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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

Mr. X
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Kala Nag

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👉छिहत्तरवां अपडेट
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ड्रॉइंग रुम के बीचों-बीच एक छोटा सा टेबल है, उसके उपर थर्मोकोल का एक पैकेट रखा हुआ है l

विश्व - माँ... पैकेट खोल कर देखते हैं ना...
प्रतिभा - नहीं... बिल्कुल नहीं...
विश्व - क्यूँ...
प्रतिभा - अरे... सेनापति जी ने उससे... पैकेट के बारे में पूछताछ क्या की... वह कुरियर बॉय.. पैकेट छोड़ कर भाग गया...
विश्व - तो... भाग नहीं जाएगा... वह पैकेट क्या लेकर आया... डैड ने उसकी ऐसी काउंसिलिंग की... जैसे वह कोई बम लगाने आया था...
प्रतिभा - हाँ वही तो... वह पैकेट छोड़ कर भाग क्यूँ गया...

विश्व जवाब देने के वजाए तापस की ओर देखता है l तापस न्यूज पेपर उठा कर अपने चेहरे के सामने रख देता है l

विश्व - माँ... तुम एक वकील हो... और डैड एक रिटायर्ड एसपी... जरा कानूनी दिमाग लगाओ... उस कुरियर बॉय के सारे कागजात ऑथेंटीक थे... तभी तो... डैड को देखो कैसे अपना मुहँ छुपाये बैठे हैं...
तापस - क्या कहा... डैड के बच्चे... मैं मुहँ छुपाए बैठा हूँ... मुहँ छुपाये बैठा होगा तु... तेरा बाप...
सीलु - अंकल... भाई वही तो कह रहा है...
तापस - क्या...
टीलु - यही... की आप मुहँ छुपाये तबसे बैठे हुए हैं...
तापस - (जो न्यूज पेपर पढ़ रहा था उसीको फ़ोल्ड कर टीलु को मारने के लिए उठाता है) उल्लू के पट्ठे... मेरी खिंचाई कर रहा है...(टीलु भागता है)
जिलु - सेनापति सर... आप फिर से गलत बोले... हम पट्ठे आपके हैं... इसलिए...
तापस - (रुक कर जिलु के तरफ मुड़ कर) क्या कहा.. लफंडर... इसका मतलब मैं उल्लू हूँ...
जिलु - नहीं.. मैं बोल रहा था कि... हम आपके पट्ठे हैं...
तापस - इसका मतलब... तुम चारों की अब पिटाई करनी पड़ेगी...
प्रतिभा -(चिल्ला कर) ओ हो... मैं क्या कह रही थी... और तुम लोग कर क्या रहे हो...
विश्व - रुक जाओ सब... अब इस गिफ्ट को... माँ खोल कर देखेगी...
प्रतिभा - क्या...
विश्व - माँ... बेकार में यूँ दो घंटे बीत गए हैं... प्लीज... तो फिर मुझे देख लेने दो...
प्रतिभा - पता नहीं किसका है... किसने भेजा है... किस इरादे से भेजा है...
विश्व - माँ... किसी दोस्त ने ही भेजा होगा...
प्रतिभा - तु यह कैसे कह सकता है...
विश्व - इसलिये कि... मेरे दुश्मनों ने मुझे कमाया है... पर मैंने यहाँ सिर्फ़ दोस्त और दोस्ती कमाया है... इसलिए यह गिफ्ट किसी दोस्त का ही हो सकता है...
प्रतिभा - इतना विश्वास है तुझे...
विश्व - क्यूंकि मेरे दुश्मन इतने काबिल हैं नहीं
और दोस्तों के क़ाबिलियत पर कोई सवाल नहीं...

प्रतिभा चुप रहती है l विश्व एक छोटा कैंची लेकर उस थर्मोकोल पैकेट को काटने लगता है l थर्मोकोल कवर निकालते ही पैक से पॉली पफ कवर दिखता है l उसे हटाने के बाद काठ के बने एक लाल रंग का बक्सा निकलता है l वह बक्सा एक फुट के क्यूब के आकार का था l अब विश्व उस काठ के बक्से को खोलता है l अंदर के वस्तु को देखते ही वह हैरान हो जाता है l उसके अंदर ब्रास से बनीं किसी तलवार का मूठ था l वह उस मूठ को हाथ में लेकर बाहर निकालता है, यह देख कर सभी हैरान हो जाते हैं l

प्रतिभा - यह... यह क्या... इतनी क़ीमती बक्से के अंदर... एक तलवार का मूठ...
विश्व - (चुप रहता है) (गौर से उस मूठ को अपने हाथों में लेकर देखने लगता है)
प्रतिभा - और तु कह रहा था... किसी दोस्त ने भेजा होगा...

सबके चेहरे पर तनाव दिखने लगता है l गौर से उलट पलट देखने के कुछ देर बाद अचानक विश्व के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान तैरने लगता है l विश्व को यूँ मुस्कराते देख सब हैरान हो जाते हैं और एक दूसरे को देखने लगते हैं l

प्रतिभा - क्या... क्या बात है... कौन है... कोई दोस्त है क्या...
विश्व - दोस्त.... दोस्त तो बहुत छोटा शब्द है माँ... मेरे मोहसिन हैं वह...
प्रतिभा - कौन...
विश्व - बहुत ही खास.... कोई अपना.... चाहने वाला....
तापस - तुझे कैसे पता चला... इस पैकेट पर ना भेजने वाले का नाम है... ना कोई और कागजात... या सिर्फ वही तुझे गिफ्ट भेज सकता है...
प्रतिभा - और यह तलवार की मूठ... ऐसा कोई गिफ्ट भेजता है क्या...
विश्व - माँ.. यह मूठ बहुत ही स्पेशल है... यह मूठ भेजने वाले के नाम के साथ साथ.... जेल से रिहाई की... बधाई वाला पैगाम लेकर आया है...
तापस - यह तुम्हें कैसे पता चला...
विश्व - यह देखिए... यह एक एंटीक पीस है... जहां तक मैं ठीक हूँ... यह एक ब्रिटिश ऑफिसर की सोर्ड है... क्यूंकि इसकी पोमेल.. मतलब... फाली या घुंडी पर ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगो दो शेर के वाला यूनियन जैक के साथ उसमें 1799 खुदा हुआ है... बहुत ही पुराना है... और इस मूठ का आकार ही.. डी की बनावट में है... और सबसे अहम बात... इसकी गार्ड क्रॉस जिस तरह से ऊपर उठी हुई है... बिल्कुल एक अंगूठे की तरह दिख रही है... यानी कि बधाई भेजा है उन्होंने...
तापस - अंदाजा लगा रहे हो... या...
विश्व - नहीं डैड... सिर्फ़ बधाई का मेसेज नहीं... बल्कि उन्होंने अपना नंबर भी भेजा है...
प्रतिभा - क्या... क... कैसे...
विश्व - इस मूठ पर जो कार्वींग हुई है... उसे छेड़ा नहीं गया है... पर बारीकी से देखने पर... मार्कर पेन से कुछ टिपीकल कैलीग्राफी मार्किंग की गई है... यह एक फोन नंबर है...

तापस और प्रतिभा यह सब सुन कर हैरान हो जाते हैं l पर सीलु और उसके सब साथी मुहँ फाड़े विश्व को देखने लगते हैं l विश्व अपने नए मोबाइल से एक नंबर डायल करता है और स्पीकर पर डाल देता है l कुछ देर बाद रिंग की आवाज सुनाई देती है l उसके बाद एक मर्दाना आवाज़ सुनाई देती है

- कैसे हो हीरो... आजादी मुबारक...
विश्व - नमस्कार डैनी भाई... (डैनी की नाम सुन कर और भी हैरान हो जाते हैं) आपने वाकई मुझे चौंका दिया...
डैनी - पाँच साल बाद... मेरा पट्ठा कितना ग्रो कर गया है... यह जानना मेरे लिए बहुत ही जरूरी था...
विश्व - इसका मतलब... आप हमेशा से ही मुझ पर नजर रखे हुए थे...
डैनी - तलवार में कितनी भी धार हो... अगर म्यान में है... खतरे की कोई बात नहीं... पर अगर म्यान से बाहर आ जाए... खतरे की बात तो होगी ही...
तापस - तुमको मालूम था.... विश्व तुम्हें कॉल बैक करेगा...
डैनी - ओ हो... सेनापति सर जी... नमस्कार... बड़े दिनों बाद...
तापस - तुमने बताया नहीं...
डैनी - सेनापति सर... इसमे बताने वाली कुछ है ही नहीं... इस वक़्त जो शख्स आपके साथ बैठा है... उसमें तलवार सी धार मैंने ही तो लगाया है... पाँच सालों बाद... उसका दिमाग कितना तेज है... यह भी तो जानना जरूरी था...
तापस - इसका मतलब... तुम्हें मालुम था... विश्व हमारे साथ रहने वाला है... तुम्हें कैसे मालुम हुआ... हम आज ही तो यहाँ उतरे थे...
डैनी - कमाल करते हैं... सेनापति सर जी... यह भी कोई बात हुई... आप पर हमारी नजरें इनायत पहले से ही थी...
तापस - कमाल है... हम सब तुम्हारे... मतलब तुम्हारे आदमियों के नजरों में थे... पर अंदाजा भी नहीं लगा सके...
डैनी - देट इज़ डैनी... सेनापति सर.. देट इज़ डैनी...
प्रतिभा - पर... किसी तलवार की मूठ ही क्यूँ...
डैनी - भरोसा तो मुझे मेरे पट्ठे पर सौ फीसद है... फिर भी हिदायत देना जरूरी भी है... विश्व अभी एक नंगी तलवार के जैसा है... उसे कंट्रोल में रहने के लिए हिदायत देने के लिए ही.. यह मूठ भेजा है... पर यह आधा सच है...
प्रतिभा - तो... पुरा सच क्या है...
डैनी - विश्व... इस तलवार के बारे में... कितना कुछ जान पाए हो... बताओगे जरा...
विश्व - डैनी भाई... जहां तक मेरा ध्यान जा रहा है... डेढ़ साल पहले... कलकत्ता में इस मूठ की नीलामी हुई थी... पर शायद यह किसी राजस्थानी व्यापारी ने खरीदा था...
डैनी - वेरी गुड... अगर नीलामी के बारे में जानकारी है... तो इसकी बारे में... और भी जानकारी होगी... वह बोलो...
विश्व - यह तलवार की मूठ... ईस्ट इंडिया कंपनी के कैप्टन जॉन फर्गुशन की है... उन्होंने खुर्दा जीतने बाद... खुशी से यह तलवार तोड़ी थी... तलवार का वह टूटा हुआ टुकड़े का अभी तक पता नहीं है... इसलिए सिर्फ यह मूठ बाकी है...
डैनी - शाबाश.. बहुत कुछ जानते हो... पर इस टुटे हुए तलवार पर एक मिथक... या मिथ... या किवदंती भी है... जानते हो...
विश्व - नहीं...
डैनी - सन 1803 में ओड़िशा का सबसे ताकतवर राज्य.. खुर्दा के पतन के बाद... एक नए राजशाही को अंग्रेजों ने मान्यता दी थी... वह राज्य था... यश वर्धन पुर... बाद में आगे चलकर यशपुर कहलाया...
विश्व - अच्छा... तो वह मिथक... यशपुर से जुड़ा हुआ है...
डैनी - हाँ... खुर्दा के पतन के बाद जॉन फर्ग्यूसन ने... यश वर्धन से वफादारी के लिए राज शाही के साथ साथ कुछ और भी मांगने के लिए कहा था... यश वर्धन था बहुत चालाक... किसीके आगे कभी झुका नहीं था... आगे चलकर कहीं अंग्रेजों के सामने उसे झुकना ना पड़े... इसलिए फर्ग्यूसन की तलवार मांग ली... एक विजयी योद्धा से तलवार माँगना मतलब... उससे उसका समर्पण माँगना... अपने बड़बोले पन में फर्ग्यूसन ने मांगने के लिए कहा था... यश ने जो मांगा था वह उसके लिए एक अपमान था... उसने तलवार तो दी... मगर उसकी मूठ निकाल कर... जिससे उसने अपनी इज़्ज़त बचा ली... और तलवार को प्रतीक के रूप में.... यश वर्धन पुर और क्षेत्रपाल राजशाही को मान्यता दी...
विश्व - यह तो फैक्ट है... मिथक कहाँ है...
डैनी - मिथक यह है कि... वह जो वगैर मूठ वाली नंगी तलवार है... वह जब अपनी मूठ से जुड़ जाएगा... क्षेत्रपाल की राजशाही खत्म हो जाएगी....
विश्व - क्या...
डैनी - हाँ... वैसे यह एक मिथक है... पर इसी डर से... इन्वीटेशन के बावजुद... इतनी अहम नीलामी में... क्षेत्रपाल के परिवार में कोई नहीं गया था...
विश्व - (चुप रहता है)
डैनी - क्या सोचने लगे...
विश्व - मुझे करना क्या होगा...
डैनी - क्षेत्रपाल का अहं... बेवजह नहीं है... वह अहं उसका आत्मविश्वास भी है... इसलिए यूँ मान के चलो... उस तलवार को पुरा एक करना भी.... तुम्हारा एक मिशन होगा.... यानी तलवार से मूठ अलग हुआ तो राजशाही मिली... जब मूठ वापस जुड़ जाएगा... तब राजशाही खतम भी हो जाएगी...
तापस - क्या तुम उसमें विश्व की मदत करोगे...
डैनी - मदत... जी नहीं... बिल्कुल नहीं...
तापस - क्यूँ... क्यूँ नहीं...
डैनी - मैं फ़िलहाल... दर्शक की भूमिका में हूँ... थर्ड अंपायर का दायित्व तो आप और मैडम निभा रहे हैं... खेलना... खिलाड़ी का काम है... मैने अपने खिलाड़ी को... ऑल द बेस्ट कह दिया है...
विश्व - डैनी भाई... क्या हम कभी मिल पाएंगे...
डैनी - हम मिलेंगे... और जरूर मिलेंगे... फ़िलहाल मेरा बेस्ट ऑफ लक विश.... तुम्हारे आने वाले दिन के लिए...
विश्व - थैंक्यू डैनी भाई...
डैनी - ओवर एन आउट...

डैनी का फोन कट जाता है l

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ESS ऑफिस
लंच ब्रेक था, इसलिए अनु नीचे कैन्टीन में थी l लंच खतम कर जब वह जाने को हुई तभी उसे मालुम हुआ कि वीर आ गया है और खुद को अपने कैबिन में बंद कर लिया है l यह सुनते ही वह उपर ऑफिस में जाने को हुई तो एक स्टाफ उसे रोकता है

स्टाफ - रुको... अभी ऊपर मत जाओ...
अनु - क्यूँ...
स्टाफ - राज कुमार जी ने... किसीको भी ऊपर ऑफिस जाने से मना किया है...
अनु - (ऊपर की ओर देखती है) (तभी ऊपर कुछ टूटने की आवाज आती है) वह.. वह क्या कर रहे हैं....
स्टाफ - पता नहीं जब से आए हैं... गुस्से में हैं... (फिर कुछ फेंके जाने की आवाज आती है) चीजें उठा उठा कर... फेंक कर... या तोड़ कर... अपना गुस्सा ठंडा कर रहे हैं...
अनु - हे भगवान... तब तो मुझे जाना चाहिए...
स्टाफ - ऐ लड़की... ऊपर जाएगी... तो अपनी नौकरी गवां बैठेगी...
अनु - वह मालिक हैं... उनकी मर्जी... पर अगर उन्हें ऐसे छोड़ दिया... तो वह खुद को घायल कर बैठेंगे.... (अनु ऊपर जाने लगती है) (कुछ लोग उसे रोकना चाहते हैं)
स्टाफ - जाने दो इसे... राजकुमार जी के सामने भली बनने की ऐक्टिंग करेगी... हूँह्ह्... राजकुमार जी को जानती कहाँ है... जाने दो उसे...

सब लोग साइड हो जाते हैं l अनु सीढियों से ऊपर वीर के कैबिन के पास पहुँचती है l तभी कैबिन के अंदर कुछ काँच के सामान टूटने की आवाज आती है l अनु दरवाज़ा खटखटाती है l पर अंदर से कोई आवाज नहीं आती l तभी दरवाजे के नीचे की गैप से कुछ कांच के टुकड़े छिटक के बाहर आते हैं l अनु अपनी हैंडबैग से एक्स्ट्रा चाबी निकालती है और धीरे से दरवाजा खोल कर अंदर झाँकती है l अंदर वीर गहरी गहरी सांसे लेते हुए अपनी जबड़े भींचे हुए दोनों हाथों को टेबल पर मार रहा है l दरवाजा खोल कर अंदर दरवाज़े के पास खड़ी हो जाती है l

वीर - (चिल्लाते हुए) कहा था ना... कोई नहीं आए यहाँ पर... क्यूँ आई हो... बंद करो दरवाजा...

अनु दरवाजे को अंदर से बंद कर देती है l वीर एक कुर्सी को उठा कर टेबल पर पटकने लगता है l वह कुर्सी टुट जाती है l अनु उसे देखती I वीर कमरे को तहस नहस कर चुका है l वीर अपना सिर घुमाता है उसे कमरे में फाइलों से भरी, कमर की हाइट की एक कबोर्ड दिखती है l वह उसके पास जाता है l उस कबोर्ड के ऊपर कुछ ट्रफीयाँ थी उन्हें उठा कर फेंक देता है l फिर उस कबोर्ड पर चिल्ला चिल्ला कर घुसा मारने लगता है l अनु से रहा नहीं जाता वह भागते हुए वीर के पीछे से कस के गले लग जाती है l वीर जो इतना वायलेंट था कुछ देर पहले वह अचानक से रुक जाता है l वीर उस कबोर्ड पर दोनों हाथ रख कर शांत हो कर अपनी आँखे मूँद लेता है अनु वीर को वैसे ही कसके पकड़े रखती है l वीर की सांसे अब धीरे धीरे नॉर्मल होने लगती है l उसे महसुस होता है अनु उसे कस कर पकड़ी हुई है l वह तुरंत अनु की हाथों को खुद से अलग करता है और अनु की तरफ पीछे मुड़ जाता है l आँखों में आंसू लिए अंगारों की तरह जल रही आँखों से अनु की तरफ देखता है I अनु वीर के आँखों में बेइन्तेहा दर्द देखती है l वीर रोया तो नहीं पर टुटसा गया था l वह अनु को, अपने सीने से लगा लेता है l अनु भी उसे अपने से कस के भींच लेती है l इसी तरह कुछ वक़्त वह दोनों एक दुसरे के बाहों में गुजार देते हैं l अनु खुदको अलग करने की कोशिश करती है पर वीर उसे अपने से अलग होने नहीं देता l तो अनु उसे फिर से गले लगा लेती है l

अनु - राजकुमार जी...
वीर - हूँम्म्म्...
अनु - आप आज इस कदर.... क्यूँ टुट गए...
वीर - (चुप रहता है)
अनु - क्या मैं इस काबिल भी नहीं... की आपके दर्द बांट सकूँ...
वीर - (भर्रायी हुई आवाज में) मैं तुम्हारे जैसा नहीं हूँ अनु... सच कहूँ तो.. मैं किसी के भी लायक नहीं हूँ...

अनु अब वीर से अलग होती है और वीर की हाथ को पकड़ कर अपने साथ लेकर एक सोफ़े पर बिठा देती है l

अनु - अब बताइए... हो सकता है... मैं कुछ मदत कर पाऊँ...

वीर अनु के आँखों में देखता है और फिर उसके चेहरे की मासूमियत में हैरानी भरे नजरों देखते हुए खो सा जाता है l

अनु - (वीर के हाथ पर हाथ रख कर हिलाते हुए) राजकुमार जी...
वीर - हँ... हाँ... हाँ अनु...
अनु - अब जो बोझ बनकर आपके दिल में है... उसे मेरे सामने उतार दीजिए... मैं समझ सकती हूँ... कोई गहरी बात है... पर प्लीज... आप ऐसे तो ना टुट जाइए...
वीर - (अपने दोनों हाथों में अनु के हाथों को लेकर) अनु... मैंने कहा था ना... आज मेरी बहन... राजकुमारी रुप की जन्मदिन है...
अनु - हाँ...
वीर - मैं... मैं तुम्हारी बात मान कर... उसे बधाई देने कॉलेज गया था...

एक फ्लैशबैक....

रॉकी प्रिन्सिपल ऑफिस से बाहर निकल कर उस कॉरीडोर के सामने अपनी आँखे बंद कर दोनों बाहें फैला कर खड़ा हो जाता है l उधर रॉकी टेबल से तोड़े काठ का टुकड़ा लिए भागता हुआ रॉकी के तरफ जा रहा है l इतने में रुप और उसके सारे दोस्त कैन्टीन से बाहर आकर रॉकी के तरफ देखते हैं l रुप का चेहरा गुस्से से लाल हो चुका है l वह गुस्से भरी नजर से रॉकी की ओर देखती है l इतने में रुप अपने कंधे पर बनानी की हाथ को महसूस करती है l जैसे जैसे उस तरफ से वीर बढ़ता जा रहा था बनानी की हाथ का दबाव रुप के कंधे पर बढ़ती ही जा रही थी और आँखों में खौफ के साथ साथ आँसू भी बहने लगे थे l रुप देखती है वीर रॉकी के पास पहुँचने वाला है फिर एक नजर वह बनानी को देखती है, फिर वह भी रॉकी के तरफ भागती है l वीर काठ को हाथ में लिए रॉकी के तरफ भागते हुए एक कुदी लगाता है l रुप भी तेजी से भागते हुए जाती है पर थोड़ी देर हो जाती है रॉकी के सिर वीर का काठ लग जाती है l रॉकी का सिर फट जाता है और वह नीचे बेहोश गिर जाता है l वीर अपना काठ उठा कर मारने वाला होता कि रुप उसे पीछे से पकड़ कर खिंच देती है l वीर गुस्से से अपना काठ को मारने के लिए उठाता है उसके सामने रुप खड़ी हो जाती है l

वीर - (चिल्ला कर) आप हटीये राजकुमारी...
रुप - क्यूँ.. क्यूँ हट जाएं...
वीर - यह कुत्ता है... अपनी औकात भूल गया था... इसलिए इसे जीने का हक नहीं है...
रुप - क्या किया है आखिर इसने...
वीर - इसने हम से.... हम से रिस्ता जोड़ने की कोशिश की है...
रुप - तो कौनसा गुनाह हो गया उससे... खुदको भाई ही तो कहा है... हमारा... कौनसा रुसवा या जलील कर दिया हमें...
वीर - (अपने चारो तरफ देखता है, सब उन दोनों को ही देख रहे हैं) (थोड़ा शांत होते हुए) उसने... क्षेत्रपाल परिवार की लड़की से जुड़ने की कोशिश की है...
रुप - हाँ तो किस रिश्ते से... खुद को ज़माने के आगे हमारा भाई कहा है... क्या भाई बहन का रिश्ता भी... इतना बड़ा गुनाह हो गया है...
वीर - आप... आप इसकी तरफदारी क्यूँ कर रहे हैं...
रुप - इसलिए... (पॉज लेकर) की वह मेरा भाई लगता है...
वीर - (अपने हाथ से काठ को फेंकते हुए) तो हम कौन हैं...
रुप - आप राजकुमार वीर सिंह क्षेत्रपाल हैं... आपको हम से और हमें आपसे यह क्षेत्रपाल जोड़ता है... यही वजह है कि आप राजकुमार हैं... और हम राजकुमारी...
वीर - इनॉफ... हम भाई हैं आपके...
रुप - कब से... (यही लफ्ज़ गूंजने लगती है)
वीर - (चुप हो जाता है)
रुप - कब से... हम राजकुमारी हैं... आप राजकुमार... इसके आगे ना हमारा कोई रिश्ता है.. ना ही कोई पहचान... आज पहली बार... कोई ना खून से ना खानदान से हमसे भाई बनकर जुड़ रहा था... वह भी आपसे नहीं देखा गया...
वीर - (चीखते हुए) राजकुमारी.... (हाथ उठ जाता है मगर हवा में रुक जाता है) (वीर देखता है रुप एक पल के लिए अपनी आँखे तो मूँद लेती है पर वहाँ से हटती नहीं)
रुप - (वीर के आँखों में आँखे डालते हुए) हाथ उठाने से पहले इतना तो बता दीजिए... यह उठने वाला हाथ किसका है... राजकुमार वीर सिंह के... या मेरे भाई के...

फ्लैशबैक खतम

अनु ख़ामोशी के साथ वीर को सुने जा रही थी l वीर अपनी बात खतम करता से है l

वीर - अनु.... राजकुमारी जी... मेरी बहन हैं... वह मुझसे ऐसे बात की... वह भी एक नामुराद के लिए...
अनु - (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाती है) (फिर एक गहरी सांस लेते हुए) एक बात कहूँ... अगर... आप बुरा ना मानें तो...
वीर - हाँ पूछो...
अनु - उस वक़्त... राजकुमारी जी के लिए भाई कौन था...
वीर - क्य... क्या मतलब है आपका...
अनु - आप अभी भी... राजकुमारी कह रहे हैं... बहन बाद में बोल रहे हैं... आपके लिए मुख्य क्या है... खुनी रिश्ता या खानदानी पहचान...
वीर - (चुप हो जाता है, और अनु के चेहरे को घूर कर देखने लगता है)
अनु - मैं... आपके और राजकुमारी जी के बीच की कशमकश को समझ पा रही हूँ... पर पता नहीं आपको समझा पाऊँगी या नहीं... फिर भी... आपका खुनी संबंध असली है... पर खानदानी पहचान के नीचे घुट गया है... और उस लड़के का राजकुमारी जी से संबंध भले ही नकली है... पर वह भाई की पहचान के साथ सामने आया... भगवान ना करें राजकुमारी जी को... कल किसी मदत की दरकार होगी... तब आप क्या उनके... राजकुमार बुलाने की इंतजार करेंगे... या भैया बुलाने भर मदत को पहुंचेंगे...
वीर - (चुप रहता है और अपना सिर पकड़ कर अपने कुहनियों के बल घुटनों पर झुक जाता है)
अनु - लगता है... मैं कुछ ज्यादा कह गई... अपनी औकात से बाहर कह गई... (अनु जाने के लिए उठती है)
वीर - अनु... प्लीज रुक जाओ... मैं समझ गया... मैं भाई असली हूँ... पर खानदानी नकली पहचान के ओट में हूँ... वह भाई नकली था... पर उसके लिए मेरी बहन की ज़ज्बात असली थे... मैं कहाँ गलत हूँ जान गया हूँ... मुझे सुधारने का रास्ता भी तुम बताओ... प्लीज अनु.. प्लीज...
अनु - (वीर को गौर से देखती है, वीर जैसे अपने अंदर की दुख की सैलाब को जबरदस्ती रोके रखा है) राजकुमार जी... आप रो रहे हैं...
वीर - नहीं.. मैं रो नहीं रहा हूँ...(जबड़े भींच कर) क्षेत्रपाल कभी रो नहीं सकते...
अनु - राजकुमार जी... आपके जज़्बातों को... दिल के सुकून को... आपके इसी अहम ने... भरम ने.. अंधेरे में अबतक आपको भटका रहा है... मेरी बात मानिए... बस एक बार... जी भर के रो लीजिए... सब साफ हो जाएगा... अंधेरा छट जाएगा... आपको अच्छा लगेगा... आपको नई ऊर्जा मिलेगी... आप को नई राह मिलेगी...
वीर - (उठ खड़ा होता है) यह.. यह रोना धोना सब औरतों का काम है... हम मर्द हैं... वह भी क्षेत्रपाल...

अनु उठ कर जाने लगती है l वीर उसका हाथ पकड़ लेता है, अनु मुड़ कर उसे देखती है तो वीर उसे अपने गले से लगा लेता है और अनु के कंधे पर फफक फफक कर रोने लगता है l उसे रोता हुआ पा कर अनु भी उसे गले लगा लेती है l वीर धीरे धीरे टूटते टूटते रोने लगता है l अनु उसे अपने से अलग करती है और सोफ़े पर बैठ कर वीर को अपने पास बिठाती है और वीर के सिर को अपने गोद में रख देती है l वीर अपनी आँखे बंद कर लेता है और रोते रोते उसके गोद में हो सो जाता है


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हस्पताल के बेड पर लेटा रॉकी धीरे धीरे अपनी आँखे खोलता है I दर्द के मारे कराहने लगता है l वह याद करने की कोशिश करता है आखिर क्या हुआ l उसे याद आता है वीर के हाथ में एक काठ का टुकड़ा था जिसे लेकर वह रॉकी को मारने के लिए कुदी लगाया था l उसके बाद वह डर के मारे आँखे बंद कर लिया था l अब उसकी आँखे खुली तो हस्पताल के बेड पर पड़ा है l हाथ में सलाइन लगा हुआ है l अपने बाएं हाथ को सिर पर लगाते ही उसे मालुम होता है कि उसके सिर पर चोट लगी है l

रॉकी - आह...
सुमित्रा - कैसा है... दर्द कम हुआ...
रॉकी - मम्मी... तुम... मैं... यहाँ... कब आया...
सुमित्रा - तुझे याद भी है... तुने कांड कौनसा किया...
रॉकी - (अपना सिर झुका लेता है)
सुमित्रा - हूँह्ह... कांड ऐसा किया... के अपनी माँ के सामने सिर झुकाना पड़ रहा है...
रॉकी - मम्मी... मैंने क्या गलत किया...
सुमित्रा - ओ... अच्छा... तो बता जरा... सही क्या किया तुने...
रॉकी - (कुछ नहीं कह पाता)
सुमित्रा - तुने... पहले अपने बदले के लिए... रुप नंदिनी से प्यार का नाटक किया... दाल नहीं गली... तो बहन बना कर चाल चलने लगा... फिर भी... नंदिनी ने बड़ा दिल दिखाया... तेरी जान के लिए... अपने भाई से भीड़ गई...
रॉकी - (खुश होते हुए) सच...
सुमित्रा - खुश क्यूँ हो रहा है... तुझे अपने भाई से बचाया इसलिए...
रॉकी - हूँह्ह...
सुमित्रा - बचपन से ही... तु उतावला था... जल्दबाजी रहती थी तेरी हर बात में... हर काम में.. पर... एक लड़की के बारे में... तुने ऐसा कैसे सोच लिया... ऐसा कैसे कर गया...
रॉकी - मम्मी... इतना सब कुछ... तुम्हें किसने बताया...
सुमित्रा - रवि और दीप्ति ने...
रॉकी - (फिर अपना सिर झुका लेता है) मम्मी आपको क्यूँ लगा... नंदिनी ने मुझे बचाया... इस बात पर खुश ना होऊँ...
सुमित्रा - इसकी भी वजह... दीप्ति ने बताया मुझे...
रॉकी - मम्मी... तुमने सही कहा... मैं उतावले पन में... जल्दबाजी में.. बहुत कुछ गलत कर गया... मैं सबकुछ हार चुका था... अपने दोस्त... नंदिनी का विश्वास और खुद को भी... मैं.. दुबारा वह सब कुछ हासिल करना चाहता था... इसलिए ऐसा किया...
सुमित्रा - एक लड़की का नाम सरेआम लेता है... एक जबरदस्ती का रिश्ता... उसपर थोपता है... और यह उम्मीद करता है... की वह भागते हुए आए... और तुझे... सरेआम गले लगा ले...
रॉकी - (अपना सिर फिर से झुका लेता है)
सुमित्रा - भाई बहन के रिश्ते को... दुहाई दे कर... एक लड़की का मज़ाक बना बना दिया तुने... जाहिर सी बात है... उसका भाई तुझ पर टुट पड़ा... हाँ अगर रुप नंदिनी बीच में ना आती... तो.... (बात को पूरी नहीं कर पाती)
रॉकी - नंदिनी ने... अपने भाई से मुझे बचाया... मतलब... उसे मेरी इस हरकत से भले ही ठेस लगा हो... पर उतना बुरा नहीं लगा होगा...
सुमित्रा - अभी भी... अपनी हरकत को जायज ठहराने की कोशिश कर रहा है... वह...वह क्या नाम बताया दीप्ति ने....ह्म्म्म्म.. हाँ बनानी... बनानी के लिए... अपने भाई से बचाया... नंदिनी ने...
रॉकी - (दबी जुबान से) मैं... मैं ने जो भी किया... क्या... कोई ऐसा कर पाएगा...
सुमित्रा - नहीं... नहीं कर पाएगा शायद... पर असलियत वह नहीं है... जो तु कह रहा है... या समझाना चाह रहा है... असलियत यह है कि... तु नंदिनी से बदला लेना चाहता था... उसने तुझे बुजदिल और कायर कहा था... उसने जिस तरह से तेरी करनी को तेरे सामने फोड़ा था... उससे तेरे अंदर की मर्दाना गुरुर को ठेस पहुंचा था... इसलिए तुने यह हरकत की थी... खुद को मर्द साबित करने के लिए और खुद को बहादुर साबित करने के लिए...
रॉकी - आ.. आप.. आपको... यह सब कैसे मालुम...
सुमित्रा - लगता है.. तेरे सिर पर चोट गहरा लगा है... बताया तो था... दीप्ति और रवि ने मुझे सबकुछ बता दिया...
रॉकी - ड... डैड...
सुमित्रा - नहीं आए हैं... कल तेरी टीसी लेने के बाद... तुझसे मिलने आयेंगे...
रॉकी - (शर्म और दुख से अपना सर फिर नीचे कर लेता है) स... सॉरी मम्मी...
सुमित्रा - (और कुछ नहीं कहती है)

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वीर मध्यम गति से गाड़ी चला रहा है l बगल में अनु बैठी हुई है l वीर बहुत तरोताजा लग रहा था l एक अंदरुनी खुशी उसके चेहरे पर दमक रही थी l अनु उसे तिरछी नजरों से बीच बीच में देख रही थी l वीर की ख़ुशनुमा चेहरा देख कर उसे बहुत अच्छा लग रहा था l अनु आज की बातों को याद करने लगती है l कैसे एक मासूम बच्चे की तरह, अनु के गले से लग कर रोया, और उसके गोद में सिर रख कर सो गया l यह याद आते ही अनु के गाल शर्म से लाल हो जाते हैं l अनु को वह लम्हा याद आने लगता है जब सोया हुआ वीर उसके गोद से अचानक उठ कर बैठ गया

वीर - अनु... मैं.. तु.. तुम्हारी गोद में सिर रख कर सोया हुआ था...
अनु - (झिझकते हुए अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
वीर - (दिवार पर लगी घड़ी को देख कर) ओह माय गॉड... शाम के छह बज रहे हैं... और तुम अभी तक यहीं हो... मु.. मुझे जगाया क्यूँ नहीं....
अनु - (कुछ कह नहीं पाती) (इधर उधर देखने लगती है)
वीर - क्यूँ अनु...
अनु - (झिझकते हुए) क्या बताऊँ... आप... आप.. टुटे हुए लग रहे थे... थके हुए लग रहे थे... ऐसा लगा... जैसे दर्द के मारे छटपटा रहे थे... पर आप सोये... ऐसे सोये... जैसे कई दिनों से सोये ना हों... मुझे ऐसे जकड़े सोये... जैसे कोई मासूम बच्चा.. माँ की गोद को... बस... इसीलिए.. नहीं जगाया...
वीर - (उठ कर खड़ा हो जाता है)(अनु की तरफ बिना देखे) तुमने ठीक कहा अनु... बचपन में... कभी माँ की गोद में ही ऐसी नींद आई थी... एक बार क्या वह गोद छुटा... फिर कभी वैसी नींद नहीं आई... आज जाकर वह नींद पुरी कर पाया... (अनु की तरफ मुड़ कर देख कर) थैंक्यू...
अनु - आप ही ने तो कहा था... मैं आपकी पर्सनल सेक्रेटरी कम अस्सिटेंट हूँ... मेरा सिर्फ़ काम ही है... आपका खयाल रखना...
वीर - (एक गहरी सांस लेता है) (अनु की बातों अपने अंदर एक थर्राहट महसुस करता है)(पहली बार ऐसा होता है कि वह अपनी नजरें झुका लेता है)
अनु - एक बात कहूँ...
वीर - हूँ... (अनु की ओर बिना देखे)
अनु - आज आप... अंदर ही अंदर अपनी माँ को ढूंढ रहे थे...
वीर - (हैरान हो कर अनु को देखता है)
अनु - हाँ राज कुमार जी... आपकी तड़प आजकी नहीं है... कई सालों की है... आपको आज एक कंधे की दरकार थी... सिसकने के लिए.. एक सीने की दरकार थी... लग कर रोने के लिए... और एक गोद की दरकार थी... जकड़ कर सोने के लिए...
वीर - (आँखे बड़ी हो जाती है, मुहँ खुला रह जाता है) अनु.. क्या यह तुम हो....
अनु - जी... राजकुमार जी...मैं ही हूँ... ऐसी भावनायें मैं बखूबी समझ सकती हूँ... क्यूंकि... मेरी ना तो माँ है... ना बाबा... मैं भी बहुत तड़पी हूँ... वह कंधा.. वह सीना.. वह गोदी... बहुत ढूंढी हूँ... इसलिए मैं उस दर्द को... तड़प को समझ सकी...
वीर - (अनु को ऐसे देखने लगता है जैसे वह किसी दुसरी ग्रह से आई हो) (मुश्किल से अपना थूक निगलता है) (वह झट से अपना चेहरा घुमा लेता है)
अनु - आपके सारे दर्द गायब हो जाएंगे...
वीर - (फिर मुड़ कर अनु को देखता है) कैसे...
अनु - एक बार... बस एक बार अपनी माँ से बात लीजिए... (वीर फिर से अनु की तरफ पीठ कर लेता है) कब तक... ऐसे मुहँ फेरे रहेंगे... आपकी दर्द की दवा... आपके अपनों के पास है... बात तो कीजिए... पर राजकुमार बन कर नहीं... एक माँ के बेटे बन कर...
वीर - नहीं...
अनु - (चुप हो जाती है) (वह वहाँ से जाने लगती है)
वीर - अनु प्लीज...
अनु - माफ लीजिए राजकुमार जी... आप मालिक हैं... मैं मुलाजिम... शायद मैं कुछ ज्यादा ही बोल गई... अपनी औकात भूल गई...
वीर - नहीं नहीं नहीं... प्लीज... तुम गलत नहीं हो... पर... सच यह है कि... मैं... मेरी हिम्मत नहीं हो रही है...
अनु - (वीर के पास आकर, वीर के हाथ पर हाथ रख कर) एक बार कोशिश तो कीजिए...

वीर कांपते हाथों से फोन निकालता है पर नंबर डायल कर नहीं पाता l अनु वीर को आँखों से दिलासा देते हुए डायल करने के लिए कहती है l वीर एक नंबर डायल करता है

-हैलो (राजगड़ के महल में कोई नौकर फोन उठाता है)
वीर - हम... राजकुमार बोल रहे हैं...
नौकर - जी... हुकुम राजकुमार..
वीर - छोटी रानी जी से बात करनी है... उन्हें कर्डलेस दो....
नौकर - जी हुकुम... (नौकर भागते हुए सुषमा को कर्डलेस देता है) (अपना सिर झुकाए) छोटी रानी... राजकुमार...
सुषमा - (कर्डलेस को हाथ में लेकर) हैलो...
वीर - (यह सुन कर आँखे छलक पड़ती हैं) (वह अनु की ओर देखता है) (अनु उसे इशारे से बात करने को कहती है) हे.. हैलो...
सुषमा - कहिए राजकुमार... फोन क्यूँ किया...
वीर - वह... मैं.. (आवाज़ भर्रा जाती है) म.. मैं...
सुषमा - (हैरान हो कर) राज कुमार... क.. क्या हुआ...
वीर - (अनु इशारे से माँ कहने के लिए कहती है) (वीर अनु की तरफ देख कर) माँ...
सुषमा - (आँखे बड़ी हो जाती है) क... क्या कहा...
वीर - माँ...
सुषमा - क्या बात है.. र.. राज.. कुमार...
वीर - राजकुमार नहीं माँ... वीर... वीर कहो ना माँ...
सुषमा - क... क्या हुआ है आपको...
वीर - आप नहीं... तुम.. या.. तु... आप नहीं...
सुषमा - (नौकर को इशारे से, बाहर जाने के लिए कहती है, नौकर के जाने के बाद) क्या कहा तुमने...
वीर - हाँ माँ... यह ठीक है... यह नकली पहचान के नीचे... रिश्तों को और कुचल नहीं सकता... आज मुझे रानी माँ की नहीं... माँ की दरकार थी...
सुषमा - (सूबकते हुए) क्या... इसलिए तुझे... आज माँ की याद आई...
वीर - देखा... देखा माँ देखा... हम अभी कितने करीब हो गए... यह राजसी पहचान को ढोते ढोते... हम रिश्तों के मामले में कितना गरीब... और कितने दूर हो गए थे... मैंने आज माँ कहा.... तो तुमने तु कह दिया...
सुषमा - (थर्राती हुई आवाज में) हाँ मेरे लाल... हाँ..
वीर - बस माँ... अब मैं फोन रखता हूँ...
सुषमा - क्यूँ... मन भर गया तेरा...
वीर - नहीं माँ... आज एक दिन में इतनी खुशियाँ... मुझसे संभले नहीं संभलेगी माँ...
सुषमा - ठीक है बेटा... क्या कल भी फोन करेगा...
वीर - हाँ माँ हाँ... अब तो तुमसे बात किए मेरा दिन पूरा ना होगा... अच्छा अब रखता हूँ...
सुषमा - ठीक है बेटा... बाय..
वीर - बाय माँ... (कह कर फोन काट देता है और खुशी से अनु के हाथ पकड़ कर कूदने लगता है)

उसकी खुशी देख कर अनु भी खुशी के मारे हँसने लगती है l वीर अचानक कूदना बंद कर अनु को देखता है और आगे बढ़ कर अनु को गले लगा लेता है l वीर का चेहरा अनु के कंधे पर होती है

वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - आज... मैं तुमसे एक वादा माँगना चाहता हूँ...
अनु - कैसा वादा...
वीर - जिस तरह आज तुमने मुझे अपने गले से लगा कर... टूटने से.. बिखरने से... बचाया...
अनु - जी...
वीर - फ़िर कभी ग़मों में टूटने लगूँ... या कभी ज्यादा खुशी में बहक ने लगूँ... तब मुझे गले से लगा लेना... प्लीज...
अनु - (वीर से अलग हो जाती है, वीर का चेहरा उतर जाता है) क्या... यह एक मालिक का... अपने मुलाजिम को दिया हुकुम है...
वीर - (अपना सिर ना में हिलाते हुए) नहीं... अनु नहीं... आज... एक दोस्त अपने दोस्त से ईलतजा कर रहा है...
अनु - (चेहरे पर हल्का सा शर्म और मुस्कान लेते हुए) जी... ठीक है...
वीर - (चेहरे पर रौनक लौट आती है) सच...
अनु - (थोड़ा शर्माते हुए) जी...
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - अब मैं बहुत खुस हूँ...
अनु - (कुछ नहीं कहती है शर्मा के चेहरा झुका लेती है)
वीर - अनु... अब मैं बहुत खुश हूँ...
अनु - (सिर उठा कर वीर की तरफ देखती है) (वीर दोनों बाहें फैलाए खड़ा है)

कार के हॉर्न से अनु अपनी वास्तव में आती है l वीर उसके गली के बाहर गाड़ी रोक देता है l अनु शर्माते हुए गाड़ी से उतर जाती है l और अपने गली की ओर बढ़ने लगती है l

वीर - अनु... (अनु पीछे मुड़ती है) क्या यार... कम से कम बाय तो कहो...
अनु - जी... बाय...
वीर - बाय... और हाँ... सोने से पहले... मेरी खैरियत पूछना जरूर...
अनु - (शर्म और खुशी से दोहरी हो जाती है) (सिर को हाँ में हिलाते हुए) जी... (कह कर गली की ओर भाग जाती है)

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बादामबाड़ी बस स्टैंड कटक l

तापस और विश्व सीलु एंड ग्रुप को बस में बिठाने के बाद बाहर चलते हुए निकलते हैं l

विश्व - डैड... हम कार में भी तो आ सकते थे...
तापस - चलाता कौन.. मैं...
विश्व - हम छह जन थे... जाहिर है... माँ तो आ नहीं सकती थी...
तापस - हाँ... और नाइट ड्राइविंग... मुझे अच्छी नहीं लगती... और किस्मत से हम छह थे... इसलिए ऑटो में तीन तीन हो कर आ पाए... वरना तुम्हारी माँ को पता चल गया होता...
विश्व - माँ से यह बात छुपाना जरूरी था क्या...
तापस - उसका दिल एक माँ की है... बच्चों को खतरों से हमेशा दूर रखना चाहेगी ही...
विश्व - पर यह सब करना जरूरी था क्या...
तापस - कितना जरूरी था... यह तु भी समझ पा रहा होगा... आगे चलकर कितना काम आएगा...
विश्व - पर यह सब आपने सोचा कब...
तापस - जब तु इन चारों को सरकारी गवाह बनाने के लिए... अपनी माँ से बात कर रहा था... मेरे सामने वह भी... मेरे ही फोन पर...
विश्व - (हँसता है) डैड... एक बात कहूँ...
तापस - हाँ बोल...
विश्व - आप ना... माँ से पहले ही... मुझे जानते हो... माँ से पहले ही... मुझे पसंद और प्यार करने लगे थे... तो मुझे गले लगाने में... माँ से भी देरी आपने क्यूँ की...
तापस - ऑए... ज्यादा... फिलॉसफर बनने की कोशिश मत कर...
विश्व - (छेड़ते हुए) क्या डैड... मैंने महसूस किया है... आप मुझे पसंद बहुत करते थे... बाद में प्यार भी बहुत करने लगे...
तापस - (घूरते हुए) तु क्या मुझे आज छेड़ने के मूड में है...
विश्व - बिल्कुल नहीं... मुझसे जुड़े हर ज़ज्बात में... जब माँ से पहले आप थे... तो इजहार करने में... माँ पहले आप बाद में... ऐसा क्यूँ...
तापस - देख मेरे सामने बच्चा है तु... समझा... ज़्यादा स्मार्ट मत बन... तुझसे तेरी माँ बहुत प्यार करती है... इसीलिए मैं...
विश्व - हाँ... मैं...
तापस - बंद करेगा अपना यह डब डब...
विश्व - ठीक है... डैड... पर एक बात कहूँ...
तापस - हाँ.. बोल..
विश्व - माँ मुझ पर प्यार बहुत लुटाती है... पर वह आज की सोचती है... कल की बिल्कुल नहीं... पर आप... मेरे जंग की मैदान को... पूरी तरह से तैयार कर रखा है... बल्कि यूँ कहूँ... आपने अपनी चालें तैयार कर रखा है.... क्यूंकि आपको शायद मालुम है... कौन.. कब... कौनसा चाल चलने वाला है....
तापस - (चलते चलते एक रोड साइड बेंच पर बैठ जाता है और विश्व को पास बुला कर बैठने को कहता है)
विश्व - (तापस के पास बैठते हुए) यह सारी बातें... आपने माँ को भी नहीं बताया है...

तभी एक छोटा सा कुत्ते का पिल्ला तापस के पैर के पास आकर घिसने लगता है l तापस उस पिल्ले को उठा कर

तापस - इस कुत्ते के पिल्ले को देखो... एक लावारिश... अपने जिंदगी में जो वैक्यूम है... उसे पुरा करने के लिए... यह मेरे पैरों के पास अपना किस्मत आजमा रहा है...
विश्व - वैक्यूम...
तापस - हाँ... वैक्यूम... हमारे जिंदगी में प्रत्युष और प्रताप नाम का जो वैकुम था... वह तुमसे पुरा हो रहा था... हम लावारिश थे... अब तुम हमारे वारिश हो... हम एक-दूसरे से निभा पा रहे हैं... क्यूंकि हमारा वैक्यूम जज्बाती रूप से फुल हो गया है....
विश्व - डैड.. कुछ ढंग का एक्जाम्पल देते... इस कुत्ते के पिल्ले को बीच में लाने की क्या जरूरत थी... मुझे बस इतना पता है... आप मुझसे बहुत प्यार करते हो... पर जताने में देर कर दी... समझाया कुछ नहीं... उल्टा कुत्ते का अपमान कर दिया... माँ को पता लगेगा तो कितना बुरा लगेगा....
तापस - (मुस्कराता है) बात टालने के लिए मेरे पास कुछ था जो नहीं...
विश्व - मैं जानता हूँ डैड... मैं बस छेड़ रहा था...
तापस - तुझे क्या लगा... मैं भी लपेट रहा था... समझा... बाप... हमेशा बाप ही रहता है...

तापस उठ कर फिर चलने लगता है l कुछ दूर जा कर एक ऑटो को रोकता है l विश्व भी ऑटो के पास पहुँचता है

तापस - अब तुम ड्राइविंग स्कुल जॉइन कर लो... सात दिनों बाद गाड़ी चलाना और अपनी माँ को सर्विस देना...

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द हैल
ड्रॉइंग रुम में गहरी सोच लिए रुप और शुभ्रा बैठे हुए हैं l

शुभ्रा - सॉरी नंदिनी... आज तुम्हारा पार्टी खराब हो गया...
रुप - कोई बात नहीं भाभी... इस साल नहीं तो अगले साल...
शुभ्रा - तुमने रॉकी को बहुत सस्ते में छोड़ दिया था... वरना आज यह नौबत नहीं आई होती...
रुप - ह्म्म्म्म....
शुभ्रा - कल कॉलेज जाओगी ना...
रुप - हाँ... इसमें क्या शक़ है...
शुभ्रा - ठीक है... अब क्या करें...
रुप - मुझे क्या पता...
वीर - (हाथ में एक पैकेट लिए वहाँ पहुँच कर) वह मैं बताता हूँ...

वीर को वहाँ पर देख कर दोनों चौंक जाते हैं और एक-दूसरे की ओर देखने लगते हैं l

शुभ्रा - क्या बात है राजकुमार....
वीर - अभी बताता हूँ... (कह कर पैकेट को नीचे रख देता है और "चटाक" रुप को एक थप्पड़ मार देता है)
 

parkas

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👉छिहत्तरवां अपडेट
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ड्रॉइंग रुम के बीचों-बीच एक छोटा सा टेबल है, उसके उपर थर्मोकोल का एक पैकेट रखा हुआ है l

विश्व - माँ... पैकेट खोल कर देखते हैं ना...
प्रतिभा - नहीं... बिल्कुल नहीं...
विश्व - क्यूँ...
प्रतिभा - अरे... सेनापति जी ने उससे... पैकेट के बारे में पूछताछ क्या की... वह कुरियर बॉय.. पैकेट छोड़ कर भाग गया...
विश्व - तो... भाग नहीं जाएगा... वह पैकेट क्या लेकर आया... डैड ने उसकी ऐसी काउंसिलिंग की... जैसे वह कोई बम लगाने आया था...
प्रतिभा - हाँ वही तो... वह पैकेट छोड़ कर भाग क्यूँ गया...

विश्व जवाब देने के वजाए तापस की ओर देखता है l तापस न्यूज पेपर उठा कर अपने चेहरे के सामने रख देता है l

विश्व - माँ... तुम एक वकील हो... और डैड एक रिटायर्ड एसपी... जरा कानूनी दिमाग लगाओ... उस कुरियर बॉय के सारे कागजात ऑथेंटीक थे... तभी तो... डैड को देखो कैसे अपना मुहँ छुपाये बैठे हैं...
तापस - क्या कहा... डैड के बच्चे... मैं मुहँ छुपाए बैठा हूँ... मुहँ छुपाये बैठा होगा तु... तेरा बाप...
सीलु - अंकल... भाई वही तो कह रहा है...
तापस - क्या...
टीलु - यही... की आप मुहँ छुपाये तबसे बैठे हुए हैं...
तापस - (जो न्यूज पेपर पढ़ रहा था उसीको फ़ोल्ड कर टीलु को मारने के लिए उठाता है) उल्लू के पट्ठे... मेरी खिंचाई कर रहा है...(टीलु भागता है)
जिलु - सेनापति सर... आप फिर से गलत बोले... हम पट्ठे आपके हैं... इसलिए...
तापस - (रुक कर जिलु के तरफ मुड़ कर) क्या कहा.. लफंडर... इसका मतलब मैं उल्लू हूँ...
जिलु - नहीं.. मैं बोल रहा था कि... हम आपके पट्ठे हैं...
तापस - इसका मतलब... तुम चारों की अब पिटाई करनी पड़ेगी...
प्रतिभा -(चिल्ला कर) ओ हो... मैं क्या कह रही थी... और तुम लोग कर क्या रहे हो...
विश्व - रुक जाओ सब... अब इस गिफ्ट को... माँ खोल कर देखेगी...
प्रतिभा - क्या...
विश्व - माँ... बेकार में यूँ दो घंटे बीत गए हैं... प्लीज... तो फिर मुझे देख लेने दो...
प्रतिभा - पता नहीं किसका है... किसने भेजा है... किस इरादे से भेजा है...
विश्व - माँ... किसी दोस्त ने ही भेजा होगा...
प्रतिभा - तु यह कैसे कह सकता है...
विश्व - इसलिये कि... मेरे दुश्मनों ने मुझे कमाया है... पर मैंने यहाँ सिर्फ़ दोस्त और दोस्ती कमाया है... इसलिए यह गिफ्ट किसी दोस्त का ही हो सकता है...
प्रतिभा - इतना विश्वास है तुझे...
विश्व - क्यूंकि मेरे दुश्मन इतने काबिल हैं नहीं
और दोस्तों के क़ाबिलियत पर कोई सवाल नहीं...

प्रतिभा चुप रहती है l विश्व एक छोटा कैंची लेकर उस थर्मोकोल पैकेट को काटने लगता है l थर्मोकोल कवर निकालते ही पैक से पॉली पफ कवर दिखता है l उसे हटाने के बाद काठ के बने एक लाल रंग का बक्सा निकलता है l वह बक्सा एक फुट के क्यूब के आकार का था l अब विश्व उस काठ के बक्से को खोलता है l अंदर के वस्तु को देखते ही वह हैरान हो जाता है l उसके अंदर ब्रास से बनीं किसी तलवार का मूठ था l वह उस मूठ को हाथ में लेकर बाहर निकालता है, यह देख कर सभी हैरान हो जाते हैं l

प्रतिभा - यह... यह क्या... इतनी क़ीमती बक्से के अंदर... एक तलवार का मूठ...
विश्व - (चुप रहता है) (गौर से उस मूठ को अपने हाथों में लेकर देखने लगता है)
प्रतिभा - और तु कह रहा था... किसी दोस्त ने भेजा होगा...

सबके चेहरे पर तनाव दिखने लगता है l गौर से उलट पलट देखने के कुछ देर बाद अचानक विश्व के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान तैरने लगता है l विश्व को यूँ मुस्कराते देख सब हैरान हो जाते हैं और एक दूसरे को देखने लगते हैं l

प्रतिभा - क्या... क्या बात है... कौन है... कोई दोस्त है क्या...
विश्व - दोस्त.... दोस्त तो बहुत छोटा शब्द है माँ... मेरे मोहसिन हैं वह...
प्रतिभा - कौन...
विश्व - बहुत ही खास.... कोई अपना.... चाहने वाला....
तापस - तुझे कैसे पता चला... इस पैकेट पर ना भेजने वाले का नाम है... ना कोई और कागजात... या सिर्फ वही तुझे गिफ्ट भेज सकता है...
प्रतिभा - और यह तलवार की मूठ... ऐसा कोई गिफ्ट भेजता है क्या...
विश्व - माँ.. यह मूठ बहुत ही स्पेशल है... यह मूठ भेजने वाले के नाम के साथ साथ.... जेल से रिहाई की... बधाई वाला पैगाम लेकर आया है...
तापस - यह तुम्हें कैसे पता चला...
विश्व - यह देखिए... यह एक एंटीक पीस है... जहां तक मैं ठीक हूँ... यह एक ब्रिटिश ऑफिसर की सोर्ड है... क्यूंकि इसकी पोमेल.. मतलब... फाली या घुंडी पर ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगो दो शेर के वाला यूनियन जैक के साथ उसमें 1799 खुदा हुआ है... बहुत ही पुराना है... और इस मूठ का आकार ही.. डी की बनावट में है... और सबसे अहम बात... इसकी गार्ड क्रॉस जिस तरह से ऊपर उठी हुई है... बिल्कुल एक अंगूठे की तरह दिख रही है... यानी कि बधाई भेजा है उन्होंने...
तापस - अंदाजा लगा रहे हो... या...
विश्व - नहीं डैड... सिर्फ़ बधाई का मेसेज नहीं... बल्कि उन्होंने अपना नंबर भी भेजा है...
प्रतिभा - क्या... क... कैसे...
विश्व - इस मूठ पर जो कार्वींग हुई है... उसे छेड़ा नहीं गया है... पर बारीकी से देखने पर... मार्कर पेन से कुछ टिपीकल कैलीग्राफी मार्किंग की गई है... यह एक फोन नंबर है...

तापस और प्रतिभा यह सब सुन कर हैरान हो जाते हैं l पर सीलु और उसके सब साथी मुहँ फाड़े विश्व को देखने लगते हैं l विश्व अपने नए मोबाइल से एक नंबर डायल करता है और स्पीकर पर डाल देता है l कुछ देर बाद रिंग की आवाज सुनाई देती है l उसके बाद एक मर्दाना आवाज़ सुनाई देती है

- कैसे हो हीरो... आजादी मुबारक...
विश्व - नमस्कार डैनी भाई... (डैनी की नाम सुन कर और भी हैरान हो जाते हैं) आपने वाकई मुझे चौंका दिया...
डैनी - पाँच साल बाद... मेरा पट्ठा कितना ग्रो कर गया है... यह जानना मेरे लिए बहुत ही जरूरी था...
विश्व - इसका मतलब... आप हमेशा से ही मुझ पर नजर रखे हुए थे...
डैनी - तलवार में कितनी भी धार हो... अगर म्यान में है... खतरे की कोई बात नहीं... पर अगर म्यान से बाहर आ जाए... खतरे की बात तो होगी ही...
तापस - तुमको मालूम था.... विश्व तुम्हें कॉल बैक करेगा...
डैनी - ओ हो... सेनापति सर जी... नमस्कार... बड़े दिनों बाद...
तापस - तुमने बताया नहीं...
डैनी - सेनापति सर... इसमे बताने वाली कुछ है ही नहीं... इस वक़्त जो शख्स आपके साथ बैठा है... उसमें तलवार सी धार मैंने ही तो लगाया है... पाँच सालों बाद... उसका दिमाग कितना तेज है... यह भी तो जानना जरूरी था...
तापस - इसका मतलब... तुम्हें मालुम था... विश्व हमारे साथ रहने वाला है... तुम्हें कैसे मालुम हुआ... हम आज ही तो यहाँ उतरे थे...
डैनी - कमाल करते हैं... सेनापति सर जी... यह भी कोई बात हुई... आप पर हमारी नजरें इनायत पहले से ही थी...
तापस - कमाल है... हम सब तुम्हारे... मतलब तुम्हारे आदमियों के नजरों में थे... पर अंदाजा भी नहीं लगा सके...
डैनी - देट इज़ डैनी... सेनापति सर.. देट इज़ डैनी...
प्रतिभा - पर... किसी तलवार की मूठ ही क्यूँ...
डैनी - भरोसा तो मुझे मेरे पट्ठे पर सौ फीसद है... फिर भी हिदायत देना जरूरी भी है... विश्व अभी एक नंगी तलवार के जैसा है... उसे कंट्रोल में रहने के लिए हिदायत देने के लिए ही.. यह मूठ भेजा है... पर यह आधा सच है...
प्रतिभा - तो... पुरा सच क्या है...
डैनी - विश्व... इस तलवार के बारे में... कितना कुछ जान पाए हो... बताओगे जरा...
विश्व - डैनी भाई... जहां तक मेरा ध्यान जा रहा है... डेढ़ साल पहले... कलकत्ता में इस मूठ की नीलामी हुई थी... पर शायद यह किसी राजस्थानी व्यापारी ने खरीदा था...
डैनी - वेरी गुड... अगर नीलामी के बारे में जानकारी है... तो इसकी बारे में... और भी जानकारी होगी... वह बोलो...
विश्व - यह तलवार की मूठ... ईस्ट इंडिया कंपनी के कैप्टन जॉन फर्गुशन की है... उन्होंने खुर्दा जीतने बाद... खुशी से यह तलवार तोड़ी थी... तलवार का वह टूटा हुआ टुकड़े का अभी तक पता नहीं है... इसलिए सिर्फ यह मूठ बाकी है...
डैनी - शाबाश.. बहुत कुछ जानते हो... पर इस टुटे हुए तलवार पर एक मिथक... या मिथ... या किवदंती भी है... जानते हो...
विश्व - नहीं...
डैनी - सन 1803 में ओड़िशा का सबसे ताकतवर राज्य.. खुर्दा के पतन के बाद... एक नए राजशाही को अंग्रेजों ने मान्यता दी थी... वह राज्य था... यश वर्धन पुर... बाद में आगे चलकर यशपुर कहलाया...
विश्व - अच्छा... तो वह मिथक... यशपुर से जुड़ा हुआ है...
डैनी - हाँ... खुर्दा के पतन के बाद जॉन फर्ग्यूसन ने... यश वर्धन से वफादारी के लिए राज शाही के साथ साथ कुछ और भी मांगने के लिए कहा था... यश वर्धन था बहुत चालाक... किसीके आगे कभी झुका नहीं था... आगे चलकर कहीं अंग्रेजों के सामने उसे झुकना ना पड़े... इसलिए फर्ग्यूसन की तलवार मांग ली... एक विजयी योद्धा से तलवार माँगना मतलब... उससे उसका समर्पण माँगना... अपने बड़बोले पन में फर्ग्यूसन ने मांगने के लिए कहा था... यश ने जो मांगा था वह उसके लिए एक अपमान था... उसने तलवार तो दी... मगर उसकी मूठ निकाल कर... जिससे उसने अपनी इज़्ज़त बचा ली... और तलवार को प्रतीक के रूप में.... यश वर्धन पुर और क्षेत्रपाल राजशाही को मान्यता दी...
विश्व - यह तो फैक्ट है... मिथक कहाँ है...
डैनी - मिथक यह है कि... वह जो वगैर मूठ वाली नंगी तलवार है... वह जब अपनी मूठ से जुड़ जाएगा... क्षेत्रपाल की राजशाही खत्म हो जाएगी....
विश्व - क्या...
डैनी - हाँ... वैसे यह एक मिथक है... पर इसी डर से... इन्वीटेशन के बावजुद... इतनी अहम नीलामी में... क्षेत्रपाल के परिवार में कोई नहीं गया था...
विश्व - (चुप रहता है)
डैनी - क्या सोचने लगे...
विश्व - मुझे करना क्या होगा...
डैनी - क्षेत्रपाल का अहं... बेवजह नहीं है... वह अहं उसका आत्मविश्वास भी है... इसलिए यूँ मान के चलो... उस तलवार को पुरा एक करना भी.... तुम्हारा एक मिशन होगा.... यानी तलवार से मूठ अलग हुआ तो राजशाही मिली... जब मूठ वापस जुड़ जाएगा... तब राजशाही खतम भी हो जाएगी...
तापस - क्या तुम उसमें विश्व की मदत करोगे...
डैनी - मदत... जी नहीं... बिल्कुल नहीं...
तापस - क्यूँ... क्यूँ नहीं...
डैनी - मैं फ़िलहाल... दर्शक की भूमिका में हूँ... थर्ड अंपायर का दायित्व तो आप और मैडम निभा रहे हैं... खेलना... खिलाड़ी का काम है... मैने अपने खिलाड़ी को... ऑल द बेस्ट कह दिया है...
विश्व - डैनी भाई... क्या हम कभी मिल पाएंगे...
डैनी - हम मिलेंगे... और जरूर मिलेंगे... फ़िलहाल मेरा बेस्ट ऑफ लक विश.... तुम्हारे आने वाले दिन के लिए...
विश्व - थैंक्यू डैनी भाई...
डैनी - ओवर एन आउट...

डैनी का फोन कट जाता है l

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ESS ऑफिस

लंच ब्रेक था, इसलिए अनु नीचे कैन्टीन में थी l लंच खतम कर जब वह जाने को हुई तभी उसे मालुम हुआ कि वीर आ गया है और खुद को अपने कैबिन में बंद कर लिया है l यह सुनते ही वह उपर ऑफिस में जाने को हुई तो एक स्टाफ उसे रोकता है

स्टाफ - रुको... अभी ऊपर मत जाओ...
अनु - क्यूँ...
स्टाफ - राज कुमार जी ने... किसीको भी ऊपर ऑफिस जाने से मना किया है...
अनु - (ऊपर की ओर देखती है) (तभी ऊपर कुछ टूटने की आवाज आती है) वह.. वह क्या कर रहे हैं....
स्टाफ - पता नहीं जब से आए हैं... गुस्से में हैं... (फिर कुछ फेंके जाने की आवाज आती है) चीजें उठा उठा कर... फेंक कर... या तोड़ कर... अपना गुस्सा ठंडा कर रहे हैं...
अनु - हे भगवान... तब तो मुझे जाना चाहिए...
स्टाफ - ऐ लड़की... ऊपर जाएगी... तो अपनी नौकरी गवां बैठेगी...
अनु - वह मालिक हैं... उनकी मर्जी... पर अगर उन्हें ऐसे छोड़ दिया... तो वह खुद को घायल कर बैठेंगे.... (अनु ऊपर जाने लगती है) (कुछ लोग उसे रोकना चाहते हैं)
स्टाफ - जाने दो इसे... राजकुमार जी के सामने भली बनने की ऐक्टिंग करेगी... हूँह्ह्... राजकुमार जी को जानती कहाँ है... जाने दो उसे...

सब लोग साइड हो जाते हैं l अनु सीढियों से ऊपर वीर के कैबिन के पास पहुँचती है l तभी कैबिन के अंदर कुछ काँच के सामान टूटने की आवाज आती है l अनु दरवाज़ा खटखटाती है l पर अंदर से कोई आवाज नहीं आती l तभी दरवाजे के नीचे की गैप से कुछ कांच के टुकड़े छिटक के बाहर आते हैं l अनु अपनी हैंडबैग से एक्स्ट्रा चाबी निकालती है और धीरे से दरवाजा खोल कर अंदर झाँकती है l अंदर वीर गहरी गहरी सांसे लेते हुए अपनी जबड़े भींचे हुए दोनों हाथों को टेबल पर मार रहा है l दरवाजा खोल कर अंदर दरवाज़े के पास खड़ी हो जाती है l

वीर - (चिल्लाते हुए) कहा था ना... कोई नहीं आए यहाँ पर... क्यूँ आई हो... बंद करो दरवाजा...

अनु दरवाजे को अंदर से बंद कर देती है l वीर एक कुर्सी को उठा कर टेबल पर पटकने लगता है l वह कुर्सी टुट जाती है l अनु उसे देखती I वीर कमरे को तहस नहस कर चुका है l वीर अपना सिर घुमाता है उसे कमरे में फाइलों से भरी, कमर की हाइट की एक कबोर्ड दिखती है l वह उसके पास जाता है l उस कबोर्ड के ऊपर कुछ ट्रफीयाँ थी उन्हें उठा कर फेंक देता है l फिर उस कबोर्ड पर चिल्ला चिल्ला कर घुसा मारने लगता है l अनु से रहा नहीं जाता वह भागते हुए वीर के पीछे से कस के गले लग जाती है l वीर जो इतना वायलेंट था कुछ देर पहले वह अचानक से रुक जाता है l वीर उस कबोर्ड पर दोनों हाथ रख कर शांत हो कर अपनी आँखे मूँद लेता है अनु वीर को वैसे ही कसके पकड़े रखती है l वीर की सांसे अब धीरे धीरे नॉर्मल होने लगती है l उसे महसुस होता है अनु उसे कस कर पकड़ी हुई है l वह तुरंत अनु की हाथों को खुद से अलग करता है और अनु की तरफ पीछे मुड़ जाता है l आँखों में आंसू लिए अंगारों की तरह जल रही आँखों से अनु की तरफ देखता है I अनु वीर के आँखों में बेइन्तेहा दर्द देखती है l वीर रोया तो नहीं पर टुटसा गया था l वह अनु को, अपने सीने से लगा लेता है l अनु भी उसे अपने से कस के भींच लेती है l इसी तरह कुछ वक़्त वह दोनों एक दुसरे के बाहों में गुजार देते हैं l अनु खुदको अलग करने की कोशिश करती है पर वीर उसे अपने से अलग होने नहीं देता l तो अनु उसे फिर से गले लगा लेती है l

अनु - राजकुमार जी...
वीर - हूँम्म्म्...
अनु - आप आज इस कदर.... क्यूँ टुट गए...
वीर - (चुप रहता है)
अनु - क्या मैं इस काबिल भी नहीं... की आपके दर्द बांट सकूँ...
वीर - (भर्रायी हुई आवाज में) मैं तुम्हारे जैसा नहीं हूँ अनु... सच कहूँ तो.. मैं किसी के भी लायक नहीं हूँ...

अनु अब वीर से अलग होती है और वीर की हाथ को पकड़ कर अपने साथ लेकर एक सोफ़े पर बिठा देती है l

अनु - अब बताइए... हो सकता है... मैं कुछ मदत कर पाऊँ...

वीर अनु के आँखों में देखता है और फिर उसके चेहरे की मासूमियत में हैरानी भरे नजरों देखते हुए खो सा जाता है l

अनु - (वीर के हाथ पर हाथ रख कर हिलाते हुए) राजकुमार जी...
वीर - हँ... हाँ... हाँ अनु...
अनु - अब जो बोझ बनकर आपके दिल में है... उसे मेरे सामने उतार दीजिए... मैं समझ सकती हूँ... कोई गहरी बात है... पर प्लीज... आप ऐसे तो ना टुट जाइए...
वीर - (अपने दोनों हाथों में अनु के हाथों को लेकर) अनु... मैंने कहा था ना... आज मेरी बहन... राजकुमारी रुप की जन्मदिन है...
अनु - हाँ...
वीर - मैं... मैं तुम्हारी बात मान कर... उसे बधाई देने कॉलेज गया था...

एक फ्लैशबैक....

रॉकी प्रिन्सिपल ऑफिस से बाहर निकल कर उस कॉरीडोर के सामने अपनी आँखे बंद कर दोनों बाहें फैला कर खड़ा हो जाता है l उधर रॉकी टेबल से तोड़े काठ का टुकड़ा लिए भागता हुआ रॉकी के तरफ जा रहा है l इतने में रुप और उसके सारे दोस्त कैन्टीन से बाहर आकर रॉकी के तरफ देखते हैं l रुप का चेहरा गुस्से से लाल हो चुका है l वह गुस्से भरी नजर से रॉकी की ओर देखती है l इतने में रुप अपने कंधे पर बनानी की हाथ को महसूस करती है l जैसे जैसे उस तरफ से वीर बढ़ता जा रहा था बनानी की हाथ का दबाव रुप के कंधे पर बढ़ती ही जा रही थी और आँखों में खौफ के साथ साथ आँसू भी बहने लगे थे l रुप देखती है वीर रॉकी के पास पहुँचने वाला है फिर एक नजर वह बनानी को देखती है, फिर वह भी रॉकी के तरफ भागती है l वीर काठ को हाथ में लिए रॉकी के तरफ भागते हुए एक कुदी लगाता है l रुप भी तेजी से भागते हुए जाती है पर थोड़ी देर हो जाती है रॉकी के सिर वीर का काठ लग जाती है l रॉकी का सिर फट जाता है और वह नीचे बेहोश गिर जाता है l वीर अपना काठ उठा कर मारने वाला होता कि रुप उसे पीछे से पकड़ कर खिंच देती है l वीर गुस्से से अपना काठ को मारने के लिए उठाता है उसके सामने रुप खड़ी हो जाती है l

वीर - (चिल्ला कर) आप हटीये राजकुमारी...
रुप - क्यूँ.. क्यूँ हट जाएं...
वीर - यह कुत्ता है... अपनी औकात भूल गया था... इसलिए इसे जीने का हक नहीं है...
रुप - क्या किया है आखिर इसने...
वीर - इसने हम से.... हम से रिस्ता जोड़ने की कोशिश की है...
रुप - तो कौनसा गुनाह हो गया उससे... खुदको भाई ही तो कहा है... हमारा... कौनसा रुसवा या जलील कर दिया हमें...
वीर - (अपने चारो तरफ देखता है, सब उन दोनों को ही देख रहे हैं) (थोड़ा शांत होते हुए) उसने... क्षेत्रपाल परिवार की लड़की से जुड़ने की कोशिश की है...
रुप - हाँ तो किस रिश्ते से... खुद को ज़माने के आगे हमारा भाई कहा है... क्या भाई बहन का रिश्ता भी... इतना बड़ा गुनाह हो गया है...
वीर - आप... आप इसकी तरफदारी क्यूँ कर रहे हैं...
रुप - इसलिए... (पॉज लेकर) की वह मेरा भाई लगता है...
वीर - (अपने हाथ से काठ को फेंकते हुए) तो हम कौन हैं...
रुप - आप राजकुमार वीर सिंह क्षेत्रपाल हैं... आपको हम से और हमें आपसे यह क्षेत्रपाल जोड़ता है... यही वजह है कि आप राजकुमार हैं... और हम राजकुमारी...
वीर - इनॉफ... हम भाई हैं आपके...
रुप - कब से... (यही लफ्ज़ गूंजने लगती है)
वीर - (चुप हो जाता है)
रुप - कब से... हम राजकुमारी हैं... आप राजकुमार... इसके आगे ना हमारा कोई रिश्ता है.. ना ही कोई पहचान... आज पहली बार... कोई ना खून से ना खानदान से हमसे भाई बनकर जुड़ रहा था... वह भी आपसे नहीं देखा गया...
वीर - (चीखते हुए) राजकुमारी.... (हाथ उठ जाता है मगर हवा में रुक जाता है) (वीर देखता है रुप एक पल के लिए अपनी आँखे तो मूँद लेती है पर वहाँ से हटती नहीं)
रुप - (वीर के आँखों में आँखे डालते हुए) हाथ उठाने से पहले इतना तो बता दीजिए... यह उठने वाला हाथ किसका है... राजकुमार वीर सिंह के... या मेरे भाई के...

फ्लैशबैक खतम

अनु ख़ामोशी के साथ वीर को सुने जा रही थी l वीर अपनी बात खतम करता से है l

वीर - अनु.... राजकुमारी जी... मेरी बहन हैं... वह मुझसे ऐसे बात की... वह भी एक नामुराद के लिए...
अनु - (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाती है) (फिर एक गहरी सांस लेते हुए) एक बात कहूँ... अगर... आप बुरा ना मानें तो...
वीर - हाँ पूछो...
अनु - उस वक़्त... राजकुमारी जी के लिए भाई कौन था...
वीर - क्य... क्या मतलब है आपका...
अनु - आप अभी भी... राजकुमारी कह रहे हैं... बहन बाद में बोल रहे हैं... आपके लिए मुख्य क्या है... खुनी रिश्ता या खानदानी पहचान...
वीर - (चुप हो जाता है, और अनु के चेहरे को घूर कर देखने लगता है)
अनु - मैं... आपके और राजकुमारी जी के बीच की कशमकश को समझ पा रही हूँ... पर पता नहीं आपको समझा पाऊँगी या नहीं... फिर भी... आपका खुनी संबंध असली है... पर खानदानी पहचान के नीचे घुट गया है... और उस लड़के का राजकुमारी जी से संबंध भले ही नकली है... पर वह भाई की पहचान के साथ सामने आया... भगवान ना करें राजकुमारी जी को... कल किसी मदत की दरकार होगी... तब आप क्या उनके... राजकुमार बुलाने की इंतजार करेंगे... या भैया बुलाने भर मदत को पहुंचेंगे...
वीर - (चुप रहता है और अपना सिर पकड़ कर अपने कुहनियों के बल घुटनों पर झुक जाता है)
अनु - लगता है... मैं कुछ ज्यादा कह गई... अपनी औकात से बाहर कह गई... (अनु जाने के लिए उठती है)
वीर - अनु... प्लीज रुक जाओ... मैं समझ गया... मैं भाई असली हूँ... पर खानदानी नकली पहचान के ओट में हूँ... वह भाई नकली था... पर उसके लिए मेरी बहन की ज़ज्बात असली थे... मैं कहाँ गलत हूँ जान गया हूँ... मुझे सुधारने का रास्ता भी तुम बताओ... प्लीज अनु.. प्लीज...
अनु - (वीर को गौर से देखती है, वीर जैसे अपने अंदर की दुख की सैलाब को जबरदस्ती रोके रखा है) राजकुमार जी... आप रो रहे हैं...
वीर - नहीं.. मैं रो नहीं रहा हूँ...(जबड़े भींच कर) क्षेत्रपाल कभी रो नहीं सकते...
अनु - राजकुमार जी... आपके जज़्बातों को... दिल के सुकून को... आपके इसी अहम ने... भरम ने.. अंधेरे में अबतक आपको भटका रहा है... मेरी बात मानिए... बस एक बार... जी भर के रो लीजिए... सब साफ हो जाएगा... अंधेरा छट जाएगा... आपको अच्छा लगेगा... आपको नई ऊर्जा मिलेगी... आप को नई राह मिलेगी...
वीर - (उठ खड़ा होता है) यह.. यह रोना धोना सब औरतों का काम है... हम मर्द हैं... वह भी क्षेत्रपाल...

अनु उठ कर जाने लगती है l वीर उसका हाथ पकड़ लेता है, अनु मुड़ कर उसे देखती है तो वीर उसे अपने गले से लगा लेता है और अनु के कंधे पर फफक फफक कर रोने लगता है l उसे रोता हुआ पा कर अनु भी उसे गले लगा लेती है l वीर धीरे धीरे टूटते टूटते रोने लगता है l अनु उसे अपने से अलग करती है और सोफ़े पर बैठ कर वीर को अपने पास बिठाती है और वीर के सिर को अपने गोद में रख देती है l वीर अपनी आँखे बंद कर लेता है और रोते रोते उसके गोद में हो सो जाता है


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हस्पताल के बेड पर लेटा रॉकी धीरे धीरे अपनी आँखे खोलता है I दर्द के मारे कराहने लगता है l वह याद करने की कोशिश करता है आखिर क्या हुआ l उसे याद आता है वीर के हाथ में एक काठ का टुकड़ा था जिसे लेकर वह रॉकी को मारने के लिए कुदी लगाया था l उसके बाद वह डर के मारे आँखे बंद कर लिया था l अब उसकी आँखे खुली तो हस्पताल के बेड पर पड़ा है l हाथ में सलाइन लगा हुआ है l अपने बाएं हाथ को सिर पर लगाते ही उसे मालुम होता है कि उसके सिर पर चोट लगी है l

रॉकी - आह...
सुमित्रा - कैसा है... दर्द कम हुआ...
रॉकी - मम्मी... तुम... मैं... यहाँ... कब आया...
सुमित्रा - तुझे याद भी है... तुने कांड कौनसा किया...
रॉकी - (अपना सिर झुका लेता है)
सुमित्रा - हूँह्ह... कांड ऐसा किया... के अपनी माँ के सामने सिर झुकाना पड़ रहा है...
रॉकी - मम्मी... मैंने क्या गलत किया...
सुमित्रा - ओ... अच्छा... तो बता जरा... सही क्या किया तुने...
रॉकी - (कुछ नहीं कह पाता)
सुमित्रा - तुने... पहले अपने बदले के लिए... रुप नंदिनी से प्यार का नाटक किया... दाल नहीं गली... तो बहन बना कर चाल चलने लगा... फिर भी... नंदिनी ने बड़ा दिल दिखाया... तेरी जान के लिए... अपने भाई से भीड़ गई...
रॉकी - (खुश होते हुए) सच...
सुमित्रा - खुश क्यूँ हो रहा है... तुझे अपने भाई से बचाया इसलिए...
रॉकी - हूँह्ह...
सुमित्रा - बचपन से ही... तु उतावला था... जल्दबाजी रहती थी तेरी हर बात में... हर काम में.. पर... एक लड़की के बारे में... तुने ऐसा कैसे सोच लिया... ऐसा कैसे कर गया...
रॉकी - मम्मी... इतना सब कुछ... तुम्हें किसने बताया...
सुमित्रा - रवि और दीप्ति ने...
रॉकी - (फिर अपना सिर झुका लेता है) मम्मी आपको क्यूँ लगा... नंदिनी ने मुझे बचाया... इस बात पर खुश ना होऊँ...
सुमित्रा - इसकी भी वजह... दीप्ति ने बताया मुझे...
रॉकी - मम्मी... तुमने सही कहा... मैं उतावले पन में... जल्दबाजी में.. बहुत कुछ गलत कर गया... मैं सबकुछ हार चुका था... अपने दोस्त... नंदिनी का विश्वास और खुद को भी... मैं.. दुबारा वह सब कुछ हासिल करना चाहता था... इसलिए ऐसा किया...
सुमित्रा - एक लड़की का नाम सरेआम लेता है... एक जबरदस्ती का रिश्ता... उसपर थोपता है... और यह उम्मीद करता है... की वह भागते हुए आए... और तुझे... सरेआम गले लगा ले...
रॉकी - (अपना सिर फिर से झुका लेता है)
सुमित्रा - भाई बहन के रिश्ते को... दुहाई दे कर... एक लड़की का मज़ाक बना बना दिया तुने... जाहिर सी बात है... उसका भाई तुझ पर टुट पड़ा... हाँ अगर रुप नंदिनी बीच में ना आती... तो.... (बात को पूरी नहीं कर पाती)
रॉकी - नंदिनी ने... अपने भाई से मुझे बचाया... मतलब... उसे मेरी इस हरकत से भले ही ठेस लगा हो... पर उतना बुरा नहीं लगा होगा...
सुमित्रा - अभी भी... अपनी हरकत को जायज ठहराने की कोशिश कर रहा है... वह...वह क्या नाम बताया दीप्ति ने....ह्म्म्म्म.. हाँ बनानी... बनानी के लिए... अपने भाई से बचाया... नंदिनी ने...
रॉकी - (दबी जुबान से) मैं... मैं ने जो भी किया... क्या... कोई ऐसा कर पाएगा...
सुमित्रा - नहीं... नहीं कर पाएगा शायद... पर असलियत वह नहीं है... जो तु कह रहा है... या समझाना चाह रहा है... असलियत यह है कि... तु नंदिनी से बदला लेना चाहता था... उसने तुझे बुजदिल और कायर कहा था... उसने जिस तरह से तेरी करनी को तेरे सामने फोड़ा था... उससे तेरे अंदर की मर्दाना गुरुर को ठेस पहुंचा था... इसलिए तुने यह हरकत की थी... खुद को मर्द साबित करने के लिए और खुद को बहादुर साबित करने के लिए...
रॉकी - आ.. आप.. आपको... यह सब कैसे मालुम...
सुमित्रा - लगता है.. तेरे सिर पर चोट गहरा लगा है... बताया तो था... दीप्ति और रवि ने मुझे सबकुछ बता दिया...
रॉकी - ड... डैड...
सुमित्रा - नहीं आए हैं... कल तेरी टीसी लेने के बाद... तुझसे मिलने आयेंगे...
रॉकी - (शर्म और दुख से अपना सर फिर नीचे कर लेता है) स... सॉरी मम्मी...
सुमित्रा - (और कुछ नहीं कहती है)

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वीर मध्यम गति से गाड़ी चला रहा है l बगल में अनु बैठी हुई है l वीर बहुत तरोताजा लग रहा था l एक अंदरुनी खुशी उसके चेहरे पर दमक रही थी l अनु उसे तिरछी नजरों से बीच बीच में देख रही थी l वीर की ख़ुशनुमा चेहरा देख कर उसे बहुत अच्छा लग रहा था l अनु आज की बातों को याद करने लगती है l कैसे एक मासूम बच्चे की तरह, अनु के गले से लग कर रोया, और उसके गोद में सिर रख कर सो गया l यह याद आते ही अनु के गाल शर्म से लाल हो जाते हैं l अनु को वह लम्हा याद आने लगता है जब सोया हुआ वीर उसके गोद से अचानक उठ कर बैठ गया

वीर - अनु... मैं.. तु.. तुम्हारी गोद में सिर रख कर सोया हुआ था...
अनु - (झिझकते हुए अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
वीर - (दिवार पर लगी घड़ी को देख कर) ओह माय गॉड... शाम के छह बज रहे हैं... और तुम अभी तक यहीं हो... मु.. मुझे जगाया क्यूँ नहीं....
अनु - (कुछ कह नहीं पाती) (इधर उधर देखने लगती है)
वीर - क्यूँ अनु...
अनु - (झिझकते हुए) क्या बताऊँ... आप... आप.. टुटे हुए लग रहे थे... थके हुए लग रहे थे... ऐसा लगा... जैसे दर्द के मारे छटपटा रहे थे... पर आप सोये... ऐसे सोये... जैसे कई दिनों से सोये ना हों... मुझे ऐसे जकड़े सोये... जैसे कोई मासूम बच्चा.. माँ की गोद को... बस... इसीलिए.. नहीं जगाया...
वीर - (उठ कर खड़ा हो जाता है)(अनु की तरफ बिना देखे) तुमने ठीक कहा अनु... बचपन में... कभी माँ की गोद में ही ऐसी नींद आई थी... एक बार क्या वह गोद छुटा... फिर कभी वैसी नींद नहीं आई... आज जाकर वह नींद पुरी कर पाया... (अनु की तरफ मुड़ कर देख कर) थैंक्यू...
अनु - आप ही ने तो कहा था... मैं आपकी पर्सनल सेक्रेटरी कम अस्सिटेंट हूँ... मेरा सिर्फ़ काम ही है... आपका खयाल रखना...
वीर - (एक गहरी सांस लेता है) (अनु की बातों अपने अंदर एक थर्राहट महसुस करता है)(पहली बार ऐसा होता है कि वह अपनी नजरें झुका लेता है)
अनु - एक बात कहूँ...
वीर - हूँ... (अनु की ओर बिना देखे)
अनु - आज आप... अंदर ही अंदर अपनी माँ को ढूंढ रहे थे...
वीर - (हैरान हो कर अनु को देखता है)
अनु - हाँ राज कुमार जी... आपकी तड़प आजकी नहीं है... कई सालों की है... आपको आज एक कंधे की दरकार थी... सिसकने के लिए.. एक सीने की दरकार थी... लग कर रोने के लिए... और एक गोद की दरकार थी... जकड़ कर सोने के लिए...
वीर - (आँखे बड़ी हो जाती है, मुहँ खुला रह जाता है) अनु.. क्या यह तुम हो....
अनु - जी... राजकुमार जी...मैं ही हूँ... ऐसी भावनायें मैं बखूबी समझ सकती हूँ... क्यूंकि... मेरी ना तो माँ है... ना बाबा... मैं भी बहुत तड़पी हूँ... वह कंधा.. वह सीना.. वह गोदी... बहुत ढूंढी हूँ... इसलिए मैं उस दर्द को... तड़प को समझ सकी...
वीर - (अनु को ऐसे देखने लगता है जैसे वह किसी दुसरी ग्रह से आई हो) (मुश्किल से अपना थूक निगलता है) (वह झट से अपना चेहरा घुमा लेता है)
अनु - आपके सारे दर्द गायब हो जाएंगे...
वीर - (फिर मुड़ कर अनु को देखता है) कैसे...
अनु - एक बार... बस एक बार अपनी माँ से बात लीजिए... (वीर फिर से अनु की तरफ पीठ कर लेता है) कब तक... ऐसे मुहँ फेरे रहेंगे... आपकी दर्द की दवा... आपके अपनों के पास है... बात तो कीजिए... पर राजकुमार बन कर नहीं... एक माँ के बेटे बन कर...
वीर - नहीं...
अनु - (चुप हो जाती है) (वह वहाँ से जाने लगती है)
वीर - अनु प्लीज...
अनु - माफ लीजिए राजकुमार जी... आप मालिक हैं... मैं मुलाजिम... शायद मैं कुछ ज्यादा ही बोल गई... अपनी औकात भूल गई...
वीर - नहीं नहीं नहीं... प्लीज... तुम गलत नहीं हो... पर... सच यह है कि... मैं... मेरी हिम्मत नहीं हो रही है...
अनु - (वीर के पास आकर, वीर के हाथ पर हाथ रख कर) एक बार कोशिश तो कीजिए...

वीर कांपते हाथों से फोन निकालता है पर नंबर डायल कर नहीं पाता l अनु वीर को आँखों से दिलासा देते हुए डायल करने के लिए कहती है l वीर एक नंबर डायल करता है

-हैलो (राजगड़ के महल में कोई नौकर फोन उठाता है)
वीर - हम... राजकुमार बोल रहे हैं...
नौकर - जी... हुकुम राजकुमार..
वीर - छोटी रानी जी से बात करनी है... उन्हें कर्डलेस दो....
नौकर - जी हुकुम... (नौकर भागते हुए सुषमा को कर्डलेस देता है) (अपना सिर झुकाए) छोटी रानी... राजकुमार...
सुषमा - (कर्डलेस को हाथ में लेकर) हैलो...
वीर - (यह सुन कर आँखे छलक पड़ती हैं) (वह अनु की ओर देखता है) (अनु उसे इशारे से बात करने को कहती है) हे.. हैलो...
सुषमा - कहिए राजकुमार... फोन क्यूँ किया...
वीर - वह... मैं.. (आवाज़ भर्रा जाती है) म.. मैं...
सुषमा - (हैरान हो कर) राज कुमार... क.. क्या हुआ...
वीर - (अनु इशारे से माँ कहने के लिए कहती है) (वीर अनु की तरफ देख कर) माँ...
सुषमा - (आँखे बड़ी हो जाती है) क... क्या कहा...
वीर - माँ...
सुषमा - क्या बात है.. र.. राज.. कुमार...
वीर - राजकुमार नहीं माँ... वीर... वीर कहो ना माँ...
सुषमा - क... क्या हुआ है आपको...
वीर - आप नहीं... तुम.. या.. तु... आप नहीं...
सुषमा - (नौकर को इशारे से, बाहर जाने के लिए कहती है, नौकर के जाने के बाद) क्या कहा तुमने...
वीर - हाँ माँ... यह ठीक है... यह नकली पहचान के नीचे... रिश्तों को और कुचल नहीं सकता... आज मुझे रानी माँ की नहीं... माँ की दरकार थी...
सुषमा - (सूबकते हुए) क्या... इसलिए तुझे... आज माँ की याद आई...
वीर - देखा... देखा माँ देखा... हम अभी कितने करीब हो गए... यह राजसी पहचान को ढोते ढोते... हम रिश्तों के मामले में कितना गरीब... और कितने दूर हो गए थे... मैंने आज माँ कहा.... तो तुमने तु कह दिया...
सुषमा - (थर्राती हुई आवाज में) हाँ मेरे लाल... हाँ..
वीर - बस माँ... अब मैं फोन रखता हूँ...
सुषमा - क्यूँ... मन भर गया तेरा...
वीर - नहीं माँ... आज एक दिन में इतनी खुशियाँ... मुझसे संभले नहीं संभलेगी माँ...
सुषमा - ठीक है बेटा... क्या कल भी फोन करेगा...
वीर - हाँ माँ हाँ... अब तो तुमसे बात किए मेरा दिन पूरा ना होगा... अच्छा अब रखता हूँ...
सुषमा - ठीक है बेटा... बाय..
वीर - बाय माँ... (कह कर फोन काट देता है और खुशी से अनु के हाथ पकड़ कर कूदने लगता है)

उसकी खुशी देख कर अनु भी खुशी के मारे हँसने लगती है l वीर अचानक कूदना बंद कर अनु को देखता है और आगे बढ़ कर अनु को गले लगा लेता है l वीर का चेहरा अनु के कंधे पर होती है

वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - आज... मैं तुमसे एक वादा माँगना चाहता हूँ...
अनु - कैसा वादा...
वीर - जिस तरह आज तुमने मुझे अपने गले से लगा कर... टूटने से.. बिखरने से... बचाया...
अनु - जी...
वीर - फ़िर कभी ग़मों में टूटने लगूँ... या कभी ज्यादा खुशी में बहक ने लगूँ... तब मुझे गले से लगा लेना... प्लीज...
अनु - (वीर से अलग हो जाती है, वीर का चेहरा उतर जाता है) क्या... यह एक मालिक का... अपने मुलाजिम को दिया हुकुम है...
वीर - (अपना सिर ना में हिलाते हुए) नहीं... अनु नहीं... आज... एक दोस्त अपने दोस्त से ईलतजा कर रहा है...
अनु - (चेहरे पर हल्का सा शर्म और मुस्कान लेते हुए) जी... ठीक है...
वीर - (चेहरे पर रौनक लौट आती है) सच...
अनु - (थोड़ा शर्माते हुए) जी...
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - अब मैं बहुत खुस हूँ...
अनु - (कुछ नहीं कहती है शर्मा के चेहरा झुका लेती है)
वीर - अनु... अब मैं बहुत खुश हूँ...
अनु - (सिर उठा कर वीर की तरफ देखती है) (वीर दोनों बाहें फैलाए खड़ा है)

कार के हॉर्न से अनु अपनी वास्तव में आती है l वीर उसके गली के बाहर गाड़ी रोक देता है l अनु शर्माते हुए गाड़ी से उतर जाती है l और अपने गली की ओर बढ़ने लगती है l

वीर - अनु... (अनु पीछे मुड़ती है) क्या यार... कम से कम बाय तो कहो...
अनु - जी... बाय...
वीर - बाय... और हाँ... सोने से पहले... मेरी खैरियत पूछना जरूर...
अनु - (शर्म और खुशी से दोहरी हो जाती है) (सिर को हाँ में हिलाते हुए) जी... (कह कर गली की ओर भाग जाती है)

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बादामबाड़ी बस स्टैंड कटक l

तापस और विश्व सीलु एंड ग्रुप को बस में बिठाने के बाद बाहर चलते हुए निकलते हैं l

विश्व - डैड... हम कार में भी तो आ सकते थे...
तापस - चलाता कौन.. मैं...
विश्व - हम छह जन थे... जाहिर है... माँ तो आ नहीं सकती थी...
तापस - हाँ... और नाइट ड्राइविंग... मुझे अच्छी नहीं लगती... और किस्मत से हम छह थे... इसलिए ऑटो में तीन तीन हो कर आ पाए... वरना तुम्हारी माँ को पता चल गया होता...
विश्व - माँ से यह बात छुपाना जरूरी था क्या...
तापस - उसका दिल एक माँ की है... बच्चों को खतरों से हमेशा दूर रखना चाहेगी ही...
विश्व - पर यह सब करना जरूरी था क्या...
तापस - कितना जरूरी था... यह तु भी समझ पा रहा होगा... आगे चलकर कितना काम आएगा...
विश्व - पर यह सब आपने सोचा कब...
तापस - जब तु इन चारों को सरकारी गवाह बनाने के लिए... अपनी माँ से बात कर रहा था... मेरे सामने वह भी... मेरे ही फोन पर...
विश्व - (हँसता है) डैड... एक बात कहूँ...
तापस - हाँ बोल...
विश्व - आप ना... माँ से पहले ही... मुझे जानते हो... माँ से पहले ही... मुझे पसंद और प्यार करने लगे थे... तो मुझे गले लगाने में... माँ से भी देरी आपने क्यूँ की...
तापस - ऑए... ज्यादा... फिलॉसफर बनने की कोशिश मत कर...
विश्व - (छेड़ते हुए) क्या डैड... मैंने महसूस किया है... आप मुझे पसंद बहुत करते थे... बाद में प्यार भी बहुत करने लगे...
तापस - (घूरते हुए) तु क्या मुझे आज छेड़ने के मूड में है...
विश्व - बिल्कुल नहीं... मुझसे जुड़े हर ज़ज्बात में... जब माँ से पहले आप थे... तो इजहार करने में... माँ पहले आप बाद में... ऐसा क्यूँ...
तापस - देख मेरे सामने बच्चा है तु... समझा... ज़्यादा स्मार्ट मत बन... तुझसे तेरी माँ बहुत प्यार करती है... इसीलिए मैं...
विश्व - हाँ... मैं...
तापस - बंद करेगा अपना यह डब डब...
विश्व - ठीक है... डैड... पर एक बात कहूँ...
तापस - हाँ.. बोल..
विश्व - माँ मुझ पर प्यार बहुत लुटाती है... पर वह आज की सोचती है... कल की बिल्कुल नहीं... पर आप... मेरे जंग की मैदान को... पूरी तरह से तैयार कर रखा है... बल्कि यूँ कहूँ... आपने अपनी चालें तैयार कर रखा है.... क्यूंकि आपको शायद मालुम है... कौन.. कब... कौनसा चाल चलने वाला है....
तापस - (चलते चलते एक रोड साइड बेंच पर बैठ जाता है और विश्व को पास बुला कर बैठने को कहता है)
विश्व - (तापस के पास बैठते हुए) यह सारी बातें... आपने माँ को भी नहीं बताया है...

तभी एक छोटा सा कुत्ते का पिल्ला तापस के पैर के पास आकर घिसने लगता है l तापस उस पिल्ले को उठा कर

तापस - इस कुत्ते के पिल्ले को देखो... एक लावारिश... अपने जिंदगी में जो वैक्यूम है... उसे पुरा करने के लिए... यह मेरे पैरों के पास अपना किस्मत आजमा रहा है...
विश्व - वैक्यूम...
तापस - हाँ... वैक्यूम... हमारे जिंदगी में प्रत्युष और प्रताप नाम का जो वैकुम था... वह तुमसे पुरा हो रहा था... हम लावारिश थे... अब तुम हमारे वारिश हो... हम एक-दूसरे से निभा पा रहे हैं... क्यूंकि हमारा वैक्यूम जज्बाती रूप से फुल हो गया है....
विश्व - डैड.. कुछ ढंग का एक्जाम्पल देते... इस कुत्ते के पिल्ले को बीच में लाने की क्या जरूरत थी... मुझे बस इतना पता है... आप मुझसे बहुत प्यार करते हो... पर जताने में देर कर दी... समझाया कुछ नहीं... उल्टा कुत्ते का अपमान कर दिया... माँ को पता लगेगा तो कितना बुरा लगेगा....
तापस - (मुस्कराता है) बात टालने के लिए मेरे पास कुछ था जो नहीं...
विश्व - मैं जानता हूँ डैड... मैं बस छेड़ रहा था...
तापस - तुझे क्या लगा... मैं भी लपेट रहा था... समझा... बाप... हमेशा बाप ही रहता है...

तापस उठ कर फिर चलने लगता है l कुछ दूर जा कर एक ऑटो को रोकता है l विश्व भी ऑटो के पास पहुँचता है

तापस - अब तुम ड्राइविंग स्कुल जॉइन कर लो... सात दिनों बाद गाड़ी चलाना और अपनी माँ को सर्विस देना...

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द हैल
ड्रॉइंग रुम में गहरी सोच लिए रुप और शुभ्रा बैठे हुए हैं l

शुभ्रा - सॉरी नंदिनी... आज तुम्हारा पार्टी खराब हो गया...
रुप - कोई बात नहीं भाभी... इस साल नहीं तो अगले साल...
शुभ्रा - तुमने रॉकी को बहुत सस्ते में छोड़ दिया था... वरना आज यह नौबत नहीं आई होती...
रुप - ह्म्म्म्म....
शुभ्रा - कल कॉलेज जाओगी ना...
रुप - हाँ... इसमें क्या शक़ है...
शुभ्रा - ठीक है... अब क्या करें...
रुप - मुझे क्या पता...
वीर - (हाथ में एक पैकेट लिए वहाँ पहुँच कर) वह मैं बताता हूँ...

वीर को वहाँ पर देख कर दोनों चौंक जाते हैं और एक-दूसरे की ओर देखने लगते हैं l

शुभ्रा - क्या बात है राजकुमार....
वीर - अभी बताता हूँ... (कह कर पैकेट को नीचे रख देता है और "चटाक" रुप को एक थप्पड़ मार देता है)
Bahut hi badhiya update diya hai Kala Nag bhai.....
Nice and beautiful update.....
 

Nobeless

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अनु.... अनु..... अनु.... यह अपडेट अनु के नाम रहा नाग भाई भले ही character डेवेलपमेंट वीर का हो रहा है इस अपडेट मे पर अनु stole the show last me veer ka रूप को घाटा मारना was unexpected after all that pep talk from Anu! तो, डैनी भाई ही निकले अपने गिफ्ट भेजने वाले और एक रास्ता भी बता दिया कि क्षेत्रपाल का घमंड कैसे तोड़े विश्व और family की नोक झोंक भी बहुत सुन्दर थी और रॉकी भाई तो अपना सिर फ़ूड़वा बैठे हाहाहा चलो थोड़ा दिमाग संतुलन मे तो आएगा इस चोट से, तो रूप ने बनानी के लिए किया यह, और रॉकी भाई तो हर angle से खुद के action को justify करने पर तुले हुए थे अपनी माँ से लगता है इसे भी अनु जैसे pep talk की जरूरत है अपनी माँ से!। बहुत बढ़िया चल रहीं है आपकी storytelling naag भाई every characters are getting their screen time ऐसे ही लिखते रहिए।

धन्यवाद,
 

ASR

I don't just read books, wanna to climb & live in
Divine
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Kala Nag मित्र - चटकाए से चांटा, क्या बात है, लगता है वीर अब ल़डकियों पर भी हाथ उठाएगा, ये तो सही नहीं है, खैर देखते हैं,..
डैनी की एंट्री की पूरी उम्मीद थी उसका तलवार की मूठ का सस्पेंस अच्छा लगा, अब तो दोनों को मिल कर क्षेत्रपाल को अव्यवस्थित करना है...
अगले अंक की प्रतीक्षा में 😊
 

KEKIUS MAXIMUS

Supreme
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best update tha ye 😍😍.. vishw ka guru dainy ne wo talwar ki mooth bheji thi aur usse juda etihas bhi hai jo kshetrapal pariwar se juda hai .dainy ek achcha aur best teacher hai vishw ke liye aur vishw ek best student .

rocky ke saath kya hua college me ye pata chal gaya .aur hospital me sumitra ki baato se pata chala ki rocky ab bhi apni chaal hi chal raha tha roop se badla lene ke liye .par lagta hai aage wo sudhar jaaye .

veer ko sahi se samjhaya annu ne aur apna rudbaa chhodke ek bete ki tarah baat karne ko kaha apni maa se jisse maa bhi khushi se fuli nahi samayi 😍😍..
aur lagta hai veer ne ek bhai ke haisiyat se aaj thappad maari hai roop ko .
 

Jaguaar

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👉छिहत्तरवां अपडेट
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ड्रॉइंग रुम के बीचों-बीच एक छोटा सा टेबल है, उसके उपर थर्मोकोल का एक पैकेट रखा हुआ है l

विश्व - माँ... पैकेट खोल कर देखते हैं ना...
प्रतिभा - नहीं... बिल्कुल नहीं...
विश्व - क्यूँ...
प्रतिभा - अरे... सेनापति जी ने उससे... पैकेट के बारे में पूछताछ क्या की... वह कुरियर बॉय.. पैकेट छोड़ कर भाग गया...
विश्व - तो... भाग नहीं जाएगा... वह पैकेट क्या लेकर आया... डैड ने उसकी ऐसी काउंसिलिंग की... जैसे वह कोई बम लगाने आया था...
प्रतिभा - हाँ वही तो... वह पैकेट छोड़ कर भाग क्यूँ गया...

विश्व जवाब देने के वजाए तापस की ओर देखता है l तापस न्यूज पेपर उठा कर अपने चेहरे के सामने रख देता है l

विश्व - माँ... तुम एक वकील हो... और डैड एक रिटायर्ड एसपी... जरा कानूनी दिमाग लगाओ... उस कुरियर बॉय के सारे कागजात ऑथेंटीक थे... तभी तो... डैड को देखो कैसे अपना मुहँ छुपाये बैठे हैं...
तापस - क्या कहा... डैड के बच्चे... मैं मुहँ छुपाए बैठा हूँ... मुहँ छुपाये बैठा होगा तु... तेरा बाप...
सीलु - अंकल... भाई वही तो कह रहा है...
तापस - क्या...
टीलु - यही... की आप मुहँ छुपाये तबसे बैठे हुए हैं...
तापस - (जो न्यूज पेपर पढ़ रहा था उसीको फ़ोल्ड कर टीलु को मारने के लिए उठाता है) उल्लू के पट्ठे... मेरी खिंचाई कर रहा है...(टीलु भागता है)
जिलु - सेनापति सर... आप फिर से गलत बोले... हम पट्ठे आपके हैं... इसलिए...
तापस - (रुक कर जिलु के तरफ मुड़ कर) क्या कहा.. लफंडर... इसका मतलब मैं उल्लू हूँ...
जिलु - नहीं.. मैं बोल रहा था कि... हम आपके पट्ठे हैं...
तापस - इसका मतलब... तुम चारों की अब पिटाई करनी पड़ेगी...
प्रतिभा -(चिल्ला कर) ओ हो... मैं क्या कह रही थी... और तुम लोग कर क्या रहे हो...
विश्व - रुक जाओ सब... अब इस गिफ्ट को... माँ खोल कर देखेगी...
प्रतिभा - क्या...
विश्व - माँ... बेकार में यूँ दो घंटे बीत गए हैं... प्लीज... तो फिर मुझे देख लेने दो...
प्रतिभा - पता नहीं किसका है... किसने भेजा है... किस इरादे से भेजा है...
विश्व - माँ... किसी दोस्त ने ही भेजा होगा...
प्रतिभा - तु यह कैसे कह सकता है...
विश्व - इसलिये कि... मेरे दुश्मनों ने मुझे कमाया है... पर मैंने यहाँ सिर्फ़ दोस्त और दोस्ती कमाया है... इसलिए यह गिफ्ट किसी दोस्त का ही हो सकता है...
प्रतिभा - इतना विश्वास है तुझे...
विश्व - क्यूंकि मेरे दुश्मन इतने काबिल हैं नहीं
और दोस्तों के क़ाबिलियत पर कोई सवाल नहीं...

प्रतिभा चुप रहती है l विश्व एक छोटा कैंची लेकर उस थर्मोकोल पैकेट को काटने लगता है l थर्मोकोल कवर निकालते ही पैक से पॉली पफ कवर दिखता है l उसे हटाने के बाद काठ के बने एक लाल रंग का बक्सा निकलता है l वह बक्सा एक फुट के क्यूब के आकार का था l अब विश्व उस काठ के बक्से को खोलता है l अंदर के वस्तु को देखते ही वह हैरान हो जाता है l उसके अंदर ब्रास से बनीं किसी तलवार का मूठ था l वह उस मूठ को हाथ में लेकर बाहर निकालता है, यह देख कर सभी हैरान हो जाते हैं l

प्रतिभा - यह... यह क्या... इतनी क़ीमती बक्से के अंदर... एक तलवार का मूठ...
विश्व - (चुप रहता है) (गौर से उस मूठ को अपने हाथों में लेकर देखने लगता है)
प्रतिभा - और तु कह रहा था... किसी दोस्त ने भेजा होगा...

सबके चेहरे पर तनाव दिखने लगता है l गौर से उलट पलट देखने के कुछ देर बाद अचानक विश्व के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान तैरने लगता है l विश्व को यूँ मुस्कराते देख सब हैरान हो जाते हैं और एक दूसरे को देखने लगते हैं l

प्रतिभा - क्या... क्या बात है... कौन है... कोई दोस्त है क्या...
विश्व - दोस्त.... दोस्त तो बहुत छोटा शब्द है माँ... मेरे मोहसिन हैं वह...
प्रतिभा - कौन...
विश्व - बहुत ही खास.... कोई अपना.... चाहने वाला....
तापस - तुझे कैसे पता चला... इस पैकेट पर ना भेजने वाले का नाम है... ना कोई और कागजात... या सिर्फ वही तुझे गिफ्ट भेज सकता है...
प्रतिभा - और यह तलवार की मूठ... ऐसा कोई गिफ्ट भेजता है क्या...
विश्व - माँ.. यह मूठ बहुत ही स्पेशल है... यह मूठ भेजने वाले के नाम के साथ साथ.... जेल से रिहाई की... बधाई वाला पैगाम लेकर आया है...
तापस - यह तुम्हें कैसे पता चला...
विश्व - यह देखिए... यह एक एंटीक पीस है... जहां तक मैं ठीक हूँ... यह एक ब्रिटिश ऑफिसर की सोर्ड है... क्यूंकि इसकी पोमेल.. मतलब... फाली या घुंडी पर ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगो दो शेर के वाला यूनियन जैक के साथ उसमें 1799 खुदा हुआ है... बहुत ही पुराना है... और इस मूठ का आकार ही.. डी की बनावट में है... और सबसे अहम बात... इसकी गार्ड क्रॉस जिस तरह से ऊपर उठी हुई है... बिल्कुल एक अंगूठे की तरह दिख रही है... यानी कि बधाई भेजा है उन्होंने...
तापस - अंदाजा लगा रहे हो... या...
विश्व - नहीं डैड... सिर्फ़ बधाई का मेसेज नहीं... बल्कि उन्होंने अपना नंबर भी भेजा है...
प्रतिभा - क्या... क... कैसे...
विश्व - इस मूठ पर जो कार्वींग हुई है... उसे छेड़ा नहीं गया है... पर बारीकी से देखने पर... मार्कर पेन से कुछ टिपीकल कैलीग्राफी मार्किंग की गई है... यह एक फोन नंबर है...

तापस और प्रतिभा यह सब सुन कर हैरान हो जाते हैं l पर सीलु और उसके सब साथी मुहँ फाड़े विश्व को देखने लगते हैं l विश्व अपने नए मोबाइल से एक नंबर डायल करता है और स्पीकर पर डाल देता है l कुछ देर बाद रिंग की आवाज सुनाई देती है l उसके बाद एक मर्दाना आवाज़ सुनाई देती है

- कैसे हो हीरो... आजादी मुबारक...
विश्व - नमस्कार डैनी भाई... (डैनी की नाम सुन कर और भी हैरान हो जाते हैं) आपने वाकई मुझे चौंका दिया...
डैनी - पाँच साल बाद... मेरा पट्ठा कितना ग्रो कर गया है... यह जानना मेरे लिए बहुत ही जरूरी था...
विश्व - इसका मतलब... आप हमेशा से ही मुझ पर नजर रखे हुए थे...
डैनी - तलवार में कितनी भी धार हो... अगर म्यान में है... खतरे की कोई बात नहीं... पर अगर म्यान से बाहर आ जाए... खतरे की बात तो होगी ही...
तापस - तुमको मालूम था.... विश्व तुम्हें कॉल बैक करेगा...
डैनी - ओ हो... सेनापति सर जी... नमस्कार... बड़े दिनों बाद...
तापस - तुमने बताया नहीं...
डैनी - सेनापति सर... इसमे बताने वाली कुछ है ही नहीं... इस वक़्त जो शख्स आपके साथ बैठा है... उसमें तलवार सी धार मैंने ही तो लगाया है... पाँच सालों बाद... उसका दिमाग कितना तेज है... यह भी तो जानना जरूरी था...
तापस - इसका मतलब... तुम्हें मालुम था... विश्व हमारे साथ रहने वाला है... तुम्हें कैसे मालुम हुआ... हम आज ही तो यहाँ उतरे थे...
डैनी - कमाल करते हैं... सेनापति सर जी... यह भी कोई बात हुई... आप पर हमारी नजरें इनायत पहले से ही थी...
तापस - कमाल है... हम सब तुम्हारे... मतलब तुम्हारे आदमियों के नजरों में थे... पर अंदाजा भी नहीं लगा सके...
डैनी - देट इज़ डैनी... सेनापति सर.. देट इज़ डैनी...
प्रतिभा - पर... किसी तलवार की मूठ ही क्यूँ...
डैनी - भरोसा तो मुझे मेरे पट्ठे पर सौ फीसद है... फिर भी हिदायत देना जरूरी भी है... विश्व अभी एक नंगी तलवार के जैसा है... उसे कंट्रोल में रहने के लिए हिदायत देने के लिए ही.. यह मूठ भेजा है... पर यह आधा सच है...
प्रतिभा - तो... पुरा सच क्या है...
डैनी - विश्व... इस तलवार के बारे में... कितना कुछ जान पाए हो... बताओगे जरा...
विश्व - डैनी भाई... जहां तक मेरा ध्यान जा रहा है... डेढ़ साल पहले... कलकत्ता में इस मूठ की नीलामी हुई थी... पर शायद यह किसी राजस्थानी व्यापारी ने खरीदा था...
डैनी - वेरी गुड... अगर नीलामी के बारे में जानकारी है... तो इसकी बारे में... और भी जानकारी होगी... वह बोलो...
विश्व - यह तलवार की मूठ... ईस्ट इंडिया कंपनी के कैप्टन जॉन फर्गुशन की है... उन्होंने खुर्दा जीतने बाद... खुशी से यह तलवार तोड़ी थी... तलवार का वह टूटा हुआ टुकड़े का अभी तक पता नहीं है... इसलिए सिर्फ यह मूठ बाकी है...
डैनी - शाबाश.. बहुत कुछ जानते हो... पर इस टुटे हुए तलवार पर एक मिथक... या मिथ... या किवदंती भी है... जानते हो...
विश्व - नहीं...
डैनी - सन 1803 में ओड़िशा का सबसे ताकतवर राज्य.. खुर्दा के पतन के बाद... एक नए राजशाही को अंग्रेजों ने मान्यता दी थी... वह राज्य था... यश वर्धन पुर... बाद में आगे चलकर यशपुर कहलाया...
विश्व - अच्छा... तो वह मिथक... यशपुर से जुड़ा हुआ है...
डैनी - हाँ... खुर्दा के पतन के बाद जॉन फर्ग्यूसन ने... यश वर्धन से वफादारी के लिए राज शाही के साथ साथ कुछ और भी मांगने के लिए कहा था... यश वर्धन था बहुत चालाक... किसीके आगे कभी झुका नहीं था... आगे चलकर कहीं अंग्रेजों के सामने उसे झुकना ना पड़े... इसलिए फर्ग्यूसन की तलवार मांग ली... एक विजयी योद्धा से तलवार माँगना मतलब... उससे उसका समर्पण माँगना... अपने बड़बोले पन में फर्ग्यूसन ने मांगने के लिए कहा था... यश ने जो मांगा था वह उसके लिए एक अपमान था... उसने तलवार तो दी... मगर उसकी मूठ निकाल कर... जिससे उसने अपनी इज़्ज़त बचा ली... और तलवार को प्रतीक के रूप में.... यश वर्धन पुर और क्षेत्रपाल राजशाही को मान्यता दी...
विश्व - यह तो फैक्ट है... मिथक कहाँ है...
डैनी - मिथक यह है कि... वह जो वगैर मूठ वाली नंगी तलवार है... वह जब अपनी मूठ से जुड़ जाएगा... क्षेत्रपाल की राजशाही खत्म हो जाएगी....
विश्व - क्या...
डैनी - हाँ... वैसे यह एक मिथक है... पर इसी डर से... इन्वीटेशन के बावजुद... इतनी अहम नीलामी में... क्षेत्रपाल के परिवार में कोई नहीं गया था...
विश्व - (चुप रहता है)
डैनी - क्या सोचने लगे...
विश्व - मुझे करना क्या होगा...
डैनी - क्षेत्रपाल का अहं... बेवजह नहीं है... वह अहं उसका आत्मविश्वास भी है... इसलिए यूँ मान के चलो... उस तलवार को पुरा एक करना भी.... तुम्हारा एक मिशन होगा.... यानी तलवार से मूठ अलग हुआ तो राजशाही मिली... जब मूठ वापस जुड़ जाएगा... तब राजशाही खतम भी हो जाएगी...
तापस - क्या तुम उसमें विश्व की मदत करोगे...
डैनी - मदत... जी नहीं... बिल्कुल नहीं...
तापस - क्यूँ... क्यूँ नहीं...
डैनी - मैं फ़िलहाल... दर्शक की भूमिका में हूँ... थर्ड अंपायर का दायित्व तो आप और मैडम निभा रहे हैं... खेलना... खिलाड़ी का काम है... मैने अपने खिलाड़ी को... ऑल द बेस्ट कह दिया है...
विश्व - डैनी भाई... क्या हम कभी मिल पाएंगे...
डैनी - हम मिलेंगे... और जरूर मिलेंगे... फ़िलहाल मेरा बेस्ट ऑफ लक विश.... तुम्हारे आने वाले दिन के लिए...
विश्व - थैंक्यू डैनी भाई...
डैनी - ओवर एन आउट...

डैनी का फोन कट जाता है l

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ESS ऑफिस

लंच ब्रेक था, इसलिए अनु नीचे कैन्टीन में थी l लंच खतम कर जब वह जाने को हुई तभी उसे मालुम हुआ कि वीर आ गया है और खुद को अपने कैबिन में बंद कर लिया है l यह सुनते ही वह उपर ऑफिस में जाने को हुई तो एक स्टाफ उसे रोकता है

स्टाफ - रुको... अभी ऊपर मत जाओ...
अनु - क्यूँ...
स्टाफ - राज कुमार जी ने... किसीको भी ऊपर ऑफिस जाने से मना किया है...
अनु - (ऊपर की ओर देखती है) (तभी ऊपर कुछ टूटने की आवाज आती है) वह.. वह क्या कर रहे हैं....
स्टाफ - पता नहीं जब से आए हैं... गुस्से में हैं... (फिर कुछ फेंके जाने की आवाज आती है) चीजें उठा उठा कर... फेंक कर... या तोड़ कर... अपना गुस्सा ठंडा कर रहे हैं...
अनु - हे भगवान... तब तो मुझे जाना चाहिए...
स्टाफ - ऐ लड़की... ऊपर जाएगी... तो अपनी नौकरी गवां बैठेगी...
अनु - वह मालिक हैं... उनकी मर्जी... पर अगर उन्हें ऐसे छोड़ दिया... तो वह खुद को घायल कर बैठेंगे.... (अनु ऊपर जाने लगती है) (कुछ लोग उसे रोकना चाहते हैं)
स्टाफ - जाने दो इसे... राजकुमार जी के सामने भली बनने की ऐक्टिंग करेगी... हूँह्ह्... राजकुमार जी को जानती कहाँ है... जाने दो उसे...

सब लोग साइड हो जाते हैं l अनु सीढियों से ऊपर वीर के कैबिन के पास पहुँचती है l तभी कैबिन के अंदर कुछ काँच के सामान टूटने की आवाज आती है l अनु दरवाज़ा खटखटाती है l पर अंदर से कोई आवाज नहीं आती l तभी दरवाजे के नीचे की गैप से कुछ कांच के टुकड़े छिटक के बाहर आते हैं l अनु अपनी हैंडबैग से एक्स्ट्रा चाबी निकालती है और धीरे से दरवाजा खोल कर अंदर झाँकती है l अंदर वीर गहरी गहरी सांसे लेते हुए अपनी जबड़े भींचे हुए दोनों हाथों को टेबल पर मार रहा है l दरवाजा खोल कर अंदर दरवाज़े के पास खड़ी हो जाती है l

वीर - (चिल्लाते हुए) कहा था ना... कोई नहीं आए यहाँ पर... क्यूँ आई हो... बंद करो दरवाजा...

अनु दरवाजे को अंदर से बंद कर देती है l वीर एक कुर्सी को उठा कर टेबल पर पटकने लगता है l वह कुर्सी टुट जाती है l अनु उसे देखती I वीर कमरे को तहस नहस कर चुका है l वीर अपना सिर घुमाता है उसे कमरे में फाइलों से भरी, कमर की हाइट की एक कबोर्ड दिखती है l वह उसके पास जाता है l उस कबोर्ड के ऊपर कुछ ट्रफीयाँ थी उन्हें उठा कर फेंक देता है l फिर उस कबोर्ड पर चिल्ला चिल्ला कर घुसा मारने लगता है l अनु से रहा नहीं जाता वह भागते हुए वीर के पीछे से कस के गले लग जाती है l वीर जो इतना वायलेंट था कुछ देर पहले वह अचानक से रुक जाता है l वीर उस कबोर्ड पर दोनों हाथ रख कर शांत हो कर अपनी आँखे मूँद लेता है अनु वीर को वैसे ही कसके पकड़े रखती है l वीर की सांसे अब धीरे धीरे नॉर्मल होने लगती है l उसे महसुस होता है अनु उसे कस कर पकड़ी हुई है l वह तुरंत अनु की हाथों को खुद से अलग करता है और अनु की तरफ पीछे मुड़ जाता है l आँखों में आंसू लिए अंगारों की तरह जल रही आँखों से अनु की तरफ देखता है I अनु वीर के आँखों में बेइन्तेहा दर्द देखती है l वीर रोया तो नहीं पर टुटसा गया था l वह अनु को, अपने सीने से लगा लेता है l अनु भी उसे अपने से कस के भींच लेती है l इसी तरह कुछ वक़्त वह दोनों एक दुसरे के बाहों में गुजार देते हैं l अनु खुदको अलग करने की कोशिश करती है पर वीर उसे अपने से अलग होने नहीं देता l तो अनु उसे फिर से गले लगा लेती है l

अनु - राजकुमार जी...
वीर - हूँम्म्म्...
अनु - आप आज इस कदर.... क्यूँ टुट गए...
वीर - (चुप रहता है)
अनु - क्या मैं इस काबिल भी नहीं... की आपके दर्द बांट सकूँ...
वीर - (भर्रायी हुई आवाज में) मैं तुम्हारे जैसा नहीं हूँ अनु... सच कहूँ तो.. मैं किसी के भी लायक नहीं हूँ...

अनु अब वीर से अलग होती है और वीर की हाथ को पकड़ कर अपने साथ लेकर एक सोफ़े पर बिठा देती है l

अनु - अब बताइए... हो सकता है... मैं कुछ मदत कर पाऊँ...

वीर अनु के आँखों में देखता है और फिर उसके चेहरे की मासूमियत में हैरानी भरे नजरों देखते हुए खो सा जाता है l

अनु - (वीर के हाथ पर हाथ रख कर हिलाते हुए) राजकुमार जी...
वीर - हँ... हाँ... हाँ अनु...
अनु - अब जो बोझ बनकर आपके दिल में है... उसे मेरे सामने उतार दीजिए... मैं समझ सकती हूँ... कोई गहरी बात है... पर प्लीज... आप ऐसे तो ना टुट जाइए...
वीर - (अपने दोनों हाथों में अनु के हाथों को लेकर) अनु... मैंने कहा था ना... आज मेरी बहन... राजकुमारी रुप की जन्मदिन है...
अनु - हाँ...
वीर - मैं... मैं तुम्हारी बात मान कर... उसे बधाई देने कॉलेज गया था...

एक फ्लैशबैक....

रॉकी प्रिन्सिपल ऑफिस से बाहर निकल कर उस कॉरीडोर के सामने अपनी आँखे बंद कर दोनों बाहें फैला कर खड़ा हो जाता है l उधर रॉकी टेबल से तोड़े काठ का टुकड़ा लिए भागता हुआ रॉकी के तरफ जा रहा है l इतने में रुप और उसके सारे दोस्त कैन्टीन से बाहर आकर रॉकी के तरफ देखते हैं l रुप का चेहरा गुस्से से लाल हो चुका है l वह गुस्से भरी नजर से रॉकी की ओर देखती है l इतने में रुप अपने कंधे पर बनानी की हाथ को महसूस करती है l जैसे जैसे उस तरफ से वीर बढ़ता जा रहा था बनानी की हाथ का दबाव रुप के कंधे पर बढ़ती ही जा रही थी और आँखों में खौफ के साथ साथ आँसू भी बहने लगे थे l रुप देखती है वीर रॉकी के पास पहुँचने वाला है फिर एक नजर वह बनानी को देखती है, फिर वह भी रॉकी के तरफ भागती है l वीर काठ को हाथ में लिए रॉकी के तरफ भागते हुए एक कुदी लगाता है l रुप भी तेजी से भागते हुए जाती है पर थोड़ी देर हो जाती है रॉकी के सिर वीर का काठ लग जाती है l रॉकी का सिर फट जाता है और वह नीचे बेहोश गिर जाता है l वीर अपना काठ उठा कर मारने वाला होता कि रुप उसे पीछे से पकड़ कर खिंच देती है l वीर गुस्से से अपना काठ को मारने के लिए उठाता है उसके सामने रुप खड़ी हो जाती है l

वीर - (चिल्ला कर) आप हटीये राजकुमारी...
रुप - क्यूँ.. क्यूँ हट जाएं...
वीर - यह कुत्ता है... अपनी औकात भूल गया था... इसलिए इसे जीने का हक नहीं है...
रुप - क्या किया है आखिर इसने...
वीर - इसने हम से.... हम से रिस्ता जोड़ने की कोशिश की है...
रुप - तो कौनसा गुनाह हो गया उससे... खुदको भाई ही तो कहा है... हमारा... कौनसा रुसवा या जलील कर दिया हमें...
वीर - (अपने चारो तरफ देखता है, सब उन दोनों को ही देख रहे हैं) (थोड़ा शांत होते हुए) उसने... क्षेत्रपाल परिवार की लड़की से जुड़ने की कोशिश की है...
रुप - हाँ तो किस रिश्ते से... खुद को ज़माने के आगे हमारा भाई कहा है... क्या भाई बहन का रिश्ता भी... इतना बड़ा गुनाह हो गया है...
वीर - आप... आप इसकी तरफदारी क्यूँ कर रहे हैं...
रुप - इसलिए... (पॉज लेकर) की वह मेरा भाई लगता है...
वीर - (अपने हाथ से काठ को फेंकते हुए) तो हम कौन हैं...
रुप - आप राजकुमार वीर सिंह क्षेत्रपाल हैं... आपको हम से और हमें आपसे यह क्षेत्रपाल जोड़ता है... यही वजह है कि आप राजकुमार हैं... और हम राजकुमारी...
वीर - इनॉफ... हम भाई हैं आपके...
रुप - कब से... (यही लफ्ज़ गूंजने लगती है)
वीर - (चुप हो जाता है)
रुप - कब से... हम राजकुमारी हैं... आप राजकुमार... इसके आगे ना हमारा कोई रिश्ता है.. ना ही कोई पहचान... आज पहली बार... कोई ना खून से ना खानदान से हमसे भाई बनकर जुड़ रहा था... वह भी आपसे नहीं देखा गया...
वीर - (चीखते हुए) राजकुमारी.... (हाथ उठ जाता है मगर हवा में रुक जाता है) (वीर देखता है रुप एक पल के लिए अपनी आँखे तो मूँद लेती है पर वहाँ से हटती नहीं)
रुप - (वीर के आँखों में आँखे डालते हुए) हाथ उठाने से पहले इतना तो बता दीजिए... यह उठने वाला हाथ किसका है... राजकुमार वीर सिंह के... या मेरे भाई के...

फ्लैशबैक खतम

अनु ख़ामोशी के साथ वीर को सुने जा रही थी l वीर अपनी बात खतम करता से है l

वीर - अनु.... राजकुमारी जी... मेरी बहन हैं... वह मुझसे ऐसे बात की... वह भी एक नामुराद के लिए...
अनु - (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाती है) (फिर एक गहरी सांस लेते हुए) एक बात कहूँ... अगर... आप बुरा ना मानें तो...
वीर - हाँ पूछो...
अनु - उस वक़्त... राजकुमारी जी के लिए भाई कौन था...
वीर - क्य... क्या मतलब है आपका...
अनु - आप अभी भी... राजकुमारी कह रहे हैं... बहन बाद में बोल रहे हैं... आपके लिए मुख्य क्या है... खुनी रिश्ता या खानदानी पहचान...
वीर - (चुप हो जाता है, और अनु के चेहरे को घूर कर देखने लगता है)
अनु - मैं... आपके और राजकुमारी जी के बीच की कशमकश को समझ पा रही हूँ... पर पता नहीं आपको समझा पाऊँगी या नहीं... फिर भी... आपका खुनी संबंध असली है... पर खानदानी पहचान के नीचे घुट गया है... और उस लड़के का राजकुमारी जी से संबंध भले ही नकली है... पर वह भाई की पहचान के साथ सामने आया... भगवान ना करें राजकुमारी जी को... कल किसी मदत की दरकार होगी... तब आप क्या उनके... राजकुमार बुलाने की इंतजार करेंगे... या भैया बुलाने भर मदत को पहुंचेंगे...
वीर - (चुप रहता है और अपना सिर पकड़ कर अपने कुहनियों के बल घुटनों पर झुक जाता है)
अनु - लगता है... मैं कुछ ज्यादा कह गई... अपनी औकात से बाहर कह गई... (अनु जाने के लिए उठती है)
वीर - अनु... प्लीज रुक जाओ... मैं समझ गया... मैं भाई असली हूँ... पर खानदानी नकली पहचान के ओट में हूँ... वह भाई नकली था... पर उसके लिए मेरी बहन की ज़ज्बात असली थे... मैं कहाँ गलत हूँ जान गया हूँ... मुझे सुधारने का रास्ता भी तुम बताओ... प्लीज अनु.. प्लीज...
अनु - (वीर को गौर से देखती है, वीर जैसे अपने अंदर की दुख की सैलाब को जबरदस्ती रोके रखा है) राजकुमार जी... आप रो रहे हैं...
वीर - नहीं.. मैं रो नहीं रहा हूँ...(जबड़े भींच कर) क्षेत्रपाल कभी रो नहीं सकते...
अनु - राजकुमार जी... आपके जज़्बातों को... दिल के सुकून को... आपके इसी अहम ने... भरम ने.. अंधेरे में अबतक आपको भटका रहा है... मेरी बात मानिए... बस एक बार... जी भर के रो लीजिए... सब साफ हो जाएगा... अंधेरा छट जाएगा... आपको अच्छा लगेगा... आपको नई ऊर्जा मिलेगी... आप को नई राह मिलेगी...
वीर - (उठ खड़ा होता है) यह.. यह रोना धोना सब औरतों का काम है... हम मर्द हैं... वह भी क्षेत्रपाल...

अनु उठ कर जाने लगती है l वीर उसका हाथ पकड़ लेता है, अनु मुड़ कर उसे देखती है तो वीर उसे अपने गले से लगा लेता है और अनु के कंधे पर फफक फफक कर रोने लगता है l उसे रोता हुआ पा कर अनु भी उसे गले लगा लेती है l वीर धीरे धीरे टूटते टूटते रोने लगता है l अनु उसे अपने से अलग करती है और सोफ़े पर बैठ कर वीर को अपने पास बिठाती है और वीर के सिर को अपने गोद में रख देती है l वीर अपनी आँखे बंद कर लेता है और रोते रोते उसके गोद में हो सो जाता है


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हस्पताल के बेड पर लेटा रॉकी धीरे धीरे अपनी आँखे खोलता है I दर्द के मारे कराहने लगता है l वह याद करने की कोशिश करता है आखिर क्या हुआ l उसे याद आता है वीर के हाथ में एक काठ का टुकड़ा था जिसे लेकर वह रॉकी को मारने के लिए कुदी लगाया था l उसके बाद वह डर के मारे आँखे बंद कर लिया था l अब उसकी आँखे खुली तो हस्पताल के बेड पर पड़ा है l हाथ में सलाइन लगा हुआ है l अपने बाएं हाथ को सिर पर लगाते ही उसे मालुम होता है कि उसके सिर पर चोट लगी है l

रॉकी - आह...
सुमित्रा - कैसा है... दर्द कम हुआ...
रॉकी - मम्मी... तुम... मैं... यहाँ... कब आया...
सुमित्रा - तुझे याद भी है... तुने कांड कौनसा किया...
रॉकी - (अपना सिर झुका लेता है)
सुमित्रा - हूँह्ह... कांड ऐसा किया... के अपनी माँ के सामने सिर झुकाना पड़ रहा है...
रॉकी - मम्मी... मैंने क्या गलत किया...
सुमित्रा - ओ... अच्छा... तो बता जरा... सही क्या किया तुने...
रॉकी - (कुछ नहीं कह पाता)
सुमित्रा - तुने... पहले अपने बदले के लिए... रुप नंदिनी से प्यार का नाटक किया... दाल नहीं गली... तो बहन बना कर चाल चलने लगा... फिर भी... नंदिनी ने बड़ा दिल दिखाया... तेरी जान के लिए... अपने भाई से भीड़ गई...
रॉकी - (खुश होते हुए) सच...
सुमित्रा - खुश क्यूँ हो रहा है... तुझे अपने भाई से बचाया इसलिए...
रॉकी - हूँह्ह...
सुमित्रा - बचपन से ही... तु उतावला था... जल्दबाजी रहती थी तेरी हर बात में... हर काम में.. पर... एक लड़की के बारे में... तुने ऐसा कैसे सोच लिया... ऐसा कैसे कर गया...
रॉकी - मम्मी... इतना सब कुछ... तुम्हें किसने बताया...
सुमित्रा - रवि और दीप्ति ने...
रॉकी - (फिर अपना सिर झुका लेता है) मम्मी आपको क्यूँ लगा... नंदिनी ने मुझे बचाया... इस बात पर खुश ना होऊँ...
सुमित्रा - इसकी भी वजह... दीप्ति ने बताया मुझे...
रॉकी - मम्मी... तुमने सही कहा... मैं उतावले पन में... जल्दबाजी में.. बहुत कुछ गलत कर गया... मैं सबकुछ हार चुका था... अपने दोस्त... नंदिनी का विश्वास और खुद को भी... मैं.. दुबारा वह सब कुछ हासिल करना चाहता था... इसलिए ऐसा किया...
सुमित्रा - एक लड़की का नाम सरेआम लेता है... एक जबरदस्ती का रिश्ता... उसपर थोपता है... और यह उम्मीद करता है... की वह भागते हुए आए... और तुझे... सरेआम गले लगा ले...
रॉकी - (अपना सिर फिर से झुका लेता है)
सुमित्रा - भाई बहन के रिश्ते को... दुहाई दे कर... एक लड़की का मज़ाक बना बना दिया तुने... जाहिर सी बात है... उसका भाई तुझ पर टुट पड़ा... हाँ अगर रुप नंदिनी बीच में ना आती... तो.... (बात को पूरी नहीं कर पाती)
रॉकी - नंदिनी ने... अपने भाई से मुझे बचाया... मतलब... उसे मेरी इस हरकत से भले ही ठेस लगा हो... पर उतना बुरा नहीं लगा होगा...
सुमित्रा - अभी भी... अपनी हरकत को जायज ठहराने की कोशिश कर रहा है... वह...वह क्या नाम बताया दीप्ति ने....ह्म्म्म्म.. हाँ बनानी... बनानी के लिए... अपने भाई से बचाया... नंदिनी ने...
रॉकी - (दबी जुबान से) मैं... मैं ने जो भी किया... क्या... कोई ऐसा कर पाएगा...
सुमित्रा - नहीं... नहीं कर पाएगा शायद... पर असलियत वह नहीं है... जो तु कह रहा है... या समझाना चाह रहा है... असलियत यह है कि... तु नंदिनी से बदला लेना चाहता था... उसने तुझे बुजदिल और कायर कहा था... उसने जिस तरह से तेरी करनी को तेरे सामने फोड़ा था... उससे तेरे अंदर की मर्दाना गुरुर को ठेस पहुंचा था... इसलिए तुने यह हरकत की थी... खुद को मर्द साबित करने के लिए और खुद को बहादुर साबित करने के लिए...
रॉकी - आ.. आप.. आपको... यह सब कैसे मालुम...
सुमित्रा - लगता है.. तेरे सिर पर चोट गहरा लगा है... बताया तो था... दीप्ति और रवि ने मुझे सबकुछ बता दिया...
रॉकी - ड... डैड...
सुमित्रा - नहीं आए हैं... कल तेरी टीसी लेने के बाद... तुझसे मिलने आयेंगे...
रॉकी - (शर्म और दुख से अपना सर फिर नीचे कर लेता है) स... सॉरी मम्मी...
सुमित्रा - (और कुछ नहीं कहती है)

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वीर मध्यम गति से गाड़ी चला रहा है l बगल में अनु बैठी हुई है l वीर बहुत तरोताजा लग रहा था l एक अंदरुनी खुशी उसके चेहरे पर दमक रही थी l अनु उसे तिरछी नजरों से बीच बीच में देख रही थी l वीर की ख़ुशनुमा चेहरा देख कर उसे बहुत अच्छा लग रहा था l अनु आज की बातों को याद करने लगती है l कैसे एक मासूम बच्चे की तरह, अनु के गले से लग कर रोया, और उसके गोद में सिर रख कर सो गया l यह याद आते ही अनु के गाल शर्म से लाल हो जाते हैं l अनु को वह लम्हा याद आने लगता है जब सोया हुआ वीर उसके गोद से अचानक उठ कर बैठ गया

वीर - अनु... मैं.. तु.. तुम्हारी गोद में सिर रख कर सोया हुआ था...
अनु - (झिझकते हुए अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
वीर - (दिवार पर लगी घड़ी को देख कर) ओह माय गॉड... शाम के छह बज रहे हैं... और तुम अभी तक यहीं हो... मु.. मुझे जगाया क्यूँ नहीं....
अनु - (कुछ कह नहीं पाती) (इधर उधर देखने लगती है)
वीर - क्यूँ अनु...
अनु - (झिझकते हुए) क्या बताऊँ... आप... आप.. टुटे हुए लग रहे थे... थके हुए लग रहे थे... ऐसा लगा... जैसे दर्द के मारे छटपटा रहे थे... पर आप सोये... ऐसे सोये... जैसे कई दिनों से सोये ना हों... मुझे ऐसे जकड़े सोये... जैसे कोई मासूम बच्चा.. माँ की गोद को... बस... इसीलिए.. नहीं जगाया...
वीर - (उठ कर खड़ा हो जाता है)(अनु की तरफ बिना देखे) तुमने ठीक कहा अनु... बचपन में... कभी माँ की गोद में ही ऐसी नींद आई थी... एक बार क्या वह गोद छुटा... फिर कभी वैसी नींद नहीं आई... आज जाकर वह नींद पुरी कर पाया... (अनु की तरफ मुड़ कर देख कर) थैंक्यू...
अनु - आप ही ने तो कहा था... मैं आपकी पर्सनल सेक्रेटरी कम अस्सिटेंट हूँ... मेरा सिर्फ़ काम ही है... आपका खयाल रखना...
वीर - (एक गहरी सांस लेता है) (अनु की बातों अपने अंदर एक थर्राहट महसुस करता है)(पहली बार ऐसा होता है कि वह अपनी नजरें झुका लेता है)
अनु - एक बात कहूँ...
वीर - हूँ... (अनु की ओर बिना देखे)
अनु - आज आप... अंदर ही अंदर अपनी माँ को ढूंढ रहे थे...
वीर - (हैरान हो कर अनु को देखता है)
अनु - हाँ राज कुमार जी... आपकी तड़प आजकी नहीं है... कई सालों की है... आपको आज एक कंधे की दरकार थी... सिसकने के लिए.. एक सीने की दरकार थी... लग कर रोने के लिए... और एक गोद की दरकार थी... जकड़ कर सोने के लिए...
वीर - (आँखे बड़ी हो जाती है, मुहँ खुला रह जाता है) अनु.. क्या यह तुम हो....
अनु - जी... राजकुमार जी...मैं ही हूँ... ऐसी भावनायें मैं बखूबी समझ सकती हूँ... क्यूंकि... मेरी ना तो माँ है... ना बाबा... मैं भी बहुत तड़पी हूँ... वह कंधा.. वह सीना.. वह गोदी... बहुत ढूंढी हूँ... इसलिए मैं उस दर्द को... तड़प को समझ सकी...
वीर - (अनु को ऐसे देखने लगता है जैसे वह किसी दुसरी ग्रह से आई हो) (मुश्किल से अपना थूक निगलता है) (वह झट से अपना चेहरा घुमा लेता है)
अनु - आपके सारे दर्द गायब हो जाएंगे...
वीर - (फिर मुड़ कर अनु को देखता है) कैसे...
अनु - एक बार... बस एक बार अपनी माँ से बात लीजिए... (वीर फिर से अनु की तरफ पीठ कर लेता है) कब तक... ऐसे मुहँ फेरे रहेंगे... आपकी दर्द की दवा... आपके अपनों के पास है... बात तो कीजिए... पर राजकुमार बन कर नहीं... एक माँ के बेटे बन कर...
वीर - नहीं...
अनु - (चुप हो जाती है) (वह वहाँ से जाने लगती है)
वीर - अनु प्लीज...
अनु - माफ लीजिए राजकुमार जी... आप मालिक हैं... मैं मुलाजिम... शायद मैं कुछ ज्यादा ही बोल गई... अपनी औकात भूल गई...
वीर - नहीं नहीं नहीं... प्लीज... तुम गलत नहीं हो... पर... सच यह है कि... मैं... मेरी हिम्मत नहीं हो रही है...
अनु - (वीर के पास आकर, वीर के हाथ पर हाथ रख कर) एक बार कोशिश तो कीजिए...

वीर कांपते हाथों से फोन निकालता है पर नंबर डायल कर नहीं पाता l अनु वीर को आँखों से दिलासा देते हुए डायल करने के लिए कहती है l वीर एक नंबर डायल करता है

-हैलो (राजगड़ के महल में कोई नौकर फोन उठाता है)
वीर - हम... राजकुमार बोल रहे हैं...
नौकर - जी... हुकुम राजकुमार..
वीर - छोटी रानी जी से बात करनी है... उन्हें कर्डलेस दो....
नौकर - जी हुकुम... (नौकर भागते हुए सुषमा को कर्डलेस देता है) (अपना सिर झुकाए) छोटी रानी... राजकुमार...
सुषमा - (कर्डलेस को हाथ में लेकर) हैलो...
वीर - (यह सुन कर आँखे छलक पड़ती हैं) (वह अनु की ओर देखता है) (अनु उसे इशारे से बात करने को कहती है) हे.. हैलो...
सुषमा - कहिए राजकुमार... फोन क्यूँ किया...
वीर - वह... मैं.. (आवाज़ भर्रा जाती है) म.. मैं...
सुषमा - (हैरान हो कर) राज कुमार... क.. क्या हुआ...
वीर - (अनु इशारे से माँ कहने के लिए कहती है) (वीर अनु की तरफ देख कर) माँ...
सुषमा - (आँखे बड़ी हो जाती है) क... क्या कहा...
वीर - माँ...
सुषमा - क्या बात है.. र.. राज.. कुमार...
वीर - राजकुमार नहीं माँ... वीर... वीर कहो ना माँ...
सुषमा - क... क्या हुआ है आपको...
वीर - आप नहीं... तुम.. या.. तु... आप नहीं...
सुषमा - (नौकर को इशारे से, बाहर जाने के लिए कहती है, नौकर के जाने के बाद) क्या कहा तुमने...
वीर - हाँ माँ... यह ठीक है... यह नकली पहचान के नीचे... रिश्तों को और कुचल नहीं सकता... आज मुझे रानी माँ की नहीं... माँ की दरकार थी...
सुषमा - (सूबकते हुए) क्या... इसलिए तुझे... आज माँ की याद आई...
वीर - देखा... देखा माँ देखा... हम अभी कितने करीब हो गए... यह राजसी पहचान को ढोते ढोते... हम रिश्तों के मामले में कितना गरीब... और कितने दूर हो गए थे... मैंने आज माँ कहा.... तो तुमने तु कह दिया...
सुषमा - (थर्राती हुई आवाज में) हाँ मेरे लाल... हाँ..
वीर - बस माँ... अब मैं फोन रखता हूँ...
सुषमा - क्यूँ... मन भर गया तेरा...
वीर - नहीं माँ... आज एक दिन में इतनी खुशियाँ... मुझसे संभले नहीं संभलेगी माँ...
सुषमा - ठीक है बेटा... क्या कल भी फोन करेगा...
वीर - हाँ माँ हाँ... अब तो तुमसे बात किए मेरा दिन पूरा ना होगा... अच्छा अब रखता हूँ...
सुषमा - ठीक है बेटा... बाय..
वीर - बाय माँ... (कह कर फोन काट देता है और खुशी से अनु के हाथ पकड़ कर कूदने लगता है)

उसकी खुशी देख कर अनु भी खुशी के मारे हँसने लगती है l वीर अचानक कूदना बंद कर अनु को देखता है और आगे बढ़ कर अनु को गले लगा लेता है l वीर का चेहरा अनु के कंधे पर होती है

वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - आज... मैं तुमसे एक वादा माँगना चाहता हूँ...
अनु - कैसा वादा...
वीर - जिस तरह आज तुमने मुझे अपने गले से लगा कर... टूटने से.. बिखरने से... बचाया...
अनु - जी...
वीर - फ़िर कभी ग़मों में टूटने लगूँ... या कभी ज्यादा खुशी में बहक ने लगूँ... तब मुझे गले से लगा लेना... प्लीज...
अनु - (वीर से अलग हो जाती है, वीर का चेहरा उतर जाता है) क्या... यह एक मालिक का... अपने मुलाजिम को दिया हुकुम है...
वीर - (अपना सिर ना में हिलाते हुए) नहीं... अनु नहीं... आज... एक दोस्त अपने दोस्त से ईलतजा कर रहा है...
अनु - (चेहरे पर हल्का सा शर्म और मुस्कान लेते हुए) जी... ठीक है...
वीर - (चेहरे पर रौनक लौट आती है) सच...
अनु - (थोड़ा शर्माते हुए) जी...
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - अब मैं बहुत खुस हूँ...
अनु - (कुछ नहीं कहती है शर्मा के चेहरा झुका लेती है)
वीर - अनु... अब मैं बहुत खुश हूँ...
अनु - (सिर उठा कर वीर की तरफ देखती है) (वीर दोनों बाहें फैलाए खड़ा है)

कार के हॉर्न से अनु अपनी वास्तव में आती है l वीर उसके गली के बाहर गाड़ी रोक देता है l अनु शर्माते हुए गाड़ी से उतर जाती है l और अपने गली की ओर बढ़ने लगती है l

वीर - अनु... (अनु पीछे मुड़ती है) क्या यार... कम से कम बाय तो कहो...
अनु - जी... बाय...
वीर - बाय... और हाँ... सोने से पहले... मेरी खैरियत पूछना जरूर...
अनु - (शर्म और खुशी से दोहरी हो जाती है) (सिर को हाँ में हिलाते हुए) जी... (कह कर गली की ओर भाग जाती है)

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बादामबाड़ी बस स्टैंड कटक l

तापस और विश्व सीलु एंड ग्रुप को बस में बिठाने के बाद बाहर चलते हुए निकलते हैं l

विश्व - डैड... हम कार में भी तो आ सकते थे...
तापस - चलाता कौन.. मैं...
विश्व - हम छह जन थे... जाहिर है... माँ तो आ नहीं सकती थी...
तापस - हाँ... और नाइट ड्राइविंग... मुझे अच्छी नहीं लगती... और किस्मत से हम छह थे... इसलिए ऑटो में तीन तीन हो कर आ पाए... वरना तुम्हारी माँ को पता चल गया होता...
विश्व - माँ से यह बात छुपाना जरूरी था क्या...
तापस - उसका दिल एक माँ की है... बच्चों को खतरों से हमेशा दूर रखना चाहेगी ही...
विश्व - पर यह सब करना जरूरी था क्या...
तापस - कितना जरूरी था... यह तु भी समझ पा रहा होगा... आगे चलकर कितना काम आएगा...
विश्व - पर यह सब आपने सोचा कब...
तापस - जब तु इन चारों को सरकारी गवाह बनाने के लिए... अपनी माँ से बात कर रहा था... मेरे सामने वह भी... मेरे ही फोन पर...
विश्व - (हँसता है) डैड... एक बात कहूँ...
तापस - हाँ बोल...
विश्व - आप ना... माँ से पहले ही... मुझे जानते हो... माँ से पहले ही... मुझे पसंद और प्यार करने लगे थे... तो मुझे गले लगाने में... माँ से भी देरी आपने क्यूँ की...
तापस - ऑए... ज्यादा... फिलॉसफर बनने की कोशिश मत कर...
विश्व - (छेड़ते हुए) क्या डैड... मैंने महसूस किया है... आप मुझे पसंद बहुत करते थे... बाद में प्यार भी बहुत करने लगे...
तापस - (घूरते हुए) तु क्या मुझे आज छेड़ने के मूड में है...
विश्व - बिल्कुल नहीं... मुझसे जुड़े हर ज़ज्बात में... जब माँ से पहले आप थे... तो इजहार करने में... माँ पहले आप बाद में... ऐसा क्यूँ...
तापस - देख मेरे सामने बच्चा है तु... समझा... ज़्यादा स्मार्ट मत बन... तुझसे तेरी माँ बहुत प्यार करती है... इसीलिए मैं...
विश्व - हाँ... मैं...
तापस - बंद करेगा अपना यह डब डब...
विश्व - ठीक है... डैड... पर एक बात कहूँ...
तापस - हाँ.. बोल..
विश्व - माँ मुझ पर प्यार बहुत लुटाती है... पर वह आज की सोचती है... कल की बिल्कुल नहीं... पर आप... मेरे जंग की मैदान को... पूरी तरह से तैयार कर रखा है... बल्कि यूँ कहूँ... आपने अपनी चालें तैयार कर रखा है.... क्यूंकि आपको शायद मालुम है... कौन.. कब... कौनसा चाल चलने वाला है....
तापस - (चलते चलते एक रोड साइड बेंच पर बैठ जाता है और विश्व को पास बुला कर बैठने को कहता है)
विश्व - (तापस के पास बैठते हुए) यह सारी बातें... आपने माँ को भी नहीं बताया है...

तभी एक छोटा सा कुत्ते का पिल्ला तापस के पैर के पास आकर घिसने लगता है l तापस उस पिल्ले को उठा कर

तापस - इस कुत्ते के पिल्ले को देखो... एक लावारिश... अपने जिंदगी में जो वैक्यूम है... उसे पुरा करने के लिए... यह मेरे पैरों के पास अपना किस्मत आजमा रहा है...
विश्व - वैक्यूम...
तापस - हाँ... वैक्यूम... हमारे जिंदगी में प्रत्युष और प्रताप नाम का जो वैकुम था... वह तुमसे पुरा हो रहा था... हम लावारिश थे... अब तुम हमारे वारिश हो... हम एक-दूसरे से निभा पा रहे हैं... क्यूंकि हमारा वैक्यूम जज्बाती रूप से फुल हो गया है....
विश्व - डैड.. कुछ ढंग का एक्जाम्पल देते... इस कुत्ते के पिल्ले को बीच में लाने की क्या जरूरत थी... मुझे बस इतना पता है... आप मुझसे बहुत प्यार करते हो... पर जताने में देर कर दी... समझाया कुछ नहीं... उल्टा कुत्ते का अपमान कर दिया... माँ को पता लगेगा तो कितना बुरा लगेगा....
तापस - (मुस्कराता है) बात टालने के लिए मेरे पास कुछ था जो नहीं...
विश्व - मैं जानता हूँ डैड... मैं बस छेड़ रहा था...
तापस - तुझे क्या लगा... मैं भी लपेट रहा था... समझा... बाप... हमेशा बाप ही रहता है...

तापस उठ कर फिर चलने लगता है l कुछ दूर जा कर एक ऑटो को रोकता है l विश्व भी ऑटो के पास पहुँचता है

तापस - अब तुम ड्राइविंग स्कुल जॉइन कर लो... सात दिनों बाद गाड़ी चलाना और अपनी माँ को सर्विस देना...

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द हैल
ड्रॉइंग रुम में गहरी सोच लिए रुप और शुभ्रा बैठे हुए हैं l

शुभ्रा - सॉरी नंदिनी... आज तुम्हारा पार्टी खराब हो गया...
रुप - कोई बात नहीं भाभी... इस साल नहीं तो अगले साल...
शुभ्रा - तुमने रॉकी को बहुत सस्ते में छोड़ दिया था... वरना आज यह नौबत नहीं आई होती...
रुप - ह्म्म्म्म....
शुभ्रा - कल कॉलेज जाओगी ना...
रुप - हाँ... इसमें क्या शक़ है...
शुभ्रा - ठीक है... अब क्या करें...
रुप - मुझे क्या पता...
वीर - (हाथ में एक पैकेट लिए वहाँ पहुँच कर) वह मैं बताता हूँ...

वीर को वहाँ पर देख कर दोनों चौंक जाते हैं और एक-दूसरे की ओर देखने लगते हैं l

शुभ्रा - क्या बात है राजकुमार....
वीर - अभी बताता हूँ... (कह कर पैकेट को नीचे रख देता है और "चटाक" रुप को एक थप्पड़ मार देता है)
Jabardasttt Updateee

Bahott maza aagaya padh kee.
 

Surya_021

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👉छिहत्तरवां अपडेट
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ड्रॉइंग रुम के बीचों-बीच एक छोटा सा टेबल है, उसके उपर थर्मोकोल का एक पैकेट रखा हुआ है l

विश्व - माँ... पैकेट खोल कर देखते हैं ना...
प्रतिभा - नहीं... बिल्कुल नहीं...
विश्व - क्यूँ...
प्रतिभा - अरे... सेनापति जी ने उससे... पैकेट के बारे में पूछताछ क्या की... वह कुरियर बॉय.. पैकेट छोड़ कर भाग गया...
विश्व - तो... भाग नहीं जाएगा... वह पैकेट क्या लेकर आया... डैड ने उसकी ऐसी काउंसिलिंग की... जैसे वह कोई बम लगाने आया था...
प्रतिभा - हाँ वही तो... वह पैकेट छोड़ कर भाग क्यूँ गया...

विश्व जवाब देने के वजाए तापस की ओर देखता है l तापस न्यूज पेपर उठा कर अपने चेहरे के सामने रख देता है l

विश्व - माँ... तुम एक वकील हो... और डैड एक रिटायर्ड एसपी... जरा कानूनी दिमाग लगाओ... उस कुरियर बॉय के सारे कागजात ऑथेंटीक थे... तभी तो... डैड को देखो कैसे अपना मुहँ छुपाये बैठे हैं...
तापस - क्या कहा... डैड के बच्चे... मैं मुहँ छुपाए बैठा हूँ... मुहँ छुपाये बैठा होगा तु... तेरा बाप...
सीलु - अंकल... भाई वही तो कह रहा है...
तापस - क्या...
टीलु - यही... की आप मुहँ छुपाये तबसे बैठे हुए हैं...
तापस - (जो न्यूज पेपर पढ़ रहा था उसीको फ़ोल्ड कर टीलु को मारने के लिए उठाता है) उल्लू के पट्ठे... मेरी खिंचाई कर रहा है...(टीलु भागता है)
जिलु - सेनापति सर... आप फिर से गलत बोले... हम पट्ठे आपके हैं... इसलिए...
तापस - (रुक कर जिलु के तरफ मुड़ कर) क्या कहा.. लफंडर... इसका मतलब मैं उल्लू हूँ...
जिलु - नहीं.. मैं बोल रहा था कि... हम आपके पट्ठे हैं...
तापस - इसका मतलब... तुम चारों की अब पिटाई करनी पड़ेगी...
प्रतिभा -(चिल्ला कर) ओ हो... मैं क्या कह रही थी... और तुम लोग कर क्या रहे हो...
विश्व - रुक जाओ सब... अब इस गिफ्ट को... माँ खोल कर देखेगी...
प्रतिभा - क्या...
विश्व - माँ... बेकार में यूँ दो घंटे बीत गए हैं... प्लीज... तो फिर मुझे देख लेने दो...
प्रतिभा - पता नहीं किसका है... किसने भेजा है... किस इरादे से भेजा है...
विश्व - माँ... किसी दोस्त ने ही भेजा होगा...
प्रतिभा - तु यह कैसे कह सकता है...
विश्व - इसलिये कि... मेरे दुश्मनों ने मुझे कमाया है... पर मैंने यहाँ सिर्फ़ दोस्त और दोस्ती कमाया है... इसलिए यह गिफ्ट किसी दोस्त का ही हो सकता है...
प्रतिभा - इतना विश्वास है तुझे...
विश्व - क्यूंकि मेरे दुश्मन इतने काबिल हैं नहीं
और दोस्तों के क़ाबिलियत पर कोई सवाल नहीं...

प्रतिभा चुप रहती है l विश्व एक छोटा कैंची लेकर उस थर्मोकोल पैकेट को काटने लगता है l थर्मोकोल कवर निकालते ही पैक से पॉली पफ कवर दिखता है l उसे हटाने के बाद काठ के बने एक लाल रंग का बक्सा निकलता है l वह बक्सा एक फुट के क्यूब के आकार का था l अब विश्व उस काठ के बक्से को खोलता है l अंदर के वस्तु को देखते ही वह हैरान हो जाता है l उसके अंदर ब्रास से बनीं किसी तलवार का मूठ था l वह उस मूठ को हाथ में लेकर बाहर निकालता है, यह देख कर सभी हैरान हो जाते हैं l

प्रतिभा - यह... यह क्या... इतनी क़ीमती बक्से के अंदर... एक तलवार का मूठ...
विश्व - (चुप रहता है) (गौर से उस मूठ को अपने हाथों में लेकर देखने लगता है)
प्रतिभा - और तु कह रहा था... किसी दोस्त ने भेजा होगा...

सबके चेहरे पर तनाव दिखने लगता है l गौर से उलट पलट देखने के कुछ देर बाद अचानक विश्व के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान तैरने लगता है l विश्व को यूँ मुस्कराते देख सब हैरान हो जाते हैं और एक दूसरे को देखने लगते हैं l

प्रतिभा - क्या... क्या बात है... कौन है... कोई दोस्त है क्या...
विश्व - दोस्त.... दोस्त तो बहुत छोटा शब्द है माँ... मेरे मोहसिन हैं वह...
प्रतिभा - कौन...
विश्व - बहुत ही खास.... कोई अपना.... चाहने वाला....
तापस - तुझे कैसे पता चला... इस पैकेट पर ना भेजने वाले का नाम है... ना कोई और कागजात... या सिर्फ वही तुझे गिफ्ट भेज सकता है...
प्रतिभा - और यह तलवार की मूठ... ऐसा कोई गिफ्ट भेजता है क्या...
विश्व - माँ.. यह मूठ बहुत ही स्पेशल है... यह मूठ भेजने वाले के नाम के साथ साथ.... जेल से रिहाई की... बधाई वाला पैगाम लेकर आया है...
तापस - यह तुम्हें कैसे पता चला...
विश्व - यह देखिए... यह एक एंटीक पीस है... जहां तक मैं ठीक हूँ... यह एक ब्रिटिश ऑफिसर की सोर्ड है... क्यूंकि इसकी पोमेल.. मतलब... फाली या घुंडी पर ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगो दो शेर के वाला यूनियन जैक के साथ उसमें 1799 खुदा हुआ है... बहुत ही पुराना है... और इस मूठ का आकार ही.. डी की बनावट में है... और सबसे अहम बात... इसकी गार्ड क्रॉस जिस तरह से ऊपर उठी हुई है... बिल्कुल एक अंगूठे की तरह दिख रही है... यानी कि बधाई भेजा है उन्होंने...
तापस - अंदाजा लगा रहे हो... या...
विश्व - नहीं डैड... सिर्फ़ बधाई का मेसेज नहीं... बल्कि उन्होंने अपना नंबर भी भेजा है...
प्रतिभा - क्या... क... कैसे...
विश्व - इस मूठ पर जो कार्वींग हुई है... उसे छेड़ा नहीं गया है... पर बारीकी से देखने पर... मार्कर पेन से कुछ टिपीकल कैलीग्राफी मार्किंग की गई है... यह एक फोन नंबर है...

तापस और प्रतिभा यह सब सुन कर हैरान हो जाते हैं l पर सीलु और उसके सब साथी मुहँ फाड़े विश्व को देखने लगते हैं l विश्व अपने नए मोबाइल से एक नंबर डायल करता है और स्पीकर पर डाल देता है l कुछ देर बाद रिंग की आवाज सुनाई देती है l उसके बाद एक मर्दाना आवाज़ सुनाई देती है

- कैसे हो हीरो... आजादी मुबारक...
विश्व - नमस्कार डैनी भाई... (डैनी की नाम सुन कर और भी हैरान हो जाते हैं) आपने वाकई मुझे चौंका दिया...
डैनी - पाँच साल बाद... मेरा पट्ठा कितना ग्रो कर गया है... यह जानना मेरे लिए बहुत ही जरूरी था...
विश्व - इसका मतलब... आप हमेशा से ही मुझ पर नजर रखे हुए थे...
डैनी - तलवार में कितनी भी धार हो... अगर म्यान में है... खतरे की कोई बात नहीं... पर अगर म्यान से बाहर आ जाए... खतरे की बात तो होगी ही...
तापस - तुमको मालूम था.... विश्व तुम्हें कॉल बैक करेगा...
डैनी - ओ हो... सेनापति सर जी... नमस्कार... बड़े दिनों बाद...
तापस - तुमने बताया नहीं...
डैनी - सेनापति सर... इसमे बताने वाली कुछ है ही नहीं... इस वक़्त जो शख्स आपके साथ बैठा है... उसमें तलवार सी धार मैंने ही तो लगाया है... पाँच सालों बाद... उसका दिमाग कितना तेज है... यह भी तो जानना जरूरी था...
तापस - इसका मतलब... तुम्हें मालुम था... विश्व हमारे साथ रहने वाला है... तुम्हें कैसे मालुम हुआ... हम आज ही तो यहाँ उतरे थे...
डैनी - कमाल करते हैं... सेनापति सर जी... यह भी कोई बात हुई... आप पर हमारी नजरें इनायत पहले से ही थी...
तापस - कमाल है... हम सब तुम्हारे... मतलब तुम्हारे आदमियों के नजरों में थे... पर अंदाजा भी नहीं लगा सके...
डैनी - देट इज़ डैनी... सेनापति सर.. देट इज़ डैनी...
प्रतिभा - पर... किसी तलवार की मूठ ही क्यूँ...
डैनी - भरोसा तो मुझे मेरे पट्ठे पर सौ फीसद है... फिर भी हिदायत देना जरूरी भी है... विश्व अभी एक नंगी तलवार के जैसा है... उसे कंट्रोल में रहने के लिए हिदायत देने के लिए ही.. यह मूठ भेजा है... पर यह आधा सच है...
प्रतिभा - तो... पुरा सच क्या है...
डैनी - विश्व... इस तलवार के बारे में... कितना कुछ जान पाए हो... बताओगे जरा...
विश्व - डैनी भाई... जहां तक मेरा ध्यान जा रहा है... डेढ़ साल पहले... कलकत्ता में इस मूठ की नीलामी हुई थी... पर शायद यह किसी राजस्थानी व्यापारी ने खरीदा था...
डैनी - वेरी गुड... अगर नीलामी के बारे में जानकारी है... तो इसकी बारे में... और भी जानकारी होगी... वह बोलो...
विश्व - यह तलवार की मूठ... ईस्ट इंडिया कंपनी के कैप्टन जॉन फर्गुशन की है... उन्होंने खुर्दा जीतने बाद... खुशी से यह तलवार तोड़ी थी... तलवार का वह टूटा हुआ टुकड़े का अभी तक पता नहीं है... इसलिए सिर्फ यह मूठ बाकी है...
डैनी - शाबाश.. बहुत कुछ जानते हो... पर इस टुटे हुए तलवार पर एक मिथक... या मिथ... या किवदंती भी है... जानते हो...
विश्व - नहीं...
डैनी - सन 1803 में ओड़िशा का सबसे ताकतवर राज्य.. खुर्दा के पतन के बाद... एक नए राजशाही को अंग्रेजों ने मान्यता दी थी... वह राज्य था... यश वर्धन पुर... बाद में आगे चलकर यशपुर कहलाया...
विश्व - अच्छा... तो वह मिथक... यशपुर से जुड़ा हुआ है...
डैनी - हाँ... खुर्दा के पतन के बाद जॉन फर्ग्यूसन ने... यश वर्धन से वफादारी के लिए राज शाही के साथ साथ कुछ और भी मांगने के लिए कहा था... यश वर्धन था बहुत चालाक... किसीके आगे कभी झुका नहीं था... आगे चलकर कहीं अंग्रेजों के सामने उसे झुकना ना पड़े... इसलिए फर्ग्यूसन की तलवार मांग ली... एक विजयी योद्धा से तलवार माँगना मतलब... उससे उसका समर्पण माँगना... अपने बड़बोले पन में फर्ग्यूसन ने मांगने के लिए कहा था... यश ने जो मांगा था वह उसके लिए एक अपमान था... उसने तलवार तो दी... मगर उसकी मूठ निकाल कर... जिससे उसने अपनी इज़्ज़त बचा ली... और तलवार को प्रतीक के रूप में.... यश वर्धन पुर और क्षेत्रपाल राजशाही को मान्यता दी...
विश्व - यह तो फैक्ट है... मिथक कहाँ है...
डैनी - मिथक यह है कि... वह जो वगैर मूठ वाली नंगी तलवार है... वह जब अपनी मूठ से जुड़ जाएगा... क्षेत्रपाल की राजशाही खत्म हो जाएगी....
विश्व - क्या...
डैनी - हाँ... वैसे यह एक मिथक है... पर इसी डर से... इन्वीटेशन के बावजुद... इतनी अहम नीलामी में... क्षेत्रपाल के परिवार में कोई नहीं गया था...
विश्व - (चुप रहता है)
डैनी - क्या सोचने लगे...
विश्व - मुझे करना क्या होगा...
डैनी - क्षेत्रपाल का अहं... बेवजह नहीं है... वह अहं उसका आत्मविश्वास भी है... इसलिए यूँ मान के चलो... उस तलवार को पुरा एक करना भी.... तुम्हारा एक मिशन होगा.... यानी तलवार से मूठ अलग हुआ तो राजशाही मिली... जब मूठ वापस जुड़ जाएगा... तब राजशाही खतम भी हो जाएगी...
तापस - क्या तुम उसमें विश्व की मदत करोगे...
डैनी - मदत... जी नहीं... बिल्कुल नहीं...
तापस - क्यूँ... क्यूँ नहीं...
डैनी - मैं फ़िलहाल... दर्शक की भूमिका में हूँ... थर्ड अंपायर का दायित्व तो आप और मैडम निभा रहे हैं... खेलना... खिलाड़ी का काम है... मैने अपने खिलाड़ी को... ऑल द बेस्ट कह दिया है...
विश्व - डैनी भाई... क्या हम कभी मिल पाएंगे...
डैनी - हम मिलेंगे... और जरूर मिलेंगे... फ़िलहाल मेरा बेस्ट ऑफ लक विश.... तुम्हारे आने वाले दिन के लिए...
विश्व - थैंक्यू डैनी भाई...
डैनी - ओवर एन आउट...

डैनी का फोन कट जाता है l

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ESS ऑफिस

लंच ब्रेक था, इसलिए अनु नीचे कैन्टीन में थी l लंच खतम कर जब वह जाने को हुई तभी उसे मालुम हुआ कि वीर आ गया है और खुद को अपने कैबिन में बंद कर लिया है l यह सुनते ही वह उपर ऑफिस में जाने को हुई तो एक स्टाफ उसे रोकता है

स्टाफ - रुको... अभी ऊपर मत जाओ...
अनु - क्यूँ...
स्टाफ - राज कुमार जी ने... किसीको भी ऊपर ऑफिस जाने से मना किया है...
अनु - (ऊपर की ओर देखती है) (तभी ऊपर कुछ टूटने की आवाज आती है) वह.. वह क्या कर रहे हैं....
स्टाफ - पता नहीं जब से आए हैं... गुस्से में हैं... (फिर कुछ फेंके जाने की आवाज आती है) चीजें उठा उठा कर... फेंक कर... या तोड़ कर... अपना गुस्सा ठंडा कर रहे हैं...
अनु - हे भगवान... तब तो मुझे जाना चाहिए...
स्टाफ - ऐ लड़की... ऊपर जाएगी... तो अपनी नौकरी गवां बैठेगी...
अनु - वह मालिक हैं... उनकी मर्जी... पर अगर उन्हें ऐसे छोड़ दिया... तो वह खुद को घायल कर बैठेंगे.... (अनु ऊपर जाने लगती है) (कुछ लोग उसे रोकना चाहते हैं)
स्टाफ - जाने दो इसे... राजकुमार जी के सामने भली बनने की ऐक्टिंग करेगी... हूँह्ह्... राजकुमार जी को जानती कहाँ है... जाने दो उसे...

सब लोग साइड हो जाते हैं l अनु सीढियों से ऊपर वीर के कैबिन के पास पहुँचती है l तभी कैबिन के अंदर कुछ काँच के सामान टूटने की आवाज आती है l अनु दरवाज़ा खटखटाती है l पर अंदर से कोई आवाज नहीं आती l तभी दरवाजे के नीचे की गैप से कुछ कांच के टुकड़े छिटक के बाहर आते हैं l अनु अपनी हैंडबैग से एक्स्ट्रा चाबी निकालती है और धीरे से दरवाजा खोल कर अंदर झाँकती है l अंदर वीर गहरी गहरी सांसे लेते हुए अपनी जबड़े भींचे हुए दोनों हाथों को टेबल पर मार रहा है l दरवाजा खोल कर अंदर दरवाज़े के पास खड़ी हो जाती है l

वीर - (चिल्लाते हुए) कहा था ना... कोई नहीं आए यहाँ पर... क्यूँ आई हो... बंद करो दरवाजा...

अनु दरवाजे को अंदर से बंद कर देती है l वीर एक कुर्सी को उठा कर टेबल पर पटकने लगता है l वह कुर्सी टुट जाती है l अनु उसे देखती I वीर कमरे को तहस नहस कर चुका है l वीर अपना सिर घुमाता है उसे कमरे में फाइलों से भरी, कमर की हाइट की एक कबोर्ड दिखती है l वह उसके पास जाता है l उस कबोर्ड के ऊपर कुछ ट्रफीयाँ थी उन्हें उठा कर फेंक देता है l फिर उस कबोर्ड पर चिल्ला चिल्ला कर घुसा मारने लगता है l अनु से रहा नहीं जाता वह भागते हुए वीर के पीछे से कस के गले लग जाती है l वीर जो इतना वायलेंट था कुछ देर पहले वह अचानक से रुक जाता है l वीर उस कबोर्ड पर दोनों हाथ रख कर शांत हो कर अपनी आँखे मूँद लेता है अनु वीर को वैसे ही कसके पकड़े रखती है l वीर की सांसे अब धीरे धीरे नॉर्मल होने लगती है l उसे महसुस होता है अनु उसे कस कर पकड़ी हुई है l वह तुरंत अनु की हाथों को खुद से अलग करता है और अनु की तरफ पीछे मुड़ जाता है l आँखों में आंसू लिए अंगारों की तरह जल रही आँखों से अनु की तरफ देखता है I अनु वीर के आँखों में बेइन्तेहा दर्द देखती है l वीर रोया तो नहीं पर टुटसा गया था l वह अनु को, अपने सीने से लगा लेता है l अनु भी उसे अपने से कस के भींच लेती है l इसी तरह कुछ वक़्त वह दोनों एक दुसरे के बाहों में गुजार देते हैं l अनु खुदको अलग करने की कोशिश करती है पर वीर उसे अपने से अलग होने नहीं देता l तो अनु उसे फिर से गले लगा लेती है l

अनु - राजकुमार जी...
वीर - हूँम्म्म्...
अनु - आप आज इस कदर.... क्यूँ टुट गए...
वीर - (चुप रहता है)
अनु - क्या मैं इस काबिल भी नहीं... की आपके दर्द बांट सकूँ...
वीर - (भर्रायी हुई आवाज में) मैं तुम्हारे जैसा नहीं हूँ अनु... सच कहूँ तो.. मैं किसी के भी लायक नहीं हूँ...

अनु अब वीर से अलग होती है और वीर की हाथ को पकड़ कर अपने साथ लेकर एक सोफ़े पर बिठा देती है l

अनु - अब बताइए... हो सकता है... मैं कुछ मदत कर पाऊँ...

वीर अनु के आँखों में देखता है और फिर उसके चेहरे की मासूमियत में हैरानी भरे नजरों देखते हुए खो सा जाता है l

अनु - (वीर के हाथ पर हाथ रख कर हिलाते हुए) राजकुमार जी...
वीर - हँ... हाँ... हाँ अनु...
अनु - अब जो बोझ बनकर आपके दिल में है... उसे मेरे सामने उतार दीजिए... मैं समझ सकती हूँ... कोई गहरी बात है... पर प्लीज... आप ऐसे तो ना टुट जाइए...
वीर - (अपने दोनों हाथों में अनु के हाथों को लेकर) अनु... मैंने कहा था ना... आज मेरी बहन... राजकुमारी रुप की जन्मदिन है...
अनु - हाँ...
वीर - मैं... मैं तुम्हारी बात मान कर... उसे बधाई देने कॉलेज गया था...

एक फ्लैशबैक....

रॉकी प्रिन्सिपल ऑफिस से बाहर निकल कर उस कॉरीडोर के सामने अपनी आँखे बंद कर दोनों बाहें फैला कर खड़ा हो जाता है l उधर रॉकी टेबल से तोड़े काठ का टुकड़ा लिए भागता हुआ रॉकी के तरफ जा रहा है l इतने में रुप और उसके सारे दोस्त कैन्टीन से बाहर आकर रॉकी के तरफ देखते हैं l रुप का चेहरा गुस्से से लाल हो चुका है l वह गुस्से भरी नजर से रॉकी की ओर देखती है l इतने में रुप अपने कंधे पर बनानी की हाथ को महसूस करती है l जैसे जैसे उस तरफ से वीर बढ़ता जा रहा था बनानी की हाथ का दबाव रुप के कंधे पर बढ़ती ही जा रही थी और आँखों में खौफ के साथ साथ आँसू भी बहने लगे थे l रुप देखती है वीर रॉकी के पास पहुँचने वाला है फिर एक नजर वह बनानी को देखती है, फिर वह भी रॉकी के तरफ भागती है l वीर काठ को हाथ में लिए रॉकी के तरफ भागते हुए एक कुदी लगाता है l रुप भी तेजी से भागते हुए जाती है पर थोड़ी देर हो जाती है रॉकी के सिर वीर का काठ लग जाती है l रॉकी का सिर फट जाता है और वह नीचे बेहोश गिर जाता है l वीर अपना काठ उठा कर मारने वाला होता कि रुप उसे पीछे से पकड़ कर खिंच देती है l वीर गुस्से से अपना काठ को मारने के लिए उठाता है उसके सामने रुप खड़ी हो जाती है l

वीर - (चिल्ला कर) आप हटीये राजकुमारी...
रुप - क्यूँ.. क्यूँ हट जाएं...
वीर - यह कुत्ता है... अपनी औकात भूल गया था... इसलिए इसे जीने का हक नहीं है...
रुप - क्या किया है आखिर इसने...
वीर - इसने हम से.... हम से रिस्ता जोड़ने की कोशिश की है...
रुप - तो कौनसा गुनाह हो गया उससे... खुदको भाई ही तो कहा है... हमारा... कौनसा रुसवा या जलील कर दिया हमें...
वीर - (अपने चारो तरफ देखता है, सब उन दोनों को ही देख रहे हैं) (थोड़ा शांत होते हुए) उसने... क्षेत्रपाल परिवार की लड़की से जुड़ने की कोशिश की है...
रुप - हाँ तो किस रिश्ते से... खुद को ज़माने के आगे हमारा भाई कहा है... क्या भाई बहन का रिश्ता भी... इतना बड़ा गुनाह हो गया है...
वीर - आप... आप इसकी तरफदारी क्यूँ कर रहे हैं...
रुप - इसलिए... (पॉज लेकर) की वह मेरा भाई लगता है...
वीर - (अपने हाथ से काठ को फेंकते हुए) तो हम कौन हैं...
रुप - आप राजकुमार वीर सिंह क्षेत्रपाल हैं... आपको हम से और हमें आपसे यह क्षेत्रपाल जोड़ता है... यही वजह है कि आप राजकुमार हैं... और हम राजकुमारी...
वीर - इनॉफ... हम भाई हैं आपके...
रुप - कब से... (यही लफ्ज़ गूंजने लगती है)
वीर - (चुप हो जाता है)
रुप - कब से... हम राजकुमारी हैं... आप राजकुमार... इसके आगे ना हमारा कोई रिश्ता है.. ना ही कोई पहचान... आज पहली बार... कोई ना खून से ना खानदान से हमसे भाई बनकर जुड़ रहा था... वह भी आपसे नहीं देखा गया...
वीर - (चीखते हुए) राजकुमारी.... (हाथ उठ जाता है मगर हवा में रुक जाता है) (वीर देखता है रुप एक पल के लिए अपनी आँखे तो मूँद लेती है पर वहाँ से हटती नहीं)
रुप - (वीर के आँखों में आँखे डालते हुए) हाथ उठाने से पहले इतना तो बता दीजिए... यह उठने वाला हाथ किसका है... राजकुमार वीर सिंह के... या मेरे भाई के...

फ्लैशबैक खतम

अनु ख़ामोशी के साथ वीर को सुने जा रही थी l वीर अपनी बात खतम करता से है l

वीर - अनु.... राजकुमारी जी... मेरी बहन हैं... वह मुझसे ऐसे बात की... वह भी एक नामुराद के लिए...
अनु - (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाती है) (फिर एक गहरी सांस लेते हुए) एक बात कहूँ... अगर... आप बुरा ना मानें तो...
वीर - हाँ पूछो...
अनु - उस वक़्त... राजकुमारी जी के लिए भाई कौन था...
वीर - क्य... क्या मतलब है आपका...
अनु - आप अभी भी... राजकुमारी कह रहे हैं... बहन बाद में बोल रहे हैं... आपके लिए मुख्य क्या है... खुनी रिश्ता या खानदानी पहचान...
वीर - (चुप हो जाता है, और अनु के चेहरे को घूर कर देखने लगता है)
अनु - मैं... आपके और राजकुमारी जी के बीच की कशमकश को समझ पा रही हूँ... पर पता नहीं आपको समझा पाऊँगी या नहीं... फिर भी... आपका खुनी संबंध असली है... पर खानदानी पहचान के नीचे घुट गया है... और उस लड़के का राजकुमारी जी से संबंध भले ही नकली है... पर वह भाई की पहचान के साथ सामने आया... भगवान ना करें राजकुमारी जी को... कल किसी मदत की दरकार होगी... तब आप क्या उनके... राजकुमार बुलाने की इंतजार करेंगे... या भैया बुलाने भर मदत को पहुंचेंगे...
वीर - (चुप रहता है और अपना सिर पकड़ कर अपने कुहनियों के बल घुटनों पर झुक जाता है)
अनु - लगता है... मैं कुछ ज्यादा कह गई... अपनी औकात से बाहर कह गई... (अनु जाने के लिए उठती है)
वीर - अनु... प्लीज रुक जाओ... मैं समझ गया... मैं भाई असली हूँ... पर खानदानी नकली पहचान के ओट में हूँ... वह भाई नकली था... पर उसके लिए मेरी बहन की ज़ज्बात असली थे... मैं कहाँ गलत हूँ जान गया हूँ... मुझे सुधारने का रास्ता भी तुम बताओ... प्लीज अनु.. प्लीज...
अनु - (वीर को गौर से देखती है, वीर जैसे अपने अंदर की दुख की सैलाब को जबरदस्ती रोके रखा है) राजकुमार जी... आप रो रहे हैं...
वीर - नहीं.. मैं रो नहीं रहा हूँ...(जबड़े भींच कर) क्षेत्रपाल कभी रो नहीं सकते...
अनु - राजकुमार जी... आपके जज़्बातों को... दिल के सुकून को... आपके इसी अहम ने... भरम ने.. अंधेरे में अबतक आपको भटका रहा है... मेरी बात मानिए... बस एक बार... जी भर के रो लीजिए... सब साफ हो जाएगा... अंधेरा छट जाएगा... आपको अच्छा लगेगा... आपको नई ऊर्जा मिलेगी... आप को नई राह मिलेगी...
वीर - (उठ खड़ा होता है) यह.. यह रोना धोना सब औरतों का काम है... हम मर्द हैं... वह भी क्षेत्रपाल...

अनु उठ कर जाने लगती है l वीर उसका हाथ पकड़ लेता है, अनु मुड़ कर उसे देखती है तो वीर उसे अपने गले से लगा लेता है और अनु के कंधे पर फफक फफक कर रोने लगता है l उसे रोता हुआ पा कर अनु भी उसे गले लगा लेती है l वीर धीरे धीरे टूटते टूटते रोने लगता है l अनु उसे अपने से अलग करती है और सोफ़े पर बैठ कर वीर को अपने पास बिठाती है और वीर के सिर को अपने गोद में रख देती है l वीर अपनी आँखे बंद कर लेता है और रोते रोते उसके गोद में हो सो जाता है


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हस्पताल के बेड पर लेटा रॉकी धीरे धीरे अपनी आँखे खोलता है I दर्द के मारे कराहने लगता है l वह याद करने की कोशिश करता है आखिर क्या हुआ l उसे याद आता है वीर के हाथ में एक काठ का टुकड़ा था जिसे लेकर वह रॉकी को मारने के लिए कुदी लगाया था l उसके बाद वह डर के मारे आँखे बंद कर लिया था l अब उसकी आँखे खुली तो हस्पताल के बेड पर पड़ा है l हाथ में सलाइन लगा हुआ है l अपने बाएं हाथ को सिर पर लगाते ही उसे मालुम होता है कि उसके सिर पर चोट लगी है l

रॉकी - आह...
सुमित्रा - कैसा है... दर्द कम हुआ...
रॉकी - मम्मी... तुम... मैं... यहाँ... कब आया...
सुमित्रा - तुझे याद भी है... तुने कांड कौनसा किया...
रॉकी - (अपना सिर झुका लेता है)
सुमित्रा - हूँह्ह... कांड ऐसा किया... के अपनी माँ के सामने सिर झुकाना पड़ रहा है...
रॉकी - मम्मी... मैंने क्या गलत किया...
सुमित्रा - ओ... अच्छा... तो बता जरा... सही क्या किया तुने...
रॉकी - (कुछ नहीं कह पाता)
सुमित्रा - तुने... पहले अपने बदले के लिए... रुप नंदिनी से प्यार का नाटक किया... दाल नहीं गली... तो बहन बना कर चाल चलने लगा... फिर भी... नंदिनी ने बड़ा दिल दिखाया... तेरी जान के लिए... अपने भाई से भीड़ गई...
रॉकी - (खुश होते हुए) सच...
सुमित्रा - खुश क्यूँ हो रहा है... तुझे अपने भाई से बचाया इसलिए...
रॉकी - हूँह्ह...
सुमित्रा - बचपन से ही... तु उतावला था... जल्दबाजी रहती थी तेरी हर बात में... हर काम में.. पर... एक लड़की के बारे में... तुने ऐसा कैसे सोच लिया... ऐसा कैसे कर गया...
रॉकी - मम्मी... इतना सब कुछ... तुम्हें किसने बताया...
सुमित्रा - रवि और दीप्ति ने...
रॉकी - (फिर अपना सिर झुका लेता है) मम्मी आपको क्यूँ लगा... नंदिनी ने मुझे बचाया... इस बात पर खुश ना होऊँ...
सुमित्रा - इसकी भी वजह... दीप्ति ने बताया मुझे...
रॉकी - मम्मी... तुमने सही कहा... मैं उतावले पन में... जल्दबाजी में.. बहुत कुछ गलत कर गया... मैं सबकुछ हार चुका था... अपने दोस्त... नंदिनी का विश्वास और खुद को भी... मैं.. दुबारा वह सब कुछ हासिल करना चाहता था... इसलिए ऐसा किया...
सुमित्रा - एक लड़की का नाम सरेआम लेता है... एक जबरदस्ती का रिश्ता... उसपर थोपता है... और यह उम्मीद करता है... की वह भागते हुए आए... और तुझे... सरेआम गले लगा ले...
रॉकी - (अपना सिर फिर से झुका लेता है)
सुमित्रा - भाई बहन के रिश्ते को... दुहाई दे कर... एक लड़की का मज़ाक बना बना दिया तुने... जाहिर सी बात है... उसका भाई तुझ पर टुट पड़ा... हाँ अगर रुप नंदिनी बीच में ना आती... तो.... (बात को पूरी नहीं कर पाती)
रॉकी - नंदिनी ने... अपने भाई से मुझे बचाया... मतलब... उसे मेरी इस हरकत से भले ही ठेस लगा हो... पर उतना बुरा नहीं लगा होगा...
सुमित्रा - अभी भी... अपनी हरकत को जायज ठहराने की कोशिश कर रहा है... वह...वह क्या नाम बताया दीप्ति ने....ह्म्म्म्म.. हाँ बनानी... बनानी के लिए... अपने भाई से बचाया... नंदिनी ने...
रॉकी - (दबी जुबान से) मैं... मैं ने जो भी किया... क्या... कोई ऐसा कर पाएगा...
सुमित्रा - नहीं... नहीं कर पाएगा शायद... पर असलियत वह नहीं है... जो तु कह रहा है... या समझाना चाह रहा है... असलियत यह है कि... तु नंदिनी से बदला लेना चाहता था... उसने तुझे बुजदिल और कायर कहा था... उसने जिस तरह से तेरी करनी को तेरे सामने फोड़ा था... उससे तेरे अंदर की मर्दाना गुरुर को ठेस पहुंचा था... इसलिए तुने यह हरकत की थी... खुद को मर्द साबित करने के लिए और खुद को बहादुर साबित करने के लिए...
रॉकी - आ.. आप.. आपको... यह सब कैसे मालुम...
सुमित्रा - लगता है.. तेरे सिर पर चोट गहरा लगा है... बताया तो था... दीप्ति और रवि ने मुझे सबकुछ बता दिया...
रॉकी - ड... डैड...
सुमित्रा - नहीं आए हैं... कल तेरी टीसी लेने के बाद... तुझसे मिलने आयेंगे...
रॉकी - (शर्म और दुख से अपना सर फिर नीचे कर लेता है) स... सॉरी मम्मी...
सुमित्रा - (और कुछ नहीं कहती है)

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वीर मध्यम गति से गाड़ी चला रहा है l बगल में अनु बैठी हुई है l वीर बहुत तरोताजा लग रहा था l एक अंदरुनी खुशी उसके चेहरे पर दमक रही थी l अनु उसे तिरछी नजरों से बीच बीच में देख रही थी l वीर की ख़ुशनुमा चेहरा देख कर उसे बहुत अच्छा लग रहा था l अनु आज की बातों को याद करने लगती है l कैसे एक मासूम बच्चे की तरह, अनु के गले से लग कर रोया, और उसके गोद में सिर रख कर सो गया l यह याद आते ही अनु के गाल शर्म से लाल हो जाते हैं l अनु को वह लम्हा याद आने लगता है जब सोया हुआ वीर उसके गोद से अचानक उठ कर बैठ गया

वीर - अनु... मैं.. तु.. तुम्हारी गोद में सिर रख कर सोया हुआ था...
अनु - (झिझकते हुए अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
वीर - (दिवार पर लगी घड़ी को देख कर) ओह माय गॉड... शाम के छह बज रहे हैं... और तुम अभी तक यहीं हो... मु.. मुझे जगाया क्यूँ नहीं....
अनु - (कुछ कह नहीं पाती) (इधर उधर देखने लगती है)
वीर - क्यूँ अनु...
अनु - (झिझकते हुए) क्या बताऊँ... आप... आप.. टुटे हुए लग रहे थे... थके हुए लग रहे थे... ऐसा लगा... जैसे दर्द के मारे छटपटा रहे थे... पर आप सोये... ऐसे सोये... जैसे कई दिनों से सोये ना हों... मुझे ऐसे जकड़े सोये... जैसे कोई मासूम बच्चा.. माँ की गोद को... बस... इसीलिए.. नहीं जगाया...
वीर - (उठ कर खड़ा हो जाता है)(अनु की तरफ बिना देखे) तुमने ठीक कहा अनु... बचपन में... कभी माँ की गोद में ही ऐसी नींद आई थी... एक बार क्या वह गोद छुटा... फिर कभी वैसी नींद नहीं आई... आज जाकर वह नींद पुरी कर पाया... (अनु की तरफ मुड़ कर देख कर) थैंक्यू...
अनु - आप ही ने तो कहा था... मैं आपकी पर्सनल सेक्रेटरी कम अस्सिटेंट हूँ... मेरा सिर्फ़ काम ही है... आपका खयाल रखना...
वीर - (एक गहरी सांस लेता है) (अनु की बातों अपने अंदर एक थर्राहट महसुस करता है)(पहली बार ऐसा होता है कि वह अपनी नजरें झुका लेता है)
अनु - एक बात कहूँ...
वीर - हूँ... (अनु की ओर बिना देखे)
अनु - आज आप... अंदर ही अंदर अपनी माँ को ढूंढ रहे थे...
वीर - (हैरान हो कर अनु को देखता है)
अनु - हाँ राज कुमार जी... आपकी तड़प आजकी नहीं है... कई सालों की है... आपको आज एक कंधे की दरकार थी... सिसकने के लिए.. एक सीने की दरकार थी... लग कर रोने के लिए... और एक गोद की दरकार थी... जकड़ कर सोने के लिए...
वीर - (आँखे बड़ी हो जाती है, मुहँ खुला रह जाता है) अनु.. क्या यह तुम हो....
अनु - जी... राजकुमार जी...मैं ही हूँ... ऐसी भावनायें मैं बखूबी समझ सकती हूँ... क्यूंकि... मेरी ना तो माँ है... ना बाबा... मैं भी बहुत तड़पी हूँ... वह कंधा.. वह सीना.. वह गोदी... बहुत ढूंढी हूँ... इसलिए मैं उस दर्द को... तड़प को समझ सकी...
वीर - (अनु को ऐसे देखने लगता है जैसे वह किसी दुसरी ग्रह से आई हो) (मुश्किल से अपना थूक निगलता है) (वह झट से अपना चेहरा घुमा लेता है)
अनु - आपके सारे दर्द गायब हो जाएंगे...
वीर - (फिर मुड़ कर अनु को देखता है) कैसे...
अनु - एक बार... बस एक बार अपनी माँ से बात लीजिए... (वीर फिर से अनु की तरफ पीठ कर लेता है) कब तक... ऐसे मुहँ फेरे रहेंगे... आपकी दर्द की दवा... आपके अपनों के पास है... बात तो कीजिए... पर राजकुमार बन कर नहीं... एक माँ के बेटे बन कर...
वीर - नहीं...
अनु - (चुप हो जाती है) (वह वहाँ से जाने लगती है)
वीर - अनु प्लीज...
अनु - माफ लीजिए राजकुमार जी... आप मालिक हैं... मैं मुलाजिम... शायद मैं कुछ ज्यादा ही बोल गई... अपनी औकात भूल गई...
वीर - नहीं नहीं नहीं... प्लीज... तुम गलत नहीं हो... पर... सच यह है कि... मैं... मेरी हिम्मत नहीं हो रही है...
अनु - (वीर के पास आकर, वीर के हाथ पर हाथ रख कर) एक बार कोशिश तो कीजिए...

वीर कांपते हाथों से फोन निकालता है पर नंबर डायल कर नहीं पाता l अनु वीर को आँखों से दिलासा देते हुए डायल करने के लिए कहती है l वीर एक नंबर डायल करता है

-हैलो (राजगड़ के महल में कोई नौकर फोन उठाता है)
वीर - हम... राजकुमार बोल रहे हैं...
नौकर - जी... हुकुम राजकुमार..
वीर - छोटी रानी जी से बात करनी है... उन्हें कर्डलेस दो....
नौकर - जी हुकुम... (नौकर भागते हुए सुषमा को कर्डलेस देता है) (अपना सिर झुकाए) छोटी रानी... राजकुमार...
सुषमा - (कर्डलेस को हाथ में लेकर) हैलो...
वीर - (यह सुन कर आँखे छलक पड़ती हैं) (वह अनु की ओर देखता है) (अनु उसे इशारे से बात करने को कहती है) हे.. हैलो...
सुषमा - कहिए राजकुमार... फोन क्यूँ किया...
वीर - वह... मैं.. (आवाज़ भर्रा जाती है) म.. मैं...
सुषमा - (हैरान हो कर) राज कुमार... क.. क्या हुआ...
वीर - (अनु इशारे से माँ कहने के लिए कहती है) (वीर अनु की तरफ देख कर) माँ...
सुषमा - (आँखे बड़ी हो जाती है) क... क्या कहा...
वीर - माँ...
सुषमा - क्या बात है.. र.. राज.. कुमार...
वीर - राजकुमार नहीं माँ... वीर... वीर कहो ना माँ...
सुषमा - क... क्या हुआ है आपको...
वीर - आप नहीं... तुम.. या.. तु... आप नहीं...
सुषमा - (नौकर को इशारे से, बाहर जाने के लिए कहती है, नौकर के जाने के बाद) क्या कहा तुमने...
वीर - हाँ माँ... यह ठीक है... यह नकली पहचान के नीचे... रिश्तों को और कुचल नहीं सकता... आज मुझे रानी माँ की नहीं... माँ की दरकार थी...
सुषमा - (सूबकते हुए) क्या... इसलिए तुझे... आज माँ की याद आई...
वीर - देखा... देखा माँ देखा... हम अभी कितने करीब हो गए... यह राजसी पहचान को ढोते ढोते... हम रिश्तों के मामले में कितना गरीब... और कितने दूर हो गए थे... मैंने आज माँ कहा.... तो तुमने तु कह दिया...
सुषमा - (थर्राती हुई आवाज में) हाँ मेरे लाल... हाँ..
वीर - बस माँ... अब मैं फोन रखता हूँ...
सुषमा - क्यूँ... मन भर गया तेरा...
वीर - नहीं माँ... आज एक दिन में इतनी खुशियाँ... मुझसे संभले नहीं संभलेगी माँ...
सुषमा - ठीक है बेटा... क्या कल भी फोन करेगा...
वीर - हाँ माँ हाँ... अब तो तुमसे बात किए मेरा दिन पूरा ना होगा... अच्छा अब रखता हूँ...
सुषमा - ठीक है बेटा... बाय..
वीर - बाय माँ... (कह कर फोन काट देता है और खुशी से अनु के हाथ पकड़ कर कूदने लगता है)

उसकी खुशी देख कर अनु भी खुशी के मारे हँसने लगती है l वीर अचानक कूदना बंद कर अनु को देखता है और आगे बढ़ कर अनु को गले लगा लेता है l वीर का चेहरा अनु के कंधे पर होती है

वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - आज... मैं तुमसे एक वादा माँगना चाहता हूँ...
अनु - कैसा वादा...
वीर - जिस तरह आज तुमने मुझे अपने गले से लगा कर... टूटने से.. बिखरने से... बचाया...
अनु - जी...
वीर - फ़िर कभी ग़मों में टूटने लगूँ... या कभी ज्यादा खुशी में बहक ने लगूँ... तब मुझे गले से लगा लेना... प्लीज...
अनु - (वीर से अलग हो जाती है, वीर का चेहरा उतर जाता है) क्या... यह एक मालिक का... अपने मुलाजिम को दिया हुकुम है...
वीर - (अपना सिर ना में हिलाते हुए) नहीं... अनु नहीं... आज... एक दोस्त अपने दोस्त से ईलतजा कर रहा है...
अनु - (चेहरे पर हल्का सा शर्म और मुस्कान लेते हुए) जी... ठीक है...
वीर - (चेहरे पर रौनक लौट आती है) सच...
अनु - (थोड़ा शर्माते हुए) जी...
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - अब मैं बहुत खुस हूँ...
अनु - (कुछ नहीं कहती है शर्मा के चेहरा झुका लेती है)
वीर - अनु... अब मैं बहुत खुश हूँ...
अनु - (सिर उठा कर वीर की तरफ देखती है) (वीर दोनों बाहें फैलाए खड़ा है)

कार के हॉर्न से अनु अपनी वास्तव में आती है l वीर उसके गली के बाहर गाड़ी रोक देता है l अनु शर्माते हुए गाड़ी से उतर जाती है l और अपने गली की ओर बढ़ने लगती है l

वीर - अनु... (अनु पीछे मुड़ती है) क्या यार... कम से कम बाय तो कहो...
अनु - जी... बाय...
वीर - बाय... और हाँ... सोने से पहले... मेरी खैरियत पूछना जरूर...
अनु - (शर्म और खुशी से दोहरी हो जाती है) (सिर को हाँ में हिलाते हुए) जी... (कह कर गली की ओर भाग जाती है)

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बादामबाड़ी बस स्टैंड कटक l

तापस और विश्व सीलु एंड ग्रुप को बस में बिठाने के बाद बाहर चलते हुए निकलते हैं l

विश्व - डैड... हम कार में भी तो आ सकते थे...
तापस - चलाता कौन.. मैं...
विश्व - हम छह जन थे... जाहिर है... माँ तो आ नहीं सकती थी...
तापस - हाँ... और नाइट ड्राइविंग... मुझे अच्छी नहीं लगती... और किस्मत से हम छह थे... इसलिए ऑटो में तीन तीन हो कर आ पाए... वरना तुम्हारी माँ को पता चल गया होता...
विश्व - माँ से यह बात छुपाना जरूरी था क्या...
तापस - उसका दिल एक माँ की है... बच्चों को खतरों से हमेशा दूर रखना चाहेगी ही...
विश्व - पर यह सब करना जरूरी था क्या...
तापस - कितना जरूरी था... यह तु भी समझ पा रहा होगा... आगे चलकर कितना काम आएगा...
विश्व - पर यह सब आपने सोचा कब...
तापस - जब तु इन चारों को सरकारी गवाह बनाने के लिए... अपनी माँ से बात कर रहा था... मेरे सामने वह भी... मेरे ही फोन पर...
विश्व - (हँसता है) डैड... एक बात कहूँ...
तापस - हाँ बोल...
विश्व - आप ना... माँ से पहले ही... मुझे जानते हो... माँ से पहले ही... मुझे पसंद और प्यार करने लगे थे... तो मुझे गले लगाने में... माँ से भी देरी आपने क्यूँ की...
तापस - ऑए... ज्यादा... फिलॉसफर बनने की कोशिश मत कर...
विश्व - (छेड़ते हुए) क्या डैड... मैंने महसूस किया है... आप मुझे पसंद बहुत करते थे... बाद में प्यार भी बहुत करने लगे...
तापस - (घूरते हुए) तु क्या मुझे आज छेड़ने के मूड में है...
विश्व - बिल्कुल नहीं... मुझसे जुड़े हर ज़ज्बात में... जब माँ से पहले आप थे... तो इजहार करने में... माँ पहले आप बाद में... ऐसा क्यूँ...
तापस - देख मेरे सामने बच्चा है तु... समझा... ज़्यादा स्मार्ट मत बन... तुझसे तेरी माँ बहुत प्यार करती है... इसीलिए मैं...
विश्व - हाँ... मैं...
तापस - बंद करेगा अपना यह डब डब...
विश्व - ठीक है... डैड... पर एक बात कहूँ...
तापस - हाँ.. बोल..
विश्व - माँ मुझ पर प्यार बहुत लुटाती है... पर वह आज की सोचती है... कल की बिल्कुल नहीं... पर आप... मेरे जंग की मैदान को... पूरी तरह से तैयार कर रखा है... बल्कि यूँ कहूँ... आपने अपनी चालें तैयार कर रखा है.... क्यूंकि आपको शायद मालुम है... कौन.. कब... कौनसा चाल चलने वाला है....
तापस - (चलते चलते एक रोड साइड बेंच पर बैठ जाता है और विश्व को पास बुला कर बैठने को कहता है)
विश्व - (तापस के पास बैठते हुए) यह सारी बातें... आपने माँ को भी नहीं बताया है...

तभी एक छोटा सा कुत्ते का पिल्ला तापस के पैर के पास आकर घिसने लगता है l तापस उस पिल्ले को उठा कर

तापस - इस कुत्ते के पिल्ले को देखो... एक लावारिश... अपने जिंदगी में जो वैक्यूम है... उसे पुरा करने के लिए... यह मेरे पैरों के पास अपना किस्मत आजमा रहा है...
विश्व - वैक्यूम...
तापस - हाँ... वैक्यूम... हमारे जिंदगी में प्रत्युष और प्रताप नाम का जो वैकुम था... वह तुमसे पुरा हो रहा था... हम लावारिश थे... अब तुम हमारे वारिश हो... हम एक-दूसरे से निभा पा रहे हैं... क्यूंकि हमारा वैक्यूम जज्बाती रूप से फुल हो गया है....
विश्व - डैड.. कुछ ढंग का एक्जाम्पल देते... इस कुत्ते के पिल्ले को बीच में लाने की क्या जरूरत थी... मुझे बस इतना पता है... आप मुझसे बहुत प्यार करते हो... पर जताने में देर कर दी... समझाया कुछ नहीं... उल्टा कुत्ते का अपमान कर दिया... माँ को पता लगेगा तो कितना बुरा लगेगा....
तापस - (मुस्कराता है) बात टालने के लिए मेरे पास कुछ था जो नहीं...
विश्व - मैं जानता हूँ डैड... मैं बस छेड़ रहा था...
तापस - तुझे क्या लगा... मैं भी लपेट रहा था... समझा... बाप... हमेशा बाप ही रहता है...

तापस उठ कर फिर चलने लगता है l कुछ दूर जा कर एक ऑटो को रोकता है l विश्व भी ऑटो के पास पहुँचता है

तापस - अब तुम ड्राइविंग स्कुल जॉइन कर लो... सात दिनों बाद गाड़ी चलाना और अपनी माँ को सर्विस देना...

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द हैल
ड्रॉइंग रुम में गहरी सोच लिए रुप और शुभ्रा बैठे हुए हैं l

शुभ्रा - सॉरी नंदिनी... आज तुम्हारा पार्टी खराब हो गया...
रुप - कोई बात नहीं भाभी... इस साल नहीं तो अगले साल...
शुभ्रा - तुमने रॉकी को बहुत सस्ते में छोड़ दिया था... वरना आज यह नौबत नहीं आई होती...
रुप - ह्म्म्म्म....
शुभ्रा - कल कॉलेज जाओगी ना...
रुप - हाँ... इसमें क्या शक़ है...
शुभ्रा - ठीक है... अब क्या करें...
रुप - मुझे क्या पता...
वीर - (हाथ में एक पैकेट लिए वहाँ पहुँच कर) वह मैं बताता हूँ...

वीर को वहाँ पर देख कर दोनों चौंक जाते हैं और एक-दूसरे की ओर देखने लगते हैं l

शुभ्रा - क्या बात है राजकुमार....
वीर - अभी बताता हूँ... (कह कर पैकेट को नीचे रख देता है और "चटाक" रुप को एक थप्पड़ मार देता है)
Shandaar update 🔥😍
 

Rajesh

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👉छिहत्तरवां अपडेट
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ड्रॉइंग रुम के बीचों-बीच एक छोटा सा टेबल है, उसके उपर थर्मोकोल का एक पैकेट रखा हुआ है l

विश्व - माँ... पैकेट खोल कर देखते हैं ना...
प्रतिभा - नहीं... बिल्कुल नहीं...
विश्व - क्यूँ...
प्रतिभा - अरे... सेनापति जी ने उससे... पैकेट के बारे में पूछताछ क्या की... वह कुरियर बॉय.. पैकेट छोड़ कर भाग गया...
विश्व - तो... भाग नहीं जाएगा... वह पैकेट क्या लेकर आया... डैड ने उसकी ऐसी काउंसिलिंग की... जैसे वह कोई बम लगाने आया था...
प्रतिभा - हाँ वही तो... वह पैकेट छोड़ कर भाग क्यूँ गया...

विश्व जवाब देने के वजाए तापस की ओर देखता है l तापस न्यूज पेपर उठा कर अपने चेहरे के सामने रख देता है l

विश्व - माँ... तुम एक वकील हो... और डैड एक रिटायर्ड एसपी... जरा कानूनी दिमाग लगाओ... उस कुरियर बॉय के सारे कागजात ऑथेंटीक थे... तभी तो... डैड को देखो कैसे अपना मुहँ छुपाये बैठे हैं...
तापस - क्या कहा... डैड के बच्चे... मैं मुहँ छुपाए बैठा हूँ... मुहँ छुपाये बैठा होगा तु... तेरा बाप...
सीलु - अंकल... भाई वही तो कह रहा है...
तापस - क्या...
टीलु - यही... की आप मुहँ छुपाये तबसे बैठे हुए हैं...
तापस - (जो न्यूज पेपर पढ़ रहा था उसीको फ़ोल्ड कर टीलु को मारने के लिए उठाता है) उल्लू के पट्ठे... मेरी खिंचाई कर रहा है...(टीलु भागता है)
जिलु - सेनापति सर... आप फिर से गलत बोले... हम पट्ठे आपके हैं... इसलिए...
तापस - (रुक कर जिलु के तरफ मुड़ कर) क्या कहा.. लफंडर... इसका मतलब मैं उल्लू हूँ...
जिलु - नहीं.. मैं बोल रहा था कि... हम आपके पट्ठे हैं...
तापस - इसका मतलब... तुम चारों की अब पिटाई करनी पड़ेगी...
प्रतिभा -(चिल्ला कर) ओ हो... मैं क्या कह रही थी... और तुम लोग कर क्या रहे हो...
विश्व - रुक जाओ सब... अब इस गिफ्ट को... माँ खोल कर देखेगी...
प्रतिभा - क्या...
विश्व - माँ... बेकार में यूँ दो घंटे बीत गए हैं... प्लीज... तो फिर मुझे देख लेने दो...
प्रतिभा - पता नहीं किसका है... किसने भेजा है... किस इरादे से भेजा है...
विश्व - माँ... किसी दोस्त ने ही भेजा होगा...
प्रतिभा - तु यह कैसे कह सकता है...
विश्व - इसलिये कि... मेरे दुश्मनों ने मुझे कमाया है... पर मैंने यहाँ सिर्फ़ दोस्त और दोस्ती कमाया है... इसलिए यह गिफ्ट किसी दोस्त का ही हो सकता है...
प्रतिभा - इतना विश्वास है तुझे...
विश्व - क्यूंकि मेरे दुश्मन इतने काबिल हैं नहीं
और दोस्तों के क़ाबिलियत पर कोई सवाल नहीं...

प्रतिभा चुप रहती है l विश्व एक छोटा कैंची लेकर उस थर्मोकोल पैकेट को काटने लगता है l थर्मोकोल कवर निकालते ही पैक से पॉली पफ कवर दिखता है l उसे हटाने के बाद काठ के बने एक लाल रंग का बक्सा निकलता है l वह बक्सा एक फुट के क्यूब के आकार का था l अब विश्व उस काठ के बक्से को खोलता है l अंदर के वस्तु को देखते ही वह हैरान हो जाता है l उसके अंदर ब्रास से बनीं किसी तलवार का मूठ था l वह उस मूठ को हाथ में लेकर बाहर निकालता है, यह देख कर सभी हैरान हो जाते हैं l

प्रतिभा - यह... यह क्या... इतनी क़ीमती बक्से के अंदर... एक तलवार का मूठ...
विश्व - (चुप रहता है) (गौर से उस मूठ को अपने हाथों में लेकर देखने लगता है)
प्रतिभा - और तु कह रहा था... किसी दोस्त ने भेजा होगा...

सबके चेहरे पर तनाव दिखने लगता है l गौर से उलट पलट देखने के कुछ देर बाद अचानक विश्व के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान तैरने लगता है l विश्व को यूँ मुस्कराते देख सब हैरान हो जाते हैं और एक दूसरे को देखने लगते हैं l

प्रतिभा - क्या... क्या बात है... कौन है... कोई दोस्त है क्या...
विश्व - दोस्त.... दोस्त तो बहुत छोटा शब्द है माँ... मेरे मोहसिन हैं वह...
प्रतिभा - कौन...
विश्व - बहुत ही खास.... कोई अपना.... चाहने वाला....
तापस - तुझे कैसे पता चला... इस पैकेट पर ना भेजने वाले का नाम है... ना कोई और कागजात... या सिर्फ वही तुझे गिफ्ट भेज सकता है...
प्रतिभा - और यह तलवार की मूठ... ऐसा कोई गिफ्ट भेजता है क्या...
विश्व - माँ.. यह मूठ बहुत ही स्पेशल है... यह मूठ भेजने वाले के नाम के साथ साथ.... जेल से रिहाई की... बधाई वाला पैगाम लेकर आया है...
तापस - यह तुम्हें कैसे पता चला...
विश्व - यह देखिए... यह एक एंटीक पीस है... जहां तक मैं ठीक हूँ... यह एक ब्रिटिश ऑफिसर की सोर्ड है... क्यूंकि इसकी पोमेल.. मतलब... फाली या घुंडी पर ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगो दो शेर के वाला यूनियन जैक के साथ उसमें 1799 खुदा हुआ है... बहुत ही पुराना है... और इस मूठ का आकार ही.. डी की बनावट में है... और सबसे अहम बात... इसकी गार्ड क्रॉस जिस तरह से ऊपर उठी हुई है... बिल्कुल एक अंगूठे की तरह दिख रही है... यानी कि बधाई भेजा है उन्होंने...
तापस - अंदाजा लगा रहे हो... या...
विश्व - नहीं डैड... सिर्फ़ बधाई का मेसेज नहीं... बल्कि उन्होंने अपना नंबर भी भेजा है...
प्रतिभा - क्या... क... कैसे...
विश्व - इस मूठ पर जो कार्वींग हुई है... उसे छेड़ा नहीं गया है... पर बारीकी से देखने पर... मार्कर पेन से कुछ टिपीकल कैलीग्राफी मार्किंग की गई है... यह एक फोन नंबर है...

तापस और प्रतिभा यह सब सुन कर हैरान हो जाते हैं l पर सीलु और उसके सब साथी मुहँ फाड़े विश्व को देखने लगते हैं l विश्व अपने नए मोबाइल से एक नंबर डायल करता है और स्पीकर पर डाल देता है l कुछ देर बाद रिंग की आवाज सुनाई देती है l उसके बाद एक मर्दाना आवाज़ सुनाई देती है

- कैसे हो हीरो... आजादी मुबारक...
विश्व - नमस्कार डैनी भाई... (डैनी की नाम सुन कर और भी हैरान हो जाते हैं) आपने वाकई मुझे चौंका दिया...
डैनी - पाँच साल बाद... मेरा पट्ठा कितना ग्रो कर गया है... यह जानना मेरे लिए बहुत ही जरूरी था...
विश्व - इसका मतलब... आप हमेशा से ही मुझ पर नजर रखे हुए थे...
डैनी - तलवार में कितनी भी धार हो... अगर म्यान में है... खतरे की कोई बात नहीं... पर अगर म्यान से बाहर आ जाए... खतरे की बात तो होगी ही...
तापस - तुमको मालूम था.... विश्व तुम्हें कॉल बैक करेगा...
डैनी - ओ हो... सेनापति सर जी... नमस्कार... बड़े दिनों बाद...
तापस - तुमने बताया नहीं...
डैनी - सेनापति सर... इसमे बताने वाली कुछ है ही नहीं... इस वक़्त जो शख्स आपके साथ बैठा है... उसमें तलवार सी धार मैंने ही तो लगाया है... पाँच सालों बाद... उसका दिमाग कितना तेज है... यह भी तो जानना जरूरी था...
तापस - इसका मतलब... तुम्हें मालुम था... विश्व हमारे साथ रहने वाला है... तुम्हें कैसे मालुम हुआ... हम आज ही तो यहाँ उतरे थे...
डैनी - कमाल करते हैं... सेनापति सर जी... यह भी कोई बात हुई... आप पर हमारी नजरें इनायत पहले से ही थी...
तापस - कमाल है... हम सब तुम्हारे... मतलब तुम्हारे आदमियों के नजरों में थे... पर अंदाजा भी नहीं लगा सके...
डैनी - देट इज़ डैनी... सेनापति सर.. देट इज़ डैनी...
प्रतिभा - पर... किसी तलवार की मूठ ही क्यूँ...
डैनी - भरोसा तो मुझे मेरे पट्ठे पर सौ फीसद है... फिर भी हिदायत देना जरूरी भी है... विश्व अभी एक नंगी तलवार के जैसा है... उसे कंट्रोल में रहने के लिए हिदायत देने के लिए ही.. यह मूठ भेजा है... पर यह आधा सच है...
प्रतिभा - तो... पुरा सच क्या है...
डैनी - विश्व... इस तलवार के बारे में... कितना कुछ जान पाए हो... बताओगे जरा...
विश्व - डैनी भाई... जहां तक मेरा ध्यान जा रहा है... डेढ़ साल पहले... कलकत्ता में इस मूठ की नीलामी हुई थी... पर शायद यह किसी राजस्थानी व्यापारी ने खरीदा था...
डैनी - वेरी गुड... अगर नीलामी के बारे में जानकारी है... तो इसकी बारे में... और भी जानकारी होगी... वह बोलो...
विश्व - यह तलवार की मूठ... ईस्ट इंडिया कंपनी के कैप्टन जॉन फर्गुशन की है... उन्होंने खुर्दा जीतने बाद... खुशी से यह तलवार तोड़ी थी... तलवार का वह टूटा हुआ टुकड़े का अभी तक पता नहीं है... इसलिए सिर्फ यह मूठ बाकी है...
डैनी - शाबाश.. बहुत कुछ जानते हो... पर इस टुटे हुए तलवार पर एक मिथक... या मिथ... या किवदंती भी है... जानते हो...
विश्व - नहीं...
डैनी - सन 1803 में ओड़िशा का सबसे ताकतवर राज्य.. खुर्दा के पतन के बाद... एक नए राजशाही को अंग्रेजों ने मान्यता दी थी... वह राज्य था... यश वर्धन पुर... बाद में आगे चलकर यशपुर कहलाया...
विश्व - अच्छा... तो वह मिथक... यशपुर से जुड़ा हुआ है...
डैनी - हाँ... खुर्दा के पतन के बाद जॉन फर्ग्यूसन ने... यश वर्धन से वफादारी के लिए राज शाही के साथ साथ कुछ और भी मांगने के लिए कहा था... यश वर्धन था बहुत चालाक... किसीके आगे कभी झुका नहीं था... आगे चलकर कहीं अंग्रेजों के सामने उसे झुकना ना पड़े... इसलिए फर्ग्यूसन की तलवार मांग ली... एक विजयी योद्धा से तलवार माँगना मतलब... उससे उसका समर्पण माँगना... अपने बड़बोले पन में फर्ग्यूसन ने मांगने के लिए कहा था... यश ने जो मांगा था वह उसके लिए एक अपमान था... उसने तलवार तो दी... मगर उसकी मूठ निकाल कर... जिससे उसने अपनी इज़्ज़त बचा ली... और तलवार को प्रतीक के रूप में.... यश वर्धन पुर और क्षेत्रपाल राजशाही को मान्यता दी...
विश्व - यह तो फैक्ट है... मिथक कहाँ है...
डैनी - मिथक यह है कि... वह जो वगैर मूठ वाली नंगी तलवार है... वह जब अपनी मूठ से जुड़ जाएगा... क्षेत्रपाल की राजशाही खत्म हो जाएगी....
विश्व - क्या...
डैनी - हाँ... वैसे यह एक मिथक है... पर इसी डर से... इन्वीटेशन के बावजुद... इतनी अहम नीलामी में... क्षेत्रपाल के परिवार में कोई नहीं गया था...
विश्व - (चुप रहता है)
डैनी - क्या सोचने लगे...
विश्व - मुझे करना क्या होगा...
डैनी - क्षेत्रपाल का अहं... बेवजह नहीं है... वह अहं उसका आत्मविश्वास भी है... इसलिए यूँ मान के चलो... उस तलवार को पुरा एक करना भी.... तुम्हारा एक मिशन होगा.... यानी तलवार से मूठ अलग हुआ तो राजशाही मिली... जब मूठ वापस जुड़ जाएगा... तब राजशाही खतम भी हो जाएगी...
तापस - क्या तुम उसमें विश्व की मदत करोगे...
डैनी - मदत... जी नहीं... बिल्कुल नहीं...
तापस - क्यूँ... क्यूँ नहीं...
डैनी - मैं फ़िलहाल... दर्शक की भूमिका में हूँ... थर्ड अंपायर का दायित्व तो आप और मैडम निभा रहे हैं... खेलना... खिलाड़ी का काम है... मैने अपने खिलाड़ी को... ऑल द बेस्ट कह दिया है...
विश्व - डैनी भाई... क्या हम कभी मिल पाएंगे...
डैनी - हम मिलेंगे... और जरूर मिलेंगे... फ़िलहाल मेरा बेस्ट ऑफ लक विश.... तुम्हारे आने वाले दिन के लिए...
विश्व - थैंक्यू डैनी भाई...
डैनी - ओवर एन आउट...

डैनी का फोन कट जाता है l

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ESS ऑफिस

लंच ब्रेक था, इसलिए अनु नीचे कैन्टीन में थी l लंच खतम कर जब वह जाने को हुई तभी उसे मालुम हुआ कि वीर आ गया है और खुद को अपने कैबिन में बंद कर लिया है l यह सुनते ही वह उपर ऑफिस में जाने को हुई तो एक स्टाफ उसे रोकता है

स्टाफ - रुको... अभी ऊपर मत जाओ...
अनु - क्यूँ...
स्टाफ - राज कुमार जी ने... किसीको भी ऊपर ऑफिस जाने से मना किया है...
अनु - (ऊपर की ओर देखती है) (तभी ऊपर कुछ टूटने की आवाज आती है) वह.. वह क्या कर रहे हैं....
स्टाफ - पता नहीं जब से आए हैं... गुस्से में हैं... (फिर कुछ फेंके जाने की आवाज आती है) चीजें उठा उठा कर... फेंक कर... या तोड़ कर... अपना गुस्सा ठंडा कर रहे हैं...
अनु - हे भगवान... तब तो मुझे जाना चाहिए...
स्टाफ - ऐ लड़की... ऊपर जाएगी... तो अपनी नौकरी गवां बैठेगी...
अनु - वह मालिक हैं... उनकी मर्जी... पर अगर उन्हें ऐसे छोड़ दिया... तो वह खुद को घायल कर बैठेंगे.... (अनु ऊपर जाने लगती है) (कुछ लोग उसे रोकना चाहते हैं)
स्टाफ - जाने दो इसे... राजकुमार जी के सामने भली बनने की ऐक्टिंग करेगी... हूँह्ह्... राजकुमार जी को जानती कहाँ है... जाने दो उसे...

सब लोग साइड हो जाते हैं l अनु सीढियों से ऊपर वीर के कैबिन के पास पहुँचती है l तभी कैबिन के अंदर कुछ काँच के सामान टूटने की आवाज आती है l अनु दरवाज़ा खटखटाती है l पर अंदर से कोई आवाज नहीं आती l तभी दरवाजे के नीचे की गैप से कुछ कांच के टुकड़े छिटक के बाहर आते हैं l अनु अपनी हैंडबैग से एक्स्ट्रा चाबी निकालती है और धीरे से दरवाजा खोल कर अंदर झाँकती है l अंदर वीर गहरी गहरी सांसे लेते हुए अपनी जबड़े भींचे हुए दोनों हाथों को टेबल पर मार रहा है l दरवाजा खोल कर अंदर दरवाज़े के पास खड़ी हो जाती है l

वीर - (चिल्लाते हुए) कहा था ना... कोई नहीं आए यहाँ पर... क्यूँ आई हो... बंद करो दरवाजा...

अनु दरवाजे को अंदर से बंद कर देती है l वीर एक कुर्सी को उठा कर टेबल पर पटकने लगता है l वह कुर्सी टुट जाती है l अनु उसे देखती I वीर कमरे को तहस नहस कर चुका है l वीर अपना सिर घुमाता है उसे कमरे में फाइलों से भरी, कमर की हाइट की एक कबोर्ड दिखती है l वह उसके पास जाता है l उस कबोर्ड के ऊपर कुछ ट्रफीयाँ थी उन्हें उठा कर फेंक देता है l फिर उस कबोर्ड पर चिल्ला चिल्ला कर घुसा मारने लगता है l अनु से रहा नहीं जाता वह भागते हुए वीर के पीछे से कस के गले लग जाती है l वीर जो इतना वायलेंट था कुछ देर पहले वह अचानक से रुक जाता है l वीर उस कबोर्ड पर दोनों हाथ रख कर शांत हो कर अपनी आँखे मूँद लेता है अनु वीर को वैसे ही कसके पकड़े रखती है l वीर की सांसे अब धीरे धीरे नॉर्मल होने लगती है l उसे महसुस होता है अनु उसे कस कर पकड़ी हुई है l वह तुरंत अनु की हाथों को खुद से अलग करता है और अनु की तरफ पीछे मुड़ जाता है l आँखों में आंसू लिए अंगारों की तरह जल रही आँखों से अनु की तरफ देखता है I अनु वीर के आँखों में बेइन्तेहा दर्द देखती है l वीर रोया तो नहीं पर टुटसा गया था l वह अनु को, अपने सीने से लगा लेता है l अनु भी उसे अपने से कस के भींच लेती है l इसी तरह कुछ वक़्त वह दोनों एक दुसरे के बाहों में गुजार देते हैं l अनु खुदको अलग करने की कोशिश करती है पर वीर उसे अपने से अलग होने नहीं देता l तो अनु उसे फिर से गले लगा लेती है l

अनु - राजकुमार जी...
वीर - हूँम्म्म्...
अनु - आप आज इस कदर.... क्यूँ टुट गए...
वीर - (चुप रहता है)
अनु - क्या मैं इस काबिल भी नहीं... की आपके दर्द बांट सकूँ...
वीर - (भर्रायी हुई आवाज में) मैं तुम्हारे जैसा नहीं हूँ अनु... सच कहूँ तो.. मैं किसी के भी लायक नहीं हूँ...

अनु अब वीर से अलग होती है और वीर की हाथ को पकड़ कर अपने साथ लेकर एक सोफ़े पर बिठा देती है l

अनु - अब बताइए... हो सकता है... मैं कुछ मदत कर पाऊँ...

वीर अनु के आँखों में देखता है और फिर उसके चेहरे की मासूमियत में हैरानी भरे नजरों देखते हुए खो सा जाता है l

अनु - (वीर के हाथ पर हाथ रख कर हिलाते हुए) राजकुमार जी...
वीर - हँ... हाँ... हाँ अनु...
अनु - अब जो बोझ बनकर आपके दिल में है... उसे मेरे सामने उतार दीजिए... मैं समझ सकती हूँ... कोई गहरी बात है... पर प्लीज... आप ऐसे तो ना टुट जाइए...
वीर - (अपने दोनों हाथों में अनु के हाथों को लेकर) अनु... मैंने कहा था ना... आज मेरी बहन... राजकुमारी रुप की जन्मदिन है...
अनु - हाँ...
वीर - मैं... मैं तुम्हारी बात मान कर... उसे बधाई देने कॉलेज गया था...

एक फ्लैशबैक....

रॉकी प्रिन्सिपल ऑफिस से बाहर निकल कर उस कॉरीडोर के सामने अपनी आँखे बंद कर दोनों बाहें फैला कर खड़ा हो जाता है l उधर रॉकी टेबल से तोड़े काठ का टुकड़ा लिए भागता हुआ रॉकी के तरफ जा रहा है l इतने में रुप और उसके सारे दोस्त कैन्टीन से बाहर आकर रॉकी के तरफ देखते हैं l रुप का चेहरा गुस्से से लाल हो चुका है l वह गुस्से भरी नजर से रॉकी की ओर देखती है l इतने में रुप अपने कंधे पर बनानी की हाथ को महसूस करती है l जैसे जैसे उस तरफ से वीर बढ़ता जा रहा था बनानी की हाथ का दबाव रुप के कंधे पर बढ़ती ही जा रही थी और आँखों में खौफ के साथ साथ आँसू भी बहने लगे थे l रुप देखती है वीर रॉकी के पास पहुँचने वाला है फिर एक नजर वह बनानी को देखती है, फिर वह भी रॉकी के तरफ भागती है l वीर काठ को हाथ में लिए रॉकी के तरफ भागते हुए एक कुदी लगाता है l रुप भी तेजी से भागते हुए जाती है पर थोड़ी देर हो जाती है रॉकी के सिर वीर का काठ लग जाती है l रॉकी का सिर फट जाता है और वह नीचे बेहोश गिर जाता है l वीर अपना काठ उठा कर मारने वाला होता कि रुप उसे पीछे से पकड़ कर खिंच देती है l वीर गुस्से से अपना काठ को मारने के लिए उठाता है उसके सामने रुप खड़ी हो जाती है l

वीर - (चिल्ला कर) आप हटीये राजकुमारी...
रुप - क्यूँ.. क्यूँ हट जाएं...
वीर - यह कुत्ता है... अपनी औकात भूल गया था... इसलिए इसे जीने का हक नहीं है...
रुप - क्या किया है आखिर इसने...
वीर - इसने हम से.... हम से रिस्ता जोड़ने की कोशिश की है...
रुप - तो कौनसा गुनाह हो गया उससे... खुदको भाई ही तो कहा है... हमारा... कौनसा रुसवा या जलील कर दिया हमें...
वीर - (अपने चारो तरफ देखता है, सब उन दोनों को ही देख रहे हैं) (थोड़ा शांत होते हुए) उसने... क्षेत्रपाल परिवार की लड़की से जुड़ने की कोशिश की है...
रुप - हाँ तो किस रिश्ते से... खुद को ज़माने के आगे हमारा भाई कहा है... क्या भाई बहन का रिश्ता भी... इतना बड़ा गुनाह हो गया है...
वीर - आप... आप इसकी तरफदारी क्यूँ कर रहे हैं...
रुप - इसलिए... (पॉज लेकर) की वह मेरा भाई लगता है...
वीर - (अपने हाथ से काठ को फेंकते हुए) तो हम कौन हैं...
रुप - आप राजकुमार वीर सिंह क्षेत्रपाल हैं... आपको हम से और हमें आपसे यह क्षेत्रपाल जोड़ता है... यही वजह है कि आप राजकुमार हैं... और हम राजकुमारी...
वीर - इनॉफ... हम भाई हैं आपके...
रुप - कब से... (यही लफ्ज़ गूंजने लगती है)
वीर - (चुप हो जाता है)
रुप - कब से... हम राजकुमारी हैं... आप राजकुमार... इसके आगे ना हमारा कोई रिश्ता है.. ना ही कोई पहचान... आज पहली बार... कोई ना खून से ना खानदान से हमसे भाई बनकर जुड़ रहा था... वह भी आपसे नहीं देखा गया...
वीर - (चीखते हुए) राजकुमारी.... (हाथ उठ जाता है मगर हवा में रुक जाता है) (वीर देखता है रुप एक पल के लिए अपनी आँखे तो मूँद लेती है पर वहाँ से हटती नहीं)
रुप - (वीर के आँखों में आँखे डालते हुए) हाथ उठाने से पहले इतना तो बता दीजिए... यह उठने वाला हाथ किसका है... राजकुमार वीर सिंह के... या मेरे भाई के...

फ्लैशबैक खतम

अनु ख़ामोशी के साथ वीर को सुने जा रही थी l वीर अपनी बात खतम करता से है l

वीर - अनु.... राजकुमारी जी... मेरी बहन हैं... वह मुझसे ऐसे बात की... वह भी एक नामुराद के लिए...
अनु - (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाती है) (फिर एक गहरी सांस लेते हुए) एक बात कहूँ... अगर... आप बुरा ना मानें तो...
वीर - हाँ पूछो...
अनु - उस वक़्त... राजकुमारी जी के लिए भाई कौन था...
वीर - क्य... क्या मतलब है आपका...
अनु - आप अभी भी... राजकुमारी कह रहे हैं... बहन बाद में बोल रहे हैं... आपके लिए मुख्य क्या है... खुनी रिश्ता या खानदानी पहचान...
वीर - (चुप हो जाता है, और अनु के चेहरे को घूर कर देखने लगता है)
अनु - मैं... आपके और राजकुमारी जी के बीच की कशमकश को समझ पा रही हूँ... पर पता नहीं आपको समझा पाऊँगी या नहीं... फिर भी... आपका खुनी संबंध असली है... पर खानदानी पहचान के नीचे घुट गया है... और उस लड़के का राजकुमारी जी से संबंध भले ही नकली है... पर वह भाई की पहचान के साथ सामने आया... भगवान ना करें राजकुमारी जी को... कल किसी मदत की दरकार होगी... तब आप क्या उनके... राजकुमार बुलाने की इंतजार करेंगे... या भैया बुलाने भर मदत को पहुंचेंगे...
वीर - (चुप रहता है और अपना सिर पकड़ कर अपने कुहनियों के बल घुटनों पर झुक जाता है)
अनु - लगता है... मैं कुछ ज्यादा कह गई... अपनी औकात से बाहर कह गई... (अनु जाने के लिए उठती है)
वीर - अनु... प्लीज रुक जाओ... मैं समझ गया... मैं भाई असली हूँ... पर खानदानी नकली पहचान के ओट में हूँ... वह भाई नकली था... पर उसके लिए मेरी बहन की ज़ज्बात असली थे... मैं कहाँ गलत हूँ जान गया हूँ... मुझे सुधारने का रास्ता भी तुम बताओ... प्लीज अनु.. प्लीज...
अनु - (वीर को गौर से देखती है, वीर जैसे अपने अंदर की दुख की सैलाब को जबरदस्ती रोके रखा है) राजकुमार जी... आप रो रहे हैं...
वीर - नहीं.. मैं रो नहीं रहा हूँ...(जबड़े भींच कर) क्षेत्रपाल कभी रो नहीं सकते...
अनु - राजकुमार जी... आपके जज़्बातों को... दिल के सुकून को... आपके इसी अहम ने... भरम ने.. अंधेरे में अबतक आपको भटका रहा है... मेरी बात मानिए... बस एक बार... जी भर के रो लीजिए... सब साफ हो जाएगा... अंधेरा छट जाएगा... आपको अच्छा लगेगा... आपको नई ऊर्जा मिलेगी... आप को नई राह मिलेगी...
वीर - (उठ खड़ा होता है) यह.. यह रोना धोना सब औरतों का काम है... हम मर्द हैं... वह भी क्षेत्रपाल...

अनु उठ कर जाने लगती है l वीर उसका हाथ पकड़ लेता है, अनु मुड़ कर उसे देखती है तो वीर उसे अपने गले से लगा लेता है और अनु के कंधे पर फफक फफक कर रोने लगता है l उसे रोता हुआ पा कर अनु भी उसे गले लगा लेती है l वीर धीरे धीरे टूटते टूटते रोने लगता है l अनु उसे अपने से अलग करती है और सोफ़े पर बैठ कर वीर को अपने पास बिठाती है और वीर के सिर को अपने गोद में रख देती है l वीर अपनी आँखे बंद कर लेता है और रोते रोते उसके गोद में हो सो जाता है


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हस्पताल के बेड पर लेटा रॉकी धीरे धीरे अपनी आँखे खोलता है I दर्द के मारे कराहने लगता है l वह याद करने की कोशिश करता है आखिर क्या हुआ l उसे याद आता है वीर के हाथ में एक काठ का टुकड़ा था जिसे लेकर वह रॉकी को मारने के लिए कुदी लगाया था l उसके बाद वह डर के मारे आँखे बंद कर लिया था l अब उसकी आँखे खुली तो हस्पताल के बेड पर पड़ा है l हाथ में सलाइन लगा हुआ है l अपने बाएं हाथ को सिर पर लगाते ही उसे मालुम होता है कि उसके सिर पर चोट लगी है l

रॉकी - आह...
सुमित्रा - कैसा है... दर्द कम हुआ...
रॉकी - मम्मी... तुम... मैं... यहाँ... कब आया...
सुमित्रा - तुझे याद भी है... तुने कांड कौनसा किया...
रॉकी - (अपना सिर झुका लेता है)
सुमित्रा - हूँह्ह... कांड ऐसा किया... के अपनी माँ के सामने सिर झुकाना पड़ रहा है...
रॉकी - मम्मी... मैंने क्या गलत किया...
सुमित्रा - ओ... अच्छा... तो बता जरा... सही क्या किया तुने...
रॉकी - (कुछ नहीं कह पाता)
सुमित्रा - तुने... पहले अपने बदले के लिए... रुप नंदिनी से प्यार का नाटक किया... दाल नहीं गली... तो बहन बना कर चाल चलने लगा... फिर भी... नंदिनी ने बड़ा दिल दिखाया... तेरी जान के लिए... अपने भाई से भीड़ गई...
रॉकी - (खुश होते हुए) सच...
सुमित्रा - खुश क्यूँ हो रहा है... तुझे अपने भाई से बचाया इसलिए...
रॉकी - हूँह्ह...
सुमित्रा - बचपन से ही... तु उतावला था... जल्दबाजी रहती थी तेरी हर बात में... हर काम में.. पर... एक लड़की के बारे में... तुने ऐसा कैसे सोच लिया... ऐसा कैसे कर गया...
रॉकी - मम्मी... इतना सब कुछ... तुम्हें किसने बताया...
सुमित्रा - रवि और दीप्ति ने...
रॉकी - (फिर अपना सिर झुका लेता है) मम्मी आपको क्यूँ लगा... नंदिनी ने मुझे बचाया... इस बात पर खुश ना होऊँ...
सुमित्रा - इसकी भी वजह... दीप्ति ने बताया मुझे...
रॉकी - मम्मी... तुमने सही कहा... मैं उतावले पन में... जल्दबाजी में.. बहुत कुछ गलत कर गया... मैं सबकुछ हार चुका था... अपने दोस्त... नंदिनी का विश्वास और खुद को भी... मैं.. दुबारा वह सब कुछ हासिल करना चाहता था... इसलिए ऐसा किया...
सुमित्रा - एक लड़की का नाम सरेआम लेता है... एक जबरदस्ती का रिश्ता... उसपर थोपता है... और यह उम्मीद करता है... की वह भागते हुए आए... और तुझे... सरेआम गले लगा ले...
रॉकी - (अपना सिर फिर से झुका लेता है)
सुमित्रा - भाई बहन के रिश्ते को... दुहाई दे कर... एक लड़की का मज़ाक बना बना दिया तुने... जाहिर सी बात है... उसका भाई तुझ पर टुट पड़ा... हाँ अगर रुप नंदिनी बीच में ना आती... तो.... (बात को पूरी नहीं कर पाती)
रॉकी - नंदिनी ने... अपने भाई से मुझे बचाया... मतलब... उसे मेरी इस हरकत से भले ही ठेस लगा हो... पर उतना बुरा नहीं लगा होगा...
सुमित्रा - अभी भी... अपनी हरकत को जायज ठहराने की कोशिश कर रहा है... वह...वह क्या नाम बताया दीप्ति ने....ह्म्म्म्म.. हाँ बनानी... बनानी के लिए... अपने भाई से बचाया... नंदिनी ने...
रॉकी - (दबी जुबान से) मैं... मैं ने जो भी किया... क्या... कोई ऐसा कर पाएगा...
सुमित्रा - नहीं... नहीं कर पाएगा शायद... पर असलियत वह नहीं है... जो तु कह रहा है... या समझाना चाह रहा है... असलियत यह है कि... तु नंदिनी से बदला लेना चाहता था... उसने तुझे बुजदिल और कायर कहा था... उसने जिस तरह से तेरी करनी को तेरे सामने फोड़ा था... उससे तेरे अंदर की मर्दाना गुरुर को ठेस पहुंचा था... इसलिए तुने यह हरकत की थी... खुद को मर्द साबित करने के लिए और खुद को बहादुर साबित करने के लिए...
रॉकी - आ.. आप.. आपको... यह सब कैसे मालुम...
सुमित्रा - लगता है.. तेरे सिर पर चोट गहरा लगा है... बताया तो था... दीप्ति और रवि ने मुझे सबकुछ बता दिया...
रॉकी - ड... डैड...
सुमित्रा - नहीं आए हैं... कल तेरी टीसी लेने के बाद... तुझसे मिलने आयेंगे...
रॉकी - (शर्म और दुख से अपना सर फिर नीचे कर लेता है) स... सॉरी मम्मी...
सुमित्रा - (और कुछ नहीं कहती है)

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वीर मध्यम गति से गाड़ी चला रहा है l बगल में अनु बैठी हुई है l वीर बहुत तरोताजा लग रहा था l एक अंदरुनी खुशी उसके चेहरे पर दमक रही थी l अनु उसे तिरछी नजरों से बीच बीच में देख रही थी l वीर की ख़ुशनुमा चेहरा देख कर उसे बहुत अच्छा लग रहा था l अनु आज की बातों को याद करने लगती है l कैसे एक मासूम बच्चे की तरह, अनु के गले से लग कर रोया, और उसके गोद में सिर रख कर सो गया l यह याद आते ही अनु के गाल शर्म से लाल हो जाते हैं l अनु को वह लम्हा याद आने लगता है जब सोया हुआ वीर उसके गोद से अचानक उठ कर बैठ गया

वीर - अनु... मैं.. तु.. तुम्हारी गोद में सिर रख कर सोया हुआ था...
अनु - (झिझकते हुए अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
वीर - (दिवार पर लगी घड़ी को देख कर) ओह माय गॉड... शाम के छह बज रहे हैं... और तुम अभी तक यहीं हो... मु.. मुझे जगाया क्यूँ नहीं....
अनु - (कुछ कह नहीं पाती) (इधर उधर देखने लगती है)
वीर - क्यूँ अनु...
अनु - (झिझकते हुए) क्या बताऊँ... आप... आप.. टुटे हुए लग रहे थे... थके हुए लग रहे थे... ऐसा लगा... जैसे दर्द के मारे छटपटा रहे थे... पर आप सोये... ऐसे सोये... जैसे कई दिनों से सोये ना हों... मुझे ऐसे जकड़े सोये... जैसे कोई मासूम बच्चा.. माँ की गोद को... बस... इसीलिए.. नहीं जगाया...
वीर - (उठ कर खड़ा हो जाता है)(अनु की तरफ बिना देखे) तुमने ठीक कहा अनु... बचपन में... कभी माँ की गोद में ही ऐसी नींद आई थी... एक बार क्या वह गोद छुटा... फिर कभी वैसी नींद नहीं आई... आज जाकर वह नींद पुरी कर पाया... (अनु की तरफ मुड़ कर देख कर) थैंक्यू...
अनु - आप ही ने तो कहा था... मैं आपकी पर्सनल सेक्रेटरी कम अस्सिटेंट हूँ... मेरा सिर्फ़ काम ही है... आपका खयाल रखना...
वीर - (एक गहरी सांस लेता है) (अनु की बातों अपने अंदर एक थर्राहट महसुस करता है)(पहली बार ऐसा होता है कि वह अपनी नजरें झुका लेता है)
अनु - एक बात कहूँ...
वीर - हूँ... (अनु की ओर बिना देखे)
अनु - आज आप... अंदर ही अंदर अपनी माँ को ढूंढ रहे थे...
वीर - (हैरान हो कर अनु को देखता है)
अनु - हाँ राज कुमार जी... आपकी तड़प आजकी नहीं है... कई सालों की है... आपको आज एक कंधे की दरकार थी... सिसकने के लिए.. एक सीने की दरकार थी... लग कर रोने के लिए... और एक गोद की दरकार थी... जकड़ कर सोने के लिए...
वीर - (आँखे बड़ी हो जाती है, मुहँ खुला रह जाता है) अनु.. क्या यह तुम हो....
अनु - जी... राजकुमार जी...मैं ही हूँ... ऐसी भावनायें मैं बखूबी समझ सकती हूँ... क्यूंकि... मेरी ना तो माँ है... ना बाबा... मैं भी बहुत तड़पी हूँ... वह कंधा.. वह सीना.. वह गोदी... बहुत ढूंढी हूँ... इसलिए मैं उस दर्द को... तड़प को समझ सकी...
वीर - (अनु को ऐसे देखने लगता है जैसे वह किसी दुसरी ग्रह से आई हो) (मुश्किल से अपना थूक निगलता है) (वह झट से अपना चेहरा घुमा लेता है)
अनु - आपके सारे दर्द गायब हो जाएंगे...
वीर - (फिर मुड़ कर अनु को देखता है) कैसे...
अनु - एक बार... बस एक बार अपनी माँ से बात लीजिए... (वीर फिर से अनु की तरफ पीठ कर लेता है) कब तक... ऐसे मुहँ फेरे रहेंगे... आपकी दर्द की दवा... आपके अपनों के पास है... बात तो कीजिए... पर राजकुमार बन कर नहीं... एक माँ के बेटे बन कर...
वीर - नहीं...
अनु - (चुप हो जाती है) (वह वहाँ से जाने लगती है)
वीर - अनु प्लीज...
अनु - माफ लीजिए राजकुमार जी... आप मालिक हैं... मैं मुलाजिम... शायद मैं कुछ ज्यादा ही बोल गई... अपनी औकात भूल गई...
वीर - नहीं नहीं नहीं... प्लीज... तुम गलत नहीं हो... पर... सच यह है कि... मैं... मेरी हिम्मत नहीं हो रही है...
अनु - (वीर के पास आकर, वीर के हाथ पर हाथ रख कर) एक बार कोशिश तो कीजिए...

वीर कांपते हाथों से फोन निकालता है पर नंबर डायल कर नहीं पाता l अनु वीर को आँखों से दिलासा देते हुए डायल करने के लिए कहती है l वीर एक नंबर डायल करता है

-हैलो (राजगड़ के महल में कोई नौकर फोन उठाता है)
वीर - हम... राजकुमार बोल रहे हैं...
नौकर - जी... हुकुम राजकुमार..
वीर - छोटी रानी जी से बात करनी है... उन्हें कर्डलेस दो....
नौकर - जी हुकुम... (नौकर भागते हुए सुषमा को कर्डलेस देता है) (अपना सिर झुकाए) छोटी रानी... राजकुमार...
सुषमा - (कर्डलेस को हाथ में लेकर) हैलो...
वीर - (यह सुन कर आँखे छलक पड़ती हैं) (वह अनु की ओर देखता है) (अनु उसे इशारे से बात करने को कहती है) हे.. हैलो...
सुषमा - कहिए राजकुमार... फोन क्यूँ किया...
वीर - वह... मैं.. (आवाज़ भर्रा जाती है) म.. मैं...
सुषमा - (हैरान हो कर) राज कुमार... क.. क्या हुआ...
वीर - (अनु इशारे से माँ कहने के लिए कहती है) (वीर अनु की तरफ देख कर) माँ...
सुषमा - (आँखे बड़ी हो जाती है) क... क्या कहा...
वीर - माँ...
सुषमा - क्या बात है.. र.. राज.. कुमार...
वीर - राजकुमार नहीं माँ... वीर... वीर कहो ना माँ...
सुषमा - क... क्या हुआ है आपको...
वीर - आप नहीं... तुम.. या.. तु... आप नहीं...
सुषमा - (नौकर को इशारे से, बाहर जाने के लिए कहती है, नौकर के जाने के बाद) क्या कहा तुमने...
वीर - हाँ माँ... यह ठीक है... यह नकली पहचान के नीचे... रिश्तों को और कुचल नहीं सकता... आज मुझे रानी माँ की नहीं... माँ की दरकार थी...
सुषमा - (सूबकते हुए) क्या... इसलिए तुझे... आज माँ की याद आई...
वीर - देखा... देखा माँ देखा... हम अभी कितने करीब हो गए... यह राजसी पहचान को ढोते ढोते... हम रिश्तों के मामले में कितना गरीब... और कितने दूर हो गए थे... मैंने आज माँ कहा.... तो तुमने तु कह दिया...
सुषमा - (थर्राती हुई आवाज में) हाँ मेरे लाल... हाँ..
वीर - बस माँ... अब मैं फोन रखता हूँ...
सुषमा - क्यूँ... मन भर गया तेरा...
वीर - नहीं माँ... आज एक दिन में इतनी खुशियाँ... मुझसे संभले नहीं संभलेगी माँ...
सुषमा - ठीक है बेटा... क्या कल भी फोन करेगा...
वीर - हाँ माँ हाँ... अब तो तुमसे बात किए मेरा दिन पूरा ना होगा... अच्छा अब रखता हूँ...
सुषमा - ठीक है बेटा... बाय..
वीर - बाय माँ... (कह कर फोन काट देता है और खुशी से अनु के हाथ पकड़ कर कूदने लगता है)

उसकी खुशी देख कर अनु भी खुशी के मारे हँसने लगती है l वीर अचानक कूदना बंद कर अनु को देखता है और आगे बढ़ कर अनु को गले लगा लेता है l वीर का चेहरा अनु के कंधे पर होती है

वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - आज... मैं तुमसे एक वादा माँगना चाहता हूँ...
अनु - कैसा वादा...
वीर - जिस तरह आज तुमने मुझे अपने गले से लगा कर... टूटने से.. बिखरने से... बचाया...
अनु - जी...
वीर - फ़िर कभी ग़मों में टूटने लगूँ... या कभी ज्यादा खुशी में बहक ने लगूँ... तब मुझे गले से लगा लेना... प्लीज...
अनु - (वीर से अलग हो जाती है, वीर का चेहरा उतर जाता है) क्या... यह एक मालिक का... अपने मुलाजिम को दिया हुकुम है...
वीर - (अपना सिर ना में हिलाते हुए) नहीं... अनु नहीं... आज... एक दोस्त अपने दोस्त से ईलतजा कर रहा है...
अनु - (चेहरे पर हल्का सा शर्म और मुस्कान लेते हुए) जी... ठीक है...
वीर - (चेहरे पर रौनक लौट आती है) सच...
अनु - (थोड़ा शर्माते हुए) जी...
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - अब मैं बहुत खुस हूँ...
अनु - (कुछ नहीं कहती है शर्मा के चेहरा झुका लेती है)
वीर - अनु... अब मैं बहुत खुश हूँ...
अनु - (सिर उठा कर वीर की तरफ देखती है) (वीर दोनों बाहें फैलाए खड़ा है)

कार के हॉर्न से अनु अपनी वास्तव में आती है l वीर उसके गली के बाहर गाड़ी रोक देता है l अनु शर्माते हुए गाड़ी से उतर जाती है l और अपने गली की ओर बढ़ने लगती है l

वीर - अनु... (अनु पीछे मुड़ती है) क्या यार... कम से कम बाय तो कहो...
अनु - जी... बाय...
वीर - बाय... और हाँ... सोने से पहले... मेरी खैरियत पूछना जरूर...
अनु - (शर्म और खुशी से दोहरी हो जाती है) (सिर को हाँ में हिलाते हुए) जी... (कह कर गली की ओर भाग जाती है)

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बादामबाड़ी बस स्टैंड कटक l

तापस और विश्व सीलु एंड ग्रुप को बस में बिठाने के बाद बाहर चलते हुए निकलते हैं l

विश्व - डैड... हम कार में भी तो आ सकते थे...
तापस - चलाता कौन.. मैं...
विश्व - हम छह जन थे... जाहिर है... माँ तो आ नहीं सकती थी...
तापस - हाँ... और नाइट ड्राइविंग... मुझे अच्छी नहीं लगती... और किस्मत से हम छह थे... इसलिए ऑटो में तीन तीन हो कर आ पाए... वरना तुम्हारी माँ को पता चल गया होता...
विश्व - माँ से यह बात छुपाना जरूरी था क्या...
तापस - उसका दिल एक माँ की है... बच्चों को खतरों से हमेशा दूर रखना चाहेगी ही...
विश्व - पर यह सब करना जरूरी था क्या...
तापस - कितना जरूरी था... यह तु भी समझ पा रहा होगा... आगे चलकर कितना काम आएगा...
विश्व - पर यह सब आपने सोचा कब...
तापस - जब तु इन चारों को सरकारी गवाह बनाने के लिए... अपनी माँ से बात कर रहा था... मेरे सामने वह भी... मेरे ही फोन पर...
विश्व - (हँसता है) डैड... एक बात कहूँ...
तापस - हाँ बोल...
विश्व - आप ना... माँ से पहले ही... मुझे जानते हो... माँ से पहले ही... मुझे पसंद और प्यार करने लगे थे... तो मुझे गले लगाने में... माँ से भी देरी आपने क्यूँ की...
तापस - ऑए... ज्यादा... फिलॉसफर बनने की कोशिश मत कर...
विश्व - (छेड़ते हुए) क्या डैड... मैंने महसूस किया है... आप मुझे पसंद बहुत करते थे... बाद में प्यार भी बहुत करने लगे...
तापस - (घूरते हुए) तु क्या मुझे आज छेड़ने के मूड में है...
विश्व - बिल्कुल नहीं... मुझसे जुड़े हर ज़ज्बात में... जब माँ से पहले आप थे... तो इजहार करने में... माँ पहले आप बाद में... ऐसा क्यूँ...
तापस - देख मेरे सामने बच्चा है तु... समझा... ज़्यादा स्मार्ट मत बन... तुझसे तेरी माँ बहुत प्यार करती है... इसीलिए मैं...
विश्व - हाँ... मैं...
तापस - बंद करेगा अपना यह डब डब...
विश्व - ठीक है... डैड... पर एक बात कहूँ...
तापस - हाँ.. बोल..
विश्व - माँ मुझ पर प्यार बहुत लुटाती है... पर वह आज की सोचती है... कल की बिल्कुल नहीं... पर आप... मेरे जंग की मैदान को... पूरी तरह से तैयार कर रखा है... बल्कि यूँ कहूँ... आपने अपनी चालें तैयार कर रखा है.... क्यूंकि आपको शायद मालुम है... कौन.. कब... कौनसा चाल चलने वाला है....
तापस - (चलते चलते एक रोड साइड बेंच पर बैठ जाता है और विश्व को पास बुला कर बैठने को कहता है)
विश्व - (तापस के पास बैठते हुए) यह सारी बातें... आपने माँ को भी नहीं बताया है...

तभी एक छोटा सा कुत्ते का पिल्ला तापस के पैर के पास आकर घिसने लगता है l तापस उस पिल्ले को उठा कर

तापस - इस कुत्ते के पिल्ले को देखो... एक लावारिश... अपने जिंदगी में जो वैक्यूम है... उसे पुरा करने के लिए... यह मेरे पैरों के पास अपना किस्मत आजमा रहा है...
विश्व - वैक्यूम...
तापस - हाँ... वैक्यूम... हमारे जिंदगी में प्रत्युष और प्रताप नाम का जो वैकुम था... वह तुमसे पुरा हो रहा था... हम लावारिश थे... अब तुम हमारे वारिश हो... हम एक-दूसरे से निभा पा रहे हैं... क्यूंकि हमारा वैक्यूम जज्बाती रूप से फुल हो गया है....
विश्व - डैड.. कुछ ढंग का एक्जाम्पल देते... इस कुत्ते के पिल्ले को बीच में लाने की क्या जरूरत थी... मुझे बस इतना पता है... आप मुझसे बहुत प्यार करते हो... पर जताने में देर कर दी... समझाया कुछ नहीं... उल्टा कुत्ते का अपमान कर दिया... माँ को पता लगेगा तो कितना बुरा लगेगा....
तापस - (मुस्कराता है) बात टालने के लिए मेरे पास कुछ था जो नहीं...
विश्व - मैं जानता हूँ डैड... मैं बस छेड़ रहा था...
तापस - तुझे क्या लगा... मैं भी लपेट रहा था... समझा... बाप... हमेशा बाप ही रहता है...

तापस उठ कर फिर चलने लगता है l कुछ दूर जा कर एक ऑटो को रोकता है l विश्व भी ऑटो के पास पहुँचता है

तापस - अब तुम ड्राइविंग स्कुल जॉइन कर लो... सात दिनों बाद गाड़ी चलाना और अपनी माँ को सर्विस देना...

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द हैल
ड्रॉइंग रुम में गहरी सोच लिए रुप और शुभ्रा बैठे हुए हैं l

शुभ्रा - सॉरी नंदिनी... आज तुम्हारा पार्टी खराब हो गया...
रुप - कोई बात नहीं भाभी... इस साल नहीं तो अगले साल...
शुभ्रा - तुमने रॉकी को बहुत सस्ते में छोड़ दिया था... वरना आज यह नौबत नहीं आई होती...
रुप - ह्म्म्म्म....
शुभ्रा - कल कॉलेज जाओगी ना...
रुप - हाँ... इसमें क्या शक़ है...
शुभ्रा - ठीक है... अब क्या करें...
रुप - मुझे क्या पता...
वीर - (हाथ में एक पैकेट लिए वहाँ पहुँच कर) वह मैं बताता हूँ...

वीर को वहाँ पर देख कर दोनों चौंक जाते हैं और एक-दूसरे की ओर देखने लगते हैं l

शुभ्रा - क्या बात है राजकुमार....
वीर - अभी बताता हूँ... (कह कर पैकेट को नीचे रख देता है और "चटाक" रुप को एक थप्पड़ मार देता है)
Bahut hi behtareen update hai bhai maza aa gaya

Bhale hi der se par rup Nandani ko uska ek bhai to mil hi Gaya
 

ANUJ KUMAR

Well-Known Member
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👉छिहत्तरवां अपडेट
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ड्रॉइंग रुम के बीचों-बीच एक छोटा सा टेबल है, उसके उपर थर्मोकोल का एक पैकेट रखा हुआ है l

विश्व - माँ... पैकेट खोल कर देखते हैं ना...
प्रतिभा - नहीं... बिल्कुल नहीं...
विश्व - क्यूँ...
प्रतिभा - अरे... सेनापति जी ने उससे... पैकेट के बारे में पूछताछ क्या की... वह कुरियर बॉय.. पैकेट छोड़ कर भाग गया...
विश्व - तो... भाग नहीं जाएगा... वह पैकेट क्या लेकर आया... डैड ने उसकी ऐसी काउंसिलिंग की... जैसे वह कोई बम लगाने आया था...
प्रतिभा - हाँ वही तो... वह पैकेट छोड़ कर भाग क्यूँ गया...

विश्व जवाब देने के वजाए तापस की ओर देखता है l तापस न्यूज पेपर उठा कर अपने चेहरे के सामने रख देता है l

विश्व - माँ... तुम एक वकील हो... और डैड एक रिटायर्ड एसपी... जरा कानूनी दिमाग लगाओ... उस कुरियर बॉय के सारे कागजात ऑथेंटीक थे... तभी तो... डैड को देखो कैसे अपना मुहँ छुपाये बैठे हैं...
तापस - क्या कहा... डैड के बच्चे... मैं मुहँ छुपाए बैठा हूँ... मुहँ छुपाये बैठा होगा तु... तेरा बाप...
सीलु - अंकल... भाई वही तो कह रहा है...
तापस - क्या...
टीलु - यही... की आप मुहँ छुपाये तबसे बैठे हुए हैं...
तापस - (जो न्यूज पेपर पढ़ रहा था उसीको फ़ोल्ड कर टीलु को मारने के लिए उठाता है) उल्लू के पट्ठे... मेरी खिंचाई कर रहा है...(टीलु भागता है)
जिलु - सेनापति सर... आप फिर से गलत बोले... हम पट्ठे आपके हैं... इसलिए...
तापस - (रुक कर जिलु के तरफ मुड़ कर) क्या कहा.. लफंडर... इसका मतलब मैं उल्लू हूँ...
जिलु - नहीं.. मैं बोल रहा था कि... हम आपके पट्ठे हैं...
तापस - इसका मतलब... तुम चारों की अब पिटाई करनी पड़ेगी...
प्रतिभा -(चिल्ला कर) ओ हो... मैं क्या कह रही थी... और तुम लोग कर क्या रहे हो...
विश्व - रुक जाओ सब... अब इस गिफ्ट को... माँ खोल कर देखेगी...
प्रतिभा - क्या...
विश्व - माँ... बेकार में यूँ दो घंटे बीत गए हैं... प्लीज... तो फिर मुझे देख लेने दो...
प्रतिभा - पता नहीं किसका है... किसने भेजा है... किस इरादे से भेजा है...
विश्व - माँ... किसी दोस्त ने ही भेजा होगा...
प्रतिभा - तु यह कैसे कह सकता है...
विश्व - इसलिये कि... मेरे दुश्मनों ने मुझे कमाया है... पर मैंने यहाँ सिर्फ़ दोस्त और दोस्ती कमाया है... इसलिए यह गिफ्ट किसी दोस्त का ही हो सकता है...
प्रतिभा - इतना विश्वास है तुझे...
विश्व - क्यूंकि मेरे दुश्मन इतने काबिल हैं नहीं
और दोस्तों के क़ाबिलियत पर कोई सवाल नहीं...

प्रतिभा चुप रहती है l विश्व एक छोटा कैंची लेकर उस थर्मोकोल पैकेट को काटने लगता है l थर्मोकोल कवर निकालते ही पैक से पॉली पफ कवर दिखता है l उसे हटाने के बाद काठ के बने एक लाल रंग का बक्सा निकलता है l वह बक्सा एक फुट के क्यूब के आकार का था l अब विश्व उस काठ के बक्से को खोलता है l अंदर के वस्तु को देखते ही वह हैरान हो जाता है l उसके अंदर ब्रास से बनीं किसी तलवार का मूठ था l वह उस मूठ को हाथ में लेकर बाहर निकालता है, यह देख कर सभी हैरान हो जाते हैं l

प्रतिभा - यह... यह क्या... इतनी क़ीमती बक्से के अंदर... एक तलवार का मूठ...
विश्व - (चुप रहता है) (गौर से उस मूठ को अपने हाथों में लेकर देखने लगता है)
प्रतिभा - और तु कह रहा था... किसी दोस्त ने भेजा होगा...

सबके चेहरे पर तनाव दिखने लगता है l गौर से उलट पलट देखने के कुछ देर बाद अचानक विश्व के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान तैरने लगता है l विश्व को यूँ मुस्कराते देख सब हैरान हो जाते हैं और एक दूसरे को देखने लगते हैं l

प्रतिभा - क्या... क्या बात है... कौन है... कोई दोस्त है क्या...
विश्व - दोस्त.... दोस्त तो बहुत छोटा शब्द है माँ... मेरे मोहसिन हैं वह...
प्रतिभा - कौन...
विश्व - बहुत ही खास.... कोई अपना.... चाहने वाला....
तापस - तुझे कैसे पता चला... इस पैकेट पर ना भेजने वाले का नाम है... ना कोई और कागजात... या सिर्फ वही तुझे गिफ्ट भेज सकता है...
प्रतिभा - और यह तलवार की मूठ... ऐसा कोई गिफ्ट भेजता है क्या...
विश्व - माँ.. यह मूठ बहुत ही स्पेशल है... यह मूठ भेजने वाले के नाम के साथ साथ.... जेल से रिहाई की... बधाई वाला पैगाम लेकर आया है...
तापस - यह तुम्हें कैसे पता चला...
विश्व - यह देखिए... यह एक एंटीक पीस है... जहां तक मैं ठीक हूँ... यह एक ब्रिटिश ऑफिसर की सोर्ड है... क्यूंकि इसकी पोमेल.. मतलब... फाली या घुंडी पर ईस्ट इंडिया कंपनी के लोगो दो शेर के वाला यूनियन जैक के साथ उसमें 1799 खुदा हुआ है... बहुत ही पुराना है... और इस मूठ का आकार ही.. डी की बनावट में है... और सबसे अहम बात... इसकी गार्ड क्रॉस जिस तरह से ऊपर उठी हुई है... बिल्कुल एक अंगूठे की तरह दिख रही है... यानी कि बधाई भेजा है उन्होंने...
तापस - अंदाजा लगा रहे हो... या...
विश्व - नहीं डैड... सिर्फ़ बधाई का मेसेज नहीं... बल्कि उन्होंने अपना नंबर भी भेजा है...
प्रतिभा - क्या... क... कैसे...
विश्व - इस मूठ पर जो कार्वींग हुई है... उसे छेड़ा नहीं गया है... पर बारीकी से देखने पर... मार्कर पेन से कुछ टिपीकल कैलीग्राफी मार्किंग की गई है... यह एक फोन नंबर है...

तापस और प्रतिभा यह सब सुन कर हैरान हो जाते हैं l पर सीलु और उसके सब साथी मुहँ फाड़े विश्व को देखने लगते हैं l विश्व अपने नए मोबाइल से एक नंबर डायल करता है और स्पीकर पर डाल देता है l कुछ देर बाद रिंग की आवाज सुनाई देती है l उसके बाद एक मर्दाना आवाज़ सुनाई देती है

- कैसे हो हीरो... आजादी मुबारक...
विश्व - नमस्कार डैनी भाई... (डैनी की नाम सुन कर और भी हैरान हो जाते हैं) आपने वाकई मुझे चौंका दिया...
डैनी - पाँच साल बाद... मेरा पट्ठा कितना ग्रो कर गया है... यह जानना मेरे लिए बहुत ही जरूरी था...
विश्व - इसका मतलब... आप हमेशा से ही मुझ पर नजर रखे हुए थे...
डैनी - तलवार में कितनी भी धार हो... अगर म्यान में है... खतरे की कोई बात नहीं... पर अगर म्यान से बाहर आ जाए... खतरे की बात तो होगी ही...
तापस - तुमको मालूम था.... विश्व तुम्हें कॉल बैक करेगा...
डैनी - ओ हो... सेनापति सर जी... नमस्कार... बड़े दिनों बाद...
तापस - तुमने बताया नहीं...
डैनी - सेनापति सर... इसमे बताने वाली कुछ है ही नहीं... इस वक़्त जो शख्स आपके साथ बैठा है... उसमें तलवार सी धार मैंने ही तो लगाया है... पाँच सालों बाद... उसका दिमाग कितना तेज है... यह भी तो जानना जरूरी था...
तापस - इसका मतलब... तुम्हें मालुम था... विश्व हमारे साथ रहने वाला है... तुम्हें कैसे मालुम हुआ... हम आज ही तो यहाँ उतरे थे...
डैनी - कमाल करते हैं... सेनापति सर जी... यह भी कोई बात हुई... आप पर हमारी नजरें इनायत पहले से ही थी...
तापस - कमाल है... हम सब तुम्हारे... मतलब तुम्हारे आदमियों के नजरों में थे... पर अंदाजा भी नहीं लगा सके...
डैनी - देट इज़ डैनी... सेनापति सर.. देट इज़ डैनी...
प्रतिभा - पर... किसी तलवार की मूठ ही क्यूँ...
डैनी - भरोसा तो मुझे मेरे पट्ठे पर सौ फीसद है... फिर भी हिदायत देना जरूरी भी है... विश्व अभी एक नंगी तलवार के जैसा है... उसे कंट्रोल में रहने के लिए हिदायत देने के लिए ही.. यह मूठ भेजा है... पर यह आधा सच है...
प्रतिभा - तो... पुरा सच क्या है...
डैनी - विश्व... इस तलवार के बारे में... कितना कुछ जान पाए हो... बताओगे जरा...
विश्व - डैनी भाई... जहां तक मेरा ध्यान जा रहा है... डेढ़ साल पहले... कलकत्ता में इस मूठ की नीलामी हुई थी... पर शायद यह किसी राजस्थानी व्यापारी ने खरीदा था...
डैनी - वेरी गुड... अगर नीलामी के बारे में जानकारी है... तो इसकी बारे में... और भी जानकारी होगी... वह बोलो...
विश्व - यह तलवार की मूठ... ईस्ट इंडिया कंपनी के कैप्टन जॉन फर्गुशन की है... उन्होंने खुर्दा जीतने बाद... खुशी से यह तलवार तोड़ी थी... तलवार का वह टूटा हुआ टुकड़े का अभी तक पता नहीं है... इसलिए सिर्फ यह मूठ बाकी है...
डैनी - शाबाश.. बहुत कुछ जानते हो... पर इस टुटे हुए तलवार पर एक मिथक... या मिथ... या किवदंती भी है... जानते हो...
विश्व - नहीं...
डैनी - सन 1803 में ओड़िशा का सबसे ताकतवर राज्य.. खुर्दा के पतन के बाद... एक नए राजशाही को अंग्रेजों ने मान्यता दी थी... वह राज्य था... यश वर्धन पुर... बाद में आगे चलकर यशपुर कहलाया...
विश्व - अच्छा... तो वह मिथक... यशपुर से जुड़ा हुआ है...
डैनी - हाँ... खुर्दा के पतन के बाद जॉन फर्ग्यूसन ने... यश वर्धन से वफादारी के लिए राज शाही के साथ साथ कुछ और भी मांगने के लिए कहा था... यश वर्धन था बहुत चालाक... किसीके आगे कभी झुका नहीं था... आगे चलकर कहीं अंग्रेजों के सामने उसे झुकना ना पड़े... इसलिए फर्ग्यूसन की तलवार मांग ली... एक विजयी योद्धा से तलवार माँगना मतलब... उससे उसका समर्पण माँगना... अपने बड़बोले पन में फर्ग्यूसन ने मांगने के लिए कहा था... यश ने जो मांगा था वह उसके लिए एक अपमान था... उसने तलवार तो दी... मगर उसकी मूठ निकाल कर... जिससे उसने अपनी इज़्ज़त बचा ली... और तलवार को प्रतीक के रूप में.... यश वर्धन पुर और क्षेत्रपाल राजशाही को मान्यता दी...
विश्व - यह तो फैक्ट है... मिथक कहाँ है...
डैनी - मिथक यह है कि... वह जो वगैर मूठ वाली नंगी तलवार है... वह जब अपनी मूठ से जुड़ जाएगा... क्षेत्रपाल की राजशाही खत्म हो जाएगी....
विश्व - क्या...
डैनी - हाँ... वैसे यह एक मिथक है... पर इसी डर से... इन्वीटेशन के बावजुद... इतनी अहम नीलामी में... क्षेत्रपाल के परिवार में कोई नहीं गया था...
विश्व - (चुप रहता है)
डैनी - क्या सोचने लगे...
विश्व - मुझे करना क्या होगा...
डैनी - क्षेत्रपाल का अहं... बेवजह नहीं है... वह अहं उसका आत्मविश्वास भी है... इसलिए यूँ मान के चलो... उस तलवार को पुरा एक करना भी.... तुम्हारा एक मिशन होगा.... यानी तलवार से मूठ अलग हुआ तो राजशाही मिली... जब मूठ वापस जुड़ जाएगा... तब राजशाही खतम भी हो जाएगी...
तापस - क्या तुम उसमें विश्व की मदत करोगे...
डैनी - मदत... जी नहीं... बिल्कुल नहीं...
तापस - क्यूँ... क्यूँ नहीं...
डैनी - मैं फ़िलहाल... दर्शक की भूमिका में हूँ... थर्ड अंपायर का दायित्व तो आप और मैडम निभा रहे हैं... खेलना... खिलाड़ी का काम है... मैने अपने खिलाड़ी को... ऑल द बेस्ट कह दिया है...
विश्व - डैनी भाई... क्या हम कभी मिल पाएंगे...
डैनी - हम मिलेंगे... और जरूर मिलेंगे... फ़िलहाल मेरा बेस्ट ऑफ लक विश.... तुम्हारे आने वाले दिन के लिए...
विश्व - थैंक्यू डैनी भाई...
डैनी - ओवर एन आउट...

डैनी का फोन कट जाता है l

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ESS ऑफिस

लंच ब्रेक था, इसलिए अनु नीचे कैन्टीन में थी l लंच खतम कर जब वह जाने को हुई तभी उसे मालुम हुआ कि वीर आ गया है और खुद को अपने कैबिन में बंद कर लिया है l यह सुनते ही वह उपर ऑफिस में जाने को हुई तो एक स्टाफ उसे रोकता है

स्टाफ - रुको... अभी ऊपर मत जाओ...
अनु - क्यूँ...
स्टाफ - राज कुमार जी ने... किसीको भी ऊपर ऑफिस जाने से मना किया है...
अनु - (ऊपर की ओर देखती है) (तभी ऊपर कुछ टूटने की आवाज आती है) वह.. वह क्या कर रहे हैं....
स्टाफ - पता नहीं जब से आए हैं... गुस्से में हैं... (फिर कुछ फेंके जाने की आवाज आती है) चीजें उठा उठा कर... फेंक कर... या तोड़ कर... अपना गुस्सा ठंडा कर रहे हैं...
अनु - हे भगवान... तब तो मुझे जाना चाहिए...
स्टाफ - ऐ लड़की... ऊपर जाएगी... तो अपनी नौकरी गवां बैठेगी...
अनु - वह मालिक हैं... उनकी मर्जी... पर अगर उन्हें ऐसे छोड़ दिया... तो वह खुद को घायल कर बैठेंगे.... (अनु ऊपर जाने लगती है) (कुछ लोग उसे रोकना चाहते हैं)
स्टाफ - जाने दो इसे... राजकुमार जी के सामने भली बनने की ऐक्टिंग करेगी... हूँह्ह्... राजकुमार जी को जानती कहाँ है... जाने दो उसे...

सब लोग साइड हो जाते हैं l अनु सीढियों से ऊपर वीर के कैबिन के पास पहुँचती है l तभी कैबिन के अंदर कुछ काँच के सामान टूटने की आवाज आती है l अनु दरवाज़ा खटखटाती है l पर अंदर से कोई आवाज नहीं आती l तभी दरवाजे के नीचे की गैप से कुछ कांच के टुकड़े छिटक के बाहर आते हैं l अनु अपनी हैंडबैग से एक्स्ट्रा चाबी निकालती है और धीरे से दरवाजा खोल कर अंदर झाँकती है l अंदर वीर गहरी गहरी सांसे लेते हुए अपनी जबड़े भींचे हुए दोनों हाथों को टेबल पर मार रहा है l दरवाजा खोल कर अंदर दरवाज़े के पास खड़ी हो जाती है l

वीर - (चिल्लाते हुए) कहा था ना... कोई नहीं आए यहाँ पर... क्यूँ आई हो... बंद करो दरवाजा...

अनु दरवाजे को अंदर से बंद कर देती है l वीर एक कुर्सी को उठा कर टेबल पर पटकने लगता है l वह कुर्सी टुट जाती है l अनु उसे देखती I वीर कमरे को तहस नहस कर चुका है l वीर अपना सिर घुमाता है उसे कमरे में फाइलों से भरी, कमर की हाइट की एक कबोर्ड दिखती है l वह उसके पास जाता है l उस कबोर्ड के ऊपर कुछ ट्रफीयाँ थी उन्हें उठा कर फेंक देता है l फिर उस कबोर्ड पर चिल्ला चिल्ला कर घुसा मारने लगता है l अनु से रहा नहीं जाता वह भागते हुए वीर के पीछे से कस के गले लग जाती है l वीर जो इतना वायलेंट था कुछ देर पहले वह अचानक से रुक जाता है l वीर उस कबोर्ड पर दोनों हाथ रख कर शांत हो कर अपनी आँखे मूँद लेता है अनु वीर को वैसे ही कसके पकड़े रखती है l वीर की सांसे अब धीरे धीरे नॉर्मल होने लगती है l उसे महसुस होता है अनु उसे कस कर पकड़ी हुई है l वह तुरंत अनु की हाथों को खुद से अलग करता है और अनु की तरफ पीछे मुड़ जाता है l आँखों में आंसू लिए अंगारों की तरह जल रही आँखों से अनु की तरफ देखता है I अनु वीर के आँखों में बेइन्तेहा दर्द देखती है l वीर रोया तो नहीं पर टुटसा गया था l वह अनु को, अपने सीने से लगा लेता है l अनु भी उसे अपने से कस के भींच लेती है l इसी तरह कुछ वक़्त वह दोनों एक दुसरे के बाहों में गुजार देते हैं l अनु खुदको अलग करने की कोशिश करती है पर वीर उसे अपने से अलग होने नहीं देता l तो अनु उसे फिर से गले लगा लेती है l

अनु - राजकुमार जी...
वीर - हूँम्म्म्...
अनु - आप आज इस कदर.... क्यूँ टुट गए...
वीर - (चुप रहता है)
अनु - क्या मैं इस काबिल भी नहीं... की आपके दर्द बांट सकूँ...
वीर - (भर्रायी हुई आवाज में) मैं तुम्हारे जैसा नहीं हूँ अनु... सच कहूँ तो.. मैं किसी के भी लायक नहीं हूँ...

अनु अब वीर से अलग होती है और वीर की हाथ को पकड़ कर अपने साथ लेकर एक सोफ़े पर बिठा देती है l

अनु - अब बताइए... हो सकता है... मैं कुछ मदत कर पाऊँ...

वीर अनु के आँखों में देखता है और फिर उसके चेहरे की मासूमियत में हैरानी भरे नजरों देखते हुए खो सा जाता है l

अनु - (वीर के हाथ पर हाथ रख कर हिलाते हुए) राजकुमार जी...
वीर - हँ... हाँ... हाँ अनु...
अनु - अब जो बोझ बनकर आपके दिल में है... उसे मेरे सामने उतार दीजिए... मैं समझ सकती हूँ... कोई गहरी बात है... पर प्लीज... आप ऐसे तो ना टुट जाइए...
वीर - (अपने दोनों हाथों में अनु के हाथों को लेकर) अनु... मैंने कहा था ना... आज मेरी बहन... राजकुमारी रुप की जन्मदिन है...
अनु - हाँ...
वीर - मैं... मैं तुम्हारी बात मान कर... उसे बधाई देने कॉलेज गया था...

एक फ्लैशबैक....

रॉकी प्रिन्सिपल ऑफिस से बाहर निकल कर उस कॉरीडोर के सामने अपनी आँखे बंद कर दोनों बाहें फैला कर खड़ा हो जाता है l उधर रॉकी टेबल से तोड़े काठ का टुकड़ा लिए भागता हुआ रॉकी के तरफ जा रहा है l इतने में रुप और उसके सारे दोस्त कैन्टीन से बाहर आकर रॉकी के तरफ देखते हैं l रुप का चेहरा गुस्से से लाल हो चुका है l वह गुस्से भरी नजर से रॉकी की ओर देखती है l इतने में रुप अपने कंधे पर बनानी की हाथ को महसूस करती है l जैसे जैसे उस तरफ से वीर बढ़ता जा रहा था बनानी की हाथ का दबाव रुप के कंधे पर बढ़ती ही जा रही थी और आँखों में खौफ के साथ साथ आँसू भी बहने लगे थे l रुप देखती है वीर रॉकी के पास पहुँचने वाला है फिर एक नजर वह बनानी को देखती है, फिर वह भी रॉकी के तरफ भागती है l वीर काठ को हाथ में लिए रॉकी के तरफ भागते हुए एक कुदी लगाता है l रुप भी तेजी से भागते हुए जाती है पर थोड़ी देर हो जाती है रॉकी के सिर वीर का काठ लग जाती है l रॉकी का सिर फट जाता है और वह नीचे बेहोश गिर जाता है l वीर अपना काठ उठा कर मारने वाला होता कि रुप उसे पीछे से पकड़ कर खिंच देती है l वीर गुस्से से अपना काठ को मारने के लिए उठाता है उसके सामने रुप खड़ी हो जाती है l

वीर - (चिल्ला कर) आप हटीये राजकुमारी...
रुप - क्यूँ.. क्यूँ हट जाएं...
वीर - यह कुत्ता है... अपनी औकात भूल गया था... इसलिए इसे जीने का हक नहीं है...
रुप - क्या किया है आखिर इसने...
वीर - इसने हम से.... हम से रिस्ता जोड़ने की कोशिश की है...
रुप - तो कौनसा गुनाह हो गया उससे... खुदको भाई ही तो कहा है... हमारा... कौनसा रुसवा या जलील कर दिया हमें...
वीर - (अपने चारो तरफ देखता है, सब उन दोनों को ही देख रहे हैं) (थोड़ा शांत होते हुए) उसने... क्षेत्रपाल परिवार की लड़की से जुड़ने की कोशिश की है...
रुप - हाँ तो किस रिश्ते से... खुद को ज़माने के आगे हमारा भाई कहा है... क्या भाई बहन का रिश्ता भी... इतना बड़ा गुनाह हो गया है...
वीर - आप... आप इसकी तरफदारी क्यूँ कर रहे हैं...
रुप - इसलिए... (पॉज लेकर) की वह मेरा भाई लगता है...
वीर - (अपने हाथ से काठ को फेंकते हुए) तो हम कौन हैं...
रुप - आप राजकुमार वीर सिंह क्षेत्रपाल हैं... आपको हम से और हमें आपसे यह क्षेत्रपाल जोड़ता है... यही वजह है कि आप राजकुमार हैं... और हम राजकुमारी...
वीर - इनॉफ... हम भाई हैं आपके...
रुप - कब से... (यही लफ्ज़ गूंजने लगती है)
वीर - (चुप हो जाता है)
रुप - कब से... हम राजकुमारी हैं... आप राजकुमार... इसके आगे ना हमारा कोई रिश्ता है.. ना ही कोई पहचान... आज पहली बार... कोई ना खून से ना खानदान से हमसे भाई बनकर जुड़ रहा था... वह भी आपसे नहीं देखा गया...
वीर - (चीखते हुए) राजकुमारी.... (हाथ उठ जाता है मगर हवा में रुक जाता है) (वीर देखता है रुप एक पल के लिए अपनी आँखे तो मूँद लेती है पर वहाँ से हटती नहीं)
रुप - (वीर के आँखों में आँखे डालते हुए) हाथ उठाने से पहले इतना तो बता दीजिए... यह उठने वाला हाथ किसका है... राजकुमार वीर सिंह के... या मेरे भाई के...

फ्लैशबैक खतम

अनु ख़ामोशी के साथ वीर को सुने जा रही थी l वीर अपनी बात खतम करता से है l

वीर - अनु.... राजकुमारी जी... मेरी बहन हैं... वह मुझसे ऐसे बात की... वह भी एक नामुराद के लिए...
अनु - (थोड़ी देर के लिए चुप हो जाती है) (फिर एक गहरी सांस लेते हुए) एक बात कहूँ... अगर... आप बुरा ना मानें तो...
वीर - हाँ पूछो...
अनु - उस वक़्त... राजकुमारी जी के लिए भाई कौन था...
वीर - क्य... क्या मतलब है आपका...
अनु - आप अभी भी... राजकुमारी कह रहे हैं... बहन बाद में बोल रहे हैं... आपके लिए मुख्य क्या है... खुनी रिश्ता या खानदानी पहचान...
वीर - (चुप हो जाता है, और अनु के चेहरे को घूर कर देखने लगता है)
अनु - मैं... आपके और राजकुमारी जी के बीच की कशमकश को समझ पा रही हूँ... पर पता नहीं आपको समझा पाऊँगी या नहीं... फिर भी... आपका खुनी संबंध असली है... पर खानदानी पहचान के नीचे घुट गया है... और उस लड़के का राजकुमारी जी से संबंध भले ही नकली है... पर वह भाई की पहचान के साथ सामने आया... भगवान ना करें राजकुमारी जी को... कल किसी मदत की दरकार होगी... तब आप क्या उनके... राजकुमार बुलाने की इंतजार करेंगे... या भैया बुलाने भर मदत को पहुंचेंगे...
वीर - (चुप रहता है और अपना सिर पकड़ कर अपने कुहनियों के बल घुटनों पर झुक जाता है)
अनु - लगता है... मैं कुछ ज्यादा कह गई... अपनी औकात से बाहर कह गई... (अनु जाने के लिए उठती है)
वीर - अनु... प्लीज रुक जाओ... मैं समझ गया... मैं भाई असली हूँ... पर खानदानी नकली पहचान के ओट में हूँ... वह भाई नकली था... पर उसके लिए मेरी बहन की ज़ज्बात असली थे... मैं कहाँ गलत हूँ जान गया हूँ... मुझे सुधारने का रास्ता भी तुम बताओ... प्लीज अनु.. प्लीज...
अनु - (वीर को गौर से देखती है, वीर जैसे अपने अंदर की दुख की सैलाब को जबरदस्ती रोके रखा है) राजकुमार जी... आप रो रहे हैं...
वीर - नहीं.. मैं रो नहीं रहा हूँ...(जबड़े भींच कर) क्षेत्रपाल कभी रो नहीं सकते...
अनु - राजकुमार जी... आपके जज़्बातों को... दिल के सुकून को... आपके इसी अहम ने... भरम ने.. अंधेरे में अबतक आपको भटका रहा है... मेरी बात मानिए... बस एक बार... जी भर के रो लीजिए... सब साफ हो जाएगा... अंधेरा छट जाएगा... आपको अच्छा लगेगा... आपको नई ऊर्जा मिलेगी... आप को नई राह मिलेगी...
वीर - (उठ खड़ा होता है) यह.. यह रोना धोना सब औरतों का काम है... हम मर्द हैं... वह भी क्षेत्रपाल...

अनु उठ कर जाने लगती है l वीर उसका हाथ पकड़ लेता है, अनु मुड़ कर उसे देखती है तो वीर उसे अपने गले से लगा लेता है और अनु के कंधे पर फफक फफक कर रोने लगता है l उसे रोता हुआ पा कर अनु भी उसे गले लगा लेती है l वीर धीरे धीरे टूटते टूटते रोने लगता है l अनु उसे अपने से अलग करती है और सोफ़े पर बैठ कर वीर को अपने पास बिठाती है और वीर के सिर को अपने गोद में रख देती है l वीर अपनी आँखे बंद कर लेता है और रोते रोते उसके गोद में हो सो जाता है


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हस्पताल के बेड पर लेटा रॉकी धीरे धीरे अपनी आँखे खोलता है I दर्द के मारे कराहने लगता है l वह याद करने की कोशिश करता है आखिर क्या हुआ l उसे याद आता है वीर के हाथ में एक काठ का टुकड़ा था जिसे लेकर वह रॉकी को मारने के लिए कुदी लगाया था l उसके बाद वह डर के मारे आँखे बंद कर लिया था l अब उसकी आँखे खुली तो हस्पताल के बेड पर पड़ा है l हाथ में सलाइन लगा हुआ है l अपने बाएं हाथ को सिर पर लगाते ही उसे मालुम होता है कि उसके सिर पर चोट लगी है l

रॉकी - आह...
सुमित्रा - कैसा है... दर्द कम हुआ...
रॉकी - मम्मी... तुम... मैं... यहाँ... कब आया...
सुमित्रा - तुझे याद भी है... तुने कांड कौनसा किया...
रॉकी - (अपना सिर झुका लेता है)
सुमित्रा - हूँह्ह... कांड ऐसा किया... के अपनी माँ के सामने सिर झुकाना पड़ रहा है...
रॉकी - मम्मी... मैंने क्या गलत किया...
सुमित्रा - ओ... अच्छा... तो बता जरा... सही क्या किया तुने...
रॉकी - (कुछ नहीं कह पाता)
सुमित्रा - तुने... पहले अपने बदले के लिए... रुप नंदिनी से प्यार का नाटक किया... दाल नहीं गली... तो बहन बना कर चाल चलने लगा... फिर भी... नंदिनी ने बड़ा दिल दिखाया... तेरी जान के लिए... अपने भाई से भीड़ गई...
रॉकी - (खुश होते हुए) सच...
सुमित्रा - खुश क्यूँ हो रहा है... तुझे अपने भाई से बचाया इसलिए...
रॉकी - हूँह्ह...
सुमित्रा - बचपन से ही... तु उतावला था... जल्दबाजी रहती थी तेरी हर बात में... हर काम में.. पर... एक लड़की के बारे में... तुने ऐसा कैसे सोच लिया... ऐसा कैसे कर गया...
रॉकी - मम्मी... इतना सब कुछ... तुम्हें किसने बताया...
सुमित्रा - रवि और दीप्ति ने...
रॉकी - (फिर अपना सिर झुका लेता है) मम्मी आपको क्यूँ लगा... नंदिनी ने मुझे बचाया... इस बात पर खुश ना होऊँ...
सुमित्रा - इसकी भी वजह... दीप्ति ने बताया मुझे...
रॉकी - मम्मी... तुमने सही कहा... मैं उतावले पन में... जल्दबाजी में.. बहुत कुछ गलत कर गया... मैं सबकुछ हार चुका था... अपने दोस्त... नंदिनी का विश्वास और खुद को भी... मैं.. दुबारा वह सब कुछ हासिल करना चाहता था... इसलिए ऐसा किया...
सुमित्रा - एक लड़की का नाम सरेआम लेता है... एक जबरदस्ती का रिश्ता... उसपर थोपता है... और यह उम्मीद करता है... की वह भागते हुए आए... और तुझे... सरेआम गले लगा ले...
रॉकी - (अपना सिर फिर से झुका लेता है)
सुमित्रा - भाई बहन के रिश्ते को... दुहाई दे कर... एक लड़की का मज़ाक बना बना दिया तुने... जाहिर सी बात है... उसका भाई तुझ पर टुट पड़ा... हाँ अगर रुप नंदिनी बीच में ना आती... तो.... (बात को पूरी नहीं कर पाती)
रॉकी - नंदिनी ने... अपने भाई से मुझे बचाया... मतलब... उसे मेरी इस हरकत से भले ही ठेस लगा हो... पर उतना बुरा नहीं लगा होगा...
सुमित्रा - अभी भी... अपनी हरकत को जायज ठहराने की कोशिश कर रहा है... वह...वह क्या नाम बताया दीप्ति ने....ह्म्म्म्म.. हाँ बनानी... बनानी के लिए... अपने भाई से बचाया... नंदिनी ने...
रॉकी - (दबी जुबान से) मैं... मैं ने जो भी किया... क्या... कोई ऐसा कर पाएगा...
सुमित्रा - नहीं... नहीं कर पाएगा शायद... पर असलियत वह नहीं है... जो तु कह रहा है... या समझाना चाह रहा है... असलियत यह है कि... तु नंदिनी से बदला लेना चाहता था... उसने तुझे बुजदिल और कायर कहा था... उसने जिस तरह से तेरी करनी को तेरे सामने फोड़ा था... उससे तेरे अंदर की मर्दाना गुरुर को ठेस पहुंचा था... इसलिए तुने यह हरकत की थी... खुद को मर्द साबित करने के लिए और खुद को बहादुर साबित करने के लिए...
रॉकी - आ.. आप.. आपको... यह सब कैसे मालुम...
सुमित्रा - लगता है.. तेरे सिर पर चोट गहरा लगा है... बताया तो था... दीप्ति और रवि ने मुझे सबकुछ बता दिया...
रॉकी - ड... डैड...
सुमित्रा - नहीं आए हैं... कल तेरी टीसी लेने के बाद... तुझसे मिलने आयेंगे...
रॉकी - (शर्म और दुख से अपना सर फिर नीचे कर लेता है) स... सॉरी मम्मी...
सुमित्रा - (और कुछ नहीं कहती है)

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वीर मध्यम गति से गाड़ी चला रहा है l बगल में अनु बैठी हुई है l वीर बहुत तरोताजा लग रहा था l एक अंदरुनी खुशी उसके चेहरे पर दमक रही थी l अनु उसे तिरछी नजरों से बीच बीच में देख रही थी l वीर की ख़ुशनुमा चेहरा देख कर उसे बहुत अच्छा लग रहा था l अनु आज की बातों को याद करने लगती है l कैसे एक मासूम बच्चे की तरह, अनु के गले से लग कर रोया, और उसके गोद में सिर रख कर सो गया l यह याद आते ही अनु के गाल शर्म से लाल हो जाते हैं l अनु को वह लम्हा याद आने लगता है जब सोया हुआ वीर उसके गोद से अचानक उठ कर बैठ गया

वीर - अनु... मैं.. तु.. तुम्हारी गोद में सिर रख कर सोया हुआ था...
अनु - (झिझकते हुए अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
वीर - (दिवार पर लगी घड़ी को देख कर) ओह माय गॉड... शाम के छह बज रहे हैं... और तुम अभी तक यहीं हो... मु.. मुझे जगाया क्यूँ नहीं....
अनु - (कुछ कह नहीं पाती) (इधर उधर देखने लगती है)
वीर - क्यूँ अनु...
अनु - (झिझकते हुए) क्या बताऊँ... आप... आप.. टुटे हुए लग रहे थे... थके हुए लग रहे थे... ऐसा लगा... जैसे दर्द के मारे छटपटा रहे थे... पर आप सोये... ऐसे सोये... जैसे कई दिनों से सोये ना हों... मुझे ऐसे जकड़े सोये... जैसे कोई मासूम बच्चा.. माँ की गोद को... बस... इसीलिए.. नहीं जगाया...
वीर - (उठ कर खड़ा हो जाता है)(अनु की तरफ बिना देखे) तुमने ठीक कहा अनु... बचपन में... कभी माँ की गोद में ही ऐसी नींद आई थी... एक बार क्या वह गोद छुटा... फिर कभी वैसी नींद नहीं आई... आज जाकर वह नींद पुरी कर पाया... (अनु की तरफ मुड़ कर देख कर) थैंक्यू...
अनु - आप ही ने तो कहा था... मैं आपकी पर्सनल सेक्रेटरी कम अस्सिटेंट हूँ... मेरा सिर्फ़ काम ही है... आपका खयाल रखना...
वीर - (एक गहरी सांस लेता है) (अनु की बातों अपने अंदर एक थर्राहट महसुस करता है)(पहली बार ऐसा होता है कि वह अपनी नजरें झुका लेता है)
अनु - एक बात कहूँ...
वीर - हूँ... (अनु की ओर बिना देखे)
अनु - आज आप... अंदर ही अंदर अपनी माँ को ढूंढ रहे थे...
वीर - (हैरान हो कर अनु को देखता है)
अनु - हाँ राज कुमार जी... आपकी तड़प आजकी नहीं है... कई सालों की है... आपको आज एक कंधे की दरकार थी... सिसकने के लिए.. एक सीने की दरकार थी... लग कर रोने के लिए... और एक गोद की दरकार थी... जकड़ कर सोने के लिए...
वीर - (आँखे बड़ी हो जाती है, मुहँ खुला रह जाता है) अनु.. क्या यह तुम हो....
अनु - जी... राजकुमार जी...मैं ही हूँ... ऐसी भावनायें मैं बखूबी समझ सकती हूँ... क्यूंकि... मेरी ना तो माँ है... ना बाबा... मैं भी बहुत तड़पी हूँ... वह कंधा.. वह सीना.. वह गोदी... बहुत ढूंढी हूँ... इसलिए मैं उस दर्द को... तड़प को समझ सकी...
वीर - (अनु को ऐसे देखने लगता है जैसे वह किसी दुसरी ग्रह से आई हो) (मुश्किल से अपना थूक निगलता है) (वह झट से अपना चेहरा घुमा लेता है)
अनु - आपके सारे दर्द गायब हो जाएंगे...
वीर - (फिर मुड़ कर अनु को देखता है) कैसे...
अनु - एक बार... बस एक बार अपनी माँ से बात लीजिए... (वीर फिर से अनु की तरफ पीठ कर लेता है) कब तक... ऐसे मुहँ फेरे रहेंगे... आपकी दर्द की दवा... आपके अपनों के पास है... बात तो कीजिए... पर राजकुमार बन कर नहीं... एक माँ के बेटे बन कर...
वीर - नहीं...
अनु - (चुप हो जाती है) (वह वहाँ से जाने लगती है)
वीर - अनु प्लीज...
अनु - माफ लीजिए राजकुमार जी... आप मालिक हैं... मैं मुलाजिम... शायद मैं कुछ ज्यादा ही बोल गई... अपनी औकात भूल गई...
वीर - नहीं नहीं नहीं... प्लीज... तुम गलत नहीं हो... पर... सच यह है कि... मैं... मेरी हिम्मत नहीं हो रही है...
अनु - (वीर के पास आकर, वीर के हाथ पर हाथ रख कर) एक बार कोशिश तो कीजिए...

वीर कांपते हाथों से फोन निकालता है पर नंबर डायल कर नहीं पाता l अनु वीर को आँखों से दिलासा देते हुए डायल करने के लिए कहती है l वीर एक नंबर डायल करता है

-हैलो (राजगड़ के महल में कोई नौकर फोन उठाता है)
वीर - हम... राजकुमार बोल रहे हैं...
नौकर - जी... हुकुम राजकुमार..
वीर - छोटी रानी जी से बात करनी है... उन्हें कर्डलेस दो....
नौकर - जी हुकुम... (नौकर भागते हुए सुषमा को कर्डलेस देता है) (अपना सिर झुकाए) छोटी रानी... राजकुमार...
सुषमा - (कर्डलेस को हाथ में लेकर) हैलो...
वीर - (यह सुन कर आँखे छलक पड़ती हैं) (वह अनु की ओर देखता है) (अनु उसे इशारे से बात करने को कहती है) हे.. हैलो...
सुषमा - कहिए राजकुमार... फोन क्यूँ किया...
वीर - वह... मैं.. (आवाज़ भर्रा जाती है) म.. मैं...
सुषमा - (हैरान हो कर) राज कुमार... क.. क्या हुआ...
वीर - (अनु इशारे से माँ कहने के लिए कहती है) (वीर अनु की तरफ देख कर) माँ...
सुषमा - (आँखे बड़ी हो जाती है) क... क्या कहा...
वीर - माँ...
सुषमा - क्या बात है.. र.. राज.. कुमार...
वीर - राजकुमार नहीं माँ... वीर... वीर कहो ना माँ...
सुषमा - क... क्या हुआ है आपको...
वीर - आप नहीं... तुम.. या.. तु... आप नहीं...
सुषमा - (नौकर को इशारे से, बाहर जाने के लिए कहती है, नौकर के जाने के बाद) क्या कहा तुमने...
वीर - हाँ माँ... यह ठीक है... यह नकली पहचान के नीचे... रिश्तों को और कुचल नहीं सकता... आज मुझे रानी माँ की नहीं... माँ की दरकार थी...
सुषमा - (सूबकते हुए) क्या... इसलिए तुझे... आज माँ की याद आई...
वीर - देखा... देखा माँ देखा... हम अभी कितने करीब हो गए... यह राजसी पहचान को ढोते ढोते... हम रिश्तों के मामले में कितना गरीब... और कितने दूर हो गए थे... मैंने आज माँ कहा.... तो तुमने तु कह दिया...
सुषमा - (थर्राती हुई आवाज में) हाँ मेरे लाल... हाँ..
वीर - बस माँ... अब मैं फोन रखता हूँ...
सुषमा - क्यूँ... मन भर गया तेरा...
वीर - नहीं माँ... आज एक दिन में इतनी खुशियाँ... मुझसे संभले नहीं संभलेगी माँ...
सुषमा - ठीक है बेटा... क्या कल भी फोन करेगा...
वीर - हाँ माँ हाँ... अब तो तुमसे बात किए मेरा दिन पूरा ना होगा... अच्छा अब रखता हूँ...
सुषमा - ठीक है बेटा... बाय..
वीर - बाय माँ... (कह कर फोन काट देता है और खुशी से अनु के हाथ पकड़ कर कूदने लगता है)

उसकी खुशी देख कर अनु भी खुशी के मारे हँसने लगती है l वीर अचानक कूदना बंद कर अनु को देखता है और आगे बढ़ कर अनु को गले लगा लेता है l वीर का चेहरा अनु के कंधे पर होती है

वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - आज... मैं तुमसे एक वादा माँगना चाहता हूँ...
अनु - कैसा वादा...
वीर - जिस तरह आज तुमने मुझे अपने गले से लगा कर... टूटने से.. बिखरने से... बचाया...
अनु - जी...
वीर - फ़िर कभी ग़मों में टूटने लगूँ... या कभी ज्यादा खुशी में बहक ने लगूँ... तब मुझे गले से लगा लेना... प्लीज...
अनु - (वीर से अलग हो जाती है, वीर का चेहरा उतर जाता है) क्या... यह एक मालिक का... अपने मुलाजिम को दिया हुकुम है...
वीर - (अपना सिर ना में हिलाते हुए) नहीं... अनु नहीं... आज... एक दोस्त अपने दोस्त से ईलतजा कर रहा है...
अनु - (चेहरे पर हल्का सा शर्म और मुस्कान लेते हुए) जी... ठीक है...
वीर - (चेहरे पर रौनक लौट आती है) सच...
अनु - (थोड़ा शर्माते हुए) जी...
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - अब मैं बहुत खुस हूँ...
अनु - (कुछ नहीं कहती है शर्मा के चेहरा झुका लेती है)
वीर - अनु... अब मैं बहुत खुश हूँ...
अनु - (सिर उठा कर वीर की तरफ देखती है) (वीर दोनों बाहें फैलाए खड़ा है)

कार के हॉर्न से अनु अपनी वास्तव में आती है l वीर उसके गली के बाहर गाड़ी रोक देता है l अनु शर्माते हुए गाड़ी से उतर जाती है l और अपने गली की ओर बढ़ने लगती है l

वीर - अनु... (अनु पीछे मुड़ती है) क्या यार... कम से कम बाय तो कहो...
अनु - जी... बाय...
वीर - बाय... और हाँ... सोने से पहले... मेरी खैरियत पूछना जरूर...
अनु - (शर्म और खुशी से दोहरी हो जाती है) (सिर को हाँ में हिलाते हुए) जी... (कह कर गली की ओर भाग जाती है)

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बादामबाड़ी बस स्टैंड कटक l

तापस और विश्व सीलु एंड ग्रुप को बस में बिठाने के बाद बाहर चलते हुए निकलते हैं l

विश्व - डैड... हम कार में भी तो आ सकते थे...
तापस - चलाता कौन.. मैं...
विश्व - हम छह जन थे... जाहिर है... माँ तो आ नहीं सकती थी...
तापस - हाँ... और नाइट ड्राइविंग... मुझे अच्छी नहीं लगती... और किस्मत से हम छह थे... इसलिए ऑटो में तीन तीन हो कर आ पाए... वरना तुम्हारी माँ को पता चल गया होता...
विश्व - माँ से यह बात छुपाना जरूरी था क्या...
तापस - उसका दिल एक माँ की है... बच्चों को खतरों से हमेशा दूर रखना चाहेगी ही...
विश्व - पर यह सब करना जरूरी था क्या...
तापस - कितना जरूरी था... यह तु भी समझ पा रहा होगा... आगे चलकर कितना काम आएगा...
विश्व - पर यह सब आपने सोचा कब...
तापस - जब तु इन चारों को सरकारी गवाह बनाने के लिए... अपनी माँ से बात कर रहा था... मेरे सामने वह भी... मेरे ही फोन पर...
विश्व - (हँसता है) डैड... एक बात कहूँ...
तापस - हाँ बोल...
विश्व - आप ना... माँ से पहले ही... मुझे जानते हो... माँ से पहले ही... मुझे पसंद और प्यार करने लगे थे... तो मुझे गले लगाने में... माँ से भी देरी आपने क्यूँ की...
तापस - ऑए... ज्यादा... फिलॉसफर बनने की कोशिश मत कर...
विश्व - (छेड़ते हुए) क्या डैड... मैंने महसूस किया है... आप मुझे पसंद बहुत करते थे... बाद में प्यार भी बहुत करने लगे...
तापस - (घूरते हुए) तु क्या मुझे आज छेड़ने के मूड में है...
विश्व - बिल्कुल नहीं... मुझसे जुड़े हर ज़ज्बात में... जब माँ से पहले आप थे... तो इजहार करने में... माँ पहले आप बाद में... ऐसा क्यूँ...
तापस - देख मेरे सामने बच्चा है तु... समझा... ज़्यादा स्मार्ट मत बन... तुझसे तेरी माँ बहुत प्यार करती है... इसीलिए मैं...
विश्व - हाँ... मैं...
तापस - बंद करेगा अपना यह डब डब...
विश्व - ठीक है... डैड... पर एक बात कहूँ...
तापस - हाँ.. बोल..
विश्व - माँ मुझ पर प्यार बहुत लुटाती है... पर वह आज की सोचती है... कल की बिल्कुल नहीं... पर आप... मेरे जंग की मैदान को... पूरी तरह से तैयार कर रखा है... बल्कि यूँ कहूँ... आपने अपनी चालें तैयार कर रखा है.... क्यूंकि आपको शायद मालुम है... कौन.. कब... कौनसा चाल चलने वाला है....
तापस - (चलते चलते एक रोड साइड बेंच पर बैठ जाता है और विश्व को पास बुला कर बैठने को कहता है)
विश्व - (तापस के पास बैठते हुए) यह सारी बातें... आपने माँ को भी नहीं बताया है...

तभी एक छोटा सा कुत्ते का पिल्ला तापस के पैर के पास आकर घिसने लगता है l तापस उस पिल्ले को उठा कर

तापस - इस कुत्ते के पिल्ले को देखो... एक लावारिश... अपने जिंदगी में जो वैक्यूम है... उसे पुरा करने के लिए... यह मेरे पैरों के पास अपना किस्मत आजमा रहा है...
विश्व - वैक्यूम...
तापस - हाँ... वैक्यूम... हमारे जिंदगी में प्रत्युष और प्रताप नाम का जो वैकुम था... वह तुमसे पुरा हो रहा था... हम लावारिश थे... अब तुम हमारे वारिश हो... हम एक-दूसरे से निभा पा रहे हैं... क्यूंकि हमारा वैक्यूम जज्बाती रूप से फुल हो गया है....
विश्व - डैड.. कुछ ढंग का एक्जाम्पल देते... इस कुत्ते के पिल्ले को बीच में लाने की क्या जरूरत थी... मुझे बस इतना पता है... आप मुझसे बहुत प्यार करते हो... पर जताने में देर कर दी... समझाया कुछ नहीं... उल्टा कुत्ते का अपमान कर दिया... माँ को पता लगेगा तो कितना बुरा लगेगा....
तापस - (मुस्कराता है) बात टालने के लिए मेरे पास कुछ था जो नहीं...
विश्व - मैं जानता हूँ डैड... मैं बस छेड़ रहा था...
तापस - तुझे क्या लगा... मैं भी लपेट रहा था... समझा... बाप... हमेशा बाप ही रहता है...

तापस उठ कर फिर चलने लगता है l कुछ दूर जा कर एक ऑटो को रोकता है l विश्व भी ऑटो के पास पहुँचता है

तापस - अब तुम ड्राइविंग स्कुल जॉइन कर लो... सात दिनों बाद गाड़ी चलाना और अपनी माँ को सर्विस देना...

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द हैल
ड्रॉइंग रुम में गहरी सोच लिए रुप और शुभ्रा बैठे हुए हैं l

शुभ्रा - सॉरी नंदिनी... आज तुम्हारा पार्टी खराब हो गया...
रुप - कोई बात नहीं भाभी... इस साल नहीं तो अगले साल...
शुभ्रा - तुमने रॉकी को बहुत सस्ते में छोड़ दिया था... वरना आज यह नौबत नहीं आई होती...
रुप - ह्म्म्म्म....
शुभ्रा - कल कॉलेज जाओगी ना...
रुप - हाँ... इसमें क्या शक़ है...
शुभ्रा - ठीक है... अब क्या करें...
रुप - मुझे क्या पता...
वीर - (हाथ में एक पैकेट लिए वहाँ पहुँच कर) वह मैं बताता हूँ...

वीर को वहाँ पर देख कर दोनों चौंक जाते हैं और एक-दूसरे की ओर देखने लगते हैं l

शुभ्रा - क्या बात है राजकुमार....
वीर - अभी बताता हूँ... (कह कर पैकेट को नीचे रख देता है और "चटाक" रुप को एक थप्पड़ मार देता है)
awesome update
 
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