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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

Mr. X
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Kala Nag

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👉इक्यानबेवां अपडेट
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रुप कॉलेज के लिए तैयार हो कर नीचे उतरती है l डायनिंग टेबल पर शुभ्रा को अकेले देख कर उसे हैरानी होती है l रुप के कुर्सी पर बैठने के बाद नौकर ट्रॉली में नाश्ते की बाउल लाकर टेबल पर रख देते हैं l

शुभ्रा - (नौकरों से) अब तुम लोग जाओ... जरूरत पड़ी तो हम बेल बजाएंगे... (नौकर अपना सिर झुका कर वहाँ से चले जाते हैं)
रुप - (नौकरों के वहाँ से जाने के बाद, थोड़ी हैरानी के साथ) भाभी... आज आप अकेली...
शुभ्रा - हूँ...(एक साधारण सी भाव के साथ)
रुप - (थोड़ी गम्भीर आवाज में) क्यूँ... आज भैया को क्या हुआ...
शुभ्रा - कुछ नहीं हुआ है... वह सुबह सुबह... महांती का फोन आया था... किसी खास काम के लिए... पार्टी ऑफिस से हो कर ESS ऑफिस जाएंगे...
रुप - ओ... ऐसा कौनसा जरूरी काम... जो सुबह का नाश्ता किए बिना चले गए...
शुभ्रा - क्या करें... पार्टी के ही लॉ मिनिस्टर की बेटी की शादी है... और तुम्हारे भैया... पार्टी के युवा मंच के लीडर हैं...
रुप - भाभी... इतना तो मैं पक्का जानती हूँ... पार्टी में किसीकी हिम्मत ना होती होगी... भैया से कुछ काम करवाने की...
शुभ्रा - तो क्या हुआ... विक्की इतने रुड तो हैं नहीं... और चूंकि महांती का फोन आया था... तो कुछ ना कुछ जरूरी काम होगा जरूर...
रुप - (छेड़ते हुए) आँ... हाँ... आज कल बड़ी खबर रखी जा रही है... लगता है बाहर सरकार बनाने से पहले... अपनी होम मिनिस्टर को रिपोर्ट दे कर गए हैं...
शुभ्रा - (शर्म और खुशी की मिली जुली भाव को अपने चेहरे पर ना लाने की बहुत कोशिश करती है)
रुप - ना... कोई फायदा नहीं भाभी... हाय... यह शर्म... यह हया और... छुपाये ना छुपती यह खुशी... ना ना... छुपा ना पाओगी...
शुभ्रा - (शर्म से आँखे दिखाते हुए) शट-अप नंदिनी...
रुप - जरुर भाभी जी... आप हुकुम करें और हम शट-अप ना हों ऐसा तो हो ही नहीं सकता...
शुभ्रा - अच्छा अच्छा... बहुत हो गया... अब यह बताओ... कल की शाम कैसे बीती... तुम देर रात दस बजे आई... और आते ही सीधे अपने कमरे में घुस गई....
भाभी - उसके लिए तो आप मुझे थैंक्स कह सकती हैं... आई मिन कहना चाहिए...
शुभ्रा - थैंक्स... तुमसे... वह क्यूँ...
रुप - अरे... पिछले दो दिन से... शाम को... आप और भैया... कैंडल लाइट डिनर तो करते ही होंगे ना...
शुभ्रा - अच्छा... तो तुम्हारे कहने का मतलब है... की यह सब... तुम्हारा किया धरा है...
रुप - (खिलखिला कर हँस देती है)
शुभ्रा - (मुस्कराते हुए) अपनी बातेँ टालना कोई तुमसे सीखे... (रुप की हँसी रुक जाती है, वह सवालिया नजर से शुभ्रा को देखती है) (शुभ्रा अपनी भवें तन कर रुप से) कल तुम्हारे महबूब की कोई खबर मिली... या..
रुप - (अपनी प्लेट की ओर चेहरा झुका लेती है, थोड़ी मायूस हो कर ) कहाँ भाभी... कल सिचुएशन ही ऐसी बनी की... (चुप हो जाती है)
शुभ्रा - कैसी बनी...

रुप बताती है प्रताप के घर पहुँचने से लेकर प्रताप के भाग जाने तक l यह सुन कर शुभ्रा हँसने लगती है l

शुभ्रा - हा हा हा... (हँसते हुए) ओह माय गॉड... प्रताप ने तुम्हारा नाम... नकचढ़ी रखा है... हा हा हा हा... और आंटी जी ने तुम्हें ना बताया होता तो... तो तुम्हें मालुम ही नहीं पड़ता... हा हा हा हा...

रुप अपनी जबड़े भींच कर शुभ्रा को घूरने लगती है l शुभ्रा मुश्किल से अपनी हँसी रोकती है l

शुभ्रा - ठीक है... फिर...
रुप - फिर क्या...(मासूम शिकायत भरे लहजे में) आंटी जी ने मुझे भी पकड़ लिया...
शुभ्रा - तुम्हें पकड़ लिया... मतलब...
रुप - मैं बहाने से... किचन में आंटी जी के पास गई... आंटी जी ने मुझे उकसाया प्रताप को फोन लगाने के लिए... कहा देखो... तुम्हारे लिए... क्या नाम सेव कर रखा है... और मैंने भी क्यूरोसीटी के चलते प्रताप को फोन लगा दिआ... मैंने प्रताप के मोबाइल में अपना नाम नकचढ़ी देख कर... गुस्से से प्रताप को देखा... तो वह भाग गया... पर तभी आंटी जी ने मेरे हाथ से मोबाइल लेकर... मैंने जो नाम सेव किया था उसे देख लिया...
शुभ्रा - क्या... तुमने... प्रताप के लिए भी कोई नाम सेव किया था क्या....
रुप - (बड़ी मासूमियत के साथ, शर्माते हुए और नजर चुराते हुए) हूँ...
शुभ्रा - (जिज्ञासा के साथ अपनी आँखे बड़ी करते हुए) क्या रखा था उसका नाम...
रुप - (शर्म से गाल लाल हो जाती है) बे..व... (जल्दी से) बेवकूफ...
शुभ्रा - क्या... हा हा हा हा...
रुप - (मुहँ बना कर) हाँ हाँ हँस लो.. आप नहीं जानती... कितना एंबारेंस फिल हुआ मुझे... जितनी देर आंटी जी के यहाँ रही... उनसे नजरें मिलाने से कतरा रही थी...

शुभ्रा और जोर से हँसने लगती है l रुप भी शर्माते शर्माते शुभ्रा के साथ हँसने लगती है l कुछ देर बाद दोनों नॉर्मल होते हैं l

शुभ्रा - हम्म... इसका मतलब यह हुआ कि... आंटी जी को पुरा एहसास था... तुम दोनों में दोस्ती बहुत गहरी है... (रुप शुभ्रा की ओर देखती है) हाँ.. नंदिनी... भले ही छठी गैंग के सभी दोस्त... बहुत अच्छे हैं... तुम्हारे करीब भी हैं... पर तुम मानों या ना मानों... तुम्हारी और प्रताप की दोस्ती बहुत अलग है... गहरी है...
रुप - य... ऐसी कोई बात...(थोड़ा रुक कर) नहीं है...
शुभ्रा - देखा... तुम्हारा जवाब भी... तुम्हारा साथ नहीं दे रहे हैं...

रुप का चेहरा बहुत सीरियस हो जाता है, वह ख़ामोश हो कर अपना नाश्ता खाने लगती है l शुभ्रा भी थोड़ी देर चुप रहती है l फिर खामोशी को तोड़ते हुए

शुभ्रा - क्या... प्रताप... तुम्हारे घर लौटने तक सामने नहीं आया...
रुप - नहीं...
शुभ्रा - तो फिर... तुम्हारे पास तो पुरा मौका था... आंटी जी पुछ सकती थी तुम...
रुप - हाँ... मैं अपने हर सवाल का जवाब... आंटी जी से चाहती थी... पर तभी... पता नहीं कहाँ से (गुस्से में दांत पिसते हुए) दो नमूने टपक पड़े...
शुभ्रा - नमूने... मतलब....

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नाश्ते के खाली प्लेट पर विश्व चम्मच घुमा रहा है l तापस उसे देखता है और फिर अपनी नजरें घुमा कर चुप चाप किचन की ओर देखने लगता है l प्रतिभा किचन से नाश्ता लेकर आती है और पहले विश्व के प्लेट में पोहा डालती है उसके बाद तापस की प्लेट में पोहा डालती है और फिर अपने प्लेट में बाकी पोहा डाल कर बैठ जाती है l विश्व फिर भी पोहा पर चम्मच घुमा रहा है पर खा नहीं रहा है l

प्रतिभा - एक बात जानते हैं सेनापति जी...
तापस - (चौंक कर) कौनसी बात भाग्यवान...
प्रतिभा - आपके लाट साहब की भुख चली गई है...
तापस - अच्छा... (विश्व से) क्या बात है.. लाट साहब... कब्ज है... या बदहजमी..
विश्व - (खीज कर) डैड... आप भी...

प्रतिभा और तापस अपनी हँसी को दबाते हैं l विश्व फिर भी कुछ सोच रहा था और उसी सोच में खोए हुए नाश्ता खा रहा था l

प्रतिभा - (विश्व से) मुझसे नाराज है...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - (चेहरे पर मायूसी लाते हुए) ठीक है... मैं फिर कभी तुझे... नंदिनी की नाम पर नहीं छेड़ुंगी...
विश्व - (बिदक जाता है) माँ... ऐक्टिंग तुमसे नहीं होगा... प्लीज...
प्रतिभा - अरे तो क्या हुआ... ऐक्टिंग की कोशिश कर सकती हूँ...
विश्व - माँ... कल से तुम ऐक्टिंग ही कर रही हो... और तुम अच्छी तरह से जानती हो... मैं उस बात के लिए गुस्सा नहीँ हूँ... (उसके आँखों में खुन उतर आता है, चेहरा तमतमा ने लगता है) वह दो नामुराद... यहाँ तक पहुँच गए... मुझे वह लोग देख ना लें... इसलिए तुम और डैड ने मिलकर... मुझे यहाँ से नंदिनी जी के मैटर में... लपेट कर भगा दिए....

एक पल के लिए विश्व की तमतमाया हुआ चेहरा देख कर सेनापति दंपति शहम गए l

विश्व - (बहुत जल्द खुदको नॉर्मल करते हुए) सॉरी... सॉरी माँ... सॉरी डैड...
प्रतिभा - कभी कभी तु बहुत... ठंडे दिमाग से काम लेता है... और कभी कभी... अपनी भावनाओं को काबु नहीं कर पाता... तो अब बता... तेरे डैड या मैंने कहाँ गलती कर दी...
विश्व - (अपना चेहरा झुका कर) माँ.. मेरी ओर बढ़ रही आग की आँच... आप तक पहुँच गई है...
तापस - कुछ नहीं हुआ है... और तेरे होते हमें कुछ नहीं होगा... (विश्व तापस की ओर देखता है) वह लोग तेरी इंक्वायरी कर रहे हैं... इसका मतलब यह नहीं... कि... कोई जुर्रत करेंगे... तेरी माँ कोई आम औरत नहीं है... इसके माथे पर शिकन भी आ गई... तो स्टेट की सारी औरतें सड़कों पर उतर आयेंगी... और जो दो जन यहाँ आए थे... वह दोनों कोई तीस मार खां नहीं थे... मोहरे थे राजा साहब... उर्फ़ भैरव सिंह के... या यूँ कहूँ... जोकर थे... थे क्या... जोकर हैं दोनों... ऐसों से निपटना... तुम्हारी माँ अच्छी तरह से जानती है... इसलिए अपने मन को साफ करो... और नाश्ता खत्म करो...

विश्व उन दोनों को देखता है l तापस इत्मीनान से पोहा खा रहा है और प्रतिभा मुस्कराते हुए विश्व को देख रही है l

विश्व - माँ... फिरभी... कल क्या हुआ यहाँ... क्या मुझे जानने का... कोई हक़ नहीं है...
प्रतिभा - क्यूँ नहीं... अगर दिमाग और दिल को ठंडा रखेगा.. तो जरूर बताऊँगी...
विश्व - (अपना हाथ बढ़ा कर प्रतिभा के हाथ पर रख देता है) माँ... भले ही मैं गुस्से को काबु नहीं कर पाता... चेहरे पर आ जाती है... पर... फिर भी वादा रहा... मैं खुद को काबु रखूँगा... प्लीज.... बताओना कल क्या हुआ...
प्रतिभा - चल ठीक है... बताती हूँ...

बीते शाम

तापस नुक्कड के मोड़ पर पहुँच कर एक किराने की दुकान पर कुछ चीज़ और पनीर खरीद कर घर की ओर जा रहा था l तो उसे पीछे से "एक्सक्युज मी" आवाज सुनाई देता है l वह पीछे मुड़ कर देखता है स्ट्रीट लाइट की रौशनी में उसे दो शख्स दिखते हैं l वह लोग तापस के पास पहुँचते हैं l उन्हें देखते ही तापस पहचान जाता है और सतर्क हो जाता है l क्यूँकी कुछ दिन पहले खान जब कटक आया था और मोबाइल पर इन दोनों के फोटो दिखाया था और शेयर भी किया था l एक इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा था और दुसरा एडवोकेट बल्लभ प्रधान था l

तापस - यस..
बल्लभ - यह... एडवोकेट प्रतिभा सेनापति जी का घर कहाँ है...
तापस - क्यूँ...
रोणा - क्यूँ मतलब... अरे वह एडवोकेट हैं... हम एक केस के सिलसिले में उनसे मिलना चाहते हैं... (तापस कुछ सोच में पड़ जाता है, उसे सोचता देख कर ) क्या हुआ...
तापस - (सोचते हुए अंदाज में) नहीं मैं यह सोच रहा था... की कोई एडवोकेट सच में इस कॉलोनी में हैं या नहीं...
बल्लभ - अरे यहीँ... इसी कॉलोनी में हैं... नए आए हैं...
तापस - अच्छा... वह जो नए आए हैं...
रोणा - इसका मतलब... तुम जानते हो उन्हें...
तापस - नहीँ...
दोनों - (हैरानी से) नहीं....
तापस - देखिए... यह बक्शी जगबंधु विहार है... कम से कम छह सौ घर हैं... ह्म्म्म्म... क्या डोर नंबर या प्लॉट नंबर है...
रोणा - हाँ है ना... प्लॉट नंबर xxx और डोर नंबर xxx...
तापस - अरे वाह... तो फिर एक काम करो... (उंगली इशारा करते हुए) उस गार्डन के पास जाओ.... वहां पर एक सीमेंट की बोर्ड लगी है... उसमें बक्सी जगबंधु विहार का.. एक बड़ा सा मैप होगा... जाओ उससे पता करो... जाओ...

इतना कह कर तापस वहाँ से निकल जाता है l उनसे थोड़ी दुर जाकर मोबाइल निकालता है और प्रतिभा को मेसेज टाइप करता है l

प्रतिभा छठी गैंग के साथ बातेँ कर रही थी कि उसके फोन पर एक मैसेज चमकती है और साथ साथ सेनापति जी डिस्प्ले होती है l प्रतिभा मैसेज खोल कर देखती है l

"जान, विश्व को ढूंढने और उसके बारे में पता करने राजगड़ से इंस्पेक्टर रोणा और एडवोकेट प्रधान आए हैं l तुम किसी भी तरह प्रताप को घर से बाहर करो, उन लोगोंके जाने के बाद प्रताप को अंदर बुलाएंगे"

प्रतिभा मैसेज पढ़ने के बाद कुछ सोच में पड़ जाती है l फिर अचानक एक चमक के साथ अपनी आँखे खोलती है l वह अपने पास बैठे नंदिनी को इशारे से कान कुछ कहने के लिए बुलाती है l नंदिनी भी जिज्ञासा से अपनी कान प्रतिभा की तरफ करती है l

प्रतिभा - तुमको एक मजेदार बात बतानी है.... मैं किचन में जा रही हूँ... तुम आ जाना...

इतना कह कर प्रतिभा चाय बनाने के बहाने किचन में चली जाती है l और किचन में नंदिनी की इंतजार करने लगती है l उधर नंदिनी ल़डकियों के बीच विश्व को बिठा कर किचन में आती है l

नंदिनी - क्या बात है आंटी... सबके सामने ना बता कर... अकेले में बुलाया...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) एक काम करो... अपनी मोबाइल से... प्रताप की मोबाइल पर फोन लगाओ... और चुपके से... डिस्प्ले में अपनी पहचान देखो...

नंदिनी सस्पेंस और क्युरोसीटी के चलते अपनी मोबाइल से प्रताप को फोन लगाती है और चुपके से जा कर प्रताप के पीछे खड़ी हो जाती है l फोन रिंग होते ही प्रताप फोन, शर्ट की जेब से निकालता है और डिस्प्ले देखता है l "नकचढ़ी" डिस्प्ले हो रहा था l हैरानी के मारे प्रताप की आँखे बड़ी हो जाती है l झट से खड़ा हो जाता है और पीछे मुड़ कर देखता है l तेज तेज सांस लेते हुए नंदिनी उसे कच्चा चबा जाने की अंदाज में देखती है l बिना देरी किए और बिना पीछे मुड़े प्रताप वहाँ से भाग जाता है l नंदिनी उसे भागते हुए देखती रहती है, सभी लड़कियाँ खड़ी हो कर हैरानी से दरवाजे की ओर देखने लगते हैं l तभी प्रतिभा नंदिनी के हाथों से उसकी मोबाइल ले कर डिस्प्ले देखती है जिसमें "बेवक़ूफ़" साफ दिख रहा था l प्रतिभा अपनी भवें उठा कर सवालिया नजर से नंदिनी को देखती है l नंदिनी सकपका जाती है, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो l फिर प्रतिभा जोर जोर से हँसने लगती है l

भाश्वती - क्या बात आंटी... प्रताप भैया के भाग जाने से... आप हँस क्यूँ रहे हैं...
प्रतिभा - कु.. कुछ.. नहीं बेटी... मुझे मालुम ही नहीं था... मेरा प्रताप इतना डरता भी है... हा हा हा हा..
दीप्ति - पर वह किससे डर कर भाग गया...
प्रतिभा - है एक...

कह कर प्रतिभा नंदिनी को देखती है l नंदिनी शर्म के मारे सिर नीचे कर लेती है l इस बीच प्रतिभा तापस को मैसेज 👍 करती है l

उधर विश्व भाग कर बाहर एक जगह पर खड़ा हो जाता है l अपने सिर पर हाथ मारने लगता है कि तभी उसकी फोन बजने लगती है पर विश्व फोन नहीं उठाता l कुछ देर बाद एक मैसेज आता है l विश्व मैसेज देखता है डैड की मैसेज था I वह मैसेज खोल कर देखता है l

"लाट साहब फोन क्यूँ नहीं उठा रहे हैं, मैं इंतजार कर रहा हूँ, मुझसे आ कर xxx चौक पर मिलो"

मैसेज पढ़ते ही विश्व की भवें सिकुड़ जाती हैं l वह कुछ सोचने के बाद भागते हुए xxx चौक पर पहुँचता है l उसे ठीक मोड़ पर तापस दिखाई देता है l

विश्व - (तापस के पास पहुँच कर) क्या हुआ डैड...
तापस - तुम.... (एक दुकान को दिखा कर) इस दुकान में बैठोगे... तब तक... जब तक तुम्हारी माँ तुम्हें फोन कर वापस ना बुलाए...
विश्व - (कान खड़े हो जाते हैं, उसे खतरे का आभास होता है) क्या बात है डैड... कुछ भी छुपाना मत... सच सच बताइये...
तापस - तुझे ढूंढते ढूंढते... राजगड़ के वही दो नमूने आए हैं... तेरी माँ का पता पुछ रहे थे... गनीमत यह रही कि... वह लोग पता मुझसे पुछ रहे थे...
विश्व - (अपनी जबड़े भींच कर) उनकी तो...
तापस - नहीँ... तुझे उनके साथ जो करना है कर... पर कटक या भुवनेश्वर में नहीं... बिल्कुल भी नहीं... और यह मत भुल... कुछ बातेँ राज रहें... तो तेरी माँ के लिए भी अच्छी बात है... वरना भैरव सिंह की नजर में... तेरी माँ आ जाएगी... समझा....

विश्व अपना सिर हिलाता है और दांत पिसते हुए दुकान के अंदर जा कर बैठ जाता है l तापस वहाँ से कुछ पकौड़े, बटाटा बड़ा, समोसे और जलेबी खरीद कर घर की ओर चलता है l

उधर घर में सभी चाय पी रहे हैं कि डोर बेल बजती है l प्रतिभा नंदिनी और उसके दोस्तों के साथ किचन में हँसी मज़ाक कर रही थी कि डोर बेल की आवाज सुनते ही ड्रॉइंग रुम होते हुए प्रतिभा दरवाजा खोलती है l सामने दो अजनबी खड़े थे l

प्रतिभा - आप लोग कौन हैं... और किसे ढूंढ रहे हैं...
एक आदमी - जी... हम एक केस के सिलसिले में... एडवोकेट प्रतिभा जी से मिलने आए हैं...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... ठीक है.... अंदर आइए...(अंदर आती है)

वह दोनों प्रतिभा के पीछे पीछे अंदर आते हैं l वे दोनों देखते हैं ड्रॉइंग रुम और किचन के बीचों-बीच एक हिस्से में छह लड़कियाँ खड़ी हुई हैं और इन दोनों को घूर रही हैं l प्रतिभा उन्हें एक अलग कमरे में जो कि प्रतिभा का अपना ऑफिस था, वहाँ उन्हें बैठने के लिए कहती है l वे दोनों उस कमरे में बैठ जाते हैं l प्रतिभा ड्रॉइंग रुम में आकर

प्रतिभा - बच्चों... एक काम करो... चूंकि तुम सब प्रताप के दोस्त हो... (एक कमरे की ओर इशारा करते हुए) जाओ... उसके कमरे में जाओ और उस कमरे का सत्यानाश करो... दो क्लाइंट आए हुए हैं... सिर्फ पंद्रह मिनट टाइम दो... उसके बाद हम बातेँ करेंगे... और पार्टी भी...
लड़कियाँ - ओके आंटी... इयेए.. इयेए... (चिल्लाते हुए प्रताप के कमरे में चले जाते हैं, पर नंदिनी वहीँ खड़ी रहती है)
प्रतिभा - क्या हुआ नंदिनी... तुम क्यूँ नहीं जा रही... "बेवकूफ" के कमरे में.. (बेवकूफ़ शब्द को जोर देते हुए कहा था)
नंदिनी - (शर्मा जाती है) स.. सॉरी आंटी.. मैं वह...
प्रतिभा - अरे कुछ नहीं... मैंने जरा भी बुरा नहीं माना... बल्कि मुझे खुशी है कि... किसीने तो उसकी बेवकूफ़ी पकड़ी है... हम तो उसे हमेशा से... इंटेलिजेंट समझ रहे थे.... अच्छा अब तुम उस कमरे में जाओ...
नंदिनी - कोई नहीं आंटी... आप मेहमानों का खयाल रखिए... कुछ जरूरत पड़ी तो... मुझे आवाज़ दीजियेगा...

प्रतिभा मुस्कराते हुए नंदिनी के गालों पर हल्का सा चपत लगाती है और अपना सिर हाँ मे हिलाते हुए अपने ऑफिस के कमरे में आती है l

प्रतिभा - (अपनी कुर्सी पर बैठते हुए) हाँ तो... पहले अपना परिचय दीजिए...
एक आदमी - मैडम... मैं एडवोकेट बल्लभ प्रधान... और यह इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा...
रोणा - हैलो मैम...
प्रतिभा - इंट्रेस्टिंग... एक एडवोकेट और एक इंस्पेक्टर... मेरे पास... किसी केस के सिलसिले में... (जवाब में बल्लभ कुछ कहने को होता है कि प्रतिभा उसे रोकते हुए) एक मिनट... एक मिनट... तुम दोनों के नाम... सुना हुआ सा लग रहा है... और शायद हम पहले भी मिले हुए हैं... याद नहीं आ रहा... (कुछ देर सोचते हुए बल्लभ से) क्या हम... पहले भी कभी मिले हैं...
बल्लभ - (पहले रोणा को देखता है और फिर) हाँ.. मैम... कई बार... हमारी मुलाकात सात साल पहले हुई थी... तब आप पीपी हुआ करते थे... और राज्य की सबसे मशहूर करप्शन स्कैंडल... रुप फाउंडेशन और मनरेगा कांड की पैरवी की थी....
प्रतिभा - ओ... हाँ.. हाँ.. हाँ अब याद आया... (रोणा से) तो तुम ही वह इंस्पेक्टर हो... जिसने निजी खुन्नस के चलते एक मासूम... विश्व को टॉर्चर कर... उसके टांग पर गोली मारी थी...
रोणा - वह कहाँ मासूम था... अदालत ने उसे सजा दी थी...
प्रतिभा - हाँ सजा तो दी थी... पर लगता है तुमने कोर्ट ऑर्डर ठीक से पढ़ा नहीं था... उसे सजा इसलिए नहीं मिली थी कि उसने करप्शन किया था या उस करप्शन का हिस्सेदार था... उसे सजा मिली थी... क्यूँ की उसके सरपंच होते हुए भी... वह उस करप्शन में... एक टूल बन गया... वह यूज्ड टू हो गया... यह तुम्हें पता होना चाहिए था रोणा... क्यूंकि तुम खुद भी तो उस केस में सस्पेंड हुए थे...

रोणा की खांसी निकलने लगता है, खांसते खांसते इशारे से पानी मांगने लगता है l प्रतिभा उठने को होती है कि नंदिनी ट्रे में दो ग्लास पानी लाकर रोणा को एक और बल्लभ को एक देती है l रोणा पानी पीते पीते नंदिनी को देखने लगता है l प्रतिभा को रोणा का नंदिनी को ऐसे घूरते हुए देखना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है l वह चुटकी बजाती है l उसकी चुटकी सुन कर रोणा और बल्लभ दोनों प्रतिभा की ओर देखते हैं l

प्रतिभा - अब बताओ... तुम दोनों यहाँ आए किसलिए हो...
बल्लभ - वह एक मिसींग केस है.. तो सोचा शायद आपको कोई आइडिया हो... या आइडिया दे सकें...
प्रतिभा - किस तरह का मिसींग केस... और किस की मिसींग केस.... (रोणा को देख कर, क्यूंकि रोणा तब से नंदिनी को घूर रहा था) नंदिनी... जाओ ड्रॉइंग रुम में जाओ... (नंदिनी वहाँ से निकल कर ड्रॉइंग रुम में चली जाती है)
बल्लभ - वह... एक्चुयली एक इन्शुरन्स है... जिस पर क्लेम दो जन कर रहे हैं... एक को आप जानती हैं... और दुसरा मिसींग है...
प्रतिभा - (रोणा अभी ड्रॉइंग रुम की ओर देखे जा रहा है, उसकी नज़रें नंदिनी को ढूंढ रही थी, उसकी हरकतें देख कर गुस्से से दांत पिसते हुए) किस दुसरे की बात कर रहे हो... और पहला कौन है...
बल्लभ - (थोड़ा अटक कर) वह पहला... नहीं है... पहली है... वैदेही महापात्र...
प्रतिभा - (गुस्से से उठ खड़ी होती है, और चिल्लाते हुए) इनॉफ... प्रधान... तुम अपने इस... बत्तमिज दोस्त को ले कर यहाँ से दफा हो जाओ.... यह वह कुत्ता है... जिसकी थाली में खाता है... उसी थाली में छेद करता है... और उसी हाथ को काटता है... जो इसे खाना देता है...
रोणा - प्रतिभा जी... (जैसे कुछ भी नहीं जानता हो) मैंने क्या किया...
प्रतिभा - (अपनी हाथों को मोड़ कर कोहनीयों से बाँध कर) मेरे ही घर में... मेरे ही बच्चों को गंदी नजर से देख रहे हो... और पुछ रहे हो क्या किया...

इतने में प्रतिभा की ऊंची आवाज सुन कर सारी लड़कियाँ आकर दरवाजे के पास खड़ी हो जाती हैं l नंदिनी सबसे आगे खड़ी थी l

रोणा - सिर्फ देखा ही तो है...(नंदिनी की ओर देखते हुए) अच्छी है... खूब सूरत है... और किसी खूबसूरत चीज़ को देखना... कब से और कहाँ से गुनाह हो गया....
प्रतिभा - नजर नजर में फर्क़ होता है... इंस्पेक्टर रोणा... तेरी नजर जितनी गंदी है... उतनी ही वहशी...
रोणा - अरे... मैम... आप खामखा बात का बतंगड़ बना रही हैं... लड़की सुंदर है... इसलिए देखा... सुंदरता को देखना कहाँ जुर्म हो गया...
प्रतिभा - सुंदरता... देखना.. जानता है... तेरी नजर से क्या छलक रहा है... तु जब पैदा हुआ होगा... तब जीवन अमृत माँ की दूध पीते हुए भी... अपनी नीचे लाने की सोचा होगा...
रोणा - (ताव में आ कर) ऐ बुढ़िया...
प्रतिभा - गेट... आउट...
रोणा - कमीनी... कुछ ज्यादा ही भाव खा रही है...

चट्ट्ट्ट्टाक... एक जोर दार थप्पड़ की आवाज गूंजती है l कमरे में मौजूद सबकी आँखे फटी की फटी रह जाती है l प्रतिभा भी मुहँ फाड़े देखे जा रही थी l क्यूँकी थप्पड़ मारने वाली नंदिनी थी और खाने वाला रोणा I रोणा भी हैरानी से नंदिनी को देखता है

नंदिनी - कुत्ते... सुवर कहीं का... तु जिनसे बात कर रहा है... जानता है वह कौन हैं... क्या रुतबा रखती हैं समाज में... और सबसे अहम बात... वह एक औरत हैं... उनके साथ इस तरह से बात कर रहा है... माफी मांग... माफी मांग उनसे...
रोणा - (अपने गाल सहलाते हुए) तु.... तु जानती नहीं है मुझे लड़की... (गुर्राते हुए) पछतायेगी... बहुत पछतायेगी...
नंदिनी - (और एक थप्पड़ मारती है, उसकी कलर पकड़ लेती है और फिर कड़क आवाज में गुर्रा कर दांत पिसते हुए) आग से हाथ या आँख सेंकने की सोच सकता है... पर छूने की या खेलने की सोचना भी मत... पर यहाँ मैं ज्वालामुखी हूँ... हाथ छोड़... आँख भी सेंकने की सोचा... तो ऐसे जलेगा की तेरे अपनों को... तेरी राख भी नसीब नहीं होगी...
प्रतिभा - (नंदिनी को अपने तरफ खिंचते हुए) सुन बे दो कौड़ी छाप कुत्ते... यह धमकी जो भौंक रहा था... अपने थाने की परिसर के अंदर रख... यहाँ किसीको आँख भी उठा कर देखा... तो अभी के अभी तेरी आँखे नोच लुंगी.... मत भुल... तु मेरे ऑफिस के अंदर है... और पुरा का पुरा कमरा... सर्विलांस में है...
रोणा - (गले से थूक निगलते हुए) स... सॉरी...
प्रतिभा - दफा हो जाओ यहाँ से... (दोनों हारे हुए बंदों की तरह मुड़ कर बाहर की ओर जाने लगते हैं) रोणा... (दोनों रुक पीछे मुड़ कर देखते हैं) तु अगर वैदेही के एफिडेविट के बारे में जानने आया था... तो हाँ... उसकी एफिडेविट कोर्ट में प्रोड्यूस की हुई है... उसकी लॉयर मैं हूँ... तुने यहाँ पर साबित भी कर दिया... उसकी एफिडेविट में कितना दम है...(रोणा अपनी जबड़े भींच कर सिर झुका कर खड़ा होता है) और हाँ... रोणा... तु जिस के दम पर इतना उछल रहा है ना...(रोणा के पास चल कर आती है) एक मुफ्त की सलाह दे रही हूँ... गांठ बांध ले... जब जब सियासत या हुकूमत दांव पर लगती है... तब सबसे पहले हुकुमत प्यादों को कुर्बान कर देती है.... (हाथों से इशारा करते हुए) और तुम दोनों की औकात... प्यादों से ज्यादा नहीं है...(हुकुम देने के अंदाज में) और अभी के अभी... जितनी जल्दी हो सके... तुम दोनों अपने सड़े हुए शक्लें लेकर... (चिल्ला कर) दफा हो जाओ यहाँ से...

दोनों अब घर के बाहर कदम रखे हुए थे कि भाश्वती दो बार ताली बजाती है l दोनों फिर से रुक कर वापस मुड़ कर देखते हैं l

भाश्वती - सुनो बे छछूंदरो... औरत या लड़की को अबला समझने की गलती मत करना... हम अगर अपने में आ गए... बला बनकर तुम पर टुट पड़ेंगे... समझे... गेट आउट...

कह कर दरवाजा बंद कर अपने हाथों को झाड़ते हुए पीछे मुड़ती है l सभी उसे हैरानी से मुहँ फाड़े देखे जा रहे हैं l

बनानी - यह तुने कहा...
दीप्ति - तुने अभी जो कहा... समझी भी.. क्या कहा
भाश्वती - इसमें समझने वाली बात क्या है... जो मुहँ में आया... बोल दिया... आंटी जी और नंदिनी को देख कर मेरा जोश चढ़ गया... इसलिए बहती गंगा में... मुहँ कुल्ला कर दिया...

उसकी बातेँ सुन कर सभी एक दुसरे को पहले देखते हैं फिर सभी मिलकर हँसने लगते हैं l तभी डोर बेल फिर से बजती है l

भाश्वती - आ.. आह्.. लगता है कुछ कमी रह गई... (इतना कह कर दरवाजा खोलती है तो इसबार सामने तापस था और उसके हाथों में कुछ सामान था) (हकलाते हुए) अ.. अ.. अंकल... आइए... अंदर आइए...


अपनी बातों को रोक कर रुप शुभ्रा की ओर देखती है I

शुभ्रा - बस इतना ही...
रुप - हाँ...
शुभ्रा - फिर प्रताप.... वापस नहीं आया क्या...
रुप - नहीं...
शुभ्रा - तो तुम लोग खाना खा कर आ गए...
रुप - नहीं... उस माहौल के बाद... आंटी जी ने कुछ खाना नहीं बनाया.... अंकल बाहर से पकौड़े, बटाटा वड़ा, समोसा और जलेबी लाए थे... तो हम सिर्फ़ वही नास्ता कर... वहाँ से निकल आए...
शुभ्रा - अच्छा... सिर्फ नाश्ता... वह भी बाहर का...
रुप - हूँ...

उधर

विश्व - नंदिनी जी... मेरे बारे में पूछ रही थी क्या...
प्रतिभा - हाँ... सिर्फ नंदिनी ही नहीं... तेरे सारे दोस्त... स्नैक्स लेते समय... तु नहीं था... तो पूछेंगी ही...
विश्व - तो... तुमने क्या कहा...
प्रतिभा - क्या कहती... मैंने बस इतना कहा कि... फ़िलहाल... मेरा बेटा मुझसे नाराज है...

शुभ्रा - ओ... तो तुम्हारे घर से निकलने तक... बेवक़ूफ़ घर नहीं आया...
रुप - (खीज कर) भाभी...
शुभ्रा - हा हा हा हा (हँस देती है) सॉरी... (हँसी को रोकते हुए) तुमने... आंटी जी से... प्रताप के बारे में कुछ पुछा नहीं...
रुप - नहीं... नहीं पुछ पाई... मौका ही नहीं मिला... पर वह भांप गई...

विश्व - क्या... क्या भांप गई...
प्रतिभा - यही की... वह मुझसे कुछ पूछना चाहती थी... जैसे कोई बहुत जरूरी बात... पर वह पुछ नहीं पाई...
विश्व - (सोचते हुए हैरानी भरे लहजे में) नंदिनी जी... कुछ पूछना चाहती थी... पर क्या...
प्रतिभा - यह मैं कैसे कह सकती हूँ... विदा करते वक़्त मैंने उसे रोक कर पुछा भी...

बीते शाम छठी गैंग को विदा करते वक़्त, गाड़ी में बिठाते समय


प्रतिभा - नंदनी... कुछ बात करना चाहती हो मुझसे... है ना...
नंदिनी - (अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
प्रतिभा - उन दो छछूंदरों के बारे में...
नंदिनी - नहीं... उनके बारे में नहीं...
प्रतिभा - फिर...
नंदिनी - (झिझकते हुए) कुछ पर्सनल...
प्रतिभा - ओ...(धीरे से) अकेले में...
नंदिनी - (हल्के से अपना सिर हाँ में हिलाती है)
प्रतिभा - ठीक है... वैसे एक बात पुछुं...
नंदिनी - जी आंटी जी...
प्रतिभा - तुमने उसे थप्पड़ क्यूँ मारा...
नंदिनी - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) वह आपसे जिस बत्तमिजी से बात कर रहा था.... मुझसे रहा ना गया... वैसे भी जब से आया था... उसकी नज़रें मुझे चुभ रही थी... इसलिए...
प्रतिभा - हूँ... ठीक है... अच्छा मेरा नंबर है तुम्हारे पास...
नंदिनी - जी है...
प्रतिभा - है...(हैरानी से) कहाँ से मिला...
नंदिनी - (पहले तो हड़बड़ा जाती है, फिर संभल कर) आप... आप तो एक आइकन हैं... फिर मैं आपकी बहुत बड़ी फैन हूँ... एक्चुयली एक दिन मधु प्रकाशनी के मालकिन से मुलाकात हुई थी... तो उनसे मैंने आपका नंबर हासिल किया था... वैसे भी आपका नंबर ढूंढ निकालना... आपके फैन के लिए... कहाँ मुश्किल है...
प्रतिभा - अरे बाप रे.... कितनी बातेँ कर लेती हो... ठीक है... तो किसी छुट्टी के दिन... मुझे कॉल कर दो... मैं तुम्हारे लिए टाइम निकाल लुंगी... फिर दोनों मिलकर तुम्हारी परेशानी दूर करेंगे ठीक है...
नंदिनी - (हैरान हो कर) दो...नो...
प्रतिभा - मैं और तुम...
नंदिनी - (मुस्करा कर) जी.. जी ठीक है... (कह कर गाड़ी में बैठ जाती है)

शुभ्रा - गाड़ी...? यह गाड़ी कहाँ से आया... तुम लोग तो बस से गए थे ना...
रुप - हाँ... अंकल ने हमारे लिए... दो कार का इंतजाम कर दिया था...

विश्व - वाव डैड... बहुत अच्छे...
तापस - अरे मुझे मालुम था... उनको ड्रॉप करने के लिए गाड़ी चाहिए होगी.. इसलिए मैंने इंतजाम कर दिया था...
प्रतिभा - (विश्व से) अब तेरी नाराजगी दुर हुई या नहीं...
विश्व - बस थोड़ी सी बाकी है...
प्रतिभा - वह किसलिए...
विश्व - आपने मेरी भंडा फोड़ दिया... अब मैं कैसे सामना करूँगा उनका....
प्रतिभा - हा हा हा हा (हँसते हुए) अरे... उसने भी तेरा नाम... बेवकूफ़ के नाम से सेव कर रखा है... और मैंने तुझे बता भी दिया... अब उसको भी तो तेरा सामना करना है...

शुभ्रा - तो... अब क्या फोन पर... उसका नाम बदलेगी...
रुप - क्यूँ.. उसने भी तो मेरा नाम..(मुहँ बनाते हुए) नकचढ़ी रखा है...(अपनी जगह से थाली से उठते हुए) अच्छा... मुझे अब निकलना होगा...

प्रतिभा - निकलना होगा... कहाँ निकलना होगा....
विश्व - अरे माँ.. जो मेरा रेगुलर रुटीन है... उसे तो फॉलो करना पड़ेगा ना...
प्रतिभा - हूँ... ठीक है... पहले बता... नाराजगी दुर हुई या नहीं....
विश्व - (मुस्कराते हुए) माँ... मैं कभी तुमसे... नाराज हो सकता हूँ भला...

विश्व नाश्ता खतम कर हाथ मुहँ साफ कर पहले प्रतिभा के गले लग जाता है और बाहर निकल जाता है, तो उसे बाहर तापस मिलता है l

तापस - चल मैं तुझे... नुक्कड़ के मोड़ तक छोड़ देता हूँ...

विश्व कुछ नहीं कहता, चुप चाप चलने लगता है l तापस भी उसके साथ चलते चलते नुक्कड़ की मोड़ तक पहुँचते हैं l

तापस - (विश्व के कंधे पर हाथ रखकर अपने तरफ मोड़ कर) देख.. मैं जानता हूँ... तु गुस्से में... बदले की आग में जल रहा है... पर कुछ भी हो... तु चाहे उनके साथ कुछ भी कर... पर तुझे.... अभी उनके सामने... अपनी पहचान को रिवील नहीं करना है.... समझा...
विश्व - हूँ...


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

दो पहर का वक़्त
होम सेक्रेटरीयट के एक ऑफिस नुमा कमरे के बाहर बल्लभ बैठा हुआ है l दरवाजे पर एएसपी श्रीधर परीड़ा लिखा हुआ है l कुछ देर बाद अंदर से एक पियोन बाहर आता है और बल्लभ को अंदर जाने के लिए कहता है l बल्लभ अपनी जगह से उठ कर अंदर जाता है l अंदर उसे कुर्सी पर परीड़ा बैठा दिखता है l

परीड़ा - क्या बात है... (अपने कुर्सी पर पीठ के बल लेटने के अंदाज में)
प्रधान बाबु आए हमारे चेंबर में...
उनकी कोई जरूरत है...
कभी हम उनको...
कभी उनके कपड़ों को देखते हैं....
खैर... जरूर कोई बड़ी बात है... वरना ऑफिशियल आवर में... तुम... यहाँ...
बल्लभ - हाँ यार... अब मुझे... तुझसे मदत चाहिए...
परीड़ा - वह तो मैं तुमको देख कर ही समझ गया... पिछली बार जितनी भी इंफॉर्मेशन दी थी... वह सब दोस्ती के खातिर... पर... उसकी भी एक लिमिट होती है...
बल्लभ - (कुछ देर चुप हो कर) यह... राजा साहब का काम है..
परीड़ा - ना... (अपना सिर को ना में हिलाता है) यह राजा साहब का काम नहीं है... अगर राजा साहब का होता... तो अब तक सिस्टम के कुछ हिस्से ऐक्टिव हो चुके होते... यह तुम दोनों का काम है...
बल्लभ - यकीन कर यार... राजा साहब ने हम दोनों को काम दिया है... पर... इसे ऑफिशियली करने से मना किया है...
परीड़ा - ह्म्म्म्म... फिर भी... काम हो जाने के बाद... एप्रीसिएशन और इनाम तो... तुम दोनोंको मिलेगा... मेरे हिस्से में क्या आयेगा... घंटा...
बल्लभ - (कुछ देर के लिए चुप हो जाता है, और कुछ सोचने लगता है, फिर) ठीक है... कितना पैसा चाहिए...
परीड़ा - (सीधा हो कर बैठ जाता है) क्या हुआ प्रधान... एक विश्वा से... तुम लोग इतना घबराए हुए हो...
बल्लभ - मत भुल परीड़ा... यह वही विश्वा है... जिसके वजह से राजा साहब पहली बार कोर्ट की सीढ़ियां चढ़े... और कटघरे तक पहुँच गए थे...
परीड़ा - तो.... वह अब... जैल से छुट कर क्या कर लेगा...
बल्लभ - देख... अनिकेत ने एक शक़ जाहिर की... उसकी बातों में... मुझे दम लगा... इसलिए मैंने राजा साहब को कंवींस कर यहाँ आ गया... बीस दिन होने को है... पर अब तक हम खाली हाथ ही हैं...
परीड़ा - ह्म्म्म्म तो तुम्हें... विश्व के रिलेटेड इंफॉर्मेशन चाहिए...
बल्लभ - हाँ.. और साथ साथ अपना कीमत बोल...
परीड़ा - बोल दूँगा... बोल दूँगा... पहले यह बता... तुम यहाँ अकेले अकेले... रोणा किधर है...
बल्लभ - (भन भनाते हुए) मत लो नाम उसका... वह साला... वह साला सटक गया है... पागल हो गया है...
परीड़ा - (हैरान हो कर) ऐसा क्या हो गया...

बल्लभ बीते रात प्रतिभा के घर में जो भी कुछ हुआ बताता है l सब सुनने के बाद

परीड़ा - तो... दो थप्पड़ खा कर लौटा है अपना रोणा...
बल्लभ - हाँ... साला ठरकी... सुबह से ही पगलाया हुआ है..
परीड़ा - मतलब उन दो थप्पड़ों का साइड इफेक्ट...
बल्लभ - हाँ... वही..

फिर सुबह हुई अपने और रोणा के बीच की बात चित ब्योरा देने लगता है

उसी दिन सुबह
xxx होटल के जीम में रोणा खुब पसीना बहा रहा है l बेंच प्रेस करने के बाद लेग प्रेस कर रहा था l उसके कसरत के हर पहलू को जीम इंस्ट्रक्टर देख रहा था l कुछ दुर पर बैठा बल्लभ रोणा को लेग प्रेस करते देख रहा था l जीम वाले कमरे में इन तीन लोगों के अलावा फर्श साफ करने वाला एक आदमी था जो उस वक़्त फर्श साफ कर रहा था l

बल्लभ - इंस्ट्रक्टर बाबु... और कितना देर...
इंस्ट्रक्टर - बस यह आखिरी है... (रोणा से) ओके सर... प्लीज कंटीन्यु... (कह कर वहाँ से चला जाता है)
रोणा - क्या हुआ... काले कोट वाले... कल से गाली देने के लिए मरा जा रहा है...
बल्लभ - (अपनी दांत पिसते हुए) हाँ रे भोषड़ी के... तु वाकई... अब... सबसे बड़ा मादरचोद बन गया है...
रोणा - (मुस्कराते हुए) किसकी माँ चोद दी मैंने...
बल्लभ - चुप बे हराम जादे... हम यहाँ आए किस लिए थे... और हम कर क्या रहे हैं...
रोणा - (लेग प्रेस रोक कर बल्लभ के सामने बैठते हुए) देख... मेरे को जो पता करना है... वह मैं एक दो दिन में पता कर ही लूँगा...
बल्लभ - किससे... वह तेरा गुर्गा... क्या नाम बोला था तुने.. आँ... टोनी...
रोणा - हाँ...
बल्लभ - तो फिर हम कल... एडवोकेट प्रतिभा के पास गए ही क्यूँ...
रोणा - इसलिए... के तु चाहता था... उस वैदेही की मासी से मिल कर... पता करने के लिए...
बल्लभ - पर फटी तो तेरी थी ना... उस मासी से...
रोणा - हाँ... पर जब परीड़ा ने कहा कि... ज्यादातर काम काजी औरतें... उसे मासी कहते हैं... तब मेरा इंट्रेस्ट उस बुढ़िया पर खतम हो गया...
बल्लभ - (गुस्सा हो कर) तो भोषड़ी के... तो कल तेरे साथ मेरी बेइज्जती कराने गया था क्या...
रोणा - गया तो था.. तेरा साथ देने... पर...
बल्लभ - पर... पर साले ठरकी... लड़की देख कर फ़िसल गया...
रोणा - (टावल से पसीना पोछते हुए) हाँ... साली क्या चीज़ थी..
बल्लभ - (दांत पिसते हुए) इसीलिए तो तुझे मादरचोद कहा... जुम्मा जुम्मा दो ही दिन हुए हैं... साले हॉस्पिटल की बेड से उठे... फिर से किसी नर्स की पिछवाड़ा देखने की खुजली हो रही है क्या बे तुझे...
रोणा - क्यूँ इतना पका रहा है बे.. कल उस एडवोकेट के घर में छह छह लड़कियाँ थीं... किसी एक से नैन लड़ा ले...
बल्लभ - बे... दिमाग सटक गया है बे क्या तेरा... तुने कहा... इसलिए मैंने मैटर को सीरियसली लिया था... इसी मैटर के चलते.. दस दिन हस्पताल में सड़ता रहा... फिर भी तेरी अक्ल घास चर रही है...

रोणा का चेहरा धीरे धीरे सख्त हो जाता है, जबड़े भींच जाता है, उसकी आँखे लाल होने लगते हैं l उसका अचानक यह परिवर्तन देख कर एक पल के लिए बल्लभ सकपका जाता है l

रोणा - (अपने गाल को सहलाते हुए)गलती कर दी उसने.... कमीनी मिर्ची लग रही थी... इसलिए आँख सेंक रहा था... मेरी गाल बजा कर बता गई... कितनी तीखी है...
बल्लभ - ऐ... ऐइ.. रोणा... यह... अचानक तुझे क्या हो गया.. वह... एक बच्ची है... कॉलेज में शायद पढ़ रही होगी... उसकी उम्र ही क्या होगी...
रोणा - मुझे उसकी उमर से नहीं... उसकी कमर से मतलब है...
बल्लभ - (चिढ़ कर खड़ा हो जाता है) तु हमारा मिशन भूल रहा है... बीस दिन होने को आए.. वहीँ के वहीँ रह गए हैं... एक कदम भी आगे नहीं बढ़े हैं... और तु अपना मिशन और टार्गेट चेंज कर रहा है... (हांफने लगता है) पता नहीं वह लड़कियाँ वहाँ पर क्या कर रहीं थी... तु अब उन सबके पीछे पड़ेगा...
रोणा - उन सबके नहीं... सिर्फ उस लाल मिर्ची के पीछे... कसम से... उसे अपने नीचे लाउंगा जरूर...
बल्लभ - (चिढ़ कर) छी... पागल हो गया है तु... हम कुछ जानते भी नहीं है उसके बारे में... अबे कटक या भुवनेश्वर में क्यूँ बखेड़ा खड़ा कर रहा है... अगले हफ्ते राजा साहब आ रहे हैं... पता नहीं वह कौनसा मनहूस घड़ी था... जब तु राजा साहब के आगे विश्व के बारे में हांक रहा था... मैंने भी तेरी तरफदारी की थी...
रोणा - तो मरा क्यूँ जा रहा है...
बल्लभ - अबे... (चिल्लाते हुए) पहले अपने दिमाग में घुसा... विश्व जैल से छूट गया है... राजगड़ नहीं गया है... गायब है... अगर वह कुछ कर रहा है... तो क्या कर रहा है... कैसे कर रहा है... रुप फाउंडेशन की गड़े मुर्दे उखाड़ने के लिए... उसकी खबर राजा साहब को देना है... भूल गया क्या बे... (हांफने लगता है)
रोणा - चिल्ला क्यूँ रहा है... मैं जानता हूँ... मेरे इन्फॉर्मर को आने दे... विश्व के बारे में वह जितना बतायेगा... मैं राजा साहब को उतना ही बता दूँगा...
बल्लभ - वाह.. खाल बचाने के लिए बहाना अच्छा है... साले... अगर वह सचमुच ज्वालामुखी निकली तो...
रोणा - वह मिर्ची है... लाल मिर्च... बहुत तीखी है... इतनी की.. आँख लगाओ तो आँख जले.. मुहँ लगाओ तो मुँह जले... दिल लगाओ तो दिल जले... अरे जो जलाने की चीज़ हो... वह तो जलायेगी ही... मेरा तो उसे देखने के बाद... तन बदन में आग लगी हुई है... बुझाना तो पड़ेगा ही... (चिढ़ कर पैर पटक कर बल्लभ वहाँ से जाने लगता है) अरे ओ काले कोट वाले... कहाँ जा रहा है...
बल्लभ - तुझसे तो उम्मीद करना बेकार है... इसलिए मैं जा रहा हूँ... अपने तरीके से पता करने...

बल्लभ अपनी सुबह की कहानी खतम करता है l परीड़ा अपनी आँखे मूँद कर सुन रहा था l बल्लभ के रुकने के बाद आँखे खोलता है और बल्लभ को कुछ कहने के लिए मुहँ खोलने को होता है कि तभी बल्लभ का फोन बजने लगता है l बल्लभ देखता है नंबर तो स्क्रीन पर दिख रहा है पर कोई नाम डिस्प्ले नहीं हो रहा था l बल्लभ फोन उठाता है I परीड़ा उसे स्पीकर पर डालने को कहता है l

बल्लभ - हैलो....
:- सर मैं होटल xxx की रिसेप्शन से बात कर रही हूँ...
बल्लभ - (हैरान हो कर) xxx की रिसेप्शन... क्यूँ... क्या हुआ...
रिसेप्शनीस्ट - सर... यहाँ आपके रुम पार्टनर के साथ... एक... एक्सीडेंट हो गया है...
बल्लभ - (अपनी कुर्सी से उछल कर खड़ा होता है) व्हाट...
 

Battu

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👉इक्यानबेवां अपडेट
----------------------
रुप कॉलेज के लिए तैयार हो कर नीचे उतरती है l डायनिंग टेबल पर शुभ्रा को अकेले देख कर उसे हैरानी होती है l रुप के कुर्सी पर बैठने के बाद नौकर ट्रॉली में नाश्ते की बाउल लाकर टेबल पर रख देते हैं l

शुभ्रा - (नौकरों से) अब तुम लोग जाओ... जरूरत पड़ी तो हम बेल बजाएंगे... (नौकर अपना सिर झुका कर वहाँ से चले जाते हैं)
रुप - (नौकरों के वहाँ से जाने के बाद, थोड़ी हैरानी के साथ) भाभी... आज आप अकेली...
शुभ्रा - हूँ...(एक साधारण सी भाव के साथ)
रुप - (थोड़ी गम्भीर आवाज में) क्यूँ... आज भैया को क्या हुआ...
शुभ्रा - कुछ नहीं हुआ है... वह सुबह सुबह... महांती का फोन आया था... किसी खास काम के लिए... पार्टी ऑफिस से हो कर ESS ऑफिस जाएंगे...
रुप - ओ... ऐसा कौनसा जरूरी काम... जो सुबह का नाश्ता किए बिना चले गए...
शुभ्रा - क्या करें... पार्टी के ही लॉ मिनिस्टर की बेटी की शादी है... और तुम्हारे भैया... पार्टी के युवा मंच के लीडर हैं...
रुप - भाभी... इतना तो मैं पक्का जानती हूँ... पार्टी में किसीकी हिम्मत ना होती होगी... भैया से कुछ काम करवाने की...
शुभ्रा - तो क्या हुआ... विक्की इतने रुड तो हैं नहीं... और चूंकि महांती का फोन आया था... तो कुछ ना कुछ जरूरी काम होगा जरूर...
रुप - (छेड़ते हुए) आँ... हाँ... आज कल बड़ी खबर रखी जा रही है... लगता है बाहर सरकार बनाने से पहले... अपनी होम मिनिस्टर को रिपोर्ट दे कर गए हैं...
शुभ्रा - (शर्म और खुशी की मिली जुली भाव को अपने चेहरे पर ना लाने की बहुत कोशिश करती है)
रुप - ना... कोई फायदा नहीं भाभी... हाय... यह शर्म... यह हया और... छुपाये ना छुपती यह खुशी... ना ना... छुपा ना पाओगी...
शुभ्रा - (शर्म से आँखे दिखाते हुए) शट-अप नंदिनी...
रुप - जरुर भाभी जी... आप हुकुम करें और हम शट-अप ना हों ऐसा तो हो ही नहीं सकता...
शुभ्रा - अच्छा अच्छा... बहुत हो गया... अब यह बताओ... कल की शाम कैसे बीती... तुम देर रात दस बजे आई... और आते ही सीधे अपने कमरे में घुस गई....
भाभी - उसके लिए तो आप मुझे थैंक्स कह सकती हैं... आई मिन कहना चाहिए...
शुभ्रा - थैंक्स... तुमसे... वह क्यूँ...
रुप - अरे... पिछले दो दिन से... शाम को... आप और भैया... कैंडल लाइट डिनर तो करते ही होंगे ना...
शुभ्रा - अच्छा... तो तुम्हारे कहने का मतलब है... की यह सब... तुम्हारा किया धरा है...
रुप - (खिलखिला कर हँस देती है)
शुभ्रा - (मुस्कराते हुए) अपनी बातेँ टालना कोई तुमसे सीखे... (रुप की हँसी रुक जाती है, वह सवालिया नजर से शुभ्रा को देखती है) (शुभ्रा अपनी भवें तन कर रुप से) कल तुम्हारे महबूब की कोई खबर मिली... या..
रुप - (अपनी प्लेट की ओर चेहरा झुका लेती है, थोड़ी मायूस हो कर ) कहाँ भाभी... कल सिचुएशन ही ऐसी बनी की... (चुप हो जाती है)
शुभ्रा - कैसी बनी...

रुप बताती है प्रताप के घर पहुँचने से लेकर प्रताप के भाग जाने तक l यह सुन कर शुभ्रा हँसने लगती है l

शुभ्रा - हा हा हा... (हँसते हुए) ओह माय गॉड... प्रताप ने तुम्हारा नाम... नकचढ़ी रखा है... हा हा हा हा... और आंटी जी ने तुम्हें ना बताया होता तो... तो तुम्हें मालुम ही नहीं पड़ता... हा हा हा हा...

रुप अपनी जबड़े भींच कर शुभ्रा को घूरने लगती है l शुभ्रा मुश्किल से अपनी हँसी रोकती है l

शुभ्रा - ठीक है... फिर...
रुप - फिर क्या...(मासूम शिकायत भरे लहजे में) आंटी जी ने मुझे भी पकड़ लिया...
शुभ्रा - तुम्हें पकड़ लिया... मतलब...
रुप - मैं बहाने से... किचन में आंटी जी के पास गई... आंटी जी ने मुझे उकसाया प्रताप को फोन लगाने के लिए... कहा देखो... तुम्हारे लिए... क्या नाम सेव कर रखा है... और मैंने भी क्यूरोसीटी के चलते प्रताप को फोन लगा दिआ... मैंने प्रताप के मोबाइल में अपना नाम नकचढ़ी देख कर... गुस्से से प्रताप को देखा... तो वह भाग गया... पर तभी आंटी जी ने मेरे हाथ से मोबाइल लेकर... मैंने जो नाम सेव किया था उसे देख लिया...
शुभ्रा - क्या... तुमने... प्रताप के लिए भी कोई नाम सेव किया था क्या....
रुप - (बड़ी मासूमियत के साथ, शर्माते हुए और नजर चुराते हुए) हूँ...
शुभ्रा - (जिज्ञासा के साथ अपनी आँखे बड़ी करते हुए) क्या रखा था उसका नाम...
रुप - (शर्म से गाल लाल हो जाती है) बे..व... (जल्दी से) बेवकूफ...
शुभ्रा - क्या... हा हा हा हा...
रुप - (मुहँ बना कर) हाँ हाँ हँस लो.. आप नहीं जानती... कितना एंबारेंस फिल हुआ मुझे... जितनी देर आंटी जी के यहाँ रही... उनसे नजरें मिलाने से कतरा रही थी...

शुभ्रा और जोर से हँसने लगती है l रुप भी शर्माते शर्माते शुभ्रा के साथ हँसने लगती है l कुछ देर बाद दोनों नॉर्मल होते हैं l

शुभ्रा - हम्म... इसका मतलब यह हुआ कि... आंटी जी को पुरा एहसास था... तुम दोनों में दोस्ती बहुत गहरी है... (रुप शुभ्रा की ओर देखती है) हाँ.. नंदिनी... भले ही छठी गैंग के सभी दोस्त... बहुत अच्छे हैं... तुम्हारे करीब भी हैं... पर तुम मानों या ना मानों... तुम्हारी और प्रताप की दोस्ती बहुत अलग है... गहरी है...
रुप - य... ऐसी कोई बात...(थोड़ा रुक कर) नहीं है...
शुभ्रा - देखा... तुम्हारा जवाब भी... तुम्हारा साथ नहीं दे रहे हैं...

रुप का चेहरा बहुत सीरियस हो जाता है, वह ख़ामोश हो कर अपना नाश्ता खाने लगती है l शुभ्रा भी थोड़ी देर चुप रहती है l फिर खामोशी को तोड़ते हुए

शुभ्रा - क्या... प्रताप... तुम्हारे घर लौटने तक सामने नहीं आया...
रुप - नहीं...
शुभ्रा - तो फिर... तुम्हारे पास तो पुरा मौका था... आंटी जी पुछ सकती थी तुम...
रुप - हाँ... मैं अपने हर सवाल का जवाब... आंटी जी से चाहती थी... पर तभी... पता नहीं कहाँ से (गुस्से में दांत पिसते हुए) दो नमूने टपक पड़े...
शुभ्रा - नमूने... मतलब....

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नाश्ते के खाली प्लेट पर विश्व चम्मच घुमा रहा है l तापस उसे देखता है और फिर अपनी नजरें घुमा कर चुप चाप किचन की ओर देखने लगता है l प्रतिभा किचन से नाश्ता लेकर आती है और पहले विश्व के प्लेट में पोहा डालती है उसके बाद तापस की प्लेट में पोहा डालती है और फिर अपने प्लेट में बाकी पोहा डाल कर बैठ जाती है l विश्व फिर भी पोहा पर चम्मच घुमा रहा है पर खा नहीं रहा है l

प्रतिभा - एक बात जानते हैं सेनापति जी...
तापस - (चौंक कर) कौनसी बात भाग्यवान...
प्रतिभा - आपके लाट साहब की भुख चली गई है...
तापस - अच्छा... (विश्व से) क्या बात है.. लाट साहब... कब्ज है... या बदहजमी..
विश्व - (खीज कर) डैड... आप भी...

प्रतिभा और तापस अपनी हँसी को दबाते हैं l विश्व फिर भी कुछ सोच रहा था और उसी सोच में खोए हुए नाश्ता खा रहा था l

प्रतिभा - (विश्व से) मुझसे नाराज है...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - (चेहरे पर मायूसी लाते हुए) ठीक है... मैं फिर कभी तुझे... नंदिनी की नाम पर नहीं छेड़ुंगी...
विश्व - (बिदक जाता है) माँ... ऐक्टिंग तुमसे नहीं होगा... प्लीज...
प्रतिभा - अरे तो क्या हुआ... ऐक्टिंग की कोशिश कर सकती हूँ...
विश्व - माँ... कल से तुम ऐक्टिंग ही कर रही हो... और तुम अच्छी तरह से जानती हो... मैं उस बात के लिए गुस्सा नहीँ हूँ... (उसके आँखों में खुन उतर आता है, चेहरा तमतमा ने लगता है) वह दो नामुराद... यहाँ तक पहुँच गए... मुझे वह लोग देख ना लें... इसलिए तुम और डैड ने मिलकर... मुझे यहाँ से नंदिनी जी के मैटर में... लपेट कर भगा दिए....

एक पल के लिए विश्व की तमतमाया हुआ चेहरा देख कर सेनापति दंपति शहम गए l

विश्व - (बहुत जल्द खुदको नॉर्मल करते हुए) सॉरी... सॉरी माँ... सॉरी डैड...
प्रतिभा - कभी कभी तु बहुत... ठंडे दिमाग से काम लेता है... और कभी कभी... अपनी भावनाओं को काबु नहीं कर पाता... तो अब बता... तेरे डैड या मैंने कहाँ गलती कर दी...
विश्व - (अपना चेहरा झुका कर) माँ.. मेरी ओर बढ़ रही आग की आँच... आप तक पहुँच गई है...
तापस - कुछ नहीं हुआ है... और तेरे होते हमें कुछ नहीं होगा... (विश्व तापस की ओर देखता है) वह लोग तेरी इंक्वायरी कर रहे हैं... इसका मतलब यह नहीं... कि... कोई जुर्रत करेंगे... तेरी माँ कोई आम औरत नहीं है... इसके माथे पर शिकन भी आ गई... तो स्टेट की सारी औरतें सड़कों पर उतर आयेंगी... और जो दो जन यहाँ आए थे... वह दोनों कोई तीस मार खां नहीं थे... मोहरे थे राजा साहब... उर्फ़ भैरव सिंह के... या यूँ कहूँ... जोकर थे... थे क्या... जोकर हैं दोनों... ऐसों से निपटना... तुम्हारी माँ अच्छी तरह से जानती है... इसलिए अपने मन को साफ करो... और नाश्ता खत्म करो...

विश्व उन दोनों को देखता है l तापस इत्मीनान से पोहा खा रहा है और प्रतिभा मुस्कराते हुए विश्व को देख रही है l

विश्व - माँ... फिरभी... कल क्या हुआ यहाँ... क्या मुझे जानने का... कोई हक़ नहीं है...
प्रतिभा - क्यूँ नहीं... अगर दिमाग और दिल को ठंडा रखेगा.. तो जरूर बताऊँगी...
विश्व - (अपना हाथ बढ़ा कर प्रतिभा के हाथ पर रख देता है) माँ... भले ही मैं गुस्से को काबु नहीं कर पाता... चेहरे पर आ जाती है... पर... फिर भी वादा रहा... मैं खुद को काबु रखूँगा... प्लीज.... बताओना कल क्या हुआ...
प्रतिभा - चल ठीक है... बताती हूँ...

बीते शाम

तापस नुक्कड के मोड़ पर पहुँच कर एक किराने की दुकान पर कुछ चीज़ और पनीर खरीद कर घर की ओर जा रहा था l तो उसे पीछे से "एक्सक्युज मी" आवाज सुनाई देता है l वह पीछे मुड़ कर देखता है स्ट्रीट लाइट की रौशनी में उसे दो शख्स दिखते हैं l वह लोग तापस के पास पहुँचते हैं l उन्हें देखते ही तापस पहचान जाता है और सतर्क हो जाता है l क्यूँकी कुछ दिन पहले खान जब कटक आया था और मोबाइल पर इन दोनों के फोटो दिखाया था और शेयर भी किया था l एक इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा था और दुसरा एडवोकेट बल्लभ प्रधान था l

तापस - यस..
बल्लभ - यह... एडवोकेट प्रतिभा सेनापति जी का घर कहाँ है...
तापस - क्यूँ...
रोणा - क्यूँ मतलब... अरे वह एडवोकेट हैं... हम एक केस के सिलसिले में उनसे मिलना चाहते हैं... (तापस कुछ सोच में पड़ जाता है, उसे सोचता देख कर ) क्या हुआ...
तापस - (सोचते हुए अंदाज में) नहीं मैं यह सोच रहा था... की कोई एडवोकेट सच में इस कॉलोनी में हैं या नहीं...
बल्लभ - अरे यहीँ... इसी कॉलोनी में हैं... नए आए हैं...
तापस - अच्छा... वह जो नए आए हैं...
रोणा - इसका मतलब... तुम जानते हो उन्हें...
तापस - नहीँ...
दोनों - (हैरानी से) नहीं....
तापस - देखिए... यह बक्शी जगबंधु विहार है... कम से कम छह सौ घर हैं... ह्म्म्म्म... क्या डोर नंबर या प्लॉट नंबर है...
रोणा - हाँ है ना... प्लॉट नंबर xxx और डोर नंबर xxx...
तापस - अरे वाह... तो फिर एक काम करो... (उंगली इशारा करते हुए) उस गार्डन के पास जाओ.... वहां पर एक सीमेंट की बोर्ड लगी है... उसमें बक्सी जगबंधु विहार का.. एक बड़ा सा मैप होगा... जाओ उससे पता करो... जाओ...

इतना कह कर तापस वहाँ से निकल जाता है l उनसे थोड़ी दुर जाकर मोबाइल निकालता है और प्रतिभा को मेसेज टाइप करता है l

प्रतिभा छठी गैंग के साथ बातेँ कर रही थी कि उसके फोन पर एक मैसेज चमकती है और साथ साथ सेनापति जी डिस्प्ले होती है l प्रतिभा मैसेज खोल कर देखती है l

"जान, विश्व को ढूंढने और उसके बारे में पता करने राजगड़ से इंस्पेक्टर रोणा और एडवोकेट प्रधान आए हैं l तुम किसी भी तरह प्रताप को घर से बाहर करो, उन लोगोंके जाने के बाद प्रताप को अंदर बुलाएंगे"

प्रतिभा मैसेज पढ़ने के बाद कुछ सोच में पड़ जाती है l फिर अचानक एक चमक के साथ अपनी आँखे खोलती है l वह अपने पास बैठे नंदिनी को इशारे से कान कुछ कहने के लिए बुलाती है l नंदिनी भी जिज्ञासा से अपनी कान प्रतिभा की तरफ करती है l

प्रतिभा - तुमको एक मजेदार बात बतानी है.... मैं किचन में जा रही हूँ... तुम आ जाना...

इतना कह कर प्रतिभा चाय बनाने के बहाने किचन में चली जाती है l और किचन में नंदिनी की इंतजार करने लगती है l उधर नंदिनी ल़डकियों के बीच विश्व को बिठा कर किचन में आती है l

नंदिनी - क्या बात है आंटी... सबके सामने ना बता कर... अकेले में बुलाया...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) एक काम करो... अपनी मोबाइल से... प्रताप की मोबाइल पर फोन लगाओ... और चुपके से... डिस्प्ले में अपनी पहचान देखो...

नंदिनी सस्पेंस और क्युरोसीटी के चलते अपनी मोबाइल से प्रताप को फोन लगाती है और चुपके से जा कर प्रताप के पीछे खड़ी हो जाती है l फोन रिंग होते ही प्रताप फोन, शर्ट की जेब से निकालता है और डिस्प्ले देखता है l "नकचढ़ी" डिस्प्ले हो रहा था l हैरानी के मारे प्रताप की आँखे बड़ी हो जाती है l झट से खड़ा हो जाता है और पीछे मुड़ कर देखता है l तेज तेज सांस लेते हुए नंदिनी उसे कच्चा चबा जाने की अंदाज में देखती है l बिना देरी किए और बिना पीछे मुड़े प्रताप वहाँ से भाग जाता है l नंदिनी उसे भागते हुए देखती रहती है, सभी लड़कियाँ खड़ी हो कर हैरानी से दरवाजे की ओर देखने लगते हैं l तभी प्रतिभा नंदिनी के हाथों से उसकी मोबाइल ले कर डिस्प्ले देखती है जिसमें "बेवक़ूफ़" साफ दिख रहा था l प्रतिभा अपनी भवें उठा कर सवालिया नजर से नंदिनी को देखती है l नंदिनी सकपका जाती है, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो l फिर प्रतिभा जोर जोर से हँसने लगती है l

भाश्वती - क्या बात आंटी... प्रताप भैया के भाग जाने से... आप हँस क्यूँ रहे हैं...
प्रतिभा - कु.. कुछ.. नहीं बेटी... मुझे मालुम ही नहीं था... मेरा प्रताप इतना डरता भी है... हा हा हा हा..
दीप्ति - पर वह किससे डर कर भाग गया...
प्रतिभा - है एक...

कह कर प्रतिभा नंदिनी को देखती है l नंदिनी शर्म के मारे सिर नीचे कर लेती है l इस बीच प्रतिभा तापस को मैसेज 👍 करती है l

उधर विश्व भाग कर बाहर एक जगह पर खड़ा हो जाता है l अपने सिर पर हाथ मारने लगता है कि तभी उसकी फोन बजने लगती है पर विश्व फोन नहीं उठाता l कुछ देर बाद एक मैसेज आता है l विश्व मैसेज देखता है डैड की मैसेज था I वह मैसेज खोल कर देखता है l

"लाट साहब फोन क्यूँ नहीं उठा रहे हैं, मैं इंतजार कर रहा हूँ, मुझसे आ कर xxx चौक पर मिलो"

मैसेज पढ़ते ही विश्व की भवें सिकुड़ जाती हैं l वह कुछ सोचने के बाद भागते हुए xxx चौक पर पहुँचता है l उसे ठीक मोड़ पर तापस दिखाई देता है l

विश्व - (तापस के पास पहुँच कर) क्या हुआ डैड...
तापस - तुम.... (एक दुकान को दिखा कर) इस दुकान में बैठोगे... तब तक... जब तक तुम्हारी माँ तुम्हें फोन कर वापस ना बुलाए...
विश्व - (कान खड़े हो जाते हैं, उसे खतरे का आभास होता है) क्या बात है डैड... कुछ भी छुपाना मत... सच सच बताइये...
तापस - तुझे ढूंढते ढूंढते... राजगड़ के वही दो नमूने आए हैं... तेरी माँ का पता पुछ रहे थे... गनीमत यह रही कि... वह लोग पता मुझसे पुछ रहे थे...
विश्व - (अपनी जबड़े भींच कर) उनकी तो...
तापस - नहीँ... तुझे उनके साथ जो करना है कर... पर कटक या भुवनेश्वर में नहीं... बिल्कुल भी नहीं... और यह मत भुल... कुछ बातेँ राज रहें... तो तेरी माँ के लिए भी अच्छी बात है... वरना भैरव सिंह की नजर में... तेरी माँ आ जाएगी... समझा....

विश्व अपना सिर हिलाता है और दांत पिसते हुए दुकान के अंदर जा कर बैठ जाता है l तापस वहाँ से कुछ पकौड़े, बटाटा बड़ा, समोसे और जलेबी खरीद कर घर की ओर चलता है l

उधर घर में सभी चाय पी रहे हैं कि डोर बेल बजती है l प्रतिभा नंदिनी और उसके दोस्तों के साथ किचन में हँसी मज़ाक कर रही थी कि डोर बेल की आवाज सुनते ही ड्रॉइंग रुम होते हुए प्रतिभा दरवाजा खोलती है l सामने दो अजनबी खड़े थे l

प्रतिभा - आप लोग कौन हैं... और किसे ढूंढ रहे हैं...
एक आदमी - जी... हम एक केस के सिलसिले में... एडवोकेट प्रतिभा जी से मिलने आए हैं...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... ठीक है.... अंदर आइए...(अंदर आती है)

वह दोनों प्रतिभा के पीछे पीछे अंदर आते हैं l वे दोनों देखते हैं ड्रॉइंग रुम और किचन के बीचों-बीच एक हिस्से में छह लड़कियाँ खड़ी हुई हैं और इन दोनों को घूर रही हैं l प्रतिभा उन्हें एक अलग कमरे में जो कि प्रतिभा का अपना ऑफिस था, वहाँ उन्हें बैठने के लिए कहती है l वे दोनों उस कमरे में बैठ जाते हैं l प्रतिभा ड्रॉइंग रुम में आकर

प्रतिभा - बच्चों... एक काम करो... चूंकि तुम सब प्रताप के दोस्त हो... (एक कमरे की ओर इशारा करते हुए) जाओ... उसके कमरे में जाओ और उस कमरे का सत्यानाश करो... दो क्लाइंट आए हुए हैं... सिर्फ पंद्रह मिनट टाइम दो... उसके बाद हम बातेँ करेंगे... और पार्टी भी...
लड़कियाँ - ओके आंटी... इयेए.. इयेए... (चिल्लाते हुए प्रताप के कमरे में चले जाते हैं, पर नंदिनी वहीँ खड़ी रहती है)
प्रतिभा - क्या हुआ नंदिनी... तुम क्यूँ नहीं जा रही... "बेवकूफ" के कमरे में.. (बेवकूफ़ शब्द को जोर देते हुए कहा था)
नंदिनी - (शर्मा जाती है) स.. सॉरी आंटी.. मैं वह...
प्रतिभा - अरे कुछ नहीं... मैंने जरा भी बुरा नहीं माना... बल्कि मुझे खुशी है कि... किसीने तो उसकी बेवकूफ़ी पकड़ी है... हम तो उसे हमेशा से... इंटेलिजेंट समझ रहे थे.... अच्छा अब तुम उस कमरे में जाओ...
नंदिनी - कोई नहीं आंटी... आप मेहमानों का खयाल रखिए... कुछ जरूरत पड़ी तो... मुझे आवाज़ दीजियेगा...

प्रतिभा मुस्कराते हुए नंदिनी के गालों पर हल्का सा चपत लगाती है और अपना सिर हाँ मे हिलाते हुए अपने ऑफिस के कमरे में आती है l

प्रतिभा - (अपनी कुर्सी पर बैठते हुए) हाँ तो... पहले अपना परिचय दीजिए...
एक आदमी - मैडम... मैं एडवोकेट बल्लभ प्रधान... और यह इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा...
रोणा - हैलो मैम...
प्रतिभा - इंट्रेस्टिंग... एक एडवोकेट और एक इंस्पेक्टर... मेरे पास... किसी केस के सिलसिले में... (जवाब में बल्लभ कुछ कहने को होता है कि प्रतिभा उसे रोकते हुए) एक मिनट... एक मिनट... तुम दोनों के नाम... सुना हुआ सा लग रहा है... और शायद हम पहले भी मिले हुए हैं... याद नहीं आ रहा... (कुछ देर सोचते हुए बल्लभ से) क्या हम... पहले भी कभी मिले हैं...
बल्लभ - (पहले रोणा को देखता है और फिर) हाँ.. मैम... कई बार... हमारी मुलाकात सात साल पहले हुई थी... तब आप पीपी हुआ करते थे... और राज्य की सबसे मशहूर करप्शन स्कैंडल... रुप फाउंडेशन और मनरेगा कांड की पैरवी की थी....
प्रतिभा - ओ... हाँ.. हाँ.. हाँ अब याद आया... (रोणा से) तो तुम ही वह इंस्पेक्टर हो... जिसने निजी खुन्नस के चलते एक मासूम... विश्व को टॉर्चर कर... उसके टांग पर गोली मारी थी...
रोणा - वह कहाँ मासूम था... अदालत ने उसे सजा दी थी...
प्रतिभा - हाँ सजा तो दी थी... पर लगता है तुमने कोर्ट ऑर्डर ठीक से पढ़ा नहीं था... उसे सजा इसलिए नहीं मिली थी कि उसने करप्शन किया था या उस करप्शन का हिस्सेदार था... उसे सजा मिली थी... क्यूँ की उसके सरपंच होते हुए भी... वह उस करप्शन में... एक टूल बन गया... वह यूज्ड टू हो गया... यह तुम्हें पता होना चाहिए था रोणा... क्यूंकि तुम खुद भी तो उस केस में सस्पेंड हुए थे...

रोणा की खांसी निकलने लगता है, खांसते खांसते इशारे से पानी मांगने लगता है l प्रतिभा उठने को होती है कि नंदिनी ट्रे में दो ग्लास पानी लाकर रोणा को एक और बल्लभ को एक देती है l रोणा पानी पीते पीते नंदिनी को देखने लगता है l प्रतिभा को रोणा का नंदिनी को ऐसे घूरते हुए देखना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है l वह चुटकी बजाती है l उसकी चुटकी सुन कर रोणा और बल्लभ दोनों प्रतिभा की ओर देखते हैं l

प्रतिभा - अब बताओ... तुम दोनों यहाँ आए किसलिए हो...
बल्लभ - वह एक मिसींग केस है.. तो सोचा शायद आपको कोई आइडिया हो... या आइडिया दे सकें...
प्रतिभा - किस तरह का मिसींग केस... और किस की मिसींग केस.... (रोणा को देख कर, क्यूंकि रोणा तब से नंदिनी को घूर रहा था) नंदिनी... जाओ ड्रॉइंग रुम में जाओ... (नंदिनी वहाँ से निकल कर ड्रॉइंग रुम में चली जाती है)
बल्लभ - वह... एक्चुयली एक इन्शुरन्स है... जिस पर क्लेम दो जन कर रहे हैं... एक को आप जानती हैं... और दुसरा मिसींग है...
प्रतिभा - (रोणा अभी ड्रॉइंग रुम की ओर देखे जा रहा है, उसकी नज़रें नंदिनी को ढूंढ रही थी, उसकी हरकतें देख कर गुस्से से दांत पिसते हुए) किस दुसरे की बात कर रहे हो... और पहला कौन है...
बल्लभ - (थोड़ा अटक कर) वह पहला... नहीं है... पहली है... वैदेही महापात्र...
प्रतिभा - (गुस्से से उठ खड़ी होती है, और चिल्लाते हुए) इनॉफ... प्रधान... तुम अपने इस... बत्तमिज दोस्त को ले कर यहाँ से दफा हो जाओ.... यह वह कुत्ता है... जिसकी थाली में खाता है... उसी थाली में छेद करता है... और उसी हाथ को काटता है... जो इसे खाना देता है...
रोणा - प्रतिभा जी... (जैसे कुछ भी नहीं जानता हो) मैंने क्या किया...
प्रतिभा - (अपनी हाथों को मोड़ कर कोहनीयों से बाँध कर) मेरे ही घर में... मेरे ही बच्चों को गंदी नजर से देख रहे हो... और पुछ रहे हो क्या किया...

इतने में प्रतिभा की ऊंची आवाज सुन कर सारी लड़कियाँ आकर दरवाजे के पास खड़ी हो जाती हैं l नंदिनी सबसे आगे खड़ी थी l

रोणा - सिर्फ देखा ही तो है...(नंदिनी की ओर देखते हुए) अच्छी है... खूब सूरत है... और किसी खूबसूरत चीज़ को देखना... कब से और कहाँ से गुनाह हो गया....
प्रतिभा - नजर नजर में फर्क़ होता है... इंस्पेक्टर रोणा... तेरी नजर जितनी गंदी है... उतनी ही वहशी...
रोणा - अरे... मैम... आप खामखा बात का बतंगड़ बना रही हैं... लड़की सुंदर है... इसलिए देखा... सुंदरता को देखना कहाँ जुर्म हो गया...
प्रतिभा - सुंदरता... देखना.. जानता है... तेरी नजर से क्या छलक रहा है... तु जब पैदा हुआ होगा... तब जीवन अमृत माँ की दूध पीते हुए भी... अपनी नीचे लाने की सोचा होगा...
रोणा - (ताव में आ कर) ऐ बुढ़िया...
प्रतिभा - गेट... आउट...
रोणा - कमीनी... कुछ ज्यादा ही भाव खा रही है...

चट्ट्ट्ट्टाक... एक जोर दार थप्पड़ की आवाज गूंजती है l कमरे में मौजूद सबकी आँखे फटी की फटी रह जाती है l प्रतिभा भी मुहँ फाड़े देखे जा रही थी l क्यूँकी थप्पड़ मारने वाली नंदिनी थी और खाने वाला रोणा I रोणा भी हैरानी से नंदिनी को देखता है

नंदिनी - कुत्ते... सुवर कहीं का... तु जिनसे बात कर रहा है... जानता है वह कौन हैं... क्या रुतबा रखती हैं समाज में... और सबसे अहम बात... वह एक औरत हैं... उनके साथ इस तरह से बात कर रहा है... माफी मांग... माफी मांग उनसे...
रोणा - (अपने गाल सहलाते हुए) तु.... तु जानती नहीं है मुझे लड़की... (गुर्राते हुए) पछतायेगी... बहुत पछतायेगी...
नंदिनी - (और एक थप्पड़ मारती है, उसकी कलर पकड़ लेती है और फिर कड़क आवाज में गुर्रा कर दांत पिसते हुए) आग से हाथ या आँख सेंकने की सोच सकता है... पर छूने की या खेलने की सोचना भी मत... पर यहाँ मैं ज्वालामुखी हूँ... हाथ छोड़... आँख भी सेंकने की सोचा... तो ऐसे जलेगा की तेरे अपनों को... तेरी राख भी नसीब नहीं होगी...
प्रतिभा - (नंदिनी को अपने तरफ खिंचते हुए) सुन बे दो कौड़ी छाप कुत्ते... यह धमकी जो भौंक रहा था... अपने थाने की परिसर के अंदर रख... यहाँ किसीको आँख भी उठा कर देखा... तो अभी के अभी तेरी आँखे नोच लुंगी.... मत भुल... तु मेरे ऑफिस के अंदर है... और पुरा का पुरा कमरा... सर्विलांस में है...
रोणा - (गले से थूक निगलते हुए) स... सॉरी...
प्रतिभा - दफा हो जाओ यहाँ से... (दोनों हारे हुए बंदों की तरह मुड़ कर बाहर की ओर जाने लगते हैं) रोणा... (दोनों रुक पीछे मुड़ कर देखते हैं) तु अगर वैदेही के एफिडेविट के बारे में जानने आया था... तो हाँ... उसकी एफिडेविट कोर्ट में प्रोड्यूस की हुई है... उसकी लॉयर मैं हूँ... तुने यहाँ पर साबित भी कर दिया... उसकी एफिडेविट में कितना दम है...(रोणा अपनी जबड़े भींच कर सिर झुका कर खड़ा होता है) और हाँ... रोणा... तु जिस के दम पर इतना उछल रहा है ना...(रोणा के पास चल कर आती है) एक मुफ्त की सलाह दे रही हूँ... गांठ बांध ले... जब जब सियासत या हुकूमत दांव पर लगती है... तब सबसे पहले हुकुमत प्यादों को कुर्बान कर देती है.... (हाथों से इशारा करते हुए) और तुम दोनों की औकात... प्यादों से ज्यादा नहीं है...(हुकुम देने के अंदाज में) और अभी के अभी... जितनी जल्दी हो सके... तुम दोनों अपने सड़े हुए शक्लें लेकर... (चिल्ला कर) दफा हो जाओ यहाँ से...

दोनों अब घर के बाहर कदम रखे हुए थे कि भाश्वती दो बार ताली बजाती है l दोनों फिर से रुक कर वापस मुड़ कर देखते हैं l

भाश्वती - सुनो बे छछूंदरो... औरत या लड़की को अबला समझने की गलती मत करना... हम अगर अपने में आ गए... बला बनकर तुम पर टुट पड़ेंगे... समझे... गेट आउट...

कह कर दरवाजा बंद कर अपने हाथों को झाड़ते हुए पीछे मुड़ती है l सभी उसे हैरानी से मुहँ फाड़े देखे जा रहे हैं l

बनानी - यह तुने कहा...
दीप्ति - तुने अभी जो कहा... समझी भी.. क्या कहा
भाश्वती - इसमें समझने वाली बात क्या है... जो मुहँ में आया... बोल दिया... आंटी जी और नंदिनी को देख कर मेरा जोश चढ़ गया... इसलिए बहती गंगा में... मुहँ कुल्ला कर दिया...

उसकी बातेँ सुन कर सभी एक दुसरे को पहले देखते हैं फिर सभी मिलकर हँसने लगते हैं l तभी डोर बेल फिर से बजती है l

भाश्वती - आ.. आह्.. लगता है कुछ कमी रह गई... (इतना कह कर दरवाजा खोलती है तो इसबार सामने तापस था और उसके हाथों में कुछ सामान था) (हकलाते हुए) अ.. अ.. अंकल... आइए... अंदर आइए...


अपनी बातों को रोक कर रुप शुभ्रा की ओर देखती है I

शुभ्रा - बस इतना ही...
रुप - हाँ...
शुभ्रा - फिर प्रताप.... वापस नहीं आया क्या...
रुप - नहीं...
शुभ्रा - तो तुम लोग खाना खा कर आ गए...
रुप - नहीं... उस माहौल के बाद... आंटी जी ने कुछ खाना नहीं बनाया.... अंकल बाहर से पकौड़े, बटाटा वड़ा, समोसा और जलेबी लाए थे... तो हम सिर्फ़ वही नास्ता कर... वहाँ से निकल आए...
शुभ्रा - अच्छा... सिर्फ नाश्ता... वह भी बाहर का...
रुप - हूँ...

उधर

विश्व - नंदिनी जी... मेरे बारे में पूछ रही थी क्या...
प्रतिभा - हाँ... सिर्फ नंदिनी ही नहीं... तेरे सारे दोस्त... स्नैक्स लेते समय... तु नहीं था... तो पूछेंगी ही...
विश्व - तो... तुमने क्या कहा...
प्रतिभा - क्या कहती... मैंने बस इतना कहा कि... फ़िलहाल... मेरा बेटा मुझसे नाराज है...

शुभ्रा - ओ... तो तुम्हारे घर से निकलने तक... बेवक़ूफ़ घर नहीं आया...
रुप - (खीज कर) भाभी...
शुभ्रा - हा हा हा हा (हँस देती है) सॉरी... (हँसी को रोकते हुए) तुमने... आंटी जी से... प्रताप के बारे में कुछ पुछा नहीं...
रुप - नहीं... नहीं पुछ पाई... मौका ही नहीं मिला... पर वह भांप गई...

विश्व - क्या... क्या भांप गई...
प्रतिभा - यही की... वह मुझसे कुछ पूछना चाहती थी... जैसे कोई बहुत जरूरी बात... पर वह पुछ नहीं पाई...
विश्व - (सोचते हुए हैरानी भरे लहजे में) नंदिनी जी... कुछ पूछना चाहती थी... पर क्या...
प्रतिभा - यह मैं कैसे कह सकती हूँ... विदा करते वक़्त मैंने उसे रोक कर पुछा भी...

बीते शाम छठी गैंग को विदा करते वक़्त, गाड़ी में बिठाते समय


प्रतिभा - नंदनी... कुछ बात करना चाहती हो मुझसे... है ना...
नंदिनी - (अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
प्रतिभा - उन दो छछूंदरों के बारे में...
नंदिनी - नहीं... उनके बारे में नहीं...
प्रतिभा - फिर...
नंदिनी - (झिझकते हुए) कुछ पर्सनल...
प्रतिभा - ओ...(धीरे से) अकेले में...
नंदिनी - (हल्के से अपना सिर हाँ में हिलाती है)
प्रतिभा - ठीक है... वैसे एक बात पुछुं...
नंदिनी - जी आंटी जी...
प्रतिभा - तुमने उसे थप्पड़ क्यूँ मारा...
नंदिनी - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) वह आपसे जिस बत्तमिजी से बात कर रहा था.... मुझसे रहा ना गया... वैसे भी जब से आया था... उसकी नज़रें मुझे चुभ रही थी... इसलिए...
प्रतिभा - हूँ... ठीक है... अच्छा मेरा नंबर है तुम्हारे पास...
नंदिनी - जी है...
प्रतिभा - है...(हैरानी से) कहाँ से मिला...
नंदिनी - (पहले तो हड़बड़ा जाती है, फिर संभल कर) आप... आप तो एक आइकन हैं... फिर मैं आपकी बहुत बड़ी फैन हूँ... एक्चुयली एक दिन मधु प्रकाशनी के मालकिन से मुलाकात हुई थी... तो उनसे मैंने आपका नंबर हासिल किया था... वैसे भी आपका नंबर ढूंढ निकालना... आपके फैन के लिए... कहाँ मुश्किल है...
प्रतिभा - अरे बाप रे.... कितनी बातेँ कर लेती हो... ठीक है... तो किसी छुट्टी के दिन... मुझे कॉल कर दो... मैं तुम्हारे लिए टाइम निकाल लुंगी... फिर दोनों मिलकर तुम्हारी परेशानी दूर करेंगे ठीक है...
नंदिनी - (हैरान हो कर) दो...नो...
प्रतिभा - मैं और तुम...
नंदिनी - (मुस्करा कर) जी.. जी ठीक है... (कह कर गाड़ी में बैठ जाती है)

शुभ्रा - गाड़ी...? यह गाड़ी कहाँ से आया... तुम लोग तो बस से गए थे ना...
रुप - हाँ... अंकल ने हमारे लिए... दो कार का इंतजाम कर दिया था...

विश्व - वाव डैड... बहुत अच्छे...
तापस - अरे मुझे मालुम था... उनको ड्रॉप करने के लिए गाड़ी चाहिए होगी.. इसलिए मैंने इंतजाम कर दिया था...
प्रतिभा - (विश्व से) अब तेरी नाराजगी दुर हुई या नहीं...
विश्व - बस थोड़ी सी बाकी है...
प्रतिभा - वह किसलिए...
विश्व - आपने मेरी भंडा फोड़ दिया... अब मैं कैसे सामना करूँगा उनका....
प्रतिभा - हा हा हा हा (हँसते हुए) अरे... उसने भी तेरा नाम... बेवकूफ़ के नाम से सेव कर रखा है... और मैंने तुझे बता भी दिया... अब उसको भी तो तेरा सामना करना है...

शुभ्रा - तो... अब क्या फोन पर... उसका नाम बदलेगी...
रुप - क्यूँ.. उसने भी तो मेरा नाम..(मुहँ बनाते हुए) नकचढ़ी रखा है...(अपनी जगह से थाली से उठते हुए) अच्छा... मुझे अब निकलना होगा...

प्रतिभा - निकलना होगा... कहाँ निकलना होगा....
विश्व - अरे माँ.. जो मेरा रेगुलर रुटीन है... उसे तो फॉलो करना पड़ेगा ना...
प्रतिभा - हूँ... ठीक है... पहले बता... नाराजगी दुर हुई या नहीं....
विश्व - (मुस्कराते हुए) माँ... मैं कभी तुमसे... नाराज हो सकता हूँ भला...

विश्व नाश्ता खतम कर हाथ मुहँ साफ कर पहले प्रतिभा के गले लग जाता है और बाहर निकल जाता है, तो उसे बाहर तापस मिलता है l

तापस - चल मैं तुझे... नुक्कड़ के मोड़ तक छोड़ देता हूँ...

विश्व कुछ नहीं कहता, चुप चाप चलने लगता है l तापस भी उसके साथ चलते चलते नुक्कड़ की मोड़ तक पहुँचते हैं l

तापस - (विश्व के कंधे पर हाथ रखकर अपने तरफ मोड़ कर) देख.. मैं जानता हूँ... तु गुस्से में... बदले की आग में जल रहा है... पर कुछ भी हो... तु चाहे उनके साथ कुछ भी कर... पर तुझे.... अभी उनके सामने... अपनी पहचान को रिवील नहीं करना है.... समझा...
विश्व - हूँ...


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दो पहर का वक़्त
होम सेक्रेटरीयट के एक ऑफिस नुमा कमरे के बाहर बल्लभ बैठा हुआ है l दरवाजे पर एएसपी श्रीधर परीड़ा लिखा हुआ है l कुछ देर बाद अंदर से एक पियोन बाहर आता है और बल्लभ को अंदर जाने के लिए कहता है l बल्लभ अपनी जगह से उठ कर अंदर जाता है l अंदर उसे कुर्सी पर परीड़ा बैठा दिखता है l

परीड़ा - क्या बात है... (अपने कुर्सी पर पीठ के बल लेटने के अंदाज में)
प्रधान बाबु आए हमारे चेंबर में...
उनकी कोई जरूरत है...
कभी हम उनको...
कभी उनके कपड़ों को देखते हैं....
खैर... जरूर कोई बड़ी बात है... वरना ऑफिशियल आवर में... तुम... यहाँ...
बल्लभ - हाँ यार... अब मुझे... तुझसे मदत चाहिए...
परीड़ा - वह तो मैं तुमको देख कर ही समझ गया... पिछली बार जितनी भी इंफॉर्मेशन दी थी... वह सब दोस्ती के खातिर... पर... उसकी भी एक लिमिट होती है...
बल्लभ - (कुछ देर चुप हो कर) यह... राजा साहब का काम है..
परीड़ा - ना... (अपना सिर को ना में हिलाता है) यह राजा साहब का काम नहीं है... अगर राजा साहब का होता... तो अब तक सिस्टम के कुछ हिस्से ऐक्टिव हो चुके होते... यह तुम दोनों का काम है...
बल्लभ - यकीन कर यार... राजा साहब ने हम दोनों को काम दिया है... पर... इसे ऑफिशियली करने से मना किया है...
परीड़ा - ह्म्म्म्म... फिर भी... काम हो जाने के बाद... एप्रीसिएशन और इनाम तो... तुम दोनोंको मिलेगा... मेरे हिस्से में क्या आयेगा... घंटा...
बल्लभ - (कुछ देर के लिए चुप हो जाता है, और कुछ सोचने लगता है, फिर) ठीक है... कितना पैसा चाहिए...
परीड़ा - (सीधा हो कर बैठ जाता है) क्या हुआ प्रधान... एक विश्वा से... तुम लोग इतना घबराए हुए हो...
बल्लभ - मत भुल परीड़ा... यह वही विश्वा है... जिसके वजह से राजा साहब पहली बार कोर्ट की सीढ़ियां चढ़े... और कटघरे तक पहुँच गए थे...
परीड़ा - तो.... वह अब... जैल से छुट कर क्या कर लेगा...
बल्लभ - देख... अनिकेत ने एक शक़ जाहिर की... उसकी बातों में... मुझे दम लगा... इसलिए मैंने राजा साहब को कंवींस कर यहाँ आ गया... बीस दिन होने को है... पर अब तक हम खाली हाथ ही हैं...
परीड़ा - ह्म्म्म्म तो तुम्हें... विश्व के रिलेटेड इंफॉर्मेशन चाहिए...
बल्लभ - हाँ.. और साथ साथ अपना कीमत बोल...
परीड़ा - बोल दूँगा... बोल दूँगा... पहले यह बता... तुम यहाँ अकेले अकेले... रोणा किधर है...
बल्लभ - (भन भनाते हुए) मत लो नाम उसका... वह साला... वह साला सटक गया है... पागल हो गया है...
परीड़ा - (हैरान हो कर) ऐसा क्या हो गया...

बल्लभ बीते रात प्रतिभा के घर में जो भी कुछ हुआ बताता है l सब सुनने के बाद

परीड़ा - तो... दो थप्पड़ खा कर लौटा है अपना रोणा...
बल्लभ - हाँ... साला ठरकी... सुबह से ही पगलाया हुआ है..
परीड़ा - मतलब उन दो थप्पड़ों का साइड इफेक्ट...
बल्लभ - हाँ... वही..

फिर सुबह हुई अपने और रोणा के बीच की बात चित ब्योरा देने लगता है

उसी दिन सुबह
xxx होटल के जीम में रोणा खुब पसीना बहा रहा है l बेंच प्रेस करने के बाद लेग प्रेस कर रहा था l उसके कसरत के हर पहलू को जीम इंस्ट्रक्टर देख रहा था l कुछ दुर पर बैठा बल्लभ रोणा को लेग प्रेस करते देख रहा था l जीम वाले कमरे में इन तीन लोगों के अलावा फर्श साफ करने वाला एक आदमी था जो उस वक़्त फर्श साफ कर रहा था l

बल्लभ - इंस्ट्रक्टर बाबु... और कितना देर...
इंस्ट्रक्टर - बस यह आखिरी है... (रोणा से) ओके सर... प्लीज कंटीन्यु... (कह कर वहाँ से चला जाता है)
रोणा - क्या हुआ... काले कोट वाले... कल से गाली देने के लिए मरा जा रहा है...
बल्लभ - (अपनी दांत पिसते हुए) हाँ रे भोषड़ी के... तु वाकई... अब... सबसे बड़ा मादरचोद बन गया है...
रोणा - (मुस्कराते हुए) किसकी माँ चोद दी मैंने...
बल्लभ - चुप बे हराम जादे... हम यहाँ आए किस लिए थे... और हम कर क्या रहे हैं...
रोणा - (लेग प्रेस रोक कर बल्लभ के सामने बैठते हुए) देख... मेरे को जो पता करना है... वह मैं एक दो दिन में पता कर ही लूँगा...
बल्लभ - किससे... वह तेरा गुर्गा... क्या नाम बोला था तुने.. आँ... टोनी...
रोणा - हाँ...
बल्लभ - तो फिर हम कल... एडवोकेट प्रतिभा के पास गए ही क्यूँ...
रोणा - इसलिए... के तु चाहता था... उस वैदेही की मासी से मिल कर... पता करने के लिए...
बल्लभ - पर फटी तो तेरी थी ना... उस मासी से...
रोणा - हाँ... पर जब परीड़ा ने कहा कि... ज्यादातर काम काजी औरतें... उसे मासी कहते हैं... तब मेरा इंट्रेस्ट उस बुढ़िया पर खतम हो गया...
बल्लभ - (गुस्सा हो कर) तो भोषड़ी के... तो कल तेरे साथ मेरी बेइज्जती कराने गया था क्या...
रोणा - गया तो था.. तेरा साथ देने... पर...
बल्लभ - पर... पर साले ठरकी... लड़की देख कर फ़िसल गया...
रोणा - (टावल से पसीना पोछते हुए) हाँ... साली क्या चीज़ थी..
बल्लभ - (दांत पिसते हुए) इसीलिए तो तुझे मादरचोद कहा... जुम्मा जुम्मा दो ही दिन हुए हैं... साले हॉस्पिटल की बेड से उठे... फिर से किसी नर्स की पिछवाड़ा देखने की खुजली हो रही है क्या बे तुझे...
रोणा - क्यूँ इतना पका रहा है बे.. कल उस एडवोकेट के घर में छह छह लड़कियाँ थीं... किसी एक से नैन लड़ा ले...
बल्लभ - बे... दिमाग सटक गया है बे क्या तेरा... तुने कहा... इसलिए मैंने मैटर को सीरियसली लिया था... इसी मैटर के चलते.. दस दिन हस्पताल में सड़ता रहा... फिर भी तेरी अक्ल घास चर रही है...

रोणा का चेहरा धीरे धीरे सख्त हो जाता है, जबड़े भींच जाता है, उसकी आँखे लाल होने लगते हैं l उसका अचानक यह परिवर्तन देख कर एक पल के लिए बल्लभ सकपका जाता है l

रोणा - (अपने गाल को सहलाते हुए)गलती कर दी उसने.... कमीनी मिर्ची लग रही थी... इसलिए आँख सेंक रहा था... मेरी गाल बजा कर बता गई... कितनी तीखी है...
बल्लभ - ऐ... ऐइ.. रोणा... यह... अचानक तुझे क्या हो गया.. वह... एक बच्ची है... कॉलेज में शायद पढ़ रही होगी... उसकी उम्र ही क्या होगी...
रोणा - मुझे उसकी उमर से नहीं... उसकी कमर से मतलब है...
बल्लभ - (चिढ़ कर खड़ा हो जाता है) तु हमारा मिशन भूल रहा है... बीस दिन होने को आए.. वहीँ के वहीँ रह गए हैं... एक कदम भी आगे नहीं बढ़े हैं... और तु अपना मिशन और टार्गेट चेंज कर रहा है... (हांफने लगता है) पता नहीं वह लड़कियाँ वहाँ पर क्या कर रहीं थी... तु अब उन सबके पीछे पड़ेगा...
रोणा - उन सबके नहीं... सिर्फ उस लाल मिर्ची के पीछे... कसम से... उसे अपने नीचे लाउंगा जरूर...
बल्लभ - (चिढ़ कर) छी... पागल हो गया है तु... हम कुछ जानते भी नहीं है उसके बारे में... अबे कटक या भुवनेश्वर में क्यूँ बखेड़ा खड़ा कर रहा है... अगले हफ्ते राजा साहब आ रहे हैं... पता नहीं वह कौनसा मनहूस घड़ी था... जब तु राजा साहब के आगे विश्व के बारे में हांक रहा था... मैंने भी तेरी तरफदारी की थी...
रोणा - तो मरा क्यूँ जा रहा है...
बल्लभ - अबे... (चिल्लाते हुए) पहले अपने दिमाग में घुसा... विश्व जैल से छूट गया है... राजगड़ नहीं गया है... गायब है... अगर वह कुछ कर रहा है... तो क्या कर रहा है... कैसे कर रहा है... रुप फाउंडेशन की गड़े मुर्दे उखाड़ने के लिए... उसकी खबर राजा साहब को देना है... भूल गया क्या बे... (हांफने लगता है)
रोणा - चिल्ला क्यूँ रहा है... मैं जानता हूँ... मेरे इन्फॉर्मर को आने दे... विश्व के बारे में वह जितना बतायेगा... मैं राजा साहब को उतना ही बता दूँगा...
बल्लभ - वाह.. खाल बचाने के लिए बहाना अच्छा है... साले... अगर वह सचमुच ज्वालामुखी निकली तो...
रोणा - वह मिर्ची है... लाल मिर्च... बहुत तीखी है... इतनी की.. आँख लगाओ तो आँख जले.. मुहँ लगाओ तो मुँह जले... दिल लगाओ तो दिल जले... अरे जो जलाने की चीज़ हो... वह तो जलायेगी ही... मेरा तो उसे देखने के बाद... तन बदन में आग लगी हुई है... बुझाना तो पड़ेगा ही... (चिढ़ कर पैर पटक कर बल्लभ वहाँ से जाने लगता है) अरे ओ काले कोट वाले... कहाँ जा रहा है...
बल्लभ - तुझसे तो उम्मीद करना बेकार है... इसलिए मैं जा रहा हूँ... अपने तरीके से पता करने...

बल्लभ अपनी सुबह की कहानी खतम करता है l परीड़ा अपनी आँखे मूँद कर सुन रहा था l बल्लभ के रुकने के बाद आँखे खोलता है और बल्लभ को कुछ कहने के लिए मुहँ खोलने को होता है कि तभी बल्लभ का फोन बजने लगता है l बल्लभ देखता है नंबर तो स्क्रीन पर दिख रहा है पर कोई नाम डिस्प्ले नहीं हो रहा था l बल्लभ फोन उठाता है I परीड़ा उसे स्पीकर पर डालने को कहता है l

बल्लभ - हैलो....
:- सर मैं होटल xxx की रिसेप्शन से बात कर रही हूँ...
बल्लभ - (हैरान हो कर) xxx की रिसेप्शन... क्यूँ... क्या हुआ...
रिसेप्शनीस्ट - सर... यहाँ आपके रुम पार्टनर के साथ... एक... एक्सीडेंट हो गया है...
बल्लभ - (अपनी कुर्सी से उछल कर खड़ा होता है) व्हाट...
Bahut hi khubsurat nok jhok ka varnan kiya bhai. Vishva aur rup k dwara ek dusre k naam badal kar save karna, pratibha ka rona aur vakil ko tarka k nikalna, nandani ka rona ko dhona, shubhra ka nandani se chedchhad karna, vallabh ka parida se batchit karna sabhi umda aur behtareen tha. Rona ka accident to pratap k dwara hi hua hoga yah shyor he. Uska nandai ko kharab nazar se dekhna aur pratibha ji se badtamiji karna usko bhari pad gaya. Ab vallabh pradhan aur rona yaha jyada tik nahi payenge. Ab bhai jaldi se sukumar uncle ki problem solve karwao taki rupnandani ko anam ka pata chale. Ham bade besabri se is ghatna ko varnit hote hue dekhna chah rahe he. Veer ko bhi vapas bulao taki anu ko wah prapose kar sake.
 

Jaguaar

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रुप कॉलेज के लिए तैयार हो कर नीचे उतरती है l डायनिंग टेबल पर शुभ्रा को अकेले देख कर उसे हैरानी होती है l रुप के कुर्सी पर बैठने के बाद नौकर ट्रॉली में नाश्ते की बाउल लाकर टेबल पर रख देते हैं l

शुभ्रा - (नौकरों से) अब तुम लोग जाओ... जरूरत पड़ी तो हम बेल बजाएंगे... (नौकर अपना सिर झुका कर वहाँ से चले जाते हैं)
रुप - (नौकरों के वहाँ से जाने के बाद, थोड़ी हैरानी के साथ) भाभी... आज आप अकेली...
शुभ्रा - हूँ...(एक साधारण सी भाव के साथ)
रुप - (थोड़ी गम्भीर आवाज में) क्यूँ... आज भैया को क्या हुआ...
शुभ्रा - कुछ नहीं हुआ है... वह सुबह सुबह... महांती का फोन आया था... किसी खास काम के लिए... पार्टी ऑफिस से हो कर ESS ऑफिस जाएंगे...
रुप - ओ... ऐसा कौनसा जरूरी काम... जो सुबह का नाश्ता किए बिना चले गए...
शुभ्रा - क्या करें... पार्टी के ही लॉ मिनिस्टर की बेटी की शादी है... और तुम्हारे भैया... पार्टी के युवा मंच के लीडर हैं...
रुप - भाभी... इतना तो मैं पक्का जानती हूँ... पार्टी में किसीकी हिम्मत ना होती होगी... भैया से कुछ काम करवाने की...
शुभ्रा - तो क्या हुआ... विक्की इतने रुड तो हैं नहीं... और चूंकि महांती का फोन आया था... तो कुछ ना कुछ जरूरी काम होगा जरूर...
रुप - (छेड़ते हुए) आँ... हाँ... आज कल बड़ी खबर रखी जा रही है... लगता है बाहर सरकार बनाने से पहले... अपनी होम मिनिस्टर को रिपोर्ट दे कर गए हैं...
शुभ्रा - (शर्म और खुशी की मिली जुली भाव को अपने चेहरे पर ना लाने की बहुत कोशिश करती है)
रुप - ना... कोई फायदा नहीं भाभी... हाय... यह शर्म... यह हया और... छुपाये ना छुपती यह खुशी... ना ना... छुपा ना पाओगी...
शुभ्रा - (शर्म से आँखे दिखाते हुए) शट-अप नंदिनी...
रुप - जरुर भाभी जी... आप हुकुम करें और हम शट-अप ना हों ऐसा तो हो ही नहीं सकता...
शुभ्रा - अच्छा अच्छा... बहुत हो गया... अब यह बताओ... कल की शाम कैसे बीती... तुम देर रात दस बजे आई... और आते ही सीधे अपने कमरे में घुस गई....
भाभी - उसके लिए तो आप मुझे थैंक्स कह सकती हैं... आई मिन कहना चाहिए...
शुभ्रा - थैंक्स... तुमसे... वह क्यूँ...
रुप - अरे... पिछले दो दिन से... शाम को... आप और भैया... कैंडल लाइट डिनर तो करते ही होंगे ना...
शुभ्रा - अच्छा... तो तुम्हारे कहने का मतलब है... की यह सब... तुम्हारा किया धरा है...
रुप - (खिलखिला कर हँस देती है)
शुभ्रा - (मुस्कराते हुए) अपनी बातेँ टालना कोई तुमसे सीखे... (रुप की हँसी रुक जाती है, वह सवालिया नजर से शुभ्रा को देखती है) (शुभ्रा अपनी भवें तन कर रुप से) कल तुम्हारे महबूब की कोई खबर मिली... या..
रुप - (अपनी प्लेट की ओर चेहरा झुका लेती है, थोड़ी मायूस हो कर ) कहाँ भाभी... कल सिचुएशन ही ऐसी बनी की... (चुप हो जाती है)
शुभ्रा - कैसी बनी...

रुप बताती है प्रताप के घर पहुँचने से लेकर प्रताप के भाग जाने तक l यह सुन कर शुभ्रा हँसने लगती है l

शुभ्रा - हा हा हा... (हँसते हुए) ओह माय गॉड... प्रताप ने तुम्हारा नाम... नकचढ़ी रखा है... हा हा हा हा... और आंटी जी ने तुम्हें ना बताया होता तो... तो तुम्हें मालुम ही नहीं पड़ता... हा हा हा हा...

रुप अपनी जबड़े भींच कर शुभ्रा को घूरने लगती है l शुभ्रा मुश्किल से अपनी हँसी रोकती है l

शुभ्रा - ठीक है... फिर...
रुप - फिर क्या...(मासूम शिकायत भरे लहजे में) आंटी जी ने मुझे भी पकड़ लिया...
शुभ्रा - तुम्हें पकड़ लिया... मतलब...
रुप - मैं बहाने से... किचन में आंटी जी के पास गई... आंटी जी ने मुझे उकसाया प्रताप को फोन लगाने के लिए... कहा देखो... तुम्हारे लिए... क्या नाम सेव कर रखा है... और मैंने भी क्यूरोसीटी के चलते प्रताप को फोन लगा दिआ... मैंने प्रताप के मोबाइल में अपना नाम नकचढ़ी देख कर... गुस्से से प्रताप को देखा... तो वह भाग गया... पर तभी आंटी जी ने मेरे हाथ से मोबाइल लेकर... मैंने जो नाम सेव किया था उसे देख लिया...
शुभ्रा - क्या... तुमने... प्रताप के लिए भी कोई नाम सेव किया था क्या....
रुप - (बड़ी मासूमियत के साथ, शर्माते हुए और नजर चुराते हुए) हूँ...
शुभ्रा - (जिज्ञासा के साथ अपनी आँखे बड़ी करते हुए) क्या रखा था उसका नाम...
रुप - (शर्म से गाल लाल हो जाती है) बे..व... (जल्दी से) बेवकूफ...
शुभ्रा - क्या... हा हा हा हा...
रुप - (मुहँ बना कर) हाँ हाँ हँस लो.. आप नहीं जानती... कितना एंबारेंस फिल हुआ मुझे... जितनी देर आंटी जी के यहाँ रही... उनसे नजरें मिलाने से कतरा रही थी...

शुभ्रा और जोर से हँसने लगती है l रुप भी शर्माते शर्माते शुभ्रा के साथ हँसने लगती है l कुछ देर बाद दोनों नॉर्मल होते हैं l

शुभ्रा - हम्म... इसका मतलब यह हुआ कि... आंटी जी को पुरा एहसास था... तुम दोनों में दोस्ती बहुत गहरी है... (रुप शुभ्रा की ओर देखती है) हाँ.. नंदिनी... भले ही छठी गैंग के सभी दोस्त... बहुत अच्छे हैं... तुम्हारे करीब भी हैं... पर तुम मानों या ना मानों... तुम्हारी और प्रताप की दोस्ती बहुत अलग है... गहरी है...
रुप - य... ऐसी कोई बात...(थोड़ा रुक कर) नहीं है...
शुभ्रा - देखा... तुम्हारा जवाब भी... तुम्हारा साथ नहीं दे रहे हैं...

रुप का चेहरा बहुत सीरियस हो जाता है, वह ख़ामोश हो कर अपना नाश्ता खाने लगती है l शुभ्रा भी थोड़ी देर चुप रहती है l फिर खामोशी को तोड़ते हुए

शुभ्रा - क्या... प्रताप... तुम्हारे घर लौटने तक सामने नहीं आया...
रुप - नहीं...
शुभ्रा - तो फिर... तुम्हारे पास तो पुरा मौका था... आंटी जी पुछ सकती थी तुम...
रुप - हाँ... मैं अपने हर सवाल का जवाब... आंटी जी से चाहती थी... पर तभी... पता नहीं कहाँ से (गुस्से में दांत पिसते हुए) दो नमूने टपक पड़े...
शुभ्रा - नमूने... मतलब....

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नाश्ते के खाली प्लेट पर विश्व चम्मच घुमा रहा है l तापस उसे देखता है और फिर अपनी नजरें घुमा कर चुप चाप किचन की ओर देखने लगता है l प्रतिभा किचन से नाश्ता लेकर आती है और पहले विश्व के प्लेट में पोहा डालती है उसके बाद तापस की प्लेट में पोहा डालती है और फिर अपने प्लेट में बाकी पोहा डाल कर बैठ जाती है l विश्व फिर भी पोहा पर चम्मच घुमा रहा है पर खा नहीं रहा है l

प्रतिभा - एक बात जानते हैं सेनापति जी...
तापस - (चौंक कर) कौनसी बात भाग्यवान...
प्रतिभा - आपके लाट साहब की भुख चली गई है...
तापस - अच्छा... (विश्व से) क्या बात है.. लाट साहब... कब्ज है... या बदहजमी..
विश्व - (खीज कर) डैड... आप भी...

प्रतिभा और तापस अपनी हँसी को दबाते हैं l विश्व फिर भी कुछ सोच रहा था और उसी सोच में खोए हुए नाश्ता खा रहा था l

प्रतिभा - (विश्व से) मुझसे नाराज है...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - (चेहरे पर मायूसी लाते हुए) ठीक है... मैं फिर कभी तुझे... नंदिनी की नाम पर नहीं छेड़ुंगी...
विश्व - (बिदक जाता है) माँ... ऐक्टिंग तुमसे नहीं होगा... प्लीज...
प्रतिभा - अरे तो क्या हुआ... ऐक्टिंग की कोशिश कर सकती हूँ...
विश्व - माँ... कल से तुम ऐक्टिंग ही कर रही हो... और तुम अच्छी तरह से जानती हो... मैं उस बात के लिए गुस्सा नहीँ हूँ... (उसके आँखों में खुन उतर आता है, चेहरा तमतमा ने लगता है) वह दो नामुराद... यहाँ तक पहुँच गए... मुझे वह लोग देख ना लें... इसलिए तुम और डैड ने मिलकर... मुझे यहाँ से नंदिनी जी के मैटर में... लपेट कर भगा दिए....

एक पल के लिए विश्व की तमतमाया हुआ चेहरा देख कर सेनापति दंपति शहम गए l

विश्व - (बहुत जल्द खुदको नॉर्मल करते हुए) सॉरी... सॉरी माँ... सॉरी डैड...
प्रतिभा - कभी कभी तु बहुत... ठंडे दिमाग से काम लेता है... और कभी कभी... अपनी भावनाओं को काबु नहीं कर पाता... तो अब बता... तेरे डैड या मैंने कहाँ गलती कर दी...
विश्व - (अपना चेहरा झुका कर) माँ.. मेरी ओर बढ़ रही आग की आँच... आप तक पहुँच गई है...
तापस - कुछ नहीं हुआ है... और तेरे होते हमें कुछ नहीं होगा... (विश्व तापस की ओर देखता है) वह लोग तेरी इंक्वायरी कर रहे हैं... इसका मतलब यह नहीं... कि... कोई जुर्रत करेंगे... तेरी माँ कोई आम औरत नहीं है... इसके माथे पर शिकन भी आ गई... तो स्टेट की सारी औरतें सड़कों पर उतर आयेंगी... और जो दो जन यहाँ आए थे... वह दोनों कोई तीस मार खां नहीं थे... मोहरे थे राजा साहब... उर्फ़ भैरव सिंह के... या यूँ कहूँ... जोकर थे... थे क्या... जोकर हैं दोनों... ऐसों से निपटना... तुम्हारी माँ अच्छी तरह से जानती है... इसलिए अपने मन को साफ करो... और नाश्ता खत्म करो...

विश्व उन दोनों को देखता है l तापस इत्मीनान से पोहा खा रहा है और प्रतिभा मुस्कराते हुए विश्व को देख रही है l

विश्व - माँ... फिरभी... कल क्या हुआ यहाँ... क्या मुझे जानने का... कोई हक़ नहीं है...
प्रतिभा - क्यूँ नहीं... अगर दिमाग और दिल को ठंडा रखेगा.. तो जरूर बताऊँगी...
विश्व - (अपना हाथ बढ़ा कर प्रतिभा के हाथ पर रख देता है) माँ... भले ही मैं गुस्से को काबु नहीं कर पाता... चेहरे पर आ जाती है... पर... फिर भी वादा रहा... मैं खुद को काबु रखूँगा... प्लीज.... बताओना कल क्या हुआ...
प्रतिभा - चल ठीक है... बताती हूँ...

बीते शाम

तापस नुक्कड के मोड़ पर पहुँच कर एक किराने की दुकान पर कुछ चीज़ और पनीर खरीद कर घर की ओर जा रहा था l तो उसे पीछे से "एक्सक्युज मी" आवाज सुनाई देता है l वह पीछे मुड़ कर देखता है स्ट्रीट लाइट की रौशनी में उसे दो शख्स दिखते हैं l वह लोग तापस के पास पहुँचते हैं l उन्हें देखते ही तापस पहचान जाता है और सतर्क हो जाता है l क्यूँकी कुछ दिन पहले खान जब कटक आया था और मोबाइल पर इन दोनों के फोटो दिखाया था और शेयर भी किया था l एक इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा था और दुसरा एडवोकेट बल्लभ प्रधान था l

तापस - यस..
बल्लभ - यह... एडवोकेट प्रतिभा सेनापति जी का घर कहाँ है...
तापस - क्यूँ...
रोणा - क्यूँ मतलब... अरे वह एडवोकेट हैं... हम एक केस के सिलसिले में उनसे मिलना चाहते हैं... (तापस कुछ सोच में पड़ जाता है, उसे सोचता देख कर ) क्या हुआ...
तापस - (सोचते हुए अंदाज में) नहीं मैं यह सोच रहा था... की कोई एडवोकेट सच में इस कॉलोनी में हैं या नहीं...
बल्लभ - अरे यहीँ... इसी कॉलोनी में हैं... नए आए हैं...
तापस - अच्छा... वह जो नए आए हैं...
रोणा - इसका मतलब... तुम जानते हो उन्हें...
तापस - नहीँ...
दोनों - (हैरानी से) नहीं....
तापस - देखिए... यह बक्शी जगबंधु विहार है... कम से कम छह सौ घर हैं... ह्म्म्म्म... क्या डोर नंबर या प्लॉट नंबर है...
रोणा - हाँ है ना... प्लॉट नंबर xxx और डोर नंबर xxx...
तापस - अरे वाह... तो फिर एक काम करो... (उंगली इशारा करते हुए) उस गार्डन के पास जाओ.... वहां पर एक सीमेंट की बोर्ड लगी है... उसमें बक्सी जगबंधु विहार का.. एक बड़ा सा मैप होगा... जाओ उससे पता करो... जाओ...

इतना कह कर तापस वहाँ से निकल जाता है l उनसे थोड़ी दुर जाकर मोबाइल निकालता है और प्रतिभा को मेसेज टाइप करता है l

प्रतिभा छठी गैंग के साथ बातेँ कर रही थी कि उसके फोन पर एक मैसेज चमकती है और साथ साथ सेनापति जी डिस्प्ले होती है l प्रतिभा मैसेज खोल कर देखती है l

"जान, विश्व को ढूंढने और उसके बारे में पता करने राजगड़ से इंस्पेक्टर रोणा और एडवोकेट प्रधान आए हैं l तुम किसी भी तरह प्रताप को घर से बाहर करो, उन लोगोंके जाने के बाद प्रताप को अंदर बुलाएंगे"

प्रतिभा मैसेज पढ़ने के बाद कुछ सोच में पड़ जाती है l फिर अचानक एक चमक के साथ अपनी आँखे खोलती है l वह अपने पास बैठे नंदिनी को इशारे से कान कुछ कहने के लिए बुलाती है l नंदिनी भी जिज्ञासा से अपनी कान प्रतिभा की तरफ करती है l

प्रतिभा - तुमको एक मजेदार बात बतानी है.... मैं किचन में जा रही हूँ... तुम आ जाना...

इतना कह कर प्रतिभा चाय बनाने के बहाने किचन में चली जाती है l और किचन में नंदिनी की इंतजार करने लगती है l उधर नंदिनी ल़डकियों के बीच विश्व को बिठा कर किचन में आती है l

नंदिनी - क्या बात है आंटी... सबके सामने ना बता कर... अकेले में बुलाया...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) एक काम करो... अपनी मोबाइल से... प्रताप की मोबाइल पर फोन लगाओ... और चुपके से... डिस्प्ले में अपनी पहचान देखो...

नंदिनी सस्पेंस और क्युरोसीटी के चलते अपनी मोबाइल से प्रताप को फोन लगाती है और चुपके से जा कर प्रताप के पीछे खड़ी हो जाती है l फोन रिंग होते ही प्रताप फोन, शर्ट की जेब से निकालता है और डिस्प्ले देखता है l "नकचढ़ी" डिस्प्ले हो रहा था l हैरानी के मारे प्रताप की आँखे बड़ी हो जाती है l झट से खड़ा हो जाता है और पीछे मुड़ कर देखता है l तेज तेज सांस लेते हुए नंदिनी उसे कच्चा चबा जाने की अंदाज में देखती है l बिना देरी किए और बिना पीछे मुड़े प्रताप वहाँ से भाग जाता है l नंदिनी उसे भागते हुए देखती रहती है, सभी लड़कियाँ खड़ी हो कर हैरानी से दरवाजे की ओर देखने लगते हैं l तभी प्रतिभा नंदिनी के हाथों से उसकी मोबाइल ले कर डिस्प्ले देखती है जिसमें "बेवक़ूफ़" साफ दिख रहा था l प्रतिभा अपनी भवें उठा कर सवालिया नजर से नंदिनी को देखती है l नंदिनी सकपका जाती है, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो l फिर प्रतिभा जोर जोर से हँसने लगती है l

भाश्वती - क्या बात आंटी... प्रताप भैया के भाग जाने से... आप हँस क्यूँ रहे हैं...
प्रतिभा - कु.. कुछ.. नहीं बेटी... मुझे मालुम ही नहीं था... मेरा प्रताप इतना डरता भी है... हा हा हा हा..
दीप्ति - पर वह किससे डर कर भाग गया...
प्रतिभा - है एक...

कह कर प्रतिभा नंदिनी को देखती है l नंदिनी शर्म के मारे सिर नीचे कर लेती है l इस बीच प्रतिभा तापस को मैसेज 👍 करती है l

उधर विश्व भाग कर बाहर एक जगह पर खड़ा हो जाता है l अपने सिर पर हाथ मारने लगता है कि तभी उसकी फोन बजने लगती है पर विश्व फोन नहीं उठाता l कुछ देर बाद एक मैसेज आता है l विश्व मैसेज देखता है डैड की मैसेज था I वह मैसेज खोल कर देखता है l

"लाट साहब फोन क्यूँ नहीं उठा रहे हैं, मैं इंतजार कर रहा हूँ, मुझसे आ कर xxx चौक पर मिलो"

मैसेज पढ़ते ही विश्व की भवें सिकुड़ जाती हैं l वह कुछ सोचने के बाद भागते हुए xxx चौक पर पहुँचता है l उसे ठीक मोड़ पर तापस दिखाई देता है l

विश्व - (तापस के पास पहुँच कर) क्या हुआ डैड...
तापस - तुम.... (एक दुकान को दिखा कर) इस दुकान में बैठोगे... तब तक... जब तक तुम्हारी माँ तुम्हें फोन कर वापस ना बुलाए...
विश्व - (कान खड़े हो जाते हैं, उसे खतरे का आभास होता है) क्या बात है डैड... कुछ भी छुपाना मत... सच सच बताइये...
तापस - तुझे ढूंढते ढूंढते... राजगड़ के वही दो नमूने आए हैं... तेरी माँ का पता पुछ रहे थे... गनीमत यह रही कि... वह लोग पता मुझसे पुछ रहे थे...
विश्व - (अपनी जबड़े भींच कर) उनकी तो...
तापस - नहीँ... तुझे उनके साथ जो करना है कर... पर कटक या भुवनेश्वर में नहीं... बिल्कुल भी नहीं... और यह मत भुल... कुछ बातेँ राज रहें... तो तेरी माँ के लिए भी अच्छी बात है... वरना भैरव सिंह की नजर में... तेरी माँ आ जाएगी... समझा....

विश्व अपना सिर हिलाता है और दांत पिसते हुए दुकान के अंदर जा कर बैठ जाता है l तापस वहाँ से कुछ पकौड़े, बटाटा बड़ा, समोसे और जलेबी खरीद कर घर की ओर चलता है l

उधर घर में सभी चाय पी रहे हैं कि डोर बेल बजती है l प्रतिभा नंदिनी और उसके दोस्तों के साथ किचन में हँसी मज़ाक कर रही थी कि डोर बेल की आवाज सुनते ही ड्रॉइंग रुम होते हुए प्रतिभा दरवाजा खोलती है l सामने दो अजनबी खड़े थे l

प्रतिभा - आप लोग कौन हैं... और किसे ढूंढ रहे हैं...
एक आदमी - जी... हम एक केस के सिलसिले में... एडवोकेट प्रतिभा जी से मिलने आए हैं...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... ठीक है.... अंदर आइए...(अंदर आती है)

वह दोनों प्रतिभा के पीछे पीछे अंदर आते हैं l वे दोनों देखते हैं ड्रॉइंग रुम और किचन के बीचों-बीच एक हिस्से में छह लड़कियाँ खड़ी हुई हैं और इन दोनों को घूर रही हैं l प्रतिभा उन्हें एक अलग कमरे में जो कि प्रतिभा का अपना ऑफिस था, वहाँ उन्हें बैठने के लिए कहती है l वे दोनों उस कमरे में बैठ जाते हैं l प्रतिभा ड्रॉइंग रुम में आकर

प्रतिभा - बच्चों... एक काम करो... चूंकि तुम सब प्रताप के दोस्त हो... (एक कमरे की ओर इशारा करते हुए) जाओ... उसके कमरे में जाओ और उस कमरे का सत्यानाश करो... दो क्लाइंट आए हुए हैं... सिर्फ पंद्रह मिनट टाइम दो... उसके बाद हम बातेँ करेंगे... और पार्टी भी...
लड़कियाँ - ओके आंटी... इयेए.. इयेए... (चिल्लाते हुए प्रताप के कमरे में चले जाते हैं, पर नंदिनी वहीँ खड़ी रहती है)
प्रतिभा - क्या हुआ नंदिनी... तुम क्यूँ नहीं जा रही... "बेवकूफ" के कमरे में.. (बेवकूफ़ शब्द को जोर देते हुए कहा था)
नंदिनी - (शर्मा जाती है) स.. सॉरी आंटी.. मैं वह...
प्रतिभा - अरे कुछ नहीं... मैंने जरा भी बुरा नहीं माना... बल्कि मुझे खुशी है कि... किसीने तो उसकी बेवकूफ़ी पकड़ी है... हम तो उसे हमेशा से... इंटेलिजेंट समझ रहे थे.... अच्छा अब तुम उस कमरे में जाओ...
नंदिनी - कोई नहीं आंटी... आप मेहमानों का खयाल रखिए... कुछ जरूरत पड़ी तो... मुझे आवाज़ दीजियेगा...

प्रतिभा मुस्कराते हुए नंदिनी के गालों पर हल्का सा चपत लगाती है और अपना सिर हाँ मे हिलाते हुए अपने ऑफिस के कमरे में आती है l

प्रतिभा - (अपनी कुर्सी पर बैठते हुए) हाँ तो... पहले अपना परिचय दीजिए...
एक आदमी - मैडम... मैं एडवोकेट बल्लभ प्रधान... और यह इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा...
रोणा - हैलो मैम...
प्रतिभा - इंट्रेस्टिंग... एक एडवोकेट और एक इंस्पेक्टर... मेरे पास... किसी केस के सिलसिले में... (जवाब में बल्लभ कुछ कहने को होता है कि प्रतिभा उसे रोकते हुए) एक मिनट... एक मिनट... तुम दोनों के नाम... सुना हुआ सा लग रहा है... और शायद हम पहले भी मिले हुए हैं... याद नहीं आ रहा... (कुछ देर सोचते हुए बल्लभ से) क्या हम... पहले भी कभी मिले हैं...
बल्लभ - (पहले रोणा को देखता है और फिर) हाँ.. मैम... कई बार... हमारी मुलाकात सात साल पहले हुई थी... तब आप पीपी हुआ करते थे... और राज्य की सबसे मशहूर करप्शन स्कैंडल... रुप फाउंडेशन और मनरेगा कांड की पैरवी की थी....
प्रतिभा - ओ... हाँ.. हाँ.. हाँ अब याद आया... (रोणा से) तो तुम ही वह इंस्पेक्टर हो... जिसने निजी खुन्नस के चलते एक मासूम... विश्व को टॉर्चर कर... उसके टांग पर गोली मारी थी...
रोणा - वह कहाँ मासूम था... अदालत ने उसे सजा दी थी...
प्रतिभा - हाँ सजा तो दी थी... पर लगता है तुमने कोर्ट ऑर्डर ठीक से पढ़ा नहीं था... उसे सजा इसलिए नहीं मिली थी कि उसने करप्शन किया था या उस करप्शन का हिस्सेदार था... उसे सजा मिली थी... क्यूँ की उसके सरपंच होते हुए भी... वह उस करप्शन में... एक टूल बन गया... वह यूज्ड टू हो गया... यह तुम्हें पता होना चाहिए था रोणा... क्यूंकि तुम खुद भी तो उस केस में सस्पेंड हुए थे...

रोणा की खांसी निकलने लगता है, खांसते खांसते इशारे से पानी मांगने लगता है l प्रतिभा उठने को होती है कि नंदिनी ट्रे में दो ग्लास पानी लाकर रोणा को एक और बल्लभ को एक देती है l रोणा पानी पीते पीते नंदिनी को देखने लगता है l प्रतिभा को रोणा का नंदिनी को ऐसे घूरते हुए देखना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है l वह चुटकी बजाती है l उसकी चुटकी सुन कर रोणा और बल्लभ दोनों प्रतिभा की ओर देखते हैं l

प्रतिभा - अब बताओ... तुम दोनों यहाँ आए किसलिए हो...
बल्लभ - वह एक मिसींग केस है.. तो सोचा शायद आपको कोई आइडिया हो... या आइडिया दे सकें...
प्रतिभा - किस तरह का मिसींग केस... और किस की मिसींग केस.... (रोणा को देख कर, क्यूंकि रोणा तब से नंदिनी को घूर रहा था) नंदिनी... जाओ ड्रॉइंग रुम में जाओ... (नंदिनी वहाँ से निकल कर ड्रॉइंग रुम में चली जाती है)
बल्लभ - वह... एक्चुयली एक इन्शुरन्स है... जिस पर क्लेम दो जन कर रहे हैं... एक को आप जानती हैं... और दुसरा मिसींग है...
प्रतिभा - (रोणा अभी ड्रॉइंग रुम की ओर देखे जा रहा है, उसकी नज़रें नंदिनी को ढूंढ रही थी, उसकी हरकतें देख कर गुस्से से दांत पिसते हुए) किस दुसरे की बात कर रहे हो... और पहला कौन है...
बल्लभ - (थोड़ा अटक कर) वह पहला... नहीं है... पहली है... वैदेही महापात्र...
प्रतिभा - (गुस्से से उठ खड़ी होती है, और चिल्लाते हुए) इनॉफ... प्रधान... तुम अपने इस... बत्तमिज दोस्त को ले कर यहाँ से दफा हो जाओ.... यह वह कुत्ता है... जिसकी थाली में खाता है... उसी थाली में छेद करता है... और उसी हाथ को काटता है... जो इसे खाना देता है...
रोणा - प्रतिभा जी... (जैसे कुछ भी नहीं जानता हो) मैंने क्या किया...
प्रतिभा - (अपनी हाथों को मोड़ कर कोहनीयों से बाँध कर) मेरे ही घर में... मेरे ही बच्चों को गंदी नजर से देख रहे हो... और पुछ रहे हो क्या किया...

इतने में प्रतिभा की ऊंची आवाज सुन कर सारी लड़कियाँ आकर दरवाजे के पास खड़ी हो जाती हैं l नंदिनी सबसे आगे खड़ी थी l

रोणा - सिर्फ देखा ही तो है...(नंदिनी की ओर देखते हुए) अच्छी है... खूब सूरत है... और किसी खूबसूरत चीज़ को देखना... कब से और कहाँ से गुनाह हो गया....
प्रतिभा - नजर नजर में फर्क़ होता है... इंस्पेक्टर रोणा... तेरी नजर जितनी गंदी है... उतनी ही वहशी...
रोणा - अरे... मैम... आप खामखा बात का बतंगड़ बना रही हैं... लड़की सुंदर है... इसलिए देखा... सुंदरता को देखना कहाँ जुर्म हो गया...
प्रतिभा - सुंदरता... देखना.. जानता है... तेरी नजर से क्या छलक रहा है... तु जब पैदा हुआ होगा... तब जीवन अमृत माँ की दूध पीते हुए भी... अपनी नीचे लाने की सोचा होगा...
रोणा - (ताव में आ कर) ऐ बुढ़िया...
प्रतिभा - गेट... आउट...
रोणा - कमीनी... कुछ ज्यादा ही भाव खा रही है...

चट्ट्ट्ट्टाक... एक जोर दार थप्पड़ की आवाज गूंजती है l कमरे में मौजूद सबकी आँखे फटी की फटी रह जाती है l प्रतिभा भी मुहँ फाड़े देखे जा रही थी l क्यूँकी थप्पड़ मारने वाली नंदिनी थी और खाने वाला रोणा I रोणा भी हैरानी से नंदिनी को देखता है

नंदिनी - कुत्ते... सुवर कहीं का... तु जिनसे बात कर रहा है... जानता है वह कौन हैं... क्या रुतबा रखती हैं समाज में... और सबसे अहम बात... वह एक औरत हैं... उनके साथ इस तरह से बात कर रहा है... माफी मांग... माफी मांग उनसे...
रोणा - (अपने गाल सहलाते हुए) तु.... तु जानती नहीं है मुझे लड़की... (गुर्राते हुए) पछतायेगी... बहुत पछतायेगी...
नंदिनी - (और एक थप्पड़ मारती है, उसकी कलर पकड़ लेती है और फिर कड़क आवाज में गुर्रा कर दांत पिसते हुए) आग से हाथ या आँख सेंकने की सोच सकता है... पर छूने की या खेलने की सोचना भी मत... पर यहाँ मैं ज्वालामुखी हूँ... हाथ छोड़... आँख भी सेंकने की सोचा... तो ऐसे जलेगा की तेरे अपनों को... तेरी राख भी नसीब नहीं होगी...
प्रतिभा - (नंदिनी को अपने तरफ खिंचते हुए) सुन बे दो कौड़ी छाप कुत्ते... यह धमकी जो भौंक रहा था... अपने थाने की परिसर के अंदर रख... यहाँ किसीको आँख भी उठा कर देखा... तो अभी के अभी तेरी आँखे नोच लुंगी.... मत भुल... तु मेरे ऑफिस के अंदर है... और पुरा का पुरा कमरा... सर्विलांस में है...
रोणा - (गले से थूक निगलते हुए) स... सॉरी...
प्रतिभा - दफा हो जाओ यहाँ से... (दोनों हारे हुए बंदों की तरह मुड़ कर बाहर की ओर जाने लगते हैं) रोणा... (दोनों रुक पीछे मुड़ कर देखते हैं) तु अगर वैदेही के एफिडेविट के बारे में जानने आया था... तो हाँ... उसकी एफिडेविट कोर्ट में प्रोड्यूस की हुई है... उसकी लॉयर मैं हूँ... तुने यहाँ पर साबित भी कर दिया... उसकी एफिडेविट में कितना दम है...(रोणा अपनी जबड़े भींच कर सिर झुका कर खड़ा होता है) और हाँ... रोणा... तु जिस के दम पर इतना उछल रहा है ना...(रोणा के पास चल कर आती है) एक मुफ्त की सलाह दे रही हूँ... गांठ बांध ले... जब जब सियासत या हुकूमत दांव पर लगती है... तब सबसे पहले हुकुमत प्यादों को कुर्बान कर देती है.... (हाथों से इशारा करते हुए) और तुम दोनों की औकात... प्यादों से ज्यादा नहीं है...(हुकुम देने के अंदाज में) और अभी के अभी... जितनी जल्दी हो सके... तुम दोनों अपने सड़े हुए शक्लें लेकर... (चिल्ला कर) दफा हो जाओ यहाँ से...

दोनों अब घर के बाहर कदम रखे हुए थे कि भाश्वती दो बार ताली बजाती है l दोनों फिर से रुक कर वापस मुड़ कर देखते हैं l

भाश्वती - सुनो बे छछूंदरो... औरत या लड़की को अबला समझने की गलती मत करना... हम अगर अपने में आ गए... बला बनकर तुम पर टुट पड़ेंगे... समझे... गेट आउट...

कह कर दरवाजा बंद कर अपने हाथों को झाड़ते हुए पीछे मुड़ती है l सभी उसे हैरानी से मुहँ फाड़े देखे जा रहे हैं l

बनानी - यह तुने कहा...
दीप्ति - तुने अभी जो कहा... समझी भी.. क्या कहा
भाश्वती - इसमें समझने वाली बात क्या है... जो मुहँ में आया... बोल दिया... आंटी जी और नंदिनी को देख कर मेरा जोश चढ़ गया... इसलिए बहती गंगा में... मुहँ कुल्ला कर दिया...

उसकी बातेँ सुन कर सभी एक दुसरे को पहले देखते हैं फिर सभी मिलकर हँसने लगते हैं l तभी डोर बेल फिर से बजती है l

भाश्वती - आ.. आह्.. लगता है कुछ कमी रह गई... (इतना कह कर दरवाजा खोलती है तो इसबार सामने तापस था और उसके हाथों में कुछ सामान था) (हकलाते हुए) अ.. अ.. अंकल... आइए... अंदर आइए...


अपनी बातों को रोक कर रुप शुभ्रा की ओर देखती है I

शुभ्रा - बस इतना ही...
रुप - हाँ...
शुभ्रा - फिर प्रताप.... वापस नहीं आया क्या...
रुप - नहीं...
शुभ्रा - तो तुम लोग खाना खा कर आ गए...
रुप - नहीं... उस माहौल के बाद... आंटी जी ने कुछ खाना नहीं बनाया.... अंकल बाहर से पकौड़े, बटाटा वड़ा, समोसा और जलेबी लाए थे... तो हम सिर्फ़ वही नास्ता कर... वहाँ से निकल आए...
शुभ्रा - अच्छा... सिर्फ नाश्ता... वह भी बाहर का...
रुप - हूँ...

उधर

विश्व - नंदिनी जी... मेरे बारे में पूछ रही थी क्या...
प्रतिभा - हाँ... सिर्फ नंदिनी ही नहीं... तेरे सारे दोस्त... स्नैक्स लेते समय... तु नहीं था... तो पूछेंगी ही...
विश्व - तो... तुमने क्या कहा...
प्रतिभा - क्या कहती... मैंने बस इतना कहा कि... फ़िलहाल... मेरा बेटा मुझसे नाराज है...

शुभ्रा - ओ... तो तुम्हारे घर से निकलने तक... बेवक़ूफ़ घर नहीं आया...
रुप - (खीज कर) भाभी...
शुभ्रा - हा हा हा हा (हँस देती है) सॉरी... (हँसी को रोकते हुए) तुमने... आंटी जी से... प्रताप के बारे में कुछ पुछा नहीं...
रुप - नहीं... नहीं पुछ पाई... मौका ही नहीं मिला... पर वह भांप गई...

विश्व - क्या... क्या भांप गई...
प्रतिभा - यही की... वह मुझसे कुछ पूछना चाहती थी... जैसे कोई बहुत जरूरी बात... पर वह पुछ नहीं पाई...
विश्व - (सोचते हुए हैरानी भरे लहजे में) नंदिनी जी... कुछ पूछना चाहती थी... पर क्या...
प्रतिभा - यह मैं कैसे कह सकती हूँ... विदा करते वक़्त मैंने उसे रोक कर पुछा भी...

बीते शाम छठी गैंग को विदा करते वक़्त, गाड़ी में बिठाते समय


प्रतिभा - नंदनी... कुछ बात करना चाहती हो मुझसे... है ना...
नंदिनी - (अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
प्रतिभा - उन दो छछूंदरों के बारे में...
नंदिनी - नहीं... उनके बारे में नहीं...
प्रतिभा - फिर...
नंदिनी - (झिझकते हुए) कुछ पर्सनल...
प्रतिभा - ओ...(धीरे से) अकेले में...
नंदिनी - (हल्के से अपना सिर हाँ में हिलाती है)
प्रतिभा - ठीक है... वैसे एक बात पुछुं...
नंदिनी - जी आंटी जी...
प्रतिभा - तुमने उसे थप्पड़ क्यूँ मारा...
नंदिनी - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) वह आपसे जिस बत्तमिजी से बात कर रहा था.... मुझसे रहा ना गया... वैसे भी जब से आया था... उसकी नज़रें मुझे चुभ रही थी... इसलिए...
प्रतिभा - हूँ... ठीक है... अच्छा मेरा नंबर है तुम्हारे पास...
नंदिनी - जी है...
प्रतिभा - है...(हैरानी से) कहाँ से मिला...
नंदिनी - (पहले तो हड़बड़ा जाती है, फिर संभल कर) आप... आप तो एक आइकन हैं... फिर मैं आपकी बहुत बड़ी फैन हूँ... एक्चुयली एक दिन मधु प्रकाशनी के मालकिन से मुलाकात हुई थी... तो उनसे मैंने आपका नंबर हासिल किया था... वैसे भी आपका नंबर ढूंढ निकालना... आपके फैन के लिए... कहाँ मुश्किल है...
प्रतिभा - अरे बाप रे.... कितनी बातेँ कर लेती हो... ठीक है... तो किसी छुट्टी के दिन... मुझे कॉल कर दो... मैं तुम्हारे लिए टाइम निकाल लुंगी... फिर दोनों मिलकर तुम्हारी परेशानी दूर करेंगे ठीक है...
नंदिनी - (हैरान हो कर) दो...नो...
प्रतिभा - मैं और तुम...
नंदिनी - (मुस्करा कर) जी.. जी ठीक है... (कह कर गाड़ी में बैठ जाती है)

शुभ्रा - गाड़ी...? यह गाड़ी कहाँ से आया... तुम लोग तो बस से गए थे ना...
रुप - हाँ... अंकल ने हमारे लिए... दो कार का इंतजाम कर दिया था...

विश्व - वाव डैड... बहुत अच्छे...
तापस - अरे मुझे मालुम था... उनको ड्रॉप करने के लिए गाड़ी चाहिए होगी.. इसलिए मैंने इंतजाम कर दिया था...
प्रतिभा - (विश्व से) अब तेरी नाराजगी दुर हुई या नहीं...
विश्व - बस थोड़ी सी बाकी है...
प्रतिभा - वह किसलिए...
विश्व - आपने मेरी भंडा फोड़ दिया... अब मैं कैसे सामना करूँगा उनका....
प्रतिभा - हा हा हा हा (हँसते हुए) अरे... उसने भी तेरा नाम... बेवकूफ़ के नाम से सेव कर रखा है... और मैंने तुझे बता भी दिया... अब उसको भी तो तेरा सामना करना है...

शुभ्रा - तो... अब क्या फोन पर... उसका नाम बदलेगी...
रुप - क्यूँ.. उसने भी तो मेरा नाम..(मुहँ बनाते हुए) नकचढ़ी रखा है...(अपनी जगह से थाली से उठते हुए) अच्छा... मुझे अब निकलना होगा...

प्रतिभा - निकलना होगा... कहाँ निकलना होगा....
विश्व - अरे माँ.. जो मेरा रेगुलर रुटीन है... उसे तो फॉलो करना पड़ेगा ना...
प्रतिभा - हूँ... ठीक है... पहले बता... नाराजगी दुर हुई या नहीं....
विश्व - (मुस्कराते हुए) माँ... मैं कभी तुमसे... नाराज हो सकता हूँ भला...

विश्व नाश्ता खतम कर हाथ मुहँ साफ कर पहले प्रतिभा के गले लग जाता है और बाहर निकल जाता है, तो उसे बाहर तापस मिलता है l

तापस - चल मैं तुझे... नुक्कड़ के मोड़ तक छोड़ देता हूँ...

विश्व कुछ नहीं कहता, चुप चाप चलने लगता है l तापस भी उसके साथ चलते चलते नुक्कड़ की मोड़ तक पहुँचते हैं l

तापस - (विश्व के कंधे पर हाथ रखकर अपने तरफ मोड़ कर) देख.. मैं जानता हूँ... तु गुस्से में... बदले की आग में जल रहा है... पर कुछ भी हो... तु चाहे उनके साथ कुछ भी कर... पर तुझे.... अभी उनके सामने... अपनी पहचान को रिवील नहीं करना है.... समझा...
विश्व - हूँ...


×_____×_____×_____×_____×_____×_____×

दो पहर का वक़्त
होम सेक्रेटरीयट के एक ऑफिस नुमा कमरे के बाहर बल्लभ बैठा हुआ है l दरवाजे पर एएसपी श्रीधर परीड़ा लिखा हुआ है l कुछ देर बाद अंदर से एक पियोन बाहर आता है और बल्लभ को अंदर जाने के लिए कहता है l बल्लभ अपनी जगह से उठ कर अंदर जाता है l अंदर उसे कुर्सी पर परीड़ा बैठा दिखता है l

परीड़ा - क्या बात है... (अपने कुर्सी पर पीठ के बल लेटने के अंदाज में)
प्रधान बाबु आए हमारे चेंबर में...
उनकी कोई जरूरत है...
कभी हम उनको...
कभी उनके कपड़ों को देखते हैं....
खैर... जरूर कोई बड़ी बात है... वरना ऑफिशियल आवर में... तुम... यहाँ...
बल्लभ - हाँ यार... अब मुझे... तुझसे मदत चाहिए...
परीड़ा - वह तो मैं तुमको देख कर ही समझ गया... पिछली बार जितनी भी इंफॉर्मेशन दी थी... वह सब दोस्ती के खातिर... पर... उसकी भी एक लिमिट होती है...
बल्लभ - (कुछ देर चुप हो कर) यह... राजा साहब का काम है..
परीड़ा - ना... (अपना सिर को ना में हिलाता है) यह राजा साहब का काम नहीं है... अगर राजा साहब का होता... तो अब तक सिस्टम के कुछ हिस्से ऐक्टिव हो चुके होते... यह तुम दोनों का काम है...
बल्लभ - यकीन कर यार... राजा साहब ने हम दोनों को काम दिया है... पर... इसे ऑफिशियली करने से मना किया है...
परीड़ा - ह्म्म्म्म... फिर भी... काम हो जाने के बाद... एप्रीसिएशन और इनाम तो... तुम दोनोंको मिलेगा... मेरे हिस्से में क्या आयेगा... घंटा...
बल्लभ - (कुछ देर के लिए चुप हो जाता है, और कुछ सोचने लगता है, फिर) ठीक है... कितना पैसा चाहिए...
परीड़ा - (सीधा हो कर बैठ जाता है) क्या हुआ प्रधान... एक विश्वा से... तुम लोग इतना घबराए हुए हो...
बल्लभ - मत भुल परीड़ा... यह वही विश्वा है... जिसके वजह से राजा साहब पहली बार कोर्ट की सीढ़ियां चढ़े... और कटघरे तक पहुँच गए थे...
परीड़ा - तो.... वह अब... जैल से छुट कर क्या कर लेगा...
बल्लभ - देख... अनिकेत ने एक शक़ जाहिर की... उसकी बातों में... मुझे दम लगा... इसलिए मैंने राजा साहब को कंवींस कर यहाँ आ गया... बीस दिन होने को है... पर अब तक हम खाली हाथ ही हैं...
परीड़ा - ह्म्म्म्म तो तुम्हें... विश्व के रिलेटेड इंफॉर्मेशन चाहिए...
बल्लभ - हाँ.. और साथ साथ अपना कीमत बोल...
परीड़ा - बोल दूँगा... बोल दूँगा... पहले यह बता... तुम यहाँ अकेले अकेले... रोणा किधर है...
बल्लभ - (भन भनाते हुए) मत लो नाम उसका... वह साला... वह साला सटक गया है... पागल हो गया है...
परीड़ा - (हैरान हो कर) ऐसा क्या हो गया...

बल्लभ बीते रात प्रतिभा के घर में जो भी कुछ हुआ बताता है l सब सुनने के बाद

परीड़ा - तो... दो थप्पड़ खा कर लौटा है अपना रोणा...
बल्लभ - हाँ... साला ठरकी... सुबह से ही पगलाया हुआ है..
परीड़ा - मतलब उन दो थप्पड़ों का साइड इफेक्ट...
बल्लभ - हाँ... वही..

फिर सुबह हुई अपने और रोणा के बीच की बात चित ब्योरा देने लगता है

उसी दिन सुबह
xxx होटल के जीम में रोणा खुब पसीना बहा रहा है l बेंच प्रेस करने के बाद लेग प्रेस कर रहा था l उसके कसरत के हर पहलू को जीम इंस्ट्रक्टर देख रहा था l कुछ दुर पर बैठा बल्लभ रोणा को लेग प्रेस करते देख रहा था l जीम वाले कमरे में इन तीन लोगों के अलावा फर्श साफ करने वाला एक आदमी था जो उस वक़्त फर्श साफ कर रहा था l

बल्लभ - इंस्ट्रक्टर बाबु... और कितना देर...
इंस्ट्रक्टर - बस यह आखिरी है... (रोणा से) ओके सर... प्लीज कंटीन्यु... (कह कर वहाँ से चला जाता है)
रोणा - क्या हुआ... काले कोट वाले... कल से गाली देने के लिए मरा जा रहा है...
बल्लभ - (अपनी दांत पिसते हुए) हाँ रे भोषड़ी के... तु वाकई... अब... सबसे बड़ा मादरचोद बन गया है...
रोणा - (मुस्कराते हुए) किसकी माँ चोद दी मैंने...
बल्लभ - चुप बे हराम जादे... हम यहाँ आए किस लिए थे... और हम कर क्या रहे हैं...
रोणा - (लेग प्रेस रोक कर बल्लभ के सामने बैठते हुए) देख... मेरे को जो पता करना है... वह मैं एक दो दिन में पता कर ही लूँगा...
बल्लभ - किससे... वह तेरा गुर्गा... क्या नाम बोला था तुने.. आँ... टोनी...
रोणा - हाँ...
बल्लभ - तो फिर हम कल... एडवोकेट प्रतिभा के पास गए ही क्यूँ...
रोणा - इसलिए... के तु चाहता था... उस वैदेही की मासी से मिल कर... पता करने के लिए...
बल्लभ - पर फटी तो तेरी थी ना... उस मासी से...
रोणा - हाँ... पर जब परीड़ा ने कहा कि... ज्यादातर काम काजी औरतें... उसे मासी कहते हैं... तब मेरा इंट्रेस्ट उस बुढ़िया पर खतम हो गया...
बल्लभ - (गुस्सा हो कर) तो भोषड़ी के... तो कल तेरे साथ मेरी बेइज्जती कराने गया था क्या...
रोणा - गया तो था.. तेरा साथ देने... पर...
बल्लभ - पर... पर साले ठरकी... लड़की देख कर फ़िसल गया...
रोणा - (टावल से पसीना पोछते हुए) हाँ... साली क्या चीज़ थी..
बल्लभ - (दांत पिसते हुए) इसीलिए तो तुझे मादरचोद कहा... जुम्मा जुम्मा दो ही दिन हुए हैं... साले हॉस्पिटल की बेड से उठे... फिर से किसी नर्स की पिछवाड़ा देखने की खुजली हो रही है क्या बे तुझे...
रोणा - क्यूँ इतना पका रहा है बे.. कल उस एडवोकेट के घर में छह छह लड़कियाँ थीं... किसी एक से नैन लड़ा ले...
बल्लभ - बे... दिमाग सटक गया है बे क्या तेरा... तुने कहा... इसलिए मैंने मैटर को सीरियसली लिया था... इसी मैटर के चलते.. दस दिन हस्पताल में सड़ता रहा... फिर भी तेरी अक्ल घास चर रही है...

रोणा का चेहरा धीरे धीरे सख्त हो जाता है, जबड़े भींच जाता है, उसकी आँखे लाल होने लगते हैं l उसका अचानक यह परिवर्तन देख कर एक पल के लिए बल्लभ सकपका जाता है l

रोणा - (अपने गाल को सहलाते हुए)गलती कर दी उसने.... कमीनी मिर्ची लग रही थी... इसलिए आँख सेंक रहा था... मेरी गाल बजा कर बता गई... कितनी तीखी है...
बल्लभ - ऐ... ऐइ.. रोणा... यह... अचानक तुझे क्या हो गया.. वह... एक बच्ची है... कॉलेज में शायद पढ़ रही होगी... उसकी उम्र ही क्या होगी...
रोणा - मुझे उसकी उमर से नहीं... उसकी कमर से मतलब है...
बल्लभ - (चिढ़ कर खड़ा हो जाता है) तु हमारा मिशन भूल रहा है... बीस दिन होने को आए.. वहीँ के वहीँ रह गए हैं... एक कदम भी आगे नहीं बढ़े हैं... और तु अपना मिशन और टार्गेट चेंज कर रहा है... (हांफने लगता है) पता नहीं वह लड़कियाँ वहाँ पर क्या कर रहीं थी... तु अब उन सबके पीछे पड़ेगा...
रोणा - उन सबके नहीं... सिर्फ उस लाल मिर्ची के पीछे... कसम से... उसे अपने नीचे लाउंगा जरूर...
बल्लभ - (चिढ़ कर) छी... पागल हो गया है तु... हम कुछ जानते भी नहीं है उसके बारे में... अबे कटक या भुवनेश्वर में क्यूँ बखेड़ा खड़ा कर रहा है... अगले हफ्ते राजा साहब आ रहे हैं... पता नहीं वह कौनसा मनहूस घड़ी था... जब तु राजा साहब के आगे विश्व के बारे में हांक रहा था... मैंने भी तेरी तरफदारी की थी...
रोणा - तो मरा क्यूँ जा रहा है...
बल्लभ - अबे... (चिल्लाते हुए) पहले अपने दिमाग में घुसा... विश्व जैल से छूट गया है... राजगड़ नहीं गया है... गायब है... अगर वह कुछ कर रहा है... तो क्या कर रहा है... कैसे कर रहा है... रुप फाउंडेशन की गड़े मुर्दे उखाड़ने के लिए... उसकी खबर राजा साहब को देना है... भूल गया क्या बे... (हांफने लगता है)
रोणा - चिल्ला क्यूँ रहा है... मैं जानता हूँ... मेरे इन्फॉर्मर को आने दे... विश्व के बारे में वह जितना बतायेगा... मैं राजा साहब को उतना ही बता दूँगा...
बल्लभ - वाह.. खाल बचाने के लिए बहाना अच्छा है... साले... अगर वह सचमुच ज्वालामुखी निकली तो...
रोणा - वह मिर्ची है... लाल मिर्च... बहुत तीखी है... इतनी की.. आँख लगाओ तो आँख जले.. मुहँ लगाओ तो मुँह जले... दिल लगाओ तो दिल जले... अरे जो जलाने की चीज़ हो... वह तो जलायेगी ही... मेरा तो उसे देखने के बाद... तन बदन में आग लगी हुई है... बुझाना तो पड़ेगा ही... (चिढ़ कर पैर पटक कर बल्लभ वहाँ से जाने लगता है) अरे ओ काले कोट वाले... कहाँ जा रहा है...
बल्लभ - तुझसे तो उम्मीद करना बेकार है... इसलिए मैं जा रहा हूँ... अपने तरीके से पता करने...

बल्लभ अपनी सुबह की कहानी खतम करता है l परीड़ा अपनी आँखे मूँद कर सुन रहा था l बल्लभ के रुकने के बाद आँखे खोलता है और बल्लभ को कुछ कहने के लिए मुहँ खोलने को होता है कि तभी बल्लभ का फोन बजने लगता है l बल्लभ देखता है नंबर तो स्क्रीन पर दिख रहा है पर कोई नाम डिस्प्ले नहीं हो रहा था l बल्लभ फोन उठाता है I परीड़ा उसे स्पीकर पर डालने को कहता है l

बल्लभ - हैलो....
:- सर मैं होटल xxx की रिसेप्शन से बात कर रही हूँ...
बल्लभ - (हैरान हो कर) xxx की रिसेप्शन... क्यूँ... क्या हुआ...
रिसेप्शनीस्ट - सर... यहाँ आपके रुम पार्टनर के साथ... एक... एक्सीडेंट हो गया है...
बल्लभ - (अपनी कुर्सी से उछल कर खड़ा होता है) व्हाट...
Jabardasttt Updateee

Rona ne galti kardi. Bahot badi galti. Aur iss galti ki saza usse 2 taraf se milegi. Ek toh Vishwa ki taraf se aur dusri Chetrapal ke taraf se. Rona apne hawas mein andha hoke Roop ko hi gandi nazar se dekh baitha. Jab usse pata chalega Roop kaun hai tab uska kyaa hoga. Aur jab Veer ya Vikram ko pata chalega Rona ne unki laadli behen ke saath kyaa karne ka socha hai tab uska kya hogaa.

Idher Vishwa ki taraf se Rona ko uske kiye ki saza mil gayi hai. Ab dekhna yeh hai Vishwa ne Rona ka kyaa hasra kiya hai aur Chetrapal kyaa haalat karte hai.
 

sunoanuj

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Ragad diya rona ko …
 

sunoanuj

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Bhaut hee behtarin update …
 

Surya_021

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👉इक्यानबेवां अपडेट
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रुप कॉलेज के लिए तैयार हो कर नीचे उतरती है l डायनिंग टेबल पर शुभ्रा को अकेले देख कर उसे हैरानी होती है l रुप के कुर्सी पर बैठने के बाद नौकर ट्रॉली में नाश्ते की बाउल लाकर टेबल पर रख देते हैं l

शुभ्रा - (नौकरों से) अब तुम लोग जाओ... जरूरत पड़ी तो हम बेल बजाएंगे... (नौकर अपना सिर झुका कर वहाँ से चले जाते हैं)
रुप - (नौकरों के वहाँ से जाने के बाद, थोड़ी हैरानी के साथ) भाभी... आज आप अकेली...
शुभ्रा - हूँ...(एक साधारण सी भाव के साथ)
रुप - (थोड़ी गम्भीर आवाज में) क्यूँ... आज भैया को क्या हुआ...
शुभ्रा - कुछ नहीं हुआ है... वह सुबह सुबह... महांती का फोन आया था... किसी खास काम के लिए... पार्टी ऑफिस से हो कर ESS ऑफिस जाएंगे...
रुप - ओ... ऐसा कौनसा जरूरी काम... जो सुबह का नाश्ता किए बिना चले गए...
शुभ्रा - क्या करें... पार्टी के ही लॉ मिनिस्टर की बेटी की शादी है... और तुम्हारे भैया... पार्टी के युवा मंच के लीडर हैं...
रुप - भाभी... इतना तो मैं पक्का जानती हूँ... पार्टी में किसीकी हिम्मत ना होती होगी... भैया से कुछ काम करवाने की...
शुभ्रा - तो क्या हुआ... विक्की इतने रुड तो हैं नहीं... और चूंकि महांती का फोन आया था... तो कुछ ना कुछ जरूरी काम होगा जरूर...
रुप - (छेड़ते हुए) आँ... हाँ... आज कल बड़ी खबर रखी जा रही है... लगता है बाहर सरकार बनाने से पहले... अपनी होम मिनिस्टर को रिपोर्ट दे कर गए हैं...
शुभ्रा - (शर्म और खुशी की मिली जुली भाव को अपने चेहरे पर ना लाने की बहुत कोशिश करती है)
रुप - ना... कोई फायदा नहीं भाभी... हाय... यह शर्म... यह हया और... छुपाये ना छुपती यह खुशी... ना ना... छुपा ना पाओगी...
शुभ्रा - (शर्म से आँखे दिखाते हुए) शट-अप नंदिनी...
रुप - जरुर भाभी जी... आप हुकुम करें और हम शट-अप ना हों ऐसा तो हो ही नहीं सकता...
शुभ्रा - अच्छा अच्छा... बहुत हो गया... अब यह बताओ... कल की शाम कैसे बीती... तुम देर रात दस बजे आई... और आते ही सीधे अपने कमरे में घुस गई....
भाभी - उसके लिए तो आप मुझे थैंक्स कह सकती हैं... आई मिन कहना चाहिए...
शुभ्रा - थैंक्स... तुमसे... वह क्यूँ...
रुप - अरे... पिछले दो दिन से... शाम को... आप और भैया... कैंडल लाइट डिनर तो करते ही होंगे ना...
शुभ्रा - अच्छा... तो तुम्हारे कहने का मतलब है... की यह सब... तुम्हारा किया धरा है...
रुप - (खिलखिला कर हँस देती है)
शुभ्रा - (मुस्कराते हुए) अपनी बातेँ टालना कोई तुमसे सीखे... (रुप की हँसी रुक जाती है, वह सवालिया नजर से शुभ्रा को देखती है) (शुभ्रा अपनी भवें तन कर रुप से) कल तुम्हारे महबूब की कोई खबर मिली... या..
रुप - (अपनी प्लेट की ओर चेहरा झुका लेती है, थोड़ी मायूस हो कर ) कहाँ भाभी... कल सिचुएशन ही ऐसी बनी की... (चुप हो जाती है)
शुभ्रा - कैसी बनी...

रुप बताती है प्रताप के घर पहुँचने से लेकर प्रताप के भाग जाने तक l यह सुन कर शुभ्रा हँसने लगती है l

शुभ्रा - हा हा हा... (हँसते हुए) ओह माय गॉड... प्रताप ने तुम्हारा नाम... नकचढ़ी रखा है... हा हा हा हा... और आंटी जी ने तुम्हें ना बताया होता तो... तो तुम्हें मालुम ही नहीं पड़ता... हा हा हा हा...

रुप अपनी जबड़े भींच कर शुभ्रा को घूरने लगती है l शुभ्रा मुश्किल से अपनी हँसी रोकती है l

शुभ्रा - ठीक है... फिर...
रुप - फिर क्या...(मासूम शिकायत भरे लहजे में) आंटी जी ने मुझे भी पकड़ लिया...
शुभ्रा - तुम्हें पकड़ लिया... मतलब...
रुप - मैं बहाने से... किचन में आंटी जी के पास गई... आंटी जी ने मुझे उकसाया प्रताप को फोन लगाने के लिए... कहा देखो... तुम्हारे लिए... क्या नाम सेव कर रखा है... और मैंने भी क्यूरोसीटी के चलते प्रताप को फोन लगा दिआ... मैंने प्रताप के मोबाइल में अपना नाम नकचढ़ी देख कर... गुस्से से प्रताप को देखा... तो वह भाग गया... पर तभी आंटी जी ने मेरे हाथ से मोबाइल लेकर... मैंने जो नाम सेव किया था उसे देख लिया...
शुभ्रा - क्या... तुमने... प्रताप के लिए भी कोई नाम सेव किया था क्या....
रुप - (बड़ी मासूमियत के साथ, शर्माते हुए और नजर चुराते हुए) हूँ...
शुभ्रा - (जिज्ञासा के साथ अपनी आँखे बड़ी करते हुए) क्या रखा था उसका नाम...
रुप - (शर्म से गाल लाल हो जाती है) बे..व... (जल्दी से) बेवकूफ...
शुभ्रा - क्या... हा हा हा हा...
रुप - (मुहँ बना कर) हाँ हाँ हँस लो.. आप नहीं जानती... कितना एंबारेंस फिल हुआ मुझे... जितनी देर आंटी जी के यहाँ रही... उनसे नजरें मिलाने से कतरा रही थी...

शुभ्रा और जोर से हँसने लगती है l रुप भी शर्माते शर्माते शुभ्रा के साथ हँसने लगती है l कुछ देर बाद दोनों नॉर्मल होते हैं l

शुभ्रा - हम्म... इसका मतलब यह हुआ कि... आंटी जी को पुरा एहसास था... तुम दोनों में दोस्ती बहुत गहरी है... (रुप शुभ्रा की ओर देखती है) हाँ.. नंदिनी... भले ही छठी गैंग के सभी दोस्त... बहुत अच्छे हैं... तुम्हारे करीब भी हैं... पर तुम मानों या ना मानों... तुम्हारी और प्रताप की दोस्ती बहुत अलग है... गहरी है...
रुप - य... ऐसी कोई बात...(थोड़ा रुक कर) नहीं है...
शुभ्रा - देखा... तुम्हारा जवाब भी... तुम्हारा साथ नहीं दे रहे हैं...

रुप का चेहरा बहुत सीरियस हो जाता है, वह ख़ामोश हो कर अपना नाश्ता खाने लगती है l शुभ्रा भी थोड़ी देर चुप रहती है l फिर खामोशी को तोड़ते हुए

शुभ्रा - क्या... प्रताप... तुम्हारे घर लौटने तक सामने नहीं आया...
रुप - नहीं...
शुभ्रा - तो फिर... तुम्हारे पास तो पुरा मौका था... आंटी जी पुछ सकती थी तुम...
रुप - हाँ... मैं अपने हर सवाल का जवाब... आंटी जी से चाहती थी... पर तभी... पता नहीं कहाँ से (गुस्से में दांत पिसते हुए) दो नमूने टपक पड़े...
शुभ्रा - नमूने... मतलब....

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नाश्ते के खाली प्लेट पर विश्व चम्मच घुमा रहा है l तापस उसे देखता है और फिर अपनी नजरें घुमा कर चुप चाप किचन की ओर देखने लगता है l प्रतिभा किचन से नाश्ता लेकर आती है और पहले विश्व के प्लेट में पोहा डालती है उसके बाद तापस की प्लेट में पोहा डालती है और फिर अपने प्लेट में बाकी पोहा डाल कर बैठ जाती है l विश्व फिर भी पोहा पर चम्मच घुमा रहा है पर खा नहीं रहा है l

प्रतिभा - एक बात जानते हैं सेनापति जी...
तापस - (चौंक कर) कौनसी बात भाग्यवान...
प्रतिभा - आपके लाट साहब की भुख चली गई है...
तापस - अच्छा... (विश्व से) क्या बात है.. लाट साहब... कब्ज है... या बदहजमी..
विश्व - (खीज कर) डैड... आप भी...

प्रतिभा और तापस अपनी हँसी को दबाते हैं l विश्व फिर भी कुछ सोच रहा था और उसी सोच में खोए हुए नाश्ता खा रहा था l

प्रतिभा - (विश्व से) मुझसे नाराज है...
विश्व - हाँ...
प्रतिभा - (चेहरे पर मायूसी लाते हुए) ठीक है... मैं फिर कभी तुझे... नंदिनी की नाम पर नहीं छेड़ुंगी...
विश्व - (बिदक जाता है) माँ... ऐक्टिंग तुमसे नहीं होगा... प्लीज...
प्रतिभा - अरे तो क्या हुआ... ऐक्टिंग की कोशिश कर सकती हूँ...
विश्व - माँ... कल से तुम ऐक्टिंग ही कर रही हो... और तुम अच्छी तरह से जानती हो... मैं उस बात के लिए गुस्सा नहीँ हूँ... (उसके आँखों में खुन उतर आता है, चेहरा तमतमा ने लगता है) वह दो नामुराद... यहाँ तक पहुँच गए... मुझे वह लोग देख ना लें... इसलिए तुम और डैड ने मिलकर... मुझे यहाँ से नंदिनी जी के मैटर में... लपेट कर भगा दिए....

एक पल के लिए विश्व की तमतमाया हुआ चेहरा देख कर सेनापति दंपति शहम गए l

विश्व - (बहुत जल्द खुदको नॉर्मल करते हुए) सॉरी... सॉरी माँ... सॉरी डैड...
प्रतिभा - कभी कभी तु बहुत... ठंडे दिमाग से काम लेता है... और कभी कभी... अपनी भावनाओं को काबु नहीं कर पाता... तो अब बता... तेरे डैड या मैंने कहाँ गलती कर दी...
विश्व - (अपना चेहरा झुका कर) माँ.. मेरी ओर बढ़ रही आग की आँच... आप तक पहुँच गई है...
तापस - कुछ नहीं हुआ है... और तेरे होते हमें कुछ नहीं होगा... (विश्व तापस की ओर देखता है) वह लोग तेरी इंक्वायरी कर रहे हैं... इसका मतलब यह नहीं... कि... कोई जुर्रत करेंगे... तेरी माँ कोई आम औरत नहीं है... इसके माथे पर शिकन भी आ गई... तो स्टेट की सारी औरतें सड़कों पर उतर आयेंगी... और जो दो जन यहाँ आए थे... वह दोनों कोई तीस मार खां नहीं थे... मोहरे थे राजा साहब... उर्फ़ भैरव सिंह के... या यूँ कहूँ... जोकर थे... थे क्या... जोकर हैं दोनों... ऐसों से निपटना... तुम्हारी माँ अच्छी तरह से जानती है... इसलिए अपने मन को साफ करो... और नाश्ता खत्म करो...

विश्व उन दोनों को देखता है l तापस इत्मीनान से पोहा खा रहा है और प्रतिभा मुस्कराते हुए विश्व को देख रही है l

विश्व - माँ... फिरभी... कल क्या हुआ यहाँ... क्या मुझे जानने का... कोई हक़ नहीं है...
प्रतिभा - क्यूँ नहीं... अगर दिमाग और दिल को ठंडा रखेगा.. तो जरूर बताऊँगी...
विश्व - (अपना हाथ बढ़ा कर प्रतिभा के हाथ पर रख देता है) माँ... भले ही मैं गुस्से को काबु नहीं कर पाता... चेहरे पर आ जाती है... पर... फिर भी वादा रहा... मैं खुद को काबु रखूँगा... प्लीज.... बताओना कल क्या हुआ...
प्रतिभा - चल ठीक है... बताती हूँ...

बीते शाम

तापस नुक्कड के मोड़ पर पहुँच कर एक किराने की दुकान पर कुछ चीज़ और पनीर खरीद कर घर की ओर जा रहा था l तो उसे पीछे से "एक्सक्युज मी" आवाज सुनाई देता है l वह पीछे मुड़ कर देखता है स्ट्रीट लाइट की रौशनी में उसे दो शख्स दिखते हैं l वह लोग तापस के पास पहुँचते हैं l उन्हें देखते ही तापस पहचान जाता है और सतर्क हो जाता है l क्यूँकी कुछ दिन पहले खान जब कटक आया था और मोबाइल पर इन दोनों के फोटो दिखाया था और शेयर भी किया था l एक इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा था और दुसरा एडवोकेट बल्लभ प्रधान था l

तापस - यस..
बल्लभ - यह... एडवोकेट प्रतिभा सेनापति जी का घर कहाँ है...
तापस - क्यूँ...
रोणा - क्यूँ मतलब... अरे वह एडवोकेट हैं... हम एक केस के सिलसिले में उनसे मिलना चाहते हैं... (तापस कुछ सोच में पड़ जाता है, उसे सोचता देख कर ) क्या हुआ...
तापस - (सोचते हुए अंदाज में) नहीं मैं यह सोच रहा था... की कोई एडवोकेट सच में इस कॉलोनी में हैं या नहीं...
बल्लभ - अरे यहीँ... इसी कॉलोनी में हैं... नए आए हैं...
तापस - अच्छा... वह जो नए आए हैं...
रोणा - इसका मतलब... तुम जानते हो उन्हें...
तापस - नहीँ...
दोनों - (हैरानी से) नहीं....
तापस - देखिए... यह बक्शी जगबंधु विहार है... कम से कम छह सौ घर हैं... ह्म्म्म्म... क्या डोर नंबर या प्लॉट नंबर है...
रोणा - हाँ है ना... प्लॉट नंबर xxx और डोर नंबर xxx...
तापस - अरे वाह... तो फिर एक काम करो... (उंगली इशारा करते हुए) उस गार्डन के पास जाओ.... वहां पर एक सीमेंट की बोर्ड लगी है... उसमें बक्सी जगबंधु विहार का.. एक बड़ा सा मैप होगा... जाओ उससे पता करो... जाओ...

इतना कह कर तापस वहाँ से निकल जाता है l उनसे थोड़ी दुर जाकर मोबाइल निकालता है और प्रतिभा को मेसेज टाइप करता है l

प्रतिभा छठी गैंग के साथ बातेँ कर रही थी कि उसके फोन पर एक मैसेज चमकती है और साथ साथ सेनापति जी डिस्प्ले होती है l प्रतिभा मैसेज खोल कर देखती है l

"जान, विश्व को ढूंढने और उसके बारे में पता करने राजगड़ से इंस्पेक्टर रोणा और एडवोकेट प्रधान आए हैं l तुम किसी भी तरह प्रताप को घर से बाहर करो, उन लोगोंके जाने के बाद प्रताप को अंदर बुलाएंगे"

प्रतिभा मैसेज पढ़ने के बाद कुछ सोच में पड़ जाती है l फिर अचानक एक चमक के साथ अपनी आँखे खोलती है l वह अपने पास बैठे नंदिनी को इशारे से कान कुछ कहने के लिए बुलाती है l नंदिनी भी जिज्ञासा से अपनी कान प्रतिभा की तरफ करती है l

प्रतिभा - तुमको एक मजेदार बात बतानी है.... मैं किचन में जा रही हूँ... तुम आ जाना...

इतना कह कर प्रतिभा चाय बनाने के बहाने किचन में चली जाती है l और किचन में नंदिनी की इंतजार करने लगती है l उधर नंदिनी ल़डकियों के बीच विश्व को बिठा कर किचन में आती है l

नंदिनी - क्या बात है आंटी... सबके सामने ना बता कर... अकेले में बुलाया...
प्रतिभा - (मुस्कराते हुए) एक काम करो... अपनी मोबाइल से... प्रताप की मोबाइल पर फोन लगाओ... और चुपके से... डिस्प्ले में अपनी पहचान देखो...

नंदिनी सस्पेंस और क्युरोसीटी के चलते अपनी मोबाइल से प्रताप को फोन लगाती है और चुपके से जा कर प्रताप के पीछे खड़ी हो जाती है l फोन रिंग होते ही प्रताप फोन, शर्ट की जेब से निकालता है और डिस्प्ले देखता है l "नकचढ़ी" डिस्प्ले हो रहा था l हैरानी के मारे प्रताप की आँखे बड़ी हो जाती है l झट से खड़ा हो जाता है और पीछे मुड़ कर देखता है l तेज तेज सांस लेते हुए नंदिनी उसे कच्चा चबा जाने की अंदाज में देखती है l बिना देरी किए और बिना पीछे मुड़े प्रताप वहाँ से भाग जाता है l नंदिनी उसे भागते हुए देखती रहती है, सभी लड़कियाँ खड़ी हो कर हैरानी से दरवाजे की ओर देखने लगते हैं l तभी प्रतिभा नंदिनी के हाथों से उसकी मोबाइल ले कर डिस्प्ले देखती है जिसमें "बेवक़ूफ़" साफ दिख रहा था l प्रतिभा अपनी भवें उठा कर सवालिया नजर से नंदिनी को देखती है l नंदिनी सकपका जाती है, जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो l फिर प्रतिभा जोर जोर से हँसने लगती है l

भाश्वती - क्या बात आंटी... प्रताप भैया के भाग जाने से... आप हँस क्यूँ रहे हैं...
प्रतिभा - कु.. कुछ.. नहीं बेटी... मुझे मालुम ही नहीं था... मेरा प्रताप इतना डरता भी है... हा हा हा हा..
दीप्ति - पर वह किससे डर कर भाग गया...
प्रतिभा - है एक...

कह कर प्रतिभा नंदिनी को देखती है l नंदिनी शर्म के मारे सिर नीचे कर लेती है l इस बीच प्रतिभा तापस को मैसेज 👍 करती है l

उधर विश्व भाग कर बाहर एक जगह पर खड़ा हो जाता है l अपने सिर पर हाथ मारने लगता है कि तभी उसकी फोन बजने लगती है पर विश्व फोन नहीं उठाता l कुछ देर बाद एक मैसेज आता है l विश्व मैसेज देखता है डैड की मैसेज था I वह मैसेज खोल कर देखता है l

"लाट साहब फोन क्यूँ नहीं उठा रहे हैं, मैं इंतजार कर रहा हूँ, मुझसे आ कर xxx चौक पर मिलो"

मैसेज पढ़ते ही विश्व की भवें सिकुड़ जाती हैं l वह कुछ सोचने के बाद भागते हुए xxx चौक पर पहुँचता है l उसे ठीक मोड़ पर तापस दिखाई देता है l

विश्व - (तापस के पास पहुँच कर) क्या हुआ डैड...
तापस - तुम.... (एक दुकान को दिखा कर) इस दुकान में बैठोगे... तब तक... जब तक तुम्हारी माँ तुम्हें फोन कर वापस ना बुलाए...
विश्व - (कान खड़े हो जाते हैं, उसे खतरे का आभास होता है) क्या बात है डैड... कुछ भी छुपाना मत... सच सच बताइये...
तापस - तुझे ढूंढते ढूंढते... राजगड़ के वही दो नमूने आए हैं... तेरी माँ का पता पुछ रहे थे... गनीमत यह रही कि... वह लोग पता मुझसे पुछ रहे थे...
विश्व - (अपनी जबड़े भींच कर) उनकी तो...
तापस - नहीँ... तुझे उनके साथ जो करना है कर... पर कटक या भुवनेश्वर में नहीं... बिल्कुल भी नहीं... और यह मत भुल... कुछ बातेँ राज रहें... तो तेरी माँ के लिए भी अच्छी बात है... वरना भैरव सिंह की नजर में... तेरी माँ आ जाएगी... समझा....

विश्व अपना सिर हिलाता है और दांत पिसते हुए दुकान के अंदर जा कर बैठ जाता है l तापस वहाँ से कुछ पकौड़े, बटाटा बड़ा, समोसे और जलेबी खरीद कर घर की ओर चलता है l

उधर घर में सभी चाय पी रहे हैं कि डोर बेल बजती है l प्रतिभा नंदिनी और उसके दोस्तों के साथ किचन में हँसी मज़ाक कर रही थी कि डोर बेल की आवाज सुनते ही ड्रॉइंग रुम होते हुए प्रतिभा दरवाजा खोलती है l सामने दो अजनबी खड़े थे l

प्रतिभा - आप लोग कौन हैं... और किसे ढूंढ रहे हैं...
एक आदमी - जी... हम एक केस के सिलसिले में... एडवोकेट प्रतिभा जी से मिलने आए हैं...
प्रतिभा - ह्म्म्म्म... ठीक है.... अंदर आइए...(अंदर आती है)

वह दोनों प्रतिभा के पीछे पीछे अंदर आते हैं l वे दोनों देखते हैं ड्रॉइंग रुम और किचन के बीचों-बीच एक हिस्से में छह लड़कियाँ खड़ी हुई हैं और इन दोनों को घूर रही हैं l प्रतिभा उन्हें एक अलग कमरे में जो कि प्रतिभा का अपना ऑफिस था, वहाँ उन्हें बैठने के लिए कहती है l वे दोनों उस कमरे में बैठ जाते हैं l प्रतिभा ड्रॉइंग रुम में आकर

प्रतिभा - बच्चों... एक काम करो... चूंकि तुम सब प्रताप के दोस्त हो... (एक कमरे की ओर इशारा करते हुए) जाओ... उसके कमरे में जाओ और उस कमरे का सत्यानाश करो... दो क्लाइंट आए हुए हैं... सिर्फ पंद्रह मिनट टाइम दो... उसके बाद हम बातेँ करेंगे... और पार्टी भी...
लड़कियाँ - ओके आंटी... इयेए.. इयेए... (चिल्लाते हुए प्रताप के कमरे में चले जाते हैं, पर नंदिनी वहीँ खड़ी रहती है)
प्रतिभा - क्या हुआ नंदिनी... तुम क्यूँ नहीं जा रही... "बेवकूफ" के कमरे में.. (बेवकूफ़ शब्द को जोर देते हुए कहा था)
नंदिनी - (शर्मा जाती है) स.. सॉरी आंटी.. मैं वह...
प्रतिभा - अरे कुछ नहीं... मैंने जरा भी बुरा नहीं माना... बल्कि मुझे खुशी है कि... किसीने तो उसकी बेवकूफ़ी पकड़ी है... हम तो उसे हमेशा से... इंटेलिजेंट समझ रहे थे.... अच्छा अब तुम उस कमरे में जाओ...
नंदिनी - कोई नहीं आंटी... आप मेहमानों का खयाल रखिए... कुछ जरूरत पड़ी तो... मुझे आवाज़ दीजियेगा...

प्रतिभा मुस्कराते हुए नंदिनी के गालों पर हल्का सा चपत लगाती है और अपना सिर हाँ मे हिलाते हुए अपने ऑफिस के कमरे में आती है l

प्रतिभा - (अपनी कुर्सी पर बैठते हुए) हाँ तो... पहले अपना परिचय दीजिए...
एक आदमी - मैडम... मैं एडवोकेट बल्लभ प्रधान... और यह इंस्पेक्टर अनिकेत रोणा...
रोणा - हैलो मैम...
प्रतिभा - इंट्रेस्टिंग... एक एडवोकेट और एक इंस्पेक्टर... मेरे पास... किसी केस के सिलसिले में... (जवाब में बल्लभ कुछ कहने को होता है कि प्रतिभा उसे रोकते हुए) एक मिनट... एक मिनट... तुम दोनों के नाम... सुना हुआ सा लग रहा है... और शायद हम पहले भी मिले हुए हैं... याद नहीं आ रहा... (कुछ देर सोचते हुए बल्लभ से) क्या हम... पहले भी कभी मिले हैं...
बल्लभ - (पहले रोणा को देखता है और फिर) हाँ.. मैम... कई बार... हमारी मुलाकात सात साल पहले हुई थी... तब आप पीपी हुआ करते थे... और राज्य की सबसे मशहूर करप्शन स्कैंडल... रुप फाउंडेशन और मनरेगा कांड की पैरवी की थी....
प्रतिभा - ओ... हाँ.. हाँ.. हाँ अब याद आया... (रोणा से) तो तुम ही वह इंस्पेक्टर हो... जिसने निजी खुन्नस के चलते एक मासूम... विश्व को टॉर्चर कर... उसके टांग पर गोली मारी थी...
रोणा - वह कहाँ मासूम था... अदालत ने उसे सजा दी थी...
प्रतिभा - हाँ सजा तो दी थी... पर लगता है तुमने कोर्ट ऑर्डर ठीक से पढ़ा नहीं था... उसे सजा इसलिए नहीं मिली थी कि उसने करप्शन किया था या उस करप्शन का हिस्सेदार था... उसे सजा मिली थी... क्यूँ की उसके सरपंच होते हुए भी... वह उस करप्शन में... एक टूल बन गया... वह यूज्ड टू हो गया... यह तुम्हें पता होना चाहिए था रोणा... क्यूंकि तुम खुद भी तो उस केस में सस्पेंड हुए थे...

रोणा की खांसी निकलने लगता है, खांसते खांसते इशारे से पानी मांगने लगता है l प्रतिभा उठने को होती है कि नंदिनी ट्रे में दो ग्लास पानी लाकर रोणा को एक और बल्लभ को एक देती है l रोणा पानी पीते पीते नंदिनी को देखने लगता है l प्रतिभा को रोणा का नंदिनी को ऐसे घूरते हुए देखना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता है l वह चुटकी बजाती है l उसकी चुटकी सुन कर रोणा और बल्लभ दोनों प्रतिभा की ओर देखते हैं l

प्रतिभा - अब बताओ... तुम दोनों यहाँ आए किसलिए हो...
बल्लभ - वह एक मिसींग केस है.. तो सोचा शायद आपको कोई आइडिया हो... या आइडिया दे सकें...
प्रतिभा - किस तरह का मिसींग केस... और किस की मिसींग केस.... (रोणा को देख कर, क्यूंकि रोणा तब से नंदिनी को घूर रहा था) नंदिनी... जाओ ड्रॉइंग रुम में जाओ... (नंदिनी वहाँ से निकल कर ड्रॉइंग रुम में चली जाती है)
बल्लभ - वह... एक्चुयली एक इन्शुरन्स है... जिस पर क्लेम दो जन कर रहे हैं... एक को आप जानती हैं... और दुसरा मिसींग है...
प्रतिभा - (रोणा अभी ड्रॉइंग रुम की ओर देखे जा रहा है, उसकी नज़रें नंदिनी को ढूंढ रही थी, उसकी हरकतें देख कर गुस्से से दांत पिसते हुए) किस दुसरे की बात कर रहे हो... और पहला कौन है...
बल्लभ - (थोड़ा अटक कर) वह पहला... नहीं है... पहली है... वैदेही महापात्र...
प्रतिभा - (गुस्से से उठ खड़ी होती है, और चिल्लाते हुए) इनॉफ... प्रधान... तुम अपने इस... बत्तमिज दोस्त को ले कर यहाँ से दफा हो जाओ.... यह वह कुत्ता है... जिसकी थाली में खाता है... उसी थाली में छेद करता है... और उसी हाथ को काटता है... जो इसे खाना देता है...
रोणा - प्रतिभा जी... (जैसे कुछ भी नहीं जानता हो) मैंने क्या किया...
प्रतिभा - (अपनी हाथों को मोड़ कर कोहनीयों से बाँध कर) मेरे ही घर में... मेरे ही बच्चों को गंदी नजर से देख रहे हो... और पुछ रहे हो क्या किया...

इतने में प्रतिभा की ऊंची आवाज सुन कर सारी लड़कियाँ आकर दरवाजे के पास खड़ी हो जाती हैं l नंदिनी सबसे आगे खड़ी थी l

रोणा - सिर्फ देखा ही तो है...(नंदिनी की ओर देखते हुए) अच्छी है... खूब सूरत है... और किसी खूबसूरत चीज़ को देखना... कब से और कहाँ से गुनाह हो गया....
प्रतिभा - नजर नजर में फर्क़ होता है... इंस्पेक्टर रोणा... तेरी नजर जितनी गंदी है... उतनी ही वहशी...
रोणा - अरे... मैम... आप खामखा बात का बतंगड़ बना रही हैं... लड़की सुंदर है... इसलिए देखा... सुंदरता को देखना कहाँ जुर्म हो गया...
प्रतिभा - सुंदरता... देखना.. जानता है... तेरी नजर से क्या छलक रहा है... तु जब पैदा हुआ होगा... तब जीवन अमृत माँ की दूध पीते हुए भी... अपनी नीचे लाने की सोचा होगा...
रोणा - (ताव में आ कर) ऐ बुढ़िया...
प्रतिभा - गेट... आउट...
रोणा - कमीनी... कुछ ज्यादा ही भाव खा रही है...

चट्ट्ट्ट्टाक... एक जोर दार थप्पड़ की आवाज गूंजती है l कमरे में मौजूद सबकी आँखे फटी की फटी रह जाती है l प्रतिभा भी मुहँ फाड़े देखे जा रही थी l क्यूँकी थप्पड़ मारने वाली नंदिनी थी और खाने वाला रोणा I रोणा भी हैरानी से नंदिनी को देखता है

नंदिनी - कुत्ते... सुवर कहीं का... तु जिनसे बात कर रहा है... जानता है वह कौन हैं... क्या रुतबा रखती हैं समाज में... और सबसे अहम बात... वह एक औरत हैं... उनके साथ इस तरह से बात कर रहा है... माफी मांग... माफी मांग उनसे...
रोणा - (अपने गाल सहलाते हुए) तु.... तु जानती नहीं है मुझे लड़की... (गुर्राते हुए) पछतायेगी... बहुत पछतायेगी...
नंदिनी - (और एक थप्पड़ मारती है, उसकी कलर पकड़ लेती है और फिर कड़क आवाज में गुर्रा कर दांत पिसते हुए) आग से हाथ या आँख सेंकने की सोच सकता है... पर छूने की या खेलने की सोचना भी मत... पर यहाँ मैं ज्वालामुखी हूँ... हाथ छोड़... आँख भी सेंकने की सोचा... तो ऐसे जलेगा की तेरे अपनों को... तेरी राख भी नसीब नहीं होगी...
प्रतिभा - (नंदिनी को अपने तरफ खिंचते हुए) सुन बे दो कौड़ी छाप कुत्ते... यह धमकी जो भौंक रहा था... अपने थाने की परिसर के अंदर रख... यहाँ किसीको आँख भी उठा कर देखा... तो अभी के अभी तेरी आँखे नोच लुंगी.... मत भुल... तु मेरे ऑफिस के अंदर है... और पुरा का पुरा कमरा... सर्विलांस में है...
रोणा - (गले से थूक निगलते हुए) स... सॉरी...
प्रतिभा - दफा हो जाओ यहाँ से... (दोनों हारे हुए बंदों की तरह मुड़ कर बाहर की ओर जाने लगते हैं) रोणा... (दोनों रुक पीछे मुड़ कर देखते हैं) तु अगर वैदेही के एफिडेविट के बारे में जानने आया था... तो हाँ... उसकी एफिडेविट कोर्ट में प्रोड्यूस की हुई है... उसकी लॉयर मैं हूँ... तुने यहाँ पर साबित भी कर दिया... उसकी एफिडेविट में कितना दम है...(रोणा अपनी जबड़े भींच कर सिर झुका कर खड़ा होता है) और हाँ... रोणा... तु जिस के दम पर इतना उछल रहा है ना...(रोणा के पास चल कर आती है) एक मुफ्त की सलाह दे रही हूँ... गांठ बांध ले... जब जब सियासत या हुकूमत दांव पर लगती है... तब सबसे पहले हुकुमत प्यादों को कुर्बान कर देती है.... (हाथों से इशारा करते हुए) और तुम दोनों की औकात... प्यादों से ज्यादा नहीं है...(हुकुम देने के अंदाज में) और अभी के अभी... जितनी जल्दी हो सके... तुम दोनों अपने सड़े हुए शक्लें लेकर... (चिल्ला कर) दफा हो जाओ यहाँ से...

दोनों अब घर के बाहर कदम रखे हुए थे कि भाश्वती दो बार ताली बजाती है l दोनों फिर से रुक कर वापस मुड़ कर देखते हैं l

भाश्वती - सुनो बे छछूंदरो... औरत या लड़की को अबला समझने की गलती मत करना... हम अगर अपने में आ गए... बला बनकर तुम पर टुट पड़ेंगे... समझे... गेट आउट...

कह कर दरवाजा बंद कर अपने हाथों को झाड़ते हुए पीछे मुड़ती है l सभी उसे हैरानी से मुहँ फाड़े देखे जा रहे हैं l

बनानी - यह तुने कहा...
दीप्ति - तुने अभी जो कहा... समझी भी.. क्या कहा
भाश्वती - इसमें समझने वाली बात क्या है... जो मुहँ में आया... बोल दिया... आंटी जी और नंदिनी को देख कर मेरा जोश चढ़ गया... इसलिए बहती गंगा में... मुहँ कुल्ला कर दिया...

उसकी बातेँ सुन कर सभी एक दुसरे को पहले देखते हैं फिर सभी मिलकर हँसने लगते हैं l तभी डोर बेल फिर से बजती है l

भाश्वती - आ.. आह्.. लगता है कुछ कमी रह गई... (इतना कह कर दरवाजा खोलती है तो इसबार सामने तापस था और उसके हाथों में कुछ सामान था) (हकलाते हुए) अ.. अ.. अंकल... आइए... अंदर आइए...


अपनी बातों को रोक कर रुप शुभ्रा की ओर देखती है I

शुभ्रा - बस इतना ही...
रुप - हाँ...
शुभ्रा - फिर प्रताप.... वापस नहीं आया क्या...
रुप - नहीं...
शुभ्रा - तो तुम लोग खाना खा कर आ गए...
रुप - नहीं... उस माहौल के बाद... आंटी जी ने कुछ खाना नहीं बनाया.... अंकल बाहर से पकौड़े, बटाटा वड़ा, समोसा और जलेबी लाए थे... तो हम सिर्फ़ वही नास्ता कर... वहाँ से निकल आए...
शुभ्रा - अच्छा... सिर्फ नाश्ता... वह भी बाहर का...
रुप - हूँ...

उधर

विश्व - नंदिनी जी... मेरे बारे में पूछ रही थी क्या...
प्रतिभा - हाँ... सिर्फ नंदिनी ही नहीं... तेरे सारे दोस्त... स्नैक्स लेते समय... तु नहीं था... तो पूछेंगी ही...
विश्व - तो... तुमने क्या कहा...
प्रतिभा - क्या कहती... मैंने बस इतना कहा कि... फ़िलहाल... मेरा बेटा मुझसे नाराज है...

शुभ्रा - ओ... तो तुम्हारे घर से निकलने तक... बेवक़ूफ़ घर नहीं आया...
रुप - (खीज कर) भाभी...
शुभ्रा - हा हा हा हा (हँस देती है) सॉरी... (हँसी को रोकते हुए) तुमने... आंटी जी से... प्रताप के बारे में कुछ पुछा नहीं...
रुप - नहीं... नहीं पुछ पाई... मौका ही नहीं मिला... पर वह भांप गई...

विश्व - क्या... क्या भांप गई...
प्रतिभा - यही की... वह मुझसे कुछ पूछना चाहती थी... जैसे कोई बहुत जरूरी बात... पर वह पुछ नहीं पाई...
विश्व - (सोचते हुए हैरानी भरे लहजे में) नंदिनी जी... कुछ पूछना चाहती थी... पर क्या...
प्रतिभा - यह मैं कैसे कह सकती हूँ... विदा करते वक़्त मैंने उसे रोक कर पुछा भी...

बीते शाम छठी गैंग को विदा करते वक़्त, गाड़ी में बिठाते समय


प्रतिभा - नंदनी... कुछ बात करना चाहती हो मुझसे... है ना...
नंदिनी - (अपना सिर हिला कर हाँ कहती है)
प्रतिभा - उन दो छछूंदरों के बारे में...
नंदिनी - नहीं... उनके बारे में नहीं...
प्रतिभा - फिर...
नंदिनी - (झिझकते हुए) कुछ पर्सनल...
प्रतिभा - ओ...(धीरे से) अकेले में...
नंदिनी - (हल्के से अपना सिर हाँ में हिलाती है)
प्रतिभा - ठीक है... वैसे एक बात पुछुं...
नंदिनी - जी आंटी जी...
प्रतिभा - तुमने उसे थप्पड़ क्यूँ मारा...
नंदिनी - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) वह आपसे जिस बत्तमिजी से बात कर रहा था.... मुझसे रहा ना गया... वैसे भी जब से आया था... उसकी नज़रें मुझे चुभ रही थी... इसलिए...
प्रतिभा - हूँ... ठीक है... अच्छा मेरा नंबर है तुम्हारे पास...
नंदिनी - जी है...
प्रतिभा - है...(हैरानी से) कहाँ से मिला...
नंदिनी - (पहले तो हड़बड़ा जाती है, फिर संभल कर) आप... आप तो एक आइकन हैं... फिर मैं आपकी बहुत बड़ी फैन हूँ... एक्चुयली एक दिन मधु प्रकाशनी के मालकिन से मुलाकात हुई थी... तो उनसे मैंने आपका नंबर हासिल किया था... वैसे भी आपका नंबर ढूंढ निकालना... आपके फैन के लिए... कहाँ मुश्किल है...
प्रतिभा - अरे बाप रे.... कितनी बातेँ कर लेती हो... ठीक है... तो किसी छुट्टी के दिन... मुझे कॉल कर दो... मैं तुम्हारे लिए टाइम निकाल लुंगी... फिर दोनों मिलकर तुम्हारी परेशानी दूर करेंगे ठीक है...
नंदिनी - (हैरान हो कर) दो...नो...
प्रतिभा - मैं और तुम...
नंदिनी - (मुस्करा कर) जी.. जी ठीक है... (कह कर गाड़ी में बैठ जाती है)

शुभ्रा - गाड़ी...? यह गाड़ी कहाँ से आया... तुम लोग तो बस से गए थे ना...
रुप - हाँ... अंकल ने हमारे लिए... दो कार का इंतजाम कर दिया था...

विश्व - वाव डैड... बहुत अच्छे...
तापस - अरे मुझे मालुम था... उनको ड्रॉप करने के लिए गाड़ी चाहिए होगी.. इसलिए मैंने इंतजाम कर दिया था...
प्रतिभा - (विश्व से) अब तेरी नाराजगी दुर हुई या नहीं...
विश्व - बस थोड़ी सी बाकी है...
प्रतिभा - वह किसलिए...
विश्व - आपने मेरी भंडा फोड़ दिया... अब मैं कैसे सामना करूँगा उनका....
प्रतिभा - हा हा हा हा (हँसते हुए) अरे... उसने भी तेरा नाम... बेवकूफ़ के नाम से सेव कर रखा है... और मैंने तुझे बता भी दिया... अब उसको भी तो तेरा सामना करना है...

शुभ्रा - तो... अब क्या फोन पर... उसका नाम बदलेगी...
रुप - क्यूँ.. उसने भी तो मेरा नाम..(मुहँ बनाते हुए) नकचढ़ी रखा है...(अपनी जगह से थाली से उठते हुए) अच्छा... मुझे अब निकलना होगा...

प्रतिभा - निकलना होगा... कहाँ निकलना होगा....
विश्व - अरे माँ.. जो मेरा रेगुलर रुटीन है... उसे तो फॉलो करना पड़ेगा ना...
प्रतिभा - हूँ... ठीक है... पहले बता... नाराजगी दुर हुई या नहीं....
विश्व - (मुस्कराते हुए) माँ... मैं कभी तुमसे... नाराज हो सकता हूँ भला...

विश्व नाश्ता खतम कर हाथ मुहँ साफ कर पहले प्रतिभा के गले लग जाता है और बाहर निकल जाता है, तो उसे बाहर तापस मिलता है l

तापस - चल मैं तुझे... नुक्कड़ के मोड़ तक छोड़ देता हूँ...

विश्व कुछ नहीं कहता, चुप चाप चलने लगता है l तापस भी उसके साथ चलते चलते नुक्कड़ की मोड़ तक पहुँचते हैं l

तापस - (विश्व के कंधे पर हाथ रखकर अपने तरफ मोड़ कर) देख.. मैं जानता हूँ... तु गुस्से में... बदले की आग में जल रहा है... पर कुछ भी हो... तु चाहे उनके साथ कुछ भी कर... पर तुझे.... अभी उनके सामने... अपनी पहचान को रिवील नहीं करना है.... समझा...
विश्व - हूँ...


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दो पहर का वक़्त
होम सेक्रेटरीयट के एक ऑफिस नुमा कमरे के बाहर बल्लभ बैठा हुआ है l दरवाजे पर एएसपी श्रीधर परीड़ा लिखा हुआ है l कुछ देर बाद अंदर से एक पियोन बाहर आता है और बल्लभ को अंदर जाने के लिए कहता है l बल्लभ अपनी जगह से उठ कर अंदर जाता है l अंदर उसे कुर्सी पर परीड़ा बैठा दिखता है l

परीड़ा - क्या बात है... (अपने कुर्सी पर पीठ के बल लेटने के अंदाज में)
प्रधान बाबु आए हमारे चेंबर में...
उनकी कोई जरूरत है...
कभी हम उनको...
कभी उनके कपड़ों को देखते हैं....
खैर... जरूर कोई बड़ी बात है... वरना ऑफिशियल आवर में... तुम... यहाँ...
बल्लभ - हाँ यार... अब मुझे... तुझसे मदत चाहिए...
परीड़ा - वह तो मैं तुमको देख कर ही समझ गया... पिछली बार जितनी भी इंफॉर्मेशन दी थी... वह सब दोस्ती के खातिर... पर... उसकी भी एक लिमिट होती है...
बल्लभ - (कुछ देर चुप हो कर) यह... राजा साहब का काम है..
परीड़ा - ना... (अपना सिर को ना में हिलाता है) यह राजा साहब का काम नहीं है... अगर राजा साहब का होता... तो अब तक सिस्टम के कुछ हिस्से ऐक्टिव हो चुके होते... यह तुम दोनों का काम है...
बल्लभ - यकीन कर यार... राजा साहब ने हम दोनों को काम दिया है... पर... इसे ऑफिशियली करने से मना किया है...
परीड़ा - ह्म्म्म्म... फिर भी... काम हो जाने के बाद... एप्रीसिएशन और इनाम तो... तुम दोनोंको मिलेगा... मेरे हिस्से में क्या आयेगा... घंटा...
बल्लभ - (कुछ देर के लिए चुप हो जाता है, और कुछ सोचने लगता है, फिर) ठीक है... कितना पैसा चाहिए...
परीड़ा - (सीधा हो कर बैठ जाता है) क्या हुआ प्रधान... एक विश्वा से... तुम लोग इतना घबराए हुए हो...
बल्लभ - मत भुल परीड़ा... यह वही विश्वा है... जिसके वजह से राजा साहब पहली बार कोर्ट की सीढ़ियां चढ़े... और कटघरे तक पहुँच गए थे...
परीड़ा - तो.... वह अब... जैल से छुट कर क्या कर लेगा...
बल्लभ - देख... अनिकेत ने एक शक़ जाहिर की... उसकी बातों में... मुझे दम लगा... इसलिए मैंने राजा साहब को कंवींस कर यहाँ आ गया... बीस दिन होने को है... पर अब तक हम खाली हाथ ही हैं...
परीड़ा - ह्म्म्म्म तो तुम्हें... विश्व के रिलेटेड इंफॉर्मेशन चाहिए...
बल्लभ - हाँ.. और साथ साथ अपना कीमत बोल...
परीड़ा - बोल दूँगा... बोल दूँगा... पहले यह बता... तुम यहाँ अकेले अकेले... रोणा किधर है...
बल्लभ - (भन भनाते हुए) मत लो नाम उसका... वह साला... वह साला सटक गया है... पागल हो गया है...
परीड़ा - (हैरान हो कर) ऐसा क्या हो गया...

बल्लभ बीते रात प्रतिभा के घर में जो भी कुछ हुआ बताता है l सब सुनने के बाद

परीड़ा - तो... दो थप्पड़ खा कर लौटा है अपना रोणा...
बल्लभ - हाँ... साला ठरकी... सुबह से ही पगलाया हुआ है..
परीड़ा - मतलब उन दो थप्पड़ों का साइड इफेक्ट...
बल्लभ - हाँ... वही..

फिर सुबह हुई अपने और रोणा के बीच की बात चित ब्योरा देने लगता है

उसी दिन सुबह
xxx होटल के जीम में रोणा खुब पसीना बहा रहा है l बेंच प्रेस करने के बाद लेग प्रेस कर रहा था l उसके कसरत के हर पहलू को जीम इंस्ट्रक्टर देख रहा था l कुछ दुर पर बैठा बल्लभ रोणा को लेग प्रेस करते देख रहा था l जीम वाले कमरे में इन तीन लोगों के अलावा फर्श साफ करने वाला एक आदमी था जो उस वक़्त फर्श साफ कर रहा था l

बल्लभ - इंस्ट्रक्टर बाबु... और कितना देर...
इंस्ट्रक्टर - बस यह आखिरी है... (रोणा से) ओके सर... प्लीज कंटीन्यु... (कह कर वहाँ से चला जाता है)
रोणा - क्या हुआ... काले कोट वाले... कल से गाली देने के लिए मरा जा रहा है...
बल्लभ - (अपनी दांत पिसते हुए) हाँ रे भोषड़ी के... तु वाकई... अब... सबसे बड़ा मादरचोद बन गया है...
रोणा - (मुस्कराते हुए) किसकी माँ चोद दी मैंने...
बल्लभ - चुप बे हराम जादे... हम यहाँ आए किस लिए थे... और हम कर क्या रहे हैं...
रोणा - (लेग प्रेस रोक कर बल्लभ के सामने बैठते हुए) देख... मेरे को जो पता करना है... वह मैं एक दो दिन में पता कर ही लूँगा...
बल्लभ - किससे... वह तेरा गुर्गा... क्या नाम बोला था तुने.. आँ... टोनी...
रोणा - हाँ...
बल्लभ - तो फिर हम कल... एडवोकेट प्रतिभा के पास गए ही क्यूँ...
रोणा - इसलिए... के तु चाहता था... उस वैदेही की मासी से मिल कर... पता करने के लिए...
बल्लभ - पर फटी तो तेरी थी ना... उस मासी से...
रोणा - हाँ... पर जब परीड़ा ने कहा कि... ज्यादातर काम काजी औरतें... उसे मासी कहते हैं... तब मेरा इंट्रेस्ट उस बुढ़िया पर खतम हो गया...
बल्लभ - (गुस्सा हो कर) तो भोषड़ी के... तो कल तेरे साथ मेरी बेइज्जती कराने गया था क्या...
रोणा - गया तो था.. तेरा साथ देने... पर...
बल्लभ - पर... पर साले ठरकी... लड़की देख कर फ़िसल गया...
रोणा - (टावल से पसीना पोछते हुए) हाँ... साली क्या चीज़ थी..
बल्लभ - (दांत पिसते हुए) इसीलिए तो तुझे मादरचोद कहा... जुम्मा जुम्मा दो ही दिन हुए हैं... साले हॉस्पिटल की बेड से उठे... फिर से किसी नर्स की पिछवाड़ा देखने की खुजली हो रही है क्या बे तुझे...
रोणा - क्यूँ इतना पका रहा है बे.. कल उस एडवोकेट के घर में छह छह लड़कियाँ थीं... किसी एक से नैन लड़ा ले...
बल्लभ - बे... दिमाग सटक गया है बे क्या तेरा... तुने कहा... इसलिए मैंने मैटर को सीरियसली लिया था... इसी मैटर के चलते.. दस दिन हस्पताल में सड़ता रहा... फिर भी तेरी अक्ल घास चर रही है...

रोणा का चेहरा धीरे धीरे सख्त हो जाता है, जबड़े भींच जाता है, उसकी आँखे लाल होने लगते हैं l उसका अचानक यह परिवर्तन देख कर एक पल के लिए बल्लभ सकपका जाता है l

रोणा - (अपने गाल को सहलाते हुए)गलती कर दी उसने.... कमीनी मिर्ची लग रही थी... इसलिए आँख सेंक रहा था... मेरी गाल बजा कर बता गई... कितनी तीखी है...
बल्लभ - ऐ... ऐइ.. रोणा... यह... अचानक तुझे क्या हो गया.. वह... एक बच्ची है... कॉलेज में शायद पढ़ रही होगी... उसकी उम्र ही क्या होगी...
रोणा - मुझे उसकी उमर से नहीं... उसकी कमर से मतलब है...
बल्लभ - (चिढ़ कर खड़ा हो जाता है) तु हमारा मिशन भूल रहा है... बीस दिन होने को आए.. वहीँ के वहीँ रह गए हैं... एक कदम भी आगे नहीं बढ़े हैं... और तु अपना मिशन और टार्गेट चेंज कर रहा है... (हांफने लगता है) पता नहीं वह लड़कियाँ वहाँ पर क्या कर रहीं थी... तु अब उन सबके पीछे पड़ेगा...
रोणा - उन सबके नहीं... सिर्फ उस लाल मिर्ची के पीछे... कसम से... उसे अपने नीचे लाउंगा जरूर...
बल्लभ - (चिढ़ कर) छी... पागल हो गया है तु... हम कुछ जानते भी नहीं है उसके बारे में... अबे कटक या भुवनेश्वर में क्यूँ बखेड़ा खड़ा कर रहा है... अगले हफ्ते राजा साहब आ रहे हैं... पता नहीं वह कौनसा मनहूस घड़ी था... जब तु राजा साहब के आगे विश्व के बारे में हांक रहा था... मैंने भी तेरी तरफदारी की थी...
रोणा - तो मरा क्यूँ जा रहा है...
बल्लभ - अबे... (चिल्लाते हुए) पहले अपने दिमाग में घुसा... विश्व जैल से छूट गया है... राजगड़ नहीं गया है... गायब है... अगर वह कुछ कर रहा है... तो क्या कर रहा है... कैसे कर रहा है... रुप फाउंडेशन की गड़े मुर्दे उखाड़ने के लिए... उसकी खबर राजा साहब को देना है... भूल गया क्या बे... (हांफने लगता है)
रोणा - चिल्ला क्यूँ रहा है... मैं जानता हूँ... मेरे इन्फॉर्मर को आने दे... विश्व के बारे में वह जितना बतायेगा... मैं राजा साहब को उतना ही बता दूँगा...
बल्लभ - वाह.. खाल बचाने के लिए बहाना अच्छा है... साले... अगर वह सचमुच ज्वालामुखी निकली तो...
रोणा - वह मिर्ची है... लाल मिर्च... बहुत तीखी है... इतनी की.. आँख लगाओ तो आँख जले.. मुहँ लगाओ तो मुँह जले... दिल लगाओ तो दिल जले... अरे जो जलाने की चीज़ हो... वह तो जलायेगी ही... मेरा तो उसे देखने के बाद... तन बदन में आग लगी हुई है... बुझाना तो पड़ेगा ही... (चिढ़ कर पैर पटक कर बल्लभ वहाँ से जाने लगता है) अरे ओ काले कोट वाले... कहाँ जा रहा है...
बल्लभ - तुझसे तो उम्मीद करना बेकार है... इसलिए मैं जा रहा हूँ... अपने तरीके से पता करने...

बल्लभ अपनी सुबह की कहानी खतम करता है l परीड़ा अपनी आँखे मूँद कर सुन रहा था l बल्लभ के रुकने के बाद आँखे खोलता है और बल्लभ को कुछ कहने के लिए मुहँ खोलने को होता है कि तभी बल्लभ का फोन बजने लगता है l बल्लभ देखता है नंबर तो स्क्रीन पर दिख रहा है पर कोई नाम डिस्प्ले नहीं हो रहा था l बल्लभ फोन उठाता है I परीड़ा उसे स्पीकर पर डालने को कहता है l

बल्लभ - हैलो....
:- सर मैं होटल xxx की रिसेप्शन से बात कर रही हूँ...
बल्लभ - (हैरान हो कर) xxx की रिसेप्शन... क्यूँ... क्या हुआ...
रिसेप्शनीस्ट - सर... यहाँ आपके रुम पार्टनर के साथ... एक... एक्सीडेंट हो गया है...
बल्लभ - (अपनी कुर्सी से उछल कर खड़ा होता है) व्हाट...
Shandaar update 😍😍
 

Luckyloda

Well-Known Member
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बहुत ही शानदार अपडेट👌👌👌👌

यह बात बिल्कुल सच है कि जब कुत्ते की मौत आती है तो वह शहर की तरफ भागता है,
यही हाल बिल्कुल रोणा का होने वाला है उसके बुरे कर्म हीं उसे नंदनी की तरफ नजर उठाकर देखने के लिए मजबूर कर दिया

😜😜😜

वह नहीं जानता कि जिस महल का वह एक छोटा सा प्यादा है वह उस महल की इज्जत को गंदी नजरों से देख रहा है



उसके बुरे हाल के बारे में सोच सोच कर हर बार बदन में एक अलग से झुर्री उठ जाती है Jab Nandini Wali Baat Vikram ,Veer, शुभ्रा और Raja Sahab ko Maloom Hogi 🤣🤣🤣Agar Kisi tarah ho gai to Rona ka kya hashr hoga🤔🤔🤔


agale update ka bahut basebri se Intezar rahega ke hotel mein kya hua hoga
 
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