अठासीवां अपडेट
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ब्लैकबोर्ड पर लिखे कुछ विषयों को अनाम पढ़ाते समझाते रुक जाता है, वह देखता है रुप अपने चेहरे पर एक हल्की सी मगर प्यारी सी मुस्कराहट लिए उसके तरफ एक टक देखे जा रही है l रुप का यूँ देखना अनाम को असहज कर देता है l
अनाम - र.. राज कुमारी जी... आआज... पढ़ने का मन नहीं है तो पढ़ाई रोक दें...
रुप जवाब में कुछ कहती नहीं, सिर्फ मुस्कान के साथ अपनी पलकें झपका देती है l
अनाम - (नज़रें चुराते हुए असहजता से) क.. क्या हुआ... राजकुमारी जी...
रुप - तुम्हें... कभी मुझ पर... गुस्सा नहीं आता...
अनाम - गुस्सा... किस लिए...
रुप - मैं तुम्हें इतना परेशान करती रहती हूँ... कभी कभी बेवजह डांट दिआ करती हूँ... अपनी बात तुमसे हर हाल में मनवाती रहती हूँ...
अनाम - (मुस्कराते हुए अपना सिर ना में हिलाता है)
रुप - क्यूँ...
अनाम - इस कमरे से बाहर जो दुनिया है... वहाँ मेरी जरूरत सिर्फ दो जन को है... उमाकांत सर और उनके पोते को... वह भी प्यार और स्नेह के नाते... और बाकी जितने भी मुझे जानते हैं... पहचानते हैं... उनका मुझसे रिश्ता उनके अपने जरूरतों का है...
रुप - तुम भी तो मेरी जरूरत हो...
अनाम - पर आपका मेरा जरूरत का रिश्ता नहीं है... मुझ पर आपका हक का रिश्ता है... जो मुझे... मेरे होने को... मेरे जिंदा रहने को... और मेरे वजूद को जायज बनाता है...
एक पल के लिए दोनों के बीच खामोशी छा जाती है l फिर खामोशी को तोड़ते हुए
रुप - मेरी हालत भी... तुमसे जुदा कहाँ है... सिवाय चाची माँ के... किसी के भी साथ... कहाँ रिश्ता है मेरा... कौनसा रिश्ता है मेरा... सिवाय तुम्हारे... इसलिए प्यार हो खीज... सब तुम पर उतार देती हूँ... हक जताती हूँ तुम पर... डरती हूँ... कहीं छिन ना जाओ तुम मुझ से...
अनाम - (थोड़ा रुक जाता है) मेरा इस दुनिया में... अपना कोई है ही नहीं... अनाथ हूँ... माँ जन्म देकर चल बसी... पिता और दीदी थे... पर वह भी अब नहीं रहे... दोस्त तो हैं ही नहीं मेरे... इसलिए आप जब हक जता कर कुछ भी करवाती हैं... तो आपसे... मेरी दुनिया की कमी.... पुरी हो जाती है...
रुप - (थोड़ा उदास हो कर) मैं भी तो अनाथ ही हूँ...
अनाम - (हैरान हो कर) आप.. कैसे अनाथ....
रुप - जब से होश सम्भाला... तब से ना पिता... ना चाचा... ना दादा.. ना भाई... सब थे.. हैं... पर सिर्फ काग़ज़ में... पांच साल की हुई.. माँ मुझे छोड़ कर चली गई... मेरे पिता, मेरे दादा ऐसे हैं कि... उनके लिए... मेरा होना ना होना एक बराबर है... भाई भी हैं मेरे... पर उनके जिंदगी के लिए... मैं कोई मायने नहीं रखती...
अनाम - पर आप पर प्यार और ममता लुटाने के लिए... छोटी रानी जी हैं ना...
रुप - हाँ यहीं एक जगह पर... मैं तुमसे कुछ बेहतर हूँ... पर फिर भी...प्यार ममता का रिश्ता तो... तुम्हारा उमाकांत सर और उनके पोते से भी तो है... मेरी जिंदगी की हद... मेरे इस कमरे से लेकर अंतर्महल तक ही सिमटी हुई है... उसके आगे की दुनिया के लिए मैं अनजान हूँ... और वह दुनिया मेरे लिए प्रतिबंधित है... इसलिए हर रोज सुरज के उगने साथ... तुम्हारे इंतजार से मेरा दिन शुरू होता है... और तुम्हारे जाते ही... एक अध्याय खतम हो जाती है... फिर यही कमरा रह जाता है... जिसके दीवारों से, छतों से बातेँ करती रहती हूँ... इन दीवारों पर लगे चित्रों से बातेँ करती रहती हूँ... और जब उनसे भी थक जाती हूँ... (सेल्फ में रखे हुए किताबों की ओर दिखाते हुए) इन किताबों में ख़ुद को खोने की कोशिश करती हूँ...
अनाम - (मुहँ फाड़े रुप को सुन रहा था)
रुप - तुम मुझे ऐसे... मुहँ फाड़े क्यूँ देख रहे हो...
अनाम - वह... मैं.. मतलब... आप... आप इतनी बड़ी और गहराई भरी बातेँ... इतनी कम उम्र में... कैसे सोच लेती हैं... या... कर लेती हैं...
रुप - इस बंद कमरे में कैद... मैं अपने वक़्त से आगे निकल गई हूँ... तुम बाहर रह कर भी... वक़्त साथ नहीं... बल्कि वक़्त से पीछे रह गए हो...
अनाम कुछ प्रतिक्रिया नहीं देता, चुप हो कर इधर उधर देखने लगता है l
रुप - जिस तरह मेरी उल जलूल हरकतों से... तुम्हें किसी अपने का एहसास होता है... तुम्हारे साथ वही सब करते हुए... मुझे मेरा परिवार मिल जाता है... पर यह तीन दिन.. मैं अपने परिवार से दूर रही...
अनाम - वह... वह सुई... जिससे.. (अपने गर्दन के पीछे हाथ ले जा कर) यहाँ गुदवाया था... उसके वजह से... मुझे बुखार चढ़ गया था...
रुप - फिर भी... मुझ पर गुस्सा नहीं आया...
अनाम - नहीं... पर डर तो लगा... कोई आपका नाम... मेरे गर्दन पर ना देख ले...
रुप - कोई ना देखे... तभी तो तुम्हारे गर्दन पर गुदवा दिया... (हँसते हुए) वरना तुम्हारे हाथ पर या... सीने पर गुदवा देती...
अनाम - (मुस्कराने की कोशिश करता है)
रुप - अगर मैं फिर से... वैसी कोई हरकत तुम्हारे साथ करूँ...
अनाम - (रुप की ओर देख कर) हक है आपका...
रुप - कब तक...
अनाम - मतलब...
रुप - यह हक कब तक दे रहे हो तुम मुझे...
अनाम - जब तक आप चाहें...
रुप - वादा...
अनाम - (चुप हो जाता है, रुप की चेहरा उतर जाती है, यह देख कर) वादा...
रुप - (चेहरे पर रौनक लौट आती है) मरते दम तक...
अनाम - जी... मरते दम तक...
रुप - भुलोगे तो नहीं...
अनाम - बिल्कुल नहीं...
रुप - (खुश हो कर) अच्छा एक बात बताओ... मैं तुम्हें तुम कहती हूँ... पर तुम मुझे आप क्यूँ कहते हो...
अनाम - क्यूंकि... आप... राजकुमारी हैं... और मैं क्षेत्रपाल महल का एक नौकर...
रुप - ठीक है... ठीक है... (मुस्कराते हुए बच्चे की तरह फुसलाते हुए) एक बार मुझे तुम कहो ना...
अनाम - नहीं... (झटके से) नहीं... राज कुमारी... मम्म.. मुझसे नहीं होगा...
रुप - (तुनक कर)क्यूँ...
अनाम - आप समझने की कोशिश करें.. इस कमरे में आप को बैठ कर पढ़ने को हक है... पर मुझे बैठ कर पढ़ाने की इजाज़त नहीं है.... इस फरक को समझें...
रुप - तो... तो क्या हुआ... अगर मुझे तुम.. तुम नहीं कहोगे... तो मैं तुम्हें... आप कहना शुरू कर दूंगी...
अनाम - नहीं राजकुमारी जी... मेरा आपको आप कहने से... आपका सम्मान हो रहा है... क्यूंकि मैं दिल से कह रहा हूँ... और आपका मुझे तुम कहना... वह आप मुझे दिल से कह रहीं हैं... इससे आपका मुझ पर हक जाहिर हो रहा है... हमारे बीच के रिश्ते में कोई भी रंग आए... पर मेरे लिए आप एक राजकुमारी ही रहेंगी... और मैं आपके लिए अनाम...
रुप - क्यूँ... तुमको मेरा आप कहने से क्या हो जाएगा...
अनाम - मुझे लगेगा... आप.... आप मुझसे नाराज हैं...
रुप - ओह... अनाम... (कह कर रुप अपनी कुर्सी से उठ कर आती है और अनाम के सीने से लग जाती है)
अनाम - (रुप के इस तरह सीने से लग जाने से, हकलाने लगता है) य.. य.. यह आ.. आआप.. क्क्या कर र्र्र्ही हैं...
रुप - अपना हक जता रही हूँ... इस दिल की धड़कन में... अपना नाम साफ सुन रही हूँ...
नंदिनी... ऐ नंदिनी.. उठो... नंदिनी...
रुप अपनी आँखे खोल कर देखती है l उसे शुभ्रा दिखती है हैरानी से अपनी चारों ओर नजर घुमाती है, देखती है वह अपने कमरे में बिना कपड़े बदले लेटी हुई है और एक तकिया को सीने से लगाए हुए है l उसे यूँ हैरान पा कर
शुभ्रा - क्या बात है नंदिनी... इतनी हैरान क्यूँ हो...
रुप - भाभी... क्या... सुबह हो गई...
शुभ्रा - हे भगवान...(अपने हाथ को माथे पर मारते हुए) क्या हो गया है तुम्हें... अभी तुम्हें डिनर के लिए बुलाने आई हूँ...
रुप - (और भी हैरान हो जाती है) डिनर...
शुभ्रा - हाँ... तुम ड्राइविंग स्कुल से आई... और सीधे अपने कमरे में घुस गई... मैं आई थी तुमसे बात करने... पर जब देखा कि तुम सोई हुई हो... तो चली गई... अब हम कुछ दिनों से...(आवाज में एक खुशी भरी आत्मीयता से, रुप के पास बैठते हुए ) डिनर हो या ब्रेक-फास्ट.. हम मिलकर कर रहे हैं... और यह जिसके वजह से हुआ है... टेबल पर.. वह महत्वपूर्ण सदस्या गायब हो... तो किसीके पेट में निवाला कैसे जाएगा...
रुप - ओह सॉरी... सॉरी भाभी... जस्ट दो मिनट... मैं अपना मुहँ धो लेती हूँ... फिर चलते हैं...
कह कर रुप वॉशरुम में भाग जाती है और अपना चेहरा अच्छी तरह से साफ कर वापस अपने कमरे में आती है l
शुभ्रा - क्या बात है नंदिनी... बहुत थक गई थी क्या...मैंने तो तुम्हें आज जगाया... पर तुम जागी... वह भी एक दिन के बाद... हा हा हा हा...
रुप - (शुभ्रा के साथ मुस्करा देती है)
शुभ्रा - हे.. ई... क्या हुआ आज... लगता है... दिल दुखा है शायद...
रुप - नहीं... ऐसी कोई बात नहीं...
शुभ्रा - फिर...(अपने पास बैठने के लिए इशारा करती है) फिर क्या हुआ... मेरी सखी.. सहेली.. दोस्त.. को.. मेरी प्यारी ननद को...
रुप - (थोड़ी सीरियस होते हुए) भाभी... एक कहावत है कि... वक़्त या इतिहास... खुद को दोहराता है... क्या यह सच है...
शुभ्रा - (गम्भीर होते हुए) पता नहीं नंदिनी... तुम्हारे बात का आशय क्या है... पर यह एक कहावत है... जब कि वास्तविकता यह है कि... वक़्त किसीके लिए कभी रुका ही नहीं... इतना तो सच है... बिता हुआ कल कभी वापस नहीं आता... शायद... चरित्र खुद को... दोहराते हों...
रुप - (कुछ सोचते हुए चुप हो जाती है)
शुभ्रा - क्यूँ... क्या हुआ...
रुप - कुछ नहीं भाभी... पिछले कुछ दिनों से... जो कुछ हो रहा है... वह मेरे सामने एक सवाल बन कर खड़ा है... वक़्त... या चरित्र.. कौन अपने आपको दोहरा रहा है...
शुभ्रा - क्या.. प्रताप...
रुप - (अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
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समाज में जहाँ पुरुष और स्त्री के समान अधिकार व स्थान की वकालत किया जाता है... वहीँ समाज के कुछ घटनायें कभी कभी पुरुष व्यवस्थित समाज में स्त्री उत्पीड़न जब सामने आती हैं... तब हमें बार बार सोचने के लिए विवश होना पड़ता है... कब तक... आखिर कब तक... तब जवाब बन कर समाने आती हैं... एडवोकेट प्रतिभा सेनापति जी.... जब भी महिलाओं के लिए... न्यायलय में... न्याय के लिए प्रतिभा महोदया लड़ती हैं... वह अपने प्रतिद्वंदी के सामने अंगद की तरह टिक जाती हैं... आज की अदालती कारवाई में पीड़िता सुश्री निशा जब उच्च न्यायालय में केस हारने के कगार पर थीं... तभी... अंतिम क्षण में केस को प्रतिभा जी अपने हाथों में लिया... और... तब न्यायपालिका में न्याय को होते हुए, घटित होते हुए और... इतिहास बनते हुए सबने देखा और साक्षी बनें...
एक होटल की आलीशान कमरा, शूट रुम के दीवार पर लगे टीवी पर लगभग हर ओडिया न्यूज चैनल पर यही खबर बार बार प्रसारित हो रही थी l बेड के हेड रेस्ट पर पीठ टीका कर बैठा रोणा टीवी की रिमोट लेकर टीवी बंद कर देता है l टीवी के बंद होते ही बल्लभ रोणा की ओर देखता है, रोणा के चेहरे तनाव साफ दिख रहा था I वह अपनी जबड़े भींच कर कुछ सोचने लगता है l बल्लभ बेड से उतर कर खिड़की के पास आकर खड़ा होता है l
रोणा - वाकई... बहुत बड़ी तोप निकली... यह वैदेही की मासी..
बल्लभ - हूँ...
रोणा - तुमने हस्पताल से मुझे डिस्चार्ज क्यूँ करा दिया...
बल्लभ - तेरा चलने में अभी जितना भी प्रॉब्लम है... वह फिजीओ थेरेपी से ठीक हो सकता है.. वैसे भी... उस हस्पताल के एक दिन की चार्ज में.. इस होटल में दो दिन रुक सकते हैं...
रोणा - हाँ.. वह तो ठीक है... पर फिजीओ थेरेपी का क्या...
बल्लभ - इस होटल में जीम है... जीम में इंस्ट्रक्टर भी है... तुझे कोई प्रॉब्लम नहीं होगी...
रोणा - चल ठीक है... पर एक बात बता... क्या... (चुप हो जाता है, बल्लभ उसके तरफ देखता है ) पैसा ही वजह था... या... कुछ और... और परीड़ा के सामने वह... आहट वाली जो बात की... वह क्या था... और हम कटक के वजाए भुवनेश्वर में क्या कर रहे हैं...
बल्लभ - (उसके पास आकर बेड पर बैठते हुए) भोषड़ी के एक सवाल बोल कर तीन तीन सवाल पुछ लिए तुने...
रोणा - अबे ओ गणित के आईंस्टाईन... बोल ऐसे रहा है जैसे मैंने एक चेक से तीन बार पैसा उठा लीआ तेरा...
बल्लभ - ठीक है... सुन... साइंस इतना आगे बढ़ चुका है... पर फिर भी... ज़लज़ला का पूर्वाभास सिसमो मीटर आज तक नहीं कर पाया... इंसान बेबस हो जाता है... पर... जानता है... जानवरों में कुत्ते को मगर... आभास हो जाता है...
रोणा - अबे ओ ज्ञान चोद... सीधा सीधा बोल... मेरे साथ यह वकील गिरी बंद कर...
बल्लभ - तु और मैं... हम दोनों... राजा साहब के कुत्ते हैं... आने वाले जलजले को महसुस कर लिया है... बस राजा साहब को आगाह करना है...
रोणा - हाँ... (बिदक कर) हाँ.. पर कैसे... किस बारे में... और कब.... (थके हुए आवाज में) साला... सोचा था... इस मासी को डरा.... धमका कर कुछ तो उगलवा लेंगे... पर... वह कमीनी तो... हमारी सोच और पहुँच से भी ऊपर निकली...
बल्लभ - (कुछ सोचने लगता है)
रोणा - और तु ज्ञान चोद... परीड़ा से क्या बोला... एक मुलाकात... उस एक मुलाकात से क्या पता करेंगे उससे... वह बताएगी क्यूँ...
बल्लभ - (गाते हुए) ज़िंदा रहने के लिए तेरी कसम....
इक मुलाक़ात ज़रूरी है सनम...
रोणा खीज कर उठ जाता है, एलबो क्लॉचर थामे खिड़की के पास जा कर बाहर शहर की नजारा देखने लगता है l बल्लभ भी आकर उसके पास खड़ा होता है l
बल्लभ - तुने.. किसी से... विश्व की खबर लेने की सोचा था ना...
रोणा - हाँ टोनी... एक गुंडा... मवाली... मेरे उस पर कुछ फेवर हैं... लिस्ट में देखा था... उसका नाम... मैंने उसे खबर भिजवा दिआ है... बहुत जल्द मुलाकात होगी...
बल्लभ - हाँ... बहुत जल्द... हमें सब कुछ पता करना होगा... तु अपने तरीके से... मैं अपने तरीके से...
रोणा - वैसे... एक बात बता प्रधान... तुने जो आहट की बात कही... वह क्या था...
बल्लभ - तु जो बार बार... साठ दिन की बात कर रहा था... पहले मुझे मज़ाक लग रहा था... पर अब मुझे कुछ कुछ... आभास होने लगा है... अगर मैं गलत नहीं हूँ तो... इसी हफ्ते... हमें एक झटका लगने वाला है... और यह खबर हमें परीड़ा ही लाकर देने वाला है...
रोणा - (हैरान हो कर बल्लभ को देखने लगता है) परीड़ा...
बल्लभ - हाँ... सात साल से बंद... रुप फाउंडेशन के बंद केस की फाइल से... धुल की ज़मी पर्तें.... साफ होने वाली है... शायद अगले हफ्ते...
रोणा - (झटका खाते हुए) क्या...(हकलाने लगता है) क्क्या...
बल्लभ - हाँ... अगर मैं तेरे साठ दिन वाली चैलेंज को मैं... जरा भी समझ पाया हूँ... तो...
रोणा - हम हफ्ते भर से... झक्क मार रहे हैं...
बल्लभ - हाँ... झक्क ही मार रहे हैं... और सबसे बड़ी प्रॉब्लम यह है कि... अगले हफ्ते... राजा साहब आ रहे हैं... कानून मंत्री विजय कुमार जेना की बेटी की शादी के रिसेप्शन में... उससे पहले हमें कुछ ना कुछ पता कर के... उनके सामने जाना पड़ेगा...
रोणा - (चेहरा गम्भीर हो जाता है)
बल्लभ - इसलिए तुझे चुपके से डिस्चार्ज करवा दिया... और राजगड़ जाने की खबर फैला दिया...
रोणा - और हम राजगड़ के वजाए भुवनेश्वर आ गए... सर्किट हाउस को छोड़ कर...
बल्लभ - हाँ... कटक में... तु और में... उस भुत के नजर में थे...
रोणा - अगर उस भुत ने... राजगड़ से खबर लेने की कोशिश की... तब...
बल्लभ - मैंने अपना इंतजाम कर दिया है.. तु भी कुछ जुगाड़ लगा... भले ही तु किसीको ना दिखे... पर लगे के तु वहाँ सबके अगल बगल है...
रोणा - ह्म्म्म्म... हो जाएगा... (कुछ देर की चुप्पी के बाद) पता नहीं... हम किससे डर रहे हैं... विश्व से... या सचमुच किसी भुत से...
बल्लभ - कुछ कड़ियां जोड़ने के बाद... मैं इतना कह सकता हूँ... अगर कुछ हाथ लगा... तो हम राजा साहब के नजरों में उठ पाएंगे... और अगर हाथ खाली हुआ... तो उनके नजरों से गिर जाएंगे...
रोणा - अब तु... मुझसे भी ज्यादा सीरियस हो गया... इस मामले में...
बल्लभ - हाँ क्यूंकि... माचिस की एक तीली... पुरी जंगल को खाक कर सकती है... और हमसे वह तीली खोई हुई है...
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छत पर विश्व हाथ में मोबाइल लिए किसी सोच में खोया हुआ है l प्रतिभा उसके पास आकर खड़ी होती है l विश्व का ध्यान प्रतिभा के तरफ बिल्कुल भी नहीं जाता l
प्रतिभा - (खराशते हुए) अहेम.. अहेम...
विश्व - (चौंक कर) अरे माँ... तुम... तुम कब आई...
प्रतिभा - क्या बात है... आज बड़ा खोया खोया है...
विश्व - कुछ नहीं माँ... आज ड्राइविंग स्कुल में... सुकुमार अंकल ने... अपनी परेशानी... नंदिनी जी को बताया... पर मुझे नहीं...
प्रतिभा - क्यूँ... तुने पुछा नहीं...
विश्व - पुछा... दोनों से... सुकुमार अंकल... हँसते हुए मेरे गाल थपथपा कर चले गए...
प्रतिभा - और... नंदिनी...
विश्व - नंदिनी जी ने कहा कि... मुझे फोन पर बताएंगी...
प्रतिभा - अरे वाह... पहले जान... फिर पहचान... उसके बाद दोस्ती.. अब फोन नंबर एक्सचेंज... हूँम्म्म्म... बिना स्पीड ब्रेकर के... कहानी आगे बढ़ रही है तुम दोनों की...
विश्व - माँ...(चिढ़ कर) सिर्फ दोस्ती... हाँ... सिर्फ दोस्ती... और दोस्ती करते वक़्त... इसे सिर्फ़ दोस्ती तक ही... सीमित रखने का फैसला किया है... हम दोनों ने... इसलिए बात का तुम बतंगड ना बनाओ...
प्रतिभा - ओ हो... कितनी लकी है नंदिनी...
विश्व - (हैरान हो कर प्रतिभा को देखता है)
प्रतिभा - सच्ची... आज पहली बार... मेरा बेटा... मेरे किए मजाक पर चिढ़ कर बात की...
विश्व - (अपना सिर पकड़ लेता है) सॉरी माँ... सॉरी... प्लीज...
प्रतिभा - अरे... ठीक है... ठीक है...
विश्व - (एक सुकून भरा सांस गाल फूला कर छोड़ता है)
प्रतिभा - तो तु... नंदिनी को फोन क्यूँ नहीं कर रहा...
विश्व - कर रहा हूँ... माँ... पर उनका फोन स्विच ऑफ आ रहा है...
प्रतिभा - उसने सही नंबर तो दिआ है ना... या फिर पोपट बनाया है तेरा...
विश्व - माँ.. नंबर सही है.... उन्होंने कोई मज़ाक नहीं किया है मेरे साथ...
प्रतिभा - तो ठीक है ना... कल सुबह तक रुक जा... सुबह होते ही पता कर लेना...
विश्व - माँ.. ड्राइविंग स्कुल में... मैं और सुकुमार अंकल ही बहुत करीब थे...
प्रतिभा - थे... क्या मतलब है थे...
विश्व - थे मतलब... तब तक... जब तक हमारे बीच नंदिनी जी नहीं आईं थीं... आज बीस मिनट लेट क्या हो गया... सुकुमार अंकल... पहली बार... मुझसे उनकी बात... कुछ शेयर नहीं किया...
प्रतिभा - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) लड़की का चक्कर विश्व बेटा... लड़की का चक्कर...
विश्व - माँ... (खीज जाता है)
प्रतिभा - हा हा हा हा... (हँसते हुए) अरे छेड़ रही थी तुझे...
विश्व - ( मुस्कराने की कोशिश करता है)
प्रतिभा - अच्छा तु अभी गुस्सा है.. या दुखी है..
विश्व - पता नहीं... शायद.... (रुक कर) दोनों...
प्रतिभा - क्या इसलिए कि सुकुमार अंकल... अपनी परेशानी तुझे ना बता कर नंदिनी को बताया...
विश्व - (चुप रहता है)
प्रतिभा - कहीं कुछ मामलों में... तु नंदिनी से... इनसिक्योर फिल तो नहीं कर रहा है...
विश्व - कैसी बात कर रही हो माँ... अगर ऐसा कुछ होता... तो मैंने परसों नंदिनी जी और उनके सभी दोस्तों को... हमारे घर... तुमसे मिलवाने के लिए... न्योता ना दिया होता...
प्रतिभा - (खुश होते हुए) क्या... वाह. व... तुने.. अपने लड़की दोस्तों को... हमारे घर पर बुलाया है... ओ हो... क्या बात है...
विश्व - (थोड़ा शर्माते हुए) सभी नहीं.. सिर्फ एक ही लड़की दोस्त है... बाकी सारे उनके दोस्त हैं...
प्रतिभा - हूँ.... नंदिनी और उसके दोस्त... है ना...
विश्व - हाँ... तुमसे वादा जो किया था...
प्रतिभा - गुड... यह हुई ना बात...
विश्व - (मुस्कराने की कोशिश करता है)
प्रतिभा - उँहुँ... अब... जब तक... यह सुकुमार अंकल वाला प्रॉब्लम सॉल्व नहीं हो जाती... तब तक तेरे चहरे पर असली मुस्कान आ नहीं सकती...
विश्व - (प्रतिभा की तरफ देखता है, फिर अपनी नजरें चुराने लगता है )
प्रतिभा - अब मेरी तरफ देख... और सच सच पुरी बात बता...
विश्व - (एक लम्हें की चुप्पी के बाद) माँ... मैं दुर से देख रहा था... सुकुमार अंकल... नंदिनी जी से जिस तरह से बात कर रहे थे... लग रहा था... जैसे वह अपना ग़म हल्का कर रहे थे... एक... (चुप हो कर) एक दर्द सा महसुस हुआ मुझको...
प्रतिभा - (उसे हैरानी से दिखती है) जलन... इससे जलन कहते हैं...
विश्व - जलन...
प्रतिभा - हाँ जलन... वह भी किससे.. नंदिनी से.. जिसे तु एडमायर करता है... कमाल है... मेरा बेटा जलन का मारा है... वह भी एक लड़की से...
विश्व चुप रहता है l प्रतिभा की ओर देख नहीं पाता मुहँ फ़ेर लेता है l उसे चुप देख कर प्रतिभा उसे कहती है
प्रतिभा - अच्छा नीचे चल... तेरे डैड खाने पे... हम दोनों का इंतजार कर रहे हैं...
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डायनिंग टेबल पर सभी खाना खा रहे हैं l बगल में कुछ नौकर खड़े हैं ताकि किसीको कुछ जरूरत पड़ी तो फौरन उसे सर्व कर सकें l खाना खाते खाते विक्रम सब पर एक नजर डालता है l वीर अपने धुन में कुछ सोचते हुए खाना खा रहा है l वह मन ही मन बहुत खुश लग रहा है l विक्रम रुप को देखता है l वह भी हुए कुछ सोचते हुए खाना खा रही है l विक्रम शुभ्रा की ओर देखता है, शुभ्रा चोर निगाहों से सबसे नज़रें चुरा कर विक्रम की ओर देखने कोशिश कर रही थी l जैसे ही विक्रम से नजरें मिली, वह अपनी नजर हटा लेती है और प्लेट में झुक कर खाना खाने लगती है l शुभ्रा की हालत देख कर विक्रम के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान उभर कर गायब हो जाती है l
विक्रम - (खराशते हुए) अहेम.. अहेम... (सब विक्रम की ओर देखते हैं) खाना खतम हो जाने के बाद... हम सब अपने अपने कमरे में चले जाते हैं... पर आज नहीं...
वीर - क्यूँ... बैठ कर आपस में बातेँ करेंगे क्या...
विक्रम - नहीं... इस घर के... पाँचवें सदस्य आ रहे हैं...
तीनों विक्रम की बात सुन कर हैरानी से देखने लगते हैं l
वीर - पाँचवा सदस्य... इस घर में.. पाँचवा सदस्य... वह कौन है... कब से हमारे साथ रहेंगे...
विक्रम - नहीं.. मेरा मतलब है कि... अभी कुछ देर बाद छोटे राजा जी आयेंगे.. कुछ बातेँ करेंगे... और चले जाएंगे...
वीर यह सुन कर ख़ामोश हो जाता है और अपना ध्यान खाने में लगाता है l
विक्रम - क्या हुआ वीर...
वीर - कुछ नहीं...
विक्रम - फिर तुमने ऐसे क्यूँ रिएक्ट किया...
वीर - मैंने क्या किया... जानकारी ली और अब खा रहा हूँ... वैसे भी... इस घर में सिर्फ चार सदस्य ही हैं... आप जिनकी बात कर रहे हैं... वह सदस्य नहीं... मेहमान हैं...
विक्रम - वह यहाँ रहते नहीं है... तो क्या वह मेहमान हो गए...
वीर - भैया... मैं इस तरह के आर्गुमेंट्स में पड़ना नहीं चाहता... वैसे भी... मुझे माँ ने कहा था... राजा साहब और छोटे राजा जी दिल्ली के लिए निकल चुके हैं... आपकी बातों से लग रहा है... फ्लाइट रात को है... और दिल्ली जाने से पहले... हमे किसी बात पर आगाह करने आ रहे हैं... शायद...
विक्रम - (कुछ नहीं कहता है)
शुभ्रा - ठीक है वीर.. जो भी हैं.. हैं तो हमारे अपने... इंतजार कर लेते हैं...
वीर - (थोड़ा नरम पड़ते हुए) ठीक है भाभी...
फिर सबका खाना खतम होता है l सभी डायनिंग टेबल से हटते हैं और हाथ मुहँ धो कर ड्रॉइंग हॉल में आते हैं l सभी बैठने के बाद सब आपस में एक चुप्पी सी साध लेते हैं l एक नौकर आकर पिनाक के आने की खबर करता है l कुछ देर बाद पिनाक सिंह वहाँ पहुँचता है I सभी परिवार के सदस्य खड़े हो जाते हैं l पिनाक अपनी जगह पर बैठने के बाद सबको बैठने के लिए कहता है l सभी बैठ जाते हैं l
पिनाक - युवराज... हम राजा साहब के साथ... आज दिल्ली के लिए रवाना हो रहे हैं...
विक्रम - जी... तो अचानक यहाँ आने की वजह...
पिनाक - अगले हफ्ते... कानून मंत्री की बेटी के शादी में... क्षेत्रपाल परिवार को निमंत्रण मिला है... पर चूंकि कार्य व्यस्तता है... इसलिए शादी में शरीक होना संभव नहीं हो रहा है... इसलिए राजा साहब ने उन्हें आश्वासन दिया है कि.... रिसेप्शन में शरीक होंगे...
विक्रम - जी..
पिनाक - इसलिए अगले हफ्ते बुधवार को रिसेप्शन में... पुरा क्षेत्रपाल परिवार वहाँ मौजूद रहेगा... इसलिए बुधवार को... आप कोई भी व्यक्तिगत कार्यक्रम ना रखें...
विक्रम - जी बढ़िया... हम तैयार रहेंगे...
पिनाक - ठीक है... हम बस यही कहने आये हैं... अब हम चलते हैं... (उठने को होता है)
वीर - बस इतना ही...
पिनाक - हाँ... बस इतना ही...
वीर - तो फिर यहाँ तक आने की कष्ट क्यूँ की... इतनी सी बात... आप फोन पर भी तो कह सकते थे...
पिनाक - राजा साहब का फरमान था...
वीर - ओ... राजा साहब का फरमान...
पिनाक - (उठ कर खड़ा होता है) हम समझ रहे हैं.... जो आप हमसे कह नहीं पा रहे हैं... भले ही आप अपनी जुबान से ना कह पाएं... हम राजा साहब के अनुज हैं... और यहाँ इस वक़्त हम उनके दूत हैं... और कुछ... (सब चुप रहते हैं) ठीक है... अब हम चलते हैं...
पिनाक खड़ा होता है l सभी सदस्य भी खड़े हो जाते हैं l पिनाक वहाँ से चला जाता है l पिनाक के जाते ही l वीर अपने कमरे की ओर चला जाता है l
रुप - (विक्रम से) भैया... क्या हमारा जाना जरूरी है...
विक्रम - हमारा मतलब...
रुप - भाभी का और मेरा..
विक्रम - (एक पल के लिए चुप हो जाता है) हाँ...
रुप - जहाँ तक मुझे मालुम है... राजा साहब किसी शादी व्याह वाले फंक्शन में जाते नहीं है... अगर जाते भी हैं... तो अकेले...
विक्रम - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) वह... दसपल्ला राज परिवार आ रहे हैं... इसलिए...
रुप को झटका सा लगता है l वह और कुछ नहीं कहती है सिर झुका कर भारी कदमों के साथ वहाँ से अपने कमरे में चली जाती है l शुभ्रा उसकी हालत समझ जाती है l वह रुप को जाते हुए देखती है l
शुभ्रा - (अपने मन में) हे भगवान... रुप को जल्दी... उसके अनाम से एक बार मिलवा दीजिए... ताकि आगे की जिंदगी का कोई फैसला वह ले सके... प्लीज भगवान... प्लीज...
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विश्व अपने कमरे में बेड पर लेटा रुप की नंबर पर फोन पर फोन कर रहा है l पर रुप की फोन स्विच ऑफ आ रही है l खीज कर वह अपना मोबाइल बेड पर फेंक देता है l तभी उसका फोन बजने लगता है l विश्व झपट्टा मारते हुए फोन तक पहुँचता है, उसे डिस्प्ले पर वीर दिखता है l
विश्व - (अपने मन में) यह कमबख्त इस वक़्त... वाह रे ऊपर वाले... फोन पर इंतजार था हुर का... पर कॉल आया है लंगूर का...
इतने में फोन कट जाता है l उधर रुप भारी मन से अपने कमरे में पहुँचती है l वह अंदर अपनी मोबाइल को ढूंढने लगती फिर उसे मोबाइल चार्जिंग पॉइंट पर दिखती है l वह चार्जिंग पॉइंट से फोन निकाल कर फोन ऑन करती है l फोन के ऑन होते ही मेसेज बॉक्स में मिस कॉल लिस्ट भर जाती है l लिस्ट में उसे बत्तीस मिस कॉल प्रताप के दिखते हैं, और चैट बॉक्स में दस मेसेज प्रताप के थे l प्रताप का नाम मोबाइल के डिस्प्ले पर देखते ही रुप का मुरझा हुआ चेहरा खिल उठता है l
रुप - ओ हो... इतने बैचेन... (फिर मुहँ बना कर) हूँह्हँह्.. जरूर सुकुमार अंकल के लिए पुछेगा... (और मेसेज स्क्रोल करने पर उसे दीप्ति की एक मिस कॉल दिखती है) अरे दीप्ति... यह इस वक़्त... (सोचने के मुद्रा में) पहले इससे बात करती हूँ...
यह सोच कर वह दीप्ति को कॉल लगाती है, पर उसे दीप्ति की मोबाइल ऐंगेज मिलती है l उधर विश्व मोबाइल को हाथ में लिए सोच रहा है l वीर ने उसे फोन क्यूँ किया होगा यह सोच कर वह वीर को कॉलबैक करता है l वीर के फोन उठाते ही
विश्व - (उबासी भरे आवाज में) हैल.. ओ..
वीर - तु सो रहा था...
विश्व - (उबासी लेते हुए) हा.. आँ... यार.. बोलो.. किस लिए फोन किया..
वीर - यार.. तु मेरा लव गुरु है... मुझसे भी पहले तु इश्क़ में है... फिर तुझे नींद कैसे आ रही है...
विश्व - यार क्या बताऊँ... (तभी उसके फोन पर टुँ..टुँ की आवाज आती है, वह फोन पर देखता है नंदिनी जी नाम डिस्प्ले हो रहा है) (नंदिनी नाम देख कर अपने मन में - अच्छा... अभी टाइम मिला राज कुमारी जी को... फिर खुद को गाली देते हुए - यह कौनसी राज कुमारी है... आज कल नकचढ़ी बनी हुई है... ना अभी नहीं...)
वीर - (विश्व चुप पा कर) हैलो... प्रताप... हैलो...
विश्व - हाँ.. हाँ बोलो यार बोलो...
वीर - तुम चुप क्यूँ हो गए थे...
विश्व - अरे कुछ नहीं.. एक क्लाइंट का फोन था... कहा था ना.. मैं अडवाइस देता हूँ..
वीर - ओ हाँ... हाँ..
विश्व - अच्छा... अब बताओ... फोन किस लिए किया... वह भी रात के इस वक़्त...
वीर - अरे यार.. क्या बताऊँ... कल के लिए... मैं जितना एक्साइट हूँ... उससे कहीं ज्यादा नर्वस हूँ..
विश्व - क्यूँ... कल क्या खास है...
वीर - अरे यार... तु मेरा दोस्त ही है ना... बोला तो था तुझे... मैं कल... अनु को प्रपोज करने जा रहा हूँ...
विश्व - अरे हाँ... (तभी कॉल अलर्ट बजने लगता है, डिस्प्ले पर वही नंदिनी नाम देखता है, इग्नोर करते हुए) क्या करूँ यार... यह क्लाइंट लोग भी ना... इतने कॉल करते हैं कि... अभी देख तुझसे बात कर रहा हूँ... पर एक नकचढ़ी क्लाइंट... कॉल पे कॉल किए जा रही है...
वीर - ओ.. तो बात प्रोफेशनल है... मैं कॉल बंद कर दूँ...
विश्व - अरे नहीं... तु उनसे भी खास है... हाँ तो हम कहाँ थे...
वीर - अरे यार... (एक्साइटमेंट के साथ) टुमोरो... आई एम गोईंग टु प्रपोज अनु...
विश्व - अरे हाँ... गुड.. लगा रह मेरे शेर.. लगा रह..
वीर - पर यार... मैं नर्वस भी बहुत हूँ...
विश्व - क्यूँ...
वीर - पहली बार... किसीको... मतलब...
विश्व - हाँ... समझ गया... पर यह बात सच है... तेरे लिए क्षण जितना इंपोर्टेंट है.. अनु के लिए भी.. उतना ही... बस कोशिश यही करना... वह पल तुम दोनों के लिए सबसे खास बन जाए...
वीर - हाँ यार...
उधर रुप के दो बार कॉल करने पर भी विश्व के फोन ना उठाने से रुप गुस्से से अपना फोन बेड पर पटक देती है और l तभी उसका फोन बजने लगती है l वह झट से फोन उठाती है तो डिस्प्ले पर दीप्ति का नाम देखती है I बेमन से फोन उठाती है
रुप - हैलो...
दीप्ति - हाँ बोल.. फोन क्यूँ किया था...
रुप - क्या... तेरे मिस कॉल पर... मैंने तुझे कॉल किया था...
दीप्ति - अरे हाँ... मैंने तुझे एक खबर देने के लिए फोन किया था...
रुप - अच्छा... कैसी खबर... (तभी रुप की फोन पर टुँ,.टुँ की आवाज आती है, वह झट से डिस्प्ले देखती है, डिस्प्ले पर प्रताप दिख रहा है) हाँ बोल... क्या बोल रही थी...
दीप्ति - अरे... कहा ना... तेरे लिए एक खबर है...
रुप - अरे हाँ...
दीप्ति - क्या हुआ... कोई परेशानी है क्या...
रुप - हाँ... बार बार मिस कॉल आ रही है... थोड़ा लाइन पर रहना... देखूँ किसका मिसकॉल आ रहा है.. (थोड़ी देर के लिए रुक जाती है, फिर मुस्कराते हुए ) हाँ... बोल क्या खबर है...
दीप्ति - किसका मिसकॉल आ रहा था...
रुप - (दांत पिसते हुए) एक बेवकूफ़... उल्लू का पट्ठा था...
दीप्ति - ओये होए...(मजाकिया लहजे में) किसी मजनू का कॉल था क्या...
रुप - (खीज कर) तुझे लगता है... कोई ऐसा होगा जो मुझे कॉल करेगा...
दीप्ति - अरे चील... मैं बस छेड़ रही थी...
रुप - अब बोल भी... क्या खबर है...
दीप्ति - अरे हाँ... मैं बताना भुल गई... कल शाम सात बजे... होटल ब्लू इन में... मधु प्रकाशनी की एक नई किताब लंच होने वाली है... वहाँ पर तेरी एक कर्ट्सी मीट हो सकता है... मधु प्रकाशनी के मालकिन से...
रुप - वाव... तो फिर मेरी एक मीटिंग फिक्स कर ना...
दीप्ति - देख मैं यह जानती हूँ... तुझे अपना सरनेम से अप्रोच करना पसंद नहीं है... इसलिए इस मामले में तुझे रॉकी मदत कर सकता है...
रुप - (हैरान हो कर) रॉकी... क्यूँ... किस लिए...
दीप्ति - ओह कम ऑन नंदिनी... होटल ब्लू इन रॉकी के फॅमिली का है... और मधु प्रकाशनी की मालकिन नमिता राव... उनकी फॅमिली फ्रेंड हैं... और तु तो रॉकी को माफ कर चुकी है ना... देन.. मेरी बात मान... तेरा काम है.. तु रॉकी से कहेगी... तो वह तेरे लिए एक कर्ट्सी मीटिंग अरेंज कर देगा... आगे तेरी मर्जी...(कह कर दीप्ति फोन काट देती है)
दीप्ति से बात खतम होने के बाद रुप फोन पकड़ कर बेड पर गिर जाती है l उसे अब टेंशन होने लगती है l इधर शादी के रिसेप्शन में राजा साहब के साथ इसलिए जाना पड़ेगा क्यूँ के उस रिसेप्शन में दसपल्ला राज परिवार आने वाले हैं l जो रुप को अपने घर की बहू के रुप में पसंद कर चुके हैं l बेड पर येही सब सोच रही थी के उसके फोन पर मेसेज अलर्ट होती है l वह देखती है चैट बॉक्स में प्रताप का कोई मेसेज आया है l वह चैट बॉक्स ओपन करती है l
हाय... पहले आपका फोन स्विच ऑफ था... फिर आपने जब कॉल किया... मेरे एक दोस्त से बात कर रहा था... अगर आप बुरा ना मानें... तो क्या हम अभी बात करें....
- प्रताप
मेसेज पढ़ते ही रुप जो इतनी टेंशन में थी उसके होंठो पर मुस्कान आ जाती है l अपनी आँखे बंद कर अपने आप से - तुम अनाम हो... या कोई और... मैं जरूर पता लगाऊंगी...
फिर अपनी आँखे खोल कर बेड पर आलथी पालथी मार कर बैठ जाती है और फोन पर टाइप करने लगती है l
रुप - देखिए प्रताप जी
... इतनी रात को फोन पर बात करना ठीक नहीं रहेगा... हाँ हम चैट कर सकते हैं... बोलिए आपको मंजुर है
...
रुप देखती है मेसेज डेलीवर हो गया है और सिन भी हो गया l अब उसमें टाइपिंग दिखता है l रुप समझ जाती है प्रताप उसे मेसेज बैक कर रहा है l
यह क्या नंदिनी जी.
.. आप मुझे आप ना कहें... अगर आपको आप ही कहना है... तो बेहतर है कि... हम दोस्त ही ना रहें...
- प्रताप
नंदिनी - एक्जाक्टली यही बात मैं कहूँ तो.
..
आप में एटिट्यूड अच्छा लगता है... रौब जंचता है... देखा नहीं... हमारी दोस्ती कैसे हुई..
- प्रताप
नंदिनी - यह मेरी प्रशंसा की जा रही है... या मेरी टांग खिंची जा रही है.
...
मैं जिनका सम्मान करता हूँ... उनसे ऐसी गुस्ताखी कभी नहीं कर सकता...
- प्रताप
नंदिनी - (मन में- बेवकूफ़... ) यानी... मुझे लोग सम्मान करें... पर मैं किसीकी सम्मान ना करूँ
...
आप से मुहँ से निकला तुम ही... बहुत बड़ा सम्मान है..
- प्रताप
नंदिनी - ह्म्म्म्म... वेल.. आई एम नट इम्प्रेस्ड.
.. बट स्टील... मैं तुम्हारी इस बात को मानते हुए... पुछती हूँ...
तुमने किस लिए इतने मिस कॉल और मेसेजस् किए... कोई देखेगा तो क्या सोचेगा..
आधी रात को... एक लड़की को... इतने सारे कॉल्स... हूँम्म्म्म्म्...
नंदिनी जी... आपने ही कहा था कि... सुकुमार अंकल ने आपसे कुछ शेयर किया है.
.. वह आप मुझसे शेयर करेंगी...
- प्रताप
नंदिनी - (अपने मन में - मैं जानती थी.. यह कमबख्त सुकुमार अंकल की ही पुछेगा) हाँ... वह थोड़े अपसेट थे
...
हाँ... मुझे भी ऐसा लगा था... तो वह मुझसे भी कह सकते थे...
- प्रताप
नंदिनी - क्या कहते...
जब कि उनके प्रॉब्लम का कोई सोल्यूशन नहीं है
...
ठीक है... आप प्रॉब्लम तो बोलो.
.. मैं कुछ ना कुछ साल्यूशंस निकाल लूँगा.
.. - प्रताप
नंदिनी - अच्छा... ह्म्म्म्म.. ठीक है... रवि वार को सुकुमार अंकल और आंटी जी की... शादी की पैंतीसवीं साल गिरह है
...
वाव.. इतनी बड़ी बात.
... - प्रताप
नंदिनी - हाँ... जैसे पच्चीस वीं को सिल्वर जुबली... तीस को पर्ल जुबली... वैसे ही पैंतीस वी साल में कोरल जुबली मनाया जाता है... सिल्वर जुबली मनाते वक़्त... उनके परिवार वाले सभी थे.
.. पर तीस के वक़्त कोई नहीं था..
. क्यूँकी सब स्टेट्स में रहते हैं... और अब... अब उनके बच्चे यहाँ आए हुए हैं... उन्हें... अपने साथ ले जाने के लिए अड़ गये हैं... अंकल जी इंडिया से जाना नहीं चाहते
... और आंटी जी अपने पोते और पोतीयों के पास जाना चाहती हैं.
..
ओ..
यह वाकई... बहुत बड़ी प्रॉब्लम है... - प्रताप
नंदिनी - हूँम्म्म्म्म्... इसलिए अंकल थोड़े दुखी हैं
... वह चाहते हैं कि... इस उम्र में आंटी हमेशा उनके पास रहें
... वह उस शादी वाले दिन को... अंकल... उन दोनों के लिए खास बनाना चाहते थे..
.. पर
पर... पर क्या... क्या अंकल स्टेट्स जाना नहीं चाहते....
- प्रताप
नंदिनी - नहीं...
नहीं चाहते...
पर क्यूँ...
- प्रताप
नंदिनी - उनका कहना है कि... स्टेट्स में... उनके बच्चे प्यार के खातिर लेके नहीं जा रहे हैं... वह इसलिए लेकर जा रहे हैं... ताकि उनको फ्री के नौकर मिलें....
क्या...
.. - प्रताप
नंदिनी - वह ड्राइविंग लाइसेंस हासिल कर.
.. आंटी को उस दिन गाड़ी खरीद कर... पुरे दिन भर आंटी जी को घुमाना चाहते थे..
. वह अब नहीं हो पाएगा...
ओह....
.. आप को क्या लगता है... सोल्यूशन क्या होना चाहिए..
.. - प्रताप
नंदिनी - मैंने पुछा था... तो
हाँ तो..... क्या हुआ...
- प्रताप
नंदिनी - तो अंकल चाहते हैं कि... आंटी को यह एहसास किसी तरह दिलाया जाए... की उनके बच्चे... उनसे प्यार नहीं करते
.... और आंटी हमेशा के लिए... इंडिया में उनके साथ रहने के लिए.... तैयार हो जाएं... 
कुछ देर तक मेसेज नहीं आता l रुप चिढ़ जाती है l तो वह सीधे कॉल लगा देती है l
विश्व - हैलो...(धीमी आवाज में) आपने कॉल क्यूँ किया....
रुप - (धीमी आवाज में) सारी खबर जान लेने के बाद... मेसेज बैक क्यूँ नहीं किया...
विश्व - मैं... सोल्यूशन सोच रहा था...
रुप - यही के... उनके बच्चों की हकीकत... आंटी जी सामने लाया जाए.... और... वैसे कब है... उनकी शादी की कोरल जुबली....
रुप - इसी रविवार को....
विश्व - ह्म्म्म्म... तो हो जाएगा.... अंकल आंटी जी के साथ... अपना कोरल जुबली भी मनाएंगे....
रुप - मतलब... तुम कोई चक्कर चलाने वाले हो...
विश्व - जाहिर सी बात है....
रुप - तो तुम मुझे... अपने हर प्लान में शामिल करोगे...
विश्व - नहीं नहीं... यह प्लान बहुत ही खतरनाक है....
रुप - (बिदक जाती है) अच्छा.... मुझसे भी ख़तरनाक है....
विश्व - (अपने मन में - आपसे खतरनाक....हूँह्... हो ही नहीं सकता)
रुप - क्या हुआ... चुप क्यूँ हो गए... सीधे सीधे बताओ.... मुझे अपने प्लान में शामिल करोगे या नहीं.....
विश्व - ठीक है मेरी माँ....
रुप - (दांत पिसते हुए) क्या कहा....
विश्व - गलती हो गई... गलती हो गई... देखिए राजकुमारी....
रुप - क्या कहा... फिर से कहो...
विश्व - (अपना सिर पर मारते हुए) आपकी यह वाला एटिट्यूड... किसी राजकुमारी से कम है क्या....
रुप - ठीक है... प्लान तैयार रखो... कल स्कुल में मुझे बताओगे....
विश्व - (अपना हाथ को बार बार सिर पर मारते हुए) ठीक है... ठीक है... ठीक है..... (कह कर फोन काट देता है, खुद से बड़बड़ाने लगता है) हे भगवान... नंदिनी जी के लिए बार बार मुहँ से.... राजकुमारी क्यूँ निकल रही है.... नहीं अभी... अभी उनका नाम बदल देता हूँ.....
विश्व अपना मोबाइल निकालता है और कॉल लिस्ट में नंदिनी को सिलेक्ट कर के एडिट ऑप्शन में नंदिनी जी को एडिट कर नकचढ़ी लिख कर सेव कर देता है और मोबाइल को बेड के दुसरे किनारे फेंक देता है l
उधर रुप प्रताप के फोन काटने के बाद चिढ़ कर खुद से बोलती है - बेवकूफ... उल्लू का पट्ठा... गधा... टट्टु...
फिर रुप भी अपनी मोबाइल फोन निकाल कर कॉल लिस्ट से प्रताप नाम को सिलेक्ट करती है और एडिट ऑप्शन में जाकर बेवक़ूफ़ टाइप कर सेव करती है और 'हूँह्' कह कर बेड के दुसरे किनारे मोबाइल को पटक कर सो जाती है l
सबसे पहले साधुवाद इस बेहतरीन लेखन और लेखक महोदय
Kala Nag भाई के लिए। ये नाग आपका surname तो नही है ठीक प्रसिद्ध अभिनेता अनंत नाग जी की तरह?
रूप और विश्व दोनो ही के दिल और दिमाग अंजाने में ही भूतकाल को वर्तमान में ला रहे है। दोनो ही इस बात को मान कर भी नही मानना चाहते है।
शायद दोनो की ही हालत कुछ इन लफ्जों जैसी हो गई है
कहीं-कहीं से हर चेहरा, तुम जैसा लगता है
तुमको भूल ना पाएँगे हम, ऐसा लगता है
वीर बेचारा नाम से वीर है मगर इजहार-ए-मोहब्बत करने में हवा निकल गई है बेचारे की। पता नही क्या करेगा? वीर के सुर अब कुछ कुछ बगावत वाले हो गए है और पता नही ये कब बगावत का ज्वालामुखी फोड़ दे?
रोड़ा और बल्लभ की भी फटी पड़ी है अब तो, दोनो कुछ पता कर भी पाएंगे या नहीं।
सुकुमार अंकल की मैरिज एनिवर्सरी वाले दिन के प्लान को सुन कर रूप का शक और गहरा हो जायेगा या फिर उसे यकीन हो जायेगा की प्रताप की अनाम है क्योंकि ऐसे अनोखे आइडियाज तो अनाम ही सोच सकता है।
विश्व के मुंह से बार बार राजकुमारी निकलने वाली बात पर इस गाने के बोल याद आ गए।
उतरा ना दिल में कोई, इस दिलरुबा के बाद
लब पे इसी का नाम है, आता खुदा के बाद