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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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*Index *
 
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Kala Nag

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भाई साहेब आराम करें। स्वस्थ रहें।
Covid का टेस्ट भी कर लें
कल ही कर लिया था
रिपोर्ट नेगेटिव आया है पर निमोनिया है
बारिश में भीगने के कारण
अब दवाई चल रही है
बस खांसते वक़्त तकलीफ हो रही है
 

Kala Nag

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👉चौरानवेवां अपडेट
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अंधेरा धीरे धीरे छट रहा था सुरज निकलने के लिए अभी वक़्त था l लेकिन शहर जाग चुका था l बेशक फाइव स्टार होटल था, पर शहर की शोर से घिरा हुआ था l रोणा बिस्तर पर करवटें बदल रहा था या छटपटा रहा था l वह झट से बिस्तर पर उठ बैठता है, नींद भरे, उबासी भरे अध खुले आँखों से, वह बेड के पास लाइट की स्विच ऑन करता है l फिर अपने बेड के पास टेबल पर रखे पानी की बोतल निकाल कर अपने हलक को गिला करने लगा l पानी पीने के बाद कमरे में फिर अपनी नजर घुमाता है, पास का बेड खाली था l उसे कमरे में भी कहीं बल्लभ नहीं दिखता l वह हैरान होता है l वह बेड से उतरता है, बदन पर एक लोअर और वेस्ट पहने हुए था l वह चलते हुए बाहर की ड्रॉइंग रुम में आता है l वह कमरा अंधेरा था l पर उस कमरे की खिड़की पर कर्टन थोड़ा खुला हुआ था l वहाँ पर पड़े एक चेयर पर रोणा को एक साया बैठा हुआ दिखता है l रोणा के शरीर में एक सर्द लहर सी चलने लगती है l बाइस डिग्री ठंडे बंद ऐसी के कमरे में भी उसके कानों के बगल में पसीना निकलने लगता है l वह झट से लपक कर स्विच ऑन करता है l लाइट जल जाती हैं l रोणा खिड़की की तरफ देखता है वहाँ चेयर पर बल्लभ बैठा हुआ था I लाइट की उजाले से उसकी आँखे चुंधीया जाती है l बल्लभ अपने हाथ आँखों के सामने लाकर अध खुले आँखों से बेडरुम के दरवाजे की तरफ देखने की कोशिश करता है l लाइट जलाते वक़्त रोणा की हालत ऐसी हो गई थी के मानों वह किसी मैराथन से भाग कर आया हो l

रोणा - ( हांफते हुए) साले... मारवाएगा क्या... ऐसे बुत बने... क्या रात भर यहाँ बैठा हुआ है...
बल्लभ - (कुछ नहीं कहता है, थके हुए आँखों से रोणा को देखता है) श्श्श्श्श्...
रोणा - अबे... तुझसे कुछ पुछ रहा हूँ... यह सांप की तरह फूस... फूस... क्यूँ हो रहा है...
बल्लभ - तुझे... रात को... नींद... अच्छी आई...
रोणा - काहाँ... दारू जो गले तक पी रखी थी... आते ही लुढ़क गया था... तब का सोया... अब जाग रहा हूँ... पर पर नशे की नींद में सोया... था.... पर नींद... (दरवाजे से आ कर बल्लभ के पास बैठ कर, उसके चेहरे को गौर से देखता है)नहीं... मैं नींद में नहीं था... बेहोश था मैं... और लगता है.... रात भर तुझे भी नींद नहीं आई...
बल्लभ - हूँ... नहीं आई...
रोणा - वजह...
बल्लभ - (चुप रहता है)
रोणा - (सीधा हो कर संभल कर बैठते हुए) विश्वा...
बल्लभ - (अपना सिर हाँ में हिला कर) हूँ...
रोणा - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) देख... मेरा एक ही फंडा है... जो बिगड़ गया... उसे हटा दो... विश्व बिगड़ गया है... उसको तो हटाना पड़ेगा.... मैं अब अपने पुरे दिमाग का इस्तेमाल कर के... उसे हटाउंगा... हटा दूँगा...
बल्लभ - हूँ...
रोणा - अबे... हूँ.. क्या हूँ...
बल्लभ - तुने टाइटैनिक फिल्म देखा है...
रोणा - हाँ... वह जो एक पानी का जहाज... बर्फ के पहाड़ से टकरा कर... दो हिस्सों में टुट कर.... डुब जाती है... वही ना...
बल्लभ - हाँ वही उस बर्फ के पहाड़ को... आइस बर्ग कहते हैं...
रोणा - अरे यार... यह सुबह सुबह... हैंगओवर के चलते... सिर फटा जा रहा है... उस पर तु... यह क्या बक चोदी कर रहा है... क्यूँ कर रहा है...
बल्लभ -(रोणा की बातों को बिना प्रतिक्रिया देते हुए) आइस बर्ग... पानी के ऊपर... जितना दिखता है... वह सिर्फ एक चौथाई होता है... पानी के नीचे... बाकी के तीन चौथाई छुपा हुआ होता है...
रोणा - अबे... तुझे रात भर नींद क्यूँ नहीं आई... यह बता....
बल्लभ - तेरी सिक्स्थ सेंस बहुत गजब की है... सही समय पर जागती है... पर बहुत जल्दी दम भी तोड़ देती है...
रोणा - क्या... अबे क्या बकलौली कर रहा है...
बल्लभ - मैंने कहा था... मुझे कुछ आहट सुनाई दे रही है... श्श्श्श.... तुने सही कहा था... हमने... मतलब हम सबने... उसे अंडरएस्टीमेट किया था...
रोणा - तो... अब तो वह... एस्टीमेट हो गया ना...
बल्लभ - (ना में सिर हिलाते हुए) नहीं... मुझे लग रहा है कि... हम अब टाइटैनिक पर सवार हैं... और विश्व आइस बर्ग...
रोणा - क्या...
बल्लभ - हूँ... जरा सोच... परीड़ा जितना इंफॉर्मेशन लाया था... उतना तो हमें... जैल सुपरिटेंडेंट खान... बता सकता था... पर बताया नहीं... क्यूँ...
रोणा - (सिर ना में हिलाते हुए) उँ.. हुँ... पता नहीं... शायद... प्रोटोकॉल के चलते...
बल्लभ - यह कोई बात नहीं है... इसमें प्रोटोकॉल कहाँ से आ गया...
रोणा - तु.. कहना क्या चाहता है...
बल्लभ - आज... विश्व अकेला नहीं है... उसका अपना टीम है... कास के... हमने पहले से ही परीड़ा से काम लिया होता... तो हमारे बीस दिन यूँ बर्बाद ना हुए होते...
रोणा - हाँ... हाँ यार... सच कह रहा है...
बल्लभ - पर सवाल है... क्या अब भी हमारे पास उसके बारे में सारी इंफॉर्मेशन है...
रोणा - देख... प्रधान... मेरा एक उसूल है... तूफान आने से पहले घबराता जरूर हूँ... पर तूफान का सामना करने से कतराता नहीं हूँ... हालात के हिसाब से जुझना जानता हूँ... अब हालात जैसे बनेंगे... हमें भी वैसे ही जुझना पड़ेगा...
बल्लभ - दुश्मन से भिड़ना हो... तो उसके पुरे ताकत का अंदाजा कर लेनी चाहिए... तेरा टोनी कब आ रहा है...
रोणा - क्यूँ... तुझे लगता है... अब हमें टोनी की जरूरत है...
बल्लभ - हाँ... मैं जानना चाहता हूँ... विश्व के बारे में... वह क्या जानता है... और हमें... क्या जानना बाकी रह गया है...
रोणा - तुझे लगता है... परीड़ा ने कुछ गलत इंफॉर्मेशन दिया है...
बल्लभ - नहीँ... उसने सिर्फ वही बताया... जो हेड ऑफिस के आर्काइव में था... और वह.. ऑफिशियल था... मुझे अब विश्व के हर नॉन ऑफिशियल डिटेल्स चाहिए...
रोणा - प्रधान... अब तु.... घबरा रहा है क्या...
बल्लभ - नहीं...(अपना सिर ना में हिलाते हुए) अब मैं...(पॉज लेकर) डर रहा हूँ...
रोणा - (हैरानी से उसका मुहँ खुला रह जाता है)
बल्लभ - हाँ रोणा... मुझे अब डर लग रहा है... विश्व... जैल आता है... जैल में.. अपनी ग्रैजुएशन पुरा करता है... एलएलबी भी पुरा करता है... मतलब मकसद साफ है... सरपंच बनकर... मुजरिम रहते जो ना कर पाया... वह अब... वकील बनकर करेगा... रुप स्कैम के हर पहलू को वह जानता है... क्यूँ के जुड़ा हुआ था.... हर एक चीज़ से वाकिफ है... वह इसबार राजा साहब को.. जरूर कटघरे में लाएगा...
रोणा - (मुहँ फाड़े बल्लभ को सुन रहा था)
बल्लभ - जरा सोच... विश्व के यहाँ मदत के लिए... उसके कुछ बंदे भी हैं... विश्व... किसी मकसद के तहत... वह यहाँ पर है... राजगड़ नहीं गया है... वह यहाँ कर क्या रहा है... अगर तैयारी कर रहा है... तो किस चीज़ का...
रोणा - देख... जो बताना चाहता है... साफ साफ बता... यह वकीलों वाली भाषा... किसी और से बात कर...
बल्लभ - (अब सीधा हो कर बैठता है) जरा गहराई से सोच... हम सात सालों से... आँखे मूँदे सोते रहे... वह सात सालों से.. अपने लक्ष के ओर... लगातार बढ़ता चला जा रहा है... उसने अपना टीम भी बना लिया है... दो बार अपनी टीम की मदत से... हमें पटखनी दी है...
रोणा - सच कहूँ तो... मैं भी इस बात से हैरान हूँ... जैल में कौन से लोग.. किस तरह के लोग.. उसके साथी बने होंगे...
बल्लभ - लोग... साथी... वह वैसे लोग हैं या होंगे... जो सिस्टम और समाज के सताये हुए होंगे... जो एक दुसरे से हमदर्दी के चलते जुड़े होंगे... इस तरह से जुड़े हुए लोग... आसानी से नहीं टूटते...
रोणा - (चिंतित होते हुए) हूँ..
बल्लभ - अब तुझे क्या हुआ...
रोणा - सोच रहा हूँ... सिर्फ हमारी ही नींद उड़ी हुई है... या... कोई और भी है...

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लड़की - (गुस्से से गुर्राते हुए) तुम जो भी हो... बहुत पछताओगे... देखना...
रंगा - कहा ना.. वह जब होगा... तब होगा... आज यहाँ जो भी हो रहा है... सब सीसीटीवी में रिकार्ड हो रहा है... तुम और तुम्हारा पति कितने बेबस हैं... यही सब वायरल किया जाएगा...
लड़की - (गुर्राते हुए) अब मैं कहीं नहीं जाऊँगी... मुझे ढूंढते हुए... मेरी सिक्युरिटी आ पहुँचेगी... तुम लोग सब मारे जाओगे....
रंगा - पहले ही कहा था... यहाँ हमारी सिक्युरिटी है... मैंने कहा था तुझे... कोई हरकत ना करना... क्यूंकि मुझे छूट भी दी गई है... तुझे मार देने के लिए... इसलिए अब चपड़ चपड़ बंद... हाँ मरने से पहले.. मेरा नाम याद रखना... रंगा... रंगा नाम है मेरा...

कह कर रंगा अपने हाथ में जो रॉड था, मारने के लिए ऊपर उठाता है l घुटने पर बैठी वह लड़की उस बेहोश पड़े लड़के के पास डर के मारे आँखे मूँदते हुए चेहरा नीचे कर लेती है l रंगा के चेहरे पर शैतानी हंसी नाच उठता है कि अचानक वह देखता है एक लड़का लड़की से कुछ दुर एक कार के डिकी के ऊपर अपने कोहनी से टेक लगाए पैरों को क्रॉस कर खड़ा है l वह लड़का जबड़े भींच कर रंगा को देख रहा है l रंगा को उसका घूरना चुभ रहा था l रंगा उसके चेहरे को गौर से देखा, वह चेहरा थोड़ा जाना पहचाना लगता है l उस लड़के के चेहरे पर भाव बदलने लगते हैं l वह जबड़े भींच कर दांत पिसते हुए देख रहा है l उसका बायां भवां तन जाता है और दाहिने आँख के नीचे की पेशियां थरथराने लगते हैं l उसके यह भाव देख कर रंगा को जैल की फाइट याद आता है l रंगा पहचान जाता है, उसके दिल की धड़कन बुलेट ट्रेन की रफ्तार से भागने लगता है l दिमाग पर विश्वा, विश्वा हथोड़े की तरह बजने लगता है l विश्वा अब उनके तरफ बढ़ने लगता है l रंगाने जो रॉड मारने के लिए उठाया था, उसके हाथों से गिर जाता है l चूंकि रंगा के हाथों से रॉड गिर गया था, उसके देखा देखी उसके गुर्गों के हाथों से स्टिक्स और चेन भी गिरने लगते हैं l विश्व के हर बढ़ते कदम के साथ रंगा पीछे हटने लगता है l जैसे ही विश्व उस लड़की के पास खड़ा होता है रंगा वहाँ से दुम दबा कर भाग जाता है l

नहीं... (चिल्लाते हुए रंगा उठ बैठता है)

अपनी नजरें घुमाता है l वह एक साधारण सा कमरे में पड़े एक चारपाई पर लेटा हुआ था l नीचे फर्श पर उसके कुछ साथी सोये पड़े हैं l रंगा के कान में एक हुटर की आवाज़ पड़ती है l वह अपनी चारपाई से उठता है और कमरे से बाहर निकल कर बरामदे में आता है l बड़बिल माइंस
कैजुअल लेबर की बस्ती में के बीचों-बीच एक बड़े से घर में अब हैं l तभी उसके बगल में उसका एक साथी आ कर खड़ा होता है l

साथी - क्या बात है गुरु... चिल्ला कर उठ गए... विक्रम... छोटे क्षेत्रपाल का खौफ है क्या...
रंगा - मैं... विक्रम से छुपा हुआ जरूर हूँ... पर डर... मुझे विश्वा का है...
साथी - बुरा ना मानना गुरु... वह उस वक़्त अकेला था... हम बीस बाइस बंदे थे... फोड़ नहीं सकते थे क्या उसे...
रंगा - (उसके तरफ मुड़ कर) मैं भले ही भाग गया... पर तुम... तुम लोग क्यूँ फोड़े नहीं उसे...
साथी - गुरु... हमारी हिम्मत तो तुम हो... जब हमारी हिम्मत को... हथियार डालते हुए... भागते हुए हमने देखा... तब हम क्या कर सकते हैं..
रंगा - (सिर हिला कर ना कहते हुए)हूँ... तुमने उसे लड़ते हुए नहीं देखा है... मैंने देखा है उसे... करीम, गोलू, सलिल और मुन्ना याद है...
साथी - हाँ...
रंगा - वह लोग छह महीने तक... लकवे में थे... विश्वा... उन्हें सिर्फ एक एक घुसा मारा था...
साथी - क्या...
रंगा - हाँ... (अपने साथी को देख कर) जरा सोच... कोई अंग लकवा ग्रस्त हो जाए... तब पुरा का पुरा जिस्म... भारी लगने लगता है... बोझ लगने लगता है... जैल से निकलने के बाद... अपनी हार की खार लिए... मैं दो तीन सालों तक विश्व की खबर रखने लगा था... उन तीन सालों में... विश्व जैल के अंदर एक भी... सेटर डे स्कैरी नाइट सोल्यूशन फाइट हारा नहीं था... बाहर के... जितनी भी बड़े... धुरंधर... तुर्रम खान थे... विश्व से सामना करने बाद... सब के सब चूहे बन गए थे...
साथी - फिर तो अच्छा हुआ... हम यहाँ पर आ गए... पर... यहाँ से निकलेंगे हम कब...
रंगा - जब चेट्टी साहब बुलाएंगे...
साथी - गुरु... एक बात पूछूं...
रंगा - हूँ... पुछ ले..
साथी - आने वाले दिनों में... विक्रम या विश्व.... किसीके साथ भी आमना सामना हो सकता है... आप किसके सामने जाना चाहोगे...
रंगा - विक्रम के...
साथी - विश्वा के क्यूँ नहीं...
रंगा - क्यूँकी... अगर हम हारने पर आयेंगे... तो विक्रम हमें मार ही डालेगा...
साथी - विश्व भी तो मार सकता है...
रंगा - नहीं... विश्व किसीको नहीं मारेगा... पर जिंदगी इतनी खराब कर देगा... की उससे टकराने वाला... मौत मांगने लगेगा... पर वह मौत को भी... आसानी से आने नहीं देगा... (अपने साथी की ओर देख कर) विक्रम से उलझे... तो या जिंदगी... या फिर मौत... पर अगर विश्व से उलझे... तो मौत से बदत्तर जिंदगी...

रंगा की बातेँ सुन कर उसका साथी अपने हलक से थूक निगलता है l

रंगा - यह सब... मैंने उनसे सुना है... जो लोग जैल के बाहर... भाई बने फिरते थे... या हैं... पर जैल के भीतर उन सबका भाईगिरी... विश्व को सलाम ठोकता था...
साथी - गुरु... यह विश्व है कहाँ का...
रंगा - राजगड़ से है... उसका राजा साहब... मतलब बड़े क्षेत्रपाल से पंगा है...
साथी - क्या...
रंगा - हाँ...
साथी - तब तो अगर विश्व हमारे साथ आ गया... तो हम विक्रम और उसके आदमियों से टकरा सकते हैं...
रंगा - हाँ... उसे पाले में लेने के लिए... चेट्टी जी ने केके साहब को जिम्मा दिया है... देखते हैं.... हम सबकी नींदे खराब करके पता नहीं... खुद कहाँ पर सो रहा होगा

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विश्व के पिछवाड़े पर प्रतिभा उल्टे झाड़ू से एक मार मारती है l कोई हलचल नहीं l प्रतिभा हैरान होती है, और एक बार झाड़ू चलाती है l विश्व के जिस्म में कोई हल चल नहीं होती l प्रतिभा को गुस्सा आता है l वह पास रखे जग को विश्व के ऊपर उड़ेल देती है l

विश्व - आ.. ह.. माँ... यह क्या कर दिया..
प्रतिभा - कब से उठा रही हूँ... मेरे साथ मज़ाक... (और एक बार मारती है) कर रहा है...
विश्व - अच्छा माँ... मार ही रही हो... तो... (अपनी पीठ को दिखा कर) यहाँ पर थोड़ा मारो ना...

प्रतिभा जोर जोर से विश्व के पीठ पर झाड़ू बरसाने लगती है l विश्व भी बेशर्मों की तरह पीठ के हर हिस्सों को दिखाने लगता है l प्रतिभा चिढ़ कर झाड़ू फेंक देती है तो विश्व हा हा हा हा का हँसने लगता है, जिसके वजह से प्रतिभा रूठ कर बैठ जाती है I

प्रतिभा - सुबह सुबह... अपनी माँ को परेशान कर रहा है... जा मैं तुझसे बात नहीं करती...
विश्व - हा हा हा हा... माँ... एक बात कहूँ... तुम जब मार रही थी ना... मुझे गुदगुदी हो रही थी...
प्रतिभा - जा... मुझसे बात मत कर...
विश्व - माँ.. (कह कर बगल से गले लग जाता है, और अपना चेहरा प्रतिभा के कंधे पर रख कर) सुबह सुबह तुमसे मस्ती कर दिया... तो पुरा दिन मस्त जाएगा...
प्रतिभा - चल हट... छोड़ मुझे... कितना काम पड़ा है घर में... और तु... तु कब से इतना आलसी हो गया है...
विश्व - तो माँ... एक नौकर क्यूँ नहीं रख लेती...
प्रतिभा - नौकर क्यूँ रखूँ... तु शादी कर बहु देदे मुझे...
विश्व - क्या... मतलब... आपको बहु... घर के काम काज के लिए चाहिए...
प्रतिभा - और नहीं तो... वह चाहे राजकुमारी ही क्यूँ ना हो... इस घर में... मेरी बहु होगी... और खबरदार... अगर तु जोरु का गुलाम बना तो...
विश्व - तो...
प्रतिभा - तेरी टांगे तोड़ दूंगी... कान खींचुगी... और जी भर कर गाली दूँगी...
विश्व - यह तो अच्छी बात है ना...
प्रतिभा - क्या अच्छी बात है...
विश्व - माँ... तुम्हारे मुहँ से दो चार गाली ना सुन लूँ... तब जिस्म में कोई करेंट दौड़ने जैसी लगती नहीं है....
प्रतिभा - मतलब... मतलब तु... जोरु का गुलाम बनेगा...
विश्व - माँ... मैं चाहे जो भी होऊँ... जैसा भी होऊँ... रहूँगा तो तुम्हारा प्रताप ही ना...
प्रतिभा - बस बस... ज्यादा ड्रामा करने की जरुरत नहीं... चल जा तैयार हो जा... आज तेरे लिए एक सरप्राइज़ है...
विश्व - (प्रतिभा को छोड़ देता है) क्या... सरप्राइज़... किस लिए.. किस खुशी में...
प्रतिभा - (बेड से उठते हुए) अब तु उठता है... या बाल्टी लाकर उड़ेल दूँ तुझ पर...
विश्व - नहीं नहीं माँ... मैं.. मैं तैयार हो कर पहुँचता हूँ...

कह कर विश्व बेड से विश्व उठ कर बाथरुम में घुस जाता है l प्रतिभा भी मुस्कुराते हुए गिले चादर और बेड सीट निकाल कर बदल देती है और उन गिले चादर बेड सीट को बाहर ले जाती है l तापस अपना वकिंग खत्म कर पहुँचता है,और सोफ़े पर चौड़ा हो कर फैल जाता है l अपने शू खोलने लगता है कि प्रतिभा उसके लिए चाय की कप और न्यूज पेपर थमा देती है l तापस चाय पीते पीते न्यूज पेपर पढ़ना चालू किया था कि विश्व तैयार हो कर आ जाता है l

तापस - क्या बात है लाट साहब... कहाँ की तैयारी है...
विश्व - पता नहीं डैड.. माँ ने कहा तैयार हो जाओ... हो गया...
तापस - (प्रतिभा को आवाज देता है) अरे भाग्यवान...
प्रतिभा - (ड्रॉइंग रुम में आते हुए) जी कहिए...
तापस - यह सुबह सुबह कहाँ की तैयारी हो रही है...
प्रतिभा - स्वागत करने की तैयारी...
विश्व और तापस - किसकी...
विश्व - कौन आ रहा है...
प्रतिभा - रहा है नहीं... रही है...
दोनों - (चौंकते हुए) क्या...
विश्व - माँ... मैं यह शादी वादी के चक्कर में नहीं पड़ने वाला... कह देता हूँ...
प्रतिभा - शादी तो तुझसे करनी पड़ेगी... और चक्कर भी लगानी पड़ेगी...
विश्व - माँ... मैंने वादे के मुताबिक... ल़डकियों से दोस्ती की... और लेकर भी आया... फिर यह क्या बात हुई...
प्रतिभा - चुप... एकदम चुप... स्वागत के लिए तैयार रह...

विश्व असहाय सा तापस की ओर देखता है l तापस अपने कंधे उचका कर अपना चेहरा न्यूज पेपर सामने कर छुपा देता है l तभी कार की हॉर्न सुनाई देती है l

प्रतिभा - चलो चलो... स्वागत की तैयारी करो...(कह कर बाहर की जाने लगती है)
विश्व - मैं नहीं जा रहा...
प्रतिभा - (मुड़ कर अपनी साड़ी की पल्लू को कमर में बांध कर) क्या कहा... मेरे साथ बाहर चलता है या...

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अनु तैयार हो चुकी है l आईना देख कर माथे पर बिंदिया लगाती है l फिर ऑफिस के लिए निकलने लगती है l

दादी - आज भी छुट्टी कर लेती... तो क्या हो जाता... वहाँ बिचारी पुष्पा अकेली है... उसका तो खयाल कर लेती...
अनु - दादी... तुम ही तो कहा करती हो... बाहर जाते वक़्त... टोका नहीं करते... अब तुम खुद ही टोक रही हो...
दादी - क्यूँ कहा... सुनाई दिया या नहीं...
अनु - सुनाई दिया दादी... पर मैं कोई... आईपीएस कलेक्टर की नौकरी नहीं कर रही... पीएस की नौकरी करती हूँ...
दादी - अरे कमबख्त... मैं पुष्पा के लिए कह रही थी..
अनु - (घर से निकल कर) दादी... तुम खुद... उसके पास जा कर बैठ जाओ ना...
दादी - अरे सुन तो...

तब तक अनु वहाँ से जा चुकी थी l पीछे उसकी दादी कुछ बड़बड़ाते हुए अंदर चली जाती है, पर अनु पर कोई असर नहीं होता l चौराहे पर पहुँच कर ESS ऑफिस के लिए सिटी बस चढ़ती है l वह आज तीन दिन के बाद ऑफिस जा रही थी l आज जैसे उसे पर लगे हुए थे I एक अंदरुनी खुशी उसे जैसे उड़ाते हुए ले जा रही थी l क्यूँकी आज तीन दिन बाद वह वीर से मिलने जा रही थी l इन तीन दिनों में अनु ने कई बार कोशिश की वीर को फोन से कंटेक्ट करने की l पर हर बार वीर का फोन स्विच ऑफ ही आया l कई बार मैसेज भी किया पर मैसेज डेलीवर होने के बावजूद रिसीव नहीं हुए l ऑफिस से बाद में पता चला था उसे की वीर भी ऑफिस नहीं गया था I उसे याद आता है वीर ने उसे आने की दिन पुछा था l इसलिए आज वह ऑफिस के लिए दादी के टोकने के बाद भी जा रही थी l ESS ऑफिस जंक्शन आते ही अनु सिटी बस से उतर कर ऑफिस की ओर जाती है l की बोर्ड में रखे हुए वीर की ऑफिस की चाबी निकालती है l कमरे को खोलती है, अंदर आकर कमरे की साफ सफाई करने लगती है, हाँ यह बात और है कि कमरा पहले से ही पुरी तरह से साफ था l फिर भी उसका मन तो वीर के लिए कुछ करने को बेताब था l कॉफी मेकर में कॉफी जार को तैयार रखती है l और इंतज़ार करने लगती है l
तभी अनु की फोन बजने लगती है l अनु फोन पर राजकुमार देख कर खुशी से उछल पड़ती है l और अपनी खुशी को काबु करते हुए फोन उठाती है

अनु - हैलो...
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - ऑफिस में हो...
अनु - जी...
वीर - याद है... मेरी एक ख्वाहिश थी कि... एक दिन तुम्हारी वाली बचपन को जीउँ...
अनु - जी... जी राज कुमार जी...
वीर - वह दिन... मेरी जिंदगी का सबसे खास दिन था...
अनु - जी.. (मन में "वह दिन तो मेरी भी जिंदगी की सबसे खास दिन था राजकुमार जी)
वीर - अनु...
अनु - (होश में आते हुए) जी... जी राजकुमार जी...
वीर - तुमने कहा था... तुम्हें तुम्हारे बाबा... राजकुमारी कहा करते थे... है ना...
अनु - जी...
वीर - तुम्हारे मन में कभी ख्वाहिश नहीं हुई... की कम से कम... एक दिन के लिए... तुम सचमुच... एक राजकुमारी की जिंदगी जियो...
अनु - (चुप हो कर कुछ सोचने लगती है)
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - सोमवार को तैयार रहना... वह एक दिन... तुम पुरी तरह से एक राजकुमारी की जिंदगी जियोगी...
अनु - (कुछ कह नहीं पाती, बड़ी मुश्किल से हलक से आवाज आती है) हूँ...
वीर - अनु...
अनु - जी... जी...
वीर - सोमवार को हमारी मुलाकात वहीँ होगी... जहां तुम्हारे जन्म दिन पर हम मिले थे...
अनु - जी...
वीर - अच्छा... अब मैं फोन रखता हूँ...
अनु - राज... राजकुमार जी..
वीर - हाँ... अनु..
अनु - सोमवार को कुछ खास है क्या...
वीर - पता नहीं अनु... वह दिन खास है भी या नहीं... पर तुम्हारे साथ... उस दिन को... मैं तुम्हारे लिए खास बनाना चाहता हूँ...
अनु - और आज... आप आज नहीं आयेंगे... (बड़ी मासूमियत के साथ पूछती है)
वीर - मैं... राजगड़ से अभी अभी... भुवनेश्वर पहुँचा हूँ... पर तुमसे परसों मिलना चाहता हूँ...
अनु - (मायूसी भरे आवाज में) जी...
वीर - अच्छा अब मैं फोन काट रहा हूँ... बाय....
अनु - जी...

वीर का फोन कट जाता है l अनु मायूस सी एक कुर्सी पर बैठ जाती है l और सोच में पड़ जाती है कि सोमवार को आखिर ऐसा क्या खास दिन हो सकता है l अचानक उसे याद आता है कि उसने वीर के साथ अपने जन्मदिन पर पुरा दिन बिताया था l मन ही मन अपने आप से कहने लगती है

ज़रूर सोमवार को राजकुमार जी का जन्मदिन होगा... हाँ यही होगा... ओ... तब तो राजकुमार जी के लिए एक गिफ्ट बनता है.. पर मैं... राज कुमार जी के लिए... क्या लूँ... मेरी क्या हैसियत होगी...

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एक गाड़ी रोड पर भागी जा रही थी l उस गाड़ी में दो लोग बैठे हुए थे l रोणा और बल्लभ l

बल्लभ - आज अचानक तुने... यह कोणार्क जाने का प्रोग्राम कैसे बनाया... और यह गाड़ी रेंट पर लेने की क्या जरूरत थी...
रोणा - पिछली बार की एक्सपीरियंस... अब गाड़ी इसी तरह से रेंट पे लेकर... खुद ड्राइव करेंगे...
बल्लभ - पर हम जा कहाँ रहे हैं...
रोणा - जब गाड़ी कोणार्क जा रही है... तो जाहिर है... हम कोणार्क ही जा रहे हैं...
बल्लभ - क्या बात है... आज तु कुछ प्लान किया हुआ लगता है... क्या चल रहा है तेरे दिमाग में..

रोणा कुछ नहीं कहता है l चुप रहता है और उसका पुरा फोकस रोड पर था l कुछ देर यूँ हीं गाड़ी चलाते वक़्त रोणा का ध्यान भटकता है क्यूँकी गाड़ी के सामने कुछ भैंस आ जाते हैं, रोणा स्टियरिंग मोड़ते हुए गाड़ी की ब्रेक लगाता है l चर्र्र्र्र्र्र् करती हुई गाड़ी रुक जाती है l पर फिर भी गाड़ी से उन भैंस चराने वाला शख्स टकरा जाता है l गाड़ी के कांच पर खुन के छींटे नजर आती है l वह शख्स गाड़ी के बोनेट पर गिरा हुआ था l आसपास भीड़ इकट्ठा होने लगती है l भीड़ में लोग रोणा को और उसके गाड़ी को लेकर गालियाँ बकने लगते हैं l बल्लभ गाड़ी से उतर कर उस आदमी के पास पहुंच कर उठाता है l और उसके हाथ को अपने कंधे पर रख कर खड़ा करता है l रोणा लोगों को समझाने की कोशिश करता है l पर भीड़ गालियों पर गालियां बके जा रही थी l वह ज़ख्मी शख्स भीड़ से हाथ जोड़ कर

शख्स - भाईयों... शांत.. शांत भाईयों... बात को आगे ना बढायें... गलती उनकी जितनी थी... मेरी भी थी...
बल्लभ - यहाँ... पास कोई हस्पताल है...
भीड़ में से एक - हाँ है... पर अच्छा होगा... आप इन्हें भुवनेश्वर में किसी अच्छे हॉस्पिटल में इलाज कराएं...
रोणा - ठीक है...

बल्लभ उस ज़ख्मी शख्स को पीछे वाली सीट पर लिटा देता है l रोणा गाड़ी बैक करता है और गाड़ी को दुबारा भुवनेश्वर की मोड़ देता है l बल्लभ एक नजर पीछे लेटे हुए शख्स पर नजर डालता है और जोर से बड़बड़ाने लगता है l

बल्लभ - छे... साला कितना घटिया किस्मत है... कुछ भी करने की सोचो... ऐन मौके पर किस्मत गच्चा दे जाता है...

रोणा कोई जवाब नहीं देता, वह चुप चाप गाड़ी चलाये जा रहा था l

बल्लभ - अबे कुछ पुछ रहा हूँ तुझे...
रोणा - ना.. तु पुछ नहीं रहा था... बल्कि अपनी किस्मत को गाली दे रहा था...
बल्लभ - ऐ भोषड़ चंद... भोषड़े पर ज्ञान मत चोद... वैसे भी जब से यहां आए हैं... तब से मेरी नहीं... तेरी किस्मत खराब है... और आज भी खराब निकली...
रोणा - देख जब से यहाँ आए हैं... हम किसी ना किसी के रेकी में हैं... यह मानता है ना तु...
बल्लभ - हाँ... तो...
रोणा - इसी लिए मैंने रेंटल में गाड़ी ले लिया... और खुद ड्राइव कर रहा हूँ...
बल्लभ - तो कौनसा तीर मार लिया बे... गाड़ी चलाने के लिए रेंटल पर ली थी... किसी राह चलते को उड़ाने के लिए...

तभी एक हाथ बल्लभ के कंधे पर थपथपाता है l बल्लभ चौंक कर पीछे देखता है l वह शख्स जो कुछ देर पहले गाड़ी से टकराया था l वह उठ बैठा है और मुस्करा रहा है l

शख्स - वकील साहब... एक सिगरेट दे दो... कसम से बड़ी तलब लगी है...
बल्लभ - (हकलाते हुए) तु.. तु.. तुम तो... बिल्कुल सही सलामत हो...
शख्स - हाँ... एक दम झकास... कुछ नहीं हुआ है मुझे.. और रोणा साहब भी क्या मस्त ड्राइविंग किया है... आँ...

बल्लभ रोणा की तरफ देखता है l रोणा मुस्कराता हुआ गाड़ी चला रहा था I

बल्लभ - यह.. यह कौन है... रोणा...
रोणा - टोनी...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

विश्व, प्रतिभा और तापस तीनों बाहर आते हैं l बाहर दो गाडियाँ आ पहुँचती है l दो सफेद रंग के बड़े के बीच एक छोटा सा लाल रंग की कार भी थी l चूंकि उस कार में बैलून और फुल लगे हुए थे और बोनेट पर वी की तरह रिबन लगा हुआ था तो विश्व को समझते देर ना लगी यह एक नई कार थी l पहली वाली गाड़ी में से जोडार उतरता है l

जोडार - कैसे हो हीरो...
विश्व - जोडार साहब आप यहाँ... वह भी इतनी सुबह सुबह...
जोडार - यंग मेन... अभी नाश्ते का टाइम हो चुका है... तुम किस सुबह की बात कर रहे हो...
विश्व - जी.... मेरा मतलब है... मैंने आपको एक्स्पेक्ट नहीं किया था...
जोडार - कोई नहीं... तुम्हारे वजह से मुझे ना सिर्फ मेरा माल वापस मिल गया है... बल्कि कंपेंसेसन भी मिल गया है... अब थाईशन टावर बिफॉर टाइम कंप्लीट हो जाएगा...
विश्व - कंग्राचुलेशन...
जोडार - सेम टू यु... (कह कर एक पैकेट विश्व की ओर बढ़ाता है)
विश्व - यह... यह क्या है...
प्रतिभा - (विश्व की कंधे पर हाथ रखकर) ले लो...

विश्व वह पैकेट ले कर खोलता है l उस पैकेट से गाड़ी की कागजात जो विश्व के नाम पर बने थे और गाड़ी की चाबी निकलती है l विश्व हैरान हो कर प्रतिभा को देखता है l प्रतिभा बहुत खुश दिखाई दे रही थी l

विश्व - जोडार साहब... यह... इसकी क्या जरुरत थी...

प्रतिभा - ओ हो... क्या बाहर से ही विदा कर देगा... जोडार साहब को... (जोडार से) आप अंदर आइए... अंदर बैठ कर बातेँ करते हैं....

जोडार उन तीनों के साथ घर में आता है l सभी अपने अपने जगह पर बैठ जाते हैं l विश्व में अभी भी झिझक था l उसके झिझक को भांपते हुए

जोडार - क्या बात है... प्रताप... किस बात के लिए डिस्टर्ब्ड हो... जानता हूँ... तुम यह गिफ्ट लेने के लिए... झिझक रहे हो... पर यकीन मानों... मैं तुम्हारे लिए... लेंबर्गनी खरीदना चाहता था... पर प्रतिभा जी ने मुझे i10 पर ही रोक दिया...
तापस - ठीक ही किया... अब देखिए... i10 लेने से झिझक रहा है... लेंबर्गनी लाते... तो वह भाग ही गया होता...

सभी हँसते हैं, पर विश्व आँखे मूँद कर कुछ सोच रहा था l उसे यूँ सोचता देख कर

जोडार - मेरे हिसाब से... एक ग्रांड सेलेब्रेशन होना चाहिए....
तापस - ग्रांड ना सही... कम से कम हमें गाड़ी में... (विश्व की ओर इशारा करते हुए) इसे ड्राइवर बना कर... किसी मॉल में जाते हैं... या फिर किसी होटल में जाते हैं... नहीं तो... किसी थिएटर में जाते हैं...
प्रतिभा - वैसे आइडिया बुरा नहीं है.... तेरा क्या कहना है प्रताप....

विश्व अभी भी अपनी आँखे मूँदे कुछ सोचे जा रहा था l

प्रतिभा - प्रताप... ऐ... प्रताप...
विश्व - हूँ... हाँ... (अपनी सोच से बाहर निकलते हुए) हाँ माँ...
प्रतिभा - क्या तु.. खुश नहीं है...
विश्व - माँ.... खुश हूँ... पर मैं कुछ और सोच रहा था...
तीनों - (एक साथ) क्या सोच रहे थे...

विश्व - (जोडार से) जोडार सर... मुझे आपसे कुछ मदत चाहिए...
जोडार - कुछ भी मांग लो...
विश्व - अपने पुछा नहीं... कैसी मदत...
जोडार - पुछ ने की जरूरत नहीं है... कुछ भी मांग लो...

फिर विश्व तीनों को एक प्लान बताने लगता है l

×_____×_____×_____×______×_____×_____×

शाम को भाश्वती के साथ रुप ड्राइविंग स्कुल से एक ऑटो में लौट रही थी l पर हर दिन की तरह आज प्रताप उनके साथ नहीं था l आज उन दोनों के साथ सुकुमार लौट रहा था l प्रताप के ना होने से दोनों लड़कियों का मुड़ भले ही खराब था पर हँसी ठिठोली के साथ लौट रहे थे l उनकी हँसी ठिठोली पर ऑटो वाला एंजॉय कर रहा था पर I पर सुकुमार इन तीनों के साथ होकर भी उनके दुनिया में नहीं था l वह ग़मजादा था और ख़ामोश भी I कुछ देर बाद भाश्वती का स्टॉपेज आती है l भाश्वती दोनों को बाय कर चली जाती है l ऑटो वाला ऑटो आगे बढ़ाता है l अब ऑटो में खामोशी थी l

रुप - क्या बात है अंकल... आज आपका अचीवमेंट.. आपको मिल गया... फिर आप उदास क्यूँ हैं...
सुकुमार - हाँ... मिल तो गया है.. मुझे मेरा लाइसेंस... और तुम्हें भी तो लाइसेंस मिल गया है.... तुम्हें ही क्यूँ सबको मिल गया आज... और आज जब बिछड़ने का वक़्त आया... प्रताप नहीं था... इसीका दुख है...
रुप - (सवाल करती है) सिर्फ इसका... मुझे तो कुछ और भी लगता है... अगर ऐसा कुछ है... बताइए ना मुझे...
सुकुमार - (मुस्करा कर) बताऊँगा... पहले तुम यह बताओ... आज जब ड्राइविंग स्कुल आई थी... तुम भी उखड़ी उखड़ी लग रही थी... पुछ सकता हूँ क्यूँ...
रुप - अंकल... पहले मैंने पुछा है आपसे..
सुकुमार - पर तुम उम्र में छोटी हो... और लेडी भी हो... सो लेडीज फर्स्ट...
रुप - (मुस्करा कर) अंकल... आज पहली बार... मेरा किसी से झगड़ा हुआ है...
सुकुमार - पहली बार... मैंने तो सुना है... जब भी मौका मिलता है... तुम हाथ साफ करने से पीछे नहीं हटती...
रुप - क्या... (हैरान हो कर) यह... आपसे किसने कहा...
सुकुमार - (हँसते हुए) तुम्हारी सहेली...
रुप - (अपने आप से) कमीनी... परसों मिल मुझे कॉलेज में...
सुकुमार - हा हा हा हा... देखा गुस्सा तुम्हारे नाक पर ही बैठी है... और तुम कह रही हो... पहली बार... हा हा हा...
रुप - सच कह रही हूँ अंकल... पर... ठीक है पहली बार नहीं... पर पहली बार... किसीने झगड़े में मुझ दबाया....
सुकुमार - अछा... ऐसा क्या हो गया भई..

दोपहर को एक मॉल में रुप ड्राइविंग स्कुल में उसके साथ सीख रहे कुलीग्स के लिए और ड्राइविंग स्कुल के इंस्ट्रक्टर और स्टाफ्स के लिए गिफ्ट खरीदने आई है l अकेले हिम्मत कर आज मॉल आई थी l मॉल के एक सेक्शन में पहुँच कर गिफ्ट खरीदने के लिए एक दुकान के अंदर आती है l वहीँ अपर एक और लड़की भी कुछ गिफ्ट देख रही थी l वह बहुत सी गिफ्ट देख चुकी थी पर अब तक उसे कुछ पसंद नहीं आया था l सेल्स मेन के सिर में दर्द शुरु हो चुका था l ऐसे में जब उसी सेल्स मेन से कुछ दिखाने के लिए रुप कहती है l

से. मे - यस मिस...
रुप - मुझे कुछ लोगों को गिफ्ट देना है... क्या आप मुझे गिफ्ट आइटम दिखा सकते हैं...
से. मे - जी ज़रूर... बस थोड़ा इंतजार कीजिए... (उस लड़की से) क्या मैडम... आप को अभी भी... कोई गिफ्ट पसंद नहीं आया...
लड़की - आ तो रहा है... पर उन पर क्या जचेगा... यही सोच रही हूँ...
से. मे - क्या... आप इस तरह सोचेंगी तो... आपको कुछ भी पसंद नहीं आएगा... आप पहले सोच लीजिए... मैं तब तक इन्हें अटेंड करता हूँ...
लड़की - ठीक है...
से. मे - (रुप से) जी मैडम कहिए... क्या लेना चाहेंगी...
रुप - उँम्म्म्म्...

तभी वह लड़की की नजर एक छोटे से बक्से के अंदर रखे कपड़ों पर लगाने वाले बक्कल्स सेट पर पड़ती है l वह सेल्स मेन को उन बक्कल्स के लिए पुछती है l सेल्स मेन बक्कल्स सेट को लाकर उस लड़की के सामने रख देता है l वह बक्कल्स सेट देख कर रुप की आँखों में चमक दिखती है l

रुप - वाव.. कितनी खूबसूरत... बक्कल्स हैं...
लड़की - थैंक्यू... (सेल्स मेन से) यह कितने का है...
से. मे - जी... पांच हजार...
लड़की - (चौंक कर) इतना महँगा...
से. मे - प्लैटिनम कोटींग बक्कल्स है मैम... और पांच हजार कहाँ महँगा है...
लड़की - अच्छा... (बक्कल्स को हाथो में लिए कुछ सोचने लगती है)
रुप - एस्क्युज मी... क्या यह में ले लूँ...
लड़की - क्यूँ... मैंने बस इतना कहा कि महँगा है... नहीं लुंगी... ऐसा तो नहीं कहा मैंने...
रुप - देखिए... मुझे यह बक्कल्स बहुत पसंद आ गया है... आप और कुछ भी ले जाओ... मैं पे कर दूंगी...
लड़की - (बिदक जाती है) क्यूँ... मैं यही लुंगी... और अपने पैसे से... यह पैसे वाला रौब किसी और को दिखाना... (से. मे से) इसे पैक करो...
रुप - (लड़की से) मैंने कोई रौब नहीं ज़माया... बस मुझे पसंद आया तो... कह दिया...
लड़की - पसंद आ गया... तो... तुम्हारे पसंद के लिए... मैं अपनी पसंद क्यूँ छोड़ दूँ...
रुप - देखो... तुम बेवजह बात को बढ़ा रही हो..
लड़की - तुमने बात को यहाँ तक पहुँचाया है...
रुप - तुम जानती नहीं हो मुझे...
लड़की - क्यूँ... कहाँ की राजकुमारी हो क्या... हाँ जानती नहीं हूँ... जानना भी नहीं चाहती...
रुप - आह्ह्ह... डिस्गस्डींग...
लड़की - ऐ... गाली क्यूँ दी...
रुप - व्हाट...
लड़की - ऐ... अंग्रेजी में क्या चपड़ चपड़ कर रही है...
रुप - (गुस्से से अपनी आँखे मूँद कर गहरी गहरी सांसे लेने लगती है) (फिर मुस्करा ने की कोशिश करती है) ओके... तो आपसे बोल चाल भाषा में क्या कहूँ...
लड़की - क्यूँ... गाली जब अंग्रेजी में दी तो...
रुप - हाँ... तो..
लड़की - हाँ तो.. अंग्रेजी में सॉरी बोलो...
रुप - क्या...

सुकुमार जोर जोर से हँसने लगता है l उसे हँसता देख कर उसके साथ रुप भी हँसने लगती है l

सुकुमार - (हँसते हुए) फिर... फिर कैसे छुटा पीछा उस लड़की से...
रुप - जब... वह सेल्स मेन सॉरी अंग्रेजी में ही कहा जाता है बोला...
सुकुमार - (हँसते हुए) बुरा कुछ भी नहीं हुआ... बल्कि ऐसी याद बनीं... जिसे याद करते हुए... हँसा जा सकता है...
रुप - मेरी छोड़िए अंकल... आप बताइए... आज आप इतने मायूस क्यूँ हैं... आपके साथ कुछ बुरा हुआ क्या...
सुकुमार - (हैरानी के साथ) तुम्हें कैसे पता.. आज मेरे साथ कुछ हुआ है...
रुप - (हैरान हो कर) क्या... इसका मतलब... आज आपके साथ कुछ हुआ है...
सुकुमार - (एक सपाट सा जवाब देते हुए) हाँ... पर पता नहीं... अच्छा हुआ.. या बुरा हुआ है...
रुप - मतलब...
सुकुमार - मैं... मेरी औलादों को अच्छी तरह से जानता हूँ... पहचानता हूँ... वह लोग... जो इमोशनल ड्रामा.. मेरी पत्नी के साथ खेल रहे थे... मैं चाहता था... कोई उसके सामने लाये... उसके आँखों में पड़े ममता का पट्टी उतर जाए... आज जो वाक्या हुआ... उसकी आँखों पर बंधा अंधी ममता की पट्टी उतर गई... पर अच्छा हुआ या बुरा हुआ... मैं यह तय नहीं कर पा रहा हूँ...
रुप - ऐसा क्या हो गया अंकल...
सुकुमार - मेरे दोनों बेटे... एक साथ स्टेटस से आए... मकसद बस यही था... भुवनेश्वर की सारी प्रॉपर्टी बेच बाच कर हमें.. एक्सचेंज करते हुए.. छह महीना एक के पर... और छह महीना दुसरे के पास रखने की प्लान थी उनकी... अब जिसका साथ सात जन्मों के लिए थामा हो.. वह अगर.. ऐसे जुदा हो जाएगी... तो... एक टीस सी थी मन में... पर गायत्री... (सुकुमार की पत्नी) अपने पोते पोतीयों की ममता में... यह साजिश जान ना पाई... के हमारे बच्चों में किसी तरह की कोई एहसास बचा नहीं है... डॉलर के पीछे भागते भागते मशीन बन गए हैं... सारे ज़ज्बात उनके मेकैनिकल बन गए हैं... पर आज जो हुआ...

सुकुमार का घर

दोनों बेटे चिल्ला रहे हैं l क्यूँकी वह एक ट्रैवल एजेंट से गाड़ी कुछ दिनों के लिए रेंट पर ली थी l आज सुबह ग्यारह बजे के आसपास गाड़ी चोरी हो गई थी l

बेटा एक - देखा.. दिस इज़ इंडिया... चोर उच्चक्कों का देश है यह... (सुकुमार से) क्या... इसी देश में रहना चाहते हैं... अभी भी...
बेटा दो - हाँ.. नई इनोवा रेंट पर लाए थे... पासपोर्ट डिपॉजिट कर के... अब दुगना पैसा भरना पड़ेगा... आ.. ह्ह्ह्ह..
सुकुमार - हमे पुलिस में कंप्लेंट करनी चाहिए...
बेटा एक - पुलिस... इंडियन पुलिस... डोंट टॉक रब्बीस...
बेटा दो - आई बेट... इस चोरी में... पुलिस का भी हिस्सा होगा...
गायत्री - तुम्हारे पापा... सही तो कह रहे हैं...
बेटा एक - तुम तो चुप ही रहो तो अच्छा है...
गायत्री - मैंने क्या किया...
बेटा दो - प्रॉब्लम तो यही है कि... आपने कुछ नहीं किया... हमने कहा.. चलो हमारे साथ... पर नहीं... तुम्हारे पापा अकेले यहाँ क्या करेंगे...
बहु एक - हूँह्ह्ह... कुछ साल पहले हमारी बात मान ली होती... तो आज डाउन टाउन में अपना इंडीपेंडेंट घर होता... हमने क्या मांगा... एक सींपल सा फिनानंसीयल हेल्प ही ना... वह भी नहीं हुआ...
बहु दो - और नहीं तो... उल्टा इंडीया आए हैं... अब पेनाल्टी देंगे... इनोवा की दुगनी प्राइज दे कर...

इसी तरह कीचिर कीचिर डेढ़ घंटे तक चलता रहा l फिर तय हुआ कि पास के पुलिस स्टेशन में गाड़ी के चोरी की कंप्लेंट लिखेंगे l यही सोच कर जब दो भाई बाहर आते हैं तो देखते हैं वही इनोवा घर के आगे रखा हुआ है l सब हैरान हो जाते हैं l पास जाकर देखते हैं वाइपर में एक लिफाफा रखा हुआ है l बेटा एक लिफाफा खोल कर देखता है उसमें एक चिट्ठी और दस सिनेमा के टिकेट्स रखे हुए हैं l इतने में बेटा दो गाड़ी को अच्छी तरह से लॉक कर देता है और सभी घर के अंदर आते हैं l सबके उपस्थिति में बेटा एक चिट्ठी पढ़ने लगता है

" सबसे पहले आपसे क्षमा चाहता हूँ l आपकी गाड़ी घर के बाहर पार्किंग की हुई थी l तो मैंने अपनी गर्ल फ्रेंड को इम्प्रेस करने के लिए गाड़ी ले गया था I अपनी गर्ल फ्रेंड को घुमा कर आइस क्रीम खिला कर आपकी गाड़ी में टैंक फुल ऑइल डाल दिया है l चूंकि ढाई घंटे से आपकी गाड़ी आपकी नजरों से ओझल थी, बदले में मैंने आपके घर के सदस्यों के बराबर दस मूवी टिकेट्स दिए जा रहा हूँ l मूवी का नाम है 'एवेंजर्स द एंड गेम' l बहुत ही अच्छी मूवी है l और हाँ एक ऑफर भी है, इन दस टिकेट्स में दो टिकेट अगर सरेंडर करते हैं तो आपको, पॉप कॉर्न और कोल्ड ड्रिंक पर सीट फ्री मिलेगी I आशा है, अब आप मुझे माफ कर देंगे l
आपका एक शुभ चिंतक l"

चिट्ठी के खत्म होते ही l सुकुमार दंपति को छोड़ सभी ताली बजाने लगते हैं l

बेटा दो - मूवी.. कहाँ लगी है और कितने बजे की है..
बेटा एक - छह से नौ बजे... आईनॉक्स में लगी है...
बेटा दो - चलो.. एक हैप्पी एंडींग तो हुआ...
बहु एक - पर अपनी गाड़ी तो एइट सिटर है...
बहु दो - और टिकट दस हैं...
बेटा एक - दो टिकट सरेंडर करने का ऑपशन है... बदले में.. फ्री कोल्ड ड्रिंक और पॉपकॉर्न...
बेटा दो - देन ईट इज़ फाइनल... हम सब सिनेमा जाएंगे... माँ और पापा... यहीँ रहेंगे...
सभी - हाँ यही ठीक रहेगा...
सुकुमार - मैं तो.. ड्राइविंग स्कूल... चला जाऊँगा... तीन से सात... बज जाएंगे... अपनी माँ को तो कम से कम... ले जाते...
बहु एक - पापा जी... हम मूवी देखने जा रहे हैं... कौन सा फॉरेन जा रहे हैं... माँ जी रह लेंगी... (गायत्री से) क्यूँ माँ जी... ठीक कहा ना...
गायत्री - (अपना सिर हिला कर) हाँ बेटा... बिल्कुल सही कहा....

इतना कह कर सुकुमार चुप हो जाता है l रुप उसके दर्द को समझ जाती है l

रुप - इसका मतलब... अभी आपके बच्चे... मूवी देखने चले गए होंगे...
सुकुमार - हाँ... और घर में.. मेरी गायत्री अकेली होगी...
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
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मित्रों अगले अपडेट के लिए थोड़ा इंतजार किजियेगा
क्यूँकी पुर्ण स्वस्थ होने पर अपडेट लिखूँगा
अगला अपडेट बहुत ही महत्वपूर्ण पूर्ण होगा
क्यूंकि उस अपडेट में रुप विश्व को पहचान जाएगी
 

parkas

Well-Known Member
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303
मित्रों अगले अपडेट के लिए थोड़ा इंतजार किजियेगा
क्यूँकी पुर्ण स्वस्थ होने पर अपडेट लिखूँगा
अगला अपडेट बहुत ही महत्वपूर्ण पूर्ण होगा
क्यूंकि उस अपडेट में रुप विश्व को पहचान जाएगी
Koi bat nai...
Intezaar rahega Kala Nag bhai...
 

Chinturocky

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12,820
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मित्रों अगले अपडेट के लिए थोड़ा इंतजार किजियेगा
क्यूँकी पुर्ण स्वस्थ होने पर अपडेट लिखूँगा
अगला अपडेट बहुत ही महत्वपूर्ण पूर्ण होगा
क्यूंकि उस अपडेट में रुप विश्व को पहचान जाएगी
Isi update ki utsukata se Pratiksha rahegi, ishwar se prarthana rahegi ke aap jald hi swathya Labh prapt kare.
 
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ANUJ KUMAR

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13,384
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👉चौरानवेवां अपडेट
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अंधेरा धीरे धीरे छट रहा था सुरज निकलने के लिए अभी वक़्त था l लेकिन शहर जाग चुका था l बेशक फाइव स्टार होटल था, पर शहर की शोर से घिरा हुआ था l रोणा बिस्तर पर करवटें बदल रहा था या छटपटा रहा था l वह झट से बिस्तर पर उठ बैठता है, नींद भरे, उबासी भरे अध खुले आँखों से, वह बेड के पास लाइट की स्विच ऑन करता है l फिर अपने बेड के पास टेबल पर रखे पानी की बोतल निकाल कर अपने हलक को गिला करने लगा l पानी पीने के बाद कमरे में फिर अपनी नजर घुमाता है, पास का बेड खाली था l उसे कमरे में भी कहीं बल्लभ नहीं दिखता l वह हैरान होता है l वह बेड से उतरता है, बदन पर एक लोअर और वेस्ट पहने हुए था l वह चलते हुए बाहर की ड्रॉइंग रुम में आता है l वह कमरा अंधेरा था l पर उस कमरे की खिड़की पर कर्टन थोड़ा खुला हुआ था l वहाँ पर पड़े एक चेयर पर रोणा को एक साया बैठा हुआ दिखता है l रोणा के शरीर में एक सर्द लहर सी चलने लगती है l बाइस डिग्री ठंडे बंद ऐसी के कमरे में भी उसके कानों के बगल में पसीना निकलने लगता है l वह झट से लपक कर स्विच ऑन करता है l लाइट जल जाती हैं l रोणा खिड़की की तरफ देखता है वहाँ चेयर पर बल्लभ बैठा हुआ था I लाइट की उजाले से उसकी आँखे चुंधीया जाती है l बल्लभ अपने हाथ आँखों के सामने लाकर अध खुले आँखों से बेडरुम के दरवाजे की तरफ देखने की कोशिश करता है l लाइट जलाते वक़्त रोणा की हालत ऐसी हो गई थी के मानों वह किसी मैराथन से भाग कर आया हो l

रोणा - ( हांफते हुए) साले... मारवाएगा क्या... ऐसे बुत बने... क्या रात भर यहाँ बैठा हुआ है...
बल्लभ - (कुछ नहीं कहता है, थके हुए आँखों से रोणा को देखता है) श्श्श्श्श्...
रोणा - अबे... तुझसे कुछ पुछ रहा हूँ... यह सांप की तरह फूस... फूस... क्यूँ हो रहा है...
बल्लभ - तुझे... रात को... नींद... अच्छी आई...
रोणा - काहाँ... दारू जो गले तक पी रखी थी... आते ही लुढ़क गया था... तब का सोया... अब जाग रहा हूँ... पर पर नशे की नींद में सोया... था.... पर नींद... (दरवाजे से आ कर बल्लभ के पास बैठ कर, उसके चेहरे को गौर से देखता है)नहीं... मैं नींद में नहीं था... बेहोश था मैं... और लगता है.... रात भर तुझे भी नींद नहीं आई...
बल्लभ - हूँ... नहीं आई...
रोणा - वजह...
बल्लभ - (चुप रहता है)
रोणा - (सीधा हो कर संभल कर बैठते हुए) विश्वा...
बल्लभ - (अपना सिर हाँ में हिला कर) हूँ...
रोणा - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) देख... मेरा एक ही फंडा है... जो बिगड़ गया... उसे हटा दो... विश्व बिगड़ गया है... उसको तो हटाना पड़ेगा.... मैं अब अपने पुरे दिमाग का इस्तेमाल कर के... उसे हटाउंगा... हटा दूँगा...
बल्लभ - हूँ...
रोणा - अबे... हूँ.. क्या हूँ...
बल्लभ - तुने टाइटैनिक फिल्म देखा है...
रोणा - हाँ... वह जो एक पानी का जहाज... बर्फ के पहाड़ से टकरा कर... दो हिस्सों में टुट कर.... डुब जाती है... वही ना...
बल्लभ - हाँ वही उस बर्फ के पहाड़ को... आइस बर्ग कहते हैं...
रोणा - अरे यार... यह सुबह सुबह... हैंगओवर के चलते... सिर फटा जा रहा है... उस पर तु... यह क्या बक चोदी कर रहा है... क्यूँ कर रहा है...
बल्लभ -(रोणा की बातों को बिना प्रतिक्रिया देते हुए) आइस बर्ग... पानी के ऊपर... जितना दिखता है... वह सिर्फ एक चौथाई होता है... पानी के नीचे... बाकी के तीन चौथाई छुपा हुआ होता है...
रोणा - अबे... तुझे रात भर नींद क्यूँ नहीं आई... यह बता....
बल्लभ - तेरी सिक्स्थ सेंस बहुत गजब की है... सही समय पर जागती है... पर बहुत जल्दी दम भी तोड़ देती है...
रोणा - क्या... अबे क्या बकलौली कर रहा है...
बल्लभ - मैंने कहा था... मुझे कुछ आहट सुनाई दे रही है... श्श्श्श.... तुने सही कहा था... हमने... मतलब हम सबने... उसे अंडरएस्टीमेट किया था...
रोणा - तो... अब तो वह... एस्टीमेट हो गया ना...
बल्लभ - (ना में सिर हिलाते हुए) नहीं... मुझे लग रहा है कि... हम अब टाइटैनिक पर सवार हैं... और विश्व आइस बर्ग...
रोणा - क्या...
बल्लभ - हूँ... जरा सोच... परीड़ा जितना इंफॉर्मेशन लाया था... उतना तो हमें... जैल सुपरिटेंडेंट खान... बता सकता था... पर बताया नहीं... क्यूँ...
रोणा - (सिर ना में हिलाते हुए) उँ.. हुँ... पता नहीं... शायद... प्रोटोकॉल के चलते...
बल्लभ - यह कोई बात नहीं है... इसमें प्रोटोकॉल कहाँ से आ गया...
रोणा - तु.. कहना क्या चाहता है...
बल्लभ - आज... विश्व अकेला नहीं है... उसका अपना टीम है... कास के... हमने पहले से ही परीड़ा से काम लिया होता... तो हमारे बीस दिन यूँ बर्बाद ना हुए होते...
रोणा - हाँ... हाँ यार... सच कह रहा है...
बल्लभ - पर सवाल है... क्या अब भी हमारे पास उसके बारे में सारी इंफॉर्मेशन है...
रोणा - देख... प्रधान... मेरा एक उसूल है... तूफान आने से पहले घबराता जरूर हूँ... पर तूफान का सामना करने से कतराता नहीं हूँ... हालात के हिसाब से जुझना जानता हूँ... अब हालात जैसे बनेंगे... हमें भी वैसे ही जुझना पड़ेगा...
बल्लभ - दुश्मन से भिड़ना हो... तो उसके पुरे ताकत का अंदाजा कर लेनी चाहिए... तेरा टोनी कब आ रहा है...
रोणा - क्यूँ... तुझे लगता है... अब हमें टोनी की जरूरत है...
बल्लभ - हाँ... मैं जानना चाहता हूँ... विश्व के बारे में... वह क्या जानता है... और हमें... क्या जानना बाकी रह गया है...
रोणा - तुझे लगता है... परीड़ा ने कुछ गलत इंफॉर्मेशन दिया है...
बल्लभ - नहीँ... उसने सिर्फ वही बताया... जो हेड ऑफिस के आर्काइव में था... और वह.. ऑफिशियल था... मुझे अब विश्व के हर नॉन ऑफिशियल डिटेल्स चाहिए...
रोणा - प्रधान... अब तु.... घबरा रहा है क्या...
बल्लभ - नहीं...(अपना सिर ना में हिलाते हुए) अब मैं...(पॉज लेकर) डर रहा हूँ...
रोणा - (हैरानी से उसका मुहँ खुला रह जाता है)
बल्लभ - हाँ रोणा... मुझे अब डर लग रहा है... विश्व... जैल आता है... जैल में.. अपनी ग्रैजुएशन पुरा करता है... एलएलबी भी पुरा करता है... मतलब मकसद साफ है... सरपंच बनकर... मुजरिम रहते जो ना कर पाया... वह अब... वकील बनकर करेगा... रुप स्कैम के हर पहलू को वह जानता है... क्यूँ के जुड़ा हुआ था.... हर एक चीज़ से वाकिफ है... वह इसबार राजा साहब को.. जरूर कटघरे में लाएगा...
रोणा - (मुहँ फाड़े बल्लभ को सुन रहा था)
बल्लभ - जरा सोच... विश्व के यहाँ मदत के लिए... उसके कुछ बंदे भी हैं... विश्व... किसी मकसद के तहत... वह यहाँ पर है... राजगड़ नहीं गया है... वह यहाँ कर क्या रहा है... अगर तैयारी कर रहा है... तो किस चीज़ का...
रोणा - देख... जो बताना चाहता है... साफ साफ बता... यह वकीलों वाली भाषा... किसी और से बात कर...
बल्लभ - (अब सीधा हो कर बैठता है) जरा गहराई से सोच... हम सात सालों से... आँखे मूँदे सोते रहे... वह सात सालों से.. अपने लक्ष के ओर... लगातार बढ़ता चला जा रहा है... उसने अपना टीम भी बना लिया है... दो बार अपनी टीम की मदत से... हमें पटखनी दी है...
रोणा - सच कहूँ तो... मैं भी इस बात से हैरान हूँ... जैल में कौन से लोग.. किस तरह के लोग.. उसके साथी बने होंगे...
बल्लभ - लोग... साथी... वह वैसे लोग हैं या होंगे... जो सिस्टम और समाज के सताये हुए होंगे... जो एक दुसरे से हमदर्दी के चलते जुड़े होंगे... इस तरह से जुड़े हुए लोग... आसानी से नहीं टूटते...
रोणा - (चिंतित होते हुए) हूँ..
बल्लभ - अब तुझे क्या हुआ...
रोणा - सोच रहा हूँ... सिर्फ हमारी ही नींद उड़ी हुई है... या... कोई और भी है...

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लड़की - (गुस्से से गुर्राते हुए) तुम जो भी हो... बहुत पछताओगे... देखना...
रंगा - कहा ना.. वह जब होगा... तब होगा... आज यहाँ जो भी हो रहा है... सब सीसीटीवी में रिकार्ड हो रहा है... तुम और तुम्हारा पति कितने बेबस हैं... यही सब वायरल किया जाएगा...
लड़की - (गुर्राते हुए) अब मैं कहीं नहीं जाऊँगी... मुझे ढूंढते हुए... मेरी सिक्युरिटी आ पहुँचेगी... तुम लोग सब मारे जाओगे....
रंगा - पहले ही कहा था... यहाँ हमारी सिक्युरिटी है... मैंने कहा था तुझे... कोई हरकत ना करना... क्यूंकि मुझे छूट भी दी गई है... तुझे मार देने के लिए... इसलिए अब चपड़ चपड़ बंद... हाँ मरने से पहले.. मेरा नाम याद रखना... रंगा... रंगा नाम है मेरा...

कह कर रंगा अपने हाथ में जो रॉड था, मारने के लिए ऊपर उठाता है l घुटने पर बैठी वह लड़की उस बेहोश पड़े लड़के के पास डर के मारे आँखे मूँदते हुए चेहरा नीचे कर लेती है l रंगा के चेहरे पर शैतानी हंसी नाच उठता है कि अचानक वह देखता है एक लड़का लड़की से कुछ दुर एक कार के डिकी के ऊपर अपने कोहनी से टेक लगाए पैरों को क्रॉस कर खड़ा है l वह लड़का जबड़े भींच कर रंगा को देख रहा है l रंगा को उसका घूरना चुभ रहा था l रंगा उसके चेहरे को गौर से देखा, वह चेहरा थोड़ा जाना पहचाना लगता है l उस लड़के के चेहरे पर भाव बदलने लगते हैं l वह जबड़े भींच कर दांत पिसते हुए देख रहा है l उसका बायां भवां तन जाता है और दाहिने आँख के नीचे की पेशियां थरथराने लगते हैं l उसके यह भाव देख कर रंगा को जैल की फाइट याद आता है l रंगा पहचान जाता है, उसके दिल की धड़कन बुलेट ट्रेन की रफ्तार से भागने लगता है l दिमाग पर विश्वा, विश्वा हथोड़े की तरह बजने लगता है l विश्वा अब उनके तरफ बढ़ने लगता है l रंगाने जो रॉड मारने के लिए उठाया था, उसके हाथों से गिर जाता है l चूंकि रंगा के हाथों से रॉड गिर गया था, उसके देखा देखी उसके गुर्गों के हाथों से स्टिक्स और चेन भी गिरने लगते हैं l विश्व के हर बढ़ते कदम के साथ रंगा पीछे हटने लगता है l जैसे ही विश्व उस लड़की के पास खड़ा होता है रंगा वहाँ से दुम दबा कर भाग जाता है l

नहीं... (चिल्लाते हुए रंगा उठ बैठता है)

अपनी नजरें घुमाता है l वह एक साधारण सा कमरे में पड़े एक चारपाई पर लेटा हुआ था l नीचे फर्श पर उसके कुछ साथी सोये पड़े हैं l रंगा के कान में एक हुटर की आवाज़ पड़ती है l वह अपनी चारपाई से उठता है और कमरे से बाहर निकल कर बरामदे में आता है l बड़बिल माइंस
कैजुअल लेबर की बस्ती में के बीचों-बीच एक बड़े से घर में अब हैं l तभी उसके बगल में उसका एक साथी आ कर खड़ा होता है l

साथी - क्या बात है गुरु... चिल्ला कर उठ गए... विक्रम... छोटे क्षेत्रपाल का खौफ है क्या...
रंगा - मैं... विक्रम से छुपा हुआ जरूर हूँ... पर डर... मुझे विश्वा का है...
साथी - बुरा ना मानना गुरु... वह उस वक़्त अकेला था... हम बीस बाइस बंदे थे... फोड़ नहीं सकते थे क्या उसे...
रंगा - (उसके तरफ मुड़ कर) मैं भले ही भाग गया... पर तुम... तुम लोग क्यूँ फोड़े नहीं उसे...
साथी - गुरु... हमारी हिम्मत तो तुम हो... जब हमारी हिम्मत को... हथियार डालते हुए... भागते हुए हमने देखा... तब हम क्या कर सकते हैं..
रंगा - (सिर हिला कर ना कहते हुए)हूँ... तुमने उसे लड़ते हुए नहीं देखा है... मैंने देखा है उसे... करीम, गोलू, सलिल और मुन्ना याद है...
साथी - हाँ...
रंगा - वह लोग छह महीने तक... लकवे में थे... विश्वा... उन्हें सिर्फ एक एक घुसा मारा था...
साथी - क्या...
रंगा - हाँ... (अपने साथी को देख कर) जरा सोच... कोई अंग लकवा ग्रस्त हो जाए... तब पुरा का पुरा जिस्म... भारी लगने लगता है... बोझ लगने लगता है... जैल से निकलने के बाद... अपनी हार की खार लिए... मैं दो तीन सालों तक विश्व की खबर रखने लगा था... उन तीन सालों में... विश्व जैल के अंदर एक भी... सेटर डे स्कैरी नाइट सोल्यूशन फाइट हारा नहीं था... बाहर के... जितनी भी बड़े... धुरंधर... तुर्रम खान थे... विश्व से सामना करने बाद... सब के सब चूहे बन गए थे...
साथी - फिर तो अच्छा हुआ... हम यहाँ पर आ गए... पर... यहाँ से निकलेंगे हम कब...
रंगा - जब चेट्टी साहब बुलाएंगे...
साथी - गुरु... एक बात पूछूं...
रंगा - हूँ... पुछ ले..
साथी - आने वाले दिनों में... विक्रम या विश्व.... किसीके साथ भी आमना सामना हो सकता है... आप किसके सामने जाना चाहोगे...
रंगा - विक्रम के...
साथी - विश्वा के क्यूँ नहीं...
रंगा - क्यूँकी... अगर हम हारने पर आयेंगे... तो विक्रम हमें मार ही डालेगा...
साथी - विश्व भी तो मार सकता है...
रंगा - नहीं... विश्व किसीको नहीं मारेगा... पर जिंदगी इतनी खराब कर देगा... की उससे टकराने वाला... मौत मांगने लगेगा... पर वह मौत को भी... आसानी से आने नहीं देगा... (अपने साथी की ओर देख कर) विक्रम से उलझे... तो या जिंदगी... या फिर मौत... पर अगर विश्व से उलझे... तो मौत से बदत्तर जिंदगी...

रंगा की बातेँ सुन कर उसका साथी अपने हलक से थूक निगलता है l

रंगा - यह सब... मैंने उनसे सुना है... जो लोग जैल के बाहर... भाई बने फिरते थे... या हैं... पर जैल के भीतर उन सबका भाईगिरी... विश्व को सलाम ठोकता था...
साथी - गुरु... यह विश्व है कहाँ का...
रंगा - राजगड़ से है... उसका राजा साहब... मतलब बड़े क्षेत्रपाल से पंगा है...
साथी - क्या...
रंगा - हाँ...
साथी - तब तो अगर विश्व हमारे साथ आ गया... तो हम विक्रम और उसके आदमियों से टकरा सकते हैं...
रंगा - हाँ... उसे पाले में लेने के लिए... चेट्टी जी ने केके साहब को जिम्मा दिया है... देखते हैं.... हम सबकी नींदे खराब करके पता नहीं... खुद कहाँ पर सो रहा होगा

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विश्व के पिछवाड़े पर प्रतिभा उल्टे झाड़ू से एक मार मारती है l कोई हलचल नहीं l प्रतिभा हैरान होती है, और एक बार झाड़ू चलाती है l विश्व के जिस्म में कोई हल चल नहीं होती l प्रतिभा को गुस्सा आता है l वह पास रखे जग को विश्व के ऊपर उड़ेल देती है l

विश्व - आ.. ह.. माँ... यह क्या कर दिया..
प्रतिभा - कब से उठा रही हूँ... मेरे साथ मज़ाक... (और एक बार मारती है) कर रहा है...
विश्व - अच्छा माँ... मार ही रही हो... तो... (अपनी पीठ को दिखा कर) यहाँ पर थोड़ा मारो ना...

प्रतिभा जोर जोर से विश्व के पीठ पर झाड़ू बरसाने लगती है l विश्व भी बेशर्मों की तरह पीठ के हर हिस्सों को दिखाने लगता है l प्रतिभा चिढ़ कर झाड़ू फेंक देती है तो विश्व हा हा हा हा का हँसने लगता है, जिसके वजह से प्रतिभा रूठ कर बैठ जाती है I

प्रतिभा - सुबह सुबह... अपनी माँ को परेशान कर रहा है... जा मैं तुझसे बात नहीं करती...
विश्व - हा हा हा हा... माँ... एक बात कहूँ... तुम जब मार रही थी ना... मुझे गुदगुदी हो रही थी...
प्रतिभा - जा... मुझसे बात मत कर...
विश्व - माँ.. (कह कर बगल से गले लग जाता है, और अपना चेहरा प्रतिभा के कंधे पर रख कर) सुबह सुबह तुमसे मस्ती कर दिया... तो पुरा दिन मस्त जाएगा...
प्रतिभा - चल हट... छोड़ मुझे... कितना काम पड़ा है घर में... और तु... तु कब से इतना आलसी हो गया है...
विश्व - तो माँ... एक नौकर क्यूँ नहीं रख लेती...
प्रतिभा - नौकर क्यूँ रखूँ... तु शादी कर बहु देदे मुझे...
विश्व - क्या... मतलब... आपको बहु... घर के काम काज के लिए चाहिए...
प्रतिभा - और नहीं तो... वह चाहे राजकुमारी ही क्यूँ ना हो... इस घर में... मेरी बहु होगी... और खबरदार... अगर तु जोरु का गुलाम बना तो...
विश्व - तो...
प्रतिभा - तेरी टांगे तोड़ दूंगी... कान खींचुगी... और जी भर कर गाली दूँगी...
विश्व - यह तो अच्छी बात है ना...
प्रतिभा - क्या अच्छी बात है...
विश्व - माँ... तुम्हारे मुहँ से दो चार गाली ना सुन लूँ... तब जिस्म में कोई करेंट दौड़ने जैसी लगती नहीं है....
प्रतिभा - मतलब... मतलब तु... जोरु का गुलाम बनेगा...
विश्व - माँ... मैं चाहे जो भी होऊँ... जैसा भी होऊँ... रहूँगा तो तुम्हारा प्रताप ही ना...
प्रतिभा - बस बस... ज्यादा ड्रामा करने की जरुरत नहीं... चल जा तैयार हो जा... आज तेरे लिए एक सरप्राइज़ है...
विश्व - (प्रतिभा को छोड़ देता है) क्या... सरप्राइज़... किस लिए.. किस खुशी में...
प्रतिभा - (बेड से उठते हुए) अब तु उठता है... या बाल्टी लाकर उड़ेल दूँ तुझ पर...
विश्व - नहीं नहीं माँ... मैं.. मैं तैयार हो कर पहुँचता हूँ...

कह कर विश्व बेड से विश्व उठ कर बाथरुम में घुस जाता है l प्रतिभा भी मुस्कुराते हुए गिले चादर और बेड सीट निकाल कर बदल देती है और उन गिले चादर बेड सीट को बाहर ले जाती है l तापस अपना वकिंग खत्म कर पहुँचता है,और सोफ़े पर चौड़ा हो कर फैल जाता है l अपने शू खोलने लगता है कि प्रतिभा उसके लिए चाय की कप और न्यूज पेपर थमा देती है l तापस चाय पीते पीते न्यूज पेपर पढ़ना चालू किया था कि विश्व तैयार हो कर आ जाता है l

तापस - क्या बात है लाट साहब... कहाँ की तैयारी है...
विश्व - पता नहीं डैड.. माँ ने कहा तैयार हो जाओ... हो गया...
तापस - (प्रतिभा को आवाज देता है) अरे भाग्यवान...
प्रतिभा - (ड्रॉइंग रुम में आते हुए) जी कहिए...
तापस - यह सुबह सुबह कहाँ की तैयारी हो रही है...
प्रतिभा - स्वागत करने की तैयारी...
विश्व और तापस - किसकी...
विश्व - कौन आ रहा है...
प्रतिभा - रहा है नहीं... रही है...
दोनों - (चौंकते हुए) क्या...
विश्व - माँ... मैं यह शादी वादी के चक्कर में नहीं पड़ने वाला... कह देता हूँ...
प्रतिभा - शादी तो तुझसे करनी पड़ेगी... और चक्कर भी लगानी पड़ेगी...
विश्व - माँ... मैंने वादे के मुताबिक... ल़डकियों से दोस्ती की... और लेकर भी आया... फिर यह क्या बात हुई...
प्रतिभा - चुप... एकदम चुप... स्वागत के लिए तैयार रह...

विश्व असहाय सा तापस की ओर देखता है l तापस अपने कंधे उचका कर अपना चेहरा न्यूज पेपर सामने कर छुपा देता है l तभी कार की हॉर्न सुनाई देती है l

प्रतिभा - चलो चलो... स्वागत की तैयारी करो...(कह कर बाहर की जाने लगती है)
विश्व - मैं नहीं जा रहा...
प्रतिभा - (मुड़ कर अपनी साड़ी की पल्लू को कमर में बांध कर) क्या कहा... मेरे साथ बाहर चलता है या...

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अनु तैयार हो चुकी है l आईना देख कर माथे पर बिंदिया लगाती है l फिर ऑफिस के लिए निकलने लगती है l

दादी - आज भी छुट्टी कर लेती... तो क्या हो जाता... वहाँ बिचारी पुष्पा अकेली है... उसका तो खयाल कर लेती...
अनु - दादी... तुम ही तो कहा करती हो... बाहर जाते वक़्त... टोका नहीं करते... अब तुम खुद ही टोक रही हो...
दादी - क्यूँ कहा... सुनाई दिया या नहीं...
अनु - सुनाई दिया दादी... पर मैं कोई... आईपीएस कलेक्टर की नौकरी नहीं कर रही... पीएस की नौकरी करती हूँ...
दादी - अरे कमबख्त... मैं पुष्पा के लिए कह रही थी..
अनु - (घर से निकल कर) दादी... तुम खुद... उसके पास जा कर बैठ जाओ ना...
दादी - अरे सुन तो...

तब तक अनु वहाँ से जा चुकी थी l पीछे उसकी दादी कुछ बड़बड़ाते हुए अंदर चली जाती है, पर अनु पर कोई असर नहीं होता l चौराहे पर पहुँच कर ESS ऑफिस के लिए सिटी बस चढ़ती है l वह आज तीन दिन के बाद ऑफिस जा रही थी l आज जैसे उसे पर लगे हुए थे I एक अंदरुनी खुशी उसे जैसे उड़ाते हुए ले जा रही थी l क्यूँकी आज तीन दिन बाद वह वीर से मिलने जा रही थी l इन तीन दिनों में अनु ने कई बार कोशिश की वीर को फोन से कंटेक्ट करने की l पर हर बार वीर का फोन स्विच ऑफ ही आया l कई बार मैसेज भी किया पर मैसेज डेलीवर होने के बावजूद रिसीव नहीं हुए l ऑफिस से बाद में पता चला था उसे की वीर भी ऑफिस नहीं गया था I उसे याद आता है वीर ने उसे आने की दिन पुछा था l इसलिए आज वह ऑफिस के लिए दादी के टोकने के बाद भी जा रही थी l ESS ऑफिस जंक्शन आते ही अनु सिटी बस से उतर कर ऑफिस की ओर जाती है l की बोर्ड में रखे हुए वीर की ऑफिस की चाबी निकालती है l कमरे को खोलती है, अंदर आकर कमरे की साफ सफाई करने लगती है, हाँ यह बात और है कि कमरा पहले से ही पुरी तरह से साफ था l फिर भी उसका मन तो वीर के लिए कुछ करने को बेताब था l कॉफी मेकर में कॉफी जार को तैयार रखती है l और इंतज़ार करने लगती है l
तभी अनु की फोन बजने लगती है l अनु फोन पर राजकुमार देख कर खुशी से उछल पड़ती है l और अपनी खुशी को काबु करते हुए फोन उठाती है

अनु - हैलो...
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - ऑफिस में हो...
अनु - जी...
वीर - याद है... मेरी एक ख्वाहिश थी कि... एक दिन तुम्हारी वाली बचपन को जीउँ...
अनु - जी... जी राज कुमार जी...
वीर - वह दिन... मेरी जिंदगी का सबसे खास दिन था...
अनु - जी.. (मन में "वह दिन तो मेरी भी जिंदगी की सबसे खास दिन था राजकुमार जी)
वीर - अनु...
अनु - (होश में आते हुए) जी... जी राजकुमार जी...
वीर - तुमने कहा था... तुम्हें तुम्हारे बाबा... राजकुमारी कहा करते थे... है ना...
अनु - जी...
वीर - तुम्हारे मन में कभी ख्वाहिश नहीं हुई... की कम से कम... एक दिन के लिए... तुम सचमुच... एक राजकुमारी की जिंदगी जियो...
अनु - (चुप हो कर कुछ सोचने लगती है)
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - सोमवार को तैयार रहना... वह एक दिन... तुम पुरी तरह से एक राजकुमारी की जिंदगी जियोगी...
अनु - (कुछ कह नहीं पाती, बड़ी मुश्किल से हलक से आवाज आती है) हूँ...
वीर - अनु...
अनु - जी... जी...
वीर - सोमवार को हमारी मुलाकात वहीँ होगी... जहां तुम्हारे जन्म दिन पर हम मिले थे...
अनु - जी...
वीर - अच्छा... अब मैं फोन रखता हूँ...
अनु - राज... राजकुमार जी..
वीर - हाँ... अनु..
अनु - सोमवार को कुछ खास है क्या...
वीर - पता नहीं अनु... वह दिन खास है भी या नहीं... पर तुम्हारे साथ... उस दिन को... मैं तुम्हारे लिए खास बनाना चाहता हूँ...
अनु - और आज... आप आज नहीं आयेंगे... (बड़ी मासूमियत के साथ पूछती है)
वीर - मैं... राजगड़ से अभी अभी... भुवनेश्वर पहुँचा हूँ... पर तुमसे परसों मिलना चाहता हूँ...
अनु - (मायूसी भरे आवाज में) जी...
वीर - अच्छा अब मैं फोन काट रहा हूँ... बाय....
अनु - जी...

वीर का फोन कट जाता है l अनु मायूस सी एक कुर्सी पर बैठ जाती है l और सोच में पड़ जाती है कि सोमवार को आखिर ऐसा क्या खास दिन हो सकता है l अचानक उसे याद आता है कि उसने वीर के साथ अपने जन्मदिन पर पुरा दिन बिताया था l मन ही मन अपने आप से कहने लगती है

ज़रूर सोमवार को राजकुमार जी का जन्मदिन होगा... हाँ यही होगा... ओ... तब तो राजकुमार जी के लिए एक गिफ्ट बनता है.. पर मैं... राज कुमार जी के लिए... क्या लूँ... मेरी क्या हैसियत होगी...

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एक गाड़ी रोड पर भागी जा रही थी l उस गाड़ी में दो लोग बैठे हुए थे l रोणा और बल्लभ l

बल्लभ - आज अचानक तुने... यह कोणार्क जाने का प्रोग्राम कैसे बनाया... और यह गाड़ी रेंट पर लेने की क्या जरूरत थी...
रोणा - पिछली बार की एक्सपीरियंस... अब गाड़ी इसी तरह से रेंट पे लेकर... खुद ड्राइव करेंगे...
बल्लभ - पर हम जा कहाँ रहे हैं...
रोणा - जब गाड़ी कोणार्क जा रही है... तो जाहिर है... हम कोणार्क ही जा रहे हैं...
बल्लभ - क्या बात है... आज तु कुछ प्लान किया हुआ लगता है... क्या चल रहा है तेरे दिमाग में..

रोणा कुछ नहीं कहता है l चुप रहता है और उसका पुरा फोकस रोड पर था l कुछ देर यूँ हीं गाड़ी चलाते वक़्त रोणा का ध्यान भटकता है क्यूँकी गाड़ी के सामने कुछ भैंस आ जाते हैं, रोणा स्टियरिंग मोड़ते हुए गाड़ी की ब्रेक लगाता है l चर्र्र्र्र्र्र् करती हुई गाड़ी रुक जाती है l पर फिर भी गाड़ी से उन भैंस चराने वाला शख्स टकरा जाता है l गाड़ी के कांच पर खुन के छींटे नजर आती है l वह शख्स गाड़ी के बोनेट पर गिरा हुआ था l आसपास भीड़ इकट्ठा होने लगती है l भीड़ में लोग रोणा को और उसके गाड़ी को लेकर गालियाँ बकने लगते हैं l बल्लभ गाड़ी से उतर कर उस आदमी के पास पहुंच कर उठाता है l और उसके हाथ को अपने कंधे पर रख कर खड़ा करता है l रोणा लोगों को समझाने की कोशिश करता है l पर भीड़ गालियों पर गालियां बके जा रही थी l वह ज़ख्मी शख्स भीड़ से हाथ जोड़ कर

शख्स - भाईयों... शांत.. शांत भाईयों... बात को आगे ना बढायें... गलती उनकी जितनी थी... मेरी भी थी...
बल्लभ - यहाँ... पास कोई हस्पताल है...
भीड़ में से एक - हाँ है... पर अच्छा होगा... आप इन्हें भुवनेश्वर में किसी अच्छे हॉस्पिटल में इलाज कराएं...
रोणा - ठीक है...

बल्लभ उस ज़ख्मी शख्स को पीछे वाली सीट पर लिटा देता है l रोणा गाड़ी बैक करता है और गाड़ी को दुबारा भुवनेश्वर की मोड़ देता है l बल्लभ एक नजर पीछे लेटे हुए शख्स पर नजर डालता है और जोर से बड़बड़ाने लगता है l

बल्लभ - छे... साला कितना घटिया किस्मत है... कुछ भी करने की सोचो... ऐन मौके पर किस्मत गच्चा दे जाता है...

रोणा कोई जवाब नहीं देता, वह चुप चाप गाड़ी चलाये जा रहा था l


बल्लभ - अबे कुछ पुछ रहा हूँ तुझे...
रोणा - ना.. तु पुछ नहीं रहा था... बल्कि अपनी किस्मत को गाली दे रहा था...
बल्लभ - ऐ भोषड़ चंद... भोषड़े पर ज्ञान मत चोद... वैसे भी जब से यहां आए हैं... तब से मेरी नहीं... तेरी किस्मत खराब है... और आज भी खराब निकली...
रोणा - देख जब से यहाँ आए हैं... हम किसी ना किसी के रेकी में हैं... यह मानता है ना तु...
बल्लभ - हाँ... तो...
रोणा - इसी लिए मैंने रेंटल में गाड़ी ले लिया... और खुद ड्राइव कर रहा हूँ...
बल्लभ - तो कौनसा तीर मार लिया बे... गाड़ी चलाने के लिए रेंटल पर ली थी... किसी राह चलते को उड़ाने के लिए...

तभी एक हाथ बल्लभ के कंधे पर थपथपाता है l बल्लभ चौंक कर पीछे देखता है l वह शख्स जो कुछ देर पहले गाड़ी से टकराया था l वह उठ बैठा है और मुस्करा रहा है l

शख्स - वकील साहब... एक सिगरेट दे दो... कसम से बड़ी तलब लगी है...
बल्लभ - (हकलाते हुए) तु.. तु.. तुम तो... बिल्कुल सही सलामत हो...
शख्स - हाँ... एक दम झकास... कुछ नहीं हुआ है मुझे.. और रोणा साहब भी क्या मस्त ड्राइविंग किया है... आँ...

बल्लभ रोणा की तरफ देखता है l रोणा मुस्कराता हुआ गाड़ी चला रहा था I

बल्लभ - यह.. यह कौन है... रोणा...
रोणा - टोनी...


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विश्व, प्रतिभा और तापस तीनों बाहर आते हैं l बाहर दो गाडियाँ आ पहुँचती है l दो सफेद रंग के बड़े के बीच एक छोटा सा लाल रंग की कार भी थी l चूंकि उस कार में बैलून और फुल लगे हुए थे और बोनेट पर वी की तरह रिबन लगा हुआ था तो विश्व को समझते देर ना लगी यह एक नई कार थी l पहली वाली गाड़ी में से जोडार उतरता है l

जोडार - कैसे हो हीरो...
विश्व - जोडार साहब आप यहाँ... वह भी इतनी सुबह सुबह...
जोडार - यंग मेन... अभी नाश्ते का टाइम हो चुका है... तुम किस सुबह की बात कर रहे हो...
विश्व - जी.... मेरा मतलब है... मैंने आपको एक्स्पेक्ट नहीं किया था...
जोडार - कोई नहीं... तुम्हारे वजह से मुझे ना सिर्फ मेरा माल वापस मिल गया है... बल्कि कंपेंसेसन भी मिल गया है... अब थाईशन टावर बिफॉर टाइम कंप्लीट हो जाएगा...
विश्व - कंग्राचुलेशन...
जोडार - सेम टू यु... (कह कर एक पैकेट विश्व की ओर बढ़ाता है)
विश्व - यह... यह क्या है...
प्रतिभा - (विश्व की कंधे पर हाथ रखकर) ले लो...

विश्व वह पैकेट ले कर खोलता है l उस पैकेट से गाड़ी की कागजात जो विश्व के नाम पर बने थे और गाड़ी की चाबी निकलती है l विश्व हैरान हो कर प्रतिभा को देखता है l प्रतिभा बहुत खुश दिखाई दे रही थी l

विश्व - जोडार साहब... यह... इसकी क्या जरुरत थी...

प्रतिभा - ओ हो... क्या बाहर से ही विदा कर देगा... जोडार साहब को... (जोडार से) आप अंदर आइए... अंदर बैठ कर बातेँ करते हैं....

जोडार उन तीनों के साथ घर में आता है l सभी अपने अपने जगह पर बैठ जाते हैं l विश्व में अभी भी झिझक था l उसके झिझक को भांपते हुए

जोडार - क्या बात है... प्रताप... किस बात के लिए डिस्टर्ब्ड हो... जानता हूँ... तुम यह गिफ्ट लेने के लिए... झिझक रहे हो... पर यकीन मानों... मैं तुम्हारे लिए... लेंबर्गनी खरीदना चाहता था... पर प्रतिभा जी ने मुझे i10 पर ही रोक दिया...
तापस - ठीक ही किया... अब देखिए... i10 लेने से झिझक रहा है... लेंबर्गनी लाते... तो वह भाग ही गया होता...

सभी हँसते हैं, पर विश्व आँखे मूँद कर कुछ सोच रहा था l उसे यूँ सोचता देख कर

जोडार - मेरे हिसाब से... एक ग्रांड सेलेब्रेशन होना चाहिए....
तापस - ग्रांड ना सही... कम से कम हमें गाड़ी में... (विश्व की ओर इशारा करते हुए) इसे ड्राइवर बना कर... किसी मॉल में जाते हैं... या फिर किसी होटल में जाते हैं... नहीं तो... किसी थिएटर में जाते हैं...
प्रतिभा - वैसे आइडिया बुरा नहीं है.... तेरा क्या कहना है प्रताप....

विश्व अभी भी अपनी आँखे मूँदे कुछ सोचे जा रहा था l

प्रतिभा - प्रताप... ऐ... प्रताप...
विश्व - हूँ... हाँ... (अपनी सोच से बाहर निकलते हुए) हाँ माँ...
प्रतिभा - क्या तु.. खुश नहीं है...
विश्व - माँ.... खुश हूँ... पर मैं कुछ और सोच रहा था...
तीनों - (एक साथ) क्या सोच रहे थे...

विश्व - (जोडार से) जोडार सर... मुझे आपसे कुछ मदत चाहिए...
जोडार - कुछ भी मांग लो...
विश्व - अपने पुछा नहीं... कैसी मदत...
जोडार - पुछ ने की जरूरत नहीं है... कुछ भी मांग लो...

फिर विश्व तीनों को एक प्लान बताने लगता है l

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शाम को भाश्वती के साथ रुप ड्राइविंग स्कुल से एक ऑटो में लौट रही थी l पर हर दिन की तरह आज प्रताप उनके साथ नहीं था l आज उन दोनों के साथ सुकुमार लौट रहा था l प्रताप के ना होने से दोनों लड़कियों का मुड़ भले ही खराब था पर हँसी ठिठोली के साथ लौट रहे थे l उनकी हँसी ठिठोली पर ऑटो वाला एंजॉय कर रहा था पर I पर सुकुमार इन तीनों के साथ होकर भी उनके दुनिया में नहीं था l वह ग़मजादा था और ख़ामोश भी I कुछ देर बाद भाश्वती का स्टॉपेज आती है l भाश्वती दोनों को बाय कर चली जाती है l ऑटो वाला ऑटो आगे बढ़ाता है l अब ऑटो में खामोशी थी l

रुप - क्या बात है अंकल... आज आपका अचीवमेंट.. आपको मिल गया... फिर आप उदास क्यूँ हैं...
सुकुमार - हाँ... मिल तो गया है.. मुझे मेरा लाइसेंस... और तुम्हें भी तो लाइसेंस मिल गया है.... तुम्हें ही क्यूँ सबको मिल गया आज... और आज जब बिछड़ने का वक़्त आया... प्रताप नहीं था... इसीका दुख है...
रुप - (सवाल करती है) सिर्फ इसका... मुझे तो कुछ और भी लगता है... अगर ऐसा कुछ है... बताइए ना मुझे...
सुकुमार - (मुस्करा कर) बताऊँगा... पहले तुम यह बताओ... आज जब ड्राइविंग स्कुल आई थी... तुम भी उखड़ी उखड़ी लग रही थी... पुछ सकता हूँ क्यूँ...
रुप - अंकल... पहले मैंने पुछा है आपसे..
सुकुमार - पर तुम उम्र में छोटी हो... और लेडी भी हो... सो लेडीज फर्स्ट...
रुप - (मुस्करा कर) अंकल... आज पहली बार... मेरा किसी से झगड़ा हुआ है...
सुकुमार - पहली बार... मैंने तो सुना है... जब भी मौका मिलता है... तुम हाथ साफ करने से पीछे नहीं हटती...
रुप - क्या... (हैरान हो कर) यह... आपसे किसने कहा...
सुकुमार - (हँसते हुए) तुम्हारी सहेली...
रुप - (अपने आप से) कमीनी... परसों मिल मुझे कॉलेज में...
सुकुमार - हा हा हा हा... देखा गुस्सा तुम्हारे नाक पर ही बैठी है... और तुम कह रही हो... पहली बार... हा हा हा...
रुप - सच कह रही हूँ अंकल... पर... ठीक है पहली बार नहीं... पर पहली बार... किसीने झगड़े में मुझ दबाया....
सुकुमार - अछा... ऐसा क्या हो गया भई..

दोपहर को एक मॉल में रुप ड्राइविंग स्कुल में उसके साथ सीख रहे कुलीग्स के लिए और ड्राइविंग स्कुल के इंस्ट्रक्टर और स्टाफ्स के लिए गिफ्ट खरीदने आई है l अकेले हिम्मत कर आज मॉल आई थी l मॉल के एक सेक्शन में पहुँच कर गिफ्ट खरीदने के लिए एक दुकान के अंदर आती है l वहीँ अपर एक और लड़की भी कुछ गिफ्ट देख रही थी l वह बहुत सी गिफ्ट देख चुकी थी पर अब तक उसे कुछ पसंद नहीं आया था l सेल्स मेन के सिर में दर्द शुरु हो चुका था l ऐसे में जब उसी सेल्स मेन से कुछ दिखाने के लिए रुप कहती है l

से. मे - यस मिस...
रुप - मुझे कुछ लोगों को गिफ्ट देना है... क्या आप मुझे गिफ्ट आइटम दिखा सकते हैं...
से. मे - जी ज़रूर... बस थोड़ा इंतजार कीजिए... (उस लड़की से) क्या मैडम... आप को अभी भी... कोई गिफ्ट पसंद नहीं आया...
लड़की - आ तो रहा है... पर उन पर क्या जचेगा... यही सोच रही हूँ...
से. मे - क्या... आप इस तरह सोचेंगी तो... आपको कुछ भी पसंद नहीं आएगा... आप पहले सोच लीजिए... मैं तब तक इन्हें अटेंड करता हूँ...
लड़की - ठीक है...
से. मे - (रुप से) जी मैडम कहिए... क्या लेना चाहेंगी...
रुप - उँम्म्म्म्...

तभी वह लड़की की नजर एक छोटे से बक्से के अंदर रखे कपड़ों पर लगाने वाले बक्कल्स सेट पर पड़ती है l वह सेल्स मेन को उन बक्कल्स के लिए पुछती है l सेल्स मेन बक्कल्स सेट को लाकर उस लड़की के सामने रख देता है l वह बक्कल्स सेट देख कर रुप की आँखों में चमक दिखती है l

रुप - वाव.. कितनी खूबसूरत... बक्कल्स हैं...
लड़की - थैंक्यू... (सेल्स मेन से) यह कितने का है...
से. मे - जी... पांच हजार...
लड़की - (चौंक कर) इतना महँगा...
से. मे - प्लैटिनम कोटींग बक्कल्स है मैम... और पांच हजार कहाँ महँगा है...
लड़की - अच्छा... (बक्कल्स को हाथो में लिए कुछ सोचने लगती है)
रुप - एस्क्युज मी... क्या यह में ले लूँ...
लड़की - क्यूँ... मैंने बस इतना कहा कि महँगा है... नहीं लुंगी... ऐसा तो नहीं कहा मैंने...
रुप - देखिए... मुझे यह बक्कल्स बहुत पसंद आ गया है... आप और कुछ भी ले जाओ... मैं पे कर दूंगी...
लड़की - (बिदक जाती है) क्यूँ... मैं यही लुंगी... और अपने पैसे से... यह पैसे वाला रौब किसी और को दिखाना... (से. मे से) इसे पैक करो...
रुप - (लड़की से) मैंने कोई रौब नहीं ज़माया... बस मुझे पसंद आया तो... कह दिया...
लड़की - पसंद आ गया... तो... तुम्हारे पसंद के लिए... मैं अपनी पसंद क्यूँ छोड़ दूँ...
रुप - देखो... तुम बेवजह बात को बढ़ा रही हो..
लड़की - तुमने बात को यहाँ तक पहुँचाया है...
रुप - तुम जानती नहीं हो मुझे...
लड़की - क्यूँ... कहाँ की राजकुमारी हो क्या... हाँ जानती नहीं हूँ... जानना भी नहीं चाहती...
रुप - आह्ह्ह... डिस्गस्डींग...
लड़की - ऐ... गाली क्यूँ दी...
रुप - व्हाट...
लड़की - ऐ... अंग्रेजी में क्या चपड़ चपड़ कर रही है...
रुप - (गुस्से से अपनी आँखे मूँद कर गहरी गहरी सांसे लेने लगती है) (फिर मुस्करा ने की कोशिश करती है) ओके... तो आपसे बोल चाल भाषा में क्या कहूँ...
लड़की - क्यूँ... गाली जब अंग्रेजी में दी तो...
रुप - हाँ... तो..
लड़की - हाँ तो.. अंग्रेजी में सॉरी बोलो...
रुप - क्या...

सुकुमार जोर जोर से हँसने लगता है l उसे हँसता देख कर उसके साथ रुप भी हँसने लगती है l

सुकुमार - (हँसते हुए) फिर... फिर कैसे छुटा पीछा उस लड़की से...
रुप - जब... वह सेल्स मेन सॉरी अंग्रेजी में ही कहा जाता है बोला...
सुकुमार - (हँसते हुए) बुरा कुछ भी नहीं हुआ... बल्कि ऐसी याद बनीं... जिसे याद करते हुए... हँसा जा सकता है...
रुप - मेरी छोड़िए अंकल... आप बताइए... आज आप इतने मायूस क्यूँ हैं... आपके साथ कुछ बुरा हुआ क्या...
सुकुमार - (हैरानी के साथ) तुम्हें कैसे पता.. आज मेरे साथ कुछ हुआ है...
रुप - (हैरान हो कर) क्या... इसका मतलब... आज आपके साथ कुछ हुआ है...
सुकुमार - (एक सपाट सा जवाब देते हुए) हाँ... पर पता नहीं... अच्छा हुआ.. या बुरा हुआ है...
रुप - मतलब...
सुकुमार - मैं... मेरी औलादों को अच्छी तरह से जानता हूँ... पहचानता हूँ... वह लोग... जो इमोशनल ड्रामा.. मेरी पत्नी के साथ खेल रहे थे... मैं चाहता था... कोई उसके सामने लाये... उसके आँखों में पड़े ममता का पट्टी उतर जाए... आज जो वाक्या हुआ... उसकी आँखों पर बंधा अंधी ममता की पट्टी उतर गई... पर अच्छा हुआ या बुरा हुआ... मैं यह तय नहीं कर पा रहा हूँ...
रुप - ऐसा क्या हो गया अंकल...
सुकुमार - मेरे दोनों बेटे... एक साथ स्टेटस से आए... मकसद बस यही था... भुवनेश्वर की सारी प्रॉपर्टी बेच बाच कर हमें.. एक्सचेंज करते हुए.. छह महीना एक के पर... और छह महीना दुसरे के पास रखने की प्लान थी उनकी... अब जिसका साथ सात जन्मों के लिए थामा हो.. वह अगर.. ऐसे जुदा हो जाएगी... तो... एक टीस सी थी मन में... पर गायत्री... (सुकुमार की पत्नी) अपने पोते पोतीयों की ममता में... यह साजिश जान ना पाई... के हमारे बच्चों में किसी तरह की कोई एहसास बचा नहीं है... डॉलर के पीछे भागते भागते मशीन बन गए हैं... सारे ज़ज्बात उनके मेकैनिकल बन गए हैं... पर आज जो हुआ...

सुकुमार का घर

दोनों बेटे चिल्ला रहे हैं l क्यूँकी वह एक ट्रैवल एजेंट से गाड़ी कुछ दिनों के लिए रेंट पर ली थी l आज सुबह ग्यारह बजे के आसपास गाड़ी चोरी हो गई थी l

बेटा एक - देखा.. दिस इज़ इंडिया... चोर उच्चक्कों का देश है यह... (सुकुमार से) क्या... इसी देश में रहना चाहते हैं... अभी भी...
बेटा दो - हाँ.. नई इनोवा रेंट पर लाए थे... पासपोर्ट डिपॉजिट कर के... अब दुगना पैसा भरना पड़ेगा... आ.. ह्ह्ह्ह..
सुकुमार - हमे पुलिस में कंप्लेंट करनी चाहिए...
बेटा एक - पुलिस... इंडियन पुलिस... डोंट टॉक रब्बीस...
बेटा दो - आई बेट... इस चोरी में... पुलिस का भी हिस्सा होगा...
गायत्री - तुम्हारे पापा... सही तो कह रहे हैं...
बेटा एक - तुम तो चुप ही रहो तो अच्छा है...
गायत्री - मैंने क्या किया...
बेटा दो - प्रॉब्लम तो यही है कि... आपने कुछ नहीं किया... हमने कहा.. चलो हमारे साथ... पर नहीं... तुम्हारे पापा अकेले यहाँ क्या करेंगे...
बहु एक - हूँह्ह्ह... कुछ साल पहले हमारी बात मान ली होती... तो आज डाउन टाउन में अपना इंडीपेंडेंट घर होता... हमने क्या मांगा... एक सींपल सा फिनानंसीयल हेल्प ही ना... वह भी नहीं हुआ...
बहु दो - और नहीं तो... उल्टा इंडीया आए हैं... अब पेनाल्टी देंगे... इनोवा की दुगनी प्राइज दे कर...

इसी तरह कीचिर कीचिर डेढ़ घंटे तक चलता रहा l फिर तय हुआ कि पास के पुलिस स्टेशन में गाड़ी के चोरी की कंप्लेंट लिखेंगे l यही सोच कर जब दो भाई बाहर आते हैं तो देखते हैं वही इनोवा घर के आगे रखा हुआ है l सब हैरान हो जाते हैं l पास जाकर देखते हैं वाइपर में एक लिफाफा रखा हुआ है l बेटा एक लिफाफा खोल कर देखता है उसमें एक चिट्ठी और दस सिनेमा के टिकेट्स रखे हुए हैं l इतने में बेटा दो गाड़ी को अच्छी तरह से लॉक कर देता है और सभी घर के अंदर आते हैं l सबके उपस्थिति में बेटा एक चिट्ठी पढ़ने लगता है

" सबसे पहले आपसे क्षमा चाहता हूँ l आपकी गाड़ी घर के बाहर पार्किंग की हुई थी l तो मैंने अपनी गर्ल फ्रेंड को इम्प्रेस करने के लिए गाड़ी ले गया था I अपनी गर्ल फ्रेंड को घुमा कर आइस क्रीम खिला कर आपकी गाड़ी में टैंक फुल ऑइल डाल दिया है l चूंकि ढाई घंटे से आपकी गाड़ी आपकी नजरों से ओझल थी, बदले में मैंने आपके घर के सदस्यों के बराबर दस मूवी टिकेट्स दिए जा रहा हूँ l मूवी का नाम है 'एवेंजर्स द एंड गेम' l बहुत ही अच्छी मूवी है l और हाँ एक ऑफर भी है, इन दस टिकेट्स में दो टिकेट अगर सरेंडर करते हैं तो आपको, पॉप कॉर्न और कोल्ड ड्रिंक पर सीट फ्री मिलेगी I आशा है, अब आप मुझे माफ कर देंगे l
आपका एक शुभ चिंतक l"

चिट्ठी के खत्म होते ही l सुकुमार दंपति को छोड़ सभी ताली बजाने लगते हैं l

बेटा दो - मूवी.. कहाँ लगी है और कितने बजे की है..
बेटा एक - छह से नौ बजे... आईनॉक्स में लगी है...
बेटा दो - चलो.. एक हैप्पी एंडींग तो हुआ...
बहु एक - पर अपनी गाड़ी तो एइट सिटर है...
बहु दो - और टिकट दस हैं...
बेटा एक - दो टिकट सरेंडर करने का ऑपशन है... बदले में.. फ्री कोल्ड ड्रिंक और पॉपकॉर्न...
बेटा दो - देन ईट इज़ फाइनल... हम सब सिनेमा जाएंगे... माँ और पापा... यहीँ रहेंगे...
सभी - हाँ यही ठीक रहेगा...
सुकुमार - मैं तो.. ड्राइविंग स्कूल... चला जाऊँगा... तीन से सात... बज जाएंगे... अपनी माँ को तो कम से कम... ले जाते...
बहु एक - पापा जी... हम मूवी देखने जा रहे हैं... कौन सा फॉरेन जा रहे हैं... माँ जी रह लेंगी... (गायत्री से) क्यूँ माँ जी... ठीक कहा ना...
गायत्री - (अपना सिर हिला कर) हाँ बेटा... बिल्कुल सही कहा....

इतना कह कर सुकुमार चुप हो जाता है l रुप उसके दर्द को समझ जाती है l

रुप - इसका मतलब... अभी आपके बच्चे... मूवी देखने चले गए होंगे...
सुकुमार - हाँ... और घर में.. मेरी गायत्री अकेली होगी...
fabulous update
 

Surya_021

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अंधेरा धीरे धीरे छट रहा था सुरज निकलने के लिए अभी वक़्त था l लेकिन शहर जाग चुका था l बेशक फाइव स्टार होटल था, पर शहर की शोर से घिरा हुआ था l रोणा बिस्तर पर करवटें बदल रहा था या छटपटा रहा था l वह झट से बिस्तर पर उठ बैठता है, नींद भरे, उबासी भरे अध खुले आँखों से, वह बेड के पास लाइट की स्विच ऑन करता है l फिर अपने बेड के पास टेबल पर रखे पानी की बोतल निकाल कर अपने हलक को गिला करने लगा l पानी पीने के बाद कमरे में फिर अपनी नजर घुमाता है, पास का बेड खाली था l उसे कमरे में भी कहीं बल्लभ नहीं दिखता l वह हैरान होता है l वह बेड से उतरता है, बदन पर एक लोअर और वेस्ट पहने हुए था l वह चलते हुए बाहर की ड्रॉइंग रुम में आता है l वह कमरा अंधेरा था l पर उस कमरे की खिड़की पर कर्टन थोड़ा खुला हुआ था l वहाँ पर पड़े एक चेयर पर रोणा को एक साया बैठा हुआ दिखता है l रोणा के शरीर में एक सर्द लहर सी चलने लगती है l बाइस डिग्री ठंडे बंद ऐसी के कमरे में भी उसके कानों के बगल में पसीना निकलने लगता है l वह झट से लपक कर स्विच ऑन करता है l लाइट जल जाती हैं l रोणा खिड़की की तरफ देखता है वहाँ चेयर पर बल्लभ बैठा हुआ था I लाइट की उजाले से उसकी आँखे चुंधीया जाती है l बल्लभ अपने हाथ आँखों के सामने लाकर अध खुले आँखों से बेडरुम के दरवाजे की तरफ देखने की कोशिश करता है l लाइट जलाते वक़्त रोणा की हालत ऐसी हो गई थी के मानों वह किसी मैराथन से भाग कर आया हो l

रोणा - ( हांफते हुए) साले... मारवाएगा क्या... ऐसे बुत बने... क्या रात भर यहाँ बैठा हुआ है...
बल्लभ - (कुछ नहीं कहता है, थके हुए आँखों से रोणा को देखता है) श्श्श्श्श्...
रोणा - अबे... तुझसे कुछ पुछ रहा हूँ... यह सांप की तरह फूस... फूस... क्यूँ हो रहा है...
बल्लभ - तुझे... रात को... नींद... अच्छी आई...
रोणा - काहाँ... दारू जो गले तक पी रखी थी... आते ही लुढ़क गया था... तब का सोया... अब जाग रहा हूँ... पर पर नशे की नींद में सोया... था.... पर नींद... (दरवाजे से आ कर बल्लभ के पास बैठ कर, उसके चेहरे को गौर से देखता है)नहीं... मैं नींद में नहीं था... बेहोश था मैं... और लगता है.... रात भर तुझे भी नींद नहीं आई...
बल्लभ - हूँ... नहीं आई...
रोणा - वजह...
बल्लभ - (चुप रहता है)
रोणा - (सीधा हो कर संभल कर बैठते हुए) विश्वा...
बल्लभ - (अपना सिर हाँ में हिला कर) हूँ...
रोणा - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) देख... मेरा एक ही फंडा है... जो बिगड़ गया... उसे हटा दो... विश्व बिगड़ गया है... उसको तो हटाना पड़ेगा.... मैं अब अपने पुरे दिमाग का इस्तेमाल कर के... उसे हटाउंगा... हटा दूँगा...
बल्लभ - हूँ...
रोणा - अबे... हूँ.. क्या हूँ...
बल्लभ - तुने टाइटैनिक फिल्म देखा है...
रोणा - हाँ... वह जो एक पानी का जहाज... बर्फ के पहाड़ से टकरा कर... दो हिस्सों में टुट कर.... डुब जाती है... वही ना...
बल्लभ - हाँ वही उस बर्फ के पहाड़ को... आइस बर्ग कहते हैं...
रोणा - अरे यार... यह सुबह सुबह... हैंगओवर के चलते... सिर फटा जा रहा है... उस पर तु... यह क्या बक चोदी कर रहा है... क्यूँ कर रहा है...
बल्लभ -(रोणा की बातों को बिना प्रतिक्रिया देते हुए) आइस बर्ग... पानी के ऊपर... जितना दिखता है... वह सिर्फ एक चौथाई होता है... पानी के नीचे... बाकी के तीन चौथाई छुपा हुआ होता है...
रोणा - अबे... तुझे रात भर नींद क्यूँ नहीं आई... यह बता....
बल्लभ - तेरी सिक्स्थ सेंस बहुत गजब की है... सही समय पर जागती है... पर बहुत जल्दी दम भी तोड़ देती है...
रोणा - क्या... अबे क्या बकलौली कर रहा है...
बल्लभ - मैंने कहा था... मुझे कुछ आहट सुनाई दे रही है... श्श्श्श.... तुने सही कहा था... हमने... मतलब हम सबने... उसे अंडरएस्टीमेट किया था...
रोणा - तो... अब तो वह... एस्टीमेट हो गया ना...
बल्लभ - (ना में सिर हिलाते हुए) नहीं... मुझे लग रहा है कि... हम अब टाइटैनिक पर सवार हैं... और विश्व आइस बर्ग...
रोणा - क्या...
बल्लभ - हूँ... जरा सोच... परीड़ा जितना इंफॉर्मेशन लाया था... उतना तो हमें... जैल सुपरिटेंडेंट खान... बता सकता था... पर बताया नहीं... क्यूँ...
रोणा - (सिर ना में हिलाते हुए) उँ.. हुँ... पता नहीं... शायद... प्रोटोकॉल के चलते...
बल्लभ - यह कोई बात नहीं है... इसमें प्रोटोकॉल कहाँ से आ गया...
रोणा - तु.. कहना क्या चाहता है...
बल्लभ - आज... विश्व अकेला नहीं है... उसका अपना टीम है... कास के... हमने पहले से ही परीड़ा से काम लिया होता... तो हमारे बीस दिन यूँ बर्बाद ना हुए होते...
रोणा - हाँ... हाँ यार... सच कह रहा है...
बल्लभ - पर सवाल है... क्या अब भी हमारे पास उसके बारे में सारी इंफॉर्मेशन है...
रोणा - देख... प्रधान... मेरा एक उसूल है... तूफान आने से पहले घबराता जरूर हूँ... पर तूफान का सामना करने से कतराता नहीं हूँ... हालात के हिसाब से जुझना जानता हूँ... अब हालात जैसे बनेंगे... हमें भी वैसे ही जुझना पड़ेगा...
बल्लभ - दुश्मन से भिड़ना हो... तो उसके पुरे ताकत का अंदाजा कर लेनी चाहिए... तेरा टोनी कब आ रहा है...
रोणा - क्यूँ... तुझे लगता है... अब हमें टोनी की जरूरत है...
बल्लभ - हाँ... मैं जानना चाहता हूँ... विश्व के बारे में... वह क्या जानता है... और हमें... क्या जानना बाकी रह गया है...
रोणा - तुझे लगता है... परीड़ा ने कुछ गलत इंफॉर्मेशन दिया है...
बल्लभ - नहीँ... उसने सिर्फ वही बताया... जो हेड ऑफिस के आर्काइव में था... और वह.. ऑफिशियल था... मुझे अब विश्व के हर नॉन ऑफिशियल डिटेल्स चाहिए...
रोणा - प्रधान... अब तु.... घबरा रहा है क्या...
बल्लभ - नहीं...(अपना सिर ना में हिलाते हुए) अब मैं...(पॉज लेकर) डर रहा हूँ...
रोणा - (हैरानी से उसका मुहँ खुला रह जाता है)
बल्लभ - हाँ रोणा... मुझे अब डर लग रहा है... विश्व... जैल आता है... जैल में.. अपनी ग्रैजुएशन पुरा करता है... एलएलबी भी पुरा करता है... मतलब मकसद साफ है... सरपंच बनकर... मुजरिम रहते जो ना कर पाया... वह अब... वकील बनकर करेगा... रुप स्कैम के हर पहलू को वह जानता है... क्यूँ के जुड़ा हुआ था.... हर एक चीज़ से वाकिफ है... वह इसबार राजा साहब को.. जरूर कटघरे में लाएगा...
रोणा - (मुहँ फाड़े बल्लभ को सुन रहा था)
बल्लभ - जरा सोच... विश्व के यहाँ मदत के लिए... उसके कुछ बंदे भी हैं... विश्व... किसी मकसद के तहत... वह यहाँ पर है... राजगड़ नहीं गया है... वह यहाँ कर क्या रहा है... अगर तैयारी कर रहा है... तो किस चीज़ का...
रोणा - देख... जो बताना चाहता है... साफ साफ बता... यह वकीलों वाली भाषा... किसी और से बात कर...
बल्लभ - (अब सीधा हो कर बैठता है) जरा गहराई से सोच... हम सात सालों से... आँखे मूँदे सोते रहे... वह सात सालों से.. अपने लक्ष के ओर... लगातार बढ़ता चला जा रहा है... उसने अपना टीम भी बना लिया है... दो बार अपनी टीम की मदत से... हमें पटखनी दी है...
रोणा - सच कहूँ तो... मैं भी इस बात से हैरान हूँ... जैल में कौन से लोग.. किस तरह के लोग.. उसके साथी बने होंगे...
बल्लभ - लोग... साथी... वह वैसे लोग हैं या होंगे... जो सिस्टम और समाज के सताये हुए होंगे... जो एक दुसरे से हमदर्दी के चलते जुड़े होंगे... इस तरह से जुड़े हुए लोग... आसानी से नहीं टूटते...
रोणा - (चिंतित होते हुए) हूँ..
बल्लभ - अब तुझे क्या हुआ...
रोणा - सोच रहा हूँ... सिर्फ हमारी ही नींद उड़ी हुई है... या... कोई और भी है...

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लड़की - (गुस्से से गुर्राते हुए) तुम जो भी हो... बहुत पछताओगे... देखना...
रंगा - कहा ना.. वह जब होगा... तब होगा... आज यहाँ जो भी हो रहा है... सब सीसीटीवी में रिकार्ड हो रहा है... तुम और तुम्हारा पति कितने बेबस हैं... यही सब वायरल किया जाएगा...
लड़की - (गुर्राते हुए) अब मैं कहीं नहीं जाऊँगी... मुझे ढूंढते हुए... मेरी सिक्युरिटी आ पहुँचेगी... तुम लोग सब मारे जाओगे....
रंगा - पहले ही कहा था... यहाँ हमारी सिक्युरिटी है... मैंने कहा था तुझे... कोई हरकत ना करना... क्यूंकि मुझे छूट भी दी गई है... तुझे मार देने के लिए... इसलिए अब चपड़ चपड़ बंद... हाँ मरने से पहले.. मेरा नाम याद रखना... रंगा... रंगा नाम है मेरा...

कह कर रंगा अपने हाथ में जो रॉड था, मारने के लिए ऊपर उठाता है l घुटने पर बैठी वह लड़की उस बेहोश पड़े लड़के के पास डर के मारे आँखे मूँदते हुए चेहरा नीचे कर लेती है l रंगा के चेहरे पर शैतानी हंसी नाच उठता है कि अचानक वह देखता है एक लड़का लड़की से कुछ दुर एक कार के डिकी के ऊपर अपने कोहनी से टेक लगाए पैरों को क्रॉस कर खड़ा है l वह लड़का जबड़े भींच कर रंगा को देख रहा है l रंगा को उसका घूरना चुभ रहा था l रंगा उसके चेहरे को गौर से देखा, वह चेहरा थोड़ा जाना पहचाना लगता है l उस लड़के के चेहरे पर भाव बदलने लगते हैं l वह जबड़े भींच कर दांत पिसते हुए देख रहा है l उसका बायां भवां तन जाता है और दाहिने आँख के नीचे की पेशियां थरथराने लगते हैं l उसके यह भाव देख कर रंगा को जैल की फाइट याद आता है l रंगा पहचान जाता है, उसके दिल की धड़कन बुलेट ट्रेन की रफ्तार से भागने लगता है l दिमाग पर विश्वा, विश्वा हथोड़े की तरह बजने लगता है l विश्वा अब उनके तरफ बढ़ने लगता है l रंगाने जो रॉड मारने के लिए उठाया था, उसके हाथों से गिर जाता है l चूंकि रंगा के हाथों से रॉड गिर गया था, उसके देखा देखी उसके गुर्गों के हाथों से स्टिक्स और चेन भी गिरने लगते हैं l विश्व के हर बढ़ते कदम के साथ रंगा पीछे हटने लगता है l जैसे ही विश्व उस लड़की के पास खड़ा होता है रंगा वहाँ से दुम दबा कर भाग जाता है l

नहीं... (चिल्लाते हुए रंगा उठ बैठता है)

अपनी नजरें घुमाता है l वह एक साधारण सा कमरे में पड़े एक चारपाई पर लेटा हुआ था l नीचे फर्श पर उसके कुछ साथी सोये पड़े हैं l रंगा के कान में एक हुटर की आवाज़ पड़ती है l वह अपनी चारपाई से उठता है और कमरे से बाहर निकल कर बरामदे में आता है l बड़बिल माइंस
कैजुअल लेबर की बस्ती में के बीचों-बीच एक बड़े से घर में अब हैं l तभी उसके बगल में उसका एक साथी आ कर खड़ा होता है l

साथी - क्या बात है गुरु... चिल्ला कर उठ गए... विक्रम... छोटे क्षेत्रपाल का खौफ है क्या...
रंगा - मैं... विक्रम से छुपा हुआ जरूर हूँ... पर डर... मुझे विश्वा का है...
साथी - बुरा ना मानना गुरु... वह उस वक़्त अकेला था... हम बीस बाइस बंदे थे... फोड़ नहीं सकते थे क्या उसे...
रंगा - (उसके तरफ मुड़ कर) मैं भले ही भाग गया... पर तुम... तुम लोग क्यूँ फोड़े नहीं उसे...
साथी - गुरु... हमारी हिम्मत तो तुम हो... जब हमारी हिम्मत को... हथियार डालते हुए... भागते हुए हमने देखा... तब हम क्या कर सकते हैं..
रंगा - (सिर हिला कर ना कहते हुए)हूँ... तुमने उसे लड़ते हुए नहीं देखा है... मैंने देखा है उसे... करीम, गोलू, सलिल और मुन्ना याद है...
साथी - हाँ...
रंगा - वह लोग छह महीने तक... लकवे में थे... विश्वा... उन्हें सिर्फ एक एक घुसा मारा था...
साथी - क्या...
रंगा - हाँ... (अपने साथी को देख कर) जरा सोच... कोई अंग लकवा ग्रस्त हो जाए... तब पुरा का पुरा जिस्म... भारी लगने लगता है... बोझ लगने लगता है... जैल से निकलने के बाद... अपनी हार की खार लिए... मैं दो तीन सालों तक विश्व की खबर रखने लगा था... उन तीन सालों में... विश्व जैल के अंदर एक भी... सेटर डे स्कैरी नाइट सोल्यूशन फाइट हारा नहीं था... बाहर के... जितनी भी बड़े... धुरंधर... तुर्रम खान थे... विश्व से सामना करने बाद... सब के सब चूहे बन गए थे...
साथी - फिर तो अच्छा हुआ... हम यहाँ पर आ गए... पर... यहाँ से निकलेंगे हम कब...
रंगा - जब चेट्टी साहब बुलाएंगे...
साथी - गुरु... एक बात पूछूं...
रंगा - हूँ... पुछ ले..
साथी - आने वाले दिनों में... विक्रम या विश्व.... किसीके साथ भी आमना सामना हो सकता है... आप किसके सामने जाना चाहोगे...
रंगा - विक्रम के...
साथी - विश्वा के क्यूँ नहीं...
रंगा - क्यूँकी... अगर हम हारने पर आयेंगे... तो विक्रम हमें मार ही डालेगा...
साथी - विश्व भी तो मार सकता है...
रंगा - नहीं... विश्व किसीको नहीं मारेगा... पर जिंदगी इतनी खराब कर देगा... की उससे टकराने वाला... मौत मांगने लगेगा... पर वह मौत को भी... आसानी से आने नहीं देगा... (अपने साथी की ओर देख कर) विक्रम से उलझे... तो या जिंदगी... या फिर मौत... पर अगर विश्व से उलझे... तो मौत से बदत्तर जिंदगी...

रंगा की बातेँ सुन कर उसका साथी अपने हलक से थूक निगलता है l

रंगा - यह सब... मैंने उनसे सुना है... जो लोग जैल के बाहर... भाई बने फिरते थे... या हैं... पर जैल के भीतर उन सबका भाईगिरी... विश्व को सलाम ठोकता था...
साथी - गुरु... यह विश्व है कहाँ का...
रंगा - राजगड़ से है... उसका राजा साहब... मतलब बड़े क्षेत्रपाल से पंगा है...
साथी - क्या...
रंगा - हाँ...
साथी - तब तो अगर विश्व हमारे साथ आ गया... तो हम विक्रम और उसके आदमियों से टकरा सकते हैं...
रंगा - हाँ... उसे पाले में लेने के लिए... चेट्टी जी ने केके साहब को जिम्मा दिया है... देखते हैं.... हम सबकी नींदे खराब करके पता नहीं... खुद कहाँ पर सो रहा होगा

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विश्व के पिछवाड़े पर प्रतिभा उल्टे झाड़ू से एक मार मारती है l कोई हलचल नहीं l प्रतिभा हैरान होती है, और एक बार झाड़ू चलाती है l विश्व के जिस्म में कोई हल चल नहीं होती l प्रतिभा को गुस्सा आता है l वह पास रखे जग को विश्व के ऊपर उड़ेल देती है l

विश्व - आ.. ह.. माँ... यह क्या कर दिया..
प्रतिभा - कब से उठा रही हूँ... मेरे साथ मज़ाक... (और एक बार मारती है) कर रहा है...
विश्व - अच्छा माँ... मार ही रही हो... तो... (अपनी पीठ को दिखा कर) यहाँ पर थोड़ा मारो ना...

प्रतिभा जोर जोर से विश्व के पीठ पर झाड़ू बरसाने लगती है l विश्व भी बेशर्मों की तरह पीठ के हर हिस्सों को दिखाने लगता है l प्रतिभा चिढ़ कर झाड़ू फेंक देती है तो विश्व हा हा हा हा का हँसने लगता है, जिसके वजह से प्रतिभा रूठ कर बैठ जाती है I

प्रतिभा - सुबह सुबह... अपनी माँ को परेशान कर रहा है... जा मैं तुझसे बात नहीं करती...
विश्व - हा हा हा हा... माँ... एक बात कहूँ... तुम जब मार रही थी ना... मुझे गुदगुदी हो रही थी...
प्रतिभा - जा... मुझसे बात मत कर...
विश्व - माँ.. (कह कर बगल से गले लग जाता है, और अपना चेहरा प्रतिभा के कंधे पर रख कर) सुबह सुबह तुमसे मस्ती कर दिया... तो पुरा दिन मस्त जाएगा...
प्रतिभा - चल हट... छोड़ मुझे... कितना काम पड़ा है घर में... और तु... तु कब से इतना आलसी हो गया है...
विश्व - तो माँ... एक नौकर क्यूँ नहीं रख लेती...
प्रतिभा - नौकर क्यूँ रखूँ... तु शादी कर बहु देदे मुझे...
विश्व - क्या... मतलब... आपको बहु... घर के काम काज के लिए चाहिए...
प्रतिभा - और नहीं तो... वह चाहे राजकुमारी ही क्यूँ ना हो... इस घर में... मेरी बहु होगी... और खबरदार... अगर तु जोरु का गुलाम बना तो...
विश्व - तो...
प्रतिभा - तेरी टांगे तोड़ दूंगी... कान खींचुगी... और जी भर कर गाली दूँगी...
विश्व - यह तो अच्छी बात है ना...
प्रतिभा - क्या अच्छी बात है...
विश्व - माँ... तुम्हारे मुहँ से दो चार गाली ना सुन लूँ... तब जिस्म में कोई करेंट दौड़ने जैसी लगती नहीं है....
प्रतिभा - मतलब... मतलब तु... जोरु का गुलाम बनेगा...
विश्व - माँ... मैं चाहे जो भी होऊँ... जैसा भी होऊँ... रहूँगा तो तुम्हारा प्रताप ही ना...
प्रतिभा - बस बस... ज्यादा ड्रामा करने की जरुरत नहीं... चल जा तैयार हो जा... आज तेरे लिए एक सरप्राइज़ है...
विश्व - (प्रतिभा को छोड़ देता है) क्या... सरप्राइज़... किस लिए.. किस खुशी में...
प्रतिभा - (बेड से उठते हुए) अब तु उठता है... या बाल्टी लाकर उड़ेल दूँ तुझ पर...
विश्व - नहीं नहीं माँ... मैं.. मैं तैयार हो कर पहुँचता हूँ...

कह कर विश्व बेड से विश्व उठ कर बाथरुम में घुस जाता है l प्रतिभा भी मुस्कुराते हुए गिले चादर और बेड सीट निकाल कर बदल देती है और उन गिले चादर बेड सीट को बाहर ले जाती है l तापस अपना वकिंग खत्म कर पहुँचता है,और सोफ़े पर चौड़ा हो कर फैल जाता है l अपने शू खोलने लगता है कि प्रतिभा उसके लिए चाय की कप और न्यूज पेपर थमा देती है l तापस चाय पीते पीते न्यूज पेपर पढ़ना चालू किया था कि विश्व तैयार हो कर आ जाता है l

तापस - क्या बात है लाट साहब... कहाँ की तैयारी है...
विश्व - पता नहीं डैड.. माँ ने कहा तैयार हो जाओ... हो गया...
तापस - (प्रतिभा को आवाज देता है) अरे भाग्यवान...
प्रतिभा - (ड्रॉइंग रुम में आते हुए) जी कहिए...
तापस - यह सुबह सुबह कहाँ की तैयारी हो रही है...
प्रतिभा - स्वागत करने की तैयारी...
विश्व और तापस - किसकी...
विश्व - कौन आ रहा है...
प्रतिभा - रहा है नहीं... रही है...
दोनों - (चौंकते हुए) क्या...
विश्व - माँ... मैं यह शादी वादी के चक्कर में नहीं पड़ने वाला... कह देता हूँ...
प्रतिभा - शादी तो तुझसे करनी पड़ेगी... और चक्कर भी लगानी पड़ेगी...
विश्व - माँ... मैंने वादे के मुताबिक... ल़डकियों से दोस्ती की... और लेकर भी आया... फिर यह क्या बात हुई...
प्रतिभा - चुप... एकदम चुप... स्वागत के लिए तैयार रह...

विश्व असहाय सा तापस की ओर देखता है l तापस अपने कंधे उचका कर अपना चेहरा न्यूज पेपर सामने कर छुपा देता है l तभी कार की हॉर्न सुनाई देती है l

प्रतिभा - चलो चलो... स्वागत की तैयारी करो...(कह कर बाहर की जाने लगती है)
विश्व - मैं नहीं जा रहा...
प्रतिभा - (मुड़ कर अपनी साड़ी की पल्लू को कमर में बांध कर) क्या कहा... मेरे साथ बाहर चलता है या...

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अनु तैयार हो चुकी है l आईना देख कर माथे पर बिंदिया लगाती है l फिर ऑफिस के लिए निकलने लगती है l

दादी - आज भी छुट्टी कर लेती... तो क्या हो जाता... वहाँ बिचारी पुष्पा अकेली है... उसका तो खयाल कर लेती...
अनु - दादी... तुम ही तो कहा करती हो... बाहर जाते वक़्त... टोका नहीं करते... अब तुम खुद ही टोक रही हो...
दादी - क्यूँ कहा... सुनाई दिया या नहीं...
अनु - सुनाई दिया दादी... पर मैं कोई... आईपीएस कलेक्टर की नौकरी नहीं कर रही... पीएस की नौकरी करती हूँ...
दादी - अरे कमबख्त... मैं पुष्पा के लिए कह रही थी..
अनु - (घर से निकल कर) दादी... तुम खुद... उसके पास जा कर बैठ जाओ ना...
दादी - अरे सुन तो...

तब तक अनु वहाँ से जा चुकी थी l पीछे उसकी दादी कुछ बड़बड़ाते हुए अंदर चली जाती है, पर अनु पर कोई असर नहीं होता l चौराहे पर पहुँच कर ESS ऑफिस के लिए सिटी बस चढ़ती है l वह आज तीन दिन के बाद ऑफिस जा रही थी l आज जैसे उसे पर लगे हुए थे I एक अंदरुनी खुशी उसे जैसे उड़ाते हुए ले जा रही थी l क्यूँकी आज तीन दिन बाद वह वीर से मिलने जा रही थी l इन तीन दिनों में अनु ने कई बार कोशिश की वीर को फोन से कंटेक्ट करने की l पर हर बार वीर का फोन स्विच ऑफ ही आया l कई बार मैसेज भी किया पर मैसेज डेलीवर होने के बावजूद रिसीव नहीं हुए l ऑफिस से बाद में पता चला था उसे की वीर भी ऑफिस नहीं गया था I उसे याद आता है वीर ने उसे आने की दिन पुछा था l इसलिए आज वह ऑफिस के लिए दादी के टोकने के बाद भी जा रही थी l ESS ऑफिस जंक्शन आते ही अनु सिटी बस से उतर कर ऑफिस की ओर जाती है l की बोर्ड में रखे हुए वीर की ऑफिस की चाबी निकालती है l कमरे को खोलती है, अंदर आकर कमरे की साफ सफाई करने लगती है, हाँ यह बात और है कि कमरा पहले से ही पुरी तरह से साफ था l फिर भी उसका मन तो वीर के लिए कुछ करने को बेताब था l कॉफी मेकर में कॉफी जार को तैयार रखती है l और इंतज़ार करने लगती है l
तभी अनु की फोन बजने लगती है l अनु फोन पर राजकुमार देख कर खुशी से उछल पड़ती है l और अपनी खुशी को काबु करते हुए फोन उठाती है

अनु - हैलो...
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - ऑफिस में हो...
अनु - जी...
वीर - याद है... मेरी एक ख्वाहिश थी कि... एक दिन तुम्हारी वाली बचपन को जीउँ...
अनु - जी... जी राज कुमार जी...
वीर - वह दिन... मेरी जिंदगी का सबसे खास दिन था...
अनु - जी.. (मन में "वह दिन तो मेरी भी जिंदगी की सबसे खास दिन था राजकुमार जी)
वीर - अनु...
अनु - (होश में आते हुए) जी... जी राजकुमार जी...
वीर - तुमने कहा था... तुम्हें तुम्हारे बाबा... राजकुमारी कहा करते थे... है ना...
अनु - जी...
वीर - तुम्हारे मन में कभी ख्वाहिश नहीं हुई... की कम से कम... एक दिन के लिए... तुम सचमुच... एक राजकुमारी की जिंदगी जियो...
अनु - (चुप हो कर कुछ सोचने लगती है)
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - सोमवार को तैयार रहना... वह एक दिन... तुम पुरी तरह से एक राजकुमारी की जिंदगी जियोगी...
अनु - (कुछ कह नहीं पाती, बड़ी मुश्किल से हलक से आवाज आती है) हूँ...
वीर - अनु...
अनु - जी... जी...
वीर - सोमवार को हमारी मुलाकात वहीँ होगी... जहां तुम्हारे जन्म दिन पर हम मिले थे...
अनु - जी...
वीर - अच्छा... अब मैं फोन रखता हूँ...
अनु - राज... राजकुमार जी..
वीर - हाँ... अनु..
अनु - सोमवार को कुछ खास है क्या...
वीर - पता नहीं अनु... वह दिन खास है भी या नहीं... पर तुम्हारे साथ... उस दिन को... मैं तुम्हारे लिए खास बनाना चाहता हूँ...
अनु - और आज... आप आज नहीं आयेंगे... (बड़ी मासूमियत के साथ पूछती है)
वीर - मैं... राजगड़ से अभी अभी... भुवनेश्वर पहुँचा हूँ... पर तुमसे परसों मिलना चाहता हूँ...
अनु - (मायूसी भरे आवाज में) जी...
वीर - अच्छा अब मैं फोन काट रहा हूँ... बाय....
अनु - जी...

वीर का फोन कट जाता है l अनु मायूस सी एक कुर्सी पर बैठ जाती है l और सोच में पड़ जाती है कि सोमवार को आखिर ऐसा क्या खास दिन हो सकता है l अचानक उसे याद आता है कि उसने वीर के साथ अपने जन्मदिन पर पुरा दिन बिताया था l मन ही मन अपने आप से कहने लगती है

ज़रूर सोमवार को राजकुमार जी का जन्मदिन होगा... हाँ यही होगा... ओ... तब तो राजकुमार जी के लिए एक गिफ्ट बनता है.. पर मैं... राज कुमार जी के लिए... क्या लूँ... मेरी क्या हैसियत होगी...

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एक गाड़ी रोड पर भागी जा रही थी l उस गाड़ी में दो लोग बैठे हुए थे l रोणा और बल्लभ l

बल्लभ - आज अचानक तुने... यह कोणार्क जाने का प्रोग्राम कैसे बनाया... और यह गाड़ी रेंट पर लेने की क्या जरूरत थी...
रोणा - पिछली बार की एक्सपीरियंस... अब गाड़ी इसी तरह से रेंट पे लेकर... खुद ड्राइव करेंगे...
बल्लभ - पर हम जा कहाँ रहे हैं...
रोणा - जब गाड़ी कोणार्क जा रही है... तो जाहिर है... हम कोणार्क ही जा रहे हैं...
बल्लभ - क्या बात है... आज तु कुछ प्लान किया हुआ लगता है... क्या चल रहा है तेरे दिमाग में..

रोणा कुछ नहीं कहता है l चुप रहता है और उसका पुरा फोकस रोड पर था l कुछ देर यूँ हीं गाड़ी चलाते वक़्त रोणा का ध्यान भटकता है क्यूँकी गाड़ी के सामने कुछ भैंस आ जाते हैं, रोणा स्टियरिंग मोड़ते हुए गाड़ी की ब्रेक लगाता है l चर्र्र्र्र्र्र् करती हुई गाड़ी रुक जाती है l पर फिर भी गाड़ी से उन भैंस चराने वाला शख्स टकरा जाता है l गाड़ी के कांच पर खुन के छींटे नजर आती है l वह शख्स गाड़ी के बोनेट पर गिरा हुआ था l आसपास भीड़ इकट्ठा होने लगती है l भीड़ में लोग रोणा को और उसके गाड़ी को लेकर गालियाँ बकने लगते हैं l बल्लभ गाड़ी से उतर कर उस आदमी के पास पहुंच कर उठाता है l और उसके हाथ को अपने कंधे पर रख कर खड़ा करता है l रोणा लोगों को समझाने की कोशिश करता है l पर भीड़ गालियों पर गालियां बके जा रही थी l वह ज़ख्मी शख्स भीड़ से हाथ जोड़ कर

शख्स - भाईयों... शांत.. शांत भाईयों... बात को आगे ना बढायें... गलती उनकी जितनी थी... मेरी भी थी...
बल्लभ - यहाँ... पास कोई हस्पताल है...
भीड़ में से एक - हाँ है... पर अच्छा होगा... आप इन्हें भुवनेश्वर में किसी अच्छे हॉस्पिटल में इलाज कराएं...
रोणा - ठीक है...

बल्लभ उस ज़ख्मी शख्स को पीछे वाली सीट पर लिटा देता है l रोणा गाड़ी बैक करता है और गाड़ी को दुबारा भुवनेश्वर की मोड़ देता है l बल्लभ एक नजर पीछे लेटे हुए शख्स पर नजर डालता है और जोर से बड़बड़ाने लगता है l

बल्लभ - छे... साला कितना घटिया किस्मत है... कुछ भी करने की सोचो... ऐन मौके पर किस्मत गच्चा दे जाता है...

रोणा कोई जवाब नहीं देता, वह चुप चाप गाड़ी चलाये जा रहा था l

बल्लभ - अबे कुछ पुछ रहा हूँ तुझे...
रोणा - ना.. तु पुछ नहीं रहा था... बल्कि अपनी किस्मत को गाली दे रहा था...
बल्लभ - ऐ भोषड़ चंद... भोषड़े पर ज्ञान मत चोद... वैसे भी जब से यहां आए हैं... तब से मेरी नहीं... तेरी किस्मत खराब है... और आज भी खराब निकली...
रोणा - देख जब से यहाँ आए हैं... हम किसी ना किसी के रेकी में हैं... यह मानता है ना तु...
बल्लभ - हाँ... तो...
रोणा - इसी लिए मैंने रेंटल में गाड़ी ले लिया... और खुद ड्राइव कर रहा हूँ...
बल्लभ - तो कौनसा तीर मार लिया बे... गाड़ी चलाने के लिए रेंटल पर ली थी... किसी राह चलते को उड़ाने के लिए...

तभी एक हाथ बल्लभ के कंधे पर थपथपाता है l बल्लभ चौंक कर पीछे देखता है l वह शख्स जो कुछ देर पहले गाड़ी से टकराया था l वह उठ बैठा है और मुस्करा रहा है l

शख्स - वकील साहब... एक सिगरेट दे दो... कसम से बड़ी तलब लगी है...
बल्लभ - (हकलाते हुए) तु.. तु.. तुम तो... बिल्कुल सही सलामत हो...
शख्स - हाँ... एक दम झकास... कुछ नहीं हुआ है मुझे.. और रोणा साहब भी क्या मस्त ड्राइविंग किया है... आँ...

बल्लभ रोणा की तरफ देखता है l रोणा मुस्कराता हुआ गाड़ी चला रहा था I

बल्लभ - यह.. यह कौन है... रोणा...
रोणा - टोनी...

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विश्व, प्रतिभा और तापस तीनों बाहर आते हैं l बाहर दो गाडियाँ आ पहुँचती है l दो सफेद रंग के बड़े के बीच एक छोटा सा लाल रंग की कार भी थी l चूंकि उस कार में बैलून और फुल लगे हुए थे और बोनेट पर वी की तरह रिबन लगा हुआ था तो विश्व को समझते देर ना लगी यह एक नई कार थी l पहली वाली गाड़ी में से जोडार उतरता है l

जोडार - कैसे हो हीरो...
विश्व - जोडार साहब आप यहाँ... वह भी इतनी सुबह सुबह...
जोडार - यंग मेन... अभी नाश्ते का टाइम हो चुका है... तुम किस सुबह की बात कर रहे हो...
विश्व - जी.... मेरा मतलब है... मैंने आपको एक्स्पेक्ट नहीं किया था...
जोडार - कोई नहीं... तुम्हारे वजह से मुझे ना सिर्फ मेरा माल वापस मिल गया है... बल्कि कंपेंसेसन भी मिल गया है... अब थाईशन टावर बिफॉर टाइम कंप्लीट हो जाएगा...
विश्व - कंग्राचुलेशन...
जोडार - सेम टू यु... (कह कर एक पैकेट विश्व की ओर बढ़ाता है)
विश्व - यह... यह क्या है...
प्रतिभा - (विश्व की कंधे पर हाथ रखकर) ले लो...

विश्व वह पैकेट ले कर खोलता है l उस पैकेट से गाड़ी की कागजात जो विश्व के नाम पर बने थे और गाड़ी की चाबी निकलती है l विश्व हैरान हो कर प्रतिभा को देखता है l प्रतिभा बहुत खुश दिखाई दे रही थी l

विश्व - जोडार साहब... यह... इसकी क्या जरुरत थी...

प्रतिभा - ओ हो... क्या बाहर से ही विदा कर देगा... जोडार साहब को... (जोडार से) आप अंदर आइए... अंदर बैठ कर बातेँ करते हैं....

जोडार उन तीनों के साथ घर में आता है l सभी अपने अपने जगह पर बैठ जाते हैं l विश्व में अभी भी झिझक था l उसके झिझक को भांपते हुए

जोडार - क्या बात है... प्रताप... किस बात के लिए डिस्टर्ब्ड हो... जानता हूँ... तुम यह गिफ्ट लेने के लिए... झिझक रहे हो... पर यकीन मानों... मैं तुम्हारे लिए... लेंबर्गनी खरीदना चाहता था... पर प्रतिभा जी ने मुझे i10 पर ही रोक दिया...
तापस - ठीक ही किया... अब देखिए... i10 लेने से झिझक रहा है... लेंबर्गनी लाते... तो वह भाग ही गया होता...

सभी हँसते हैं, पर विश्व आँखे मूँद कर कुछ सोच रहा था l उसे यूँ सोचता देख कर

जोडार - मेरे हिसाब से... एक ग्रांड सेलेब्रेशन होना चाहिए....
तापस - ग्रांड ना सही... कम से कम हमें गाड़ी में... (विश्व की ओर इशारा करते हुए) इसे ड्राइवर बना कर... किसी मॉल में जाते हैं... या फिर किसी होटल में जाते हैं... नहीं तो... किसी थिएटर में जाते हैं...
प्रतिभा - वैसे आइडिया बुरा नहीं है.... तेरा क्या कहना है प्रताप....

विश्व अभी भी अपनी आँखे मूँदे कुछ सोचे जा रहा था l

प्रतिभा - प्रताप... ऐ... प्रताप...
विश्व - हूँ... हाँ... (अपनी सोच से बाहर निकलते हुए) हाँ माँ...
प्रतिभा - क्या तु.. खुश नहीं है...
विश्व - माँ.... खुश हूँ... पर मैं कुछ और सोच रहा था...
तीनों - (एक साथ) क्या सोच रहे थे...

विश्व - (जोडार से) जोडार सर... मुझे आपसे कुछ मदत चाहिए...
जोडार - कुछ भी मांग लो...
विश्व - अपने पुछा नहीं... कैसी मदत...
जोडार - पुछ ने की जरूरत नहीं है... कुछ भी मांग लो...

फिर विश्व तीनों को एक प्लान बताने लगता है l

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शाम को भाश्वती के साथ रुप ड्राइविंग स्कुल से एक ऑटो में लौट रही थी l पर हर दिन की तरह आज प्रताप उनके साथ नहीं था l आज उन दोनों के साथ सुकुमार लौट रहा था l प्रताप के ना होने से दोनों लड़कियों का मुड़ भले ही खराब था पर हँसी ठिठोली के साथ लौट रहे थे l उनकी हँसी ठिठोली पर ऑटो वाला एंजॉय कर रहा था पर I पर सुकुमार इन तीनों के साथ होकर भी उनके दुनिया में नहीं था l वह ग़मजादा था और ख़ामोश भी I कुछ देर बाद भाश्वती का स्टॉपेज आती है l भाश्वती दोनों को बाय कर चली जाती है l ऑटो वाला ऑटो आगे बढ़ाता है l अब ऑटो में खामोशी थी l

रुप - क्या बात है अंकल... आज आपका अचीवमेंट.. आपको मिल गया... फिर आप उदास क्यूँ हैं...
सुकुमार - हाँ... मिल तो गया है.. मुझे मेरा लाइसेंस... और तुम्हें भी तो लाइसेंस मिल गया है.... तुम्हें ही क्यूँ सबको मिल गया आज... और आज जब बिछड़ने का वक़्त आया... प्रताप नहीं था... इसीका दुख है...
रुप - (सवाल करती है) सिर्फ इसका... मुझे तो कुछ और भी लगता है... अगर ऐसा कुछ है... बताइए ना मुझे...
सुकुमार - (मुस्करा कर) बताऊँगा... पहले तुम यह बताओ... आज जब ड्राइविंग स्कुल आई थी... तुम भी उखड़ी उखड़ी लग रही थी... पुछ सकता हूँ क्यूँ...
रुप - अंकल... पहले मैंने पुछा है आपसे..
सुकुमार - पर तुम उम्र में छोटी हो... और लेडी भी हो... सो लेडीज फर्स्ट...
रुप - (मुस्करा कर) अंकल... आज पहली बार... मेरा किसी से झगड़ा हुआ है...
सुकुमार - पहली बार... मैंने तो सुना है... जब भी मौका मिलता है... तुम हाथ साफ करने से पीछे नहीं हटती...
रुप - क्या... (हैरान हो कर) यह... आपसे किसने कहा...
सुकुमार - (हँसते हुए) तुम्हारी सहेली...
रुप - (अपने आप से) कमीनी... परसों मिल मुझे कॉलेज में...
सुकुमार - हा हा हा हा... देखा गुस्सा तुम्हारे नाक पर ही बैठी है... और तुम कह रही हो... पहली बार... हा हा हा...
रुप - सच कह रही हूँ अंकल... पर... ठीक है पहली बार नहीं... पर पहली बार... किसीने झगड़े में मुझ दबाया....
सुकुमार - अछा... ऐसा क्या हो गया भई..

दोपहर को एक मॉल में रुप ड्राइविंग स्कुल में उसके साथ सीख रहे कुलीग्स के लिए और ड्राइविंग स्कुल के इंस्ट्रक्टर और स्टाफ्स के लिए गिफ्ट खरीदने आई है l अकेले हिम्मत कर आज मॉल आई थी l मॉल के एक सेक्शन में पहुँच कर गिफ्ट खरीदने के लिए एक दुकान के अंदर आती है l वहीँ अपर एक और लड़की भी कुछ गिफ्ट देख रही थी l वह बहुत सी गिफ्ट देख चुकी थी पर अब तक उसे कुछ पसंद नहीं आया था l सेल्स मेन के सिर में दर्द शुरु हो चुका था l ऐसे में जब उसी सेल्स मेन से कुछ दिखाने के लिए रुप कहती है l

से. मे - यस मिस...
रुप - मुझे कुछ लोगों को गिफ्ट देना है... क्या आप मुझे गिफ्ट आइटम दिखा सकते हैं...
से. मे - जी ज़रूर... बस थोड़ा इंतजार कीजिए... (उस लड़की से) क्या मैडम... आप को अभी भी... कोई गिफ्ट पसंद नहीं आया...
लड़की - आ तो रहा है... पर उन पर क्या जचेगा... यही सोच रही हूँ...
से. मे - क्या... आप इस तरह सोचेंगी तो... आपको कुछ भी पसंद नहीं आएगा... आप पहले सोच लीजिए... मैं तब तक इन्हें अटेंड करता हूँ...
लड़की - ठीक है...
से. मे - (रुप से) जी मैडम कहिए... क्या लेना चाहेंगी...
रुप - उँम्म्म्म्...

तभी वह लड़की की नजर एक छोटे से बक्से के अंदर रखे कपड़ों पर लगाने वाले बक्कल्स सेट पर पड़ती है l वह सेल्स मेन को उन बक्कल्स के लिए पुछती है l सेल्स मेन बक्कल्स सेट को लाकर उस लड़की के सामने रख देता है l वह बक्कल्स सेट देख कर रुप की आँखों में चमक दिखती है l

रुप - वाव.. कितनी खूबसूरत... बक्कल्स हैं...
लड़की - थैंक्यू... (सेल्स मेन से) यह कितने का है...
से. मे - जी... पांच हजार...
लड़की - (चौंक कर) इतना महँगा...
से. मे - प्लैटिनम कोटींग बक्कल्स है मैम... और पांच हजार कहाँ महँगा है...
लड़की - अच्छा... (बक्कल्स को हाथो में लिए कुछ सोचने लगती है)
रुप - एस्क्युज मी... क्या यह में ले लूँ...
लड़की - क्यूँ... मैंने बस इतना कहा कि महँगा है... नहीं लुंगी... ऐसा तो नहीं कहा मैंने...
रुप - देखिए... मुझे यह बक्कल्स बहुत पसंद आ गया है... आप और कुछ भी ले जाओ... मैं पे कर दूंगी...
लड़की - (बिदक जाती है) क्यूँ... मैं यही लुंगी... और अपने पैसे से... यह पैसे वाला रौब किसी और को दिखाना... (से. मे से) इसे पैक करो...
रुप - (लड़की से) मैंने कोई रौब नहीं ज़माया... बस मुझे पसंद आया तो... कह दिया...
लड़की - पसंद आ गया... तो... तुम्हारे पसंद के लिए... मैं अपनी पसंद क्यूँ छोड़ दूँ...
रुप - देखो... तुम बेवजह बात को बढ़ा रही हो..
लड़की - तुमने बात को यहाँ तक पहुँचाया है...
रुप - तुम जानती नहीं हो मुझे...
लड़की - क्यूँ... कहाँ की राजकुमारी हो क्या... हाँ जानती नहीं हूँ... जानना भी नहीं चाहती...
रुप - आह्ह्ह... डिस्गस्डींग...
लड़की - ऐ... गाली क्यूँ दी...
रुप - व्हाट...
लड़की - ऐ... अंग्रेजी में क्या चपड़ चपड़ कर रही है...
रुप - (गुस्से से अपनी आँखे मूँद कर गहरी गहरी सांसे लेने लगती है) (फिर मुस्करा ने की कोशिश करती है) ओके... तो आपसे बोल चाल भाषा में क्या कहूँ...
लड़की - क्यूँ... गाली जब अंग्रेजी में दी तो...
रुप - हाँ... तो..
लड़की - हाँ तो.. अंग्रेजी में सॉरी बोलो...
रुप - क्या...

सुकुमार जोर जोर से हँसने लगता है l उसे हँसता देख कर उसके साथ रुप भी हँसने लगती है l

सुकुमार - (हँसते हुए) फिर... फिर कैसे छुटा पीछा उस लड़की से...
रुप - जब... वह सेल्स मेन सॉरी अंग्रेजी में ही कहा जाता है बोला...
सुकुमार - (हँसते हुए) बुरा कुछ भी नहीं हुआ... बल्कि ऐसी याद बनीं... जिसे याद करते हुए... हँसा जा सकता है...
रुप - मेरी छोड़िए अंकल... आप बताइए... आज आप इतने मायूस क्यूँ हैं... आपके साथ कुछ बुरा हुआ क्या...
सुकुमार - (हैरानी के साथ) तुम्हें कैसे पता.. आज मेरे साथ कुछ हुआ है...
रुप - (हैरान हो कर) क्या... इसका मतलब... आज आपके साथ कुछ हुआ है...
सुकुमार - (एक सपाट सा जवाब देते हुए) हाँ... पर पता नहीं... अच्छा हुआ.. या बुरा हुआ है...
रुप - मतलब...
सुकुमार - मैं... मेरी औलादों को अच्छी तरह से जानता हूँ... पहचानता हूँ... वह लोग... जो इमोशनल ड्रामा.. मेरी पत्नी के साथ खेल रहे थे... मैं चाहता था... कोई उसके सामने लाये... उसके आँखों में पड़े ममता का पट्टी उतर जाए... आज जो वाक्या हुआ... उसकी आँखों पर बंधा अंधी ममता की पट्टी उतर गई... पर अच्छा हुआ या बुरा हुआ... मैं यह तय नहीं कर पा रहा हूँ...
रुप - ऐसा क्या हो गया अंकल...
सुकुमार - मेरे दोनों बेटे... एक साथ स्टेटस से आए... मकसद बस यही था... भुवनेश्वर की सारी प्रॉपर्टी बेच बाच कर हमें.. एक्सचेंज करते हुए.. छह महीना एक के पर... और छह महीना दुसरे के पास रखने की प्लान थी उनकी... अब जिसका साथ सात जन्मों के लिए थामा हो.. वह अगर.. ऐसे जुदा हो जाएगी... तो... एक टीस सी थी मन में... पर गायत्री... (सुकुमार की पत्नी) अपने पोते पोतीयों की ममता में... यह साजिश जान ना पाई... के हमारे बच्चों में किसी तरह की कोई एहसास बचा नहीं है... डॉलर के पीछे भागते भागते मशीन बन गए हैं... सारे ज़ज्बात उनके मेकैनिकल बन गए हैं... पर आज जो हुआ...

सुकुमार का घर

दोनों बेटे चिल्ला रहे हैं l क्यूँकी वह एक ट्रैवल एजेंट से गाड़ी कुछ दिनों के लिए रेंट पर ली थी l आज सुबह ग्यारह बजे के आसपास गाड़ी चोरी हो गई थी l

बेटा एक - देखा.. दिस इज़ इंडिया... चोर उच्चक्कों का देश है यह... (सुकुमार से) क्या... इसी देश में रहना चाहते हैं... अभी भी...
बेटा दो - हाँ.. नई इनोवा रेंट पर लाए थे... पासपोर्ट डिपॉजिट कर के... अब दुगना पैसा भरना पड़ेगा... आ.. ह्ह्ह्ह..
सुकुमार - हमे पुलिस में कंप्लेंट करनी चाहिए...
बेटा एक - पुलिस... इंडियन पुलिस... डोंट टॉक रब्बीस...
बेटा दो - आई बेट... इस चोरी में... पुलिस का भी हिस्सा होगा...
गायत्री - तुम्हारे पापा... सही तो कह रहे हैं...
बेटा एक - तुम तो चुप ही रहो तो अच्छा है...
गायत्री - मैंने क्या किया...
बेटा दो - प्रॉब्लम तो यही है कि... आपने कुछ नहीं किया... हमने कहा.. चलो हमारे साथ... पर नहीं... तुम्हारे पापा अकेले यहाँ क्या करेंगे...
बहु एक - हूँह्ह्ह... कुछ साल पहले हमारी बात मान ली होती... तो आज डाउन टाउन में अपना इंडीपेंडेंट घर होता... हमने क्या मांगा... एक सींपल सा फिनानंसीयल हेल्प ही ना... वह भी नहीं हुआ...
बहु दो - और नहीं तो... उल्टा इंडीया आए हैं... अब पेनाल्टी देंगे... इनोवा की दुगनी प्राइज दे कर...

इसी तरह कीचिर कीचिर डेढ़ घंटे तक चलता रहा l फिर तय हुआ कि पास के पुलिस स्टेशन में गाड़ी के चोरी की कंप्लेंट लिखेंगे l यही सोच कर जब दो भाई बाहर आते हैं तो देखते हैं वही इनोवा घर के आगे रखा हुआ है l सब हैरान हो जाते हैं l पास जाकर देखते हैं वाइपर में एक लिफाफा रखा हुआ है l बेटा एक लिफाफा खोल कर देखता है उसमें एक चिट्ठी और दस सिनेमा के टिकेट्स रखे हुए हैं l इतने में बेटा दो गाड़ी को अच्छी तरह से लॉक कर देता है और सभी घर के अंदर आते हैं l सबके उपस्थिति में बेटा एक चिट्ठी पढ़ने लगता है

" सबसे पहले आपसे क्षमा चाहता हूँ l आपकी गाड़ी घर के बाहर पार्किंग की हुई थी l तो मैंने अपनी गर्ल फ्रेंड को इम्प्रेस करने के लिए गाड़ी ले गया था I अपनी गर्ल फ्रेंड को घुमा कर आइस क्रीम खिला कर आपकी गाड़ी में टैंक फुल ऑइल डाल दिया है l चूंकि ढाई घंटे से आपकी गाड़ी आपकी नजरों से ओझल थी, बदले में मैंने आपके घर के सदस्यों के बराबर दस मूवी टिकेट्स दिए जा रहा हूँ l मूवी का नाम है 'एवेंजर्स द एंड गेम' l बहुत ही अच्छी मूवी है l और हाँ एक ऑफर भी है, इन दस टिकेट्स में दो टिकेट अगर सरेंडर करते हैं तो आपको, पॉप कॉर्न और कोल्ड ड्रिंक पर सीट फ्री मिलेगी I आशा है, अब आप मुझे माफ कर देंगे l
आपका एक शुभ चिंतक l"

चिट्ठी के खत्म होते ही l सुकुमार दंपति को छोड़ सभी ताली बजाने लगते हैं l

बेटा दो - मूवी.. कहाँ लगी है और कितने बजे की है..
बेटा एक - छह से नौ बजे... आईनॉक्स में लगी है...
बेटा दो - चलो.. एक हैप्पी एंडींग तो हुआ...
बहु एक - पर अपनी गाड़ी तो एइट सिटर है...
बहु दो - और टिकट दस हैं...
बेटा एक - दो टिकट सरेंडर करने का ऑपशन है... बदले में.. फ्री कोल्ड ड्रिंक और पॉपकॉर्न...
बेटा दो - देन ईट इज़ फाइनल... हम सब सिनेमा जाएंगे... माँ और पापा... यहीँ रहेंगे...
सभी - हाँ यही ठीक रहेगा...
सुकुमार - मैं तो.. ड्राइविंग स्कूल... चला जाऊँगा... तीन से सात... बज जाएंगे... अपनी माँ को तो कम से कम... ले जाते...
बहु एक - पापा जी... हम मूवी देखने जा रहे हैं... कौन सा फॉरेन जा रहे हैं... माँ जी रह लेंगी... (गायत्री से) क्यूँ माँ जी... ठीक कहा ना...
गायत्री - (अपना सिर हिला कर) हाँ बेटा... बिल्कुल सही कहा....

इतना कह कर सुकुमार चुप हो जाता है l रुप उसके दर्द को समझ जाती है l

रुप - इसका मतलब... अभी आपके बच्चे... मूवी देखने चले गए होंगे...
सुकुमार - हाँ... और घर में.. मेरी गायत्री अकेली होगी...
Nice and Beautiful Update 😍😍
 
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