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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
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Kala Nag

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👉चौहत्तरवां अपडेट
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वीर अपने केबिन में बैठा हुआ ना जाने कब से अपनी ही सोच में खोया हुआ है l अनु एक कप कॉफी लेकर उसके सामने खड़ी हो जाती है l पर वीर का ध्यान कहीं और है l

अनु - अहेम.. अहेम... (थोड़ी खरास लेने के बावज़ूद वीर का ध्यान नहीं टूटता) र.. राज कुमार जी...
वीर - हँ.. हाँ... हाँ अनु... कुछ कहा तुमने...
अनु - जी वह कॉफी..
वीर - हाँ... लाओ...(कॉफी ले लेता है और सीप लेने लगता है)

अनु कॉफी देकर कुछ देर के लिए खड़ी होती है पर वीर कॉफी पीते पीते फिर सोच में खो जाता है l वीर का अनु की तरफ ना देखना अनु को थोड़ा मायूस करती है इसलिए मुड़ कर वहाँ से जाने लगती है, तभी

वीर - अनु...
अनु - (जाते जाते रुक जाती है, चेहरे पर मुस्कान आ जाती है) जी...
वीर - यह... जन्मदिन... खास क्यूँ होती है...

अनु - जी... मतलब...
वीर - मतलब यह है कि... किसीके लिए... जन्मदिन खास दिन क्यूँ होती है...

अनु - जी मैं इसपर... क्या कहूँ...
वीर - तुम्हें... अपने जनम दिन पर... कैसा महसूस होता है... कैसा लगता है अनु...
अनु - (अपनी गर्दन ना में हिला कर) पता नहीं... पर...
वीर - पर... पर क्या अनु...
अनु - मेरे बाबा... जब तक थे... मुझे हमेशा... (खुशी के लहजे में) जन्म दिन का इंतजार रहता था... क्यूँ की... (थोड़ा चहकते हुए) उस दिन मेरे बाबा मुझे... दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की बना देते थे... मुझे राजकुमारी बना देते थे... मेरी हर खुशी का खयाल रखते थे और मेरी हर हुकुम मानते थे...
वीर - ओ... (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है) अच्छा अनु...
अनु - जी...
वीर - तुम्हारे कहने का मतलब है कि... हर लड़की को उसके जनम दिन पर... राजकुमारी सा फिल कराया जाता है...
अनु - ह्म्म्म्म... पता नहीं... पर बात अगर मेरी है.... तो.. हाँ..
वीर - (फिर कुछ देर के लिए चुप हो जाता है) अनु...
अनु - जी...
वीर - क्या कभी... ऐसी राजकुमारी की कल्पना कर सकती हो... जो सच में एक राजकुमारी है... पर बीस साल से... उसकी जन्मदिन कभी नहीं मनाया गया हो....
अनु - क्या... ऐसा भी कहीं हो सकता है... क्या वह... राजकुमारी अनाथ है...
वीर - नहीं....(थोड़ा गंभीर हो कर) वह अनाथ नहीं है... उसकी सिर्फ... माँ नहीं है... पर उसके परिवार में... दादाजी, पिताजी, चाचाजी, चाचीजी, दो बड़े भाई भी हैं... पर किसीने भी उसका जन्मदिन नहीं मनाया है... बीस साल हो गए... कैसा फिल् होता रहेगा उसे... जब उसका एक भी जनम दिन.. ना मनाया गया हो...
अनु - जी.... मैं कुछ समझी नहीं...
वीर - हमारी बहन... राजकुमारी रुप नंदिनी... आज वह.... बीस बरस की हो गई है... पर जानती हो... आज तक उसका जनम दिन नहीँ मनाया गया है...
अनु - (हैरान हो कर) जी...
वीर - हाँ... इसीलिए शायद आज हमारी भाभी जी... युवराणी जी... सुबह घर में... राजकुमारी जी को नौकरों के जरिए... जनम दिन की बधाई दिलवाया... और साथ मनाया...
अनु - वाह... यह तो बहुत अच्छी बात है... राजकुमारी जी बहुत खुश हुई होंगी...
वीर - नहीं... मैं नहीं जानता...
अनु - म... मतलब...
वीर - उस लम्हा का मैं.... गवाह नहीं बन पाया...
अनु - क्यूँ...
वीर - क्यूँकी... मुझे मालुम ही नहीं था... की आज उनका जनम दिन है...
अनु - ओ... तो ऐसी बात है... आपने अपनी बहन को बधाई नहीं दे पाए... यही बात आपके दिल को चुभ गई है... तो ठीक है ना... अभी राजकुमारी जी जहां पर होंगे... वहाँ जा कर उन्हें जन्मदिन की बधाई दे दीजिए...

वीर अनु के चेहरे को देखता है कितनी आसानी से अनु ने कह दिया बधाई देने के लिए, जबकि उसे मालुम ही नहीं के,उसके और रुप के बीच के रिश्ते के बारे में, क्या है, कैसा है l

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

शुभ्रा - ओह गॉड.. कबसे इंतजार कर रही थी... कहाँ रह गई थी तुम...
रुप - (उदास हो कर) चलिए भाभी... यहाँ से चलते हैं... (कह कर गाड़ी के दरवाजा खोल कर अंदर बैठ जाती है)
शुभ्रा - नंदिनी... क्या हुआ तुम्हें...
रुप - (गाड़ी के अंदर से) प्लीज भाभी... आओना...
शुभ्रा - ओके...

कह कर शुभ्रा गाड़ी के भीतर बैठ जाती है और गाड़ी स्टार्ट कर के आगे बढ़ा देती है l

शुभ्रा - पंडित जी आकर मुझे बताया क्या हुआ... मैंने उन्हें दक्षिणा देकर, विदा करके तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी... मंदिर में जो हुआ... वह अचानक हो गया... अपना मन खराब मत करो... तुमने उसे सॉरी भी तो कह दिया ना...
रुप - ह्म्म्म्म
शुभ्रा - ओह ओ... नंदिनी... कॉम ऑन... भुल जाओ...
रुप - वह... वह प्रतिभा मैम का बेटा... प्रताप था...
शुभ्रा - व्हाट... (छेड़ते हुए) ओ... अनजाने में सही... तुमने अपने भाई का बदला ले ही लिया...
रुप - आ...ह्ह्ह्... (खीज कर) भाभी...
शुभ्रा - (हँसते हुए) ओके... ओके... तो इस बात से तुम दुखी हो... और तुम्हारा मन बहुत भारी हो गया है...
रुप - नहीं... ऐसी बात नहीं है...
शुभ्रा - तो... आज तुम्हारा जन्मदिन है... और तुम्हारा चेहरा यूँ उतरा हुआ अच्छा नहीं लगता...
रुप - भाभी... मुझे लग रहा है कि...
शुभ्रा - हाँ... क्या...
रुप - प्रताप ही... अनाम हो सकता है...
शुभ्रा - क्या... (चर्रेर्रेर, ब्रेक लगाती है) क्या.. कैसे.. मतलब तुम्हें ऐसा क्यूँ लग रहा है...
रुप - नहीं... मुझे सेवन्टी पर्सेंट लग रहा है... बस थर्टी पर्सेंट डाऊट है...
शुभ्रा - और वह थर्टी पर्सेंट डाऊट... किस लिए है...
रुप - वह... वहीं पर प्रतिभा मैम थी... उन्होंने कहा कि... प्रताप उनका बेटा है...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... (गाड़ी को फिरसे स्टार्ट कर) यह तो तो हम दोनों उसी दिन से जानते हैं... जिस दिन उन माँ बेटे को पहली बार देखा था... अनाम पर तुम्हारी खोज... प्रतिभा मैम के बेटे... प्रताप के आगे जाती ही नहीं है...
रुप - हाँ...
शुभ्रा - और सेवनटी पर्सेंट की वजह...
रुप - भाभी... मैं पहले भी बता चुकी हूँ... उसका चेहरा मुझे... अनाम की याद दिलाता है...
शुभ्रा - हाँ... यह पहले भी बता चुकी हो...
रुप - उसने पहले भी कुछ ऐसा कहा था... जो कभी अनाम ने मुझसे कहा था...
शुभ्रा - हाँ... वह खतरनाक वाली बात...
रुप - जी भाभी... और आज प्रताप ने... मुझे कुछ इस तरह से... बर्थ डे विश किया... जैसे कभी अनाम मुझे विश करना चाहता था...
शुभ्रा - व्हाट... तो तुमने उससे बात क्यूँ नहीं की...
रुप - उसे ही तो अब तक मंदिर में ढूंढ रही थी... विश करने के बाद... पता नहीं कहाँ चला गया...
शुभ्रा - ओ... (शुभ्रा फिर गाड़ी को आगे बढ़ाती है) अच्छा... इससे पहले... उसने कितनी बार विश किया था तुमसे...
रुप - छह बार...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... कैसे और किस तरह...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____*

और एक गाड़ी महानदी रिंग रोड पर भागी जा रही है l जाहिर सी बात है उस गाड़ी में विश्व और प्रतिभा बैठे हुए हैं

विश्व - ओहो... माँ... क्या हुआ... प्लीज माँ प्लीज.... मुझसे बात करो ना...
प्रतिभा - नहीं करनी है मुझे तुझसे कोई बात... लड़की क्या दिखी... माँ को छोड़ कर चला गया... (चिढ़ाते हुए) माँ.. भगवान आप ही सबकुछ मांग लो...
विश्व - माँ... आज नंदिनी जी का जन्मदिन था... और वह बेचारी... अपनी जन्मदिन पर रो रही थी...
प्रतिभा - हाँ.. लड़की थी... इसलिए तु गया था... उसके आंसु पोछने...
विश्व - नहीं माँ... आंसु पोछने नहीं... बर्थ डे विश करने गया था... और... तुम जानती हो... मैं उनके विचारों को एडमायर करने गया था...
प्रतिभा - सब समझती हूँ... इधर मैं लड़की ढूंढ रही हूँ... उधर कल को मेरे सामने नंदिनी को खड़ा कर बोलेगा... (मर्दाना आवाज़ निकालने की कोशिश में) माँ अब लड़की ढूंढने की जरूरत नहीं... मैंने शादी कर ली है... यह देखो... रेडियो वाली नंदिनी...
विश्व - ओह ओ माँ... कहाँ की बातेँ... कहाँ लेकर जा रही हो...
प्रतिभा - चोरी चोरी मुलाकातों को... शादी तक लेके जा रही हूँ...
विश्व - आ... ह्ह्ह्ह्ह...
प्रतिभा - बस बस... अपने बाल नोचने मत लग जाना... वरना गंजा हो जाएगा... फिर वह रेडियो वाली नंदिनी तुझे पहचान नहीं पाएगी...
विश्व - (अपना मुहँ बना कर प्रतिभा को देखता है)
प्रतिभा - (हँसने लगती है) हा हा हा हा हा...
विश्व - मतलब अब तक... आप मेरी टांग खिंच रही थी...
प्रतिभा - (हँसते हुए) हाँ... टांग खिंच रही थी... पर देखने लायक तेरा चेहरा था... हा हा..
विश्व - (मुस्कराते हुए) मुझ पर गुस्सा तो नहीं हो ना माँ...
प्रतिभा - अरे गुस्सा क्यूँ करूँ... मैंने जिस लड़की को पसंद किया है... अगर तु उसे मेरी बहु बनाने में तूल जाए...
विश्व - माँ... फिरसे वही पुराण...
प्रतिभा - हा हा हा... अच्छा ठीक है... चल बता... उसे रोता हुआ देख कर... तु क्यूँ उसके पीछे भागा...
विश्व - रोता हुआ देख कर नहीं... उन्हें अपनी जन्मदिन पर रोता हुआ देख कर गया था....
प्रतिभा - ओ... तो समाज सेवा करने गया था...
विश्व - ऐसी बात नहीं है माँ... पता नहीं क्यूँ... उनका रोना... मुझसे बर्दास्त नहीं हुआ... मुझे लगा जैसे... वह मेरी वजह से रो रहे हैं... इसलिए उनको ढूंढते हुए गया था...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... मैंने भी देखा था... कैसे तुने उसे बधाई दी.... और उसके चेहरे पर कैसे.. एक जबरदस्त.. चमक भरी खुशी और हँसी ले आया...
विश्व - क्या... इसका मतलब आपने हम दोनों को देखा था...
प्रतिभा - हाँ देखा...
विश्व - क्यूँ...
प्रतिभा - क्या मतलब क्यूँ... मेरा बेटा लड़कियों के नाम से भाग जाने वाला... किसी लड़की को नजर उठा कर ना देखने वाला... अचानक एक लड़की के पीछे भाग कर जाएगा... तो मन में क्युरोसिटी तो होगी ही ना... (विश्व चुप रहता है) अच्छा... इससे पहले कभी किसी लड़की को ऐसे डे विश की है...
विश्व - कहाँ माँ... सात सालों से आपके सामने हूँ...
प्रतिभा - तो फिर... तुने ऐसे इनोवेटिव तरीके से... कैसे इम्प्रेस किया...
विश्व - माँ... यह दुसरी लड़की है... जिसे मैंने बर्थ डे विश किया...
प्रतिभा - व्हाट... अभी तो तुमने कहा कि... कभी किसी लड़की को...
विश्व - हाँ माँ... मैंने आज से पंद्रह साल पहले... और नौ साल पहले तक... ऐसे ही इनोवेटिव और अलग अलग तरीके से... किसी को बर्थ डे विश किया करता था...
प्रतिभा - ओ... तो बचपन का प्यार है...
विश्व - नहीं माँ... वह मेरा प्यार नहीं था... उनके प्रति अनुकंपा थी...
प्रतिभा - (हैरान हो कर) क्या मतलब है इसका...

फिर विश्व बताता है कैसे उमाकांत सर ने उसे छोटे राजा जी के पास ले गए और राजकुमारी जी को पढ़ाने का जिम्मा दिया l वह कैसे अपना नाम अनाम बताया और रुप की रजोदर्शन (मीनार्की) तक पढ़ाता रहा l कैसे ग्यारह साल की राजकुमारी विश्व पर हक जमाते हुए शादी के साथ साथ किसी दुसरी लड़की के तरफ ना देखने का वादा लिया था l

प्रतिभा - कमाल है... तुम्हारे बारे में वैदेही ने यह तो बताया कि तुम भैरव सिंह की बेटी को पढ़ाते थे... पर उसने कभी यह बात नहीं बताई... के तुम भैरव सिंह की बेटी को बर्थ डे... वह भी इनोवेटिव तरीके से विश किया करते थे...
विश्व - यह बात... मुझे तब गैर जरूरत लगी थी... इसलिए दीदी को भी नहीं बताया था...
प्रतिभा - अच्छा... राजकुमारी जी का नाम कहीं... नंदिनी तो नहीं...
विश्व - (हँसता है) पता नहीं माँ... मुझे शख्स हिदायत दी गई थी... महल में ना उनसे नाम पूछने की इजाजत थी... ना ही अपना नाम बताने की... और यह लड़की... नंदिनी... राजकुमारी हो ही नहीं सकती...
प्रतिभा - क्यूँ नहीं हो सकती...
विश्व - (सीरियस हो कर) माँ... जिस लड़की को अपने ही आँगन में खेलने नहीं दिया गया... अपनी ही गांव के स्कुल में पढ़ने नहीं दिया गया... उसे यूँ भुवनेश्वर में.. उँ हुँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तब तो राजकुमारी जी का तुम्हें चाहना वाजिब ही है...
विश्व - (हैरान हो कर) ये.. यह क्या कह रही हो माँ... यह उनका बचपना था...
प्रतिभा - बचपना नहीं फैसला था... और सही फैसला...
विश्व - (चुप हो कर प्रतिभा को देखने लगता है) यह आप कैसे कह सकती हैं)
प्रतिभा - बता दूँगी... पहले यह बता... तुने छह साल तक उसे कैसे बर्थ डे विश किया...
विश्व - (थोड़ा हँसता है) एक दुखियारी... राजकुमारी... सब कुछ था... घर... परिवार... पर उन पर लुटाने वाला प्यार... घर के किसी सदस्य के पास नहीं था... उनकी चाची उनसे बहुत प्यार करती थी... पर समय नहीं दे पाती थी... एक तरफ मैं था... ना घर ना परिवार... बहुत प्यार बचपन से लेकर तब तक हासिल था मुझे... और वक़्त ही वक़्त था मेरे पास... यही वजह था कि हम दोनों को एक दुसरे का साथ बहुत भाता था.... जब मुझे मालुम हुआ कि उनका जन्मदिन आने वाला है... तो मैंने तय किया कि उनको... बर्थ डे विश करूँ... तब वह छह साल की थीं.... और मैं चौदह साल का...


🌹छठी साल गिरह 🌹

सुषमा के जाने के बाद

रुप - अच्छा.. तो मेरा जन्मदिन कैसे मनाने वाले हो...
विश्व - सोच रहा हूँ... सरप्राइज़ दूँ...
रुप - (खुश होते हुए) वाव... क्या सरप्राइज़ देने वाले हो...
विश्व - सरप्राइज ऐसे थोड़े ना बताया जाता है.. आप मंदिर से आ जाना... मैं दे दूँगा...
रुप - अरे बुद्धू... मंदिर कोई बाहर नहीं है... यहाँ महल के मंदिर की बात कर रही थी... छोटी रानी माँ...
विश्व - अच्छा... ठीक ही तो है ना.... आप मंदिर से वापस आ जाओ... मैं आपको बहुत ही प्यारा सा गिफ्ट दूँगा...

जन्मदिन पर रुप अपनी चाची के साथ मंदिर से वापस आ कर अपनी कमरे में बड़ी बेसब्री से अनाम की इंतजार कर रही है l कुछ देर बाद अनाम कमरे में आता है l

विश्व - जन्मदिन की शुभकामनाएँ... राजकुमारी जी..
रुप - (एटिट्यूड के साथ) ठीक है.. ठीक है... बोलो क्या सरप्राइज़ लेकर आए हो...
विश्व - दिखा दूँगा... पर आप वादा करो.. चिल्लाओगी नहीं...
रुप - ठीक है...
विश्व - नहीं आप वादा करो...
रुप - ठीक है... वादा करती हूँ...

विश्व अपने शर्ट के अंदर से दो सफेद रंग के चूहे निकाल कर रुप को दिखाता है l रुप सफेद रंग के चूहे देख कर खुश तो होती है पर वह डर के मारे उन्हें अपने हाथ में नहीं लेती l

विश्व - राजकुमारी जी थैंक्स...
रुप - वह किस लिए..
विश्व - आपने चिल्लाया नहीं... इसलिए... वैसे कैसे लगे यह चूहे...
रुप - (डरते हुए) यह... यह काटेंगे तो नहीं...
विश्व - नहीं राजकुमारी जी... यह चूहे घर में पाले जाते हैं... अगर यह चूहे काले रंग के होते... तो बात डरने की होती...
रुप - मैं... हाथ में लूँ...
विश्व - लीजिए ना... आपके लिए ही तो लाया हूँ...
रुप - (अपनी हाथों से चूहों को लेकर) वाव... इन्हें मैं रखूंगी कहाँ...
विश्व - इसी कमरे में छोड़ दीजिए...
रुप - नहीं... छोटी रानी जी से बात करूंगी...

शुभ्रा - हाँ... अनाम कितना बेवक़ूफ़ था... चूहे लाकर दी तुमको...
रुप - वह बेवक़ूफ़ नहीं था... वह चूहे अपनी शर्ट में छुपा कर लाया था...
शुभ्रा - सॉरी सॉरी... अनाम बेवक़ूफ़ नहीं था... फिर तुमने चाची माँ से बात की...
रुप - हाँ... चाची माँ ने... एक छोटा सा पिंजरा मुझे ला कर दी... मैंने उन दो चूहों को पिंजरे में रखा भी... पर...

प्रतिभा - पर क्या...
विश्व - उन चूहों को पिंजरे में देख कर... राजकुमारी का मन में बहुत दुख होता था... इसलिए दो दिन बाद... राजकुमारी जी ने उन चूहों को छोड़ दिया...
प्रतिभा - क्या... छोड़ दिया... पर क्यूँ...
विश्व - माँ... जरा सोचो.. वह भले ही राजकुमारी थी... पर वह आजाद कहाँ थी... अपनी ही गांव के स्कुल नहीं जा पा रही थी... इतनी पाबंदीयाँ लगी थी उन पर...
प्रतिभा - ओ... इसका मतलब यह हुआ कि... पिंजरे में चूहों को देख कर.... वह पिंजरे में खुद को महसुस कर रही थी...

रुप - हाँ... मुझे आजादी नसीब नहीं थी... मैं अपनी खुशियों के लिए... उन बेजुबानों को कैद में नहीं रख सकती थी...
शुभ्रा - इसलिए दो दिन बाद तुमने उन चूहों को आजाद कर दिया...
रुप - हाँ... मैंने उन्हें अपने अंतर्महल के उद्यान में छोड़ दिया...
शुभ्रा - और अनाम का क्या रिएक्शन था...
रुप - अनाम को मेरी मनोभावना समझ आ गई... वह मेरे मन की ख्वाहिश को समझ गया था... इसलिए उसने अगले साल की तैयारी शुरू कर दिया था...

प्रतिभा - क्या... सातवीं साल गिरह की तैयारी तभी से...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - सातवें जन्मदिन पर तुमने क्या किया...


🌹सातवीं साल गिरह 🌹

सुबह के सात बज चुके थे I रुप सुबह सुबह सुषमा के साथ मंदिर जा कर आ चुकी थी l उसे बस इंतजार था तो अनाम का l रुप अपनी कमरे में टहल रही थी, कभी खिड़की के पास जा कर बाहर झाँकती थी तो कभी दरवाजे पर अपना कान लगा कर बाहर से आहटों को सुनने की कोशिश कर रही थी l थोड़ी देर बाद वह दरवाजा खोल देती है तो सामने पंद्रह साल का विश्व खड़ा हुआ था l

विश्व - क्या बात है राजकुमारी जी... क्या टाइमिंग है... मैं अभी दरवाजा खटखटाने वाला था...
रुप - ठीक है... क्या सरप्राइज है इसबार... अगर पिंजरे मैं रखने वाली कुछ लाए हो... तो नहीं चाहिए...
विश्व - नहीं राजकुमारी जी... अब जो लाया हूँ... वह इतना बड़ा है कि... पिंजरे में रखा नहीं जा सकता...
रुप - अच्छा... अगर वह इतना बड़ा है... तो महल के अंदर लाए कैसे...
विश्व - एक दिन में थोडे लाया हूँ...
रुप - तो...
विश्व - कुछ दिनों से.. थोड़ा थोड़ा करके... लाता रहा हूँ...
रुप - (उसे हैरान हो कर अनाम की चेहरे को देखती रहती है)
विश्व - चलें...
रुप - ह्ँ... हाँ... पर कहाँ...
विश्व - अंतर्महल के उद्यान में...

फिर दोनों उद्यान के बाहर आकर खड़े होते हैं l विश्व एक डंडा उठा कर राजकुमारी के हाथों में देता है l

विश्व - राजकुमारी जी... इस डंडे को... (एक झाड़ी की ओर इशारा करते हुए) उस झाड़ी पर फेंक मारीये...
रुप - इससे क्या होगा...
विश्व - आप फेंकिए तो सही...

रुप डंडे को झाड़ी पर फेंक मारती है l डंडा झाड़ी पर लगते ही पीले रंग के सैकड़ों तितलियाँ झाड़ी से उड़ने लगती हैं l रुप उसके आजू बाजू तितलियों को उड़ते देख बहुत खुश हो जाती है l

शुभ्रा - व्हाट... तितलियाँ... वह भी सैकड़ों... कहाँ से लाया वह इतनी तितलियाँ...
रुप - एक्जाक्टली... यही सवाल मैंने भी उससे की...
शुभ्रा - तो उसने क्या बताया...
रुप - उसने कहा कि.. फाल्गुन मास में... यह तितलियाँ खेतों में उड़ते रहते हैं...

प्रतिभा - अच्छा... हम सहर वाले... इस मामले में थोड़े कच्चे हैं...
विश्व - फाल्गुन माह में... इन तितलियों का... मेटींग टाइम होता है... मैंने सिर्फ थोड़ा थोड़ा करके उनको इकट्ठा किया... और उनके आसपास वह एंवाइरॉनमेंट बनाया...
प्रतिभा - बायोलॉजी की अच्छी नॉलेज थी तुमको...
विश्व - नहीं... ऑवजर्वेशन की नॉलेज थी... आखिर पढ़ाई के साथ साथ किसानी भी तो कर रहा था...

शुभ्रा - ओ... ह्म्म्म्म... हाँ यह सरप्राइज बहुत ही बढ़िया था... यह तो गई सातवीं... आठवीं साल गिरह कैसे मनाया....
रुप - अनाम था ही यूनिक... हमेशा कुछ ना कुछ नया ही सोचता रहता था... इसलिए उसने जन्मदिन के पहले दिन ही कह दिया था.... अगर सरप्राइज चाहिए तो सुबह तड़के उठना है... जब सुबह ना खुला हो... थोड़ा सा अंधेरा हो...


🌹आठवीं साल गिरह 🌹

रुप के तकिए के पास पड़ी घड़ी बजने लगती है l रुप झट से अपनी बिस्तर से उठ जाती है और दौड़ कर दरवाजा खोल देती है तो दरवाजे के सामने ही उसे अनाम खड़ा मिलता है l

रुप - (दबी दबी आवाज में) तुम रात भर सोये नहीं क्या... वैसे भी इतनी सुबह... महल में दाखिल कैसे हुए.... वह भी अंतर्महल में...
विश्व - (दबी जुबान से) मैं रात को गया ही नहीं...
रुप - फिर...
विश्व - मैं रात भर भीमा पहलवान का पैर दबाता रहा... फिर जब वह सो गया... तब जाकर मैं तैयारी में जुट गया...
रुप - पिछली बार तो महीना लगा था तैयारी में... अब एक रात में हो गया...
विश्व - नहीं... एक हफ्ता...
रुप - अब कहाँ चलना है...
विश्व - वहीँ... उसी उद्यान में... मगर इस बार फव्वारे के पास...
रुप - चलो फिर...

फिर दोनों अंतर्महल के उद्यान में बेह रहे फव्वारे से थोड़े दूर रुक जाते हैं l वहाँ पर विश्व एक रस्सी को उठाता है और रुप के हाथों में देता है l

विश्व - राजकुमारी जी.. इसे आप खिंच दीजिए...

रुप उस रस्सी को खिंच देती है l रस्सी के खिंच जाते ही फव्वारे के दूसरी तरफ एक मटका लुढ़क जाता है l मटके की लुढकते ही अनगिनत जुगनू उड़ने लगते हैं l जिससे फव्वारे का नज़ारा अद्भुत दिखने लगता है l थोड़ी देर बाद सारे जुगनू पेड़ों पर, झाड़ियों पर, फूलों पर पत्तों पर बैठ जाते हैं l उस थोडे से अंधेरे में ऐसा लग रहा था जैसे छोटे छोटे, नन्हें नन्हें टीम टीमाते तारे आसमान से जमीन पर उतर आए हों l यह नजारा देख कर आठ साल की रुप इतना भावुक हो जाती है कि वह भागते हुए विश्व के गले लग जाती है l

प्रतिभा - वाव... वाकई... बड़े बड़े आशिक तक जो नहीं सोच पाते.. वैसा तुमने सोच लिया था...
विश्व - (हल्का सा हँस देता है)
प्रतिभा - जाहिर सी बात है... अगर वहाँ पर जवान राजकुमारी भी होती... तो वह भी तुम्हारे गले लग जाती...
विश्व - क्यूँ... आपको क्यूँ ऐसा लगता है...

शुभ्रा - क्यूँ मतलब... अरे... बातों बातों में सब कह देते हैं... आसमान को धरती पर लाने की... पर सिर्फ अनाम ही ला पाया... अपनी राजकुमारी के लिए...
रुप - (शर्मा के चेहरा झुका लेती है)
शुभ्रा - सच कहती हूँ नंदिनी... दैट वाज रियली एमेजिंग...
रुप - हाँ भाभी... सच में... कविओं के लेखकों के कल्पनाओं को... वह वास्तव बना देता था...
शुभ्रा - नौवीं सालगिरह में... क्या सरप्राइज दिया अनाम ने तुम्हें....
रुप - अपनी नौवीं साल गिरह के पहले दिन... मैंने बीमारी के चलते बिस्तर पकड़ लिया था...



🌹नौवीं साल गिरह 🌹

जन्मदिन के पहले दिन सत्रह साल का विश्व जब रुप के कमरे में आता है तो देखता है रुप बीमारी के चलते अपनी बेड पर सोई हुई है l रुप के सिरहाने बैठ कर सुषमा रुप के माथे पर वॉटर स्पंजिंग कर रही थी l आसपास कुछ नौकरानियां खड़ी हुई थी l सुषमा जैसे ही विश्व को देखती है सभी नौकरानियों को बाहर जाने के लिए कहती है l सभी नौकरानियों के बाहर जाते ही

सुषमा - देखो अनाम... इस साल अगर राजकुमारी जी की जन्मदिन मनाने का कोई प्लान है... तो उसे अगले साल के लिए टाल दो... राजकुमारी जी की हालत खराब है...
रुप - (आँखे बंद होने के बावजूद) आह... छोटी रानी जी... प्लीज...
सुषमा - नहीं राजकुमारी... एक तो कोई नहीं जानता है इस महल में... की आपकी जन्मदिन मनाया जा रहा है... ऐसी हालत में आप पर सबकी नजर होगी... अगर किसी ने देख लिया और यह बात राजा साहब को मालुम हुआ... तो जरा सोचिए... इस बेचारे अनाम क्या क्या होगा...
रुप - (कुछ कह नहीं पाती है, उसके बंद आँखों के कोने में आँसू दिखने लगते हैं)
विश्व - छोटी रानी जी... क्या कल सुबह तक... राजकुमारी जी ठीक नहीं हो पाएँगी...
सुषमा - ठीक हो भी जाएं तो... तो भी... तुम्हारा उनके साथ... उनका जन्मदिन मानना मुश्किल है... अब तक तुम नजर में नहीं आए हो... पर कल अगर कुछ भी किया तो... नजर में आ जाओगे... तब... तब तुम सोच भी नहीं सकते... क्या हो सकता है...
विश्व - ठीक है... छोटी रानी जी... मैं कल नहीं आऊंगा... पर क्या आप मुझे एक वादा करेंगी...
सुषमा - (विश्व को हैरान हो कर देखती है) कैसा वादा...
विश्व - अंतर्महल में आपकी कोठरी... पूरब दिशा की नदी की ओर है...
सुषमा - हाँ तो...
विश्व - तो आप राजकुमारी जी को... आज रात के लिए अपने कमरे में सोने दीजिए... बस सुबह सूरज निकलने से पहले आपके कोठरी की खिड़की के पास खड़ा कर दीजिएगा...
सुषमा - क्या... इससे क्या होगा...
विश्व - कल सूरज निकलने से पहले... राजकुमारी जी को जन्मदिन की बधाई मिल जाएगी....

इतना कह कर विश्व वहाँ से चला जाता है l सुषमा भी रुप को अपने साथ अपने कमरे में सुला देती है l सुबह रुप की आँख जल्दी खुल जाती है l आज उसकी हालत पहले से बेहतर है वह खिड़की के पास आकर खड़ी होती है उसके साथ सुषमा भी खड़ी हो कर बाहर की ओर देखने लगती है l सुबह खुला नहीं है फिर भी आकाश में हलकी सी लालिमा उभरने लगी है l तभी कुछ दूर नदी के किनारे से लाल रंग के जापानी काग़ज़ के लालटेन उड़ने लगते हैं l करीब करीब पचासों लालटेन पूर्वी आकाश में सूरज के निकलने की संदेश को लेते हुए आसमान में छाने लगते हैं l यह दृश्य देख कर रुप बहुत ही खुश हो जाती है l

सुषमा - वाह... अनाम की बधाई देने का तरीका वाकई लाज़वाब है... जन्मदिन मुबारक हो राजकुमारी....

शुभ्रा - वाव... अगैंन अमेजिंग.. इटस रियली अमेजिंग... और उसके साथ साथ तुम्हारा डेस्क्रीपशन... वाव... पूर्वी आसमान में उड़ते लाल रंग के लालटेन... धीरे धीरे सूरज के निकलने के पैगाम लिए उड़ रहे थे...
रुप - सच ही तो कहा है भाभी... वह नज़ारा... वह लम्हें... मैंने खुद एक्सपेरियंस किया है...
शुभ्रा - मैं कहाँ मना कर रही हूँ... आज के डेट में... कितने ऐसे हैं... जो अपनी प्रेमिका को... ऐसे सरप्राइज़ दे पाते हैं...

विश्व - तब मैंने वैसा कुछ सोचा नहीं था माँ... मेरे पास साल भर में... सिर्फ यही एक मौका हुआ करता था... जिस दिन मैं उस बेचारी राजकुमारी को खुश कर पाता था... इसलिए नए नए तिकड़म भिड़ाता था...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म.. फिर भी तू जो भी करता था... पुरे दिल से करता था... सच कहूँ तो तेरी और राजकुमारी की कहानी से... मुझे रस्क होने लगी है... काश के मेरे जीवन में भी ऐसा कोई लम्हा होता... खैर... अब मैं सेनापति जी से सिवाय घटिया ऊटपटांग शायरी के.. और क्या उम्मीद करूँ...
विश्व - हा हा हा.. माँ तुम भी ना..
प्रतिभा - अरे सच ही तो कहा मैंने... खैर... तुम्हारे और राजकुमारी के बीच हम कहाँ आ गए... अब बताओ... राजकुमारी जी की दसवीं साल गिरह कैसे मनाया तुमने...

रुप - नौवीं साल गिरह के समय... मैं बीमार थी... और दसवीं साल गिरह के दिन... अनाम की बारहवीं एक्जाम था... इसलिए मेरी जन्मदिन को वह था नहीं...
शुभ्रा - तो दसवीं सालगिरह नहीं मनाया क्या...
रुप - वह अनाम था भाभी... अपनी राजकुमारी के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता था...


🌹दसवीं साल गिरह🌹

रुप जिज्ञासा भरी नजर से अट्ठारह साल के अनाम को देख रही थी l अनाम देखता है कि रुप उसे देख कर मन ही मन खुश हो रही है

विश्व - क्या बात है राज कुमारी जी... आप... मन ही मन बहुत खुश हो रहे हैं...
रुप - हाँ... जानते हो अनाम... मैंने कभी भी अपनी जन्मदिन का इंतजार नहीं किया था... पर जब से तुम बधाई देना शुरु किया है... तब से मुझे हर साल इसी दिन का... बड़ी सिद्दत से इंतजार रहता है...
विश्व - पर राजकुमारी जी... कल मेरी बारहवीं का एक्जाम है... मैं आ नहीँ पाऊँगा...
रुप - (गुस्सा हो जाती है) (उसका चेहरा तमतमाने लगती है) क्या कहा...
विश्व - (राजकुमारी की गुस्से से तमतमाता हुआ चेहरा देख कर डर जाता है) म.. म... मेरा मतलब था कि... आपको आपके जन्मदिन की बधाई... कल सुबह आपकी आँखे खुलते ही मिल जाएगी...
रुप - (अचानक से गुस्सा गायब हो जाती है और उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है) कैसे...
विश्व - (मुस्कराते हुए) बस... आप सुबह की प्रतीक्षा किजिये...

उस दिन शाम की पढ़ाई जब खतम होती है रुप रात का खाना खाने के लिए कुछ देर के लिए अपनी चाची सुषमा के पास जाती है l खाना खा कर सुबह की सरप्राइज के बारे में सोचते हुए एक्साइटमेंट में अपनी बेड पर आँखे मूँद कर सो जाती है l पर तभी उसे एहसास होता है कि उसके बेड पर कोई नोट छूट गया है l वह उठ कर नोट पढ़ती है l वह विश्व का लिखा उसके नाम पर एक पैगाम था

" राजकुमारी जी... आपके दाहिने और की खिड़की के नीचे... चार कतारों में बोतलों में कुल तेरह कमल के फूल रख छोड़ा है... कल सुबह होते ही आप देखियेगा... मेरी बधाई के शब्द... इन फूलों के जुबान से.... '

अगली सुबह जब वह उठती है तो देखती है बड़े बड़े आकार के कमल के फूल एक एक करके तेरह बोतलों में चार कतारों में खिड़की के पास नीचे रखे हुए हैं l रुप का मन मुर्झा जाता है l सोचने लगती है सिर्फ फूल l यह सोचते हुए उन फ़ूलों के पास पहुँचती है तो पाती है हर एक फूल के केसर पर कुछ लिखा हुआ है l वह गौर से देखती है चार कतारों में फूल रखे गये हैं l पहली कतार में तीन, दुसरी कतार में पांच, तीसरी कतार में चार और चौथी कतार में एक फुल रखी हुई है l पहली कतार के फूलों के केशर लिखे शब्द थे द स वीं l दुसरे कतार के फूलों के केसर पर जो शब्द लिखे हैं सा ल गि र ह I तीसरी कतार में रखे फूलों में मु बा र क और अंतिम कतार के एक फुल पर हो लिखा हुआ था l सभी शब्द मिलकर "दसवीं सालगिरह मुबारक हो" कह रहे थे l रुप के होठों पर एक दमकती मुस्कान खिल उठती है l अपनी मन में सोचने लगती है

'यह सब उसने कब किया होगा.... फूलों के केशर पर स्केच पेन से कैसे और कब लिखा होगा...

शुभ्रा - वाकई... फूलों के केशर मतलब स्टैमेन पर कैसे और कब लिखा...
रुप - मिलने के बाद मैंने भी सेम टु सेम सवाल किया...

प्रतिभा - तो तुमने उसे क्या जवाब दिया...
विश्व - वही कहा जो किया था...
प्रतिभा - तो बताओ क्या किया था...
विश्व - कमल की कली... जो पुर्ण रूप से विकसित फुल होने के... एक दो दिन पहले तोड़ लाया था... पंखुड़ियों को सावधानी से खोल कर... केशर पर स्केच पेन से लिख दिया... और पंखुड़ियों को वापस बंद कर दिया... उसके बाद... जब राजकुमारी जी छोटी रानी जी के पास गई हुई थीं... तभी मैंने बोतलों में पानी भर कर... कमल की कलियों को शब्दों के हिसाब से चार क़तारों में सजा कर रख दिया... सुबह जब सूरज निकलने को हुई... कमल के फूल खिल गये... और मेरी बधाई... राजकुमारी जी तक उन कमल के फूलों ने पहुँचा दिए...
प्रतिभा - वाव... इस उम्र में... मुझे इतना थ्रिल महसूस हो रहा है... तो राजकुमारी की उम्र में तो... वह पागल हो गई होगी...
विश्व - हाँ हो गई... मेरे लिए... और भी मुसीबत हो गई...
प्रतिभा - कैसी मुसीबत

रुप - भाभी... मैं अब बच्ची वाली दिमाग से आगे सोचने लगी थी... अनाम को लेकर मैं... बहुत ही इनसिक्युर होने लगी थी... वह किसी से बात करता था तो... मुझे जलन होती थी... इसलिए इसी उम्र में मैंने अपना प्यार और हक़... उस पर जाहिर कर दिया....
शुभ्रा - हा हा हा हा हा... उस बेचारे की हालत खराब हो गई होगी...
रुप - हाँ... सो तो है... शादी का वादा भी ले लिया था मैंने उससे...

प्रतिभा - हा हा हा हा हा... बेचारा प्रताप... अट्ठारह साल का बांका जवान... दस साल की लड़की के आगे घुटने टेक् दिए...
विश्व - क्या करता माँ... वह बेशक उम्र के नाजुक मोड़ पर थी... जहां उनसे बचपन धीरे धीरे छूट रहा था... तब मेरे लिए,.. अपनी जिद के लिए... किसी भी हद तक जा सकती थी...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तो ग्यारहवीं साल गिरह कैसे मनाया तुमने... अपनी राजकुमारी का...
विश्व - ओ माँ.... वह तो बहुत ही खतरनाक था... आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं... जब भी वह दिन याद आता है...

शुभ्रा - क्यूँ ...ऐसा क्या हुआ था तुम्हारे ग्यारहवें साल गिरह में...
रुप - हर साल की तरह अनाम का... कुछ तो प्लान रहा होगा... मेरी जन्मदिन पर बधाई देने के लिए... पर इसबार प्लान मैंने किया था...
शुभ्रा - व्हाट... मतलब तुम्हारे ही बर्थ डे पर... तुमने उसे चौंकाया...
रुप - हाँ...


🌹ग्यारहवीं सालगिरह🌹

उन्नीस साल का विश्व पढ़ा रहा है l राजकुमारी उसे एक टक देखे जा रही है l उसे देखते देखते कुछ सोच भी रही है l

विश्व - क्या बात है राजकुमारी जी...
रुप - सोच रही हूँ... पिछले दोनों जन्मदिन पर... हम साथ नहीं थे...
विश्व - दोनों बार मतलब... आप पहली बार बीमार थीं... और दुसरी बार मेरा बारहवीं का एक्जाम था... पर अब तो मेरा आगे पढ़ना होगा नहीं... इसलिए मैं तो हूँ... आप बस बीमार मत पड़ जाना....
रुप - इस बार मैं नहीं... तुम बीमार पड़ने वाले हो...
विश्व - हे हे हे... कैसा मजाक कर रही हैं आप... राजकुमारी जी...
रुप - जानते हो... छोटी रानी जी यहाँ नहीं है...
विश्व - हाँ... पर वह परसों तक... आपके जन्मदिन पर तो आ जाएंगी ना...
रुप - हाँ... उनके आने से पहले मुझे कुछ करना है...
विश्व - क्या... क्या करना है आपको...
रुप - गाँव में कहीं... नाम गुदवाते हैं क्या...
विश्व - हाँ गुदवाते हैं ना... आपको अपना नाम गुदवाना है क्या...
रुप - हाँ...
विश्व - तो मैं उसे आज ही बोल देता हूँ... वह कल आकर.. आपका नाम गुदवा देगी...
रुप - उसको यहाँ नहीं आना है...
विश्व - क्या मतलब...
रुप - मुझे उसके पास जाना है...
विश्व - (ऐसे चौंकता है जैसे उसे सांप ने काट लिया) क्या... ए.. ये... यह क्या कह रही हैं आप...
रुप - श्श्श्श्श्... अब मैं तुम्हें अच्छे से पुछ रही हूँ... मुझे उसके पास लेकर जाओगे या नहीं...
विश्व - नहीं...
रुप - क्या... तुमने मुझे मना किया... अब देखती हूँ... कैसे जाते हो तुम महल से बाहर...
विश्व - (सीधे राजकुमारी के पैरों के नीचे गिर जाता है) राजकुमारी जी... प्लीज... यह अंतर्महल है... यहाँ से आप कैसे बाहर जाएंगी... अगर गई भी तो... राजा साहब मेरी खाल लहरा देंगे...
रुप - मेरे पास आइडिया है... या तो मेरी बात मानों... या फिर बिन खाल के राजगड़ में घूमते फिरो...
विश्व - यह... यह चिटींग है... राजकुमारी जी... कितनी शिद्दत से... आपके लिए मैं जन्मदिन की बधाई कि प्लानिंग करता हूँ... आप के लिए इतना कुछ करता हूँ... आप जो कहती हैं... मैं मानता हूं... पर आप हैं कि... मेरी खाल उतरवाने की बात कर रही हैं...
रुप - तो यह बात भी मान जाओ...
विश्व - कैसे... राजकुमारी जी कैसे... आपको मैं बाहर कैसे लेकर जाऊँ...
रुप - कहा ना मेरे पास प्लान है...
विश्व - (हथियार डालने के अंदाज में, निरास आवाज में) अच्छा.... कहिए क्या प्लान है...
रुप - ऐसे लेटे क्यूँ हो... आलथी पालथी मार कर बैठो...

विश्व रुप के कहे प्रकार बैठ जाता है फिर रुप भी अपनी कुर्सी से उतर कर विश्व के सामने आलथी पालथी मार कर बैठ जाती है l

विश्व - बोलिए... क्या करना है...
रुप - जैसे कि मैंने कहा... छोटी रानी जी नहीं हैं... वह परसों सुबह आयेंगी... इसलिए कल रात मैं उनके कमरे में सोउंगी...
विश्व - ठीक है फिर...
रुप - नदी के तरफ वाली खिड़की से रात के बारह बजे नीचे उत्रुंगी...
विश्व - (चौंक कर) क्या.. कैसे..
रुप - उसकी व्यवस्था तुम करोगे....
विश्व - क्या.आ.आ..
रुप - हाँ... तुम मुझे वहाँ से... नाम गुदवाने वाली के पास ले जाओगे... नाम गुदवाने के बाद... तुम मुझे वापस छोड़ दोगे...
विश्व - (अपना हाथ अपने सिर पर मारते हुए) हे भगवान... राजकुमारी जी... रस्सी से नीचे उतरना और उपर चढ़ना... फ़िल्मों में जितना आसान दिखाता है ना... असल में उतना ही मुश्किल होता है...
रुप - वह मैं नहीं जानती... कल एक दिन है तुम्हारे पास... मुझे कैसे उतारोगे... और कैसे वापस चढ़ाओगे... यह तुम प्लान कर लो...
विश्व - क्या.. मैं..
रुप - हाँ तुम...
विश्व - मैं.. मैं भाग जाऊँगा...
रुप - तो अभी से भाग जाओ...
विश्व - क्या..
रुप - हाँ... ताकि मुझे राजा साहब से तुम्हारी शिकायत करने में... आसानी हो...
विश्व - (अपना हाथ जोड़ कर) ठीक है राजकुमारी जी... मैं.. मैं कल कुछ करता हूँ...

अगले दिन रात के बारह बजे विश्व चुपके से नदी के तरफ वाली खिड़की के पास पहुँचता है l रुप पहले से ही विश्व के दिए पुली को खिड़की पर लगा दिया था l रस्सी की एक छोर को विश्व के तरफ फेंकती है जिसे विश्व पकड़ लेता है l रस्सी की दुसरी छोर को पहले अपने कमर पर बांध देती है और फिर रस्सी को जोर से पकड़ लेती है l विश्व रस्सी को ज्यों ज्यों ढील देता है रुप खिड़की से नीचे उतरने लगती है l जैसे ही रुप नीचे आ जाती है विश्व रस्सी खोल देता है l फिर रुप को लेकर महल के पीछे वाली पगडंडीयों पर लेते हुए गांव में आता है l फिर एक घर के बाहर पहुँच कर दरवाजा खटखटाता है l उस घर में एक औरत पहले से ही तैयार बैठी थी l इससे पहले वह औरत कुछ कहती विश्व उसे इशारे से चुप रहने को कहता है l

विश्व - (रुप से) आइए... यह आपका नाम गोद देंगी...
रुप - (चुपके से) यह बातेँ नहीं करती क्या...
विश्व - (धीरे से) नहीं... इसी शर्त पर मैं इन्हें... ग्राहक देने आया हूँ... और हाँ... हम लोग भी.. एक दुसरे का नाम नहीं लेंगे...
रुप -(खुश हो कर) ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... अब जाओ.. उस बुढ़िया के पास बैठ जाओ...
विश्व - हाँ.. (फिर चौंक कर)क्या... मेरा मतलब है क्यूँ... मैं क्यूँ...
रुप - (अपनी आँखे सिकुड़ कर, दबी हुई आवाज में) मेरा नाम... तुम्हारे जिस्म में कहीं भी गुदवा लो...
विश्व - (रुप को अपनी आँखे दिखा कर बातों को चबाते हुए कहता है) क्या... मैं क्यूँ.. गुदवाउँ...
रुप - चुप चाप मेरा नाम गुदवा रहे हो... या चिल्ला कर यहाँ लोगों को इकट्ठा करूँ...
विश्व - नहीं... आप नहीं चिल्लाएंगी... मैं.. मैं गुदवाता हूँ... (फिर रोनी सुरत बना कर) पर कहाँ गुदवाउँ... किसने देख लिया तो... मैंने छोटे राजा जी... और आचार्य सर जी से वादा किया था... आपका नाम ना जानने के लिए... अब कहाँ लिखवाऊँ... ताकि वादा ना टुटे... ना ही लोगों को पता चले...
रुप - अपने गले के पीछे... बालों के नीचे...
विश्व - ठीक है... (अपना मुहँ बना कर बुढ़िया के सामने पीठ करके बैठ जाता है) क्या खुदवाना है...
रुप - (अपनी आँखे दिखा कर) हूँ उँ...
विश्व - मेरा मतलब है... क्या गुदवाना है... इन्हें बता दीजिए...

रुप बुढ़िया को एक काग़ज़ पर कुछ लिख कर देती है l बुढ़िया विश्व के गले के पीछे गोद देती है l गुदवाने का काम होने के बाद दोनों वापस महल की ओर लौटते हैं l

विश्व - (गुस्से में) आपने अपना नाम मेरे गर्दन पर क्यूँ गुदवाया...
रुप - ऐ... मुझसे सलीके से बात करो...
विश्व - (हाथ जोड़ कर) क्यूँ गुदवाया...
रुप - ताकि तुम को यह भान रहे.. के तुम सिर्फ मेरे हो... और खबरदार किसी चुड़ैल से दोस्ती या नैन मटक्का किया तो...
विश्व - (अपने दोनों हाथ जोड़ कर) हे जगदंबे.. मुझे माफ करो... मेरे लिए अपना दिल साफ रखो...
रुप - (एटिट्यूड के साथ) ठीक है... ठीक है... (मुस्कराते हुए) अच्छा यह बताओ... मुझे कल कैसे बधाई देने वाले थे...
विश्व - (अपना मुहँ फूला कर) मैं नहीं बताऊँगा... हूँ.. ह्...
रुप - कोई नहीं... इस बार का सरप्राइज... अगली बार दे देना...

इतने में गली में घूमने वाले कुछ कुत्ते इन पर भौंकने लगते हैं l रुप डर कर विश्व को पकड़ लेती है l विश्व कुत्तों पर चिल्लाते हुए खदेड़ने की कोशिश करता है l कुछ कुत्ते पीछे हटने के वजाए विश्व की ओर गुर्राने लगते हैं l विश्व रास्ते पर कुछ पत्थर उठा कर कुत्तों पर फेंक मारता है l तब वह कुत्ते पीछे हट जाते हैं l जैसे ही कुत्ते भाग जाते हैं l विश्व रुप की हाथ को पकड़ कर भागने लगता है l विश्व भागते भागते महल के पीछे वहीँ पहुँचता है जहाँ उसने खिड़की से रूप को उतारा था l महल के पीछे पहुँचने के बाद रुप विश्व के सीने से कस के गले लग जाती है l

विश्व - राजकुमारी जी... उतरीये प्लीज... महल आ गया...
रुप - हूँ... नहीं.. मुझे तुम्हारे धड़कन सुननी है...
विश्व - प्लीज...
रुप - तुम्हारी धड़कन में मुझे मेरा नाम सुनाई दे रहा है... थोड़ा सुनने दो ना...
विश्व - क्यूँ मज़ाक कर रही हैं आप... सबकी धड़कने एक जैसी ही सुनाई देती है...
रुप - सुनाई देती होंगी... पर इसमें... सिर्फ और सिर्फ़ मेरा नाम सुनाई दे रहा है... इस धड़कन को मैं कहीं भी... पहचान लुंगी...

विश्व - अच्छा ठीक है... अब तो अलग होईये... (रुप विश्व से अलग होती है) राजकुमारी जी... आपने मेरा सारा प्लान काफूर कर दिया...
रुप - कौनसा... ओ अच्छा वह बधाई वाली प्लान... ठीक है अब बताओ... क्या प्लान बनाया था...
विश्व - आप जो खुदको कैदी मान कर घुट रही हैं... हमेशा हारी हुई महसुस कर रही हैं... उस घुटन से... उस हारे हुए ज़ज्बात से... उड़ान भरने की...
रुप - कैसे...
विश्व - ह्म्म्म्म... इस बार हो नहीं पाया... पर अगली बार ज़रूर वैसे ही बधाई दूँगा... जहां आपके अरमानों को... ख्वाहिशों को पंख मिलेगा... उमंगों की आसमान में उड़ने के लिए....
 

avsji

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अंजली को भी ये कहानी बहुत पसंद है -- मतलब इस बुढ़ापे में बीवी के हाथों पिटवाओगे!! ये सब पढ़ कर उसको और भी आइडियाज आएंगे। अब कहाँ से लाऊँ सरप्राइज़ वाले आइडियाज उसके जन्मदिन के लिए 😅
 

Surya_021

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👉चौहत्तरवां अपडेट
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वीर अपने केबिन में बैठा हुआ ना जाने कब से अपनी ही सोच में खोया हुआ है l अनु एक कप कॉफी लेकर उसके सामने खड़ी हो जाती है l पर वीर का ध्यान कहीं और है l

अनु - अहेम.. अहेम... (थोड़ी खरास लेने के बावज़ूद वीर का ध्यान नहीं टूटता) र.. राज कुमार जी...
वीर - हँ.. हाँ... हाँ अनु... कुछ कहा तुमने...
अनु - जी वह कॉफी..
वीर - हाँ... लाओ...(कॉफी ले लेता है और सीप लेने लगता है)

अनु कॉफी देकर कुछ देर के लिए खड़ी होती है पर वीर कॉफी पीते पीते फिर सोच में खो जाता है l वीर का अनु की तरफ ना देखना अनु को थोड़ा मायूस करती है इसलिए मुड़ कर वहाँ से जाने लगती है, तभी

वीर - अनु...
अनु - (जाते जाते रुक जाती है, चेहरे पर मुस्कान आ जाती है) जी...
वीर - यह... जन्मदिन... खास क्यूँ होती है...

अनु - जी... मतलब...
वीर - मतलब यह है कि... किसीके लिए... जन्मदिन खास दिन क्यूँ होती है...

अनु - जी मैं इसपर... क्या कहूँ...
वीर - तुम्हें... अपने जनम दिन पर... कैसा महसूस होता है... कैसा लगता है अनु...
अनु - (अपनी गर्दन ना में हिला कर) पता नहीं... पर...
वीर - पर... पर क्या अनु...
अनु - मेरे बाबा... जब तक थे... मुझे हमेशा... (खुशी के लहजे में) जन्म दिन का इंतजार रहता था... क्यूँ की... (थोड़ा चहकते हुए) उस दिन मेरे बाबा मुझे... दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की बना देते थे... मुझे राजकुमारी बना देते थे... मेरी हर खुशी का खयाल रखते थे और मेरी हर हुकुम मानते थे...
वीर - ओ... (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है) अच्छा अनु...
अनु - जी...
वीर - तुम्हारे कहने का मतलब है कि... हर लड़की को उसके जनम दिन पर... राजकुमारी सा फिल कराया जाता है...
अनु - ह्म्म्म्म... पता नहीं... पर बात अगर मेरी है.... तो.. हाँ..
वीर - (फिर कुछ देर के लिए चुप हो जाता है) अनु...
अनु - जी...
वीर - क्या कभी... ऐसी राजकुमारी की कल्पना कर सकती हो... जो सच में एक राजकुमारी है... पर बीस साल से... उसकी जन्मदिन कभी नहीं मनाया गया हो....
अनु - क्या... ऐसा भी कहीं हो सकता है... क्या वह... राजकुमारी अनाथ है...
वीर - नहीं....(थोड़ा गंभीर हो कर) वह अनाथ नहीं है... उसकी सिर्फ... माँ नहीं है... पर उसके परिवार में... दादाजी, पिताजी, चाचाजी, चाचीजी, दो बड़े भाई भी हैं... पर किसीने भी उसका जन्मदिन नहीं मनाया है... बीस साल हो गए... कैसा फिल् होता रहेगा उसे... जब उसका एक भी जनम दिन.. ना मनाया गया हो...
अनु - जी.... मैं कुछ समझी नहीं...
वीर - हमारी बहन... राजकुमारी रुप नंदिनी... आज वह.... बीस बरस की हो गई है... पर जानती हो... आज तक उसका जनम दिन नहीँ मनाया गया है...
अनु - (हैरान हो कर) जी...
वीर - हाँ... इसीलिए शायद आज हमारी भाभी जी... युवराणी जी... सुबह घर में... राजकुमारी जी को नौकरों के जरिए... जनम दिन की बधाई दिलवाया... और साथ मनाया...
अनु - वाह... यह तो बहुत अच्छी बात है... राजकुमारी जी बहुत खुश हुई होंगी...
वीर - नहीं... मैं नहीं जानता...
अनु - म... मतलब...
वीर - उस लम्हा का मैं.... गवाह नहीं बन पाया...
अनु - क्यूँ...
वीर - क्यूँकी... मुझे मालुम ही नहीं था... की आज उनका जनम दिन है...
अनु - ओ... तो ऐसी बात है... आपने अपनी बहन को बधाई नहीं दे पाए... यही बात आपके दिल को चुभ गई है... तो ठीक है ना... अभी राजकुमारी जी जहां पर होंगे... वहाँ जा कर उन्हें जन्मदिन की बधाई दे दीजिए...

वीर अनु के चेहरे को देखता है कितनी आसानी से अनु ने कह दिया बधाई देने के लिए, जबकि उसे मालुम ही नहीं के,उसके और रुप के बीच के रिश्ते के बारे में, क्या है, कैसा है l

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शुभ्रा - ओह गॉड.. कबसे इंतजार कर रही थी... कहाँ रह गई थी तुम...
रुप - (उदास हो कर) चलिए भाभी... यहाँ से चलते हैं... (कह कर गाड़ी के दरवाजा खोल कर अंदर बैठ जाती है)
शुभ्रा - नंदिनी... क्या हुआ तुम्हें...
रुप - (गाड़ी के अंदर से) प्लीज भाभी... आओना...
शुभ्रा - ओके...

कह कर शुभ्रा गाड़ी के भीतर बैठ जाती है और गाड़ी स्टार्ट कर के आगे बढ़ा देती है l

शुभ्रा - पंडित जी आकर मुझे बताया क्या हुआ... मैंने उन्हें दक्षिणा देकर, विदा करके तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी... मंदिर में जो हुआ... वह अचानक हो गया... अपना मन खराब मत करो... तुमने उसे सॉरी भी तो कह दिया ना...
रुप - ह्म्म्म्म
शुभ्रा - ओह ओ... नंदिनी... कॉम ऑन... भुल जाओ...
रुप - वह... वह प्रतिभा मैम का बेटा... प्रताप था...
शुभ्रा - व्हाट... (छेड़ते हुए) ओ... अनजाने में सही... तुमने अपने भाई का बदला ले ही लिया...
रुप - आ...ह्ह्ह्... (खीज कर) भाभी...
शुभ्रा - (हँसते हुए) ओके... ओके... तो इस बात से तुम दुखी हो... और तुम्हारा मन बहुत भारी हो गया है...
रुप - नहीं... ऐसी बात नहीं है...
शुभ्रा - तो... आज तुम्हारा जन्मदिन है... और तुम्हारा चेहरा यूँ उतरा हुआ अच्छा नहीं लगता...
रुप - भाभी... मुझे लग रहा है कि...
शुभ्रा - हाँ... क्या...
रुप - प्रताप ही... अनाम हो सकता है...
शुभ्रा - क्या... (चर्रेर्रेर, ब्रेक लगाती है) क्या.. कैसे.. मतलब तुम्हें ऐसा क्यूँ लग रहा है...
रुप - नहीं... मुझे सेवन्टी पर्सेंट लग रहा है... बस थर्टी पर्सेंट डाऊट है...
शुभ्रा - और वह थर्टी पर्सेंट डाऊट... किस लिए है...
रुप - वह... वहीं पर प्रतिभा मैम थी... उन्होंने कहा कि... प्रताप उनका बेटा है...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... (गाड़ी को फिरसे स्टार्ट कर) यह तो तो हम दोनों उसी दिन से जानते हैं... जिस दिन उन माँ बेटे को पहली बार देखा था... अनाम पर तुम्हारी खोज... प्रतिभा मैम के बेटे... प्रताप के आगे जाती ही नहीं है...
रुप - हाँ...
शुभ्रा - और सेवनटी पर्सेंट की वजह...
रुप - भाभी... मैं पहले भी बता चुकी हूँ... उसका चेहरा मुझे... अनाम की याद दिलाता है...
शुभ्रा - हाँ... यह पहले भी बता चुकी हो...
रुप - उसने पहले भी कुछ ऐसा कहा था... जो कभी अनाम ने मुझसे कहा था...
शुभ्रा - हाँ... वह खतरनाक वाली बात...
रुप - जी भाभी... और आज प्रताप ने... मुझे कुछ इस तरह से... बर्थ डे विश किया... जैसे कभी अनाम मुझे विश करना चाहता था...
शुभ्रा - व्हाट... तो तुमने उससे बात क्यूँ नहीं की...
रुप - उसे ही तो अब तक मंदिर में ढूंढ रही थी... विश करने के बाद... पता नहीं कहाँ चला गया...
शुभ्रा - ओ... (शुभ्रा फिर गाड़ी को आगे बढ़ाती है) अच्छा... इससे पहले... उसने कितनी बार विश किया था तुमसे...
रुप - छह बार...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... कैसे और किस तरह...

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और एक गाड़ी महानदी रिंग रोड पर भागी जा रही है l जाहिर सी बात है उस गाड़ी में विश्व और प्रतिभा बैठे हुए हैं

विश्व - ओहो... माँ... क्या हुआ... प्लीज माँ प्लीज.... मुझसे बात करो ना...
प्रतिभा - नहीं करनी है मुझे तुझसे कोई बात... लड़की क्या दिखी... माँ को छोड़ कर चला गया... (चिढ़ाते हुए) माँ.. भगवान आप ही सबकुछ मांग लो...
विश्व - माँ... आज नंदिनी जी का जन्मदिन था... और वह बेचारी... अपनी जन्मदिन पर रो रही थी...
प्रतिभा - हाँ.. लड़की थी... इसलिए तु गया था... उसके आंसु पोछने...
विश्व - नहीं माँ... आंसु पोछने नहीं... बर्थ डे विश करने गया था... और... तुम जानती हो... मैं उनके विचारों को एडमायर करने गया था...
प्रतिभा - सब समझती हूँ... इधर मैं लड़की ढूंढ रही हूँ... उधर कल को मेरे सामने नंदिनी को खड़ा कर बोलेगा... (मर्दाना आवाज़ निकालने की कोशिश में) माँ अब लड़की ढूंढने की जरूरत नहीं... मैंने शादी कर ली है... यह देखो... रेडियो वाली नंदिनी...
विश्व - ओह ओ माँ... कहाँ की बातेँ... कहाँ लेकर जा रही हो...
प्रतिभा - चोरी चोरी मुलाकातों को... शादी तक लेके जा रही हूँ...
विश्व - आ... ह्ह्ह्ह्ह...
प्रतिभा - बस बस... अपने बाल नोचने मत लग जाना... वरना गंजा हो जाएगा... फिर वह रेडियो वाली नंदिनी तुझे पहचान नहीं पाएगी...
विश्व - (अपना मुहँ बना कर प्रतिभा को देखता है)
प्रतिभा - (हँसने लगती है) हा हा हा हा हा...
विश्व - मतलब अब तक... आप मेरी टांग खिंच रही थी...
प्रतिभा - (हँसते हुए) हाँ... टांग खिंच रही थी... पर देखने लायक तेरा चेहरा था... हा हा..
विश्व - (मुस्कराते हुए) मुझ पर गुस्सा तो नहीं हो ना माँ...
प्रतिभा - अरे गुस्सा क्यूँ करूँ... मैंने जिस लड़की को पसंद किया है... अगर तु उसे मेरी बहु बनाने में तूल जाए...
विश्व - माँ... फिरसे वही पुराण...
प्रतिभा - हा हा हा... अच्छा ठीक है... चल बता... उसे रोता हुआ देख कर... तु क्यूँ उसके पीछे भागा...
विश्व - रोता हुआ देख कर नहीं... उन्हें अपनी जन्मदिन पर रोता हुआ देख कर गया था....
प्रतिभा - ओ... तो समाज सेवा करने गया था...
विश्व - ऐसी बात नहीं है माँ... पता नहीं क्यूँ... उनका रोना... मुझसे बर्दास्त नहीं हुआ... मुझे लगा जैसे... वह मेरी वजह से रो रहे हैं... इसलिए उनको ढूंढते हुए गया था...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... मैंने भी देखा था... कैसे तुने उसे बधाई दी.... और उसके चेहरे पर कैसे.. एक जबरदस्त.. चमक भरी खुशी और हँसी ले आया...
विश्व - क्या... इसका मतलब आपने हम दोनों को देखा था...
प्रतिभा - हाँ देखा...
विश्व - क्यूँ...
प्रतिभा - क्या मतलब क्यूँ... मेरा बेटा लड़कियों के नाम से भाग जाने वाला... किसी लड़की को नजर उठा कर ना देखने वाला... अचानक एक लड़की के पीछे भाग कर जाएगा... तो मन में क्युरोसिटी तो होगी ही ना... (विश्व चुप रहता है) अच्छा... इससे पहले कभी किसी लड़की को ऐसे डे विश की है...
विश्व - कहाँ माँ... सात सालों से आपके सामने हूँ...
प्रतिभा - तो फिर... तुने ऐसे इनोवेटिव तरीके से... कैसे इम्प्रेस किया...
विश्व - माँ... यह दुसरी लड़की है... जिसे मैंने बर्थ डे विश किया...
प्रतिभा - व्हाट... अभी तो तुमने कहा कि... कभी किसी लड़की को...
विश्व - हाँ माँ... मैंने आज से पंद्रह साल पहले... और नौ साल पहले तक... ऐसे ही इनोवेटिव और अलग अलग तरीके से... किसी को बर्थ डे विश किया करता था...
प्रतिभा - ओ... तो बचपन का प्यार है...
विश्व - नहीं माँ... वह मेरा प्यार नहीं था... उनके प्रति अनुकंपा थी...
प्रतिभा - (हैरान हो कर) क्या मतलब है इसका...

फिर विश्व बताता है कैसे उमाकांत सर ने उसे छोटे राजा जी के पास ले गए और राजकुमारी जी को पढ़ाने का जिम्मा दिया l वह कैसे अपना नाम अनाम बताया और रुप की रजोदर्शन (मीनार्की) तक पढ़ाता रहा l कैसे ग्यारह साल की राजकुमारी विश्व पर हक जमाते हुए शादी के साथ साथ किसी दुसरी लड़की के तरफ ना देखने का वादा लिया था l

प्रतिभा - कमाल है... तुम्हारे बारे में वैदेही ने यह तो बताया कि तुम भैरव सिंह की बेटी को पढ़ाते थे... पर उसने कभी यह बात नहीं बताई... के तुम भैरव सिंह की बेटी को बर्थ डे... वह भी इनोवेटिव तरीके से विश किया करते थे...
विश्व - यह बात... मुझे तब गैर जरूरत लगी थी... इसलिए दीदी को भी नहीं बताया था...
प्रतिभा - अच्छा... राजकुमारी जी का नाम कहीं... नंदिनी तो नहीं...
विश्व - (हँसता है) पता नहीं माँ... मुझे शख्स हिदायत दी गई थी... महल में ना उनसे नाम पूछने की इजाजत थी... ना ही अपना नाम बताने की... और यह लड़की... नंदिनी... राजकुमारी हो ही नहीं सकती...
प्रतिभा - क्यूँ नहीं हो सकती...
विश्व - (सीरियस हो कर) माँ... जिस लड़की को अपने ही आँगन में खेलने नहीं दिया गया... अपनी ही गांव के स्कुल में पढ़ने नहीं दिया गया... उसे यूँ भुवनेश्वर में.. उँ हुँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तब तो राजकुमारी जी का तुम्हें चाहना वाजिब ही है...
विश्व - (हैरान हो कर) ये.. यह क्या कह रही हो माँ... यह उनका बचपना था...
प्रतिभा - बचपना नहीं फैसला था... और सही फैसला...
विश्व - (चुप हो कर प्रतिभा को देखने लगता है) यह आप कैसे कह सकती हैं)
प्रतिभा - बता दूँगी... पहले यह बता... तुने छह साल तक उसे कैसे बर्थ डे विश किया...
विश्व - (थोड़ा हँसता है) एक दुखियारी... राजकुमारी... सब कुछ था... घर... परिवार... पर उन पर लुटाने वाला प्यार... घर के किसी सदस्य के पास नहीं था... उनकी चाची उनसे बहुत प्यार करती थी... पर समय नहीं दे पाती थी... एक तरफ मैं था... ना घर ना परिवार... बहुत प्यार बचपन से लेकर तब तक हासिल था मुझे... और वक़्त ही वक़्त था मेरे पास... यही वजह था कि हम दोनों को एक दुसरे का साथ बहुत भाता था.... जब मुझे मालुम हुआ कि उनका जन्मदिन आने वाला है... तो मैंने तय किया कि उनको... बर्थ डे विश करूँ... तब वह छह साल की थीं.... और मैं चौदह साल का...


🌹छठी साल गिरह 🌹

सुषमा के जाने के बाद

रुप - अच्छा.. तो मेरा जन्मदिन कैसे मनाने वाले हो...
विश्व - सोच रहा हूँ... सरप्राइज़ दूँ...
रुप - (खुश होते हुए) वाव... क्या सरप्राइज़ देने वाले हो...
विश्व - सरप्राइज ऐसे थोड़े ना बताया जाता है.. आप मंदिर से आ जाना... मैं दे दूँगा...
रुप - अरे बुद्धू... मंदिर कोई बाहर नहीं है... यहाँ महल के मंदिर की बात कर रही थी... छोटी रानी माँ...
विश्व - अच्छा... ठीक ही तो है ना.... आप मंदिर से वापस आ जाओ... मैं आपको बहुत ही प्यारा सा गिफ्ट दूँगा...

जन्मदिन पर रुप अपनी चाची के साथ मंदिर से वापस आ कर अपनी कमरे में बड़ी बेसब्री से अनाम की इंतजार कर रही है l कुछ देर बाद अनाम कमरे में आता है l

विश्व - जन्मदिन की शुभकामनाएँ... राजकुमारी जी..
रुप - (एटिट्यूड के साथ) ठीक है.. ठीक है... बोलो क्या सरप्राइज़ लेकर आए हो...
विश्व - दिखा दूँगा... पर आप वादा करो.. चिल्लाओगी नहीं...
रुप - ठीक है...
विश्व - नहीं आप वादा करो...
रुप - ठीक है... वादा करती हूँ...

विश्व अपने शर्ट के अंदर से दो सफेद रंग के चूहे निकाल कर रुप को दिखाता है l रुप सफेद रंग के चूहे देख कर खुश तो होती है पर वह डर के मारे उन्हें अपने हाथ में नहीं लेती l

विश्व - राजकुमारी जी थैंक्स...
रुप - वह किस लिए..
विश्व - आपने चिल्लाया नहीं... इसलिए... वैसे कैसे लगे यह चूहे...
रुप - (डरते हुए) यह... यह काटेंगे तो नहीं...
विश्व - नहीं राजकुमारी जी... यह चूहे घर में पाले जाते हैं... अगर यह चूहे काले रंग के होते... तो बात डरने की होती...
रुप - मैं... हाथ में लूँ...
विश्व - लीजिए ना... आपके लिए ही तो लाया हूँ...
रुप - (अपनी हाथों से चूहों को लेकर) वाव... इन्हें मैं रखूंगी कहाँ...
विश्व - इसी कमरे में छोड़ दीजिए...
रुप - नहीं... छोटी रानी जी से बात करूंगी...

शुभ्रा - हाँ... अनाम कितना बेवक़ूफ़ था... चूहे लाकर दी तुमको...
रुप - वह बेवक़ूफ़ नहीं था... वह चूहे अपनी शर्ट में छुपा कर लाया था...
शुभ्रा - सॉरी सॉरी... अनाम बेवक़ूफ़ नहीं था... फिर तुमने चाची माँ से बात की...
रुप - हाँ... चाची माँ ने... एक छोटा सा पिंजरा मुझे ला कर दी... मैंने उन दो चूहों को पिंजरे में रखा भी... पर...

प्रतिभा - पर क्या...
विश्व - उन चूहों को पिंजरे में देख कर... राजकुमारी का मन में बहुत दुख होता था... इसलिए दो दिन बाद... राजकुमारी जी ने उन चूहों को छोड़ दिया...
प्रतिभा - क्या... छोड़ दिया... पर क्यूँ...
विश्व - माँ... जरा सोचो.. वह भले ही राजकुमारी थी... पर वह आजाद कहाँ थी... अपनी ही गांव के स्कुल नहीं जा पा रही थी... इतनी पाबंदीयाँ लगी थी उन पर...
प्रतिभा - ओ... इसका मतलब यह हुआ कि... पिंजरे में चूहों को देख कर.... वह पिंजरे में खुद को महसुस कर रही थी...

रुप - हाँ... मुझे आजादी नसीब नहीं थी... मैं अपनी खुशियों के लिए... उन बेजुबानों को कैद में नहीं रख सकती थी...
शुभ्रा - इसलिए दो दिन बाद तुमने उन चूहों को आजाद कर दिया...
रुप - हाँ... मैंने उन्हें अपने अंतर्महल के उद्यान में छोड़ दिया...
शुभ्रा - और अनाम का क्या रिएक्शन था...
रुप - अनाम को मेरी मनोभावना समझ आ गई... वह मेरे मन की ख्वाहिश को समझ गया था... इसलिए उसने अगले साल की तैयारी शुरू कर दिया था...

प्रतिभा - क्या... सातवीं साल गिरह की तैयारी तभी से...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - सातवें जन्मदिन पर तुमने क्या किया...


🌹सातवीं साल गिरह 🌹

सुबह के सात बज चुके थे I रुप सुबह सुबह सुषमा के साथ मंदिर जा कर आ चुकी थी l उसे बस इंतजार था तो अनाम का l रुप अपनी कमरे में टहल रही थी, कभी खिड़की के पास जा कर बाहर झाँकती थी तो कभी दरवाजे पर अपना कान लगा कर बाहर से आहटों को सुनने की कोशिश कर रही थी l थोड़ी देर बाद वह दरवाजा खोल देती है तो सामने पंद्रह साल का विश्व खड़ा हुआ था l

विश्व - क्या बात है राजकुमारी जी... क्या टाइमिंग है... मैं अभी दरवाजा खटखटाने वाला था...
रुप - ठीक है... क्या सरप्राइज है इसबार... अगर पिंजरे मैं रखने वाली कुछ लाए हो... तो नहीं चाहिए...
विश्व - नहीं राजकुमारी जी... अब जो लाया हूँ... वह इतना बड़ा है कि... पिंजरे में रखा नहीं जा सकता...
रुप - अच्छा... अगर वह इतना बड़ा है... तो महल के अंदर लाए कैसे...
विश्व - एक दिन में थोडे लाया हूँ...
रुप - तो...
विश्व - कुछ दिनों से.. थोड़ा थोड़ा करके... लाता रहा हूँ...
रुप - (उसे हैरान हो कर अनाम की चेहरे को देखती रहती है)
विश्व - चलें...
रुप - ह्ँ... हाँ... पर कहाँ...
विश्व - अंतर्महल के उद्यान में...

फिर दोनों उद्यान के बाहर आकर खड़े होते हैं l विश्व एक डंडा उठा कर राजकुमारी के हाथों में देता है l

विश्व - राजकुमारी जी... इस डंडे को... (एक झाड़ी की ओर इशारा करते हुए) उस झाड़ी पर फेंक मारीये...
रुप - इससे क्या होगा...
विश्व - आप फेंकिए तो सही...

रुप डंडे को झाड़ी पर फेंक मारती है l डंडा झाड़ी पर लगते ही पीले रंग के सैकड़ों तितलियाँ झाड़ी से उड़ने लगती हैं l रुप उसके आजू बाजू तितलियों को उड़ते देख बहुत खुश हो जाती है l

शुभ्रा - व्हाट... तितलियाँ... वह भी सैकड़ों... कहाँ से लाया वह इतनी तितलियाँ...
रुप - एक्जाक्टली... यही सवाल मैंने भी उससे की...
शुभ्रा - तो उसने क्या बताया...
रुप - उसने कहा कि.. फाल्गुन मास में... यह तितलियाँ खेतों में उड़ते रहते हैं...

प्रतिभा - अच्छा... हम सहर वाले... इस मामले में थोड़े कच्चे हैं...
विश्व - फाल्गुन माह में... इन तितलियों का... मेटींग टाइम होता है... मैंने सिर्फ थोड़ा थोड़ा करके उनको इकट्ठा किया... और उनके आसपास वह एंवाइरॉनमेंट बनाया...
प्रतिभा - बायोलॉजी की अच्छी नॉलेज थी तुमको...
विश्व - नहीं... ऑवजर्वेशन की नॉलेज थी... आखिर पढ़ाई के साथ साथ किसानी भी तो कर रहा था...

शुभ्रा - ओ... ह्म्म्म्म... हाँ यह सरप्राइज बहुत ही बढ़िया था... यह तो गई सातवीं... आठवीं साल गिरह कैसे मनाया....
रुप - अनाम था ही यूनिक... हमेशा कुछ ना कुछ नया ही सोचता रहता था... इसलिए उसने जन्मदिन के पहले दिन ही कह दिया था.... अगर सरप्राइज चाहिए तो सुबह तड़के उठना है... जब सुबह ना खुला हो... थोड़ा सा अंधेरा हो...


🌹आठवीं साल गिरह 🌹

रुप के तकिए के पास पड़ी घड़ी बजने लगती है l रुप झट से अपनी बिस्तर से उठ जाती है और दौड़ कर दरवाजा खोल देती है तो दरवाजे के सामने ही उसे अनाम खड़ा मिलता है l

रुप - (दबी दबी आवाज में) तुम रात भर सोये नहीं क्या... वैसे भी इतनी सुबह... महल में दाखिल कैसे हुए.... वह भी अंतर्महल में...
विश्व - (दबी जुबान से) मैं रात को गया ही नहीं...
रुप - फिर...
विश्व - मैं रात भर भीमा पहलवान का पैर दबाता रहा... फिर जब वह सो गया... तब जाकर मैं तैयारी में जुट गया...
रुप - पिछली बार तो महीना लगा था तैयारी में... अब एक रात में हो गया...
विश्व - नहीं... एक हफ्ता...
रुप - अब कहाँ चलना है...
विश्व - वहीँ... उसी उद्यान में... मगर इस बार फव्वारे के पास...
रुप - चलो फिर...

फिर दोनों अंतर्महल के उद्यान में बेह रहे फव्वारे से थोड़े दूर रुक जाते हैं l वहाँ पर विश्व एक रस्सी को उठाता है और रुप के हाथों में देता है l

विश्व - राजकुमारी जी.. इसे आप खिंच दीजिए...

रुप उस रस्सी को खिंच देती है l रस्सी के खिंच जाते ही फव्वारे के दूसरी तरफ एक मटका लुढ़क जाता है l मटके की लुढकते ही अनगिनत जुगनू उड़ने लगते हैं l जिससे फव्वारे का नज़ारा अद्भुत दिखने लगता है l थोड़ी देर बाद सारे जुगनू पेड़ों पर, झाड़ियों पर, फूलों पर पत्तों पर बैठ जाते हैं l उस थोडे से अंधेरे में ऐसा लग रहा था जैसे छोटे छोटे, नन्हें नन्हें टीम टीमाते तारे आसमान से जमीन पर उतर आए हों l यह नजारा देख कर आठ साल की रुप इतना भावुक हो जाती है कि वह भागते हुए विश्व के गले लग जाती है l

प्रतिभा - वाव... वाकई... बड़े बड़े आशिक तक जो नहीं सोच पाते.. वैसा तुमने सोच लिया था...
विश्व - (हल्का सा हँस देता है)
प्रतिभा - जाहिर सी बात है... अगर वहाँ पर जवान राजकुमारी भी होती... तो वह भी तुम्हारे गले लग जाती...
विश्व - क्यूँ... आपको क्यूँ ऐसा लगता है...

शुभ्रा - क्यूँ मतलब... अरे... बातों बातों में सब कह देते हैं... आसमान को धरती पर लाने की... पर सिर्फ अनाम ही ला पाया... अपनी राजकुमारी के लिए...
रुप - (शर्मा के चेहरा झुका लेती है)
शुभ्रा - सच कहती हूँ नंदिनी... दैट वाज रियली एमेजिंग...
रुप - हाँ भाभी... सच में... कविओं के लेखकों के कल्पनाओं को... वह वास्तव बना देता था...
शुभ्रा - नौवीं सालगिरह में... क्या सरप्राइज दिया अनाम ने तुम्हें....
रुप - अपनी नौवीं साल गिरह के पहले दिन... मैंने बीमारी के चलते बिस्तर पकड़ लिया था...



🌹नौवीं साल गिरह 🌹

जन्मदिन के पहले दिन सत्रह साल का विश्व जब रुप के कमरे में आता है तो देखता है रुप बीमारी के चलते अपनी बेड पर सोई हुई है l रुप के सिरहाने बैठ कर सुषमा रुप के माथे पर वॉटर स्पंजिंग कर रही थी l आसपास कुछ नौकरानियां खड़ी हुई थी l सुषमा जैसे ही विश्व को देखती है सभी नौकरानियों को बाहर जाने के लिए कहती है l सभी नौकरानियों के बाहर जाते ही

सुषमा - देखो अनाम... इस साल अगर राजकुमारी जी की जन्मदिन मनाने का कोई प्लान है... तो उसे अगले साल के लिए टाल दो... राजकुमारी जी की हालत खराब है...
रुप - (आँखे बंद होने के बावजूद) आह... छोटी रानी जी... प्लीज...
सुषमा - नहीं राजकुमारी... एक तो कोई नहीं जानता है इस महल में... की आपकी जन्मदिन मनाया जा रहा है... ऐसी हालत में आप पर सबकी नजर होगी... अगर किसी ने देख लिया और यह बात राजा साहब को मालुम हुआ... तो जरा सोचिए... इस बेचारे अनाम क्या क्या होगा...
रुप - (कुछ कह नहीं पाती है, उसके बंद आँखों के कोने में आँसू दिखने लगते हैं)
विश्व - छोटी रानी जी... क्या कल सुबह तक... राजकुमारी जी ठीक नहीं हो पाएँगी...
सुषमा - ठीक हो भी जाएं तो... तो भी... तुम्हारा उनके साथ... उनका जन्मदिन मानना मुश्किल है... अब तक तुम नजर में नहीं आए हो... पर कल अगर कुछ भी किया तो... नजर में आ जाओगे... तब... तब तुम सोच भी नहीं सकते... क्या हो सकता है...
विश्व - ठीक है... छोटी रानी जी... मैं कल नहीं आऊंगा... पर क्या आप मुझे एक वादा करेंगी...
सुषमा - (विश्व को हैरान हो कर देखती है) कैसा वादा...
विश्व - अंतर्महल में आपकी कोठरी... पूरब दिशा की नदी की ओर है...
सुषमा - हाँ तो...
विश्व - तो आप राजकुमारी जी को... आज रात के लिए अपने कमरे में सोने दीजिए... बस सुबह सूरज निकलने से पहले आपके कोठरी की खिड़की के पास खड़ा कर दीजिएगा...
सुषमा - क्या... इससे क्या होगा...
विश्व - कल सूरज निकलने से पहले... राजकुमारी जी को जन्मदिन की बधाई मिल जाएगी....

इतना कह कर विश्व वहाँ से चला जाता है l सुषमा भी रुप को अपने साथ अपने कमरे में सुला देती है l सुबह रुप की आँख जल्दी खुल जाती है l आज उसकी हालत पहले से बेहतर है वह खिड़की के पास आकर खड़ी होती है उसके साथ सुषमा भी खड़ी हो कर बाहर की ओर देखने लगती है l सुबह खुला नहीं है फिर भी आकाश में हलकी सी लालिमा उभरने लगी है l तभी कुछ दूर नदी के किनारे से लाल रंग के जापानी काग़ज़ के लालटेन उड़ने लगते हैं l करीब करीब पचासों लालटेन पूर्वी आकाश में सूरज के निकलने की संदेश को लेते हुए आसमान में छाने लगते हैं l यह दृश्य देख कर रुप बहुत ही खुश हो जाती है l

सुषमा - वाह... अनाम की बधाई देने का तरीका वाकई लाज़वाब है... जन्मदिन मुबारक हो राजकुमारी....

शुभ्रा - वाव... अगैंन अमेजिंग.. इटस रियली अमेजिंग... और उसके साथ साथ तुम्हारा डेस्क्रीपशन... वाव... पूर्वी आसमान में उड़ते लाल रंग के लालटेन... धीरे धीरे सूरज के निकलने के पैगाम लिए उड़ रहे थे...
रुप - सच ही तो कहा है भाभी... वह नज़ारा... वह लम्हें... मैंने खुद एक्सपेरियंस किया है...
शुभ्रा - मैं कहाँ मना कर रही हूँ... आज के डेट में... कितने ऐसे हैं... जो अपनी प्रेमिका को... ऐसे सरप्राइज़ दे पाते हैं...

विश्व - तब मैंने वैसा कुछ सोचा नहीं था माँ... मेरे पास साल भर में... सिर्फ यही एक मौका हुआ करता था... जिस दिन मैं उस बेचारी राजकुमारी को खुश कर पाता था... इसलिए नए नए तिकड़म भिड़ाता था...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म.. फिर भी तू जो भी करता था... पुरे दिल से करता था... सच कहूँ तो तेरी और राजकुमारी की कहानी से... मुझे रस्क होने लगी है... काश के मेरे जीवन में भी ऐसा कोई लम्हा होता... खैर... अब मैं सेनापति जी से सिवाय घटिया ऊटपटांग शायरी के.. और क्या उम्मीद करूँ...
विश्व - हा हा हा.. माँ तुम भी ना..
प्रतिभा - अरे सच ही तो कहा मैंने... खैर... तुम्हारे और राजकुमारी के बीच हम कहाँ आ गए... अब बताओ... राजकुमारी जी की दसवीं साल गिरह कैसे मनाया तुमने...

रुप - नौवीं साल गिरह के समय... मैं बीमार थी... और दसवीं साल गिरह के दिन... अनाम की बारहवीं एक्जाम था... इसलिए मेरी जन्मदिन को वह था नहीं...
शुभ्रा - तो दसवीं सालगिरह नहीं मनाया क्या...
रुप - वह अनाम था भाभी... अपनी राजकुमारी के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता था...


🌹दसवीं साल गिरह🌹

रुप जिज्ञासा भरी नजर से अट्ठारह साल के अनाम को देख रही थी l अनाम देखता है कि रुप उसे देख कर मन ही मन खुश हो रही है

विश्व - क्या बात है राज कुमारी जी... आप... मन ही मन बहुत खुश हो रहे हैं...
रुप - हाँ... जानते हो अनाम... मैंने कभी भी अपनी जन्मदिन का इंतजार नहीं किया था... पर जब से तुम बधाई देना शुरु किया है... तब से मुझे हर साल इसी दिन का... बड़ी सिद्दत से इंतजार रहता है...
विश्व - पर राजकुमारी जी... कल मेरी बारहवीं का एक्जाम है... मैं आ नहीँ पाऊँगा...
रुप - (गुस्सा हो जाती है) (उसका चेहरा तमतमाने लगती है) क्या कहा...
विश्व - (राजकुमारी की गुस्से से तमतमाता हुआ चेहरा देख कर डर जाता है) म.. म... मेरा मतलब था कि... आपको आपके जन्मदिन की बधाई... कल सुबह आपकी आँखे खुलते ही मिल जाएगी...
रुप - (अचानक से गुस्सा गायब हो जाती है और उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है) कैसे...
विश्व - (मुस्कराते हुए) बस... आप सुबह की प्रतीक्षा किजिये...

उस दिन शाम की पढ़ाई जब खतम होती है रुप रात का खाना खाने के लिए कुछ देर के लिए अपनी चाची सुषमा के पास जाती है l खाना खा कर सुबह की सरप्राइज के बारे में सोचते हुए एक्साइटमेंट में अपनी बेड पर आँखे मूँद कर सो जाती है l पर तभी उसे एहसास होता है कि उसके बेड पर कोई नोट छूट गया है l वह उठ कर नोट पढ़ती है l वह विश्व का लिखा उसके नाम पर एक पैगाम था

" राजकुमारी जी... आपके दाहिने और की खिड़की के नीचे... चार कतारों में बोतलों में कुल तेरह कमल के फूल रख छोड़ा है... कल सुबह होते ही आप देखियेगा... मेरी बधाई के शब्द... इन फूलों के जुबान से.... '

अगली सुबह जब वह उठती है तो देखती है बड़े बड़े आकार के कमल के फूल एक एक करके तेरह बोतलों में चार कतारों में खिड़की के पास नीचे रखे हुए हैं l रुप का मन मुर्झा जाता है l सोचने लगती है सिर्फ फूल l यह सोचते हुए उन फ़ूलों के पास पहुँचती है तो पाती है हर एक फूल के केसर पर कुछ लिखा हुआ है l वह गौर से देखती है चार कतारों में फूल रखे गये हैं l पहली कतार में तीन, दुसरी कतार में पांच, तीसरी कतार में चार और चौथी कतार में एक फुल रखी हुई है l पहली कतार के फूलों के केशर लिखे शब्द थे द स वीं l दुसरे कतार के फूलों के केसर पर जो शब्द लिखे हैं सा ल गि र ह I तीसरी कतार में रखे फूलों में मु बा र क और अंतिम कतार के एक फुल पर हो लिखा हुआ था l सभी शब्द मिलकर "दसवीं सालगिरह मुबारक हो" कह रहे थे l रुप के होठों पर एक दमकती मुस्कान खिल उठती है l अपनी मन में सोचने लगती है

'यह सब उसने कब किया होगा.... फूलों के केशर पर स्केच पेन से कैसे और कब लिखा होगा...

शुभ्रा - वाकई... फूलों के केशर मतलब स्टैमेन पर कैसे और कब लिखा...
रुप - मिलने के बाद मैंने भी सेम टु सेम सवाल किया...

प्रतिभा - तो तुमने उसे क्या जवाब दिया...
विश्व - वही कहा जो किया था...
प्रतिभा - तो बताओ क्या किया था...
विश्व - कमल की कली... जो पुर्ण रूप से विकसित फुल होने के... एक दो दिन पहले तोड़ लाया था... पंखुड़ियों को सावधानी से खोल कर... केशर पर स्केच पेन से लिख दिया... और पंखुड़ियों को वापस बंद कर दिया... उसके बाद... जब राजकुमारी जी छोटी रानी जी के पास गई हुई थीं... तभी मैंने बोतलों में पानी भर कर... कमल की कलियों को शब्दों के हिसाब से चार क़तारों में सजा कर रख दिया... सुबह जब सूरज निकलने को हुई... कमल के फूल खिल गये... और मेरी बधाई... राजकुमारी जी तक उन कमल के फूलों ने पहुँचा दिए...
प्रतिभा - वाव... इस उम्र में... मुझे इतना थ्रिल महसूस हो रहा है... तो राजकुमारी की उम्र में तो... वह पागल हो गई होगी...
विश्व - हाँ हो गई... मेरे लिए... और भी मुसीबत हो गई...
प्रतिभा - कैसी मुसीबत

रुप - भाभी... मैं अब बच्ची वाली दिमाग से आगे सोचने लगी थी... अनाम को लेकर मैं... बहुत ही इनसिक्युर होने लगी थी... वह किसी से बात करता था तो... मुझे जलन होती थी... इसलिए इसी उम्र में मैंने अपना प्यार और हक़... उस पर जाहिर कर दिया....
शुभ्रा - हा हा हा हा हा... उस बेचारे की हालत खराब हो गई होगी...
रुप - हाँ... सो तो है... शादी का वादा भी ले लिया था मैंने उससे...

प्रतिभा - हा हा हा हा हा... बेचारा प्रताप... अट्ठारह साल का बांका जवान... दस साल की लड़की के आगे घुटने टेक् दिए...
विश्व - क्या करता माँ... वह बेशक उम्र के नाजुक मोड़ पर थी... जहां उनसे बचपन धीरे धीरे छूट रहा था... तब मेरे लिए,.. अपनी जिद के लिए... किसी भी हद तक जा सकती थी...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तो ग्यारहवीं साल गिरह कैसे मनाया तुमने... अपनी राजकुमारी का...
विश्व - ओ माँ.... वह तो बहुत ही खतरनाक था... आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं... जब भी वह दिन याद आता है...

शुभ्रा - क्यूँ ...ऐसा क्या हुआ था तुम्हारे ग्यारहवें साल गिरह में...
रुप - हर साल की तरह अनाम का... कुछ तो प्लान रहा होगा... मेरी जन्मदिन पर बधाई देने के लिए... पर इसबार प्लान मैंने किया था...
शुभ्रा - व्हाट... मतलब तुम्हारे ही बर्थ डे पर... तुमने उसे चौंकाया...
रुप - हाँ...


🌹ग्यारहवीं सालगिरह🌹

उन्नीस साल का विश्व पढ़ा रहा है l राजकुमारी उसे एक टक देखे जा रही है l उसे देखते देखते कुछ सोच भी रही है l

विश्व - क्या बात है राजकुमारी जी...
रुप - सोच रही हूँ... पिछले दोनों जन्मदिन पर... हम साथ नहीं थे...
विश्व - दोनों बार मतलब... आप पहली बार बीमार थीं... और दुसरी बार मेरा बारहवीं का एक्जाम था... पर अब तो मेरा आगे पढ़ना होगा नहीं... इसलिए मैं तो हूँ... आप बस बीमार मत पड़ जाना....
रुप - इस बार मैं नहीं... तुम बीमार पड़ने वाले हो...
विश्व - हे हे हे... कैसा मजाक कर रही हैं आप... राजकुमारी जी...
रुप - जानते हो... छोटी रानी जी यहाँ नहीं है...
विश्व - हाँ... पर वह परसों तक... आपके जन्मदिन पर तो आ जाएंगी ना...
रुप - हाँ... उनके आने से पहले मुझे कुछ करना है...
विश्व - क्या... क्या करना है आपको...
रुप - गाँव में कहीं... नाम गुदवाते हैं क्या...
विश्व - हाँ गुदवाते हैं ना... आपको अपना नाम गुदवाना है क्या...
रुप - हाँ...
विश्व - तो मैं उसे आज ही बोल देता हूँ... वह कल आकर.. आपका नाम गुदवा देगी...
रुप - उसको यहाँ नहीं आना है...
विश्व - क्या मतलब...
रुप - मुझे उसके पास जाना है...
विश्व - (ऐसे चौंकता है जैसे उसे सांप ने काट लिया) क्या... ए.. ये... यह क्या कह रही हैं आप...
रुप - श्श्श्श्श्... अब मैं तुम्हें अच्छे से पुछ रही हूँ... मुझे उसके पास लेकर जाओगे या नहीं...
विश्व - नहीं...
रुप - क्या... तुमने मुझे मना किया... अब देखती हूँ... कैसे जाते हो तुम महल से बाहर...
विश्व - (सीधे राजकुमारी के पैरों के नीचे गिर जाता है) राजकुमारी जी... प्लीज... यह अंतर्महल है... यहाँ से आप कैसे बाहर जाएंगी... अगर गई भी तो... राजा साहब मेरी खाल लहरा देंगे...
रुप - मेरे पास आइडिया है... या तो मेरी बात मानों... या फिर बिन खाल के राजगड़ में घूमते फिरो...
विश्व - यह... यह चिटींग है... राजकुमारी जी... कितनी शिद्दत से... आपके लिए मैं जन्मदिन की बधाई कि प्लानिंग करता हूँ... आप के लिए इतना कुछ करता हूँ... आप जो कहती हैं... मैं मानता हूं... पर आप हैं कि... मेरी खाल उतरवाने की बात कर रही हैं...
रुप - तो यह बात भी मान जाओ...
विश्व - कैसे... राजकुमारी जी कैसे... आपको मैं बाहर कैसे लेकर जाऊँ...
रुप - कहा ना मेरे पास प्लान है...
विश्व - (हथियार डालने के अंदाज में, निरास आवाज में) अच्छा.... कहिए क्या प्लान है...
रुप - ऐसे लेटे क्यूँ हो... आलथी पालथी मार कर बैठो...

विश्व रुप के कहे प्रकार बैठ जाता है फिर रुप भी अपनी कुर्सी से उतर कर विश्व के सामने आलथी पालथी मार कर बैठ जाती है l

विश्व - बोलिए... क्या करना है...
रुप - जैसे कि मैंने कहा... छोटी रानी जी नहीं हैं... वह परसों सुबह आयेंगी... इसलिए कल रात मैं उनके कमरे में सोउंगी...
विश्व - ठीक है फिर...
रुप - नदी के तरफ वाली खिड़की से रात के बारह बजे नीचे उत्रुंगी...
विश्व - (चौंक कर) क्या.. कैसे..
रुप - उसकी व्यवस्था तुम करोगे....
विश्व - क्या.आ.आ..
रुप - हाँ... तुम मुझे वहाँ से... नाम गुदवाने वाली के पास ले जाओगे... नाम गुदवाने के बाद... तुम मुझे वापस छोड़ दोगे...
विश्व - (अपना हाथ अपने सिर पर मारते हुए) हे भगवान... राजकुमारी जी... रस्सी से नीचे उतरना और उपर चढ़ना... फ़िल्मों में जितना आसान दिखाता है ना... असल में उतना ही मुश्किल होता है...
रुप - वह मैं नहीं जानती... कल एक दिन है तुम्हारे पास... मुझे कैसे उतारोगे... और कैसे वापस चढ़ाओगे... यह तुम प्लान कर लो...
विश्व - क्या.. मैं..
रुप - हाँ तुम...
विश्व - मैं.. मैं भाग जाऊँगा...
रुप - तो अभी से भाग जाओ...
विश्व - क्या..
रुप - हाँ... ताकि मुझे राजा साहब से तुम्हारी शिकायत करने में... आसानी हो...
विश्व - (अपना हाथ जोड़ कर) ठीक है राजकुमारी जी... मैं.. मैं कल कुछ करता हूँ...

अगले दिन रात के बारह बजे विश्व चुपके से नदी के तरफ वाली खिड़की के पास पहुँचता है l रुप पहले से ही विश्व के दिए पुली को खिड़की पर लगा दिया था l रस्सी की एक छोर को विश्व के तरफ फेंकती है जिसे विश्व पकड़ लेता है l रस्सी की दुसरी छोर को पहले अपने कमर पर बांध देती है और फिर रस्सी को जोर से पकड़ लेती है l विश्व रस्सी को ज्यों ज्यों ढील देता है रुप खिड़की से नीचे उतरने लगती है l जैसे ही रुप नीचे आ जाती है विश्व रस्सी खोल देता है l फिर रुप को लेकर महल के पीछे वाली पगडंडीयों पर लेते हुए गांव में आता है l फिर एक घर के बाहर पहुँच कर दरवाजा खटखटाता है l उस घर में एक औरत पहले से ही तैयार बैठी थी l इससे पहले वह औरत कुछ कहती विश्व उसे इशारे से चुप रहने को कहता है l

विश्व - (रुप से) आइए... यह आपका नाम गोद देंगी...
रुप - (चुपके से) यह बातेँ नहीं करती क्या...
विश्व - (धीरे से) नहीं... इसी शर्त पर मैं इन्हें... ग्राहक देने आया हूँ... और हाँ... हम लोग भी.. एक दुसरे का नाम नहीं लेंगे...
रुप -(खुश हो कर) ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... अब जाओ.. उस बुढ़िया के पास बैठ जाओ...
विश्व - हाँ.. (फिर चौंक कर)क्या... मेरा मतलब है क्यूँ... मैं क्यूँ...
रुप - (अपनी आँखे सिकुड़ कर, दबी हुई आवाज में) मेरा नाम... तुम्हारे जिस्म में कहीं भी गुदवा लो...
विश्व - (रुप को अपनी आँखे दिखा कर बातों को चबाते हुए कहता है) क्या... मैं क्यूँ.. गुदवाउँ...
रुप - चुप चाप मेरा नाम गुदवा रहे हो... या चिल्ला कर यहाँ लोगों को इकट्ठा करूँ...
विश्व - नहीं... आप नहीं चिल्लाएंगी... मैं.. मैं गुदवाता हूँ... (फिर रोनी सुरत बना कर) पर कहाँ गुदवाउँ... किसने देख लिया तो... मैंने छोटे राजा जी... और आचार्य सर जी से वादा किया था... आपका नाम ना जानने के लिए... अब कहाँ लिखवाऊँ... ताकि वादा ना टुटे... ना ही लोगों को पता चले...
रुप - अपने गले के पीछे... बालों के नीचे...
विश्व - ठीक है... (अपना मुहँ बना कर बुढ़िया के सामने पीठ करके बैठ जाता है) क्या खुदवाना है...
रुप - (अपनी आँखे दिखा कर) हूँ उँ...
विश्व - मेरा मतलब है... क्या गुदवाना है... इन्हें बता दीजिए...

रुप बुढ़िया को एक काग़ज़ पर कुछ लिख कर देती है l बुढ़िया विश्व के गले के पीछे गोद देती है l गुदवाने का काम होने के बाद दोनों वापस महल की ओर लौटते हैं l

विश्व - (गुस्से में) आपने अपना नाम मेरे गर्दन पर क्यूँ गुदवाया...
रुप - ऐ... मुझसे सलीके से बात करो...
विश्व - (हाथ जोड़ कर) क्यूँ गुदवाया...
रुप - ताकि तुम को यह भान रहे.. के तुम सिर्फ मेरे हो... और खबरदार किसी चुड़ैल से दोस्ती या नैन मटक्का किया तो...
विश्व - (अपने दोनों हाथ जोड़ कर) हे जगदंबे.. मुझे माफ करो... मेरे लिए अपना दिल साफ रखो...
रुप - (एटिट्यूड के साथ) ठीक है... ठीक है... (मुस्कराते हुए) अच्छा यह बताओ... मुझे कल कैसे बधाई देने वाले थे...
विश्व - (अपना मुहँ फूला कर) मैं नहीं बताऊँगा... हूँ.. ह्...
रुप - कोई नहीं... इस बार का सरप्राइज... अगली बार दे देना...

इतने में गली में घूमने वाले कुछ कुत्ते इन पर भौंकने लगते हैं l रुप डर कर विश्व को पकड़ लेती है l विश्व कुत्तों पर चिल्लाते हुए खदेड़ने की कोशिश करता है l कुछ कुत्ते पीछे हटने के वजाए विश्व की ओर गुर्राने लगते हैं l विश्व रास्ते पर कुछ पत्थर उठा कर कुत्तों पर फेंक मारता है l तब वह कुत्ते पीछे हट जाते हैं l जैसे ही कुत्ते भाग जाते हैं l विश्व रुप की हाथ को पकड़ कर भागने लगता है l विश्व भागते भागते महल के पीछे वहीँ पहुँचता है जहाँ उसने खिड़की से रूप को उतारा था l महल के पीछे पहुँचने के बाद रुप विश्व के सीने से कस के गले लग जाती है l

विश्व - राजकुमारी जी... उतरीये प्लीज... महल आ गया...
रुप - हूँ... नहीं.. मुझे तुम्हारे धड़कन सुननी है...
विश्व - प्लीज...
रुप - तुम्हारी धड़कन में मुझे मेरा नाम सुनाई दे रहा है... थोड़ा सुनने दो ना...
विश्व - क्यूँ मज़ाक कर रही हैं आप... सबकी धड़कने एक जैसी ही सुनाई देती है...
रुप - सुनाई देती होंगी... पर इसमें... सिर्फ और सिर्फ़ मेरा नाम सुनाई दे रहा है... इस धड़कन को मैं कहीं भी... पहचान लुंगी...

विश्व - अच्छा ठीक है... अब तो अलग होईये... (रुप विश्व से अलग होती है) राजकुमारी जी... आपने मेरा सारा प्लान काफूर कर दिया...
रुप - कौनसा... ओ अच्छा वह बधाई वाली प्लान... ठीक है अब बताओ... क्या प्लान बनाया था...
विश्व - आप जो खुदको कैदी मान कर घुट रही हैं... हमेशा हारी हुई महसुस कर रही हैं... उस घुटन से... उस हारे हुए ज़ज्बात से... उड़ान भरने की...
रुप - कैसे...
विश्व - ह्म्म्म्म... इस बार हो नहीं पाया... पर अगली बार ज़रूर वैसे ही बधाई दूँगा... जहां आपके अरमानों को... ख्वाहिशों को पंख मिलेगा... उमंगों की आसमान में उड़ने के लिए....
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वीर अपने केबिन में बैठा हुआ ना जाने कब से अपनी ही सोच में खोया हुआ है l अनु एक कप कॉफी लेकर उसके सामने खड़ी हो जाती है l पर वीर का ध्यान कहीं और है l

अनु - अहेम.. अहेम... (थोड़ी खरास लेने के बावज़ूद वीर का ध्यान नहीं टूटता) र.. राज कुमार जी...
वीर - हँ.. हाँ... हाँ अनु... कुछ कहा तुमने...
अनु - जी वह कॉफी..
वीर - हाँ... लाओ...(कॉफी ले लेता है और सीप लेने लगता है)

अनु कॉफी देकर कुछ देर के लिए खड़ी होती है पर वीर कॉफी पीते पीते फिर सोच में खो जाता है l वीर का अनु की तरफ ना देखना अनु को थोड़ा मायूस करती है इसलिए मुड़ कर वहाँ से जाने लगती है, तभी

वीर - अनु...
अनु - (जाते जाते रुक जाती है, चेहरे पर मुस्कान आ जाती है) जी...
वीर - यह... जन्मदिन... खास क्यूँ होती है...

अनु - जी... मतलब...
वीर - मतलब यह है कि... किसीके लिए... जन्मदिन खास दिन क्यूँ होती है...

अनु - जी मैं इसपर... क्या कहूँ...
वीर - तुम्हें... अपने जनम दिन पर... कैसा महसूस होता है... कैसा लगता है अनु...
अनु - (अपनी गर्दन ना में हिला कर) पता नहीं... पर...
वीर - पर... पर क्या अनु...
अनु - मेरे बाबा... जब तक थे... मुझे हमेशा... (खुशी के लहजे में) जन्म दिन का इंतजार रहता था... क्यूँ की... (थोड़ा चहकते हुए) उस दिन मेरे बाबा मुझे... दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की बना देते थे... मुझे राजकुमारी बना देते थे... मेरी हर खुशी का खयाल रखते थे और मेरी हर हुकुम मानते थे...
वीर - ओ... (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है) अच्छा अनु...
अनु - जी...
वीर - तुम्हारे कहने का मतलब है कि... हर लड़की को उसके जनम दिन पर... राजकुमारी सा फिल कराया जाता है...
अनु - ह्म्म्म्म... पता नहीं... पर बात अगर मेरी है.... तो.. हाँ..
वीर - (फिर कुछ देर के लिए चुप हो जाता है) अनु...
अनु - जी...
वीर - क्या कभी... ऐसी राजकुमारी की कल्पना कर सकती हो... जो सच में एक राजकुमारी है... पर बीस साल से... उसकी जन्मदिन कभी नहीं मनाया गया हो....
अनु - क्या... ऐसा भी कहीं हो सकता है... क्या वह... राजकुमारी अनाथ है...
वीर - नहीं....(थोड़ा गंभीर हो कर) वह अनाथ नहीं है... उसकी सिर्फ... माँ नहीं है... पर उसके परिवार में... दादाजी, पिताजी, चाचाजी, चाचीजी, दो बड़े भाई भी हैं... पर किसीने भी उसका जन्मदिन नहीं मनाया है... बीस साल हो गए... कैसा फिल् होता रहेगा उसे... जब उसका एक भी जनम दिन.. ना मनाया गया हो...
अनु - जी.... मैं कुछ समझी नहीं...
वीर - हमारी बहन... राजकुमारी रुप नंदिनी... आज वह.... बीस बरस की हो गई है... पर जानती हो... आज तक उसका जनम दिन नहीँ मनाया गया है...
अनु - (हैरान हो कर) जी...
वीर - हाँ... इसीलिए शायद आज हमारी भाभी जी... युवराणी जी... सुबह घर में... राजकुमारी जी को नौकरों के जरिए... जनम दिन की बधाई दिलवाया... और साथ मनाया...
अनु - वाह... यह तो बहुत अच्छी बात है... राजकुमारी जी बहुत खुश हुई होंगी...
वीर - नहीं... मैं नहीं जानता...
अनु - म... मतलब...
वीर - उस लम्हा का मैं.... गवाह नहीं बन पाया...
अनु - क्यूँ...
वीर - क्यूँकी... मुझे मालुम ही नहीं था... की आज उनका जनम दिन है...
अनु - ओ... तो ऐसी बात है... आपने अपनी बहन को बधाई नहीं दे पाए... यही बात आपके दिल को चुभ गई है... तो ठीक है ना... अभी राजकुमारी जी जहां पर होंगे... वहाँ जा कर उन्हें जन्मदिन की बधाई दे दीजिए...

वीर अनु के चेहरे को देखता है कितनी आसानी से अनु ने कह दिया बधाई देने के लिए, जबकि उसे मालुम ही नहीं के,उसके और रुप के बीच के रिश्ते के बारे में, क्या है, कैसा है l

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शुभ्रा - ओह गॉड.. कबसे इंतजार कर रही थी... कहाँ रह गई थी तुम...
रुप - (उदास हो कर) चलिए भाभी... यहाँ से चलते हैं... (कह कर गाड़ी के दरवाजा खोल कर अंदर बैठ जाती है)
शुभ्रा - नंदिनी... क्या हुआ तुम्हें...
रुप - (गाड़ी के अंदर से) प्लीज भाभी... आओना...
शुभ्रा - ओके...

कह कर शुभ्रा गाड़ी के भीतर बैठ जाती है और गाड़ी स्टार्ट कर के आगे बढ़ा देती है l

शुभ्रा - पंडित जी आकर मुझे बताया क्या हुआ... मैंने उन्हें दक्षिणा देकर, विदा करके तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी... मंदिर में जो हुआ... वह अचानक हो गया... अपना मन खराब मत करो... तुमने उसे सॉरी भी तो कह दिया ना...
रुप - ह्म्म्म्म
शुभ्रा - ओह ओ... नंदिनी... कॉम ऑन... भुल जाओ...
रुप - वह... वह प्रतिभा मैम का बेटा... प्रताप था...
शुभ्रा - व्हाट... (छेड़ते हुए) ओ... अनजाने में सही... तुमने अपने भाई का बदला ले ही लिया...
रुप - आ...ह्ह्ह्... (खीज कर) भाभी...
शुभ्रा - (हँसते हुए) ओके... ओके... तो इस बात से तुम दुखी हो... और तुम्हारा मन बहुत भारी हो गया है...
रुप - नहीं... ऐसी बात नहीं है...
शुभ्रा - तो... आज तुम्हारा जन्मदिन है... और तुम्हारा चेहरा यूँ उतरा हुआ अच्छा नहीं लगता...
रुप - भाभी... मुझे लग रहा है कि...
शुभ्रा - हाँ... क्या...
रुप - प्रताप ही... अनाम हो सकता है...
शुभ्रा - क्या... (चर्रेर्रेर, ब्रेक लगाती है) क्या.. कैसे.. मतलब तुम्हें ऐसा क्यूँ लग रहा है...
रुप - नहीं... मुझे सेवन्टी पर्सेंट लग रहा है... बस थर्टी पर्सेंट डाऊट है...
शुभ्रा - और वह थर्टी पर्सेंट डाऊट... किस लिए है...
रुप - वह... वहीं पर प्रतिभा मैम थी... उन्होंने कहा कि... प्रताप उनका बेटा है...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... (गाड़ी को फिरसे स्टार्ट कर) यह तो तो हम दोनों उसी दिन से जानते हैं... जिस दिन उन माँ बेटे को पहली बार देखा था... अनाम पर तुम्हारी खोज... प्रतिभा मैम के बेटे... प्रताप के आगे जाती ही नहीं है...
रुप - हाँ...
शुभ्रा - और सेवनटी पर्सेंट की वजह...
रुप - भाभी... मैं पहले भी बता चुकी हूँ... उसका चेहरा मुझे... अनाम की याद दिलाता है...
शुभ्रा - हाँ... यह पहले भी बता चुकी हो...
रुप - उसने पहले भी कुछ ऐसा कहा था... जो कभी अनाम ने मुझसे कहा था...
शुभ्रा - हाँ... वह खतरनाक वाली बात...
रुप - जी भाभी... और आज प्रताप ने... मुझे कुछ इस तरह से... बर्थ डे विश किया... जैसे कभी अनाम मुझे विश करना चाहता था...
शुभ्रा - व्हाट... तो तुमने उससे बात क्यूँ नहीं की...
रुप - उसे ही तो अब तक मंदिर में ढूंढ रही थी... विश करने के बाद... पता नहीं कहाँ चला गया...
शुभ्रा - ओ... (शुभ्रा फिर गाड़ी को आगे बढ़ाती है) अच्छा... इससे पहले... उसने कितनी बार विश किया था तुमसे...
रुप - छह बार...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... कैसे और किस तरह...

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और एक गाड़ी महानदी रिंग रोड पर भागी जा रही है l जाहिर सी बात है उस गाड़ी में विश्व और प्रतिभा बैठे हुए हैं

विश्व - ओहो... माँ... क्या हुआ... प्लीज माँ प्लीज.... मुझसे बात करो ना...
प्रतिभा - नहीं करनी है मुझे तुझसे कोई बात... लड़की क्या दिखी... माँ को छोड़ कर चला गया... (चिढ़ाते हुए) माँ.. भगवान आप ही सबकुछ मांग लो...
विश्व - माँ... आज नंदिनी जी का जन्मदिन था... और वह बेचारी... अपनी जन्मदिन पर रो रही थी...
प्रतिभा - हाँ.. लड़की थी... इसलिए तु गया था... उसके आंसु पोछने...
विश्व - नहीं माँ... आंसु पोछने नहीं... बर्थ डे विश करने गया था... और... तुम जानती हो... मैं उनके विचारों को एडमायर करने गया था...
प्रतिभा - सब समझती हूँ... इधर मैं लड़की ढूंढ रही हूँ... उधर कल को मेरे सामने नंदिनी को खड़ा कर बोलेगा... (मर्दाना आवाज़ निकालने की कोशिश में) माँ अब लड़की ढूंढने की जरूरत नहीं... मैंने शादी कर ली है... यह देखो... रेडियो वाली नंदिनी...
विश्व - ओह ओ माँ... कहाँ की बातेँ... कहाँ लेकर जा रही हो...
प्रतिभा - चोरी चोरी मुलाकातों को... शादी तक लेके जा रही हूँ...
विश्व - आ... ह्ह्ह्ह्ह...
प्रतिभा - बस बस... अपने बाल नोचने मत लग जाना... वरना गंजा हो जाएगा... फिर वह रेडियो वाली नंदिनी तुझे पहचान नहीं पाएगी...
विश्व - (अपना मुहँ बना कर प्रतिभा को देखता है)
प्रतिभा - (हँसने लगती है) हा हा हा हा हा...
विश्व - मतलब अब तक... आप मेरी टांग खिंच रही थी...
प्रतिभा - (हँसते हुए) हाँ... टांग खिंच रही थी... पर देखने लायक तेरा चेहरा था... हा हा..
विश्व - (मुस्कराते हुए) मुझ पर गुस्सा तो नहीं हो ना माँ...
प्रतिभा - अरे गुस्सा क्यूँ करूँ... मैंने जिस लड़की को पसंद किया है... अगर तु उसे मेरी बहु बनाने में तूल जाए...
विश्व - माँ... फिरसे वही पुराण...
प्रतिभा - हा हा हा... अच्छा ठीक है... चल बता... उसे रोता हुआ देख कर... तु क्यूँ उसके पीछे भागा...
विश्व - रोता हुआ देख कर नहीं... उन्हें अपनी जन्मदिन पर रोता हुआ देख कर गया था....
प्रतिभा - ओ... तो समाज सेवा करने गया था...
विश्व - ऐसी बात नहीं है माँ... पता नहीं क्यूँ... उनका रोना... मुझसे बर्दास्त नहीं हुआ... मुझे लगा जैसे... वह मेरी वजह से रो रहे हैं... इसलिए उनको ढूंढते हुए गया था...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... मैंने भी देखा था... कैसे तुने उसे बधाई दी.... और उसके चेहरे पर कैसे.. एक जबरदस्त.. चमक भरी खुशी और हँसी ले आया...
विश्व - क्या... इसका मतलब आपने हम दोनों को देखा था...
प्रतिभा - हाँ देखा...
विश्व - क्यूँ...
प्रतिभा - क्या मतलब क्यूँ... मेरा बेटा लड़कियों के नाम से भाग जाने वाला... किसी लड़की को नजर उठा कर ना देखने वाला... अचानक एक लड़की के पीछे भाग कर जाएगा... तो मन में क्युरोसिटी तो होगी ही ना... (विश्व चुप रहता है) अच्छा... इससे पहले कभी किसी लड़की को ऐसे डे विश की है...
विश्व - कहाँ माँ... सात सालों से आपके सामने हूँ...
प्रतिभा - तो फिर... तुने ऐसे इनोवेटिव तरीके से... कैसे इम्प्रेस किया...
विश्व - माँ... यह दुसरी लड़की है... जिसे मैंने बर्थ डे विश किया...
प्रतिभा - व्हाट... अभी तो तुमने कहा कि... कभी किसी लड़की को...
विश्व - हाँ माँ... मैंने आज से पंद्रह साल पहले... और नौ साल पहले तक... ऐसे ही इनोवेटिव और अलग अलग तरीके से... किसी को बर्थ डे विश किया करता था...
प्रतिभा - ओ... तो बचपन का प्यार है...
विश्व - नहीं माँ... वह मेरा प्यार नहीं था... उनके प्रति अनुकंपा थी...
प्रतिभा - (हैरान हो कर) क्या मतलब है इसका...

फिर विश्व बताता है कैसे उमाकांत सर ने उसे छोटे राजा जी के पास ले गए और राजकुमारी जी को पढ़ाने का जिम्मा दिया l वह कैसे अपना नाम अनाम बताया और रुप की रजोदर्शन (मीनार्की) तक पढ़ाता रहा l कैसे ग्यारह साल की राजकुमारी विश्व पर हक जमाते हुए शादी के साथ साथ किसी दुसरी लड़की के तरफ ना देखने का वादा लिया था l

प्रतिभा - कमाल है... तुम्हारे बारे में वैदेही ने यह तो बताया कि तुम भैरव सिंह की बेटी को पढ़ाते थे... पर उसने कभी यह बात नहीं बताई... के तुम भैरव सिंह की बेटी को बर्थ डे... वह भी इनोवेटिव तरीके से विश किया करते थे...
विश्व - यह बात... मुझे तब गैर जरूरत लगी थी... इसलिए दीदी को भी नहीं बताया था...
प्रतिभा - अच्छा... राजकुमारी जी का नाम कहीं... नंदिनी तो नहीं...
विश्व - (हँसता है) पता नहीं माँ... मुझे शख्स हिदायत दी गई थी... महल में ना उनसे नाम पूछने की इजाजत थी... ना ही अपना नाम बताने की... और यह लड़की... नंदिनी... राजकुमारी हो ही नहीं सकती...
प्रतिभा - क्यूँ नहीं हो सकती...
विश्व - (सीरियस हो कर) माँ... जिस लड़की को अपने ही आँगन में खेलने नहीं दिया गया... अपनी ही गांव के स्कुल में पढ़ने नहीं दिया गया... उसे यूँ भुवनेश्वर में.. उँ हुँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तब तो राजकुमारी जी का तुम्हें चाहना वाजिब ही है...
विश्व - (हैरान हो कर) ये.. यह क्या कह रही हो माँ... यह उनका बचपना था...
प्रतिभा - बचपना नहीं फैसला था... और सही फैसला...
विश्व - (चुप हो कर प्रतिभा को देखने लगता है) यह आप कैसे कह सकती हैं)
प्रतिभा - बता दूँगी... पहले यह बता... तुने छह साल तक उसे कैसे बर्थ डे विश किया...
विश्व - (थोड़ा हँसता है) एक दुखियारी... राजकुमारी... सब कुछ था... घर... परिवार... पर उन पर लुटाने वाला प्यार... घर के किसी सदस्य के पास नहीं था... उनकी चाची उनसे बहुत प्यार करती थी... पर समय नहीं दे पाती थी... एक तरफ मैं था... ना घर ना परिवार... बहुत प्यार बचपन से लेकर तब तक हासिल था मुझे... और वक़्त ही वक़्त था मेरे पास... यही वजह था कि हम दोनों को एक दुसरे का साथ बहुत भाता था.... जब मुझे मालुम हुआ कि उनका जन्मदिन आने वाला है... तो मैंने तय किया कि उनको... बर्थ डे विश करूँ... तब वह छह साल की थीं.... और मैं चौदह साल का...


🌹छठी साल गिरह 🌹

सुषमा के जाने के बाद

रुप - अच्छा.. तो मेरा जन्मदिन कैसे मनाने वाले हो...
विश्व - सोच रहा हूँ... सरप्राइज़ दूँ...
रुप - (खुश होते हुए) वाव... क्या सरप्राइज़ देने वाले हो...
विश्व - सरप्राइज ऐसे थोड़े ना बताया जाता है.. आप मंदिर से आ जाना... मैं दे दूँगा...
रुप - अरे बुद्धू... मंदिर कोई बाहर नहीं है... यहाँ महल के मंदिर की बात कर रही थी... छोटी रानी माँ...
विश्व - अच्छा... ठीक ही तो है ना.... आप मंदिर से वापस आ जाओ... मैं आपको बहुत ही प्यारा सा गिफ्ट दूँगा...

जन्मदिन पर रुप अपनी चाची के साथ मंदिर से वापस आ कर अपनी कमरे में बड़ी बेसब्री से अनाम की इंतजार कर रही है l कुछ देर बाद अनाम कमरे में आता है l

विश्व - जन्मदिन की शुभकामनाएँ... राजकुमारी जी..
रुप - (एटिट्यूड के साथ) ठीक है.. ठीक है... बोलो क्या सरप्राइज़ लेकर आए हो...
विश्व - दिखा दूँगा... पर आप वादा करो.. चिल्लाओगी नहीं...
रुप - ठीक है...
विश्व - नहीं आप वादा करो...
रुप - ठीक है... वादा करती हूँ...

विश्व अपने शर्ट के अंदर से दो सफेद रंग के चूहे निकाल कर रुप को दिखाता है l रुप सफेद रंग के चूहे देख कर खुश तो होती है पर वह डर के मारे उन्हें अपने हाथ में नहीं लेती l

विश्व - राजकुमारी जी थैंक्स...
रुप - वह किस लिए..
विश्व - आपने चिल्लाया नहीं... इसलिए... वैसे कैसे लगे यह चूहे...
रुप - (डरते हुए) यह... यह काटेंगे तो नहीं...
विश्व - नहीं राजकुमारी जी... यह चूहे घर में पाले जाते हैं... अगर यह चूहे काले रंग के होते... तो बात डरने की होती...
रुप - मैं... हाथ में लूँ...
विश्व - लीजिए ना... आपके लिए ही तो लाया हूँ...
रुप - (अपनी हाथों से चूहों को लेकर) वाव... इन्हें मैं रखूंगी कहाँ...
विश्व - इसी कमरे में छोड़ दीजिए...
रुप - नहीं... छोटी रानी जी से बात करूंगी...

शुभ्रा - हाँ... अनाम कितना बेवक़ूफ़ था... चूहे लाकर दी तुमको...
रुप - वह बेवक़ूफ़ नहीं था... वह चूहे अपनी शर्ट में छुपा कर लाया था...
शुभ्रा - सॉरी सॉरी... अनाम बेवक़ूफ़ नहीं था... फिर तुमने चाची माँ से बात की...
रुप - हाँ... चाची माँ ने... एक छोटा सा पिंजरा मुझे ला कर दी... मैंने उन दो चूहों को पिंजरे में रखा भी... पर...

प्रतिभा - पर क्या...
विश्व - उन चूहों को पिंजरे में देख कर... राजकुमारी का मन में बहुत दुख होता था... इसलिए दो दिन बाद... राजकुमारी जी ने उन चूहों को छोड़ दिया...
प्रतिभा - क्या... छोड़ दिया... पर क्यूँ...
विश्व - माँ... जरा सोचो.. वह भले ही राजकुमारी थी... पर वह आजाद कहाँ थी... अपनी ही गांव के स्कुल नहीं जा पा रही थी... इतनी पाबंदीयाँ लगी थी उन पर...
प्रतिभा - ओ... इसका मतलब यह हुआ कि... पिंजरे में चूहों को देख कर.... वह पिंजरे में खुद को महसुस कर रही थी...

रुप - हाँ... मुझे आजादी नसीब नहीं थी... मैं अपनी खुशियों के लिए... उन बेजुबानों को कैद में नहीं रख सकती थी...
शुभ्रा - इसलिए दो दिन बाद तुमने उन चूहों को आजाद कर दिया...
रुप - हाँ... मैंने उन्हें अपने अंतर्महल के उद्यान में छोड़ दिया...
शुभ्रा - और अनाम का क्या रिएक्शन था...
रुप - अनाम को मेरी मनोभावना समझ आ गई... वह मेरे मन की ख्वाहिश को समझ गया था... इसलिए उसने अगले साल की तैयारी शुरू कर दिया था...

प्रतिभा - क्या... सातवीं साल गिरह की तैयारी तभी से...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - सातवें जन्मदिन पर तुमने क्या किया...


🌹सातवीं साल गिरह 🌹

सुबह के सात बज चुके थे I रुप सुबह सुबह सुषमा के साथ मंदिर जा कर आ चुकी थी l उसे बस इंतजार था तो अनाम का l रुप अपनी कमरे में टहल रही थी, कभी खिड़की के पास जा कर बाहर झाँकती थी तो कभी दरवाजे पर अपना कान लगा कर बाहर से आहटों को सुनने की कोशिश कर रही थी l थोड़ी देर बाद वह दरवाजा खोल देती है तो सामने पंद्रह साल का विश्व खड़ा हुआ था l

विश्व - क्या बात है राजकुमारी जी... क्या टाइमिंग है... मैं अभी दरवाजा खटखटाने वाला था...
रुप - ठीक है... क्या सरप्राइज है इसबार... अगर पिंजरे मैं रखने वाली कुछ लाए हो... तो नहीं चाहिए...
विश्व - नहीं राजकुमारी जी... अब जो लाया हूँ... वह इतना बड़ा है कि... पिंजरे में रखा नहीं जा सकता...
रुप - अच्छा... अगर वह इतना बड़ा है... तो महल के अंदर लाए कैसे...
विश्व - एक दिन में थोडे लाया हूँ...
रुप - तो...
विश्व - कुछ दिनों से.. थोड़ा थोड़ा करके... लाता रहा हूँ...
रुप - (उसे हैरान हो कर अनाम की चेहरे को देखती रहती है)
विश्व - चलें...
रुप - ह्ँ... हाँ... पर कहाँ...
विश्व - अंतर्महल के उद्यान में...

फिर दोनों उद्यान के बाहर आकर खड़े होते हैं l विश्व एक डंडा उठा कर राजकुमारी के हाथों में देता है l

विश्व - राजकुमारी जी... इस डंडे को... (एक झाड़ी की ओर इशारा करते हुए) उस झाड़ी पर फेंक मारीये...
रुप - इससे क्या होगा...
विश्व - आप फेंकिए तो सही...

रुप डंडे को झाड़ी पर फेंक मारती है l डंडा झाड़ी पर लगते ही पीले रंग के सैकड़ों तितलियाँ झाड़ी से उड़ने लगती हैं l रुप उसके आजू बाजू तितलियों को उड़ते देख बहुत खुश हो जाती है l

शुभ्रा - व्हाट... तितलियाँ... वह भी सैकड़ों... कहाँ से लाया वह इतनी तितलियाँ...
रुप - एक्जाक्टली... यही सवाल मैंने भी उससे की...
शुभ्रा - तो उसने क्या बताया...
रुप - उसने कहा कि.. फाल्गुन मास में... यह तितलियाँ खेतों में उड़ते रहते हैं...

प्रतिभा - अच्छा... हम सहर वाले... इस मामले में थोड़े कच्चे हैं...
विश्व - फाल्गुन माह में... इन तितलियों का... मेटींग टाइम होता है... मैंने सिर्फ थोड़ा थोड़ा करके उनको इकट्ठा किया... और उनके आसपास वह एंवाइरॉनमेंट बनाया...
प्रतिभा - बायोलॉजी की अच्छी नॉलेज थी तुमको...
विश्व - नहीं... ऑवजर्वेशन की नॉलेज थी... आखिर पढ़ाई के साथ साथ किसानी भी तो कर रहा था...

शुभ्रा - ओ... ह्म्म्म्म... हाँ यह सरप्राइज बहुत ही बढ़िया था... यह तो गई सातवीं... आठवीं साल गिरह कैसे मनाया....
रुप - अनाम था ही यूनिक... हमेशा कुछ ना कुछ नया ही सोचता रहता था... इसलिए उसने जन्मदिन के पहले दिन ही कह दिया था.... अगर सरप्राइज चाहिए तो सुबह तड़के उठना है... जब सुबह ना खुला हो... थोड़ा सा अंधेरा हो...


🌹आठवीं साल गिरह 🌹

रुप के तकिए के पास पड़ी घड़ी बजने लगती है l रुप झट से अपनी बिस्तर से उठ जाती है और दौड़ कर दरवाजा खोल देती है तो दरवाजे के सामने ही उसे अनाम खड़ा मिलता है l

रुप - (दबी दबी आवाज में) तुम रात भर सोये नहीं क्या... वैसे भी इतनी सुबह... महल में दाखिल कैसे हुए.... वह भी अंतर्महल में...
विश्व - (दबी जुबान से) मैं रात को गया ही नहीं...
रुप - फिर...
विश्व - मैं रात भर भीमा पहलवान का पैर दबाता रहा... फिर जब वह सो गया... तब जाकर मैं तैयारी में जुट गया...
रुप - पिछली बार तो महीना लगा था तैयारी में... अब एक रात में हो गया...
विश्व - नहीं... एक हफ्ता...
रुप - अब कहाँ चलना है...
विश्व - वहीँ... उसी उद्यान में... मगर इस बार फव्वारे के पास...
रुप - चलो फिर...

फिर दोनों अंतर्महल के उद्यान में बेह रहे फव्वारे से थोड़े दूर रुक जाते हैं l वहाँ पर विश्व एक रस्सी को उठाता है और रुप के हाथों में देता है l

विश्व - राजकुमारी जी.. इसे आप खिंच दीजिए...

रुप उस रस्सी को खिंच देती है l रस्सी के खिंच जाते ही फव्वारे के दूसरी तरफ एक मटका लुढ़क जाता है l मटके की लुढकते ही अनगिनत जुगनू उड़ने लगते हैं l जिससे फव्वारे का नज़ारा अद्भुत दिखने लगता है l थोड़ी देर बाद सारे जुगनू पेड़ों पर, झाड़ियों पर, फूलों पर पत्तों पर बैठ जाते हैं l उस थोडे से अंधेरे में ऐसा लग रहा था जैसे छोटे छोटे, नन्हें नन्हें टीम टीमाते तारे आसमान से जमीन पर उतर आए हों l यह नजारा देख कर आठ साल की रुप इतना भावुक हो जाती है कि वह भागते हुए विश्व के गले लग जाती है l

प्रतिभा - वाव... वाकई... बड़े बड़े आशिक तक जो नहीं सोच पाते.. वैसा तुमने सोच लिया था...
विश्व - (हल्का सा हँस देता है)
प्रतिभा - जाहिर सी बात है... अगर वहाँ पर जवान राजकुमारी भी होती... तो वह भी तुम्हारे गले लग जाती...
विश्व - क्यूँ... आपको क्यूँ ऐसा लगता है...

शुभ्रा - क्यूँ मतलब... अरे... बातों बातों में सब कह देते हैं... आसमान को धरती पर लाने की... पर सिर्फ अनाम ही ला पाया... अपनी राजकुमारी के लिए...
रुप - (शर्मा के चेहरा झुका लेती है)
शुभ्रा - सच कहती हूँ नंदिनी... दैट वाज रियली एमेजिंग...
रुप - हाँ भाभी... सच में... कविओं के लेखकों के कल्पनाओं को... वह वास्तव बना देता था...
शुभ्रा - नौवीं सालगिरह में... क्या सरप्राइज दिया अनाम ने तुम्हें....
रुप - अपनी नौवीं साल गिरह के पहले दिन... मैंने बीमारी के चलते बिस्तर पकड़ लिया था...



🌹नौवीं साल गिरह 🌹

जन्मदिन के पहले दिन सत्रह साल का विश्व जब रुप के कमरे में आता है तो देखता है रुप बीमारी के चलते अपनी बेड पर सोई हुई है l रुप के सिरहाने बैठ कर सुषमा रुप के माथे पर वॉटर स्पंजिंग कर रही थी l आसपास कुछ नौकरानियां खड़ी हुई थी l सुषमा जैसे ही विश्व को देखती है सभी नौकरानियों को बाहर जाने के लिए कहती है l सभी नौकरानियों के बाहर जाते ही

सुषमा - देखो अनाम... इस साल अगर राजकुमारी जी की जन्मदिन मनाने का कोई प्लान है... तो उसे अगले साल के लिए टाल दो... राजकुमारी जी की हालत खराब है...
रुप - (आँखे बंद होने के बावजूद) आह... छोटी रानी जी... प्लीज...
सुषमा - नहीं राजकुमारी... एक तो कोई नहीं जानता है इस महल में... की आपकी जन्मदिन मनाया जा रहा है... ऐसी हालत में आप पर सबकी नजर होगी... अगर किसी ने देख लिया और यह बात राजा साहब को मालुम हुआ... तो जरा सोचिए... इस बेचारे अनाम क्या क्या होगा...
रुप - (कुछ कह नहीं पाती है, उसके बंद आँखों के कोने में आँसू दिखने लगते हैं)
विश्व - छोटी रानी जी... क्या कल सुबह तक... राजकुमारी जी ठीक नहीं हो पाएँगी...
सुषमा - ठीक हो भी जाएं तो... तो भी... तुम्हारा उनके साथ... उनका जन्मदिन मानना मुश्किल है... अब तक तुम नजर में नहीं आए हो... पर कल अगर कुछ भी किया तो... नजर में आ जाओगे... तब... तब तुम सोच भी नहीं सकते... क्या हो सकता है...
विश्व - ठीक है... छोटी रानी जी... मैं कल नहीं आऊंगा... पर क्या आप मुझे एक वादा करेंगी...
सुषमा - (विश्व को हैरान हो कर देखती है) कैसा वादा...
विश्व - अंतर्महल में आपकी कोठरी... पूरब दिशा की नदी की ओर है...
सुषमा - हाँ तो...
विश्व - तो आप राजकुमारी जी को... आज रात के लिए अपने कमरे में सोने दीजिए... बस सुबह सूरज निकलने से पहले आपके कोठरी की खिड़की के पास खड़ा कर दीजिएगा...
सुषमा - क्या... इससे क्या होगा...
विश्व - कल सूरज निकलने से पहले... राजकुमारी जी को जन्मदिन की बधाई मिल जाएगी....

इतना कह कर विश्व वहाँ से चला जाता है l सुषमा भी रुप को अपने साथ अपने कमरे में सुला देती है l सुबह रुप की आँख जल्दी खुल जाती है l आज उसकी हालत पहले से बेहतर है वह खिड़की के पास आकर खड़ी होती है उसके साथ सुषमा भी खड़ी हो कर बाहर की ओर देखने लगती है l सुबह खुला नहीं है फिर भी आकाश में हलकी सी लालिमा उभरने लगी है l तभी कुछ दूर नदी के किनारे से लाल रंग के जापानी काग़ज़ के लालटेन उड़ने लगते हैं l करीब करीब पचासों लालटेन पूर्वी आकाश में सूरज के निकलने की संदेश को लेते हुए आसमान में छाने लगते हैं l यह दृश्य देख कर रुप बहुत ही खुश हो जाती है l

सुषमा - वाह... अनाम की बधाई देने का तरीका वाकई लाज़वाब है... जन्मदिन मुबारक हो राजकुमारी....

शुभ्रा - वाव... अगैंन अमेजिंग.. इटस रियली अमेजिंग... और उसके साथ साथ तुम्हारा डेस्क्रीपशन... वाव... पूर्वी आसमान में उड़ते लाल रंग के लालटेन... धीरे धीरे सूरज के निकलने के पैगाम लिए उड़ रहे थे...
रुप - सच ही तो कहा है भाभी... वह नज़ारा... वह लम्हें... मैंने खुद एक्सपेरियंस किया है...
शुभ्रा - मैं कहाँ मना कर रही हूँ... आज के डेट में... कितने ऐसे हैं... जो अपनी प्रेमिका को... ऐसे सरप्राइज़ दे पाते हैं...

विश्व - तब मैंने वैसा कुछ सोचा नहीं था माँ... मेरे पास साल भर में... सिर्फ यही एक मौका हुआ करता था... जिस दिन मैं उस बेचारी राजकुमारी को खुश कर पाता था... इसलिए नए नए तिकड़म भिड़ाता था...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म.. फिर भी तू जो भी करता था... पुरे दिल से करता था... सच कहूँ तो तेरी और राजकुमारी की कहानी से... मुझे रस्क होने लगी है... काश के मेरे जीवन में भी ऐसा कोई लम्हा होता... खैर... अब मैं सेनापति जी से सिवाय घटिया ऊटपटांग शायरी के.. और क्या उम्मीद करूँ...
विश्व - हा हा हा.. माँ तुम भी ना..
प्रतिभा - अरे सच ही तो कहा मैंने... खैर... तुम्हारे और राजकुमारी के बीच हम कहाँ आ गए... अब बताओ... राजकुमारी जी की दसवीं साल गिरह कैसे मनाया तुमने...

रुप - नौवीं साल गिरह के समय... मैं बीमार थी... और दसवीं साल गिरह के दिन... अनाम की बारहवीं एक्जाम था... इसलिए मेरी जन्मदिन को वह था नहीं...
शुभ्रा - तो दसवीं सालगिरह नहीं मनाया क्या...
रुप - वह अनाम था भाभी... अपनी राजकुमारी के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता था...


🌹दसवीं साल गिरह🌹

रुप जिज्ञासा भरी नजर से अट्ठारह साल के अनाम को देख रही थी l अनाम देखता है कि रुप उसे देख कर मन ही मन खुश हो रही है

विश्व - क्या बात है राज कुमारी जी... आप... मन ही मन बहुत खुश हो रहे हैं...
रुप - हाँ... जानते हो अनाम... मैंने कभी भी अपनी जन्मदिन का इंतजार नहीं किया था... पर जब से तुम बधाई देना शुरु किया है... तब से मुझे हर साल इसी दिन का... बड़ी सिद्दत से इंतजार रहता है...
विश्व - पर राजकुमारी जी... कल मेरी बारहवीं का एक्जाम है... मैं आ नहीँ पाऊँगा...
रुप - (गुस्सा हो जाती है) (उसका चेहरा तमतमाने लगती है) क्या कहा...
विश्व - (राजकुमारी की गुस्से से तमतमाता हुआ चेहरा देख कर डर जाता है) म.. म... मेरा मतलब था कि... आपको आपके जन्मदिन की बधाई... कल सुबह आपकी आँखे खुलते ही मिल जाएगी...
रुप - (अचानक से गुस्सा गायब हो जाती है और उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है) कैसे...
विश्व - (मुस्कराते हुए) बस... आप सुबह की प्रतीक्षा किजिये...

उस दिन शाम की पढ़ाई जब खतम होती है रुप रात का खाना खाने के लिए कुछ देर के लिए अपनी चाची सुषमा के पास जाती है l खाना खा कर सुबह की सरप्राइज के बारे में सोचते हुए एक्साइटमेंट में अपनी बेड पर आँखे मूँद कर सो जाती है l पर तभी उसे एहसास होता है कि उसके बेड पर कोई नोट छूट गया है l वह उठ कर नोट पढ़ती है l वह विश्व का लिखा उसके नाम पर एक पैगाम था

" राजकुमारी जी... आपके दाहिने और की खिड़की के नीचे... चार कतारों में बोतलों में कुल तेरह कमल के फूल रख छोड़ा है... कल सुबह होते ही आप देखियेगा... मेरी बधाई के शब्द... इन फूलों के जुबान से.... '

अगली सुबह जब वह उठती है तो देखती है बड़े बड़े आकार के कमल के फूल एक एक करके तेरह बोतलों में चार कतारों में खिड़की के पास नीचे रखे हुए हैं l रुप का मन मुर्झा जाता है l सोचने लगती है सिर्फ फूल l यह सोचते हुए उन फ़ूलों के पास पहुँचती है तो पाती है हर एक फूल के केसर पर कुछ लिखा हुआ है l वह गौर से देखती है चार कतारों में फूल रखे गये हैं l पहली कतार में तीन, दुसरी कतार में पांच, तीसरी कतार में चार और चौथी कतार में एक फुल रखी हुई है l पहली कतार के फूलों के केशर लिखे शब्द थे द स वीं l दुसरे कतार के फूलों के केसर पर जो शब्द लिखे हैं सा ल गि र ह I तीसरी कतार में रखे फूलों में मु बा र क और अंतिम कतार के एक फुल पर हो लिखा हुआ था l सभी शब्द मिलकर "दसवीं सालगिरह मुबारक हो" कह रहे थे l रुप के होठों पर एक दमकती मुस्कान खिल उठती है l अपनी मन में सोचने लगती है

'यह सब उसने कब किया होगा.... फूलों के केशर पर स्केच पेन से कैसे और कब लिखा होगा...

शुभ्रा - वाकई... फूलों के केशर मतलब स्टैमेन पर कैसे और कब लिखा...
रुप - मिलने के बाद मैंने भी सेम टु सेम सवाल किया...

प्रतिभा - तो तुमने उसे क्या जवाब दिया...
विश्व - वही कहा जो किया था...
प्रतिभा - तो बताओ क्या किया था...
विश्व - कमल की कली... जो पुर्ण रूप से विकसित फुल होने के... एक दो दिन पहले तोड़ लाया था... पंखुड़ियों को सावधानी से खोल कर... केशर पर स्केच पेन से लिख दिया... और पंखुड़ियों को वापस बंद कर दिया... उसके बाद... जब राजकुमारी जी छोटी रानी जी के पास गई हुई थीं... तभी मैंने बोतलों में पानी भर कर... कमल की कलियों को शब्दों के हिसाब से चार क़तारों में सजा कर रख दिया... सुबह जब सूरज निकलने को हुई... कमल के फूल खिल गये... और मेरी बधाई... राजकुमारी जी तक उन कमल के फूलों ने पहुँचा दिए...
प्रतिभा - वाव... इस उम्र में... मुझे इतना थ्रिल महसूस हो रहा है... तो राजकुमारी की उम्र में तो... वह पागल हो गई होगी...
विश्व - हाँ हो गई... मेरे लिए... और भी मुसीबत हो गई...
प्रतिभा - कैसी मुसीबत

रुप - भाभी... मैं अब बच्ची वाली दिमाग से आगे सोचने लगी थी... अनाम को लेकर मैं... बहुत ही इनसिक्युर होने लगी थी... वह किसी से बात करता था तो... मुझे जलन होती थी... इसलिए इसी उम्र में मैंने अपना प्यार और हक़... उस पर जाहिर कर दिया....
शुभ्रा - हा हा हा हा हा... उस बेचारे की हालत खराब हो गई होगी...
रुप - हाँ... सो तो है... शादी का वादा भी ले लिया था मैंने उससे...

प्रतिभा - हा हा हा हा हा... बेचारा प्रताप... अट्ठारह साल का बांका जवान... दस साल की लड़की के आगे घुटने टेक् दिए...
विश्व - क्या करता माँ... वह बेशक उम्र के नाजुक मोड़ पर थी... जहां उनसे बचपन धीरे धीरे छूट रहा था... तब मेरे लिए,.. अपनी जिद के लिए... किसी भी हद तक जा सकती थी...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तो ग्यारहवीं साल गिरह कैसे मनाया तुमने... अपनी राजकुमारी का...
विश्व - ओ माँ.... वह तो बहुत ही खतरनाक था... आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं... जब भी वह दिन याद आता है...

शुभ्रा - क्यूँ ...ऐसा क्या हुआ था तुम्हारे ग्यारहवें साल गिरह में...
रुप - हर साल की तरह अनाम का... कुछ तो प्लान रहा होगा... मेरी जन्मदिन पर बधाई देने के लिए... पर इसबार प्लान मैंने किया था...
शुभ्रा - व्हाट... मतलब तुम्हारे ही बर्थ डे पर... तुमने उसे चौंकाया...
रुप - हाँ...


🌹ग्यारहवीं सालगिरह🌹

उन्नीस साल का विश्व पढ़ा रहा है l राजकुमारी उसे एक टक देखे जा रही है l उसे देखते देखते कुछ सोच भी रही है l

विश्व - क्या बात है राजकुमारी जी...
रुप - सोच रही हूँ... पिछले दोनों जन्मदिन पर... हम साथ नहीं थे...
विश्व - दोनों बार मतलब... आप पहली बार बीमार थीं... और दुसरी बार मेरा बारहवीं का एक्जाम था... पर अब तो मेरा आगे पढ़ना होगा नहीं... इसलिए मैं तो हूँ... आप बस बीमार मत पड़ जाना....
रुप - इस बार मैं नहीं... तुम बीमार पड़ने वाले हो...
विश्व - हे हे हे... कैसा मजाक कर रही हैं आप... राजकुमारी जी...
रुप - जानते हो... छोटी रानी जी यहाँ नहीं है...
विश्व - हाँ... पर वह परसों तक... आपके जन्मदिन पर तो आ जाएंगी ना...
रुप - हाँ... उनके आने से पहले मुझे कुछ करना है...
विश्व - क्या... क्या करना है आपको...
रुप - गाँव में कहीं... नाम गुदवाते हैं क्या...
विश्व - हाँ गुदवाते हैं ना... आपको अपना नाम गुदवाना है क्या...
रुप - हाँ...
विश्व - तो मैं उसे आज ही बोल देता हूँ... वह कल आकर.. आपका नाम गुदवा देगी...
रुप - उसको यहाँ नहीं आना है...
विश्व - क्या मतलब...
रुप - मुझे उसके पास जाना है...
विश्व - (ऐसे चौंकता है जैसे उसे सांप ने काट लिया) क्या... ए.. ये... यह क्या कह रही हैं आप...
रुप - श्श्श्श्श्... अब मैं तुम्हें अच्छे से पुछ रही हूँ... मुझे उसके पास लेकर जाओगे या नहीं...
विश्व - नहीं...
रुप - क्या... तुमने मुझे मना किया... अब देखती हूँ... कैसे जाते हो तुम महल से बाहर...
विश्व - (सीधे राजकुमारी के पैरों के नीचे गिर जाता है) राजकुमारी जी... प्लीज... यह अंतर्महल है... यहाँ से आप कैसे बाहर जाएंगी... अगर गई भी तो... राजा साहब मेरी खाल लहरा देंगे...
रुप - मेरे पास आइडिया है... या तो मेरी बात मानों... या फिर बिन खाल के राजगड़ में घूमते फिरो...
विश्व - यह... यह चिटींग है... राजकुमारी जी... कितनी शिद्दत से... आपके लिए मैं जन्मदिन की बधाई कि प्लानिंग करता हूँ... आप के लिए इतना कुछ करता हूँ... आप जो कहती हैं... मैं मानता हूं... पर आप हैं कि... मेरी खाल उतरवाने की बात कर रही हैं...
रुप - तो यह बात भी मान जाओ...
विश्व - कैसे... राजकुमारी जी कैसे... आपको मैं बाहर कैसे लेकर जाऊँ...
रुप - कहा ना मेरे पास प्लान है...
विश्व - (हथियार डालने के अंदाज में, निरास आवाज में) अच्छा.... कहिए क्या प्लान है...
रुप - ऐसे लेटे क्यूँ हो... आलथी पालथी मार कर बैठो...

विश्व रुप के कहे प्रकार बैठ जाता है फिर रुप भी अपनी कुर्सी से उतर कर विश्व के सामने आलथी पालथी मार कर बैठ जाती है l

विश्व - बोलिए... क्या करना है...
रुप - जैसे कि मैंने कहा... छोटी रानी जी नहीं हैं... वह परसों सुबह आयेंगी... इसलिए कल रात मैं उनके कमरे में सोउंगी...
विश्व - ठीक है फिर...
रुप - नदी के तरफ वाली खिड़की से रात के बारह बजे नीचे उत्रुंगी...
विश्व - (चौंक कर) क्या.. कैसे..
रुप - उसकी व्यवस्था तुम करोगे....
विश्व - क्या.आ.आ..
रुप - हाँ... तुम मुझे वहाँ से... नाम गुदवाने वाली के पास ले जाओगे... नाम गुदवाने के बाद... तुम मुझे वापस छोड़ दोगे...
विश्व - (अपना हाथ अपने सिर पर मारते हुए) हे भगवान... राजकुमारी जी... रस्सी से नीचे उतरना और उपर चढ़ना... फ़िल्मों में जितना आसान दिखाता है ना... असल में उतना ही मुश्किल होता है...
रुप - वह मैं नहीं जानती... कल एक दिन है तुम्हारे पास... मुझे कैसे उतारोगे... और कैसे वापस चढ़ाओगे... यह तुम प्लान कर लो...
विश्व - क्या.. मैं..
रुप - हाँ तुम...
विश्व - मैं.. मैं भाग जाऊँगा...
रुप - तो अभी से भाग जाओ...
विश्व - क्या..
रुप - हाँ... ताकि मुझे राजा साहब से तुम्हारी शिकायत करने में... आसानी हो...
विश्व - (अपना हाथ जोड़ कर) ठीक है राजकुमारी जी... मैं.. मैं कल कुछ करता हूँ...

अगले दिन रात के बारह बजे विश्व चुपके से नदी के तरफ वाली खिड़की के पास पहुँचता है l रुप पहले से ही विश्व के दिए पुली को खिड़की पर लगा दिया था l रस्सी की एक छोर को विश्व के तरफ फेंकती है जिसे विश्व पकड़ लेता है l रस्सी की दुसरी छोर को पहले अपने कमर पर बांध देती है और फिर रस्सी को जोर से पकड़ लेती है l विश्व रस्सी को ज्यों ज्यों ढील देता है रुप खिड़की से नीचे उतरने लगती है l जैसे ही रुप नीचे आ जाती है विश्व रस्सी खोल देता है l फिर रुप को लेकर महल के पीछे वाली पगडंडीयों पर लेते हुए गांव में आता है l फिर एक घर के बाहर पहुँच कर दरवाजा खटखटाता है l उस घर में एक औरत पहले से ही तैयार बैठी थी l इससे पहले वह औरत कुछ कहती विश्व उसे इशारे से चुप रहने को कहता है l

विश्व - (रुप से) आइए... यह आपका नाम गोद देंगी...
रुप - (चुपके से) यह बातेँ नहीं करती क्या...
विश्व - (धीरे से) नहीं... इसी शर्त पर मैं इन्हें... ग्राहक देने आया हूँ... और हाँ... हम लोग भी.. एक दुसरे का नाम नहीं लेंगे...
रुप -(खुश हो कर) ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... अब जाओ.. उस बुढ़िया के पास बैठ जाओ...
विश्व - हाँ.. (फिर चौंक कर)क्या... मेरा मतलब है क्यूँ... मैं क्यूँ...
रुप - (अपनी आँखे सिकुड़ कर, दबी हुई आवाज में) मेरा नाम... तुम्हारे जिस्म में कहीं भी गुदवा लो...
विश्व - (रुप को अपनी आँखे दिखा कर बातों को चबाते हुए कहता है) क्या... मैं क्यूँ.. गुदवाउँ...
रुप - चुप चाप मेरा नाम गुदवा रहे हो... या चिल्ला कर यहाँ लोगों को इकट्ठा करूँ...
विश्व - नहीं... आप नहीं चिल्लाएंगी... मैं.. मैं गुदवाता हूँ... (फिर रोनी सुरत बना कर) पर कहाँ गुदवाउँ... किसने देख लिया तो... मैंने छोटे राजा जी... और आचार्य सर जी से वादा किया था... आपका नाम ना जानने के लिए... अब कहाँ लिखवाऊँ... ताकि वादा ना टुटे... ना ही लोगों को पता चले...
रुप - अपने गले के पीछे... बालों के नीचे...
विश्व - ठीक है... (अपना मुहँ बना कर बुढ़िया के सामने पीठ करके बैठ जाता है) क्या खुदवाना है...
रुप - (अपनी आँखे दिखा कर) हूँ उँ...
विश्व - मेरा मतलब है... क्या गुदवाना है... इन्हें बता दीजिए...

रुप बुढ़िया को एक काग़ज़ पर कुछ लिख कर देती है l बुढ़िया विश्व के गले के पीछे गोद देती है l गुदवाने का काम होने के बाद दोनों वापस महल की ओर लौटते हैं l

विश्व - (गुस्से में) आपने अपना नाम मेरे गर्दन पर क्यूँ गुदवाया...
रुप - ऐ... मुझसे सलीके से बात करो...
विश्व - (हाथ जोड़ कर) क्यूँ गुदवाया...
रुप - ताकि तुम को यह भान रहे.. के तुम सिर्फ मेरे हो... और खबरदार किसी चुड़ैल से दोस्ती या नैन मटक्का किया तो...
विश्व - (अपने दोनों हाथ जोड़ कर) हे जगदंबे.. मुझे माफ करो... मेरे लिए अपना दिल साफ रखो...
रुप - (एटिट्यूड के साथ) ठीक है... ठीक है... (मुस्कराते हुए) अच्छा यह बताओ... मुझे कल कैसे बधाई देने वाले थे...
विश्व - (अपना मुहँ फूला कर) मैं नहीं बताऊँगा... हूँ.. ह्...
रुप - कोई नहीं... इस बार का सरप्राइज... अगली बार दे देना...

इतने में गली में घूमने वाले कुछ कुत्ते इन पर भौंकने लगते हैं l रुप डर कर विश्व को पकड़ लेती है l विश्व कुत्तों पर चिल्लाते हुए खदेड़ने की कोशिश करता है l कुछ कुत्ते पीछे हटने के वजाए विश्व की ओर गुर्राने लगते हैं l विश्व रास्ते पर कुछ पत्थर उठा कर कुत्तों पर फेंक मारता है l तब वह कुत्ते पीछे हट जाते हैं l जैसे ही कुत्ते भाग जाते हैं l विश्व रुप की हाथ को पकड़ कर भागने लगता है l विश्व भागते भागते महल के पीछे वहीँ पहुँचता है जहाँ उसने खिड़की से रूप को उतारा था l महल के पीछे पहुँचने के बाद रुप विश्व के सीने से कस के गले लग जाती है l

विश्व - राजकुमारी जी... उतरीये प्लीज... महल आ गया...
रुप - हूँ... नहीं.. मुझे तुम्हारे धड़कन सुननी है...
विश्व - प्लीज...
रुप - तुम्हारी धड़कन में मुझे मेरा नाम सुनाई दे रहा है... थोड़ा सुनने दो ना...
विश्व - क्यूँ मज़ाक कर रही हैं आप... सबकी धड़कने एक जैसी ही सुनाई देती है...
रुप - सुनाई देती होंगी... पर इसमें... सिर्फ और सिर्फ़ मेरा नाम सुनाई दे रहा है... इस धड़कन को मैं कहीं भी... पहचान लुंगी...

विश्व - अच्छा ठीक है... अब तो अलग होईये... (रुप विश्व से अलग होती है) राजकुमारी जी... आपने मेरा सारा प्लान काफूर कर दिया...
रुप - कौनसा... ओ अच्छा वह बधाई वाली प्लान... ठीक है अब बताओ... क्या प्लान बनाया था...
विश्व - आप जो खुदको कैदी मान कर घुट रही हैं... हमेशा हारी हुई महसुस कर रही हैं... उस घुटन से... उस हारे हुए ज़ज्बात से... उड़ान भरने की...
रुप - कैसे...
विश्व - ह्म्म्म्म... इस बार हो नहीं पाया... पर अगली बार ज़रूर वैसे ही बधाई दूँगा... जहां आपके अरमानों को... ख्वाहिशों को पंख मिलेगा... उमंगों की आसमान में उड़ने के लिए....
Bahut hi shaandar update diya hai Kala Nag bhai...
Nice and awesome update....
 
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प्रभु कहाँ से लाते हो इतने खतरनाक आइडियाज , घर पर पिटवा कर ही मानोगे क्या।
जबरदस्त अपडेट खतरनाक आइडियाज के साथ।
भाई आप एक अलग से टिप्स देने का काम शुरू कर दो आईडिया देने की, नए नौजवानों के तो पौ बारह हो जाएंगे।
 

Jaguaar

Well-Known Member
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👉चौहत्तरवां अपडेट
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वीर अपने केबिन में बैठा हुआ ना जाने कब से अपनी ही सोच में खोया हुआ है l अनु एक कप कॉफी लेकर उसके सामने खड़ी हो जाती है l पर वीर का ध्यान कहीं और है l

अनु - अहेम.. अहेम... (थोड़ी खरास लेने के बावज़ूद वीर का ध्यान नहीं टूटता) र.. राज कुमार जी...
वीर - हँ.. हाँ... हाँ अनु... कुछ कहा तुमने...
अनु - जी वह कॉफी..
वीर - हाँ... लाओ...(कॉफी ले लेता है और सीप लेने लगता है)

अनु कॉफी देकर कुछ देर के लिए खड़ी होती है पर वीर कॉफी पीते पीते फिर सोच में खो जाता है l वीर का अनु की तरफ ना देखना अनु को थोड़ा मायूस करती है इसलिए मुड़ कर वहाँ से जाने लगती है, तभी

वीर - अनु...
अनु - (जाते जाते रुक जाती है, चेहरे पर मुस्कान आ जाती है) जी...
वीर - यह... जन्मदिन... खास क्यूँ होती है...

अनु - जी... मतलब...
वीर - मतलब यह है कि... किसीके लिए... जन्मदिन खास दिन क्यूँ होती है...

अनु - जी मैं इसपर... क्या कहूँ...
वीर - तुम्हें... अपने जनम दिन पर... कैसा महसूस होता है... कैसा लगता है अनु...
अनु - (अपनी गर्दन ना में हिला कर) पता नहीं... पर...
वीर - पर... पर क्या अनु...
अनु - मेरे बाबा... जब तक थे... मुझे हमेशा... (खुशी के लहजे में) जन्म दिन का इंतजार रहता था... क्यूँ की... (थोड़ा चहकते हुए) उस दिन मेरे बाबा मुझे... दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की बना देते थे... मुझे राजकुमारी बना देते थे... मेरी हर खुशी का खयाल रखते थे और मेरी हर हुकुम मानते थे...
वीर - ओ... (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाता है) अच्छा अनु...
अनु - जी...
वीर - तुम्हारे कहने का मतलब है कि... हर लड़की को उसके जनम दिन पर... राजकुमारी सा फिल कराया जाता है...
अनु - ह्म्म्म्म... पता नहीं... पर बात अगर मेरी है.... तो.. हाँ..
वीर - (फिर कुछ देर के लिए चुप हो जाता है) अनु...
अनु - जी...
वीर - क्या कभी... ऐसी राजकुमारी की कल्पना कर सकती हो... जो सच में एक राजकुमारी है... पर बीस साल से... उसकी जन्मदिन कभी नहीं मनाया गया हो....
अनु - क्या... ऐसा भी कहीं हो सकता है... क्या वह... राजकुमारी अनाथ है...
वीर - नहीं....(थोड़ा गंभीर हो कर) वह अनाथ नहीं है... उसकी सिर्फ... माँ नहीं है... पर उसके परिवार में... दादाजी, पिताजी, चाचाजी, चाचीजी, दो बड़े भाई भी हैं... पर किसीने भी उसका जन्मदिन नहीं मनाया है... बीस साल हो गए... कैसा फिल् होता रहेगा उसे... जब उसका एक भी जनम दिन.. ना मनाया गया हो...
अनु - जी.... मैं कुछ समझी नहीं...
वीर - हमारी बहन... राजकुमारी रुप नंदिनी... आज वह.... बीस बरस की हो गई है... पर जानती हो... आज तक उसका जनम दिन नहीँ मनाया गया है...
अनु - (हैरान हो कर) जी...
वीर - हाँ... इसीलिए शायद आज हमारी भाभी जी... युवराणी जी... सुबह घर में... राजकुमारी जी को नौकरों के जरिए... जनम दिन की बधाई दिलवाया... और साथ मनाया...
अनु - वाह... यह तो बहुत अच्छी बात है... राजकुमारी जी बहुत खुश हुई होंगी...
वीर - नहीं... मैं नहीं जानता...
अनु - म... मतलब...
वीर - उस लम्हा का मैं.... गवाह नहीं बन पाया...
अनु - क्यूँ...
वीर - क्यूँकी... मुझे मालुम ही नहीं था... की आज उनका जनम दिन है...
अनु - ओ... तो ऐसी बात है... आपने अपनी बहन को बधाई नहीं दे पाए... यही बात आपके दिल को चुभ गई है... तो ठीक है ना... अभी राजकुमारी जी जहां पर होंगे... वहाँ जा कर उन्हें जन्मदिन की बधाई दे दीजिए...

वीर अनु के चेहरे को देखता है कितनी आसानी से अनु ने कह दिया बधाई देने के लिए, जबकि उसे मालुम ही नहीं के,उसके और रुप के बीच के रिश्ते के बारे में, क्या है, कैसा है l

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शुभ्रा - ओह गॉड.. कबसे इंतजार कर रही थी... कहाँ रह गई थी तुम...
रुप - (उदास हो कर) चलिए भाभी... यहाँ से चलते हैं... (कह कर गाड़ी के दरवाजा खोल कर अंदर बैठ जाती है)
शुभ्रा - नंदिनी... क्या हुआ तुम्हें...
रुप - (गाड़ी के अंदर से) प्लीज भाभी... आओना...
शुभ्रा - ओके...

कह कर शुभ्रा गाड़ी के भीतर बैठ जाती है और गाड़ी स्टार्ट कर के आगे बढ़ा देती है l

शुभ्रा - पंडित जी आकर मुझे बताया क्या हुआ... मैंने उन्हें दक्षिणा देकर, विदा करके तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी... मंदिर में जो हुआ... वह अचानक हो गया... अपना मन खराब मत करो... तुमने उसे सॉरी भी तो कह दिया ना...
रुप - ह्म्म्म्म
शुभ्रा - ओह ओ... नंदिनी... कॉम ऑन... भुल जाओ...
रुप - वह... वह प्रतिभा मैम का बेटा... प्रताप था...
शुभ्रा - व्हाट... (छेड़ते हुए) ओ... अनजाने में सही... तुमने अपने भाई का बदला ले ही लिया...
रुप - आ...ह्ह्ह्... (खीज कर) भाभी...
शुभ्रा - (हँसते हुए) ओके... ओके... तो इस बात से तुम दुखी हो... और तुम्हारा मन बहुत भारी हो गया है...
रुप - नहीं... ऐसी बात नहीं है...
शुभ्रा - तो... आज तुम्हारा जन्मदिन है... और तुम्हारा चेहरा यूँ उतरा हुआ अच्छा नहीं लगता...
रुप - भाभी... मुझे लग रहा है कि...
शुभ्रा - हाँ... क्या...
रुप - प्रताप ही... अनाम हो सकता है...
शुभ्रा - क्या... (चर्रेर्रेर, ब्रेक लगाती है) क्या.. कैसे.. मतलब तुम्हें ऐसा क्यूँ लग रहा है...
रुप - नहीं... मुझे सेवन्टी पर्सेंट लग रहा है... बस थर्टी पर्सेंट डाऊट है...
शुभ्रा - और वह थर्टी पर्सेंट डाऊट... किस लिए है...
रुप - वह... वहीं पर प्रतिभा मैम थी... उन्होंने कहा कि... प्रताप उनका बेटा है...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... (गाड़ी को फिरसे स्टार्ट कर) यह तो तो हम दोनों उसी दिन से जानते हैं... जिस दिन उन माँ बेटे को पहली बार देखा था... अनाम पर तुम्हारी खोज... प्रतिभा मैम के बेटे... प्रताप के आगे जाती ही नहीं है...
रुप - हाँ...
शुभ्रा - और सेवनटी पर्सेंट की वजह...
रुप - भाभी... मैं पहले भी बता चुकी हूँ... उसका चेहरा मुझे... अनाम की याद दिलाता है...
शुभ्रा - हाँ... यह पहले भी बता चुकी हो...
रुप - उसने पहले भी कुछ ऐसा कहा था... जो कभी अनाम ने मुझसे कहा था...
शुभ्रा - हाँ... वह खतरनाक वाली बात...
रुप - जी भाभी... और आज प्रताप ने... मुझे कुछ इस तरह से... बर्थ डे विश किया... जैसे कभी अनाम मुझे विश करना चाहता था...
शुभ्रा - व्हाट... तो तुमने उससे बात क्यूँ नहीं की...
रुप - उसे ही तो अब तक मंदिर में ढूंढ रही थी... विश करने के बाद... पता नहीं कहाँ चला गया...
शुभ्रा - ओ... (शुभ्रा फिर गाड़ी को आगे बढ़ाती है) अच्छा... इससे पहले... उसने कितनी बार विश किया था तुमसे...
रुप - छह बार...
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... कैसे और किस तरह...

×_____×_____×_____×_____×_____×_____*

और एक गाड़ी महानदी रिंग रोड पर भागी जा रही है l जाहिर सी बात है उस गाड़ी में विश्व और प्रतिभा बैठे हुए हैं

विश्व - ओहो... माँ... क्या हुआ... प्लीज माँ प्लीज.... मुझसे बात करो ना...
प्रतिभा - नहीं करनी है मुझे तुझसे कोई बात... लड़की क्या दिखी... माँ को छोड़ कर चला गया... (चिढ़ाते हुए) माँ.. भगवान आप ही सबकुछ मांग लो...
विश्व - माँ... आज नंदिनी जी का जन्मदिन था... और वह बेचारी... अपनी जन्मदिन पर रो रही थी...
प्रतिभा - हाँ.. लड़की थी... इसलिए तु गया था... उसके आंसु पोछने...
विश्व - नहीं माँ... आंसु पोछने नहीं... बर्थ डे विश करने गया था... और... तुम जानती हो... मैं उनके विचारों को एडमायर करने गया था...
प्रतिभा - सब समझती हूँ... इधर मैं लड़की ढूंढ रही हूँ... उधर कल को मेरे सामने नंदिनी को खड़ा कर बोलेगा... (मर्दाना आवाज़ निकालने की कोशिश में) माँ अब लड़की ढूंढने की जरूरत नहीं... मैंने शादी कर ली है... यह देखो... रेडियो वाली नंदिनी...
विश्व - ओह ओ माँ... कहाँ की बातेँ... कहाँ लेकर जा रही हो...
प्रतिभा - चोरी चोरी मुलाकातों को... शादी तक लेके जा रही हूँ...
विश्व - आ... ह्ह्ह्ह्ह...
प्रतिभा - बस बस... अपने बाल नोचने मत लग जाना... वरना गंजा हो जाएगा... फिर वह रेडियो वाली नंदिनी तुझे पहचान नहीं पाएगी...
विश्व - (अपना मुहँ बना कर प्रतिभा को देखता है)
प्रतिभा - (हँसने लगती है) हा हा हा हा हा...
विश्व - मतलब अब तक... आप मेरी टांग खिंच रही थी...
प्रतिभा - (हँसते हुए) हाँ... टांग खिंच रही थी... पर देखने लायक तेरा चेहरा था... हा हा..
विश्व - (मुस्कराते हुए) मुझ पर गुस्सा तो नहीं हो ना माँ...
प्रतिभा - अरे गुस्सा क्यूँ करूँ... मैंने जिस लड़की को पसंद किया है... अगर तु उसे मेरी बहु बनाने में तूल जाए...
विश्व - माँ... फिरसे वही पुराण...
प्रतिभा - हा हा हा... अच्छा ठीक है... चल बता... उसे रोता हुआ देख कर... तु क्यूँ उसके पीछे भागा...
विश्व - रोता हुआ देख कर नहीं... उन्हें अपनी जन्मदिन पर रोता हुआ देख कर गया था....
प्रतिभा - ओ... तो समाज सेवा करने गया था...
विश्व - ऐसी बात नहीं है माँ... पता नहीं क्यूँ... उनका रोना... मुझसे बर्दास्त नहीं हुआ... मुझे लगा जैसे... वह मेरी वजह से रो रहे हैं... इसलिए उनको ढूंढते हुए गया था...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... मैंने भी देखा था... कैसे तुने उसे बधाई दी.... और उसके चेहरे पर कैसे.. एक जबरदस्त.. चमक भरी खुशी और हँसी ले आया...
विश्व - क्या... इसका मतलब आपने हम दोनों को देखा था...
प्रतिभा - हाँ देखा...
विश्व - क्यूँ...
प्रतिभा - क्या मतलब क्यूँ... मेरा बेटा लड़कियों के नाम से भाग जाने वाला... किसी लड़की को नजर उठा कर ना देखने वाला... अचानक एक लड़की के पीछे भाग कर जाएगा... तो मन में क्युरोसिटी तो होगी ही ना... (विश्व चुप रहता है) अच्छा... इससे पहले कभी किसी लड़की को ऐसे डे विश की है...
विश्व - कहाँ माँ... सात सालों से आपके सामने हूँ...
प्रतिभा - तो फिर... तुने ऐसे इनोवेटिव तरीके से... कैसे इम्प्रेस किया...
विश्व - माँ... यह दुसरी लड़की है... जिसे मैंने बर्थ डे विश किया...
प्रतिभा - व्हाट... अभी तो तुमने कहा कि... कभी किसी लड़की को...
विश्व - हाँ माँ... मैंने आज से पंद्रह साल पहले... और नौ साल पहले तक... ऐसे ही इनोवेटिव और अलग अलग तरीके से... किसी को बर्थ डे विश किया करता था...
प्रतिभा - ओ... तो बचपन का प्यार है...
विश्व - नहीं माँ... वह मेरा प्यार नहीं था... उनके प्रति अनुकंपा थी...
प्रतिभा - (हैरान हो कर) क्या मतलब है इसका...

फिर विश्व बताता है कैसे उमाकांत सर ने उसे छोटे राजा जी के पास ले गए और राजकुमारी जी को पढ़ाने का जिम्मा दिया l वह कैसे अपना नाम अनाम बताया और रुप की रजोदर्शन (मीनार्की) तक पढ़ाता रहा l कैसे ग्यारह साल की राजकुमारी विश्व पर हक जमाते हुए शादी के साथ साथ किसी दुसरी लड़की के तरफ ना देखने का वादा लिया था l

प्रतिभा - कमाल है... तुम्हारे बारे में वैदेही ने यह तो बताया कि तुम भैरव सिंह की बेटी को पढ़ाते थे... पर उसने कभी यह बात नहीं बताई... के तुम भैरव सिंह की बेटी को बर्थ डे... वह भी इनोवेटिव तरीके से विश किया करते थे...
विश्व - यह बात... मुझे तब गैर जरूरत लगी थी... इसलिए दीदी को भी नहीं बताया था...
प्रतिभा - अच्छा... राजकुमारी जी का नाम कहीं... नंदिनी तो नहीं...
विश्व - (हँसता है) पता नहीं माँ... मुझे शख्स हिदायत दी गई थी... महल में ना उनसे नाम पूछने की इजाजत थी... ना ही अपना नाम बताने की... और यह लड़की... नंदिनी... राजकुमारी हो ही नहीं सकती...
प्रतिभा - क्यूँ नहीं हो सकती...
विश्व - (सीरियस हो कर) माँ... जिस लड़की को अपने ही आँगन में खेलने नहीं दिया गया... अपनी ही गांव के स्कुल में पढ़ने नहीं दिया गया... उसे यूँ भुवनेश्वर में.. उँ हुँ...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तब तो राजकुमारी जी का तुम्हें चाहना वाजिब ही है...
विश्व - (हैरान हो कर) ये.. यह क्या कह रही हो माँ... यह उनका बचपना था...
प्रतिभा - बचपना नहीं फैसला था... और सही फैसला...
विश्व - (चुप हो कर प्रतिभा को देखने लगता है) यह आप कैसे कह सकती हैं)
प्रतिभा - बता दूँगी... पहले यह बता... तुने छह साल तक उसे कैसे बर्थ डे विश किया...
विश्व - (थोड़ा हँसता है) एक दुखियारी... राजकुमारी... सब कुछ था... घर... परिवार... पर उन पर लुटाने वाला प्यार... घर के किसी सदस्य के पास नहीं था... उनकी चाची उनसे बहुत प्यार करती थी... पर समय नहीं दे पाती थी... एक तरफ मैं था... ना घर ना परिवार... बहुत प्यार बचपन से लेकर तब तक हासिल था मुझे... और वक़्त ही वक़्त था मेरे पास... यही वजह था कि हम दोनों को एक दुसरे का साथ बहुत भाता था.... जब मुझे मालुम हुआ कि उनका जन्मदिन आने वाला है... तो मैंने तय किया कि उनको... बर्थ डे विश करूँ... तब वह छह साल की थीं.... और मैं चौदह साल का...


🌹छठी साल गिरह 🌹

सुषमा के जाने के बाद

रुप - अच्छा.. तो मेरा जन्मदिन कैसे मनाने वाले हो...
विश्व - सोच रहा हूँ... सरप्राइज़ दूँ...
रुप - (खुश होते हुए) वाव... क्या सरप्राइज़ देने वाले हो...
विश्व - सरप्राइज ऐसे थोड़े ना बताया जाता है.. आप मंदिर से आ जाना... मैं दे दूँगा...
रुप - अरे बुद्धू... मंदिर कोई बाहर नहीं है... यहाँ महल के मंदिर की बात कर रही थी... छोटी रानी माँ...
विश्व - अच्छा... ठीक ही तो है ना.... आप मंदिर से वापस आ जाओ... मैं आपको बहुत ही प्यारा सा गिफ्ट दूँगा...

जन्मदिन पर रुप अपनी चाची के साथ मंदिर से वापस आ कर अपनी कमरे में बड़ी बेसब्री से अनाम की इंतजार कर रही है l कुछ देर बाद अनाम कमरे में आता है l

विश्व - जन्मदिन की शुभकामनाएँ... राजकुमारी जी..
रुप - (एटिट्यूड के साथ) ठीक है.. ठीक है... बोलो क्या सरप्राइज़ लेकर आए हो...
विश्व - दिखा दूँगा... पर आप वादा करो.. चिल्लाओगी नहीं...
रुप - ठीक है...
विश्व - नहीं आप वादा करो...
रुप - ठीक है... वादा करती हूँ...

विश्व अपने शर्ट के अंदर से दो सफेद रंग के चूहे निकाल कर रुप को दिखाता है l रुप सफेद रंग के चूहे देख कर खुश तो होती है पर वह डर के मारे उन्हें अपने हाथ में नहीं लेती l

विश्व - राजकुमारी जी थैंक्स...
रुप - वह किस लिए..
विश्व - आपने चिल्लाया नहीं... इसलिए... वैसे कैसे लगे यह चूहे...
रुप - (डरते हुए) यह... यह काटेंगे तो नहीं...
विश्व - नहीं राजकुमारी जी... यह चूहे घर में पाले जाते हैं... अगर यह चूहे काले रंग के होते... तो बात डरने की होती...
रुप - मैं... हाथ में लूँ...
विश्व - लीजिए ना... आपके लिए ही तो लाया हूँ...
रुप - (अपनी हाथों से चूहों को लेकर) वाव... इन्हें मैं रखूंगी कहाँ...
विश्व - इसी कमरे में छोड़ दीजिए...
रुप - नहीं... छोटी रानी जी से बात करूंगी...

शुभ्रा - हाँ... अनाम कितना बेवक़ूफ़ था... चूहे लाकर दी तुमको...
रुप - वह बेवक़ूफ़ नहीं था... वह चूहे अपनी शर्ट में छुपा कर लाया था...
शुभ्रा - सॉरी सॉरी... अनाम बेवक़ूफ़ नहीं था... फिर तुमने चाची माँ से बात की...
रुप - हाँ... चाची माँ ने... एक छोटा सा पिंजरा मुझे ला कर दी... मैंने उन दो चूहों को पिंजरे में रखा भी... पर...

प्रतिभा - पर क्या...
विश्व - उन चूहों को पिंजरे में देख कर... राजकुमारी का मन में बहुत दुख होता था... इसलिए दो दिन बाद... राजकुमारी जी ने उन चूहों को छोड़ दिया...
प्रतिभा - क्या... छोड़ दिया... पर क्यूँ...
विश्व - माँ... जरा सोचो.. वह भले ही राजकुमारी थी... पर वह आजाद कहाँ थी... अपनी ही गांव के स्कुल नहीं जा पा रही थी... इतनी पाबंदीयाँ लगी थी उन पर...
प्रतिभा - ओ... इसका मतलब यह हुआ कि... पिंजरे में चूहों को देख कर.... वह पिंजरे में खुद को महसुस कर रही थी...

रुप - हाँ... मुझे आजादी नसीब नहीं थी... मैं अपनी खुशियों के लिए... उन बेजुबानों को कैद में नहीं रख सकती थी...
शुभ्रा - इसलिए दो दिन बाद तुमने उन चूहों को आजाद कर दिया...
रुप - हाँ... मैंने उन्हें अपने अंतर्महल के उद्यान में छोड़ दिया...
शुभ्रा - और अनाम का क्या रिएक्शन था...
रुप - अनाम को मेरी मनोभावना समझ आ गई... वह मेरे मन की ख्वाहिश को समझ गया था... इसलिए उसने अगले साल की तैयारी शुरू कर दिया था...

प्रतिभा - क्या... सातवीं साल गिरह की तैयारी तभी से...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - सातवें जन्मदिन पर तुमने क्या किया...


🌹सातवीं साल गिरह 🌹

सुबह के सात बज चुके थे I रुप सुबह सुबह सुषमा के साथ मंदिर जा कर आ चुकी थी l उसे बस इंतजार था तो अनाम का l रुप अपनी कमरे में टहल रही थी, कभी खिड़की के पास जा कर बाहर झाँकती थी तो कभी दरवाजे पर अपना कान लगा कर बाहर से आहटों को सुनने की कोशिश कर रही थी l थोड़ी देर बाद वह दरवाजा खोल देती है तो सामने पंद्रह साल का विश्व खड़ा हुआ था l

विश्व - क्या बात है राजकुमारी जी... क्या टाइमिंग है... मैं अभी दरवाजा खटखटाने वाला था...
रुप - ठीक है... क्या सरप्राइज है इसबार... अगर पिंजरे मैं रखने वाली कुछ लाए हो... तो नहीं चाहिए...
विश्व - नहीं राजकुमारी जी... अब जो लाया हूँ... वह इतना बड़ा है कि... पिंजरे में रखा नहीं जा सकता...
रुप - अच्छा... अगर वह इतना बड़ा है... तो महल के अंदर लाए कैसे...
विश्व - एक दिन में थोडे लाया हूँ...
रुप - तो...
विश्व - कुछ दिनों से.. थोड़ा थोड़ा करके... लाता रहा हूँ...
रुप - (उसे हैरान हो कर अनाम की चेहरे को देखती रहती है)
विश्व - चलें...
रुप - ह्ँ... हाँ... पर कहाँ...
विश्व - अंतर्महल के उद्यान में...

फिर दोनों उद्यान के बाहर आकर खड़े होते हैं l विश्व एक डंडा उठा कर राजकुमारी के हाथों में देता है l

विश्व - राजकुमारी जी... इस डंडे को... (एक झाड़ी की ओर इशारा करते हुए) उस झाड़ी पर फेंक मारीये...
रुप - इससे क्या होगा...
विश्व - आप फेंकिए तो सही...

रुप डंडे को झाड़ी पर फेंक मारती है l डंडा झाड़ी पर लगते ही पीले रंग के सैकड़ों तितलियाँ झाड़ी से उड़ने लगती हैं l रुप उसके आजू बाजू तितलियों को उड़ते देख बहुत खुश हो जाती है l

शुभ्रा - व्हाट... तितलियाँ... वह भी सैकड़ों... कहाँ से लाया वह इतनी तितलियाँ...
रुप - एक्जाक्टली... यही सवाल मैंने भी उससे की...
शुभ्रा - तो उसने क्या बताया...
रुप - उसने कहा कि.. फाल्गुन मास में... यह तितलियाँ खेतों में उड़ते रहते हैं...

प्रतिभा - अच्छा... हम सहर वाले... इस मामले में थोड़े कच्चे हैं...
विश्व - फाल्गुन माह में... इन तितलियों का... मेटींग टाइम होता है... मैंने सिर्फ थोड़ा थोड़ा करके उनको इकट्ठा किया... और उनके आसपास वह एंवाइरॉनमेंट बनाया...
प्रतिभा - बायोलॉजी की अच्छी नॉलेज थी तुमको...
विश्व - नहीं... ऑवजर्वेशन की नॉलेज थी... आखिर पढ़ाई के साथ साथ किसानी भी तो कर रहा था...

शुभ्रा - ओ... ह्म्म्म्म... हाँ यह सरप्राइज बहुत ही बढ़िया था... यह तो गई सातवीं... आठवीं साल गिरह कैसे मनाया....
रुप - अनाम था ही यूनिक... हमेशा कुछ ना कुछ नया ही सोचता रहता था... इसलिए उसने जन्मदिन के पहले दिन ही कह दिया था.... अगर सरप्राइज चाहिए तो सुबह तड़के उठना है... जब सुबह ना खुला हो... थोड़ा सा अंधेरा हो...


🌹आठवीं साल गिरह 🌹

रुप के तकिए के पास पड़ी घड़ी बजने लगती है l रुप झट से अपनी बिस्तर से उठ जाती है और दौड़ कर दरवाजा खोल देती है तो दरवाजे के सामने ही उसे अनाम खड़ा मिलता है l

रुप - (दबी दबी आवाज में) तुम रात भर सोये नहीं क्या... वैसे भी इतनी सुबह... महल में दाखिल कैसे हुए.... वह भी अंतर्महल में...
विश्व - (दबी जुबान से) मैं रात को गया ही नहीं...
रुप - फिर...
विश्व - मैं रात भर भीमा पहलवान का पैर दबाता रहा... फिर जब वह सो गया... तब जाकर मैं तैयारी में जुट गया...
रुप - पिछली बार तो महीना लगा था तैयारी में... अब एक रात में हो गया...
विश्व - नहीं... एक हफ्ता...
रुप - अब कहाँ चलना है...
विश्व - वहीँ... उसी उद्यान में... मगर इस बार फव्वारे के पास...
रुप - चलो फिर...

फिर दोनों अंतर्महल के उद्यान में बेह रहे फव्वारे से थोड़े दूर रुक जाते हैं l वहाँ पर विश्व एक रस्सी को उठाता है और रुप के हाथों में देता है l

विश्व - राजकुमारी जी.. इसे आप खिंच दीजिए...

रुप उस रस्सी को खिंच देती है l रस्सी के खिंच जाते ही फव्वारे के दूसरी तरफ एक मटका लुढ़क जाता है l मटके की लुढकते ही अनगिनत जुगनू उड़ने लगते हैं l जिससे फव्वारे का नज़ारा अद्भुत दिखने लगता है l थोड़ी देर बाद सारे जुगनू पेड़ों पर, झाड़ियों पर, फूलों पर पत्तों पर बैठ जाते हैं l उस थोडे से अंधेरे में ऐसा लग रहा था जैसे छोटे छोटे, नन्हें नन्हें टीम टीमाते तारे आसमान से जमीन पर उतर आए हों l यह नजारा देख कर आठ साल की रुप इतना भावुक हो जाती है कि वह भागते हुए विश्व के गले लग जाती है l

प्रतिभा - वाव... वाकई... बड़े बड़े आशिक तक जो नहीं सोच पाते.. वैसा तुमने सोच लिया था...
विश्व - (हल्का सा हँस देता है)
प्रतिभा - जाहिर सी बात है... अगर वहाँ पर जवान राजकुमारी भी होती... तो वह भी तुम्हारे गले लग जाती...
विश्व - क्यूँ... आपको क्यूँ ऐसा लगता है...

शुभ्रा - क्यूँ मतलब... अरे... बातों बातों में सब कह देते हैं... आसमान को धरती पर लाने की... पर सिर्फ अनाम ही ला पाया... अपनी राजकुमारी के लिए...
रुप - (शर्मा के चेहरा झुका लेती है)
शुभ्रा - सच कहती हूँ नंदिनी... दैट वाज रियली एमेजिंग...
रुप - हाँ भाभी... सच में... कविओं के लेखकों के कल्पनाओं को... वह वास्तव बना देता था...
शुभ्रा - नौवीं सालगिरह में... क्या सरप्राइज दिया अनाम ने तुम्हें....
रुप - अपनी नौवीं साल गिरह के पहले दिन... मैंने बीमारी के चलते बिस्तर पकड़ लिया था...



🌹नौवीं साल गिरह 🌹

जन्मदिन के पहले दिन सत्रह साल का विश्व जब रुप के कमरे में आता है तो देखता है रुप बीमारी के चलते अपनी बेड पर सोई हुई है l रुप के सिरहाने बैठ कर सुषमा रुप के माथे पर वॉटर स्पंजिंग कर रही थी l आसपास कुछ नौकरानियां खड़ी हुई थी l सुषमा जैसे ही विश्व को देखती है सभी नौकरानियों को बाहर जाने के लिए कहती है l सभी नौकरानियों के बाहर जाते ही

सुषमा - देखो अनाम... इस साल अगर राजकुमारी जी की जन्मदिन मनाने का कोई प्लान है... तो उसे अगले साल के लिए टाल दो... राजकुमारी जी की हालत खराब है...
रुप - (आँखे बंद होने के बावजूद) आह... छोटी रानी जी... प्लीज...
सुषमा - नहीं राजकुमारी... एक तो कोई नहीं जानता है इस महल में... की आपकी जन्मदिन मनाया जा रहा है... ऐसी हालत में आप पर सबकी नजर होगी... अगर किसी ने देख लिया और यह बात राजा साहब को मालुम हुआ... तो जरा सोचिए... इस बेचारे अनाम क्या क्या होगा...
रुप - (कुछ कह नहीं पाती है, उसके बंद आँखों के कोने में आँसू दिखने लगते हैं)
विश्व - छोटी रानी जी... क्या कल सुबह तक... राजकुमारी जी ठीक नहीं हो पाएँगी...
सुषमा - ठीक हो भी जाएं तो... तो भी... तुम्हारा उनके साथ... उनका जन्मदिन मानना मुश्किल है... अब तक तुम नजर में नहीं आए हो... पर कल अगर कुछ भी किया तो... नजर में आ जाओगे... तब... तब तुम सोच भी नहीं सकते... क्या हो सकता है...
विश्व - ठीक है... छोटी रानी जी... मैं कल नहीं आऊंगा... पर क्या आप मुझे एक वादा करेंगी...
सुषमा - (विश्व को हैरान हो कर देखती है) कैसा वादा...
विश्व - अंतर्महल में आपकी कोठरी... पूरब दिशा की नदी की ओर है...
सुषमा - हाँ तो...
विश्व - तो आप राजकुमारी जी को... आज रात के लिए अपने कमरे में सोने दीजिए... बस सुबह सूरज निकलने से पहले आपके कोठरी की खिड़की के पास खड़ा कर दीजिएगा...
सुषमा - क्या... इससे क्या होगा...
विश्व - कल सूरज निकलने से पहले... राजकुमारी जी को जन्मदिन की बधाई मिल जाएगी....

इतना कह कर विश्व वहाँ से चला जाता है l सुषमा भी रुप को अपने साथ अपने कमरे में सुला देती है l सुबह रुप की आँख जल्दी खुल जाती है l आज उसकी हालत पहले से बेहतर है वह खिड़की के पास आकर खड़ी होती है उसके साथ सुषमा भी खड़ी हो कर बाहर की ओर देखने लगती है l सुबह खुला नहीं है फिर भी आकाश में हलकी सी लालिमा उभरने लगी है l तभी कुछ दूर नदी के किनारे से लाल रंग के जापानी काग़ज़ के लालटेन उड़ने लगते हैं l करीब करीब पचासों लालटेन पूर्वी आकाश में सूरज के निकलने की संदेश को लेते हुए आसमान में छाने लगते हैं l यह दृश्य देख कर रुप बहुत ही खुश हो जाती है l

सुषमा - वाह... अनाम की बधाई देने का तरीका वाकई लाज़वाब है... जन्मदिन मुबारक हो राजकुमारी....

शुभ्रा - वाव... अगैंन अमेजिंग.. इटस रियली अमेजिंग... और उसके साथ साथ तुम्हारा डेस्क्रीपशन... वाव... पूर्वी आसमान में उड़ते लाल रंग के लालटेन... धीरे धीरे सूरज के निकलने के पैगाम लिए उड़ रहे थे...
रुप - सच ही तो कहा है भाभी... वह नज़ारा... वह लम्हें... मैंने खुद एक्सपेरियंस किया है...
शुभ्रा - मैं कहाँ मना कर रही हूँ... आज के डेट में... कितने ऐसे हैं... जो अपनी प्रेमिका को... ऐसे सरप्राइज़ दे पाते हैं...

विश्व - तब मैंने वैसा कुछ सोचा नहीं था माँ... मेरे पास साल भर में... सिर्फ यही एक मौका हुआ करता था... जिस दिन मैं उस बेचारी राजकुमारी को खुश कर पाता था... इसलिए नए नए तिकड़म भिड़ाता था...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म.. फिर भी तू जो भी करता था... पुरे दिल से करता था... सच कहूँ तो तेरी और राजकुमारी की कहानी से... मुझे रस्क होने लगी है... काश के मेरे जीवन में भी ऐसा कोई लम्हा होता... खैर... अब मैं सेनापति जी से सिवाय घटिया ऊटपटांग शायरी के.. और क्या उम्मीद करूँ...
विश्व - हा हा हा.. माँ तुम भी ना..
प्रतिभा - अरे सच ही तो कहा मैंने... खैर... तुम्हारे और राजकुमारी के बीच हम कहाँ आ गए... अब बताओ... राजकुमारी जी की दसवीं साल गिरह कैसे मनाया तुमने...

रुप - नौवीं साल गिरह के समय... मैं बीमार थी... और दसवीं साल गिरह के दिन... अनाम की बारहवीं एक्जाम था... इसलिए मेरी जन्मदिन को वह था नहीं...
शुभ्रा - तो दसवीं सालगिरह नहीं मनाया क्या...
रुप - वह अनाम था भाभी... अपनी राजकुमारी के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता था...


🌹दसवीं साल गिरह🌹

रुप जिज्ञासा भरी नजर से अट्ठारह साल के अनाम को देख रही थी l अनाम देखता है कि रुप उसे देख कर मन ही मन खुश हो रही है

विश्व - क्या बात है राज कुमारी जी... आप... मन ही मन बहुत खुश हो रहे हैं...
रुप - हाँ... जानते हो अनाम... मैंने कभी भी अपनी जन्मदिन का इंतजार नहीं किया था... पर जब से तुम बधाई देना शुरु किया है... तब से मुझे हर साल इसी दिन का... बड़ी सिद्दत से इंतजार रहता है...
विश्व - पर राजकुमारी जी... कल मेरी बारहवीं का एक्जाम है... मैं आ नहीँ पाऊँगा...
रुप - (गुस्सा हो जाती है) (उसका चेहरा तमतमाने लगती है) क्या कहा...
विश्व - (राजकुमारी की गुस्से से तमतमाता हुआ चेहरा देख कर डर जाता है) म.. म... मेरा मतलब था कि... आपको आपके जन्मदिन की बधाई... कल सुबह आपकी आँखे खुलते ही मिल जाएगी...
रुप - (अचानक से गुस्सा गायब हो जाती है और उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है) कैसे...
विश्व - (मुस्कराते हुए) बस... आप सुबह की प्रतीक्षा किजिये...

उस दिन शाम की पढ़ाई जब खतम होती है रुप रात का खाना खाने के लिए कुछ देर के लिए अपनी चाची सुषमा के पास जाती है l खाना खा कर सुबह की सरप्राइज के बारे में सोचते हुए एक्साइटमेंट में अपनी बेड पर आँखे मूँद कर सो जाती है l पर तभी उसे एहसास होता है कि उसके बेड पर कोई नोट छूट गया है l वह उठ कर नोट पढ़ती है l वह विश्व का लिखा उसके नाम पर एक पैगाम था

" राजकुमारी जी... आपके दाहिने और की खिड़की के नीचे... चार कतारों में बोतलों में कुल तेरह कमल के फूल रख छोड़ा है... कल सुबह होते ही आप देखियेगा... मेरी बधाई के शब्द... इन फूलों के जुबान से.... '

अगली सुबह जब वह उठती है तो देखती है बड़े बड़े आकार के कमल के फूल एक एक करके तेरह बोतलों में चार कतारों में खिड़की के पास नीचे रखे हुए हैं l रुप का मन मुर्झा जाता है l सोचने लगती है सिर्फ फूल l यह सोचते हुए उन फ़ूलों के पास पहुँचती है तो पाती है हर एक फूल के केसर पर कुछ लिखा हुआ है l वह गौर से देखती है चार कतारों में फूल रखे गये हैं l पहली कतार में तीन, दुसरी कतार में पांच, तीसरी कतार में चार और चौथी कतार में एक फुल रखी हुई है l पहली कतार के फूलों के केशर लिखे शब्द थे द स वीं l दुसरे कतार के फूलों के केसर पर जो शब्द लिखे हैं सा ल गि र ह I तीसरी कतार में रखे फूलों में मु बा र क और अंतिम कतार के एक फुल पर हो लिखा हुआ था l सभी शब्द मिलकर "दसवीं सालगिरह मुबारक हो" कह रहे थे l रुप के होठों पर एक दमकती मुस्कान खिल उठती है l अपनी मन में सोचने लगती है

'यह सब उसने कब किया होगा.... फूलों के केशर पर स्केच पेन से कैसे और कब लिखा होगा...

शुभ्रा - वाकई... फूलों के केशर मतलब स्टैमेन पर कैसे और कब लिखा...
रुप - मिलने के बाद मैंने भी सेम टु सेम सवाल किया...

प्रतिभा - तो तुमने उसे क्या जवाब दिया...
विश्व - वही कहा जो किया था...
प्रतिभा - तो बताओ क्या किया था...
विश्व - कमल की कली... जो पुर्ण रूप से विकसित फुल होने के... एक दो दिन पहले तोड़ लाया था... पंखुड़ियों को सावधानी से खोल कर... केशर पर स्केच पेन से लिख दिया... और पंखुड़ियों को वापस बंद कर दिया... उसके बाद... जब राजकुमारी जी छोटी रानी जी के पास गई हुई थीं... तभी मैंने बोतलों में पानी भर कर... कमल की कलियों को शब्दों के हिसाब से चार क़तारों में सजा कर रख दिया... सुबह जब सूरज निकलने को हुई... कमल के फूल खिल गये... और मेरी बधाई... राजकुमारी जी तक उन कमल के फूलों ने पहुँचा दिए...
प्रतिभा - वाव... इस उम्र में... मुझे इतना थ्रिल महसूस हो रहा है... तो राजकुमारी की उम्र में तो... वह पागल हो गई होगी...
विश्व - हाँ हो गई... मेरे लिए... और भी मुसीबत हो गई...
प्रतिभा - कैसी मुसीबत

रुप - भाभी... मैं अब बच्ची वाली दिमाग से आगे सोचने लगी थी... अनाम को लेकर मैं... बहुत ही इनसिक्युर होने लगी थी... वह किसी से बात करता था तो... मुझे जलन होती थी... इसलिए इसी उम्र में मैंने अपना प्यार और हक़... उस पर जाहिर कर दिया....
शुभ्रा - हा हा हा हा हा... उस बेचारे की हालत खराब हो गई होगी...
रुप - हाँ... सो तो है... शादी का वादा भी ले लिया था मैंने उससे...

प्रतिभा - हा हा हा हा हा... बेचारा प्रताप... अट्ठारह साल का बांका जवान... दस साल की लड़की के आगे घुटने टेक् दिए...
विश्व - क्या करता माँ... वह बेशक उम्र के नाजुक मोड़ पर थी... जहां उनसे बचपन धीरे धीरे छूट रहा था... तब मेरे लिए,.. अपनी जिद के लिए... किसी भी हद तक जा सकती थी...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... तो ग्यारहवीं साल गिरह कैसे मनाया तुमने... अपनी राजकुमारी का...
विश्व - ओ माँ.... वह तो बहुत ही खतरनाक था... आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं... जब भी वह दिन याद आता है...

शुभ्रा - क्यूँ ...ऐसा क्या हुआ था तुम्हारे ग्यारहवें साल गिरह में...
रुप - हर साल की तरह अनाम का... कुछ तो प्लान रहा होगा... मेरी जन्मदिन पर बधाई देने के लिए... पर इसबार प्लान मैंने किया था...
शुभ्रा - व्हाट... मतलब तुम्हारे ही बर्थ डे पर... तुमने उसे चौंकाया...
रुप - हाँ...


🌹ग्यारहवीं सालगिरह🌹

उन्नीस साल का विश्व पढ़ा रहा है l राजकुमारी उसे एक टक देखे जा रही है l उसे देखते देखते कुछ सोच भी रही है l

विश्व - क्या बात है राजकुमारी जी...
रुप - सोच रही हूँ... पिछले दोनों जन्मदिन पर... हम साथ नहीं थे...
विश्व - दोनों बार मतलब... आप पहली बार बीमार थीं... और दुसरी बार मेरा बारहवीं का एक्जाम था... पर अब तो मेरा आगे पढ़ना होगा नहीं... इसलिए मैं तो हूँ... आप बस बीमार मत पड़ जाना....
रुप - इस बार मैं नहीं... तुम बीमार पड़ने वाले हो...
विश्व - हे हे हे... कैसा मजाक कर रही हैं आप... राजकुमारी जी...
रुप - जानते हो... छोटी रानी जी यहाँ नहीं है...
विश्व - हाँ... पर वह परसों तक... आपके जन्मदिन पर तो आ जाएंगी ना...
रुप - हाँ... उनके आने से पहले मुझे कुछ करना है...
विश्व - क्या... क्या करना है आपको...
रुप - गाँव में कहीं... नाम गुदवाते हैं क्या...
विश्व - हाँ गुदवाते हैं ना... आपको अपना नाम गुदवाना है क्या...
रुप - हाँ...
विश्व - तो मैं उसे आज ही बोल देता हूँ... वह कल आकर.. आपका नाम गुदवा देगी...
रुप - उसको यहाँ नहीं आना है...
विश्व - क्या मतलब...
रुप - मुझे उसके पास जाना है...
विश्व - (ऐसे चौंकता है जैसे उसे सांप ने काट लिया) क्या... ए.. ये... यह क्या कह रही हैं आप...
रुप - श्श्श्श्श्... अब मैं तुम्हें अच्छे से पुछ रही हूँ... मुझे उसके पास लेकर जाओगे या नहीं...
विश्व - नहीं...
रुप - क्या... तुमने मुझे मना किया... अब देखती हूँ... कैसे जाते हो तुम महल से बाहर...
विश्व - (सीधे राजकुमारी के पैरों के नीचे गिर जाता है) राजकुमारी जी... प्लीज... यह अंतर्महल है... यहाँ से आप कैसे बाहर जाएंगी... अगर गई भी तो... राजा साहब मेरी खाल लहरा देंगे...
रुप - मेरे पास आइडिया है... या तो मेरी बात मानों... या फिर बिन खाल के राजगड़ में घूमते फिरो...
विश्व - यह... यह चिटींग है... राजकुमारी जी... कितनी शिद्दत से... आपके लिए मैं जन्मदिन की बधाई कि प्लानिंग करता हूँ... आप के लिए इतना कुछ करता हूँ... आप जो कहती हैं... मैं मानता हूं... पर आप हैं कि... मेरी खाल उतरवाने की बात कर रही हैं...
रुप - तो यह बात भी मान जाओ...
विश्व - कैसे... राजकुमारी जी कैसे... आपको मैं बाहर कैसे लेकर जाऊँ...
रुप - कहा ना मेरे पास प्लान है...
विश्व - (हथियार डालने के अंदाज में, निरास आवाज में) अच्छा.... कहिए क्या प्लान है...
रुप - ऐसे लेटे क्यूँ हो... आलथी पालथी मार कर बैठो...

विश्व रुप के कहे प्रकार बैठ जाता है फिर रुप भी अपनी कुर्सी से उतर कर विश्व के सामने आलथी पालथी मार कर बैठ जाती है l

विश्व - बोलिए... क्या करना है...
रुप - जैसे कि मैंने कहा... छोटी रानी जी नहीं हैं... वह परसों सुबह आयेंगी... इसलिए कल रात मैं उनके कमरे में सोउंगी...
विश्व - ठीक है फिर...
रुप - नदी के तरफ वाली खिड़की से रात के बारह बजे नीचे उत्रुंगी...
विश्व - (चौंक कर) क्या.. कैसे..
रुप - उसकी व्यवस्था तुम करोगे....
विश्व - क्या.आ.आ..
रुप - हाँ... तुम मुझे वहाँ से... नाम गुदवाने वाली के पास ले जाओगे... नाम गुदवाने के बाद... तुम मुझे वापस छोड़ दोगे...
विश्व - (अपना हाथ अपने सिर पर मारते हुए) हे भगवान... राजकुमारी जी... रस्सी से नीचे उतरना और उपर चढ़ना... फ़िल्मों में जितना आसान दिखाता है ना... असल में उतना ही मुश्किल होता है...
रुप - वह मैं नहीं जानती... कल एक दिन है तुम्हारे पास... मुझे कैसे उतारोगे... और कैसे वापस चढ़ाओगे... यह तुम प्लान कर लो...
विश्व - क्या.. मैं..
रुप - हाँ तुम...
विश्व - मैं.. मैं भाग जाऊँगा...
रुप - तो अभी से भाग जाओ...
विश्व - क्या..
रुप - हाँ... ताकि मुझे राजा साहब से तुम्हारी शिकायत करने में... आसानी हो...
विश्व - (अपना हाथ जोड़ कर) ठीक है राजकुमारी जी... मैं.. मैं कल कुछ करता हूँ...

अगले दिन रात के बारह बजे विश्व चुपके से नदी के तरफ वाली खिड़की के पास पहुँचता है l रुप पहले से ही विश्व के दिए पुली को खिड़की पर लगा दिया था l रस्सी की एक छोर को विश्व के तरफ फेंकती है जिसे विश्व पकड़ लेता है l रस्सी की दुसरी छोर को पहले अपने कमर पर बांध देती है और फिर रस्सी को जोर से पकड़ लेती है l विश्व रस्सी को ज्यों ज्यों ढील देता है रुप खिड़की से नीचे उतरने लगती है l जैसे ही रुप नीचे आ जाती है विश्व रस्सी खोल देता है l फिर रुप को लेकर महल के पीछे वाली पगडंडीयों पर लेते हुए गांव में आता है l फिर एक घर के बाहर पहुँच कर दरवाजा खटखटाता है l उस घर में एक औरत पहले से ही तैयार बैठी थी l इससे पहले वह औरत कुछ कहती विश्व उसे इशारे से चुप रहने को कहता है l

विश्व - (रुप से) आइए... यह आपका नाम गोद देंगी...
रुप - (चुपके से) यह बातेँ नहीं करती क्या...
विश्व - (धीरे से) नहीं... इसी शर्त पर मैं इन्हें... ग्राहक देने आया हूँ... और हाँ... हम लोग भी.. एक दुसरे का नाम नहीं लेंगे...
रुप -(खुश हो कर) ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... अब जाओ.. उस बुढ़िया के पास बैठ जाओ...
विश्व - हाँ.. (फिर चौंक कर)क्या... मेरा मतलब है क्यूँ... मैं क्यूँ...
रुप - (अपनी आँखे सिकुड़ कर, दबी हुई आवाज में) मेरा नाम... तुम्हारे जिस्म में कहीं भी गुदवा लो...
विश्व - (रुप को अपनी आँखे दिखा कर बातों को चबाते हुए कहता है) क्या... मैं क्यूँ.. गुदवाउँ...
रुप - चुप चाप मेरा नाम गुदवा रहे हो... या चिल्ला कर यहाँ लोगों को इकट्ठा करूँ...
विश्व - नहीं... आप नहीं चिल्लाएंगी... मैं.. मैं गुदवाता हूँ... (फिर रोनी सुरत बना कर) पर कहाँ गुदवाउँ... किसने देख लिया तो... मैंने छोटे राजा जी... और आचार्य सर जी से वादा किया था... आपका नाम ना जानने के लिए... अब कहाँ लिखवाऊँ... ताकि वादा ना टुटे... ना ही लोगों को पता चले...
रुप - अपने गले के पीछे... बालों के नीचे...
विश्व - ठीक है... (अपना मुहँ बना कर बुढ़िया के सामने पीठ करके बैठ जाता है) क्या खुदवाना है...
रुप - (अपनी आँखे दिखा कर) हूँ उँ...
विश्व - मेरा मतलब है... क्या गुदवाना है... इन्हें बता दीजिए...

रुप बुढ़िया को एक काग़ज़ पर कुछ लिख कर देती है l बुढ़िया विश्व के गले के पीछे गोद देती है l गुदवाने का काम होने के बाद दोनों वापस महल की ओर लौटते हैं l

विश्व - (गुस्से में) आपने अपना नाम मेरे गर्दन पर क्यूँ गुदवाया...
रुप - ऐ... मुझसे सलीके से बात करो...
विश्व - (हाथ जोड़ कर) क्यूँ गुदवाया...
रुप - ताकि तुम को यह भान रहे.. के तुम सिर्फ मेरे हो... और खबरदार किसी चुड़ैल से दोस्ती या नैन मटक्का किया तो...
विश्व - (अपने दोनों हाथ जोड़ कर) हे जगदंबे.. मुझे माफ करो... मेरे लिए अपना दिल साफ रखो...
रुप - (एटिट्यूड के साथ) ठीक है... ठीक है... (मुस्कराते हुए) अच्छा यह बताओ... मुझे कल कैसे बधाई देने वाले थे...
विश्व - (अपना मुहँ फूला कर) मैं नहीं बताऊँगा... हूँ.. ह्...
रुप - कोई नहीं... इस बार का सरप्राइज... अगली बार दे देना...

इतने में गली में घूमने वाले कुछ कुत्ते इन पर भौंकने लगते हैं l रुप डर कर विश्व को पकड़ लेती है l विश्व कुत्तों पर चिल्लाते हुए खदेड़ने की कोशिश करता है l कुछ कुत्ते पीछे हटने के वजाए विश्व की ओर गुर्राने लगते हैं l विश्व रास्ते पर कुछ पत्थर उठा कर कुत्तों पर फेंक मारता है l तब वह कुत्ते पीछे हट जाते हैं l जैसे ही कुत्ते भाग जाते हैं l विश्व रुप की हाथ को पकड़ कर भागने लगता है l विश्व भागते भागते महल के पीछे वहीँ पहुँचता है जहाँ उसने खिड़की से रूप को उतारा था l महल के पीछे पहुँचने के बाद रुप विश्व के सीने से कस के गले लग जाती है l

विश्व - राजकुमारी जी... उतरीये प्लीज... महल आ गया...
रुप - हूँ... नहीं.. मुझे तुम्हारे धड़कन सुननी है...
विश्व - प्लीज...
रुप - तुम्हारी धड़कन में मुझे मेरा नाम सुनाई दे रहा है... थोड़ा सुनने दो ना...
विश्व - क्यूँ मज़ाक कर रही हैं आप... सबकी धड़कने एक जैसी ही सुनाई देती है...
रुप - सुनाई देती होंगी... पर इसमें... सिर्फ और सिर्फ़ मेरा नाम सुनाई दे रहा है... इस धड़कन को मैं कहीं भी... पहचान लुंगी...

विश्व - अच्छा ठीक है... अब तो अलग होईये... (रुप विश्व से अलग होती है) राजकुमारी जी... आपने मेरा सारा प्लान काफूर कर दिया...
रुप - कौनसा... ओ अच्छा वह बधाई वाली प्लान... ठीक है अब बताओ... क्या प्लान बनाया था...
विश्व - आप जो खुदको कैदी मान कर घुट रही हैं... हमेशा हारी हुई महसुस कर रही हैं... उस घुटन से... उस हारे हुए ज़ज्बात से... उड़ान भरने की...
रुप - कैसे...
विश्व - ह्म्म्म्म... इस बार हो नहीं पाया... पर अगली बार ज़रूर वैसे ही बधाई दूँगा... जहां आपके अरमानों को... ख्वाहिशों को पंख मिलेगा... उमंगों की आसमान में उड़ने के लिए....
Jabardastt Updateee

Maza aagaya padh ke. Bahot hi khubsoorat update thaaa.
 
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