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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

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Kala Nag

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Kala Nag

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मित्रों अगर पोस्ट छोटा लगे तो मन खराब मत करना
बस मैंने पुरी कोशिश की है
पता नहीं कहाँ तक सफल हो पाया हूँ
पर पढ़ने के बाद समीक्षा जरूर प्रदान करना
 
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Parthh123

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Kala naag bhai ek to ab ap hafte 10 din me ek update dene lge hai aur wo bhi jb ka kahte hai uske 2 din bad update post krte hai. Pahle to timely aur jaldi jaldi update dete the. Mana ki ap busy rahte hai but ye to hmesha ka hai but story suru krte time sab write jaldi jaldi update dete hai jaise jaise story popular hoti jati hai waise waise Sare write bahut busy ho jate hai aur ek time aisa ata hai jb story bnd ho jati hai. Es forum ki lgbgh 97% stories aisi hai jo puri nhi hui hai. Baki ap bhi usi raste pe bdhte hue lg rhe hai hme. Ummid hai nirash nhi krenge ap story complete krenge. Baki apki marzi but updates ko dekhkr ab aisa feel ane lga hai hme.
Agr meri bat buri lge to maf krna but jo lga wo bol diya. Thank you
 
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Kala Nag

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👉एक सौ उनतीसवां अपडेट
-----------------------------

दो दिन बाद

सुबह सुबह सुरज अभी निकला भी नहीं था, हर दिन की तरह विश्व की मोबाइल बजने लगती है l विश्व एक मुस्कान के साथ आँखे मूँदे हुए ही कॉल को उठाता है l

विश्व - गुड मॉर्निंग जी...
रुप - गुड मॉर्निंग... तो इसका मतलब यह हुआ कि... तुम्हें मालुम है कि... इतनी सुबह तड़के मैं ही तुम्हें जगाती हूँ...
विश्व - कोई शक...
रुप - पर तुम्हारी बातों से ऐसा नहीं लगता...
विश्व - क्यूँ... क्यूँ नहीं लगता...
रुप - मुझे लगता है... तुम पहले से ही जगे हुए हो.... मुझसे बात करके... मुझे गुड मॉर्निंग कह कर सिर्फ़ फॉर्मालिटी निभा रहे हो...
विश्व - ह्म्म्म्म... ऐसा क्यूँ लग रहा है आपको...
रुप - बस लग रहा है...
विश्व - आपको क्या पता... आपने क्या रोग लगा दिया है... हर सुबह आपकी ही आवाज़ की खनक सुनने की आश में यह कमबख्त नींद टुट जाती है...
पर यकीन मानिये...
अभी भी हम आँखे मूँदे हुए हैं...
क्यूँकी ख़यालों में आप ही की तस्सबुर लिए खोए हुए हैं...
रुप - ओ हो.. क्या बात है... आज कल जो भी मुहँ से निकल रहा है... सब शेरों शायरी बन कर निकल रहे हैं...
विश्व - क्या करें... रोग ही ऐसा लगा है..
रुप - ओ हो.. बड़ा भयंकर रोग है... तो इसका इलाज क्या है...
विश्व - लाइलाज मर्ज है... क्या पता इसका क्या दवा है... बस आपकी फोन की दुआ कर रहे हैं... और आप हर सुबह फोन कर हमको जगा रहे हैं...
रुप - ह्म्म्म्म हूँ... बस बस... इतना भी मत उड़ो... धरती पर आओ... वैसे आज तुम्हारा प्लान क्या है...
विश्व - गाँव है... कनाल या नदी की ओर जाना तो है नहीं... क्यूंकि सर्कार की कृपा से इस घर में शौचालय बनवा दिया है...
रुप - छी.. छी... छी... देखो मुझे सुबह सुबह ऐसे छेड़ोगे तो कॉल काट दूंगी...
विश्व - (हँस देता है) ठीक है... ठीक है... मेरा छोड़िए... आपका प्लान क्या है...
रुप - (एक उम्मीद भरी गहरी साँस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म... कास तुम यहाँ होते... आज हम छटी गैंग पार्टी लेते तुमसे...
विश्व - पार्टी... किस बात की पार्टी...
रुप - क्या तुम भी... जान बुझ कर अनजान बन रहे हो... कल तुम्हारा रिजल्ट आया ना... तुम्हारा लाइसेंस नंबर भी आ गया... और कल ही माँ ने अल मोस्ट सभी अखबार में... तुम्हारा पैड प्रमोशन भी करदिया है... तो जाहिर सी बात है... पुरे स्टेट को मालुम हो गया होगा या फिर... हो जाएगा.... यकीन ना आए... तो आज की अखबार देख लो...
विश्व - ओ हो... क्या बात है... आज कल माँ के साथ... बड़ी गहरी खिचड़ी बन रही है....
रुप - क्यूँ... तुम्हें जलन हो रही है... हूँह्ह्ह्... जाओ जाओ और अखबार देखो... माँ ने कैसे तुम्हारा प्रमोशन किया है...
विश्व - हमारे यहाँ अखबार आने में अभी टाइम है... टीलु अभी थोड़ी देर बाद उठेगा... यशपुर जाएगा... फिर वहाँ से अखबार लाएगा...
रुप - अच्छा तो अखबार टीलु लाएगा... और तुम क्या करोगे...
विश्व - तब तक... आपके ख़यालों में खोए रहने का प्लान है....
रुप - क्यूँ दीदी से आशीर्वाद लेने नहीं जाओगे...
विश्व - जाऊँगा तो जरुर... अखिर मेरा सब कुछ दीदी ही तो है... उनकी आशीर्वाद के वगैर... मैं क्या... मेरी हस्ती क्या... मेरी वज़ूद ही क्या...
रुप - ह्म्म्म्म... अच्छा मैं फोन रखती हूँ...
विश्व - क्यूँ बुरा लगा...
रुप - नहीं तो... ऐसी कोई बात नहीं है...
विश्व - देखिए... आप मेरी जिंदगी हैं... पर मेरी वज़ूद मेरी दीदी है... और जो तरासा हुआ विश्व प्रताप को आप देख पा रहे हो.. उसकी वज़ह मेरी माँ है... मेरी जिंदगी में आप तीनों अहम हो... कोई एक छूट गया... तो मैं टुट जाऊँगा...
रुप - स्सॉसरी...
विश्व - किस लिए...
रुप - कुछ पल के लिए ही सही... मुझे.... दीदी से... थोड़ी जलन हो गई...
विश्व - और अब...
रुप - कास के मैं अपनी जिंदगी का कुछ हिस्सा उनके संगत में बिताई होती...
विश्व - तब तो मेरी जिंदगी में मेरी यह नकचढ़ी राजकुमारी कभी ना होती...
रुप - (बिदक कर) क्या... क्या कहा...
विश्व - हाँ सच में... तब मेरी जिंदगी में... एक सुशील, शांत, शर्मीली... सीधी सधी राजकुमारी होती...
रुप - (मुस्करा देती है) कहीं ऐसा तो नहीं... तुम्हें यह नकचढ़ी पसंद नहीं...
विश्व - अरे क्या बात कर रही हैं आप... पसंद बहुत है... आप ही से तो मेरी जिंदगी में रंगत है... वर्ना जिंदगी बेरंग हो जाती...
रुप - अच्छा जी...
विश्व - जी...
रुप - अच्छा कब आ रहे हो...
विश्व - क्यूँ...
रुप - देखो... तुम मुझे फिर से छेड़ने लगे...
विश्व - अजी हम अपना हक अदा कर रहे हैं...
रुप - देखो मुझे गुस्सा मत दिलाओ... वर्ना...
विश्व - वर्ना...
रुप - वर्ना लगता है... बचपन की बातेँ भूल गए हो... कोई ना... सामने मिलो तो सही... तुम्हें काट खाऊँगी...
विश्व - वाव.. सच में... आप मुझे काट खाओगे...
रुप - ऐ फट्टू... तुम फिर उड़ने लगे... फोन पर ज्यादा होशियारी मत दिखाओ... कुछ बातेँ हैं... जो तुम से ना हो पाया... ना हो पायेगा...
विश्व - ठीक है... हम से नहीं हो पाया... पर क्या आपसे हो पायेगा...
रुप - तुम... तुम मुझे चैलेंज कर रहे हो...
विश्व - उँम्म्म्... हूँ... हाँ ऐसा ही कुछ...
रुप - आ... हा हा आ... जीत भी तुम्हारी और पट भी तुम्हारी... चलो जाओ... ऐसा कुछ नहीं होगा...
विश्व - क्यूँ... क्यूँ नहीं होगा...
रुप - हूँम्म्म्म... करना तो तुम्हें होगा...
विश्व - क्यूँ मैंने तो सुना है... आज कल की लड़कियाँ... बहुत फास्ट होती हैं... और जो मेरी नकचढ़ी है... वह तो फास्टेस्ट है...
रुप - अच्छा... तो इसका मतलब यह हुआ... के तुम लड़कों के दुम निकले हुए हैं... जो हर वक़्त दबा कर दुबके रहते हैं...
विश्व - देखिए अभी आप मुझे चैलेंज कर रही हैं...
रुप - हाँ... कर रही हूँ... बोलो क्या कर लोगे...
विश्व - मैं...
रुप - हाँ तुम..
विश्व - मैं.. वह...
रुप - हाँ हाँ तुम...
विश्व - वह.. टीलु आ गया... मैं बाद में बताता हूँ...
रुप - हूँह्ह्ह् फट्टु...

रुप देखती है विश्व फोन काट दिया था,वह अपनी बेड से उठ कर बालकनी की पर्दा हटाती है, पेड़ों की ओट में धीरे धीरे निकल रही सुरज की रौशनी से उजाला फैल रहा था, और उधर विश्व फोन काट कर झठ से बिस्तर छोडकर बाहर आता है l सुबह खिल चुकी थी, विश्व रुप की बातों को याद कर अपने आप पर हँसने लगता है l तभी उसके फोन पर एक मैसेज आता है l विश्व फोन निकाल कर मैसेज को पढ़ने लगता है l


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अपने घर में सरपंच तैयार हो रहा था l तभी दरवाज़े पर दस्तक होने लगती है l दरवाजा खोलते ही उसे सामने शनिया, भूरा, शुकुरा, सत्तू और उनके गुर्गे दिखते हैं, जिन्हें देख कर वह चौंकती है और घर के अंदर भाग जाती है l सरपंच उसे घबराया हुआ देख सरपंच बाहर आकर इन्हें देखकर थोड़ी देर के लिए हैरान हो जाता है l

सरपंच - (हकलाते हुए) त त त तुम.. तुम लोग इस वक़्त.. यहाँ...
सत्तू - क्यूँ तेरा घर पाकिस्तान में है... नहीं आना चाहिए था क्या...
सरपंच - नहीं ऐसी बात नहीं... पर इस वक़्त तुम लोगों को यहाँ देख कर... गाँव वाले क्या समझेंगे...
शनिया - उनको जो समझना था... वह उसी दिन समझ गए... जिस दिन हमने घूम घूम कर लोगों के घरों में चिटफंड कर्ज की कागजात बांटें थे...
सरपंच - फिर भी... यहाँ.. तुम लोग क्यूँ आए...
भूरा - अपने साथ ले जाने के लिए...
सरपंच - हाँ हाँ चलो फिर...
शुकुरा - अभी टाइम है... तु जानता है ना... वहाँ पर क्या होने वाला है...
सरपंच - हाँ भाई हाँ... पर तुम लोग मेरे यहाँ आने से अच्छा था... दरोगा बाबु के साथ आते...
शनिया - गए थे... बाहर ताला लगा हुआ था... सोचा तुझे मालुम होगा...
सरपंच - नहीं नहीं कसम से मुझे नहीं पता है...
सत्तू - देख बे सरपंच... दरोगा को गवाह बनाने का प्लान तेरा था... इसलिए... वह कैसे पंचायत भवन पहुँचेगा वह तेरी जिम्मेदारी...
सरपंच - आरे वाह... प्लान तुम लोगों का... दरोगा को शीशे में उतारने के लिए... राजा साहब से... मुझसे कहलवाया... वह आयेंगे या नहीं... उसका जिम्मा मेरा क्यूँ... नहीं नहीं... दरोगा वहाँ पर कैसे आयेंगे... यह तुम लोग देखो...

तभी उदय वहाँ हाथ में एक पेपर लेकर आता है l उसे अपने बीच देख कर सरपंच बोल पड़ता है l

सरपंच - लो शैतान को याद किया... इसका दुम आ पहुँचा... ऐ ग्राम सेवक के बच्चे... कहाँ है तेरा बाप...
उदय - मेरा या तुम लोगों का...
सत्तू - चल किसीका भी हो... दरोगा है कहाँ...
उदय - कल रात को वह यशपुर गए हैं... और मुझे तुम लोगों को खबर करने के लिए कह गए थे... आज तहसील ऑफिस में... किसी वारंट की तारीख निकली है... जिसके लिए उनका वहाँ होना जरूरी है... देर हो सकती है... इसलिए तुम लोगों को... थोड़ा लेट में पंचायत शुरु करने के लिए कह गए हैं....
सरपंच - (शनिया से) तो क्या हम... किसी और दिन के लिए सुनवाई को खिसकायें...
शनिया - नहीं... यह और भी अच्छी बात है... वैसे भी पुलिस के सामने मार पीट ठीक नहीं है...
सरपंच - हाँ जैसे पहले उखाड़े थे... बिल्कुल वैसे ही उखाड़ोगे...
भूरा - (सरपंच की गर्दन पकड़ लेता है) क्यूँ बे कहना क्या चाहता है...
सरपंच - छोड़ो मेरा गर्दन... (कह कर अपनी गर्दन छुड़ाता है) मैंने दरोगा को तुम लोगों की हिफाजत के लिए वहाँ पर चाहता था... वर्ना... राजगड़ में ऐसा कोई घर नहीं... ऐसा कोई गली नहीं... जहां पर तुम लोगों की रात में विश्व की हाथों कुटाई की चर्चा ना हो रहा हो...
शनिया - उन घरों में... तेरा भी घर होगा... तेरे घर की गली भी होगी... क्यूँ सही कहा ना... (सरपंच सकपका जाता है, शनिया उसकी गिरेबान पकड़ कर अपनी तरफ खिंच कर) अबे हराम के... हमारी कुटाई की चर्चा करने वालों की भी हम से कितना फटती है... देखा नहीं या समझा नहीं... अभी थोड़ी देर पहले तेरी बीवी कैसे अंदर भाग गई...
सरपंच - म म मेरा मतलब यह नहीं था...
शनिया - सुन बे भोषड़ी के... तुम जैसे के लिए ही... हमने यह पंचायत बुलाया है... ताकि चर्चा कभी बंद ना हो पाए... सिर्फ चर्चा का विषय बदल जाए...
सरपंच - (गिड़गिड़ाते हुए) फिर भी... पुलिस अगर हो... तो तुम्हारे लिए... मेरा मतलब है... हम सबके लिए अच्छा है...
उदय - सरपंच ठीक कह रहा है... यह देखो... (न्यूज पेपर दिखाते हुए) अब वह कोई मामुली बंदा नहीं है... हाइकोर्ट का वकील बन गया है... यह देखो... एडवोकेट विश्व प्रताप महापात्र... और एक बात... मैं यहाँ आने से पहले... रास्ते में एक डाकिया मिला था... जो वैदेही का पता पुछ रहा था...
सरपंच - क्या... (हैरान हो कर) लाओ पहले यह अखबार दिखाओ...

उदय से अखबार लेकर शनिया, शुकुरा, भूरा के साथ साथ सरपंच सब मुहँ फाड़े पेपर पर छपे विश्व की तस्वीर देख रहे थे l

सरपंच - यह... यह अब कोई मामुली बंदा नहीं है... इसके पर हाथ फेरने से पहले हर तरफ से तैयारी मुकम्मल होनी चाहिए... एक चुक बहुत भारी पड़ सकता है...

शनिया सरपंच की गिरेबान छोड़ देता है l और उदय से पेपर लेकर अच्छे से देखने लगता है l

सरपंच - मेरी मानों... दरोगा से बात करो... वहाँ पर पुलिस वालों की मौजूदगी बहुत जरूरी है... उनकी रिपोर्ट... बाद में हमारे ही काम आएगी...

शनिया अपनी मोबाइल निकाल कर रोणा का नंबर पर कॉल लगाता है l कॉल के उठते ही

शनिया - हैलो दरोगा बाबु...
@ - हाँ बोलो क्या बात है...
शनिया - आज आपने वादा किया था... पंचायत भवन में मौजूद रहने के लिए...
@ - अर्रे हाँ... अरे भाई.. मैं वारंट पर तहसील आया हूँ... एक काम करता हूँ... मैं अपने तीन थोड़े छोटे ओहदेदार ऑफसरांन को भेज रहा हूँ... एक आध घंटे में पहुँच जायेंगे... वह लोग सब सम्भाल लेंगे... चिंता मत करो... पंचायत सभा रूकनी नहीं चाहिए...
शनिया - जी... क्या नाम हैं उनका... मेरा मतलब है... उन ऑफिसरों का...
@ - पहला ऑफिसर है... सब इंस्पेक्टर शैतान सिंह... दुसरा ऑफिसर है.. असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर मक्खन सिंह... और हवलदार जैलांन सिंह...
शनिया - जी ठीक है... हम उनका कहाँ पर इंतजार करें...
@ - पंचायत भवन में...

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वैदेही अपनी दुकान में चूल्हे में आग लगाने के बाद थोड़ी पुजा करती है l गौरी दुकान में पड़े एक कुर्सी पर बैठ जाती है l जब वैदेही पुजा ख़तम कर मुड़ती है तब गौरी उससे सवाल करने लगती है l

गौरी - आज तेरा मन बहुत खुश क्यूँ है... और क्या सोच कर चूल्हे में आग लगाई है... दिन से हफ्ते हफ्ते से महीना हो गया है... कोई नहीं आ रहा है... तेरे इस दुकान पर खाना खाने... यह जानते हुए भी... आज तुने चूल्हे में आग लगाई है...
वैदेही - मेरा विशु अब वकील बन चुका है... उसे अब सरकारी स्वीकृति भी मिल गई है... इस खुशी में दावत तो बनती है ना काकी....
गौरी - हाँ हाँ बनती है... पर हम कुछ लोगों के बीच... तेरी यह खुशी बांटने कोई नहीं आएगा... जैसे तेरे दुख बांटने कोई नहीं आया था...
वैदेही - आयेंगे काकी आयेंगे... आज नहीं तो कल सही... पर आयेंगे...
गौरी - क्यूँ तु बावरी होई जा रही है... तु इतने सालों से... इनके लिए क्या नहीं किया बोल... अपनी कमाई के पैसों से दूसरों के कर्ज उतारी... उनके घरों की इज़्ज़त बचाई... ज्यादातर बच्चों को... अपने दम पर पढ़ा रही है... फिर भी... कोई नहीं है यहाँ पर... तेरा एहसान मानने वाले...
वैदेही - (हँसते हुए गौरी के पास बैठ जाती है) काकी... कोई मेरा एहसान माने इसलिये मैंने किसीकी मदत नहीं की... मैं सबको अपना मनाती हूँ... इसलिए मैं सबकी मदत कर रही हूँ... तुम देखना... आज जो पढ़ रहे हैं... कल सब एक एक विशु की तरह नाम कमाएंगे...
गौरी - हूँह्ह... पता नहीं तु सपना देखना कब छोड़ेगी...
वैदेही - काकी... तुम ना बहुत जल्दी हार मान जाति हो... (समझाते हुए) अभी जिंदगी बहुत बाकी है... देखना... तुम अपनी जीते जी देखोगी... इस गाँव को बदलते हुए... इस गाँव के लोगों को बदलते हुए...

वैदेही की बहस के आगे गौरी हार मानते हुए अपनी जगह से उठती है और अंदर की ओर जाने लगती है l

वैदेही - कहाँ जा रही हो काकी... गल्ले पर नहीं बैठना क्या...
गौरी - (बिदक कर) नहीं बैठना है मुझे... वैसे भी... तेरा विशु और उसका पुंछ चमगादड़ आयेगा नाश्ते के लिए.... और कोई नहीं आने वाला है आज... कोई दावत नहीं होगी आज.. सब के सब आज पंचायत भवन में होंगे...
वैदेही - (चिहुँक कर उठती है) क्या... अरे हाँ... ठीक कहा तुमने... आज तो पंचायत है...

तभी दीदी दीदी चिल्लाते हुए टीलु आता है l दुकान के अंदर पहुँचकर हांफने लगता है l

गौरी - क्या रे नासपीटे... किसकी जान खा कर आ रहा है..
टीलु - (मुहँ बना कर) खा कर नहीं बुढ़िया रानी... खाने आया हूँ...
गौरी - क्या कहा.. कमबख्त... मुझे बुढ़िया कह रहा है...
टीलु - क्या काकी... (मलाई मारने के अंदाज में) मैंने तो तुमको गुड़िया रानी कहा है...
गौरी - कीड़े पड़े तेरे जुबान पर.. झूठ बोलते शर्म नहीं आई...
टीलु - ऐ... (धमकाते हुए) काकी... कभी सुना है... किसी बुढ़िया को रानी कहते हुए... (नाटक करते हुए) मैं तो तुम्हें अपना समझ कर... इज़्ज़त देते हुए... रानी कह रहा हूँ... तुम हो कि नासपीटे... कमबख्त.. और ना जाने क्या क्या कह रही हो... (वैदेही से रहा नहीं जाता, टीलु का कान पकड़ कर खिंचने लगती है) आ आह... आह... दीदी दर्द कर रहा है...
वैदेही - कब से देख रही हूँ.. यह क्या मस्ती लगा रखा है... माफी मांग..
टीलु - ऐ बुढ़िया...
गौरी - खिंच और जोर से कान...
वैदेही - क्या (कान खिंचने लगती है)
टीलु - आह... नहीं नहीं... काकी ओ काकी... माफ़ कर दो... प्लीज...
गौरी - अब आया ना रास्ते पर...
टीलु - कहाँ रास्ते पर... दुकान पर आया हूँ.. दीदी छोड़ो ना... आह कहीं मर मरा ना जाऊँ...
गौरी - तो मर आज.. वैदेही... मत छोड़ना आज उसे...

पर वैदेही मुस्कराते हुए छोड़ देती है l टीलु अपना कान पर हाथ फेरने लगता है l

वैदेही - ज्यादा नाटक मत कर...
गौरी - क्यूँ छोड़ दिया उसे.. मरने तक तो पकड़ कर रखती...
टीलु - देखो काकी... अगर मैं मर गया होता... तो तुम ही पछताती...
गौरी - अच्छा... वह क्यूँ भला..
टीलु - बताता हूँ... (एक न्यूज पेपर निकाल कर वैदेही को दिखाते हुए) यह देखो दीदी... भाई का क्या मस्त फोटो आया है... वह भी पहले पन्ने पर...

वैदेही पेपर पर वकील के कपड़ों में विश्व की तस्वीर देख कर बहुत खुश हो जाती है l पेपर के दाहिने तरफ एक चौथाई पन्ने पर विश्व के फोटो के साथ " शिक्षा का अधिकार का श्रेष्ठ उदाहरण एडवोकेट विश्व प्रताप महापात्र"

यह पढ़ कर वैदेही की आँखों से कुछ बूंद आँसू टपक पड़ते हैं l गौरी वैदेही से पेपर लेकर विश्व की तस्वीर देखती है l

टीलु - दीदी... दुख भरे दिन बीते रे दीदी... शुभ दिन आयो रे... फिर यह आँसू क्यूँ...
दीदी - यह खुशी की आँसू है.. एक तपस्या का फल है... एक कदम न्याय की ओर है... कास आज विशु... पंचायत भवन में आए...
टीलु - दीदी... विश्व भाई ने जो दुनिया देखा है... जो सीखा है.. उसीके हिसाब से जी रहे हैं... मदत उसकी करो... जो मांगे... जिसे बिन मांगे दो... वह मदत बेकीमत हो जाता है... बिन मांगे उसकी मदत किया जा सकता है... जिसमें अपनी लड़ाई लड़ने की ज़ज्बा हो... हिम्मत हो... आज विश्वा भाई उनकी लड़ाई लड़ भी लें तो क्या होगा... आज यह राजा जाएगा... कल इन्हीं पर राज करने कोई दुसरा राजा आ जाएगा... तब... तब क्या होगा... (वैदेही चुप रह कर एक टक टीलु को देखे जा रही थी, टीलु घबरा जाता है) ऐ... ऐसे क्या देख रही हो दीदी...
वैदेही - देख रही हूँ... विशु के साथ रह कर... उसके जैसे बातेँ करने लगा है...
टीलु - (शर्मा जाता है)
गौरी - ज्यादा मत शर्मा... वर्ना गलती से लोग लड़की समझ बैठेंगे...
टीलु - (बिदक कर मुहँ बना कर गौरी को देखने लगता है)
वैदेही - खैर अब यह बता... विशु और तु नाश्ता करने तो आओगे ना...
टीलु - जरुर दीदी जरुर... अच्छा चलता हूँ...

कह कर टीलु गौरी को खा जाने वालीं नजर से घूरते हुए बाहर की ओर जाने लगता है l गौरी भी दांत पिसते हुए उसे देख रही थी, जैसे ही टीलु बाहर की ओर होने लगा गौरी चिल्ला कर

गौरी - ऐ नासपीटे रुक...
टीलु - (टीलु अपनी आँखे सिकुड़ कर और मुहँ बना कर गौरी को देख कर) क्या है...
गौरी - यह बता... तु मर गया तो मेरा किस बात का पछतावा होगा...
टीलु - काकी अगर मैं मर गया... तो तुझे ढोने वालों में से एक कंधा कम हो जाएगा... समझी...

इतना कह कर टीलु बिना पीछे देखे भाग जाता है l गौरी दुकान पर टीलु को गाली बकती रह जाती है l उसकी हालत देख कर वैदेही हँसने लगती है l पर धीरे धीरे वैदेही की हँसी रुक जाती है, एक संतोष भरी नजर से विश्व की फोटो को देखते हुए फोटो पर बड़े प्यार से हाथ फेरने लगती है l

गौरी - तुझे क्या लगता है... विशु जाएगा...
वैदेही - पता नहीं काकी... पर मुझे तो जाना ही होगा...
गौरी - पर मुझे तो विशु की बात ही सही लगती है... उन लोगों की दुनिया में... तुम लोगों की जरूरत भी है... मुझे तो नहीं लगता... उन लोगों को तुम्हारी कोई जरूरत...
वैदेही - ऐसा नहीं है काकी... आज उन्हें महसूस नहीं हो रहा है... और विशु को समझ नहीं आ रहा है... पर हम सब जुड़े हुए हैं...
गौरी - इसका मतलब तु जाएगी... (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म... तुम दो बहन भाई के रिस्तों को समझना बहुत मुश्किल है...
गौरी - जानती हो काकी... कल जब विशु के बारे में मासी से बात कर रही थी... मासी ने कहा था... की मासी की और मेरी विशु से खुन का रिश्ता नहीं है... पर अगर भगवान कभी पलड़े मैं एक तरफ मुझे और दुसरी तरफ मासी को रख कर चुनने को कहे... तो विशु मुझे ही चुनेगा...
गौरी - यानी तुझे यकीन है... पंचायत भवन जाएगा...
वैदेही - हाँ... मेरे लिए वह जाएगा....

तभी एक डाकिया आता है और दुकान के सामने अपनी साइकिल रोकता है l दुकान के बाहर खड़े होकर

डाकिया - क्या यह वैदेही महापात्र जी का पता है...
गौरी - हाँ क्या हुआ
डाकिया - नहीं शायद यह डाक राजगड़ के इतिहास में पहली बार आया है.... आपके नाम...
वैदेही - क्या.. क्या आया है...
डाकिया - पता नहीं... दो दो डाक हैं... मैं यशपुर डाक थाने से पहली बार... राजगड़ आया है... दोनों सरकारी है... एक गृह मंत्रालय से है... और दूसरा उच्च न्यायालय से....
वैदेही - क्या...



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पंचायत भवन
समय साढ़े ग्यारह बजे
लोग धीरे धीरे भवन में भरते जा रहे हैं l अपनी जगह बना कर बैठ रहे हैं l वैदेही भी भवन के अंदर औरतों के झुंड के बगल में एक जगह बना कर बैठी हुई थी l वह आशा भरी नजर दौड़ा कर विश्व को ढूँढ रही थी l पर उसे कहीं भी विश्व नजर नहीं आता l उधर भवन के बाहर सरपंच, उदय और शनिया के गुर्गे उन पुलिस वालों का इंतज़ार कर रहे हैं l थोड़ी देर बाद पुलिस की एक जिप्सी दिखती है जो उनके पास आकर रुकती है l जिप्सी से दो ऑफिसर उतरते हैं, ड्राइवर गाड़ी को एक जगह ले जा कर पार्क कर इन लोगों के पास आ कर खड़ा हो जाता है l सरपंच देखता है वह एक कांस्टेबल था l सरपंच तीनों के सीने में नेम प्लेट से पहचान लेता है वे सब इंस्पेक्टर शैतान सिंह, असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर मक्खन सिंह और कांस्टेबल जैलांन सिंह थे l तीनों में एक खासियत थी तीनों के चेहरे पर बड़ी बड़ी मूंछों के साथ आखों पर काला चश्मा था l

सरपंच - आइए आइए दरोगा जी...
शैतान सिंह - तो तुम सरपंच हो...
सरपंच - जी...
शैतान सिंह - ठीक है... यह लोग कौन हैं... और यह लोग हमें ऐसे घूर घूर कर क्यूँ देख रहे हैं... क्या कभी पुलिस नहीं देखे क्या...
सरपंच - नहीं ऐसी बात नहीं है... आपको तो हमारे गाँव के दरोगा जी... मेरा मतलब है रोणा बाबु जी भेजा है ना...
शैतान सिंह - हाँ... पर इन लोगों के देखने की तरीके से लगता है... यह लोग हम पर शक कर रहे हैं...
सरपंच - क्या... नहीं नहीं दरोगा जी... (कह कर शनिया और उसके गुर्गों की ओर देख कर इशारों से हाथ जोड़ने के लिए कहता है, शनिया और उसके सारे आदमी इन पुलिस को हाथ जोड़ते हैं)
शैतान सिंह - (शनिया से) तुम शनिया हो...
शनिया - जी...
शैतान सिंह - तुम्हारे बारे में... अनिकेत बाबु ने मुझे सबकुछ बता दिया है.... घबराओ मत... हम यहाँ तुम्हारे मदत के लिए ही आये हैं... अब प्लान क्या है बताओ...
भूरा - साहब... पंचायत में मुमकिन है... बीच बहस में दंगा हो...
माखन सिंह - ओ.. तो दंगा करने का प्लान है... वह भी कानून के आड़ में...
सत्तू - जी साहब... इसीलिये तो हम रोणा साहब को खोज रहे थे...
जैलांन - अबे तुम्हारा रोणा साहब ने ही हमें भेजा है... हम यहाँ एक से भले तीन आए हैं...
शैतान सिंह - हाँ... पर यह बोलो... दंगे में कितने निपटेंगे...
शनिया - सिर्फ एक... (तभी उसके कान में शुकुरा आकर कुछ कहता है, वह शुकुरा को हैरान व परेशान भरे नजरों से देखने लगता है)
शैतान सिंह - क्या हुआ... सब ठीक है ना...
शनिया - ककु कुछ नहीं... कुछ नहीं...
शैतान सिंह - पर तेरा थोबड़ा तो कुछ और बता रहा है...
शनिया - क्या... क्या बता रहा है...
शैतान सिंह - यही के... बलि का बकरा गायब है...
शनिया - (चौंक जाता है, आँखे फैल जाते हैं) यह... आपने कैसे जान लिया...
शैतान सिंह - बोला ना तेरा थोबड़ा बोल रहा है... तो प्रोग्राम आगे बढ़ाना है... या...
शनिया - नहीं साहब.... (दांत पिसते हुए) प्लान में कोई तब्दीली नहीं होगी... बकरा ना सही... बकरे की अम्मा ही सही... आज तो हर हाल में बलि चढ़ेगी...
शैतान सिंह - मतलब...
शनिया - उसकी दीदी है... वह फुदकेगी... उछलेगी...
शैतान सिंह - तो...
शनिया - तो हम उसे ही निपटा देंगे...
शैतान सिंह - कैसे...
शुकुरा - हमारे लोग... भीड़ के बीच से हमला बोल देंगे... सबको लगेगा... भीड़ हमलावर हो गई... बेचारी की जान चली गई...
शैतान सिंह - एक मिनट... तुम लोग क्या करोगे कैसे करोगे... हमें कोई मतलब नहीं... पर पत्थर बाजी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए...
शनिया - क्यूँ साहब...
शैतान सिंह - अबे घन चक्करों... पत्थरबाजी से हम लोग भी घायल हो सकते हैं... क्यूँ सरपंच...
सरपंच - हाँ.. हाँ हाँ.. बात तो सही है... एक को निशाना बनाओगे... चुका तो हम लपेटे में आयेंगे...
शैतान सिंह - हाँ... अगर ऐसा कुछ हुआ... तो... (होल्स्टर से रिवाल्वर निकाल कर) जो मेरे नजर में आएगा... उसे भुन के रख दूंगा...
शुकुरा - पर मान लीजिए... भीड़ में से कोई छुपे हुए हथियारों से हमला कर दिया तो...
शैतान सिंह - कोई वादा नहीं... पर शर्त है... आँच हम तक ना आए....
भूरा - नहीं जाएगा... साहब... पर फर्ज कीजिए... उसे बचाने... बीच में कोई आया...
शैतान सिंह - अगर एक दो आए... तो उसकी जिम्मेदारी तुम लोगों की... हाँ अगर एक दो से ज्यादा आए... तो... शांति बनाए रखने के लिए... हमें गोलीबारी करनी होगी...
सरपंच - ठीक है साहब अब अंदर चलें... लोग आ गए हैं... हम पंचायत फैसला सुना कर... फैसले पर मोहर लगाने की कवायद करेंगे...
शैतान सिंह - ठीक है... चलो फिर...

सभी भवन के अंदर आते हैं l लगभग आधे से ज्यादा गाँव वाले मौजूद थे l सरपंच पंडाल पर एक जगह किनारे पर पुलिस वालों को बिठा देता है और खुद अपने पंचो को लेकर बीच पंडाल में टेबल पर बैठ जाता है l लोगों में पहले पंक्ति में समिति सभ्य और कुछ वार्ड मेंबर बैठे हुए हैं l सरपंच एक समिति सभ्य को इशारा करता है l वह समिति सभ्य माइक के पास जाकर सबको स्वागत करता है और सरपंच को माइक पर आकर सभा बुलाने कारण कहने को बुलाता है l सरपंच अपनी पगड़ी ठीक करता है फिर माइक पर आता है l एक नजर लोगों के बीच बैठा शनिया पर डालता है, शनिया हल्के से अपना सिर हिला कर शुरु करने के लिए इशारा करता है l सरपंच एक इत्मीनान भरी साँस छोड़ते हुए औरतों के झुंड में नजर दौड़ाता है l उसे वैदेही की झलक दिख जाती है l

सरपंच - देवियों और स्वजनों... आप सबका स्वागत है... आप सबकी जानकारी के लिए बता दूँ के... यहाँ कुछ विषयों पर चर्चा होगी... चर्चे में हर पक्ष की बात सुनी जाएंगी... चर्चे के उपरांत पंचायत अपना निर्णय सुनाएगी... और आप सबको वह निर्णय स्वीकार करना होगा... यह मैं याद दिलाना बेहतर समझता हूँ... के यह राजा क्षेत्रपाल जी का राजगड़ है... यहाँ केवल राजा साहब के अनुमोदित कानून ही मान्य है... इसलिए यहाँ पर जो न्याय होगा... वह अंतिम होगा.... थाना और कचहरी केवल नाम मात्र के लिए है... इसके बाद जो भी निर्णय के विरुद्ध जाएगा... उसे राजा क्षेत्रपाल के राज के नियम के विरुद्ध समझा जाएगा... अब मैं... चर्चा के लिए विषय को आपके समय प्रस्तुत करने के लिए... पंचो से अनुमती मांगता हूँ...
वैदेही - (औरतों के बीच से उठ कर) एक मिनट सरपंच जी... क्या मैं एक सवाल कर सकती हूँ...
सरपंच - जी जरुर...
वैदेही - आपने अभी कहा... यहाँ का न्याय अंतिम न्याय है... थाना और कचहरी केवल नाम मात्र के लिए है....
सरपंच - जी...
वैदेही - तो फिर यहाँ मंच के सिरे पर वह पुलिस वाले क्यूँ बैठे हुए हैं...
सरपंच - वह आमंत्रित अतिथि हैं... जो पंचायत की कार्यप्रणाली की निरीक्षण करने के पश्चात... सर्कार को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे... मुझे लगता है आप समझ गई होंगी... इसलिए बैठ जाएं... (वैदेही बैठ जाती है) क्या चर्चा आरंभ करने के लिए मुझे पंचों की इजाजत प्राप्त है... (पंचों में आए सभी लोग अपना सिर हिला कर सहमती देते हैं) तो देवियों और स्वजनों... जैसा कि आप सब जानते हैं... डेढ़ वर्ष पूर्व राजगड़ मल्टीपरपोज कोआपरेटिव सोसाइटी का गठन हुआ था... उस सोसाइटी के कुछ वरिष्ठ अधिकारीयों ने सोसाईटी की आय के लिए... एक चिट फंड चलाने की मंजुरी दी गई थी... अब यह देखा गया है... गाँव के कुछ लोग चिट फंड से... अपनी हद से ज्यादा कर्ज उठा चुके हैं... इसलिए उन कर्जो की अदायगी पर चर्चा के लिए आप सब यहाँ आमंत्रित हैं... (कुछ लोग आपस में खुसुर-पुसुर करने लगते हैं, जाहिर से बात थी किसीको कुछ भी समझ में नहीं आई) तो जिन लोगों को इस बाबत नोटिस मिला है... उनका कुछ कहना है... (सरपंच पूछता है, कोई कुछ नहीं कहता)
वैदेही - (अपनी जगह से उठती है) सरपंच जी... अगर कर्जा राजगड़ मल्टीपरपोज कोआपरेटिव सोसाइटी की चिट फंड से दिया गया है... तो उसकी वसूली के लिए... नोटिस शराब की ठेके चलाने वाले क्यूँ थमाए...
सरपंच - (कुछ देर के लिए सोच में पड़ जाता है, फिर) चिट फंड का अपना कोई पैसा नहीं है... वे लोग... चिट फंड में अपना पैसा लगाए हैं... इसलिए...
वैदेही - कमाल करते हैं... सरपंच जी... चिटफंड चलाओ आप... मगर पैसा लगाएं शराब बेचने वाले...
सरपंच - क्या आपको नोटिस मिला है...
वैदेही - जी... जी नहीं...
सरपंच - तो आप क्यूँ बीच में कुद रही हैं... जिनको नोटिस मिला है... उन्हें पूछने.. जानने दीजिए... बैठ जाइए...

मन मसोस कर वैदेही बैठ जाती है l बेबसी के साथ भीड़ में विश्व को ढूंढने लगती है पर उसे कहीं भी विश्व नहीं दिखता l

सरपंच - तो पहला नाम है... हरिया... अरे बाप रे पाँच लाख रुपये... क्यूँ हरिया... इतने पैसों का क्या किया तुमने...
हरिया - (हाथ जोड़ कर, रोनी सुरत बनाते हुए अपनी जगह से उठ कर) सरपंच जी... मुझे नहीं पता कब और कैसे मैंने इतने पैसे लिए...
सरपंच - यह क्या शनिया... हरिया कह रहा है.. इतना पैसा कब लिया... उसे मालुम ही नहीं है...
शनिया - यह झूठ बोल रहा है... आज तक मेरे भट्टी में आकर जितना मर्जी उतना पिया है... यहाँ तक उल्टी करने के बाद भी पिया है... इसलिए मैंने उसे... चिट फंड में से निकाल कर पिलाया... पर अब और नहीं.. पाँच लाख हो गए... अब मुझे मेरे पैसे चाहिए... बस...
सरपंच - यह क्या सुन रहा हूँ हरिया...
हरिया - यह शनिया भाई झूठ बोल रहा है... मैंने कभी हज़ार रुपये इकट्ठे नहीं देखे... और मैं कैसे... कैसे... पांच लाख रुपये तक की दारु पी सकता हूँ...
सरपंच - अरे हरिया... तुने पाँच लाख रुपये के दारु नहीं पी है.. यह दारु तुझे चिटफंड के पैसों से... व्याज के साथ पिलाया है.. असल और व्याज मिला कर पाँच लाख हो गया है...
हरिया - नहीं नहीं... आप ही सोचो सरपंच जी... पी पी कर एक आदमी कितना पी सकता है...
सरपंच - अरे हरिया.. तु अकेला कहाँ है... इनके कर्जे में बिल्लू है... बलराम है... चित्तरंजन है... और कमाल की बात है... सबने पाँच पाँच लाख देने हैं...
शनिया - सरपंच जी...जमीन पुश्तों से राजा साहब के यहाँ गिरवी प़डा है... सिर्फ घर बार बचा है... उन्हें बेचकर.. खुद को बेच कर भी यह कर्ज नहीं चुका सकता हूँ मैं...
सरपंच - अरे भाई... हम यहाँ इसीलिए तो बैठे हैं... आज यह तय करना है... तुम सब के कर्ज कैसे चुकता होगा... जिसे तुम भी मानोगे... और शनिया भी... क्यों शनिया... बात ठीक है ना...
शनिया - (अपनी मूँछों पर ताव देते हुए) बिल्कुल दुरुस्त कहा आपने सरपंच जी...
सरपंच - हाँ तो फिर तुम बोलो शनिया भाई... हरिया तो कह दिया.. घरबार ही नहीं... यह खुद भी बिक जाए... तब भी... पाँच लाख रुपये नहीं चुका पायेगा... ऐसे में... तुम कैसे अपना कर्ज वापस लेना चाहोगे...
शनिया - (अपनी जगह पर खड़ा हो जाता है) पंचों... मैं भी समझता हूँ... आखिर हरिया ही नहीं... चाहे बिल्लू हो या बलराम या चित्तरंजन... सभी मेरे गाँव वाले हैं... इन लोगों में से कोई दुश्मनी तो नहीं मेरी... पर बात पैसों की है... अगर मुझे वापस ना मिला तो मैं और मुझ पर आश्रित मेरे आदमी जिएंगे कैसे... पर मैं बहुत बड़ा दिल रखता हूँ... अब घर देखने के लिए... घर में बीवी... और कमा कर घर चलाने के लिए बाहर मर्द... तो बचे कौन बच्चे... तो इन सबके घरों में जितने भी बच्चे हैं... वह मेरे घर में आकर मेरे बताये हुए काम करें... वादा करता हूँ... एक साल में ही इन सबके कर्ज उतर जाएगा...
सरपंच - वाह.. एक साल में उतर जाएगा... और क्या चाहिए... क्या कहते हो... हरिया और बाकी लोग...

वाह वाह वाह... (खिल्ली उड़ाने के अंदाज में वैदेही अपनी जगह से उठती है और ताली बजानी लगती है) वाह सरपंच... तुने तो कमाल कर दिया... सरपंची छोड तु भड़वा और दल्ला भी बन गया... जिनके घरों की इज़्ज़त आबरू को बचाना था... उन्हीं की सौदा.. उनके माँ बाप से करवा रहा है... वाह...
सरपंच - ऐ लड़की... कब से देख रहा हूँ... न्याय के बीच में... तु टोकने के लिए घुस रही है...
वैदेही - न्याय... थु... यह कह तेरी दल्ले गिरी के बीच क्यूँ घुस रही हूँ...
शैतान सिंह - (अपनी जगह पर खड़े हो कर) सुनो मोहतरमा... तुम ऐसे कैसे किसी सरपंच को गाली दे सकती हो... यह (हरिया को दिखा कर) तुम्हारा कौन लगता है...
वैदेही - आपके सामने यह गरीबों की इज़्ज़त की कीमत लगा रहा है... और आप उसकी तरफदारी कर रहे हैं... हाँ यह मेरा कुछ नहीं लगता.. पर उसके बच्चे मुझे मासी कहते हैं... और उनके लिए मैं किसी भी हद तक जा सकती हूँ...
शैतान सिंह - अच्छा यह बात है... क्या तुम उस हरिया की पैरवी करना चाहती हो... (कह कर शनिया को आँख मारता है) अगर कुछ कहना चाहती हो... तो मंच पर जाओ और कहो...

कह लेने के बाद अपनी भवें नचा कर शनिया की ओर देखता है l वैदेही भी मंच पर चढ़ कर माइक के पास आ जाती है l वैदेही को माइक के पास देख शनिया खुश हो जाता है और अपनी पलकें झपका कर इशारे से शैतान सिंह को अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता है और मन ही मन सोचने लगता है
- यह तो कमाल करदिया दरोगा ने... शिकार को सामने लाकर खड़ा कर दिया... विश्वा नहीं तो विश्वा की बहन ही सही... मरना तो है आज तुझे कमिनी... (आँखों में खुन उतर आता है) कितनी बार मुझे जलील किया है तुने साली रंडी... आज तुझे मार कर अपनी भड़ास निकालूँगा... (अपने आदमियों को तैयार होने के लिए इशारा करता है)
शैतान सिंह - सरपंच जी... इन्हें एक माइक दीजिए... हम भी तो देखें... क्या पैरवी कर लेंगी यह...

सरपंच एक ऑपरेटर को इशारा करता है l वह ऑपरेटर एक माइक लाकर वैदेही को देता है l

शैतान सिंह - तो मोहतरमा जी... आपको किस बात पर ऐतराज है...
वैदेही - इंस्पेक्टर साहब... जैसा कि इस सरपंच ने कहा... डेढ़ साल हुए हैं... कोआपरेटिव सोसाइटी को... तो चिटफंड भी इन्हीं डेढ़ सालों में बना होगा... मैं इतना जानती हूँ... किसी भी चिट फंड चलाने के लिए... सर्कार के साथ साथ आरबीआई की मंजुरी होनी चाहिए... कम से कम... सोसाईटी की मेंबर्स की मंजुरी चाहिए... क्या इनके पास हमारे राज्य सर्कार की या आरबीआई की मंजुरी है... या फिर... सोसाईटी मेंबर्स की मंजुरी है...
सरपंच - इसकी कोई जरूरी नहीं थी... हमारे लिए हमारी सर्कार... राजा साहब हैं...
वैदेही - इसका मतलब तुम लोगों की यह चिटफंड ही गैर कानूनी है... और दुसरी बात... यह बात यहाँ पर बिल्कुल भी तुमने नहीं कहा... हरिया पर कितना कर्जा है... कितने व्याज पर कितने महीनों के बाद... यह पाँच लाख हुआ है...

वैदेही के इतने कहने पर सरपंच का चेहरा ऐसा हो जाता है जैसे उसके हाथों से तोते उड़ गए हों l हरिया की बीवी खड़ी हो जाती है और पूछती है

लक्ष्मी - सही पकडी हो दीदी... हाँ पहले यह बताओ... मेरे मर्द का कर्जा कितना है... व्याज कितना और कितने महीने हुए हैं...
शैतान सिंह - क्यूँ... तु उसकी पत्नी है... तुझे नहीं मालूम...
लक्ष्मी - (हाथ जोड़ कर) साहब... यह शनिया जब भी वसुली के लिए मेरे घर आया है.. कभी खाली हाथ नहीं लौटा है... उसने जब भी जितना पैसा कहा... दीदी ने उसके मुहँ पर मारा है... उसके बावजुद... पाँच लाख कैसे हो गया...
शनिया - ऐ चुप करो तुम सब... (अपने एक आदमी से) बिठा रे उसको...

एक आदमी औरतों के बीच में घुस कर लक्ष्मी को ज़बरदस्ती बैठने के लिए कहता है l लक्ष्मी जिस जोश के साथ उठी थी उसी तेजी के साथ बैठ जाती है l

वैदेही - देखा इंस्पेक्टर साहब... यह है इनकी चाल बाजी... यह अपने घर बच्चों से काम लेने नहीं बुला रहे हैं... बल्कि बढ़ रही बेटीयों को नोचने के लिए बुला रहे हैं... पर मैं जिंदा हूँ अभी... मेरे जीते जी... इस गाँव की किसी भी लड़की पर कोई आँच नहीं आने दूंगी...
शनि - तो आज मर जा फिर... (अपने आदमियों से) देखो गाँव वालों... यह कानून राजा साहब का है... यह बदजात राजा साहब से नमक हरामी कर रही है... उठो और ख़तम कर दो इसे...

भीड़ में से शनिया और उसके सारे लोग पंडाल की ओर भागते हैं और पंडाल पर चढ़ जाते हैं l सभी गाँव वाले यह देख कर डर जाते हैं कि तभी शनिया चिल्लाता है

शनिया - कोई नहीं जाएगा यहाँ से... जो भी इस भवन से बाहर जाएगा... वह राजा साहब का गुनहगार होगा... हम उसे ढूंढ ढूंढ कर मार डालेंगे...

सभी गाँव वाले रुक जाते हैं डरते हुए पंडाल की ओर देखने लगते हैं l वैदेही अपनी जगह पर डट कर खड़ी हुई थी l उसकी आँखों में इतनी हिम्मत थी के शनिया वैदेही से नजरें मिला नहीं पा रहा था l शनिया खुद को सम्भालता है और वैदेही के पास आता है l

शनिया - बड़ा मतलबी निकला तेरा भाई... हमने तो उसे लपेटे में लेने के लिए यह प्लान बनाया था... पर वह आया नहीं... तु हत्थे चढ़ गई... कोई नहीं... आज वह नहीं तु सही... ऐ (अपने आदमियों से) निकालो अपने हथियार...

वैदेही को घेरे हुए सभी अपने अपने हथियार निकालते हैं l सारे हथियार खेती में उपयोग होते हैं l यह सब देख कर भी वैदेही विचलित नहीं होती l

शनिया - किस मिट्टी की बनी है तु... जरा भी डर नहीं लग रहा तुझे...
वैदेही - जिसका विश्वा जैसा भाई हो... उसे किस बात कर....
शनिया - अच्छा... यह बात है... (अपने आदमियों से) काट डालो इस रंडी...

आगे कुछ नहीं कह पाया l एक लात शनिया के निचले जबड़े पर लगता है l वह हवा में उड़ते हुए पंडाल से नीचे कुर्सियों पर गिरता है l वह सम्भल कर उठ कर देखता है l उसीके आदमियों के लिबास में विश्वा उसके आदमियों को धूल चटा रहा है l एक एक आदमी को उठा उठा कर पटक रहा था l पहले से ही उसके हाथों मार खाए हुए थे l थोड़ा डर पहले से ही था l अब विश्व को सामने देख कर उन पर डर और भी हावी हो गया l उनके हाथ पैर चलने से पहले ही विश्व के हाथ पैर चल रहे थे l कोई एक घुसे में तो कोई एक लात से गिर रहा था वह भी पंडाल से छिटक कर नीचे पड़े कुर्सियों पर l शनिया देखा पुलिस वाले बड़े मजे से विश्वा को उसके आदमियों को मारते हुए देख रहे हैं l वह शैतान सिंह के पास जाता है

शनिया - यह आप क्या कर रहे हैं इंस्पेक्टर साब... वह मेरे आदमियों को मार रहा है...
शैतान सिंह - मैंने पहले ही कहा था... मैं सिर्फ गाँव वालों को रोकुंगा... तुम्हारे आदमियों को नहीं...
शनिया - पर वह मेरा आदमी नहीं है...
शैतान सिंह - तुम लोगों के पास हथियार तो है ना... टूट पड़ो उस पर...
शनिया - तो फिर आप क्या करेंगे...
शैतान सिंह - अबे भोषड़ी के... मर्द ही है ना तु... कुछ देर पहले लड़की पर... बड़ी बड़ी हांक रहा था... साले हरामी एक ही लात में क्या छक्का बन गया...

शनिया अपने कपड़ों के बीच से एक तलवार निकालता है और धीरे धीरे विश्वा के पास जाने लगता है l जब तक वह विश्वा के पास पहुँचा शनिया के सारे आदमी भवन के फर्श पर धुल चाट रहे थे l शनिया विश्व के पीछे पहुँच कर हमले के लिए जैसे ही तलवार उठाता है विश्व अचानक मुड़ता है और शनिया के आँखों में घूर कर देखने लगता है l विश्व की ऐसे नजर से शनिया तलवार उठाए वैसे ही मुर्ति बन खड़ा रह जाता है l

विश्वा - तुझे मारने के लिए... मुझे किसी हथियार की जरूरत नहीं है... मेरी यह तीखी नजर ही काफी है... तेरी साँस अटक जाएगी...

शनिया फिर भी वैसे मुर्तिवत खड़ा था l विश्व उसके हाथों से तलवार ले लेता है l शनिया का कोई विरोध नहीं होता l विश्व शनिया को एक धक्का देता है l शनिया कई कदम पीछे जा कर गिरता है l विश्व अब सरपंच की ओर देखता है l सरपंच भय के मारे गिला कर देता है l विश्व तलवार से सरपंच की पगड़ी को निकाल कर उपर उछाल देता है l पगड़ी खुल कर उड़ते हुए धीरे धीरे नीचे गिरने लगता है l विश्व बहुत तेजी से तलवार घुमाने लगता है l इतनी तेज के सिर्फ हवाओं के चिरने की आवाज ही आ रही थी, और आँखों में जैसे बिजली कौंध रही थी l विश्व अचानक तलवार घुमाना बंद कर कमर पर हाथ रखकर खड़ा हो जाता है l जब पगड़ी उड़ते उड़ते विश्व के कंधे के बराबर पहुँचती है, विश्व बहुत तेजी से सिर्फ तीन बार तलवार घुमाता है l पहले ऊपर की ओर फिर दाहिने की ओर फिर बाएँ l पगड़ी की कपड़ा चार बराबर हिस्सों में कट कर उड़ते हुए नीचे बिखर कर गिरता है l यह दृश्य कुछ ऐसा था कि वहाँ पर मौजूद सभी लोग सम्मोहित हो गए थे l जब तक होश में आए तब तक विश्व अपनी दीदी को लेकर वहाँ से जा चुका था l शनिया मुड़ कर देखता है वहाँ पर पुलिस वाले भी नहीं थे

शनिया - वह... वह...
शुकुरा - क्क्क क्या हुआ... भाई..
शनिया - द... द..
शुकुरा - दरोगा...
शनिया - हाँ हाँ हाँ... क क कहाँ गया..
उदय - वह तीन पुलिस वाले... विश्व और उसकी बहन को अपनी गाड़ी में बिठा कर कब के निकल गए
शनिया - क्या...
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
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Kala naag bhai ek to ab ap hafte 10 din me ek update dene lge hai aur wo bhi jb ka kahte hai uske 2 din bad update post krte hai. Pahle to timely aur jaldi jaldi update dete the. Mana ki ap busy rahte hai but ye to hmesha ka hai but story suru krte time sab write jaldi jaldi update dete hai jaise jaise story popular hoti jati hai waise waise Sare write bahut busy ho jate hai aur ek time aisa ata hai jb story bnd ho jati hai. Es forum ki lgbgh 97% stories aisi hai jo puri nhi hui hai. Baki ap bhi usi raste pe bdhte hue lg rhe hai hme. Ummid hai nirash nhi krenge ap story complete krenge. Baki apki marzi but updates ko dekhkr ab aisa feel ane lga hai hme.
Agr meri bat buri lge to maf krna but jo lga wo bol diya. Thank you
भाई अभी पोस्ट कर दिया है
पढ़कर कमेंट जरूर करना
 

Devilrudra

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👉एक सौ उनतीसवां अपडेट
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दो दिन बाद

सुबह सुबह सुरज अभी निकला भी नहीं था, हर दिन की तरह विश्व की मोबाइल बजने लगती है l विश्व एक मुस्कान के साथ आँखे मूँदे हुए ही कॉल को उठाता है l

विश्व - गुड मॉर्निंग जी...
रुप - गुड मॉर्निंग... तो इसका मतलब यह हुआ कि... तुम्हें मालुम है कि... इतनी सुबह तड़के मैं ही तुम्हें जगाती हूँ...
विश्व - कोई शक...
रुप - पर तुम्हारी बातों से ऐसा नहीं लगता...
विश्व - क्यूँ... क्यूँ नहीं लगता...
रुप - मुझे लगता है... तुम पहले से ही जगे हुए हो.... मुझसे बात करके... मुझे गुड मॉर्निंग कह कर सिर्फ़ फॉर्मालिटी निभा रहे हो...
विश्व - ह्म्म्म्म... ऐसा क्यूँ लग रहा है आपको...
रुप - बस लग रहा है...
विश्व - आपको क्या पता... आपने क्या रोग लगा दिया है... हर सुबह आपकी ही आवाज़ की खनक सुनने की आश में यह कमबख्त नींद टुट जाती है...
पर यकीन मानिये...
अभी भी हम आँखे मूँदे हुए हैं...
क्यूँकी ख़यालों में आप ही की तस्सबुर लिए खोए हुए हैं...
रुप - ओ हो.. क्या बात है... आज कल जो भी मुहँ से निकल रहा है... सब शेरों शायरी बन कर निकल रहे हैं...
विश्व - क्या करें... रोग ही ऐसा लगा है..
रुप - ओ हो.. बड़ा भयंकर रोग है... तो इसका इलाज क्या है...
विश्व - लाइलाज मर्ज है... क्या पता इसका क्या दवा है... बस आपकी फोन की दुआ कर रहे हैं... और आप हर सुबह फोन कर हमको जगा रहे हैं...
रुप - ह्म्म्म्म हूँ... बस बस... इतना भी मत उड़ो... धरती पर आओ... वैसे आज तुम्हारा प्लान क्या है...
विश्व - गाँव है... कनाल या नदी की ओर जाना तो है नहीं... क्यूंकि सर्कार की कृपा से इस घर में शौचालय बनवा दिया है...
रुप - छी.. छी... छी... देखो मुझे सुबह सुबह ऐसे छेड़ोगे तो कॉल काट दूंगी...
विश्व - (हँस देता है) ठीक है... ठीक है... मेरा छोड़िए... आपका प्लान क्या है...
रुप - (एक उम्मीद भरी गहरी साँस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म... कास तुम यहाँ होते... आज हम छटी गैंग पार्टी लेते तुमसे...
विश्व - पार्टी... किस बात की पार्टी...
रुप - क्या तुम भी... जान बुझ कर अनजान बन रहे हो... कल तुम्हारा रिजल्ट आया ना... तुम्हारा लाइसेंस नंबर भी आ गया... और कल ही माँ ने अल मोस्ट सभी अखबार में... तुम्हारा पैड प्रमोशन भी करदिया है... तो जाहिर सी बात है... पुरे स्टेट को मालुम हो गया होगा या फिर... हो जाएगा.... यकीन ना आए... तो आज की अखबार देख लो...
विश्व - ओ हो... क्या बात है... आज कल माँ के साथ... बड़ी गहरी खिचड़ी बन रही है....
रुप - क्यूँ... तुम्हें जलन हो रही है... हूँह्ह्ह्... जाओ जाओ और अखबार देखो... माँ ने कैसे तुम्हारा प्रमोशन किया है...
विश्व - हमारे यहाँ अखबार आने में अभी टाइम है... टीलु अभी थोड़ी देर बाद उठेगा... यशपुर जाएगा... फिर वहाँ से अखबार लाएगा...
रुप - अच्छा तो अखबार टीलु लाएगा... और तुम क्या करोगे...
विश्व - तब तक... आपके ख़यालों में खोए रहने का प्लान है....
रुप - क्यूँ दीदी से आशीर्वाद लेने नहीं जाओगे...
विश्व - जाऊँगा तो जरुर... अखिर मेरा सब कुछ दीदी ही तो है... उनकी आशीर्वाद के वगैर... मैं क्या... मेरी हस्ती क्या... मेरी वज़ूद ही क्या...
रुप - ह्म्म्म्म... अच्छा मैं फोन रखती हूँ...
विश्व - क्यूँ बुरा लगा...
रुप - नहीं तो... ऐसी कोई बात नहीं है...
विश्व - देखिए... आप मेरी जिंदगी हैं... पर मेरी वज़ूद मेरी दीदी है... और जो तरासा हुआ विश्व प्रताप को आप देख पा रहे हो.. उसकी वज़ह मेरी माँ है... मेरी जिंदगी में आप तीनों अहम हो... कोई एक छूट गया... तो मैं टुट जाऊँगा...
रुप - स्सॉसरी...
विश्व - किस लिए...
रुप - कुछ पल के लिए ही सही... मुझे.... दीदी से... थोड़ी जलन हो गई...
विश्व - और अब...
रुप - कास के मैं अपनी जिंदगी का कुछ हिस्सा उनके संगत में बिताई होती...
विश्व - तब तो मेरी जिंदगी में मेरी यह नकचढ़ी राजकुमारी कभी ना होती...
रुप - (बिदक कर) क्या... क्या कहा...
विश्व - हाँ सच में... तब मेरी जिंदगी में... एक सुशील, शांत, शर्मीली... सीधी सधी राजकुमारी होती...
रुप - (मुस्करा देती है) कहीं ऐसा तो नहीं... तुम्हें यह नकचढ़ी पसंद नहीं...
विश्व - अरे क्या बात कर रही हैं आप... पसंद बहुत है... आप ही से तो मेरी जिंदगी में रंगत है... वर्ना जिंदगी बेरंग हो जाती...
रुप - अच्छा जी...
विश्व - जी...
रुप - अच्छा कब आ रहे हो...
विश्व - क्यूँ...
रुप - देखो... तुम मुझे फिर से छेड़ने लगे...
विश्व - अजी हम अपना हक अदा कर रहे हैं...
रुप - देखो मुझे गुस्सा मत दिलाओ... वर्ना...
विश्व - वर्ना...
रुप - वर्ना लगता है... बचपन की बातेँ भूल गए हो... कोई ना... सामने मिलो तो सही... तुम्हें काट खाऊँगी...
विश्व - वाव.. सच में... आप मुझे काट खाओगे...
रुप - ऐ फट्टू... तुम फिर उड़ने लगे... फोन पर ज्यादा होशियारी मत दिखाओ... कुछ बातेँ हैं... जो तुम से ना हो पाया... ना हो पायेगा...
विश्व - ठीक है... हम से नहीं हो पाया... पर क्या आपसे हो पायेगा...
रुप - तुम... तुम मुझे चैलेंज कर रहे हो...
विश्व - उँम्म्म्... हूँ... हाँ ऐसा ही कुछ...
रुप - आ... हा हा आ... जीत भी तुम्हारी और पट भी तुम्हारी... चलो जाओ... ऐसा कुछ नहीं होगा...
विश्व - क्यूँ... क्यूँ नहीं होगा...
रुप - हूँम्म्म्म... करना तो तुम्हें होगा...
विश्व - क्यूँ मैंने तो सुना है... आज कल की लड़कियाँ... बहुत फास्ट होती हैं... और जो मेरी नकचढ़ी है... वह तो फास्टेस्ट है...
रुप - अच्छा... तो इसका मतलब यह हुआ... के तुम लड़कों के दुम निकले हुए हैं... जो हर वक़्त दबा कर दुबके रहते हैं...
विश्व - देखिए अभी आप मुझे चैलेंज कर रही हैं...
रुप - हाँ... कर रही हूँ... बोलो क्या कर लोगे...
विश्व - मैं...
रुप - हाँ तुम..
विश्व - मैं.. वह...
रुप - हाँ हाँ तुम...
विश्व - वह.. टीलु आ गया... मैं बाद में बताता हूँ...
रुप - हूँह्ह्ह् फट्टु...

रुप देखती है विश्व फोन काट दिया था,वह अपनी बेड से उठ कर बालकनी की पर्दा हटाती है, पेड़ों की ओट में धीरे धीरे निकल रही सुरज की रौशनी से उजाला फैल रहा था, और उधर विश्व फोन काट कर झठ से बिस्तर छोडकर बाहर आता है l सुबह खिल चुकी थी, विश्व रुप की बातों को याद कर अपने आप पर हँसने लगता है l तभी उसके फोन पर एक मैसेज आता है l विश्व फोन निकाल कर मैसेज को पढ़ने लगता है l


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अपने घर में सरपंच तैयार हो रहा था l तभी दरवाज़े पर दस्तक होने लगती है l दरवाजा खोलते ही उसे सामने शनिया, भूरा, शुकुरा, सत्तू और उनके गुर्गे दिखते हैं, जिन्हें देख कर वह चौंकती है और घर के अंदर भाग जाती है l सरपंच उसे घबराया हुआ देख सरपंच बाहर आकर इन्हें देखकर थोड़ी देर के लिए हैरान हो जाता है l

सरपंच - (हकलाते हुए) त त त तुम.. तुम लोग इस वक़्त.. यहाँ...
सत्तू - क्यूँ तेरा घर पाकिस्तान में है... नहीं आना चाहिए था क्या...
सरपंच - नहीं ऐसी बात नहीं... पर इस वक़्त तुम लोगों को यहाँ देख कर... गाँव वाले क्या समझेंगे...
शनिया - उनको जो समझना था... वह उसी दिन समझ गए... जिस दिन हमने घूम घूम कर लोगों के घरों में चिटफंड कर्ज की कागजात बांटें थे...
सरपंच - फिर भी... यहाँ.. तुम लोग क्यूँ आए...
भूरा - अपने साथ ले जाने के लिए...
सरपंच - हाँ हाँ चलो फिर...
शुकुरा - अभी टाइम है... तु जानता है ना... वहाँ पर क्या होने वाला है...
सरपंच - हाँ भाई हाँ... पर तुम लोग मेरे यहाँ आने से अच्छा था... दरोगा बाबु के साथ आते...
शनिया - गए थे... बाहर ताला लगा हुआ था... सोचा तुझे मालुम होगा...
सरपंच - नहीं नहीं कसम से मुझे नहीं पता है...
सत्तू - देख बे सरपंच... दरोगा को गवाह बनाने का प्लान तेरा था... इसलिए... वह कैसे पंचायत भवन पहुँचेगा वह तेरी जिम्मेदारी...
सरपंच - आरे वाह... प्लान तुम लोगों का... दरोगा को शीशे में उतारने के लिए... राजा साहब से... मुझसे कहलवाया... वह आयेंगे या नहीं... उसका जिम्मा मेरा क्यूँ... नहीं नहीं... दरोगा वहाँ पर कैसे आयेंगे... यह तुम लोग देखो...

तभी उदय वहाँ हाथ में एक पेपर लेकर आता है l उसे अपने बीच देख कर सरपंच बोल पड़ता है l

सरपंच - लो शैतान को याद किया... इसका दुम आ पहुँचा... ऐ ग्राम सेवक के बच्चे... कहाँ है तेरा बाप...
उदय - मेरा या तुम लोगों का...
सत्तू - चल किसीका भी हो... दरोगा है कहाँ...
उदय - कल रात को वह यशपुर गए हैं... और मुझे तुम लोगों को खबर करने के लिए कह गए थे... आज तहसील ऑफिस में... किसी वारंट की तारीख निकली है... जिसके लिए उनका वहाँ होना जरूरी है... देर हो सकती है... इसलिए तुम लोगों को... थोड़ा लेट में पंचायत शुरु करने के लिए कह गए हैं....
सरपंच - (शनिया से) तो क्या हम... किसी और दिन के लिए सुनवाई को खिसकायें...
शनिया - नहीं... यह और भी अच्छी बात है... वैसे भी पुलिस के सामने मार पीट ठीक नहीं है...
सरपंच - हाँ जैसे पहले उखाड़े थे... बिल्कुल वैसे ही उखाड़ोगे...
भूरा - (सरपंच की गर्दन पकड़ लेता है) क्यूँ बे कहना क्या चाहता है...
सरपंच - छोड़ो मेरा गर्दन... (कह कर अपनी गर्दन छुड़ाता है) मैंने दरोगा को तुम लोगों की हिफाजत के लिए वहाँ पर चाहता था... वर्ना... राजगड़ में ऐसा कोई घर नहीं... ऐसा कोई गली नहीं... जहां पर तुम लोगों की रात में विश्व की हाथों कुटाई की चर्चा ना हो रहा हो...
शनिया - उन घरों में... तेरा भी घर होगा... तेरे घर की गली भी होगी... क्यूँ सही कहा ना... (सरपंच सकपका जाता है, शनिया उसकी गिरेबान पकड़ कर अपनी तरफ खिंच कर) अबे हराम के... हमारी कुटाई की चर्चा करने वालों की भी हम से कितना फटती है... देखा नहीं या समझा नहीं... अभी थोड़ी देर पहले तेरी बीवी कैसे अंदर भाग गई...
सरपंच - म म मेरा मतलब यह नहीं था...
शनिया - सुन बे भोषड़ी के... तुम जैसे के लिए ही... हमने यह पंचायत बुलाया है... ताकि चर्चा कभी बंद ना हो पाए... सिर्फ चर्चा का विषय बदल जाए...
सरपंच - (गिड़गिड़ाते हुए) फिर भी... पुलिस अगर हो... तो तुम्हारे लिए... मेरा मतलब है... हम सबके लिए अच्छा है...
उदय - सरपंच ठीक कह रहा है... यह देखो... (न्यूज पेपर दिखाते हुए) अब वह कोई मामुली बंदा नहीं है... हाइकोर्ट का वकील बन गया है... यह देखो... एडवोकेट विश्व प्रताप महापात्र... और एक बात... मैं यहाँ आने से पहले... रास्ते में एक डाकिया मिला था... जो वैदेही का पता पुछ रहा था...
सरपंच - क्या... (हैरान हो कर) लाओ पहले यह अखबार दिखाओ...

उदय से अखबार लेकर शनिया, शुकुरा, भूरा के साथ साथ सरपंच सब मुहँ फाड़े पेपर पर छपे विश्व की तस्वीर देख रहे थे l

सरपंच - यह... यह अब कोई मामुली बंदा नहीं है... इसके पर हाथ फेरने से पहले हर तरफ से तैयारी मुकम्मल होनी चाहिए... एक चुक बहुत भारी पड़ सकता है...

शनिया सरपंच की गिरेबान छोड़ देता है l और उदय से पेपर लेकर अच्छे से देखने लगता है l

सरपंच - मेरी मानों... दरोगा से बात करो... वहाँ पर पुलिस वालों की मौजूदगी बहुत जरूरी है... उनकी रिपोर्ट... बाद में हमारे ही काम आएगी...

शनिया अपनी मोबाइल निकाल कर रोणा का नंबर पर कॉल लगाता है l कॉल के उठते ही

शनिया - हैलो दरोगा बाबु...
@ - हाँ बोलो क्या बात है...
शनिया - आज आपने वादा किया था... पंचायत भवन में मौजूद रहने के लिए...
@ - अर्रे हाँ... अरे भाई.. मैं वारंट पर तहसील आया हूँ... एक काम करता हूँ... मैं अपने तीन थोड़े छोटे ओहदेदार ऑफसरांन को भेज रहा हूँ... एक आध घंटे में पहुँच जायेंगे... वह लोग सब सम्भाल लेंगे... चिंता मत करो... पंचायत सभा रूकनी नहीं चाहिए...
शनिया - जी... क्या नाम हैं उनका... मेरा मतलब है... उन ऑफिसरों का...
@ - पहला ऑफिसर है... सब इंस्पेक्टर शैतान सिंह... दुसरा ऑफिसर है.. असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर मक्खन सिंह... और हवलदार जैलांन सिंह...
शनिया - जी ठीक है... हम उनका कहाँ पर इंतजार करें...
@ - पंचायत भवन में...

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वैदेही अपनी दुकान में चूल्हे में आग लगाने के बाद थोड़ी पुजा करती है l गौरी दुकान में पड़े एक कुर्सी पर बैठ जाती है l जब वैदेही पुजा ख़तम कर मुड़ती है तब गौरी उससे सवाल करने लगती है l

गौरी - आज तेरा मन बहुत खुश क्यूँ है... और क्या सोच कर चूल्हे में आग लगाई है... दिन से हफ्ते हफ्ते से महीना हो गया है... कोई नहीं आ रहा है... तेरे इस दुकान पर खाना खाने... यह जानते हुए भी... आज तुने चूल्हे में आग लगाई है...
वैदेही - मेरा विशु अब वकील बन चुका है... उसे अब सरकारी स्वीकृति भी मिल गई है... इस खुशी में दावत तो बनती है ना काकी....
गौरी - हाँ हाँ बनती है... पर हम कुछ लोगों के बीच... तेरी यह खुशी बांटने कोई नहीं आएगा... जैसे तेरे दुख बांटने कोई नहीं आया था...
वैदेही - आयेंगे काकी आयेंगे... आज नहीं तो कल सही... पर आयेंगे...
गौरी - क्यूँ तु बावरी होई जा रही है... तु इतने सालों से... इनके लिए क्या नहीं किया बोल... अपनी कमाई के पैसों से दूसरों के कर्ज उतारी... उनके घरों की इज़्ज़त बचाई... ज्यादातर बच्चों को... अपने दम पर पढ़ा रही है... फिर भी... कोई नहीं है यहाँ पर... तेरा एहसान मानने वाले...
वैदेही - (हँसते हुए गौरी के पास बैठ जाती है) काकी... कोई मेरा एहसान माने इसलिये मैंने किसीकी मदत नहीं की... मैं सबको अपना मनाती हूँ... इसलिए मैं सबकी मदत कर रही हूँ... तुम देखना... आज जो पढ़ रहे हैं... कल सब एक एक विशु की तरह नाम कमाएंगे...
गौरी - हूँह्ह... पता नहीं तु सपना देखना कब छोड़ेगी...
वैदेही - काकी... तुम ना बहुत जल्दी हार मान जाति हो... (समझाते हुए) अभी जिंदगी बहुत बाकी है... देखना... तुम अपनी जीते जी देखोगी... इस गाँव को बदलते हुए... इस गाँव के लोगों को बदलते हुए...

वैदेही की बहस के आगे गौरी हार मानते हुए अपनी जगह से उठती है और अंदर की ओर जाने लगती है l

वैदेही - कहाँ जा रही हो काकी... गल्ले पर नहीं बैठना क्या...
गौरी - (बिदक कर) नहीं बैठना है मुझे... वैसे भी... तेरा विशु और उसका पुंछ चमगादड़ आयेगा नाश्ते के लिए.... और कोई नहीं आने वाला है आज... कोई दावत नहीं होगी आज.. सब के सब आज पंचायत भवन में होंगे...
वैदेही - (चिहुँक कर उठती है) क्या... अरे हाँ... ठीक कहा तुमने... आज तो पंचायत है...

तभी दीदी दीदी चिल्लाते हुए टीलु आता है l दुकान के अंदर पहुँचकर हांफने लगता है l

गौरी - क्या रे नासपीटे... किसकी जान खा कर आ रहा है..
टीलु - (मुहँ बना कर) खा कर नहीं बुढ़िया रानी... खाने आया हूँ...
गौरी - क्या कहा.. कमबख्त... मुझे बुढ़िया कह रहा है...
टीलु - क्या काकी... (मलाई मारने के अंदाज में) मैंने तो तुमको गुड़िया रानी कहा है...
गौरी - कीड़े पड़े तेरे जुबान पर.. झूठ बोलते शर्म नहीं आई...
टीलु - ऐ... (धमकाते हुए) काकी... कभी सुना है... किसी बुढ़िया को रानी कहते हुए... (नाटक करते हुए) मैं तो तुम्हें अपना समझ कर... इज़्ज़त देते हुए... रानी कह रहा हूँ... तुम हो कि नासपीटे... कमबख्त.. और ना जाने क्या क्या कह रही हो... (वैदेही से रहा नहीं जाता, टीलु का कान पकड़ कर खिंचने लगती है) आ आह... आह... दीदी दर्द कर रहा है...
वैदेही - कब से देख रही हूँ.. यह क्या मस्ती लगा रखा है... माफी मांग..
टीलु - ऐ बुढ़िया...
गौरी - खिंच और जोर से कान...
वैदेही - क्या (कान खिंचने लगती है)
टीलु - आह... नहीं नहीं... काकी ओ काकी... माफ़ कर दो... प्लीज...
गौरी - अब आया ना रास्ते पर...
टीलु - कहाँ रास्ते पर... दुकान पर आया हूँ.. दीदी छोड़ो ना... आह कहीं मर मरा ना जाऊँ...
गौरी - तो मर आज.. वैदेही... मत छोड़ना आज उसे...

पर वैदेही मुस्कराते हुए छोड़ देती है l टीलु अपना कान पर हाथ फेरने लगता है l

वैदेही - ज्यादा नाटक मत कर...
गौरी - क्यूँ छोड़ दिया उसे.. मरने तक तो पकड़ कर रखती...
टीलु - देखो काकी... अगर मैं मर गया होता... तो तुम ही पछताती...
गौरी - अच्छा... वह क्यूँ भला..
टीलु - बताता हूँ... (एक न्यूज पेपर निकाल कर वैदेही को दिखाते हुए) यह देखो दीदी... भाई का क्या मस्त फोटो आया है... वह भी पहले पन्ने पर...

वैदेही पेपर पर वकील के कपड़ों में विश्व की तस्वीर देख कर बहुत खुश हो जाती है l पेपर के दाहिने तरफ एक चौथाई पन्ने पर विश्व के फोटो के साथ " शिक्षा का अधिकार का श्रेष्ठ उदाहरण एडवोकेट विश्व प्रताप महापात्र"

यह पढ़ कर वैदेही की आँखों से कुछ बूंद आँसू टपक पड़ते हैं l गौरी वैदेही से पेपर लेकर विश्व की तस्वीर देखती है l

टीलु - दीदी... दुख भरे दिन बीते रे दीदी... शुभ दिन आयो रे... फिर यह आँसू क्यूँ...
दीदी - यह खुशी की आँसू है.. एक तपस्या का फल है... एक कदम न्याय की ओर है... कास आज विशु... पंचायत भवन में आए...
टीलु - दीदी... विश्व भाई ने जो दुनिया देखा है... जो सीखा है.. उसीके हिसाब से जी रहे हैं... मदत उसकी करो... जो मांगे... जिसे बिन मांगे दो... वह मदत बेकीमत हो जाता है... बिन मांगे उसकी मदत किया जा सकता है... जिसमें अपनी लड़ाई लड़ने की ज़ज्बा हो... हिम्मत हो... आज विश्वा भाई उनकी लड़ाई लड़ भी लें तो क्या होगा... आज यह राजा जाएगा... कल इन्हीं पर राज करने कोई दुसरा राजा आ जाएगा... तब... तब क्या होगा... (वैदेही चुप रह कर एक टक टीलु को देखे जा रही थी, टीलु घबरा जाता है) ऐ... ऐसे क्या देख रही हो दीदी...
वैदेही - देख रही हूँ... विशु के साथ रह कर... उसके जैसे बातेँ करने लगा है...
टीलु - (शर्मा जाता है)
गौरी - ज्यादा मत शर्मा... वर्ना गलती से लोग लड़की समझ बैठेंगे...
टीलु - (बिदक कर मुहँ बना कर गौरी को देखने लगता है)
वैदेही - खैर अब यह बता... विशु और तु नाश्ता करने तो आओगे ना...
टीलु - जरुर दीदी जरुर... अच्छा चलता हूँ...

कह कर टीलु गौरी को खा जाने वालीं नजर से घूरते हुए बाहर की ओर जाने लगता है l गौरी भी दांत पिसते हुए उसे देख रही थी, जैसे ही टीलु बाहर की ओर होने लगा गौरी चिल्ला कर

गौरी - ऐ नासपीटे रुक...
टीलु - (टीलु अपनी आँखे सिकुड़ कर और मुहँ बना कर गौरी को देख कर) क्या है...
गौरी - यह बता... तु मर गया तो मेरा किस बात का पछतावा होगा...
टीलु - काकी अगर मैं मर गया... तो तुझे ढोने वालों में से एक कंधा कम हो जाएगा... समझी...

इतना कह कर टीलु बिना पीछे देखे भाग जाता है l गौरी दुकान पर टीलु को गाली बकती रह जाती है l उसकी हालत देख कर वैदेही हँसने लगती है l पर धीरे धीरे वैदेही की हँसी रुक जाती है, एक संतोष भरी नजर से विश्व की फोटो को देखते हुए फोटो पर बड़े प्यार से हाथ फेरने लगती है l


गौरी - तुझे क्या लगता है... विशु जाएगा...
वैदेही - पता नहीं काकी... पर मुझे तो जाना ही होगा...
गौरी - पर मुझे तो विशु की बात ही सही लगती है... उन लोगों की दुनिया में... तुम लोगों की जरूरत भी है... मुझे तो नहीं लगता... उन लोगों को तुम्हारी कोई जरूरत...
वैदेही - ऐसा नहीं है काकी... आज उन्हें महसूस नहीं हो रहा है... और विशु को समझ नहीं आ रहा है... पर हम सब जुड़े हुए हैं...
गौरी - इसका मतलब तु जाएगी... (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म... तुम दो बहन भाई के रिस्तों को समझना बहुत मुश्किल है...
गौरी - जानती हो काकी... कल जब विशु के बारे में मासी से बात कर रही थी... मासी ने कहा था... की मासी की और मेरी विशु से खुन का रिश्ता नहीं है... पर अगर भगवान कभी पलड़े मैं एक तरफ मुझे और दुसरी तरफ मासी को रख कर चुनने को कहे... तो विशु मुझे ही चुनेगा...
गौरी - यानी तुझे यकीन है... पंचायत भवन जाएगा...
वैदेही - हाँ... मेरे लिए वह जाएगा....

तभी एक डाकिया आता है और दुकान के सामने अपनी साइकिल रोकता है l दुकान के बाहर खड़े होकर

डाकिया - क्या यह वैदेही महापात्र जी का पता है...
गौरी - हाँ क्या हुआ
डाकिया - नहीं शायद यह डाक राजगड़ के इतिहास में पहली बार आया है.... आपके नाम...
वैदेही - क्या.. क्या आया है...
डाकिया - पता नहीं... दो दो डाक हैं... मैं यशपुर डाक थाने से पहली बार... राजगड़ आया है... दोनों सरकारी है... एक गृह मंत्रालय से है... और दूसरा उच्च न्यायालय से....
वैदेही - क्या...



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पंचायत भवन
समय साढ़े ग्यारह बजे
लोग धीरे धीरे भवन में भरते जा रहे हैं l अपनी जगह बना कर बैठ रहे हैं l वैदेही भी भवन के अंदर औरतों के झुंड के बगल में एक जगह बना कर बैठी हुई थी l वह आशा भरी नजर दौड़ा कर विश्व को ढूँढ रही थी l पर उसे कहीं भी विश्व नजर नहीं आता l उधर भवन के बाहर सरपंच, उदय और शनिया के गुर्गे उन पुलिस वालों का इंतज़ार कर रहे हैं l थोड़ी देर बाद पुलिस की एक जिप्सी दिखती है जो उनके पास आकर रुकती है l जिप्सी से दो ऑफिसर उतरते हैं, ड्राइवर गाड़ी को एक जगह ले जा कर पार्क कर इन लोगों के पास आ कर खड़ा हो जाता है l सरपंच देखता है वह एक कांस्टेबल था l सरपंच तीनों के सीने में नेम प्लेट से पहचान लेता है वे सब इंस्पेक्टर शैतान सिंह, असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर मक्खन सिंह और कांस्टेबल जैलांन सिंह थे l तीनों में एक खासियत थी तीनों के चेहरे पर बड़ी बड़ी मूंछों के साथ आखों पर काला चश्मा था l

सरपंच - आइए आइए दरोगा जी...
शैतान सिंह - तो तुम सरपंच हो...
सरपंच - जी...
शैतान सिंह - ठीक है... यह लोग कौन हैं... और यह लोग हमें ऐसे घूर घूर कर क्यूँ देख रहे हैं... क्या कभी पुलिस नहीं देखे क्या...
सरपंच - नहीं ऐसी बात नहीं है... आपको तो हमारे गाँव के दरोगा जी... मेरा मतलब है रोणा बाबु जी भेजा है ना...
शैतान सिंह - हाँ... पर इन लोगों के देखने की तरीके से लगता है... यह लोग हम पर शक कर रहे हैं...
सरपंच - क्या... नहीं नहीं दरोगा जी... (कह कर शनिया और उसके गुर्गों की ओर देख कर इशारों से हाथ जोड़ने के लिए कहता है, शनिया और उसके सारे आदमी इन पुलिस को हाथ जोड़ते हैं)
शैतान सिंह - (शनिया से) तुम शनिया हो...
शनिया - जी...
शैतान सिंह - तुम्हारे बारे में... अनिकेत बाबु ने मुझे सबकुछ बता दिया है.... घबराओ मत... हम यहाँ तुम्हारे मदत के लिए ही आये हैं... अब प्लान क्या है बताओ...
भूरा - साहब... पंचायत में मुमकिन है... बीच बहस में दंगा हो...
माखन सिंह - ओ.. तो दंगा करने का प्लान है... वह भी कानून के आड़ में...
सत्तू - जी साहब... इसीलिये तो हम रोणा साहब को खोज रहे थे...
जैलांन - अबे तुम्हारा रोणा साहब ने ही हमें भेजा है... हम यहाँ एक से भले तीन आए हैं...
शैतान सिंह - हाँ... पर यह बोलो... दंगे में कितने निपटेंगे...
शनिया - सिर्फ एक... (तभी उसके कान में शुकुरा आकर कुछ कहता है, वह शुकुरा को हैरान व परेशान भरे नजरों से देखने लगता है)
शैतान सिंह - क्या हुआ... सब ठीक है ना...
शनिया - ककु कुछ नहीं... कुछ नहीं...
शैतान सिंह - पर तेरा थोबड़ा तो कुछ और बता रहा है...
शनिया - क्या... क्या बता रहा है...
शैतान सिंह - यही के... बलि का बकरा गायब है...
शनिया - (चौंक जाता है, आँखे फैल जाते हैं) यह... आपने कैसे जान लिया...
शैतान सिंह - बोला ना तेरा थोबड़ा बोल रहा है... तो प्रोग्राम आगे बढ़ाना है... या...
शनिया - नहीं साहब.... (दांत पिसते हुए) प्लान में कोई तब्दीली नहीं होगी... बकरा ना सही... बकरे की अम्मा ही सही... आज तो हर हाल में बलि चढ़ेगी...
शैतान सिंह - मतलब...
शनिया - उसकी दीदी है... वह फुदकेगी... उछलेगी...
शैतान सिंह - तो...
शनिया - तो हम उसे ही निपटा देंगे...
शैतान सिंह - कैसे...
शुकुरा - हमारे लोग... भीड़ के बीच से हमला बोल देंगे... सबको लगेगा... भीड़ हमलावर हो गई... बेचारी की जान चली गई...
शैतान सिंह - एक मिनट... तुम लोग क्या करोगे कैसे करोगे... हमें कोई मतलब नहीं... पर पत्थर बाजी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए...
शनिया - क्यूँ साहब...
शैतान सिंह - अबे घन चक्करों... पत्थरबाजी से हम लोग भी घायल हो सकते हैं... क्यूँ सरपंच...
सरपंच - हाँ.. हाँ हाँ.. बात तो सही है... एक को निशाना बनाओगे... चुका तो हम लपेटे में आयेंगे...
शैतान सिंह - हाँ... अगर ऐसा कुछ हुआ... तो... (होल्स्टर से रिवाल्वर निकाल कर) जो मेरे नजर में आएगा... उसे भुन के रख दूंगा...
शुकुरा - पर मान लीजिए... भीड़ में से कोई छुपे हुए हथियारों से हमला कर दिया तो...
शैतान सिंह - कोई वादा नहीं... पर शर्त है... आँच हम तक ना आए....
भूरा - नहीं जाएगा... साहब... पर फर्ज कीजिए... उसे बचाने... बीच में कोई आया...
शैतान सिंह - अगर एक दो आए... तो उसकी जिम्मेदारी तुम लोगों की... हाँ अगर एक दो से ज्यादा आए... तो... शांति बनाए रखने के लिए... हमें गोलीबारी करनी होगी...
सरपंच - ठीक है साहब अब अंदर चलें... लोग आ गए हैं... हम पंचायत फैसला सुना कर... फैसले पर मोहर लगाने की कवायद करेंगे...
शैतान सिंह - ठीक है... चलो फिर...

सभी भवन के अंदर आते हैं l लगभग आधे से ज्यादा गाँव वाले मौजूद थे l सरपंच पंडाल पर एक जगह किनारे पर पुलिस वालों को बिठा देता है और खुद अपने पंचो को लेकर बीच पंडाल में टेबल पर बैठ जाता है l लोगों में पहले पंक्ति में समिति सभ्य और कुछ वार्ड मेंबर बैठे हुए हैं l सरपंच एक समिति सभ्य को इशारा करता है l वह समिति सभ्य माइक के पास जाकर सबको स्वागत करता है और सरपंच को माइक पर आकर सभा बुलाने कारण कहने को बुलाता है l सरपंच अपनी पगड़ी ठीक करता है फिर माइक पर आता है l एक नजर लोगों के बीच बैठा शनिया पर डालता है, शनिया हल्के से अपना सिर हिला कर शुरु करने के लिए इशारा करता है l सरपंच एक इत्मीनान भरी साँस छोड़ते हुए औरतों के झुंड में नजर दौड़ाता है l उसे वैदेही की झलक दिख जाती है l

सरपंच - देवियों और स्वजनों... आप सबका स्वागत है... आप सबकी जानकारी के लिए बता दूँ के... यहाँ कुछ विषयों पर चर्चा होगी... चर्चे में हर पक्ष की बात सुनी जाएंगी... चर्चे के उपरांत पंचायत अपना निर्णय सुनाएगी... और आप सबको वह निर्णय स्वीकार करना होगा... यह मैं याद दिलाना बेहतर समझता हूँ... के यह राजा क्षेत्रपाल जी का राजगड़ है... यहाँ केवल राजा साहब के अनुमोदित कानून ही मान्य है... इसलिए यहाँ पर जो न्याय होगा... वह अंतिम होगा.... थाना और कचहरी केवल नाम मात्र के लिए है... इसके बाद जो भी निर्णय के विरुद्ध जाएगा... उसे राजा क्षेत्रपाल के राज के नियम के विरुद्ध समझा जाएगा... अब मैं... चर्चा के लिए विषय को आपके समय प्रस्तुत करने के लिए... पंचो से अनुमती मांगता हूँ...
वैदेही - (औरतों के बीच से उठ कर) एक मिनट सरपंच जी... क्या मैं एक सवाल कर सकती हूँ...
सरपंच - जी जरुर...
वैदेही - आपने अभी कहा... यहाँ का न्याय अंतिम न्याय है... थाना और कचहरी केवल नाम मात्र के लिए है....
सरपंच - जी...
वैदेही - तो फिर यहाँ मंच के सिरे पर वह पुलिस वाले क्यूँ बैठे हुए हैं...
सरपंच - वह आमंत्रित अतिथि हैं... जो पंचायत की कार्यप्रणाली की निरीक्षण करने के पश्चात... सर्कार को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे... मुझे लगता है आप समझ गई होंगी... इसलिए बैठ जाएं... (वैदेही बैठ जाती है) क्या चर्चा आरंभ करने के लिए मुझे पंचों की इजाजत प्राप्त है... (पंचों में आए सभी लोग अपना सिर हिला कर सहमती देते हैं) तो देवियों और स्वजनों... जैसा कि आप सब जानते हैं... डेढ़ वर्ष पूर्व राजगड़ मल्टीपरपोज कोआपरेटिव सोसाइटी का गठन हुआ था... उस सोसाइटी के कुछ वरिष्ठ अधिकारीयों ने सोसाईटी की आय के लिए... एक चिट फंड चलाने की मंजुरी दी गई थी... अब यह देखा गया है... गाँव के कुछ लोग चिट फंड से... अपनी हद से ज्यादा कर्ज उठा चुके हैं... इसलिए उन कर्जो की अदायगी पर चर्चा के लिए आप सब यहाँ आमंत्रित हैं... (कुछ लोग आपस में खुसुर-पुसुर करने लगते हैं, जाहिर से बात थी किसीको कुछ भी समझ में नहीं आई) तो जिन लोगों को इस बाबत नोटिस मिला है... उनका कुछ कहना है... (सरपंच पूछता है, कोई कुछ नहीं कहता)
वैदेही - (अपनी जगह से उठती है) सरपंच जी... अगर कर्जा राजगड़ मल्टीपरपोज कोआपरेटिव सोसाइटी की चिट फंड से दिया गया है... तो उसकी वसूली के लिए... नोटिस शराब की ठेके चलाने वाले क्यूँ थमाए...
सरपंच - (कुछ देर के लिए सोच में पड़ जाता है, फिर) चिट फंड का अपना कोई पैसा नहीं है... वे लोग... चिट फंड में अपना पैसा लगाए हैं... इसलिए...
वैदेही - कमाल करते हैं... सरपंच जी... चिटफंड चलाओ आप... मगर पैसा लगाएं शराब बेचने वाले...
सरपंच - क्या आपको नोटिस मिला है...
वैदेही - जी... जी नहीं...
सरपंच - तो आप क्यूँ बीच में कुद रही हैं... जिनको नोटिस मिला है... उन्हें पूछने.. जानने दीजिए... बैठ जाइए...

मन मसोस कर वैदेही बैठ जाती है l बेबसी के साथ भीड़ में विश्व को ढूंढने लगती है पर उसे कहीं भी विश्व नहीं दिखता l

सरपंच - तो पहला नाम है... हरिया... अरे बाप रे पाँच लाख रुपये... क्यूँ हरिया... इतने पैसों का क्या किया तुमने...
हरिया - (हाथ जोड़ कर, रोनी सुरत बनाते हुए अपनी जगह से उठ कर) सरपंच जी... मुझे नहीं पता कब और कैसे मैंने इतने पैसे लिए...
सरपंच - यह क्या शनिया... हरिया कह रहा है.. इतना पैसा कब लिया... उसे मालुम ही नहीं है...
शनिया - यह झूठ बोल रहा है... आज तक मेरे भट्टी में आकर जितना मर्जी उतना पिया है... यहाँ तक उल्टी करने के बाद भी पिया है... इसलिए मैंने उसे... चिट फंड में से निकाल कर पिलाया... पर अब और नहीं.. पाँच लाख हो गए... अब मुझे मेरे पैसे चाहिए... बस...
सरपंच - यह क्या सुन रहा हूँ हरिया...
हरिया - यह शनिया भाई झूठ बोल रहा है... मैंने कभी हज़ार रुपये इकट्ठे नहीं देखे... और मैं कैसे... कैसे... पांच लाख रुपये तक की दारु पी सकता हूँ...
सरपंच - अरे हरिया... तुने पाँच लाख रुपये के दारु नहीं पी है.. यह दारु तुझे चिटफंड के पैसों से... व्याज के साथ पिलाया है.. असल और व्याज मिला कर पाँच लाख हो गया है...
हरिया - नहीं नहीं... आप ही सोचो सरपंच जी... पी पी कर एक आदमी कितना पी सकता है...
सरपंच - अरे हरिया.. तु अकेला कहाँ है... इनके कर्जे में बिल्लू है... बलराम है... चित्तरंजन है... और कमाल की बात है... सबने पाँच पाँच लाख देने हैं...
शनिया - सरपंच जी...जमीन पुश्तों से राजा साहब के यहाँ गिरवी प़डा है... सिर्फ घर बार बचा है... उन्हें बेचकर.. खुद को बेच कर भी यह कर्ज नहीं चुका सकता हूँ मैं...
सरपंच - अरे भाई... हम यहाँ इसीलिए तो बैठे हैं... आज यह तय करना है... तुम सब के कर्ज कैसे चुकता होगा... जिसे तुम भी मानोगे... और शनिया भी... क्यों शनिया... बात ठीक है ना...
शनिया - (अपनी मूँछों पर ताव देते हुए) बिल्कुल दुरुस्त कहा आपने सरपंच जी...
सरपंच - हाँ तो फिर तुम बोलो शनिया भाई... हरिया तो कह दिया.. घरबार ही नहीं... यह खुद भी बिक जाए... तब भी... पाँच लाख रुपये नहीं चुका पायेगा... ऐसे में... तुम कैसे अपना कर्ज वापस लेना चाहोगे...
शनिया - (अपनी जगह पर खड़ा हो जाता है) पंचों... मैं भी समझता हूँ... आखिर हरिया ही नहीं... चाहे बिल्लू हो या बलराम या चित्तरंजन... सभी मेरे गाँव वाले हैं... इन लोगों में से कोई दुश्मनी तो नहीं मेरी... पर बात पैसों की है... अगर मुझे वापस ना मिला तो मैं और मुझ पर आश्रित मेरे आदमी जिएंगे कैसे... पर मैं बहुत बड़ा दिल रखता हूँ... अब घर देखने के लिए... घर में बीवी... और कमा कर घर चलाने के लिए बाहर मर्द... तो बचे कौन बच्चे... तो इन सबके घरों में जितने भी बच्चे हैं... वह मेरे घर में आकर मेरे बताये हुए काम करें... वादा करता हूँ... एक साल में ही इन सबके कर्ज उतर जाएगा...
सरपंच - वाह.. एक साल में उतर जाएगा... और क्या चाहिए... क्या कहते हो... हरिया और बाकी लोग...

वाह वाह वाह... (खिल्ली उड़ाने के अंदाज में वैदेही अपनी जगह से उठती है और ताली बजानी लगती है) वाह सरपंच... तुने तो कमाल कर दिया... सरपंची छोड तु भड़वा और दल्ला भी बन गया... जिनके घरों की इज़्ज़त आबरू को बचाना था... उन्हीं की सौदा.. उनके माँ बाप से करवा रहा है... वाह...
सरपंच - ऐ लड़की... कब से देख रहा हूँ... न्याय के बीच में... तु टोकने के लिए घुस रही है...
वैदेही - न्याय... थु... यह कह तेरी दल्ले गिरी के बीच क्यूँ घुस रही हूँ...
शैतान सिंह - (अपनी जगह पर खड़े हो कर) सुनो मोहतरमा... तुम ऐसे कैसे किसी सरपंच को गाली दे सकती हो... यह (हरिया को दिखा कर) तुम्हारा कौन लगता है...
वैदेही - आपके सामने यह गरीबों की इज़्ज़त की कीमत लगा रहा है... और आप उसकी तरफदारी कर रहे हैं... हाँ यह मेरा कुछ नहीं लगता.. पर उसके बच्चे मुझे मासी कहते हैं... और उनके लिए मैं किसी भी हद तक जा सकती हूँ...
शैतान सिंह - अच्छा यह बात है... क्या तुम उस हरिया की पैरवी करना चाहती हो... (कह कर शनिया को आँख मारता है) अगर कुछ कहना चाहती हो... तो मंच पर जाओ और कहो...

कह लेने के बाद अपनी भवें नचा कर शनिया की ओर देखता है l वैदेही भी मंच पर चढ़ कर माइक के पास आ जाती है l वैदेही को माइक के पास देख शनिया खुश हो जाता है और अपनी पलकें झपका कर इशारे से शैतान सिंह को अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता है और मन ही मन सोचने लगता है

- यह तो कमाल करदिया दरोगा ने... शिकार को सामने लाकर खड़ा कर दिया... विश्वा नहीं तो विश्वा की बहन ही सही... मरना तो है आज तुझे कमिनी... (आँखों में खुन उतर आता है) कितनी बार मुझे जलील किया है तुने साली रंडी... आज तुझे मार कर अपनी भड़ास निकालूँगा... (अपने आदमियों को तैयार होने के लिए इशारा करता है)
शैतान सिंह - सरपंच जी... इन्हें एक माइक दीजिए... हम भी तो देखें... क्या पैरवी कर लेंगी यह...

सरपंच एक ऑपरेटर को इशारा करता है l वह ऑपरेटर एक माइक लाकर वैदेही को देता है l

शैतान सिंह - तो मोहतरमा जी... आपको किस बात पर ऐतराज है...
वैदेही - इंस्पेक्टर साहब... जैसा कि इस सरपंच ने कहा... डेढ़ साल हुए हैं... कोआपरेटिव सोसाइटी को... तो चिटफंड भी इन्हीं डेढ़ सालों में बना होगा... मैं इतना जानती हूँ... किसी भी चिट फंड चलाने के लिए... सर्कार के साथ साथ आरबीआई की मंजुरी होनी चाहिए... कम से कम... सोसाईटी की मेंबर्स की मंजुरी चाहिए... क्या इनके पास हमारे राज्य सर्कार की या आरबीआई की मंजुरी है... या फिर... सोसाईटी मेंबर्स की मंजुरी है...
सरपंच - इसकी कोई जरूरी नहीं थी... हमारे लिए हमारी सर्कार... राजा साहब हैं...
वैदेही - इसका मतलब तुम लोगों की यह चिटफंड ही गैर कानूनी है... और दुसरी बात... यह बात यहाँ पर बिल्कुल भी तुमने नहीं कहा... हरिया पर कितना कर्जा है... कितने व्याज पर कितने महीनों के बाद... यह पाँच लाख हुआ है...

वैदेही के इतने कहने पर सरपंच का चेहरा ऐसा हो जाता है जैसे उसके हाथों से तोते उड़ गए हों l हरिया की बीवी खड़ी हो जाती है और पूछती है

लक्ष्मी - सही पकडी हो दीदी... हाँ पहले यह बताओ... मेरे मर्द का कर्जा कितना है... व्याज कितना और कितने महीने हुए हैं...
शैतान सिंह - क्यूँ... तु उसकी पत्नी है... तुझे नहीं मालूम...
लक्ष्मी - (हाथ जोड़ कर) साहब... यह शनिया जब भी वसुली के लिए मेरे घर आया है.. कभी खाली हाथ नहीं लौटा है... उसने जब भी जितना पैसा कहा... दीदी ने उसके मुहँ पर मारा है... उसके बावजुद... पाँच लाख कैसे हो गया...
शनिया - ऐ चुप करो तुम सब... (अपने एक आदमी से) बिठा रे उसको...

एक आदमी औरतों के बीच में घुस कर लक्ष्मी को ज़बरदस्ती बैठने के लिए कहता है l लक्ष्मी जिस जोश के साथ उठी थी उसी तेजी के साथ बैठ जाती है l

वैदेही - देखा इंस्पेक्टर साहब... यह है इनकी चाल बाजी... यह अपने घर बच्चों से काम लेने नहीं बुला रहे हैं... बल्कि बढ़ रही बेटीयों को नोचने के लिए बुला रहे हैं... पर मैं जिंदा हूँ अभी... मेरे जीते जी... इस गाँव की किसी भी लड़की पर कोई आँच नहीं आने दूंगी...
शनि - तो आज मर जा फिर... (अपने आदमियों से) देखो गाँव वालों... यह कानून राजा साहब का है... यह बदजात राजा साहब से नमक हरामी कर रही है... उठो और ख़तम कर दो इसे...


भीड़ में से शनिया और उसके सारे लोग पंडाल की ओर भागते हैं और पंडाल पर चढ़ जाते हैं l सभी गाँव वाले यह देख कर डर जाते हैं कि तभी शनिया चिल्लाता है

शनिया - कोई नहीं जाएगा यहाँ से... जो भी इस भवन से बाहर जाएगा... वह राजा साहब का गुनहगार होगा... हम उसे ढूंढ ढूंढ कर मार डालेंगे...

सभी गाँव वाले रुक जाते हैं डरते हुए पंडाल की ओर देखने लगते हैं l वैदेही अपनी जगह पर डट कर खड़ी हुई थी l उसकी आँखों में इतनी हिम्मत थी के शनिया वैदेही से नजरें मिला नहीं पा रहा था l शनिया खुद को सम्भालता है और वैदेही के पास आता है l

शनिया - बड़ा मतलबी निकला तेरा भाई... हमने तो उसे लपेटे में लेने के लिए यह प्लान बनाया था... पर वह आया नहीं... तु हत्थे चढ़ गई... कोई नहीं... आज वह नहीं तु सही... ऐ (अपने आदमियों से) निकालो अपने हथियार...

वैदेही को घेरे हुए सभी अपने अपने हथियार निकालते हैं l सारे हथियार खेती में उपयोग होते हैं l यह सब देख कर भी वैदेही विचलित नहीं होती l

शनिया - किस मिट्टी की बनी है तु... जरा भी डर नहीं लग रहा तुझे...
वैदेही - जिसका विश्वा जैसा भाई हो... उसे किस बात कर....
शनिया - अच्छा... यह बात है... (अपने आदमियों से) काट डालो इस रंडी...

आगे कुछ नहीं कह पाया l एक लात शनिया के निचले जबड़े पर लगता है l वह हवा में उड़ते हुए पंडाल से नीचे कुर्सियों पर गिरता है l वह सम्भल कर उठ कर देखता है l उसीके आदमियों के लिबास में विश्वा उसके आदमियों को धूल चटा रहा है l एक एक आदमी को उठा उठा कर पटक रहा था l पहले से ही उसके हाथों मार खाए हुए थे l थोड़ा डर पहले से ही था l अब विश्व को सामने देख कर उन पर डर और भी हावी हो गया l उनके हाथ पैर चलने से पहले ही विश्व के हाथ पैर चल रहे थे l कोई एक घुसे में तो कोई एक लात से गिर रहा था वह भी पंडाल से छिटक कर नीचे पड़े कुर्सियों पर l शनिया देखा पुलिस वाले बड़े मजे से विश्वा को उसके आदमियों को मारते हुए देख रहे हैं l वह शैतान सिंह के पास जाता है

शनिया - यह आप क्या कर रहे हैं इंस्पेक्टर साब... वह मेरे आदमियों को मार रहा है...
शैतान सिंह - मैंने पहले ही कहा था... मैं सिर्फ गाँव वालों को रोकुंगा... तुम्हारे आदमियों को नहीं...
शनिया - पर वह मेरा आदमी नहीं है...
शैतान सिंह - तुम लोगों के पास हथियार तो है ना... टूट पड़ो उस पर...
शनिया - तो फिर आप क्या करेंगे...
शैतान सिंह - अबे भोषड़ी के... मर्द ही है ना तु... कुछ देर पहले लड़की पर... बड़ी बड़ी हांक रहा था... साले हरामी एक ही लात में क्या छक्का बन गया...

शनिया अपने कपड़ों के बीच से एक तलवार निकालता है और धीरे धीरे विश्वा के पास जाने लगता है l जब तक वह विश्वा के पास पहुँचा शनिया के सारे आदमी भवन के फर्श पर धुल चाट रहे थे l शनिया विश्व के पीछे पहुँच कर हमले के लिए जैसे ही तलवार उठाता है विश्व अचानक मुड़ता है और शनिया के आँखों में घूर कर देखने लगता है l विश्व की ऐसे नजर से शनिया तलवार उठाए वैसे ही मुर्ति बन खड़ा रह जाता है l

विश्वा - तुझे मारने के लिए... मुझे किसी हथियार की जरूरत नहीं है... मेरी यह तीखी नजर ही काफी है... तेरी साँस अटक जाएगी...

शनिया फिर भी वैसे मुर्तिवत खड़ा था l विश्व उसके हाथों से तलवार ले लेता है l शनिया का कोई विरोध नहीं होता l विश्व शनिया को एक धक्का देता है l शनिया कई कदम पीछे जा कर गिरता है l विश्व अब सरपंच की ओर देखता है l सरपंच भय के मारे गिला कर देता है l विश्व तलवार से सरपंच की पगड़ी को निकाल कर उपर उछाल देता है l पगड़ी खुल कर उड़ते हुए धीरे धीरे नीचे गिरने लगता है l विश्व बहुत तेजी से तलवार घुमाने लगता है l इतनी तेज के सिर्फ हवाओं के चिरने की आवाज ही आ रही थी, और आँखों में जैसे बिजली कौंध रही थी l विश्व अचानक तलवार घुमाना बंद कर कमर पर हाथ रखकर खड़ा हो जाता है l जब पगड़ी उड़ते उड़ते विश्व के कंधे के बराबर पहुँचती है, विश्व बहुत तेजी से सिर्फ तीन बार तलवार घुमाता है l पहले ऊपर की ओर फिर दाहिने की ओर फिर बाएँ l पगड़ी की कपड़ा चार बराबर हिस्सों में कट कर उड़ते हुए नीचे बिखर कर गिरता है l यह दृश्य कुछ ऐसा था कि वहाँ पर मौजूद सभी लोग सम्मोहित हो गए थे l जब तक होश में आए तब तक विश्व अपनी दीदी को लेकर वहाँ से जा चुका था l शनिया मुड़ कर देखता है वहाँ पर पुलिस वाले भी नहीं थे

शनिया - वह... वह...
शुकुरा - क्क्क क्या हुआ... भाई..
शनिया - द... द..
शुकुरा - दरोगा...
शनिया - हाँ हाँ हाँ... क क कहाँ गया..
उदय - वह तीन पुलिस वाले... विश्व और उसकी बहन को अपनी गाड़ी में बिठा कर कब के निकल गए
शनिया - क्या...
Bahot badhiya👍👍👍
 

avsji

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👉एक सौ उनतीसवां अपडेट
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दो दिन बाद

सुबह सुबह सुरज अभी निकला भी नहीं था, हर दिन की तरह विश्व की मोबाइल बजने लगती है l विश्व एक मुस्कान के साथ आँखे मूँदे हुए ही कॉल को उठाता है l

विश्व - गुड मॉर्निंग जी...
रुप - गुड मॉर्निंग... तो इसका मतलब यह हुआ कि... तुम्हें मालुम है कि... इतनी सुबह तड़के मैं ही तुम्हें जगाती हूँ...
विश्व - कोई शक...
रुप - पर तुम्हारी बातों से ऐसा नहीं लगता...
विश्व - क्यूँ... क्यूँ नहीं लगता...
रुप - मुझे लगता है... तुम पहले से ही जगे हुए हो.... मुझसे बात करके... मुझे गुड मॉर्निंग कह कर सिर्फ़ फॉर्मालिटी निभा रहे हो...
विश्व - ह्म्म्म्म... ऐसा क्यूँ लग रहा है आपको...
रुप - बस लग रहा है...
विश्व - आपको क्या पता... आपने क्या रोग लगा दिया है... हर सुबह आपकी ही आवाज़ की खनक सुनने की आश में यह कमबख्त नींद टुट जाती है...
पर यकीन मानिये...
अभी भी हम आँखे मूँदे हुए हैं...
क्यूँकी ख़यालों में आप ही की तस्सबुर लिए खोए हुए हैं...
रुप - ओ हो.. क्या बात है... आज कल जो भी मुहँ से निकल रहा है... सब शेरों शायरी बन कर निकल रहे हैं...
विश्व - क्या करें... रोग ही ऐसा लगा है..
रुप - ओ हो.. बड़ा भयंकर रोग है... तो इसका इलाज क्या है...
विश्व - लाइलाज मर्ज है... क्या पता इसका क्या दवा है... बस आपकी फोन की दुआ कर रहे हैं... और आप हर सुबह फोन कर हमको जगा रहे हैं...
रुप - ह्म्म्म्म हूँ... बस बस... इतना भी मत उड़ो... धरती पर आओ... वैसे आज तुम्हारा प्लान क्या है...
विश्व - गाँव है... कनाल या नदी की ओर जाना तो है नहीं... क्यूंकि सर्कार की कृपा से इस घर में शौचालय बनवा दिया है...
रुप - छी.. छी... छी... देखो मुझे सुबह सुबह ऐसे छेड़ोगे तो कॉल काट दूंगी...
विश्व - (हँस देता है) ठीक है... ठीक है... मेरा छोड़िए... आपका प्लान क्या है...
रुप - (एक उम्मीद भरी गहरी साँस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म... कास तुम यहाँ होते... आज हम छटी गैंग पार्टी लेते तुमसे...
विश्व - पार्टी... किस बात की पार्टी...
रुप - क्या तुम भी... जान बुझ कर अनजान बन रहे हो... कल तुम्हारा रिजल्ट आया ना... तुम्हारा लाइसेंस नंबर भी आ गया... और कल ही माँ ने अल मोस्ट सभी अखबार में... तुम्हारा पैड प्रमोशन भी करदिया है... तो जाहिर सी बात है... पुरे स्टेट को मालुम हो गया होगा या फिर... हो जाएगा.... यकीन ना आए... तो आज की अखबार देख लो...
विश्व - ओ हो... क्या बात है... आज कल माँ के साथ... बड़ी गहरी खिचड़ी बन रही है....
रुप - क्यूँ... तुम्हें जलन हो रही है... हूँह्ह्ह्... जाओ जाओ और अखबार देखो... माँ ने कैसे तुम्हारा प्रमोशन किया है...
विश्व - हमारे यहाँ अखबार आने में अभी टाइम है... टीलु अभी थोड़ी देर बाद उठेगा... यशपुर जाएगा... फिर वहाँ से अखबार लाएगा...
रुप - अच्छा तो अखबार टीलु लाएगा... और तुम क्या करोगे...
विश्व - तब तक... आपके ख़यालों में खोए रहने का प्लान है....
रुप - क्यूँ दीदी से आशीर्वाद लेने नहीं जाओगे...
विश्व - जाऊँगा तो जरुर... अखिर मेरा सब कुछ दीदी ही तो है... उनकी आशीर्वाद के वगैर... मैं क्या... मेरी हस्ती क्या... मेरी वज़ूद ही क्या...
रुप - ह्म्म्म्म... अच्छा मैं फोन रखती हूँ...
विश्व - क्यूँ बुरा लगा...
रुप - नहीं तो... ऐसी कोई बात नहीं है...
विश्व - देखिए... आप मेरी जिंदगी हैं... पर मेरी वज़ूद मेरी दीदी है... और जो तरासा हुआ विश्व प्रताप को आप देख पा रहे हो.. उसकी वज़ह मेरी माँ है... मेरी जिंदगी में आप तीनों अहम हो... कोई एक छूट गया... तो मैं टुट जाऊँगा...
रुप - स्सॉसरी...
विश्व - किस लिए...
रुप - कुछ पल के लिए ही सही... मुझे.... दीदी से... थोड़ी जलन हो गई...
विश्व - और अब...
रुप - कास के मैं अपनी जिंदगी का कुछ हिस्सा उनके संगत में बिताई होती...
विश्व - तब तो मेरी जिंदगी में मेरी यह नकचढ़ी राजकुमारी कभी ना होती...
रुप - (बिदक कर) क्या... क्या कहा...
विश्व - हाँ सच में... तब मेरी जिंदगी में... एक सुशील, शांत, शर्मीली... सीधी सधी राजकुमारी होती...
रुप - (मुस्करा देती है) कहीं ऐसा तो नहीं... तुम्हें यह नकचढ़ी पसंद नहीं...
विश्व - अरे क्या बात कर रही हैं आप... पसंद बहुत है... आप ही से तो मेरी जिंदगी में रंगत है... वर्ना जिंदगी बेरंग हो जाती...
रुप - अच्छा जी...
विश्व - जी...
रुप - अच्छा कब आ रहे हो...
विश्व - क्यूँ...
रुप - देखो... तुम मुझे फिर से छेड़ने लगे...
विश्व - अजी हम अपना हक अदा कर रहे हैं...
रुप - देखो मुझे गुस्सा मत दिलाओ... वर्ना...
विश्व - वर्ना...
रुप - वर्ना लगता है... बचपन की बातेँ भूल गए हो... कोई ना... सामने मिलो तो सही... तुम्हें काट खाऊँगी...
विश्व - वाव.. सच में... आप मुझे काट खाओगे...
रुप - ऐ फट्टू... तुम फिर उड़ने लगे... फोन पर ज्यादा होशियारी मत दिखाओ... कुछ बातेँ हैं... जो तुम से ना हो पाया... ना हो पायेगा...
विश्व - ठीक है... हम से नहीं हो पाया... पर क्या आपसे हो पायेगा...
रुप - तुम... तुम मुझे चैलेंज कर रहे हो...
विश्व - उँम्म्म्... हूँ... हाँ ऐसा ही कुछ...
रुप - आ... हा हा आ... जीत भी तुम्हारी और पट भी तुम्हारी... चलो जाओ... ऐसा कुछ नहीं होगा...
विश्व - क्यूँ... क्यूँ नहीं होगा...
रुप - हूँम्म्म्म... करना तो तुम्हें होगा...
विश्व - क्यूँ मैंने तो सुना है... आज कल की लड़कियाँ... बहुत फास्ट होती हैं... और जो मेरी नकचढ़ी है... वह तो फास्टेस्ट है...
रुप - अच्छा... तो इसका मतलब यह हुआ... के तुम लड़कों के दुम निकले हुए हैं... जो हर वक़्त दबा कर दुबके रहते हैं...
विश्व - देखिए अभी आप मुझे चैलेंज कर रही हैं...
रुप - हाँ... कर रही हूँ... बोलो क्या कर लोगे...
विश्व - मैं...
रुप - हाँ तुम..
विश्व - मैं.. वह...
रुप - हाँ हाँ तुम...
विश्व - वह.. टीलु आ गया... मैं बाद में बताता हूँ...
रुप - हूँह्ह्ह् फट्टु...

रुप देखती है विश्व फोन काट दिया था,वह अपनी बेड से उठ कर बालकनी की पर्दा हटाती है, पेड़ों की ओट में धीरे धीरे निकल रही सुरज की रौशनी से उजाला फैल रहा था, और उधर विश्व फोन काट कर झठ से बिस्तर छोडकर बाहर आता है l सुबह खिल चुकी थी, विश्व रुप की बातों को याद कर अपने आप पर हँसने लगता है l तभी उसके फोन पर एक मैसेज आता है l विश्व फोन निकाल कर मैसेज को पढ़ने लगता है l


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अपने घर में सरपंच तैयार हो रहा था l तभी दरवाज़े पर दस्तक होने लगती है l दरवाजा खोलते ही उसे सामने शनिया, भूरा, शुकुरा, सत्तू और उनके गुर्गे दिखते हैं, जिन्हें देख कर वह चौंकती है और घर के अंदर भाग जाती है l सरपंच उसे घबराया हुआ देख सरपंच बाहर आकर इन्हें देखकर थोड़ी देर के लिए हैरान हो जाता है l

सरपंच - (हकलाते हुए) त त त तुम.. तुम लोग इस वक़्त.. यहाँ...
सत्तू - क्यूँ तेरा घर पाकिस्तान में है... नहीं आना चाहिए था क्या...
सरपंच - नहीं ऐसी बात नहीं... पर इस वक़्त तुम लोगों को यहाँ देख कर... गाँव वाले क्या समझेंगे...
शनिया - उनको जो समझना था... वह उसी दिन समझ गए... जिस दिन हमने घूम घूम कर लोगों के घरों में चिटफंड कर्ज की कागजात बांटें थे...
सरपंच - फिर भी... यहाँ.. तुम लोग क्यूँ आए...
भूरा - अपने साथ ले जाने के लिए...
सरपंच - हाँ हाँ चलो फिर...
शुकुरा - अभी टाइम है... तु जानता है ना... वहाँ पर क्या होने वाला है...
सरपंच - हाँ भाई हाँ... पर तुम लोग मेरे यहाँ आने से अच्छा था... दरोगा बाबु के साथ आते...
शनिया - गए थे... बाहर ताला लगा हुआ था... सोचा तुझे मालुम होगा...
सरपंच - नहीं नहीं कसम से मुझे नहीं पता है...
सत्तू - देख बे सरपंच... दरोगा को गवाह बनाने का प्लान तेरा था... इसलिए... वह कैसे पंचायत भवन पहुँचेगा वह तेरी जिम्मेदारी...
सरपंच - आरे वाह... प्लान तुम लोगों का... दरोगा को शीशे में उतारने के लिए... राजा साहब से... मुझसे कहलवाया... वह आयेंगे या नहीं... उसका जिम्मा मेरा क्यूँ... नहीं नहीं... दरोगा वहाँ पर कैसे आयेंगे... यह तुम लोग देखो...

तभी उदय वहाँ हाथ में एक पेपर लेकर आता है l उसे अपने बीच देख कर सरपंच बोल पड़ता है l

सरपंच - लो शैतान को याद किया... इसका दुम आ पहुँचा... ऐ ग्राम सेवक के बच्चे... कहाँ है तेरा बाप...
उदय - मेरा या तुम लोगों का...
सत्तू - चल किसीका भी हो... दरोगा है कहाँ...
उदय - कल रात को वह यशपुर गए हैं... और मुझे तुम लोगों को खबर करने के लिए कह गए थे... आज तहसील ऑफिस में... किसी वारंट की तारीख निकली है... जिसके लिए उनका वहाँ होना जरूरी है... देर हो सकती है... इसलिए तुम लोगों को... थोड़ा लेट में पंचायत शुरु करने के लिए कह गए हैं....
सरपंच - (शनिया से) तो क्या हम... किसी और दिन के लिए सुनवाई को खिसकायें...
शनिया - नहीं... यह और भी अच्छी बात है... वैसे भी पुलिस के सामने मार पीट ठीक नहीं है...
सरपंच - हाँ जैसे पहले उखाड़े थे... बिल्कुल वैसे ही उखाड़ोगे...
भूरा - (सरपंच की गर्दन पकड़ लेता है) क्यूँ बे कहना क्या चाहता है...
सरपंच - छोड़ो मेरा गर्दन... (कह कर अपनी गर्दन छुड़ाता है) मैंने दरोगा को तुम लोगों की हिफाजत के लिए वहाँ पर चाहता था... वर्ना... राजगड़ में ऐसा कोई घर नहीं... ऐसा कोई गली नहीं... जहां पर तुम लोगों की रात में विश्व की हाथों कुटाई की चर्चा ना हो रहा हो...
शनिया - उन घरों में... तेरा भी घर होगा... तेरे घर की गली भी होगी... क्यूँ सही कहा ना... (सरपंच सकपका जाता है, शनिया उसकी गिरेबान पकड़ कर अपनी तरफ खिंच कर) अबे हराम के... हमारी कुटाई की चर्चा करने वालों की भी हम से कितना फटती है... देखा नहीं या समझा नहीं... अभी थोड़ी देर पहले तेरी बीवी कैसे अंदर भाग गई...
सरपंच - म म मेरा मतलब यह नहीं था...
शनिया - सुन बे भोषड़ी के... तुम जैसे के लिए ही... हमने यह पंचायत बुलाया है... ताकि चर्चा कभी बंद ना हो पाए... सिर्फ चर्चा का विषय बदल जाए...
सरपंच - (गिड़गिड़ाते हुए) फिर भी... पुलिस अगर हो... तो तुम्हारे लिए... मेरा मतलब है... हम सबके लिए अच्छा है...
उदय - सरपंच ठीक कह रहा है... यह देखो... (न्यूज पेपर दिखाते हुए) अब वह कोई मामुली बंदा नहीं है... हाइकोर्ट का वकील बन गया है... यह देखो... एडवोकेट विश्व प्रताप महापात्र... और एक बात... मैं यहाँ आने से पहले... रास्ते में एक डाकिया मिला था... जो वैदेही का पता पुछ रहा था...
सरपंच - क्या... (हैरान हो कर) लाओ पहले यह अखबार दिखाओ...

उदय से अखबार लेकर शनिया, शुकुरा, भूरा के साथ साथ सरपंच सब मुहँ फाड़े पेपर पर छपे विश्व की तस्वीर देख रहे थे l

सरपंच - यह... यह अब कोई मामुली बंदा नहीं है... इसके पर हाथ फेरने से पहले हर तरफ से तैयारी मुकम्मल होनी चाहिए... एक चुक बहुत भारी पड़ सकता है...

शनिया सरपंच की गिरेबान छोड़ देता है l और उदय से पेपर लेकर अच्छे से देखने लगता है l

सरपंच - मेरी मानों... दरोगा से बात करो... वहाँ पर पुलिस वालों की मौजूदगी बहुत जरूरी है... उनकी रिपोर्ट... बाद में हमारे ही काम आएगी...

शनिया अपनी मोबाइल निकाल कर रोणा का नंबर पर कॉल लगाता है l कॉल के उठते ही

शनिया - हैलो दरोगा बाबु...
@ - हाँ बोलो क्या बात है...
शनिया - आज आपने वादा किया था... पंचायत भवन में मौजूद रहने के लिए...
@ - अर्रे हाँ... अरे भाई.. मैं वारंट पर तहसील आया हूँ... एक काम करता हूँ... मैं अपने तीन थोड़े छोटे ओहदेदार ऑफसरांन को भेज रहा हूँ... एक आध घंटे में पहुँच जायेंगे... वह लोग सब सम्भाल लेंगे... चिंता मत करो... पंचायत सभा रूकनी नहीं चाहिए...
शनिया - जी... क्या नाम हैं उनका... मेरा मतलब है... उन ऑफिसरों का...
@ - पहला ऑफिसर है... सब इंस्पेक्टर शैतान सिंह... दुसरा ऑफिसर है.. असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर मक्खन सिंह... और हवलदार जैलांन सिंह...
शनिया - जी ठीक है... हम उनका कहाँ पर इंतजार करें...
@ - पंचायत भवन में...

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वैदेही अपनी दुकान में चूल्हे में आग लगाने के बाद थोड़ी पुजा करती है l गौरी दुकान में पड़े एक कुर्सी पर बैठ जाती है l जब वैदेही पुजा ख़तम कर मुड़ती है तब गौरी उससे सवाल करने लगती है l

गौरी - आज तेरा मन बहुत खुश क्यूँ है... और क्या सोच कर चूल्हे में आग लगाई है... दिन से हफ्ते हफ्ते से महीना हो गया है... कोई नहीं आ रहा है... तेरे इस दुकान पर खाना खाने... यह जानते हुए भी... आज तुने चूल्हे में आग लगाई है...
वैदेही - मेरा विशु अब वकील बन चुका है... उसे अब सरकारी स्वीकृति भी मिल गई है... इस खुशी में दावत तो बनती है ना काकी....
गौरी - हाँ हाँ बनती है... पर हम कुछ लोगों के बीच... तेरी यह खुशी बांटने कोई नहीं आएगा... जैसे तेरे दुख बांटने कोई नहीं आया था...
वैदेही - आयेंगे काकी आयेंगे... आज नहीं तो कल सही... पर आयेंगे...
गौरी - क्यूँ तु बावरी होई जा रही है... तु इतने सालों से... इनके लिए क्या नहीं किया बोल... अपनी कमाई के पैसों से दूसरों के कर्ज उतारी... उनके घरों की इज़्ज़त बचाई... ज्यादातर बच्चों को... अपने दम पर पढ़ा रही है... फिर भी... कोई नहीं है यहाँ पर... तेरा एहसान मानने वाले...
वैदेही - (हँसते हुए गौरी के पास बैठ जाती है) काकी... कोई मेरा एहसान माने इसलिये मैंने किसीकी मदत नहीं की... मैं सबको अपना मनाती हूँ... इसलिए मैं सबकी मदत कर रही हूँ... तुम देखना... आज जो पढ़ रहे हैं... कल सब एक एक विशु की तरह नाम कमाएंगे...
गौरी - हूँह्ह... पता नहीं तु सपना देखना कब छोड़ेगी...
वैदेही - काकी... तुम ना बहुत जल्दी हार मान जाति हो... (समझाते हुए) अभी जिंदगी बहुत बाकी है... देखना... तुम अपनी जीते जी देखोगी... इस गाँव को बदलते हुए... इस गाँव के लोगों को बदलते हुए...

वैदेही की बहस के आगे गौरी हार मानते हुए अपनी जगह से उठती है और अंदर की ओर जाने लगती है l

वैदेही - कहाँ जा रही हो काकी... गल्ले पर नहीं बैठना क्या...
गौरी - (बिदक कर) नहीं बैठना है मुझे... वैसे भी... तेरा विशु और उसका पुंछ चमगादड़ आयेगा नाश्ते के लिए.... और कोई नहीं आने वाला है आज... कोई दावत नहीं होगी आज.. सब के सब आज पंचायत भवन में होंगे...
वैदेही - (चिहुँक कर उठती है) क्या... अरे हाँ... ठीक कहा तुमने... आज तो पंचायत है...

तभी दीदी दीदी चिल्लाते हुए टीलु आता है l दुकान के अंदर पहुँचकर हांफने लगता है l

गौरी - क्या रे नासपीटे... किसकी जान खा कर आ रहा है..
टीलु - (मुहँ बना कर) खा कर नहीं बुढ़िया रानी... खाने आया हूँ...
गौरी - क्या कहा.. कमबख्त... मुझे बुढ़िया कह रहा है...
टीलु - क्या काकी... (मलाई मारने के अंदाज में) मैंने तो तुमको गुड़िया रानी कहा है...
गौरी - कीड़े पड़े तेरे जुबान पर.. झूठ बोलते शर्म नहीं आई...
टीलु - ऐ... (धमकाते हुए) काकी... कभी सुना है... किसी बुढ़िया को रानी कहते हुए... (नाटक करते हुए) मैं तो तुम्हें अपना समझ कर... इज़्ज़त देते हुए... रानी कह रहा हूँ... तुम हो कि नासपीटे... कमबख्त.. और ना जाने क्या क्या कह रही हो... (वैदेही से रहा नहीं जाता, टीलु का कान पकड़ कर खिंचने लगती है) आ आह... आह... दीदी दर्द कर रहा है...
वैदेही - कब से देख रही हूँ.. यह क्या मस्ती लगा रखा है... माफी मांग..
टीलु - ऐ बुढ़िया...
गौरी - खिंच और जोर से कान...
वैदेही - क्या (कान खिंचने लगती है)
टीलु - आह... नहीं नहीं... काकी ओ काकी... माफ़ कर दो... प्लीज...
गौरी - अब आया ना रास्ते पर...
टीलु - कहाँ रास्ते पर... दुकान पर आया हूँ.. दीदी छोड़ो ना... आह कहीं मर मरा ना जाऊँ...
गौरी - तो मर आज.. वैदेही... मत छोड़ना आज उसे...

पर वैदेही मुस्कराते हुए छोड़ देती है l टीलु अपना कान पर हाथ फेरने लगता है l

वैदेही - ज्यादा नाटक मत कर...
गौरी - क्यूँ छोड़ दिया उसे.. मरने तक तो पकड़ कर रखती...
टीलु - देखो काकी... अगर मैं मर गया होता... तो तुम ही पछताती...
गौरी - अच्छा... वह क्यूँ भला..
टीलु - बताता हूँ... (एक न्यूज पेपर निकाल कर वैदेही को दिखाते हुए) यह देखो दीदी... भाई का क्या मस्त फोटो आया है... वह भी पहले पन्ने पर...

वैदेही पेपर पर वकील के कपड़ों में विश्व की तस्वीर देख कर बहुत खुश हो जाती है l पेपर के दाहिने तरफ एक चौथाई पन्ने पर विश्व के फोटो के साथ " शिक्षा का अधिकार का श्रेष्ठ उदाहरण एडवोकेट विश्व प्रताप महापात्र"

यह पढ़ कर वैदेही की आँखों से कुछ बूंद आँसू टपक पड़ते हैं l गौरी वैदेही से पेपर लेकर विश्व की तस्वीर देखती है l

टीलु - दीदी... दुख भरे दिन बीते रे दीदी... शुभ दिन आयो रे... फिर यह आँसू क्यूँ...
दीदी - यह खुशी की आँसू है.. एक तपस्या का फल है... एक कदम न्याय की ओर है... कास आज विशु... पंचायत भवन में आए...
टीलु - दीदी... विश्व भाई ने जो दुनिया देखा है... जो सीखा है.. उसीके हिसाब से जी रहे हैं... मदत उसकी करो... जो मांगे... जिसे बिन मांगे दो... वह मदत बेकीमत हो जाता है... बिन मांगे उसकी मदत किया जा सकता है... जिसमें अपनी लड़ाई लड़ने की ज़ज्बा हो... हिम्मत हो... आज विश्वा भाई उनकी लड़ाई लड़ भी लें तो क्या होगा... आज यह राजा जाएगा... कल इन्हीं पर राज करने कोई दुसरा राजा आ जाएगा... तब... तब क्या होगा... (वैदेही चुप रह कर एक टक टीलु को देखे जा रही थी, टीलु घबरा जाता है) ऐ... ऐसे क्या देख रही हो दीदी...
वैदेही - देख रही हूँ... विशु के साथ रह कर... उसके जैसे बातेँ करने लगा है...
टीलु - (शर्मा जाता है)
गौरी - ज्यादा मत शर्मा... वर्ना गलती से लोग लड़की समझ बैठेंगे...
टीलु - (बिदक कर मुहँ बना कर गौरी को देखने लगता है)
वैदेही - खैर अब यह बता... विशु और तु नाश्ता करने तो आओगे ना...
टीलु - जरुर दीदी जरुर... अच्छा चलता हूँ...

कह कर टीलु गौरी को खा जाने वालीं नजर से घूरते हुए बाहर की ओर जाने लगता है l गौरी भी दांत पिसते हुए उसे देख रही थी, जैसे ही टीलु बाहर की ओर होने लगा गौरी चिल्ला कर

गौरी - ऐ नासपीटे रुक...
टीलु - (टीलु अपनी आँखे सिकुड़ कर और मुहँ बना कर गौरी को देख कर) क्या है...
गौरी - यह बता... तु मर गया तो मेरा किस बात का पछतावा होगा...
टीलु - काकी अगर मैं मर गया... तो तुझे ढोने वालों में से एक कंधा कम हो जाएगा... समझी...

इतना कह कर टीलु बिना पीछे देखे भाग जाता है l गौरी दुकान पर टीलु को गाली बकती रह जाती है l उसकी हालत देख कर वैदेही हँसने लगती है l पर धीरे धीरे वैदेही की हँसी रुक जाती है, एक संतोष भरी नजर से विश्व की फोटो को देखते हुए फोटो पर बड़े प्यार से हाथ फेरने लगती है l


गौरी - तुझे क्या लगता है... विशु जाएगा...
वैदेही - पता नहीं काकी... पर मुझे तो जाना ही होगा...
गौरी - पर मुझे तो विशु की बात ही सही लगती है... उन लोगों की दुनिया में... तुम लोगों की जरूरत भी है... मुझे तो नहीं लगता... उन लोगों को तुम्हारी कोई जरूरत...
वैदेही - ऐसा नहीं है काकी... आज उन्हें महसूस नहीं हो रहा है... और विशु को समझ नहीं आ रहा है... पर हम सब जुड़े हुए हैं...
गौरी - इसका मतलब तु जाएगी... (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म... तुम दो बहन भाई के रिस्तों को समझना बहुत मुश्किल है...
गौरी - जानती हो काकी... कल जब विशु के बारे में मासी से बात कर रही थी... मासी ने कहा था... की मासी की और मेरी विशु से खुन का रिश्ता नहीं है... पर अगर भगवान कभी पलड़े मैं एक तरफ मुझे और दुसरी तरफ मासी को रख कर चुनने को कहे... तो विशु मुझे ही चुनेगा...
गौरी - यानी तुझे यकीन है... पंचायत भवन जाएगा...
वैदेही - हाँ... मेरे लिए वह जाएगा....

तभी एक डाकिया आता है और दुकान के सामने अपनी साइकिल रोकता है l दुकान के बाहर खड़े होकर

डाकिया - क्या यह वैदेही महापात्र जी का पता है...
गौरी - हाँ क्या हुआ
डाकिया - नहीं शायद यह डाक राजगड़ के इतिहास में पहली बार आया है.... आपके नाम...
वैदेही - क्या.. क्या आया है...
डाकिया - पता नहीं... दो दो डाक हैं... मैं यशपुर डाक थाने से पहली बार... राजगड़ आया है... दोनों सरकारी है... एक गृह मंत्रालय से है... और दूसरा उच्च न्यायालय से....
वैदेही - क्या...



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पंचायत भवन
समय साढ़े ग्यारह बजे
लोग धीरे धीरे भवन में भरते जा रहे हैं l अपनी जगह बना कर बैठ रहे हैं l वैदेही भी भवन के अंदर औरतों के झुंड के बगल में एक जगह बना कर बैठी हुई थी l वह आशा भरी नजर दौड़ा कर विश्व को ढूँढ रही थी l पर उसे कहीं भी विश्व नजर नहीं आता l उधर भवन के बाहर सरपंच, उदय और शनिया के गुर्गे उन पुलिस वालों का इंतज़ार कर रहे हैं l थोड़ी देर बाद पुलिस की एक जिप्सी दिखती है जो उनके पास आकर रुकती है l जिप्सी से दो ऑफिसर उतरते हैं, ड्राइवर गाड़ी को एक जगह ले जा कर पार्क कर इन लोगों के पास आ कर खड़ा हो जाता है l सरपंच देखता है वह एक कांस्टेबल था l सरपंच तीनों के सीने में नेम प्लेट से पहचान लेता है वे सब इंस्पेक्टर शैतान सिंह, असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर मक्खन सिंह और कांस्टेबल जैलांन सिंह थे l तीनों में एक खासियत थी तीनों के चेहरे पर बड़ी बड़ी मूंछों के साथ आखों पर काला चश्मा था l

सरपंच - आइए आइए दरोगा जी...
शैतान सिंह - तो तुम सरपंच हो...
सरपंच - जी...
शैतान सिंह - ठीक है... यह लोग कौन हैं... और यह लोग हमें ऐसे घूर घूर कर क्यूँ देख रहे हैं... क्या कभी पुलिस नहीं देखे क्या...
सरपंच - नहीं ऐसी बात नहीं है... आपको तो हमारे गाँव के दरोगा जी... मेरा मतलब है रोणा बाबु जी भेजा है ना...
शैतान सिंह - हाँ... पर इन लोगों के देखने की तरीके से लगता है... यह लोग हम पर शक कर रहे हैं...
सरपंच - क्या... नहीं नहीं दरोगा जी... (कह कर शनिया और उसके गुर्गों की ओर देख कर इशारों से हाथ जोड़ने के लिए कहता है, शनिया और उसके सारे आदमी इन पुलिस को हाथ जोड़ते हैं)
शैतान सिंह - (शनिया से) तुम शनिया हो...
शनिया - जी...
शैतान सिंह - तुम्हारे बारे में... अनिकेत बाबु ने मुझे सबकुछ बता दिया है.... घबराओ मत... हम यहाँ तुम्हारे मदत के लिए ही आये हैं... अब प्लान क्या है बताओ...
भूरा - साहब... पंचायत में मुमकिन है... बीच बहस में दंगा हो...
माखन सिंह - ओ.. तो दंगा करने का प्लान है... वह भी कानून के आड़ में...
सत्तू - जी साहब... इसीलिये तो हम रोणा साहब को खोज रहे थे...
जैलांन - अबे तुम्हारा रोणा साहब ने ही हमें भेजा है... हम यहाँ एक से भले तीन आए हैं...
शैतान सिंह - हाँ... पर यह बोलो... दंगे में कितने निपटेंगे...
शनिया - सिर्फ एक... (तभी उसके कान में शुकुरा आकर कुछ कहता है, वह शुकुरा को हैरान व परेशान भरे नजरों से देखने लगता है)
शैतान सिंह - क्या हुआ... सब ठीक है ना...
शनिया - ककु कुछ नहीं... कुछ नहीं...
शैतान सिंह - पर तेरा थोबड़ा तो कुछ और बता रहा है...
शनिया - क्या... क्या बता रहा है...
शैतान सिंह - यही के... बलि का बकरा गायब है...
शनिया - (चौंक जाता है, आँखे फैल जाते हैं) यह... आपने कैसे जान लिया...
शैतान सिंह - बोला ना तेरा थोबड़ा बोल रहा है... तो प्रोग्राम आगे बढ़ाना है... या...
शनिया - नहीं साहब.... (दांत पिसते हुए) प्लान में कोई तब्दीली नहीं होगी... बकरा ना सही... बकरे की अम्मा ही सही... आज तो हर हाल में बलि चढ़ेगी...
शैतान सिंह - मतलब...
शनिया - उसकी दीदी है... वह फुदकेगी... उछलेगी...
शैतान सिंह - तो...
शनिया - तो हम उसे ही निपटा देंगे...
शैतान सिंह - कैसे...
शुकुरा - हमारे लोग... भीड़ के बीच से हमला बोल देंगे... सबको लगेगा... भीड़ हमलावर हो गई... बेचारी की जान चली गई...
शैतान सिंह - एक मिनट... तुम लोग क्या करोगे कैसे करोगे... हमें कोई मतलब नहीं... पर पत्थर बाजी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए...
शनिया - क्यूँ साहब...
शैतान सिंह - अबे घन चक्करों... पत्थरबाजी से हम लोग भी घायल हो सकते हैं... क्यूँ सरपंच...
सरपंच - हाँ.. हाँ हाँ.. बात तो सही है... एक को निशाना बनाओगे... चुका तो हम लपेटे में आयेंगे...
शैतान सिंह - हाँ... अगर ऐसा कुछ हुआ... तो... (होल्स्टर से रिवाल्वर निकाल कर) जो मेरे नजर में आएगा... उसे भुन के रख दूंगा...
शुकुरा - पर मान लीजिए... भीड़ में से कोई छुपे हुए हथियारों से हमला कर दिया तो...
शैतान सिंह - कोई वादा नहीं... पर शर्त है... आँच हम तक ना आए....
भूरा - नहीं जाएगा... साहब... पर फर्ज कीजिए... उसे बचाने... बीच में कोई आया...
शैतान सिंह - अगर एक दो आए... तो उसकी जिम्मेदारी तुम लोगों की... हाँ अगर एक दो से ज्यादा आए... तो... शांति बनाए रखने के लिए... हमें गोलीबारी करनी होगी...
सरपंच - ठीक है साहब अब अंदर चलें... लोग आ गए हैं... हम पंचायत फैसला सुना कर... फैसले पर मोहर लगाने की कवायद करेंगे...
शैतान सिंह - ठीक है... चलो फिर...

सभी भवन के अंदर आते हैं l लगभग आधे से ज्यादा गाँव वाले मौजूद थे l सरपंच पंडाल पर एक जगह किनारे पर पुलिस वालों को बिठा देता है और खुद अपने पंचो को लेकर बीच पंडाल में टेबल पर बैठ जाता है l लोगों में पहले पंक्ति में समिति सभ्य और कुछ वार्ड मेंबर बैठे हुए हैं l सरपंच एक समिति सभ्य को इशारा करता है l वह समिति सभ्य माइक के पास जाकर सबको स्वागत करता है और सरपंच को माइक पर आकर सभा बुलाने कारण कहने को बुलाता है l सरपंच अपनी पगड़ी ठीक करता है फिर माइक पर आता है l एक नजर लोगों के बीच बैठा शनिया पर डालता है, शनिया हल्के से अपना सिर हिला कर शुरु करने के लिए इशारा करता है l सरपंच एक इत्मीनान भरी साँस छोड़ते हुए औरतों के झुंड में नजर दौड़ाता है l उसे वैदेही की झलक दिख जाती है l

सरपंच - देवियों और स्वजनों... आप सबका स्वागत है... आप सबकी जानकारी के लिए बता दूँ के... यहाँ कुछ विषयों पर चर्चा होगी... चर्चे में हर पक्ष की बात सुनी जाएंगी... चर्चे के उपरांत पंचायत अपना निर्णय सुनाएगी... और आप सबको वह निर्णय स्वीकार करना होगा... यह मैं याद दिलाना बेहतर समझता हूँ... के यह राजा क्षेत्रपाल जी का राजगड़ है... यहाँ केवल राजा साहब के अनुमोदित कानून ही मान्य है... इसलिए यहाँ पर जो न्याय होगा... वह अंतिम होगा.... थाना और कचहरी केवल नाम मात्र के लिए है... इसके बाद जो भी निर्णय के विरुद्ध जाएगा... उसे राजा क्षेत्रपाल के राज के नियम के विरुद्ध समझा जाएगा... अब मैं... चर्चा के लिए विषय को आपके समय प्रस्तुत करने के लिए... पंचो से अनुमती मांगता हूँ...
वैदेही - (औरतों के बीच से उठ कर) एक मिनट सरपंच जी... क्या मैं एक सवाल कर सकती हूँ...
सरपंच - जी जरुर...
वैदेही - आपने अभी कहा... यहाँ का न्याय अंतिम न्याय है... थाना और कचहरी केवल नाम मात्र के लिए है....
सरपंच - जी...
वैदेही - तो फिर यहाँ मंच के सिरे पर वह पुलिस वाले क्यूँ बैठे हुए हैं...
सरपंच - वह आमंत्रित अतिथि हैं... जो पंचायत की कार्यप्रणाली की निरीक्षण करने के पश्चात... सर्कार को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे... मुझे लगता है आप समझ गई होंगी... इसलिए बैठ जाएं... (वैदेही बैठ जाती है) क्या चर्चा आरंभ करने के लिए मुझे पंचों की इजाजत प्राप्त है... (पंचों में आए सभी लोग अपना सिर हिला कर सहमती देते हैं) तो देवियों और स्वजनों... जैसा कि आप सब जानते हैं... डेढ़ वर्ष पूर्व राजगड़ मल्टीपरपोज कोआपरेटिव सोसाइटी का गठन हुआ था... उस सोसाइटी के कुछ वरिष्ठ अधिकारीयों ने सोसाईटी की आय के लिए... एक चिट फंड चलाने की मंजुरी दी गई थी... अब यह देखा गया है... गाँव के कुछ लोग चिट फंड से... अपनी हद से ज्यादा कर्ज उठा चुके हैं... इसलिए उन कर्जो की अदायगी पर चर्चा के लिए आप सब यहाँ आमंत्रित हैं... (कुछ लोग आपस में खुसुर-पुसुर करने लगते हैं, जाहिर से बात थी किसीको कुछ भी समझ में नहीं आई) तो जिन लोगों को इस बाबत नोटिस मिला है... उनका कुछ कहना है... (सरपंच पूछता है, कोई कुछ नहीं कहता)
वैदेही - (अपनी जगह से उठती है) सरपंच जी... अगर कर्जा राजगड़ मल्टीपरपोज कोआपरेटिव सोसाइटी की चिट फंड से दिया गया है... तो उसकी वसूली के लिए... नोटिस शराब की ठेके चलाने वाले क्यूँ थमाए...
सरपंच - (कुछ देर के लिए सोच में पड़ जाता है, फिर) चिट फंड का अपना कोई पैसा नहीं है... वे लोग... चिट फंड में अपना पैसा लगाए हैं... इसलिए...
वैदेही - कमाल करते हैं... सरपंच जी... चिटफंड चलाओ आप... मगर पैसा लगाएं शराब बेचने वाले...
सरपंच - क्या आपको नोटिस मिला है...
वैदेही - जी... जी नहीं...
सरपंच - तो आप क्यूँ बीच में कुद रही हैं... जिनको नोटिस मिला है... उन्हें पूछने.. जानने दीजिए... बैठ जाइए...

मन मसोस कर वैदेही बैठ जाती है l बेबसी के साथ भीड़ में विश्व को ढूंढने लगती है पर उसे कहीं भी विश्व नहीं दिखता l

सरपंच - तो पहला नाम है... हरिया... अरे बाप रे पाँच लाख रुपये... क्यूँ हरिया... इतने पैसों का क्या किया तुमने...
हरिया - (हाथ जोड़ कर, रोनी सुरत बनाते हुए अपनी जगह से उठ कर) सरपंच जी... मुझे नहीं पता कब और कैसे मैंने इतने पैसे लिए...
सरपंच - यह क्या शनिया... हरिया कह रहा है.. इतना पैसा कब लिया... उसे मालुम ही नहीं है...
शनिया - यह झूठ बोल रहा है... आज तक मेरे भट्टी में आकर जितना मर्जी उतना पिया है... यहाँ तक उल्टी करने के बाद भी पिया है... इसलिए मैंने उसे... चिट फंड में से निकाल कर पिलाया... पर अब और नहीं.. पाँच लाख हो गए... अब मुझे मेरे पैसे चाहिए... बस...
सरपंच - यह क्या सुन रहा हूँ हरिया...
हरिया - यह शनिया भाई झूठ बोल रहा है... मैंने कभी हज़ार रुपये इकट्ठे नहीं देखे... और मैं कैसे... कैसे... पांच लाख रुपये तक की दारु पी सकता हूँ...
सरपंच - अरे हरिया... तुने पाँच लाख रुपये के दारु नहीं पी है.. यह दारु तुझे चिटफंड के पैसों से... व्याज के साथ पिलाया है.. असल और व्याज मिला कर पाँच लाख हो गया है...
हरिया - नहीं नहीं... आप ही सोचो सरपंच जी... पी पी कर एक आदमी कितना पी सकता है...
सरपंच - अरे हरिया.. तु अकेला कहाँ है... इनके कर्जे में बिल्लू है... बलराम है... चित्तरंजन है... और कमाल की बात है... सबने पाँच पाँच लाख देने हैं...
शनिया - सरपंच जी...जमीन पुश्तों से राजा साहब के यहाँ गिरवी प़डा है... सिर्फ घर बार बचा है... उन्हें बेचकर.. खुद को बेच कर भी यह कर्ज नहीं चुका सकता हूँ मैं...
सरपंच - अरे भाई... हम यहाँ इसीलिए तो बैठे हैं... आज यह तय करना है... तुम सब के कर्ज कैसे चुकता होगा... जिसे तुम भी मानोगे... और शनिया भी... क्यों शनिया... बात ठीक है ना...
शनिया - (अपनी मूँछों पर ताव देते हुए) बिल्कुल दुरुस्त कहा आपने सरपंच जी...
सरपंच - हाँ तो फिर तुम बोलो शनिया भाई... हरिया तो कह दिया.. घरबार ही नहीं... यह खुद भी बिक जाए... तब भी... पाँच लाख रुपये नहीं चुका पायेगा... ऐसे में... तुम कैसे अपना कर्ज वापस लेना चाहोगे...
शनिया - (अपनी जगह पर खड़ा हो जाता है) पंचों... मैं भी समझता हूँ... आखिर हरिया ही नहीं... चाहे बिल्लू हो या बलराम या चित्तरंजन... सभी मेरे गाँव वाले हैं... इन लोगों में से कोई दुश्मनी तो नहीं मेरी... पर बात पैसों की है... अगर मुझे वापस ना मिला तो मैं और मुझ पर आश्रित मेरे आदमी जिएंगे कैसे... पर मैं बहुत बड़ा दिल रखता हूँ... अब घर देखने के लिए... घर में बीवी... और कमा कर घर चलाने के लिए बाहर मर्द... तो बचे कौन बच्चे... तो इन सबके घरों में जितने भी बच्चे हैं... वह मेरे घर में आकर मेरे बताये हुए काम करें... वादा करता हूँ... एक साल में ही इन सबके कर्ज उतर जाएगा...
सरपंच - वाह.. एक साल में उतर जाएगा... और क्या चाहिए... क्या कहते हो... हरिया और बाकी लोग...

वाह वाह वाह... (खिल्ली उड़ाने के अंदाज में वैदेही अपनी जगह से उठती है और ताली बजानी लगती है) वाह सरपंच... तुने तो कमाल कर दिया... सरपंची छोड तु भड़वा और दल्ला भी बन गया... जिनके घरों की इज़्ज़त आबरू को बचाना था... उन्हीं की सौदा.. उनके माँ बाप से करवा रहा है... वाह...
सरपंच - ऐ लड़की... कब से देख रहा हूँ... न्याय के बीच में... तु टोकने के लिए घुस रही है...
वैदेही - न्याय... थु... यह कह तेरी दल्ले गिरी के बीच क्यूँ घुस रही हूँ...
शैतान सिंह - (अपनी जगह पर खड़े हो कर) सुनो मोहतरमा... तुम ऐसे कैसे किसी सरपंच को गाली दे सकती हो... यह (हरिया को दिखा कर) तुम्हारा कौन लगता है...
वैदेही - आपके सामने यह गरीबों की इज़्ज़त की कीमत लगा रहा है... और आप उसकी तरफदारी कर रहे हैं... हाँ यह मेरा कुछ नहीं लगता.. पर उसके बच्चे मुझे मासी कहते हैं... और उनके लिए मैं किसी भी हद तक जा सकती हूँ...
शैतान सिंह - अच्छा यह बात है... क्या तुम उस हरिया की पैरवी करना चाहती हो... (कह कर शनिया को आँख मारता है) अगर कुछ कहना चाहती हो... तो मंच पर जाओ और कहो...

कह लेने के बाद अपनी भवें नचा कर शनिया की ओर देखता है l वैदेही भी मंच पर चढ़ कर माइक के पास आ जाती है l वैदेही को माइक के पास देख शनिया खुश हो जाता है और अपनी पलकें झपका कर इशारे से शैतान सिंह को अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता है और मन ही मन सोचने लगता है

- यह तो कमाल करदिया दरोगा ने... शिकार को सामने लाकर खड़ा कर दिया... विश्वा नहीं तो विश्वा की बहन ही सही... मरना तो है आज तुझे कमिनी... (आँखों में खुन उतर आता है) कितनी बार मुझे जलील किया है तुने साली रंडी... आज तुझे मार कर अपनी भड़ास निकालूँगा... (अपने आदमियों को तैयार होने के लिए इशारा करता है)
शैतान सिंह - सरपंच जी... इन्हें एक माइक दीजिए... हम भी तो देखें... क्या पैरवी कर लेंगी यह...

सरपंच एक ऑपरेटर को इशारा करता है l वह ऑपरेटर एक माइक लाकर वैदेही को देता है l

शैतान सिंह - तो मोहतरमा जी... आपको किस बात पर ऐतराज है...
वैदेही - इंस्पेक्टर साहब... जैसा कि इस सरपंच ने कहा... डेढ़ साल हुए हैं... कोआपरेटिव सोसाइटी को... तो चिटफंड भी इन्हीं डेढ़ सालों में बना होगा... मैं इतना जानती हूँ... किसी भी चिट फंड चलाने के लिए... सर्कार के साथ साथ आरबीआई की मंजुरी होनी चाहिए... कम से कम... सोसाईटी की मेंबर्स की मंजुरी चाहिए... क्या इनके पास हमारे राज्य सर्कार की या आरबीआई की मंजुरी है... या फिर... सोसाईटी मेंबर्स की मंजुरी है...
सरपंच - इसकी कोई जरूरी नहीं थी... हमारे लिए हमारी सर्कार... राजा साहब हैं...
वैदेही - इसका मतलब तुम लोगों की यह चिटफंड ही गैर कानूनी है... और दुसरी बात... यह बात यहाँ पर बिल्कुल भी तुमने नहीं कहा... हरिया पर कितना कर्जा है... कितने व्याज पर कितने महीनों के बाद... यह पाँच लाख हुआ है...

वैदेही के इतने कहने पर सरपंच का चेहरा ऐसा हो जाता है जैसे उसके हाथों से तोते उड़ गए हों l हरिया की बीवी खड़ी हो जाती है और पूछती है

लक्ष्मी - सही पकडी हो दीदी... हाँ पहले यह बताओ... मेरे मर्द का कर्जा कितना है... व्याज कितना और कितने महीने हुए हैं...
शैतान सिंह - क्यूँ... तु उसकी पत्नी है... तुझे नहीं मालूम...
लक्ष्मी - (हाथ जोड़ कर) साहब... यह शनिया जब भी वसुली के लिए मेरे घर आया है.. कभी खाली हाथ नहीं लौटा है... उसने जब भी जितना पैसा कहा... दीदी ने उसके मुहँ पर मारा है... उसके बावजुद... पाँच लाख कैसे हो गया...
शनिया - ऐ चुप करो तुम सब... (अपने एक आदमी से) बिठा रे उसको...

एक आदमी औरतों के बीच में घुस कर लक्ष्मी को ज़बरदस्ती बैठने के लिए कहता है l लक्ष्मी जिस जोश के साथ उठी थी उसी तेजी के साथ बैठ जाती है l

वैदेही - देखा इंस्पेक्टर साहब... यह है इनकी चाल बाजी... यह अपने घर बच्चों से काम लेने नहीं बुला रहे हैं... बल्कि बढ़ रही बेटीयों को नोचने के लिए बुला रहे हैं... पर मैं जिंदा हूँ अभी... मेरे जीते जी... इस गाँव की किसी भी लड़की पर कोई आँच नहीं आने दूंगी...
शनि - तो आज मर जा फिर... (अपने आदमियों से) देखो गाँव वालों... यह कानून राजा साहब का है... यह बदजात राजा साहब से नमक हरामी कर रही है... उठो और ख़तम कर दो इसे...


भीड़ में से शनिया और उसके सारे लोग पंडाल की ओर भागते हैं और पंडाल पर चढ़ जाते हैं l सभी गाँव वाले यह देख कर डर जाते हैं कि तभी शनिया चिल्लाता है

शनिया - कोई नहीं जाएगा यहाँ से... जो भी इस भवन से बाहर जाएगा... वह राजा साहब का गुनहगार होगा... हम उसे ढूंढ ढूंढ कर मार डालेंगे...

सभी गाँव वाले रुक जाते हैं डरते हुए पंडाल की ओर देखने लगते हैं l वैदेही अपनी जगह पर डट कर खड़ी हुई थी l उसकी आँखों में इतनी हिम्मत थी के शनिया वैदेही से नजरें मिला नहीं पा रहा था l शनिया खुद को सम्भालता है और वैदेही के पास आता है l

शनिया - बड़ा मतलबी निकला तेरा भाई... हमने तो उसे लपेटे में लेने के लिए यह प्लान बनाया था... पर वह आया नहीं... तु हत्थे चढ़ गई... कोई नहीं... आज वह नहीं तु सही... ऐ (अपने आदमियों से) निकालो अपने हथियार...

वैदेही को घेरे हुए सभी अपने अपने हथियार निकालते हैं l सारे हथियार खेती में उपयोग होते हैं l यह सब देख कर भी वैदेही विचलित नहीं होती l

शनिया - किस मिट्टी की बनी है तु... जरा भी डर नहीं लग रहा तुझे...
वैदेही - जिसका विश्वा जैसा भाई हो... उसे किस बात कर....
शनिया - अच्छा... यह बात है... (अपने आदमियों से) काट डालो इस रंडी...

आगे कुछ नहीं कह पाया l एक लात शनिया के निचले जबड़े पर लगता है l वह हवा में उड़ते हुए पंडाल से नीचे कुर्सियों पर गिरता है l वह सम्भल कर उठ कर देखता है l उसीके आदमियों के लिबास में विश्वा उसके आदमियों को धूल चटा रहा है l एक एक आदमी को उठा उठा कर पटक रहा था l पहले से ही उसके हाथों मार खाए हुए थे l थोड़ा डर पहले से ही था l अब विश्व को सामने देख कर उन पर डर और भी हावी हो गया l उनके हाथ पैर चलने से पहले ही विश्व के हाथ पैर चल रहे थे l कोई एक घुसे में तो कोई एक लात से गिर रहा था वह भी पंडाल से छिटक कर नीचे पड़े कुर्सियों पर l शनिया देखा पुलिस वाले बड़े मजे से विश्वा को उसके आदमियों को मारते हुए देख रहे हैं l वह शैतान सिंह के पास जाता है

शनिया - यह आप क्या कर रहे हैं इंस्पेक्टर साब... वह मेरे आदमियों को मार रहा है...
शैतान सिंह - मैंने पहले ही कहा था... मैं सिर्फ गाँव वालों को रोकुंगा... तुम्हारे आदमियों को नहीं...
शनिया - पर वह मेरा आदमी नहीं है...
शैतान सिंह - तुम लोगों के पास हथियार तो है ना... टूट पड़ो उस पर...
शनिया - तो फिर आप क्या करेंगे...
शैतान सिंह - अबे भोषड़ी के... मर्द ही है ना तु... कुछ देर पहले लड़की पर... बड़ी बड़ी हांक रहा था... साले हरामी एक ही लात में क्या छक्का बन गया...

शनिया अपने कपड़ों के बीच से एक तलवार निकालता है और धीरे धीरे विश्वा के पास जाने लगता है l जब तक वह विश्वा के पास पहुँचा शनिया के सारे आदमी भवन के फर्श पर धुल चाट रहे थे l शनिया विश्व के पीछे पहुँच कर हमले के लिए जैसे ही तलवार उठाता है विश्व अचानक मुड़ता है और शनिया के आँखों में घूर कर देखने लगता है l विश्व की ऐसे नजर से शनिया तलवार उठाए वैसे ही मुर्ति बन खड़ा रह जाता है l

विश्वा - तुझे मारने के लिए... मुझे किसी हथियार की जरूरत नहीं है... मेरी यह तीखी नजर ही काफी है... तेरी साँस अटक जाएगी...

शनिया फिर भी वैसे मुर्तिवत खड़ा था l विश्व उसके हाथों से तलवार ले लेता है l शनिया का कोई विरोध नहीं होता l विश्व शनिया को एक धक्का देता है l शनिया कई कदम पीछे जा कर गिरता है l विश्व अब सरपंच की ओर देखता है l सरपंच भय के मारे गिला कर देता है l विश्व तलवार से सरपंच की पगड़ी को निकाल कर उपर उछाल देता है l पगड़ी खुल कर उड़ते हुए धीरे धीरे नीचे गिरने लगता है l विश्व बहुत तेजी से तलवार घुमाने लगता है l इतनी तेज के सिर्फ हवाओं के चिरने की आवाज ही आ रही थी, और आँखों में जैसे बिजली कौंध रही थी l विश्व अचानक तलवार घुमाना बंद कर कमर पर हाथ रखकर खड़ा हो जाता है l जब पगड़ी उड़ते उड़ते विश्व के कंधे के बराबर पहुँचती है, विश्व बहुत तेजी से सिर्फ तीन बार तलवार घुमाता है l पहले ऊपर की ओर फिर दाहिने की ओर फिर बाएँ l पगड़ी की कपड़ा चार बराबर हिस्सों में कट कर उड़ते हुए नीचे बिखर कर गिरता है l यह दृश्य कुछ ऐसा था कि वहाँ पर मौजूद सभी लोग सम्मोहित हो गए थे l जब तक होश में आए तब तक विश्व अपनी दीदी को लेकर वहाँ से जा चुका था l शनिया मुड़ कर देखता है वहाँ पर पुलिस वाले भी नहीं थे

शनिया - वह... वह...
शुकुरा - क्क्क क्या हुआ... भाई..
शनिया - द... द..
शुकुरा - दरोगा...
शनिया - हाँ हाँ हाँ... क क कहाँ गया..
उदय - वह तीन पुलिस वाले... विश्व और उसकी बहन को अपनी गाड़ी में बिठा कर कब के निकल गए
शनिया - क्या...

रोणा को विश्व की धमकी के बाद शनिया एंड कं. का प्लान तो बुरी तरह से विफ़ल होना ही था। सो हो भी गया। और जाहिर सी बात है, कि शैतान सिंह, मक्खन सिंह और जैलांन सिंह तीनों, अपने टीलू, मीलू, जिलू, गीलू में से ही हैं। लेकिन वैदेही को समझ आना चाहिए कि हर बार केले का छिलका सड़क पर पड़ा देख कर, उस पर पाँव रख के फ़िसलने की उसकी कोई मजबूरी नहीं है। इतनी मूढ़-मति रखने का कोई लाभ नहीं, जब वो केवल आत्मघाती हो। लम्बी लड़ाई में हर छोटी मोटी झड़प को जीतने की खुजली नहीं रखनी चाहिए। 👍

पुरानी हिंदी फिल्मों में कहानी के अंत में नायिकाओं और नायक की अम्माओं का एक ही काम होता था - नायक के लिए काम बढ़ाना। वैदेही को उस रोल से बचना चाहिए। अगर विश्व का काम आसान नहीं कर सकती, तो कम से कम काम बढ़ाए न! 😂

यह डाक वाला क्या नया चक्कर है समझा नहीं। गृह मंत्रालय और उच्च न्यायालय से क्या आया हो सकता है? मेरी याददाश्त कमज़ोर है, इसलिए सभी सूत्र याद नहीं।

भई, विश्व की तलवारबाज़ी का वर्णन पढ़ कर मास्क ऑफ़ ज़ोरो फिल्म की याद हो आई! 🤣

पिछले अपडेट में मुशायरा इत्यादि का क्या चक्कर है, वो भी समझ नहीं आया। कौन आने वाला है मुशायरे में? किस पर घात लगेगी विश्व की? जो व्यक्ति अखबार के माध्यम से सन्देश भेज रहा है, वो ही नए घोटाले के बारे में लगता है सबूत देने वाला है। पुराने घोटाले में जब कोई गवाह ही नहीं बचा है, तो सजा क्या ही होगी किसी को? 🤔

भाई एक शिकायत है - रूप और विश्व के रोमांस में गर्मी नहीं है... तड़प नहीं है! 🔥
उनके बीच के संवाद से ऐसा कम ही लगता है कि बचपन से पाल पोस कर बड़ा किया हुआ मोहब्बत है। प्रेमी कम, मित्रवत अधिक लगते हैं दोनों।
थोड़ी आग लगाओ भाई 🔥

बाकी, हम तो हमेशा से ही आपकी लेखनी के कद्रदान हैं। 👏👏👏👏
हमेशा की ही तरह ये अपडेट भी आनंद दायक था। आगे की प्रतीक्षा में! :)
 

Luckyloda

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👉एक सौ उनतीसवां अपडेट
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दो दिन बाद

सुबह सुबह सुरज अभी निकला भी नहीं था, हर दिन की तरह विश्व की मोबाइल बजने लगती है l विश्व एक मुस्कान के साथ आँखे मूँदे हुए ही कॉल को उठाता है l

विश्व - गुड मॉर्निंग जी...
रुप - गुड मॉर्निंग... तो इसका मतलब यह हुआ कि... तुम्हें मालुम है कि... इतनी सुबह तड़के मैं ही तुम्हें जगाती हूँ...
विश्व - कोई शक...
रुप - पर तुम्हारी बातों से ऐसा नहीं लगता...
विश्व - क्यूँ... क्यूँ नहीं लगता...
रुप - मुझे लगता है... तुम पहले से ही जगे हुए हो.... मुझसे बात करके... मुझे गुड मॉर्निंग कह कर सिर्फ़ फॉर्मालिटी निभा रहे हो...
विश्व - ह्म्म्म्म... ऐसा क्यूँ लग रहा है आपको...
रुप - बस लग रहा है...
विश्व - आपको क्या पता... आपने क्या रोग लगा दिया है... हर सुबह आपकी ही आवाज़ की खनक सुनने की आश में यह कमबख्त नींद टुट जाती है...
पर यकीन मानिये...
अभी भी हम आँखे मूँदे हुए हैं...
क्यूँकी ख़यालों में आप ही की तस्सबुर लिए खोए हुए हैं...
रुप - ओ हो.. क्या बात है... आज कल जो भी मुहँ से निकल रहा है... सब शेरों शायरी बन कर निकल रहे हैं...
विश्व - क्या करें... रोग ही ऐसा लगा है..
रुप - ओ हो.. बड़ा भयंकर रोग है... तो इसका इलाज क्या है...
विश्व - लाइलाज मर्ज है... क्या पता इसका क्या दवा है... बस आपकी फोन की दुआ कर रहे हैं... और आप हर सुबह फोन कर हमको जगा रहे हैं...
रुप - ह्म्म्म्म हूँ... बस बस... इतना भी मत उड़ो... धरती पर आओ... वैसे आज तुम्हारा प्लान क्या है...
विश्व - गाँव है... कनाल या नदी की ओर जाना तो है नहीं... क्यूंकि सर्कार की कृपा से इस घर में शौचालय बनवा दिया है...
रुप - छी.. छी... छी... देखो मुझे सुबह सुबह ऐसे छेड़ोगे तो कॉल काट दूंगी...
विश्व - (हँस देता है) ठीक है... ठीक है... मेरा छोड़िए... आपका प्लान क्या है...
रुप - (एक उम्मीद भरी गहरी साँस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म... कास तुम यहाँ होते... आज हम छटी गैंग पार्टी लेते तुमसे...
विश्व - पार्टी... किस बात की पार्टी...
रुप - क्या तुम भी... जान बुझ कर अनजान बन रहे हो... कल तुम्हारा रिजल्ट आया ना... तुम्हारा लाइसेंस नंबर भी आ गया... और कल ही माँ ने अल मोस्ट सभी अखबार में... तुम्हारा पैड प्रमोशन भी करदिया है... तो जाहिर सी बात है... पुरे स्टेट को मालुम हो गया होगा या फिर... हो जाएगा.... यकीन ना आए... तो आज की अखबार देख लो...
विश्व - ओ हो... क्या बात है... आज कल माँ के साथ... बड़ी गहरी खिचड़ी बन रही है....
रुप - क्यूँ... तुम्हें जलन हो रही है... हूँह्ह्ह्... जाओ जाओ और अखबार देखो... माँ ने कैसे तुम्हारा प्रमोशन किया है...
विश्व - हमारे यहाँ अखबार आने में अभी टाइम है... टीलु अभी थोड़ी देर बाद उठेगा... यशपुर जाएगा... फिर वहाँ से अखबार लाएगा...
रुप - अच्छा तो अखबार टीलु लाएगा... और तुम क्या करोगे...
विश्व - तब तक... आपके ख़यालों में खोए रहने का प्लान है....
रुप - क्यूँ दीदी से आशीर्वाद लेने नहीं जाओगे...
विश्व - जाऊँगा तो जरुर... अखिर मेरा सब कुछ दीदी ही तो है... उनकी आशीर्वाद के वगैर... मैं क्या... मेरी हस्ती क्या... मेरी वज़ूद ही क्या...
रुप - ह्म्म्म्म... अच्छा मैं फोन रखती हूँ...
विश्व - क्यूँ बुरा लगा...
रुप - नहीं तो... ऐसी कोई बात नहीं है...
विश्व - देखिए... आप मेरी जिंदगी हैं... पर मेरी वज़ूद मेरी दीदी है... और जो तरासा हुआ विश्व प्रताप को आप देख पा रहे हो.. उसकी वज़ह मेरी माँ है... मेरी जिंदगी में आप तीनों अहम हो... कोई एक छूट गया... तो मैं टुट जाऊँगा...
रुप - स्सॉसरी...
विश्व - किस लिए...
रुप - कुछ पल के लिए ही सही... मुझे.... दीदी से... थोड़ी जलन हो गई...
विश्व - और अब...
रुप - कास के मैं अपनी जिंदगी का कुछ हिस्सा उनके संगत में बिताई होती...
विश्व - तब तो मेरी जिंदगी में मेरी यह नकचढ़ी राजकुमारी कभी ना होती...
रुप - (बिदक कर) क्या... क्या कहा...
विश्व - हाँ सच में... तब मेरी जिंदगी में... एक सुशील, शांत, शर्मीली... सीधी सधी राजकुमारी होती...
रुप - (मुस्करा देती है) कहीं ऐसा तो नहीं... तुम्हें यह नकचढ़ी पसंद नहीं...
विश्व - अरे क्या बात कर रही हैं आप... पसंद बहुत है... आप ही से तो मेरी जिंदगी में रंगत है... वर्ना जिंदगी बेरंग हो जाती...
रुप - अच्छा जी...
विश्व - जी...
रुप - अच्छा कब आ रहे हो...
विश्व - क्यूँ...
रुप - देखो... तुम मुझे फिर से छेड़ने लगे...
विश्व - अजी हम अपना हक अदा कर रहे हैं...
रुप - देखो मुझे गुस्सा मत दिलाओ... वर्ना...
विश्व - वर्ना...
रुप - वर्ना लगता है... बचपन की बातेँ भूल गए हो... कोई ना... सामने मिलो तो सही... तुम्हें काट खाऊँगी...
विश्व - वाव.. सच में... आप मुझे काट खाओगे...
रुप - ऐ फट्टू... तुम फिर उड़ने लगे... फोन पर ज्यादा होशियारी मत दिखाओ... कुछ बातेँ हैं... जो तुम से ना हो पाया... ना हो पायेगा...
विश्व - ठीक है... हम से नहीं हो पाया... पर क्या आपसे हो पायेगा...
रुप - तुम... तुम मुझे चैलेंज कर रहे हो...
विश्व - उँम्म्म्... हूँ... हाँ ऐसा ही कुछ...
रुप - आ... हा हा आ... जीत भी तुम्हारी और पट भी तुम्हारी... चलो जाओ... ऐसा कुछ नहीं होगा...
विश्व - क्यूँ... क्यूँ नहीं होगा...
रुप - हूँम्म्म्म... करना तो तुम्हें होगा...
विश्व - क्यूँ मैंने तो सुना है... आज कल की लड़कियाँ... बहुत फास्ट होती हैं... और जो मेरी नकचढ़ी है... वह तो फास्टेस्ट है...
रुप - अच्छा... तो इसका मतलब यह हुआ... के तुम लड़कों के दुम निकले हुए हैं... जो हर वक़्त दबा कर दुबके रहते हैं...
विश्व - देखिए अभी आप मुझे चैलेंज कर रही हैं...
रुप - हाँ... कर रही हूँ... बोलो क्या कर लोगे...
विश्व - मैं...
रुप - हाँ तुम..
विश्व - मैं.. वह...
रुप - हाँ हाँ तुम...
विश्व - वह.. टीलु आ गया... मैं बाद में बताता हूँ...
रुप - हूँह्ह्ह् फट्टु...

रुप देखती है विश्व फोन काट दिया था,वह अपनी बेड से उठ कर बालकनी की पर्दा हटाती है, पेड़ों की ओट में धीरे धीरे निकल रही सुरज की रौशनी से उजाला फैल रहा था, और उधर विश्व फोन काट कर झठ से बिस्तर छोडकर बाहर आता है l सुबह खिल चुकी थी, विश्व रुप की बातों को याद कर अपने आप पर हँसने लगता है l तभी उसके फोन पर एक मैसेज आता है l विश्व फोन निकाल कर मैसेज को पढ़ने लगता है l


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अपने घर में सरपंच तैयार हो रहा था l तभी दरवाज़े पर दस्तक होने लगती है l दरवाजा खोलते ही उसे सामने शनिया, भूरा, शुकुरा, सत्तू और उनके गुर्गे दिखते हैं, जिन्हें देख कर वह चौंकती है और घर के अंदर भाग जाती है l सरपंच उसे घबराया हुआ देख सरपंच बाहर आकर इन्हें देखकर थोड़ी देर के लिए हैरान हो जाता है l

सरपंच - (हकलाते हुए) त त त तुम.. तुम लोग इस वक़्त.. यहाँ...
सत्तू - क्यूँ तेरा घर पाकिस्तान में है... नहीं आना चाहिए था क्या...
सरपंच - नहीं ऐसी बात नहीं... पर इस वक़्त तुम लोगों को यहाँ देख कर... गाँव वाले क्या समझेंगे...
शनिया - उनको जो समझना था... वह उसी दिन समझ गए... जिस दिन हमने घूम घूम कर लोगों के घरों में चिटफंड कर्ज की कागजात बांटें थे...
सरपंच - फिर भी... यहाँ.. तुम लोग क्यूँ आए...
भूरा - अपने साथ ले जाने के लिए...
सरपंच - हाँ हाँ चलो फिर...
शुकुरा - अभी टाइम है... तु जानता है ना... वहाँ पर क्या होने वाला है...
सरपंच - हाँ भाई हाँ... पर तुम लोग मेरे यहाँ आने से अच्छा था... दरोगा बाबु के साथ आते...
शनिया - गए थे... बाहर ताला लगा हुआ था... सोचा तुझे मालुम होगा...
सरपंच - नहीं नहीं कसम से मुझे नहीं पता है...
सत्तू - देख बे सरपंच... दरोगा को गवाह बनाने का प्लान तेरा था... इसलिए... वह कैसे पंचायत भवन पहुँचेगा वह तेरी जिम्मेदारी...
सरपंच - आरे वाह... प्लान तुम लोगों का... दरोगा को शीशे में उतारने के लिए... राजा साहब से... मुझसे कहलवाया... वह आयेंगे या नहीं... उसका जिम्मा मेरा क्यूँ... नहीं नहीं... दरोगा वहाँ पर कैसे आयेंगे... यह तुम लोग देखो...

तभी उदय वहाँ हाथ में एक पेपर लेकर आता है l उसे अपने बीच देख कर सरपंच बोल पड़ता है l

सरपंच - लो शैतान को याद किया... इसका दुम आ पहुँचा... ऐ ग्राम सेवक के बच्चे... कहाँ है तेरा बाप...
उदय - मेरा या तुम लोगों का...
सत्तू - चल किसीका भी हो... दरोगा है कहाँ...
उदय - कल रात को वह यशपुर गए हैं... और मुझे तुम लोगों को खबर करने के लिए कह गए थे... आज तहसील ऑफिस में... किसी वारंट की तारीख निकली है... जिसके लिए उनका वहाँ होना जरूरी है... देर हो सकती है... इसलिए तुम लोगों को... थोड़ा लेट में पंचायत शुरु करने के लिए कह गए हैं....
सरपंच - (शनिया से) तो क्या हम... किसी और दिन के लिए सुनवाई को खिसकायें...
शनिया - नहीं... यह और भी अच्छी बात है... वैसे भी पुलिस के सामने मार पीट ठीक नहीं है...
सरपंच - हाँ जैसे पहले उखाड़े थे... बिल्कुल वैसे ही उखाड़ोगे...
भूरा - (सरपंच की गर्दन पकड़ लेता है) क्यूँ बे कहना क्या चाहता है...
सरपंच - छोड़ो मेरा गर्दन... (कह कर अपनी गर्दन छुड़ाता है) मैंने दरोगा को तुम लोगों की हिफाजत के लिए वहाँ पर चाहता था... वर्ना... राजगड़ में ऐसा कोई घर नहीं... ऐसा कोई गली नहीं... जहां पर तुम लोगों की रात में विश्व की हाथों कुटाई की चर्चा ना हो रहा हो...
शनिया - उन घरों में... तेरा भी घर होगा... तेरे घर की गली भी होगी... क्यूँ सही कहा ना... (सरपंच सकपका जाता है, शनिया उसकी गिरेबान पकड़ कर अपनी तरफ खिंच कर) अबे हराम के... हमारी कुटाई की चर्चा करने वालों की भी हम से कितना फटती है... देखा नहीं या समझा नहीं... अभी थोड़ी देर पहले तेरी बीवी कैसे अंदर भाग गई...
सरपंच - म म मेरा मतलब यह नहीं था...
शनिया - सुन बे भोषड़ी के... तुम जैसे के लिए ही... हमने यह पंचायत बुलाया है... ताकि चर्चा कभी बंद ना हो पाए... सिर्फ चर्चा का विषय बदल जाए...
सरपंच - (गिड़गिड़ाते हुए) फिर भी... पुलिस अगर हो... तो तुम्हारे लिए... मेरा मतलब है... हम सबके लिए अच्छा है...
उदय - सरपंच ठीक कह रहा है... यह देखो... (न्यूज पेपर दिखाते हुए) अब वह कोई मामुली बंदा नहीं है... हाइकोर्ट का वकील बन गया है... यह देखो... एडवोकेट विश्व प्रताप महापात्र... और एक बात... मैं यहाँ आने से पहले... रास्ते में एक डाकिया मिला था... जो वैदेही का पता पुछ रहा था...
सरपंच - क्या... (हैरान हो कर) लाओ पहले यह अखबार दिखाओ...

उदय से अखबार लेकर शनिया, शुकुरा, भूरा के साथ साथ सरपंच सब मुहँ फाड़े पेपर पर छपे विश्व की तस्वीर देख रहे थे l

सरपंच - यह... यह अब कोई मामुली बंदा नहीं है... इसके पर हाथ फेरने से पहले हर तरफ से तैयारी मुकम्मल होनी चाहिए... एक चुक बहुत भारी पड़ सकता है...

शनिया सरपंच की गिरेबान छोड़ देता है l और उदय से पेपर लेकर अच्छे से देखने लगता है l

सरपंच - मेरी मानों... दरोगा से बात करो... वहाँ पर पुलिस वालों की मौजूदगी बहुत जरूरी है... उनकी रिपोर्ट... बाद में हमारे ही काम आएगी...

शनिया अपनी मोबाइल निकाल कर रोणा का नंबर पर कॉल लगाता है l कॉल के उठते ही

शनिया - हैलो दरोगा बाबु...
@ - हाँ बोलो क्या बात है...
शनिया - आज आपने वादा किया था... पंचायत भवन में मौजूद रहने के लिए...
@ - अर्रे हाँ... अरे भाई.. मैं वारंट पर तहसील आया हूँ... एक काम करता हूँ... मैं अपने तीन थोड़े छोटे ओहदेदार ऑफसरांन को भेज रहा हूँ... एक आध घंटे में पहुँच जायेंगे... वह लोग सब सम्भाल लेंगे... चिंता मत करो... पंचायत सभा रूकनी नहीं चाहिए...
शनिया - जी... क्या नाम हैं उनका... मेरा मतलब है... उन ऑफिसरों का...
@ - पहला ऑफिसर है... सब इंस्पेक्टर शैतान सिंह... दुसरा ऑफिसर है.. असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर मक्खन सिंह... और हवलदार जैलांन सिंह...
शनिया - जी ठीक है... हम उनका कहाँ पर इंतजार करें...
@ - पंचायत भवन में...

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वैदेही अपनी दुकान में चूल्हे में आग लगाने के बाद थोड़ी पुजा करती है l गौरी दुकान में पड़े एक कुर्सी पर बैठ जाती है l जब वैदेही पुजा ख़तम कर मुड़ती है तब गौरी उससे सवाल करने लगती है l

गौरी - आज तेरा मन बहुत खुश क्यूँ है... और क्या सोच कर चूल्हे में आग लगाई है... दिन से हफ्ते हफ्ते से महीना हो गया है... कोई नहीं आ रहा है... तेरे इस दुकान पर खाना खाने... यह जानते हुए भी... आज तुने चूल्हे में आग लगाई है...
वैदेही - मेरा विशु अब वकील बन चुका है... उसे अब सरकारी स्वीकृति भी मिल गई है... इस खुशी में दावत तो बनती है ना काकी....
गौरी - हाँ हाँ बनती है... पर हम कुछ लोगों के बीच... तेरी यह खुशी बांटने कोई नहीं आएगा... जैसे तेरे दुख बांटने कोई नहीं आया था...
वैदेही - आयेंगे काकी आयेंगे... आज नहीं तो कल सही... पर आयेंगे...
गौरी - क्यूँ तु बावरी होई जा रही है... तु इतने सालों से... इनके लिए क्या नहीं किया बोल... अपनी कमाई के पैसों से दूसरों के कर्ज उतारी... उनके घरों की इज़्ज़त बचाई... ज्यादातर बच्चों को... अपने दम पर पढ़ा रही है... फिर भी... कोई नहीं है यहाँ पर... तेरा एहसान मानने वाले...
वैदेही - (हँसते हुए गौरी के पास बैठ जाती है) काकी... कोई मेरा एहसान माने इसलिये मैंने किसीकी मदत नहीं की... मैं सबको अपना मनाती हूँ... इसलिए मैं सबकी मदत कर रही हूँ... तुम देखना... आज जो पढ़ रहे हैं... कल सब एक एक विशु की तरह नाम कमाएंगे...
गौरी - हूँह्ह... पता नहीं तु सपना देखना कब छोड़ेगी...
वैदेही - काकी... तुम ना बहुत जल्दी हार मान जाति हो... (समझाते हुए) अभी जिंदगी बहुत बाकी है... देखना... तुम अपनी जीते जी देखोगी... इस गाँव को बदलते हुए... इस गाँव के लोगों को बदलते हुए...

वैदेही की बहस के आगे गौरी हार मानते हुए अपनी जगह से उठती है और अंदर की ओर जाने लगती है l

वैदेही - कहाँ जा रही हो काकी... गल्ले पर नहीं बैठना क्या...
गौरी - (बिदक कर) नहीं बैठना है मुझे... वैसे भी... तेरा विशु और उसका पुंछ चमगादड़ आयेगा नाश्ते के लिए.... और कोई नहीं आने वाला है आज... कोई दावत नहीं होगी आज.. सब के सब आज पंचायत भवन में होंगे...
वैदेही - (चिहुँक कर उठती है) क्या... अरे हाँ... ठीक कहा तुमने... आज तो पंचायत है...

तभी दीदी दीदी चिल्लाते हुए टीलु आता है l दुकान के अंदर पहुँचकर हांफने लगता है l

गौरी - क्या रे नासपीटे... किसकी जान खा कर आ रहा है..
टीलु - (मुहँ बना कर) खा कर नहीं बुढ़िया रानी... खाने आया हूँ...
गौरी - क्या कहा.. कमबख्त... मुझे बुढ़िया कह रहा है...
टीलु - क्या काकी... (मलाई मारने के अंदाज में) मैंने तो तुमको गुड़िया रानी कहा है...
गौरी - कीड़े पड़े तेरे जुबान पर.. झूठ बोलते शर्म नहीं आई...
टीलु - ऐ... (धमकाते हुए) काकी... कभी सुना है... किसी बुढ़िया को रानी कहते हुए... (नाटक करते हुए) मैं तो तुम्हें अपना समझ कर... इज़्ज़त देते हुए... रानी कह रहा हूँ... तुम हो कि नासपीटे... कमबख्त.. और ना जाने क्या क्या कह रही हो... (वैदेही से रहा नहीं जाता, टीलु का कान पकड़ कर खिंचने लगती है) आ आह... आह... दीदी दर्द कर रहा है...
वैदेही - कब से देख रही हूँ.. यह क्या मस्ती लगा रखा है... माफी मांग..
टीलु - ऐ बुढ़िया...
गौरी - खिंच और जोर से कान...
वैदेही - क्या (कान खिंचने लगती है)
टीलु - आह... नहीं नहीं... काकी ओ काकी... माफ़ कर दो... प्लीज...
गौरी - अब आया ना रास्ते पर...
टीलु - कहाँ रास्ते पर... दुकान पर आया हूँ.. दीदी छोड़ो ना... आह कहीं मर मरा ना जाऊँ...
गौरी - तो मर आज.. वैदेही... मत छोड़ना आज उसे...

पर वैदेही मुस्कराते हुए छोड़ देती है l टीलु अपना कान पर हाथ फेरने लगता है l

वैदेही - ज्यादा नाटक मत कर...
गौरी - क्यूँ छोड़ दिया उसे.. मरने तक तो पकड़ कर रखती...
टीलु - देखो काकी... अगर मैं मर गया होता... तो तुम ही पछताती...
गौरी - अच्छा... वह क्यूँ भला..
टीलु - बताता हूँ... (एक न्यूज पेपर निकाल कर वैदेही को दिखाते हुए) यह देखो दीदी... भाई का क्या मस्त फोटो आया है... वह भी पहले पन्ने पर...

वैदेही पेपर पर वकील के कपड़ों में विश्व की तस्वीर देख कर बहुत खुश हो जाती है l पेपर के दाहिने तरफ एक चौथाई पन्ने पर विश्व के फोटो के साथ " शिक्षा का अधिकार का श्रेष्ठ उदाहरण एडवोकेट विश्व प्रताप महापात्र"

यह पढ़ कर वैदेही की आँखों से कुछ बूंद आँसू टपक पड़ते हैं l गौरी वैदेही से पेपर लेकर विश्व की तस्वीर देखती है l

टीलु - दीदी... दुख भरे दिन बीते रे दीदी... शुभ दिन आयो रे... फिर यह आँसू क्यूँ...
दीदी - यह खुशी की आँसू है.. एक तपस्या का फल है... एक कदम न्याय की ओर है... कास आज विशु... पंचायत भवन में आए...
टीलु - दीदी... विश्व भाई ने जो दुनिया देखा है... जो सीखा है.. उसीके हिसाब से जी रहे हैं... मदत उसकी करो... जो मांगे... जिसे बिन मांगे दो... वह मदत बेकीमत हो जाता है... बिन मांगे उसकी मदत किया जा सकता है... जिसमें अपनी लड़ाई लड़ने की ज़ज्बा हो... हिम्मत हो... आज विश्वा भाई उनकी लड़ाई लड़ भी लें तो क्या होगा... आज यह राजा जाएगा... कल इन्हीं पर राज करने कोई दुसरा राजा आ जाएगा... तब... तब क्या होगा... (वैदेही चुप रह कर एक टक टीलु को देखे जा रही थी, टीलु घबरा जाता है) ऐ... ऐसे क्या देख रही हो दीदी...
वैदेही - देख रही हूँ... विशु के साथ रह कर... उसके जैसे बातेँ करने लगा है...
टीलु - (शर्मा जाता है)
गौरी - ज्यादा मत शर्मा... वर्ना गलती से लोग लड़की समझ बैठेंगे...
टीलु - (बिदक कर मुहँ बना कर गौरी को देखने लगता है)
वैदेही - खैर अब यह बता... विशु और तु नाश्ता करने तो आओगे ना...
टीलु - जरुर दीदी जरुर... अच्छा चलता हूँ...

कह कर टीलु गौरी को खा जाने वालीं नजर से घूरते हुए बाहर की ओर जाने लगता है l गौरी भी दांत पिसते हुए उसे देख रही थी, जैसे ही टीलु बाहर की ओर होने लगा गौरी चिल्ला कर

गौरी - ऐ नासपीटे रुक...
टीलु - (टीलु अपनी आँखे सिकुड़ कर और मुहँ बना कर गौरी को देख कर) क्या है...
गौरी - यह बता... तु मर गया तो मेरा किस बात का पछतावा होगा...
टीलु - काकी अगर मैं मर गया... तो तुझे ढोने वालों में से एक कंधा कम हो जाएगा... समझी...

इतना कह कर टीलु बिना पीछे देखे भाग जाता है l गौरी दुकान पर टीलु को गाली बकती रह जाती है l उसकी हालत देख कर वैदेही हँसने लगती है l पर धीरे धीरे वैदेही की हँसी रुक जाती है, एक संतोष भरी नजर से विश्व की फोटो को देखते हुए फोटो पर बड़े प्यार से हाथ फेरने लगती है l

गौरी - तुझे क्या लगता है... विशु जाएगा...
वैदेही - पता नहीं काकी... पर मुझे तो जाना ही होगा...
गौरी - पर मुझे तो विशु की बात ही सही लगती है... उन लोगों की दुनिया में... तुम लोगों की जरूरत भी है... मुझे तो नहीं लगता... उन लोगों को तुम्हारी कोई जरूरत...
वैदेही - ऐसा नहीं है काकी... आज उन्हें महसूस नहीं हो रहा है... और विशु को समझ नहीं आ रहा है... पर हम सब जुड़े हुए हैं...
गौरी - इसका मतलब तु जाएगी... (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म... तुम दो बहन भाई के रिस्तों को समझना बहुत मुश्किल है...
गौरी - जानती हो काकी... कल जब विशु के बारे में मासी से बात कर रही थी... मासी ने कहा था... की मासी की और मेरी विशु से खुन का रिश्ता नहीं है... पर अगर भगवान कभी पलड़े मैं एक तरफ मुझे और दुसरी तरफ मासी को रख कर चुनने को कहे... तो विशु मुझे ही चुनेगा...
गौरी - यानी तुझे यकीन है... पंचायत भवन जाएगा...
वैदेही - हाँ... मेरे लिए वह जाएगा....

तभी एक डाकिया आता है और दुकान के सामने अपनी साइकिल रोकता है l दुकान के बाहर खड़े होकर

डाकिया - क्या यह वैदेही महापात्र जी का पता है...
गौरी - हाँ क्या हुआ
डाकिया - नहीं शायद यह डाक राजगड़ के इतिहास में पहली बार आया है.... आपके नाम...
वैदेही - क्या.. क्या आया है...
डाकिया - पता नहीं... दो दो डाक हैं... मैं यशपुर डाक थाने से पहली बार... राजगड़ आया है... दोनों सरकारी है... एक गृह मंत्रालय से है... और दूसरा उच्च न्यायालय से....
वैदेही - क्या...



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पंचायत भवन
समय साढ़े ग्यारह बजे
लोग धीरे धीरे भवन में भरते जा रहे हैं l अपनी जगह बना कर बैठ रहे हैं l वैदेही भी भवन के अंदर औरतों के झुंड के बगल में एक जगह बना कर बैठी हुई थी l वह आशा भरी नजर दौड़ा कर विश्व को ढूँढ रही थी l पर उसे कहीं भी विश्व नजर नहीं आता l उधर भवन के बाहर सरपंच, उदय और शनिया के गुर्गे उन पुलिस वालों का इंतज़ार कर रहे हैं l थोड़ी देर बाद पुलिस की एक जिप्सी दिखती है जो उनके पास आकर रुकती है l जिप्सी से दो ऑफिसर उतरते हैं, ड्राइवर गाड़ी को एक जगह ले जा कर पार्क कर इन लोगों के पास आ कर खड़ा हो जाता है l सरपंच देखता है वह एक कांस्टेबल था l सरपंच तीनों के सीने में नेम प्लेट से पहचान लेता है वे सब इंस्पेक्टर शैतान सिंह, असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर मक्खन सिंह और कांस्टेबल जैलांन सिंह थे l तीनों में एक खासियत थी तीनों के चेहरे पर बड़ी बड़ी मूंछों के साथ आखों पर काला चश्मा था l

सरपंच - आइए आइए दरोगा जी...
शैतान सिंह - तो तुम सरपंच हो...
सरपंच - जी...
शैतान सिंह - ठीक है... यह लोग कौन हैं... और यह लोग हमें ऐसे घूर घूर कर क्यूँ देख रहे हैं... क्या कभी पुलिस नहीं देखे क्या...
सरपंच - नहीं ऐसी बात नहीं है... आपको तो हमारे गाँव के दरोगा जी... मेरा मतलब है रोणा बाबु जी भेजा है ना...
शैतान सिंह - हाँ... पर इन लोगों के देखने की तरीके से लगता है... यह लोग हम पर शक कर रहे हैं...
सरपंच - क्या... नहीं नहीं दरोगा जी... (कह कर शनिया और उसके गुर्गों की ओर देख कर इशारों से हाथ जोड़ने के लिए कहता है, शनिया और उसके सारे आदमी इन पुलिस को हाथ जोड़ते हैं)
शैतान सिंह - (शनिया से) तुम शनिया हो...
शनिया - जी...
शैतान सिंह - तुम्हारे बारे में... अनिकेत बाबु ने मुझे सबकुछ बता दिया है.... घबराओ मत... हम यहाँ तुम्हारे मदत के लिए ही आये हैं... अब प्लान क्या है बताओ...
भूरा - साहब... पंचायत में मुमकिन है... बीच बहस में दंगा हो...
माखन सिंह - ओ.. तो दंगा करने का प्लान है... वह भी कानून के आड़ में...
सत्तू - जी साहब... इसीलिये तो हम रोणा साहब को खोज रहे थे...
जैलांन - अबे तुम्हारा रोणा साहब ने ही हमें भेजा है... हम यहाँ एक से भले तीन आए हैं...
शैतान सिंह - हाँ... पर यह बोलो... दंगे में कितने निपटेंगे...
शनिया - सिर्फ एक... (तभी उसके कान में शुकुरा आकर कुछ कहता है, वह शुकुरा को हैरान व परेशान भरे नजरों से देखने लगता है)
शैतान सिंह - क्या हुआ... सब ठीक है ना...
शनिया - ककु कुछ नहीं... कुछ नहीं...
शैतान सिंह - पर तेरा थोबड़ा तो कुछ और बता रहा है...
शनिया - क्या... क्या बता रहा है...
शैतान सिंह - यही के... बलि का बकरा गायब है...
शनिया - (चौंक जाता है, आँखे फैल जाते हैं) यह... आपने कैसे जान लिया...
शैतान सिंह - बोला ना तेरा थोबड़ा बोल रहा है... तो प्रोग्राम आगे बढ़ाना है... या...
शनिया - नहीं साहब.... (दांत पिसते हुए) प्लान में कोई तब्दीली नहीं होगी... बकरा ना सही... बकरे की अम्मा ही सही... आज तो हर हाल में बलि चढ़ेगी...
शैतान सिंह - मतलब...
शनिया - उसकी दीदी है... वह फुदकेगी... उछलेगी...
शैतान सिंह - तो...
शनिया - तो हम उसे ही निपटा देंगे...
शैतान सिंह - कैसे...
शुकुरा - हमारे लोग... भीड़ के बीच से हमला बोल देंगे... सबको लगेगा... भीड़ हमलावर हो गई... बेचारी की जान चली गई...
शैतान सिंह - एक मिनट... तुम लोग क्या करोगे कैसे करोगे... हमें कोई मतलब नहीं... पर पत्थर बाजी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए...
शनिया - क्यूँ साहब...
शैतान सिंह - अबे घन चक्करों... पत्थरबाजी से हम लोग भी घायल हो सकते हैं... क्यूँ सरपंच...
सरपंच - हाँ.. हाँ हाँ.. बात तो सही है... एक को निशाना बनाओगे... चुका तो हम लपेटे में आयेंगे...
शैतान सिंह - हाँ... अगर ऐसा कुछ हुआ... तो... (होल्स्टर से रिवाल्वर निकाल कर) जो मेरे नजर में आएगा... उसे भुन के रख दूंगा...
शुकुरा - पर मान लीजिए... भीड़ में से कोई छुपे हुए हथियारों से हमला कर दिया तो...
शैतान सिंह - कोई वादा नहीं... पर शर्त है... आँच हम तक ना आए....
भूरा - नहीं जाएगा... साहब... पर फर्ज कीजिए... उसे बचाने... बीच में कोई आया...
शैतान सिंह - अगर एक दो आए... तो उसकी जिम्मेदारी तुम लोगों की... हाँ अगर एक दो से ज्यादा आए... तो... शांति बनाए रखने के लिए... हमें गोलीबारी करनी होगी...
सरपंच - ठीक है साहब अब अंदर चलें... लोग आ गए हैं... हम पंचायत फैसला सुना कर... फैसले पर मोहर लगाने की कवायद करेंगे...
शैतान सिंह - ठीक है... चलो फिर...

सभी भवन के अंदर आते हैं l लगभग आधे से ज्यादा गाँव वाले मौजूद थे l सरपंच पंडाल पर एक जगह किनारे पर पुलिस वालों को बिठा देता है और खुद अपने पंचो को लेकर बीच पंडाल में टेबल पर बैठ जाता है l लोगों में पहले पंक्ति में समिति सभ्य और कुछ वार्ड मेंबर बैठे हुए हैं l सरपंच एक समिति सभ्य को इशारा करता है l वह समिति सभ्य माइक के पास जाकर सबको स्वागत करता है और सरपंच को माइक पर आकर सभा बुलाने कारण कहने को बुलाता है l सरपंच अपनी पगड़ी ठीक करता है फिर माइक पर आता है l एक नजर लोगों के बीच बैठा शनिया पर डालता है, शनिया हल्के से अपना सिर हिला कर शुरु करने के लिए इशारा करता है l सरपंच एक इत्मीनान भरी साँस छोड़ते हुए औरतों के झुंड में नजर दौड़ाता है l उसे वैदेही की झलक दिख जाती है l

सरपंच - देवियों और स्वजनों... आप सबका स्वागत है... आप सबकी जानकारी के लिए बता दूँ के... यहाँ कुछ विषयों पर चर्चा होगी... चर्चे में हर पक्ष की बात सुनी जाएंगी... चर्चे के उपरांत पंचायत अपना निर्णय सुनाएगी... और आप सबको वह निर्णय स्वीकार करना होगा... यह मैं याद दिलाना बेहतर समझता हूँ... के यह राजा क्षेत्रपाल जी का राजगड़ है... यहाँ केवल राजा साहब के अनुमोदित कानून ही मान्य है... इसलिए यहाँ पर जो न्याय होगा... वह अंतिम होगा.... थाना और कचहरी केवल नाम मात्र के लिए है... इसके बाद जो भी निर्णय के विरुद्ध जाएगा... उसे राजा क्षेत्रपाल के राज के नियम के विरुद्ध समझा जाएगा... अब मैं... चर्चा के लिए विषय को आपके समय प्रस्तुत करने के लिए... पंचो से अनुमती मांगता हूँ...
वैदेही - (औरतों के बीच से उठ कर) एक मिनट सरपंच जी... क्या मैं एक सवाल कर सकती हूँ...
सरपंच - जी जरुर...
वैदेही - आपने अभी कहा... यहाँ का न्याय अंतिम न्याय है... थाना और कचहरी केवल नाम मात्र के लिए है....
सरपंच - जी...
वैदेही - तो फिर यहाँ मंच के सिरे पर वह पुलिस वाले क्यूँ बैठे हुए हैं...
सरपंच - वह आमंत्रित अतिथि हैं... जो पंचायत की कार्यप्रणाली की निरीक्षण करने के पश्चात... सर्कार को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे... मुझे लगता है आप समझ गई होंगी... इसलिए बैठ जाएं... (वैदेही बैठ जाती है) क्या चर्चा आरंभ करने के लिए मुझे पंचों की इजाजत प्राप्त है... (पंचों में आए सभी लोग अपना सिर हिला कर सहमती देते हैं) तो देवियों और स्वजनों... जैसा कि आप सब जानते हैं... डेढ़ वर्ष पूर्व राजगड़ मल्टीपरपोज कोआपरेटिव सोसाइटी का गठन हुआ था... उस सोसाइटी के कुछ वरिष्ठ अधिकारीयों ने सोसाईटी की आय के लिए... एक चिट फंड चलाने की मंजुरी दी गई थी... अब यह देखा गया है... गाँव के कुछ लोग चिट फंड से... अपनी हद से ज्यादा कर्ज उठा चुके हैं... इसलिए उन कर्जो की अदायगी पर चर्चा के लिए आप सब यहाँ आमंत्रित हैं... (कुछ लोग आपस में खुसुर-पुसुर करने लगते हैं, जाहिर से बात थी किसीको कुछ भी समझ में नहीं आई) तो जिन लोगों को इस बाबत नोटिस मिला है... उनका कुछ कहना है... (सरपंच पूछता है, कोई कुछ नहीं कहता)
वैदेही - (अपनी जगह से उठती है) सरपंच जी... अगर कर्जा राजगड़ मल्टीपरपोज कोआपरेटिव सोसाइटी की चिट फंड से दिया गया है... तो उसकी वसूली के लिए... नोटिस शराब की ठेके चलाने वाले क्यूँ थमाए...
सरपंच - (कुछ देर के लिए सोच में पड़ जाता है, फिर) चिट फंड का अपना कोई पैसा नहीं है... वे लोग... चिट फंड में अपना पैसा लगाए हैं... इसलिए...
वैदेही - कमाल करते हैं... सरपंच जी... चिटफंड चलाओ आप... मगर पैसा लगाएं शराब बेचने वाले...
सरपंच - क्या आपको नोटिस मिला है...
वैदेही - जी... जी नहीं...
सरपंच - तो आप क्यूँ बीच में कुद रही हैं... जिनको नोटिस मिला है... उन्हें पूछने.. जानने दीजिए... बैठ जाइए...

मन मसोस कर वैदेही बैठ जाती है l बेबसी के साथ भीड़ में विश्व को ढूंढने लगती है पर उसे कहीं भी विश्व नहीं दिखता l

सरपंच - तो पहला नाम है... हरिया... अरे बाप रे पाँच लाख रुपये... क्यूँ हरिया... इतने पैसों का क्या किया तुमने...
हरिया - (हाथ जोड़ कर, रोनी सुरत बनाते हुए अपनी जगह से उठ कर) सरपंच जी... मुझे नहीं पता कब और कैसे मैंने इतने पैसे लिए...
सरपंच - यह क्या शनिया... हरिया कह रहा है.. इतना पैसा कब लिया... उसे मालुम ही नहीं है...
शनिया - यह झूठ बोल रहा है... आज तक मेरे भट्टी में आकर जितना मर्जी उतना पिया है... यहाँ तक उल्टी करने के बाद भी पिया है... इसलिए मैंने उसे... चिट फंड में से निकाल कर पिलाया... पर अब और नहीं.. पाँच लाख हो गए... अब मुझे मेरे पैसे चाहिए... बस...
सरपंच - यह क्या सुन रहा हूँ हरिया...
हरिया - यह शनिया भाई झूठ बोल रहा है... मैंने कभी हज़ार रुपये इकट्ठे नहीं देखे... और मैं कैसे... कैसे... पांच लाख रुपये तक की दारु पी सकता हूँ...
सरपंच - अरे हरिया... तुने पाँच लाख रुपये के दारु नहीं पी है.. यह दारु तुझे चिटफंड के पैसों से... व्याज के साथ पिलाया है.. असल और व्याज मिला कर पाँच लाख हो गया है...
हरिया - नहीं नहीं... आप ही सोचो सरपंच जी... पी पी कर एक आदमी कितना पी सकता है...
सरपंच - अरे हरिया.. तु अकेला कहाँ है... इनके कर्जे में बिल्लू है... बलराम है... चित्तरंजन है... और कमाल की बात है... सबने पाँच पाँच लाख देने हैं...
शनिया - सरपंच जी...जमीन पुश्तों से राजा साहब के यहाँ गिरवी प़डा है... सिर्फ घर बार बचा है... उन्हें बेचकर.. खुद को बेच कर भी यह कर्ज नहीं चुका सकता हूँ मैं...
सरपंच - अरे भाई... हम यहाँ इसीलिए तो बैठे हैं... आज यह तय करना है... तुम सब के कर्ज कैसे चुकता होगा... जिसे तुम भी मानोगे... और शनिया भी... क्यों शनिया... बात ठीक है ना...
शनिया - (अपनी मूँछों पर ताव देते हुए) बिल्कुल दुरुस्त कहा आपने सरपंच जी...
सरपंच - हाँ तो फिर तुम बोलो शनिया भाई... हरिया तो कह दिया.. घरबार ही नहीं... यह खुद भी बिक जाए... तब भी... पाँच लाख रुपये नहीं चुका पायेगा... ऐसे में... तुम कैसे अपना कर्ज वापस लेना चाहोगे...
शनिया - (अपनी जगह पर खड़ा हो जाता है) पंचों... मैं भी समझता हूँ... आखिर हरिया ही नहीं... चाहे बिल्लू हो या बलराम या चित्तरंजन... सभी मेरे गाँव वाले हैं... इन लोगों में से कोई दुश्मनी तो नहीं मेरी... पर बात पैसों की है... अगर मुझे वापस ना मिला तो मैं और मुझ पर आश्रित मेरे आदमी जिएंगे कैसे... पर मैं बहुत बड़ा दिल रखता हूँ... अब घर देखने के लिए... घर में बीवी... और कमा कर घर चलाने के लिए बाहर मर्द... तो बचे कौन बच्चे... तो इन सबके घरों में जितने भी बच्चे हैं... वह मेरे घर में आकर मेरे बताये हुए काम करें... वादा करता हूँ... एक साल में ही इन सबके कर्ज उतर जाएगा...
सरपंच - वाह.. एक साल में उतर जाएगा... और क्या चाहिए... क्या कहते हो... हरिया और बाकी लोग...

वाह वाह वाह... (खिल्ली उड़ाने के अंदाज में वैदेही अपनी जगह से उठती है और ताली बजानी लगती है) वाह सरपंच... तुने तो कमाल कर दिया... सरपंची छोड तु भड़वा और दल्ला भी बन गया... जिनके घरों की इज़्ज़त आबरू को बचाना था... उन्हीं की सौदा.. उनके माँ बाप से करवा रहा है... वाह...
सरपंच - ऐ लड़की... कब से देख रहा हूँ... न्याय के बीच में... तु टोकने के लिए घुस रही है...
वैदेही - न्याय... थु... यह कह तेरी दल्ले गिरी के बीच क्यूँ घुस रही हूँ...
शैतान सिंह - (अपनी जगह पर खड़े हो कर) सुनो मोहतरमा... तुम ऐसे कैसे किसी सरपंच को गाली दे सकती हो... यह (हरिया को दिखा कर) तुम्हारा कौन लगता है...
वैदेही - आपके सामने यह गरीबों की इज़्ज़त की कीमत लगा रहा है... और आप उसकी तरफदारी कर रहे हैं... हाँ यह मेरा कुछ नहीं लगता.. पर उसके बच्चे मुझे मासी कहते हैं... और उनके लिए मैं किसी भी हद तक जा सकती हूँ...
शैतान सिंह - अच्छा यह बात है... क्या तुम उस हरिया की पैरवी करना चाहती हो... (कह कर शनिया को आँख मारता है) अगर कुछ कहना चाहती हो... तो मंच पर जाओ और कहो...

कह लेने के बाद अपनी भवें नचा कर शनिया की ओर देखता है l वैदेही भी मंच पर चढ़ कर माइक के पास आ जाती है l वैदेही को माइक के पास देख शनिया खुश हो जाता है और अपनी पलकें झपका कर इशारे से शैतान सिंह को अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता है और मन ही मन सोचने लगता है
- यह तो कमाल करदिया दरोगा ने... शिकार को सामने लाकर खड़ा कर दिया... विश्वा नहीं तो विश्वा की बहन ही सही... मरना तो है आज तुझे कमिनी... (आँखों में खुन उतर आता है) कितनी बार मुझे जलील किया है तुने साली रंडी... आज तुझे मार कर अपनी भड़ास निकालूँगा... (अपने आदमियों को तैयार होने के लिए इशारा करता है)
शैतान सिंह - सरपंच जी... इन्हें एक माइक दीजिए... हम भी तो देखें... क्या पैरवी कर लेंगी यह...

सरपंच एक ऑपरेटर को इशारा करता है l वह ऑपरेटर एक माइक लाकर वैदेही को देता है l

शैतान सिंह - तो मोहतरमा जी... आपको किस बात पर ऐतराज है...
वैदेही - इंस्पेक्टर साहब... जैसा कि इस सरपंच ने कहा... डेढ़ साल हुए हैं... कोआपरेटिव सोसाइटी को... तो चिटफंड भी इन्हीं डेढ़ सालों में बना होगा... मैं इतना जानती हूँ... किसी भी चिट फंड चलाने के लिए... सर्कार के साथ साथ आरबीआई की मंजुरी होनी चाहिए... कम से कम... सोसाईटी की मेंबर्स की मंजुरी चाहिए... क्या इनके पास हमारे राज्य सर्कार की या आरबीआई की मंजुरी है... या फिर... सोसाईटी मेंबर्स की मंजुरी है...
सरपंच - इसकी कोई जरूरी नहीं थी... हमारे लिए हमारी सर्कार... राजा साहब हैं...
वैदेही - इसका मतलब तुम लोगों की यह चिटफंड ही गैर कानूनी है... और दुसरी बात... यह बात यहाँ पर बिल्कुल भी तुमने नहीं कहा... हरिया पर कितना कर्जा है... कितने व्याज पर कितने महीनों के बाद... यह पाँच लाख हुआ है...

वैदेही के इतने कहने पर सरपंच का चेहरा ऐसा हो जाता है जैसे उसके हाथों से तोते उड़ गए हों l हरिया की बीवी खड़ी हो जाती है और पूछती है

लक्ष्मी - सही पकडी हो दीदी... हाँ पहले यह बताओ... मेरे मर्द का कर्जा कितना है... व्याज कितना और कितने महीने हुए हैं...
शैतान सिंह - क्यूँ... तु उसकी पत्नी है... तुझे नहीं मालूम...
लक्ष्मी - (हाथ जोड़ कर) साहब... यह शनिया जब भी वसुली के लिए मेरे घर आया है.. कभी खाली हाथ नहीं लौटा है... उसने जब भी जितना पैसा कहा... दीदी ने उसके मुहँ पर मारा है... उसके बावजुद... पाँच लाख कैसे हो गया...
शनिया - ऐ चुप करो तुम सब... (अपने एक आदमी से) बिठा रे उसको...

एक आदमी औरतों के बीच में घुस कर लक्ष्मी को ज़बरदस्ती बैठने के लिए कहता है l लक्ष्मी जिस जोश के साथ उठी थी उसी तेजी के साथ बैठ जाती है l

वैदेही - देखा इंस्पेक्टर साहब... यह है इनकी चाल बाजी... यह अपने घर बच्चों से काम लेने नहीं बुला रहे हैं... बल्कि बढ़ रही बेटीयों को नोचने के लिए बुला रहे हैं... पर मैं जिंदा हूँ अभी... मेरे जीते जी... इस गाँव की किसी भी लड़की पर कोई आँच नहीं आने दूंगी...
शनि - तो आज मर जा फिर... (अपने आदमियों से) देखो गाँव वालों... यह कानून राजा साहब का है... यह बदजात राजा साहब से नमक हरामी कर रही है... उठो और ख़तम कर दो इसे...

भीड़ में से शनिया और उसके सारे लोग पंडाल की ओर भागते हैं और पंडाल पर चढ़ जाते हैं l सभी गाँव वाले यह देख कर डर जाते हैं कि तभी शनिया चिल्लाता है

शनिया - कोई नहीं जाएगा यहाँ से... जो भी इस भवन से बाहर जाएगा... वह राजा साहब का गुनहगार होगा... हम उसे ढूंढ ढूंढ कर मार डालेंगे...

सभी गाँव वाले रुक जाते हैं डरते हुए पंडाल की ओर देखने लगते हैं l वैदेही अपनी जगह पर डट कर खड़ी हुई थी l उसकी आँखों में इतनी हिम्मत थी के शनिया वैदेही से नजरें मिला नहीं पा रहा था l शनिया खुद को सम्भालता है और वैदेही के पास आता है l

शनिया - बड़ा मतलबी निकला तेरा भाई... हमने तो उसे लपेटे में लेने के लिए यह प्लान बनाया था... पर वह आया नहीं... तु हत्थे चढ़ गई... कोई नहीं... आज वह नहीं तु सही... ऐ (अपने आदमियों से) निकालो अपने हथियार...

वैदेही को घेरे हुए सभी अपने अपने हथियार निकालते हैं l सारे हथियार खेती में उपयोग होते हैं l यह सब देख कर भी वैदेही विचलित नहीं होती l

शनिया - किस मिट्टी की बनी है तु... जरा भी डर नहीं लग रहा तुझे...
वैदेही - जिसका विश्वा जैसा भाई हो... उसे किस बात कर....
शनिया - अच्छा... यह बात है... (अपने आदमियों से) काट डालो इस रंडी...

आगे कुछ नहीं कह पाया l एक लात शनिया के निचले जबड़े पर लगता है l वह हवा में उड़ते हुए पंडाल से नीचे कुर्सियों पर गिरता है l वह सम्भल कर उठ कर देखता है l उसीके आदमियों के लिबास में विश्वा उसके आदमियों को धूल चटा रहा है l एक एक आदमी को उठा उठा कर पटक रहा था l पहले से ही उसके हाथों मार खाए हुए थे l थोड़ा डर पहले से ही था l अब विश्व को सामने देख कर उन पर डर और भी हावी हो गया l उनके हाथ पैर चलने से पहले ही विश्व के हाथ पैर चल रहे थे l कोई एक घुसे में तो कोई एक लात से गिर रहा था वह भी पंडाल से छिटक कर नीचे पड़े कुर्सियों पर l शनिया देखा पुलिस वाले बड़े मजे से विश्वा को उसके आदमियों को मारते हुए देख रहे हैं l वह शैतान सिंह के पास जाता है

शनिया - यह आप क्या कर रहे हैं इंस्पेक्टर साब... वह मेरे आदमियों को मार रहा है...
शैतान सिंह - मैंने पहले ही कहा था... मैं सिर्फ गाँव वालों को रोकुंगा... तुम्हारे आदमियों को नहीं...
शनिया - पर वह मेरा आदमी नहीं है...
शैतान सिंह - तुम लोगों के पास हथियार तो है ना... टूट पड़ो उस पर...
शनिया - तो फिर आप क्या करेंगे...
शैतान सिंह - अबे भोषड़ी के... मर्द ही है ना तु... कुछ देर पहले लड़की पर... बड़ी बड़ी हांक रहा था... साले हरामी एक ही लात में क्या छक्का बन गया...

शनिया अपने कपड़ों के बीच से एक तलवार निकालता है और धीरे धीरे विश्वा के पास जाने लगता है l जब तक वह विश्वा के पास पहुँचा शनिया के सारे आदमी भवन के फर्श पर धुल चाट रहे थे l शनिया विश्व के पीछे पहुँच कर हमले के लिए जैसे ही तलवार उठाता है विश्व अचानक मुड़ता है और शनिया के आँखों में घूर कर देखने लगता है l विश्व की ऐसे नजर से शनिया तलवार उठाए वैसे ही मुर्ति बन खड़ा रह जाता है l

विश्वा - तुझे मारने के लिए... मुझे किसी हथियार की जरूरत नहीं है... मेरी यह तीखी नजर ही काफी है... तेरी साँस अटक जाएगी...

शनिया फिर भी वैसे मुर्तिवत खड़ा था l विश्व उसके हाथों से तलवार ले लेता है l शनिया का कोई विरोध नहीं होता l विश्व शनिया को एक धक्का देता है l शनिया कई कदम पीछे जा कर गिरता है l विश्व अब सरपंच की ओर देखता है l सरपंच भय के मारे गिला कर देता है l विश्व तलवार से सरपंच की पगड़ी को निकाल कर उपर उछाल देता है l पगड़ी खुल कर उड़ते हुए धीरे धीरे नीचे गिरने लगता है l विश्व बहुत तेजी से तलवार घुमाने लगता है l इतनी तेज के सिर्फ हवाओं के चिरने की आवाज ही आ रही थी, और आँखों में जैसे बिजली कौंध रही थी l विश्व अचानक तलवार घुमाना बंद कर कमर पर हाथ रखकर खड़ा हो जाता है l जब पगड़ी उड़ते उड़ते विश्व के कंधे के बराबर पहुँचती है, विश्व बहुत तेजी से सिर्फ तीन बार तलवार घुमाता है l पहले ऊपर की ओर फिर दाहिने की ओर फिर बाएँ l पगड़ी की कपड़ा चार बराबर हिस्सों में कट कर उड़ते हुए नीचे बिखर कर गिरता है l यह दृश्य कुछ ऐसा था कि वहाँ पर मौजूद सभी लोग सम्मोहित हो गए थे l जब तक होश में आए तब तक विश्व अपनी दीदी को लेकर वहाँ से जा चुका था l शनिया मुड़ कर देखता है वहाँ पर पुलिस वाले भी नहीं थे

शनिया - वह... वह...
शुकुरा - क्क्क क्या हुआ... भाई..
शनिया - द... द..
शुकुरा - दरोगा...
शनिया - हाँ हाँ हाँ... क क कहाँ गया..
उदय - वह तीन पुलिस वाले... विश्व और उसकी बहन को अपनी गाड़ी में बिठा कर कब के निकल गए
शनिया - क्या...
हमेशा की तरह बहुत ही शानदार अपडेट
 

parkas

Well-Known Member
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65,740
303
👉एक सौ उनतीसवां अपडेट
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दो दिन बाद

सुबह सुबह सुरज अभी निकला भी नहीं था, हर दिन की तरह विश्व की मोबाइल बजने लगती है l विश्व एक मुस्कान के साथ आँखे मूँदे हुए ही कॉल को उठाता है l

विश्व - गुड मॉर्निंग जी...
रुप - गुड मॉर्निंग... तो इसका मतलब यह हुआ कि... तुम्हें मालुम है कि... इतनी सुबह तड़के मैं ही तुम्हें जगाती हूँ...
विश्व - कोई शक...
रुप - पर तुम्हारी बातों से ऐसा नहीं लगता...
विश्व - क्यूँ... क्यूँ नहीं लगता...
रुप - मुझे लगता है... तुम पहले से ही जगे हुए हो.... मुझसे बात करके... मुझे गुड मॉर्निंग कह कर सिर्फ़ फॉर्मालिटी निभा रहे हो...
विश्व - ह्म्म्म्म... ऐसा क्यूँ लग रहा है आपको...
रुप - बस लग रहा है...
विश्व - आपको क्या पता... आपने क्या रोग लगा दिया है... हर सुबह आपकी ही आवाज़ की खनक सुनने की आश में यह कमबख्त नींद टुट जाती है...
पर यकीन मानिये...
अभी भी हम आँखे मूँदे हुए हैं...
क्यूँकी ख़यालों में आप ही की तस्सबुर लिए खोए हुए हैं...
रुप - ओ हो.. क्या बात है... आज कल जो भी मुहँ से निकल रहा है... सब शेरों शायरी बन कर निकल रहे हैं...
विश्व - क्या करें... रोग ही ऐसा लगा है..
रुप - ओ हो.. बड़ा भयंकर रोग है... तो इसका इलाज क्या है...
विश्व - लाइलाज मर्ज है... क्या पता इसका क्या दवा है... बस आपकी फोन की दुआ कर रहे हैं... और आप हर सुबह फोन कर हमको जगा रहे हैं...
रुप - ह्म्म्म्म हूँ... बस बस... इतना भी मत उड़ो... धरती पर आओ... वैसे आज तुम्हारा प्लान क्या है...
विश्व - गाँव है... कनाल या नदी की ओर जाना तो है नहीं... क्यूंकि सर्कार की कृपा से इस घर में शौचालय बनवा दिया है...
रुप - छी.. छी... छी... देखो मुझे सुबह सुबह ऐसे छेड़ोगे तो कॉल काट दूंगी...
विश्व - (हँस देता है) ठीक है... ठीक है... मेरा छोड़िए... आपका प्लान क्या है...
रुप - (एक उम्मीद भरी गहरी साँस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म... कास तुम यहाँ होते... आज हम छटी गैंग पार्टी लेते तुमसे...
विश्व - पार्टी... किस बात की पार्टी...
रुप - क्या तुम भी... जान बुझ कर अनजान बन रहे हो... कल तुम्हारा रिजल्ट आया ना... तुम्हारा लाइसेंस नंबर भी आ गया... और कल ही माँ ने अल मोस्ट सभी अखबार में... तुम्हारा पैड प्रमोशन भी करदिया है... तो जाहिर सी बात है... पुरे स्टेट को मालुम हो गया होगा या फिर... हो जाएगा.... यकीन ना आए... तो आज की अखबार देख लो...
विश्व - ओ हो... क्या बात है... आज कल माँ के साथ... बड़ी गहरी खिचड़ी बन रही है....
रुप - क्यूँ... तुम्हें जलन हो रही है... हूँह्ह्ह्... जाओ जाओ और अखबार देखो... माँ ने कैसे तुम्हारा प्रमोशन किया है...
विश्व - हमारे यहाँ अखबार आने में अभी टाइम है... टीलु अभी थोड़ी देर बाद उठेगा... यशपुर जाएगा... फिर वहाँ से अखबार लाएगा...
रुप - अच्छा तो अखबार टीलु लाएगा... और तुम क्या करोगे...
विश्व - तब तक... आपके ख़यालों में खोए रहने का प्लान है....
रुप - क्यूँ दीदी से आशीर्वाद लेने नहीं जाओगे...
विश्व - जाऊँगा तो जरुर... अखिर मेरा सब कुछ दीदी ही तो है... उनकी आशीर्वाद के वगैर... मैं क्या... मेरी हस्ती क्या... मेरी वज़ूद ही क्या...
रुप - ह्म्म्म्म... अच्छा मैं फोन रखती हूँ...
विश्व - क्यूँ बुरा लगा...
रुप - नहीं तो... ऐसी कोई बात नहीं है...
विश्व - देखिए... आप मेरी जिंदगी हैं... पर मेरी वज़ूद मेरी दीदी है... और जो तरासा हुआ विश्व प्रताप को आप देख पा रहे हो.. उसकी वज़ह मेरी माँ है... मेरी जिंदगी में आप तीनों अहम हो... कोई एक छूट गया... तो मैं टुट जाऊँगा...
रुप - स्सॉसरी...
विश्व - किस लिए...
रुप - कुछ पल के लिए ही सही... मुझे.... दीदी से... थोड़ी जलन हो गई...
विश्व - और अब...
रुप - कास के मैं अपनी जिंदगी का कुछ हिस्सा उनके संगत में बिताई होती...
विश्व - तब तो मेरी जिंदगी में मेरी यह नकचढ़ी राजकुमारी कभी ना होती...
रुप - (बिदक कर) क्या... क्या कहा...
विश्व - हाँ सच में... तब मेरी जिंदगी में... एक सुशील, शांत, शर्मीली... सीधी सधी राजकुमारी होती...
रुप - (मुस्करा देती है) कहीं ऐसा तो नहीं... तुम्हें यह नकचढ़ी पसंद नहीं...
विश्व - अरे क्या बात कर रही हैं आप... पसंद बहुत है... आप ही से तो मेरी जिंदगी में रंगत है... वर्ना जिंदगी बेरंग हो जाती...
रुप - अच्छा जी...
विश्व - जी...
रुप - अच्छा कब आ रहे हो...
विश्व - क्यूँ...
रुप - देखो... तुम मुझे फिर से छेड़ने लगे...
विश्व - अजी हम अपना हक अदा कर रहे हैं...
रुप - देखो मुझे गुस्सा मत दिलाओ... वर्ना...
विश्व - वर्ना...
रुप - वर्ना लगता है... बचपन की बातेँ भूल गए हो... कोई ना... सामने मिलो तो सही... तुम्हें काट खाऊँगी...
विश्व - वाव.. सच में... आप मुझे काट खाओगे...
रुप - ऐ फट्टू... तुम फिर उड़ने लगे... फोन पर ज्यादा होशियारी मत दिखाओ... कुछ बातेँ हैं... जो तुम से ना हो पाया... ना हो पायेगा...
विश्व - ठीक है... हम से नहीं हो पाया... पर क्या आपसे हो पायेगा...
रुप - तुम... तुम मुझे चैलेंज कर रहे हो...
विश्व - उँम्म्म्... हूँ... हाँ ऐसा ही कुछ...
रुप - आ... हा हा आ... जीत भी तुम्हारी और पट भी तुम्हारी... चलो जाओ... ऐसा कुछ नहीं होगा...
विश्व - क्यूँ... क्यूँ नहीं होगा...
रुप - हूँम्म्म्म... करना तो तुम्हें होगा...
विश्व - क्यूँ मैंने तो सुना है... आज कल की लड़कियाँ... बहुत फास्ट होती हैं... और जो मेरी नकचढ़ी है... वह तो फास्टेस्ट है...
रुप - अच्छा... तो इसका मतलब यह हुआ... के तुम लड़कों के दुम निकले हुए हैं... जो हर वक़्त दबा कर दुबके रहते हैं...
विश्व - देखिए अभी आप मुझे चैलेंज कर रही हैं...
रुप - हाँ... कर रही हूँ... बोलो क्या कर लोगे...
विश्व - मैं...
रुप - हाँ तुम..
विश्व - मैं.. वह...
रुप - हाँ हाँ तुम...
विश्व - वह.. टीलु आ गया... मैं बाद में बताता हूँ...
रुप - हूँह्ह्ह् फट्टु...

रुप देखती है विश्व फोन काट दिया था,वह अपनी बेड से उठ कर बालकनी की पर्दा हटाती है, पेड़ों की ओट में धीरे धीरे निकल रही सुरज की रौशनी से उजाला फैल रहा था, और उधर विश्व फोन काट कर झठ से बिस्तर छोडकर बाहर आता है l सुबह खिल चुकी थी, विश्व रुप की बातों को याद कर अपने आप पर हँसने लगता है l तभी उसके फोन पर एक मैसेज आता है l विश्व फोन निकाल कर मैसेज को पढ़ने लगता है l


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अपने घर में सरपंच तैयार हो रहा था l तभी दरवाज़े पर दस्तक होने लगती है l दरवाजा खोलते ही उसे सामने शनिया, भूरा, शुकुरा, सत्तू और उनके गुर्गे दिखते हैं, जिन्हें देख कर वह चौंकती है और घर के अंदर भाग जाती है l सरपंच उसे घबराया हुआ देख सरपंच बाहर आकर इन्हें देखकर थोड़ी देर के लिए हैरान हो जाता है l

सरपंच - (हकलाते हुए) त त त तुम.. तुम लोग इस वक़्त.. यहाँ...
सत्तू - क्यूँ तेरा घर पाकिस्तान में है... नहीं आना चाहिए था क्या...
सरपंच - नहीं ऐसी बात नहीं... पर इस वक़्त तुम लोगों को यहाँ देख कर... गाँव वाले क्या समझेंगे...
शनिया - उनको जो समझना था... वह उसी दिन समझ गए... जिस दिन हमने घूम घूम कर लोगों के घरों में चिटफंड कर्ज की कागजात बांटें थे...
सरपंच - फिर भी... यहाँ.. तुम लोग क्यूँ आए...
भूरा - अपने साथ ले जाने के लिए...
सरपंच - हाँ हाँ चलो फिर...
शुकुरा - अभी टाइम है... तु जानता है ना... वहाँ पर क्या होने वाला है...
सरपंच - हाँ भाई हाँ... पर तुम लोग मेरे यहाँ आने से अच्छा था... दरोगा बाबु के साथ आते...
शनिया - गए थे... बाहर ताला लगा हुआ था... सोचा तुझे मालुम होगा...
सरपंच - नहीं नहीं कसम से मुझे नहीं पता है...
सत्तू - देख बे सरपंच... दरोगा को गवाह बनाने का प्लान तेरा था... इसलिए... वह कैसे पंचायत भवन पहुँचेगा वह तेरी जिम्मेदारी...
सरपंच - आरे वाह... प्लान तुम लोगों का... दरोगा को शीशे में उतारने के लिए... राजा साहब से... मुझसे कहलवाया... वह आयेंगे या नहीं... उसका जिम्मा मेरा क्यूँ... नहीं नहीं... दरोगा वहाँ पर कैसे आयेंगे... यह तुम लोग देखो...

तभी उदय वहाँ हाथ में एक पेपर लेकर आता है l उसे अपने बीच देख कर सरपंच बोल पड़ता है l

सरपंच - लो शैतान को याद किया... इसका दुम आ पहुँचा... ऐ ग्राम सेवक के बच्चे... कहाँ है तेरा बाप...
उदय - मेरा या तुम लोगों का...
सत्तू - चल किसीका भी हो... दरोगा है कहाँ...
उदय - कल रात को वह यशपुर गए हैं... और मुझे तुम लोगों को खबर करने के लिए कह गए थे... आज तहसील ऑफिस में... किसी वारंट की तारीख निकली है... जिसके लिए उनका वहाँ होना जरूरी है... देर हो सकती है... इसलिए तुम लोगों को... थोड़ा लेट में पंचायत शुरु करने के लिए कह गए हैं....
सरपंच - (शनिया से) तो क्या हम... किसी और दिन के लिए सुनवाई को खिसकायें...
शनिया - नहीं... यह और भी अच्छी बात है... वैसे भी पुलिस के सामने मार पीट ठीक नहीं है...
सरपंच - हाँ जैसे पहले उखाड़े थे... बिल्कुल वैसे ही उखाड़ोगे...
भूरा - (सरपंच की गर्दन पकड़ लेता है) क्यूँ बे कहना क्या चाहता है...
सरपंच - छोड़ो मेरा गर्दन... (कह कर अपनी गर्दन छुड़ाता है) मैंने दरोगा को तुम लोगों की हिफाजत के लिए वहाँ पर चाहता था... वर्ना... राजगड़ में ऐसा कोई घर नहीं... ऐसा कोई गली नहीं... जहां पर तुम लोगों की रात में विश्व की हाथों कुटाई की चर्चा ना हो रहा हो...
शनिया - उन घरों में... तेरा भी घर होगा... तेरे घर की गली भी होगी... क्यूँ सही कहा ना... (सरपंच सकपका जाता है, शनिया उसकी गिरेबान पकड़ कर अपनी तरफ खिंच कर) अबे हराम के... हमारी कुटाई की चर्चा करने वालों की भी हम से कितना फटती है... देखा नहीं या समझा नहीं... अभी थोड़ी देर पहले तेरी बीवी कैसे अंदर भाग गई...
सरपंच - म म मेरा मतलब यह नहीं था...
शनिया - सुन बे भोषड़ी के... तुम जैसे के लिए ही... हमने यह पंचायत बुलाया है... ताकि चर्चा कभी बंद ना हो पाए... सिर्फ चर्चा का विषय बदल जाए...
सरपंच - (गिड़गिड़ाते हुए) फिर भी... पुलिस अगर हो... तो तुम्हारे लिए... मेरा मतलब है... हम सबके लिए अच्छा है...
उदय - सरपंच ठीक कह रहा है... यह देखो... (न्यूज पेपर दिखाते हुए) अब वह कोई मामुली बंदा नहीं है... हाइकोर्ट का वकील बन गया है... यह देखो... एडवोकेट विश्व प्रताप महापात्र... और एक बात... मैं यहाँ आने से पहले... रास्ते में एक डाकिया मिला था... जो वैदेही का पता पुछ रहा था...
सरपंच - क्या... (हैरान हो कर) लाओ पहले यह अखबार दिखाओ...

उदय से अखबार लेकर शनिया, शुकुरा, भूरा के साथ साथ सरपंच सब मुहँ फाड़े पेपर पर छपे विश्व की तस्वीर देख रहे थे l

सरपंच - यह... यह अब कोई मामुली बंदा नहीं है... इसके पर हाथ फेरने से पहले हर तरफ से तैयारी मुकम्मल होनी चाहिए... एक चुक बहुत भारी पड़ सकता है...

शनिया सरपंच की गिरेबान छोड़ देता है l और उदय से पेपर लेकर अच्छे से देखने लगता है l

सरपंच - मेरी मानों... दरोगा से बात करो... वहाँ पर पुलिस वालों की मौजूदगी बहुत जरूरी है... उनकी रिपोर्ट... बाद में हमारे ही काम आएगी...

शनिया अपनी मोबाइल निकाल कर रोणा का नंबर पर कॉल लगाता है l कॉल के उठते ही

शनिया - हैलो दरोगा बाबु...
@ - हाँ बोलो क्या बात है...
शनिया - आज आपने वादा किया था... पंचायत भवन में मौजूद रहने के लिए...
@ - अर्रे हाँ... अरे भाई.. मैं वारंट पर तहसील आया हूँ... एक काम करता हूँ... मैं अपने तीन थोड़े छोटे ओहदेदार ऑफसरांन को भेज रहा हूँ... एक आध घंटे में पहुँच जायेंगे... वह लोग सब सम्भाल लेंगे... चिंता मत करो... पंचायत सभा रूकनी नहीं चाहिए...
शनिया - जी... क्या नाम हैं उनका... मेरा मतलब है... उन ऑफिसरों का...
@ - पहला ऑफिसर है... सब इंस्पेक्टर शैतान सिंह... दुसरा ऑफिसर है.. असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर मक्खन सिंह... और हवलदार जैलांन सिंह...
शनिया - जी ठीक है... हम उनका कहाँ पर इंतजार करें...
@ - पंचायत भवन में...

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वैदेही अपनी दुकान में चूल्हे में आग लगाने के बाद थोड़ी पुजा करती है l गौरी दुकान में पड़े एक कुर्सी पर बैठ जाती है l जब वैदेही पुजा ख़तम कर मुड़ती है तब गौरी उससे सवाल करने लगती है l

गौरी - आज तेरा मन बहुत खुश क्यूँ है... और क्या सोच कर चूल्हे में आग लगाई है... दिन से हफ्ते हफ्ते से महीना हो गया है... कोई नहीं आ रहा है... तेरे इस दुकान पर खाना खाने... यह जानते हुए भी... आज तुने चूल्हे में आग लगाई है...
वैदेही - मेरा विशु अब वकील बन चुका है... उसे अब सरकारी स्वीकृति भी मिल गई है... इस खुशी में दावत तो बनती है ना काकी....
गौरी - हाँ हाँ बनती है... पर हम कुछ लोगों के बीच... तेरी यह खुशी बांटने कोई नहीं आएगा... जैसे तेरे दुख बांटने कोई नहीं आया था...
वैदेही - आयेंगे काकी आयेंगे... आज नहीं तो कल सही... पर आयेंगे...
गौरी - क्यूँ तु बावरी होई जा रही है... तु इतने सालों से... इनके लिए क्या नहीं किया बोल... अपनी कमाई के पैसों से दूसरों के कर्ज उतारी... उनके घरों की इज़्ज़त बचाई... ज्यादातर बच्चों को... अपने दम पर पढ़ा रही है... फिर भी... कोई नहीं है यहाँ पर... तेरा एहसान मानने वाले...
वैदेही - (हँसते हुए गौरी के पास बैठ जाती है) काकी... कोई मेरा एहसान माने इसलिये मैंने किसीकी मदत नहीं की... मैं सबको अपना मनाती हूँ... इसलिए मैं सबकी मदत कर रही हूँ... तुम देखना... आज जो पढ़ रहे हैं... कल सब एक एक विशु की तरह नाम कमाएंगे...
गौरी - हूँह्ह... पता नहीं तु सपना देखना कब छोड़ेगी...
वैदेही - काकी... तुम ना बहुत जल्दी हार मान जाति हो... (समझाते हुए) अभी जिंदगी बहुत बाकी है... देखना... तुम अपनी जीते जी देखोगी... इस गाँव को बदलते हुए... इस गाँव के लोगों को बदलते हुए...

वैदेही की बहस के आगे गौरी हार मानते हुए अपनी जगह से उठती है और अंदर की ओर जाने लगती है l

वैदेही - कहाँ जा रही हो काकी... गल्ले पर नहीं बैठना क्या...
गौरी - (बिदक कर) नहीं बैठना है मुझे... वैसे भी... तेरा विशु और उसका पुंछ चमगादड़ आयेगा नाश्ते के लिए.... और कोई नहीं आने वाला है आज... कोई दावत नहीं होगी आज.. सब के सब आज पंचायत भवन में होंगे...
वैदेही - (चिहुँक कर उठती है) क्या... अरे हाँ... ठीक कहा तुमने... आज तो पंचायत है...

तभी दीदी दीदी चिल्लाते हुए टीलु आता है l दुकान के अंदर पहुँचकर हांफने लगता है l

गौरी - क्या रे नासपीटे... किसकी जान खा कर आ रहा है..
टीलु - (मुहँ बना कर) खा कर नहीं बुढ़िया रानी... खाने आया हूँ...
गौरी - क्या कहा.. कमबख्त... मुझे बुढ़िया कह रहा है...
टीलु - क्या काकी... (मलाई मारने के अंदाज में) मैंने तो तुमको गुड़िया रानी कहा है...
गौरी - कीड़े पड़े तेरे जुबान पर.. झूठ बोलते शर्म नहीं आई...
टीलु - ऐ... (धमकाते हुए) काकी... कभी सुना है... किसी बुढ़िया को रानी कहते हुए... (नाटक करते हुए) मैं तो तुम्हें अपना समझ कर... इज़्ज़त देते हुए... रानी कह रहा हूँ... तुम हो कि नासपीटे... कमबख्त.. और ना जाने क्या क्या कह रही हो... (वैदेही से रहा नहीं जाता, टीलु का कान पकड़ कर खिंचने लगती है) आ आह... आह... दीदी दर्द कर रहा है...
वैदेही - कब से देख रही हूँ.. यह क्या मस्ती लगा रखा है... माफी मांग..
टीलु - ऐ बुढ़िया...
गौरी - खिंच और जोर से कान...
वैदेही - क्या (कान खिंचने लगती है)
टीलु - आह... नहीं नहीं... काकी ओ काकी... माफ़ कर दो... प्लीज...
गौरी - अब आया ना रास्ते पर...
टीलु - कहाँ रास्ते पर... दुकान पर आया हूँ.. दीदी छोड़ो ना... आह कहीं मर मरा ना जाऊँ...
गौरी - तो मर आज.. वैदेही... मत छोड़ना आज उसे...

पर वैदेही मुस्कराते हुए छोड़ देती है l टीलु अपना कान पर हाथ फेरने लगता है l

वैदेही - ज्यादा नाटक मत कर...
गौरी - क्यूँ छोड़ दिया उसे.. मरने तक तो पकड़ कर रखती...
टीलु - देखो काकी... अगर मैं मर गया होता... तो तुम ही पछताती...
गौरी - अच्छा... वह क्यूँ भला..
टीलु - बताता हूँ... (एक न्यूज पेपर निकाल कर वैदेही को दिखाते हुए) यह देखो दीदी... भाई का क्या मस्त फोटो आया है... वह भी पहले पन्ने पर...

वैदेही पेपर पर वकील के कपड़ों में विश्व की तस्वीर देख कर बहुत खुश हो जाती है l पेपर के दाहिने तरफ एक चौथाई पन्ने पर विश्व के फोटो के साथ " शिक्षा का अधिकार का श्रेष्ठ उदाहरण एडवोकेट विश्व प्रताप महापात्र"

यह पढ़ कर वैदेही की आँखों से कुछ बूंद आँसू टपक पड़ते हैं l गौरी वैदेही से पेपर लेकर विश्व की तस्वीर देखती है l

टीलु - दीदी... दुख भरे दिन बीते रे दीदी... शुभ दिन आयो रे... फिर यह आँसू क्यूँ...
दीदी - यह खुशी की आँसू है.. एक तपस्या का फल है... एक कदम न्याय की ओर है... कास आज विशु... पंचायत भवन में आए...
टीलु - दीदी... विश्व भाई ने जो दुनिया देखा है... जो सीखा है.. उसीके हिसाब से जी रहे हैं... मदत उसकी करो... जो मांगे... जिसे बिन मांगे दो... वह मदत बेकीमत हो जाता है... बिन मांगे उसकी मदत किया जा सकता है... जिसमें अपनी लड़ाई लड़ने की ज़ज्बा हो... हिम्मत हो... आज विश्वा भाई उनकी लड़ाई लड़ भी लें तो क्या होगा... आज यह राजा जाएगा... कल इन्हीं पर राज करने कोई दुसरा राजा आ जाएगा... तब... तब क्या होगा... (वैदेही चुप रह कर एक टक टीलु को देखे जा रही थी, टीलु घबरा जाता है) ऐ... ऐसे क्या देख रही हो दीदी...
वैदेही - देख रही हूँ... विशु के साथ रह कर... उसके जैसे बातेँ करने लगा है...
टीलु - (शर्मा जाता है)
गौरी - ज्यादा मत शर्मा... वर्ना गलती से लोग लड़की समझ बैठेंगे...
टीलु - (बिदक कर मुहँ बना कर गौरी को देखने लगता है)
वैदेही - खैर अब यह बता... विशु और तु नाश्ता करने तो आओगे ना...
टीलु - जरुर दीदी जरुर... अच्छा चलता हूँ...

कह कर टीलु गौरी को खा जाने वालीं नजर से घूरते हुए बाहर की ओर जाने लगता है l गौरी भी दांत पिसते हुए उसे देख रही थी, जैसे ही टीलु बाहर की ओर होने लगा गौरी चिल्ला कर

गौरी - ऐ नासपीटे रुक...
टीलु - (टीलु अपनी आँखे सिकुड़ कर और मुहँ बना कर गौरी को देख कर) क्या है...
गौरी - यह बता... तु मर गया तो मेरा किस बात का पछतावा होगा...
टीलु - काकी अगर मैं मर गया... तो तुझे ढोने वालों में से एक कंधा कम हो जाएगा... समझी...

इतना कह कर टीलु बिना पीछे देखे भाग जाता है l गौरी दुकान पर टीलु को गाली बकती रह जाती है l उसकी हालत देख कर वैदेही हँसने लगती है l पर धीरे धीरे वैदेही की हँसी रुक जाती है, एक संतोष भरी नजर से विश्व की फोटो को देखते हुए फोटो पर बड़े प्यार से हाथ फेरने लगती है l


गौरी - तुझे क्या लगता है... विशु जाएगा...
वैदेही - पता नहीं काकी... पर मुझे तो जाना ही होगा...
गौरी - पर मुझे तो विशु की बात ही सही लगती है... उन लोगों की दुनिया में... तुम लोगों की जरूरत भी है... मुझे तो नहीं लगता... उन लोगों को तुम्हारी कोई जरूरत...
वैदेही - ऐसा नहीं है काकी... आज उन्हें महसूस नहीं हो रहा है... और विशु को समझ नहीं आ रहा है... पर हम सब जुड़े हुए हैं...
गौरी - इसका मतलब तु जाएगी... (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म... तुम दो बहन भाई के रिस्तों को समझना बहुत मुश्किल है...
गौरी - जानती हो काकी... कल जब विशु के बारे में मासी से बात कर रही थी... मासी ने कहा था... की मासी की और मेरी विशु से खुन का रिश्ता नहीं है... पर अगर भगवान कभी पलड़े मैं एक तरफ मुझे और दुसरी तरफ मासी को रख कर चुनने को कहे... तो विशु मुझे ही चुनेगा...
गौरी - यानी तुझे यकीन है... पंचायत भवन जाएगा...
वैदेही - हाँ... मेरे लिए वह जाएगा....

तभी एक डाकिया आता है और दुकान के सामने अपनी साइकिल रोकता है l दुकान के बाहर खड़े होकर

डाकिया - क्या यह वैदेही महापात्र जी का पता है...
गौरी - हाँ क्या हुआ
डाकिया - नहीं शायद यह डाक राजगड़ के इतिहास में पहली बार आया है.... आपके नाम...
वैदेही - क्या.. क्या आया है...
डाकिया - पता नहीं... दो दो डाक हैं... मैं यशपुर डाक थाने से पहली बार... राजगड़ आया है... दोनों सरकारी है... एक गृह मंत्रालय से है... और दूसरा उच्च न्यायालय से....
वैदेही - क्या...



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पंचायत भवन
समय साढ़े ग्यारह बजे
लोग धीरे धीरे भवन में भरते जा रहे हैं l अपनी जगह बना कर बैठ रहे हैं l वैदेही भी भवन के अंदर औरतों के झुंड के बगल में एक जगह बना कर बैठी हुई थी l वह आशा भरी नजर दौड़ा कर विश्व को ढूँढ रही थी l पर उसे कहीं भी विश्व नजर नहीं आता l उधर भवन के बाहर सरपंच, उदय और शनिया के गुर्गे उन पुलिस वालों का इंतज़ार कर रहे हैं l थोड़ी देर बाद पुलिस की एक जिप्सी दिखती है जो उनके पास आकर रुकती है l जिप्सी से दो ऑफिसर उतरते हैं, ड्राइवर गाड़ी को एक जगह ले जा कर पार्क कर इन लोगों के पास आ कर खड़ा हो जाता है l सरपंच देखता है वह एक कांस्टेबल था l सरपंच तीनों के सीने में नेम प्लेट से पहचान लेता है वे सब इंस्पेक्टर शैतान सिंह, असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर मक्खन सिंह और कांस्टेबल जैलांन सिंह थे l तीनों में एक खासियत थी तीनों के चेहरे पर बड़ी बड़ी मूंछों के साथ आखों पर काला चश्मा था l

सरपंच - आइए आइए दरोगा जी...
शैतान सिंह - तो तुम सरपंच हो...
सरपंच - जी...
शैतान सिंह - ठीक है... यह लोग कौन हैं... और यह लोग हमें ऐसे घूर घूर कर क्यूँ देख रहे हैं... क्या कभी पुलिस नहीं देखे क्या...
सरपंच - नहीं ऐसी बात नहीं है... आपको तो हमारे गाँव के दरोगा जी... मेरा मतलब है रोणा बाबु जी भेजा है ना...
शैतान सिंह - हाँ... पर इन लोगों के देखने की तरीके से लगता है... यह लोग हम पर शक कर रहे हैं...
सरपंच - क्या... नहीं नहीं दरोगा जी... (कह कर शनिया और उसके गुर्गों की ओर देख कर इशारों से हाथ जोड़ने के लिए कहता है, शनिया और उसके सारे आदमी इन पुलिस को हाथ जोड़ते हैं)
शैतान सिंह - (शनिया से) तुम शनिया हो...
शनिया - जी...
शैतान सिंह - तुम्हारे बारे में... अनिकेत बाबु ने मुझे सबकुछ बता दिया है.... घबराओ मत... हम यहाँ तुम्हारे मदत के लिए ही आये हैं... अब प्लान क्या है बताओ...
भूरा - साहब... पंचायत में मुमकिन है... बीच बहस में दंगा हो...
माखन सिंह - ओ.. तो दंगा करने का प्लान है... वह भी कानून के आड़ में...
सत्तू - जी साहब... इसीलिये तो हम रोणा साहब को खोज रहे थे...
जैलांन - अबे तुम्हारा रोणा साहब ने ही हमें भेजा है... हम यहाँ एक से भले तीन आए हैं...
शैतान सिंह - हाँ... पर यह बोलो... दंगे में कितने निपटेंगे...
शनिया - सिर्फ एक... (तभी उसके कान में शुकुरा आकर कुछ कहता है, वह शुकुरा को हैरान व परेशान भरे नजरों से देखने लगता है)
शैतान सिंह - क्या हुआ... सब ठीक है ना...
शनिया - ककु कुछ नहीं... कुछ नहीं...
शैतान सिंह - पर तेरा थोबड़ा तो कुछ और बता रहा है...
शनिया - क्या... क्या बता रहा है...
शैतान सिंह - यही के... बलि का बकरा गायब है...
शनिया - (चौंक जाता है, आँखे फैल जाते हैं) यह... आपने कैसे जान लिया...
शैतान सिंह - बोला ना तेरा थोबड़ा बोल रहा है... तो प्रोग्राम आगे बढ़ाना है... या...
शनिया - नहीं साहब.... (दांत पिसते हुए) प्लान में कोई तब्दीली नहीं होगी... बकरा ना सही... बकरे की अम्मा ही सही... आज तो हर हाल में बलि चढ़ेगी...
शैतान सिंह - मतलब...
शनिया - उसकी दीदी है... वह फुदकेगी... उछलेगी...
शैतान सिंह - तो...
शनिया - तो हम उसे ही निपटा देंगे...
शैतान सिंह - कैसे...
शुकुरा - हमारे लोग... भीड़ के बीच से हमला बोल देंगे... सबको लगेगा... भीड़ हमलावर हो गई... बेचारी की जान चली गई...
शैतान सिंह - एक मिनट... तुम लोग क्या करोगे कैसे करोगे... हमें कोई मतलब नहीं... पर पत्थर बाजी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए...
शनिया - क्यूँ साहब...
शैतान सिंह - अबे घन चक्करों... पत्थरबाजी से हम लोग भी घायल हो सकते हैं... क्यूँ सरपंच...
सरपंच - हाँ.. हाँ हाँ.. बात तो सही है... एक को निशाना बनाओगे... चुका तो हम लपेटे में आयेंगे...
शैतान सिंह - हाँ... अगर ऐसा कुछ हुआ... तो... (होल्स्टर से रिवाल्वर निकाल कर) जो मेरे नजर में आएगा... उसे भुन के रख दूंगा...
शुकुरा - पर मान लीजिए... भीड़ में से कोई छुपे हुए हथियारों से हमला कर दिया तो...
शैतान सिंह - कोई वादा नहीं... पर शर्त है... आँच हम तक ना आए....
भूरा - नहीं जाएगा... साहब... पर फर्ज कीजिए... उसे बचाने... बीच में कोई आया...
शैतान सिंह - अगर एक दो आए... तो उसकी जिम्मेदारी तुम लोगों की... हाँ अगर एक दो से ज्यादा आए... तो... शांति बनाए रखने के लिए... हमें गोलीबारी करनी होगी...
सरपंच - ठीक है साहब अब अंदर चलें... लोग आ गए हैं... हम पंचायत फैसला सुना कर... फैसले पर मोहर लगाने की कवायद करेंगे...
शैतान सिंह - ठीक है... चलो फिर...

सभी भवन के अंदर आते हैं l लगभग आधे से ज्यादा गाँव वाले मौजूद थे l सरपंच पंडाल पर एक जगह किनारे पर पुलिस वालों को बिठा देता है और खुद अपने पंचो को लेकर बीच पंडाल में टेबल पर बैठ जाता है l लोगों में पहले पंक्ति में समिति सभ्य और कुछ वार्ड मेंबर बैठे हुए हैं l सरपंच एक समिति सभ्य को इशारा करता है l वह समिति सभ्य माइक के पास जाकर सबको स्वागत करता है और सरपंच को माइक पर आकर सभा बुलाने कारण कहने को बुलाता है l सरपंच अपनी पगड़ी ठीक करता है फिर माइक पर आता है l एक नजर लोगों के बीच बैठा शनिया पर डालता है, शनिया हल्के से अपना सिर हिला कर शुरु करने के लिए इशारा करता है l सरपंच एक इत्मीनान भरी साँस छोड़ते हुए औरतों के झुंड में नजर दौड़ाता है l उसे वैदेही की झलक दिख जाती है l

सरपंच - देवियों और स्वजनों... आप सबका स्वागत है... आप सबकी जानकारी के लिए बता दूँ के... यहाँ कुछ विषयों पर चर्चा होगी... चर्चे में हर पक्ष की बात सुनी जाएंगी... चर्चे के उपरांत पंचायत अपना निर्णय सुनाएगी... और आप सबको वह निर्णय स्वीकार करना होगा... यह मैं याद दिलाना बेहतर समझता हूँ... के यह राजा क्षेत्रपाल जी का राजगड़ है... यहाँ केवल राजा साहब के अनुमोदित कानून ही मान्य है... इसलिए यहाँ पर जो न्याय होगा... वह अंतिम होगा.... थाना और कचहरी केवल नाम मात्र के लिए है... इसके बाद जो भी निर्णय के विरुद्ध जाएगा... उसे राजा क्षेत्रपाल के राज के नियम के विरुद्ध समझा जाएगा... अब मैं... चर्चा के लिए विषय को आपके समय प्रस्तुत करने के लिए... पंचो से अनुमती मांगता हूँ...
वैदेही - (औरतों के बीच से उठ कर) एक मिनट सरपंच जी... क्या मैं एक सवाल कर सकती हूँ...
सरपंच - जी जरुर...
वैदेही - आपने अभी कहा... यहाँ का न्याय अंतिम न्याय है... थाना और कचहरी केवल नाम मात्र के लिए है....
सरपंच - जी...
वैदेही - तो फिर यहाँ मंच के सिरे पर वह पुलिस वाले क्यूँ बैठे हुए हैं...
सरपंच - वह आमंत्रित अतिथि हैं... जो पंचायत की कार्यप्रणाली की निरीक्षण करने के पश्चात... सर्कार को अपनी रिपोर्ट सौंपेंगे... मुझे लगता है आप समझ गई होंगी... इसलिए बैठ जाएं... (वैदेही बैठ जाती है) क्या चर्चा आरंभ करने के लिए मुझे पंचों की इजाजत प्राप्त है... (पंचों में आए सभी लोग अपना सिर हिला कर सहमती देते हैं) तो देवियों और स्वजनों... जैसा कि आप सब जानते हैं... डेढ़ वर्ष पूर्व राजगड़ मल्टीपरपोज कोआपरेटिव सोसाइटी का गठन हुआ था... उस सोसाइटी के कुछ वरिष्ठ अधिकारीयों ने सोसाईटी की आय के लिए... एक चिट फंड चलाने की मंजुरी दी गई थी... अब यह देखा गया है... गाँव के कुछ लोग चिट फंड से... अपनी हद से ज्यादा कर्ज उठा चुके हैं... इसलिए उन कर्जो की अदायगी पर चर्चा के लिए आप सब यहाँ आमंत्रित हैं... (कुछ लोग आपस में खुसुर-पुसुर करने लगते हैं, जाहिर से बात थी किसीको कुछ भी समझ में नहीं आई) तो जिन लोगों को इस बाबत नोटिस मिला है... उनका कुछ कहना है... (सरपंच पूछता है, कोई कुछ नहीं कहता)
वैदेही - (अपनी जगह से उठती है) सरपंच जी... अगर कर्जा राजगड़ मल्टीपरपोज कोआपरेटिव सोसाइटी की चिट फंड से दिया गया है... तो उसकी वसूली के लिए... नोटिस शराब की ठेके चलाने वाले क्यूँ थमाए...
सरपंच - (कुछ देर के लिए सोच में पड़ जाता है, फिर) चिट फंड का अपना कोई पैसा नहीं है... वे लोग... चिट फंड में अपना पैसा लगाए हैं... इसलिए...
वैदेही - कमाल करते हैं... सरपंच जी... चिटफंड चलाओ आप... मगर पैसा लगाएं शराब बेचने वाले...
सरपंच - क्या आपको नोटिस मिला है...
वैदेही - जी... जी नहीं...
सरपंच - तो आप क्यूँ बीच में कुद रही हैं... जिनको नोटिस मिला है... उन्हें पूछने.. जानने दीजिए... बैठ जाइए...

मन मसोस कर वैदेही बैठ जाती है l बेबसी के साथ भीड़ में विश्व को ढूंढने लगती है पर उसे कहीं भी विश्व नहीं दिखता l

सरपंच - तो पहला नाम है... हरिया... अरे बाप रे पाँच लाख रुपये... क्यूँ हरिया... इतने पैसों का क्या किया तुमने...
हरिया - (हाथ जोड़ कर, रोनी सुरत बनाते हुए अपनी जगह से उठ कर) सरपंच जी... मुझे नहीं पता कब और कैसे मैंने इतने पैसे लिए...
सरपंच - यह क्या शनिया... हरिया कह रहा है.. इतना पैसा कब लिया... उसे मालुम ही नहीं है...
शनिया - यह झूठ बोल रहा है... आज तक मेरे भट्टी में आकर जितना मर्जी उतना पिया है... यहाँ तक उल्टी करने के बाद भी पिया है... इसलिए मैंने उसे... चिट फंड में से निकाल कर पिलाया... पर अब और नहीं.. पाँच लाख हो गए... अब मुझे मेरे पैसे चाहिए... बस...
सरपंच - यह क्या सुन रहा हूँ हरिया...
हरिया - यह शनिया भाई झूठ बोल रहा है... मैंने कभी हज़ार रुपये इकट्ठे नहीं देखे... और मैं कैसे... कैसे... पांच लाख रुपये तक की दारु पी सकता हूँ...
सरपंच - अरे हरिया... तुने पाँच लाख रुपये के दारु नहीं पी है.. यह दारु तुझे चिटफंड के पैसों से... व्याज के साथ पिलाया है.. असल और व्याज मिला कर पाँच लाख हो गया है...
हरिया - नहीं नहीं... आप ही सोचो सरपंच जी... पी पी कर एक आदमी कितना पी सकता है...
सरपंच - अरे हरिया.. तु अकेला कहाँ है... इनके कर्जे में बिल्लू है... बलराम है... चित्तरंजन है... और कमाल की बात है... सबने पाँच पाँच लाख देने हैं...
शनिया - सरपंच जी...जमीन पुश्तों से राजा साहब के यहाँ गिरवी प़डा है... सिर्फ घर बार बचा है... उन्हें बेचकर.. खुद को बेच कर भी यह कर्ज नहीं चुका सकता हूँ मैं...
सरपंच - अरे भाई... हम यहाँ इसीलिए तो बैठे हैं... आज यह तय करना है... तुम सब के कर्ज कैसे चुकता होगा... जिसे तुम भी मानोगे... और शनिया भी... क्यों शनिया... बात ठीक है ना...
शनिया - (अपनी मूँछों पर ताव देते हुए) बिल्कुल दुरुस्त कहा आपने सरपंच जी...
सरपंच - हाँ तो फिर तुम बोलो शनिया भाई... हरिया तो कह दिया.. घरबार ही नहीं... यह खुद भी बिक जाए... तब भी... पाँच लाख रुपये नहीं चुका पायेगा... ऐसे में... तुम कैसे अपना कर्ज वापस लेना चाहोगे...
शनिया - (अपनी जगह पर खड़ा हो जाता है) पंचों... मैं भी समझता हूँ... आखिर हरिया ही नहीं... चाहे बिल्लू हो या बलराम या चित्तरंजन... सभी मेरे गाँव वाले हैं... इन लोगों में से कोई दुश्मनी तो नहीं मेरी... पर बात पैसों की है... अगर मुझे वापस ना मिला तो मैं और मुझ पर आश्रित मेरे आदमी जिएंगे कैसे... पर मैं बहुत बड़ा दिल रखता हूँ... अब घर देखने के लिए... घर में बीवी... और कमा कर घर चलाने के लिए बाहर मर्द... तो बचे कौन बच्चे... तो इन सबके घरों में जितने भी बच्चे हैं... वह मेरे घर में आकर मेरे बताये हुए काम करें... वादा करता हूँ... एक साल में ही इन सबके कर्ज उतर जाएगा...
सरपंच - वाह.. एक साल में उतर जाएगा... और क्या चाहिए... क्या कहते हो... हरिया और बाकी लोग...

वाह वाह वाह... (खिल्ली उड़ाने के अंदाज में वैदेही अपनी जगह से उठती है और ताली बजानी लगती है) वाह सरपंच... तुने तो कमाल कर दिया... सरपंची छोड तु भड़वा और दल्ला भी बन गया... जिनके घरों की इज़्ज़त आबरू को बचाना था... उन्हीं की सौदा.. उनके माँ बाप से करवा रहा है... वाह...
सरपंच - ऐ लड़की... कब से देख रहा हूँ... न्याय के बीच में... तु टोकने के लिए घुस रही है...
वैदेही - न्याय... थु... यह कह तेरी दल्ले गिरी के बीच क्यूँ घुस रही हूँ...
शैतान सिंह - (अपनी जगह पर खड़े हो कर) सुनो मोहतरमा... तुम ऐसे कैसे किसी सरपंच को गाली दे सकती हो... यह (हरिया को दिखा कर) तुम्हारा कौन लगता है...
वैदेही - आपके सामने यह गरीबों की इज़्ज़त की कीमत लगा रहा है... और आप उसकी तरफदारी कर रहे हैं... हाँ यह मेरा कुछ नहीं लगता.. पर उसके बच्चे मुझे मासी कहते हैं... और उनके लिए मैं किसी भी हद तक जा सकती हूँ...
शैतान सिंह - अच्छा यह बात है... क्या तुम उस हरिया की पैरवी करना चाहती हो... (कह कर शनिया को आँख मारता है) अगर कुछ कहना चाहती हो... तो मंच पर जाओ और कहो...

कह लेने के बाद अपनी भवें नचा कर शनिया की ओर देखता है l वैदेही भी मंच पर चढ़ कर माइक के पास आ जाती है l वैदेही को माइक के पास देख शनिया खुश हो जाता है और अपनी पलकें झपका कर इशारे से शैतान सिंह को अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता है और मन ही मन सोचने लगता है

- यह तो कमाल करदिया दरोगा ने... शिकार को सामने लाकर खड़ा कर दिया... विश्वा नहीं तो विश्वा की बहन ही सही... मरना तो है आज तुझे कमिनी... (आँखों में खुन उतर आता है) कितनी बार मुझे जलील किया है तुने साली रंडी... आज तुझे मार कर अपनी भड़ास निकालूँगा... (अपने आदमियों को तैयार होने के लिए इशारा करता है)
शैतान सिंह - सरपंच जी... इन्हें एक माइक दीजिए... हम भी तो देखें... क्या पैरवी कर लेंगी यह...

सरपंच एक ऑपरेटर को इशारा करता है l वह ऑपरेटर एक माइक लाकर वैदेही को देता है l

शैतान सिंह - तो मोहतरमा जी... आपको किस बात पर ऐतराज है...
वैदेही - इंस्पेक्टर साहब... जैसा कि इस सरपंच ने कहा... डेढ़ साल हुए हैं... कोआपरेटिव सोसाइटी को... तो चिटफंड भी इन्हीं डेढ़ सालों में बना होगा... मैं इतना जानती हूँ... किसी भी चिट फंड चलाने के लिए... सर्कार के साथ साथ आरबीआई की मंजुरी होनी चाहिए... कम से कम... सोसाईटी की मेंबर्स की मंजुरी चाहिए... क्या इनके पास हमारे राज्य सर्कार की या आरबीआई की मंजुरी है... या फिर... सोसाईटी मेंबर्स की मंजुरी है...
सरपंच - इसकी कोई जरूरी नहीं थी... हमारे लिए हमारी सर्कार... राजा साहब हैं...
वैदेही - इसका मतलब तुम लोगों की यह चिटफंड ही गैर कानूनी है... और दुसरी बात... यह बात यहाँ पर बिल्कुल भी तुमने नहीं कहा... हरिया पर कितना कर्जा है... कितने व्याज पर कितने महीनों के बाद... यह पाँच लाख हुआ है...

वैदेही के इतने कहने पर सरपंच का चेहरा ऐसा हो जाता है जैसे उसके हाथों से तोते उड़ गए हों l हरिया की बीवी खड़ी हो जाती है और पूछती है

लक्ष्मी - सही पकडी हो दीदी... हाँ पहले यह बताओ... मेरे मर्द का कर्जा कितना है... व्याज कितना और कितने महीने हुए हैं...
शैतान सिंह - क्यूँ... तु उसकी पत्नी है... तुझे नहीं मालूम...
लक्ष्मी - (हाथ जोड़ कर) साहब... यह शनिया जब भी वसुली के लिए मेरे घर आया है.. कभी खाली हाथ नहीं लौटा है... उसने जब भी जितना पैसा कहा... दीदी ने उसके मुहँ पर मारा है... उसके बावजुद... पाँच लाख कैसे हो गया...
शनिया - ऐ चुप करो तुम सब... (अपने एक आदमी से) बिठा रे उसको...

एक आदमी औरतों के बीच में घुस कर लक्ष्मी को ज़बरदस्ती बैठने के लिए कहता है l लक्ष्मी जिस जोश के साथ उठी थी उसी तेजी के साथ बैठ जाती है l

वैदेही - देखा इंस्पेक्टर साहब... यह है इनकी चाल बाजी... यह अपने घर बच्चों से काम लेने नहीं बुला रहे हैं... बल्कि बढ़ रही बेटीयों को नोचने के लिए बुला रहे हैं... पर मैं जिंदा हूँ अभी... मेरे जीते जी... इस गाँव की किसी भी लड़की पर कोई आँच नहीं आने दूंगी...
शनि - तो आज मर जा फिर... (अपने आदमियों से) देखो गाँव वालों... यह कानून राजा साहब का है... यह बदजात राजा साहब से नमक हरामी कर रही है... उठो और ख़तम कर दो इसे...


भीड़ में से शनिया और उसके सारे लोग पंडाल की ओर भागते हैं और पंडाल पर चढ़ जाते हैं l सभी गाँव वाले यह देख कर डर जाते हैं कि तभी शनिया चिल्लाता है

शनिया - कोई नहीं जाएगा यहाँ से... जो भी इस भवन से बाहर जाएगा... वह राजा साहब का गुनहगार होगा... हम उसे ढूंढ ढूंढ कर मार डालेंगे...

सभी गाँव वाले रुक जाते हैं डरते हुए पंडाल की ओर देखने लगते हैं l वैदेही अपनी जगह पर डट कर खड़ी हुई थी l उसकी आँखों में इतनी हिम्मत थी के शनिया वैदेही से नजरें मिला नहीं पा रहा था l शनिया खुद को सम्भालता है और वैदेही के पास आता है l

शनिया - बड़ा मतलबी निकला तेरा भाई... हमने तो उसे लपेटे में लेने के लिए यह प्लान बनाया था... पर वह आया नहीं... तु हत्थे चढ़ गई... कोई नहीं... आज वह नहीं तु सही... ऐ (अपने आदमियों से) निकालो अपने हथियार...

वैदेही को घेरे हुए सभी अपने अपने हथियार निकालते हैं l सारे हथियार खेती में उपयोग होते हैं l यह सब देख कर भी वैदेही विचलित नहीं होती l

शनिया - किस मिट्टी की बनी है तु... जरा भी डर नहीं लग रहा तुझे...
वैदेही - जिसका विश्वा जैसा भाई हो... उसे किस बात कर....
शनिया - अच्छा... यह बात है... (अपने आदमियों से) काट डालो इस रंडी...

आगे कुछ नहीं कह पाया l एक लात शनिया के निचले जबड़े पर लगता है l वह हवा में उड़ते हुए पंडाल से नीचे कुर्सियों पर गिरता है l वह सम्भल कर उठ कर देखता है l उसीके आदमियों के लिबास में विश्वा उसके आदमियों को धूल चटा रहा है l एक एक आदमी को उठा उठा कर पटक रहा था l पहले से ही उसके हाथों मार खाए हुए थे l थोड़ा डर पहले से ही था l अब विश्व को सामने देख कर उन पर डर और भी हावी हो गया l उनके हाथ पैर चलने से पहले ही विश्व के हाथ पैर चल रहे थे l कोई एक घुसे में तो कोई एक लात से गिर रहा था वह भी पंडाल से छिटक कर नीचे पड़े कुर्सियों पर l शनिया देखा पुलिस वाले बड़े मजे से विश्वा को उसके आदमियों को मारते हुए देख रहे हैं l वह शैतान सिंह के पास जाता है

शनिया - यह आप क्या कर रहे हैं इंस्पेक्टर साब... वह मेरे आदमियों को मार रहा है...
शैतान सिंह - मैंने पहले ही कहा था... मैं सिर्फ गाँव वालों को रोकुंगा... तुम्हारे आदमियों को नहीं...
शनिया - पर वह मेरा आदमी नहीं है...
शैतान सिंह - तुम लोगों के पास हथियार तो है ना... टूट पड़ो उस पर...
शनिया - तो फिर आप क्या करेंगे...
शैतान सिंह - अबे भोषड़ी के... मर्द ही है ना तु... कुछ देर पहले लड़की पर... बड़ी बड़ी हांक रहा था... साले हरामी एक ही लात में क्या छक्का बन गया...

शनिया अपने कपड़ों के बीच से एक तलवार निकालता है और धीरे धीरे विश्वा के पास जाने लगता है l जब तक वह विश्वा के पास पहुँचा शनिया के सारे आदमी भवन के फर्श पर धुल चाट रहे थे l शनिया विश्व के पीछे पहुँच कर हमले के लिए जैसे ही तलवार उठाता है विश्व अचानक मुड़ता है और शनिया के आँखों में घूर कर देखने लगता है l विश्व की ऐसे नजर से शनिया तलवार उठाए वैसे ही मुर्ति बन खड़ा रह जाता है l

विश्वा - तुझे मारने के लिए... मुझे किसी हथियार की जरूरत नहीं है... मेरी यह तीखी नजर ही काफी है... तेरी साँस अटक जाएगी...

शनिया फिर भी वैसे मुर्तिवत खड़ा था l विश्व उसके हाथों से तलवार ले लेता है l शनिया का कोई विरोध नहीं होता l विश्व शनिया को एक धक्का देता है l शनिया कई कदम पीछे जा कर गिरता है l विश्व अब सरपंच की ओर देखता है l सरपंच भय के मारे गिला कर देता है l विश्व तलवार से सरपंच की पगड़ी को निकाल कर उपर उछाल देता है l पगड़ी खुल कर उड़ते हुए धीरे धीरे नीचे गिरने लगता है l विश्व बहुत तेजी से तलवार घुमाने लगता है l इतनी तेज के सिर्फ हवाओं के चिरने की आवाज ही आ रही थी, और आँखों में जैसे बिजली कौंध रही थी l विश्व अचानक तलवार घुमाना बंद कर कमर पर हाथ रखकर खड़ा हो जाता है l जब पगड़ी उड़ते उड़ते विश्व के कंधे के बराबर पहुँचती है, विश्व बहुत तेजी से सिर्फ तीन बार तलवार घुमाता है l पहले ऊपर की ओर फिर दाहिने की ओर फिर बाएँ l पगड़ी की कपड़ा चार बराबर हिस्सों में कट कर उड़ते हुए नीचे बिखर कर गिरता है l यह दृश्य कुछ ऐसा था कि वहाँ पर मौजूद सभी लोग सम्मोहित हो गए थे l जब तक होश में आए तब तक विश्व अपनी दीदी को लेकर वहाँ से जा चुका था l शनिया मुड़ कर देखता है वहाँ पर पुलिस वाले भी नहीं थे

शनिया - वह... वह...
शुकुरा - क्क्क क्या हुआ... भाई..
शनिया - द... द..
शुकुरा - दरोगा...
शनिया - हाँ हाँ हाँ... क क कहाँ गया..
उदय - वह तीन पुलिस वाले... विश्व और उसकी बहन को अपनी गाड़ी में बिठा कर कब के निकल गए
शनिया - क्या...
Bahut hi badhiya update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and beautiful update....
 
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