एक सौ सातवां अपडेट
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विश्व इतना कह कर घर से निकल गया था, पर उसकी कहे सारी बातेँ वैदेही के कानों में गूंज रही थी और वैदेही खुद से विश्व की कही बातों को याद करते हुए दोहरा रही थी l
"क्या.. मेरा विशु... भैरव सिंह से डर रहा है... हाँ... क्यूँ नहीं... जब सारा राजगड़ डरता है... तब... ओह्ह..."
अपने भीतर वह घुटने लगती है, कसमसाने लगती है l एक छटपटाहट उसके अंदर से बाहर निकलने लगती है l
"नहीं... नहीं... पर क्यूँ.... जब वह जान गया... मेरे ऊपर हुए अत्याचार को... क्या उबाल नहीं मारा उसके नसों में बहते खून में... क्यूँ... "
घुटन और छटपटाहट से निकलने के लिए वैदेही खुद को ही जवाब देने लगी
"क्या कर लेता वह भैरव सिंह का... उसके पास तक नहीं पहुँच पाता... जहां सारा राजगड़ ही नहीं... हर तंत्र और प्रशासन के लोग... भैरव सिंह के आगे झुकते हैं... उससे नज़रें नहीं मिलाते हैं... विशु कैसे अपनी नजरें तान सकता था... आह्ह्ह्ह... मैं विशु से बदले की कामना कर रही हूँ... क्यूँ..."
वैदेही चारपाई से उठती है और घर से बाहर देखती है I बाहर लोगों की आवाजाही लगी हुई है l वैदेही में हिम्मत नहीं होती कि वह बाहर जाए, क्यूंकि बाहर अभी भी उजाला था l वह फिर अंदर आकर शाम ढलने की इंतजार करने लगती है l
उधर विश्व वैदेही से अपनी बात कह कर अपने आप को कोसते हुए चला जा रहा था l तभी उसे रास्ते पर भीमा के अखाड़े का एक पहलवान मिलता है l
पहलवान - क्या रे विश्वा... दो दिन हो गए... महल क्यूँ नहीं आया...
विश्व - (झिझकते हुए) वह... मेरा एक काम निकल आया था... हस्पताल में...
पहलवान - (खिल्ली उड़ाते हुए) हाँ हाँ... मालुम है... क्या काम निकल आया था... मालुम है रे हमें...
पहलवान की बात सुन कर विश्व का दिल बैठ जाता है, वह पहलवान से अपनी नजरें चुराने लगता है l
पहलवान - क्यूँ रे... कोई चुड़ैल थी ना... हा हा हा हा हा... साली नंगी भाग रही थी... तेरे हाथ लग गई... (भवें नचा कर) कैसी है... सुना है... चुड़ैल नहीं... माल है... वह भी कड़क...
विश्व - (चेहरा रोनी हो जाता है) प्प्ल.. प्लीज कल्लू भैया... वह.. वह मेरी... दीदी है... (हाथ जोड़ कर) प्लीज...
कल्लू - अच्छा... तो वह तेरी दीदी है... ह्म्म्म्म... पर मैंने तो सुना था... तेरी दीदी को... कुछ साल पहले... डाकुओं ने... जीप और मोटर साइकिल पर आकर उठा लिए थे... (विश्व का चेहरा ऐसा हो जाता है कि रुलाई फुट पड़े) सात साल... ह्म्म्म्म... क्या हुआ था... उसके साथ..
विश्व - (हकलाने लगता है) क.. क.. क.. कल्लू भैया... प्लीज...
कल्लू - अच्छा.. अच्छा... ठीक है... चल... महल चल... बहुत काम पड़े हैं...
विश्व - जी... चलिए...
आगे आगे कल्लू चलने लगता है l उसके पीछे पीछे विश्व चलने लगता है l फिर अचानक कल्लू रुक जाता है l
कल्लू - तु मेरे पीछे क्यूँ आ रहा है रे...
विश्व - आप ही ने तो कहा... महल चलने के लिए...
कल्लू - हाँ तो तु अलग जा ना... मेरे पीछे पीछे... या साथ साथ नहीं...(विश्व हैरान हो कर कल्लू को देखने लगता है) हाँ... मेरे साथ नहीं... वरना... मुझे लोग तेरे जीजा समझने लगेंगे... हा हा हा हा हा...
विश्व का मन किया जोर से चीखे l क्यूँकी कल्लू की हर बात उसका कलेजा चिर रहा था l बड़ी मुश्किल से खुद को संभालता है और
विश्व - ठ्.. ठीक है... कल्लू भैया... आप चले जाइए... मैं... मैं अलग रास्ते से हो कर... महल पहुँच जाऊँगा....
कल्लू - हाँ... यह बढ़िया है... और एक बात... तु आज से मुझे... भैया मत बोल... कल्लू जी... बस... हाँ कल्लू जी बोल... (विश्व हैरान हो कर कल्लू के चेहरे को देखने लगता है) अबे ऐसे क्यूँ देख रहा है... बात की गहराई को समझ... बस...
कह कर कल्लू वहाँ से चला जाता है l विश्व थोड़ी देर के लिए वहाँ पर जम जाता है l उसे महसुस होता है जैसे कई नजरें उसकी ओर देख रहे हैं l पर विश्व हिम्मत जुटा नहीं पा रहा था उन नजरों का सामना करने के लिए l कुछ देर के लिए अपनी आँखे बंद कर खुदको नॉर्मल करने की कोशिश करता है फिर एक गहरी सांस लेकर, सिर झुका कर महल की ओर चलने लगता है l थोड़ी देर बाद वह महल में पहुँचता है l एक आदमी उसे बगीचे की ओर इशारा कर उस तरफ जाने के लिए कहता है l विश्व उस तरफ जाता है देखता है बगीचे में भैरव सिंह अकेला बैठा हुआ है, और कुछ मेहमान उसके सामने खड़े हुए हैं l उसकी उन लोगों के साथ कोई सभा लगा हुआ है l विश्व चलते हुए वहाँ पर एक किनारे पर खड़ा हो जाता है l भैरव सिंह को उन लोगों से बातेँ करते हुए देखता है, कुछ दुर पर एक पेड़ के जड़ पर पाइप से पानी गिर रहा है, बगल में शावल और कुदाल रखा हुआ था l उस शावल और कुदाल को देख कर अपने अंदर से आवाज सुनने की कोशिश कर रहा था, पर उसके अंदर से कोई आवाज उसे नहीं आ रहा था l तभी उसके कानों में एक कड़क और रौबदार आवाज पड़ती है l
- हाँ तो विश्वा... दो दिन से... कहाँ थे...
विश्व - (चौंक जाता है) जी... जी... (देखता है वह जो लोग भैरव सिंह से बात कर रहे थे सारे के सारे उल्टे कदम वापस जा रहे हैं, वह तुरंत अपनी नजरें झुका कर) जी राजा साहब... वह.. (चुप हो जाता है)
भैरव सिंह भी चुप रहता है, बगल में खड़े भीमा उसे कहता है
भीमा - और कितने साल... महल में काम करने के बाद मालुम होगा तुझे... राजा साहब बस एक बार सवाल करते हैं...
विश्व - (हकलाते हुए) म.. म्म्म.. माफी राजा साहब... वह बात दरअसल... परसों... मुझे मेरी दीदी मिली... जो बरसों पहले बिछड़ गई थी...
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... बरसों बाद मिली... ह्म्म्म्म... कैसे बिछड़ गई थी...
विश्व - जी वह... जी... बात... यह है कि... वह...
भैरव सिंह - ठीक है.. ठीक है... पुलिस में कंप्लेंट किया था या नहीं...
विश्व - जी.... जी नहीं...
भैरव सिंह - क्यूँ.... क्यूँ नहीं की... यहीं... बस यहीं पर तुम लोग... गलती कर देते हो... कोई नहीं... हमने इंस्पेक्टर रोणा को बुलाया है... तुम अभी भी कंप्लेंट कर सकते हो... लो... आ गया... रोणा...
रोणा - (भैरव सिंह को सैल्यूट देने के बाद) किस लिए याद किया इस गुलाम को राजा साहब... बस हुकुम कीजिए...
भैरव सिंह - खड़े क्यूँ हो रोणा... बैठ जाओ...
रोणा - मेरी हस्ती क्या है... मेरी बिसात क्या है... आपकी हुकुम बज़ा रहे हैं... यही इस जीवन की गौरव है... आपके सामने अगर बैठ गए... तो उससे बड़ा पाप... ना होगा इस संसार में....
भैरव सिंह - ह्म्म्म्म... तो रोणा... तुम शायद इसे... (विश्व की ओर दिखा कर) जानते होगे...
रोणा - (विश्व की ओर देख कर) ह्म्म्म्म... शायद जानता हूँ... भीमा... यह वही है ना... तुम्हारे अखाड़े के सारे पहलवानों का लंगोट साफ करता है...
भीमा - जी... रोणा बाबु... यह सिर्फ अखाड़े में ही नहीं... महल के बगीचा का पुरा रख रखाव भी यही करता है... महल के मर्दों के सारे कपड़े... बिछौने... चादर सभी... यही साफ करता है... और उसके बाद... खेतों में भी... इतना काम करता है... की बैल भी शर्मा जाए... और सबसे खास बात... राजा साहब का प्यारा कुत्ता... टाइगर को नहलाने से लेकर.. घुमाने... खिलाने और उसके... टट्टी तक उठाता है....
रोणा - अररे बाप रे... इतना काम करता है... (विश्व के ओर देख कर) तो फिर... सोता कब है... खैर... क्या प्रॉब्लम है तेरी...
विश्व - जी...
रोणा - हाँ हाँ... क्या प्रॉब्लम है तेरी...
भैरव सिंह - इसकी बहन सात साल पहले गुम हो गई थी...
रोणा - गुम हो गई थी... वह भी सात साल पहले...
भैरव सिंह - हाँ... परसों ही मिली है इसे... रोणा... इसकी कंप्लेंट लिखो... सात साल कहाँ गुम रही.. वगैरह वगैरह...
रोणा - हाँ... चल भाई... थाने चल... कंप्लेंट लिख...
विश्व - नहीं नहीं... वह मिल गई है... यही काफी है... मुझे कोई कंप्लेंट नहीं लिखवानी...
रोणा - अबे.. राजा साहब कह रहे हैं...
विश्व - जी नहीं... इंस्पेक्टर साहब... मुझे कंप्लेंट नहीं लिखवानी...
रोणा - राजा साहब... यह तो मना कर रहा है... आपकी हुकुम की नाफरमानी कर रहा है....
विश्व - आप ऐसे ना बोलिए... इंस्पेक्टर साहब... राजा साहब तो भगवान हैं... उन्होंने जो दे दिया... वही तो प्रसाद है.. आशिर्वाद है...
रोणा - वाह... क्या बात है... ईश्वर सत्य है... सत्य ही राजा साहब हैं...
विश्व चुप रहता है l रोणा बड़ी आश लिए भैरव सिंह की ओर देखता है l उसके इस तुक बंदी पर शायद भैरव सिंह या भीमा कुछ कह दें l पर ऐसा कुछ नहीं होता l
भैरव सिंह - ठीक है विश्वा... जाओ... टाइम हो गया है.. टाइगर के संढास जाने का वक़्त हो गया है... जाओ घुमा लाओ...
विश्व - जी...
भैरव सिंह का हुकुम मिलने के बाद विश्व वहाँ से निकल जाता है महल का एक मात्र कुत्ता टाइगर के पास, नस्ल से पीट बुल, बहुत ही खतरनाक पर विश्व का चहेता l टाइगर को जैसे विश्व का गंध मिल जाता है वह खुशी के मारे काउं काउं आवाज़ निकालने लगता है l जैसे ही विश्व को देखता है वह उछलने लगता है l विश्व उसे खोल कर ज़ंजीर के साथ पकड़ कर घुमाने ले जाता है l उसके बाद महल के दुसरे कामों में व्यस्त हो जाता है l इस तरह शाम ढलने लगती है l उधर शाम को जब अंधेरा छाने लगता है, वैदेही खुद को शॉल में छुपा कर घर से निकलती है l अंदाजा लगाते हुए वह उमाकांत सर जी के घर पर पहुँचती है l देखती है घर के बरामदे में ही उमाकांत सर एक कुर्सी पर बैठे हुए हैं और उनके सामने नीचे बैठ कर एक बारह साल का बच्चा अपना पढ़ाई कर रहा है l वैदेही को देख कर दोनों का ध्यान भंग होता है l
उमाकांत - कौन... कौन हो तुम... (वैदेही अपने चेहरे पर से शॉल हटाती है) वैदेही... तुम... यहाँ... इस वक़्त...
वैदेही - मैं आपसे कुछ... बात करने आई थी...
उमाकांत - (अपने नाती से) श्रीनु... अंदर जाओ...
श्रीनु अपने किताबें और कॉपी सब समेट कर अंदर चला जाता है l उसके अंदर जाने के बाद
उमाकांत - बैठो वैदेही... (वैदेही बरामदे पर बैठ जाती है) अब कहो... क्या बात करना चाहती हो...
वैदेही कहने के लिए तत्पर होती है कि फिर अचानक रुक जाती है और अंदर ही अंदर किसी बात को लेकर कसमसाने लगती है l
उमाकांत - वैदेही...
वैदेही - हूँ... (चौंक कर) हाँ... हाँ सर...
उमाकांत - क्या हुआ... किस बात से परेसान हो...
वैदेही - वह... वह... मैं... वह.. वि.. विशु को लेकर...
उमाकांत - विशु को लेकर... क्यूँ... किस बात के लिए...
वैदेही के मन में द्वंद चल रही थी l बहुत कुछ पूछना चाह रही थी पर उसकी जुबान साथ नहीं दे रही थी l इसलिए वह मन ही मन छटपटा रही थी l उमाकांत की पारखी नजर से वैदेही की छटपटाहट छुप नहीं पाई l
उमाकांत - साफ दिख रहा है... तुम किसी बात से परेसान हो.... कुछ ऐसा है... या हुआ है... जिसे तुम स्वीकार नहीं कर पा रही हो.... क्या जानना चाहती हो... कहो...
वैदेही - वह... विशु... ऐसा कैसे हो गया है... सर... मैंने उसे क्या बनाया था... पर वह... राजा की गुलामी कर रहा है... उससे डर रहा है... क्यूँ...
उमाकांत सर चुप हो जाते हैं, वह वैदेही को देख कर उसके मन में चल रहे उथलपुथल को समझने की कोशिश करते हैं l
उमाकांत - ह्म्म्म्म... तुम्हारे मन में चल रहे अंतर्द्वंद को समझ रहा हूँ... (अपनी कुर्सी से उठ कर वैदेही के पास आ कर खड़े होते हैं, एक गहरी सांस छोड़ते हुए) वैदेही... जब तुम पर जुल्म हुआ... तो विश्व ने उग्र अपना स्वाभाविक उग्र प्रतिक्रिया दिखाया... कुल्हाड़ी से एक डाकू का हाथ काट डाला... पर कितना समय टिक पाया... अगले ही क्षण वह लठ लगने के बाद धराशायी हो गया... तब वह सिर्फ तेरह वर्ष का था... जितने दिन हस्पताल में रहा... तुम्हें ही याद करता रहा... जैसा कि मैंने पहले भी बताया था... उसके बेहोशी के हालात में... हस्पताल से राजा साहब के आदमी... उसकी जानकारी ले रहे थे... क्यूँ...
उमाकांत यह कह कर वैदेही की ओर देखते हैं l वैदेही भी नासमझ की तरह उमाकांत सर को देखती है l
उमाकांत - यह क्षेत्रपाल... भले ही काले करतूत करते हैं... पर सफेद पोश का नकाब ओढ़े रहते हैं... इतना सफेद.. के उस पर जरा सा दाग भी लगने नहीं देते... उन्हें डर तो नहीं था... पर फिक्र ज़रूर था... कहीं विशु... पुलिस के पास जा कर कंप्लेंट ना लिखवा दे... यकीन मानों वैदेही... अगर विशु ऐसा कुछ करता... तो आज विशु जिंदा ना होता... इसलिए उसके याददाश्त खोने की बात कही...
वैदेही अब कुछ कुछ समझने लगती है l वह धप कर बरामदे में बैठ जाती है l
उमाकांत - हाँ वैदेही... तेरह वर्ष के विशु को जिंदा रखना था... बेहतर यही था... की विशु कुछ करे ना... और उन लोगों के नजरों के सामने ही रहे... इसीलिए मैंने... राजकुमारी को पढ़ान के लिए... विशु को भी... और भैरव सिंह को भी राजी करा लिया... सिर्फ और सिर्फ विशु को जिंदा रखने के लिए... उनके सामने रहा... उनको यह एहसास होता रहा... विशु से उनको खतरा नहीं है... और राजा साहब से यह कहा... कुछ सालों बाद विशु की याददाश्त लौट आ सकती... तब तक सारी बातेँ... पुरानी हो जाएगी... इस बात ने... विशु को जिंदा रखे हुए है....
वैदेही - (आँखों में आंसू तैरने लगते हैं) वह जिंदा कहाँ है... सर... यह उसकी कैसी जिंदगी है... राजा की गुलामी कर रहा है...
उमाकांत - वैदेही... तुम किस भ्रम में जी रही हो... तेरह वर्ष का लड़का... राजा का गुलामी ना करता... तो क्या करता... (वैदेही चुप रहती है) किस्से कहानियों में... कोई बच्चा किसी राक्षस को शायद मार दे... पर वास्तविकता... राजा साहब और विशु के बीच... पहलवानों की... लठैतों की फौज है... उस राजा के सामने... तंत्र और प्रशासन झुकते हैं... आज भले ही विशु बीस बरस का है... पर वह कर भी क्या सकता है... (फिर थोड़ी मायूसी भरी आवाज में) राजा साहब के महल में रह रह कर... राजा के बारे में जान जान कर... विशु भी इन गांव वालों की तरह ही हो गया है... अंदर आकंठ आक्रोश तो है... पर कुछ ना कर पाने की विवशता... समय के साथ साथ परत दर परत चढ़ कर... उसके आक्रोश को दबा दिया है... यह सिर्फ विशु की बात नहीं है वैदेही... इस गांव में रहने वाले हर एक कि यही दसा है....
वैदेही - तो क्या... राजगड़ में ऐसा ही चलता रहेगा...
वैदेही की इस सवाल के बाद उमाकांत चुप रहता है और वैदेही के चेहरे को देखने लगता है l कुछ देरी के चुप्पी के बाद
उमाकांत - हाँ... शायद...
वैदेही - (बहुत ही पीड़ा भरी आवाज में) क्यूँ... यह जीना भी कोई जीना है... सैकड़ों सालों से... पीढ़ी दर पीढ़ी... मर मर कर जी रहा है... क्यूँ... क्या इस अंधेरे का कोई सवेरा नहीं है...
उमाकांत - है... हाँ है... पर इस अंधकार के पार... उस सबेरे की लिए.. जागना तो पड़ेगा... जिंदा होना पड़ेगा... (एक पॉज लेकर) हर समाज को... एक नायक की आवश्यकता होती है... यहाँ दबे कुचले बिखरे हर मरे हुए प्राण को भी... उनके नायक की प्रतीक्षा है... जब उन्हें उनका नायक मिल जाएगा... तब सदियों से... उनके विवशता, कुछ ना कर पाने की अकर्मण्यता के तले... धधक रहे लावा को राह मिल जाएगा... तब... हाँ हाँ तब... ऐसा प्रलय आएगा... की फिर कोई राजा जनम नहीं लेगा...
वैदेही - ऐसा नायक कौन है... कहाँ है...
उमाकांत - हर एक के भीतर... एक नायक छुपा रहता है... बस उसे पहचानने की आवश्यक है... विशु के भीतर वह नायक है... तुम चाहो... तो वह जाग सकता है...
वैदेही यह सुन कर एक दम शून हो जाती है l वह हैरानी से उमाकांत सर की ओर देखने लगती है l
उमाकांत - हाँ... वैदेही... हाँ... आज विशु की अकर्मण्यता तुम्हें कचोट रही है... क्यूंकि तुमने विशु को ऐसे नहीं बड़ा किया था... पर मत भूलो... सैकड़ों वर्षों के बाद... आम आदमियों के बीच से... कोई उठा था... जिसने राजा साहब के... एक आदमी का हाथ काटा था... अनजाने में ही सही... इतिहास ने भविष्य की... अपनी एक झलक दिखाया था... तुम ही हो... उसके भीतर.. भभक रहे दावानल को दिशा दे सकती हो... उसके भीतर के विवशता को सैलाब की तरह मार्ग दे सकती हो...
वैदेही - मैं... मैं... मैं क्या करूँ...
उमाकांत - इतिहास के पन्ने... कभी कभी पलट कर देख लिया करो वैदेही... स्वराज के प्रथम नायक शिवाजी हैं... पर उनके गुरु... माता जीजा बाई थीं... चन्द्रगुप्त मौर्य भले ही प्रथम अखंड भारत के चक्रवर्ती नायक बनें... पर उन्हें मार्ग दिखाने वाले चाणक्य थे... अर्जुन भले ही कुरुक्षेत्र को जीता हो... पर उसके भीतर के समर वीर को जगाने वाले... श्री कृष्ण थे... इसलिए... अगर अगर राजगड़ का भविष्य बदलना चाहती हो... तो तुम गुरु बनो अपने भाई के... वह ऐसा क्रांति छेड़ेगा... ऐसा क्रांति छेड़ेगा... की उसके पीछे पुरा राजगड़ खड़ा हो जाएगा...
वैदेही अपने अंदर फिर भी ज़ज्बात को जगा ना सकी l वह यह सब सुन कर अपना सिर झुका कर सिकुड़ कर सिमट कर बैठ जाती है l
उमाकांत - क्रांति की प्रतीक्षा समाज में हर किसी को होती है... हर तबके को होती है... पर कोई अपने घर से शुरु नहीं करता... यही चाहते हैं... शुरुआत हमेशा किसी दुसरे के घर से हो... पड़ोसी के घर से हो... क्या विशु के अंदर के आक्रोश को जगाने के लिए... तुम्हें किसी दुसरे की आवश्यकता है... (वैदेही चुप रहती है) अगर हाँ... तो तुम्हें भी हर गांव वाले की तरह... एक नायक की प्रतीक्षा करनी होगी... अगर नहीं... आरंभ तुम्हें खुद से करनी होगी...
वैदेही - (टूटे हुए आवाज में) कैसे... कैसे... कैसे...
उमाकांत - याद करो... जब मैंने तुम्हें हस्पताल में... तुम्हारी खैरियत पूछी... तब तुमने कहा था... की तुम जिंदा नहीं हो...
वैदेही - (भारी गले से) हाँ.. नहीं हूँ मैं जिंदा... और यहाँ है भी कौन जिंदा... मुर्दों की गांव है.. मुर्दों की बस्ती है... मुर्दे ज़ज्बात हैं...
उमाकांत - तो सबसे पहले खुद को जिंदा करो... फिर दूसरों में प्राण भरो...
वैदेही - मैं...
उमाकांत - हाँ... तुम... सबसे पहले तुम खुद को जिंदा करो... तुम खुद को स्वयंसिद्धा करो... तुम्हें जिंदा देख कर... विशु भी जिंदा हो जाएगा... फिर वह धीरे धीरे सबको जिंदा करता जाएगा... लोगों को उनका नायक मिल जाएगा... उसके बाद क्रांति... अपने आप करवट लेगा... एक नया रंग ले लेगा...
वैदेही का सुबकना कराहना सब खतम हो जाता है l उसके आँखों से बहते आँसू पोछते हुए उठ खड़ी होती है l
वैदेही - आपने ठीक कहा सर... मैं खुद को मरी हुई समझ रही थी... और मुर्दों से उम्मीद पाली बैठी थी... अब मैं खुद को जिंदा करूंगी... विशु के अंदर सोया हुआ आक्रोश को... शकल दूंगी... उसके लिए मार्ग बनाऊँगी... राजगड़ में क्रांति आएगी... अतीत में अन्याय था... वर्तमान भयाभय है... पर भविष्य ऐसा नहीं होगा... यह मेरा खुद से... इस राजगड़ की माटी से वचन है....
चर्र्र्र्र् गाड़ी रुक जाती है l रुप की कानों से ईयर पॉड निकल कर गिर जाती है l रुप कार की खिड़की से बाहर की ओर देखती है शहरी दृश्य उसे कुछ दिखाई नहीं दे रही है l पक्के सड़क छूट चुकी थी, अब कच्चा पक्का सड़क पर गाड़ी खड़ी थी l सामने कोई गांव वाला अपने बैलों को हांक कर सड़क के किनारे ले जा रहा था l
रुप - (गुरु से) काका... यह हम कहाँ आ गए....
गुरु - बेटी हम राजगड़ से कुछ ही दूरी पर हैं...
रुप - मतलब... हम राजगड़ के अंदर नहीं पहुँचे हैं...
गुरु - नहीं बेटी...
रुप - ठीक है... जब राजगड़ के अंदर हम जाएं... तब गाड़ी को... xxx चौक पर रोक देना... किसी बहाने से...
गुरु - क्यूँ... क्यूँ बेटी...
रुप - (अपनी दांत पिसते हुए) उस चौक पर किसीकी दुकान है... जिससे मुझे कुछ निजी हिसाब करने हैं...
गुरु - पर बेटी... देरी हो गई तो... महल में...
रुप - इसीलिए तो कह रही हूँ... कोई बहाना बना कर... गाड़ी थोड़ी देर के लिए.... xxx चौक पर रोक दीजियेगा... मुझे ज्यादा से ज्यादा... दस मिनट लगेंगे...
गुरु - पर बेटी महल में मुझसे पूछेंगे तो...
रुप - काका... आप उसकी फिक्र ना करें... मैं चाची माँ को अच्छी तरह से समझा दूंगी...
गुरु - ठीक है बेटी....
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ओंकार चेट्टी कैंची से रिबन काटता है l पास खड़े फोटोग्राफरों की कैमरे के फ्लैश लाइट चमकने लगते हैं l पत्रकारों के सहित ओंकार कीड वर्ल्ड में प्रवेश करता है वहाँ पर लगे कुछ नए गेम जोन की ओर जा कर देखने लगता है l यह केके का मॉल था, जिसमें कुछ गेम रातों रात शामिल किया गया था जिन्हें आज चेट्टी उद्घाटन के साथ साथ अपना प्रचार करने के लिए पत्रकारों को बुलाया गया था I जब चेट्टी नए गेम को देख रहा था तभी कुछ पत्रकार ओंकार से सवाल पूछने लगते हैं
पत्रकार एक - तो.. ओंकार चेट्टी जी.. क्या घुमते घुमते आपसे कुछ सवाल करें....
चेट्टी - हाँ हाँ... क्यूँ नहीं....
पत्रकार एक - सर यह मॉल में नया कीड वर्ल्ड का उद्घाटन कर... क्या आपने दो बारा राजनीती के मैदान में आने का ऐलान कर रहे हैं...
चेट्टी - वेरी स्मार्ट.... हाँ यह समझ लीजिए... एक नई पहचान... एक नई ताकत के साथ... एक नई जोश के साथ... मैं वापस आ गया हूँ...
पत्रकार दो - चेट्टी सर... अपनी नई पहचान से... नई पारी को... चुनावी गंगा पार लगा सकते हैं.... क्यूंकि आप अभी विपक्षी पार्टी में शामिल हुए हैं.... और आपकी विधायकी क्षेत्र में... पिछली बार आपको हार का सामना करना पड़ा था...
चेट्टी - पिछली बार मेरा दुर्भाग्य था... मैं सिर्फ खोया ही था... पर अब नहीं... अब कि बार... यह दल पूरे स्टेट में हारेगी... लिख लीजिए...
पत्रकार तीन - हाँ दुर्भाग्य... आप सिर्फ खोए थे... यहाँ तक नाम... पहचान... और....
चेट्टी - और सबसे अहम... बेटा... मैंने पिछली बार अपना बेटा खोया था...
पत्रकार एक - पर हमने....
चेट्टी - बस... एक काम करते हैं... चूंकि पूरी प्रेस क्लब इंवाइटेड है... तो क्यूँ ना... लंच के बाद... हम प्रेस विज्ञप्ति करें... आपके सारे सवालों का जवाब... मैं वहीँ पर दे दूँगा...
पत्रकार - जी ठीक है... यह बढ़िया रहेगा...
चेट्टी मॉल के मालिक केके के साथ वहाँ से निकल जाता है l केके के गार्ड्स पत्रकारों को लेकर फूड पार्क में ले जाते हैं l इधर चेट्टी चलते चलते रास्ते में केके से पूछता है
चेट्टी - आ गया वह...
केके - हाँ... अभी मेरे आदमी के साथ लोगों के भीड़ में है...
चेट्टी - ह्म्म्म्म... मीटिंग कहाँ रखवाया है...
केके - मेरे ऑफिस में...
चेट्टी - ठीक है... तो भीड़ खुलवाओ... लोगों को अंदर आने दो...
केके - ठीक है...
कह कर केके अपना एक आदमी को इशारा करता है l वह आदमी वायर लैस में लोगों को अंदर छोड़ने के लिए कहता है l उसके बाद केके चेट्टी से
केके - सर... आपने उसे यहाँ मिलने के लिए क्यूँ कहा... हम कहीं और भी मिलने के लिए... अरेंजमेंट कर सकते थे...
चेट्टी - कुछ बातेँ हैं... तुम समझ नहीं पाओगे... वह लड़का कितना शार्प है.... यह तुम अच्छी तरह से समझ चुके होगे...
केके - हाँ... उससे मिलने के बाद... यह भी समझ गया... उसे अपने वश में रखना बहुत मुश्किल है... पर क्या आपके उसके सामने जाना ठीक रहेगा...
चेट्टी - बेवकूफ हो तुम... पता नहीं शहर की टॉप बिजनैस मैन कैसे बन गए... तुमने जब उससे बात की... तभी उसे अंदाजा हो गया है... तुम्हारे साथ मैं हूँ...
केके - आप इतना श्योर कैसे हो सकते हैं...
चेट्टी - (केके के साथ उसके ऑफिस में घुसते हुए) जब वह तुम्हें अपने वैनिटी वैन से उतार कर... अपने सामने आने पर मज़बूर कर दिया... तो सोचो... उसने मेरा भी अंदाजा लगा लिया होगा...
कह कर ऑफिस के ही एक प्राइवेट चैम्बर में दोनों आते हैं l वहाँ पर बैठक रुम जितना जगह और अरेंजमेंट था l चेट्टी एक चेयर पर बैठ जाता है l उसके बैठते ही केके अपना सिक्युरिटी ऑफिसर बीरंची को फोन करता है I
केके - हैलो... बीरंची... कहाँ पर हो...
बीरंची - सर सिर्फ दो मिनट... हम लोग आपके ऑफिस में होंगे...
कुछ देर बाद बीरंची के साथ विश्व अंदर आता है l देखता है चेट्टी और केके दो सोफ़े पर बैठे हुए हैं l
चेट्टी - आओ विश्वा... आओ... बैठो...
विश्व - (चेट्टी के सामने वाली कुर्सी पर बैठ जाता है)
केके - यह क्या विश्वा... ना दुआ... ना सलाम...
विश्व - काम तुम लोगों का है...
केके - तुम्हीं ने तो कहा था... भैरव सिंह के बराबर नहीं... तो कम भी नहीं होगी... तो ऐसे शख्सियत से मिलने आए हो... तो फॉर्मली ग्रीटिंग तो कर ही सकते हो...
विश्व - काम की बातेँ करें...
चेट्टी - पसंद आया तुम्हारा अंदाज... बहुत पसंद आया...
विश्व - शुक्रिया... चेट्टी जी... कहिए... आपको मेरी क्या जरूरत पड़ गई...
चेट्टी - तुम्हारे छूटने के बाद... क्या क्या हुआ है... मैं नहीं जानता... मगर... जैसे ही तुमने... आरटीआई आवेदन किया है... भैरव सिंह से खार खाने वाले... सभी तुम्हारे खेमे में आयेंगे...
विश्व - ह्म्म्म्म... बात तो आपने पते की, की है... लेकिन मुझे जैल भिजवाने वाले खेमे में कभी आप भी हुआ करते थे...
कुछ देर के लिए वहाँ पर चुप्पी सी छा जाती है l चेट्टी से कोई बोल फुट नहीं रहा था l केके सिचुएशन को संभालने के लिए
केके - वह वक़्त... वह दौर अलग था..
विश्व - हाँ यह वक़्त.. यह दौर अलग है... तब का दोस्त आज दुश्मन है... और तब का दुश्मन से... दोस्त मांगी जा रही है...
चेट्टी - हाँ... वक़्त वक़्त की बात है... वक़्त बदलते देर नहीं लगती...
विश्व - हाँ शायद... मेरी और भैरव सिंह के बीच... कोई बदलाव नहीं हुआ है... बदला है... तो आपक और भैरव सिंह के बीच का रिश्ता...
चेट्टी - हाँ... वक़्त के साथ इंसान बदलते हैं... मैं नहीं बदला... भैरव सिंह को बदलते देखा... और तुम्हें देख रहा हूँ...
विश्व - मुझमें क्या बदलाव देखा है आपने...
चेट्टी - सात साल पहले का विश्वा... कितना मज़बूर था... आज इतना समर्थ है... की भैरव सिंह की दुश्मनी के खातिर... दोस्ती चाहता हूँ...
विश्व - अगर मैं समर्थ हूँ... तो मुझे आपसे क्या फायदा...
चेट्टी - भैरव सिंह की हुकूमत को काटने के लिए तुम्हारे पास बेशक धार बहुत है... पर जब पलट वार होगी... तब तुम्हें ढाल की जरूरत पड़ेगी... मुझसे दोस्ती से... ना सिर्फ तुम्हारी धार तेज होगी... बल्कि ढाल की आड़ भी मिलेगी...
विश्व - ह्म्म्म्म... प्रस्ताव तो अच्छा है... बढ़िया है... वैसे... अब आपको बैठने में तकलीफ तो नहीं हो रही है...
चेट्टी की मुट्ठी और जबड़े दोनों भींच जाते हैं l हैरानी से केके का मुहँ खुला रह जाता है l केके फिर भी बात को संभालने के लिए
केके - यह... यह क्या पूछ रहे हो...
विश्व - खैरियत... खैरियत पूछ रहा हूँ...
चेट्टी - यह तुम कैसे जानते हो...
विश्व - मतलब कुछ ऐसा हुआ है... जिसके बारे में... इस कमरे में... मैं नहीं जानता...
चेट्टी - अगर नहीं जानते... तो जिक्र किस बिनाह पर किए...
विश्व - जब से आया हूँ... आप बैठने की पोजीशन बदल बदल कर बैठ रहे थे... यही देख कर... और इतना तो अंदाजा लगा लिया... यह पाइल्स नहीं है... और यह कुछ ही दिन पहले हुआ है
चेट्टी दुबारा अपनी जबड़ा भींच लेता है और अपनी आँखे बंद कर लेता है l गुस्से से उसका चेहरा तम तमाने लगता है, सांसे भी तेज तेज चलने लगती हैं l विश्व उसके चेहरे पर नजरें गड़ाए उसकी प्रतिक्रिया देख रहा था l
विश्व - आदरणीय चेट्टी जी... मुझे आपका प्रस्ताव स्वीकार है...
विश्व की बातेँ सुन कर चेट्टी की सांसे दुरुस्त होती है l पर विश्व को दांत पिसते हुए देखता है l विश्व बहुत ही शांत और भाव हीन हो कर चेट्टी को गौर से देख रहा था l
चेट्टी - क्या मेरे पिछवाड़े का दर्द देख कर... राजी हो गए...
विश्व - नहीं... आपके अंदर की.. बदले का जुनून देख कर... क्षेत्रपाल के दिए ज़ख़्मों से उठते दर्द को देख कर... उसकी टीस को देख कर...
चेट्टी - हूँ...
विश्व - मैं ज़ख्मों की गहराई को जानता हूँ... ज़ख़्म चाहे बदन के किसी भी हिस्से पर हो... अगर दर्द दिल में चुभे... तो उसकी मरहम सिर्फ बदला ही हो सकता है...
चेट्टी - ह्म्म्म्म... बहुत अच्छे... तो हमारी लड़ाई कैसी होगी...
विश्व - आप क्या चाहते हैं...
चेट्टी - (मैंने... उसे भुवनेश्वर में... राजनीत के फर्श से अर्श तक पहुँचाया... और बदले में... उसने... मुझे किसी मक्खी की तरह... फेंक दिया.... बेशक... वह और उसका परिवार... राज्य की राजनीति में... किंग मेकर का रुतबा रखते थे... पर राजधानी में पैर... मेरे बूते जमाए थे... बुरा ना मानना विश्वा... उसे तुम्हारे केस के सुनवाई में जितने भी मदत हो सकते थे... मैं और मेरे बेटे ने... उसकी जी जान से मदत की.... पर... अपना मतलब साध लेने के बाद... अपनी औकात पर आ गया... राजनीति में रुतबा हासिल कर लेने के बाद... उसने
पिछली बार... मेरी टिकट... (चुप हो जाता है और मुट्ठी याँ भींच कर) उसीके वजह से कट गई थी... अब... (दांत पिसते हुए) अब मैं चाहता हूँ... उसका वह रौब... नाम... पहचान सब... बिल्कुल वैसा हो जाए... या उससे भी ज्यादा... जैसा पिछले इलेक्शन में... मेरा हुआ था... (विश्व की तरफ देख कर) तुम क्या चाहते हो विश्वा...
विश्व - मेरा भी प्लान वैसा ही है... मैं उस जहरीले सांप को... बिन दांत वाला बना देना चाहता हूँ... और उसका हालत कुछ ऐसा कर देना चाहता हूँ.... के बच्चे भी उसके पीछे पटाखे बांध कर दौड़ाएं...
चेट्टी के चेहरे पर मुस्कान उभर आती है l इतने देर से ख़ामोश केके का चेहरा खिल उठता है l वह खुशी के मारे कह उठता है
केके - हाँ... बिल्कुल... उसके पीछे तो मैं... मैं पटाखे बांध कर... गली गली दौड़ाउंगा... हा हा हा हा हा...
उसके इस प्रतिक्रिया पर कोई कुछ कहने के वजाए चुप रह कर उसे देखने लगते हैं l अपनी ओर सबको देखते हुए देख कर वह भी चुप हो जाता है l
विश्व - तो चेट्टी जी... मैं कल राजगड़ वापस जा रहा हूँ.... वहाँ रह कर... हालात समझ कर... अपनी लड़ाई का आगाज करूँगा.... बीच बीच में... भुवनेश्वर आता रहूंगा...
चेट्टी - पर हमारा खुल्लमखुल्ला मिलना नहीं हो पाएगा...
विश्व - कोई ना... मिलने का इंतजाम भी कर लेंगे... (उठता है) चलता हूँ...
कह कर विश्व वहाँ से निकल जाता है l विश्व के जाने के बाद केके बीरंची को इशारा करता है l बीरंची दरवाजा लॉक कर देता है l
केके - (चेट्टी से) क्या लगता है आपको... और आप... सात साल पहले की बात क्यूँ की...
चेट्टी - बहुत तेज है... सामने वाले को पढ़ लेता है...
केके - क्या हमारे लिए खतरा बन सकता है...
चेट्टी - हाँ... तब... जब हमारा इंटेंशन को पढ़ ले... एक काम करो... इससे सीधे अब कंटेक्ट मत करो... एक जरिया बनाओ... जो मदत चाहिए... पता लगाओ... और करते जाओ... यहाँ दो बिल्लियाँ नहीं... दो बाग़ड़ बिल्ले हैं... हमें इनकी लड़ाई से फायदा उठाना है... उनके बीच फंसना नहीं है....
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अचानक से एक गाड़ी वैदेही दुकान के आगे कुछ दूर पर रुक जाती है l गाड़ी का ड्राइवर स्टार्ट करने की कोशिश करता है, पर गाड़ी स्टार्ट नहीं होती I तभी गाड़ी से एक लड़की उतर जाती है l उसके उतरने के बाद गाड़ी के पास चार चार गार्ड्स वाली दो गाडियाँ रुकती है I वैदेही देखती है वह लड़की जो अभी अभी पहली वाली गाड़ी से उतरी थी वह अपने ड्राइवर पर चिल्लाने लगती है l
लड़की - ओ हो... कैसे ड्राइवर हो... गाड़ी चलानी भी नहीँ आती तुम्हें...
ड्राइवर - राजकुमारी जी... मैं... मैं क्या कर सकता हूँ... लगता है एयर ब्रेक में कुछ प्रॉब्लम हुआ है... आप मुझे पाँच मिनट दीजिए... मैं.. मैं ठीक कर दूँगा...
लड़की - आह्ह्ह्ह... देन डु इट...
राजकुमारी संबोधन सुन कर वैदेही के दुकान पर जितने भी ग्राहक थे सब के सब धीरे धीरे खिसक लेते हैं l तभी गार्ड्स में से एक गार्ड आगे आता है और राजकुमारी से कहता है
गार्ड - राजकुमारी... अगर आप बुरा ना मानें... तो हमारी गाड़ी में चले जाइए...
लड़की - (गुस्से से उस गार्ड को देखने लगती है, उसे उंगली दिखाते हुए) यु.... बी इन योर लिमिट....
गार्ड दुबक कर वापस अपनी गाड़ी के पास भाग जाता है l यह सब दुकान से वैदेही और गौरी देख रहीं थीं l
गौरी - (दबी आवाज में) आय हाय... यह राजा के परिवार में... सब ऐसे ही घमंडी होते हैं क्या...
वैदेही - (राजकुमारी की तरफ देख कर, धीमी आवाज में) ह्म्म्म्म... शायद... (फिर गौरी के तरफ देख कर) अरे काकी... तुम... तुम गल्ले से कब आई...
गौरी - मैं गल्ले में बैठ कर क्या करती... ग्राहक तो सभी भाग गए... इस मुई राजकुमारी को देख कर...
वैदेही - धीरे काकी धीरे... कहीं उसने सुन ली... तो गड़बड़ हो जाएगी...
गौरी - हम थोड़े ना चिल्ला कर बातेँ कर रहे हैं.... चिल्ला तो.. वह रही है... अपनी राजकुमारी होने की रौब झाड़ रही है...
वैदेही - ओ हो... क्या काकी... लड़की है... उसकी गाड़ी खराब हो गई है... इसलिए अपनी खीज निकाल रही है...
गौरी - हूँह्ह्... खीज निकाल रही है... या उस गरीब को नीचा दिखा रही है... आखिर है तो क्षेत्रपाल... संस्कार कहाँ से आयेंगे...
तभी ड्राइवर गाड़ी की थोड़ी चेकिंग के बाद राजकुमारी से कहता है l
ड्राइवर - राजकुमारी जी... दस मिनट में हो जाएगा... आप ऐसे धूप में क्यूँ खड़ी रहेंगी... आप... उस दुकान में... थोड़ी देर के लिए चली जाइए... प्लीज...
राजकुमारी - ठीक है... वैसे भी... उस दुकान में... किसी को ठीक करना भी है... गाड़ी जल्दी से ठीक करना...
ड्राइवर - जी राजकुमारी जी...
कह कर राजकुमारी वैदेही के दुकान की ओर आने लगती है l गौरी थोड़ी डरने लगती है l
गौरी - (दबी आवाज में) यह तो सचमुच.. हमारी ओर आ रही है... कहीं सच में... इसने मेरी बात तो नहीं सुन ली है...
वैदेही - कैसे सुनेगी... हम इतनी धीमी आवाज में जो बात कर रहे हैं...
पर राजकुमारी को दुकान के करीब देख कर गौरी भाग कर गल्ले पर बैठ जाती है और माला हाथ में लेकर जपने लगती है l राजकुमारी दुकान के अंदर आती है वैदेही और गौरी को देखती है l
राजकुमारी - (वैदेही से) यह तुम्हारा दुकान है...
वैदेही - हाँ राजकुमारी...
राजकुमारी - हाँ नहीं... जी कहो... राजकुमारी से बात करने की तमीज नहीं है तुममें...
वैदेही - जी राजकुमारी...
राजकुमारी - ह्म्म्म्म..... अब ठीक है... (गौरी को देख कर) यह बुढ़िया... यहाँ क्या कर रही है...
गौरी - जी राजकुमारी जी... गल्ले पर बैठी हूँ... जब वक़्त मिल जाता है... हाथ में माला ले लेती हूँ... भगवान का नाम जाप लेती हूँ...
राजकुमारी - ऐ बुढ़िया... मैंने तुझसे पूछा...
गौरी - नहीं... नहीं राजकुमारी जी... नहीं...
राजकुमारी - तो बीच में क्यूँ टपक पड़ी...
गौरी - गलती हो गई राज... कुमारी जी... गलती हो गई...
राजकुमारी - ठीक है... ठीक है... तुम्हारी सजा.. मैं बाद में तय करूंगी... (वैदेही को देख कर) पहले इन्हें तो सबक सिखा दूँ...
गौरी - नहीं नहीं राजकुमारी जी... वैदेही बेटी का कोई दोष नहीं है... सारा दोष मेरा है... आप मुझे जो चाहे सजा दे दें...
राजकुमारी - तुम... फिर बीच में टपकी... (गौरी चुप हो जाती है) अपने दोनों हाथों को मुहं पर रखो... (गौरी ऐसे ही करती है) ह्म्म्म्म अब ठीक है... (वैदेही की तरफ मुड़ कर अपने हाथों से खुद को पंखा करते हुए) आह... कितनी गर्मी है...
वैदेही - वह इसलिए... यहाँ दुकान का चूल्हा है ना...
राजकुमारी - क्या और कोई कमरा है यहाँ...
वैदेही - हाँ है ना... आइए... आप वहाँ थोड़ी देर के लिए... आराम कीजिए... जब तक आपकी गाड़ी ठीक नहीं हो जाती...
राजकुमारी - (बिदक कर) वह तो मैं करूंगी ही... पर मुझे तुम्हें सजा भी देनी है...
वैदेही - तो भीतर कमरे में... मुझे जो चाहे सजा दे दीजिएगा...
राजकुमारी - चलो फिर... (गौरी से) ऐ बुढ़िया... यहीँ पर ऐसे ही बैठे रहना... पहले... इन्हें सजा दे दूँ... फिर तुम्हें...
गौरी - (हाथ मुहँ पर था, इसलिए सिर को हाँ में हिलाते हुए) उँम्... उँम्म्म्
राजकुमारी - गुड... (वैदेही से) चलो दिखाओ तुम्हारा वह कमरा...
वैदेही रास्ता दिखाते हुए आगे आगे जाने लगती है l उसके पीछे पीछे राजकुमारी अंदर आती है l जैसे ही राजकुमारी अंदर आती है वह घुम कर झट से दरवाजा बंद कर देती है और वैदेही की तरफ मुड़ती है l वैदेही उसे देख कर मंद मंद मुस्करा रही थी l राजकुमारी का चेहरा रोनी जैसी हो जाती है और भागते हुए वैदेही के गले लग जाती है l वैदेही भी उसे कस के गले लगा लेती है l कुछ देर बाद वैदेही राजकुमारी को अलग करने की कोशिश करती है पर वह वैदेही से अलग नहीं होती l
वैदेही - तुझे इतना ड्रामा करने की क्या जरूरत थी रुप...
रुप - (भराई आवाज में) मैं खुल्लम-खुल्ला आपके गले भी तो नहीं लग सकती...
वैदेही - अच्छा यह बता... रो क्यूँ रही है...
रुप - किसी देवी के गले लगने से क्या होता है... वही महसुस हो रही है.. इसलिए खुद को रोक नहीं पा रही हूँ...
वैदेही - अच्छा... अब मन भरा...
रुप - नहीं... फिर भी... (अलग होते हुए) आज एक दिन की तो बात नहीं... वैसे दीदी... उप्स... क्या मैं आपको दीदी कह सकती हूँ...
वैदेही - हाँ हाँ क्यूँ नहीं... मुझ पर तेरा उतना ही अधिकार है... जितना कि विशु का मुझ पर... लेकिन आ पहले बैठ तो सही...
वैदेही एक चारपाई डालती है, दोनों उसपर बैठते हैं l
रुप - आपको सारी बातेँ... माँ जी ने बता दिया ना...
वैदेही - हाँ... बात मेरे विशु की है... बताएगी क्यूँ नहीं...
रुप - (अपनी कान पकड़ कर) सॉरी दीदी... आपसे ऐसे रूखे से बीहेव किया...
वैदेही - (रुप की गाल पर एक चपत लगाते हुए) जैसे ही तु गाड़ी से उतरी... मुझे तेरी मंशा समझ में आ गई थी... बेचारी चाची को डरा दिया तुमने...
रुप - उनके लिए भी सॉरी...
वैदेही - बस बस... जानती है... हमारे पुरे जिंदगी में... किसीने भी... ऐसी प्यार भरी शरारत नहीं की थी... आज तुने यह कर बता दिया... जता दिया... क्यूँ विशु तेरे लिए पागल है... दीवाना है... (रुप शर्मा जाती है) पर यह बता... तुने अभी तक... उसे अपने बारे में... बताया क्यों नहीं...
रुप - (शर्माते झिझकते अपने दोनों पंजों को फंसा कर मरोड़ते हुए) दीदी... प्यार में थोड़ा थ्रिल तो होनी ही चाहिए ना... अब तक मैं उसे ढूंढ रही थी... और वह मिल भी गया... वह भी मुझे ढूंढे... मैं उसे मिल जाऊँगी...
वैदेही - (छेड़ते हुए) ओ... हो... (रुप अपनी दोनों हाथों से अपना चेहरा ढक लेती है) अच्छा रुक... एक मिनट...
वैदेही उठ जाती है और एक बड़ा सा बक्सा खोल कर कुछ ढूंढने लगती है l रुप देखती है वैदेही के हाथों में दो सोने के कंगन थे l दोनों को रुप के हाथों में दे कर
वैदेही - यह... माँ के कंगन हैं... आज अगर जिंदा होती... तो तुम्हें अपने हाथों से पहनाती...
रुप - माँ नहीं रहीं तो क्या हुआ... आप तो हैं ना... आप ही पहना दीजिए...
वैदेही रुप को हैरान हो कर देखने लगती है l रुप अपने हाथ आगे कर देती है l वैदेही के आँखों में आंसू छलक पड़ते हैं l वह खुशी में गद गद हो कर रुप के हाथों में कंगन पहनाने लगती है l कंगन पहन लेने के बाद रुप की मोबाइल बजने लगती है l डिस्प्ले में गुरु काका दिखाई देती है l
रुप - (फोन उठा कर) हाँ काका... अभी एक मिनट में आई... (वैदेही से) अच्छा दीदी... मैं चलती हूँ...
वैदेही - हाँ... जा... पता नहीं... फिर कब मुलाकात हो...
रुप - जब तक हूँ... रोज मुलाकात हो सकती है...
वैदेही - (चौंकते हुए) क्या... रोज...
रुप - हाँ... पर शर्त यह है कि... आपका विशु... अपनी राजकुमारी को ढूंढते हुए... महल में आकर... मुझे प्रपोज करे....
Kala Nag बुज्जी भाई के अपडेट बिलकुल उस पसंदीदा व्यंजन की तरह होते है जिसे खाने के बाद भी एक बार फिर से बर्तन देखना पड़ता है कि कहीं कुछ बच तो नही गया और अगर बच गया तो उसे भी चाट जाओ, ठीक वैसे ही अपडेट को एक बार पढ़ कर फिर दोबारा पढ़ना पड़ता है कि कहीं को दृश्य, कोई डायलॉग, कोई लाइन छूट तो नही गई पढ़ने से।
किस हद तक बेबस था विश्व की इतना अपमान होने के बाद भी सबकुछ सहता रहा और अपने काम करता रहा कि उस पर और उसकी बहन पर कोई मुसीबत ना आ जाए। क्या ही जिंदगी होगी की खुद ही अपने आत्म सम्मान का गला घोट दो अगर जिंदा रहना है तो। आचार्य जी के कहने पर ही वैदेही ने ना सिर्फ खुद को जिंदा रक्खा बल्कि विश्व को भी जिंदा किया।
ओंकार को भी विश्व से बात करके ये तो पता चल ही गया सात साल पहले जिस बुझी हुई माचिस की तिल्ली को उसने जेल में डलवाया था वो अब तेल के कुएं के ऊपर जलने वाली भयंकर मशाल बन गई है जो आसानी से नही बुझती और इसीलिए उसने अब परदे के पीछे से सपोर्ट करने का फैसला किया है।
अनाम क्या मिला नंदिनी फिर से वही रूप बन गई जिसका एक छत्र राज चलता था विश्व पर, मगर आज लपेटे में विश्व की दीदी और गौरी चाची आ गई । मगर वैदेही तो पहले से जान गई थी रूप ने अकेले में मिलने के लिए ये सब नाटक किया था मगर कमरे में आ कर वो फिर से वो वही नंदिनी बन गई जो किसी पर भी अपने क्षेत्रपाल होने का रोब नही झाड़ती है और इंसान को एक इंसान ही तरह ही देखती है और यहां तो उसके प्यार का वो रिश्ता खड़ा है जिसके लिए विश्व सभी रिश्ते तो क्या अपनी जिंदगी भी छोड़ सकता है।
अब जब मिलने रूप आई है तो बिना अपनी शर्त के आ नही सकती और राजकुमारी जी का हुकुम भी आ गया कि अनाम को महल आना है अपनी रूप को ढूंढना है और उसको प्रपोज भी करना है। बेचारे विश्व के सर पर फिर से तलवार लटका दी हालाकि वो जानती है कि उसका अनाम ये भी कर देगा उसके प्यार और अपने वचन को निभाने के लिए। बहुत ही लाजवाब अपडेट।
वैदेही और विश्व के पुराने समय को पढ़ कर ये शेर याद आ गया
ज़िन्दगी तूने लहू ले के दिया कुछ भी नहीं
तेरे दामन में मेरे वास्ते क्या कुछ भी नहीं