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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
Prime
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Kala Nag

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👉अठहत्तरवां अपडेट
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शाम का समय
ESS का ट्रेनिंग हॉल
विक्रम रैंडम तरीके से उसके पास तेजी से आते बड़े बड़े बर्फ के ब्लॉक्स को अपने ताकत भरे घुसों से तोड़ रहा है l जब सारे बर्फ के ब्लॉक्स टुट जाते हैं पास टेबल पर रखे सैंडवॉच के पास पहुँच कर देखता है रेत अभी भी गिर रहा है l पास खड़े कुछ बंदे ताली बजाने लगते हैं l उनमें से एक बंदा

बंदा - वाह युवराज वाह... आप कितने तेज हैं... डायरेक्ट कंबैट में आपके सामने टिकना... किसी के बस की बात नहीं...

विक्रम बदले में कुछ रिएक्ट नहीं करता बस हाथ बढ़ाता है l वह बंदा विक्रम के हाथ में टावल देता है l विक्रम अपना चेहरा साफ करता है l तभी हॉल में महांती आता है l महांती इशारा करता है l वहाँ पर मौजूद सभी बंदे हॉल से चले जाते हैं l उनके जाते ही

विक्रम - क्या बात है महांती... केके या चेट्टी... किसका खबर लाए हो...
महांती - नहीं...
विक्रम - फिर...
महांती - युवराज जी... उनकी खबर मिल ही जायेगी... बहुत जल्द... पर इतना जरूर है कि... केके और उसका बेटा... दोनों में से कोई भी... भुवनेश्वर में नहीं हैं....
विक्रम - और... ओंकार चेट्टी...
महांती - (चुप रहता है)
विक्रम - क्या हुआ महांती...
महांती - युवराज...(थोड़ा रुक कर) हमारे काउंटर तैयारी की खबर उसे लग गई थी...
विक्रम - इसलिए अब वह.. हस्पताल से गायब होगा....
महांती - (चुप हो जाता है)
विक्रम - कोई बात नहीं है महांती... हमे अब ऐसा कुछ करना होगा... की उन्हें मजबूर हो कर... बाहर आना ही पड़ेगा...
महांती - जानता हूँ... पर मैं उस बात के लिए परेशान नहीं हूँ...
विक्रम - फिर किस बात के लिए परेशान हो....
महांती - मैं कब तक आखिर अपने बॉस... अपने दोस्त... अपने पार्टनर का साथ पाने से... महरूम रहूँ... कब तक...
विक्रम - (चुप रहता है)
महांती - आप अगर कहें... तो हम साम दाम दंड भेद... सब इस्तेमाल कर.. अपने पास जितने भी कंटैक्ट हैं... उन सबके मदत से..(आवाज कड़क कर) उस हरामजादे को...
विक्रम - नहीं... महांती नहीं... वह मेरा पर्सनल मैटर है...
महांती - पर क्यूँ... क्यूँ हमें शामिल करना नहीं चाहते...
विक्रम - महांती...(एक सांस छोड़ता है उसके बाद एक पॉज लेकर) इस शहर में... अपनी यह पोजीशन बनाने के लिए... छह साल लगे... आज आलम यह है कि... चाहे पब्लिक हो... पुलिस हो... या फिर पॉलिटिशियन... हर कोई अपने प्रॉब्लम सॉल्व करने के लिए... उनको ESS के चौखट पर घुटने टेक कर मदत मांगते हैं.... जिस दिन हम... मदत मांगने वालों से मदत लेने लगे... उस दिन उनको.... उनको एहसास होने लगेगा... के हम कमजोर पड़ रहे हैं.... जंगल का यही नियम है... जब शेर कमजोर पड़ जाता है... कुत्ते भी उसके शिकार करने से नहीं चूकते... इसलिए... वह हरामजादा... मेरा शिकार है... और यकीन मानों... मेरा गट फिलिंग कह रहा है... हम बहुत जल्द आमने सामने होने वाले हैं...
महांती - आपके इस बात पर... मैं ज्यादा कुछ नहीं कह सकता...
विक्रम - खैर... अपनी यहां आने की वजह बताओ....
महांती - इन तीन चार दिनों में... दो दो कांड हो गए हैं...
विक्रम - क्या...(हैरान हो कर) कांड... कैसा कांड...
महांती - होम मिनिस्टर यशपुर गया था... अपना होम मिनिस्ट्री का अकड़ दिखाने... राजगड़ में राजा साहब के जुते के नीचे अपनी नाक रगड़ कर आया है...
विक्रम - ह्म्म्म्म... राजा साहब जी का मैटर है... मुझे नहीं लगता इसमें... हमारे लिए करने के लिए... कुछ भी बाकी है.... और दुसरा....
महांती - कल कॉलेज में... राजकुमारी जी बर्थ डे पर... राजकुमार ने एक का सिर फोड़ दिया है...
विक्रम - क्या... (हैरान हो कर) कल... राजकुमारी जी का बर्थ डे था...
महांती - जी युवराज... क्यूँ आप भुल गए थे क्या...
विक्रम - (थोड़ा गंभीर हो कर) क्या हुआ था कॉलेज में कल...
महांती - एक लड़का...
विक्रम - (कड़क आवाज़ में) क्या किया उसने...
महांती - कुछ नहीं... राजकुमारी जी को सबके सामने बहन बताया और... खुदको उनका भाई बता कर बर्थ डे विश की....
विक्रम - क्या... बहन बता कर बर्थ डे विश किया...
महांती - हाँ.... इस बात पर... राजकुमार उसका सिर फोड़ दिया...
विक्रम - ओ... ह्म्म्म्म... मुझे नहीं लगता... हमें इसमें पड़ने की कोई जरूरत भी है...
महांती - जी युवराज... वैसे एक और बात भी है...
विक्रम - क्या...
महांती - राजकुमार और... (रुक जाता है)
विक्रम - हाँ और....
महांती - राजकुमार और वह लड़की... जो उनकी... अभी सेक्रेटरी कम असिस्टेंट है इस वक़्त...
विक्रम - हूँ... क्या हुआ उस सेक्रेटरी को...
महांती - वह... हमारे ऑफिस के स्टाफ्स के बीच... गॉसिप चल रहा है... की उनके बीच...
विक्रम - महांती... तुम अच्छी तरह से जानते हो राजकुमार जी कैसे हैं... यह उस लड़की की किस्मत... वह कोई हुर या परी तो है नहीं... वैसे भी अगर तरबूज खुद चाकू पर गिरने को अमादा हो... हम क्या करें...
महांती - (थोड़ी देर चुप रहता है)
विक्रम - (महांती के कुछ ना बोलते देख) ओके... बात अगर हाथ से निकलता देखेंगे... तो उस लड़की का मुहँ पैसों से और धौंस से बंद कर देंगे... पिछली हर बार की तरह...
महांती - (फिर भी चुप रहता है)
विक्रम - कोई और बात भी है... क्या...
महांती - जी...
विक्रम - ओह कॉमऑन महांती... तुम कबसे इतनी फरमालीटि मेंटेन करने लगे...
महांती - जी... छोटी रानी जी आई हुई हैं.... अभी विला में हैं...
विक्रम - (हैरान हो कर) छोटी रानी आई हैं...
महांती - जी... जी युवराज और आज ही वह चली जायेंगी...
विक्रम - ओ.. अच्छा... युवराणी ने आपके हाथों खबर भिजवाई है....
महांती - (अपना सिर हाँ में हिलाता है)
विक्रम - पता नहीं... मैंने वह हैल क्यूँ बनाया... जहां पर घर बसाना मुमकिन ना हुआ... (इतना कह कर विक्रम चुप हो जाता है)
महांती - (कुछ देर की चुप्पी के बाद) तो मैं युवराणी जी से क्या कहूँ...
विक्रम - (चुप्पी साधे अपनी ख़यालों में कहीं खो सा जाता है)

महांती को जब कुछ देर तक कोई जवाब नहीं मिलता है वह वहाँ से बाहर की ओर चला जाता है l

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द हैल के कंपाउंड में वीर अपनी गाड़ी को पार्क कर चाबी एक गार्ड को देता है, और झूमते हुए घर में दाखिल होता है l ड्रॉइंग रुम में दाखिल होते ही सामने का नज़ारा देख कर ठिठक जाता है l ड्रॉइंग रुम के बीचों-बीच एक बड़े से सोफ़े पर छोटी रानी उर्फ़ सुषमा बैठी है, और उसके एक तरफ़ शुभ्रा बैठी हुई है और दुसरी तरफ रुप बैठी हुई है l तीनों आपस में बातों में लगी हुई थीं l पर जैसे ही वीर पहुँचता है सब चुप होकर वीर को देखने लगती हैं l वीर सुषमा को सामने देख कर स्तब्ध हो जाता है उसका सारा जिस्म एक अंदरुनी सिहरन से थर्रा जाता है l यहाँ तक उसकी सांसे भी थर्राने लगती है l उसकी हालत ऐसे हो जाती है जैसे अगले ही पल वह रो देगा l सुषमा अपनी जगह से खड़ी हो जाती है उसकी भी हालत बिल्कुल वीर के जैसी हो जाती है l दोनों आगे बढ़ते हैं उनको बढ़ते देख रुप और शुभ्रा भी अपनी जगह पर उठ खड़ी हो जाती हैं l

वीर - (बड़ी मुश्किल से) म्म्म्म... माँ...
सुषमा - ह्ँ... हाँ... हाँ...

फिर दोनों के मुहँ से कोई बोल नहीं फूटती है l वीर भाग कर अपनी माँ के गले से लग जाता है l दोनों के आँखों में सिर्फ आँसू ही आँसू तैरने लगते हैं l उन दोनों की हालत देख कर रुप और शुभ्रा भी अपनी आँखों को आँसू बहाने से रोक नहीं पाती l रुप सुषमा के पास पहुँचती है l

रुप - (भराई आवाज में) म्म्म्म... माँ... (दोनों माँ बेटे रुप की ओर देखते हैं) स... सारा प्यार... क्या भाई के लिए है...

सुषमा अपनी बाहें खोल देती है रुप भी उसके गले लग जाती है l शुभ्रा यह सब देख कर वह भी सुषमा के पास खड़ी होती है l वह खुद को रोक नहीं पाती है इसलिए शुभ्रा सुषमा के कंधे पर अपना सिर सुबकते हुए रख देती है l कुछ देर के बाद माहौल धीरे धीरे खुशनुमा होने लगती है l सब अलग होते हैं l

शुभ्रा - वीर... हमें कल चौंकाने से पहले.. तुम पहले से ही माँ से बात कर ली थी...
वीर - हाँ... हाँ भाभी... मैंने पहले उस रिश्ते को सिर आँखों पर उठया... जिनके वजह से... मैं इस दुनिया में आया.... जिसने मुझे बोलना सिखाया... लोगों को पहचानना सिखाया...

यह बात सुन कर सुषमा वीर को फिर से गले लगा लेती है l वीर अचानक से अपनी माँ से अलग हो कर अपनी बाहों में उठा कर सोफ़े के पास ले जाता है l

सुषमा - अरे.. यह... यह क्या कर रहा है... कहाँ... कहाँ ले जा रहा है.. उतार... उतार मुझे...
वीर - माँ... तुम यहाँ.. (सोफ़े पर बिठा देता है,) यहाँ पर बैठो... (और खुद नीचे बैठ जाता है)
सुषमा - अरे... नीचे क्यूँ बैठ गया...
वीर - माँ... वह कहते हैं ना... माँ की कदमों में.. और माँ की सेवा में.. जन्नत का सुख है... इसलिए जन्नत का लुफ्त उठा रहा हूँ...
सुषमा - (आवाज में थर्राहट के साथ) कितनी बड़ी बड़ी बातेँ करने लग गया है... कहाँ से सीखा यह सब...
वीर - माँ... (सुषमा के हाथ पकड़ कर) जैसे ही... मैंने तुम्हें माँ कह कर पुकारा... बस.. वैसे ही सब अपने आप सब होता चला गया... और आता आता चला गया...

सुषमा और कुछ नहीं पूछती है बहुत प्यार से वीर के चेहरे पर अपना हाथ फेरती है l शुभ्रा और रुप पहले की तरह सुषमा के पास बैठ जाते हैं l

वीर - अच्छा माँ.. तुम यहाँ आई... वह भी बिना खबर किए... क्यूँ माँ... मुझे बोल दिया होता... मैं (अपनी बाहें फैला कर) उड़ते हुए तुम तक पहुँच जाता...
सुषमा - हूँ... जानती हूँ... पर मैं यहाँ... यह कहने आई... के.. ( एक पॉज लेकर) अभी... जो बदलाव आया है तुममें... इस बदलाव को तुम लोग... यहीँ... यहीँ पर रहने दो... इसे.... (अपनी सिर ना में हिलाते हुए) राजगड़ कभी मत लेकर जाओ...
वीर - (हैरान हो कर) क्यूँ... क्यूँ ना लेकर जाऊँ... माँ...
सुषमा - बस बेटा... उस नर्क से... बेहतर तो यह हैल है... यहाँ.... यहाँ पर कम से कम मुर्दे और गड़े रिश्तों में जान डाल दिया है तुमने... नातों को पहचान लिया तुमने... पर जब इन्हीं चीजों को गलती से भी राजगड़ ले जाओगे... उस महल के राजसी शालीनता के नाम पर... झूठे अहं के नीचे दब कर... यह सब खतम हो जाएगा... इसलिए अगर रिश्तों के साथ जीना है... तो... (सुबकते हुए) तो राजगड़ मत आना...

सुषमा की बात खतम होते ही एक ख़ामोशी सी छा जाती है वहाँ पर l क्यूँकी सुषमा की कही हर बात की गहराई को तीनों बखूबी समझ रहे थे I

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घर के ऑफिस रुम के सामने वाली व्हाइट बोर्ड के सामने विश्व हाथ में मार्कर पेन लिए इधर से उधर और उधर से इधर हो रहा है l उसकी हालत देख कर सेनापति दंपती को लगता है कि बहुत गहरी सोच में है l तापस अपनी आँखे बंद कर कुछ यूँ सिर हिलाने लगता है जैसे कोई गाना सुन रहा हो l उसे यूँ सिर हिलाता देख कर

प्रतिभा - (धीरे से, फुसफुसा कर) क्या बात है सेनापति जी... किस बात पर अपना सिर हिला रहे हैं...

तापस उसे अपने होठों पर उंगली रख कर चुप रहने का इशारा करता है l फिर वहाँ से उठ कर जाने लगता है l प्रतिभा इशारे से पूछती है

प्रतिभा - (इशारे से) कहाँ जा रहे हो...
तापस - (इशारे में) रुको.. मैं अभी आया...

तापस कमरे से बाहर चला जाता है l थोड़ी देर बाद हाथ में कुछ बिस्कुट और एक कोल्ड ड्रिंक की बोतल लाकर प्रतिभा के पास बैठ जाता है l

प्रतिभा - यह... यह क्या है सेनापति जी...
तापस - कुछ नहीं भाग्यवान... जब तक प्रताप सोच सोच कर किसी नतीजे पर पहुँच नहीं जाता... तब तक मैंने सोचा... क्यूँ ना बिस्कुट और कोल्ड ड्रिंक हो जाए...
प्रतिभा - (गुर्राते हुए) आप मेरे बेटे का मज़ाक उड़ा रहे हैं...
तापस - आरे भाग्यवान... मैं ऐसा कभी कर सकता हूँ भला... मुझे ड्रॉइंग रुम में थोड़े ना सोना है... बस थोड़ी देर के लिए अगर मुहँ चला... तो... यु नो.. वरना नींद आएगी...
प्रतिभा - (उसे कुछ नहीं कहती, अपनी जबड़े भींच कर आँखे सिकुड़ लेती है)
तापस - (चुपचाप अपना वह बिस्कुट और कोल्ड ड्रिंक रख देता है) हाँ तो प्रताप... कहाँ खो गए हो...
विश्व - (तापस की ओर देखता है) डैड... मैं कुछ समझने की कोशिश कर रहा हूँ... पर अंत तक पहुँच नहीं पा रहा हूँ...
प्रतिभा - क्या केस इतना क्रिटिकल है...
विश्व - नहीं माँ... मैं कुछ और सोच रहा हूँ... पर हाँ... वह कहीं ना कहीं... इस केस से जुड़ा हुआ है...
तापस - हमसे भी तो शेयर कर सकते हो...
विश्व - हाँ.. पर शुरु कहाँ से करूँ...
तापस - कहीं से भी करो... हम सिर खपाते खपाते किसी ना किसी नतीजे पर पहुँच ही जायेंगे....
प्रतिभा - हाँ बेटा पूछ तो सही...
विश्व - (कुछ सोच कर अपना सिर हिलाता है, फिर) माँ... भैरव सिंह क्षेत्रपाल स्टेट पालिटिक्स में... वह रुतबा... वह मकाम रखता है... की सरकार हिल जाता है... यशपुर के आसपास सभी एमएलए और एमपी... उसकी मर्जी से खड़े होते हैं... ऐसे में अगर राजनीति में केरियर बनाना ही था... तो छोटे राजा पिनाक सिंह को कहीं भी खड़ा कर सकता था... वह भी अनकंटेस्ट... तो यह छोटी सी मेयर पोस्ट... और उसका बेटा सिर्फ पार्टी का युथ प्रेसिडेंट... क्यूँ...
तापस - कह तो तुम सही रहे हो... हो सकता है... हाती के दिखाने का दांत अलग है... और खाने के अलग...
विश्व - तो क्षेत्रपाल... दिखा क्या रहा है... और छुपा क्या रहा है....
प्रतिभा - वैसे तुने बात तो पते की की है... क्यूंकि... जब तेरे केस की सुनवाई चल रही थी... उसी दौरान... ESS की पंजीकरण हुआ था... ग्रांड इनागुरेशन हुआ था.. क्षेत्रपाल का समधी ही गया था... इनागुरेट करने...
विश्व - वही तो... बेटा... एक सिक्युरिटी एजेंसी चला रहा है... और भाई सिर्फ मेयर की कुर्सी...
प्रतिभा - क्या.. इन लोगों की केस से कोई सीधा ताल्लुक है...
विश्व - ताल्लुक तो है ही... क्यूंकि जोडार साहब को जो परेशानी हो रही है... उसके पीछे... क्षेत्रपाल और कंस्ट्रक्शन किंग केके का नेक्सस है...
प्रतिभा - पर उनका केस क्या है... उनको प्रॉब्लम कहाँ है... और उसका सॉल्यूशन कैसे हो सकता है...
विश्व - माँ... भुवनेश्वर में... एक अनबिटन बिल्डर था... नाम था कमल कांत उर्फ़ केके... ऐसे में एक मल्टीनैशनल कंपनी थाईशन ग्रुप के साथ ओड़िशा सरकार की... माइनिंग एक्सकेवेशन के लिए बीस साल का एमओयू पर हस्ताक्षर होता है.... ऐसे में एक कॉर्पोरेट ऑफिस के लिए थाईशन ग्रुप एक एसईजेड पर प्लॉट का आवेदन करती है.. राज्य सरकार जगह दे भी देती है... उसके बाद थाईशन एक सत्ताईस मंजिली ऑफिस इमारत के लिए... एक ओपन टेंडर खोलती है... कुछ टर्म्स एंड कंडिशन के साथ... बिल्डिंग प्लान विथ आर्किटेक्ट और इंटीरियर डिजाइन... और सिक्युरिटी सर्विस के साथ... बड़े बड़े रथी.. महारथी... इस बिडिंग में शामिल हुए... पर सबको पछाड़ते हुए जे ग्रुप... यानी जोडार ग्रुप को हासिल हुआ... वजह... बिडिंग में एल वन होना... सात पर्सेंट कम और उनका खुद का अपना सेक्यूरिटी सर्विस होना...
तापस - ह्म्म्म्म... यह सब स्वाभाविक प्रक्रिया थी...
विश्व - प्रक्रिया स्वाभाविक थी... पर उसके बाद जो हुआ वह अस्वाभाविक था...
तापस - कैसे...
विश्व - मतलब....
तापस - क्यूंकि... केके कोई छोटा मोटा कांट्रैक्टर नहीं है... बात अगर थाईशन टावर की है... तो केके के पास इतनी दौलत तो है कि ऐसे कई टावर खड़ा कर सकता है...
प्रतिभा - हाँ... पॉइंट तो है... क्यूंकि करीब छह महीने पहले... केके... राजा साहब को... अपना नंदनकानन रिसॉर्ट तोहफे में दिया था...
विश्व - माँ... रोपुटेशन और इगो... केके जब भी ऐसे छोटे छोटे कांट्रैक्ट.... वह हासिल करता था.... उसे वह दुसरे छोटे कॉन्ट्रैक्टर को सबलेट कर देता था... पर ऐसा पहली बार हुआ... उसका टेंडर एल वन नहीं था... बल्कि जोडार साहब का टेंडर 7% कम था...
तापस - ओह माय माय... अनविलीवेबल...
विश्व - जी बिलकुल... टेंडर बिडिंग में... 7% कम... यह पहला झटका था... केके के रेपुटेशन के लिए...
प्रतिभा - पर... अगर केके इन सबके पीछे है... तो क्षेत्रपाल... का नाम क्यूँ लिया जोडार साहब ने...
विश्व - क्षेत्रपाल की भूमिका संक्षिप्त और सीमित है... पर चूँकि नाम क्षेत्रपाल है... इसलिए महत्वपूर्ण है...
तापस - (प्रतिभा से) भाग्यवान... तुम ऐसे क्षेत्रपाल को घसीटने पहले... केके के इगो के बारे में जान लेती... (विश्व से) उसका इगो हर्ट हुआ... क्यूंकि जोडार ने... 7% कम प्राइज़ में टेंडर हासिल कर लिया...
विश्व - हाँ... केके सिर्फ बड़ा कांट्रैक्टर नहीं है... बल्कि... इस शहर में रॉ मैटेरियल का मेगा सप्लायर है... मसलन.. लोहे की छड़ें... गिट्टी... चिप्स... रेत और सीमेंट... वगैरह...
प्रतिभा - ओ... तो... जोडार साहब यह प्रोजेक्ट यहाँ तक पहुँचाए कैसे...


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द हैल
डायनिंग टेबल पर महफ़िल ज़मी हुई है और आपसी नोंक झोंक चल रही है l सुषमा चेयर पर बैठी हुई है उसके पैरों के पास नीचे रुप और वीर बैठे हुए हैं l प्लेट से खाने का निवाला लेकर बारी बारी से सुषमा दोनों को खिला रही है l थोड़ी दूर डायनिंग टेबल पर शुभ्रा उन दोनों को भावुकता में देख रही है l सुषमा शुभ्रा की तरफ देखती है और एक निवाला लेकर शुभ्रा की तरफ बढ़ाती है l शुभ्रा उस निवाले को अपने मुहँ में ले लेती है l शुभ्रा के आँखों से आँसू छलक पड़ते हैं l

सुषमा - बहु... क्या तुझे... माँ की याद आ रही है...
शुभ्रा - नहीं चाची माँ... बल्कि आप सबका यह प्यार देख कर.. जी नहीं भर रहा है... बार बार मन कर रहा है कि कास... कास यह वक़्त यहीं थम जाती...
सुषमा - प्यार की दरकार सबको होती है बहु... प्यार ही तो है... जो बांधे रखती है...
शुभ्रा - (एक गहरी सांस लेकर) आपने ठीक कहा माँ...
सुषमा - वैसे.... खबर तो भिजवाई थी मैंने... पर युवराज नहीं दिख रहे हैं...

तीनों क्या कहें, क्या जवाब दें कुछ समझ नहीं पाते l तीनों एक दुसरे को देखने लगते हैं l

वीर - वह.. माँ.. युवराज भैया... काम में इतने डूबे हुए हैं... इतना की घर का होश ही नहीं रहता.... वह तुम तो जानती हो... छोटे राजा जी पर हमला हुआ था... तब से... भैया उस हमलावर को ढूंढ रहे हैं...

सुषमा शुभ्रा की ओर देखती है l शुभ्रा को अनकंफर्टेबल फिल होती है l

शुभ्रा - अरे... यह क्या... डाल खतम हो गई है... मैं.. मैं अभी लाती हूँ... (डाल वाली बाउल ले कर चली जाती है)
रुप - (बात बदलने के लिए) अच्छा चाची माँ... आप हमारे साथ कितने दिन रुकने वाली हो...
सुषमा - तेरे चाचा... सर्किट हाउस में हैं... वीर थोड़ी देर बाद मुझे वहाँ छोड़ देगा... मैं तेरे चाचा के साथ... राजगड़ आज ही देर शाम को चली जाऊँगी....
वीर - क्या माँ... बिजली के जितने कौंधने तक भी कभी रुकती नहीं हो...
सुषमा - पहले की बात अलग था... अब बात अलग है... पर.. क्या करूँ... बेटा... बड़े राजा जी की हालत दिन व दिन खराब होती जा रही है.... भले ही उनकी देखभाल और उनके सारे काम... नौकर कर रहे हैं... पर फिर भी उस घर की बहू होने के नाते... वह मेरी जिम्मेदारी हैं... कुछ इधर उधर हुआ तो... (रुप और वीर सुषमा की ओर देखने लगते हैं) तो... राजा साहब की नाराजगी का सामना... मैं नहीं कर सकती... (रुप और वीर अपना सिर झुका लेते हैं) कोई नहीं बच्चों... अब तो मैं... बीच बीच में आती ही रहूँगी... आखिर तुम लोगों में मेरी जान जो बसी है...
रुप - झूठ... (मुहँ फूला कर) जब तक आपके पास बेटी थी... कितनी बार यहाँ आईं बोलिए... अब जब बेटा मिल गया... तो झट से आ गईं....
सुषमा - (बहुत प्यार से रुप के चेहरे पर हाथ फेरती है) इस बात पर अगर हम बहस करने बैठें... तो कभी खतम नहीं होगी... चलो जाओ... चलो... पहले हाथ मुहं साफ कर लो.... जाओ... मैं भी साफ कर लेती हूँ...

तीनों अपने हाथ मुहँ साफ कर लेते हैं l शुभ्रा सबके लिए टावल लाती है l

वीर - क्या भाभी... नौकर हैं ना.... उन्हें कह देती...
शुभ्रा - हाँ कह देती.... बात अगर राजकुमार जी की होती.... बात मेरे देवर जी की है... इसलिए मैं लेकर आई हूँ...
सुषमा - शाबाश बहु... (वीर से) अब तेरी भी जिम्मेदारी बनती है... अपनी भाभी के लिए ऐसी सोच रखने की... समझा...
वीर - हाँ माँ... जरूर...
सुषमा - पहली बार... (एक मायूसी भरा गहरी सांस भरते हुए) युवराज जी को बिना देखे... उनसे बिना मिले जा रही हूँ..

तीनों फिर चुप हो जाते हैं l तीनों आपस में और सुषमा से नजरे चुराने लगते हैं l सुषमा को यह एहसास भी हो जाता है l पर कुछ सोच कर वह चुप रहती है l थोड़ी देर बाद

सुषमा - (वीर से) अच्छा बेटा... मुझे सर्किट हाउस छोड़ देगा...
रुप - पर चाची माँ... आपको लेने गाड़ी तो आई हुई है ना...
सुषमा - हाँ आई हुई है... (वीर से) जा उस ड्राइवर से कह दे... तु मुझे अपनी गाड़ी से छोड़ने जा रहा है.... आज मैं चाहती हूँ... मेरा बेटा मुझे छोड़ने जाए...
वीर - छोड़ने...
सुषमा - हाँ... क्यूँ नहीं छोड़ने जाएगा मुझे...
वीर - ऐसी बात नहीं है माँ... पर पता नहीं क्यूँ... छोड़ने की बात पर दिल बैठ सा गया...
सुषमा - (बड़े प्यार से वीर के चेहरे पर हाथ फ़ेरती है) कितना नया और प्यारा लग रहा है...(फिर संभलते हुए) अब क्या मुझे राजा साहब की नाराजगी का सामना करवायेगा....
वीर - नहीं... कभी नहीं... मेरी माँ को और कभी कोई तकलीफ नहीं होगा... चलो मैं ही तुम्हें सर्किट हाउस ले जाऊँगा... तुम्हारे जाने के बाद ही मैं घर आऊंगा....

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तापस - हूँ... तो जोडार साहब सारी रॉ मैटेरियल कैसे हासिल की... और कहाँ से की...
विश्व - एक आर्मी पर्सन होने के वजह से... जोडोर साहब बहुत ही अनुशासन प्रिय व्यक्ति हैं... चूंकि उनकी बंगाल की मार्किट में अच्छी खासी पहचान थी... इसलिए उन्हों ने भुवनेश्वर मार्किट से कुछ भी नहीं उठाया...
प्रतिभा - इससे तो ट्रांसपोर्टींग चार्जर्स बढ़ गई होगी...
विश्व - हाँ... पर वह मार्जिनरी थी...
प्रतिभा - कैसे...
विश्व - हुगली से सामान लोडिंग होती थी... और पूरी के निकट अस्तरंग पोर्ट में ढुलाई होती थी...
प्रतिभा - ओ... जबरदस्त... तो अब प्रॉब्लम क्या है...
विश्व - जब साम... दाम.. दंड.. भेद कुछ काम नहीं आया... तब केके ने एक और चाल चल दी...
तापस - चाल.. एक मिनट... केके ने कौनसा साम दाम दंड भेद... का प्रयोग किया...
विश्व - केके ने जोडार साहब से कांट्रेक्ट सबलेट करने को कहा... सारे तरीके भी आजमाया था... पर जोडार साहब नहीं माने थे...
तापस - अब जब... टावर खतम होने के कगार तक पहुँच गया है... तब केके ने क्या परेशानी खड़ी कर दी...
प्रतिभा - हाँ हाँ.. वह टावर के साइट में ईलीगल कंस्ट्रक्शन केके के हो सकते हैं... हो सकते हैं क्या.. पक्का उसीके होंगे...
विश्व - बिल्कुल... उसीके आदमियों के हैं... उन्हें हटाना... कोई मुस्किल भरा काम नहीं है... बल्कि प्रॉब्लम कुछ और है...
प्रतिभा - क्या... अब क्या प्रॉब्लम है...
विश्व - टावर की इंटीरियर के लिए... उन्होंने सिंगापुर से चार कंटेनर सामान मंगवाया था... पारादीप पोर्ट पर... जोडार साहब के आदमी गए थे... कंसाइनमेंट रिसीव करने... और रिसीव कर जब कंटेनर यहाँ पहुँची... कंटेनर खाली मिला...
तापस और प्रतिभा - व्हाट...
विश्व - हाँ...
तापस - क्या... मतलब सिंगापुर से खाली कंटेनर आया था...
विश्व - नहीं... कंटेनर भरा हुआ आया था... पोर्ट पर ही सामान गायब कर दिया गया....
तापस - कैसे... कस्टम तो चेक करती होगी... फिर जोडार साहब के आदमी खुद गए होंगे... सामान रिसीव करने...
विश्व - यही तो क्रैक करना है...
प्रतिभा - तो इसमें अबतक.... क्षेत्रपाल कहाँ हैं...
विश्व - (मुस्कराते हुए) ESS.. क्षेत्रपाल की सिक्युरिटी एजेंसी है... है ना...
प्रतिभा - हाँ...
विश्व - पारादीप पोर्ट में... कुछ हिस्सों पर... जैसे की जहां माल अनलोडिंग होती है और कुछ प्राइवेट गोदाम हैं... जहां की सिक्युरिटी... ESS के जिम्मे है... गड़बड़ वहीँ हुई है...
प्रतिभा - ओ.. तो... पर अब... क्या अबतक सब कुछ मैनिपुलेशन नहीं हो गया होगा...
विश्व - पॉसिबल है... पर उम्मीद है...
प्रतिभा - इसका मतलब... हमें पारादीप जाना पड़ेगा... सबूत के लिए...
विश्व - विश्व हमें नहीं... सिर्फ़ मुझे और डैड को...
प्रतिभा - (तुनक कर) क्या... मैं क्यूँ नहीं...
विश्व - माँ कुछ काम.. मर्दों से हो सकती है...
प्रतिभा - (अपनी जगह से खड़ी हो जाती है) क्या... क्या कहा...
विश्व - (प्रतिभा के पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखकर फिरसे बिठा देता है) माँ... मैंने देखा है... तुम्हारे डायरी में कल कोर्ट में एक हीयरिंग है... जिससे अटेंड करना जरूरी है... बस इसीलिए ऐसा कह दिया तुमसे...
प्रतिभा -(विश्व की कान पकड़ कर) अभी तो बड़ी डींगे हांक रहा था... मर्दाना काम है...

विश्व अपना चेहरा मोड़ कर अनुरोध करने वाली नजर से तापस की ओर देखता है

तापस - अरे अरे भाग्यवान... क्या कर रही हो... बेचारे का कान टुट गया तो... कन कटे से कौन लड़की शादी करेगी... (प्रतिभा विश्व की कान छोड़ देती है) अरे भाग्यवान दो दिन से.... अपनी पल्लू से बाँध कर इसे घूमा रहे हो... एक आध दिन इसको मेरे हवाले भी करो... मेरे भी बहुत अरमान है...
प्रतिभा - ठीक है... पर इससे कह दीजिए... मुझसे बात करने की कोशिश ना करे...
विश्व - वह तो नहीं हो सकता...
प्रतिभा - हूँ... ह्... इसके लिए केस मैं लेकर आई... और यह है कि...
विश्व - माँ... कल आपका बहुत इंपोर्टेंट रोल है...
प्रतिभा - (उसे घूर कर देखने लगती है)
विश्व - कल शाम आपको... जोडार साहब को किसी न्यूट्रल वेन्यू पर हमारी मीटिंग अरेंज करनी होगी...
प्रतिभा - ठीक है ठीक है... हो जाएगा...
विश्व - माँ... अब गुस्सा थूक दो ना...
प्रतिभा - नहीं...
विश्व - भूक लग रही है...
प्रतिभा - तो जाके खा ले...
विश्व - (चेहरा मासूम बनाते हुए) तुम खिलाओ ना...
प्रतिभा - (मुस्करा देती है) अच्छा चलो सब अपने हाथ मुहँ धो कर डायनिंग टेबल पर पहुँचो...
तापस - वाह जब बेटा मिल गया... उसकी बड़ी खयाल रखी जा रही है... मेरी भूख की कोई चिंता नहीं...
प्रतिभा - (अपनी कमर पर हाथ रखकर) क्या कहा आपने...
तापस - और नहीं तो... तुम्हें क्या लगा मैं बिस्कुट और कोल्ड ड्रिंक क्यूँ लेकर आया था...
प्रतिभा - हूँ... यह बात है... वैसे आज रात आपको सोना कहाँ है...
तास - समझ गया... मैं तो मज़ाक कर रहा था...


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वीर गाड़ी चला रहा है बगल में सुषमा उसे सिर्फ देखे जा रही है l वीर बीच बीच में वीर भी सुषमा को देख रहा है l

वीर - क्या बात है माँ... ऐसे क्या देख रही हो...
सुषमा - पहले जब भी देखती थी... क्षेत्रपाल परिवार के राजकुमार को देख रही थी... पर आज... अपने बेटे को देख रही हूँ... इसलिए मन नहीं भर रहा....
वीर - हाँ माँ... कितने प्यारे होते हैं यह रिश्ते... पता नहीं कैसी अंधी परंपरा के चलते... हम दूर हो गए... परंपरा को ढोते ढोते... हमे रिश्ते नहीं दिखे... जब रिश्तों को देखा तो यह परंपराएं... कितनी खोखली और छोटी लगने लगी है...
सुषमा - (मुस्करा देती है)
वीर - (मुस्करा कर) माँ एक बात कहूँ...
सुषमा - हम्म... बोल...
वीर - तुम्हें मुस्कराते हुए... पहली बार देख रहा हूँ... और सच कह रहा हूँ... दुनिया की सबसे खूब सूरत माँ लग रही हो...
सुषमा - हा हा हा.... (हँसी को रोकते हुए) अच्छा एक काम करेगा...
वीर - हाँ बोलो ना माँ...
सुषमा - कहीं एकांत देख कर गाड़ी रोकना...
वीर - क्यूँ... किसलिए माँ...
सुषमा - नहीं रोकेगा...
वीर - क्या माँ तुम भी... यह लो...

एक पार्क के पास गाड़ी रोक देता है l पार्क के बाहर रोड साइड में सीमेंट की बेंच पर सुषमा बैठ जाती है l वीर भी गाड़ी से उतर कर अपनी माँ के पास जा कर बैठता है l

वीर - हाँ माँ... अब बोलो...
सुषमा - (एक गहरी और सुकून भरी सांस लेकर) कितना अच्छा लग रहा है... अच्छा हुआ... छोटे राजा जी के गाड़ी को सर्किट हाउस भेज दिया था... गार्ड्स के साथ जब कहीं भी जाती थी... तो ऐसा लगता था... जैसे मैं कोई.... कैदी हूँ...
वीर - (अपनी माँ के बातों पर हँस देता है) माँ... बोलो ना... क्या बात करनी थी... यहाँ किस लिए गाड़ी को रुकवाया...
सुषमा - (वीर के चेहरे को मुस्करा कर देखते हुए) मुझे अभी कितना अच्छा लग रहा है... जानता है... मैं शब्दों में कह नहीं सकती... तु बता... तुझे अब कैसा लग रहा है....
वीर - (सुषमा के बगल में फैल कर बैठ जाता है) क्या बताऊँ माँ... बस अच्छा लग रहा है...(अपनी बाहें फैला कर) उड़ने को दिल कर रहा है... भागने को दिल कर रहा है... (खड़े हो कर) झूमने को... नाचने को गाने को दिल कर रहा है... क्या बताऊँ... कैसा लग रहा है... ह्म्म्म्म.... बस माँ.. बहुत... बहुत ही बढ़िया लग रहा है...(वीर देखता है उसकी बातों को सुषमा बड़ी ही जिज्ञासा भरे नजरों से एक अंदरुनी खुशी चेहरे पर लिए गौर से देख व सुन रही थी) क्या बात है माँ... ऐसे क्यूँ देख रही हो... (सुषमा के पास बैठ जाता है)
सुषमा - कौन है वह...
वीर - (हैरान हो कर) कौन... मतलब.... किसकी बात कर रही हो...
सुषमा - मैं उस लड़की बात कर रही हूँ... जिसने तुझे इस कदर बदल दिया...
वीर - ल.. लड़की...(हकलाने लगता है) क.. क.. कौन लड़की...
सुषमा - मैंने तुझे पहले भी खुश होते देखा है... पर तब लगता था... या तो वह खुशी नकली है... या फिर तु.... ज़बरदस्ती खुश होने की कोशिश करता था... या.. या फिर ऐसा लगता था... जैसे कुछ... तेरे पर जबरदस्ती लाद दिया गया है... पर आज.... आज की खुशी अलग है... कितना तेज है... कितनी मासूमियत भरा है... (वीर का मुहँ खुला रह जाता है) कब मिलवा रहा है मुझसे....
वीर - (खड़ा हो जाता है) यह.. यह क.. क्या कह रही हो माँ... (हकलाने लगता है) क...क कोई.. कोई ल.. ल.. ल.. लड़की नहीं माँ...
सुषमा - (वीर के बगल में खड़ी हो कर उसके गालों पर प्यार से हाथ फेरते हुए) कोई बात नहीं... लगता है... तेरा दिल ने अभी तक तुझे खबर नहीं दी है... सिर्फ जान पहचान से... या दोस्ती से आगे नहीं बढ़ पाए हो....
वीर - क... क्या... माँ... क्या बात कर रही हो...
सुषमा - कहा ना कोई बात नहीं... पर मैं यकीन के साथ कह सकती हूँ... लड़की बहुत ही अच्छी होगी...
वीर - (शर्म से गढ़ा जा रहा है) प्लीज माँ... मैं... वह मैं...
सुषमा - (वीर की हाथ पकड़ कर अपने पास बिठाती है) आज भले ही... तु स्वीकार करने में शर्मा रहा है... पर जिस दिन दिल से उसे अपना मानने लगेगा... जिस दिन उसकी बिना खुदको अधुरा मानने लगेगा... उस दिन मुझे उसके बारे में... बताना जरूर...
वीर- (शर्म से अपना चेहरा घुमा लेता है, और सुषमा को बिना देखे) आ.. आप... (और आगे कह नहीं पाता)
सुषमा - तेरे चहरे के उड़े रंगत बता रही है... क्यूंकि उसमें शर्म तो है पर.... शर्मिंदगी नहीं है... तेरे गालों पर लाली... मुझे इस अंधरे भी साफ दिख रहा है... (वीर नर्वस होने लगता है) अच्छा अब चल.... मुझे... सर्किट हाउस में छोड़ दे.. चल...
 

Jaguaar

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शाम का समय
ESS का ट्रेनिंग हॉल
विक्रम रैंडम तरीके से उसके पास तेजी से आते बड़े बड़े बर्फ के ब्लॉक्स को अपने ताकत भरे घुसों से तोड़ रहा है l जब सारे बर्फ के ब्लॉक्स टुट जाते हैं पास टेबल पर रखे सैंडवॉच के पास पहुँच कर देखता है रेत अभी भी गिर रहा है l पास खड़े कुछ बंदे ताली बजाने लगते हैं l उनमें से एक बंदा

बंदा - वाह युवराज वाह... आप कितने तेज हैं... डायरेक्ट कंबैट में आपके सामने टिकना... किसी के बस की बात नहीं...

विक्रम बदले में कुछ रिएक्ट नहीं करता बस हाथ बढ़ाता है l वह बंदा विक्रम के हाथ में टावल देता है l विक्रम अपना चेहरा साफ करता है l तभी हॉल में महांती आता है l महांती इशारा करता है l वहाँ पर मौजूद सभी बंदे हॉल से चले जाते हैं l उनके जाते ही

विक्रम - क्या बात है महांती... केके या चेट्टी... किसका खबर लाए हो...
महांती - नहीं...
विक्रम - फिर...
महांती - युवराज जी... उनकी खबर मिल ही जायेगी... बहुत जल्द... पर इतना जरूर है कि... केके और उसका बेटा... दोनों में से कोई भी... भुवनेश्वर में नहीं हैं....
विक्रम - और... ओंकार चेट्टी...
महांती - (चुप रहता है)
विक्रम - क्या हुआ महांती...
महांती - युवराज...(थोड़ा रुक कर) हमारे काउंटर तैयारी की खबर उसे लग गई थी...
विक्रम - इसलिए अब वह.. हस्पताल से गायब होगा....
महांती - (चुप हो जाता है)
विक्रम - कोई बात नहीं है महांती... हमे अब ऐसा कुछ करना होगा... की उन्हें मजबूर हो कर... बाहर आना ही पड़ेगा...
महांती - जानता हूँ... पर मैं उस बात के लिए परेशान नहीं हूँ...
विक्रम - फिर किस बात के लिए परेशान हो....
महांती - मैं कब तक आखिर अपने बॉस... अपने दोस्त... अपने पार्टनर का साथ पाने से... महरूम रहूँ... कब तक...
विक्रम - (चुप रहता है)
महांती - आप अगर कहें... तो हम साम दाम दंड भेद... सब इस्तेमाल कर.. अपने पास जितने भी कंटैक्ट हैं... उन सबके मदत से..(आवाज कड़क कर) उस हरामजादे को...
विक्रम - नहीं... महांती नहीं... वह मेरा पर्सनल मैटर है...
महांती - पर क्यूँ... क्यूँ हमें शामिल करना नहीं चाहते...
विक्रम - महांती...(एक सांस छोड़ता है उसके बाद एक पॉज लेकर) इस शहर में... अपनी यह पोजीशन बनाने के लिए... छह साल लगे... आज आलम यह है कि... चाहे पब्लिक हो... पुलिस हो... या फिर पॉलिटिशियन... हर कोई अपने प्रॉब्लम सॉल्व करने के लिए... उनको ESS के चौखट पर घुटने टेक कर मदत मांगते हैं.... जिस दिन हम... मदत मांगने वालों से मदत लेने लगे... उस दिन उनको.... उनको एहसास होने लगेगा... के हम कमजोर पड़ रहे हैं.... जंगल का यही नियम है... जब शेर कमजोर पड़ जाता है... कुत्ते भी उसके शिकार करने से नहीं चूकते... इसलिए... वह हरामजादा... मेरा शिकार है... और यकीन मानों... मेरा गट फिलिंग कह रहा है... हम बहुत जल्द आमने सामने होने वाले हैं...
महांती - आपके इस बात पर... मैं ज्यादा कुछ नहीं कह सकता...
विक्रम - खैर... अपनी यहां आने की वजह बताओ....
महांती - इन तीन चार दिनों में... दो दो कांड हो गए हैं...
विक्रम - क्या...(हैरान हो कर) कांड... कैसा कांड...
महांती - होम मिनिस्टर यशपुर गया था... अपना होम मिनिस्ट्री का अकड़ दिखाने... राजगड़ में राजा साहब के जुते के नीचे अपनी नाक रगड़ कर आया है...
विक्रम - ह्म्म्म्म... राजा साहब जी का मैटर है... मुझे नहीं लगता इसमें... हमारे लिए करने के लिए... कुछ भी बाकी है.... और दुसरा....
महांती - कल कॉलेज में... राजकुमारी जी बर्थ डे पर... राजकुमार ने एक का सिर फोड़ दिया है...
विक्रम - क्या... (हैरान हो कर) कल... राजकुमारी जी का बर्थ डे था...
महांती - जी युवराज... क्यूँ आप भुल गए थे क्या...
विक्रम - (थोड़ा गंभीर हो कर) क्या हुआ था कॉलेज में कल...
महांती - एक लड़का...
विक्रम - (कड़क आवाज़ में) क्या किया उसने...
महांती - कुछ नहीं... राजकुमारी जी को सबके सामने बहन बताया और... खुदको उनका भाई बता कर बर्थ डे विश की....
विक्रम - क्या... बहन बता कर बर्थ डे विश किया...
महांती - हाँ.... इस बात पर... राजकुमार उसका सिर फोड़ दिया...
विक्रम - ओ... ह्म्म्म्म... मुझे नहीं लगता... हमें इसमें पड़ने की कोई जरूरत भी है...
महांती - जी युवराज... वैसे एक और बात भी है...
विक्रम - क्या...
महांती - राजकुमार और... (रुक जाता है)
विक्रम - हाँ और....
महांती - राजकुमार और वह लड़की... जो उनकी... अभी सेक्रेटरी कम असिस्टेंट है इस वक़्त...
विक्रम - हूँ... क्या हुआ उस सेक्रेटरी को...
महांती - वह... हमारे ऑफिस के स्टाफ्स के बीच... गॉसिप चल रहा है... की उनके बीच...
विक्रम - महांती... तुम अच्छी तरह से जानते हो राजकुमार जी कैसे हैं... यह उस लड़की की किस्मत... वह कोई हुर या परी तो है नहीं... वैसे भी अगर तरबूज खुद चाकू पर गिरने को अमादा हो... हम क्या करें...
महांती - (थोड़ी देर चुप रहता है)
विक्रम - (महांती के कुछ ना बोलते देख) ओके... बात अगर हाथ से निकलता देखेंगे... तो उस लड़की का मुहँ पैसों से और धौंस से बंद कर देंगे... पिछली हर बार की तरह...
महांती - (फिर भी चुप रहता है)
विक्रम - कोई और बात भी है... क्या...
महांती - जी...
विक्रम - ओह कॉमऑन महांती... तुम कबसे इतनी फरमालीटि मेंटेन करने लगे...
महांती - जी... छोटी रानी जी आई हुई हैं.... अभी विला में हैं...
विक्रम - (हैरान हो कर) छोटी रानी आई हैं...
महांती - जी... जी युवराज और आज ही वह चली जायेंगी...
विक्रम - ओ.. अच्छा... युवराणी ने आपके हाथों खबर भिजवाई है....
महांती - (अपना सिर हाँ में हिलाता है)
विक्रम - पता नहीं... मैंने वह हैल क्यूँ बनाया... जहां पर घर बसाना मुमकिन ना हुआ... (इतना कह कर विक्रम चुप हो जाता है)
महांती - (कुछ देर की चुप्पी के बाद) तो मैं युवराणी जी से क्या कहूँ...
विक्रम - (चुप्पी साधे अपनी ख़यालों में कहीं खो सा जाता है)

महांती को जब कुछ देर तक कोई जवाब नहीं मिलता है वह वहाँ से बाहर की ओर चला जाता है l

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द हैल के कंपाउंड में वीर अपनी गाड़ी को पार्क कर चाबी एक गार्ड को देता है, और झूमते हुए घर में दाखिल होता है l ड्रॉइंग रुम में दाखिल होते ही सामने का नज़ारा देख कर ठिठक जाता है l ड्रॉइंग रुम के बीचों-बीच एक बड़े से सोफ़े पर छोटी रानी उर्फ़ सुषमा बैठी है, और उसके एक तरफ़ शुभ्रा बैठी हुई है और दुसरी तरफ रुप बैठी हुई है l तीनों आपस में बातों में लगी हुई थीं l पर जैसे ही वीर पहुँचता है सब चुप होकर वीर को देखने लगती हैं l वीर सुषमा को सामने देख कर स्तब्ध हो जाता है उसका सारा जिस्म एक अंदरुनी सिहरन से थर्रा जाता है l यहाँ तक उसकी सांसे भी थर्राने लगती है l उसकी हालत ऐसे हो जाती है जैसे अगले ही पल वह रो देगा l सुषमा अपनी जगह से खड़ी हो जाती है उसकी भी हालत बिल्कुल वीर के जैसी हो जाती है l दोनों आगे बढ़ते हैं उनको बढ़ते देख रुप और शुभ्रा भी अपनी जगह पर उठ खड़ी हो जाती हैं l

वीर - (बड़ी मुश्किल से) म्म्म्म... माँ...
सुषमा - ह्ँ... हाँ... हाँ...

फिर दोनों के मुहँ से कोई बोल नहीं फूटती है l वीर भाग कर अपनी माँ के गले से लग जाता है l दोनों के आँखों में सिर्फ आँसू ही आँसू तैरने लगते हैं l उन दोनों की हालत देख कर रुप और शुभ्रा भी अपनी आँखों को आँसू बहाने से रोक नहीं पाती l रुप सुषमा के पास पहुँचती है l

रुप - (भराई आवाज में) म्म्म्म... माँ... (दोनों माँ बेटे रुप की ओर देखते हैं) स... सारा प्यार... क्या भाई के लिए है...

सुषमा अपनी बाहें खोल देती है रुप भी उसके गले लग जाती है l शुभ्रा यह सब देख कर वह भी सुषमा के पास खड़ी होती है l वह खुद को रोक नहीं पाती है इसलिए शुभ्रा सुषमा के कंधे पर अपना सिर सुबकते हुए रख देती है l कुछ देर के बाद माहौल धीरे धीरे खुशनुमा होने लगती है l सब अलग होते हैं l

शुभ्रा - वीर... हमें कल चौंकाने से पहले.. तुम पहले से ही माँ से बात कर ली थी...
वीर - हाँ... हाँ भाभी... मैंने पहले उस रिश्ते को सिर आँखों पर उठया... जिनके वजह से... मैं इस दुनिया में आया.... जिसने मुझे बोलना सिखाया... लोगों को पहचानना सिखाया...

यह बात सुन कर सुषमा वीर को फिर से गले लगा लेती है l वीर अचानक से अपनी माँ से अलग हो कर अपनी बाहों में उठा कर सोफ़े के पास ले जाता है l

सुषमा - अरे.. यह... यह क्या कर रहा है... कहाँ... कहाँ ले जा रहा है.. उतार... उतार मुझे...
वीर - माँ... तुम यहाँ.. (सोफ़े पर बिठा देता है,) यहाँ पर बैठो... (और खुद नीचे बैठ जाता है)
सुषमा - अरे... नीचे क्यूँ बैठ गया...
वीर - माँ... वह कहते हैं ना... माँ की कदमों में.. और माँ की सेवा में.. जन्नत का सुख है... इसलिए जन्नत का लुफ्त उठा रहा हूँ...
सुषमा - (आवाज में थर्राहट के साथ) कितनी बड़ी बड़ी बातेँ करने लग गया है... कहाँ से सीखा यह सब...
वीर - माँ... (सुषमा के हाथ पकड़ कर) जैसे ही... मैंने तुम्हें माँ कह कर पुकारा... बस.. वैसे ही सब अपने आप सब होता चला गया... और आता आता चला गया...

सुषमा और कुछ नहीं पूछती है बहुत प्यार से वीर के चेहरे पर अपना हाथ फेरती है l शुभ्रा और रुप पहले की तरह सुषमा के पास बैठ जाते हैं l

वीर - अच्छा माँ.. तुम यहाँ आई... वह भी बिना खबर किए... क्यूँ माँ... मुझे बोल दिया होता... मैं (अपनी बाहें फैला कर) उड़ते हुए तुम तक पहुँच जाता...
सुषमा - हूँ... जानती हूँ... पर मैं यहाँ... यह कहने आई... के.. ( एक पॉज लेकर) अभी... जो बदलाव आया है तुममें... इस बदलाव को तुम लोग... यहीँ... यहीँ पर रहने दो... इसे.... (अपनी सिर ना में हिलाते हुए) राजगड़ कभी मत लेकर जाओ...
वीर - (हैरान हो कर) क्यूँ... क्यूँ ना लेकर जाऊँ... माँ...
सुषमा - बस बेटा... उस नर्क से... बेहतर तो यह हैल है... यहाँ.... यहाँ पर कम से कम मुर्दे और गड़े रिश्तों में जान डाल दिया है तुमने... नातों को पहचान लिया तुमने... पर जब इन्हीं चीजों को गलती से भी राजगड़ ले जाओगे... उस महल के राजसी शालीनता के नाम पर... झूठे अहं के नीचे दब कर... यह सब खतम हो जाएगा... इसलिए अगर रिश्तों के साथ जीना है... तो... (सुबकते हुए) तो राजगड़ मत आना...

सुषमा की बात खतम होते ही एक ख़ामोशी सी छा जाती है वहाँ पर l क्यूँकी सुषमा की कही हर बात की गहराई को तीनों बखूबी समझ रहे थे I

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घर के ऑफिस रुम के सामने वाली व्हाइट बोर्ड के सामने विश्व हाथ में मार्कर पेन लिए इधर से उधर और उधर से इधर हो रहा है l उसकी हालत देख कर सेनापति दंपती को लगता है कि बहुत गहरी सोच में है l तापस अपनी आँखे बंद कर कुछ यूँ सिर हिलाने लगता है जैसे कोई गाना सुन रहा हो l उसे यूँ सिर हिलाता देख कर

प्रतिभा - (धीरे से, फुसफुसा कर) क्या बात है सेनापति जी... किस बात पर अपना सिर हिला रहे हैं...

तापस उसे अपने होठों पर उंगली रख कर चुप रहने का इशारा करता है l फिर वहाँ से उठ कर जाने लगता है l प्रतिभा इशारे से पूछती है

प्रतिभा - (इशारे से) कहाँ जा रहे हो...
तापस - (इशारे में) रुको.. मैं अभी आया...

तापस कमरे से बाहर चला जाता है l थोड़ी देर बाद हाथ में कुछ बिस्कुट और एक कोल्ड ड्रिंक की बोतल लाकर प्रतिभा के पास बैठ जाता है l

प्रतिभा - यह... यह क्या है सेनापति जी...
तापस - कुछ नहीं भाग्यवान... जब तक प्रताप सोच सोच कर किसी नतीजे पर पहुँच नहीं जाता... तब तक मैंने सोचा... क्यूँ ना बिस्कुट और कोल्ड ड्रिंक हो जाए...
प्रतिभा - (गुर्राते हुए) आप मेरे बेटे का मज़ाक उड़ा रहे हैं...
तापस - आरे भाग्यवान... मैं ऐसा कभी कर सकता हूँ भला... मुझे ड्रॉइंग रुम में थोड़े ना सोना है... बस थोड़ी देर के लिए अगर मुहँ चला... तो... यु नो.. वरना नींद आएगी...
प्रतिभा - (उसे कुछ नहीं कहती, अपनी जबड़े भींच कर आँखे सिकुड़ लेती है)
तापस - (चुपचाप अपना वह बिस्कुट और कोल्ड ड्रिंक रख देता है) हाँ तो प्रताप... कहाँ खो गए हो...
विश्व - (तापस की ओर देखता है) डैड... मैं कुछ समझने की कोशिश कर रहा हूँ... पर अंत तक पहुँच नहीं पा रहा हूँ...
प्रतिभा - क्या केस इतना क्रिटिकल है...
विश्व - नहीं माँ... मैं कुछ और सोच रहा हूँ... पर हाँ... वह कहीं ना कहीं... इस केस से जुड़ा हुआ है...
तापस - हमसे भी तो शेयर कर सकते हो...
विश्व - हाँ.. पर शुरु कहाँ से करूँ...
तापस - कहीं से भी करो... हम सिर खपाते खपाते किसी ना किसी नतीजे पर पहुँच ही जायेंगे....
प्रतिभा - हाँ बेटा पूछ तो सही...
विश्व - (कुछ सोच कर अपना सिर हिलाता है, फिर) माँ... भैरव सिंह क्षेत्रपाल स्टेट पालिटिक्स में... वह रुतबा... वह मकाम रखता है... की सरकार हिल जाता है... यशपुर के आसपास सभी एमएलए और एमपी... उसकी मर्जी से खड़े होते हैं... ऐसे में अगर राजनीति में केरियर बनाना ही था... तो छोटे राजा पिनाक सिंह को कहीं भी खड़ा कर सकता था... वह भी अनकंटेस्ट... तो यह छोटी सी मेयर पोस्ट... और उसका बेटा सिर्फ पार्टी का युथ प्रेसिडेंट... क्यूँ...
तापस - कह तो तुम सही रहे हो... हो सकता है... हाती के दिखाने का दांत अलग है... और खाने के अलग...
विश्व - तो क्षेत्रपाल... दिखा क्या रहा है... और छुपा क्या रहा है....
प्रतिभा - वैसे तुने बात तो पते की की है... क्यूंकि... जब तेरे केस की सुनवाई चल रही थी... उसी दौरान... ESS की पंजीकरण हुआ था... ग्रांड इनागुरेशन हुआ था.. क्षेत्रपाल का समधी ही गया था... इनागुरेट करने...
विश्व - वही तो... बेटा... एक सिक्युरिटी एजेंसी चला रहा है... और भाई सिर्फ मेयर की कुर्सी...
प्रतिभा - क्या.. इन लोगों की केस से कोई सीधा ताल्लुक है...
विश्व - ताल्लुक तो है ही... क्यूंकि जोडार साहब को जो परेशानी हो रही है... उसके पीछे... क्षेत्रपाल और कंस्ट्रक्शन किंग केके का नेक्सस है...
प्रतिभा - पर उनका केस क्या है... उनको प्रॉब्लम कहाँ है... और उसका सॉल्यूशन कैसे हो सकता है...
विश्व - माँ... भुवनेश्वर में... एक अनबिटन बिल्डर था... नाम था कमल कांत उर्फ़ केके... ऐसे में एक मल्टीनैशनल कंपनी थाईशन ग्रुप के साथ ओड़िशा सरकार की... माइनिंग एक्सकेवेशन के लिए बीस साल का एमओयू पर हस्ताक्षर होता है.... ऐसे में एक कॉर्पोरेट ऑफिस के लिए थाईशन ग्रुप एक एसईजेड पर प्लॉट का आवेदन करती है.. राज्य सरकार जगह दे भी देती है... उसके बाद थाईशन एक सत्ताईस मंजिली ऑफिस इमारत के लिए... एक ओपन टेंडर खोलती है... कुछ टर्म्स एंड कंडिशन के साथ... बिल्डिंग प्लान विथ आर्किटेक्ट और इंटीरियर डिजाइन... और सिक्युरिटी सर्विस के साथ... बड़े बड़े रथी.. महारथी... इस बिडिंग में शामिल हुए... पर सबको पछाड़ते हुए जे ग्रुप... यानी जोडार ग्रुप को हासिल हुआ... वजह... बिडिंग में एल वन होना... सात पर्सेंट कम और उनका खुद का अपना सेक्यूरिटी सर्विस होना...
तापस - ह्म्म्म्म... यह सब स्वाभाविक प्रक्रिया थी...
विश्व - प्रक्रिया स्वाभाविक थी... पर उसके बाद जो हुआ वह अस्वाभाविक था...
तापस - कैसे...
विश्व - मतलब....
तापस - क्यूंकि... केके कोई छोटा मोटा कांट्रैक्टर नहीं है... बात अगर थाईशन टावर की है... तो केके के पास इतनी दौलत तो है कि ऐसे कई टावर खड़ा कर सकता है...
प्रतिभा - हाँ... पॉइंट तो है... क्यूंकि करीब छह महीने पहले... केके... राजा साहब को... अपना नंदनकानन रिसॉर्ट तोहफे में दिया था...
विश्व - माँ... रोपुटेशन और इगो... केके जब भी ऐसे छोटे छोटे कांट्रैक्ट.... वह हासिल करता था.... उसे वह दुसरे छोटे कॉन्ट्रैक्टर को सबलेट कर देता था... पर ऐसा पहली बार हुआ... उसका टेंडर एल वन नहीं था... बल्कि जोडार साहब का टेंडर 7% कम था...
तापस - ओह माय माय... अनविलीवेबल...
विश्व - जी बिलकुल... टेंडर बिडिंग में... 7% कम... यह पहला झटका था... केके के रेपुटेशन के लिए...
प्रतिभा - पर... अगर केके इन सबके पीछे है... तो क्षेत्रपाल... का नाम क्यूँ लिया जोडार साहब ने...
विश्व - क्षेत्रपाल की भूमिका संक्षिप्त और सीमित है... पर चूँकि नाम क्षेत्रपाल है... इसलिए महत्वपूर्ण है...
तापस - (प्रतिभा से) भाग्यवान... तुम ऐसे क्षेत्रपाल को घसीटने पहले... केके के इगो के बारे में जान लेती... (विश्व से) उसका इगो हर्ट हुआ... क्यूंकि जोडार ने... 7% कम प्राइज़ में टेंडर हासिल कर लिया...
विश्व - हाँ... केके सिर्फ बड़ा कांट्रैक्टर नहीं है... बल्कि... इस शहर में रॉ मैटेरियल का मेगा सप्लायर है... मसलन.. लोहे की छड़ें... गिट्टी... चिप्स... रेत और सीमेंट... वगैरह...
प्रतिभा - ओ... तो... जोडार साहब यह प्रोजेक्ट यहाँ तक पहुँचाए कैसे...


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द हैल
डायनिंग टेबल पर महफ़िल ज़मी हुई है और आपसी नोंक झोंक चल रही है l सुषमा चेयर पर बैठी हुई है उसके पैरों के पास नीचे रुप और वीर बैठे हुए हैं l प्लेट से खाने का निवाला लेकर बारी बारी से सुषमा दोनों को खिला रही है l थोड़ी दूर डायनिंग टेबल पर शुभ्रा उन दोनों को भावुकता में देख रही है l सुषमा शुभ्रा की तरफ देखती है और एक निवाला लेकर शुभ्रा की तरफ बढ़ाती है l शुभ्रा उस निवाले को अपने मुहँ में ले लेती है l शुभ्रा के आँखों से आँसू छलक पड़ते हैं l

सुषमा - बहु... क्या तुझे... माँ की याद आ रही है...
शुभ्रा - नहीं चाची माँ... बल्कि आप सबका यह प्यार देख कर.. जी नहीं भर रहा है... बार बार मन कर रहा है कि कास... कास यह वक़्त यहीं थम जाती...
सुषमा - प्यार की दरकार सबको होती है बहु... प्यार ही तो है... जो बांधे रखती है...
शुभ्रा - (एक गहरी सांस लेकर) आपने ठीक कहा माँ...
सुषमा - वैसे.... खबर तो भिजवाई थी मैंने... पर युवराज नहीं दिख रहे हैं...

तीनों क्या कहें, क्या जवाब दें कुछ समझ नहीं पाते l तीनों एक दुसरे को देखने लगते हैं l

वीर - वह.. माँ.. युवराज भैया... काम में इतने डूबे हुए हैं... इतना की घर का होश ही नहीं रहता.... वह तुम तो जानती हो... छोटे राजा जी पर हमला हुआ था... तब से... भैया उस हमलावर को ढूंढ रहे हैं...

सुषमा शुभ्रा की ओर देखती है l शुभ्रा को अनकंफर्टेबल फिल होती है l

शुभ्रा - अरे... यह क्या... डाल खतम हो गई है... मैं.. मैं अभी लाती हूँ... (डाल वाली बाउल ले कर चली जाती है)
रुप - (बात बदलने के लिए) अच्छा चाची माँ... आप हमारे साथ कितने दिन रुकने वाली हो...
सुषमा - तेरे चाचा... सर्किट हाउस में हैं... वीर थोड़ी देर बाद मुझे वहाँ छोड़ देगा... मैं तेरे चाचा के साथ... राजगड़ आज ही देर शाम को चली जाऊँगी....
वीर - क्या माँ... बिजली के जितने कौंधने तक भी कभी रुकती नहीं हो...
सुषमा - पहले की बात अलग था... अब बात अलग है... पर.. क्या करूँ... बेटा... बड़े राजा जी की हालत दिन व दिन खराब होती जा रही है.... भले ही उनकी देखभाल और उनके सारे काम... नौकर कर रहे हैं... पर फिर भी उस घर की बहू होने के नाते... वह मेरी जिम्मेदारी हैं... कुछ इधर उधर हुआ तो... (रुप और वीर सुषमा की ओर देखने लगते हैं) तो... राजा साहब की नाराजगी का सामना... मैं नहीं कर सकती... (रुप और वीर अपना सिर झुका लेते हैं) कोई नहीं बच्चों... अब तो मैं... बीच बीच में आती ही रहूँगी... आखिर तुम लोगों में मेरी जान जो बसी है...
रुप - झूठ... (मुहँ फूला कर) जब तक आपके पास बेटी थी... कितनी बार यहाँ आईं बोलिए... अब जब बेटा मिल गया... तो झट से आ गईं....
सुषमा - (बहुत प्यार से रुप के चेहरे पर हाथ फेरती है) इस बात पर अगर हम बहस करने बैठें... तो कभी खतम नहीं होगी... चलो जाओ... चलो... पहले हाथ मुहं साफ कर लो.... जाओ... मैं भी साफ कर लेती हूँ...

तीनों अपने हाथ मुहँ साफ कर लेते हैं l शुभ्रा सबके लिए टावल लाती है l

वीर - क्या भाभी... नौकर हैं ना.... उन्हें कह देती...
शुभ्रा - हाँ कह देती.... बात अगर राजकुमार जी की होती.... बात मेरे देवर जी की है... इसलिए मैं लेकर आई हूँ...
सुषमा - शाबाश बहु... (वीर से) अब तेरी भी जिम्मेदारी बनती है... अपनी भाभी के लिए ऐसी सोच रखने की... समझा...
वीर - हाँ माँ... जरूर...
सुषमा - पहली बार... (एक मायूसी भरा गहरी सांस भरते हुए) युवराज जी को बिना देखे... उनसे बिना मिले जा रही हूँ..

तीनों फिर चुप हो जाते हैं l तीनों आपस में और सुषमा से नजरे चुराने लगते हैं l सुषमा को यह एहसास भी हो जाता है l पर कुछ सोच कर वह चुप रहती है l थोड़ी देर बाद

सुषमा - (वीर से) अच्छा बेटा... मुझे सर्किट हाउस छोड़ देगा...
रुप - पर चाची माँ... आपको लेने गाड़ी तो आई हुई है ना...
सुषमा - हाँ आई हुई है... (वीर से) जा उस ड्राइवर से कह दे... तु मुझे अपनी गाड़ी से छोड़ने जा रहा है.... आज मैं चाहती हूँ... मेरा बेटा मुझे छोड़ने जाए...
वीर - छोड़ने...
सुषमा - हाँ... क्यूँ नहीं छोड़ने जाएगा मुझे...
वीर - ऐसी बात नहीं है माँ... पर पता नहीं क्यूँ... छोड़ने की बात पर दिल बैठ सा गया...
सुषमा - (बड़े प्यार से वीर के चेहरे पर हाथ फ़ेरती है) कितना नया और प्यारा लग रहा है...(फिर संभलते हुए) अब क्या मुझे राजा साहब की नाराजगी का सामना करवायेगा....
वीर - नहीं... कभी नहीं... मेरी माँ को और कभी कोई तकलीफ नहीं होगा... चलो मैं ही तुम्हें सर्किट हाउस ले जाऊँगा... तुम्हारे जाने के बाद ही मैं घर आऊंगा....

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तापस - हूँ... तो जोडार साहब सारी रॉ मैटेरियल कैसे हासिल की... और कहाँ से की...
विश्व - एक आर्मी पर्सन होने के वजह से... जोडोर साहब बहुत ही अनुशासन प्रिय व्यक्ति हैं... चूंकि उनकी बंगाल की मार्किट में अच्छी खासी पहचान थी... इसलिए उन्हों ने भुवनेश्वर मार्किट से कुछ भी नहीं उठाया...
प्रतिभा - इससे तो ट्रांसपोर्टींग चार्जर्स बढ़ गई होगी...
विश्व - हाँ... पर वह मार्जिनरी थी...
प्रतिभा - कैसे...
विश्व - हुगली से सामान लोडिंग होती थी... और पूरी के निकट अस्तरंग पोर्ट में ढुलाई होती थी...
प्रतिभा - ओ... जबरदस्त... तो अब प्रॉब्लम क्या है...
विश्व - जब साम... दाम.. दंड.. भेद कुछ काम नहीं आया... तब केके ने एक और चाल चल दी...
तापस - चाल.. एक मिनट... केके ने कौनसा साम दाम दंड भेद... का प्रयोग किया...
विश्व - केके ने जोडार साहब से कांट्रेक्ट सबलेट करने को कहा... सारे तरीके भी आजमाया था... पर जोडार साहब नहीं माने थे...
तापस - अब जब... टावर खतम होने के कगार तक पहुँच गया है... तब केके ने क्या परेशानी खड़ी कर दी...
प्रतिभा - हाँ हाँ.. वह टावर के साइट में ईलीगल कंस्ट्रक्शन केके के हो सकते हैं... हो सकते हैं क्या.. पक्का उसीके होंगे...
विश्व - बिल्कुल... उसीके आदमियों के हैं... उन्हें हटाना... कोई मुस्किल भरा काम नहीं है... बल्कि प्रॉब्लम कुछ और है...
प्रतिभा - क्या... अब क्या प्रॉब्लम है...
विश्व - टावर की इंटीरियर के लिए... उन्होंने सिंगापुर से चार कंटेनर सामान मंगवाया था... पारादीप पोर्ट पर... जोडार साहब के आदमी गए थे... कंसाइनमेंट रिसीव करने... और रिसीव कर जब कंटेनर यहाँ पहुँची... कंटेनर खाली मिला...
तापस और प्रतिभा - व्हाट...
विश्व - हाँ...
तापस - क्या... मतलब सिंगापुर से खाली कंटेनर आया था...
विश्व - नहीं... कंटेनर भरा हुआ आया था... पोर्ट पर ही सामान गायब कर दिया गया....
तापस - कैसे... कस्टम तो चेक करती होगी... फिर जोडार साहब के आदमी खुद गए होंगे... सामान रिसीव करने...
विश्व - यही तो क्रैक करना है...
प्रतिभा - तो इसमें अबतक.... क्षेत्रपाल कहाँ हैं...
विश्व - (मुस्कराते हुए) ESS.. क्षेत्रपाल की सिक्युरिटी एजेंसी है... है ना...
प्रतिभा - हाँ...
विश्व - पारादीप पोर्ट में... कुछ हिस्सों पर... जैसे की जहां माल अनलोडिंग होती है और कुछ प्राइवेट गोदाम हैं... जहां की सिक्युरिटी... ESS के जिम्मे है... गड़बड़ वहीँ हुई है...
प्रतिभा - ओ.. तो... पर अब... क्या अबतक सब कुछ मैनिपुलेशन नहीं हो गया होगा...
विश्व - पॉसिबल है... पर उम्मीद है...
प्रतिभा - इसका मतलब... हमें पारादीप जाना पड़ेगा... सबूत के लिए...
विश्व - विश्व हमें नहीं... सिर्फ़ मुझे और डैड को...
प्रतिभा - (तुनक कर) क्या... मैं क्यूँ नहीं...
विश्व - माँ कुछ काम.. मर्दों से हो सकती है...
प्रतिभा - (अपनी जगह से खड़ी हो जाती है) क्या... क्या कहा...
विश्व - (प्रतिभा के पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखकर फिरसे बिठा देता है) माँ... मैंने देखा है... तुम्हारे डायरी में कल कोर्ट में एक हीयरिंग है... जिससे अटेंड करना जरूरी है... बस इसीलिए ऐसा कह दिया तुमसे...
प्रतिभा -(विश्व की कान पकड़ कर) अभी तो बड़ी डींगे हांक रहा था... मर्दाना काम है...

विश्व अपना चेहरा मोड़ कर अनुरोध करने वाली नजर से तापस की ओर देखता है

तापस - अरे अरे भाग्यवान... क्या कर रही हो... बेचारे का कान टुट गया तो... कन कटे से कौन लड़की शादी करेगी... (प्रतिभा विश्व की कान छोड़ देती है) अरे भाग्यवान दो दिन से.... अपनी पल्लू से बाँध कर इसे घूमा रहे हो... एक आध दिन इसको मेरे हवाले भी करो... मेरे भी बहुत अरमान है...
प्रतिभा - ठीक है... पर इससे कह दीजिए... मुझसे बात करने की कोशिश ना करे...
विश्व - वह तो नहीं हो सकता...
प्रतिभा - हूँ... ह्... इसके लिए केस मैं लेकर आई... और यह है कि...
विश्व - माँ... कल आपका बहुत इंपोर्टेंट रोल है...
प्रतिभा - (उसे घूर कर देखने लगती है)
विश्व - कल शाम आपको... जोडार साहब को किसी न्यूट्रल वेन्यू पर हमारी मीटिंग अरेंज करनी होगी...
प्रतिभा - ठीक है ठीक है... हो जाएगा...
विश्व - माँ... अब गुस्सा थूक दो ना...
प्रतिभा - नहीं...
विश्व - भूक लग रही है...
प्रतिभा - तो जाके खा ले...
विश्व - (चेहरा मासूम बनाते हुए) तुम खिलाओ ना...
प्रतिभा - (मुस्करा देती है) अच्छा चलो सब अपने हाथ मुहँ धो कर डायनिंग टेबल पर पहुँचो...
तापस - वाह जब बेटा मिल गया... उसकी बड़ी खयाल रखी जा रही है... मेरी भूख की कोई चिंता नहीं...
प्रतिभा - (अपनी कमर पर हाथ रखकर) क्या कहा आपने...
तापस - और नहीं तो... तुम्हें क्या लगा मैं बिस्कुट और कोल्ड ड्रिंक क्यूँ लेकर आया था...
प्रतिभा - हूँ... यह बात है... वैसे आज रात आपको सोना कहाँ है...
तास - समझ गया... मैं तो मज़ाक कर रहा था...


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वीर गाड़ी चला रहा है बगल में सुषमा उसे सिर्फ देखे जा रही है l वीर बीच बीच में वीर भी सुषमा को देख रहा है l

वीर - क्या बात है माँ... ऐसे क्या देख रही हो...
सुषमा - पहले जब भी देखती थी... क्षेत्रपाल परिवार के राजकुमार को देख रही थी... पर आज... अपने बेटे को देख रही हूँ... इसलिए मन नहीं भर रहा....
वीर - हाँ माँ... कितने प्यारे होते हैं यह रिश्ते... पता नहीं कैसी अंधी परंपरा के चलते... हम दूर हो गए... परंपरा को ढोते ढोते... हमे रिश्ते नहीं दिखे... जब रिश्तों को देखा तो यह परंपराएं... कितनी खोखली और छोटी लगने लगी है...
सुषमा - (मुस्करा देती है)
वीर - (मुस्करा कर) माँ एक बात कहूँ...
सुषमा - हम्म... बोल...
वीर - तुम्हें मुस्कराते हुए... पहली बार देख रहा हूँ... और सच कह रहा हूँ... दुनिया की सबसे खूब सूरत माँ लग रही हो...
सुषमा - हा हा हा.... (हँसी को रोकते हुए) अच्छा एक काम करेगा...
वीर - हाँ बोलो ना माँ...
सुषमा - कहीं एकांत देख कर गाड़ी रोकना...
वीर - क्यूँ... किसलिए माँ...
सुषमा - नहीं रोकेगा...
वीर - क्या माँ तुम भी... यह लो...

एक पार्क के पास गाड़ी रोक देता है l पार्क के बाहर रोड साइड में सीमेंट की बेंच पर सुषमा बैठ जाती है l वीर भी गाड़ी से उतर कर अपनी माँ के पास जा कर बैठता है l

वीर - हाँ माँ... अब बोलो...
सुषमा - (एक गहरी और सुकून भरी सांस लेकर) कितना अच्छा लग रहा है... अच्छा हुआ... छोटे राजा जी के गाड़ी को सर्किट हाउस भेज दिया था... गार्ड्स के साथ जब कहीं भी जाती थी... तो ऐसा लगता था... जैसे मैं कोई.... कैदी हूँ...
वीर - (अपनी माँ के बातों पर हँस देता है) माँ... बोलो ना... क्या बात करनी थी... यहाँ किस लिए गाड़ी को रुकवाया...
सुषमा - (वीर के चेहरे को मुस्करा कर देखते हुए) मुझे अभी कितना अच्छा लग रहा है... जानता है... मैं शब्दों में कह नहीं सकती... तु बता... तुझे अब कैसा लग रहा है....
वीर - (सुषमा के बगल में फैल कर बैठ जाता है) क्या बताऊँ माँ... बस अच्छा लग रहा है...(अपनी बाहें फैला कर) उड़ने को दिल कर रहा है... भागने को दिल कर रहा है... (खड़े हो कर) झूमने को... नाचने को गाने को दिल कर रहा है... क्या बताऊँ... कैसा लग रहा है... ह्म्म्म्म.... बस माँ.. बहुत... बहुत ही बढ़िया लग रहा है...(वीर देखता है उसकी बातों को सुषमा बड़ी ही जिज्ञासा भरे नजरों से एक अंदरुनी खुशी चेहरे पर लिए गौर से देख व सुन रही थी) क्या बात है माँ... ऐसे क्यूँ देख रही हो... (सुषमा के पास बैठ जाता है)
सुषमा - कौन है वह...
वीर - (हैरान हो कर) कौन... मतलब.... किसकी बात कर रही हो...
सुषमा - मैं उस लड़की बात कर रही हूँ... जिसने तुझे इस कदर बदल दिया...
वीर - ल.. लड़की...(हकलाने लगता है) क.. क.. कौन लड़की...
सुषमा - मैंने तुझे पहले भी खुश होते देखा है... पर तब लगता था... या तो वह खुशी नकली है... या फिर तु.... ज़बरदस्ती खुश होने की कोशिश करता था... या.. या फिर ऐसा लगता था... जैसे कुछ... तेरे पर जबरदस्ती लाद दिया गया है... पर आज.... आज की खुशी अलग है... कितना तेज है... कितनी मासूमियत भरा है... (वीर का मुहँ खुला रह जाता है) कब मिलवा रहा है मुझसे....
वीर - (खड़ा हो जाता है) यह.. यह क.. क्या कह रही हो माँ... (हकलाने लगता है) क...क कोई.. कोई ल.. ल.. ल.. लड़की नहीं माँ...
सुषमा - (वीर के बगल में खड़ी हो कर उसके गालों पर प्यार से हाथ फेरते हुए) कोई बात नहीं... लगता है... तेरा दिल ने अभी तक तुझे खबर नहीं दी है... सिर्फ जान पहचान से... या दोस्ती से आगे नहीं बढ़ पाए हो....
वीर - क... क्या... माँ... क्या बात कर रही हो...
सुषमा - कहा ना कोई बात नहीं... पर मैं यकीन के साथ कह सकती हूँ... लड़की बहुत ही अच्छी होगी...
वीर - (शर्म से गढ़ा जा रहा है) प्लीज माँ... मैं... वह मैं...
सुषमा - (वीर की हाथ पकड़ कर अपने पास बिठाती है) आज भले ही... तु स्वीकार करने में शर्मा रहा है... पर जिस दिन दिल से उसे अपना मानने लगेगा... जिस दिन उसकी बिना खुदको अधुरा मानने लगेगा... उस दिन मुझे उसके बारे में... बताना जरूर...
वीर- (शर्म से अपना चेहरा घुमा लेता है, और सुषमा को बिना देखे) आ.. आप... (और आगे कह नहीं पाता)
सुषमा - तेरे चहरे के उड़े रंगत बता रही है... क्यूंकि उसमें शर्म तो है पर.... शर्मिंदगी नहीं है... तेरे गालों पर लाली... मुझे इस अंधरे भी साफ दिख रहा है... (वीर नर्वस होने लगता है) अच्छा अब चल.... मुझे... सर्किट हाउस में छोड़ दे.. चल...
Jabardastt Updateee
 

avsji

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आपका मेरे कहानी से जुड़े रहना ही मेरे लिए बहुत मायने रखता है
ऐसी बढ़िया कहानी!! और आप हैं भी भले मानुष। कैसे न साथ रहें 😊🙏
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
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ऐसा अपराध मैं कैसे कर सकता हूँ l मैं जी भी व्यक्त करता हूँ डंके के चोट पर करता हूँ

हाँ इस फोरम में यह मैंने देखा तो है

यह मेरे लिए बहुत ही बड़ा मान है

इस पर मैं कुछ नहीं कह सकता क्यूंकि इंसेक्ट की केटेगरी में मेरी पहली कहानी Pitam bs की "कोई तो रोक लो" था पर वह कहानी भी बंद हो गई फिर Red hat जी की "मेरी जंग" थी वह भी बंद हो गई अभी Quatil भाई की "Lal Ishq" भी बंद होने की कगार पर है
वजह बेशक पाठकों के कम हो जाना ही है अब Rock star_ Rocky भाई की कहानी एक अनोखा बंधन पुनः आरंभ की वही हालत है

हाँ वही तो। पाठक न हों तो क्या लिखें। जब अपने लिए ही लिखना है तो लिख लेंगे और लिख कर रख लेंगे।
 

Nobeless

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@naag bhai भरपूर परिवारिक प्यार से भरा अपडेट और बीच मे थोड़ी बहुत केस की चर्चा, कहने को ज्यादा कुछ नहीं है क्यूंकि अभी लास्ट के 2 update family bonding pr hi hai aur abhi kuch update aise hi rhne वाले h lgta h खुशनुमा जो जरूरी भी है कहानी को breath देने के लिए क्यूंकि ज्यादा तेज चलना भी ठीक नहीं कहानी की जटिलता ही बढ़ती है रीडर के लिए इसीलिए bich बीच मे ऐसे अपडेट is kind of fresh air aur vaise bhi aap ek do paragraph कहानी को progress करने के लिए देते ही सभी अपडेट मे.

Vikram की चोट तो विश्व से मिलने के बाद ही कम होगी या और गहरी होगी वीर को उसकी माँ ने भी बता दिया कि यह जो खुशी है वो सिर्फ इस घर मे ही जी जा सकती है राजगढ़ मे वो अब भी राजकुमार और उसकी माँ छोटी रानी है और इस बदलाव के पीछे एक लड़की का हाथ है एक सेकंड भी ना लगा उन्हें यह समझने मे माँ तो माँ होती है।

धन्यवाद,
 

Mastmalang

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👉अठहत्तरवां अपडेट
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शाम का समय
ESS का ट्रेनिंग हॉल
विक्रम रैंडम तरीके से उसके पास तेजी से आते बड़े बड़े बर्फ के ब्लॉक्स को अपने ताकत भरे घुसों से तोड़ रहा है l जब सारे बर्फ के ब्लॉक्स टुट जाते हैं पास टेबल पर रखे सैंडवॉच के पास पहुँच कर देखता है रेत अभी भी गिर रहा है l पास खड़े कुछ बंदे ताली बजाने लगते हैं l उनमें से एक बंदा

बंदा - वाह युवराज वाह... आप कितने तेज हैं... डायरेक्ट कंबैट में आपके सामने टिकना... किसी के बस की बात नहीं...

विक्रम बदले में कुछ रिएक्ट नहीं करता बस हाथ बढ़ाता है l वह बंदा विक्रम के हाथ में टावल देता है l विक्रम अपना चेहरा साफ करता है l तभी हॉल में महांती आता है l महांती इशारा करता है l वहाँ पर मौजूद सभी बंदे हॉल से चले जाते हैं l उनके जाते ही

विक्रम - क्या बात है महांती... केके या चेट्टी... किसका खबर लाए हो...
महांती - नहीं...
विक्रम - फिर...
महांती - युवराज जी... उनकी खबर मिल ही जायेगी... बहुत जल्द... पर इतना जरूर है कि... केके और उसका बेटा... दोनों में से कोई भी... भुवनेश्वर में नहीं हैं....
विक्रम - और... ओंकार चेट्टी...
महांती - (चुप रहता है)
विक्रम - क्या हुआ महांती...
महांती - युवराज...(थोड़ा रुक कर) हमारे काउंटर तैयारी की खबर उसे लग गई थी...
विक्रम - इसलिए अब वह.. हस्पताल से गायब होगा....
महांती - (चुप हो जाता है)
विक्रम - कोई बात नहीं है महांती... हमे अब ऐसा कुछ करना होगा... की उन्हें मजबूर हो कर... बाहर आना ही पड़ेगा...
महांती - जानता हूँ... पर मैं उस बात के लिए परेशान नहीं हूँ...
विक्रम - फिर किस बात के लिए परेशान हो....
महांती - मैं कब तक आखिर अपने बॉस... अपने दोस्त... अपने पार्टनर का साथ पाने से... महरूम रहूँ... कब तक...
विक्रम - (चुप रहता है)
महांती - आप अगर कहें... तो हम साम दाम दंड भेद... सब इस्तेमाल कर.. अपने पास जितने भी कंटैक्ट हैं... उन सबके मदत से..(आवाज कड़क कर) उस हरामजादे को...
विक्रम - नहीं... महांती नहीं... वह मेरा पर्सनल मैटर है...
महांती - पर क्यूँ... क्यूँ हमें शामिल करना नहीं चाहते...
विक्रम - महांती...(एक सांस छोड़ता है उसके बाद एक पॉज लेकर) इस शहर में... अपनी यह पोजीशन बनाने के लिए... छह साल लगे... आज आलम यह है कि... चाहे पब्लिक हो... पुलिस हो... या फिर पॉलिटिशियन... हर कोई अपने प्रॉब्लम सॉल्व करने के लिए... उनको ESS के चौखट पर घुटने टेक कर मदत मांगते हैं.... जिस दिन हम... मदत मांगने वालों से मदत लेने लगे... उस दिन उनको.... उनको एहसास होने लगेगा... के हम कमजोर पड़ रहे हैं.... जंगल का यही नियम है... जब शेर कमजोर पड़ जाता है... कुत्ते भी उसके शिकार करने से नहीं चूकते... इसलिए... वह हरामजादा... मेरा शिकार है... और यकीन मानों... मेरा गट फिलिंग कह रहा है... हम बहुत जल्द आमने सामने होने वाले हैं...
महांती - आपके इस बात पर... मैं ज्यादा कुछ नहीं कह सकता...
विक्रम - खैर... अपनी यहां आने की वजह बताओ....
महांती - इन तीन चार दिनों में... दो दो कांड हो गए हैं...
विक्रम - क्या...(हैरान हो कर) कांड... कैसा कांड...
महांती - होम मिनिस्टर यशपुर गया था... अपना होम मिनिस्ट्री का अकड़ दिखाने... राजगड़ में राजा साहब के जुते के नीचे अपनी नाक रगड़ कर आया है...
विक्रम - ह्म्म्म्म... राजा साहब जी का मैटर है... मुझे नहीं लगता इसमें... हमारे लिए करने के लिए... कुछ भी बाकी है.... और दुसरा....
महांती - कल कॉलेज में... राजकुमारी जी बर्थ डे पर... राजकुमार ने एक का सिर फोड़ दिया है...
विक्रम - क्या... (हैरान हो कर) कल... राजकुमारी जी का बर्थ डे था...
महांती - जी युवराज... क्यूँ आप भुल गए थे क्या...
विक्रम - (थोड़ा गंभीर हो कर) क्या हुआ था कॉलेज में कल...
महांती - एक लड़का...
विक्रम - (कड़क आवाज़ में) क्या किया उसने...
महांती - कुछ नहीं... राजकुमारी जी को सबके सामने बहन बताया और... खुदको उनका भाई बता कर बर्थ डे विश की....
विक्रम - क्या... बहन बता कर बर्थ डे विश किया...
महांती - हाँ.... इस बात पर... राजकुमार उसका सिर फोड़ दिया...
विक्रम - ओ... ह्म्म्म्म... मुझे नहीं लगता... हमें इसमें पड़ने की कोई जरूरत भी है...
महांती - जी युवराज... वैसे एक और बात भी है...
विक्रम - क्या...
महांती - राजकुमार और... (रुक जाता है)
विक्रम - हाँ और....
महांती - राजकुमार और वह लड़की... जो उनकी... अभी सेक्रेटरी कम असिस्टेंट है इस वक़्त...
विक्रम - हूँ... क्या हुआ उस सेक्रेटरी को...
महांती - वह... हमारे ऑफिस के स्टाफ्स के बीच... गॉसिप चल रहा है... की उनके बीच...
विक्रम - महांती... तुम अच्छी तरह से जानते हो राजकुमार जी कैसे हैं... यह उस लड़की की किस्मत... वह कोई हुर या परी तो है नहीं... वैसे भी अगर तरबूज खुद चाकू पर गिरने को अमादा हो... हम क्या करें...
महांती - (थोड़ी देर चुप रहता है)
विक्रम - (महांती के कुछ ना बोलते देख) ओके... बात अगर हाथ से निकलता देखेंगे... तो उस लड़की का मुहँ पैसों से और धौंस से बंद कर देंगे... पिछली हर बार की तरह...
महांती - (फिर भी चुप रहता है)
विक्रम - कोई और बात भी है... क्या...
महांती - जी...
विक्रम - ओह कॉमऑन महांती... तुम कबसे इतनी फरमालीटि मेंटेन करने लगे...
महांती - जी... छोटी रानी जी आई हुई हैं.... अभी विला में हैं...
विक्रम - (हैरान हो कर) छोटी रानी आई हैं...
महांती - जी... जी युवराज और आज ही वह चली जायेंगी...
विक्रम - ओ.. अच्छा... युवराणी ने आपके हाथों खबर भिजवाई है....
महांती - (अपना सिर हाँ में हिलाता है)
विक्रम - पता नहीं... मैंने वह हैल क्यूँ बनाया... जहां पर घर बसाना मुमकिन ना हुआ... (इतना कह कर विक्रम चुप हो जाता है)
महांती - (कुछ देर की चुप्पी के बाद) तो मैं युवराणी जी से क्या कहूँ...
विक्रम - (चुप्पी साधे अपनी ख़यालों में कहीं खो सा जाता है)

महांती को जब कुछ देर तक कोई जवाब नहीं मिलता है वह वहाँ से बाहर की ओर चला जाता है l

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द हैल के कंपाउंड में वीर अपनी गाड़ी को पार्क कर चाबी एक गार्ड को देता है, और झूमते हुए घर में दाखिल होता है l ड्रॉइंग रुम में दाखिल होते ही सामने का नज़ारा देख कर ठिठक जाता है l ड्रॉइंग रुम के बीचों-बीच एक बड़े से सोफ़े पर छोटी रानी उर्फ़ सुषमा बैठी है, और उसके एक तरफ़ शुभ्रा बैठी हुई है और दुसरी तरफ रुप बैठी हुई है l तीनों आपस में बातों में लगी हुई थीं l पर जैसे ही वीर पहुँचता है सब चुप होकर वीर को देखने लगती हैं l वीर सुषमा को सामने देख कर स्तब्ध हो जाता है उसका सारा जिस्म एक अंदरुनी सिहरन से थर्रा जाता है l यहाँ तक उसकी सांसे भी थर्राने लगती है l उसकी हालत ऐसे हो जाती है जैसे अगले ही पल वह रो देगा l सुषमा अपनी जगह से खड़ी हो जाती है उसकी भी हालत बिल्कुल वीर के जैसी हो जाती है l दोनों आगे बढ़ते हैं उनको बढ़ते देख रुप और शुभ्रा भी अपनी जगह पर उठ खड़ी हो जाती हैं l

वीर - (बड़ी मुश्किल से) म्म्म्म... माँ...
सुषमा - ह्ँ... हाँ... हाँ...

फिर दोनों के मुहँ से कोई बोल नहीं फूटती है l वीर भाग कर अपनी माँ के गले से लग जाता है l दोनों के आँखों में सिर्फ आँसू ही आँसू तैरने लगते हैं l उन दोनों की हालत देख कर रुप और शुभ्रा भी अपनी आँखों को आँसू बहाने से रोक नहीं पाती l रुप सुषमा के पास पहुँचती है l

रुप - (भराई आवाज में) म्म्म्म... माँ... (दोनों माँ बेटे रुप की ओर देखते हैं) स... सारा प्यार... क्या भाई के लिए है...

सुषमा अपनी बाहें खोल देती है रुप भी उसके गले लग जाती है l शुभ्रा यह सब देख कर वह भी सुषमा के पास खड़ी होती है l वह खुद को रोक नहीं पाती है इसलिए शुभ्रा सुषमा के कंधे पर अपना सिर सुबकते हुए रख देती है l कुछ देर के बाद माहौल धीरे धीरे खुशनुमा होने लगती है l सब अलग होते हैं l

शुभ्रा - वीर... हमें कल चौंकाने से पहले.. तुम पहले से ही माँ से बात कर ली थी...
वीर - हाँ... हाँ भाभी... मैंने पहले उस रिश्ते को सिर आँखों पर उठया... जिनके वजह से... मैं इस दुनिया में आया.... जिसने मुझे बोलना सिखाया... लोगों को पहचानना सिखाया...

यह बात सुन कर सुषमा वीर को फिर से गले लगा लेती है l वीर अचानक से अपनी माँ से अलग हो कर अपनी बाहों में उठा कर सोफ़े के पास ले जाता है l

सुषमा - अरे.. यह... यह क्या कर रहा है... कहाँ... कहाँ ले जा रहा है.. उतार... उतार मुझे...
वीर - माँ... तुम यहाँ.. (सोफ़े पर बिठा देता है,) यहाँ पर बैठो... (और खुद नीचे बैठ जाता है)
सुषमा - अरे... नीचे क्यूँ बैठ गया...
वीर - माँ... वह कहते हैं ना... माँ की कदमों में.. और माँ की सेवा में.. जन्नत का सुख है... इसलिए जन्नत का लुफ्त उठा रहा हूँ...
सुषमा - (आवाज में थर्राहट के साथ) कितनी बड़ी बड़ी बातेँ करने लग गया है... कहाँ से सीखा यह सब...
वीर - माँ... (सुषमा के हाथ पकड़ कर) जैसे ही... मैंने तुम्हें माँ कह कर पुकारा... बस.. वैसे ही सब अपने आप सब होता चला गया... और आता आता चला गया...

सुषमा और कुछ नहीं पूछती है बहुत प्यार से वीर के चेहरे पर अपना हाथ फेरती है l शुभ्रा और रुप पहले की तरह सुषमा के पास बैठ जाते हैं l

वीर - अच्छा माँ.. तुम यहाँ आई... वह भी बिना खबर किए... क्यूँ माँ... मुझे बोल दिया होता... मैं (अपनी बाहें फैला कर) उड़ते हुए तुम तक पहुँच जाता...
सुषमा - हूँ... जानती हूँ... पर मैं यहाँ... यह कहने आई... के.. ( एक पॉज लेकर) अभी... जो बदलाव आया है तुममें... इस बदलाव को तुम लोग... यहीँ... यहीँ पर रहने दो... इसे.... (अपनी सिर ना में हिलाते हुए) राजगड़ कभी मत लेकर जाओ...
वीर - (हैरान हो कर) क्यूँ... क्यूँ ना लेकर जाऊँ... माँ...
सुषमा - बस बेटा... उस नर्क से... बेहतर तो यह हैल है... यहाँ.... यहाँ पर कम से कम मुर्दे और गड़े रिश्तों में जान डाल दिया है तुमने... नातों को पहचान लिया तुमने... पर जब इन्हीं चीजों को गलती से भी राजगड़ ले जाओगे... उस महल के राजसी शालीनता के नाम पर... झूठे अहं के नीचे दब कर... यह सब खतम हो जाएगा... इसलिए अगर रिश्तों के साथ जीना है... तो... (सुबकते हुए) तो राजगड़ मत आना...

सुषमा की बात खतम होते ही एक ख़ामोशी सी छा जाती है वहाँ पर l क्यूँकी सुषमा की कही हर बात की गहराई को तीनों बखूबी समझ रहे थे I

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घर के ऑफिस रुम के सामने वाली व्हाइट बोर्ड के सामने विश्व हाथ में मार्कर पेन लिए इधर से उधर और उधर से इधर हो रहा है l उसकी हालत देख कर सेनापति दंपती को लगता है कि बहुत गहरी सोच में है l तापस अपनी आँखे बंद कर कुछ यूँ सिर हिलाने लगता है जैसे कोई गाना सुन रहा हो l उसे यूँ सिर हिलाता देख कर

प्रतिभा - (धीरे से, फुसफुसा कर) क्या बात है सेनापति जी... किस बात पर अपना सिर हिला रहे हैं...

तापस उसे अपने होठों पर उंगली रख कर चुप रहने का इशारा करता है l फिर वहाँ से उठ कर जाने लगता है l प्रतिभा इशारे से पूछती है

प्रतिभा - (इशारे से) कहाँ जा रहे हो...
तापस - (इशारे में) रुको.. मैं अभी आया...

तापस कमरे से बाहर चला जाता है l थोड़ी देर बाद हाथ में कुछ बिस्कुट और एक कोल्ड ड्रिंक की बोतल लाकर प्रतिभा के पास बैठ जाता है l

प्रतिभा - यह... यह क्या है सेनापति जी...
तापस - कुछ नहीं भाग्यवान... जब तक प्रताप सोच सोच कर किसी नतीजे पर पहुँच नहीं जाता... तब तक मैंने सोचा... क्यूँ ना बिस्कुट और कोल्ड ड्रिंक हो जाए...
प्रतिभा - (गुर्राते हुए) आप मेरे बेटे का मज़ाक उड़ा रहे हैं...
तापस - आरे भाग्यवान... मैं ऐसा कभी कर सकता हूँ भला... मुझे ड्रॉइंग रुम में थोड़े ना सोना है... बस थोड़ी देर के लिए अगर मुहँ चला... तो... यु नो.. वरना नींद आएगी...
प्रतिभा - (उसे कुछ नहीं कहती, अपनी जबड़े भींच कर आँखे सिकुड़ लेती है)
तापस - (चुपचाप अपना वह बिस्कुट और कोल्ड ड्रिंक रख देता है) हाँ तो प्रताप... कहाँ खो गए हो...
विश्व - (तापस की ओर देखता है) डैड... मैं कुछ समझने की कोशिश कर रहा हूँ... पर अंत तक पहुँच नहीं पा रहा हूँ...
प्रतिभा - क्या केस इतना क्रिटिकल है...
विश्व - नहीं माँ... मैं कुछ और सोच रहा हूँ... पर हाँ... वह कहीं ना कहीं... इस केस से जुड़ा हुआ है...
तापस - हमसे भी तो शेयर कर सकते हो...
विश्व - हाँ.. पर शुरु कहाँ से करूँ...
तापस - कहीं से भी करो... हम सिर खपाते खपाते किसी ना किसी नतीजे पर पहुँच ही जायेंगे....
प्रतिभा - हाँ बेटा पूछ तो सही...
विश्व - (कुछ सोच कर अपना सिर हिलाता है, फिर) माँ... भैरव सिंह क्षेत्रपाल स्टेट पालिटिक्स में... वह रुतबा... वह मकाम रखता है... की सरकार हिल जाता है... यशपुर के आसपास सभी एमएलए और एमपी... उसकी मर्जी से खड़े होते हैं... ऐसे में अगर राजनीति में केरियर बनाना ही था... तो छोटे राजा पिनाक सिंह को कहीं भी खड़ा कर सकता था... वह भी अनकंटेस्ट... तो यह छोटी सी मेयर पोस्ट... और उसका बेटा सिर्फ पार्टी का युथ प्रेसिडेंट... क्यूँ...
तापस - कह तो तुम सही रहे हो... हो सकता है... हाती के दिखाने का दांत अलग है... और खाने के अलग...
विश्व - तो क्षेत्रपाल... दिखा क्या रहा है... और छुपा क्या रहा है....
प्रतिभा - वैसे तुने बात तो पते की की है... क्यूंकि... जब तेरे केस की सुनवाई चल रही थी... उसी दौरान... ESS की पंजीकरण हुआ था... ग्रांड इनागुरेशन हुआ था.. क्षेत्रपाल का समधी ही गया था... इनागुरेट करने...
विश्व - वही तो... बेटा... एक सिक्युरिटी एजेंसी चला रहा है... और भाई सिर्फ मेयर की कुर्सी...
प्रतिभा - क्या.. इन लोगों की केस से कोई सीधा ताल्लुक है...
विश्व - ताल्लुक तो है ही... क्यूंकि जोडार साहब को जो परेशानी हो रही है... उसके पीछे... क्षेत्रपाल और कंस्ट्रक्शन किंग केके का नेक्सस है...
प्रतिभा - पर उनका केस क्या है... उनको प्रॉब्लम कहाँ है... और उसका सॉल्यूशन कैसे हो सकता है...
विश्व - माँ... भुवनेश्वर में... एक अनबिटन बिल्डर था... नाम था कमल कांत उर्फ़ केके... ऐसे में एक मल्टीनैशनल कंपनी थाईशन ग्रुप के साथ ओड़िशा सरकार की... माइनिंग एक्सकेवेशन के लिए बीस साल का एमओयू पर हस्ताक्षर होता है.... ऐसे में एक कॉर्पोरेट ऑफिस के लिए थाईशन ग्रुप एक एसईजेड पर प्लॉट का आवेदन करती है.. राज्य सरकार जगह दे भी देती है... उसके बाद थाईशन एक सत्ताईस मंजिली ऑफिस इमारत के लिए... एक ओपन टेंडर खोलती है... कुछ टर्म्स एंड कंडिशन के साथ... बिल्डिंग प्लान विथ आर्किटेक्ट और इंटीरियर डिजाइन... और सिक्युरिटी सर्विस के साथ... बड़े बड़े रथी.. महारथी... इस बिडिंग में शामिल हुए... पर सबको पछाड़ते हुए जे ग्रुप... यानी जोडार ग्रुप को हासिल हुआ... वजह... बिडिंग में एल वन होना... सात पर्सेंट कम और उनका खुद का अपना सेक्यूरिटी सर्विस होना...
तापस - ह्म्म्म्म... यह सब स्वाभाविक प्रक्रिया थी...
विश्व - प्रक्रिया स्वाभाविक थी... पर उसके बाद जो हुआ वह अस्वाभाविक था...
तापस - कैसे...
विश्व - मतलब....
तापस - क्यूंकि... केके कोई छोटा मोटा कांट्रैक्टर नहीं है... बात अगर थाईशन टावर की है... तो केके के पास इतनी दौलत तो है कि ऐसे कई टावर खड़ा कर सकता है...
प्रतिभा - हाँ... पॉइंट तो है... क्यूंकि करीब छह महीने पहले... केके... राजा साहब को... अपना नंदनकानन रिसॉर्ट तोहफे में दिया था...
विश्व - माँ... रोपुटेशन और इगो... केके जब भी ऐसे छोटे छोटे कांट्रैक्ट.... वह हासिल करता था.... उसे वह दुसरे छोटे कॉन्ट्रैक्टर को सबलेट कर देता था... पर ऐसा पहली बार हुआ... उसका टेंडर एल वन नहीं था... बल्कि जोडार साहब का टेंडर 7% कम था...
तापस - ओह माय माय... अनविलीवेबल...
विश्व - जी बिलकुल... टेंडर बिडिंग में... 7% कम... यह पहला झटका था... केके के रेपुटेशन के लिए...
प्रतिभा - पर... अगर केके इन सबके पीछे है... तो क्षेत्रपाल... का नाम क्यूँ लिया जोडार साहब ने...
विश्व - क्षेत्रपाल की भूमिका संक्षिप्त और सीमित है... पर चूँकि नाम क्षेत्रपाल है... इसलिए महत्वपूर्ण है...
तापस - (प्रतिभा से) भाग्यवान... तुम ऐसे क्षेत्रपाल को घसीटने पहले... केके के इगो के बारे में जान लेती... (विश्व से) उसका इगो हर्ट हुआ... क्यूंकि जोडार ने... 7% कम प्राइज़ में टेंडर हासिल कर लिया...
विश्व - हाँ... केके सिर्फ बड़ा कांट्रैक्टर नहीं है... बल्कि... इस शहर में रॉ मैटेरियल का मेगा सप्लायर है... मसलन.. लोहे की छड़ें... गिट्टी... चिप्स... रेत और सीमेंट... वगैरह...
प्रतिभा - ओ... तो... जोडार साहब यह प्रोजेक्ट यहाँ तक पहुँचाए कैसे...


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द हैल
डायनिंग टेबल पर महफ़िल ज़मी हुई है और आपसी नोंक झोंक चल रही है l सुषमा चेयर पर बैठी हुई है उसके पैरों के पास नीचे रुप और वीर बैठे हुए हैं l प्लेट से खाने का निवाला लेकर बारी बारी से सुषमा दोनों को खिला रही है l थोड़ी दूर डायनिंग टेबल पर शुभ्रा उन दोनों को भावुकता में देख रही है l सुषमा शुभ्रा की तरफ देखती है और एक निवाला लेकर शुभ्रा की तरफ बढ़ाती है l शुभ्रा उस निवाले को अपने मुहँ में ले लेती है l शुभ्रा के आँखों से आँसू छलक पड़ते हैं l

सुषमा - बहु... क्या तुझे... माँ की याद आ रही है...
शुभ्रा - नहीं चाची माँ... बल्कि आप सबका यह प्यार देख कर.. जी नहीं भर रहा है... बार बार मन कर रहा है कि कास... कास यह वक़्त यहीं थम जाती...
सुषमा - प्यार की दरकार सबको होती है बहु... प्यार ही तो है... जो बांधे रखती है...
शुभ्रा - (एक गहरी सांस लेकर) आपने ठीक कहा माँ...
सुषमा - वैसे.... खबर तो भिजवाई थी मैंने... पर युवराज नहीं दिख रहे हैं...

तीनों क्या कहें, क्या जवाब दें कुछ समझ नहीं पाते l तीनों एक दुसरे को देखने लगते हैं l

वीर - वह.. माँ.. युवराज भैया... काम में इतने डूबे हुए हैं... इतना की घर का होश ही नहीं रहता.... वह तुम तो जानती हो... छोटे राजा जी पर हमला हुआ था... तब से... भैया उस हमलावर को ढूंढ रहे हैं...

सुषमा शुभ्रा की ओर देखती है l शुभ्रा को अनकंफर्टेबल फिल होती है l

शुभ्रा - अरे... यह क्या... डाल खतम हो गई है... मैं.. मैं अभी लाती हूँ... (डाल वाली बाउल ले कर चली जाती है)
रुप - (बात बदलने के लिए) अच्छा चाची माँ... आप हमारे साथ कितने दिन रुकने वाली हो...
सुषमा - तेरे चाचा... सर्किट हाउस में हैं... वीर थोड़ी देर बाद मुझे वहाँ छोड़ देगा... मैं तेरे चाचा के साथ... राजगड़ आज ही देर शाम को चली जाऊँगी....
वीर - क्या माँ... बिजली के जितने कौंधने तक भी कभी रुकती नहीं हो...
सुषमा - पहले की बात अलग था... अब बात अलग है... पर.. क्या करूँ... बेटा... बड़े राजा जी की हालत दिन व दिन खराब होती जा रही है.... भले ही उनकी देखभाल और उनके सारे काम... नौकर कर रहे हैं... पर फिर भी उस घर की बहू होने के नाते... वह मेरी जिम्मेदारी हैं... कुछ इधर उधर हुआ तो... (रुप और वीर सुषमा की ओर देखने लगते हैं) तो... राजा साहब की नाराजगी का सामना... मैं नहीं कर सकती... (रुप और वीर अपना सिर झुका लेते हैं) कोई नहीं बच्चों... अब तो मैं... बीच बीच में आती ही रहूँगी... आखिर तुम लोगों में मेरी जान जो बसी है...
रुप - झूठ... (मुहँ फूला कर) जब तक आपके पास बेटी थी... कितनी बार यहाँ आईं बोलिए... अब जब बेटा मिल गया... तो झट से आ गईं....
सुषमा - (बहुत प्यार से रुप के चेहरे पर हाथ फेरती है) इस बात पर अगर हम बहस करने बैठें... तो कभी खतम नहीं होगी... चलो जाओ... चलो... पहले हाथ मुहं साफ कर लो.... जाओ... मैं भी साफ कर लेती हूँ...

तीनों अपने हाथ मुहँ साफ कर लेते हैं l शुभ्रा सबके लिए टावल लाती है l

वीर - क्या भाभी... नौकर हैं ना.... उन्हें कह देती...
शुभ्रा - हाँ कह देती.... बात अगर राजकुमार जी की होती.... बात मेरे देवर जी की है... इसलिए मैं लेकर आई हूँ...
सुषमा - शाबाश बहु... (वीर से) अब तेरी भी जिम्मेदारी बनती है... अपनी भाभी के लिए ऐसी सोच रखने की... समझा...
वीर - हाँ माँ... जरूर...
सुषमा - पहली बार... (एक मायूसी भरा गहरी सांस भरते हुए) युवराज जी को बिना देखे... उनसे बिना मिले जा रही हूँ..

तीनों फिर चुप हो जाते हैं l तीनों आपस में और सुषमा से नजरे चुराने लगते हैं l सुषमा को यह एहसास भी हो जाता है l पर कुछ सोच कर वह चुप रहती है l थोड़ी देर बाद

सुषमा - (वीर से) अच्छा बेटा... मुझे सर्किट हाउस छोड़ देगा...
रुप - पर चाची माँ... आपको लेने गाड़ी तो आई हुई है ना...
सुषमा - हाँ आई हुई है... (वीर से) जा उस ड्राइवर से कह दे... तु मुझे अपनी गाड़ी से छोड़ने जा रहा है.... आज मैं चाहती हूँ... मेरा बेटा मुझे छोड़ने जाए...
वीर - छोड़ने...
सुषमा - हाँ... क्यूँ नहीं छोड़ने जाएगा मुझे...
वीर - ऐसी बात नहीं है माँ... पर पता नहीं क्यूँ... छोड़ने की बात पर दिल बैठ सा गया...
सुषमा - (बड़े प्यार से वीर के चेहरे पर हाथ फ़ेरती है) कितना नया और प्यारा लग रहा है...(फिर संभलते हुए) अब क्या मुझे राजा साहब की नाराजगी का सामना करवायेगा....
वीर - नहीं... कभी नहीं... मेरी माँ को और कभी कोई तकलीफ नहीं होगा... चलो मैं ही तुम्हें सर्किट हाउस ले जाऊँगा... तुम्हारे जाने के बाद ही मैं घर आऊंगा....

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तापस - हूँ... तो जोडार साहब सारी रॉ मैटेरियल कैसे हासिल की... और कहाँ से की...
विश्व - एक आर्मी पर्सन होने के वजह से... जोडोर साहब बहुत ही अनुशासन प्रिय व्यक्ति हैं... चूंकि उनकी बंगाल की मार्किट में अच्छी खासी पहचान थी... इसलिए उन्हों ने भुवनेश्वर मार्किट से कुछ भी नहीं उठाया...
प्रतिभा - इससे तो ट्रांसपोर्टींग चार्जर्स बढ़ गई होगी...
विश्व - हाँ... पर वह मार्जिनरी थी...
प्रतिभा - कैसे...
विश्व - हुगली से सामान लोडिंग होती थी... और पूरी के निकट अस्तरंग पोर्ट में ढुलाई होती थी...
प्रतिभा - ओ... जबरदस्त... तो अब प्रॉब्लम क्या है...
विश्व - जब साम... दाम.. दंड.. भेद कुछ काम नहीं आया... तब केके ने एक और चाल चल दी...
तापस - चाल.. एक मिनट... केके ने कौनसा साम दाम दंड भेद... का प्रयोग किया...
विश्व - केके ने जोडार साहब से कांट्रेक्ट सबलेट करने को कहा... सारे तरीके भी आजमाया था... पर जोडार साहब नहीं माने थे...
तापस - अब जब... टावर खतम होने के कगार तक पहुँच गया है... तब केके ने क्या परेशानी खड़ी कर दी...
प्रतिभा - हाँ हाँ.. वह टावर के साइट में ईलीगल कंस्ट्रक्शन केके के हो सकते हैं... हो सकते हैं क्या.. पक्का उसीके होंगे...
विश्व - बिल्कुल... उसीके आदमियों के हैं... उन्हें हटाना... कोई मुस्किल भरा काम नहीं है... बल्कि प्रॉब्लम कुछ और है...
प्रतिभा - क्या... अब क्या प्रॉब्लम है...
विश्व - टावर की इंटीरियर के लिए... उन्होंने सिंगापुर से चार कंटेनर सामान मंगवाया था... पारादीप पोर्ट पर... जोडार साहब के आदमी गए थे... कंसाइनमेंट रिसीव करने... और रिसीव कर जब कंटेनर यहाँ पहुँची... कंटेनर खाली मिला...
तापस और प्रतिभा - व्हाट...
विश्व - हाँ...
तापस - क्या... मतलब सिंगापुर से खाली कंटेनर आया था...
विश्व - नहीं... कंटेनर भरा हुआ आया था... पोर्ट पर ही सामान गायब कर दिया गया....
तापस - कैसे... कस्टम तो चेक करती होगी... फिर जोडार साहब के आदमी खुद गए होंगे... सामान रिसीव करने...
विश्व - यही तो क्रैक करना है...
प्रतिभा - तो इसमें अबतक.... क्षेत्रपाल कहाँ हैं...
विश्व - (मुस्कराते हुए) ESS.. क्षेत्रपाल की सिक्युरिटी एजेंसी है... है ना...
प्रतिभा - हाँ...
विश्व - पारादीप पोर्ट में... कुछ हिस्सों पर... जैसे की जहां माल अनलोडिंग होती है और कुछ प्राइवेट गोदाम हैं... जहां की सिक्युरिटी... ESS के जिम्मे है... गड़बड़ वहीँ हुई है...
प्रतिभा - ओ.. तो... पर अब... क्या अबतक सब कुछ मैनिपुलेशन नहीं हो गया होगा...
विश्व - पॉसिबल है... पर उम्मीद है...
प्रतिभा - इसका मतलब... हमें पारादीप जाना पड़ेगा... सबूत के लिए...
विश्व - विश्व हमें नहीं... सिर्फ़ मुझे और डैड को...
प्रतिभा - (तुनक कर) क्या... मैं क्यूँ नहीं...
विश्व - माँ कुछ काम.. मर्दों से हो सकती है...
प्रतिभा - (अपनी जगह से खड़ी हो जाती है) क्या... क्या कहा...
विश्व - (प्रतिभा के पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखकर फिरसे बिठा देता है) माँ... मैंने देखा है... तुम्हारे डायरी में कल कोर्ट में एक हीयरिंग है... जिससे अटेंड करना जरूरी है... बस इसीलिए ऐसा कह दिया तुमसे...
प्रतिभा -(विश्व की कान पकड़ कर) अभी तो बड़ी डींगे हांक रहा था... मर्दाना काम है...

विश्व अपना चेहरा मोड़ कर अनुरोध करने वाली नजर से तापस की ओर देखता है

तापस - अरे अरे भाग्यवान... क्या कर रही हो... बेचारे का कान टुट गया तो... कन कटे से कौन लड़की शादी करेगी... (प्रतिभा विश्व की कान छोड़ देती है) अरे भाग्यवान दो दिन से.... अपनी पल्लू से बाँध कर इसे घूमा रहे हो... एक आध दिन इसको मेरे हवाले भी करो... मेरे भी बहुत अरमान है...
प्रतिभा - ठीक है... पर इससे कह दीजिए... मुझसे बात करने की कोशिश ना करे...
विश्व - वह तो नहीं हो सकता...
प्रतिभा - हूँ... ह्... इसके लिए केस मैं लेकर आई... और यह है कि...
विश्व - माँ... कल आपका बहुत इंपोर्टेंट रोल है...
प्रतिभा - (उसे घूर कर देखने लगती है)
विश्व - कल शाम आपको... जोडार साहब को किसी न्यूट्रल वेन्यू पर हमारी मीटिंग अरेंज करनी होगी...
प्रतिभा - ठीक है ठीक है... हो जाएगा...
विश्व - माँ... अब गुस्सा थूक दो ना...
प्रतिभा - नहीं...
विश्व - भूक लग रही है...
प्रतिभा - तो जाके खा ले...
विश्व - (चेहरा मासूम बनाते हुए) तुम खिलाओ ना...
प्रतिभा - (मुस्करा देती है) अच्छा चलो सब अपने हाथ मुहँ धो कर डायनिंग टेबल पर पहुँचो...
तापस - वाह जब बेटा मिल गया... उसकी बड़ी खयाल रखी जा रही है... मेरी भूख की कोई चिंता नहीं...
प्रतिभा - (अपनी कमर पर हाथ रखकर) क्या कहा आपने...
तापस - और नहीं तो... तुम्हें क्या लगा मैं बिस्कुट और कोल्ड ड्रिंक क्यूँ लेकर आया था...
प्रतिभा - हूँ... यह बात है... वैसे आज रात आपको सोना कहाँ है...
तास - समझ गया... मैं तो मज़ाक कर रहा था...


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वीर गाड़ी चला रहा है बगल में सुषमा उसे सिर्फ देखे जा रही है l वीर बीच बीच में वीर भी सुषमा को देख रहा है l

वीर - क्या बात है माँ... ऐसे क्या देख रही हो...
सुषमा - पहले जब भी देखती थी... क्षेत्रपाल परिवार के राजकुमार को देख रही थी... पर आज... अपने बेटे को देख रही हूँ... इसलिए मन नहीं भर रहा....
वीर - हाँ माँ... कितने प्यारे होते हैं यह रिश्ते... पता नहीं कैसी अंधी परंपरा के चलते... हम दूर हो गए... परंपरा को ढोते ढोते... हमे रिश्ते नहीं दिखे... जब रिश्तों को देखा तो यह परंपराएं... कितनी खोखली और छोटी लगने लगी है...
सुषमा - (मुस्करा देती है)
वीर - (मुस्करा कर) माँ एक बात कहूँ...
सुषमा - हम्म... बोल...
वीर - तुम्हें मुस्कराते हुए... पहली बार देख रहा हूँ... और सच कह रहा हूँ... दुनिया की सबसे खूब सूरत माँ लग रही हो...
सुषमा - हा हा हा.... (हँसी को रोकते हुए) अच्छा एक काम करेगा...
वीर - हाँ बोलो ना माँ...
सुषमा - कहीं एकांत देख कर गाड़ी रोकना...
वीर - क्यूँ... किसलिए माँ...
सुषमा - नहीं रोकेगा...
वीर - क्या माँ तुम भी... यह लो...

एक पार्क के पास गाड़ी रोक देता है l पार्क के बाहर रोड साइड में सीमेंट की बेंच पर सुषमा बैठ जाती है l वीर भी गाड़ी से उतर कर अपनी माँ के पास जा कर बैठता है l

वीर - हाँ माँ... अब बोलो...
सुषमा - (एक गहरी और सुकून भरी सांस लेकर) कितना अच्छा लग रहा है... अच्छा हुआ... छोटे राजा जी के गाड़ी को सर्किट हाउस भेज दिया था... गार्ड्स के साथ जब कहीं भी जाती थी... तो ऐसा लगता था... जैसे मैं कोई.... कैदी हूँ...
वीर - (अपनी माँ के बातों पर हँस देता है) माँ... बोलो ना... क्या बात करनी थी... यहाँ किस लिए गाड़ी को रुकवाया...
सुषमा - (वीर के चेहरे को मुस्करा कर देखते हुए) मुझे अभी कितना अच्छा लग रहा है... जानता है... मैं शब्दों में कह नहीं सकती... तु बता... तुझे अब कैसा लग रहा है....
वीर - (सुषमा के बगल में फैल कर बैठ जाता है) क्या बताऊँ माँ... बस अच्छा लग रहा है...(अपनी बाहें फैला कर) उड़ने को दिल कर रहा है... भागने को दिल कर रहा है... (खड़े हो कर) झूमने को... नाचने को गाने को दिल कर रहा है... क्या बताऊँ... कैसा लग रहा है... ह्म्म्म्म.... बस माँ.. बहुत... बहुत ही बढ़िया लग रहा है...(वीर देखता है उसकी बातों को सुषमा बड़ी ही जिज्ञासा भरे नजरों से एक अंदरुनी खुशी चेहरे पर लिए गौर से देख व सुन रही थी) क्या बात है माँ... ऐसे क्यूँ देख रही हो... (सुषमा के पास बैठ जाता है)
सुषमा - कौन है वह...
वीर - (हैरान हो कर) कौन... मतलब.... किसकी बात कर रही हो...
सुषमा - मैं उस लड़की बात कर रही हूँ... जिसने तुझे इस कदर बदल दिया...
वीर - ल.. लड़की...(हकलाने लगता है) क.. क.. कौन लड़की...
सुषमा - मैंने तुझे पहले भी खुश होते देखा है... पर तब लगता था... या तो वह खुशी नकली है... या फिर तु.... ज़बरदस्ती खुश होने की कोशिश करता था... या.. या फिर ऐसा लगता था... जैसे कुछ... तेरे पर जबरदस्ती लाद दिया गया है... पर आज.... आज की खुशी अलग है... कितना तेज है... कितनी मासूमियत भरा है... (वीर का मुहँ खुला रह जाता है) कब मिलवा रहा है मुझसे....
वीर - (खड़ा हो जाता है) यह.. यह क.. क्या कह रही हो माँ... (हकलाने लगता है) क...क कोई.. कोई ल.. ल.. ल.. लड़की नहीं माँ...
सुषमा - (वीर के बगल में खड़ी हो कर उसके गालों पर प्यार से हाथ फेरते हुए) कोई बात नहीं... लगता है... तेरा दिल ने अभी तक तुझे खबर नहीं दी है... सिर्फ जान पहचान से... या दोस्ती से आगे नहीं बढ़ पाए हो....
वीर - क... क्या... माँ... क्या बात कर रही हो...
सुषमा - कहा ना कोई बात नहीं... पर मैं यकीन के साथ कह सकती हूँ... लड़की बहुत ही अच्छी होगी...
वीर - (शर्म से गढ़ा जा रहा है) प्लीज माँ... मैं... वह मैं...
सुषमा - (वीर की हाथ पकड़ कर अपने पास बिठाती है) आज भले ही... तु स्वीकार करने में शर्मा रहा है... पर जिस दिन दिल से उसे अपना मानने लगेगा... जिस दिन उसकी बिना खुदको अधुरा मानने लगेगा... उस दिन मुझे उसके बारे में... बताना जरूर...
वीर- (शर्म से अपना चेहरा घुमा लेता है, और सुषमा को बिना देखे) आ.. आप... (और आगे कह नहीं पाता)
सुषमा - तेरे चहरे के उड़े रंगत बता रही है... क्यूंकि उसमें शर्म तो है पर.... शर्मिंदगी नहीं है... तेरे गालों पर लाली... मुझे इस अंधरे भी साफ दिख रहा है... (वीर नर्वस होने लगता है) अच्छा अब चल.... मुझे... सर्किट हाउस में छोड़ दे.. चल...
Well-done रिश्तो की नई कहानी
मतलब क्षेत्रपाल खानदान में दरार
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
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ऐसी बढ़िया कहानी!! और आप हैं भी भले मानुष। कैसे न साथ रहें 😊🙏
इस कमेंट पर मैं क्या कहूँ बस बहुत बहुत धन्यबाद
 
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