मेरा एक मित्र है। उसकी बहुत नेक पत्नी है। लेकिन उसकी पत्नी अपने पिता (मतलब मेरे दोस्त के ससुर) से बहुत डर कर रहती है। शादी के पाँच सात हो गए होंगे, फिर भी। पत्नी ही क्या, पत्नी की माँ का भी यही हाल है! ऑफिस में भी हौव्वा बना कर रखा है बुड्ढे ने। तरीका एक ही है - या तो वो कुत्ते की तरह भौंकने लगता है, या फिर इमोशनल अत्याचार करता है। तो एक तरह से उसका बाप अभी भी भाभी के जीवन पर कण्ट्रोल रखे हुए है। दोस्त ने इतने वर्षों तक बुड्ढे का लिहाज़ किया, सभ्यता से उससे बातचीत करी। यथोचित सम्मान दिया। लेकिन दिल की बातें आ जाती हैं जुबां पर कभी कभी। मैंने उसको समझाया कि दोस्त, तुम और भाभी के जीवन में किसी तीसरे के हस्तक्षेप का कोई स्थान नहीं। लेकिन यह तुम ही सुनिश्चित कर सकते हो। तुम्हारी पत्नी तुम्हारा आधा भाग है - अर्धांगिनी! सोचो कैसा लगे कि तुम्हारे आधे शरीर को कोई अन्य अपने इशारे पर नचाए? भाई को बात जम गई।
बस, एक सप्ताह पुरानी बात है। न जाने किस प्रेरणा से भाभी ने अपने जीवन में पहली बार पलट कर अपने बाप से पूछ लिया कि वो क्यों उसके साथ ऐसा करता है? भाई, उत्तर में वही, जाना पहचाना टैंट्रम चालू! लेकिन इस बार अपना भाई तैयार था - उसने बुड्ढे को पागल कुत्ते की तरह काट खाया। दो दिन टैंट्रम किया, लेकिन किसी ने कोई ध्यान ही नहीं दिया। तब से बुड्ढे को अपनी औकात समझ आ गई, और चूहे की भाँति अपनी कमीज के नाप से भी कम में सिमट कर रह रहा है।
इस कहानी से क्या हमको क्या शिक्षा मिलती है? यही कि भौंकने वाले कुत्ते दरअसल बहुत इनसेक्योर होते हैं। उनकी गांड पर एक लात मार दो, तो तमीज़ में रहने लगते हैं। भैरव सिंह टाइप के लोग कुत्ते जैसे होते हैं - साथ में दो कुत्ते हों, तो उनको सम्बल मिलता है, और खुद को डायनासॉर समझते हैं।
बाकी बढ़िया अपडेट! बिना वजह का विश्लेषण करने का मेरा कोई मूड नहीं है।