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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Golu

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दोस्तों मित्रों बंधुओं
मैंने अपडेट लिख तो दिया है पर कुछ कांट छाँट के साथ एडिटिंग बाकी है
इसलिए कल दिन के दस बजे तक अपडेट पोस्ट करूँगा
देरी के लिए माफी चाहता हूँ
Intzar rahega bhai....
 

Rajesh

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दोस्तों मित्रों बंधुओं
मैंने अपडेट लिख तो दिया है पर कुछ कांट छाँट के साथ एडिटिंग बाकी है
इसलिए कल दिन के दस बजे तक अपडेट पोस्ट करूँगा
देरी के लिए माफी चाहता हूँ
I am waiting
 

Mastmalang

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दोस्तों मित्रों बंधुओं
मैंने अपडेट लिख तो दिया है पर कुछ कांट छाँट के साथ एडिटिंग बाकी है
इसलिए कल दिन के दस बजे तक अपडेट पोस्ट करूँगा
देरी के लिए माफी चाहता हूँ
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Kala Nag

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👉छियानबेवां अपडेट
-----------------------
विश्व ऐसे चौंकता लगता है जैसे प्रतिभा ने उसे साक्षात भूत के दर्शन करवा दिया l

प्रतिभा - ऐसे क्या देख रहा है... अगर मैं नंदिनी की जगह होती और.... तेरी जगह अगर तेरे डैड होते... तो मैं भी बिल्कुल वही करती... जो नंदिनी ने किया... और एक क्या... दो चार और रसीद कर देती...
तापस - क्या रसीद कर देती भाग्यवान... (विश्व के कमरे के बाहर खड़े होकर)
प्रतिभा - (शॉक से हकलाते हुए) आ... आप..
तापस - (अंदर आते हुए) क्या हुआ... गलत टाइम पर आ गया...
प्रतिभा - हाँ... मेरा मतलब है नहीं...
विश्व - डैड... क्या आप माँ के हाथों से... थप्पड़ खाए हैं...
तापस - ऐसी नौबत तो कभी आई नहीं... और ना ही कभी आने दूँगा...
विश्व - मतलब आप माँ से डरते हैं...
तापस - हाँ... नहीं...(संभल जाता है) नहीं.. मेरा मतलब है... (पुचकारते हुए) मैं तो बहुत प्यार करता हूँ...
प्रतिभा - (अपनी आँखे सिकुड़ कर) हो गया...
तापस -(दुबकते हुए) बिल्कुल.. बिल्कुल... बस एक कप चाय की तलब लगी है...
प्रतिभा - मिल जाएगा... (कह कर प्रतिभा वहाँ से निकल कर किचन में चली जाती है)

विश्व और तापस दोनों आकर ड्रॉइंग रुम में बैठते हैं l तापस अपनी भवें उठा कर और सिर हिला कर पूछता है
"क्या हुआ"
विश्व अपनी पलकें झपका कर सिर ना में हिला कर
"कुछ नहीं"
तापस एक शैतानी मुस्कराहट के साथ अपने गाल पर हाथ फ़ेर कर देखता है l विश्व जबड़े भिंच कर तापस को देखता है l

तापस - अरे यार... मुझसे कैसी शर्म... चल बता ना... क्या हुआ... चल बता

विश्व एक नजर तापस को देखता है और एक गहरी सांस छोड़ते हुए सारी बातेँ बता देता है l सारी बातेँ सुन कर तापस सोचने के अंदाज में कहता है

तास - ह्म्म्म्म... बात तो गम्भीर है... पर लगता है... तुम्हारी माँ सही है...

प्रतिभा - देखा... (अंदर आकर तापस को चाय का कप देते हुए) मैं ठीक ही कह रही थी...
विश्व - नहीं... आप दोनों गलत हो...
दोनों - कैसे...
विश्व - वह थप्पड़... प्यार को ना पहचान ने वाला थप्पड़ नहीं था...
प्रतिभा - मतलब.. (चहकते हुए) तुझे नंदिनी का प्यार कुबूल है...
विश्व - नहीं...
प्रतिभा - (चिढ़ कर)अच्छा... तो.. वह थप्पड़ किस लिए था...
विश्व - (उस क्षण को याद करते हुए) माँ... वह मेरे तरफ कृतज्ञता वाली नजर से देखते हुए हाथ बढ़ाती हैं... कहती हैं कि... हो सकता है, यह हमारी आखिरी मुलाकात है... मैं भी अपना हाथ बढ़ा कर हाथ थाम लेता हूँ... फिर... अचानक से वह... भावुक हो गईं... मेरा हाथ छोड़ कर मेरे सीने से लग गईं... धीरे धीरे उनकी बाहों की कसाव बढ़ती चली गई... फिर अचानक... उनकी एक हाथ मेरे सीने पर आती है और मेरी शर्ट को मुट्ठी में जकड़ लेती हैं... फिर मेरे चेहरे को हैरानी भरे नजरों से देखने लगतीं हैं... फिर दुसरे हाथ से भी मेरी शर्ट को मुट्ठी में पकड़ कर मुझे झकोरते हुए धक्का देतीं हैं... फिर... (विश्व कहते कहते रुक जाता है) फिर वह थप्पड़ मार देती हैं... मैं हैरान हो कर उनको देखता हूँ... उनके चेहरे पर... मेरे लिए जैसे कुछ सवाल थे... जैसे वह पुछ रहीं थीं... (फिर रुक जाता है)
दोनों - क्या पुछ रही थी...

विश्व कुछ कहने को होता है कि उसका फोन रिंग होने लगता है l वह अपना फोन उठाता है, देखता है वीर का कॉल था l

विश्व - हैलो... वीर
वीर - हैलो मेरे दोस्त.. कैसे हो...
विश्व - बढ़िया... तुम बताओ... भई.. दिखे नहीं कुछ दिनों से... फोन भी स्विच ऑफ आ रहा था...
वीर - क्या करूँ यार... माँ की बहुत याद आ रही थी... इसलिए माँ के पास चला गया था...
विश्व - ओ... तो क्या प्लान है आज तुम्हारा...
वीर - कुछ नहीं... बस तुम... मुझे बेस्ट ऑफ़ लक कह दो...
विश्व - कह दूँगा... पर किस लिए...
वीर - मैं आज अनु को प्रपोज करने जा रहा हूँ...
विश्व - वाव... पिछली बार कुछ प्रॉब्लम हुआ था क्या...
वीर - हाँ... किसी की डेथ हो गई थी... मौका नहीं बन पाया था...

विश्व - तो... आज कौनसा मौका है...
वीर - मेरा जन्म दिन है यार...
विश्व - अरे वाह... जन्म दिन की हार्दिक बधाई... फिर पार्टी तो बनता है...
वीर - हाँ... अगर मैं अनु को प्रपोज कर पाया तो...
विश्व - जरूर जरूर... तुम्हारा प्यार सच्चा है... अनु भी तुमसे प्यार करती है... आज तुम... कुछ इस तरह से प्रपोज करना की... आज का दिन अनु की जिंदगी का खास दिन बन जाए....
वीर - जरूर... जरूर मेरे दोस्त... जरूर... तुमसे बात हो गई... मानो... सारे जहां की हिम्मत मिल गई... बाय...
विश्व - बाय.. एंड बेस्ट ऑफ़ लक...

कह कर फोन काट देता है और वह खुशी के मारे प्रतिभा और तापस दोनों की ओर देखता है l तास प्रतिभा के कंधे पर एक हाथ रखकर और दुसरा हाथ जेब में रख कर कृष्न भंगिमा में खड़ा था और प्रतिभा अपने दोनों हाथों को मोड़ कर कोहनीयों में जमा कर खड़ी थी l वह दोनों उसे घूर रहे थे l

विश्व - क्या.. क्या हुआ... मुझे आप दोनों ऐसे क्यूँ घूर रहे हो...
तापस - समझी भाग्यवान... खुद से खिचड़ी नहीं पक रही है... जनाब दुसरों को बिरियानी का ज्ञान बांट रहे हैं...
विश्व - आआआह्ह्ह्...

कह कर विश्व अपने कमरे के भीतर चला जाता है l उधर गाड़ी चलाते हुए वीर प्रताप से बात खतम कर पटीया के उसी मंदिर के पास पहुँचता है जहां वह अनु के जन्म दिन पर मिला था I वीर को सफेद सलवार कुर्ती और सफेद आँचल में मंदिर के बाहर अनु दिख जाती है l अनु भी वीर की गाड़ी देख कर वीर के पास आने लगती है l वीर गाड़ी से उतर कर अपनी सपनों की शहजादी को आते हुए देखता है l वीर के लिए मानों दुनिया जहां सब ओझल हो जाते हैं, अनु आ तो रही है मगर जैसे वक्त थम सा गया है l अनु के चेहरे की चमक को देखते ही वीर अंदर से ताजगी महसुस करने लगता है l अनु उसके पास आकर खड़ी होती है l वीर उसके मुस्कराते हुए चेहरे को देख कर खो सा जाता है l अचानक उसका ध्यान टूटता है

अनु - हैप्पी बर्थ डे... जन्म दिन मुबारक हो...
वीर - (होश में आते हुए) तु.. तुम... तुमको कैसे मालुम हुआ... आज मेरा जन्म दिन है..
अनु - (हँसते हुए) मैंने आपके दिन को खास बनाया था... अपने जन्म दिन पर... (थोड़ा शर्माते हुए) आज आप मेरे दिन को खास बनाने जा
रहे हैं... तो आज आपका जन्म दिन ही होगा ना...
वीर - ओ...
अनु - (अचानक अपना हाथ दिखा कर) तो दीजिए अपनी गाड़ी की चाबी...
वीर - (थोड़ा हैरान हो कर) क्यूँ... किस लिए...
अनु - आज आपको इस राजकुमारी की बात तो माननी होगी...
वीर - (मुस्करा देता है) जी राज कुमारी जी... (कह कर कार की चाबी बढ़ा देता है)
अनु चाबी लेकर गाड़ी की ड्राइविंग सीट वाली डोर खोलती है और ड्राइविंग सीट पर झुक कर एक छोटी सी गिफ्ट बॉक्स सीट पर रख देती है l फिर गाड़ी की डोर बंद कर लॉक कर देती है और वीर को चाबी लौटा देती है l

वीर - क्या हुआ... गाड़ी में कुछ देखने गई थी क्या...
अनु - हाँ... गाड़ी में खुशबु ठीक है या नहीं... यह देख रही थी...
वीर - (हैरानी साथ मुस्कराते हुए) क्या... (वह देख रहा था, आज अनु कुछ ज्यादा ही चहक रही थी)
अनु - अच्छा... आज आप पर्स तो लाए हैं ना...
वीर - हाँ... क्यूँ... क्या हुआ...
अनु - लाइये दीजिए....

वीर फिर से हैरानी के साथ अनु के चेहरे को देखता है, कहीं पर भी कोई शैतानी नहीं दिख रही थी, बल्कि एक चुलबुला पन दिख रहा था l वीर को अनु का ऐसे हुकुम चलाना बहुत ही अच्छा लग रहा था l उसने बिना देरी किए अपना पर्स निकाल कर अनु के हाथ में रख देता है l अनु पर्स खोल कर देखती है, कुछ दो तीन हजार के नोट ही निकलते हैं l अनु का चेहरा उतर जाता है l

वीर - क्या हुआ अनु...
अनु - यह क्या... सिर्फ़ इतने पैसे...
वीर - तो क्या हुआ... डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड है ना... हमें जो भी मार्केटिंग करनी होगी... हम कार्डस से कर लेंगे...
अनु - नहीं... कुछ जगहों पर... नकद की जरूरत पड़ती है...
वीर - तो ठीक है... हम एटीएम से पैसे निकाल लेंगे...

अनु - (खुश होते हुए) हाँ.. तो निकालिये ना... मुझे अभी कुछ पैसों की जरूरत है...

वीर इधर उधर नजर दौड़ाता है l उसे नजदीक एक एटीएम दिखता है l वीर अपनी पर्स से डेबिट कार्ड निकाल कर अनु के हाथ में देता है

वीर - यह लो.. इसका पिन नंबर & $#@ है... जाओ... जितना चाहिए निकाल कर ले आओ...
अनु - (वीर के हाथों में अपना हाथ पा कर पहले से ही नर्वस थी, फिर हैरान हो कर) क.. क.. क्या... (झिझकते हुए) न.. नहीं... म... मैं नहीं ले सकती...
वीर - अनु... (उसकी हाथ पकड़े हुए) आज तुम राजकुमारी हो... बिल्कुल अपने बाबा के ख्वाहिश की जैसी... इसलिए झिझको मत... जाओ... एटीएम से पैसे ले आओ...

अनु बहुत झिझक के साथ कार्ड लेकर एटीएम की ओर जाती है पर बार बार पीछे मुड़ कर देखती है l वीर उसे इशारे से बेझिझक जाने को कहता है l अनु एटीएम से तकरीबन दस हजार निकाल कर लाती है l फिर एक दुकान से पुजा के लिए सामान खरीद कर मंदिर में वीर को लेकर जाती है l पुजारी को वीर की नाम पर अभिषेक करने के लिए कहती है l वीर अपना हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता है l

वीर - हे भगवान... सारी जिंदगी... अनु के लिए... अनु की ही तरह... मेरी नियत साफ रहे... ईमानदार रहे... बस इतना ही आशिर्वाद करना...

पुजारी के पुजा कर लेने के बाद अनु वीर के पैसों से एक हजार रुपये और अपनी वैनिटी पर्स से एक सौ ग्यारह रुपये निकाल कर पुरे एक हजार एक सौ ग्यारह रुपये देती है l अनु की यह हरकत वीर के दिल को गुदगुदा देता है l उसके होठों पर एक मुस्कराहट अपने आप खिल उठता है l फिर अनु मंदिर की प्रसाद व भोजन काउंटर पर आती है वहाँ से अन्न प्रसाद के तीस टोकन खरीदती है और वीर को थमा देती है l फिर वीर को मंदिर के बाहर लेकर आती है l वहाँ पर बैठे कुछ भिकारी, झाड़ू लगाने वाले कुछ लोग और जुते रखने वालों में वीर के हाथों से वह टोकन बंटवा देती है l वीर टोकन बांटते हुए अनु के अंदर की खुशी को साफ महसूस कर पाता है l वह भी खुशी खुशी टोकन बांट देता है l सबको टोकन मिल जाने के बाद

अनु - देखिए आप सब... आज इनका जन्म दिन है... इसलिए पेट भर खाना खाने के बाद... इनके लिए सच्ची श्रद्धा से प्रार्थना करना... ठीक है...
सभी - ठीक है...

फिर अनु वीर को वहाँ से लेकर गाड़ी तक आती है l

अनु - अब आप गाड़ी की दरवाजा खेलिए...

वीर अनु की चुलबुले पन से निहाल हो जाता है l अपनी पॉकेट से गाड़ी की चाबी निकाल कर गाड़ी को अनलॉक कर जैसे ही सीट पर नजर डालता है उसे सीट पर वह गिफ्ट बॉक्स मिलता है l वह समझ जाता है कि इसे अनु ने ही रखा होगा l वह बॉक्स उठा कर सीट पर बैठ जाता है और इशारे से अनु को गाड़ी में बैठने को कहता है l अनु एक झिझक और जिज्ञासा के साथ वीर के बगल में बैठती है l मन ही मन सोचती है
"पता नहीं राजकुमार जी को पसंद आएगा भी या नहीं"
वीर गिफ्ट बॉक्स खोलता है तो उसमे बक्कल्स दिखते हैं l

वीर - वाव अनु... यह मेरे लिए हैं... सच में... बहुत ही खूबसूरत है... थैंक्यू थैंक्यू वेरी मच... जानती हो... मेरे पास ढेर सारे कपड़े हैं... पर किसी भी ड्रेस के लिए... बक्कल्स नहीं है...
अनु - (झिझक के साथ) रा.. राज... कुमार जी... क्या सच में आपको पसंद आया...

वीर - बहुत... क्यूँ तुम्हें यकीन नहीं हो रहा... (अनु की हाथ पर अपना हाथ रख कर) मेरे आँखों में देखो... क्या तुम्हें लगता है... मैंने यह बात तुम्हारा दिल रखने के लिए कहा है....

अनु खुशी और शर्म के मारे अपना सिर झुका लेती है l अनु की इस अदा पर वीर के मन में तरंगें उठने लगते हैं l उसका मन करता है कि अनु को गले से लगा ले l पर वह खुद पर काबु रखता है l


वीर - तो राजकुमारी जी... हम अब चलें...
अनु - (खुद को संभालते हुए) कहाँ...
वीर - आज आपको राजकुमारी बनना है... और आज यह खादिम... दिन भर आपकी सेवा के लिए उपलब्ध रहेगा... जब तक आपका मन ना भर जाए....

अनु हँसती है, दिल खोल कर हँसती है l वीर के दिल में फिर से तरंगें बजने लगते हैं l वह अनु के हँसी में खो जाता है क्यूंकि आज उसे अनु कुछ अलग सी लग रही थी, बहुत खास भी लग रही थी l वीर भी उसके साथ हँसने लगता है l

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दीवार पर लगे एक बड़े से एलईडी के स्क्रीन पर एक वीडियो चल रही थी l एक कबड्डी मैच का अंतिम क्षण I चार लोग बैठ कर वह मैच देख रहे थे l अचानक वह वीडियो पॉज हो जाता है l

टोनी एलईडी के सामने आता है और कहता है
"यही वह मोमेंट था... जहां विश्व की जान जा सकती थी..."
कह कर एलईडी को फिर से चलाता है l जिसमें साफ दिख रहा है कि यश विश्व के गले में अपना बांह फंसा कर दबोच लिया है l फिर भी विश्व कोशिश करते हुए लाइन के पास यश को खिंचते हुए जा रहा था l तब यश चिल्लाता है विश्व को पकड़ने के लिए आउट हुए सभी खिलाड़ी लेनिन के साथ बाकी चार खिलाड़ी एक साथ यश और विश्व के ऊपर छलांग लगाते हैं l विश्व के ऊपर यश, यश के ऊपर लेनिन, लेनिन के ऊपर एक के बाद एक गिरते हैं l रेफरी फउल करार देते हुए इन्हें रोकता है पर कोई नहीं उठता है l तब पुलिस वाले आकर सब को हटाते हैं l विश्व के गर्दन पर यश की बांह अभी भी फंसा हुआ था l एक पुलिस वाला यश की हाथ निकाल कर विश्व को पलटता है l विश्व के चेहरे पर दो तीन चपत लगाता है l विश्व अचानक गहरी गहरी सांसे लेते हुए खांसने लगता है l फिर वह पुलिस वाला यश को हिला कर उठाने लगता है l पर यश नहीं उठता I वीडियो खतम हो जाता है l कमरे में लाइट जलने लगती है l

टोनी - पर तकदीर का मारा... यश... उसी मैच में मारा जाता है...
रोणा - मादरचोद विश्व मर गया होता... तो अच्छा था...
परीड़ा - पर मरा नहीं... हमारी लगाने के लिए... जिंदा बच गया हरामी...
बल्लभ - (टोनी से) उस दिन का मामला क्या था...
टोनी - यश... अपनी रखैल के एक्सीडेंट केस में... रिमांड पर पूछ-ताछ के लिए सेंट्रल जेल में था... वह... अपनी जगह किसी और को प्लॉट करना चाहता था... वह जिस पुलिस वाले से मदत मांगा था... वह पुलिस वाला... स्टिंग ऑपरेशन में पकड़ा गया और नौकरी से गया... यश के पास सिर्फ एक ही ऑप्शन था... जैल में ही किसी से मदत ली जाए... उस वक़्त मैं ही था... जो ऐसा कर सकता था... हाँ यह बात और है कि... उसे इस बात की जानकारी विश्व से ही मिली...
रोणा - मतलब विश्वा... तेरी कुंडली के बारे में.. अच्छी तरह से जानता था...
टोनी - हाँ... यही विश्व की खासियत है... जैल में आने वाले सभी की... चाहे वह पुलिस वाला ही क्यूँ ना हो... सबकी कुंडली पता लगा लेता है...
बल्लभ - अच्छा... इसका मतलब.. हम जैल में उसकी इंक्वायरी के लिए गए... तो उसकी नजर में आ गए...
टोनी - हाँ...
परीड़ा - उसे किसने इंफॉर्म किया होगा... खान...
टोनी - नहीं... वह इतने बड़े लोगों को... अपने टीम में नहीं रखेगा... क्यूं रखेगा... पर हाँ... जैल के छोटे मोटे स्टाफ हो सकते हैं...
रोणा - तेरी भी तो इंफॉर्मेशन नेट वर्क जबरदस्त था...
टोनी - पर विश्व का... मुझसे बीस कदम आगे था... या यूँ कहूँ... यहाँ के हर पुलिस स्टेशन में... कोर्ट में.. उसके लिए ख़बर निकालने वाले बहुत हैं... और वह लोग इतने शातिर हैं... किसीके भी नजर में नहीं आते...
परीड़ा - हूँम्म्म्म्म.... मतलब... जैल में रह कर जुर्म की दुनिया का हर दाव पेच सीख गया है...
टोनी - बिल्कुल...
बल्लभ - पर मेरे समझ में यह नहीं आया... यश विश्व को क्यूँ मारना चाहता था...
टोनी - क्यूंकि... यश को बाहर निकाल कर.. उसके जगह अपने किसी आदमी को प्लॉट करने के बदले... मेरी यश से यही शर्त थी...
तीनों - व्हाट...
टोनी - हाँ... मैं सेंट्रल जैल में तीन बार गया था... दो बार विश्व से मेन टू मेन फाइट में मुहँ की खाया... दुसरी बार तो विश्व मेरी... (अपना हाथ दिखाते हुए) कलाई तोड़ दी... (जबड़े भिंच कर) ऐसी तोड़ी की... भारी सामान आज तक नहीं उठा पा रहा हूँ...
परीड़ा - तुने... यश से जो डील की थी... क्या उसके बारे में... ओंकार जानता था...
टोनी - हाँ... अच्छी तरह से... वह जैल में... यश से मिलने आता था... और उसे ड्रग्स सप्लाई करता था...
परीड़ा - क्या... जैल में यश... ड्रग्स लेता था...
टोनी - इसी लिए तो मैं बाहर निकल पाया... पोस्ट मार्टम में मालुम पड़ा... एब-नॉर्मल हाइपर टेंशन के चलते... जब उसके ऊपर प्रेसर पड़ा... और नीचे से विश्व की कोहनी के ऊपर उसका सीना था... जिसके चलते उसकी पसलियाँ भी टुट गई थी... और साँस रुक गई थी...
रोणा - वह हरामी का जना विश्व... अच्छी तकदीर लेकर आया था... उसकी टांग मुझसे बच गई... अब उसकी जिंदगी.. यश से भी और... (टोनी से) तुझसे भी...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... क्या यही वजह है... कि ओंकार चेट्टी... तुझे मरवाने पर तूल गया...
टोनी - हाँ... जितना डर मुझे ओंकार के हाथ लग जाने से है... उतना ही डर मुझे विश्वा से भी है...
रोणा - क्या मतलब...
टोनी - यश के मौत की इंटर्नल इंक्वायरी के बाद... मैंने अपने वकील से... झारपड़ा जैल को शिफ्ट होने के लिए पिटीशन डाला... और तापस सर की सिफारिश के चलते... कोर्ट ने एक्सेप्ट भी कर लिया... और जिस दिन मुझे शिफ्ट किया जाना था... उस दिन विश्व मेरे पास मेरे सेल के बाहर आया था...

फ्लैशबैक

लेनिन अपने सेल में चहल कदम कर रहा है l की उसे महसुस होता है कि कोई उसके सेल के बाहर खड़े उसे देख रहा है l वह रुक कर देखता है, विश्व सेल के ग्रिल के बाहर खड़े होकर उसे देख रहा है l

लेनिन - क्या बात है विश्वा भाई...
विश्व - तो तुम यहाँ से जा रहे हो...
लेनिन - हाँ भाई... कहा सुना सब माफ कर देना... कोई गिला शिकवा मत रखना...
विश्व - क्यूँ...
लेनिन - (पहले झटका लगता है) (फिर मुस्कराने की कोशिश करते हुए) क्या भाई... यही तो रीत है... जाने वाला हमेशा यही कहता है...
विश्व - मरने वाला भी ऐसा ही कुछ कहता है...
लेनिन - (हकलाते हुए) ये.. यह... आ.. आप... क.. क क्या कह रहे हैं...
विश्व - जब यश मेरा गला दबोच रखा था... तैस में आकर मेरे कानों में उसने कह दिया था... तुने उसके साथ मेरी मौत की डील की थी...

लेनिन विश्व की बात सुन कर कांपने लगता है, डर उस पर इस कदर हावी हो जाती है कि उसके दांत आपस में टकराने लगते हैं और विश्व को साफ सुनाई देने लगती है l

विश्व - लेनिन... मैंने जिंदगी में... सिर्फ एक की जान लेने की सोचा था.... तु दुसरा बनने की कोशिश कभी मत करना... क्यूंकि तु झारपड़ा जा रहा है... इसलिए यह हमारी आखिरी मुलाकात होनी चाहिए... वरना अगली मुलाकात... तु वह दुसरा बन जाएगा...

इतना कह कर विश्व वहाँ से चला जाता है l

टोनी की कहानी खतम होते ही I इसका मतलब तु विश्वा के सामने कभी नहीं जाएगा l

टोनी - नहीं... आप लोग कानून से जुड़े हुए हो... डैनी.. इस नाम से वाकिफ होंगे आप लोग...
परीड़ा - हाँ अच्छी तरह से.... इस्टर्न बेल्ट का डॉन... वह कभी कभी ओड़िशा के जैल में... छुट्टियाँ मनाने आता है...
टोनी - हाँ.. सेंट्रल जैल में... स्पेशल सेल को वही इस्तेमाल किया करता था...
रोणा - तो... डैनी से विश्व का क्या संबंध....
टोनी - इस जैल में... विश्वा ही वह अकेला बंदा है... जिसने डैनी को मारा... उसकी नाक तोड़ी... फिर भी... वह आज तक जिंदा है...
तीनों - (चौंकते हैं) क्या...
टोनी - हाँ... किसी से भी पुछ लो... जैल के सभी नए पुराने कैदी....सब इसी बात पर चर्चा करते रहते थे.... और सबसे खास बात... विश्व जैल में रह कर अपनी ग्रेजुएशन पुरी की... जानते हो पेरेल पर कौन वकील लेके जाता था...
परीड़ा - हाँ... जानता हूँ... जयंत चौधरी... कटक में डैनी का वकील....
बल्लभ - यह बड़ी दिलचस्प बात बताई...
टोनी - हाँ... यानी किसी ना किसी तरह से... विश्व डैनी से जुड़ा हुआ है...
रोणा - अब समझा... यानी डैनी ही विश्व का मास्टर है... जिसने उसे लड़ना सिखाया... जिसने उसे नेट वर्क सेट अप सिखाया...
परीड़ा - क्या डैनी की राजा साहब से... कोई पुरानी दुश्मनी है क्या...
बल्लभ - पता नहीं... कभी मैंने सुना नहीं...
रोणा - पर फिर भी... विश्व अभी तक सामने क्यूँ नहीं आया है... साला यह बात कुछ... समझ में नहीं आ रहा है...

कुछ देर के लिए कमरे में खामोशी छा जाती है l सब के सब सोच में पड़ जाते हैं l

परीड़ा - क्या हमसे कुछ छूट रहा है...
बल्लभ - जबसे यह मनहूस रोणा वापस आया है... तब से... विश्व वगैर सामने आए... झटके पर झटका दिए जा रहा है...
रोणा - चुप बे साले वकील... मनहूस मैं नहीं... तु है... मैं तो उसे महल के अंदर मारने ही वाला था... पर तुने अपना दिमाग चलाया... जिंदा रख कर... रुप फाउंडेशन स्कैम को विश्व पर थोप कर जैल भिजवाने के लिए...
परीड़ा - ओ ह्ह्ह... स्टॉप ईट... यह मत भूलो... उसने दो जगह पर आरटीआई फाइल की है... होम मिनिस्ट्री में... केस और गवाहों की डिटेल्स... और अदालत में जांच की स्टेटस....
टोनी - ओ... तो यह बात है... अब समझा...
रोणा - तु क्या समझा बे...
टोनी - जैल में विश्व हमेशा... अलग थलग ही रहता था... अपने काम से मतलब रखता था... और लाइब्रेरी में पढ़ा करता था... वह हमेशा सब से दूर रहने की कोशिश करता था... एक ही उसूल बनाए हुए चलता था... किसीको छेड़ता नहीं था... कोई छेड़े... तो उसे छोड़ना नहीं... असल में कोई उसे छेड़ता था... तो उसमे... विश्व की मर्जी शामिल होती थी...
रोणा - कैसे...
टोनी - मैं जब जैल के अंदर गया... उसका रौब और रुतबा देख कर... उससे उलझने की कोशिश करता था... वह ज्यादातर अवॉइड करता था... फिर एक दिन.. मैंने खुल्लमखुल्ला उससे उलझने की कोशिश की... सेटर डे स्कैरी नाइट सोल्यूशन फाइट के लिए चैलेंज कर दिया... अंजाम... आधा मिनट भी ना टिक पाया... मैंने चालाकी से... उसे मेन-हैडलींग चार्ज में फंसाना चाहा... तब मुझे मालुम हुआ... की जहां जहां मैंने उससे उलझा... प्रोवक किया... वह सब सीसीटीवी में रिकार्ड हो गया था... यानी केस मुझी पर रिवर्स बाउंस हो जाता...

टोनी की बात सुन तो रहे थे, पर समझ में किसीके भी नहीं आ रहा था l

परीड़ा - इसका क्या मतलब हुआ...
टोनी - क्या परीड़ा बाबु... इतना भी समझ नहीं पाए... वह अब जिससे भी उलझेगा... उसी के हाथों से... सबुत बनाएगा... और उसीके खिलाफ इस्तमाल करेगा...

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बुटीक में अनु वीर के लिए कपड़े देख रही है l इतने में अनु देखती है वीर एक लड़की की पुतले के सामने खड़े होकर उसके पहनावे को देख रहा था I थोड़ी देर बाद अनु वीर को आवाज देती है
"राज कुमार जी"
वीर मुड़ कर देखता है अनु उसे बुला रही है, वीर उसके पास जाता है

वीर - क्या है अनु... मैंने यहाँ तुम्हारे लिए ड्रेस सिलेक्शन करने के लिए आया था... पर तुम पहले मेरे ड्रेस के लिए जिद पकड़ ली...
अनु - (बड़ी मासूमियत के साथ) वह तो आपको तय करना था...
वीर - क्या...
अनु - हाँ... (थोड़ी शर्माते हुए) आखिर राजकुमारी वाला ड्रेस कैसा होता है... आप ही जानते होंगे ना...
वीर - करेक्ट... (अपने सिर पर हाथ मारते हुए) मैं यह कैसे भूल गया... (सेल्स मेन से) ओ.. हैलो...
से. मे - यस सर...
वीर - वह जो (पुतले को दिखाते हुए) ड्रेस है ना... वह पैक कर दो...
से. मे - जी... सर वह... उससे भी बेहतर... ड्रेसेस हैं हमारे पास...
वीर - तुमसे जितना कहा... उतना करो ना...
से. मे - जी.. जी सर...

वीर और अनु के लिए ड्रेस पैक करा दी जाती है l वीर दोनों पैकेट लेकर काउंटर पर बिल पेमेंट करने को होता है कि

अनु - (थोड़े झिझक के साथ) रा.. राज... कुमार जी...
वीर - (मुस्कराते हुए) जी राजकुमारी जी...
अनु - (शर्म से गड़ जाती है) प्लीज आप मुझे ऐसे ना कहिए...
वीर - कोई और दिन होता... तो मैं मान लेता... पर आज नहीं... कहिए... क्या हुकुम है... आपका खादिम तैयार है...
अनु - (अपने दोनों होंठों को दबा कर अपनी शर्म को छुपाने की कोशिश करते हुए) वह... मुझे... कुछ और भी खरीदारी करनी है...
वीर - ठीक है... (कार्ड अनु के हाथ में देते हुए) जो चाहे खरीद लो... आज का दिन तुम्हारा है... मैं बाहर इंतजार कर रहा हूँ...

कह कर वीर बुटीक के बाहर के बाहर आ जाता है l वहाँ से वह कहीं फोन करता है I अनु उसे कांच के पार से देखती है और वीर की बात करने के अंदाज से उसे पता लग जाता है कि शायद वीर ने सुबह से ही किसी को कुछ काम दिया था और वह चिल्ला चिल्ला कर उसका काम कितना दूर गया यह पता कर रहा था l कुछ ही देर में अनु अपनी खरीदारी खतम कर बाहर आती है l वीर देखता है अनु के पीछे एक गठरी ढ़ो कर बुटीक का एक बंदा खड़ा है l वीर उस गठरी की साइज देख कर चौंक जाता है, पर अनु से कुछ नहीं कहता है l अपनी गाड़ी की पिछली सीट पर वह गठरी रखवा देता है l अनु वीर से पर्स मांगती है तो वीर उसे पर्स दे देता है l अनु उसमें से पांच सौ रुपये निकाल कर उस बंदे को दे देती है l वह बंदा अनु को सैल्यूट करता है तो

अनु - ऐ... मुझे क्यूँ सलाम कर रहे हो... इनकी पैसे हैं... और जानते हो... आज इनका जन्म दिन है... इनको सलाम करो और.. दुआएँ दो...
बंदा - सलाम साहब... भगवान आपको लंबी उम्र दे... सारी खुशियां दे... ढेर सारा बरकत दे...
वीर - ठीक है.. ठीक है...

वीर और अनु गाड़ी में बैठ जाते हैं l वीर गाड़ी रास्ते पर दौड़ा देता है l गाड़ी चलाते हुए

वीर - यह क्या अनु... मैं तो तुम्हारे साथ... अपना जन्म दिन मनाना चाहता था... तुम जहां भी जा रही हो... मेरे जन्म दिन की ढिंढोरा पीट रही हो...
अनु - राजकुमार जी... जन्म दिन पर दुआएँ बटोरने चाहिए और खुशियाँ लुटाने...
वीर - अच्छा.. खुशियाँ... मतलब पैसा...
अनु - किसी के लिए... पैसा जरूरत होती है... उनके लिए वह खुशियाँ ही तो है... आप जरूरत मंदों को... आज उनकी जरूरत को दीजिए... बदले में... वह लोग आपको दिल से दुआएँ देंगे... देखना उनकी दुआएँ... आपको सचमुच बरकत और खुशियाँ देंगी...
वीर - (अनु की बातेँ सुन कर) उफ... तुम और तुम्हारी बातेँ... सच में... तुम्हारे अंदर एक राजकुमारी वाला सोच है... वैसे अब हम कहाँ जाएं... राजकुमारी जी...

अनु शर्मा जाती है और खिड़की की ओर अपना मुहँ फ़ेर कर हँसने लगती है, वीर को यह सब कांच से दिख जाता है l अनु की हँसी उसके दिल को ठंडक पहुँचाता है l वह भी हँसते हुए गाड़ी चलाता है l

वीर - राजकुमारी जी... आपने कुछ कहा नहीं...
अनु - (थोड़ी सीरियस होने की कोशिश करते हुए) कस्तूर बा वृद्धाश्रम...
वीर - क्या... क्यूँ...
अनु - उसके बाद... मदर टेरेसा अनाथालय...
वीर - (गाड़ी में ब्रेक लगाता है, और अनु को बड़ी हैरानी भरे नजरों से देखता है) इस गठरी में क्या है अनु...
अनु - उस आश्रम में देने के लिए लिए कुछ शॉल और चादर...
वीर - (वीर हँस देता है) अनु... तुम गजब हो... तुम्हें तो मैंने अपने लिए कुछ खरीदने के लिए कार्ड दिया था...
अनु - (थोड़ी गंभीर हो जाती है) अपने लिए ही तो कर रही हूँ...
वीर - क्या...
अनु - (अचानक भाव बदल कर, मासूमियत के साथ) क्या आज इस राजकुमारी की हसरत अधूरी रह जाएगी...
वीर - कभी नहीं...

वीर गाड़ी को वृद्धाश्रम की ओर ले जाता है l


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रुप आज कॉलेज गई नहीं है l अपने कमरे में बैठ कर अपने और विश्व की मुलाकात और बातों के बारे में याद करते हुए अपने आप में मुस्करा रही थी l तभी उसकी फोन बजने लगती है l वह फोन के स्क्रीन पर चाची माँ डिस्प्ले होते देखती है I रुप फोन उठाती है

रुप - हैलो... चाची माँ...
सुषमा - कैसी है मेरी बच्ची...
रुप - बस आपका आशीर्वाद है...
सुषमा - और... आज सुबह सुबह वीर को विश किया के नहीं...
रुप - (पहले हैरान होती है फिर बात समझ कर) ओह शीट...
सुषमा - क्या हुआ... उस दिन तो बड़ी फिक्र कर रहे थे... वीर कहाँ गया... वीर नहीं आया...
रुप - (शर्मिंदगी से अटक अटक कर) वह चाची माँ... दरअसल... मैं आज देर से उठी... जब नाश्ते के लिए गई... तब तक वीर भैया... कहीं बाहर जा चुके थे... शीट... बड़ी गलती हो गई चाची माँ...
सुषमा - हा हा हा हा... लगता है... वीर के जन्मदिन पर तुम उल्लू बन गई...
रुप - क्या मतलब...
सुषमा - मैं अभी बहु से बात कर रही थी... वीर ने आज शाम को पार्टी रखने के लिए कह कर बाहर चला गया है...
रुप - क्या... यानी भाभी ने भी मुझसे छुपाया...
सुषमा - (हंसते हुए) खैर... मैंने बहु से कुछ कहा है... उससे पता करो और पूछ लो....
रुप - क्या... क्या कहा है... माँ...

तब तक फोन कट जाता है l रुप अपना फोन बेड पर पटक कर शुभ्रा के कमरे में जाती है l शुभ्रा को देख कर

रुप - भाभी...
शुभ्रा - क्या हुआ... मेरी गुस्सैल ननद...
रुप - आज वीर भैया का जन्म दिन है... और आपने मुझे बताया नहीं...
शुभ्रा - कैसे बताती... और कब बताती...
रुप - मतलब..
शुभ्रा - तुम तो अनाम के गाल पर गुस्सा उतार कर सो रही थी... तुम जब होश में आई... तब भी.. तुम अनाम के सुरूर में थी... और तब तक... वीर जा चुके थे...
रुप - (थोड़ी नॉर्मल हो कर) अच्छा वीर भैया... सुबह से किसीसे बिना बात किए चले गए क्या...
शुभ्रा - हाँ... पर शाम को पार्टी अरेंज करने के लिए कह कर गए हैं....
रुप - ओ... (खुश होते हुए) चलो किसी की बर्थ डे... हम पहली बार...(चहकते हुए) मिलकर मनाएंगे....
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... तुम्हारा बर्थ डे... हम मना नहीं पाए... पर वीर की बर्थ डे... हम जरूर मनाएंगे...
रुप - (खुशी के साथ उछलते हुए) हाँ....

शुभ्रा उसे खुशी के मारे उछलते हुए देखती है पर उसके चेहरे से धीरे धीरे हँसी गायब होने लगती है l थोड़ी बहुत उछल कुद के बाद रुप अचानक से रुक जाती है l

रुप - अच्छा भाभी... चाची माँ ने आपको कुछ और भी कहा है ना... बताओ ना क्या कहा...
शुभ्रा - (रुप की गालों पर हाथ फेरते हुए) आज बर्थ डे खतम होने दो... कल बताती हूँ...
रुप - पर आज क्यूँ नहीं...
शुभ्रा - कुछ बातेँ अपने वक़्त पर की जाए... तो उन बातों का महत्व रहता है...

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होटल के कमरे में चारों बहुत टेंशन में दिख रहे थे l टोनी के खुलासे के बाद परीड़ा, रोणा और बल्लभ के माथे पर शिकन पड़ चुका था l कमरे में बेशक चार लोग थे पर इतनी शांति पसरी हुई थी के बाहर खड़ा कोई भी आदमी बेझिझक कह देता अंदर कोई नहीं है l कुछ देर बाद

टोनी - परीड़ा बाबु... वैसे यह वीडियो... आपको मिला कहाँ से...
परीड़ा - हेड क्वार्टर के आर्काइव से...
टोनी - पर आप जिस फाइल में विश्व की तस्वीर लाए हैं... वीडियो वाला विश्व दोनों अलग दिखते हैं...
रोणा - बे घन चक्कर... वह फोटो सात साल पहले वाला है... अब वीडियो में वह ऐसे दिख रहा है...
टोनी - हाँ... (फाइल में से विश्व की फोटो उठा कर) सात साल पहले... विश्वा की मूछें निकल रही थी... वीडियो में... बाल बढ़े हुए दाढ़ीवाला दिख रहा है....
परीड़ा - ह्म्म्म्म...
बल्लभ - क्या... अब भी... ऐसे ही दिख रहा होगा...
रोणा - साला... जितना भी जानने की कोशिश कर रहा हूँ... उतना ही मिस्टेरीयस होता जा रहा है...
परीड़ा - रिलैक्स... यह वीडियो देखते वक़्त... मुझे भी ऐसा लगा था... इसलिए यहाँ आने से पहले... मैंने एक स्कैच आर्टिस्ट को... इस वीडियो की स्टील दे कर आया था... मेरे हिसाब से... कुछ देर बाद... वह विश्व के तरह तरह की स्कैच लेकर आ रहा होगा...
बल्लभ - ह्म्म्म्म...

फिर कमरे में शांति छा जाती है l क्यूँकी अब किसीके पास कहने सुनने के लिए कुछ बाकी था ही नहीं I डोर बेल बजती है, चारों एक दुसरे को देखने लगते हैं, फिर सभी टोनी की ओर देखते हैं l

टोनी - ठीक है... समझ गया...

कह कर दरवाजे के पास जाता है और दरवाजे की मैजिक आई से बाहर खड़े बंदे को देखता है l बाहर खड़े बंदे के हाथ में एक बड़ी फाइल जैसी लिफाफा दिख रहा था l टोनी वापस आ कर परीड़ा से

टोनी - लगता है... आप ही का बंदा आया है... हाथ में फाइल और लिफाफा है...
परीड़ा - ओ अच्छा...

कह कर परीड़ा अपनी जगह से उठता है और दरवाज़ा खोलता है l बाहर परीड़ा के ही ऑफिस का आदमी था l वह परीड़ा को देख कर सैल्यूट करता है और लिफाफा परीड़ा को बढ़ा देता है, परीड़ा उससे लिफाफा ले लेता है और उसे जाने के लिए कहता है, फिर दरवाजा बंद कर देता है l
परीड़ा वापस इन लोगों के पास आकर लिफाफे से कुल सात स्कैच निकाल कर टेबल पर रख देता है l किसी स्कैच में छोटे बालों के साथ है, किसी स्कैच में छोटे बाल और दाढ़ी में है, किसी स्कैच में लंबे बाल बगैर दाढ़ी मूँछ के साथ है l इसी तरह सात अलग अलग तरह दिखने वाले स्कैच सबके सामने थे l बल्लभ एक स्कैच उठाता है

बल्लभ - हाँ... इसी तरह दिख रहा था... हाउस कीपिंग बॉय बन कर आया था... छोटे दाढ़ी में बिल्कुल ऐसे ही दिख रहा था...
रोणा - देखा... मैं ना कहता था... यह विश्वा ही था... जो बार बार आकर... मेरी मार कर जा रहा था....
परीड़ा - जरूरी नहीं कि... वह दाढ़ी रखता हो... या तो दाढ़ी नकली होगी...
बल्लभ - या फिर... अब तक शेव कर लिया होगा...
टोनी - अच्छा... तो अब मैं आप लोगों से दूर... बहुत दूर जाना चाहता हूँ...
रोणा - क्यूँ...
टोनी - अरे रोणा बाबु... अब आपको विश्वा के बारे में... पूरी जानकारी मिल गई है... अब मेरी क्या जरूरत...
रोणा - क्यूँ.. तुझे विश्वा से... अपनी कलाई का बदला नहीं लेना...
टोनी - हा हा हा हा... (हँसने लगता है) रोणा बाबु... उसने अपनी दुश्मनी निकलने के लिए... राजा साहब को चुना है... मतलब वह मेरे लेबल से भी बहुत ऊपर है... वह अब तक राजा साहब के लिए प्लॉट तैयार कर चुका होगा... मतलब जो जो लोग उसके डायरि में चढ़े होंगे... हर एक के लिए... वह जाल बिछा चुका होगा... आगे आगे आप खुद देखना... उसके गुनाहगार... उसके लिए सबूत बनाएंगे... फिर वह उन सबूतों के दम पर... उनको लपेटे में लेगा... उसने मुझसे कहा था... सिर्फ़ एक को मारने के लिए उसने सोचा था... रोणा बाबु... मुझे दुसरा हरगिज नहीं बनना...
रोणा - बे... क्या बकवास कर रहा है...
बल्लभ - रोणा... जाने दे इसे... इसका काम खतम हो चुका है... और यह बकवास नहीं कर रहा है... हमें आगाह कर रहा है...
रोणा - वकील... तु कहाँ उसके बातों में फंस रहा है...
परीड़ा - वकील ठीक कह रहा है... रोणा... सावधानी हटी... समझो.... टट्टें कटी...
रोणा - अरे.. मेरा कहने का मतलब है... सावधान ही रहना है... पर लगता है... विश्व नाम का हौआ ने सब के गांड में सुतली बम लगा दिया है... और उसके बारूद को सुलगा दिया है... साले ज्ञान दे रहा है... गांड फटे तो फटे... पर ध्यान ना हटे...
बल्लभ - (चिल्ला कर) चुप रहो सब... (सब चुप हो कर प्रधान की ओर देखने लगते हैं) पहले यह सोचो... दो दिन बाद... राजा साहब... भुवनेश्वर आ रहे हैं... उन्हें विश्वा के बारे में... कहेंगे क्या...

सब चुप रहते हैं और सब सोचने लगते हैं l कुछ देर बाद चुप्पी तोड़ते हुए

टोनी - देखा साहब... टट्टे कटे या ना कटे... पर उससे पहले... यहाँ सबकी फटने लगी है...

सब गुस्से से टोनी को घूरने लगते हैं l

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पुरी कोणार्क रोड
मेराइन ड्राइव
रास्ते के एक किनारे गाड़ी पार्क है l कसूरीना और शीशम के पेड़ों के नीचे अनु बैठी हुई है और थोड़ी दूर पर समंदर के लहरों पर वीर कुद रहा है और भाग रहा है बिल्कुल एक बच्चे की तरह l अनु उसे देख कर, उसके बचपने को देख कर खुश भी हो रही थी और हँस भी रही थी l वीर थक कर अनु के पास आता है और धड़ाम से नीचे गिरते हुए अनु के पास हांफते हुए लेट जाता है l थोड़ी देर अपने सांसो पर काबु पाने के बाद एक कृतज्ञता भरी नजरों से अनु को देखते हुए बैठता है

वीर - अनु... तुम कहाँ थी... इतने दिनों तक..
अनु - यह क्या राजकुमार जी... चार महीने से आप ही के पास ही तो हूँ...
वीर - नहीं नहीं नहीं... चार महीने पहले... कहाँ थी यार...
अनु - (शर्मा जाती है) मैं यहीं थी...
वीर - यार... पहले क्यूँ नहीं मिली...
अनु - वह कहते हैं ना... समय से पहले और भाग्य से अधिक...
वीर - हाँ... कितनी प्यारी बातेँ करती हो... यार... (फिर से लेट जाता है) सच में... तुम एक अनमोल तोहफा हो... कहाँ तुम्हारा दिन खास बनाने चला था... पर तुम... तुमने आज का दिन मेरे लिए बहुत खास बना दिया...

वीर उठ बैठता है, अपना चेहरा अनु के चेहरे के पास लेकर जाता है l अनु जो अब तक शर्मा कर वीर को सुन रही थी अचानक उसकी धड़कने बढ़ जाती है l

वीर - थैंक्यू...
अनु - (अपनी पलकें झुका कर) किस बात के लिए...
वीर - मुझे वृद्धाश्रम और अनाथालय में ले जाने के लिए... उनके बीच हमने कुछ पल गुजारे... बुटीक से जितने भी शॉल और चादर खरीदे थे... उन्हें बांट दिया.... अच्छा हुआ... एक महीने के लिए... तुमने उनके राशन पानी की व्यवस्था कर दिया... और बदले में उनसे मेरे लिए ढेर सारा आशिर्वाद... और शुभकामनाएं बटोर लाई....
अनु - वह सब आपका हक था... आपके लिए था... पैसे भी तो आप ही के थे...
वीर - हाँ... पर देखो... जो कपड़े तुमने मेरे लिए लिया... और मैंने तुम्हारे लिए लिया... अभी तक हमने ट्राय नहीं किया...
अनु - कोई बात नहीं... वह कपड़े पहनने के लिए भी मौका आगे आयेंगे...
वीर - हाँ... ठीक ठीक...

वीर फिर से वहाँ से उठ जाता है और थोड़ी दुर आगे की ओर जाने लगता है l उसके देखा देखी अनु भी उठ खड़ी होती है l वीर अचानक मुड़ता है l

वीर - (चिल्लाते हुए) अनु... आज मैं बहुत खुश हूँ... (कह कर अपनी बाहें फैला देता है)

अनु समझ जाती है वीर क्या चाह रहा है l वह शर्मा जाती है और खुदको एक कसूरीना पेड़ के पीछे कर लेती है l

वीर - यार यह गलत बात है... तुम अपना वादा नहीं निभा रहे हो...

अनु पेड़ की ओट से वीर के तरफ देखती है वीर वैसे ही बाहें फैला कर खड़ा हुआ है l अनु की शर्म और हया और भी बढ़ जाती है l वह खुद को पेड़ की ओट में लेकर अपनी आँखे और होंट भींच लेती है l तभी एक आवाज़ उसके कानों में पड़ती है

- बड़ी शर्मा रही है लौंडी... कहो तो हम ट्राय करें...

अनु अपनी आँखे खोल कर देखती है एक जीप में चार बंदे बियर की बोतल हाथ में लेकर उसीके तरफ देख कर बात कर रहे हैं l अनु घबरा जाती है और देखती है वीर गुस्से से आग बबूला हो कर उनके तरफ जाने लगता है l अनु भाग कर वीर के गले लग जाती है l

- आये हाय... क्या सीन है...
- कभी हमारे गले भी लग कर देखो...
वीर - (दहाड़ते हुए) जुबान सम्भाल कर...
- कमाल है... माना कि तेरी माल है... पर माल तो है ना... चल तु जितने पैसे में लाया है... तेरे को हम उसका दुगना लौटा देते हैं... चल लड़की को छोड़ और इधर से फुट...

वीर अनु को अलग करता है और भाग कर जाता है बदजुबानी करने वाले को जैसे ही घुसा मारने को होता है उसके तीन साथी गाड़ी से कुदते हुए उतरते हैं और वीर को घेर लेते हैं l

- ऑए हीरो... छमीया के लिए हीरो बन रहा क्या...

बस उतना ही कह पाया l एक जोरदार घुसा उसके जबड़े पर वीर जमा चुका था l वह छिटक कर गाड़ी से टकरा जाता है l इतने में बचे हुए तीन बंदे वीर पर हमला कर देते हैं l एक बंदा वीर पर पंच मारता है, वीर झुक कर खुद को बचाते हुए दुसरे के सीने पर एक किक मारता है और घूम कर तीसरे के कनपटी पर कोहनी से मारता है l इतने में वह पहला वाला अपना हाथ चलाता है तो वीर उसके हाथ को मोड़ देता है कि तभी

- ऐ.. हीरो...

वीर पहले वाले के हाथ को मरोड़ते हुए देखता है l वह दुसरा बंदा जिसे लात पड़ी थी वह अनु के पास पहुँच कर अनु के पीछे जा कर अनु का गला पकड़ लिया था l यह देख कर वीर गुस्से से पागल ही हो जाता है l पहले वाले की हाथ को ऐसा झटका देता है कि उस बंदे का बांह की जोड़ कंधे से टुट जाता है l वह पहला वाला बंदा दर्द के मारे ऐसे चिल्लाता है जैसे उसके प्राण पखेरु उड़ने वाले हो l वह मंज़र इतना खौफनाक था कि वह तीसरा बंदा जिसने अनु को पकड़ा हुआ था उसकी मूत निकल जाता है l
- देख मैंने छोड़ दिया... (अनु को छोड़ते हुए) आगे नहीं आना... प्लीज... (फिर वह बंदा नीचे झुक कर रेत उठा कर वीर के आँखों पर फेंकता है)

वीर के आँखों में रेत गिरती नहीं है पर कुछ देर के लिए वह अपना चेहरा घुमा लेता है l इतने में वह चार बंदे अपनी गाड़ी लेकर फरार हो जाते हैं l वीर जब तक नॉर्मल होता है अनु भागते हुए उसके गले लग जाती है l वीर भी उसे गले लगा लेता है l कुछ देर बाद वीर अनु से पूछता है l

वीर - डर लगा...
अनु - (वीर के सीने से लग कर ही अपना सिर हिला कर ना कहती है)
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ... ध्यान से सुनना...
अनु - जी...
वीर - (अनु को खुद से अलग कर एक गहरी सांस छोड़ते हुए) मेरे बारे में... सभी कुछ ना कुछ बातेँ कर रहे होंगे... (कुछ देर रुक कर अनु के आँखों में झांकते हुए) वह सब सच हैं... या होंगे.... कितनी लड़कियाँ.. कितने औरत मेरी जिंदगी में आईं... किसीके आँखों में खौफ था... तो किसी के आँखों में मतलब... एक तुम्हीं हो... जिसके आँखों में ना तो खौफ था... ना ही मतलब... तुम बहुत अच्छी हो... बहुत बहुत अच्छी हो... तुम खुद से ज्यादा... अपने आस पास के लोगों के... अपनों के लिए सोचती हो... पर अपने लिए नहीं.. मुझे हमेशा किस्मत से एक ही शिकायत रहा... के कास... तुम मुझे पहले मिली होती...

तभी अनु की फोन बजने लगती है, पर अनु फोन नहीं उठाती, फोन बजते हुए कट जाती है l फोन की रिंग बंद होते ही वीर फिर फिर से खुद को तैयार करता है अनु से कहने के लिए की अनु की फोन फिरसे बजने लगती है l

वीर - उठा लो अनु... फोन उठा लो...
अनु - जी...

अनु अपनी वैनिटी पर्स से फोन निकालती है l देखती है उसमें पुष्पा डिस्प्ले हो रहा है l

अनु - (हैरानी के साथ) पुष्पा... (फोन उठा कर) हैलो....
- हैलो... अनु... (रोती हुई आवाज में) यहाँ... अनर्थ हो गया है अनु...
अनु - दादी... क्या हुआ... तुम रो क्यूँ रही हो... पुष्पा... तुम पुष्पा की फोन से...
दादी - तु जहां भी है... जल्दी आजा... मट्टू भी यहाँ नहीं है...
अनु - क्या हुआ दादी... कुछ बोलो तो सही...
दादी - पुष्पा ने अपनी हाथ की नस काट ली है...
अनु - क्या...
दादी - हाँ... अब मैं बस्ती वालों की मदत से... उसे सिटी हस्पताल ले जा रही हूँ... तु जल्दी पहुँच...
अनु - ठीक.. है.. ठीक है दादी... (फोन काट कर वीर को देखती है) राजकुमार जी...
वीर - मैं समझ गया... चलो आज नहीं तो फिर कभी... कहाँ जाना है...
अनु - जी... सिटी हॉस्पिटल...

वीर और अनु गाड़ी में बैठते हैं l वीर गाड़ी को तेजी से भगाता है करीब डेढ़ घंटे के बाद सिटी हॉस्पिटल में पहुँच जाते हैं l गाड़ी में अनु पुष्पा के लिए भगवान को प्रार्थना कर रही थी l वीर उसकी हालत देख कर गाड़ी में चुप रह गया था I दोनों भागते हुए कैजुअलटी में पहुँचते हैं l वहाँ मृत्युंजय भी दिख जाता है l वीर को वहाँ अनु के साथ देख कर मृत्युंजय और दादी दोनों हैरान होते हैं l

अनु - मट्टू भैया... आप कब आए... और पुष्पा कैसी है..
दादी - (अनु से) इतनी देर... कहाँ थी... क्या कर रही थी... (अनु सिर झुका कर चुप रहती है)
वीर - वह... दरअसल... हम दोनों... ऑफिस के एक जरूरी काम से... थोड़ा बिजी थे... (मृत्युंजय से) वैसे मृत्युंजय... अब कैसी हालत है... पुष्पा की...
मृत्युंजय - (रोते हुए) अब ठीक है... समझ में नहीं आ रहा है... यह हमारे घर क्या हो रहा है... माँ को गए... कुछ ही दिन हुए हैं... और अब यह... (फुट फुट कर रोने लगता है)

वीर उसे दिलासा देता है और जरूरत पड़ने पर खबर करने के लिए कह कर हस्पताल से बाहर निकलता है l गाड़ी के पास पहुँच कर डोर खोलते वक़्त उसे पिछली सीट पर वह कपड़े दिखते हैं जो अनु और वीर ने एक दुसरे के लिए खरीदे थे l वीर टुटे मन से गाड़ी में बैठता है और गाड़ी चलाते हुए हस्पताल से निकल कर शहर की रास्ते पर पहुँच जाता है lउसका मन आज बहुत खराब था l आज वह अपनी दिल की बात कहने और अपने प्यार की इजहार करने के बहुत करीब था l पर आखिरी वक़्त पर किस्मत ने उसे फिर से दगा दे दिया l गाड़ी चली जा रही थी कि उसका फोन बजने लगता है l वह बिना डिस्प्ले देखे गाड़ी की ब्लू टूथ ऑन कर देता है l

- हा हा हा हा.. (किसीके हँसने की आवाज सुनाई देती है)
वीर - हू इज़...
- अबे ओ.. अंग्रेज के चमन चुतिए...
वीर - (गाड़ी में ब्रेक लगाता है) कौन.. कौन हो तुम...

वीर के गाड़ी के पीछे गाड़ियों के हार्न सुनाई देता है l

- अबे चमन चुतिए... या तो गाड़ी चलाते हुए बात कर... या फिर गाड़ी साइड कर... (वीर गाड़ी साइड पर लेता है) शाबाश... गुड बॉय...
वीर - कौन हो तुम...
- अबे भोषड़ी के.. इतनी जल्दी भूल गया...
वीर - (चुप रहता है)
- तेरी जिंदगी... मुझे बर्बाद करनी है... मान गया... तु पक्का वाला हरामी है... मुझे अंदाजा नहीं था... तु एक लड़ाकू हो सकता है... मेरे एक बंदे का हाथ तोड़ दिया तुने...
वीर - (हैरानी से आँखे फैल जाता है)
- हाँ हराम जादे... मेरी नजर है तुझ पर... मैंने तुम क्षेत्रपालों के किस्मत की चांद पर ग्रहण बनने की ठान ली है... और किस्मत की बात देखो... किस्मत भी मेरा साथ दे रही है... तु भले ही मेरे आदमियों पर भारी पड़ा... पर तकदीर तेरी गांडु निकला रे... तु... अपनी छमीया को... दिल की बात नहीं बोल सका.... हा हा हा हा हा...

वीर और भी ज्यादा हैरान हो जाता है और उतना ही कसमसा जाता है l
 

Surya_021

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👉छियानबेवां अपडेट
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विश्व ऐसे चौंकता लगता है जैसे प्रतिभा ने उसे साक्षात भूत के दर्शन करवा दिया l

प्रतिभा - ऐसे क्या देख रहा है... अगर मैं नंदिनी की जगह होती और.... तेरी जगह अगर तेरे डैड होते... तो मैं भी बिल्कुल वही करती... जो नंदिनी ने किया... और एक क्या... दो चार और रसीद कर देती...
तापस - क्या रसीद कर देती भाग्यवान... (विश्व के कमरे के बाहर खड़े होकर)
प्रतिभा - (शॉक से हकलाते हुए) आ... आप..
तापस - (अंदर आते हुए) क्या हुआ... गलत टाइम पर आ गया...
प्रतिभा - हाँ... मेरा मतलब है नहीं...
विश्व - डैड... क्या आप माँ के हाथों से... थप्पड़ खाए हैं...
तापस - ऐसी नौबत तो कभी आई नहीं... और ना ही कभी आने दूँगा...
विश्व - मतलब आप माँ से डरते हैं...
तापस - हाँ... नहीं...(संभल जाता है) नहीं.. मेरा मतलब है... (पुचकारते हुए) मैं तो बहुत प्यार करता हूँ...
प्रतिभा - (अपनी आँखे सिकुड़ कर) हो गया...
तापस -(दुबकते हुए) बिल्कुल.. बिल्कुल... बस एक कप चाय की तलब लगी है...
प्रतिभा - मिल जाएगा... (कह कर प्रतिभा वहाँ से निकल कर किचन में चली जाती है)

विश्व और तापस दोनों आकर ड्रॉइंग रुम में बैठते हैं l तापस अपनी भवें उठा कर और सिर हिला कर पूछता है
"क्या हुआ"
विश्व अपनी पलकें झपका कर सिर ना में हिला कर
"कुछ नहीं"
तापस एक शैतानी मुस्कराहट के साथ अपने गाल पर हाथ फ़ेर कर देखता है l विश्व जबड़े भिंच कर तापस को देखता है l

तापस - अरे यार... मुझसे कैसी शर्म... चल बता ना... क्या हुआ... चल बता

विश्व एक नजर तापस को देखता है और एक गहरी सांस छोड़ते हुए सारी बातेँ बता देता है l सारी बातेँ सुन कर तापस सोचने के अंदाज में कहता है

तास - ह्म्म्म्म... बात तो गम्भीर है... पर लगता है... तुम्हारी माँ सही है...

प्रतिभा - देखा... (अंदर आकर तापस को चाय का कप देते हुए) मैं ठीक ही कह रही थी...
विश्व - नहीं... आप दोनों गलत हो...
दोनों - कैसे...
विश्व - वह थप्पड़... प्यार को ना पहचान ने वाला थप्पड़ नहीं था...
प्रतिभा - मतलब.. (चहकते हुए) तुझे नंदिनी का प्यार कुबूल है...
विश्व - नहीं...
प्रतिभा - (चिढ़ कर)अच्छा... तो.. वह थप्पड़ किस लिए था...
विश्व - (उस क्षण को याद करते हुए) माँ... वह मेरे तरफ कृतज्ञता वाली नजर से देखते हुए हाथ बढ़ाती हैं... कहती हैं कि... हो सकता है, यह हमारी आखिरी मुलाकात है... मैं भी अपना हाथ बढ़ा कर हाथ थाम लेता हूँ... फिर... अचानक से वह... भावुक हो गईं... मेरा हाथ छोड़ कर मेरे सीने से लग गईं... धीरे धीरे उनकी बाहों की कसाव बढ़ती चली गई... फिर अचानक... उनकी एक हाथ मेरे सीने पर आती है और मेरी शर्ट को मुट्ठी में जकड़ लेती हैं... फिर मेरे चेहरे को हैरानी भरे नजरों से देखने लगतीं हैं... फिर दुसरे हाथ से भी मेरी शर्ट को मुट्ठी में पकड़ कर मुझे झकोरते हुए धक्का देतीं हैं... फिर... (विश्व कहते कहते रुक जाता है) फिर वह थप्पड़ मार देती हैं... मैं हैरान हो कर उनको देखता हूँ... उनके चेहरे पर... मेरे लिए जैसे कुछ सवाल थे... जैसे वह पुछ रहीं थीं... (फिर रुक जाता है)
दोनों - क्या पुछ रही थी...

विश्व कुछ कहने को होता है कि उसका फोन रिंग होने लगता है l वह अपना फोन उठाता है, देखता है वीर का कॉल था l

विश्व - हैलो... वीर
वीर - हैलो मेरे दोस्त.. कैसे हो...
विश्व - बढ़िया... तुम बताओ... भई.. दिखे नहीं कुछ दिनों से... फोन भी स्विच ऑफ आ रहा था...
वीर - क्या करूँ यार... माँ की बहुत याद आ रही थी... इसलिए माँ के पास चला गया था...
विश्व - ओ... तो क्या प्लान है आज तुम्हारा...
वीर - कुछ नहीं... बस तुम... मुझे बेस्ट ऑफ़ लक कह दो...
विश्व - कह दूँगा... पर किस लिए...
वीर - मैं आज अनु को प्रपोज करने जा रहा हूँ...
विश्व - वाव... पिछली बार कुछ प्रॉब्लम हुआ था क्या...
वीर - हाँ... किसी की डेथ हो गई थी... मौका नहीं बन पाया था...

विश्व - तो... आज कौनसा मौका है...
वीर - मेरा जन्म दिन है यार...
विश्व - अरे वाह... जन्म दिन की हार्दिक बधाई... फिर पार्टी तो बनता है...
वीर - हाँ... अगर मैं अनु को प्रपोज कर पाया तो...
विश्व - जरूर जरूर... तुम्हारा प्यार सच्चा है... अनु भी तुमसे प्यार करती है... आज तुम... कुछ इस तरह से प्रपोज करना की... आज का दिन अनु की जिंदगी का खास दिन बन जाए....
वीर - जरूर... जरूर मेरे दोस्त... जरूर... तुमसे बात हो गई... मानो... सारे जहां की हिम्मत मिल गई... बाय...
विश्व - बाय.. एंड बेस्ट ऑफ़ लक...

कह कर फोन काट देता है और वह खुशी के मारे प्रतिभा और तापस दोनों की ओर देखता है l तास प्रतिभा के कंधे पर एक हाथ रखकर और दुसरा हाथ जेब में रख कर कृष्न भंगिमा में खड़ा था और प्रतिभा अपने दोनों हाथों को मोड़ कर कोहनीयों में जमा कर खड़ी थी l वह दोनों उसे घूर रहे थे l

विश्व - क्या.. क्या हुआ... मुझे आप दोनों ऐसे क्यूँ घूर रहे हो...
तापस - समझी भाग्यवान... खुद से खिचड़ी नहीं पक रही है... जनाब दुसरों को बिरियानी का ज्ञान बांट रहे हैं...
विश्व - आआआह्ह्ह्...

कह कर विश्व अपने कमरे के भीतर चला जाता है l उधर गाड़ी चलाते हुए वीर प्रताप से बात खतम कर पटीया के उसी मंदिर के पास पहुँचता है जहां वह अनु के जन्म दिन पर मिला था I वीर को सफेद सलवार कुर्ती और सफेद आँचल में मंदिर के बाहर अनु दिख जाती है l अनु भी वीर की गाड़ी देख कर वीर के पास आने लगती है l वीर गाड़ी से उतर कर अपनी सपनों की शहजादी को आते हुए देखता है l वीर के लिए मानों दुनिया जहां सब ओझल हो जाते हैं, अनु आ तो रही है मगर जैसे वक्त थम सा गया है l अनु के चेहरे की चमक को देखते ही वीर अंदर से ताजगी महसुस करने लगता है l अनु उसके पास आकर खड़ी होती है l वीर उसके मुस्कराते हुए चेहरे को देख कर खो सा जाता है l अचानक उसका ध्यान टूटता है

अनु - हैप्पी बर्थ डे... जन्म दिन मुबारक हो...
वीर - (होश में आते हुए) तु.. तुम... तुमको कैसे मालुम हुआ... आज मेरा जन्म दिन है..
अनु - (हँसते हुए) मैंने आपके दिन को खास बनाया था... अपने जन्म दिन पर... (थोड़ा शर्माते हुए) आज आप मेरे दिन को खास बनाने जा
रहे हैं... तो आज आपका जन्म दिन ही होगा ना...
वीर - ओ...
अनु - (अचानक अपना हाथ दिखा कर) तो दीजिए अपनी गाड़ी की चाबी...
वीर - (थोड़ा हैरान हो कर) क्यूँ... किस लिए...
अनु - आज आपको इस राजकुमारी की बात तो माननी होगी...
वीर - (मुस्करा देता है) जी राज कुमारी जी... (कह कर कार की चाबी बढ़ा देता है)
अनु चाबी लेकर गाड़ी की ड्राइविंग सीट वाली डोर खोलती है और ड्राइविंग सीट पर झुक कर एक छोटी सी गिफ्ट बॉक्स सीट पर रख देती है l फिर गाड़ी की डोर बंद कर लॉक कर देती है और वीर को चाबी लौटा देती है l

वीर - क्या हुआ... गाड़ी में कुछ देखने गई थी क्या...
अनु - हाँ... गाड़ी में खुशबु ठीक है या नहीं... यह देख रही थी...
वीर - (हैरानी साथ मुस्कराते हुए) क्या... (वह देख रहा था, आज अनु कुछ ज्यादा ही चहक रही थी)
अनु - अच्छा... आज आप पर्स तो लाए हैं ना...
वीर - हाँ... क्यूँ... क्या हुआ...
अनु - लाइये दीजिए....

वीर फिर से हैरानी के साथ अनु के चेहरे को देखता है, कहीं पर भी कोई शैतानी नहीं दिख रही थी, बल्कि एक चुलबुला पन दिख रहा था l वीर को अनु का ऐसे हुकुम चलाना बहुत ही अच्छा लग रहा था l उसने बिना देरी किए अपना पर्स निकाल कर अनु के हाथ में रख देता है l अनु पर्स खोल कर देखती है, कुछ दो तीन हजार के नोट ही निकलते हैं l अनु का चेहरा उतर जाता है l

वीर - क्या हुआ अनु...
अनु - यह क्या... सिर्फ़ इतने पैसे...
वीर - तो क्या हुआ... डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड है ना... हमें जो भी मार्केटिंग करनी होगी... हम कार्डस से कर लेंगे...
अनु - नहीं... कुछ जगहों पर... नकद की जरूरत पड़ती है...
वीर - तो ठीक है... हम एटीएम से पैसे निकाल लेंगे...

अनु - (खुश होते हुए) हाँ.. तो निकालिये ना... मुझे अभी कुछ पैसों की जरूरत है...

वीर इधर उधर नजर दौड़ाता है l उसे नजदीक एक एटीएम दिखता है l वीर अपनी पर्स से डेबिट कार्ड निकाल कर अनु के हाथ में देता है

वीर - यह लो.. इसका पिन नंबर & $#@ है... जाओ... जितना चाहिए निकाल कर ले आओ...
अनु - (वीर के हाथों में अपना हाथ पा कर पहले से ही नर्वस थी, फिर हैरान हो कर) क.. क.. क्या... (झिझकते हुए) न.. नहीं... म... मैं नहीं ले सकती...
वीर - अनु... (उसकी हाथ पकड़े हुए) आज तुम राजकुमारी हो... बिल्कुल अपने बाबा के ख्वाहिश की जैसी... इसलिए झिझको मत... जाओ... एटीएम से पैसे ले आओ...

अनु बहुत झिझक के साथ कार्ड लेकर एटीएम की ओर जाती है पर बार बार पीछे मुड़ कर देखती है l वीर उसे इशारे से बेझिझक जाने को कहता है l अनु एटीएम से तकरीबन दस हजार निकाल कर लाती है l फिर एक दुकान से पुजा के लिए सामान खरीद कर मंदिर में वीर को लेकर जाती है l पुजारी को वीर की नाम पर अभिषेक करने के लिए कहती है l वीर अपना हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता है l

वीर - हे भगवान... सारी जिंदगी... अनु के लिए... अनु की ही तरह... मेरी नियत साफ रहे... ईमानदार रहे... बस इतना ही आशिर्वाद करना...

पुजारी के पुजा कर लेने के बाद अनु वीर के पैसों से एक हजार रुपये और अपनी वैनिटी पर्स से एक सौ ग्यारह रुपये निकाल कर पुरे एक हजार एक सौ ग्यारह रुपये देती है l अनु की यह हरकत वीर के दिल को गुदगुदा देता है l उसके होठों पर एक मुस्कराहट अपने आप खिल उठता है l फिर अनु मंदिर की प्रसाद व भोजन काउंटर पर आती है वहाँ से अन्न प्रसाद के तीस टोकन खरीदती है और वीर को थमा देती है l फिर वीर को मंदिर के बाहर लेकर आती है l वहाँ पर बैठे कुछ भिकारी, झाड़ू लगाने वाले कुछ लोग और जुते रखने वालों में वीर के हाथों से वह टोकन बंटवा देती है l वीर टोकन बांटते हुए अनु के अंदर की खुशी को साफ महसूस कर पाता है l वह भी खुशी खुशी टोकन बांट देता है l सबको टोकन मिल जाने के बाद

अनु - देखिए आप सब... आज इनका जन्म दिन है... इसलिए पेट भर खाना खाने के बाद... इनके लिए सच्ची श्रद्धा से प्रार्थना करना... ठीक है...
सभी - ठीक है...

फिर अनु वीर को वहाँ से लेकर गाड़ी तक आती है l

अनु - अब आप गाड़ी की दरवाजा खेलिए...

वीर अनु की चुलबुले पन से निहाल हो जाता है l अपनी पॉकेट से गाड़ी की चाबी निकाल कर गाड़ी को अनलॉक कर जैसे ही सीट पर नजर डालता है उसे सीट पर वह गिफ्ट बॉक्स मिलता है l वह समझ जाता है कि इसे अनु ने ही रखा होगा l वह बॉक्स उठा कर सीट पर बैठ जाता है और इशारे से अनु को गाड़ी में बैठने को कहता है l अनु एक झिझक और जिज्ञासा के साथ वीर के बगल में बैठती है l मन ही मन सोचती है
"पता नहीं राजकुमार जी को पसंद आएगा भी या नहीं"
वीर गिफ्ट बॉक्स खोलता है तो उसमे बक्कल्स दिखते हैं l

वीर - वाव अनु... यह मेरे लिए हैं... सच में... बहुत ही खूबसूरत है... थैंक्यू थैंक्यू वेरी मच... जानती हो... मेरे पास ढेर सारे कपड़े हैं... पर किसी भी ड्रेस के लिए... बक्कल्स नहीं है...
अनु - (झिझक के साथ) रा.. राज... कुमार जी... क्या सच में आपको पसंद आया...

वीर - बहुत... क्यूँ तुम्हें यकीन नहीं हो रहा... (अनु की हाथ पर अपना हाथ रख कर) मेरे आँखों में देखो... क्या तुम्हें लगता है... मैंने यह बात तुम्हारा दिल रखने के लिए कहा है....

अनु खुशी और शर्म के मारे अपना सिर झुका लेती है l अनु की इस अदा पर वीर के मन में तरंगें उठने लगते हैं l उसका मन करता है कि अनु को गले से लगा ले l पर वह खुद पर काबु रखता है l


वीर - तो राजकुमारी जी... हम अब चलें...
अनु - (खुद को संभालते हुए) कहाँ...
वीर - आज आपको राजकुमारी बनना है... और आज यह खादिम... दिन भर आपकी सेवा के लिए उपलब्ध रहेगा... जब तक आपका मन ना भर जाए....

अनु हँसती है, दिल खोल कर हँसती है l वीर के दिल में फिर से तरंगें बजने लगते हैं l वह अनु के हँसी में खो जाता है क्यूंकि आज उसे अनु कुछ अलग सी लग रही थी, बहुत खास भी लग रही थी l वीर भी उसके साथ हँसने लगता है l

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दीवार पर लगे एक बड़े से एलईडी के स्क्रीन पर एक वीडियो चल रही थी l एक कबड्डी मैच का अंतिम क्षण I चार लोग बैठ कर वह मैच देख रहे थे l अचानक वह वीडियो पॉज हो जाता है l

टोनी एलईडी के सामने आता है और कहता है
"यही वह मोमेंट था... जहां विश्व की जान जा सकती थी..."
कह कर एलईडी को फिर से चलाता है l जिसमें साफ दिख रहा है कि यश विश्व के गले में अपना बांह फंसा कर दबोच लिया है l फिर भी विश्व कोशिश करते हुए लाइन के पास यश को खिंचते हुए जा रहा था l तब यश चिल्लाता है विश्व को पकड़ने के लिए आउट हुए सभी खिलाड़ी लेनिन के साथ बाकी चार खिलाड़ी एक साथ यश और विश्व के ऊपर छलांग लगाते हैं l विश्व के ऊपर यश, यश के ऊपर लेनिन, लेनिन के ऊपर एक के बाद एक गिरते हैं l रेफरी फउल करार देते हुए इन्हें रोकता है पर कोई नहीं उठता है l तब पुलिस वाले आकर सब को हटाते हैं l विश्व के गर्दन पर यश की बांह अभी भी फंसा हुआ था l एक पुलिस वाला यश की हाथ निकाल कर विश्व को पलटता है l विश्व के चेहरे पर दो तीन चपत लगाता है l विश्व अचानक गहरी गहरी सांसे लेते हुए खांसने लगता है l फिर वह पुलिस वाला यश को हिला कर उठाने लगता है l पर यश नहीं उठता I वीडियो खतम हो जाता है l कमरे में लाइट जलने लगती है l

टोनी - पर तकदीर का मारा... यश... उसी मैच में मारा जाता है...
रोणा - मादरचोद विश्व मर गया होता... तो अच्छा था...
परीड़ा - पर मरा नहीं... हमारी लगाने के लिए... जिंदा बच गया हरामी...
बल्लभ - (टोनी से) उस दिन का मामला क्या था...
टोनी - यश... अपनी रखैल के एक्सीडेंट केस में... रिमांड पर पूछ-ताछ के लिए सेंट्रल जेल में था... वह... अपनी जगह किसी और को प्लॉट करना चाहता था... वह जिस पुलिस वाले से मदत मांगा था... वह पुलिस वाला... स्टिंग ऑपरेशन में पकड़ा गया और नौकरी से गया... यश के पास सिर्फ एक ही ऑप्शन था... जैल में ही किसी से मदत ली जाए... उस वक़्त मैं ही था... जो ऐसा कर सकता था... हाँ यह बात और है कि... उसे इस बात की जानकारी विश्व से ही मिली...
रोणा - मतलब विश्वा... तेरी कुंडली के बारे में.. अच्छी तरह से जानता था...
टोनी - हाँ... यही विश्व की खासियत है... जैल में आने वाले सभी की... चाहे वह पुलिस वाला ही क्यूँ ना हो... सबकी कुंडली पता लगा लेता है...
बल्लभ - अच्छा... इसका मतलब.. हम जैल में उसकी इंक्वायरी के लिए गए... तो उसकी नजर में आ गए...
टोनी - हाँ...
परीड़ा - उसे किसने इंफॉर्म किया होगा... खान...
टोनी - नहीं... वह इतने बड़े लोगों को... अपने टीम में नहीं रखेगा... क्यूं रखेगा... पर हाँ... जैल के छोटे मोटे स्टाफ हो सकते हैं...
रोणा - तेरी भी तो इंफॉर्मेशन नेट वर्क जबरदस्त था...
टोनी - पर विश्व का... मुझसे बीस कदम आगे था... या यूँ कहूँ... यहाँ के हर पुलिस स्टेशन में... कोर्ट में.. उसके लिए ख़बर निकालने वाले बहुत हैं... और वह लोग इतने शातिर हैं... किसीके भी नजर में नहीं आते...
परीड़ा - हूँम्म्म्म्म.... मतलब... जैल में रह कर जुर्म की दुनिया का हर दाव पेच सीख गया है...
टोनी - बिल्कुल...
बल्लभ - पर मेरे समझ में यह नहीं आया... यश विश्व को क्यूँ मारना चाहता था...
टोनी - क्यूंकि... यश को बाहर निकाल कर.. उसके जगह अपने किसी आदमी को प्लॉट करने के बदले... मेरी यश से यही शर्त थी...
तीनों - व्हाट...
टोनी - हाँ... मैं सेंट्रल जैल में तीन बार गया था... दो बार विश्व से मेन टू मेन फाइट में मुहँ की खाया... दुसरी बार तो विश्व मेरी... (अपना हाथ दिखाते हुए) कलाई तोड़ दी... (जबड़े भिंच कर) ऐसी तोड़ी की... भारी सामान आज तक नहीं उठा पा रहा हूँ...
परीड़ा - तुने... यश से जो डील की थी... क्या उसके बारे में... ओंकार जानता था...
टोनी - हाँ... अच्छी तरह से... वह जैल में... यश से मिलने आता था... और उसे ड्रग्स सप्लाई करता था...
परीड़ा - क्या... जैल में यश... ड्रग्स लेता था...
टोनी - इसी लिए तो मैं बाहर निकल पाया... पोस्ट मार्टम में मालुम पड़ा... एब-नॉर्मल हाइपर टेंशन के चलते... जब उसके ऊपर प्रेसर पड़ा... और नीचे से विश्व की कोहनी के ऊपर उसका सीना था... जिसके चलते उसकी पसलियाँ भी टुट गई थी... और साँस रुक गई थी...
रोणा - वह हरामी का जना विश्व... अच्छी तकदीर लेकर आया था... उसकी टांग मुझसे बच गई... अब उसकी जिंदगी.. यश से भी और... (टोनी से) तुझसे भी...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... क्या यही वजह है... कि ओंकार चेट्टी... तुझे मरवाने पर तूल गया...
टोनी - हाँ... जितना डर मुझे ओंकार के हाथ लग जाने से है... उतना ही डर मुझे विश्वा से भी है...
रोणा - क्या मतलब...
टोनी - यश के मौत की इंटर्नल इंक्वायरी के बाद... मैंने अपने वकील से... झारपड़ा जैल को शिफ्ट होने के लिए पिटीशन डाला... और तापस सर की सिफारिश के चलते... कोर्ट ने एक्सेप्ट भी कर लिया... और जिस दिन मुझे शिफ्ट किया जाना था... उस दिन विश्व मेरे पास मेरे सेल के बाहर आया था...

फ्लैशबैक

लेनिन अपने सेल में चहल कदम कर रहा है l की उसे महसुस होता है कि कोई उसके सेल के बाहर खड़े उसे देख रहा है l वह रुक कर देखता है, विश्व सेल के ग्रिल के बाहर खड़े होकर उसे देख रहा है l

लेनिन - क्या बात है विश्वा भाई...
विश्व - तो तुम यहाँ से जा रहे हो...
लेनिन - हाँ भाई... कहा सुना सब माफ कर देना... कोई गिला शिकवा मत रखना...
विश्व - क्यूँ...
लेनिन - (पहले झटका लगता है) (फिर मुस्कराने की कोशिश करते हुए) क्या भाई... यही तो रीत है... जाने वाला हमेशा यही कहता है...
विश्व - मरने वाला भी ऐसा ही कुछ कहता है...
लेनिन - (हकलाते हुए) ये.. यह... आ.. आप... क.. क क्या कह रहे हैं...
विश्व - जब यश मेरा गला दबोच रखा था... तैस में आकर मेरे कानों में उसने कह दिया था... तुने उसके साथ मेरी मौत की डील की थी...

लेनिन विश्व की बात सुन कर कांपने लगता है, डर उस पर इस कदर हावी हो जाती है कि उसके दांत आपस में टकराने लगते हैं और विश्व को साफ सुनाई देने लगती है l

विश्व - लेनिन... मैंने जिंदगी में... सिर्फ एक की जान लेने की सोचा था.... तु दुसरा बनने की कोशिश कभी मत करना... क्यूंकि तु झारपड़ा जा रहा है... इसलिए यह हमारी आखिरी मुलाकात होनी चाहिए... वरना अगली मुलाकात... तु वह दुसरा बन जाएगा...

इतना कह कर विश्व वहाँ से चला जाता है l

टोनी की कहानी खतम होते ही I इसका मतलब तु विश्वा के सामने कभी नहीं जाएगा l

टोनी - नहीं... आप लोग कानून से जुड़े हुए हो... डैनी.. इस नाम से वाकिफ होंगे आप लोग...
परीड़ा - हाँ अच्छी तरह से.... इस्टर्न बेल्ट का डॉन... वह कभी कभी ओड़िशा के जैल में... छुट्टियाँ मनाने आता है...
टोनी - हाँ.. सेंट्रल जैल में... स्पेशल सेल को वही इस्तेमाल किया करता था...
रोणा - तो... डैनी से विश्व का क्या संबंध....
टोनी - इस जैल में... विश्वा ही वह अकेला बंदा है... जिसने डैनी को मारा... उसकी नाक तोड़ी... फिर भी... वह आज तक जिंदा है...
तीनों - (चौंकते हैं) क्या...
टोनी - हाँ... किसी से भी पुछ लो... जैल के सभी नए पुराने कैदी....सब इसी बात पर चर्चा करते रहते थे.... और सबसे खास बात... विश्व जैल में रह कर अपनी ग्रेजुएशन पुरी की... जानते हो पेरेल पर कौन वकील लेके जाता था...
परीड़ा - हाँ... जानता हूँ... जयंत चौधरी... कटक में डैनी का वकील....
बल्लभ - यह बड़ी दिलचस्प बात बताई...
टोनी - हाँ... यानी किसी ना किसी तरह से... विश्व डैनी से जुड़ा हुआ है...
रोणा - अब समझा... यानी डैनी ही विश्व का मास्टर है... जिसने उसे लड़ना सिखाया... जिसने उसे नेट वर्क सेट अप सिखाया...
परीड़ा - क्या डैनी की राजा साहब से... कोई पुरानी दुश्मनी है क्या...
बल्लभ - पता नहीं... कभी मैंने सुना नहीं...
रोणा - पर फिर भी... विश्व अभी तक सामने क्यूँ नहीं आया है... साला यह बात कुछ... समझ में नहीं आ रहा है...

कुछ देर के लिए कमरे में खामोशी छा जाती है l सब के सब सोच में पड़ जाते हैं l

परीड़ा - क्या हमसे कुछ छूट रहा है...
बल्लभ - जबसे यह मनहूस रोणा वापस आया है... तब से... विश्व वगैर सामने आए... झटके पर झटका दिए जा रहा है...
रोणा - चुप बे साले वकील... मनहूस मैं नहीं... तु है... मैं तो उसे महल के अंदर मारने ही वाला था... पर तुने अपना दिमाग चलाया... जिंदा रख कर... रुप फाउंडेशन स्कैम को विश्व पर थोप कर जैल भिजवाने के लिए...
परीड़ा - ओ ह्ह्ह... स्टॉप ईट... यह मत भूलो... उसने दो जगह पर आरटीआई फाइल की है... होम मिनिस्ट्री में... केस और गवाहों की डिटेल्स... और अदालत में जांच की स्टेटस....
टोनी - ओ... तो यह बात है... अब समझा...
रोणा - तु क्या समझा बे...
टोनी - जैल में विश्व हमेशा... अलग थलग ही रहता था... अपने काम से मतलब रखता था... और लाइब्रेरी में पढ़ा करता था... वह हमेशा सब से दूर रहने की कोशिश करता था... एक ही उसूल बनाए हुए चलता था... किसीको छेड़ता नहीं था... कोई छेड़े... तो उसे छोड़ना नहीं... असल में कोई उसे छेड़ता था... तो उसमे... विश्व की मर्जी शामिल होती थी...
रोणा - कैसे...
टोनी - मैं जब जैल के अंदर गया... उसका रौब और रुतबा देख कर... उससे उलझने की कोशिश करता था... वह ज्यादातर अवॉइड करता था... फिर एक दिन.. मैंने खुल्लमखुल्ला उससे उलझने की कोशिश की... सेटर डे स्कैरी नाइट सोल्यूशन फाइट के लिए चैलेंज कर दिया... अंजाम... आधा मिनट भी ना टिक पाया... मैंने चालाकी से... उसे मेन-हैडलींग चार्ज में फंसाना चाहा... तब मुझे मालुम हुआ... की जहां जहां मैंने उससे उलझा... प्रोवक किया... वह सब सीसीटीवी में रिकार्ड हो गया था... यानी केस मुझी पर रिवर्स बाउंस हो जाता...

टोनी की बात सुन तो रहे थे, पर समझ में किसीके भी नहीं आ रहा था l

परीड़ा - इसका क्या मतलब हुआ...
टोनी - क्या परीड़ा बाबु... इतना भी समझ नहीं पाए... वह अब जिससे भी उलझेगा... उसी के हाथों से... सबुत बनाएगा... और उसीके खिलाफ इस्तमाल करेगा...

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बुटीक में अनु वीर के लिए कपड़े देख रही है l इतने में अनु देखती है वीर एक लड़की की पुतले के सामने खड़े होकर उसके पहनावे को देख रहा था I थोड़ी देर बाद अनु वीर को आवाज देती है
"राज कुमार जी"
वीर मुड़ कर देखता है अनु उसे बुला रही है, वीर उसके पास जाता है

वीर - क्या है अनु... मैंने यहाँ तुम्हारे लिए ड्रेस सिलेक्शन करने के लिए आया था... पर तुम पहले मेरे ड्रेस के लिए जिद पकड़ ली...
अनु - (बड़ी मासूमियत के साथ) वह तो आपको तय करना था...
वीर - क्या...
अनु - हाँ... (थोड़ी शर्माते हुए) आखिर राजकुमारी वाला ड्रेस कैसा होता है... आप ही जानते होंगे ना...
वीर - करेक्ट... (अपने सिर पर हाथ मारते हुए) मैं यह कैसे भूल गया... (सेल्स मेन से) ओ.. हैलो...
से. मे - यस सर...
वीर - वह जो (पुतले को दिखाते हुए) ड्रेस है ना... वह पैक कर दो...
से. मे - जी... सर वह... उससे भी बेहतर... ड्रेसेस हैं हमारे पास...
वीर - तुमसे जितना कहा... उतना करो ना...
से. मे - जी.. जी सर...

वीर और अनु के लिए ड्रेस पैक करा दी जाती है l वीर दोनों पैकेट लेकर काउंटर पर बिल पेमेंट करने को होता है कि

अनु - (थोड़े झिझक के साथ) रा.. राज... कुमार जी...
वीर - (मुस्कराते हुए) जी राजकुमारी जी...
अनु - (शर्म से गड़ जाती है) प्लीज आप मुझे ऐसे ना कहिए...
वीर - कोई और दिन होता... तो मैं मान लेता... पर आज नहीं... कहिए... क्या हुकुम है... आपका खादिम तैयार है...
अनु - (अपने दोनों होंठों को दबा कर अपनी शर्म को छुपाने की कोशिश करते हुए) वह... मुझे... कुछ और भी खरीदारी करनी है...
वीर - ठीक है... (कार्ड अनु के हाथ में देते हुए) जो चाहे खरीद लो... आज का दिन तुम्हारा है... मैं बाहर इंतजार कर रहा हूँ...

कह कर वीर बुटीक के बाहर के बाहर आ जाता है l वहाँ से वह कहीं फोन करता है I अनु उसे कांच के पार से देखती है और वीर की बात करने के अंदाज से उसे पता लग जाता है कि शायद वीर ने सुबह से ही किसी को कुछ काम दिया था और वह चिल्ला चिल्ला कर उसका काम कितना दूर गया यह पता कर रहा था l कुछ ही देर में अनु अपनी खरीदारी खतम कर बाहर आती है l वीर देखता है अनु के पीछे एक गठरी ढ़ो कर बुटीक का एक बंदा खड़ा है l वीर उस गठरी की साइज देख कर चौंक जाता है, पर अनु से कुछ नहीं कहता है l अपनी गाड़ी की पिछली सीट पर वह गठरी रखवा देता है l अनु वीर से पर्स मांगती है तो वीर उसे पर्स दे देता है l अनु उसमें से पांच सौ रुपये निकाल कर उस बंदे को दे देती है l वह बंदा अनु को सैल्यूट करता है तो

अनु - ऐ... मुझे क्यूँ सलाम कर रहे हो... इनकी पैसे हैं... और जानते हो... आज इनका जन्म दिन है... इनको सलाम करो और.. दुआएँ दो...
बंदा - सलाम साहब... भगवान आपको लंबी उम्र दे... सारी खुशियां दे... ढेर सारा बरकत दे...
वीर - ठीक है.. ठीक है...

वीर और अनु गाड़ी में बैठ जाते हैं l वीर गाड़ी रास्ते पर दौड़ा देता है l गाड़ी चलाते हुए

वीर - यह क्या अनु... मैं तो तुम्हारे साथ... अपना जन्म दिन मनाना चाहता था... तुम जहां भी जा रही हो... मेरे जन्म दिन की ढिंढोरा पीट रही हो...
अनु - राजकुमार जी... जन्म दिन पर दुआएँ बटोरने चाहिए और खुशियाँ लुटाने...
वीर - अच्छा.. खुशियाँ... मतलब पैसा...
अनु - किसी के लिए... पैसा जरूरत होती है... उनके लिए वह खुशियाँ ही तो है... आप जरूरत मंदों को... आज उनकी जरूरत को दीजिए... बदले में... वह लोग आपको दिल से दुआएँ देंगे... देखना उनकी दुआएँ... आपको सचमुच बरकत और खुशियाँ देंगी...
वीर - (अनु की बातेँ सुन कर) उफ... तुम और तुम्हारी बातेँ... सच में... तुम्हारे अंदर एक राजकुमारी वाला सोच है... वैसे अब हम कहाँ जाएं... राजकुमारी जी...

अनु शर्मा जाती है और खिड़की की ओर अपना मुहँ फ़ेर कर हँसने लगती है, वीर को यह सब कांच से दिख जाता है l अनु की हँसी उसके दिल को ठंडक पहुँचाता है l वह भी हँसते हुए गाड़ी चलाता है l

वीर - राजकुमारी जी... आपने कुछ कहा नहीं...
अनु - (थोड़ी सीरियस होने की कोशिश करते हुए) कस्तूर बा वृद्धाश्रम...
वीर - क्या... क्यूँ...
अनु - उसके बाद... मदर टेरेसा अनाथालय...
वीर - (गाड़ी में ब्रेक लगाता है, और अनु को बड़ी हैरानी भरे नजरों से देखता है) इस गठरी में क्या है अनु...
अनु - उस आश्रम में देने के लिए लिए कुछ शॉल और चादर...
वीर - (वीर हँस देता है) अनु... तुम गजब हो... तुम्हें तो मैंने अपने लिए कुछ खरीदने के लिए कार्ड दिया था...
अनु - (थोड़ी गंभीर हो जाती है) अपने लिए ही तो कर रही हूँ...
वीर - क्या...
अनु - (अचानक भाव बदल कर, मासूमियत के साथ) क्या आज इस राजकुमारी की हसरत अधूरी रह जाएगी...
वीर - कभी नहीं...

वीर गाड़ी को वृद्धाश्रम की ओर ले जाता है l


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रुप आज कॉलेज गई नहीं है l अपने कमरे में बैठ कर अपने और विश्व की मुलाकात और बातों के बारे में याद करते हुए अपने आप में मुस्करा रही थी l तभी उसकी फोन बजने लगती है l वह फोन के स्क्रीन पर चाची माँ डिस्प्ले होते देखती है I रुप फोन उठाती है

रुप - हैलो... चाची माँ...
सुषमा - कैसी है मेरी बच्ची...
रुप - बस आपका आशीर्वाद है...
सुषमा - और... आज सुबह सुबह वीर को विश किया के नहीं...
रुप - (पहले हैरान होती है फिर बात समझ कर) ओह शीट...
सुषमा - क्या हुआ... उस दिन तो बड़ी फिक्र कर रहे थे... वीर कहाँ गया... वीर नहीं आया...
रुप - (शर्मिंदगी से अटक अटक कर) वह चाची माँ... दरअसल... मैं आज देर से उठी... जब नाश्ते के लिए गई... तब तक वीर भैया... कहीं बाहर जा चुके थे... शीट... बड़ी गलती हो गई चाची माँ...
सुषमा - हा हा हा हा... लगता है... वीर के जन्मदिन पर तुम उल्लू बन गई...
रुप - क्या मतलब...
सुषमा - मैं अभी बहु से बात कर रही थी... वीर ने आज शाम को पार्टी रखने के लिए कह कर बाहर चला गया है...
रुप - क्या... यानी भाभी ने भी मुझसे छुपाया...
सुषमा - (हंसते हुए) खैर... मैंने बहु से कुछ कहा है... उससे पता करो और पूछ लो....
रुप - क्या... क्या कहा है... माँ...

तब तक फोन कट जाता है l रुप अपना फोन बेड पर पटक कर शुभ्रा के कमरे में जाती है l शुभ्रा को देख कर

रुप - भाभी...
शुभ्रा - क्या हुआ... मेरी गुस्सैल ननद...
रुप - आज वीर भैया का जन्म दिन है... और आपने मुझे बताया नहीं...
शुभ्रा - कैसे बताती... और कब बताती...
रुप - मतलब..
शुभ्रा - तुम तो अनाम के गाल पर गुस्सा उतार कर सो रही थी... तुम जब होश में आई... तब भी.. तुम अनाम के सुरूर में थी... और तब तक... वीर जा चुके थे...
रुप - (थोड़ी नॉर्मल हो कर) अच्छा वीर भैया... सुबह से किसीसे बिना बात किए चले गए क्या...
शुभ्रा - हाँ... पर शाम को पार्टी अरेंज करने के लिए कह कर गए हैं....
रुप - ओ... (खुश होते हुए) चलो किसी की बर्थ डे... हम पहली बार...(चहकते हुए) मिलकर मनाएंगे....
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... तुम्हारा बर्थ डे... हम मना नहीं पाए... पर वीर की बर्थ डे... हम जरूर मनाएंगे...
रुप - (खुशी के साथ उछलते हुए) हाँ....

शुभ्रा उसे खुशी के मारे उछलते हुए देखती है पर उसके चेहरे से धीरे धीरे हँसी गायब होने लगती है l थोड़ी बहुत उछल कुद के बाद रुप अचानक से रुक जाती है l

रुप - अच्छा भाभी... चाची माँ ने आपको कुछ और भी कहा है ना... बताओ ना क्या कहा...
शुभ्रा - (रुप की गालों पर हाथ फेरते हुए) आज बर्थ डे खतम होने दो... कल बताती हूँ...
रुप - पर आज क्यूँ नहीं...
शुभ्रा - कुछ बातेँ अपने वक़्त पर की जाए... तो उन बातों का महत्व रहता है...

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होटल के कमरे में चारों बहुत टेंशन में दिख रहे थे l टोनी के खुलासे के बाद परीड़ा, रोणा और बल्लभ के माथे पर शिकन पड़ चुका था l कमरे में बेशक चार लोग थे पर इतनी शांति पसरी हुई थी के बाहर खड़ा कोई भी आदमी बेझिझक कह देता अंदर कोई नहीं है l कुछ देर बाद

टोनी - परीड़ा बाबु... वैसे यह वीडियो... आपको मिला कहाँ से...
परीड़ा - हेड क्वार्टर के आर्काइव से...
टोनी - पर आप जिस फाइल में विश्व की तस्वीर लाए हैं... वीडियो वाला विश्व दोनों अलग दिखते हैं...
रोणा - बे घन चक्कर... वह फोटो सात साल पहले वाला है... अब वीडियो में वह ऐसे दिख रहा है...
टोनी - हाँ... (फाइल में से विश्व की फोटो उठा कर) सात साल पहले... विश्वा की मूछें निकल रही थी... वीडियो में... बाल बढ़े हुए दाढ़ीवाला दिख रहा है....
परीड़ा - ह्म्म्म्म...
बल्लभ - क्या... अब भी... ऐसे ही दिख रहा होगा...
रोणा - साला... जितना भी जानने की कोशिश कर रहा हूँ... उतना ही मिस्टेरीयस होता जा रहा है...
परीड़ा - रिलैक्स... यह वीडियो देखते वक़्त... मुझे भी ऐसा लगा था... इसलिए यहाँ आने से पहले... मैंने एक स्कैच आर्टिस्ट को... इस वीडियो की स्टील दे कर आया था... मेरे हिसाब से... कुछ देर बाद... वह विश्व के तरह तरह की स्कैच लेकर आ रहा होगा...
बल्लभ - ह्म्म्म्म...

फिर कमरे में शांति छा जाती है l क्यूँकी अब किसीके पास कहने सुनने के लिए कुछ बाकी था ही नहीं I डोर बेल बजती है, चारों एक दुसरे को देखने लगते हैं, फिर सभी टोनी की ओर देखते हैं l

टोनी - ठीक है... समझ गया...

कह कर दरवाजे के पास जाता है और दरवाजे की मैजिक आई से बाहर खड़े बंदे को देखता है l बाहर खड़े बंदे के हाथ में एक बड़ी फाइल जैसी लिफाफा दिख रहा था l टोनी वापस आ कर परीड़ा से

टोनी - लगता है... आप ही का बंदा आया है... हाथ में फाइल और लिफाफा है...
परीड़ा - ओ अच्छा...

कह कर परीड़ा अपनी जगह से उठता है और दरवाज़ा खोलता है l बाहर परीड़ा के ही ऑफिस का आदमी था l वह परीड़ा को देख कर सैल्यूट करता है और लिफाफा परीड़ा को बढ़ा देता है, परीड़ा उससे लिफाफा ले लेता है और उसे जाने के लिए कहता है, फिर दरवाजा बंद कर देता है l
परीड़ा वापस इन लोगों के पास आकर लिफाफे से कुल सात स्कैच निकाल कर टेबल पर रख देता है l किसी स्कैच में छोटे बालों के साथ है, किसी स्कैच में छोटे बाल और दाढ़ी में है, किसी स्कैच में लंबे बाल बगैर दाढ़ी मूँछ के साथ है l इसी तरह सात अलग अलग तरह दिखने वाले स्कैच सबके सामने थे l बल्लभ एक स्कैच उठाता है

बल्लभ - हाँ... इसी तरह दिख रहा था... हाउस कीपिंग बॉय बन कर आया था... छोटे दाढ़ी में बिल्कुल ऐसे ही दिख रहा था...
रोणा - देखा... मैं ना कहता था... यह विश्वा ही था... जो बार बार आकर... मेरी मार कर जा रहा था....
परीड़ा - जरूरी नहीं कि... वह दाढ़ी रखता हो... या तो दाढ़ी नकली होगी...
बल्लभ - या फिर... अब तक शेव कर लिया होगा...
टोनी - अच्छा... तो अब मैं आप लोगों से दूर... बहुत दूर जाना चाहता हूँ...
रोणा - क्यूँ...
टोनी - अरे रोणा बाबु... अब आपको विश्वा के बारे में... पूरी जानकारी मिल गई है... अब मेरी क्या जरूरत...
रोणा - क्यूँ.. तुझे विश्वा से... अपनी कलाई का बदला नहीं लेना...
टोनी - हा हा हा हा... (हँसने लगता है) रोणा बाबु... उसने अपनी दुश्मनी निकलने के लिए... राजा साहब को चुना है... मतलब वह मेरे लेबल से भी बहुत ऊपर है... वह अब तक राजा साहब के लिए प्लॉट तैयार कर चुका होगा... मतलब जो जो लोग उसके डायरि में चढ़े होंगे... हर एक के लिए... वह जाल बिछा चुका होगा... आगे आगे आप खुद देखना... उसके गुनाहगार... उसके लिए सबूत बनाएंगे... फिर वह उन सबूतों के दम पर... उनको लपेटे में लेगा... उसने मुझसे कहा था... सिर्फ़ एक को मारने के लिए उसने सोचा था... रोणा बाबु... मुझे दुसरा हरगिज नहीं बनना...
रोणा - बे... क्या बकवास कर रहा है...
बल्लभ - रोणा... जाने दे इसे... इसका काम खतम हो चुका है... और यह बकवास नहीं कर रहा है... हमें आगाह कर रहा है...
रोणा - वकील... तु कहाँ उसके बातों में फंस रहा है...
परीड़ा - वकील ठीक कह रहा है... रोणा... सावधानी हटी... समझो.... टट्टें कटी...
रोणा - अरे.. मेरा कहने का मतलब है... सावधान ही रहना है... पर लगता है... विश्व नाम का हौआ ने सब के गांड में सुतली बम लगा दिया है... और उसके बारूद को सुलगा दिया है... साले ज्ञान दे रहा है... गांड फटे तो फटे... पर ध्यान ना हटे...
बल्लभ - (चिल्ला कर) चुप रहो सब... (सब चुप हो कर प्रधान की ओर देखने लगते हैं) पहले यह सोचो... दो दिन बाद... राजा साहब... भुवनेश्वर आ रहे हैं... उन्हें विश्वा के बारे में... कहेंगे क्या...

सब चुप रहते हैं और सब सोचने लगते हैं l कुछ देर बाद चुप्पी तोड़ते हुए

टोनी - देखा साहब... टट्टे कटे या ना कटे... पर उससे पहले... यहाँ सबकी फटने लगी है...

सब गुस्से से टोनी को घूरने लगते हैं l

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पुरी कोणार्क रोड
मेराइन ड्राइव
रास्ते के एक किनारे गाड़ी पार्क है l कसूरीना और शीशम के पेड़ों के नीचे अनु बैठी हुई है और थोड़ी दूर पर समंदर के लहरों पर वीर कुद रहा है और भाग रहा है बिल्कुल एक बच्चे की तरह l अनु उसे देख कर, उसके बचपने को देख कर खुश भी हो रही थी और हँस भी रही थी l वीर थक कर अनु के पास आता है और धड़ाम से नीचे गिरते हुए अनु के पास हांफते हुए लेट जाता है l थोड़ी देर अपने सांसो पर काबु पाने के बाद एक कृतज्ञता भरी नजरों से अनु को देखते हुए बैठता है

वीर - अनु... तुम कहाँ थी... इतने दिनों तक..
अनु - यह क्या राजकुमार जी... चार महीने से आप ही के पास ही तो हूँ...
वीर - नहीं नहीं नहीं... चार महीने पहले... कहाँ थी यार...
अनु - (शर्मा जाती है) मैं यहीं थी...
वीर - यार... पहले क्यूँ नहीं मिली...
अनु - वह कहते हैं ना... समय से पहले और भाग्य से अधिक...
वीर - हाँ... कितनी प्यारी बातेँ करती हो... यार... (फिर से लेट जाता है) सच में... तुम एक अनमोल तोहफा हो... कहाँ तुम्हारा दिन खास बनाने चला था... पर तुम... तुमने आज का दिन मेरे लिए बहुत खास बना दिया...

वीर उठ बैठता है, अपना चेहरा अनु के चेहरे के पास लेकर जाता है l अनु जो अब तक शर्मा कर वीर को सुन रही थी अचानक उसकी धड़कने बढ़ जाती है l

वीर - थैंक्यू...
अनु - (अपनी पलकें झुका कर) किस बात के लिए...
वीर - मुझे वृद्धाश्रम और अनाथालय में ले जाने के लिए... उनके बीच हमने कुछ पल गुजारे... बुटीक से जितने भी शॉल और चादर खरीदे थे... उन्हें बांट दिया.... अच्छा हुआ... एक महीने के लिए... तुमने उनके राशन पानी की व्यवस्था कर दिया... और बदले में उनसे मेरे लिए ढेर सारा आशिर्वाद... और शुभकामनाएं बटोर लाई....
अनु - वह सब आपका हक था... आपके लिए था... पैसे भी तो आप ही के थे...
वीर - हाँ... पर देखो... जो कपड़े तुमने मेरे लिए लिया... और मैंने तुम्हारे लिए लिया... अभी तक हमने ट्राय नहीं किया...
अनु - कोई बात नहीं... वह कपड़े पहनने के लिए भी मौका आगे आयेंगे...
वीर - हाँ... ठीक ठीक...

वीर फिर से वहाँ से उठ जाता है और थोड़ी दुर आगे की ओर जाने लगता है l उसके देखा देखी अनु भी उठ खड़ी होती है l वीर अचानक मुड़ता है l

वीर - (चिल्लाते हुए) अनु... आज मैं बहुत खुश हूँ... (कह कर अपनी बाहें फैला देता है)

अनु समझ जाती है वीर क्या चाह रहा है l वह शर्मा जाती है और खुदको एक कसूरीना पेड़ के पीछे कर लेती है l

वीर - यार यह गलत बात है... तुम अपना वादा नहीं निभा रहे हो...

अनु पेड़ की ओट से वीर के तरफ देखती है वीर वैसे ही बाहें फैला कर खड़ा हुआ है l अनु की शर्म और हया और भी बढ़ जाती है l वह खुद को पेड़ की ओट में लेकर अपनी आँखे और होंट भींच लेती है l तभी एक आवाज़ उसके कानों में पड़ती है

- बड़ी शर्मा रही है लौंडी... कहो तो हम ट्राय करें...

अनु अपनी आँखे खोल कर देखती है एक जीप में चार बंदे बियर की बोतल हाथ में लेकर उसीके तरफ देख कर बात कर रहे हैं l अनु घबरा जाती है और देखती है वीर गुस्से से आग बबूला हो कर उनके तरफ जाने लगता है l अनु भाग कर वीर के गले लग जाती है l

- आये हाय... क्या सीन है...
- कभी हमारे गले भी लग कर देखो...
वीर - (दहाड़ते हुए) जुबान सम्भाल कर...
- कमाल है... माना कि तेरी माल है... पर माल तो है ना... चल तु जितने पैसे में लाया है... तेरे को हम उसका दुगना लौटा देते हैं... चल लड़की को छोड़ और इधर से फुट...

वीर अनु को अलग करता है और भाग कर जाता है बदजुबानी करने वाले को जैसे ही घुसा मारने को होता है उसके तीन साथी गाड़ी से कुदते हुए उतरते हैं और वीर को घेर लेते हैं l

- ऑए हीरो... छमीया के लिए हीरो बन रहा क्या...

बस उतना ही कह पाया l एक जोरदार घुसा उसके जबड़े पर वीर जमा चुका था l वह छिटक कर गाड़ी से टकरा जाता है l इतने में बचे हुए तीन बंदे वीर पर हमला कर देते हैं l एक बंदा वीर पर पंच मारता है, वीर झुक कर खुद को बचाते हुए दुसरे के सीने पर एक किक मारता है और घूम कर तीसरे के कनपटी पर कोहनी से मारता है l इतने में वह पहला वाला अपना हाथ चलाता है तो वीर उसके हाथ को मोड़ देता है कि तभी

- ऐ.. हीरो...

वीर पहले वाले के हाथ को मरोड़ते हुए देखता है l वह दुसरा बंदा जिसे लात पड़ी थी वह अनु के पास पहुँच कर अनु के पीछे जा कर अनु का गला पकड़ लिया था l यह देख कर वीर गुस्से से पागल ही हो जाता है l पहले वाले की हाथ को ऐसा झटका देता है कि उस बंदे का बांह की जोड़ कंधे से टुट जाता है l वह पहला वाला बंदा दर्द के मारे ऐसे चिल्लाता है जैसे उसके प्राण पखेरु उड़ने वाले हो l वह मंज़र इतना खौफनाक था कि वह तीसरा बंदा जिसने अनु को पकड़ा हुआ था उसकी मूत निकल जाता है l
- देख मैंने छोड़ दिया... (अनु को छोड़ते हुए) आगे नहीं आना... प्लीज... (फिर वह बंदा नीचे झुक कर रेत उठा कर वीर के आँखों पर फेंकता है)

वीर के आँखों में रेत गिरती नहीं है पर कुछ देर के लिए वह अपना चेहरा घुमा लेता है l इतने में वह चार बंदे अपनी गाड़ी लेकर फरार हो जाते हैं l वीर जब तक नॉर्मल होता है अनु भागते हुए उसके गले लग जाती है l वीर भी उसे गले लगा लेता है l कुछ देर बाद वीर अनु से पूछता है l

वीर - डर लगा...
अनु - (वीर के सीने से लग कर ही अपना सिर हिला कर ना कहती है)
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ... ध्यान से सुनना...
अनु - जी...
वीर - (अनु को खुद से अलग कर एक गहरी सांस छोड़ते हुए) मेरे बारे में... सभी कुछ ना कुछ बातेँ कर रहे होंगे... (कुछ देर रुक कर अनु के आँखों में झांकते हुए) वह सब सच हैं... या होंगे.... कितनी लड़कियाँ.. कितने औरत मेरी जिंदगी में आईं... किसीके आँखों में खौफ था... तो किसी के आँखों में मतलब... एक तुम्हीं हो... जिसके आँखों में ना तो खौफ था... ना ही मतलब... तुम बहुत अच्छी हो... बहुत बहुत अच्छी हो... तुम खुद से ज्यादा... अपने आस पास के लोगों के... अपनों के लिए सोचती हो... पर अपने लिए नहीं.. मुझे हमेशा किस्मत से एक ही शिकायत रहा... के कास... तुम मुझे पहले मिली होती...

तभी अनु की फोन बजने लगती है, पर अनु फोन नहीं उठाती, फोन बजते हुए कट जाती है l फोन की रिंग बंद होते ही वीर फिर फिर से खुद को तैयार करता है अनु से कहने के लिए की अनु की फोन फिरसे बजने लगती है l

वीर - उठा लो अनु... फोन उठा लो...
अनु - जी...

अनु अपनी वैनिटी पर्स से फोन निकालती है l देखती है उसमें पुष्पा डिस्प्ले हो रहा है l

अनु - (हैरानी के साथ) पुष्पा... (फोन उठा कर) हैलो....
- हैलो... अनु... (रोती हुई आवाज में) यहाँ... अनर्थ हो गया है अनु...
अनु - दादी... क्या हुआ... तुम रो क्यूँ रही हो... पुष्पा... तुम पुष्पा की फोन से...
दादी - तु जहां भी है... जल्दी आजा... मट्टू भी यहाँ नहीं है...
अनु - क्या हुआ दादी... कुछ बोलो तो सही...
दादी - पुष्पा ने अपनी हाथ की नस काट ली है...
अनु - क्या...
दादी - हाँ... अब मैं बस्ती वालों की मदत से... उसे सिटी हस्पताल ले जा रही हूँ... तु जल्दी पहुँच...
अनु - ठीक.. है.. ठीक है दादी... (फोन काट कर वीर को देखती है) राजकुमार जी...
वीर - मैं समझ गया... चलो आज नहीं तो फिर कभी... कहाँ जाना है...
अनु - जी... सिटी हॉस्पिटल...

वीर और अनु गाड़ी में बैठते हैं l वीर गाड़ी को तेजी से भगाता है करीब डेढ़ घंटे के बाद सिटी हॉस्पिटल में पहुँच जाते हैं l गाड़ी में अनु पुष्पा के लिए भगवान को प्रार्थना कर रही थी l वीर उसकी हालत देख कर गाड़ी में चुप रह गया था I दोनों भागते हुए कैजुअलटी में पहुँचते हैं l वहाँ मृत्युंजय भी दिख जाता है l वीर को वहाँ अनु के साथ देख कर मृत्युंजय और दादी दोनों हैरान होते हैं l

अनु - मट्टू भैया... आप कब आए... और पुष्पा कैसी है..
दादी - (अनु से) इतनी देर... कहाँ थी... क्या कर रही थी... (अनु सिर झुका कर चुप रहती है)
वीर - वह... दरअसल... हम दोनों... ऑफिस के एक जरूरी काम से... थोड़ा बिजी थे... (मृत्युंजय से) वैसे मृत्युंजय... अब कैसी हालत है... पुष्पा की...
मृत्युंजय - (रोते हुए) अब ठीक है... समझ में नहीं आ रहा है... यह हमारे घर क्या हो रहा है... माँ को गए... कुछ ही दिन हुए हैं... और अब यह... (फुट फुट कर रोने लगता है)

वीर उसे दिलासा देता है और जरूरत पड़ने पर खबर करने के लिए कह कर हस्पताल से बाहर निकलता है l गाड़ी के पास पहुँच कर डोर खोलते वक़्त उसे पिछली सीट पर वह कपड़े दिखते हैं जो अनु और वीर ने एक दुसरे के लिए खरीदे थे l वीर टुटे मन से गाड़ी में बैठता है और गाड़ी चलाते हुए हस्पताल से निकल कर शहर की रास्ते पर पहुँच जाता है lउसका मन आज बहुत खराब था l आज वह अपनी दिल की बात कहने और अपने प्यार की इजहार करने के बहुत करीब था l पर आखिरी वक़्त पर किस्मत ने उसे फिर से दगा दे दिया l गाड़ी चली जा रही थी कि उसका फोन बजने लगता है l वह बिना डिस्प्ले देखे गाड़ी की ब्लू टूथ ऑन कर देता है l

- हा हा हा हा.. (किसीके हँसने की आवाज सुनाई देती है)
वीर - हू इज़...
- अबे ओ.. अंग्रेज के चमन चुतिए...
वीर - (गाड़ी में ब्रेक लगाता है) कौन.. कौन हो तुम...

वीर के गाड़ी के पीछे गाड़ियों के हार्न सुनाई देता है l

- अबे चमन चुतिए... या तो गाड़ी चलाते हुए बात कर... या फिर गाड़ी साइड कर... (वीर गाड़ी साइड पर लेता है) शाबाश... गुड बॉय...
वीर - कौन हो तुम...
- अबे भोषड़ी के.. इतनी जल्दी भूल गया...
वीर - (चुप रहता है)
- तेरी जिंदगी... मुझे बर्बाद करनी है... मान गया... तु पक्का वाला हरामी है... मुझे अंदाजा नहीं था... तु एक लड़ाकू हो सकता है... मेरे एक बंदे का हाथ तोड़ दिया तुने...
वीर - (हैरानी से आँखे फैल जाता है)
- हाँ हराम जादे... मेरी नजर है तुझ पर... मैंने तुम क्षेत्रपालों के किस्मत की चांद पर ग्रहण बनने की ठान ली है... और किस्मत की बात देखो... किस्मत भी मेरा साथ दे रही है... तु भले ही मेरे आदमियों पर भारी पड़ा... पर तकदीर तेरी गांडु निकला रे... तु... अपनी छमीया को... दिल की बात नहीं बोल सका.... हा हा हा हा हा...

वीर और भी ज्यादा हैरान हो जाता है और उतना ही कसमसा जाता है l
Nice and Beautiful Update 😍😍
 

Lib am

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👉छियानबेवां अपडेट
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विश्व ऐसे चौंकता लगता है जैसे प्रतिभा ने उसे साक्षात भूत के दर्शन करवा दिया l

प्रतिभा - ऐसे क्या देख रहा है... अगर मैं नंदिनी की जगह होती और.... तेरी जगह अगर तेरे डैड होते... तो मैं भी बिल्कुल वही करती... जो नंदिनी ने किया... और एक क्या... दो चार और रसीद कर देती...
तापस - क्या रसीद कर देती भाग्यवान... (विश्व के कमरे के बाहर खड़े होकर)
प्रतिभा - (शॉक से हकलाते हुए) आ... आप..
तापस - (अंदर आते हुए) क्या हुआ... गलत टाइम पर आ गया...
प्रतिभा - हाँ... मेरा मतलब है नहीं...
विश्व - डैड... क्या आप माँ के हाथों से... थप्पड़ खाए हैं...
तापस - ऐसी नौबत तो कभी आई नहीं... और ना ही कभी आने दूँगा...
विश्व - मतलब आप माँ से डरते हैं...
तापस - हाँ... नहीं...(संभल जाता है) नहीं.. मेरा मतलब है... (पुचकारते हुए) मैं तो बहुत प्यार करता हूँ...
प्रतिभा - (अपनी आँखे सिकुड़ कर) हो गया...
तापस -(दुबकते हुए) बिल्कुल.. बिल्कुल... बस एक कप चाय की तलब लगी है...
प्रतिभा - मिल जाएगा... (कह कर प्रतिभा वहाँ से निकल कर किचन में चली जाती है)

विश्व और तापस दोनों आकर ड्रॉइंग रुम में बैठते हैं l तापस अपनी भवें उठा कर और सिर हिला कर पूछता है
"क्या हुआ"
विश्व अपनी पलकें झपका कर सिर ना में हिला कर
"कुछ नहीं"
तापस एक शैतानी मुस्कराहट के साथ अपने गाल पर हाथ फ़ेर कर देखता है l विश्व जबड़े भिंच कर तापस को देखता है l

तापस - अरे यार... मुझसे कैसी शर्म... चल बता ना... क्या हुआ... चल बता

विश्व एक नजर तापस को देखता है और एक गहरी सांस छोड़ते हुए सारी बातेँ बता देता है l सारी बातेँ सुन कर तापस सोचने के अंदाज में कहता है

तास - ह्म्म्म्म... बात तो गम्भीर है... पर लगता है... तुम्हारी माँ सही है...

प्रतिभा - देखा... (अंदर आकर तापस को चाय का कप देते हुए) मैं ठीक ही कह रही थी...
विश्व - नहीं... आप दोनों गलत हो...
दोनों - कैसे...
विश्व - वह थप्पड़... प्यार को ना पहचान ने वाला थप्पड़ नहीं था...
प्रतिभा - मतलब.. (चहकते हुए) तुझे नंदिनी का प्यार कुबूल है...
विश्व - नहीं...
प्रतिभा - (चिढ़ कर)अच्छा... तो.. वह थप्पड़ किस लिए था...
विश्व - (उस क्षण को याद करते हुए) माँ... वह मेरे तरफ कृतज्ञता वाली नजर से देखते हुए हाथ बढ़ाती हैं... कहती हैं कि... हो सकता है, यह हमारी आखिरी मुलाकात है... मैं भी अपना हाथ बढ़ा कर हाथ थाम लेता हूँ... फिर... अचानक से वह... भावुक हो गईं... मेरा हाथ छोड़ कर मेरे सीने से लग गईं... धीरे धीरे उनकी बाहों की कसाव बढ़ती चली गई... फिर अचानक... उनकी एक हाथ मेरे सीने पर आती है और मेरी शर्ट को मुट्ठी में जकड़ लेती हैं... फिर मेरे चेहरे को हैरानी भरे नजरों से देखने लगतीं हैं... फिर दुसरे हाथ से भी मेरी शर्ट को मुट्ठी में पकड़ कर मुझे झकोरते हुए धक्का देतीं हैं... फिर... (विश्व कहते कहते रुक जाता है) फिर वह थप्पड़ मार देती हैं... मैं हैरान हो कर उनको देखता हूँ... उनके चेहरे पर... मेरे लिए जैसे कुछ सवाल थे... जैसे वह पुछ रहीं थीं... (फिर रुक जाता है)
दोनों - क्या पुछ रही थी...

विश्व कुछ कहने को होता है कि उसका फोन रिंग होने लगता है l वह अपना फोन उठाता है, देखता है वीर का कॉल था l

विश्व - हैलो... वीर
वीर - हैलो मेरे दोस्त.. कैसे हो...
विश्व - बढ़िया... तुम बताओ... भई.. दिखे नहीं कुछ दिनों से... फोन भी स्विच ऑफ आ रहा था...
वीर - क्या करूँ यार... माँ की बहुत याद आ रही थी... इसलिए माँ के पास चला गया था...
विश्व - ओ... तो क्या प्लान है आज तुम्हारा...
वीर - कुछ नहीं... बस तुम... मुझे बेस्ट ऑफ़ लक कह दो...
विश्व - कह दूँगा... पर किस लिए...
वीर - मैं आज अनु को प्रपोज करने जा रहा हूँ...
विश्व - वाव... पिछली बार कुछ प्रॉब्लम हुआ था क्या...
वीर - हाँ... किसी की डेथ हो गई थी... मौका नहीं बन पाया था...

विश्व - तो... आज कौनसा मौका है...
वीर - मेरा जन्म दिन है यार...
विश्व - अरे वाह... जन्म दिन की हार्दिक बधाई... फिर पार्टी तो बनता है...
वीर - हाँ... अगर मैं अनु को प्रपोज कर पाया तो...
विश्व - जरूर जरूर... तुम्हारा प्यार सच्चा है... अनु भी तुमसे प्यार करती है... आज तुम... कुछ इस तरह से प्रपोज करना की... आज का दिन अनु की जिंदगी का खास दिन बन जाए....
वीर - जरूर... जरूर मेरे दोस्त... जरूर... तुमसे बात हो गई... मानो... सारे जहां की हिम्मत मिल गई... बाय...
विश्व - बाय.. एंड बेस्ट ऑफ़ लक...

कह कर फोन काट देता है और वह खुशी के मारे प्रतिभा और तापस दोनों की ओर देखता है l तास प्रतिभा के कंधे पर एक हाथ रखकर और दुसरा हाथ जेब में रख कर कृष्न भंगिमा में खड़ा था और प्रतिभा अपने दोनों हाथों को मोड़ कर कोहनीयों में जमा कर खड़ी थी l वह दोनों उसे घूर रहे थे l

विश्व - क्या.. क्या हुआ... मुझे आप दोनों ऐसे क्यूँ घूर रहे हो...
तापस - समझी भाग्यवान... खुद से खिचड़ी नहीं पक रही है... जनाब दुसरों को बिरियानी का ज्ञान बांट रहे हैं...
विश्व - आआआह्ह्ह्...

कह कर विश्व अपने कमरे के भीतर चला जाता है l उधर गाड़ी चलाते हुए वीर प्रताप से बात खतम कर पटीया के उसी मंदिर के पास पहुँचता है जहां वह अनु के जन्म दिन पर मिला था I वीर को सफेद सलवार कुर्ती और सफेद आँचल में मंदिर के बाहर अनु दिख जाती है l अनु भी वीर की गाड़ी देख कर वीर के पास आने लगती है l वीर गाड़ी से उतर कर अपनी सपनों की शहजादी को आते हुए देखता है l वीर के लिए मानों दुनिया जहां सब ओझल हो जाते हैं, अनु आ तो रही है मगर जैसे वक्त थम सा गया है l अनु के चेहरे की चमक को देखते ही वीर अंदर से ताजगी महसुस करने लगता है l अनु उसके पास आकर खड़ी होती है l वीर उसके मुस्कराते हुए चेहरे को देख कर खो सा जाता है l अचानक उसका ध्यान टूटता है

अनु - हैप्पी बर्थ डे... जन्म दिन मुबारक हो...
वीर - (होश में आते हुए) तु.. तुम... तुमको कैसे मालुम हुआ... आज मेरा जन्म दिन है..
अनु - (हँसते हुए) मैंने आपके दिन को खास बनाया था... अपने जन्म दिन पर... (थोड़ा शर्माते हुए) आज आप मेरे दिन को खास बनाने जा
रहे हैं... तो आज आपका जन्म दिन ही होगा ना...
वीर - ओ...
अनु - (अचानक अपना हाथ दिखा कर) तो दीजिए अपनी गाड़ी की चाबी...
वीर - (थोड़ा हैरान हो कर) क्यूँ... किस लिए...
अनु - आज आपको इस राजकुमारी की बात तो माननी होगी...
वीर - (मुस्करा देता है) जी राज कुमारी जी... (कह कर कार की चाबी बढ़ा देता है)
अनु चाबी लेकर गाड़ी की ड्राइविंग सीट वाली डोर खोलती है और ड्राइविंग सीट पर झुक कर एक छोटी सी गिफ्ट बॉक्स सीट पर रख देती है l फिर गाड़ी की डोर बंद कर लॉक कर देती है और वीर को चाबी लौटा देती है l

वीर - क्या हुआ... गाड़ी में कुछ देखने गई थी क्या...
अनु - हाँ... गाड़ी में खुशबु ठीक है या नहीं... यह देख रही थी...
वीर - (हैरानी साथ मुस्कराते हुए) क्या... (वह देख रहा था, आज अनु कुछ ज्यादा ही चहक रही थी)
अनु - अच्छा... आज आप पर्स तो लाए हैं ना...
वीर - हाँ... क्यूँ... क्या हुआ...
अनु - लाइये दीजिए....

वीर फिर से हैरानी के साथ अनु के चेहरे को देखता है, कहीं पर भी कोई शैतानी नहीं दिख रही थी, बल्कि एक चुलबुला पन दिख रहा था l वीर को अनु का ऐसे हुकुम चलाना बहुत ही अच्छा लग रहा था l उसने बिना देरी किए अपना पर्स निकाल कर अनु के हाथ में रख देता है l अनु पर्स खोल कर देखती है, कुछ दो तीन हजार के नोट ही निकलते हैं l अनु का चेहरा उतर जाता है l

वीर - क्या हुआ अनु...
अनु - यह क्या... सिर्फ़ इतने पैसे...
वीर - तो क्या हुआ... डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड है ना... हमें जो भी मार्केटिंग करनी होगी... हम कार्डस से कर लेंगे...
अनु - नहीं... कुछ जगहों पर... नकद की जरूरत पड़ती है...
वीर - तो ठीक है... हम एटीएम से पैसे निकाल लेंगे...

अनु - (खुश होते हुए) हाँ.. तो निकालिये ना... मुझे अभी कुछ पैसों की जरूरत है...

वीर इधर उधर नजर दौड़ाता है l उसे नजदीक एक एटीएम दिखता है l वीर अपनी पर्स से डेबिट कार्ड निकाल कर अनु के हाथ में देता है

वीर - यह लो.. इसका पिन नंबर & $#@ है... जाओ... जितना चाहिए निकाल कर ले आओ...
अनु - (वीर के हाथों में अपना हाथ पा कर पहले से ही नर्वस थी, फिर हैरान हो कर) क.. क.. क्या... (झिझकते हुए) न.. नहीं... म... मैं नहीं ले सकती...
वीर - अनु... (उसकी हाथ पकड़े हुए) आज तुम राजकुमारी हो... बिल्कुल अपने बाबा के ख्वाहिश की जैसी... इसलिए झिझको मत... जाओ... एटीएम से पैसे ले आओ...

अनु बहुत झिझक के साथ कार्ड लेकर एटीएम की ओर जाती है पर बार बार पीछे मुड़ कर देखती है l वीर उसे इशारे से बेझिझक जाने को कहता है l अनु एटीएम से तकरीबन दस हजार निकाल कर लाती है l फिर एक दुकान से पुजा के लिए सामान खरीद कर मंदिर में वीर को लेकर जाती है l पुजारी को वीर की नाम पर अभिषेक करने के लिए कहती है l वीर अपना हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता है l

वीर - हे भगवान... सारी जिंदगी... अनु के लिए... अनु की ही तरह... मेरी नियत साफ रहे... ईमानदार रहे... बस इतना ही आशिर्वाद करना...


पुजारी के पुजा कर लेने के बाद अनु वीर के पैसों से एक हजार रुपये और अपनी वैनिटी पर्स से एक सौ ग्यारह रुपये निकाल कर पुरे एक हजार एक सौ ग्यारह रुपये देती है l अनु की यह हरकत वीर के दिल को गुदगुदा देता है l उसके होठों पर एक मुस्कराहट अपने आप खिल उठता है l फिर अनु मंदिर की प्रसाद व भोजन काउंटर पर आती है वहाँ से अन्न प्रसाद के तीस टोकन खरीदती है और वीर को थमा देती है l फिर वीर को मंदिर के बाहर लेकर आती है l वहाँ पर बैठे कुछ भिकारी, झाड़ू लगाने वाले कुछ लोग और जुते रखने वालों में वीर के हाथों से वह टोकन बंटवा देती है l वीर टोकन बांटते हुए अनु के अंदर की खुशी को साफ महसूस कर पाता है l वह भी खुशी खुशी टोकन बांट देता है l सबको टोकन मिल जाने के बाद

अनु - देखिए आप सब... आज इनका जन्म दिन है... इसलिए पेट भर खाना खाने के बाद... इनके लिए सच्ची श्रद्धा से प्रार्थना करना... ठीक है...
सभी - ठीक है...

फिर अनु वीर को वहाँ से लेकर गाड़ी तक आती है l

अनु - अब आप गाड़ी की दरवाजा खेलिए...

वीर अनु की चुलबुले पन से निहाल हो जाता है l अपनी पॉकेट से गाड़ी की चाबी निकाल कर गाड़ी को अनलॉक कर जैसे ही सीट पर नजर डालता है उसे सीट पर वह गिफ्ट बॉक्स मिलता है l वह समझ जाता है कि इसे अनु ने ही रखा होगा l वह बॉक्स उठा कर सीट पर बैठ जाता है और इशारे से अनु को गाड़ी में बैठने को कहता है l अनु एक झिझक और जिज्ञासा के साथ वीर के बगल में बैठती है l मन ही मन सोचती है
"पता नहीं राजकुमार जी को पसंद आएगा भी या नहीं"
वीर गिफ्ट बॉक्स खोलता है तो उसमे बक्कल्स दिखते हैं l

वीर - वाव अनु... यह मेरे लिए हैं... सच में... बहुत ही खूबसूरत है... थैंक्यू थैंक्यू वेरी मच... जानती हो... मेरे पास ढेर सारे कपड़े हैं... पर किसी भी ड्रेस के लिए... बक्कल्स नहीं है...
अनु - (झिझक के साथ) रा.. राज... कुमार जी... क्या सच में आपको पसंद आया...

वीर - बहुत... क्यूँ तुम्हें यकीन नहीं हो रहा... (अनु की हाथ पर अपना हाथ रख कर) मेरे आँखों में देखो... क्या तुम्हें लगता है... मैंने यह बात तुम्हारा दिल रखने के लिए कहा है....

अनु खुशी और शर्म के मारे अपना सिर झुका लेती है l अनु की इस अदा पर वीर के मन में तरंगें उठने लगते हैं l उसका मन करता है कि अनु को गले से लगा ले l पर वह खुद पर काबु रखता है l


वीर - तो राजकुमारी जी... हम अब चलें...
अनु - (खुद को संभालते हुए) कहाँ...
वीर - आज आपको राजकुमारी बनना है... और आज यह खादिम... दिन भर आपकी सेवा के लिए उपलब्ध रहेगा... जब तक आपका मन ना भर जाए....

अनु हँसती है, दिल खोल कर हँसती है l वीर के दिल में फिर से तरंगें बजने लगते हैं l वह अनु के हँसी में खो जाता है क्यूंकि आज उसे अनु कुछ अलग सी लग रही थी, बहुत खास भी लग रही थी l वीर भी उसके साथ हँसने लगता है l


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दीवार पर लगे एक बड़े से एलईडी के स्क्रीन पर एक वीडियो चल रही थी l एक कबड्डी मैच का अंतिम क्षण I चार लोग बैठ कर वह मैच देख रहे थे l अचानक वह वीडियो पॉज हो जाता है l

टोनी एलईडी के सामने आता है और कहता है
"यही वह मोमेंट था... जहां विश्व की जान जा सकती थी..."
कह कर एलईडी को फिर से चलाता है l जिसमें साफ दिख रहा है कि यश विश्व के गले में अपना बांह फंसा कर दबोच लिया है l फिर भी विश्व कोशिश करते हुए लाइन के पास यश को खिंचते हुए जा रहा था l तब यश चिल्लाता है विश्व को पकड़ने के लिए आउट हुए सभी खिलाड़ी लेनिन के साथ बाकी चार खिलाड़ी एक साथ यश और विश्व के ऊपर छलांग लगाते हैं l विश्व के ऊपर यश, यश के ऊपर लेनिन, लेनिन के ऊपर एक के बाद एक गिरते हैं l रेफरी फउल करार देते हुए इन्हें रोकता है पर कोई नहीं उठता है l तब पुलिस वाले आकर सब को हटाते हैं l विश्व के गर्दन पर यश की बांह अभी भी फंसा हुआ था l एक पुलिस वाला यश की हाथ निकाल कर विश्व को पलटता है l विश्व के चेहरे पर दो तीन चपत लगाता है l विश्व अचानक गहरी गहरी सांसे लेते हुए खांसने लगता है l फिर वह पुलिस वाला यश को हिला कर उठाने लगता है l पर यश नहीं उठता I वीडियो खतम हो जाता है l कमरे में लाइट जलने लगती है l

टोनी - पर तकदीर का मारा... यश... उसी मैच में मारा जाता है...
रोणा - मादरचोद विश्व मर गया होता... तो अच्छा था...
परीड़ा - पर मरा नहीं... हमारी लगाने के लिए... जिंदा बच गया हरामी...
बल्लभ - (टोनी से) उस दिन का मामला क्या था...
टोनी - यश... अपनी रखैल के एक्सीडेंट केस में... रिमांड पर पूछ-ताछ के लिए सेंट्रल जेल में था... वह... अपनी जगह किसी और को प्लॉट करना चाहता था... वह जिस पुलिस वाले से मदत मांगा था... वह पुलिस वाला... स्टिंग ऑपरेशन में पकड़ा गया और नौकरी से गया... यश के पास सिर्फ एक ही ऑप्शन था... जैल में ही किसी से मदत ली जाए... उस वक़्त मैं ही था... जो ऐसा कर सकता था... हाँ यह बात और है कि... उसे इस बात की जानकारी विश्व से ही मिली...
रोणा - मतलब विश्वा... तेरी कुंडली के बारे में.. अच्छी तरह से जानता था...
टोनी - हाँ... यही विश्व की खासियत है... जैल में आने वाले सभी की... चाहे वह पुलिस वाला ही क्यूँ ना हो... सबकी कुंडली पता लगा लेता है...
बल्लभ - अच्छा... इसका मतलब.. हम जैल में उसकी इंक्वायरी के लिए गए... तो उसकी नजर में आ गए...
टोनी - हाँ...
परीड़ा - उसे किसने इंफॉर्म किया होगा... खान...
टोनी - नहीं... वह इतने बड़े लोगों को... अपने टीम में नहीं रखेगा... क्यूं रखेगा... पर हाँ... जैल के छोटे मोटे स्टाफ हो सकते हैं...
रोणा - तेरी भी तो इंफॉर्मेशन नेट वर्क जबरदस्त था...
टोनी - पर विश्व का... मुझसे बीस कदम आगे था... या यूँ कहूँ... यहाँ के हर पुलिस स्टेशन में... कोर्ट में.. उसके लिए ख़बर निकालने वाले बहुत हैं... और वह लोग इतने शातिर हैं... किसीके भी नजर में नहीं आते...
परीड़ा - हूँम्म्म्म्म.... मतलब... जैल में रह कर जुर्म की दुनिया का हर दाव पेच सीख गया है...
टोनी - बिल्कुल...
बल्लभ - पर मेरे समझ में यह नहीं आया... यश विश्व को क्यूँ मारना चाहता था...
टोनी - क्यूंकि... यश को बाहर निकाल कर.. उसके जगह अपने किसी आदमी को प्लॉट करने के बदले... मेरी यश से यही शर्त थी...
तीनों - व्हाट...
टोनी - हाँ... मैं सेंट्रल जैल में तीन बार गया था... दो बार विश्व से मेन टू मेन फाइट में मुहँ की खाया... दुसरी बार तो विश्व मेरी... (अपना हाथ दिखाते हुए) कलाई तोड़ दी... (जबड़े भिंच कर) ऐसी तोड़ी की... भारी सामान आज तक नहीं उठा पा रहा हूँ...
परीड़ा - तुने... यश से जो डील की थी... क्या उसके बारे में... ओंकार जानता था...
टोनी - हाँ... अच्छी तरह से... वह जैल में... यश से मिलने आता था... और उसे ड्रग्स सप्लाई करता था...
परीड़ा - क्या... जैल में यश... ड्रग्स लेता था...
टोनी - इसी लिए तो मैं बाहर निकल पाया... पोस्ट मार्टम में मालुम पड़ा... एब-नॉर्मल हाइपर टेंशन के चलते... जब उसके ऊपर प्रेसर पड़ा... और नीचे से विश्व की कोहनी के ऊपर उसका सीना था... जिसके चलते उसकी पसलियाँ भी टुट गई थी... और साँस रुक गई थी...
रोणा - वह हरामी का जना विश्व... अच्छी तकदीर लेकर आया था... उसकी टांग मुझसे बच गई... अब उसकी जिंदगी.. यश से भी और... (टोनी से) तुझसे भी...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... क्या यही वजह है... कि ओंकार चेट्टी... तुझे मरवाने पर तूल गया...
टोनी - हाँ... जितना डर मुझे ओंकार के हाथ लग जाने से है... उतना ही डर मुझे विश्वा से भी है...
रोणा - क्या मतलब...
टोनी - यश के मौत की इंटर्नल इंक्वायरी के बाद... मैंने अपने वकील से... झारपड़ा जैल को शिफ्ट होने के लिए पिटीशन डाला... और तापस सर की सिफारिश के चलते... कोर्ट ने एक्सेप्ट भी कर लिया... और जिस दिन मुझे शिफ्ट किया जाना था... उस दिन विश्व मेरे पास मेरे सेल के बाहर आया था...

फ्लैशबैक

लेनिन अपने सेल में चहल कदम कर रहा है l की उसे महसुस होता है कि कोई उसके सेल के बाहर खड़े उसे देख रहा है l वह रुक कर देखता है, विश्व सेल के ग्रिल के बाहर खड़े होकर उसे देख रहा है l

लेनिन - क्या बात है विश्वा भाई...
विश्व - तो तुम यहाँ से जा रहे हो...
लेनिन - हाँ भाई... कहा सुना सब माफ कर देना... कोई गिला शिकवा मत रखना...
विश्व - क्यूँ...
लेनिन - (पहले झटका लगता है) (फिर मुस्कराने की कोशिश करते हुए) क्या भाई... यही तो रीत है... जाने वाला हमेशा यही कहता है...
विश्व - मरने वाला भी ऐसा ही कुछ कहता है...
लेनिन - (हकलाते हुए) ये.. यह... आ.. आप... क.. क क्या कह रहे हैं...
विश्व - जब यश मेरा गला दबोच रखा था... तैस में आकर मेरे कानों में उसने कह दिया था... तुने उसके साथ मेरी मौत की डील की थी...

लेनिन विश्व की बात सुन कर कांपने लगता है, डर उस पर इस कदर हावी हो जाती है कि उसके दांत आपस में टकराने लगते हैं और विश्व को साफ सुनाई देने लगती है l

विश्व - लेनिन... मैंने जिंदगी में... सिर्फ एक की जान लेने की सोचा था.... तु दुसरा बनने की कोशिश कभी मत करना... क्यूंकि तु झारपड़ा जा रहा है... इसलिए यह हमारी आखिरी मुलाकात होनी चाहिए... वरना अगली मुलाकात... तु वह दुसरा बन जाएगा...

इतना कह कर विश्व वहाँ से चला जाता है l

टोनी की कहानी खतम होते ही I इसका मतलब तु विश्वा के सामने कभी नहीं जाएगा l

टोनी - नहीं... आप लोग कानून से जुड़े हुए हो... डैनी.. इस नाम से वाकिफ होंगे आप लोग...
परीड़ा - हाँ अच्छी तरह से.... इस्टर्न बेल्ट का डॉन... वह कभी कभी ओड़िशा के जैल में... छुट्टियाँ मनाने आता है...
टोनी - हाँ.. सेंट्रल जैल में... स्पेशल सेल को वही इस्तेमाल किया करता था...
रोणा - तो... डैनी से विश्व का क्या संबंध....
टोनी - इस जैल में... विश्वा ही वह अकेला बंदा है... जिसने डैनी को मारा... उसकी नाक तोड़ी... फिर भी... वह आज तक जिंदा है...
तीनों - (चौंकते हैं) क्या...
टोनी - हाँ... किसी से भी पुछ लो... जैल के सभी नए पुराने कैदी....सब इसी बात पर चर्चा करते रहते थे.... और सबसे खास बात... विश्व जैल में रह कर अपनी ग्रेजुएशन पुरी की... जानते हो पेरेल पर कौन वकील लेके जाता था...
परीड़ा - हाँ... जानता हूँ... जयंत चौधरी... कटक में डैनी का वकील....
बल्लभ - यह बड़ी दिलचस्प बात बताई...
टोनी - हाँ... यानी किसी ना किसी तरह से... विश्व डैनी से जुड़ा हुआ है...
रोणा - अब समझा... यानी डैनी ही विश्व का मास्टर है... जिसने उसे लड़ना सिखाया... जिसने उसे नेट वर्क सेट अप सिखाया...
परीड़ा - क्या डैनी की राजा साहब से... कोई पुरानी दुश्मनी है क्या...
बल्लभ - पता नहीं... कभी मैंने सुना नहीं...
रोणा - पर फिर भी... विश्व अभी तक सामने क्यूँ नहीं आया है... साला यह बात कुछ... समझ में नहीं आ रहा है...

कुछ देर के लिए कमरे में खामोशी छा जाती है l सब के सब सोच में पड़ जाते हैं l

परीड़ा - क्या हमसे कुछ छूट रहा है...
बल्लभ - जबसे यह मनहूस रोणा वापस आया है... तब से... विश्व वगैर सामने आए... झटके पर झटका दिए जा रहा है...
रोणा - चुप बे साले वकील... मनहूस मैं नहीं... तु है... मैं तो उसे महल के अंदर मारने ही वाला था... पर तुने अपना दिमाग चलाया... जिंदा रख कर... रुप फाउंडेशन स्कैम को विश्व पर थोप कर जैल भिजवाने के लिए...
परीड़ा - ओ ह्ह्ह... स्टॉप ईट... यह मत भूलो... उसने दो जगह पर आरटीआई फाइल की है... होम मिनिस्ट्री में... केस और गवाहों की डिटेल्स... और अदालत में जांच की स्टेटस....
टोनी - ओ... तो यह बात है... अब समझा...
रोणा - तु क्या समझा बे...
टोनी - जैल में विश्व हमेशा... अलग थलग ही रहता था... अपने काम से मतलब रखता था... और लाइब्रेरी में पढ़ा करता था... वह हमेशा सब से दूर रहने की कोशिश करता था... एक ही उसूल बनाए हुए चलता था... किसीको छेड़ता नहीं था... कोई छेड़े... तो उसे छोड़ना नहीं... असल में कोई उसे छेड़ता था... तो उसमे... विश्व की मर्जी शामिल होती थी...
रोणा - कैसे...
टोनी - मैं जब जैल के अंदर गया... उसका रौब और रुतबा देख कर... उससे उलझने की कोशिश करता था... वह ज्यादातर अवॉइड करता था... फिर एक दिन.. मैंने खुल्लमखुल्ला उससे उलझने की कोशिश की... सेटर डे स्कैरी नाइट सोल्यूशन फाइट के लिए चैलेंज कर दिया... अंजाम... आधा मिनट भी ना टिक पाया... मैंने चालाकी से... उसे मेन-हैडलींग चार्ज में फंसाना चाहा... तब मुझे मालुम हुआ... की जहां जहां मैंने उससे उलझा... प्रोवक किया... वह सब सीसीटीवी में रिकार्ड हो गया था... यानी केस मुझी पर रिवर्स बाउंस हो जाता...

टोनी की बात सुन तो रहे थे, पर समझ में किसीके भी नहीं आ रहा था l

परीड़ा - इसका क्या मतलब हुआ...
टोनी - क्या परीड़ा बाबु... इतना भी समझ नहीं पाए... वह अब जिससे भी उलझेगा... उसी के हाथों से... सबुत बनाएगा... और उसीके खिलाफ इस्तमाल करेगा...

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बुटीक में अनु वीर के लिए कपड़े देख रही है l इतने में अनु देखती है वीर एक लड़की की पुतले के सामने खड़े होकर उसके पहनावे को देख रहा था I थोड़ी देर बाद अनु वीर को आवाज देती है
"राज कुमार जी"
वीर मुड़ कर देखता है अनु उसे बुला रही है, वीर उसके पास जाता है

वीर - क्या है अनु... मैंने यहाँ तुम्हारे लिए ड्रेस सिलेक्शन करने के लिए आया था... पर तुम पहले मेरे ड्रेस के लिए जिद पकड़ ली...
अनु - (बड़ी मासूमियत के साथ) वह तो आपको तय करना था...
वीर - क्या...
अनु - हाँ... (थोड़ी शर्माते हुए) आखिर राजकुमारी वाला ड्रेस कैसा होता है... आप ही जानते होंगे ना...
वीर - करेक्ट... (अपने सिर पर हाथ मारते हुए) मैं यह कैसे भूल गया... (सेल्स मेन से) ओ.. हैलो...
से. मे - यस सर...
वीर - वह जो (पुतले को दिखाते हुए) ड्रेस है ना... वह पैक कर दो...
से. मे - जी... सर वह... उससे भी बेहतर... ड्रेसेस हैं हमारे पास...
वीर - तुमसे जितना कहा... उतना करो ना...
से. मे - जी.. जी सर...

वीर और अनु के लिए ड्रेस पैक करा दी जाती है l वीर दोनों पैकेट लेकर काउंटर पर बिल पेमेंट करने को होता है कि

अनु - (थोड़े झिझक के साथ) रा.. राज... कुमार जी...
वीर - (मुस्कराते हुए) जी राजकुमारी जी...
अनु - (शर्म से गड़ जाती है) प्लीज आप मुझे ऐसे ना कहिए...
वीर - कोई और दिन होता... तो मैं मान लेता... पर आज नहीं... कहिए... क्या हुकुम है... आपका खादिम तैयार है...
अनु - (अपने दोनों होंठों को दबा कर अपनी शर्म को छुपाने की कोशिश करते हुए) वह... मुझे... कुछ और भी खरीदारी करनी है...
वीर - ठीक है... (कार्ड अनु के हाथ में देते हुए) जो चाहे खरीद लो... आज का दिन तुम्हारा है... मैं बाहर इंतजार कर रहा हूँ...

कह कर वीर बुटीक के बाहर के बाहर आ जाता है l वहाँ से वह कहीं फोन करता है I अनु उसे कांच के पार से देखती है और वीर की बात करने के अंदाज से उसे पता लग जाता है कि शायद वीर ने सुबह से ही किसी को कुछ काम दिया था और वह चिल्ला चिल्ला कर उसका काम कितना दूर गया यह पता कर रहा था l कुछ ही देर में अनु अपनी खरीदारी खतम कर बाहर आती है l वीर देखता है अनु के पीछे एक गठरी ढ़ो कर बुटीक का एक बंदा खड़ा है l वीर उस गठरी की साइज देख कर चौंक जाता है, पर अनु से कुछ नहीं कहता है l अपनी गाड़ी की पिछली सीट पर वह गठरी रखवा देता है l अनु वीर से पर्स मांगती है तो वीर उसे पर्स दे देता है l अनु उसमें से पांच सौ रुपये निकाल कर उस बंदे को दे देती है l वह बंदा अनु को सैल्यूट करता है तो

अनु - ऐ... मुझे क्यूँ सलाम कर रहे हो... इनकी पैसे हैं... और जानते हो... आज इनका जन्म दिन है... इनको सलाम करो और.. दुआएँ दो...
बंदा - सलाम साहब... भगवान आपको लंबी उम्र दे... सारी खुशियां दे... ढेर सारा बरकत दे...
वीर - ठीक है.. ठीक है...

वीर और अनु गाड़ी में बैठ जाते हैं l वीर गाड़ी रास्ते पर दौड़ा देता है l गाड़ी चलाते हुए

वीर - यह क्या अनु... मैं तो तुम्हारे साथ... अपना जन्म दिन मनाना चाहता था... तुम जहां भी जा रही हो... मेरे जन्म दिन की ढिंढोरा पीट रही हो...
अनु - राजकुमार जी... जन्म दिन पर दुआएँ बटोरने चाहिए और खुशियाँ लुटाने...
वीर - अच्छा.. खुशियाँ... मतलब पैसा...
अनु - किसी के लिए... पैसा जरूरत होती है... उनके लिए वह खुशियाँ ही तो है... आप जरूरत मंदों को... आज उनकी जरूरत को दीजिए... बदले में... वह लोग आपको दिल से दुआएँ देंगे... देखना उनकी दुआएँ... आपको सचमुच बरकत और खुशियाँ देंगी...
वीर - (अनु की बातेँ सुन कर) उफ... तुम और तुम्हारी बातेँ... सच में... तुम्हारे अंदर एक राजकुमारी वाला सोच है... वैसे अब हम कहाँ जाएं... राजकुमारी जी...

अनु शर्मा जाती है और खिड़की की ओर अपना मुहँ फ़ेर कर हँसने लगती है, वीर को यह सब कांच से दिख जाता है l अनु की हँसी उसके दिल को ठंडक पहुँचाता है l वह भी हँसते हुए गाड़ी चलाता है l

वीर - राजकुमारी जी... आपने कुछ कहा नहीं...
अनु - (थोड़ी सीरियस होने की कोशिश करते हुए) कस्तूर बा वृद्धाश्रम...
वीर - क्या... क्यूँ...
अनु - उसके बाद... मदर टेरेसा अनाथालय...
वीर - (गाड़ी में ब्रेक लगाता है, और अनु को बड़ी हैरानी भरे नजरों से देखता है) इस गठरी में क्या है अनु...
अनु - उस आश्रम में देने के लिए लिए कुछ शॉल और चादर...
वीर - (वीर हँस देता है) अनु... तुम गजब हो... तुम्हें तो मैंने अपने लिए कुछ खरीदने के लिए कार्ड दिया था...
अनु - (थोड़ी गंभीर हो जाती है) अपने लिए ही तो कर रही हूँ...
वीर - क्या...
अनु - (अचानक भाव बदल कर, मासूमियत के साथ) क्या आज इस राजकुमारी की हसरत अधूरी रह जाएगी...
वीर - कभी नहीं...

वीर गाड़ी को वृद्धाश्रम की ओर ले जाता है l


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रुप आज कॉलेज गई नहीं है l अपने कमरे में बैठ कर अपने और विश्व की मुलाकात और बातों के बारे में याद करते हुए अपने आप में मुस्करा रही थी l तभी उसकी फोन बजने लगती है l वह फोन के स्क्रीन पर चाची माँ डिस्प्ले होते देखती है I रुप फोन उठाती है

रुप - हैलो... चाची माँ...
सुषमा - कैसी है मेरी बच्ची...
रुप - बस आपका आशीर्वाद है...
सुषमा - और... आज सुबह सुबह वीर को विश किया के नहीं...
रुप - (पहले हैरान होती है फिर बात समझ कर) ओह शीट...
सुषमा - क्या हुआ... उस दिन तो बड़ी फिक्र कर रहे थे... वीर कहाँ गया... वीर नहीं आया...
रुप - (शर्मिंदगी से अटक अटक कर) वह चाची माँ... दरअसल... मैं आज देर से उठी... जब नाश्ते के लिए गई... तब तक वीर भैया... कहीं बाहर जा चुके थे... शीट... बड़ी गलती हो गई चाची माँ...
सुषमा - हा हा हा हा... लगता है... वीर के जन्मदिन पर तुम उल्लू बन गई...
रुप - क्या मतलब...
सुषमा - मैं अभी बहु से बात कर रही थी... वीर ने आज शाम को पार्टी रखने के लिए कह कर बाहर चला गया है...
रुप - क्या... यानी भाभी ने भी मुझसे छुपाया...
सुषमा - (हंसते हुए) खैर... मैंने बहु से कुछ कहा है... उससे पता करो और पूछ लो....
रुप - क्या... क्या कहा है... माँ...

तब तक फोन कट जाता है l रुप अपना फोन बेड पर पटक कर शुभ्रा के कमरे में जाती है l शुभ्रा को देख कर

रुप - भाभी...
शुभ्रा - क्या हुआ... मेरी गुस्सैल ननद...
रुप - आज वीर भैया का जन्म दिन है... और आपने मुझे बताया नहीं...
शुभ्रा - कैसे बताती... और कब बताती...
रुप - मतलब..
शुभ्रा - तुम तो अनाम के गाल पर गुस्सा उतार कर सो रही थी... तुम जब होश में आई... तब भी.. तुम अनाम के सुरूर में थी... और तब तक... वीर जा चुके थे...
रुप - (थोड़ी नॉर्मल हो कर) अच्छा वीर भैया... सुबह से किसीसे बिना बात किए चले गए क्या...
शुभ्रा - हाँ... पर शाम को पार्टी अरेंज करने के लिए कह कर गए हैं....
रुप - ओ... (खुश होते हुए) चलो किसी की बर्थ डे... हम पहली बार...(चहकते हुए) मिलकर मनाएंगे....
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... तुम्हारा बर्थ डे... हम मना नहीं पाए... पर वीर की बर्थ डे... हम जरूर मनाएंगे...
रुप - (खुशी के साथ उछलते हुए) हाँ....

शुभ्रा उसे खुशी के मारे उछलते हुए देखती है पर उसके चेहरे से धीरे धीरे हँसी गायब होने लगती है l थोड़ी बहुत उछल कुद के बाद रुप अचानक से रुक जाती है l

रुप - अच्छा भाभी... चाची माँ ने आपको कुछ और भी कहा है ना... बताओ ना क्या कहा...
शुभ्रा - (रुप की गालों पर हाथ फेरते हुए) आज बर्थ डे खतम होने दो... कल बताती हूँ...
रुप - पर आज क्यूँ नहीं...
शुभ्रा - कुछ बातेँ अपने वक़्त पर की जाए... तो उन बातों का महत्व रहता है...

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होटल के कमरे में चारों बहुत टेंशन में दिख रहे थे l टोनी के खुलासे के बाद परीड़ा, रोणा और बल्लभ के माथे पर शिकन पड़ चुका था l कमरे में बेशक चार लोग थे पर इतनी शांति पसरी हुई थी के बाहर खड़ा कोई भी आदमी बेझिझक कह देता अंदर कोई नहीं है l कुछ देर बाद

टोनी - परीड़ा बाबु... वैसे यह वीडियो... आपको मिला कहाँ से...
परीड़ा - हेड क्वार्टर के आर्काइव से...
टोनी - पर आप जिस फाइल में विश्व की तस्वीर लाए हैं... वीडियो वाला विश्व दोनों अलग दिखते हैं...
रोणा - बे घन चक्कर... वह फोटो सात साल पहले वाला है... अब वीडियो में वह ऐसे दिख रहा है...
टोनी - हाँ... (फाइल में से विश्व की फोटो उठा कर) सात साल पहले... विश्वा की मूछें निकल रही थी... वीडियो में... बाल बढ़े हुए दाढ़ीवाला दिख रहा है....
परीड़ा - ह्म्म्म्म...
बल्लभ - क्या... अब भी... ऐसे ही दिख रहा होगा...
रोणा - साला... जितना भी जानने की कोशिश कर रहा हूँ... उतना ही मिस्टेरीयस होता जा रहा है...
परीड़ा - रिलैक्स... यह वीडियो देखते वक़्त... मुझे भी ऐसा लगा था... इसलिए यहाँ आने से पहले... मैंने एक स्कैच आर्टिस्ट को... इस वीडियो की स्टील दे कर आया था... मेरे हिसाब से... कुछ देर बाद... वह विश्व के तरह तरह की स्कैच लेकर आ रहा होगा...
बल्लभ - ह्म्म्म्म...

फिर कमरे में शांति छा जाती है l क्यूँकी अब किसीके पास कहने सुनने के लिए कुछ बाकी था ही नहीं I डोर बेल बजती है, चारों एक दुसरे को देखने लगते हैं, फिर सभी टोनी की ओर देखते हैं l

टोनी - ठीक है... समझ गया...

कह कर दरवाजे के पास जाता है और दरवाजे की मैजिक आई से बाहर खड़े बंदे को देखता है l बाहर खड़े बंदे के हाथ में एक बड़ी फाइल जैसी लिफाफा दिख रहा था l टोनी वापस आ कर परीड़ा से

टोनी - लगता है... आप ही का बंदा आया है... हाथ में फाइल और लिफाफा है...
परीड़ा - ओ अच्छा...

कह कर परीड़ा अपनी जगह से उठता है और दरवाज़ा खोलता है l बाहर परीड़ा के ही ऑफिस का आदमी था l वह परीड़ा को देख कर सैल्यूट करता है और लिफाफा परीड़ा को बढ़ा देता है, परीड़ा उससे लिफाफा ले लेता है और उसे जाने के लिए कहता है, फिर दरवाजा बंद कर देता है l
परीड़ा वापस इन लोगों के पास आकर लिफाफे से कुल सात स्कैच निकाल कर टेबल पर रख देता है l किसी स्कैच में छोटे बालों के साथ है, किसी स्कैच में छोटे बाल और दाढ़ी में है, किसी स्कैच में लंबे बाल बगैर दाढ़ी मूँछ के साथ है l इसी तरह सात अलग अलग तरह दिखने वाले स्कैच सबके सामने थे l बल्लभ एक स्कैच उठाता है

बल्लभ - हाँ... इसी तरह दिख रहा था... हाउस कीपिंग बॉय बन कर आया था... छोटे दाढ़ी में बिल्कुल ऐसे ही दिख रहा था...
रोणा - देखा... मैं ना कहता था... यह विश्वा ही था... जो बार बार आकर... मेरी मार कर जा रहा था....
परीड़ा - जरूरी नहीं कि... वह दाढ़ी रखता हो... या तो दाढ़ी नकली होगी...
बल्लभ - या फिर... अब तक शेव कर लिया होगा...
टोनी - अच्छा... तो अब मैं आप लोगों से दूर... बहुत दूर जाना चाहता हूँ...
रोणा - क्यूँ...
टोनी - अरे रोणा बाबु... अब आपको विश्वा के बारे में... पूरी जानकारी मिल गई है... अब मेरी क्या जरूरत...
रोणा - क्यूँ.. तुझे विश्वा से... अपनी कलाई का बदला नहीं लेना...
टोनी - हा हा हा हा... (हँसने लगता है) रोणा बाबु... उसने अपनी दुश्मनी निकलने के लिए... राजा साहब को चुना है... मतलब वह मेरे लेबल से भी बहुत ऊपर है... वह अब तक राजा साहब के लिए प्लॉट तैयार कर चुका होगा... मतलब जो जो लोग उसके डायरि में चढ़े होंगे... हर एक के लिए... वह जाल बिछा चुका होगा... आगे आगे आप खुद देखना... उसके गुनाहगार... उसके लिए सबूत बनाएंगे... फिर वह उन सबूतों के दम पर... उनको लपेटे में लेगा... उसने मुझसे कहा था... सिर्फ़ एक को मारने के लिए उसने सोचा था... रोणा बाबु... मुझे दुसरा हरगिज नहीं बनना...
रोणा - बे... क्या बकवास कर रहा है...
बल्लभ - रोणा... जाने दे इसे... इसका काम खतम हो चुका है... और यह बकवास नहीं कर रहा है... हमें आगाह कर रहा है...
रोणा - वकील... तु कहाँ उसके बातों में फंस रहा है...
परीड़ा - वकील ठीक कह रहा है... रोणा... सावधानी हटी... समझो.... टट्टें कटी...
रोणा - अरे.. मेरा कहने का मतलब है... सावधान ही रहना है... पर लगता है... विश्व नाम का हौआ ने सब के गांड में सुतली बम लगा दिया है... और उसके बारूद को सुलगा दिया है... साले ज्ञान दे रहा है... गांड फटे तो फटे... पर ध्यान ना हटे...
बल्लभ - (चिल्ला कर) चुप रहो सब... (सब चुप हो कर प्रधान की ओर देखने लगते हैं) पहले यह सोचो... दो दिन बाद... राजा साहब... भुवनेश्वर आ रहे हैं... उन्हें विश्वा के बारे में... कहेंगे क्या...

सब चुप रहते हैं और सब सोचने लगते हैं l कुछ देर बाद चुप्पी तोड़ते हुए

टोनी - देखा साहब... टट्टे कटे या ना कटे... पर उससे पहले... यहाँ सबकी फटने लगी है...

सब गुस्से से टोनी को घूरने लगते हैं l

×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

पुरी कोणार्क रोड
मेराइन ड्राइव
रास्ते के एक किनारे गाड़ी पार्क है l कसूरीना और शीशम के पेड़ों के नीचे अनु बैठी हुई है और थोड़ी दूर पर समंदर के लहरों पर वीर कुद रहा है और भाग रहा है बिल्कुल एक बच्चे की तरह l अनु उसे देख कर, उसके बचपने को देख कर खुश भी हो रही थी और हँस भी रही थी l वीर थक कर अनु के पास आता है और धड़ाम से नीचे गिरते हुए अनु के पास हांफते हुए लेट जाता है l थोड़ी देर अपने सांसो पर काबु पाने के बाद एक कृतज्ञता भरी नजरों से अनु को देखते हुए बैठता है

वीर - अनु... तुम कहाँ थी... इतने दिनों तक..
अनु - यह क्या राजकुमार जी... चार महीने से आप ही के पास ही तो हूँ...
वीर - नहीं नहीं नहीं... चार महीने पहले... कहाँ थी यार...
अनु - (शर्मा जाती है) मैं यहीं थी...
वीर - यार... पहले क्यूँ नहीं मिली...
अनु - वह कहते हैं ना... समय से पहले और भाग्य से अधिक...
वीर - हाँ... कितनी प्यारी बातेँ करती हो... यार... (फिर से लेट जाता है) सच में... तुम एक अनमोल तोहफा हो... कहाँ तुम्हारा दिन खास बनाने चला था... पर तुम... तुमने आज का दिन मेरे लिए बहुत खास बना दिया...

वीर उठ बैठता है, अपना चेहरा अनु के चेहरे के पास लेकर जाता है l अनु जो अब तक शर्मा कर वीर को सुन रही थी अचानक उसकी धड़कने बढ़ जाती है l

वीर - थैंक्यू...
अनु - (अपनी पलकें झुका कर) किस बात के लिए...
वीर - मुझे वृद्धाश्रम और अनाथालय में ले जाने के लिए... उनके बीच हमने कुछ पल गुजारे... बुटीक से जितने भी शॉल और चादर खरीदे थे... उन्हें बांट दिया.... अच्छा हुआ... एक महीने के लिए... तुमने उनके राशन पानी की व्यवस्था कर दिया... और बदले में उनसे मेरे लिए ढेर सारा आशिर्वाद... और शुभकामनाएं बटोर लाई....
अनु - वह सब आपका हक था... आपके लिए था... पैसे भी तो आप ही के थे...
वीर - हाँ... पर देखो... जो कपड़े तुमने मेरे लिए लिया... और मैंने तुम्हारे लिए लिया... अभी तक हमने ट्राय नहीं किया...
अनु - कोई बात नहीं... वह कपड़े पहनने के लिए भी मौका आगे आयेंगे...
वीर - हाँ... ठीक ठीक...

वीर फिर से वहाँ से उठ जाता है और थोड़ी दुर आगे की ओर जाने लगता है l उसके देखा देखी अनु भी उठ खड़ी होती है l वीर अचानक मुड़ता है l

वीर - (चिल्लाते हुए) अनु... आज मैं बहुत खुश हूँ... (कह कर अपनी बाहें फैला देता है)

अनु समझ जाती है वीर क्या चाह रहा है l वह शर्मा जाती है और खुदको एक कसूरीना पेड़ के पीछे कर लेती है l

वीर - यार यह गलत बात है... तुम अपना वादा नहीं निभा रहे हो...

अनु पेड़ की ओट से वीर के तरफ देखती है वीर वैसे ही बाहें फैला कर खड़ा हुआ है l अनु की शर्म और हया और भी बढ़ जाती है l वह खुद को पेड़ की ओट में लेकर अपनी आँखे और होंट भींच लेती है l तभी एक आवाज़ उसके कानों में पड़ती है

- बड़ी शर्मा रही है लौंडी... कहो तो हम ट्राय करें...

अनु अपनी आँखे खोल कर देखती है एक जीप में चार बंदे बियर की बोतल हाथ में लेकर उसीके तरफ देख कर बात कर रहे हैं l अनु घबरा जाती है और देखती है वीर गुस्से से आग बबूला हो कर उनके तरफ जाने लगता है l अनु भाग कर वीर के गले लग जाती है l

- आये हाय... क्या सीन है...
- कभी हमारे गले भी लग कर देखो...
वीर - (दहाड़ते हुए) जुबान सम्भाल कर...
- कमाल है... माना कि तेरी माल है... पर माल तो है ना... चल तु जितने पैसे में लाया है... तेरे को हम उसका दुगना लौटा देते हैं... चल लड़की को छोड़ और इधर से फुट...

वीर अनु को अलग करता है और भाग कर जाता है बदजुबानी करने वाले को जैसे ही घुसा मारने को होता है उसके तीन साथी गाड़ी से कुदते हुए उतरते हैं और वीर को घेर लेते हैं l

- ऑए हीरो... छमीया के लिए हीरो बन रहा क्या...

बस उतना ही कह पाया l एक जोरदार घुसा उसके जबड़े पर वीर जमा चुका था l वह छिटक कर गाड़ी से टकरा जाता है l इतने में बचे हुए तीन बंदे वीर पर हमला कर देते हैं l एक बंदा वीर पर पंच मारता है, वीर झुक कर खुद को बचाते हुए दुसरे के सीने पर एक किक मारता है और घूम कर तीसरे के कनपटी पर कोहनी से मारता है l इतने में वह पहला वाला अपना हाथ चलाता है तो वीर उसके हाथ को मोड़ देता है कि तभी

- ऐ.. हीरो...

वीर पहले वाले के हाथ को मरोड़ते हुए देखता है l वह दुसरा बंदा जिसे लात पड़ी थी वह अनु के पास पहुँच कर अनु के पीछे जा कर अनु का गला पकड़ लिया था l यह देख कर वीर गुस्से से पागल ही हो जाता है l पहले वाले की हाथ को ऐसा झटका देता है कि उस बंदे का बांह की जोड़ कंधे से टुट जाता है l वह पहला वाला बंदा दर्द के मारे ऐसे चिल्लाता है जैसे उसके प्राण पखेरु उड़ने वाले हो l वह मंज़र इतना खौफनाक था कि वह तीसरा बंदा जिसने अनु को पकड़ा हुआ था उसकी मूत निकल जाता है l
- देख मैंने छोड़ दिया... (अनु को छोड़ते हुए) आगे नहीं आना... प्लीज... (फिर वह बंदा नीचे झुक कर रेत उठा कर वीर के आँखों पर फेंकता है)

वीर के आँखों में रेत गिरती नहीं है पर कुछ देर के लिए वह अपना चेहरा घुमा लेता है l इतने में वह चार बंदे अपनी गाड़ी लेकर फरार हो जाते हैं l वीर जब तक नॉर्मल होता है अनु भागते हुए उसके गले लग जाती है l वीर भी उसे गले लगा लेता है l कुछ देर बाद वीर अनु से पूछता है l

वीर - डर लगा...
अनु - (वीर के सीने से लग कर ही अपना सिर हिला कर ना कहती है)
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ... ध्यान से सुनना...
अनु - जी...
वीर - (अनु को खुद से अलग कर एक गहरी सांस छोड़ते हुए) मेरे बारे में... सभी कुछ ना कुछ बातेँ कर रहे होंगे... (कुछ देर रुक कर अनु के आँखों में झांकते हुए) वह सब सच हैं... या होंगे.... कितनी लड़कियाँ.. कितने औरत मेरी जिंदगी में आईं... किसीके आँखों में खौफ था... तो किसी के आँखों में मतलब... एक तुम्हीं हो... जिसके आँखों में ना तो खौफ था... ना ही मतलब... तुम बहुत अच्छी हो... बहुत बहुत अच्छी हो... तुम खुद से ज्यादा... अपने आस पास के लोगों के... अपनों के लिए सोचती हो... पर अपने लिए नहीं.. मुझे हमेशा किस्मत से एक ही शिकायत रहा... के कास... तुम मुझे पहले मिली होती...

तभी अनु की फोन बजने लगती है, पर अनु फोन नहीं उठाती, फोन बजते हुए कट जाती है l फोन की रिंग बंद होते ही वीर फिर फिर से खुद को तैयार करता है अनु से कहने के लिए की अनु की फोन फिरसे बजने लगती है l

वीर - उठा लो अनु... फोन उठा लो...
अनु - जी...

अनु अपनी वैनिटी पर्स से फोन निकालती है l देखती है उसमें पुष्पा डिस्प्ले हो रहा है l

अनु - (हैरानी के साथ) पुष्पा... (फोन उठा कर) हैलो....
- हैलो... अनु... (रोती हुई आवाज में) यहाँ... अनर्थ हो गया है अनु...
अनु - दादी... क्या हुआ... तुम रो क्यूँ रही हो... पुष्पा... तुम पुष्पा की फोन से...
दादी - तु जहां भी है... जल्दी आजा... मट्टू भी यहाँ नहीं है...
अनु - क्या हुआ दादी... कुछ बोलो तो सही...
दादी - पुष्पा ने अपनी हाथ की नस काट ली है...
अनु - क्या...
दादी - हाँ... अब मैं बस्ती वालों की मदत से... उसे सिटी हस्पताल ले जा रही हूँ... तु जल्दी पहुँच...
अनु - ठीक.. है.. ठीक है दादी... (फोन काट कर वीर को देखती है) राजकुमार जी...
वीर - मैं समझ गया... चलो आज नहीं तो फिर कभी... कहाँ जाना है...
अनु - जी... सिटी हॉस्पिटल...

वीर और अनु गाड़ी में बैठते हैं l वीर गाड़ी को तेजी से भगाता है करीब डेढ़ घंटे के बाद सिटी हॉस्पिटल में पहुँच जाते हैं l गाड़ी में अनु पुष्पा के लिए भगवान को प्रार्थना कर रही थी l वीर उसकी हालत देख कर गाड़ी में चुप रह गया था I दोनों भागते हुए कैजुअलटी में पहुँचते हैं l वहाँ मृत्युंजय भी दिख जाता है l वीर को वहाँ अनु के साथ देख कर मृत्युंजय और दादी दोनों हैरान होते हैं l

अनु - मट्टू भैया... आप कब आए... और पुष्पा कैसी है..
दादी - (अनु से) इतनी देर... कहाँ थी... क्या कर रही थी... (अनु सिर झुका कर चुप रहती है)
वीर - वह... दरअसल... हम दोनों... ऑफिस के एक जरूरी काम से... थोड़ा बिजी थे... (मृत्युंजय से) वैसे मृत्युंजय... अब कैसी हालत है... पुष्पा की...
मृत्युंजय - (रोते हुए) अब ठीक है... समझ में नहीं आ रहा है... यह हमारे घर क्या हो रहा है... माँ को गए... कुछ ही दिन हुए हैं... और अब यह... (फुट फुट कर रोने लगता है)

वीर उसे दिलासा देता है और जरूरत पड़ने पर खबर करने के लिए कह कर हस्पताल से बाहर निकलता है l गाड़ी के पास पहुँच कर डोर खोलते वक़्त उसे पिछली सीट पर वह कपड़े दिखते हैं जो अनु और वीर ने एक दुसरे के लिए खरीदे थे l वीर टुटे मन से गाड़ी में बैठता है और गाड़ी चलाते हुए हस्पताल से निकल कर शहर की रास्ते पर पहुँच जाता है lउसका मन आज बहुत खराब था l आज वह अपनी दिल की बात कहने और अपने प्यार की इजहार करने के बहुत करीब था l पर आखिरी वक़्त पर किस्मत ने उसे फिर से दगा दे दिया l गाड़ी चली जा रही थी कि उसका फोन बजने लगता है l वह बिना डिस्प्ले देखे गाड़ी की ब्लू टूथ ऑन कर देता है l

- हा हा हा हा.. (किसीके हँसने की आवाज सुनाई देती है)
वीर - हू इज़...
- अबे ओ.. अंग्रेज के चमन चुतिए...
वीर - (गाड़ी में ब्रेक लगाता है) कौन.. कौन हो तुम...

वीर के गाड़ी के पीछे गाड़ियों के हार्न सुनाई देता है l

- अबे चमन चुतिए... या तो गाड़ी चलाते हुए बात कर... या फिर गाड़ी साइड कर... (वीर गाड़ी साइड पर लेता है) शाबाश... गुड बॉय...
वीर - कौन हो तुम...
- अबे भोषड़ी के.. इतनी जल्दी भूल गया...
वीर - (चुप रहता है)
- तेरी जिंदगी... मुझे बर्बाद करनी है... मान गया... तु पक्का वाला हरामी है... मुझे अंदाजा नहीं था... तु एक लड़ाकू हो सकता है... मेरे एक बंदे का हाथ तोड़ दिया तुने...
वीर - (हैरानी से आँखे फैल जाता है)
- हाँ हराम जादे... मेरी नजर है तुझ पर... मैंने तुम क्षेत्रपालों के किस्मत की चांद पर ग्रहण बनने की ठान ली है... और किस्मत की बात देखो... किस्मत भी मेरा साथ दे रही है... तु भले ही मेरे आदमियों पर भारी पड़ा... पर तकदीर तेरी गांडु निकला रे... तु... अपनी छमीया को... दिल की बात नहीं बोल सका.... हा हा हा हा हा...

वीर और भी ज्यादा हैरान हो जाता है और उतना ही कसमसा जाता है l
प्रतिभा और तापस भी एक दम मस्त जोड़ी है, आपस में भी मस्ती करते रहते है और विश्व के साथ भी। वैसे प्रतिभा दोनो बाप बेटे की सही क्लास लगाती रहती है।

वीर की किस्मत भी पता नही किस चीज से लिखी है कि जब भी इजहार करना चाहता है तभी दादी का फोन आ जाता है और बात अधूरी रह जाती है। चेट्टी ने सही प्लान कर रक्खा है हर जगह।

टोनी ने परीदा, रोड़ा और प्रधान की अच्छे से फाड़ दी है विश्व पुराण सुना कर कि अब तो मोची क्या कोई मशीन भी ना सिल पाए। मगर टोनी ने एक बात समझदारी की बोली की वो विश्व के हाथो दूसरा नंबर ले कर नही मरना चाहता है।

रूप भी अब अनाम के सपनो में ही खोई मगर चाची मां ने कुछ तो ऐसा बताया है शुभ्रा को की रूप को झटका तो लगने वाला है और ये बात शायद अनाम से ही संबंधित है। बहुत ही शानदार अपडेट फिर से।
 

Death Kiñg

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कहानी अब एक नए आयाम में प्रवेश कर चुकी है। विश्व की ज़िंदगी यहां से एक नया मोड़ लेने वाली है, वो मोड़ जो विश्व की मंज़िल की तरफ जाता है। भैरव सिंह, पिनाक सिंह, अनिकेत, बल्लभ और जितने भी ऐसे थे जिन्होंने सात वर्ष पहले ना केवल एक मासूम को जेल भिजवाया बल्कि एक लड़की की इज़्ज़त को भी तार – तार कर दिया, अब उन सभी का दंडचक्र आरंभ होने वाला है। जहां, विश्व के जीवन में उस न्याय – चक्र का आरंभ हो रहा है, जिसकी उसे सालों से प्रतीक्षा थी, वहीं उसका प्रेम, जोकि बचपन से उसके हृदय में कैद था, अब शायद उसके उजागर होने का समय भी निकट ही है।

नंदिनी को अंततः मालूम चल गया की प्रताप ही उसका अनाम है, परंतु इसी रहस्योद्घाटन के बाद नंदिनी के सामने वो दोराहा आने वाला है जो उसकी एक कठिन परीक्षा लेगा। अभी नंदिनी अनाम के विश्वा और विश्वा के प्रताप बनने के सफर के बारे में कुछ नहीं जानती, जल्द ही कहानी उस घटनाक्रम पर प्रकाश डाल सकती है, जो अभी तक परदे के पीछे छुपा हुआ है। आखिर ऐसी क्या वजह थी कि विश्व उस क्षेत्रपाल महल में नौकर बन गया था जहां उसकी बहन की इज़्ज़त और ज़िंदगी को नेस्तनाबूद किया गया था, जिस महल की दीवारें उसकी बहन की चीखों और उसके पिता के रक्त से रंगी थी, वहां विश्व के जाने का क्या कारण था? मुख्य प्रश्न ये भी है कि क्या प्रतिभा और तापस जानते हैं इस सबके बारे में? मुझे याद है की वैदैही ने पूरा अतीत नहीं बताया था प्रतिभा को, शायद जल्द ही वो पहली भी सामने आए...

विश्व अभी भी नंदिनी की सच्चाई और उसके अस्तित्व से अनभिज्ञ है, वो नहीं जानता की जिस राजकुमारी की तलाश में उसका हृदय है वो उसके इतने करीब है। वैसे मुझे नहीं लगता की अभी विश्व को इस बारे में पता चलने वाला है, इसका कारण यही है की अब विश्व और नंदिनी में मुलाकात अथवा बातें होंगी, इसकी संभावना बेहद कम है। दूसरा, रूप की चाची ने शुभ्रा को कुछ बताया था, जो वो नंदिनी से छुपा गई, क्या वो बात नंदिनी की शादी से जुड़ी थी? यदि हां, तो विश्व के सामने सच्चाई आने में अभी काफी समय लगने वाला है। शायद जब उस राजगढ़ नामक जंगल में वो लौटे, तभी उसे ये असलियत मालूम चलेगी...

खैर, अब विश्व का लक्ष्य क्या होना वाला है, ये देखना भी रोचक रहेगा। स्वप्न जोडार का मामला अब सुलझ चुका है, केके के साथ उसका लफड़ा सुलझने से विश्व ने भी अदालत और कानून के अखाड़े में अपने कदम रख दिए हैं। अभी के लिए विश्व शायद नंदिनी से भी दूर रहेगा, या कहीं की शायद हालात उन्हें कुछ वक्त तक दूर रखें। ऐसे में अब उसका ध्यान अनिकेत और बल्लभ पर हो सकता है, संभव है की इन दोनों के साथ – साथ परीड़ा भी पिस जाए। क्योंकि टोनी उर्फ लेनिन ने अपने हाथ इस मामले से पूरी तरह खींच लिए हैं, इसलिए शायद अब वो कुछ समय तक ज़िंदा तो रहेगा, परंतु मुझे नहीं लगता की भविष्य में वो कहानी से गायब होने वाला है, विश्व के हाथों मुक्ति पाने वो ज़रूर लौटेगा।

अनिकेत, बल्लभ और परीड़ा, तीनों ने मिलकर काफी कुछ पता लगा लिया है विश्व के बारे में। विश्व का एक बेहतरीन फाइटर होना, उसका वकालत करना, विश्व और डैनी के संबंंध, और सबसे बड़ी बात, टोनी के मुंह से सुने विश्वा भाई के किस्से। परंतु अभी भी वो तीनों एक तरह से अंधेरे में तीर चला रहे हैं। विश्व बल्लभ और अनिकेत के बारे में, उनकी शहर में उपस्थिति के बारे में और शायद उनके मकसद के बारे में भी सब कुछ जानता है। परंतु वो तीनों ना तो ये जानते हैं की विश्व कहां है, वो कैसा दिखता है, उसका राजगढ़ ना लौटने के पीछे का औचित्य क्या है और सबसे महत्वपूर्ण विश्व असल में क्या जाल बुन रहा है... अपने दुश्मन के बारे में इतनी बातों से अनभिज्ञ होना हानिकारक है और ये तीनों जल्द ही ये समझ जाएंगे।

परंतु जिस चीज़ का इंतज़ार है वो है की भैरव सिंह से ये दोनों क्या कहेंगे? विश्व के बारे में क्या बताएंगे? क्या अनिकेत कह पाएगा की विश्व बिना सामने आए दो बार उसकी धज्जियां उड़ा चुका है। संभव ही नहीं है, और यही इन दोनों की सबसे बड़ी गलती साबित होगी। मुझे नहीं लगता की विश्व इन दोनों को जान से मारेगा, परंतु जैसा रंगा ने कहा था, मुझे भी लगता है की वो इन दोनों की ज़िंदगी मौत से भी बत्तर कर देगा। मज़े की बात तो ये है की भैरव सिंह को शायद खबर भी नहीं होगी की उसके दोनों पिल्लों के साथ आखिर हुआ तो हुआ क्या?

केके, ओंकार चेट्टी और वो अनजान शख्स, इन तीनों की उपस्थिति भी कहानी को रोचक बना रही है। यदि वो तीसरा किरदार अभी तक कहानी में दिख चुका है, तो शायद वो डैनी हो सकता है, या फिर संभव है की वो कोई नया किरदार हो। बड़ी बात ये है की उस व्यक्ति का निशाना अभी वीर है ना की विक्रम, विक्रम को ओंकार ने धमकी दी थी और ओंकार के कहने पर ही रंगा ने शुभ्रा पर हमला किया था। क्या वो शख्स वीर के पूर्व कर्मों का मारा है? संभव है की उसके किसी प्रियजन को भी वीर की हवस और नीचता के कारण अपने प्राण अथवा प्रतिष्ठा गवानी पड़ी हो, और इसीलिए उसका मुख्य लक्ष्य वीर ही है।

अब केके को जिम्मेदारी मिली है की वो विश्व को अपने साथ मिलाए, क्षेत्रपालों के विरुद्ध खड़ा होने के लिए। अपनी ही कब्र तो नहीं खोद रहा है ओंकार? विश्व की ये कहानी, उसके लिए धर्मयुद्ध है और धर्मयुद्ध में इन अधर्मियों का साथ निभाए, अथवा उनकी सहायता ले, ऐसा चरित्र नहीं है विश्व का। परंतु, बेशक रोचक होगा देखना की क्या नतीजा निकलेगा जब केके ऐसा कोई प्रस्ताव लेकर विश्व के पास जाएगा। सर्वप्रथम तो जब उस मूर्ख को पता चलेगा की उसकी जेब पर डाका डालकर स्वप्न जोडार को जितवाने वाला विश्व ही है, तब उसकी प्रतिक्रिया देखने लायक होगी...

शुभ्रा और विक्रम के बीच भी अब शायद चीज़ें बेहतर हो रहीं हैं परंतु क्या सब कुछ ठीक हो चुका है दोनों के बीच? शायद नहीं। विश्व ने शुभ्रा को बचाकर एक तरह से विक्रम पर उपकार किया है, जिसका बदला उतारना चाहेगा विक्रम। वैदैही और प्रतिभा में से किसी पर आया संकट टालकर ही ऐसा संभव हो सकता है, परंतु उसके बाद क्या? विक्रम इतने समय से जो डेविल बनकर विश्व से भिड़ंत की तैयारी और प्रतीक्षा कर रहा है, और खुद को बेहतर बना रहा है, वो ऐसे ही व्यर्थ तो नहीं जाने वाला। अब देखना ये है की क्या उसी भिडंत के बाद, शुभ्रा और विक्रम पुनः पूर्णतः एक – दूसरे को समर्पित हो पाएंगे। क्योंकि शुभ्रा की ओर से अभी भी कुछ झिझक दिखाई दे रही है...

इधर वीर और अनु की प्रेम कहानी तब तक उड़ान नहीं भर पाएगी जब तक उस अनजान शख्स को ढूंढ नहीं लेता वीर। वो वीर पर चौबीसो घंटे नज़र रखे हुआ है, ऐसे में संभव नहीं है की वीर अपने प्यार का इज़हार अनु से कर पाए। पुष्पा ने अपने हाथ की नस काट ली है, क्या अपनी मां के गम में है वो या इसका आरोप वीर के सर आने वाला है? अनु के लिए जिस रिश्ते की बात कर रहा था मृत्युंजय अभी तक ना तो अनु उस बारे में जानती है और ना ही वीर। दादी का अगला कदम क्या होगा ये भी एक निर्णायक बात साबित होगी।

कहानी की कड़ियां अब जुड़ने लगीं हैं। शुभ्रा और विक्रम का मामला अब पूरी तरह से विश्व और विक्रम की भेंट पर निर्भर करता है, विक्रम कैसे उस एहसान को उतारेगा, इस पर निर्भर करता है। वीर और अनु की प्रेम कहानी उस अज्ञात दुश्मन के सामने आने पर निर्भर करती है, और यदि वो डैनी हुआ, तो यहां भी विश्व की उपस्थिति बन जायेगी। केके की विश्व से मुलाकात और क्षेत्रपालों से दुश्मनी के बारे में चर्चा, निर्णायक रहेगी। अंततः कहानी का शीर्षक – “विश्वरूप" सार्थक कब होगा, ये भी देखना है।

सभी अध्याय बहुत ही खूबसूरत थे भाई। कुछ समय से कहानी पढ़ नहीं पाया था, आज ही सभी अध्याय पढ़े हैं और देखकर बेहद प्रसन्नता हुई की स्वास्थ्य से जूझते हुए भी आपने कहानी को रोका नहीं है, अपडेट्स की गति निरंतर बनी हुई है। आपके लेखन में समय के साथ जो निखार आया है वो सचमें तारीफ के काबिल है। जैसा मैंने पहले भी कई बार कहा है की इतने बेहतर ढंग से प्रेम – प्रसंग अथवा प्रेमालाप लिखते हुए मैंने कम ही लेखकों को देख है, और अब भी मैं उस पर कायम हूं। तीन प्रेम – कहानियां हमें एक साथ यहां पढ़ने को मिल रही हैं और तीनों के मध्य जो भिन्नताएं हैं, वो दिल को छू जाती हैं। बीच में सुकुमार अंकल जैसे पात्रों की उपस्थिति और उनके आगमन से कहानी पर हुआ असर, सत्य में अब आप एक मंझे हुए लेखक की तरह कहानी लिख रहें हैं।

प्रतीक्षा अगले भाग की...
 

Battu

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👉छियानबेवां अपडेट
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विश्व ऐसे चौंकता लगता है जैसे प्रतिभा ने उसे साक्षात भूत के दर्शन करवा दिया l

प्रतिभा - ऐसे क्या देख रहा है... अगर मैं नंदिनी की जगह होती और.... तेरी जगह अगर तेरे डैड होते... तो मैं भी बिल्कुल वही करती... जो नंदिनी ने किया... और एक क्या... दो चार और रसीद कर देती...
तापस - क्या रसीद कर देती भाग्यवान... (विश्व के कमरे के बाहर खड़े होकर)
प्रतिभा - (शॉक से हकलाते हुए) आ... आप..
तापस - (अंदर आते हुए) क्या हुआ... गलत टाइम पर आ गया...
प्रतिभा - हाँ... मेरा मतलब है नहीं...
विश्व - डैड... क्या आप माँ के हाथों से... थप्पड़ खाए हैं...
तापस - ऐसी नौबत तो कभी आई नहीं... और ना ही कभी आने दूँगा...
विश्व - मतलब आप माँ से डरते हैं...
तापस - हाँ... नहीं...(संभल जाता है) नहीं.. मेरा मतलब है... (पुचकारते हुए) मैं तो बहुत प्यार करता हूँ...
प्रतिभा - (अपनी आँखे सिकुड़ कर) हो गया...
तापस -(दुबकते हुए) बिल्कुल.. बिल्कुल... बस एक कप चाय की तलब लगी है...
प्रतिभा - मिल जाएगा... (कह कर प्रतिभा वहाँ से निकल कर किचन में चली जाती है)

विश्व और तापस दोनों आकर ड्रॉइंग रुम में बैठते हैं l तापस अपनी भवें उठा कर और सिर हिला कर पूछता है
"क्या हुआ"
विश्व अपनी पलकें झपका कर सिर ना में हिला कर
"कुछ नहीं"
तापस एक शैतानी मुस्कराहट के साथ अपने गाल पर हाथ फ़ेर कर देखता है l विश्व जबड़े भिंच कर तापस को देखता है l

तापस - अरे यार... मुझसे कैसी शर्म... चल बता ना... क्या हुआ... चल बता

विश्व एक नजर तापस को देखता है और एक गहरी सांस छोड़ते हुए सारी बातेँ बता देता है l सारी बातेँ सुन कर तापस सोचने के अंदाज में कहता है

तास - ह्म्म्म्म... बात तो गम्भीर है... पर लगता है... तुम्हारी माँ सही है...

प्रतिभा - देखा... (अंदर आकर तापस को चाय का कप देते हुए) मैं ठीक ही कह रही थी...
विश्व - नहीं... आप दोनों गलत हो...
दोनों - कैसे...
विश्व - वह थप्पड़... प्यार को ना पहचान ने वाला थप्पड़ नहीं था...
प्रतिभा - मतलब.. (चहकते हुए) तुझे नंदिनी का प्यार कुबूल है...
विश्व - नहीं...
प्रतिभा - (चिढ़ कर)अच्छा... तो.. वह थप्पड़ किस लिए था...
विश्व - (उस क्षण को याद करते हुए) माँ... वह मेरे तरफ कृतज्ञता वाली नजर से देखते हुए हाथ बढ़ाती हैं... कहती हैं कि... हो सकता है, यह हमारी आखिरी मुलाकात है... मैं भी अपना हाथ बढ़ा कर हाथ थाम लेता हूँ... फिर... अचानक से वह... भावुक हो गईं... मेरा हाथ छोड़ कर मेरे सीने से लग गईं... धीरे धीरे उनकी बाहों की कसाव बढ़ती चली गई... फिर अचानक... उनकी एक हाथ मेरे सीने पर आती है और मेरी शर्ट को मुट्ठी में जकड़ लेती हैं... फिर मेरे चेहरे को हैरानी भरे नजरों से देखने लगतीं हैं... फिर दुसरे हाथ से भी मेरी शर्ट को मुट्ठी में पकड़ कर मुझे झकोरते हुए धक्का देतीं हैं... फिर... (विश्व कहते कहते रुक जाता है) फिर वह थप्पड़ मार देती हैं... मैं हैरान हो कर उनको देखता हूँ... उनके चेहरे पर... मेरे लिए जैसे कुछ सवाल थे... जैसे वह पुछ रहीं थीं... (फिर रुक जाता है)
दोनों - क्या पुछ रही थी...

विश्व कुछ कहने को होता है कि उसका फोन रिंग होने लगता है l वह अपना फोन उठाता है, देखता है वीर का कॉल था l

विश्व - हैलो... वीर
वीर - हैलो मेरे दोस्त.. कैसे हो...
विश्व - बढ़िया... तुम बताओ... भई.. दिखे नहीं कुछ दिनों से... फोन भी स्विच ऑफ आ रहा था...
वीर - क्या करूँ यार... माँ की बहुत याद आ रही थी... इसलिए माँ के पास चला गया था...
विश्व - ओ... तो क्या प्लान है आज तुम्हारा...
वीर - कुछ नहीं... बस तुम... मुझे बेस्ट ऑफ़ लक कह दो...
विश्व - कह दूँगा... पर किस लिए...
वीर - मैं आज अनु को प्रपोज करने जा रहा हूँ...
विश्व - वाव... पिछली बार कुछ प्रॉब्लम हुआ था क्या...
वीर - हाँ... किसी की डेथ हो गई थी... मौका नहीं बन पाया था...

विश्व - तो... आज कौनसा मौका है...
वीर - मेरा जन्म दिन है यार...
विश्व - अरे वाह... जन्म दिन की हार्दिक बधाई... फिर पार्टी तो बनता है...
वीर - हाँ... अगर मैं अनु को प्रपोज कर पाया तो...
विश्व - जरूर जरूर... तुम्हारा प्यार सच्चा है... अनु भी तुमसे प्यार करती है... आज तुम... कुछ इस तरह से प्रपोज करना की... आज का दिन अनु की जिंदगी का खास दिन बन जाए....
वीर - जरूर... जरूर मेरे दोस्त... जरूर... तुमसे बात हो गई... मानो... सारे जहां की हिम्मत मिल गई... बाय...
विश्व - बाय.. एंड बेस्ट ऑफ़ लक...

कह कर फोन काट देता है और वह खुशी के मारे प्रतिभा और तापस दोनों की ओर देखता है l तास प्रतिभा के कंधे पर एक हाथ रखकर और दुसरा हाथ जेब में रख कर कृष्न भंगिमा में खड़ा था और प्रतिभा अपने दोनों हाथों को मोड़ कर कोहनीयों में जमा कर खड़ी थी l वह दोनों उसे घूर रहे थे l

विश्व - क्या.. क्या हुआ... मुझे आप दोनों ऐसे क्यूँ घूर रहे हो...
तापस - समझी भाग्यवान... खुद से खिचड़ी नहीं पक रही है... जनाब दुसरों को बिरियानी का ज्ञान बांट रहे हैं...
विश्व - आआआह्ह्ह्...

कह कर विश्व अपने कमरे के भीतर चला जाता है l उधर गाड़ी चलाते हुए वीर प्रताप से बात खतम कर पटीया के उसी मंदिर के पास पहुँचता है जहां वह अनु के जन्म दिन पर मिला था I वीर को सफेद सलवार कुर्ती और सफेद आँचल में मंदिर के बाहर अनु दिख जाती है l अनु भी वीर की गाड़ी देख कर वीर के पास आने लगती है l वीर गाड़ी से उतर कर अपनी सपनों की शहजादी को आते हुए देखता है l वीर के लिए मानों दुनिया जहां सब ओझल हो जाते हैं, अनु आ तो रही है मगर जैसे वक्त थम सा गया है l अनु के चेहरे की चमक को देखते ही वीर अंदर से ताजगी महसुस करने लगता है l अनु उसके पास आकर खड़ी होती है l वीर उसके मुस्कराते हुए चेहरे को देख कर खो सा जाता है l अचानक उसका ध्यान टूटता है

अनु - हैप्पी बर्थ डे... जन्म दिन मुबारक हो...
वीर - (होश में आते हुए) तु.. तुम... तुमको कैसे मालुम हुआ... आज मेरा जन्म दिन है..
अनु - (हँसते हुए) मैंने आपके दिन को खास बनाया था... अपने जन्म दिन पर... (थोड़ा शर्माते हुए) आज आप मेरे दिन को खास बनाने जा
रहे हैं... तो आज आपका जन्म दिन ही होगा ना...
वीर - ओ...
अनु - (अचानक अपना हाथ दिखा कर) तो दीजिए अपनी गाड़ी की चाबी...
वीर - (थोड़ा हैरान हो कर) क्यूँ... किस लिए...
अनु - आज आपको इस राजकुमारी की बात तो माननी होगी...
वीर - (मुस्करा देता है) जी राज कुमारी जी... (कह कर कार की चाबी बढ़ा देता है)
अनु चाबी लेकर गाड़ी की ड्राइविंग सीट वाली डोर खोलती है और ड्राइविंग सीट पर झुक कर एक छोटी सी गिफ्ट बॉक्स सीट पर रख देती है l फिर गाड़ी की डोर बंद कर लॉक कर देती है और वीर को चाबी लौटा देती है l

वीर - क्या हुआ... गाड़ी में कुछ देखने गई थी क्या...
अनु - हाँ... गाड़ी में खुशबु ठीक है या नहीं... यह देख रही थी...
वीर - (हैरानी साथ मुस्कराते हुए) क्या... (वह देख रहा था, आज अनु कुछ ज्यादा ही चहक रही थी)
अनु - अच्छा... आज आप पर्स तो लाए हैं ना...
वीर - हाँ... क्यूँ... क्या हुआ...
अनु - लाइये दीजिए....

वीर फिर से हैरानी के साथ अनु के चेहरे को देखता है, कहीं पर भी कोई शैतानी नहीं दिख रही थी, बल्कि एक चुलबुला पन दिख रहा था l वीर को अनु का ऐसे हुकुम चलाना बहुत ही अच्छा लग रहा था l उसने बिना देरी किए अपना पर्स निकाल कर अनु के हाथ में रख देता है l अनु पर्स खोल कर देखती है, कुछ दो तीन हजार के नोट ही निकलते हैं l अनु का चेहरा उतर जाता है l

वीर - क्या हुआ अनु...
अनु - यह क्या... सिर्फ़ इतने पैसे...
वीर - तो क्या हुआ... डेबिट कार्ड और क्रेडिट कार्ड है ना... हमें जो भी मार्केटिंग करनी होगी... हम कार्डस से कर लेंगे...
अनु - नहीं... कुछ जगहों पर... नकद की जरूरत पड़ती है...
वीर - तो ठीक है... हम एटीएम से पैसे निकाल लेंगे...

अनु - (खुश होते हुए) हाँ.. तो निकालिये ना... मुझे अभी कुछ पैसों की जरूरत है...

वीर इधर उधर नजर दौड़ाता है l उसे नजदीक एक एटीएम दिखता है l वीर अपनी पर्स से डेबिट कार्ड निकाल कर अनु के हाथ में देता है

वीर - यह लो.. इसका पिन नंबर & $#@ है... जाओ... जितना चाहिए निकाल कर ले आओ...
अनु - (वीर के हाथों में अपना हाथ पा कर पहले से ही नर्वस थी, फिर हैरान हो कर) क.. क.. क्या... (झिझकते हुए) न.. नहीं... म... मैं नहीं ले सकती...
वीर - अनु... (उसकी हाथ पकड़े हुए) आज तुम राजकुमारी हो... बिल्कुल अपने बाबा के ख्वाहिश की जैसी... इसलिए झिझको मत... जाओ... एटीएम से पैसे ले आओ...

अनु बहुत झिझक के साथ कार्ड लेकर एटीएम की ओर जाती है पर बार बार पीछे मुड़ कर देखती है l वीर उसे इशारे से बेझिझक जाने को कहता है l अनु एटीएम से तकरीबन दस हजार निकाल कर लाती है l फिर एक दुकान से पुजा के लिए सामान खरीद कर मंदिर में वीर को लेकर जाती है l पुजारी को वीर की नाम पर अभिषेक करने के लिए कहती है l वीर अपना हाथ जोड़ कर प्रार्थना करता है l

वीर - हे भगवान... सारी जिंदगी... अनु के लिए... अनु की ही तरह... मेरी नियत साफ रहे... ईमानदार रहे... बस इतना ही आशिर्वाद करना...

पुजारी के पुजा कर लेने के बाद अनु वीर के पैसों से एक हजार रुपये और अपनी वैनिटी पर्स से एक सौ ग्यारह रुपये निकाल कर पुरे एक हजार एक सौ ग्यारह रुपये देती है l अनु की यह हरकत वीर के दिल को गुदगुदा देता है l उसके होठों पर एक मुस्कराहट अपने आप खिल उठता है l फिर अनु मंदिर की प्रसाद व भोजन काउंटर पर आती है वहाँ से अन्न प्रसाद के तीस टोकन खरीदती है और वीर को थमा देती है l फिर वीर को मंदिर के बाहर लेकर आती है l वहाँ पर बैठे कुछ भिकारी, झाड़ू लगाने वाले कुछ लोग और जुते रखने वालों में वीर के हाथों से वह टोकन बंटवा देती है l वीर टोकन बांटते हुए अनु के अंदर की खुशी को साफ महसूस कर पाता है l वह भी खुशी खुशी टोकन बांट देता है l सबको टोकन मिल जाने के बाद

अनु - देखिए आप सब... आज इनका जन्म दिन है... इसलिए पेट भर खाना खाने के बाद... इनके लिए सच्ची श्रद्धा से प्रार्थना करना... ठीक है...
सभी - ठीक है...

फिर अनु वीर को वहाँ से लेकर गाड़ी तक आती है l

अनु - अब आप गाड़ी की दरवाजा खेलिए...

वीर अनु की चुलबुले पन से निहाल हो जाता है l अपनी पॉकेट से गाड़ी की चाबी निकाल कर गाड़ी को अनलॉक कर जैसे ही सीट पर नजर डालता है उसे सीट पर वह गिफ्ट बॉक्स मिलता है l वह समझ जाता है कि इसे अनु ने ही रखा होगा l वह बॉक्स उठा कर सीट पर बैठ जाता है और इशारे से अनु को गाड़ी में बैठने को कहता है l अनु एक झिझक और जिज्ञासा के साथ वीर के बगल में बैठती है l मन ही मन सोचती है
"पता नहीं राजकुमार जी को पसंद आएगा भी या नहीं"
वीर गिफ्ट बॉक्स खोलता है तो उसमे बक्कल्स दिखते हैं l

वीर - वाव अनु... यह मेरे लिए हैं... सच में... बहुत ही खूबसूरत है... थैंक्यू थैंक्यू वेरी मच... जानती हो... मेरे पास ढेर सारे कपड़े हैं... पर किसी भी ड्रेस के लिए... बक्कल्स नहीं है...
अनु - (झिझक के साथ) रा.. राज... कुमार जी... क्या सच में आपको पसंद आया...

वीर - बहुत... क्यूँ तुम्हें यकीन नहीं हो रहा... (अनु की हाथ पर अपना हाथ रख कर) मेरे आँखों में देखो... क्या तुम्हें लगता है... मैंने यह बात तुम्हारा दिल रखने के लिए कहा है....

अनु खुशी और शर्म के मारे अपना सिर झुका लेती है l अनु की इस अदा पर वीर के मन में तरंगें उठने लगते हैं l उसका मन करता है कि अनु को गले से लगा ले l पर वह खुद पर काबु रखता है l


वीर - तो राजकुमारी जी... हम अब चलें...
अनु - (खुद को संभालते हुए) कहाँ...
वीर - आज आपको राजकुमारी बनना है... और आज यह खादिम... दिन भर आपकी सेवा के लिए उपलब्ध रहेगा... जब तक आपका मन ना भर जाए....

अनु हँसती है, दिल खोल कर हँसती है l वीर के दिल में फिर से तरंगें बजने लगते हैं l वह अनु के हँसी में खो जाता है क्यूंकि आज उसे अनु कुछ अलग सी लग रही थी, बहुत खास भी लग रही थी l वीर भी उसके साथ हँसने लगता है l

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दीवार पर लगे एक बड़े से एलईडी के स्क्रीन पर एक वीडियो चल रही थी l एक कबड्डी मैच का अंतिम क्षण I चार लोग बैठ कर वह मैच देख रहे थे l अचानक वह वीडियो पॉज हो जाता है l

टोनी एलईडी के सामने आता है और कहता है
"यही वह मोमेंट था... जहां विश्व की जान जा सकती थी..."
कह कर एलईडी को फिर से चलाता है l जिसमें साफ दिख रहा है कि यश विश्व के गले में अपना बांह फंसा कर दबोच लिया है l फिर भी विश्व कोशिश करते हुए लाइन के पास यश को खिंचते हुए जा रहा था l तब यश चिल्लाता है विश्व को पकड़ने के लिए आउट हुए सभी खिलाड़ी लेनिन के साथ बाकी चार खिलाड़ी एक साथ यश और विश्व के ऊपर छलांग लगाते हैं l विश्व के ऊपर यश, यश के ऊपर लेनिन, लेनिन के ऊपर एक के बाद एक गिरते हैं l रेफरी फउल करार देते हुए इन्हें रोकता है पर कोई नहीं उठता है l तब पुलिस वाले आकर सब को हटाते हैं l विश्व के गर्दन पर यश की बांह अभी भी फंसा हुआ था l एक पुलिस वाला यश की हाथ निकाल कर विश्व को पलटता है l विश्व के चेहरे पर दो तीन चपत लगाता है l विश्व अचानक गहरी गहरी सांसे लेते हुए खांसने लगता है l फिर वह पुलिस वाला यश को हिला कर उठाने लगता है l पर यश नहीं उठता I वीडियो खतम हो जाता है l कमरे में लाइट जलने लगती है l

टोनी - पर तकदीर का मारा... यश... उसी मैच में मारा जाता है...
रोणा - मादरचोद विश्व मर गया होता... तो अच्छा था...
परीड़ा - पर मरा नहीं... हमारी लगाने के लिए... जिंदा बच गया हरामी...
बल्लभ - (टोनी से) उस दिन का मामला क्या था...
टोनी - यश... अपनी रखैल के एक्सीडेंट केस में... रिमांड पर पूछ-ताछ के लिए सेंट्रल जेल में था... वह... अपनी जगह किसी और को प्लॉट करना चाहता था... वह जिस पुलिस वाले से मदत मांगा था... वह पुलिस वाला... स्टिंग ऑपरेशन में पकड़ा गया और नौकरी से गया... यश के पास सिर्फ एक ही ऑप्शन था... जैल में ही किसी से मदत ली जाए... उस वक़्त मैं ही था... जो ऐसा कर सकता था... हाँ यह बात और है कि... उसे इस बात की जानकारी विश्व से ही मिली...
रोणा - मतलब विश्वा... तेरी कुंडली के बारे में.. अच्छी तरह से जानता था...
टोनी - हाँ... यही विश्व की खासियत है... जैल में आने वाले सभी की... चाहे वह पुलिस वाला ही क्यूँ ना हो... सबकी कुंडली पता लगा लेता है...
बल्लभ - अच्छा... इसका मतलब.. हम जैल में उसकी इंक्वायरी के लिए गए... तो उसकी नजर में आ गए...
टोनी - हाँ...
परीड़ा - उसे किसने इंफॉर्म किया होगा... खान...
टोनी - नहीं... वह इतने बड़े लोगों को... अपने टीम में नहीं रखेगा... क्यूं रखेगा... पर हाँ... जैल के छोटे मोटे स्टाफ हो सकते हैं...
रोणा - तेरी भी तो इंफॉर्मेशन नेट वर्क जबरदस्त था...
टोनी - पर विश्व का... मुझसे बीस कदम आगे था... या यूँ कहूँ... यहाँ के हर पुलिस स्टेशन में... कोर्ट में.. उसके लिए ख़बर निकालने वाले बहुत हैं... और वह लोग इतने शातिर हैं... किसीके भी नजर में नहीं आते...
परीड़ा - हूँम्म्म्म्म.... मतलब... जैल में रह कर जुर्म की दुनिया का हर दाव पेच सीख गया है...
टोनी - बिल्कुल...
बल्लभ - पर मेरे समझ में यह नहीं आया... यश विश्व को क्यूँ मारना चाहता था...
टोनी - क्यूंकि... यश को बाहर निकाल कर.. उसके जगह अपने किसी आदमी को प्लॉट करने के बदले... मेरी यश से यही शर्त थी...
तीनों - व्हाट...
टोनी - हाँ... मैं सेंट्रल जैल में तीन बार गया था... दो बार विश्व से मेन टू मेन फाइट में मुहँ की खाया... दुसरी बार तो विश्व मेरी... (अपना हाथ दिखाते हुए) कलाई तोड़ दी... (जबड़े भिंच कर) ऐसी तोड़ी की... भारी सामान आज तक नहीं उठा पा रहा हूँ...
परीड़ा - तुने... यश से जो डील की थी... क्या उसके बारे में... ओंकार जानता था...
टोनी - हाँ... अच्छी तरह से... वह जैल में... यश से मिलने आता था... और उसे ड्रग्स सप्लाई करता था...
परीड़ा - क्या... जैल में यश... ड्रग्स लेता था...
टोनी - इसी लिए तो मैं बाहर निकल पाया... पोस्ट मार्टम में मालुम पड़ा... एब-नॉर्मल हाइपर टेंशन के चलते... जब उसके ऊपर प्रेसर पड़ा... और नीचे से विश्व की कोहनी के ऊपर उसका सीना था... जिसके चलते उसकी पसलियाँ भी टुट गई थी... और साँस रुक गई थी...
रोणा - वह हरामी का जना विश्व... अच्छी तकदीर लेकर आया था... उसकी टांग मुझसे बच गई... अब उसकी जिंदगी.. यश से भी और... (टोनी से) तुझसे भी...
बल्लभ - ह्म्म्म्म... क्या यही वजह है... कि ओंकार चेट्टी... तुझे मरवाने पर तूल गया...
टोनी - हाँ... जितना डर मुझे ओंकार के हाथ लग जाने से है... उतना ही डर मुझे विश्वा से भी है...
रोणा - क्या मतलब...
टोनी - यश के मौत की इंटर्नल इंक्वायरी के बाद... मैंने अपने वकील से... झारपड़ा जैल को शिफ्ट होने के लिए पिटीशन डाला... और तापस सर की सिफारिश के चलते... कोर्ट ने एक्सेप्ट भी कर लिया... और जिस दिन मुझे शिफ्ट किया जाना था... उस दिन विश्व मेरे पास मेरे सेल के बाहर आया था...

फ्लैशबैक

लेनिन अपने सेल में चहल कदम कर रहा है l की उसे महसुस होता है कि कोई उसके सेल के बाहर खड़े उसे देख रहा है l वह रुक कर देखता है, विश्व सेल के ग्रिल के बाहर खड़े होकर उसे देख रहा है l

लेनिन - क्या बात है विश्वा भाई...
विश्व - तो तुम यहाँ से जा रहे हो...
लेनिन - हाँ भाई... कहा सुना सब माफ कर देना... कोई गिला शिकवा मत रखना...
विश्व - क्यूँ...
लेनिन - (पहले झटका लगता है) (फिर मुस्कराने की कोशिश करते हुए) क्या भाई... यही तो रीत है... जाने वाला हमेशा यही कहता है...
विश्व - मरने वाला भी ऐसा ही कुछ कहता है...
लेनिन - (हकलाते हुए) ये.. यह... आ.. आप... क.. क क्या कह रहे हैं...
विश्व - जब यश मेरा गला दबोच रखा था... तैस में आकर मेरे कानों में उसने कह दिया था... तुने उसके साथ मेरी मौत की डील की थी...

लेनिन विश्व की बात सुन कर कांपने लगता है, डर उस पर इस कदर हावी हो जाती है कि उसके दांत आपस में टकराने लगते हैं और विश्व को साफ सुनाई देने लगती है l

विश्व - लेनिन... मैंने जिंदगी में... सिर्फ एक की जान लेने की सोचा था.... तु दुसरा बनने की कोशिश कभी मत करना... क्यूंकि तु झारपड़ा जा रहा है... इसलिए यह हमारी आखिरी मुलाकात होनी चाहिए... वरना अगली मुलाकात... तु वह दुसरा बन जाएगा...

इतना कह कर विश्व वहाँ से चला जाता है l

टोनी की कहानी खतम होते ही I इसका मतलब तु विश्वा के सामने कभी नहीं जाएगा l

टोनी - नहीं... आप लोग कानून से जुड़े हुए हो... डैनी.. इस नाम से वाकिफ होंगे आप लोग...
परीड़ा - हाँ अच्छी तरह से.... इस्टर्न बेल्ट का डॉन... वह कभी कभी ओड़िशा के जैल में... छुट्टियाँ मनाने आता है...
टोनी - हाँ.. सेंट्रल जैल में... स्पेशल सेल को वही इस्तेमाल किया करता था...
रोणा - तो... डैनी से विश्व का क्या संबंध....
टोनी - इस जैल में... विश्वा ही वह अकेला बंदा है... जिसने डैनी को मारा... उसकी नाक तोड़ी... फिर भी... वह आज तक जिंदा है...
तीनों - (चौंकते हैं) क्या...
टोनी - हाँ... किसी से भी पुछ लो... जैल के सभी नए पुराने कैदी....सब इसी बात पर चर्चा करते रहते थे.... और सबसे खास बात... विश्व जैल में रह कर अपनी ग्रेजुएशन पुरी की... जानते हो पेरेल पर कौन वकील लेके जाता था...
परीड़ा - हाँ... जानता हूँ... जयंत चौधरी... कटक में डैनी का वकील....
बल्लभ - यह बड़ी दिलचस्प बात बताई...
टोनी - हाँ... यानी किसी ना किसी तरह से... विश्व डैनी से जुड़ा हुआ है...
रोणा - अब समझा... यानी डैनी ही विश्व का मास्टर है... जिसने उसे लड़ना सिखाया... जिसने उसे नेट वर्क सेट अप सिखाया...
परीड़ा - क्या डैनी की राजा साहब से... कोई पुरानी दुश्मनी है क्या...
बल्लभ - पता नहीं... कभी मैंने सुना नहीं...
रोणा - पर फिर भी... विश्व अभी तक सामने क्यूँ नहीं आया है... साला यह बात कुछ... समझ में नहीं आ रहा है...

कुछ देर के लिए कमरे में खामोशी छा जाती है l सब के सब सोच में पड़ जाते हैं l

परीड़ा - क्या हमसे कुछ छूट रहा है...
बल्लभ - जबसे यह मनहूस रोणा वापस आया है... तब से... विश्व वगैर सामने आए... झटके पर झटका दिए जा रहा है...
रोणा - चुप बे साले वकील... मनहूस मैं नहीं... तु है... मैं तो उसे महल के अंदर मारने ही वाला था... पर तुने अपना दिमाग चलाया... जिंदा रख कर... रुप फाउंडेशन स्कैम को विश्व पर थोप कर जैल भिजवाने के लिए...
परीड़ा - ओ ह्ह्ह... स्टॉप ईट... यह मत भूलो... उसने दो जगह पर आरटीआई फाइल की है... होम मिनिस्ट्री में... केस और गवाहों की डिटेल्स... और अदालत में जांच की स्टेटस....
टोनी - ओ... तो यह बात है... अब समझा...
रोणा - तु क्या समझा बे...
टोनी - जैल में विश्व हमेशा... अलग थलग ही रहता था... अपने काम से मतलब रखता था... और लाइब्रेरी में पढ़ा करता था... वह हमेशा सब से दूर रहने की कोशिश करता था... एक ही उसूल बनाए हुए चलता था... किसीको छेड़ता नहीं था... कोई छेड़े... तो उसे छोड़ना नहीं... असल में कोई उसे छेड़ता था... तो उसमे... विश्व की मर्जी शामिल होती थी...
रोणा - कैसे...
टोनी - मैं जब जैल के अंदर गया... उसका रौब और रुतबा देख कर... उससे उलझने की कोशिश करता था... वह ज्यादातर अवॉइड करता था... फिर एक दिन.. मैंने खुल्लमखुल्ला उससे उलझने की कोशिश की... सेटर डे स्कैरी नाइट सोल्यूशन फाइट के लिए चैलेंज कर दिया... अंजाम... आधा मिनट भी ना टिक पाया... मैंने चालाकी से... उसे मेन-हैडलींग चार्ज में फंसाना चाहा... तब मुझे मालुम हुआ... की जहां जहां मैंने उससे उलझा... प्रोवक किया... वह सब सीसीटीवी में रिकार्ड हो गया था... यानी केस मुझी पर रिवर्स बाउंस हो जाता...

टोनी की बात सुन तो रहे थे, पर समझ में किसीके भी नहीं आ रहा था l

परीड़ा - इसका क्या मतलब हुआ...
टोनी - क्या परीड़ा बाबु... इतना भी समझ नहीं पाए... वह अब जिससे भी उलझेगा... उसी के हाथों से... सबुत बनाएगा... और उसीके खिलाफ इस्तमाल करेगा...

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बुटीक में अनु वीर के लिए कपड़े देख रही है l इतने में अनु देखती है वीर एक लड़की की पुतले के सामने खड़े होकर उसके पहनावे को देख रहा था I थोड़ी देर बाद अनु वीर को आवाज देती है
"राज कुमार जी"
वीर मुड़ कर देखता है अनु उसे बुला रही है, वीर उसके पास जाता है

वीर - क्या है अनु... मैंने यहाँ तुम्हारे लिए ड्रेस सिलेक्शन करने के लिए आया था... पर तुम पहले मेरे ड्रेस के लिए जिद पकड़ ली...
अनु - (बड़ी मासूमियत के साथ) वह तो आपको तय करना था...
वीर - क्या...
अनु - हाँ... (थोड़ी शर्माते हुए) आखिर राजकुमारी वाला ड्रेस कैसा होता है... आप ही जानते होंगे ना...
वीर - करेक्ट... (अपने सिर पर हाथ मारते हुए) मैं यह कैसे भूल गया... (सेल्स मेन से) ओ.. हैलो...
से. मे - यस सर...
वीर - वह जो (पुतले को दिखाते हुए) ड्रेस है ना... वह पैक कर दो...
से. मे - जी... सर वह... उससे भी बेहतर... ड्रेसेस हैं हमारे पास...
वीर - तुमसे जितना कहा... उतना करो ना...
से. मे - जी.. जी सर...

वीर और अनु के लिए ड्रेस पैक करा दी जाती है l वीर दोनों पैकेट लेकर काउंटर पर बिल पेमेंट करने को होता है कि

अनु - (थोड़े झिझक के साथ) रा.. राज... कुमार जी...
वीर - (मुस्कराते हुए) जी राजकुमारी जी...
अनु - (शर्म से गड़ जाती है) प्लीज आप मुझे ऐसे ना कहिए...
वीर - कोई और दिन होता... तो मैं मान लेता... पर आज नहीं... कहिए... क्या हुकुम है... आपका खादिम तैयार है...
अनु - (अपने दोनों होंठों को दबा कर अपनी शर्म को छुपाने की कोशिश करते हुए) वह... मुझे... कुछ और भी खरीदारी करनी है...
वीर - ठीक है... (कार्ड अनु के हाथ में देते हुए) जो चाहे खरीद लो... आज का दिन तुम्हारा है... मैं बाहर इंतजार कर रहा हूँ...

कह कर वीर बुटीक के बाहर के बाहर आ जाता है l वहाँ से वह कहीं फोन करता है I अनु उसे कांच के पार से देखती है और वीर की बात करने के अंदाज से उसे पता लग जाता है कि शायद वीर ने सुबह से ही किसी को कुछ काम दिया था और वह चिल्ला चिल्ला कर उसका काम कितना दूर गया यह पता कर रहा था l कुछ ही देर में अनु अपनी खरीदारी खतम कर बाहर आती है l वीर देखता है अनु के पीछे एक गठरी ढ़ो कर बुटीक का एक बंदा खड़ा है l वीर उस गठरी की साइज देख कर चौंक जाता है, पर अनु से कुछ नहीं कहता है l अपनी गाड़ी की पिछली सीट पर वह गठरी रखवा देता है l अनु वीर से पर्स मांगती है तो वीर उसे पर्स दे देता है l अनु उसमें से पांच सौ रुपये निकाल कर उस बंदे को दे देती है l वह बंदा अनु को सैल्यूट करता है तो

अनु - ऐ... मुझे क्यूँ सलाम कर रहे हो... इनकी पैसे हैं... और जानते हो... आज इनका जन्म दिन है... इनको सलाम करो और.. दुआएँ दो...
बंदा - सलाम साहब... भगवान आपको लंबी उम्र दे... सारी खुशियां दे... ढेर सारा बरकत दे...
वीर - ठीक है.. ठीक है...

वीर और अनु गाड़ी में बैठ जाते हैं l वीर गाड़ी रास्ते पर दौड़ा देता है l गाड़ी चलाते हुए

वीर - यह क्या अनु... मैं तो तुम्हारे साथ... अपना जन्म दिन मनाना चाहता था... तुम जहां भी जा रही हो... मेरे जन्म दिन की ढिंढोरा पीट रही हो...
अनु - राजकुमार जी... जन्म दिन पर दुआएँ बटोरने चाहिए और खुशियाँ लुटाने...
वीर - अच्छा.. खुशियाँ... मतलब पैसा...
अनु - किसी के लिए... पैसा जरूरत होती है... उनके लिए वह खुशियाँ ही तो है... आप जरूरत मंदों को... आज उनकी जरूरत को दीजिए... बदले में... वह लोग आपको दिल से दुआएँ देंगे... देखना उनकी दुआएँ... आपको सचमुच बरकत और खुशियाँ देंगी...
वीर - (अनु की बातेँ सुन कर) उफ... तुम और तुम्हारी बातेँ... सच में... तुम्हारे अंदर एक राजकुमारी वाला सोच है... वैसे अब हम कहाँ जाएं... राजकुमारी जी...

अनु शर्मा जाती है और खिड़की की ओर अपना मुहँ फ़ेर कर हँसने लगती है, वीर को यह सब कांच से दिख जाता है l अनु की हँसी उसके दिल को ठंडक पहुँचाता है l वह भी हँसते हुए गाड़ी चलाता है l

वीर - राजकुमारी जी... आपने कुछ कहा नहीं...
अनु - (थोड़ी सीरियस होने की कोशिश करते हुए) कस्तूर बा वृद्धाश्रम...
वीर - क्या... क्यूँ...
अनु - उसके बाद... मदर टेरेसा अनाथालय...
वीर - (गाड़ी में ब्रेक लगाता है, और अनु को बड़ी हैरानी भरे नजरों से देखता है) इस गठरी में क्या है अनु...
अनु - उस आश्रम में देने के लिए लिए कुछ शॉल और चादर...
वीर - (वीर हँस देता है) अनु... तुम गजब हो... तुम्हें तो मैंने अपने लिए कुछ खरीदने के लिए कार्ड दिया था...
अनु - (थोड़ी गंभीर हो जाती है) अपने लिए ही तो कर रही हूँ...
वीर - क्या...
अनु - (अचानक भाव बदल कर, मासूमियत के साथ) क्या आज इस राजकुमारी की हसरत अधूरी रह जाएगी...
वीर - कभी नहीं...

वीर गाड़ी को वृद्धाश्रम की ओर ले जाता है l


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रुप आज कॉलेज गई नहीं है l अपने कमरे में बैठ कर अपने और विश्व की मुलाकात और बातों के बारे में याद करते हुए अपने आप में मुस्करा रही थी l तभी उसकी फोन बजने लगती है l वह फोन के स्क्रीन पर चाची माँ डिस्प्ले होते देखती है I रुप फोन उठाती है

रुप - हैलो... चाची माँ...
सुषमा - कैसी है मेरी बच्ची...
रुप - बस आपका आशीर्वाद है...
सुषमा - और... आज सुबह सुबह वीर को विश किया के नहीं...
रुप - (पहले हैरान होती है फिर बात समझ कर) ओह शीट...
सुषमा - क्या हुआ... उस दिन तो बड़ी फिक्र कर रहे थे... वीर कहाँ गया... वीर नहीं आया...
रुप - (शर्मिंदगी से अटक अटक कर) वह चाची माँ... दरअसल... मैं आज देर से उठी... जब नाश्ते के लिए गई... तब तक वीर भैया... कहीं बाहर जा चुके थे... शीट... बड़ी गलती हो गई चाची माँ...
सुषमा - हा हा हा हा... लगता है... वीर के जन्मदिन पर तुम उल्लू बन गई...
रुप - क्या मतलब...
सुषमा - मैं अभी बहु से बात कर रही थी... वीर ने आज शाम को पार्टी रखने के लिए कह कर बाहर चला गया है...
रुप - क्या... यानी भाभी ने भी मुझसे छुपाया...
सुषमा - (हंसते हुए) खैर... मैंने बहु से कुछ कहा है... उससे पता करो और पूछ लो....
रुप - क्या... क्या कहा है... माँ...

तब तक फोन कट जाता है l रुप अपना फोन बेड पर पटक कर शुभ्रा के कमरे में जाती है l शुभ्रा को देख कर

रुप - भाभी...
शुभ्रा - क्या हुआ... मेरी गुस्सैल ननद...
रुप - आज वीर भैया का जन्म दिन है... और आपने मुझे बताया नहीं...
शुभ्रा - कैसे बताती... और कब बताती...
रुप - मतलब..
शुभ्रा - तुम तो अनाम के गाल पर गुस्सा उतार कर सो रही थी... तुम जब होश में आई... तब भी.. तुम अनाम के सुरूर में थी... और तब तक... वीर जा चुके थे...
रुप - (थोड़ी नॉर्मल हो कर) अच्छा वीर भैया... सुबह से किसीसे बिना बात किए चले गए क्या...
शुभ्रा - हाँ... पर शाम को पार्टी अरेंज करने के लिए कह कर गए हैं....
रुप - ओ... (खुश होते हुए) चलो किसी की बर्थ डे... हम पहली बार...(चहकते हुए) मिलकर मनाएंगे....
शुभ्रा - ह्म्म्म्म... तुम्हारा बर्थ डे... हम मना नहीं पाए... पर वीर की बर्थ डे... हम जरूर मनाएंगे...
रुप - (खुशी के साथ उछलते हुए) हाँ....

शुभ्रा उसे खुशी के मारे उछलते हुए देखती है पर उसके चेहरे से धीरे धीरे हँसी गायब होने लगती है l थोड़ी बहुत उछल कुद के बाद रुप अचानक से रुक जाती है l

रुप - अच्छा भाभी... चाची माँ ने आपको कुछ और भी कहा है ना... बताओ ना क्या कहा...
शुभ्रा - (रुप की गालों पर हाथ फेरते हुए) आज बर्थ डे खतम होने दो... कल बताती हूँ...
रुप - पर आज क्यूँ नहीं...
शुभ्रा - कुछ बातेँ अपने वक़्त पर की जाए... तो उन बातों का महत्व रहता है...

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होटल के कमरे में चारों बहुत टेंशन में दिख रहे थे l टोनी के खुलासे के बाद परीड़ा, रोणा और बल्लभ के माथे पर शिकन पड़ चुका था l कमरे में बेशक चार लोग थे पर इतनी शांति पसरी हुई थी के बाहर खड़ा कोई भी आदमी बेझिझक कह देता अंदर कोई नहीं है l कुछ देर बाद

टोनी - परीड़ा बाबु... वैसे यह वीडियो... आपको मिला कहाँ से...
परीड़ा - हेड क्वार्टर के आर्काइव से...
टोनी - पर आप जिस फाइल में विश्व की तस्वीर लाए हैं... वीडियो वाला विश्व दोनों अलग दिखते हैं...
रोणा - बे घन चक्कर... वह फोटो सात साल पहले वाला है... अब वीडियो में वह ऐसे दिख रहा है...
टोनी - हाँ... (फाइल में से विश्व की फोटो उठा कर) सात साल पहले... विश्वा की मूछें निकल रही थी... वीडियो में... बाल बढ़े हुए दाढ़ीवाला दिख रहा है....
परीड़ा - ह्म्म्म्म...
बल्लभ - क्या... अब भी... ऐसे ही दिख रहा होगा...
रोणा - साला... जितना भी जानने की कोशिश कर रहा हूँ... उतना ही मिस्टेरीयस होता जा रहा है...
परीड़ा - रिलैक्स... यह वीडियो देखते वक़्त... मुझे भी ऐसा लगा था... इसलिए यहाँ आने से पहले... मैंने एक स्कैच आर्टिस्ट को... इस वीडियो की स्टील दे कर आया था... मेरे हिसाब से... कुछ देर बाद... वह विश्व के तरह तरह की स्कैच लेकर आ रहा होगा...
बल्लभ - ह्म्म्म्म...

फिर कमरे में शांति छा जाती है l क्यूँकी अब किसीके पास कहने सुनने के लिए कुछ बाकी था ही नहीं I डोर बेल बजती है, चारों एक दुसरे को देखने लगते हैं, फिर सभी टोनी की ओर देखते हैं l

टोनी - ठीक है... समझ गया...

कह कर दरवाजे के पास जाता है और दरवाजे की मैजिक आई से बाहर खड़े बंदे को देखता है l बाहर खड़े बंदे के हाथ में एक बड़ी फाइल जैसी लिफाफा दिख रहा था l टोनी वापस आ कर परीड़ा से

टोनी - लगता है... आप ही का बंदा आया है... हाथ में फाइल और लिफाफा है...
परीड़ा - ओ अच्छा...

कह कर परीड़ा अपनी जगह से उठता है और दरवाज़ा खोलता है l बाहर परीड़ा के ही ऑफिस का आदमी था l वह परीड़ा को देख कर सैल्यूट करता है और लिफाफा परीड़ा को बढ़ा देता है, परीड़ा उससे लिफाफा ले लेता है और उसे जाने के लिए कहता है, फिर दरवाजा बंद कर देता है l
परीड़ा वापस इन लोगों के पास आकर लिफाफे से कुल सात स्कैच निकाल कर टेबल पर रख देता है l किसी स्कैच में छोटे बालों के साथ है, किसी स्कैच में छोटे बाल और दाढ़ी में है, किसी स्कैच में लंबे बाल बगैर दाढ़ी मूँछ के साथ है l इसी तरह सात अलग अलग तरह दिखने वाले स्कैच सबके सामने थे l बल्लभ एक स्कैच उठाता है

बल्लभ - हाँ... इसी तरह दिख रहा था... हाउस कीपिंग बॉय बन कर आया था... छोटे दाढ़ी में बिल्कुल ऐसे ही दिख रहा था...
रोणा - देखा... मैं ना कहता था... यह विश्वा ही था... जो बार बार आकर... मेरी मार कर जा रहा था....
परीड़ा - जरूरी नहीं कि... वह दाढ़ी रखता हो... या तो दाढ़ी नकली होगी...
बल्लभ - या फिर... अब तक शेव कर लिया होगा...
टोनी - अच्छा... तो अब मैं आप लोगों से दूर... बहुत दूर जाना चाहता हूँ...
रोणा - क्यूँ...
टोनी - अरे रोणा बाबु... अब आपको विश्वा के बारे में... पूरी जानकारी मिल गई है... अब मेरी क्या जरूरत...
रोणा - क्यूँ.. तुझे विश्वा से... अपनी कलाई का बदला नहीं लेना...
टोनी - हा हा हा हा... (हँसने लगता है) रोणा बाबु... उसने अपनी दुश्मनी निकलने के लिए... राजा साहब को चुना है... मतलब वह मेरे लेबल से भी बहुत ऊपर है... वह अब तक राजा साहब के लिए प्लॉट तैयार कर चुका होगा... मतलब जो जो लोग उसके डायरि में चढ़े होंगे... हर एक के लिए... वह जाल बिछा चुका होगा... आगे आगे आप खुद देखना... उसके गुनाहगार... उसके लिए सबूत बनाएंगे... फिर वह उन सबूतों के दम पर... उनको लपेटे में लेगा... उसने मुझसे कहा था... सिर्फ़ एक को मारने के लिए उसने सोचा था... रोणा बाबु... मुझे दुसरा हरगिज नहीं बनना...
रोणा - बे... क्या बकवास कर रहा है...
बल्लभ - रोणा... जाने दे इसे... इसका काम खतम हो चुका है... और यह बकवास नहीं कर रहा है... हमें आगाह कर रहा है...
रोणा - वकील... तु कहाँ उसके बातों में फंस रहा है...
परीड़ा - वकील ठीक कह रहा है... रोणा... सावधानी हटी... समझो.... टट्टें कटी...
रोणा - अरे.. मेरा कहने का मतलब है... सावधान ही रहना है... पर लगता है... विश्व नाम का हौआ ने सब के गांड में सुतली बम लगा दिया है... और उसके बारूद को सुलगा दिया है... साले ज्ञान दे रहा है... गांड फटे तो फटे... पर ध्यान ना हटे...
बल्लभ - (चिल्ला कर) चुप रहो सब... (सब चुप हो कर प्रधान की ओर देखने लगते हैं) पहले यह सोचो... दो दिन बाद... राजा साहब... भुवनेश्वर आ रहे हैं... उन्हें विश्वा के बारे में... कहेंगे क्या...

सब चुप रहते हैं और सब सोचने लगते हैं l कुछ देर बाद चुप्पी तोड़ते हुए

टोनी - देखा साहब... टट्टे कटे या ना कटे... पर उससे पहले... यहाँ सबकी फटने लगी है...

सब गुस्से से टोनी को घूरने लगते हैं l

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पुरी कोणार्क रोड
मेराइन ड्राइव
रास्ते के एक किनारे गाड़ी पार्क है l कसूरीना और शीशम के पेड़ों के नीचे अनु बैठी हुई है और थोड़ी दूर पर समंदर के लहरों पर वीर कुद रहा है और भाग रहा है बिल्कुल एक बच्चे की तरह l अनु उसे देख कर, उसके बचपने को देख कर खुश भी हो रही थी और हँस भी रही थी l वीर थक कर अनु के पास आता है और धड़ाम से नीचे गिरते हुए अनु के पास हांफते हुए लेट जाता है l थोड़ी देर अपने सांसो पर काबु पाने के बाद एक कृतज्ञता भरी नजरों से अनु को देखते हुए बैठता है

वीर - अनु... तुम कहाँ थी... इतने दिनों तक..
अनु - यह क्या राजकुमार जी... चार महीने से आप ही के पास ही तो हूँ...
वीर - नहीं नहीं नहीं... चार महीने पहले... कहाँ थी यार...
अनु - (शर्मा जाती है) मैं यहीं थी...
वीर - यार... पहले क्यूँ नहीं मिली...
अनु - वह कहते हैं ना... समय से पहले और भाग्य से अधिक...
वीर - हाँ... कितनी प्यारी बातेँ करती हो... यार... (फिर से लेट जाता है) सच में... तुम एक अनमोल तोहफा हो... कहाँ तुम्हारा दिन खास बनाने चला था... पर तुम... तुमने आज का दिन मेरे लिए बहुत खास बना दिया...

वीर उठ बैठता है, अपना चेहरा अनु के चेहरे के पास लेकर जाता है l अनु जो अब तक शर्मा कर वीर को सुन रही थी अचानक उसकी धड़कने बढ़ जाती है l

वीर - थैंक्यू...
अनु - (अपनी पलकें झुका कर) किस बात के लिए...
वीर - मुझे वृद्धाश्रम और अनाथालय में ले जाने के लिए... उनके बीच हमने कुछ पल गुजारे... बुटीक से जितने भी शॉल और चादर खरीदे थे... उन्हें बांट दिया.... अच्छा हुआ... एक महीने के लिए... तुमने उनके राशन पानी की व्यवस्था कर दिया... और बदले में उनसे मेरे लिए ढेर सारा आशिर्वाद... और शुभकामनाएं बटोर लाई....
अनु - वह सब आपका हक था... आपके लिए था... पैसे भी तो आप ही के थे...
वीर - हाँ... पर देखो... जो कपड़े तुमने मेरे लिए लिया... और मैंने तुम्हारे लिए लिया... अभी तक हमने ट्राय नहीं किया...
अनु - कोई बात नहीं... वह कपड़े पहनने के लिए भी मौका आगे आयेंगे...
वीर - हाँ... ठीक ठीक...

वीर फिर से वहाँ से उठ जाता है और थोड़ी दुर आगे की ओर जाने लगता है l उसके देखा देखी अनु भी उठ खड़ी होती है l वीर अचानक मुड़ता है l

वीर - (चिल्लाते हुए) अनु... आज मैं बहुत खुश हूँ... (कह कर अपनी बाहें फैला देता है)

अनु समझ जाती है वीर क्या चाह रहा है l वह शर्मा जाती है और खुदको एक कसूरीना पेड़ के पीछे कर लेती है l

वीर - यार यह गलत बात है... तुम अपना वादा नहीं निभा रहे हो...

अनु पेड़ की ओट से वीर के तरफ देखती है वीर वैसे ही बाहें फैला कर खड़ा हुआ है l अनु की शर्म और हया और भी बढ़ जाती है l वह खुद को पेड़ की ओट में लेकर अपनी आँखे और होंट भींच लेती है l तभी एक आवाज़ उसके कानों में पड़ती है

- बड़ी शर्मा रही है लौंडी... कहो तो हम ट्राय करें...

अनु अपनी आँखे खोल कर देखती है एक जीप में चार बंदे बियर की बोतल हाथ में लेकर उसीके तरफ देख कर बात कर रहे हैं l अनु घबरा जाती है और देखती है वीर गुस्से से आग बबूला हो कर उनके तरफ जाने लगता है l अनु भाग कर वीर के गले लग जाती है l

- आये हाय... क्या सीन है...
- कभी हमारे गले भी लग कर देखो...
वीर - (दहाड़ते हुए) जुबान सम्भाल कर...
- कमाल है... माना कि तेरी माल है... पर माल तो है ना... चल तु जितने पैसे में लाया है... तेरे को हम उसका दुगना लौटा देते हैं... चल लड़की को छोड़ और इधर से फुट...

वीर अनु को अलग करता है और भाग कर जाता है बदजुबानी करने वाले को जैसे ही घुसा मारने को होता है उसके तीन साथी गाड़ी से कुदते हुए उतरते हैं और वीर को घेर लेते हैं l

- ऑए हीरो... छमीया के लिए हीरो बन रहा क्या...

बस उतना ही कह पाया l एक जोरदार घुसा उसके जबड़े पर वीर जमा चुका था l वह छिटक कर गाड़ी से टकरा जाता है l इतने में बचे हुए तीन बंदे वीर पर हमला कर देते हैं l एक बंदा वीर पर पंच मारता है, वीर झुक कर खुद को बचाते हुए दुसरे के सीने पर एक किक मारता है और घूम कर तीसरे के कनपटी पर कोहनी से मारता है l इतने में वह पहला वाला अपना हाथ चलाता है तो वीर उसके हाथ को मोड़ देता है कि तभी

- ऐ.. हीरो...

वीर पहले वाले के हाथ को मरोड़ते हुए देखता है l वह दुसरा बंदा जिसे लात पड़ी थी वह अनु के पास पहुँच कर अनु के पीछे जा कर अनु का गला पकड़ लिया था l यह देख कर वीर गुस्से से पागल ही हो जाता है l पहले वाले की हाथ को ऐसा झटका देता है कि उस बंदे का बांह की जोड़ कंधे से टुट जाता है l वह पहला वाला बंदा दर्द के मारे ऐसे चिल्लाता है जैसे उसके प्राण पखेरु उड़ने वाले हो l वह मंज़र इतना खौफनाक था कि वह तीसरा बंदा जिसने अनु को पकड़ा हुआ था उसकी मूत निकल जाता है l
- देख मैंने छोड़ दिया... (अनु को छोड़ते हुए) आगे नहीं आना... प्लीज... (फिर वह बंदा नीचे झुक कर रेत उठा कर वीर के आँखों पर फेंकता है)

वीर के आँखों में रेत गिरती नहीं है पर कुछ देर के लिए वह अपना चेहरा घुमा लेता है l इतने में वह चार बंदे अपनी गाड़ी लेकर फरार हो जाते हैं l वीर जब तक नॉर्मल होता है अनु भागते हुए उसके गले लग जाती है l वीर भी उसे गले लगा लेता है l कुछ देर बाद वीर अनु से पूछता है l

वीर - डर लगा...
अनु - (वीर के सीने से लग कर ही अपना सिर हिला कर ना कहती है)
वीर - अनु...
अनु - जी...
वीर - मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ... ध्यान से सुनना...
अनु - जी...
वीर - (अनु को खुद से अलग कर एक गहरी सांस छोड़ते हुए) मेरे बारे में... सभी कुछ ना कुछ बातेँ कर रहे होंगे... (कुछ देर रुक कर अनु के आँखों में झांकते हुए) वह सब सच हैं... या होंगे.... कितनी लड़कियाँ.. कितने औरत मेरी जिंदगी में आईं... किसीके आँखों में खौफ था... तो किसी के आँखों में मतलब... एक तुम्हीं हो... जिसके आँखों में ना तो खौफ था... ना ही मतलब... तुम बहुत अच्छी हो... बहुत बहुत अच्छी हो... तुम खुद से ज्यादा... अपने आस पास के लोगों के... अपनों के लिए सोचती हो... पर अपने लिए नहीं.. मुझे हमेशा किस्मत से एक ही शिकायत रहा... के कास... तुम मुझे पहले मिली होती...

तभी अनु की फोन बजने लगती है, पर अनु फोन नहीं उठाती, फोन बजते हुए कट जाती है l फोन की रिंग बंद होते ही वीर फिर फिर से खुद को तैयार करता है अनु से कहने के लिए की अनु की फोन फिरसे बजने लगती है l

वीर - उठा लो अनु... फोन उठा लो...
अनु - जी...

अनु अपनी वैनिटी पर्स से फोन निकालती है l देखती है उसमें पुष्पा डिस्प्ले हो रहा है l

अनु - (हैरानी के साथ) पुष्पा... (फोन उठा कर) हैलो....
- हैलो... अनु... (रोती हुई आवाज में) यहाँ... अनर्थ हो गया है अनु...
अनु - दादी... क्या हुआ... तुम रो क्यूँ रही हो... पुष्पा... तुम पुष्पा की फोन से...
दादी - तु जहां भी है... जल्दी आजा... मट्टू भी यहाँ नहीं है...
अनु - क्या हुआ दादी... कुछ बोलो तो सही...
दादी - पुष्पा ने अपनी हाथ की नस काट ली है...
अनु - क्या...
दादी - हाँ... अब मैं बस्ती वालों की मदत से... उसे सिटी हस्पताल ले जा रही हूँ... तु जल्दी पहुँच...
अनु - ठीक.. है.. ठीक है दादी... (फोन काट कर वीर को देखती है) राजकुमार जी...
वीर - मैं समझ गया... चलो आज नहीं तो फिर कभी... कहाँ जाना है...
अनु - जी... सिटी हॉस्पिटल...

वीर और अनु गाड़ी में बैठते हैं l वीर गाड़ी को तेजी से भगाता है करीब डेढ़ घंटे के बाद सिटी हॉस्पिटल में पहुँच जाते हैं l गाड़ी में अनु पुष्पा के लिए भगवान को प्रार्थना कर रही थी l वीर उसकी हालत देख कर गाड़ी में चुप रह गया था I दोनों भागते हुए कैजुअलटी में पहुँचते हैं l वहाँ मृत्युंजय भी दिख जाता है l वीर को वहाँ अनु के साथ देख कर मृत्युंजय और दादी दोनों हैरान होते हैं l

अनु - मट्टू भैया... आप कब आए... और पुष्पा कैसी है..
दादी - (अनु से) इतनी देर... कहाँ थी... क्या कर रही थी... (अनु सिर झुका कर चुप रहती है)
वीर - वह... दरअसल... हम दोनों... ऑफिस के एक जरूरी काम से... थोड़ा बिजी थे... (मृत्युंजय से) वैसे मृत्युंजय... अब कैसी हालत है... पुष्पा की...
मृत्युंजय - (रोते हुए) अब ठीक है... समझ में नहीं आ रहा है... यह हमारे घर क्या हो रहा है... माँ को गए... कुछ ही दिन हुए हैं... और अब यह... (फुट फुट कर रोने लगता है)

वीर उसे दिलासा देता है और जरूरत पड़ने पर खबर करने के लिए कह कर हस्पताल से बाहर निकलता है l गाड़ी के पास पहुँच कर डोर खोलते वक़्त उसे पिछली सीट पर वह कपड़े दिखते हैं जो अनु और वीर ने एक दुसरे के लिए खरीदे थे l वीर टुटे मन से गाड़ी में बैठता है और गाड़ी चलाते हुए हस्पताल से निकल कर शहर की रास्ते पर पहुँच जाता है lउसका मन आज बहुत खराब था l आज वह अपनी दिल की बात कहने और अपने प्यार की इजहार करने के बहुत करीब था l पर आखिरी वक़्त पर किस्मत ने उसे फिर से दगा दे दिया l गाड़ी चली जा रही थी कि उसका फोन बजने लगता है l वह बिना डिस्प्ले देखे गाड़ी की ब्लू टूथ ऑन कर देता है l

- हा हा हा हा.. (किसीके हँसने की आवाज सुनाई देती है)
वीर - हू इज़...
- अबे ओ.. अंग्रेज के चमन चुतिए...
वीर - (गाड़ी में ब्रेक लगाता है) कौन.. कौन हो तुम...

वीर के गाड़ी के पीछे गाड़ियों के हार्न सुनाई देता है l

- अबे चमन चुतिए... या तो गाड़ी चलाते हुए बात कर... या फिर गाड़ी साइड कर... (वीर गाड़ी साइड पर लेता है) शाबाश... गुड बॉय...
वीर - कौन हो तुम...
- अबे भोषड़ी के.. इतनी जल्दी भूल गया...
वीर - (चुप रहता है)
- तेरी जिंदगी... मुझे बर्बाद करनी है... मान गया... तु पक्का वाला हरामी है... मुझे अंदाजा नहीं था... तु एक लड़ाकू हो सकता है... मेरे एक बंदे का हाथ तोड़ दिया तुने...
वीर - (हैरानी से आँखे फैल जाता है)
- हाँ हराम जादे... मेरी नजर है तुझ पर... मैंने तुम क्षेत्रपालों के किस्मत की चांद पर ग्रहण बनने की ठान ली है... और किस्मत की बात देखो... किस्मत भी मेरा साथ दे रही है... तु भले ही मेरे आदमियों पर भारी पड़ा... पर तकदीर तेरी गांडु निकला रे... तु... अपनी छमीया को... दिल की बात नहीं बोल सका.... हा हा हा हा हा...

वीर और भी ज्यादा हैरान हो जाता है और उतना ही कसमसा जाता है l
Nice and Awesome update
 
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