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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

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थोड़ा रह गया है
कल सुबह दस बजे तक अपडेट आयेगा
धन्यबाद और आभार
चलो सुबह तक भी इंतजार कर ही लेंगे क्योंकि अपडेट के आने में भले ही थोड़ी देर सबेर हो जाए मगर अपडेट पढ़ कर दिल को जो आनंद प्राप्त होता है वो व्यक्त करना शब्दो की परिधि से बाहर की बात है। अब जब Kala Nag भाई के पंखे बन ही गए तो फिर चाहे बिजली से चले या इन्वर्टर से चलते तो रहेंगे ही। वैसे भी सारे पात्रों के बीच के दृश्यों, संवादों और प्रस्तिथियों का निर्माण और पिछले और नए अपडेट्स के बीच सामंजस्य बिठाना भी एक काफी बड़ा कार्य होता है तो हम आपके परिश्रम का ह्रदय से सम्मान करते है।
 

Kala Nag

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👉सत्तानवेवां अपडेट
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अपना ग्लास खतम कर टेबल पर रखते हुए रोणा अपनी कुर्सी पर पीठ टिकाये सीधा हो कर बैठ जाता है l रोणा अपने में खोया हुआ कुछ गहरी सोच में था l बल्लभ को रोणा की हालत देख कर ऐसा लगता है l

बल्लभ - क्या बात है रोणा...
रोणा - (नशे में अपना गर्दन हिलाते हुए) उँ...
बल्लभ - कुछ सोच रहा था... या अपनी करनी पर पछता रहा था...
रोणा - मिस्टर बल्लभ चंद्र प्रधान... साले काले कोट वाले... मेरी कुंडली में तु केतु बनकर बैठ गया... और मैं मादरचोद... तेरे से दोस्ती कर के... (गाते हुए) क्या से क्या... हो.. गया...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... समझ गया... तुझे चढ़ गई है...
रोणा - हाँ... एक शराब ही तो है... जो चढ़ती है... वरना... सिर पर तो राजा साहब बैठे हुए हैं...
बल्लभ - तो... टोनी ने विश्वा नाम के छुरी से तेरी फाड़ दी है...
रोणा - (चिल्लाते हुए) हाँ.. हाँ.. हाँ बे हाँ... मेरी फटी पड़ी है... राजा साहब से क्या कहूँगा... (नॉर्मल होते हुए) खैर... मेरी छोड़... तु बता... राजा साहब से... तु क्या कहेगा... विश्वा... सात साल की सेंट्रल जैल यूनिवर्सिटी में... हमसे टकराने के लिए... हर तरह की डिग्री हासिल कर लिया है... अब ना सिर्फ दिमाग से... बल्कि जिस्म से भी बहुत ताकतवर बन चुका है... एक्जांपल के लिए... उसने दो बार... मेरी मार कर ली है....

बल्लभ चुप रहता है l क्यूँकी रोणा भले ही नशे में था, पर कह बिल्कुल सही रहा था l दो दिन बाद राजा साहब दिल्ली से भुवनेश्वर में आयेंगे l जब विश्व के बारे में पूछेंगे, तब वह क्या कहेगा l उसने विश्व के बारे में जो भी अंदाजा लगाया था, विश्व उसके सोच से कहीं आगे निकला है l अगर टोनी की कही बातों पर ध्यान दिया जाए तो विश्व की जितनी क़ाबिलियत बता कर गया है उससे विश्व के बारे में वे लोग पुरी तरह से अंधेरे में हैं l विश्व जैल से निकलने से पहले ही अपना प्लॉट सेट कर चुका होगा l उसने होम मिनिस्ट्री और हाइ कोर्ट में आरटीआई फाइल कर दिया है l मतलब साफ था l वह अब अपने आप को सुरक्षित कर लिया था l उसे जरा सी भी खरोंच आई तो मीडिया वाले ईंट से ईंट बजा देंगे, और कानूनी जाँच सो अलग l आरटीआई के जानकारी के आधार पर वह अदालत में पीएलआई पर रिट पिटीशन दायर करेगा l केस दुबारा से खुल जाएगा l जो कसर जयंत राउत से छूट गया था, वह अब विश्व पुरा करेगा l

रोणा - अब तु सोच रहा है... या पछता रहा है...
बल्लभ - दोनों....
रोणा - अब पछताये होगा क्या... जब चिड़िया चुग गई खेत... कहा था... मार देते हैं... पर नहीं... किसीने मेरी बात नहीं मानी...
बल्लभ - हम तब भी सही थे... और अब सब सही करना है....
रोणा - क्या सही थे... कहाँ सही थे...
बल्लभ - याद कर.. हमने जिन्होंने घेरा था... सारे एक्युश्ड को मरवा दिया गया... सिर्फ़ विश्व को छोड़ कर... क्यूंकि उसने पांच चिट्ठियां लिखे थे.. या सात... हम नहीं जानते थे... फिर उसकी हरकतों से... आधार कार्ड घपला बाहर आ चुका था... किसी एक एक्युश को जिंदा रखना जरूरी था कारवाई के लिए...
रोणा - हाँ... तब भी सुधार किया जा सकता था... उसके लिए... अगर कोई अपने तरफ वाला पैरवी किया होता... साला... वह जयंत राउत... बीच में टपक पड़ा... उसको टपकाना पड़ा... विश्व को सात साल की सजा... (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है, फिर ग्लास में थोड़ी शराब डाल कर पी ता है) सात साल में... उसने अपनी तैयारी कर ली है... राजा साहब से टकराने के लिए... किस किस फ्रंट पे... मालुम तो है... पर... हम... हम सब बंधे हुए हैं...
बल्लभ - तु तो कहा करता था... तूफ़ान से पहले घबराता जरूर है... पर जब सामने हो... तो हालात से जुझना आता है...
रोणा - तु भी तो... विश्व को आइस बर्ग कह रहा था... राजा साहब एंड ग्रुप को टाइटैनिक...
बल्लभ - मेरी प्रेडिक्शन में कोई गलती नहीं हुई है... अब तेरा... मेरा और परीड़ा का काम बढ़ गया है...
रोणा - जानता हूँ... पर अब जो भी करना है... राजा साहब को बताना तो पड़ेगा ही...
बल्लभ - हाँ बताना तो पड़ेगा ही... पर सवाल है... क्या... और कैसे... बात घूम फिर कर वहीँ पहुँच रही है....
रोणा - राजा साहब अगर... पर्सनली कुछ करें तो...
बल्लभ - यह तब होगा... जब हम विश्व को... उनके बराबर रख दें...
रोणा - क्या... क्या मतलब हुआ...
बल्लभ - दोस्ती... दुश्मनी... और रिश्तेदारी... राजा साहब उनसे करते हैं... या करने की सोचते हैं... जो उनके बराबर होगा... या बढ़ कर होगा...

रोणा बल्लभ की बात सुन कर उसे घूरने लगता है l

बल्लभ - हाँ रोणा... यह सच है... इसीलिए तो... वह भुवनेश्वर अगर आते भी हैं... तो या तो सर्किट हाउस में रुकते हैं... या फिर बारंग रिसॉर्ट में... पर युवराज के यहाँ ठहरते नहीं है... क्यूंकि उनकी बड़ी बहु को... वह अपने बराबर नहीं मानते....
रोणा - इतना अहंकार... इतना गुरुर...
बल्लभ - वह इसलिए... की वे राजा साहब हैं... जब वह अपनों के साथ... इस मामले में फर्क़ नहीं करते... तो दुश्मनों के बारे में कैसे फर्क़ करेंगे...
रोणा - ह्म्म्म्म... हमें विश्व के बारे में सच्चाई बताना तो पड़ेगा...
बल्लभ - हाँ... विश्व के बारे में... सब कुछ बताना पड़ेगा... पर यह भी बताना पड़ेगा... की हम संभाल लेंगे... बात उन तक नहीं पहुँचेगी...
रोणा - क्या सच में... हम संभाल पाएंगे....

बल्लभ चुप रहता है l रोणा भी बात को आगे नहीं बढ़ाता है l

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एक कमरा फूलों से सजा हुआ है l कमरे के बीचोबीच एक टेबल पर वीर अपना सिर रख कर आँखे बंद कर सोया हुआ है l कमरे का दरवाजा खुलता है, विक्रम अंदर आता है l अंदर की सजावट देख कर विक्रम हैरान हो जाता है l मद्धिम रौशनी में हर रंग के फूलों से सजा हुआ कमरा जैसे किसीके स्वागत के लिए पलकें बिछाये तरस रहे हों l हर फुल की खुशबु कमरे में साफ महसुस किया जा सकता है l दरवाजे से उस टेबल तक राह में गुलाब के पंखुड़ियां बिछे पड़े हैं l हर नस्ल के खुशबुदार फुल कमरे में तरह तरह से सजे हुए हैं l ऐसा लगता है प्रकृति की सौंदर्य पर किसी कवि की कविता को इस कमरे में उकेर दी गई है l कुछ देर के लिए खुद विक्रम भी सम्मोहित हो गया l फिर खुद को संभाल लेता है और गुलाब की पंखुड़ियों के रास्ते पर चलते हुए टेबल पर सिर रख कर लेटा हुआ वीर के पास पहुँचता है I गौर से वीर को देखता है, वीर के आँखों के नीचे काले काले धब्बे जैसे दिखते हैं, जो गवाही दे रहे थे वीर काफी रोया है l टेबल के दुसरी तरफ और एक चेयर पड़ा था l विक्रम उसे खिंच कर वीर के बगल में बैठ जाता है l वीर को विक्रम बड़े प्यार से देखता है, आखिर एक ही तो भाई है उसका l हर कदम पर उसके साथ खड़ा रहा है अब तक l किसी से डरता नहीं, मुहँ पर लगाम नहीं पर विक्रम की बातों का हमेशा इज़्ज़त रखने वाला, उसका अपना वीर l मुस्करा देता है और वीर के बालों पर हाथ फेरता है l वीर की आँख खुल जाती हैं l

वीर - (हैरानी के साथ) भैया... आप यहाँ...
विक्रम - हूँ...
वीर - आ.. आ..प यहाँ कैसे...
विक्रम - रात के दस बज रहे हैं... तुमने अपनी भाभी से पार्टी अरेंज करने के लिए कह तो दिया... पर तुम खुद गायब हो गए...
वीर - (सिर झुका लेता है) सॉरी भैया...
विक्रम - सॉरी कैसा... सब मेरी करनी का फल है...
वीर - इसमें... आपकी करनी कहाँ से आ गई...
विक्रम - आशियाने का नाम.. द हैल रखा... इसलिए तो खुशियाँ चौखट तक आती हैं... पर चौखट लांघ कर अंदर नहीं आती हैं...
वीर - (चुप रहता है, और अपनी नजरें घुमा लेता है)
विक्रम - क्या हुआ वीर...
वीर - (भारी आवाज़ में) भैया... मैंने फोन स्विच ऑफ कर रखा था... फिर आपको कैसे मालुम हुआ... की मैं यहाँ हूँ...
विक्रम - जब शाम आठ बजे तक... नहीं आए... तुम्हारी भाभी को चिंता होने लगी... मुझसे... पता करने के लिए कहा... और मैंने... महांती से कहा... महांती ने एक खास बात पता किया... की तुम बुटीक में खरीदारी करते वक़्त... एक फ्लोरीस्ट से बात की थी... जब महांती फ्लोरीस्ट से पूछताछ की... तब मालूम हुआ... की तुमने पुरा का पुरा... इस फंक्शन हॉल को डेकोरेट करने के लिए कहा था... तब मैं पुरी तरह से बात समझ गया... इसलिए सीधा यहाँ आ गया...

वीर कोई जवाब नहीं देता l विक्रम अपने शूट के अंदर से एक शराब की बोतल और एक ग्लास निकालता है l यह देख कर वीर हैरानी से विक्रम को देख कर

वीर - यह.. यह क्या है भैया..
विक्रम - चिवास रिगल...
वीर - मैंने ब्रांड नहीं पुछा है..
विक्रम - मैंने इस वक़्त के ज़ख्म का मरहम निकाला है...(कह कर ग्लास में शराब डालता है और शूट के अंदर मिनरल वाटर की बोतल निकाल कर मिक्स कर वीर को देता है)
वीर - नहीं...
विक्रम - क्यूँ... बड़े भाई के सामने पीना नहीं चाहते... या...
वीर - जो ग़म है... मैं उसे भुलाना नहीं चाहता हूँ... जो दर्द है... मैं उसे भुलाना नहीं चाहता हूँ...
विक्रम - गलत फहमी है तुम्हारा... इससे ना दर्द भुलाया जाता है... ना ग़म... बल्कि दोनों को झेलने की हिम्मत मिल जाती है...
वीर - मैं... लड़खड़ाना नहीं चाहता...
विक्रम - फिर गलत... लड़खड़ा तो तुम अभी रहे हो... यह तुम्हें बैलेंस बनाना सिखाएगा... पर सिर्फ आज की रात के लिए... (ग्लास को वीर की ओर बढ़ाते हुए) हूँ... तुम जानते हो.... मेरा एक्सपीरियंस है... इस मामले में... आखिर तुम ही तो मुझे घर ले जाया करते थे....
वीर - (सपाट भाव से विक्रम की ओर देखता है)
विक्रम - घबराओ मत... आज तुम्हें... तुम्हारा भाई लेकर जाएगा...

वीर झट से विक्रम के हाथों से ग्लास लेता है और एक ही सांस से हलक से उतार देता है l विक्रम दुबारा ग्लास भर देता है l वीर फिर से वही करता है l चार पेग के बाद वीर पाँचवां पेग धीरे धीरे घुट भरने लगता है l वीर को अब सुरूर चढ़ने लगता है l

वीर - सॉरी भैया...
विक्रम - किस लिए...
वीर - जब आप भाभी के प्यार में थे... मैं आपका खिल्ली उड़ाया करता था...
विक्रम - तो... तो क्या हुआ...
वीर - आप सच कहते थे... यह प्यार बड़ा दर्द देता है...
विक्रम - मतलब तुम्हें किसीसे प्यार हो गया है...
वीर - हाँ... हाँ भैया हाँ...
विक्रम - अच्छा... कौन है वह...
वीर - अनु...

अनु, यह नाम कहते ही वीर के चेहरे पर अचानक रौनक आ जाती है l दर्द जैसे गायब हो जाती है l होठों पर मुस्कान खिल उठता है l

वीर - अनु... अनु है भैया... उसका नाम अनु है... (पाँचवां पेग खतम करता है )
विक्रम - (छठा पेग बना कर देते हुए) अनु.... यह वही अनु है ना... तुम्हारी पर्सनल सेक्रेटरी...
वीर - हाँ भैया... वह मेरी है... सिर्फ मेरी... जानते हो भैया... वह ना... इस दुनिया की है ही नहीं... बल्कि किसी और दुनिया की है... वह सिर्फ़ मेरे लिए इस दुनिया में आई है... सिर्फ मेरे लिए... क्यूंकि इस दुनिया... जिसे हमने पहचाना... वहाँ हर कोई मतलबी है... पर मेरी अनु... खुद के लिए कम... अपनों के लिए सोचती है... खुद के सपनों को किनारे कर देती है... दूसरों के सपनों में रंग भर देती है... ऐसी है मेरी अनु....
इतनी भोली... इतनी मासूम... (आधा ग्लास खतम कर देता है) जानते हो भैया... समाज के इस जंगल में... वह एक मासूम हिरनी है... जिसे देख मेरे अंदर का शेर शिकार करने के लिए... चीर फाड़ करने के लिए मंसूबे पाल बैठा था... पर हाय...(उसके चेहरे पर मुस्कराहट फैल जाती है) उसकी वह बड़ी बड़ी कत्थई आँखे... जादू है... उसकी मुस्कान... हाय.. ठंडी हवा का झोंका... जादू है (चेहरा गंभीर हो जाता है) पर सच यह भी है... की मैं उसके लायक ही नहीं हूँ... (आँखे छलक जाती हैं) वह जो अंग्रेजी में कहते हैं ना.... कर्मा द बीच...
विक्रम - (सीरियस हो कर) क्या हुआ वीर...
वीर - मेरे गुनाह... मेरे सामने आ खड़े हो रहे हैं... (रोते हुए) आज मैं उसे आई लव यू कहना चाहता था... पर... पिछली बार की तरह आज भी... मेरी तकदीर ने मुझे छका दिया...
विक्रम - पिछली बार... कब...

वीर पाँच दिन पहले हुए सारी बातेँ बताता है और आज की हुई सारी बातेँ विक्रम को बताता है l सारी बातेँ सुनने के बाद विक्रम भी शुन हो जाता है l विक्रम कुछ और पूछने के लिए वीर की ओर देखता है तो वीर को वहीँ टेबल पर लुढ़का हुआ देखता है l विक्रम वीर को अपनी बाहों में उठा कर उस हॉल से निकलता है और वीर को गाड़ी की पिछली सीट पर सुला देता है l विक्रम गाड़ी के ड्राइविंग सीट पर बैठ कर गाड़ी स्टार्ट करता है I एक नजर वीर पर डालने के बाद विक्रम महांती को फोन लगाता है l

महांती - जी युवराज...
विक्रम - महांती... मैटर थोड़ा सीरियस है...
महांती - जी कहिए...

विक्रम मृत्युंजय की माँ के देहांत के दिन श्मशान में आए फोन और आज हॉस्पिटल से जाने के बाद आए फोन की बात बताता है l सब सुनने के बाद

महांती - यह तो बहुत बड़ी बात हो गई है...
विक्रम - हाँ महांती... या तो हम प्यादों को घेर रहे हैं... या फिर...
महांती - या फिर... हमें... कोई डिस्ट्राक्ट कर रहा है...
विक्रम - अगर वीर की बात सही है... तो ऑफ द स्क्रीन खिलाड़ी कौन है... पता करना बहुत जरूरी है...
महांती - जी.. मैं.. कुछ करता हूँ...
विक्रम - हाँ... महांती... अब यह देखना बहुत जरूरी हो गया है... केके और चेट्टी... किसके प्यादे हैं... शाह कौन है... और खिलाड़ी कौन है...
महांती - जी जरूर...

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अगले दिन
मृत्युंजय के घर में रात को अनु पुष्पा के साथ सोई थी l सुबह जल्दी उठकर अपने घर में आती है l दादी कब की उठ चुकी थी और पुजा पाठ खतम कर रसोई में व्यस्त थी l अनु को घर में आते देख कर दादी रसोई को छोड़ कर अनु के पास आती है l अनु तब अपना चेहरा पानी से साफ कर रही थी l जब चेहरा पोंछती हुई बेड रुम जा रही थी उसे दादी आवाज दे कर रोकती है

दादी - अनु...
अनु - हाँ दादी...
दादी - कैसी है पुष्पा...
अनु - (अपने बेड पर बैठते हुए) हाँ... अच्छी है... थोड़ी कमजोरी भी है...
दादी - और नहीं तो... इतना खुन जो बह गया था उसका...

इस पर अनु कोई प्रतिक्रिया नहीं देती l अनु के कुछ ना कहने से दादी को अखरने लगता है l अनु अब तैयार होने के लिए बाथरुम के लिए कपड़े निकाल रही होती है कि दादी और एक सवाल दागती है I

दादी - रात को पुष्पा के साथ थी... पुछा नहीं क्यूँ ऐसे किया...
अनु - नहीं...
दादी - क्यूँ... आख़िर तेरी दोस्त है... सहेली है...
अनु - दा..दी... अच्छी बातेँ पूछी जा सकती है... पर बुरा हुआ हो... तो बताने के लिए... वक़्त देना चाहिए...
दादी - हाँ... हाँ... तु कब से इतनी सयानी हो गई है... बड़ी आई...

अनु बाथरूम की ओर जा रही है कि दादी फिर से उसे रोकती है l

दादी - अरे.. बात अभी खतम ही कहाँ हुई... जो तु चली जा रही है...
अनु - कहाँ चली जा रही हूँ... ऑफिस के लिए तैयार होना है मुझे...
दादी - नहीं... पहले तेरी मेरी बात खतम हो... फिर जाना तैयार होने...
अनु - (इस बार अपनी दादी को हैरान हो कर देखती है) क्या है दादी...
दादी - एक जवान लड़की... अपने हाथ की नसें कब काटती है...
अनु - मुझे क्या पता...
दादी - इसीलिए तो तुझे रोका है... ताकि तु जाने... समझे...
अनु - ठीक है... (बाथरुम के दरवाजे से लौट कर एक स्टूल पर बैठ कर) अब बोलो... क्या बात है...
दादी - वह पुष्पा है ना... एक अमीर जागे के चक्कर में फंसी थी.. ऐन मौके पर ठेंगा दिखा गया... बेचारी सह ना पाई... इसलिए अपनी नस काट ली...
अनु - यह तुम्हें किसने बताया.. या तुम अपने आप कहानी गढ़ सुना रही हो...
दादी - मुझे क्या पड़ी है... कहानी बना कर किसीको सुनाने की... यह बात... खुद मट्टू ने मुझे बताया...
अनु - (हैरान होते हुए) क्या...
दादी - हाँ...
अनु - ह्म्म्म्म ठीक है... तो अब मैं चलूँ...
दादी - कहाँ...
अनु - नहाने... ऑफिस जाना है...
दादी - नहीं...
अनु - क्यूँ...
दादी - जब तक पुष्पा पुरी तरह से ठीक नहीं हो जाती... तु ऑफिस से छुट्टी कर ले...
अनु - (उछल कर) क्या... ऐसे कैसे...
दादी - क्या... ऐसे कैसे... क्या... ऐसे कैसे... पड़ोसी हैं हमारे... उनके सुख दुख में.. हमें काम आना चाहिए कि नहीं...
अनु - तो हम पास हैं ना उनके... साथ हैं ना उनके...
दादी - नहीं हो तुम... तुम ना साथ हो.. ना पास हो...

अनु हाथों को कोहनी में बाँध कर अपनी दादी को घूर कर देखती है I

दादी - मुझे ऐसे क्या घूर रही है...
अनु - दादी... मेरा दिमाग ट्यूब लाइट है... पर समझती खूब हूँ... साफ साफ कहो... तुम कहना क्या चाहते हो...
दादी - समझती है... कुछ नहीं समझती है तु... ठीक है... साफ साफ सुनना चाहती है ना... चल बता... कल कहाँ थी...
अनु - (हड़बड़ा जाती है) क्क्क्या... म्म्मत्त्तलब...
दादी - तेरे लच्छन कुछ ठीक नहीं लग रहे हैं मुझे...
अनु - (चीख पड़ती है) दादी...
दादी - (चिल्ला कर) तु चुप कर... इतनी बड़ी नहीं हुई है तु.. जो मुझ पर चिल्लाए... (फिर समान्य दबी आवाज में) वह तो अच्छा हुआ... मैं पुष्पा को खाने के लिए बुलाने चली गई थी... नहीं तो मालूम ही नहीं पड़ता... उसने अपना नस काट लिया था... मैंने चिल्ला चिल्ला कर लोग इकट्ठे किए... फिर उनके मदत से... मट्टू को फोन लगाया... वह नहीं मिल रहा था... तब तुझे लगाया... तु आई कब... डेढ़ दो घंटे बाद... और साथ में कौन था... वह लम्पट राजकुमार... तब भी... मैं कुछ ना सोचती... पर तेरे पैरों में, कपड़ों में और राजकुमार के पैरों में और कपड़ों में मुझे रेत दिखाई दिआ... तब समझ में आया... तुम दोनों कौनसे काम में व्यस्त थे...
अनु - दा...दी (टुटे हुए स्वर में, जैसे जोर का धक्का लगा हो ) तुम अपनी खुन और संस्कार पर शक कर रही हो...
दादी - ना... मुझे तुझ पर कोई शक नहीं है... पर उस लम्पट पर हरगिज़ नहीं...

अनु कुछ नहीं कह पाती l वह जवाब में कुछ कहने के वजाए अपनी जबड़े भिंच कर चुप रहती है l पर दादी रुकती नहीं है l

दादी - तुझे क्या लगता है... पुष्पा के साथ क्या हुआ है... कोई रईस जादा उसके पीछे पड़ा था... ऐन मौके पर ठेंगा दिखा कर भाग गया... मैं नहीं चाहती तेरे साथ भी कुछ ऐसा हो...
अनु - (दांत पिसते हुए) राजकुमार जी वैसे नहीं हैं...
दादी - (चौंकती है) क्या... (जैसे सब समझते हुए) अच्छा... तो बात यहाँ तक पहुँच गई...
अनु - (चीखती है) नहीं... दादी नहीं... बात शुरु ही नहीं हुई तो... पहुँचेगी कहाँ...
दादी - (चीख कर) अगर शुरु ही नहीं हुआ... तो चिल्ला क्यूँ रही है...
अनु - (चीखते हुए) इसलिए... के तुम्हारी पोती... अभी तक सही सलामत है...

दादी एक चमाट लगाती है l अनु का चेहरा घूम जाता है l

दादी - (अपनी दांत पिसते हुए) बदजात... मैंने तो तुझे यह संस्कार नहीं दिए थे... मुझसे ऊंची आवाज़ में बात कर रही है... शर्म नहीं आई... उस लम्पट से... सबकी नजरों से छुप छुप के मिलते हुए... (अनु चुप रहती है, उसे चुप देख कर दादी अनु को झिंझोडती है) कुछ पुछा है तुझे बोल...
अनु - (आम आवाज़ में, आँखों में आँसू लिए ) बताऊंगी तब भी... समझ नहीं पाओगी...
दादी - अच्छा... क्या नहीं समझ पाऊँगी...
अनु - तुम्हारी भाषा में... मेरा उनसे छुप छुप कर मिलना उतना ही पवित्र है... जितना सबकी नजरों से छुपा कर... एक माँ का अपने बच्चे को दुध पिलाना....
दादी - (अपने दोनों हाथों से अपने सिर को पीटते हुए) हे भगवान... यह लड़की... मुझे यह दिन दिखाएगी... कभी सोचा भी नहीं था.... (अनु से) बस... आज से तेरा ऑफिस जाना बंद...
अनु - दादी...
दादी - चुप... अगर तु जिद करेगी... तो सौगंध है मुझे... मेरा मरा हुआ मुहँ देखेगी...

अनु को ऐसा लगता है, जैसे उसके सिर पर बिजली गिरी हो l उसे समझ में नहीं आता, अभी के अभी क्या हो गया l दादी अंदर जा कर अनु की मोबाइल लाती है और अनु के सामने मोबाइल की फर्श पर पटक देती है l मोबाइल टुकड़ों में बिखर जाती है l अनु हैरानी बड़ी दुख के साथ टुटे हुए मोबाइल को देखती है l

दादी - यही मेरी अशांति की जड़ थी... (अनु आँसू भरी आँखों से अपनी दादी को देखती है) कान खोल कर सुन ले... परसों... लड़के वाले तुझे देखने आ रहे हैं... उन्हें अगर तु पसंद आ गई... आ गई क्या... जरूर आएगी... तो उसी दिन तेरी मंगनी हो जाएगी... और... और जितनी जल्दी हो सके... तुझे व्याह दूँगी... इस बीच खबरदार... कहे देती हूँ... उस लम्पट से फोन पर संपर्क साधने की कोशिश की तो... (फिर भराई हुई आवाज में) मुझे... ऊपर जाके... तेरे बाप को भी.. मुहँ दिखाना है...
अनु - (सुबकते हुए) दादी... ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है... जैसा तुम सोच रही हो...
दादी - हाँ हाँ... जानती हूँ... कुछ नहीं हुआ है अब तक... मैं... मैं इसलिए सावधान हो रही हूँ... ताकि आगे कुछ हो ना जाए....
अनु - दादी... तुम्हारा मन में... कब से इतना मैल भर गया... तुम ही कहा करती थी... मन चंगा तो कटौती में गंगा...
दादी - बस बस... मुझे मत सीखा... मैं जानती हूँ... मन चंगा तो कटौती में गंगा.... मेरा मन साफ है... इसलिए तु अबतक सुरक्षित है... पर... पर कब तक... (गुर्राते हुए) तु उस लम्पट के लिए... मुझसे बदजुबानी कर रही है... ना... मैं अब कुछ और ना सुनना चाहती हूँ... ना ही जानना चाहती हूँ... बस...

दादी घुमती है तो बाहर दरवाजे पर मृत्युंजय खड़ा दिखता है l

दादी - तु कब आया मट्टू...
मृत्युंजय - (हकलाते हुए) जी.. जी.. अ.. अभी... कु.. कु.. कुछ ही... देर पहले.. मैं वह... पुष्पा को संभालने के लिए... अनु को धन्यबाद कहने आया था...
दादी - देख बेटा... क्या तु मुझे अपना मानता है...
मृत्युंजय - यह... कैसी बात कर रही हो दादी... अब मेरा और पुष्पा का... आप ही सहारा हो...
दादी - मुझे कुछ दिनों के लिए... ठिकाना बदलना है... परसों इसकी मंगनी हो जाए... फिर शादी तक... वह भी अगर महीने भीतर हो जाए... मैं गंगा नहाने चली जाऊँगी...
मृत्युंजय - यह... यह क्या कह रही हैं दादी... हमे अब आपका ही सहारा है... आप कहीं चली गई... तो मेरा और पुष्पा का क्या होगा...
दादी - ठीक है... तुम सबके घर बसाने के बाद... मैं चली जाऊँगी... पर तु कुछ दिनों के लिए ही सही... हमारी ठिकाना बदलने ही सोच...
मृत्युंजय - (चुप रहता है)
दादी - क्या... तु भी इस धर्म संकट में... मेरा साथ नहीं देगा...
मृत्युंजय - ऐसा ना कहो दादी... मैं आपके लिए... अपनी जान भी दे सकता हूँ...
दादी - तो बस... पहले... मेरा ठिकाना बदलने की सोच... और दुसरा... कोई अनु की खबर लेने की कोशिश करे... उसे पता लगना नहीं चाहिए....

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वीर के कानों में कुछ आवाजें पड़ती हैं l उसे अपना तकिया हिलता हुआ महसूस होता है l बहुत गहरी नींद में बेड पर लेटा हुआ था l वह करवट बदलता है कि उसका चेहरा किसी नर्म मुलायम चिपचिपे चीज़ पर पड़ता है l उसका नींद टुट जाता है l वह उठता है तो देखता उसका चेहरा एक केक पर गिरा था l केक का सारा मलाई दार हिस्सा उसके चेहरे पर चिपक गया था I वह चिढ़ कर उठता है, तो देखता है बेड के पास एक चेयर पर रुप हाथ में एक पॉपर पकड़े बैठी थी l जैसे ही वह उठ बैठता है रुप पॉपर को फोड़ देती है l पॉपर में जो पेपर के टुकड़े थे ज्यादा तर वह टुकड़े वीर के चेहरे पर चिपक जाते हैं l

वीर - (गुस्से में) आ आ आह.. यार क्या है...
रुप - हैप्पी बिलेटेड बर्थ डे भैया...
वीर - यह क्या तरीका है...
रुप - सॉरी भैया... मुझे यही तरीका मालुम है...
वीर - अच्छा... अभी तुझे नए तरीके सिखाता हूँ... (बेड से उठ कर रुप के पास आता है)

रुप पहले से ही तैयार थी, चेयर से उठ कर कमरे से बाहर भाग जाती है l वीर भी रुप के पीछे पीछे भागने लगता है l रुप भाभी भाभी चिल्लाते हुए नीचे भागती है और नीचे पहुँच कर शुभ्रा के पीछे छुप जाती है l वीर शुभ्रा को देख कर ठिठक जाता है l

रुप - भाभी... मुझे इस भूत से बचा लो प्लीज...
शुभ्रा - क्या हुआ वीर...
वीर - वह... भाभी...
शुभ्रा - (वीर की हालत देख कर हंसने लगती है) हाँ हाँ... आगे बोलो...
वीर - (जल्दी जल्दी) मैं... एक छिपकली को ढूंढ रहा हूँ...
रुप - (शुभ्रा के पीछे से निकल कर) ऐ... छिपकली किसे बोल रहे हो...
वीर - तुझसे ही बोल रहा हूँ...
रुप - देखा भाभी.... खुद तो बंदर जैसा दिख रहा है... और मुझे छिपकली कह रहा है...
वीर - ऐ.. (कहते हुए आगे बढ़ता है)
रुप - (शुभ्रा के पीछे हो कर) जा जा... बंदर...
वीर - देखा भाभी...
शुभ्रा - हाँ हाँ देख लिया... उसने अपना हक लिया है...
वीर - कैसा हक...
शुभ्रा - वह हक... जो तुमने उसके जन्म दिन पर उसे दी थी... भुल गए...

शुभ्रा को सामने देख कर वीर फिर से ठिठक जाता है l वीर शुभ्रा की ओर देखता है l शुभ्रा उसे घूरे जा रही थी l वह शुभ्रा के आँखों में देख नहीं पाता और अपना सिर झुका लेता है l

वीर - सॉरी भाभी...
शुभ्रा - क्यूँ... यह सॉरी किस लिए...
वीर - वह.. कल...

आगे कुछ कह नहीं पाता, चुप हो जाता है l पीछे से विक्रम आता है और वीर के कंधे पर हाथ रखकर

विक्रम - हाँ वीर... कहो... किस बात के लिए सॉरी कहा तुमने...
वीर - (हैरान हो कर विक्रम को देखते हुए) भैया... आप..
विक्रम - हाँ मैं... इस वक़्त मेरी बात छोड़ो... तुम इस वक़्त अपने भाभी और बहन के दोषी हो... उन्हें जवाब चाहिए... उन्हें जवाब दो...
वीर - (अपना सिर झुका कर) भाभी... वह मैं...
शुभ्रा - जानती हूँ... सब जानती हूँ... तुम्हारे भैय्या ने... कल रात तुम्हें कमरे में सुलाने के बाद... हमें सारी बातेँ बताई है...
वीर - (वैसे ही अपना सिर झुकाए खड़ा रहता है)
शुभ्रा - वीर... हम तुम्हारे अपने हैं... तुम्हारे जीवन पर ना सही... तुम्हारे कुछ पल पर... हमारा हक तो बनता है ना... हाँ उसमें भी तुम्हारी मर्जी होनी चाहिए...
वीर - यह क्या भाभी... ऐसा कह कर पराया तो ना लीजिए...
शुभ्रा - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म... हम चार लोगों के बीच पार्टी होनी थी... हमारा यहाँ पांचवां है ही कौन... हाँ कल तुम उसे लाते तो बात अलग होती... नंदिनी और मैं... शाम को इंतजार करते रहे... तुम्हारा फोन स्विच ऑफ आ रहा था... तब तुम्हारे भैया ने मोर्चा संभाला और तुझे खोज निकाला...
वीर - प्लीज भाभी... मुझे और शर्मिंदा ना करें... आज आप जो भी सजा देंगी... मुझे मंजुर है...
रुप - (शुभ्रा के पीछे से ही) सजा भाभी नहीं... मैं दूंगी...
वीर - तु दे चुकी है... छिपकली...
रुप - क्या कहा...

कह कर रुप वीर को पकडने के लिए झपटती है l वीर वहीँ विक्रम और शुभ्रा के आसपास भागने लगता है फिर भी रुप उसे पकड़ नहीं पाती l विक्रम और शुभ्रा उनकी यह हरकत देख कर बहुत खुश होते हैं l घर के सारे नौकर भी यह देख रहे थे और खुशी का अनुभव कर रहे थे lअंत में रोनी सुरत बना कर सोफ़े पर बैठ जाती है l वीर एक नौकर से झाड़ू लेकर रुप के पास आता है और उसके हाथों में झाड़ू को देते हुए

वीर - ले... अपना सारा गुस्सा... उतार दे...
रुप - (मुहँ फूला कर फ़ेर लेती है) नहीं...
वीर - भाभी...
शुभ्रा - ना... आज नंदिनी जो फैसला लेगी... वही मान्य होगा...
वीर - अच्छा मेरी माँ... क्या सजा है... सुना डाल... मैं तैयार हूँ... देख घर के नौकर हँस रहे हैं... तेरी शक़्ल रूठी हुई सड़ी हुई शक़्ल देख कर...
रुप - (चिल्ला कर) आ... आ.. आ... मेरी नहीं तुम्हारी शकल देख कर हँस रहे हैं... बंदर...
वीर - ठीक है.. मैं बंदर हूँ... अब तो मुस्करा दे... और सजा सुना दे...

रुप अपनी आँखे और मुहँ सिकुड़ कर वीर को देखती है, पर ज्यादा देर तक अपने चेहरे पर यह भाव रख नहीं पाती, वीर उसे मनाने के लिए ऐसे ऐसे चेहरे बनाता है कि उसकी हँसी छूट जाती है l

शुभ्रा - चलो... अब सजा भी सुना दो...
रुप - ठीक है वीर भैया... आप नहा धो कर आ जाओ... फिर इस घर में काम करने वालों को अपने हाथों से बोनस बाँटो...
वीर - ठीक है... और कुछ...
शुभ्रा - हाँ... पेनाल्टी के तौर पर... आज तुम कहीं नहीं जाओगे... और अपनों के साथ... आज अपना सुख और दुख बाँटोगे...
वीर - मंजुर... और...
रुप - और भैया... हमने जानने की कोशिश भी नहीं की है... वह कौन है... इसलिए जब वह राजी हो जाए... सीधे हमसे लाकर परिचय कराएगा...

वीर के जवाब से सभी खुश हो जाते हैं l वीर अपने कमरे की ओर चला जाता है l रुप एक छोटी बच्ची की तरह उछलते हुए शुभ्रा के गले लग जाती है l विक्रम यह सब देख रहा था, उसके आँखों के कोने भीग जाते हैं, इसलिए वहाँ से मुड़ कर विक्रम जाने लगता है कि उसे महांती अंदर आते दिखता है l महांती को इशारे से बैठक में जाने को कह कर वहाँ से चला जाता है l दोनों बैठक में पहुँचते हैं l

विक्रम - बैठ जाओ महांती...
महांती - (बैठक में) इट्स ओके... आज... आपके आँखों में... खुशी के आंसू देखे...
विक्रम - (अपनी जगह पर बैठते हुए) हाँ... आज इस हैल में... हेवन जैसा महसूस हो रहा है.... इसलिए... खैर... कैसे आना हुआ...
महांती - (थोड़ा झिझकते हुए) क्या आज... शाम तक... ऑफिस आयेंगे...
विक्रम - क्यूँ...
महांती - (थोड़ी देर रुक कर) वह... कल... राजा साहब आ रहे हैं... इसलिए...
विक्रम - ह्म्म्म्म... क्या सिर्फ इसीलिए...
महांती - जी...
विक्रम - ह्म्म्म्म... ठीक है... शाम को मिलते हैं...

महांती वहाँ से चला जाता है l विक्रम सोच में पड़ जाता है l क्यूँकी उसे एहसास हो जाता है l बात कुछ और ही है l घर के ख़ुशनुमा माहौल को देख कर महांती छुपा गया और बिना बताये चला गया l

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टींग टंग बेल बजता है l रोणा एक तकिया उठा कर अपने कान पर रख कर बेड पर लेटा रहता है l फिर से उसके कानों में टींग टंग की आवाज सुनाई देता है l वह चिढ़ कर अपने चेहरे पर कंबल डाल देता है l उसके बाद भी जब कलिंग बेल की आवाज आती है रोणा चिढ़ कर बेड से उठता है और अपनी नजरें घुमाता है l उसे अपने पास या कमरे में कहीं भी बल्लभ नहीं दिखता है l वह पहले हैरान होता है और ध्यान से सुनने पर बाथरुम नल चलने की आवाज सुनाई देता है l रोणा को फिर से कलिंग बेल की आवाज सुनाई देता है l वह चिढ़ कर बेड रुम से निकल कर दरवाजा खोलता है l सामने परीड़ा खड़ा था l

रोणा - साले... तुझे चैन वैन है कि नहीं... आ गया सुबह सुबह नींद खराब करने...
परीड़ा - भोषड़ी के... रात की उतरी नहीं है क्या... टाइम डेक.. अभी दुपहर के बारह बज रहे हैं...
रोणा - क्या...

फिर दोनों अंदर आते हैं l अंदर खाली बोतल और खाली प्लेट इधर उधर पड़े दिखते हैं l

परीड़ा - प्रधान कहाँ है...
रोणा - नहा रहा है शायद...
परीड़ा - क्या... अभी...
रोणा - हाँ... तु बता क्यूँ आया है...
परीड़ा - कल राजा साहब आ रहे हैं... कुछ सोचा है... क्या कहोगे...
रोणा - नहीं... अभी तक नहीं... कल तक का टाइम है ना... देखते हैं... पर तु बता... तु आया किस लिए है...

तभी बाथरूम से बल्लभ निकलता है, इन दोनों की नजरें उस तरफ जाता है और यह दोनों बल्लभ को देख कर हैरान हो जाते हैं l क्यूँ के बल्लभ रात को कपड़े नहीं बदला था शायद, शूट में ही था, पुरा भिगा हुआ l

रोणा - यह... यह क्या है प्रधान... पिया तो मैं था... तुझे कब चढ़ गई...
परीड़ा - हाँ प्रधान... यह क्या है... शूट में ही...

बल्लभ बेड के पास जाता है वहाँ से टावल उठा कर सिर पोछने लगता है और अपने कपड़े उतारने लगता है l फिर टावल को लपेट कर चेयर में बैठते हुए l

बल्लभ - काम का क्या हुआ...
रोना - क्या... कैसा काम... कौनसा काम...
बल्लभ - तेरे मतलब का नहीं है...
परीड़ा - हाँ... काम दे दिया है...
रोणा - अबे कैसा काम...
परीड़ा - विश्व का पता लगाने का काम...
रोणा - क्या... प्रधान ने तुझसे कब कहा...
बल्लभ - कल रात को... जब तु... रात में नशे में डुबा हुआ था....

रोणा परीड़ा के तरफ देखता है l परीड़ा अपना सिर हिला कर हाँ कहता है l

रोणा - तो पता चला...
परीड़ा - अबे... प्रधान कल रात को पुछा... अभी अभी एक प्राइवेट डिटेक्टिव को काम सौंप कर आया हूँ...
रोणा - किसी पहचान के पुलिस वाले से बोलता... तो ठीक रहता ना...
बल्लभ - नहीं... लगता है... कल तुने टोनी की बात पर गौर नहीं किया... यहाँ किसी भी थाने में... या कचहरी में... विश्व के नेट वर्क सेटिंग हो सकता है...
रोणा - ओ... अच्छा... तो वह.. किस बेसिस पर ढूंढेगा...
परीड़ा - इस बेसिस पर... (कह कर अपने मोबाइल पर एक तस्वीर दिखाता है)
रोणा - क्या विश्व ऐसा दिखता है...
परीड़ा - पता नहीं... पर... कल इसी फोटो को देख कर प्रधान... पहचान करी थी... वैसे मैंने हर तरह के स्केच दे दिया है...
रोणा - ठीक है... (बल्लभ को देख कर) पर तुझे क्या हो गया... तु शूट पहने नहा रहा था... (बल्लभ चुप रहता है)
परीड़ा - हाँ यार... क्या तेरा दिमाग खिसक गया...
बल्लभ - कल टोनी ने एक बात कहा था... जो मेरे दिमाग का दही कर गया है...
दोनों - क्या... कौनसी बात...
बल्लभ - टोनी ने कहा कि... उसे विश्व ने यह कहा कि... सिर्फ़ एक को मारने का सोचा है... वह दुसरा ना बने...
परीड़ा - हाँ...
बल्लभ - तो सवाल है... वह एक कौन है...
परीड़ा - शायद...
रोणा - हाँ शायद...
बल्लभ - हाँ शायद...
परीड़ा - शायद... रा.. रा... राजा साहब...

बल्लभ और रोणा कुछ देर के लिए चुप रहते हैं l फिर रोणा बल्लभ की ओर देखता है l

बल्लभ - शायद नहीं...
परीड़ा - कैसे...
बल्लभ - अगर मारना ही उसका लक्ष होता... तो वह... लॉ क्यों कि... आरटीआई क्यूँ फाइल की... उसका प्राइम टार्गेट... बेशक राजा साहब हैं... पर उन्हें मारना नहीं... बल्कि उन्हें अदालत के कटघरे में लाकर... (आगे कुछ नहीं कह पाता है)

टावल में चेयर पर बैठे बल्लभ, सामने बैठे परीड़ा और रोणा के बीच चुप्पी छा जाती है l

रोणा - तो वह एक कौन हो सकता है...
बल्लभ - यही तो पता लगाना है... एक बात तो है... उसने खुद को... हमारे इमेजिन से भी ऊपर... एलीवेट कर लिया है... उसे हमारे बारे में जानकारी है... पर हमें... बेशक हम बहुत कुछ जान गए हैं उसके बारे में... पर फिर भी... हम अंधेरे में... हैं

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शाम को विश्व घर में पहुँचता है l देखता है प्रतिभा और तापस सोफ़े पर बैठ कर बातेँ कर रहे थे उसे देख कर थोड़ा झेप जाते हैं और अपनी अपनी जगह सीधा हो कर बैठ जाते हैं l

विश्व - क्या हुआ माँ...
प्रतिभा - पहले तु बता... अब ड्राइविंग स्कुल नहीं है... तो कहाँ घुमता रहता है दिन भर...
विश्व - माँ... (दोनों के सामने बैठते हुए) क्या हुआ है...
तास - तेरी माँ ने कुछ पूछा है...
विश्व - हाँ... बात को छुपा रहे हैं... या घुमा रहे हैं... बताइये हुआ क्या है...
तापस - नहीं ऐसा कुछ नहीं है... अब अगले मंगलवार को चला जाएगा... तो...
विश्व - (दोनों को घूरते हुए देखता है)
प्रतिभा - तो.. हम सोच रहे थे... की क्यूँ ना... हम रविवार तक... कहीं बाहर जाएं...
तापस - हाँ... हम इसी विषय पर... प्लानिंग कर रहे थे...
विश्व - (अपनी जगह उठता है और और प्रतिभा के सामने फर्श पर आलथी पालथी मार कर बैठ जाता है) माँ... क्या हुआ है... बताओ...

प्रतिभा चुप रहती है, तापस भी इधर उधर देखने लगता है l

विश्व - माँ... लगता है किसी बात का... डर है तुम्हें... समझ सकता हूँ... पर माँ... वक़्त धीरे धीरे मुझे उस निर्णायक मोड़ की ओर लिए जा रही है.... इस लिए... कुछ बातेँ वक़्त... तकदीर और उपरवाले के हाथ पर छोड़ देते हैं...

प्रतिभा विश्व की चेहरे को गौर से देखती है और बड़े प्यार उसके चेहरे पर हाथ फेरती है l

प्रतिभा - तु इतना कुछ समझ जाता है... तो फिर नंदिनी ने किस बात पर तुझे थप्पड़ मारा... क्यूँ नहीं समझ पाया...
विश्व - (प्रतिभा के हाथ को पकड़ कर) माँ... बात को घुमा रही हो... फिर भी बताता हूँ... तुम जानती हो... नंदिनी जी के चेहरे को... देखते हुए... मैं हमेशा नज़रें चुराता हूँ... क्यूंकि... उनके चेहरे से किसी और का चेहरा झलकता था... पर उस दिन जो थप्पड़ उन्होंने मारा था... उसमें मेरे लिए... गिला था... उसकी वजह कुछ और था... उनसे मिल कर... पुछ लूँगा... समझ लूँगा... पर तुम बताओ... ऐसा लगता है... तुम किसी धर्म संकट में हो... वह क्या है...

प्रतिभा चुप रहती है l तापस प्रतिभा के कंधे पर हाथ रख कर दिलासा देता है l प्रतिभा तापस की ओर देखती है, तापस अपनी पलकें झुका कर हाँ में सिर हिलाता है l

प्रतिभा - वह... इस शुक्रवार को... लॉ मिनिस्टर विजय कुमार जेना की लड़की की रिसेप्शन पार्टी है....
विश्व - ह्म्म्म्म... फिर...
प्रतिभा - उस पार्टी में... (रुक जाती है)
विश्व - माँ...
प्रतिभा - उस पार्टी में... भ.. भैरव सिंह भी... आमंत्रित है...
विश्व - हूँ... बस इतनी सी बात... मतलब तुम चाहती हो कि मैं पार्टी में ना जाऊँ...
प्रतिभा - नहीं... ऐसी बात नहीं... वह...
तापस - हाँ... प्रताप... यही वजह है...
विश्व - (खड़ा हो जाता है) ठीक है... नहीं जाऊँगा... पर माँ... तुम्हें डर किस बात का है...
तापस - वह... तुम्हारे और भैरव सिंह के आमने सामने होने की सोच कर... डर रही है...
विश्व - माँ... तुम जो कहोगी... मैं वही करूंगा... पर माँ... आमना सामना... एक दिन होना ही है... तुम्हें डर किस बात का है...
तापस - हाँ भाग्यवान... बता दो उसे....
प्रतिभा - मुझे डर है कि... तु उसे सामने देख कर... खुद पर काबु खो देगा...
विश्व - (मुस्कराता है) नहीं माँ... तुम गलत हो... मैं उसे देख कर... खुद पर काबु नहीं खो सकता... क्यूंकि... उसके और मेरे बीच... बहुत ही... खास भावनात्मक रिस्ता है... जो हमें अपने अपने दायरे में बांधे रखे हुए है... इसलिए ना मैं वह दायरा लाँघ सकता हूँ... ना वह....
 
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DARK WOLFKING

Supreme
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बल्लभ - कुछ सोच रहा था... या अपनी करनी पर पछता रहा था...
रोणा - मिस्टर बल्लभ चंद्र प्रधान... साले काले कोट वाले... मेरी कुंडली में तु केतु बनकर बैठ गया... और मैं मादरचोद... तेरे से दोस्ती कर के... (गाते हुए) क्या से क्या... हो.. गया...
daru peene ke baad 2 dosto me aise hi hota hai 🤣
 

avsji

कुछ लिख लेता हूँ
Supreme
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मेरा एक मित्र है। उसकी बहुत नेक पत्नी है। लेकिन उसकी पत्नी अपने पिता (मतलब मेरे दोस्त के ससुर) से बहुत डर कर रहती है। शादी के पाँच सात हो गए होंगे, फिर भी। पत्नी ही क्या, पत्नी की माँ का भी यही हाल है! ऑफिस में भी हौव्वा बना कर रखा है बुड्ढे ने। तरीका एक ही है - या तो वो कुत्ते की तरह भौंकने लगता है, या फिर इमोशनल अत्याचार करता है। तो एक तरह से उसका बाप अभी भी भाभी के जीवन पर कण्ट्रोल रखे हुए है। दोस्त ने इतने वर्षों तक बुड्ढे का लिहाज़ किया, सभ्यता से उससे बातचीत करी। यथोचित सम्मान दिया। लेकिन दिल की बातें आ जाती हैं जुबां पर कभी कभी। मैंने उसको समझाया कि दोस्त, तुम और भाभी के जीवन में किसी तीसरे के हस्तक्षेप का कोई स्थान नहीं। लेकिन यह तुम ही सुनिश्चित कर सकते हो। तुम्हारी पत्नी तुम्हारा आधा भाग है - अर्धांगिनी! सोचो कैसा लगे कि तुम्हारे आधे शरीर को कोई अन्य अपने इशारे पर नचाए? भाई को बात जम गई।

बस, एक सप्ताह पुरानी बात है। न जाने किस प्रेरणा से भाभी ने अपने जीवन में पहली बार पलट कर अपने बाप से पूछ लिया कि वो क्यों उसके साथ ऐसा करता है? भाई, उत्तर में वही, जाना पहचाना टैंट्रम चालू! लेकिन इस बार अपना भाई तैयार था - उसने बुड्ढे को पागल कुत्ते की तरह काट खाया। दो दिन टैंट्रम किया, लेकिन किसी ने कोई ध्यान ही नहीं दिया। तब से बुड्ढे को अपनी औकात समझ आ गई, और चूहे की भाँति अपनी कमीज के नाप से भी कम में सिमट कर रह रहा है।

इस कहानी से क्या हमको क्या शिक्षा मिलती है? यही कि भौंकने वाले कुत्ते दरअसल बहुत इनसेक्योर होते हैं। उनकी गांड पर एक लात मार दो, तो तमीज़ में रहने लगते हैं। भैरव सिंह टाइप के लोग कुत्ते जैसे होते हैं - साथ में दो कुत्ते हों, तो उनको सम्बल मिलता है, और खुद को डायनासॉर समझते हैं।

बाकी बढ़िया अपडेट! बिना वजह का विश्लेषण करने का मेरा कोई मूड नहीं है।
 

DARK WOLFKING

Supreme
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nice update ..vallabh ke anusar raja sahab ka ghamand itna hai ki wo apne bahu ko bhi apne status ke barabar nahi samajhta .ye ghamand hi raja sahab ko barbad kar dega aage jaake .

veer ka janmadin barbad ho gaya hai aur vikram ne usko sahi raah dikhayi daru pilake 🤣.
ab veer ko roop ki saja bhugatni hai apno ke saath waqt bitake 😍😍.

pratibha pareshan hai pratap ko party me leke jaane ko lekar kyunki waha raja sahab bhi maujud hoga .par veer ne sahi shabdo me samajhaya ki uska aur raja ka character kaisa hai.
 

parkas

Prime
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👉सत्तावनवां अपडेट
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अपना ग्लास खतम कर टेबल पर रखते हुए रोणा अपनी कुर्सी पर पीठ टिकाये सीधा हो कर बैठ जाता है l रोणा अपने में खोया हुआ कुछ गहरी सोच में था l बल्लभ को रोणा की हालत देख कर ऐसा लगता है l

बल्लभ - क्या बात है रोणा...
रोणा - (नशे में अपना गर्दन हिलाते हुए) उँ...
बल्लभ - कुछ सोच रहा था... या अपनी करनी पर पछता रहा था...
रोणा - मिस्टर बल्लभ चंद्र प्रधान... साले काले कोट वाले... मेरी कुंडली में तु केतु बनकर बैठ गया... और मैं मादरचोद... तेरे से दोस्ती कर के... (गाते हुए) क्या से क्या... हो.. गया...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... समझ गया... तुझे चढ़ गई है...
रोणा - हाँ... एक शराब ही तो है... जो चढ़ती है... वरना... सिर पर तो राजा साहब बैठे हुए हैं...
बल्लभ - तो... टोनी ने विश्वा नाम के छुरी से तेरी फाड़ दी है...
रोणा - (चिल्लाते हुए) हाँ.. हाँ.. हाँ बे हाँ... मेरी फटी पड़ी है... राजा साहब से क्या कहूँगा... (नॉर्मल होते हुए) खैर... मेरी छोड़... तु बता... राजा साहब से... तु क्या कहेगा... विश्वा... सात साल की सेंट्रल जैल यूनिवर्सिटी में... हमसे टकराने के लिए... हर तरह की डिग्री हासिल कर लिया है... अब ना सिर्फ दिमाग से... बल्कि जिस्म से भी बहुत ताकतवर बन चुका है... एक्जांपल के लिए... उसने दो बार... मेरी मार कर ली है....

बल्लभ चुप रहता है l क्यूँकी रोणा भले ही नशे में था, पर कह बिल्कुल सही रहा था l दो दिन बाद राजा साहब दिल्ली से भुवनेश्वर में आयेंगे l जब विश्व के बारे में पूछेंगे, तब वह क्या कहेगा l उसने विश्व के बारे में जो भी अंदाजा लगाया था, विश्व उसके सोच से कहीं आगे निकला है l अगर टोनी की कही बातों पर ध्यान दिया जाए तो विश्व की जितनी क़ाबिलियत बता कर गया है उससे विश्व के बारे में वे लोग पुरी तरह से अंधेरे में हैं l विश्व जैल से निकलने से पहले ही अपना प्लॉट सेट कर चुका होगा l उसने होम मिनिस्ट्री और हाइ कोर्ट में आरटीआई फाइल कर दिया है l मतलब साफ था l वह अब अपने आप को सुरक्षित कर लिया था l उसे जरा सी भी खरोंच आई तो मीडिया वाले ईंट से ईंट बजा देंगे, और कानूनी जाँच सो अलग l आरटीआई के जानकारी के आधार पर वह अदालत में पीएलआई पर रिट पिटीशन दायर करेगा l केस दुबारा से खुल जाएगा l जो कसर जयंत राउत से छूट गया था, वह अब विश्व पुरा करेगा l

रोणा - अब तु सोच रहा है... या पछता रहा है...
बल्लभ - दोनों....
रोणा - अब पछताये होगा क्या... जब चिड़िया चुग गई खेत... कहा था... मार देते हैं... पर नहीं... किसीने मेरी बात नहीं मानी...
बल्लभ - हम तब भी सही थे... और अब सब सही करना है....
रोणा - क्या सही थे... कहाँ सही थे...
बल्लभ - याद कर.. हमने जिन्होंने घेरा था... सारे एक्युश्ड को मरवा दिया गया... सिर्फ़ विश्व को छोड़ कर... क्यूंकि उसने पांच चिट्ठियां लिखे थे.. या सात... हम नहीं जानते थे... फिर उसकी हरकतों से... आधार कार्ड घपला बाहर आ चुका था... किसी एक एक्युश को जिंदा रखना जरूरी था कारवाई के लिए...
रोणा - हाँ... तब भी सुधार किया जा सकता था... उसके लिए... अगर कोई अपने तरफ वाला पैरवी किया होता... साला... वह जयंत राउत... बीच में टपक पड़ा... उसको टपकाना पड़ा... विश्व को सात साल की सजा... (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है, फिर ग्लास में थोड़ी शराब डाल कर पी ता है) सात साल में... उसने अपनी तैयारी कर ली है... राजा साहब से टकराने के लिए... किस किस फ्रंट पे... मालुम तो है... पर... हम... हम सब बंधे हुए हैं...
बल्लभ - तु तो कहा करता था... तूफ़ान से पहले घबराता जरूर है... पर जब सामने हो... तो हालात से जुझना आता है...
रोणा - तु भी तो... विश्व को आइस बर्ग कह रहा था... राजा साहब एंड ग्रुप को टाइटैनिक...
बल्लभ - मेरी प्रेडिक्शन में कोई गलती नहीं हुई है... अब तेरा... मेरा और परीड़ा का काम बढ़ गया है...
रोणा - जानता हूँ... पर अब जो भी करना है... राजा साहब को बताना तो पड़ेगा ही...
बल्लभ - हाँ बताना तो पड़ेगा ही... पर सवाल है... क्या... और कैसे... बात घूम फिर कर वहीँ पहुँच रही है....
रोणा - राजा साहब अगर... पर्सनली कुछ करें तो...
बल्लभ - यह तब होगा... जब हम विश्व को... उनके बराबर रख दें...
रोणा - क्या... क्या मतलब हुआ...
बल्लभ - दोस्ती... दुश्मनी... और रिश्तेदारी... राजा साहब उनसे करते हैं... या करने की सोचते हैं... जो उनके बराबर होगा... या बढ़ कर होगा...

रोणा बल्लभ की बात सुन कर उसे घूरने लगता है l

बल्लभ - हाँ रोणा... यह सच है... इसीलिए तो... वह भुवनेश्वर अगर आते भी हैं... तो या तो सर्किट हाउस में रुकते हैं... या फिर बारंग रिसॉर्ट में... पर युवराज के यहाँ ठहरते नहीं है... क्यूंकि उनकी बड़ी बहु को... वह अपने बराबर नहीं मानते....
रोणा - इतना अहंकार... इतना गुरुर...
बल्लभ - वह इसलिए... की वे राजा साहब हैं... जब वह अपनों के साथ... इस मामले में फर्क़ नहीं करते... तो दुश्मनों के बारे में कैसे फर्क़ करेंगे...
रोणा - ह्म्म्म्म... हमें विश्व के बारे में सच्चाई बताना तो पड़ेगा...
बल्लभ - हाँ... विश्व के बारे में... सब कुछ बताना पड़ेगा... पर यह भी बताना पड़ेगा... की हम संभाल लेंगे... बात उन तक नहीं पहुँचेगी...
रोणा - क्या सच में... हम संभाल पाएंगे....

बल्लभ चुप रहता है l रोणा भी बात को आगे नहीं बढ़ाता है l

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एक कमरा फूलों से सजा हुआ है l कमरे के बीचोबीच एक टेबल पर वीर अपना सिर रख कर आँखे बंद कर सोया हुआ है l कमरे का दरवाजा खुलता है, विक्रम अंदर आता है l अंदर की सजावट देख कर विक्रम हैरान हो जाता है l मद्धिम रौशनी में हर रंग के फूलों से सजा हुआ कमरा जैसे किसीके स्वागत के लिए पलकें बिछाये तरस रहे हों l हर फुल की खुशबु कमरे में साफ महसुस किया जा सकता है l दरवाजे से उस टेबल तक राह में गुलाब के पंखुड़ियां बिछे पड़े हैं l हर नस्ल के खुशबुदार फुल कमरे में तरह तरह से सजे हुए हैं l ऐसा लगता है प्रकृति की सौंदर्य पर किसी कवि की कविता को इस कमरे में उकेर दी गई है l कुछ देर के लिए खुद विक्रम भी सम्मोहित हो गया l फिर खुद को संभाल लेता है और गुलाब की पंखुड़ियों के रास्ते पर चलते हुए टेबल पर सिर रख कर लेटा हुआ वीर के पास पहुँचता है I गौर से वीर को देखता है, वीर के आँखों के नीचे काले काले धब्बे जैसे दिखते हैं, जो गवाही दे रहे थे वीर काफी रोया है l टेबल के दुसरी तरफ और एक चेयर पड़ा था l विक्रम उसे खिंच कर वीर के बगल में बैठ जाता है l वीर को विक्रम बड़े प्यार से देखता है, आखिर एक ही तो भाई है उसका l हर कदम पर उसके साथ खड़ा रहा है अब तक l किसी से डरता नहीं, मुहँ पर लगाम नहीं पर विक्रम की बातों का हमेशा इज़्ज़त रखने वाला, उसका अपना वीर l मुस्करा देता है और वीर के बालों पर हाथ फेरता है l वीर की आँख खुल जाती हैं l

वीर - (हैरानी के साथ) भैया... आप यहाँ...
विक्रम - हूँ...
वीर - आ.. आ..प यहाँ कैसे...
विक्रम - रात के दस बज रहे हैं... तुमने अपनी भाभी से पार्टी अरेंज करने के लिए कह तो दिया... पर तुम खुद गायब हो गए...
वीर - (सिर झुका लेता है) सॉरी भैया...
विक्रम - सॉरी कैसा... सब मेरी करनी का फल है...
वीर - इसमें... आपकी करनी कहाँ से आ गई...
विक्रम - आशियाने का नाम.. द हैल रखा... इसलिए तो खुशियाँ चौखट तक आती हैं... पर चौखट लांघ कर अंदर नहीं आती हैं...
वीर - (चुप रहता है, और अपनी नजरें घुमा लेता है)
विक्रम - क्या हुआ वीर...
वीर - (भारी आवाज़ में) भैया... मैंने फोन स्विच ऑफ कर रखा था... फिर आपको कैसे मालुम हुआ... की मैं यहाँ हूँ...
विक्रम - जब शाम आठ बजे तक... नहीं आए... तुम्हारी भाभी को चिंता होने लगी... मुझसे... पता करने के लिए कहा... और मैंने... महांती से कहा... महांती ने एक खास बात पता किया... की तुम बुटीक में खरीदारी करते वक़्त... एक फ्लोरीस्ट से बात की थी... जब महांती फ्लोरीस्ट से पूछताछ की... तब मालूम हुआ... की तुमने पुरा का पुरा... इस फंक्शन हॉल को डेकोरेट करने के लिए कहा था... तब मैं पुरी तरह से बात समझ गया... इसलिए सीधा यहाँ आ गया...

वीर कोई जवाब नहीं देता l विक्रम अपने शूट के अंदर से एक शराब की बोतल और एक ग्लास निकालता है l यह देख कर वीर हैरानी से विक्रम को देख कर

वीर - यह.. यह क्या है भैया..
विक्रम - चिवास रिगल...
वीर - मैंने ब्रांड नहीं पुछा है..
विक्रम - मैंने इस वक़्त के ज़ख्म का मरहम निकाला है...(कह कर ग्लास में शराब डालता है और शूट के अंदर मिनरल वाटर की बोतल निकाल कर मिक्स कर वीर को देता है)
वीर - नहीं...
विक्रम - क्यूँ... बड़े भाई के सामने पीना नहीं चाहते... या...
वीर - जो ग़म है... मैं उसे भुलाना नहीं चाहता हूँ... जो दर्द है... मैं उसे भुलाना नहीं चाहता हूँ...
विक्रम - गलत फहमी है तुम्हारा... इससे ना दर्द भुलाया जाता है... ना ग़म... बल्कि दोनों को झेलने की हिम्मत मिल जाती है...
वीर - मैं... लड़खड़ाना नहीं चाहता...
विक्रम - फिर गलत... लड़खड़ा तो तुम अभी रहे हो... यह तुम्हें बैलेंस बनाना सिखाएगा... पर सिर्फ आज की रात के लिए... (ग्लास को वीर की ओर बढ़ाते हुए) हूँ... तुम जानते हो.... मेरा एक्सपीरियंस है... इस मामले में... आखिर तुम ही तो मुझे घर ले जाया करते थे....
वीर - (सपाट भाव से विक्रम की ओर देखता है)
विक्रम - घबराओ मत... आज तुम्हें... तुम्हारा भाई लेकर जाएगा...

वीर झट से विक्रम के हाथों से ग्लास लेता है और एक ही सांस से हलक से उतार देता है l विक्रम दुबारा ग्लास भर देता है l वीर फिर से वही करता है l चार पेग के बाद वीर पाँचवां पेग धीरे धीरे घुट भरने लगता है l वीर को अब सुरूर चढ़ने लगता है l

वीर - सॉरी भैया...
विक्रम - किस लिए...
वीर - जब आप भाभी के प्यार में थे... मैं आपका खिल्ली उड़ाया करता था...
विक्रम - तो... तो क्या हुआ...
वीर - आप सच कहते थे... यह प्यार बड़ा दर्द देता है...
विक्रम - मतलब तुम्हें किसीसे प्यार हो गया है...
वीर - हाँ... हाँ भैया हाँ...
विक्रम - अच्छा... कौन है वह...
वीर - अनु...

अनु, यह नाम कहते ही वीर के चेहरे पर अचानक रौनक आ जाती है l दर्द जैसे गायब हो जाती है l होठों पर मुस्कान खिल उठता है l

वीर - अनु... अनु है भैया... उसका नाम अनु है... (पाँचवां पेग खतम करता है )
विक्रम - (छठा पेग बना कर देते हुए) अनु.... यह वही अनु है ना... तुम्हारी पर्सनल सेक्रेटरी...
वीर - हाँ भैया... वह मेरी है... सिर्फ मेरी... जानते हो भैया... वह ना... इस दुनिया की है ही नहीं... बल्कि किसी और दुनिया की है... वह सिर्फ़ मेरे लिए इस दुनिया में आई है... सिर्फ मेरे लिए... क्यूंकि इस दुनिया... जिसे हमने पहचाना... वहाँ हर कोई मतलबी है... पर मेरी अनु... खुद के लिए कम... अपनों के लिए सोचती है... खुद के सपनों को किनारे कर देती है... दूसरों के सपनों में रंग भर देती है... ऐसी है मेरी अनु....
इतनी भोली... इतनी मासूम... (आधा ग्लास खतम कर देता है) जानते हो भैया... समाज के इस जंगल में... वह एक मासूम हिरनी है... जिसे देख मेरे अंदर का शेर शिकार करने के लिए... चीर फाड़ करने के लिए मंसूबे पाल बैठा था... पर हाय...(उसके चेहरे पर मुस्कराहट फैल जाती है) उसकी वह बड़ी बड़ी कत्थई आँखे... जादू है... उसकी मुस्कान... हाय.. ठंडी हवा का झोंका... जादू है (चेहरा गंभीर हो जाता है) पर सच यह भी है... की मैं उसके लायक ही नहीं हूँ... (आँखे छलक जाती हैं) वह जो अंग्रेजी में कहते हैं ना.... कर्मा द बीच...
विक्रम - (सीरियस हो कर) क्या हुआ वीर...
वीर - मेरे गुनाह... मेरे सामने आ खड़े हो रहे हैं... (रोते हुए) आज मैं उसे आई लव यू कहना चाहता था... पर... पिछली बार की तरह आज भी... मेरी तकदीर ने मुझे छका दिया...
विक्रम - पिछली बार... कब...

वीर पाँच दिन पहले हुए सारी बातेँ बताता है और आज की हुई सारी बातेँ विक्रम को बताता है l सारी बातेँ सुनने के बाद विक्रम भी शुन हो जाता है l विक्रम कुछ और पूछने के लिए वीर की ओर देखता है तो वीर को वहीँ टेबल पर लुढ़का हुआ देखता है l विक्रम वीर को अपनी बाहों में उठा कर उस हॉल से निकलता है और वीर को गाड़ी की पिछली सीट पर सुला देता है l विक्रम गाड़ी के ड्राइविंग सीट पर बैठ कर गाड़ी स्टार्ट करता है I एक नजर वीर पर डालने के बाद विक्रम महांती को फोन लगाता है l

महांती - जी युवराज...
विक्रम - महांती... मैटर थोड़ा सीरियस है...
महांती - जी कहिए...

विक्रम मृत्युंजय की माँ के देहांत के दिन श्मशान में आए फोन और आज हॉस्पिटल से जाने के बाद आए फोन की बात बताता है l सब सुनने के बाद

महांती - यह तो बहुत बड़ी बात हो गई है...
विक्रम - हाँ महांती... या तो हम प्यादों को घेर रहे हैं... या फिर...
महांती - या फिर... हमें... कोई डिस्ट्राक्ट कर रहा है...
विक्रम - अगर वीर की बात सही है... तो ऑफ द स्क्रीन खिलाड़ी कौन है... पता करना बहुत जरूरी है...
महांती - जी.. मैं.. कुछ करता हूँ...
विक्रम - हाँ... महांती... अब यह देखना बहुत जरूरी हो गया है... केके और चेट्टी... किसके प्यादे हैं... शाह कौन है... और खिलाड़ी कौन है...
महांती - जी जरूर...

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अगले दिन
मृत्युंजय के घर में रात को अनु पुष्पा के साथ सोई थी l सुबह जल्दी उठकर अपने घर में आती है l दादी कब की उठ चुकी थी और पुजा पाठ खतम कर रसोई में व्यस्त थी l अनु को घर में आते देख कर दादी रसोई को छोड़ कर अनु के पास आती है l अनु तब अपना चेहरा पानी से साफ कर रही थी l जब चेहरा पोंछती हुई बेड रुम जा रही थी उसे दादी आवाज दे कर रोकती है

दादी - अनु...
अनु - हाँ दादी...
दादी - कैसी है पुष्पा...
अनु - (अपने बेड पर बैठते हुए) हाँ... अच्छी है... थोड़ी कमजोरी भी है...
दादी - और नहीं तो... इतना खुन जो बह गया था उसका...

इस पर अनु कोई प्रतिक्रिया नहीं देती l अनु के कुछ ना कहने से दादी को अखरने लगता है l अनु अब तैयार होने के लिए बाथरुम के लिए कपड़े निकाल रही होती है कि दादी और एक सवाल दागती है I

दादी - रात को पुष्पा के साथ थी... पुछा नहीं क्यूँ ऐसे किया...
अनु - नहीं...
दादी - क्यूँ... आख़िर तेरी दोस्त है... सहेली है...
अनु - दा..दी... अच्छी बातेँ पूछी जा सकती है... पर बुरा हुआ हो... तो बताने के लिए... वक़्त देना चाहिए...
दादी - हाँ... हाँ... तु कब से इतनी सयानी हो गई है... बड़ी आई...

अनु बाथरूम की ओर जा रही है कि दादी फिर से उसे रोकती है l

दादी - अरे.. बात अभी खतम ही कहाँ हुई... जो तु चली जा रही है...
अनु - कहाँ चली जा रही हूँ... ऑफिस के लिए तैयार होना है मुझे...
दादी - नहीं... पहले तेरी मेरी बात खतम हो... फिर जाना तैयार होने...
अनु - (इस बार अपनी दादी को हैरान हो कर देखती है) क्या है दादी...
दादी - एक जवान लड़की... अपने हाथ की नसें कब काटती है...
अनु - मुझे क्या पता...
दादी - इसीलिए तो तुझे रोका है... ताकि तु जाने... समझे...
अनु - ठीक है... (बाथरुम के दरवाजे से लौट कर एक स्टूल पर बैठ कर) अब बोलो... क्या बात है...
दादी - वह पुष्पा है ना... एक अमीर जागे के चक्कर में फंसी थी.. ऐन मौके पर ठेंगा दिखा गया... बेचारी सह ना पाई... इसलिए अपनी नस काट ली...
अनु - यह तुम्हें किसने बताया.. या तुम अपने आप कहानी गढ़ सुना रही हो...
दादी - मुझे क्या पड़ी है... कहानी बना कर किसीको सुनाने की... यह बात... खुद मट्टू ने मुझे बताया...
अनु - (हैरान होते हुए) क्या...
दादी - हाँ...
अनु - ह्म्म्म्म ठीक है... तो अब मैं चलूँ...
दादी - कहाँ...
अनु - नहाने... ऑफिस जाना है...
दादी - नहीं...
अनु - क्यूँ...
दादी - जब तक पुष्पा पुरी तरह से ठीक नहीं हो जाती... तु ऑफिस से छुट्टी कर ले...
अनु - (उछल कर) क्या... ऐसे कैसे...
दादी - क्या... ऐसे कैसे... क्या... ऐसे कैसे... पड़ोसी हैं हमारे... उनके सुख दुख में.. हमें काम आना चाहिए कि नहीं...
अनु - तो हम पास हैं ना उनके... साथ हैं ना उनके...
दादी - नहीं हो तुम... तुम ना साथ हो.. ना पास हो...

अनु हाथों को कोहनी में बाँध कर अपनी दादी को घूर कर देखती है I

दादी - मुझे ऐसे क्या घूर रही है...
अनु - दादी... मेरा दिमाग ट्यूब लाइट है... पर समझती खूब हूँ... साफ साफ कहो... तुम कहना क्या चाहते हो...
दादी - समझती है... कुछ नहीं समझती है तु... ठीक है... साफ साफ सुनना चाहती है ना... चल बता... कल कहाँ थी...
अनु - (हड़बड़ा जाती है) क्क्क्या... म्म्मत्त्तलब...
दादी - तेरे लच्छन कुछ ठीक नहीं लग रहे हैं मुझे...
अनु - (चीख पड़ती है) दादी...
दादी - (चिल्ला कर) तु चुप कर... इतनी बड़ी नहीं हुई है तु.. जो मुझ पर चिल्लाए... (फिर समान्य दबी आवाज में) वह तो अच्छा हुआ... मैं पुष्पा को खाने के लिए बुलाने चली गई थी... नहीं तो मालूम ही नहीं पड़ता... उसने अपना नस काट लिया था... मैंने चिल्ला चिल्ला कर लोग इकट्ठे किए... फिर उनके मदत से... मट्टू को फोन लगाया... वह नहीं मिल रहा था... तब तुझे लगाया... तु आई कब... डेढ़ दो घंटे बाद... और साथ में कौन था... वह लम्पट राजकुमार... तब भी... मैं कुछ ना सोचती... पर तेरे पैरों में, कपड़ों में और राजकुमार के पैरों में और कपड़ों में मुझे रेत दिखाई दिआ... तब समझ में आया... तुम दोनों कौनसे काम में व्यस्त थे...
अनु - दा...दी (टुटे हुए स्वर में, जैसे जोर का धक्का लगा हो ) तुम अपनी खुन और संस्कार पर शक कर रही हो...
दादी - ना... मुझे तुझ पर कोई शक नहीं है... पर उस लम्पट पर हरगिज़ नहीं...

अनु कुछ नहीं कह पाती l वह जवाब में कुछ कहने के वजाए अपनी जबड़े भिंच कर चुप रहती है l पर दादी रुकती नहीं है l

दादी - तुझे क्या लगता है... पुष्पा के साथ क्या हुआ है... कोई रईस जादा उसके पीछे पड़ा था... ऐन मौके पर ठेंगा दिखा कर भाग गया... मैं नहीं चाहती तेरे साथ भी कुछ ऐसा हो...
अनु - (दांत पिसते हुए) राजकुमार जी वैसे नहीं हैं...
दादी - (चौंकती है) क्या... (जैसे सब समझते हुए) अच्छा... तो बात यहाँ तक पहुँच गई...
अनु - (चीखती है) नहीं... दादी नहीं... बात शुरु ही नहीं हुई तो... पहुँचेगी कहाँ...
दादी - (चीख कर) अगर शुरु ही नहीं हुआ... तो चिल्ला क्यूँ रही है...
अनु - (चीखते हुए) इसलिए... के तुम्हारी पोती... अभी तक सही सलामत है...

दादी एक चमाट लगाती है l अनु का चेहरा घूम जाता है l

दादी - (अपनी दांत पिसते हुए) बदजात... मैंने तो तुझे यह संस्कार नहीं दिए थे... मुझसे ऊंची आवाज़ में बात कर रही है... शर्म नहीं आई... उस लम्पट से... सबकी नजरों से छुप छुप के मिलते हुए... (अनु चुप रहती है, उसे चुप देख कर दादी अनु को झिंझोडती है) कुछ पुछा है तुझे बोल...
अनु - (आम आवाज़ में, आँखों में आँसू लिए ) बताऊंगी तब भी... समझ नहीं पाओगी...
दादी - अच्छा... क्या नहीं समझ पाऊँगी...
अनु - तुम्हारी भाषा में... मेरा उनसे छुप छुप कर मिलना उतना ही पवित्र है... जितना सबकी नजरों से छुपा कर... एक माँ का अपने बच्चे को दुध पिलाना....
दादी - (अपने दोनों हाथों से अपने सिर को पीटते हुए) हे भगवान... यह लड़की... मुझे यह दिन दिखाएगी... कभी सोचा भी नहीं था.... (अनु से) बस... आज से तेरा ऑफिस जाना बंद...
अनु - दादी...
दादी - चुप... अगर तु जिद करेगी... तो सौगंध है मुझे... मेरा मरा हुआ मुहँ देखेगी...

अनु को ऐसा लगता है, जैसे उसके सिर पर बिजली गिरी हो l उसे समझ में नहीं आता, अभी के अभी क्या हो गया l दादी अंदर जा कर अनु की मोबाइल लाती है और अनु के सामने मोबाइल की फर्श पर पटक देती है l मोबाइल टुकड़ों में बिखर जाती है l अनु हैरानी बड़ी दुख के साथ टुटे हुए मोबाइल को देखती है l

दादी - यही मेरी अशांति की जड़ थी... (अनु आँसू भरी आँखों से अपनी दादी को देखती है) कान खोल कर सुन ले... परसों... लड़के वाले तुझे देखने आ रहे हैं... उन्हें अगर तु पसंद आ गई... आ गई क्या... जरूर आएगी... तो उसी दिन तेरी मंगनी हो जाएगी... और... और जितनी जल्दी हो सके... तुझे व्याह दूँगी... इस बीच खबरदार... कहे देती हूँ... उस लम्पट से फोन पर संपर्क साधने की कोशिश की तो... (फिर भराई हुई आवाज में) मुझे... ऊपर जाके... तेरे बाप को भी.. मुहँ दिखाना है...
अनु - (सुबकते हुए) दादी... ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है... जैसा तुम सोच रही हो...
दादी - हाँ हाँ... जानती हूँ... कुछ नहीं हुआ है अब तक... मैं... मैं इसलिए सावधान हो रही हूँ... ताकि आगे कुछ हो ना जाए....
अनु - दादी... तुम्हारा मन में... कब से इतना मैल भर गया... तुम ही कहा करती थी... मन चंगा तो कटौती में गंगा...
दादी - बस बस... मुझे मत सीखा... मैं जानती हूँ... मन चंगा तो कटौती में गंगा.... मेरा मन साफ है... इसलिए तु अबतक सुरक्षित है... पर... पर कब तक... (गुर्राते हुए) तु उस लम्पट के लिए... मुझसे बदजुबानी कर रही है... ना... मैं अब कुछ और ना सुनना चाहती हूँ... ना ही जानना चाहती हूँ... बस...

दादी घुमती है तो बाहर दरवाजे पर मृत्युंजय खड़ा दिखता है l

दादी - तु कब आया मट्टू...
मृत्युंजय - (हकलाते हुए) जी.. जी.. अ.. अभी... कु.. कु.. कुछ ही... देर पहले.. मैं वह... पुष्पा को संभालने के लिए... अनु को धन्यबाद कहने आया था...
दादी - देख बेटा... क्या तु मुझे अपना मानता है...
मृत्युंजय - यह... कैसी बात कर रही हो दादी... अब मेरा और पुष्पा का... आप ही सहारा हो...
दादी - मुझे कुछ दिनों के लिए... ठिकाना बदलना है... परसों इसकी मंगनी हो जाए... फिर शादी तक... वह भी अगर महीने भीतर हो जाए... मैं गंगा नहाने चली जाऊँगी...
मृत्युंजय - यह... यह क्या कह रही हैं दादी... हमे अब आपका ही सहारा है... आप कहीं चली गई... तो मेरा और पुष्पा का क्या होगा...
दादी - ठीक है... तुम सबके घर बसाने के बाद... मैं चली जाऊँगी... पर तु कुछ दिनों के लिए ही सही... हमारी ठिकाना बदलने ही सोच...
मृत्युंजय - (चुप रहता है)
दादी - क्या... तु भी इस धर्म संकट में... मेरा साथ नहीं देगा...
मृत्युंजय - ऐसा ना कहो दादी... मैं आपके लिए... अपनी जान भी दे सकता हूँ...
दादी - तो बस... पहले... मेरा ठिकाना बदलने की सोच... और दुसरा... कोई अनु की खबर लेने की कोशिश करे... उसे पता लगना नहीं चाहिए....

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वीर के कानों में कुछ आवाजें पड़ती हैं l उसे अपना तकिया हिलता हुआ महसूस होता है l बहुत गहरी नींद में बेड पर लेटा हुआ था l वह करवट बदलता है कि उसका चेहरा किसी नर्म मुलायम चिपचिपे चीज़ पर पड़ता है l उसका नींद टुट जाता है l वह उठता है तो देखता उसका चेहरा एक केक पर गिरा था l केक का सारा मलाई दार हिस्सा उसके चेहरे पर चिपक गया था I वह चिढ़ कर उठता है, तो देखता है बेड के पास एक चेयर पर रुप हाथ में एक पॉपर पकड़े बैठी थी l जैसे ही वह उठ बैठता है रुप पॉपर को फोड़ देती है l पॉपर में जो पेपर के टुकड़े थे ज्यादा तर वह टुकड़े वीर के चेहरे पर चिपक जाते हैं l

वीर - (गुस्से में) आ आ आह.. यार क्या है...
रुप - हैप्पी बिलेटेड बर्थ डे भैया...
वीर - यह क्या तरीका है...
रुप - सॉरी भैया... मुझे यही तरीका मालुम है...
वीर - अच्छा... अभी तुझे नए तरीके सिखाता हूँ... (बेड से उठ कर रुप के पास आता है)

रुप पहले से ही तैयार थी, चेयर से उठ कर कमरे से बाहर भाग जाती है l वीर भी रुप के पीछे पीछे भागने लगता है l रुप भाभी भाभी चिल्लाते हुए नीचे भागती है और नीचे पहुँच कर शुभ्रा के पीछे छुप जाती है l वीर शुभ्रा को देख कर ठिठक जाता है l

रुप - भाभी... मुझे इस भूत से बचा लो प्लीज...
शुभ्रा - क्या हुआ वीर...
वीर - वह... भाभी...
शुभ्रा - (वीर की हालत देख कर हंसने लगती है) हाँ हाँ... आगे बोलो...
वीर - (जल्दी जल्दी) मैं... एक छिपकली को ढूंढ रहा हूँ...
रुप - (शुभ्रा के पीछे से निकल कर) ऐ... छिपकली किसे बोल रहे हो...
वीर - तुझसे ही बोल रहा हूँ...
रुप - देखा भाभी.... खुद तो बंदर जैसा दिख रहा है... और मुझे छिपकली कह रहा है...
वीर - ऐ.. (कहते हुए आगे बढ़ता है)
रुप - (शुभ्रा के पीछे हो कर) जा जा... बंदर...
वीर - देखा भाभी...
शुभ्रा - हाँ हाँ देख लिया... उसने अपना हक लिया है...
वीर - कैसा हक...
शुभ्रा - वह हक... जो तुमने उसके जन्म दिन पर उसे दी थी... भुल गए...

शुभ्रा को सामने देख कर वीर फिर से ठिठक जाता है l वीर शुभ्रा की ओर देखता है l शुभ्रा उसे घूरे जा रही थी l वह शुभ्रा के आँखों में देख नहीं पाता और अपना सिर झुका लेता है l

वीर - सॉरी भाभी...
शुभ्रा - क्यूँ... यह सॉरी किस लिए...
वीर - वह.. कल...

आगे कुछ कह नहीं पाता, चुप हो जाता है l पीछे से विक्रम आता है और वीर के कंधे पर हाथ रखकर

विक्रम - हाँ वीर... कहो... किस बात के लिए सॉरी कहा तुमने...
वीर - (हैरान हो कर विक्रम को देखते हुए) भैया... आप..
विक्रम - हाँ मैं... इस वक़्त मेरी बात छोड़ो... तुम इस वक़्त अपने भाभी और बहन के दोषी हो... उन्हें जवाब चाहिए... उन्हें जवाब दो...
वीर - (अपना सिर झुका कर) भाभी... वह मैं...
शुभ्रा - जानती हूँ... सब जानती हूँ... तुम्हारे भैय्या ने... कल रात तुम्हें कमरे में सुलाने के बाद... हमें सारी बातेँ बताई है...
वीर - (वैसे ही अपना सिर झुकाए खड़ा रहता है)
शुभ्रा - वीर... हम तुम्हारे अपने हैं... तुम्हारे जीवन पर ना सही... तुम्हारे कुछ पल पर... हमारा हक तो बनता है ना... हाँ उसमें भी तुम्हारी मर्जी होनी चाहिए...
वीर - यह क्या भाभी... ऐसा कह कर पराया तो ना लीजिए...
शुभ्रा - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) ह्म्म्म्म... हम चार लोगों के बीच पार्टी होनी थी... हमारा यहाँ पांचवां है ही कौन... हाँ कल तुम उसे लाते तो बात अलग होती... नंदिनी और मैं... शाम को इंतजार करते रहे... तुम्हारा फोन स्विच ऑफ आ रहा था... तब तुम्हारे भैया ने मोर्चा संभाला और तुझे खोज निकाला...
वीर - प्लीज भाभी... मुझे और शर्मिंदा ना करें... आज आप जो भी सजा देंगी... मुझे मंजुर है...
रुप - (शुभ्रा के पीछे से ही) सजा भाभी नहीं... मैं दूंगी...
वीर - तु दे चुकी है... छिपकली...
रुप - क्या कहा...

कह कर रुप वीर को पकडने के लिए झपटती है l वीर वहीँ विक्रम और शुभ्रा के आसपास भागने लगता है फिर भी रुप उसे पकड़ नहीं पाती l विक्रम और शुभ्रा उनकी यह हरकत देख कर बहुत खुश होते हैं l घर के सारे नौकर भी यह देख रहे थे और खुशी का अनुभव कर रहे थे lअंत में रोनी सुरत बना कर सोफ़े पर बैठ जाती है l वीर एक नौकर से झाड़ू लेकर रुप के पास आता है और उसके हाथों में झाड़ू को देते हुए

वीर - ले... अपना सारा गुस्सा... उतार दे...
रुप - (मुहँ फूला कर फ़ेर लेती है) नहीं...
वीर - भाभी...
शुभ्रा - ना... आज नंदिनी जो फैसला लेगी... वही मान्य होगा...
वीर - अच्छा मेरी माँ... क्या सजा है... सुना डाल... मैं तैयार हूँ... देख घर के नौकर हँस रहे हैं... तेरी शक़्ल रूठी हुई सड़ी हुई शक़्ल देख कर...
रुप - (चिल्ला कर) आ... आ.. आ... मेरी नहीं तुम्हारी शकल देख कर हँस रहे हैं... बंदर...
वीर - ठीक है.. मैं बंदर हूँ... अब तो मुस्करा दे... और सजा सुना दे...

रुप अपनी आँखे और मुहँ सिकुड़ कर वीर को देखती है, पर ज्यादा देर तक अपने चेहरे पर यह भाव रख नहीं पाती, वीर उसे मनाने के लिए ऐसे ऐसे चेहरे बनाता है कि उसकी हँसी छूट जाती है l

शुभ्रा - चलो... अब सजा भी सुना दो...
रुप - ठीक है वीर भैया... आप नहा धो कर आ जाओ... फिर इस घर में काम करने वालों को अपने हाथों से बोनस बाँटो...
वीर - ठीक है... और कुछ...
शुभ्रा - हाँ... पेनाल्टी के तौर पर... आज तुम कहीं नहीं जाओगे... और अपनों के साथ... आज अपना सुख और दुख बाँटोगे...
वीर - मंजुर... और...
रुप - और भैया... हमने जानने की कोशिश भी नहीं की है... वह कौन है... इसलिए जब वह राजी हो जाए... सीधे हमसे लाकर परिचय कराएगा...

वीर के जवाब से सभी खुश हो जाते हैं l वीर अपने कमरे की ओर चला जाता है l रुप एक छोटी बच्ची की तरह उछलते हुए शुभ्रा के गले लग जाती है l विक्रम यह सब देख रहा था, उसके आँखों के कोने भीग जाते हैं, इसलिए वहाँ से मुड़ कर विक्रम जाने लगता है कि उसे महांती अंदर आते दिखता है l महांती को इशारे से बैठक में जाने को कह कर वहाँ से चला जाता है l दोनों बैठक में पहुँचते हैं l

विक्रम - बैठ जाओ महांती...
महांती - (बैठक में) इट्स ओके... आज... आपके आँखों में... खुशी के आंसू देखे...
विक्रम - (अपनी जगह पर बैठते हुए) हाँ... आज इस हैल में... हेवन जैसा महसूस हो रहा है.... इसलिए... खैर... कैसे आना हुआ...
महांती - (थोड़ा झिझकते हुए) क्या आज... शाम तक... ऑफिस आयेंगे...
विक्रम - क्यूँ...
महांती - (थोड़ी देर रुक कर) वह... कल... राजा साहब आ रहे हैं... इसलिए...
विक्रम - ह्म्म्म्म... क्या सिर्फ इसीलिए...
महांती - जी...
विक्रम - ह्म्म्म्म... ठीक है... शाम को मिलते हैं...

महांती वहाँ से चला जाता है l विक्रम सोच में पड़ जाता है l क्यूँकी उसे एहसास हो जाता है l बात कुछ और ही है l घर के ख़ुशनुमा माहौल को देख कर महांती छुपा गया और बिना बताये चला गया l

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टींग टंग बेल बजता है l रोणा एक तकिया उठा कर अपने कान पर रख कर बेड पर लेटा रहता है l फिर से उसके कानों में टींग टंग की आवाज सुनाई देता है l वह चिढ़ कर अपने चेहरे पर कंबल डाल देता है l उसके बाद भी जब कलिंग बेल की आवाज आती है रोणा चिढ़ कर बेड से उठता है और अपनी नजरें घुमाता है l उसे अपने पास या कमरे में कहीं भी बल्लभ नहीं दिखता है l वह पहले हैरान होता है और ध्यान से सुनने पर बाथरुम नल चलने की आवाज सुनाई देता है l रोणा को फिर से कलिंग बेल की आवाज सुनाई देता है l वह चिढ़ कर बेड रुम से निकल कर दरवाजा खोलता है l सामने परीड़ा खड़ा था l

रोणा - साले... तुझे चैन वैन है कि नहीं... आ गया सुबह सुबह नींद खराब करने...
परीड़ा - भोषड़ी के... रात की उतरी नहीं है क्या... टाइम डेक.. अभी दुपहर के बारह बज रहे हैं...
रोणा - क्या...

फिर दोनों अंदर आते हैं l अंदर खाली बोतल और खाली प्लेट इधर उधर पड़े दिखते हैं l

परीड़ा - प्रधान कहाँ है...
रोणा - नहा रहा है शायद...
परीड़ा - क्या... अभी...
रोणा - हाँ... तु बता क्यूँ आया है...
परीड़ा - कल राजा साहब आ रहे हैं... कुछ सोचा है... क्या कहोगे...
रोणा - नहीं... अभी तक नहीं... कल तक का टाइम है ना... देखते हैं... पर तु बता... तु आया किस लिए है...

तभी बाथरूम से बल्लभ निकलता है, इन दोनों की नजरें उस तरफ जाता है और यह दोनों बल्लभ को देख कर हैरान हो जाते हैं l क्यूँ के बल्लभ रात को कपड़े नहीं बदला था शायद, शूट में ही था, पुरा भिगा हुआ l

रोणा - यह... यह क्या है प्रधान... पिया तो मैं था... तुझे कब चढ़ गई...
परीड़ा - हाँ प्रधान... यह क्या है... शूट में ही...

बल्लभ बेड के पास जाता है वहाँ से टावल उठा कर सिर पोछने लगता है और अपने कपड़े उतारने लगता है l फिर टावल को लपेट कर चेयर में बैठते हुए l

बल्लभ - काम का क्या हुआ...
रोना - क्या... कैसा काम... कौनसा काम...
बल्लभ - तेरे मतलब का नहीं है...
परीड़ा - हाँ... काम दे दिया है...
रोणा - अबे कैसा काम...
परीड़ा - विश्व का पता लगाने का काम...
रोणा - क्या... प्रधान ने तुझसे कब कहा...
बल्लभ - कल रात को... जब तु... रात में नशे में डुबा हुआ था....

रोणा परीड़ा के तरफ देखता है l परीड़ा अपना सिर हिला कर हाँ कहता है l

रोणा - तो पता चला...
परीड़ा - अबे... प्रधान कल रात को पुछा... अभी अभी एक प्राइवेट डिटेक्टिव को काम सौंप कर आया हूँ...
रोणा - किसी पहचान के पुलिस वाले से बोलता... तो ठीक रहता ना...
बल्लभ - नहीं... लगता है... कल तुने टोनी की बात पर गौर नहीं किया... यहाँ किसी भी थाने में... या कचहरी में... विश्व के नेट वर्क सेटिंग हो सकता है...
रोणा - ओ... अच्छा... तो वह.. किस बेसिस पर ढूंढेगा...
परीड़ा - इस बेसिस पर... (कह कर अपने मोबाइल पर एक तस्वीर दिखाता है)
रोणा - क्या विश्व ऐसा दिखता है...
परीड़ा - पता नहीं... पर... कल इसी फोटो को देख कर प्रधान... पहचान करी थी... वैसे मैंने हर तरह के स्केच दे दिया है...
रोणा - ठीक है... (बल्लभ को देख कर) पर तुझे क्या हो गया... तु शूट पहने नहा रहा था... (बल्लभ चुप रहता है)
परीड़ा - हाँ यार... क्या तेरा दिमाग खिसक गया...
बल्लभ - कल टोनी ने एक बात कहा था... जो मेरे दिमाग का दही कर गया है...
दोनों - क्या... कौनसी बात...
बल्लभ - टोनी ने कहा कि... उसे विश्व ने यह कहा कि... सिर्फ़ एक को मारने का सोचा है... वह दुसरा ना बने...
परीड़ा - हाँ...
बल्लभ - तो सवाल है... वह एक कौन है...
परीड़ा - शायद...
रोणा - हाँ शायद...
बल्लभ - हाँ शायद...
परीड़ा - शायद... रा.. रा... राजा साहब...

बल्लभ और रोणा कुछ देर के लिए चुप रहते हैं l फिर रोणा बल्लभ की ओर देखता है l

बल्लभ - शायद नहीं...
परीड़ा - कैसे...
बल्लभ - अगर मारना ही उसका लक्ष होता... तो वह... लॉ क्यों कि... आरटीआई क्यूँ फाइल की... उसका प्राइम टार्गेट... बेशक राजा साहब हैं... पर उन्हें मारना नहीं... बल्कि उन्हें अदालत के कटघरे में लाकर... (आगे कुछ नहीं कह पाता है)

टावल में चेयर पर बैठे बल्लभ, सामने बैठे परीड़ा और रोणा के बीच चुप्पी छा जाती है l

रोणा - तो वह एक कौन हो सकता है...
बल्लभ - यही तो पता लगाना है... एक बात तो है... उसने खुद को... हमारे इमेजिन से भी ऊपर... एलीवेट कर लिया है... उसे हमारे बारे में जानकारी है... पर हमें... बेशक हम बहुत कुछ जान गए हैं उसके बारे में... पर फिर भी... हम अंधेरे में... हैं

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शाम को विश्व घर में पहुँचता है l देखता है प्रतिभा और तापस सोफ़े पर बैठ कर बातेँ कर रहे थे उसे देख कर थोड़ा झेप जाते हैं और अपनी अपनी जगह सीधा हो कर बैठ जाते हैं l

विश्व - क्या हुआ माँ...
प्रतिभा - पहले तु बता... अब ड्राइविंग स्कुल नहीं है... तो कहाँ घुमता रहता है दिन भर...
विश्व - माँ... (दोनों के सामने बैठते हुए) क्या हुआ है...
तास - तेरी माँ ने कुछ पूछा है...
विश्व - हाँ... बात को छुपा रहे हैं... या घुमा रहे हैं... बताइये हुआ क्या है...
तापस - नहीं ऐसा कुछ नहीं है... अब अगले मंगलवार को चला जाएगा... तो...
विश्व - (दोनों को घूरते हुए देखता है)
प्रतिभा - तो.. हम सोच रहे थे... की क्यूँ ना... हम रविवार तक... कहीं बाहर जाएं...
तापस - हाँ... हम इसी विषय पर... प्लानिंग कर रहे थे...
विश्व - (अपनी जगह उठता है और और प्रतिभा के सामने फर्श पर आलथी पालथी मार कर बैठ जाता है) माँ... क्या हुआ है... बताओ...

प्रतिभा चुप रहती है, तापस भी इधर उधर देखने लगता है l

विश्व - माँ... लगता है किसी बात का... डर है तुम्हें... समझ सकता हूँ... पर माँ... वक़्त धीरे धीरे मुझे उस निर्णायक मोड़ की ओर लिए जा रही है.... इस लिए... कुछ बातेँ वक़्त... तकदीर और उपरवाले के हाथ पर छोड़ देते हैं...

प्रतिभा विश्व की चेहरे को गौर से देखती है और बड़े प्यार उसके चेहरे पर हाथ फेरती है l

प्रतिभा - तु इतना कुछ समझ जाता है... तो फिर नंदिनी ने किस बात पर तुझे थप्पड़ मारा... क्यूँ नहीं समझ पाया...
विश्व - (प्रतिभा के हाथ को पकड़ कर) माँ... बात को घुमा रही हो... फिर भी बताता हूँ... तुम जानती हो... नंदिनी जी के चेहरे को... देखते हुए... मैं हमेशा नज़रें चुराता हूँ... क्यूंकि... उनके चेहरे से किसी और का चेहरा झलकता था... पर उस दिन जो थप्पड़ उन्होंने मारा था... उसमें मेरे लिए... गिला था... उसकी वजह कुछ और था... उनसे मिल कर... पुछ लूँगा... समझ लूँगा... पर तुम बताओ... ऐसा लगता है... तुम किसी धर्म संकट में हो... वह क्या है...

प्रतिभा चुप रहती है l तापस प्रतिभा के कंधे पर हाथ रख कर दिलासा देता है l प्रतिभा तापस की ओर देखती है, तापस अपनी पलकें झुका कर हाँ में सिर हिलाता है l

प्रतिभा - वह... इस शुक्रवार को... लॉ मिनिस्टर विजय कुमार जेना की लड़की की रिसेप्शन पार्टी है....
विश्व - ह्म्म्म्म... फिर...
प्रतिभा - उस पार्टी में... (रुक जाती है)
विश्व - माँ...
प्रतिभा - उस पार्टी में... भ.. भैरव सिंह भी... आमंत्रित है...
विश्व - हूँ... बस इतनी सी बात... मतलब तुम चाहती हो कि मैं पार्टी में ना जाऊँ...
प्रतिभा - नहीं... ऐसी बात नहीं... वह...
तापस - हाँ... प्रताप... यही वजह है...
विश्व - (खड़ा हो जाता है) ठीक है... नहीं जाऊँगा... पर माँ... तुम्हें डर किस बात का है...
तापस - वह... तुम्हारे और भैरव सिंह के आमने सामने होने की सोच कर... डर रही है...
विश्व - माँ... तुम जो कहोगी... मैं वही करूंगा... पर माँ... आमना सामना... एक दिन होना ही है... तुम्हें डर किस बात का है...
तापस - हाँ भाग्यवान... बता दो उसे....
प्रतिभा - मुझे डर है कि... तु उसे सामने देख कर... खुद पर काबु खो देगा...
विश्व - (मुस्कराता है) नहीं माँ... तुम गलत हो... मैं उसे देख कर... खुद पर काबु नहीं खो सकता... क्यूंकि... उसके और मेरे बीच... बहुत ही... खास भावनात्मक रिस्ता है... जो हमें अपने अपने दायरे में बांधे रखे हुए है... इसलिए ना मैं वह दायरा लाँघ सकता हूँ... ना वह....
Bahut hi shaandar update diya hai Kala Nag bhai....
Nice and beautiful update.....
 
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