नब्बेवां अपडेट
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सुबह सुबह द हैल में महांती का आगमन होता है l ड्रॉइंग रुम में आते ही देखता है घर के तीन सदस्य उसीकी राह देख रहे थे l
विक्रम - आओ महांती... बैठ जाओ... (महांती विक्रम के सामने वाले सोफ़े पर बैठ जाता है) हम... कल से परेशान हैं...
महांती - जी मैं देख पा रहा हूँ... लेकिन घबराने की कोई बात नहीं है...
रुप - कैसे नहीं है... महांती अंकल... कल वीर भैया... इतने जॉली मुड़ में घर से निकले थे... पर रात भर घर से गायब हैं... और उनका फोन स्विच ऑफ भी आ रहा है...
महांती - राजकुमारी जी... वह ठीक हैं... और अभी... राजगड़ में हैं...
तीनों चौंकते हैं और एकसाथ हैरानी भरे आवाज में - क्या...
महांती - जी...
विक्रम - वह... राजगड़ गया है... बता कर भी जा सकता था... ऐसे चला गया... वह भी बिना बताये... उपर से फोन भी स्विच ऑफ कर रखा है... (सोचते हुए) महांती... (रुक कर) कुछ... हुआ है क्या... वीर के साथ...
महांती - युवराज जी... कल हमारे एक गार्ड की माँ चल बसी... उनको देखने राजकुमार पहले हस्पताल गए थे... और उसके बाद श्मशान.... वहीँ करीब करीब शाम हो गई... (फिर महांती एक फाइल निकाल कर टेबल पर रखता है) मैंने उनकी मोबाइल पर आए कॉल्स... और लोकेशन को ट्रेस किया... उसके बाद जब खबर ली... तब जाकर मालुम पड़ा कि वह कहां कहां गए थे... और अब कहाँ हैं... मैंने राजगड़ फोन पर कंफर्म कर लिया है... वह इस वक़्त राजगड़ मैं हैं...
रुप - राजगड़... पर क्यूँ...
शुभ्रा - माँ के पास... शायद चाची माँ से मिलने गए हैं...
महांती - हाँ... युवराणी जी ठीक कह रही हैं... मुझे भी यही लगता है...
रुप - पर क्यूँ...
कुछ देर एक चुप्पी छा जाती है l सभी अपनी अपनी सोच में खोए हुए हैं l
विक्रम - महांती...
महांती - जी युवराज...
विक्रम - कल की... उसकी लोकेशंस की डिटेल्स बताओ...
महांती फाइल को अपने हाथ में लेता है और उसमें से एक काग़ज़ निकाल कर विक्रम को देता है l
महांती - कल वह घर से निकले... राज भवन मार्ग पर जो फ्लोरीस्ट की दुकान है... वहाँ पर गए थे... उसके बाद सिटी हॉस्पिटल... वहाँ पर एक डॉक्टर पर हाथ छोड़ा उन्होंने... उसके बाद श्मशान में थे... फिर उन्हें एक कॉल आया... उसके बाद राजकुमार जी ने राजगड़ कॉल करी... उस कॉल के बाद... उन्होंने फोन स्विच ऑफ कर दिया और... राजगड़ चले गए...
विक्रम काग़ज़ पर डिटेल्स देखने के बाद महांती को काग़ज़ लौटा देता है l
महांती - (अपनी जगह से उठ कर) तो अब मैं जाना चाहूँगा...
विक्रम - (उठ कर अपना हाथ बढ़ाता है) थैंक्स महांती...
महांती - इट्स ओके युवराज जी... अगर आप एक कॉल राजगड़ कर लेते तो... शायद कोई परेशानी होती ही नहीं...
विक्रम - ह्म्म्म्म... बाय द वे थैंक्स...
महांती वहाँ से चला जाता है l रुप धप करते हुए सोफ़े पर बैठ जाती है l
रुप - वीर भैया... अचानक से.. राजगड़ चले गए... क्यूँ...
विक्रम - जैसा कि... महांती ने बताया... एक गार्ड की माँ चलबसी... उसकी क्रिया कर्म खतम होने तक श्मशान में था... (चुप हो जाता है, आगे कह नहीं पाता)
शुभ्रा - शायद... उन्हें उस वक़्त... चाची माँ की बहुत याद आई होगी... कुछ अच्छा नहीँ लगा होगा... इसलिए...
सभी चुप थे l तभी रुप अपना फोन उठाती है और राजगड़ कॉल करती है l फोन लगते ही कर्डलेस को एक नौकर उठाता है l
नौकर - हैलो...
रुप - (स्पीकर पर डालते हुए) मैं राजकुमारी बोल रही हूँ... फोन जरा छोटी रानी जी को देना...
नौकर - जी हुकुम...
कह कर वह नौकर कर्डलेस को लेकर सुषमा के पास जाता है और
नौकर - हुकुम छोटी रानी... राजकुमारी जी का फोन है...
सुषमा - (फोन लेकर) हैलो...
रुप - हैलो... चाची माँ आप कैसी हो...
सुषमा - इतनी सुबह... माँ की खैरियत पूछने के लिए फोन किया.. या... बात कुछ और है...
रुप - वह चाची माँ... देखोना... वीर भैया किसीको बताये वगैर... आपके पास चले गए...
सुषमा - तो तु भी कभी कभी आजा...
रुप - माँ... जानती हो... हम लोग यहाँ कितने परेशान हैं...
सुषमा - अच्छी बात है...
रुप - क्या अच्छी बात है...
सुषमा - (हँसते हुए)एक वक़्त था.. जब उस घर में कौन कब आता था... किसीको कभी खयाल ही नहीं होता था... आज वीर एक रात के लिए यहाँ आ गया.. तो तुम लोग परेशान हो गए... क्या यह अच्छी बात नहीं... क्यूँ बहु.. ठीक कहा ना...
शुभ्रा - (चौंकते हुए) जी... (खुद को नॉर्मल करते हुए) जी... चाची माँ... पर आपको कैसे मालुम हुआ... मैं... मतलब...
सुषमा - (हँसते हुए) अब मैं जान गई हूँ... खुशियाँ हो या ग़म.. अब तुम लोग साथ ही बने रहोगे... इसीलिए तो... नंदिनी ने फोन को स्पीकर पर डाल दिया... क्यूँ.. है ना... (सभी चुप रहते हैं) खैर... आज वीर का जन्मदिन है... वह मेरे साथ यह दिन मनायेगा...
तीनों - क्या....
सुषमा - हाँ हाँ... चौंकना मत... इस परिवार में... कोई ऐसी बात याद नहीं रखते हैं...
शुभ्रा - पर चाची माँ... यह ठीक नहीं हुआ... वीर का जन्मदिन... और हम...
सुषमा - ठीक है... पांच दिन बाद मना लेना...
रुप - पांच दिन बाद...
सुषमा - हाँ.. अंगेजी कैलेंडर के हिसाब से... पाँच दिन बाद है... मैंने उसे पंचांग के अनुसार बुलाया था...
शुभ्रा और रुप - ओह...
सुषमा - ठीक है बच्चों... अब मैं फोन रखती हूँ... ठीक है...
शुभ्रा और रुप - ठीक है...
फोन काट कर सुषमा नौकर ने फोन वापस कर देती है l नौकर फोन लेकर चला जाता है l सुषमा थोड़ी देर के लिए बैठ कर कुछ सोचती है फिर वह उठ कर वीर के कमरे की ओर जाती है l वीर अपने बिस्तर पर सोया हुआ है l सुषमा वीर की चेहरे को देखती है l सुषमा को अंदर से एक सुकून सा महसुस होती है l वीर के सिरहाने बैठ कर सुषमा वीर के बालों पर हाथ फेरते हुए सहला देती है l वीर की आँख खुल जाती है l वह सुषमा को अपने सिरहाने पा कर उसके गोद में सिर रख कर अपनी आँखे बंद कर लेता है l
क्या हुआ है तुझे... (सुषमा सवाल करती है) जब से आया है.. बिखरा बिखरा सा है... अकेला... गाड़ी लेकर... इतना दूर... पहली बार... (कुछ देर चुप रह कर) कल रात को आया... कुछ बातेँ की नहीं... अगर मजबूर ना करती शायद खाता भी नहीं.... खाना खाने के बाद... आकर सो गया....
बेड पर वीर वैसे ही लेटा रहा l सिर को मोड़ कर सुषमा के गोद में मुहँ को नीचे रख देता है l सुषमा उसके बालों को सहलाते हुए
सुषमा - एक बार... यह मान भी लूँ... विक्रम थक सकता है... डर सकता है... पर मेरा वीर... वीर ऐसा नहीं है... क्या बात है मेरे बच्चे... बता मुझे...
वीर अपना सिर सुषमा के गोद से निकाल कर बेड से उतर जाता है और खिड़की के पास खड़ा हो जाता है l
सुषमा - (उसके पास आ कर, उसके पीछे खड़ी होती है) मुझसे बात करेगा... सबकुछ बतायेगा बोला... फिर... क्या हुआ... यह मुहँ छुपाने वाली हरकत क्यों कर रहा है...
वीर की पकड़ खिड़की के रेलिंग पर कस जाता है, उसके चेहरे पर दर्द दिखने लगता है l
सुषमा - मैं इतना तो समझ चुकी हूँ... तेरे मन में कोई संघर्ष चल रहा है... अब बता... तु छुप रहा है... या कुछ छिपा रहा है...
वीर - (बड़ी मुश्किल से, अपने हलक से घुटे हुए आवाज में) मैं खुद भी नहीं समझ पा रहा हूँ माँ... (पीछे मुड़ कर सुषमा की ओर देखता है) मैं छुप रहा हूँ तो किससे... और अगर छिपा रहा हूँ... तो भी क्या.... और किससे...
सुषमा देखती है वीर की आँखे लाल दिख रहा है नीचे के काले रंग साफ बता रहा है वह किस कदर रोया है l
सुषमा - अनु... (वीर की आँखे छलक जाती है) क्या उसने इंकार कर दिया...
वीर - (सिर हिला कर ना कहता है)
सुषमा - तो क्या वजह है...
वीर - माँ... कल तक मैंने जिंदगी को जैसा समझा... बिल्कुल वैसे ही जिया... क्यूंकि... (खिड़की से बाहर की तरफ देखते हुए) मैं खुद को क्षेत्रपाल समझता रहा और... खुद को... वैसा ही बनाता रहा... कभी किसी के भावना की... या किसी के ज़ज्बात की... परवाह ही नहीं की... कद्र नहीं की... मुझे सिर्फ अपने आप से मतलब था... (बोलते बोलते वीर रुक जाता है, कुछ देर की चुप्पी के बाद) आज मुझे... मेरी वज़ूद को... मेरा अतीत... मेरा पहचान... सांप बन कर डस रही है... अब ऐसा लग रहा है कि... जैसे सब कुछ... जल कर खाक होने वाला है...
सुषमा - तुने अनु को बताया...
वीर - (अपना सिर हिला कर मना करता है)
सुषमा - बेटा... (वीर के अंदर की अंतर्द्वंद को महसुस करते हुए) ऐसा तो हो ही नहीं सकता... कि क्षेत्रपाल मर्दों की करतूतों को कोई जानता ही नहीं हो... किस्से कहानियों की तरह मिथक बन कर लोगों के जुबान पर तैर रही होगी... मेरे खयाल से... वह शायद तुम्हारे बारे में... कुछ ना कुछ जानती होगी...
वीर - (गम्भीर आवाज में) हाँ... शायद जानती है...
सुषमा - तुझे कैसे पता...
वीर - एक बार उससे... मैंने ही पूछा था... उसको मुझसे डर लगता है या नहीं... उसी ने मुझे बताया था... उसकी दादी उसे.. हर कदम पर आगाह करती रहती है... मेरे बारे में... पर उसको मुझसे डर कभी नहीं लगता... (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) पर माँ... अब मुझको... मुझसे ही डर लगने लग रहा है...
सुषमा - डर... तुझे डर किस बात का है... अनु को खो देने का...
वीर - नहीं...(अपना सिर ना में हिला कर) नहीं.. अब मेरी अक्स... मुझे ही डराने लगी है... अब मैं समझ पा रहा हूँ... क्यूँ अपनी दिल की बात उसे बता नहीं पा रहा हूँ... वह बहुत ही मासूम है... पवित्र है.. और मैं उतना ही गिरा हुआ... घिनौना हूँ... उसकी मासूमियत की तेज से... मेरे अंदर की क्षेत्रपाल की आँखे चुंधीया जाती हैं... मैं... मैं उसके लायक नहीं हूँ माँ... उसकी पवित्रता... मुझे जला रही है... क्या करूँ माँ... क्या करूँ...
सुषमा - (चुप रहती है)
वीर - (सुषमा की तरफ मुड़ कर) क्या हुआ माँ... तुम चुप क्यूँ हो गई...
सुषमा - (एक दमकती मुस्कान के साथ) आज तु जिस अंतर्द्वंद की आग में जल रहा है... वही तुझे अनु के लायक बना रही है... आज जो तुझे नीचा दिखा रहा है... या एहसास दिला रहा है... वह क्षेत्रपाल है... जो तुझे जकड़ा हुआ है.. खुद को इस क्षेत्रपाल की बंधन से आजाद कर... फिर तु अनु से अपनी दिल की बात कह पाएगा... यह प्यार है... इतना आसान नहीं है... और जो आसानी से हासिल हो जाए या मिल जाए... ना तो उसकी कोई कद्र रहता है ना कोई कद्र करता है... बहुत सी रोड़े आयेंगे... तेरी तपस्या की आग... तुझे कुंदन बना देगा... तु जितना जलेगा उतना ही निखर कर आएगा...
वीर - हालात अगर वक़्त... मेरे साथ ना हो तो...
सुषमा - तो हर हालात के लिए... तु खुद को तैयार कर... आज जो मुझे एहसास हुआ है... वही तुझे बता रही हूँ... तेरी जिंदगी को... कुदरत का दिआ सबसे बड़ा तोहफा है अनु... मेरी अंतरात्मा कह रही है... उसे तेरा ही इंतजार होगा... जा उसे अपनी दिल की बात कह दे...
वीर - माँ... पता नहीं क्यूँ... उसे खोने से... मेरा मतलब है... उसे खो देने की खयाल से... डर लग रहा है... क्या... मैं उसे फोन पर पूछूं....
सुषमा - नहीं... जब भी तु उसे अपनी दिल की बात बतायेगा... उसके आँखों में आँखे डाल कर...
वीर - (झिझकते हुए) वह.. वह... शनिवार को... ड्यूटी पर आएगी माँ...
सुषमा - ह्म्म्म्म... चलो... (मुस्कराते हुए) अब सब ठीक हो गया है... क्यूँ ठीक हो गया ना...
वीर के चेहरे पर हल्का सा मुस्कान उभरता है और वह सुषमा के गले से लग जाता है l
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जीम में रोणा रोइंग कर रहा है l उसके पास जीम का इंस्ट्रक्टर खड़ा उसे देख रहा है l रोइंग खतम करने के बाद रोणा आज बिना एल्बो कल्चर के चलते हुए होटल के रेस्टोरेंट में पहुँचता है l रेस्टोरेंट में एक टेबल के पास बल्लभ सोफ़े पर बैठ कर चाय पीने के साथ साथ कोई न्यूज पेपर पढ़ रहा है l एक छोटे से टावल से पसीना पोछते हुए रोणा उसके सामने बैठ जाता है l
बल्लभ - तो... लंगड़ाना... बंद... चाल में कोई प्रॉब्लम नहीं...
रोणा - हाँ.. अब तो ठीक ही लग रहा है...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... तो आगे की क्या सोचा है...
रोणा - सोचना क्या है... मुझे बस टोनी का इंतजार है...
बल्लभ - और वह कब तक अपना दुर्लभ दर्शन देगा...
रोणा - वह जब देगा... तब देगा... तेरे साइड से क्या डिवेलप मेंट है...
बल्लभ - कैसा डेवलपमेंट...
रोणा - क्या परीडा के जरिए... हम इंटेलिजेंस की मदत लें...
बल्लभ - भूतनी के... कभी कभी तेरी अक्ल.... घास क्यूँ चरने लगती है...
रोणा - क्या मतलब... कोई ऑफिशियल नहीं... दोस्ती वगैरह के चलते...
बल्लभ - तुझे क्या लगता है... मैं इस पर सोच विचार नहीं किया था... पर प्रॉब्लम यह है कि.. कुछ राज के जितने कम राज़दार होंगे... उस राज के लिए और राजदारों के लिए उतना ही अच्छा है...
रोणा - तो फिर और कितने दिन हम यहाँ अपनी जेब ढीली करेंगे... मैं खाली बैठा हुआ हूँ... और तु भी...
बल्लभ - नहीं... मैं खाली नहीं बैठा हुआ हूँ... मैंने अपने सोर्सेज लगा दिया है...
रोणा - और उस मासी के बारे में क्या सोचा है...
बल्लभ - मिलना है... आज ही...
रोणा - ह्म्म्म्म... मतलब कुछ सोच रखा है...
बल्लभ - हाँ... उसके अपने पर्सनल ऑफिस में...
रोणा - मतलब उसके घर में...
बल्लभ - हाँ...
रोणा - कब... मेरा मतलब है कितने बजे...
बल्लभ - वह शाम सात बजे के बाद... घर पर अवेलेबल होगी...
रोणा - क्यूँ कोई जासूस छोड़ रखा है क्या...
बल्लभ - अबे वकील हूँ... इतना तो पता लगा ही सकता हूँ... और दुसरी बात... हम छुपे हुए हैं... अपनी फितरत के चलते... वह आजाद है... क्यूंकि वह हमारे बारे में और इरादों के बारे में अनजान है...
रोणा - घर पर अकेली होगी... पति भी साथ हो सकता है...
बल्लभ - अबे ओ खाकी... जरा ठंड पाल... तुझे वहाँ पर हल्क नहीं बनना है... बातेँ जितनी आराम से हो सके... वगैर हमारे इरादों को जाहिर कर के...
रोणा - तो फिर उससे पूछेंगे क्या... मैं तो कहता हूँ... उसे... (अपने आजू बाजू देखते हुए धीमी आवाज में) अपने आदमियों से... उसे किडनैप कर लेते हैं... और जो उगलवाना है.. वह उगलवा लेते हैं...
बल्लभ - भोषड़ी के... कभी कभी मुहँ से संढास करता है क्या... साले गू करना ही है तो टॉयलेट जा... मेरे समझ में नहीं आता... वाकई कभी कभी तेरे दिमाग की बत्ती जलती है... या बेवकूफी भरी बातेँ करता रहता है...
रोणा - गलत क्या कह दिया मैंने...
बल्लभ - तो सही क्या कहा हे तुने... भोषड़ी के... अभी तक वैदेही का और उस वकील प्रतिभा का... मासी और भतीजी वाला रिश्ता साबित नहीं हुआ है... पता नहीं प्रतिभा ने जो तुझसे कहा था... वह एक वकील के नाते कहा था... या सच में वैदेही से मासी भतीजी वाला रिश्ता है..
रोणा - ठीक है... चल मान लेता हूँ... मैं बेवजह शक़ करने लगता हूँ... पर सपोज... प्रतिभा का वैदेही से कोई लेना देना हुआ तो...
बल्लभ - तो वही होगा... तुने अभी जो तरीका बताया है...
रोणा - तो आज शाम को...
बल्लभ - हाँ आज शाम को... हम कटक जाएंगे...
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नाश्ता खतम होने के बाद विक्रम तैयार बैठा हुआ है और रुप का इंतजार कर रहा है l रुप भी तैयार हो कर नीचे आती है l
रुप - चले भैया...
विक्रम - हाँ चलो...
दोनों मुड़ कर बाहर की ओर जाने लगते हैं कि तभी विक्रम के कानो पर शुभ्रा की आवाज़ सुनाई देता है l
शुभ्रा - सुनिए...
विक्रम रुक जाता है l आँखों में अविश्वास के भाव से पीछे मुड़कर देखता है तो सीढ़ियों से शुभ्रा उतर कर आ रही है l वही कपड़े पहने हुई है जो कल उसने शॉपिंग मॉल से खरीदा था और गले में डायमंड की वही नेकलेस चमक रही थी जो कल खरीद कर लाया था l शुभ्रा को सीढ़ियों से उतरता देख वह सम्मोहित हो जाता है l शुभ्रा विक्रम के पास आकर खड़ी हो जाती है l
शुभ्रा - आज मैं नंदिनी को कॉलेज छोड़ने जाऊँ...
विक्रम - (सम्मोहित था, बस इतना ही कह पाया) हँ.. हाँ... हाँ.. हाँ..
नंदिनी - आओ नंदिनी...
शुभ्रा आगे बढ़ जाती है, इतना कुछ देखने के बाद रुप एकदम से शॉक में चली गई थी, शुभ्रा की बुलावे पर वह जागती है और वह भी अपनी भाभी के पीछे चल देती है l शुभ्रा गाड़ी निकालती है और उसमें रुप बैठ जाती है l शुभ्रा गाड़ी को द हैल की परिसर से निकाल कर सड़क पर दौड़ाने लगती है l गाड़ी के अंदर रुप शुभ्रा को टकटकी लगाए देखती जा रही थी l पर नंदिनी का ध्यान सड़क पर था l नंदिनी गाड़ी को एक पार्क के सामने रोकती है l गाड़ी के रुकते ही
शुभ्रा - उतरो...
रुप - क्या...
शुभ्रा - मैंने कहा उतरो...
रुप उतर जाती है, उसके उतरने के बाद शुभ्रा भी गाड़ी से उतर जाती है l शुभ्रा चलते हुए उस पार्क के चाहरदीवारी के बग़ल में एक बेंच पर बैठ जाती है l रुप को आज शुभ्रा एक के बाद एक शॉक दे रही थी l
शुभ्रा - आओ नंदिनी... बैठो... (रुप जाकर उसके पास बैठ जाती है) जानती हो... एक बार तुम... घबराई हुई थी... कन्फ्यूज थी... इसी बेंच पर बैठ कर खुद को नॉर्मल करने की कोशिश कर रही थी... फिर मुझे फोन कर यहाँ बुलाया था...
रुप - हँ... हाँ... हाँ भाभी...
शुभ्रा - (रुप की दोनों हाथों को अपने हाथ में लेकर) थैंक्यू...
रुप - की... किस... बात के लिए भाभी...
शुभ्रा - विक्रम सिंह क्षेत्रपाल... धीरे धीरे... विकी बनने की राह में चल रहे हैं... इसलिए थैंक्यू...
रुप - आप मुझे थैंक्यू कह कर... पराया कर रही हो भाभी...
शुभ्रा - नहीं नंदिनी... कल तक मेरा कोई अपना नहीं था... पराये की क्या कहूँ... तुम उस नर्क में कदम रखा... धीरे धीरे ही सही सब बदलने लगा... और बदल रहा है...
रुप - म्म्म्म... मैंने कुछ नहीं किया भाभी...
शुभ्रा - तुम एक दिन विकी के ऑफिस गई हुई थी... उस दिन के बाद... विकी बदल रहे हैं... मुझे मनाने की कोई भी मौका... नहीं चूक रहे हैं... और इन सब के पीछे तुम हो... (रुप चुप रहती है) मैं जानती हूँ... तुम और वीर... रोज छुप कर देखते हो... कैसे विकी मुझे गुलाब के फूल और चिट्ठी देते हैं... और मैं उन्हें उठाती हूँ...
रुप - (शर्मा कर इधर उधर देखने लगती है) वह भाभी.. मैं..
शुभ्रा - तुम गिल्टी फिल मत करो... एक तुम्हीं हो... जिसके वजह से... आज वीर हो या विकी... हम के वजाए मैं कह रहे हैं... अपना वह अहं को... गुरूर को... घमंड को पीछे छोड़ आए हैं...
रुप - भाभी प्लीज... मुझे कॉलेज में छोड़ दो ना..
शुभ्रा - नंदनी... आज मैं... कन्फ्यूज्ड हूँ... इसी लिए... तुम्हें लेकर यहाँ आई हूँ...
रुप - कन्फ्यूज्ड... किस बात पर कन्फ्यूजन है आपको भाभी...
रुप - विकी रोज मेरे तरफ सौ कदम आगे बढ़ रहे हैं... उनके हर प्रयास में... सच्चाई और ईमानदारी साफ दिखाई दे रही है... पर...
रुप - (सीरियस हो कर) पर क्या भाभी...
शुभ्रा - बताऊंगी नंदिनी... लेकिन पहले यह समझ लो कि आज एक भाभी अपनी ननद से नहीं... बल्कि एक सखी अपनी सहेली से पुछ रही है... और जवाब भी तुम एक सच्चे सहेली की तरह देना...
नंदिनी - जी भाभी...
शुभ्रा - यह जो कपड़े मैंने पहने हुए हैं... और यह जो डायमंड नेकलेस मेरे गले में चमक रही है... कल ही उन्होंने मुझे तोहफे में दिए थे... और उनकी ख्वाहिश थी के कल मैं यह पहन कर उनके समाने जाती... पर कल जब वीर फोन पर नहीं मिले.. तो वह शाम की ख्वाहिश अधुरी रह गई... (रुप चुप चाप सुन रही थी, एक गहरी सांस छोड़ते हुए) नंदिनी... मैं जो अपनी टुटे हुए दिल से ग़मों के बीच बर्फ की तरह जम गई थी... पिघलने लगी हूँ... शायद मैं अब ज्यादा देर खुद को रोक नहीं पाऊँ... (शुभ्रा की आवाज अब थर्राने लगती है) लग भग तीन साल हो चुके हैं... मैं उनसे खुद को दूर किए हुए हूँ... पर अब मैं कमजोर पड़ने लगी हूँ... मैं उनमें समा जाना चाहती हूँ... उनमें घुल जाना चाहती हूँ... (शुभ्रा और कुछ कह नहीं पाती, उसकी आवाज़ उसके अंदर घुट जाती है, और आँखे छलक पडती हैं)
रुप - भाभी... प्लीज...
शुभ्रा - नहीं नंदिनी... मुझे कह लेने दो... बहुत गुबार भर कर रखा था अपने मन में... उसे बाहर निकल जाने दो... विकी मुझसे बहुत प्यार करते हैं... मैं जानती हूँ... मुझे उनकी मजबूरियों को समझना था... उनको घिरे भंवर से बाहर निकालना था... पर एक क्षेत्रपाल से व्याह कर मैं भी क्षेत्रपाल बन गई... अपनी ही अहं के चाहरदीवारों के भीतर खुद को कैद कर रखा था मैंने... (अपनी आँखों से आंसुओं को पोछते हुए) थैंक्स... तुम मेरी जिंदगी में आई... ना सिर्फ तुमने मुझे मेरे चाहरदीवारों से बाहर निकाला... बल्कि उन्हें भी तुमने उनके भंवर से बाहर निकाल कर मेरे किनारे ला दिया... (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) थैंक्स... थैंक्स अगेन...
रुप - भाभी प्लीज... आप ऐसे ना कहो... मुझे आप बार बार थैंक्स कह कर ऐंबारस फिल ना कराओ...
शुभ्रा - ओके.. ओके... पर फिर भी... मैं अभी एक दोराहे पर... खुद को पा रही हूँ...
रुप - कैसा दो राहा... (शुभ्रा अचानक भाव शुन्य हो जाती है) भाभी... (शुभ्रा को हिला कर) भाभी...
शुभ्रा - ह्ँ.. (चौंकते हुए) ह्ँ.. हाँ...
रुप - कैसा दो राहा...
शुभ्रा - (डबडबाइ आँखों से रुप को देखते हुए, बड़ी मुश्किल से अपनी हलक से आवाज़ निकाल कर) मैं... मैं... नहीं चाहती... फिर से कोई... ऐसी हालात बने... के...(रुप की आँखों से अपनी आँखे हटा लेती है और भराई आवाज़ में) ब... ब्बच्चा गिराने की... (और कह नहीं पाती उसकी आवाज़ अंदर ही घुट जाती है)
शुभ्रा की यह हालत देख कर रुप उसे गले से लगा लेती है l शुभ्रा भी रुप को कस कर पकड़ लेती है और सिसकने लगती है l रुप उसकी पीठ को सहलाते हुए दिलासा देती है l शुभ्रा रुप से अलग होती है, तो रुप उसे दिलासा देते हुए कहती है
रुप - भाभी... मैं समझ सकती हूँ... आपका डर बेवजह नहीं है... पर इतना जरूर कह सकती हूँ... हर वक़्त भैया आपके साथ थे.. हैं... और तब भी आपके साथ होंगे... देंगे... जरा सोचिए भाभी... उन्होंने लगभग वही किया... जो आपने उनसे कहा या चाहा... आपको क्षेत्रपाल महल से दुर रखा... यहाँ आपके मर्जी के खिलाफ कभी गए ही नहीं... तो आपको टूटता हुआ कैसे देख सकेंगे...
शुभ्रा - (रुप की बातों को गौर करते हुए) हाँ... शायद तुम ठीक कह रही हो...
रुप - (हँसते हुए) यह हुई ना बात... अब आप भी भैया को रिझाने के लिए कुछ लीजिए...
शुभ्रा - (मुस्कराने की कोशिश करते हुए) मेरी छोड़ो... यह बताओ... कल... तुम... नमिता राव से मिलने गई थी... क्या हुआ... कुछ पता चला...
रुप - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए मायूसी भरी आवाज में) कहाँ भाभी... बल्कि कंफ्यूजन और भी बढ़ गई...
शुभ्रा - क्यूँ... उन्होंने... तुम्हें प्रतिभा जी के बारे में डिटेल में कुछ बताया नहीं क्या...
रुप - पता नहीं.. उन्होंने डिटेल में कुछ बताया भी या कुछ छुपा लिया...
शुभ्रा - मतलब... क्या बताया उन्होंने...
रुप - उन्होंने बताया... चूँकि प्रतिभा जी वर्किंग वुमन एसोसिएशन ऑफ ओड़िशा की अध्यक्षा हैं... उनकी इस उपलब्धि को ऑनर करने के लिए ही... सुचरिता मैग्ज़ीन की एडिटरीयल लिखने को दिया गया है... प्रतिभा जी के साथ उनका कोई व्यक्तिगत परिचय नहीं है... हाँ उन्होंने जो पता दिया वह... भुवनेश्वर जैल कॉलोनी की है...
शुभ्रा - देखा मैं ना कहती थी... उनके पति जैलर हैं... और उनका एक ही बेटा था... प्रत्युष...
रुप - नहीं...
शुभ्रा - क्या मतलब...
रुप - उन्होंने बताया... की प्रतिभा जी की जुड़वा बच्चे थे... प्रत्युष और प्रताप...
शुभ्रा - (चौंकते हुए)व्हाट...
रुप - हाँ...
शुभ्रा - मतलब... प्रताप का अनाम होना...
रुप - नहीं... मैं नहीं जानती... फिर भी मैं पता लगा कर रहूंगी...
शुभ्रा - कैसे... कब...
रुप - आज शाम को... मैं प्रताप के घर जा रही हूँ... कटक...
शुभ्रा - (झटका खाते हुए) क्या.. मतलब.. जैल कॉलोनी भुवनेश्वर नहीं...
रुप - नहीं...
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वीर को बार बार फोन लगा रही थी, पर हर कोशिशों के बाद भी अनु को ऑपरेटर वॉयस से एक ही जबाव मिल रहा था l
"आप जिस नंबर पर संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं वह अब स्विच ऑफ आ रहा है"
अनु यह सुन कर थोड़ी परेशान सी हो जाती है l कुछ देर से अनु की दादी अनु को देख रही थी l
दादी - क्या बात है... कौन नहीं मिल रहा है तुझे फोन पर...
अनु - कु.. कुछ.. नहीं... मैं बस ऑफिस फोन लगा रही थी... छुट्टी के लिए...
दादी - तो... कोई उठा नहीं रहा है क्या उधर से...
अनु - (चिढ़ कर) नहीं...
दादी - ओ... तु ऑफिस में फोन लगा रही थी ना...
अनु - ह्मँ.. हाँ... क्क्क्यूँ...
दादी - ठीक है... ठीक है... तुम उस राजकुमार से दूर रहना...
अनु - दादी... हर सुबह.. तुम मुझसे यही कहती रहती हो...
दादी - तो... मैं तुझसे ना कहूँ... तो किससे कहूँ... क्या जरूरत थी... उसे हस्पताल बुलाने की...
अनु - तो क्या हुआ दादी... वह आए... इसलिए तो.. सुनीति मौसी की लाश हस्पताल से हम निकाल पाए... वरना दो घंटे से हम हस्पताल में फंसे हुए थे... (दादी चुप रहती है, अनु को महसुस होती है कि उसकी जबाव से दादी खुश नहीं है) दादी... क्या बात है... तुम क्यूँ राजकुमार जी से खार खाए हुए हो... उन्होंने... ना जाने कितनों को अपने संस्थान में रोजगार दिया है... मट्टू भैया को भी...
मृत्युंजय - (अंदर आते हुए) हाँ दादी माँ... अनु ने यह बात बिल्कुल ठीक कही... राजकुमार जी ने हम पर दया दिखाई और हमें नौकरी पर रखा... तनख्वाह भी तो अच्छी ही मिल रही है...
अनु - अरे मट्टू भैया... यहाँ... अचानक... पुष्पा तो ठीक है ना...
मृत्युंजय - हाँ... ठीक तो है... पर उदास है...
अनु - मट्टू भैया... आपको एक बार राजकुमार जी को धन्यबाद कहना चाहिए था...
मृत्युंजय - ठीक कहती हो अनु बहन... मैंने कोशिश भी किया था... पर...
अनु - पर क्या मट्टू भैया...
मृत्युंजय - मुझे खबर मिली है... वह अपने गांव गए हैं...
अनु - कब आयेंगे... कुछ जानते हो...
दादी - क्यूँ...
अनु - ओ हो... दादी... मैं उनकी सेक्रेटरी हूँ... असिस्टैंट हूँ... तो मुझे मेरे मालिक की खबर तो होनी ही चाहिए ना... आखिर तनख्वाह जो लेती हूँ...
दादी - हे भगवान... कब अक्ल आयेगी इस लड़की को... कब दुनिया दारी समझेगी यह लड़की...
मृत्युंजय - दादी माँ.. अनु ने क्या गलत कहा...
दादी - हाँ हाँ... एक मैं ही गलत हूँ.. तुम दोनों सही हो...
अनु - (चिढ़ कर) ओह्ह्ह...मैं... मैं जाती हूँ पुष्पा के पास...
कह कर घर से बाहर चली जाती है l दोनों उसे बाहर जाते हुए देखते हैं l
दादी - मट्टू बेटा... एक बात बता... पोती है मेरी... मुझे उसकी फिक्र नहीं रहेगी...
मृत्युंजय - रहना तो चाहिए... दादी... आख़िर लड़की जो है...
दादी - वही तो... मैं जल्द से जल्द इसके हाथ पीले कर देना चाहती हूँ... (मायूस सी हो कर) कास कोई अच्छा लड़का मिल जाए... (मृत्युंजय से) अच्छा बेटा... कोई लड़का है तेरे नजर में...
मृत्युंजय - मेरे नजर में तो नहीं पर... पता नहीं कहना चाइये या नहीं...
दादी - क्या बात है... बता...
मृत्युंजय - वह... दादी माँ... याद है... आपने एक बार मेरी माँ से... अनु के लिए लड़के की जिक्र छेड़ा था...
दादी - हाँ... पर..
मृत्युंजय - (अटक अटक कर) मेरी माँ ने... एक लड़के को.. अनु के लिए... पसंद किया था... मुझे एक बार... बतया भी था... एक अच्छा दिन देख कर आपको बोलेगी...ऐसा कह रही थी... पर (फफक पड़ता है)
दादी - क्या... सुनीति ने... मेरी अनु के लिए लड़का देखा था...
मृत्युंजय - (अपनी आँखों से आँसू पोछते हुए) हाँ... दादी...
दादी - तु जानता है उस लड़के को...
मृत्युंजय - हाँ दादी...
दादी - (खुशी और जिज्ञासा भरे लहजे में) कैसा है... करता क्या है...
मृत्युंजय - वह... वह एक... हमारे जान पहचान से है... शायद माँ ने उससे पुछा भी था...
दादी - क्या... क्या करता है वह लड़का...
मृत्युंजय - वह एक बैंक में... क्लार्क है.. तनख्वाह अच्छी है... उसका अपना क्वार्टर भी है...
दादी - (थोड़ी मायूसी के साथ) अगर इतना अच्छा है... तो क्या वह अनु को पसंद करेगा...
मृत्युंजय - दादी.. अनु मेरी बहन समान है... या यूँ कहें... बहन से बढ़ कर है... अगर आपकी मंशा यही है... तो क्या मैं उस लड़के और... उसके परिवार वालों से बात करूँ...
दादी - (खुश होते हुए मृत्युंजय के सिर पर हाथ फ़ेर कर बलाएँ लेते हुए) तुझे मेरी भी उम्र लग जाये बेटा... तेरे घर में मातम है... फिर भी मेरी घर की खुशियों के लिए तु यह सब करेगा बोल रहा है... मैं दिल से दुआ कर रही हूँ... तेरी हर मनोकामना पुरी हो...
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दो पहर को ही प्रतिभा घर पर आ गई थी, और शाम को आने वाले महमानों के स्वागत के लिए तैयारी में जुट गई थी l सोफ़े पर बैठा तापस हैरान हो कर प्रतिभा के चेहरे पर छलक रही खुशी और चंचलता को महसूस और गौर कर रहा था l
तापस - क्या बात है जान... आज खुश तो बहुत लग रहे हो...
प्रतिभा - हाँ आज मेरा बेटा... अपने साथ.. अपने छह छह दोस्तों को ला रहा है...
तापस - अच्छा... चलो अच्छा हुआ... पर कल तक तो उसका एक दोस्त हुआ करता था...(अपने गाल पर हाथ रख कर) अब अचानक छह छह दोस्त...
प्रतिभा - (चहकते हुए) हाँ... वह भी लड़कियाँ...
तापस - (चौंकते हुए) क्या... (उसके हाथ से चेहरा फिसल जाता है) क्या... (संभल कर बैठते हुए) यह कब हुआ...
प्रतिभा - (बिदक कर) क्या मतलब कब हुआ... आपने उसे डिस्को में नचा कर देख लिया... कुछ नहीं हुआ... मैंने उससे शर्त लगाया... तो फौरन उसने अमल करते हुए...(चहकते हुए) एक नहीं... बल्कि छह छह ल़डकियों को साथ लेकर आ रहा है...
प्रतिभा की इस जवाब से हैरानी से तापस का मुहँ खुला रह जाता है l तापस देखता है प्रतिभा बिल्कुल किसी छोटे बच्चे के जैसी खुश हो रही है l
तापस - इट्स ओके जान.. इट्स ओके... तुम्हारा प्रताप अपने छह दोस्तों के साथ आ रहा है... छह गर्ल फ्रेंड्स के साथ नहीं...
प्रतिभा - (अपनी आँखे सिकुड़ कर, जबड़े भींच कर तापस को देखती है) मुझे पता है... और हाँ... वह लोग किसी भी वक़्त आ सकते हैं... आप उनसे बातेँ कीजिए... पर खबर दार कोई शेरों शायरी वगैरह कहे तो...
तापस - क्यूँ... क्यूँ नहीं सुना सकता...
प्रतिभा - आप जितना चुप रहेंगे... वह लोग उतना ही इम्प्रेस होंगे... आप जैसे ही शायरी बोलना शुरु करोगे... वह लोग(थोडे कड़क आवाज में) भाग जाएंगे.... समझे आप...
तापस किसी भीगी बिल्ली की तरह अपना सिर हिला कर हाँ कहता है l कुछ देर बाद डोर बेल बजने लगता है l डोर बेल की आवाज सुनते ही प्रतिभा चहकते हुए दरवाजे पर पहुँचती है और दरवाज़ा खोलती है l दरवाजा खोलते ही उसे विश्व दिखता है l प्रतिभा सीरियस सा चेहरा बना कर अपनी भवें तन कर विश्व को देखती है l विश्व हाथ से इशारा करते हुए पीछे की ओर दिखाता है l प्रतिभा देखती है नंदिनी और उसके साथ पांच लड़कियाँ और खड़े हैं l प्रतिभा विश्व को एक किनारे कर उन ल़डकियों की ओर देख कर उनके पास जाने को होती है l
सभी - नमस्ते आंटी...
प्रतिभा - नमस्ते बच्चों... इतने दुर क्यूँ खड़ी हो... (उनके पास पहुँच कर) नंदिनी... कम से कम तुम्हें तो झिझकना नहीं चाहिए... आओ... अंदर आओ... आओ..
विश्व हैरान हो जाता है और हैरानी भरे निगाहों में प्रतिभा और लड़कियों को देख कर अंदर जाता है तो देखता है तापस ड्रॉइंग रुम के बीचों-बीच सोफ़े पर ठाठ से अपने बाएँ पैर पर दाहिना पैर डाल कर बैठा हुआ है l
तापस - (विश्व को अंदर आता देख) आओ... आओ बर्खुर्दार आओ... कितने दोस्त आये हैं...
विश्व - छ्छ्छह.. डैड..
तापस - छह... हूँ... बहुत तरक्की किए हो... पर अकेले क्यूँ घर में घुसे हो..
विश्व - वह माँ...
तभी लड़कियों के साथ प्रतिभा अंदर आती है तापस उन्हें देख कर सीधा हो कर बैठ जाता है l विश्व एक कोने में चला जाता है l
प्रतिभा - सुनिए...
तापस - जी कहिए...
प्रतिभा - (एक एक से पहचान करवाते हुए) यह है प्रताप की मुहँ बोली बहन भाश्वती... यह है रेडियो एफएम वाली नंदिनी... यह है... दीप्ति... यह.. इतिश्री... बनानी और तब्बसुम...
सभी - (बारी बारी से) नमस्ते अंकल..
तापस - नमस्ते बच्चों...
प्रतिभा - (तापस से) अच्छा... अभी आप यहाँ से उठिए...
तापस - क्यूँ...
प्रतिभा - अरे... कैसे मेजबान हैं आप... घर पर छह छह जन मेहमान आए हुए हैं... वह भी लड़कियाँ... चलिए उठिए... अब यह लोग बैठेंगे...
तापस उठ खड़ा होता है और विश्व जिस कोने में खड़ा हुआ था वहीँ विश्व के पास जाकर खड़ा हो जाता है l प्रतिभा सबको सोफ़े पर बिठाती है और खुद रुप के बगल में बैठ कर सबसे बातेँ करने लगती है l
तापस - (विश्व से बहुत धीरे से) इनमें कोई बहु तो नहीं है ना...
विश्व - (गुस्से से अपनी जबड़े भींच कर तापस को देखता है) (और अपना सिर ना करते हुए, धीरे से) क्यूँ.. क्या हुआ...
तापस - (धीरे से) वह क्या है कि... जब किसी नए का आगमन होता है... पुरानों को कोने में शिफ्ट कर दिया जाता है... या फिर फेंक दिया जाता है... जैसे हम दोनों अभी कोने में शिफ्ट हो गए हैं...
विश्व अपनी आँखे फाड़ कर हैरानी से तापस की ओर देखता है, तापस अपनी आँखे बंद करके सिर हिला कर इशारे में हाँ यह सच है कहता है l
तापस - (ल़डकियों की झुंड को डिस्टर्ब करते हुए, प्रतिभा से) भाग्यवान... इन्हें खिला कर तो विदा करोगी ना...
प्रतिभा - हाँ हाँ... यह सब खाना खाकर ही जायेंगे...
रुप - नहीं.. नहीं आंटी... हम दुसरे शहर में हैं... हम तो बस... आपसे मिलने आए हैं...
तापस - आप नंदिनी...
रुप - जी...
तापस - कटक और भुवनेश्वर में फर्क़ ही कहाँ है...
प्रतिभा - हाँ... अरे तुम सब प्रताप के दोस्त हो... बिना खिलाए तो जाने ही नहीं दूंगी...
बनानी - वह देर... हो जाएगी...
तापस - बिल्कुल देर नहीं होगी... भाग्यवान इतनी बढ़िया और इतनी जल्दी खाना बनाती है कि... आप जब भुवनेश्वर पहुँचोगे तो फिर से भूख लगेगी...
भाश्वती - अंकल... कोई खाए या ना खाए... मैं तो खाना खा कर जाऊँगी...
प्रतिभा - शाबाश... यह हुई ना बात... (तापस से) सुनिए...
प्रतिभा - जी भाग्यवान...
प्रतिभा - जरा नुक्कड़ तक जा कर पनीर ले आयेंगे...
तापस - जी बिलकुल... आपका हुकुम... सिर आँखों पर...
प्रतिभा शर्मा जाती है l तापस बाहर जाने लगता है l उसके साथ विश्व भी जाने को होता है l
प्रतिभा - तु कहाँ जा रहा है... तु रुक यहाँ... (तापस से) आप जाइए...
विश्व रुक जाता है और तापस वहाँ से चला जाता है l तापस के जाने के बाद प्रतिभा रुप से l
प्रतिभा - क्या बात है नंदिनी... बार बार तुम अपनी नजरें घुमा कर क्या देख रही हो...
रुप - (हड़बड़ा जाती है, और चौंक कर) क्क्क.. कुछ नहीं आंटी... आप बस तीन जन हैं... घर में भी और... (दीवारों पर टंगे फोटो को दिखाते हुए) फोटो में भी...
प्रतिभा - हाँ... हम तीन जन का छोटा परिवार... और यह हमारा छोटा सा घर...
रुप - ओ..
प्रतिभा - घर बहुत छोटा है ना...
रुप - नहीं आंटी... घर छोटा तो बिल्कुल नहीं है... और आपका दिल के आगे बड़े बड़े महल भी छोटे पड़ जाएं...
प्रतिभा - हूँ... यह कंप्लीमेंट था या चापलूसी...
सभी - (एक साथ) कंप्लीमेंट था... आंटी जी...
प्रतिभा - ओ... वेरी गुड... बहुत अच्छी और गहरी दोस्ती है तुम लोगों की...
सभी - थैंक्यू...
प्रतिभा - मुझे खुशी है कि... तुम लोग प्रताप के दोस्त हो...
सभी - थैंक्यू आंटी जी...
सभी विश्व की ओर देखते हैं l विश्व उस कमरे में एक कोने पर खड़ा था जैसे ही उसके तरफ सबकी नज़रें ठहरती है, वह मारे शर्म के अपना सिर नीचे कर लेता है l तभी प्रतिभा के मोबाइल पर एक मेसेज आता है l प्रतिभा देखती है सेनापति जी डिस्प्ले हो रहा है, वह मेसेज खोल कर देखती है l कुछ देर तक सोचने लगती है फिर उसके चेहरे पर एक मुस्कराहट उभर आती है l प्रतिभा इशारे से रुप के कान में कुछ कहने के लिए पास बुलाती है, रुप भी जिज्ञासा वश अपना कान प्रतिभा के पास ले जाती है l प्रतिभा रुप के कानों में कुछ कहती है l सुनने के बाद रुप हैरान हो कर प्रतिभा को देखती है l
प्रतिभा - (उठते हुए) अच्छा बच्चों.. मैं अभी तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूँ...
बनानी - इसकी क्या जरूरत है आंटी...
रूप - ठीक है ना... बैठे बैठे चाय पियेंगे... और गप्पे मारेंगे...
प्रतिभा - गुड... मैं अभी आई... प्रताप
विश्व - हाँ माँ...
प्रतिभा - अपने दोस्तों का खयाल रखो... मैं अभी किचन से आई...
विश्व - ठीक है माँ..
प्रतिभा के किचन में के अंदर जाने के बाद, विश्व सबके सामने आ कर खड़ा होता है l
रुप - तुम खड़े क्यूँ हो... यहाँ...(जगह दिखाते हुए) बैठ जाओ...
विश्व - नहीं नहीं... आप सब मेहमान हैं... इतनी खातिरदारी तो बनती है...
रुप - ठीक है... तो फिर मैं उठ जाती हूँ..
विश्व - अरे नहीं नहीं... आप बैठे रहिए...
रुप - नहीं... हमारा मेजबान खड़ा हो तो हम क्यूँ बैठें...
विश्व - ठीक है.. ठीक है... मैं बैठता हूँ...
कह कर विश्व बैठ जाता है l उसके बैठते ही उसके अगल बगल में दीप्ति और भाश्वती बैठ जाते हैं l
रुप - अच्छा तुम लोग बातेँ करो... मैं आंटी जी से पीने के लिए पानी लाने जा रही हूँ...
इतना कह कर रुप भी किचन के अंदर चली जाती है l लड़कियाँ विश्व से गप्पे लड़ाने में लग जाती हैं l सभी कुछ ना कुछ पूछे जा रहे हैं और विश्व धैर्य से जवाब दिए जा रहा है l तभी विश्व की फोन बजने लगती है l विश्व अपनी शर्ट की जेब से फोन निकाल कर देखता है, स्क्रीन पर नकचढ़ी डिस्प्ले हो रहा था l नकचढ़ी देख कर विश्व के हाथों से तोते उड़ जाते हैं l उसे अंदाजा हो जाता है कि उसके पीछे कोई खड़ा है l वह झट से उठ कर पीछे मुड़ कर देखता है तो गुस्से से नथुने फुला कर तेजी से सांसे लेते हुए रुप उसे घुर रही है l
विश्व - मर गए...
कह कर विश्व ड्रॉइंग रुम से घर से बाहर की ओर भाग जाता है l
Kala Nag Bhai, bahut hi umda update he
The ab heaven banane ki rah par chal pada he, har ek sadasay jaise Vir ke liye worry kar raha tha, bahut hi achcha laga,
Vir apni maa se milkar kaafi had tak theek ho gaya he, lekin kahi na kahi uske man me ye bhi dar he ki jab Anu ko Vir ke atit ke baare me pata chalega, tab kya hoga.............
Rona aur Ballabh sham ko Pratibha se milane aa rahe he, kahi inka samna Rup ya Vishwa se na ho jaye..........
Shubhra aur Vikaram ab ek dusre ke paas khiche chale aa rahe he, jo ki ek bahut hi achchi bat he..........
Kayi jagah aapne Shubhra ko Nandini likh diya he, kripya ise aap correct kar le...........
Rup aur Vishwa ki nok jhonk ab aur bhi tej hone wali he......... aur Vishwa ka band bajayegi ab Rup
Keep posting Bhai