छियासीवां अपडेट
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शाम को द हैल के डायनिंग हॉल में घर के चारों सदस्य डिनर कर रहे हैं l एक तरफ वीर और विक्रम बैठे हुए हैं और दुसरी तरफ शुभ्रा और रुप दोनों बैठे हुए हैं l वीर अपनी धुन में मस्त अपनी प्लेट से खाना खाए जा रहा है l विक्रम हर निवाला मुहँ में लेते हुए शुभ्रा को निहारे जा रहा है l शुभ्रा को विक्रम का यूँ उसे निहारते रहना अंदर ही अंदर अच्छा लग रहा है पर वह अपने चेहरे पर खुशी को आने नहीं दे रही है l बीच बीच में शुभ्रा नजर उठा कर विक्रम को देखती l जब दोनों की नजरें मिलती है विक्रम के होठों पर मुस्कराहट नाच उठती है l शुभ्रा अपनी नजरें फ़ेर रुप की ओर देखती है l रुप खोई खोई सी अपना निवाला तोड़ कर मुहँ में डाल रही है l शुभ्रा उसे कोहनी मारती है l रुप हड़बड़ा कर शुभ्रा को देखती है l
शुभ्रा (इशारे से पूछती है) - क्या हुआ..
रुप - (अपना सिर ना में हिलाते हुए) नहीं... कुछ नहीं..
डिनर खतम होते ही सभी अपने अपने कमरे की ओर जाते हैं l शुभ्रा जब अपने कमरे की दरवाजे पर पहुँचती है तो देखती है एक गुलाब का फुल और एक छोटा सा खत रखा हुआ है l शुभ्रा अपनी नजरें घुमा कर देखती है I जब वह समझ जाती है कोई नहीं देख रहा तो वह गुलाब का फुल और चिट्ठी लेकर अंदर चली जाती है l अंदर बेड पर रख कर वार्डरोब से अपनी नाइट गाउन निकाल कर कपड़े बदलती है l अचानक उसे रुप की याद आती है तो वह अपने कमरे से निकल कर रुप की कमरे के बाहर खड़ी हो जाती है l कुछ सोचने के बाद दरवाजा खटखटाती है l दरवाजा खुला ही था दरवाजा धीरे से खुल जाता है l शुभ्रा देखती है बेड के हेड बोर्ड पर रुप अपना पीठ टिकाए बैठ कर छत को घुर रही है l शुभ्रा धीरे से आकर रुप के सामने बैठ जाती है
शुभ्रा - नंदिनी.
रुप - (चौंक कर) हँ.. हाँ.. हाँ भाभी...
शुभ्रा - क्या बात है... आज तुम इतना खोई खोई क्यूँ हो..
रुप - कु.. कुछ नहीं भाभी..
शुभ्रा - ठीक है... अगर बताना नहीं चाहती हो तो...(उठते हुए) मेरा यहाँ क्या काम..
रुप - (शुभ्रा की हाथ पकड़ लेती है) भाभी प्लीज... आप ऐसे मत जाओ.. प्लीज..
शुभ्रा - (बैठते हुए) अब तुम मुझे बता नहीं रही हो... तो मेरा यहाँ क्या काम..
रुप - रुको भाभी..
कह कर रुप अपनी बेड से उठती है और अपने कमरे की दरवाजे को बंद कर देती है और लौट कर शुभ्रा के सामने बैठ जाती फिर अपना सिर शुभ्रा के गोद में रख देती है
शुभ्रा - (रुप के सिर को सहलाते हुए) क्या हुआ नंदिनी.
रुप - पता नहीं भाभी... मैं अंदर ही अंदर अपने आपसे लड़ रही हूँ... मैं रोज आईने के सामने खड़े होकर... खुद से एक वादा करती हूँ... पर शाम ढलते ढलते... मैं खुद को कोसने लगती हूँ... कभी कभी लगता है... की मैं खुश हूँ... पर वजह से अनजान हूँ... कुछ बातेँ हैं... जो मैं स्वीकार नहीं कर पा रही हूँ...(चुप हो जाती है)
शुभ्रा - (रुप के सिर पर हाथ फेरते हुए) कहीं यह सब... प्रताप से तो जुड़ा नहीं है....
रुप - (शुभ्रा के गोद में ही अपना मुहँ नीचे की ओर दबा देती है)
शुभ्रा - नंदिनी... क्या तुम अपसेट हो..
रुप - (उठ कर बैठ जाती है) (दुसरी और मुहँ कर देती है
शुभ्रा - अब कुछ बोलोगी भी..
रुप - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) ठीक है भाभी... (थोड़ी देर चुप रहकर) मैं क्या करूँ... कुछ समझ में नहीं आ रहा... मैं... हर रोज सुबह अपने आप से वादा करती हूँ... के.. प्रताप से नहीं मिलूंगी... अगर मिलूंगी... तो बात नहीं करूंगी... पर शाम आते आते खुद को कोसने लगती हूँ... क्यूँ.. क्यूँ... मैं खुद को रोक नहीं पा रही हूँ... जैसे वह एक चुंबक है... मैं उसके तरफ खिंची चली जा रही हूँ...वह पहल नहीं करता... पहल मुझसे ही हो जाती है... (असमंजस सी नजर से शुभ्रा को देखने लगती है)
शुभ्रा - हूँम्म्म्म... फिर से पूछती हूँ... क्यूँ...
रुप - वह... जब भी सामने आता है... बातेँ करता है... तो मुझे लगता है कि... वह अनाम है... पर जब यह बात याद आता है... की उसके माँ बाप हैं... तब आपने आप से जद्दोजहद करने लगती हूँ... कभी कभी... एक पल के लिए लगता है कि हां... मैं उसे जान गई हूँ... तभी उसकी शख्सियत का और एक चेहरा... सामने आ जाता है... तब दिल और दिमाग में जंग छिड़ जाती है... क्या यह अनाम हो सकता है... इसी कशमकश के भंवर में घिरी रहती हूँ...
शुभ्रा - हूँम्म्म्म्म्... तो तुम्हें प्रताप बुरी तरह से डिस्टर्ब करने लगा है...
रुप - (चुप रहती है)
शुभ्रा - तो ड्राइविंग स्कुल में छह दिन हो गए... इस हफ्ते का कोटा खतम हो गया... अगले हफ्ते के छह दिन बाद तुम्हें लाइसेंस भी मिल जाएगा...
रुप - (चुप रहती है)
शुभ्रा - हूँ... बातेँ घुमाने से भी फायदा नहीं हो रहा है...
रुप - कभी कभी लगता है कि... प्रताप का गला दबा दूँ.... इतना मारूं... इतना मारूं... के
शुभ्रा - के...
रुप - पता नहीं क्या करूँ....
शुभ्रा हँसने लगती है l रुप खीज जाती है l शुभ्रा अपनी हँसी रोक कर रुप से
शुभ्रा - अच्छा यह बताओ... जिस दिन तुम्हारे बड़े भैया आए... उस दिन तुम बड़ी खुश भी थी और खोई खोई भी थी... मैंने जब पूछा... तब तुमने कहा कि कोई चैलेंज जीता था...
रुप - अच्छा वह... (एक मुस्कान आ जाती है) उस दिन... मैं विक्रम भैया से मिलकर आने के बाद... (शुभ्रा को उस दिन की बस में हुई सारी बातें बताती है)
शुभ्रा - ओ... तो तुमने शरारत भी की थी उस दिन...
रुप - ही ही ही...(हँसती है)
शुभ्रा - खैर यह बताओ चैलेंज क्या था...
रुप - हम दोनों एक घंटे पहले पहुंच गए थे...
फ्लैशबैक
विश्व और रुप अपने क्लास में बैठे हुए थे l रोहित उन्हें क्लास में देख कर
रोहित - क्या मैं सपना देख रहा हूँ.. या जाग रहा हूँ... यु टू... इतने जल्दी कैसे...
विश्व - जी वह... मेरा काम जल्दी खतम हो गया था इसलिए...
रुप - जी मेरा भी...
रोहित - ओ.. तो यहाँ क्या कर रहे हो... तो आओ फील्ड में गाड़ी कैसे मूव हो रहे हैं... देखते हैं आओ...
विश्व - हमारी तो वर्चुअल लर्निंग चल रही है ना...
रोहित - तो क्या हुआ... गाड़ी मैं चलाउंगा... तुम दोनों बैठ कर... गियर और स्टियरिंग के साथ एबीसी कैसे ऑपरेट किया जाता है... मेरे साथ देखोगे आओ...
विश्व - एबीसी... मतलब...
रोहित - एक्सीलेटर, ब्रेक एंड क्लॉच... समझ में आ गया...
विश्व - जी...
रोहित - देन कॉम ऑन...
विश्व और रुप दोनों उठ कर रोहित के साथ ग्राउंड में पहुँचते हैं l रोहित एक मारुति 800 में ड्राइविंग सीट पर बैठ जाता है उसके बगल वाले सीट में विश्व बैठ जाता है और पीछे वाली सीट के बीच में रुप बैठ जाती है l रोहित गाड़ी स्टार्ट करने के बाद एक राउंड लगा कर गाड़ी रोक देता है l तभी उसके फोन पर एक कॉल आता है l रोहित गाड़ी से उतर कर फोन पर बात करते हुए ऑफिस के तरफ भागता है l वहीँ पर विश्व और रुप रह जाते हैं l
विश्व - आगे बैठने का फायदा हुआ है मुझे... कम से कम... आज आपसे ज्यादा सीख गया...
रुप - (तुनक कर) अच्छा... ऐसा क्या सीख लिया आपने...
विश्व - रोहित... स्टीयरिंग से लेकर गियर तक... जो भी कर रहा था... मैंने सब देख लिया...
रुप - ओ... तो इसका मतलब... आपने गाड़ी चलाना सीख लिया.. क्यूँ..
विश्व - नहीं ऐसी बात नहीं है... शायद मुझे ऐसा कहना नहीं चाहिए था...
रुप - हाँ.. आपको यह कहना चाहिए था... की हम दोनों ने आज मिलकर जो भी सीख... बढ़िया रहा...
विश्व - पिछली सीट पर... आपको सब दिख रहा था क्या...
रुप - दिख भले ही ना रहा हो... रोहित जोर जोर से बोल कर जितना भी बताया... बहुत बताया...
विश्व - (हँसकर छेड़ने के अंदाज में) ना.. नहीं... सिर्फ़ बता देने से... आप जान गई... सीख गई...
रुप - (जबड़े भींच कर जोर जोर से सांस लेने लगी, और दांत पिसते हुए ) हाँ सीख गई...
विश्व - अच्छा... (कार को दिखाते हुए) यह रही गाड़ी... चाबी भी लगी हुई है... जाइए... एक राउंड फिल्ड के लगा कर तो आइये...
रुप - क्यूँ...
विश्व - देखा...
रुप - क्या...
विश्व - यही.. के आप पीछे हट रही हैं...
रुप - अगर मैंने गाड़ी घुमा कर यहीँ पर पार्क करा दिया तो...
विश्व - तो... (हकलाने लगता है) तो.. तो.. तो.. मैं आज बैठ कर क्लास नहीं अटेंड करूँगा...
रुप - ठीक है...
रुप अपना वैनिटी विश्व को थमा देती है और गाड़ी के भीतर बैठ कर गाड़ी को स्टार्ट करने के लिए चाबी घुमाती है l गाड़ी स्टार्ट हो जाती है l गियर रियर पर लेकर गाड़ी पार्क से निकालती है और गाड़ी को लेकर ग्राउंड का एक चक्कर लगा कर वापस पार्क कर देती है l गाड़ी से उतर कर विश्व के पास आती है l विश्व की आँखे हैरानी से बड़ी हो गई थीं और मुहँ खुला हुआ था l रुप उसके सामने खड़ी होती है और अपनी उंगली विश्व के ठुड्डी पर रखते हुए
"प्रताप बाबु अपना मुहँ तो बंद करो"
फिर अपना वैनिटी बैग लेकर
'हूँह्'
कहते हुए क्लास की ओर जाते जाते रुक जाती है और बिना पीछे देखे
"तुम अपनी जुबान पर टिके रहना, हुँह्ह्.."
कह कर चली जाती है l
फ्लैशबैक में विराम
शुभ्रा - तुमने...(हैरान हो कर) दुसरे दिन ही गाड़ी चाला लिया...
रुप - भाभी... चैलेंज के लिए हाँ तो कर दिया... पर गाड़ी के अंदर अगर प्रताप बैठा होता ना... वह हँस हँस कर लोट पोट हो गया होता...
शुभ्रा - क्या...
रुप - हाँ भाभी... मैं गाड़ी के अंदर.. रोते रोते डरते डरते... भगवान नाम लेकर ड्राइव कर रही थी... गाड़ी पार्क करने के बाद... प्रताप से अपना वैनिटी बैग लेकर... बिना पीछे मुड़े वहाँ से चल दी... कहीं और थोड़ी देर रुकती... तो उसे मेरी हालत का अंदाजा हो गया होता....
शुभ्रा - ओ... हा हा हा हा हा हा... (शुभ्रा हँसने लगती है)
रुप भी शुभ्रा के साथ मुस्करा देती है और फिर शुभ्रा के साथ हँसने लगती है l
शुभ्रा - (अपनी हँसी रोक कर) और... उस दिन प्रताप खडे हो कर क्लास किया क्या...
फ्लैशबैक
क्लास में सभी अपनी अपनी कुर्सी में बैठे हुए हैं l पर विश्व अपनी जगह पर खड़ा है l
सुकुमार - क्या बात है प्रताप बेटा... खड़े क्यूँ हो बैठ जाओ...
विश्व - नहीं अंकल... आज मेरा व्रत है... आज मुझे खड़े हो रहना होगा...
सुकुमार - व्रत... कैसा व्रत...
विश्व - हनुमान जी का व्रत...
सुकुमार - पता नहीं आज कल के बच्चे... क्या क्या व्रत करते रहते हैं... अरे इस उम्र में... अच्छी पत्नी के लिए व्रत रखो... वह भी शिव मंदिर में जा कर... हनुमान जी का व्रत किस लिए...
विश्व - अच्छी सेहत और ताकत के लिए...
तभी क्लास के अंदर रोहित आता है l सभी क्लास के भीतर बैठे हुए हैं पर विश्व वैसे ही खड़ा रहता है l
रहित - अरे प्रताप... खड़े क्यूँ हो बैठ जाओ...
विश्व - नहीं रोहित... मैं आज बैठ नहीं सकता...
रोहित - क्यूँ...
रुप - वह असल में...
रोहित - तुम क्यूँ बोल रही हो... आई आस्क्ड हिम ना..
रुप - बट आई नो हिज प्रॉब्लम... ही वोंट टेल यु...
रोहित - रियल्ली... क्यूँ प्रताप... क्या बात है...
विश्व - (मुस्कराते हुए) क.. कुछ नहीं रोहित... सी इज़ जस्ट कीड्डींग...
रुप - नो रहित... आई एम क्वाइट सीरियस...
रोहित - देन यु टेल मि....
रुप - (प्रताप की ओर देखती है, प्रताप उसे अपना सिर हिला कर ना बोलने को कहता है) रोहित... प्रताप को... पाइल्स है...
विश्व और रोहित - व्हाट...
विश्व - रोहित... यह झूठ बोल रहीं हैं...
रुप - व्हाट... मैं झूठ बोलूंगी... सी रोहित... खाली बस में भी खड़े खड़े आए हैं...
रोहित - वन मिनट... प्रताप... तुम तो क्लास में बैठे हुए थे ना... और ड्राइविंग के टाइम... मेरे पास... मेरे साथ बैठे थे...
रुप - ऑफकोर्स रोहित... पर तुम्हारी ड्राइविंग टेक्नीक देख कर... उनकी पाइल्स फट कर निकल गई...
फ्लैशबैक विराम
शुभ्रा अपनी पेट पकड़ कर हँसती है l रुप भी उसे हँसते देख कर उसके साथ हँसने लगती है l
शुभ्रा - ओह... गॉड... (हैरानी भरी लहजे में) नंदिनी... आम तौर पर... लड़के ल़डकियों को छेड़ते हैं... तुम तो... ओह माय गॉड... तुममें यह एंगेल भी है...
रुप - (हौले से मुस्करा देती है)
शुभ्रा - बेचारा प्रताप... तुमने उसका क्या हाल बना दिया था उस दिन... वह तुमसे नाराज नहीं हुआ...
रुप - (शर्मा कर सिर झुकाते हुए) नहीं भाभी...
शुभ्रा - अच्छा... मतलब तुममें दोस्ती बरकार रहा...
रुप - दोस्ती... वह तो कल हुई... वह भी पहल करते हुए मैंने की...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... मतलब... ड्राइविंग स्कुल में चार दिनों के बाद.... तुम्हारे और प्रताप के बीच दोस्ती हुई.... (एक गहरी सांस लेते हुए थोड़ी देर चुप हो कर) खैर... दोस्ती के बाद तुमनें प्रताप का ऐसा कौनसा पहलु देख लिया... की तुम उसे समझ नहीं पाई....
रुप शुभ्रा की ओर देखती है और
फ्लैशबैक
भाश्वती और रुप एक जगह बैठे हुए हैं l भाश्वती सुबक रही है l
रुप - (चिढ़ कर, उठ खड़ी होती है) अरे यार... पंद्रह मिनट हो गए हैं... तुझे रोते हुए... अब तो मुझे बता दे क्या हुआ है... मुझसे कैसी मदत चाहिए तुझे....
भाश्वती - वही... जो पहले दिन स्कुल आते हुए... मैंने बस स्टॉप में किया था... तेरी आइडेंटिटी का इस्तमाल...
रुप - व्हाट... पर क्यूँ... तुने ही तो बताया... वह ऑटो वाला और उसका साथी तुझे स्टॉल्क नहीं कर रहे हैं... फिर...
भाश्वती - उसी हरामी के वजह से तो... अब मैं बड़ी मुसीबत में फंस गई हूँ...
रुप - क्या... क्या किया इस बार उसने...
भाश्वती कुछ कहने के वजाए सुबकने लगती है l रुप उसके बगल में बैठ जाती है और भाश्वती को रोते हुए देखती है l फिर अपनी हथेली में अपनी चेहरे को लेकर कोहनी को घुटने पर रख कर भाश्वती की चुप होने की इंतजार करने लगती है l कुछ देर बाद भाश्वती का सुबकना थम जाता है l
भाश्वती - कितनी डफर है तु... रो रही हूँ... कम से कम पीठ को मेरी थपथपा सकती थी...
रुप - बस कर... रो लेने से ग़म हो या दर्द... दुर तो नहीं होती पर हल्का जरूर हो जाती है... इसलिए तुझे मैंने रोने दिया... अब बता क्या हुआ...
भाश्वती - उस दिन प्रताप के वजह से वह ऑटो वाला और उसका साथी... अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाए... तो रोज स्टॉल्क करने लगे... मैं इग्नोर करती रही... उनका हिम्मत दो दिन पहले बहुत बढ़ गया था... परसों की बात है... मैं ड्राइविंग स्कुल से लौट कर घर जा रही थी... ठीक हमारे घर के गली की मोड़ पर मेरे सामने खड़े हो गए... फब्तीयाँ कसने लगे... मैं फिर भी इग्नोर करते हुए आगे बढ़ रही थी कि अचानक एक ने मेरा हाथ पकड़ लिया... मैं छुड़ाने की कोशिश करने लगी... जब छुड़ा नहीं पाई तो चिल्लाने लगी... अंकल... आंटी... काका... काकी... बबलु... दिनेश भैया... मेरी चीख सुन कर... हमारे कालोनी के सारे लोग इकट्टा हो गए... फिर भी.. वह हरामी कुत्ते अपनी हेकड़ी दिखाने से बाज ना आए... फिर तो लोगों ने आव देखा ना ताव... ऐसी मरम्मत की... के मुझे लगा वह कमबख्त फिर कभी मुझे क्या और किसी लड़की को नहीं छोड़ेंगे... (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) मैं गलत थी... उन लोगों ने एक बेवकूफी भरा कदम उठाया... जो मेरी गर्दन पर आ गई...
रुप - क्या किया उन्होंने...
भाश्वती - उन्होंने मुझे डराकर राजी कराने के चक्कर में... उस इलाके की गुंडे को मुझे डराने के लिए सुपारी दी...
रुप - (चौंक कर) व्हाट...
भाश्वती - हूँ...
रुप - तो क्या वह गुंडा... तुझे डराने आया...
भाश्वती - डराने आता तो ठीक था... पर कुछ और हो गया...
रुप - ओ हो... तु सस्पेंस क्यूँ बढ़ा रही है...
भाश्वती रुप की ओर देखती है
एक छोटा सा फ्लैशबैक
भाश्वती कॉलेज जाने के लिए बस स्टॉप पर खड़ी है l एक आदमी उसके पास चल कर आता है l वह आदमी सफेद कपड़ों में था, गले में उसके सोने का चेन था वह भी बहुत मोटा I उसके शर्ट के कलर उठा हुआ था I तेल से सने बालों को कंघी किया हुआ था और आँखों में काला चश्मा चढ़ाए हुए था l
आदमी - वाव.. यह चिरकुट लोग बोले थे मेरे को... तु एक झकास आईटॉम है... साले झूठ बोले थे मेरे को... तु आईटॉम नहीं बल्कि अटॉम बॉम्ब है...
भाश्वती - ऐ मिस्टर... माइंड योर टंग... क्या बकवास किए जा रहे हो...
आदमी - आह... क्या मस्त आवाज है तेरी... वह इंग्लिश में क्या बोलते हैं... हाँ.. हनी... बिल्कुल वही...
भाश्वती - बकवास बंद करोगे... या चिल्ला कर इकट्ठा करूँ लोगों को...
आदमी - ऐ छप्पन छुरी... मैं इधर तेरी मदत को आया है... यह देख...
अपनी उंगलियों को मोड़ कर जीभ के नीचे रख कर सिटी बजाता है, दूर खड़े एक वैन से कुछ मवाली टाइप के लोग उतरते हैं, उन्हें देख कर वह आदमी चिल्ला कर
आदमी - उन दो चिरकुट को यहाँ लेकर आओ...
उसके आदमी ऑटो वाले को और उसके साथी को इन दोनों के पास लेकर आते हैं l
आदमी - (ऑटो वाले से) क्या रे.. यही लड़की है क्या...
ऑटो वाला - हाँ... शंकर भाई.. यही वह नकचढ़ी लड़की है...
शंकर - (एक झन्नाटे दार थप्पड़ रसीद कर देता है) भाभी बोल बे कुत्ते...
ऑटो वाला - (अपना गाल सहलाते हुए) यह क्या शंकर भाई... मैंने तो आपसे सब कुछ बोला था... सिर्फ इसे डराने के लिए... पैसे भी दिए थे...
शंकर - (दोनों हाथों से उसके कलर पकड़ कर अपने तरफ खींच कर) सुन बे... यह आज से मेरी आईटॉम है... और फिर कभी इसके आस पास दिखा भी ना... तो तेरे इतने टुकड़े करूंगा... के चील कौवे बटोरते बटोरते थक जाएंगे... (फिर उसे धक्का देता है) चल जा इधर से... तेरे वजह से यह मेरे को मिली.. इसी खुशी में... तेरे को जिंदा छोड़ रहा हूँ... (अपने जेब से रिवॉल्वर निकाल ऑटो वाले को दिखाते हुए) अगली बार तु मेरे को... इस गली में छोड़... शहर में भी दिखना नहीं चाहिए क्या... वरना दौड़ा दौड़ा कर तुझे ठोक दूँगा... चल भाग यहाँ से...
ऑटो वाला और उसका साथी दोनों वहाँ से बिना पीछे मुड़े दुम दबा कर भाग जाते हैं l यह सब जो हो रहा था, अब तक भाश्वती के सिर के ऊपर से जा रहा था पर जब उसने शंकर के हाथ रिवॉल्वर देखी तब बात को कुछ कुछ समझने लगी I
शंकर - ऐ... क्या नाम है तेरा...
भाश्वती - (कहलाते हुए) ज..ज. जी.. भ.. भ.. भाश्वती...
शंकर - तेरा नाम मेरे जुबान पे चढ़ नहीं रहा... कई नहीं... मैं तेरे को बाती बुलाएगा... हाँ तो बाती... कौनसे कॉलेज में पढ़ती है...
भाश्वती - XXXX कॉलेज...
शंकर - ठीक है... कल से मैं तेरे को अपनी गाड़ी में बिठा कर कॉलेज में छोड़ेगा... और लाएगा...
भाश्वती - क.. क.. क्यूँ...
शंकर - क्यूंकि आज से तु मेरी है... इस शहर में कोई नहीं है... जो मेरे पर हाथ डाले या पंगा ले... क्यूं के पुरा शहर मेरे को... सेक्शन शंकर के नाम से जानता है...
भाश्वती - (रुलाई फुट जाती है)
शंकर - ठीक है... रो मत... मैं तेरे को इतवार तक टाइम देता है... सोम वार से मैं ही तेरे को कालेज में छोड़ेगा और लाएगा... गाड़ी बोले तो... बाइक... समझी क्या...
भाश्वती की फ्लैशबैक खतम
रुप - वह तो तुझे सोमवार से छोड़ेगा बोला था ना... फिर तु आज क्यों कॉलेज नहीं आई..
भाश्वती - समझने की कोशिश कर... मैं... कल से शॉक में थी... मम्मी को भी अभी तक नहीं बताया है... अगर बताया तो... (रोते हुए) पता नहीं उन पर क्या गुज़रेगी...
रुप - ओ... इसके लिए... तु मेरी आइडेंटिटी का फ़ायदा उठाना चाहती है...
भाश्वती - (सुबकते हुए) हूँ...
रुप - आइडेंटिटी से बढ़िया है कि... यह मैटर मैं वीर भैया को कह दूँ...
भाश्वती - तु कुछ भी कर यार... मुझे बस उस सेक्शन शंकर से छुटकारा दिला दे... तुझे यकीन है... तेरे वीर भैया... उससे भिड़ने को तैयार हो जाएंगे...
रुप - पता नहीं... पर बताना तो पड़ेगा ही... उसके बाद कैसे रिएक्ट करेंगे... यह भी देखना पड़ेगा...
कुछ देर के लिए दोनों चुप हो जाते हैं l इन दोनों की हरकतें दुर से विश्व देख रहा था I उसे याद आता है बस में भाश्वती का चेहरा डर और दुख के वजह से उतरा हुआ था, और उसे दो लड़कों ने छेड़ने की कोशिश भी किया था l एक गहरी सांस छोड़ते हुए उन दोनों की तरफ उसका कदम बढ़ जाता है l
विश्व - मैं आई डिस्टर्ब यु.. (रुप और भाश्वती दोनों उसके ओर देखते हैं)
रुप - जी कहिए...
विश्व - (भाश्वती के सामने एड़ियों पर बैठ कर) आज जब से देख रहा हूँ... तब से इस ख़तरनाक शेरनी का चेहरा उतरा हुआ है... मैं समझ सकता हूँ... समस्या के पीछे वह लड़के जरूर थे... अगर हाँ... तो बताओ मुझे...
भाश्वती - (बिदक जाती है) तुम्हें बताने से क्या होगा... जिस तरह वह लोग तुम्हें मारे... वह सेक्शन शंकर भी मारेगा... या मार देगा...
विश्व - (नाम सुनते ही कुछ सोचने लगता है) सेक्शन शंकर... इसका पुरा नाम शंकर गौड़ है ना...
भाश्वती - हाँ...
विश्व - अच्छा... बताओगी क्या हुआ...
भाश्वती वही सब बातेँ दोहराती है जो उसने रुप को कहा था l सब सुनने के बाद
विश्व - ह्म्म्म्म... तब तो वह मेरी ही बात समझेगा... समझ जाएगा...
भाश्वती - पागल हो गए हो तुम... तुम जानते भी हो... वह क्या है...
विश्व - अच्छी तरह से... मैंने तुम्हें जुबानी बहन नहीं कहा है... माना भी है... (खड़े हो कर) अगर भरोसा कर सको तो अपने इस भाई पर भरोसा करो...
रुप - (खड़ी हो जाती है) हो... यह हम दो दोस्तों की प्रॉब्लम है... तुम कहाँ से बीच में घुस गए...
विश्व - (एक गहरी सांस लेकर छोड़ते हुए) कुछ मैटर... बॉयज कैन हैंडल बेटर देन गर्ल...
रुप - (गुस्से से विश्व की कलर पकड़ लेती है) हाउ डैर यु... (धकेलते हुए) हम लड़कियों को कमजोर कहने की...
विश्व - (पीछे हटते हुए) मैंने ऐसा कब कहा.. मैंने बस इतना कहा कि कुछ मैटर हम लड़के... अच्छे से डील कर सकते हैं...
रुप - (धकेलते हुए)ऐ... मैं तुमको इस मैटर में घुसने नहीं दूंगी...
विश्व - (पीछे हटते हुए) पर क्यूँ...
रुप - (आगे बढ़ते हुए) क्यूंकि... वह मेरी दोस्त है... उसने सारी प्रॉब्लम... मुझे पहले बताया है... तुम क्यूँ बीच में टपक पड़े... और.... और तुम मेरे दोस्त भी तो नहीं हो...
विश्व - (रुक जाता है) तो ठीक है... बना लीजिए... मुझे अपना दोस्त...
रुप - (हैरान हो कर) क.. क्क्या...
विश्व - मैंने कहा... फिर बना लीजिये मुझे अपना दोस्त...
कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है l रुप लंबी लंबी सांसे लेने लगती है l दोनों की नजरें आपस में मिलती है और ठहर जाती है l इसका आभास होते ही दोनों अपनी अपनी नजरें हटा लेते हैं l फिर रुप अपना दाहिना हाथ कलर से हटा कर विश्व की ओर बढ़ा कर
रुप - ट्..ठीक है... दोस्त...
विश्व - (मुस्कराते हुए) वाह... क्या दोस्ती बनाई जा रही है... एक हाथ में मेरा गिरेबान पकड़े हुए हैं... और दुसरा हाथ दोस्ती के लिये बढ़ा रहे हैं...
रुप को जैसे ही एहसास होता है वह झट से अपना हाथ विश्व के कलर से हटा देती है l थोड़ी असमंजस सी हो जाती है, फिर खुद को संभालते हुए
रुप - ओ ह्... ओके... ठीक है... यह लो... (अपना हाथ बढ़ाती है) दोस्त...
विश्व - (कुछ सोचता है फिर मुस्कराते हुए) दोस्त... (हाथ मिला देता है)
फ्लैशबैक में विराम
शुभ्रा - रुको रुको... (हँसते हुए हैरानी भरे आवाज में) तुमने पहली बार किसी लड़के से दोस्ती की... वह भी उसके शर्ट की कलर पकड़ कर... हा हा हा हा हा हा... वाह क्या अनोखा स्टाइल है दोस्ती करने की... हा हा हा हा...
रुप - (बिदक कर) हुँह्हँह्... आपको हँसी आ रही है... मुझे उस वक़्त कितना एंबार्समेंट फिल हो रहा था... जानती हैं...
शुभ्रा - ओह.. नंदिनी... दिस इज़ अल्टीमेट... एक नायाब दोस्ती की आगाज़...
रुप - भाभी... आपने अगर मुझे ऐसे ही छेड़ा... तो.. तो मैं नहीं बताऊंगी...
शुभ्रा - (अपनी हँसी रोकते हुए) ओके ओके... ह्म्म्म्म... आगे क्या हुआ...
फ्लैशबैक
दोस्ती के लिये हाथ मिलाने के बाद दोनों फिर भाश्वती के पास आते हैं l
विश्व - तो... आज शाम मैं और तुम... शंकर गौड़ के पास जाएंगे.... तुम्हारे आँखों के सामने उसे समझाउंगा... देखना... वह फिर कभी तुम्हें क्या... किसी और लड़की को परेशान नहीं करेगा...
भाश्वती - (हैरानी से आँखे फैला कर) क्या... मैं उससे छुटकारा पाने की सोच रही हूँ... तुम मुझे उसके पास लेकर जाना चाहते हो...
रुप - हाँ... हम उसके पास क्यों जाएं...
विश्व - उसकी हरकतों को बंद करवाने के लिए... उसके पास तो जाना ही पड़ेगा ना...
रुप - ओ...(भाश्वती कुछ कहने को होती है) चुप... तु चुप... (विश्व से) एक मिनट... (कह कर भाश्वती को विश्व से थोड़ी दुर लेकर जाती है) तु ऐसे क्यूँ रिएक्ट कर रही है...
भाश्वती - यह मार खाने वाला... शंकर को कैसे समझायेगा...
रुप - तुझे... मुझ पर भरोसा है ना...
भाश्वती - हाँ..
रुप - तो सुन... आई कैन बेट ऑन हिम...
भाश्वती - (हैरान हो कर) क्या... (फिर वह विश्व की तरफ देखती है)
विश्व उन दोनों को जिज्ञासा भरे नजरों से देख रहा था l भाश्वती को लेकर रुप विश्व के पास आती है l
रुप - तो हम स्कुल के बाद जाएंगे...
विश्व - आप क्यूँ जाएंगी...
रुप - ओ हैलो... यह मेरी दोस्त है... अगर मैं नहीं गई... तो यह भी नहीं जाएगी...
विश्व भाश्वती की ओर सवालिया नजरों से देखता है l
भाश्वती - हाँ... मेरी भी यही शर्त है...
विश्व - ठीक है...
ड्राइविंग सेशन खतम होते ही विश्व रुप और भाश्वती स्कुल के बाहर आते हैं l विश्व एक ऑटो को रुकवाता है l ऑटो के रुकते ही दोनों को बुलाता है l
भाश्वती - नंदिनी... फिर से सोच लेते हैं यार... यह हमें मरवाएगा...
रुप - तु फिक्र क्यूँ कर रही है... मैं तेरे साथ हूँ ना... इस पर नहीं तो मुझ पर तो भरोसा रख...
भाश्वती - ठीक है...
दोनों ऑटो में आकर बैठते हैं l विश्व आगे ड्राइवर के पास बैठ जाता है और उसे एक अड्रेस देकर चलने के लिए कहता है l
भाश्वती - (धीरे से रुप से) लगता है... यह सेक्शन शंकर के बारे में... अच्छी तरह से जानता है...देख ना... उसका अड्रेस तक जानता है..
रुप - तु थोड़ी देर... अपना बक बक बंद कर... मैंने तुझसे पहले ही कहा था... आई कैन बेट ऑन हिम...
भाश्वती - कैसे... मैंने देखा है... उनके हाथों इसे पीट्ते हुए...
रुप - हाँ... और वह मार खाने के खुशी में... सिटी मारते हुए आया था... है ना...
भाश्वती चुप हो जाती है l रुप भी भाश्वती से और बातचीत ना करने के लिए ऑटो से बाहर देखने लगती है l करीब बीस मिनट के बाद ऑटो एक ऑफिस के आगे रुकती है l ऑफिस के गेट पर लगे एक बड़े से आर्क में कला निकेतन प्रोडक्शन ऑफिस लिखा हुआ है l बाहर गेट पर दरवान उन्हें रोकता है विश्व देखता है दरवान के सीने पर RGSS लिखा हुआ है l विश्व दरवान को दोनों लड़कियाँ दिखा कर कुछ कहता है, तो वह दरवान फौरन अंदर जाता है l फिर थोड़ी देर बाद भागते हुए गेट खोल देता है l तीनों अब अंदर आ जाते हैं l एक दो तीन मवाली टाइप के मुस्टंडे इन लोगों के पास भाग कर आते हैं l उनमें से एक भाश्वती से
एक - आइए.. भाभी आइए... भाई आपके राह में... पलकें बिछाये बैठे हैं...
इतना सुन कर भाश्वती गुस्से से अपनी जबड़े भींच कर पहले विश्व की तरफ और फिर रुप को देखती है l विश्व अपनी आँखे बंद करके अपना सिर हिलाता है जैसे इशारे में कहा हो कि
"फिक्र ना करो.. मैं हूँ ना"
रुप भी विश्व की तरह अपनी आँखे बंद कर सिर हिला कर दिलासा देती है
"घबरा मत.. मैं हूँ ना"
तीनों कमर के ऊँचाई के बराबर एजबेस्टस के दीवार पर कांच से बने एक ऑफिस के चैम्बर में आते हैं l तीनों एक नजर घुमाते हैं l दीवार पर एक वेल्वेट बोर्ड लगा हुआ जिस पर कुछ टीवी सीरियल और म्युजिक एल्बम के पोस्टर लगे हुए हैं l एक तरफ सोफा सेट है और उसके सामने एक टेबल पर पैर फैलाए शंकर बैठा हुआ है वही सफेद कपड़े, गले में मोटा सा सोने की चेन और आँखों पर काला चश्मा l
शंकर - देख लिया... बढ़िया है ना... मेरा यह ऑफिस... पुरे भुवनेश्वर में.. मेरे इस ऑफिस चर्चे हैं... पूछो क्यूँ...(अपने चेयर से उठता है और सबके सामने आकर टेबल पर पिछवाड़ा टीका कर खड़ा रहता है) क्यूँ के वह दुसरे लोग होते हैं... जो ऑफिस के बंद कमरे में... छुप के काम करते हैं... मैं इधर सबकुछ खुल्लमखुला करता है... इसलिए कमर के हाइट तक एजबेस्टस है... बाकी पुरा का पुरा काँच है... (तीनों चुप रहते हैं, शंकर भाश्वती से) डार्लिंग... तेरे को मेरा ऑफिस ही देखना था... तो बोल देती... मैं गाड़ी भिजवाता... पर तेरे साथ यह नमूना और यह पटाखा कौन हैं...
भाश्वती को बहुत डर लग रहा था l वह खुद को कोस रही थी क्यों उसने विश्व और रुप की बात मान कर यहाँ आई l वह सिर झुकाए खड़ी रहती है l
विश्व - जी... मैं इनका भाई हूँ... और इस बारे में... आपसे बात करने आया हूँ...
शंकर - ओ... हे हे.. हे हे हे हे... मैं तो सोचा था लौंडीया नमकीन निकलेगी... मेरे ही ऑफिस में... मेरे से मांडवली करने अपने भाई को साथ लाई है... अरे वाह... तु तो तीखी भी है... अब तो मजा ही आ जाएगा... (विश्व से) मैं जानता है इसको... इसके पुरे खानदान को... इसका भाई फॉरेन गया है... (अपनी आवाज कड़क कर के) ऐ... इस शहर में... मैं ही सबका भाई है... पर इस छम्मकछल्लो के लिए सैंया है... इसलिए मेरे सामने कोई भाई गिरी नहीं क्या...
विश्व - देखिए... मैं आपको समझाने आया हूँ...
शंकर - पर मैं समझेगा कायकु... अब समझना तेरे को है... मैं क्या चीज़ है...
इतना कह कर शंकर टेबल पर रखे एक बेल को बजाता है l कुछ ही सेकंड में दस से बारह लोग अंदर आकर इन सबको घेर कर खड़े हो जाते हैं l शंकर उन लोगों इशारा करता है तो वह लोग एक साथ विश्व को पकड़ लेते हैं l
विश्व - (गिड़गिड़ाते हुए) शंकर भाई.. मुझे सिर्फ दो मिनट का टाइम दीजिए... मैं आपसे अकेले में बात करना चाहता हूँ.. सिर्फ दो मिनट... उसके बाद आपके जो मन में आये वह कीजिए...
शंकर इशारा करता है l वह सारे लोग विश्व को छोड़ देते हैं और बाहर चले जाते हैं l यह सब देख कर रुप के माथे पर शिकन पड़ जाती है l
विश्व - (रुप और भाश्वती की ओर देख कर) प्लीज... आप लोग भी बाहर जाएं... मैं शंकर भाई से बात करूंगा... प्लीज...
रुप और भाश्वती का हैरानी से मुहँ खुला का खुला रह जाती है l वह भारी कदमों में चेंबर के बाहर चले जाते हैं l अब कमरे में सिर्फ दो लोग हैं शंकर और विश्व l बाहर आकर भाश्वती और रुप खड़ी हो कर कांच दीवार पार जो हो रहा है उसे देखते हैं l
भाश्वती - बड़ी बड़ी फेंक रही थी... आई कैन बेट ऑन हिम... देखा हमारे ही सामने कैसे गिड़गिड़ाया... वह मुझे क्या बचाएगा...
रुप - (काँच के पार विश्व और शंकर को देखते हुए) मैं भी हैरान हूँ... यह सुरज पश्चिम से कैसे निकल रहा है...
भाश्वती - क्या मतलब... तुम पहले कभी प्रताप से मिली हो...
रुप - (संभल कर) नहीं... बिल्कुल नहीं... खैर अगर यह फैल होता भी है... तो भी घबरा मत... वीर भैया या विक्रम भैया किसी को भी बुला लुंगी...
भाश्वती - तेरे वजह से हिम्मत कर आई हूँ... वह देख... प्रताप हाथ जोड़ रहा है..
उधर चेंबर के अंदर विश्व हाथ जोड़ कर शंकर के सामने खड़ा हो जाता है l उसे हाथ जोड़ कर खड़ा देख कर शंकर हँसता है और
शंकर - हाँ बे... मेरी लैला का भाई... साले कुत्ते भोंक... क्या भोंकना है तुझे... तु घबरा मत... यह चेंबर साउंड प्रूफ भी है...
विश्व - अहेम... अहेम... (खरासते हुए गला ठीक करता है) शंकर भाई... उर्फ़ सेक्शन शंकर... उर्फ़... संकर्षण मुदुली...
शंकर - (चौंक कर) क्या... क्या बोला तुमने...
विश्व - सोलह साल का संकर्षण मुदुली... गंजाम जिले के सोरडा गांव का निवासी... एक दिन ट्रेन के लूटपाट के केस में दोषी पाया जाता है... उसे अदालत ब्रह्मपुर जुवेनाइल जैल भेज देती है... उसी जैल में बालिग़ होने तक रुकना था पर.... डॉक्यूमेंट्स के गलती के चलते छह महीना ज्यादा सजा काट गया... एक दिन खाने को लेकर वार्डेन के साथ कहा सुनी हो जाती है... संकर्षण उस वार्डेन के सिर पर डंडा मार कर भाग जाता है... क्यूंकि उस वार से वार्डेन की मौत हो जाती है.... भागते भागते आ पहुँचता है... भुवनेश्वर में... किस्मत से उसकी रंगा नाम के आदमी से मुलाकात होती है... इसबार वह अपना नाम... शंकर गौड़ बताता है... और अपने बाप ओंकार चेट्टी से मिलवाता है... और चेट्टी केके से... केके उसे अपने लेबर सप्लाई का सुपरवाइजर बना देता है... धीरे धीरे कंस्ट्रक्शन लेबर यूनियन बना कर उनका लीडर बन जाता है... शंकर गौड़ से सेक्शन शंकर.... उसके बाद शंकर की दोस्ती केके के लड़के विनय से होती है... विनय फ़िल्मों का दिवाना था... तुम उसके साथ मिलकर यह कला निकेतन प्रॉडक्शन हाउस बनाया है... नए टैलेंट को बढावा देने के नाम पर... नए नए लड़कियों को फंसा कर अपने नीचे लाते हो....
शंकर - (विश्व को मुहँ फाड़े सुन रहा था) यह... यह सब... तुम कैसे जानते हो...
विश्व - (वैसे ही हाथ जोड़े) एक दिन ब्रह्मपुर पुलिस संकर्षण को ढूंढ़ते हुए भुवनेश्वर आई... उसी वक़्त शंकर गौड़... एक पुराने केस में... भुवनेश्वर पुलिस के आगे सरेंडर करते हैं... और ट्रायल के लिए रिमांड खतम होने तक सेंट्रल जैल में ठहराया जाता है... हाँ यह बात और है... वह केस भी नकली था और उस केस में नाम दर्ज इंसान भी नकली था... ब्रह्मपुर पुलिस के हाथों कुछ नहीं लगा... और तुम शंकर गौड़ हो... यह स्थापित हो गया... तुम्हारा काम बन चुका था... फिर भी डर तो था... के कहीं तुम्हारे उंगलियों के निशान पुलिस के सामने ना आ जाए... इसलिए हमेशा इसी कोशिश में रहते हो... हर वक़्त ग्लॉव्स पहने रहते हो... जैसे अभी पहने हुए हो... (शंकर अपने हाथों को देखता है) जैल में था... अपना नाजायज़ बाप रंगा का काम अधूरा था... इसलिए सेंट्रल जैल के एक कैदी को शंकर ने ललकारा... वह इग्नोर करता रहा... फिर शंकर और उसके साथियों ने हर मौके पर... उस कैदी को माँ बहन की गाली बकने लगे... वह मजबूर होकर शंकर का चैलेंज एक्सेप्ट किया... जैल की मशहूर फाइट... साटर डे स्कैरी नाइट साल्यूशन... फाइट में शंकर तेजी से हाथ चलाए पर यह क्या... उसे लगना तो दूर छु भी नहीं पाए... फिर शंकर के साथी भी मैदान में उतर कर उस कैदी से भीड़ गए... बिल्कुल रंगा की साथ हुई घटना का... एक्शन रिप्ले करने... वह कैदी शंकर को लात मारा... शंकर उड़ते हुए गिरा... उसके बाद एक घुसा पेट पर मारा... शंकर.... मुहं से खून की उल्टी करते हुए कटे हुए पेड़ की तरह गिर गया... वह कैदी एक जग पानी लाकर शंकर को होश में आने तक छींट मारता रहा... शंकर होश में आया... जब शंकर आँखे खोला... उसके सिर के उपर उस कैदी बैठा देख कर... डर के मारे मूत दिया... याद है...
शंकर - (अपनी हलक से थूक बड़ी मुश्किल से निगलता है)
विश्व - वह कैदी तुम पर झुका... तुम्हारे सिर के बालों को पकड़ कर तुम्हारे चेहरे को उठाया... और तुम्हारे कानों में... तुम्हारी कुंडली की राशी नक्षत्र कहने के बाद... चेतावनी दी... दोबारा कभी मत दिखना... वरना जिस नाम का आधार कार्ड बना कर सरकार के जनगणना लिस्ट में से झाँक रहा है... उसी लिस्ट से हमेशा के लिए गायब हो जाएगा.... याद है...
शंकर के चेहरे पर पसीने की धारें बहने लग गई l वह रुमाल निकाल कर अपना चेहरा पोंछता है फिर विश्व के आगे घुटने पर आ जाता है l
शंकर - व... वी.. विश्वा भाई... म... म.. मुझे माफ़ कर दो... मैं... मैं... आपको पहचान नहीं पाया... आपके बाल छोटे हो गए हैं... और चेहरे पर दाढ़ी नहीं है... पहचान नहीं पाया...
विश्व - (अपनी जबड़े भींच कर, और आवाज़ कड़क कर) मैंने यह भी कहा था... मेरा नाम... कभी अपने जुबान पर मत लाना...
शंकर - ग.ग.गलती हो गई भाई... अभी जुबान पर आपका नाम... कभी नहीं आएगा...
काँच के दीवार के पर शंकर को हाथ जोड़ कर खड़े हुए विश्व के सामने घुटने टेक कर बैठे हुए देख कर रुप और भाश्वती दोनों की आँखे बड़ी हो जाती हैं l वह देखते हैं विश्व अपनी जगह से आगे बढ़ता है और दरवाजा खोल कर उन्हें अंदर बुलाता है l रुप और भाश्वती अंदर जाते हैं l
विश्व - शंकर भाई... यह रही (भाश्वती को दिखाते हुए) यह मेरी बहन...
इतना कह कर विश्व टेबल के पास जाता है और टेबल पर रखे उस बेल को बजाता है l बेल बजते ही शंकर खड़ा हो जाता है l तभी दरवाजा खोल कर दस बारह आदमी चेंबर में घुस जाते हैं और विश्व को कस के पकड़ लेते हैं l
शंकर - (चिल्ला कर) छोड़.. इन्हें.. छोड़ो... (सबकी पकड़ ढीली हो जाती है) अबे... हराम खोरों... मैं कहता हूँ छोड़ो...
सब के सब विश्व को छोड़ देते हैं l शंकर अपना हाथ जोड़ कर भाश्वती के सामने खड़ा हो जाता है l
शंकर - बहन... माफ कर दो बहन... प्लीज...
भाश्वती रुप की ओर देखती है और दोनों एक दुसरे को मुहँ फाड़े देखते हैं और विश्व के पास सट कर खड़े होते हैं l
शंकर - (भाश्वती से) देखिए बहन... आज से आप मेरी बहन हुईं... अगर आपको कभी कोई तकलीफ हुई... तो (विश्व से) इन भाई साहब को तकलीफ मत दीजिए... मुझे... मुझे बोलिए... मैं... मैं सब ठीक कर दूँगा... बस आप इतना कह दीजिए की मुझे माफ कर दिया....
कमरे में मौजूद सभी लोगों को शंकर को भाश्वती के सामने ऐसे गिड़गिड़ाते हुए देख कर शॉक लगता है l रुप और भाश्वती भी एक दुसरे को देखने लगते हैं l
शंकर - प्लीज बहन प्लीज...
भाश्वती - (होश में आ कर) हाँ... हाँ.. माफ किया...
विश्व - (हाथ जोड़ कर) अच्छा शंकर भाई... अपना खयाल रखना... और कहा सुना माफ करना...
इतना कह कर विश्व रुप और भाश्वती को लेकर बाहर चला जाता है l उन लोगों के आँखों से ओझल होते ही पास पड़े सोफ़े पर शंकर बैठ जाता है l उसके गुर्गों में एक आदमी पूछता है
एक - क्या भाई... यह कौन था...
शंकर - वह... वह उस लड़की का भाई था... मतलब मेरा भाई... मेरा मतलब तुम सबका भाई...
बाहर पहुँचने के बाद रुप विश्व के सामने खड़ी हो जाती है l विश्व देखता है रुप की आँखों में बहुत से सवाल हैं l विश्व अपनी नजरें फ़ेर लेता है l
रुप - तुमने ऐसा क्या कहा... कि वह घुटनों पर आ गया...
विश्व - मैंने उसे... सब सच कहा...
रुप - कैसा सच...
विश्व - मैंने कहा कि... मेरी माँ एक वकील है... और कामकाजी महिलाओं के संस्थान की अध्यक्षा हैं... और दो चार कानून के सेक्शन बताया... तो वह घुटनों पर आ गया...
रुप - (चिल्ला कर) क्या मैं तुम्हें बेवकुफ दिखती हूँ...
विश्व - अरे (भाश्वती से) अच्छा बहन तुम ही बताओ... मैं शंकर दादा के समाने हाथ जोड़ कर बात कर रहा था... या नहीं...
भाश्वती - हाँ... आप जोड़ कर खड़े थे... (रुप से) सही कह रहे हैं यार...
रुप विश्व के सामने हट जाती है l तीनों थोड़ी दुर चलने के बाद एक ऑटो करते हैं और भाश्वती के गली का पता बताते हैं l ऑटो भाश्वती के घर के सामने रुकती है l भाश्वती उतर कर विश्व को देखती है l विश्व ऑटो वाले को पैसे देकर विदा कर देता है l ऑटो वाले के जाते ही भाश्वती भाग कर विश्व के गले लग जाती है l
भाश्वती - थैंक्स भैया... (सुबकने लगती है)
विश्व - अरे प्रॉब्लम तो सॉल्व हो गया ना... फिर रो क्यूँ रही हो...
भाश्वती - (सुबकती रहती है)
विश्व - सच कहूँ तो मैं... उस शंकर दादा को थैंक्स कह रहा था...
भाश्वती - (हैरान हो कर विश्व को देखती है)
विश्व - अगर वह यह सब नहीं करता... तो मुझे यह नकचढ़ी बहन कैसे मिलती...
भाश्वती - आँह्.. ह्.. ह्
विश्व को अपने बैग से मारने लगती है, विश्व भी मार लगने से दर्द होने की ऐक्टिंग करता है l
भाश्वती - बस भैया... उस दिन मैंने चाय के लिए पुछा... तुम आए नहीं... पर आज नहीं जाने दूंगी....
फ्लैशबैक खतम
शुभ्रा - ह्म्म्म्म तो प्रताप बाबु... उस शंकर को घुटने पर ला दिए...
रुप - यही तो... उसने ऐसा क्या कहा.... की एक पोलिटिकल गुंडा... जिसके पीछे पुलिस भी खड़ी है और पॉलिटिशियन भी... वह विश्व के सामने क्यूँ डर गया... और इतना डरा की.... भाश्वती को बहन कह दिया....
शुभ्रा - हम्म... फिर... फिर क्या हुआ...
रुप - फिर होना क्या था भाभी... मैंने प्लान करके प्रताप को बाहर पहले भेज दिया... बाद में गुरू काका को बुला कर घर आ गई...
शुभ्रा - क्यूँ...
रुप - (झिझकते हुए) वह इसलिए... की मैं अपनी आइडेंटिटी छुपाना चाहती थी... प्रताप से...
शुभ्रा - ओ... अच्छा... यह तो हुई कल की बात.... आज क्या हुआ...
रुप - आज... आज तो वह कमीनी भाश्वती... पुरे कॉलेज में... उछल उछल कर... फुदक फुदक कर... अपने नए भाई.... प्रताप के बारे में सबको बता रही थी...
शुभ्रा - तो...
रुप - तो क्या.. तो कुछ नहीं... सबने प्लान बनाया है... सोमवार को प्रताप से मिलने जाएंगे... हमारे साथ... ड्राइविंग स्कुल में...
शुभ्रा - वह तो ठीक है... ड्राइविंग स्कुल में... आज क्या हुआ...
रुप - मैं पुरी की पुरी सेशन... उससे आज दुर रही... ना उसके पास गई... ना उससे बात की...
शुभ्रा - क्यूँ...
रुप - क्यूँ... क्या मतलब क्यूँ...
शुभ्रा - तुमने पहल करी... उससे दोस्ती की.. अब उससे बात भी नहीं करना चाहती... क्यूँ...
रुप - भाभी... मैं जब भी उसे देखती हूँ... मेरे अंदर... अजीब सी कशमकश शुरु हो जाती है.... जैसे उसके अंदर से अनाम झांक रहा है... ऐसा मुझे लगता है... उसकी नजर... उसकी बातेँ... ऐसा लगता है... जैसे... अनाम ही मुझसे बातेँ कर रहा है... उसे देखते ही... मैं बिल्कुल अपने बचपन वाली हरकतें करने लगती हूँ... फिर अपने अंदर एक जंग लड़ती रहती हूँ... नहीं नहीं... यह अनाम नहीं हो सकता...
शुभ्रा - फर्ज करो... अगर यह अनाम हुआ तो...
रुप - कैसे... अनाम में इतनी हिम्मत कभी था ही नहीं... थोड़ा डरपोक सा था...
शुभ्रा - नंदिनी... उससे बिछड़े आठ बरस हो चुके हैं... यहाँ दुनिया एक पल में बदल जाती है... एक काम करो... वह अनाम है या नहीं... कंफर्म करो...
रुप - कैसे...
शुभ्रा - उसके गर्दन के पीछे तुम्हारा नाम गुदा है या नहीं... देख लो...
रुप - भाभी... आप मज़ाक कर रही हैं...
शुभ्रा - नहीं तो... तुम युँ तड़पने के वजाए... खुद को एस्क्युज करने के वजाए... आने वाले हफ्ते में कंफर्म करने की कोशिश करो... प्यार तुम्हारा है... दिल तुम्हारा है... और जिंदगी भी तुम्हारी है...
रुप - (चुप रहती है)
शुभ्रा - (उसे चुप देख कर) अच्छा... अब तुम सो जाओ... रात बहुत हो चुकी है...
इतना कह कर शुभ्रा वहाँ से चली जाती है l रुप कमरे की लाइट बुझा देती है l तभी खिड़की से चांद की रौशनी को आते देख कर बालकनी को जाति है और चौदहवीं के चांद को देखने लगती है l रुप के मुहँ से अपने आप निकल जाता है l
"अनाम"
वहीँ एक और शहर कटक में विश्व छत पर बैठा विश्व चांद की ओर देख रहा है l उसे महसूस होता है कि कोई इसके पीछे है l
विश्व - (बिना पीछे मुड़े) माँ.. तुम सोई नहीँ...
प्रतिभा - (उसके पास आकर बैठते हुए) क्यूँ उस चांद को घूर रहा है... उसमें वह नहीँ दिखेगी तुझे... अगर वह चंद्रमुखी होती तो जरूर दिखती... पर वह तो सुरज मुखी है... चांद में कैसे दिखेगी...
विश्व - माँ... प्लीज... तुम नंदिनी जी का नाम लेकर छेड़ो मत...
प्रतिभा - अरे... मैंने तो नाम लिया ही नहीं... मैं तो बस... राजकुमारी रुप की बात कर रही थी...
विश्व - ओह... सॉरी माँ...
प्रतिभा - अरे... इसमें सॉरी की क्या बात है... वैसे.. मैं सच में... नंदिनी के नामसे ही छेड़ रही थी...
विश्व - (मुस्करा देता है) माँ... (प्रतिभा के गोद में सिर रख देता है)
प्रतिभा - अच्छा यह बता... इतनी रात को... क्यूँ याद कर रहा है उसे... अपनी दिल की हालत अपनी माँ से कहने के वजाए... उस मुए चांद को कह रहा है...
विश्व - (झट से प्रतिभा के गोद से अपना सिर उठा कर) माँ... तुम मुझे फिर से छेड़ रही हो...
प्रतिभा - छेड़ नहीं रही हूँ... अपने बेटे की दिल का हाल जानना चाहती हूँ...
विश्व - क्या कहूँ माँ... जब भी नंदिनी जी को देखता हूँ.. मन में अंतर्द्वंद शुरु हो जाता है... उनकी बातेँ... बोलने का अंदाज... उनका गुस्सा... हुकुम देने का तरीका सब... सब ऐसा लगता है जैसे.. राजकुमारी जी हों... (चुप हो जाता है)
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... फर्ज कर... अगर वह सच में... राजकुमारी रुप सिंह हुई तो...
विश्व - (प्रतिभा की ओर देखता है) नहीं माँ... यह वह हो नहीं सकती...
प्रतिभा - यह हो सकती हैं... ऐसा तु मान नहीं पा रहा है... या मानना नहीं चाहता...
विश्व - (चुप रहता है)
प्रतिभा - अच्छा... तु ऐसे तड़पने के वजाए... कंफर्म क्यूँ नहीं कर लेता...
विश्व - (एक असमंजस सी चुप्पी साध लेता है)
प्रतिभा - सच तो यह है कि... तु खुद रुप के सामने जाना नहीं चाहता... क्यूंकि तेरी लड़ाई भैरव सिंह से है... क्षेत्रपाल के वज़ूद से है... और रुप उस वज़ूद से जुड़ी हुई है... तु लड़ाई छोड़ नहीं सकता... और छोड़ेगा भी नहीं... बस इस लड़ाई के बीच... तु रुप को देखना नहीं चाहता... क्यूंकि इस लड़ाई के लिए तु खुद को रुप के सामने जस्टीफाई करना नहीं चाहता... है ना...
विश्व - (कुछ देर की खामोशी के बाद) माँ... (प्रतिभा की ओर देखते हुए) तुम सच कह रही हो... सच्चाई यही है कि... मैं इस लड़ाई खतम होने तक... राजकुमारी जी के सामने नहीं जाना चाहता था... पर मेरी जिंदगी में नंदिनी जी... एक आँधी की तरह आ गई हैं... मैं उनसे बचना चाहता हूँ... पर उनकी कशिश ऐसी है... की चुंबक की तरह खिंचा चला जा रहा हूँ... मैं हर सुबह अपने आप से वादा करता हूँ... फिर शाम ढलते ढलते खुद से खीज ने लगता हूँ...
प्रतिभा - (विश्व के कंधे पर हाथ रखकर) सुन... अपनी दिल की आवाज़ सुन... कोई तो रास्ता होगा... तु ढूँढ... पता लगा... के वह नंदिनी ही है... या रुप नंदिनी सिंह क्षेत्रपाल है... पता कर...
कह कर प्रतिभा विश्व के पास से उठ जाती है और वहाँ से जाने लगती है l विश्व वहीँ बैठा रहता है और चांद की ओर देखने लगता है, उसके मुहं से अपने आप निकल जाता है
"राजकुमारी"
सर्वप्रथम धन्यवाद
Kala Nag भाई मेरी इच्छा का मान रखने के लिए। अब आते है अपडेट पर, अब अपडेट मेरी रिक्वेस्ट पर आया है तो रिव्यू भी थोड़ा बड़ा होगा, लेखक महोदय अगर थोड़ा बहुत बोर भी लगे तो भी बताना मत बस पढ़ लेना।
अभी के हालात देख कर लगता तो है कि शुभ्रा और विक्की जल्दी ही फिर से प्यार की राह पर एक साथ चलने लगगेंगे। वीर अपनी ही दुनिया में मस्त हो गया है जिसका नाम है अन्नू और उस दुनिया तक पहुंचने का मार्गदर्शक है विश्व।
वही अनाम और राजकुमारी तो एक दूसरे को पसंद करने लगे है मगर प्रताप और नंदिनी ने उन्हें एक दूसरे से मिलने से रोक रखा है। हर एक घटना वो चाहे भाश्वती की मदद हो या कर चलने का चैलेंज या फिर भाश्वती को छेड़ने वाले गुंडों से पिटने का नाटक करना। हर घटना दोनो को एक दूसरे के पास ला रही है और अब तो दोस्ती भी हो गई है।
मगर एक कड़वा और कठोर सच ये भी है कि दोनो एक दूसरे को अपनी असलियत किस तरह बता पाएंगे कि विश्व ने क्षेत्रपाल नाम को नेस्तनाबूद करने की कसम खाई है और इसके लिए वो सजायाफ्ता मुजरिम भी बन गया है तो रूप की शादी भी पक्की हो चुकी है। कुल मिलकर कहानी बहुत रोमांचक होती जा रही है और जिस दिन रूप ने विश्व का टैटू देख लिया उस दिन तो दोनो ही अपने को रोक नहीं पाएंगे और फिर होगी एक और बगावत शुरू क्षेत्रपाल खानदान में। क्या कहानी है, क्या ट्विस्ट है और कितने ही सारे एंगल है। मजा आ गया और रिक्वेस्ट पूरी करने के लिए एक बार फिर से धन्यवाद।
अनाम और राजकुमारी के प्यार और तड़प को देख कर मेरे पसंदीदा गाने की कुछ पंक्तियां लिख रहा हूं।
आहटें जाग उठीं रास्ते हंस दिये
थामकर दिल उठे हम किसी के लिये
कई बार ऐसा भी धोखा हुआ है
चले आ रहे हैं वो नज़रें झुकाए
दिल सुलगने लगा अश्क़ बहने लगे
जाने क्या-क्या हमें लोग कहने लगे
मगर रोते-रोते हंसी आ गई है
ख़यालों में आके वो जब मुस्कुराए
वो जुदा क्या हुए ज़िंदगी खो गई
शम्मा जलती रही रोशनी खो गई
बहुत कोशिशें कीं मगर दिल न बहला
कई साज़ छेड़े कई गीत गाए
वो जब याद आए बहुत याद आए
ग़म-ए-ज़िंदगी के अंधेरे में हमने
चिराग-ए-मुहब्बत जलाए बुझाए