• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

Mr. X
3,938
15,456
144
Last edited:

Kala Nag

Mr. X
3,938
15,456
144
👉एक सौ ग्यारहवां अपडेट
-------------------------------

बादाम बाड़ी बस स्टैंड, शाम के सात बज रहे थे l
देवगड़ बस वाया यशपुर के लिए तैयार खड़ी थी l बस निकलने के और एक घंटा समय बाकी था l बस स्टैंड में तापस गाड़ी लगाता है, पिछले सीट पर बैठे प्रतिभा और विश्व उतरते हैं l

प्रतिभा - क्या हुआ खड़ा क्यूँ है...
विश्व - वह माँ... डैड... डिक्की खोलेंगे तो... सामान निकालना है...
प्रतिभा - अरे... कौनसा हिमालय साथ में लेकर जा रहा है...
तापस - (डिक्की खोलते हुए) अरे भाग्य वान... एक बैग ही तो है... क्या इसके लिए... कुली हायर करें...
प्रतिभा - जी नहीं कुली क्यूँ... आप हैं ना...
तापस - क्या...

तापस का रिएक्शन देखने के लिए रुकी भी नहीं, वह विश्व की हाथ को पकड़ कर बस स्टैंड के अंदर चल देती है l तापस पहले तो हक्का बक्का सा हो जाता है पर थोड़ी देर के बाद मुस्करा कर डिक्की से बैग निकाल कर कंधे में डालता है और उन दोनों के पीछे पीछे चल देता है l प्राइवेट बस टिकट काउंटर के पैसेंजर वेटिंग रुम में विश्व, प्रतिभा और तापस तीनों आते हैं l

प्रतिभा - (तापस से) यह गाड़ी निकलेगी कब और... यशपुर कब तक पहुँच जाएगी...
तापस - देखो गाड़ी निकलने में अभी वक़्त है.... मैं तो कभी उस तरफ गया नहीं...
विश्व - माँ... सुबह तड़के पहुँचा देगी...
प्रतिभा - तुझे कैसे पता...
विश्व - बेतुका सवाल.... दीदी आती रहती थी ना....
प्रतिभा - अरे हाँ... मैं तो भूल ही गई थी... चलो ठीक है... अच्छा सुन... मैंने तेरे लिए और तेरे दुम के लिए... खाना टिफिन में दे दिया है...
विश्व - क्क्क्क्या... दुम...
प्रतिभा - हाँ दुम... मुझे पहले से ही अंदाजा था... और कल इत्तेफ़ाक से दिख भी गया... तो मैं समझ गई... वापस तो तुम दोनों मिलकर जाने वाला है...
विश्व - कमीना कमबख्त... सीलु...
प्रतिभा - हाँ... सीलु... वह आया है ना...
विश्व - क्यूँ तुमने उसे देखा था ना...
प्रतिभा - ना तुक्का लगाया...
विश्व - क्या... आ...
प्रतिभा - (हँसते हुए) हा हा हा हा... पकड़ा गया ना...
विश्व - (मुस्कराते हुए) हाँ पकड़ तो लिया...
प्रतिभा - अररे.... (अपनी माथे पर हाथ रखते हुए)
तापस - क्या हुआ भाग्यवान...
विश्व - हाँ माँ... क्या हुआ... कुछ भुल गई...
प्रतिभा - हाँ भुल गई...
तापस और विश्व - क्या...
प्रतिभा - पानी की बोतल...
विश्व - ओह पानी की बोतल... कोई नहीं... गाड़ी चढ़ने से पहले खरीद लूँगा...
प्रतिभा - क्यूँ... तु क्यूँ खरीदेगा... तेरे डैड नहीं हैं क्या... (तापस से) सुनिए जी...
तापस - समझ गया भाग्यवान.... समझ गया...
प्रतिभा - अगर समझ गए... तो जाइए... दो लीटर वाला पानी की बोतल लेकर आइए...

तापस एक गहरी सांस छोड़ते हुए वेटिंग रुम से बाहर चला जाता है l उसके बाहर जाते ही प्रतिभा अपनी वैनिटी बैग से नोटों की एक छोटी सी गड्डी निकालती है और विश्व के हाथों में थमा देती है l

विश्व - यह... यह क्या कर रही हो माँ...
प्रतिभा - यह ले... रख ले... गांव में खर्च करना...
विश्व - माँ...
प्रतिभा - जानती हूँ... तेरे एकाउंट में पैसे हैं... पर यह तेरे लिए... मेरी तरफ से... जेब खर्च के लिए...
विश्व - इतना सारा पैसा दे रही हो... और जेब खर्च बोल रही हो...
प्रतिभा - इतना सारा कहाँ है... दस हजार ही तो हैं...
विश्व - माँ... मैं अगले हफ्ते दस दिन में वापस आने वाला हूँ... फिर जब वापस जाऊँगा... क्या तुम तब भी ऐसे देती रहोगी...
प्रतिभा - हाँ जरूर देती... अगर मैं अंबानी या टाटा की रिश्तेदार होती... अब चूँकि... मैं एक रिटायर्ड सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस की धर्म पत्नी हूँ... इसलिए सिर्फ दस हजार ही दे रही हूँ.... और हाँ सेनापति जी को बताना मत...
विश्व - (मुस्करा कर प्रतिभा के गले लगते हुए) ठीक है माँ...

विश्व अपनी जेब में पैसे रख लेता है l थोड़ी देर बाद तापस पानी की बोतल लेकर आता है और विश्व को देता है l

तापस - भाग्यवान... थोड़ी देर के लिए... सामान के पास बैठी रहना... (विश्व के कंधे पर हाथ रखकर) लाट साहब को... किसीसे मिलवाना है...
प्रतिभा - क्या... मैं क्यूँ रहूँ...
तापस - प्लीज...

तापस जिस गंभीरता से प्लीज कहा था, प्रतिभा उसकी बात ना काट सकी, अपनी सिर हिला कर सम्मति देती है l तापस विश्व को इशारा करता है और वहाँ से चला जाता है l विश्व तापस के पीछे पीछे चला जाता है l वेटिंग हॉल में प्रतिभा अकेली रह जाती है l बाहर दोनों बस स्टैंड के एक कोने पर आते हैं l

विश्व - क्या बात है डैड....
तास - (अपने गिरेबान के अंदर से काग़ज़ का एक बंडल निकाल कर विश्व के हाथ में देते हुए) यह EC है... ऐकुंबरेंस सर्टिफिकेट... तुम्हारे घर के... प्रॉपर्टी टैक्स भी भरवा दिया है...
विश्व - ओ...
तापस - हाँ... लड़ाई शायद यहीं से शुरु होगी... (विश्व चुप रहता है) बाकी... तुम भी जानते हो... जैसा तुमने कहा था... मैंने वैसा ही किया था... उम्मीद है... लड़ाई का दिशा और दशा... बिल्कुल वैसा ही हो... जैसा तुम चाहते हो...
विश्व - डैड... (एक पॉज लेता है) यह आप माँ के सामने भी दे सकते थे... आप यहाँ ला कर... क्या बात है डैड....

तापस अपने जेब से दस हजार रुपये की एक गड्डी निकाल कर विश्व को देता है l

विश्व - (हैरान हो कर) डैड...
तापस - चुप...
विश्व - डैड... मैं कौनसा हमेशा के लिए जा रहा हूँ... हर हफ्ते दस दिन में आता रहूँगा ना...
तापस - जानता हूँ... पर... (एक पॉज लेकर) रख ले यार... तेरी माँ की तरह... मैं अपना प्यार दिखा नहीं पाता...
विश्व - डैड....

कह कर विश्व तापस के गले लग जाता है l तापस थोड़ा भावुक हो जाता है l

तापस - (भर्राइ आवाज में) देख... तु अगर मुझे ऐसे रुला देगा.. तो तेरी माँ को संभालना... मेरे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा...

विश्व तापस से अलग होता है l तापस अपनी आँखे पोंछ कर खुद को नॉर्मल करता है l

तापस - एक काम करो... तुम्हारे उस दुम को बुलाओ... तुम्हारी माँ के पास... वह सिचुएशन को हल्का करेगा...

विश्व मुस्कराते हुए मोबाइल निकाल कर सीलु को कॉल लगाता है l उधर वेटिंग हॉल में बैग के पास बैठे बैठे प्रतिभा का पारा धीरे धीरे चढ़ रहा था l वह अपनी घड़ी देखती है पुरे पंद्रह मिनट हो चुके थे l वह चिढ़ कर खड़ी हो जाती है के तभी उसके पैरों पर सीलु आके गिरता है l

सीलु - माँ... माँ... मेरी माँ... एक तुम ही हो... जो मेरे भुख की बारे में सोच सकती हो... माँ...

प्रतिभा पहले तो हैरान हो जाती है और फिर मुस्करा कर सीलु की कान खिंचते हुए उठाती है l

सीलु - आह... आह... उह... माँ दुखता है...
प्रतिभा - पहले यह बता... कितने दिनों से है यहाँ पर...
सीलु - आह बताता हूँ माँ.. बताता हूँ... पहले कान तो छोड़ो...
प्रतिभा - ले छोड़ दिया... अब बोल...
सीलु - अब माँ... तुम माँ हो... तुमसे क्या छुपाना... भाई की जुदाई सही ना जा रही थी... इसलिए चला आया... ताकि भाई के साथ मिलकर ही वापस जाना हो...
प्रतिभा - घर क्यूँ नहीं आया...
सीलु - कसम से भाई से भी छुपा हुआ था... वह तो कुछ दिन पहले भाई ने पकड़ लिया.... और अब... आपने...
प्रतिभा - सच बोल रहा है... खा मेरी कसम...
तापस - क्या भाग्यवान... इस बात पर कसम... ठीक है... अगली बार जब आएगा... जी भर के सजा दे देना... अब तो इन्हें आजादी के साथ जाने दो...
प्रतिभा - ठीक है... (सीलु से) अब उठो...

सीलु नीचे से उठता है l प्रतिभा उसकी शकल देख कर हँस देती है l माहौल थोड़ा मजाकिया हो जाता है l फिर विश्व और सीलु को सेनापति दंपति बस के पास छोड़ने आते हैं l विश्व की बैग को लेकर पहले सीलु बस के अंदर चला जाता है l विश्व बस चढ़ने को होता है कि वह रुक जाता है, मुड़ कर तापस और प्रतिभा को देखता है l अब तक जो खुशी खुशी विदा कर रहे थे उन दोनों का चेहरा उतरा हुआ था l विश्व भाग कर प्रतिभा और तापस दोनों के गले से लग जाता है l दोनों भी विश्व को जोर से गले लगा लेते हैं l बस की हॉर्न बजते ही तापस विश्व से अलग होता है और प्रतिभा से अलग करता है l विश्व कुछ कहने को होता है कि तापस उसे रोक देता है l

तापस - (विश्व से) कुछ मत कहो... तुम वापस आ कर गले से लग गए... तो हमें यह यकीन हो गया... तुम आओगे... जीत कर ही आओगे... तुम अपना... अपनी दीदी का... दोस्तों का और गाँव वालों का खयाल रखना... मैं तुम्हारी माँ और मेरा खयाल रखूँगा... अब जाओ...

विश्व बस के दरवाजे पर ही खड़ा रहता है और बस धीरे धीरे से बस स्टैंड छोड़ कर आगे बढ़ जाता है l पीछे सेनापति दंपति रह जाते हैं l दोनों के पाँव जैसे जम गए थे l दोनों बड़ी मुस्किल के साथ अपनी गाड़ी तक का सफर तय किया l तापस गाड़ी की दरवाजा खोल कर प्रतिभा को बिठा देता है और खुद गाड़ी में बैठ कर ड्राइव करते हुए घर की ओर चल देता है l प्रतिभा की उतरी हुई चेहरे को देख कर

तापस - जानती हो जान... प्रताप पीछे मुड़ कर हमें देखा ही नहीं... बल्कि वापस आ कर हमारे गले भी लग गया... मतलब समझती हो.... (प्रतिभा कोई जवाब नहीं देती, पर तापस कहना जारी रखता है) इसका मतलब हुआ... कोई उसके इंतजार में हैं... जिनके लिए... वह हर हाल में वापस आएगा... और वह कौनसा हमेशा के लिए जा रहा है... देखना हफ्ते दस दिन बाद हमारे पास होगा... हमारे साथ होगा...
प्रतिभा - हूँ...
तापस - क्या हूँ...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - (चुप रहता है)
प्रतिभा - थोड़ा दर्द हो रहा है... पहली बार अपनी आँखों से दूर भेज रही हूँ...
तापस - पर तुम तो कह रही थी... प्रताप के जाने से... तुम्हें कोई फर्क़ नहीं पड़ेगा... क्यूंकि तुम्हारे पास साथ देने तुम्हारी बहु होगी...
प्रतिभा - (चिहुँक कर) वह मुई भी अभी राजगड़ मैं है...
तापस - क्या... (हैरानी की भाव में)

प्रतिभा गुस्से से तापस की ओर देखती है I तापस अपना चेहरा घुमा लेता है और बात बदलने के लिए

तापस - वैसे जान... प्रताप का बार लाइसेंस आने में... अभी वक़्त है... मान लो राजगड़ में कुछ कानूनी लफड़ा हुआ तो... वह कैसे डील करेगा...
प्रतिभा - मैंने अपनी लाइसेंस को... मड़गेज कर उसके लिए एक प्रोविजनल लाइसेंस नंबर हासिल कर लिया है... और उसे दे भी दिया है...
तापस - क्या... यह तुमने कब किया...
प्रतिभा - जब से वह छूट कर बाहर निकला था...
तापस - और यह तुम... मुझे अब बता रही हो... और उसने भी देखो मुझे अभी तक बताया नहीं... तुम माँ बेटे... मेरी नॉलेज के बाहर हमेशा कुछ न कुछ खिचड़ी पकाते रहते हो... और अंत में मुझे बेवक़ूफ़ बनाते हो...

तापस की इस शिकायत पर प्रतिभा हँस देती है l उसके हँसते ही तापस भी एक चैन की हँसी हँस देता है

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

श्री जगन्नाथ धर्मशाला पुरी मंदिर से कुछ ही दूर I वीर ने दो कमरे लिए थे I ओबराय होटल में कमरा लेना चाहा था पर दादी ने मना किया l क्यूँकी दादी को इतनी लक्जरी की आदत नहीं थी l इसलिए दादी की मन और बात को रखते हुए उसने श्री मंदिर की प्रशासन के आधीन वाली धर्मशाला में दो कमरे लिया था I मंदिर से महा प्रसाद मंगवा कर रात्री भोज तीनों खतम कर चुके थे l पानी लाने के बहाने वीर बाहर पानी की बोतल ला कर दादी और अनु को दिया था I उन्हें उनके कमरे में छोड़ कर अपने कमरे में बैठ कर बार बार घड़ी देख रहा था l वीर अपने फिट कपड़ों में तैयार बैठा हुआ था l रात के दस बजे वीर की फोन बजने लगती है l वीर मोबाइल की स्क्रीन पर देखता है महांती का नाम डिस्प्ले पर दिखा I झट से फोन उठाता है

वीर - हाँ महांती...
महांती - आप... xxx गेस्ट हाउस में आ जाइए...
वीर - ठीक है... पंद्रह मिनट में आ रहा हूँ... यहाँ का इंतजाम...
महांती - हो गया है... आप निकालिये...
वीर - ठीक है...

कह कर फोन काट देता है l अपने कमरे से निकल कर वीर अनु और दादी के कमरे के बाहर खड़ा होता है l दरवाजे पर हल्का सा धक्का देता है l दरवाजा खुल जाता है l अंदर पहुँच कर देखता है दोनों पानी की बोतल लगभग खाली था l मतलब दादी और अनु पानी पी चुके थे और अपने अपने बिस्तर पर बेसुध लेटे हुए थे l वीर पानी की बोतल उठा कर वॉश बेसिन में उड़ेल देता है और खाली बोतल वहीँ पर रख देता है l धीरे धीरे अनु की तरफ बढ़ता है और अनु के सिरहाने बैठ जाता है l बड़े प्यार से अनु की चेहरे को निहारने लगता है l

वीर - माफ करना अनु... पानी में नींद की दवा मिलाया था... हमारे कुछ दुश्मन हैं... जिन्हें हमारा मिलना मंजुर नहीं है... उन्हें सबक सिखाना जरूरी है... (झुक कर अनु की माथे पर एक चुम्मा लेता है) कल सुबह तक आ जाऊँगा... तब तक... सपनों की दुनिया में खो जाओ...

वीर अनु के सिरहाने से उठता है और दादी के पैर के पास बैठ जाता है l दोनों हाथों से दादी का पैर पकड़ लेता है

वीर - दादी... माफ कर देना... मेरे वजह से आप पर या अनु पर कोई खतरा नहीं आना चाहिए... कल सुबह तक सब ठीक कर दूँगा...

इतना कह कर कमरे से बाहर निकालता है और बाहर से दरवाजा बंद कर वहाँ से निकल कर धर्मशाला से बाहर आता है l गाड़ी में बैठ कर गाड़ी दौड़ा देता है l दस मिनट के ड्राइविंग के बाद वह xxxx गेस्ट हाउस के बाहर पहुँचता है l बाहर गाड़ी छोड़ कर गेस्ट हाउस के अंदर जाता है l अंदर महांती और उसके कुछ खास आदमी चार लोगों को नंगा कर एक टेबल पर अध लेटे अवस्था में आमने सामने बांधे रखे हुए हैं l वीर एक चेयर के सहारे टेबल पर खड़ा हो जाता है l उन चारों के हथेली पर बारी बारी चढ़ कर टेबल पर घूमने लगता है l वे चारों दर्द के मारे चिल्लाने लगते हैं l थोड़ी देर बाद वीर टेबल से उतर कर एक चेयर पर बैठ जाता है l

वीर - (उन चार लोगों से) हाँ तो हरामजादों... अब बोलना शुरु करो...
एक - (दर्द के मारे कराहते हुए) आह.. हमने कुछ नहीं किया राज कुमार... आह...
वीर - हाँ... मैं मान लिया... तुमने कुछ नहीं किया... अब तुम लोग भी मान जाओ... मैं तुम लोगों के साथ... बहुत बुरा करने वाला हूँ...
दुसरा - नहीं नहीं... राज कुमार जी... हमें माफ कर दीजिए... प्लीज...
वीर - (महांती से) महांती... इन हरामजादों के पैरों पर छोटे छोटे ज़ख़्म करो... फिर कुछ चूहों को इनके पैरों पर छोड़ दो... जब वह चूहे इनके पैरों को कुतरने लगेंगे... इन्हें सब याद आ जाएगा... और बिल्कुल तोते की तरह बोलना शुरु कर देंगे...
चारों - नहीं.. नहीं... राजकुमार जी हमें... माफ कर दीजिए... प्लीज... आपको गलत फहमी हुआ है...
वीर - (आवाज़ में कड़क पन आ जाती है) महांती... यह लंड खोर... बड़े फर्माबरदार लगते हैं... अब इनके पैरों पर ज़ख्म मत दो... इनके टट्टों के इर्द-गिर्द ज़ख्म बनाओ... चूहे पहले इनके टट्टों से कुतरता शुरु करेंगे...
एक - नहीं... नहीं राज कुमार जी... नहीं... ऐसा कुछ भी मत कीजिए... मैं... मैं बता दूँगा... प्लीज...
वीर - ठीक है... तुझसे जो भी जानकारी मिलेगी... वह एक एक से उगलवा कर मैच करूंगा... कुछ भी छुटा... या झूठ बोला... तो सबसे पहले... तेरे टट्टों को चूहों का निवाला बनाऊँगा...

वीर इशारा करता है l महांती के आदमी उस बंदे को खोल देते हैं और बगल के कमरे में ले जा कर एक चेयर पर नंगा ही बिठा कर हाथ पैर बांध देते हैं l वीर उसके सामने पड़े एक चेयर पर बैठ जाता है

वीर - चल मादरचोद... अब बकना शुरु कर...
एक - हम कलकत्ते के एक डिटेक्टिव एजेंसि से ताल्लुक रखते हैं... हमें कुछ दिन पहले एक असाइनमेंट मिला था... आपके... और उस लड़की पर नजर रखने के लिए...
वीर - ह्म्म्म्म आगे बोल...
एक - बस इतना ही... आपकी और उस लड़की की पल पल की जानकारी हम... उन तक पहुँचाते थे...
वीर - भोषड़ी के.. इतना तो मैं भी जानता हूँ... वह बता... जिससे मैं अनजान हूँ...
एक - बस... हमारे पास एक फोन नंबर है... हमें हर इंफॉर्मेशन पर... अकाउंट में पेमेंट अपडेट हो जाता था.... सच कहता हूँ राजकुमार जी... वह कौन है... कहाँ है... हम कुछ नहीं जानते... हमें पैसा मिलता रहा... और फोन पर जैसे जैसे इंस्ट्रक्शन मिलता रहा... हम बिलकुल वैसे ही करते रहे...
वीर - ह्म्म्म्म... मुझे यकीन नहीं हो रहा है...
एक - (रोते हुए) मैं सच कह रहा हूँ... राजकुमार जी... मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा है...
वीर - ह्म्म्म्म... किस तरह से... इंफॉर्मेशन पहुँचाता था...
एक - जी फोन पर...
महांती - राजकुमार जी... (अंदर आ कर) वह एक वर्चुअल नंबर है... कम्प्यूटर जेनरेटेड..
वीर - इसका मतलब यह ठीक कह रहा है...
महांती - हाँ...
वीर - तो हम अपने दुश्मन तक पहुँचेंगे कैसे...
महांती - बस तीस सेकेंड में...

इतना कह कर महांती इशारा करता है l कुछ आदमी उस बंधे हुए बंदे का दोनों हाथ खोल देते हैं l महांती उसे एक मोबाइल देते हुए

महांती - यह ले... यह तेरा ही मोबाइल है... पर हमारे सिस्टम के ट्रैकिंग में है... लगा उस नंबर पर फोन.. और हाँ तीस सेकंड तक फोन पर बातें रुकनी नहीं चाहिए...

वह आदमी फोन लेता है और एक नंबर पर डायल करता है l जैसे ही रिंग होती है महांती अपने टैब पर देखने लगता है l थोड़ी देर बाद उधर से कॉल कोई उठाता है

- यस
एक - मैं... एक्स बोल रहा हूँ...
- हाँ एक्स क्या खबर है...
एक - वह लड़का.. और उस लड़की का परिवार... उसी धर्मशाला में हैं... कोई मूवमेंट नहीं दिख रहा है...
- ह्म्म्म्म... और कुछ...
एक - लगता है... कहीं उन्हें हम पर शक तो हो गया है...
- क्यूँ... ऐसा क्यूँ लग रहा है...
एक - क्यूंकि धर्मशाला के बाहर... उनके ESS से कुछ लोग पहरे पर लगे हुए हैं...
- और तुम लोग... तुम लोग क्या कर रहे हो...
एक - हम लोग अपनी अपनी पोजिशन पर छुपे हुए हैं...
- भोषड़ी के... मादरचोद... पकड़े गए हो... और मेरी चुटिया काट रहे हो...
एक - (हकलाने लगता है) यह.. यह आप क्या कह रहे हैं...
- अबे भोषड़ी के... जब पिछवाड़े नहीं था गुदा... तो बीच में काहे कुदा... क्यूँ बे वीर सिंह... तुझे तीस सेकंड चाहिए था ना... ले मैंने तुझे चालीस सेकेंड दे दिए... जो उखाड़ना है... उखाड़ ले...

फोन कट जाता है l वीर और महांती दोनों हैरान हो कर एक दुसरे को देखने लगते हैं l महांती फिर भी कॉल को ट्रेस करने कोशिश करने लगता है l फिर थोड़ी देर बाद महांती की जबड़े भींच जाती हैं l वीर उसे सवालिया नजरों से देखता है l महांती उसे टैब दे देता है l वीर उस पर फ्लैश हो रहे लोकेशन को देखने लगता है l


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


बस रात की डिनर के लिए रास्ते पर एक ढाबा पर रुका हुआ था l सारे पैसेंजर उतर कर ढाबे में खाना खाने जा चुके थे l विश्व और सीलु भी ढाबे के बाहर लगे एक टेबल पर बैठे हुए थे l प्रतिभा के दिए पराठे काग़ज़ में लिपटी एलुमिनीयम फएल से निकाल कर खा रहे थे l खाते खाते सीलु की नजर उस काग़ज़ पर पड़ती है l

सीलु - भाई इस कार्टून को देखा...

विश्व उस काग़ज़ पर छपे कार्टून को देखने लगता है l एक आदमी अपने कंधे पर सहारा देते हुए दुसरे आदमी को एक पेड़ पर चढ़ा रहा है और अपने दोनों हाथों से एक कुल्हाड़ी से उसी पेड़ को काट रहा है l पेड़ की पोजिशन कुछ ऐसी है कि कटने के बाद एक मगरमच्छों से भरी तालाब में गिरेगी l वह तस्वीर देखते ही विश्व अपनी अतीत में खो जाता है

फ्लैशबैक

विश्व अपना काम खतम कर महल से निकल रहा था कि उसे पीछे से कल्लू की आवाज सुनाई देता है l

कल्लू - ऑए विश्वा... (विश्व पीछे मुड़ कर देखता है) तुझे राजा साहब ने... दिवाने आम में याद कर रहे हैं...

विश्व इतना सुनते ही भागने लगता है l दिवाने आम में भैरव सिंह एक ऊंची जगह पर बैठ कर नीचे बैठी अपनी पुरी टीम के साथ गुफ़्तगू कर रहा था l विश्व उनके पीछे सिर झुकाए खड़ा हो जाता है l

भैरव सिंह - आओ विश्व... अभी तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था...
विश्व - जी हुकुम...
भैरव सिंह - इनसे मिलो... यह चुनाव अधिकारी हैं... अभी अभी... हमारे पंचायत की डेमोग्रैफीकल जौग्राफी बदला है... तुम्हें जानकर बहुत अच्छा लगेगा... इस बार पंचायत के चुनाव में... पाइक पड़ा सामिल हुआ है...
विश्व - जी हुकुम...
भैरव सिंह - अपने राजगड़ को छोड़ कर... तुम कितने पंचायत को जानते हो...
विश्व - जी ज्यादा नहीं... पर जानता हूँ... कुछ एक को...
भैरव सिंह - और...
विश्व - और... क्या राजा साहब...
भैरव सिंह - वह सारे पंचायत... हमारे पंचायत से थोड़े आगे हैं... हैं ना...
विश्व - मालुम नहीं राजा साहब...
भैरव सिंह - यह... दिलीप कुमार कर... सरपंच बनना चाहता था... पर मैंने उसे बताया... नया दौर है... नये जोश से भरा खुन की आवश्यकता है... इसलिए इसबार की सरपंच चुनाव के लिए... हमने तुम्हारा नाम सुझाया है...
विश्व - जी... (बहुर जोर से चौंकता है) जी... म.. मैं...
भैरव सिंह - हाँ विश्व... हमने खबर ली है... तुम अभी अभी इक्कीस वर्ष के हुए हो... मतलब तुम चुनाव के लिए उपयुक्त हो... इस बार की चुनाव में... तुम ही पुरे देश में सबसे कम उम्र के सरपंच बनोगे...
विश्व - (कुछ कह नहीं पाता)
दिलीप - मुबारक हो विश्व... सरपंच बनने की बधाई...
विश्व - (फिर भी चुप रहता है)
बल्लभ - क्या बात है विश्व... तुम खुश नहीं हुए...
विश्व - राजा साहब... मैं कुछ निर्णय नहीं ले पा रहा हूँ...
भैरव सिंह - निर्णय हमने लिया है विश्व.... तुम्हें बस उस निर्णय पर चलना है...
विश्व - माफ कीजिए राजा साहब... मुझे कोई अभिज्ञता नहीं है... पर मुझे लगता है... कर बाबु पुरी तरह से योग्य हैं...
दिलीप - लो कर लो बात... अरे मुर्ख... मैं तो पेड़ के साख पर उस सूखे पत्ते की तरह हूँ... जो कभी भी झड़ सकता है... अब समय और संसार तुम्हारा है... इसलिए जैसा राजा साहब ने कहा... वैसा ही करो...
बल्लभ - हाँ विश्व... जरा सोचो... राजा साहब ने अगर सोचा है... कुछ ठीक ही सोचा होगा...
विश्व - जी आप दुरुस्त कह रहे हैं... पर मैं... खुद को तैयार नहीं कर पा रहा हूँ... समझा नहीं पा रहा हूँ...
भैरव सिंह - (गंभीर आवाज़ में) इसका मतलब... तुम हमारे निर्णय के विरुद्ध जाओगे..
विश्व - ऐसा ना कहिए राजा साहब... ऐसी मेरी हिम्मत कहाँ... आपकी सेवा में... मुझसे भी योग्य लोग होंगे... आप उन्हें नियुक्त कीजिए... बस मुझे क्षमा कीजिए...
दिलीप - रे मूर्ख... रे धूर्त... तु राजा साहब के हुकुम की... नाफरमानी कर रहा है.... राजगड़ के भगवान की....

विश्व जवाब में कुछ नहीं कहता l सिर झुकाए चुप खड़ा रहता है l

भैरव सिंह - ठीक है विश्व.. तुम घर जाओ...
विश्व - जी राजा साहब...

अपना सिर झुकाए भैरव सिंह को बिना पीठ किए उल्टे पैर दिवाने आम से बाहर निकल जाता है l उसके जाते ही

बल्लभ - कमाल है... पहली बार ऐसा हुआ... राजा साहब की हुकुम... अदब के साथ किसी ने ठुकरा दिया है...
भैरव सिंह - हर जोड़ की एक तोड़ होता है... हर तोड़ की एक मोड़ होता है... और हर मोड़ की एक मरोड़ होता है... इसकी भी तोड़ है... और यह टुटेगा...
दिलीप - ऐसा कौन है राजा साहब...

उधर भैरव सिंह को मना करने के बाद विश्व अंदर ही अंदर बहुत खुश था l वह भागते हुए अपने घर जा रहा था l पर उसे लग रहा था जैसे वह उड़ रहा है l विश्व भागते भागते घर पर पहुँचता है I घर पर वैदेही खाना बना रही थी l

विश्व - (खुशी के मारे) दीदी...
वैदेही - क्या बात है... आज मेरा भाई बहुत खुश लग रहा है... क्या हो गया है तुझे आज...
विश्व - ओ दीदी... (झूमते हुए) दीदी.. दीदी... क्या कहूँ तुमसे... पहली बार...(बहुत ही खुशी के साथ) हाँ दीदी पहली बार... मैंने राजा के मुहँ पर ना कहा है...
वैदेही - क्या... ऐसा क्या हुआ..

विश्व वैदेही से दिवाने खास में हुए सारी बातें बताता है l सारी बातेँ सुनने के बाद वैदेही भी विश्व की तारीफ करती है l

वैदेही - (एक गर्व और गंभीर आवाज में) शाबाश मेरे भाई शाबाश... वाकई... मैं आज बहुत खुश हूँ... हाँ पहली बार... किसीने राजा साहब के मुहँ पर ना को दे मारा है... तुझे तो उसका शकल भी देखना चाहिए था...
विश्व - (खुशी और झिझक की मिली जुली भाव से) चाहता तो मैं भी यही था दीदी... पर मेरी हिम्मत नहीं हुई... बहुत कोशिश की उसके चेहरे पर भाव देखने की... पर मैं अपना सिर उठा नहीं पाया....
वैदेही - कोई ना... मेरे भाई कोई ना... आज तुने उसे ना सुना दिया है... एक दिन उसका बुझा हुआ... झुका हुआ चेहरा भी देखेगा... सिर्फ तु ही नहीं.. इस गांव का हर एक बच्चा बच्चा देखेगा...

भाई बहन की यह वार्तालाप चल रही थी के तभी खाने के जलने की बु आने लगती है l

वैदेही - (चिल्लाते हुए) आह... देख खाना जल गया...
विश्व - ओह माफ करना दीदी...

तभी बाहर दरवाजे पर दस्तक होती है l दोनों भाई बहन का ध्यान उस तरफ जाता है l दरवाजे पर उमाकांत सर खड़े हुए थे l

विश्व - ओह सर आप... आइए सर आइए...

उमाकांत अंदर आता है l वैदेही दौड़ कर अंदर जा कर एक कुर्सी ले आती है l विश्व भी अपनी खुशी को छुपाये वगैर उमाकांत से कहता है

विश्व - सर... आज मैं बहुत खुश हूँ...
उमाकांत - जानता हूँ... (विश्व और वैदेही दोनों हैरान हो कर उमाकांत को देखने लगते हैं) यही ना आज तुमने... राजा साहब को... सरपंच बनने से इंकार कर दिया...

विश्व और वैदेही और भी हैरान रह जाते हैं l उन्हें समझ में नहीं आता कुछ ही घंटों पहले की बातेँ उमाकांत सर को कैसे मालुम हुआ I उमाकांत उनके मन में पैदा हुए शंका को दूर करते हुए

उमाकांत - कुछ देर पहले मेरे घर पर... खुद राजा साहब और दिलीप आए थे... उन्होंने ही मुझे बताया सारी बातेँ...
वैदेही - सर यह बात हमने आपको बताई होती... तो बात समझ में आती... पर यह बात आप तक... जिनके जरिए पहुँची.. वह हैरान करने वाली विषय है...
उमाकांत - हाँ... है तो...
वैदेही - कहीं ऐसा तो नहीं... के उन्होंने आपकी आड़ लेकर... विश्व को राजी कराना चाहते हैं...
उमाकांत - बिल्कुल... सही सोचा है तुमने... मैं यहाँ विश्व को मनाने के लिए ही आया हूँ... पर कोई बाध्य नहीं करूँगा... निर्णय पूर्ण रुप से तुम्हारा होगा...
वैदेही - अगर आपको उन्होंने भेजा है... तो विशु का सरपंच बनना उनके लिए बहुत आवश्यक है... पर उनकी आवश्यकता के लिए विशु ही क्यूँ..
उमाकांत - बेटी... यहाँ हम जिस समाज में जी रहे हैं... दो तरह के भागों में बंटे हुए हैं... एक शोषक... दुसरा शोषित... शोषक इसलिए शोषण कर पाता है... क्यूंकि उसके पास व्यवस्था की हर प्रकार की शक्ति है... शोषित इसलिए शोषण का शिकार हो रहा है... क्यूंकि शक्ति संतुलन में उसके पास... उसका कोई हिस्सा नहीं है... क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ...
वैदेही - (कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद) नहीं... आप सही कह रहे हैं...
उमाकांत - तो जब शक्ति संतुलन में... एक हिस्सा हमारे द्वार पर आ रही है... हम उसकी अनदेखी क्यूँ करें...
विश्व - सर कुछ भी हो... हम बचपन से देख ही रहे हैं... सारी व्यवस्था को... राजा के आगे घुटने टेकते हुए... सिर्फ़ राजगड़ के ही नहीं... यहाँ के आस पास जितने भी पंचायत हैं... सभी सरपंचों को... राजा के आगे... जी हजुरी करते हुए... गुलामी करते हुए...
उमाकांत - गुलामी तो हम अब भी कर रहे हैं... (विश्व और वैदेही चुप रहते हैं) बर्षों से लोगों का आक्रोश... बीज बन कर दबी हुई है... उसके उस अकर्मण्यता की जमीन को चिर कर उजाले की ओर राह दिखाने वाला कोई तो चाहिए... उस बीज को महा वृक्ष बनने के लिए.. कोई तो मार्ग चाहिए... या तो आरंभ... तुम खुद से करो... या फिर... प्रतीक्षा करो... कोई आएगा... इस अभिशापित जीवन से सबको बचाएगा....

कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है l ना वैदेही ना विश्व किसीके मुहँ से कोई बोल नहीं फूटती है l

विश्व - राजा साहब... मुझे सरपंच बना कर... मुझ पर अपना एहसान लादेगा... अपनी मन माफिक काम मुझसे करवाएगा...
उमाकांत - हाँ ऐसा हो सकता है... अगर तुम बिना प्रतिद्वंदीता के चुनाव लड़ोगे... अगर प्रतिद्वंदिता हो... तो...
विश्व - जिसके पीछे राजा साहब हो... उसके खिलाफ कौन लड़ेगा...
उमाकांत - लड़ना अलग बात है... जितना तुम्हारा जरूरी है... तुम्हारी जीत... हर एक घर की जीत होगी... यहाँ के हर एक आँगन की जीत होगी... यह एहसास... तुम्हें लोगों का साथ देगा... विश्वास देगा... उनका साथ... उनका विश्वास तुम्हें ताकत देगा...
विश्व - वह तो ठीक है... पर राजा साहब का... चुनाव में दखल से... लोगों का मनोबल पर क्या असर पड़ेगा... मुझे लोग अपने में गिनेंगे...
उमाकांत - इसीलिए... मैंने राजा साहब से चुनाव में दखल ना देने के लिए... वचन लिया है... और तुम चुनाव बगैर प्रतिद्वंदीता के नहीं लड़ोगे...
वैदेही - तो क्या राजा... मान गया...
उमाकांत - हाँ... पर उसकी भी एक शर्त है...
विश्व और वैदेही - क्या.... कैसी शर्त...
उमाकांत - यही... की विशु की प्रार्थी नामांकन पत्र में... प्रस्तावक में हस्ताक्षर उनका रहेगा... और समर्थन में मेरा नाम होगा...
वैदेही - क्या यह... कोई साजिश हो सकता है...
उमाकांत - हाँ शायद... हो सकता है... पर बाजी तो हमें भी खेलना होगा... शुरुआत कहीं से तो हो... क्या कहते हो विशु...
विश्व - (कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद) ठीक है... यह तो नहीं जानता यह साजिश है... या सहायता... पर अगर लोगों में जागृती लाने के लिए यही एक विकल्प है... तो यही सही...

गाड़ी की हॉर्न सुन कर विश्व अपनी यादों से बाहर आता है l सीलु अपना हाथ धो कर आ चुका था l दोनों मिलकर अपनी अपनी सीट पर बैठ जाते हैं l सभी पैसेंजर बस चढ़ने के बाद बस आगे बढ़ जाती है l


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

वीर और महांती एक दुसरे को देखते हैं फिर दोनों उस बंदे को वहीँ छोड़ कर गेस्ट हाउस के दुसरे तरफ एक कमरे में आते हैं l

वीर - महांती... यह क्या है...
महांती - राजकुमार.. मुझे थोड़ा टेबलेट दीजिए...

वीर टैब को महांती के हवाले कर देता है l टैब पर एक दुसरे एप्लीकेशन में कुछ देखने के बाद महांती की आँखे फैल जाती है l

वीर - क्या बात है महांती... हम कहाँ चूक गए... हमें तीस सेकेंड चाइये थे... उसने चालीस सेकेंड दिए... कितनी बेपरवाह से चैलेंज दिया... जो उखाड़ना है उखाड़ लो... टेबलेट में लोकेशन हमारी ESS की ऑफिस दिखा रहा है...
महांती - एक चूक.... नहीं चूक नहीं कह सकते... एक बड़ी गलती हो गई थी... जिसका उस छुपे हुए दुश्मन ने बखूबी फायदा उठाया है...
वीर - क्या... कैसी गलती... हमारे ऑफिस से कुछ दूर मैन रोड के बाई सेक्टर पर... ट्रैफ़िक डिपार्टमेंट ने एक्सीडेंट अवेरनेस के लिए... एक टूटी हुई सैंट्रो कार रखा था... यह लोग उसीके अंदर वाइफाइ राउटर के जरिए... छोटा कंट्रोल रूम बनाया है... और हम पर वहीँ से नजर रखे हुए थे...
वीर - तो... अब तक वह लोग वहाँ से भाग चुके होंगे... हमारे सिक्युरिटी स्टाफ उस गाड़ी को घेर लें... तब भी कोई फायदा नहीं होगा... मतलब दुश्मन हमारे नाक के नीचे था... अब निकल गया है...
महांती - शायद नहीं...
वीर - शायद नहीं का मतलब...
महांती - जब उसने चैलेंज दिया उसी वक़्त... वह अपनी सिस्टम को बंद कर दुसरी गाड़ी से निकल गया है... मैंने अपनी टैब को... हमारे कंट्रोल रूम के... सर्विलांस से जोड़ दिया है... और उन्हें भी नजर रखने के लिए... कह देता हूँ...
वीर - गुड... तो फिर मैं निकालता हूँ... मुझे फोन पर गाइड करते रहना...

इतना कह कर वीर तेजी से भागते हुए अपनी गाड़ी में बैठ जाता है और स्टार्ट कर भुवनेश्वर के तरफ गाड़ी को दौड़ा देता है l वीर महांती को फोन लगाता है l

वीर - महांती... मुझे हर हाल में उसे चेज करना है... मुझे गाईड करो...
महांती - राज कुमार... आप उससे डेढ़ घंटे दूर हैं...
वीर - कोई परवाह नहीं है... तुम बस उस गाड़ी की मूवमेंट पर नजर गड़ाए रखो...
महांती - राजकुमार अगर आप बुरा ना मानें तो...
वीर - हाँ कहो...
महांती - क्यूँ ना युवराज जी से कहें... वह तो भुवनेश्वर में हैं...
वीर - नहीं महांती... आज भैया और भाभी दोनों का खास दिन है... कोई डिस्टर्बेंस नहीं... जो भी होगा मैं सम्भाल लूँगा...
महांती - ठीक है... आप चलाते रहिए...

और कोई बात नहीं होती l वीर गाड़ी चला या दौड़ा नहीं रहा था बल्कि उड़ा रहा था l रात में एनएच पर थोड़ी बहुत ट्रैफिक तो थी पर रास्ता खाली ही था l उधर महांती भी अपनी टैब में शहर की सर्विलांस के जरिए गाड़ी पर नजर जमाए हुए था l वह देखता है एक होटल के पास गाड़ी रुक जाती है, तीन लोग उतरते हैं और उस होटल के अंदर चले जाते हैं l फिर वह गाड़ी वहाँ से चली जाती है l

महांती - राजकुमार... आप इस वक़्त... एक्जक्टली xxx से कितनी दूरी पर होंगे...
वीर - शायद डेढ़ घंटा.... क्या वह लोग वहीँ उतरे हैं...
महांती - नॉट श्योर... कुछ लोग उतरे तो हैं xxx होटल में... मैंने उस होटल के साथ साथ... गाड़ी पर नजर रखने के लिए... कंट्रोल रूम को इंस्ट्रक्ट कर दिया है... होटल पर नजर मैं खुद रखे हुए हूँ...
वीर - क्या उस होटल की सर्विलांस मिल सकता है...
महांती - इस वक़्त तो नहीं... कल मिल सकेगा... उनके हार्ड ड्राइव से...
वीर - ठीक है... मैं होटल पहुँच कर देखता हूँ....

वीर गाड़ी को xxx होटल के तरफ भगा देता है l करीब करीब एक घंटे के बाद वीर उस होटल में पहुँचता है l एक छोटा सा आम सा होटल था l वीर झट से होटल के रिसेप्शन में पहुँचता है l देखता है रिसेप्शन में कोई नहीं था l अपनी नजरें घुमाता है l देखता है कोई सीसीटीवी की व्यवस्था नहीं है l वह चिढ़ कर वहां के रिसेप्शन टेबल पर बेल बजाने लगता है, पर कोई जवाब नहीं मिलता l वह रिसेप्शन से आगे बढ़ कर कमरों की तलाश को निकलने वाला होता है कि रिसेप्शन पर रखे लैंडलाइन फोन बजने लगती है l वीर पहले तो इग्नोर करता है पर कुछ सोच कर फोन उठाता है l

- हा हा हा हा हा हा... क्या राज कुमार पोपट हो गया ना तुम्हारा...
वीर - ओ तुम...
- हाँ मैं... तुम पर मेरा इतना गुस्सा है... की अगर तुझे मार डालूँ तो भी कम है... पर तुझे बार बार हारते हुए देखने में... बड़ा मजा आ रहा है...
वीर - (जबड़े भींच जाती हैं, पर फिर भी वह चुप रहता है)
- तुम्हें छटपटाते हुए देखना... क्या बताऊँ... मेरे दिल को कितना सुकून देता है... बस इसी तरह कुछ दिन तड़पाऊँगा... फिर तुझे इस दुनिया से आजाद कर दूँगा...
वीर - (दांत पिसते हुए) कमीने... एक बार... बस एक बार मेरे हाथ लग जा... तुझे अपने पैदा होने पर... बहुत पछतावा होगा...
- वह दिन... कभी नहीं आएगा... वैसे यह देख कर अच्छा लगा... अब तु चौबीसों घंटे... अनु को अपने लोगों की निगरानी में रखा हुआ है.... पर कोई ना... तु ही एक दिन मेरे लिए मौका बनाएगा... उस दिन... तेरी आँखों के सामने... तेरी अनु को...
वीर - (चिल्लाते हुए) हरामजादे....

चिल्ला कर फोन को उखाड़ कर फर्श पर पटक देता है l तभी उसकी कानों में एक गाड़ी के स्टार्ट होने की आवाज सुनाई देती है l वीर उस गाड़ी की आवाज की तरफ भागने लगता है l आवाज बेसमेंट से आ रही थी l जब बेसमेंट के एंट्रेंस पर पहुँचता है तभी एक कार की हेड लाइट ऑन हो जाती है, वीर की आँखे कुछ पल के लिए चुंधीया जाती हैं l कार तेजी से वीर की तरफ बढ़ रही थी, वीर कुद कर एक किनारे हट जाता है l कार उसे पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ जाती है तो वीर उस गाड़ी के पीछे दौड़ने लगता है l गाड़ी पहले पार्किंग की हुई गाड़ी को ठोक देती है, जिसके वजह से वीर की गाड़ी एक किनारे हो जाती है l वीर अपनी मोबाइल निकाल कर तेजी से फोटो लेते हुए गाड़ी की तरफ भागता है l पर वीर के पहुँचने से पहले ही वह कार जा चुकी थी l वीर की कार साइड से डैमेज हो चुका था l वीर अपनी मोबाइल पर खिंचे हुए फोटों को देखने लगता है l उसे कार की नंबर कुछ साफ नहीं दिखती है l वह खीज कर एक लात अपनी कार पर मारता है l तभी उसका मोबाइल बजने लगता है l स्क्रीन पर महांती डिस्प्ले हो रहा था l

वीर - (बुझे मन से) हाँ महांती... बोलो...
महांती - राजकुमार... आप ठीक तो हैं ना...
वीर - हाँ... (दांत पिसते हुए) कमबख्त... हाथ से निकल गया... (तभी वीर की नजर एक जगह ठहर जाती है) एक मिनट महांती... एक मिनट...

कॉल को होल्ड में रख कर जहां गाड़ी टकराइ थी वहाँ पर वीर को एक मोबाइल मिलता है l वीर महांती से पूछता है

वीर - महांती... एक मोबाइल मिला है... पैटर्न लॉक्ड है... क्या उसके मालिक का पता लगाया जा सकता है...
महांती - जी राजकुमार जी...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


बस में नाइट लैम्प की रौशनी ही थी l लोग अपनी अपनी सीट पर फैल कर सो गए थे l कोई कोई तो खर्राटे भर रहे थे l पर विश्व की आँखों से नींद गायब थी I वह अपनी जेब से वही कार्टून निकाल कर देखने लगता है l और धीरे धीरे अपनी यादों में खोने लगता है

लोग विश्व को अपने कंधे पर बिठा कर लोग झूमते हुए गांव की गालियों में घूमते हुए जयकारा लगाते हुए गुजर रहे हैं l चुनाव में कुल चार प्रत्याशी खड़े हुए थे, पर विश्व की जबर्दस्त जीत हुई थी और बाकी तीनों प्रत्याशियों की ज़मानत जप्त हो गई थी l विश्व की जीत से लोगों में जबरदस्त खुशी छाई हुई थी l लोगों के कंधे पर बैठा विश्व भी बहुत खुश था l पुरे गांव घुमते घुमते लोग विश्व के घर के आगे पहुँचते हैं l घर के बाहर वैदेही और उमाकांत सर खड़े थे l वीर लोगों के कंधे से उतर कर वैदेही के पास जाता है l लोग विश्व की नाम का जयकारा लगा रहे थे l

विश्व - (खुशी के साथ) दीदी... हम जीत गये... हम जीत गये दीदी...

बस इतना ही कह पाया कि वैदेही एक के बाद एक तीन जोरदार थप्पड़ मारती है l विश्व और उसके साथ साथ वहाँ पर मौजूद सभी गाँव वाले हैरान हो जाते हैं l विश्व अपनी गाल को सहलाते हुए आँखे बड़ी बड़ी करते हुए वैदेही को देखता है l

विश्व - दीदी... (वैदेही कुछ नहीं कहती) (उमाकांत से) स... सर... यह दीदी...
उमाकांत - यह थप्पड़... तुम्हारे लिए... कुछ याद रखने के लिए... वैदेही ने मारा है... मैं तो जानता हूँ... पर चाहूँगा... तुम्हारी दीदी यह बात... तुम्हें इन गाँव वालों के सामने कहे...

विश्व के साथ साथ सभी गाँव वाले वैदेही की ओर देखने लगते हैं l

वैदेही - विशु... जब मुग़लों ने... कलिंग साम्राज्य को बर्बाद कर दिया... तब ओड़िशा की अस्मिता हाहाकार करने लगा था... तो उसको बचाने के लिए... खुर्दा से भोई वंश सामने आया... जब राजा रामचंद्र देव का राज तिलक होना था... तब उनके राज गुरु ने उन्हें तीन थप्पड़ मारा था... तीनों थप्पड़ यह एहसास दिलाने के लिए तुम जन प्रतिनिधि हो... उनके निधि पति नहीं हो... बल्कि उनकी निधि रक्षक हो...
पहला धन...
दूसरा इज़्ज़त...
तीसरा जीवन...
कुछ भी हो जाए... तुम इन गांव वालों की धन जीवन और आत्मसम्मान व आत्मगौरव यानी इज़्ज़त की रक्षा करनी होगी... अगर कभी उनकी धन जीवन और गौरव की हानि हुई... तो तुझे उनकी प्रतिकार करना होगा...

 

Jaguaar

Well-Known Member
17,679
60,323
244
👉एक सौ ग्यारहवां अपडेट
-------------------------------

बादाम बाड़ी बस स्टैंड, शाम के सात बज रहे थे l
देवगड़ बस वाया यशपुर के लिए तैयार खड़ी थी l बस निकलने के और एक घंटा समय बाकी था l बस स्टैंड में तापस गाड़ी लगाता है, पिछले सीट पर बैठे प्रतिभा और विश्व उतरते हैं l

प्रतिभा - क्या हुआ खड़ा क्यूँ है...
विश्व - वह माँ... डैड... डिक्की खोलेंगे तो... सामान निकालना है...
प्रतिभा - अरे... कौनसा हिमालय साथ में लेकर जा रहा है...
तापस - (डिक्की खोलते हुए) अरे भाग्य वान... एक बैग ही तो है... क्या इसके लिए... कुली हायर करें...
प्रतिभा - जी नहीं कुली क्यूँ... आप हैं ना...
तापस - क्या...

तापस का रिएक्शन देखने के लिए रुकी भी नहीं, वह विश्व की हाथ को पकड़ कर बस स्टैंड के अंदर चल देती है l तापस पहले तो हक्का बक्का सा हो जाता है पर थोड़ी देर के बाद मुस्करा कर डिक्की से बैग निकाल कर कंधे में डालता है और उन दोनों के पीछे पीछे चल देता है l प्राइवेट बस टिकट काउंटर के पैसेंजर वेटिंग रुम में विश्व, प्रतिभा और तापस तीनों आते हैं l

प्रतिभा - (तापस से) यह गाड़ी निकलेगी कब और... यशपुर कब तक पहुँच जाएगी...
तापस - देखो गाड़ी निकलने में अभी वक़्त है.... मैं तो कभी उस तरफ गया नहीं...
विश्व - माँ... सुबह तड़के पहुँचा देगी...
प्रतिभा - तुझे कैसे पता...
विश्व - बेतुका सवाल.... दीदी आती रहती थी ना....
प्रतिभा - अरे हाँ... मैं तो भूल ही गई थी... चलो ठीक है... अच्छा सुन... मैंने तेरे लिए और तेरे दुम के लिए... खाना टिफिन में दे दिया है...
विश्व - क्क्क्क्या... दुम...
प्रतिभा - हाँ दुम... मुझे पहले से ही अंदाजा था... और कल इत्तेफ़ाक से दिख भी गया... तो मैं समझ गई... वापस तो तुम दोनों मिलकर जाने वाला है...
विश्व - कमीना कमबख्त... सीलु...
प्रतिभा - हाँ... सीलु... वह आया है ना...
विश्व - क्यूँ तुमने उसे देखा था ना...
प्रतिभा - ना तुक्का लगाया...
विश्व - क्या... आ...
प्रतिभा - (हँसते हुए) हा हा हा हा... पकड़ा गया ना...
विश्व - (मुस्कराते हुए) हाँ पकड़ तो लिया...
प्रतिभा - अररे.... (अपनी माथे पर हाथ रखते हुए)
तापस - क्या हुआ भाग्यवान...
विश्व - हाँ माँ... क्या हुआ... कुछ भुल गई...
प्रतिभा - हाँ भुल गई...
तापस और विश्व - क्या...
प्रतिभा - पानी की बोतल...
विश्व - ओह पानी की बोतल... कोई नहीं... गाड़ी चढ़ने से पहले खरीद लूँगा...
प्रतिभा - क्यूँ... तु क्यूँ खरीदेगा... तेरे डैड नहीं हैं क्या... (तापस से) सुनिए जी...
तापस - समझ गया भाग्यवान.... समझ गया...
प्रतिभा - अगर समझ गए... तो जाइए... दो लीटर वाला पानी की बोतल लेकर आइए...

तापस एक गहरी सांस छोड़ते हुए वेटिंग रुम से बाहर चला जाता है l उसके बाहर जाते ही प्रतिभा अपनी वैनिटी बैग से नोटों की एक छोटी सी गड्डी निकालती है और विश्व के हाथों में थमा देती है l

विश्व - यह... यह क्या कर रही हो माँ...
प्रतिभा - यह ले... रख ले... गांव में खर्च करना...
विश्व - माँ...
प्रतिभा - जानती हूँ... तेरे एकाउंट में पैसे हैं... पर यह तेरे लिए... मेरी तरफ से... जेब खर्च के लिए...
विश्व - इतना सारा पैसा दे रही हो... और जेब खर्च बोल रही हो...
प्रतिभा - इतना सारा कहाँ है... दस हजार ही तो हैं...
विश्व - माँ... मैं अगले हफ्ते दस दिन में वापस आने वाला हूँ... फिर जब वापस जाऊँगा... क्या तुम तब भी ऐसे देती रहोगी...
प्रतिभा - हाँ जरूर देती... अगर मैं अंबानी या टाटा की रिश्तेदार होती... अब चूँकि... मैं एक रिटायर्ड सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस की धर्म पत्नी हूँ... इसलिए सिर्फ दस हजार ही दे रही हूँ.... और हाँ सेनापति जी को बताना मत...
विश्व - (मुस्करा कर प्रतिभा के गले लगते हुए) ठीक है माँ...

विश्व अपनी जेब में पैसे रख लेता है l थोड़ी देर बाद तापस पानी की बोतल लेकर आता है और विश्व को देता है l

तापस - भाग्यवान... थोड़ी देर के लिए... सामान के पास बैठी रहना... (विश्व के कंधे पर हाथ रखकर) लाट साहब को... किसीसे मिलवाना है...
प्रतिभा - क्या... मैं क्यूँ रहूँ...
तापस - प्लीज...

तापस जिस गंभीरता से प्लीज कहा था, प्रतिभा उसकी बात ना काट सकी, अपनी सिर हिला कर सम्मति देती है l तापस विश्व को इशारा करता है और वहाँ से चला जाता है l विश्व तापस के पीछे पीछे चला जाता है l वेटिंग हॉल में प्रतिभा अकेली रह जाती है l बाहर दोनों बस स्टैंड के एक कोने पर आते हैं l

विश्व - क्या बात है डैड....
तास - (अपने गिरेबान के अंदर से काग़ज़ का एक बंडल निकाल कर विश्व के हाथ में देते हुए) यह EC है... ऐकुंबरेंस सर्टिफिकेट... तुम्हारे घर के... प्रॉपर्टी टैक्स भी भरवा दिया है...
विश्व - ओ...
तापस - हाँ... लड़ाई शायद यहीं से शुरु होगी... (विश्व चुप रहता है) बाकी... तुम भी जानते हो... जैसा तुमने कहा था... मैंने वैसा ही किया था... उम्मीद है... लड़ाई का दिशा और दशा... बिल्कुल वैसा ही हो... जैसा तुम चाहते हो...
विश्व - डैड... (एक पॉज लेता है) यह आप माँ के सामने भी दे सकते थे... आप यहाँ ला कर... क्या बात है डैड....

तापस अपने जेब से दस हजार रुपये की एक गड्डी निकाल कर विश्व को देता है l

विश्व - (हैरान हो कर) डैड...
तापस - चुप...
विश्व - डैड... मैं कौनसा हमेशा के लिए जा रहा हूँ... हर हफ्ते दस दिन में आता रहूँगा ना...
तापस - जानता हूँ... पर... (एक पॉज लेकर) रख ले यार... तेरी माँ की तरह... मैं अपना प्यार दिखा नहीं पाता...
विश्व - डैड....

कह कर विश्व तापस के गले लग जाता है l तापस थोड़ा भावुक हो जाता है l

तापस - (भर्राइ आवाज में) देख... तु अगर मुझे ऐसे रुला देगा.. तो तेरी माँ को संभालना... मेरे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा...

विश्व तापस से अलग होता है l तापस अपनी आँखे पोंछ कर खुद को नॉर्मल करता है l

तापस - एक काम करो... तुम्हारे उस दुम को बुलाओ... तुम्हारी माँ के पास... वह सिचुएशन को हल्का करेगा...

विश्व मुस्कराते हुए मोबाइल निकाल कर सीलु को कॉल लगाता है l उधर वेटिंग हॉल में बैग के पास बैठे बैठे प्रतिभा का पारा धीरे धीरे चढ़ रहा था l वह अपनी घड़ी देखती है पुरे पंद्रह मिनट हो चुके थे l वह चिढ़ कर खड़ी हो जाती है के तभी उसके पैरों पर सीलु आके गिरता है l

सीलु - माँ... माँ... मेरी माँ... एक तुम ही हो... जो मेरे भुख की बारे में सोच सकती हो... माँ...

प्रतिभा पहले तो हैरान हो जाती है और फिर मुस्करा कर सीलु की कान खिंचते हुए उठाती है l

सीलु - आह... आह... उह... माँ दुखता है...
प्रतिभा - पहले यह बता... कितने दिनों से है यहाँ पर...
सीलु - आह बताता हूँ माँ.. बताता हूँ... पहले कान तो छोड़ो...
प्रतिभा - ले छोड़ दिया... अब बोल...
सीलु - अब माँ... तुम माँ हो... तुमसे क्या छुपाना... भाई की जुदाई सही ना जा रही थी... इसलिए चला आया... ताकि भाई के साथ मिलकर ही वापस जाना हो...
प्रतिभा - घर क्यूँ नहीं आया...
सीलु - कसम से भाई से भी छुपा हुआ था... वह तो कुछ दिन पहले भाई ने पकड़ लिया.... और अब... आपने...
प्रतिभा - सच बोल रहा है... खा मेरी कसम...
तापस - क्या भाग्यवान... इस बात पर कसम... ठीक है... अगली बार जब आएगा... जी भर के सजा दे देना... अब तो इन्हें आजादी के साथ जाने दो...
प्रतिभा - ठीक है... (सीलु से) अब उठो...

सीलु नीचे से उठता है l प्रतिभा उसकी शकल देख कर हँस देती है l माहौल थोड़ा मजाकिया हो जाता है l फिर विश्व और सीलु को सेनापति दंपति बस के पास छोड़ने आते हैं l विश्व की बैग को लेकर पहले सीलु बस के अंदर चला जाता है l विश्व बस चढ़ने को होता है कि वह रुक जाता है, मुड़ कर तापस और प्रतिभा को देखता है l अब तक जो खुशी खुशी विदा कर रहे थे उन दोनों का चेहरा उतरा हुआ था l विश्व भाग कर प्रतिभा और तापस दोनों के गले से लग जाता है l दोनों भी विश्व को जोर से गले लगा लेते हैं l बस की हॉर्न बजते ही तापस विश्व से अलग होता है और प्रतिभा से अलग करता है l विश्व कुछ कहने को होता है कि तापस उसे रोक देता है l

तापस - (विश्व से) कुछ मत कहो... तुम वापस आ कर गले से लग गए... तो हमें यह यकीन हो गया... तुम आओगे... जीत कर ही आओगे... तुम अपना... अपनी दीदी का... दोस्तों का और गाँव वालों का खयाल रखना... मैं तुम्हारी माँ और मेरा खयाल रखूँगा... अब जाओ...

विश्व बस के दरवाजे पर ही खड़ा रहता है और बस धीरे धीरे से बस स्टैंड छोड़ कर आगे बढ़ जाता है l पीछे सेनापति दंपति रह जाते हैं l दोनों के पाँव जैसे जम गए थे l दोनों बड़ी मुस्किल के साथ अपनी गाड़ी तक का सफर तय किया l तापस गाड़ी की दरवाजा खोल कर प्रतिभा को बिठा देता है और खुद गाड़ी में बैठ कर ड्राइव करते हुए घर की ओर चल देता है l प्रतिभा की उतरी हुई चेहरे को देख कर

तापस - जानती हो जान... प्रताप पीछे मुड़ कर हमें देखा ही नहीं... बल्कि वापस आ कर हमारे गले भी लग गया... मतलब समझती हो.... (प्रतिभा कोई जवाब नहीं देती, पर तापस कहना जारी रखता है) इसका मतलब हुआ... कोई उसके इंतजार में हैं... जिनके लिए... वह हर हाल में वापस आएगा... और वह कौनसा हमेशा के लिए जा रहा है... देखना हफ्ते दस दिन बाद हमारे पास होगा... हमारे साथ होगा...
प्रतिभा - हूँ...
तापस - क्या हूँ...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - (चुप रहता है)
प्रतिभा - थोड़ा दर्द हो रहा है... पहली बार अपनी आँखों से दूर भेज रही हूँ...
तापस - पर तुम तो कह रही थी... प्रताप के जाने से... तुम्हें कोई फर्क़ नहीं पड़ेगा... क्यूंकि तुम्हारे पास साथ देने तुम्हारी बहु होगी...
प्रतिभा - (चिहुँक कर) वह मुई भी अभी राजगड़ मैं है...
तापस - क्या... (हैरानी की भाव में)

प्रतिभा गुस्से से तापस की ओर देखती है I तापस अपना चेहरा घुमा लेता है और बात बदलने के लिए

तापस - वैसे जान... प्रताप का बार लाइसेंस आने में... अभी वक़्त है... मान लो राजगड़ में कुछ कानूनी लफड़ा हुआ तो... वह कैसे डील करेगा...
प्रतिभा - मैंने अपनी लाइसेंस को... मड़गेज कर उसके लिए एक प्रोविजनल लाइसेंस नंबर हासिल कर लिया है... और उसे दे भी दिया है...
तापस - क्या... यह तुमने कब किया...
प्रतिभा - जब से वह छूट कर बाहर निकला था...
तापस - और यह तुम... मुझे अब बता रही हो... और उसने भी देखो मुझे अभी तक बताया नहीं... तुम माँ बेटे... मेरी नॉलेज के बाहर हमेशा कुछ न कुछ खिचड़ी पकाते रहते हो... और अंत में मुझे बेवक़ूफ़ बनाते हो...

तापस की इस शिकायत पर प्रतिभा हँस देती है l उसके हँसते ही तापस भी एक चैन की हँसी हँस देता है

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

श्री जगन्नाथ धर्मशाला पुरी मंदिर से कुछ ही दूर I वीर ने दो कमरे लिए थे I ओबराय होटल में कमरा लेना चाहा था पर दादी ने मना किया l क्यूँकी दादी को इतनी लक्जरी की आदत नहीं थी l इसलिए दादी की मन और बात को रखते हुए उसने श्री मंदिर की प्रशासन के आधीन वाली धर्मशाला में दो कमरे लिया था I मंदिर से महा प्रसाद मंगवा कर रात्री भोज तीनों खतम कर चुके थे l पानी लाने के बहाने वीर बाहर पानी की बोतल ला कर दादी और अनु को दिया था I उन्हें उनके कमरे में छोड़ कर अपने कमरे में बैठ कर बार बार घड़ी देख रहा था l वीर अपने फिट कपड़ों में तैयार बैठा हुआ था l रात के दस बजे वीर की फोन बजने लगती है l वीर मोबाइल की स्क्रीन पर देखता है महांती का नाम डिस्प्ले पर दिखा I झट से फोन उठाता है

वीर - हाँ महांती...
महांती - आप... xxx गेस्ट हाउस में आ जाइए...
वीर - ठीक है... पंद्रह मिनट में आ रहा हूँ... यहाँ का इंतजाम...
महांती - हो गया है... आप निकालिये...
वीर - ठीक है...

कह कर फोन काट देता है l अपने कमरे से निकल कर वीर अनु और दादी के कमरे के बाहर खड़ा होता है l दरवाजे पर हल्का सा धक्का देता है l दरवाजा खुल जाता है l अंदर पहुँच कर देखता है दोनों पानी की बोतल लगभग खाली था l मतलब दादी और अनु पानी पी चुके थे और अपने अपने बिस्तर पर बेसुध लेटे हुए थे l वीर पानी की बोतल उठा कर वॉश बेसिन में उड़ेल देता है और खाली बोतल वहीँ पर रख देता है l धीरे धीरे अनु की तरफ बढ़ता है और अनु के सिरहाने बैठ जाता है l बड़े प्यार से अनु की चेहरे को निहारने लगता है l

वीर - माफ करना अनु... पानी में नींद की दवा मिलाया था... हमारे कुछ दुश्मन हैं... जिन्हें हमारा मिलना मंजुर नहीं है... उन्हें सबक सिखाना जरूरी है... (झुक कर अनु की माथे पर एक चुम्मा लेता है) कल सुबह तक आ जाऊँगा... तब तक... सपनों की दुनिया में खो जाओ...

वीर अनु के सिरहाने से उठता है और दादी के पैर के पास बैठ जाता है l दोनों हाथों से दादी का पैर पकड़ लेता है

वीर - दादी... माफ कर देना... मेरे वजह से आप पर या अनु पर कोई खतरा नहीं आना चाहिए... कल सुबह तक सब ठीक कर दूँगा...

इतना कह कर कमरे से बाहर निकालता है और बाहर से दरवाजा बंद कर वहाँ से निकल कर धर्मशाला से बाहर आता है l गाड़ी में बैठ कर गाड़ी दौड़ा देता है l दस मिनट के ड्राइविंग के बाद वह xxxx गेस्ट हाउस के बाहर पहुँचता है l बाहर गाड़ी छोड़ कर गेस्ट हाउस के अंदर जाता है l अंदर महांती और उसके कुछ खास आदमी चार लोगों को नंगा कर एक टेबल पर अध लेटे अवस्था में आमने सामने बांधे रखे हुए हैं l वीर एक चेयर के सहारे टेबल पर खड़ा हो जाता है l उन चारों के हथेली पर बारी बारी चढ़ कर टेबल पर घूमने लगता है l वे चारों दर्द के मारे चिल्लाने लगते हैं l थोड़ी देर बाद वीर टेबल से उतर कर एक चेयर पर बैठ जाता है l

वीर - (उन चार लोगों से) हाँ तो हरामजादों... अब बोलना शुरु करो...
एक - (दर्द के मारे कराहते हुए) आह.. हमने कुछ नहीं किया राज कुमार... आह...
वीर - हाँ... मैं मान लिया... तुमने कुछ नहीं किया... अब तुम लोग भी मान जाओ... मैं तुम लोगों के साथ... बहुत बुरा करने वाला हूँ...
दुसरा - नहीं नहीं... राज कुमार जी... हमें माफ कर दीजिए... प्लीज...
वीर - (महांती से) महांती... इन हरामजादों के पैरों पर छोटे छोटे ज़ख़्म करो... फिर कुछ चूहों को इनके पैरों पर छोड़ दो... जब वह चूहे इनके पैरों को कुतरने लगेंगे... इन्हें सब याद आ जाएगा... और बिल्कुल तोते की तरह बोलना शुरु कर देंगे...
चारों - नहीं.. नहीं... राजकुमार जी हमें... माफ कर दीजिए... प्लीज... आपको गलत फहमी हुआ है...
वीर - (आवाज़ में कड़क पन आ जाती है) महांती... यह लंड खोर... बड़े फर्माबरदार लगते हैं... अब इनके पैरों पर ज़ख्म मत दो... इनके टट्टों के इर्द-गिर्द ज़ख्म बनाओ... चूहे पहले इनके टट्टों से कुतरता शुरु करेंगे...
एक - नहीं... नहीं राज कुमार जी... नहीं... ऐसा कुछ भी मत कीजिए... मैं... मैं बता दूँगा... प्लीज...
वीर - ठीक है... तुझसे जो भी जानकारी मिलेगी... वह एक एक से उगलवा कर मैच करूंगा... कुछ भी छुटा... या झूठ बोला... तो सबसे पहले... तेरे टट्टों को चूहों का निवाला बनाऊँगा...

वीर इशारा करता है l महांती के आदमी उस बंदे को खोल देते हैं और बगल के कमरे में ले जा कर एक चेयर पर नंगा ही बिठा कर हाथ पैर बांध देते हैं l वीर उसके सामने पड़े एक चेयर पर बैठ जाता है

वीर - चल मादरचोद... अब बकना शुरु कर...
एक - हम कलकत्ते के एक डिटेक्टिव एजेंसि से ताल्लुक रखते हैं... हमें कुछ दिन पहले एक असाइनमेंट मिला था... आपके... और उस लड़की पर नजर रखने के लिए...
वीर - ह्म्म्म्म आगे बोल...
एक - बस इतना ही... आपकी और उस लड़की की पल पल की जानकारी हम... उन तक पहुँचाते थे...
वीर - भोषड़ी के.. इतना तो मैं भी जानता हूँ... वह बता... जिससे मैं अनजान हूँ...
एक - बस... हमारे पास एक फोन नंबर है... हमें हर इंफॉर्मेशन पर... अकाउंट में पेमेंट अपडेट हो जाता था.... सच कहता हूँ राजकुमार जी... वह कौन है... कहाँ है... हम कुछ नहीं जानते... हमें पैसा मिलता रहा... और फोन पर जैसे जैसे इंस्ट्रक्शन मिलता रहा... हम बिलकुल वैसे ही करते रहे...
वीर - ह्म्म्म्म... मुझे यकीन नहीं हो रहा है...
एक - (रोते हुए) मैं सच कह रहा हूँ... राजकुमार जी... मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा है...
वीर - ह्म्म्म्म... किस तरह से... इंफॉर्मेशन पहुँचाता था...
एक - जी फोन पर...
महांती - राजकुमार जी... (अंदर आ कर) वह एक वर्चुअल नंबर है... कम्प्यूटर जेनरेटेड..
वीर - इसका मतलब यह ठीक कह रहा है...
महांती - हाँ...
वीर - तो हम अपने दुश्मन तक पहुँचेंगे कैसे...
महांती - बस तीस सेकेंड में...

इतना कह कर महांती इशारा करता है l कुछ आदमी उस बंधे हुए बंदे का दोनों हाथ खोल देते हैं l महांती उसे एक मोबाइल देते हुए

महांती - यह ले... यह तेरा ही मोबाइल है... पर हमारे सिस्टम के ट्रैकिंग में है... लगा उस नंबर पर फोन.. और हाँ तीस सेकंड तक फोन पर बातें रुकनी नहीं चाहिए...

वह आदमी फोन लेता है और एक नंबर पर डायल करता है l जैसे ही रिंग होती है महांती अपने टैब पर देखने लगता है l थोड़ी देर बाद उधर से कॉल कोई उठाता है

- यस
एक - मैं... एक्स बोल रहा हूँ...
- हाँ एक्स क्या खबर है...
एक - वह लड़का.. और उस लड़की का परिवार... उसी धर्मशाला में हैं... कोई मूवमेंट नहीं दिख रहा है...
- ह्म्म्म्म... और कुछ...
एक - लगता है... कहीं उन्हें हम पर शक तो हो गया है...
- क्यूँ... ऐसा क्यूँ लग रहा है...
एक - क्यूंकि धर्मशाला के बाहर... उनके ESS से कुछ लोग पहरे पर लगे हुए हैं...
- और तुम लोग... तुम लोग क्या कर रहे हो...
एक - हम लोग अपनी अपनी पोजिशन पर छुपे हुए हैं...
- भोषड़ी के... मादरचोद... पकड़े गए हो... और मेरी चुटिया काट रहे हो...
एक - (हकलाने लगता है) यह.. यह आप क्या कह रहे हैं...
- अबे भोषड़ी के... जब पिछवाड़े नहीं था गुदा... तो बीच में काहे कुदा... क्यूँ बे वीर सिंह... तुझे तीस सेकंड चाहिए था ना... ले मैंने तुझे चालीस सेकेंड दे दिए... जो उखाड़ना है... उखाड़ ले...

फोन कट जाता है l वीर और महांती दोनों हैरान हो कर एक दुसरे को देखने लगते हैं l महांती फिर भी कॉल को ट्रेस करने कोशिश करने लगता है l फिर थोड़ी देर बाद महांती की जबड़े भींच जाती हैं l वीर उसे सवालिया नजरों से देखता है l महांती उसे टैब दे देता है l वीर उस पर फ्लैश हो रहे लोकेशन को देखने लगता है l


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


बस रात की डिनर के लिए रास्ते पर एक ढाबा पर रुका हुआ था l सारे पैसेंजर उतर कर ढाबे में खाना खाने जा चुके थे l विश्व और सीलु भी ढाबे के बाहर लगे एक टेबल पर बैठे हुए थे l प्रतिभा के दिए पराठे काग़ज़ में लिपटी एलुमिनीयम फएल से निकाल कर खा रहे थे l खाते खाते सीलु की नजर उस काग़ज़ पर पड़ती है l

सीलु - भाई इस कार्टून को देखा...

विश्व उस काग़ज़ पर छपे कार्टून को देखने लगता है l एक आदमी अपने कंधे पर सहारा देते हुए दुसरे आदमी को एक पेड़ पर चढ़ा रहा है और अपने दोनों हाथों से एक कुल्हाड़ी से उसी पेड़ को काट रहा है l पेड़ की पोजिशन कुछ ऐसी है कि कटने के बाद एक मगरमच्छों से भरी तालाब में गिरेगी l वह तस्वीर देखते ही विश्व अपनी अतीत में खो जाता है

फ्लैशबैक

विश्व अपना काम खतम कर महल से निकल रहा था कि उसे पीछे से कल्लू की आवाज सुनाई देता है l

कल्लू - ऑए विश्वा... (विश्व पीछे मुड़ कर देखता है) तुझे राजा साहब ने... दिवाने आम में याद कर रहे हैं...

विश्व इतना सुनते ही भागने लगता है l दिवाने आम में भैरव सिंह एक ऊंची जगह पर बैठ कर नीचे बैठी अपनी पुरी टीम के साथ गुफ़्तगू कर रहा था l विश्व उनके पीछे सिर झुकाए खड़ा हो जाता है l

भैरव सिंह - आओ विश्व... अभी तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था...
विश्व - जी हुकुम...
भैरव सिंह - इनसे मिलो... यह चुनाव अधिकारी हैं... अभी अभी... हमारे पंचायत की डेमोग्रैफीकल जौग्राफी बदला है... तुम्हें जानकर बहुत अच्छा लगेगा... इस बार पंचायत के चुनाव में... पाइक पड़ा सामिल हुआ है...
विश्व - जी हुकुम...
भैरव सिंह - अपने राजगड़ को छोड़ कर... तुम कितने पंचायत को जानते हो...
विश्व - जी ज्यादा नहीं... पर जानता हूँ... कुछ एक को...
भैरव सिंह - और...
विश्व - और... क्या राजा साहब...
भैरव सिंह - वह सारे पंचायत... हमारे पंचायत से थोड़े आगे हैं... हैं ना...
विश्व - मालुम नहीं राजा साहब...
भैरव सिंह - यह... दिलीप कुमार कर... सरपंच बनना चाहता था... पर मैंने उसे बताया... नया दौर है... नये जोश से भरा खुन की आवश्यकता है... इसलिए इसबार की सरपंच चुनाव के लिए... हमने तुम्हारा नाम सुझाया है...
विश्व - जी... (बहुर जोर से चौंकता है) जी... म.. मैं...
भैरव सिंह - हाँ विश्व... हमने खबर ली है... तुम अभी अभी इक्कीस वर्ष के हुए हो... मतलब तुम चुनाव के लिए उपयुक्त हो... इस बार की चुनाव में... तुम ही पुरे देश में सबसे कम उम्र के सरपंच बनोगे...
विश्व - (कुछ कह नहीं पाता)
दिलीप - मुबारक हो विश्व... सरपंच बनने की बधाई...
विश्व - (फिर भी चुप रहता है)
बल्लभ - क्या बात है विश्व... तुम खुश नहीं हुए...
विश्व - राजा साहब... मैं कुछ निर्णय नहीं ले पा रहा हूँ...
भैरव सिंह - निर्णय हमने लिया है विश्व.... तुम्हें बस उस निर्णय पर चलना है...
विश्व - माफ कीजिए राजा साहब... मुझे कोई अभिज्ञता नहीं है... पर मुझे लगता है... कर बाबु पुरी तरह से योग्य हैं...
दिलीप - लो कर लो बात... अरे मुर्ख... मैं तो पेड़ के साख पर उस सूखे पत्ते की तरह हूँ... जो कभी भी झड़ सकता है... अब समय और संसार तुम्हारा है... इसलिए जैसा राजा साहब ने कहा... वैसा ही करो...
बल्लभ - हाँ विश्व... जरा सोचो... राजा साहब ने अगर सोचा है... कुछ ठीक ही सोचा होगा...
विश्व - जी आप दुरुस्त कह रहे हैं... पर मैं... खुद को तैयार नहीं कर पा रहा हूँ... समझा नहीं पा रहा हूँ...
भैरव सिंह - (गंभीर आवाज़ में) इसका मतलब... तुम हमारे निर्णय के विरुद्ध जाओगे..
विश्व - ऐसा ना कहिए राजा साहब... ऐसी मेरी हिम्मत कहाँ... आपकी सेवा में... मुझसे भी योग्य लोग होंगे... आप उन्हें नियुक्त कीजिए... बस मुझे क्षमा कीजिए...
दिलीप - रे मूर्ख... रे धूर्त... तु राजा साहब के हुकुम की... नाफरमानी कर रहा है.... राजगड़ के भगवान की....

विश्व जवाब में कुछ नहीं कहता l सिर झुकाए चुप खड़ा रहता है l

भैरव सिंह - ठीक है विश्व.. तुम घर जाओ...
विश्व - जी राजा साहब...

अपना सिर झुकाए भैरव सिंह को बिना पीठ किए उल्टे पैर दिवाने आम से बाहर निकल जाता है l उसके जाते ही

बल्लभ - कमाल है... पहली बार ऐसा हुआ... राजा साहब की हुकुम... अदब के साथ किसी ने ठुकरा दिया है...
भैरव सिंह - हर जोड़ की एक तोड़ होता है... हर तोड़ की एक मोड़ होता है... और हर मोड़ की एक मरोड़ होता है... इसकी भी तोड़ है... और यह टुटेगा...
दिलीप - ऐसा कौन है राजा साहब...

उधर भैरव सिंह को मना करने के बाद विश्व अंदर ही अंदर बहुत खुश था l वह भागते हुए अपने घर जा रहा था l पर उसे लग रहा था जैसे वह उड़ रहा है l विश्व भागते भागते घर पर पहुँचता है I घर पर वैदेही खाना बना रही थी l

विश्व - (खुशी के मारे) दीदी...
वैदेही - क्या बात है... आज मेरा भाई बहुत खुश लग रहा है... क्या हो गया है तुझे आज...
विश्व - ओ दीदी... (झूमते हुए) दीदी.. दीदी... क्या कहूँ तुमसे... पहली बार...(बहुत ही खुशी के साथ) हाँ दीदी पहली बार... मैंने राजा के मुहँ पर ना कहा है...
वैदेही - क्या... ऐसा क्या हुआ..

विश्व वैदेही से दिवाने खास में हुए सारी बातें बताता है l सारी बातेँ सुनने के बाद वैदेही भी विश्व की तारीफ करती है l

वैदेही - (एक गर्व और गंभीर आवाज में) शाबाश मेरे भाई शाबाश... वाकई... मैं आज बहुत खुश हूँ... हाँ पहली बार... किसीने राजा साहब के मुहँ पर ना को दे मारा है... तुझे तो उसका शकल भी देखना चाहिए था...
विश्व - (खुशी और झिझक की मिली जुली भाव से) चाहता तो मैं भी यही था दीदी... पर मेरी हिम्मत नहीं हुई... बहुत कोशिश की उसके चेहरे पर भाव देखने की... पर मैं अपना सिर उठा नहीं पाया....
वैदेही - कोई ना... मेरे भाई कोई ना... आज तुने उसे ना सुना दिया है... एक दिन उसका बुझा हुआ... झुका हुआ चेहरा भी देखेगा... सिर्फ तु ही नहीं.. इस गांव का हर एक बच्चा बच्चा देखेगा...

भाई बहन की यह वार्तालाप चल रही थी के तभी खाने के जलने की बु आने लगती है l

वैदेही - (चिल्लाते हुए) आह... देख खाना जल गया...
विश्व - ओह माफ करना दीदी...

तभी बाहर दरवाजे पर दस्तक होती है l दोनों भाई बहन का ध्यान उस तरफ जाता है l दरवाजे पर उमाकांत सर खड़े हुए थे l

विश्व - ओह सर आप... आइए सर आइए...

उमाकांत अंदर आता है l वैदेही दौड़ कर अंदर जा कर एक कुर्सी ले आती है l विश्व भी अपनी खुशी को छुपाये वगैर उमाकांत से कहता है

विश्व - सर... आज मैं बहुत खुश हूँ...
उमाकांत - जानता हूँ... (विश्व और वैदेही दोनों हैरान हो कर उमाकांत को देखने लगते हैं) यही ना आज तुमने... राजा साहब को... सरपंच बनने से इंकार कर दिया...

विश्व और वैदेही और भी हैरान रह जाते हैं l उन्हें समझ में नहीं आता कुछ ही घंटों पहले की बातेँ उमाकांत सर को कैसे मालुम हुआ I उमाकांत उनके मन में पैदा हुए शंका को दूर करते हुए

उमाकांत - कुछ देर पहले मेरे घर पर... खुद राजा साहब और दिलीप आए थे... उन्होंने ही मुझे बताया सारी बातेँ...
वैदेही - सर यह बात हमने आपको बताई होती... तो बात समझ में आती... पर यह बात आप तक... जिनके जरिए पहुँची.. वह हैरान करने वाली विषय है...
उमाकांत - हाँ... है तो...
वैदेही - कहीं ऐसा तो नहीं... के उन्होंने आपकी आड़ लेकर... विश्व को राजी कराना चाहते हैं...
उमाकांत - बिल्कुल... सही सोचा है तुमने... मैं यहाँ विश्व को मनाने के लिए ही आया हूँ... पर कोई बाध्य नहीं करूँगा... निर्णय पूर्ण रुप से तुम्हारा होगा...
वैदेही - अगर आपको उन्होंने भेजा है... तो विशु का सरपंच बनना उनके लिए बहुत आवश्यक है... पर उनकी आवश्यकता के लिए विशु ही क्यूँ..
उमाकांत - बेटी... यहाँ हम जिस समाज में जी रहे हैं... दो तरह के भागों में बंटे हुए हैं... एक शोषक... दुसरा शोषित... शोषक इसलिए शोषण कर पाता है... क्यूंकि उसके पास व्यवस्था की हर प्रकार की शक्ति है... शोषित इसलिए शोषण का शिकार हो रहा है... क्यूंकि शक्ति संतुलन में उसके पास... उसका कोई हिस्सा नहीं है... क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ...
वैदेही - (कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद) नहीं... आप सही कह रहे हैं...
उमाकांत - तो जब शक्ति संतुलन में... एक हिस्सा हमारे द्वार पर आ रही है... हम उसकी अनदेखी क्यूँ करें...
विश्व - सर कुछ भी हो... हम बचपन से देख ही रहे हैं... सारी व्यवस्था को... राजा के आगे घुटने टेकते हुए... सिर्फ़ राजगड़ के ही नहीं... यहाँ के आस पास जितने भी पंचायत हैं... सभी सरपंचों को... राजा के आगे... जी हजुरी करते हुए... गुलामी करते हुए...
उमाकांत - गुलामी तो हम अब भी कर रहे हैं... (विश्व और वैदेही चुप रहते हैं) बर्षों से लोगों का आक्रोश... बीज बन कर दबी हुई है... उसके उस अकर्मण्यता की जमीन को चिर कर उजाले की ओर राह दिखाने वाला कोई तो चाहिए... उस बीज को महा वृक्ष बनने के लिए.. कोई तो मार्ग चाहिए... या तो आरंभ... तुम खुद से करो... या फिर... प्रतीक्षा करो... कोई आएगा... इस अभिशापित जीवन से सबको बचाएगा....

कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है l ना वैदेही ना विश्व किसीके मुहँ से कोई बोल नहीं फूटती है l

विश्व - राजा साहब... मुझे सरपंच बना कर... मुझ पर अपना एहसान लादेगा... अपनी मन माफिक काम मुझसे करवाएगा...
उमाकांत - हाँ ऐसा हो सकता है... अगर तुम बिना प्रतिद्वंदीता के चुनाव लड़ोगे... अगर प्रतिद्वंदिता हो... तो...
विश्व - जिसके पीछे राजा साहब हो... उसके खिलाफ कौन लड़ेगा...
उमाकांत - लड़ना अलग बात है... जितना तुम्हारा जरूरी है... तुम्हारी जीत... हर एक घर की जीत होगी... यहाँ के हर एक आँगन की जीत होगी... यह एहसास... तुम्हें लोगों का साथ देगा... विश्वास देगा... उनका साथ... उनका विश्वास तुम्हें ताकत देगा...
विश्व - वह तो ठीक है... पर राजा साहब का... चुनाव में दखल से... लोगों का मनोबल पर क्या असर पड़ेगा... मुझे लोग अपने में गिनेंगे...
उमाकांत - इसीलिए... मैंने राजा साहब से चुनाव में दखल ना देने के लिए... वचन लिया है... और तुम चुनाव बगैर प्रतिद्वंदीता के नहीं लड़ोगे...
वैदेही - तो क्या राजा... मान गया...
उमाकांत - हाँ... पर उसकी भी एक शर्त है...
विश्व और वैदेही - क्या.... कैसी शर्त...
उमाकांत - यही... की विशु की प्रार्थी नामांकन पत्र में... प्रस्तावक में हस्ताक्षर उनका रहेगा... और समर्थन में मेरा नाम होगा...
वैदेही - क्या यह... कोई साजिश हो सकता है...
उमाकांत - हाँ शायद... हो सकता है... पर बाजी तो हमें भी खेलना होगा... शुरुआत कहीं से तो हो... क्या कहते हो विशु...
विश्व - (कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद) ठीक है... यह तो नहीं जानता यह साजिश है... या सहायता... पर अगर लोगों में जागृती लाने के लिए यही एक विकल्प है... तो यही सही...

गाड़ी की हॉर्न सुन कर विश्व अपनी यादों से बाहर आता है l सीलु अपना हाथ धो कर आ चुका था l दोनों मिलकर अपनी अपनी सीट पर बैठ जाते हैं l सभी पैसेंजर बस चढ़ने के बाद बस आगे बढ़ जाती है l


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

वीर और महांती एक दुसरे को देखते हैं फिर दोनों उस बंदे को वहीँ छोड़ कर गेस्ट हाउस के दुसरे तरफ एक कमरे में आते हैं l

वीर - महांती... यह क्या है...
महांती - राजकुमार.. मुझे थोड़ा टेबलेट दीजिए...

वीर टैब को महांती के हवाले कर देता है l टैब पर एक दुसरे एप्लीकेशन में कुछ देखने के बाद महांती की आँखे फैल जाती है l

वीर - क्या बात है महांती... हम कहाँ चूक गए... हमें तीस सेकेंड चाइये थे... उसने चालीस सेकेंड दिए... कितनी बेपरवाह से चैलेंज दिया... जो उखाड़ना है उखाड़ लो... टेबलेट में लोकेशन हमारी ESS की ऑफिस दिखा रहा है...
महांती - एक चूक.... नहीं चूक नहीं कह सकते... एक बड़ी गलती हो गई थी... जिसका उस छुपे हुए दुश्मन ने बखूबी फायदा उठाया है...
वीर - क्या... कैसी गलती... हमारे ऑफिस से कुछ दूर मैन रोड के बाई सेक्टर पर... ट्रैफ़िक डिपार्टमेंट ने एक्सीडेंट अवेरनेस के लिए... एक टूटी हुई सैंट्रो कार रखा था... यह लोग उसीके अंदर वाइफाइ राउटर के जरिए... छोटा कंट्रोल रूम बनाया है... और हम पर वहीँ से नजर रखे हुए थे...
वीर - तो... अब तक वह लोग वहाँ से भाग चुके होंगे... हमारे सिक्युरिटी स्टाफ उस गाड़ी को घेर लें... तब भी कोई फायदा नहीं होगा... मतलब दुश्मन हमारे नाक के नीचे था... अब निकल गया है...
महांती - शायद नहीं...
वीर - शायद नहीं का मतलब...
महांती - जब उसने चैलेंज दिया उसी वक़्त... वह अपनी सिस्टम को बंद कर दुसरी गाड़ी से निकल गया है... मैंने अपनी टैब को... हमारे कंट्रोल रूम के... सर्विलांस से जोड़ दिया है... और उन्हें भी नजर रखने के लिए... कह देता हूँ...
वीर - गुड... तो फिर मैं निकालता हूँ... मुझे फोन पर गाइड करते रहना...

इतना कह कर वीर तेजी से भागते हुए अपनी गाड़ी में बैठ जाता है और स्टार्ट कर भुवनेश्वर के तरफ गाड़ी को दौड़ा देता है l वीर महांती को फोन लगाता है l

वीर - महांती... मुझे हर हाल में उसे चेज करना है... मुझे गाईड करो...
महांती - राज कुमार... आप उससे डेढ़ घंटे दूर हैं...
वीर - कोई परवाह नहीं है... तुम बस उस गाड़ी की मूवमेंट पर नजर गड़ाए रखो...
महांती - राजकुमार अगर आप बुरा ना मानें तो...
वीर - हाँ कहो...
महांती - क्यूँ ना युवराज जी से कहें... वह तो भुवनेश्वर में हैं...
वीर - नहीं महांती... आज भैया और भाभी दोनों का खास दिन है... कोई डिस्टर्बेंस नहीं... जो भी होगा मैं सम्भाल लूँगा...
महांती - ठीक है... आप चलाते रहिए...

और कोई बात नहीं होती l वीर गाड़ी चला या दौड़ा नहीं रहा था बल्कि उड़ा रहा था l रात में एनएच पर थोड़ी बहुत ट्रैफिक तो थी पर रास्ता खाली ही था l उधर महांती भी अपनी टैब में शहर की सर्विलांस के जरिए गाड़ी पर नजर जमाए हुए था l वह देखता है एक होटल के पास गाड़ी रुक जाती है, तीन लोग उतरते हैं और उस होटल के अंदर चले जाते हैं l फिर वह गाड़ी वहाँ से चली जाती है l

महांती - राजकुमार... आप इस वक़्त... एक्जक्टली xxx से कितनी दूरी पर होंगे...
वीर - शायद डेढ़ घंटा.... क्या वह लोग वहीँ उतरे हैं...
महांती - नॉट श्योर... कुछ लोग उतरे तो हैं xxx होटल में... मैंने उस होटल के साथ साथ... गाड़ी पर नजर रखने के लिए... कंट्रोल रूम को इंस्ट्रक्ट कर दिया है... होटल पर नजर मैं खुद रखे हुए हूँ...
वीर - क्या उस होटल की सर्विलांस मिल सकता है...
महांती - इस वक़्त तो नहीं... कल मिल सकेगा... उनके हार्ड ड्राइव से...
वीर - ठीक है... मैं होटल पहुँच कर देखता हूँ....

वीर गाड़ी को xxx होटल के तरफ भगा देता है l करीब करीब एक घंटे के बाद वीर उस होटल में पहुँचता है l एक छोटा सा आम सा होटल था l वीर झट से होटल के रिसेप्शन में पहुँचता है l देखता है रिसेप्शन में कोई नहीं था l अपनी नजरें घुमाता है l देखता है कोई सीसीटीवी की व्यवस्था नहीं है l वह चिढ़ कर वहां के रिसेप्शन टेबल पर बेल बजाने लगता है, पर कोई जवाब नहीं मिलता l वह रिसेप्शन से आगे बढ़ कर कमरों की तलाश को निकलने वाला होता है कि रिसेप्शन पर रखे लैंडलाइन फोन बजने लगती है l वीर पहले तो इग्नोर करता है पर कुछ सोच कर फोन उठाता है l

- हा हा हा हा हा हा... क्या राज कुमार पोपट हो गया ना तुम्हारा...
वीर - ओ तुम...
- हाँ मैं... तुम पर मेरा इतना गुस्सा है... की अगर तुझे मार डालूँ तो भी कम है... पर तुझे बार बार हारते हुए देखने में... बड़ा मजा आ रहा है...
वीर - (जबड़े भींच जाती हैं, पर फिर भी वह चुप रहता है)
- तुम्हें छटपटाते हुए देखना... क्या बताऊँ... मेरे दिल को कितना सुकून देता है... बस इसी तरह कुछ दिन तड़पाऊँगा... फिर तुझे इस दुनिया से आजाद कर दूँगा...
वीर - (दांत पिसते हुए) कमीने... एक बार... बस एक बार मेरे हाथ लग जा... तुझे अपने पैदा होने पर... बहुत पछतावा होगा...
- वह दिन... कभी नहीं आएगा... वैसे यह देख कर अच्छा लगा... अब तु चौबीसों घंटे... अनु को अपने लोगों की निगरानी में रखा हुआ है.... पर कोई ना... तु ही एक दिन मेरे लिए मौका बनाएगा... उस दिन... तेरी आँखों के सामने... तेरी अनु को...
वीर - (चिल्लाते हुए) हरामजादे....

चिल्ला कर फोन को उखाड़ कर फर्श पर पटक देता है l तभी उसकी कानों में एक गाड़ी के स्टार्ट होने की आवाज सुनाई देती है l वीर उस गाड़ी की आवाज की तरफ भागने लगता है l आवाज बेसमेंट से आ रही थी l जब बेसमेंट के एंट्रेंस पर पहुँचता है तभी एक कार की हेड लाइट ऑन हो जाती है, वीर की आँखे कुछ पल के लिए चुंधीया जाती हैं l कार तेजी से वीर की तरफ बढ़ रही थी, वीर कुद कर एक किनारे हट जाता है l कार उसे पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ जाती है तो वीर उस गाड़ी के पीछे दौड़ने लगता है l गाड़ी पहले पार्किंग की हुई गाड़ी को ठोक देती है, जिसके वजह से वीर की गाड़ी एक किनारे हो जाती है l वीर अपनी मोबाइल निकाल कर तेजी से फोटो लेते हुए गाड़ी की तरफ भागता है l पर वीर के पहुँचने से पहले ही वह कार जा चुकी थी l वीर की कार साइड से डैमेज हो चुका था l वीर अपनी मोबाइल पर खिंचे हुए फोटों को देखने लगता है l उसे कार की नंबर कुछ साफ नहीं दिखती है l वह खीज कर एक लात अपनी कार पर मारता है l तभी उसका मोबाइल बजने लगता है l स्क्रीन पर महांती डिस्प्ले हो रहा था l

वीर - (बुझे मन से) हाँ महांती... बोलो...
महांती - राजकुमार... आप ठीक तो हैं ना...
वीर - हाँ... (दांत पिसते हुए) कमबख्त... हाथ से निकल गया... (तभी वीर की नजर एक जगह ठहर जाती है) एक मिनट महांती... एक मिनट...

कॉल को होल्ड में रख कर जहां गाड़ी टकराइ थी वहाँ पर वीर को एक मोबाइल मिलता है l वीर महांती से पूछता है

वीर - महांती... एक मोबाइल मिला है... पैटर्न लॉक्ड है... क्या उसके मालिक का पता लगाया जा सकता है...
महांती - जी राजकुमार जी...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


बस में नाइट लैम्प की रौशनी ही थी l लोग अपनी अपनी सीट पर फैल कर सो गए थे l कोई कोई तो खर्राटे भर रहे थे l पर विश्व की आँखों से नींद गायब थी I वह अपनी जेब से वही कार्टून निकाल कर देखने लगता है l और धीरे धीरे अपनी यादों में खोने लगता है

लोग विश्व को अपने कंधे पर बिठा कर लोग झूमते हुए गांव की गालियों में घूमते हुए जयकारा लगाते हुए गुजर रहे हैं l चुनाव में कुल चार प्रत्याशी खड़े हुए थे, पर विश्व की जबर्दस्त जीत हुई थी और बाकी तीनों प्रत्याशियों की ज़मानत जप्त हो गई थी l विश्व की जीत से लोगों में जबरदस्त खुशी छाई हुई थी l लोगों के कंधे पर बैठा विश्व भी बहुत खुश था l पुरे गांव घुमते घुमते लोग विश्व के घर के आगे पहुँचते हैं l घर के बाहर वैदेही और उमाकांत सर खड़े थे l वीर लोगों के कंधे से उतर कर वैदेही के पास जाता है l लोग विश्व की नाम का जयकारा लगा रहे थे l

विश्व - (खुशी के साथ) दीदी... हम जीत गये... हम जीत गये दीदी...

बस इतना ही कह पाया कि वैदेही एक के बाद एक तीन जोरदार थप्पड़ मारती है l विश्व और उसके साथ साथ वहाँ पर मौजूद सभी गाँव वाले हैरान हो जाते हैं l विश्व अपनी गाल को सहलाते हुए आँखे बड़ी बड़ी करते हुए वैदेही को देखता है l

विश्व - दीदी... (वैदेही कुछ नहीं कहती) (उमाकांत से) स... सर... यह दीदी...
उमाकांत - यह थप्पड़... तुम्हारे लिए... कुछ याद रखने के लिए... वैदेही ने मारा है... मैं तो जानता हूँ... पर चाहूँगा... तुम्हारी दीदी यह बात... तुम्हें इन गाँव वालों के सामने कहे...

विश्व के साथ साथ सभी गाँव वाले वैदेही की ओर देखने लगते हैं l

वैदेही - विशु... जब मुग़लों ने... कलिंग साम्राज्य को बर्बाद कर दिया... तब ओड़िशा की अस्मिता हाहाकार करने लगा था... तो उसको बचाने के लिए... खुर्दा से भोई वंश सामने आया... जब राजा रामचंद्र देव का राज तिलक होना था... तब उनके राज गुरु ने उन्हें तीन थप्पड़ मारा था... तीनों थप्पड़ यह एहसास दिलाने के लिए तुम जन प्रतिनिधि हो... उनके निधि पति नहीं हो... बल्कि उनकी निधि रक्षक हो...
पहला धन...
दूसरा इज़्ज़त...
तीसरा जीवन...
कुछ भी हो जाए... तुम इन गांव वालों की धन जीवन और आत्मसम्मान व आत्मगौरव यानी इज़्ज़त की रक्षा करनी होगी... अगर कभी उनकी धन जीवन और गौरव की हानि हुई... तो तुझे उनकी प्रतिकार करना होगा...

Jabardastt Updatee
 

Battu

Active Member
1,303
4,697
159
👉एक सौ ग्यारहवां अपडेट
-------------------------------

बादाम बाड़ी बस स्टैंड, शाम के सात बज रहे थे l
देवगड़ बस वाया यशपुर के लिए तैयार खड़ी थी l बस निकलने के और एक घंटा समय बाकी था l बस स्टैंड में तापस गाड़ी लगाता है, पिछले सीट पर बैठे प्रतिभा और विश्व उतरते हैं l

प्रतिभा - क्या हुआ खड़ा क्यूँ है...
विश्व - वह माँ... डैड... डिक्की खोलेंगे तो... सामान निकालना है...
प्रतिभा - अरे... कौनसा हिमालय साथ में लेकर जा रहा है...
तापस - (डिक्की खोलते हुए) अरे भाग्य वान... एक बैग ही तो है... क्या इसके लिए... कुली हायर करें...
प्रतिभा - जी नहीं कुली क्यूँ... आप हैं ना...
तापस - क्या...

तापस का रिएक्शन देखने के लिए रुकी भी नहीं, वह विश्व की हाथ को पकड़ कर बस स्टैंड के अंदर चल देती है l तापस पहले तो हक्का बक्का सा हो जाता है पर थोड़ी देर के बाद मुस्करा कर डिक्की से बैग निकाल कर कंधे में डालता है और उन दोनों के पीछे पीछे चल देता है l प्राइवेट बस टिकट काउंटर के पैसेंजर वेटिंग रुम में विश्व, प्रतिभा और तापस तीनों आते हैं l

प्रतिभा - (तापस से) यह गाड़ी निकलेगी कब और... यशपुर कब तक पहुँच जाएगी...
तापस - देखो गाड़ी निकलने में अभी वक़्त है.... मैं तो कभी उस तरफ गया नहीं...
विश्व - माँ... सुबह तड़के पहुँचा देगी...
प्रतिभा - तुझे कैसे पता...
विश्व - बेतुका सवाल.... दीदी आती रहती थी ना....
प्रतिभा - अरे हाँ... मैं तो भूल ही गई थी... चलो ठीक है... अच्छा सुन... मैंने तेरे लिए और तेरे दुम के लिए... खाना टिफिन में दे दिया है...
विश्व - क्क्क्क्या... दुम...
प्रतिभा - हाँ दुम... मुझे पहले से ही अंदाजा था... और कल इत्तेफ़ाक से दिख भी गया... तो मैं समझ गई... वापस तो तुम दोनों मिलकर जाने वाला है...
विश्व - कमीना कमबख्त... सीलु...
प्रतिभा - हाँ... सीलु... वह आया है ना...
विश्व - क्यूँ तुमने उसे देखा था ना...
प्रतिभा - ना तुक्का लगाया...
विश्व - क्या... आ...
प्रतिभा - (हँसते हुए) हा हा हा हा... पकड़ा गया ना...
विश्व - (मुस्कराते हुए) हाँ पकड़ तो लिया...
प्रतिभा - अररे.... (अपनी माथे पर हाथ रखते हुए)
तापस - क्या हुआ भाग्यवान...
विश्व - हाँ माँ... क्या हुआ... कुछ भुल गई...
प्रतिभा - हाँ भुल गई...
तापस और विश्व - क्या...
प्रतिभा - पानी की बोतल...
विश्व - ओह पानी की बोतल... कोई नहीं... गाड़ी चढ़ने से पहले खरीद लूँगा...
प्रतिभा - क्यूँ... तु क्यूँ खरीदेगा... तेरे डैड नहीं हैं क्या... (तापस से) सुनिए जी...
तापस - समझ गया भाग्यवान.... समझ गया...
प्रतिभा - अगर समझ गए... तो जाइए... दो लीटर वाला पानी की बोतल लेकर आइए...

तापस एक गहरी सांस छोड़ते हुए वेटिंग रुम से बाहर चला जाता है l उसके बाहर जाते ही प्रतिभा अपनी वैनिटी बैग से नोटों की एक छोटी सी गड्डी निकालती है और विश्व के हाथों में थमा देती है l

विश्व - यह... यह क्या कर रही हो माँ...
प्रतिभा - यह ले... रख ले... गांव में खर्च करना...
विश्व - माँ...
प्रतिभा - जानती हूँ... तेरे एकाउंट में पैसे हैं... पर यह तेरे लिए... मेरी तरफ से... जेब खर्च के लिए...
विश्व - इतना सारा पैसा दे रही हो... और जेब खर्च बोल रही हो...
प्रतिभा - इतना सारा कहाँ है... दस हजार ही तो हैं...
विश्व - माँ... मैं अगले हफ्ते दस दिन में वापस आने वाला हूँ... फिर जब वापस जाऊँगा... क्या तुम तब भी ऐसे देती रहोगी...
प्रतिभा - हाँ जरूर देती... अगर मैं अंबानी या टाटा की रिश्तेदार होती... अब चूँकि... मैं एक रिटायर्ड सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस की धर्म पत्नी हूँ... इसलिए सिर्फ दस हजार ही दे रही हूँ.... और हाँ सेनापति जी को बताना मत...
विश्व - (मुस्करा कर प्रतिभा के गले लगते हुए) ठीक है माँ...

विश्व अपनी जेब में पैसे रख लेता है l थोड़ी देर बाद तापस पानी की बोतल लेकर आता है और विश्व को देता है l

तापस - भाग्यवान... थोड़ी देर के लिए... सामान के पास बैठी रहना... (विश्व के कंधे पर हाथ रखकर) लाट साहब को... किसीसे मिलवाना है...
प्रतिभा - क्या... मैं क्यूँ रहूँ...
तापस - प्लीज...

तापस जिस गंभीरता से प्लीज कहा था, प्रतिभा उसकी बात ना काट सकी, अपनी सिर हिला कर सम्मति देती है l तापस विश्व को इशारा करता है और वहाँ से चला जाता है l विश्व तापस के पीछे पीछे चला जाता है l वेटिंग हॉल में प्रतिभा अकेली रह जाती है l बाहर दोनों बस स्टैंड के एक कोने पर आते हैं l

विश्व - क्या बात है डैड....
तास - (अपने गिरेबान के अंदर से काग़ज़ का एक बंडल निकाल कर विश्व के हाथ में देते हुए) यह EC है... ऐकुंबरेंस सर्टिफिकेट... तुम्हारे घर के... प्रॉपर्टी टैक्स भी भरवा दिया है...
विश्व - ओ...
तापस - हाँ... लड़ाई शायद यहीं से शुरु होगी... (विश्व चुप रहता है) बाकी... तुम भी जानते हो... जैसा तुमने कहा था... मैंने वैसा ही किया था... उम्मीद है... लड़ाई का दिशा और दशा... बिल्कुल वैसा ही हो... जैसा तुम चाहते हो...
विश्व - डैड... (एक पॉज लेता है) यह आप माँ के सामने भी दे सकते थे... आप यहाँ ला कर... क्या बात है डैड....

तापस अपने जेब से दस हजार रुपये की एक गड्डी निकाल कर विश्व को देता है l

विश्व - (हैरान हो कर) डैड...
तापस - चुप...
विश्व - डैड... मैं कौनसा हमेशा के लिए जा रहा हूँ... हर हफ्ते दस दिन में आता रहूँगा ना...
तापस - जानता हूँ... पर... (एक पॉज लेकर) रख ले यार... तेरी माँ की तरह... मैं अपना प्यार दिखा नहीं पाता...
विश्व - डैड....

कह कर विश्व तापस के गले लग जाता है l तापस थोड़ा भावुक हो जाता है l

तापस - (भर्राइ आवाज में) देख... तु अगर मुझे ऐसे रुला देगा.. तो तेरी माँ को संभालना... मेरे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा...

विश्व तापस से अलग होता है l तापस अपनी आँखे पोंछ कर खुद को नॉर्मल करता है l

तापस - एक काम करो... तुम्हारे उस दुम को बुलाओ... तुम्हारी माँ के पास... वह सिचुएशन को हल्का करेगा...

विश्व मुस्कराते हुए मोबाइल निकाल कर सीलु को कॉल लगाता है l उधर वेटिंग हॉल में बैग के पास बैठे बैठे प्रतिभा का पारा धीरे धीरे चढ़ रहा था l वह अपनी घड़ी देखती है पुरे पंद्रह मिनट हो चुके थे l वह चिढ़ कर खड़ी हो जाती है के तभी उसके पैरों पर सीलु आके गिरता है l

सीलु - माँ... माँ... मेरी माँ... एक तुम ही हो... जो मेरे भुख की बारे में सोच सकती हो... माँ...

प्रतिभा पहले तो हैरान हो जाती है और फिर मुस्करा कर सीलु की कान खिंचते हुए उठाती है l

सीलु - आह... आह... उह... माँ दुखता है...
प्रतिभा - पहले यह बता... कितने दिनों से है यहाँ पर...
सीलु - आह बताता हूँ माँ.. बताता हूँ... पहले कान तो छोड़ो...
प्रतिभा - ले छोड़ दिया... अब बोल...
सीलु - अब माँ... तुम माँ हो... तुमसे क्या छुपाना... भाई की जुदाई सही ना जा रही थी... इसलिए चला आया... ताकि भाई के साथ मिलकर ही वापस जाना हो...
प्रतिभा - घर क्यूँ नहीं आया...
सीलु - कसम से भाई से भी छुपा हुआ था... वह तो कुछ दिन पहले भाई ने पकड़ लिया.... और अब... आपने...
प्रतिभा - सच बोल रहा है... खा मेरी कसम...
तापस - क्या भाग्यवान... इस बात पर कसम... ठीक है... अगली बार जब आएगा... जी भर के सजा दे देना... अब तो इन्हें आजादी के साथ जाने दो...
प्रतिभा - ठीक है... (सीलु से) अब उठो...

सीलु नीचे से उठता है l प्रतिभा उसकी शकल देख कर हँस देती है l माहौल थोड़ा मजाकिया हो जाता है l फिर विश्व और सीलु को सेनापति दंपति बस के पास छोड़ने आते हैं l विश्व की बैग को लेकर पहले सीलु बस के अंदर चला जाता है l विश्व बस चढ़ने को होता है कि वह रुक जाता है, मुड़ कर तापस और प्रतिभा को देखता है l अब तक जो खुशी खुशी विदा कर रहे थे उन दोनों का चेहरा उतरा हुआ था l विश्व भाग कर प्रतिभा और तापस दोनों के गले से लग जाता है l दोनों भी विश्व को जोर से गले लगा लेते हैं l बस की हॉर्न बजते ही तापस विश्व से अलग होता है और प्रतिभा से अलग करता है l विश्व कुछ कहने को होता है कि तापस उसे रोक देता है l

तापस - (विश्व से) कुछ मत कहो... तुम वापस आ कर गले से लग गए... तो हमें यह यकीन हो गया... तुम आओगे... जीत कर ही आओगे... तुम अपना... अपनी दीदी का... दोस्तों का और गाँव वालों का खयाल रखना... मैं तुम्हारी माँ और मेरा खयाल रखूँगा... अब जाओ...

विश्व बस के दरवाजे पर ही खड़ा रहता है और बस धीरे धीरे से बस स्टैंड छोड़ कर आगे बढ़ जाता है l पीछे सेनापति दंपति रह जाते हैं l दोनों के पाँव जैसे जम गए थे l दोनों बड़ी मुस्किल के साथ अपनी गाड़ी तक का सफर तय किया l तापस गाड़ी की दरवाजा खोल कर प्रतिभा को बिठा देता है और खुद गाड़ी में बैठ कर ड्राइव करते हुए घर की ओर चल देता है l प्रतिभा की उतरी हुई चेहरे को देख कर

तापस - जानती हो जान... प्रताप पीछे मुड़ कर हमें देखा ही नहीं... बल्कि वापस आ कर हमारे गले भी लग गया... मतलब समझती हो.... (प्रतिभा कोई जवाब नहीं देती, पर तापस कहना जारी रखता है) इसका मतलब हुआ... कोई उसके इंतजार में हैं... जिनके लिए... वह हर हाल में वापस आएगा... और वह कौनसा हमेशा के लिए जा रहा है... देखना हफ्ते दस दिन बाद हमारे पास होगा... हमारे साथ होगा...
प्रतिभा - हूँ...
तापस - क्या हूँ...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - (चुप रहता है)
प्रतिभा - थोड़ा दर्द हो रहा है... पहली बार अपनी आँखों से दूर भेज रही हूँ...
तापस - पर तुम तो कह रही थी... प्रताप के जाने से... तुम्हें कोई फर्क़ नहीं पड़ेगा... क्यूंकि तुम्हारे पास साथ देने तुम्हारी बहु होगी...
प्रतिभा - (चिहुँक कर) वह मुई भी अभी राजगड़ मैं है...
तापस - क्या... (हैरानी की भाव में)

प्रतिभा गुस्से से तापस की ओर देखती है I तापस अपना चेहरा घुमा लेता है और बात बदलने के लिए

तापस - वैसे जान... प्रताप का बार लाइसेंस आने में... अभी वक़्त है... मान लो राजगड़ में कुछ कानूनी लफड़ा हुआ तो... वह कैसे डील करेगा...
प्रतिभा - मैंने अपनी लाइसेंस को... मड़गेज कर उसके लिए एक प्रोविजनल लाइसेंस नंबर हासिल कर लिया है... और उसे दे भी दिया है...
तापस - क्या... यह तुमने कब किया...
प्रतिभा - जब से वह छूट कर बाहर निकला था...
तापस - और यह तुम... मुझे अब बता रही हो... और उसने भी देखो मुझे अभी तक बताया नहीं... तुम माँ बेटे... मेरी नॉलेज के बाहर हमेशा कुछ न कुछ खिचड़ी पकाते रहते हो... और अंत में मुझे बेवक़ूफ़ बनाते हो...

तापस की इस शिकायत पर प्रतिभा हँस देती है l उसके हँसते ही तापस भी एक चैन की हँसी हँस देता है

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

श्री जगन्नाथ धर्मशाला पुरी मंदिर से कुछ ही दूर I वीर ने दो कमरे लिए थे I ओबराय होटल में कमरा लेना चाहा था पर दादी ने मना किया l क्यूँकी दादी को इतनी लक्जरी की आदत नहीं थी l इसलिए दादी की मन और बात को रखते हुए उसने श्री मंदिर की प्रशासन के आधीन वाली धर्मशाला में दो कमरे लिया था I मंदिर से महा प्रसाद मंगवा कर रात्री भोज तीनों खतम कर चुके थे l पानी लाने के बहाने वीर बाहर पानी की बोतल ला कर दादी और अनु को दिया था I उन्हें उनके कमरे में छोड़ कर अपने कमरे में बैठ कर बार बार घड़ी देख रहा था l वीर अपने फिट कपड़ों में तैयार बैठा हुआ था l रात के दस बजे वीर की फोन बजने लगती है l वीर मोबाइल की स्क्रीन पर देखता है महांती का नाम डिस्प्ले पर दिखा I झट से फोन उठाता है

वीर - हाँ महांती...
महांती - आप... xxx गेस्ट हाउस में आ जाइए...
वीर - ठीक है... पंद्रह मिनट में आ रहा हूँ... यहाँ का इंतजाम...
महांती - हो गया है... आप निकालिये...
वीर - ठीक है...

कह कर फोन काट देता है l अपने कमरे से निकल कर वीर अनु और दादी के कमरे के बाहर खड़ा होता है l दरवाजे पर हल्का सा धक्का देता है l दरवाजा खुल जाता है l अंदर पहुँच कर देखता है दोनों पानी की बोतल लगभग खाली था l मतलब दादी और अनु पानी पी चुके थे और अपने अपने बिस्तर पर बेसुध लेटे हुए थे l वीर पानी की बोतल उठा कर वॉश बेसिन में उड़ेल देता है और खाली बोतल वहीँ पर रख देता है l धीरे धीरे अनु की तरफ बढ़ता है और अनु के सिरहाने बैठ जाता है l बड़े प्यार से अनु की चेहरे को निहारने लगता है l

वीर - माफ करना अनु... पानी में नींद की दवा मिलाया था... हमारे कुछ दुश्मन हैं... जिन्हें हमारा मिलना मंजुर नहीं है... उन्हें सबक सिखाना जरूरी है... (झुक कर अनु की माथे पर एक चुम्मा लेता है) कल सुबह तक आ जाऊँगा... तब तक... सपनों की दुनिया में खो जाओ...

वीर अनु के सिरहाने से उठता है और दादी के पैर के पास बैठ जाता है l दोनों हाथों से दादी का पैर पकड़ लेता है

वीर - दादी... माफ कर देना... मेरे वजह से आप पर या अनु पर कोई खतरा नहीं आना चाहिए... कल सुबह तक सब ठीक कर दूँगा...

इतना कह कर कमरे से बाहर निकालता है और बाहर से दरवाजा बंद कर वहाँ से निकल कर धर्मशाला से बाहर आता है l गाड़ी में बैठ कर गाड़ी दौड़ा देता है l दस मिनट के ड्राइविंग के बाद वह xxxx गेस्ट हाउस के बाहर पहुँचता है l बाहर गाड़ी छोड़ कर गेस्ट हाउस के अंदर जाता है l अंदर महांती और उसके कुछ खास आदमी चार लोगों को नंगा कर एक टेबल पर अध लेटे अवस्था में आमने सामने बांधे रखे हुए हैं l वीर एक चेयर के सहारे टेबल पर खड़ा हो जाता है l उन चारों के हथेली पर बारी बारी चढ़ कर टेबल पर घूमने लगता है l वे चारों दर्द के मारे चिल्लाने लगते हैं l थोड़ी देर बाद वीर टेबल से उतर कर एक चेयर पर बैठ जाता है l

वीर - (उन चार लोगों से) हाँ तो हरामजादों... अब बोलना शुरु करो...
एक - (दर्द के मारे कराहते हुए) आह.. हमने कुछ नहीं किया राज कुमार... आह...
वीर - हाँ... मैं मान लिया... तुमने कुछ नहीं किया... अब तुम लोग भी मान जाओ... मैं तुम लोगों के साथ... बहुत बुरा करने वाला हूँ...
दुसरा - नहीं नहीं... राज कुमार जी... हमें माफ कर दीजिए... प्लीज...
वीर - (महांती से) महांती... इन हरामजादों के पैरों पर छोटे छोटे ज़ख़्म करो... फिर कुछ चूहों को इनके पैरों पर छोड़ दो... जब वह चूहे इनके पैरों को कुतरने लगेंगे... इन्हें सब याद आ जाएगा... और बिल्कुल तोते की तरह बोलना शुरु कर देंगे...
चारों - नहीं.. नहीं... राजकुमार जी हमें... माफ कर दीजिए... प्लीज... आपको गलत फहमी हुआ है...
वीर - (आवाज़ में कड़क पन आ जाती है) महांती... यह लंड खोर... बड़े फर्माबरदार लगते हैं... अब इनके पैरों पर ज़ख्म मत दो... इनके टट्टों के इर्द-गिर्द ज़ख्म बनाओ... चूहे पहले इनके टट्टों से कुतरता शुरु करेंगे...
एक - नहीं... नहीं राज कुमार जी... नहीं... ऐसा कुछ भी मत कीजिए... मैं... मैं बता दूँगा... प्लीज...
वीर - ठीक है... तुझसे जो भी जानकारी मिलेगी... वह एक एक से उगलवा कर मैच करूंगा... कुछ भी छुटा... या झूठ बोला... तो सबसे पहले... तेरे टट्टों को चूहों का निवाला बनाऊँगा...

वीर इशारा करता है l महांती के आदमी उस बंदे को खोल देते हैं और बगल के कमरे में ले जा कर एक चेयर पर नंगा ही बिठा कर हाथ पैर बांध देते हैं l वीर उसके सामने पड़े एक चेयर पर बैठ जाता है

वीर - चल मादरचोद... अब बकना शुरु कर...
एक - हम कलकत्ते के एक डिटेक्टिव एजेंसि से ताल्लुक रखते हैं... हमें कुछ दिन पहले एक असाइनमेंट मिला था... आपके... और उस लड़की पर नजर रखने के लिए...
वीर - ह्म्म्म्म आगे बोल...
एक - बस इतना ही... आपकी और उस लड़की की पल पल की जानकारी हम... उन तक पहुँचाते थे...
वीर - भोषड़ी के.. इतना तो मैं भी जानता हूँ... वह बता... जिससे मैं अनजान हूँ...
एक - बस... हमारे पास एक फोन नंबर है... हमें हर इंफॉर्मेशन पर... अकाउंट में पेमेंट अपडेट हो जाता था.... सच कहता हूँ राजकुमार जी... वह कौन है... कहाँ है... हम कुछ नहीं जानते... हमें पैसा मिलता रहा... और फोन पर जैसे जैसे इंस्ट्रक्शन मिलता रहा... हम बिलकुल वैसे ही करते रहे...
वीर - ह्म्म्म्म... मुझे यकीन नहीं हो रहा है...
एक - (रोते हुए) मैं सच कह रहा हूँ... राजकुमार जी... मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा है...
वीर - ह्म्म्म्म... किस तरह से... इंफॉर्मेशन पहुँचाता था...
एक - जी फोन पर...
महांती - राजकुमार जी... (अंदर आ कर) वह एक वर्चुअल नंबर है... कम्प्यूटर जेनरेटेड..
वीर - इसका मतलब यह ठीक कह रहा है...
महांती - हाँ...
वीर - तो हम अपने दुश्मन तक पहुँचेंगे कैसे...
महांती - बस तीस सेकेंड में...

इतना कह कर महांती इशारा करता है l कुछ आदमी उस बंधे हुए बंदे का दोनों हाथ खोल देते हैं l महांती उसे एक मोबाइल देते हुए

महांती - यह ले... यह तेरा ही मोबाइल है... पर हमारे सिस्टम के ट्रैकिंग में है... लगा उस नंबर पर फोन.. और हाँ तीस सेकंड तक फोन पर बातें रुकनी नहीं चाहिए...

वह आदमी फोन लेता है और एक नंबर पर डायल करता है l जैसे ही रिंग होती है महांती अपने टैब पर देखने लगता है l थोड़ी देर बाद उधर से कॉल कोई उठाता है

- यस
एक - मैं... एक्स बोल रहा हूँ...
- हाँ एक्स क्या खबर है...
एक - वह लड़का.. और उस लड़की का परिवार... उसी धर्मशाला में हैं... कोई मूवमेंट नहीं दिख रहा है...
- ह्म्म्म्म... और कुछ...
एक - लगता है... कहीं उन्हें हम पर शक तो हो गया है...
- क्यूँ... ऐसा क्यूँ लग रहा है...
एक - क्यूंकि धर्मशाला के बाहर... उनके ESS से कुछ लोग पहरे पर लगे हुए हैं...
- और तुम लोग... तुम लोग क्या कर रहे हो...
एक - हम लोग अपनी अपनी पोजिशन पर छुपे हुए हैं...
- भोषड़ी के... मादरचोद... पकड़े गए हो... और मेरी चुटिया काट रहे हो...
एक - (हकलाने लगता है) यह.. यह आप क्या कह रहे हैं...
- अबे भोषड़ी के... जब पिछवाड़े नहीं था गुदा... तो बीच में काहे कुदा... क्यूँ बे वीर सिंह... तुझे तीस सेकंड चाहिए था ना... ले मैंने तुझे चालीस सेकेंड दे दिए... जो उखाड़ना है... उखाड़ ले...

फोन कट जाता है l वीर और महांती दोनों हैरान हो कर एक दुसरे को देखने लगते हैं l महांती फिर भी कॉल को ट्रेस करने कोशिश करने लगता है l फिर थोड़ी देर बाद महांती की जबड़े भींच जाती हैं l वीर उसे सवालिया नजरों से देखता है l महांती उसे टैब दे देता है l वीर उस पर फ्लैश हो रहे लोकेशन को देखने लगता है l


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


बस रात की डिनर के लिए रास्ते पर एक ढाबा पर रुका हुआ था l सारे पैसेंजर उतर कर ढाबे में खाना खाने जा चुके थे l विश्व और सीलु भी ढाबे के बाहर लगे एक टेबल पर बैठे हुए थे l प्रतिभा के दिए पराठे काग़ज़ में लिपटी एलुमिनीयम फएल से निकाल कर खा रहे थे l खाते खाते सीलु की नजर उस काग़ज़ पर पड़ती है l

सीलु - भाई इस कार्टून को देखा...

विश्व उस काग़ज़ पर छपे कार्टून को देखने लगता है l एक आदमी अपने कंधे पर सहारा देते हुए दुसरे आदमी को एक पेड़ पर चढ़ा रहा है और अपने दोनों हाथों से एक कुल्हाड़ी से उसी पेड़ को काट रहा है l पेड़ की पोजिशन कुछ ऐसी है कि कटने के बाद एक मगरमच्छों से भरी तालाब में गिरेगी l वह तस्वीर देखते ही विश्व अपनी अतीत में खो जाता है

फ्लैशबैक

विश्व अपना काम खतम कर महल से निकल रहा था कि उसे पीछे से कल्लू की आवाज सुनाई देता है l

कल्लू - ऑए विश्वा... (विश्व पीछे मुड़ कर देखता है) तुझे राजा साहब ने... दिवाने आम में याद कर रहे हैं...

विश्व इतना सुनते ही भागने लगता है l दिवाने आम में भैरव सिंह एक ऊंची जगह पर बैठ कर नीचे बैठी अपनी पुरी टीम के साथ गुफ़्तगू कर रहा था l विश्व उनके पीछे सिर झुकाए खड़ा हो जाता है l

भैरव सिंह - आओ विश्व... अभी तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था...
विश्व - जी हुकुम...
भैरव सिंह - इनसे मिलो... यह चुनाव अधिकारी हैं... अभी अभी... हमारे पंचायत की डेमोग्रैफीकल जौग्राफी बदला है... तुम्हें जानकर बहुत अच्छा लगेगा... इस बार पंचायत के चुनाव में... पाइक पड़ा सामिल हुआ है...
विश्व - जी हुकुम...
भैरव सिंह - अपने राजगड़ को छोड़ कर... तुम कितने पंचायत को जानते हो...
विश्व - जी ज्यादा नहीं... पर जानता हूँ... कुछ एक को...
भैरव सिंह - और...
विश्व - और... क्या राजा साहब...
भैरव सिंह - वह सारे पंचायत... हमारे पंचायत से थोड़े आगे हैं... हैं ना...
विश्व - मालुम नहीं राजा साहब...
भैरव सिंह - यह... दिलीप कुमार कर... सरपंच बनना चाहता था... पर मैंने उसे बताया... नया दौर है... नये जोश से भरा खुन की आवश्यकता है... इसलिए इसबार की सरपंच चुनाव के लिए... हमने तुम्हारा नाम सुझाया है...
विश्व - जी... (बहुर जोर से चौंकता है) जी... म.. मैं...
भैरव सिंह - हाँ विश्व... हमने खबर ली है... तुम अभी अभी इक्कीस वर्ष के हुए हो... मतलब तुम चुनाव के लिए उपयुक्त हो... इस बार की चुनाव में... तुम ही पुरे देश में सबसे कम उम्र के सरपंच बनोगे...
विश्व - (कुछ कह नहीं पाता)
दिलीप - मुबारक हो विश्व... सरपंच बनने की बधाई...
विश्व - (फिर भी चुप रहता है)
बल्लभ - क्या बात है विश्व... तुम खुश नहीं हुए...
विश्व - राजा साहब... मैं कुछ निर्णय नहीं ले पा रहा हूँ...
भैरव सिंह - निर्णय हमने लिया है विश्व.... तुम्हें बस उस निर्णय पर चलना है...
विश्व - माफ कीजिए राजा साहब... मुझे कोई अभिज्ञता नहीं है... पर मुझे लगता है... कर बाबु पुरी तरह से योग्य हैं...
दिलीप - लो कर लो बात... अरे मुर्ख... मैं तो पेड़ के साख पर उस सूखे पत्ते की तरह हूँ... जो कभी भी झड़ सकता है... अब समय और संसार तुम्हारा है... इसलिए जैसा राजा साहब ने कहा... वैसा ही करो...
बल्लभ - हाँ विश्व... जरा सोचो... राजा साहब ने अगर सोचा है... कुछ ठीक ही सोचा होगा...
विश्व - जी आप दुरुस्त कह रहे हैं... पर मैं... खुद को तैयार नहीं कर पा रहा हूँ... समझा नहीं पा रहा हूँ...
भैरव सिंह - (गंभीर आवाज़ में) इसका मतलब... तुम हमारे निर्णय के विरुद्ध जाओगे..
विश्व - ऐसा ना कहिए राजा साहब... ऐसी मेरी हिम्मत कहाँ... आपकी सेवा में... मुझसे भी योग्य लोग होंगे... आप उन्हें नियुक्त कीजिए... बस मुझे क्षमा कीजिए...
दिलीप - रे मूर्ख... रे धूर्त... तु राजा साहब के हुकुम की... नाफरमानी कर रहा है.... राजगड़ के भगवान की....

विश्व जवाब में कुछ नहीं कहता l सिर झुकाए चुप खड़ा रहता है l

भैरव सिंह - ठीक है विश्व.. तुम घर जाओ...
विश्व - जी राजा साहब...

अपना सिर झुकाए भैरव सिंह को बिना पीठ किए उल्टे पैर दिवाने आम से बाहर निकल जाता है l उसके जाते ही

बल्लभ - कमाल है... पहली बार ऐसा हुआ... राजा साहब की हुकुम... अदब के साथ किसी ने ठुकरा दिया है...
भैरव सिंह - हर जोड़ की एक तोड़ होता है... हर तोड़ की एक मोड़ होता है... और हर मोड़ की एक मरोड़ होता है... इसकी भी तोड़ है... और यह टुटेगा...
दिलीप - ऐसा कौन है राजा साहब...

उधर भैरव सिंह को मना करने के बाद विश्व अंदर ही अंदर बहुत खुश था l वह भागते हुए अपने घर जा रहा था l पर उसे लग रहा था जैसे वह उड़ रहा है l विश्व भागते भागते घर पर पहुँचता है I घर पर वैदेही खाना बना रही थी l

विश्व - (खुशी के मारे) दीदी...
वैदेही - क्या बात है... आज मेरा भाई बहुत खुश लग रहा है... क्या हो गया है तुझे आज...
विश्व - ओ दीदी... (झूमते हुए) दीदी.. दीदी... क्या कहूँ तुमसे... पहली बार...(बहुत ही खुशी के साथ) हाँ दीदी पहली बार... मैंने राजा के मुहँ पर ना कहा है...
वैदेही - क्या... ऐसा क्या हुआ..

विश्व वैदेही से दिवाने खास में हुए सारी बातें बताता है l सारी बातेँ सुनने के बाद वैदेही भी विश्व की तारीफ करती है l

वैदेही - (एक गर्व और गंभीर आवाज में) शाबाश मेरे भाई शाबाश... वाकई... मैं आज बहुत खुश हूँ... हाँ पहली बार... किसीने राजा साहब के मुहँ पर ना को दे मारा है... तुझे तो उसका शकल भी देखना चाहिए था...
विश्व - (खुशी और झिझक की मिली जुली भाव से) चाहता तो मैं भी यही था दीदी... पर मेरी हिम्मत नहीं हुई... बहुत कोशिश की उसके चेहरे पर भाव देखने की... पर मैं अपना सिर उठा नहीं पाया....
वैदेही - कोई ना... मेरे भाई कोई ना... आज तुने उसे ना सुना दिया है... एक दिन उसका बुझा हुआ... झुका हुआ चेहरा भी देखेगा... सिर्फ तु ही नहीं.. इस गांव का हर एक बच्चा बच्चा देखेगा...

भाई बहन की यह वार्तालाप चल रही थी के तभी खाने के जलने की बु आने लगती है l

वैदेही - (चिल्लाते हुए) आह... देख खाना जल गया...
विश्व - ओह माफ करना दीदी...

तभी बाहर दरवाजे पर दस्तक होती है l दोनों भाई बहन का ध्यान उस तरफ जाता है l दरवाजे पर उमाकांत सर खड़े हुए थे l

विश्व - ओह सर आप... आइए सर आइए...

उमाकांत अंदर आता है l वैदेही दौड़ कर अंदर जा कर एक कुर्सी ले आती है l विश्व भी अपनी खुशी को छुपाये वगैर उमाकांत से कहता है

विश्व - सर... आज मैं बहुत खुश हूँ...
उमाकांत - जानता हूँ... (विश्व और वैदेही दोनों हैरान हो कर उमाकांत को देखने लगते हैं) यही ना आज तुमने... राजा साहब को... सरपंच बनने से इंकार कर दिया...

विश्व और वैदेही और भी हैरान रह जाते हैं l उन्हें समझ में नहीं आता कुछ ही घंटों पहले की बातेँ उमाकांत सर को कैसे मालुम हुआ I उमाकांत उनके मन में पैदा हुए शंका को दूर करते हुए

उमाकांत - कुछ देर पहले मेरे घर पर... खुद राजा साहब और दिलीप आए थे... उन्होंने ही मुझे बताया सारी बातेँ...
वैदेही - सर यह बात हमने आपको बताई होती... तो बात समझ में आती... पर यह बात आप तक... जिनके जरिए पहुँची.. वह हैरान करने वाली विषय है...
उमाकांत - हाँ... है तो...
वैदेही - कहीं ऐसा तो नहीं... के उन्होंने आपकी आड़ लेकर... विश्व को राजी कराना चाहते हैं...
उमाकांत - बिल्कुल... सही सोचा है तुमने... मैं यहाँ विश्व को मनाने के लिए ही आया हूँ... पर कोई बाध्य नहीं करूँगा... निर्णय पूर्ण रुप से तुम्हारा होगा...
वैदेही - अगर आपको उन्होंने भेजा है... तो विशु का सरपंच बनना उनके लिए बहुत आवश्यक है... पर उनकी आवश्यकता के लिए विशु ही क्यूँ..
उमाकांत - बेटी... यहाँ हम जिस समाज में जी रहे हैं... दो तरह के भागों में बंटे हुए हैं... एक शोषक... दुसरा शोषित... शोषक इसलिए शोषण कर पाता है... क्यूंकि उसके पास व्यवस्था की हर प्रकार की शक्ति है... शोषित इसलिए शोषण का शिकार हो रहा है... क्यूंकि शक्ति संतुलन में उसके पास... उसका कोई हिस्सा नहीं है... क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ...
वैदेही - (कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद) नहीं... आप सही कह रहे हैं...
उमाकांत - तो जब शक्ति संतुलन में... एक हिस्सा हमारे द्वार पर आ रही है... हम उसकी अनदेखी क्यूँ करें...
विश्व - सर कुछ भी हो... हम बचपन से देख ही रहे हैं... सारी व्यवस्था को... राजा के आगे घुटने टेकते हुए... सिर्फ़ राजगड़ के ही नहीं... यहाँ के आस पास जितने भी पंचायत हैं... सभी सरपंचों को... राजा के आगे... जी हजुरी करते हुए... गुलामी करते हुए...
उमाकांत - गुलामी तो हम अब भी कर रहे हैं... (विश्व और वैदेही चुप रहते हैं) बर्षों से लोगों का आक्रोश... बीज बन कर दबी हुई है... उसके उस अकर्मण्यता की जमीन को चिर कर उजाले की ओर राह दिखाने वाला कोई तो चाहिए... उस बीज को महा वृक्ष बनने के लिए.. कोई तो मार्ग चाहिए... या तो आरंभ... तुम खुद से करो... या फिर... प्रतीक्षा करो... कोई आएगा... इस अभिशापित जीवन से सबको बचाएगा....

कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है l ना वैदेही ना विश्व किसीके मुहँ से कोई बोल नहीं फूटती है l

विश्व - राजा साहब... मुझे सरपंच बना कर... मुझ पर अपना एहसान लादेगा... अपनी मन माफिक काम मुझसे करवाएगा...
उमाकांत - हाँ ऐसा हो सकता है... अगर तुम बिना प्रतिद्वंदीता के चुनाव लड़ोगे... अगर प्रतिद्वंदिता हो... तो...
विश्व - जिसके पीछे राजा साहब हो... उसके खिलाफ कौन लड़ेगा...
उमाकांत - लड़ना अलग बात है... जितना तुम्हारा जरूरी है... तुम्हारी जीत... हर एक घर की जीत होगी... यहाँ के हर एक आँगन की जीत होगी... यह एहसास... तुम्हें लोगों का साथ देगा... विश्वास देगा... उनका साथ... उनका विश्वास तुम्हें ताकत देगा...
विश्व - वह तो ठीक है... पर राजा साहब का... चुनाव में दखल से... लोगों का मनोबल पर क्या असर पड़ेगा... मुझे लोग अपने में गिनेंगे...
उमाकांत - इसीलिए... मैंने राजा साहब से चुनाव में दखल ना देने के लिए... वचन लिया है... और तुम चुनाव बगैर प्रतिद्वंदीता के नहीं लड़ोगे...
वैदेही - तो क्या राजा... मान गया...
उमाकांत - हाँ... पर उसकी भी एक शर्त है...
विश्व और वैदेही - क्या.... कैसी शर्त...
उमाकांत - यही... की विशु की प्रार्थी नामांकन पत्र में... प्रस्तावक में हस्ताक्षर उनका रहेगा... और समर्थन में मेरा नाम होगा...
वैदेही - क्या यह... कोई साजिश हो सकता है...
उमाकांत - हाँ शायद... हो सकता है... पर बाजी तो हमें भी खेलना होगा... शुरुआत कहीं से तो हो... क्या कहते हो विशु...
विश्व - (कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद) ठीक है... यह तो नहीं जानता यह साजिश है... या सहायता... पर अगर लोगों में जागृती लाने के लिए यही एक विकल्प है... तो यही सही...

गाड़ी की हॉर्न सुन कर विश्व अपनी यादों से बाहर आता है l सीलु अपना हाथ धो कर आ चुका था l दोनों मिलकर अपनी अपनी सीट पर बैठ जाते हैं l सभी पैसेंजर बस चढ़ने के बाद बस आगे बढ़ जाती है l


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

वीर और महांती एक दुसरे को देखते हैं फिर दोनों उस बंदे को वहीँ छोड़ कर गेस्ट हाउस के दुसरे तरफ एक कमरे में आते हैं l

वीर - महांती... यह क्या है...
महांती - राजकुमार.. मुझे थोड़ा टेबलेट दीजिए...

वीर टैब को महांती के हवाले कर देता है l टैब पर एक दुसरे एप्लीकेशन में कुछ देखने के बाद महांती की आँखे फैल जाती है l

वीर - क्या बात है महांती... हम कहाँ चूक गए... हमें तीस सेकेंड चाइये थे... उसने चालीस सेकेंड दिए... कितनी बेपरवाह से चैलेंज दिया... जो उखाड़ना है उखाड़ लो... टेबलेट में लोकेशन हमारी ESS की ऑफिस दिखा रहा है...
महांती - एक चूक.... नहीं चूक नहीं कह सकते... एक बड़ी गलती हो गई थी... जिसका उस छुपे हुए दुश्मन ने बखूबी फायदा उठाया है...
वीर - क्या... कैसी गलती... हमारे ऑफिस से कुछ दूर मैन रोड के बाई सेक्टर पर... ट्रैफ़िक डिपार्टमेंट ने एक्सीडेंट अवेरनेस के लिए... एक टूटी हुई सैंट्रो कार रखा था... यह लोग उसीके अंदर वाइफाइ राउटर के जरिए... छोटा कंट्रोल रूम बनाया है... और हम पर वहीँ से नजर रखे हुए थे...
वीर - तो... अब तक वह लोग वहाँ से भाग चुके होंगे... हमारे सिक्युरिटी स्टाफ उस गाड़ी को घेर लें... तब भी कोई फायदा नहीं होगा... मतलब दुश्मन हमारे नाक के नीचे था... अब निकल गया है...
महांती - शायद नहीं...
वीर - शायद नहीं का मतलब...
महांती - जब उसने चैलेंज दिया उसी वक़्त... वह अपनी सिस्टम को बंद कर दुसरी गाड़ी से निकल गया है... मैंने अपनी टैब को... हमारे कंट्रोल रूम के... सर्विलांस से जोड़ दिया है... और उन्हें भी नजर रखने के लिए... कह देता हूँ...
वीर - गुड... तो फिर मैं निकालता हूँ... मुझे फोन पर गाइड करते रहना...

इतना कह कर वीर तेजी से भागते हुए अपनी गाड़ी में बैठ जाता है और स्टार्ट कर भुवनेश्वर के तरफ गाड़ी को दौड़ा देता है l वीर महांती को फोन लगाता है l

वीर - महांती... मुझे हर हाल में उसे चेज करना है... मुझे गाईड करो...
महांती - राज कुमार... आप उससे डेढ़ घंटे दूर हैं...
वीर - कोई परवाह नहीं है... तुम बस उस गाड़ी की मूवमेंट पर नजर गड़ाए रखो...
महांती - राजकुमार अगर आप बुरा ना मानें तो...
वीर - हाँ कहो...
महांती - क्यूँ ना युवराज जी से कहें... वह तो भुवनेश्वर में हैं...
वीर - नहीं महांती... आज भैया और भाभी दोनों का खास दिन है... कोई डिस्टर्बेंस नहीं... जो भी होगा मैं सम्भाल लूँगा...
महांती - ठीक है... आप चलाते रहिए...

और कोई बात नहीं होती l वीर गाड़ी चला या दौड़ा नहीं रहा था बल्कि उड़ा रहा था l रात में एनएच पर थोड़ी बहुत ट्रैफिक तो थी पर रास्ता खाली ही था l उधर महांती भी अपनी टैब में शहर की सर्विलांस के जरिए गाड़ी पर नजर जमाए हुए था l वह देखता है एक होटल के पास गाड़ी रुक जाती है, तीन लोग उतरते हैं और उस होटल के अंदर चले जाते हैं l फिर वह गाड़ी वहाँ से चली जाती है l

महांती - राजकुमार... आप इस वक़्त... एक्जक्टली xxx से कितनी दूरी पर होंगे...
वीर - शायद डेढ़ घंटा.... क्या वह लोग वहीँ उतरे हैं...
महांती - नॉट श्योर... कुछ लोग उतरे तो हैं xxx होटल में... मैंने उस होटल के साथ साथ... गाड़ी पर नजर रखने के लिए... कंट्रोल रूम को इंस्ट्रक्ट कर दिया है... होटल पर नजर मैं खुद रखे हुए हूँ...
वीर - क्या उस होटल की सर्विलांस मिल सकता है...
महांती - इस वक़्त तो नहीं... कल मिल सकेगा... उनके हार्ड ड्राइव से...
वीर - ठीक है... मैं होटल पहुँच कर देखता हूँ....

वीर गाड़ी को xxx होटल के तरफ भगा देता है l करीब करीब एक घंटे के बाद वीर उस होटल में पहुँचता है l एक छोटा सा आम सा होटल था l वीर झट से होटल के रिसेप्शन में पहुँचता है l देखता है रिसेप्शन में कोई नहीं था l अपनी नजरें घुमाता है l देखता है कोई सीसीटीवी की व्यवस्था नहीं है l वह चिढ़ कर वहां के रिसेप्शन टेबल पर बेल बजाने लगता है, पर कोई जवाब नहीं मिलता l वह रिसेप्शन से आगे बढ़ कर कमरों की तलाश को निकलने वाला होता है कि रिसेप्शन पर रखे लैंडलाइन फोन बजने लगती है l वीर पहले तो इग्नोर करता है पर कुछ सोच कर फोन उठाता है l

- हा हा हा हा हा हा... क्या राज कुमार पोपट हो गया ना तुम्हारा...
वीर - ओ तुम...
- हाँ मैं... तुम पर मेरा इतना गुस्सा है... की अगर तुझे मार डालूँ तो भी कम है... पर तुझे बार बार हारते हुए देखने में... बड़ा मजा आ रहा है...
वीर - (जबड़े भींच जाती हैं, पर फिर भी वह चुप रहता है)
- तुम्हें छटपटाते हुए देखना... क्या बताऊँ... मेरे दिल को कितना सुकून देता है... बस इसी तरह कुछ दिन तड़पाऊँगा... फिर तुझे इस दुनिया से आजाद कर दूँगा...
वीर - (दांत पिसते हुए) कमीने... एक बार... बस एक बार मेरे हाथ लग जा... तुझे अपने पैदा होने पर... बहुत पछतावा होगा...
- वह दिन... कभी नहीं आएगा... वैसे यह देख कर अच्छा लगा... अब तु चौबीसों घंटे... अनु को अपने लोगों की निगरानी में रखा हुआ है.... पर कोई ना... तु ही एक दिन मेरे लिए मौका बनाएगा... उस दिन... तेरी आँखों के सामने... तेरी अनु को...
वीर - (चिल्लाते हुए) हरामजादे....

चिल्ला कर फोन को उखाड़ कर फर्श पर पटक देता है l तभी उसकी कानों में एक गाड़ी के स्टार्ट होने की आवाज सुनाई देती है l वीर उस गाड़ी की आवाज की तरफ भागने लगता है l आवाज बेसमेंट से आ रही थी l जब बेसमेंट के एंट्रेंस पर पहुँचता है तभी एक कार की हेड लाइट ऑन हो जाती है, वीर की आँखे कुछ पल के लिए चुंधीया जाती हैं l कार तेजी से वीर की तरफ बढ़ रही थी, वीर कुद कर एक किनारे हट जाता है l कार उसे पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ जाती है तो वीर उस गाड़ी के पीछे दौड़ने लगता है l गाड़ी पहले पार्किंग की हुई गाड़ी को ठोक देती है, जिसके वजह से वीर की गाड़ी एक किनारे हो जाती है l वीर अपनी मोबाइल निकाल कर तेजी से फोटो लेते हुए गाड़ी की तरफ भागता है l पर वीर के पहुँचने से पहले ही वह कार जा चुकी थी l वीर की कार साइड से डैमेज हो चुका था l वीर अपनी मोबाइल पर खिंचे हुए फोटों को देखने लगता है l उसे कार की नंबर कुछ साफ नहीं दिखती है l वह खीज कर एक लात अपनी कार पर मारता है l तभी उसका मोबाइल बजने लगता है l स्क्रीन पर महांती डिस्प्ले हो रहा था l

वीर - (बुझे मन से) हाँ महांती... बोलो...
महांती - राजकुमार... आप ठीक तो हैं ना...
वीर - हाँ... (दांत पिसते हुए) कमबख्त... हाथ से निकल गया... (तभी वीर की नजर एक जगह ठहर जाती है) एक मिनट महांती... एक मिनट...

कॉल को होल्ड में रख कर जहां गाड़ी टकराइ थी वहाँ पर वीर को एक मोबाइल मिलता है l वीर महांती से पूछता है

वीर - महांती... एक मोबाइल मिला है... पैटर्न लॉक्ड है... क्या उसके मालिक का पता लगाया जा सकता है...
महांती - जी राजकुमार जी...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


बस में नाइट लैम्प की रौशनी ही थी l लोग अपनी अपनी सीट पर फैल कर सो गए थे l कोई कोई तो खर्राटे भर रहे थे l पर विश्व की आँखों से नींद गायब थी I वह अपनी जेब से वही कार्टून निकाल कर देखने लगता है l और धीरे धीरे अपनी यादों में खोने लगता है

लोग विश्व को अपने कंधे पर बिठा कर लोग झूमते हुए गांव की गालियों में घूमते हुए जयकारा लगाते हुए गुजर रहे हैं l चुनाव में कुल चार प्रत्याशी खड़े हुए थे, पर विश्व की जबर्दस्त जीत हुई थी और बाकी तीनों प्रत्याशियों की ज़मानत जप्त हो गई थी l विश्व की जीत से लोगों में जबरदस्त खुशी छाई हुई थी l लोगों के कंधे पर बैठा विश्व भी बहुत खुश था l पुरे गांव घुमते घुमते लोग विश्व के घर के आगे पहुँचते हैं l घर के बाहर वैदेही और उमाकांत सर खड़े थे l वीर लोगों के कंधे से उतर कर वैदेही के पास जाता है l लोग विश्व की नाम का जयकारा लगा रहे थे l

विश्व - (खुशी के साथ) दीदी... हम जीत गये... हम जीत गये दीदी...

बस इतना ही कह पाया कि वैदेही एक के बाद एक तीन जोरदार थप्पड़ मारती है l विश्व और उसके साथ साथ वहाँ पर मौजूद सभी गाँव वाले हैरान हो जाते हैं l विश्व अपनी गाल को सहलाते हुए आँखे बड़ी बड़ी करते हुए वैदेही को देखता है l

विश्व - दीदी... (वैदेही कुछ नहीं कहती) (उमाकांत से) स... सर... यह दीदी...
उमाकांत - यह थप्पड़... तुम्हारे लिए... कुछ याद रखने के लिए... वैदेही ने मारा है... मैं तो जानता हूँ... पर चाहूँगा... तुम्हारी दीदी यह बात... तुम्हें इन गाँव वालों के सामने कहे...

विश्व के साथ साथ सभी गाँव वाले वैदेही की ओर देखने लगते हैं l

वैदेही - विशु... जब मुग़लों ने... कलिंग साम्राज्य को बर्बाद कर दिया... तब ओड़िशा की अस्मिता हाहाकार करने लगा था... तो उसको बचाने के लिए... खुर्दा से भोई वंश सामने आया... जब राजा रामचंद्र देव का राज तिलक होना था... तब उनके राज गुरु ने उन्हें तीन थप्पड़ मारा था... तीनों थप्पड़ यह एहसास दिलाने के लिए तुम जन प्रतिनिधि हो... उनके निधि पति नहीं हो... बल्कि उनकी निधि रक्षक हो...
पहला धन...
दूसरा इज़्ज़त...
तीसरा जीवन...
कुछ भी हो जाए... तुम इन गांव वालों की धन जीवन और आत्मसम्मान व आत्मगौरव यानी इज़्ज़त की रक्षा करनी होगी... अगर कभी उनकी धन जीवन और गौरव की हानि हुई... तो तुझे उनकी प्रतिकार करना होगा...

नाग भाई बेहतरीन अपडेट। वीर उस अनजान दुश्मन के पीछे हाथ धो कर पड़ गया है तो आज नही तो कल उसे सफलता जरूर मिलेगी। प्रतिभा और तापस के दुख का अंदाज़ा लगाना मुश्किल है कि बेटे को जंग में भेजते समय उनके दिल पर क्या गुज़री होगी और वो लोग तो पहले भी 2 बेटो को खो चुके है अब विश्व के नाम पर कोई समझौता नही कर सकते। उनकी विश्व को सपोर्ट करने की तैयारी भी बहुत खूब ही है। नाग भाई फ्लेशबैक जल्दी खत्म करो अमूमन सभी जानते है कि विश्व के साथ कैसे क्या फ्रॉड हुआ अब उसे डिटेल में बताने की कही ज़रूरत नही है हा कुछ खास पॉइंट और बाते हो जो आगे केस और कहानी को इफेक्ट करेंगी तो उन घटनाओं की जानकारी दे कर फ्लेशबैक को खत्म किया जाना चाहिए। जब कहानी प्रजेंट में शुरू से चल रही है तो पाठक उससे जुड़े हुए है। भूतकाल से जुड़ाव नही हो पा रहा। अगले भाग की प्रतीक्षा रहेगी बंधु।
 

Lib am

Well-Known Member
3,257
11,244
143
👉एक सौ ग्यारहवां अपडेट
-------------------------------

बादाम बाड़ी बस स्टैंड, शाम के सात बज रहे थे l
देवगड़ बस वाया यशपुर के लिए तैयार खड़ी थी l बस निकलने के और एक घंटा समय बाकी था l बस स्टैंड में तापस गाड़ी लगाता है, पिछले सीट पर बैठे प्रतिभा और विश्व उतरते हैं l

प्रतिभा - क्या हुआ खड़ा क्यूँ है...
विश्व - वह माँ... डैड... डिक्की खोलेंगे तो... सामान निकालना है...
प्रतिभा - अरे... कौनसा हिमालय साथ में लेकर जा रहा है...
तापस - (डिक्की खोलते हुए) अरे भाग्य वान... एक बैग ही तो है... क्या इसके लिए... कुली हायर करें...
प्रतिभा - जी नहीं कुली क्यूँ... आप हैं ना...
तापस - क्या...

तापस का रिएक्शन देखने के लिए रुकी भी नहीं, वह विश्व की हाथ को पकड़ कर बस स्टैंड के अंदर चल देती है l तापस पहले तो हक्का बक्का सा हो जाता है पर थोड़ी देर के बाद मुस्करा कर डिक्की से बैग निकाल कर कंधे में डालता है और उन दोनों के पीछे पीछे चल देता है l प्राइवेट बस टिकट काउंटर के पैसेंजर वेटिंग रुम में विश्व, प्रतिभा और तापस तीनों आते हैं l

प्रतिभा - (तापस से) यह गाड़ी निकलेगी कब और... यशपुर कब तक पहुँच जाएगी...
तापस - देखो गाड़ी निकलने में अभी वक़्त है.... मैं तो कभी उस तरफ गया नहीं...
विश्व - माँ... सुबह तड़के पहुँचा देगी...
प्रतिभा - तुझे कैसे पता...
विश्व - बेतुका सवाल.... दीदी आती रहती थी ना....
प्रतिभा - अरे हाँ... मैं तो भूल ही गई थी... चलो ठीक है... अच्छा सुन... मैंने तेरे लिए और तेरे दुम के लिए... खाना टिफिन में दे दिया है...
विश्व - क्क्क्क्या... दुम...
प्रतिभा - हाँ दुम... मुझे पहले से ही अंदाजा था... और कल इत्तेफ़ाक से दिख भी गया... तो मैं समझ गई... वापस तो तुम दोनों मिलकर जाने वाला है...
विश्व - कमीना कमबख्त... सीलु...
प्रतिभा - हाँ... सीलु... वह आया है ना...
विश्व - क्यूँ तुमने उसे देखा था ना...
प्रतिभा - ना तुक्का लगाया...
विश्व - क्या... आ...
प्रतिभा - (हँसते हुए) हा हा हा हा... पकड़ा गया ना...
विश्व - (मुस्कराते हुए) हाँ पकड़ तो लिया...
प्रतिभा - अररे.... (अपनी माथे पर हाथ रखते हुए)
तापस - क्या हुआ भाग्यवान...
विश्व - हाँ माँ... क्या हुआ... कुछ भुल गई...
प्रतिभा - हाँ भुल गई...
तापस और विश्व - क्या...
प्रतिभा - पानी की बोतल...
विश्व - ओह पानी की बोतल... कोई नहीं... गाड़ी चढ़ने से पहले खरीद लूँगा...
प्रतिभा - क्यूँ... तु क्यूँ खरीदेगा... तेरे डैड नहीं हैं क्या... (तापस से) सुनिए जी...
तापस - समझ गया भाग्यवान.... समझ गया...
प्रतिभा - अगर समझ गए... तो जाइए... दो लीटर वाला पानी की बोतल लेकर आइए...

तापस एक गहरी सांस छोड़ते हुए वेटिंग रुम से बाहर चला जाता है l उसके बाहर जाते ही प्रतिभा अपनी वैनिटी बैग से नोटों की एक छोटी सी गड्डी निकालती है और विश्व के हाथों में थमा देती है l

विश्व - यह... यह क्या कर रही हो माँ...
प्रतिभा - यह ले... रख ले... गांव में खर्च करना...
विश्व - माँ...
प्रतिभा - जानती हूँ... तेरे एकाउंट में पैसे हैं... पर यह तेरे लिए... मेरी तरफ से... जेब खर्च के लिए...
विश्व - इतना सारा पैसा दे रही हो... और जेब खर्च बोल रही हो...
प्रतिभा - इतना सारा कहाँ है... दस हजार ही तो हैं...
विश्व - माँ... मैं अगले हफ्ते दस दिन में वापस आने वाला हूँ... फिर जब वापस जाऊँगा... क्या तुम तब भी ऐसे देती रहोगी...
प्रतिभा - हाँ जरूर देती... अगर मैं अंबानी या टाटा की रिश्तेदार होती... अब चूँकि... मैं एक रिटायर्ड सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस की धर्म पत्नी हूँ... इसलिए सिर्फ दस हजार ही दे रही हूँ.... और हाँ सेनापति जी को बताना मत...
विश्व - (मुस्करा कर प्रतिभा के गले लगते हुए) ठीक है माँ...

विश्व अपनी जेब में पैसे रख लेता है l थोड़ी देर बाद तापस पानी की बोतल लेकर आता है और विश्व को देता है l

तापस - भाग्यवान... थोड़ी देर के लिए... सामान के पास बैठी रहना... (विश्व के कंधे पर हाथ रखकर) लाट साहब को... किसीसे मिलवाना है...
प्रतिभा - क्या... मैं क्यूँ रहूँ...
तापस - प्लीज...

तापस जिस गंभीरता से प्लीज कहा था, प्रतिभा उसकी बात ना काट सकी, अपनी सिर हिला कर सम्मति देती है l तापस विश्व को इशारा करता है और वहाँ से चला जाता है l विश्व तापस के पीछे पीछे चला जाता है l वेटिंग हॉल में प्रतिभा अकेली रह जाती है l बाहर दोनों बस स्टैंड के एक कोने पर आते हैं l

विश्व - क्या बात है डैड....
तास - (अपने गिरेबान के अंदर से काग़ज़ का एक बंडल निकाल कर विश्व के हाथ में देते हुए) यह EC है... ऐकुंबरेंस सर्टिफिकेट... तुम्हारे घर के... प्रॉपर्टी टैक्स भी भरवा दिया है...
विश्व - ओ...
तापस - हाँ... लड़ाई शायद यहीं से शुरु होगी... (विश्व चुप रहता है) बाकी... तुम भी जानते हो... जैसा तुमने कहा था... मैंने वैसा ही किया था... उम्मीद है... लड़ाई का दिशा और दशा... बिल्कुल वैसा ही हो... जैसा तुम चाहते हो...
विश्व - डैड... (एक पॉज लेता है) यह आप माँ के सामने भी दे सकते थे... आप यहाँ ला कर... क्या बात है डैड....

तापस अपने जेब से दस हजार रुपये की एक गड्डी निकाल कर विश्व को देता है l

विश्व - (हैरान हो कर) डैड...
तापस - चुप...
विश्व - डैड... मैं कौनसा हमेशा के लिए जा रहा हूँ... हर हफ्ते दस दिन में आता रहूँगा ना...
तापस - जानता हूँ... पर... (एक पॉज लेकर) रख ले यार... तेरी माँ की तरह... मैं अपना प्यार दिखा नहीं पाता...
विश्व - डैड....

कह कर विश्व तापस के गले लग जाता है l तापस थोड़ा भावुक हो जाता है l

तापस - (भर्राइ आवाज में) देख... तु अगर मुझे ऐसे रुला देगा.. तो तेरी माँ को संभालना... मेरे लिए बहुत मुश्किल हो जाएगा...

विश्व तापस से अलग होता है l तापस अपनी आँखे पोंछ कर खुद को नॉर्मल करता है l

तापस - एक काम करो... तुम्हारे उस दुम को बुलाओ... तुम्हारी माँ के पास... वह सिचुएशन को हल्का करेगा...

विश्व मुस्कराते हुए मोबाइल निकाल कर सीलु को कॉल लगाता है l उधर वेटिंग हॉल में बैग के पास बैठे बैठे प्रतिभा का पारा धीरे धीरे चढ़ रहा था l वह अपनी घड़ी देखती है पुरे पंद्रह मिनट हो चुके थे l वह चिढ़ कर खड़ी हो जाती है के तभी उसके पैरों पर सीलु आके गिरता है l

सीलु - माँ... माँ... मेरी माँ... एक तुम ही हो... जो मेरे भुख की बारे में सोच सकती हो... माँ...

प्रतिभा पहले तो हैरान हो जाती है और फिर मुस्करा कर सीलु की कान खिंचते हुए उठाती है l

सीलु - आह... आह... उह... माँ दुखता है...
प्रतिभा - पहले यह बता... कितने दिनों से है यहाँ पर...
सीलु - आह बताता हूँ माँ.. बताता हूँ... पहले कान तो छोड़ो...
प्रतिभा - ले छोड़ दिया... अब बोल...
सीलु - अब माँ... तुम माँ हो... तुमसे क्या छुपाना... भाई की जुदाई सही ना जा रही थी... इसलिए चला आया... ताकि भाई के साथ मिलकर ही वापस जाना हो...
प्रतिभा - घर क्यूँ नहीं आया...
सीलु - कसम से भाई से भी छुपा हुआ था... वह तो कुछ दिन पहले भाई ने पकड़ लिया.... और अब... आपने...
प्रतिभा - सच बोल रहा है... खा मेरी कसम...
तापस - क्या भाग्यवान... इस बात पर कसम... ठीक है... अगली बार जब आएगा... जी भर के सजा दे देना... अब तो इन्हें आजादी के साथ जाने दो...
प्रतिभा - ठीक है... (सीलु से) अब उठो...

सीलु नीचे से उठता है l प्रतिभा उसकी शकल देख कर हँस देती है l माहौल थोड़ा मजाकिया हो जाता है l फिर विश्व और सीलु को सेनापति दंपति बस के पास छोड़ने आते हैं l विश्व की बैग को लेकर पहले सीलु बस के अंदर चला जाता है l विश्व बस चढ़ने को होता है कि वह रुक जाता है, मुड़ कर तापस और प्रतिभा को देखता है l अब तक जो खुशी खुशी विदा कर रहे थे उन दोनों का चेहरा उतरा हुआ था l विश्व भाग कर प्रतिभा और तापस दोनों के गले से लग जाता है l दोनों भी विश्व को जोर से गले लगा लेते हैं l बस की हॉर्न बजते ही तापस विश्व से अलग होता है और प्रतिभा से अलग करता है l विश्व कुछ कहने को होता है कि तापस उसे रोक देता है l

तापस - (विश्व से) कुछ मत कहो... तुम वापस आ कर गले से लग गए... तो हमें यह यकीन हो गया... तुम आओगे... जीत कर ही आओगे... तुम अपना... अपनी दीदी का... दोस्तों का और गाँव वालों का खयाल रखना... मैं तुम्हारी माँ और मेरा खयाल रखूँगा... अब जाओ...

विश्व बस के दरवाजे पर ही खड़ा रहता है और बस धीरे धीरे से बस स्टैंड छोड़ कर आगे बढ़ जाता है l पीछे सेनापति दंपति रह जाते हैं l दोनों के पाँव जैसे जम गए थे l दोनों बड़ी मुस्किल के साथ अपनी गाड़ी तक का सफर तय किया l तापस गाड़ी की दरवाजा खोल कर प्रतिभा को बिठा देता है और खुद गाड़ी में बैठ कर ड्राइव करते हुए घर की ओर चल देता है l प्रतिभा की उतरी हुई चेहरे को देख कर

तापस - जानती हो जान... प्रताप पीछे मुड़ कर हमें देखा ही नहीं... बल्कि वापस आ कर हमारे गले भी लग गया... मतलब समझती हो.... (प्रतिभा कोई जवाब नहीं देती, पर तापस कहना जारी रखता है) इसका मतलब हुआ... कोई उसके इंतजार में हैं... जिनके लिए... वह हर हाल में वापस आएगा... और वह कौनसा हमेशा के लिए जा रहा है... देखना हफ्ते दस दिन बाद हमारे पास होगा... हमारे साथ होगा...
प्रतिभा - हूँ...
तापस - क्या हूँ...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - (चुप रहता है)
प्रतिभा - थोड़ा दर्द हो रहा है... पहली बार अपनी आँखों से दूर भेज रही हूँ...
तापस - पर तुम तो कह रही थी... प्रताप के जाने से... तुम्हें कोई फर्क़ नहीं पड़ेगा... क्यूंकि तुम्हारे पास साथ देने तुम्हारी बहु होगी...
प्रतिभा - (चिहुँक कर) वह मुई भी अभी राजगड़ मैं है...
तापस - क्या... (हैरानी की भाव में)

प्रतिभा गुस्से से तापस की ओर देखती है I तापस अपना चेहरा घुमा लेता है और बात बदलने के लिए

तापस - वैसे जान... प्रताप का बार लाइसेंस आने में... अभी वक़्त है... मान लो राजगड़ में कुछ कानूनी लफड़ा हुआ तो... वह कैसे डील करेगा...
प्रतिभा - मैंने अपनी लाइसेंस को... मड़गेज कर उसके लिए एक प्रोविजनल लाइसेंस नंबर हासिल कर लिया है... और उसे दे भी दिया है...
तापस - क्या... यह तुमने कब किया...
प्रतिभा - जब से वह छूट कर बाहर निकला था...
तापस - और यह तुम... मुझे अब बता रही हो... और उसने भी देखो मुझे अभी तक बताया नहीं... तुम माँ बेटे... मेरी नॉलेज के बाहर हमेशा कुछ न कुछ खिचड़ी पकाते रहते हो... और अंत में मुझे बेवक़ूफ़ बनाते हो...

तापस की इस शिकायत पर प्रतिभा हँस देती है l उसके हँसते ही तापस भी एक चैन की हँसी हँस देता है

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

श्री जगन्नाथ धर्मशाला पुरी मंदिर से कुछ ही दूर I वीर ने दो कमरे लिए थे I ओबराय होटल में कमरा लेना चाहा था पर दादी ने मना किया l क्यूँकी दादी को इतनी लक्जरी की आदत नहीं थी l इसलिए दादी की मन और बात को रखते हुए उसने श्री मंदिर की प्रशासन के आधीन वाली धर्मशाला में दो कमरे लिया था I मंदिर से महा प्रसाद मंगवा कर रात्री भोज तीनों खतम कर चुके थे l पानी लाने के बहाने वीर बाहर पानी की बोतल ला कर दादी और अनु को दिया था I उन्हें उनके कमरे में छोड़ कर अपने कमरे में बैठ कर बार बार घड़ी देख रहा था l वीर अपने फिट कपड़ों में तैयार बैठा हुआ था l रात के दस बजे वीर की फोन बजने लगती है l वीर मोबाइल की स्क्रीन पर देखता है महांती का नाम डिस्प्ले पर दिखा I झट से फोन उठाता है

वीर - हाँ महांती...
महांती - आप... xxx गेस्ट हाउस में आ जाइए...
वीर - ठीक है... पंद्रह मिनट में आ रहा हूँ... यहाँ का इंतजाम...
महांती - हो गया है... आप निकालिये...
वीर - ठीक है...

कह कर फोन काट देता है l अपने कमरे से निकल कर वीर अनु और दादी के कमरे के बाहर खड़ा होता है l दरवाजे पर हल्का सा धक्का देता है l दरवाजा खुल जाता है l अंदर पहुँच कर देखता है दोनों पानी की बोतल लगभग खाली था l मतलब दादी और अनु पानी पी चुके थे और अपने अपने बिस्तर पर बेसुध लेटे हुए थे l वीर पानी की बोतल उठा कर वॉश बेसिन में उड़ेल देता है और खाली बोतल वहीँ पर रख देता है l धीरे धीरे अनु की तरफ बढ़ता है और अनु के सिरहाने बैठ जाता है l बड़े प्यार से अनु की चेहरे को निहारने लगता है l

वीर - माफ करना अनु... पानी में नींद की दवा मिलाया था... हमारे कुछ दुश्मन हैं... जिन्हें हमारा मिलना मंजुर नहीं है... उन्हें सबक सिखाना जरूरी है... (झुक कर अनु की माथे पर एक चुम्मा लेता है) कल सुबह तक आ जाऊँगा... तब तक... सपनों की दुनिया में खो जाओ...

वीर अनु के सिरहाने से उठता है और दादी के पैर के पास बैठ जाता है l दोनों हाथों से दादी का पैर पकड़ लेता है

वीर - दादी... माफ कर देना... मेरे वजह से आप पर या अनु पर कोई खतरा नहीं आना चाहिए... कल सुबह तक सब ठीक कर दूँगा...

इतना कह कर कमरे से बाहर निकालता है और बाहर से दरवाजा बंद कर वहाँ से निकल कर धर्मशाला से बाहर आता है l गाड़ी में बैठ कर गाड़ी दौड़ा देता है l दस मिनट के ड्राइविंग के बाद वह xxxx गेस्ट हाउस के बाहर पहुँचता है l बाहर गाड़ी छोड़ कर गेस्ट हाउस के अंदर जाता है l अंदर महांती और उसके कुछ खास आदमी चार लोगों को नंगा कर एक टेबल पर अध लेटे अवस्था में आमने सामने बांधे रखे हुए हैं l वीर एक चेयर के सहारे टेबल पर खड़ा हो जाता है l उन चारों के हथेली पर बारी बारी चढ़ कर टेबल पर घूमने लगता है l वे चारों दर्द के मारे चिल्लाने लगते हैं l थोड़ी देर बाद वीर टेबल से उतर कर एक चेयर पर बैठ जाता है l

वीर - (उन चार लोगों से) हाँ तो हरामजादों... अब बोलना शुरु करो...
एक - (दर्द के मारे कराहते हुए) आह.. हमने कुछ नहीं किया राज कुमार... आह...
वीर - हाँ... मैं मान लिया... तुमने कुछ नहीं किया... अब तुम लोग भी मान जाओ... मैं तुम लोगों के साथ... बहुत बुरा करने वाला हूँ...
दुसरा - नहीं नहीं... राज कुमार जी... हमें माफ कर दीजिए... प्लीज...
वीर - (महांती से) महांती... इन हरामजादों के पैरों पर छोटे छोटे ज़ख़्म करो... फिर कुछ चूहों को इनके पैरों पर छोड़ दो... जब वह चूहे इनके पैरों को कुतरने लगेंगे... इन्हें सब याद आ जाएगा... और बिल्कुल तोते की तरह बोलना शुरु कर देंगे...
चारों - नहीं.. नहीं... राजकुमार जी हमें... माफ कर दीजिए... प्लीज... आपको गलत फहमी हुआ है...
वीर - (आवाज़ में कड़क पन आ जाती है) महांती... यह लंड खोर... बड़े फर्माबरदार लगते हैं... अब इनके पैरों पर ज़ख्म मत दो... इनके टट्टों के इर्द-गिर्द ज़ख्म बनाओ... चूहे पहले इनके टट्टों से कुतरता शुरु करेंगे...
एक - नहीं... नहीं राज कुमार जी... नहीं... ऐसा कुछ भी मत कीजिए... मैं... मैं बता दूँगा... प्लीज...
वीर - ठीक है... तुझसे जो भी जानकारी मिलेगी... वह एक एक से उगलवा कर मैच करूंगा... कुछ भी छुटा... या झूठ बोला... तो सबसे पहले... तेरे टट्टों को चूहों का निवाला बनाऊँगा...

वीर इशारा करता है l महांती के आदमी उस बंदे को खोल देते हैं और बगल के कमरे में ले जा कर एक चेयर पर नंगा ही बिठा कर हाथ पैर बांध देते हैं l वीर उसके सामने पड़े एक चेयर पर बैठ जाता है

वीर - चल मादरचोद... अब बकना शुरु कर...
एक - हम कलकत्ते के एक डिटेक्टिव एजेंसि से ताल्लुक रखते हैं... हमें कुछ दिन पहले एक असाइनमेंट मिला था... आपके... और उस लड़की पर नजर रखने के लिए...
वीर - ह्म्म्म्म आगे बोल...
एक - बस इतना ही... आपकी और उस लड़की की पल पल की जानकारी हम... उन तक पहुँचाते थे...
वीर - भोषड़ी के.. इतना तो मैं भी जानता हूँ... वह बता... जिससे मैं अनजान हूँ...
एक - बस... हमारे पास एक फोन नंबर है... हमें हर इंफॉर्मेशन पर... अकाउंट में पेमेंट अपडेट हो जाता था.... सच कहता हूँ राजकुमार जी... वह कौन है... कहाँ है... हम कुछ नहीं जानते... हमें पैसा मिलता रहा... और फोन पर जैसे जैसे इंस्ट्रक्शन मिलता रहा... हम बिलकुल वैसे ही करते रहे...
वीर - ह्म्म्म्म... मुझे यकीन नहीं हो रहा है...
एक - (रोते हुए) मैं सच कह रहा हूँ... राजकुमार जी... मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा है...
वीर - ह्म्म्म्म... किस तरह से... इंफॉर्मेशन पहुँचाता था...
एक - जी फोन पर...
महांती - राजकुमार जी... (अंदर आ कर) वह एक वर्चुअल नंबर है... कम्प्यूटर जेनरेटेड..
वीर - इसका मतलब यह ठीक कह रहा है...
महांती - हाँ...
वीर - तो हम अपने दुश्मन तक पहुँचेंगे कैसे...
महांती - बस तीस सेकेंड में...

इतना कह कर महांती इशारा करता है l कुछ आदमी उस बंधे हुए बंदे का दोनों हाथ खोल देते हैं l महांती उसे एक मोबाइल देते हुए

महांती - यह ले... यह तेरा ही मोबाइल है... पर हमारे सिस्टम के ट्रैकिंग में है... लगा उस नंबर पर फोन.. और हाँ तीस सेकंड तक फोन पर बातें रुकनी नहीं चाहिए...

वह आदमी फोन लेता है और एक नंबर पर डायल करता है l जैसे ही रिंग होती है महांती अपने टैब पर देखने लगता है l थोड़ी देर बाद उधर से कॉल कोई उठाता है

- यस
एक - मैं... एक्स बोल रहा हूँ...
- हाँ एक्स क्या खबर है...
एक - वह लड़का.. और उस लड़की का परिवार... उसी धर्मशाला में हैं... कोई मूवमेंट नहीं दिख रहा है...
- ह्म्म्म्म... और कुछ...
एक - लगता है... कहीं उन्हें हम पर शक तो हो गया है...
- क्यूँ... ऐसा क्यूँ लग रहा है...
एक - क्यूंकि धर्मशाला के बाहर... उनके ESS से कुछ लोग पहरे पर लगे हुए हैं...
- और तुम लोग... तुम लोग क्या कर रहे हो...
एक - हम लोग अपनी अपनी पोजिशन पर छुपे हुए हैं...
- भोषड़ी के... मादरचोद... पकड़े गए हो... और मेरी चुटिया काट रहे हो...
एक - (हकलाने लगता है) यह.. यह आप क्या कह रहे हैं...
- अबे भोषड़ी के... जब पिछवाड़े नहीं था गुदा... तो बीच में काहे कुदा... क्यूँ बे वीर सिंह... तुझे तीस सेकंड चाहिए था ना... ले मैंने तुझे चालीस सेकेंड दे दिए... जो उखाड़ना है... उखाड़ ले...

फोन कट जाता है l वीर और महांती दोनों हैरान हो कर एक दुसरे को देखने लगते हैं l महांती फिर भी कॉल को ट्रेस करने कोशिश करने लगता है l फिर थोड़ी देर बाद महांती की जबड़े भींच जाती हैं l वीर उसे सवालिया नजरों से देखता है l महांती उसे टैब दे देता है l वीर उस पर फ्लैश हो रहे लोकेशन को देखने लगता है l


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


बस रात की डिनर के लिए रास्ते पर एक ढाबा पर रुका हुआ था l सारे पैसेंजर उतर कर ढाबे में खाना खाने जा चुके थे l विश्व और सीलु भी ढाबे के बाहर लगे एक टेबल पर बैठे हुए थे l प्रतिभा के दिए पराठे काग़ज़ में लिपटी एलुमिनीयम फएल से निकाल कर खा रहे थे l खाते खाते सीलु की नजर उस काग़ज़ पर पड़ती है l

सीलु - भाई इस कार्टून को देखा...

विश्व उस काग़ज़ पर छपे कार्टून को देखने लगता है l एक आदमी अपने कंधे पर सहारा देते हुए दुसरे आदमी को एक पेड़ पर चढ़ा रहा है और अपने दोनों हाथों से एक कुल्हाड़ी से उसी पेड़ को काट रहा है l पेड़ की पोजिशन कुछ ऐसी है कि कटने के बाद एक मगरमच्छों से भरी तालाब में गिरेगी l वह तस्वीर देखते ही विश्व अपनी अतीत में खो जाता है

फ्लैशबैक

विश्व अपना काम खतम कर महल से निकल रहा था कि उसे पीछे से कल्लू की आवाज सुनाई देता है l

कल्लू - ऑए विश्वा... (विश्व पीछे मुड़ कर देखता है) तुझे राजा साहब ने... दिवाने आम में याद कर रहे हैं...

विश्व इतना सुनते ही भागने लगता है l दिवाने आम में भैरव सिंह एक ऊंची जगह पर बैठ कर नीचे बैठी अपनी पुरी टीम के साथ गुफ़्तगू कर रहा था l विश्व उनके पीछे सिर झुकाए खड़ा हो जाता है l

भैरव सिंह - आओ विश्व... अभी तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था...
विश्व - जी हुकुम...
भैरव सिंह - इनसे मिलो... यह चुनाव अधिकारी हैं... अभी अभी... हमारे पंचायत की डेमोग्रैफीकल जौग्राफी बदला है... तुम्हें जानकर बहुत अच्छा लगेगा... इस बार पंचायत के चुनाव में... पाइक पड़ा सामिल हुआ है...
विश्व - जी हुकुम...
भैरव सिंह - अपने राजगड़ को छोड़ कर... तुम कितने पंचायत को जानते हो...
विश्व - जी ज्यादा नहीं... पर जानता हूँ... कुछ एक को...
भैरव सिंह - और...
विश्व - और... क्या राजा साहब...
भैरव सिंह - वह सारे पंचायत... हमारे पंचायत से थोड़े आगे हैं... हैं ना...
विश्व - मालुम नहीं राजा साहब...
भैरव सिंह - यह... दिलीप कुमार कर... सरपंच बनना चाहता था... पर मैंने उसे बताया... नया दौर है... नये जोश से भरा खुन की आवश्यकता है... इसलिए इसबार की सरपंच चुनाव के लिए... हमने तुम्हारा नाम सुझाया है...
विश्व - जी... (बहुर जोर से चौंकता है) जी... म.. मैं...
भैरव सिंह - हाँ विश्व... हमने खबर ली है... तुम अभी अभी इक्कीस वर्ष के हुए हो... मतलब तुम चुनाव के लिए उपयुक्त हो... इस बार की चुनाव में... तुम ही पुरे देश में सबसे कम उम्र के सरपंच बनोगे...
विश्व - (कुछ कह नहीं पाता)
दिलीप - मुबारक हो विश्व... सरपंच बनने की बधाई...
विश्व - (फिर भी चुप रहता है)
बल्लभ - क्या बात है विश्व... तुम खुश नहीं हुए...
विश्व - राजा साहब... मैं कुछ निर्णय नहीं ले पा रहा हूँ...
भैरव सिंह - निर्णय हमने लिया है विश्व.... तुम्हें बस उस निर्णय पर चलना है...
विश्व - माफ कीजिए राजा साहब... मुझे कोई अभिज्ञता नहीं है... पर मुझे लगता है... कर बाबु पुरी तरह से योग्य हैं...
दिलीप - लो कर लो बात... अरे मुर्ख... मैं तो पेड़ के साख पर उस सूखे पत्ते की तरह हूँ... जो कभी भी झड़ सकता है... अब समय और संसार तुम्हारा है... इसलिए जैसा राजा साहब ने कहा... वैसा ही करो...
बल्लभ - हाँ विश्व... जरा सोचो... राजा साहब ने अगर सोचा है... कुछ ठीक ही सोचा होगा...
विश्व - जी आप दुरुस्त कह रहे हैं... पर मैं... खुद को तैयार नहीं कर पा रहा हूँ... समझा नहीं पा रहा हूँ...
भैरव सिंह - (गंभीर आवाज़ में) इसका मतलब... तुम हमारे निर्णय के विरुद्ध जाओगे..
विश्व - ऐसा ना कहिए राजा साहब... ऐसी मेरी हिम्मत कहाँ... आपकी सेवा में... मुझसे भी योग्य लोग होंगे... आप उन्हें नियुक्त कीजिए... बस मुझे क्षमा कीजिए...
दिलीप - रे मूर्ख... रे धूर्त... तु राजा साहब के हुकुम की... नाफरमानी कर रहा है.... राजगड़ के भगवान की....

विश्व जवाब में कुछ नहीं कहता l सिर झुकाए चुप खड़ा रहता है l

भैरव सिंह - ठीक है विश्व.. तुम घर जाओ...
विश्व - जी राजा साहब...

अपना सिर झुकाए भैरव सिंह को बिना पीठ किए उल्टे पैर दिवाने आम से बाहर निकल जाता है l उसके जाते ही

बल्लभ - कमाल है... पहली बार ऐसा हुआ... राजा साहब की हुकुम... अदब के साथ किसी ने ठुकरा दिया है...
भैरव सिंह - हर जोड़ की एक तोड़ होता है... हर तोड़ की एक मोड़ होता है... और हर मोड़ की एक मरोड़ होता है... इसकी भी तोड़ है... और यह टुटेगा...
दिलीप - ऐसा कौन है राजा साहब...

उधर भैरव सिंह को मना करने के बाद विश्व अंदर ही अंदर बहुत खुश था l वह भागते हुए अपने घर जा रहा था l पर उसे लग रहा था जैसे वह उड़ रहा है l विश्व भागते भागते घर पर पहुँचता है I घर पर वैदेही खाना बना रही थी l

विश्व - (खुशी के मारे) दीदी...
वैदेही - क्या बात है... आज मेरा भाई बहुत खुश लग रहा है... क्या हो गया है तुझे आज...
विश्व - ओ दीदी... (झूमते हुए) दीदी.. दीदी... क्या कहूँ तुमसे... पहली बार...(बहुत ही खुशी के साथ) हाँ दीदी पहली बार... मैंने राजा के मुहँ पर ना कहा है...
वैदेही - क्या... ऐसा क्या हुआ..

विश्व वैदेही से दिवाने खास में हुए सारी बातें बताता है l सारी बातेँ सुनने के बाद वैदेही भी विश्व की तारीफ करती है l

वैदेही - (एक गर्व और गंभीर आवाज में) शाबाश मेरे भाई शाबाश... वाकई... मैं आज बहुत खुश हूँ... हाँ पहली बार... किसीने राजा साहब के मुहँ पर ना को दे मारा है... तुझे तो उसका शकल भी देखना चाहिए था...
विश्व - (खुशी और झिझक की मिली जुली भाव से) चाहता तो मैं भी यही था दीदी... पर मेरी हिम्मत नहीं हुई... बहुत कोशिश की उसके चेहरे पर भाव देखने की... पर मैं अपना सिर उठा नहीं पाया....
वैदेही - कोई ना... मेरे भाई कोई ना... आज तुने उसे ना सुना दिया है... एक दिन उसका बुझा हुआ... झुका हुआ चेहरा भी देखेगा... सिर्फ तु ही नहीं.. इस गांव का हर एक बच्चा बच्चा देखेगा...

भाई बहन की यह वार्तालाप चल रही थी के तभी खाने के जलने की बु आने लगती है l

वैदेही - (चिल्लाते हुए) आह... देख खाना जल गया...
विश्व - ओह माफ करना दीदी...

तभी बाहर दरवाजे पर दस्तक होती है l दोनों भाई बहन का ध्यान उस तरफ जाता है l दरवाजे पर उमाकांत सर खड़े हुए थे l

विश्व - ओह सर आप... आइए सर आइए...

उमाकांत अंदर आता है l वैदेही दौड़ कर अंदर जा कर एक कुर्सी ले आती है l विश्व भी अपनी खुशी को छुपाये वगैर उमाकांत से कहता है

विश्व - सर... आज मैं बहुत खुश हूँ...
उमाकांत - जानता हूँ... (विश्व और वैदेही दोनों हैरान हो कर उमाकांत को देखने लगते हैं) यही ना आज तुमने... राजा साहब को... सरपंच बनने से इंकार कर दिया...

विश्व और वैदेही और भी हैरान रह जाते हैं l उन्हें समझ में नहीं आता कुछ ही घंटों पहले की बातेँ उमाकांत सर को कैसे मालुम हुआ I उमाकांत उनके मन में पैदा हुए शंका को दूर करते हुए

उमाकांत - कुछ देर पहले मेरे घर पर... खुद राजा साहब और दिलीप आए थे... उन्होंने ही मुझे बताया सारी बातेँ...
वैदेही - सर यह बात हमने आपको बताई होती... तो बात समझ में आती... पर यह बात आप तक... जिनके जरिए पहुँची.. वह हैरान करने वाली विषय है...
उमाकांत - हाँ... है तो...
वैदेही - कहीं ऐसा तो नहीं... के उन्होंने आपकी आड़ लेकर... विश्व को राजी कराना चाहते हैं...
उमाकांत - बिल्कुल... सही सोचा है तुमने... मैं यहाँ विश्व को मनाने के लिए ही आया हूँ... पर कोई बाध्य नहीं करूँगा... निर्णय पूर्ण रुप से तुम्हारा होगा...
वैदेही - अगर आपको उन्होंने भेजा है... तो विशु का सरपंच बनना उनके लिए बहुत आवश्यक है... पर उनकी आवश्यकता के लिए विशु ही क्यूँ..
उमाकांत - बेटी... यहाँ हम जिस समाज में जी रहे हैं... दो तरह के भागों में बंटे हुए हैं... एक शोषक... दुसरा शोषित... शोषक इसलिए शोषण कर पाता है... क्यूंकि उसके पास व्यवस्था की हर प्रकार की शक्ति है... शोषित इसलिए शोषण का शिकार हो रहा है... क्यूंकि शक्ति संतुलन में उसके पास... उसका कोई हिस्सा नहीं है... क्या मैं झूठ बोल रहा हूँ...
वैदेही - (कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद) नहीं... आप सही कह रहे हैं...
उमाकांत - तो जब शक्ति संतुलन में... एक हिस्सा हमारे द्वार पर आ रही है... हम उसकी अनदेखी क्यूँ करें...
विश्व - सर कुछ भी हो... हम बचपन से देख ही रहे हैं... सारी व्यवस्था को... राजा के आगे घुटने टेकते हुए... सिर्फ़ राजगड़ के ही नहीं... यहाँ के आस पास जितने भी पंचायत हैं... सभी सरपंचों को... राजा के आगे... जी हजुरी करते हुए... गुलामी करते हुए...
उमाकांत - गुलामी तो हम अब भी कर रहे हैं... (विश्व और वैदेही चुप रहते हैं) बर्षों से लोगों का आक्रोश... बीज बन कर दबी हुई है... उसके उस अकर्मण्यता की जमीन को चिर कर उजाले की ओर राह दिखाने वाला कोई तो चाहिए... उस बीज को महा वृक्ष बनने के लिए.. कोई तो मार्ग चाहिए... या तो आरंभ... तुम खुद से करो... या फिर... प्रतीक्षा करो... कोई आएगा... इस अभिशापित जीवन से सबको बचाएगा....

कुछ देर के लिए चुप्पी छा जाती है l ना वैदेही ना विश्व किसीके मुहँ से कोई बोल नहीं फूटती है l

विश्व - राजा साहब... मुझे सरपंच बना कर... मुझ पर अपना एहसान लादेगा... अपनी मन माफिक काम मुझसे करवाएगा...
उमाकांत - हाँ ऐसा हो सकता है... अगर तुम बिना प्रतिद्वंदीता के चुनाव लड़ोगे... अगर प्रतिद्वंदिता हो... तो...
विश्व - जिसके पीछे राजा साहब हो... उसके खिलाफ कौन लड़ेगा...
उमाकांत - लड़ना अलग बात है... जितना तुम्हारा जरूरी है... तुम्हारी जीत... हर एक घर की जीत होगी... यहाँ के हर एक आँगन की जीत होगी... यह एहसास... तुम्हें लोगों का साथ देगा... विश्वास देगा... उनका साथ... उनका विश्वास तुम्हें ताकत देगा...
विश्व - वह तो ठीक है... पर राजा साहब का... चुनाव में दखल से... लोगों का मनोबल पर क्या असर पड़ेगा... मुझे लोग अपने में गिनेंगे...
उमाकांत - इसीलिए... मैंने राजा साहब से चुनाव में दखल ना देने के लिए... वचन लिया है... और तुम चुनाव बगैर प्रतिद्वंदीता के नहीं लड़ोगे...
वैदेही - तो क्या राजा... मान गया...
उमाकांत - हाँ... पर उसकी भी एक शर्त है...
विश्व और वैदेही - क्या.... कैसी शर्त...
उमाकांत - यही... की विशु की प्रार्थी नामांकन पत्र में... प्रस्तावक में हस्ताक्षर उनका रहेगा... और समर्थन में मेरा नाम होगा...
वैदेही - क्या यह... कोई साजिश हो सकता है...
उमाकांत - हाँ शायद... हो सकता है... पर बाजी तो हमें भी खेलना होगा... शुरुआत कहीं से तो हो... क्या कहते हो विशु...
विश्व - (कुछ देर ख़ामोश रहने के बाद) ठीक है... यह तो नहीं जानता यह साजिश है... या सहायता... पर अगर लोगों में जागृती लाने के लिए यही एक विकल्प है... तो यही सही...

गाड़ी की हॉर्न सुन कर विश्व अपनी यादों से बाहर आता है l सीलु अपना हाथ धो कर आ चुका था l दोनों मिलकर अपनी अपनी सीट पर बैठ जाते हैं l सभी पैसेंजर बस चढ़ने के बाद बस आगे बढ़ जाती है l


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

वीर और महांती एक दुसरे को देखते हैं फिर दोनों उस बंदे को वहीँ छोड़ कर गेस्ट हाउस के दुसरे तरफ एक कमरे में आते हैं l

वीर - महांती... यह क्या है...
महांती - राजकुमार.. मुझे थोड़ा टेबलेट दीजिए...

वीर टैब को महांती के हवाले कर देता है l टैब पर एक दुसरे एप्लीकेशन में कुछ देखने के बाद महांती की आँखे फैल जाती है l

वीर - क्या बात है महांती... हम कहाँ चूक गए... हमें तीस सेकेंड चाइये थे... उसने चालीस सेकेंड दिए... कितनी बेपरवाह से चैलेंज दिया... जो उखाड़ना है उखाड़ लो... टेबलेट में लोकेशन हमारी ESS की ऑफिस दिखा रहा है...
महांती - एक चूक.... नहीं चूक नहीं कह सकते... एक बड़ी गलती हो गई थी... जिसका उस छुपे हुए दुश्मन ने बखूबी फायदा उठाया है...
वीर - क्या... कैसी गलती... हमारे ऑफिस से कुछ दूर मैन रोड के बाई सेक्टर पर... ट्रैफ़िक डिपार्टमेंट ने एक्सीडेंट अवेरनेस के लिए... एक टूटी हुई सैंट्रो कार रखा था... यह लोग उसीके अंदर वाइफाइ राउटर के जरिए... छोटा कंट्रोल रूम बनाया है... और हम पर वहीँ से नजर रखे हुए थे...
वीर - तो... अब तक वह लोग वहाँ से भाग चुके होंगे... हमारे सिक्युरिटी स्टाफ उस गाड़ी को घेर लें... तब भी कोई फायदा नहीं होगा... मतलब दुश्मन हमारे नाक के नीचे था... अब निकल गया है...
महांती - शायद नहीं...
वीर - शायद नहीं का मतलब...
महांती - जब उसने चैलेंज दिया उसी वक़्त... वह अपनी सिस्टम को बंद कर दुसरी गाड़ी से निकल गया है... मैंने अपनी टैब को... हमारे कंट्रोल रूम के... सर्विलांस से जोड़ दिया है... और उन्हें भी नजर रखने के लिए... कह देता हूँ...
वीर - गुड... तो फिर मैं निकालता हूँ... मुझे फोन पर गाइड करते रहना...

इतना कह कर वीर तेजी से भागते हुए अपनी गाड़ी में बैठ जाता है और स्टार्ट कर भुवनेश्वर के तरफ गाड़ी को दौड़ा देता है l वीर महांती को फोन लगाता है l

वीर - महांती... मुझे हर हाल में उसे चेज करना है... मुझे गाईड करो...
महांती - राज कुमार... आप उससे डेढ़ घंटे दूर हैं...
वीर - कोई परवाह नहीं है... तुम बस उस गाड़ी की मूवमेंट पर नजर गड़ाए रखो...
महांती - राजकुमार अगर आप बुरा ना मानें तो...
वीर - हाँ कहो...
महांती - क्यूँ ना युवराज जी से कहें... वह तो भुवनेश्वर में हैं...
वीर - नहीं महांती... आज भैया और भाभी दोनों का खास दिन है... कोई डिस्टर्बेंस नहीं... जो भी होगा मैं सम्भाल लूँगा...
महांती - ठीक है... आप चलाते रहिए...

और कोई बात नहीं होती l वीर गाड़ी चला या दौड़ा नहीं रहा था बल्कि उड़ा रहा था l रात में एनएच पर थोड़ी बहुत ट्रैफिक तो थी पर रास्ता खाली ही था l उधर महांती भी अपनी टैब में शहर की सर्विलांस के जरिए गाड़ी पर नजर जमाए हुए था l वह देखता है एक होटल के पास गाड़ी रुक जाती है, तीन लोग उतरते हैं और उस होटल के अंदर चले जाते हैं l फिर वह गाड़ी वहाँ से चली जाती है l

महांती - राजकुमार... आप इस वक़्त... एक्जक्टली xxx से कितनी दूरी पर होंगे...
वीर - शायद डेढ़ घंटा.... क्या वह लोग वहीँ उतरे हैं...
महांती - नॉट श्योर... कुछ लोग उतरे तो हैं xxx होटल में... मैंने उस होटल के साथ साथ... गाड़ी पर नजर रखने के लिए... कंट्रोल रूम को इंस्ट्रक्ट कर दिया है... होटल पर नजर मैं खुद रखे हुए हूँ...
वीर - क्या उस होटल की सर्विलांस मिल सकता है...
महांती - इस वक़्त तो नहीं... कल मिल सकेगा... उनके हार्ड ड्राइव से...
वीर - ठीक है... मैं होटल पहुँच कर देखता हूँ....

वीर गाड़ी को xxx होटल के तरफ भगा देता है l करीब करीब एक घंटे के बाद वीर उस होटल में पहुँचता है l एक छोटा सा आम सा होटल था l वीर झट से होटल के रिसेप्शन में पहुँचता है l देखता है रिसेप्शन में कोई नहीं था l अपनी नजरें घुमाता है l देखता है कोई सीसीटीवी की व्यवस्था नहीं है l वह चिढ़ कर वहां के रिसेप्शन टेबल पर बेल बजाने लगता है, पर कोई जवाब नहीं मिलता l वह रिसेप्शन से आगे बढ़ कर कमरों की तलाश को निकलने वाला होता है कि रिसेप्शन पर रखे लैंडलाइन फोन बजने लगती है l वीर पहले तो इग्नोर करता है पर कुछ सोच कर फोन उठाता है l

- हा हा हा हा हा हा... क्या राज कुमार पोपट हो गया ना तुम्हारा...
वीर - ओ तुम...
- हाँ मैं... तुम पर मेरा इतना गुस्सा है... की अगर तुझे मार डालूँ तो भी कम है... पर तुझे बार बार हारते हुए देखने में... बड़ा मजा आ रहा है...
वीर - (जबड़े भींच जाती हैं, पर फिर भी वह चुप रहता है)
- तुम्हें छटपटाते हुए देखना... क्या बताऊँ... मेरे दिल को कितना सुकून देता है... बस इसी तरह कुछ दिन तड़पाऊँगा... फिर तुझे इस दुनिया से आजाद कर दूँगा...
वीर - (दांत पिसते हुए) कमीने... एक बार... बस एक बार मेरे हाथ लग जा... तुझे अपने पैदा होने पर... बहुत पछतावा होगा...
- वह दिन... कभी नहीं आएगा... वैसे यह देख कर अच्छा लगा... अब तु चौबीसों घंटे... अनु को अपने लोगों की निगरानी में रखा हुआ है.... पर कोई ना... तु ही एक दिन मेरे लिए मौका बनाएगा... उस दिन... तेरी आँखों के सामने... तेरी अनु को...
वीर - (चिल्लाते हुए) हरामजादे....

चिल्ला कर फोन को उखाड़ कर फर्श पर पटक देता है l तभी उसकी कानों में एक गाड़ी के स्टार्ट होने की आवाज सुनाई देती है l वीर उस गाड़ी की आवाज की तरफ भागने लगता है l आवाज बेसमेंट से आ रही थी l जब बेसमेंट के एंट्रेंस पर पहुँचता है तभी एक कार की हेड लाइट ऑन हो जाती है, वीर की आँखे कुछ पल के लिए चुंधीया जाती हैं l कार तेजी से वीर की तरफ बढ़ रही थी, वीर कुद कर एक किनारे हट जाता है l कार उसे पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ जाती है तो वीर उस गाड़ी के पीछे दौड़ने लगता है l गाड़ी पहले पार्किंग की हुई गाड़ी को ठोक देती है, जिसके वजह से वीर की गाड़ी एक किनारे हो जाती है l वीर अपनी मोबाइल निकाल कर तेजी से फोटो लेते हुए गाड़ी की तरफ भागता है l पर वीर के पहुँचने से पहले ही वह कार जा चुकी थी l वीर की कार साइड से डैमेज हो चुका था l वीर अपनी मोबाइल पर खिंचे हुए फोटों को देखने लगता है l उसे कार की नंबर कुछ साफ नहीं दिखती है l वह खीज कर एक लात अपनी कार पर मारता है l तभी उसका मोबाइल बजने लगता है l स्क्रीन पर महांती डिस्प्ले हो रहा था l

वीर - (बुझे मन से) हाँ महांती... बोलो...
महांती - राजकुमार... आप ठीक तो हैं ना...
वीर - हाँ... (दांत पिसते हुए) कमबख्त... हाथ से निकल गया... (तभी वीर की नजर एक जगह ठहर जाती है) एक मिनट महांती... एक मिनट...

कॉल को होल्ड में रख कर जहां गाड़ी टकराइ थी वहाँ पर वीर को एक मोबाइल मिलता है l वीर महांती से पूछता है

वीर - महांती... एक मोबाइल मिला है... पैटर्न लॉक्ड है... क्या उसके मालिक का पता लगाया जा सकता है...
महांती - जी राजकुमार जी...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×


बस में नाइट लैम्प की रौशनी ही थी l लोग अपनी अपनी सीट पर फैल कर सो गए थे l कोई कोई तो खर्राटे भर रहे थे l पर विश्व की आँखों से नींद गायब थी I वह अपनी जेब से वही कार्टून निकाल कर देखने लगता है l और धीरे धीरे अपनी यादों में खोने लगता है

लोग विश्व को अपने कंधे पर बिठा कर लोग झूमते हुए गांव की गालियों में घूमते हुए जयकारा लगाते हुए गुजर रहे हैं l चुनाव में कुल चार प्रत्याशी खड़े हुए थे, पर विश्व की जबर्दस्त जीत हुई थी और बाकी तीनों प्रत्याशियों की ज़मानत जप्त हो गई थी l विश्व की जीत से लोगों में जबरदस्त खुशी छाई हुई थी l लोगों के कंधे पर बैठा विश्व भी बहुत खुश था l पुरे गांव घुमते घुमते लोग विश्व के घर के आगे पहुँचते हैं l घर के बाहर वैदेही और उमाकांत सर खड़े थे l वीर लोगों के कंधे से उतर कर वैदेही के पास जाता है l लोग विश्व की नाम का जयकारा लगा रहे थे l

विश्व - (खुशी के साथ) दीदी... हम जीत गये... हम जीत गये दीदी...

बस इतना ही कह पाया कि वैदेही एक के बाद एक तीन जोरदार थप्पड़ मारती है l विश्व और उसके साथ साथ वहाँ पर मौजूद सभी गाँव वाले हैरान हो जाते हैं l विश्व अपनी गाल को सहलाते हुए आँखे बड़ी बड़ी करते हुए वैदेही को देखता है l

विश्व - दीदी... (वैदेही कुछ नहीं कहती) (उमाकांत से) स... सर... यह दीदी...
उमाकांत - यह थप्पड़... तुम्हारे लिए... कुछ याद रखने के लिए... वैदेही ने मारा है... मैं तो जानता हूँ... पर चाहूँगा... तुम्हारी दीदी यह बात... तुम्हें इन गाँव वालों के सामने कहे...

विश्व के साथ साथ सभी गाँव वाले वैदेही की ओर देखने लगते हैं l

वैदेही - विशु... जब मुग़लों ने... कलिंग साम्राज्य को बर्बाद कर दिया... तब ओड़िशा की अस्मिता हाहाकार करने लगा था... तो उसको बचाने के लिए... खुर्दा से भोई वंश सामने आया... जब राजा रामचंद्र देव का राज तिलक होना था... तब उनके राज गुरु ने उन्हें तीन थप्पड़ मारा था... तीनों थप्पड़ यह एहसास दिलाने के लिए तुम जन प्रतिनिधि हो... उनके निधि पति नहीं हो... बल्कि उनकी निधि रक्षक हो...
पहला धन...
दूसरा इज़्ज़त...
तीसरा जीवन...
कुछ भी हो जाए... तुम इन गांव वालों की धन जीवन और आत्मसम्मान व आत्मगौरव यानी इज़्ज़त की रक्षा करनी होगी... अगर कभी उनकी धन जीवन और गौरव की हानि हुई... तो तुझे उनकी प्रतिकार करना होगा...

आखिर वो दिन आ ही गया जिसके लिए प्रतिभा और तापस इतने चिंतित और बैचेन थे। दोनो ही बेशुमार प्यार करते है विश्व से नगर एक दूसरे के सामने दिखाते नही है। इसीलिए तो दोनो ने पैसे भी एक दूसरे से छुप के दिए थे। सीलू ना पहुंचता तो प्रतिभा ने आज ही तापस की क्लास लगा देनी थी मगर सीलू भी एक नंबर का नौटंकी है और उसने प्रतिभा को माना ही लिया। जाते जाते गले लग कर विश्व ने दोनो कोनापने प्यार और वापस आने का आश्वासन दे दिया।

वीर बेचारा कोशिश तो बहुत कर रहा है मगर हर बार एक कदम पीछे रह जाता है उस ब्लैकमेलर से। एक आशंका ये भी लगती है की ये कहीं अनु के मट्टू भैया तो नही जिनको अपने माता पिता और वीर के बारे में पता चल गया हो और उसे अनु और वीर के बारे में भी पता है तो इसीलिए अनु को निशाना बना कर वीर पर हमला कर रहा है।

विश्व को पुरानी बाते याद आ रही है और कहीं ना कहीं कैसा लग रहा है की उमाकांत ने किसी दबाव में विश्व को फंसाया था शायद अपने पोते की वजह से। क्योंकि जिस तरह उन्होंने विश्व और वैदेही को इमोशनल ब्लैकमेल किया और बाद में पता चला था की रूप फाउंडेशन वाले कांड में उन्होंने विश्व के खिलाफ गवाही थी तो उससे तो यही लगता है की उमाकांत ने भी भले ही मजबूरी में ही सही मगर विश्व और वैदेही को धोखा दिया था।

बहुत ही इमोशनल अपडेट था Kala Nag बूज्जी भाई।

विश्व की मानोदशा पर ये गाना याद आ गया।

घुंघरू की तरह बजता ही रहा हूँ मैं
कभी इस पग में, कभी उस पग में
बंधता ही रहा हूँ मैं
घुंघरू की तरह…

कभी टूट गया, कभी तोड़ा गया
सौ बार मुझे फिर जोड़ा गया
यूँ ही लुट-लुट के, और मिट-मिट के
बनता ही रहा हूँ मैं
घुंघरू की तरह…

मैं करता रहा औरों की कही
मेरी बात मेरे मन ही में रही
कभी मंदिर में, कभी महफ़िल में
सजता ही रहा हूँ मैं
घुंघरू की तरह…

अपनों में रहे या गैरों में
घुंघरू की जगह तो है पैरों में
फिर कैसा गिला जग से जो मिला
सहता ही रहा हूँ मैं
घुंघरू की तरह…
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
3,768
21,517
159
वैदेही - विशु... जब मुग़लों ने... कलिंग साम्राज्य को बर्बाद कर दिया... तब ओड़िशा की अस्मिता हाहाकार करने लगा था... तो उसको बचाने के लिए... खुर्दा से भोई वंश सामने आया... जब राजा रामचंद्र देव का राज तिलक होना था... तब उनके राज गुरु ने उन्हें तीन थप्पड़ मारा था... तीनों थप्पड़ यह एहसास दिलाने के लिए तुम जन प्रतिनिधि हो... उनके निधि पति नहीं हो... बल्कि उनकी निधि रक्षक हो...
पहला धन...
दूसरा इज़्ज़त...
तीसरा जीवन...
कुछ भी हो जाए... तुम इन गांव वालों की धन जीवन और आत्मसम्मान व आत्मगौरव यानी इज़्ज़त की रक्षा करनी होगी... अगर कभी उनकी धन जीवन और गौरव की हानि हुई... तो तुझे उनकी प्रतिकार करना होगा...

बस इस एक संवाद से राजा / नेता के कर्त्तव्य का वर्णन हो जाता है। इस कसौटी पर आज के राजाओं / नेताओं को रख कर देखें तो पाएँगे कि वो इन कसौटियों पर केवल शून्य ही नहीं, बल्कि नेगेटिव भी हैं - मतलब लोगों के धन, सम्मान और जीवन का रक्षण नहीं, बल्कि भक्षण करने में लगे हैं। यह देश और समाज का दुर्भाग्य ही है। खैर!

बहुत ही उम्दा लिखा है Kala Nag भाई!

वीर की बेबसी का वर्णन बेहतरीन है। जब तक उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं था, तब तक उसको डर किंचित मात्र नहीं था। लेकिन अब उसके पास खोने के लिए जीवन का प्रेम है। डरना बनता है। क्रोध भी। और बेबसी भी। सच में - अगर उसको डराने / धमकाने वाला उसके सामने आ जाए तो वीर उसको तार तार कर देगा।

कुछ ऐसी ही दशा तापस - प्रतिभा की भी है! वो पहले अपनी संतान खो चुके हैं, तो ऐसे में जीवित संतान को खोने का डर तो है ही। लेकिन वो विश्व को जाने से रोक नहीं सकते क्योंकि वो भी अपने कर्म से बंधा हुआ है।

कहानी के हल्के पक्ष पर चर्चा करें, तो पाएँगे कि विश्व की बत्ती लगी रहेगी! उसकी अम्मा और बीवी दोनों ही नकचढ़ी हैं! बात बात में तुनक जाती हैं। बहन भी मज़बूत वैल्यू सिस्टम वाली है - कम से कम वो तुनकमिज़ाज नहीं है।

ऊपर कुछ पाठकों ने लिखा है कि अब शायद फ़्लैशबैक समाप्त होना चाहिए - मैं भी उनके विचार से इत्तेफ़ाक़ रखता हूँ। और आज से नहीं, कम से कम बीस तीस अपडेट पहले से।
अब प्लीज प्लीज प्लीज वर्तमान में ही लिखें!
 
Top