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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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sunoanuj

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Bahut hi behtarin updates… ab khani main bahut hee maza aane wala hai… mitr bus ab updates nirantar jari rakhna…. 👏🏻👏🏻👏🏻
 

ASR

I don't just read books, wanna to climb & live in
Divine
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आदरणीय मित्रों avsji SANJU ( V. R. ) Rajesh Ajju Landwalia KEKIUS MAXIMUS prakash Vickyabhi आदि मेरे सभी मित्रों

अपनी जीवन की मनोदशा लिख रहा हूँ संक्षिप्त में, मेरे जीवन में एक शुन्य स्थान हो गया है जिसकी पूर्ति लगभग असंभव है l मैंने एक गहरे मित्र को खो दिया है l उसके साथ मेरी मित्रता पच्चीस वर्ष की थी l पहले हम कलकत्ता में RRB exam के दौरान धर्मताला के एक स्कुल में हुआ था l मुलाकात बहुत ही यादगार था क्यूंकि दोनों ही धर्मताला बस स्टैंड में पेशाब करते हुए पोलिस के द्वारा पकड़े गए थे और फाइन भरे थे l फिर हमारी मुलाकात सिकंदराबाद RRB exam के दौरान स्टेशन पर मुलाकात हुई थी l बीते मुलाकात की याद को ताजा कर दोनों बहुत हँसे थे l खैर तीसरी बार हमारी मुलाकात उस इंटरव्यू में हुई थी जिस के बाद हमें नौकरी मिली थी l एक PSU में l उसके बाद दोनों का मेडिकल चेकअप एक ही दिन हुआ और जॉइनींग भी एक ही दिन हुई l कमाल की बात यह रही कि हमारी पोस्टिंग एक ही एरिया में हुई l थर्मल पावर प्लांट में l

हाँ यह बात और है कि उसकी शादी पहले हुई और मेरी शादी तीन साल बाद l दोनों की क्वार्टर अगल-बगल में मिली हुई थी l बाद में जब बड़ी क्वार्टर मिली तो मैं सेक्टर वन में रह गया और वह सेक्टर तीन को चला गया l

मैं स्वभाव से थोड़ा आलसी हूँ, वह हमेशा मॉर्निंग वॉक और इवनींग वॉक के लिए मुझे जबरदस्ती घर से लेकर जाता था l प्लांट में दोनों की जब भी एरिया में मुलाकात होती थी तब हमारे बीच हमेशा स्लैंग लैंग्वेज ईस्तेमाल किया करते थे l हम किसी ना किसी तरह प्लान कर के हर रविवार को A शिफ्ट ड्युटी पर आ जाते थे l दोनों एक एरिया में ड्युटी डलवा कर उस दिन थोड़ी शराब और मटन की रसोई किया करते थे l यह सिलसिला बाइस सालों तक चलता रहा l फिर कुछ हफ्ते पहले उसे ब्रेन हमरैज हुआ और ऑपरेशन टेबल पर ही चल बसा l बाइस साल की रेगुलर रुटीन अब पुरी तरह से डिस्टर्ब हो गया है l अब मैं ड्यूटी स्पॉट पर खामोश ही रहता हूँ l अब मैंने अपना ऑफ भी बदलवा दिया है l पहले शुक्र वार था अब संडे को ले लिया है l

ऐसी मेरी स्थिति थी यार l इसलिए पेज पर बड़ी मुश्किल से ही आ पा रहा था l

खैर शुक्रिया बहुत बहुत शुक्रिया
कोशीश में हूँ खुद को फिर से पटरी पर लाने की l बहुत जल्द आ जाऊँगा l
जीवन में ये क्षण भी आते हैं 😚 यू ही मित्र नहीं मिलते रच बस जाते हैं 😚 हम सब के साथ भी इसी तरह की मितली हुईं घटनाये होई है. प्रभु आप को यह दुख सहने की शक्ति प्रदान करते हुए आप अपने जीवन में आगे बढ़ने के साथ सुखी रहे
गीता के अध्याय भी कुछ शांति देगे
💗
 

Kala Nag

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👉एक सौ अड़तीसवाँ अपडेट
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एक कमरे में अंधेरा पसरा हुआ था l एक कोने में रीडिंग टेबल पर टेबल लैम्प जल रहा था और टेबल पर बहुत से किताबें बिखरे पड़े हुए थे l पास ही एक शख्स नाइट शूट में चेयर की हेड रेस्ट सिर टिका कर पर छत की ओर देखते हुए आँखे मूँद कर लेटा हुआ था l टेबल पर मोबाइल फोन अचानक से बज उठता है l वह शख्स चौंक कर नींद से जाग जाता है l मोबाइल को हाथ में लेकर देखता है, स्क्रीन पर दरोगा लिखा हुआ था l फोन को कान से लगा कर

- हैलो...
रोणा - हैलो नहीं हिलो... क्यूँ बे साले... काले कोट वाले... सुबह नहीं हुई है क्या भुवनेश्वर में...(यह शख्स कोई और नहीं बल्लभ था)
बल्लभ - ओह दरोगा... क्या हुआ... बड़ा ताजा ताजा लग रहा है....
रोणा - हाँ... हूँ तो... क्यूँकी अभी अभी अपना हाथ का अंतिम बार उपयोग किया है...
बल्लभ - क्या मतलब...
रोणा - अबे ढक्कन... मूठ मारी है... वह भी आखिरी बार... उस नंदिनी के नाम...
बल्लभ - साले हरामी... इतना कुछ होने के बाद भी... तु अभी भी... उसीके बारे में सोच रहा है...
रोणा - हाँ... क्यूँकी वह तब तक सेफ है... जब तक विश्वा भुवनेश्वर में है... (बल्लभ कुछ ज़वाब नहीं देता) क्या हुआ... क्या सोचने लगा...
बल्लभ - पता नहीं क्यूँ पर... मैं अभी अभी उस लड़की के बारे में कुछ याद कर रहा था...
रोणा - अच्छा... कोई खास बात...
बल्लभ - मैंने शायद उस लड़की को... राजकुमार की अंगेजमेंट पार्टी में देखा है...
रोणा - (यह सुनते ही रोणा की माथे पर बल पड़ जाता है) अच्छा... कहीं तु मेरा मजा तो नहीं ले रहा...
बल्लभ - नहीं... पता नहीं... मैंने ध्यान नहीं दिया था... पर अब जब तुने उस लड़की की बात छेड़ी है... तो ऐसा लग रहा है... शायद उस पार्टी में.. मैंने उस लड़की को देखा है...
रोणा - ह्म्म्म्म... तो... तो क्या हुआ...
बल्लभ - मतलब... वह लड़की राजा साहब की पहचान में हो सकती है...
रोणा - या फिर... सामल साहब की भी हो सकती है....
बल्लभ - हाँ... शायद... अच्छा बोल फोन किसलिए किया...
रोणा - अरे बोला ना... आज आखिरी बार मूठ मारा है...
बल्लभ - क्यूँ... हिमालय जाना चाहता है क्या...
रोणा - अबे नहीं... मुझे एक ज़िम्मेदारी मिली है...
बल्लभ - कैसी जिम्मेदारी...
रोणा - विश्वा को ठिकाने लगाने की...
बल्लभ - अच्छा...
रोणा - हाँ तुने ही कहा था ना... मुझे तेरे दिमाग का इस्तेमाल करना चाहिए...
बल्लभ - हाँ तो इंतजार कर...
रोणा - ना.... मुझे पता है... कल तेरा मुहँ काला होने वाला है... और परसों तु अपना काला मुहँ लेकर राजगड़ आने वाला है...
बल्लभ - (अपनी भवें सिकुड़ कर) क्या यह बात... तुझे राजा साहब ने कहा है...
रोणा - हाँ यह उनकी भविष्यवाणी है...
बल्लभ - पहली बार... राजा साहब को... अपने दुश्मन पर भरोसा हो गया है...
रोणा - हाँ...
बल्लभ - इसका मतलब यह हुआ... के हम नाकारे हो गए हैं... तुझे क्या लगता है... विश्वा मुझ पर भारी पड़ेगा...
रोणा - वकील... राजा साहब ने शायद विश्वा की दिमाग पढ़ लिया है... तुझे क्या लगता है...
बल्लभ - अगर तेरी बात सही है... तो मैं भी देखना चाहूँगा... कल भूमि पूजन को विश्वा कौनसी दाव लगा कर रोकता है... कानून की किताब में ऐसा कौनसा दाव है जो मुझसे छूट गया है...
रोणा - एक बात तो है... विश्वा मुझे मेरी समझ पर मात दे चुका है... अगर उसने तेरी समझ को मात दे दी...
बल्लभ - तो समझ ले... रुप फाउंडेशन केस में... हम सब फंसने वाले हैं... क्यूँकी विश्वा ने... आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक... हाई कोर्ट में पीआईएल दाखिल कर दी है....
रोणा - इसीलिए तो मुझे जिम्मेदारी मिली है... चल तु आजा... मिलकर उसकी माँ बहन करते हैं...
बल्लभ - कल रात से... मैं सन साईन प्रोजेक्ट की हर पहलू को... कानूनी तर्ज़ पर तौल रहा हूँ... मुझे कहीं से भी... कोई लूप होल्स नहीं दिख रहा... फिर भी राजा साहब को लगता है... विश्वा मुझे मात दे जाएगा... (रोणा चुप रहता है) मैंने बीडीए के उस अधिकारी काजमी को... उसके मुताबिक इंडाइरेक्ट रिश्वत मुहैया कराया है... जिसके वज़ह से... उससे मैंने मन माफिक सर्वे रिपोर्ट हासिल किया... उसके बाद ही... प्लॉट रजिस्ट्रेशन और प्रोजेक्ट बीडीए से अप्रूवल लिया है... इतना कुछ होने के बाद भी... राजा साहब को लगता है... विश्वा मुझे मात दे सकता है...
रोणा - हाँ लगता तो यही है.... तभी तो... सात साल पहले की गलती को सुधारने की... मतलब कंप्लीट एलीमिनेशन... अब पुरी जिम्मेदारी मुझे सौंपी है...
बल्लभ - कैसी गलती...
रोणा - विश्वा को जिंदा छोड़ने की गलती...
बल्लभ - तो तु क्या विश्वा को मार देगा...
रोणा - अब काम मिल गया है... काम का दाम भी मिला है... काम पुरा हो जाने पर.... इनाम की ग्यारंटी मिली है...
बल्लभ - मुझे यकीन नहीं हो रहा है...
रोणा - क्यूँ... क्यूँ नहीं हो रहा है...
बल्लभ - इसलिए कि... विश्वा वह सात साल पहले वाला विश्वा नहीं रहा.... पहली बात अब वह वकील है... दुसरी बात... वह आरटीआई एक्टिविस्ट है... तीसरी बात... उसका ओड़िशा हाइकोर्ट में लाइफ थ्रेट ऐफिडेविट दाखिल है... इसलिए उसका बाल भी बाँका हुआ तो...
रोणा - जानता हूँ... तभी तो बोल रहा हूँ... भुवनेश्वर का काम को छोड़... जल्दी मेरे पास आजा... मिलकर विश्वा की कानूनी इलाज करेंगे...
बल्लभ - कानूनी....
रोणा - हाँ... याद है... खूब जमेगा रंग... जब मिल बैठेंगे कमीने तीन... एक तु.. एक मैं और
बल्लभ - तीसरा कौन...
रोणा - अबे शराब... वह भी कमीनी नंदिनी की कबाब घोल के...
बल्लभ - तेरे सिर से उस लड़की का भूत उतरा नहीं है अभी तक...
रोणा - भूत नहीं नशा... और नशा हमेशा सिर चढ़कर ही बोलता है... बोल कब आ रहा है...
बल्लभ - भले ही राजा साहब को लग रहा है... यह बाजी मेरी हारी हुई है... फिर भी अपनी उस बाजी की हार की गवाह मुझे बनना है... विश्वा मुझे कैसे मात दे पाता है... मुझे देखना है...


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भीमा रंग महल के एक कमरे के आगे आकर खड़ा होता है l दरवाजे पर हल्का सा दस्तक देता है l अंदर से भैरव सिंह की आवाज़ गूंजती है l

भैरव सिंह - कौन... भीमा
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - अंदर आ जाओ...

भीमा दरवाजे को धकेल कर अंदर आता है l देखता है भैरव सिंह शिकारी के लिबास में एक काँच की अलमारी के सामने खड़ा है l उस अलमारी में एक मूठ विहीन तलवार है, ठीक उसके नीचे एक शिकार करने वाला पुरानी दो नाली वाली पुराने ज़माने की टेलीस्कोप बंदूक है l शायद भैरव सिंह शिकार करने के लिए तैयार हो चुका है l भैरव सिंह भीमा को देख कर पूछता है l

भैरव सिंह - कहो भीमा... क्या जानने आए हो...
भीमा - हुकुम... कल आपने जो काम दरोगा को सौंपा है... वह काम... (झिझकते हुए) हम में से... कोई भी कर सकता है...
भैरव सिंह - हा हा हा.. (हँसने लगता है) भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - चलो गाड़ी निकालो... आज हम शिकार करने जंगल की ओर जाएंगे... आज शिकार किया हुआ गोश्त ही खाएंगे...
भीमा - जी हुकुम...

कह कर भीमा बाहर की ओर भागता है l भैरव सिंह अलमारी के दीवार पर टंगे हुए वही पुराने ज़माने की टेलीस्कोपीक हंटर राइफल निकालता है l एक दुसरे अलमारी के पास जाकर कारतूस वाली एक बेल्ट निकालता है l जब तक वह रंग महल की सीडियां उतरने लगता है, भीमा गाड़ी लेकर उसके सामने पहुंच जाता है l भैरव सिंह गाड़ी में बैठते ही भीमा गाड़ी को राजगड़ से दूर ले जाने लगता है l गाड़ी दौड़ी जा रही थी l बीच बीच में भीमा भैरव सिंह की ओर देख रहा था, भैरव सिंह के चेहरे पर एक आत्मविश्वास भरा मुस्कान था l करीब एक घंटे के ड्राइव के बाद राजगड़ की जंगल में पहुँचते हैं l भीमा गाड़ी रोक देता है l

भैरव सिंह - गाड़ी जितना भीतर तक जा सकती है... लिए चलो...
भीमा - जी... जी हुकुम...

भीमा गाड़ी को घनी जंगल में ले जाता है और एक जगह गाड़ी की आगे बढ़ने के लिए कोई रास्ता नहीं मिलता तो भैरव सिंह गाड़ी से उतर कर पैदल ही आगे बढ़ने लगता है और भीमा भी उसके पीछे पीछे चल देता है l दोनों कुछ देर के बाद एक नदी की पठार तक आते हैं l भैरव सिंह एक पेड़ के नीचे जगह बना कर बैठ जाता है l भीमा उसके पीछे खड़ा रहता है l

भैरव सिंह - हाँ तो भीमा.. कुछ पुछ रहे थे...
भीमा - जी हुकुम... वह...
भैरव सिंह - बस... यही ना... विश्वा को मारने के लिए... दरोगा को क्यूँ चुना...
भीमा - जी... जी हुकुम...
भैरव सिंह - (लहजे में कड़क पन छा जाता है) भीमा... विश्वा ने तेरे आदमियों की क्या गत बनाया है... क्या यह बताना जरूरी है...
भीमा - हुकुम गुस्ताखी माफ़... पर बात अगर जान से मारने की है तो... मारने के कई तरीके हो सकते हैं...
भैरव सिंह - हाँ... हो सकते हैं... वैसे कहीं तुम्हें भी रंग महल की ख्वाहिश तो नहीं...
भीमा - (हड़बड़ा कर) नहीं नहीं हुकुम नहीं... पुरखों से हम आपको सेवा दे रहे हैं... आपका हुकुम ही हमारे लिए पत्थर की लकीर है.... हम उसे लांघने की हिम्मत कभी कर ही नहीं सकते... आखिर हम सब आपके नमक ख्वार हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... चलो हम गहरी बात तुमको बताते हैं... आखिर तुम हमारे नमक ख्वार जो हो...

इतना कह कर भैरव सिंह अपनी बंदूक की नाल खोलता है और उसके खोल में एक कारतूस भरता है l फिर नाल को लॉक करने के बाद एक साइलेंसर लगाता है और फिर अपनी बैठी हुई जगह पर खड़ा होता है और भीमा की ओर देख कर कहता है

भैरव सिंह - भीमा हम कोई आम खानदान में जन्मे नहीं हैं... हम खास हैं... एक खास खानदान में जन्में हैं... हम पैदाइशी क्षेत्रपाल हैं... हम ने ता उम्र किसीको अपने बराबर समझा ही नहीं... इसलिए ना तो हमने किसी से दोस्ती की... ना ही किसी से दुश्मनी... क्यूँकी दोस्त हो या दुश्मन... दोनों हमारे बराबर खड़े हो जाएंगे... विश्वा जैसे लोग... जो हमारे ही टुकड़ों पर पला बढ़ा... हमसे नजरें मिलाकर बात करने की जुर्रत कर रहा है... दोस्त नहीं है वह हमारा... और विश्वा जैसे दुश्मन हमें गवारा नहीं... हम नहीं चाहते... लोग यह जानें... यह समझें... कोई है जो राजा साहब के बराबर खड़ा हुआ है... इसलिए हमने दरोगा को चुना है.... (थोड़ी देर के लिए भैरव सिंह चुप हो कर भीमा की ओर देखता है, भीमा उसे आंखें बड़ी कर टुकुर टुकुर देखे जा रहा था) दरोगा का और विश्वा का छत्तीस का आँकड़ा है... दरोगा विश्वा से इतनी बार मात खाया हुआ है कि... विश्वा के लिए खुन्नस पाले हुआ है... इससे पहले कि विश्वा हम तक पहुँचे... हमने उसकी राह में... दरोगा को खड़ा कर दिया... दरोगा है बैल बुद्धि... अपने खुन्नस और लालच के चलते वह किसी भी हद तक जाएगा... और विश्वा से दुश्मनी ले लेगा...
भीमा - ओह... दरोगा विश्वा पर हावी हुआ तो ठीक... पर अगर विश्वा दरोगा पर भारी पड़ा... तब..
भैरव सिंह - हमने विश्वा के औकात के बराबर उसका दुश्मन उसके सामने रख दिया है... उनमें से कोई किसी को भी रास्ते से हटाए... बचने वाले को कानूनी सजा होगी... (भीमा की आँखे हैरानी से फैल जाते हैं) जीत विश्वा की हो... तो दरोगा के खुन के इल्ज़ाम में अंदर जाएगा... और अगर दरोगा जीता तो विश्वा के खुन के इल्ज़ाम में अंदर जाएगा... समझा...

अब भीमा का मुहँ खुला रह जाता है l तब तक भैरव सिंह किसी पेड़ पर बैठे एक पंछी पर निशाना लगा कर फायर करता है l जब पंछी खून से लथपथ फडफडा कर भीमा के पास आकर गिरता है तभी भीमा को होश आता है l

भीमा - पर हुकुम... विश्वा को कुछ हुआ तो... वह पुराने केस खुल सकते हैं ना...
भैरव सिंह - हाँ खुल सकता है... हमने भी उसकी तैयारी कर ली है... अगर केस खुला... तो सब दरोगा के सिर जाएगा...
भीमा - (ऐसे चौंकता है जैसे उसे बिजली का झटका जोर से लगा) क्या...
भैरव सिंह - हाँ... (एक कुटिल मुस्कान के साथ कह कर और एक फायर करता है)

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क्या हुआ आज आप कॉलेज नहीं गईं... यह सवाल पूछा विश्व ने रुप से l रुप आज अपनी भाभी की गाड़ी लाई थी विश्व को पीक अप कर कहीं ले जा रही थी l गाड़ी में रुप थोड़ी गम्भीर लग रही थी इसलिए थोड़ी दुर जाने के बाद विश्व ने यह सवाल किया था, पर रुप कोई जवाब दिए वगैर गाड़ी को चलाए जा रही थी l विश्व फिर से सवाल पूछता है

विश्व - कोई परेशानी है...

रुप कोई जवाब नहीं देती, नज़रे रास्ते पर गड़ी हुई थी और गाड़ी चली जा रही थी l रुप से जवाब ना पा कर विश्व फिर से सवाल करता है l

विश्व - कहीं मुझे टपकाने का प्लान तो नहीं है... (रुप विश्व की ओर घूर कर देखती है) ठीक है ठीक है... हम दोनों की जिंदगी बहुत अहम है.... आप रास्ते पर नजर रखिए...

गाड़ी कटक छोड़ कर भुवनेश्वर लांघ चुकी थी l विश्व अब बहुत कन्फ्यूज लग रहा था l उसे लगा शायद कोई बड़ी परेशानी है l रुप गाड़ी को एक मोड़ पर घुमा देती है, एक कच्ची सड़क से होते हुए एक बड़ी सी तालाब के पास रुप गाड़ी को रोक देती है और एक गहरी साँस छोड़ते हुए गाड़ी से उतर कर तालाब के किनारे जाकर खड़ी हो जाती है l विश्व भी गाड़ी से उतरता है और रुप के पास आकर खड़ा होता है l रुप अचानक विश्व के सीने से लग जाती है और अपने दोनों हाथों को विश्व के कमर के इर्द-गिर्द कस लेती है l

विश्व - देखिए... प्लीज.. आप ऐसे मत कीजिए... कोई देख लेगा... तो... मैं किसीको मुहँ दिखाने के.. लायक नहीं रहूँगा...
रुप - (चिढ़ कर) आह... (दो तीन मुक्के विश्व की सीने पर मारती है फिर विश्व की शर्ट को मुट्ठी में कस लेती है)
विश्व - अकेला लड़का जान कर... आप मेरे साथ यह ज्यादती नहीं कर सकती... देखिए मैं चिल्लाउंगा... बचाओ... आह बचाओ...
रुप - (चिढ़ कर विश्व के सीने पर मुक्के बरसाने लगती है) मुझे क्यूँ सता रहे हो...
विश्व - झूट ना बोलिए... सता मैं नहीं आप रही हो...
रुप - क्या कहा... यु... (कह कर विश्व को धक्का देकर धकेलते हुए कुछ पेड़ों के नीचे लाती है और विश्व पर कुद जाती है l विश्व नीचे घास पर पीठ के बल गिर जाता है और उसके पेट के ऊपर रुप बैठ जाती है और दोनों हाथों से विश्व की कलर पकड़ कर) फिर से कहो... कौन किसको सता रहा है...
विश्व - आप...
रुप - क्या... (विश्व की कलर भींच कर) आई हेट यु...
विश्व - (अपने हाथ रुप की पीठ पर लेकर अपने ऊपर झुकाते हुए) बट आई लव यु...

रुप के गाल लाल हो जाते हैं l चेहरे पर आती खुशी को छुपाते हुए रूठने के अंदाज में मुहँ को मोड़ विश्व के पेट से उतर कर पीठ करते हुए बैठ जाती है l विश्व उठ कर बैठते हुए

विश्व - क्या हुआ...
रुप - कब से आए हो... एक बार भी मिलने की अपने तरफ़ से कोशिश नहीं की... हूँह्..
विश्व - क्या इसलिए मुझे घर से किडनैप कर ले आईं...
रुप - किडनैप कहाँ... माँ और पापाजी से इजाजत लेकर तुम्हें लाई हूँ... (विश्व की तरफ मुहँ कर) और तुम हो के... मुझे सताये जा रहे हो...
विश्व - अरे कहाँ सता रहा हूँ... (अपना नाक रुप की नाक से लड़ाते हुए) मैं तो अपनी नकचढ़ी के नाक पर गुस्सा देखना चाहता था...
रुप - आह हा हा... बहुत बातेँ बनाने लगे हो... लोग कहते हैं... मेरा गुस्सा बहुत खराब है...
विश्व - वह लोग ही खराब हैं... साले अंधे हैं... आपकी गुस्से वाली चेहरा तो सबसे सुंदर है... इतना सुंदर की बस... देखते हुए खो जाने को मन करता है... (रुप अपना चेहरा घुमा कर अपनी हँसी को छुपाने की कोशिश करती है) अच्छा आपने बताया नहीं... मुझे किडनैप करके इतनी दुर क्यूँ लाई हैं...
रुप - ओह गॉड... यु बुद्धू... यु डफर... तुमसे अकेले में मिलना चाहती थी... तुमसे ढेर सारी बातेँ करना चाहती थी... जब से आए हो... भैया के लिए लगे हो... उनके उलझन में उलझे हुए हो... जब सारे प्रॉब्लम सॉल्व हो गए... तब तो तुम्हें मुझसे मिलना चाहिए था... उसकी भी जहमत नहीं उठाई तुमने... जहमत तो छोड़ो... एक फोन नहीं तो एक मेसेज भी कर सकते थे... पर नहीं... तो क्या करती... इसलिए... तुम्हें मैं यहाँ लेकर आई हूँ... समझे... (विश्व मुहँ फाड़े एक टक रुप को देखे जा रहा था) अब ऐसे उल्लू की तरह आँखे फाड़ फाड़ कर क्या देख रहे हो...
विश्व - नहीं.. मैं यह देख कर सोच रहा था...
रुप - क्या...
विश्व - यही के... इतना कंप्लैन... आप बोल गईं... वह भी बिना रुके... साँस कब ले रही हैं... यह सोच रहा था... (हँस देता है)
रुप - (चिल्लाती है) आह... (फिर से विश्व के सीने पर मारने लगती है, विश्व हँसते हँसते नीचे लेट जाता है रुप उसके सीने पर सिर रख कर लेट जाती है, विश्व रुप की बालों पर हाथ फेरने लगता है) मुझे तंग करने में... तुम्हें अच्छा लगता है...
विश्व - नहीं... पर राजगड़ जाने से पहले... इन प्यारे लम्हों को... दिल में संजो का ले जाना चाहता हूँ... (एक पॉज लेकर) आपको बुरा लग रहा है...
रुप - (अपना चेहरा उठाकर ठुड्डी को विश्व की सीने पर रख कर अपनी नाक और होंठ सिकुड़ कर सिर हिला कर ना कहती है)
विश्व - (थोड़ा मुस्कराता है) अच्छा अब बताइए...
रुप - क्या...
विश्व - कुछ तो खास बात होगी... हम किसी मॉल में जा सकते थे... किसी पार्क में... या किसी रेस्तरां में भी जा सकते थे... इतनी दूर... यहाँ..
रुप - (तुनक कर बैठ जाती है) कहाँ... कैसे... जहाँ तन्हाई चाहिए... वहीँ ज्यादा भीड़ दिखती है... पार्क देखो... नदी किनारा देखो... समंदर का किनारा देखो... रेस्तरां देखो... हूँह्ह... भीड़ कितना होता है वहाँ... दिल की बात करने के लिए भी चिल्ला चिल्ला कर बात करना पड़ेगा...
विश्व - (उठ कर बैठते हुए) ओ... तो दिल की बात करने के लिए... इतनी दूर तन्हाई में आए हैं... ह्म्म्म्म...
रुप - और नहीं तो... (देखो ना कितनी तन्हाई है... इतनी तन्हाई की जुबां खामोश भी रहे तो भी बातेँ कानों तक पहुँच ही जाए...
विश्व - वाव... क्या बात है.. लफ्जों में... इतनी गहराई...
रुप - तुम मुझे छेड़ रहे हो...
विश्व - मेरी इतनी हिम्मत और औकात कहाँ...

रुप वहाँ से उठ जाती है और विश्व से थोड़ी दुर पेड़ के नीचे विश्व की ओर पीठ कर खड़ी हो जाती है l विश्व अपनी जगह से उठता है, रुप के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखता है, रूप विश्व की ओर घुमती है और विश्व के सीने से लग जाती है l विश्व को एहसास होता है कि रुप की आँखे बह रही थीं l

विश्व - क्या हुआ राजकुमारी जी... आपके आँखों में आँसू क्यूँ है...
रुप - अनाम... पता नहीं क्यूँ... पर कल से मुझे डर सा लग रहा है...
विश्व - डर... क्यूँ...
रुप - तुमने देखा ना... वीर भैया और अनु भाभी जी के साथ क्या हुआ...
विश्व - आखिर में दोनों मिल भी गए ना...
रुप - हाँ... पर हमारे प्यार का क्या अंजाम होगा...

विश्व रुप को खुद से अलग करता है l उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर दोनों अंगूठे से रुप की आँसू पोछता है l

विश्व - क्या हुआ... मुझे पूरी बात बताइए...
रुप - (अपना चेहरे से विश्व की हाथ को हटाती है और पेड़ पर पीठ लगा कर खड़ी हो जाती है) कल की बात तो तुम माँ से जान ही चुके होगे... हमने वीर भैया और अनु भाभी को... पैराडाइज में छोड़ कर आ गए... फिर मैं कॉलेज गई... वहाँ पर मेरे दोस्त मेरा इंतजार कर रहे थे... उनसे मिली तो पता चला... तब्बसुम ने नज्म ए शब जीत चुकी थी... मुझे इतने दिनों बाद देख कर सभी खुश बहुत हुए... फिर पार्टी हुई... बहुत से दोस्त शामिल हुए... एक बात की खुशी थी... वीर भैया की इमेज एक ज़माने में बहुत खराब था... पर अनु भाभी के लिए जिस तरह से सबसे भीड़ गए... वह हमारे कॉलेज के यूथ के हीरो बन गए हैं... (रुप चुप हो जाती है)
विश्व - फिर डर कैसा....किस बात का...
रुप - जब पार्टी में मालुम हुआ... नज्म ए शब के अवार्ड्स को स्पंसर किसने किया था मालुम हुआ...
विश्व - (रुप को देखे जा रहा था)
रुप - निर्मल सामल....
विश्व - तो इसमे प्रॉब्लम क्या है...
रुप - (मुस्कराती है) जब निर्मल सामल का नाम आया... तब मैं कड़ी से कड़ी जोड़ने लगी... और मुझे पूरा खेल तभी समझ में आ गया....
विश्व - कौनसा खेल...
रुप - केके का क्षेत्रपाल से टूटना... निर्मल सामल का क्षेत्रपाल से जुड़ना... निर्मल सामल की बेटी सस्मीता से... वीर भैया का मंगनी की कोशिश... और इन सब के बीच... तब्बसुम का कॉलेज ना आना... तुम्हारा उन्हें ढूंढना... अंकल को राजी करना... उसके बाद यह शब ए नज्म का कंपटीशन... जिसमें तब्बसुम का जितना...
विश्व - इन सब में खेल कहाँ है...
रुप - बताती हूँ... तब्बसुम खुद साटीशफाय नहीं है... अपनी परफॉर्म से... फिर भी उसे अवार्ड मिला... सब मिला कर कुल पैंतालीस लाख का... (चुप हो जाती है)
विश्व - रुक क्यूँ गईं... आगे बोलिए...
रुप - अंकल रिश्वत नहीं लेते... निर्मल सामल की स्पंसरशीप.. सन साइन प्रोजेक्ट में एक प्लॉट और सिंगापुर आने जाने की फॅमिली टिकेट... इनडायरेक्ट रिश्वत... वह भी कंपटीशन के नाम पर...
विश्व - (मुस्कराता है) वाव... क्या बात है... तो इंसब में आप को क्या दुख पहुँचा मेरी नकचढ़ी राजकुमारी...
रुप - अनाम... दुश्मनी कितनी खुल्लमखुल्ला होने लगी है तुम्हारी... हमारे प्यार का अंजाम... दुखद हो तो चलेगा... पर अगर भयानक होगा...
विश्व - वैसे भी हमारी प्यार की राह आसान कब थी... आप राजकुमारी और मैं गुलाम अनाम...
रुप - डर रही हूँ... कहीं तुम पर कोई आँच ना आए...
विश्व - आँच तब आएगा जब.. राजा साहब तक खबर जाएगी...
रुप - पर जाएगी तो एक ना एक दिन ही...
विश्व - क्या उस दिन की सोच कर डर रही हैं...
रुप - नहीं सिर्फ वही एक वज़ह नहीं है...
विश्व - तो बताइए ना... और क्या क्या वज़ह हैं...
रुप - काजमी अंकल और उनके परिवार को कुछ होगा तो नहीं ना...
विश्व - आप ऐसा क्यूँ सोच रही हैं...
रुप - क्यूँ की मैं जानती हूँ... सन साइन प्रोजेक्ट फैल होने वाला है... और इस प्रोजेक्ट के पोषक लोग बहुत ख़तरनाक हैं... क्यूँकी इंडाइरेक्ट ही सही... अंकल तक उन्होंने रिश्वत तो पहुँचाया ही है... और कहीं यह रिवील हो गया के इन सब के पीछे तुम हो तब...
विश्व - नहीं... प्रोजेक्ट फैल होना तय है... और यह कल ही होगा... और आप यकीन रखें... आपकी दोस्त और उनकी परिवार पर कोई खतरा नहीं है.... (एक पॉज लेकर) और...
रुप - और क्या...
विश्व - और कौनसी वज़ह है... जिससे आप डर रहे हैं...
रुप - पता नहीं क्यूँ... कल से मुझे ऐसा लग रहा है... जैसे कोई हादसा मेरा इंतजार कर रही है...
विश्व - ऐसा क्यूँ लग रहा है भला...
रुप - पता नहीं... (बात को बदलते हुए) खैर... कल क्या होने वाला है...
विश्व - कल शाम की न्यूज में पता चल जाएगा आपको...
रुप - (मुहँ बना कर) मुझे नहीं बताओगे...
विश्व - मेरी जितनी भी पर्सनल है... उन सबमें आपका पूरा हक है... पर जो प्रोफेशनल है... उसके लिए आप मुझे कभी धर्म संकट में मत डालिए... मैं प्रोफेशनली जोडार सर से कमिटेड हूँ... तो..
रुप - ठीक है नहीं पूछूंगी...

थोड़ी देर के लिए रुप खामोश हो जाती है और किन्ही ख़यालों में खो जाती है l विश्व रुप की चेहरे को गौर से देखता है और सवाल करता है l

विश्व - राजकुमारी जी...
रुप - ह्म्म्म्म... (चौंक कर) कुछ पुछा तुमने...
विश्व - नहीं... पर आपने बताया नहीं... आपको किस बात का डर है... (रुप अपनी चेहरे को इधर उधर करने लगती है) ऐसा लग रहा है... जैसे आप कंफ्यूज हो..

विश्व रुप की हाथ पकड़ कर फिर से पेड़ की छांव में बिठा कर खुद उसके सामने आलती पालथी लगा कर बैठ जाता है l

विश्व - आप बेफिक्र हो कर कहिये... वादा है... सारी परेशानी आपकी दुर हो जाएगी...
रुप - अनाम... राजा साहब और तुम्हारे बीच की खाई कभी भरेगी नहीं... तो हमारे रिश्ते का भविष्य क्या है...
विश्व - आप क्या चाहतीं हैं... हमारे रिश्ते का भविष्य क्या होना चाहिए...
रुप - मैं नहीं जानती... पर मेरी ख्वाहिश है... मैं तुम्हारे साथ जीना चाहती हूँ... बुढ़ी होना चाहती हूँ... अपनी आँखे आखिरी बार बंद करने से पहले... तुम्हें देखते हुए मरना चाहती हूँ...
विश्व - तो ऐसा ही होगा... अगर आपको इस बात का डर है... के आपको कुछ हो जाएगा या मुझे... तो एक काम कीजिए... राजगड़ चले आइए... मेरे आँखों के सामने ही रहिए... फिर क्षेत्रपाल महल और हमारे प्यार का अंजाम अपनी आँखों से देखिए...
रुप - (मुस्करा देती है) तुम तो बात ऐसे कर रहे हो... जैसे तुमने टाइम फिक्स कर लिया है...
विश्व - हाँ ऐसा ही कुछ...
रुप - अनाम... क्या तुम्हें लगता है... राजा साहब का... सिर्फ तुम्हीं दुश्मन हो...
विश्व - नहीं... मैं जानता हूँ... पूरी दुनिया उनकी दुश्मन है... और हर कोई अपनी अपनी ताक में है...
रुप - इसका मतलब... उस दुश्मनी के चलते कोई मेरे ताक में भी हो सकता है...
विश्व - राजकुमारी जी... अपनी अकड़ और अहंकार के चलते... राजा साहब ने किसी से ना दोस्ती की... ना किसी को दुश्मनी के लायक समझा... पर उनसे खुन्नस रखने वाले हर दुसरे घर में मिल जाएंगे... पर राजा साहब पर वार करने के लिए... उनके कमजोर होने के इंतजार में हैं... तब शायद आप किसी के टार्गेट में आ जाएं... पर यकीन रखिए... आपके इर्दगिर्द हवा भी अपना रुख बदलेगा... तो भी मुझे पता चल जाएगा...
रुप - (तुनक कर खड़ी हो जाती है) क्या... इसका मतलब... तुम मेरी जासूसी करवा रहे हो...
विश्व - (सकपका कर खड़ा हो जाता है) नहीं मेरा यह कहने का मतलब नहीं था..

रुप खिलखिला कर हँसने लगती है l विश्व को उसके चेहरे पर हँसी देख कर एक सुकून सा महसुस होता है l रुप विश्व के सीने से लग जाती है l

रुप - आह... सच में... तुम्हारी बाहों में जब भी आती हूँ.. तब मुझे लगता है... मुझ पर कभी कोई खतरा तो दुर... दुख भी नहीं आ सकता है...
विश्व - कोई शक...

अपना चेहरा उठा कर विश्व की आँखों में देखते हुए सिर हिला कर ना कहती है l

विश्व - अच्छा अब चलें...
रुप - इतनी जल्दी...
विश्व - मुझे कल की तैयारी का जायजा लेना है...
रुप - (अलग हो कर) अच्छा चलो चलते हैं...

विश्व आगे बढ़ने लगता है कि रुप पीछे से उसकी हाथ पकड़ कर रोकती है l विश्व मुड़ कर रुप को देखता है, उसे लगता है जैसे रुप की आँखों में कोई शरारती ख्वाहिश झाँक रही थी l

विश्व - क्या हुआ राजकुमारी जी...
रुप - मेरा पहला किस...
विश्व - (झटका खाते हुए) क्या...
रुप - ओ हो... कितने दिन हो गए प्यार का इजहार हुए... और कितनी शर्म की बात है... एक किस भी नहीं हुआ है...
विश्व - वो... वो..
रुप - (विश्व की हाथ छिटक कर) तुम हो दब्बू के दब्बू... किस भी नहीं होता तुमसे...
विश्व - (खुद को थोड़ा सम्हालते हुए) रा.. राज कु.. कुमारी जी...
आपको किस मिलेगा... पर एक पेच है...
रुप - (बिदक कर) क्या... मेरे साथ टर्म एंड कंडीशन...
विश्व - हाँ...
रुप - (अपनी आँखे और मुहँ सिकुड़ कर) क्या कंडीशन है...
विश्व - आपको जैसे प्यार का इजहार... राजगड़ में चाहिए था... वैसे ही आपको किस भी राजगड़ में मिलेगी...
रुप - व्हाट...
विश्व - (रुप की दोनों हाथों को अपने हाथ में लेते हुए) राजकुमारी... हमारे बीच गुजरे हर एक लम्हा.. हर एक पल यादगार रहा है... हमारा पहला किस भी बहुत ही यादगार होना चाहिए... और होगा भी...
रुप - और तुम चाहते हो... इसके लिए मैं राजगड़ आऊँ...
विश्व - हाँ... जरा सोचिए... पूनम की रात हो... आसमान में चाँद चमक रहा हो... नदी के लहरों में एक नाव हो... उस पर हम दोनों हों... ऐसी चाँदनी में नहाई हुई रात में... हमारा किस हो...
रुप - ओ हैलो... ज्यादा आसमान में मत उड़ो... मैं महल से बाहर... वह भी चाँदनी रात में.. बहती नदी पर लहराती नाव में... जानते हो ना... पिछली बार तुमने क्या कांड किया था...
विश्व - (मुस्कराते हुए) मैं आपको ले जाऊँगा... प्यार में इतनी एडवेंचर तो बनता है... है ना..
रुप - (हैरानी भरे लहजे में) तुम सच में... मुझे ले जाओगे...
विश्व - मुझ पर भरोसा है...
रुप - (शर्मा कर मुस्करा देती है, फिर रुबाब दिखाते हुए) ठीक है... इस बार किस मिस नहीं होनी चाहिए... समझे... हूँह्ह्ह

कह कर रुप आगे बढ़ जाती है पीछे से विश्व मुस्कराते हुए उसके पीछे पीछे गाड़ी की ओर जाने लगता है l


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गौरी - (गल्ले पर बैठे बैठे) पता नहीं यह विशु कब आएगा... आता है तो पूनम की चांद की तरह... और जाता है तो.. गधे के सिर की सिंग की तरह...
वैदेही - (चूल्हे पर कोयला चढ़ा रही थी) ओ हो... मिसाल भी तो ढंग की दिया करो... (गौरी की तरफ़ मुड़ कर) विशु नौकरी भी करता है... इसलिए... काम को तरजीह दे रहा है...
गौरी - हाँ अब क्या करें बोलो... व्यपार भी अब वैसे नहीं रहा... एक्का दुक्का लोग ही आते हैं... विशु जब से गया है.. वह नाशपीटा सीलु भी नहीं आ रहा है... जो बच्चे विशु के मुहँ लगे हुए हैं... बस वही आते हैं... पैसे भी नहीं देते...
वैदेही - ओ हो काकी... पैसे हमारे पास कम है क्या... हमारा गुजारा तो हो ही रहा है ना... वैसे भी मुझे लगता है... विशु एक दो दिन में आने वाला है...

तभी एक गाड़ी की हॉर्न वैदेही के कानों में पड़ती है l वैदेही उस तरफ़ देखती है तो उसके चेहरे का भाव बदल जाता है जैसे नीम के पत्ते जुबान पर आ गए हों l रोणा गाड़ी से उतर कर वैदेही की दुकान के अंदर आता है और एक टेबल लेकर बैठ जाता है l वैदेही को कुछ समझ नहीं आता फिर भी उसके पास जाकर खड़ी होती है l

रोणा - एक गरमागरम स्पेशल मलाई वाली चाय... (वैदेही अपनी भवें सिकुड़ कर रोणा को देखने लगती है) क्या बात है... यहाँ ग्राहक को चाय नहीं पुछा जाता है क्या... इतनी हैरानी से क्या देख रही है...
वैदेही - जब से राजा साहब का हुकुम बजा है... तब से कोई ग्राहक नहीं आया है... इसलिए हैरान हूँ... के... कैसे अपने मालिक की बात काट कर... कोई बंदा मेरे दुकान में आया है...
रोणा - दुकान नहीं होटल बोल... राजगड़ की फाइव स्टार होटल... जहां... करोड़ों रुपये डकार जाने वाला... भूत पूर्व सरपंच आकर खाना पीना करता है... क्यूँ ठीक कहा ना...
वैदेही - (यह सब सुन कर अपनी जबड़े भींच लेती है) लगता है... रात को कुछ अंडशंड खा लिया था... हजम नहीं हुई... इसलिए यहाँ उल्टी करने चला आया...
रोणा - अंडशंड... मेरी खाने की और पीने जो लेवल है ना... वह तुम भाई बहन की सोच की परे है... समझी...
वैदेही - हड्डी चाहे कैसे भी मिले... हड्डी ही होती है... और हड्डी के लिए दुम हिला कर गुलाटी मारने वाला कुत्ता ही होता है...
रोणा - हाँ बस नस्ल शेर वाली होती है... जो अपने शिकार को दबोच कर नोच कर चिथड़े उड़ा उड़ा कर खाता है...
वैदेही - अच्छा... तो तु यहाँ... शिकार करने आया है...
रोणा - ना... आज पेट भरा हुआ है... पर बहुत जल्द भूख लगेगी... उस दिन दौड़ा दौड़ा कर शिकार करूँगा...
वैदेही - तो आज क्या करने आया है...
रोणा - बोला ना... चाय पीने आया हूँ... अच्छा टीप भी दूँगा... बस मलाई जरा ज्यादा डाल कर लाना...
वैदेही - तेरे लेवल की होटल नहीं है.... और तुझे चाय दे कर... तेरा लेवल बढ़ाना नहीं चाहती... इसलिए दफा हो जा यहाँ से...
रोणा - हो जाऊँगा हो जाऊँगा... मुझे कौनसा तेरे साथ घर बसाना है... बस मुझे इतना बता... तेरा वह चोर भाई... आ कब रहा है...
वैदेही - क्यूँ... तेरी अर्थी को कंधा देने वाले कम पड़ने वाले हैं क्या... या तेरे घर में तेरी चिता को आग देने वाला कोई नहीं है...
रोणा - उफ... कितनी धार है तेरी बातों में... कितनी कटीली बातेँ कर रही है... जिगर छलनी हो जाती है फिर भी... तुझे सही सलामत छोड़ रहा हूँ...
वैदेही - कुछ करने की ना तेरी औकात है... ना तेरी हैसियत है...
रोणा - हा हा... हा हा हा हा हा... तु कोर्ट में डाले हुए उस ऐफिडेविट की दम पर उछल रही है... है ना... हा हा हा... मुझे हेड क्वार्टर से ऑर्डर का कापी मिल गया है... पर उसका जवाब भी तैयार कर लिया है... उसकी जवाब दाखिल करने के लिए... मैंने तैयारी शुरू कर दिया है... हा हा हा... मैं यहाँ तुझे आगाह करने आया हूँ... रंगमहल की रंडी... इस इलाके की दायरे से बाहर मत निकल... वर्ना (खड़े हो कर अपनी होलस्टर से रीवॉल्वर निकाल कर वैदेही के सिर पर तान देता है) तेरा एनकाउंटर कर दूँगा... और रिपोर्ट में लिखूँगा... पुरानी खुन्नस के चलते... मुझ पर दरांती लेकर हमला करने की कोशिश की... मैंने आत्मरक्षा के लिए इस दो कौड़ी की रंडी को गोली मार दी... हा हा हा... (वैदेही की देखते हुए) क्या सोचने लगी...
वैदेही - यही के... कुत्ता जब पागल हो जाए... वह कितने दिनों तक जिंदा रह सकता है...
रोणा - हाँ... (एक साइको की तरह हँसते हुए) ठीक कहा तुमने... मैं पागल कुत्ता हूँ... काटुं या चाटुं... दोनों ही सुरत में... तुम दो भाई बहन के लिए खतरा हूँ...

कह कर रोणा वहाँ से निकलता है और जाते जाते दुकान के दरवाजे पर रुक जाता है और मुड़ कर वैदेही की देख कर कहता है l

रोणा - तेरे विश्वा को जो करना था... जितना करना था कर लिया है... अब जो आए उसे बता देना... जब भी सोये आँखे खोल कर सोये... क्यूँकी मैं अब उसकी वकालत की धज्जियाँ उड़ाने वाला हूँ.... (कह कर जाने लगता है फिर बाहर रुक कर) हाँ कह देना... मैं अपनी टांगे फैला कर बैठा रहूँगा... जितनी चाहे उतनी झांटे उखाड़ ले...

कह कर वहाँ से चला जाता है l वैदेही हैरानी भरे नजरों से उसे जाते हुए देख रही थी l उसे होश तब आता है जब उसके कंधे पर एक हाथ को महसुस करती है l पीछे मुड़ती है l

गौरी - यह दरोगा... इस तरह से बात क्यूँ कर रहा था...
वैदेही - सोच तो मैं भी यही रही हूँ... ऐसा क्या उसके हाथ लगा है... जो विशु को सीधी चुनौती देने यहाँ आ गया... और आज वह गुस्सा भी नहीं हुआ....
गौरी - विशु जब आए... तो हमे उसे सावधान करना पड़ेगा...
वैदेही - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) हाँ काकी... लगता है कुछ बड़ा होने वाला है...

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अगले दिन
एक बहुत बड़े मैदान में लोगों का जमावड़ा धीरे धीरे बढ़ रहा है l वह मैदान चारों ओर से शामियाना से घिरा हुआ है l एंट्रेंस पर जोडार सेक्यूरिटी ग्रुप के गार्ड्स तैनात हैं l वह लोगों के एंट्री पास देख कर अंदर छोड़ रहे थे l सन साइन रेजिडेंट सोसाइटी की इनागुराल डे है आज l बड़े बड़े पेपर में इस फंक्शन की जबरदस्त एडवर्टाइजिंग किया गया था l कुछ स्थानीय नेता भी आए हुए थे l निर्मल सामल का सेक्रेटरी एंट्रेंस पर खड़े रह कर सबका स्वागत कर अंदर भेज रहा था l इतने में स्वपन जोडार की गाड़ी पहुँचती है, सेक्रेटरी भागते हुए गाड़ी के पास जाकर डोर खोलता है l जोडार उतरता है l

जोडार - प्रोग्राम शुरु हो गया क्या...
सेक्रेटरी - वेलकम सर... अभी नहीं हुआ है... सामल सर आपकी ही प्रतीक्षा में हैं...
जोडार - क्या... मेरी प्रतीक्षा...
सेक्रेटरी - जी... आइए...

सेक्रेटरी जोडार को बड़े ही आदर के साथ अंदर ले जाता है l अंदर पहुँच कर जोडार देखता है कुछ नेता, जर्नलिस्ट और कुछ मीडिया वाले आए हुए हैं l जोडार को देखते ही निर्मल सामल उसके पास आता है l

सामल - आइए.. आइए... आपका ही इंतजार था...
जोडार - सामल बाबु... आपके सेक्रेटरी ने कहा कि प्रोग्राम शुरु ही नहीं किया है आपने...
सामल - हाँ वह इसलिए कि... आज मेरे प्रोग्राम में... आप ही मुख्य अतिथि हैं...
जोडार - भई इतना मान ना दीजिए... आप हमारे राइवल हैं... और यह प्रोजेक्ट... एक तरह से... मेरी बिजनस में ताला लगाने वाली है..
सामल - ऐसा ना कहिये जोडार बाबु... हम पड़ोसी बनने वाले हैं... और मैं एक अच्छे पड़ोसी की तरह... अपने पड़ोसी का खयाल रखता हूँ... तभी तो... आपकी सेक्यूरिटी संस्थान से सेक्यूरिटी माँगी है...
जोडार - सेक्यूरिटी से याद आया... मुझे बहुत खेद है... आपकी बेटी की सगाई में जो हुआ...
सामल - बुरा तो हुआ... पर इससे जिंदगी ठहर तो नहीं जाएगी... आगे बढ़ना ही जिंदगी है...
जोडार - जी बहुत अच्छी बात कही आपने... चलिए हम भी आगे बढ़ते हैं.... (दोनों पूजा मंडप की ओर चलने लगते हैं) तो... आपकी और क्षेत्रपाल परिवार की दोस्ती टुट गई लगती है...
सामल - नहीं... ऐसी कोई बात नहीं...
जोडार - वेल... बुरा मत मानिएगा... उनकी तरफ कोई दिख नहीं रहा तो... इसलिए...
सामल - हाँ... अगर सगाई हो गई होती... तो राजा साहब.. नहीं तो कम से कम मेयर साहब यहाँ पर होते... पर सगाई टूटने से... उन्हें बहुत ठेस पहुंची है... इसलिए.. उनके तरफ से... (बल्लभ के पास पहुँच कर) यह साहब आए हैं... एडवोकेट बल्लभ प्रधान...
जोडार - ओ... प्रधान बाबु... (बल्लभ से हाथ मिलाते हुए) बड़े नाम सुने हैं आपके... आज दर्शन भी हो गये...
सामल - और जानते हैं जोडार बाबु... इत्तेफाक से... प्रधान बाबु... मेरी कंपनी के भी लीगल एडवाइजर हैं... और यह जो प्लॉट देख रहे हैं... सब इन्हीं की मेहरबानी है...
जोडार - वाव... इंप्रेस्ड... हाइ ली इंप्रेस्ड... कास के आप हमें पहले मिले होते... तो शायद यह प्लॉट मुझे मिल गई होती...

हा हा हा... तीनों एक साथ हँसने लगते हैं l

सामल - आपके पास भी तो कोई लीगल एडवाइजर है...
बल्लभ - हाँ सुना है... बहुत काबिल है...
जोडार - हाँ है तो... पर क्या करें... आप हमें मिले नहीं... और जो मिले आप जैसे निकले नहीं...

यह सुन कर बल्लभ अंदर ही अंदर बहुत खुश हो जाता है, और जोडार से कहता है l

बल्लभ - थैंक्स फॉर कंप्लीमेंट...

तभी पूजा मंडप से पंडित सामल को बुलाता है l तो सामल दोनों से इजाजत लेकर पुजा मंडप पर बैठ जाता है l

बल्लभ - आपको... अपने साथ आपके लीगल एडवाइजर को भी यहाँ ले आते... हम मिल लेते...
जोडार - क्यूँ... बुलावा तो सिर्फ मुझे मिला था... वह भी एक मामुली बिल्डर...
बल्लभ - जोडार साहब... आप कोई मामुली हस्ती नहीं हैं...
जोडार - अरे कहाँ... हस्तियां तो आप लोग हो... जो मेरी बस्ती बसने से पहले उजाड़ने की भरसक कोशिश किए हो...
बल्लभ - नहीं जोडार साहब... असल बात यह है कि... आप सीढियों पर पायदान लांघ कर जा रहे हो... जब कि जाना आपको एक के बाद एक चढ़ कर जाना चाहिए...
जोडार - बिजनस में मुझे हमेशा मौका दिया है... किसीसे मैंने छीना नहीं है...
बल्लभ - हाँ... पर जिसका जमा जमाया हो... उस बाजार में आपको... उनसे पूछकर दुकान खोलनी चाहिए थी... यही आपको थाईसन बिल्डिंग के वक़्त समझाने की कोशिश की गई थी...
जोडार - हाँ पर हुआ क्या... उल्टा मुझे.. कंपनसेशन मिला...
बल्लभ - पर यहाँ ऐसा कुछ नहीं होने वाला...
जोडार - हाँ यहाँ से मुझे कंपनसेशन चाहिए भी नहीं... क्या पता वह जो पूजा मंडप पर पूजा कर रहे हैं... कंपनसेशन उन्हें जरूरत पड़ जाए...

इतना कह कर जोडार चुप हो जाता है मगर बल्लभ हैरान हो कर जोडार की ओर देखने लगता है l

जोडार - क्या हुआ...
बल्लभ - (थोड़ी घबराहट के साथ) कुछ कुछ नहीं... एसक्यूज मी... (कह कर वहाँ से निकल जाता है)

बल्लभ अब गहरी सोच में पड़ जाता है, उसे लगने लगता है जरूर कुछ होने वाला है l उसकी निगाह फंक्शन शामियाना के एंट्रेंस पर चली जाती है, पर उसे सेक्यूरिटी वालों को छोड़ कोई दिख नहीं रहा था l वह पूजा मंडप के पास कैमरा लिए रिपोर्टिंग करते रिपोर्टरों की ओर जाता है l वहाँ पर भी उसे कुछ संदेहजनक दिखता नहीं है l फिर वह अपनी नजरें चुरा कर जोडार की ओर देखता है, जोडार निश्चिंत हो कर पूजा मंडप में जल रहे अग्नि कुंड को देखे जा रहा था l बल्लभ की घबराहट धीरे धीरे बढ़ने लगती है l बल्लभ अपना टाई ढीला करता है, उसका जिस्म अब पसीना पसीना होता जा रहा था l उसका ध्यान तब टूटता है जब शंखनाद होने लगता है l पूजा समाप्त हो गया था l सारे लोग पुष्पांजलि दे रहे थे l उन लोगों में जोडार भी था l उसके दिल को ठंडक तब पहुँचती है जब पंडित घोषणा करता है कि सारे विघ्न और बाधाएँ दूर हो गई हैं l बल्लभ के होंठो पर एक मुस्कान खिल उठता है l आधा दिन ढल चुका था पर अब तक कुछ भी नहीं हुआ था l उसे अब यकीन हो चुका था वह बाजी जीत चुका है l विश्व या जोडार ग्रुप अब कानूनन कोई अड़चन नहीं डाल सकते l बल्लभ एक गहरी साँस लेकर मंडप की ओर देखने लगा l

पंडित - यजमान पूजा का समापन हुआ है... अब आप... (एक कुदाल दे कर) यह कुदाल लेकर ईशान कोण में जमीन को थोड़ा खोद दीजिए... ताकि पहला भीति स्थापना के रुप में... एक ईंट रख दी जाए... जिसकी नींव युगों तक ज़मी रहे...
सामल - जी पंडित जी....

निर्मल सामल कुदाल उठा कर ईशान कोण में पहले से निसान किया हुआ जगह पर पहुँचता है l सभी निमंत्रित मीडिया वाले अपने अपने कैमरा लेकर उस जगह पहुँचते हैं l पंडित वहाँ पहुँच कर जमीन पर मंत्रोच्चारण के साथ फुल डालने लगता है, साथ साथ उसके साथ आए दुसरे पुरोहित घंटा और शंख बजाने लगते हैं l भीति स्थापना के लिए ईंट को हाथ में लिए बल्लभ उत्साह के साथ पंडित से इशारा मिलते ही निर्मल सामल कुदाल उठाता और ताकत के साथ जमीन पर मारता है l
ठंन की आवाज आती है l जैसे कुदाल का मुहँ किसी पत्थर से टकराया हो l सभी थोड़े हैरानी से एक दुसरे को देखने लगते हैं l निर्मल सामल फिर से कुदाल उठा कर गड्ढा खोदने के जमीन पर मारता है l
नतीज़ा वही ठंन की आवाज आती है l

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शाम का समय
जोडार की ऑफिस के दीवार पर लगे बड़ी सी स्क्रीन पर सुबह हुई घटना ब्रेकिंग न्यूज की तरह चल रहा था l

"जैसा कि आप सबको यह ज्ञात था सामल कंस्ट्रक्शन ग्रुप सस्ते दरों पर घर मुहैया करने की बड़ी बड़ी विज्ञापन दिए थे, पुरे राज्य में लोगों को यह लुभावनी स्कीम पर नजर थी l इसी कारण आज सामल ग्रुप के मुखिया के द्वारा भूमि पूजन एवं भीति स्थापना का आयोजन किया गया था l परंतु पुजा समाप्ति के ततपश्चात्य जब भीति स्थापना के लिए जमीन की खुदाई शुरु की गई तो जमीन के भीतर से शिव और शक्ति की बहुत पुरानी मुर्ति निकली, तो स्थानीय लोग और विधायक इसे देबोत्तर जमीन कहने लगे और जल्दी से जल्दी पुरातत्वविद विभाग से जाँच करने की मांग की l लोगों की भावनाओं को देखते हुए सामल ग्रुप के प्रमुख निर्मल सामल मान भी गए l इसलिये अब उस क्षेत्र को सीज कर दिया गया है l अब सामल ग्रुप का बहु चर्चित व अपेक्षित प्रोजेक्ट फ़िलहाल के लिए स्थगित हो गया है l "

अपनी रिमोट से न्यूज को म्यूट कर जोडार टेबल पर रखता है l और हँसते हुए अपनी कुर्सी से उठता है सामने वाली कुर्सी पर बैठे विश्व की ओर देखते हुए टेबल पर रखी शैम्पेन बोतल खोलता है ग्लास में डालते हुए कहता है

जोडार - एक एक जाम हो जाए...
विश्व - नहीं जोडार साहब... मैं शराब नहीं पीता...
जोडार - ओह कॉम ऑन... यह शराब नहीं है... इट इज जस्ट सेलेब्रेशन ड्रिंक...
विश्व - फिर भी नहीं...
जोडार - ओके ओके... भाई वाह... विश्व वाह... एक बात कहूँ... अंतिम समय तक मैं... घबराया हुआ था... मैं यही सोच कर परेशान था कि... तुम शायद अंतिम क्षण में... कोई अदालती आदेश लेकर आओगे और पुजा रोक दोगे... पर... खैर... जानते हो... जब सामल का कुदाल... उस मूर्ति से टकराया... मन में एक आशा जगी... के कुछ तो हुआ है... पर डर भी लगा... कहीं कोई गड़ा मुर्दा ना बाहर निकल आए... हा हा हा... क्या तुम्हें पहले से ही पता था... वह जमीन... देबोत्तर जमीन है...
विश्व - जोडार साहब... वह जमीन देबोत्तर नहीं है...
जोडार - (चौंकते हुए) क्या... फिर... वह... अच्छा अच्छा... समझ गया... यानी वह मुर्ति... तुमने प्लॉट की थी... ओह माय गॉड... पर... दिखने में तो बड़ी पुरानी मुर्ति लग रही थी...
विश्व - अगर वह देबोत्तर जमीन होती... तो काजमी सर बुरे फंस जाते...
जोडार - यु नो वन थिंग... आई वांट टू नो एवरी थिंग... इफ यु डोंट माइंड... क्या तुम मुझे बता सकते हो... यह सब कैसे.. तुमने प्लान किया और कैसे उसी जगह पर मुर्ति को प्लॉट किया... जहां सामल ने कुदाल से खुदाई की...
विश्व - (मुस्कराते हुए अपनी जगह से उठता है) श्योर जोडार सर... (फिर विश्व बोलना शुरु करता है)

आपने मुझे जब लीगल एडवायजर की जॉब ऑफर की... तब से आपकी सारी प्रॉपर्टी और प्रोजेक्ट का खयाल रखना मेरी जिम्मेदारी बन गई थी...
केके का क्षेत्रपाल से टूटना मतलब था... भुवनेश्वर की रियल इस्टेट के बड़े हिस्से से हाथ धोना... उपर से थाईशन ग्रुप की वह लफड़ा... जिसमें क्षेत्रपाल ने भले ही पल्ला झाड़ लिया था... पर जोडार ग्रुप कहीं ना कहीं... उनके दिल को चुभा ज़रूर था... पर उससे भी ज्यादा... जब उनको मालुम हुआ... मैं आपके साथ जुड़ा हुआ हूँ... इसलिए... हम दोनों को हराने के लिए... बस एक छोटी सी चाल चली गई थी...

जोडार - हाँ... जिसकी तुमने भजिया तल दी... यार... मुझे पुरी तरह से क्लैरीफाय करो यार...
विश्व - आप एक्साइटमेंट में बीच में बोलोगे तो मैं कैसे कह सकता हूँ...
जोडार - ओह सॉरी सॉरी... अब मैं चुप रहता हूँ... तुम अपनी बात पुरी करो...


विश्व - पिछली बार मुझे राजकुमारी जी ने बुलाया था... क्यूंकि उनकी दोस्त मिसिंग थी... तब्बसुम... जिनकी वालिद बीडीए यानी भुवनेश्वर डेवलपमेंट अथॉरिटी में सर्वेयर हैं... वह जमीन जिसके लिए... सामल को दिलाने के लिए... मेयर पिनाक सिंह क्षेत्रपाल एड़ी चोटी का जोर लगा रहा था... वह जमीन सरकारी गोचर जमीन थी जिसे... निन्यानवे वर्ष के लिए लीज पर तिकड़म... हर एक डिपार्टमेंट में चल रही थी... जिसकी सारी लीगल फॉर्मलिटी... बल्लभ प्रधान कर चुका था... पर काजमी सर रोड़ा बन गए... क्यूँकी... सरकारी मूल्य से भी... बहुत कम कीमत पर... जमीन को डीसबर्स करना... उनकी जमीर को गवारा नहीं हुआ... पर अपनी ही डिपार्टमेंट में... सिस्टम के खिलाफ़ लड़ने से बेहतर... वह खुद को छुपाना ही बेहतर ऑप्शन समझे... पर इससे... उनकी जान पर बन सकती थी... इसलिए मैंने आपकी मदत से... उन्हें खुर्दा में ढूँढा... उनसे सारी जानकारी इकट्ठा की... उस जमीन के बगल में... जो तीन एकड जमीन है... वही असल में... देबोत्तर है... यानी... भगवान भुवनेश्वर श्री लिंगराज जी की जमीन... वहाँ पर कभी आवाजाही हुआ करती थी... क्यूंकि उस जमीन पर एक पंथशाला हुआ करता था अपनी पाकशाला के सहित... ब्रिटिश डोमिनेंस में आने के बाद उसे तोड़ दिया गया था... क्यूँकी वह पंथशाला... पाइका विद्रोह के समय एक प्रमुख सेफ हाउस बन गया था... खैर... मैंने उनसे सर्वे रिपोर्ट में... बस इतना लिखने को बोला... ब्रिटिश रेकार्ड के अनुसार सरकारी जमीन है... पर चूंकि देबोत्तर जमीन के पास है... इसलिए एक अनुमती पुरातत्व विभाग से भी लिया जाए... यह बात... बल्लभ प्रधान के लिए कोई मुश्किल भरा काम नहीं था... और बदले में... उन्हें कोई शक ना हो... इसलिए इंडाईरेक्ट रिश्वत लेने के लिए कहा... तो काजमी साहब ने वही बल्लभ प्रधान से डिमांड किया... बल्लभ ने एक शब् ए नज्म की प्रोग्राम अरेंज किया और... उसी सन साइन सोसाइटी में एक प्लॉट और विदेश जाने आने की टिकेट दिलाया... जो अब उन्हें मिलने से रहा...

जोडार - वाव... बहुत बढ़िया... पर... एक बात बताओ... वह मूर्ति कहाँ से मिली... तुमने उसे प्लॉट कैसे और कब किया... और खुदाई उसी जगह कैसे कारवाई...

विश्व - (थोड़ा गम्भीर हो कर) जोडार सर... आप शायद नहीं जानते... करीब सत्तर साल हो गये हैं... राजगड़ में मंदिर अभी भी बंद है... कोई पूजा नहीं होती... यहाँ तक... नदी के घाट पर भी... मूर्तियाँ पड़े हुए हैं... पर क्षेत्रपाल के डर से... कोई पूजा नहीं होती... जिस दिन मैंने काजमी सर से बात की... उसी दिन अपने दोस्त सीलु से... घाट पर पड़े शिव शक्ति की मूर्ति लाने के लिए कह दिया था... जैसे ही वह पहुँचा... लल्लन की मदत से... उस जमीन की उस जगह पर से... छह इंच मोती पाँच बाई पाँच घास वाली मिट्टी की परत निकाल कर... वह मूर्ति जमीन पर गड़वा दिया था... फिर उस पर परत को बिछा दिया था...

जोडार - हम्म... पर उसी जगह पर... तुमने खुदाई कैसे कारवाई..

विश्व - उन पुरोहितों के टीम में सीलु... और जमीन को निर्धारण करने वालों के टीम में मेरे दोस्त जीलु और मिलु थे... (जोडार की आँखे हैरानी के मारे फैल जाती हैं) हाँ जोडार सर.... जब मैं मिशन में होता हूँ... तब... मेरे साथ साये की तरह मेरे दोस्त भी साथ होते हैं...

जोडार - ओ... अब मुझे पुरी बात समझ में आ गई... पर... (पूछते पूछते रुक जाता है)
विश्व - आप फिक्र ना करें... अब जमीन फिर से सर्वे के लिए... आर्कियोलाजी विभाग के हाथ चली गई है... उनसे क्लियरेंस मिलते मिलते साल भर लग जाएगा... इतने में सामल की सब्र जवाब दे चुका होगा... इतनी बड़े प्रोजेक्ट के लिए... उसे कोई इन्वेस्टर भी नहीं मिलेगा... और तब तक... आपके सोसायटी के सारे घर बिक चुके होंगे...
जोडार - ओह... थैंक यु... यार.. तुमने मुझे बर्बाद होने से बचा लिया... अब आगे क्या करोगे...
विश्व - आज ही राजगड़ रवाना हो जाऊँगा...
जोडार - अरे इतनी जल्दी...
विश्व - हाँ जोडार सर... कोई है... जो तेजी से भागे जा रहा है... मुझे वहाँ पहुँच कर उसके राह के सारे अड़चन दुर करना है... ताकि वह अपनी अंजाम तक जल्द से जल्द पहुँच सके...
 

Kala Nag

Mr. X
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दोस्तों एक नया अपडेट पोस्ट कर दी है
आशा है पसंद आएगा
अगले कुछ एपीसोड में रोणा अपने अंजाम तक पहुँचेगा
पिछले कुछ एपिसोड पर मैंने कोई जवाब नहीं दिया है
पर इस बार जरूर दूँगा
मेरे साथ देंगे के लिए और बने रहने के लिए आप सबका धन्यबाद
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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👉एक सौ अड़तीसवाँ अपडेट
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एक कमरे में अंधेरा पसरा हुआ था l एक कोने में रीडिंग टेबल पर टेबल लैम्प जल रहा था और टेबल पर बहुत से किताबें बिखरे पड़े हुए थे l पास ही एक शख्स नाइट शूट में चेयर की हेड रेस्ट सिर टिका कर पर छत की ओर देखते हुए आँखे मूँद कर लेटा हुआ था l टेबल पर मोबाइल फोन अचानक से बज उठता है l वह शख्स चौंक कर नींद से जाग जाता है l मोबाइल को हाथ में लेकर देखता है, स्क्रीन पर दरोगा लिखा हुआ था l फोन को कान से लगा कर

- हैलो...
रोणा - हैलो नहीं हिलो... क्यूँ बे साले... काले कोट वाले... सुबह नहीं हुई है क्या भुवनेश्वर में...(यह शख्स कोई और नहीं बल्लभ था)
बल्लभ - ओह दरोगा... क्या हुआ... बड़ा ताजा ताजा लग रहा है....
रोणा - हाँ... हूँ तो... क्यूँकी अभी अभी अपना हाथ का अंतिम बार उपयोग किया है...
बल्लभ - क्या मतलब...
रोणा - अबे ढक्कन... मूठ मारी है... वह भी आखिरी बार... उस नंदिनी के नाम...
बल्लभ - साले हरामी... इतना कुछ होने के बाद भी... तु अभी भी... उसीके बारे में सोच रहा है...
रोणा - हाँ... क्यूँकी वह तब तक सेफ है... जब तक विश्वा भुवनेश्वर में है... (बल्लभ कुछ ज़वाब नहीं देता) क्या हुआ... क्या सोचने लगा...
बल्लभ - पता नहीं क्यूँ पर... मैं अभी अभी उस लड़की के बारे में कुछ याद कर रहा था...
रोणा - अच्छा... कोई खास बात...
बल्लभ - मैंने शायद उस लड़की को... राजकुमार की अंगेजमेंट पार्टी में देखा है...
रोणा - (यह सुनते ही रोणा की माथे पर बल पड़ जाता है) अच्छा... कहीं तु मेरा मजा तो नहीं ले रहा...
बल्लभ - नहीं... पता नहीं... मैंने ध्यान नहीं दिया था... पर अब जब तुने उस लड़की की बात छेड़ी है... तो ऐसा लग रहा है... शायद उस पार्टी में.. मैंने उस लड़की को देखा है...
रोणा - ह्म्म्म्म... तो... तो क्या हुआ...
बल्लभ - मतलब... वह लड़की राजा साहब की पहचान में हो सकती है...
रोणा - या फिर... सामल साहब की भी हो सकती है....
बल्लभ - हाँ... शायद... अच्छा बोल फोन किसलिए किया...
रोणा - अरे बोला ना... आज आखिरी बार मूठ मारा है...
बल्लभ - क्यूँ... हिमालय जाना चाहता है क्या...
रोणा - अबे नहीं... मुझे एक ज़िम्मेदारी मिली है...
बल्लभ - कैसी जिम्मेदारी...
रोणा - विश्वा को ठिकाने लगाने की...
बल्लभ - अच्छा...
रोणा - हाँ तुने ही कहा था ना... मुझे तेरे दिमाग का इस्तेमाल करना चाहिए...
बल्लभ - हाँ तो इंतजार कर...
रोणा - ना.... मुझे पता है... कल तेरा मुहँ काला होने वाला है... और परसों तु अपना काला मुहँ लेकर राजगड़ आने वाला है...
बल्लभ - (अपनी भवें सिकुड़ कर) क्या यह बात... तुझे राजा साहब ने कहा है...
रोणा - हाँ यह उनकी भविष्यवाणी है...
बल्लभ - पहली बार... राजा साहब को... अपने दुश्मन पर भरोसा हो गया है...
रोणा - हाँ...
बल्लभ - इसका मतलब यह हुआ... के हम नाकारे हो गए हैं... तुझे क्या लगता है... विश्वा मुझ पर भारी पड़ेगा...
रोणा - वकील... राजा साहब ने शायद विश्वा की दिमाग पढ़ लिया है... तुझे क्या लगता है...
बल्लभ - अगर तेरी बात सही है... तो मैं भी देखना चाहूँगा... कल भूमि पूजन को विश्वा कौनसी दाव लगा कर रोकता है... कानून की किताब में ऐसा कौनसा दाव है जो मुझसे छूट गया है...
रोणा - एक बात तो है... विश्वा मुझे मेरी समझ पर मात दे चुका है... अगर उसने तेरी समझ को मात दे दी...
बल्लभ - तो समझ ले... रुप फाउंडेशन केस में... हम सब फंसने वाले हैं... क्यूँकी विश्वा ने... आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक... हाई कोर्ट में पीआईएल दाखिल कर दी है....
रोणा - इसीलिए तो मुझे जिम्मेदारी मिली है... चल तु आजा... मिलकर उसकी माँ बहन करते हैं...
बल्लभ - कल रात से... मैं सन साईन प्रोजेक्ट की हर पहलू को... कानूनी तर्ज़ पर तौल रहा हूँ... मुझे कहीं से भी... कोई लूप होल्स नहीं दिख रहा... फिर भी राजा साहब को लगता है... विश्वा मुझे मात दे जाएगा... (रोणा चुप रहता है) मैंने बीडीए के उस अधिकारी काजमी को... उसके मुताबिक इंडाइरेक्ट रिश्वत मुहैया कराया है... जिसके वज़ह से... उससे मैंने मन माफिक सर्वे रिपोर्ट हासिल किया... उसके बाद ही... प्लॉट रजिस्ट्रेशन और प्रोजेक्ट बीडीए से अप्रूवल लिया है... इतना कुछ होने के बाद भी... राजा साहब को लगता है... विश्वा मुझे मात दे सकता है...
रोणा - हाँ लगता तो यही है.... तभी तो... सात साल पहले की गलती को सुधारने की... मतलब कंप्लीट एलीमिनेशन... अब पुरी जिम्मेदारी मुझे सौंपी है...
बल्लभ - कैसी गलती...
रोणा - विश्वा को जिंदा छोड़ने की गलती...
बल्लभ - तो तु क्या विश्वा को मार देगा...
रोणा - अब काम मिल गया है... काम का दाम भी मिला है... काम पुरा हो जाने पर.... इनाम की ग्यारंटी मिली है...
बल्लभ - मुझे यकीन नहीं हो रहा है...
रोणा - क्यूँ... क्यूँ नहीं हो रहा है...
बल्लभ - इसलिए कि... विश्वा वह सात साल पहले वाला विश्वा नहीं रहा.... पहली बात अब वह वकील है... दुसरी बात... वह आरटीआई एक्टिविस्ट है... तीसरी बात... उसका ओड़िशा हाइकोर्ट में लाइफ थ्रेट ऐफिडेविट दाखिल है... इसलिए उसका बाल भी बाँका हुआ तो...
रोणा - जानता हूँ... तभी तो बोल रहा हूँ... भुवनेश्वर का काम को छोड़... जल्दी मेरे पास आजा... मिलकर विश्वा की कानूनी इलाज करेंगे...
बल्लभ - कानूनी....
रोणा - हाँ... याद है... खूब जमेगा रंग... जब मिल बैठेंगे कमीने तीन... एक तु.. एक मैं और
बल्लभ - तीसरा कौन...
रोणा - अबे शराब... वह भी कमीनी नंदिनी की कबाब घोल के...
बल्लभ - तेरे सिर से उस लड़की का भूत उतरा नहीं है अभी तक...
रोणा - भूत नहीं नशा... और नशा हमेशा सिर चढ़कर ही बोलता है... बोल कब आ रहा है...
बल्लभ - भले ही राजा साहब को लग रहा है... यह बाजी मेरी हारी हुई है... फिर भी अपनी उस बाजी की हार की गवाह मुझे बनना है... विश्वा मुझे कैसे मात दे पाता है... मुझे देखना है...


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भीमा रंग महल के एक कमरे के आगे आकर खड़ा होता है l दरवाजे पर हल्का सा दस्तक देता है l अंदर से भैरव सिंह की आवाज़ गूंजती है l

भैरव सिंह - कौन... भीमा
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - अंदर आ जाओ...

भीमा दरवाजे को धकेल कर अंदर आता है l देखता है भैरव सिंह शिकारी के लिबास में एक काँच की अलमारी के सामने खड़ा है l उस अलमारी में एक मूठ विहीन तलवार है, ठीक उसके नीचे एक शिकार करने वाला पुरानी दो नाली वाली पुराने ज़माने की टेलीस्कोप बंदूक है l शायद भैरव सिंह शिकार करने के लिए तैयार हो चुका है l भैरव सिंह भीमा को देख कर पूछता है l

भैरव सिंह - कहो भीमा... क्या जानने आए हो...
भीमा - हुकुम... कल आपने जो काम दरोगा को सौंपा है... वह काम... (झिझकते हुए) हम में से... कोई भी कर सकता है...
भैरव सिंह - हा हा हा.. (हँसने लगता है) भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - चलो गाड़ी निकालो... आज हम शिकार करने जंगल की ओर जाएंगे... आज शिकार किया हुआ गोश्त ही खाएंगे...
भीमा - जी हुकुम...

कह कर भीमा बाहर की ओर भागता है l भैरव सिंह अलमारी के दीवार पर टंगे हुए वही पुराने ज़माने की टेलीस्कोपीक हंटर राइफल निकालता है l एक दुसरे अलमारी के पास जाकर कारतूस वाली एक बेल्ट निकालता है l जब तक वह रंग महल की सीडियां उतरने लगता है, भीमा गाड़ी लेकर उसके सामने पहुंच जाता है l भैरव सिंह गाड़ी में बैठते ही भीमा गाड़ी को राजगड़ से दूर ले जाने लगता है l गाड़ी दौड़ी जा रही थी l बीच बीच में भीमा भैरव सिंह की ओर देख रहा था, भैरव सिंह के चेहरे पर एक आत्मविश्वास भरा मुस्कान था l करीब एक घंटे के ड्राइव के बाद राजगड़ की जंगल में पहुँचते हैं l भीमा गाड़ी रोक देता है l

भैरव सिंह - गाड़ी जितना भीतर तक जा सकती है... लिए चलो...
भीमा - जी... जी हुकुम...

भीमा गाड़ी को घनी जंगल में ले जाता है और एक जगह गाड़ी की आगे बढ़ने के लिए कोई रास्ता नहीं मिलता तो भैरव सिंह गाड़ी से उतर कर पैदल ही आगे बढ़ने लगता है और भीमा भी उसके पीछे पीछे चल देता है l दोनों कुछ देर के बाद एक नदी की पठार तक आते हैं l भैरव सिंह एक पेड़ के नीचे जगह बना कर बैठ जाता है l भीमा उसके पीछे खड़ा रहता है l

भैरव सिंह - हाँ तो भीमा.. कुछ पुछ रहे थे...
भीमा - जी हुकुम... वह...
भैरव सिंह - बस... यही ना... विश्वा को मारने के लिए... दरोगा को क्यूँ चुना...
भीमा - जी... जी हुकुम...
भैरव सिंह - (लहजे में कड़क पन छा जाता है) भीमा... विश्वा ने तेरे आदमियों की क्या गत बनाया है... क्या यह बताना जरूरी है...
भीमा - हुकुम गुस्ताखी माफ़... पर बात अगर जान से मारने की है तो... मारने के कई तरीके हो सकते हैं...
भैरव सिंह - हाँ... हो सकते हैं... वैसे कहीं तुम्हें भी रंग महल की ख्वाहिश तो नहीं...
भीमा - (हड़बड़ा कर) नहीं नहीं हुकुम नहीं... पुरखों से हम आपको सेवा दे रहे हैं... आपका हुकुम ही हमारे लिए पत्थर की लकीर है.... हम उसे लांघने की हिम्मत कभी कर ही नहीं सकते... आखिर हम सब आपके नमक ख्वार हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... चलो हम गहरी बात तुमको बताते हैं... आखिर तुम हमारे नमक ख्वार जो हो...

इतना कह कर भैरव सिंह अपनी बंदूक की नाल खोलता है और उसके खोल में एक कारतूस भरता है l फिर नाल को लॉक करने के बाद एक साइलेंसर लगाता है और फिर अपनी बैठी हुई जगह पर खड़ा होता है और भीमा की ओर देख कर कहता है

भैरव सिंह - भीमा हम कोई आम खानदान में जन्मे नहीं हैं... हम खास हैं... एक खास खानदान में जन्में हैं... हम पैदाइशी क्षेत्रपाल हैं... हम ने ता उम्र किसीको अपने बराबर समझा ही नहीं... इसलिए ना तो हमने किसी से दोस्ती की... ना ही किसी से दुश्मनी... क्यूँकी दोस्त हो या दुश्मन... दोनों हमारे बराबर खड़े हो जाएंगे... विश्वा जैसे लोग... जो हमारे ही टुकड़ों पर पला बढ़ा... हमसे नजरें मिलाकर बात करने की जुर्रत कर रहा है... दोस्त नहीं है वह हमारा... और विश्वा जैसे दुश्मन हमें गवारा नहीं... हम नहीं चाहते... लोग यह जानें... यह समझें... कोई है जो राजा साहब के बराबर खड़ा हुआ है... इसलिए हमने दरोगा को चुना है.... (थोड़ी देर के लिए भैरव सिंह चुप हो कर भीमा की ओर देखता है, भीमा उसे आंखें बड़ी कर टुकुर टुकुर देखे जा रहा था) दरोगा का और विश्वा का छत्तीस का आँकड़ा है... दरोगा विश्वा से इतनी बार मात खाया हुआ है कि... विश्वा के लिए खुन्नस पाले हुआ है... इससे पहले कि विश्वा हम तक पहुँचे... हमने उसकी राह में... दरोगा को खड़ा कर दिया... दरोगा है बैल बुद्धि... अपने खुन्नस और लालच के चलते वह किसी भी हद तक जाएगा... और विश्वा से दुश्मनी ले लेगा...
भीमा - ओह... दरोगा विश्वा पर हावी हुआ तो ठीक... पर अगर विश्वा दरोगा पर भारी पड़ा... तब..
भैरव सिंह - हमने विश्वा के औकात के बराबर उसका दुश्मन उसके सामने रख दिया है... उनमें से कोई किसी को भी रास्ते से हटाए... बचने वाले को कानूनी सजा होगी... (भीमा की आँखे हैरानी से फैल जाते हैं) जीत विश्वा की हो... तो दरोगा के खुन के इल्ज़ाम में अंदर जाएगा... और अगर दरोगा जीता तो विश्वा के खुन के इल्ज़ाम में अंदर जाएगा... समझा...

अब भीमा का मुहँ खुला रह जाता है l तब तक भैरव सिंह किसी पेड़ पर बैठे एक पंछी पर निशाना लगा कर फायर करता है l जब पंछी खून से लथपथ फडफडा कर भीमा के पास आकर गिरता है तभी भीमा को होश आता है l

भीमा - पर हुकुम... विश्वा को कुछ हुआ तो... वह पुराने केस खुल सकते हैं ना...
भैरव सिंह - हाँ खुल सकता है... हमने भी उसकी तैयारी कर ली है... अगर केस खुला... तो सब दरोगा के सिर जाएगा...
भीमा - (ऐसे चौंकता है जैसे उसे बिजली का झटका जोर से लगा) क्या...
भैरव सिंह - हाँ... (एक कुटिल मुस्कान के साथ कह कर और एक फायर करता है)

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क्या हुआ आज आप कॉलेज नहीं गईं... यह सवाल पूछा विश्व ने रुप से l रुप आज अपनी भाभी की गाड़ी लाई थी विश्व को पीक अप कर कहीं ले जा रही थी l गाड़ी में रुप थोड़ी गम्भीर लग रही थी इसलिए थोड़ी दुर जाने के बाद विश्व ने यह सवाल किया था, पर रुप कोई जवाब दिए वगैर गाड़ी को चलाए जा रही थी l विश्व फिर से सवाल पूछता है

विश्व - कोई परेशानी है...

रुप कोई जवाब नहीं देती, नज़रे रास्ते पर गड़ी हुई थी और गाड़ी चली जा रही थी l रुप से जवाब ना पा कर विश्व फिर से सवाल करता है l

विश्व - कहीं मुझे टपकाने का प्लान तो नहीं है... (रुप विश्व की ओर घूर कर देखती है) ठीक है ठीक है... हम दोनों की जिंदगी बहुत अहम है.... आप रास्ते पर नजर रखिए...

गाड़ी कटक छोड़ कर भुवनेश्वर लांघ चुकी थी l विश्व अब बहुत कन्फ्यूज लग रहा था l उसे लगा शायद कोई बड़ी परेशानी है l रुप गाड़ी को एक मोड़ पर घुमा देती है, एक कच्ची सड़क से होते हुए एक बड़ी सी तालाब के पास रुप गाड़ी को रोक देती है और एक गहरी साँस छोड़ते हुए गाड़ी से उतर कर तालाब के किनारे जाकर खड़ी हो जाती है l विश्व भी गाड़ी से उतरता है और रुप के पास आकर खड़ा होता है l रुप अचानक विश्व के सीने से लग जाती है और अपने दोनों हाथों को विश्व के कमर के इर्द-गिर्द कस लेती है l

विश्व - देखिए... प्लीज.. आप ऐसे मत कीजिए... कोई देख लेगा... तो... मैं किसीको मुहँ दिखाने के.. लायक नहीं रहूँगा...
रुप - (चिढ़ कर) आह... (दो तीन मुक्के विश्व की सीने पर मारती है फिर विश्व की शर्ट को मुट्ठी में कस लेती है)
विश्व - अकेला लड़का जान कर... आप मेरे साथ यह ज्यादती नहीं कर सकती... देखिए मैं चिल्लाउंगा... बचाओ... आह बचाओ...
रुप - (चिढ़ कर विश्व के सीने पर मुक्के बरसाने लगती है) मुझे क्यूँ सता रहे हो...
विश्व - झूट ना बोलिए... सता मैं नहीं आप रही हो...
रुप - क्या कहा... यु... (कह कर विश्व को धक्का देकर धकेलते हुए कुछ पेड़ों के नीचे लाती है और विश्व पर कुद जाती है l विश्व नीचे घास पर पीठ के बल गिर जाता है और उसके पेट के ऊपर रुप बैठ जाती है और दोनों हाथों से विश्व की कलर पकड़ कर) फिर से कहो... कौन किसको सता रहा है...
विश्व - आप...
रुप - क्या... (विश्व की कलर भींच कर) आई हेट यु...
विश्व - (अपने हाथ रुप की पीठ पर लेकर अपने ऊपर झुकाते हुए) बट आई लव यु...

रुप के गाल लाल हो जाते हैं l चेहरे पर आती खुशी को छुपाते हुए रूठने के अंदाज में मुहँ को मोड़ विश्व के पेट से उतर कर पीठ करते हुए बैठ जाती है l विश्व उठ कर बैठते हुए

विश्व - क्या हुआ...
रुप - कब से आए हो... एक बार भी मिलने की अपने तरफ़ से कोशिश नहीं की... हूँह्..
विश्व - क्या इसलिए मुझे घर से किडनैप कर ले आईं...
रुप - किडनैप कहाँ... माँ और पापाजी से इजाजत लेकर तुम्हें लाई हूँ... (विश्व की तरफ मुहँ कर) और तुम हो के... मुझे सताये जा रहे हो...
विश्व - अरे कहाँ सता रहा हूँ... (अपना नाक रुप की नाक से लड़ाते हुए) मैं तो अपनी नकचढ़ी के नाक पर गुस्सा देखना चाहता था...
रुप - आह हा हा... बहुत बातेँ बनाने लगे हो... लोग कहते हैं... मेरा गुस्सा बहुत खराब है...
विश्व - वह लोग ही खराब हैं... साले अंधे हैं... आपकी गुस्से वाली चेहरा तो सबसे सुंदर है... इतना सुंदर की बस... देखते हुए खो जाने को मन करता है... (रुप अपना चेहरा घुमा कर अपनी हँसी को छुपाने की कोशिश करती है) अच्छा आपने बताया नहीं... मुझे किडनैप करके इतनी दुर क्यूँ लाई हैं...
रुप - ओह गॉड... यु बुद्धू... यु डफर... तुमसे अकेले में मिलना चाहती थी... तुमसे ढेर सारी बातेँ करना चाहती थी... जब से आए हो... भैया के लिए लगे हो... उनके उलझन में उलझे हुए हो... जब सारे प्रॉब्लम सॉल्व हो गए... तब तो तुम्हें मुझसे मिलना चाहिए था... उसकी भी जहमत नहीं उठाई तुमने... जहमत तो छोड़ो... एक फोन नहीं तो एक मेसेज भी कर सकते थे... पर नहीं... तो क्या करती... इसलिए... तुम्हें मैं यहाँ लेकर आई हूँ... समझे... (विश्व मुहँ फाड़े एक टक रुप को देखे जा रहा था) अब ऐसे उल्लू की तरह आँखे फाड़ फाड़ कर क्या देख रहे हो...
विश्व - नहीं.. मैं यह देख कर सोच रहा था...
रुप - क्या...
विश्व - यही के... इतना कंप्लैन... आप बोल गईं... वह भी बिना रुके... साँस कब ले रही हैं... यह सोच रहा था... (हँस देता है)
रुप - (चिल्लाती है) आह... (फिर से विश्व के सीने पर मारने लगती है, विश्व हँसते हँसते नीचे लेट जाता है रुप उसके सीने पर सिर रख कर लेट जाती है, विश्व रुप की बालों पर हाथ फेरने लगता है) मुझे तंग करने में... तुम्हें अच्छा लगता है...
विश्व - नहीं... पर राजगड़ जाने से पहले... इन प्यारे लम्हों को... दिल में संजो का ले जाना चाहता हूँ... (एक पॉज लेकर) आपको बुरा लग रहा है...
रुप - (अपना चेहरा उठाकर ठुड्डी को विश्व की सीने पर रख कर अपनी नाक और होंठ सिकुड़ कर सिर हिला कर ना कहती है)
विश्व - (थोड़ा मुस्कराता है) अच्छा अब बताइए...
रुप - क्या...
विश्व - कुछ तो खास बात होगी... हम किसी मॉल में जा सकते थे... किसी पार्क में... या किसी रेस्तरां में भी जा सकते थे... इतनी दूर... यहाँ..
रुप - (तुनक कर बैठ जाती है) कहाँ... कैसे... जहाँ तन्हाई चाहिए... वहीँ ज्यादा भीड़ दिखती है... पार्क देखो... नदी किनारा देखो... समंदर का किनारा देखो... रेस्तरां देखो... हूँह्ह... भीड़ कितना होता है वहाँ... दिल की बात करने के लिए भी चिल्ला चिल्ला कर बात करना पड़ेगा...
विश्व - (उठ कर बैठते हुए) ओ... तो दिल की बात करने के लिए... इतनी दूर तन्हाई में आए हैं... ह्म्म्म्म...
रुप - और नहीं तो... (देखो ना कितनी तन्हाई है... इतनी तन्हाई की जुबां खामोश भी रहे तो भी बातेँ कानों तक पहुँच ही जाए...
विश्व - वाव... क्या बात है.. लफ्जों में... इतनी गहराई...
रुप - तुम मुझे छेड़ रहे हो...
विश्व - मेरी इतनी हिम्मत और औकात कहाँ...

रुप वहाँ से उठ जाती है और विश्व से थोड़ी दुर पेड़ के नीचे विश्व की ओर पीठ कर खड़ी हो जाती है l विश्व अपनी जगह से उठता है, रुप के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखता है, रूप विश्व की ओर घुमती है और विश्व के सीने से लग जाती है l विश्व को एहसास होता है कि रुप की आँखे बह रही थीं l

विश्व - क्या हुआ राजकुमारी जी... आपके आँखों में आँसू क्यूँ है...
रुप - अनाम... पता नहीं क्यूँ... पर कल से मुझे डर सा लग रहा है...
विश्व - डर... क्यूँ...
रुप - तुमने देखा ना... वीर भैया और अनु भाभी जी के साथ क्या हुआ...
विश्व - आखिर में दोनों मिल भी गए ना...
रुप - हाँ... पर हमारे प्यार का क्या अंजाम होगा...

विश्व रुप को खुद से अलग करता है l उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर दोनों अंगूठे से रुप की आँसू पोछता है l

विश्व - क्या हुआ... मुझे पूरी बात बताइए...
रुप - (अपना चेहरे से विश्व की हाथ को हटाती है और पेड़ पर पीठ लगा कर खड़ी हो जाती है) कल की बात तो तुम माँ से जान ही चुके होगे... हमने वीर भैया और अनु भाभी को... पैराडाइज में छोड़ कर आ गए... फिर मैं कॉलेज गई... वहाँ पर मेरे दोस्त मेरा इंतजार कर रहे थे... उनसे मिली तो पता चला... तब्बसुम ने नज्म ए शब जीत चुकी थी... मुझे इतने दिनों बाद देख कर सभी खुश बहुत हुए... फिर पार्टी हुई... बहुत से दोस्त शामिल हुए... एक बात की खुशी थी... वीर भैया की इमेज एक ज़माने में बहुत खराब था... पर अनु भाभी के लिए जिस तरह से सबसे भीड़ गए... वह हमारे कॉलेज के यूथ के हीरो बन गए हैं... (रुप चुप हो जाती है)
विश्व - फिर डर कैसा....किस बात का...
रुप - जब पार्टी में मालुम हुआ... नज्म ए शब के अवार्ड्स को स्पंसर किसने किया था मालुम हुआ...
विश्व - (रुप को देखे जा रहा था)
रुप - निर्मल सामल....
विश्व - तो इसमे प्रॉब्लम क्या है...
रुप - (मुस्कराती है) जब निर्मल सामल का नाम आया... तब मैं कड़ी से कड़ी जोड़ने लगी... और मुझे पूरा खेल तभी समझ में आ गया....
विश्व - कौनसा खेल...
रुप - केके का क्षेत्रपाल से टूटना... निर्मल सामल का क्षेत्रपाल से जुड़ना... निर्मल सामल की बेटी सस्मीता से... वीर भैया का मंगनी की कोशिश... और इन सब के बीच... तब्बसुम का कॉलेज ना आना... तुम्हारा उन्हें ढूंढना... अंकल को राजी करना... उसके बाद यह शब ए नज्म का कंपटीशन... जिसमें तब्बसुम का जितना...
विश्व - इन सब में खेल कहाँ है...
रुप - बताती हूँ... तब्बसुम खुद साटीशफाय नहीं है... अपनी परफॉर्म से... फिर भी उसे अवार्ड मिला... सब मिला कर कुल पैंतालीस लाख का... (चुप हो जाती है)
विश्व - रुक क्यूँ गईं... आगे बोलिए...
रुप - अंकल रिश्वत नहीं लेते... निर्मल सामल की स्पंसरशीप.. सन साइन प्रोजेक्ट में एक प्लॉट और सिंगापुर आने जाने की फॅमिली टिकेट... इनडायरेक्ट रिश्वत... वह भी कंपटीशन के नाम पर...
विश्व - (मुस्कराता है) वाव... क्या बात है... तो इंसब में आप को क्या दुख पहुँचा मेरी नकचढ़ी राजकुमारी...
रुप - अनाम... दुश्मनी कितनी खुल्लमखुल्ला होने लगी है तुम्हारी... हमारे प्यार का अंजाम... दुखद हो तो चलेगा... पर अगर भयानक होगा...
विश्व - वैसे भी हमारी प्यार की राह आसान कब थी... आप राजकुमारी और मैं गुलाम अनाम...
रुप - डर रही हूँ... कहीं तुम पर कोई आँच ना आए...
विश्व - आँच तब आएगा जब.. राजा साहब तक खबर जाएगी...
रुप - पर जाएगी तो एक ना एक दिन ही...
विश्व - क्या उस दिन की सोच कर डर रही हैं...
रुप - नहीं सिर्फ वही एक वज़ह नहीं है...
विश्व - तो बताइए ना... और क्या क्या वज़ह हैं...
रुप - काजमी अंकल और उनके परिवार को कुछ होगा तो नहीं ना...
विश्व - आप ऐसा क्यूँ सोच रही हैं...
रुप - क्यूँ की मैं जानती हूँ... सन साइन प्रोजेक्ट फैल होने वाला है... और इस प्रोजेक्ट के पोषक लोग बहुत ख़तरनाक हैं... क्यूँकी इंडाइरेक्ट ही सही... अंकल तक उन्होंने रिश्वत तो पहुँचाया ही है... और कहीं यह रिवील हो गया के इन सब के पीछे तुम हो तब...
विश्व - नहीं... प्रोजेक्ट फैल होना तय है... और यह कल ही होगा... और आप यकीन रखें... आपकी दोस्त और उनकी परिवार पर कोई खतरा नहीं है.... (एक पॉज लेकर) और...
रुप - और क्या...
विश्व - और कौनसी वज़ह है... जिससे आप डर रहे हैं...
रुप - पता नहीं क्यूँ... कल से मुझे ऐसा लग रहा है... जैसे कोई हादसा मेरा इंतजार कर रही है...
विश्व - ऐसा क्यूँ लग रहा है भला...
रुप - पता नहीं... (बात को बदलते हुए) खैर... कल क्या होने वाला है...
विश्व - कल शाम की न्यूज में पता चल जाएगा आपको...
रुप - (मुहँ बना कर) मुझे नहीं बताओगे...
विश्व - मेरी जितनी भी पर्सनल है... उन सबमें आपका पूरा हक है... पर जो प्रोफेशनल है... उसके लिए आप मुझे कभी धर्म संकट में मत डालिए... मैं प्रोफेशनली जोडार सर से कमिटेड हूँ... तो..
रुप - ठीक है नहीं पूछूंगी...

थोड़ी देर के लिए रुप खामोश हो जाती है और किन्ही ख़यालों में खो जाती है l विश्व रुप की चेहरे को गौर से देखता है और सवाल करता है l

विश्व - राजकुमारी जी...
रुप - ह्म्म्म्म... (चौंक कर) कुछ पुछा तुमने...
विश्व - नहीं... पर आपने बताया नहीं... आपको किस बात का डर है... (रुप अपनी चेहरे को इधर उधर करने लगती है) ऐसा लग रहा है... जैसे आप कंफ्यूज हो..

विश्व रुप की हाथ पकड़ कर फिर से पेड़ की छांव में बिठा कर खुद उसके सामने आलती पालथी लगा कर बैठ जाता है l

विश्व - आप बेफिक्र हो कर कहिये... वादा है... सारी परेशानी आपकी दुर हो जाएगी...
रुप - अनाम... राजा साहब और तुम्हारे बीच की खाई कभी भरेगी नहीं... तो हमारे रिश्ते का भविष्य क्या है...
विश्व - आप क्या चाहतीं हैं... हमारे रिश्ते का भविष्य क्या होना चाहिए...
रुप - मैं नहीं जानती... पर मेरी ख्वाहिश है... मैं तुम्हारे साथ जीना चाहती हूँ... बुढ़ी होना चाहती हूँ... अपनी आँखे आखिरी बार बंद करने से पहले... तुम्हें देखते हुए मरना चाहती हूँ...
विश्व - तो ऐसा ही होगा... अगर आपको इस बात का डर है... के आपको कुछ हो जाएगा या मुझे... तो एक काम कीजिए... राजगड़ चले आइए... मेरे आँखों के सामने ही रहिए... फिर क्षेत्रपाल महल और हमारे प्यार का अंजाम अपनी आँखों से देखिए...
रुप - (मुस्करा देती है) तुम तो बात ऐसे कर रहे हो... जैसे तुमने टाइम फिक्स कर लिया है...
विश्व - हाँ ऐसा ही कुछ...
रुप - अनाम... क्या तुम्हें लगता है... राजा साहब का... सिर्फ तुम्हीं दुश्मन हो...
विश्व - नहीं... मैं जानता हूँ... पूरी दुनिया उनकी दुश्मन है... और हर कोई अपनी अपनी ताक में है...
रुप - इसका मतलब... उस दुश्मनी के चलते कोई मेरे ताक में भी हो सकता है...
विश्व - राजकुमारी जी... अपनी अकड़ और अहंकार के चलते... राजा साहब ने किसी से ना दोस्ती की... ना किसी को दुश्मनी के लायक समझा... पर उनसे खुन्नस रखने वाले हर दुसरे घर में मिल जाएंगे... पर राजा साहब पर वार करने के लिए... उनके कमजोर होने के इंतजार में हैं... तब शायद आप किसी के टार्गेट में आ जाएं... पर यकीन रखिए... आपके इर्दगिर्द हवा भी अपना रुख बदलेगा... तो भी मुझे पता चल जाएगा...
रुप - (तुनक कर खड़ी हो जाती है) क्या... इसका मतलब... तुम मेरी जासूसी करवा रहे हो...
विश्व - (सकपका कर खड़ा हो जाता है) नहीं मेरा यह कहने का मतलब नहीं था..

रुप खिलखिला कर हँसने लगती है l विश्व को उसके चेहरे पर हँसी देख कर एक सुकून सा महसुस होता है l रुप विश्व के सीने से लग जाती है l

रुप - आह... सच में... तुम्हारी बाहों में जब भी आती हूँ.. तब मुझे लगता है... मुझ पर कभी कोई खतरा तो दुर... दुख भी नहीं आ सकता है...
विश्व - कोई शक...

अपना चेहरा उठा कर विश्व की आँखों में देखते हुए सिर हिला कर ना कहती है l

विश्व - अच्छा अब चलें...
रुप - इतनी जल्दी...
विश्व - मुझे कल की तैयारी का जायजा लेना है...
रुप - (अलग हो कर) अच्छा चलो चलते हैं...

विश्व आगे बढ़ने लगता है कि रुप पीछे से उसकी हाथ पकड़ कर रोकती है l विश्व मुड़ कर रुप को देखता है, उसे लगता है जैसे रुप की आँखों में कोई शरारती ख्वाहिश झाँक रही थी l

विश्व - क्या हुआ राजकुमारी जी...
रुप - मेरा पहला किस...
विश्व - (झटका खाते हुए) क्या...
रुप - ओ हो... कितने दिन हो गए प्यार का इजहार हुए... और कितनी शर्म की बात है... एक किस भी नहीं हुआ है...
विश्व - वो... वो..
रुप - (विश्व की हाथ छिटक कर) तुम हो दब्बू के दब्बू... किस भी नहीं होता तुमसे...
विश्व - (खुद को थोड़ा सम्हालते हुए) रा.. राज कु.. कुमारी जी...
आपको किस मिलेगा... पर एक पेच है...
रुप - (बिदक कर) क्या... मेरे साथ टर्म एंड कंडीशन...
विश्व - हाँ...
रुप - (अपनी आँखे और मुहँ सिकुड़ कर) क्या कंडीशन है...
विश्व - आपको जैसे प्यार का इजहार... राजगड़ में चाहिए था... वैसे ही आपको किस भी राजगड़ में मिलेगी...
रुप - व्हाट...
विश्व - (रुप की दोनों हाथों को अपने हाथ में लेते हुए) राजकुमारी... हमारे बीच गुजरे हर एक लम्हा.. हर एक पल यादगार रहा है... हमारा पहला किस भी बहुत ही यादगार होना चाहिए... और होगा भी...
रुप - और तुम चाहते हो... इसके लिए मैं राजगड़ आऊँ...
विश्व - हाँ... जरा सोचिए... पूनम की रात हो... आसमान में चाँद चमक रहा हो... नदी के लहरों में एक नाव हो... उस पर हम दोनों हों... ऐसी चाँदनी में नहाई हुई रात में... हमारा किस हो...
रुप - ओ हैलो... ज्यादा आसमान में मत उड़ो... मैं महल से बाहर... वह भी चाँदनी रात में.. बहती नदी पर लहराती नाव में... जानते हो ना... पिछली बार तुमने क्या कांड किया था...
विश्व - (मुस्कराते हुए) मैं आपको ले जाऊँगा... प्यार में इतनी एडवेंचर तो बनता है... है ना..
रुप - (हैरानी भरे लहजे में) तुम सच में... मुझे ले जाओगे...
विश्व - मुझ पर भरोसा है...
रुप - (शर्मा कर मुस्करा देती है, फिर रुबाब दिखाते हुए) ठीक है... इस बार किस मिस नहीं होनी चाहिए... समझे... हूँह्ह्ह

कह कर रुप आगे बढ़ जाती है पीछे से विश्व मुस्कराते हुए उसके पीछे पीछे गाड़ी की ओर जाने लगता है l


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गौरी - (गल्ले पर बैठे बैठे) पता नहीं यह विशु कब आएगा... आता है तो पूनम की चांद की तरह... और जाता है तो.. गधे के सिर की सिंग की तरह...
वैदेही - (चूल्हे पर कोयला चढ़ा रही थी) ओ हो... मिसाल भी तो ढंग की दिया करो... (गौरी की तरफ़ मुड़ कर) विशु नौकरी भी करता है... इसलिए... काम को तरजीह दे रहा है...
गौरी - हाँ अब क्या करें बोलो... व्यपार भी अब वैसे नहीं रहा... एक्का दुक्का लोग ही आते हैं... विशु जब से गया है.. वह नाशपीटा सीलु भी नहीं आ रहा है... जो बच्चे विशु के मुहँ लगे हुए हैं... बस वही आते हैं... पैसे भी नहीं देते...
वैदेही - ओ हो काकी... पैसे हमारे पास कम है क्या... हमारा गुजारा तो हो ही रहा है ना... वैसे भी मुझे लगता है... विशु एक दो दिन में आने वाला है...

तभी एक गाड़ी की हॉर्न वैदेही के कानों में पड़ती है l वैदेही उस तरफ़ देखती है तो उसके चेहरे का भाव बदल जाता है जैसे नीम के पत्ते जुबान पर आ गए हों l रोणा गाड़ी से उतर कर वैदेही की दुकान के अंदर आता है और एक टेबल लेकर बैठ जाता है l वैदेही को कुछ समझ नहीं आता फिर भी उसके पास जाकर खड़ी होती है l

रोणा - एक गरमागरम स्पेशल मलाई वाली चाय... (वैदेही अपनी भवें सिकुड़ कर रोणा को देखने लगती है) क्या बात है... यहाँ ग्राहक को चाय नहीं पुछा जाता है क्या... इतनी हैरानी से क्या देख रही है...
वैदेही - जब से राजा साहब का हुकुम बजा है... तब से कोई ग्राहक नहीं आया है... इसलिए हैरान हूँ... के... कैसे अपने मालिक की बात काट कर... कोई बंदा मेरे दुकान में आया है...
रोणा - दुकान नहीं होटल बोल... राजगड़ की फाइव स्टार होटल... जहां... करोड़ों रुपये डकार जाने वाला... भूत पूर्व सरपंच आकर खाना पीना करता है... क्यूँ ठीक कहा ना...
वैदेही - (यह सब सुन कर अपनी जबड़े भींच लेती है) लगता है... रात को कुछ अंडशंड खा लिया था... हजम नहीं हुई... इसलिए यहाँ उल्टी करने चला आया...
रोणा - अंडशंड... मेरी खाने की और पीने जो लेवल है ना... वह तुम भाई बहन की सोच की परे है... समझी...
वैदेही - हड्डी चाहे कैसे भी मिले... हड्डी ही होती है... और हड्डी के लिए दुम हिला कर गुलाटी मारने वाला कुत्ता ही होता है...
रोणा - हाँ बस नस्ल शेर वाली होती है... जो अपने शिकार को दबोच कर नोच कर चिथड़े उड़ा उड़ा कर खाता है...
वैदेही - अच्छा... तो तु यहाँ... शिकार करने आया है...
रोणा - ना... आज पेट भरा हुआ है... पर बहुत जल्द भूख लगेगी... उस दिन दौड़ा दौड़ा कर शिकार करूँगा...
वैदेही - तो आज क्या करने आया है...
रोणा - बोला ना... चाय पीने आया हूँ... अच्छा टीप भी दूँगा... बस मलाई जरा ज्यादा डाल कर लाना...
वैदेही - तेरे लेवल की होटल नहीं है.... और तुझे चाय दे कर... तेरा लेवल बढ़ाना नहीं चाहती... इसलिए दफा हो जा यहाँ से...
रोणा - हो जाऊँगा हो जाऊँगा... मुझे कौनसा तेरे साथ घर बसाना है... बस मुझे इतना बता... तेरा वह चोर भाई... आ कब रहा है...
वैदेही - क्यूँ... तेरी अर्थी को कंधा देने वाले कम पड़ने वाले हैं क्या... या तेरे घर में तेरी चिता को आग देने वाला कोई नहीं है...
रोणा - उफ... कितनी धार है तेरी बातों में... कितनी कटीली बातेँ कर रही है... जिगर छलनी हो जाती है फिर भी... तुझे सही सलामत छोड़ रहा हूँ...
वैदेही - कुछ करने की ना तेरी औकात है... ना तेरी हैसियत है...
रोणा - हा हा... हा हा हा हा हा... तु कोर्ट में डाले हुए उस ऐफिडेविट की दम पर उछल रही है... है ना... हा हा हा... मुझे हेड क्वार्टर से ऑर्डर का कापी मिल गया है... पर उसका जवाब भी तैयार कर लिया है... उसकी जवाब दाखिल करने के लिए... मैंने तैयारी शुरू कर दिया है... हा हा हा... मैं यहाँ तुझे आगाह करने आया हूँ... रंगमहल की रंडी... इस इलाके की दायरे से बाहर मत निकल... वर्ना (खड़े हो कर अपनी होलस्टर से रीवॉल्वर निकाल कर वैदेही के सिर पर तान देता है) तेरा एनकाउंटर कर दूँगा... और रिपोर्ट में लिखूँगा... पुरानी खुन्नस के चलते... मुझ पर दरांती लेकर हमला करने की कोशिश की... मैंने आत्मरक्षा के लिए इस दो कौड़ी की रंडी को गोली मार दी... हा हा हा... (वैदेही की देखते हुए) क्या सोचने लगी...
वैदेही - यही के... कुत्ता जब पागल हो जाए... वह कितने दिनों तक जिंदा रह सकता है...
रोणा - हाँ... (एक साइको की तरह हँसते हुए) ठीक कहा तुमने... मैं पागल कुत्ता हूँ... काटुं या चाटुं... दोनों ही सुरत में... तुम दो भाई बहन के लिए खतरा हूँ...

कह कर रोणा वहाँ से निकलता है और जाते जाते दुकान के दरवाजे पर रुक जाता है और मुड़ कर वैदेही की देख कर कहता है l

रोणा - तेरे विश्वा को जो करना था... जितना करना था कर लिया है... अब जो आए उसे बता देना... जब भी सोये आँखे खोल कर सोये... क्यूँकी मैं अब उसकी वकालत की धज्जियाँ उड़ाने वाला हूँ.... (कह कर जाने लगता है फिर बाहर रुक कर) हाँ कह देना... मैं अपनी टांगे फैला कर बैठा रहूँगा... जितनी चाहे उतनी झांटे उखाड़ ले...

कह कर वहाँ से चला जाता है l वैदेही हैरानी भरे नजरों से उसे जाते हुए देख रही थी l उसे होश तब आता है जब उसके कंधे पर एक हाथ को महसुस करती है l पीछे मुड़ती है l

गौरी - यह दरोगा... इस तरह से बात क्यूँ कर रहा था...
वैदेही - सोच तो मैं भी यही रही हूँ... ऐसा क्या उसके हाथ लगा है... जो विशु को सीधी चुनौती देने यहाँ आ गया... और आज वह गुस्सा भी नहीं हुआ....
गौरी - विशु जब आए... तो हमे उसे सावधान करना पड़ेगा...
वैदेही - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) हाँ काकी... लगता है कुछ बड़ा होने वाला है...

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अगले दिन
एक बहुत बड़े मैदान में लोगों का जमावड़ा धीरे धीरे बढ़ रहा है l वह मैदान चारों ओर से शामियाना से घिरा हुआ है l एंट्रेंस पर जोडार सेक्यूरिटी ग्रुप के गार्ड्स तैनात हैं l वह लोगों के एंट्री पास देख कर अंदर छोड़ रहे थे l सन साइन रेजिडेंट सोसाइटी की इनागुराल डे है आज l बड़े बड़े पेपर में इस फंक्शन की जबरदस्त एडवर्टाइजिंग किया गया था l कुछ स्थानीय नेता भी आए हुए थे l निर्मल सामल का सेक्रेटरी एंट्रेंस पर खड़े रह कर सबका स्वागत कर अंदर भेज रहा था l इतने में स्वपन जोडार की गाड़ी पहुँचती है, सेक्रेटरी भागते हुए गाड़ी के पास जाकर डोर खोलता है l जोडार उतरता है l

जोडार - प्रोग्राम शुरु हो गया क्या...
सेक्रेटरी - वेलकम सर... अभी नहीं हुआ है... सामल सर आपकी ही प्रतीक्षा में हैं...
जोडार - क्या... मेरी प्रतीक्षा...
सेक्रेटरी - जी... आइए...

सेक्रेटरी जोडार को बड़े ही आदर के साथ अंदर ले जाता है l अंदर पहुँच कर जोडार देखता है कुछ नेता, जर्नलिस्ट और कुछ मीडिया वाले आए हुए हैं l जोडार को देखते ही निर्मल सामल उसके पास आता है l

सामल - आइए.. आइए... आपका ही इंतजार था...
जोडार - सामल बाबु... आपके सेक्रेटरी ने कहा कि प्रोग्राम शुरु ही नहीं किया है आपने...
सामल - हाँ वह इसलिए कि... आज मेरे प्रोग्राम में... आप ही मुख्य अतिथि हैं...
जोडार - भई इतना मान ना दीजिए... आप हमारे राइवल हैं... और यह प्रोजेक्ट... एक तरह से... मेरी बिजनस में ताला लगाने वाली है..
सामल - ऐसा ना कहिये जोडार बाबु... हम पड़ोसी बनने वाले हैं... और मैं एक अच्छे पड़ोसी की तरह... अपने पड़ोसी का खयाल रखता हूँ... तभी तो... आपकी सेक्यूरिटी संस्थान से सेक्यूरिटी माँगी है...
जोडार - सेक्यूरिटी से याद आया... मुझे बहुत खेद है... आपकी बेटी की सगाई में जो हुआ...
सामल - बुरा तो हुआ... पर इससे जिंदगी ठहर तो नहीं जाएगी... आगे बढ़ना ही जिंदगी है...
जोडार - जी बहुत अच्छी बात कही आपने... चलिए हम भी आगे बढ़ते हैं.... (दोनों पूजा मंडप की ओर चलने लगते हैं) तो... आपकी और क्षेत्रपाल परिवार की दोस्ती टुट गई लगती है...
सामल - नहीं... ऐसी कोई बात नहीं...
जोडार - वेल... बुरा मत मानिएगा... उनकी तरफ कोई दिख नहीं रहा तो... इसलिए...
सामल - हाँ... अगर सगाई हो गई होती... तो राजा साहब.. नहीं तो कम से कम मेयर साहब यहाँ पर होते... पर सगाई टूटने से... उन्हें बहुत ठेस पहुंची है... इसलिए.. उनके तरफ से... (बल्लभ के पास पहुँच कर) यह साहब आए हैं... एडवोकेट बल्लभ प्रधान...
जोडार - ओ... प्रधान बाबु... (बल्लभ से हाथ मिलाते हुए) बड़े नाम सुने हैं आपके... आज दर्शन भी हो गये...
सामल - और जानते हैं जोडार बाबु... इत्तेफाक से... प्रधान बाबु... मेरी कंपनी के भी लीगल एडवाइजर हैं... और यह जो प्लॉट देख रहे हैं... सब इन्हीं की मेहरबानी है...
जोडार - वाव... इंप्रेस्ड... हाइ ली इंप्रेस्ड... कास के आप हमें पहले मिले होते... तो शायद यह प्लॉट मुझे मिल गई होती...

हा हा हा... तीनों एक साथ हँसने लगते हैं l

सामल - आपके पास भी तो कोई लीगल एडवाइजर है...
बल्लभ - हाँ सुना है... बहुत काबिल है...
जोडार - हाँ है तो... पर क्या करें... आप हमें मिले नहीं... और जो मिले आप जैसे निकले नहीं...

यह सुन कर बल्लभ अंदर ही अंदर बहुत खुश हो जाता है, और जोडार से कहता है l

बल्लभ - थैंक्स फॉर कंप्लीमेंट...

तभी पूजा मंडप से पंडित सामल को बुलाता है l तो सामल दोनों से इजाजत लेकर पुजा मंडप पर बैठ जाता है l

बल्लभ - आपको... अपने साथ आपके लीगल एडवाइजर को भी यहाँ ले आते... हम मिल लेते...
जोडार - क्यूँ... बुलावा तो सिर्फ मुझे मिला था... वह भी एक मामुली बिल्डर...
बल्लभ - जोडार साहब... आप कोई मामुली हस्ती नहीं हैं...
जोडार - अरे कहाँ... हस्तियां तो आप लोग हो... जो मेरी बस्ती बसने से पहले उजाड़ने की भरसक कोशिश किए हो...
बल्लभ - नहीं जोडार साहब... असल बात यह है कि... आप सीढियों पर पायदान लांघ कर जा रहे हो... जब कि जाना आपको एक के बाद एक चढ़ कर जाना चाहिए...
जोडार - बिजनस में मुझे हमेशा मौका दिया है... किसीसे मैंने छीना नहीं है...
बल्लभ - हाँ... पर जिसका जमा जमाया हो... उस बाजार में आपको... उनसे पूछकर दुकान खोलनी चाहिए थी... यही आपको थाईसन बिल्डिंग के वक़्त समझाने की कोशिश की गई थी...
जोडार - हाँ पर हुआ क्या... उल्टा मुझे.. कंपनसेशन मिला...
बल्लभ - पर यहाँ ऐसा कुछ नहीं होने वाला...
जोडार - हाँ यहाँ से मुझे कंपनसेशन चाहिए भी नहीं... क्या पता वह जो पूजा मंडप पर पूजा कर रहे हैं... कंपनसेशन उन्हें जरूरत पड़ जाए...

इतना कह कर जोडार चुप हो जाता है मगर बल्लभ हैरान हो कर जोडार की ओर देखने लगता है l

जोडार - क्या हुआ...
बल्लभ - (थोड़ी घबराहट के साथ) कुछ कुछ नहीं... एसक्यूज मी... (कह कर वहाँ से निकल जाता है)

बल्लभ अब गहरी सोच में पड़ जाता है, उसे लगने लगता है जरूर कुछ होने वाला है l उसकी निगाह फंक्शन शामियाना के एंट्रेंस पर चली जाती है, पर उसे सेक्यूरिटी वालों को छोड़ कोई दिख नहीं रहा था l वह पूजा मंडप के पास कैमरा लिए रिपोर्टिंग करते रिपोर्टरों की ओर जाता है l वहाँ पर भी उसे कुछ संदेहजनक दिखता नहीं है l फिर वह अपनी नजरें चुरा कर जोडार की ओर देखता है, जोडार निश्चिंत हो कर पूजा मंडप में जल रहे अग्नि कुंड को देखे जा रहा था l बल्लभ की घबराहट धीरे धीरे बढ़ने लगती है l बल्लभ अपना टाई ढीला करता है, उसका जिस्म अब पसीना पसीना होता जा रहा था l उसका ध्यान तब टूटता है जब शंखनाद होने लगता है l पूजा समाप्त हो गया था l सारे लोग पुष्पांजलि दे रहे थे l उन लोगों में जोडार भी था l उसके दिल को ठंडक तब पहुँचती है जब पंडित घोषणा करता है कि सारे विघ्न और बाधाएँ दूर हो गई हैं l बल्लभ के होंठो पर एक मुस्कान खिल उठता है l आधा दिन ढल चुका था पर अब तक कुछ भी नहीं हुआ था l उसे अब यकीन हो चुका था वह बाजी जीत चुका है l विश्व या जोडार ग्रुप अब कानूनन कोई अड़चन नहीं डाल सकते l बल्लभ एक गहरी साँस लेकर मंडप की ओर देखने लगा l

पंडित - यजमान पूजा का समापन हुआ है... अब आप... (एक कुदाल दे कर) यह कुदाल लेकर ईशान कोण में जमीन को थोड़ा खोद दीजिए... ताकि पहला भीति स्थापना के रुप में... एक ईंट रख दी जाए... जिसकी नींव युगों तक ज़मी रहे...
सामल - जी पंडित जी....

निर्मल सामल कुदाल उठा कर ईशान कोण में पहले से निसान किया हुआ जगह पर पहुँचता है l सभी निमंत्रित मीडिया वाले अपने अपने कैमरा लेकर उस जगह पहुँचते हैं l पंडित वहाँ पहुँच कर जमीन पर मंत्रोच्चारण के साथ फुल डालने लगता है, साथ साथ उसके साथ आए दुसरे पुरोहित घंटा और शंख बजाने लगते हैं l भीति स्थापना के लिए ईंट को हाथ में लिए बल्लभ उत्साह के साथ पंडित से इशारा मिलते ही निर्मल सामल कुदाल उठाता और ताकत के साथ जमीन पर मारता है l
ठंन की आवाज आती है l जैसे कुदाल का मुहँ किसी पत्थर से टकराया हो l सभी थोड़े हैरानी से एक दुसरे को देखने लगते हैं l निर्मल सामल फिर से कुदाल उठा कर गड्ढा खोदने के जमीन पर मारता है l
नतीज़ा वही ठंन की आवाज आती है l

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शाम का समय
जोडार की ऑफिस के दीवार पर लगे बड़ी सी स्क्रीन पर सुबह हुई घटना ब्रेकिंग न्यूज की तरह चल रहा था l

"जैसा कि आप सबको यह ज्ञात था सामल कंस्ट्रक्शन ग्रुप सस्ते दरों पर घर मुहैया करने की बड़ी बड़ी विज्ञापन दिए थे, पुरे राज्य में लोगों को यह लुभावनी स्कीम पर नजर थी l इसी कारण आज सामल ग्रुप के मुखिया के द्वारा भूमि पूजन एवं भीति स्थापना का आयोजन किया गया था l परंतु पुजा समाप्ति के ततपश्चात्य जब भीति स्थापना के लिए जमीन की खुदाई शुरु की गई तो जमीन के भीतर से शिव और शक्ति की बहुत पुरानी मुर्ति निकली, तो स्थानीय लोग और विधायक इसे देबोत्तर जमीन कहने लगे और जल्दी से जल्दी पुरातत्वविद विभाग से जाँच करने की मांग की l लोगों की भावनाओं को देखते हुए सामल ग्रुप के प्रमुख निर्मल सामल मान भी गए l इसलिये अब उस क्षेत्र को सीज कर दिया गया है l अब सामल ग्रुप का बहु चर्चित व अपेक्षित प्रोजेक्ट फ़िलहाल के लिए स्थगित हो गया है l "

अपनी रिमोट से न्यूज को म्यूट कर जोडार टेबल पर रखता है l और हँसते हुए अपनी कुर्सी से उठता है सामने वाली कुर्सी पर बैठे विश्व की ओर देखते हुए टेबल पर रखी शैम्पेन बोतल खोलता है ग्लास में डालते हुए कहता है

जोडार - एक एक जाम हो जाए...
विश्व - नहीं जोडार साहब... मैं शराब नहीं पीता...
जोडार - ओह कॉम ऑन... यह शराब नहीं है... इट इज जस्ट सेलेब्रेशन ड्रिंक...
विश्व - फिर भी नहीं...
जोडार - ओके ओके... भाई वाह... विश्व वाह... एक बात कहूँ... अंतिम समय तक मैं... घबराया हुआ था... मैं यही सोच कर परेशान था कि... तुम शायद अंतिम क्षण में... कोई अदालती आदेश लेकर आओगे और पुजा रोक दोगे... पर... खैर... जानते हो... जब सामल का कुदाल... उस मूर्ति से टकराया... मन में एक आशा जगी... के कुछ तो हुआ है... पर डर भी लगा... कहीं कोई गड़ा मुर्दा ना बाहर निकल आए... हा हा हा... क्या तुम्हें पहले से ही पता था... वह जमीन... देबोत्तर जमीन है...
विश्व - जोडार साहब... वह जमीन देबोत्तर नहीं है...
जोडार - (चौंकते हुए) क्या... फिर... वह... अच्छा अच्छा... समझ गया... यानी वह मुर्ति... तुमने प्लॉट की थी... ओह माय गॉड... पर... दिखने में तो बड़ी पुरानी मुर्ति लग रही थी...
विश्व - अगर वह देबोत्तर जमीन होती... तो काजमी सर बुरे फंस जाते...
जोडार - यु नो वन थिंग... आई वांट टू नो एवरी थिंग... इफ यु डोंट माइंड... क्या तुम मुझे बता सकते हो... यह सब कैसे.. तुमने प्लान किया और कैसे उसी जगह पर मुर्ति को प्लॉट किया... जहां सामल ने कुदाल से खुदाई की...
विश्व - (मुस्कराते हुए अपनी जगह से उठता है) श्योर जोडार सर... (फिर विश्व बोलना शुरु करता है)

आपने मुझे जब लीगल एडवायजर की जॉब ऑफर की... तब से आपकी सारी प्रॉपर्टी और प्रोजेक्ट का खयाल रखना मेरी जिम्मेदारी बन गई थी...
केके का क्षेत्रपाल से टूटना मतलब था... भुवनेश्वर की रियल इस्टेट के बड़े हिस्से से हाथ धोना... उपर से थाईशन ग्रुप की वह लफड़ा... जिसमें क्षेत्रपाल ने भले ही पल्ला झाड़ लिया था... पर जोडार ग्रुप कहीं ना कहीं... उनके दिल को चुभा ज़रूर था... पर उससे भी ज्यादा... जब उनको मालुम हुआ... मैं आपके साथ जुड़ा हुआ हूँ... इसलिए... हम दोनों को हराने के लिए... बस एक छोटी सी चाल चली गई थी...

जोडार - हाँ... जिसकी तुमने भजिया तल दी... यार... मुझे पुरी तरह से क्लैरीफाय करो यार...
विश्व - आप एक्साइटमेंट में बीच में बोलोगे तो मैं कैसे कह सकता हूँ...
जोडार - ओह सॉरी सॉरी... अब मैं चुप रहता हूँ... तुम अपनी बात पुरी करो...


विश्व - पिछली बार मुझे राजकुमारी जी ने बुलाया था... क्यूंकि उनकी दोस्त मिसिंग थी... तब्बसुम... जिनकी वालिद बीडीए यानी भुवनेश्वर डेवलपमेंट अथॉरिटी में सर्वेयर हैं... वह जमीन जिसके लिए... सामल को दिलाने के लिए... मेयर पिनाक सिंह क्षेत्रपाल एड़ी चोटी का जोर लगा रहा था... वह जमीन सरकारी गोचर जमीन थी जिसे... निन्यानवे वर्ष के लिए लीज पर तिकड़म... हर एक डिपार्टमेंट में चल रही थी... जिसकी सारी लीगल फॉर्मलिटी... बल्लभ प्रधान कर चुका था... पर काजमी सर रोड़ा बन गए... क्यूँकी... सरकारी मूल्य से भी... बहुत कम कीमत पर... जमीन को डीसबर्स करना... उनकी जमीर को गवारा नहीं हुआ... पर अपनी ही डिपार्टमेंट में... सिस्टम के खिलाफ़ लड़ने से बेहतर... वह खुद को छुपाना ही बेहतर ऑप्शन समझे... पर इससे... उनकी जान पर बन सकती थी... इसलिए मैंने आपकी मदत से... उन्हें खुर्दा में ढूँढा... उनसे सारी जानकारी इकट्ठा की... उस जमीन के बगल में... जो तीन एकड जमीन है... वही असल में... देबोत्तर है... यानी... भगवान भुवनेश्वर श्री लिंगराज जी की जमीन... वहाँ पर कभी आवाजाही हुआ करती थी... क्यूंकि उस जमीन पर एक पंथशाला हुआ करता था अपनी पाकशाला के सहित... ब्रिटिश डोमिनेंस में आने के बाद उसे तोड़ दिया गया था... क्यूँकी वह पंथशाला... पाइका विद्रोह के समय एक प्रमुख सेफ हाउस बन गया था... खैर... मैंने उनसे सर्वे रिपोर्ट में... बस इतना लिखने को बोला... ब्रिटिश रेकार्ड के अनुसार सरकारी जमीन है... पर चूंकि देबोत्तर जमीन के पास है... इसलिए एक अनुमती पुरातत्व विभाग से भी लिया जाए... यह बात... बल्लभ प्रधान के लिए कोई मुश्किल भरा काम नहीं था... और बदले में... उन्हें कोई शक ना हो... इसलिए इंडाईरेक्ट रिश्वत लेने के लिए कहा... तो काजमी साहब ने वही बल्लभ प्रधान से डिमांड किया... बल्लभ ने एक शब् ए नज्म की प्रोग्राम अरेंज किया और... उसी सन साइन सोसाइटी में एक प्लॉट और विदेश जाने आने की टिकेट दिलाया... जो अब उन्हें मिलने से रहा...

जोडार - वाव... बहुत बढ़िया... पर... एक बात बताओ... वह मूर्ति कहाँ से मिली... तुमने उसे प्लॉट कैसे और कब किया... और खुदाई उसी जगह कैसे कारवाई...

विश्व - (थोड़ा गम्भीर हो कर) जोडार सर... आप शायद नहीं जानते... करीब सत्तर साल हो गये हैं... राजगड़ में मंदिर अभी भी बंद है... कोई पूजा नहीं होती... यहाँ तक... नदी के घाट पर भी... मूर्तियाँ पड़े हुए हैं... पर क्षेत्रपाल के डर से... कोई पूजा नहीं होती... जिस दिन मैंने काजमी सर से बात की... उसी दिन अपने दोस्त सीलु से... घाट पर पड़े शिव शक्ति की मूर्ति लाने के लिए कह दिया था... जैसे ही वह पहुँचा... लल्लन की मदत से... उस जमीन की उस जगह पर से... छह इंच मोती पाँच बाई पाँच घास वाली मिट्टी की परत निकाल कर... वह मूर्ति जमीन पर गड़वा दिया था... फिर उस पर परत को बिछा दिया था...

जोडार - हम्म... पर उसी जगह पर... तुमने खुदाई कैसे कारवाई..

विश्व - उन पुरोहितों के टीम में सीलु... और जमीन को निर्धारण करने वालों के टीम में मेरे दोस्त जीलु और मिलु थे... (जोडार की आँखे हैरानी के मारे फैल जाती हैं) हाँ जोडार सर.... जब मैं मिशन में होता हूँ... तब... मेरे साथ साये की तरह मेरे दोस्त भी साथ होते हैं...

जोडार - ओ... अब मुझे पुरी बात समझ में आ गई... पर... (पूछते पूछते रुक जाता है)
विश्व - आप फिक्र ना करें... अब जमीन फिर से सर्वे के लिए... आर्कियोलाजी विभाग के हाथ चली गई है... उनसे क्लियरेंस मिलते मिलते साल भर लग जाएगा... इतने में सामल की सब्र जवाब दे चुका होगा... इतनी बड़े प्रोजेक्ट के लिए... उसे कोई इन्वेस्टर भी नहीं मिलेगा... और तब तक... आपके सोसायटी के सारे घर बिक चुके होंगे...
जोडार - ओह... थैंक यु... यार.. तुमने मुझे बर्बाद होने से बचा लिया... अब आगे क्या करोगे...
विश्व - आज ही राजगड़ रवाना हो जाऊँगा...
जोडार - अरे इतनी जल्दी...
विश्व - हाँ जोडार सर... कोई है... जो तेजी से भागे जा रहा है... मुझे वहाँ पहुँच कर उसके राह के सारे अड़चन दुर करना है... ताकि वह अपनी अंजाम तक जल्द से जल्द पहुँच सके...

तो तय रहा - रोणा का मरना निश्चित है।
जब लौ बुझने वाली होती है, तो फड़फड़ाती बहुत है - वही हाल रोणा का भी है।

विश्व-रूप के बीच के संवाद अच्छे हैं - लेकिन इतने ज़ब्त किए हुए प्रेमी पहली बार देखे भाई!
शरीफ़ हैं कत्तई! :)

बल्लभ को भी चोट लग गई - वो बहुत हेकड़ी में था।
वहीं भैरव की बातों से साफ़ ज़ाहिर है कि वो किसी भी हद तक नीचे जा सकता है।

अब सबसे ज़रूरी बात - आप कैसे हैं? घर में सब कैसे हैं?
अपना ख़याल रखें। स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें। कहानी तो हमेशा की ही तरह A1 है! :)
 

Sidd19

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👉एक सौ अड़तीसवाँ अपडेट
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एक कमरे में अंधेरा पसरा हुआ था l एक कोने में रीडिंग टेबल पर टेबल लैम्प जल रहा था और टेबल पर बहुत से किताबें बिखरे पड़े हुए थे l पास ही एक शख्स नाइट शूट में चेयर की हेड रेस्ट सिर टिका कर पर छत की ओर देखते हुए आँखे मूँद कर लेटा हुआ था l टेबल पर मोबाइल फोन अचानक से बज उठता है l वह शख्स चौंक कर नींद से जाग जाता है l मोबाइल को हाथ में लेकर देखता है, स्क्रीन पर दरोगा लिखा हुआ था l फोन को कान से लगा कर

- हैलो...
रोणा - हैलो नहीं हिलो... क्यूँ बे साले... काले कोट वाले... सुबह नहीं हुई है क्या भुवनेश्वर में...(यह शख्स कोई और नहीं बल्लभ था)
बल्लभ - ओह दरोगा... क्या हुआ... बड़ा ताजा ताजा लग रहा है....
रोणा - हाँ... हूँ तो... क्यूँकी अभी अभी अपना हाथ का अंतिम बार उपयोग किया है...
बल्लभ - क्या मतलब...
रोणा - अबे ढक्कन... मूठ मारी है... वह भी आखिरी बार... उस नंदिनी के नाम...
बल्लभ - साले हरामी... इतना कुछ होने के बाद भी... तु अभी भी... उसीके बारे में सोच रहा है...
रोणा - हाँ... क्यूँकी वह तब तक सेफ है... जब तक विश्वा भुवनेश्वर में है... (बल्लभ कुछ ज़वाब नहीं देता) क्या हुआ... क्या सोचने लगा...
बल्लभ - पता नहीं क्यूँ पर... मैं अभी अभी उस लड़की के बारे में कुछ याद कर रहा था...
रोणा - अच्छा... कोई खास बात...
बल्लभ - मैंने शायद उस लड़की को... राजकुमार की अंगेजमेंट पार्टी में देखा है...
रोणा - (यह सुनते ही रोणा की माथे पर बल पड़ जाता है) अच्छा... कहीं तु मेरा मजा तो नहीं ले रहा...
बल्लभ - नहीं... पता नहीं... मैंने ध्यान नहीं दिया था... पर अब जब तुने उस लड़की की बात छेड़ी है... तो ऐसा लग रहा है... शायद उस पार्टी में.. मैंने उस लड़की को देखा है...
रोणा - ह्म्म्म्म... तो... तो क्या हुआ...
बल्लभ - मतलब... वह लड़की राजा साहब की पहचान में हो सकती है...
रोणा - या फिर... सामल साहब की भी हो सकती है....
बल्लभ - हाँ... शायद... अच्छा बोल फोन किसलिए किया...
रोणा - अरे बोला ना... आज आखिरी बार मूठ मारा है...
बल्लभ - क्यूँ... हिमालय जाना चाहता है क्या...
रोणा - अबे नहीं... मुझे एक ज़िम्मेदारी मिली है...
बल्लभ - कैसी जिम्मेदारी...
रोणा - विश्वा को ठिकाने लगाने की...
बल्लभ - अच्छा...
रोणा - हाँ तुने ही कहा था ना... मुझे तेरे दिमाग का इस्तेमाल करना चाहिए...
बल्लभ - हाँ तो इंतजार कर...
रोणा - ना.... मुझे पता है... कल तेरा मुहँ काला होने वाला है... और परसों तु अपना काला मुहँ लेकर राजगड़ आने वाला है...
बल्लभ - (अपनी भवें सिकुड़ कर) क्या यह बात... तुझे राजा साहब ने कहा है...
रोणा - हाँ यह उनकी भविष्यवाणी है...
बल्लभ - पहली बार... राजा साहब को... अपने दुश्मन पर भरोसा हो गया है...
रोणा - हाँ...
बल्लभ - इसका मतलब यह हुआ... के हम नाकारे हो गए हैं... तुझे क्या लगता है... विश्वा मुझ पर भारी पड़ेगा...
रोणा - वकील... राजा साहब ने शायद विश्वा की दिमाग पढ़ लिया है... तुझे क्या लगता है...
बल्लभ - अगर तेरी बात सही है... तो मैं भी देखना चाहूँगा... कल भूमि पूजन को विश्वा कौनसी दाव लगा कर रोकता है... कानून की किताब में ऐसा कौनसा दाव है जो मुझसे छूट गया है...
रोणा - एक बात तो है... विश्वा मुझे मेरी समझ पर मात दे चुका है... अगर उसने तेरी समझ को मात दे दी...
बल्लभ - तो समझ ले... रुप फाउंडेशन केस में... हम सब फंसने वाले हैं... क्यूँकी विश्वा ने... आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक... हाई कोर्ट में पीआईएल दाखिल कर दी है....
रोणा - इसीलिए तो मुझे जिम्मेदारी मिली है... चल तु आजा... मिलकर उसकी माँ बहन करते हैं...
बल्लभ - कल रात से... मैं सन साईन प्रोजेक्ट की हर पहलू को... कानूनी तर्ज़ पर तौल रहा हूँ... मुझे कहीं से भी... कोई लूप होल्स नहीं दिख रहा... फिर भी राजा साहब को लगता है... विश्वा मुझे मात दे जाएगा... (रोणा चुप रहता है) मैंने बीडीए के उस अधिकारी काजमी को... उसके मुताबिक इंडाइरेक्ट रिश्वत मुहैया कराया है... जिसके वज़ह से... उससे मैंने मन माफिक सर्वे रिपोर्ट हासिल किया... उसके बाद ही... प्लॉट रजिस्ट्रेशन और प्रोजेक्ट बीडीए से अप्रूवल लिया है... इतना कुछ होने के बाद भी... राजा साहब को लगता है... विश्वा मुझे मात दे सकता है...
रोणा - हाँ लगता तो यही है.... तभी तो... सात साल पहले की गलती को सुधारने की... मतलब कंप्लीट एलीमिनेशन... अब पुरी जिम्मेदारी मुझे सौंपी है...
बल्लभ - कैसी गलती...
रोणा - विश्वा को जिंदा छोड़ने की गलती...
बल्लभ - तो तु क्या विश्वा को मार देगा...
रोणा - अब काम मिल गया है... काम का दाम भी मिला है... काम पुरा हो जाने पर.... इनाम की ग्यारंटी मिली है...
बल्लभ - मुझे यकीन नहीं हो रहा है...
रोणा - क्यूँ... क्यूँ नहीं हो रहा है...
बल्लभ - इसलिए कि... विश्वा वह सात साल पहले वाला विश्वा नहीं रहा.... पहली बात अब वह वकील है... दुसरी बात... वह आरटीआई एक्टिविस्ट है... तीसरी बात... उसका ओड़िशा हाइकोर्ट में लाइफ थ्रेट ऐफिडेविट दाखिल है... इसलिए उसका बाल भी बाँका हुआ तो...
रोणा - जानता हूँ... तभी तो बोल रहा हूँ... भुवनेश्वर का काम को छोड़... जल्दी मेरे पास आजा... मिलकर विश्वा की कानूनी इलाज करेंगे...
बल्लभ - कानूनी....
रोणा - हाँ... याद है... खूब जमेगा रंग... जब मिल बैठेंगे कमीने तीन... एक तु.. एक मैं और
बल्लभ - तीसरा कौन...
रोणा - अबे शराब... वह भी कमीनी नंदिनी की कबाब घोल के...
बल्लभ - तेरे सिर से उस लड़की का भूत उतरा नहीं है अभी तक...
रोणा - भूत नहीं नशा... और नशा हमेशा सिर चढ़कर ही बोलता है... बोल कब आ रहा है...
बल्लभ - भले ही राजा साहब को लग रहा है... यह बाजी मेरी हारी हुई है... फिर भी अपनी उस बाजी की हार की गवाह मुझे बनना है... विश्वा मुझे कैसे मात दे पाता है... मुझे देखना है...


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भीमा रंग महल के एक कमरे के आगे आकर खड़ा होता है l दरवाजे पर हल्का सा दस्तक देता है l अंदर से भैरव सिंह की आवाज़ गूंजती है l

भैरव सिंह - कौन... भीमा
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - अंदर आ जाओ...

भीमा दरवाजे को धकेल कर अंदर आता है l देखता है भैरव सिंह शिकारी के लिबास में एक काँच की अलमारी के सामने खड़ा है l उस अलमारी में एक मूठ विहीन तलवार है, ठीक उसके नीचे एक शिकार करने वाला पुरानी दो नाली वाली पुराने ज़माने की टेलीस्कोप बंदूक है l शायद भैरव सिंह शिकार करने के लिए तैयार हो चुका है l भैरव सिंह भीमा को देख कर पूछता है l

भैरव सिंह - कहो भीमा... क्या जानने आए हो...
भीमा - हुकुम... कल आपने जो काम दरोगा को सौंपा है... वह काम... (झिझकते हुए) हम में से... कोई भी कर सकता है...
भैरव सिंह - हा हा हा.. (हँसने लगता है) भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - चलो गाड़ी निकालो... आज हम शिकार करने जंगल की ओर जाएंगे... आज शिकार किया हुआ गोश्त ही खाएंगे...
भीमा - जी हुकुम...

कह कर भीमा बाहर की ओर भागता है l भैरव सिंह अलमारी के दीवार पर टंगे हुए वही पुराने ज़माने की टेलीस्कोपीक हंटर राइफल निकालता है l एक दुसरे अलमारी के पास जाकर कारतूस वाली एक बेल्ट निकालता है l जब तक वह रंग महल की सीडियां उतरने लगता है, भीमा गाड़ी लेकर उसके सामने पहुंच जाता है l भैरव सिंह गाड़ी में बैठते ही भीमा गाड़ी को राजगड़ से दूर ले जाने लगता है l गाड़ी दौड़ी जा रही थी l बीच बीच में भीमा भैरव सिंह की ओर देख रहा था, भैरव सिंह के चेहरे पर एक आत्मविश्वास भरा मुस्कान था l करीब एक घंटे के ड्राइव के बाद राजगड़ की जंगल में पहुँचते हैं l भीमा गाड़ी रोक देता है l

भैरव सिंह - गाड़ी जितना भीतर तक जा सकती है... लिए चलो...
भीमा - जी... जी हुकुम...

भीमा गाड़ी को घनी जंगल में ले जाता है और एक जगह गाड़ी की आगे बढ़ने के लिए कोई रास्ता नहीं मिलता तो भैरव सिंह गाड़ी से उतर कर पैदल ही आगे बढ़ने लगता है और भीमा भी उसके पीछे पीछे चल देता है l दोनों कुछ देर के बाद एक नदी की पठार तक आते हैं l भैरव सिंह एक पेड़ के नीचे जगह बना कर बैठ जाता है l भीमा उसके पीछे खड़ा रहता है l

भैरव सिंह - हाँ तो भीमा.. कुछ पुछ रहे थे...
भीमा - जी हुकुम... वह...
भैरव सिंह - बस... यही ना... विश्वा को मारने के लिए... दरोगा को क्यूँ चुना...
भीमा - जी... जी हुकुम...
भैरव सिंह - (लहजे में कड़क पन छा जाता है) भीमा... विश्वा ने तेरे आदमियों की क्या गत बनाया है... क्या यह बताना जरूरी है...
भीमा - हुकुम गुस्ताखी माफ़... पर बात अगर जान से मारने की है तो... मारने के कई तरीके हो सकते हैं...
भैरव सिंह - हाँ... हो सकते हैं... वैसे कहीं तुम्हें भी रंग महल की ख्वाहिश तो नहीं...
भीमा - (हड़बड़ा कर) नहीं नहीं हुकुम नहीं... पुरखों से हम आपको सेवा दे रहे हैं... आपका हुकुम ही हमारे लिए पत्थर की लकीर है.... हम उसे लांघने की हिम्मत कभी कर ही नहीं सकते... आखिर हम सब आपके नमक ख्वार हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... चलो हम गहरी बात तुमको बताते हैं... आखिर तुम हमारे नमक ख्वार जो हो...

इतना कह कर भैरव सिंह अपनी बंदूक की नाल खोलता है और उसके खोल में एक कारतूस भरता है l फिर नाल को लॉक करने के बाद एक साइलेंसर लगाता है और फिर अपनी बैठी हुई जगह पर खड़ा होता है और भीमा की ओर देख कर कहता है

भैरव सिंह - भीमा हम कोई आम खानदान में जन्मे नहीं हैं... हम खास हैं... एक खास खानदान में जन्में हैं... हम पैदाइशी क्षेत्रपाल हैं... हम ने ता उम्र किसीको अपने बराबर समझा ही नहीं... इसलिए ना तो हमने किसी से दोस्ती की... ना ही किसी से दुश्मनी... क्यूँकी दोस्त हो या दुश्मन... दोनों हमारे बराबर खड़े हो जाएंगे... विश्वा जैसे लोग... जो हमारे ही टुकड़ों पर पला बढ़ा... हमसे नजरें मिलाकर बात करने की जुर्रत कर रहा है... दोस्त नहीं है वह हमारा... और विश्वा जैसे दुश्मन हमें गवारा नहीं... हम नहीं चाहते... लोग यह जानें... यह समझें... कोई है जो राजा साहब के बराबर खड़ा हुआ है... इसलिए हमने दरोगा को चुना है.... (थोड़ी देर के लिए भैरव सिंह चुप हो कर भीमा की ओर देखता है, भीमा उसे आंखें बड़ी कर टुकुर टुकुर देखे जा रहा था) दरोगा का और विश्वा का छत्तीस का आँकड़ा है... दरोगा विश्वा से इतनी बार मात खाया हुआ है कि... विश्वा के लिए खुन्नस पाले हुआ है... इससे पहले कि विश्वा हम तक पहुँचे... हमने उसकी राह में... दरोगा को खड़ा कर दिया... दरोगा है बैल बुद्धि... अपने खुन्नस और लालच के चलते वह किसी भी हद तक जाएगा... और विश्वा से दुश्मनी ले लेगा...
भीमा - ओह... दरोगा विश्वा पर हावी हुआ तो ठीक... पर अगर विश्वा दरोगा पर भारी पड़ा... तब..
भैरव सिंह - हमने विश्वा के औकात के बराबर उसका दुश्मन उसके सामने रख दिया है... उनमें से कोई किसी को भी रास्ते से हटाए... बचने वाले को कानूनी सजा होगी... (भीमा की आँखे हैरानी से फैल जाते हैं) जीत विश्वा की हो... तो दरोगा के खुन के इल्ज़ाम में अंदर जाएगा... और अगर दरोगा जीता तो विश्वा के खुन के इल्ज़ाम में अंदर जाएगा... समझा...

अब भीमा का मुहँ खुला रह जाता है l तब तक भैरव सिंह किसी पेड़ पर बैठे एक पंछी पर निशाना लगा कर फायर करता है l जब पंछी खून से लथपथ फडफडा कर भीमा के पास आकर गिरता है तभी भीमा को होश आता है l

भीमा - पर हुकुम... विश्वा को कुछ हुआ तो... वह पुराने केस खुल सकते हैं ना...
भैरव सिंह - हाँ खुल सकता है... हमने भी उसकी तैयारी कर ली है... अगर केस खुला... तो सब दरोगा के सिर जाएगा...
भीमा - (ऐसे चौंकता है जैसे उसे बिजली का झटका जोर से लगा) क्या...
भैरव सिंह - हाँ... (एक कुटिल मुस्कान के साथ कह कर और एक फायर करता है)

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क्या हुआ आज आप कॉलेज नहीं गईं... यह सवाल पूछा विश्व ने रुप से l रुप आज अपनी भाभी की गाड़ी लाई थी विश्व को पीक अप कर कहीं ले जा रही थी l गाड़ी में रुप थोड़ी गम्भीर लग रही थी इसलिए थोड़ी दुर जाने के बाद विश्व ने यह सवाल किया था, पर रुप कोई जवाब दिए वगैर गाड़ी को चलाए जा रही थी l विश्व फिर से सवाल पूछता है

विश्व - कोई परेशानी है...

रुप कोई जवाब नहीं देती, नज़रे रास्ते पर गड़ी हुई थी और गाड़ी चली जा रही थी l रुप से जवाब ना पा कर विश्व फिर से सवाल करता है l

विश्व - कहीं मुझे टपकाने का प्लान तो नहीं है... (रुप विश्व की ओर घूर कर देखती है) ठीक है ठीक है... हम दोनों की जिंदगी बहुत अहम है.... आप रास्ते पर नजर रखिए...

गाड़ी कटक छोड़ कर भुवनेश्वर लांघ चुकी थी l विश्व अब बहुत कन्फ्यूज लग रहा था l उसे लगा शायद कोई बड़ी परेशानी है l रुप गाड़ी को एक मोड़ पर घुमा देती है, एक कच्ची सड़क से होते हुए एक बड़ी सी तालाब के पास रुप गाड़ी को रोक देती है और एक गहरी साँस छोड़ते हुए गाड़ी से उतर कर तालाब के किनारे जाकर खड़ी हो जाती है l विश्व भी गाड़ी से उतरता है और रुप के पास आकर खड़ा होता है l रुप अचानक विश्व के सीने से लग जाती है और अपने दोनों हाथों को विश्व के कमर के इर्द-गिर्द कस लेती है l

विश्व - देखिए... प्लीज.. आप ऐसे मत कीजिए... कोई देख लेगा... तो... मैं किसीको मुहँ दिखाने के.. लायक नहीं रहूँगा...
रुप - (चिढ़ कर) आह... (दो तीन मुक्के विश्व की सीने पर मारती है फिर विश्व की शर्ट को मुट्ठी में कस लेती है)
विश्व - अकेला लड़का जान कर... आप मेरे साथ यह ज्यादती नहीं कर सकती... देखिए मैं चिल्लाउंगा... बचाओ... आह बचाओ...
रुप - (चिढ़ कर विश्व के सीने पर मुक्के बरसाने लगती है) मुझे क्यूँ सता रहे हो...
विश्व - झूट ना बोलिए... सता मैं नहीं आप रही हो...
रुप - क्या कहा... यु... (कह कर विश्व को धक्का देकर धकेलते हुए कुछ पेड़ों के नीचे लाती है और विश्व पर कुद जाती है l विश्व नीचे घास पर पीठ के बल गिर जाता है और उसके पेट के ऊपर रुप बैठ जाती है और दोनों हाथों से विश्व की कलर पकड़ कर) फिर से कहो... कौन किसको सता रहा है...
विश्व - आप...
रुप - क्या... (विश्व की कलर भींच कर) आई हेट यु...
विश्व - (अपने हाथ रुप की पीठ पर लेकर अपने ऊपर झुकाते हुए) बट आई लव यु...

रुप के गाल लाल हो जाते हैं l चेहरे पर आती खुशी को छुपाते हुए रूठने के अंदाज में मुहँ को मोड़ विश्व के पेट से उतर कर पीठ करते हुए बैठ जाती है l विश्व उठ कर बैठते हुए

विश्व - क्या हुआ...
रुप - कब से आए हो... एक बार भी मिलने की अपने तरफ़ से कोशिश नहीं की... हूँह्..
विश्व - क्या इसलिए मुझे घर से किडनैप कर ले आईं...
रुप - किडनैप कहाँ... माँ और पापाजी से इजाजत लेकर तुम्हें लाई हूँ... (विश्व की तरफ मुहँ कर) और तुम हो के... मुझे सताये जा रहे हो...
विश्व - अरे कहाँ सता रहा हूँ... (अपना नाक रुप की नाक से लड़ाते हुए) मैं तो अपनी नकचढ़ी के नाक पर गुस्सा देखना चाहता था...
रुप - आह हा हा... बहुत बातेँ बनाने लगे हो... लोग कहते हैं... मेरा गुस्सा बहुत खराब है...
विश्व - वह लोग ही खराब हैं... साले अंधे हैं... आपकी गुस्से वाली चेहरा तो सबसे सुंदर है... इतना सुंदर की बस... देखते हुए खो जाने को मन करता है... (रुप अपना चेहरा घुमा कर अपनी हँसी को छुपाने की कोशिश करती है) अच्छा आपने बताया नहीं... मुझे किडनैप करके इतनी दुर क्यूँ लाई हैं...
रुप - ओह गॉड... यु बुद्धू... यु डफर... तुमसे अकेले में मिलना चाहती थी... तुमसे ढेर सारी बातेँ करना चाहती थी... जब से आए हो... भैया के लिए लगे हो... उनके उलझन में उलझे हुए हो... जब सारे प्रॉब्लम सॉल्व हो गए... तब तो तुम्हें मुझसे मिलना चाहिए था... उसकी भी जहमत नहीं उठाई तुमने... जहमत तो छोड़ो... एक फोन नहीं तो एक मेसेज भी कर सकते थे... पर नहीं... तो क्या करती... इसलिए... तुम्हें मैं यहाँ लेकर आई हूँ... समझे... (विश्व मुहँ फाड़े एक टक रुप को देखे जा रहा था) अब ऐसे उल्लू की तरह आँखे फाड़ फाड़ कर क्या देख रहे हो...
विश्व - नहीं.. मैं यह देख कर सोच रहा था...
रुप - क्या...
विश्व - यही के... इतना कंप्लैन... आप बोल गईं... वह भी बिना रुके... साँस कब ले रही हैं... यह सोच रहा था... (हँस देता है)
रुप - (चिल्लाती है) आह... (फिर से विश्व के सीने पर मारने लगती है, विश्व हँसते हँसते नीचे लेट जाता है रुप उसके सीने पर सिर रख कर लेट जाती है, विश्व रुप की बालों पर हाथ फेरने लगता है) मुझे तंग करने में... तुम्हें अच्छा लगता है...
विश्व - नहीं... पर राजगड़ जाने से पहले... इन प्यारे लम्हों को... दिल में संजो का ले जाना चाहता हूँ... (एक पॉज लेकर) आपको बुरा लग रहा है...
रुप - (अपना चेहरा उठाकर ठुड्डी को विश्व की सीने पर रख कर अपनी नाक और होंठ सिकुड़ कर सिर हिला कर ना कहती है)
विश्व - (थोड़ा मुस्कराता है) अच्छा अब बताइए...
रुप - क्या...
विश्व - कुछ तो खास बात होगी... हम किसी मॉल में जा सकते थे... किसी पार्क में... या किसी रेस्तरां में भी जा सकते थे... इतनी दूर... यहाँ..
रुप - (तुनक कर बैठ जाती है) कहाँ... कैसे... जहाँ तन्हाई चाहिए... वहीँ ज्यादा भीड़ दिखती है... पार्क देखो... नदी किनारा देखो... समंदर का किनारा देखो... रेस्तरां देखो... हूँह्ह... भीड़ कितना होता है वहाँ... दिल की बात करने के लिए भी चिल्ला चिल्ला कर बात करना पड़ेगा...
विश्व - (उठ कर बैठते हुए) ओ... तो दिल की बात करने के लिए... इतनी दूर तन्हाई में आए हैं... ह्म्म्म्म...
रुप - और नहीं तो... (देखो ना कितनी तन्हाई है... इतनी तन्हाई की जुबां खामोश भी रहे तो भी बातेँ कानों तक पहुँच ही जाए...
विश्व - वाव... क्या बात है.. लफ्जों में... इतनी गहराई...
रुप - तुम मुझे छेड़ रहे हो...
विश्व - मेरी इतनी हिम्मत और औकात कहाँ...

रुप वहाँ से उठ जाती है और विश्व से थोड़ी दुर पेड़ के नीचे विश्व की ओर पीठ कर खड़ी हो जाती है l विश्व अपनी जगह से उठता है, रुप के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखता है, रूप विश्व की ओर घुमती है और विश्व के सीने से लग जाती है l विश्व को एहसास होता है कि रुप की आँखे बह रही थीं l

विश्व - क्या हुआ राजकुमारी जी... आपके आँखों में आँसू क्यूँ है...
रुप - अनाम... पता नहीं क्यूँ... पर कल से मुझे डर सा लग रहा है...
विश्व - डर... क्यूँ...
रुप - तुमने देखा ना... वीर भैया और अनु भाभी जी के साथ क्या हुआ...
विश्व - आखिर में दोनों मिल भी गए ना...
रुप - हाँ... पर हमारे प्यार का क्या अंजाम होगा...

विश्व रुप को खुद से अलग करता है l उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर दोनों अंगूठे से रुप की आँसू पोछता है l

विश्व - क्या हुआ... मुझे पूरी बात बताइए...
रुप - (अपना चेहरे से विश्व की हाथ को हटाती है और पेड़ पर पीठ लगा कर खड़ी हो जाती है) कल की बात तो तुम माँ से जान ही चुके होगे... हमने वीर भैया और अनु भाभी को... पैराडाइज में छोड़ कर आ गए... फिर मैं कॉलेज गई... वहाँ पर मेरे दोस्त मेरा इंतजार कर रहे थे... उनसे मिली तो पता चला... तब्बसुम ने नज्म ए शब जीत चुकी थी... मुझे इतने दिनों बाद देख कर सभी खुश बहुत हुए... फिर पार्टी हुई... बहुत से दोस्त शामिल हुए... एक बात की खुशी थी... वीर भैया की इमेज एक ज़माने में बहुत खराब था... पर अनु भाभी के लिए जिस तरह से सबसे भीड़ गए... वह हमारे कॉलेज के यूथ के हीरो बन गए हैं... (रुप चुप हो जाती है)
विश्व - फिर डर कैसा....किस बात का...
रुप - जब पार्टी में मालुम हुआ... नज्म ए शब के अवार्ड्स को स्पंसर किसने किया था मालुम हुआ...
विश्व - (रुप को देखे जा रहा था)
रुप - निर्मल सामल....
विश्व - तो इसमे प्रॉब्लम क्या है...
रुप - (मुस्कराती है) जब निर्मल सामल का नाम आया... तब मैं कड़ी से कड़ी जोड़ने लगी... और मुझे पूरा खेल तभी समझ में आ गया....
विश्व - कौनसा खेल...
रुप - केके का क्षेत्रपाल से टूटना... निर्मल सामल का क्षेत्रपाल से जुड़ना... निर्मल सामल की बेटी सस्मीता से... वीर भैया का मंगनी की कोशिश... और इन सब के बीच... तब्बसुम का कॉलेज ना आना... तुम्हारा उन्हें ढूंढना... अंकल को राजी करना... उसके बाद यह शब ए नज्म का कंपटीशन... जिसमें तब्बसुम का जितना...
विश्व - इन सब में खेल कहाँ है...
रुप - बताती हूँ... तब्बसुम खुद साटीशफाय नहीं है... अपनी परफॉर्म से... फिर भी उसे अवार्ड मिला... सब मिला कर कुल पैंतालीस लाख का... (चुप हो जाती है)
विश्व - रुक क्यूँ गईं... आगे बोलिए...
रुप - अंकल रिश्वत नहीं लेते... निर्मल सामल की स्पंसरशीप.. सन साइन प्रोजेक्ट में एक प्लॉट और सिंगापुर आने जाने की फॅमिली टिकेट... इनडायरेक्ट रिश्वत... वह भी कंपटीशन के नाम पर...
विश्व - (मुस्कराता है) वाव... क्या बात है... तो इंसब में आप को क्या दुख पहुँचा मेरी नकचढ़ी राजकुमारी...
रुप - अनाम... दुश्मनी कितनी खुल्लमखुल्ला होने लगी है तुम्हारी... हमारे प्यार का अंजाम... दुखद हो तो चलेगा... पर अगर भयानक होगा...
विश्व - वैसे भी हमारी प्यार की राह आसान कब थी... आप राजकुमारी और मैं गुलाम अनाम...
रुप - डर रही हूँ... कहीं तुम पर कोई आँच ना आए...
विश्व - आँच तब आएगा जब.. राजा साहब तक खबर जाएगी...
रुप - पर जाएगी तो एक ना एक दिन ही...
विश्व - क्या उस दिन की सोच कर डर रही हैं...
रुप - नहीं सिर्फ वही एक वज़ह नहीं है...
विश्व - तो बताइए ना... और क्या क्या वज़ह हैं...
रुप - काजमी अंकल और उनके परिवार को कुछ होगा तो नहीं ना...
विश्व - आप ऐसा क्यूँ सोच रही हैं...
रुप - क्यूँ की मैं जानती हूँ... सन साइन प्रोजेक्ट फैल होने वाला है... और इस प्रोजेक्ट के पोषक लोग बहुत ख़तरनाक हैं... क्यूँकी इंडाइरेक्ट ही सही... अंकल तक उन्होंने रिश्वत तो पहुँचाया ही है... और कहीं यह रिवील हो गया के इन सब के पीछे तुम हो तब...
विश्व - नहीं... प्रोजेक्ट फैल होना तय है... और यह कल ही होगा... और आप यकीन रखें... आपकी दोस्त और उनकी परिवार पर कोई खतरा नहीं है.... (एक पॉज लेकर) और...
रुप - और क्या...
विश्व - और कौनसी वज़ह है... जिससे आप डर रहे हैं...
रुप - पता नहीं क्यूँ... कल से मुझे ऐसा लग रहा है... जैसे कोई हादसा मेरा इंतजार कर रही है...
विश्व - ऐसा क्यूँ लग रहा है भला...
रुप - पता नहीं... (बात को बदलते हुए) खैर... कल क्या होने वाला है...
विश्व - कल शाम की न्यूज में पता चल जाएगा आपको...
रुप - (मुहँ बना कर) मुझे नहीं बताओगे...
विश्व - मेरी जितनी भी पर्सनल है... उन सबमें आपका पूरा हक है... पर जो प्रोफेशनल है... उसके लिए आप मुझे कभी धर्म संकट में मत डालिए... मैं प्रोफेशनली जोडार सर से कमिटेड हूँ... तो..
रुप - ठीक है नहीं पूछूंगी...

थोड़ी देर के लिए रुप खामोश हो जाती है और किन्ही ख़यालों में खो जाती है l विश्व रुप की चेहरे को गौर से देखता है और सवाल करता है l

विश्व - राजकुमारी जी...
रुप - ह्म्म्म्म... (चौंक कर) कुछ पुछा तुमने...
विश्व - नहीं... पर आपने बताया नहीं... आपको किस बात का डर है... (रुप अपनी चेहरे को इधर उधर करने लगती है) ऐसा लग रहा है... जैसे आप कंफ्यूज हो..

विश्व रुप की हाथ पकड़ कर फिर से पेड़ की छांव में बिठा कर खुद उसके सामने आलती पालथी लगा कर बैठ जाता है l

विश्व - आप बेफिक्र हो कर कहिये... वादा है... सारी परेशानी आपकी दुर हो जाएगी...
रुप - अनाम... राजा साहब और तुम्हारे बीच की खाई कभी भरेगी नहीं... तो हमारे रिश्ते का भविष्य क्या है...
विश्व - आप क्या चाहतीं हैं... हमारे रिश्ते का भविष्य क्या होना चाहिए...
रुप - मैं नहीं जानती... पर मेरी ख्वाहिश है... मैं तुम्हारे साथ जीना चाहती हूँ... बुढ़ी होना चाहती हूँ... अपनी आँखे आखिरी बार बंद करने से पहले... तुम्हें देखते हुए मरना चाहती हूँ...
विश्व - तो ऐसा ही होगा... अगर आपको इस बात का डर है... के आपको कुछ हो जाएगा या मुझे... तो एक काम कीजिए... राजगड़ चले आइए... मेरे आँखों के सामने ही रहिए... फिर क्षेत्रपाल महल और हमारे प्यार का अंजाम अपनी आँखों से देखिए...
रुप - (मुस्करा देती है) तुम तो बात ऐसे कर रहे हो... जैसे तुमने टाइम फिक्स कर लिया है...
विश्व - हाँ ऐसा ही कुछ...
रुप - अनाम... क्या तुम्हें लगता है... राजा साहब का... सिर्फ तुम्हीं दुश्मन हो...
विश्व - नहीं... मैं जानता हूँ... पूरी दुनिया उनकी दुश्मन है... और हर कोई अपनी अपनी ताक में है...
रुप - इसका मतलब... उस दुश्मनी के चलते कोई मेरे ताक में भी हो सकता है...
विश्व - राजकुमारी जी... अपनी अकड़ और अहंकार के चलते... राजा साहब ने किसी से ना दोस्ती की... ना किसी को दुश्मनी के लायक समझा... पर उनसे खुन्नस रखने वाले हर दुसरे घर में मिल जाएंगे... पर राजा साहब पर वार करने के लिए... उनके कमजोर होने के इंतजार में हैं... तब शायद आप किसी के टार्गेट में आ जाएं... पर यकीन रखिए... आपके इर्दगिर्द हवा भी अपना रुख बदलेगा... तो भी मुझे पता चल जाएगा...
रुप - (तुनक कर खड़ी हो जाती है) क्या... इसका मतलब... तुम मेरी जासूसी करवा रहे हो...
विश्व - (सकपका कर खड़ा हो जाता है) नहीं मेरा यह कहने का मतलब नहीं था..

रुप खिलखिला कर हँसने लगती है l विश्व को उसके चेहरे पर हँसी देख कर एक सुकून सा महसुस होता है l रुप विश्व के सीने से लग जाती है l

रुप - आह... सच में... तुम्हारी बाहों में जब भी आती हूँ.. तब मुझे लगता है... मुझ पर कभी कोई खतरा तो दुर... दुख भी नहीं आ सकता है...
विश्व - कोई शक...

अपना चेहरा उठा कर विश्व की आँखों में देखते हुए सिर हिला कर ना कहती है l

विश्व - अच्छा अब चलें...
रुप - इतनी जल्दी...
विश्व - मुझे कल की तैयारी का जायजा लेना है...
रुप - (अलग हो कर) अच्छा चलो चलते हैं...

विश्व आगे बढ़ने लगता है कि रुप पीछे से उसकी हाथ पकड़ कर रोकती है l विश्व मुड़ कर रुप को देखता है, उसे लगता है जैसे रुप की आँखों में कोई शरारती ख्वाहिश झाँक रही थी l

विश्व - क्या हुआ राजकुमारी जी...
रुप - मेरा पहला किस...
विश्व - (झटका खाते हुए) क्या...
रुप - ओ हो... कितने दिन हो गए प्यार का इजहार हुए... और कितनी शर्म की बात है... एक किस भी नहीं हुआ है...
विश्व - वो... वो..
रुप - (विश्व की हाथ छिटक कर) तुम हो दब्बू के दब्बू... किस भी नहीं होता तुमसे...
विश्व - (खुद को थोड़ा सम्हालते हुए) रा.. राज कु.. कुमारी जी...
आपको किस मिलेगा... पर एक पेच है...
रुप - (बिदक कर) क्या... मेरे साथ टर्म एंड कंडीशन...
विश्व - हाँ...
रुप - (अपनी आँखे और मुहँ सिकुड़ कर) क्या कंडीशन है...
विश्व - आपको जैसे प्यार का इजहार... राजगड़ में चाहिए था... वैसे ही आपको किस भी राजगड़ में मिलेगी...
रुप - व्हाट...
विश्व - (रुप की दोनों हाथों को अपने हाथ में लेते हुए) राजकुमारी... हमारे बीच गुजरे हर एक लम्हा.. हर एक पल यादगार रहा है... हमारा पहला किस भी बहुत ही यादगार होना चाहिए... और होगा भी...
रुप - और तुम चाहते हो... इसके लिए मैं राजगड़ आऊँ...
विश्व - हाँ... जरा सोचिए... पूनम की रात हो... आसमान में चाँद चमक रहा हो... नदी के लहरों में एक नाव हो... उस पर हम दोनों हों... ऐसी चाँदनी में नहाई हुई रात में... हमारा किस हो...
रुप - ओ हैलो... ज्यादा आसमान में मत उड़ो... मैं महल से बाहर... वह भी चाँदनी रात में.. बहती नदी पर लहराती नाव में... जानते हो ना... पिछली बार तुमने क्या कांड किया था...
विश्व - (मुस्कराते हुए) मैं आपको ले जाऊँगा... प्यार में इतनी एडवेंचर तो बनता है... है ना..
रुप - (हैरानी भरे लहजे में) तुम सच में... मुझे ले जाओगे...
विश्व - मुझ पर भरोसा है...
रुप - (शर्मा कर मुस्करा देती है, फिर रुबाब दिखाते हुए) ठीक है... इस बार किस मिस नहीं होनी चाहिए... समझे... हूँह्ह्ह

कह कर रुप आगे बढ़ जाती है पीछे से विश्व मुस्कराते हुए उसके पीछे पीछे गाड़ी की ओर जाने लगता है l


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गौरी - (गल्ले पर बैठे बैठे) पता नहीं यह विशु कब आएगा... आता है तो पूनम की चांद की तरह... और जाता है तो.. गधे के सिर की सिंग की तरह...
वैदेही - (चूल्हे पर कोयला चढ़ा रही थी) ओ हो... मिसाल भी तो ढंग की दिया करो... (गौरी की तरफ़ मुड़ कर) विशु नौकरी भी करता है... इसलिए... काम को तरजीह दे रहा है...
गौरी - हाँ अब क्या करें बोलो... व्यपार भी अब वैसे नहीं रहा... एक्का दुक्का लोग ही आते हैं... विशु जब से गया है.. वह नाशपीटा सीलु भी नहीं आ रहा है... जो बच्चे विशु के मुहँ लगे हुए हैं... बस वही आते हैं... पैसे भी नहीं देते...
वैदेही - ओ हो काकी... पैसे हमारे पास कम है क्या... हमारा गुजारा तो हो ही रहा है ना... वैसे भी मुझे लगता है... विशु एक दो दिन में आने वाला है...

तभी एक गाड़ी की हॉर्न वैदेही के कानों में पड़ती है l वैदेही उस तरफ़ देखती है तो उसके चेहरे का भाव बदल जाता है जैसे नीम के पत्ते जुबान पर आ गए हों l रोणा गाड़ी से उतर कर वैदेही की दुकान के अंदर आता है और एक टेबल लेकर बैठ जाता है l वैदेही को कुछ समझ नहीं आता फिर भी उसके पास जाकर खड़ी होती है l

रोणा - एक गरमागरम स्पेशल मलाई वाली चाय... (वैदेही अपनी भवें सिकुड़ कर रोणा को देखने लगती है) क्या बात है... यहाँ ग्राहक को चाय नहीं पुछा जाता है क्या... इतनी हैरानी से क्या देख रही है...
वैदेही - जब से राजा साहब का हुकुम बजा है... तब से कोई ग्राहक नहीं आया है... इसलिए हैरान हूँ... के... कैसे अपने मालिक की बात काट कर... कोई बंदा मेरे दुकान में आया है...
रोणा - दुकान नहीं होटल बोल... राजगड़ की फाइव स्टार होटल... जहां... करोड़ों रुपये डकार जाने वाला... भूत पूर्व सरपंच आकर खाना पीना करता है... क्यूँ ठीक कहा ना...
वैदेही - (यह सब सुन कर अपनी जबड़े भींच लेती है) लगता है... रात को कुछ अंडशंड खा लिया था... हजम नहीं हुई... इसलिए यहाँ उल्टी करने चला आया...
रोणा - अंडशंड... मेरी खाने की और पीने जो लेवल है ना... वह तुम भाई बहन की सोच की परे है... समझी...
वैदेही - हड्डी चाहे कैसे भी मिले... हड्डी ही होती है... और हड्डी के लिए दुम हिला कर गुलाटी मारने वाला कुत्ता ही होता है...
रोणा - हाँ बस नस्ल शेर वाली होती है... जो अपने शिकार को दबोच कर नोच कर चिथड़े उड़ा उड़ा कर खाता है...
वैदेही - अच्छा... तो तु यहाँ... शिकार करने आया है...
रोणा - ना... आज पेट भरा हुआ है... पर बहुत जल्द भूख लगेगी... उस दिन दौड़ा दौड़ा कर शिकार करूँगा...
वैदेही - तो आज क्या करने आया है...
रोणा - बोला ना... चाय पीने आया हूँ... अच्छा टीप भी दूँगा... बस मलाई जरा ज्यादा डाल कर लाना...
वैदेही - तेरे लेवल की होटल नहीं है.... और तुझे चाय दे कर... तेरा लेवल बढ़ाना नहीं चाहती... इसलिए दफा हो जा यहाँ से...
रोणा - हो जाऊँगा हो जाऊँगा... मुझे कौनसा तेरे साथ घर बसाना है... बस मुझे इतना बता... तेरा वह चोर भाई... आ कब रहा है...
वैदेही - क्यूँ... तेरी अर्थी को कंधा देने वाले कम पड़ने वाले हैं क्या... या तेरे घर में तेरी चिता को आग देने वाला कोई नहीं है...
रोणा - उफ... कितनी धार है तेरी बातों में... कितनी कटीली बातेँ कर रही है... जिगर छलनी हो जाती है फिर भी... तुझे सही सलामत छोड़ रहा हूँ...
वैदेही - कुछ करने की ना तेरी औकात है... ना तेरी हैसियत है...
रोणा - हा हा... हा हा हा हा हा... तु कोर्ट में डाले हुए उस ऐफिडेविट की दम पर उछल रही है... है ना... हा हा हा... मुझे हेड क्वार्टर से ऑर्डर का कापी मिल गया है... पर उसका जवाब भी तैयार कर लिया है... उसकी जवाब दाखिल करने के लिए... मैंने तैयारी शुरू कर दिया है... हा हा हा... मैं यहाँ तुझे आगाह करने आया हूँ... रंगमहल की रंडी... इस इलाके की दायरे से बाहर मत निकल... वर्ना (खड़े हो कर अपनी होलस्टर से रीवॉल्वर निकाल कर वैदेही के सिर पर तान देता है) तेरा एनकाउंटर कर दूँगा... और रिपोर्ट में लिखूँगा... पुरानी खुन्नस के चलते... मुझ पर दरांती लेकर हमला करने की कोशिश की... मैंने आत्मरक्षा के लिए इस दो कौड़ी की रंडी को गोली मार दी... हा हा हा... (वैदेही की देखते हुए) क्या सोचने लगी...
वैदेही - यही के... कुत्ता जब पागल हो जाए... वह कितने दिनों तक जिंदा रह सकता है...
रोणा - हाँ... (एक साइको की तरह हँसते हुए) ठीक कहा तुमने... मैं पागल कुत्ता हूँ... काटुं या चाटुं... दोनों ही सुरत में... तुम दो भाई बहन के लिए खतरा हूँ...

कह कर रोणा वहाँ से निकलता है और जाते जाते दुकान के दरवाजे पर रुक जाता है और मुड़ कर वैदेही की देख कर कहता है l

रोणा - तेरे विश्वा को जो करना था... जितना करना था कर लिया है... अब जो आए उसे बता देना... जब भी सोये आँखे खोल कर सोये... क्यूँकी मैं अब उसकी वकालत की धज्जियाँ उड़ाने वाला हूँ.... (कह कर जाने लगता है फिर बाहर रुक कर) हाँ कह देना... मैं अपनी टांगे फैला कर बैठा रहूँगा... जितनी चाहे उतनी झांटे उखाड़ ले...

कह कर वहाँ से चला जाता है l वैदेही हैरानी भरे नजरों से उसे जाते हुए देख रही थी l उसे होश तब आता है जब उसके कंधे पर एक हाथ को महसुस करती है l पीछे मुड़ती है l

गौरी - यह दरोगा... इस तरह से बात क्यूँ कर रहा था...
वैदेही - सोच तो मैं भी यही रही हूँ... ऐसा क्या उसके हाथ लगा है... जो विशु को सीधी चुनौती देने यहाँ आ गया... और आज वह गुस्सा भी नहीं हुआ....
गौरी - विशु जब आए... तो हमे उसे सावधान करना पड़ेगा...
वैदेही - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) हाँ काकी... लगता है कुछ बड़ा होने वाला है...

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अगले दिन
एक बहुत बड़े मैदान में लोगों का जमावड़ा धीरे धीरे बढ़ रहा है l वह मैदान चारों ओर से शामियाना से घिरा हुआ है l एंट्रेंस पर जोडार सेक्यूरिटी ग्रुप के गार्ड्स तैनात हैं l वह लोगों के एंट्री पास देख कर अंदर छोड़ रहे थे l सन साइन रेजिडेंट सोसाइटी की इनागुराल डे है आज l बड़े बड़े पेपर में इस फंक्शन की जबरदस्त एडवर्टाइजिंग किया गया था l कुछ स्थानीय नेता भी आए हुए थे l निर्मल सामल का सेक्रेटरी एंट्रेंस पर खड़े रह कर सबका स्वागत कर अंदर भेज रहा था l इतने में स्वपन जोडार की गाड़ी पहुँचती है, सेक्रेटरी भागते हुए गाड़ी के पास जाकर डोर खोलता है l जोडार उतरता है l

जोडार - प्रोग्राम शुरु हो गया क्या...
सेक्रेटरी - वेलकम सर... अभी नहीं हुआ है... सामल सर आपकी ही प्रतीक्षा में हैं...
जोडार - क्या... मेरी प्रतीक्षा...
सेक्रेटरी - जी... आइए...

सेक्रेटरी जोडार को बड़े ही आदर के साथ अंदर ले जाता है l अंदर पहुँच कर जोडार देखता है कुछ नेता, जर्नलिस्ट और कुछ मीडिया वाले आए हुए हैं l जोडार को देखते ही निर्मल सामल उसके पास आता है l

सामल - आइए.. आइए... आपका ही इंतजार था...
जोडार - सामल बाबु... आपके सेक्रेटरी ने कहा कि प्रोग्राम शुरु ही नहीं किया है आपने...
सामल - हाँ वह इसलिए कि... आज मेरे प्रोग्राम में... आप ही मुख्य अतिथि हैं...
जोडार - भई इतना मान ना दीजिए... आप हमारे राइवल हैं... और यह प्रोजेक्ट... एक तरह से... मेरी बिजनस में ताला लगाने वाली है..
सामल - ऐसा ना कहिये जोडार बाबु... हम पड़ोसी बनने वाले हैं... और मैं एक अच्छे पड़ोसी की तरह... अपने पड़ोसी का खयाल रखता हूँ... तभी तो... आपकी सेक्यूरिटी संस्थान से सेक्यूरिटी माँगी है...
जोडार - सेक्यूरिटी से याद आया... मुझे बहुत खेद है... आपकी बेटी की सगाई में जो हुआ...
सामल - बुरा तो हुआ... पर इससे जिंदगी ठहर तो नहीं जाएगी... आगे बढ़ना ही जिंदगी है...
जोडार - जी बहुत अच्छी बात कही आपने... चलिए हम भी आगे बढ़ते हैं.... (दोनों पूजा मंडप की ओर चलने लगते हैं) तो... आपकी और क्षेत्रपाल परिवार की दोस्ती टुट गई लगती है...
सामल - नहीं... ऐसी कोई बात नहीं...
जोडार - वेल... बुरा मत मानिएगा... उनकी तरफ कोई दिख नहीं रहा तो... इसलिए...
सामल - हाँ... अगर सगाई हो गई होती... तो राजा साहब.. नहीं तो कम से कम मेयर साहब यहाँ पर होते... पर सगाई टूटने से... उन्हें बहुत ठेस पहुंची है... इसलिए.. उनके तरफ से... (बल्लभ के पास पहुँच कर) यह साहब आए हैं... एडवोकेट बल्लभ प्रधान...
जोडार - ओ... प्रधान बाबु... (बल्लभ से हाथ मिलाते हुए) बड़े नाम सुने हैं आपके... आज दर्शन भी हो गये...
सामल - और जानते हैं जोडार बाबु... इत्तेफाक से... प्रधान बाबु... मेरी कंपनी के भी लीगल एडवाइजर हैं... और यह जो प्लॉट देख रहे हैं... सब इन्हीं की मेहरबानी है...
जोडार - वाव... इंप्रेस्ड... हाइ ली इंप्रेस्ड... कास के आप हमें पहले मिले होते... तो शायद यह प्लॉट मुझे मिल गई होती...

हा हा हा... तीनों एक साथ हँसने लगते हैं l

सामल - आपके पास भी तो कोई लीगल एडवाइजर है...
बल्लभ - हाँ सुना है... बहुत काबिल है...
जोडार - हाँ है तो... पर क्या करें... आप हमें मिले नहीं... और जो मिले आप जैसे निकले नहीं...

यह सुन कर बल्लभ अंदर ही अंदर बहुत खुश हो जाता है, और जोडार से कहता है l

बल्लभ - थैंक्स फॉर कंप्लीमेंट...

तभी पूजा मंडप से पंडित सामल को बुलाता है l तो सामल दोनों से इजाजत लेकर पुजा मंडप पर बैठ जाता है l

बल्लभ - आपको... अपने साथ आपके लीगल एडवाइजर को भी यहाँ ले आते... हम मिल लेते...
जोडार - क्यूँ... बुलावा तो सिर्फ मुझे मिला था... वह भी एक मामुली बिल्डर...
बल्लभ - जोडार साहब... आप कोई मामुली हस्ती नहीं हैं...
जोडार - अरे कहाँ... हस्तियां तो आप लोग हो... जो मेरी बस्ती बसने से पहले उजाड़ने की भरसक कोशिश किए हो...
बल्लभ - नहीं जोडार साहब... असल बात यह है कि... आप सीढियों पर पायदान लांघ कर जा रहे हो... जब कि जाना आपको एक के बाद एक चढ़ कर जाना चाहिए...
जोडार - बिजनस में मुझे हमेशा मौका दिया है... किसीसे मैंने छीना नहीं है...
बल्लभ - हाँ... पर जिसका जमा जमाया हो... उस बाजार में आपको... उनसे पूछकर दुकान खोलनी चाहिए थी... यही आपको थाईसन बिल्डिंग के वक़्त समझाने की कोशिश की गई थी...
जोडार - हाँ पर हुआ क्या... उल्टा मुझे.. कंपनसेशन मिला...
बल्लभ - पर यहाँ ऐसा कुछ नहीं होने वाला...
जोडार - हाँ यहाँ से मुझे कंपनसेशन चाहिए भी नहीं... क्या पता वह जो पूजा मंडप पर पूजा कर रहे हैं... कंपनसेशन उन्हें जरूरत पड़ जाए...

इतना कह कर जोडार चुप हो जाता है मगर बल्लभ हैरान हो कर जोडार की ओर देखने लगता है l

जोडार - क्या हुआ...
बल्लभ - (थोड़ी घबराहट के साथ) कुछ कुछ नहीं... एसक्यूज मी... (कह कर वहाँ से निकल जाता है)

बल्लभ अब गहरी सोच में पड़ जाता है, उसे लगने लगता है जरूर कुछ होने वाला है l उसकी निगाह फंक्शन शामियाना के एंट्रेंस पर चली जाती है, पर उसे सेक्यूरिटी वालों को छोड़ कोई दिख नहीं रहा था l वह पूजा मंडप के पास कैमरा लिए रिपोर्टिंग करते रिपोर्टरों की ओर जाता है l वहाँ पर भी उसे कुछ संदेहजनक दिखता नहीं है l फिर वह अपनी नजरें चुरा कर जोडार की ओर देखता है, जोडार निश्चिंत हो कर पूजा मंडप में जल रहे अग्नि कुंड को देखे जा रहा था l बल्लभ की घबराहट धीरे धीरे बढ़ने लगती है l बल्लभ अपना टाई ढीला करता है, उसका जिस्म अब पसीना पसीना होता जा रहा था l उसका ध्यान तब टूटता है जब शंखनाद होने लगता है l पूजा समाप्त हो गया था l सारे लोग पुष्पांजलि दे रहे थे l उन लोगों में जोडार भी था l उसके दिल को ठंडक तब पहुँचती है जब पंडित घोषणा करता है कि सारे विघ्न और बाधाएँ दूर हो गई हैं l बल्लभ के होंठो पर एक मुस्कान खिल उठता है l आधा दिन ढल चुका था पर अब तक कुछ भी नहीं हुआ था l उसे अब यकीन हो चुका था वह बाजी जीत चुका है l विश्व या जोडार ग्रुप अब कानूनन कोई अड़चन नहीं डाल सकते l बल्लभ एक गहरी साँस लेकर मंडप की ओर देखने लगा l

पंडित - यजमान पूजा का समापन हुआ है... अब आप... (एक कुदाल दे कर) यह कुदाल लेकर ईशान कोण में जमीन को थोड़ा खोद दीजिए... ताकि पहला भीति स्थापना के रुप में... एक ईंट रख दी जाए... जिसकी नींव युगों तक ज़मी रहे...
सामल - जी पंडित जी....

निर्मल सामल कुदाल उठा कर ईशान कोण में पहले से निसान किया हुआ जगह पर पहुँचता है l सभी निमंत्रित मीडिया वाले अपने अपने कैमरा लेकर उस जगह पहुँचते हैं l पंडित वहाँ पहुँच कर जमीन पर मंत्रोच्चारण के साथ फुल डालने लगता है, साथ साथ उसके साथ आए दुसरे पुरोहित घंटा और शंख बजाने लगते हैं l भीति स्थापना के लिए ईंट को हाथ में लिए बल्लभ उत्साह के साथ पंडित से इशारा मिलते ही निर्मल सामल कुदाल उठाता और ताकत के साथ जमीन पर मारता है l
ठंन की आवाज आती है l जैसे कुदाल का मुहँ किसी पत्थर से टकराया हो l सभी थोड़े हैरानी से एक दुसरे को देखने लगते हैं l निर्मल सामल फिर से कुदाल उठा कर गड्ढा खोदने के जमीन पर मारता है l
नतीज़ा वही ठंन की आवाज आती है l

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शाम का समय
जोडार की ऑफिस के दीवार पर लगे बड़ी सी स्क्रीन पर सुबह हुई घटना ब्रेकिंग न्यूज की तरह चल रहा था l

"जैसा कि आप सबको यह ज्ञात था सामल कंस्ट्रक्शन ग्रुप सस्ते दरों पर घर मुहैया करने की बड़ी बड़ी विज्ञापन दिए थे, पुरे राज्य में लोगों को यह लुभावनी स्कीम पर नजर थी l इसी कारण आज सामल ग्रुप के मुखिया के द्वारा भूमि पूजन एवं भीति स्थापना का आयोजन किया गया था l परंतु पुजा समाप्ति के ततपश्चात्य जब भीति स्थापना के लिए जमीन की खुदाई शुरु की गई तो जमीन के भीतर से शिव और शक्ति की बहुत पुरानी मुर्ति निकली, तो स्थानीय लोग और विधायक इसे देबोत्तर जमीन कहने लगे और जल्दी से जल्दी पुरातत्वविद विभाग से जाँच करने की मांग की l लोगों की भावनाओं को देखते हुए सामल ग्रुप के प्रमुख निर्मल सामल मान भी गए l इसलिये अब उस क्षेत्र को सीज कर दिया गया है l अब सामल ग्रुप का बहु चर्चित व अपेक्षित प्रोजेक्ट फ़िलहाल के लिए स्थगित हो गया है l "

अपनी रिमोट से न्यूज को म्यूट कर जोडार टेबल पर रखता है l और हँसते हुए अपनी कुर्सी से उठता है सामने वाली कुर्सी पर बैठे विश्व की ओर देखते हुए टेबल पर रखी शैम्पेन बोतल खोलता है ग्लास में डालते हुए कहता है

जोडार - एक एक जाम हो जाए...
विश्व - नहीं जोडार साहब... मैं शराब नहीं पीता...
जोडार - ओह कॉम ऑन... यह शराब नहीं है... इट इज जस्ट सेलेब्रेशन ड्रिंक...
विश्व - फिर भी नहीं...
जोडार - ओके ओके... भाई वाह... विश्व वाह... एक बात कहूँ... अंतिम समय तक मैं... घबराया हुआ था... मैं यही सोच कर परेशान था कि... तुम शायद अंतिम क्षण में... कोई अदालती आदेश लेकर आओगे और पुजा रोक दोगे... पर... खैर... जानते हो... जब सामल का कुदाल... उस मूर्ति से टकराया... मन में एक आशा जगी... के कुछ तो हुआ है... पर डर भी लगा... कहीं कोई गड़ा मुर्दा ना बाहर निकल आए... हा हा हा... क्या तुम्हें पहले से ही पता था... वह जमीन... देबोत्तर जमीन है...
विश्व - जोडार साहब... वह जमीन देबोत्तर नहीं है...
जोडार - (चौंकते हुए) क्या... फिर... वह... अच्छा अच्छा... समझ गया... यानी वह मुर्ति... तुमने प्लॉट की थी... ओह माय गॉड... पर... दिखने में तो बड़ी पुरानी मुर्ति लग रही थी...
विश्व - अगर वह देबोत्तर जमीन होती... तो काजमी सर बुरे फंस जाते...
जोडार - यु नो वन थिंग... आई वांट टू नो एवरी थिंग... इफ यु डोंट माइंड... क्या तुम मुझे बता सकते हो... यह सब कैसे.. तुमने प्लान किया और कैसे उसी जगह पर मुर्ति को प्लॉट किया... जहां सामल ने कुदाल से खुदाई की...
विश्व - (मुस्कराते हुए अपनी जगह से उठता है) श्योर जोडार सर... (फिर विश्व बोलना शुरु करता है)

आपने मुझे जब लीगल एडवायजर की जॉब ऑफर की... तब से आपकी सारी प्रॉपर्टी और प्रोजेक्ट का खयाल रखना मेरी जिम्मेदारी बन गई थी...
केके का क्षेत्रपाल से टूटना मतलब था... भुवनेश्वर की रियल इस्टेट के बड़े हिस्से से हाथ धोना... उपर से थाईशन ग्रुप की वह लफड़ा... जिसमें क्षेत्रपाल ने भले ही पल्ला झाड़ लिया था... पर जोडार ग्रुप कहीं ना कहीं... उनके दिल को चुभा ज़रूर था... पर उससे भी ज्यादा... जब उनको मालुम हुआ... मैं आपके साथ जुड़ा हुआ हूँ... इसलिए... हम दोनों को हराने के लिए... बस एक छोटी सी चाल चली गई थी...

जोडार - हाँ... जिसकी तुमने भजिया तल दी... यार... मुझे पुरी तरह से क्लैरीफाय करो यार...
विश्व - आप एक्साइटमेंट में बीच में बोलोगे तो मैं कैसे कह सकता हूँ...
जोडार - ओह सॉरी सॉरी... अब मैं चुप रहता हूँ... तुम अपनी बात पुरी करो...


विश्व - पिछली बार मुझे राजकुमारी जी ने बुलाया था... क्यूंकि उनकी दोस्त मिसिंग थी... तब्बसुम... जिनकी वालिद बीडीए यानी भुवनेश्वर डेवलपमेंट अथॉरिटी में सर्वेयर हैं... वह जमीन जिसके लिए... सामल को दिलाने के लिए... मेयर पिनाक सिंह क्षेत्रपाल एड़ी चोटी का जोर लगा रहा था... वह जमीन सरकारी गोचर जमीन थी जिसे... निन्यानवे वर्ष के लिए लीज पर तिकड़म... हर एक डिपार्टमेंट में चल रही थी... जिसकी सारी लीगल फॉर्मलिटी... बल्लभ प्रधान कर चुका था... पर काजमी सर रोड़ा बन गए... क्यूँकी... सरकारी मूल्य से भी... बहुत कम कीमत पर... जमीन को डीसबर्स करना... उनकी जमीर को गवारा नहीं हुआ... पर अपनी ही डिपार्टमेंट में... सिस्टम के खिलाफ़ लड़ने से बेहतर... वह खुद को छुपाना ही बेहतर ऑप्शन समझे... पर इससे... उनकी जान पर बन सकती थी... इसलिए मैंने आपकी मदत से... उन्हें खुर्दा में ढूँढा... उनसे सारी जानकारी इकट्ठा की... उस जमीन के बगल में... जो तीन एकड जमीन है... वही असल में... देबोत्तर है... यानी... भगवान भुवनेश्वर श्री लिंगराज जी की जमीन... वहाँ पर कभी आवाजाही हुआ करती थी... क्यूंकि उस जमीन पर एक पंथशाला हुआ करता था अपनी पाकशाला के सहित... ब्रिटिश डोमिनेंस में आने के बाद उसे तोड़ दिया गया था... क्यूँकी वह पंथशाला... पाइका विद्रोह के समय एक प्रमुख सेफ हाउस बन गया था... खैर... मैंने उनसे सर्वे रिपोर्ट में... बस इतना लिखने को बोला... ब्रिटिश रेकार्ड के अनुसार सरकारी जमीन है... पर चूंकि देबोत्तर जमीन के पास है... इसलिए एक अनुमती पुरातत्व विभाग से भी लिया जाए... यह बात... बल्लभ प्रधान के लिए कोई मुश्किल भरा काम नहीं था... और बदले में... उन्हें कोई शक ना हो... इसलिए इंडाईरेक्ट रिश्वत लेने के लिए कहा... तो काजमी साहब ने वही बल्लभ प्रधान से डिमांड किया... बल्लभ ने एक शब् ए नज्म की प्रोग्राम अरेंज किया और... उसी सन साइन सोसाइटी में एक प्लॉट और विदेश जाने आने की टिकेट दिलाया... जो अब उन्हें मिलने से रहा...

जोडार - वाव... बहुत बढ़िया... पर... एक बात बताओ... वह मूर्ति कहाँ से मिली... तुमने उसे प्लॉट कैसे और कब किया... और खुदाई उसी जगह कैसे कारवाई...

विश्व - (थोड़ा गम्भीर हो कर) जोडार सर... आप शायद नहीं जानते... करीब सत्तर साल हो गये हैं... राजगड़ में मंदिर अभी भी बंद है... कोई पूजा नहीं होती... यहाँ तक... नदी के घाट पर भी... मूर्तियाँ पड़े हुए हैं... पर क्षेत्रपाल के डर से... कोई पूजा नहीं होती... जिस दिन मैंने काजमी सर से बात की... उसी दिन अपने दोस्त सीलु से... घाट पर पड़े शिव शक्ति की मूर्ति लाने के लिए कह दिया था... जैसे ही वह पहुँचा... लल्लन की मदत से... उस जमीन की उस जगह पर से... छह इंच मोती पाँच बाई पाँच घास वाली मिट्टी की परत निकाल कर... वह मूर्ति जमीन पर गड़वा दिया था... फिर उस पर परत को बिछा दिया था...

जोडार - हम्म... पर उसी जगह पर... तुमने खुदाई कैसे कारवाई..

विश्व - उन पुरोहितों के टीम में सीलु... और जमीन को निर्धारण करने वालों के टीम में मेरे दोस्त जीलु और मिलु थे... (जोडार की आँखे हैरानी के मारे फैल जाती हैं) हाँ जोडार सर.... जब मैं मिशन में होता हूँ... तब... मेरे साथ साये की तरह मेरे दोस्त भी साथ होते हैं...

जोडार - ओ... अब मुझे पुरी बात समझ में आ गई... पर... (पूछते पूछते रुक जाता है)
विश्व - आप फिक्र ना करें... अब जमीन फिर से सर्वे के लिए... आर्कियोलाजी विभाग के हाथ चली गई है... उनसे क्लियरेंस मिलते मिलते साल भर लग जाएगा... इतने में सामल की सब्र जवाब दे चुका होगा... इतनी बड़े प्रोजेक्ट के लिए... उसे कोई इन्वेस्टर भी नहीं मिलेगा... और तब तक... आपके सोसायटी के सारे घर बिक चुके होंगे...
जोडार - ओह... थैंक यु... यार.. तुमने मुझे बर्बाद होने से बचा लिया... अब आगे क्या करोगे...
विश्व - आज ही राजगड़ रवाना हो जाऊँगा...
जोडार - अरे इतनी जल्दी...
विश्व - हाँ जोडार सर... कोई है... जो तेजी से भागे जा रहा है... मुझे वहाँ पहुँच कर उसके राह के सारे अड़चन दुर करना है... ताकि वह अपनी अंजाम तक जल्द से जल्द पहुँच सके...
Bahut badiya update bhai
 

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एक कमरे में अंधेरा पसरा हुआ था l एक कोने में रीडिंग टेबल पर टेबल लैम्प जल रहा था और टेबल पर बहुत से किताबें बिखरे पड़े हुए थे l पास ही एक शख्स नाइट शूट में चेयर की हेड रेस्ट सिर टिका कर पर छत की ओर देखते हुए आँखे मूँद कर लेटा हुआ था l टेबल पर मोबाइल फोन अचानक से बज उठता है l वह शख्स चौंक कर नींद से जाग जाता है l मोबाइल को हाथ में लेकर देखता है, स्क्रीन पर दरोगा लिखा हुआ था l फोन को कान से लगा कर

- हैलो...
रोणा - हैलो नहीं हिलो... क्यूँ बे साले... काले कोट वाले... सुबह नहीं हुई है क्या भुवनेश्वर में...(यह शख्स कोई और नहीं बल्लभ था)
बल्लभ - ओह दरोगा... क्या हुआ... बड़ा ताजा ताजा लग रहा है....
रोणा - हाँ... हूँ तो... क्यूँकी अभी अभी अपना हाथ का अंतिम बार उपयोग किया है...
बल्लभ - क्या मतलब...
रोणा - अबे ढक्कन... मूठ मारी है... वह भी आखिरी बार... उस नंदिनी के नाम...
बल्लभ - साले हरामी... इतना कुछ होने के बाद भी... तु अभी भी... उसीके बारे में सोच रहा है...
रोणा - हाँ... क्यूँकी वह तब तक सेफ है... जब तक विश्वा भुवनेश्वर में है... (बल्लभ कुछ ज़वाब नहीं देता) क्या हुआ... क्या सोचने लगा...
बल्लभ - पता नहीं क्यूँ पर... मैं अभी अभी उस लड़की के बारे में कुछ याद कर रहा था...
रोणा - अच्छा... कोई खास बात...
बल्लभ - मैंने शायद उस लड़की को... राजकुमार की अंगेजमेंट पार्टी में देखा है...
रोणा - (यह सुनते ही रोणा की माथे पर बल पड़ जाता है) अच्छा... कहीं तु मेरा मजा तो नहीं ले रहा...
बल्लभ - नहीं... पता नहीं... मैंने ध्यान नहीं दिया था... पर अब जब तुने उस लड़की की बात छेड़ी है... तो ऐसा लग रहा है... शायद उस पार्टी में.. मैंने उस लड़की को देखा है...
रोणा - ह्म्म्म्म... तो... तो क्या हुआ...
बल्लभ - मतलब... वह लड़की राजा साहब की पहचान में हो सकती है...
रोणा - या फिर... सामल साहब की भी हो सकती है....
बल्लभ - हाँ... शायद... अच्छा बोल फोन किसलिए किया...
रोणा - अरे बोला ना... आज आखिरी बार मूठ मारा है...
बल्लभ - क्यूँ... हिमालय जाना चाहता है क्या...
रोणा - अबे नहीं... मुझे एक ज़िम्मेदारी मिली है...
बल्लभ - कैसी जिम्मेदारी...
रोणा - विश्वा को ठिकाने लगाने की...
बल्लभ - अच्छा...
रोणा - हाँ तुने ही कहा था ना... मुझे तेरे दिमाग का इस्तेमाल करना चाहिए...
बल्लभ - हाँ तो इंतजार कर...
रोणा - ना.... मुझे पता है... कल तेरा मुहँ काला होने वाला है... और परसों तु अपना काला मुहँ लेकर राजगड़ आने वाला है...
बल्लभ - (अपनी भवें सिकुड़ कर) क्या यह बात... तुझे राजा साहब ने कहा है...
रोणा - हाँ यह उनकी भविष्यवाणी है...
बल्लभ - पहली बार... राजा साहब को... अपने दुश्मन पर भरोसा हो गया है...
रोणा - हाँ...
बल्लभ - इसका मतलब यह हुआ... के हम नाकारे हो गए हैं... तुझे क्या लगता है... विश्वा मुझ पर भारी पड़ेगा...
रोणा - वकील... राजा साहब ने शायद विश्वा की दिमाग पढ़ लिया है... तुझे क्या लगता है...
बल्लभ - अगर तेरी बात सही है... तो मैं भी देखना चाहूँगा... कल भूमि पूजन को विश्वा कौनसी दाव लगा कर रोकता है... कानून की किताब में ऐसा कौनसा दाव है जो मुझसे छूट गया है...
रोणा - एक बात तो है... विश्वा मुझे मेरी समझ पर मात दे चुका है... अगर उसने तेरी समझ को मात दे दी...
बल्लभ - तो समझ ले... रुप फाउंडेशन केस में... हम सब फंसने वाले हैं... क्यूँकी विश्वा ने... आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक... हाई कोर्ट में पीआईएल दाखिल कर दी है....
रोणा - इसीलिए तो मुझे जिम्मेदारी मिली है... चल तु आजा... मिलकर उसकी माँ बहन करते हैं...
बल्लभ - कल रात से... मैं सन साईन प्रोजेक्ट की हर पहलू को... कानूनी तर्ज़ पर तौल रहा हूँ... मुझे कहीं से भी... कोई लूप होल्स नहीं दिख रहा... फिर भी राजा साहब को लगता है... विश्वा मुझे मात दे जाएगा... (रोणा चुप रहता है) मैंने बीडीए के उस अधिकारी काजमी को... उसके मुताबिक इंडाइरेक्ट रिश्वत मुहैया कराया है... जिसके वज़ह से... उससे मैंने मन माफिक सर्वे रिपोर्ट हासिल किया... उसके बाद ही... प्लॉट रजिस्ट्रेशन और प्रोजेक्ट बीडीए से अप्रूवल लिया है... इतना कुछ होने के बाद भी... राजा साहब को लगता है... विश्वा मुझे मात दे सकता है...
रोणा - हाँ लगता तो यही है.... तभी तो... सात साल पहले की गलती को सुधारने की... मतलब कंप्लीट एलीमिनेशन... अब पुरी जिम्मेदारी मुझे सौंपी है...
बल्लभ - कैसी गलती...
रोणा - विश्वा को जिंदा छोड़ने की गलती...
बल्लभ - तो तु क्या विश्वा को मार देगा...
रोणा - अब काम मिल गया है... काम का दाम भी मिला है... काम पुरा हो जाने पर.... इनाम की ग्यारंटी मिली है...
बल्लभ - मुझे यकीन नहीं हो रहा है...
रोणा - क्यूँ... क्यूँ नहीं हो रहा है...
बल्लभ - इसलिए कि... विश्वा वह सात साल पहले वाला विश्वा नहीं रहा.... पहली बात अब वह वकील है... दुसरी बात... वह आरटीआई एक्टिविस्ट है... तीसरी बात... उसका ओड़िशा हाइकोर्ट में लाइफ थ्रेट ऐफिडेविट दाखिल है... इसलिए उसका बाल भी बाँका हुआ तो...
रोणा - जानता हूँ... तभी तो बोल रहा हूँ... भुवनेश्वर का काम को छोड़... जल्दी मेरे पास आजा... मिलकर विश्वा की कानूनी इलाज करेंगे...
बल्लभ - कानूनी....
रोणा - हाँ... याद है... खूब जमेगा रंग... जब मिल बैठेंगे कमीने तीन... एक तु.. एक मैं और
बल्लभ - तीसरा कौन...
रोणा - अबे शराब... वह भी कमीनी नंदिनी की कबाब घोल के...
बल्लभ - तेरे सिर से उस लड़की का भूत उतरा नहीं है अभी तक...
रोणा - भूत नहीं नशा... और नशा हमेशा सिर चढ़कर ही बोलता है... बोल कब आ रहा है...
बल्लभ - भले ही राजा साहब को लग रहा है... यह बाजी मेरी हारी हुई है... फिर भी अपनी उस बाजी की हार की गवाह मुझे बनना है... विश्वा मुझे कैसे मात दे पाता है... मुझे देखना है...


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भीमा रंग महल के एक कमरे के आगे आकर खड़ा होता है l दरवाजे पर हल्का सा दस्तक देता है l अंदर से भैरव सिंह की आवाज़ गूंजती है l

भैरव सिंह - कौन... भीमा
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - अंदर आ जाओ...

भीमा दरवाजे को धकेल कर अंदर आता है l देखता है भैरव सिंह शिकारी के लिबास में एक काँच की अलमारी के सामने खड़ा है l उस अलमारी में एक मूठ विहीन तलवार है, ठीक उसके नीचे एक शिकार करने वाला पुरानी दो नाली वाली पुराने ज़माने की टेलीस्कोप बंदूक है l शायद भैरव सिंह शिकार करने के लिए तैयार हो चुका है l भैरव सिंह भीमा को देख कर पूछता है l

भैरव सिंह - कहो भीमा... क्या जानने आए हो...
भीमा - हुकुम... कल आपने जो काम दरोगा को सौंपा है... वह काम... (झिझकते हुए) हम में से... कोई भी कर सकता है...
भैरव सिंह - हा हा हा.. (हँसने लगता है) भीमा...
भीमा - जी हुकुम...
भैरव सिंह - चलो गाड़ी निकालो... आज हम शिकार करने जंगल की ओर जाएंगे... आज शिकार किया हुआ गोश्त ही खाएंगे...
भीमा - जी हुकुम...

कह कर भीमा बाहर की ओर भागता है l भैरव सिंह अलमारी के दीवार पर टंगे हुए वही पुराने ज़माने की टेलीस्कोपीक हंटर राइफल निकालता है l एक दुसरे अलमारी के पास जाकर कारतूस वाली एक बेल्ट निकालता है l जब तक वह रंग महल की सीडियां उतरने लगता है, भीमा गाड़ी लेकर उसके सामने पहुंच जाता है l भैरव सिंह गाड़ी में बैठते ही भीमा गाड़ी को राजगड़ से दूर ले जाने लगता है l गाड़ी दौड़ी जा रही थी l बीच बीच में भीमा भैरव सिंह की ओर देख रहा था, भैरव सिंह के चेहरे पर एक आत्मविश्वास भरा मुस्कान था l करीब एक घंटे के ड्राइव के बाद राजगड़ की जंगल में पहुँचते हैं l भीमा गाड़ी रोक देता है l

भैरव सिंह - गाड़ी जितना भीतर तक जा सकती है... लिए चलो...
भीमा - जी... जी हुकुम...

भीमा गाड़ी को घनी जंगल में ले जाता है और एक जगह गाड़ी की आगे बढ़ने के लिए कोई रास्ता नहीं मिलता तो भैरव सिंह गाड़ी से उतर कर पैदल ही आगे बढ़ने लगता है और भीमा भी उसके पीछे पीछे चल देता है l दोनों कुछ देर के बाद एक नदी की पठार तक आते हैं l भैरव सिंह एक पेड़ के नीचे जगह बना कर बैठ जाता है l भीमा उसके पीछे खड़ा रहता है l

भैरव सिंह - हाँ तो भीमा.. कुछ पुछ रहे थे...
भीमा - जी हुकुम... वह...
भैरव सिंह - बस... यही ना... विश्वा को मारने के लिए... दरोगा को क्यूँ चुना...
भीमा - जी... जी हुकुम...
भैरव सिंह - (लहजे में कड़क पन छा जाता है) भीमा... विश्वा ने तेरे आदमियों की क्या गत बनाया है... क्या यह बताना जरूरी है...
भीमा - हुकुम गुस्ताखी माफ़... पर बात अगर जान से मारने की है तो... मारने के कई तरीके हो सकते हैं...
भैरव सिंह - हाँ... हो सकते हैं... वैसे कहीं तुम्हें भी रंग महल की ख्वाहिश तो नहीं...
भीमा - (हड़बड़ा कर) नहीं नहीं हुकुम नहीं... पुरखों से हम आपको सेवा दे रहे हैं... आपका हुकुम ही हमारे लिए पत्थर की लकीर है.... हम उसे लांघने की हिम्मत कभी कर ही नहीं सकते... आखिर हम सब आपके नमक ख्वार हैं...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... चलो हम गहरी बात तुमको बताते हैं... आखिर तुम हमारे नमक ख्वार जो हो...

इतना कह कर भैरव सिंह अपनी बंदूक की नाल खोलता है और उसके खोल में एक कारतूस भरता है l फिर नाल को लॉक करने के बाद एक साइलेंसर लगाता है और फिर अपनी बैठी हुई जगह पर खड़ा होता है और भीमा की ओर देख कर कहता है

भैरव सिंह - भीमा हम कोई आम खानदान में जन्मे नहीं हैं... हम खास हैं... एक खास खानदान में जन्में हैं... हम पैदाइशी क्षेत्रपाल हैं... हम ने ता उम्र किसीको अपने बराबर समझा ही नहीं... इसलिए ना तो हमने किसी से दोस्ती की... ना ही किसी से दुश्मनी... क्यूँकी दोस्त हो या दुश्मन... दोनों हमारे बराबर खड़े हो जाएंगे... विश्वा जैसे लोग... जो हमारे ही टुकड़ों पर पला बढ़ा... हमसे नजरें मिलाकर बात करने की जुर्रत कर रहा है... दोस्त नहीं है वह हमारा... और विश्वा जैसे दुश्मन हमें गवारा नहीं... हम नहीं चाहते... लोग यह जानें... यह समझें... कोई है जो राजा साहब के बराबर खड़ा हुआ है... इसलिए हमने दरोगा को चुना है.... (थोड़ी देर के लिए भैरव सिंह चुप हो कर भीमा की ओर देखता है, भीमा उसे आंखें बड़ी कर टुकुर टुकुर देखे जा रहा था) दरोगा का और विश्वा का छत्तीस का आँकड़ा है... दरोगा विश्वा से इतनी बार मात खाया हुआ है कि... विश्वा के लिए खुन्नस पाले हुआ है... इससे पहले कि विश्वा हम तक पहुँचे... हमने उसकी राह में... दरोगा को खड़ा कर दिया... दरोगा है बैल बुद्धि... अपने खुन्नस और लालच के चलते वह किसी भी हद तक जाएगा... और विश्वा से दुश्मनी ले लेगा...
भीमा - ओह... दरोगा विश्वा पर हावी हुआ तो ठीक... पर अगर विश्वा दरोगा पर भारी पड़ा... तब..
भैरव सिंह - हमने विश्वा के औकात के बराबर उसका दुश्मन उसके सामने रख दिया है... उनमें से कोई किसी को भी रास्ते से हटाए... बचने वाले को कानूनी सजा होगी... (भीमा की आँखे हैरानी से फैल जाते हैं) जीत विश्वा की हो... तो दरोगा के खुन के इल्ज़ाम में अंदर जाएगा... और अगर दरोगा जीता तो विश्वा के खुन के इल्ज़ाम में अंदर जाएगा... समझा...

अब भीमा का मुहँ खुला रह जाता है l तब तक भैरव सिंह किसी पेड़ पर बैठे एक पंछी पर निशाना लगा कर फायर करता है l जब पंछी खून से लथपथ फडफडा कर भीमा के पास आकर गिरता है तभी भीमा को होश आता है l

भीमा - पर हुकुम... विश्वा को कुछ हुआ तो... वह पुराने केस खुल सकते हैं ना...
भैरव सिंह - हाँ खुल सकता है... हमने भी उसकी तैयारी कर ली है... अगर केस खुला... तो सब दरोगा के सिर जाएगा...
भीमा - (ऐसे चौंकता है जैसे उसे बिजली का झटका जोर से लगा) क्या...
भैरव सिंह - हाँ... (एक कुटिल मुस्कान के साथ कह कर और एक फायर करता है)

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क्या हुआ आज आप कॉलेज नहीं गईं... यह सवाल पूछा विश्व ने रुप से l रुप आज अपनी भाभी की गाड़ी लाई थी विश्व को पीक अप कर कहीं ले जा रही थी l गाड़ी में रुप थोड़ी गम्भीर लग रही थी इसलिए थोड़ी दुर जाने के बाद विश्व ने यह सवाल किया था, पर रुप कोई जवाब दिए वगैर गाड़ी को चलाए जा रही थी l विश्व फिर से सवाल पूछता है

विश्व - कोई परेशानी है...

रुप कोई जवाब नहीं देती, नज़रे रास्ते पर गड़ी हुई थी और गाड़ी चली जा रही थी l रुप से जवाब ना पा कर विश्व फिर से सवाल करता है l

विश्व - कहीं मुझे टपकाने का प्लान तो नहीं है... (रुप विश्व की ओर घूर कर देखती है) ठीक है ठीक है... हम दोनों की जिंदगी बहुत अहम है.... आप रास्ते पर नजर रखिए...

गाड़ी कटक छोड़ कर भुवनेश्वर लांघ चुकी थी l विश्व अब बहुत कन्फ्यूज लग रहा था l उसे लगा शायद कोई बड़ी परेशानी है l रुप गाड़ी को एक मोड़ पर घुमा देती है, एक कच्ची सड़क से होते हुए एक बड़ी सी तालाब के पास रुप गाड़ी को रोक देती है और एक गहरी साँस छोड़ते हुए गाड़ी से उतर कर तालाब के किनारे जाकर खड़ी हो जाती है l विश्व भी गाड़ी से उतरता है और रुप के पास आकर खड़ा होता है l रुप अचानक विश्व के सीने से लग जाती है और अपने दोनों हाथों को विश्व के कमर के इर्द-गिर्द कस लेती है l

विश्व - देखिए... प्लीज.. आप ऐसे मत कीजिए... कोई देख लेगा... तो... मैं किसीको मुहँ दिखाने के.. लायक नहीं रहूँगा...
रुप - (चिढ़ कर) आह... (दो तीन मुक्के विश्व की सीने पर मारती है फिर विश्व की शर्ट को मुट्ठी में कस लेती है)
विश्व - अकेला लड़का जान कर... आप मेरे साथ यह ज्यादती नहीं कर सकती... देखिए मैं चिल्लाउंगा... बचाओ... आह बचाओ...
रुप - (चिढ़ कर विश्व के सीने पर मुक्के बरसाने लगती है) मुझे क्यूँ सता रहे हो...
विश्व - झूट ना बोलिए... सता मैं नहीं आप रही हो...
रुप - क्या कहा... यु... (कह कर विश्व को धक्का देकर धकेलते हुए कुछ पेड़ों के नीचे लाती है और विश्व पर कुद जाती है l विश्व नीचे घास पर पीठ के बल गिर जाता है और उसके पेट के ऊपर रुप बैठ जाती है और दोनों हाथों से विश्व की कलर पकड़ कर) फिर से कहो... कौन किसको सता रहा है...
विश्व - आप...
रुप - क्या... (विश्व की कलर भींच कर) आई हेट यु...
विश्व - (अपने हाथ रुप की पीठ पर लेकर अपने ऊपर झुकाते हुए) बट आई लव यु...

रुप के गाल लाल हो जाते हैं l चेहरे पर आती खुशी को छुपाते हुए रूठने के अंदाज में मुहँ को मोड़ विश्व के पेट से उतर कर पीठ करते हुए बैठ जाती है l विश्व उठ कर बैठते हुए

विश्व - क्या हुआ...
रुप - कब से आए हो... एक बार भी मिलने की अपने तरफ़ से कोशिश नहीं की... हूँह्..
विश्व - क्या इसलिए मुझे घर से किडनैप कर ले आईं...
रुप - किडनैप कहाँ... माँ और पापाजी से इजाजत लेकर तुम्हें लाई हूँ... (विश्व की तरफ मुहँ कर) और तुम हो के... मुझे सताये जा रहे हो...
विश्व - अरे कहाँ सता रहा हूँ... (अपना नाक रुप की नाक से लड़ाते हुए) मैं तो अपनी नकचढ़ी के नाक पर गुस्सा देखना चाहता था...
रुप - आह हा हा... बहुत बातेँ बनाने लगे हो... लोग कहते हैं... मेरा गुस्सा बहुत खराब है...
विश्व - वह लोग ही खराब हैं... साले अंधे हैं... आपकी गुस्से वाली चेहरा तो सबसे सुंदर है... इतना सुंदर की बस... देखते हुए खो जाने को मन करता है... (रुप अपना चेहरा घुमा कर अपनी हँसी को छुपाने की कोशिश करती है) अच्छा आपने बताया नहीं... मुझे किडनैप करके इतनी दुर क्यूँ लाई हैं...
रुप - ओह गॉड... यु बुद्धू... यु डफर... तुमसे अकेले में मिलना चाहती थी... तुमसे ढेर सारी बातेँ करना चाहती थी... जब से आए हो... भैया के लिए लगे हो... उनके उलझन में उलझे हुए हो... जब सारे प्रॉब्लम सॉल्व हो गए... तब तो तुम्हें मुझसे मिलना चाहिए था... उसकी भी जहमत नहीं उठाई तुमने... जहमत तो छोड़ो... एक फोन नहीं तो एक मेसेज भी कर सकते थे... पर नहीं... तो क्या करती... इसलिए... तुम्हें मैं यहाँ लेकर आई हूँ... समझे... (विश्व मुहँ फाड़े एक टक रुप को देखे जा रहा था) अब ऐसे उल्लू की तरह आँखे फाड़ फाड़ कर क्या देख रहे हो...
विश्व - नहीं.. मैं यह देख कर सोच रहा था...
रुप - क्या...
विश्व - यही के... इतना कंप्लैन... आप बोल गईं... वह भी बिना रुके... साँस कब ले रही हैं... यह सोच रहा था... (हँस देता है)
रुप - (चिल्लाती है) आह... (फिर से विश्व के सीने पर मारने लगती है, विश्व हँसते हँसते नीचे लेट जाता है रुप उसके सीने पर सिर रख कर लेट जाती है, विश्व रुप की बालों पर हाथ फेरने लगता है) मुझे तंग करने में... तुम्हें अच्छा लगता है...
विश्व - नहीं... पर राजगड़ जाने से पहले... इन प्यारे लम्हों को... दिल में संजो का ले जाना चाहता हूँ... (एक पॉज लेकर) आपको बुरा लग रहा है...
रुप - (अपना चेहरा उठाकर ठुड्डी को विश्व की सीने पर रख कर अपनी नाक और होंठ सिकुड़ कर सिर हिला कर ना कहती है)
विश्व - (थोड़ा मुस्कराता है) अच्छा अब बताइए...
रुप - क्या...
विश्व - कुछ तो खास बात होगी... हम किसी मॉल में जा सकते थे... किसी पार्क में... या किसी रेस्तरां में भी जा सकते थे... इतनी दूर... यहाँ..
रुप - (तुनक कर बैठ जाती है) कहाँ... कैसे... जहाँ तन्हाई चाहिए... वहीँ ज्यादा भीड़ दिखती है... पार्क देखो... नदी किनारा देखो... समंदर का किनारा देखो... रेस्तरां देखो... हूँह्ह... भीड़ कितना होता है वहाँ... दिल की बात करने के लिए भी चिल्ला चिल्ला कर बात करना पड़ेगा...
विश्व - (उठ कर बैठते हुए) ओ... तो दिल की बात करने के लिए... इतनी दूर तन्हाई में आए हैं... ह्म्म्म्म...
रुप - और नहीं तो... (देखो ना कितनी तन्हाई है... इतनी तन्हाई की जुबां खामोश भी रहे तो भी बातेँ कानों तक पहुँच ही जाए...
विश्व - वाव... क्या बात है.. लफ्जों में... इतनी गहराई...
रुप - तुम मुझे छेड़ रहे हो...
विश्व - मेरी इतनी हिम्मत और औकात कहाँ...

रुप वहाँ से उठ जाती है और विश्व से थोड़ी दुर पेड़ के नीचे विश्व की ओर पीठ कर खड़ी हो जाती है l विश्व अपनी जगह से उठता है, रुप के पास जाकर उसके कंधे पर हाथ रखता है, रूप विश्व की ओर घुमती है और विश्व के सीने से लग जाती है l विश्व को एहसास होता है कि रुप की आँखे बह रही थीं l

विश्व - क्या हुआ राजकुमारी जी... आपके आँखों में आँसू क्यूँ है...
रुप - अनाम... पता नहीं क्यूँ... पर कल से मुझे डर सा लग रहा है...
विश्व - डर... क्यूँ...
रुप - तुमने देखा ना... वीर भैया और अनु भाभी जी के साथ क्या हुआ...
विश्व - आखिर में दोनों मिल भी गए ना...
रुप - हाँ... पर हमारे प्यार का क्या अंजाम होगा...

विश्व रुप को खुद से अलग करता है l उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर दोनों अंगूठे से रुप की आँसू पोछता है l

विश्व - क्या हुआ... मुझे पूरी बात बताइए...
रुप - (अपना चेहरे से विश्व की हाथ को हटाती है और पेड़ पर पीठ लगा कर खड़ी हो जाती है) कल की बात तो तुम माँ से जान ही चुके होगे... हमने वीर भैया और अनु भाभी को... पैराडाइज में छोड़ कर आ गए... फिर मैं कॉलेज गई... वहाँ पर मेरे दोस्त मेरा इंतजार कर रहे थे... उनसे मिली तो पता चला... तब्बसुम ने नज्म ए शब जीत चुकी थी... मुझे इतने दिनों बाद देख कर सभी खुश बहुत हुए... फिर पार्टी हुई... बहुत से दोस्त शामिल हुए... एक बात की खुशी थी... वीर भैया की इमेज एक ज़माने में बहुत खराब था... पर अनु भाभी के लिए जिस तरह से सबसे भीड़ गए... वह हमारे कॉलेज के यूथ के हीरो बन गए हैं... (रुप चुप हो जाती है)
विश्व - फिर डर कैसा....किस बात का...
रुप - जब पार्टी में मालुम हुआ... नज्म ए शब के अवार्ड्स को स्पंसर किसने किया था मालुम हुआ...
विश्व - (रुप को देखे जा रहा था)
रुप - निर्मल सामल....
विश्व - तो इसमे प्रॉब्लम क्या है...
रुप - (मुस्कराती है) जब निर्मल सामल का नाम आया... तब मैं कड़ी से कड़ी जोड़ने लगी... और मुझे पूरा खेल तभी समझ में आ गया....
विश्व - कौनसा खेल...
रुप - केके का क्षेत्रपाल से टूटना... निर्मल सामल का क्षेत्रपाल से जुड़ना... निर्मल सामल की बेटी सस्मीता से... वीर भैया का मंगनी की कोशिश... और इन सब के बीच... तब्बसुम का कॉलेज ना आना... तुम्हारा उन्हें ढूंढना... अंकल को राजी करना... उसके बाद यह शब ए नज्म का कंपटीशन... जिसमें तब्बसुम का जितना...
विश्व - इन सब में खेल कहाँ है...
रुप - बताती हूँ... तब्बसुम खुद साटीशफाय नहीं है... अपनी परफॉर्म से... फिर भी उसे अवार्ड मिला... सब मिला कर कुल पैंतालीस लाख का... (चुप हो जाती है)
विश्व - रुक क्यूँ गईं... आगे बोलिए...
रुप - अंकल रिश्वत नहीं लेते... निर्मल सामल की स्पंसरशीप.. सन साइन प्रोजेक्ट में एक प्लॉट और सिंगापुर आने जाने की फॅमिली टिकेट... इनडायरेक्ट रिश्वत... वह भी कंपटीशन के नाम पर...
विश्व - (मुस्कराता है) वाव... क्या बात है... तो इंसब में आप को क्या दुख पहुँचा मेरी नकचढ़ी राजकुमारी...
रुप - अनाम... दुश्मनी कितनी खुल्लमखुल्ला होने लगी है तुम्हारी... हमारे प्यार का अंजाम... दुखद हो तो चलेगा... पर अगर भयानक होगा...
विश्व - वैसे भी हमारी प्यार की राह आसान कब थी... आप राजकुमारी और मैं गुलाम अनाम...
रुप - डर रही हूँ... कहीं तुम पर कोई आँच ना आए...
विश्व - आँच तब आएगा जब.. राजा साहब तक खबर जाएगी...
रुप - पर जाएगी तो एक ना एक दिन ही...
विश्व - क्या उस दिन की सोच कर डर रही हैं...
रुप - नहीं सिर्फ वही एक वज़ह नहीं है...
विश्व - तो बताइए ना... और क्या क्या वज़ह हैं...
रुप - काजमी अंकल और उनके परिवार को कुछ होगा तो नहीं ना...
विश्व - आप ऐसा क्यूँ सोच रही हैं...
रुप - क्यूँ की मैं जानती हूँ... सन साइन प्रोजेक्ट फैल होने वाला है... और इस प्रोजेक्ट के पोषक लोग बहुत ख़तरनाक हैं... क्यूँकी इंडाइरेक्ट ही सही... अंकल तक उन्होंने रिश्वत तो पहुँचाया ही है... और कहीं यह रिवील हो गया के इन सब के पीछे तुम हो तब...
विश्व - नहीं... प्रोजेक्ट फैल होना तय है... और यह कल ही होगा... और आप यकीन रखें... आपकी दोस्त और उनकी परिवार पर कोई खतरा नहीं है.... (एक पॉज लेकर) और...
रुप - और क्या...
विश्व - और कौनसी वज़ह है... जिससे आप डर रहे हैं...
रुप - पता नहीं क्यूँ... कल से मुझे ऐसा लग रहा है... जैसे कोई हादसा मेरा इंतजार कर रही है...
विश्व - ऐसा क्यूँ लग रहा है भला...
रुप - पता नहीं... (बात को बदलते हुए) खैर... कल क्या होने वाला है...
विश्व - कल शाम की न्यूज में पता चल जाएगा आपको...
रुप - (मुहँ बना कर) मुझे नहीं बताओगे...
विश्व - मेरी जितनी भी पर्सनल है... उन सबमें आपका पूरा हक है... पर जो प्रोफेशनल है... उसके लिए आप मुझे कभी धर्म संकट में मत डालिए... मैं प्रोफेशनली जोडार सर से कमिटेड हूँ... तो..
रुप - ठीक है नहीं पूछूंगी...

थोड़ी देर के लिए रुप खामोश हो जाती है और किन्ही ख़यालों में खो जाती है l विश्व रुप की चेहरे को गौर से देखता है और सवाल करता है l

विश्व - राजकुमारी जी...
रुप - ह्म्म्म्म... (चौंक कर) कुछ पुछा तुमने...
विश्व - नहीं... पर आपने बताया नहीं... आपको किस बात का डर है... (रुप अपनी चेहरे को इधर उधर करने लगती है) ऐसा लग रहा है... जैसे आप कंफ्यूज हो..

विश्व रुप की हाथ पकड़ कर फिर से पेड़ की छांव में बिठा कर खुद उसके सामने आलती पालथी लगा कर बैठ जाता है l

विश्व - आप बेफिक्र हो कर कहिये... वादा है... सारी परेशानी आपकी दुर हो जाएगी...
रुप - अनाम... राजा साहब और तुम्हारे बीच की खाई कभी भरेगी नहीं... तो हमारे रिश्ते का भविष्य क्या है...
विश्व - आप क्या चाहतीं हैं... हमारे रिश्ते का भविष्य क्या होना चाहिए...
रुप - मैं नहीं जानती... पर मेरी ख्वाहिश है... मैं तुम्हारे साथ जीना चाहती हूँ... बुढ़ी होना चाहती हूँ... अपनी आँखे आखिरी बार बंद करने से पहले... तुम्हें देखते हुए मरना चाहती हूँ...
विश्व - तो ऐसा ही होगा... अगर आपको इस बात का डर है... के आपको कुछ हो जाएगा या मुझे... तो एक काम कीजिए... राजगड़ चले आइए... मेरे आँखों के सामने ही रहिए... फिर क्षेत्रपाल महल और हमारे प्यार का अंजाम अपनी आँखों से देखिए...
रुप - (मुस्करा देती है) तुम तो बात ऐसे कर रहे हो... जैसे तुमने टाइम फिक्स कर लिया है...
विश्व - हाँ ऐसा ही कुछ...
रुप - अनाम... क्या तुम्हें लगता है... राजा साहब का... सिर्फ तुम्हीं दुश्मन हो...
विश्व - नहीं... मैं जानता हूँ... पूरी दुनिया उनकी दुश्मन है... और हर कोई अपनी अपनी ताक में है...
रुप - इसका मतलब... उस दुश्मनी के चलते कोई मेरे ताक में भी हो सकता है...
विश्व - राजकुमारी जी... अपनी अकड़ और अहंकार के चलते... राजा साहब ने किसी से ना दोस्ती की... ना किसी को दुश्मनी के लायक समझा... पर उनसे खुन्नस रखने वाले हर दुसरे घर में मिल जाएंगे... पर राजा साहब पर वार करने के लिए... उनके कमजोर होने के इंतजार में हैं... तब शायद आप किसी के टार्गेट में आ जाएं... पर यकीन रखिए... आपके इर्दगिर्द हवा भी अपना रुख बदलेगा... तो भी मुझे पता चल जाएगा...
रुप - (तुनक कर खड़ी हो जाती है) क्या... इसका मतलब... तुम मेरी जासूसी करवा रहे हो...
विश्व - (सकपका कर खड़ा हो जाता है) नहीं मेरा यह कहने का मतलब नहीं था..

रुप खिलखिला कर हँसने लगती है l विश्व को उसके चेहरे पर हँसी देख कर एक सुकून सा महसुस होता है l रुप विश्व के सीने से लग जाती है l

रुप - आह... सच में... तुम्हारी बाहों में जब भी आती हूँ.. तब मुझे लगता है... मुझ पर कभी कोई खतरा तो दुर... दुख भी नहीं आ सकता है...
विश्व - कोई शक...

अपना चेहरा उठा कर विश्व की आँखों में देखते हुए सिर हिला कर ना कहती है l

विश्व - अच्छा अब चलें...
रुप - इतनी जल्दी...
विश्व - मुझे कल की तैयारी का जायजा लेना है...
रुप - (अलग हो कर) अच्छा चलो चलते हैं...

विश्व आगे बढ़ने लगता है कि रुप पीछे से उसकी हाथ पकड़ कर रोकती है l विश्व मुड़ कर रुप को देखता है, उसे लगता है जैसे रुप की आँखों में कोई शरारती ख्वाहिश झाँक रही थी l

विश्व - क्या हुआ राजकुमारी जी...
रुप - मेरा पहला किस...
विश्व - (झटका खाते हुए) क्या...
रुप - ओ हो... कितने दिन हो गए प्यार का इजहार हुए... और कितनी शर्म की बात है... एक किस भी नहीं हुआ है...
विश्व - वो... वो..
रुप - (विश्व की हाथ छिटक कर) तुम हो दब्बू के दब्बू... किस भी नहीं होता तुमसे...
विश्व - (खुद को थोड़ा सम्हालते हुए) रा.. राज कु.. कुमारी जी...
आपको किस मिलेगा... पर एक पेच है...
रुप - (बिदक कर) क्या... मेरे साथ टर्म एंड कंडीशन...
विश्व - हाँ...
रुप - (अपनी आँखे और मुहँ सिकुड़ कर) क्या कंडीशन है...
विश्व - आपको जैसे प्यार का इजहार... राजगड़ में चाहिए था... वैसे ही आपको किस भी राजगड़ में मिलेगी...
रुप - व्हाट...
विश्व - (रुप की दोनों हाथों को अपने हाथ में लेते हुए) राजकुमारी... हमारे बीच गुजरे हर एक लम्हा.. हर एक पल यादगार रहा है... हमारा पहला किस भी बहुत ही यादगार होना चाहिए... और होगा भी...
रुप - और तुम चाहते हो... इसके लिए मैं राजगड़ आऊँ...
विश्व - हाँ... जरा सोचिए... पूनम की रात हो... आसमान में चाँद चमक रहा हो... नदी के लहरों में एक नाव हो... उस पर हम दोनों हों... ऐसी चाँदनी में नहाई हुई रात में... हमारा किस हो...
रुप - ओ हैलो... ज्यादा आसमान में मत उड़ो... मैं महल से बाहर... वह भी चाँदनी रात में.. बहती नदी पर लहराती नाव में... जानते हो ना... पिछली बार तुमने क्या कांड किया था...
विश्व - (मुस्कराते हुए) मैं आपको ले जाऊँगा... प्यार में इतनी एडवेंचर तो बनता है... है ना..
रुप - (हैरानी भरे लहजे में) तुम सच में... मुझे ले जाओगे...
विश्व - मुझ पर भरोसा है...
रुप - (शर्मा कर मुस्करा देती है, फिर रुबाब दिखाते हुए) ठीक है... इस बार किस मिस नहीं होनी चाहिए... समझे... हूँह्ह्ह

कह कर रुप आगे बढ़ जाती है पीछे से विश्व मुस्कराते हुए उसके पीछे पीछे गाड़ी की ओर जाने लगता है l


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गौरी - (गल्ले पर बैठे बैठे) पता नहीं यह विशु कब आएगा... आता है तो पूनम की चांद की तरह... और जाता है तो.. गधे के सिर की सिंग की तरह...
वैदेही - (चूल्हे पर कोयला चढ़ा रही थी) ओ हो... मिसाल भी तो ढंग की दिया करो... (गौरी की तरफ़ मुड़ कर) विशु नौकरी भी करता है... इसलिए... काम को तरजीह दे रहा है...
गौरी - हाँ अब क्या करें बोलो... व्यपार भी अब वैसे नहीं रहा... एक्का दुक्का लोग ही आते हैं... विशु जब से गया है.. वह नाशपीटा सीलु भी नहीं आ रहा है... जो बच्चे विशु के मुहँ लगे हुए हैं... बस वही आते हैं... पैसे भी नहीं देते...
वैदेही - ओ हो काकी... पैसे हमारे पास कम है क्या... हमारा गुजारा तो हो ही रहा है ना... वैसे भी मुझे लगता है... विशु एक दो दिन में आने वाला है...

तभी एक गाड़ी की हॉर्न वैदेही के कानों में पड़ती है l वैदेही उस तरफ़ देखती है तो उसके चेहरे का भाव बदल जाता है जैसे नीम के पत्ते जुबान पर आ गए हों l रोणा गाड़ी से उतर कर वैदेही की दुकान के अंदर आता है और एक टेबल लेकर बैठ जाता है l वैदेही को कुछ समझ नहीं आता फिर भी उसके पास जाकर खड़ी होती है l

रोणा - एक गरमागरम स्पेशल मलाई वाली चाय... (वैदेही अपनी भवें सिकुड़ कर रोणा को देखने लगती है) क्या बात है... यहाँ ग्राहक को चाय नहीं पुछा जाता है क्या... इतनी हैरानी से क्या देख रही है...
वैदेही - जब से राजा साहब का हुकुम बजा है... तब से कोई ग्राहक नहीं आया है... इसलिए हैरान हूँ... के... कैसे अपने मालिक की बात काट कर... कोई बंदा मेरे दुकान में आया है...
रोणा - दुकान नहीं होटल बोल... राजगड़ की फाइव स्टार होटल... जहां... करोड़ों रुपये डकार जाने वाला... भूत पूर्व सरपंच आकर खाना पीना करता है... क्यूँ ठीक कहा ना...
वैदेही - (यह सब सुन कर अपनी जबड़े भींच लेती है) लगता है... रात को कुछ अंडशंड खा लिया था... हजम नहीं हुई... इसलिए यहाँ उल्टी करने चला आया...
रोणा - अंडशंड... मेरी खाने की और पीने जो लेवल है ना... वह तुम भाई बहन की सोच की परे है... समझी...
वैदेही - हड्डी चाहे कैसे भी मिले... हड्डी ही होती है... और हड्डी के लिए दुम हिला कर गुलाटी मारने वाला कुत्ता ही होता है...
रोणा - हाँ बस नस्ल शेर वाली होती है... जो अपने शिकार को दबोच कर नोच कर चिथड़े उड़ा उड़ा कर खाता है...
वैदेही - अच्छा... तो तु यहाँ... शिकार करने आया है...
रोणा - ना... आज पेट भरा हुआ है... पर बहुत जल्द भूख लगेगी... उस दिन दौड़ा दौड़ा कर शिकार करूँगा...
वैदेही - तो आज क्या करने आया है...
रोणा - बोला ना... चाय पीने आया हूँ... अच्छा टीप भी दूँगा... बस मलाई जरा ज्यादा डाल कर लाना...
वैदेही - तेरे लेवल की होटल नहीं है.... और तुझे चाय दे कर... तेरा लेवल बढ़ाना नहीं चाहती... इसलिए दफा हो जा यहाँ से...
रोणा - हो जाऊँगा हो जाऊँगा... मुझे कौनसा तेरे साथ घर बसाना है... बस मुझे इतना बता... तेरा वह चोर भाई... आ कब रहा है...
वैदेही - क्यूँ... तेरी अर्थी को कंधा देने वाले कम पड़ने वाले हैं क्या... या तेरे घर में तेरी चिता को आग देने वाला कोई नहीं है...
रोणा - उफ... कितनी धार है तेरी बातों में... कितनी कटीली बातेँ कर रही है... जिगर छलनी हो जाती है फिर भी... तुझे सही सलामत छोड़ रहा हूँ...
वैदेही - कुछ करने की ना तेरी औकात है... ना तेरी हैसियत है...
रोणा - हा हा... हा हा हा हा हा... तु कोर्ट में डाले हुए उस ऐफिडेविट की दम पर उछल रही है... है ना... हा हा हा... मुझे हेड क्वार्टर से ऑर्डर का कापी मिल गया है... पर उसका जवाब भी तैयार कर लिया है... उसकी जवाब दाखिल करने के लिए... मैंने तैयारी शुरू कर दिया है... हा हा हा... मैं यहाँ तुझे आगाह करने आया हूँ... रंगमहल की रंडी... इस इलाके की दायरे से बाहर मत निकल... वर्ना (खड़े हो कर अपनी होलस्टर से रीवॉल्वर निकाल कर वैदेही के सिर पर तान देता है) तेरा एनकाउंटर कर दूँगा... और रिपोर्ट में लिखूँगा... पुरानी खुन्नस के चलते... मुझ पर दरांती लेकर हमला करने की कोशिश की... मैंने आत्मरक्षा के लिए इस दो कौड़ी की रंडी को गोली मार दी... हा हा हा... (वैदेही की देखते हुए) क्या सोचने लगी...
वैदेही - यही के... कुत्ता जब पागल हो जाए... वह कितने दिनों तक जिंदा रह सकता है...
रोणा - हाँ... (एक साइको की तरह हँसते हुए) ठीक कहा तुमने... मैं पागल कुत्ता हूँ... काटुं या चाटुं... दोनों ही सुरत में... तुम दो भाई बहन के लिए खतरा हूँ...

कह कर रोणा वहाँ से निकलता है और जाते जाते दुकान के दरवाजे पर रुक जाता है और मुड़ कर वैदेही की देख कर कहता है l

रोणा - तेरे विश्वा को जो करना था... जितना करना था कर लिया है... अब जो आए उसे बता देना... जब भी सोये आँखे खोल कर सोये... क्यूँकी मैं अब उसकी वकालत की धज्जियाँ उड़ाने वाला हूँ.... (कह कर जाने लगता है फिर बाहर रुक कर) हाँ कह देना... मैं अपनी टांगे फैला कर बैठा रहूँगा... जितनी चाहे उतनी झांटे उखाड़ ले...

कह कर वहाँ से चला जाता है l वैदेही हैरानी भरे नजरों से उसे जाते हुए देख रही थी l उसे होश तब आता है जब उसके कंधे पर एक हाथ को महसुस करती है l पीछे मुड़ती है l

गौरी - यह दरोगा... इस तरह से बात क्यूँ कर रहा था...
वैदेही - सोच तो मैं भी यही रही हूँ... ऐसा क्या उसके हाथ लगा है... जो विशु को सीधी चुनौती देने यहाँ आ गया... और आज वह गुस्सा भी नहीं हुआ....
गौरी - विशु जब आए... तो हमे उसे सावधान करना पड़ेगा...
वैदेही - (एक गहरी साँस छोड़ते हुए) हाँ काकी... लगता है कुछ बड़ा होने वाला है...

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अगले दिन
एक बहुत बड़े मैदान में लोगों का जमावड़ा धीरे धीरे बढ़ रहा है l वह मैदान चारों ओर से शामियाना से घिरा हुआ है l एंट्रेंस पर जोडार सेक्यूरिटी ग्रुप के गार्ड्स तैनात हैं l वह लोगों के एंट्री पास देख कर अंदर छोड़ रहे थे l सन साइन रेजिडेंट सोसाइटी की इनागुराल डे है आज l बड़े बड़े पेपर में इस फंक्शन की जबरदस्त एडवर्टाइजिंग किया गया था l कुछ स्थानीय नेता भी आए हुए थे l निर्मल सामल का सेक्रेटरी एंट्रेंस पर खड़े रह कर सबका स्वागत कर अंदर भेज रहा था l इतने में स्वपन जोडार की गाड़ी पहुँचती है, सेक्रेटरी भागते हुए गाड़ी के पास जाकर डोर खोलता है l जोडार उतरता है l

जोडार - प्रोग्राम शुरु हो गया क्या...
सेक्रेटरी - वेलकम सर... अभी नहीं हुआ है... सामल सर आपकी ही प्रतीक्षा में हैं...
जोडार - क्या... मेरी प्रतीक्षा...
सेक्रेटरी - जी... आइए...

सेक्रेटरी जोडार को बड़े ही आदर के साथ अंदर ले जाता है l अंदर पहुँच कर जोडार देखता है कुछ नेता, जर्नलिस्ट और कुछ मीडिया वाले आए हुए हैं l जोडार को देखते ही निर्मल सामल उसके पास आता है l

सामल - आइए.. आइए... आपका ही इंतजार था...
जोडार - सामल बाबु... आपके सेक्रेटरी ने कहा कि प्रोग्राम शुरु ही नहीं किया है आपने...
सामल - हाँ वह इसलिए कि... आज मेरे प्रोग्राम में... आप ही मुख्य अतिथि हैं...
जोडार - भई इतना मान ना दीजिए... आप हमारे राइवल हैं... और यह प्रोजेक्ट... एक तरह से... मेरी बिजनस में ताला लगाने वाली है..
सामल - ऐसा ना कहिये जोडार बाबु... हम पड़ोसी बनने वाले हैं... और मैं एक अच्छे पड़ोसी की तरह... अपने पड़ोसी का खयाल रखता हूँ... तभी तो... आपकी सेक्यूरिटी संस्थान से सेक्यूरिटी माँगी है...
जोडार - सेक्यूरिटी से याद आया... मुझे बहुत खेद है... आपकी बेटी की सगाई में जो हुआ...
सामल - बुरा तो हुआ... पर इससे जिंदगी ठहर तो नहीं जाएगी... आगे बढ़ना ही जिंदगी है...
जोडार - जी बहुत अच्छी बात कही आपने... चलिए हम भी आगे बढ़ते हैं.... (दोनों पूजा मंडप की ओर चलने लगते हैं) तो... आपकी और क्षेत्रपाल परिवार की दोस्ती टुट गई लगती है...
सामल - नहीं... ऐसी कोई बात नहीं...
जोडार - वेल... बुरा मत मानिएगा... उनकी तरफ कोई दिख नहीं रहा तो... इसलिए...
सामल - हाँ... अगर सगाई हो गई होती... तो राजा साहब.. नहीं तो कम से कम मेयर साहब यहाँ पर होते... पर सगाई टूटने से... उन्हें बहुत ठेस पहुंची है... इसलिए.. उनके तरफ से... (बल्लभ के पास पहुँच कर) यह साहब आए हैं... एडवोकेट बल्लभ प्रधान...
जोडार - ओ... प्रधान बाबु... (बल्लभ से हाथ मिलाते हुए) बड़े नाम सुने हैं आपके... आज दर्शन भी हो गये...
सामल - और जानते हैं जोडार बाबु... इत्तेफाक से... प्रधान बाबु... मेरी कंपनी के भी लीगल एडवाइजर हैं... और यह जो प्लॉट देख रहे हैं... सब इन्हीं की मेहरबानी है...
जोडार - वाव... इंप्रेस्ड... हाइ ली इंप्रेस्ड... कास के आप हमें पहले मिले होते... तो शायद यह प्लॉट मुझे मिल गई होती...

हा हा हा... तीनों एक साथ हँसने लगते हैं l

सामल - आपके पास भी तो कोई लीगल एडवाइजर है...
बल्लभ - हाँ सुना है... बहुत काबिल है...
जोडार - हाँ है तो... पर क्या करें... आप हमें मिले नहीं... और जो मिले आप जैसे निकले नहीं...

यह सुन कर बल्लभ अंदर ही अंदर बहुत खुश हो जाता है, और जोडार से कहता है l

बल्लभ - थैंक्स फॉर कंप्लीमेंट...

तभी पूजा मंडप से पंडित सामल को बुलाता है l तो सामल दोनों से इजाजत लेकर पुजा मंडप पर बैठ जाता है l

बल्लभ - आपको... अपने साथ आपके लीगल एडवाइजर को भी यहाँ ले आते... हम मिल लेते...
जोडार - क्यूँ... बुलावा तो सिर्फ मुझे मिला था... वह भी एक मामुली बिल्डर...
बल्लभ - जोडार साहब... आप कोई मामुली हस्ती नहीं हैं...
जोडार - अरे कहाँ... हस्तियां तो आप लोग हो... जो मेरी बस्ती बसने से पहले उजाड़ने की भरसक कोशिश किए हो...
बल्लभ - नहीं जोडार साहब... असल बात यह है कि... आप सीढियों पर पायदान लांघ कर जा रहे हो... जब कि जाना आपको एक के बाद एक चढ़ कर जाना चाहिए...
जोडार - बिजनस में मुझे हमेशा मौका दिया है... किसीसे मैंने छीना नहीं है...
बल्लभ - हाँ... पर जिसका जमा जमाया हो... उस बाजार में आपको... उनसे पूछकर दुकान खोलनी चाहिए थी... यही आपको थाईसन बिल्डिंग के वक़्त समझाने की कोशिश की गई थी...
जोडार - हाँ पर हुआ क्या... उल्टा मुझे.. कंपनसेशन मिला...
बल्लभ - पर यहाँ ऐसा कुछ नहीं होने वाला...
जोडार - हाँ यहाँ से मुझे कंपनसेशन चाहिए भी नहीं... क्या पता वह जो पूजा मंडप पर पूजा कर रहे हैं... कंपनसेशन उन्हें जरूरत पड़ जाए...

इतना कह कर जोडार चुप हो जाता है मगर बल्लभ हैरान हो कर जोडार की ओर देखने लगता है l

जोडार - क्या हुआ...
बल्लभ - (थोड़ी घबराहट के साथ) कुछ कुछ नहीं... एसक्यूज मी... (कह कर वहाँ से निकल जाता है)

बल्लभ अब गहरी सोच में पड़ जाता है, उसे लगने लगता है जरूर कुछ होने वाला है l उसकी निगाह फंक्शन शामियाना के एंट्रेंस पर चली जाती है, पर उसे सेक्यूरिटी वालों को छोड़ कोई दिख नहीं रहा था l वह पूजा मंडप के पास कैमरा लिए रिपोर्टिंग करते रिपोर्टरों की ओर जाता है l वहाँ पर भी उसे कुछ संदेहजनक दिखता नहीं है l फिर वह अपनी नजरें चुरा कर जोडार की ओर देखता है, जोडार निश्चिंत हो कर पूजा मंडप में जल रहे अग्नि कुंड को देखे जा रहा था l बल्लभ की घबराहट धीरे धीरे बढ़ने लगती है l बल्लभ अपना टाई ढीला करता है, उसका जिस्म अब पसीना पसीना होता जा रहा था l उसका ध्यान तब टूटता है जब शंखनाद होने लगता है l पूजा समाप्त हो गया था l सारे लोग पुष्पांजलि दे रहे थे l उन लोगों में जोडार भी था l उसके दिल को ठंडक तब पहुँचती है जब पंडित घोषणा करता है कि सारे विघ्न और बाधाएँ दूर हो गई हैं l बल्लभ के होंठो पर एक मुस्कान खिल उठता है l आधा दिन ढल चुका था पर अब तक कुछ भी नहीं हुआ था l उसे अब यकीन हो चुका था वह बाजी जीत चुका है l विश्व या जोडार ग्रुप अब कानूनन कोई अड़चन नहीं डाल सकते l बल्लभ एक गहरी साँस लेकर मंडप की ओर देखने लगा l

पंडित - यजमान पूजा का समापन हुआ है... अब आप... (एक कुदाल दे कर) यह कुदाल लेकर ईशान कोण में जमीन को थोड़ा खोद दीजिए... ताकि पहला भीति स्थापना के रुप में... एक ईंट रख दी जाए... जिसकी नींव युगों तक ज़मी रहे...
सामल - जी पंडित जी....

निर्मल सामल कुदाल उठा कर ईशान कोण में पहले से निसान किया हुआ जगह पर पहुँचता है l सभी निमंत्रित मीडिया वाले अपने अपने कैमरा लेकर उस जगह पहुँचते हैं l पंडित वहाँ पहुँच कर जमीन पर मंत्रोच्चारण के साथ फुल डालने लगता है, साथ साथ उसके साथ आए दुसरे पुरोहित घंटा और शंख बजाने लगते हैं l भीति स्थापना के लिए ईंट को हाथ में लिए बल्लभ उत्साह के साथ पंडित से इशारा मिलते ही निर्मल सामल कुदाल उठाता और ताकत के साथ जमीन पर मारता है l
ठंन की आवाज आती है l जैसे कुदाल का मुहँ किसी पत्थर से टकराया हो l सभी थोड़े हैरानी से एक दुसरे को देखने लगते हैं l निर्मल सामल फिर से कुदाल उठा कर गड्ढा खोदने के जमीन पर मारता है l
नतीज़ा वही ठंन की आवाज आती है l

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शाम का समय
जोडार की ऑफिस के दीवार पर लगे बड़ी सी स्क्रीन पर सुबह हुई घटना ब्रेकिंग न्यूज की तरह चल रहा था l

"जैसा कि आप सबको यह ज्ञात था सामल कंस्ट्रक्शन ग्रुप सस्ते दरों पर घर मुहैया करने की बड़ी बड़ी विज्ञापन दिए थे, पुरे राज्य में लोगों को यह लुभावनी स्कीम पर नजर थी l इसी कारण आज सामल ग्रुप के मुखिया के द्वारा भूमि पूजन एवं भीति स्थापना का आयोजन किया गया था l परंतु पुजा समाप्ति के ततपश्चात्य जब भीति स्थापना के लिए जमीन की खुदाई शुरु की गई तो जमीन के भीतर से शिव और शक्ति की बहुत पुरानी मुर्ति निकली, तो स्थानीय लोग और विधायक इसे देबोत्तर जमीन कहने लगे और जल्दी से जल्दी पुरातत्वविद विभाग से जाँच करने की मांग की l लोगों की भावनाओं को देखते हुए सामल ग्रुप के प्रमुख निर्मल सामल मान भी गए l इसलिये अब उस क्षेत्र को सीज कर दिया गया है l अब सामल ग्रुप का बहु चर्चित व अपेक्षित प्रोजेक्ट फ़िलहाल के लिए स्थगित हो गया है l "

अपनी रिमोट से न्यूज को म्यूट कर जोडार टेबल पर रखता है l और हँसते हुए अपनी कुर्सी से उठता है सामने वाली कुर्सी पर बैठे विश्व की ओर देखते हुए टेबल पर रखी शैम्पेन बोतल खोलता है ग्लास में डालते हुए कहता है

जोडार - एक एक जाम हो जाए...
विश्व - नहीं जोडार साहब... मैं शराब नहीं पीता...
जोडार - ओह कॉम ऑन... यह शराब नहीं है... इट इज जस्ट सेलेब्रेशन ड्रिंक...
विश्व - फिर भी नहीं...
जोडार - ओके ओके... भाई वाह... विश्व वाह... एक बात कहूँ... अंतिम समय तक मैं... घबराया हुआ था... मैं यही सोच कर परेशान था कि... तुम शायद अंतिम क्षण में... कोई अदालती आदेश लेकर आओगे और पुजा रोक दोगे... पर... खैर... जानते हो... जब सामल का कुदाल... उस मूर्ति से टकराया... मन में एक आशा जगी... के कुछ तो हुआ है... पर डर भी लगा... कहीं कोई गड़ा मुर्दा ना बाहर निकल आए... हा हा हा... क्या तुम्हें पहले से ही पता था... वह जमीन... देबोत्तर जमीन है...
विश्व - जोडार साहब... वह जमीन देबोत्तर नहीं है...
जोडार - (चौंकते हुए) क्या... फिर... वह... अच्छा अच्छा... समझ गया... यानी वह मुर्ति... तुमने प्लॉट की थी... ओह माय गॉड... पर... दिखने में तो बड़ी पुरानी मुर्ति लग रही थी...
विश्व - अगर वह देबोत्तर जमीन होती... तो काजमी सर बुरे फंस जाते...
जोडार - यु नो वन थिंग... आई वांट टू नो एवरी थिंग... इफ यु डोंट माइंड... क्या तुम मुझे बता सकते हो... यह सब कैसे.. तुमने प्लान किया और कैसे उसी जगह पर मुर्ति को प्लॉट किया... जहां सामल ने कुदाल से खुदाई की...
विश्व - (मुस्कराते हुए अपनी जगह से उठता है) श्योर जोडार सर... (फिर विश्व बोलना शुरु करता है)

आपने मुझे जब लीगल एडवायजर की जॉब ऑफर की... तब से आपकी सारी प्रॉपर्टी और प्रोजेक्ट का खयाल रखना मेरी जिम्मेदारी बन गई थी...
केके का क्षेत्रपाल से टूटना मतलब था... भुवनेश्वर की रियल इस्टेट के बड़े हिस्से से हाथ धोना... उपर से थाईशन ग्रुप की वह लफड़ा... जिसमें क्षेत्रपाल ने भले ही पल्ला झाड़ लिया था... पर जोडार ग्रुप कहीं ना कहीं... उनके दिल को चुभा ज़रूर था... पर उससे भी ज्यादा... जब उनको मालुम हुआ... मैं आपके साथ जुड़ा हुआ हूँ... इसलिए... हम दोनों को हराने के लिए... बस एक छोटी सी चाल चली गई थी...

जोडार - हाँ... जिसकी तुमने भजिया तल दी... यार... मुझे पुरी तरह से क्लैरीफाय करो यार...
विश्व - आप एक्साइटमेंट में बीच में बोलोगे तो मैं कैसे कह सकता हूँ...
जोडार - ओह सॉरी सॉरी... अब मैं चुप रहता हूँ... तुम अपनी बात पुरी करो...


विश्व - पिछली बार मुझे राजकुमारी जी ने बुलाया था... क्यूंकि उनकी दोस्त मिसिंग थी... तब्बसुम... जिनकी वालिद बीडीए यानी भुवनेश्वर डेवलपमेंट अथॉरिटी में सर्वेयर हैं... वह जमीन जिसके लिए... सामल को दिलाने के लिए... मेयर पिनाक सिंह क्षेत्रपाल एड़ी चोटी का जोर लगा रहा था... वह जमीन सरकारी गोचर जमीन थी जिसे... निन्यानवे वर्ष के लिए लीज पर तिकड़म... हर एक डिपार्टमेंट में चल रही थी... जिसकी सारी लीगल फॉर्मलिटी... बल्लभ प्रधान कर चुका था... पर काजमी सर रोड़ा बन गए... क्यूँकी... सरकारी मूल्य से भी... बहुत कम कीमत पर... जमीन को डीसबर्स करना... उनकी जमीर को गवारा नहीं हुआ... पर अपनी ही डिपार्टमेंट में... सिस्टम के खिलाफ़ लड़ने से बेहतर... वह खुद को छुपाना ही बेहतर ऑप्शन समझे... पर इससे... उनकी जान पर बन सकती थी... इसलिए मैंने आपकी मदत से... उन्हें खुर्दा में ढूँढा... उनसे सारी जानकारी इकट्ठा की... उस जमीन के बगल में... जो तीन एकड जमीन है... वही असल में... देबोत्तर है... यानी... भगवान भुवनेश्वर श्री लिंगराज जी की जमीन... वहाँ पर कभी आवाजाही हुआ करती थी... क्यूंकि उस जमीन पर एक पंथशाला हुआ करता था अपनी पाकशाला के सहित... ब्रिटिश डोमिनेंस में आने के बाद उसे तोड़ दिया गया था... क्यूँकी वह पंथशाला... पाइका विद्रोह के समय एक प्रमुख सेफ हाउस बन गया था... खैर... मैंने उनसे सर्वे रिपोर्ट में... बस इतना लिखने को बोला... ब्रिटिश रेकार्ड के अनुसार सरकारी जमीन है... पर चूंकि देबोत्तर जमीन के पास है... इसलिए एक अनुमती पुरातत्व विभाग से भी लिया जाए... यह बात... बल्लभ प्रधान के लिए कोई मुश्किल भरा काम नहीं था... और बदले में... उन्हें कोई शक ना हो... इसलिए इंडाईरेक्ट रिश्वत लेने के लिए कहा... तो काजमी साहब ने वही बल्लभ प्रधान से डिमांड किया... बल्लभ ने एक शब् ए नज्म की प्रोग्राम अरेंज किया और... उसी सन साइन सोसाइटी में एक प्लॉट और विदेश जाने आने की टिकेट दिलाया... जो अब उन्हें मिलने से रहा...

जोडार - वाव... बहुत बढ़िया... पर... एक बात बताओ... वह मूर्ति कहाँ से मिली... तुमने उसे प्लॉट कैसे और कब किया... और खुदाई उसी जगह कैसे कारवाई...

विश्व - (थोड़ा गम्भीर हो कर) जोडार सर... आप शायद नहीं जानते... करीब सत्तर साल हो गये हैं... राजगड़ में मंदिर अभी भी बंद है... कोई पूजा नहीं होती... यहाँ तक... नदी के घाट पर भी... मूर्तियाँ पड़े हुए हैं... पर क्षेत्रपाल के डर से... कोई पूजा नहीं होती... जिस दिन मैंने काजमी सर से बात की... उसी दिन अपने दोस्त सीलु से... घाट पर पड़े शिव शक्ति की मूर्ति लाने के लिए कह दिया था... जैसे ही वह पहुँचा... लल्लन की मदत से... उस जमीन की उस जगह पर से... छह इंच मोती पाँच बाई पाँच घास वाली मिट्टी की परत निकाल कर... वह मूर्ति जमीन पर गड़वा दिया था... फिर उस पर परत को बिछा दिया था...

जोडार - हम्म... पर उसी जगह पर... तुमने खुदाई कैसे कारवाई..

विश्व - उन पुरोहितों के टीम में सीलु... और जमीन को निर्धारण करने वालों के टीम में मेरे दोस्त जीलु और मिलु थे... (जोडार की आँखे हैरानी के मारे फैल जाती हैं) हाँ जोडार सर.... जब मैं मिशन में होता हूँ... तब... मेरे साथ साये की तरह मेरे दोस्त भी साथ होते हैं...

जोडार - ओ... अब मुझे पुरी बात समझ में आ गई... पर... (पूछते पूछते रुक जाता है)
विश्व - आप फिक्र ना करें... अब जमीन फिर से सर्वे के लिए... आर्कियोलाजी विभाग के हाथ चली गई है... उनसे क्लियरेंस मिलते मिलते साल भर लग जाएगा... इतने में सामल की सब्र जवाब दे चुका होगा... इतनी बड़े प्रोजेक्ट के लिए... उसे कोई इन्वेस्टर भी नहीं मिलेगा... और तब तक... आपके सोसायटी के सारे घर बिक चुके होंगे...
जोडार - ओह... थैंक यु... यार.. तुमने मुझे बर्बाद होने से बचा लिया... अब आगे क्या करोगे...
विश्व - आज ही राजगड़ रवाना हो जाऊँगा...
जोडार - अरे इतनी जल्दी...
विश्व - हाँ जोडार सर... कोई है... जो तेजी से भागे जा रहा है... मुझे वहाँ पहुँच कर उसके राह के सारे अड़चन दुर करना है... ताकि वह अपनी अंजाम तक जल्द से जल्द पहुँच सके...
Bahut hi badhiya update diya hai Kala Nag bhai.....
Nice and beautiful update.....
 

Kala Nag

Mr. X
Prime
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तो तय रहा - रोणा का मरना निश्चित है।
जब लौ बुझने वाली होती है, तो फड़फड़ाती बहुत है - वही हाल रोणा का भी है।
हाँ अब रोणा अपनी अंजाम तक पहुँचेगा
विश्व-रूप के बीच के संवाद अच्छे हैं - लेकिन इतने ज़ब्त किए हुए प्रेमी पहली बार देखे भाई!
शरीफ़ हैं कत्तई! :)
हा हा हा हा
बल्लभ को भी चोट लग गई - वो बहुत हेकड़ी में था।
वहीं भैरव की बातों से साफ़ ज़ाहिर है कि वो किसी भी हद तक नीचे जा सकता है।
भैरव सिंह है ही नीच
अब सबसे ज़रूरी बात - आप कैसे हैं? घर में सब कैसे हैं?
अपना ख़याल रखें। स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें। कहानी तो हमेशा की ही तरह A1 है! :)
भाई एक दोस्त खोया है
जो मेरी आदत और रूटीन में शामिल था
उसने जो वैक्युम बना कर गया है वह किसीसे भी पुरा नहीं हो सकता है
खैर उसकी फॅमिली अब अपने गांव चले गए हैं
मुझसे जितना बन पड़ा किया
जिंदगी को आगे ले जाना है
अब वह मित्र मेरे जीवन की यादों के किताब में एक पन्ना है
जिसे मैं वक़्त वक़्त पर पलटते हुए याद रखूँगा
 
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