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Thriller "विश्वरूप" ( completed )

Kala Nag

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Kala Nag

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Bhut jabardast update veer k dushman ka idea mei tbhi lga liya tha jab phli bar gunde anu ko preshan krte hai par regular redars dosto ne kahani se phle hi suspense khol diya jaha tak mujhe lgta apni bhen ko b usne apne badle mei shamil kiya huya hai par ap usko behtar trike se btayenge DHANYWAAD 🙏
भाई सस्पेंस थोड़ा खुला जरूर है पर थ्रिल कहीं पर भी मिस नहीं होगी
कहानी में आगे भी बहुत रंग है
जो धीरे धीरे सामने आते रहेंगे
 

Kala Nag

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👉एक सौ पंद्रहवां अपडेट
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मोबाइल पर रिंग बजने लगती है l विश्व की नींद टुट जाती है, नींद में ही फोन उठाकर

विश्व - हैलो...
रुप - अरे... सोए हुए थे...
विश्व - (नींद में ही) ह्म्म्म्म...
रुप - अच्छा... दरवाजा खोलो...
विश्व - क्यूँ...
रुप - अरे बेवक़ूफ़... मैं महल से छुप कर आई हूँ... तुमसे मिलने...
विश्व - क्या... (ऐसे उठ खड़ा होता है जैसे इलेक्ट्रिक शॉक लगा हो) क्या.... (हकलाते हुए) आ... आ.. आप... घर के बाहर ही हैं...
रुप - (बड़ी मासूमियत के साथ) हूँ...
विश्व - हे भगवान... (कह कर बाहर दरवाजे की तरफ भागने लगता है, दरवाजा खोल कर देखता है कोई उसे नहीं दिखता)है... हैलो...
रुप - (खिलखिला कर हँसते हुए) हा हा हा... बेवक़ूफ़ बनाया... बन गए ना...
विश्व - ओह... हाँ... आपने बनाया... और मैं बन भी गया...
रुप - (मासूमियत के साथ) बुरा लगा... अगर बुरा लगा तो... तो मैं कल से फोन नहीं करुँगी...
विश्व - (मुस्करा देता है, पर जवाब में कुछ नहीं कहता)
रुप - मैं अपना हक समझ कर ऐसा किया... ठीक है... मैं कल से फोन नहीं करुँगी...
विश्व - अरे...आप... आप बुरा बिलकुल ना मानें...
रुप - मतलब मैं रोज फोन कर सकती हूँ...
विश्व - हाँ हाँ क्यूँ नहीं...
रुप - (बिदक कर) यु डफर...... मतलब... तुम कभी मेरे सामने नहीं आओगे...
विश्व - मैंने ऐसा कब कहा...
रुप - आ. हा. हा. हा... ऐसा कब कहा... अभी तो कहा... मैं तुम्हें रोज फोन कर सकती हूँ...
विश्व - (भीगी बिल्ली की तरह) वह वह...
रुप - तुम क्या सोचते हो... जिंदगी भर तुम्हें फोन पर ही बातेँ करती रहूंगी... और तुम मेरे सामने नहीं आओगे... ओ हैलो... बहुत जल्दी मेरे सामने आओ... और मुझे प्रपोज करो... वर्ना... (रुक जाती है)
विश्व - र.. राज कुमारी जी... क्या हुआ...
रुप - क्या हुआ... क्या मतलब क्या हुआ...
विश्व - नहीं आप... वर्ना कह कर रुक गईं... इस... लिए...
रुप - अच्छा... तो तुम्हें वर्ना क्या करुँगी सुनना है... तो सुनो... मैं.. कटक जाऊँगी... वहाँ... माँ जी के घर के आगे हड़ताल करुँगी... और तुम्हें इसके लिए जिम्मेदार करुँगी... और एक दिन सुसाइड कर लूँगी... पर यह मत समझ लेना पीछा छूट जाएगा... मैं भूत बनूँगी... डायन बनुंगी... चुड़ैल भी बन जाऊँगी.... और रोज रात को तुम्हारा खुन पीने आती रहूँगी... समझे...
विश्व - जी... जी.. जी.. ऐसी नौबत नहीं आएगी... कसम से...
रुप - गुड... तो कब आ रहे हो...(बहलाते हुए) मुझे प्रपोज करने...
विश्व - जी मैं... बताता हूँ... कुछ सोचता हूँ... फिर... फिर देखता हूँ...
रुप - ओए... क्या देखता हूँ... देखता हूँ नहीं... आता हूँ....
विश्व - जी... जी राजकुमारी जी... जी... आता हूँ...
रुप - (खुश होते हुए) ठीक है.. ठीक है... तो... (चहक कर) वेरी गुड मॉर्निंग टु यु...
विश्व - जी आपको भी...

फोन कट जाता है l विश्व अपनी फोन को देख कर एक गहरी चैन की साँस लेता है l जैसे ही पीछे मुड़ता है टीलु को घूरते हुए पाता है l टीलु को यूँ अपने तरफ घूरता देख कर विश्व हँसने की कोशिश करता है l

टीलु - ऊँ हूँ... यह हँसी.. नकली लग रही है...
विश्व - तुम्हारा प्रॉब्लम क्या है...
टीलु - यही... की हमारा जो भाई सबकी फाडने आया है... उसकी सुबह सुबह बड़ी जोर की फट रही है... तो य़ह... फाडने वाली है या... फाडने वाला...
विश्व - (चेहरा ऐसा हो जाता है जैसे इमली चख लिया हो, फिर अपना सिर हिलाते हुए) फाडने वाली...
टीलु - (खुशी से उछलते हुए,) वाह वाह वाह भाई वाह... क्या बात है... (गाने के अंदाज में)
जैल से निकलते ही...
कुछ दिन कटक में रहते ही..
भाई को हो गया भाभी से प्यार...
यह रिश्ता कब शुरु हुई...
बात कितनी आगे बढ़ी...
भाई है भाभी की गुलामी को तैयार...

विश्व की हँसी छूट जाती है और शर्म से उसके गाल पर हल्की सी लाली छाने लगती है l

टीलु - ओए होय भाई... आज तो मार्केट में... टमाटर के भाव कम होने वाले हैं...
विश्व - तुम्हारी तो...

कह कर विश्व टीलु के पीछे मरने के लिए भागता है, टीलु भी विश्व को चिढ़ाते हुए घर में ही इधर उधर भागने लगता है l

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अंधेरा छाया हुआ है एक काली लंबी सड़क जिस पर एक गाड़ी भागी जा रही है l ड्राइविंग सीट पर विक्रम बैठा गाड़ी को चला रहा है l बगल सीट पर शुभ्रा आँखें बंद किए हुए चैन से लेटी हुई है l विक्रम गाड़ी चलाते हुए शुभ्रा की चेहरे पर नजर डालता है l सोई हुई शुभ्रा के चेहरे पर असीम आनंद और सुकून साफ दिख रही थी l शुभ्रा का सुकून भरा चेहरा देखकर विक्रम के चेहरे पर एक प्यार भरी मुस्कान आ जाती है कि तभी उसके गाड़ी के शीशे पर एक पत्थर टकरा जाती है, जिससे सामने की विंडों स्क्रीन पर मकड़े की जाल की तरह क्रैक बन जाती है l विक्रम भी गाड़ी की ब्रेक लगा देता है l ब्रेक की झटके से शुभ्रा की नींद टुट जाती है l

शुभ्रा - क्या हुआ विक्की.... (टूटी शीशे को देख कर, डर के मारे) यह... यह किसने किया विक्की...
विक्रम - शांत... शांत हो जाओ...

विक्रम अपनी शूट की अंदरुनी जेब से रीवॉल्वर निकाल कर गाड़ी से उतरता है l शुभ्रा दुसरी तरफ से उतरती है l

विक्रम - जान... तुम अंदर ही बैठो....
शुभ्रा - नहीं... आप ऐसे अकेले...
विक्रम - जान... प्लीज...

तभी कुछ आवाजें सुनाई देने लगती है l विक्रम और शुभ्रा अपनी नजरें दौड़ाते हैं l चारों तरफ से एक उग्र भीड़ हाथों मे पत्थर और लाठी लिए उनके तरफ आगे बढ़ रही थी l आगे की पंक्ति में चलने वालों के हाथों में मशालें थीं l विक्रम खुद को घिरा हुआ पाता है वह भाग कर शुभ्रा के पास जाता है और उसे गाड़ी के भीतर जबरदस्ती बंद कर देता है l कुछ दूरी पर भीड़ ठिठक जाती है l एक आदमी भीड़ से कट कर विक्रम की तरफ भागते हुए आता है तो विक्रम उसपर गोली चला देता है l उस आदमी के ढेर होते ही भीड़ और उग्र हो कर विक्रम पर टुट पड़ती है l विक्रम लड़ने लगता है पर थोड़ी देर के संघर्ष के बाद विक्रम भीड़ के कब्जे में था l विक्रम देखता है भीड़ उसकी गाड़ी को पलट दिया है l गाड़ी की खिड़की की कांच से शुभ्रा की डरी और रोती हुई चेहरा दिखने लगता है l विक्रम बहुत जोर लगाता है पर भीड़ के कब्जे से छूट नहीं पाता l वह मजबूरी में छटपटाते हुए देखता है l उसी भीड़ में से एक उसकी पलटी हुई गाड़ी पर पेट्रोल छिड़क रहा है l विक्रम अब अपनी पुरी ताकत लगाता है और किसी तरह भीड़ से खुद को छुड़ा कर उस पेट्रोल छिड़कने वाले को पकड़ कर मारने लगता है, पर कोई फायदा नहीं होता,इस बीच किसी दुसरे ने गाड़ी को आग के हवाले कर देता है l विक्रम चिल्लाता है

"नहीं"

नींद टुट चुकी थी, सपना था l पर इस डरावनी सपने के वज़ह से विक्रम पसीना पसीना हो गया था l वह खुद की हालत का जायजा लेता है तो पाता है कि वह अभी भी बेड पर है l उठ कर बैठ जाता है l कमरे में नाइट लैम्प की मद्धिम रौशनी में कमरे में नजर घुमाता है l बेड पर बाएं तरफ चित हो कर शुभ्रा सोई हुई थी l धीरे धीरे शुभ्रा के चेहरे पर झुकता है करीब एक फिट के दूरी पर खुद को रोक लेता है और शुभ्रा की चेहरे को गौर से देखने लगता है l बिल्कुल वही भाव जो उसने सपने में देखा था l इन दो दिनों में, एक दुसरे पर जन्मों का प्यार लुटाया था दोनों ने l

-कितना दमक रहा है शुभ्रा का चेहरा,( खुद से कहता है)

शुभ्रा की होठों पर एक हल्की सी मुस्कान खिलती है और फिर गायब हो जाती है l

-लगता है... कोई खूबसूरत सपना देख रही है... (फिर से खुद से कहता है)

शुभ्रा के चेहरे पर दुनिया जहान की मासूमियत जैसे आज उतर आया था, विक्रम की नजरें नहीं हट रही थी l अचानक शुभ्रा की आँखे खुल जाती हैं l विक्रम को उसे यूँ एक टक देखते हुए पाकर शर्म से दोहरी हो जाती है पर खुशी भी होती है उसे l

शुभ्रा - ऐसे क्या देख रहे हैं आप...
विक्रम - सुंदरता की दर्श में समाप्ति नहीं...
कितना भी देखूँ मन को तृप्ति नहीं...

यह सुन कर शुभ्रा और भी खिल जाती है और अपनी बाहें फैला देती है और अपने में समाजाने के लिए अपनी गर्दन हिला कर इशारा करती है l विक्रम शुभ्रा को उत्सुकता भरी नजरों से देखता है और इशारे से कारण पूछता है l


शुभ्रा - दूरी ना रहे कोई...
तुम इतने करीब आओ
मैं तुममें समा जाऊँ
तुम मुझमें समा जाओ...

विक्रम के चेहरे पर पर छोटी सी मुस्कान ठहर जाती है l वह भी एक तुक बंदी सुनाता है l

विक्रम - ये वक़्त ना खो जाए,.. बस आज ये हो जाए...
मैं तुम में समा जाऊँ,
तुम मुझमें समा जाओ...

फिर विक्रम उसके बाहों में समा जाता है l फिर एक दौर प्रेम और समागम का बीत जाता है l शुभ्रा का चेहरा अब और ज्यादा दमकने लगता है l

शुभ्रा - क्या बात है... जान... आज आपके प्यार में... अपना पन... पागलपन... जुनून... कुछ ज्यादा ही था...
विक्रम - (थोड़ा सीरियस हो कर) जान... अब से हर एक पल में... जिंदगी को जी भर जी लेना चाहता हूँ...
शुभ्रा - क्यूँ... किस का डर है... यह मैं यहीं हूँ... यह आप यहीं हैं... जुदाई का कोई डर भी तो नहीं है...
विक्रम - (जोर से शुभ्रा को भिंच लेता है) हाँ जान... अब जुदाई का कोई डर नहीं है... हम जुदा नहीं होंगे.... कभी नहीं होंगे...

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सुबह के नौ बज चुके हैं
बारंग रिसॉर्ट के एक आलिशान कमरे में पिनाक सिर्फ लोयर में बेड पर हेड रेस्ट पर सिर टिका कर बैठा हुआ है l सामने सफेद साड़ी में एक औरत झिझक और ग्लानि में घिरी खड़ी हुई है l

पिनाक - क्या सोच रही हो... कोई जबरदस्ती नहीं... अगर बुरा लग रहा है... तो जा सकती हो...
औरत - (सहमी और पीड़ा के साथ) मेरे दो छोटे छोटे बच्चे हैं...
पिनाक - हाँ होंगे... उनसे मेरा क्या काम... देख तुझे चार महीने पहले... इस दुनिया में अकेला कर... तुझे विधवा बना कर परलोक में रंभा... उर्वशी और मेनका के साथ... डींग डोंग करने चला गया... अब सरकारी तरीका भी होता है... कंपेंसेशन ग्राउंड में नौकरी... हो सकता है सालों लग जाये... तुझे जल्दी चाहिए तो... यही शॉर्ट कर्ट है...

वह औरत कुछ नहीं कह पाती, उसी जगह पर सिर झुकाए खड़ी रहती है l पिनाक अपनी जगह से उठता है और उस औरत के पास आकर खड़ा हो जाता है l जैसे ही उस औरत को एहसास होता है कि पिनाक उसके सामने खड़ा है वह जोर से अपनी मुट्ठीयाँ भिंच लेती है और आँखे बंद कर लेती है l पिनाक उसकी हाथ पकड़ लेता है और खिंच कर अपने गले से लगा लेता है l उसके गालों से अपना गाल रगड़ते हुए

पिनाक - आह... क्या बदन है तेरा... (उसके पीठ पर सांप की अपनी हाथों को घुमा रहा था) यह चार महीने तेरे कैसे बीते होंगे...

पर वह औरत वैसी ही खड़ी थी l कोई प्रतिक्रिया नहीं थी उसकी l पिनाक उससे अलग हो कर उसके चेहरे को अपनी हाथों से थाम लेता है और उसके होंठो पर अपना होंठ लगा कर चूसने लगता है l वह औरत अपनी मुहँ को भिंच लेती है, फिर भी पिनाक उसे चूमना नहीं छोड़ता l थोड़ी देर बाद उससे अलग हो कर

पिनाक - मेरी जरूरत से ज्यादा तेरी जरूरत है... तु साथ दे या ना दे... तेरी मर्जी हो या ना हो... मुझे कोई मतलब नहीं... तेरी चार महीने की कसर आज एक दिन में... मैं पुरी करूँगा... समझ ले... और इसे दिल में बिठा ले...

कह कर पिनाक उसे खींचते हुए बेड पर लाकर बिठा देता है l वह बेबस औरत सिर झुकाए बैठी होती है l पिनाक फिर से उसकी चेहरे को अपनी हाथों में लेकर चूमने को होता है कि बिस्तर पर पड़े उसकी फोन बजने लगती है l वह स्क्रीन पर देखता है राजगड़ डिस्प्ले हो रहा था l उस औरत को छोड़ कर वह झट से फोन उठाता है और बिस्तर से थोड़ी दुर जा कर

पिनाक - हैलो...
सुषमा - कहीं व्यस्त थे...
पिनाक - ओह आप...
सुषमा - जी...
पिनाक - कहिये... इस असमय क्यूँ फोन किया...
सुषमा - असमय... अभी तो सवा नौ बजे हैं...
पिनाक - लोक सेवा... जन सेवा के समय अकारण फोन आ जाए... तो वह असमय ही होता है...
सुषमा - इतनी सुबह.. कौनसी जन सेवा कर रहे हैं... अभी तो ऑफिस के लिए वक़्त भी नहीं हुआ है...
पिनाक - (थोड़े कड़क लहजे में) आप हमसे प्रश्न पूछ रही हैं...
सुषमा - ओह... माफ कर दीजिए...
पिनाक - दायरे से बाहर ना निकले... तो अच्छा... फिर भी हम बता देते हैं... विधवा कल्याण परियोजना में व्यस्त हैं.... आने वाले समय में... राज्य में... विधवाओं के कैसे कल्याण किया जा सकता है... उस पर विस्तृत काम कर रहे हैं... समझी आप...
सुषमा - जी...
पिनाक - अब मुद्दे पर आइए... कहिए किस लिए फोन किया...
सुषमा - जी वह... बड़े राजा सहाब ने... आपको तुरंत पहुँचने के लिए... आदेश दिया है...
पिनाक - यह आदेश कब दिए...
सुषमा - जी कल दोपहर को...
पिनाक - और आप हमें आज कह रही हैं...
सुषमा - (चुप रहती है)
पिनाक - ठीक है... (बिस्तर की ओर देख कर) बड़े राजा जी से कहियेगा... हम अपना काम पूरा कर लेने के बाद... आज रात को निकलेंगे... और कल सुबह तक पहुँच जाएंगे...
सुषमा - जी...
पिनाक -(बिस्तर तक पहुँच कर) अब फोन रखिए...
सुषमा - जी...

पिनाक फोन को बिस्तर पर फेंक देता है और तुरंत अपना लोयर को उतार कर नंगा हो जाता है l उधर सुषमा चाह कर भी फोन रख नहीं पाई थी l इसलिए उसके कानों में हवस के मारे पिनाक की हांफने और एक औरत की सिसकने की आवाज सुनाई देने लगती है l वह आवाज सुन कर सुषमा की आँखों में आँसू तैरने लगते हैं l कुछ देर बाद सुषमा और सुन नहीं पाती अपनों होंठो को दांतों तले दबा कर रोते हुए फोन काट देती है l

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ESS ऑफिस
हुटर बजता है l वीर चौंक कर उठता है l पुरी से लौटने के बाद अनु और दादी को उनके घर छोड़ने के बाद रात को ऑफिस में आकर अपने केबिन में सो गया था l चूंकि इस सिक्युरिटी ऑफिस में हर सुबह अटेंडेंस लाइन हाजिरी में ली जाती है और ड्यूटी रोस्टर चार्ट दिया जाता है उसीके लिए यह हुटर था l वीर वॉशरुम में फ्रेश हो कर बाहर आता है l घड़ी देखता है साढ़े नौ बज चुके थे l अपने केबिन से निकल कर देखता है, अनु अभी तक आई नहीं थी, शायद आ रही होगी, यही सोच कर वह महांती के केबिन की ओर चला जाता है l केबिन का दरवाजा खोल कर वीर अंदर जाता है तो देखता है एक ग्लास की बोर्ड पर मार्कर पेन से कुछ रेखाएं, त्रिकोण और वृत्त चित्रित हुए हैं l महांती एक चेयर पर औंधा लेटा हुआ है और उसके पैर टेबल पर कैंची की तरह मुड़े रखे हुए हैं l वीर महांती के पास पहुँचता है तो देखता है महांती सोया हुआ है l हल्की सी खर्राटे उसके नाक से बज रहे थे l वीर टेबल पर रखे इंटरकॉम से रिसेप्शन पर कॉल करता है l कॉल लगते ही दो कॉफ़ी के लिए ऑर्डर कर देता है l इतने में महांती की आँखे खुल जाती हैं l

महांती - अरे राज कुमार... आप... (चेयर पर सम्भल कर बैठ जाता है)
वीर - क्या बात है महांती... (महांती के सामने चेयर पर बैठते हुए) लगता है तुम कल रात घर नहीं गए...
महांती - हाँ... वैसे... घर तो आप भी नहीं गए...
वीर - हाँ... क्यूंकि घर पर फ़िलहाल... भैया और भाभी दोनों नहीं हैं...
महांती - ओ हाँ...
वीर - हाँ... आशा है... उनके जीवन में अब बाहर लौट आए होंगे... जो कभी मेरे वज़ह से... खिजा बस गई थी...
महांती - आप... मैं कुछ समझा नहीं... आप के वज़ह से...
वीर - अरे महांती बाबु... मैंने बातों बातों में बहकर कह दिया... तुम वह सब छोड़ो... यह बताओ के रात भर... यहाँ किस खुशी में बिताए...

इतने में एक गार्ड ट्रे में दो बड़े कॉफ़ी के ग्लास लेकर आता है l ग्लास देख कर वीर समझ जाता है अनु ड्यूटी जॉइन कर ली है और उसीने कॉफ़ी बना कर भेजा है l वीर के चेहरे पर एक रौनक आ जाती है l

वीर - अनु आई है क्या...
गार्ड - जी राज कुमार... कॉफ़ी उन्होंने ही बना कर भेजा है...
वीर - ठीक है... टेबल पर रख दो... और जाओ यहाँ से...

गार्ड वैसा ही करता है और बाहर चला जाता है l महांती उठ कर एक कप वीर की ओर बढ़ा देता है और खुद एक कॉफ़ी का ग्लास उठा लेता है l

वीर - (कॉफी की सीप लेते हुए) हाँ तो महांती... तुमने बताया नहीं... तुम्हारी रात यहाँ क्यूँ गुजरी...
महांती - (अपनी चेयर से उठते हुए) राजकुमार... इन दो दिनों में... जो भी हादसे हुए हैं... उन सारे कडियों को जोड़ने के बाद... मुझे लगता है... शायद मैंने सारे पहेलियाँ सुलझा लिया है...
वीर - कैसी पहेलियाँ....
महांती - हमारे ESS का भेदी... और क्षेत्रपाल परिवार पर हमले के पीछे का मास्टर माइंड...
वीर - (आँखे लाल हो जाती हैं और उसका चेहरा थर्राने लगता है) मास्टर माइंड तो... चेट्टी था.... पर ESS का भेदी... नमक हराम... कौन है वह मादरचोद...
महांती - (वीर की ओर गौर से देखता है) राजकुमार... मैने कहा... शायद मैंने पहेलियाँ सुलझा लिया है...
वीर - मतलब तुम्हें किसी पर शक़ है....
महांती - हाँ...
वीर - कौन है वह...
महांती - मुझे सिर्फ शक़ है... सबूत नहीं है... मेरे पास कोई...
वीर - तुम्हारा शक़ ही काफी है मेरे लिए... बस नाम बताओ...
महांती - नहीं राजकुमार... मैं गलत भी हो सकता हूँ... अगर सच में... हमसे गलती हो गई... तो हमारे ही मुलाजिमों में... हमारे खिलाफ गलत धारणाएँ पनपेगी...
वीर - तुमने बताया नहीं... तुम्हारा शक़... किस पर है...
वीर - राजकुमार... मुझे बस दस दिन का वक़्त दीजिए... (दांत पिसते हुए) मैं उस नमक हराम को सबूतों के साथ आपके सामने पेश कर दूँगा....

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महानायक विला के परिसर में कुछ गाड़ियां प्रवेश करती हैं l सुरक्षा कर्मी अपनी गाड़ी से उतर कर भागते हुए बीच चली गाड़ी की डोर खोलते हैं l गाड़ी से ओंकार चेट्टी उतरता है और साथ में रॉय भी उतरता है l अपनी सुरक्षाकर्मियों को बाहर रुकने को कह कर आगे बढ़ता है l महानायक का इस्टेट मैनेजर भागते हुए आता है और चेट्टी को विला के अंदर केके के कमरे में ले जाता है पीछे पीछे रॉय पहुँचता है l चेट्टी देखता है केके के हाथ में ड्रिप लगे हुए हैं और उसे एक नर्स नाश्ता करवा रही है l चेट्टी को देख कर केके नर्स को रोकता है l

चेट्टी - ना ना... कोई फॉर्मलिटी नहीं... कमजोर दिख रहे हो... नाश्ता ख़तम कर लो...
केके - ख़तम हो ही गया है... (नर्स से) प्लीज...

केके अपने इस्टेट मैनेजर को इशारा करता है तो मैनेजर सबको उस कमरे से ले जाता है l सिर्फ केके और चेट्टी ही रह जाते हैं l चेट्टी आकर बिस्तर के पास एक चेयर पर बैठ जाता है, बगल में रॉय और एक चेयर पर बैठ जाता है l

चेट्टी - ह्म्म्म्म... मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा...
केके - मुझे भी... कमबख्त को शादी ही करनी थी... तो मुझसे कह सकता था... इकलौता है... मना थोड़ी ना करता....
चेट्टी - पर लड़की... तुम्हारे स्टेटस की तो नहीं है...
केके - मुझे परवाह नहीं... अगर मेरे पास मेरा बेटा ही नहीं रहेगा... तो यह दौलत क्या चाटुंगा....
चेट्टी - तो क्या तुमने उससे कॉन्टेक्ट करने की कोशिश की....
केके - कैसे करूँ... उसके पास फोन नहीं है... और अभी तक उसने मुझसे कॉन्ट्रैक्ट नहीं की है.... रॉय कह रहा था... वह ओड़िशा में नहीं है... बाहर किसी स्टेट में हो सकता है...
रॉय - हाँ... मेरे आदमियों ने मुझे यही बताया है कि... विनय इस स्टेट में नहीं है....
चेट्टी - ह्म्म्म्म... बात तो समझ के परे लगती है.... कम से कम... वह तुम्हें कॉन्ट्रैक्ट कर ही सकता है...
केके - इसीलिए तो डर लग रहा है... हमें दिख कुछ रहा है... पर हो कुछ रहा हो...
चेट्टी - कहीं तुम यह तो नहीं कहना चाह रहे हो... के विनय का किडनैप हो गया है....
केके - हाँ... मुझे तो अभी तक यही लग रहा है...
चेट्टी - ठीक है... तुम्हारे थ्योरी पर चलते हैं... तो उसका किडनैप कौन करेगा... और क्यूँ करेगा...
केके - इसी बात पर तो परेशान हूँ...
चेट्टी - क्या तुमने पुलिस से बात की...
केके - हाँ... की है... पर अभी मुझे यह भी समझ नहीं आ रहा है... वह क्षेत्रपाल के पिल्लै... वीर के पीछे क्यूँ गया था...
चेट्टी - (चौंकते हुए) क्या... यह तुम क्या कह रहे हो...
केके - हाँ... अबतक पुलिस के छानबीन से यह पता चला है कि... वह वीर के पीछे लगा हुआ था.... वीर को मालुम हो गया... इसलिये वीर उसके पीछे निकल पड़ा...
चेट्टी - ह्म्म्म्म.... तो पेच यहीं है... इसका मतलब यह हुआ... विनय वीर से छुपा हुआ है... मैंने तुम लोगों को मना किया था... जब तक सही मौका हाथ में ना आए...क्षेत्रपाल से दूर रहना...
केके - दूर ही तो थे... हो सकता है मैं जो कह रहा हूँ... वह सब गलत हो... क्यूंकि मैं और रॉय अभी तक अंधेरे में ही तीर छोड़ रहे हैं... मुझे यह समझ में बिल्कुल नहीं आ रहा... वह वीर के पीछे गया क्यूँ... उसे कौन और क्यूँ बरगलाया है....
चेट्टी - ठीक है... मैं अपने लेबल पर... पुलिस को भीड़ाता हूँ... (अपनी चेयर से उठ कर, केके के कंधे पर हाथ रख कर) सब्र करो... हौसला रखो... विनय ठीक ही होगा... हम उसे ढूंढ निकलेंगे....
केके - जी शुक्रिया चेट्टी सहाब...

फिर चेट्टी केके के कमरे से निकल जाता है बाहर आकर अपनी गाड़ी में बैठ जाता है l उसके साथ आते ही चेट्टी के बगल में रॉय बैठ जाता है l गाड़ी के पास आकर सिक्युरिटी खड़ा होता है l

चेट्टी - (सेक्यूरिटी से).. कमिश्नरेट चलो.... (सभी गाड़ियां विला से निकल कर रास्ते पर भागने लगते हैं) (चेट्टी बगल में बैठे रॉय से) क्या रॉय... तुम ESS को टक्कर देना चाहते हो... और इंटेलिजंस के मामले में... उनके बराबर भी नहीं हो...
रॉय - सर... इतना ज़रूर कह सकता हूँ.. उनसे पहले... विनय तक हम पहुँचेंगे...
चेट्टी - ह्म्म्म्म (जबड़े भिंचते हुए, कुछ सोच में पड़ जाता है)
रॉय - क्या सोचने लगे सर....
चेट्टी - कुछ नहीं... मैं यह सोच रहा हूँ... हम दो बिल्लियों की लड़ाई में... बंदर कहाँ से आ गया... जब खेल आमने सामने का हो गया था... तो यह बीच में कौन घुस गया...
रॉय - सर मुझे लगता है... पुलिस की छानबीन अधुरी है... हो सकता है... विनय... ESS के कब्जे में हो...
चेट्टी - बे.. भोषड़ी के... तु अभी भांग खाया हुआ है क्या... पहले बताया.... वह ओड़िशा में नहीं है... फिर बता रहा है... क्षेत्रपाल से पहले विनय तक हम पहुँचेंगे... और अब कह रहा है... वह ESS के कब्जे में हो सकता है...
रॉय - सर... (हकलाते हुए) मैं वह... मेरा मतलब है... ऐसा पॉसिबल है...
चेट्टी - मादरचोद... हम अपने बदले को लोगों के नज़र से छुपाते हैं... क्षेत्रपाल वैसे नहीं हैं...
रॉय - सॉरी सर...
चेट्टी - ह्म्म्म्म ठीक है.... अच्छा यह बताओ... वह छोकरा... राजगड़ पहुँच गया...
रॉय - हाँ... पहुँच गया... कल अपनी बहन से मिला और अपने टुटे फूटे घर में सोया...
चेट्टी - अपने आदमियों से कहो.. उस पर बराबर नजर रखे... और खबर हम तक पहुँचाते रहें...
रॉय - सर... मुझे नहीं लगता... वह एक महीने पहले कुछ करेगा...
चेट्टी - क्यूँ... ऐसा तुम्हें किसलिए लग रहा है....
रॉय - पहली बात... उसने जो आरटीआई दाखिल की है... उसे मिलने में पच्चीस छब्बीस दिन रह गये हैं....
चेट्टी - और दुसरी बात...
रॉय - उसे बार काउंसिल लाइसेंस नंबर मिलने में... उतने ही दिन बाकी है...
चेट्टी - ह्म्म्म्म बात तो सही लगती है तुम्हारी...
रॉय - इसलिए यह मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा... के विश्व अभी राजगड़ क्यूँ गया है...
चेट्टी - रॉय... बदला... जैसे तुम महांती से लेना चाहते हो... मैं पिनाक और भैरव से... केके... विक्रम सिंह से... उसी तरह... विश्व भी बदले की आग में सात सालों से जल रहा है... अगर तय वक़्त से पहले वह राजगड़ गया है... तो कोई ना कोई कांड जरुर करेगा...
रॉय - तो हम क्या करें.... क्या कोई मदत करें उस वक़्त...
चेट्टी - नहीं अभी नहीं.. फ़िलहाल तमाशा देखो...

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वीर अपने केबिन में आता है l अनु जो उसके टेबल के सामने बैठी हुई थी वह उठ खड़ी होती है और दरवाजे की ओर देखती है l वीर दरवाजा बंद कर उसके सहारे पीठ टिकाये अनु को देख रहा था l अनु शर्म से अपना सिर झुका लेती है और अपनी अपनी आँखें बंद कर लेती है l उसकी साँसें अटक अटक कर तेजी से चलने लगतीं हैं l वीर थोड़ा आगे आ कर कमरे के बीचों-बीच आकार अपनी बाहें फैला कर खड़ा हो जाता है l वैसे ही आँखे मूँदे अनु आगे बढ़ती है और वीर के बाहों के घेरे में समा जाती है l

वीर - ऐ कास के यह वक़्त थम जाए... तुम मेरी बाहों में हो... और यह जिंदगी ख़तम हो जाए....
अनु - (अपना चेहरा वीर के सीने में छुपा लेती है)
वीर - अनु...
अनु - हूँ...
वीर - कुछ कहोगी नहीं...
अनु - (वीर के सीने में चिपक कर अपना सिर ना में हिलाती है)
वीर - क्यूँ... मुझसे नाराज हो...
अनु - (वैसे ही उसे ना कहती है)
वीर - फिर... (अपने सीने से अलग करते हुए) क्या मुझ पर भरोसा नहीं है...
अनु - नहीं... ऐसा तो मैं सपने में भी नहीं सोच सकती....
वीर - फिर आज देर किस लिए हो गई...
अनु - वह मैं ऑफिस के लिए निकल ही रही थी... के मट्टू भैया हस्पताल से घर आ गए... तो इसलिए थोड़ी देर हो गई...
वीर - आह... चलो कुछ तो कहा... तरस गया था... तुम्हारी कोयल सी मीठी आवाज सुनने के लिए....


अनु फिर से शर्मा जाती है और अपना सिर झुका लेती है l वीर इस बार उसके चेहरे को अपने दोनों हाथों से उठाता है, दोनों के बीच खामोशी थी, एक दूसरे की साँस आपस में टकरा रहे थे, अनु और वीर का चेहरा एक दुसरे की ओर बढ़ रहे थे और उनकी आँखों बंद होने लगते हैं, इससे पहले कि दो होंठ आपस में मिल पाते तभी वीर की मोबाइल शोर करने लगती है l दोनों का ध्यान टूटता है l अनु झट से वीर से अलग होती है l वीर अपनी जेब से मोबाइल निकाल कर देखता है स्क्रीन पर राजगड़ दिख रहा था l

वीर - हैलो...
सुषमा - (सुबकते हुए) वीर...
वीर - माँ... तुम... रो रही हो...
सुषमा - मेरी बात को छोड़... कैसा है मेरे लाल...
वीर - (थोड़ा सीरियस होते हुए) माँ... क्या हुआ...
सुषमा - तेरे और बहू के बारे में... बड़े राजा और राजा साहब को पता चल गया है...
वीर - तो ठीक है ना माँ... यह आज नहीं तो कल होना ही था...
सुषमा - छोटे राजा की को बुला भेजा है... बड़े राजा सहाब ने... तेरी शादी की बात चलाने के लिए...
वीर - माँ... मुझे बस एक बात बताओ.... सिर्फ एक बात...
सुषमा - (खुद को सम्भाल कर) वीर... मेरी बहु बहुत अच्छी है... कुछ भी हो जाए... उसका साथ मत छोड़ना... किसी भी हालत में नहीं...
वीर - तो माँ... यही होगा... तुमने अनु को स्वीकारा है... अपना आशीर्वाद दिया है... अब कुछ भी हो जाए... अनु क्षेत्रपाल घर की बहु बनेगी... जरूर बनेगी...
सुषमा - शाबाश बेटे... अनु का साथ ऐसे निभाना... के बेटा अनु को... अपने प्यार पर... अपने विश्वास पर... फक्र हो...
वीर - ऐसा ही होगा माँ...
सुषमा - क्या बहु तेरे पास है...
वीर - हाँ... हाँ माँ...
सुषमा - फोन को स्पीकर पर डाल... (वीर वैसा ही करता है) बहु...
अनु - जी... जी माँ जी...
सुषमा - ढेर सारा आशिर्वाद बेटा...
अनु - जी माँ जी...
सुषमा - तुम दोनों का प्यार में इम्तिहान शुरु होने वाली है.... तूफ़ान आने वाला है... बस इतना कहूँगी... डट के रहना... एक दुसरे के साथ ही रहना...
अनु - जी... जी माँ जी...

फोन कट चुका था l वीर अनु के चेहरे को देखता है l अनु के चेहरे पर चमक थोड़ी फीकी पड़ गई थी l वह मुस्कराने की कोशिश करती है पर यह मुस्कराहट में वीर को वह कशिश नहीं दिखती l

वीर - डर लग रहा है...
अनु - (वीर के सीने से लग जाती है) आप बस मुझे यूहीं सीने से लगा कर रखिएगा... कोई भी तूफान हो... कैसा भी तूफान हो... मैं सामना कर लूँगी...

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वैदेही - (विश्व से) क्यूँ मुहँ फुला कर बैठा हुआ है....

वैदेही की दुकान पर विश्व खिजा हुआ लग रहा था l आज गाँव में से कोई नाश्ते के लिए आया नहीं था l भैरव सिंह के हुक्का पानी बंद की घोषणा के बाद इक्का दुक्का लोग ही आए तो थे मगर विश्व को देख कर चले भी गए l टीलु बैठ कर अपना खाना खा रहा था l पर विश्व के खाया नहीं जा रहा था l

विश्व - मैं आज देरी से आया... सोचा था... तुम्हारा व्यपार ख़तम हो गया होगा... इसलिए आया... पर...
वैदेही - देख मेरे लिए तु मायने रखता है... मुझे इस गाँव में टिकने के लिए एक बहाना चाहिए था... इसलिए यह नाश्ते और खाने की दुकान खोल ली थी... अब तू आ गया है... तो मुझे क्यूँ किसीकी फ़िकर...
गौरी - सब झूठ बोल रही है विशु... सरासर झूठ बोल रही है...
वैदेही - काकी...
गौरी - तु चुप रह... (विश्व से) विशु तेरी दीदी सिर्फ दुकान चला रही होती तो बात अलग थी... वैदेही तो यहाँ के हर घर की इज़्ज़त की रखवाली भी करती थी.... यह राजा साहब के कुत्ते... किसी को डरा कर... कर्जा दे कर... पता नहीं कौन-से कौन-से बहाने से... यहाँ की औरतों पर गंदी नजर डाले हुए थे... यही मुझे गल्ले से उठा कर पैसे ले कर... उनकी मुहँ पे मार कर... हर एक घर की इज़्ज़त बचा रही थी... गाँव वालों के लिए... राजा से और उसके पालतूओं से टकरा जा रही थी... पर जब गाँव वालों की बारी आई... उसके भाई के लिए... कोई नहीं आया...
वैदेही - बस काकी बस... खा रहा है वह... (विश्व से) देख आधे खाने से मत उठना.... क्या तुझे या मुझे मालुम नहीं था... ऐसा कुछ हो सकता है... और जब हो रहा है... तो पछताये क्यूँ...
विश्व - (कुछ नहीं कहता, एक निवाला तोड़ कर खाता है)
वैदेही - हमें अपनी लड़ाई खुद लड़नी है... वह लोग तब हमारे साथ आयेंगे... जब उनकी वज़ूद की लड़ाई उनके सामने होगी... पर उनकी उम्मीद में हम अपनी लड़ाई टी नहीं छोड़ सकते...
विश्व - (खाना खाते हुए) वाह दीदी... डैनी भाई की याद दिला दी तुमने...
वैदेही - अरे हाँ... कहाँ हैं डैनी भाई...
विश्व - पता नहीं... पर इतना जरूर जानता हूँ... उनकी नजर मुझ पर है....

टीलु और विश्व दोनों उठ कर हाथ और मुहँ धो कर आते हैं l विश्व दुकान में बैठ जाता है और टीलु बाहर बेंच पर बैठ जाता है l

वैदेही - तो... अब जब सारे गाँव वालों के बारे में जान गया... कहाँ से और कैसे शुरुआत करेगा... और कब करेगा....
विश्व - दीदी... अब आ गया हूँ तो खाली बैठ कर... मच्छर तो नहीं मारूंगा... सोच रहा हूँ... आज से ही शुरु कर दूँ... कुछ ऐसा के... भैरव सिंह तक खबर शायद ना पहुँचे... और जब पहुँचेगी... तब पानी नाक के उपर बह रही होगी...
वैदेही - तुझे क्यूँ लगता है... तु कुछ कांड करेगा... और भैरव सिंह को खबर नहीं लगेगी...
विश्व - क्यूंकि भैरव सिंह... गुस्ताखी और नाकामी किसीकी माफ नहीं करता... आज तक उसके आदमियों की नाकामी... कभी उस तक ठीक से पहुँची नहीं है...
वैदेही - तु यह कैसे कह सकता है...
विश्व - वह इसलिए... भैरव सिंह और उसके पालतू.... दोनों ही गलत फहमी में जी रहे हैं.... भैरव सिंह के नाम और रुतबे के दम पर उसके कुत्ते... आए दिन गाँव में अपनी कामिनी गिरी चलाते रहते हैं... तुमने ना जाने कितनी बार उनकी इज़्ज़त उतारी है... फिर भी सलामत हैं... मतलब तुम्हारी कोई कारस्थानी भैरव सिंह तक नहीं पहुँची है... और भैरव सिंह को गलत फहमी है कि... कोई उसके आदमियों से भिड़ने की हिम्मत तक नहीं कर सकता... बस दोनों तरफ की यह गलत फहमी को दूर करूँगा... और शुरुआत आज से ही होगी...
गौरी - बहुत अच्छे बेटा... बहुत अच्छे... तेरी करतूत के वज़ह से भैरव सिंह को जितना टेंशन देना चाहे दे... पर बेटा... अगर मौका मिले.... (अपनी दांत पिसते हुए) उस कमबख्त नकचढ़ी राजकुमारी को भी लगे हाथ सबक सिखा देना...
विश्व - क्यूँ... ऐसा क्या हो गया...
वैदेही - यह... यह क्या कह रही हो काकी... तुम्हारे चक्कर में... इसने कुछ भी किया तो... तुम्हारा जीना दूभर कर देगी वह...
गौरी - (मुहँ बनाते हुए) बड़ी आई मेरी जीना दूभर करने वाली... हूँह्ह... (विश्व से) जानता है... दो दिन पहले... उसकी गाड़ी कुछ दूरी पर खराब हो गई थी... मूई आई... और लगी नवाबी झाड़ने... मुझे तो सुनाया सुनाया... तेरी दीदी को कमरे में ले जाकर... पता नहीं... कौनसी सेवा करवाई...
विश्व - (वैदेही की ओर सवालिया नजर से देखता है)
वैदेही - (मुस्कराते हुए) ओह ओ काकी... देखना अब जब अगली मुलाकात होगी तुमसे... तुम्हारी कान गरम कर देगी...
गौरी - हाँ हाँ... जुबान तो उसके पास ही है ना... मेरे पास भी है... ढाई गज की जुबान... इस बार मिले तो सही... उसकी कान मैंने गरम ना कर दी... तो कहना...
वैदेही - (एक ग्लास पानी लेकर विश्व को देती है)
विश्व - (विश्व समझ नहीं पाता) यह गलत जगह दे रही हो...
वैदेही - नहीं... इसकी जरूरत अब तुझे पड़ेगी... ( फिर गौरी की तरफ मुड़ कर) काकी... तुम अपनी बहु के कान गरम करोगी क्या...

विश्व के हाथ से पानी की ग्लास छूट जाता है l टीलु की आँखे बड़ी हो जाती हैं और उधर गौरी का मुहँ खुला रह जाता है l

गौरी - (हकलाते हुए) क्क्क... क्या...
वैदेही - हाँ काकी... अपनी विशु की होने वाली पत्नी है...

गौरी तो गौरी, विश्व को भी जबरदस्त शॉक लगता है, विश्व वहाँ से खिसकने की सोच रहा था कि वैदेही उसके सामने खड़ी हो जाती है l

विश्व - (हकलाते हुए आवाज़ निकलती है मानों गले में कुछ फंस गया है) यह... अहेम... अहेम.. दी... दीदी... तुम... तुम... तुम्हें कैसे... मतलब...
वैदेही - चुप चाप बैठ... अगर हिलने की कोशिश भी की... तो टांगे तोड़ दूंगी... (विश्व बैठ जाता है) (अब गैरी से) तो काकी... बहु पसंद आई...
गौरी - (विश्व जैसी हालत थी) हें.. हाँ... हाँ हाँ... बहुत अच्छी है... गुणवान है... सुशील है... और... और क्या कहूँ...
वैदेही - (खिल खिला कर हँसने लगती है) हा हा हा हा...

उसे यूँ खिलखिला कर हँसते देख विश्व के आँखों में खुशी की आँसू छलक जाते हैं l बिल्कुल वही हालत गौरी की भी थी और टीलु की भी l वैदेही इतना हँसती है कि उसका पेट दुखने लगता है और बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोक कर जब सबकी आँखों में आँसू देखती है तो उसकी हँसी अपने आप रुक जाती है l

वैदेही - क्या हुआ...
गौरी - अब तक तो.. मैं उस राज कुमारी पर गुस्सा थी... पर इस बार आई... तो कदम चूम लुंगी उसकी... कभी नहीं देखा था तुझे... यूँ दिल खोल कर हँसते हुए...
विश्व - हाँ दीदी... कभी बचपन में देखा था... आज कितने सालों बाद देख रहा हूँ... तुम्हें यूँ हँसते हुए... बस दीदी तुम ऐसी ही रहो... हम दुनिया जीत लेंगे...
वैदेही - (विश्व के गाल पर हाथ फेरते हुए) तु मुझे ऐसे ही देखना चाहता है...
विश्व - (भावुक हो कर) हाँ... हाँ दीदी...
वैदेही - तो जा... मेरी बहु को मना के आ...

विश्व जिस उत्साह से हाँ कहा था, वह उत्साह गायब हो जाता है और धप कर कुर्सी पर बैठ जाता है l

वैदेही - तुम्हारी हर बात मुझे रुप ने बता दिया है... तुम दोनों की दोस्ती पहचान और प्यार... हर बात... उसके जन्म दिन को तुने किस तरह से खास बनाया... सब कुछ... (विश्व वैदेही की ओर देखता है) हाँ मेरे भाई... तु उससे भी तो प्यार करता है... तो अपने प्यार की इजहार को खास बना दे उसके लिए...
विश्व - दीदी...
वैदेही - हाँ बोल...
विश्व - वह बचपना था... मेरा... और उनका... मेरी पहचान तब हुई थी... जब मेरा बचपन छूट रहा था... और दोस्ती भी छूट गई... जब उनका बचपन छूट गया...
वैदेही - तो... तो क्या हुआ...
विश्व - (हिचकते हुए) कभी कभी लगता है... हमारे बीच शायद प्यार नहीं है... उनका मेरे प्रति... तीव्र और उग्र आकर्षण है... या यूँ कहूँ कि फटाल अट्रैक्शन है...

वैदेही उसको बिठाती है और उसके सामने बैठ जाती है l विश्व को झिझक महसुस होती है इसलिए वह अपना सिर झुका लेता है l

वैदेही - विशु... मेरी तरफ देख... (विश्व वैदेही की तरफ देखता है) आई नो एव्री थिंग... मैं एक लड़की हूँ... और लड़की की मनःस्थिति समझने में... मुझसे कोई गलती नहीं हुई है... बिकॉज इट्स अ गर्ल थिंग...

यह शब्द सुनते ही विश्व चौंकता है और हैरानी से वैदेही की तरफ देखता है l

वैदेही - तु रुप की जिंदगी में उस वक़्त आया... जब वह अपनी साये तक से डरती थी... उसे दिलासा देने के लिए... कोई नहीं था उसके पास... ना माँ... ना बाप... ना ही भाई... क्यूंकि उसके आँखों के सामने उसकी माँ की हत्या हुई थी...


यह बात सुन कर विश्व की आँखें और मुहँ हैरानी के मारे खुल जाता है l यह एक झटका था गौरी के लिए भी l

गौरी - क्या... क्या कह रही हो... रानी जी की हत्या हुई थी...
वैदेही - हाँ... और उस हत्या से... किसी ना किसी तरह से मैं जुड़ी हुई हूँ... (विश्व की आँखें और फैल जाते हैं)
गौरी - क्या... (जैसे शॉक लगा हो)
वैदेही - इसलिए अनजाने में ही... कभी ना देख कर भी... रुप मुझसे बहुत नफरत करती थी... क्यूंकि मेरी अपहरण और बर्बादी के बाद... जब भैरव सिंह महल में लौटा था.... तब रुप को सुला कर कुछ देर के लिए... रानी युवराजकुमार के कमरे में गई थी... पर उस रात रुप सोई नहीं थीं... जब कुछ देर बाद रानी नहीं लौटी... तब वह अपनी माँ को ढूंढते हुए एक और कमरे में पहुँची थी... जहाँ रंग महल में हुए व्याभिचार पर रानी और भैरव सिंह के बीच झगड़ा हो रहा था... रुप डर के मारे... दरवाजे के ओट में छुप कर देखने लगी... इतने में नशे में धुत भैरव सिंह ने... तैस में आकर रानी की गला दबा कर मार डाला... और अपना गुनाह छुपाने के लिए... उन्हीं की साड़ी को... उनके गले में डाल कर छत से टांग दिया... यह सब छोटी रुप ने देख लिया था... पर वह रो नहीं पाई... चीख नहीं पाई... किसी बुत की तरह वहीं दरवाजे के ओट पर खड़ी रह गई... सुबह जब छोटी रानी आई... रानी की लटकती लाश और बुत बनीं खड़ी रुप को देखा तो उन्हें भी बहुत गहरा सदमा लगा... रुप को उन्होंने बड़ी मुश्किल से रुलाया था.... उसके तीन महीनों बाद तु... रुप की जीवन में आया था... जिसके साथ वह हँसती थी... जिससे वह रूठ जाती थी... जिस पर वह हक जमाती थी... क्यूँकी उस बच्ची रुप... जो धीरे धीरे किशोरी होती जा रही थी... तु उसकी दुनिया बन चुका था....

विश्व यह सब सुनने के बाद एक दम से सुन हो जाता है l

वैदेही - इसलिए मेरे भाई... उसका प्यार कोई तीव्र या उग्र आकर्षण नहीं है... ब्लकि बेइंतहा... चाहत है... तुझे उसने कभी भुलाया ही नहीं... मर जाने तक कि फैसला कर चुकी थी... पर तु उसके सामने फिर जिंदगी बन कर आया... वह तुझसे इस कदर इम्प्रेस्ड है कि वह किसी से भी टकरा सकती है... (चुप हो जाती है)

सब सुनने के बाद विश्व एक गहरी साँस छोड़ता है l गौरी भी शॉक से खामोश थी l

वैदेही - तु हमेशा से... रुप के लिए खास था... और है भी... तो उसने एक खास ख्वाहिश की है... तो उसकी इस खास ख्वाहिश को... और भी खासम खास कर दे....
 

Sidd19

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