो कुछ किया, वो मेरे लिए कोई ख़ास मायने नहीं रखता था।”
पुरानी बातें याद आने लगीं - मुझे लग रहा था कुछ देर गैबी के बारे में बातें कीं तो मेरे आँसू निकलने लगेंगे!
“अमर,” देवयानी ने कोमलता से कहना शुरू किया, “मैं भी वर्जिन नहीं हूँ! विल दैट बॉदर यू?”
“इट विल बॉदर मी, इफ यू कीप टॉकिंग अबाउट विर्जिनिटी !”
लेकिन अभी भी डेवी को मेरी बात समझ नहीं आई, “हम्म्म तो,” उसने घबराते हुए कहना शुरू किया, “क्या तुम्हारी कोई और भी... यू नो, कोई और सहेली थी? गैबी के अलावा?”
“हाँ,”
“कौन?” उसकी आवाज डूब गई।
nice update..!!नया सफ़र - लकी इन लव - Update #13
“काजल!” मैंने बड़ी सरलता से कहा, “लेकिन वो सब पुरानी बातें हैं! अब वो काजल मेरी गार्जियन की तरह है। जैसे मेरी बड़ी बहन हो! वो और उसके बच्चे अब मेरे माँ और डैड के साथ रहते हैं!”
“सच में?”
“हाँ! माँ और डैड को मेरे बारे में सब मालूम है!” मैं कहा, “इन फैक्ट, इफ यू वांट, शी कैन आल्सो कम टू मीट यू!”
“हा हा! तुमको अजीब नहीं लगेगा?”
“नहीं! क्यों? जैसा कि मैंने तुमको कहा ही है, शी इस मोर लाइक माय गार्जियन नाउ!”
“हम्म! उससे कैसे मिले?”
“शी वास माय मेड!”
डेवी कुछ देर चुप रही। मेरे पास यह जानने का कोई तरीका नहीं था कि वो क्या सोच रही थी। मुझे अभी भी लग रहा था कि देवयानी को शायद मेरा काजल के साथ होना अच्छा नहीं लगा, और शायद वो इस बात पर कुछ उद्विग्न थी। इसलिए, मैंने उसको शांत करने की गरज से अपना टाइम टेस्टेड फार्मूला लगाया - मैंने अपनी उँगलियों को उसके दोनों स्तनों के एरोला की परिधि पर कोमलता से चलाया। उसके दोनों चूचक लगभग तुरंत ही खड़े हो गए, साथ ही साथ देवयानी अपनी सोच से बाहर निकल आई।
“मिलवाना,” उसने अचानक ही कहा, “इंटरेस्टिंग लगती है! तुमको पसंद आई है तो कोई मामूली औरत तो नहीं होगी!”
मैं मुस्कुराया।
“क्या ऐज है उसकी?”
“यही कोई पैंतीस छत्तीस साल!”
“हा हा!” डेवी खुल कर हँसते हुए बोली, “क्या मिस्टर सिंह, डू यू हैव अ थिंग फ़ॉर वीमेन ओल्डर दैन यू?”
“क्या पता? गैबी मुझसे ढाई साल बड़ी थी; काजल बारह; और तुम,”
“नौ साल बड़ी!” मेरी बात डेवी ने ही पूरी कर दी!
वो अभी भी हँस रही थी!
“शिट!” मैं भी हँसने लगा, “मेरी सभी लवर्स मेरी माँ जैसी हैं!”
“माँ जैसी?”
“हाँ!” मैं अभी भी हंस रहा था, “माँ वास नॉट इवन फ़िफ़्टीन व्हेन शी हैड मी!”
“व्हाट! व्हाट!!” अब डेवी भी आश्चर्यजनक रूप से चौंक गई, “माँ इस जस्ट फाइव इयर्स ओल्डर दैन मी? आई विल नॉट एड्रेस हर अस माँ वा! आई टेल यू बिफोरहैंड !”
“वो तुम देख लो!”
“हाँ नहीं तो!” वो किलकारी मार कर हँसने लगी, “दीदी जैसी सास! हा हा हा!”
डेवी की हँसी बेहद संक्रामक होती है - मैं खुद भी हँसने लगा! उसकी बात सही थी, लेकिन जिस तरह से उसने अपनी बात कही, उस पर हँसी आ ही गई।
“और डैड की ऐज क्या है?”
“फोर्टी सिक्स!”
“चलो नॉट बैड!” वो अभी भी हँस रही थी, “मेरे फ़ादर तो रिटायर हो गए कब के!”
“तो क्या? समधी ही तो बनना है उनको!”
“हाँ जी, समधी तो बनना ही है!” वो मुस्कुराई, “ऐ जानू?”
डेवी ने इतनी मिठास से कहा कि मेरा दिल पिघल गया।
“हम्म?” मैं मुस्कुराया।
“मुझे सोच कर बहुत अच्छा लगता है कि मैं तुम्हारी बीवी बनूँगी!”
सच में, बहुत अच्छा ख़याल है। मैंने उसके दोनों स्तनों के बीच उसकी छाती को चूम लिया। डेवी बहुत खुश और संतुष्ट थी।
“और मुझे यह सोच कर भी बहुत अच्छा लगता है कि मैं तुम्हारे बच्चों की माँ बनूँगी!” डेवी ने कहा तो उसको अपनी ही बात पर शर्म आ गई।
“मुझे भी मेरी जान!” मैंने उसके स्तनों को बारी बारी चूमा, “हम दोनों खूब बच्चे पैदा करेंगे!”
“हा हा! खूब?”
“हाँ, तीन चार!”
“वो क्यूँ जानू?” उसने मासूमियत से पूछा!
“डेवी, माय लव, मुझे बच्चे बहुत पसंद हैं! और मेरे माँ और डैड को भी!” मैंने थोड़ा संजीदा होते हुए कहा, “वो दोनों मेरे बाद एक दो और बच्चे करना चाहते थे, लेकिन हमारी फाइनेंसियल कंडीशन उतनी अच्छी नहीं थी। इसलिए उन्होंने केवल मुझे एक अच्छी परवरिश देने के लिए अपनी इच्छा दबा दी!” मैंने कहा और थोड़ा रोक गया।
जब डेवी ने कुछ नहीं कहा तो मैं आगे बोला, “तो अगर हम उनको एक बड़ा परिवार दे सकते हैं, तो हम करेंगे न हनी?”
डेवी मुस्कुराई, “बिलकुल करेंगे जानू, बिलकुल करेंगे!” और मुझे अपने सीने में भींचते हुए चूमने लगी।
“लेकिन, चार बच्चे शायद न हो पाएँ?” उसने अचानक ही अपना सुर बदल दिया - उसकी आवाज़ में थोड़ी शरारत भर गई।
“हैं! वो क्यों?”
“देखो, एक बच्चा होने में से, वन ईयर, और दो बच्चों के बीच तीन-चार साल का गैप! तो इस हिसाब से तीन बच्चे इन नाइन इयर्स!”
“हाँ ठीक है! तो?”
“अरे यार, आई विल बी फोर्टी टू देन! तीसरा भी होगा या नहीं, नहीं मालूम!”
“अरे तो क्या हुआ? दो भी बहुत हैं!” मैंने भी शरारत से कहा, “अगर तीसरे का मन हुआ, और हमको न हुआ, तो उस बच्चे को गोद ले लेंगे।”
“हाँ, ये ठीक रहेगा!”
“हाँ! लेकिन प्रॉमिस करो, हमारे हर बच्चे को, तुम अपना दूध पिलाओगी!”
“और किसका पिलाऊँगी?”
“गाय भैंस का नहीं,” मैं कहा, “और एक बात! उनको पिलाते रहना, जब तक दूध बने!”
“हा हा हा! बेशर्म!”
“अरे, इसमें बेशर्मी वाली क्या बात है?” मैंने कहा, “अपना दूध पिलाओगी तो बच्चे हेल्दी रहेंगे! और...” मैंने उसका हाथ अपने लिंग पर रखते हुए कहा, “अगर लड़का हुआ, तो उसका ये भी बड़ा और मज़बूत होगा!”
“हा हा हा!”
देवयानी खूब ज़ोर से हँसी - मुझे यकीन है कि जयंती दी ने हमारी सब बातें ज़रूर सुनी होंगी! उसने विषय बदलने की कोशिश करते हुए पूछा, “जानू, आप अपने छुन्नू को क्या कह कर बुलाते हैं?”
“मैं इसे कुछ कह कर नहीं बुलाता!” मैंने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “एक्चुअली, मैं इसको बुलाता ही नहीं!”
“अरे बुद्धू, मैं पूछ रही हूँ, कि पेनिस के और क्या क्या नाम होते हैं?”
“सबसे पहली बात यह कि पेनिस नहीं, इसको ‘पी’ ‘नस’ कहते हैं! इसके और नाम हैं डिक, कॉक, फैलस, प्रिक...”
“प्रिक? वो क्यों?” उसने पूछा।
“किसी ने सोचा होगा कि शायद ये लड़की की चूत में चुभता है। इसलिए!”
डेवी ने प्यार से मेरा कान उमेठते हुए कहा, “उसको आप चुभोना कहते हैं? मुझे तो ऐसा लगा जैसे मुझे मुक्के लग रहे हों! और वो भी कई बार!”
“हम्म! फिर से मुक्के मारूँ?”
“नहीं!” वह हंसी।
“ठीक है! हम इंतज़ार कर लेंगे।”
“वाह वाह! कितने दिलदार हैं! ठाकुर साहब, आपको मुक्के मारने के लिए मेरी अगली विजिट तक इंतजार करना होगा! दीदी और मैं जल्दी ही निकल जाएँगे!”
“हाँ, तो वेट कर लेंगे न अगली विजिट का! कब आओगी? शाम को? या कल?”
“हा हा हा हा! इतनी जल्दी?” देवयानी ने बनावटी आश्चर्य में कहा - हाँलाकि उसको यह जानकर बहुत खुशी हुई कि मैं इतनी जल्दी से पुनः सम्भोग के लिए तैयार हो सकता हूँ!
“अरे, हस्बैंड वाइफ तो हर दिन और रात सेक्स करते हैं।”
“सच में?” उसने यकीन न करते हुए पूछा!
“और क्या!” मैं हँसा, “जब हमारी शादी हो जाएगी, तब तुम देखना!”
“तुम जानवर हो पूरे के पूरे!”
“बेग़म, यही जानवर तुमको जन्नत की सैर करवाएगा!”
“हा हा हा! करवाएगा नहीं, करवा रहा है!”
“और करनी है?”
“क्या?” डेवी को भली भाँति मालूम था कि मैं क्या करने की बात कह रहा था।
“चुदाई मेरी जान!” मैंने भी पूरी निर्लज्जता से अपनी बात उसको बता दी।
“न बाबा! मैं तो थक गई!” देवयानी ने घबराते हुए कहा, “तुम न जाने क्या क्या करते हो, और मैं वहाँ कभी अपनी उँगली तक नहीं डालती!”
“हम्म्म वो तो समझ आ रहा है!”
“समझ आ रहा है, लेकिन फिर भी अपने गुण्डे से मेरी छोटी बहन की पिटाई करवा रहे थे!”
“गुण्डा? ओह, समझा! लेकिन, मैंने तुम्हारी बहन को छुआ तक नहीं!!”
“मेरी बड़ी बहन नहीं... मेरा मतलब इससे है, यू डफ़र!!” देवयानी ने अपनी योनि की ओर इशारा किया, “इतना मोटा सा है...” वो कहते कहते चुप हो गई।
“हा हा! तुम कहती हो कि ये बड़ा है, मोटा है, लेकिन ये तुम्हारी प्यारी सी, छोटी बहन ही इतनी कसी हुई है कि वो उँगली तक तो कस कर पकड़ लेती है!”
“मिस्टर, अब तो जो आपको मिला है, वो ही है! चाहे खुश रहो, चाहे दुखी!”
“हा हा! तुम बहुत भोली हो डेवी! लेकिन हाँ, आज थोड़ा अधिक आसान था। जबकि इसमें सूजन भी थी, और दर्द भी हो रहा था।” मैंने फिर डेवी को बहकाते हुए कहा, “इसलिए ही तो कहता हूँ - जितनी बार हो सके, हमको सेक्स करना चाहिए अब। जब मेरा पीनस तुमको बिना तकलीफ़ पहुँचाए बिना अंदर जाना शुरू कर देगा न, तब तुमको और मज़ा आएगा! और फिर तुम सेक्स को और भी अधिक पसंद करोगी!”
“ओह गुडनेस,” उसने नाटकीय अंदाज़ में मेरी बात पर मुझे चिढ़ाया, “गुडनेस ग्रेसियस मी!” और कुछ देर के लिए रुक गई; उसने कुछ देर सोचा और फिर जोड़ा, “वैसे... जानू, जब तुम इजैकुलेट कर रहे थे न, मतलब कल भी, और आज भी, तब मुझे दो तीन बार बेहद अनोखा, बेहद अद्भुत सा एहसास हुआ था... यू नो... कैसे बताऊँ?”
“हनी, उसको ओर्गास्म कहा जाता है! यह सेक्स के दौरान मिलने वाला सबसे बढ़िया आनंद, सबसे बेस्ट सुख होता है। परम आनंद।” मैंने उसे बड़ी समझदारी से बताया, “दुनिया की बहुत सी औरतों को सेक्स के दौरान यह मज़ा नहीं मिल पाता!”
उसने अपनी उँगलियों से मेरे लिंग को धीरे से सहलाया, “लेकिन मुझे मिल पाया! और उसका कारण है, ये!”
“वेल, औरतों को ओर्गास्म पीनस के कारण नहीं - मतलब केवल पीनस के ही कारण नहीं मिलता - बल्कि उसको प्यार करने वाले की टेक्नीक के कारण मिलता है! हर आदमी वैसा सेक्स नहीं कर सकता, जैसा कि मैं कर सकता हूँ!”
“ओह? डू सम मेन हैव लार्जर एंड बिगर पीनस दैन योर्स?”
“ऑफ़कोर्स! मुझे यकीन है कि करोड़ों आदमियों के पीनस का साइज़ मेरे से बड़ा होगा!”
“हम्म्म, लेकिन मुझे लगता है कि आपका उतना ही बड़ा है जितना कोई औरत बिना मरे बर्दाश्त कर सकती है!” डेवी ने खिलखिलाते हुए कहा।
“हम्म, दैट इस अन इंटरेस्टिंग कॉम्पलिमेंट!”
“ओह, बट द वे इट स्ट्रेच्ड माय वैजिनल ओपनिंग, आई फ़ेल्ट दैट आई ऑलमोस्ट डाइड!”
“आई ऍम सॉरी हनी!”
“नो! डोंट से दैट! आई हैड अन अमेज़िंग ओर्गास्म! नॉट वन, बट मैनी! एक्सप्लेन व्हाई एंड हाऊ दैट हैपेंड?”
“मुझे लगता है कि दो कारण हो सकते हैं - पहला यह कि महिला को सेक्स के लिए अच्छी तरह से तैयार करना चाहिए - उसके लवर को चाहिए कि उसके शरीर के सभी सेंसिटिव हिस्सों को मुँह और उंगलियों से कोमलता से सहलाए और चूमे!”
“वो तो आपने बहुत अच्छी तरह किया।” उसने कहा।
“थैंक यू! और दूसरा यह कि लवर अपनी ब्राइड को कुचले नहीं। आराम से करे! और आखिरी बात…”
“आपने तो कहा था कि दो कारण हैं…” देवयानी ने टोंका।
लेकिन मैंने अनसुना करते हुए कहा, “... और तीसरा कारण यह है कि औरत के लवर के पास इतना स्टैमिना होना चाहिए कि वो दस से पंद्रह मिनट तक, या उससे भी अधिक समय तक उसकी योनि में गहरे तक धक्के लगा सके, जिससे औरत को अपना ओर्गास्म बिल्ड अप करने के लिए पर्याप्त समय मिल सके, और फिर परम आनंद मिल सके।”
“हम्म... अब समझ आया! मेरे ठाकुर जी, आपने तो ये तीनों काम बखूबी किए मेरे साथ! लेकिन क्या आपको लगता है कि दूसरे आदमी ऐसा नहीं करते हैं?”
“देखो - मुझे लगता है कि सभी पुरुष अपनी अपनी पत्नियों की नज़र में सुपरहीरो बनना चाहते हैं, और उनको खुश और संतुष्ट रखना चाहते हैं। लेकिन, यह भी सच है कि ज्यादातर पुरुष दिन भर का काम करने के बाद थके हारे हुए घर आते हैं। ज्यादातर लोग एक्सरसाइज नहीं करते हैं, और न ही अच्छा और स्वस्थ खाना खाते हैं। लिहाज़ा, उनके पेट निकल आते हैं, और स्टैमिना न के बराबर रहता है। बहुत से आदमी स्मोकिंग भी करते हैं, और दारू भी पीते हैं।”
“हाँ! फिर तो हो भया सेक्स!”
“और क्या! ज्यादातर लोग तो बस अपनी पत्नियों पर चढ़ते हैं, न तो उनको गरम ही करते हैं, न कुछ, बस अपना लंड डाल कर कुछ धक्के लगाते हैं, और माल छोड़ कर सो जाते हैं! बीवी न तो मज़ा ले पाती है, और न ही कुछ आराम ही कर पाती है। और तो और, बीवियाँ उनके खर्राटों से रात भर सो ही नहीं पातीं!”
“हा हा हा हा! बड़ी रिसर्च करी हुई है जनाब ने!”
“लेकिन मैं ऐसा नहीं करता! मैं एक्सरसाइज करता हूँ... बहुत। मैं स्मोकिंग नहीं करता। केवल कभी-कभार ही पीता हूं, और वो भी बस दो पेग से अधिक नहीं! इसलिए मेरा स्टैमिना बहुत दुरुस्त है, और मसल्स मज़बूत!”
“तुमने कहा ‘कुछ धक्के’! कितने धक्के?”
“अब यार ये मैंने गिना तो नहीं! लेकिन औसतन तीन से चार दर्जन धक्के!”
“तीन से चार दर्जन? तुमने कितने धक्के लगाए होंगे?” उसने उत्सुकता से पूछा।
“ओह! यार मैंने ये काउंट तो नहीं किया अभी तक! लेकिन उससे कहीं ज्यादा होगा। चलो, एक कैलकुलेशन करते हैं। मैंने लगभग पंद्रह मिनट तक सेक्स किया होगा?”
डेवी ने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“तो पंद्रह मिनट के लिए - एक सेकंड में एक बार... मतलब, नौ सौ बार धक्के लगाए?”
“नहीं! यह तो बहुत ज्यादा है। एक सेकंड में एक बार नहीं, हर दो सेकंड में एक बार होगा! देखो - पहले धक्का लगाया, फिर पीछे भी निकाला न? और फिर आप बीच में कई बार रुके भी... जब आप मुझे चूम रहे थे, या मेरे निप्पल्स चूस रहे थे, या बस थोड़ा आराम कर रहे थे...?” देवयानी ने सोच-समझकर जोड़ा।
“ठीक है! तो, फिर लगभग चार सौ बार?”
“हे भगवान! ये तो बहुत बार है!!” उसने चिल्लाते हुए कहा, और मेरे लिंग को सहलाया, “ठाकुर साहब, आपका पीनस तो फिर से तैयार हो गया है!”
सच में, यह सब बातें करते हुए मेरा स्तम्भन पूर्ण हो चुका था।
“मेरी जान, आप इसे छू रही हैं न! इस कारण से यह फिर से तैयार हो गया है।”
“क्या कोई विशेष तरीका है इसको छूने का, जिससे ये और तेजी से बड़ा हो सके?” उसने पूछा।
“हम्म, हाँ। है न! चलो मैं तुम्हें बताता हूँ।”
मैंने देवयानी को मेरे लिंग को सहलाने का तरीका समझाया। कुछ ही पलों में लिंग इतना कड़ा हो गया कि बिना स्खलन के मुलायम न हो।
“सी, दिस टाइम, आई विल काउंट! एंड सी हाऊ मैनी स्ट्रोक्स यू प्ले बिफोर यू एंड आई रीच आवर ओर्गास्म!” उसने चमकते हुए कहा।
कह कर देवयानी ने बगल राखी घड़ी का टाइम सेट किया और फिर हमने फिर से सम्भोग करना चालू किया। गिनते गिनते देवयानी अपनी गिनती कई बार भूल गई, लेकिन जब मैंने उससे उसके चरमोत्कर्ष का आनंद लेने के बाद पूछा, तो उसने बताया कि उसको चार सौ बासठ धक्के तो याद हैं! मतलब उससे अधिक ही लगे होंगे, कम नहीं! मैं मन ही मन बहुत गौरव महसूस कर रहा था, लेकिन थोड़ा सा अजीब भी लग रहा था। यार, ऐसी गणनाएँ भी कोई करता है क्या?
“मैं अपने लिए यह सब कैलकुलेट करने वाली ब्राइड की कल्पना भी नहीं कर सकता था!” मैंने शिकायती लहज़े में कहा।
“ओह लव! देखो न! मैं बस क्यूरियस थी! और कुछ नहीं!” वो मुस्कराई।
“लेकिन क्या तुमको मज़ा आया?” मैंने पूछा।
“बहुत! इट वास लाइक हेवेन!” उसने कहा।
वो रुकी और फिर कुछ सोच कर बोली, “हनी, क्या आपको लगता है कि आई कैन गेट प्रेग्नेंट?”
“सेक्स करने से ही तो बच्चे होते हैं! ऑब्वियस्ली, यू कैन गेट प्रेग्नेंट!”
“लेकिन... तुम्हारे ओर्गास्म से पहले मेरा हुआ था! फिर भी?”
“हनी! ओर्गास्म का प्रेग्नेंसी से कोई लेना देना नहीं है! मेरा सीमेन तो बाहर नहीं निकला न? मेरा सीमेन तुम्हारे अंदर अच्छी तरह से जमा है! यू कैन गेट प्रेग्नेंट!” मैं मुस्कराया।
“बाप रे बाप!” यह सुन कर देवयानी घबरा गई।
“क्यों? क्या हुआ? हनी, थोड़ा सोचो! जब तुम प्रेग्नेंट होगी तो तुम्हारे ब्रेस्ट्स मीठे मीठे दूध से भरे होंगे... और हमारे बच्चे से तुम्हारा पेट फूला हुआ कितना सुन्दर लगेगा!”
उस दृश्य की कल्पना कर के देवयानी पिघल गई।
“जानू, मैं तुमको तब भी पसंद रहूंगी?”
“बिल्कुल! तब तो और भी अधिक!”
“पक्का?”
“विदाऊट एनी डाउट!” मैंने कहा।
“अगर तुम पिंकी के पेट में अपना बच्चा डालना चाहते हो, तो क्यों नहीं आते हमारे घर उसका हाथ माँगने?
यह जयंती दीदी थीं - वो दरवाज़े पर अपने सीने पर हाथ बाँधे खड़ी थीं, और मुस्कुराते हुए मुझे प्रसन्नतापूर्वक डांट रही थीं।
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nice update..!!नया सफ़र - लकी इन लव - Update #14
“दीदी?” मैं और देवयानी दोनों ही उनकी आवाज़ सुन कर चौंक गए।
लेकिन अच्छी बात यह थी कि वो अपने मज़ाकिया वाले अंदाज़ में ही थीं। वैसे भी, उन्ही के उकसाने पर मैं और देवयानी इस समय सम्भोग कर रहे थे, वरना खुद पर कण्ट्रोल तो करते ही।
‘कितने समय से दीदी हमारी बातें सुन रही हैं!’ मैंने सोचा, ‘और सुनना एक बात है, वो कब से हमको देख रही हैं!?’
“मेरी प्यारी बहन कब तक तुम्हारे आने और हमारे डैड से बात करने का इंतज़ार करती रहेगी? हम्म?”
“दीदी! तुम यहाँ क्या कर रही हो?” देवयानी ने अपने सीने को हाथों से छुपाते हुए कहा।
“अब ऐसे छुपाने का क्या फ़ायदा? तुम दोनों को अपनी शरारत शुरू करने से पहले दरवाजा बंद नहीं करना चाहिए?” जयंती दी हंसने लगीं।
“हाय भगवान्!” डेवी अपने में ही सिमट गई।
“हा हा! दीदी, आपकी बातों से मुझे मेरी माँ की याद आ जाती है! वो भी ऐसे ही मुझे छेड़ती और समझाती थीं।”
“आई ऍम श्योर! ऐसे करोगे, तो कोई भी मेरे जैसे ही रियेक्ट करेगा! लेकिन यार, तुम दोनों अपने आस पास की भी सुध ले लिया करो! तुम दोनों को ऐसे, खुल्लम खुल्ला, इरोटिक हरकतें करते देख कर... मेरे दिल में भी कुछ कुछ होने लग गया!”
“हा हा हा हा! दीदी, आओ... मैं आपके साथ भी...” मेरे मुँह से निकल गया, लेकिन मुझे ऐसा कहते ही तुरंत पछतावा भी होने लगा। डेवी ने मेरी पसलियों में जोर से कोहनी मारी।
“आऊ!”
“हा हा! नो! थैंक यू! अपनी सारी एनर्जी पिंकी के लिए बचा कर रखो! वैसे भी, तुम्हारा छुन्नू अभी कुछ और देर तक कुछ भी करने लायक नहीं है, और इसके पहले की वो तैयार हो, और तुमको कोई और आइडियाज आएं, मैं यहाँ से निकल जाना चाहती हूँ!”
“क्या दीदी! इतनी जल्दी? कुछ मज़ा ही नहीं आया!” मैंने मनुहार करते हुए कहा।
“मज़ा नहीं आया तो वो तुम दोनों जानो! मुझे जाना होगा - मेरे दोनों बेटे इंतज़ार में होंगे!”
“हाँ, मुझे भी उनके साथ खेलना है!” देवयानी ने तत्परता से कहा।
“हाँ, तो चलो - जल्दी से कपड़े पहन लो। मेरे छोटू को मेरे बिना अजीब सा लग रहा होगा!”
जयंती दी का इतना कहना ही था कि देवयानी झटपट अपने कपड़े पहनने लगी। उधर वो तैयार हो रही थी, और इधर जयंती दी मुझे मेरे होने वाले ससुर जी के बारे में ‘अंदरूनी’ जानकारियाँ देती जा रही थीं। उनको क्या पसंद है, क्या नहीं इत्यादि! मुझे तो वो सब कोरी बकवास ही लग रही थी। मैं मन ही मन सोच रहा था कि ‘यार - ऐसे हौव्वा खड़ा करने का क्या मतलब है? आखिर किसी न किसी से तो अपनी लड़की का ब्याह तो करेंगे ही न वो? या फिर ऐसे ही कुँवारी रखेंगे उसको अपने घर में? अगर उनको अकड़ दिखानी है, तो फिर तो केवल उनका ही नुकसान है - देवयानी और मैं शादी तो ज़रूर करेंगे। वो उस समारोह में आमंत्रित होंगे, यह उन पर ही निर्भर करेगा।’ इत्यादि!
खैर, कोई दस मिनट के बाद देवयानी और जयंती दीदी ने अलविदा कही और मुझे यथाशीघ्र घर आ कर सभी से मिलने को आमंत्रित किया। मैंने कहा कि मैं अगले शुक्रवार शाम को आ सकता हूँ, अगर यह उनको ठीक लगता है। उन्होंने मुझे समझाया कि उसके पहले भी आने में कोई बुराई नहीं है - उनके पिता रिटायर्ड हैं, और उनको मुझसे मिलने में कोई मुश्किल नहीं होगी। अगर सब ठीक गया, तो सप्ताहांत में मैं अपने पूरे परिवार के साथ आमंत्रित हैं!
हम्म, मतलब बात सब सही तरीके से आगे बढ़ रही थी। मुझे तो डेवी के पिताजी से मिलना महज़ एक खानापूर्ति लग रही थी। वैसे ये आवश्यक बात है। एक बार घर के सभी सदस्यों से मिलना अच्छा रहता है।
लिहाज़ा, मैं अगले बुद्धवार की शाम को देवयानी के घर उसके परिवार के अन्य लोगों से मिलने गया।
जैसी कि मुझे उम्मीद थी, उनके घर पर उनका समस्त परिवार मौजूद था, जो कि एक अच्छा संकेत था। मतलब सभी को मुझसे मिलने में दिलचस्पी थी। दरवाज़ा जयंती दीदी ने ही खोला। उनके पीछे, ड्राइंग रूम में उनके पति मिले - उनको देख कर ऐसा नहीं लगा कि उनको मुझसे मिलने में कोई बहुत रूचि है - शायद वो वहाँ आए थे केवल अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाने। साढ़ू भाइयों में ऐसा ही ‘याराना’ देखने को मिलता है! लेकिन हाँ, रूखेपन से तो वो मुझसे नहीं मिले। उन्होंने बहुत ही पारंपरिक तरीके से, हाथ मिला कर मेरा अभिवादन किया।
मैं अभी सोफे पर बैठ कर सेटल हो ही रहा था कि देवयानी के पिताजी ने ड्राइंग रूम में प्रवेश किया। मैंने ठीक ही समझा था - डेवी और जयंती दी ने फ़िज़ूल ही उनके नाम का हौव्वा खड़ा किया था मेरे सामने! वो मुझसे बेहद गर्मजोशी से मिले।
“हाय, आई ऍम आलोक!” उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।
“हेलो सर, वेरी नाइस टू मीट यू!”
“ओह कमऑन! कॉल में बाय माय नेम!”
“दैट आई कांट डू सर!” मैंने शिष्टतापूर्वक कहा, “इवन इफ आई वांट टू! आई कांट कॉल समवन बाय दीयर नेम, हू इस लाइक माय ओन पेरेंट्स!”
“हा हा! यंग मैन, आई ऍम आलरेडी इम्प्रेस्सड विद यू!” उन्होंने हँसते हुए कहा और बोले, “सिट! प्लीज!”
मैं वापस सोफे बैठ गया।
“कुछ अपने बारे में बताओ अमर!” उन्होंने विनोदपूर्वक कहा।
“जी, कुछ ख़ास नहीं! मेरी पैदाइश एक छोटे से कसबे, अ-ब-स-द में हुई है! मेरे डैड उसके पास ही एक गाँव अ-ब-स-द से हैं, और माँ वहाँ के पड़ोसी गाँव, अ-ब-स-द से हैं। डैड अभी अ-ब-स-द में मैनेजर हैं और माँ एक हाउसवाइफ! मैंने अ-ब-स-द से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करी है, और पिछले साल ही देवयानी की कम्पनी में काम करना शुरू किया है!”
मैंने देखा कि वो बिना कुछ कहे मेरी तरफ देख रहे थे। तो सोचा कि उनको सबसे ज़रूरी बात भी बता दूँ। मैं थोड़ा रुक रुक कर बोला,
“आई वास मैरिड - ब्रीफली - टू गैब्रिएला सूसा - अ ब्राज़ीलियन गर्ल। अनफॉर्चुनेटली फॉर मी, शी पास्ड अवे इन अ रोड एक्सीडेंट अबाउट टू इयर्स एगो!” पुरानी, दर्द भरी यादें ताज़ा हो आईं! मैंने गहरी साँस भरी, “इन दैट एक्सीडेंट, आई लॉस्ट गैबी, ऐस वेल ऐस माय अनबॉर्न बेबी!”
“आई ऍम वैरी सॉरी अमर! मेरा तुम्हारा दिल दुखाने का कोई इरादा नहीं था!” उन्होंने कहा।
“नो सर, इट इस ओके! एंड थैंक यू!” मेरी आँखें भर आई थीं।
मैंने उनसे नज़र बचा कर अपने आँसू पोंछे - लेकिन मेरी यह हरकत उनसे छुप न सकी। फिर भी उन्होंने कुछ नहीं कहा। शायद वो मेरे इस संजीदा पक्ष को देख कर खुश भी थे, प्रभावित भी, और संतुष्ट भी!
मैं कुछ और बता पाता कि देवयानी और जयंती दीदी दोनों ने कमरे में प्रवेश किया। दोनों ने चूड़ीदार शलवार, और रेशमी कुर्ता पहना हुआ था। उनके साथ ही जयंती दीदी के दोनों बच्चे भी थे। मैं दोनों के लिए कुछ न कुछ उपहार ले कर आया था। बच्चे तो अपने लिए कुछ भी पा कर खुश हो जाते हैं।
जयंती दीदी ने चहकते हुए मुझसे बातें करना शुरू कर दिया, और डेवी अपने डैडी की बाँहों में बाँहें डाल कर उनके ही बगल बैठ गई। उनके चेहरे को देख कर लग रहा था कि वो मुझसे इम्प्रेस्सड तो हैं! बढ़िया बात है। कोई पंद्रह मिनट के बाद घर की कामवाली ने देवयानी को आवाज़ लगाई। उसको सुनते ही डेवी ने कहा,
“चलिए, बाकी की बातें टेबल पर करेंगे?” उसने अपने डैडी को हाथ पकड़ कर उठाया, और अपने जीजाजी को कहा, “चलिए जीजू, बहुत देर से भूखे बैठे हैं आप!”
“अरे! हा हा! नहीं ऐसी कोई बात नहीं!” उन्होंने औपचारिकतावश कहा।
लेकिन उनका चेहरा देख कर लग रहा था कि बिलकुल वही बात है।
खाने की टेबल पर विविध प्रकार के व्यंजन सजाए गए थे - और इस तरह के स्वागत को देख कर लगता है कि वो सभी वास्तव में हमारे रिश्ते को और आगे बढ़ाने में रुचि रखते थे। इसलिए, खाना ऐसा पकाया गया था, जो मेरी पसंद का हो, और स्वादिष्ट भी! वो सभी चाहते थे कि मुझे ऐसा लगे कि मेरी उपस्थिति स्वागतयोग्य है, और मुझे वहाँ पर घर जैसा महसूस हो। खाना बहुत अच्छा था, और प्रचुर मात्रा में था - मैं शाकाहारी था - इस बात का ख़ास ख़याल रखा गया था। मुझे मालूम था कि देवयानी और उसका परिवार माँसाहारी है! डेवी तो ख़ासतौर पर चिकन की बेहद शौक़ीन है! खैर, मेरे लिए पनीर पकोड़ा था, स्वादिष्ट नूडल्स की एक ख़ास रेसिपी, जिसे मैं अक्सर डेवी के साथ बाहर जाने पर खाना पसंद करता था, उसकी ग्रेवी, और फिर एक बेहद स्वादिष्ट भूमध्यसागरीय सलाद था, जो मुझे बहुत पसंद आया।
खाते समय डेवी के पिताजी ने मुझे सुझाया, “अमर, पकोड़े पर ये इमली की चटनी और ये लाल मिर्च की चटनी की एक बूंद डालें...”
मैंने उनके बताये अनुसार किया और वाकई, बड़ा यमी स्वाद आया!
“ओह! दिस इस वेरी टेस्टी! थैंक यू!” मैंने अपना आभार व्यक्त किया।
उसके डैडी ने ‘समझते हुए’ अपना सर हिलाया। उन्हें यह बात अच्छी लगी कि मैं उनके सुझाव पर तुरंत सहमत हो गया। मुझे लगता है, बाप लोग ऐसे ही होते हैं... खासकर पारंपरिक बाप! उनसे बहस न करो, उनकी बात सुन लो, भले ही अपनी करो! वो उतने में संतुष्ट हो जाते हैं! खाने की टेबल पर हमने छोटी मोटी बातें करीं - अपने परिवारों के बारे में, जयंती दी के बच्चों के बारे में, हमारे काम-काज के बारे में, इत्यादि! वैसे ये सारी बातें ‘आइस-ब्रेकर’ होती हैं, जो असली मुद्दे - असली बातचीत की ओर ले जाती हैं। और अंततः असली मुद्दा आ ही गया!
“तो आप दोनों लव-बर्ड्स का कैसा चल रहा है?” देवयानी के डैडी ने पूछा, “आप दोनों कितने समय से साथ हैं?”
“जी, यही कोई छः महीने हुए होंगे, सर।” मैंने डेवी की ओर देखते हुए कहा।
वो हंसी।
“ठीक है फिर तो! मतलब आप दोनों ने एक दूसरे के साथ कुछ ढंग का समय बिता लिया है। मतलब अब इस रिलेशन को आगे बढ़ाने का टाइम आ गया लगता है! नहीं?” उन्होंने कहा, या यों कहें, कि टिप्पणी करी।
मैंने कुछ नहीं कहा।
“ओह डोंट वरी, यंग मैन! मैं इसीलिए तो हूँ! मेरी पिंकी को तुम पसंद हो - और मुझे समझ में आ रहा है कि क्यों! तो चलो, अब तुम्हारी शादी का बंदोबस्त करते हैं!”
“ओह डैडी!” देवयानी खुशी से झूम उठी और उनको गले लगाते हुए लगभग उनकी गोदी में जा गिरी!
आमतौर पर भारत में ऐसा नहीं होता है! लेकिन जब किसी लड़की के माता-पिता, उसके लिए जीवनसाथी की तलाश करते करते हार मान लेते हैं, तो वो भी चाहते हैं कि उनकी लड़की के पसंद के लड़के से उसकी शादी कर दें! उसी में सबकी भलाई है!
वैसे भी, मेरे बारे में उनको बहुत कुछ मालूम ही था। न तो मैं कोई लूज़र था, और न कोई सकर! अच्छा कमा लेता था, कंपनी में मेरी अच्छी रेपुटेशन थी! स्वस्थ था! और क्या चाहिए? सही जीवन-साथी मिलना जरूरी है, न कि ऐसे समय में किसी जड़ता/या मूढ़ता का प्रदर्शन!
“सर,” मैंने कहना शुरू किया, “मुझे उम्मीद है कि...”
“अरे यार! अब तो ये सर वर कहना बंद करो!” उसके डैडी बोले, “टेक इट इजी! अब समय आ गया है कि तुम दोनों,” उन्होंने ऊँगली से पहले मेरी ओर, और फिर देवयानी की ओर इशारा किया, “... साथ में रहो... जीवन भर के लिए!”
मैं ख़ुशी से मुस्कुराया, “थैंक यू सो मच! सर!”
“सर नहीं भाई! डैडी बोल सकते हो मुझे!”
“थैंक यू, डैडी!”
“और बाप को थैंक यू नहीं बोला जाता!” वो मुस्कुराए, “सच में!” उन्होंने आगे कहा, “तुम मुझे पसंद आए! पिंकी की पसंद मेरी पसंद - लेकिन तुम वाकई मुझे पसंद आए!”
इस बात पर हम सभी मुस्कुराए!
उन्होंने कहना जारी रखा, “तुम दोनों अभी बहुत यंग हो! तुम दोनों को युथ का आनंद लेना चाहिए। आई ऍम अन ओल्ड मैन! आई नो व्हाट आई ऍम टॉकिंग अबाउट!”
“जी...” अब मैं और क्या कहता! मैं कुछ भी सोच नहीं पा रहा था!
“तो, यंग मैन, जल्दी से अपने डैड और माँ को आने को कहो! उनका नंबर दो, मैं उनको अभी कॉल कर लेता हूँ, और यहाँ इनवाइट कर लेता हूँ! फिर हम सभी डिसकस कर लेंगे कि शादी कैसे करनी है!”
“ओह सर!”
“फिर से सर! बेटा, अब से मुझे डैडी कहना शुरू कर दो!” वो बहुत प्रसन्न लग रहे थे।
सच में - डेवी के डैडी से मिलने और बात करने के बाद ऐसा बिलकुल भी नहीं लग रहा था कि वो बहुत सख्त आदमी हैं! और यह वास्तव में बहुत अच्छी बात थी।
जयंती और देवयानी दोनों ने ही बातों ही बातों में इशारा किया था कि उनके डैडी को एक पुत्र की चाहत थी! तो संभव है कि बेटियों के पतियों को वो अपने पुत्र जैसा ही मानें! वैसे भी, उनकी दोनों ही बेटियों ने मुझे पसंद किया था - तो संभव है कि इस बात ने उनके मन में मेरे इम्प्रैशन को मजबूत किया हो। उनका बड़ा दामाद अच्छे काम में संलग्न था, उसकी अच्छी प्रतिष्ठा थी, वो अच्छा व्यवहार करता था, और जयंती दीदी की बढ़िया देखभाल करता था, उनसे प्यार करता था और उनके काम में उनको प्रोत्साहन भी देता था। उसके मुकाबले मैं सुशिक्षित था, और अपनी उम्र के हिसाब से बढ़िया तरक्की कर रहा था। मैं भी उनकी बेटी से बहुत प्यार करता था। तो, कुल मिलाकर, मेरा पलड़ा कमज़ोर नहीं था! उम्र का भी कुछ लाभ हो सकता है - मैं वहाँ सबसे छोटा था (दोनों बच्चों को छोड़ कर)! खैर!
“यू नो व्हाट...”, उन्होंने कुछ सोच कर कहा, “मेरे एक दोस्त हैं - यहीं पास ही में उनका एक सुंदर सा फार्महाउस है - कोई दो ढाई घंटे की ड्राइव पर! वो हमेशा मेरे पीछे पड़ा रहता है कि वीकेंड वहाँ बिताओ! फोटो देख कर लगता है कि बढ़िया जगह है! शांत है! एकांत का आनंद लेने के लिए... शोरगुल से दूर... मुझे यकीन है कि तुम दोनों को वहाँ बहुत अच्छा लगेगा! आई विल टॉक टू हिम! गो देयर! जब भी जाने का मन हो, चले जाना तुम दोनों! ओके?”
यह विचार बड़ा दिलचस्प था - इसलिए भी क्योंकि यह डेवी के डैडी की तरफ से आ रहा था। अभी हम दोनों की शादी नहीं हुई थी। तो उनका इशारा किस तरफ था? क्या वो यह सुझाव दे रहे थे कि मैं उनकी बेटी शादी से पहले ही कहीं ले जा सकता हूँ, और उसके साथ कुछ रातें बिता सकता हूँ? क्या बात है!
“डैडी!!” जयन्ती दीदी ने घोर अविश्वास के साथ कहा।
“यस यस! आई नो! डोंट थिंक फॉर वन्स दैट योर फादर हैस गॉन सेनाइल!” वो मुस्कुराते हुए बोले, “अरे, इसमें बुराई ही क्या है? अब तो मैं भी चाहता हूँ कि इन दोनों की जल्दी से जल्दी शादी हो जाए। अब अगर इनकी शादी होनी ही है, तो मैं ये सारे ढोंग क्यों करूँ?” उन्होंने बड़ी सहजता से कहा, “ऐसा नहीं है कि मैं चाहता हूँ कि तुम दोनों बिना शादी के सेक्स करो! मैं बस इतना चाहता हूँ कि तुम दोनों की शादी जल्दी से जल्दी हो जाए।”
“ओह्ह डैडी डैडी!” डेवी ने लगभग चीखते हुए अपने डैडी को कसकर अपने गले से लगा लिया, “आई लव यू सो मच डैडी!”
“आर यू हैप्पी, पिंकी?”
“वैरी हैप्पी डैडी! वैरी वैरी हैप्पी... दिस इस द हैप्पीएस्ट डे ऑफ़ माय लाइफ!”
“मैं चाहता हूँ कि तुमको आज से अधिक खुशी मिले! हमेशा!” फिर वो मेरी तरफ़ मुखातिब होते हुए बोले, “तो यंग मैन, लेट उस मीट योर पेरेंट्स! ... जितनी जल्दी हो सके! वो नहीं आ सकते, तो बताओ - मैं जाकर उनसे मिल आता हूँ! लेकिन मेरा मन है कि वो आएँ यहाँ - जिससे उनका स्वागत, मान सम्मान किया जा सके! एंड वन लास्ट थिंग - अगले हफ़्ते तुम्हारे ऑफिस में तीन दिनों का वीकेंड है, तो क्यों नहीं पिंकी को मेरे फ्रेंड के फार्महाउस ले जाने का प्लान कर लेते हो?”
“सर?” मैं आश्चर्यचकित होते हुए बोला।
“सर?”
“ओह, आई ऍम सॉरी! मेरा मतलब है, डैडी!”
“दैट्स माय सन! ... और हाँ, आज रात यहीं रुक जाओ!”
“नहीं डैडी... कोई दिक्कत नहीं है! मैं बहुत दूर नहीं रहता।”
“हाँ फिर भी... देखो, रात के ग्यारह बज रहे हैं। इसलिए रह जाओ! घर जा कर कोई ज़रूरी काम करना है क्या?” वो मुस्कुराते हुए बोले। मैं इस बात का कोई उत्तर न दे सका।
“इसीलिए कह रहा हूँ कि रुक जाओ! सवेरे नाश्ते के बाद पिंकी तुमको ड्राप कर देगी! ठीक है? चलो फिर! गुड नाइट!”
उन्होंने कहा, और उठ कर अपने कमरे में जाने लगे। और मैं सोचने लग गया कि आखिर ये हुआ क्या!!
“अमर,” डैडी के जाने के बाद जयंती दीदी ने हँसते हुए कहा, “आज तुम पिंकी के कमरे में सो जाना!”
और अपने पति का हाथ पकड़ कर अपने कमरे ओर चल दीं।
मैंने देवयानी की तरफ देखा - उसके चेहरे पर भी मुस्कान थी। दो ही पलों में हम दोनों अकेले रह गए।
nice update..!!नया सफ़र - लकी इन लव - Update #15
“यार ये हुआ क्या?” मैंने उलझन भरी नज़रों से कहा।
“ज़रूर ही दीदी ने कोई जादू चलाया होगा डैडी पर!” डेवी मुस्कुराई और अपने कुर्ते के बटन खोलने लगी।
“और तुम ये क्या कर रही हो?” मैं फुसफुसाते हुए बोला, “अगर अभी कोई यहाँ आ जाए तो?”
डेवी ने मेरी हैरानी पर ध्यान नहीं दिया, “हनी, क्या तुम्हें सच में नहीं समझ आ रहा है कि मैं क्या करना चाहती हूँ?”
बेशक, मुझे पता था!
न केवल मेरी, बल्कि डेवी की भी कामेच्छा अति-सक्रिय थी! और मुझे यह भी मालूम था कि उसको उत्तेजित करने के लिए कोई बहुत प्रयास नहीं करना पड़ता। इस समय डेवी उत्तेजित थी, और मेरे साथ संसर्ग करना चाहती थी। उसने मेरी तरफ़ एक शैतानी मुस्कान के साथ देखा।
मुझे कुछ कहने देने से पहले ही उसने बोल दिया, “आई वांट टू फ़क!”
“हा हा! लेकिन...”
मुझे पता था कि इस समय घर में हर कोई जाग रहा था।
“हनी, प्लीज डोंट स्टॉप मी!” उसने अपना कुरता उतारते हुए कहा, “आई ऍम फीलिंग सो हॉट! टेक मी टू माय रूम एंड मेक अ हॉट, इमोशनल लव विद मी!” और अपनी ब्रा का हुक खोल कर कराहते हुए बोली।
“अरे कम से कम कमरे के अंदर तो चलो!”
तब तक उसकी ब्रा भी उतर गई थी और उसके शानदार स्तनों की जोड़ी मेरे सामने प्रदर्शित हो गई! डेवी के स्तन अद्वितीय थे - मेरे जीवन में जितनी भी स्त्रियाँ आईं, उन सब के स्तन अद्वितीय थे! सभी के स्तन अद्भुत रूप से सुंदर थे! लेकिन डेवी उन सभी में सबसे सुंदर और आकर्षक लड़की थी! जैसे ही उसके स्तन कामुकता से हिले, मेरे लिंग में हलचल होने लगी! उसके दोनों कपड़े वहीं ड्राइंग रूम में ही छोड़ कर, हम देवयानी के कमरे में आ गए। आज यह पहला मौका था जब किसी लड़की के साथ मैं ‘अपने’ घर से बाहर सम्भोग करने वाला था। एक अलग ही किस्म का रोमाँच महसूस हो रहा था मुझको।
डेवी मुझसे आगे चल रही थी। इसलिए उसके पीछे चलते चलते मुझे उसकी सुडौल पीठ और उसके सर के लहराते घने बाल दिख रहे थे। मैं मन ही मन उसकी चाल की प्रशंसा किए बिना न रह सका। कमरे में आते ही वो मुड़ी और मुझे आलिंगन में भर के उसने मेरे होंठों पर एक बड़ा, भावुक चुंबन दिया! पूर्ण उत्तेजित होने में जो कसर रह गई थी, वो इस चुम्बन ने समाप्त कर दी। जब हमारा चुम्बन समाप्त हुआ, वो उसने अपने होंठों को बड़ी कामुकता से चाटते हुए मुझ देखा; और फिर उसने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर, और दूसरे हाथ से अपने एक स्तन को उठाया।
“वांट टू रेलिश देम?”
‘क्या समा गया है आज डेवी में?’ मैं सोचे बिना न रह सका।
उसके प्रश्न के उत्तर में मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया - उसके अलावा मेरे पास कोई विकल्प ही नहीं था! ऐसे शानदार स्तन तो मेरे मुँह में ही होने चाहिए! उससे अधिक सुखद अनुभव और कुछ भी नहीं!
इधर मेरा ‘हाँ’ का इशारा करना था, और उधर डेवी ने अपना एक चूचक मेरे मुँह से लगाना था! स्वतः ही मैंने अपना मुँह खोला, और उसके रक्तसंकुल, उत्तेजित चूचक को पीने लगा! बस क्षण मात्र में मैं स्वर्ग में था; उसके स्तन इतने गर्म, कोमल, और ममतामयी थे कि क्या कहूँ! मेरे चूषण से उसके चूचक और भी अधिक कड़े हो गए! उसका शरीर थरथराने लगा। मैंने भी खिलवाड़ करते हुए उसके दोनों चूचकों को चूसा, चुभलाया और काटा! कुछ ही देर में डेवी की साँसें उखड़ने लगीं, और वो कसमसाने लगी!
“ओह गॉड!” उसने कँपकँपाती आवाज़ में कहा, “आई ऍम सो हॉर्नी! आई वांट यू इनसाइड मी सो बैडली!”
उसने अपना स्तन मेरे मुँह से निकाला और बिस्तर पर लुढ़क कर अपनी शलवार को उतारने लगी। जल्दबाज़ी में वो नाड़ा ढीला करना भूल गई तो मैंने ही उसकी डोरी खींचकर, शलवार उतारने में उसकी मदद की! उसने गुलाबी रंग की पैंटी पहनी हुई थी। चड्ढी का वो हिस्सा जो डेवी की पदसन्धि से सटा हुआ था, वहाँ पर उसकी योनि रस का बड़ा सा गीला धब्बा साफ़ दिखाई दे रहा था। कुछ ही समय में डेवी पूरी तरह से नंगी हो गई।
“हनी, कम! ज़ोर से मेरे साथ सेक्स करो! रात भर! और कल भी।” उसकी आवाज़ कामुकता से ख़ुश्क हो गई थी।
सब ठीक था - लेकिन मुझे इस बात की चिंता थी कि जिस तेज़ी से डेवी की कामुकता का पारा चढ़ रहा था, वो ज्यादा देर इस खेल में टिकने वाली नहीं थी। मैं अवश्य ही कोशिश कर लूँ - वो तीन चार मिनट में ही ढेर हो जाने वाली थी! एक तरह से ठीक भी था - उसको एक बार उसके चरमोत्कर्ष पर पहुँचा कर, बाद में इत्मीनान से उसके साथ खेला जा सकता था! मैंने जल्दी जल्दी अपने कपड़े उतारे।
जैसे ही मैंने अपने लिंग को उसकी योनि में उतारा, मैंने वहाँ अभूतपूर्व चिकनापन महसूस किया - सच में! डेवी न जाने कब से कामाग्नि के ढेर पर चढ़ कर दाहक रही थी! उसकी योनि पूरी तरह से लुब्रिकेटेड थी, और केवल एक धक्के से मेरा लिंग पूरे का पूरा उसके अंदर पेवस्त हो सकता था।
मेरा दिल जोर-जोर से धड़क रहा था - मैं जानता था कि कमरे का दरवाजा खुला हुआ था, क्योंकि जल्दबाज़ी में उसको बंद करने का अवसर ही नहीं मिला। वैसे भी अपनी आदत ही नहीं थी दरवाज़ा बंद करने वाली। खैर! रोमाँच का एक और कारण यह भी था कि इस घर में अभी तक कोई भी सोया नहीं था। कोई भी अपने कमरे से बाहर आ जाए तो देख ले कि हमारे बीच में क्या नटखटपना चल रही थी! लेकिन ये सोचने से क्या होना था? तो मैंने अपने काम पर ध्यान देना जारी रखा... ओह मेरा मतलब, अपने लिंग को उसके गंतव्य तक पहुँचाने के काम पर! एक ही धक्के में मेरा पूरा देवयानी की योनि की आरामदायक गर्मी और गीलेपन से घिरा गया! बिना रुके मैंने वही चिरंतनकालीन प्रक्रिया करनी शुरू कर दी।
हर धक्के के साथ वो छोटी छोटी आवाज़ में ‘ओह्ह्ह, ओह्ह्ह्ह, ओह्ह्ह’ कर रही थी!
हम दोनों ही एक साथ धक्के लगा रहे थे - मैं ऊपर से और देवयानी नीचे से!
“ओह गॉड!” वो मेरे कानों में फुसफुसाई, “आई लव यू! एंड... आई लव द लिटिल यू इनसाइड मी!”
कितनी प्यारी लड़की है देवयानी!
मैंने उसके होंठों पर अपने होंठों को ज़ोर से सटाया और उसको चूमते हुए अपनी जीभ को उसके मुँह के अंदर धकेल कर उसको और बलपूर्वक चूमते हुए, और भी अधिक जोश के साथ धक्के लगाना शुरू कर दिया। देवयानी पहले से ही रति-निष्पत्ति के बारूदी ढेर पर बैठी हुई थी - लिहाज़ा, वो कुछ ही देर में सम्भोग का परम सुख प्राप्त कर के आहें भरने लगी। मुझे अभी समय था। मैं निरंतर धक्के लगा रहा था और नीचे डेवी मेरे लगभग पाशविक सम्भोग के कारण पस्त होती जा रही थी। उसके मुख से निर्लज्ज और निःसंकोच कामुक आहें निकल रही थीं। न तो उसको ही किसी की परवाह थी, और न ही मुझे ही! मेरी ही बीवी है - मैं नहीं तो और कौन भोगेगा उसको? मैं नहीं, तो और कौन उसको यौन-सुख देगा? लगभग पंद्रह मिनट तक उसे भोगने के बाद मैंने खुद का कामोन्माद बनता हुआ महसूस किया।
उधर डेवी की योनि आज की रात तीसरी बार कामतिरेक से विलाप कर रही थी। हमारे नीचे चादर पर एक बड़ा सा गीला धब्बा बन गया था, जो हमारे सम्भोग की कहानी चीख चीख कर बता रहा था।
शायद डेवी को भी अंदाज़ा हो गया कि मैं स्खलन के निकट हूँ! उसने मेरे कान में फुसफुसा कर पूछा,
“हनी, आर यू देयर येट?”
मैंने हाँफते हुए कहा, “हाँ!”
“मेरे अंदर करना!” डेवी कामुकता से बोली!
डेवी को सेक्स के लिए इतना मोहताज़ मैंने पहले कभी नहीं देखा था। गज़ब की बात है! क्या हो गया था उसको?
यह बाद में सोचेंगे, पहले धक्के! कुछ देर के बाद मैंने वीर्य को अपने लिंग की लम्बाई में तेज़ी से दौड़ता महसूस किया।
“आह्ह्ह्ह!” जैसे ही मेरा स्खलन हुआ, मैं लगभग चिल्लाया!
धक्के लगाना अभी भी जारी था - क्योंकि मैं सुनिश्चित कर लेना चाहता था कि मेरा बीज, डेवी की उर्वर कोख में सुरक्षित स्थापित हो जाए! मैंने छोटे लेकिन गहरे धक्के लगाने जारी रखे।
“ओह यस!” डेवी भी हर धक्के के साथ चिल्लाई! वो मेरे वीर्य को अपने अंदर भरता हुआ महसूस कर रही थी।
मैं थक गया था, लेकिन मैं तब तक धक्के मारता रहा जब तक कि मैं पूरी तरह से खाली नहीं हो गया, और फिर रुक गया।
डेवी ने हाँफते और मुस्कुराते हुए मुझे देखा, और फिर मुझे एक बड़ा सा चुंबन दिया! और फिर अपनी सुंदर सी आँखों से मुझे देखते हुए बोली,
“हनी, थैंक यू सो मच! आई नीडेड इट!”
मैं उसके ऊपर से उतर गया और उसके बगल बिस्तर पर लेट गया।
हम दोनों ही कुछ देर तक चुप रहे। ऐसा थका देने वाला, पाशविक सम्भोग मैंने कभी कभार ही किया था। लेकिन सच में, ऐसे सम्भोग में आनंद तो ऐसा आता है कि उसका वर्णन करना असंभव होता है। अगर मेरे पाठकों / पाठिकाओं में कोई HIIT (हाई इंटेंसिटी इंटरवल ट्रेनिंग) करता है, तो वो समझ सकता है कि मैं क्या कह रहा हूँ! शरीर थक तो जाता है, लेकिन जो मज़ा मिलता है, वो बयान नहीं किया जा सकता। प्रेमी और प्रेमिका ऐसे सम्भोग से लस्त और पस्त हो जाते हैं, और फिर उनके पास केवल प्रेम भरी बातें करने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं बचता!
बातों की शुरुआत देवयानी ने ही करी,
“हनी, इस सैटरडे या संडे को माँ और डैड को बुला लो?”
“अरे, इतना जल्दी?”
डेवी ने मेरी पसलियों में कोहनी मारी, “क्यों जी, आपको मुझसे शादी करने की जल्दी नहीं है?”
“बहुत जल्दी है! कहो तो आज ही कर लूँ!”
“हाँ, बातें बनानी आपको खूब आती है! बिना माँ - डैड के हमारी शादी कैसे होगी?”
“वो भी ठीक है!” मैंने सोच कर कहा, “देखो, साढ़े ग्यारह बज रहे हैं। मैं डैड को कॉल कर लेता हूँ!”
“अरे, इतनी रात गए! वो सो रहे होंगे!”
“हा हा! सो नहीं रहे होंगे - वो भी वही कर रहे होंगे, जो अभी अभी हम कर रहे थे!”
मेरी बात पर डेवी खिलखिला कर हँस पड़ी।
“तुम्हारा फ़ोन कहाँ है?”
“बाहर, ड्राइंग रूम में!”
“ओके, आई विल बी बैक!” मैंने अर्नोल्ड श्वार्ज़नेगर वाले अंदाज़ में कहा और अपनी पैंट पहन कर कमरे से बाहर निकल गया। हाँ, इस बार जाते जाते मैंने कमरे का दरवाज़ा बाहर से भेड़ लिया।
मेरा अंदाज़ा सही था - माँ डैड भी कुछ देर पहले तक सम्भोग कर रहे थे, और मेरा फ़ोन आते समय सुखपूर्वक बातें ही कर रहे थे। मुझे कैसे पता चला? अरे भई, माँ और डैड दोनों से ही मेरी बातें हुईं इसलिए! इतनी देर रात दोनों जाग रहे हैं - मतलब एक ही कारण है! वैसे भी अब घर में तीन और प्राणियों के रहने से उनको केवल अपने कमरे में ही एकांत मिल पा रहा था। और तो और, दो नए बच्चों के कारण, माँ और डैड दोनों पर ही एक अतिरिक्त बोझ आ गया था - उनकी पढ़ाई को ले कर।
पिछले साल तक डैड सुनील को गणित और विज्ञान पढ़ा लेते थे, लेकिन अब उसका हाई स्कूल पूरा हो गया था, और इस स्तर की शिक्षा देने में वो असमर्थ थे। लिहाज़ा, उन्होंने अपने हाथ खड़े कर लिए, और अपने एक अन्य मित्र, जिन्होंने मेरी तैयारी के समय मुझे गाइडेंस दिया था, को सुनील की गणित और विज्ञान की तैयारी की जिम्मेदारी सौंप दी। हाँ, लतिका को अभी भी वो ही गणित और विज्ञान पढ़ाते थे। माँ को डैड के जैसी छूट न मिल सकी - माँ सुनील और लतिका दोनों को ही हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी पढ़ाती थीं। इसलिए भी माँ थोड़ी देर रात तक ही डैड के पास आ पाती थीं। खैर, ये सारे डिटेल्स फिर कभी!
मैंने दोनों को अपनी आज की मुलाकात के बारे में बताया और उनसे यहाँ आने को कहा। हो सके तो शनिवार या रविवार को! मैंने उनको बताया कि देवयानी के डैडी कॉल करेंगे, लेकिन उनकी कॉल का वेट न करें। दोनों ही जने इस बात पर बहुत खुश हुए कि मेरे जीवन में खुशियाँ एक बार फिर से आने वाली हैं। दोनों ने ही मुझे आशीर्वाद दिया और डैड ने वायदा किया कि वो कल सवेरे ही ट्रेन टिकट बुक कर लेंगे। मैंने ही उनको सुझाया कि हो सके तो सभी लोग आएँ - मेरा पूरा परिवार देवयानी के पूरे परिवार से मिले! अच्छा लगेगा सभी को ही! डैड को ये आईडिया अच्छा लगा।
उनसे बात कर के मैं वापस डेवी के कमरे में आया, और अपने कपड़े उतार कर बिस्तर में उसके बगल जा लेटा।
“हो गई बात?”
“हाँ - कल टिकट बुक कर लेंगे! फिर बताता हूँ कि किस दिन आ पाएँगे।”
“ओह हनी! आई ऍम वैरी एक्साइटेड!”
“हा हा हा! एक्साइटमेंट से याद आया - क्या हो गया था तुमको मेरी जान?”
“क्या हो गया था मतलब?”
“मतलब, इस तरह से तो तुमने कभी बीहेव नहीं किया!”
वो मुस्कुराई, “आई ऍम ओव्युलेटिंग!”
“ओहह!”
“जी हाँ!”
“मतलब मैंने जो बीज बोया है, वो जल्दी ही फल दे सकता है!”
“हा हा हा हा हा हा हा! हाँ! इसीलिए तो जल्दी जल्दी है सब!” वो खिलखिला कर बोली, “बिना शादी के मैं तुम्हारे बच्चों की माँ नहीं बनना चाहती!”
“जान?”
“हाँ हनी?”
“हम फ़रवरी में शादी करें? दूसरे हफ़्ते में? माँ का बर्थडे है उस दिन!”
“व्हाट! सच में?” देवयानी ने बच्चों जैसे खुश होते हुए कहा।
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“दिस इस एन अमेज़िंग थॉट! बट हनी, दैट लीव्स अस विद ओन्ली थ्री वीक्स!”
“हाँ! करना ही क्या है? शादी ही तो करनी है। वो हम कोर्ट या मंदिर में कर सकते हैं! फिर अपने सबसे करीबी लोगों को बुला कर उनको बढ़िया खाना खिला देते हैं! फिर चलते हैं, हनीमून पर!” मैं मुस्कुराया, “क्या कहती हो?”
“माँ के बर्थडे पर शादी करना बढ़िया थॉट है जानू!”
“है न?”
“हाँ! लेकिन डैडी पता नहीं मानेंगे या नहीं!”
“अरे, उनको हम प्रोपोज़ल देंगे। मानना या नहीं मानना, वो उनकी प्रॉब्लम है!”
“हा हा!”
“और मैंने डैड से कहा है कि वीकेंड पर सभी के साथ यहाँ आएँ। वो, माँ, काजल, उसके बच्चे - सभी!”
“काजल भी आएगी?” डेवी उत्सुकतापूर्वक मुस्कुराई।
“हाँ क्यों नहीं? मैंने कहा न - वो अब मेरी बड़ी बहन जैसी है। जब से माँ और डैड ने उसको गोद ले लिया है तब से!”
“हा हा हा! हनी, मैं कुछ कह नहीं रही हूँ। मुझे सच में अच्छा लगेगा अगर तुम्हारे सभी अज़ीज़ लोग यहाँ आते हैं और हम उनसे मिलते हैं!”
“आर यू श्योर?”
“हंड्रेड परसेंट!”
“हनी?” मैंने कहा।
“हम्म?”
“मैं तुमसे अपनी कोई बात छुपा कर नहीं रखना चाहता... मैं नहीं चाहता कि हमारी मैरिड लाइफ में उसके कारण कोई टेंशन आए।”
वो मुस्कुराई, “ओके!”
“सो, आई टोल्ड यू अबाउट काजल, राइट?”
“यस!”
“वेल, शी हैड माय बेबी!”
“व्हाट!” मुझे लगा कि देवयानी इस बात से नाराज़ हो गई।
“बट द बेबी डाइड!”
“व्हाट! कैसे?” अचानक ही इस बात से उसकी नाराज़गी गायब हो गई, और वो इस बात से दुखी हो गई कि मेरे बच्चे की मृत्यु से मुझे कितना दुःख हुआ होगा।
मैंने उसको पूरा वृत्तांत सुनाया। वो बेचारी बीच बीच में ‘ओह हनी’, ‘ओह हनी’ कह कह कर मुझे स्वांत्वना देती रही। जब सब कुछ उसने सुन लिए तो बोली,
“कितना दुःख हुआ होगा न काजल को!”
“और मुझे जो दुःख हुआ वो?”
“आई नो हनी! आई ऍम वैरी सॉरी फॉर योर लॉस!”
“लेकिन तब से हमारे रिलेशन में बदलाव आ गया - माँ डैड ने उसको अपनी बेटी बना लिया, और वो वहाँ रहने लगी।”
“डैड और माँ अमेज़िंग हैं न?”
“बहुत!”
“बट थैंक यू फॉर टेलिंग मी एवरीथिंग!”
“तुम नाराज़ तो नहीं हो?”
“पागल हो क्या? बिलकुल भी नहीं! तुम्हारे जैसे सच्चे आदमी को ऐसे थोड़े न जाने दूँगी हाथ से!” देवयानी हँसते हुए बोली, “बट हनी, अब जब हम अपने सीक्रेट्स शेयर कर ही रहे हैं, तो मैं आपको अपने भी कुछ सीक्रेट्स बता दूँ?”
“हाँ! आई ऍम आल इयर्स!”
मेरे कुछ कहने की प्रतीक्षा न करते हुए, डेवी ने मुझे अपने अतीत के बारे में बताना शुरू कर दिया। उसने अपने एक पुराने अफेयर के बारे में बताया जो कोई छः साल पहले हुआ था! मेरे ही कहने पर उसने उस बॉयफ्रेंड के साथ अपने यौन अनुभव के बारे में बताया। लेकिन सबसे ज़रूरी बात उसने जो बताई वो यह थी कि वो आदमी बेहद चालाक और धूर्त किस्म का था, जो केवल उसकी और उसके डैडी की दौलत चाहता था। इसलिए डेवी ने उससे कन्नी काट ली। साथ ही साथ इस तरह के रिश्तों नातों से डेवी का भरोसा ही उठ गया। उसने यह भी बताया कि उस अफेयर के समाप्त होने के बाद कैसे जयंती दी ने उसे अपने कुछ दोस्तों के साथ उसकी जोड़ी जमाने की ‘असफल’ कोशिश की।
फिर उसने अपनी फंतासियों के बारे में बताया। जब मैंने उन सबके बारे में सुना, तो सच में मुझे डेवी का यह पहलू जान कर बहुत आश्चर्य हुआ! मुझे नहीं पता था कि डेवी इतनी साहसी और बोल्ड हो सकती है! मन ही मन मैंने सोचा, कि अगर डेवी चाहती है, तो मैं उसकी फंतासी ज़रूर पूरी करूँगा। कुछ नहीं, तो कोशिश तो करूँगा! देखते हैं!
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nice update..!!नया सफ़र - लकी इन लव - Update #16
जहाँ देवयानी के घर में हमारे रिश्ते को लेकर बड़ी तेजी से प्रगति हुई थी, वहीं मेरे घर पर भी उसको लेकर उत्साह में कोई कमी नहीं थी। डैड, माँ और काजल तीनों ने आज रात ही में इस बारे में सारी मंत्रणा कर डाली। सभी यह जानकर खुश थे कि मुझे फिर से अपना प्यार मिल गया है। मेरा काजल के साथ अनोखा सम्बन्ध था - वो भी मेरी बड़ी के जैसे या कहिए कि गार्जियन के जैसे ही बर्ताव कर रही थी। वो भी बहुत खुश थी कि मैं जो ‘डिज़र्व’ करता हूँ, वो मुझे मिल रही है! सच में, इन तीनों का हृदय कितना बड़ा है! उन तीनों के लिए ही बस यह मायने रखता है कि क्या मैं खुश हूँ! डैड ने कहा कि वो कोशिश करेंगे कि शुक्रवार रात की टिकट मिल जाय - नहीं तो शनिवार को या तो दिन या फिर रात के लिए कोशिश करनी पड़ेगी।
भारतीय रेलवे ने अभी हाल ही में ‘तत्काल’ टिकट आरक्षण की योजना शुरू की थी... यही लगभग एक महीने पहले। चूँकि इसके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते थे, इसलिए तत्काल ट्रेन की बुकिंग कराना उस समय आसान था। डैड सरकारी मुलाज़िम थे, लिहाज़ा उनकी जान पहचान भी थी बुकिंग केंद्र में। इसलिए उन्होंने सवेरे सवेरे ही किसी को फ़ोन कर के बता दिया कि उनको दिल्ली जाने के लिए पाँच तत्काल टिकट चाहिए थे, और वापस आने के लिए जब भी उपलब्ध हो।
मैं सवेरे लगभग साढ़े छः बजे उठा। मैंने डेवी को भी उठाया, जो अभी भी बिस्तर पर लस्त पड़ी हुई थी, और मीठी नींद का आनंद ले रही थी। मतलब सवेरे वाला राउंड करने का मौका नहीं था। जब डेवी उठी, तो मैंने उसको कहा कि अपने ऑफिस के कपड़े ले कर मेरे घर आ जाए - और वहीं से नहा कर हम दोनों साथ में ऑफिस चले जाएँगे। उसको यह आईडिया अच्छा लगा। उसने अपनी अलमारी से टी-शर्ट और शॉर्ट्स निकाल कर पहन ली, और अपने डैडी से बात करने कमरे से बाहर चली गई। इस बीच मैंने भी अपने कपड़े पहन लिए।
जब मैं उनसे बात करने निकला, तो उनको मेरे डैड से फ़ोन पर बातें करते हुए पाया। वो बड़े शिष्टाचार से डैड को दिल्ली में अपने घर आमंत्रित कर रहे थे। वो डैड से कोई सोलह सत्रह साल बड़े रहे होंगे और आई ए एस भी रह चुके थे, लेकिन फिर भी उनके बात करने के अंदाज़ में कैसा भी ग़ुरूर नहीं सुनाई दे रहा था। सच में - अगर परिवार के स्तर पर देखा जाए, तो हमारी कोई हैसियत ही नहीं थी उनके सामने! फिर भी उनको इस रिश्ते पर कोई आपत्ति नहीं थी। बड़ी बात थी - और मैं खुद को बहुत भाग्यशाली मानता हूँ कि मुझे ऐसे गुणी लोगों का आशीर्वाद मिला!
खैर, जब फ़ोन कॉल ख़तम हुआ, तो मैंने डेवी को अपने साथ ले जाने की मंशा दर्शायी। वो चाहते थे कि हम नाश्ता कर के घर से निकलें। लेकिन जब प्लान अलग हो तो मज़ा नहीं आता। कुछ देर की मान मनुहार के बाद वो मान गए।
उधर डेवी के डैडी से बात करने के बाद डैड को शुक्रवार की रात का टिकट मिल गया - लेकिन केवल चार टिकट ही मिले। सुनील ने कहा कि वो घर पर ही रह जाएगा। कोई बात नहीं! वैसे भी ‘लड़की देखने’ के लिए वो क्यों जाए! वो तो भैया ने देख ही ली हैं! अब तो जब वो ‘भाभी’ बनेंगी, तब ही वो उनसे मिलेगा! सच भी है - किशोरवय लड़कों को इन सब बातों में मज़ा नहीं आता। वो केवल बोर ही होता, और उसकी पढ़ाई में व्यवधान भी आता। दो महीने बाद उसका ग्यारहवीं का एग्जाम था, इसलिए किसी ने कोई आपत्ति नहीं जताई, और न ही निराशा! सुनील का लक्ष्य बड़ा था और महत्वपूर्ण था। उसमें कोई भी कैसा भी विघ्न नहीं डालना चाहता था।
मैंने डैड का यह सन्देश डेवी को दे दिया। वो भी उससे मिलने की मेरे माता-पिता की तत्परता को देख कर बहुत खुश तो हुई, लेकिन थोड़ी घबरा भी गई। जब मैंने उससे कारण पूछा कि उसे ऐसा क्यों लगा, तो उसने जवाब दिया कि पता नहीं मेरे माता पिता उसको पसंद करेंगे या नहीं! उसकी सबसे बड़ी चिंता हमारे बीच का उम्र का बड़ा अंतर था। मैंने उसे समझाया कि यह न तो मेरे लिए, और न ही मेरे पेरेंट्स के लिए कोई समस्या वाली बात थी! वे केवल एक चीज चाहते थे - हमारी खुशी! बस!
शनिवार सुबह सुबह मैं सभी को लिवाने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुँच गया। सबको इतने महीनों बाद देख कर बड़ा आनंद मिला। लतिका फुदकती हुई गुड़िया जैसी आई और मेरी गोद में चढ़ गई। सच में! बड़ा सुकून मिला। अब जा कर लगा कि मेरे जीवन में भी सब सामान्य हो गया है! आज दोपहर ही में डेवी के घर जाने का प्लान था, लिहाज़ा हम सभी नाश्ता कर के जल्दी जल्दी तैयार होने लगे।
माँ अपनी होने वाली बहू से पहली बार मिलने जा रही थीं - इसलिए वो खाली हाथ तो नहीं आ सकती थीं। इसलिए वो देवयानी और जयंती दीदी के लिए काटन (कपास नहीं) सिल्क की साड़ियाँ लाई थीं। साथ ही साथ सोने की एक चेन भी। डैड देवयानी के डैडी के लिए रेशमी कुरता और धोती लाए थे - अपने से बड़ों को देने के लिए वो हमेशा यही उपहार लाते थे। हाँ, बस इसकी गुणवत्ता बहुत अधिक थी क्योंकि सभी कपड़े सीधा कारीगरों से खरीदे गए थे। यहाँ दिल्ली में यही सामान पाँच गुना क़ीमत पर मिलता! जयंती दीदी के पति और दोनों बच्चों के लिए लखनवी चिकन के कुर्ते और पाजामे भी थे और साथ में मिठाईयाँ।
जब हम देवयानी के घर पहुंचे, तो उसके डैडी ने हमारा यथोचित स्वागत किया - लेकिन माँ और डैड दोनों ने ही और उनकी देखा देखी काजल ने भी उनके पैर छू कर उनका आशीर्वाद लिया। ऐसे संस्कारी परिवार को देख कर डैडी ऐसे ही लहालोट हो गए। कहने की आवश्यकता नहीं कि किसी भी तरह की बात करने से पहले ही डैडी को मेरा पूरा परिवार बहुत पसंद आया। सबसे अंत में मैंने उनके पैर छुए तो उन्होंने मुझे ‘जीते रहो बेटा’ टाइप का आशीर्वाद दिया। लतिका भी उनके पैर छूने वाली थी, तो उन्होंने उसको बीच में ही रोक कर अपनी गोदी में उठा लिया और उसके गालों को चूमते हुए कहा,
“अरे मेरी प्यारी बिटिया! बेटियाँ पैर नहीं छूतीं! तुम मेरी गोदी में रहो!”
मुझे उनका लतिका को इस तरह लाड़ करना बहुत अच्छा लगा।
उधर जयंती दीदी के हस्बैंड और उनका बड़ा बेटा भी हमारे स्वागत के लिए उपस्थित थे। लेकिन पैर छूने वाला काम केवल बेटे ने किया। हम सभी अंदर आए और बहुत देर तक सामान्य बातें - जैसे कि कैसे हैं, कोई तकलीफ तो नहीं हुई, स्वास्थ्य कैसा है, क्या करते हैं, आपके शहर / गाँव में क्या चल रहा है इत्यादि इत्यादि! बातचीत में ये सब बातें केवल फिलर होती हैं। अच्छी बात यह है कि डैडी जितना आदर से माँ और डैड से बात कर रहे थे, उतने ही आदर से काजल से भी कर रहे थे। बाद में देवयानी ने मुझे बताया कि उसने डैडी से काजल और उसके मेरे और मेरे परिवार से रिश्ते के बारे में उनको बताया था। सच में - देवयानी के पिता एक बेहद गुणी, अच्छे, और सरल - सुलझे हुए आदमी थे!
कोई पैंतालीस मिनट के बाद देवयानी और जयंती दीदी कमरे में आये। देवयानी मुस्कुराती हुई, उसी पारम्परिक अंदाज़ में आई - हाथों में चाय की ट्रे लिए! खाने की ट्रे जयंती दीदी के हाथों में थी। देवयानी ने लाल रंग की रेशमी, ज़री वाली साड़ी पहनी हुई थी, और जयंती दीदी ने बसंती रंग की, हरे बॉर्डर वाली साड़ी पहनी थी। दोनों ही ने बारी बारी से माँ और डैड के पैर छुए। और काजल से गले मिलीं। और मैं तो बस देवयानी को देखता रह गया - केवल अपने पहनावे में छोटा सा परिवर्तन करने से ही वो अप्सरा जैसी दिख रही थी! जयंती दी भी कोई कम नहीं लग रही थीं! कुछ देर तक मेरी बोलती ही बंद हो गई। मिलने के कोई आधे घंटे के भीतर ही सभी एक दूसरे से इतना सहज महसूस कर रहे थे जैसे बरसों की जान पहचान हो!
लतिका उम्र में जयंती दीदी के बड़े बेटे के ही बराबर थी। वो उसको अपनी गोदी में ले कर दुलार कर रही थीं।
“आपको क्या अच्छा लगता है?”
“मुझको खेलना अच्छा लगता है!” लतिका ने अपनी कोमल आवाज़ में कहा।
“हा हा! और क्या अच्छा लगता है?”
“गाना!”
“अरे वाह! कुछ हमको भी सुनाइए फिर?”
“क्या सुनाऊँ? गाना, या गीत?”
अब इसका अंतर तो हमको भी नहीं मालूम था - लिहाज़ा जयंती दी ने कहा, “गीत?”
“जी ठीक है!” कह कर लतिका उनकी गोदी से उतर गई, और ‘सावधान’ की मुद्रा में आ कर सभा के बीच में खड़ी हो गई। उसको ऐसे करता देख कर सभी लोग चुप हो गए और सोचने लगे कि बच्ची क्या गाने वाली है! उसका आत्मविश्वास देख कर मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो गया - ‘इतनी छोटी बच्ची और इतना कॉन्फिडेंस! कमाल है!’
फिर उसने अपनी मीठी, बच्चों वाली आवाज़ में कहा, “मैं आपके सामने श्री द्विजेंद्रलाल राय की रचना प्रस्तुत करने वाली हूँ। यह हमारी भारत माता की वंदना है।”
“धन-धान्ये-पुष्पे भरा आमादेर ए वसुंधरा, ताहार माझे आछे देश ऐक सकल देशेर शेरा।
शे जे स्वप्नो दिये तोरीम शे देश स्मृति दिये घेरा, ऐमोन देशटि कोथाओ खूंजे पाबे नाको तुमि।
सकल देशेर रानी शे जे आमार जन्मोभूमि।
शे जे आमार जन्मोभूमि, शे जे आमार जन्मोभूमि!”
देवयानी और जयंती दीदी ने अपनी जीभ अपने दाँतो तले दबा ली! उनको यकीन ही नहीं हुआ कि ऐसी नन्ही सी बच्ची ऐसा कुछ करिश्मा कर सकती है!
“चंद्र सूर्य ग्रह तारा कोथाय उजोल ऐमोन धारा, कोथाय ऐमोन खेले तोरीर ऐमोन कालो मेघे।
तार पाखीर डाके घूमिये पोडी पाखीर डाके जेगे, ऐमोन देशटि कोथाओ खूंजे पाबे नाको तुमि।
सकल देशेर रानी शे जे आमार जन्मोभूमि।
शे जे आमार जन्मोभूमि, शे जे आमार जन्मोभूमि!”
“वाह वाह वाह!” सभी लोग लतिका के गाने पर आह्लादित हो कर तालियाँ पीटने लगे!
सच में - कैसा मीठा गान!
लतिका भी तेजी से बड़ी हो रही थी। कितना कुछ मिस कर रहा था मैं अपने जीवन में! समझ नहीं आ रहा था कि समय के इस अथाह प्रवाह को मैं कैसे सम्हालूँ!!
“खूब शुंदोर!” देवयानी के डैडी बोल पड़े, “हृदय गदगद होए गेलो! खूब तरक्की करो बेटा! सबका नाम रोशन करो!”
“कितना मीठा ‘गीत’ गाया आपने!” देवयानी ने लतिका के सामने ज़मीन पर बैठते हुए कहा और उसको अपने सीने में भींचते हुए, उसको दुलारते हुए बोली, “किसने सिखाया आपको?”
“मम्मा ने!”
“अरे वाह!”
“हा हा! मैंने नहीं,” काजल बीच में बोल पड़ी, “मैं अम्मा हूँ, मम्मा माँ जी हैं!”
“क्या!”
अब ये बात तो मेरे लिए भी नई है! माँ ने कब बंगाली भाषा सीख ली?
“जी दीदी, मैं अम्मा हूँ - और अम्मा की अम्मा, मम्मा हैं!” काजल ने हँसते हुए खुलासा किया।
अगर देवयानी के मन में हमारे परिवार को ले कर थोड़ा भी संशय रहा होगा, तो बस इस एक छोटे से वाक्य से जाता रहा होगा। ऐसा सरल, प्रेम करने वाला परिवार उसको बहुत मुश्किल से मिलता।
अब आगे का समय यूँ ही हँसते बोलते बीत गया।
बीच में जब चारों स्त्रियों को मौका मिला तो माँ ने देवयानी और जयंती दीदी से कहा,
“... पिंकी बेटा, यह ठीक है कि तुम हमारी बहू हो - लेकिन तुमको मेरे पैर छूने की कोई जरूरत नहीं है। जयंती - तुमको तो बिलकुल भी नहीं! हम चारों समझो कि बहनों जैसी हैं - हमारी उम्र में कोई अंतर नहीं है। इसलिए, सच में, अगर तुम कम्फ़र्टेबल महसूस करती हो, तो मुझे अपनी बड़ी बहन मानो! न कि अपनी सास!”
माँ की ऐसी बातें सुन कर देवयानी मुस्कुराई - उसको अन्तः यह जानकर राहत मिली कि हमारे बीच उम्र का अंतर माँ के लिए कोई मुद्दा ही नहीं था - और बोली, “माँ, आपको अपनी बड़ी बहन और अपनी माँ - दोनों के रूप में देखना पसंद करूंगी! जब जैसा मन करेगा वैसा!”
उसकी बात पर सभी हँसने लगीं।
जयंती दी बहुत खुश थीं कि उनकी छोटी बहन की होने वाली सास ऐसी खुली हुई, और सहेली जैसा व्यवहार कर रही हैं। वो हमेशा से चाहती थीं कि डेवी को बहुत प्यार करने वाला परिवार मिले - माँ के अभाव में पली हुई बच्ची सूखी मिट्टी समान होती है, जो प्रेम और स्नेह के जल को सोख लेती है।
“हा हा हा! यार ये तो बहुत गड़बड़ है! लेकिन ठीक है। जब हम दोनों प्राइवेट में मिलें, तो मुझे तुम ‘दीदी’ कह कर बुलाना, लेकिन अमर के सामने नहीं… वो बेचारा कंफ्यूज हो जाएगा… हा हा हा!”
“दीदी... आप बहुत नटखट लड़की हो!” जयंती दी ने माँ को छेड़ा।
“अरे, इसमें मैं क्या करूँ! उसने जो डिसिज़न लिए हैं, उसके परिणाम भी भुगतने होंगे न। हा हा!” माँ सचमुच में मजे ले रही थीं, “अब बताओ... तुम दोनों कैसे मिले?”
देवयानी ने माँ को बताया कि हम कैसे मिले, और हमारा सम्बन्ध आगे कैसे बढ़ा। उसने अपने काम इत्यादि के बारे में भी माँ को बताया। माँ को यह जान कर अच्छा लगा कि जब मुझे भावनात्मक समर्थन और प्यार की आवश्यकता थी, तब देवयानी मेरे साथ खड़ी हुई थी! गाढ़े का साथी ही सच्चा साथी होता है। माँ ने यह बात देवयानी को बोली। उसके पूछने पर माँ ने संक्षेप में गैबी के साथ अपने संबंधों के बारे में भी बताया, और उससे वायदा भी किया कि वो उससे वैसा ही प्यार करेंगी... या शायद उससे भी ज्यादा! ऐसे ही बातें करते करते अंत में, जिज्ञासावश, माँ ने देवयानी से एक व्यक्तिगत प्रश्न पूछ लिया।
“देवयानी बेटा, क्या तुम दोनों ने सेक्स किया, या वैसे ही हो?”
“हाय भगवान्! दीदी! तुम मुझसे ऐसा कैसे पूछ सकती हो?”
“अरे, अगर तुम एम्बारास मत महसूस करो! ओके, कुछ मत कहो। मैं तो बस ये सोच रही थी कि तुम इतनी सुन्दर सी हो, तो वो बिना तुम्हे प्यार किए कैसे रह सकता है!”
“दीदी, क्या तुमको सच में लगता है कि मैं मैं सुंदर हूँ?”
“अरे! बेशक! तुमको इस बात में कोई संदेह है? तुम बहुत खूबसूरत हो - देखने में भी, और अंदर से भी!”
“ओह दीदी! मैं कभी-कभी... मतलब अब भी... मुझे लगता है कि अमर को कोई उसकी अपनी उम्र की लड़की मिलनी चाहिए... मुझे ऐसा लगता है कि मैं अपने फ़ायदे के लिए उसको एक्सप्लॉइट कर रही हूँ!”
“खबरदार कि तुमने ऐसा सोचा भी कभी!” माँ ने ज़ोर दे कर कहा, “... अच्छा, मुझे एक बात बताओ, क्या तुम अमर से प्यार करती हो?”
“ओह दीदी! मैं उसे बहुत प्यार करती हूँ!”
“और क्या वो भी तुमसे उतना ही प्यार करता है?”
“बेशक दीदी... नहीं तो ये नौबत ही न आती!”
“तो मुझे ये समझाओ कि तुम्हारा साथ, उसका एक्सप्लोइटेशन कैसे है?”
“मतलब उसे कोई अपनी उम्र की...”
“उम्र का क्या है बेटा? मेरी तुम्हारी उम्र में क्या अंतर है? लेकिन मुझसे तुमको माँ वाला ही प्यार मिलेगा!”
डेवी मुस्कुरा दी।
“मेरी बच्ची, हर किसी को प्यार करने का और प्यार पाने का अधिकार है। तुम और अमर बहुत भाग्यशाली हो, कि तुमको एक दूसरे का साथ, एक दूसरे का प्यार मिला है! और मैं तुम दोनों के लिए बहुत खुश हूँ! प्यार में उम्र मायने नहीं रखती। इसलिए ये सब विचार मन से बाहर निकाल दो! भगवान् करें, कि तुम दोनों हमेशा खुशहाल रहो!” माँ ने मुस्कुराते हुए देवयानी का माथा चूमा, “मेरा यही आशीर्वाद है!”
डेवी ने भावनाओं और स्नेह से अभिभूत होकर माँ को अपने गले से लगा लिया।
“माँ, मैं सच में सेल्फ़िश तो नहीं हूँ न?” डेवी ने एक बार और पूछा।
“यदि तुम अमर को ढेर सारा प्यार दे रही हो, और बदले में ढेर सारा प्यार पा रही हो, तो... मैं कहूँगी कि ऐसा स्वार्थी होना बहुत अच्छा है!”
तब तक मैं माँ के पास आया उनको सभी को बाहर बुलाने। हमारी शादी की तारिख निश्चित करनी थी।
हम कुछ भी कहते, उसके पहले ही देवयानी ने कहा, “डैडी,” फिर हमारी तरफ़ देख कर, “माँ डैड - मेरी एक रिक्वेस्ट है!”
“हाँ बेटा, बोलो न” डैड ने बड़े दरियादिली से कहा।
“जी, मैं सोच रही थी कि हमारी शादी XX फरवरी को हो - माँ का बर्थडे भी है उसी दिन!”
“क्या!” माँ का चेहरा देखने वाला था, “जुग जुग जियो बिटिया रानी! सदा मंगल हो तुम्हारा!”
उनको यकीन ही नहीं हुआ कि देवयानी ऐसी बात कह सकती है! इतना बड़ा सम्मान!
“लेकिन बेटा,” देवयानी के डैडी बोले, “इतनी जल्दी...”
“भाई साहब, जल्दी तो है - लेकिन...” डैड देवयानी के डैडी को समझाने लगे।
उधर एक तरफ तो माँ अपनी आँखों से गिर रहे आँसूं पोंछने लगीं, तो दूसरी तरफ़ काजल देवयानी को अपने गले से लगा कर चूमने लगी, “आप बहुत अच्छी हो दीदी! हम सभी बहुत लकी हैं! बस अब आप घर आ जाओ - जितना जल्दी हो सके, उतना!”
देवयानी मुस्कुराई, “हाँ दीदी, अब मैं भी बस यही चाहती हूँ!”
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बहुत बहुत धन्यवाद मित्र।मैं इस फ़ोरम पर नया हो
लेकिन ये कहानी बहुत ही सुंदर लिखी हैं।
हमेशा इस तरह से ही लिखें।
आप के अपडेट का इंतजार रहेग
बहुत बहुत धन्यवाद मेरे भाईnice update..!!
aakhir dono family ka milan ho hi gaya..devyani ko maa se milkar bahot achha laga aur maa ke janmdin pe shaadi karne ka idea jarur amar ka tha lekin devyani ki sahmati se hi sab hona tha aur usne sabke samne apna vichar rakh ke sahmati de hi di aur bakiyon ki bhi le legi..iss wajah maa toh bahot khush hogi apni bahu pe..!!