वैदेही - विशु... जब मुग़लों ने... कलिंग साम्राज्य को बर्बाद कर दिया... तब ओड़िशा की अस्मिता हाहाकार करने लगा था... तो उसको बचाने के लिए... खुर्दा से भोई वंश सामने आया... जब राजा रामचंद्र देव का राज तिलक होना था... तब उनके राज गुरु ने उन्हें तीन थप्पड़ मारा था... तीनों थप्पड़ यह एहसास दिलाने के लिए तुम जन प्रतिनिधि हो... उनके निधि पति नहीं हो... बल्कि उनकी निधि रक्षक हो...
पहला धन...
दूसरा इज़्ज़त...
तीसरा जीवन...
कुछ भी हो जाए... तुम इन गांव वालों की धन जीवन और आत्मसम्मान व आत्मगौरव यानी इज़्ज़त की रक्षा करनी होगी... अगर कभी उनकी धन जीवन और गौरव की हानि हुई... तो तुझे उनकी प्रतिकार करना होगा...
बस इस एक संवाद से राजा / नेता के कर्त्तव्य का वर्णन हो जाता है। इस कसौटी पर आज के राजाओं / नेताओं को रख कर देखें तो पाएँगे कि वो इन कसौटियों पर केवल शून्य ही नहीं, बल्कि नेगेटिव भी हैं - मतलब लोगों के धन, सम्मान और जीवन का रक्षण नहीं, बल्कि भक्षण करने में लगे हैं। यह देश और समाज का दुर्भाग्य ही है। खैर!
बहुत ही उम्दा लिखा है
Kala Nag भाई!
वीर की बेबसी का वर्णन बेहतरीन है। जब तक उसके पास खोने के लिए कुछ नहीं था, तब तक उसको डर किंचित मात्र नहीं था। लेकिन अब उसके पास खोने के लिए जीवन का प्रेम है। डरना बनता है। क्रोध भी। और बेबसी भी। सच में - अगर उसको डराने / धमकाने वाला उसके सामने आ जाए तो वीर उसको तार तार कर देगा।
कुछ ऐसी ही दशा तापस - प्रतिभा की भी है! वो पहले अपनी संतान खो चुके हैं, तो ऐसे में जीवित संतान को खोने का डर तो है ही। लेकिन वो विश्व को जाने से रोक नहीं सकते क्योंकि वो भी अपने कर्म से बंधा हुआ है।
कहानी के हल्के पक्ष पर चर्चा करें, तो पाएँगे कि विश्व की बत्ती लगी रहेगी! उसकी अम्मा और बीवी दोनों ही नकचढ़ी हैं! बात बात में तुनक जाती हैं। बहन भी मज़बूत वैल्यू सिस्टम वाली है - कम से कम वो तुनकमिज़ाज नहीं है।
ऊपर कुछ पाठकों ने लिखा है कि अब शायद फ़्लैशबैक समाप्त होना चाहिए - मैं भी उनके विचार से इत्तेफ़ाक़ रखता हूँ। और आज से नहीं, कम से कम बीस तीस अपडेट पहले से।
अब प्लीज प्लीज प्लीज वर्तमान में ही लिखें!