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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
Prime
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Kala Nag

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👉एक सौ उन्नीसवां अपडेट
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इंडस्ट्रीयल ईस्टेट जगतपुर
एक उजड़ी हुई ताला बंद बड़े से इमारत के सामने एक छोटी सी चाय नाश्ते की दुकान में एक टेबल पर ओंकार नाश्ता खा रहा था और बीच बीच में उस इमारत की ओर बड़े दुख और दर्द के साथ देख रहा था l कुछ देर बाद उस दुकान के सामने एक गाड़ी आकर रुकती है l गाड़ी से रॉय उतरता है l वह सीधे आकर ओंकार के बैठे टेबल पर बैठ जाता है l

ओंकार - नाश्ता करोगे...
रॉय - जी नहीं चेट्टी सर... नाश्ता करके ही आया हूँ...
ओंकार - तो चाय ले लो...
रॉय - जी वह...
ओंकार - अरे भाई... यह फाइव स्टार रेस्तरां ना सही... पर क्वालिटी अच्छी है... वैसे भी... सिर और बाहं जितनी भी ऊंचाई पर पहुँच जाए... पैरों को जमीन नहीं छोड़नी चाहिए...
रॉय - हा हा हा हा.... सॉरी चेट्टी सर... पर ऐसी पोलिटिकल बातेँ आपके लिए... या लोगों के लिए ठीक है... मैं थोड़ा अनकंफर्ट हो जाता हूँ... आदत जो नहीं है...
ओंकार - तो... स्पेशल डार्क कॉफी ले लो...
रॉय - लगता है... आप मनवा कर ही मानेंगे... ठीक है... (वेटर से) एक डार्क कॉफी मेरे लिए...
ओंकार - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... अब मतलब कि बात करें...
रॉय - (सवाल करता है) यहाँ...
ओंकार - मतलब कुछ तो खबर लाए हो...
रॉय - हाँ... पर आपको कौनसी खबर चाहिए.... अच्छी... या बुरी...

इतने में वेटर एक पेपर ग्लास में कॉफी लेकर रॉय को दे देता है l ओंकार नाश्ते को उतना ही छोड़ कर अपना हाथ धो लेता है और वेटर को पैसे देते हुए टीप रख लेने के लिए कहता है l दोनों दुकान से बाहर आते हैं और ओंकार के गाड़ी में बैठ जाते हैं l ओंकार की गाड़ी चलने लगती है और रॉय कॉफी का ग्लास लिए साथ में बैठ जाता है l ओंकार के गाड़ी के पीछे पीछे रॉय की गाड़ी फोलो करने लगती है l

रॉय - एक ज्याती सवाल पूछूं...
ओंकार - हाँ पूछो...
रॉय - आप कभी कभी इस फार्मास्युटीकल फैक्ट्री बिल्डिंग के सामने क्यूँ आते रहते हैं.... यह अब सरकारी कब्जे में है... खण्डहर हो रहा है... और सील्ड भी है...
ओंकार - (एक मायूसी भरा गहरी साँस छोड़ते हुए) यहाँ आकर... खड़े हो कर... अपने सुनहरे पुराने दिनों को याद करता हूँ... अपने मरहुम बेटे और खुद से वादा करता रहता हूँ... के एक दिन... ईन क्षेत्रपालों को... घुटने पर रेंगते हुए देखुंगा.... और तब तक... मैं मरना नहीं चाहता....

कुछ देर के लिए गाड़ी के अंदर खामोशी छा जाती है l फिर खामोशी को तोड़ते हुए रॉय ओंकार से सवाल करता है l

रॉय - पर... राजा भैरव सिंह के सामने आपमें वह मज़बूती नहीं दिखती... जो किसी बदले की भावना पालने वाले में दिखनी चाहिए...
ओंकार - सीधे सीधे क्यूँ नहीं पूछता... के कहीं क्षेत्रपाल से मैं डर तो नहीं गया.... (रॉय झेंप जाता है और अपनी नजरें नीचे कर लेता है) तो सुन... हाँ मैं डरता हूँ... पर क्षेत्रपाल से नहीं.... वक़्त से...(दांत पिसते हुए) मैं उसे बर्बाद होते हुए देखने से पहले मरना नहीं चाहता... क्यूँकी मेरे बदले की... मेरे इंतकाम की कोई वारिस नहीं है... इसीलिए दुश्मनी की बीड़ा उठा तो रखी है... पर खुद को महफ़ूज़ दायरे में रख कर... उसे यह एहसास दिलाते हुए... की कंधा चाहे किसीका भी हो... पर गोली मेरी ही होगी...
रॉय - सर ऐसी बात नहीं है... क्षेत्रपाल से बदला लेने वाले... बहुत हैं... स्टेट में...
ओंकार - हाँ हैं... पर आगे कोई नहीं आया... मैं... मैं ही सबको इकट्ठा कर रहा हूँ... क्षेत्रपाल के हुकूमत को मिटाने के लिए....
रॉय - बात आपकी सही है... पर सब के अपने अपने रास्ते हैं...
ओंकार - अच्छा... तब तेरा कॉन्फिडेंस किधर गिला करने चला गया था रे... अब दिल से बोल... मैं ना होता... तो तु छोटे क्षेत्रपाल से कैसे बदला लेता...
रॉय - (चुप रहता है)
ओंकार - मैं समेट रहा हूँ... हर उस शख्स को... जो क्षेत्रपाल के वज़ह से बिखरा हुआ है... हर उस शख्स के बदले में.. मैं अपना बदला ढूंढ रहा हूँ... जो तिलिस्म क्षेत्रपाल ने मुझसे छीना है... वही उससे मैं छिन लूँ... जमीनदॉस कर दूँ...

कहते हुए ओंकार थर्राती हुई एक गहरी साँस लेता है और वह बाहर की ओर देखने लगता है l फिर कुछ देर के बाद ओंकार खुद को नॉर्मल करते हुए रॉय से पूछता है

ओंकार - लिव इट... रॉय... अब बोलो... सुबह सुबह कौनसी कौनसी ख़बर लेकर आए थे... पहले खुश खबरी सुनाओ...
रॉय - हमारा आदमी जो राजगड़ में है... उसने एक अच्छी खबर भेजी है.... (ओंकार की आँखे बड़ी हो जातीं हैं) हाँ चेट्टी साहब... विश्व ने जंग ए ऐलान कर दिया है.... उसने पहले राजा के आदमियों को ना सिर्फ रात के अंधेरे में... दौड़ा दौड़ा कर पीटा... बल्कि उनके कब्जाए अपनी प्रॉपर्टी को उनसे... पुलिस वाले के सामने ही हासिल किया... गांव के लोगों ने क्षेत्रपाल के लोगों की पिटाई... कोई टॉर्च से... तो कोई लालटेन से देखे हैं...

ओंकार के चेहरे पर एक संतुष्टि वाला मुस्कराहट उभर जाती है l

ओंकार - चलो... आखिर खेल शुरु हो ही गया...
रॉय - हाँ...
ओंकार - अपने आदमियों से कहो... विश्वा पर बराबर नजर रखें... उसके हर कदम का टाइम पर रिपोर्ट करे... हमसे जो भी बन पड़ेगा... उसकी मदत कर देंगे...
रॉय - जी चेट्टी साहब... हमारे आदमी को.. मैंने यही इंस्ट्रक्ट किया है... पर मेरे समझ में यह नहीं आ रहा... हम विश्व से सीधे संपर्क क्यूँ नहीं कर रहे हैं...
ओंकार - मदत का ऑफर हमने किया था... लेना ना लेना उसकी मर्जी... हाँ यह बात और है... अभी उसे हमारी मदत नहीं चाहिए... पर आगे उसे जरूरत पड़ेगी....
रॉय - पर मुझे नहीं लगता... वह कोई भी मदत हम से लेगा...
ओंकार - तो मत लेने दो... हमें क्या...
रॉय - वैसे उसने कहा तो था.. जरूरत पड़ने पर मदत लेगा... पर मुझे लगता है... उसे हम पर भरोसा नहीं....
ओंकार - जो समझदार होता है... वह सांप बीच्छुओं पर भरोसा नहीं करते... वैसे भी उसे खुद पर बहुत भरोसा है...
रॉय - तो इसलिए आप उससे खुद को दूर रख रहे हैं....
ओंकार - विश्वा... विश्व प्रताप महापात्र... नेवला है... सांप और नेवले... एक साथ नहीं रह सकते...
रॉय - आप कितनों को हैंडल कर लेते हैं... इस विश्वा को भी कर सकते हैं...
ओंकार - विश्वा... एक दुइ धारी तलवार है... उसे हाथ में लेकर... अपने दुश्मन पर वार करो... या दुश्मन के वार से खुद का बचाओ... एक धार उसकी हमारी तरफ तो रहेगी ही रहेगी... इसलिए उससे खुद को दूर रख रहा हूँ... दूर से हैंडल कर रहा हूँ...

इस जवाब पर रॉय चुप रहता है l गाड़ी में फिरसे खामोशी छा जाती है l कुछ देर बाद ओंकार रॉय से

ओंकार - क्या यही खबर था...
रॉय - जी...
ओंकार - जानते हो रॉय... मेरी बदले की कश्ती में जो भी सवारी कर रहे हैं... सब के सब... किसी ना किसी तरह से... क्षेत्रपाल के सताये हुए... या मार खाए हुए हैं... तुम... तुम्हें भी बदला चाहिए... महांती से... अपनी बिजनैस और रेपुटेशन के लिए... मुझे बदला चाहिए... पिनाक और भैरव सिंह से... उनकी बेवफाई और दगाबाजी के लिए... महानायक को बदला चाहिए... विक्रम से... अपनी गुलामी के एवज में मिले हर एक अपमान के लिए... अरे हाँ... उस महानायक का लड़के का क्या कोई खबर मिला....
रॉय - (अटक अटक कर) वह... अभी तक तो नहीं...
ओंकार - ह्म्म्म्म तो यह तुम्हारी बुरी खबर थी....
रॉय - जी... पर एक लीड जरूर मिला है...
ओंकार - कैसी लीड...
रॉय - कल कुछ देर के लिए... विनय का मोबाइल ऑन हुआ था... पर चंद मिनट के बाद... मोबाइल फिर से स्विच ऑफ कर दिया....
ओंकार - ह्म्म्म्म कहाँ... तुमने उसकी लोकेशन ट्रेस की...
रॉय - जी... (ओंकार का भवां तन जाता है) आर्कु... आर्कु में वह उस लड़की के साथ हो सकता है...
ओंकार - आर्कु... यह आर्कु कहाँ है...
रॉय - विशाखापट्टनम से कुछ साठ या सत्तर किलोमिटर दुर... एक हिल स्टेशन है... बिल्कुल ऊटी के जैसी...
ओंकार - तो तुमने कोई कंफर्मेशन ली...
रॉय - थोड़ा कंफ्यूज हूँ... किसे भेजूं... क्यूंकि हमारे सारे आदमियों पर अशोक महांती की नजर है...
ओंकार - ह्म्म्म्म... (कुछ सोचने के बाद) एक काम करो... विनय को ढूँढ निकालने की जिम्मेवारी रंगा को दो... वैसे भी... बड़बील माइन्स में... सिर्फ रोटियाँ और बोटीयाँ ही तो तोड़ रहा है... उसे विक्रम के आदमी ओडिशा में ढूंढ रहे हैं... आंध्रप्रदेश में वह हो सकता है... किसीको भी अंदाजा नहीं होगा...
रॉय - हाँ यह बात आपने ठीक कही... मैं आज ही रंगा को विशाखापट्टनम भेजने की योजना बना लेता हूँ....
ओंकार - और एक काम बाकी रह गया है तुम्हारा....
रॉकी - कौनसी...
ओंकार - उस पर्दे के पीछे वाला मिस्टर एक्स... जो हमारे नाक के नीचे खेल खेला है...
रॉय - हाँ... मैं भी इस मैटर पर बहुत सीरियस हूँ... पर अभी तक कोई क्लू हाथ नहीं लगा है...
ओंकार - तो अपनी सीरियस नेस बढ़ाओ... कहीं ऐसा न हो... जिस कश्ती में हम सवार हैं... मालुम पड़े... किसीने उसमें छेद कर दिया है...

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द हैल
नाश्ते के लिए टेबल पर विक्रम बैठा हुआ है l वीर भी आ पहुँचता है l किचन में शुभ्रा नाश्ता बना रही थी l

वीर - भाभी नाश्ता...
शुभ्रा - तैयार है... पर पहले नंदिनी को तो आ जाने दो...
वीर और विक्रम - (एकसाथ आवाज देते हैं) नंदिनी...
रुप - आ रही हूँ... बस पाँच मिनट...

इतने में शुभ्रा नाश्ता लेकर आ जाती है और टेबल पर प्लेट लगा देती है l रुप सीढियों से उतरने लगती है l आज रुप हमेशा की तरह कॉलेज के लिए सलवार कमीज और जिंस पहनी थी और चेहरे पर हल्का सा मेक अप किया हुआ था l पर सबसे खास बात यह थी के आज उसका ड्रेसिंग सेंस कुछ अलग था और उस पर वह चहकते हुए, उछलते हुए आ रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे वह उड़ कर आ रही थी l विक्रम और वीर उसे हैरान हो कर देख रहे थे l टेबल के पास अपनी चेयर लेकर

रुप - हाय... गुड मोर्निंग...
वीर व विक्रम - (हैरानी के साथ) गुड मार्निंग...

शुभ्रा दोनों भाइयों के नजरों में उठ रहे सवालों को भांप जाती है, इसलिए वह दोनों भाइयों का ध्यान भटकाने के लिए

शुभ्रा - अच्छा वीर...
वीर - (चौंकते हुए) जी... जी भाभी...
शुभ्रा - (सबके प्लेट में नाश्ता लगाते हुए) यह बहुत गलत बात है...
वीर - क्या... क्या गलत हो गया है भाभी...
शुभ्रा - मेरी होने वाली देवरानी से नहीं मिलवाया अभी तक.... मांजी आकर देख भी ली... मिल भी ली... पर हम... तुमने अभी तक हमसे क्यूँ नहीं मिलवाया...
रुप - हाँ... बिल्कुल ठीक कहा आपने भाभी... छोटी माँ ने बहु पसंद कर ली... पर हम सब बेख़बर हैं... अनजान हैं...
वीर - नहीं ऐसी कोई बात नहीं है...
शुभ्रा और रुप - तो कैसी बात है...
वीर - भैया तो... जानते हैं उसे... क्यूँ है ना भैया...
विक्रम - (हकलाते हुए) हाँ... क्या... हाँ... वह.. मैं... बस एक बार ही बात की है उससे...
शुभ्रा - क्या... आपने भी उससे बात कर ली है... लो भई... (मुहँ बना कर) हम किस काम के रह गए...
रुप - (मुहँ बना लेती है) हाँ... भाभी... यह मेरे भाई... कितने सेल्फीस हो गए...
विक्रम - अरे यह क्या बात हुई... मैंने तो तब उस लड़की से बात करी थी... जब इन जनाब को उससे प्यार भी नहीं हुआ था...
वीर - क्या... यह आप क्या कह रहे हैं... मुझे उससे शुरू से ही प्यार था...
शुभ्रा - ऐ... चोर पकड़ा गया... (वीर शर्मा जाता है) अच्छा छोड़ो... अब बताओ... कब उसे घर ला रहे हो...
रुप - हाँ भैया... बोलो ना.. कब ला रहे हो.. मैं और भाभी जम कर स्वागत करेंगे... और बढ़िया बढ़िया खाना पकायेंगे...
शुभ्रा - लो कर लो बात... कभी खाना पकाया है आपने नंदिनी जी...
रुप - तो क्या हुआ सीख जाऊँगी ना... अरे हाँ... (जैसे कुछ याद आया) (विक्रम से) एक दिन ना भैया... भाभी ने मुझे ब्रेड आलू टोस्ट बनाना सिखाया था... मैंने बनाया भी था... पर उसमें ना नमक डालना मैं भूल गई थी... पर उस दिन वीर भैया ने दबा कर खा लिया... उस दिन हमें शक़ हुआ था... वीर भैया किसी के चक्कर में हैं...
वीर - (याद आता है) क्या उस दिन ब्रेड आलू टोस्ट में नमक नहीं था...
शुभ्रा और रुप - नहीं...

वीर और भी ज्यादा शर्मा जाता है तो वीर को नॉर्मल करने के लिए विक्रम दोनों ल़डकियों पर सवाल दागता है l

विक्रम - हो सकता है... उस दिन वीर थोड़ी जल्दबाज़ी में हो...
शुभ्रा - हाँ हाँ... हम समझ सकते हैं... वैसे वीर... क्या नाम है उस लड़की का... और ला रहे हो उसे...
वीर - (शर्माते हुए) वह अनु... अनुसूया है उसका नाम...
शुभ्रा और रुप - वाव.. अनु...
वीर - पर भाभी... वह यहाँ नहीं आएगी...
शुभ्रा और रुप - (हैरानी से) क्यूँ...
वीर - वह... इस घर में... बहु बनकर पहला कदम रखना चाहती है... इसलिए उसने ही मना कर दिया था...
रुप - हाँ तो वह बहु ही तो है ना... माँ ने पसंद किया है... आई मीन ऐसेप्ट किया है...
वीर - अरे ऐसी बात नहीं... वह शादी के बाद... गृह प्रवेश में पहला कदम रखना चाहती है...
शुभ्रा - ओ... तो ठीक है... हमें बाहर कहीं मिलवाओ... मतलब लंच पर...
वीर - ठीक है... तो आज...
रुप - नहीं नहीं आज नहीं...
सब - क्यूँ... आज क्यूँ नहीं...
रुप - अरे इतने दिनों बाद आई हूँ... आज कॉलेज जाऊँगी... पता नहीं वहाँ मेरी छटी गैंग.. मुझे क्या सजा देगी... इसलिए आज नहीं... और हाँ भाभी... प्लीज आज लंच पर मेरा वेट मत करना...
शुभ्रा - वह क्यूँ...
रुप - आज मेरे दोस्तों को लंच की रिश्वत देने वाली हूँ... सो प्लीज... मेरा लंच पर वेट मत करना...
शुभ्रा - ठीक है... एक काम करो वीर... कल शाम को... मिलने का प्रोग्राम रखो...
वीर - ठीक है भाभी...

सबका नाश्ता ख़तम हो गया था l सब उठने लगते हैं, शुभ्रा बर्तन समेटने लगती है के तभी

रुप - (वीर से) अच्छा भैया... चलो... आज मैं तुम्हें ऑफिस ड्रॉप कर कॉलेज जाऊँगी...
वीर - क्या तु मुझे ड्रॉप करेगी...
रुप - हाँ... अब तो ड्राइविंग लाइसेंस है मेरे पास... क्यों भाभी...
शुभ्रा - वह तो ठीक है... मगर गाड़ी...
रुप - मैंने आपकी गाड़ी की चाबी ले ली है... (कह कर गाड़ी की चाबी सबके सामने हिलाती है)
शुभ्रा - (हैरान हो कर) क्या... और मुझे कहीं जाना हुआ तो...
रुप - आप गुरु काका को ले जाना... वेरी सिंपल (वीर से) चलो भैया...

रुप भागते हुए बाहर चली जाती है, वीर भी उसके पीछे पीछे चल देता है l विक्रम की नजरें वहीँ ठहर गई थी l विक्रम अभी भी सोच में डूबा हुआ था l

शुभ्रा - क्या सोच रहे हैं आप...
विक्रम - रुप... हमारी नंदिनी के बारे में... जब यहाँ आई थी तो कैसी थी... अब कैसी हो गई है... जैसे चल नहीं रही है... दौड़ भी नहीं रही है... ब्लकि उड़ रही है... क्या वज़ह हो सकती है...
शुभ्रा - (चुप रहती है)
विक्रम - इस उम्र में... शुब्बु... आप भी ऐसी ही थीं... है ना... क्या नंदिनी को किसी से प्यार हो गया है...
शुभ्रा - (बर्तन लेकर किचन की जाते हुए विक्रम की ओर पीठ कर) पता नहीं...

सिंक पर बर्तन रख देती है पर वह वापस नहीं आती l विक्रम भी ऐसे सोचते हुए किचन में आता है l

विक्रम - शुब्बु... जहां तक मुझे लगता है... लॉ मिनिस्टर की बेटी की रिसेप्शन से लौटने के बाद से ही... नंदिनी की हरकतों और आदतों में तब्दीली आई है...

अब शुभ्रा खुद में सिमटने लगी थी, वह खुद में दुबकने लगी थी l उसे डर लगने लगती है l कहीं विक्रम को रुप पर शक़ तो नहीं हो गया l

विक्रम - मुझे लगता है... उस दिन पहली बार... दलपल्ला राजकुमार से मिली... अब नंदिनी को मालुम भी है... उन्हीं के घर जाना है... और शायद नंदिनी को पसंद भी आ गए... (शुभ्रा एक चैन की साँस लेती है) इसलिए शायद... मैं सही कह रहा हूँ ना... क्या नंदिनी ने तुम्हें कुछ बताया है...
शुभ्रा - (विक्रम की ओर मुड़ती है) आपका अनुमान सही हो सकता है... शायद नंदिनी को प्यार हो गया है... इसलिए खुशी के मारे... अपनी हिस्से की आसमान को मुट्ठी में कर लेना चाहती है...
विक्रम - क्या उसने आपको कुछ बताया है...
शुभ्रा - विक्की... उसे अपनी उड़ान तो भर लेने दीजिए... उड़ते उड़ते जब उसे अपने डाल पर उतरना पड़ेगा... तब वह सब बताएगी...
विक्रम - (मुस्कराते हुए) क्या बात है जान... आज तुम बहुत.. फिलासफीकल बात कर रही हो...
शुभ्रा - मैं... वह बता रही हूँ... जिसमें बातों की गहराई है... वैसे... एक बात पूछूं...
विक्रम - पूछिये...
शुभ्रा - क्या... मैं आज... आपके लिए लंच लेकर... ऑफिस आऊँ...
विक्रम - (हैरानी से देखने लगता है)
शुभ्रा - वह देखिए ना.. आज नंदिनी नहीं आएगी... मैं अकेली...
विक्रम - ठीक है...

शुभ्रा एक बच्ची की तरह उछल कर विक्रम के गले लग जाती है l विक्रम भी उसे अपनी बाहों में भिंच लेता है l उधर रुप कार चला रही थी l उसकी नजर सीधे सड़क पर थी पर वीर उसे हैरानी भरी नजरों से देखे जा रहा था l रुप की चेहरे पर आए बदलाव को समझने की कोशिश कर रहा था l

वीर - नंदिनी...
रुप - हूँ...
वीर - आर यु ईन लव...

चर्र्र्र्र्र रुप ब्रेक लगाती है l वह वीर की तरफ ऐसे देखती है जैसे उसे वीर ने गाड़ी के भीतर ही कोई बम फोड़ दिया हो l तभी उसके कानों में पीछे खड़ी गाडियों की हॉर्न की आवाजें सुनाई देने लगती है l रुप उस वक़्त इतना नर्वस महसुस करने लगती है कि उससे गाड़ी स्टार्ट नहीं हो पाती l गाड़ी झटके खाने लगती है l

वीर - इटस ओके... कूल... बी कूल... डोंट बी नर्वस...

रुप थोड़ी संभलती है l फिर से गाड़ी स्टार्ट करती है और जैसे ही गाड़ी स्टार्ट होती है रुप उसे सड़क के किनारे लगा देती है l

रुप - स... ससॉरी भैया...
वीर - किस लिए... (रुप जवाब दे नहीं पाती) ठीक है... क्या मैं पुछ सकता हूँ... कौन है... क्या रॉकी...
रुप - छी... कैसी बातेँ कर रहे हैं भैया... रॉकी मुझे बहन मानता है...
वीर - फिर.... (रुप फिर भी चुप रहती है) ठीक है... नहीं पूछता... वह राज जो.. मेरी चहकती बहना के चेहरे से मुस्कराहट गायब कर दे... मैं नहीं जानना चाहता... पर लड़का कैसा है... इतना तो बता सकती हो ना मुझे...
रुप - (शर्माते हुए) वह... बहुत अच्छा है... भैया... लाखों नहीं... करोड़ों नहीं... ब्लकि वह दुनिया में... यूनिक और एंटीक है...
वीर - वाव... मतलब लड़का बहुत ही अच्छा है... मेरी बहन इतना इम्प्रेस जो है...
रुप - (यह सुन कर शर्मा जाती है फिर झिझकते हुए) आप... आपको... बुरा लगा...
वीर - नहीं... बिल्कुल भी नहीं... जिस लड़की को... रिश्ते नातों की... उनकी गहराइयों की समझ हो... उसकी चॉइस कभी गलत नहीं होगी... इतना तो कह सकता हूँ...
रुप - (इसबार मुस्करा कर) थैंक्यू भैया...
वीर - क्या कॉलेज में कोई...
रुप - नहीं...
वीर - खैर... और कौन कौन जानते हैं... या...
रुप - नहीं नहीं... भाभी और माँ... यह दोनों जानती हैं....
वीर - तब तो ठीक है... अब कोई शिकायत नहीं है... अब मेरे समझ में आ रहा है... भाभी अचानक क्यूँ... अनु से मिलने की बात छेड़ दी....
रुप - भैया....
वीर - हूँ...
रुप - आपको मेरी कसम...
वीर - कसम... किस बात की कसम...
रुप - आप... ना तो माँ से पूछेंगे... ना ही भाभी से...
वीर - (मुस्कराते हुए) ठीक है मेरी बहन... तुझे इतना डर क्यूँ है...
रुप - वह... मतलब... जब वक़्त आएगा... तब मैं.. सबको बता दूंगी....

रुप कह कर शर्म से चेहरा झुका लेती है l नजरें मिलाने से कतराने लगती है l वीर उसकी हालत देख कर मुस्कराने लगता है l

वीर - ठीक है... मैं उस दिन का इंतजार करूँगा.... पर तुम अपनी जज़्बातों को थोड़ा काबु में रखो... तुम्हारे गालों की लाली... और आँखों की शरारत... बहुत कुछ बयान कर दे रही है... विक्रम भैया को भी आभास हो गया है... चूंकि भाभी जानती हैं... इसलिए भाभी बात को संभाल लेंगी... (रुप वीर की ओर देखते हुए मुस्कराने की कोशिश करने लगती है) अरे... अब तो गाड़ी को आगे बढ़ाओ... तुम्हें कॉलेज के लिए लेट हो रहा है...
रुप - (चौंक कर) हाँ.. हाँ...

रुप गाड़ी को स्टार्ट करती है और फिर से सड़क पर दौड़ाने लगती है l रुप इस बार गाड़ी चलाते हुए वीर की ओर देखती है l वीर खिड़की से बाहर की ओर देख रहा था, उसके होठों पर एक मीठी सी मुस्कान दिख रही थी l

रुप - भैया... एक बात पूछूं... क्या चेहरा... आँखे... दिल की हालत... बता देती है...
वीर - हाँ... प्यार एक ऐसी ज़ज्बात है... जब हो जाए... तो खुद को पता नहीं चलता... पर उसे पता चल जाता है... जो उस शख्स से जुड़ा हुआ हो...
रुप - मतलब... आपको... अपने प्यार का एहसास नहीं था...
वीर - ऊँ हूँ.. नहीं था... पर मेरी हाल चाल हरकतें सबकुछ किसी को बता दिया था... के मैं प्यार में हूँ... उसी ने ही एहसास दिलाया... फिर मुझे हिम्मत दी.. राह दिखाई... तब जाकर मैंने अपने प्यार के सामने अपने प्यार का इजहार कर पाया...
रुप - वाव... आज कल आपकी बातेँ भी ग़ज़ब की लगती हैं... वैसे कौन है वह... आपके राहवर...
वीर - तुम नहीं जानती उसे... मेरा सबसे खास और इकलौता दोस्त... उसका नाम प्रताप है... विश्व प्रताप...

एक्सीडेंट होते होते रह गया l विश्व का नाम सुनते ही रुप की कानों के पास चींटियां रेंगने जैसी लगती है l

वीर - अरे... संभल कर... लाइसेंस मिली है... फिर भी संभल कर...
रुप - ओह... सॉरी भैया... वैसे... आपके यह दोस्त करते क्या हैं...
वीर - कंसल्टेंट है... लीगल एडवाइजर है...
रुप - ओ... एक वकील है... जुर्म चोरी डकैती पर छोड़... प्यार इश्क मोहब्बत पर एडवाइज देता फिर रहा है...
वीर - अरे... तुम उसकी खिंचाई क्यूँ कर रही हो... जानती हो... प्यार के बारे में... उसके बहुत उच्च विचार हैं...
रुप - हा हा हा.. भैया... वकील मतलब लॉयर... एंड एज यु नो... अ लॉयर इज़ ऑलवेज अ लायर...
वीर - (खीज जाता है) अरे... कमाल की लड़की हो तुम... मेरे दोस्त के पीछे हाथ धो कर पड़ गई हो...
रुप - (मासूम सा चेहरा बना कर) सॉरी भैया... आपको बुरा लगा... वैसे क्या महान विचार हैं उनके...
वीर - क्यूँ... मैं क्यूँ बताऊँ...
रुप - ताकि लॉयर के बारे में... मैं अपना ओपिनियन बदल सकूँ...
वीर - ठीक है... तो सुनो... प्रताप कहता है... प्यार... तभी मुकम्मल होता है... जब हर ज़ज्बात और एहसास में थ्री डी हो...
रुप - (मुहँ बना कर) थ्री डी...
वीर - हाँ... डीवोशन... डीटरमीनेशन... और डेडीकेशन...
रुप - ओ... ह्म्म्म्म...
वीर - क्यूँ... कुछ गलत कहा क्या...
रुप - नहीं... यह थ्री डी.. ठीक ही है...
वीर - थ्री डी का मतलब तुमने और कुछ समझ लिया क्या...
रुप - हाँ... मैंने उनके विचारों से... उन्हें प्रीज्युम कर रही थी....
वीर - क्या... क्या प्रीज्युम कर रही थी...
रुप - हम्म्म... दुश्मन... दोस्त... और दिलवर.... हा हा हा हा...
वीर - ओह गॉड... नंदिनी यु आर इम्पॉसिबल...
रुप - (हँसते हुए) सॉरी भैया...

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घर के बाहर जो टीन के शेड थे l विश्व और टीलु दोनों मिलकर खिंच कर निकाल गिरा रहे थे l शनिया और उसके साथी ज्यादातर सामान ले गए थे l पर जो कुछ स्ट्रक्चर था अंदर उन्हें विश्व और टीलु मिलकर तोड़ रहे थे l गाँव के कुछ लोग दुर से देख तो रहे थे पर कोई ईन दोनों की मदत के लिए आ नहीं रहे थे l क्यूंकि भट्टी टुट जाने से गाँव के कई मर्द दुखी थे l पर गाँव की औरतें बड़ी खुश थीं l विश्व और टीलु अपनी जैल की अनुभव का इस्तेमाल करते हुए l उमाकांत के घर को अच्छी शकल देने की कोशिश कर रहे थे l

टीलु - भाई.. यह घर तो मिल गया... पर इसे संभाले कैसे...
विश्व - मतलब...
टीलु - मतलब... इस घर को क्या बनाने का इरादा है...
विश्व - बच्चों के लिए लाइब्रेरी और प्ले स्कुल...
टीलु - आइडिया तो अच्छा है... पर चलाएगा कौन... देखो दिन में शायद वे लोग कभी हिम्मत ना करें... पर रात को... वैसे भी... चोट खाए सांप हैं साले... सामने से तो वार करेंगे नहीं... पर...
विश्व - हाँ हाँ... समझ गया... क्या कहना चाहते हो... एक काम करेंगे... हम दोनों अदला बदली कर रात को यहाँ और वहाँ सोयेंगे... पर जिस दिन मैं कटक चला जाऊँगा... उस दिन तुम यहाँ नहीं... घर पर ही सोना...
टीलु - इसका मतलब तुम कटक जा रहे हो...
विश्व - हाँ... वज़ह है... पर्सनल भी प्रोफेशनल भी... माँ से वादा किया था... हर हफ्ते दस दिन के अंतराल में... उनके पास जाता रहूँगा... और जोडार साहब के कंपनी की स्टैटस और स्टैटीटीक्स... देखना पड़ेगा...
टीलु - भाई मैं भी चलूँ...
विश्व - नहीं अभी नहीं... और हम अगर एक दुसरे के साथ कटक गए... तो हमारे दुश्मन सतर्क हो जाएंगे... मैं... भैरव सिंह को कोई भी लीड देना नहीं चाहता... (एक गहरी साँस लेते हुए) मैं यह जंग हर हाल में जितना चाहता हूँ.... पर किसीको खोने की कीमत पर नहीं...

टीलु कोई जवाब नहीं देता l वह नजर घुमाता है तो देखता है कुछ बच्चे घर के बाहर छुप कर इन्हें काम करते हुए देख रहे हैं l टीलु अपना गला खरासते हुए विश्व को उनके तरफ देखने के लिए इशारा करता है l विश्व उन बच्चों की तरफ देखता है जो विश्व को बड़े आग्रह और जिज्ञासा के साथ देख रहे थे l विश्व मुस्कराते हुए उन बच्चों को इशारे से अपनी तरफ बुलाता है l बच्चे इशारे से पहले ना कहते हैं l विश्व भी बच्चों की तरह मुहँ बना कर इशारे से पास बुलाता है l बच्चे मुस्कराते हुए उसे देखते तो हैं पर कोई पास नहीं आ रहा था l

विश्व - अरे बच्चों.. अगर तुम मेरे पास आते हो... तो मैं बहुत सारा चाकलेट लाकर दूँगा...
एक बच्चा - सच.. पर आपके पास चाकलेट कहाँ है...
विश्व - अरे.... पहले मेरे पास आओ तो सही... फिर जब दोस्ती करोगे... तब जाकर ढेर सारा चाकलेट मिलेगा...

बच्चे धीरे धीरे कंपाउंड के अंदर आते हैं l विश्व जेब से कुछ पैसे निकाल कर टीलु को देता है l टीलु समझ जाता है और भागते हुए वहाँ से चाकलेट लाने चला जाता है l इस बीच विश्व उन बच्चों से दोस्ती करने की कोशिश करता है l

विश्व - अच्छा यह बताओ... तुम लोग मुझे जानते हो...
एक बच्चा - हाँ...
विश्व - अच्छा... कैसे...
एक बच्चा - मेरे बाबा बार बार आपको घर में गाली देते हुए साला साला कहते थे... मैंने माँ से पुछा तो माँ ने कहा.... जो बाबा का साला है... वह मेरे मामा लगते हैं...
विश्व - (मुस्कुराए बिना नहीं रह सका) बिल्कुल मैं तुम लोगों का मामा ही हूँ... और जानते हो.. परिवार में... बच्चे सबसे ज्यादा मामा के करीब होते हैं... और मामा से दोस्ती रखते हैं...
सारे बच्चे - नहीं...
विश्व - कोई नहीं... तुम्हें तुम्हारे मामा ने बता दिया ना...
सारे बच्चे - हाँ...
विश्व - तो अब से मैं तुम लोगों का... और तुम सब मेरे दोस्त हो ठीक है...
सारे बच्चे - हाँ...
एक बच्चा - मामा... चाकलेट आने में और कितनी देर लगेगी...
विश्व - बस थोड़ी देर और...

थोड़ी देर के बाद टीलु बहुत सारी चाकलेट लाया था l जिसे विश्व सभी बच्चों में बांट देता है l बच्चे बड़े आग्रह से चाकलेट लेते हुए खुश होते हैं और खुशी के मारे उछलने लगते हैं l तभी हरिया और कुछ लोग वहाँ पहुँचते हैं l हरिया उस पहले बच्चे को पकड़ कर उससे चाकलेट छिन लेता है और उसे ले जाने लगता है l

विश्व - हैइ... बच्चों के साथ यह क्या कर रहे हो...
हरिया - तुमको मतलब... यह मेरी औलाद है... मैं चाहे जो करूँ... (बच्चे से) ख़बरदार जो फिर कभी यहाँ आया तो... टांगे तोड़ दूँगा तेरी....
विश्व - बड़ा मर्द बन रहा है... मेरे ही सामने इसको हड़का रहा है...
हरिया - देखो विश्वा... हम तुम से दुर हैं... तुम भी हम से दुर रहो...
विश्व - राजा का हुकुम... तुम जैसे निकम्मे और नाकारों के लिए है... बच्चों के लिए नहीं... इसलिए अपनी निकम्मे पन की खीज बच्चों पर क्यूँ उतार रहे हो...
हरिया - बस बहुत हुआ... राजा के आदमियों को मार दिया तो इसका मतलब यह नहीं... की मैं तुमसे डर जाऊँगा... मेरा और हम सबके बच्चे ना तो यहाँ आयेंगे... ना ही तुम से कोई वास्ता रखेंगे... इसलिए... तुम हमसे... हमारे बच्चों से दुर ही रहो...
विश्व - अगर नहीं रहा तो...
हरिया - देखो... तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा... राजा साहब के लोग तुमसे डरते होंगे.. हम नहीं... क्यूँ साथियों...
साथ आए लोग - हाँ हाँ...
विश्व - तो तुम लोगों की भी... उसी तरह से पिटाई करूंगा... जैसे शनिया और उसके लोगों का किया...
हरिया - क्या... तु.. तुम.. हमें भी मारोगे...
विश्व - हाँ... कोई शक़... अगर है.. तो दूर कर दो... मेरे और मेरे दोस्तों के बीच जो भी आएगा... मैं उसकी पिटाई कर दूँगा... (बच्चों से) क्यूँ दोस्तों...
बच्चे - ये ये... (चिल्ला कर ताली बजाने लगते हैं)
हरिया - (बच्चों से) चुप.. चुप.. (विश्वा से) तुम हमें मारोगे...
विश्व - (पास पड़े एक डंडा उठाता है और हरिया के तरफ दिखा कर) तुम्हें अभी भी शक़ है... उन हराम खोरों को रात के अंधरे में कुटा था.. तुम लोगों को तो दिन के उजाले में... कूट सकता हूँ... (बच्चों से) बच्चों आज जाओ... पर कल जरूर आना... यहाँ तुम लोगों के लिए... लाइब्रेरी बनेगी... प्ले स्कुल बनेगी... कोई नहीं रोकेगा... जो रोकेगा... वह इस डंडे से ठुकेगा...

हरिया और सभी गाँव वाले गुस्से से मुहँ बना कर वहाँ से अपने अपने बच्चों को ले जाते हैं l यह सब टीलु चुप चाप देख रहा था l उन सबके जाने के बाद टीलु विश्व से पूछता है l

टीलु - भाई... तुमने गाँव वालों को डरा दिया... उनको मारोगे... ऐसा कहा..
विश्व - हाँ...
टीलु - जिनके लिए लड़ने आए हो... उन्हीं लोगों को... उनके बच्चों के सामने अपमान कर दिया... तुम भी तो उनमें से एक हो....
विश्व - (टीलु की ओर देखता है,) टीलु... मैं यहाँ अपनी लड़ाई लड़ने आया हूँ... उनकी फौज बना कर लड़ने नहीं आया... डैनी भाई मुझसे हमेशा एक बात कहते थे... फाइट यु योर औन बैटल... मैंने पहले अपनी लड़ाई खुद लड़ा... तब जाकर डैनी भाई ने... मुझे धार दिया... यह लोग... सब मरे हुए हैं... कोई भी जिंदा नहीं है यहाँ... मन से... आत्मा से ज़ज्बात से... मरे हुए यह लोग... अपनी जिंदा लाश को अपनी ही बीवी और बच्चों से घसीट रहे हैं... इनकी हिम्मत नहीं है... राजा से या उसके आदमियों से टकराने के लिए.... अपनी इसी निकम्मे पन की खीज दारु पी कर... अपनी बीवी पर... बच्चों पर उतारते रहते हैं... पर यह लोग मुझे धमकाने आ गए... जरूरत पड़ने पर... मुझसे भीड़ भी जाते... क्यूँ... क्यूंकि वे लोग इसी सोच में थे... के मैं उनमें से एक हूँ... जब कि मैं उनमें से नहीं हूँ... उनके बीच से आया तो हूँ... पर अब उनके जैसा नहीं हूँ... और हाँ... मैं ज़रूर उनको अपने जैसा बनाना चाहता हूँ... उनकी लड़ाई... मेरी लड़ाई तब होगी... जब वह लोग... मेरे जैसे बनेंगे...
टीलु - पर उन्हें ऐसे अपमानित कर...
विश्व - हाँ... अंडा जब बाहर से टूटता है... तो जीवन समाप्त हो जाता है... पर जब अंदर से टूटता है... तो नया जीवन आरंभ होता है... मैं उनको अंदर से झिंझोड रहा हूँ... ताकि एक नए जीवन की शुरुआत हो...

विश्व इतना कह कर चुप हो जाता है l टीलु विश्व की मनसा को समझ गया था l इसलिए वह बात बदलने के लिए

टीलु - भाई... इस लाइब्रेरी का क्या नाम रखोगे...
विश्व - श्रीनिवास प्ले स्कूल व लाइब्रेरी...

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वीर अपने केबिन में आता है l आते ही उसकी आँखे बंद हो जाती हैं l क्यूंकि कमरे से बहुत ही भीनी और मदहोश कर देने वाली खुशबु आ रही थी l उसके होठों पर मुस्कराहट आ जाती है वैसे ही आँखे मूँदे वह अपनी बाहें फैला देता है l जाहिर से उसके केबिन में अनु पहले ही मौजूद थी वह वीर के गले से लग जाती है l दोनों एक दुसरे के बाहों में कुछ देर के लिए खो से जाते हैं l

वीर - जानती हो... हर तरफ खीजा ही खिजा है... एक तुमसे ही जिंदगी में मेरे बहार है... (अनु खुश हो जाती है और वीर के गले में और भी ज्यादा कस जाती है) अनु..
अनु - जी...
वीर - मेरी बहन और भाभी... दोनों तुमसे मिलना चाहते हैं...
अनु - (वीर से अलग हो कर) कब... (सवाल) आज ही...
वीर - आज नहीं... कल शाम को...
अनु - ओह... पर... आपके घर...
वीर - जानता हूँ... मैंने सबसे कह भी दिया है.... तुम शादी के बाद ही... घर में अपना पहला कदम रखना चाहती हो... इसलिए हम बाहर कहीं प्रोग्राम रखेंगे...
अनु - ठीक है... पर कहाँ...
वीर - ह्म्म्म्म... कल मिलकर तय करते हैं ना...
अनु - (थोड़ी झिझक के साथ) राजकुमार जी...
वीर - (मजे लेते हुए) कहिए अनु जी...
अनु - ऊँऊँऊँ... आप मुझे जी ना कहें...
वीर - क्यूँ... मैं क्यूँ ना कहूँ... तुम भी तो मुझे... जी... कहते हो... और ऊपर से नाम भी नहीं लेती... कभी वीर नहीं तो वीरजी... बुला सकती हो...
अनु - (शर्माते हुए) नहीं... कभी नहीं बुला सकती...
वीर - ऐसा क्यूँ भला...
अनु - वह... (शर्मा जाती है)
वीर - हूँ हूँ... कहो कहो...
अनु - वह... पंजाबी में ना... वीरजी का मतलब भैया होता है... इसलिए... (शर्मा के घुम जाती है)
वीर - ओ तेरी... तो बात यह है... ह्म्म्म्म... (अनु को पीछे से हग करते हुए) पर मेरी प्यारी अनु... तुम्हें पंजाबी कैसे आती है...
अनु - नहीं आती... पर जानती हूँ... क्यूंकि... हमारे वहाँ एक पंजाबी ढाबा है... वहाँ की लड़की अपने भाई को वीर जी कहती है... इसलिए मैं जानती हूँ...
वीर - ठीक है अनु जी... मुझे आपका राजकुमार कुबूल है...
अनु - (मुहँ बना कर)आप मुझे फिरसे छेड़ रहे हैं...
वीर - (अपने गाल को अनु के गाल से रगड़ते हुए) वह तो मेरा हक है... जैसा कि आपका मुझ पर...
अनु - मैंने कभी आप पर हक जताया तो नहीं...
वीर - (अनु की चेहरे को मोड़ कर अपनी तरफ करते हुए) तो करो ना... कौन रोक सकता है तुम्हें... खुद मैं भी नहीं...

वीर की यही बात अनु के दिल पर असर कर जाती है l उसकी आँखे छलक जाती हैं और वह घुम कर वीर के सीने से लग जाती है l

अनु - मुझे कोई हक नहीं जताना... आप मेरे कितने हो... मुझे इससे कोई मतलब नहीं है... मैं बस आपकी हूँ... और आपको यह स्वीकार है... मेरे लिए यही काफी है...
वीर - (अपनी बाहों में कसते हुए) पगली... यह भी कोई बात हुई... (अनु के बालों को पकड़ कर उसके चेहरे को अपने सामने ला कर) सुन... चाहे कुछ भी हो जाए... पर इस सच को कोई झुठला नहीं सकता... ना मैं... ना तु... ना भगवान... मैं सिर्फ और सिर्फ तेरा हूँ... और तु सिर्फ और सिर्फ मेरी है... समझी...

अनु अपना सिर हिला कर हाँ कहती है l वीर उसे गले से लगा लेता है l अनु की खुशी दुगुनी हो गई थी वह भी कस कर वीर के गले से लग जाती है l

वीर - मैं हमेशा पसोपेश में पड़ जाता हूँ... तु... भोली है... या बेवक़ूफ़ है...
अनु - जो भी हूँ... जैसी भी हूँ... आपकी हूँ... (अपना चेहरा उठा कर वीर से) झेलना तो आपको ही है....
वीर - चुप... तुझे तो मैं... अपनी पलकों पर रखूँगा... तु नहीं जानती... तुझसे मेरी जिंदगी कितनी खुबसूरत है... तु है... तो जिंदगी है... तु नहीं तो कुछ भी नहीं... मैं भी नहीं... और तुझे मुझसे कोई नहीं छिन सकता... यहाँ तक भगवान भी नहीं...
अनु - प्लीज... कितनी मन्नतों के बाद... मैं आपकी दिल में जगह पा सकी हूँ... और आप हैं कि... भगवान को बीच में ला रहे हैं... किसी से नहीं तो... कम-से-कम भगवान से तो डरीये...
वीर - तुझे किसने कहा कि मैं भगवान से नहीं डरता... पर तु मेरी धड़कन में समा चुकी है... नस नस में सिर्फ़ तु ही तु दौड़ रही है... हर साँस जो अंदर जाती है... तेरी खुशबु... तेरी ख्वाहिश लिए अंदर जाती है... और हर साँस तेरी चाहत लिए बाहर आती है... तु जिंदगी है... तु मेरी जुनून है... तु साथ है... तो यह दुनिया है... यह जहां है...
अनु - मैं कितनी भाग्यवान हूँ... के आप मुझे इतना चाहते हैं... पर राजकुमार जी... (वीर से अलग होते हुए) आप क्या डर रहे हैं... जैसे... मैं आपसे छिन जाऊँगी...

वीर अपना चेहरा घुमा लेता है l अनु कुछ समझ नहीं पाती पर वीर के पीठ से लग जाती है l

अनु - मैं जानती हूँ राजकुमार जी... आपके वंश की योग्य नहीं हूँ... भले ही रानी माँ ने मुझे स्वीकर कर लिया हो... पर शायद आपके परिवार में.... (रुक जाती है)
वीर - (अनु के हाथों को पकड़ कर) मेरे परिवार की चिंता नहीं है... (अनु को अपने तरफ सामने ला कर) (अपना सिर झुका कर) अपने काले स्याहे अतीत की है...
अनु - (वीर की दोनों हाथों को लेकर अपने गालों पर रख देती है) आप ऐसे सिर ना झुकाएं.... कुछ भी हो जाए... मैं आपकी थी... हूँ और रहूँगी...
वीर - ओह... अनु... मैं... मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ... तुम बहुत ही अच्छी हो... इतनी भोली... इतनी मासूम... तुम नहीं जानती... तुम सोच भी नहीं सकती.. यह दुनिया... कितनी खराब है... यह दुनिया... मेरी सोच से भी बहुत बहुत खराब है... इसलिए मुझे डर लगा रहता है... कहीं यह दुनिया मुझसे तुम्हें छिन ना ले... मुझे डर लगा रहता है... तुम्हें खोने की... खो देने की...
अनु - (वीर के हाथ को चूमते हुए) मेरी भोला पन... मेरी बेवकूफ़ी.. मेरी मासूमियत की कीमत अगर आप हो... तो मुझे यह हर जन्म में स्वीकार है... मेरा प्यार... मेरी चाहत... सिर्फ इस जन्म के लिए नहीं है... मैं जब भी दुनिया में आती रहूँगी... सिर्फ आपके लिए ही आती रहूँगी...
वीर - (एक शरारती भरा मुस्कान लिए) इतना चाहती हो...
अनु - (इतराते हुए) हूँ...
वीर - तो तुम मुझसे वह क्यूँ नहीं कहती... जो मैं तुमसे बार बार कहता रहता हूँ...
अनु - (हैरान होते हुए) क्या..
वीर - आई लव यु...
अनु - (शर्मा कर मुस्कराते हुए) धत... मैं... मुझे... ना.. मैं नहीं कह सकती...
वीर - क्यूँ... अरे यही वह तीन शब्द हैं... जो सबसे मधुर और बहुत प्यारे हैं...
अनु - जानती हूँ... पर पता नहीं क्यूँ... यह... मुझे शर्म आती है..
वीर - हे भगवान... क्या इनके मुहँ से वह जादुई शब्द नहीं सुन पाऊँगा...
अनु - ज़रूर सुनिएगा... कहूँगी जरूर पर अभी नहीं...

वीर अनु को अपने करीब लता है l उसका चेहरा अनु के चेहरे से कुछ ही दूर था l दोनों को एक-दूसरे की गरम सासों की एहसास हो रहा था l वीर की होंठ आगे बढ़ते हैं l अनु अपनी आँखे मूँद लेती है l एक नर्म चुंबन का एहसास उसके माथे पर होता है l अनु अपनी आँखे खोल देती है l

अनु - राजकुमार जी... आप डरते क्यूँ हैं...
वीर - मैं किसी से नहीं डरता...


अनु हँसते हुए वहाँ से निकल जाती है l वीर भी बड़ी हसरत लिए उसे जाते हुए देखता है l

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ड्रॉइंग रुम में सीलिंग फैन तेजी से घुम रहा है l नीचे तापस बैठ कर मजे से टीवी देख रहा है l प्रतिभा किचन में बिजी है और खाना बनाते वक़्त कुछ बड़बड़ा भी रही है l बहुत देर से तापस गौर तो कर रहा था पर पुछ नहीं रहा था l पर फिर उससे रहा नहीं जाता पुछ बैठता है l

तापस - (ऊँची आवाज़ में) क्या बात है जान... अपने आप से बात कर रही हो...
प्रतिभा - (ऊँची आवाज़ में) क्या करूँ... जिससे बात करने का मन कर रहा है... वह तो टीवी में मुहँ गड़ाए बैठा है...
तापस - (सोफ़े से उठ कर किचन की ओर जाते हुए) अरे अगर बात ही करनी है... तो जानेमन यहाँ भी आकर गुफ़्तगू किया जा सकता है...
प्रतिभा - (किचन से बाहर आकर) तो खाना कौन बनाता...
तापस - अजी हमें तो आप कभी किचन में घुसने नहीं देती... वर्ना हम भी बताते... हम भी बड़े काम के हैं... और दिखाते... खाना कैसे बनाते हैं...
प्रतिभा - ज्यादा डींगे मत हांकीए... मैं जानती हूँ... आप का खाना बनाने के बारे में....
तापस - आरे जान... कभी हमें मौका दे कर देखती... उँगलियाँ चाट कर ना रह जाओ... तो हमें कहना... पर क्या करें.... तुमने कभी मुझे किचन में घुसने ही नहीं दिया...
प्रतिभा - (अपनी पल्लू को कमर पर ठूँस कर) देखिए... यह किचन मेरी... एंपायर है... यहाँ सिर्फ़ मेरी चलेगी...
तापस - ठीक है... ठीक है जान... ठीक है... पर इसके लिए... झाँसी की रानी बनने की क्या जरुरत है...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अगर आप कह रही हैं... तो हो ही गया...
प्रतिभा - अच्छा जी... हमने कहा तो हो गया आपका... क्यूँ...
तापस - और नहीं तो... अजी हम आप पर मरते जो हैं...
प्रतिभा - दिन दहाड़े झूठ बोलते हुए शर्म नहीं आती...
तापस - क्या कहा... हम आपसे प्यार करते हैं... यह झूठ है...
प्रतिभा - हाँ... (कहते हुए किचन के अंदर चली जाती है)
तापस - (उसके पीछे पीछे किचन में आकर) यह तौहीन है... हमारे मुहब्बत पर मल्लिका ए हाइ कोर्ट...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अभी कहाँ... अभी आपको मेरे उपर लगाए गए हर ज़ुर्म को साबित करना होगा... समझी माय लॉर्ड...
प्रतिभा - अच्छा... तो आपको सबुत चाहिए...
तापस - यस...
प्रतिभा - अगर आपको प्यार होता... तो आप टीवी के बजाय... मुझे देखते हुए किचन के अंदर... अपनी कोई सढी गली शायरी सुना रहे होते...
तापस - एक और तौहीन... यह ना काबीले बर्दास्त है... योर हाइनेस...
प्रतिभा - मैंने फिर कहाँ तौहीन लगाया...
तापस - मेरे शायरी को... सढि गली कहा...
प्रतिभा - (बिदक कर) आआआआह्ह्ह्ह... (हाथ में जो चम्मच था उसे पटकती है)
तापस - (उसे देख कर)
हाय...
इश्क में वह मुकाम तय हुआ है क्या बताएं
कायनात की कयामत तक तुमसे जफा रखा है...
गुस्से में कुछ और भी हसीन लगते हो,...
बस यही सोच कर तुमको खफा रखा है...

यह सुन कर प्रतिभा का गुस्सा फुर हो जाती है और वह अपनी होठों को दबा कर मुस्कराने लगती है l

तापस - यह हुई ना बात... अच्छा जान अब बताओ... आज किस खुशी में तुमने कोर्ट छुट्टी कर दी...
प्रतिभा - बस थोड़ी देर और... आपको सब कुछ पता चल जाएगा...

तभी घर की डोर बेल बजती है l तापस जाकर दरवाजा खोलता है l पीछे पीछे प्रतिभा भी पहुँच जाती है l बाहर रुप खड़ी थी l जहां तापस रुप को देख कर हैरान हो जाता है वहीँ रुप को देख कर प्रतिभा बहुत खुश हो जाती है l रुप खुशी के मारे उछल कर अंदर आने को होती है कि प्रतिभा उसे रोकती है

प्रतिभा - रुक... पहले रुक...
रुप - (हैरान हो कर) क्यूँ... क्या हुआ माँ जी...
प्रतिभा - पहले यह बता की अब कि बार घर के अंदर कैसे आएगी.... इस घर की बहू... या प्रताप की दोस्त...
रुप - (शर्मा कर इतराते हुए) अगर सास बनकर बुलाओगे तो बहु अंदर आएगी...
अगर प्रताप की माँ बनकर बुलाओगे... तो भी आपकी बहु ही अंदर आएगी..
प्रतिभा - (खुश हो कर) मतलब... उस बेवक़ूफ़ ने... (रुप की नाक पकड़ कर) इस नकचढ़ी को पहचान कर प्रपोज भी कर दिया...
रुप - आह... हाँ...
प्रतिभा - (बहुत खुश हो जाती है) आह आ... तो फिर एक मिनट के लिए रुक...

कह कर प्रतिभा अंदर चली जाती है l यह सब देख कर तापस दोनों को बेवक़ूफ़ों की तरह देख रहा था l उसे इतना कंफ्युज्ड देख कर रुप उसे कहती है

रुप - नमस्ते डैडी जी...
तापस - (हकलाने लगता है) हा हा.. है.. हेलो... के... कैसी हो बेटी...
रुप - बहुत ही बढ़िया... और आप...
तापस - मैं... पता नहीं बेटी.. अब तक तो बहुत बढ़िया ही था...

हाथ में थाली और दिया लेकर प्रतिभा दरवाजे पर आती है और रुप की नजर उतारती है l

रुप - माँ जी... वह डैडी जी....
प्रतिभा - बेटी.. इनकी बातों को ज्यादा सीरियस लेने की कोई जरूरत नहीं है... यह तो बस ऐसे ही... बे फिजूल की बातेँ करते रहते हैं... (रुप को अंदर लाकर सोफ़े पर बिठाती है, फिर तापस से) सुनिए सेनापति जी...
तापस - (जो झटके पर झटके खा कर उबर रहा था) जी... बताइए.. भाग्यवान....
प्रतिभा - देखिए... आज बहु आई है... किचन में सब कुछ तैयार रखा है... कुछ मैंने बना दिया है... बाकी आप आज बना दीजिए... तब तक के लिए.. मैं बहु को कंपनी दे रही हूँ... अच्छा यह बता... तुने आज कॉलेज बंक क्यूँ की...
रुप - मुहँ बना कर... क्या माँ जी... आपसे मिलने आई हूँ... और आप मुझसे ऐसी सवाल कर रहे हैं...
प्रतिभा - अरे पागल लड़की... मुलाकात तो शाम को भी हो सकती थी... अभी दोपहर में...
रुप - बस माँ आपसे मिलना चाहती थी... इसलिए आ गई... पर वादा करती हूँ... जो वैदेही दीदी का सपना था... जो प्रताप बनना चाहता था... वह मैं बन कर दिखाऊँगी... मैं डॉक्टर बनूँगी...
प्रतिभा - शाबाश बेटा...
रुप - मेरी भाभी भी डॉक्टर हैं... हाँ यह बात और है कि वह... प्रैक्टिस नहीं करती... पर मैं उनसे ही एंट्रेंस की तैयारी करूंगी...
प्रतिभा - बहुत अच्छे...


इस तरह प्रतिभा और रुप के बातों का सिलसिला बढ़ने लगता है l उनको ऐसे बातेँ करते देख तापस का मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है l वह अपनी आँखे टिमटिमाते हुए प्रतिभा और रुप के ओर देखने लगता है l प्रतिभा जब देखती है तापस वहीँ खड़ा है

प्रतिभा - अरे... जाइए ना...
तापस - आर यु श्योर... मैं किचन के अंदर जाऊँ...
प्रतिभा - यह कैसा सवाल हुआ... बहु को भूखो रखोगे... जाइए... आज बचे खुचे खाने पर अपने हाथ का कमाल दिखाइए... ताकि मैं और बहू दोनों अपनी अपनी उंगली चाट जाएं...
तापस - ओह ह के... श्योर..

कह कर तापस किचन के अंदर चला जाता है l अंदर पहुँचकर देखता है सिर्फ़ दाल और चावल ही बना हुआ था l पनीर रखी हुई है, मटर छिले हुए हैं और तरह तरह की सब्जियाँ सारे कटे हुए हैं और एक जगह रखे हुए हैं l

तापस - (गुन गुनाने लगता है) क्या से क्या हो गया.... बेवफा तेरे प्यार में

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हा हा हा हा...
अनिकेत रोणा का सरकारी आवास l रोणा एक कुर्सी पर अपने एड़ीयों पर बैठा है, उसने अपने सिर पर ग़मछा ओढ़ रखा है l शनिया और उसके सभी साथी नीचे फर्श पर घुटनों पर बैठे हुए हैं l ईन सबके बीच चहलते हुए बल्लभ ठहाका लगा कर हँस रहा था l क्यूंकि सब के चेहरे पर बारह बजे हुए थे l

रोणा - हँस ले... काले कोट वाले कौवे... हँस ले...
बल्लभ - हँसु नहीं तो क्या करूँ बोलो... बहुत बार कहा है... तु कानून का ताकत है... पर मैं दिमाग हूँ.. यह सब करने से पहले... एक बार मुझसे पुछ तो लेते...
रोणा - तु और दिमाग.. आक थू... साले कितनी बार कहा था.. विश्वा को मार देते हैं... पर नहीं.. दिमाग चलाया था... या भोषड़ा पेलाया था... साला दिमाग से लोमड़ी और ताकत से शेर बन कर लौटा है वह...
शनिया - हाँ वकील बाबु... कमबख्त... हमारी मालिश किया करता था अखाड़े में... पर अब...
बल्लभ - इस बार भी जम के मालिश किया है उसने... पिछवाड़ा टीका कर बैठ नहीं पा रहे हो...
सत्तू - (कराहते हुए) हाँ... साहब... झूट भी बोला था... उस कमीने ने ... हमारी पिटाई शनिया भाई करेंगे... इस शर्त पर शनिया भाई को छोड़ा था... पर किसी को नहीं छोड़ा.. सबको भगा भगा कर मारा.... आह...
रोणा - चुप बे... साले हरामी... बात ऐसे कर रहा है... जैसे पाला हरिश्चंद्र के लाल से पड़ा था...
बल्लभ - उस पर गुस्सा क्यूँ हो रहा है... भेजा तो तुने ही था... विश्वा के बारे में सबकुछ जानते हुए भी... दो दो बार उससे पटखनी खाने के बाद भी...
रोणा - हाँ हाँ भेजा था ईन लोगों को... उसके पास... (चेयर से उतर जाता है) सोचा था सो गया होगा... आधी रात को... पर मालुम नहीं था... वह भी अपनी तैयारी में बैठा था... ईन सब के लिए....
बल्लभ - तेरा प्रॉब्लम क्या है जानता है... तु हमेशा दिमाग गरम रखता है.... पहली बार जॉगिंग की बात छोड़ देते हैं... पर होटल के गरम पानी वाला कांड याद कर... विश्वा... अपने सामने वाले के दिमाग से खेलता है... या ऐसी परिस्थिति बनाता है कि... उसके दुश्मन उसीके हिसाब से चलने लगते हैं...
भूरा - हाँ साहब... उसने कहा था पुलिस लेकर आएगा... वह आया भी... हमें लगा था... दरोगा आयेंगे नहीं... पर दरोगा जी तो.. वह भी उसे अपने साथ गाड़ी में बिठा कर लाए...
रोणा - तु चुप रह हराम के ढक्कन.. गाड़ी पे ना बिठाता तो क्या करता... अब वह वकील है... कोई आम गाँव वाला नहीं है.. जो उसे हड़का देता...
बल्लभ - वह वकील है... यह तुझसे किसने कह दिया...
रोणा - तु यह क्या बात कर रहा है... हम ने खबर निकाली थी ना..
बल्लभ - हाँ निकाली थी... पर वह जैल में था... वकालत पढ़ लिया तो क्या हुआ... वकालत करने के लिए लाइसेंस की जरूरत पड़ती है... उसने डिग्री तो हासिल कर ली है... पर लाइसेंस... लाइसेंस कैसे हासिल होगा...
रोणा - जानता हूँ... पर अपने लिए... हर कोई लड़ सकता है... और प्रॉपर्टी उसीके नाम पर ही है... और कमाल की बात यह थी.. की जैल में रह कर भी उसने... या वैदेही ने प्रॉपर्टी टैक्स भरे हैं... उसके पास दस दिन पहले का एकुंबरेंस सर्टिफिकेट भी था....
बल्लभ - फिर भी... तु ना जाता... तो तेरा क्या उखाड़ लेता... पुलिस वाले पे तो हाथ नहीं उठा सकता था... रही तेरे नाम की फाइल अदालत में खोलने की बात... तो जाने देता ना... तब मैं किस काम आता...

एक गहरी साँस छोड़ते हुए रोणा उसी कुर्सी पर बैठ जाता है l वह किसी थके हारे की तरह बेबस होकर

रोणा - ठीक कहता है... वह मेरे दिमाग पर इस तरह से हावी हो गया था कि... मैं ढंग से सोच भी नहीं पाया...
बल्लभ - हाँ... क्यूंकि बात गाँव की है... तो (शनिया और उसके साथियों से) तुम सालों... जब उसने साठ घंटे का वक़्त दिया था... तो पंचायत में बात पहुँचा कर लटकाये क्यूँ नहीं....
शनिया - हमें ईन सब बातों का कहाँ भान था... वैसे दरोगा जी ने कहा भी था... सलाह आपसे लेने के लिए... पर... हम उसे बहुत हल्के में ले लिए....
बल्लभ - अब तक तुम लोगों की... तकदीर... तकवीर... ही लाल थी... विश्वा ने तुम सबकी तशरीफ़ भी लाल कर दी... तुम लोग यहाँ जो फांदेबाजी कर पाते हो... वह इसलिए कि तुम सब राजा साहब के आदमी हो... उनके सेना से हो... पर तुम लोगों ने उनकी मूंछें नीची कर दी...
शनिया - इसी लिए तो डर के मारे... यहाँ छुपे हैं...
बल्लभ - कोई नहीं... जो मुझसे बन पड़ेगा.. वह मैं करूँगा... तुम लोग इस बात को दबा देने की कोशिश करो... बात ना फैले... उसके लिए तरकीब करो...
शनिया - जी वकील बाबु...
बल्लभ - (रोणा की ओर देख कर) और तु... तु क्या करेगा...
रोणा - सोच रहा हूँ... सब कुछ छोड़ छाड़ कर... हिमालय चला जाऊँ...
बल्लभ - अच्छा खयाल है... पर हिमालय नहीं... कहीं और जा... हफ्ते दस दिन के लिए... क्योंकि... जब से तेरी पोस्टिंग राजगड़ में दोबारा हुआ है... तु सिर्फ पीट पीटा रहा है... थोड़ा फ्रेस हो कर वापस आ...
रोणा - और तब तक विश्वा...
बल्लभ - पहले... तु ठंडा हो कर तो आ... फिर दोनों मिलकर विश्वा की ईंट से ईंट बजा देंगे...
 

Sidd19

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Chinturocky

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Vikram - shubhra
Sabse aakhari me
Vishwa - Rupnandini
Sabhi jodiya Bahut hi kamal hai.
Nayi pidhi purani pidhi ki khat khadi Kar degi.
Kahi chhoti Rani bhi Kuchh galat kadam na uthaye. Pichhale update me Jis Tarah ki pratikriya chhoti Rani ne di thi Usase Kuchh galat hone ka Aabhash ho raha hai.
 

parkas

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👉एक सौ उन्नीसवां अपडेट
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इंडस्ट्रीयल ईस्टेट जगतपुर
एक उजड़ी हुई ताला बंद बड़े से इमारत के सामने एक छोटी सी चाय नाश्ते की दुकान में एक टेबल पर ओंकार नाश्ता खा रहा था और बीच बीच में उस इमारत की ओर बड़े दुख और दर्द के साथ देख रहा था l कुछ देर बाद उस दुकान के सामने एक गाड़ी आकर रुकती है l गाड़ी से रॉय उतरता है l वह सीधे आकर ओंकार के बैठे टेबल पर बैठ जाता है l

ओंकार - नाश्ता करोगे...
रॉय - जी नहीं चेट्टी सर... नाश्ता करके ही आया हूँ...
ओंकार - तो चाय ले लो...
रॉय - जी वह...
ओंकार - अरे भाई... यह फाइव स्टार रेस्तरां ना सही... पर क्वालिटी अच्छी है... वैसे भी... सिर और बाहं जितनी भी ऊंचाई पर पहुँच जाए... पैरों को जमीन नहीं छोड़नी चाहिए...
रॉय - हा हा हा हा.... सॉरी चेट्टी सर... पर ऐसी पोलिटिकल बातेँ आपके लिए... या लोगों के लिए ठीक है... मैं थोड़ा अनकंफर्ट हो जाता हूँ... आदत जो नहीं है...
ओंकार - तो... स्पेशल डार्क कॉफी ले लो...
रॉय - लगता है... आप मनवा कर ही मानेंगे... ठीक है... (वेटर से) एक डार्क कॉफी मेरे लिए...
ओंकार - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... अब मतलब कि बात करें...
रॉय - (सवाल करता है) यहाँ...
ओंकार - मतलब कुछ तो खबर लाए हो...
रॉय - हाँ... पर आपको कौनसी खबर चाहिए.... अच्छी... या बुरी...

इतने में वेटर एक पेपर ग्लास में कॉफी लेकर रॉय को दे देता है l ओंकार नाश्ते को उतना ही छोड़ कर अपना हाथ धो लेता है और वेटर को पैसे देते हुए टीप रख लेने के लिए कहता है l दोनों दुकान से बाहर आते हैं और ओंकार के गाड़ी में बैठ जाते हैं l ओंकार की गाड़ी चलने लगती है और रॉय कॉफी का ग्लास लिए साथ में बैठ जाता है l ओंकार के गाड़ी के पीछे पीछे रॉय की गाड़ी फोलो करने लगती है l

रॉय - एक ज्याती सवाल पूछूं...
ओंकार - हाँ पूछो...
रॉय - आप कभी कभी इस फार्मास्युटीकल फैक्ट्री बिल्डिंग के सामने क्यूँ आते रहते हैं.... यह अब सरकारी कब्जे में है... खण्डहर हो रहा है... और सील्ड भी है...
ओंकार - (एक मायूसी भरा गहरी साँस छोड़ते हुए) यहाँ आकर... खड़े हो कर... अपने सुनहरे पुराने दिनों को याद करता हूँ... अपने मरहुम बेटे और खुद से वादा करता रहता हूँ... के एक दिन... ईन क्षेत्रपालों को... घुटने पर रेंगते हुए देखुंगा.... और तब तक... मैं मरना नहीं चाहता....


कुछ देर के लिए गाड़ी के अंदर खामोशी छा जाती है l फिर खामोशी को तोड़ते हुए रॉय ओंकार से सवाल करता है l

रॉय - पर... राजा भैरव सिंह के सामने आपमें वह मज़बूती नहीं दिखती... जो किसी बदले की भावना पालने वाले में दिखनी चाहिए...
ओंकार - सीधे सीधे क्यूँ नहीं पूछता... के कहीं क्षेत्रपाल से मैं डर तो नहीं गया.... (रॉय झेंप जाता है और अपनी नजरें नीचे कर लेता है) तो सुन... हाँ मैं डरता हूँ... पर क्षेत्रपाल से नहीं.... वक़्त से...(दांत पिसते हुए) मैं उसे बर्बाद होते हुए देखने से पहले मरना नहीं चाहता... क्यूँकी मेरे बदले की... मेरे इंतकाम की कोई वारिस नहीं है... इसीलिए दुश्मनी की बीड़ा उठा तो रखी है... पर खुद को महफ़ूज़ दायरे में रख कर... उसे यह एहसास दिलाते हुए... की कंधा चाहे किसीका भी हो... पर गोली मेरी ही होगी...
रॉय - सर ऐसी बात नहीं है... क्षेत्रपाल से बदला लेने वाले... बहुत हैं... स्टेट में...
ओंकार - हाँ हैं... पर आगे कोई नहीं आया... मैं... मैं ही सबको इकट्ठा कर रहा हूँ... क्षेत्रपाल के हुकूमत को मिटाने के लिए....
रॉय - बात आपकी सही है... पर सब के अपने अपने रास्ते हैं...
ओंकार - अच्छा... तब तेरा कॉन्फिडेंस किधर गिला करने चला गया था रे... अब दिल से बोल... मैं ना होता... तो तु छोटे क्षेत्रपाल से कैसे बदला लेता...
रॉय - (चुप रहता है)
ओंकार - मैं समेट रहा हूँ... हर उस शख्स को... जो क्षेत्रपाल के वज़ह से बिखरा हुआ है... हर उस शख्स के बदले में.. मैं अपना बदला ढूंढ रहा हूँ... जो तिलिस्म क्षेत्रपाल ने मुझसे छीना है... वही उससे मैं छिन लूँ... जमीनदॉस कर दूँ...

कहते हुए ओंकार थर्राती हुई एक गहरी साँस लेता है और वह बाहर की ओर देखने लगता है l फिर कुछ देर के बाद ओंकार खुद को नॉर्मल करते हुए रॉय से पूछता है

ओंकार - लिव इट... रॉय... अब बोलो... सुबह सुबह कौनसी कौनसी ख़बर लेकर आए थे... पहले खुश खबरी सुनाओ...
रॉय - हमारा आदमी जो राजगड़ में है... उसने एक अच्छी खबर भेजी है.... (ओंकार की आँखे बड़ी हो जातीं हैं) हाँ चेट्टी साहब... विश्व ने जंग ए ऐलान कर दिया है.... उसने पहले राजा के आदमियों को ना सिर्फ रात के अंधेरे में... दौड़ा दौड़ा कर पीटा... बल्कि उनके कब्जाए अपनी प्रॉपर्टी को उनसे... पुलिस वाले के सामने ही हासिल किया... गांव के लोगों ने क्षेत्रपाल के लोगों की पिटाई... कोई टॉर्च से... तो कोई लालटेन से देखे हैं...

ओंकार के चेहरे पर एक संतुष्टि वाला मुस्कराहट उभर जाती है l

ओंकार - चलो... आखिर खेल शुरु हो ही गया...
रॉय - हाँ...
ओंकार - अपने आदमियों से कहो... विश्वा पर बराबर नजर रखें... उसके हर कदम का टाइम पर रिपोर्ट करे... हमसे जो भी बन पड़ेगा... उसकी मदत कर देंगे...
रॉय - जी चेट्टी साहब... हमारे आदमी को.. मैंने यही इंस्ट्रक्ट किया है... पर मेरे समझ में यह नहीं आ रहा... हम विश्व से सीधे संपर्क क्यूँ नहीं कर रहे हैं...
ओंकार - मदत का ऑफर हमने किया था... लेना ना लेना उसकी मर्जी... हाँ यह बात और है... अभी उसे हमारी मदत नहीं चाहिए... पर आगे उसे जरूरत पड़ेगी....
रॉय - पर मुझे नहीं लगता... वह कोई भी मदत हम से लेगा...
ओंकार - तो मत लेने दो... हमें क्या...
रॉय - वैसे उसने कहा तो था.. जरूरत पड़ने पर मदत लेगा... पर मुझे लगता है... उसे हम पर भरोसा नहीं....
ओंकार - जो समझदार होता है... वह सांप बीच्छुओं पर भरोसा नहीं करते... वैसे भी उसे खुद पर बहुत भरोसा है...
रॉय - तो इसलिए आप उससे खुद को दूर रख रहे हैं....
ओंकार - विश्वा... विश्व प्रताप महापात्र... नेवला है... सांप और नेवले... एक साथ नहीं रह सकते...
रॉय - आप कितनों को हैंडल कर लेते हैं... इस विश्वा को भी कर सकते हैं...
ओंकार - विश्वा... एक दुइ धारी तलवार है... उसे हाथ में लेकर... अपने दुश्मन पर वार करो... या दुश्मन के वार से खुद का बचाओ... एक धार उसकी हमारी तरफ तो रहेगी ही रहेगी... इसलिए उससे खुद को दूर रख रहा हूँ... दूर से हैंडल कर रहा हूँ...

इस जवाब पर रॉय चुप रहता है l गाड़ी में फिरसे खामोशी छा जाती है l कुछ देर बाद ओंकार रॉय से

ओंकार - क्या यही खबर था...
रॉय - जी...
ओंकार - जानते हो रॉय... मेरी बदले की कश्ती में जो भी सवारी कर रहे हैं... सब के सब... किसी ना किसी तरह से... क्षेत्रपाल के सताये हुए... या मार खाए हुए हैं... तुम... तुम्हें भी बदला चाहिए... महांती से... अपनी बिजनैस और रेपुटेशन के लिए... मुझे बदला चाहिए... पिनाक और भैरव सिंह से... उनकी बेवफाई और दगाबाजी के लिए... महानायक को बदला चाहिए... विक्रम से... अपनी गुलामी के एवज में मिले हर एक अपमान के लिए... अरे हाँ... उस महानायक का लड़के का क्या कोई खबर मिला....
रॉय - (अटक अटक कर) वह... अभी तक तो नहीं...
ओंकार - ह्म्म्म्म तो यह तुम्हारी बुरी खबर थी....
रॉय - जी... पर एक लीड जरूर मिला है...
ओंकार - कैसी लीड...
रॉय - कल कुछ देर के लिए... विनय का मोबाइल ऑन हुआ था... पर चंद मिनट के बाद... मोबाइल फिर से स्विच ऑफ कर दिया....
ओंकार - ह्म्म्म्म कहाँ... तुमने उसकी लोकेशन ट्रेस की...
रॉय - जी... (ओंकार का भवां तन जाता है) आर्कु... आर्कु में वह उस लड़की के साथ हो सकता है...
ओंकार - आर्कु... यह आर्कु कहाँ है...
रॉय - विशाखापट्टनम से कुछ साठ या सत्तर किलोमिटर दुर... एक हिल स्टेशन है... बिल्कुल ऊटी के जैसी...
ओंकार - तो तुमने कोई कंफर्मेशन ली...
रॉय - थोड़ा कंफ्यूज हूँ... किसे भेजूं... क्यूंकि हमारे सारे आदमियों पर अशोक महांती की नजर है...
ओंकार - ह्म्म्म्म... (कुछ सोचने के बाद) एक काम करो... विनय को ढूँढ निकालने की जिम्मेवारी रंगा को दो... वैसे भी... बड़बील माइन्स में... सिर्फ रोटियाँ और बोटीयाँ ही तो तोड़ रहा है... उसे विक्रम के आदमी ओडिशा में ढूंढ रहे हैं... आंध्रप्रदेश में वह हो सकता है... किसीको भी अंदाजा नहीं होगा...
रॉय - हाँ यह बात आपने ठीक कही... मैं आज ही रंगा को विशाखापट्टनम भेजने की योजना बना लेता हूँ....
ओंकार - और एक काम बाकी रह गया है तुम्हारा....
रॉकी - कौनसी...
ओंकार - उस पर्दे के पीछे वाला मिस्टर एक्स... जो हमारे नाक के नीचे खेल खेला है...
रॉय - हाँ... मैं भी इस मैटर पर बहुत सीरियस हूँ... पर अभी तक कोई क्लू हाथ नहीं लगा है...
ओंकार - तो अपनी सीरियस नेस बढ़ाओ... कहीं ऐसा न हो... जिस कश्ती में हम सवार हैं... मालुम पड़े... किसीने उसमें छेद कर दिया है...

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द हैल
नाश्ते के लिए टेबल पर विक्रम बैठा हुआ है l वीर भी आ पहुँचता है l किचन में शुभ्रा नाश्ता बना रही थी l

वीर - भाभी नाश्ता...
शुभ्रा - तैयार है... पर पहले नंदिनी को तो आ जाने दो...
वीर और विक्रम - (एकसाथ आवाज देते हैं) नंदिनी...
रुप - आ रही हूँ... बस पाँच मिनट...

इतने में शुभ्रा नाश्ता लेकर आ जाती है और टेबल पर प्लेट लगा देती है l रुप सीढियों से उतरने लगती है l आज रुप हमेशा की तरह कॉलेज के लिए सलवार कमीज और जिंस पहनी थी और चेहरे पर हल्का सा मेक अप किया हुआ था l पर सबसे खास बात यह थी के आज उसका ड्रेसिंग सेंस कुछ अलग था और उस पर वह चहकते हुए, उछलते हुए आ रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे वह उड़ कर आ रही थी l विक्रम और वीर उसे हैरान हो कर देख रहे थे l टेबल के पास अपनी चेयर लेकर

रुप - हाय... गुड मोर्निंग...
वीर व विक्रम - (हैरानी के साथ) गुड मार्निंग...

शुभ्रा दोनों भाइयों के नजरों में उठ रहे सवालों को भांप जाती है, इसलिए वह दोनों भाइयों का ध्यान भटकाने के लिए

शुभ्रा - अच्छा वीर...
वीर - (चौंकते हुए) जी... जी भाभी...
शुभ्रा - (सबके प्लेट में नाश्ता लगाते हुए) यह बहुत गलत बात है...
वीर - क्या... क्या गलत हो गया है भाभी...
शुभ्रा - मेरी होने वाली देवरानी से नहीं मिलवाया अभी तक.... मांजी आकर देख भी ली... मिल भी ली... पर हम... तुमने अभी तक हमसे क्यूँ नहीं मिलवाया...
रुप - हाँ... बिल्कुल ठीक कहा आपने भाभी... छोटी माँ ने बहु पसंद कर ली... पर हम सब बेख़बर हैं... अनजान हैं...
वीर - नहीं ऐसी कोई बात नहीं है...
शुभ्रा और रुप - तो कैसी बात है...
वीर - भैया तो... जानते हैं उसे... क्यूँ है ना भैया...
विक्रम - (हकलाते हुए) हाँ... क्या... हाँ... वह.. मैं... बस एक बार ही बात की है उससे...
शुभ्रा - क्या... आपने भी उससे बात कर ली है... लो भई... (मुहँ बना कर) हम किस काम के रह गए...
रुप - (मुहँ बना लेती है) हाँ... भाभी... यह मेरे भाई... कितने सेल्फीस हो गए...
विक्रम - अरे यह क्या बात हुई... मैंने तो तब उस लड़की से बात करी थी... जब इन जनाब को उससे प्यार भी नहीं हुआ था...
वीर - क्या... यह आप क्या कह रहे हैं... मुझे उससे शुरू से ही प्यार था...
शुभ्रा - ऐ... चोर पकड़ा गया... (वीर शर्मा जाता है) अच्छा छोड़ो... अब बताओ... कब उसे घर ला रहे हो...
रुप - हाँ भैया... बोलो ना.. कब ला रहे हो.. मैं और भाभी जम कर स्वागत करेंगे... और बढ़िया बढ़िया खाना पकायेंगे...
शुभ्रा - लो कर लो बात... कभी खाना पकाया है आपने नंदिनी जी...
रुप - तो क्या हुआ सीख जाऊँगी ना... अरे हाँ... (जैसे कुछ याद आया) (विक्रम से) एक दिन ना भैया... भाभी ने मुझे ब्रेड आलू टोस्ट बनाना सिखाया था... मैंने बनाया भी था... पर उसमें ना नमक डालना मैं भूल गई थी... पर उस दिन वीर भैया ने दबा कर खा लिया... उस दिन हमें शक़ हुआ था... वीर भैया किसी के चक्कर में हैं...
वीर - (याद आता है) क्या उस दिन ब्रेड आलू टोस्ट में नमक नहीं था...
शुभ्रा और रुप - नहीं...

वीर और भी ज्यादा शर्मा जाता है तो वीर को नॉर्मल करने के लिए विक्रम दोनों ल़डकियों पर सवाल दागता है l

विक्रम - हो सकता है... उस दिन वीर थोड़ी जल्दबाज़ी में हो...
शुभ्रा - हाँ हाँ... हम समझ सकते हैं... वैसे वीर... क्या नाम है उस लड़की का... और ला रहे हो उसे...
वीर - (शर्माते हुए) वह अनु... अनुसूया है उसका नाम...
शुभ्रा और रुप - वाव.. अनु...
वीर - पर भाभी... वह यहाँ नहीं आएगी...
शुभ्रा और रुप - (हैरानी से) क्यूँ...
वीर - वह... इस घर में... बहु बनकर पहला कदम रखना चाहती है... इसलिए उसने ही मना कर दिया था...
रुप - हाँ तो वह बहु ही तो है ना... माँ ने पसंद किया है... आई मीन ऐसेप्ट किया है...
वीर - अरे ऐसी बात नहीं... वह शादी के बाद... गृह प्रवेश में पहला कदम रखना चाहती है...
शुभ्रा - ओ... तो ठीक है... हमें बाहर कहीं मिलवाओ... मतलब लंच पर...
वीर - ठीक है... तो आज...
रुप - नहीं नहीं आज नहीं...
सब - क्यूँ... आज क्यूँ नहीं...
रुप - अरे इतने दिनों बाद आई हूँ... आज कॉलेज जाऊँगी... पता नहीं वहाँ मेरी छटी गैंग.. मुझे क्या सजा देगी... इसलिए आज नहीं... और हाँ भाभी... प्लीज आज लंच पर मेरा वेट मत करना...
शुभ्रा - वह क्यूँ...
रुप - आज मेरे दोस्तों को लंच की रिश्वत देने वाली हूँ... सो प्लीज... मेरा लंच पर वेट मत करना...
शुभ्रा - ठीक है... एक काम करो वीर... कल शाम को... मिलने का प्रोग्राम रखो...
वीर - ठीक है भाभी...

सबका नाश्ता ख़तम हो गया था l सब उठने लगते हैं, शुभ्रा बर्तन समेटने लगती है के तभी

रुप - (वीर से) अच्छा भैया... चलो... आज मैं तुम्हें ऑफिस ड्रॉप कर कॉलेज जाऊँगी...
वीर - क्या तु मुझे ड्रॉप करेगी...
रुप - हाँ... अब तो ड्राइविंग लाइसेंस है मेरे पास... क्यों भाभी...
शुभ्रा - वह तो ठीक है... मगर गाड़ी...
रुप - मैंने आपकी गाड़ी की चाबी ले ली है... (कह कर गाड़ी की चाबी सबके सामने हिलाती है)
शुभ्रा - (हैरान हो कर) क्या... और मुझे कहीं जाना हुआ तो...
रुप - आप गुरु काका को ले जाना... वेरी सिंपल (वीर से) चलो भैया...

रुप भागते हुए बाहर चली जाती है, वीर भी उसके पीछे पीछे चल देता है l विक्रम की नजरें वहीँ ठहर गई थी l विक्रम अभी भी सोच में डूबा हुआ था l

शुभ्रा - क्या सोच रहे हैं आप...
विक्रम - रुप... हमारी नंदिनी के बारे में... जब यहाँ आई थी तो कैसी थी... अब कैसी हो गई है... जैसे चल नहीं रही है... दौड़ भी नहीं रही है... ब्लकि उड़ रही है... क्या वज़ह हो सकती है...
शुभ्रा - (चुप रहती है)
विक्रम - इस उम्र में... शुब्बु... आप भी ऐसी ही थीं... है ना... क्या नंदिनी को किसी से प्यार हो गया है...
शुभ्रा - (बर्तन लेकर किचन की जाते हुए विक्रम की ओर पीठ कर) पता नहीं...

सिंक पर बर्तन रख देती है पर वह वापस नहीं आती l विक्रम भी ऐसे सोचते हुए किचन में आता है l

विक्रम - शुब्बु... जहां तक मुझे लगता है... लॉ मिनिस्टर की बेटी की रिसेप्शन से लौटने के बाद से ही... नंदिनी की हरकतों और आदतों में तब्दीली आई है...

अब शुभ्रा खुद में सिमटने लगी थी, वह खुद में दुबकने लगी थी l उसे डर लगने लगती है l कहीं विक्रम को रुप पर शक़ तो नहीं हो गया l

विक्रम - मुझे लगता है... उस दिन पहली बार... दलपल्ला राजकुमार से मिली... अब नंदिनी को मालुम भी है... उन्हीं के घर जाना है... और शायद नंदिनी को पसंद भी आ गए... (शुभ्रा एक चैन की साँस लेती है) इसलिए शायद... मैं सही कह रहा हूँ ना... क्या नंदिनी ने तुम्हें कुछ बताया है...
शुभ्रा - (विक्रम की ओर मुड़ती है) आपका अनुमान सही हो सकता है... शायद नंदिनी को प्यार हो गया है... इसलिए खुशी के मारे... अपनी हिस्से की आसमान को मुट्ठी में कर लेना चाहती है...
विक्रम - क्या उसने आपको कुछ बताया है...
शुभ्रा - विक्की... उसे अपनी उड़ान तो भर लेने दीजिए... उड़ते उड़ते जब उसे अपने डाल पर उतरना पड़ेगा... तब वह सब बताएगी...
विक्रम - (मुस्कराते हुए) क्या बात है जान... आज तुम बहुत.. फिलासफीकल बात कर रही हो...
शुभ्रा - मैं... वह बता रही हूँ... जिसमें बातों की गहराई है... वैसे... एक बात पूछूं...
विक्रम - पूछिये...
शुभ्रा - क्या... मैं आज... आपके लिए लंच लेकर... ऑफिस आऊँ...
विक्रम - (हैरानी से देखने लगता है)
शुभ्रा - वह देखिए ना.. आज नंदिनी नहीं आएगी... मैं अकेली...
विक्रम - ठीक है...

शुभ्रा एक बच्ची की तरह उछल कर विक्रम के गले लग जाती है l विक्रम भी उसे अपनी बाहों में भिंच लेता है l उधर रुप कार चला रही थी l उसकी नजर सीधे सड़क पर थी पर वीर उसे हैरानी भरी नजरों से देखे जा रहा था l रुप की चेहरे पर आए बदलाव को समझने की कोशिश कर रहा था l

वीर - नंदिनी...
रुप - हूँ...
वीर - आर यु ईन लव...

चर्र्र्र्र्र रुप ब्रेक लगाती है l वह वीर की तरफ ऐसे देखती है जैसे उसे वीर ने गाड़ी के भीतर ही कोई बम फोड़ दिया हो l तभी उसके कानों में पीछे खड़ी गाडियों की हॉर्न की आवाजें सुनाई देने लगती है l रुप उस वक़्त इतना नर्वस महसुस करने लगती है कि उससे गाड़ी स्टार्ट नहीं हो पाती l गाड़ी झटके खाने लगती है l

वीर - इटस ओके... कूल... बी कूल... डोंट बी नर्वस...

रुप थोड़ी संभलती है l फिर से गाड़ी स्टार्ट करती है और जैसे ही गाड़ी स्टार्ट होती है रुप उसे सड़क के किनारे लगा देती है l

रुप - स... ससॉरी भैया...
वीर - किस लिए... (रुप जवाब दे नहीं पाती) ठीक है... क्या मैं पुछ सकता हूँ... कौन है... क्या रॉकी...
रुप - छी... कैसी बातेँ कर रहे हैं भैया... रॉकी मुझे बहन मानता है...
वीर - फिर.... (रुप फिर भी चुप रहती है) ठीक है... नहीं पूछता... वह राज जो.. मेरी चहकती बहना के चेहरे से मुस्कराहट गायब कर दे... मैं नहीं जानना चाहता... पर लड़का कैसा है... इतना तो बता सकती हो ना मुझे...
रुप - (शर्माते हुए) वह... बहुत अच्छा है... भैया... लाखों नहीं... करोड़ों नहीं... ब्लकि वह दुनिया में... यूनिक और एंटीक है...
वीर - वाव... मतलब लड़का बहुत ही अच्छा है... मेरी बहन इतना इम्प्रेस जो है...
रुप - (यह सुन कर शर्मा जाती है फिर झिझकते हुए) आप... आपको... बुरा लगा...
वीर - नहीं... बिल्कुल भी नहीं... जिस लड़की को... रिश्ते नातों की... उनकी गहराइयों की समझ हो... उसकी चॉइस कभी गलत नहीं होगी... इतना तो कह सकता हूँ...
रुप - (इसबार मुस्करा कर) थैंक्यू भैया...
वीर - क्या कॉलेज में कोई...
रुप - नहीं...
वीर - खैर... और कौन कौन जानते हैं... या...
रुप - नहीं नहीं... भाभी और माँ... यह दोनों जानती हैं....
वीर - तब तो ठीक है... अब कोई शिकायत नहीं है... अब मेरे समझ में आ रहा है... भाभी अचानक क्यूँ... अनु से मिलने की बात छेड़ दी....
रुप - भैया....
वीर - हूँ...
रुप - आपको मेरी कसम...
वीर - कसम... किस बात की कसम...
रुप - आप... ना तो माँ से पूछेंगे... ना ही भाभी से...
वीर - (मुस्कराते हुए) ठीक है मेरी बहन... तुझे इतना डर क्यूँ है...
रुप - वह... मतलब... जब वक़्त आएगा... तब मैं.. सबको बता दूंगी....

रुप कह कर शर्म से चेहरा झुका लेती है l नजरें मिलाने से कतराने लगती है l वीर उसकी हालत देख कर मुस्कराने लगता है l

वीर - ठीक है... मैं उस दिन का इंतजार करूँगा.... पर तुम अपनी जज़्बातों को थोड़ा काबु में रखो... तुम्हारे गालों की लाली... और आँखों की शरारत... बहुत कुछ बयान कर दे रही है... विक्रम भैया को भी आभास हो गया है... चूंकि भाभी जानती हैं... इसलिए भाभी बात को संभाल लेंगी... (रुप वीर की ओर देखते हुए मुस्कराने की कोशिश करने लगती है) अरे... अब तो गाड़ी को आगे बढ़ाओ... तुम्हें कॉलेज के लिए लेट हो रहा है...
रुप - (चौंक कर) हाँ.. हाँ...

रुप गाड़ी को स्टार्ट करती है और फिर से सड़क पर दौड़ाने लगती है l रुप इस बार गाड़ी चलाते हुए वीर की ओर देखती है l वीर खिड़की से बाहर की ओर देख रहा था, उसके होठों पर एक मीठी सी मुस्कान दिख रही थी l

रुप - भैया... एक बात पूछूं... क्या चेहरा... आँखे... दिल की हालत... बता देती है...
वीर - हाँ... प्यार एक ऐसी ज़ज्बात है... जब हो जाए... तो खुद को पता नहीं चलता... पर उसे पता चल जाता है... जो उस शख्स से जुड़ा हुआ हो...
रुप - मतलब... आपको... अपने प्यार का एहसास नहीं था...
वीर - ऊँ हूँ.. नहीं था... पर मेरी हाल चाल हरकतें सबकुछ किसी को बता दिया था... के मैं प्यार में हूँ... उसी ने ही एहसास दिलाया... फिर मुझे हिम्मत दी.. राह दिखाई... तब जाकर मैंने अपने प्यार के सामने अपने प्यार का इजहार कर पाया...
रुप - वाव... आज कल आपकी बातेँ भी ग़ज़ब की लगती हैं... वैसे कौन है वह... आपके राहवर...
वीर - तुम नहीं जानती उसे... मेरा सबसे खास और इकलौता दोस्त... उसका नाम प्रताप है... विश्व प्रताप...

एक्सीडेंट होते होते रह गया l विश्व का नाम सुनते ही रुप की कानों के पास चींटियां रेंगने जैसी लगती है l

वीर - अरे... संभल कर... लाइसेंस मिली है... फिर भी संभल कर...
रुप - ओह... सॉरी भैया... वैसे... आपके यह दोस्त करते क्या हैं...
वीर - कंसल्टेंट है... लीगल एडवाइजर है...
रुप - ओ... एक वकील है... जुर्म चोरी डकैती पर छोड़... प्यार इश्क मोहब्बत पर एडवाइज देता फिर रहा है...
वीर - अरे... तुम उसकी खिंचाई क्यूँ कर रही हो... जानती हो... प्यार के बारे में... उसके बहुत उच्च विचार हैं...
रुप - हा हा हा.. भैया... वकील मतलब लॉयर... एंड एज यु नो... अ लॉयर इज़ ऑलवेज अ लायर...
वीर - (खीज जाता है) अरे... कमाल की लड़की हो तुम... मेरे दोस्त के पीछे हाथ धो कर पड़ गई हो...
रुप - (मासूम सा चेहरा बना कर) सॉरी भैया... आपको बुरा लगा... वैसे क्या महान विचार हैं उनके...
वीर - क्यूँ... मैं क्यूँ बताऊँ...
रुप - ताकि लॉयर के बारे में... मैं अपना ओपिनियन बदल सकूँ...
वीर - ठीक है... तो सुनो... प्रताप कहता है... प्यार... तभी मुकम्मल होता है... जब हर ज़ज्बात और एहसास में थ्री डी हो...
रुप - (मुहँ बना कर) थ्री डी...
वीर - हाँ... डीवोशन... डीटरमीनेशन... और डेडीकेशन...
रुप - ओ... ह्म्म्म्म...
वीर - क्यूँ... कुछ गलत कहा क्या...
रुप - नहीं... यह थ्री डी.. ठीक ही है...
वीर - थ्री डी का मतलब तुमने और कुछ समझ लिया क्या...
रुप - हाँ... मैंने उनके विचारों से... उन्हें प्रीज्युम कर रही थी....
वीर - क्या... क्या प्रीज्युम कर रही थी...
रुप - हम्म्म... दुश्मन... दोस्त... और दिलवर.... हा हा हा हा...
वीर - ओह गॉड... नंदिनी यु आर इम्पॉसिबल...
रुप - (हँसते हुए) सॉरी भैया...

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घर के बाहर जो टीन के शेड थे l विश्व और टीलु दोनों मिलकर खिंच कर निकाल गिरा रहे थे l शनिया और उसके साथी ज्यादातर सामान ले गए थे l पर जो कुछ स्ट्रक्चर था अंदर उन्हें विश्व और टीलु मिलकर तोड़ रहे थे l गाँव के कुछ लोग दुर से देख तो रहे थे पर कोई ईन दोनों की मदत के लिए आ नहीं रहे थे l क्यूंकि भट्टी टुट जाने से गाँव के कई मर्द दुखी थे l पर गाँव की औरतें बड़ी खुश थीं l विश्व और टीलु अपनी जैल की अनुभव का इस्तेमाल करते हुए l उमाकांत के घर को अच्छी शकल देने की कोशिश कर रहे थे l

टीलु - भाई.. यह घर तो मिल गया... पर इसे संभाले कैसे...
विश्व - मतलब...
टीलु - मतलब... इस घर को क्या बनाने का इरादा है...
विश्व - बच्चों के लिए लाइब्रेरी और प्ले स्कुल...
टीलु - आइडिया तो अच्छा है... पर चलाएगा कौन... देखो दिन में शायद वे लोग कभी हिम्मत ना करें... पर रात को... वैसे भी... चोट खाए सांप हैं साले... सामने से तो वार करेंगे नहीं... पर...
विश्व - हाँ हाँ... समझ गया... क्या कहना चाहते हो... एक काम करेंगे... हम दोनों अदला बदली कर रात को यहाँ और वहाँ सोयेंगे... पर जिस दिन मैं कटक चला जाऊँगा... उस दिन तुम यहाँ नहीं... घर पर ही सोना...
टीलु - इसका मतलब तुम कटक जा रहे हो...
विश्व - हाँ... वज़ह है... पर्सनल भी प्रोफेशनल भी... माँ से वादा किया था... हर हफ्ते दस दिन के अंतराल में... उनके पास जाता रहूँगा... और जोडार साहब के कंपनी की स्टैटस और स्टैटीटीक्स... देखना पड़ेगा...
टीलु - भाई मैं भी चलूँ...
विश्व - नहीं अभी नहीं... और हम अगर एक दुसरे के साथ कटक गए... तो हमारे दुश्मन सतर्क हो जाएंगे... मैं... भैरव सिंह को कोई भी लीड देना नहीं चाहता... (एक गहरी साँस लेते हुए) मैं यह जंग हर हाल में जितना चाहता हूँ.... पर किसीको खोने की कीमत पर नहीं...

टीलु कोई जवाब नहीं देता l वह नजर घुमाता है तो देखता है कुछ बच्चे घर के बाहर छुप कर इन्हें काम करते हुए देख रहे हैं l टीलु अपना गला खरासते हुए विश्व को उनके तरफ देखने के लिए इशारा करता है l विश्व उन बच्चों की तरफ देखता है जो विश्व को बड़े आग्रह और जिज्ञासा के साथ देख रहे थे l विश्व मुस्कराते हुए उन बच्चों को इशारे से अपनी तरफ बुलाता है l बच्चे इशारे से पहले ना कहते हैं l विश्व भी बच्चों की तरह मुहँ बना कर इशारे से पास बुलाता है l बच्चे मुस्कराते हुए उसे देखते तो हैं पर कोई पास नहीं आ रहा था l

विश्व - अरे बच्चों.. अगर तुम मेरे पास आते हो... तो मैं बहुत सारा चाकलेट लाकर दूँगा...
एक बच्चा - सच.. पर आपके पास चाकलेट कहाँ है...
विश्व - अरे.... पहले मेरे पास आओ तो सही... फिर जब दोस्ती करोगे... तब जाकर ढेर सारा चाकलेट मिलेगा...

बच्चे धीरे धीरे कंपाउंड के अंदर आते हैं l विश्व जेब से कुछ पैसे निकाल कर टीलु को देता है l टीलु समझ जाता है और भागते हुए वहाँ से चाकलेट लाने चला जाता है l इस बीच विश्व उन बच्चों से दोस्ती करने की कोशिश करता है l

विश्व - अच्छा यह बताओ... तुम लोग मुझे जानते हो...
एक बच्चा - हाँ...
विश्व - अच्छा... कैसे...
एक बच्चा - मेरे बाबा बार बार आपको घर में गाली देते हुए साला साला कहते थे... मैंने माँ से पुछा तो माँ ने कहा.... जो बाबा का साला है... वह मेरे मामा लगते हैं...
विश्व - (मुस्कुराए बिना नहीं रह सका) बिल्कुल मैं तुम लोगों का मामा ही हूँ... और जानते हो.. परिवार में... बच्चे सबसे ज्यादा मामा के करीब होते हैं... और मामा से दोस्ती रखते हैं...
सारे बच्चे - नहीं...
विश्व - कोई नहीं... तुम्हें तुम्हारे मामा ने बता दिया ना...
सारे बच्चे - हाँ...
विश्व - तो अब से मैं तुम लोगों का... और तुम सब मेरे दोस्त हो ठीक है...
सारे बच्चे - हाँ...
एक बच्चा - मामा... चाकलेट आने में और कितनी देर लगेगी...
विश्व - बस थोड़ी देर और...

थोड़ी देर के बाद टीलु बहुत सारी चाकलेट लाया था l जिसे विश्व सभी बच्चों में बांट देता है l बच्चे बड़े आग्रह से चाकलेट लेते हुए खुश होते हैं और खुशी के मारे उछलने लगते हैं l तभी हरिया और कुछ लोग वहाँ पहुँचते हैं l हरिया उस पहले बच्चे को पकड़ कर उससे चाकलेट छिन लेता है और उसे ले जाने लगता है l

विश्व - हैइ... बच्चों के साथ यह क्या कर रहे हो...
हरिया - तुमको मतलब... यह मेरी औलाद है... मैं चाहे जो करूँ... (बच्चे से) ख़बरदार जो फिर कभी यहाँ आया तो... टांगे तोड़ दूँगा तेरी....
विश्व - बड़ा मर्द बन रहा है... मेरे ही सामने इसको हड़का रहा है...
हरिया - देखो विश्वा... हम तुम से दुर हैं... तुम भी हम से दुर रहो...
विश्व - राजा का हुकुम... तुम जैसे निकम्मे और नाकारों के लिए है... बच्चों के लिए नहीं... इसलिए अपनी निकम्मे पन की खीज बच्चों पर क्यूँ उतार रहे हो...
हरिया - बस बहुत हुआ... राजा के आदमियों को मार दिया तो इसका मतलब यह नहीं... की मैं तुमसे डर जाऊँगा... मेरा और हम सबके बच्चे ना तो यहाँ आयेंगे... ना ही तुम से कोई वास्ता रखेंगे... इसलिए... तुम हमसे... हमारे बच्चों से दुर ही रहो...
विश्व - अगर नहीं रहा तो...
हरिया - देखो... तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा... राजा साहब के लोग तुमसे डरते होंगे.. हम नहीं... क्यूँ साथियों...
साथ आए लोग - हाँ हाँ...
विश्व - तो तुम लोगों की भी... उसी तरह से पिटाई करूंगा... जैसे शनिया और उसके लोगों का किया...
हरिया - क्या... तु.. तुम.. हमें भी मारोगे...
विश्व - हाँ... कोई शक़... अगर है.. तो दूर कर दो... मेरे और मेरे दोस्तों के बीच जो भी आएगा... मैं उसकी पिटाई कर दूँगा... (बच्चों से) क्यूँ दोस्तों...
बच्चे - ये ये... (चिल्ला कर ताली बजाने लगते हैं)
हरिया - (बच्चों से) चुप.. चुप.. (विश्वा से) तुम हमें मारोगे...
विश्व - (पास पड़े एक डंडा उठाता है और हरिया के तरफ दिखा कर) तुम्हें अभी भी शक़ है... उन हराम खोरों को रात के अंधरे में कुटा था.. तुम लोगों को तो दिन के उजाले में... कूट सकता हूँ... (बच्चों से) बच्चों आज जाओ... पर कल जरूर आना... यहाँ तुम लोगों के लिए... लाइब्रेरी बनेगी... प्ले स्कुल बनेगी... कोई नहीं रोकेगा... जो रोकेगा... वह इस डंडे से ठुकेगा...

हरिया और सभी गाँव वाले गुस्से से मुहँ बना कर वहाँ से अपने अपने बच्चों को ले जाते हैं l यह सब टीलु चुप चाप देख रहा था l उन सबके जाने के बाद टीलु विश्व से पूछता है l

टीलु - भाई... तुमने गाँव वालों को डरा दिया... उनको मारोगे... ऐसा कहा..
विश्व - हाँ...
टीलु - जिनके लिए लड़ने आए हो... उन्हीं लोगों को... उनके बच्चों के सामने अपमान कर दिया... तुम भी तो उनमें से एक हो....
विश्व - (टीलु की ओर देखता है,) टीलु... मैं यहाँ अपनी लड़ाई लड़ने आया हूँ... उनकी फौज बना कर लड़ने नहीं आया... डैनी भाई मुझसे हमेशा एक बात कहते थे... फाइट यु योर औन बैटल... मैंने पहले अपनी लड़ाई खुद लड़ा... तब जाकर डैनी भाई ने... मुझे धार दिया... यह लोग... सब मरे हुए हैं... कोई भी जिंदा नहीं है यहाँ... मन से... आत्मा से ज़ज्बात से... मरे हुए यह लोग... अपनी जिंदा लाश को अपनी ही बीवी और बच्चों से घसीट रहे हैं... इनकी हिम्मत नहीं है... राजा से या उसके आदमियों से टकराने के लिए.... अपनी इसी निकम्मे पन की खीज दारु पी कर... अपनी बीवी पर... बच्चों पर उतारते रहते हैं... पर यह लोग मुझे धमकाने आ गए... जरूरत पड़ने पर... मुझसे भीड़ भी जाते... क्यूँ... क्यूंकि वे लोग इसी सोच में थे... के मैं उनमें से एक हूँ... जब कि मैं उनमें से नहीं हूँ... उनके बीच से आया तो हूँ... पर अब उनके जैसा नहीं हूँ... और हाँ... मैं ज़रूर उनको अपने जैसा बनाना चाहता हूँ... उनकी लड़ाई... मेरी लड़ाई तब होगी... जब वह लोग... मेरे जैसे बनेंगे...
टीलु - पर उन्हें ऐसे अपमानित कर...
विश्व - हाँ... अंडा जब बाहर से टूटता है... तो जीवन समाप्त हो जाता है... पर जब अंदर से टूटता है... तो नया जीवन आरंभ होता है... मैं उनको अंदर से झिंझोड रहा हूँ... ताकि एक नए जीवन की शुरुआत हो...

विश्व इतना कह कर चुप हो जाता है l टीलु विश्व की मनसा को समझ गया था l इसलिए वह बात बदलने के लिए

टीलु - भाई... इस लाइब्रेरी का क्या नाम रखोगे...
विश्व - श्रीनिवास प्ले स्कूल व लाइब्रेरी...

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वीर अपने केबिन में आता है l आते ही उसकी आँखे बंद हो जाती हैं l क्यूंकि कमरे से बहुत ही भीनी और मदहोश कर देने वाली खुशबु आ रही थी l उसके होठों पर मुस्कराहट आ जाती है वैसे ही आँखे मूँदे वह अपनी बाहें फैला देता है l जाहिर से उसके केबिन में अनु पहले ही मौजूद थी वह वीर के गले से लग जाती है l दोनों एक दुसरे के बाहों में कुछ देर के लिए खो से जाते हैं l

वीर - जानती हो... हर तरफ खीजा ही खिजा है... एक तुमसे ही जिंदगी में मेरे बहार है... (अनु खुश हो जाती है और वीर के गले में और भी ज्यादा कस जाती है) अनु..
अनु - जी...
वीर - मेरी बहन और भाभी... दोनों तुमसे मिलना चाहते हैं...
अनु - (वीर से अलग हो कर) कब... (सवाल) आज ही...
वीर - आज नहीं... कल शाम को...
अनु - ओह... पर... आपके घर...
वीर - जानता हूँ... मैंने सबसे कह भी दिया है.... तुम शादी के बाद ही... घर में अपना पहला कदम रखना चाहती हो... इसलिए हम बाहर कहीं प्रोग्राम रखेंगे...
अनु - ठीक है... पर कहाँ...
वीर - ह्म्म्म्म... कल मिलकर तय करते हैं ना...
अनु - (थोड़ी झिझक के साथ) राजकुमार जी...
वीर - (मजे लेते हुए) कहिए अनु जी...
अनु - ऊँऊँऊँ... आप मुझे जी ना कहें...
वीर - क्यूँ... मैं क्यूँ ना कहूँ... तुम भी तो मुझे... जी... कहते हो... और ऊपर से नाम भी नहीं लेती... कभी वीर नहीं तो वीरजी... बुला सकती हो...
अनु - (शर्माते हुए) नहीं... कभी नहीं बुला सकती...
वीर - ऐसा क्यूँ भला...
अनु - वह... (शर्मा जाती है)
वीर - हूँ हूँ... कहो कहो...
अनु - वह... पंजाबी में ना... वीरजी का मतलब भैया होता है... इसलिए... (शर्मा के घुम जाती है)
वीर - ओ तेरी... तो बात यह है... ह्म्म्म्म... (अनु को पीछे से हग करते हुए) पर मेरी प्यारी अनु... तुम्हें पंजाबी कैसे आती है...
अनु - नहीं आती... पर जानती हूँ... क्यूंकि... हमारे वहाँ एक पंजाबी ढाबा है... वहाँ की लड़की अपने भाई को वीर जी कहती है... इसलिए मैं जानती हूँ...
वीर - ठीक है अनु जी... मुझे आपका राजकुमार कुबूल है...
अनु - (मुहँ बना कर)आप मुझे फिरसे छेड़ रहे हैं...
वीर - (अपने गाल को अनु के गाल से रगड़ते हुए) वह तो मेरा हक है... जैसा कि आपका मुझ पर...
अनु - मैंने कभी आप पर हक जताया तो नहीं...
वीर - (अनु की चेहरे को मोड़ कर अपनी तरफ करते हुए) तो करो ना... कौन रोक सकता है तुम्हें... खुद मैं भी नहीं...

वीर की यही बात अनु के दिल पर असर कर जाती है l उसकी आँखे छलक जाती हैं और वह घुम कर वीर के सीने से लग जाती है l

अनु - मुझे कोई हक नहीं जताना... आप मेरे कितने हो... मुझे इससे कोई मतलब नहीं है... मैं बस आपकी हूँ... और आपको यह स्वीकार है... मेरे लिए यही काफी है...
वीर - (अपनी बाहों में कसते हुए) पगली... यह भी कोई बात हुई... (अनु के बालों को पकड़ कर उसके चेहरे को अपने सामने ला कर) सुन... चाहे कुछ भी हो जाए... पर इस सच को कोई झुठला नहीं सकता... ना मैं... ना तु... ना भगवान... मैं सिर्फ और सिर्फ तेरा हूँ... और तु सिर्फ और सिर्फ मेरी है... समझी...

अनु अपना सिर हिला कर हाँ कहती है l वीर उसे गले से लगा लेता है l अनु की खुशी दुगुनी हो गई थी वह भी कस कर वीर के गले से लग जाती है l

वीर - मैं हमेशा पसोपेश में पड़ जाता हूँ... तु... भोली है... या बेवक़ूफ़ है...
अनु - जो भी हूँ... जैसी भी हूँ... आपकी हूँ... (अपना चेहरा उठा कर वीर से) झेलना तो आपको ही है....
वीर - चुप... तुझे तो मैं... अपनी पलकों पर रखूँगा... तु नहीं जानती... तुझसे मेरी जिंदगी कितनी खुबसूरत है... तु है... तो जिंदगी है... तु नहीं तो कुछ भी नहीं... मैं भी नहीं... और तुझे मुझसे कोई नहीं छिन सकता... यहाँ तक भगवान भी नहीं...
अनु - प्लीज... कितनी मन्नतों के बाद... मैं आपकी दिल में जगह पा सकी हूँ... और आप हैं कि... भगवान को बीच में ला रहे हैं... किसी से नहीं तो... कम-से-कम भगवान से तो डरीये...
वीर - तुझे किसने कहा कि मैं भगवान से नहीं डरता... पर तु मेरी धड़कन में समा चुकी है... नस नस में सिर्फ़ तु ही तु दौड़ रही है... हर साँस जो अंदर जाती है... तेरी खुशबु... तेरी ख्वाहिश लिए अंदर जाती है... और हर साँस तेरी चाहत लिए बाहर आती है... तु जिंदगी है... तु मेरी जुनून है... तु साथ है... तो यह दुनिया है... यह जहां है...
अनु - मैं कितनी भाग्यवान हूँ... के आप मुझे इतना चाहते हैं... पर राजकुमार जी... (वीर से अलग होते हुए) आप क्या डर रहे हैं... जैसे... मैं आपसे छिन जाऊँगी...

वीर अपना चेहरा घुमा लेता है l अनु कुछ समझ नहीं पाती पर वीर के पीठ से लग जाती है l

अनु - मैं जानती हूँ राजकुमार जी... आपके वंश की योग्य नहीं हूँ... भले ही रानी माँ ने मुझे स्वीकर कर लिया हो... पर शायद आपके परिवार में.... (रुक जाती है)
वीर - (अनु के हाथों को पकड़ कर) मेरे परिवार की चिंता नहीं है... (अनु को अपने तरफ सामने ला कर) (अपना सिर झुका कर) अपने काले स्याहे अतीत की है...
अनु - (वीर की दोनों हाथों को लेकर अपने गालों पर रख देती है) आप ऐसे सिर ना झुकाएं.... कुछ भी हो जाए... मैं आपकी थी... हूँ और रहूँगी...
वीर - ओह... अनु... मैं... मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ... तुम बहुत ही अच्छी हो... इतनी भोली... इतनी मासूम... तुम नहीं जानती... तुम सोच भी नहीं सकती.. यह दुनिया... कितनी खराब है... यह दुनिया... मेरी सोच से भी बहुत बहुत खराब है... इसलिए मुझे डर लगा रहता है... कहीं यह दुनिया मुझसे तुम्हें छिन ना ले... मुझे डर लगा रहता है... तुम्हें खोने की... खो देने की...
अनु - (वीर के हाथ को चूमते हुए) मेरी भोला पन... मेरी बेवकूफ़ी.. मेरी मासूमियत की कीमत अगर आप हो... तो मुझे यह हर जन्म में स्वीकार है... मेरा प्यार... मेरी चाहत... सिर्फ इस जन्म के लिए नहीं है... मैं जब भी दुनिया में आती रहूँगी... सिर्फ आपके लिए ही आती रहूँगी...
वीर - (एक शरारती भरा मुस्कान लिए) इतना चाहती हो...
अनु - (इतराते हुए) हूँ...
वीर - तो तुम मुझसे वह क्यूँ नहीं कहती... जो मैं तुमसे बार बार कहता रहता हूँ...
अनु - (हैरान होते हुए) क्या..
वीर - आई लव यु...
अनु - (शर्मा कर मुस्कराते हुए) धत... मैं... मुझे... ना.. मैं नहीं कह सकती...
वीर - क्यूँ... अरे यही वह तीन शब्द हैं... जो सबसे मधुर और बहुत प्यारे हैं...
अनु - जानती हूँ... पर पता नहीं क्यूँ... यह... मुझे शर्म आती है..
वीर - हे भगवान... क्या इनके मुहँ से वह जादुई शब्द नहीं सुन पाऊँगा...
अनु - ज़रूर सुनिएगा... कहूँगी जरूर पर अभी नहीं...

वीर अनु को अपने करीब लता है l उसका चेहरा अनु के चेहरे से कुछ ही दूर था l दोनों को एक-दूसरे की गरम सासों की एहसास हो रहा था l वीर की होंठ आगे बढ़ते हैं l अनु अपनी आँखे मूँद लेती है l एक नर्म चुंबन का एहसास उसके माथे पर होता है l अनु अपनी आँखे खोल देती है l

अनु - राजकुमार जी... आप डरते क्यूँ हैं...
वीर - मैं किसी से नहीं डरता...


अनु हँसते हुए वहाँ से निकल जाती है l वीर भी बड़ी हसरत लिए उसे जाते हुए देखता है l

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ड्रॉइंग रुम में सीलिंग फैन तेजी से घुम रहा है l नीचे तापस बैठ कर मजे से टीवी देख रहा है l प्रतिभा किचन में बिजी है और खाना बनाते वक़्त कुछ बड़बड़ा भी रही है l बहुत देर से तापस गौर तो कर रहा था पर पुछ नहीं रहा था l पर फिर उससे रहा नहीं जाता पुछ बैठता है l

तापस - (ऊँची आवाज़ में) क्या बात है जान... अपने आप से बात कर रही हो...
प्रतिभा - (ऊँची आवाज़ में) क्या करूँ... जिससे बात करने का मन कर रहा है... वह तो टीवी में मुहँ गड़ाए बैठा है...
तापस - (सोफ़े से उठ कर किचन की ओर जाते हुए) अरे अगर बात ही करनी है... तो जानेमन यहाँ भी आकर गुफ़्तगू किया जा सकता है...
प्रतिभा - (किचन से बाहर आकर) तो खाना कौन बनाता...
तापस - अजी हमें तो आप कभी किचन में घुसने नहीं देती... वर्ना हम भी बताते... हम भी बड़े काम के हैं... और दिखाते... खाना कैसे बनाते हैं...
प्रतिभा - ज्यादा डींगे मत हांकीए... मैं जानती हूँ... आप का खाना बनाने के बारे में....
तापस - आरे जान... कभी हमें मौका दे कर देखती... उँगलियाँ चाट कर ना रह जाओ... तो हमें कहना... पर क्या करें.... तुमने कभी मुझे किचन में घुसने ही नहीं दिया...
प्रतिभा - (अपनी पल्लू को कमर पर ठूँस कर) देखिए... यह किचन मेरी... एंपायर है... यहाँ सिर्फ़ मेरी चलेगी...
तापस - ठीक है... ठीक है जान... ठीक है... पर इसके लिए... झाँसी की रानी बनने की क्या जरुरत है...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अगर आप कह रही हैं... तो हो ही गया...
प्रतिभा - अच्छा जी... हमने कहा तो हो गया आपका... क्यूँ...
तापस - और नहीं तो... अजी हम आप पर मरते जो हैं...
प्रतिभा - दिन दहाड़े झूठ बोलते हुए शर्म नहीं आती...
तापस - क्या कहा... हम आपसे प्यार करते हैं... यह झूठ है...
प्रतिभा - हाँ... (कहते हुए किचन के अंदर चली जाती है)
तापस - (उसके पीछे पीछे किचन में आकर) यह तौहीन है... हमारे मुहब्बत पर मल्लिका ए हाइ कोर्ट...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अभी कहाँ... अभी आपको मेरे उपर लगाए गए हर ज़ुर्म को साबित करना होगा... समझी माय लॉर्ड...
प्रतिभा - अच्छा... तो आपको सबुत चाहिए...
तापस - यस...
प्रतिभा - अगर आपको प्यार होता... तो आप टीवी के बजाय... मुझे देखते हुए किचन के अंदर... अपनी कोई सढी गली शायरी सुना रहे होते...
तापस - एक और तौहीन... यह ना काबीले बर्दास्त है... योर हाइनेस...
प्रतिभा - मैंने फिर कहाँ तौहीन लगाया...
तापस - मेरे शायरी को... सढि गली कहा...
प्रतिभा - (बिदक कर) आआआआह्ह्ह्ह... (हाथ में जो चम्मच था उसे पटकती है)
तापस - (उसे देख कर)
हाय...
इश्क में वह मुकाम तय हुआ है क्या बताएं
कायनात की कयामत तक तुमसे जफा रखा है...
गुस्से में कुछ और भी हसीन लगते हो,...
बस यही सोच कर तुमको खफा रखा है...

यह सुन कर प्रतिभा का गुस्सा फुर हो जाती है और वह अपनी होठों को दबा कर मुस्कराने लगती है l

तापस - यह हुई ना बात... अच्छा जान अब बताओ... आज किस खुशी में तुमने कोर्ट छुट्टी कर दी...
प्रतिभा - बस थोड़ी देर और... आपको सब कुछ पता चल जाएगा...

तभी घर की डोर बेल बजती है l तापस जाकर दरवाजा खोलता है l पीछे पीछे प्रतिभा भी पहुँच जाती है l बाहर रुप खड़ी थी l जहां तापस रुप को देख कर हैरान हो जाता है वहीँ रुप को देख कर प्रतिभा बहुत खुश हो जाती है l रुप खुशी के मारे उछल कर अंदर आने को होती है कि प्रतिभा उसे रोकती है

प्रतिभा - रुक... पहले रुक...
रुप - (हैरान हो कर) क्यूँ... क्या हुआ माँ जी...
प्रतिभा - पहले यह बता की अब कि बार घर के अंदर कैसे आएगी.... इस घर की बहू... या प्रताप की दोस्त...
रुप - (शर्मा कर इतराते हुए) अगर सास बनकर बुलाओगे तो बहु अंदर आएगी...
अगर प्रताप की माँ बनकर बुलाओगे... तो भी आपकी बहु ही अंदर आएगी..
प्रतिभा - (खुश हो कर) मतलब... उस बेवक़ूफ़ ने... (रुप की नाक पकड़ कर) इस नकचढ़ी को पहचान कर प्रपोज भी कर दिया...
रुप - आह... हाँ...
प्रतिभा - (बहुत खुश हो जाती है) आह आ... तो फिर एक मिनट के लिए रुक...

कह कर प्रतिभा अंदर चली जाती है l यह सब देख कर तापस दोनों को बेवक़ूफ़ों की तरह देख रहा था l उसे इतना कंफ्युज्ड देख कर रुप उसे कहती है

रुप - नमस्ते डैडी जी...
तापस - (हकलाने लगता है) हा हा.. है.. हेलो... के... कैसी हो बेटी...
रुप - बहुत ही बढ़िया... और आप...
तापस - मैं... पता नहीं बेटी.. अब तक तो बहुत बढ़िया ही था...

हाथ में थाली और दिया लेकर प्रतिभा दरवाजे पर आती है और रुप की नजर उतारती है l

रुप - माँ जी... वह डैडी जी....
प्रतिभा - बेटी.. इनकी बातों को ज्यादा सीरियस लेने की कोई जरूरत नहीं है... यह तो बस ऐसे ही... बे फिजूल की बातेँ करते रहते हैं... (रुप को अंदर लाकर सोफ़े पर बिठाती है, फिर तापस से) सुनिए सेनापति जी...
तापस - (जो झटके पर झटके खा कर उबर रहा था) जी... बताइए.. भाग्यवान....
प्रतिभा - देखिए... आज बहु आई है... किचन में सब कुछ तैयार रखा है... कुछ मैंने बना दिया है... बाकी आप आज बना दीजिए... तब तक के लिए.. मैं बहु को कंपनी दे रही हूँ... अच्छा यह बता... तुने आज कॉलेज बंक क्यूँ की...
रुप - मुहँ बना कर... क्या माँ जी... आपसे मिलने आई हूँ... और आप मुझसे ऐसी सवाल कर रहे हैं...
प्रतिभा - अरे पागल लड़की... मुलाकात तो शाम को भी हो सकती थी... अभी दोपहर में...
रुप - बस माँ आपसे मिलना चाहती थी... इसलिए आ गई... पर वादा करती हूँ... जो वैदेही दीदी का सपना था... जो प्रताप बनना चाहता था... वह मैं बन कर दिखाऊँगी... मैं डॉक्टर बनूँगी...
प्रतिभा - शाबाश बेटा...
रुप - मेरी भाभी भी डॉक्टर हैं... हाँ यह बात और है कि वह... प्रैक्टिस नहीं करती... पर मैं उनसे ही एंट्रेंस की तैयारी करूंगी...
प्रतिभा - बहुत अच्छे...


इस तरह प्रतिभा और रुप के बातों का सिलसिला बढ़ने लगता है l उनको ऐसे बातेँ करते देख तापस का मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है l वह अपनी आँखे टिमटिमाते हुए प्रतिभा और रुप के ओर देखने लगता है l प्रतिभा जब देखती है तापस वहीँ खड़ा है

प्रतिभा - अरे... जाइए ना...
तापस - आर यु श्योर... मैं किचन के अंदर जाऊँ...
प्रतिभा - यह कैसा सवाल हुआ... बहु को भूखो रखोगे... जाइए... आज बचे खुचे खाने पर अपने हाथ का कमाल दिखाइए... ताकि मैं और बहू दोनों अपनी अपनी उंगली चाट जाएं...
तापस - ओह ह के... श्योर..

कह कर तापस किचन के अंदर चला जाता है l अंदर पहुँचकर देखता है सिर्फ़ दाल और चावल ही बना हुआ था l पनीर रखी हुई है, मटर छिले हुए हैं और तरह तरह की सब्जियाँ सारे कटे हुए हैं और एक जगह रखे हुए हैं l

तापस - (गुन गुनाने लगता है) क्या से क्या हो गया.... बेवफा तेरे प्यार में

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हा हा हा हा...
अनिकेत रोणा का सरकारी आवास l रोणा एक कुर्सी पर अपने एड़ीयों पर बैठा है, उसने अपने सिर पर ग़मछा ओढ़ रखा है l शनिया और उसके सभी साथी नीचे फर्श पर घुटनों पर बैठे हुए हैं l ईन सबके बीच चहलते हुए बल्लभ ठहाका लगा कर हँस रहा था l क्यूंकि सब के चेहरे पर बारह बजे हुए थे l

रोणा - हँस ले... काले कोट वाले कौवे... हँस ले...
बल्लभ - हँसु नहीं तो क्या करूँ बोलो... बहुत बार कहा है... तु कानून का ताकत है... पर मैं दिमाग हूँ.. यह सब करने से पहले... एक बार मुझसे पुछ तो लेते...
रोणा - तु और दिमाग.. आक थू... साले कितनी बार कहा था.. विश्वा को मार देते हैं... पर नहीं.. दिमाग चलाया था... या भोषड़ा पेलाया था... साला दिमाग से लोमड़ी और ताकत से शेर बन कर लौटा है वह...
शनिया - हाँ वकील बाबु... कमबख्त... हमारी मालिश किया करता था अखाड़े में... पर अब...
बल्लभ - इस बार भी जम के मालिश किया है उसने... पिछवाड़ा टीका कर बैठ नहीं पा रहे हो...
सत्तू - (कराहते हुए) हाँ... साहब... झूट भी बोला था... उस कमीने ने ... हमारी पिटाई शनिया भाई करेंगे... इस शर्त पर शनिया भाई को छोड़ा था... पर किसी को नहीं छोड़ा.. सबको भगा भगा कर मारा.... आह...
रोणा - चुप बे... साले हरामी... बात ऐसे कर रहा है... जैसे पाला हरिश्चंद्र के लाल से पड़ा था...
बल्लभ - उस पर गुस्सा क्यूँ हो रहा है... भेजा तो तुने ही था... विश्वा के बारे में सबकुछ जानते हुए भी... दो दो बार उससे पटखनी खाने के बाद भी...
रोणा - हाँ हाँ भेजा था ईन लोगों को... उसके पास... (चेयर से उतर जाता है) सोचा था सो गया होगा... आधी रात को... पर मालुम नहीं था... वह भी अपनी तैयारी में बैठा था... ईन सब के लिए....
बल्लभ - तेरा प्रॉब्लम क्या है जानता है... तु हमेशा दिमाग गरम रखता है.... पहली बार जॉगिंग की बात छोड़ देते हैं... पर होटल के गरम पानी वाला कांड याद कर... विश्वा... अपने सामने वाले के दिमाग से खेलता है... या ऐसी परिस्थिति बनाता है कि... उसके दुश्मन उसीके हिसाब से चलने लगते हैं...
भूरा - हाँ साहब... उसने कहा था पुलिस लेकर आएगा... वह आया भी... हमें लगा था... दरोगा आयेंगे नहीं... पर दरोगा जी तो.. वह भी उसे अपने साथ गाड़ी में बिठा कर लाए...
रोणा - तु चुप रह हराम के ढक्कन.. गाड़ी पे ना बिठाता तो क्या करता... अब वह वकील है... कोई आम गाँव वाला नहीं है.. जो उसे हड़का देता...
बल्लभ - वह वकील है... यह तुझसे किसने कह दिया...
रोणा - तु यह क्या बात कर रहा है... हम ने खबर निकाली थी ना..
बल्लभ - हाँ निकाली थी... पर वह जैल में था... वकालत पढ़ लिया तो क्या हुआ... वकालत करने के लिए लाइसेंस की जरूरत पड़ती है... उसने डिग्री तो हासिल कर ली है... पर लाइसेंस... लाइसेंस कैसे हासिल होगा...
रोणा - जानता हूँ... पर अपने लिए... हर कोई लड़ सकता है... और प्रॉपर्टी उसीके नाम पर ही है... और कमाल की बात यह थी.. की जैल में रह कर भी उसने... या वैदेही ने प्रॉपर्टी टैक्स भरे हैं... उसके पास दस दिन पहले का एकुंबरेंस सर्टिफिकेट भी था....
बल्लभ - फिर भी... तु ना जाता... तो तेरा क्या उखाड़ लेता... पुलिस वाले पे तो हाथ नहीं उठा सकता था... रही तेरे नाम की फाइल अदालत में खोलने की बात... तो जाने देता ना... तब मैं किस काम आता...

एक गहरी साँस छोड़ते हुए रोणा उसी कुर्सी पर बैठ जाता है l वह किसी थके हारे की तरह बेबस होकर

रोणा - ठीक कहता है... वह मेरे दिमाग पर इस तरह से हावी हो गया था कि... मैं ढंग से सोच भी नहीं पाया...
बल्लभ - हाँ... क्यूंकि बात गाँव की है... तो (शनिया और उसके साथियों से) तुम सालों... जब उसने साठ घंटे का वक़्त दिया था... तो पंचायत में बात पहुँचा कर लटकाये क्यूँ नहीं....
शनिया - हमें ईन सब बातों का कहाँ भान था... वैसे दरोगा जी ने कहा भी था... सलाह आपसे लेने के लिए... पर... हम उसे बहुत हल्के में ले लिए....
बल्लभ - अब तक तुम लोगों की... तकदीर... तकवीर... ही लाल थी... विश्वा ने तुम सबकी तशरीफ़ भी लाल कर दी... तुम लोग यहाँ जो फांदेबाजी कर पाते हो... वह इसलिए कि तुम सब राजा साहब के आदमी हो... उनके सेना से हो... पर तुम लोगों ने उनकी मूंछें नीची कर दी...
शनिया - इसी लिए तो डर के मारे... यहाँ छुपे हैं...
बल्लभ - कोई नहीं... जो मुझसे बन पड़ेगा.. वह मैं करूँगा... तुम लोग इस बात को दबा देने की कोशिश करो... बात ना फैले... उसके लिए तरकीब करो...
शनिया - जी वकील बाबु...
बल्लभ - (रोणा की ओर देख कर) और तु... तु क्या करेगा...
रोणा - सोच रहा हूँ... सब कुछ छोड़ छाड़ कर... हिमालय चला जाऊँ...
बल्लभ - अच्छा खयाल है... पर हिमालय नहीं... कहीं और जा... हफ्ते दस दिन के लिए... क्योंकि... जब से तेरी पोस्टिंग राजगड़ में दोबारा हुआ है... तु सिर्फ पीट पीटा रहा है... थोड़ा फ्रेस हो कर वापस आ...
रोणा - और तब तक विश्वा...
बल्लभ - पहले... तु ठंडा हो कर तो आ... फिर दोनों मिलकर विश्वा की ईंट से ईंट बजा देंगे...
Bahut hi badhiya update diya hai Kala Nag bhai.....
Nice and beautiful update....
 

Golu

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👉एक सौ उन्नीसवां अपडेट
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इंडस्ट्रीयल ईस्टेट जगतपुर
एक उजड़ी हुई ताला बंद बड़े से इमारत के सामने एक छोटी सी चाय नाश्ते की दुकान में एक टेबल पर ओंकार नाश्ता खा रहा था और बीच बीच में उस इमारत की ओर बड़े दुख और दर्द के साथ देख रहा था l कुछ देर बाद उस दुकान के सामने एक गाड़ी आकर रुकती है l गाड़ी से रॉय उतरता है l वह सीधे आकर ओंकार के बैठे टेबल पर बैठ जाता है l

ओंकार - नाश्ता करोगे...
रॉय - जी नहीं चेट्टी सर... नाश्ता करके ही आया हूँ...
ओंकार - तो चाय ले लो...
रॉय - जी वह...
ओंकार - अरे भाई... यह फाइव स्टार रेस्तरां ना सही... पर क्वालिटी अच्छी है... वैसे भी... सिर और बाहं जितनी भी ऊंचाई पर पहुँच जाए... पैरों को जमीन नहीं छोड़नी चाहिए...
रॉय - हा हा हा हा.... सॉरी चेट्टी सर... पर ऐसी पोलिटिकल बातेँ आपके लिए... या लोगों के लिए ठीक है... मैं थोड़ा अनकंफर्ट हो जाता हूँ... आदत जो नहीं है...
ओंकार - तो... स्पेशल डार्क कॉफी ले लो...
रॉय - लगता है... आप मनवा कर ही मानेंगे... ठीक है... (वेटर से) एक डार्क कॉफी मेरे लिए...
ओंकार - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... अब मतलब कि बात करें...
रॉय - (सवाल करता है) यहाँ...
ओंकार - मतलब कुछ तो खबर लाए हो...
रॉय - हाँ... पर आपको कौनसी खबर चाहिए.... अच्छी... या बुरी...

इतने में वेटर एक पेपर ग्लास में कॉफी लेकर रॉय को दे देता है l ओंकार नाश्ते को उतना ही छोड़ कर अपना हाथ धो लेता है और वेटर को पैसे देते हुए टीप रख लेने के लिए कहता है l दोनों दुकान से बाहर आते हैं और ओंकार के गाड़ी में बैठ जाते हैं l ओंकार की गाड़ी चलने लगती है और रॉय कॉफी का ग्लास लिए साथ में बैठ जाता है l ओंकार के गाड़ी के पीछे पीछे रॉय की गाड़ी फोलो करने लगती है l

रॉय - एक ज्याती सवाल पूछूं...
ओंकार - हाँ पूछो...
रॉय - आप कभी कभी इस फार्मास्युटीकल फैक्ट्री बिल्डिंग के सामने क्यूँ आते रहते हैं.... यह अब सरकारी कब्जे में है... खण्डहर हो रहा है... और सील्ड भी है...
ओंकार - (एक मायूसी भरा गहरी साँस छोड़ते हुए) यहाँ आकर... खड़े हो कर... अपने सुनहरे पुराने दिनों को याद करता हूँ... अपने मरहुम बेटे और खुद से वादा करता रहता हूँ... के एक दिन... ईन क्षेत्रपालों को... घुटने पर रेंगते हुए देखुंगा.... और तब तक... मैं मरना नहीं चाहता....


कुछ देर के लिए गाड़ी के अंदर खामोशी छा जाती है l फिर खामोशी को तोड़ते हुए रॉय ओंकार से सवाल करता है l

रॉय - पर... राजा भैरव सिंह के सामने आपमें वह मज़बूती नहीं दिखती... जो किसी बदले की भावना पालने वाले में दिखनी चाहिए...
ओंकार - सीधे सीधे क्यूँ नहीं पूछता... के कहीं क्षेत्रपाल से मैं डर तो नहीं गया.... (रॉय झेंप जाता है और अपनी नजरें नीचे कर लेता है) तो सुन... हाँ मैं डरता हूँ... पर क्षेत्रपाल से नहीं.... वक़्त से...(दांत पिसते हुए) मैं उसे बर्बाद होते हुए देखने से पहले मरना नहीं चाहता... क्यूँकी मेरे बदले की... मेरे इंतकाम की कोई वारिस नहीं है... इसीलिए दुश्मनी की बीड़ा उठा तो रखी है... पर खुद को महफ़ूज़ दायरे में रख कर... उसे यह एहसास दिलाते हुए... की कंधा चाहे किसीका भी हो... पर गोली मेरी ही होगी...
रॉय - सर ऐसी बात नहीं है... क्षेत्रपाल से बदला लेने वाले... बहुत हैं... स्टेट में...
ओंकार - हाँ हैं... पर आगे कोई नहीं आया... मैं... मैं ही सबको इकट्ठा कर रहा हूँ... क्षेत्रपाल के हुकूमत को मिटाने के लिए....
रॉय - बात आपकी सही है... पर सब के अपने अपने रास्ते हैं...
ओंकार - अच्छा... तब तेरा कॉन्फिडेंस किधर गिला करने चला गया था रे... अब दिल से बोल... मैं ना होता... तो तु छोटे क्षेत्रपाल से कैसे बदला लेता...
रॉय - (चुप रहता है)
ओंकार - मैं समेट रहा हूँ... हर उस शख्स को... जो क्षेत्रपाल के वज़ह से बिखरा हुआ है... हर उस शख्स के बदले में.. मैं अपना बदला ढूंढ रहा हूँ... जो तिलिस्म क्षेत्रपाल ने मुझसे छीना है... वही उससे मैं छिन लूँ... जमीनदॉस कर दूँ...

कहते हुए ओंकार थर्राती हुई एक गहरी साँस लेता है और वह बाहर की ओर देखने लगता है l फिर कुछ देर के बाद ओंकार खुद को नॉर्मल करते हुए रॉय से पूछता है

ओंकार - लिव इट... रॉय... अब बोलो... सुबह सुबह कौनसी कौनसी ख़बर लेकर आए थे... पहले खुश खबरी सुनाओ...
रॉय - हमारा आदमी जो राजगड़ में है... उसने एक अच्छी खबर भेजी है.... (ओंकार की आँखे बड़ी हो जातीं हैं) हाँ चेट्टी साहब... विश्व ने जंग ए ऐलान कर दिया है.... उसने पहले राजा के आदमियों को ना सिर्फ रात के अंधेरे में... दौड़ा दौड़ा कर पीटा... बल्कि उनके कब्जाए अपनी प्रॉपर्टी को उनसे... पुलिस वाले के सामने ही हासिल किया... गांव के लोगों ने क्षेत्रपाल के लोगों की पिटाई... कोई टॉर्च से... तो कोई लालटेन से देखे हैं...

ओंकार के चेहरे पर एक संतुष्टि वाला मुस्कराहट उभर जाती है l

ओंकार - चलो... आखिर खेल शुरु हो ही गया...
रॉय - हाँ...
ओंकार - अपने आदमियों से कहो... विश्वा पर बराबर नजर रखें... उसके हर कदम का टाइम पर रिपोर्ट करे... हमसे जो भी बन पड़ेगा... उसकी मदत कर देंगे...
रॉय - जी चेट्टी साहब... हमारे आदमी को.. मैंने यही इंस्ट्रक्ट किया है... पर मेरे समझ में यह नहीं आ रहा... हम विश्व से सीधे संपर्क क्यूँ नहीं कर रहे हैं...
ओंकार - मदत का ऑफर हमने किया था... लेना ना लेना उसकी मर्जी... हाँ यह बात और है... अभी उसे हमारी मदत नहीं चाहिए... पर आगे उसे जरूरत पड़ेगी....
रॉय - पर मुझे नहीं लगता... वह कोई भी मदत हम से लेगा...
ओंकार - तो मत लेने दो... हमें क्या...
रॉय - वैसे उसने कहा तो था.. जरूरत पड़ने पर मदत लेगा... पर मुझे लगता है... उसे हम पर भरोसा नहीं....
ओंकार - जो समझदार होता है... वह सांप बीच्छुओं पर भरोसा नहीं करते... वैसे भी उसे खुद पर बहुत भरोसा है...
रॉय - तो इसलिए आप उससे खुद को दूर रख रहे हैं....
ओंकार - विश्वा... विश्व प्रताप महापात्र... नेवला है... सांप और नेवले... एक साथ नहीं रह सकते...
रॉय - आप कितनों को हैंडल कर लेते हैं... इस विश्वा को भी कर सकते हैं...
ओंकार - विश्वा... एक दुइ धारी तलवार है... उसे हाथ में लेकर... अपने दुश्मन पर वार करो... या दुश्मन के वार से खुद का बचाओ... एक धार उसकी हमारी तरफ तो रहेगी ही रहेगी... इसलिए उससे खुद को दूर रख रहा हूँ... दूर से हैंडल कर रहा हूँ...

इस जवाब पर रॉय चुप रहता है l गाड़ी में फिरसे खामोशी छा जाती है l कुछ देर बाद ओंकार रॉय से

ओंकार - क्या यही खबर था...
रॉय - जी...
ओंकार - जानते हो रॉय... मेरी बदले की कश्ती में जो भी सवारी कर रहे हैं... सब के सब... किसी ना किसी तरह से... क्षेत्रपाल के सताये हुए... या मार खाए हुए हैं... तुम... तुम्हें भी बदला चाहिए... महांती से... अपनी बिजनैस और रेपुटेशन के लिए... मुझे बदला चाहिए... पिनाक और भैरव सिंह से... उनकी बेवफाई और दगाबाजी के लिए... महानायक को बदला चाहिए... विक्रम से... अपनी गुलामी के एवज में मिले हर एक अपमान के लिए... अरे हाँ... उस महानायक का लड़के का क्या कोई खबर मिला....
रॉय - (अटक अटक कर) वह... अभी तक तो नहीं...
ओंकार - ह्म्म्म्म तो यह तुम्हारी बुरी खबर थी....
रॉय - जी... पर एक लीड जरूर मिला है...
ओंकार - कैसी लीड...
रॉय - कल कुछ देर के लिए... विनय का मोबाइल ऑन हुआ था... पर चंद मिनट के बाद... मोबाइल फिर से स्विच ऑफ कर दिया....
ओंकार - ह्म्म्म्म कहाँ... तुमने उसकी लोकेशन ट्रेस की...
रॉय - जी... (ओंकार का भवां तन जाता है) आर्कु... आर्कु में वह उस लड़की के साथ हो सकता है...
ओंकार - आर्कु... यह आर्कु कहाँ है...
रॉय - विशाखापट्टनम से कुछ साठ या सत्तर किलोमिटर दुर... एक हिल स्टेशन है... बिल्कुल ऊटी के जैसी...
ओंकार - तो तुमने कोई कंफर्मेशन ली...
रॉय - थोड़ा कंफ्यूज हूँ... किसे भेजूं... क्यूंकि हमारे सारे आदमियों पर अशोक महांती की नजर है...
ओंकार - ह्म्म्म्म... (कुछ सोचने के बाद) एक काम करो... विनय को ढूँढ निकालने की जिम्मेवारी रंगा को दो... वैसे भी... बड़बील माइन्स में... सिर्फ रोटियाँ और बोटीयाँ ही तो तोड़ रहा है... उसे विक्रम के आदमी ओडिशा में ढूंढ रहे हैं... आंध्रप्रदेश में वह हो सकता है... किसीको भी अंदाजा नहीं होगा...
रॉय - हाँ यह बात आपने ठीक कही... मैं आज ही रंगा को विशाखापट्टनम भेजने की योजना बना लेता हूँ....
ओंकार - और एक काम बाकी रह गया है तुम्हारा....
रॉकी - कौनसी...
ओंकार - उस पर्दे के पीछे वाला मिस्टर एक्स... जो हमारे नाक के नीचे खेल खेला है...
रॉय - हाँ... मैं भी इस मैटर पर बहुत सीरियस हूँ... पर अभी तक कोई क्लू हाथ नहीं लगा है...
ओंकार - तो अपनी सीरियस नेस बढ़ाओ... कहीं ऐसा न हो... जिस कश्ती में हम सवार हैं... मालुम पड़े... किसीने उसमें छेद कर दिया है...

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द हैल
नाश्ते के लिए टेबल पर विक्रम बैठा हुआ है l वीर भी आ पहुँचता है l किचन में शुभ्रा नाश्ता बना रही थी l

वीर - भाभी नाश्ता...
शुभ्रा - तैयार है... पर पहले नंदिनी को तो आ जाने दो...
वीर और विक्रम - (एकसाथ आवाज देते हैं) नंदिनी...
रुप - आ रही हूँ... बस पाँच मिनट...

इतने में शुभ्रा नाश्ता लेकर आ जाती है और टेबल पर प्लेट लगा देती है l रुप सीढियों से उतरने लगती है l आज रुप हमेशा की तरह कॉलेज के लिए सलवार कमीज और जिंस पहनी थी और चेहरे पर हल्का सा मेक अप किया हुआ था l पर सबसे खास बात यह थी के आज उसका ड्रेसिंग सेंस कुछ अलग था और उस पर वह चहकते हुए, उछलते हुए आ रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे वह उड़ कर आ रही थी l विक्रम और वीर उसे हैरान हो कर देख रहे थे l टेबल के पास अपनी चेयर लेकर

रुप - हाय... गुड मोर्निंग...
वीर व विक्रम - (हैरानी के साथ) गुड मार्निंग...

शुभ्रा दोनों भाइयों के नजरों में उठ रहे सवालों को भांप जाती है, इसलिए वह दोनों भाइयों का ध्यान भटकाने के लिए

शुभ्रा - अच्छा वीर...
वीर - (चौंकते हुए) जी... जी भाभी...
शुभ्रा - (सबके प्लेट में नाश्ता लगाते हुए) यह बहुत गलत बात है...
वीर - क्या... क्या गलत हो गया है भाभी...
शुभ्रा - मेरी होने वाली देवरानी से नहीं मिलवाया अभी तक.... मांजी आकर देख भी ली... मिल भी ली... पर हम... तुमने अभी तक हमसे क्यूँ नहीं मिलवाया...
रुप - हाँ... बिल्कुल ठीक कहा आपने भाभी... छोटी माँ ने बहु पसंद कर ली... पर हम सब बेख़बर हैं... अनजान हैं...
वीर - नहीं ऐसी कोई बात नहीं है...
शुभ्रा और रुप - तो कैसी बात है...
वीर - भैया तो... जानते हैं उसे... क्यूँ है ना भैया...
विक्रम - (हकलाते हुए) हाँ... क्या... हाँ... वह.. मैं... बस एक बार ही बात की है उससे...
शुभ्रा - क्या... आपने भी उससे बात कर ली है... लो भई... (मुहँ बना कर) हम किस काम के रह गए...
रुप - (मुहँ बना लेती है) हाँ... भाभी... यह मेरे भाई... कितने सेल्फीस हो गए...
विक्रम - अरे यह क्या बात हुई... मैंने तो तब उस लड़की से बात करी थी... जब इन जनाब को उससे प्यार भी नहीं हुआ था...
वीर - क्या... यह आप क्या कह रहे हैं... मुझे उससे शुरू से ही प्यार था...
शुभ्रा - ऐ... चोर पकड़ा गया... (वीर शर्मा जाता है) अच्छा छोड़ो... अब बताओ... कब उसे घर ला रहे हो...
रुप - हाँ भैया... बोलो ना.. कब ला रहे हो.. मैं और भाभी जम कर स्वागत करेंगे... और बढ़िया बढ़िया खाना पकायेंगे...
शुभ्रा - लो कर लो बात... कभी खाना पकाया है आपने नंदिनी जी...
रुप - तो क्या हुआ सीख जाऊँगी ना... अरे हाँ... (जैसे कुछ याद आया) (विक्रम से) एक दिन ना भैया... भाभी ने मुझे ब्रेड आलू टोस्ट बनाना सिखाया था... मैंने बनाया भी था... पर उसमें ना नमक डालना मैं भूल गई थी... पर उस दिन वीर भैया ने दबा कर खा लिया... उस दिन हमें शक़ हुआ था... वीर भैया किसी के चक्कर में हैं...
वीर - (याद आता है) क्या उस दिन ब्रेड आलू टोस्ट में नमक नहीं था...
शुभ्रा और रुप - नहीं...

वीर और भी ज्यादा शर्मा जाता है तो वीर को नॉर्मल करने के लिए विक्रम दोनों ल़डकियों पर सवाल दागता है l

विक्रम - हो सकता है... उस दिन वीर थोड़ी जल्दबाज़ी में हो...
शुभ्रा - हाँ हाँ... हम समझ सकते हैं... वैसे वीर... क्या नाम है उस लड़की का... और ला रहे हो उसे...
वीर - (शर्माते हुए) वह अनु... अनुसूया है उसका नाम...
शुभ्रा और रुप - वाव.. अनु...
वीर - पर भाभी... वह यहाँ नहीं आएगी...
शुभ्रा और रुप - (हैरानी से) क्यूँ...
वीर - वह... इस घर में... बहु बनकर पहला कदम रखना चाहती है... इसलिए उसने ही मना कर दिया था...
रुप - हाँ तो वह बहु ही तो है ना... माँ ने पसंद किया है... आई मीन ऐसेप्ट किया है...
वीर - अरे ऐसी बात नहीं... वह शादी के बाद... गृह प्रवेश में पहला कदम रखना चाहती है...
शुभ्रा - ओ... तो ठीक है... हमें बाहर कहीं मिलवाओ... मतलब लंच पर...
वीर - ठीक है... तो आज...
रुप - नहीं नहीं आज नहीं...
सब - क्यूँ... आज क्यूँ नहीं...
रुप - अरे इतने दिनों बाद आई हूँ... आज कॉलेज जाऊँगी... पता नहीं वहाँ मेरी छटी गैंग.. मुझे क्या सजा देगी... इसलिए आज नहीं... और हाँ भाभी... प्लीज आज लंच पर मेरा वेट मत करना...
शुभ्रा - वह क्यूँ...
रुप - आज मेरे दोस्तों को लंच की रिश्वत देने वाली हूँ... सो प्लीज... मेरा लंच पर वेट मत करना...
शुभ्रा - ठीक है... एक काम करो वीर... कल शाम को... मिलने का प्रोग्राम रखो...
वीर - ठीक है भाभी...

सबका नाश्ता ख़तम हो गया था l सब उठने लगते हैं, शुभ्रा बर्तन समेटने लगती है के तभी

रुप - (वीर से) अच्छा भैया... चलो... आज मैं तुम्हें ऑफिस ड्रॉप कर कॉलेज जाऊँगी...
वीर - क्या तु मुझे ड्रॉप करेगी...
रुप - हाँ... अब तो ड्राइविंग लाइसेंस है मेरे पास... क्यों भाभी...
शुभ्रा - वह तो ठीक है... मगर गाड़ी...
रुप - मैंने आपकी गाड़ी की चाबी ले ली है... (कह कर गाड़ी की चाबी सबके सामने हिलाती है)
शुभ्रा - (हैरान हो कर) क्या... और मुझे कहीं जाना हुआ तो...
रुप - आप गुरु काका को ले जाना... वेरी सिंपल (वीर से) चलो भैया...

रुप भागते हुए बाहर चली जाती है, वीर भी उसके पीछे पीछे चल देता है l विक्रम की नजरें वहीँ ठहर गई थी l विक्रम अभी भी सोच में डूबा हुआ था l

शुभ्रा - क्या सोच रहे हैं आप...
विक्रम - रुप... हमारी नंदिनी के बारे में... जब यहाँ आई थी तो कैसी थी... अब कैसी हो गई है... जैसे चल नहीं रही है... दौड़ भी नहीं रही है... ब्लकि उड़ रही है... क्या वज़ह हो सकती है...
शुभ्रा - (चुप रहती है)
विक्रम - इस उम्र में... शुब्बु... आप भी ऐसी ही थीं... है ना... क्या नंदिनी को किसी से प्यार हो गया है...
शुभ्रा - (बर्तन लेकर किचन की जाते हुए विक्रम की ओर पीठ कर) पता नहीं...

सिंक पर बर्तन रख देती है पर वह वापस नहीं आती l विक्रम भी ऐसे सोचते हुए किचन में आता है l

विक्रम - शुब्बु... जहां तक मुझे लगता है... लॉ मिनिस्टर की बेटी की रिसेप्शन से लौटने के बाद से ही... नंदिनी की हरकतों और आदतों में तब्दीली आई है...

अब शुभ्रा खुद में सिमटने लगी थी, वह खुद में दुबकने लगी थी l उसे डर लगने लगती है l कहीं विक्रम को रुप पर शक़ तो नहीं हो गया l

विक्रम - मुझे लगता है... उस दिन पहली बार... दलपल्ला राजकुमार से मिली... अब नंदिनी को मालुम भी है... उन्हीं के घर जाना है... और शायद नंदिनी को पसंद भी आ गए... (शुभ्रा एक चैन की साँस लेती है) इसलिए शायद... मैं सही कह रहा हूँ ना... क्या नंदिनी ने तुम्हें कुछ बताया है...
शुभ्रा - (विक्रम की ओर मुड़ती है) आपका अनुमान सही हो सकता है... शायद नंदिनी को प्यार हो गया है... इसलिए खुशी के मारे... अपनी हिस्से की आसमान को मुट्ठी में कर लेना चाहती है...
विक्रम - क्या उसने आपको कुछ बताया है...
शुभ्रा - विक्की... उसे अपनी उड़ान तो भर लेने दीजिए... उड़ते उड़ते जब उसे अपने डाल पर उतरना पड़ेगा... तब वह सब बताएगी...
विक्रम - (मुस्कराते हुए) क्या बात है जान... आज तुम बहुत.. फिलासफीकल बात कर रही हो...
शुभ्रा - मैं... वह बता रही हूँ... जिसमें बातों की गहराई है... वैसे... एक बात पूछूं...
विक्रम - पूछिये...
शुभ्रा - क्या... मैं आज... आपके लिए लंच लेकर... ऑफिस आऊँ...
विक्रम - (हैरानी से देखने लगता है)
शुभ्रा - वह देखिए ना.. आज नंदिनी नहीं आएगी... मैं अकेली...
विक्रम - ठीक है...

शुभ्रा एक बच्ची की तरह उछल कर विक्रम के गले लग जाती है l विक्रम भी उसे अपनी बाहों में भिंच लेता है l उधर रुप कार चला रही थी l उसकी नजर सीधे सड़क पर थी पर वीर उसे हैरानी भरी नजरों से देखे जा रहा था l रुप की चेहरे पर आए बदलाव को समझने की कोशिश कर रहा था l

वीर - नंदिनी...
रुप - हूँ...
वीर - आर यु ईन लव...

चर्र्र्र्र्र रुप ब्रेक लगाती है l वह वीर की तरफ ऐसे देखती है जैसे उसे वीर ने गाड़ी के भीतर ही कोई बम फोड़ दिया हो l तभी उसके कानों में पीछे खड़ी गाडियों की हॉर्न की आवाजें सुनाई देने लगती है l रुप उस वक़्त इतना नर्वस महसुस करने लगती है कि उससे गाड़ी स्टार्ट नहीं हो पाती l गाड़ी झटके खाने लगती है l

वीर - इटस ओके... कूल... बी कूल... डोंट बी नर्वस...

रुप थोड़ी संभलती है l फिर से गाड़ी स्टार्ट करती है और जैसे ही गाड़ी स्टार्ट होती है रुप उसे सड़क के किनारे लगा देती है l

रुप - स... ससॉरी भैया...
वीर - किस लिए... (रुप जवाब दे नहीं पाती) ठीक है... क्या मैं पुछ सकता हूँ... कौन है... क्या रॉकी...
रुप - छी... कैसी बातेँ कर रहे हैं भैया... रॉकी मुझे बहन मानता है...
वीर - फिर.... (रुप फिर भी चुप रहती है) ठीक है... नहीं पूछता... वह राज जो.. मेरी चहकती बहना के चेहरे से मुस्कराहट गायब कर दे... मैं नहीं जानना चाहता... पर लड़का कैसा है... इतना तो बता सकती हो ना मुझे...
रुप - (शर्माते हुए) वह... बहुत अच्छा है... भैया... लाखों नहीं... करोड़ों नहीं... ब्लकि वह दुनिया में... यूनिक और एंटीक है...
वीर - वाव... मतलब लड़का बहुत ही अच्छा है... मेरी बहन इतना इम्प्रेस जो है...
रुप - (यह सुन कर शर्मा जाती है फिर झिझकते हुए) आप... आपको... बुरा लगा...
वीर - नहीं... बिल्कुल भी नहीं... जिस लड़की को... रिश्ते नातों की... उनकी गहराइयों की समझ हो... उसकी चॉइस कभी गलत नहीं होगी... इतना तो कह सकता हूँ...
रुप - (इसबार मुस्करा कर) थैंक्यू भैया...
वीर - क्या कॉलेज में कोई...
रुप - नहीं...
वीर - खैर... और कौन कौन जानते हैं... या...
रुप - नहीं नहीं... भाभी और माँ... यह दोनों जानती हैं....
वीर - तब तो ठीक है... अब कोई शिकायत नहीं है... अब मेरे समझ में आ रहा है... भाभी अचानक क्यूँ... अनु से मिलने की बात छेड़ दी....
रुप - भैया....
वीर - हूँ...
रुप - आपको मेरी कसम...
वीर - कसम... किस बात की कसम...
रुप - आप... ना तो माँ से पूछेंगे... ना ही भाभी से...
वीर - (मुस्कराते हुए) ठीक है मेरी बहन... तुझे इतना डर क्यूँ है...
रुप - वह... मतलब... जब वक़्त आएगा... तब मैं.. सबको बता दूंगी....

रुप कह कर शर्म से चेहरा झुका लेती है l नजरें मिलाने से कतराने लगती है l वीर उसकी हालत देख कर मुस्कराने लगता है l

वीर - ठीक है... मैं उस दिन का इंतजार करूँगा.... पर तुम अपनी जज़्बातों को थोड़ा काबु में रखो... तुम्हारे गालों की लाली... और आँखों की शरारत... बहुत कुछ बयान कर दे रही है... विक्रम भैया को भी आभास हो गया है... चूंकि भाभी जानती हैं... इसलिए भाभी बात को संभाल लेंगी... (रुप वीर की ओर देखते हुए मुस्कराने की कोशिश करने लगती है) अरे... अब तो गाड़ी को आगे बढ़ाओ... तुम्हें कॉलेज के लिए लेट हो रहा है...
रुप - (चौंक कर) हाँ.. हाँ...

रुप गाड़ी को स्टार्ट करती है और फिर से सड़क पर दौड़ाने लगती है l रुप इस बार गाड़ी चलाते हुए वीर की ओर देखती है l वीर खिड़की से बाहर की ओर देख रहा था, उसके होठों पर एक मीठी सी मुस्कान दिख रही थी l

रुप - भैया... एक बात पूछूं... क्या चेहरा... आँखे... दिल की हालत... बता देती है...
वीर - हाँ... प्यार एक ऐसी ज़ज्बात है... जब हो जाए... तो खुद को पता नहीं चलता... पर उसे पता चल जाता है... जो उस शख्स से जुड़ा हुआ हो...
रुप - मतलब... आपको... अपने प्यार का एहसास नहीं था...
वीर - ऊँ हूँ.. नहीं था... पर मेरी हाल चाल हरकतें सबकुछ किसी को बता दिया था... के मैं प्यार में हूँ... उसी ने ही एहसास दिलाया... फिर मुझे हिम्मत दी.. राह दिखाई... तब जाकर मैंने अपने प्यार के सामने अपने प्यार का इजहार कर पाया...
रुप - वाव... आज कल आपकी बातेँ भी ग़ज़ब की लगती हैं... वैसे कौन है वह... आपके राहवर...
वीर - तुम नहीं जानती उसे... मेरा सबसे खास और इकलौता दोस्त... उसका नाम प्रताप है... विश्व प्रताप...

एक्सीडेंट होते होते रह गया l विश्व का नाम सुनते ही रुप की कानों के पास चींटियां रेंगने जैसी लगती है l

वीर - अरे... संभल कर... लाइसेंस मिली है... फिर भी संभल कर...
रुप - ओह... सॉरी भैया... वैसे... आपके यह दोस्त करते क्या हैं...
वीर - कंसल्टेंट है... लीगल एडवाइजर है...
रुप - ओ... एक वकील है... जुर्म चोरी डकैती पर छोड़... प्यार इश्क मोहब्बत पर एडवाइज देता फिर रहा है...
वीर - अरे... तुम उसकी खिंचाई क्यूँ कर रही हो... जानती हो... प्यार के बारे में... उसके बहुत उच्च विचार हैं...
रुप - हा हा हा.. भैया... वकील मतलब लॉयर... एंड एज यु नो... अ लॉयर इज़ ऑलवेज अ लायर...
वीर - (खीज जाता है) अरे... कमाल की लड़की हो तुम... मेरे दोस्त के पीछे हाथ धो कर पड़ गई हो...
रुप - (मासूम सा चेहरा बना कर) सॉरी भैया... आपको बुरा लगा... वैसे क्या महान विचार हैं उनके...
वीर - क्यूँ... मैं क्यूँ बताऊँ...
रुप - ताकि लॉयर के बारे में... मैं अपना ओपिनियन बदल सकूँ...
वीर - ठीक है... तो सुनो... प्रताप कहता है... प्यार... तभी मुकम्मल होता है... जब हर ज़ज्बात और एहसास में थ्री डी हो...
रुप - (मुहँ बना कर) थ्री डी...
वीर - हाँ... डीवोशन... डीटरमीनेशन... और डेडीकेशन...
रुप - ओ... ह्म्म्म्म...
वीर - क्यूँ... कुछ गलत कहा क्या...
रुप - नहीं... यह थ्री डी.. ठीक ही है...
वीर - थ्री डी का मतलब तुमने और कुछ समझ लिया क्या...
रुप - हाँ... मैंने उनके विचारों से... उन्हें प्रीज्युम कर रही थी....
वीर - क्या... क्या प्रीज्युम कर रही थी...
रुप - हम्म्म... दुश्मन... दोस्त... और दिलवर.... हा हा हा हा...
वीर - ओह गॉड... नंदिनी यु आर इम्पॉसिबल...
रुप - (हँसते हुए) सॉरी भैया...

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घर के बाहर जो टीन के शेड थे l विश्व और टीलु दोनों मिलकर खिंच कर निकाल गिरा रहे थे l शनिया और उसके साथी ज्यादातर सामान ले गए थे l पर जो कुछ स्ट्रक्चर था अंदर उन्हें विश्व और टीलु मिलकर तोड़ रहे थे l गाँव के कुछ लोग दुर से देख तो रहे थे पर कोई ईन दोनों की मदत के लिए आ नहीं रहे थे l क्यूंकि भट्टी टुट जाने से गाँव के कई मर्द दुखी थे l पर गाँव की औरतें बड़ी खुश थीं l विश्व और टीलु अपनी जैल की अनुभव का इस्तेमाल करते हुए l उमाकांत के घर को अच्छी शकल देने की कोशिश कर रहे थे l

टीलु - भाई.. यह घर तो मिल गया... पर इसे संभाले कैसे...
विश्व - मतलब...
टीलु - मतलब... इस घर को क्या बनाने का इरादा है...
विश्व - बच्चों के लिए लाइब्रेरी और प्ले स्कुल...
टीलु - आइडिया तो अच्छा है... पर चलाएगा कौन... देखो दिन में शायद वे लोग कभी हिम्मत ना करें... पर रात को... वैसे भी... चोट खाए सांप हैं साले... सामने से तो वार करेंगे नहीं... पर...
विश्व - हाँ हाँ... समझ गया... क्या कहना चाहते हो... एक काम करेंगे... हम दोनों अदला बदली कर रात को यहाँ और वहाँ सोयेंगे... पर जिस दिन मैं कटक चला जाऊँगा... उस दिन तुम यहाँ नहीं... घर पर ही सोना...
टीलु - इसका मतलब तुम कटक जा रहे हो...
विश्व - हाँ... वज़ह है... पर्सनल भी प्रोफेशनल भी... माँ से वादा किया था... हर हफ्ते दस दिन के अंतराल में... उनके पास जाता रहूँगा... और जोडार साहब के कंपनी की स्टैटस और स्टैटीटीक्स... देखना पड़ेगा...
टीलु - भाई मैं भी चलूँ...
विश्व - नहीं अभी नहीं... और हम अगर एक दुसरे के साथ कटक गए... तो हमारे दुश्मन सतर्क हो जाएंगे... मैं... भैरव सिंह को कोई भी लीड देना नहीं चाहता... (एक गहरी साँस लेते हुए) मैं यह जंग हर हाल में जितना चाहता हूँ.... पर किसीको खोने की कीमत पर नहीं...

टीलु कोई जवाब नहीं देता l वह नजर घुमाता है तो देखता है कुछ बच्चे घर के बाहर छुप कर इन्हें काम करते हुए देख रहे हैं l टीलु अपना गला खरासते हुए विश्व को उनके तरफ देखने के लिए इशारा करता है l विश्व उन बच्चों की तरफ देखता है जो विश्व को बड़े आग्रह और जिज्ञासा के साथ देख रहे थे l विश्व मुस्कराते हुए उन बच्चों को इशारे से अपनी तरफ बुलाता है l बच्चे इशारे से पहले ना कहते हैं l विश्व भी बच्चों की तरह मुहँ बना कर इशारे से पास बुलाता है l बच्चे मुस्कराते हुए उसे देखते तो हैं पर कोई पास नहीं आ रहा था l

विश्व - अरे बच्चों.. अगर तुम मेरे पास आते हो... तो मैं बहुत सारा चाकलेट लाकर दूँगा...
एक बच्चा - सच.. पर आपके पास चाकलेट कहाँ है...
विश्व - अरे.... पहले मेरे पास आओ तो सही... फिर जब दोस्ती करोगे... तब जाकर ढेर सारा चाकलेट मिलेगा...

बच्चे धीरे धीरे कंपाउंड के अंदर आते हैं l विश्व जेब से कुछ पैसे निकाल कर टीलु को देता है l टीलु समझ जाता है और भागते हुए वहाँ से चाकलेट लाने चला जाता है l इस बीच विश्व उन बच्चों से दोस्ती करने की कोशिश करता है l

विश्व - अच्छा यह बताओ... तुम लोग मुझे जानते हो...
एक बच्चा - हाँ...
विश्व - अच्छा... कैसे...
एक बच्चा - मेरे बाबा बार बार आपको घर में गाली देते हुए साला साला कहते थे... मैंने माँ से पुछा तो माँ ने कहा.... जो बाबा का साला है... वह मेरे मामा लगते हैं...
विश्व - (मुस्कुराए बिना नहीं रह सका) बिल्कुल मैं तुम लोगों का मामा ही हूँ... और जानते हो.. परिवार में... बच्चे सबसे ज्यादा मामा के करीब होते हैं... और मामा से दोस्ती रखते हैं...
सारे बच्चे - नहीं...
विश्व - कोई नहीं... तुम्हें तुम्हारे मामा ने बता दिया ना...
सारे बच्चे - हाँ...
विश्व - तो अब से मैं तुम लोगों का... और तुम सब मेरे दोस्त हो ठीक है...
सारे बच्चे - हाँ...
एक बच्चा - मामा... चाकलेट आने में और कितनी देर लगेगी...
विश्व - बस थोड़ी देर और...

थोड़ी देर के बाद टीलु बहुत सारी चाकलेट लाया था l जिसे विश्व सभी बच्चों में बांट देता है l बच्चे बड़े आग्रह से चाकलेट लेते हुए खुश होते हैं और खुशी के मारे उछलने लगते हैं l तभी हरिया और कुछ लोग वहाँ पहुँचते हैं l हरिया उस पहले बच्चे को पकड़ कर उससे चाकलेट छिन लेता है और उसे ले जाने लगता है l

विश्व - हैइ... बच्चों के साथ यह क्या कर रहे हो...
हरिया - तुमको मतलब... यह मेरी औलाद है... मैं चाहे जो करूँ... (बच्चे से) ख़बरदार जो फिर कभी यहाँ आया तो... टांगे तोड़ दूँगा तेरी....
विश्व - बड़ा मर्द बन रहा है... मेरे ही सामने इसको हड़का रहा है...
हरिया - देखो विश्वा... हम तुम से दुर हैं... तुम भी हम से दुर रहो...
विश्व - राजा का हुकुम... तुम जैसे निकम्मे और नाकारों के लिए है... बच्चों के लिए नहीं... इसलिए अपनी निकम्मे पन की खीज बच्चों पर क्यूँ उतार रहे हो...
हरिया - बस बहुत हुआ... राजा के आदमियों को मार दिया तो इसका मतलब यह नहीं... की मैं तुमसे डर जाऊँगा... मेरा और हम सबके बच्चे ना तो यहाँ आयेंगे... ना ही तुम से कोई वास्ता रखेंगे... इसलिए... तुम हमसे... हमारे बच्चों से दुर ही रहो...
विश्व - अगर नहीं रहा तो...
हरिया - देखो... तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा... राजा साहब के लोग तुमसे डरते होंगे.. हम नहीं... क्यूँ साथियों...
साथ आए लोग - हाँ हाँ...
विश्व - तो तुम लोगों की भी... उसी तरह से पिटाई करूंगा... जैसे शनिया और उसके लोगों का किया...
हरिया - क्या... तु.. तुम.. हमें भी मारोगे...
विश्व - हाँ... कोई शक़... अगर है.. तो दूर कर दो... मेरे और मेरे दोस्तों के बीच जो भी आएगा... मैं उसकी पिटाई कर दूँगा... (बच्चों से) क्यूँ दोस्तों...
बच्चे - ये ये... (चिल्ला कर ताली बजाने लगते हैं)
हरिया - (बच्चों से) चुप.. चुप.. (विश्वा से) तुम हमें मारोगे...
विश्व - (पास पड़े एक डंडा उठाता है और हरिया के तरफ दिखा कर) तुम्हें अभी भी शक़ है... उन हराम खोरों को रात के अंधरे में कुटा था.. तुम लोगों को तो दिन के उजाले में... कूट सकता हूँ... (बच्चों से) बच्चों आज जाओ... पर कल जरूर आना... यहाँ तुम लोगों के लिए... लाइब्रेरी बनेगी... प्ले स्कुल बनेगी... कोई नहीं रोकेगा... जो रोकेगा... वह इस डंडे से ठुकेगा...

हरिया और सभी गाँव वाले गुस्से से मुहँ बना कर वहाँ से अपने अपने बच्चों को ले जाते हैं l यह सब टीलु चुप चाप देख रहा था l उन सबके जाने के बाद टीलु विश्व से पूछता है l

टीलु - भाई... तुमने गाँव वालों को डरा दिया... उनको मारोगे... ऐसा कहा..
विश्व - हाँ...
टीलु - जिनके लिए लड़ने आए हो... उन्हीं लोगों को... उनके बच्चों के सामने अपमान कर दिया... तुम भी तो उनमें से एक हो....
विश्व - (टीलु की ओर देखता है,) टीलु... मैं यहाँ अपनी लड़ाई लड़ने आया हूँ... उनकी फौज बना कर लड़ने नहीं आया... डैनी भाई मुझसे हमेशा एक बात कहते थे... फाइट यु योर औन बैटल... मैंने पहले अपनी लड़ाई खुद लड़ा... तब जाकर डैनी भाई ने... मुझे धार दिया... यह लोग... सब मरे हुए हैं... कोई भी जिंदा नहीं है यहाँ... मन से... आत्मा से ज़ज्बात से... मरे हुए यह लोग... अपनी जिंदा लाश को अपनी ही बीवी और बच्चों से घसीट रहे हैं... इनकी हिम्मत नहीं है... राजा से या उसके आदमियों से टकराने के लिए.... अपनी इसी निकम्मे पन की खीज दारु पी कर... अपनी बीवी पर... बच्चों पर उतारते रहते हैं... पर यह लोग मुझे धमकाने आ गए... जरूरत पड़ने पर... मुझसे भीड़ भी जाते... क्यूँ... क्यूंकि वे लोग इसी सोच में थे... के मैं उनमें से एक हूँ... जब कि मैं उनमें से नहीं हूँ... उनके बीच से आया तो हूँ... पर अब उनके जैसा नहीं हूँ... और हाँ... मैं ज़रूर उनको अपने जैसा बनाना चाहता हूँ... उनकी लड़ाई... मेरी लड़ाई तब होगी... जब वह लोग... मेरे जैसे बनेंगे...
टीलु - पर उन्हें ऐसे अपमानित कर...
विश्व - हाँ... अंडा जब बाहर से टूटता है... तो जीवन समाप्त हो जाता है... पर जब अंदर से टूटता है... तो नया जीवन आरंभ होता है... मैं उनको अंदर से झिंझोड रहा हूँ... ताकि एक नए जीवन की शुरुआत हो...

विश्व इतना कह कर चुप हो जाता है l टीलु विश्व की मनसा को समझ गया था l इसलिए वह बात बदलने के लिए

टीलु - भाई... इस लाइब्रेरी का क्या नाम रखोगे...
विश्व - श्रीनिवास प्ले स्कूल व लाइब्रेरी...

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वीर अपने केबिन में आता है l आते ही उसकी आँखे बंद हो जाती हैं l क्यूंकि कमरे से बहुत ही भीनी और मदहोश कर देने वाली खुशबु आ रही थी l उसके होठों पर मुस्कराहट आ जाती है वैसे ही आँखे मूँदे वह अपनी बाहें फैला देता है l जाहिर से उसके केबिन में अनु पहले ही मौजूद थी वह वीर के गले से लग जाती है l दोनों एक दुसरे के बाहों में कुछ देर के लिए खो से जाते हैं l

वीर - जानती हो... हर तरफ खीजा ही खिजा है... एक तुमसे ही जिंदगी में मेरे बहार है... (अनु खुश हो जाती है और वीर के गले में और भी ज्यादा कस जाती है) अनु..
अनु - जी...
वीर - मेरी बहन और भाभी... दोनों तुमसे मिलना चाहते हैं...
अनु - (वीर से अलग हो कर) कब... (सवाल) आज ही...
वीर - आज नहीं... कल शाम को...
अनु - ओह... पर... आपके घर...
वीर - जानता हूँ... मैंने सबसे कह भी दिया है.... तुम शादी के बाद ही... घर में अपना पहला कदम रखना चाहती हो... इसलिए हम बाहर कहीं प्रोग्राम रखेंगे...
अनु - ठीक है... पर कहाँ...
वीर - ह्म्म्म्म... कल मिलकर तय करते हैं ना...
अनु - (थोड़ी झिझक के साथ) राजकुमार जी...
वीर - (मजे लेते हुए) कहिए अनु जी...
अनु - ऊँऊँऊँ... आप मुझे जी ना कहें...
वीर - क्यूँ... मैं क्यूँ ना कहूँ... तुम भी तो मुझे... जी... कहते हो... और ऊपर से नाम भी नहीं लेती... कभी वीर नहीं तो वीरजी... बुला सकती हो...
अनु - (शर्माते हुए) नहीं... कभी नहीं बुला सकती...
वीर - ऐसा क्यूँ भला...
अनु - वह... (शर्मा जाती है)
वीर - हूँ हूँ... कहो कहो...
अनु - वह... पंजाबी में ना... वीरजी का मतलब भैया होता है... इसलिए... (शर्मा के घुम जाती है)
वीर - ओ तेरी... तो बात यह है... ह्म्म्म्म... (अनु को पीछे से हग करते हुए) पर मेरी प्यारी अनु... तुम्हें पंजाबी कैसे आती है...
अनु - नहीं आती... पर जानती हूँ... क्यूंकि... हमारे वहाँ एक पंजाबी ढाबा है... वहाँ की लड़की अपने भाई को वीर जी कहती है... इसलिए मैं जानती हूँ...
वीर - ठीक है अनु जी... मुझे आपका राजकुमार कुबूल है...
अनु - (मुहँ बना कर)आप मुझे फिरसे छेड़ रहे हैं...
वीर - (अपने गाल को अनु के गाल से रगड़ते हुए) वह तो मेरा हक है... जैसा कि आपका मुझ पर...
अनु - मैंने कभी आप पर हक जताया तो नहीं...
वीर - (अनु की चेहरे को मोड़ कर अपनी तरफ करते हुए) तो करो ना... कौन रोक सकता है तुम्हें... खुद मैं भी नहीं...

वीर की यही बात अनु के दिल पर असर कर जाती है l उसकी आँखे छलक जाती हैं और वह घुम कर वीर के सीने से लग जाती है l

अनु - मुझे कोई हक नहीं जताना... आप मेरे कितने हो... मुझे इससे कोई मतलब नहीं है... मैं बस आपकी हूँ... और आपको यह स्वीकार है... मेरे लिए यही काफी है...
वीर - (अपनी बाहों में कसते हुए) पगली... यह भी कोई बात हुई... (अनु के बालों को पकड़ कर उसके चेहरे को अपने सामने ला कर) सुन... चाहे कुछ भी हो जाए... पर इस सच को कोई झुठला नहीं सकता... ना मैं... ना तु... ना भगवान... मैं सिर्फ और सिर्फ तेरा हूँ... और तु सिर्फ और सिर्फ मेरी है... समझी...

अनु अपना सिर हिला कर हाँ कहती है l वीर उसे गले से लगा लेता है l अनु की खुशी दुगुनी हो गई थी वह भी कस कर वीर के गले से लग जाती है l

वीर - मैं हमेशा पसोपेश में पड़ जाता हूँ... तु... भोली है... या बेवक़ूफ़ है...
अनु - जो भी हूँ... जैसी भी हूँ... आपकी हूँ... (अपना चेहरा उठा कर वीर से) झेलना तो आपको ही है....
वीर - चुप... तुझे तो मैं... अपनी पलकों पर रखूँगा... तु नहीं जानती... तुझसे मेरी जिंदगी कितनी खुबसूरत है... तु है... तो जिंदगी है... तु नहीं तो कुछ भी नहीं... मैं भी नहीं... और तुझे मुझसे कोई नहीं छिन सकता... यहाँ तक भगवान भी नहीं...
अनु - प्लीज... कितनी मन्नतों के बाद... मैं आपकी दिल में जगह पा सकी हूँ... और आप हैं कि... भगवान को बीच में ला रहे हैं... किसी से नहीं तो... कम-से-कम भगवान से तो डरीये...
वीर - तुझे किसने कहा कि मैं भगवान से नहीं डरता... पर तु मेरी धड़कन में समा चुकी है... नस नस में सिर्फ़ तु ही तु दौड़ रही है... हर साँस जो अंदर जाती है... तेरी खुशबु... तेरी ख्वाहिश लिए अंदर जाती है... और हर साँस तेरी चाहत लिए बाहर आती है... तु जिंदगी है... तु मेरी जुनून है... तु साथ है... तो यह दुनिया है... यह जहां है...
अनु - मैं कितनी भाग्यवान हूँ... के आप मुझे इतना चाहते हैं... पर राजकुमार जी... (वीर से अलग होते हुए) आप क्या डर रहे हैं... जैसे... मैं आपसे छिन जाऊँगी...

वीर अपना चेहरा घुमा लेता है l अनु कुछ समझ नहीं पाती पर वीर के पीठ से लग जाती है l

अनु - मैं जानती हूँ राजकुमार जी... आपके वंश की योग्य नहीं हूँ... भले ही रानी माँ ने मुझे स्वीकर कर लिया हो... पर शायद आपके परिवार में.... (रुक जाती है)
वीर - (अनु के हाथों को पकड़ कर) मेरे परिवार की चिंता नहीं है... (अनु को अपने तरफ सामने ला कर) (अपना सिर झुका कर) अपने काले स्याहे अतीत की है...
अनु - (वीर की दोनों हाथों को लेकर अपने गालों पर रख देती है) आप ऐसे सिर ना झुकाएं.... कुछ भी हो जाए... मैं आपकी थी... हूँ और रहूँगी...
वीर - ओह... अनु... मैं... मैं तुम्हें कैसे समझाऊँ... तुम बहुत ही अच्छी हो... इतनी भोली... इतनी मासूम... तुम नहीं जानती... तुम सोच भी नहीं सकती.. यह दुनिया... कितनी खराब है... यह दुनिया... मेरी सोच से भी बहुत बहुत खराब है... इसलिए मुझे डर लगा रहता है... कहीं यह दुनिया मुझसे तुम्हें छिन ना ले... मुझे डर लगा रहता है... तुम्हें खोने की... खो देने की...
अनु - (वीर के हाथ को चूमते हुए) मेरी भोला पन... मेरी बेवकूफ़ी.. मेरी मासूमियत की कीमत अगर आप हो... तो मुझे यह हर जन्म में स्वीकार है... मेरा प्यार... मेरी चाहत... सिर्फ इस जन्म के लिए नहीं है... मैं जब भी दुनिया में आती रहूँगी... सिर्फ आपके लिए ही आती रहूँगी...
वीर - (एक शरारती भरा मुस्कान लिए) इतना चाहती हो...
अनु - (इतराते हुए) हूँ...
वीर - तो तुम मुझसे वह क्यूँ नहीं कहती... जो मैं तुमसे बार बार कहता रहता हूँ...
अनु - (हैरान होते हुए) क्या..
वीर - आई लव यु...
अनु - (शर्मा कर मुस्कराते हुए) धत... मैं... मुझे... ना.. मैं नहीं कह सकती...
वीर - क्यूँ... अरे यही वह तीन शब्द हैं... जो सबसे मधुर और बहुत प्यारे हैं...
अनु - जानती हूँ... पर पता नहीं क्यूँ... यह... मुझे शर्म आती है..
वीर - हे भगवान... क्या इनके मुहँ से वह जादुई शब्द नहीं सुन पाऊँगा...
अनु - ज़रूर सुनिएगा... कहूँगी जरूर पर अभी नहीं...

वीर अनु को अपने करीब लता है l उसका चेहरा अनु के चेहरे से कुछ ही दूर था l दोनों को एक-दूसरे की गरम सासों की एहसास हो रहा था l वीर की होंठ आगे बढ़ते हैं l अनु अपनी आँखे मूँद लेती है l एक नर्म चुंबन का एहसास उसके माथे पर होता है l अनु अपनी आँखे खोल देती है l

अनु - राजकुमार जी... आप डरते क्यूँ हैं...
वीर - मैं किसी से नहीं डरता...


अनु हँसते हुए वहाँ से निकल जाती है l वीर भी बड़ी हसरत लिए उसे जाते हुए देखता है l

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ड्रॉइंग रुम में सीलिंग फैन तेजी से घुम रहा है l नीचे तापस बैठ कर मजे से टीवी देख रहा है l प्रतिभा किचन में बिजी है और खाना बनाते वक़्त कुछ बड़बड़ा भी रही है l बहुत देर से तापस गौर तो कर रहा था पर पुछ नहीं रहा था l पर फिर उससे रहा नहीं जाता पुछ बैठता है l

तापस - (ऊँची आवाज़ में) क्या बात है जान... अपने आप से बात कर रही हो...
प्रतिभा - (ऊँची आवाज़ में) क्या करूँ... जिससे बात करने का मन कर रहा है... वह तो टीवी में मुहँ गड़ाए बैठा है...
तापस - (सोफ़े से उठ कर किचन की ओर जाते हुए) अरे अगर बात ही करनी है... तो जानेमन यहाँ भी आकर गुफ़्तगू किया जा सकता है...
प्रतिभा - (किचन से बाहर आकर) तो खाना कौन बनाता...
तापस - अजी हमें तो आप कभी किचन में घुसने नहीं देती... वर्ना हम भी बताते... हम भी बड़े काम के हैं... और दिखाते... खाना कैसे बनाते हैं...
प्रतिभा - ज्यादा डींगे मत हांकीए... मैं जानती हूँ... आप का खाना बनाने के बारे में....
तापस - आरे जान... कभी हमें मौका दे कर देखती... उँगलियाँ चाट कर ना रह जाओ... तो हमें कहना... पर क्या करें.... तुमने कभी मुझे किचन में घुसने ही नहीं दिया...
प्रतिभा - (अपनी पल्लू को कमर पर ठूँस कर) देखिए... यह किचन मेरी... एंपायर है... यहाँ सिर्फ़ मेरी चलेगी...
तापस - ठीक है... ठीक है जान... ठीक है... पर इसके लिए... झाँसी की रानी बनने की क्या जरुरत है...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अगर आप कह रही हैं... तो हो ही गया...
प्रतिभा - अच्छा जी... हमने कहा तो हो गया आपका... क्यूँ...
तापस - और नहीं तो... अजी हम आप पर मरते जो हैं...
प्रतिभा - दिन दहाड़े झूठ बोलते हुए शर्म नहीं आती...
तापस - क्या कहा... हम आपसे प्यार करते हैं... यह झूठ है...
प्रतिभा - हाँ... (कहते हुए किचन के अंदर चली जाती है)
तापस - (उसके पीछे पीछे किचन में आकर) यह तौहीन है... हमारे मुहब्बत पर मल्लिका ए हाइ कोर्ट...
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अभी कहाँ... अभी आपको मेरे उपर लगाए गए हर ज़ुर्म को साबित करना होगा... समझी माय लॉर्ड...
प्रतिभा - अच्छा... तो आपको सबुत चाहिए...
तापस - यस...
प्रतिभा - अगर आपको प्यार होता... तो आप टीवी के बजाय... मुझे देखते हुए किचन के अंदर... अपनी कोई सढी गली शायरी सुना रहे होते...
तापस - एक और तौहीन... यह ना काबीले बर्दास्त है... योर हाइनेस...
प्रतिभा - मैंने फिर कहाँ तौहीन लगाया...
तापस - मेरे शायरी को... सढि गली कहा...
प्रतिभा - (बिदक कर) आआआआह्ह्ह्ह... (हाथ में जो चम्मच था उसे पटकती है)
तापस - (उसे देख कर)
हाय...
इश्क में वह मुकाम तय हुआ है क्या बताएं
कायनात की कयामत तक तुमसे जफा रखा है...
गुस्से में कुछ और भी हसीन लगते हो,...
बस यही सोच कर तुमको खफा रखा है...

यह सुन कर प्रतिभा का गुस्सा फुर हो जाती है और वह अपनी होठों को दबा कर मुस्कराने लगती है l

तापस - यह हुई ना बात... अच्छा जान अब बताओ... आज किस खुशी में तुमने कोर्ट छुट्टी कर दी...
प्रतिभा - बस थोड़ी देर और... आपको सब कुछ पता चल जाएगा...

तभी घर की डोर बेल बजती है l तापस जाकर दरवाजा खोलता है l पीछे पीछे प्रतिभा भी पहुँच जाती है l बाहर रुप खड़ी थी l जहां तापस रुप को देख कर हैरान हो जाता है वहीँ रुप को देख कर प्रतिभा बहुत खुश हो जाती है l रुप खुशी के मारे उछल कर अंदर आने को होती है कि प्रतिभा उसे रोकती है

प्रतिभा - रुक... पहले रुक...
रुप - (हैरान हो कर) क्यूँ... क्या हुआ माँ जी...
प्रतिभा - पहले यह बता की अब कि बार घर के अंदर कैसे आएगी.... इस घर की बहू... या प्रताप की दोस्त...
रुप - (शर्मा कर इतराते हुए) अगर सास बनकर बुलाओगे तो बहु अंदर आएगी...
अगर प्रताप की माँ बनकर बुलाओगे... तो भी आपकी बहु ही अंदर आएगी..
प्रतिभा - (खुश हो कर) मतलब... उस बेवक़ूफ़ ने... (रुप की नाक पकड़ कर) इस नकचढ़ी को पहचान कर प्रपोज भी कर दिया...
रुप - आह... हाँ...
प्रतिभा - (बहुत खुश हो जाती है) आह आ... तो फिर एक मिनट के लिए रुक...

कह कर प्रतिभा अंदर चली जाती है l यह सब देख कर तापस दोनों को बेवक़ूफ़ों की तरह देख रहा था l उसे इतना कंफ्युज्ड देख कर रुप उसे कहती है

रुप - नमस्ते डैडी जी...
तापस - (हकलाने लगता है) हा हा.. है.. हेलो... के... कैसी हो बेटी...
रुप - बहुत ही बढ़िया... और आप...
तापस - मैं... पता नहीं बेटी.. अब तक तो बहुत बढ़िया ही था...

हाथ में थाली और दिया लेकर प्रतिभा दरवाजे पर आती है और रुप की नजर उतारती है l

रुप - माँ जी... वह डैडी जी....
प्रतिभा - बेटी.. इनकी बातों को ज्यादा सीरियस लेने की कोई जरूरत नहीं है... यह तो बस ऐसे ही... बे फिजूल की बातेँ करते रहते हैं... (रुप को अंदर लाकर सोफ़े पर बिठाती है, फिर तापस से) सुनिए सेनापति जी...
तापस - (जो झटके पर झटके खा कर उबर रहा था) जी... बताइए.. भाग्यवान....
प्रतिभा - देखिए... आज बहु आई है... किचन में सब कुछ तैयार रखा है... कुछ मैंने बना दिया है... बाकी आप आज बना दीजिए... तब तक के लिए.. मैं बहु को कंपनी दे रही हूँ... अच्छा यह बता... तुने आज कॉलेज बंक क्यूँ की...
रुप - मुहँ बना कर... क्या माँ जी... आपसे मिलने आई हूँ... और आप मुझसे ऐसी सवाल कर रहे हैं...
प्रतिभा - अरे पागल लड़की... मुलाकात तो शाम को भी हो सकती थी... अभी दोपहर में...
रुप - बस माँ आपसे मिलना चाहती थी... इसलिए आ गई... पर वादा करती हूँ... जो वैदेही दीदी का सपना था... जो प्रताप बनना चाहता था... वह मैं बन कर दिखाऊँगी... मैं डॉक्टर बनूँगी...
प्रतिभा - शाबाश बेटा...
रुप - मेरी भाभी भी डॉक्टर हैं... हाँ यह बात और है कि वह... प्रैक्टिस नहीं करती... पर मैं उनसे ही एंट्रेंस की तैयारी करूंगी...
प्रतिभा - बहुत अच्छे...


इस तरह प्रतिभा और रुप के बातों का सिलसिला बढ़ने लगता है l उनको ऐसे बातेँ करते देख तापस का मुहँ हैरानी से खुला रह जाता है l वह अपनी आँखे टिमटिमाते हुए प्रतिभा और रुप के ओर देखने लगता है l प्रतिभा जब देखती है तापस वहीँ खड़ा है

प्रतिभा - अरे... जाइए ना...
तापस - आर यु श्योर... मैं किचन के अंदर जाऊँ...
प्रतिभा - यह कैसा सवाल हुआ... बहु को भूखो रखोगे... जाइए... आज बचे खुचे खाने पर अपने हाथ का कमाल दिखाइए... ताकि मैं और बहू दोनों अपनी अपनी उंगली चाट जाएं...
तापस - ओह ह के... श्योर..

कह कर तापस किचन के अंदर चला जाता है l अंदर पहुँचकर देखता है सिर्फ़ दाल और चावल ही बना हुआ था l पनीर रखी हुई है, मटर छिले हुए हैं और तरह तरह की सब्जियाँ सारे कटे हुए हैं और एक जगह रखे हुए हैं l

तापस - (गुन गुनाने लगता है) क्या से क्या हो गया.... बेवफा तेरे प्यार में

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हा हा हा हा...
अनिकेत रोणा का सरकारी आवास l रोणा एक कुर्सी पर अपने एड़ीयों पर बैठा है, उसने अपने सिर पर ग़मछा ओढ़ रखा है l शनिया और उसके सभी साथी नीचे फर्श पर घुटनों पर बैठे हुए हैं l ईन सबके बीच चहलते हुए बल्लभ ठहाका लगा कर हँस रहा था l क्यूंकि सब के चेहरे पर बारह बजे हुए थे l

रोणा - हँस ले... काले कोट वाले कौवे... हँस ले...
बल्लभ - हँसु नहीं तो क्या करूँ बोलो... बहुत बार कहा है... तु कानून का ताकत है... पर मैं दिमाग हूँ.. यह सब करने से पहले... एक बार मुझसे पुछ तो लेते...
रोणा - तु और दिमाग.. आक थू... साले कितनी बार कहा था.. विश्वा को मार देते हैं... पर नहीं.. दिमाग चलाया था... या भोषड़ा पेलाया था... साला दिमाग से लोमड़ी और ताकत से शेर बन कर लौटा है वह...
शनिया - हाँ वकील बाबु... कमबख्त... हमारी मालिश किया करता था अखाड़े में... पर अब...
बल्लभ - इस बार भी जम के मालिश किया है उसने... पिछवाड़ा टीका कर बैठ नहीं पा रहे हो...
सत्तू - (कराहते हुए) हाँ... साहब... झूट भी बोला था... उस कमीने ने ... हमारी पिटाई शनिया भाई करेंगे... इस शर्त पर शनिया भाई को छोड़ा था... पर किसी को नहीं छोड़ा.. सबको भगा भगा कर मारा.... आह...
रोणा - चुप बे... साले हरामी... बात ऐसे कर रहा है... जैसे पाला हरिश्चंद्र के लाल से पड़ा था...
बल्लभ - उस पर गुस्सा क्यूँ हो रहा है... भेजा तो तुने ही था... विश्वा के बारे में सबकुछ जानते हुए भी... दो दो बार उससे पटखनी खाने के बाद भी...
रोणा - हाँ हाँ भेजा था ईन लोगों को... उसके पास... (चेयर से उतर जाता है) सोचा था सो गया होगा... आधी रात को... पर मालुम नहीं था... वह भी अपनी तैयारी में बैठा था... ईन सब के लिए....
बल्लभ - तेरा प्रॉब्लम क्या है जानता है... तु हमेशा दिमाग गरम रखता है.... पहली बार जॉगिंग की बात छोड़ देते हैं... पर होटल के गरम पानी वाला कांड याद कर... विश्वा... अपने सामने वाले के दिमाग से खेलता है... या ऐसी परिस्थिति बनाता है कि... उसके दुश्मन उसीके हिसाब से चलने लगते हैं...
भूरा - हाँ साहब... उसने कहा था पुलिस लेकर आएगा... वह आया भी... हमें लगा था... दरोगा आयेंगे नहीं... पर दरोगा जी तो.. वह भी उसे अपने साथ गाड़ी में बिठा कर लाए...
रोणा - तु चुप रह हराम के ढक्कन.. गाड़ी पे ना बिठाता तो क्या करता... अब वह वकील है... कोई आम गाँव वाला नहीं है.. जो उसे हड़का देता...
बल्लभ - वह वकील है... यह तुझसे किसने कह दिया...
रोणा - तु यह क्या बात कर रहा है... हम ने खबर निकाली थी ना..
बल्लभ - हाँ निकाली थी... पर वह जैल में था... वकालत पढ़ लिया तो क्या हुआ... वकालत करने के लिए लाइसेंस की जरूरत पड़ती है... उसने डिग्री तो हासिल कर ली है... पर लाइसेंस... लाइसेंस कैसे हासिल होगा...
रोणा - जानता हूँ... पर अपने लिए... हर कोई लड़ सकता है... और प्रॉपर्टी उसीके नाम पर ही है... और कमाल की बात यह थी.. की जैल में रह कर भी उसने... या वैदेही ने प्रॉपर्टी टैक्स भरे हैं... उसके पास दस दिन पहले का एकुंबरेंस सर्टिफिकेट भी था....
बल्लभ - फिर भी... तु ना जाता... तो तेरा क्या उखाड़ लेता... पुलिस वाले पे तो हाथ नहीं उठा सकता था... रही तेरे नाम की फाइल अदालत में खोलने की बात... तो जाने देता ना... तब मैं किस काम आता...

एक गहरी साँस छोड़ते हुए रोणा उसी कुर्सी पर बैठ जाता है l वह किसी थके हारे की तरह बेबस होकर

रोणा - ठीक कहता है... वह मेरे दिमाग पर इस तरह से हावी हो गया था कि... मैं ढंग से सोच भी नहीं पाया...
बल्लभ - हाँ... क्यूंकि बात गाँव की है... तो (शनिया और उसके साथियों से) तुम सालों... जब उसने साठ घंटे का वक़्त दिया था... तो पंचायत में बात पहुँचा कर लटकाये क्यूँ नहीं....
शनिया - हमें ईन सब बातों का कहाँ भान था... वैसे दरोगा जी ने कहा भी था... सलाह आपसे लेने के लिए... पर... हम उसे बहुत हल्के में ले लिए....
बल्लभ - अब तक तुम लोगों की... तकदीर... तकवीर... ही लाल थी... विश्वा ने तुम सबकी तशरीफ़ भी लाल कर दी... तुम लोग यहाँ जो फांदेबाजी कर पाते हो... वह इसलिए कि तुम सब राजा साहब के आदमी हो... उनके सेना से हो... पर तुम लोगों ने उनकी मूंछें नीची कर दी...
शनिया - इसी लिए तो डर के मारे... यहाँ छुपे हैं...
बल्लभ - कोई नहीं... जो मुझसे बन पड़ेगा.. वह मैं करूँगा... तुम लोग इस बात को दबा देने की कोशिश करो... बात ना फैले... उसके लिए तरकीब करो...
शनिया - जी वकील बाबु...
बल्लभ - (रोणा की ओर देख कर) और तु... तु क्या करेगा...
रोणा - सोच रहा हूँ... सब कुछ छोड़ छाड़ कर... हिमालय चला जाऊँ...
बल्लभ - अच्छा खयाल है... पर हिमालय नहीं... कहीं और जा... हफ्ते दस दिन के लिए... क्योंकि... जब से तेरी पोस्टिंग राजगड़ में दोबारा हुआ है... तु सिर्फ पीट पीटा रहा है... थोड़ा फ्रेस हो कर वापस आ...
रोणा - और तब तक विश्वा...
बल्लभ - पहले... तु ठंडा हो कर तो आ... फिर दोनों मिलकर विश्वा की ईंट से ईंट बजा देंगे...
Shandar update bhai
Ek taraf to onkaar chetti ko lag rha hai wo hi in sab me bhairav ko maat de sakta hai uske bina koi kuch nhi kar sakta
Aur dusri taraf roop the hell pahuch gyi hai aur pahuchte hi uski udaan pe Vikram ko shak ho gya hai aur veer veer ne to raste me puch bhi liya ki wo kaun hai
Whi jb veer ne bola ki uske love guru vishwa Pratap hai to roop ne khoob mje liye vishwa ke
Dusri taraf umakaant sir ke ghar ko dusra roop dene me vishwa lga huwa hai aur gaanv ke aadhe mard to vishwa se gussa ho gye hai ki unke peene ka jugaad band ho gya
Roop college na ja ke pratibha se milne ja pahuchi aur is baar senapati ji ko khana banane ka order de di
Aur idhar valabh aur Rona ki meeting chalu hai aur valabh ne Rona ko chutti pe jane ki salah de rha aur is kaand ko dabane ko baat kah diya hai
Lajawab update
 

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
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nice update ...chhoti si chai ki dukan par chai pee raha hai onkar ,,kyunki usko dekhni hai wo building jo tahas nahas ho gayi hai aur kisi waqt me yash waha rehta tha ..
roy ke saath baatchit ki onkar ne ..roy bhi badla lena chahta hai mahanti se ..roy saari khabar rakh raha hai ki kya ho raha hai rajgarh me ,vishw kya kar raha hai ..
onkar ka sochna bhi sahi hai ki usko barbad hoye huye dekhna hai ksetrpal ko par uske liye uska jinda rehna jaruri hai ...

roop ko pyar ho gaya hai ye pata na chale isliye subhra ne baat ko badal diya par veer ko pata chal hi gaya aur usne is topic par baat bhi ki roop se ..

pyar ki philosophy ki baate sunkar roop ko pata chala ki veer ka dost vishwa hi hai ..

pratibha aur tapas me pyar bhari nokjhok ho rahi thi tabji roop aa gayi aur unke bich bhi achchi baate huyi ..
pratibha ka ye puchhna ki bahu aayi hai ya vishw ki dost aur roop ka jawab dena ekdam best scene tha 😍😍😍..

vishw ko akad dikha raha hariya par yahi akad shaniya ya sattu ke saamne nahi dikha sakta ,,par vishw ne bhi sahi jawab diya hariya ko .jo raja se takkar le raha hai usse takkar lene ki soch raha hai hariya air gaonwale ..

rona ko ab samajh aa raha hai ki vishw ke usko ek mohre ki tarah istemal kiya 😁😁..
ek dhamki kya de di vishw ne darr gaya rona ..jabki vishw abhi bhi lawyer nahi bana hai .
aur ye anpadh shaniya aur uske saathi kya kar lete jab vishw ki baate hi itni dangerous thi ,rona ko kuch samajh nahi aaya aur wo aa gaya ghar khali karwane to shaniya kya samajh pata ..
 

ASR

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Divine
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Kala Nag मित्र 😎 🤓 आज के अपडेट मे तो पूरा माहौल बना दिया है 🙄 🔥 😍 परंतु विश्व का हरिया व गाँव वालो को हड़काने का कार्यक्रम बहुत ही सही रहा.. आखिर डैनी का शिष्य है 😍 🤔..

रोना रोते हुए ही सुख मे है वक़ील को पूरा confidence है कि वो विश्व को सम्भाले हुए हैं.. 😗 Ha ha ha ha ha ha

वीर अनु.. बहुत ही सुंदर अंतरंगता है शुभ्रा विक्रम अपने पुराने अंदाज मे लौट रहे हैं.. 😗
बहुत ही विस्तृत अपडेट है जो कि कहानी को सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं 😍 ❤️.... पाठकों को पूरा मजा आ गया है 😍 🤔 तू सी बहुत ही जानदार लेखक बन गए हों जो पाठकों को कैसे बांधे रखने के लिए क्या किस गति से कहानी को आगे बढ़ाना चाहिए वो अद्भुत व प्रशंसनीय है 😍 🤔 💰 💫 😇 😇

बहुत कुछ है इस अपडेट मे कई नयी पृष्ठभूमि बन रही है कई नयी दुश्मनी बन रही है 😍..
तापस प्रतिभा क्या मजेदार मनोरंजन से परिपूर्ण सम्वाद है 😍..
ओंकार राय विनय एक अदृश्य दुश्मन नाग नेवला युक्तिसंगत वार्तालाप अब तक जो भी चित्रण किया है 😍 🤔 बहुत सुन्दर है...

पूरे भावनात्मक रूप से परिपूर्ण रहे 😍 कहानी के कई सम्वाद.... 😍 जितना लिखे वो बस थोड़ा सा हो पाया है 😍...
अद्भुत अद्वितीय अध्याय.... 😍 अगले घटनाक्रम के इंतजार में 😊 💕 💖 💕 👍 😚 🤗
 
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