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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Kala Nag

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मुझे कुछ दिनों की मोहलत दें ताकि मैं खुद को स्थिर कर सकूँ
उसके पश्चात आपके हर प्रश्न का उत्तर दे पाऊँगा
 

Kala Nag

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👉एक सौ छत्तीसवाँ अपडेट
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भुवनेश्वर एयर पोर्ट से क्षेत्रपाल एंड कम्पनी बाहर आती है l बाहर गाड़ियों के साथ बल्लभ इन सबकी इंतजार में था l भैरव सिंह अपनी गाड़ी के पास जाकर गाड़ी में बैठ जाता है l पिनाक उसके पास आकर खड़ा होता है l

भैरव - क्या आप हमारे साथ बारंग रिसॉर्ट जाना चाहेंगे...
पिनाक - नहीं राजा सहाब... हम प्रधान के साथ... सब ठीक कर लेने के बाद... शाम की पार्टी में बुलाने के लिए आयेंगे...
भैरव - ठीक है... हम प्रतीक्षा करेंगे...

भैरव सिंह की गाड़ी वहाँ से निकल जाता है l पिनाक उसे जाते हुए देखता है l उसे महसूस होता है कि उसके बगल में बल्लभ और विक्रम खड़े हैं l

विक्रम - आपका प्लान क्या है छोटे राजा जी...
पिनाक - (बल्लभ से) जाओ प्रधान गाड़ी लाओ... (विक्रम से गाड़ी में बात करते हैं...

बल्लभ इशारा करता है एक बड़ी गाड़ी आकर उसके आगे रुकती है l बल्लभ आगे ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठ जाता है विक्रम और पिनाक पीछे वाली सीट पर बैठ जाते हैं l

पिनाक - ड्राइवर... गाड़ी को द हैल ले चलो... (ड्राइवर गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ा देता है) हाँ तो प्रधान... अब मुझे स्थिति के बारे में जानकारी दो...
बल्लभ - राजा सहाब... मेरी जानकारी के मुताबिक... लड़की को दया नदी के रास्ते... डिपोर्ट कर दिया गया है... बस्ती के लोग पुलिस को शाम तक रोके रखेंगे... जब तक पुलिस बस्ती के अंदर घुस कर लड़की को ढूँढेगी... उनके हाथ कुछ नहीं लगेगा...
पिनाक - ह्म्म्म्म... और मीडिया... उसका क्या...

जवाब में बल्लभ गाड़ी के भीतर ही रूफ पर लगे एक एलसीडी को निकाल कर ऑन कर देता है l उसमें नभवाणी चैनल पर न्यूज चल रहा था l न्यूज सुप्रिया पढ़ रही थी l

" वाव की महिलाएँ अनु की दादी को लेकर अभी भी एडवोकेट प्रतिभा जी के नेतृत्व में कमिश्नरेट के बाहर धरने पर बैठीं हुई हैं l रात भर पुलिस हाथ पैर मारती रही पर कहीं भी अनु की कोई खबर नहीं मिली है l इधर विपक्ष के नेता भी मैदान में कुद चुके हैं l ऐसा प्रतीत हो रहा है अनु की गुमशुदगी सरकार व प्रशासन पर भारी पड़ने वाली है l
हमारी सूत्रों से प्राप्त खबर के अनुसार पुरी रोड पर स्थित सुंढी साही बस्ती में दंगा भड़क गया है, जिसे नियंत्रित करने के लिए भारी पुलिस बल को सुंढी साही बस्ती की ओर भेज दिया गया है l दंगे के कारण पुरी जाने वाली राज मार्ग को बंद कर दिया गया है l अभी तक दंगे का कारण पता नहीं चल पाया है l यह सब देखकर विपक्ष के नेता पुछ रहे हैं इस राज्य में क्या हो रहा है "

बल्लभ न्यूज को बंद कर एलइडी स्क्रीन को रूफ टॉप पर वापस लगा देता है l

बल्लभ - जैसा कि आपने देखा... मीडिया... इस मामले में पुरी तरीके से अंधेरे में है...
पिनाक - गुड... बहुत अच्छा मेंटेन किया है तुमने...
बल्लभ - राजकुमार की कोई खबर...
बल्लभ - आई एम सॉरी... उनके बारे में मेरे पास कोई जानकारी नहीं है...

पिनाक के जबड़े भिंच जाते हैं l एक गहरी साँस छोड़ते हुए सवालिया नजर से विक्रम की ओर देखने लगता है l विक्रम उसके मन की आशय को समझ जाता है

विक्रम - नहीं छोटे राजा जी... वीर ने मुझसे किसी भी तरह का कॉन्टेक्ट नहीं किया है...
पिनाक - हम जानते हैं... हम राजकुमार ने आपसे किसी भी तरह से संपर्क नहीं किया होगा..
विक्रम - फिर... आप वीर के बारे में प्रधान से पूछने के बाद... मेरी तरफ क्यूँ देख रहे थे...
पिनाक - बात तजुर्बे की है युवराज... ज़माने को देखने के लिए... तजुर्बे की चश्मा चढ़ानी पड़ती है... हमें खुद पर भरोसा रहता है... दुश्मन को अपने सामने गिनते भी नहीं है... पर आपने जिस तरह से... उस हरामजादे विश्वा की बात कही... थोड़ा शक तो होने ही लगा था... कहीं राजकुमार उस लड़की तक पहुँच तो नहीं गए...
विक्रम - आपने सच कहा... बात तजुर्बे की है... आप अपनी तजुर्बे की चश्मे से दुनिया को देखते हैं... और हम अपनी...
पिनाक - हाँ... और दुश्मन को देखने और पहचानने की नजरिया हमारी आपसे बेहतर है... (विक्रम चुप रहता है) कल आपने जिस तरह से बात रखी थी... हमें लगा था... राजकुमार कामयाब हो जाएंगे... पर आप गलत निकले...
विक्रम - रात को मंगनी भी है... आपकी जीत तभी मुकम्मल होगी... जब वीर मंगनी करने आएगा... अभी तक वीर की कोई ख़बर भी तो नहीं है...

इस बार पिनाक चुप हो जाता है l दांत पिसते हुए विक्रम की ओर देखता है l गाड़ी इतने में हैल की परिसर में प्रवेश करती है l गाड़ी के रुकते ही कुछ गार्ड्स भागते हुए आते हैं और दरवाजा खोलते हैं l विक्रम तो उतर जाता है पर पिनाक जो कुछ सोच में खोया हुआ था उतरता नहीं है l उसे विक्रम आवाज देता है

विक्रम - छोटे राजा जी...
पिनाक - (ख़यालों से वापस आते हुए) हुँम्म्म्म.......
विक्रम - हम हैल में आ गए...
पिनाक - ओ...

पिनाक गाड़ी से उतरता है l विक्रम और पिनाक दोनों आगे आगे चलते हैं पीछे पीछे बल्लभ चलता है l बैठक में पहुँचने के बाद पिनाक बल्लभ को वहीँ रुकने के लिए कह कर अंदर हॉल में आता है l देखता है घर की तीनों औरतें बैठीं हुई हैं l पिनाक को देखते ही तीनों उठ खड़े होते हैं l शुभ्रा भागते हुए आती है पिनाक की पैर छूती है l पिनाक शुभ्रा को इग्नोर करते हुए सुषमा के पास जाता है और उसके सामने खड़ा हो जाता है l पिनाक सुषमा की चेहरे पर गौर करने लगता है l

सुषमा - ऐसे क्या देख रहे हैं छोटे राजा जी...
पिनाक - हमें आपसे कुछ जानना है...
सुषमा - तो पूछिये...
पिनाक - (अपनी भवें सिकुड़ कर) राजकुमार कहाँ हैं...
सुषमा - हम नहीं जानते...
पिनाक - हूँम्म्म्म्म.... क्या आपकी उनसे बात नहीं हुई है अब तक...
सुषमा - नहीं...
पिनाक - क्यूँ...
सुषमा - राजकुमार ने बताया नहीं...
पिनाक - आपने पुछा नहीं...
सुषमा - क्षेत्रपाल मर्द घर कब आते हैं... कब जाते हैं यह पूछने का हक है हमें...
पिनाक - माँ हैं आप उनकी...
सुषमा - और आप... आप पिता हैं उनके...
पिनाक - इसलिए तो हम अपना फर्ज अदा कर रहे हैं... उनकी विवाह निश्चित कर...
सुषमा - उनकी मर्जी जाने वगैर...
पिनाक - मर्जी... कैसी मर्जी... क्षेत्रपाल की आन बान और शान के आगे किसीकी भी मर्जी मायने नहीं रखती...
सुषमा - यह बात समझाया भी जा सकता था...
पिनाक - समझा दिया है और एहसास भी हो जानी चाहिए...
सुषमा - आपने जो किया... जो भी किया... वह पहले हमें आगाह कर देते...
पिनाक - क्यूँ... क्या कर लेतीं आप... और आप होती कौन हैं... जिसे हम खबर कर देते... (थोड़ी देर के लिए सुषमा चुप हो जाती है) क्यूँ सांप सूँघ गया...
सुषमा - हम... राजकुमार को समझाते...
पिनाक - हाँ बिल्कुल वैसे ही... जैसे माली साही बस्ती में जाकर... उस दो कौड़ी लड़की को कंगन पहनाने की तरह...

वहाँ पर खड़े सब के सब सन्न रह जाते हैं l पिनाक सबके चेहरे पर एक नजर दौड़ाने के बाद कहता है

पिनाक - हम जानते हैं.... राजकुमार की इस ओछी हरकत में... आप सबकी सहमती है... शुक्र कीजिए... हमने यह बातें राजा साहब से किया नहीं है... हम बस यह कहने यहाँ आए हैं... आज आप सब सिम्फनी होटल में शाम सात बजे तक राजकुमार जी को लेकर आ जाइए... कैसे किस हाल में... हमें कोई मतलब नहीं है... बस मंगनी के वक़्त वहाँ पर राजकुमार मौजूद रहना चाहिए वह भी चेहरे पर हँसी खुशी लिए....

इतना कह कर पिनाक वहाँ से निकल जाता है l पीछे सभी को गहरी सोच में छोड़ कर l

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सुबह के नौ बज रहे थे l कमिश्नरेट के मुख्य गेट के बाहर रोड के दूसरे किनारे पर एक शामियाना के नीचे दादी बैठी हुई थी और उसके बगल में प्रतिभा बैठी हुई थी l रात भर तकरीबन डेढ़ सौ के करीब औरतें इनके साथ धरने पर बैठीं हुई हैं l गेट के बाहर और धरने पर बैठीं महिलाओं को घेर कर बड़ी तादात में पुलिस बल तैनात थी l घेराव के बाहर कुछ न्यूज चैनल वाले अपनी अपनी रिपोर्ट देने की तैयारी कर रहे थे l पुलिस मुख्यालय की किसी भी कार्यवाही में बाधा न पहुँचे इसलिए कमीश्नरेट की गेट के पास कोई घेराव नहीं था l ऐसे में नभवाणी चैनल की बड़ी सी न्यूज ट्रांसमिशन वैन पहुँचती है l उसमें से सुप्रिया रथ उतर कर धरने पर बैठे औरतों के पास जाती है l एक किनारे पर प्रतिभा किसी से फोन पर बात कर रही थी l उसकी बात ख़तम होते ही जैसे ही मुड़ती है सामने सुप्रिया दिखती है l सुप्रिया उसे नमस्कार करती है l जवाब में प्रतिभा अपना सिर हिला कर अभिवादन स्वीकार करती है l जैसे ही प्रतिभा महिलाओं के सामने दादी के पास बैठ जाती है, सुप्रिया दादी के सामने आकर दादी को प्रणाम करते हुए कहती है

सुप्रिया - दादी.. हम आपकी एक इंटरव्यू लेना चाहते हैं... (अपनी ट्रांसमिशन गाड़ी दिखाते हुए) वह हमारी मोबाइल स्टुडियो है... उसके भीतर कुछ देर के लिए...
दादी - नहीं... मैं कहीं नहीं जाऊँगी... मुझे मेरी पोती चाहिए...
सुप्रिया - (प्रतिभा से) आंटी जी... कम से कम आप समझाइए... दादी की यह बाइट बहुत इम्पोर्टेंट है...
प्रतिभा - (दादी की कंधे पर हाथ रखकर) माँ जी यह ठीक कह रही है... आपकी लड़ाई लड़ने के लिए... हम सब यहीं हैं...
दादी - नहीं नहीं... मैं नहीं जाऊँगी...
प्रतिभा - ठीक है चलिए... मैं भी चलती हूँ आपके साथ...

बड़े मनाने के बाद दादी तैयार होती है और प्रतिभा के साथ ट्रांसमिशन वैन में चली जाती है l एक छोटा कमरे जैसे था और उसके अंदर कुछ कुछ सोफ़े पडी हुईं थीं l पीछे दीवार पर हरे रंग की स्क्रीन लगी हुई थी l दादी को लेकर सुप्रिया सोफ़े पर बिठा देती है l वैन के दुसरे सिरे पर दरवाजा खुलती है, पहले एएसपी सुभाष सतपती निकलता है उसके पीछे विश्व, उनके पीछे वीर और अनु निकलते हैं l अनु को देखते ही दादी हैरान और खुशी के मारे सोफ़े से उछल पड़ती है l अनु भागते हुए अपनी दादी की गले लग जाती है l

दादी - अनु.. यह तु ही है ना... कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही हूँ...
अनु - हाँ दादी मैं ही हूँ...
वीर - दादी... जैसा कि मैंने तुम्हें वादा किया था... देख लो... अनु सही सलामत है...

दादी अनु को छोड़ वीर के गले लग जाती है और बहुत जोर से रोने लगती है l अनु उसे संभालते हुए दिलासा देने लगती है और चुप होने के लिए कहती है l दादी की रोना धीरे धीरे सिसकियों में बदलने लगती है l

वीर - (दादी को अपने से अलग करते हुए) दादी... जो हुआ... उसके लिए जो चाहो सजा दे सकती हो...
दादी - क्या सजा दूँ दामाद जी आपको.... जब रानी साहिबा ने इसे कंगन पहना कर बहु मान लिया... तब मेरा इस पर हक कहाँ रह गया था... पर हाँ झूठ नहीं कहूँगी... कल से अब तक डर रही थी... आखिर दादी हूँ मैं इसकी... ऊपर जा कर इसके बाप को मुहँ भी तो दिखाना है...
अनु - ऐसी बातेँ क्यूँ कर रही हो दादी...
दादी - कह लेने दे मुझे कह लेने दे... डर इसलिये गई थी... कहीं सपना और ख्वाहिश औकात से बड़ी तो नहीं ही गई... पर... (वीर की बाहों को पकड़ कर हिलाते हुए) आज दामाद जी ने यकीन दिला दिया... मेरी अनु को अब कोई खतरा नहीं है... (दादी अनु की हाथ लेकर वीर के हाथ में देते हुए) लो दामाद जी... अब यह बोझ भी हल्का कर दो... मुझे चिंता मुक्त कर दो..
वीर - हाँ दादी... तुमसे वादा करता हूँ... मैं अनु से जल्द ही शादी करूँगा...

दादी के कंधे पर प्रतिभा हाथ रखती है l तब दादी प्रतिभा की ओर मुड़ती है और उसके गले लग कर कहने लगती है

दादी - पता नहीं आपको मैं कैसे धन्यवाद कहूँ...
प्रतिभा - मैंने कुछ नहीं किया... कुछ भी नहीं किया... क्या करूँ... (विश्व को दिखाते हुए) यह जो है ना... मेरा बेटा... इसने जो कहा जैसा कहा बस मैंने किया... इसके खातिर...
वीर - (विश्व के पास जाकर) हाँ दादी... आज अगर यह ना होता... तो मैं तुम्हें मुहँ दिखाने लायक न होता...

दादी विश्व के आगे जाकर हाथ जोड़ देती है l

विश्व - यह क्या कर रही हैं आप दादी... मैंने जो भी किया वह सब अपने दोस्त के लिए और... बहन मानता हूँ अनु को... उसके लिए... और मैं अकेला कहाँ था... (सुभाष को दिखा कर) यह और... (सुप्रिया को दिखा कर) यह भी तो साथ दिए... तभी हम अनु को ढूँढ पाए...

दादी घूमते हुए सबको हाथ जोड़ कर अपनी आँखों से कृतज्ञता जताती है l वीर दादी को सोफ़े पर बिठा कर पानी पिलाने के लिए अनु से कहता है l अनु वैसा ही करती है l

सुप्रिया - तो... अब क्या हुआ डिटेल में बताओ.. और आगे क्या करेंगे... क्या प्लान है...
विश्व - सुप्रिया जी... क्या हुआ सब आपको सुभाष जी बतायेंगे... और आगे क्या करना है... वीर जैसा कहेगा.. हम वैसे ही आगे बढ़ेंगे...
सुभाष - हमने तक़रीबन तीस अरेस्ट कर लिया है... पर शाम तक अरेस्ट नहीं दिखाएंगे...
सुप्रिया - क्यूँ..
सुभाष - उनमें से कुछ एक ही हालत खराब है... इलाज चल रहा है... सीक्रेटली...
सुप्रिया - ओह... पर पुरी एनएच तो अभी भी जाम है... (कुछ समझते हुए) अच्छा तो शाम को सड़क खुलेगा...
सुभाष - हाँ...
सुप्रिया - और शाम तक यह सीन चलाना पड़ेगा...
सुभाष - हाँ... शाम को ही हम मुजरिमों की गिरफ्तारी दिखा सकते हैं.... और इंट्रोगेट कर पाएंगे...
वीर - इंट्रोगेट करना क्या है... (दादी की तरफ़ देख कर थोड़ी धीमी आवाज में) आप सबको तो मालुम है.. इसके पीछे कौन है...
विश्व - हाँ... पर कुछ नहीं कर सकते... वह क्रिमिनल थर्ड पार्टी से हैं... फर्स्ट और थर्ड के बीच सेकेंड होता है.. उस सेकेंड पार्टी को ढूंढना होगा...
सुभाष - विश्व सही कह रहा है वीर... हमें थोड़ी सावधानी बरतने की जरूरत है.. वर्ना उनके गिरेबां पर हाथ रखने की छोड़ो... हम उनके पास फटक भी नहीं सकते...

थोड़ी देर के लिए वैन में शांति छा जाती है l इतनी देर से शांत खड़ी प्रतिभा, शांति को तोड़ते हुए पूछती है

प्रतिभा - ठीक है... वह सब कानूनी प्रक्रिया है... फिलहाल के लिए तुम लोग करना क्या चाहते हो...
सुप्रिया - हाँ एकजाक्टली मैं भी यही पुछ रही हूँ...
विश्व - इस वक़्त... अनु के बारे में सभी अंधेरे में रहें तो ठीक है... शाम तक.... सतपती जी गिरफ्तारी दिखाएंगे और मीडिया को खबर करेंगे...
सुप्रिया - तब तक धरने का क्या... और अनु और वीर कहाँ जायेंगे...
सुभाष - अभी कुछ देर बाद... कमीश्नरेट के अंदर से... कुछ ऑफिसर आयेंगे... मैडम सेनापति जी से वार्तालाप करेंगे... उसे आप टीवी पर लाइव प्रसारण करेंगे... आज रात की मोहलत मांगी जाएगी... प्रदर्शन करीयों से... जिसे मैडम स्वीकार करेंगी...
सुप्रिया - ठीक है... समझ गई... क्या यह सब कमिश्नर जानते हैं...
सुभाष - नहीं... मैं खुद अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर यह सब संभाल लूँगा...
सुप्रिया - वाव... आई एम इम्प्रेस्ड... और दादी जी...
सुभाष - इन्हें मैं... इनके घर में छोड़ दूँगा... (दादी से) हाँ दादी जी... शाम तक आपको खुदको संभालना होगा... जब तक... अनु फिरसे आपके पास वापस नहीं आ जाती...
दादी - क्यूँ... अब अनु कहाँ जाएगी...
वीर - दादी... आज शाम तक अनु मेरे साथ रहेगी... फिर देर शाम तक मैं और अनु दोनों आपके पास.. आपके साथ होंगे... और हाँ... आज रात का खाना भी आपके साथ होगी...
दादी - (खुश हो जाती है) ठीक है दामाद जी...
वीर - (आगे बढ़ कर दादी के पैर के पास बैठते हुए) दादी... अब चाहे कुछ भी हो जाए... आज दुनिया को मालुम हो जाएगा... वीर सिंह क्षेत्रपाल की शादी कल अनु से होगी...

दादी वीर के चेहरे पर हाथ फ़ेर कर दुआएँ देने लगती है और बलाएँ लेने लगती है l

प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तो माँ जी... चले पहले धरने पर...
सुभाष - हाँ दादी... आप अभी धरने पर जाइए... मैं खुद आपको बस्ती में छोड़ने जाऊँगा...

प्रतिभा और दादी नभवाणी के ट्रांसमिशन वैन से उतर कर धरने पर जाते हैं l इतने में छुपते हुए वीर और अनु वैन से सटे एक गाड़ी में बैठ कर चले जाते हैं l सुप्रिया अपने कैमरा मेन को लेकर धरने के पास पहुँच कर रिपोर्टिंग शुरु कर देती है l इतने में कमीश्नरेट से कुछ ऑफिसर वार्ताकार बन कर धरने के पास आते हैं, प्रतिभा और दादी से बात करते हैं l प्लान के अनुसार प्रतिभा और दादी धरना स्थगित करने के लिए राजी हो जाते हैं l सुभाष सतपती दादी को लेकर वहाँ से चला जाता है l धरने पर बैठे औरतों को प्रतिभा धन्यवाद कर विदा करती है l सभी जाने के बाद विश्व को लेकर प्रतिभा अपनी गाड़ी के पास जाती है और विश्व को बिठा कर उस जगह से निकल जाती है l

प्रतिभा - (गाड़ी चलाते हुए) खुश लग रहा है...
विश्व - हँ... क्या... कहा तुमने..
प्रतिभा - यही की... खुश तो है ना तु...
विश्व - हाँ... माँ बहुत... और थैंक्यू...
प्रतिभा - ऐ... झापड़ मारूंगी समझा...
विश्व - माँ किसी गैर के लिए कौन इतना करता है... ना तो अनु से तुम्हारी कोई जान पहचान है... ना ही वीर से कोई रिश्ता...
प्रतिभा - मुझसे ना सही... तुझसे तो है... वैसे... खुश तु किसके लिए है...
विश्व - मैं समझा नहीं...
प्रतिभा - वीर की जीत पर... या क्षेत्रपाल की हार पर...
विश्व - ओ... तो यह है तुम्हारा सवाल... ओविऔसली वीर के लिए माँ...
प्रतिभा - क्यूँ... क्षेत्रपाल की हार से नहीं...
विश्व - यह क्षेत्रपाल की हार नहीं है माँ... यह बस एक झटका है... जो उसे उसके खून ने दिया है...
प्रतिभा - हाँ पर कंधा तो तुम्हारा है ना...
विश्व - वह दोस्ती का हक था माँ...
प्रतिभा - वैसे... क्या प्लान है वीर का... आज शाम के लिए...
विश्व - तेरी कसम माँ... नहीं जानता...
प्रतिभा - क्यूँ... तुझे नहीं बताया... आज शाम को क्या करने वाला है...
वीर - नहीं... नहीं... पर आगे की लड़ाई उसकी निजी है... मैं बस तब उसके साथ होऊंगा... जब जब वह आवाज देगा... बुलाएगा...

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सिम्फनी होटल आज आम लोगों के लिए बंद था l क्यूंकि आज होटल की मुख्य फंक्शन हॉल में विशेष कार्यक्रम होना था l निर्मल सामल होटल के एंट्रेंस पर खड़े अपने अतिथियों का स्वागत कर रहा था l कुछ देर बाद पिनाक की गाड़ी पहुँचती है l पिनाक जैसे ही गाड़ी से उतरता है निर्मल सामल उसके पास आता है और उसका अभिवादन करता है l दोनों मिलकर अंदर जाते हैं l

निर्मल - क्या बात है छोटे राजा जी... आप के चेहरे पर रौनक नहीं दिख रही है...
पिनाक - हम अपने परिवार वालों को ढूँढ रहे हैं...
निर्मल - ओ... चिंता ना करें... वह लोग जल्दी ही आ जाएंगे...
पिनाक - (थोड़ी हैरानगी के साथ) मतलब...
निर्मल - ओह... लगता है आप को पता नहीं है...
पिनाक - क्या... क्या पता नहीं है...
निर्मल - आज दो पहर को... दामाद जी घर पर आए थे... बेशक मैं उस वक़्त घर पर नहीं था... पर दामाद जी मेरी बेटी सस्मीता से बात किए... उसके बाद वह चले गए... उनके जाने के बाद... मेरी बेटी भी खुशी खुशी यहाँ मंगनी के लिए आई है....
पिनाक - (भवें सिकुड़ कर कुछ सोचते हुए) क्या... राजकुमार आपकी बेटी से मिलने आए थे...
निर्मल - जी...
पिनाक - क्या हम आपकी बेटी से बात कर सकते हैं...
निर्मल - हाँ हाँ क्यूँ नहीं... आप ही की बेटी है अब... ब्राइड रूम में होगी... चलिए...
पिनाक - नहीं आप नहीं... हम बात करना चाहते हैं... अगर आपको बुरा न लगे तो...
निर्मल - इसमें बुरा लगने वाली क्या बात है... आप जाइए... मैं मेहमानों का आव भगत देखता हूँ...

इतना कह कर निर्मल वहाँ पिनाक को छोड़ कर बाहर चला जाता है l पिनाक कुछ देर यूहीं खड़े खड़े सोचते हुए ब्राइड रूम की तरफ़ जाता है l दरवाजे पर पहुँच कर दस्तक देने लगता है l थोड़ी देर बाद दरवाजा खुलता है l अंदर एक लड़की बाहर आती है पिनाक को देख कर

लड़की - जी कहिये...
पिनाक - हम... पिनाक सिंह क्षेत्रपाल...
लड़की - जी नमस्ते अंकल...
पिनाक - हम... अपनी होने वाली बहु से कुछ बात करना चाहते हैं...
लड़की - जी ज़रूर... मैं उन्हें ख़बर करती हूँ...

इतना कह कर लड़की अंदर चली जाती है और कुछ देर बाद बाहर आकर पिनाक सिंह को अंदर बुलाती है l पिनाक उस लड़की के साथ अंदर जाता है तो देखता है सस्मीता अपनी सहेलियों से घिरी एक गद्दे के बीचों-बीच बैठी हुई है l सस्मीता अपनी जगह से उठती है और आगे आकर पिनाक की पैर छूती है l पिनाक अपनी जेब से कुछ नोट निकाल कर सस्मीता के सिर पर घुमा कर उसकी सहेलियों को दे देता है l

सस्मीता - जी कहिये... आप हमसे क्या बात करना चाहते थे...
पिनाक - (हिचकिचाते हुए) वह... बात... दरअसल...
सस्मीता - (बात को समझते हुए, अपनी सहेलियों से) क्या आप लोग कुछ देर के लिए हमें अकेला छोड़ सकते हैं... (उसकी सारी सहेलियाँ बाहर चलीं जाती हैं) हाँ... अब कहिये...
पिनाक - हम कहने नहीं... कुछ पूछने आए हैं...
सस्मीता - जी पूछिये...
पिनाक - क्या आज दुपहर को... राजकुमार आपसे मिलने आए थे...
सस्मीता - जी आए थे...
पिनाक - बुरा मत मानिएगा बेटी जी... आपसे उनकी क्या बातेँ हुईं...
सस्मीता - कुछ नहीं... बस मेरी मंजूरी जानी... उसके बाद इतना कहा... शाम को वह आयेंगे... अपने परिवार के साथ... और मंगनी जरुर करेंगे...
पिनाक - (थोड़ा खुश हो कर) क्या... राजकुमार... मंगनी करेंगे ऐसा कहा...
सस्मीता - हाँ...
पिनाक - ओह... जुग जुग जियो बेटी.... जुग जुग जियो... हम बाहर जाकर बाकी रस्मे देखते हैं...

इतना कह कर अंदर ही अंदर बहुत खुश होते हुए कमरे से बाहर निकालता है और फंक्शन हॉल के बाहर जाकर निर्मल के बगल में खड़ा हो जाता है l अपने पास पिनाक को देख कर निर्मल बहुत आश्चर्य और खुश भी होता है l गिने चुने ही सही पर विशेष अतिथि आ रहे थे जिनको दोनों मिल कर स्वागत कर रहे थे l कुछ देर बाद विक्रम की गाड़ी आकर रुकती है उसमें से विक्रम के साथ सुषमा, शुभ्रा और रुप उतरते हैं l वीर को गायब देख कर पिनाक के चेहरे की रंगत उड़ जाती है l जैसे ही चारों इन दोनों के पास पहुँचते हैं

निर्मल - आइए... समधन जी... दामाद जी.... (रुक जाता है)
पिनाक - (दबे सुर में दांत पिसते हुए) राजकुमार आए नहीं...

तभी चर्र्र्र्र् करती हुई एक गाड़ी आकर रुकती है l उसमें से वीर अकेला उतरता है l अपनी माँ और भाई बहन के पास आकर

वीर - सॉरी... सॉरी.. वेरी सॉरी... वह मैं... मेंन्स पार्लर में से सीधे आ रहा हूँ...
निर्मल - ओ हो हो हो... कोई नहीं... आखिर आज आप ही का दिन है... जाइए आप अंदर जाइए... ग्रूम्स रुम में...
वीर - जी जरुर...

इतना कह कर अपनी माँ भाई बहन और भाभी को साथ लेकर अंदर चला जाता है l जो रौनक पिनाक के चेहरे से उड़ गई थी वह दुबारा वापस लौट आती है l

निर्मल - समधी जी... राजा साहब जी को फोन कर दीजिए... सब आ गए... रस्म पुरा करते हैं...
पिनाक - जी जरुर...

पिनाक अपना फोन निकाल कर बल्लभ को फोन लगाता है l बात खत्म होते ही निर्मल से कहता है

पिनाक - अभी थोड़ी ही देर में पहुँच रहे हैं...

थोड़ी देर बाद सफेद रंग की बड़ी सी चमचमाती हुई रॉल्स रोएस आकर रुकती है l दोनों भागते हुए गाड़ी के पास जाते हैं, तब तक बल्लभ गाड़ी से उतर कर डोर खोल देता है l गाड़ी से भैरव सिंह उतरता है l उसे स्वागत करते हुए सभी फंक्शन हॉल में दाखिल होते हैं l हॉल में सभी मेहमान हल्की म्युजिक के साथ मॉकटेल एंजॉय कर रहे थे l जैसे ही भैरव सिंह दाखिल होता है म्युजिक बंद हो जाता है और सबका ध्यान भैरव सिंह की ओर चला जाता है l भैरव सिंह के पास लॉ मिनिस्टर विजय जेना भागते हुए जाता है हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाता है पर जैसे ही भैरव सिंह की चेहरे पर गुरुर और रौब देखता है उसकी अंदर तक फट जाती है l धीरे से सिर झुका कर किनारे हो जाता है l बस इतना सा सीन पुरे हॉल में मरघट सी खामोशी ला देती है l भैरव सिंह का रास्ता बनाते हुए निर्मल एक आलिशान कुर्सी पर बिठाता है और इशारे से इवेंट मैनेजर को प्रोग्राम चालू करने के लिए कहता है l इवेंट मैनेजर कोई और नहीं रॉकी था l आखिर होटल उसकी जो थी l

रॉकी - सभी मेहमानों का स्वागत करते हैं... मैं रॉकी... आज का इवेंट और स्टेज मैनेज मेंट दोनों मेरे जिम्मे है... राजा साहब जी के आ जाने से इस महफिल की कसर अब पूरा हो गया है... जैसा कि आप आज जानते हैं... आज दो बड़े दिग्गज परिवार के बीच रिश्ता बनने जा रही है... क्षेत्रपाल खानदान के चश्म ओ चराग राजकुमार जी का मंगनी सामल ग्रुप के मालिक श्री निर्मल सामल जी की इकलौती सुपुत्री के साथ होने जा रही है... (सभी मौजूद लोग तालियां बजाने लगते हैं) तो स्टेज पर पहले मैं... आज के शाम के नायक... राजकुमार वीर सिंह क्षेत्रपाल जी को बुला रहा हूँ...

ग्रूम वाली रुम से निकल कर वीर रुप और सुषमा के साथ स्टेज पर आ कर खड़ा हो जाता है l आज वाकई वीर बहुत ही सुंदर दिख रहा था l

रॉकी - हमने आज की इवेंट को स्पेशल करने के लिए... सामल परिवार की चांद को... चांद की झूले के सहारे स्टेज पर लाने के लिए... एक खास व्यवस्था की है...

हॉल की सारी लाइटें बुझ जाती हैं l एक स्पॉट लाइट स्टेज की छत पर पड़ती है l चांद की आकर की झूले के बीच सफेद चमकीली लहंगा चोली और सिर पर घूंघट लिए धीरे धीरे सस्मीता उतरती है l फिर स्टेज पर सस्मीता की माँ आ जाती है l फिर पूरा हॉल में लाइट वापस आ जाती है l लाइट के आते ही सभी लोग तालियां बजाने लगते हैं l

रॉकी - थैंक्यू थैंक्यू... तो रस्म अदायगी के लिए... लड़की और लड़का... दोनों के पिता स्टेज पर आयें...

पिनाक खुश होते हुए पहले भैरव सिंह का पैर छूता है l भैरव सिंह उसे एक अंगुठी की डिबिया देता है, उसे लेकर पिनाक स्टेज पर जाता है l उधर निर्मल भी हाथ में अंगुठी वाली एक डिबिया लेकर स्टेज पर आता है l

रॉकी - अभी आप दोनों पिता... अपने अपने संतानो को अंगुठी दे दीजिए... (दोनों वैसा ही करते हैं, अब जैसे ही वीर और सस्मीता अंगुठी ले लेते हैं, रॉकी उन दोनों से कहता है) अब आप दोनों एक दूसरे को अंगुठी पहना कर... मंगनी की रस्म पुरा करें...

सबसे पहले सस्मीता अपना हाथ बढ़ाती है, वीर उसे अंगुठी पहना देता है l फिर सस्मीता वीर को अंगुठी पहना देती है l पूरा हॉल तालियों से गूंज उठती है l स्टेज पर खड़े पिनाक भी बड़ी जोश के साथ ताली बजा रहा था l सबकी ताली रुक चुकी थी पर पिनाक ताली बजाये जा रहा था l उसे जब एहसास होता है कि ताली सिर्फ वह बजा रहा है, चारों और देख कर पिनाक अपनी ताली रोकता है l

निर्मल - हा हा हा हा... आज आपकी खुशी छुपाये नहीं छुप रहा है समधी जी...
पिनाक - हाँ... हा हा हा हा... सॉरी... (सस्मीता की घूंघट देख कर) बेटी सस्मीता... आप घूंघट में क्यूँ हैं... (निर्मल से) क्या यह आपके खानदान की कोई परंपरा है...
निर्मल - अरे नहीं नहीं... सच कहूँ तो मैं भी हैरान हूँ... अपनी बेटी की घूंघट देख कर...
पिनाक - (सस्मीता को) बेटी... विवाह की मंडप में घूंघट करना... अभी तो अपने चेहरे से घूंघट हटाओ...

सस्मीता अपना घूंघट हटा देती है, जैसे ही घूंघट हटती है एक बिजली सी गिरती है पिनाक पर l वैसा ही हाल निर्मल का भी था l क्यूंकि घूंघट के पीछे सस्मीता नहीं अनु थी l यह देख पिनाक और निर्मल दोनों को झटका लगता है l सारे लोग इन दोनों की प्रतिक्रिया देख रहे थे l

निर्मल - यह... ऐ... कौन है... (अनु चुप रहती है)
पिनाक - यह क्या मज़ाक है सामल... अपनी बेटी की जगह... यह किसके साथ मंगनी करा दी राजकुमार की...
निर्मल - क्या... क्या कहा आपने... (चिल्ला कर) सस्मीता बेटी... (तेजी से रॉकी के पास जा कर उसकी कलर पकड़ कर) यह तुमने किया है...
रॉकी - नहीं.. नहीं सामल जी... यह आइडिया... खुद सस्मीता जी की थी... पर मुझे मालुम नहीं था... उनकी जगह यह लड़की आएगी

कुछ ही सेकेंड में स्टेज पर सस्मीता आकर अपनी माँ के पास खड़ी हो जाती है l

निर्मल - यह क्या है बेटी... क्या यह कोई मज़ाक था...
सस्मीता - नहीं डैडी... मंगनी कोई मज़ाक नहीं होती... जिंदगी भर की बात है... मज़ाक कैसे हो सकती है... (चल कर अनु के पास पहुँचती है) राजकुमार जी आज दुपहर को अनु को साथ लेकर आए थे... सारी बात बताए थे... जो भी हुआ या हो रहा है... सारी बातें... इसलिए मैंने बस राजकुमार जी का साथ दिया...
पिनाक - लड़की... तुमने क्या कर दिया... हमें यह मंगनी मंजुर नहीं है...
सस्मीता - क्यूँ अंकल जी.. क्यूँ...
पिनाक - हमें तुम मंजुर थीं... पर तुम्हारी जगह यह... नहीं हरगिज नहीं...
सस्मीता - ओ... मेरी जगह आपको यह पसंद नहीं... पर आप मुझे मुझे इसकी जगह देख सकते हैं...
पिनाक - इसकी कोई जगह ही नहीं बनती...
सस्मीता - पर मेरे लिए तो है... बचपन से... मैं सामल घर की इकलौती रही हूँ... अकेली रही हूँ... पहली रही हूँ... तो मैं दुसरी कैसे बन सकती थी... यह विवाह का मामला है... जीवन भर साथ रहने.. जीने मरने की बात है... राजकुमार जी किसीसे प्यार कर रहे हैं... मैं उसकी जगह लेकर उनकी जिंदगी में दुसरी तो नहीं बन सकती थी ना...

कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है l पिनाक बड़ी मुश्किल से अपना चेहरा घुमा कर भैरव सिंह की ओर देखता है तो पाता है भैरव सिंह बाहर की ओर जा रहा था और उसके पीछे पीछे बल्लभ भागते हुए चला जा रहा था l पिनाक की चेहरे का रंगत पुरी तरह से उड़ चुका था l पिनाक सारे लोगों को हाथ जोड़कर इशारे से जाने के लिए कहता है l लोग परिस्थिति को भांप कर वहाँ से चले जाते हैं l

पिनाक - (सस्मीता से) लड़की... यह तुमने हमारे साथ ठीक नहीं किया... हमारे अहं पर चोट मारी है तुमने...
वीर - जो भी हुआ है उसका जिम्मेदार मैं हूँ... उस बिचारी को क्यूँ धमका रहे हैं...
सस्मीता - अंकल जी... अहंकार... गुरुर... सिर्फ आपकी जागीर नहीं है.. हम भी पालते हैं... वह टनों के हिसाब से... जैसा कि मैंने पहले ही कहा... मुझे दुसरी होना मंजुर नहीं है... इसलिए मैंने राजकुमार जी का साथ दिया...
निर्मल - पर बेटी किसी अंजान लड़की के लिए... तुमने अपना भविष्य खराब करदिया.. यह तुमने ठीक नहीं किया बेटी...
सस्मीता - (निर्मल से) डैडी... मुझे सिर्फ एक बात का जवाब दीजिए... राजकुमार जी के बारे में... क्या आपको जानकारी थी... (निर्मल का सिर झुक जाता है) आपने मेरे साथ ठीक नहीं किया डैडी... चलिए मम्मी...

अपनी माँ को लेकर सस्मीता वहाँ से चली जाती है l निर्मल सामल भी झुके सिर के साथ उनके पीछे पीछे चला जाता है l वहाँ से रॉकी भी अपने साथियों को लेकर निकल जाता है l बाकी जो मौजूद थे सभी क्षेत्रपाल परिवार के सदस्य ही रह गए थे l सबकी ध्यान पिनाक की ओर जाता है l पिनाक अंदर ही अंदर गुस्से से उबल रहा था l उसकी आँखें बंद थी, अचानक वह अपनी आँखे खोलता है जो किसी भट्टी की अंगार की तरह दहक रही थी l खा जाने वाली नज़रों से पिनाक अनु को देखता है l अनु वीर के पीछे वीर की हाथ को जोर से पकड़ कर खड़ी रहती है l पर अनु की आँखों में डर लेश मात्र नहीं था l यह देख कर पिनाक सुषमा के पास जाता है और उसे एक थप्पड़ मार देता है l थप्पड़ के प्रभाव से सुषमा कुछ दुर हट कर गिर जाती है l शुभ्रा और रुप दोनों "माँ" चिल्ला कर उसे उठाते हैं l पिनाक सुषमा के पास आकर

पिनाक - कमिनी... (वीर की ओर इशारा करते हुए) यह मेरा औलाद नहीं हो सकता... यह किस हराम की औलाद है...
विक्रम - छोटे राजा जी... यह क्या बहकी हुई बात कर रहे हैं...
वीर - मर्दों वाली बात रही नहीं तो नामर्दों की तरह... औरतों पर जोर दिखा रहे हैं...
पिनाक - तु चुप कर कमबख्त... अब मेरी आखिरी बात का जवाब दे... तुझे क्षेत्रपाल बने रहना है या नहीं...
वीर - क्यूँ क्षेत्रपाल बने रहने के लिए क्या करना पड़ेगा...
पिनाक - तुझे मेरी कही हुई लड़की के साथ शादी करनी होगी... अगर तूने इस लड़की को नहीं छोड़ा... तो तेरा... क्षेत्रपाल खानदान से कोई रिश्ता नहीं रह जाएगा...
वीर - अच्छा... (अपने पीछे से अनु को अपने साथ खड़ा कर) और इसका क्या होगा...
पिनाक - इसका वही होगा... जो शादियों से क्षेत्रपाल के मर्द करते आए हैं... इसे अपने पास रखो और रोज खेलो...
वीर - (चिल्लाते हुए) छोटे राजा जी...
पिनाक - हाँ... इसे अपना रखैल बनाकर रखो... ना इसकी जात है... ना औकात...
वीर - यह कह कर आपने भी अपनी जात और औकात बता दी है... नाम और पहचान से बड़े... मगर सोच बहुत ही छोटी.. ओछी और गिरी हुई... छोटे राजा जी
पिनाक - मत कहो मुझे छोटे राजा... अब तुमने मुझे कहाँ छोटे राजा बने रहने दिया.. अब तो खुद को हम कहने लायक भी नहीं छोड़ा तुमने... अब फैसला तुम्हारा... तुम इस खानदान से जुड़े रहना चाहते हो... या..
अनु - (वीर की हाथ पकड़ कर) चलिए हम यहाँ से चले जाते हैं...
पिनाक - ऐ... ऐ... ऐ लड़की... तेरी यह हिम्मत... (कहते हुए अनु की तरफ बढ़ने लगता है, तो वीर उसके सामने आ जाता है) झुका... झुका अपनी नजर... (पर अनु की नजरें नहीं झुकती, जो पिनाक की अंदर की गुस्से को और भी भड़का देती है) कामिनी दो कौड़ी की लौंडी... मुझसे नजर मिला रही है... गुस्ताख... झुका अपनी नजर... तेरी इतनी हिम्मत...
वीर - हाँ... है तो उसमें बहुत हिम्मत... (हैरानी से वीर की ओर पिनाक देखता है) अनु की हिम्मत मैं हूँ... उसका गुरुर मैं हूँ... उसकी यकीन मैं हूँ... क्यूंकि उसका वज़ूद... मैं ही हूँ...
 

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I love Fantasy and Sci-fiction story.
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Nic
👉एक सौ छत्तीसवाँ अपडेट
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भुवनेश्वर एयर पोर्ट से क्षेत्रपाल एंड कम्पनी बाहर आती है l बाहर गाड़ियों के साथ बल्लभ इन सबकी इंतजार में था l भैरव सिंह अपनी गाड़ी के पास जाकर गाड़ी में बैठ जाता है l पिनाक उसके पास आकर खड़ा होता है l

भैरव - क्या आप हमारे साथ बारंग रिसॉर्ट जाना चाहेंगे...
पिनाक - नहीं राजा सहाब... हम प्रधान के साथ... सब ठीक कर लेने के बाद... शाम की पार्टी में बुलाने के लिए आयेंगे...
भैरव - ठीक है... हम प्रतीक्षा करेंगे...

भैरव सिंह की गाड़ी वहाँ से निकल जाता है l पिनाक उसे जाते हुए देखता है l उसे महसूस होता है कि उसके बगल में बल्लभ और विक्रम खड़े हैं l

विक्रम - आपका प्लान क्या है छोटे राजा जी...
पिनाक - (बल्लभ से) जाओ प्रधान गाड़ी लाओ... (विक्रम से गाड़ी में बात करते हैं...

बल्लभ इशारा करता है एक बड़ी गाड़ी आकर उसके आगे रुकती है l बल्लभ आगे ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठ जाता है विक्रम और पिनाक पीछे वाली सीट पर बैठ जाते हैं l

पिनाक - ड्राइवर... गाड़ी को द हैल ले चलो... (ड्राइवर गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ा देता है) हाँ तो प्रधान... अब मुझे स्थिति के बारे में जानकारी दो...
बल्लभ - राजा सहाब... मेरी जानकारी के मुताबिक... लड़की को दया नदी के रास्ते... डिपोर्ट कर दिया गया है... बस्ती के लोग पुलिस को शाम तक रोके रखेंगे... जब तक पुलिस बस्ती के अंदर घुस कर लड़की को ढूँढेगी... उनके हाथ कुछ नहीं लगेगा...
पिनाक - ह्म्म्म्म... और मीडिया... उसका क्या...

जवाब में बल्लभ गाड़ी के भीतर ही रूफ पर लगे एक एलसीडी को निकाल कर ऑन कर देता है l उसमें नभवाणी चैनल पर न्यूज चल रहा था l न्यूज सुप्रिया पढ़ रही थी l

" वाव की महिलाएँ अनु की दादी को लेकर अभी भी एडवोकेट प्रतिभा जी के नेतृत्व में कमिश्नरेट के बाहर धरने पर बैठीं हुई हैं l रात भर पुलिस हाथ पैर मारती रही पर कहीं भी अनु की कोई खबर नहीं मिली है l इधर विपक्ष के नेता भी मैदान में कुद चुके हैं l ऐसा प्रतीत हो रहा है अनु की गुमशुदगी सरकार व प्रशासन पर भारी पड़ने वाली है l
हमारी सूत्रों से प्राप्त खबर के अनुसार पुरी रोड पर स्थित सुंढी साही बस्ती में दंगा भड़क गया है, जिसे नियंत्रित करने के लिए भारी पुलिस बल को सुंढी साही बस्ती की ओर भेज दिया गया है l दंगे के कारण पुरी जाने वाली राज मार्ग को बंद कर दिया गया है l अभी तक दंगे का कारण पता नहीं चल पाया है l यह सब देखकर विपक्ष के नेता पुछ रहे हैं इस राज्य में क्या हो रहा है "

बल्लभ न्यूज को बंद कर एलइडी स्क्रीन को रूफ टॉप पर वापस लगा देता है l

बल्लभ - जैसा कि आपने देखा... मीडिया... इस मामले में पुरी तरीके से अंधेरे में है...
पिनाक - गुड... बहुत अच्छा मेंटेन किया है तुमने...
बल्लभ - राजकुमार की कोई खबर...
बल्लभ - आई एम सॉरी... उनके बारे में मेरे पास कोई जानकारी नहीं है...

पिनाक के जबड़े भिंच जाते हैं l एक गहरी साँस छोड़ते हुए सवालिया नजर से विक्रम की ओर देखने लगता है l विक्रम उसके मन की आशय को समझ जाता है

विक्रम - नहीं छोटे राजा जी... वीर ने मुझसे किसी भी तरह का कॉन्टेक्ट नहीं किया है...
पिनाक - हम जानते हैं... हम राजकुमार ने आपसे किसी भी तरह से संपर्क नहीं किया होगा..
विक्रम - फिर... आप वीर के बारे में प्रधान से पूछने के बाद... मेरी तरफ क्यूँ देख रहे थे...
पिनाक - बात तजुर्बे की है युवराज... ज़माने को देखने के लिए... तजुर्बे की चश्मा चढ़ानी पड़ती है... हमें खुद पर भरोसा रहता है... दुश्मन को अपने सामने गिनते भी नहीं है... पर आपने जिस तरह से... उस हरामजादे विश्वा की बात कही... थोड़ा शक तो होने ही लगा था... कहीं राजकुमार उस लड़की तक पहुँच तो नहीं गए...
विक्रम - आपने सच कहा... बात तजुर्बे की है... आप अपनी तजुर्बे की चश्मे से दुनिया को देखते हैं... और हम अपनी...
पिनाक - हाँ... और दुश्मन को देखने और पहचानने की नजरिया हमारी आपसे बेहतर है... (विक्रम चुप रहता है) कल आपने जिस तरह से बात रखी थी... हमें लगा था... राजकुमार कामयाब हो जाएंगे... पर आप गलत निकले...
विक्रम - रात को मंगनी भी है... आपकी जीत तभी मुकम्मल होगी... जब वीर मंगनी करने आएगा... अभी तक वीर की कोई ख़बर भी तो नहीं है...

इस बार पिनाक चुप हो जाता है l दांत पिसते हुए विक्रम की ओर देखता है l गाड़ी इतने में हैल की परिसर में प्रवेश करती है l गाड़ी के रुकते ही कुछ गार्ड्स भागते हुए आते हैं और दरवाजा खोलते हैं l विक्रम तो उतर जाता है पर पिनाक जो कुछ सोच में खोया हुआ था उतरता नहीं है l उसे विक्रम आवाज देता है

विक्रम - छोटे राजा जी...
पिनाक - (ख़यालों से वापस आते हुए) हुँम्म्म्म.......
विक्रम - हम हैल में आ गए...
पिनाक - ओ...

पिनाक गाड़ी से उतरता है l विक्रम और पिनाक दोनों आगे आगे चलते हैं पीछे पीछे बल्लभ चलता है l बैठक में पहुँचने के बाद पिनाक बल्लभ को वहीँ रुकने के लिए कह कर अंदर हॉल में आता है l देखता है घर की तीनों औरतें बैठीं हुई हैं l पिनाक को देखते ही तीनों उठ खड़े होते हैं l शुभ्रा भागते हुए आती है पिनाक की पैर छूती है l पिनाक शुभ्रा को इग्नोर करते हुए सुषमा के पास जाता है और उसके सामने खड़ा हो जाता है l पिनाक सुषमा की चेहरे पर गौर करने लगता है l

सुषमा - ऐसे क्या देख रहे हैं छोटे राजा जी...
पिनाक - हमें आपसे कुछ जानना है...
सुषमा - तो पूछिये...
पिनाक - (अपनी भवें सिकुड़ कर) राजकुमार कहाँ हैं...
सुषमा - हम नहीं जानते...
पिनाक - हूँम्म्म्म्म.... क्या आपकी उनसे बात नहीं हुई है अब तक...
सुषमा - नहीं...
पिनाक - क्यूँ...
सुषमा - राजकुमार ने बताया नहीं...
पिनाक - आपने पुछा नहीं...
सुषमा - क्षेत्रपाल मर्द घर कब आते हैं... कब जाते हैं यह पूछने का हक है हमें...
पिनाक - माँ हैं आप उनकी...
सुषमा - और आप... आप पिता हैं उनके...
पिनाक - इसलिए तो हम अपना फर्ज अदा कर रहे हैं... उनकी विवाह निश्चित कर...
सुषमा - उनकी मर्जी जाने वगैर...
पिनाक - मर्जी... कैसी मर्जी... क्षेत्रपाल की आन बान और शान के आगे किसीकी भी मर्जी मायने नहीं रखती...
सुषमा - यह बात समझाया भी जा सकता था...
पिनाक - समझा दिया है और एहसास भी हो जानी चाहिए...
सुषमा - आपने जो किया... जो भी किया... वह पहले हमें आगाह कर देते...
पिनाक - क्यूँ... क्या कर लेतीं आप... और आप होती कौन हैं... जिसे हम खबर कर देते... (थोड़ी देर के लिए सुषमा चुप हो जाती है) क्यूँ सांप सूँघ गया...
सुषमा - हम... राजकुमार को समझाते...
पिनाक - हाँ बिल्कुल वैसे ही... जैसे माली साही बस्ती में जाकर... उस दो कौड़ी लड़की को कंगन पहनाने की तरह...

वहाँ पर खड़े सब के सब सन्न रह जाते हैं l पिनाक सबके चेहरे पर एक नजर दौड़ाने के बाद कहता है

पिनाक - हम जानते हैं.... राजकुमार की इस ओछी हरकत में... आप सबकी सहमती है... शुक्र कीजिए... हमने यह बातें राजा साहब से किया नहीं है... हम बस यह कहने यहाँ आए हैं... आज आप सब सिम्फनी होटल में शाम सात बजे तक राजकुमार जी को लेकर आ जाइए... कैसे किस हाल में... हमें कोई मतलब नहीं है... बस मंगनी के वक़्त वहाँ पर राजकुमार मौजूद रहना चाहिए वह भी चेहरे पर हँसी खुशी लिए....

इतना कह कर पिनाक वहाँ से निकल जाता है l पीछे सभी को गहरी सोच में छोड़ कर l

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सुबह के नौ बज रहे थे l कमिश्नरेट के मुख्य गेट के बाहर रोड के दूसरे किनारे पर एक शामियाना के नीचे दादी बैठी हुई थी और उसके बगल में प्रतिभा बैठी हुई थी l रात भर तकरीबन डेढ़ सौ के करीब औरतें इनके साथ धरने पर बैठीं हुई हैं l गेट के बाहर और धरने पर बैठीं महिलाओं को घेर कर बड़ी तादात में पुलिस बल तैनात थी l घेराव के बाहर कुछ न्यूज चैनल वाले अपनी अपनी रिपोर्ट देने की तैयारी कर रहे थे l पुलिस मुख्यालय की किसी भी कार्यवाही में बाधा न पहुँचे इसलिए कमीश्नरेट की गेट के पास कोई घेराव नहीं था l ऐसे में नभवाणी चैनल की बड़ी सी न्यूज ट्रांसमिशन वैन पहुँचती है l उसमें से सुप्रिया रथ उतर कर धरने पर बैठे औरतों के पास जाती है l एक किनारे पर प्रतिभा किसी से फोन पर बात कर रही थी l उसकी बात ख़तम होते ही जैसे ही मुड़ती है सामने सुप्रिया दिखती है l सुप्रिया उसे नमस्कार करती है l जवाब में प्रतिभा अपना सिर हिला कर अभिवादन स्वीकार करती है l जैसे ही प्रतिभा महिलाओं के सामने दादी के पास बैठ जाती है, सुप्रिया दादी के सामने आकर दादी को प्रणाम करते हुए कहती है

सुप्रिया - दादी.. हम आपकी एक इंटरव्यू लेना चाहते हैं... (अपनी ट्रांसमिशन गाड़ी दिखाते हुए) वह हमारी मोबाइल स्टुडियो है... उसके भीतर कुछ देर के लिए...
दादी - नहीं... मैं कहीं नहीं जाऊँगी... मुझे मेरी पोती चाहिए...
सुप्रिया - (प्रतिभा से) आंटी जी... कम से कम आप समझाइए... दादी की यह बाइट बहुत इम्पोर्टेंट है...
प्रतिभा - (दादी की कंधे पर हाथ रखकर) माँ जी यह ठीक कह रही है... आपकी लड़ाई लड़ने के लिए... हम सब यहीं हैं...
दादी - नहीं नहीं... मैं नहीं जाऊँगी...
प्रतिभा - ठीक है चलिए... मैं भी चलती हूँ आपके साथ...

बड़े मनाने के बाद दादी तैयार होती है और प्रतिभा के साथ ट्रांसमिशन वैन में चली जाती है l एक छोटा कमरे जैसे था और उसके अंदर कुछ कुछ सोफ़े पडी हुईं थीं l पीछे दीवार पर हरे रंग की स्क्रीन लगी हुई थी l दादी को लेकर सुप्रिया सोफ़े पर बिठा देती है l वैन के दुसरे सिरे पर दरवाजा खुलती है, पहले एएसपी सुभाष सतपती निकलता है उसके पीछे विश्व, उनके पीछे वीर और अनु निकलते हैं l अनु को देखते ही दादी हैरान और खुशी के मारे सोफ़े से उछल पड़ती है l अनु भागते हुए अपनी दादी की गले लग जाती है l

दादी - अनु.. यह तु ही है ना... कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही हूँ...
अनु - हाँ दादी मैं ही हूँ...
वीर - दादी... जैसा कि मैंने तुम्हें वादा किया था... देख लो... अनु सही सलामत है...

दादी अनु को छोड़ वीर के गले लग जाती है और बहुत जोर से रोने लगती है l अनु उसे संभालते हुए दिलासा देने लगती है और चुप होने के लिए कहती है l दादी की रोना धीरे धीरे सिसकियों में बदलने लगती है l

वीर - (दादी को अपने से अलग करते हुए) दादी... जो हुआ... उसके लिए जो चाहो सजा दे सकती हो...
दादी - क्या सजा दूँ दामाद जी आपको.... जब रानी साहिबा ने इसे कंगन पहना कर बहु मान लिया... तब मेरा इस पर हक कहाँ रह गया था... पर हाँ झूठ नहीं कहूँगी... कल से अब तक डर रही थी... आखिर दादी हूँ मैं इसकी... ऊपर जा कर इसके बाप को मुहँ भी तो दिखाना है...
अनु - ऐसी बातेँ क्यूँ कर रही हो दादी...
दादी - कह लेने दे मुझे कह लेने दे... डर इसलिये गई थी... कहीं सपना और ख्वाहिश औकात से बड़ी तो नहीं ही गई... पर... (वीर की बाहों को पकड़ कर हिलाते हुए) आज दामाद जी ने यकीन दिला दिया... मेरी अनु को अब कोई खतरा नहीं है... (दादी अनु की हाथ लेकर वीर के हाथ में देते हुए) लो दामाद जी... अब यह बोझ भी हल्का कर दो... मुझे चिंता मुक्त कर दो..
वीर - हाँ दादी... तुमसे वादा करता हूँ... मैं अनु से जल्द ही शादी करूँगा...

दादी के कंधे पर प्रतिभा हाथ रखती है l तब दादी प्रतिभा की ओर मुड़ती है और उसके गले लग कर कहने लगती है

दादी - पता नहीं आपको मैं कैसे धन्यवाद कहूँ...
प्रतिभा - मैंने कुछ नहीं किया... कुछ भी नहीं किया... क्या करूँ... (विश्व को दिखाते हुए) यह जो है ना... मेरा बेटा... इसने जो कहा जैसा कहा बस मैंने किया... इसके खातिर...
वीर - (विश्व के पास जाकर) हाँ दादी... आज अगर यह ना होता... तो मैं तुम्हें मुहँ दिखाने लायक न होता...

दादी विश्व के आगे जाकर हाथ जोड़ देती है l

विश्व - यह क्या कर रही हैं आप दादी... मैंने जो भी किया वह सब अपने दोस्त के लिए और... बहन मानता हूँ अनु को... उसके लिए... और मैं अकेला कहाँ था... (सुभाष को दिखा कर) यह और... (सुप्रिया को दिखा कर) यह भी तो साथ दिए... तभी हम अनु को ढूँढ पाए...

दादी घूमते हुए सबको हाथ जोड़ कर अपनी आँखों से कृतज्ञता जताती है l वीर दादी को सोफ़े पर बिठा कर पानी पिलाने के लिए अनु से कहता है l अनु वैसा ही करती है l

सुप्रिया - तो... अब क्या हुआ डिटेल में बताओ.. और आगे क्या करेंगे... क्या प्लान है...
विश्व - सुप्रिया जी... क्या हुआ सब आपको सुभाष जी बतायेंगे... और आगे क्या करना है... वीर जैसा कहेगा.. हम वैसे ही आगे बढ़ेंगे...
सुभाष - हमने तक़रीबन तीस अरेस्ट कर लिया है... पर शाम तक अरेस्ट नहीं दिखाएंगे...
सुप्रिया - क्यूँ..
सुभाष - उनमें से कुछ एक ही हालत खराब है... इलाज चल रहा है... सीक्रेटली...
सुप्रिया - ओह... पर पुरी एनएच तो अभी भी जाम है... (कुछ समझते हुए) अच्छा तो शाम को सड़क खुलेगा...
सुभाष - हाँ...
सुप्रिया - और शाम तक यह सीन चलाना पड़ेगा...
सुभाष - हाँ... शाम को ही हम मुजरिमों की गिरफ्तारी दिखा सकते हैं.... और इंट्रोगेट कर पाएंगे...
वीर - इंट्रोगेट करना क्या है... (दादी की तरफ़ देख कर थोड़ी धीमी आवाज में) आप सबको तो मालुम है.. इसके पीछे कौन है...
विश्व - हाँ... पर कुछ नहीं कर सकते... वह क्रिमिनल थर्ड पार्टी से हैं... फर्स्ट और थर्ड के बीच सेकेंड होता है.. उस सेकेंड पार्टी को ढूंढना होगा...
सुभाष - विश्व सही कह रहा है वीर... हमें थोड़ी सावधानी बरतने की जरूरत है.. वर्ना उनके गिरेबां पर हाथ रखने की छोड़ो... हम उनके पास फटक भी नहीं सकते...

थोड़ी देर के लिए वैन में शांति छा जाती है l इतनी देर से शांत खड़ी प्रतिभा, शांति को तोड़ते हुए पूछती है

प्रतिभा - ठीक है... वह सब कानूनी प्रक्रिया है... फिलहाल के लिए तुम लोग करना क्या चाहते हो...
सुप्रिया - हाँ एकजाक्टली मैं भी यही पुछ रही हूँ...
विश्व - इस वक़्त... अनु के बारे में सभी अंधेरे में रहें तो ठीक है... शाम तक.... सतपती जी गिरफ्तारी दिखाएंगे और मीडिया को खबर करेंगे...
सुप्रिया - तब तक धरने का क्या... और अनु और वीर कहाँ जायेंगे...
सुभाष - अभी कुछ देर बाद... कमीश्नरेट के अंदर से... कुछ ऑफिसर आयेंगे... मैडम सेनापति जी से वार्तालाप करेंगे... उसे आप टीवी पर लाइव प्रसारण करेंगे... आज रात की मोहलत मांगी जाएगी... प्रदर्शन करीयों से... जिसे मैडम स्वीकार करेंगी...
सुप्रिया - ठीक है... समझ गई... क्या यह सब कमिश्नर जानते हैं...
सुभाष - नहीं... मैं खुद अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर यह सब संभाल लूँगा...
सुप्रिया - वाव... आई एम इम्प्रेस्ड... और दादी जी...
सुभाष - इन्हें मैं... इनके घर में छोड़ दूँगा... (दादी से) हाँ दादी जी... शाम तक आपको खुदको संभालना होगा... जब तक... अनु फिरसे आपके पास वापस नहीं आ जाती...
दादी - क्यूँ... अब अनु कहाँ जाएगी...
वीर - दादी... आज शाम तक अनु मेरे साथ रहेगी... फिर देर शाम तक मैं और अनु दोनों आपके पास.. आपके साथ होंगे... और हाँ... आज रात का खाना भी आपके साथ होगी...
दादी - (खुश हो जाती है) ठीक है दामाद जी...
वीर - (आगे बढ़ कर दादी के पैर के पास बैठते हुए) दादी... अब चाहे कुछ भी हो जाए... आज दुनिया को मालुम हो जाएगा... वीर सिंह क्षेत्रपाल की शादी कल अनु से होगी...

दादी वीर के चेहरे पर हाथ फ़ेर कर दुआएँ देने लगती है और बलाएँ लेने लगती है l

प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तो माँ जी... चले पहले धरने पर...
सुभाष - हाँ दादी... आप अभी धरने पर जाइए... मैं खुद आपको बस्ती में छोड़ने जाऊँगा...

प्रतिभा और दादी नभवाणी के ट्रांसमिशन वैन से उतर कर धरने पर जाते हैं l इतने में छुपते हुए वीर और अनु वैन से सटे एक गाड़ी में बैठ कर चले जाते हैं l सुप्रिया अपने कैमरा मेन को लेकर धरने के पास पहुँच कर रिपोर्टिंग शुरु कर देती है l इतने में कमीश्नरेट से कुछ ऑफिसर वार्ताकार बन कर धरने के पास आते हैं, प्रतिभा और दादी से बात करते हैं l प्लान के अनुसार प्रतिभा और दादी धरना स्थगित करने के लिए राजी हो जाते हैं l सुभाष सतपती दादी को लेकर वहाँ से चला जाता है l धरने पर बैठे औरतों को प्रतिभा धन्यवाद कर विदा करती है l सभी जाने के बाद विश्व को लेकर प्रतिभा अपनी गाड़ी के पास जाती है और विश्व को बिठा कर उस जगह से निकल जाती है l

प्रतिभा - (गाड़ी चलाते हुए) खुश लग रहा है...
विश्व - हँ... क्या... कहा तुमने..
प्रतिभा - यही की... खुश तो है ना तु...
विश्व - हाँ... माँ बहुत... और थैंक्यू...
प्रतिभा - ऐ... झापड़ मारूंगी समझा...
विश्व - माँ किसी गैर के लिए कौन इतना करता है... ना तो अनु से तुम्हारी कोई जान पहचान है... ना ही वीर से कोई रिश्ता...
प्रतिभा - मुझसे ना सही... तुझसे तो है... वैसे... खुश तु किसके लिए है...
विश्व - मैं समझा नहीं...
प्रतिभा - वीर की जीत पर... या क्षेत्रपाल की हार पर...
विश्व - ओ... तो यह है तुम्हारा सवाल... ओविऔसली वीर के लिए माँ...
प्रतिभा - क्यूँ... क्षेत्रपाल की हार से नहीं...
विश्व - यह क्षेत्रपाल की हार नहीं है माँ... यह बस एक झटका है... जो उसे उसके खून ने दिया है...
प्रतिभा - हाँ पर कंधा तो तुम्हारा है ना...
विश्व - वह दोस्ती का हक था माँ...
प्रतिभा - वैसे... क्या प्लान है वीर का... आज शाम के लिए...
विश्व - तेरी कसम माँ... नहीं जानता...
प्रतिभा - क्यूँ... तुझे नहीं बताया... आज शाम को क्या करने वाला है...
वीर - नहीं... नहीं... पर आगे की लड़ाई उसकी निजी है... मैं बस तब उसके साथ होऊंगा... जब जब वह आवाज देगा... बुलाएगा...

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सिम्फनी होटल आज आम लोगों के लिए बंद था l क्यूंकि आज होटल की मुख्य फंक्शन हॉल में विशेष कार्यक्रम होना था l निर्मल सामल होटल के एंट्रेंस पर खड़े अपने अतिथियों का स्वागत कर रहा था l कुछ देर बाद पिनाक की गाड़ी पहुँचती है l पिनाक जैसे ही गाड़ी से उतरता है निर्मल सामल उसके पास आता है और उसका अभिवादन करता है l दोनों मिलकर अंदर जाते हैं l

निर्मल - क्या बात है छोटे राजा जी... आप के चेहरे पर रौनक नहीं दिख रही है...
पिनाक - हम अपने परिवार वालों को ढूँढ रहे हैं...
निर्मल - ओ... चिंता ना करें... वह लोग जल्दी ही आ जाएंगे...
पिनाक - (थोड़ी हैरानगी के साथ) मतलब...
निर्मल - ओह... लगता है आप को पता नहीं है...
पिनाक - क्या... क्या पता नहीं है...
निर्मल - आज दो पहर को... दामाद जी घर पर आए थे... बेशक मैं उस वक़्त घर पर नहीं था... पर दामाद जी मेरी बेटी सस्मीता से बात किए... उसके बाद वह चले गए... उनके जाने के बाद... मेरी बेटी भी खुशी खुशी यहाँ मंगनी के लिए आई है....
पिनाक - (भवें सिकुड़ कर कुछ सोचते हुए) क्या... राजकुमार आपकी बेटी से मिलने आए थे...
निर्मल - जी...
पिनाक - क्या हम आपकी बेटी से बात कर सकते हैं...
निर्मल - हाँ हाँ क्यूँ नहीं... आप ही की बेटी है अब... ब्राइड रूम में होगी... चलिए...
पिनाक - नहीं आप नहीं... हम बात करना चाहते हैं... अगर आपको बुरा न लगे तो...
निर्मल - इसमें बुरा लगने वाली क्या बात है... आप जाइए... मैं मेहमानों का आव भगत देखता हूँ...

इतना कह कर निर्मल वहाँ पिनाक को छोड़ कर बाहर चला जाता है l पिनाक कुछ देर यूहीं खड़े खड़े सोचते हुए ब्राइड रूम की तरफ़ जाता है l दरवाजे पर पहुँच कर दस्तक देने लगता है l थोड़ी देर बाद दरवाजा खुलता है l अंदर एक लड़की बाहर आती है पिनाक को देख कर

लड़की - जी कहिये...
पिनाक - हम... पिनाक सिंह क्षेत्रपाल...
लड़की - जी नमस्ते अंकल...
पिनाक - हम... अपनी होने वाली बहु से कुछ बात करना चाहते हैं...
लड़की - जी ज़रूर... मैं उन्हें ख़बर करती हूँ...

इतना कह कर लड़की अंदर चली जाती है और कुछ देर बाद बाहर आकर पिनाक सिंह को अंदर बुलाती है l पिनाक उस लड़की के साथ अंदर जाता है तो देखता है सस्मीता अपनी सहेलियों से घिरी एक गद्दे के बीचों-बीच बैठी हुई है l सस्मीता अपनी जगह से उठती है और आगे आकर पिनाक की पैर छूती है l पिनाक अपनी जेब से कुछ नोट निकाल कर सस्मीता के सिर पर घुमा कर उसकी सहेलियों को दे देता है l

सस्मीता - जी कहिये... आप हमसे क्या बात करना चाहते थे...
पिनाक - (हिचकिचाते हुए) वह... बात... दरअसल...
सस्मीता - (बात को समझते हुए, अपनी सहेलियों से) क्या आप लोग कुछ देर के लिए हमें अकेला छोड़ सकते हैं... (उसकी सारी सहेलियाँ बाहर चलीं जाती हैं) हाँ... अब कहिये...
पिनाक - हम कहने नहीं... कुछ पूछने आए हैं...
सस्मीता - जी पूछिये...
पिनाक - क्या आज दुपहर को... राजकुमार आपसे मिलने आए थे...
सस्मीता - जी आए थे...
पिनाक - बुरा मत मानिएगा बेटी जी... आपसे उनकी क्या बातेँ हुईं...
सस्मीता - कुछ नहीं... बस मेरी मंजूरी जानी... उसके बाद इतना कहा... शाम को वह आयेंगे... अपने परिवार के साथ... और मंगनी जरुर करेंगे...
पिनाक - (थोड़ा खुश हो कर) क्या... राजकुमार... मंगनी करेंगे ऐसा कहा...
सस्मीता - हाँ...
पिनाक - ओह... जुग जुग जियो बेटी.... जुग जुग जियो... हम बाहर जाकर बाकी रस्मे देखते हैं...

इतना कह कर अंदर ही अंदर बहुत खुश होते हुए कमरे से बाहर निकालता है और फंक्शन हॉल के बाहर जाकर निर्मल के बगल में खड़ा हो जाता है l अपने पास पिनाक को देख कर निर्मल बहुत आश्चर्य और खुश भी होता है l गिने चुने ही सही पर विशेष अतिथि आ रहे थे जिनको दोनों मिल कर स्वागत कर रहे थे l कुछ देर बाद विक्रम की गाड़ी आकर रुकती है उसमें से विक्रम के साथ सुषमा, शुभ्रा और रुप उतरते हैं l वीर को गायब देख कर पिनाक के चेहरे की रंगत उड़ जाती है l जैसे ही चारों इन दोनों के पास पहुँचते हैं

निर्मल - आइए... समधन जी... दामाद जी.... (रुक जाता है)
पिनाक - (दबे सुर में दांत पिसते हुए) राजकुमार आए नहीं...

तभी चर्र्र्र्र् करती हुई एक गाड़ी आकर रुकती है l उसमें से वीर अकेला उतरता है l अपनी माँ और भाई बहन के पास आकर

वीर - सॉरी... सॉरी.. वेरी सॉरी... वह मैं... मेंन्स पार्लर में से सीधे आ रहा हूँ...
निर्मल - ओ हो हो हो... कोई नहीं... आखिर आज आप ही का दिन है... जाइए आप अंदर जाइए... ग्रूम्स रुम में...
वीर - जी जरुर...

इतना कह कर अपनी माँ भाई बहन और भाभी को साथ लेकर अंदर चला जाता है l जो रौनक पिनाक के चेहरे से उड़ गई थी वह दुबारा वापस लौट आती है l

निर्मल - समधी जी... राजा साहब जी को फोन कर दीजिए... सब आ गए... रस्म पुरा करते हैं...
पिनाक - जी जरुर...

पिनाक अपना फोन निकाल कर बल्लभ को फोन लगाता है l बात खत्म होते ही निर्मल से कहता है

पिनाक - अभी थोड़ी ही देर में पहुँच रहे हैं...

थोड़ी देर बाद सफेद रंग की बड़ी सी चमचमाती हुई रॉल्स रोएस आकर रुकती है l दोनों भागते हुए गाड़ी के पास जाते हैं, तब तक बल्लभ गाड़ी से उतर कर डोर खोल देता है l गाड़ी से भैरव सिंह उतरता है l उसे स्वागत करते हुए सभी फंक्शन हॉल में दाखिल होते हैं l हॉल में सभी मेहमान हल्की म्युजिक के साथ मॉकटेल एंजॉय कर रहे थे l जैसे ही भैरव सिंह दाखिल होता है म्युजिक बंद हो जाता है और सबका ध्यान भैरव सिंह की ओर चला जाता है l भैरव सिंह के पास लॉ मिनिस्टर विजय जेना भागते हुए जाता है हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाता है पर जैसे ही भैरव सिंह की चेहरे पर गुरुर और रौब देखता है उसकी अंदर तक फट जाती है l धीरे से सिर झुका कर किनारे हो जाता है l बस इतना सा सीन पुरे हॉल में मरघट सी खामोशी ला देती है l भैरव सिंह का रास्ता बनाते हुए निर्मल एक आलिशान कुर्सी पर बिठाता है और इशारे से इवेंट मैनेजर को प्रोग्राम चालू करने के लिए कहता है l इवेंट मैनेजर कोई और नहीं रॉकी था l आखिर होटल उसकी जो थी l

रॉकी - सभी मेहमानों का स्वागत करते हैं... मैं रॉकी... आज का इवेंट और स्टेज मैनेज मेंट दोनों मेरे जिम्मे है... राजा साहब जी के आ जाने से इस महफिल की कसर अब पूरा हो गया है... जैसा कि आप आज जानते हैं... आज दो बड़े दिग्गज परिवार के बीच रिश्ता बनने जा रही है... क्षेत्रपाल खानदान के चश्म ओ चराग राजकुमार जी का मंगनी सामल ग्रुप के मालिक श्री निर्मल सामल जी की इकलौती सुपुत्री के साथ होने जा रही है... (सभी मौजूद लोग तालियां बजाने लगते हैं) तो स्टेज पर पहले मैं... आज के शाम के नायक... राजकुमार वीर सिंह क्षेत्रपाल जी को बुला रहा हूँ...

ग्रूम वाली रुम से निकल कर वीर रुप और सुषमा के साथ स्टेज पर आ कर खड़ा हो जाता है l आज वाकई वीर बहुत ही सुंदर दिख रहा था l

रॉकी - हमने आज की इवेंट को स्पेशल करने के लिए... सामल परिवार की चांद को... चांद की झूले के सहारे स्टेज पर लाने के लिए... एक खास व्यवस्था की है...

हॉल की सारी लाइटें बुझ जाती हैं l एक स्पॉट लाइट स्टेज की छत पर पड़ती है l चांद की आकर की झूले के बीच सफेद चमकीली लहंगा चोली और सिर पर घूंघट लिए धीरे धीरे सस्मीता उतरती है l फिर स्टेज पर सस्मीता की माँ आ जाती है l फिर पूरा हॉल में लाइट वापस आ जाती है l लाइट के आते ही सभी लोग तालियां बजाने लगते हैं l

रॉकी - थैंक्यू थैंक्यू... तो रस्म अदायगी के लिए... लड़की और लड़का... दोनों के पिता स्टेज पर आयें...

पिनाक खुश होते हुए पहले भैरव सिंह का पैर छूता है l भैरव सिंह उसे एक अंगुठी की डिबिया देता है, उसे लेकर पिनाक स्टेज पर जाता है l उधर निर्मल भी हाथ में अंगुठी वाली एक डिबिया लेकर स्टेज पर आता है l

रॉकी - अभी आप दोनों पिता... अपने अपने संतानो को अंगुठी दे दीजिए... (दोनों वैसा ही करते हैं, अब जैसे ही वीर और सस्मीता अंगुठी ले लेते हैं, रॉकी उन दोनों से कहता है) अब आप दोनों एक दूसरे को अंगुठी पहना कर... मंगनी की रस्म पुरा करें...

सबसे पहले सस्मीता अपना हाथ बढ़ाती है, वीर उसे अंगुठी पहना देता है l फिर सस्मीता वीर को अंगुठी पहना देती है l पूरा हॉल तालियों से गूंज उठती है l स्टेज पर खड़े पिनाक भी बड़ी जोश के साथ ताली बजा रहा था l सबकी ताली रुक चुकी थी पर पिनाक ताली बजाये जा रहा था l उसे जब एहसास होता है कि ताली सिर्फ वह बजा रहा है, चारों और देख कर पिनाक अपनी ताली रोकता है l

निर्मल - हा हा हा हा... आज आपकी खुशी छुपाये नहीं छुप रहा है समधी जी...
पिनाक - हाँ... हा हा हा हा... सॉरी... (सस्मीता की घूंघट देख कर) बेटी सस्मीता... आप घूंघट में क्यूँ हैं... (निर्मल से) क्या यह आपके खानदान की कोई परंपरा है...
निर्मल - अरे नहीं नहीं... सच कहूँ तो मैं भी हैरान हूँ... अपनी बेटी की घूंघट देख कर...
पिनाक - (सस्मीता को) बेटी... विवाह की मंडप में घूंघट करना... अभी तो अपने चेहरे से घूंघट हटाओ...

सस्मीता अपना घूंघट हटा देती है, जैसे ही घूंघट हटती है एक बिजली सी गिरती है पिनाक पर l वैसा ही हाल निर्मल का भी था l क्यूंकि घूंघट के पीछे सस्मीता नहीं अनु थी l यह देख पिनाक और निर्मल दोनों को झटका लगता है l सारे लोग इन दोनों की प्रतिक्रिया देख रहे थे l

निर्मल - यह... ऐ... कौन है... (अनु चुप रहती है)
पिनाक - यह क्या मज़ाक है सामल... अपनी बेटी की जगह... यह किसके साथ मंगनी करा दी राजकुमार की...
निर्मल - क्या... क्या कहा आपने... (चिल्ला कर) सस्मीता बेटी... (तेजी से रॉकी के पास जा कर उसकी कलर पकड़ कर) यह तुमने किया है...
रॉकी - नहीं.. नहीं सामल जी... यह आइडिया... खुद सस्मीता जी की थी... पर मुझे मालुम नहीं था... उनकी जगह यह लड़की आएगी

कुछ ही सेकेंड में स्टेज पर सस्मीता आकर अपनी माँ के पास खड़ी हो जाती है l

निर्मल - यह क्या है बेटी... क्या यह कोई मज़ाक था...
सस्मीता - नहीं डैडी... मंगनी कोई मज़ाक नहीं होती... जिंदगी भर की बात है... मज़ाक कैसे हो सकती है... (चल कर अनु के पास पहुँचती है) राजकुमार जी आज दुपहर को अनु को साथ लेकर आए थे... सारी बात बताए थे... जो भी हुआ या हो रहा है... सारी बातें... इसलिए मैंने बस राजकुमार जी का साथ दिया...
पिनाक - लड़की... तुमने क्या कर दिया... हमें यह मंगनी मंजुर नहीं है...
सस्मीता - क्यूँ अंकल जी.. क्यूँ...
पिनाक - हमें तुम मंजुर थीं... पर तुम्हारी जगह यह... नहीं हरगिज नहीं...
सस्मीता - ओ... मेरी जगह आपको यह पसंद नहीं... पर आप मुझे मुझे इसकी जगह देख सकते हैं...
पिनाक - इसकी कोई जगह ही नहीं बनती...
सस्मीता - पर मेरे लिए तो है... बचपन से... मैं सामल घर की इकलौती रही हूँ... अकेली रही हूँ... पहली रही हूँ... तो मैं दुसरी कैसे बन सकती थी... यह विवाह का मामला है... जीवन भर साथ रहने.. जीने मरने की बात है... राजकुमार जी किसीसे प्यार कर रहे हैं... मैं उसकी जगह लेकर उनकी जिंदगी में दुसरी तो नहीं बन सकती थी ना...

कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है l पिनाक बड़ी मुश्किल से अपना चेहरा घुमा कर भैरव सिंह की ओर देखता है तो पाता है भैरव सिंह बाहर की ओर जा रहा था और उसके पीछे पीछे बल्लभ भागते हुए चला जा रहा था l पिनाक की चेहरे का रंगत पुरी तरह से उड़ चुका था l पिनाक सारे लोगों को हाथ जोड़कर इशारे से जाने के लिए कहता है l लोग परिस्थिति को भांप कर वहाँ से चले जाते हैं l

पिनाक - (सस्मीता से) लड़की... यह तुमने हमारे साथ ठीक नहीं किया... हमारे अहं पर चोट मारी है तुमने...
वीर - जो भी हुआ है उसका जिम्मेदार मैं हूँ... उस बिचारी को क्यूँ धमका रहे हैं...
सस्मीता - अंकल जी... अहंकार... गुरुर... सिर्फ आपकी जागीर नहीं है.. हम भी पालते हैं... वह टनों के हिसाब से... जैसा कि मैंने पहले ही कहा... मुझे दुसरी होना मंजुर नहीं है... इसलिए मैंने राजकुमार जी का साथ दिया...
निर्मल - पर बेटी किसी अंजान लड़की के लिए... तुमने अपना भविष्य खराब करदिया.. यह तुमने ठीक नहीं किया बेटी...
सस्मीता - (निर्मल से) डैडी... मुझे सिर्फ एक बात का जवाब दीजिए... राजकुमार जी के बारे में... क्या आपको जानकारी थी... (निर्मल का सिर झुक जाता है) आपने मेरे साथ ठीक नहीं किया डैडी... चलिए मम्मी...

अपनी माँ को लेकर सस्मीता वहाँ से चली जाती है l निर्मल सामल भी झुके सिर के साथ उनके पीछे पीछे चला जाता है l वहाँ से रॉकी भी अपने साथियों को लेकर निकल जाता है l बाकी जो मौजूद थे सभी क्षेत्रपाल परिवार के सदस्य ही रह गए थे l सबकी ध्यान पिनाक की ओर जाता है l पिनाक अंदर ही अंदर गुस्से से उबल रहा था l उसकी आँखें बंद थी, अचानक वह अपनी आँखे खोलता है जो किसी भट्टी की अंगार की तरह दहक रही थी l खा जाने वाली नज़रों से पिनाक अनु को देखता है l अनु वीर के पीछे वीर की हाथ को जोर से पकड़ कर खड़ी रहती है l पर अनु की आँखों में डर लेश मात्र नहीं था l यह देख कर पिनाक सुषमा के पास जाता है और उसे एक थप्पड़ मार देता है l थप्पड़ के प्रभाव से सुषमा कुछ दुर हट कर गिर जाती है l शुभ्रा और रुप दोनों "माँ" चिल्ला कर उसे उठाते हैं l पिनाक सुषमा के पास आकर

पिनाक - कमिनी... (वीर की ओर इशारा करते हुए) यह मेरा औलाद नहीं हो सकता... यह किस हराम की औलाद है...
विक्रम - छोटे राजा जी... यह क्या बहकी हुई बात कर रहे हैं...
वीर - मर्दों वाली बात रही नहीं तो नामर्दों की तरह... औरतों पर जोर दिखा रहे हैं...
पिनाक - तु चुप कर कमबख्त... अब मेरी आखिरी बात का जवाब दे... तुझे क्षेत्रपाल बने रहना है या नहीं...
वीर - क्यूँ क्षेत्रपाल बने रहने के लिए क्या करना पड़ेगा...
पिनाक - तुझे मेरी कही हुई लड़की के साथ शादी करनी होगी... अगर तूने इस लड़की को नहीं छोड़ा... तो तेरा... क्षेत्रपाल खानदान से कोई रिश्ता नहीं रह जाएगा...
वीर - अच्छा... (अपने पीछे से अनु को अपने साथ खड़ा कर) और इसका क्या होगा...
पिनाक - इसका वही होगा... जो शादियों से क्षेत्रपाल के मर्द करते आए हैं... इसे अपने पास रखो और रोज खेलो...
वीर - (चिल्लाते हुए) छोटे राजा जी...
पिनाक - हाँ... इसे अपना रखैल बनाकर रखो... ना इसकी जात है... ना औकात...
वीर - यह कह कर आपने भी अपनी जात और औकात बता दी है... नाम और पहचान से बड़े... मगर सोच बहुत ही छोटी.. ओछी और गिरी हुई... छोटे राजा जी
पिनाक - मत कहो मुझे छोटे राजा... अब तुमने मुझे कहाँ छोटे राजा बने रहने दिया.. अब तो खुद को हम कहने लायक भी नहीं छोड़ा तुमने... अब फैसला तुम्हारा... तुम इस खानदान से जुड़े रहना चाहते हो... या..
अनु - (वीर की हाथ पकड़ कर) चलिए हम यहाँ से चले जाते हैं...
पिनाक - ऐ... ऐ... ऐ लड़की... तेरी यह हिम्मत... (कहते हुए अनु की तरफ बढ़ने लगता है, तो वीर उसके सामने आ जाता है) झुका... झुका अपनी नजर... (पर अनु की नजरें नहीं झुकती, जो पिनाक की अंदर की गुस्से को और भी भड़का देती है) कामिनी दो कौड़ी की लौंडी... मुझसे नजर मिला रही है... गुस्ताख... झुका अपनी नजर... तेरी इतनी हिम्मत...
वीर - हाँ... है तो उसमें बहुत हिम्मत... (हैरानी से वीर की ओर पिनाक देखता है) अनु की हिम्मत मैं हूँ... उसका गुरुर मैं हूँ... उसकी यकीन मैं हूँ... क्यूंकि उसका वज़ूद... मैं ही हूँ...
Nice update
 
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पिनाक साहब की हेकड़ी निकल गई और भैरव साहब दुम दबाकर भाग खड़े हुए । और इसका पुरा श्रेय वीर को जाता है।
शायद ऐसा इज्जत का जनाजा क्षेत्रपालों का कभी भी निकला नही होगा । भरी महफिल से बेआबरू होकर निकले।
सस्मीता ने अपने छोटे रोल मे भी हमारा दिल जीत लिया। उसकी बातें , उसकी एटिट्यूड उसके स्वाभिमान और गुरुर का आईना थी।
यह सुनिश्चित हो गया है कि वीर क्षेत्रपाल के बन्धन से आजाद हो गया है लेकिन क्या क्षेत्रपाल वीर के इस फैसले को आसानी से बर्दाश्त कर पायेंगे ? क्या फ्यूचर मे वो वीर और अनु के राह पर बाधा नही उत्पन्न करेंगे ?
यह देखना दिलचस्प होगा कि वो क्या करने वाले हैं क्योंकि इस बार की लड़ाई अपने ही खून से है।

बहुत ही खूबसूरत अपडेट भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।

( आप सबसे पहले अपनी प्रॉब्लम को सुलझाए। जब शरीर और मन ठीक रहता है तभी सबकुछ ठीक लगता है। मुझे विश्वास है आप जल्द ही अपने सारे मसले सुलझा लेंगे। फिलहाल अपडेट या रिएक्शन देने की टेंशन पालने की कतई जरूरत नही है। अपनी प्राथमिक चीजों पर फोकस कीजिए )
 

Surya_021

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👉एक सौ छत्तीसवाँ अपडेट
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भुवनेश्वर एयर पोर्ट से क्षेत्रपाल एंड कम्पनी बाहर आती है l बाहर गाड़ियों के साथ बल्लभ इन सबकी इंतजार में था l भैरव सिंह अपनी गाड़ी के पास जाकर गाड़ी में बैठ जाता है l पिनाक उसके पास आकर खड़ा होता है l

भैरव - क्या आप हमारे साथ बारंग रिसॉर्ट जाना चाहेंगे...
पिनाक - नहीं राजा सहाब... हम प्रधान के साथ... सब ठीक कर लेने के बाद... शाम की पार्टी में बुलाने के लिए आयेंगे...
भैरव - ठीक है... हम प्रतीक्षा करेंगे...

भैरव सिंह की गाड़ी वहाँ से निकल जाता है l पिनाक उसे जाते हुए देखता है l उसे महसूस होता है कि उसके बगल में बल्लभ और विक्रम खड़े हैं l

विक्रम - आपका प्लान क्या है छोटे राजा जी...
पिनाक - (बल्लभ से) जाओ प्रधान गाड़ी लाओ... (विक्रम से गाड़ी में बात करते हैं...

बल्लभ इशारा करता है एक बड़ी गाड़ी आकर उसके आगे रुकती है l बल्लभ आगे ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठ जाता है विक्रम और पिनाक पीछे वाली सीट पर बैठ जाते हैं l

पिनाक - ड्राइवर... गाड़ी को द हैल ले चलो... (ड्राइवर गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ा देता है) हाँ तो प्रधान... अब मुझे स्थिति के बारे में जानकारी दो...
बल्लभ - राजा सहाब... मेरी जानकारी के मुताबिक... लड़की को दया नदी के रास्ते... डिपोर्ट कर दिया गया है... बस्ती के लोग पुलिस को शाम तक रोके रखेंगे... जब तक पुलिस बस्ती के अंदर घुस कर लड़की को ढूँढेगी... उनके हाथ कुछ नहीं लगेगा...
पिनाक - ह्म्म्म्म... और मीडिया... उसका क्या...

जवाब में बल्लभ गाड़ी के भीतर ही रूफ पर लगे एक एलसीडी को निकाल कर ऑन कर देता है l उसमें नभवाणी चैनल पर न्यूज चल रहा था l न्यूज सुप्रिया पढ़ रही थी l

" वाव की महिलाएँ अनु की दादी को लेकर अभी भी एडवोकेट प्रतिभा जी के नेतृत्व में कमिश्नरेट के बाहर धरने पर बैठीं हुई हैं l रात भर पुलिस हाथ पैर मारती रही पर कहीं भी अनु की कोई खबर नहीं मिली है l इधर विपक्ष के नेता भी मैदान में कुद चुके हैं l ऐसा प्रतीत हो रहा है अनु की गुमशुदगी सरकार व प्रशासन पर भारी पड़ने वाली है l
हमारी सूत्रों से प्राप्त खबर के अनुसार पुरी रोड पर स्थित सुंढी साही बस्ती में दंगा भड़क गया है, जिसे नियंत्रित करने के लिए भारी पुलिस बल को सुंढी साही बस्ती की ओर भेज दिया गया है l दंगे के कारण पुरी जाने वाली राज मार्ग को बंद कर दिया गया है l अभी तक दंगे का कारण पता नहीं चल पाया है l यह सब देखकर विपक्ष के नेता पुछ रहे हैं इस राज्य में क्या हो रहा है "

बल्लभ न्यूज को बंद कर एलइडी स्क्रीन को रूफ टॉप पर वापस लगा देता है l

बल्लभ - जैसा कि आपने देखा... मीडिया... इस मामले में पुरी तरीके से अंधेरे में है...
पिनाक - गुड... बहुत अच्छा मेंटेन किया है तुमने...
बल्लभ - राजकुमार की कोई खबर...
बल्लभ - आई एम सॉरी... उनके बारे में मेरे पास कोई जानकारी नहीं है...

पिनाक के जबड़े भिंच जाते हैं l एक गहरी साँस छोड़ते हुए सवालिया नजर से विक्रम की ओर देखने लगता है l विक्रम उसके मन की आशय को समझ जाता है

विक्रम - नहीं छोटे राजा जी... वीर ने मुझसे किसी भी तरह का कॉन्टेक्ट नहीं किया है...
पिनाक - हम जानते हैं... हम राजकुमार ने आपसे किसी भी तरह से संपर्क नहीं किया होगा..
विक्रम - फिर... आप वीर के बारे में प्रधान से पूछने के बाद... मेरी तरफ क्यूँ देख रहे थे...
पिनाक - बात तजुर्बे की है युवराज... ज़माने को देखने के लिए... तजुर्बे की चश्मा चढ़ानी पड़ती है... हमें खुद पर भरोसा रहता है... दुश्मन को अपने सामने गिनते भी नहीं है... पर आपने जिस तरह से... उस हरामजादे विश्वा की बात कही... थोड़ा शक तो होने ही लगा था... कहीं राजकुमार उस लड़की तक पहुँच तो नहीं गए...
विक्रम - आपने सच कहा... बात तजुर्बे की है... आप अपनी तजुर्बे की चश्मे से दुनिया को देखते हैं... और हम अपनी...
पिनाक - हाँ... और दुश्मन को देखने और पहचानने की नजरिया हमारी आपसे बेहतर है... (विक्रम चुप रहता है) कल आपने जिस तरह से बात रखी थी... हमें लगा था... राजकुमार कामयाब हो जाएंगे... पर आप गलत निकले...
विक्रम - रात को मंगनी भी है... आपकी जीत तभी मुकम्मल होगी... जब वीर मंगनी करने आएगा... अभी तक वीर की कोई ख़बर भी तो नहीं है...

इस बार पिनाक चुप हो जाता है l दांत पिसते हुए विक्रम की ओर देखता है l गाड़ी इतने में हैल की परिसर में प्रवेश करती है l गाड़ी के रुकते ही कुछ गार्ड्स भागते हुए आते हैं और दरवाजा खोलते हैं l विक्रम तो उतर जाता है पर पिनाक जो कुछ सोच में खोया हुआ था उतरता नहीं है l उसे विक्रम आवाज देता है

विक्रम - छोटे राजा जी...
पिनाक - (ख़यालों से वापस आते हुए) हुँम्म्म्म.......
विक्रम - हम हैल में आ गए...
पिनाक - ओ...

पिनाक गाड़ी से उतरता है l विक्रम और पिनाक दोनों आगे आगे चलते हैं पीछे पीछे बल्लभ चलता है l बैठक में पहुँचने के बाद पिनाक बल्लभ को वहीँ रुकने के लिए कह कर अंदर हॉल में आता है l देखता है घर की तीनों औरतें बैठीं हुई हैं l पिनाक को देखते ही तीनों उठ खड़े होते हैं l शुभ्रा भागते हुए आती है पिनाक की पैर छूती है l पिनाक शुभ्रा को इग्नोर करते हुए सुषमा के पास जाता है और उसके सामने खड़ा हो जाता है l पिनाक सुषमा की चेहरे पर गौर करने लगता है l

सुषमा - ऐसे क्या देख रहे हैं छोटे राजा जी...
पिनाक - हमें आपसे कुछ जानना है...
सुषमा - तो पूछिये...
पिनाक - (अपनी भवें सिकुड़ कर) राजकुमार कहाँ हैं...
सुषमा - हम नहीं जानते...
पिनाक - हूँम्म्म्म्म.... क्या आपकी उनसे बात नहीं हुई है अब तक...
सुषमा - नहीं...
पिनाक - क्यूँ...
सुषमा - राजकुमार ने बताया नहीं...
पिनाक - आपने पुछा नहीं...
सुषमा - क्षेत्रपाल मर्द घर कब आते हैं... कब जाते हैं यह पूछने का हक है हमें...
पिनाक - माँ हैं आप उनकी...
सुषमा - और आप... आप पिता हैं उनके...
पिनाक - इसलिए तो हम अपना फर्ज अदा कर रहे हैं... उनकी विवाह निश्चित कर...
सुषमा - उनकी मर्जी जाने वगैर...
पिनाक - मर्जी... कैसी मर्जी... क्षेत्रपाल की आन बान और शान के आगे किसीकी भी मर्जी मायने नहीं रखती...
सुषमा - यह बात समझाया भी जा सकता था...
पिनाक - समझा दिया है और एहसास भी हो जानी चाहिए...
सुषमा - आपने जो किया... जो भी किया... वह पहले हमें आगाह कर देते...
पिनाक - क्यूँ... क्या कर लेतीं आप... और आप होती कौन हैं... जिसे हम खबर कर देते... (थोड़ी देर के लिए सुषमा चुप हो जाती है) क्यूँ सांप सूँघ गया...
सुषमा - हम... राजकुमार को समझाते...
पिनाक - हाँ बिल्कुल वैसे ही... जैसे माली साही बस्ती में जाकर... उस दो कौड़ी लड़की को कंगन पहनाने की तरह...

वहाँ पर खड़े सब के सब सन्न रह जाते हैं l पिनाक सबके चेहरे पर एक नजर दौड़ाने के बाद कहता है

पिनाक - हम जानते हैं.... राजकुमार की इस ओछी हरकत में... आप सबकी सहमती है... शुक्र कीजिए... हमने यह बातें राजा साहब से किया नहीं है... हम बस यह कहने यहाँ आए हैं... आज आप सब सिम्फनी होटल में शाम सात बजे तक राजकुमार जी को लेकर आ जाइए... कैसे किस हाल में... हमें कोई मतलब नहीं है... बस मंगनी के वक़्त वहाँ पर राजकुमार मौजूद रहना चाहिए वह भी चेहरे पर हँसी खुशी लिए....

इतना कह कर पिनाक वहाँ से निकल जाता है l पीछे सभी को गहरी सोच में छोड़ कर l

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सुबह के नौ बज रहे थे l कमिश्नरेट के मुख्य गेट के बाहर रोड के दूसरे किनारे पर एक शामियाना के नीचे दादी बैठी हुई थी और उसके बगल में प्रतिभा बैठी हुई थी l रात भर तकरीबन डेढ़ सौ के करीब औरतें इनके साथ धरने पर बैठीं हुई हैं l गेट के बाहर और धरने पर बैठीं महिलाओं को घेर कर बड़ी तादात में पुलिस बल तैनात थी l घेराव के बाहर कुछ न्यूज चैनल वाले अपनी अपनी रिपोर्ट देने की तैयारी कर रहे थे l पुलिस मुख्यालय की किसी भी कार्यवाही में बाधा न पहुँचे इसलिए कमीश्नरेट की गेट के पास कोई घेराव नहीं था l ऐसे में नभवाणी चैनल की बड़ी सी न्यूज ट्रांसमिशन वैन पहुँचती है l उसमें से सुप्रिया रथ उतर कर धरने पर बैठे औरतों के पास जाती है l एक किनारे पर प्रतिभा किसी से फोन पर बात कर रही थी l उसकी बात ख़तम होते ही जैसे ही मुड़ती है सामने सुप्रिया दिखती है l सुप्रिया उसे नमस्कार करती है l जवाब में प्रतिभा अपना सिर हिला कर अभिवादन स्वीकार करती है l जैसे ही प्रतिभा महिलाओं के सामने दादी के पास बैठ जाती है, सुप्रिया दादी के सामने आकर दादी को प्रणाम करते हुए कहती है

सुप्रिया - दादी.. हम आपकी एक इंटरव्यू लेना चाहते हैं... (अपनी ट्रांसमिशन गाड़ी दिखाते हुए) वह हमारी मोबाइल स्टुडियो है... उसके भीतर कुछ देर के लिए...
दादी - नहीं... मैं कहीं नहीं जाऊँगी... मुझे मेरी पोती चाहिए...
सुप्रिया - (प्रतिभा से) आंटी जी... कम से कम आप समझाइए... दादी की यह बाइट बहुत इम्पोर्टेंट है...
प्रतिभा - (दादी की कंधे पर हाथ रखकर) माँ जी यह ठीक कह रही है... आपकी लड़ाई लड़ने के लिए... हम सब यहीं हैं...
दादी - नहीं नहीं... मैं नहीं जाऊँगी...
प्रतिभा - ठीक है चलिए... मैं भी चलती हूँ आपके साथ...

बड़े मनाने के बाद दादी तैयार होती है और प्रतिभा के साथ ट्रांसमिशन वैन में चली जाती है l एक छोटा कमरे जैसे था और उसके अंदर कुछ कुछ सोफ़े पडी हुईं थीं l पीछे दीवार पर हरे रंग की स्क्रीन लगी हुई थी l दादी को लेकर सुप्रिया सोफ़े पर बिठा देती है l वैन के दुसरे सिरे पर दरवाजा खुलती है, पहले एएसपी सुभाष सतपती निकलता है उसके पीछे विश्व, उनके पीछे वीर और अनु निकलते हैं l अनु को देखते ही दादी हैरान और खुशी के मारे सोफ़े से उछल पड़ती है l अनु भागते हुए अपनी दादी की गले लग जाती है l

दादी - अनु.. यह तु ही है ना... कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही हूँ...
अनु - हाँ दादी मैं ही हूँ...
वीर - दादी... जैसा कि मैंने तुम्हें वादा किया था... देख लो... अनु सही सलामत है...

दादी अनु को छोड़ वीर के गले लग जाती है और बहुत जोर से रोने लगती है l अनु उसे संभालते हुए दिलासा देने लगती है और चुप होने के लिए कहती है l दादी की रोना धीरे धीरे सिसकियों में बदलने लगती है l

वीर - (दादी को अपने से अलग करते हुए) दादी... जो हुआ... उसके लिए जो चाहो सजा दे सकती हो...
दादी - क्या सजा दूँ दामाद जी आपको.... जब रानी साहिबा ने इसे कंगन पहना कर बहु मान लिया... तब मेरा इस पर हक कहाँ रह गया था... पर हाँ झूठ नहीं कहूँगी... कल से अब तक डर रही थी... आखिर दादी हूँ मैं इसकी... ऊपर जा कर इसके बाप को मुहँ भी तो दिखाना है...
अनु - ऐसी बातेँ क्यूँ कर रही हो दादी...
दादी - कह लेने दे मुझे कह लेने दे... डर इसलिये गई थी... कहीं सपना और ख्वाहिश औकात से बड़ी तो नहीं ही गई... पर... (वीर की बाहों को पकड़ कर हिलाते हुए) आज दामाद जी ने यकीन दिला दिया... मेरी अनु को अब कोई खतरा नहीं है... (दादी अनु की हाथ लेकर वीर के हाथ में देते हुए) लो दामाद जी... अब यह बोझ भी हल्का कर दो... मुझे चिंता मुक्त कर दो..
वीर - हाँ दादी... तुमसे वादा करता हूँ... मैं अनु से जल्द ही शादी करूँगा...

दादी के कंधे पर प्रतिभा हाथ रखती है l तब दादी प्रतिभा की ओर मुड़ती है और उसके गले लग कर कहने लगती है

दादी - पता नहीं आपको मैं कैसे धन्यवाद कहूँ...
प्रतिभा - मैंने कुछ नहीं किया... कुछ भी नहीं किया... क्या करूँ... (विश्व को दिखाते हुए) यह जो है ना... मेरा बेटा... इसने जो कहा जैसा कहा बस मैंने किया... इसके खातिर...
वीर - (विश्व के पास जाकर) हाँ दादी... आज अगर यह ना होता... तो मैं तुम्हें मुहँ दिखाने लायक न होता...

दादी विश्व के आगे जाकर हाथ जोड़ देती है l

विश्व - यह क्या कर रही हैं आप दादी... मैंने जो भी किया वह सब अपने दोस्त के लिए और... बहन मानता हूँ अनु को... उसके लिए... और मैं अकेला कहाँ था... (सुभाष को दिखा कर) यह और... (सुप्रिया को दिखा कर) यह भी तो साथ दिए... तभी हम अनु को ढूँढ पाए...

दादी घूमते हुए सबको हाथ जोड़ कर अपनी आँखों से कृतज्ञता जताती है l वीर दादी को सोफ़े पर बिठा कर पानी पिलाने के लिए अनु से कहता है l अनु वैसा ही करती है l

सुप्रिया - तो... अब क्या हुआ डिटेल में बताओ.. और आगे क्या करेंगे... क्या प्लान है...
विश्व - सुप्रिया जी... क्या हुआ सब आपको सुभाष जी बतायेंगे... और आगे क्या करना है... वीर जैसा कहेगा.. हम वैसे ही आगे बढ़ेंगे...
सुभाष - हमने तक़रीबन तीस अरेस्ट कर लिया है... पर शाम तक अरेस्ट नहीं दिखाएंगे...
सुप्रिया - क्यूँ..
सुभाष - उनमें से कुछ एक ही हालत खराब है... इलाज चल रहा है... सीक्रेटली...
सुप्रिया - ओह... पर पुरी एनएच तो अभी भी जाम है... (कुछ समझते हुए) अच्छा तो शाम को सड़क खुलेगा...
सुभाष - हाँ...
सुप्रिया - और शाम तक यह सीन चलाना पड़ेगा...
सुभाष - हाँ... शाम को ही हम मुजरिमों की गिरफ्तारी दिखा सकते हैं.... और इंट्रोगेट कर पाएंगे...
वीर - इंट्रोगेट करना क्या है... (दादी की तरफ़ देख कर थोड़ी धीमी आवाज में) आप सबको तो मालुम है.. इसके पीछे कौन है...
विश्व - हाँ... पर कुछ नहीं कर सकते... वह क्रिमिनल थर्ड पार्टी से हैं... फर्स्ट और थर्ड के बीच सेकेंड होता है.. उस सेकेंड पार्टी को ढूंढना होगा...
सुभाष - विश्व सही कह रहा है वीर... हमें थोड़ी सावधानी बरतने की जरूरत है.. वर्ना उनके गिरेबां पर हाथ रखने की छोड़ो... हम उनके पास फटक भी नहीं सकते...

थोड़ी देर के लिए वैन में शांति छा जाती है l इतनी देर से शांत खड़ी प्रतिभा, शांति को तोड़ते हुए पूछती है

प्रतिभा - ठीक है... वह सब कानूनी प्रक्रिया है... फिलहाल के लिए तुम लोग करना क्या चाहते हो...
सुप्रिया - हाँ एकजाक्टली मैं भी यही पुछ रही हूँ...
विश्व - इस वक़्त... अनु के बारे में सभी अंधेरे में रहें तो ठीक है... शाम तक.... सतपती जी गिरफ्तारी दिखाएंगे और मीडिया को खबर करेंगे...
सुप्रिया - तब तक धरने का क्या... और अनु और वीर कहाँ जायेंगे...
सुभाष - अभी कुछ देर बाद... कमीश्नरेट के अंदर से... कुछ ऑफिसर आयेंगे... मैडम सेनापति जी से वार्तालाप करेंगे... उसे आप टीवी पर लाइव प्रसारण करेंगे... आज रात की मोहलत मांगी जाएगी... प्रदर्शन करीयों से... जिसे मैडम स्वीकार करेंगी...
सुप्रिया - ठीक है... समझ गई... क्या यह सब कमिश्नर जानते हैं...
सुभाष - नहीं... मैं खुद अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर यह सब संभाल लूँगा...
सुप्रिया - वाव... आई एम इम्प्रेस्ड... और दादी जी...
सुभाष - इन्हें मैं... इनके घर में छोड़ दूँगा... (दादी से) हाँ दादी जी... शाम तक आपको खुदको संभालना होगा... जब तक... अनु फिरसे आपके पास वापस नहीं आ जाती...
दादी - क्यूँ... अब अनु कहाँ जाएगी...
वीर - दादी... आज शाम तक अनु मेरे साथ रहेगी... फिर देर शाम तक मैं और अनु दोनों आपके पास.. आपके साथ होंगे... और हाँ... आज रात का खाना भी आपके साथ होगी...
दादी - (खुश हो जाती है) ठीक है दामाद जी...
वीर - (आगे बढ़ कर दादी के पैर के पास बैठते हुए) दादी... अब चाहे कुछ भी हो जाए... आज दुनिया को मालुम हो जाएगा... वीर सिंह क्षेत्रपाल की शादी कल अनु से होगी...

दादी वीर के चेहरे पर हाथ फ़ेर कर दुआएँ देने लगती है और बलाएँ लेने लगती है l

प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तो माँ जी... चले पहले धरने पर...
सुभाष - हाँ दादी... आप अभी धरने पर जाइए... मैं खुद आपको बस्ती में छोड़ने जाऊँगा...

प्रतिभा और दादी नभवाणी के ट्रांसमिशन वैन से उतर कर धरने पर जाते हैं l इतने में छुपते हुए वीर और अनु वैन से सटे एक गाड़ी में बैठ कर चले जाते हैं l सुप्रिया अपने कैमरा मेन को लेकर धरने के पास पहुँच कर रिपोर्टिंग शुरु कर देती है l इतने में कमीश्नरेट से कुछ ऑफिसर वार्ताकार बन कर धरने के पास आते हैं, प्रतिभा और दादी से बात करते हैं l प्लान के अनुसार प्रतिभा और दादी धरना स्थगित करने के लिए राजी हो जाते हैं l सुभाष सतपती दादी को लेकर वहाँ से चला जाता है l धरने पर बैठे औरतों को प्रतिभा धन्यवाद कर विदा करती है l सभी जाने के बाद विश्व को लेकर प्रतिभा अपनी गाड़ी के पास जाती है और विश्व को बिठा कर उस जगह से निकल जाती है l

प्रतिभा - (गाड़ी चलाते हुए) खुश लग रहा है...
विश्व - हँ... क्या... कहा तुमने..
प्रतिभा - यही की... खुश तो है ना तु...
विश्व - हाँ... माँ बहुत... और थैंक्यू...
प्रतिभा - ऐ... झापड़ मारूंगी समझा...
विश्व - माँ किसी गैर के लिए कौन इतना करता है... ना तो अनु से तुम्हारी कोई जान पहचान है... ना ही वीर से कोई रिश्ता...
प्रतिभा - मुझसे ना सही... तुझसे तो है... वैसे... खुश तु किसके लिए है...
विश्व - मैं समझा नहीं...
प्रतिभा - वीर की जीत पर... या क्षेत्रपाल की हार पर...
विश्व - ओ... तो यह है तुम्हारा सवाल... ओविऔसली वीर के लिए माँ...
प्रतिभा - क्यूँ... क्षेत्रपाल की हार से नहीं...
विश्व - यह क्षेत्रपाल की हार नहीं है माँ... यह बस एक झटका है... जो उसे उसके खून ने दिया है...
प्रतिभा - हाँ पर कंधा तो तुम्हारा है ना...
विश्व - वह दोस्ती का हक था माँ...
प्रतिभा - वैसे... क्या प्लान है वीर का... आज शाम के लिए...
विश्व - तेरी कसम माँ... नहीं जानता...
प्रतिभा - क्यूँ... तुझे नहीं बताया... आज शाम को क्या करने वाला है...
वीर - नहीं... नहीं... पर आगे की लड़ाई उसकी निजी है... मैं बस तब उसके साथ होऊंगा... जब जब वह आवाज देगा... बुलाएगा...

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सिम्फनी होटल आज आम लोगों के लिए बंद था l क्यूंकि आज होटल की मुख्य फंक्शन हॉल में विशेष कार्यक्रम होना था l निर्मल सामल होटल के एंट्रेंस पर खड़े अपने अतिथियों का स्वागत कर रहा था l कुछ देर बाद पिनाक की गाड़ी पहुँचती है l पिनाक जैसे ही गाड़ी से उतरता है निर्मल सामल उसके पास आता है और उसका अभिवादन करता है l दोनों मिलकर अंदर जाते हैं l

निर्मल - क्या बात है छोटे राजा जी... आप के चेहरे पर रौनक नहीं दिख रही है...
पिनाक - हम अपने परिवार वालों को ढूँढ रहे हैं...
निर्मल - ओ... चिंता ना करें... वह लोग जल्दी ही आ जाएंगे...
पिनाक - (थोड़ी हैरानगी के साथ) मतलब...
निर्मल - ओह... लगता है आप को पता नहीं है...
पिनाक - क्या... क्या पता नहीं है...
निर्मल - आज दो पहर को... दामाद जी घर पर आए थे... बेशक मैं उस वक़्त घर पर नहीं था... पर दामाद जी मेरी बेटी सस्मीता से बात किए... उसके बाद वह चले गए... उनके जाने के बाद... मेरी बेटी भी खुशी खुशी यहाँ मंगनी के लिए आई है....
पिनाक - (भवें सिकुड़ कर कुछ सोचते हुए) क्या... राजकुमार आपकी बेटी से मिलने आए थे...
निर्मल - जी...
पिनाक - क्या हम आपकी बेटी से बात कर सकते हैं...
निर्मल - हाँ हाँ क्यूँ नहीं... आप ही की बेटी है अब... ब्राइड रूम में होगी... चलिए...
पिनाक - नहीं आप नहीं... हम बात करना चाहते हैं... अगर आपको बुरा न लगे तो...
निर्मल - इसमें बुरा लगने वाली क्या बात है... आप जाइए... मैं मेहमानों का आव भगत देखता हूँ...

इतना कह कर निर्मल वहाँ पिनाक को छोड़ कर बाहर चला जाता है l पिनाक कुछ देर यूहीं खड़े खड़े सोचते हुए ब्राइड रूम की तरफ़ जाता है l दरवाजे पर पहुँच कर दस्तक देने लगता है l थोड़ी देर बाद दरवाजा खुलता है l अंदर एक लड़की बाहर आती है पिनाक को देख कर

लड़की - जी कहिये...
पिनाक - हम... पिनाक सिंह क्षेत्रपाल...
लड़की - जी नमस्ते अंकल...
पिनाक - हम... अपनी होने वाली बहु से कुछ बात करना चाहते हैं...
लड़की - जी ज़रूर... मैं उन्हें ख़बर करती हूँ...

इतना कह कर लड़की अंदर चली जाती है और कुछ देर बाद बाहर आकर पिनाक सिंह को अंदर बुलाती है l पिनाक उस लड़की के साथ अंदर जाता है तो देखता है सस्मीता अपनी सहेलियों से घिरी एक गद्दे के बीचों-बीच बैठी हुई है l सस्मीता अपनी जगह से उठती है और आगे आकर पिनाक की पैर छूती है l पिनाक अपनी जेब से कुछ नोट निकाल कर सस्मीता के सिर पर घुमा कर उसकी सहेलियों को दे देता है l

सस्मीता - जी कहिये... आप हमसे क्या बात करना चाहते थे...
पिनाक - (हिचकिचाते हुए) वह... बात... दरअसल...
सस्मीता - (बात को समझते हुए, अपनी सहेलियों से) क्या आप लोग कुछ देर के लिए हमें अकेला छोड़ सकते हैं... (उसकी सारी सहेलियाँ बाहर चलीं जाती हैं) हाँ... अब कहिये...
पिनाक - हम कहने नहीं... कुछ पूछने आए हैं...
सस्मीता - जी पूछिये...
पिनाक - क्या आज दुपहर को... राजकुमार आपसे मिलने आए थे...
सस्मीता - जी आए थे...
पिनाक - बुरा मत मानिएगा बेटी जी... आपसे उनकी क्या बातेँ हुईं...
सस्मीता - कुछ नहीं... बस मेरी मंजूरी जानी... उसके बाद इतना कहा... शाम को वह आयेंगे... अपने परिवार के साथ... और मंगनी जरुर करेंगे...
पिनाक - (थोड़ा खुश हो कर) क्या... राजकुमार... मंगनी करेंगे ऐसा कहा...
सस्मीता - हाँ...
पिनाक - ओह... जुग जुग जियो बेटी.... जुग जुग जियो... हम बाहर जाकर बाकी रस्मे देखते हैं...

इतना कह कर अंदर ही अंदर बहुत खुश होते हुए कमरे से बाहर निकालता है और फंक्शन हॉल के बाहर जाकर निर्मल के बगल में खड़ा हो जाता है l अपने पास पिनाक को देख कर निर्मल बहुत आश्चर्य और खुश भी होता है l गिने चुने ही सही पर विशेष अतिथि आ रहे थे जिनको दोनों मिल कर स्वागत कर रहे थे l कुछ देर बाद विक्रम की गाड़ी आकर रुकती है उसमें से विक्रम के साथ सुषमा, शुभ्रा और रुप उतरते हैं l वीर को गायब देख कर पिनाक के चेहरे की रंगत उड़ जाती है l जैसे ही चारों इन दोनों के पास पहुँचते हैं

निर्मल - आइए... समधन जी... दामाद जी.... (रुक जाता है)
पिनाक - (दबे सुर में दांत पिसते हुए) राजकुमार आए नहीं...

तभी चर्र्र्र्र् करती हुई एक गाड़ी आकर रुकती है l उसमें से वीर अकेला उतरता है l अपनी माँ और भाई बहन के पास आकर

वीर - सॉरी... सॉरी.. वेरी सॉरी... वह मैं... मेंन्स पार्लर में से सीधे आ रहा हूँ...
निर्मल - ओ हो हो हो... कोई नहीं... आखिर आज आप ही का दिन है... जाइए आप अंदर जाइए... ग्रूम्स रुम में...
वीर - जी जरुर...

इतना कह कर अपनी माँ भाई बहन और भाभी को साथ लेकर अंदर चला जाता है l जो रौनक पिनाक के चेहरे से उड़ गई थी वह दुबारा वापस लौट आती है l

निर्मल - समधी जी... राजा साहब जी को फोन कर दीजिए... सब आ गए... रस्म पुरा करते हैं...
पिनाक - जी जरुर...

पिनाक अपना फोन निकाल कर बल्लभ को फोन लगाता है l बात खत्म होते ही निर्मल से कहता है

पिनाक - अभी थोड़ी ही देर में पहुँच रहे हैं...

थोड़ी देर बाद सफेद रंग की बड़ी सी चमचमाती हुई रॉल्स रोएस आकर रुकती है l दोनों भागते हुए गाड़ी के पास जाते हैं, तब तक बल्लभ गाड़ी से उतर कर डोर खोल देता है l गाड़ी से भैरव सिंह उतरता है l उसे स्वागत करते हुए सभी फंक्शन हॉल में दाखिल होते हैं l हॉल में सभी मेहमान हल्की म्युजिक के साथ मॉकटेल एंजॉय कर रहे थे l जैसे ही भैरव सिंह दाखिल होता है म्युजिक बंद हो जाता है और सबका ध्यान भैरव सिंह की ओर चला जाता है l भैरव सिंह के पास लॉ मिनिस्टर विजय जेना भागते हुए जाता है हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाता है पर जैसे ही भैरव सिंह की चेहरे पर गुरुर और रौब देखता है उसकी अंदर तक फट जाती है l धीरे से सिर झुका कर किनारे हो जाता है l बस इतना सा सीन पुरे हॉल में मरघट सी खामोशी ला देती है l भैरव सिंह का रास्ता बनाते हुए निर्मल एक आलिशान कुर्सी पर बिठाता है और इशारे से इवेंट मैनेजर को प्रोग्राम चालू करने के लिए कहता है l इवेंट मैनेजर कोई और नहीं रॉकी था l आखिर होटल उसकी जो थी l

रॉकी - सभी मेहमानों का स्वागत करते हैं... मैं रॉकी... आज का इवेंट और स्टेज मैनेज मेंट दोनों मेरे जिम्मे है... राजा साहब जी के आ जाने से इस महफिल की कसर अब पूरा हो गया है... जैसा कि आप आज जानते हैं... आज दो बड़े दिग्गज परिवार के बीच रिश्ता बनने जा रही है... क्षेत्रपाल खानदान के चश्म ओ चराग राजकुमार जी का मंगनी सामल ग्रुप के मालिक श्री निर्मल सामल जी की इकलौती सुपुत्री के साथ होने जा रही है... (सभी मौजूद लोग तालियां बजाने लगते हैं) तो स्टेज पर पहले मैं... आज के शाम के नायक... राजकुमार वीर सिंह क्षेत्रपाल जी को बुला रहा हूँ...

ग्रूम वाली रुम से निकल कर वीर रुप और सुषमा के साथ स्टेज पर आ कर खड़ा हो जाता है l आज वाकई वीर बहुत ही सुंदर दिख रहा था l

रॉकी - हमने आज की इवेंट को स्पेशल करने के लिए... सामल परिवार की चांद को... चांद की झूले के सहारे स्टेज पर लाने के लिए... एक खास व्यवस्था की है...

हॉल की सारी लाइटें बुझ जाती हैं l एक स्पॉट लाइट स्टेज की छत पर पड़ती है l चांद की आकर की झूले के बीच सफेद चमकीली लहंगा चोली और सिर पर घूंघट लिए धीरे धीरे सस्मीता उतरती है l फिर स्टेज पर सस्मीता की माँ आ जाती है l फिर पूरा हॉल में लाइट वापस आ जाती है l लाइट के आते ही सभी लोग तालियां बजाने लगते हैं l

रॉकी - थैंक्यू थैंक्यू... तो रस्म अदायगी के लिए... लड़की और लड़का... दोनों के पिता स्टेज पर आयें...

पिनाक खुश होते हुए पहले भैरव सिंह का पैर छूता है l भैरव सिंह उसे एक अंगुठी की डिबिया देता है, उसे लेकर पिनाक स्टेज पर जाता है l उधर निर्मल भी हाथ में अंगुठी वाली एक डिबिया लेकर स्टेज पर आता है l

रॉकी - अभी आप दोनों पिता... अपने अपने संतानो को अंगुठी दे दीजिए... (दोनों वैसा ही करते हैं, अब जैसे ही वीर और सस्मीता अंगुठी ले लेते हैं, रॉकी उन दोनों से कहता है) अब आप दोनों एक दूसरे को अंगुठी पहना कर... मंगनी की रस्म पुरा करें...

सबसे पहले सस्मीता अपना हाथ बढ़ाती है, वीर उसे अंगुठी पहना देता है l फिर सस्मीता वीर को अंगुठी पहना देती है l पूरा हॉल तालियों से गूंज उठती है l स्टेज पर खड़े पिनाक भी बड़ी जोश के साथ ताली बजा रहा था l सबकी ताली रुक चुकी थी पर पिनाक ताली बजाये जा रहा था l उसे जब एहसास होता है कि ताली सिर्फ वह बजा रहा है, चारों और देख कर पिनाक अपनी ताली रोकता है l

निर्मल - हा हा हा हा... आज आपकी खुशी छुपाये नहीं छुप रहा है समधी जी...
पिनाक - हाँ... हा हा हा हा... सॉरी... (सस्मीता की घूंघट देख कर) बेटी सस्मीता... आप घूंघट में क्यूँ हैं... (निर्मल से) क्या यह आपके खानदान की कोई परंपरा है...
निर्मल - अरे नहीं नहीं... सच कहूँ तो मैं भी हैरान हूँ... अपनी बेटी की घूंघट देख कर...
पिनाक - (सस्मीता को) बेटी... विवाह की मंडप में घूंघट करना... अभी तो अपने चेहरे से घूंघट हटाओ...

सस्मीता अपना घूंघट हटा देती है, जैसे ही घूंघट हटती है एक बिजली सी गिरती है पिनाक पर l वैसा ही हाल निर्मल का भी था l क्यूंकि घूंघट के पीछे सस्मीता नहीं अनु थी l यह देख पिनाक और निर्मल दोनों को झटका लगता है l सारे लोग इन दोनों की प्रतिक्रिया देख रहे थे l

निर्मल - यह... ऐ... कौन है... (अनु चुप रहती है)
पिनाक - यह क्या मज़ाक है सामल... अपनी बेटी की जगह... यह किसके साथ मंगनी करा दी राजकुमार की...
निर्मल - क्या... क्या कहा आपने... (चिल्ला कर) सस्मीता बेटी... (तेजी से रॉकी के पास जा कर उसकी कलर पकड़ कर) यह तुमने किया है...
रॉकी - नहीं.. नहीं सामल जी... यह आइडिया... खुद सस्मीता जी की थी... पर मुझे मालुम नहीं था... उनकी जगह यह लड़की आएगी

कुछ ही सेकेंड में स्टेज पर सस्मीता आकर अपनी माँ के पास खड़ी हो जाती है l

निर्मल - यह क्या है बेटी... क्या यह कोई मज़ाक था...
सस्मीता - नहीं डैडी... मंगनी कोई मज़ाक नहीं होती... जिंदगी भर की बात है... मज़ाक कैसे हो सकती है... (चल कर अनु के पास पहुँचती है) राजकुमार जी आज दुपहर को अनु को साथ लेकर आए थे... सारी बात बताए थे... जो भी हुआ या हो रहा है... सारी बातें... इसलिए मैंने बस राजकुमार जी का साथ दिया...
पिनाक - लड़की... तुमने क्या कर दिया... हमें यह मंगनी मंजुर नहीं है...
सस्मीता - क्यूँ अंकल जी.. क्यूँ...
पिनाक - हमें तुम मंजुर थीं... पर तुम्हारी जगह यह... नहीं हरगिज नहीं...
सस्मीता - ओ... मेरी जगह आपको यह पसंद नहीं... पर आप मुझे मुझे इसकी जगह देख सकते हैं...
पिनाक - इसकी कोई जगह ही नहीं बनती...
सस्मीता - पर मेरे लिए तो है... बचपन से... मैं सामल घर की इकलौती रही हूँ... अकेली रही हूँ... पहली रही हूँ... तो मैं दुसरी कैसे बन सकती थी... यह विवाह का मामला है... जीवन भर साथ रहने.. जीने मरने की बात है... राजकुमार जी किसीसे प्यार कर रहे हैं... मैं उसकी जगह लेकर उनकी जिंदगी में दुसरी तो नहीं बन सकती थी ना...

कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है l पिनाक बड़ी मुश्किल से अपना चेहरा घुमा कर भैरव सिंह की ओर देखता है तो पाता है भैरव सिंह बाहर की ओर जा रहा था और उसके पीछे पीछे बल्लभ भागते हुए चला जा रहा था l पिनाक की चेहरे का रंगत पुरी तरह से उड़ चुका था l पिनाक सारे लोगों को हाथ जोड़कर इशारे से जाने के लिए कहता है l लोग परिस्थिति को भांप कर वहाँ से चले जाते हैं l

पिनाक - (सस्मीता से) लड़की... यह तुमने हमारे साथ ठीक नहीं किया... हमारे अहं पर चोट मारी है तुमने...
वीर - जो भी हुआ है उसका जिम्मेदार मैं हूँ... उस बिचारी को क्यूँ धमका रहे हैं...
सस्मीता - अंकल जी... अहंकार... गुरुर... सिर्फ आपकी जागीर नहीं है.. हम भी पालते हैं... वह टनों के हिसाब से... जैसा कि मैंने पहले ही कहा... मुझे दुसरी होना मंजुर नहीं है... इसलिए मैंने राजकुमार जी का साथ दिया...
निर्मल - पर बेटी किसी अंजान लड़की के लिए... तुमने अपना भविष्य खराब करदिया.. यह तुमने ठीक नहीं किया बेटी...
सस्मीता - (निर्मल से) डैडी... मुझे सिर्फ एक बात का जवाब दीजिए... राजकुमार जी के बारे में... क्या आपको जानकारी थी... (निर्मल का सिर झुक जाता है) आपने मेरे साथ ठीक नहीं किया डैडी... चलिए मम्मी...

अपनी माँ को लेकर सस्मीता वहाँ से चली जाती है l निर्मल सामल भी झुके सिर के साथ उनके पीछे पीछे चला जाता है l वहाँ से रॉकी भी अपने साथियों को लेकर निकल जाता है l बाकी जो मौजूद थे सभी क्षेत्रपाल परिवार के सदस्य ही रह गए थे l सबकी ध्यान पिनाक की ओर जाता है l पिनाक अंदर ही अंदर गुस्से से उबल रहा था l उसकी आँखें बंद थी, अचानक वह अपनी आँखे खोलता है जो किसी भट्टी की अंगार की तरह दहक रही थी l खा जाने वाली नज़रों से पिनाक अनु को देखता है l अनु वीर के पीछे वीर की हाथ को जोर से पकड़ कर खड़ी रहती है l पर अनु की आँखों में डर लेश मात्र नहीं था l यह देख कर पिनाक सुषमा के पास जाता है और उसे एक थप्पड़ मार देता है l थप्पड़ के प्रभाव से सुषमा कुछ दुर हट कर गिर जाती है l शुभ्रा और रुप दोनों "माँ" चिल्ला कर उसे उठाते हैं l पिनाक सुषमा के पास आकर

पिनाक - कमिनी... (वीर की ओर इशारा करते हुए) यह मेरा औलाद नहीं हो सकता... यह किस हराम की औलाद है...
विक्रम - छोटे राजा जी... यह क्या बहकी हुई बात कर रहे हैं...
वीर - मर्दों वाली बात रही नहीं तो नामर्दों की तरह... औरतों पर जोर दिखा रहे हैं...
पिनाक - तु चुप कर कमबख्त... अब मेरी आखिरी बात का जवाब दे... तुझे क्षेत्रपाल बने रहना है या नहीं...
वीर - क्यूँ क्षेत्रपाल बने रहने के लिए क्या करना पड़ेगा...
पिनाक - तुझे मेरी कही हुई लड़की के साथ शादी करनी होगी... अगर तूने इस लड़की को नहीं छोड़ा... तो तेरा... क्षेत्रपाल खानदान से कोई रिश्ता नहीं रह जाएगा...
वीर - अच्छा... (अपने पीछे से अनु को अपने साथ खड़ा कर) और इसका क्या होगा...
पिनाक - इसका वही होगा... जो शादियों से क्षेत्रपाल के मर्द करते आए हैं... इसे अपने पास रखो और रोज खेलो...
वीर - (चिल्लाते हुए) छोटे राजा जी...
पिनाक - हाँ... इसे अपना रखैल बनाकर रखो... ना इसकी जात है... ना औकात...
वीर - यह कह कर आपने भी अपनी जात और औकात बता दी है... नाम और पहचान से बड़े... मगर सोच बहुत ही छोटी.. ओछी और गिरी हुई... छोटे राजा जी
पिनाक - मत कहो मुझे छोटे राजा... अब तुमने मुझे कहाँ छोटे राजा बने रहने दिया.. अब तो खुद को हम कहने लायक भी नहीं छोड़ा तुमने... अब फैसला तुम्हारा... तुम इस खानदान से जुड़े रहना चाहते हो... या..
अनु - (वीर की हाथ पकड़ कर) चलिए हम यहाँ से चले जाते हैं...
पिनाक - ऐ... ऐ... ऐ लड़की... तेरी यह हिम्मत... (कहते हुए अनु की तरफ बढ़ने लगता है, तो वीर उसके सामने आ जाता है) झुका... झुका अपनी नजर... (पर अनु की नजरें नहीं झुकती, जो पिनाक की अंदर की गुस्से को और भी भड़का देती है) कामिनी दो कौड़ी की लौंडी... मुझसे नजर मिला रही है... गुस्ताख... झुका अपनी नजर... तेरी इतनी हिम्मत...
वीर - हाँ... है तो उसमें बहुत हिम्मत... (हैरानी से वीर की ओर पिनाक देखता है) अनु की हिम्मत मैं हूँ... उसका गुरुर मैं हूँ... उसकी यकीन मैं हूँ... क्यूंकि उसका वज़ूद... मैं ही हूँ...
Awesome Update 😍
 

parkas

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303
👉एक सौ छत्तीसवाँ अपडेट
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भुवनेश्वर एयर पोर्ट से क्षेत्रपाल एंड कम्पनी बाहर आती है l बाहर गाड़ियों के साथ बल्लभ इन सबकी इंतजार में था l भैरव सिंह अपनी गाड़ी के पास जाकर गाड़ी में बैठ जाता है l पिनाक उसके पास आकर खड़ा होता है l

भैरव - क्या आप हमारे साथ बारंग रिसॉर्ट जाना चाहेंगे...
पिनाक - नहीं राजा सहाब... हम प्रधान के साथ... सब ठीक कर लेने के बाद... शाम की पार्टी में बुलाने के लिए आयेंगे...
भैरव - ठीक है... हम प्रतीक्षा करेंगे...

भैरव सिंह की गाड़ी वहाँ से निकल जाता है l पिनाक उसे जाते हुए देखता है l उसे महसूस होता है कि उसके बगल में बल्लभ और विक्रम खड़े हैं l

विक्रम - आपका प्लान क्या है छोटे राजा जी...
पिनाक - (बल्लभ से) जाओ प्रधान गाड़ी लाओ... (विक्रम से गाड़ी में बात करते हैं...

बल्लभ इशारा करता है एक बड़ी गाड़ी आकर उसके आगे रुकती है l बल्लभ आगे ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठ जाता है विक्रम और पिनाक पीछे वाली सीट पर बैठ जाते हैं l

पिनाक - ड्राइवर... गाड़ी को द हैल ले चलो... (ड्राइवर गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ा देता है) हाँ तो प्रधान... अब मुझे स्थिति के बारे में जानकारी दो...
बल्लभ - राजा सहाब... मेरी जानकारी के मुताबिक... लड़की को दया नदी के रास्ते... डिपोर्ट कर दिया गया है... बस्ती के लोग पुलिस को शाम तक रोके रखेंगे... जब तक पुलिस बस्ती के अंदर घुस कर लड़की को ढूँढेगी... उनके हाथ कुछ नहीं लगेगा...
पिनाक - ह्म्म्म्म... और मीडिया... उसका क्या...

जवाब में बल्लभ गाड़ी के भीतर ही रूफ पर लगे एक एलसीडी को निकाल कर ऑन कर देता है l उसमें नभवाणी चैनल पर न्यूज चल रहा था l न्यूज सुप्रिया पढ़ रही थी l

" वाव की महिलाएँ अनु की दादी को लेकर अभी भी एडवोकेट प्रतिभा जी के नेतृत्व में कमिश्नरेट के बाहर धरने पर बैठीं हुई हैं l रात भर पुलिस हाथ पैर मारती रही पर कहीं भी अनु की कोई खबर नहीं मिली है l इधर विपक्ष के नेता भी मैदान में कुद चुके हैं l ऐसा प्रतीत हो रहा है अनु की गुमशुदगी सरकार व प्रशासन पर भारी पड़ने वाली है l
हमारी सूत्रों से प्राप्त खबर के अनुसार पुरी रोड पर स्थित सुंढी साही बस्ती में दंगा भड़क गया है, जिसे नियंत्रित करने के लिए भारी पुलिस बल को सुंढी साही बस्ती की ओर भेज दिया गया है l दंगे के कारण पुरी जाने वाली राज मार्ग को बंद कर दिया गया है l अभी तक दंगे का कारण पता नहीं चल पाया है l यह सब देखकर विपक्ष के नेता पुछ रहे हैं इस राज्य में क्या हो रहा है "

बल्लभ न्यूज को बंद कर एलइडी स्क्रीन को रूफ टॉप पर वापस लगा देता है l

बल्लभ - जैसा कि आपने देखा... मीडिया... इस मामले में पुरी तरीके से अंधेरे में है...
पिनाक - गुड... बहुत अच्छा मेंटेन किया है तुमने...
बल्लभ - राजकुमार की कोई खबर...
बल्लभ - आई एम सॉरी... उनके बारे में मेरे पास कोई जानकारी नहीं है...

पिनाक के जबड़े भिंच जाते हैं l एक गहरी साँस छोड़ते हुए सवालिया नजर से विक्रम की ओर देखने लगता है l विक्रम उसके मन की आशय को समझ जाता है

विक्रम - नहीं छोटे राजा जी... वीर ने मुझसे किसी भी तरह का कॉन्टेक्ट नहीं किया है...
पिनाक - हम जानते हैं... हम राजकुमार ने आपसे किसी भी तरह से संपर्क नहीं किया होगा..
विक्रम - फिर... आप वीर के बारे में प्रधान से पूछने के बाद... मेरी तरफ क्यूँ देख रहे थे...
पिनाक - बात तजुर्बे की है युवराज... ज़माने को देखने के लिए... तजुर्बे की चश्मा चढ़ानी पड़ती है... हमें खुद पर भरोसा रहता है... दुश्मन को अपने सामने गिनते भी नहीं है... पर आपने जिस तरह से... उस हरामजादे विश्वा की बात कही... थोड़ा शक तो होने ही लगा था... कहीं राजकुमार उस लड़की तक पहुँच तो नहीं गए...
विक्रम - आपने सच कहा... बात तजुर्बे की है... आप अपनी तजुर्बे की चश्मे से दुनिया को देखते हैं... और हम अपनी...
पिनाक - हाँ... और दुश्मन को देखने और पहचानने की नजरिया हमारी आपसे बेहतर है... (विक्रम चुप रहता है) कल आपने जिस तरह से बात रखी थी... हमें लगा था... राजकुमार कामयाब हो जाएंगे... पर आप गलत निकले...
विक्रम - रात को मंगनी भी है... आपकी जीत तभी मुकम्मल होगी... जब वीर मंगनी करने आएगा... अभी तक वीर की कोई ख़बर भी तो नहीं है...

इस बार पिनाक चुप हो जाता है l दांत पिसते हुए विक्रम की ओर देखता है l गाड़ी इतने में हैल की परिसर में प्रवेश करती है l गाड़ी के रुकते ही कुछ गार्ड्स भागते हुए आते हैं और दरवाजा खोलते हैं l विक्रम तो उतर जाता है पर पिनाक जो कुछ सोच में खोया हुआ था उतरता नहीं है l उसे विक्रम आवाज देता है

विक्रम - छोटे राजा जी...
पिनाक - (ख़यालों से वापस आते हुए) हुँम्म्म्म.......
विक्रम - हम हैल में आ गए...
पिनाक - ओ...

पिनाक गाड़ी से उतरता है l विक्रम और पिनाक दोनों आगे आगे चलते हैं पीछे पीछे बल्लभ चलता है l बैठक में पहुँचने के बाद पिनाक बल्लभ को वहीँ रुकने के लिए कह कर अंदर हॉल में आता है l देखता है घर की तीनों औरतें बैठीं हुई हैं l पिनाक को देखते ही तीनों उठ खड़े होते हैं l शुभ्रा भागते हुए आती है पिनाक की पैर छूती है l पिनाक शुभ्रा को इग्नोर करते हुए सुषमा के पास जाता है और उसके सामने खड़ा हो जाता है l पिनाक सुषमा की चेहरे पर गौर करने लगता है l

सुषमा - ऐसे क्या देख रहे हैं छोटे राजा जी...
पिनाक - हमें आपसे कुछ जानना है...
सुषमा - तो पूछिये...
पिनाक - (अपनी भवें सिकुड़ कर) राजकुमार कहाँ हैं...
सुषमा - हम नहीं जानते...
पिनाक - हूँम्म्म्म्म.... क्या आपकी उनसे बात नहीं हुई है अब तक...
सुषमा - नहीं...
पिनाक - क्यूँ...
सुषमा - राजकुमार ने बताया नहीं...
पिनाक - आपने पुछा नहीं...
सुषमा - क्षेत्रपाल मर्द घर कब आते हैं... कब जाते हैं यह पूछने का हक है हमें...
पिनाक - माँ हैं आप उनकी...
सुषमा - और आप... आप पिता हैं उनके...
पिनाक - इसलिए तो हम अपना फर्ज अदा कर रहे हैं... उनकी विवाह निश्चित कर...
सुषमा - उनकी मर्जी जाने वगैर...
पिनाक - मर्जी... कैसी मर्जी... क्षेत्रपाल की आन बान और शान के आगे किसीकी भी मर्जी मायने नहीं रखती...
सुषमा - यह बात समझाया भी जा सकता था...
पिनाक - समझा दिया है और एहसास भी हो जानी चाहिए...
सुषमा - आपने जो किया... जो भी किया... वह पहले हमें आगाह कर देते...
पिनाक - क्यूँ... क्या कर लेतीं आप... और आप होती कौन हैं... जिसे हम खबर कर देते... (थोड़ी देर के लिए सुषमा चुप हो जाती है) क्यूँ सांप सूँघ गया...
सुषमा - हम... राजकुमार को समझाते...
पिनाक - हाँ बिल्कुल वैसे ही... जैसे माली साही बस्ती में जाकर... उस दो कौड़ी लड़की को कंगन पहनाने की तरह...

वहाँ पर खड़े सब के सब सन्न रह जाते हैं l पिनाक सबके चेहरे पर एक नजर दौड़ाने के बाद कहता है

पिनाक - हम जानते हैं.... राजकुमार की इस ओछी हरकत में... आप सबकी सहमती है... शुक्र कीजिए... हमने यह बातें राजा साहब से किया नहीं है... हम बस यह कहने यहाँ आए हैं... आज आप सब सिम्फनी होटल में शाम सात बजे तक राजकुमार जी को लेकर आ जाइए... कैसे किस हाल में... हमें कोई मतलब नहीं है... बस मंगनी के वक़्त वहाँ पर राजकुमार मौजूद रहना चाहिए वह भी चेहरे पर हँसी खुशी लिए....

इतना कह कर पिनाक वहाँ से निकल जाता है l पीछे सभी को गहरी सोच में छोड़ कर l

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सुबह के नौ बज रहे थे l कमिश्नरेट के मुख्य गेट के बाहर रोड के दूसरे किनारे पर एक शामियाना के नीचे दादी बैठी हुई थी और उसके बगल में प्रतिभा बैठी हुई थी l रात भर तकरीबन डेढ़ सौ के करीब औरतें इनके साथ धरने पर बैठीं हुई हैं l गेट के बाहर और धरने पर बैठीं महिलाओं को घेर कर बड़ी तादात में पुलिस बल तैनात थी l घेराव के बाहर कुछ न्यूज चैनल वाले अपनी अपनी रिपोर्ट देने की तैयारी कर रहे थे l पुलिस मुख्यालय की किसी भी कार्यवाही में बाधा न पहुँचे इसलिए कमीश्नरेट की गेट के पास कोई घेराव नहीं था l ऐसे में नभवाणी चैनल की बड़ी सी न्यूज ट्रांसमिशन वैन पहुँचती है l उसमें से सुप्रिया रथ उतर कर धरने पर बैठे औरतों के पास जाती है l एक किनारे पर प्रतिभा किसी से फोन पर बात कर रही थी l उसकी बात ख़तम होते ही जैसे ही मुड़ती है सामने सुप्रिया दिखती है l सुप्रिया उसे नमस्कार करती है l जवाब में प्रतिभा अपना सिर हिला कर अभिवादन स्वीकार करती है l जैसे ही प्रतिभा महिलाओं के सामने दादी के पास बैठ जाती है, सुप्रिया दादी के सामने आकर दादी को प्रणाम करते हुए कहती है

सुप्रिया - दादी.. हम आपकी एक इंटरव्यू लेना चाहते हैं... (अपनी ट्रांसमिशन गाड़ी दिखाते हुए) वह हमारी मोबाइल स्टुडियो है... उसके भीतर कुछ देर के लिए...
दादी - नहीं... मैं कहीं नहीं जाऊँगी... मुझे मेरी पोती चाहिए...
सुप्रिया - (प्रतिभा से) आंटी जी... कम से कम आप समझाइए... दादी की यह बाइट बहुत इम्पोर्टेंट है...
प्रतिभा - (दादी की कंधे पर हाथ रखकर) माँ जी यह ठीक कह रही है... आपकी लड़ाई लड़ने के लिए... हम सब यहीं हैं...
दादी - नहीं नहीं... मैं नहीं जाऊँगी...
प्रतिभा - ठीक है चलिए... मैं भी चलती हूँ आपके साथ...

बड़े मनाने के बाद दादी तैयार होती है और प्रतिभा के साथ ट्रांसमिशन वैन में चली जाती है l एक छोटा कमरे जैसे था और उसके अंदर कुछ कुछ सोफ़े पडी हुईं थीं l पीछे दीवार पर हरे रंग की स्क्रीन लगी हुई थी l दादी को लेकर सुप्रिया सोफ़े पर बिठा देती है l वैन के दुसरे सिरे पर दरवाजा खुलती है, पहले एएसपी सुभाष सतपती निकलता है उसके पीछे विश्व, उनके पीछे वीर और अनु निकलते हैं l अनु को देखते ही दादी हैरान और खुशी के मारे सोफ़े से उछल पड़ती है l अनु भागते हुए अपनी दादी की गले लग जाती है l

दादी - अनु.. यह तु ही है ना... कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही हूँ...
अनु - हाँ दादी मैं ही हूँ...
वीर - दादी... जैसा कि मैंने तुम्हें वादा किया था... देख लो... अनु सही सलामत है...

दादी अनु को छोड़ वीर के गले लग जाती है और बहुत जोर से रोने लगती है l अनु उसे संभालते हुए दिलासा देने लगती है और चुप होने के लिए कहती है l दादी की रोना धीरे धीरे सिसकियों में बदलने लगती है l

वीर - (दादी को अपने से अलग करते हुए) दादी... जो हुआ... उसके लिए जो चाहो सजा दे सकती हो...
दादी - क्या सजा दूँ दामाद जी आपको.... जब रानी साहिबा ने इसे कंगन पहना कर बहु मान लिया... तब मेरा इस पर हक कहाँ रह गया था... पर हाँ झूठ नहीं कहूँगी... कल से अब तक डर रही थी... आखिर दादी हूँ मैं इसकी... ऊपर जा कर इसके बाप को मुहँ भी तो दिखाना है...
अनु - ऐसी बातेँ क्यूँ कर रही हो दादी...
दादी - कह लेने दे मुझे कह लेने दे... डर इसलिये गई थी... कहीं सपना और ख्वाहिश औकात से बड़ी तो नहीं ही गई... पर... (वीर की बाहों को पकड़ कर हिलाते हुए) आज दामाद जी ने यकीन दिला दिया... मेरी अनु को अब कोई खतरा नहीं है... (दादी अनु की हाथ लेकर वीर के हाथ में देते हुए) लो दामाद जी... अब यह बोझ भी हल्का कर दो... मुझे चिंता मुक्त कर दो..
वीर - हाँ दादी... तुमसे वादा करता हूँ... मैं अनु से जल्द ही शादी करूँगा...

दादी के कंधे पर प्रतिभा हाथ रखती है l तब दादी प्रतिभा की ओर मुड़ती है और उसके गले लग कर कहने लगती है

दादी - पता नहीं आपको मैं कैसे धन्यवाद कहूँ...
प्रतिभा - मैंने कुछ नहीं किया... कुछ भी नहीं किया... क्या करूँ... (विश्व को दिखाते हुए) यह जो है ना... मेरा बेटा... इसने जो कहा जैसा कहा बस मैंने किया... इसके खातिर...
वीर - (विश्व के पास जाकर) हाँ दादी... आज अगर यह ना होता... तो मैं तुम्हें मुहँ दिखाने लायक न होता...

दादी विश्व के आगे जाकर हाथ जोड़ देती है l

विश्व - यह क्या कर रही हैं आप दादी... मैंने जो भी किया वह सब अपने दोस्त के लिए और... बहन मानता हूँ अनु को... उसके लिए... और मैं अकेला कहाँ था... (सुभाष को दिखा कर) यह और... (सुप्रिया को दिखा कर) यह भी तो साथ दिए... तभी हम अनु को ढूँढ पाए...

दादी घूमते हुए सबको हाथ जोड़ कर अपनी आँखों से कृतज्ञता जताती है l वीर दादी को सोफ़े पर बिठा कर पानी पिलाने के लिए अनु से कहता है l अनु वैसा ही करती है l

सुप्रिया - तो... अब क्या हुआ डिटेल में बताओ.. और आगे क्या करेंगे... क्या प्लान है...
विश्व - सुप्रिया जी... क्या हुआ सब आपको सुभाष जी बतायेंगे... और आगे क्या करना है... वीर जैसा कहेगा.. हम वैसे ही आगे बढ़ेंगे...
सुभाष - हमने तक़रीबन तीस अरेस्ट कर लिया है... पर शाम तक अरेस्ट नहीं दिखाएंगे...
सुप्रिया - क्यूँ..
सुभाष - उनमें से कुछ एक ही हालत खराब है... इलाज चल रहा है... सीक्रेटली...
सुप्रिया - ओह... पर पुरी एनएच तो अभी भी जाम है... (कुछ समझते हुए) अच्छा तो शाम को सड़क खुलेगा...
सुभाष - हाँ...
सुप्रिया - और शाम तक यह सीन चलाना पड़ेगा...
सुभाष - हाँ... शाम को ही हम मुजरिमों की गिरफ्तारी दिखा सकते हैं.... और इंट्रोगेट कर पाएंगे...
वीर - इंट्रोगेट करना क्या है... (दादी की तरफ़ देख कर थोड़ी धीमी आवाज में) आप सबको तो मालुम है.. इसके पीछे कौन है...
विश्व - हाँ... पर कुछ नहीं कर सकते... वह क्रिमिनल थर्ड पार्टी से हैं... फर्स्ट और थर्ड के बीच सेकेंड होता है.. उस सेकेंड पार्टी को ढूंढना होगा...
सुभाष - विश्व सही कह रहा है वीर... हमें थोड़ी सावधानी बरतने की जरूरत है.. वर्ना उनके गिरेबां पर हाथ रखने की छोड़ो... हम उनके पास फटक भी नहीं सकते...

थोड़ी देर के लिए वैन में शांति छा जाती है l इतनी देर से शांत खड़ी प्रतिभा, शांति को तोड़ते हुए पूछती है

प्रतिभा - ठीक है... वह सब कानूनी प्रक्रिया है... फिलहाल के लिए तुम लोग करना क्या चाहते हो...
सुप्रिया - हाँ एकजाक्टली मैं भी यही पुछ रही हूँ...
विश्व - इस वक़्त... अनु के बारे में सभी अंधेरे में रहें तो ठीक है... शाम तक.... सतपती जी गिरफ्तारी दिखाएंगे और मीडिया को खबर करेंगे...
सुप्रिया - तब तक धरने का क्या... और अनु और वीर कहाँ जायेंगे...
सुभाष - अभी कुछ देर बाद... कमीश्नरेट के अंदर से... कुछ ऑफिसर आयेंगे... मैडम सेनापति जी से वार्तालाप करेंगे... उसे आप टीवी पर लाइव प्रसारण करेंगे... आज रात की मोहलत मांगी जाएगी... प्रदर्शन करीयों से... जिसे मैडम स्वीकार करेंगी...
सुप्रिया - ठीक है... समझ गई... क्या यह सब कमिश्नर जानते हैं...
सुभाष - नहीं... मैं खुद अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर यह सब संभाल लूँगा...
सुप्रिया - वाव... आई एम इम्प्रेस्ड... और दादी जी...
सुभाष - इन्हें मैं... इनके घर में छोड़ दूँगा... (दादी से) हाँ दादी जी... शाम तक आपको खुदको संभालना होगा... जब तक... अनु फिरसे आपके पास वापस नहीं आ जाती...
दादी - क्यूँ... अब अनु कहाँ जाएगी...
वीर - दादी... आज शाम तक अनु मेरे साथ रहेगी... फिर देर शाम तक मैं और अनु दोनों आपके पास.. आपके साथ होंगे... और हाँ... आज रात का खाना भी आपके साथ होगी...
दादी - (खुश हो जाती है) ठीक है दामाद जी...
वीर - (आगे बढ़ कर दादी के पैर के पास बैठते हुए) दादी... अब चाहे कुछ भी हो जाए... आज दुनिया को मालुम हो जाएगा... वीर सिंह क्षेत्रपाल की शादी कल अनु से होगी...

दादी वीर के चेहरे पर हाथ फ़ेर कर दुआएँ देने लगती है और बलाएँ लेने लगती है l

प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तो माँ जी... चले पहले धरने पर...
सुभाष - हाँ दादी... आप अभी धरने पर जाइए... मैं खुद आपको बस्ती में छोड़ने जाऊँगा...

प्रतिभा और दादी नभवाणी के ट्रांसमिशन वैन से उतर कर धरने पर जाते हैं l इतने में छुपते हुए वीर और अनु वैन से सटे एक गाड़ी में बैठ कर चले जाते हैं l सुप्रिया अपने कैमरा मेन को लेकर धरने के पास पहुँच कर रिपोर्टिंग शुरु कर देती है l इतने में कमीश्नरेट से कुछ ऑफिसर वार्ताकार बन कर धरने के पास आते हैं, प्रतिभा और दादी से बात करते हैं l प्लान के अनुसार प्रतिभा और दादी धरना स्थगित करने के लिए राजी हो जाते हैं l सुभाष सतपती दादी को लेकर वहाँ से चला जाता है l धरने पर बैठे औरतों को प्रतिभा धन्यवाद कर विदा करती है l सभी जाने के बाद विश्व को लेकर प्रतिभा अपनी गाड़ी के पास जाती है और विश्व को बिठा कर उस जगह से निकल जाती है l

प्रतिभा - (गाड़ी चलाते हुए) खुश लग रहा है...
विश्व - हँ... क्या... कहा तुमने..
प्रतिभा - यही की... खुश तो है ना तु...
विश्व - हाँ... माँ बहुत... और थैंक्यू...
प्रतिभा - ऐ... झापड़ मारूंगी समझा...
विश्व - माँ किसी गैर के लिए कौन इतना करता है... ना तो अनु से तुम्हारी कोई जान पहचान है... ना ही वीर से कोई रिश्ता...
प्रतिभा - मुझसे ना सही... तुझसे तो है... वैसे... खुश तु किसके लिए है...
विश्व - मैं समझा नहीं...
प्रतिभा - वीर की जीत पर... या क्षेत्रपाल की हार पर...
विश्व - ओ... तो यह है तुम्हारा सवाल... ओविऔसली वीर के लिए माँ...
प्रतिभा - क्यूँ... क्षेत्रपाल की हार से नहीं...
विश्व - यह क्षेत्रपाल की हार नहीं है माँ... यह बस एक झटका है... जो उसे उसके खून ने दिया है...
प्रतिभा - हाँ पर कंधा तो तुम्हारा है ना...
विश्व - वह दोस्ती का हक था माँ...
प्रतिभा - वैसे... क्या प्लान है वीर का... आज शाम के लिए...
विश्व - तेरी कसम माँ... नहीं जानता...
प्रतिभा - क्यूँ... तुझे नहीं बताया... आज शाम को क्या करने वाला है...
वीर - नहीं... नहीं... पर आगे की लड़ाई उसकी निजी है... मैं बस तब उसके साथ होऊंगा... जब जब वह आवाज देगा... बुलाएगा...

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सिम्फनी होटल आज आम लोगों के लिए बंद था l क्यूंकि आज होटल की मुख्य फंक्शन हॉल में विशेष कार्यक्रम होना था l निर्मल सामल होटल के एंट्रेंस पर खड़े अपने अतिथियों का स्वागत कर रहा था l कुछ देर बाद पिनाक की गाड़ी पहुँचती है l पिनाक जैसे ही गाड़ी से उतरता है निर्मल सामल उसके पास आता है और उसका अभिवादन करता है l दोनों मिलकर अंदर जाते हैं l

निर्मल - क्या बात है छोटे राजा जी... आप के चेहरे पर रौनक नहीं दिख रही है...
पिनाक - हम अपने परिवार वालों को ढूँढ रहे हैं...
निर्मल - ओ... चिंता ना करें... वह लोग जल्दी ही आ जाएंगे...
पिनाक - (थोड़ी हैरानगी के साथ) मतलब...
निर्मल - ओह... लगता है आप को पता नहीं है...
पिनाक - क्या... क्या पता नहीं है...
निर्मल - आज दो पहर को... दामाद जी घर पर आए थे... बेशक मैं उस वक़्त घर पर नहीं था... पर दामाद जी मेरी बेटी सस्मीता से बात किए... उसके बाद वह चले गए... उनके जाने के बाद... मेरी बेटी भी खुशी खुशी यहाँ मंगनी के लिए आई है....
पिनाक - (भवें सिकुड़ कर कुछ सोचते हुए) क्या... राजकुमार आपकी बेटी से मिलने आए थे...
निर्मल - जी...
पिनाक - क्या हम आपकी बेटी से बात कर सकते हैं...
निर्मल - हाँ हाँ क्यूँ नहीं... आप ही की बेटी है अब... ब्राइड रूम में होगी... चलिए...
पिनाक - नहीं आप नहीं... हम बात करना चाहते हैं... अगर आपको बुरा न लगे तो...
निर्मल - इसमें बुरा लगने वाली क्या बात है... आप जाइए... मैं मेहमानों का आव भगत देखता हूँ...

इतना कह कर निर्मल वहाँ पिनाक को छोड़ कर बाहर चला जाता है l पिनाक कुछ देर यूहीं खड़े खड़े सोचते हुए ब्राइड रूम की तरफ़ जाता है l दरवाजे पर पहुँच कर दस्तक देने लगता है l थोड़ी देर बाद दरवाजा खुलता है l अंदर एक लड़की बाहर आती है पिनाक को देख कर

लड़की - जी कहिये...
पिनाक - हम... पिनाक सिंह क्षेत्रपाल...
लड़की - जी नमस्ते अंकल...
पिनाक - हम... अपनी होने वाली बहु से कुछ बात करना चाहते हैं...
लड़की - जी ज़रूर... मैं उन्हें ख़बर करती हूँ...

इतना कह कर लड़की अंदर चली जाती है और कुछ देर बाद बाहर आकर पिनाक सिंह को अंदर बुलाती है l पिनाक उस लड़की के साथ अंदर जाता है तो देखता है सस्मीता अपनी सहेलियों से घिरी एक गद्दे के बीचों-बीच बैठी हुई है l सस्मीता अपनी जगह से उठती है और आगे आकर पिनाक की पैर छूती है l पिनाक अपनी जेब से कुछ नोट निकाल कर सस्मीता के सिर पर घुमा कर उसकी सहेलियों को दे देता है l

सस्मीता - जी कहिये... आप हमसे क्या बात करना चाहते थे...
पिनाक - (हिचकिचाते हुए) वह... बात... दरअसल...
सस्मीता - (बात को समझते हुए, अपनी सहेलियों से) क्या आप लोग कुछ देर के लिए हमें अकेला छोड़ सकते हैं... (उसकी सारी सहेलियाँ बाहर चलीं जाती हैं) हाँ... अब कहिये...
पिनाक - हम कहने नहीं... कुछ पूछने आए हैं...
सस्मीता - जी पूछिये...
पिनाक - क्या आज दुपहर को... राजकुमार आपसे मिलने आए थे...
सस्मीता - जी आए थे...
पिनाक - बुरा मत मानिएगा बेटी जी... आपसे उनकी क्या बातेँ हुईं...
सस्मीता - कुछ नहीं... बस मेरी मंजूरी जानी... उसके बाद इतना कहा... शाम को वह आयेंगे... अपने परिवार के साथ... और मंगनी जरुर करेंगे...
पिनाक - (थोड़ा खुश हो कर) क्या... राजकुमार... मंगनी करेंगे ऐसा कहा...
सस्मीता - हाँ...
पिनाक - ओह... जुग जुग जियो बेटी.... जुग जुग जियो... हम बाहर जाकर बाकी रस्मे देखते हैं...

इतना कह कर अंदर ही अंदर बहुत खुश होते हुए कमरे से बाहर निकालता है और फंक्शन हॉल के बाहर जाकर निर्मल के बगल में खड़ा हो जाता है l अपने पास पिनाक को देख कर निर्मल बहुत आश्चर्य और खुश भी होता है l गिने चुने ही सही पर विशेष अतिथि आ रहे थे जिनको दोनों मिल कर स्वागत कर रहे थे l कुछ देर बाद विक्रम की गाड़ी आकर रुकती है उसमें से विक्रम के साथ सुषमा, शुभ्रा और रुप उतरते हैं l वीर को गायब देख कर पिनाक के चेहरे की रंगत उड़ जाती है l जैसे ही चारों इन दोनों के पास पहुँचते हैं

निर्मल - आइए... समधन जी... दामाद जी.... (रुक जाता है)
पिनाक - (दबे सुर में दांत पिसते हुए) राजकुमार आए नहीं...

तभी चर्र्र्र्र् करती हुई एक गाड़ी आकर रुकती है l उसमें से वीर अकेला उतरता है l अपनी माँ और भाई बहन के पास आकर

वीर - सॉरी... सॉरी.. वेरी सॉरी... वह मैं... मेंन्स पार्लर में से सीधे आ रहा हूँ...
निर्मल - ओ हो हो हो... कोई नहीं... आखिर आज आप ही का दिन है... जाइए आप अंदर जाइए... ग्रूम्स रुम में...
वीर - जी जरुर...

इतना कह कर अपनी माँ भाई बहन और भाभी को साथ लेकर अंदर चला जाता है l जो रौनक पिनाक के चेहरे से उड़ गई थी वह दुबारा वापस लौट आती है l

निर्मल - समधी जी... राजा साहब जी को फोन कर दीजिए... सब आ गए... रस्म पुरा करते हैं...
पिनाक - जी जरुर...

पिनाक अपना फोन निकाल कर बल्लभ को फोन लगाता है l बात खत्म होते ही निर्मल से कहता है

पिनाक - अभी थोड़ी ही देर में पहुँच रहे हैं...

थोड़ी देर बाद सफेद रंग की बड़ी सी चमचमाती हुई रॉल्स रोएस आकर रुकती है l दोनों भागते हुए गाड़ी के पास जाते हैं, तब तक बल्लभ गाड़ी से उतर कर डोर खोल देता है l गाड़ी से भैरव सिंह उतरता है l उसे स्वागत करते हुए सभी फंक्शन हॉल में दाखिल होते हैं l हॉल में सभी मेहमान हल्की म्युजिक के साथ मॉकटेल एंजॉय कर रहे थे l जैसे ही भैरव सिंह दाखिल होता है म्युजिक बंद हो जाता है और सबका ध्यान भैरव सिंह की ओर चला जाता है l भैरव सिंह के पास लॉ मिनिस्टर विजय जेना भागते हुए जाता है हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाता है पर जैसे ही भैरव सिंह की चेहरे पर गुरुर और रौब देखता है उसकी अंदर तक फट जाती है l धीरे से सिर झुका कर किनारे हो जाता है l बस इतना सा सीन पुरे हॉल में मरघट सी खामोशी ला देती है l भैरव सिंह का रास्ता बनाते हुए निर्मल एक आलिशान कुर्सी पर बिठाता है और इशारे से इवेंट मैनेजर को प्रोग्राम चालू करने के लिए कहता है l इवेंट मैनेजर कोई और नहीं रॉकी था l आखिर होटल उसकी जो थी l

रॉकी - सभी मेहमानों का स्वागत करते हैं... मैं रॉकी... आज का इवेंट और स्टेज मैनेज मेंट दोनों मेरे जिम्मे है... राजा साहब जी के आ जाने से इस महफिल की कसर अब पूरा हो गया है... जैसा कि आप आज जानते हैं... आज दो बड़े दिग्गज परिवार के बीच रिश्ता बनने जा रही है... क्षेत्रपाल खानदान के चश्म ओ चराग राजकुमार जी का मंगनी सामल ग्रुप के मालिक श्री निर्मल सामल जी की इकलौती सुपुत्री के साथ होने जा रही है... (सभी मौजूद लोग तालियां बजाने लगते हैं) तो स्टेज पर पहले मैं... आज के शाम के नायक... राजकुमार वीर सिंह क्षेत्रपाल जी को बुला रहा हूँ...

ग्रूम वाली रुम से निकल कर वीर रुप और सुषमा के साथ स्टेज पर आ कर खड़ा हो जाता है l आज वाकई वीर बहुत ही सुंदर दिख रहा था l

रॉकी - हमने आज की इवेंट को स्पेशल करने के लिए... सामल परिवार की चांद को... चांद की झूले के सहारे स्टेज पर लाने के लिए... एक खास व्यवस्था की है...

हॉल की सारी लाइटें बुझ जाती हैं l एक स्पॉट लाइट स्टेज की छत पर पड़ती है l चांद की आकर की झूले के बीच सफेद चमकीली लहंगा चोली और सिर पर घूंघट लिए धीरे धीरे सस्मीता उतरती है l फिर स्टेज पर सस्मीता की माँ आ जाती है l फिर पूरा हॉल में लाइट वापस आ जाती है l लाइट के आते ही सभी लोग तालियां बजाने लगते हैं l

रॉकी - थैंक्यू थैंक्यू... तो रस्म अदायगी के लिए... लड़की और लड़का... दोनों के पिता स्टेज पर आयें...

पिनाक खुश होते हुए पहले भैरव सिंह का पैर छूता है l भैरव सिंह उसे एक अंगुठी की डिबिया देता है, उसे लेकर पिनाक स्टेज पर जाता है l उधर निर्मल भी हाथ में अंगुठी वाली एक डिबिया लेकर स्टेज पर आता है l

रॉकी - अभी आप दोनों पिता... अपने अपने संतानो को अंगुठी दे दीजिए... (दोनों वैसा ही करते हैं, अब जैसे ही वीर और सस्मीता अंगुठी ले लेते हैं, रॉकी उन दोनों से कहता है) अब आप दोनों एक दूसरे को अंगुठी पहना कर... मंगनी की रस्म पुरा करें...

सबसे पहले सस्मीता अपना हाथ बढ़ाती है, वीर उसे अंगुठी पहना देता है l फिर सस्मीता वीर को अंगुठी पहना देती है l पूरा हॉल तालियों से गूंज उठती है l स्टेज पर खड़े पिनाक भी बड़ी जोश के साथ ताली बजा रहा था l सबकी ताली रुक चुकी थी पर पिनाक ताली बजाये जा रहा था l उसे जब एहसास होता है कि ताली सिर्फ वह बजा रहा है, चारों और देख कर पिनाक अपनी ताली रोकता है l

निर्मल - हा हा हा हा... आज आपकी खुशी छुपाये नहीं छुप रहा है समधी जी...
पिनाक - हाँ... हा हा हा हा... सॉरी... (सस्मीता की घूंघट देख कर) बेटी सस्मीता... आप घूंघट में क्यूँ हैं... (निर्मल से) क्या यह आपके खानदान की कोई परंपरा है...
निर्मल - अरे नहीं नहीं... सच कहूँ तो मैं भी हैरान हूँ... अपनी बेटी की घूंघट देख कर...
पिनाक - (सस्मीता को) बेटी... विवाह की मंडप में घूंघट करना... अभी तो अपने चेहरे से घूंघट हटाओ...

सस्मीता अपना घूंघट हटा देती है, जैसे ही घूंघट हटती है एक बिजली सी गिरती है पिनाक पर l वैसा ही हाल निर्मल का भी था l क्यूंकि घूंघट के पीछे सस्मीता नहीं अनु थी l यह देख पिनाक और निर्मल दोनों को झटका लगता है l सारे लोग इन दोनों की प्रतिक्रिया देख रहे थे l

निर्मल - यह... ऐ... कौन है... (अनु चुप रहती है)
पिनाक - यह क्या मज़ाक है सामल... अपनी बेटी की जगह... यह किसके साथ मंगनी करा दी राजकुमार की...
निर्मल - क्या... क्या कहा आपने... (चिल्ला कर) सस्मीता बेटी... (तेजी से रॉकी के पास जा कर उसकी कलर पकड़ कर) यह तुमने किया है...
रॉकी - नहीं.. नहीं सामल जी... यह आइडिया... खुद सस्मीता जी की थी... पर मुझे मालुम नहीं था... उनकी जगह यह लड़की आएगी

कुछ ही सेकेंड में स्टेज पर सस्मीता आकर अपनी माँ के पास खड़ी हो जाती है l

निर्मल - यह क्या है बेटी... क्या यह कोई मज़ाक था...
सस्मीता - नहीं डैडी... मंगनी कोई मज़ाक नहीं होती... जिंदगी भर की बात है... मज़ाक कैसे हो सकती है... (चल कर अनु के पास पहुँचती है) राजकुमार जी आज दुपहर को अनु को साथ लेकर आए थे... सारी बात बताए थे... जो भी हुआ या हो रहा है... सारी बातें... इसलिए मैंने बस राजकुमार जी का साथ दिया...
पिनाक - लड़की... तुमने क्या कर दिया... हमें यह मंगनी मंजुर नहीं है...
सस्मीता - क्यूँ अंकल जी.. क्यूँ...
पिनाक - हमें तुम मंजुर थीं... पर तुम्हारी जगह यह... नहीं हरगिज नहीं...
सस्मीता - ओ... मेरी जगह आपको यह पसंद नहीं... पर आप मुझे मुझे इसकी जगह देख सकते हैं...
पिनाक - इसकी कोई जगह ही नहीं बनती...
सस्मीता - पर मेरे लिए तो है... बचपन से... मैं सामल घर की इकलौती रही हूँ... अकेली रही हूँ... पहली रही हूँ... तो मैं दुसरी कैसे बन सकती थी... यह विवाह का मामला है... जीवन भर साथ रहने.. जीने मरने की बात है... राजकुमार जी किसीसे प्यार कर रहे हैं... मैं उसकी जगह लेकर उनकी जिंदगी में दुसरी तो नहीं बन सकती थी ना...

कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है l पिनाक बड़ी मुश्किल से अपना चेहरा घुमा कर भैरव सिंह की ओर देखता है तो पाता है भैरव सिंह बाहर की ओर जा रहा था और उसके पीछे पीछे बल्लभ भागते हुए चला जा रहा था l पिनाक की चेहरे का रंगत पुरी तरह से उड़ चुका था l पिनाक सारे लोगों को हाथ जोड़कर इशारे से जाने के लिए कहता है l लोग परिस्थिति को भांप कर वहाँ से चले जाते हैं l

पिनाक - (सस्मीता से) लड़की... यह तुमने हमारे साथ ठीक नहीं किया... हमारे अहं पर चोट मारी है तुमने...
वीर - जो भी हुआ है उसका जिम्मेदार मैं हूँ... उस बिचारी को क्यूँ धमका रहे हैं...
सस्मीता - अंकल जी... अहंकार... गुरुर... सिर्फ आपकी जागीर नहीं है.. हम भी पालते हैं... वह टनों के हिसाब से... जैसा कि मैंने पहले ही कहा... मुझे दुसरी होना मंजुर नहीं है... इसलिए मैंने राजकुमार जी का साथ दिया...
निर्मल - पर बेटी किसी अंजान लड़की के लिए... तुमने अपना भविष्य खराब करदिया.. यह तुमने ठीक नहीं किया बेटी...
सस्मीता - (निर्मल से) डैडी... मुझे सिर्फ एक बात का जवाब दीजिए... राजकुमार जी के बारे में... क्या आपको जानकारी थी... (निर्मल का सिर झुक जाता है) आपने मेरे साथ ठीक नहीं किया डैडी... चलिए मम्मी...

अपनी माँ को लेकर सस्मीता वहाँ से चली जाती है l निर्मल सामल भी झुके सिर के साथ उनके पीछे पीछे चला जाता है l वहाँ से रॉकी भी अपने साथियों को लेकर निकल जाता है l बाकी जो मौजूद थे सभी क्षेत्रपाल परिवार के सदस्य ही रह गए थे l सबकी ध्यान पिनाक की ओर जाता है l पिनाक अंदर ही अंदर गुस्से से उबल रहा था l उसकी आँखें बंद थी, अचानक वह अपनी आँखे खोलता है जो किसी भट्टी की अंगार की तरह दहक रही थी l खा जाने वाली नज़रों से पिनाक अनु को देखता है l अनु वीर के पीछे वीर की हाथ को जोर से पकड़ कर खड़ी रहती है l पर अनु की आँखों में डर लेश मात्र नहीं था l यह देख कर पिनाक सुषमा के पास जाता है और उसे एक थप्पड़ मार देता है l थप्पड़ के प्रभाव से सुषमा कुछ दुर हट कर गिर जाती है l शुभ्रा और रुप दोनों "माँ" चिल्ला कर उसे उठाते हैं l पिनाक सुषमा के पास आकर

पिनाक - कमिनी... (वीर की ओर इशारा करते हुए) यह मेरा औलाद नहीं हो सकता... यह किस हराम की औलाद है...
विक्रम - छोटे राजा जी... यह क्या बहकी हुई बात कर रहे हैं...
वीर - मर्दों वाली बात रही नहीं तो नामर्दों की तरह... औरतों पर जोर दिखा रहे हैं...
पिनाक - तु चुप कर कमबख्त... अब मेरी आखिरी बात का जवाब दे... तुझे क्षेत्रपाल बने रहना है या नहीं...
वीर - क्यूँ क्षेत्रपाल बने रहने के लिए क्या करना पड़ेगा...
पिनाक - तुझे मेरी कही हुई लड़की के साथ शादी करनी होगी... अगर तूने इस लड़की को नहीं छोड़ा... तो तेरा... क्षेत्रपाल खानदान से कोई रिश्ता नहीं रह जाएगा...
वीर - अच्छा... (अपने पीछे से अनु को अपने साथ खड़ा कर) और इसका क्या होगा...
पिनाक - इसका वही होगा... जो शादियों से क्षेत्रपाल के मर्द करते आए हैं... इसे अपने पास रखो और रोज खेलो...
वीर - (चिल्लाते हुए) छोटे राजा जी...
पिनाक - हाँ... इसे अपना रखैल बनाकर रखो... ना इसकी जात है... ना औकात...
वीर - यह कह कर आपने भी अपनी जात और औकात बता दी है... नाम और पहचान से बड़े... मगर सोच बहुत ही छोटी.. ओछी और गिरी हुई... छोटे राजा जी
पिनाक - मत कहो मुझे छोटे राजा... अब तुमने मुझे कहाँ छोटे राजा बने रहने दिया.. अब तो खुद को हम कहने लायक भी नहीं छोड़ा तुमने... अब फैसला तुम्हारा... तुम इस खानदान से जुड़े रहना चाहते हो... या..
अनु - (वीर की हाथ पकड़ कर) चलिए हम यहाँ से चले जाते हैं...
पिनाक - ऐ... ऐ... ऐ लड़की... तेरी यह हिम्मत... (कहते हुए अनु की तरफ बढ़ने लगता है, तो वीर उसके सामने आ जाता है) झुका... झुका अपनी नजर... (पर अनु की नजरें नहीं झुकती, जो पिनाक की अंदर की गुस्से को और भी भड़का देती है) कामिनी दो कौड़ी की लौंडी... मुझसे नजर मिला रही है... गुस्ताख... झुका अपनी नजर... तेरी इतनी हिम्मत...
वीर - हाँ... है तो उसमें बहुत हिम्मत... (हैरानी से वीर की ओर पिनाक देखता है) अनु की हिम्मत मैं हूँ... उसका गुरुर मैं हूँ... उसकी यकीन मैं हूँ... क्यूंकि उसका वज़ूद... मैं ही हूँ...
Bahut hi badhiya update diya hai Kala Nag bhai...
Nice and beautiful update....
 

mickey1

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पिनाक साहब की हेकड़ी निकल गई और भैरव साहब दुम दबाकर भाग खड़े हुए । और इसका पुरा श्रेय वीर को जाता है।
शायद ऐसा इज्जत का जनाजा क्षेत्रपालों का कभी भी निकला नही होगा । भरी महफिल से बेआबरू होकर निकले।
सस्मीता ने अपने छोटे रोल मे भी हमारा दिल जीत लिया। उसकी बातें , उसकी एटिट्यूड उसके स्वाभिमान और गुरुर का आईना थी।
यह सुनिश्चित हो गया है कि वीर क्षेत्रपाल के बन्धन से आजाद हो गया है लेकिन क्या क्षेत्रपाल वीर के इस फैसले को आसानी से बर्दाश्त कर पायेंगे ? क्या फ्यूचर मे वो वीर और अनु के राह पर बाधा नही उत्पन्न करेंगे ?
यह देखना दिलचस्प होगा कि वो क्या करने वाले हैं क्योंकि इस बार की लड़ाई अपने ही खून से है।

बहुत ही खूबसूरत अपडेट भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।

( आप सबसे पहले अपनी प्रॉब्लम को सुलझाए। जब शरीर और मन ठीक रहता है तभी सबकुछ ठीक लगता है। मुझे विश्वास है आप जल्द ही अपने सारे मसले सुलझा लेंगे। फिलहाल अपडेट या रिएक्शन देने की टेंशन पालने की कतई जरूरत नही है। अपनी प्राथमिक चीजों पर फोकस कीजिए )
Adbhut update, bhavon ko shabdon se ukera a koi aapki lekhani se seekhe.
 
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Luckyloda

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हमेशा की तरह बहुत ही शानदार अपडेट

Aur bade bhai main aapse kahana chahunga आप पहले अपने वास्तविक दुनिया को सही कर लो यह आभासी दुनिया तो चलती ही रहेगी उम्मीद है कि जल्द ही आप अपने वास्तविक जीवन की परेशानियों से मुक्त होकर हमें इस आभासी दुनिया में मनोरंजन से परिपूर्ण करेंगे
 
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RAAZ

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👉एक सौ छत्तीसवाँ अपडेट
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भुवनेश्वर एयर पोर्ट से क्षेत्रपाल एंड कम्पनी बाहर आती है l बाहर गाड़ियों के साथ बल्लभ इन सबकी इंतजार में था l भैरव सिंह अपनी गाड़ी के पास जाकर गाड़ी में बैठ जाता है l पिनाक उसके पास आकर खड़ा होता है l

भैरव - क्या आप हमारे साथ बारंग रिसॉर्ट जाना चाहेंगे...
पिनाक - नहीं राजा सहाब... हम प्रधान के साथ... सब ठीक कर लेने के बाद... शाम की पार्टी में बुलाने के लिए आयेंगे...
भैरव - ठीक है... हम प्रतीक्षा करेंगे...

भैरव सिंह की गाड़ी वहाँ से निकल जाता है l पिनाक उसे जाते हुए देखता है l उसे महसूस होता है कि उसके बगल में बल्लभ और विक्रम खड़े हैं l

विक्रम - आपका प्लान क्या है छोटे राजा जी...
पिनाक - (बल्लभ से) जाओ प्रधान गाड़ी लाओ... (विक्रम से गाड़ी में बात करते हैं...

बल्लभ इशारा करता है एक बड़ी गाड़ी आकर उसके आगे रुकती है l बल्लभ आगे ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठ जाता है विक्रम और पिनाक पीछे वाली सीट पर बैठ जाते हैं l

पिनाक - ड्राइवर... गाड़ी को द हैल ले चलो... (ड्राइवर गाड़ी स्टार्ट कर आगे बढ़ा देता है) हाँ तो प्रधान... अब मुझे स्थिति के बारे में जानकारी दो...
बल्लभ - राजा सहाब... मेरी जानकारी के मुताबिक... लड़की को दया नदी के रास्ते... डिपोर्ट कर दिया गया है... बस्ती के लोग पुलिस को शाम तक रोके रखेंगे... जब तक पुलिस बस्ती के अंदर घुस कर लड़की को ढूँढेगी... उनके हाथ कुछ नहीं लगेगा...
पिनाक - ह्म्म्म्म... और मीडिया... उसका क्या...

जवाब में बल्लभ गाड़ी के भीतर ही रूफ पर लगे एक एलसीडी को निकाल कर ऑन कर देता है l उसमें नभवाणी चैनल पर न्यूज चल रहा था l न्यूज सुप्रिया पढ़ रही थी l

" वाव की महिलाएँ अनु की दादी को लेकर अभी भी एडवोकेट प्रतिभा जी के नेतृत्व में कमिश्नरेट के बाहर धरने पर बैठीं हुई हैं l रात भर पुलिस हाथ पैर मारती रही पर कहीं भी अनु की कोई खबर नहीं मिली है l इधर विपक्ष के नेता भी मैदान में कुद चुके हैं l ऐसा प्रतीत हो रहा है अनु की गुमशुदगी सरकार व प्रशासन पर भारी पड़ने वाली है l
हमारी सूत्रों से प्राप्त खबर के अनुसार पुरी रोड पर स्थित सुंढी साही बस्ती में दंगा भड़क गया है, जिसे नियंत्रित करने के लिए भारी पुलिस बल को सुंढी साही बस्ती की ओर भेज दिया गया है l दंगे के कारण पुरी जाने वाली राज मार्ग को बंद कर दिया गया है l अभी तक दंगे का कारण पता नहीं चल पाया है l यह सब देखकर विपक्ष के नेता पुछ रहे हैं इस राज्य में क्या हो रहा है "

बल्लभ न्यूज को बंद कर एलइडी स्क्रीन को रूफ टॉप पर वापस लगा देता है l

बल्लभ - जैसा कि आपने देखा... मीडिया... इस मामले में पुरी तरीके से अंधेरे में है...
पिनाक - गुड... बहुत अच्छा मेंटेन किया है तुमने...
बल्लभ - राजकुमार की कोई खबर...
बल्लभ - आई एम सॉरी... उनके बारे में मेरे पास कोई जानकारी नहीं है...

पिनाक के जबड़े भिंच जाते हैं l एक गहरी साँस छोड़ते हुए सवालिया नजर से विक्रम की ओर देखने लगता है l विक्रम उसके मन की आशय को समझ जाता है

विक्रम - नहीं छोटे राजा जी... वीर ने मुझसे किसी भी तरह का कॉन्टेक्ट नहीं किया है...
पिनाक - हम जानते हैं... हम राजकुमार ने आपसे किसी भी तरह से संपर्क नहीं किया होगा..
विक्रम - फिर... आप वीर के बारे में प्रधान से पूछने के बाद... मेरी तरफ क्यूँ देख रहे थे...
पिनाक - बात तजुर्बे की है युवराज... ज़माने को देखने के लिए... तजुर्बे की चश्मा चढ़ानी पड़ती है... हमें खुद पर भरोसा रहता है... दुश्मन को अपने सामने गिनते भी नहीं है... पर आपने जिस तरह से... उस हरामजादे विश्वा की बात कही... थोड़ा शक तो होने ही लगा था... कहीं राजकुमार उस लड़की तक पहुँच तो नहीं गए...
विक्रम - आपने सच कहा... बात तजुर्बे की है... आप अपनी तजुर्बे की चश्मे से दुनिया को देखते हैं... और हम अपनी...
पिनाक - हाँ... और दुश्मन को देखने और पहचानने की नजरिया हमारी आपसे बेहतर है... (विक्रम चुप रहता है) कल आपने जिस तरह से बात रखी थी... हमें लगा था... राजकुमार कामयाब हो जाएंगे... पर आप गलत निकले...
विक्रम - रात को मंगनी भी है... आपकी जीत तभी मुकम्मल होगी... जब वीर मंगनी करने आएगा... अभी तक वीर की कोई ख़बर भी तो नहीं है...

इस बार पिनाक चुप हो जाता है l दांत पिसते हुए विक्रम की ओर देखता है l गाड़ी इतने में हैल की परिसर में प्रवेश करती है l गाड़ी के रुकते ही कुछ गार्ड्स भागते हुए आते हैं और दरवाजा खोलते हैं l विक्रम तो उतर जाता है पर पिनाक जो कुछ सोच में खोया हुआ था उतरता नहीं है l उसे विक्रम आवाज देता है

विक्रम - छोटे राजा जी...
पिनाक - (ख़यालों से वापस आते हुए) हुँम्म्म्म.......
विक्रम - हम हैल में आ गए...
पिनाक - ओ...

पिनाक गाड़ी से उतरता है l विक्रम और पिनाक दोनों आगे आगे चलते हैं पीछे पीछे बल्लभ चलता है l बैठक में पहुँचने के बाद पिनाक बल्लभ को वहीँ रुकने के लिए कह कर अंदर हॉल में आता है l देखता है घर की तीनों औरतें बैठीं हुई हैं l पिनाक को देखते ही तीनों उठ खड़े होते हैं l शुभ्रा भागते हुए आती है पिनाक की पैर छूती है l पिनाक शुभ्रा को इग्नोर करते हुए सुषमा के पास जाता है और उसके सामने खड़ा हो जाता है l पिनाक सुषमा की चेहरे पर गौर करने लगता है l

सुषमा - ऐसे क्या देख रहे हैं छोटे राजा जी...
पिनाक - हमें आपसे कुछ जानना है...
सुषमा - तो पूछिये...
पिनाक - (अपनी भवें सिकुड़ कर) राजकुमार कहाँ हैं...
सुषमा - हम नहीं जानते...
पिनाक - हूँम्म्म्म्म.... क्या आपकी उनसे बात नहीं हुई है अब तक...
सुषमा - नहीं...
पिनाक - क्यूँ...
सुषमा - राजकुमार ने बताया नहीं...
पिनाक - आपने पुछा नहीं...
सुषमा - क्षेत्रपाल मर्द घर कब आते हैं... कब जाते हैं यह पूछने का हक है हमें...
पिनाक - माँ हैं आप उनकी...
सुषमा - और आप... आप पिता हैं उनके...
पिनाक - इसलिए तो हम अपना फर्ज अदा कर रहे हैं... उनकी विवाह निश्चित कर...
सुषमा - उनकी मर्जी जाने वगैर...
पिनाक - मर्जी... कैसी मर्जी... क्षेत्रपाल की आन बान और शान के आगे किसीकी भी मर्जी मायने नहीं रखती...
सुषमा - यह बात समझाया भी जा सकता था...
पिनाक - समझा दिया है और एहसास भी हो जानी चाहिए...
सुषमा - आपने जो किया... जो भी किया... वह पहले हमें आगाह कर देते...
पिनाक - क्यूँ... क्या कर लेतीं आप... और आप होती कौन हैं... जिसे हम खबर कर देते... (थोड़ी देर के लिए सुषमा चुप हो जाती है) क्यूँ सांप सूँघ गया...
सुषमा - हम... राजकुमार को समझाते...
पिनाक - हाँ बिल्कुल वैसे ही... जैसे माली साही बस्ती में जाकर... उस दो कौड़ी लड़की को कंगन पहनाने की तरह...

वहाँ पर खड़े सब के सब सन्न रह जाते हैं l पिनाक सबके चेहरे पर एक नजर दौड़ाने के बाद कहता है

पिनाक - हम जानते हैं.... राजकुमार की इस ओछी हरकत में... आप सबकी सहमती है... शुक्र कीजिए... हमने यह बातें राजा साहब से किया नहीं है... हम बस यह कहने यहाँ आए हैं... आज आप सब सिम्फनी होटल में शाम सात बजे तक राजकुमार जी को लेकर आ जाइए... कैसे किस हाल में... हमें कोई मतलब नहीं है... बस मंगनी के वक़्त वहाँ पर राजकुमार मौजूद रहना चाहिए वह भी चेहरे पर हँसी खुशी लिए....

इतना कह कर पिनाक वहाँ से निकल जाता है l पीछे सभी को गहरी सोच में छोड़ कर l

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×



सुबह के नौ बज रहे थे l कमिश्नरेट के मुख्य गेट के बाहर रोड के दूसरे किनारे पर एक शामियाना के नीचे दादी बैठी हुई थी और उसके बगल में प्रतिभा बैठी हुई थी l रात भर तकरीबन डेढ़ सौ के करीब औरतें इनके साथ धरने पर बैठीं हुई हैं l गेट के बाहर और धरने पर बैठीं महिलाओं को घेर कर बड़ी तादात में पुलिस बल तैनात थी l घेराव के बाहर कुछ न्यूज चैनल वाले अपनी अपनी रिपोर्ट देने की तैयारी कर रहे थे l पुलिस मुख्यालय की किसी भी कार्यवाही में बाधा न पहुँचे इसलिए कमीश्नरेट की गेट के पास कोई घेराव नहीं था l ऐसे में नभवाणी चैनल की बड़ी सी न्यूज ट्रांसमिशन वैन पहुँचती है l उसमें से सुप्रिया रथ उतर कर धरने पर बैठे औरतों के पास जाती है l एक किनारे पर प्रतिभा किसी से फोन पर बात कर रही थी l उसकी बात ख़तम होते ही जैसे ही मुड़ती है सामने सुप्रिया दिखती है l सुप्रिया उसे नमस्कार करती है l जवाब में प्रतिभा अपना सिर हिला कर अभिवादन स्वीकार करती है l जैसे ही प्रतिभा महिलाओं के सामने दादी के पास बैठ जाती है, सुप्रिया दादी के सामने आकर दादी को प्रणाम करते हुए कहती है

सुप्रिया - दादी.. हम आपकी एक इंटरव्यू लेना चाहते हैं... (अपनी ट्रांसमिशन गाड़ी दिखाते हुए) वह हमारी मोबाइल स्टुडियो है... उसके भीतर कुछ देर के लिए...
दादी - नहीं... मैं कहीं नहीं जाऊँगी... मुझे मेरी पोती चाहिए...
सुप्रिया - (प्रतिभा से) आंटी जी... कम से कम आप समझाइए... दादी की यह बाइट बहुत इम्पोर्टेंट है...
प्रतिभा - (दादी की कंधे पर हाथ रखकर) माँ जी यह ठीक कह रही है... आपकी लड़ाई लड़ने के लिए... हम सब यहीं हैं...
दादी - नहीं नहीं... मैं नहीं जाऊँगी...
प्रतिभा - ठीक है चलिए... मैं भी चलती हूँ आपके साथ...

बड़े मनाने के बाद दादी तैयार होती है और प्रतिभा के साथ ट्रांसमिशन वैन में चली जाती है l एक छोटा कमरे जैसे था और उसके अंदर कुछ कुछ सोफ़े पडी हुईं थीं l पीछे दीवार पर हरे रंग की स्क्रीन लगी हुई थी l दादी को लेकर सुप्रिया सोफ़े पर बिठा देती है l वैन के दुसरे सिरे पर दरवाजा खुलती है, पहले एएसपी सुभाष सतपती निकलता है उसके पीछे विश्व, उनके पीछे वीर और अनु निकलते हैं l अनु को देखते ही दादी हैरान और खुशी के मारे सोफ़े से उछल पड़ती है l अनु भागते हुए अपनी दादी की गले लग जाती है l

दादी - अनु.. यह तु ही है ना... कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही हूँ...
अनु - हाँ दादी मैं ही हूँ...
वीर - दादी... जैसा कि मैंने तुम्हें वादा किया था... देख लो... अनु सही सलामत है...

दादी अनु को छोड़ वीर के गले लग जाती है और बहुत जोर से रोने लगती है l अनु उसे संभालते हुए दिलासा देने लगती है और चुप होने के लिए कहती है l दादी की रोना धीरे धीरे सिसकियों में बदलने लगती है l

वीर - (दादी को अपने से अलग करते हुए) दादी... जो हुआ... उसके लिए जो चाहो सजा दे सकती हो...
दादी - क्या सजा दूँ दामाद जी आपको.... जब रानी साहिबा ने इसे कंगन पहना कर बहु मान लिया... तब मेरा इस पर हक कहाँ रह गया था... पर हाँ झूठ नहीं कहूँगी... कल से अब तक डर रही थी... आखिर दादी हूँ मैं इसकी... ऊपर जा कर इसके बाप को मुहँ भी तो दिखाना है...
अनु - ऐसी बातेँ क्यूँ कर रही हो दादी...
दादी - कह लेने दे मुझे कह लेने दे... डर इसलिये गई थी... कहीं सपना और ख्वाहिश औकात से बड़ी तो नहीं ही गई... पर... (वीर की बाहों को पकड़ कर हिलाते हुए) आज दामाद जी ने यकीन दिला दिया... मेरी अनु को अब कोई खतरा नहीं है... (दादी अनु की हाथ लेकर वीर के हाथ में देते हुए) लो दामाद जी... अब यह बोझ भी हल्का कर दो... मुझे चिंता मुक्त कर दो..
वीर - हाँ दादी... तुमसे वादा करता हूँ... मैं अनु से जल्द ही शादी करूँगा...

दादी के कंधे पर प्रतिभा हाथ रखती है l तब दादी प्रतिभा की ओर मुड़ती है और उसके गले लग कर कहने लगती है

दादी - पता नहीं आपको मैं कैसे धन्यवाद कहूँ...
प्रतिभा - मैंने कुछ नहीं किया... कुछ भी नहीं किया... क्या करूँ... (विश्व को दिखाते हुए) यह जो है ना... मेरा बेटा... इसने जो कहा जैसा कहा बस मैंने किया... इसके खातिर...
वीर - (विश्व के पास जाकर) हाँ दादी... आज अगर यह ना होता... तो मैं तुम्हें मुहँ दिखाने लायक न होता...

दादी विश्व के आगे जाकर हाथ जोड़ देती है l

विश्व - यह क्या कर रही हैं आप दादी... मैंने जो भी किया वह सब अपने दोस्त के लिए और... बहन मानता हूँ अनु को... उसके लिए... और मैं अकेला कहाँ था... (सुभाष को दिखा कर) यह और... (सुप्रिया को दिखा कर) यह भी तो साथ दिए... तभी हम अनु को ढूँढ पाए...

दादी घूमते हुए सबको हाथ जोड़ कर अपनी आँखों से कृतज्ञता जताती है l वीर दादी को सोफ़े पर बिठा कर पानी पिलाने के लिए अनु से कहता है l अनु वैसा ही करती है l

सुप्रिया - तो... अब क्या हुआ डिटेल में बताओ.. और आगे क्या करेंगे... क्या प्लान है...
विश्व - सुप्रिया जी... क्या हुआ सब आपको सुभाष जी बतायेंगे... और आगे क्या करना है... वीर जैसा कहेगा.. हम वैसे ही आगे बढ़ेंगे...
सुभाष - हमने तक़रीबन तीस अरेस्ट कर लिया है... पर शाम तक अरेस्ट नहीं दिखाएंगे...
सुप्रिया - क्यूँ..
सुभाष - उनमें से कुछ एक ही हालत खराब है... इलाज चल रहा है... सीक्रेटली...
सुप्रिया - ओह... पर पुरी एनएच तो अभी भी जाम है... (कुछ समझते हुए) अच्छा तो शाम को सड़क खुलेगा...
सुभाष - हाँ...
सुप्रिया - और शाम तक यह सीन चलाना पड़ेगा...
सुभाष - हाँ... शाम को ही हम मुजरिमों की गिरफ्तारी दिखा सकते हैं.... और इंट्रोगेट कर पाएंगे...
वीर - इंट्रोगेट करना क्या है... (दादी की तरफ़ देख कर थोड़ी धीमी आवाज में) आप सबको तो मालुम है.. इसके पीछे कौन है...
विश्व - हाँ... पर कुछ नहीं कर सकते... वह क्रिमिनल थर्ड पार्टी से हैं... फर्स्ट और थर्ड के बीच सेकेंड होता है.. उस सेकेंड पार्टी को ढूंढना होगा...
सुभाष - विश्व सही कह रहा है वीर... हमें थोड़ी सावधानी बरतने की जरूरत है.. वर्ना उनके गिरेबां पर हाथ रखने की छोड़ो... हम उनके पास फटक भी नहीं सकते...

थोड़ी देर के लिए वैन में शांति छा जाती है l इतनी देर से शांत खड़ी प्रतिभा, शांति को तोड़ते हुए पूछती है

प्रतिभा - ठीक है... वह सब कानूनी प्रक्रिया है... फिलहाल के लिए तुम लोग करना क्या चाहते हो...
सुप्रिया - हाँ एकजाक्टली मैं भी यही पुछ रही हूँ...
विश्व - इस वक़्त... अनु के बारे में सभी अंधेरे में रहें तो ठीक है... शाम तक.... सतपती जी गिरफ्तारी दिखाएंगे और मीडिया को खबर करेंगे...
सुप्रिया - तब तक धरने का क्या... और अनु और वीर कहाँ जायेंगे...
सुभाष - अभी कुछ देर बाद... कमीश्नरेट के अंदर से... कुछ ऑफिसर आयेंगे... मैडम सेनापति जी से वार्तालाप करेंगे... उसे आप टीवी पर लाइव प्रसारण करेंगे... आज रात की मोहलत मांगी जाएगी... प्रदर्शन करीयों से... जिसे मैडम स्वीकार करेंगी...
सुप्रिया - ठीक है... समझ गई... क्या यह सब कमिश्नर जानते हैं...
सुभाष - नहीं... मैं खुद अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर यह सब संभाल लूँगा...
सुप्रिया - वाव... आई एम इम्प्रेस्ड... और दादी जी...
सुभाष - इन्हें मैं... इनके घर में छोड़ दूँगा... (दादी से) हाँ दादी जी... शाम तक आपको खुदको संभालना होगा... जब तक... अनु फिरसे आपके पास वापस नहीं आ जाती...
दादी - क्यूँ... अब अनु कहाँ जाएगी...
वीर - दादी... आज शाम तक अनु मेरे साथ रहेगी... फिर देर शाम तक मैं और अनु दोनों आपके पास.. आपके साथ होंगे... और हाँ... आज रात का खाना भी आपके साथ होगी...
दादी - (खुश हो जाती है) ठीक है दामाद जी...
वीर - (आगे बढ़ कर दादी के पैर के पास बैठते हुए) दादी... अब चाहे कुछ भी हो जाए... आज दुनिया को मालुम हो जाएगा... वीर सिंह क्षेत्रपाल की शादी कल अनु से होगी...

दादी वीर के चेहरे पर हाथ फ़ेर कर दुआएँ देने लगती है और बलाएँ लेने लगती है l

प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तो माँ जी... चले पहले धरने पर...
सुभाष - हाँ दादी... आप अभी धरने पर जाइए... मैं खुद आपको बस्ती में छोड़ने जाऊँगा...

प्रतिभा और दादी नभवाणी के ट्रांसमिशन वैन से उतर कर धरने पर जाते हैं l इतने में छुपते हुए वीर और अनु वैन से सटे एक गाड़ी में बैठ कर चले जाते हैं l सुप्रिया अपने कैमरा मेन को लेकर धरने के पास पहुँच कर रिपोर्टिंग शुरु कर देती है l इतने में कमीश्नरेट से कुछ ऑफिसर वार्ताकार बन कर धरने के पास आते हैं, प्रतिभा और दादी से बात करते हैं l प्लान के अनुसार प्रतिभा और दादी धरना स्थगित करने के लिए राजी हो जाते हैं l सुभाष सतपती दादी को लेकर वहाँ से चला जाता है l धरने पर बैठे औरतों को प्रतिभा धन्यवाद कर विदा करती है l सभी जाने के बाद विश्व को लेकर प्रतिभा अपनी गाड़ी के पास जाती है और विश्व को बिठा कर उस जगह से निकल जाती है l

प्रतिभा - (गाड़ी चलाते हुए) खुश लग रहा है...
विश्व - हँ... क्या... कहा तुमने..
प्रतिभा - यही की... खुश तो है ना तु...
विश्व - हाँ... माँ बहुत... और थैंक्यू...
प्रतिभा - ऐ... झापड़ मारूंगी समझा...
विश्व - माँ किसी गैर के लिए कौन इतना करता है... ना तो अनु से तुम्हारी कोई जान पहचान है... ना ही वीर से कोई रिश्ता...
प्रतिभा - मुझसे ना सही... तुझसे तो है... वैसे... खुश तु किसके लिए है...
विश्व - मैं समझा नहीं...
प्रतिभा - वीर की जीत पर... या क्षेत्रपाल की हार पर...
विश्व - ओ... तो यह है तुम्हारा सवाल... ओविऔसली वीर के लिए माँ...
प्रतिभा - क्यूँ... क्षेत्रपाल की हार से नहीं...
विश्व - यह क्षेत्रपाल की हार नहीं है माँ... यह बस एक झटका है... जो उसे उसके खून ने दिया है...
प्रतिभा - हाँ पर कंधा तो तुम्हारा है ना...
विश्व - वह दोस्ती का हक था माँ...
प्रतिभा - वैसे... क्या प्लान है वीर का... आज शाम के लिए...
विश्व - तेरी कसम माँ... नहीं जानता...
प्रतिभा - क्यूँ... तुझे नहीं बताया... आज शाम को क्या करने वाला है...
वीर - नहीं... नहीं... पर आगे की लड़ाई उसकी निजी है... मैं बस तब उसके साथ होऊंगा... जब जब वह आवाज देगा... बुलाएगा...

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सिम्फनी होटल आज आम लोगों के लिए बंद था l क्यूंकि आज होटल की मुख्य फंक्शन हॉल में विशेष कार्यक्रम होना था l निर्मल सामल होटल के एंट्रेंस पर खड़े अपने अतिथियों का स्वागत कर रहा था l कुछ देर बाद पिनाक की गाड़ी पहुँचती है l पिनाक जैसे ही गाड़ी से उतरता है निर्मल सामल उसके पास आता है और उसका अभिवादन करता है l दोनों मिलकर अंदर जाते हैं l

निर्मल - क्या बात है छोटे राजा जी... आप के चेहरे पर रौनक नहीं दिख रही है...
पिनाक - हम अपने परिवार वालों को ढूँढ रहे हैं...
निर्मल - ओ... चिंता ना करें... वह लोग जल्दी ही आ जाएंगे...
पिनाक - (थोड़ी हैरानगी के साथ) मतलब...
निर्मल - ओह... लगता है आप को पता नहीं है...
पिनाक - क्या... क्या पता नहीं है...
निर्मल - आज दो पहर को... दामाद जी घर पर आए थे... बेशक मैं उस वक़्त घर पर नहीं था... पर दामाद जी मेरी बेटी सस्मीता से बात किए... उसके बाद वह चले गए... उनके जाने के बाद... मेरी बेटी भी खुशी खुशी यहाँ मंगनी के लिए आई है....
पिनाक - (भवें सिकुड़ कर कुछ सोचते हुए) क्या... राजकुमार आपकी बेटी से मिलने आए थे...
निर्मल - जी...
पिनाक - क्या हम आपकी बेटी से बात कर सकते हैं...
निर्मल - हाँ हाँ क्यूँ नहीं... आप ही की बेटी है अब... ब्राइड रूम में होगी... चलिए...
पिनाक - नहीं आप नहीं... हम बात करना चाहते हैं... अगर आपको बुरा न लगे तो...
निर्मल - इसमें बुरा लगने वाली क्या बात है... आप जाइए... मैं मेहमानों का आव भगत देखता हूँ...

इतना कह कर निर्मल वहाँ पिनाक को छोड़ कर बाहर चला जाता है l पिनाक कुछ देर यूहीं खड़े खड़े सोचते हुए ब्राइड रूम की तरफ़ जाता है l दरवाजे पर पहुँच कर दस्तक देने लगता है l थोड़ी देर बाद दरवाजा खुलता है l अंदर एक लड़की बाहर आती है पिनाक को देख कर

लड़की - जी कहिये...
पिनाक - हम... पिनाक सिंह क्षेत्रपाल...
लड़की - जी नमस्ते अंकल...
पिनाक - हम... अपनी होने वाली बहु से कुछ बात करना चाहते हैं...
लड़की - जी ज़रूर... मैं उन्हें ख़बर करती हूँ...

इतना कह कर लड़की अंदर चली जाती है और कुछ देर बाद बाहर आकर पिनाक सिंह को अंदर बुलाती है l पिनाक उस लड़की के साथ अंदर जाता है तो देखता है सस्मीता अपनी सहेलियों से घिरी एक गद्दे के बीचों-बीच बैठी हुई है l सस्मीता अपनी जगह से उठती है और आगे आकर पिनाक की पैर छूती है l पिनाक अपनी जेब से कुछ नोट निकाल कर सस्मीता के सिर पर घुमा कर उसकी सहेलियों को दे देता है l

सस्मीता - जी कहिये... आप हमसे क्या बात करना चाहते थे...
पिनाक - (हिचकिचाते हुए) वह... बात... दरअसल...
सस्मीता - (बात को समझते हुए, अपनी सहेलियों से) क्या आप लोग कुछ देर के लिए हमें अकेला छोड़ सकते हैं... (उसकी सारी सहेलियाँ बाहर चलीं जाती हैं) हाँ... अब कहिये...
पिनाक - हम कहने नहीं... कुछ पूछने आए हैं...
सस्मीता - जी पूछिये...
पिनाक - क्या आज दुपहर को... राजकुमार आपसे मिलने आए थे...
सस्मीता - जी आए थे...
पिनाक - बुरा मत मानिएगा बेटी जी... आपसे उनकी क्या बातेँ हुईं...
सस्मीता - कुछ नहीं... बस मेरी मंजूरी जानी... उसके बाद इतना कहा... शाम को वह आयेंगे... अपने परिवार के साथ... और मंगनी जरुर करेंगे...
पिनाक - (थोड़ा खुश हो कर) क्या... राजकुमार... मंगनी करेंगे ऐसा कहा...
सस्मीता - हाँ...
पिनाक - ओह... जुग जुग जियो बेटी.... जुग जुग जियो... हम बाहर जाकर बाकी रस्मे देखते हैं...

इतना कह कर अंदर ही अंदर बहुत खुश होते हुए कमरे से बाहर निकालता है और फंक्शन हॉल के बाहर जाकर निर्मल के बगल में खड़ा हो जाता है l अपने पास पिनाक को देख कर निर्मल बहुत आश्चर्य और खुश भी होता है l गिने चुने ही सही पर विशेष अतिथि आ रहे थे जिनको दोनों मिल कर स्वागत कर रहे थे l कुछ देर बाद विक्रम की गाड़ी आकर रुकती है उसमें से विक्रम के साथ सुषमा, शुभ्रा और रुप उतरते हैं l वीर को गायब देख कर पिनाक के चेहरे की रंगत उड़ जाती है l जैसे ही चारों इन दोनों के पास पहुँचते हैं

निर्मल - आइए... समधन जी... दामाद जी.... (रुक जाता है)
पिनाक - (दबे सुर में दांत पिसते हुए) राजकुमार आए नहीं...

तभी चर्र्र्र्र् करती हुई एक गाड़ी आकर रुकती है l उसमें से वीर अकेला उतरता है l अपनी माँ और भाई बहन के पास आकर

वीर - सॉरी... सॉरी.. वेरी सॉरी... वह मैं... मेंन्स पार्लर में से सीधे आ रहा हूँ...
निर्मल - ओ हो हो हो... कोई नहीं... आखिर आज आप ही का दिन है... जाइए आप अंदर जाइए... ग्रूम्स रुम में...
वीर - जी जरुर...

इतना कह कर अपनी माँ भाई बहन और भाभी को साथ लेकर अंदर चला जाता है l जो रौनक पिनाक के चेहरे से उड़ गई थी वह दुबारा वापस लौट आती है l

निर्मल - समधी जी... राजा साहब जी को फोन कर दीजिए... सब आ गए... रस्म पुरा करते हैं...
पिनाक - जी जरुर...

पिनाक अपना फोन निकाल कर बल्लभ को फोन लगाता है l बात खत्म होते ही निर्मल से कहता है

पिनाक - अभी थोड़ी ही देर में पहुँच रहे हैं...

थोड़ी देर बाद सफेद रंग की बड़ी सी चमचमाती हुई रॉल्स रोएस आकर रुकती है l दोनों भागते हुए गाड़ी के पास जाते हैं, तब तक बल्लभ गाड़ी से उतर कर डोर खोल देता है l गाड़ी से भैरव सिंह उतरता है l उसे स्वागत करते हुए सभी फंक्शन हॉल में दाखिल होते हैं l हॉल में सभी मेहमान हल्की म्युजिक के साथ मॉकटेल एंजॉय कर रहे थे l जैसे ही भैरव सिंह दाखिल होता है म्युजिक बंद हो जाता है और सबका ध्यान भैरव सिंह की ओर चला जाता है l भैरव सिंह के पास लॉ मिनिस्टर विजय जेना भागते हुए जाता है हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाता है पर जैसे ही भैरव सिंह की चेहरे पर गुरुर और रौब देखता है उसकी अंदर तक फट जाती है l धीरे से सिर झुका कर किनारे हो जाता है l बस इतना सा सीन पुरे हॉल में मरघट सी खामोशी ला देती है l भैरव सिंह का रास्ता बनाते हुए निर्मल एक आलिशान कुर्सी पर बिठाता है और इशारे से इवेंट मैनेजर को प्रोग्राम चालू करने के लिए कहता है l इवेंट मैनेजर कोई और नहीं रॉकी था l आखिर होटल उसकी जो थी l

रॉकी - सभी मेहमानों का स्वागत करते हैं... मैं रॉकी... आज का इवेंट और स्टेज मैनेज मेंट दोनों मेरे जिम्मे है... राजा साहब जी के आ जाने से इस महफिल की कसर अब पूरा हो गया है... जैसा कि आप आज जानते हैं... आज दो बड़े दिग्गज परिवार के बीच रिश्ता बनने जा रही है... क्षेत्रपाल खानदान के चश्म ओ चराग राजकुमार जी का मंगनी सामल ग्रुप के मालिक श्री निर्मल सामल जी की इकलौती सुपुत्री के साथ होने जा रही है... (सभी मौजूद लोग तालियां बजाने लगते हैं) तो स्टेज पर पहले मैं... आज के शाम के नायक... राजकुमार वीर सिंह क्षेत्रपाल जी को बुला रहा हूँ...

ग्रूम वाली रुम से निकल कर वीर रुप और सुषमा के साथ स्टेज पर आ कर खड़ा हो जाता है l आज वाकई वीर बहुत ही सुंदर दिख रहा था l

रॉकी - हमने आज की इवेंट को स्पेशल करने के लिए... सामल परिवार की चांद को... चांद की झूले के सहारे स्टेज पर लाने के लिए... एक खास व्यवस्था की है...

हॉल की सारी लाइटें बुझ जाती हैं l एक स्पॉट लाइट स्टेज की छत पर पड़ती है l चांद की आकर की झूले के बीच सफेद चमकीली लहंगा चोली और सिर पर घूंघट लिए धीरे धीरे सस्मीता उतरती है l फिर स्टेज पर सस्मीता की माँ आ जाती है l फिर पूरा हॉल में लाइट वापस आ जाती है l लाइट के आते ही सभी लोग तालियां बजाने लगते हैं l

रॉकी - थैंक्यू थैंक्यू... तो रस्म अदायगी के लिए... लड़की और लड़का... दोनों के पिता स्टेज पर आयें...

पिनाक खुश होते हुए पहले भैरव सिंह का पैर छूता है l भैरव सिंह उसे एक अंगुठी की डिबिया देता है, उसे लेकर पिनाक स्टेज पर जाता है l उधर निर्मल भी हाथ में अंगुठी वाली एक डिबिया लेकर स्टेज पर आता है l

रॉकी - अभी आप दोनों पिता... अपने अपने संतानो को अंगुठी दे दीजिए... (दोनों वैसा ही करते हैं, अब जैसे ही वीर और सस्मीता अंगुठी ले लेते हैं, रॉकी उन दोनों से कहता है) अब आप दोनों एक दूसरे को अंगुठी पहना कर... मंगनी की रस्म पुरा करें...

सबसे पहले सस्मीता अपना हाथ बढ़ाती है, वीर उसे अंगुठी पहना देता है l फिर सस्मीता वीर को अंगुठी पहना देती है l पूरा हॉल तालियों से गूंज उठती है l स्टेज पर खड़े पिनाक भी बड़ी जोश के साथ ताली बजा रहा था l सबकी ताली रुक चुकी थी पर पिनाक ताली बजाये जा रहा था l उसे जब एहसास होता है कि ताली सिर्फ वह बजा रहा है, चारों और देख कर पिनाक अपनी ताली रोकता है l

निर्मल - हा हा हा हा... आज आपकी खुशी छुपाये नहीं छुप रहा है समधी जी...
पिनाक - हाँ... हा हा हा हा... सॉरी... (सस्मीता की घूंघट देख कर) बेटी सस्मीता... आप घूंघट में क्यूँ हैं... (निर्मल से) क्या यह आपके खानदान की कोई परंपरा है...
निर्मल - अरे नहीं नहीं... सच कहूँ तो मैं भी हैरान हूँ... अपनी बेटी की घूंघट देख कर...
पिनाक - (सस्मीता को) बेटी... विवाह की मंडप में घूंघट करना... अभी तो अपने चेहरे से घूंघट हटाओ...

सस्मीता अपना घूंघट हटा देती है, जैसे ही घूंघट हटती है एक बिजली सी गिरती है पिनाक पर l वैसा ही हाल निर्मल का भी था l क्यूंकि घूंघट के पीछे सस्मीता नहीं अनु थी l यह देख पिनाक और निर्मल दोनों को झटका लगता है l सारे लोग इन दोनों की प्रतिक्रिया देख रहे थे l

निर्मल - यह... ऐ... कौन है... (अनु चुप रहती है)
पिनाक - यह क्या मज़ाक है सामल... अपनी बेटी की जगह... यह किसके साथ मंगनी करा दी राजकुमार की...
निर्मल - क्या... क्या कहा आपने... (चिल्ला कर) सस्मीता बेटी... (तेजी से रॉकी के पास जा कर उसकी कलर पकड़ कर) यह तुमने किया है...
रॉकी - नहीं.. नहीं सामल जी... यह आइडिया... खुद सस्मीता जी की थी... पर मुझे मालुम नहीं था... उनकी जगह यह लड़की आएगी

कुछ ही सेकेंड में स्टेज पर सस्मीता आकर अपनी माँ के पास खड़ी हो जाती है l

निर्मल - यह क्या है बेटी... क्या यह कोई मज़ाक था...
सस्मीता - नहीं डैडी... मंगनी कोई मज़ाक नहीं होती... जिंदगी भर की बात है... मज़ाक कैसे हो सकती है... (चल कर अनु के पास पहुँचती है) राजकुमार जी आज दुपहर को अनु को साथ लेकर आए थे... सारी बात बताए थे... जो भी हुआ या हो रहा है... सारी बातें... इसलिए मैंने बस राजकुमार जी का साथ दिया...
पिनाक - लड़की... तुमने क्या कर दिया... हमें यह मंगनी मंजुर नहीं है...
सस्मीता - क्यूँ अंकल जी.. क्यूँ...
पिनाक - हमें तुम मंजुर थीं... पर तुम्हारी जगह यह... नहीं हरगिज नहीं...
सस्मीता - ओ... मेरी जगह आपको यह पसंद नहीं... पर आप मुझे मुझे इसकी जगह देख सकते हैं...
पिनाक - इसकी कोई जगह ही नहीं बनती...
सस्मीता - पर मेरे लिए तो है... बचपन से... मैं सामल घर की इकलौती रही हूँ... अकेली रही हूँ... पहली रही हूँ... तो मैं दुसरी कैसे बन सकती थी... यह विवाह का मामला है... जीवन भर साथ रहने.. जीने मरने की बात है... राजकुमार जी किसीसे प्यार कर रहे हैं... मैं उसकी जगह लेकर उनकी जिंदगी में दुसरी तो नहीं बन सकती थी ना...

कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है l पिनाक बड़ी मुश्किल से अपना चेहरा घुमा कर भैरव सिंह की ओर देखता है तो पाता है भैरव सिंह बाहर की ओर जा रहा था और उसके पीछे पीछे बल्लभ भागते हुए चला जा रहा था l पिनाक की चेहरे का रंगत पुरी तरह से उड़ चुका था l पिनाक सारे लोगों को हाथ जोड़कर इशारे से जाने के लिए कहता है l लोग परिस्थिति को भांप कर वहाँ से चले जाते हैं l

पिनाक - (सस्मीता से) लड़की... यह तुमने हमारे साथ ठीक नहीं किया... हमारे अहं पर चोट मारी है तुमने...
वीर - जो भी हुआ है उसका जिम्मेदार मैं हूँ... उस बिचारी को क्यूँ धमका रहे हैं...
सस्मीता - अंकल जी... अहंकार... गुरुर... सिर्फ आपकी जागीर नहीं है.. हम भी पालते हैं... वह टनों के हिसाब से... जैसा कि मैंने पहले ही कहा... मुझे दुसरी होना मंजुर नहीं है... इसलिए मैंने राजकुमार जी का साथ दिया...
निर्मल - पर बेटी किसी अंजान लड़की के लिए... तुमने अपना भविष्य खराब करदिया.. यह तुमने ठीक नहीं किया बेटी...
सस्मीता - (निर्मल से) डैडी... मुझे सिर्फ एक बात का जवाब दीजिए... राजकुमार जी के बारे में... क्या आपको जानकारी थी... (निर्मल का सिर झुक जाता है) आपने मेरे साथ ठीक नहीं किया डैडी... चलिए मम्मी...

अपनी माँ को लेकर सस्मीता वहाँ से चली जाती है l निर्मल सामल भी झुके सिर के साथ उनके पीछे पीछे चला जाता है l वहाँ से रॉकी भी अपने साथियों को लेकर निकल जाता है l बाकी जो मौजूद थे सभी क्षेत्रपाल परिवार के सदस्य ही रह गए थे l सबकी ध्यान पिनाक की ओर जाता है l पिनाक अंदर ही अंदर गुस्से से उबल रहा था l उसकी आँखें बंद थी, अचानक वह अपनी आँखे खोलता है जो किसी भट्टी की अंगार की तरह दहक रही थी l खा जाने वाली नज़रों से पिनाक अनु को देखता है l अनु वीर के पीछे वीर की हाथ को जोर से पकड़ कर खड़ी रहती है l पर अनु की आँखों में डर लेश मात्र नहीं था l यह देख कर पिनाक सुषमा के पास जाता है और उसे एक थप्पड़ मार देता है l थप्पड़ के प्रभाव से सुषमा कुछ दुर हट कर गिर जाती है l शुभ्रा और रुप दोनों "माँ" चिल्ला कर उसे उठाते हैं l पिनाक सुषमा के पास आकर

पिनाक - कमिनी... (वीर की ओर इशारा करते हुए) यह मेरा औलाद नहीं हो सकता... यह किस हराम की औलाद है...
विक्रम - छोटे राजा जी... यह क्या बहकी हुई बात कर रहे हैं...
वीर - मर्दों वाली बात रही नहीं तो नामर्दों की तरह... औरतों पर जोर दिखा रहे हैं...
पिनाक - तु चुप कर कमबख्त... अब मेरी आखिरी बात का जवाब दे... तुझे क्षेत्रपाल बने रहना है या नहीं...
वीर - क्यूँ क्षेत्रपाल बने रहने के लिए क्या करना पड़ेगा...
पिनाक - तुझे मेरी कही हुई लड़की के साथ शादी करनी होगी... अगर तूने इस लड़की को नहीं छोड़ा... तो तेरा... क्षेत्रपाल खानदान से कोई रिश्ता नहीं रह जाएगा...
वीर - अच्छा... (अपने पीछे से अनु को अपने साथ खड़ा कर) और इसका क्या होगा...
पिनाक - इसका वही होगा... जो शादियों से क्षेत्रपाल के मर्द करते आए हैं... इसे अपने पास रखो और रोज खेलो...
वीर - (चिल्लाते हुए) छोटे राजा जी...
पिनाक - हाँ... इसे अपना रखैल बनाकर रखो... ना इसकी जात है... ना औकात...
वीर - यह कह कर आपने भी अपनी जात और औकात बता दी है... नाम और पहचान से बड़े... मगर सोच बहुत ही छोटी.. ओछी और गिरी हुई... छोटे राजा जी
पिनाक - मत कहो मुझे छोटे राजा... अब तुमने मुझे कहाँ छोटे राजा बने रहने दिया.. अब तो खुद को हम कहने लायक भी नहीं छोड़ा तुमने... अब फैसला तुम्हारा... तुम इस खानदान से जुड़े रहना चाहते हो... या..
अनु - (वीर की हाथ पकड़ कर) चलिए हम यहाँ से चले जाते हैं...
पिनाक - ऐ... ऐ... ऐ लड़की... तेरी यह हिम्मत... (कहते हुए अनु की तरफ बढ़ने लगता है, तो वीर उसके सामने आ जाता है) झुका... झुका अपनी नजर... (पर अनु की नजरें नहीं झुकती, जो पिनाक की अंदर की गुस्से को और भी भड़का देती है) कामिनी दो कौड़ी की लौंडी... मुझसे नजर मिला रही है... गुस्ताख... झुका अपनी नजर... तेरी इतनी हिम्मत...
वीर - हाँ... है तो उसमें बहुत हिम्मत... (हैरानी से वीर की ओर पिनाक देखता है) अनु की हिम्मत मैं हूँ... उसका गुरुर मैं हूँ... उसकी यकीन मैं हूँ... क्यूंकि उसका वज़ूद... मैं ही हूँ...
Wow ek chaal Shah aur maat. Sabse sahi hamla kiya hai yah wishwa ne. Shetrpal ke aham per aur bilkul dhawast kar diya hai shetrpal ke aham ko aaj veer ne lekin chot kahaya hua janwar aur bhayankar hota hai ab dekhna hoga ki kiya palat waar kartey Hain shetrpal coz samjh gaye honge ki without vishwa veer itna bada qadam nahi uthaa sakta.
 
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